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Incest राजकुमार देव और रानी माँ रत्ना देवी

rajeshsurya

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Bhai waiting besabri se. Update dedo bhai.
 
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Ravi2019

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इस तरह दोनों मां बेटे के बीच ऐसे ही मजाक चलता रहता है। रानी रत्ना ने तो अनायास ही यह बात कह दी थी जिसको बोलने के पहले उसने सोचा भी नहीं था। वह अपने को खूब कोसने लगती है और मन में ही कहती है
हाय ये मैंने क्या बोल दिया और वह भी अपने ही पुत्र के सामने। पता नहीं वह मेरे बारे में क्या सोच रहा होगा हाय मैं कितनी कमिनी हो गई हूं, अपने ही पुत्र के सामने,,,,, छी छी। अब तो मैं देव से आंखें कैसे मिलाऊंगी!!! लेकिन एक बात तो है, मेरे पुत्र के पेशाब की धार वाकई काफी दूर तक जा रही है, हो न हो उसके अंग भी जबरदस्त होगा। ,,,, हाय ये मैं क्या सोचने लगी। कोई मां अपने पुत्र के अंगों के बारे में भला सोचता है क्या।

रत्ना, यही सोचते रहती है और चलते चलते अपने शैय्या पर आती है जो फूस की होती है और उस गुफा में बड़े से पत्थर पर बिछाई रहती है। दोनों मां बेटे वही सो जाते हैं और रत्ना को यह सब सोचते सोचते कब नींद लग जाती है, उसे पता ही नहीं चलता। उसकी नींद तो तब खुलती है जब चिड़ियों की चहचहाहट उसे सुनाई पड़ती है। रानी रत्ना पहले उठती हैं और शौच के लिए तैयारी कर रही होती है । तभी देव की भी नींद खुल जाती है। अभी तक होता यह रत्ना पहले उठती थी और देव के उठने के पहले नित्य क्रिया से निवृत्त हो कर वापस आ जाया करती थी और तब देव उठते और नित्य क्रिया के लिए जाते।

लेकिन आज रत्ना के साथ साथ देव की भी नींद खुल जाती है। इस पर रानी रत्ना ने कहा

क्या हुआ देव। आज अभी क्यों जग गए।

इस पर देव कहते हैं
माते पता नहीं क्यों आज पेट में मरोड़ हो रहा है और मुझे शौच जाने की तीव्र इच्छा हो रही है । मुझसे रुका नहीं जा रहा है।
इधर रत्ना की भी यह आदत थी कि उसे सुबह सुबह ही शौच आती थी और वह भी अपने को रोक नहीं पाती थी उसे भी अब तेज शौच आई थी। तब रत्ना ने कहा
चलो, तब तुम भी मेरे साथ चल चलो और जंगल के दूसरे कोने में बैठ कर तुम शौच कर लेना।

अभी इतना बोलना था की देव के पेट में दर्द थोड़ा और बढ़ जाता है। इधर रत्ना की भी शौच की तीव्रता बढ़ गई थी। देव भी जल्दी से उठते हैं और जंगल की ओर चल पड़ते हैं। रत्ना भी जल्दी जल्दी देव के साथ जंगल की ओर चल पड़ती है। दोनो मां बेटे साथ साथ जंगल में थोड़े खुले स्थान में पहुंचते हैं। रत्ना थोड़ा आगे बढ़ कर शौच के लिए बैठ जाती है और देव वहीं शौच के लिए बैठ जाते हैं क्यूंकि उन्हें बहुत तेज से शौच आई थी। बैठते ही देव के गुदा द्वार से तेज आवाज के साथ मल बाहर निकलता है। आवाज सुनकर रत्ना मुड़ कर देव को देखती है और उसे हसी आ जाती है । रत्ना के ऐसा देखने से देव थोड़ा शरमा जाता है और शर्म से उसके गाल लाल हो जाते हैं और होंठों पर मुस्कान आ जाती है।
रत्ना और देव एक दूसरे से अच्छी खासी दूरी पर बैठे थे। लेकिन दोनो एक दूसरे की आवाज सुन सकते थे। देव थोड़ा पीछे तो बैठे थे लेकिन उन्होंने धोती को इस तरह बांधा था कि उनका लन्ड पूरा तो नहीं दिख रहा था लेकिन लन्ड का टोपा हल्का हल्का दिख रहा था जिसे रत्ना ने हल्के से देख लिया। कई दिनों बाद लन्ड देख कर रानी रत्ना को भी अच्छा तो लगा। लेकिन लन्ड के टोपे की एक हल्की झलक ही वो देख पाई थी । किसी भी स्त्री को पुरुष का लिंग देखना उतना ही लुभाता है जितना किसी पुरूष को किसी स्त्री की योनि देखना , भले ही वह लिंग और योनि किसी की भी हो और भले ही नजदीकी रिश्तों में हो, लेकिन एक बार लिंग और योनि देखने के बाद मन तो डोल ही जाता है । यही हाल उस समय रत्ना का भी हुआ। अपने पुत्र के लन्ड की एक झलक ही उसे मदहोश कर रही थी।
तभी रत्ना के भी गुदा द्वार से पहले एक लम्बी आवाज पोओओओओओओओ के साथ एक लम्बी पाद निकल जाती है जिसकी अपेक्षा ना तो रत्ना ने ना ही देव ने की थी । पाद की आवाज सुनते ही रत्ना हस देती है और साथ ही साथ शरमा भी जाती है। देव भी जब रत्ना की पाद की आवाज सुनता है तो उसे भी हसी आ जाती है। लेकिन अपने हसने से देव भी शरमा जाता है कि मां उसके बारे में क्या सोच रही होंगी कि मैं कितना बेशरम हूं जो अपनी ही मां की पाद की आवाज सुन कर हस पड़ा। लेकिन एक बात थी कि इस दौरान रानी रत्ना थोडी दूरी पर आगे बढ़ कर शौच कर रही थी इसलिए देव किसी भी प्रकार से रत्ना की बुर नहीं देख पा रहे थे और एक बात यह भी थी की रत्ना साड़ी को घुटनों से नीचे कर के शौच कर रही थी जिस कारण उसकी बुर देखने का सवाल ही पैदा नहीं होता था। लेकिन रत्ना देव के लिंग की एक झलक पाकर ही मदहोश हो रही थी। एक तो रत्ना कई दिनों से पति से अलग होकर जंगल में छुप कर रह रही थी जिससे वह सम्भोग भी नहीं कर पा रही थी। भले ही रत्ना अपने राज्य की रानी थी, लेकिन थी तो वह एक कामुक स्त्री ही न जो प्रतिदिन अपने पति के मोटे तगड़े लिंग से चूदवाकर अपनी योनि की आग शान्त किया करती थी। रत्ना को भले ही इसके पूर्व अपने पति के साथ सम्भोग के मूल्य का पता ना हो लेकिन अब पति से दूर रह कर उसे चूदाई के मूल्य का पता चल रहा था और अब वह अपनी योनि की चूदाई के लिए तड़प रही थी।
कुछ देर बाद शौच के उपरान्त दोनों मां बेटे नित्य क्रिया से निवृत्त होकर फल फूल संग्रह के लिए भ्रमण पर निकल जाते हैं । दिन में दोनों मां बेटे के बीच हल्का फुल्का मजाक होता है, लेकिन इसके आगे कुछ नहीं। मां बेटे के बीच एक परिवर्तन जरूर आया था कि दोनों अब हल्का फुल्का मजाक करने लगें थे। रत्ना के मन में तो उन घटनाओं के बाद जिसमें देव ने अपनी जान की बाजी लगा कर उसके प्राणों की रक्षा की थी, देव के प्रति एक अलग सा समर्पण वाला प्रेम पनपने लगा था जिसकी प्रकृति को रत्ना समझ नहीं पा रही थी कि यह कैसा प्रेम है। लेकिन जो भी हो, पता नहीं क्यों रत्ना को देव का साथ अच्छा लगने लगा था। और यह स्वाभाविक भी था। इस दुनिया में कोई भी अपने प्राणों की बलि देकर दूसरे के प्राणों की रक्षा नहीं करता और यदि सामने वाला अपनी जान की परवाह किए बगैर अगर किसी के प्राणों की रक्षा करता है तो उसे इस दुनिया में उससे ज्यादा प्यार करने वाला कोई हो ही नहीं सकता । इसी कारण से रत्ना स्वाभाविक रूप से देव की ओर खीचती चली जा रही थी।
रत्ना देव के प्रति फिर पूरे दिन दोनों के बीच कुछ नहीं होता है। फिर रात होती है और दोनों रात मे सोने जा रहे होते हैं। तो रत्ना पेशाब करने के लिए गुफा से बाहर निकलती है लेकिन देव को कुछ नहीं बोलती है लेकिन देव भी थोडी देर में गुफा से बाहर निकल कर वहीं बैठ जाते हैं जहां दोनों रात्रि में पेशाब करने के लिए बैठा करते थे। रत्ना तो पहले से ही वहां बैठी थी लेकिन उसने अभी पेशाब करना शुरु नहीं किया था; शायद वह देव का इन्तजार कर रही थी। देव के आने पर दोनों पेशाब करना शुरु करते हैं। दोनो पेशाब तो करते हैं लेकिन आपस में कोई बात नहीं करते हैं। देव पेशाब करते समय अपने लिंग को थोड़ा गोल गोल घुमाने लगते हैं जिससे पेशाब की धार गोल गोल घूमते हुए गिरने लगती है और इसी बीच पेशाब की कुछ बूंदे रत्ना पर पड़ जाती है। रत्ना इस पर मुस्कुरा देती है और कहती है
आज तो तुम्हारा पेशाब दूर तक नहीं जा रहा । केवल गोल गोल घूम रहा है और देख तेरे पेशाब की बुंदे भी मेरे ऊपर पड़ रही है।
,,,,,,,,,,
इस पर देव थोड़े से शरमा जाते हैं। कुछ देर चुप रहने के बाद देव कहते हैं

माते, मुझे सुबह की बात के लिए क्षमा कर दीजिएगा

रत्ना कहती हैं,,
कौन सी बात

देव,,,,,
वही जो मै आपकी पाद सुन कर हस पड़ा था

रत्ना,,,,
इसमें कौन सी बात है। मुझे भी तो तुम्हारी आवाज सुन कर हसी आई थी। वैसे बेटा तुम भी सुबह ही उठ जाया करो
देव,,,
लेकिन माते, मुझे उठते ही हाजत महसूस होती है

रत्ना,,,,
तो इसमें क्या है, तुम भी मेरे साथ शौच के लिए चलना जैसे आज गए थे

देव,,,
लेकिन माते, सुबह तो आप शौच करती हैं न

तब रत्ना कहती हैं
क्या हो गया मैं शौच करती हूं तो। जैसे आज हमदोनो शौच कर रहे थे वैसे ही शौच कर लेंगे। वैसे भी इस घने एकान्त जंगल में हम दोनों के आलावा है ही कौन, जो एक दूसरे का ख्याल रखे । देव, हमें ही यहां एक दूसरे का ख्याल रखना है। सुबह वैसे भी मुझे जंगली जानवरों का डर सताता है।

रत्ना ने आज देव के लिंग के सुपाड़े की झलक पा ली थी जो उसे अच्छा लग रहा था और वह चाहती थी कि प्रति दिन शौच के बहाने ही उसे लौड़े का दर्शन तो हो जाए और इसीलिए उन्होने कहा कि कोई बात नहीं, तुम भी सुबह से मेरे साथ ही शौच करने चल देना।
देव रत्ना की इन बातों को सुन कर कहते हैं
ठीक है माते, आप जैसा कहे। कल सुबह से मै आपके साथ ही शौच के लिए चलूंगा ।

ऐसा कह कर देव अपने जगह से उठ कर गुफा में चले जाते हैं। फिर रत्ना मन में सोचती है
हाय दैय्या, कल से तो मुझे पुरूष के लिंग के दर्शन की संभावना बढ़ जाएगी।
ऐसा सोच कर रत्ना शरमा जाती है और वह भी गुफा में सोने चली जाती है।
दोनो मां बेटे रात में गुफा में सोते हैं और सुबह उठ कर पिछले दिन की भांति शौच के लिए जंगल में चले जाते हैं और एक दूसरे से कुछ दूरी पर बैठ जाते हैं शौच करते समय रत्ना अपनी जगह से देव को देखने की कोशिश करती है कि उसे देव के लिंग का सुपाड़ा दिख जाए। वह अपने को एक तरफ कोसती भी है कि देव तो मेरा पुत्र है वही दूसरी तरफ वह ये सोचती है कि मुझे लिंग देखे हुए कितने दिन हो गए और इस जंगल में और कोई दुसरा लिंग भी नहीं है जिसे देख सकूं। रत्ना जितना सोचती उतना ही उसका मन लिंग देखने को सोचने लगता। कुछ दिन ऐसे ही चलता रहा और रत्ना कभी कभी देव के लिंग की एक झलक देख पाती थी । इसके अलावा दोनों के बीच कुछ नहीं हुआ।
ऐसे ही समय कटने लगा। एक रात को दोनों मां बेटे गुफा में सोएं हुए थे। भोर का समय था। रानी रत्ना एक कामुक सपना देख रही थी जिसमें वह देखती है कि वह एक पुरूष के लिंग को पकड़ रही हैं । उनकी काम भावना उफान मार रही थी । और कहते हैं ना कि भोर में पुरूष और स्त्री की काम भावना काफी प्रबल होती है । तो रत्ना तो गरम थी ही। देव का भी लौड़ा भी खड़ा था। रत्ना काम वासना से ओत प्रोत होकर अपने हाथ देव के पेट पर रख देती है। उसे स्वप्न में इस बात का जरा भी भान नहीं था कि वह अपने पुत्र देव के बगल में सोई हुई है। रत्ना काफी दिनों से गरम तो थी ही, पुरुष के शरीर का स्पर्श उसकी काम भावना को भड़का रहा था। लेकिन नींद में रत्ना को यह अहसास नहीं था की वह पुरूष कोई और नहीं उसका पुत्र है। रत्ना नींद में ही अपना हाथ देव के पेट और फिर कमर पर फिराने लगती हैं। तभी रत्ना का हाथ अचानक से देव के खड़े लन्ड से टकरा जाता है । लन्ड से हाथ टकराते ही रत्ना पूरे लन्ड को अपने हाथ से पकड़ कर मुठिया लेती है। उसे नींद में भी लंद का स्पर्श अच्छा लग रहा था। वह ऐसा महसूस कर रही थी मानो उसने वास्तविकता में ही लन्ड पकड़ लिया हो जो सत्य भी था। रानी रत्ना प्यासी तो थी ही वह, इसलिए लन्ड को अपने हाथ से छोड़ नहीं रही थी। उसके स्तन कामुकता से तन जाते हैं और योनि भी पनियाने लगती है। वह लन्ड को धोती के ऊपर से ही सहलाने लगती है। काफी दिनों बाद रानी रत्ना ने लिंग को पकड़ा था। इसलिए वह काफी उत्तेजित हो जाती है और उत्तेजनावश उनकी योनि पानी छोड़ देती है। इसके बाद रानी रत्ना शान्त हो जाती हैं और फिर तभी अचानक से रत्ना की नींद खुल गई। तो उसने देखा कि उसका हाथ अपने पुत्र के लन्ड पर है जो खड़ा था। देव का खड़े लन्ड को धोती में ही देख कर रानी रत्ना गनगना जाती है। उसे धीरे धीरे सब याद आने लगता है कि वह सपना देख रही थी और सपने में ही अपने पुत्र का लन्ड पकड़ ली थी। वह खुद को मन ही मन कोसने लगती है उसने यह क्या कर दिया। लेकिन अभी भी रत्ना का हाथ देव के लन्ड पर ही था जो स्त्री के हाथ का स्पर्श पाकर और खड़ा और कड़क हो गया था। रत्ना को ग्लानि तो हो रही थी कि उसने देव के लिंग को पकड़ लिया है लेकिन दूसरी ओर वह मन ही मन सोचती है कि
देव तो सो रहा है उसे क्या पता कि मैने उसका लन्ड पकड़ रखा है और वैसे भी वह तो मेरा प्यारा पुत्र है जो मुझसे इतना प्यार करता है कि मेरे लिए उसने कई बार अपनी जान की बाजी भी लगा दी है । हाय कितना प्यार करता है मुझसे। इस पुरे विश्व में ऐसा कोई भी नहीं होगा कि जो मुझसे इतना प्यार करता है कि मेरे प्राणों की रक्षा के लिए अपना जीवन दाव पर लगा दे। हाय कितना प्यारा दिख रहा है और देखो कितने निश्छल भाव से सो रहा है। इस पर मेरा जीवन कुर्बान है। मेरा जीवन इसका उधार है। कहते हैं कि मां के दूध का कर्ज कोई पुत्र नहीं उतार सकता। लेकिन यहां तो पुत्र के साहस का कर्ज उसकी मां नहीं उतार सकती। इसका चेहरा तो देखो कितना शान्त है और चेहरे पे ओज और तेज तो देखो, आंखे लगातार नही देख सकती हैं।
यही सोचते सोचते रानी रत्ना देव के ललाट पर एक प्यारा सा चुम्बन जड़ कर प्यार करती है और फिर उसके गाल पर भी चुम्बन जड़ देती हैं। रत्ना के इस तरह चुम्बन लेने से देव को कुछ अनुभूति होती है तो देव के शरीर में एक हल चल होती है। अचानक हुए इस हलचल से रत्ना तुरन्त देव के लिंग से अपना हाथ हटा लेटी है और तुरन्त देव के बगल में उसकी तरफ करवट ले कर सो जाती है और अपनी आंखें बन्द कर लेती है।
देव धीरे धीरे जगते है और उन्हें लगता है कि स्वपन में उन्हें बहुत अछा लग रहा था। तभी देव देखते हैं कि उनका लन्ड उनकी धोती में टनटना कर खड़ा है। उन्होंने अपने लन्ड को कभी इतना कड़क होकर खड़ा नहीं देखा था। उन्हें क्या पता था कि कोई और नहीं बल्कि उनकी मां रत्ना के कोमल हाथों का स्पर्श पाकर उनका लन्ड खुश हो कर इस तरह से उत्तेजित हो कर खड़ा है। देव उत्तेजित तो थे ही। उन्होंने अपने लन्ड को अपने हाथ से पकड़ लिया और उसे पकड़ कर धीरे धीरे सहलाने लगे। इस तरह से लंद सहलाना उन्हें अच्छा तो लग ही रहा था और उनकी काम भावना किसी स्त्री के साथ सम्भोग के लिए इन्हें आतुर किए जा रही थी और उनका लन्ड और कड़क हो रहा था। तभी उनकी नजर बगल में सोई अपनी मां रानी रत्ना पर पड़ती है जो देव की ओर पीठ करके सोई थी। देव एक बार उपर से नीचे तक रत्ना को देखते हैं। उनकी नंगी पीठ और कमर देव को और आकर्षित कर रहे थे। देव उत्तेजित तो थे ही और ऊपर से रत्ना की नंगी गोरी कमर उनकी भावना को भड़का रही थी। आखिर रत्ना थी जो इतनी गोरी और सुन्दर। रत्ना के उन्नत नितम्ब देव के मन को झकझोर दे रहे थे। आज पहली बार देव ने अपनी मां रानी रत्ना को एक स्त्री के रूप में देखा था, । वह सोच भी नहीं सकते थे कि उनकी मां इतनी सुन्दर है। देव वही रत्ना को देख देख कर अपना लन्ड हाथ में पकड़ कर हस्तमैथुन करने लगते हैं। अपनी मां को देख कर हस्तमैथुन करना उन्हें अलग अनुभूति दे रहा था। हस्तमैथुन करते करते देव अपनी मां के शरीर को लगातार देख कर उत्तेजित हुए जा रहे थे और जोर जोर से अपने लन्ड को रगड़ रहे थे और उत्तेजनावश वही पे झड़ जाते हैं। झड़ने के बाद देव को यह अहसास होता है कि उसने यह क्या कर दिया। धिक्कार है उसे जो उसने अपनी मां को देख कर अपना लन्ड रगड़ा। लेकिन फिर वह दूसरी ओर सोचता है कि जो कहो मेरी मां हैं बहुत सुन्दर। पिता जी कितने भाग्यशाली हैं कि उन्हे मां जैसी सुन्दर स्त्री पत्नी के रूप में मिली। लेकिन चलो यह अच्छा है कि मां सोई हैं और उन्हे यह पता नहीं चला कि मैं उन्हें ही देख कर अपना लन्ड हिला रहा था। यही सोचते सोचते देव फिर लेट जाते हैं और फिर सो जाते हैं। थोड़ी देर बाद रत्ना उठने का दिखावा करती है और फिर देव को भी जगाती है और कहती हैं कि
चलो पुत्र उठो, चलो सुबह हो गई, शौच के लिए चलते हैं।
दोनों मां बेटे उठते हैं और शौच के लिए जंगल में नियत स्थान पर चलें जाते हैं। इधर कुछ दिनों से दोनों मां बेटे एक साथ के लिए ही शौच करने जाया करते थे। शुरु मे तो दोनो एक दूसरे से एक नियत दूरी बना कर बैठा करते थे। रानी रत्ना थोड़ा आगे बैठा करती और देव उनसे थोड़ा हट कर रत्ना के तिरछे बैठा करते थे जिससे होता यह था कि देव रत्ना के किसी अंग को देख नहीं पाते थे लेकिन रत्ना यदि अपना सिर थोड़ा भी देव की ओर घुमाती तो देव के लम्बे लटकते लौड़े के गुलाबी सुपाड़े की झलक पा जाती थी जो रत्ना की कामभावना को भड़का देती थी। रत्ना मन ही मन अपने को धिक्कारती भी थी कि वह कैसी मां है जो अपने ही पुत्र के लन्ड को देखने को व्याकुल रहती है। लेकिन फिर वह सोचती कि इस वीरान जंगल में हम ही दोनों स्त्री पुरूष हैं, तो यह तो स्वाभाविक ही है कि अगर मैं किसी पुरूष का लन्ड देखूं, तो मैं केवल अपने पुत्र का ही देख सकती हूं। आखिर मैं भी तो एक स्त्री हूं जो पुरूष के लिंग को देखने को व्याकुल है।
इधर कुछ दिनों से शौच के लिए साथ मे बैठने से एक परिवर्तन यह आया था कि दोनों मां बेटे अब धीरे धीरे करते हुए एक दूसरे के नजदीक होकर बैठने लगे थे। अब तो दोनों मां बेटे एक साथ ही शौच के लिए बैठने लगे थे। दोनों अगल बगल बैठ कर बाते भी करते और रानी रत्ना अब बड़े आराम से देव के लन्ड का दीदार कर पाती थी लेकिन देव अभी भी रत्ना के किसी अंग को देख नहीं पाए थे क्योंकि रत्ना जब शौच से निवृत्त होकर झील की ओर जाने के लिए उठती वह अपनी साड़ी को घुटने तक गिरा लिया करती थी जिससे रत्ना के गुप्त अंग छिप जाया करते थे। वैसे तो देव भी अपनी धोती थोड़ी नीचे कर लिया करते थे लेकिन उनका लन्ड की झलक धोती के ऊपर से दिख जाया करती थी। इसके बाद दोनों झील के अलग अलग किनारों पर जाकर खुद को साफ करते और नहाया करते थे। होता यह था कि रत्ना जब पहले अकेले शौच के लिए आती थी तब वह स्नान कर के वापस जाया करती थी और तब देव को उठाया करती थी लेकिन अब तो दोनो मां बेटे साथ ही शौच के लिए आया करते थे और दोनों झील के किनारे पर अलग अलग स्थानों पर स्नान कर के जाया करते थे। ऐसे ही दिन बीतने लगे और दोनों मां बेटे खुशी खुशी एक साथ रह रहे थे।
लेकिन एक दिन जब रत्ना स्नान कर रही थी तो उसने सोचा क्यों ना मिट्टी का लेप लगा कर स्नान कर लूं। तो उसने पूरे शरीर पर मिट्टी का लेप लगा लिया और धूप में बैठ गई जब मिट्टी उसके शरीर पर सुख गई तो वह स्नान करने के लिए झील में प्रवेश करने लगीं ताकि वह अच्छे से मिट्टी छुड़ा कर स्नान कर सके । रत्ना झील में प्रवेश कर आराम से हाथ नीचे ले जाकर अपने पैर की मिट्टी को धो रही थी और हां एक बात और रत्ना जब स्नान करती थी तब वह अपने वस्त्रों को उतार कर पूरी नंगी हो कर नहाया करती क्योंकि इनके पास कपड़े बहुत कम थे।
इधर देव नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्नान करने के उपरान्त अपनी मां रानी रत्ना का इन्तजार कर रहे थे। लेकिन आज अनावश्यक विलंब हो रहा था जिससे वे थोड़े चिंतित हो रहे थे। उन्हें हमेशा इस बात का भय लगा रहता था कि कहीं दुश्मन सैनिक इन्हें खोजते हुए फिर ना पहुंच जाएं । यही सोच सोच कर देव और घबरा जाते हैं उन्हें क्या पता था कि उनकी मां आज मृदा स्नान कर रही हैं। अनावश्यक विलम्ब होने पर देव अपनी मां रत्ना को खोजने के लिए झील के उस किनारे पर पहुंचते हैं जहां रानी रत्ना नित्य क्रिया किया करती थीं। देव उस किनारे की ओर बढ़ते हैं और जैसे ही जंगल के पेड़ो के बीच से होते हुए झील के किनारे पहुंचते हैं वो कुछ ऐसा देखते हैं जिसकी कल्पना उन्होंने नही की थी। झील के किनारे पहुंचते ही वह देखते हैं कि उनकी मां रानी रत्ना झील के पानी में कमर तक खड़ी है और देव की ओर पीठ की हुई है, लेकिन खास बात ये थी कि रत्ना उपर से बिल्कुल नंगी थी और अपने शरीर पर मिट्टी लपेटे हुईं थी। तभी रत्ना एक बार डुबकी लगाती हैं और केवल अपना सिर पानी के बाहर निकालती हैं। पानी के अन्दर वो अपना हाथ डाल कर पीठ पेट और वक्ष स्थल पर से मिट्टी रगड़ रगड़ कर हटा देती हैं और शरीर रगड़ रगड़ कर नहाती है। नहाने के बाद रत्ना फिर खड़ी होती हैं और कमर तक पानी में खड़ी रहती है। जब रत्ना इस बार पानी से उपर आती है तो उसकी नंगी गोरी पीठ देव की दिखती है। अपनी मां की पहली बार नंगी पीठ देख कर देव की भी काम भावना उफान पर आ जाती है और उसके लन्ड में तनाव आने लगता है। देव ने आज तक किसी स्त्री की नंगी पीठ नही देखी थी जो आज देख कर उसे मजा आ गया । तभी देव को लगा कि मां घूमने वाली है, तन देव पेड़ की ओट में छुप गया और अपनी मां रानी रत्ना को छुप कर देखने लगा। तभी देव ने वह देखा जिसकी कल्पना देव ने कभी नहीं की थी, आज वह अपने जीवन की सबसे खूबसूरत चीज देखने जा रहा था। रानी रत्ना नहा चुकी थी और अब झील से बाहर आने के लिए वह जैसे घूमती है वैसे ही देव की आंखों के सामने उसकी मां रत्ना के नंगे स्तन दिखने लगते हैं जो बिलकुल संगमरमर सी गोरी और खरबूजे के आकार की थी। अपनी मां को कमर के ऊपर पूरी नंगी देख कर देव और उत्तेजित हो जाते हैं आखिर रत्ना थी जो इतनी खूबसूरत। रत्ना की गोरी गोरी चूची और भूरे चूचुक देव को और उत्तेजित कर रहे थे, वह अपनी मां की खूबसूरती में ऐसे खो गया कि वह ये भूल गया कि सामने जो औरत झील में कमर के ऊपर नंगी खड़ी है, वह और कोई नहीं उसकी मां है। काम भावना जब प्रबल हो जाती है तब आदमी यह भुल जाता है कि सामने वाली औरत उसकी मां है या बहन । वही हाल अभी देव का था। वह अपनी मां की सुन्दरता मे खो गया था, और उसका लन्ड धोती में एकदम खड़ा हो गया था जिस पर अनजाने में ही देव का हाथ चला गया था और वह अपनी मां के नंगे स्तन को देख कर हाथ से अपने लन्ड को रगड़ रहा था। रत्ना गोरी तो इतनी थीं कि उनकी चूची सूर्य की किरणों से चमक रही थी। देव का अपनी जिन्दगी में औरत के अर्द्ध नग्न शरीर को देखने का यह पहला मौका था जिसके कारण उनका लन्ड उत्तेजनावश धोती से बाहर निकल कर ऐसे खड़ा था मानो रत्ना की नग्नता को सलामी दे रहा हो !! देव रत्ना को देख लगातार लन्ड हिलाए जा रहे थे तभी रानी रत्ना फिर एक डुबकी लेती है और एक दो कदम आगे बढ़ाती है। इसका मतलब था कि अब वह बाहर निकलने वाली है। अतः देव ने वहां से निकल जाना ही उचित समझा। देव पेड़ की ओट में छुपे हुए तो थे ही, वह तुरन्त पेड़ से पीछे हट जाते हैं और जंगल में कुछ दूर जाकर बैठ जाते हैं और रत्ना का इंतजार करने लगते हैं। इधर रत्ना नहा कर बाहर निकलती है और गुफा की ओर चल पड़ती है।
 
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Ravi2019

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Excellent update Bhai 😊 ☺️

बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
राजकुमार देव ने रानी रत्ना की दो बार जान बचाई जिससे रानी देव से काफी प्रभावित हो गई
लगता हैं दोनों माँ बेटे के बीच जंगल में मंगल हो कर चुदाई का दंगल होने की संभावना लगती हैं खैर देखते हैं आगे
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा

बहुत ही सुंदर लाजवाब और मजेदार अपडेट है भाई मजा आ गया
ये रात को गुफा के बाहर पेशाब वाला खेल जल्दी ही चुदाई के दंगल में बदलने वाला हैं
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा

Bahut hi behtarin updates… 👏🏻👏🏻👏🏻

बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट

Aaaaaahhhh maa bete ki peshaab ka khel. Bahut kaamuk hain. Looking forward for next peshaab competition aur maa bete ek dusre ke peshaab ki dhaar ka varnan karne ka .. waiting......

Awesome update keep it up

Nice update.

Jabardast update diya hai apne

Kahni ko aage badhao bhai

Waiting for your update

Bhai waiting besabri se. Update dedo bhai.

मां की बुर खुजलाने लगी है बेटे के लंड के लिए,
Thanks to all , update posted
 
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sunoanuj

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Bahut hi behtarin updates…
 

rajeshsurya

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इस तरह दोनों मां बेटे के बीच ऐसे ही मजाक चलता रहता है। रानी रत्ना ने तो अनायास ही यह बात कह दी थी जिसको बोलने के पहले उसने सोचा भी नहीं था। वह अपने को खूब कोसने लगती है और मन में ही कहती है
हाय ये मैंने क्या बोल दिया और वह भी अपने ही पुत्र के सामने। पता नहीं वह मेरे बारे में क्या सोच रहा होगा हाय मैं कितनी कमिनी हो गई हूं, अपने ही पुत्र के सामने,,,,, छी छी। अब तो मैं देव से आंखें कैसे मिलाऊंगी!!! लेकिन एक बात तो है, मेरे पुत्र के पेशाब की धार वाकई काफी दूर तक जा रही है, हो न हो उसके अंग भी जबरदस्त होगा। ,,,, हाय ये मैं क्या सोचने लगी। कोई मां अपने पुत्र के अंगों के बारे में भला सोचता है क्या।

रत्ना, यही सोचते रहती है और चलते चलते अपने शैय्या पर आती है जो फूस की होती है और उस गुफा में बड़े से पत्थर पर बिछाई रहती है। दोनों मां बेटे वही सो जाते हैं और रत्ना को यह सब सोचते सोचते कब नींद लग जाती है, उसे पता ही नहीं चलता। उसकी नींद तो तब खुलती है जब चिड़ियों की चहचहाहट उसे सुनाई पड़ती है। रानी रत्ना पहले उठती हैं और शौच के लिए तैयारी कर रही होती है । तभी देव की भी नींद खुल जाती है। अभी तक होता यह रत्ना पहले उठती थी और देव के उठने के पहले नित्य क्रिया से निवृत्त हो कर वापस आ जाया करती थी और तब देव उठते और नित्य क्रिया के लिए जाते।

लेकिन आज रत्ना के साथ साथ देव की भी नींद खुल जाती है। इस पर रानी रत्ना ने कहा

क्या हुआ देव। आज अभी क्यों जग गए।

इस पर देव कहते हैं
माते पता नहीं क्यों आज पेट में मरोड़ हो रहा है और मुझे शौच जाने की तीव्र इच्छा हो रही है । मुझसे रुका नहीं जा रहा है।
इधर रत्ना की भी यह आदत थी कि उसे सुबह सुबह ही शौच आती थी और वह भी अपने को रोक नहीं पाती थी उसे भी अब तेज शौच आई थी। तब रत्ना ने कहा
चलो, तब तुम भी मेरे साथ चल चलो और जंगल के दूसरे कोने में बैठ कर तुम शौच कर लेना।

अभी इतना बोलना था की देव के पेट में दर्द थोड़ा और बढ़ जाता है। इधर रत्ना की भी शौच की तीव्रता बढ़ गई थी। देव भी जल्दी से उठते हैं और जंगल की ओर चल पड़ते हैं। रत्ना भी जल्दी जल्दी देव के साथ जंगल की ओर चल पड़ती है। दोनो मां बेटे साथ साथ जंगल में थोड़े खुले स्थान में पहुंचते हैं। रत्ना थोड़ा आगे बढ़ कर शौच के लिए बैठ जाती है और देव वहीं शौच के लिए बैठ जाते हैं क्यूंकि उन्हें बहुत तेज से शौच आई थी। बैठते ही देव के गुदा द्वार से तेज आवाज के साथ मल बाहर निकलता है। आवाज सुनकर रत्ना मुड़ कर देव को देखती है और उसे हसी आ जाती है । रत्ना के ऐसा देखने से देव थोड़ा शरमा जाता है और शर्म से उसके गाल लाल हो जाते हैं और होंठों पर मुस्कान आ जाती है।
रत्ना और देव एक दूसरे से अच्छी खासी दूरी पर बैठे थे। लेकिन दोनो एक दूसरे की आवाज सुन सकते थे। देव थोड़ा पीछे तो बैठे थे लेकिन उन्होंने धोती को इस तरह बांधा था कि उनका लन्ड पूरा तो नहीं दिख रहा था लेकिन लन्ड का टोपा हल्का हल्का दिख रहा था जिसे रत्ना ने हल्के से देख लिया। कई दिनों बाद लन्ड देख कर रानी रत्ना को भी अच्छा तो लगा। लेकिन लन्ड के टोपे की एक हल्की झलक ही वो देख पाई थी । किसी भी स्त्री को पुरुष का लिंग देखना उतना ही लुभाता है जितना किसी पुरूष को किसी स्त्री की योनि देखना , भले ही वह लिंग और योनि किसी की भी हो और भले ही नजदीकी रिश्तों में हो, लेकिन एक बार लिंग और योनि देखने के बाद मन तो डोल ही जाता है । यही हाल उस समय रत्ना का भी हुआ। अपने पुत्र के लन्ड की एक झलक ही उसे मदहोश कर रही थी।
तभी रत्ना के भी गुदा द्वार से पहले एक लम्बी आवाज पोओओओओओओओ के साथ एक लम्बी पाद निकल जाती है जिसकी अपेक्षा ना तो रत्ना ने ना ही देव ने की थी । पाद की आवाज सुनते ही रत्ना हस देती है और साथ ही साथ शरमा भी जाती है। देव भी जब रत्ना की पाद की आवाज सुनता है तो उसे भी हसी आ जाती है। लेकिन अपने हसने से देव भी शरमा जाता है कि मां उसके बारे में क्या सोच रही होंगी कि मैं कितना बेशरम हूं जो अपनी ही मां की पाद की आवाज सुन कर हस पड़ा। लेकिन एक बात थी कि इस दौरान रानी रत्ना थोडी दूरी पर आगे बढ़ कर शौच कर रही थी इसलिए देव किसी भी प्रकार से रत्ना की बुर नहीं देख पा रहे थे और एक बात यह भी थी की रत्ना साड़ी को घुटनों से नीचे कर के शौच कर रही थी जिस कारण उसकी बुर देखने का सवाल ही पैदा नहीं होता था। लेकिन रत्ना देव के लिंग की एक झलक पाकर ही मदहोश हो रही थी। एक तो रत्ना कई दिनों से पति से अलग होकर जंगल में छुप कर रह रही थी जिससे वह सम्भोग भी नहीं कर पा रही थी। भले ही रत्ना अपने राज्य की रानी थी, लेकिन थी तो वह एक कामुक स्त्री ही न जो प्रतिदिन अपने पति के मोटे तगड़े लिंग से चूदवाकर अपनी योनि की आग शान्त किया करती थी। रत्ना को भले ही इसके पूर्व अपने पति के साथ सम्भोग के मूल्य का पता ना हो लेकिन अब पति से दूर रह कर उसे चूदाई के मूल्य का पता चल रहा था और अब वह अपनी योनि की चूदाई के लिए तड़प रही थी।
कुछ देर बाद शौच के उपरान्त दोनों मां बेटे नित्य क्रिया से निवृत्त होकर फल फूल संग्रह के लिए भ्रमण पर निकल जाते हैं । दिन में दोनों मां बेटे के बीच हल्का फुल्का मजाक होता है, लेकिन इसके आगे कुछ नहीं। मां बेटे के बीच एक परिवर्तन जरूर आया था कि दोनों अब हल्का फुल्का मजाक करने लगें थे। रत्ना के मन में तो उन घटनाओं के बाद जिसमें देव ने अपनी जान की बाजी लगा कर उसके प्राणों की रक्षा की थी, देव के प्रति एक अलग सा समर्पण वाला प्रेम पनपने लगा था जिसकी प्रकृति को रत्ना समझ नहीं पा रही थी कि यह कैसा प्रेम है। लेकिन जो भी हो, पता नहीं क्यों रत्ना को देव का साथ अच्छा लगने लगा था। और यह स्वाभाविक भी था। इस दुनिया में कोई भी अपने प्राणों की बलि देकर दूसरे के प्राणों की रक्षा नहीं करता और यदि सामने वाला अपनी जान की परवाह किए बगैर अगर किसी के प्राणों की रक्षा करता है तो उसे इस दुनिया में उससे ज्यादा प्यार करने वाला कोई हो ही नहीं सकता । इसी कारण से रत्ना स्वाभाविक रूप से देव की ओर खीचती चली जा रही थी।

रत्ना देव के प्रति फिर पूरे दिन दोनों के बीच कुछ नहीं होता है। फिर रात होती है और दोनों रात मे सोने जा रहे होते हैं। तो रत्ना पेशाब करने के लिए गुफा से बाहर निकलती है लेकिन देव को कुछ नहीं बोलती है लेकिन देव भी थोडी देर में गुफा से बाहर निकल कर वहीं बैठ जाते हैं जहां दोनों रात्रि में पेशाब करने के लिए बैठा करते थे। रत्ना तो पहले से ही वहां बैठी थी लेकिन उसने अभी पेशाब करना शुरु नहीं किया था; शायद वह देव का इन्तजार कर रही थी। देव के आने पर दोनों पेशाब करना शुरु करते हैं। दोनो पेशाब तो करते हैं लेकिन आपस में कोई बात नहीं करते हैं। देव पेशाब करते समय अपने लिंग को थोड़ा गोल गोल घुमाने लगते हैं जिससे पेशाब की धार गोल गोल घूमते हुए गिरने लगती है और इसी बीच पेशाब की कुछ बूंदे रत्ना पर पड़ जाती है। रत्ना इस पर मुस्कुरा देती है और कहती है
आज तो तुम्हारा पेशाब दूर तक नहीं जा रहा । केवल गोल गोल घूम रहा है और देख तेरे पेशाब की बुंदे भी मेरे ऊपर पड़ रही है।
,,,,,,,,,,
इस पर देव थोड़े से शरमा जाते हैं। कुछ देर चुप रहने के बाद देव कहते हैं

माते, मुझे सुबह की बात के लिए क्षमा कर दीजिएगा

रत्ना कहती हैं,,
कौन सी बात

देव,,,,,
वही जो मै आपकी पाद सुन कर हस पड़ा था

रत्ना,,,,
इसमें कौन सी बात है। मुझे भी तो तुम्हारी आवाज सुन कर हसी आई थी। वैसे बेटा तुम भी सुबह ही उठ जाया करो
देव,,,
लेकिन माते, मुझे उठते ही हाजत महसूस होती है

रत्ना,,,,
तो इसमें क्या है, तुम भी मेरे साथ शौच के लिए चलना जैसे आज गए थे

देव,,,
लेकिन माते, सुबह तो आप शौच करती हैं न

तब रत्ना कहती हैं
क्या हो गया मैं शौच करती हूं तो। जैसे आज हमदोनो शौच कर रहे थे वैसे ही शौच कर लेंगे। वैसे भी इस घने एकान्त जंगल में हम दोनों के आलावा है ही कौन, जो एक दूसरे का ख्याल रखे । देव, हमें ही यहां एक दूसरे का ख्याल रखना है। सुबह वैसे भी मुझे जंगली जानवरों का डर सताता है।

रत्ना ने आज देव के लिंग के सुपाड़े की झलक पा ली थी जो उसे अच्छा लग रहा था और वह चाहती थी कि प्रति दिन शौच के बहाने ही उसे लौड़े का दर्शन तो हो जाए और इसीलिए उन्होने कहा कि कोई बात नहीं, तुम भी सुबह से मेरे साथ ही शौच करने चल देना।
देव रत्ना की इन बातों को सुन कर कहते हैं
ठीक है माते, आप जैसा कहे। कल सुबह से मै आपके साथ ही शौच के लिए चलूंगा ।

ऐसा कह कर देव अपने जगह से उठ कर गुफा में चले जाते हैं। फिर रत्ना मन में सोचती है
हाय दैय्या, कल से तो मुझे पुरूष के लिंग के दर्शन की संभावना बढ़ जाएगी।
ऐसा सोच कर रत्ना शरमा जाती है और वह भी गुफा में सोने चली जाती है।

दोनो मां बेटे रात में गुफा में सोते हैं और सुबह उठ कर पिछले दिन की भांति शौच के लिए जंगल में चले जाते हैं और एक दूसरे से कुछ दूरी पर बैठ जाते हैं शौच करते समय रत्ना अपनी जगह से देव को देखने की कोशिश करती है कि उसे देव के लिंग का सुपाड़ा दिख जाए। वह अपने को एक तरफ कोसती भी है कि देव तो मेरा पुत्र है वही दूसरी तरफ वह ये सोचती है कि मुझे लिंग देखे हुए कितने दिन हो गए और इस जंगल में और कोई दुसरा लिंग भी नहीं है जिसे देख सकूं। रत्ना जितना सोचती उतना ही उसका मन लिंग देखने को सोचने लगता। कुछ दिन ऐसे ही चलता रहा और रत्ना कभी कभी देव के लिंग की एक झलक देख पाती थी । इसके अलावा दोनों के बीच कुछ नहीं हुआ।
ऐसे ही समय कटने लगा। एक रात को दोनों मां बेटे गुफा में सोएं हुए थे। भोर का समय था। रानी रत्ना एक कामुक सपना देख रही थी जिसमें वह देखती है कि वह एक पुरूष के लिंग को पकड़ रही हैं । उनकी काम भावना उफान मार रही थी । और कहते हैं ना कि भोर में पुरूष और स्त्री की काम भावना काफी प्रबल होती है । तो रत्ना तो गरम थी ही। देव का भी लौड़ा भी खड़ा था। रत्ना काम वासना से ओत प्रोत होकर अपने हाथ देव के पेट पर रख देती है। उसे स्वप्न में इस बात का जरा भी भान नहीं था कि वह अपने पुत्र देव के बगल में सोई हुई है। रत्ना काफी दिनों से गरम तो थी ही, पुरुष के शरीर का स्पर्श उसकी काम भावना को भड़का रहा था। लेकिन नींद में रत्ना को यह अहसास नहीं था की वह पुरूष कोई और नहीं उसका पुत्र है। रत्ना नींद में ही अपना हाथ देव के पेट और फिर कमर पर फिराने लगती हैं। तभी रत्ना का हाथ अचानक से देव के खड़े लन्ड से टकरा जाता है । लन्ड से हाथ टकराते ही रत्ना पूरे लन्ड को अपने हाथ से पकड़ कर मुठिया लेती है। उसे नींद में भी लंद का स्पर्श अच्छा लग रहा था। वह ऐसा महसूस कर रही थी मानो उसने वास्तविकता में ही लन्ड पकड़ लिया हो जो सत्य भी था। रानी रत्ना प्यासी तो थी ही वह, इसलिए लन्ड को अपने हाथ से छोड़ नहीं रही थी। उसके स्तन कामुकता से तन जाते हैं और योनि भी पनियाने लगती है। वह लन्ड को धोती के ऊपर से ही सहलाने लगती है। काफी दिनों बाद रानी रत्ना ने लिंग को पकड़ा था। इसलिए वह काफी उत्तेजित हो जाती है और उत्तेजनावश उनकी योनि पानी छोड़ देती है। इसके बाद रानी रत्ना शान्त हो जाती हैं और फिर तभी अचानक से रत्ना की नींद खुल गई। तो उसने देखा कि उसका हाथ अपने पुत्र के लन्ड पर है जो खड़ा था। देव का खड़े लन्ड को धोती में ही देख कर रानी रत्ना गनगना जाती है। उसे धीरे धीरे सब याद आने लगता है कि वह सपना देख रही थी और सपने में ही अपने पुत्र का लन्ड पकड़ ली थी। वह खुद को मन ही मन कोसने लगती है उसने यह क्या कर दिया। लेकिन अभी भी रत्ना का हाथ देव के लन्ड पर ही था जो स्त्री के हाथ का स्पर्श पाकर और खड़ा और कड़क हो गया था। रत्ना को ग्लानि तो हो रही थी कि उसने देव के लिंग को पकड़ लिया है लेकिन दूसरी ओर वह मन ही मन सोचती है कि
देव तो सो रहा है उसे क्या पता कि मैने उसका लन्ड पकड़ रखा है और वैसे भी वह तो मेरा प्यारा पुत्र है जो मुझसे इतना प्यार करता है कि मेरे लिए उसने कई बार अपनी जान की बाजी भी लगा दी है । हाय कितना प्यार करता है मुझसे। इस पुरे विश्व में ऐसा कोई भी नहीं होगा कि जो मुझसे इतना प्यार करता है कि मेरे प्राणों की रक्षा के लिए अपना जीवन दाव पर लगा दे। हाय कितना प्यारा दिख रहा है और देखो कितने निश्छल भाव से सो रहा है। इस पर मेरा जीवन कुर्बान है। मेरा जीवन इसका उधार है। कहते हैं कि मां के दूध का कर्ज कोई पुत्र नहीं उतार सकता। लेकिन यहां तो पुत्र के साहस का कर्ज उसकी मां नहीं उतार सकती। इसका चेहरा तो देखो कितना शान्त है और चेहरे पे ओज और तेज तो देखो, आंखे लगातार नही देख सकती हैं।
यही सोचते सोचते रानी रत्ना देव के ललाट पर एक प्यारा सा चुम्बन जड़ कर प्यार करती है और फिर उसके गाल पर भी चुम्बन जड़ देती हैं। रत्ना के इस तरह चुम्बन लेने से देव को कुछ अनुभूति होती है तो देव के शरीर में एक हल चल होती है। अचानक हुए इस हलचल से रत्ना तुरन्त देव के लिंग से अपना हाथ हटा लेटी है और तुरन्त देव के बगल में उसकी तरफ करवट ले कर सो जाती है और अपनी आंखें बन्द कर लेती है।
देव धीरे धीरे जगते है और उन्हें लगता है कि स्वपन में उन्हें बहुत अछा लग रहा था। तभी देव देखते हैं कि उनका लन्ड उनकी धोती में टनटना कर खड़ा है। उन्होंने अपने लन्ड को कभी इतना कड़क होकर खड़ा नहीं देखा था। उन्हें क्या पता था कि कोई और नहीं बल्कि उनकी मां रत्ना के कोमल हाथों का स्पर्श पाकर उनका लन्ड खुश हो कर इस तरह से उत्तेजित हो कर खड़ा है। देव उत्तेजित तो थे ही। उन्होंने अपने लन्ड को अपने हाथ से पकड़ लिया और उसे पकड़ कर धीरे धीरे सहलाने लगे। इस तरह से लंद सहलाना उन्हें अच्छा तो लग ही रहा था और उनकी काम भावना किसी स्त्री के साथ सम्भोग के लिए इन्हें आतुर किए जा रही थी और उनका लन्ड और कड़क हो रहा था। तभी उनकी नजर बगल में सोई अपनी मां रानी रत्ना पर पड़ती है जो देव की ओर पीठ करके सोई थी। देव एक बार उपर से नीचे तक रत्ना को देखते हैं। उनकी नंगी पीठ और कमर देव को और आकर्षित कर रहे थे। देव उत्तेजित तो थे ही और ऊपर से रत्ना की नंगी गोरी कमर उनकी भावना को भड़का रही थी। आखिर रत्ना थी जो इतनी गोरी और सुन्दर। रत्ना के उन्नत नितम्ब देव के मन को झकझोर दे रहे थे। आज पहली बार देव ने अपनी मां रानी रत्ना को एक स्त्री के रूप में देखा था, । वह सोच भी नहीं सकते थे कि उनकी मां इतनी सुन्दर है। देव वही रत्ना को देख देख कर अपना लन्ड हाथ में पकड़ कर हस्तमैथुन करने लगते हैं। अपनी मां को देख कर हस्तमैथुन करना उन्हें अलग अनुभूति दे रहा था। हस्तमैथुन करते करते देव अपनी मां के शरीर को लगातार देख कर उत्तेजित हुए जा रहे थे और जोर जोर से अपने लन्ड को रगड़ रहे थे और उत्तेजनावश वही पे झड़ जाते हैं। झड़ने के बाद देव को यह अहसास होता है कि उसने यह क्या कर दिया। धिक्कार है उसे जो उसने अपनी मां को देख कर अपना लन्ड रगड़ा। लेकिन फिर वह दूसरी ओर सोचता है कि जो कहो मेरी मां हैं बहुत सुन्दर। पिता जी कितने भाग्यशाली हैं कि उन्हे मां जैसी सुन्दर स्त्री पत्नी के रूप में मिली। लेकिन चलो यह अच्छा है कि मां सोई हैं और उन्हे यह पता नहीं चला कि मैं उन्हें ही देख कर अपना लन्ड हिला रहा था। यही सोचते सोचते देव फिर लेट जाते हैं और फिर सो जाते हैं। थोड़ी देर बाद रत्ना उठने का दिखावा करती है और फिर देव को भी जगाती है और कहती हैं कि
चलो पुत्र उठो, चलो सुबह हो गई, शौच के लिए चलते हैं।
दोनों मां बेटे उठते हैं और शौच के लिए जंगल में नियत स्थान पर चलें जाते हैं। इधर कुछ दिनों से दोनों मां बेटे एक साथ के लिए ही शौच करने जाया करते थे। शुरु मे तो दोनो एक दूसरे से एक नियत दूरी बना कर बैठा करते थे। रानी रत्ना थोड़ा आगे बैठा करती और देव उनसे थोड़ा हट कर रत्ना के तिरछे बैठा करते थे जिससे होता यह था कि देव रत्ना के किसी अंग को देख नहीं पाते थे लेकिन रत्ना यदि अपना सिर थोड़ा भी देव की ओर घुमाती तो देव के लम्बे लटकते लौड़े के गुलाबी सुपाड़े की झलक पा जाती थी जो रत्ना की कामभावना को भड़का देती थी। रत्ना मन ही मन अपने को धिक्कारती भी थी कि वह कैसी मां है जो अपने ही पुत्र के लन्ड को देखने को व्याकुल रहती है। लेकिन फिर वह सोचती कि इस वीरान जंगल में हम ही दोनों स्त्री पुरूष हैं, तो यह तो स्वाभाविक ही है कि अगर मैं किसी पुरूष का लन्ड देखूं, तो मैं केवल अपने पुत्र का ही देख सकती हूं। आखिर मैं भी तो एक स्त्री हूं जो पुरूष के लिंग को देखने को व्याकुल है।
इधर कुछ दिनों से शौच के लिए साथ मे बैठने से एक परिवर्तन यह आया था कि दोनों मां बेटे अब धीरे धीरे करते हुए एक दूसरे के नजदीक होकर बैठने लगे थे। अब तो दोनों मां बेटे एक साथ ही शौच के लिए बैठने लगे थे। दोनों अगल बगल बैठ कर बाते भी करते और रानी रत्ना अब बड़े आराम से देव के लन्ड का दीदार कर पाती थी लेकिन देव अभी भी रत्ना के किसी अंग को देख नहीं पाए थे क्योंकि रत्ना जब शौच से निवृत्त होकर झील की ओर जाने के लिए उठती वह अपनी साड़ी को घुटने तक गिरा लिया करती थी जिससे रत्ना के गुप्त अंग छिप जाया करते थे। वैसे तो देव भी अपनी धोती थोड़ी नीचे कर लिया करते थे लेकिन उनका लन्ड की झलक धोती के ऊपर से दिख जाया करती थी। इसके बाद दोनों झील के अलग अलग किनारों पर जाकर खुद को साफ करते और नहाया करते थे। होता यह था कि रत्ना जब पहले अकेले शौच के लिए आती थी तब वह स्नान कर के वापस जाया करती थी और तब देव को उठाया करती थी लेकिन अब तो दोनो मां बेटे साथ ही शौच के लिए आया करते थे और दोनों झील के किनारे पर अलग अलग स्थानों पर स्नान कर के जाया करते थे। ऐसे ही दिन बीतने लगे और दोनों मां बेटे खुशी खुशी एक साथ रह रहे थे।
लेकिन एक दिन जब रत्ना स्नान कर रही थी तो उसने सोचा क्यों ना मिट्टी का लेप लगा कर स्नान कर लूं। तो उसने पूरे शरीर पर मिट्टी का लेप लगा लिया और धूप में बैठ गई जब मिट्टी उसके शरीर पर सुख गई तो वह स्नान करने के लिए झील में प्रवेश करने लगीं ताकि वह अच्छे से मिट्टी छुड़ा कर स्नान कर सके । रत्ना झील में प्रवेश कर आराम से हाथ नीचे ले जाकर अपने पैर की मिट्टी को धो रही थी और हां एक बात और रत्ना जब स्नान करती थी तब वह अपने वस्त्रों को उतार कर पूरी नंगी हो कर नहाया करती क्योंकि इनके पास कपड़े बहुत कम थे।
इधर देव नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्नान करने के उपरान्त अपनी मां रानी रत्ना का इन्तजार कर रहे थे। लेकिन आज अनावश्यक विलंब हो रहा था जिससे वे थोड़े चिंतित हो रहे थे। उन्हें हमेशा इस बात का भय लगा रहता था कि कहीं दुश्मन सैनिक इन्हें खोजते हुए फिर ना पहुंच जाएं । यही सोच सोच कर देव और घबरा जाते हैं उन्हें क्या पता था कि उनकी मां आज मृदा स्नान कर रही हैं। अनावश्यक विलम्ब होने पर देव अपनी मां रत्ना को खोजने के लिए झील के उस किनारे पर पहुंचते हैं जहां रानी रत्ना नित्य क्रिया किया करती थीं। देव उस किनारे की ओर बढ़ते हैं और जैसे ही जंगल के पेड़ो के बीच से होते हुए झील के किनारे पहुंचते हैं वो कुछ ऐसा देखते हैं जिसकी कल्पना उन्होंने नही की थी। झील के किनारे पहुंचते ही वह देखते हैं कि उनकी मां रानी रत्ना झील के पानी में कमर तक खड़ी है और देव की ओर पीठ की हुई है, लेकिन खास बात ये थी कि रत्ना उपर से बिल्कुल नंगी थी और अपने शरीर पर मिट्टी लपेटे हुईं थी। तभी रत्ना एक बार डुबकी लगाती हैं और केवल अपना सिर पानी के बाहर निकालती हैं। पानी के अन्दर वो अपना हाथ डाल कर पीठ पेट और वक्ष स्थल पर से मिट्टी रगड़ रगड़ कर हटा देती हैं और शरीर रगड़ रगड़ कर नहाती है। नहाने के बाद रत्ना फिर खड़ी होती हैं और कमर तक पानी में खड़ी रहती है। जब रत्ना इस बार पानी से उपर आती है तो उसकी नंगी गोरी पीठ देव की दिखती है। अपनी मां की पहली बार नंगी पीठ देख कर देव की भी काम भावना उफान पर आ जाती है और उसके लन्ड में तनाव आने लगता है। देव ने आज तक किसी स्त्री की नंगी पीठ नही देखी थी जो आज देख कर उसे मजा आ गया । तभी देव को लगा कि मां घूमने वाली है, तन देव पेड़ की ओट में छुप गया और अपनी मां रानी रत्ना को छुप कर देखने लगा। तभी देव ने वह देखा जिसकी कल्पना देव ने कभी नहीं की थी, आज वह अपने जीवन की सबसे खूबसूरत चीज देखने जा रहा था। रानी रत्ना नहा चुकी थी और अब झील से बाहर आने के लिए वह जैसे घूमती है वैसे ही देव की आंखों के सामने उसकी मां रत्ना के नंगे स्तन दिखने लगते हैं जो बिलकुल संगमरमर सी गोरी और खरबूजे के आकार की थी। अपनी मां को कमर के ऊपर पूरी नंगी देख कर देव और उत्तेजित हो जाते हैं आखिर रत्ना थी जो इतनी खूबसूरत। रत्ना की गोरी गोरी चूची और भूरे चूचुक देव को और उत्तेजित कर रहे थे, वह अपनी मां की खूबसूरती में ऐसे खो गया कि वह ये भूल गया कि सामने जो औरत झील में कमर के ऊपर नंगी खड़ी है, वह और कोई नहीं उसकी मां है। काम भावना जब प्रबल हो जाती है तब आदमी यह भुल जाता है कि सामने वाली औरत उसकी मां है या बहन । वही हाल अभी देव का था। वह अपनी मां की सुन्दरता मे खो गया था, और उसका लन्ड धोती में एकदम खड़ा हो गया था जिस पर अनजाने में ही देव का हाथ चला गया था और वह अपनी मां के नंगे स्तन को देख कर हाथ से अपने लन्ड को रगड़ रहा था। रत्ना गोरी तो इतनी थीं कि उनकी चूची सूर्य की किरणों से चमक रही थी। देव का अपनी जिन्दगी में औरत के अर्द्ध नग्न शरीर को देखने का यह पहला मौका था जिसके कारण उनका लन्ड उत्तेजनावश धोती से बाहर निकल कर ऐसे खड़ा था मानो रत्ना की नग्नता को सलामी दे रहा हो !! देव रत्ना को देख लगातार लन्ड हिलाए जा रहे थे तभी रानी रत्ना फिर एक डुबकी लेती है और एक दो कदम आगे बढ़ाती है। इसका मतलब था कि अब वह बाहर निकलने वाली है। अतः देव ने वहां से निकल जाना ही उचित समझा। देव पेड़ की ओट में छुपे हुए तो थे ही, वह तुरन्त पेड़ से पीछे हट जाते हैं और जंगल में कुछ दूर जाकर बैठ जाते हैं और रत्ना का इंतजार करने लगते हैं। इधर रत्ना नहा कर बाहर निकलती है और गुफा की ओर चल पड़ती है।
Mast hain bhai. Accha hain dono mein pyar tho tha hi. Ab aakarshan bhi badh Gaya hain. Waise tho dono shauch tho kar rahe hain. Agar maa bete ko jaise bachpan mein shauch ke baad dhoti thi waise hi abhi bhi dhone jaise kuch action ho tho shauch saath mein karne ka arth pura hojaayega, issi bahaane dev bhi uski maa ko dho sakta hain apne haatho se, ki maathe yadi aap hamare peeche haatha se dho sakti hain tho hum bhi Aisa hi karna chahte hain aur aapko shud kar sakte hain. Aur aage maate ki peshaab ki Hui yoni ko bhi chaate thaaki Rani ratna Devi ki mithi yoni ka mitha peshaab ka swaad dev ko itna madhosh karde ki ek pal ke liye bhi dev apni maa ko chhodke kahin reh hi na paaye. Consider it Bhai. Request hain.thank you.
 

Napster

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इस तरह दोनों मां बेटे के बीच ऐसे ही मजाक चलता रहता है। रानी रत्ना ने तो अनायास ही यह बात कह दी थी जिसको बोलने के पहले उसने सोचा भी नहीं था। वह अपने को खूब कोसने लगती है और मन में ही कहती है
हाय ये मैंने क्या बोल दिया और वह भी अपने ही पुत्र के सामने। पता नहीं वह मेरे बारे में क्या सोच रहा होगा हाय मैं कितनी कमिनी हो गई हूं, अपने ही पुत्र के सामने,,,,, छी छी। अब तो मैं देव से आंखें कैसे मिलाऊंगी!!! लेकिन एक बात तो है, मेरे पुत्र के पेशाब की धार वाकई काफी दूर तक जा रही है, हो न हो उसके अंग भी जबरदस्त होगा। ,,,, हाय ये मैं क्या सोचने लगी। कोई मां अपने पुत्र के अंगों के बारे में भला सोचता है क्या।

रत्ना, यही सोचते रहती है और चलते चलते अपने शैय्या पर आती है जो फूस की होती है और उस गुफा में बड़े से पत्थर पर बिछाई रहती है। दोनों मां बेटे वही सो जाते हैं और रत्ना को यह सब सोचते सोचते कब नींद लग जाती है, उसे पता ही नहीं चलता। उसकी नींद तो तब खुलती है जब चिड़ियों की चहचहाहट उसे सुनाई पड़ती है। रानी रत्ना पहले उठती हैं और शौच के लिए तैयारी कर रही होती है । तभी देव की भी नींद खुल जाती है। अभी तक होता यह रत्ना पहले उठती थी और देव के उठने के पहले नित्य क्रिया से निवृत्त हो कर वापस आ जाया करती थी और तब देव उठते और नित्य क्रिया के लिए जाते।

लेकिन आज रत्ना के साथ साथ देव की भी नींद खुल जाती है। इस पर रानी रत्ना ने कहा

क्या हुआ देव। आज अभी क्यों जग गए।

इस पर देव कहते हैं
माते पता नहीं क्यों आज पेट में मरोड़ हो रहा है और मुझे शौच जाने की तीव्र इच्छा हो रही है । मुझसे रुका नहीं जा रहा है।
इधर रत्ना की भी यह आदत थी कि उसे सुबह सुबह ही शौच आती थी और वह भी अपने को रोक नहीं पाती थी उसे भी अब तेज शौच आई थी। तब रत्ना ने कहा
चलो, तब तुम भी मेरे साथ चल चलो और जंगल के दूसरे कोने में बैठ कर तुम शौच कर लेना।

अभी इतना बोलना था की देव के पेट में दर्द थोड़ा और बढ़ जाता है। इधर रत्ना की भी शौच की तीव्रता बढ़ गई थी। देव भी जल्दी से उठते हैं और जंगल की ओर चल पड़ते हैं। रत्ना भी जल्दी जल्दी देव के साथ जंगल की ओर चल पड़ती है। दोनो मां बेटे साथ साथ जंगल में थोड़े खुले स्थान में पहुंचते हैं। रत्ना थोड़ा आगे बढ़ कर शौच के लिए बैठ जाती है और देव वहीं शौच के लिए बैठ जाते हैं क्यूंकि उन्हें बहुत तेज से शौच आई थी। बैठते ही देव के गुदा द्वार से तेज आवाज के साथ मल बाहर निकलता है। आवाज सुनकर रत्ना मुड़ कर देव को देखती है और उसे हसी आ जाती है । रत्ना के ऐसा देखने से देव थोड़ा शरमा जाता है और शर्म से उसके गाल लाल हो जाते हैं और होंठों पर मुस्कान आ जाती है।
रत्ना और देव एक दूसरे से अच्छी खासी दूरी पर बैठे थे। लेकिन दोनो एक दूसरे की आवाज सुन सकते थे। देव थोड़ा पीछे तो बैठे थे लेकिन उन्होंने धोती को इस तरह बांधा था कि उनका लन्ड पूरा तो नहीं दिख रहा था लेकिन लन्ड का टोपा हल्का हल्का दिख रहा था जिसे रत्ना ने हल्के से देख लिया। कई दिनों बाद लन्ड देख कर रानी रत्ना को भी अच्छा तो लगा। लेकिन लन्ड के टोपे की एक हल्की झलक ही वो देख पाई थी । किसी भी स्त्री को पुरुष का लिंग देखना उतना ही लुभाता है जितना किसी पुरूष को किसी स्त्री की योनि देखना , भले ही वह लिंग और योनि किसी की भी हो और भले ही नजदीकी रिश्तों में हो, लेकिन एक बार लिंग और योनि देखने के बाद मन तो डोल ही जाता है । यही हाल उस समय रत्ना का भी हुआ। अपने पुत्र के लन्ड की एक झलक ही उसे मदहोश कर रही थी।
तभी रत्ना के भी गुदा द्वार से पहले एक लम्बी आवाज पोओओओओओओओ के साथ एक लम्बी पाद निकल जाती है जिसकी अपेक्षा ना तो रत्ना ने ना ही देव ने की थी । पाद की आवाज सुनते ही रत्ना हस देती है और साथ ही साथ शरमा भी जाती है। देव भी जब रत्ना की पाद की आवाज सुनता है तो उसे भी हसी आ जाती है। लेकिन अपने हसने से देव भी शरमा जाता है कि मां उसके बारे में क्या सोच रही होंगी कि मैं कितना बेशरम हूं जो अपनी ही मां की पाद की आवाज सुन कर हस पड़ा। लेकिन एक बात थी कि इस दौरान रानी रत्ना थोडी दूरी पर आगे बढ़ कर शौच कर रही थी इसलिए देव किसी भी प्रकार से रत्ना की बुर नहीं देख पा रहे थे और एक बात यह भी थी की रत्ना साड़ी को घुटनों से नीचे कर के शौच कर रही थी जिस कारण उसकी बुर देखने का सवाल ही पैदा नहीं होता था। लेकिन रत्ना देव के लिंग की एक झलक पाकर ही मदहोश हो रही थी। एक तो रत्ना कई दिनों से पति से अलग होकर जंगल में छुप कर रह रही थी जिससे वह सम्भोग भी नहीं कर पा रही थी। भले ही रत्ना अपने राज्य की रानी थी, लेकिन थी तो वह एक कामुक स्त्री ही न जो प्रतिदिन अपने पति के मोटे तगड़े लिंग से चूदवाकर अपनी योनि की आग शान्त किया करती थी। रत्ना को भले ही इसके पूर्व अपने पति के साथ सम्भोग के मूल्य का पता ना हो लेकिन अब पति से दूर रह कर उसे चूदाई के मूल्य का पता चल रहा था और अब वह अपनी योनि की चूदाई के लिए तड़प रही थी।
कुछ देर बाद शौच के उपरान्त दोनों मां बेटे नित्य क्रिया से निवृत्त होकर फल फूल संग्रह के लिए भ्रमण पर निकल जाते हैं । दिन में दोनों मां बेटे के बीच हल्का फुल्का मजाक होता है, लेकिन इसके आगे कुछ नहीं। मां बेटे के बीच एक परिवर्तन जरूर आया था कि दोनों अब हल्का फुल्का मजाक करने लगें थे। रत्ना के मन में तो उन घटनाओं के बाद जिसमें देव ने अपनी जान की बाजी लगा कर उसके प्राणों की रक्षा की थी, देव के प्रति एक अलग सा समर्पण वाला प्रेम पनपने लगा था जिसकी प्रकृति को रत्ना समझ नहीं पा रही थी कि यह कैसा प्रेम है। लेकिन जो भी हो, पता नहीं क्यों रत्ना को देव का साथ अच्छा लगने लगा था। और यह स्वाभाविक भी था। इस दुनिया में कोई भी अपने प्राणों की बलि देकर दूसरे के प्राणों की रक्षा नहीं करता और यदि सामने वाला अपनी जान की परवाह किए बगैर अगर किसी के प्राणों की रक्षा करता है तो उसे इस दुनिया में उससे ज्यादा प्यार करने वाला कोई हो ही नहीं सकता । इसी कारण से रत्ना स्वाभाविक रूप से देव की ओर खीचती चली जा रही थी।

रत्ना देव के प्रति फिर पूरे दिन दोनों के बीच कुछ नहीं होता है। फिर रात होती है और दोनों रात मे सोने जा रहे होते हैं। तो रत्ना पेशाब करने के लिए गुफा से बाहर निकलती है लेकिन देव को कुछ नहीं बोलती है लेकिन देव भी थोडी देर में गुफा से बाहर निकल कर वहीं बैठ जाते हैं जहां दोनों रात्रि में पेशाब करने के लिए बैठा करते थे। रत्ना तो पहले से ही वहां बैठी थी लेकिन उसने अभी पेशाब करना शुरु नहीं किया था; शायद वह देव का इन्तजार कर रही थी। देव के आने पर दोनों पेशाब करना शुरु करते हैं। दोनो पेशाब तो करते हैं लेकिन आपस में कोई बात नहीं करते हैं। देव पेशाब करते समय अपने लिंग को थोड़ा गोल गोल घुमाने लगते हैं जिससे पेशाब की धार गोल गोल घूमते हुए गिरने लगती है और इसी बीच पेशाब की कुछ बूंदे रत्ना पर पड़ जाती है। रत्ना इस पर मुस्कुरा देती है और कहती है
आज तो तुम्हारा पेशाब दूर तक नहीं जा रहा । केवल गोल गोल घूम रहा है और देख तेरे पेशाब की बुंदे भी मेरे ऊपर पड़ रही है।
,,,,,,,,,,
इस पर देव थोड़े से शरमा जाते हैं। कुछ देर चुप रहने के बाद देव कहते हैं

माते, मुझे सुबह की बात के लिए क्षमा कर दीजिएगा

रत्ना कहती हैं,,
कौन सी बात

देव,,,,,
वही जो मै आपकी पाद सुन कर हस पड़ा था

रत्ना,,,,
इसमें कौन सी बात है। मुझे भी तो तुम्हारी आवाज सुन कर हसी आई थी। वैसे बेटा तुम भी सुबह ही उठ जाया करो
देव,,,
लेकिन माते, मुझे उठते ही हाजत महसूस होती है

रत्ना,,,,
तो इसमें क्या है, तुम भी मेरे साथ शौच के लिए चलना जैसे आज गए थे

देव,,,
लेकिन माते, सुबह तो आप शौच करती हैं न

तब रत्ना कहती हैं
क्या हो गया मैं शौच करती हूं तो। जैसे आज हमदोनो शौच कर रहे थे वैसे ही शौच कर लेंगे। वैसे भी इस घने एकान्त जंगल में हम दोनों के आलावा है ही कौन, जो एक दूसरे का ख्याल रखे । देव, हमें ही यहां एक दूसरे का ख्याल रखना है। सुबह वैसे भी मुझे जंगली जानवरों का डर सताता है।

रत्ना ने आज देव के लिंग के सुपाड़े की झलक पा ली थी जो उसे अच्छा लग रहा था और वह चाहती थी कि प्रति दिन शौच के बहाने ही उसे लौड़े का दर्शन तो हो जाए और इसीलिए उन्होने कहा कि कोई बात नहीं, तुम भी सुबह से मेरे साथ ही शौच करने चल देना।
देव रत्ना की इन बातों को सुन कर कहते हैं
ठीक है माते, आप जैसा कहे। कल सुबह से मै आपके साथ ही शौच के लिए चलूंगा ।

ऐसा कह कर देव अपने जगह से उठ कर गुफा में चले जाते हैं। फिर रत्ना मन में सोचती है
हाय दैय्या, कल से तो मुझे पुरूष के लिंग के दर्शन की संभावना बढ़ जाएगी।
ऐसा सोच कर रत्ना शरमा जाती है और वह भी गुफा में सोने चली जाती है।

दोनो मां बेटे रात में गुफा में सोते हैं और सुबह उठ कर पिछले दिन की भांति शौच के लिए जंगल में चले जाते हैं और एक दूसरे से कुछ दूरी पर बैठ जाते हैं शौच करते समय रत्ना अपनी जगह से देव को देखने की कोशिश करती है कि उसे देव के लिंग का सुपाड़ा दिख जाए। वह अपने को एक तरफ कोसती भी है कि देव तो मेरा पुत्र है वही दूसरी तरफ वह ये सोचती है कि मुझे लिंग देखे हुए कितने दिन हो गए और इस जंगल में और कोई दुसरा लिंग भी नहीं है जिसे देख सकूं। रत्ना जितना सोचती उतना ही उसका मन लिंग देखने को सोचने लगता। कुछ दिन ऐसे ही चलता रहा और रत्ना कभी कभी देव के लिंग की एक झलक देख पाती थी । इसके अलावा दोनों के बीच कुछ नहीं हुआ।
ऐसे ही समय कटने लगा। एक रात को दोनों मां बेटे गुफा में सोएं हुए थे। भोर का समय था। रानी रत्ना एक कामुक सपना देख रही थी जिसमें वह देखती है कि वह एक पुरूष के लिंग को पकड़ रही हैं । उनकी काम भावना उफान मार रही थी । और कहते हैं ना कि भोर में पुरूष और स्त्री की काम भावना काफी प्रबल होती है । तो रत्ना तो गरम थी ही। देव का भी लौड़ा भी खड़ा था। रत्ना काम वासना से ओत प्रोत होकर अपने हाथ देव के पेट पर रख देती है। उसे स्वप्न में इस बात का जरा भी भान नहीं था कि वह अपने पुत्र देव के बगल में सोई हुई है। रत्ना काफी दिनों से गरम तो थी ही, पुरुष के शरीर का स्पर्श उसकी काम भावना को भड़का रहा था। लेकिन नींद में रत्ना को यह अहसास नहीं था की वह पुरूष कोई और नहीं उसका पुत्र है। रत्ना नींद में ही अपना हाथ देव के पेट और फिर कमर पर फिराने लगती हैं। तभी रत्ना का हाथ अचानक से देव के खड़े लन्ड से टकरा जाता है । लन्ड से हाथ टकराते ही रत्ना पूरे लन्ड को अपने हाथ से पकड़ कर मुठिया लेती है। उसे नींद में भी लंद का स्पर्श अच्छा लग रहा था। वह ऐसा महसूस कर रही थी मानो उसने वास्तविकता में ही लन्ड पकड़ लिया हो जो सत्य भी था। रानी रत्ना प्यासी तो थी ही वह, इसलिए लन्ड को अपने हाथ से छोड़ नहीं रही थी। उसके स्तन कामुकता से तन जाते हैं और योनि भी पनियाने लगती है। वह लन्ड को धोती के ऊपर से ही सहलाने लगती है। काफी दिनों बाद रानी रत्ना ने लिंग को पकड़ा था। इसलिए वह काफी उत्तेजित हो जाती है और उत्तेजनावश उनकी योनि पानी छोड़ देती है। इसके बाद रानी रत्ना शान्त हो जाती हैं और फिर तभी अचानक से रत्ना की नींद खुल गई। तो उसने देखा कि उसका हाथ अपने पुत्र के लन्ड पर है जो खड़ा था। देव का खड़े लन्ड को धोती में ही देख कर रानी रत्ना गनगना जाती है। उसे धीरे धीरे सब याद आने लगता है कि वह सपना देख रही थी और सपने में ही अपने पुत्र का लन्ड पकड़ ली थी। वह खुद को मन ही मन कोसने लगती है उसने यह क्या कर दिया। लेकिन अभी भी रत्ना का हाथ देव के लन्ड पर ही था जो स्त्री के हाथ का स्पर्श पाकर और खड़ा और कड़क हो गया था। रत्ना को ग्लानि तो हो रही थी कि उसने देव के लिंग को पकड़ लिया है लेकिन दूसरी ओर वह मन ही मन सोचती है कि
देव तो सो रहा है उसे क्या पता कि मैने उसका लन्ड पकड़ रखा है और वैसे भी वह तो मेरा प्यारा पुत्र है जो मुझसे इतना प्यार करता है कि मेरे लिए उसने कई बार अपनी जान की बाजी भी लगा दी है । हाय कितना प्यार करता है मुझसे। इस पुरे विश्व में ऐसा कोई भी नहीं होगा कि जो मुझसे इतना प्यार करता है कि मेरे प्राणों की रक्षा के लिए अपना जीवन दाव पर लगा दे। हाय कितना प्यारा दिख रहा है और देखो कितने निश्छल भाव से सो रहा है। इस पर मेरा जीवन कुर्बान है। मेरा जीवन इसका उधार है। कहते हैं कि मां के दूध का कर्ज कोई पुत्र नहीं उतार सकता। लेकिन यहां तो पुत्र के साहस का कर्ज उसकी मां नहीं उतार सकती। इसका चेहरा तो देखो कितना शान्त है और चेहरे पे ओज और तेज तो देखो, आंखे लगातार नही देख सकती हैं।
यही सोचते सोचते रानी रत्ना देव के ललाट पर एक प्यारा सा चुम्बन जड़ कर प्यार करती है और फिर उसके गाल पर भी चुम्बन जड़ देती हैं। रत्ना के इस तरह चुम्बन लेने से देव को कुछ अनुभूति होती है तो देव के शरीर में एक हल चल होती है। अचानक हुए इस हलचल से रत्ना तुरन्त देव के लिंग से अपना हाथ हटा लेटी है और तुरन्त देव के बगल में उसकी तरफ करवट ले कर सो जाती है और अपनी आंखें बन्द कर लेती है।
देव धीरे धीरे जगते है और उन्हें लगता है कि स्वपन में उन्हें बहुत अछा लग रहा था। तभी देव देखते हैं कि उनका लन्ड उनकी धोती में टनटना कर खड़ा है। उन्होंने अपने लन्ड को कभी इतना कड़क होकर खड़ा नहीं देखा था। उन्हें क्या पता था कि कोई और नहीं बल्कि उनकी मां रत्ना के कोमल हाथों का स्पर्श पाकर उनका लन्ड खुश हो कर इस तरह से उत्तेजित हो कर खड़ा है। देव उत्तेजित तो थे ही। उन्होंने अपने लन्ड को अपने हाथ से पकड़ लिया और उसे पकड़ कर धीरे धीरे सहलाने लगे। इस तरह से लंद सहलाना उन्हें अच्छा तो लग ही रहा था और उनकी काम भावना किसी स्त्री के साथ सम्भोग के लिए इन्हें आतुर किए जा रही थी और उनका लन्ड और कड़क हो रहा था। तभी उनकी नजर बगल में सोई अपनी मां रानी रत्ना पर पड़ती है जो देव की ओर पीठ करके सोई थी। देव एक बार उपर से नीचे तक रत्ना को देखते हैं। उनकी नंगी पीठ और कमर देव को और आकर्षित कर रहे थे। देव उत्तेजित तो थे ही और ऊपर से रत्ना की नंगी गोरी कमर उनकी भावना को भड़का रही थी। आखिर रत्ना थी जो इतनी गोरी और सुन्दर। रत्ना के उन्नत नितम्ब देव के मन को झकझोर दे रहे थे। आज पहली बार देव ने अपनी मां रानी रत्ना को एक स्त्री के रूप में देखा था, । वह सोच भी नहीं सकते थे कि उनकी मां इतनी सुन्दर है। देव वही रत्ना को देख देख कर अपना लन्ड हाथ में पकड़ कर हस्तमैथुन करने लगते हैं। अपनी मां को देख कर हस्तमैथुन करना उन्हें अलग अनुभूति दे रहा था। हस्तमैथुन करते करते देव अपनी मां के शरीर को लगातार देख कर उत्तेजित हुए जा रहे थे और जोर जोर से अपने लन्ड को रगड़ रहे थे और उत्तेजनावश वही पे झड़ जाते हैं। झड़ने के बाद देव को यह अहसास होता है कि उसने यह क्या कर दिया। धिक्कार है उसे जो उसने अपनी मां को देख कर अपना लन्ड रगड़ा। लेकिन फिर वह दूसरी ओर सोचता है कि जो कहो मेरी मां हैं बहुत सुन्दर। पिता जी कितने भाग्यशाली हैं कि उन्हे मां जैसी सुन्दर स्त्री पत्नी के रूप में मिली। लेकिन चलो यह अच्छा है कि मां सोई हैं और उन्हे यह पता नहीं चला कि मैं उन्हें ही देख कर अपना लन्ड हिला रहा था। यही सोचते सोचते देव फिर लेट जाते हैं और फिर सो जाते हैं। थोड़ी देर बाद रत्ना उठने का दिखावा करती है और फिर देव को भी जगाती है और कहती हैं कि
चलो पुत्र उठो, चलो सुबह हो गई, शौच के लिए चलते हैं।
दोनों मां बेटे उठते हैं और शौच के लिए जंगल में नियत स्थान पर चलें जाते हैं। इधर कुछ दिनों से दोनों मां बेटे एक साथ के लिए ही शौच करने जाया करते थे। शुरु मे तो दोनो एक दूसरे से एक नियत दूरी बना कर बैठा करते थे। रानी रत्ना थोड़ा आगे बैठा करती और देव उनसे थोड़ा हट कर रत्ना के तिरछे बैठा करते थे जिससे होता यह था कि देव रत्ना के किसी अंग को देख नहीं पाते थे लेकिन रत्ना यदि अपना सिर थोड़ा भी देव की ओर घुमाती तो देव के लम्बे लटकते लौड़े के गुलाबी सुपाड़े की झलक पा जाती थी जो रत्ना की कामभावना को भड़का देती थी। रत्ना मन ही मन अपने को धिक्कारती भी थी कि वह कैसी मां है जो अपने ही पुत्र के लन्ड को देखने को व्याकुल रहती है। लेकिन फिर वह सोचती कि इस वीरान जंगल में हम ही दोनों स्त्री पुरूष हैं, तो यह तो स्वाभाविक ही है कि अगर मैं किसी पुरूष का लन्ड देखूं, तो मैं केवल अपने पुत्र का ही देख सकती हूं। आखिर मैं भी तो एक स्त्री हूं जो पुरूष के लिंग को देखने को व्याकुल है।
इधर कुछ दिनों से शौच के लिए साथ मे बैठने से एक परिवर्तन यह आया था कि दोनों मां बेटे अब धीरे धीरे करते हुए एक दूसरे के नजदीक होकर बैठने लगे थे। अब तो दोनों मां बेटे एक साथ ही शौच के लिए बैठने लगे थे। दोनों अगल बगल बैठ कर बाते भी करते और रानी रत्ना अब बड़े आराम से देव के लन्ड का दीदार कर पाती थी लेकिन देव अभी भी रत्ना के किसी अंग को देख नहीं पाए थे क्योंकि रत्ना जब शौच से निवृत्त होकर झील की ओर जाने के लिए उठती वह अपनी साड़ी को घुटने तक गिरा लिया करती थी जिससे रत्ना के गुप्त अंग छिप जाया करते थे। वैसे तो देव भी अपनी धोती थोड़ी नीचे कर लिया करते थे लेकिन उनका लन्ड की झलक धोती के ऊपर से दिख जाया करती थी। इसके बाद दोनों झील के अलग अलग किनारों पर जाकर खुद को साफ करते और नहाया करते थे। होता यह था कि रत्ना जब पहले अकेले शौच के लिए आती थी तब वह स्नान कर के वापस जाया करती थी और तब देव को उठाया करती थी लेकिन अब तो दोनो मां बेटे साथ ही शौच के लिए आया करते थे और दोनों झील के किनारे पर अलग अलग स्थानों पर स्नान कर के जाया करते थे। ऐसे ही दिन बीतने लगे और दोनों मां बेटे खुशी खुशी एक साथ रह रहे थे।
लेकिन एक दिन जब रत्ना स्नान कर रही थी तो उसने सोचा क्यों ना मिट्टी का लेप लगा कर स्नान कर लूं। तो उसने पूरे शरीर पर मिट्टी का लेप लगा लिया और धूप में बैठ गई जब मिट्टी उसके शरीर पर सुख गई तो वह स्नान करने के लिए झील में प्रवेश करने लगीं ताकि वह अच्छे से मिट्टी छुड़ा कर स्नान कर सके । रत्ना झील में प्रवेश कर आराम से हाथ नीचे ले जाकर अपने पैर की मिट्टी को धो रही थी और हां एक बात और रत्ना जब स्नान करती थी तब वह अपने वस्त्रों को उतार कर पूरी नंगी हो कर नहाया करती क्योंकि इनके पास कपड़े बहुत कम थे।
इधर देव नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्नान करने के उपरान्त अपनी मां रानी रत्ना का इन्तजार कर रहे थे। लेकिन आज अनावश्यक विलंब हो रहा था जिससे वे थोड़े चिंतित हो रहे थे। उन्हें हमेशा इस बात का भय लगा रहता था कि कहीं दुश्मन सैनिक इन्हें खोजते हुए फिर ना पहुंच जाएं । यही सोच सोच कर देव और घबरा जाते हैं उन्हें क्या पता था कि उनकी मां आज मृदा स्नान कर रही हैं। अनावश्यक विलम्ब होने पर देव अपनी मां रत्ना को खोजने के लिए झील के उस किनारे पर पहुंचते हैं जहां रानी रत्ना नित्य क्रिया किया करती थीं। देव उस किनारे की ओर बढ़ते हैं और जैसे ही जंगल के पेड़ो के बीच से होते हुए झील के किनारे पहुंचते हैं वो कुछ ऐसा देखते हैं जिसकी कल्पना उन्होंने नही की थी। झील के किनारे पहुंचते ही वह देखते हैं कि उनकी मां रानी रत्ना झील के पानी में कमर तक खड़ी है और देव की ओर पीठ की हुई है, लेकिन खास बात ये थी कि रत्ना उपर से बिल्कुल नंगी थी और अपने शरीर पर मिट्टी लपेटे हुईं थी। तभी रत्ना एक बार डुबकी लगाती हैं और केवल अपना सिर पानी के बाहर निकालती हैं। पानी के अन्दर वो अपना हाथ डाल कर पीठ पेट और वक्ष स्थल पर से मिट्टी रगड़ रगड़ कर हटा देती हैं और शरीर रगड़ रगड़ कर नहाती है। नहाने के बाद रत्ना फिर खड़ी होती हैं और कमर तक पानी में खड़ी रहती है। जब रत्ना इस बार पानी से उपर आती है तो उसकी नंगी गोरी पीठ देव की दिखती है। अपनी मां की पहली बार नंगी पीठ देख कर देव की भी काम भावना उफान पर आ जाती है और उसके लन्ड में तनाव आने लगता है। देव ने आज तक किसी स्त्री की नंगी पीठ नही देखी थी जो आज देख कर उसे मजा आ गया । तभी देव को लगा कि मां घूमने वाली है, तन देव पेड़ की ओट में छुप गया और अपनी मां रानी रत्ना को छुप कर देखने लगा। तभी देव ने वह देखा जिसकी कल्पना देव ने कभी नहीं की थी, आज वह अपने जीवन की सबसे खूबसूरत चीज देखने जा रहा था। रानी रत्ना नहा चुकी थी और अब झील से बाहर आने के लिए वह जैसे घूमती है वैसे ही देव की आंखों के सामने उसकी मां रत्ना के नंगे स्तन दिखने लगते हैं जो बिलकुल संगमरमर सी गोरी और खरबूजे के आकार की थी। अपनी मां को कमर के ऊपर पूरी नंगी देख कर देव और उत्तेजित हो जाते हैं आखिर रत्ना थी जो इतनी खूबसूरत। रत्ना की गोरी गोरी चूची और भूरे चूचुक देव को और उत्तेजित कर रहे थे, वह अपनी मां की खूबसूरती में ऐसे खो गया कि वह ये भूल गया कि सामने जो औरत झील में कमर के ऊपर नंगी खड़ी है, वह और कोई नहीं उसकी मां है। काम भावना जब प्रबल हो जाती है तब आदमी यह भुल जाता है कि सामने वाली औरत उसकी मां है या बहन । वही हाल अभी देव का था। वह अपनी मां की सुन्दरता मे खो गया था, और उसका लन्ड धोती में एकदम खड़ा हो गया था जिस पर अनजाने में ही देव का हाथ चला गया था और वह अपनी मां के नंगे स्तन को देख कर हाथ से अपने लन्ड को रगड़ रहा था। रत्ना गोरी तो इतनी थीं कि उनकी चूची सूर्य की किरणों से चमक रही थी। देव का अपनी जिन्दगी में औरत के अर्द्ध नग्न शरीर को देखने का यह पहला मौका था जिसके कारण उनका लन्ड उत्तेजनावश धोती से बाहर निकल कर ऐसे खड़ा था मानो रत्ना की नग्नता को सलामी दे रहा हो !! देव रत्ना को देख लगातार लन्ड हिलाए जा रहे थे तभी रानी रत्ना फिर एक डुबकी लेती है और एक दो कदम आगे बढ़ाती है। इसका मतलब था कि अब वह बाहर निकलने वाली है। अतः देव ने वहां से निकल जाना ही उचित समझा। देव पेड़ की ओट में छुपे हुए तो थे ही, वह तुरन्त पेड़ से पीछे हट जाते हैं और जंगल में कुछ दूर जाकर बैठ जाते हैं और रत्ना का इंतजार करने लगते हैं। इधर रत्ना नहा कर बाहर निकलती है और गुफा की ओर चल पड़ती है।
बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
घने जंगल में रह रहे देव और राणी रत्ना एक दुसरे की ओर काम भावना से आकर्षित हो रहें हैं
राणी रत्ना तो निंद में देव के खडे लंड से खिलवाड कर चरम सुख पा लिया वही रत्ना को देखकर देव भी चरम सुख प्राप्त कर लिया
अब तो देव ने अपनी माँ राणी रत्ना को नहाते समय अर्ध नग्न अवस्था में देखकर उत्तेजना महसुस कर रहे हैं
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 
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Shanu

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Awesome update Bhai ☺️ 😊
 
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