Update 36
रत्ना जब गुफा की ओर बढ़ती है तो बीच में देव को एक शिला पर बैठे देखती हैं और कहती हैं
यहां क्यों बैठे हो देव,,,
देव ,,,,, मां, मै आपकी ही प्रतीक्षा कर रहा था। आज आपने काफी विलम्ब किया स्नान करने में।
रत्ना,,, हां पुत्र, आज कई दिनों के बाद मृदा स्नान किया है, इसलिए आज विलम्ब हुआ है। वैसे तुम इतनी देर से मेरी प्रतीक्षा क्यों कर रहे थे। गुफा में जा कर तुम्हें फलों का सेवन करना चाहिए था।
देव,,,, माते, आपको तो पता ही है कि आपके बिना मैं कुछ भी नहीं खा सकता। तो आज कैसे खा लेता।
रत्ना,,, ओहो, तो इतना प्यार है मेरे पुत्र को मुझसे, जो मेरे बिना खाना भी नहीं खा सकता।
बेचारी रत्ना को क्या पता था कि उसका प्यारा पुत्र उसका इन्तजार नहीं कर रहा था बल्कि अभी उसे नंगी नहाते हुए देख रहा था, और तो और अभी उसने उसके नंगे स्तनों के दर्शन भी कर लिए हैं और अपना लन्ड भी हिला चुका है।
दोनो मां बेटे ऐसे ही बात करते गुफा की ओर चल पड़ते हैं। और ऐसे ही समय भी बीतता रहता है। दोनो मां बेटे सुबह साथ में अगल बगल बैठ कर शौच करते और फिर झील में नहाने जाते। राजकुमार देव का तो यह प्रतिदिन का नियम हो गया था कि जल्दी से नहा कर रानी रत्ना की ओर चले जाते और पेड़ के पीछे से छुप कर रानी रत्ना को नंगी नहाते देखते और उनके नंगे और खूबसूरत स्तनों का दीदार करते। देव अपनी मां के नंगे स्तनों को देखते और धोती में से अपने लन्ड को निकाल कर खुब रगड़ते। धीरे धीरे देव अपनी मां के प्रति आसक्त होते जा रहे थे। होते भी क्यों ना, रानी रत्ना इतनी सुन्दर जो थीं और उस पर से उनके नंगे स्तन कहर बरपाते थे, भले ही देव ने बचपन में उन्हीं स्तनों से दूध पीया था। एक बात और भी थी कि इस घने जंगल में स्त्री के नाम पर एक मात्र रत्ना ही थी जिसे देव देखते थे और धीरे धीरे देव रत्ना को स्त्री वाला प्यार करने लगे थे। वही हाल रानी रत्ना का भी था। रत्ना भी इस घने जंगल में केवल अपने पुत्र देव के साथ ही थी जिसने अपनी जान की बाजी लगा कर रत्ना की जान कई बार बचाई थी। रानी रत्ना भी तो अब अपने पुत्र देव को एक पुरूष के रूप में देखने लगी थी और प्रतिदिन शौच के समय चोरी से नजरे बचा कर देव के लन्ड को देख लिया करती थी। रात में या भोर में जब देव सो रहे होते और उनका लन्ड धोती में खड़ा रहता, तब भी रत्ना देव के लिंग का धोती के ऊपर से ही जी भर कर दीदार कर लेती थी। बेचारे देव को क्या पता था कि उसकी मां रत्ना भी उसी तरह उसकी दीवानी बनती जा रही है जिस तरह से वो अपनी मां का दीवाना बनता जा रहा था। लेकिन अभी तक देव की किस्मत ने इतना साथ नहीं दिया था कि वो अपनी मां रानी रत्ना की नंगी बुर का दीदार कर सकते। क्योंकि रत्ना नहा कर जैसे ही झील से बाहर निकलने वाली होती, देव वहां से चले जाया करते थे। इसलिए वो अभी तक रत्ना की बुर नहीं देख पाए थे।
एक दिन दोनो मां बेटे जंगल में फल फूल संग्रह के लिए घूम रहे थे और काफी आगे निकल गए थे। तो उन्हे कई सारे विभिन्न प्रकार के फल मिले जो उन्होने पहले कभी नहीं देखे थे। तभी देव को एक छाल दिखी जो बहुत ही मुलायम थी और दोनों मां बेटे को ओढ़ने के लिए काफी थी। इस पर देव कहते हैं
देव,,, मां, देखो ना कितना प्यारा छाल है। हमें ओढ़ने के काम आएगा।
रत्ना,,, हां पुत्र, लगता है यह किसी महापुरुष का छोड़ा हुआ है। चलो अच्छा है। अब रात की ठंड में हमे आराम मिलेगा।
रत्ना के कहने पर देव उस छाल को समेट कर तह कर लेते हैं और उसे लेकर वापस लौट चलते हैं। तभी रत्ना को एक पेड़ पर पका आम दिखता है जिसे देख कर रानी रत्ना कहती हैं
रत्ना,,, देखो देव , कितना पका हुआ आम है। कई दिनो बाद ऐसा पका आम देखा है।
देव,,, हां माते, मैं जानता हूं कि आम आपको बहुत प्रिय है। रुकिए, इसे पत्थर मार कर मैं गिरा देता हूं।
रत्ना,,, नहीं पुत्र, पत्थर से आम जमीन पर गिर कर फट जायेगा। या कहीं पत्थर आम पर ही लगा तो आम फिर फट जायेगा।
देव,,, लेकिन ये आम बिल्कुल फूनगी पर लगा है। इसे तो पेड़ पर चढ़ कर भी नहीं तोड़ सकते।
रत्ना,,, तो आओ पुत्र, मैं तुम्हे उठाती हूं और तुम आम तोड़ लेना।
तब देव रत्ना के आगे आते हैं और रत्ना उन्हें कमर पकड़ कर उठाती हैं लेकिन रत्ना देव को उनकी कमर से ज्यादा नही उठा पाती। जिससे देव आम तक नहीं पहुंच पाते हैं। रत्ना ने कई दिनों बाद देव को इतने करीब से दबोच कर पकड़ा था। रत्ना पुरूष संसर्ग के लिए तो तड़प ही रही थी और इस तरह देव को पकड़ने से उसकी स्त्रियोचित भावनाएं जागने लगी। उसे देव को इस तरह जकड़ना अच्छा लग रहा था। लेकिन अभी वो अपनी भावना को समझ नहीं पा रही थी। जब वो देव को ज्यादा नहीं उठा पाई, तब देव को उसने नीचे उतार दिया और कहा
रत्ना,,,, अब इससे उपर मैं तुम्हें नहीं उठा सकती। ऐसा करो, तुम ही मुझे उठा लो ताकि मैं ही आम तोड़ सकूं।
ऐसा बोल कर रत्ना देव की ओर मुड़ जाती हैं तो देव रत्ना को कमर पकड़ कर उठाते हैं। देव ने पहली बार होश में रत्ना को पकड़ कर उठाया था। तभी रत्ना कहती हैं
रत्ना,, थोडा सा और उठाना पड़ेगा देव, थोडा और बचा हुआ है, थोड़ा और उठाओगे तो मैं आम तक पहुंच जाऊंगी।
इस पर देव रत्ना को थोडा उछालते हुए ऊपर करते हैं और रत्ना को उसके घुटनों के पास से जकड़ कर उपर उठाते हैं जिससे रत्ना आम तक पहुंच जाती है और आम तोड़ लेती है । लेकिन इस दौरान रत्ना को पकड़े रहने से देव का चेहरा अपनी मां की नाभी के नीचे पेड़ू से सटा हुआ था जिसकी मादक खुशबू देव को मदहोश कर रही थी। देव ने अपना चेहरा उत्तेजनावश रत्ना की पेडू में दबा लिया था जो उसकी योनि से थोड़ी ही उपर थी और वहां झांटों की हल्की शुरुआत भी हो रही थी जो देव को मदहोश कर रही थी। इस मदहोशी का असर देव के लिंग पर भी हो रहा था। इस वक्त देव ने रत्ना को अपनी मां के रूप में नहीं, बल्कि एक स्त्री के रूप में उठाया हुआ था। उन्हें महसूस हो रहा था कि उन्होंने एक सुन्दर स्त्री को अपनी गोद में उठाया हुआ है और यही सोच कर देव का लन्ड पूरे जोश में खड़ा था।
इधर रत्ना भी जब आम तोड़ लेती है तब उसे इस बात का भान होता है कि उसके पुत्र ने अपना चेहरा उसकी नाभी में दबाया हुआ है। कई दिनों के बाद अपनी नाभी और पेडू पर किसी पुरूष के चेहरे का स्पर्श रत्ना को मस्त कर रहा था। उसके बेटे ने उसे जबरदस्त तरीके से जकड़ा हुआ था। उसे अपने पुत्र की छुवन मतवाला बनाए जा रही थी। वह यह भुल गई कि वह आम तोड़ने के लिए उपर उठी थी। दोनों मां बेटे इसी तरह कुछ देर तक खडे़ रहे और कामाग्नि में जल रहे थे। तभी रत्ना का ध्यान भंग होता है और वह देव से खुद को नीचे उतारने को कहती है। तब देव धीरे धीरे रत्ना को नीचे उतारते हैं लेकिन अपने हाथों का घेरा बनाए रखते हैं। जब रत्ना नीचे उतरती हैं तो देव का चेहरा उनके पेट को छूता हुआ स्तनों के बीच से होते हुए रत्ना के चेहरे के सामने आ जाता है। देव का लन्ड तो खड़ा रहता ही है जो रत्ना के पेडू से सट जाता है जिसे रत्ना भी महसूस करती है। अपने पेट पर अपने पुत्र के लन्ड का अहसास पाते ही रत्ना के मुंह से आह निकल जाती है जिसे देव सुन लेते हैं। देव ने अभी तक रत्ना को अपने बाहों में जकड़ा हुआ था जिससे रत्ना के स्तन देव की छाती में धंसे हुए थे और इस छुवन से उत्तेजनावश रत्ना के स्तन कड़े हो गए थे। ना तो देव रत्ना को छोड़ रहे थे और ना ही रत्ना देव के आगोश से बाहर आ रही थी। आग दोनों ओर बराबर जो लगी थी। दोनों मां बेटे के चेहरे आमने सामने थे और दोनों की सांसे तेज चल रही थी और दोनों एक दूसरे की सांसों की गर्मी को महसूस कर रहे थे। दोनों की नज़रे नीची थी और दोनों को एक दूसरे के होठ दिख रहे थे । अनायास ही देव ने अपने होंठ रत्ना के होठों की ओर बढ़ा दिया और रत्ना ने भी धीरे से अपना मुंह आगे कर चुम्बन की स्वीकृति दे दी। लेकिन जैसे ही देव रत्ना के होंठों पर अपना होंठ रखने वाले होते हैं, रत्ना को यह अहसास होता है कि वह ये क्या कर रही है, अपने ही पुत्र के साथ चुम्बन लेने जा रही है। ऐसा सोचते ही उसने तुरन्त अपना चेहरा पीछे किया और अपने हाथ में लिए आम को देव को दिखाते हुए थोड़ी हकलाती हुई बोली
आम, देखो आ अ आ आम, आम तोड़ लिया मैंने, अच्छे हैं न!!
इस पर देव एक बार आम को देखते हैं और फिर उनकी छाती में धंसे रत्ना के स्तनों को देख कर कहते हैं
हां मां, आम बहुत अच्छे और रसीले हैं!!
अपने स्तनों को देख कर ऐसा बोलते देख रत्ना शरमा जाती है और कहती हैं
अब चलें पुत्र, काफी समय हो गया है।
इस पर दोनों मां बेटे गुफा की ओर चल पड़े। देव के हाथों में छाल थी और रत्ना के हाथ में आम और कुछ दूसरे फल भी थे। देव की धोती में अभी भी उनका लन्ड खड़ा था, तो वहीं रत्ना के स्तनों में अभी भी कड़ापन था। आज की घटना से एक बात तो स्पष्ट हो गई थी कि आग दोनों ओर बराबर लगी थी और आज यदि रत्ना ने स्वयं को ना रोका होता तो दोनों मां बेटे के होंठ चुम्बन कर चुके होते। इस घने एकान्त जंगल में एक स्त्री पुरुष का एकान्त में साथ रहना दोनो के रिश्तों को भुलाकर केवल स्त्री पुरूष के सम्बंध के लिए काफी था। रत्ना भी मन में यही सोच रही थी कि
हाय देव की बाहों में कितना सुखद अहसास हो रहा था। पता नहीं कब तक मैं अपने आप को संभाल पाऊंगी। आज यदि सही समय पर ध्यान नहीं आया होता तो अनर्थ हो सकता था।
इधर देव भी यही सोच रहे थे,,,
वास्तव में मां कितनी सुन्दर है और उनकी शरीर से कैसी मादक खुशबू आ रही थी जो मुझे पागल बना रही थी। उनकी नाभी से तो अप्रतिम सुगन्ध आ रही थी और उनके स्तन मेरी छाती में कितने प्यार से धंसे थे, ये तो वही स्तन हैं जिनका दीदार मैं प्रतिदिन करता हूं। काश मां ने बीच में न टोका होता तो मैं तो उनके होंठों को चूम ही लेता ,!!!!!
यही सोचते सोचते दोनों मां बेटे अपनी गुफा में पहुंच जाते हैं और दोनों फल खा कर छाल ओढ़ कर आराम करने लगते हैं। फिर ऐसे ही समय बीतता गया। दोनों मां बेटे साथ में शौच करते, फिर नहाने जाते और फिर देव छुप कर अपनी मां रानी रत्ना को नहाते देखते। लेकिन कहते हैं ना कि होनी की कोई नही टाल सकता। सो वही हुआ। एक दिन देव रत्ना को नहाते हुए देख रहे थे और रत्ना झील में अपने नंगे स्तनों को रगड़ रगड़ कर नहा रही थी और उन्हें मसल रही थी। देव भी अपना लन्ड मसल रहे थे। जब रत्ना नहा कर बाहर निकलने को हुई तो प्रतिदिन की भांति देव भी पेड़ के पीछे से वापस लौटने को मुड़े। लेकिन आज देव जहां खड़े थे वहां की मिट्टी झील के किनारे होने के कारण कमजोर थी और उनके पीछे घूमते ही वहां की मिट्टी धंस गई और इस कारण से देव भी नीचे गिर गए और मिट्टी के साथ भरभराते हुए नीचे गिर गए और झील के खुले किनारे की ओर आ गए।
इधर रानी रत्ना ने भी जब आवाज सुनी तो आवाज की ओर देखा और देखा कि पेड़ो के पीछे से देव भरभराती मिट्टी के साथ नीचे आ गए। उन्हें यह समझते देर न लगी कि देव पेड़ के पीछे से उन्हें नहाते देख रहे थे। देव उठे तो सामने अपनी मां रानी रत्ना को बिना कपड़ों के इतने नजदीक से देखा। उनके नंगे स्तन देव को साफ दिख रहे थे जिस पर गुलाबी स्तनाग्र स्तन की शोभा बढ़ा रहे थे। कमर के नीचे रानी रत्ना पानी में थी लेकिन पानी की सतह पर उनकी झांटे हल्की हल्की दिख रही थी। रानी रत्ना का ये नग्न रूप देख कर देव को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ कि क्या कोई स्त्री इतनी सुन्दर भी हो सकती है ? देव खड़े होते हैं तो धोती में उनका लन्ड खड़ा रहता है और वो रत्ना को देख कर अपना लन्ड मसल देते हैं। तभी रत्ना की तंद्रा टूटती है और वह अपने दोनों हाथों से अपने स्तनों को छुपा लेती है। इस पर देव को भी होश आता है और वह तुरन्त वहां से गुफा की ओर भाग जाते हैं। इधर रत्ना भी हतप्रभ रह गई की उसका पुत्र ही उसे नंगी नहाते देख रहा था। वह भी कपड़े पहन कर गुफा की ओर चल पड़ती है। आज की घटना के बाद दोनों मां बेटे मे पूरे दिन कोई बात चीत नहीं हो रही थी और दोनों एक दूसरे से नजरें चुरा रहे थे । इसी तरह पूरा दिन बीता और दोनों ने रात का खाना भी खा लिया। अब प्रतिदिन की भांति रत्ना सोने के पहले गुफा के बाहर पेशाब करने जाती है। लेकिन बिक्रम गुफा के अंदर ही रहते हैं। रत्ना अपनी जगह बैठी रहती है लेकिन पेशाब नहीं कर रही होती है। तभी रत्ना को पीछे से किसी के आने का अहसास हुआ। देव भी धीरे से आकर अपनी जगह पर आकर बैठ जाते हैं। जब देव आ जाते हैं तब रत्ना पेशाब करना शुरु करती है और देव भी पेशाब करने लगते हैं। देव आज पेशाब करने में कोई बदमाशी नहीं करते हैं और चुपचाप सराफत से पेशाब करते हैं। पेशाब करने के बाद भी दोनों मां बेटे ऐसे ही बैठे रहते हैं। दोनों कुछ नहीं बोलते हैं, ना ही अपनी जगह से उठते ही हैं। रात का अंधेरा और सन्नाटा था।दोनो कुछ देर तक ऐसे ही चुप बैठे रहते हैं। तब चुप्पी तोड़ते हुए देव कहते हैं
माते, सुबह की घटना के लिए मैं लज्जित हूं।
इस पर रानी रत्ना तो जैसे चौंक जाती हैं मानों किसी चिन्तन से बाहर आई हों और बस इतना ही कहती हैं
ऊ हूं हूं ऊं
और फिर आगे कहती हैं
तुम कबसे मुझे ऐसे देख रहे थे नहाते ।
देव को यह आशा नहीं थी कि उसकी मां उससे ये पूछेंगी। वो तो सोच रहे थे कि पक्का आज डांट पड़ेगी। तब उन्हें सच बोलने के अलावा कोई जवाब नही सुझा और शायद वे भी आपस में खुल कर संवाद करना चाह रहे थे । तब देव कहते हैं
मै उस दिन से आपको नहाते देख रहा हूं माते जिस दिन आपने मृदा स्नान किया था और स्नान करने में विलम्ब किया था। मै आपको खोजते हुए गया और अपको स्नान करते हुए देखा।
तब रत्ना कहती है
लेकिन ये गलत है न पुत्र। अपनी मां को नहाते देखना कितना गलत है। कोई जवान पुत्र अपनी मां को नहाते देखता है क्या भला।
तब देव तपाक से बोल पड़ते हैं
जिसकी मां इतनी सुन्दर हो उसका पुत्र तो उसे नहाते देखेगा ही।
रत्ना,,,, क्या कहा तुमने हां!!! ऐसे कोई अपनी मां के बारे में बोलता है क्या
देव,,,, क्षमा करें माते। यदि आपको मेरी बात का बुरा लगा हो तो। आगे से नहीं बोलूंगा।
लेकिन औरत तो औरत होती है उसे अपनी सुन्दरता की प्रशंसा कैसे बुरी लग सकती है।
रत्ना,,, नहीं पुत्र ऐसी बात नहीं है,, मुझे तुम्हारी बात का बुरा नहीं लगा
देव,,, वही तो मैं कह रहा था, सुंदर को सुन्दर कहने मे गलत क्या है। आप सुन्दर है तो मैने कह दिया।
रत्ना,,, ठीक है, सुंदर को तुमने सुंदर कह दिया। लेकिन मैं यह सोच कर शर्म से गड़ी जा रही हूं कि मेरा पुत्र मुझे इतने दिनों से छुप कर मुझे नंगी नहाते देख रहा था और पता नहीं मेरा क्या क्या देख चुका होगा ।
देव,,, माते , मैं क्या करता , आप नंगी इतनी खूबसूरत दिखती हैं कि मैं आपकी खूबसूरती से बंधता चला गया । आप इतनी सुन्दर है तो इसमें मेरा क्या कसूर है। लेकिन मैंने केवल अपको कमर से ऊपर नंगी देखा है, कमर से नीचे नहीं। आपके पानी के निकलने के पहले ही मैं वहां से चला जाया करता था।
रत्ना,,, छी, तुम कितने बेशर्म हो गए हो देव।
देव,,, इसीलिए तो मै भी शर्मिन्दा हूं मां। लेकिन मै ये कैसे कह दूं कि मुझे अच्छा नहीं लगा। मै खुद ही अपनी भावनाओं को समझ नहीं पा रहा हूं।
ऐसा कह कर देव चुप हो जाते हैं। दोनों कुछ नहीं बोलते। लेकिन रत्ना को भी ये बातें अच्छी लग रही थी। आखिर वो भी तो अंतर्दवंद से जूझ रही थी। अब वो देव को कैसे बताती कि वो छुप छुप कर देव के लिंग को देखती है और तो और वह ये कैसे बता दें कि वह उसके लन्ड को पकड़ भी चुकी है। वह खुद कामवासना की आग में जल रही थी। मन के कोने में कहीं न कहीं रत्ना को इस बात की खुशी भी थी कि उसका पुत्र भी उसके तरफ आकर्षित है और उसे स्त्री के रूप मे देख रहा है क्योंकि रत्ना खुद ही देव के आकर्षण मे बंधी थी। दोनों मां बेटे कुछ देर बैठे रहते हैं और फिर दोनों उठ कर गुफा में सोने चले जाते हैं।
रात में अब हल्की ठंड हो रखी थी और जंगल में तो वैसे भी रात में ठंड हो जाया करती है, तो दोनों मां बेटे छाल ओढ़ कर सो गए थे। अच्छा हुआ था जो ओढ़ने के लिए उन्हें छाल मिल गई थी, नहीं तो ठंड में दोनों को बहुत परेशानी हो जाती। आज की बात से देव के अन्दर इतनी हिम्मत तो आ गई थी कि वह अपनी मां से कुछ खुल कर बातें कर पा रहा था और शायद रत्ना को भी देव के मुंह से अपनी नंगी खुबसूरती की प्रशंसा अच्छी लग रही थी।
दोनों मां बेटे सुबह उठते हैं और फिर दोनों साथ में शौच के लिए जंगल में चले जाते हैं। अब तो दोनों साथ में ही शौच के लिए बैठा करते थे और आपस में बाते भी करते थे। अब तो दोनों थोड़ा खुल भी गए थे। दोनों साथ में बैठ कर शौच कर रहे थे तो रत्ना को लन्ड देखने की इच्छा हुई, उसने अपनी नजरे देव की ओर घुमाई और देव के लिंग का दीदार किया। लेकिन देव रत्ना को देख रहे थे और उनकी नज़रों का पीछा कर वे जान गए कि मां उनका लन्ड देखना चाह रही है। देव को बड़ा अचम्भा भी हुआ और वह ये समझ गए कि मां भी लन्ड के लिए तड़प रही है। उन्होने अपनी कमर थोड़ी आगे कर ली ताकि रत्ना लंड को ठीक से देख सकें। रत्ना भी देव से कल की बात आगे बढ़ाना चाह रही थी लेकिन उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह बात कैसे आगे बढ़ाए। तभी देव कहते हैं
माते, आप ऐसे नंगी खुले में मत नहाया कीजिए। चलो मैं था तो कोई बात नहीं थी लेकिन यदि कोई और होता तो खुद पर काबू नहीं कर पाता।
इस पर रानी रत्ना कहती हैं
इस घने जंगल में तेरे सिवाय कोई और है कहां, जो मै डरूं
देव,,,, इसका मतलब आपको मेरे देखने से कोई डर नहीं है , मैं अपको नहाते देख सकता हूं, है न!!
रत्ना,,, नहीं , मैंने ऐसा तो नहीं कहा कि तुम मुझे नहाते देख सकते हो। राजकुमार आप बातों में उलझाना बखूबी सीख गए हैं।।।
देव,,, ऐसा नहीं है मां, । लेकिन एक बात तो है मैने आपको नहाते तो देख ही लिया है। एक बात कहूं। पिताश्री बहुत किस्मत वाले हैं जो उन्हें आप जैसी खुबसूरत स्त्री पत्नी के रूप में मिली जो इतनी गोरी सुंदर और आकर्षक रूपवान है। पिताश्री तो आपको देखते ही लट्टू हो गए होंगे।
रत्ना,,, धत्त, अपनी मां से कोई ऐसी बात करता है क्या
देव,,, मैने ऐसा क्या गलत कह दिया मां, सही तो कहा है, आपकी सुन्दरता की प्रशंसा ही की है। कोई भी पुरूष भाग्यशाली ही न होगा जिसकी पत्नी इतनी सुन्दर हो, उसके स्तन इतने गोरे बिल्कुल संगमरमर की तरह हो और उस पर गुलाबी चुचुक तो मन को ही मोह लेते हैं। आप नहीं जानती मां आप के नंगे स्तन कितने सुन्दर लगते हैं। सच में, पिताजी तो आपके इन सुंदर स्तनों को देख कर इन्हें बिना मसले मानते ही नहीं होंगे। शायद पिताजी क्या कोई पुरुष काबू नहीं कर पाता।मां, मैं सही कह रहा हूं ।
रत्ना,,, तो आपने कैसे खुद को काबू किया ,, ( रत्ना बातों बातों में यह बोल तो जाती है लेकिन तभी उसे अहसास हुआ कि उसने गलत बोल दिया)
देव,,, अब क्या कहूं मां कैसे काबू किया मैंने खुद को ।
इस कामुक वार्तालाप से देव का लन्ड पूरा खड़ा हो जाता है और धोती से बाहर निकल आया जिसे तिरछी नजरों से देख कर रानी रत्ना आहें भर रही थी। इधर ये बातें कह कर देव चुप हो जाते हैं। कुछ देर तक दोनों चुप चाप बैठे रहते हैं। लेकिन रत्ना को ये चुप्पी काट रही थी और उसे देव के मुंह से खुली बातें सुनना अच्छी लग रही थी। वह देव के मुंह से और बातें सुनना चाह रही थी, इसलिए वह सन्नाटे को तोड़ते हुए बोली,,,
रत्ना,,, लेकिन एक बात पूछूं पुत्र,,, आपने मुझे कमर के नीचे तो नंगी नहीं देखा ना ,,
देव समझ गए कि रत्ना को उनकी बातें अच्छी लग रही हैं और वो और बात करना चाह रही हैं, तब देव कहते हैं
देव,,,, मैं इतना खुशकिस्मत कहां मां, जो मै आपको कमर के नीचे नंगी देख पाता।
रत्ना,,, छी, कैसी बातें करते हैं आप राजकुमार, वो भी मेरे यानि अपनी मां के बारे में
देव,,, तो इसमें गलत क्या कह रहा हूं मां। कोई भी पुरूष इतनी सुन्दर स्त्री को कमर के नीचे नंगी देखना ही चाहेगा ना।
रत्ना,,, मतलब, तुम मुझे कमर के नीचे भी नंगी देखना चाहते थे
देव इस बार बात को बदल देते हैं और कहते हैं
लेकिन एक बात है माते, मुझे लगता है जब पिता जी ने आपको कमर के नीचे नंगी देखा होगा तब तो वो पागल ही हो गए होंगे। वो तो आपको बिना पकड़े माने ही नहीं होंगे
रत्ना,,, जैसे, तुमने मुझे कल आम तोड़ते हुए जकड़ा हुआ था, है न,,,
यह बोल कर दोनो मां बेटे एक दूसरे को देखते हैं और मुस्कुरा देते हैं। रानी रत्ना की नजर देव के लंड पर पड़ती है जो उत्तेजना के मारे कुलाचें मार रहा था। रानी रत्ना की योनि भी उत्तेजना से पनिया गई थी और देव के खड़े लंड को देख कर पानी छोड़ दी थी।
तब रत्ना कहती हैं
चले पुत्र, आज काफी देर तक बाते हो गई
फिर दोनो मां बेटे प्रतिदिन की भांति नित्य क्रिया हेतु झील की ओर चल देते हैं। दोनों एक बात तो समझ चूके थे कि दोनों को ये बातें अच्छी लग रही हैं और दोनों अब खुल कर बातें भी कर रहे हैं।
दिन भर दोनों मां बेटे फल संग्रह और सुखी लकड़ियों को इकट्ठा करने में व्यस्त रहे और अंधेरा होने के बाद उन्होने खाना खाया और खाना खा कर दोनो गुफा के अंदर एक पत्थर के चबूतरे पर आमने सामने बैठ गए और बाते करने लगे।
रत्ना,,, पता नहीं राज्य में क्या हो रहा होगा
देव,,, सब ठीक होगा माते,
रत्ना,,, मुझे भी पूरा विश्वास है कि महाराज युद्ध में विजयी रहे होंगे, और जल्दी ही हम अपने राज्य वापस लौटेंगे।
देव,,, हां माते, मुझे भी पूरा विश्वास है। माते आपको भी हल्की ठंड लग रही है क्या। आप कहे तो छाल को अपने पैरों पर डाल दे क्या
रत्ना,,, हां पुत्र, डाल दो ना, मुझे भी हल्की ठंड लग रही है
इस पर देव छाल को अपने और रत्ना के पैरों पर डाल देते हैं और दोनों गुफा की दीवार से टेक लेकर बैठ कर बात करते रहते हैं। दोनों आमने सामने बैठे थे इसलिए दोनों के पैर एक दूसरे से छू भी रहे थे।
देव,,, मां यहां जंगल में कितनी शान्ति है न
रत्ना,,,, हां ये तो है और हां कितने तरह के फल हैं यहां जो हम जानते भी नहीं थे
देव,, और कल जो वो आम अपने हाथों से तोड़ा था वो कितने अच्छे थे
रत्ना,,, हां देखा, कितने रसीला और मीठा था
देव,,,, हां, लेकिन आपके आम से अच्छा नहीं था ( देव ने रत्ना के स्तनों के तरफ इशारा करते हुए मुस्कुराते हुए कहा)
पहले तो रत्ना नहीं समझी , लेकिन जब समझी तब वो भी मुस्कुराते हुए बोली
रत्ना,,,,, छी : , बड़े बेशरम होते जा रहे हो तुम, कोई अपनी मां से ऐसे बात करता है भला
और ये बोल कर रत्ना मुस्करा देती है। उसे भी ये बातें अच्छी लग रही थी। इसी बीच छाल के अन्दर देव और रत्ना ने थोड़े पैर फैलाए क्योंकि पहले दोनों पैर चढ़ा कर बैठे थे लेकिन जैसे ही इन्होंने पैर फैलाए ऐसी स्थिति बनी की रत्ना के दोनों पैरों के बीच में देव का पैर और देव के दोनों पैरों के बीच में रत्ना का पैर आ गया। रत्ना के पैर तो छोटे थे और देव के पैर लम्बे।
देव,,, सही कह रहा हूं मां, आपके आम उस पेड़ पर के आम से अच्छे हैं
रत्ना,,, मुस्कुराते हुए,, ठीक है ठीक है, बहुत हो गई मां की प्रशंसा
इसी क्रम में देव अंगड़ाई लेते हुए अपने पैर के पंजों को आगे की ओर मोड़ते है। लेकिन पंजे आगे मोड़ने से ऐसा कुछ हुआ जिसकी कल्पना ना तो देव ने , ना ही रत्ना ने की थी। हुआ ये कि देव का पंजा सीधे रत्ना की बुर से सट गया जिससे रत्ना की सिसकी निकल गई। देव को भी रत्ना की बुर की झांटे अनुभव हुई। देव ने तुरन्त अपने पंजे पीछे कर लिए। लेकिन उसे यह बहुत अच्छा लगा, वही रत्ना को भी यह अच्छा लगा। देव और रत्ना फिर ऐसे ही बाते करते रहे और एक बार फिर देव ने जान बूझ कर अपने पैर का पंजा आगे मोड़ा और फिर से रत्ना की योनि से सटा दिया और इस बार थोड़ा दबा भी दिया जिससे रत्ना चिहुक गई। लेकिन इस बार देब ने अपने पंजे रत्ना की बुर से नहीं हटाया। और अपना पंजा रत्ना की बुर से सटा कर बातें करने लगा।
देव,,, मां मैं झूठ नहीं बोल रहा हूं। आप हो इतनी सुन्दर!!! आपकी सुन्दरता की ख्याति ऐसे ही सब जगह नहीं है।
रत्ना,,, मुस्कुराते हुए कहती है,, हा ये बात तो है, जब तुम्हारे पिता जी ने मुझे पहली बार देखा था तो वो मुझे देखते ही रह गए थे, वो तो नंदिनी दीदी ने आकर खांसा तब जाकर तेरे पिताजी ने मुझसे नजर हटाई।
देव,, वही तो, मैं जानता था कि जरुर ऐसा ही हुआ होगा
देव ये बोलते रहे और अब धीरे धीर अपने पंजे को जो रत्ना की बुर से सटा था, उससे रत्ना की बुर सहलाने लगे। वो रत्ना से बाते भी कर रहे थे और उसकी बुर भी सहला रहे थे।
देव,,, मां, आप तो दुलहन के जोड़े में और भी सुंदर दिख रही होंगी
रत्ना,,,, ऊ ऊ ऊ हु हू ऊ ऊ,,, अब सभी तो ऐसा ही कह रहे थे
रत्ना के मुंह से अब आवाज नहीं निकल रही थी बल्कि आह निकल रही थीं। क्योंकि देव उनकी योनि को सहला रहे थे। देव को थोड़ा डर भी लगा कि कहीं कुछ ज्यादा तो नहीं हो रहा, तो उन्होने अपने पैर रत्ना की बुर से हटाना चाहा और अपने पैर हल्के से हटाया। इधर रत्ना को जैसे अहसास हुआ कि देव अपने पैर हटा रहा है उसने अपनी जांघों से देव के पैर को दबोच लिया जिससे देव को बड़ा अचंभा हुआ। वो कहते है न कि स्त्री की जब कामभावना प्रबल हो जाती है तो वह सब कुछ भुल जाती है,,,वही अभी रत्ना ने भी किया। देव को तो अच्छा लग ही रहा था, तो अब देव लगातार रत्ना की बुर को अपने पैर से सहलाए जा रहे थे।
दोनों बात तो कर रहे थे लेकिन बुर सहलाई का मजा भी ले रहे थे। दोनो ऐसे व्यवहार कर रहे थे मानों इन्हें पता ही न हो की छाल के नीचे देव अपने पैर से रत्ना की बुर सहला रहा है। दोनों आपस में सामान्य बातचीत भी किए जा रहे थे। देव कहते हैं
मै जानता हूं आप बहुत खूबसूरत लग रही होंगी, जब आज आप इतनी सुन्दर लगती हैं, तो आप अपने विवाह के समय तो और खूबसूरत दिखती होंगी
रत्ना,,, मै इतनी सुन्दर लगती हूं तुम्हें
देव,, ,, हां मां, इस पर भी कोई शक है क्या
इस पर रत्ना हल्का मुस्कुराती है। रत्ना बुर के सहलाने से कामवासना से भर गई थी और वो कहती हैं
क्या अच्छा लगा तुम्हें मुझमें
देव,,, सब कुछ मां, आपका पूरा नंगा बदन, आपके गोरे सुडौल स्तन जो हमेशा कसे रहते हैं और ये गुलाबी चुचुक,,, और,,,,, सब कुछ मां, सब कुछ
रत्ना,, तुम ऐसे ही झूठ बोलते हो, अब मैं बूढ़ी हो गई हूं, मुझमें अब क्या आकर्षण पुत्र
रत्ना अब काम भावना से ओतप्रोत हो गई थी। एक तो देव की कामुक बातें और दूसरा उसके बुर सहलाने से उसकी काम भावनाएं भड़क गई थी और उसे भी अपने पुत्र के साथ कामुक वार्तालाप अच्छा लग रहा था। तब देव कहते हैं
मै झूठ नहीं बोल रहा हूं माते, आप कहां बूढ़ी हुई हैं !!! दो दो बच्चों को जन्म देने के बाद भी आपका बदन अभी भी कसा हुआ है। लगता ही नहीं है कि आप दो जवान बच्चों की मां हो । कोई देखे तो अभी भी आपको कुंवारी ही समझ ले। और अभी भी आपको राजकुमारों के रिश्ते शादी के लिए आ जाएं
रत्ना,,, ,, कहां बदन कसा हुआ है मेरा, । झुर्रियां तो पड़ गई है चेहरे पे
देव,,,,, सही कह रहा हूं मां, अपने स्तन तो देखो कितने कसे और सुडौल हैं। इन्हें ही तो नहाते समय नंगी देख कर मेरा लन्ड खड़ा हो जाता है और मैं अपने हाथों से अपना लन्ड मसल मसल कर आपके नंगे स्तन का दीदार किया करता था।
रत्ना कामुक वार्तालाप और बुर सहलाई से उत्तेजित हो कर अपने चरम के करीब तक पहुंच जाती है और जैसे ही देव ने लन्ड का नाम लिया , वो चुहुक जाती है और झड़ जाती है। आज पहली बार अपनी मां के सामने देव ने लन्ड शब्द का प्रयोग किया था और उत्तेजना के मारे उसकी योनि भलभला कर झड़ जाती है और अपनी योनि से पानी की धार बहा देती है । देव के तलवे पर रानी रत्ना की योनि का योनि रस लग जाता है। रत्ना को अपनी इस हरकत से बहुत आत्मग्लानि होती है। वह अपने पैर समेत कर उठती है और बाहर पेसाब करने चली जाती है। पीछे से देव भी पेशाब करने चले जाते हैं, आखिर दोनो मां बेटे साथ में र्पेशाब जो करते हैं
To be continued