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Incest राजकुमार देव और रानी माँ रत्ना देवी

Bittoo

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अपडेट 35

इस तरह दोनों मां बेटे के बीच ऐसे ही मजाक चलता रहता है। रानी रत्ना ने तो अनायास ही यह बात कह दी थी जिसको बोलने के पहले उसने सोचा भी नहीं था। वह अपने को खूब कोसने लगती है और मन में ही कहती है
हाय ये मैंने क्या बोल दिया और वह भी अपने ही पुत्र के सामने। पता नहीं वह मेरे बारे में क्या सोच रहा होगा हाय मैं कितनी कमिनी हो गई हूं, अपने ही पुत्र के सामने,,,,, छी छी। अब तो मैं देव से आंखें कैसे मिलाऊंगी!!! लेकिन एक बात तो है, मेरे पुत्र के पेशाब की धार वाकई काफी दूर तक जा रही है, हो न हो उसके अंग भी जबरदस्त होगा। ,,,, हाय ये मैं क्या सोचने लगी। कोई मां अपने पुत्र के अंगों के बारे में भला सोचता है क्या।

रत्ना, यही सोचते रहती है और चलते चलते अपने शैय्या पर आती है जो फूस की होती है और उस गुफा में बड़े से पत्थर पर बिछाई रहती है। दोनों मां बेटे वही सो जाते हैं और रत्ना को यह सब सोचते सोचते कब नींद लग जाती है, उसे पता ही नहीं चलता। उसकी नींद तो तब खुलती है जब चिड़ियों की चहचहाहट उसे सुनाई पड़ती है। रानी रत्ना पहले उठती हैं और शौच के लिए तैयारी कर रही होती है । तभी देव की भी नींद खुल जाती है। अभी तक होता यह रत्ना पहले उठती थी और देव के उठने के पहले नित्य क्रिया से निवृत्त हो कर वापस आ जाया करती थी और तब देव उठते और नित्य क्रिया के लिए जाते।

लेकिन आज रत्ना के साथ साथ देव की भी नींद खुल जाती है। इस पर रानी रत्ना ने कहा

क्या हुआ देव। आज अभी क्यों जग गए।

इस पर देव कहते हैं
माते पता नहीं क्यों आज पेट में मरोड़ हो रहा है और मुझे शौच जाने की तीव्र इच्छा हो रही है । मुझसे रुका नहीं जा रहा है।
इधर रत्ना की भी यह आदत थी कि उसे सुबह सुबह ही शौच आती थी और वह भी अपने को रोक नहीं पाती थी उसे भी अब तेज शौच आई थी। तब रत्ना ने कहा
चलो, तब तुम भी मेरे साथ चल चलो और जंगल के दूसरे कोने में बैठ कर तुम शौच कर लेना।

अभी इतना बोलना था की देव के पेट में दर्द थोड़ा और बढ़ जाता है। इधर रत्ना की भी शौच की तीव्रता बढ़ गई थी। देव भी जल्दी से उठते हैं और जंगल की ओर चल पड़ते हैं। रत्ना भी जल्दी जल्दी देव के साथ जंगल की ओर चल पड़ती है। दोनो मां बेटे साथ साथ जंगल में थोड़े खुले स्थान में पहुंचते हैं। रत्ना थोड़ा आगे बढ़ कर शौच के लिए बैठ जाती है और देव वहीं शौच के लिए बैठ जाते हैं क्यूंकि उन्हें बहुत तेज से शौच आई थी। बैठते ही देव के गुदा द्वार से तेज आवाज के साथ मल बाहर निकलता है। आवाज सुनकर रत्ना मुड़ कर देव को देखती है और उसे हसी आ जाती है । रत्ना के ऐसा देखने से देव थोड़ा शरमा जाता है और शर्म से उसके गाल लाल हो जाते हैं और होंठों पर मुस्कान आ जाती है।
रत्ना और देव एक दूसरे से अच्छी खासी दूरी पर बैठे थे। लेकिन दोनो एक दूसरे की आवाज सुन सकते थे। देव थोड़ा पीछे तो बैठे थे लेकिन उन्होंने धोती को इस तरह बांधा था कि उनका लन्ड पूरा तो नहीं दिख रहा था लेकिन लन्ड का टोपा हल्का हल्का दिख रहा था जिसे रत्ना ने हल्के से देख लिया। कई दिनों बाद लन्ड देख कर रानी रत्ना को भी अच्छा तो लगा। लेकिन लन्ड के टोपे की एक हल्की झलक ही वो देख पाई थी । किसी भी स्त्री को पुरुष का लिंग देखना उतना ही लुभाता है जितना किसी पुरूष को किसी स्त्री की योनि देखना , भले ही वह लिंग और योनि किसी की भी हो और भले ही नजदीकी रिश्तों में हो, लेकिन एक बार लिंग और योनि देखने के बाद मन तो डोल ही जाता है । यही हाल उस समय रत्ना का भी हुआ। अपने पुत्र के लन्ड की एक झलक ही उसे मदहोश कर रही थी।
तभी रत्ना के भी गुदा द्वार से पहले एक लम्बी आवाज पोओओओओओओओ के साथ एक लम्बी पाद निकल जाती है जिसकी अपेक्षा ना तो रत्ना ने ना ही देव ने की थी । पाद की आवाज सुनते ही रत्ना हस देती है और साथ ही साथ शरमा भी जाती है। देव भी जब रत्ना की पाद की आवाज सुनता है तो उसे भी हसी आ जाती है। लेकिन अपने हसने से देव भी शरमा जाता है कि मां उसके बारे में क्या सोच रही होंगी कि मैं कितना बेशरम हूं जो अपनी ही मां की पाद की आवाज सुन कर हस पड़ा। लेकिन एक बात थी कि इस दौरान रानी रत्ना थोडी दूरी पर आगे बढ़ कर शौच कर रही थी इसलिए देव किसी भी प्रकार से रत्ना की बुर नहीं देख पा रहे थे और एक बात यह भी थी की रत्ना साड़ी को घुटनों से नीचे कर के शौच कर रही थी जिस कारण उसकी बुर देखने का सवाल ही पैदा नहीं होता था। लेकिन रत्ना देव के लिंग की एक झलक पाकर ही मदहोश हो रही थी। एक तो रत्ना कई दिनों से पति से अलग होकर जंगल में छुप कर रह रही थी जिससे वह सम्भोग भी नहीं कर पा रही थी। भले ही रत्ना अपने राज्य की रानी थी, लेकिन थी तो वह एक कामुक स्त्री ही न जो प्रतिदिन अपने पति के मोटे तगड़े लिंग से चूदवाकर अपनी योनि की आग शान्त किया करती थी। रत्ना को भले ही इसके पूर्व अपने पति के साथ सम्भोग के मूल्य का पता ना हो लेकिन अब पति से दूर रह कर उसे चूदाई के मूल्य का पता चल रहा था और अब वह अपनी योनि की चूदाई के लिए तड़प रही थी।
कुछ देर बाद शौच के उपरान्त दोनों मां बेटे नित्य क्रिया से निवृत्त होकर फल फूल संग्रह के लिए भ्रमण पर निकल जाते हैं । दिन में दोनों मां बेटे के बीच हल्का फुल्का मजाक होता है, लेकिन इसके आगे कुछ नहीं। मां बेटे के बीच एक परिवर्तन जरूर आया था कि दोनों अब हल्का फुल्का मजाक करने लगें थे। रत्ना के मन में तो उन घटनाओं के बाद जिसमें देव ने अपनी जान की बाजी लगा कर उसके प्राणों की रक्षा की थी, देव के प्रति एक अलग सा समर्पण वाला प्रेम पनपने लगा था जिसकी प्रकृति को रत्ना समझ नहीं पा रही थी कि यह कैसा प्रेम है। लेकिन जो भी हो, पता नहीं क्यों रत्ना को देव का साथ अच्छा लगने लगा था। और यह स्वाभाविक भी था। इस दुनिया में कोई भी अपने प्राणों की बलि देकर दूसरे के प्राणों की रक्षा नहीं करता और यदि सामने वाला अपनी जान की परवाह किए बगैर अगर किसी के प्राणों की रक्षा करता है तो उसे इस दुनिया में उससे ज्यादा प्यार करने वाला कोई हो ही नहीं सकता । इसी कारण से रत्ना स्वाभाविक रूप से देव की ओर खीचती चली जा रही थी।

रत्ना देव के प्रति फिर पूरे दिन दोनों के बीच कुछ नहीं होता है। फिर रात होती है और दोनों रात मे सोने जा रहे होते हैं। तो रत्ना पेशाब करने के लिए गुफा से बाहर निकलती है लेकिन देव को कुछ नहीं बोलती है लेकिन देव भी थोडी देर में गुफा से बाहर निकल कर वहीं बैठ जाते हैं जहां दोनों रात्रि में पेशाब करने के लिए बैठा करते थे। रत्ना तो पहले से ही वहां बैठी थी लेकिन उसने अभी पेशाब करना शुरु नहीं किया था; शायद वह देव का इन्तजार कर रही थी। देव के आने पर दोनों पेशाब करना शुरु करते हैं। दोनो पेशाब तो करते हैं लेकिन आपस में कोई बात नहीं करते हैं। देव पेशाब करते समय अपने लिंग को थोड़ा गोल गोल घुमाने लगते हैं जिससे पेशाब की धार गोल गोल घूमते हुए गिरने लगती है और इसी बीच पेशाब की कुछ बूंदे रत्ना पर पड़ जाती है। रत्ना इस पर मुस्कुरा देती है और कहती है
आज तो तुम्हारा पेशाब दूर तक नहीं जा रहा । केवल गोल गोल घूम रहा है और देख तेरे पेशाब की बुंदे भी मेरे ऊपर पड़ रही है।
,,,,,,,,,,
इस पर देव थोड़े से शरमा जाते हैं। कुछ देर चुप रहने के बाद देव कहते हैं

माते, मुझे सुबह की बात के लिए क्षमा कर दीजिएगा

रत्ना कहती हैं,,
कौन सी बात

देव,,,,,
वही जो मै आपकी पाद सुन कर हस पड़ा था

रत्ना,,,,
इसमें कौन सी बात है। मुझे भी तो तुम्हारी आवाज सुन कर हसी आई थी। वैसे बेटा तुम भी सुबह ही उठ जाया करो
देव,,,
लेकिन माते, मुझे उठते ही हाजत महसूस होती है

रत्ना,,,,
तो इसमें क्या है, तुम भी मेरे साथ शौच के लिए चलना जैसे आज गए थे

देव,,,
लेकिन माते, सुबह तो आप शौच करती हैं न

तब रत्ना कहती हैं
क्या हो गया मैं शौच करती हूं तो। जैसे आज हमदोनो शौच कर रहे थे वैसे ही शौच कर लेंगे। वैसे भी इस घने एकान्त जंगल में हम दोनों के आलावा है ही कौन, जो एक दूसरे का ख्याल रखे । देव, हमें ही यहां एक दूसरे का ख्याल रखना है। सुबह वैसे भी मुझे जंगली जानवरों का डर सताता है।

रत्ना ने आज देव के लिंग के सुपाड़े की झलक पा ली थी जो उसे अच्छा लग रहा था और वह चाहती थी कि प्रति दिन शौच के बहाने ही उसे लौड़े का दर्शन तो हो जाए और इसीलिए उन्होने कहा कि कोई बात नहीं, तुम भी सुबह से मेरे साथ ही शौच करने चल देना।
देव रत्ना की इन बातों को सुन कर कहते हैं
ठीक है माते, आप जैसा कहे। कल सुबह से मै आपके साथ ही शौच के लिए चलूंगा ।

ऐसा कह कर देव अपने जगह से उठ कर गुफा में चले जाते हैं। फिर रत्ना मन में सोचती है
हाय दैय्या, कल से तो मुझे पुरूष के लिंग के दर्शन की संभावना बढ़ जाएगी।
ऐसा सोच कर रत्ना शरमा जाती है और वह भी गुफा में सोने चली जाती है।

दोनो मां बेटे रात में गुफा में सोते हैं और सुबह उठ कर पिछले दिन की भांति शौच के लिए जंगल में चले जाते हैं और एक दूसरे से कुछ दूरी पर बैठ जाते हैं शौच करते समय रत्ना अपनी जगह से देव को देखने की कोशिश करती है कि उसे देव के लिंग का सुपाड़ा दिख जाए। वह अपने को एक तरफ कोसती भी है कि देव तो मेरा पुत्र है वही दूसरी तरफ वह ये सोचती है कि मुझे लिंग देखे हुए कितने दिन हो गए और इस जंगल में और कोई दुसरा लिंग भी नहीं है जिसे देख सकूं। रत्ना जितना सोचती उतना ही उसका मन लिंग देखने को सोचने लगता। कुछ दिन ऐसे ही चलता रहा और रत्ना कभी कभी देव के लिंग की एक झलक देख पाती थी । इसके अलावा दोनों के बीच कुछ नहीं हुआ।
ऐसे ही समय कटने लगा। एक रात को दोनों मां बेटे गुफा में सोएं हुए थे। भोर का समय था। रानी रत्ना एक कामुक सपना देख रही थी जिसमें वह देखती है कि वह एक पुरूष के लिंग को पकड़ रही हैं । उनकी काम भावना उफान मार रही थी । और कहते हैं ना कि भोर में पुरूष और स्त्री की काम भावना काफी प्रबल होती है । तो रत्ना तो गरम थी ही। देव का भी लौड़ा भी खड़ा था। रत्ना काम वासना से ओत प्रोत होकर अपने हाथ देव के पेट पर रख देती है। उसे स्वप्न में इस बात का जरा भी भान नहीं था कि वह अपने पुत्र देव के बगल में सोई हुई है। रत्ना काफी दिनों से गरम तो थी ही, पुरुष के शरीर का स्पर्श उसकी काम भावना को भड़का रहा था। लेकिन नींद में रत्ना को यह अहसास नहीं था की वह पुरूष कोई और नहीं उसका पुत्र है। रत्ना नींद में ही अपना हाथ देव के पेट और फिर कमर पर फिराने लगती हैं। तभी रत्ना का हाथ अचानक से देव के खड़े लन्ड से टकरा जाता है । लन्ड से हाथ टकराते ही रत्ना पूरे लन्ड को अपने हाथ से पकड़ कर मुठिया लेती है। उसे नींद में भी लंद का स्पर्श अच्छा लग रहा था। वह ऐसा महसूस कर रही थी मानो उसने वास्तविकता में ही लन्ड पकड़ लिया हो जो सत्य भी था। रानी रत्ना प्यासी तो थी ही वह, इसलिए लन्ड को अपने हाथ से छोड़ नहीं रही थी। उसके स्तन कामुकता से तन जाते हैं और योनि भी पनियाने लगती है। वह लन्ड को धोती के ऊपर से ही सहलाने लगती है। काफी दिनों बाद रानी रत्ना ने लिंग को पकड़ा था। इसलिए वह काफी उत्तेजित हो जाती है और उत्तेजनावश उनकी योनि पानी छोड़ देती है। इसके बाद रानी रत्ना शान्त हो जाती हैं और फिर तभी अचानक से रत्ना की नींद खुल गई। तो उसने देखा कि उसका हाथ अपने पुत्र के लन्ड पर है जो खड़ा था। देव का खड़े लन्ड को धोती में ही देख कर रानी रत्ना गनगना जाती है। उसे धीरे धीरे सब याद आने लगता है कि वह सपना देख रही थी और सपने में ही अपने पुत्र का लन्ड पकड़ ली थी। वह खुद को मन ही मन कोसने लगती है उसने यह क्या कर दिया। लेकिन अभी भी रत्ना का हाथ देव के लन्ड पर ही था जो स्त्री के हाथ का स्पर्श पाकर और खड़ा और कड़क हो गया था। रत्ना को ग्लानि तो हो रही थी कि उसने देव के लिंग को पकड़ लिया है लेकिन दूसरी ओर वह मन ही मन सोचती है कि
देव तो सो रहा है उसे क्या पता कि मैने उसका लन्ड पकड़ रखा है और वैसे भी वह तो मेरा प्यारा पुत्र है जो मुझसे इतना प्यार करता है कि मेरे लिए उसने कई बार अपनी जान की बाजी भी लगा दी है । हाय कितना प्यार करता है मुझसे। इस पुरे विश्व में ऐसा कोई भी नहीं होगा कि जो मुझसे इतना प्यार करता है कि मेरे प्राणों की रक्षा के लिए अपना जीवन दाव पर लगा दे। हाय कितना प्यारा दिख रहा है और देखो कितने निश्छल भाव से सो रहा है। इस पर मेरा जीवन कुर्बान है। मेरा जीवन इसका उधार है। कहते हैं कि मां के दूध का कर्ज कोई पुत्र नहीं उतार सकता। लेकिन यहां तो पुत्र के साहस का कर्ज उसकी मां नहीं उतार सकती। इसका चेहरा तो देखो कितना शान्त है और चेहरे पे ओज और तेज तो देखो, आंखे लगातार नही देख सकती हैं।
यही सोचते सोचते रानी रत्ना देव के ललाट पर एक प्यारा सा चुम्बन जड़ कर प्यार करती है और फिर उसके गाल पर भी चुम्बन जड़ देती हैं। रत्ना के इस तरह चुम्बन लेने से देव को कुछ अनुभूति होती है तो देव के शरीर में एक हल चल होती है। अचानक हुए इस हलचल से रत्ना तुरन्त देव के लिंग से अपना हाथ हटा लेटी है और तुरन्त देव के बगल में उसकी तरफ करवट ले कर सो जाती है और अपनी आंखें बन्द कर लेती है।
देव धीरे धीरे जगते है और उन्हें लगता है कि स्वपन में उन्हें बहुत अछा लग रहा था। तभी देव देखते हैं कि उनका लन्ड उनकी धोती में टनटना कर खड़ा है। उन्होंने अपने लन्ड को कभी इतना कड़क होकर खड़ा नहीं देखा था। उन्हें क्या पता था कि कोई और नहीं बल्कि उनकी मां रत्ना के कोमल हाथों का स्पर्श पाकर उनका लन्ड खुश हो कर इस तरह से उत्तेजित हो कर खड़ा है। देव उत्तेजित तो थे ही। उन्होंने अपने लन्ड को अपने हाथ से पकड़ लिया और उसे पकड़ कर धीरे धीरे सहलाने लगे। इस तरह से लंद सहलाना उन्हें अच्छा तो लग ही रहा था और उनकी काम भावना किसी स्त्री के साथ सम्भोग के लिए इन्हें आतुर किए जा रही थी और उनका लन्ड और कड़क हो रहा था। तभी उनकी नजर बगल में सोई अपनी मां रानी रत्ना पर पड़ती है जो देव की ओर पीठ करके सोई थी। देव एक बार उपर से नीचे तक रत्ना को देखते हैं। उनकी नंगी पीठ और कमर देव को और आकर्षित कर रहे थे। देव उत्तेजित तो थे ही और ऊपर से रत्ना की नंगी गोरी कमर उनकी भावना को भड़का रही थी। आखिर रत्ना थी जो इतनी गोरी और सुन्दर। रत्ना के उन्नत नितम्ब देव के मन को झकझोर दे रहे थे। आज पहली बार देव ने अपनी मां रानी रत्ना को एक स्त्री के रूप में देखा था, । वह सोच भी नहीं सकते थे कि उनकी मां इतनी सुन्दर है। देव वही रत्ना को देख देख कर अपना लन्ड हाथ में पकड़ कर हस्तमैथुन करने लगते हैं। अपनी मां को देख कर हस्तमैथुन करना उन्हें अलग अनुभूति दे रहा था। हस्तमैथुन करते करते देव अपनी मां के शरीर को लगातार देख कर उत्तेजित हुए जा रहे थे और जोर जोर से अपने लन्ड को रगड़ रहे थे और उत्तेजनावश वही पे झड़ जाते हैं। झड़ने के बाद देव को यह अहसास होता है कि उसने यह क्या कर दिया। धिक्कार है उसे जो उसने अपनी मां को देख कर अपना लन्ड रगड़ा। लेकिन फिर वह दूसरी ओर सोचता है कि जो कहो मेरी मां हैं बहुत सुन्दर। पिता जी कितने भाग्यशाली हैं कि उन्हे मां जैसी सुन्दर स्त्री पत्नी के रूप में मिली। लेकिन चलो यह अच्छा है कि मां सोई हैं और उन्हे यह पता नहीं चला कि मैं उन्हें ही देख कर अपना लन्ड हिला रहा था। यही सोचते सोचते देव फिर लेट जाते हैं और फिर सो जाते हैं। थोड़ी देर बाद रत्ना उठने का दिखावा करती है और फिर देव को भी जगाती है और कहती हैं कि
चलो पुत्र उठो, चलो सुबह हो गई, शौच के लिए चलते हैं।
दोनों मां बेटे उठते हैं और शौच के लिए जंगल में नियत स्थान पर चलें जाते हैं। इधर कुछ दिनों से दोनों मां बेटे एक साथ के लिए ही शौच करने जाया करते थे। शुरु मे तो दोनो एक दूसरे से एक नियत दूरी बना कर बैठा करते थे। रानी रत्ना थोड़ा आगे बैठा करती और देव उनसे थोड़ा हट कर रत्ना के तिरछे बैठा करते थे जिससे होता यह था कि देव रत्ना के किसी अंग को देख नहीं पाते थे लेकिन रत्ना यदि अपना सिर थोड़ा भी देव की ओर घुमाती तो देव के लम्बे लटकते लौड़े के गुलाबी सुपाड़े की झलक पा जाती थी जो रत्ना की कामभावना को भड़का देती थी। रत्ना मन ही मन अपने को धिक्कारती भी थी कि वह कैसी मां है जो अपने ही पुत्र के लन्ड को देखने को व्याकुल रहती है। लेकिन फिर वह सोचती कि इस वीरान जंगल में हम ही दोनों स्त्री पुरूष हैं, तो यह तो स्वाभाविक ही है कि अगर मैं किसी पुरूष का लन्ड देखूं, तो मैं केवल अपने पुत्र का ही देख सकती हूं। आखिर मैं भी तो एक स्त्री हूं जो पुरूष के लिंग को देखने को व्याकुल है।
इधर कुछ दिनों से शौच के लिए साथ मे बैठने से एक परिवर्तन यह आया था कि दोनों मां बेटे अब धीरे धीरे करते हुए एक दूसरे के नजदीक होकर बैठने लगे थे। अब तो दोनों मां बेटे एक साथ ही शौच के लिए बैठने लगे थे। दोनों अगल बगल बैठ कर बाते भी करते और रानी रत्ना अब बड़े आराम से देव के लन्ड का दीदार कर पाती थी लेकिन देव अभी भी रत्ना के किसी अंग को देख नहीं पाए थे क्योंकि रत्ना जब शौच से निवृत्त होकर झील की ओर जाने के लिए उठती वह अपनी साड़ी को घुटने तक गिरा लिया करती थी जिससे रत्ना के गुप्त अंग छिप जाया करते थे। वैसे तो देव भी अपनी धोती थोड़ी नीचे कर लिया करते थे लेकिन उनका लन्ड की झलक धोती के ऊपर से दिख जाया करती थी। इसके बाद दोनों झील के अलग अलग किनारों पर जाकर खुद को साफ करते और नहाया करते थे। होता यह था कि रत्ना जब पहले अकेले शौच के लिए आती थी तब वह स्नान कर के वापस जाया करती थी और तब देव को उठाया करती थी लेकिन अब तो दोनो मां बेटे साथ ही शौच के लिए आया करते थे और दोनों झील के किनारे पर अलग अलग स्थानों पर स्नान कर के जाया करते थे। ऐसे ही दिन बीतने लगे और दोनों मां बेटे खुशी खुशी एक साथ रह रहे थे।
लेकिन एक दिन जब रत्ना स्नान कर रही थी तो उसने सोचा क्यों ना मिट्टी का लेप लगा कर स्नान कर लूं। तो उसने पूरे शरीर पर मिट्टी का लेप लगा लिया और धूप में बैठ गई जब मिट्टी उसके शरीर पर सुख गई तो वह स्नान करने के लिए झील में प्रवेश करने लगीं ताकि वह अच्छे से मिट्टी छुड़ा कर स्नान कर सके । रत्ना झील में प्रवेश कर आराम से हाथ नीचे ले जाकर अपने पैर की मिट्टी को धो रही थी और हां एक बात और रत्ना जब स्नान करती थी तब वह अपने वस्त्रों को उतार कर पूरी नंगी हो कर नहाया करती क्योंकि इनके पास कपड़े बहुत कम थे।
इधर देव नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्नान करने के उपरान्त अपनी मां रानी रत्ना का इन्तजार कर रहे थे। लेकिन आज अनावश्यक विलंब हो रहा था जिससे वे थोड़े चिंतित हो रहे थे। उन्हें हमेशा इस बात का भय लगा रहता था कि कहीं दुश्मन सैनिक इन्हें खोजते हुए फिर ना पहुंच जाएं । यही सोच सोच कर देव और घबरा जाते हैं उन्हें क्या पता था कि उनकी मां आज मृदा स्नान कर रही हैं। अनावश्यक विलम्ब होने पर देव अपनी मां रत्ना को खोजने के लिए झील के उस किनारे पर पहुंचते हैं जहां रानी रत्ना नित्य क्रिया किया करती थीं। देव उस किनारे की ओर बढ़ते हैं और जैसे ही जंगल के पेड़ो के बीच से होते हुए झील के किनारे पहुंचते हैं वो कुछ ऐसा देखते हैं जिसकी कल्पना उन्होंने नही की थी। झील के किनारे पहुंचते ही वह देखते हैं कि उनकी मां रानी रत्ना झील के पानी में कमर तक खड़ी है और देव की ओर पीठ की हुई है, लेकिन खास बात ये थी कि रत्ना उपर से बिल्कुल नंगी थी और अपने शरीर पर मिट्टी लपेटे हुईं थी। तभी रत्ना एक बार डुबकी लगाती हैं और केवल अपना सिर पानी के बाहर निकालती हैं। पानी के अन्दर वो अपना हाथ डाल कर पीठ पेट और वक्ष स्थल पर से मिट्टी रगड़ रगड़ कर हटा देती हैं और शरीर रगड़ रगड़ कर नहाती है। नहाने के बाद रत्ना फिर खड़ी होती हैं और कमर तक पानी में खड़ी रहती है। जब रत्ना इस बार पानी से उपर आती है तो उसकी नंगी गोरी पीठ देव की दिखती है। अपनी मां की पहली बार नंगी पीठ देख कर देव की भी काम भावना उफान पर आ जाती है और उसके लन्ड में तनाव आने लगता है। देव ने आज तक किसी स्त्री की नंगी पीठ नही देखी थी जो आज देख कर उसे मजा आ गया । तभी देव को लगा कि मां घूमने वाली है, तन देव पेड़ की ओट में छुप गया और अपनी मां रानी रत्ना को छुप कर देखने लगा। तभी देव ने वह देखा जिसकी कल्पना देव ने कभी नहीं की थी, आज वह अपने जीवन की सबसे खूबसूरत चीज देखने जा रहा था। रानी रत्ना नहा चुकी थी और अब झील से बाहर आने के लिए वह जैसे घूमती है वैसे ही देव की आंखों के सामने उसकी मां रत्ना के नंगे स्तन दिखने लगते हैं जो बिलकुल संगमरमर सी गोरी और खरबूजे के आकार की थी। अपनी मां को कमर के ऊपर पूरी नंगी देख कर देव और उत्तेजित हो जाते हैं आखिर रत्ना थी जो इतनी खूबसूरत। रत्ना की गोरी गोरी चूची और भूरे चूचुक देव को और उत्तेजित कर रहे थे, वह अपनी मां की खूबसूरती में ऐसे खो गया कि वह ये भूल गया कि सामने जो औरत झील में कमर के ऊपर नंगी खड़ी है, वह और कोई नहीं उसकी मां है। काम भावना जब प्रबल हो जाती है तब आदमी यह भुल जाता है कि सामने वाली औरत उसकी मां है या बहन । वही हाल अभी देव का था। वह अपनी मां की सुन्दरता मे खो गया था, और उसका लन्ड धोती में एकदम खड़ा हो गया था जिस पर अनजाने में ही देव का हाथ चला गया था और वह अपनी मां के नंगे स्तन को देख कर हाथ से अपने लन्ड को रगड़ रहा था। रत्ना गोरी तो इतनी थीं कि उनकी चूची सूर्य की किरणों से चमक रही थी। देव का अपनी जिन्दगी में औरत के अर्द्ध नग्न शरीर को देखने का यह पहला मौका था जिसके कारण उनका लन्ड उत्तेजनावश धोती से बाहर निकल कर ऐसे खड़ा था मानो रत्ना की नग्नता को सलामी दे रहा हो !! देव रत्ना को देख लगातार लन्ड हिलाए जा रहे थे तभी रानी रत्ना फिर एक डुबकी लेती है और एक दो कदम आगे बढ़ाती है। इसका मतलब था कि अब वह बाहर निकलने वाली है। अतः देव ने वहां से निकल जाना ही उचित समझा। देव पेड़ की ओट में छुपे हुए तो थे ही, वह तुरन्त पेड़ से पीछे हट जाते हैं और जंगल में कुछ दूर जाकर बैठ जाते हैं और रत्ना का इंतजार करने लगते हैं। इधर रत्ना नहा कर बाहर निकलती है और गुफा की ओर चल पड़ती है।
बहुत ही सुंदर कथानक
👌👌
 

Ravi2019

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Update 36

रत्ना जब गुफा की ओर बढ़ती है तो बीच में देव को एक शिला पर बैठे देखती हैं और कहती हैं

यहां क्यों बैठे हो देव,,,

देव ,,,,, मां, मै आपकी ही प्रतीक्षा कर रहा था। आज आपने काफी विलम्ब किया स्नान करने में।

रत्ना,,, हां पुत्र, आज कई दिनों के बाद मृदा स्नान किया है, इसलिए आज विलम्ब हुआ है। वैसे तुम इतनी देर से मेरी प्रतीक्षा क्यों कर रहे थे। गुफा में जा कर तुम्हें फलों का सेवन करना चाहिए था।

देव,,,, माते, आपको तो पता ही है कि आपके बिना मैं कुछ भी नहीं खा सकता। तो आज कैसे खा लेता।

रत्ना,,, ओहो, तो इतना प्यार है मेरे पुत्र को मुझसे, जो मेरे बिना खाना भी नहीं खा सकता।

बेचारी रत्ना को क्या पता था कि उसका प्यारा पुत्र उसका इन्तजार नहीं कर रहा था बल्कि अभी उसे नंगी नहाते हुए देख रहा था, और तो और अभी उसने उसके नंगे स्तनों के दर्शन भी कर लिए हैं और अपना लन्ड भी हिला चुका है।

दोनो मां बेटे ऐसे ही बात करते गुफा की ओर चल पड़ते हैं। और ऐसे ही समय भी बीतता रहता है। दोनो मां बेटे सुबह साथ में अगल बगल बैठ कर शौच करते और फिर झील में नहाने जाते। राजकुमार देव का तो यह प्रतिदिन का नियम हो गया था कि जल्दी से नहा कर रानी रत्ना की ओर चले जाते और पेड़ के पीछे से छुप कर रानी रत्ना को नंगी नहाते देखते और उनके नंगे और खूबसूरत स्तनों का दीदार करते। देव अपनी मां के नंगे स्तनों को देखते और धोती में से अपने लन्ड को निकाल कर खुब रगड़ते। धीरे धीरे देव अपनी मां के प्रति आसक्त होते जा रहे थे। होते भी क्यों ना, रानी रत्ना इतनी सुन्दर जो थीं और उस पर से उनके नंगे स्तन कहर बरपाते थे, भले ही देव ने बचपन में उन्हीं स्तनों से दूध पीया था। एक बात और भी थी कि इस घने जंगल में स्त्री के नाम पर एक मात्र रत्ना ही थी जिसे देव देखते थे और धीरे धीरे देव रत्ना को स्त्री वाला प्यार करने लगे थे। वही हाल रानी रत्ना का भी था। रत्ना भी इस घने जंगल में केवल अपने पुत्र देव के साथ ही थी जिसने अपनी जान की बाजी लगा कर रत्ना की जान कई बार बचाई थी। रानी रत्ना भी तो अब अपने पुत्र देव को एक पुरूष के रूप में देखने लगी थी और प्रतिदिन शौच के समय चोरी से नजरे बचा कर देव के लन्ड को देख लिया करती थी। रात में या भोर में जब देव सो रहे होते और उनका लन्ड धोती में खड़ा रहता, तब भी रत्ना देव के लिंग का धोती के ऊपर से ही जी भर कर दीदार कर लेती थी। बेचारे देव को क्या पता था कि उसकी मां रत्ना भी उसी तरह उसकी दीवानी बनती जा रही है जिस तरह से वो अपनी मां का दीवाना बनता जा रहा था। लेकिन अभी तक देव की किस्मत ने इतना साथ नहीं दिया था कि वो अपनी मां रानी रत्ना की नंगी बुर का दीदार कर सकते। क्योंकि रत्ना नहा कर जैसे ही झील से बाहर निकलने वाली होती, देव वहां से चले जाया करते थे। इसलिए वो अभी तक रत्ना की बुर नहीं देख पाए थे।

एक दिन दोनो मां बेटे जंगल में फल फूल संग्रह के लिए घूम रहे थे और काफी आगे निकल गए थे। तो उन्हे कई सारे विभिन्न प्रकार के फल मिले जो उन्होने पहले कभी नहीं देखे थे। तभी देव को एक छाल दिखी जो बहुत ही मुलायम थी और दोनों मां बेटे को ओढ़ने के लिए काफी थी। इस पर देव कहते हैं

देव,,, मां, देखो ना कितना प्यारा छाल है। हमें ओढ़ने के काम आएगा।
रत्ना,,, हां पुत्र, लगता है यह किसी महापुरुष का छोड़ा हुआ है। चलो अच्छा है। अब रात की ठंड में हमे आराम मिलेगा।
रत्ना के कहने पर देव उस छाल को समेट कर तह कर लेते हैं और उसे लेकर वापस लौट चलते हैं। तभी रत्ना को एक पेड़ पर पका आम दिखता है जिसे देख कर रानी रत्ना कहती हैं

रत्ना,,, देखो देव , कितना पका हुआ आम है। कई दिनो बाद ऐसा पका आम देखा है।
देव,,, हां माते, मैं जानता हूं कि आम आपको बहुत प्रिय है। रुकिए, इसे पत्थर मार कर मैं गिरा देता हूं।

रत्ना,,, नहीं पुत्र, पत्थर से आम जमीन पर गिर कर फट जायेगा। या कहीं पत्थर आम पर ही लगा तो आम फिर फट जायेगा।
देव,,, लेकिन ये आम बिल्कुल फूनगी पर लगा है। इसे तो पेड़ पर चढ़ कर भी नहीं तोड़ सकते।
रत्ना,,, तो आओ पुत्र, मैं तुम्हे उठाती हूं और तुम आम तोड़ लेना।
तब देव रत्ना के आगे आते हैं और रत्ना उन्हें कमर पकड़ कर उठाती हैं लेकिन रत्ना देव को उनकी कमर से ज्यादा नही उठा पाती। जिससे देव आम तक नहीं पहुंच पाते हैं। रत्ना ने कई दिनों बाद देव को इतने करीब से दबोच कर पकड़ा था। रत्ना पुरूष संसर्ग के लिए तो तड़प ही रही थी और इस तरह देव को पकड़ने से उसकी स्त्रियोचित भावनाएं जागने लगी। उसे देव को इस तरह जकड़ना अच्छा लग रहा था। लेकिन अभी वो अपनी भावना को समझ नहीं पा रही थी। जब वो देव को ज्यादा नहीं उठा पाई, तब देव को उसने नीचे उतार दिया और कहा

रत्ना,,,, अब इससे उपर मैं तुम्हें नहीं उठा सकती। ऐसा करो, तुम ही मुझे उठा लो ताकि मैं ही आम तोड़ सकूं।

ऐसा बोल कर रत्ना देव की ओर मुड़ जाती हैं तो देव रत्ना को कमर पकड़ कर उठाते हैं। देव ने पहली बार होश में रत्ना को पकड़ कर उठाया था। तभी रत्ना कहती हैं

रत्ना,, थोडा सा और उठाना पड़ेगा देव, थोडा और बचा हुआ है, थोड़ा और उठाओगे तो मैं आम तक पहुंच जाऊंगी।

इस पर देव रत्ना को थोडा उछालते हुए ऊपर करते हैं और रत्ना को उसके घुटनों के पास से जकड़ कर उपर उठाते हैं जिससे रत्ना आम तक पहुंच जाती है और आम तोड़ लेती है । लेकिन इस दौरान रत्ना को पकड़े रहने से देव का चेहरा अपनी मां की नाभी के नीचे पेड़ू से सटा हुआ था जिसकी मादक खुशबू देव को मदहोश कर रही थी। देव ने अपना चेहरा उत्तेजनावश रत्ना की पेडू में दबा लिया था जो उसकी योनि से थोड़ी ही उपर थी और वहां झांटों की हल्की शुरुआत भी हो रही थी जो देव को मदहोश कर रही थी। इस मदहोशी का असर देव के लिंग पर भी हो रहा था। इस वक्त देव ने रत्ना को अपनी मां के रूप में नहीं, बल्कि एक स्त्री के रूप में उठाया हुआ था। उन्हें महसूस हो रहा था कि उन्होंने एक सुन्दर स्त्री को अपनी गोद में उठाया हुआ है और यही सोच कर देव का लन्ड पूरे जोश में खड़ा था।
इधर रत्ना भी जब आम तोड़ लेती है तब उसे इस बात का भान होता है कि उसके पुत्र ने अपना चेहरा उसकी नाभी में दबाया हुआ है। कई दिनों के बाद अपनी नाभी और पेडू पर किसी पुरूष के चेहरे का स्पर्श रत्ना को मस्त कर रहा था। उसके बेटे ने उसे जबरदस्त तरीके से जकड़ा हुआ था। उसे अपने पुत्र की छुवन मतवाला बनाए जा रही थी। वह यह भुल गई कि वह आम तोड़ने के लिए उपर उठी थी। दोनों मां बेटे इसी तरह कुछ देर तक खडे़ रहे और कामाग्नि में जल रहे थे। तभी रत्ना का ध्यान भंग होता है और वह देव से खुद को नीचे उतारने को कहती है। तब देव धीरे धीरे रत्ना को नीचे उतारते हैं लेकिन अपने हाथों का घेरा बनाए रखते हैं। जब रत्ना नीचे उतरती हैं तो देव का चेहरा उनके पेट को छूता हुआ स्तनों के बीच से होते हुए रत्ना के चेहरे के सामने आ जाता है। देव का लन्ड तो खड़ा रहता ही है जो रत्ना के पेडू से सट जाता है जिसे रत्ना भी महसूस करती है। अपने पेट पर अपने पुत्र के लन्ड का अहसास पाते ही रत्ना के मुंह से आह निकल जाती है जिसे देव सुन लेते हैं। देव ने अभी तक रत्ना को अपने बाहों में जकड़ा हुआ था जिससे रत्ना के स्तन देव की छाती में धंसे हुए थे और इस छुवन से उत्तेजनावश रत्ना के स्तन कड़े हो गए थे। ना तो देव रत्ना को छोड़ रहे थे और ना ही रत्ना देव के आगोश से बाहर आ रही थी। आग दोनों ओर बराबर जो लगी थी। दोनों मां बेटे के चेहरे आमने सामने थे और दोनों की सांसे तेज चल रही थी और दोनों एक दूसरे की सांसों की गर्मी को महसूस कर रहे थे। दोनों की नज़रे नीची थी और दोनों को एक दूसरे के होठ दिख रहे थे । अनायास ही देव ने अपने होंठ रत्ना के होठों की ओर बढ़ा दिया और रत्ना ने भी धीरे से अपना मुंह आगे कर चुम्बन की स्वीकृति दे दी। लेकिन जैसे ही देव रत्ना के होंठों पर अपना होंठ रखने वाले होते हैं, रत्ना को यह अहसास होता है कि वह ये क्या कर रही है, अपने ही पुत्र के साथ चुम्बन लेने जा रही है। ऐसा सोचते ही उसने तुरन्त अपना चेहरा पीछे किया और अपने हाथ में लिए आम को देव को दिखाते हुए थोड़ी हकलाती हुई बोली
आम, देखो आ अ आ आम, आम तोड़ लिया मैंने, अच्छे हैं न!!
इस पर देव एक बार आम को देखते हैं और फिर उनकी छाती में धंसे रत्ना के स्तनों को देख कर कहते हैं

हां मां, आम बहुत अच्छे और रसीले हैं!!

अपने स्तनों को देख कर ऐसा बोलते देख रत्ना शरमा जाती है और कहती हैं
अब चलें पुत्र, काफी समय हो गया है।
इस पर दोनों मां बेटे गुफा की ओर चल पड़े। देव के हाथों में छाल थी और रत्ना के हाथ में आम और कुछ दूसरे फल भी थे। देव की धोती में अभी भी उनका लन्ड खड़ा था, तो वहीं रत्ना के स्तनों में अभी भी कड़ापन था। आज की घटना से एक बात तो स्पष्ट हो गई थी कि आग दोनों ओर बराबर लगी थी और आज यदि रत्ना ने स्वयं को ना रोका होता तो दोनों मां बेटे के होंठ चुम्बन कर चुके होते। इस घने एकान्त जंगल में एक स्त्री पुरुष का एकान्त में साथ रहना दोनो के रिश्तों को भुलाकर केवल स्त्री पुरूष के सम्बंध के लिए काफी था। रत्ना भी मन में यही सोच रही थी कि

हाय देव की बाहों में कितना सुखद अहसास हो रहा था। पता नहीं कब तक मैं अपने आप को संभाल पाऊंगी। आज यदि सही समय पर ध्यान नहीं आया होता तो अनर्थ हो सकता था।

इधर देव भी यही सोच रहे थे,,,

वास्तव में मां कितनी सुन्दर है और उनकी शरीर से कैसी मादक खुशबू आ रही थी जो मुझे पागल बना रही थी। उनकी नाभी से तो अप्रतिम सुगन्ध आ रही थी और उनके स्तन मेरी छाती में कितने प्यार से धंसे थे, ये तो वही स्तन हैं जिनका दीदार मैं प्रतिदिन करता हूं। काश मां ने बीच में न टोका होता तो मैं तो उनके होंठों को चूम ही लेता ,!!!!!

यही सोचते सोचते दोनों मां बेटे अपनी गुफा में पहुंच जाते हैं और दोनों फल खा कर छाल ओढ़ कर आराम करने लगते हैं। फिर ऐसे ही समय बीतता गया। दोनों मां बेटे साथ में शौच करते, फिर नहाने जाते और फिर देव छुप कर अपनी मां रानी रत्ना को नहाते देखते। लेकिन कहते हैं ना कि होनी की कोई नही टाल सकता। सो वही हुआ। एक दिन देव रत्ना को नहाते हुए देख रहे थे और रत्ना झील में अपने नंगे स्तनों को रगड़ रगड़ कर नहा रही थी और उन्हें मसल रही थी। देव भी अपना लन्ड मसल रहे थे। जब रत्ना नहा कर बाहर निकलने को हुई तो प्रतिदिन की भांति देव भी पेड़ के पीछे से वापस लौटने को मुड़े। लेकिन आज देव जहां खड़े थे वहां की मिट्टी झील के किनारे होने के कारण कमजोर थी और उनके पीछे घूमते ही वहां की मिट्टी धंस गई और इस कारण से देव भी नीचे गिर गए और मिट्टी के साथ भरभराते हुए नीचे गिर गए और झील के खुले किनारे की ओर आ गए।

इधर रानी रत्ना ने भी जब आवाज सुनी तो आवाज की ओर देखा और देखा कि पेड़ो के पीछे से देव भरभराती मिट्टी के साथ नीचे आ गए। उन्हें यह समझते देर न लगी कि देव पेड़ के पीछे से उन्हें नहाते देख रहे थे। देव उठे तो सामने अपनी मां रानी रत्ना को बिना कपड़ों के इतने नजदीक से देखा। उनके नंगे स्तन देव को साफ दिख रहे थे जिस पर गुलाबी स्तनाग्र स्तन की शोभा बढ़ा रहे थे। कमर के नीचे रानी रत्ना पानी में थी लेकिन पानी की सतह पर उनकी झांटे हल्की हल्की दिख रही थी। रानी रत्ना का ये नग्न रूप देख कर देव को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ कि क्या कोई स्त्री इतनी सुन्दर भी हो सकती है ? देव खड़े होते हैं तो धोती में उनका लन्ड खड़ा रहता है और वो रत्ना को देख कर अपना लन्ड मसल देते हैं। तभी रत्ना की तंद्रा टूटती है और वह अपने दोनों हाथों से अपने स्तनों को छुपा लेती है। इस पर देव को भी होश आता है और वह तुरन्त वहां से गुफा की ओर भाग जाते हैं। इधर रत्ना भी हतप्रभ रह गई की उसका पुत्र ही उसे नंगी नहाते देख रहा था। वह भी कपड़े पहन कर गुफा की ओर चल पड़ती है। आज की घटना के बाद दोनों मां बेटे मे पूरे दिन कोई बात चीत नहीं हो रही थी और दोनों एक दूसरे से नजरें चुरा रहे थे । इसी तरह पूरा दिन बीता और दोनों ने रात का खाना भी खा लिया। अब प्रतिदिन की भांति रत्ना सोने के पहले गुफा के बाहर पेशाब करने जाती है। लेकिन बिक्रम गुफा के अंदर ही रहते हैं। रत्ना अपनी जगह बैठी रहती है लेकिन पेशाब नहीं कर रही होती है। तभी रत्ना को पीछे से किसी के आने का अहसास हुआ। देव भी धीरे से आकर अपनी जगह पर आकर बैठ जाते हैं। जब देव आ जाते हैं तब रत्ना पेशाब करना शुरु करती है और देव भी पेशाब करने लगते हैं। देव आज पेशाब करने में कोई बदमाशी नहीं करते हैं और चुपचाप सराफत से पेशाब करते हैं। पेशाब करने के बाद भी दोनों मां बेटे ऐसे ही बैठे रहते हैं। दोनों कुछ नहीं बोलते हैं, ना ही अपनी जगह से उठते ही हैं। रात का अंधेरा और सन्नाटा था।दोनो कुछ देर तक ऐसे ही चुप बैठे रहते हैं। तब चुप्पी तोड़ते हुए देव कहते हैं

माते, सुबह की घटना के लिए मैं लज्जित हूं।

इस पर रानी रत्ना तो जैसे चौंक जाती हैं मानों किसी चिन्तन से बाहर आई हों और बस इतना ही कहती हैं

ऊ हूं हूं ऊं

और फिर आगे कहती हैं

तुम कबसे मुझे ऐसे देख रहे थे नहाते ।

देव को यह आशा नहीं थी कि उसकी मां उससे ये पूछेंगी। वो तो सोच रहे थे कि पक्का आज डांट पड़ेगी। तब उन्हें सच बोलने के अलावा कोई जवाब नही सुझा और शायद वे भी आपस में खुल कर संवाद करना चाह रहे थे । तब देव कहते हैं
मै उस दिन से आपको नहाते देख रहा हूं माते जिस दिन आपने मृदा स्नान किया था और स्नान करने में विलम्ब किया था। मै आपको खोजते हुए गया और अपको स्नान करते हुए देखा।

तब रत्ना कहती है
लेकिन ये गलत है न पुत्र। अपनी मां को नहाते देखना कितना गलत है। कोई जवान पुत्र अपनी मां को नहाते देखता है क्या भला।

तब देव तपाक से बोल पड़ते हैं
जिसकी मां इतनी सुन्दर हो उसका पुत्र तो उसे नहाते देखेगा ही।

रत्ना,,,, क्या कहा तुमने हां!!! ऐसे कोई अपनी मां के बारे में बोलता है क्या
देव,,,, क्षमा करें माते। यदि आपको मेरी बात का बुरा लगा हो तो। आगे से नहीं बोलूंगा।
लेकिन औरत तो औरत होती है उसे अपनी सुन्दरता की प्रशंसा कैसे बुरी लग सकती है।
रत्ना,,, नहीं पुत्र ऐसी बात नहीं है,, मुझे तुम्हारी बात का बुरा नहीं लगा

देव,,, वही तो मैं कह रहा था, सुंदर को सुन्दर कहने मे गलत क्या है। आप सुन्दर है तो मैने कह दिया।

रत्ना,,, ठीक है, सुंदर को तुमने सुंदर कह दिया। लेकिन मैं यह सोच कर शर्म से गड़ी जा रही हूं कि मेरा पुत्र मुझे इतने दिनों से छुप कर मुझे नंगी नहाते देख रहा था और पता नहीं मेरा क्या क्या देख चुका होगा ।

देव,,, माते , मैं क्या करता , आप नंगी इतनी खूबसूरत दिखती हैं कि मैं आपकी खूबसूरती से बंधता चला गया । आप इतनी सुन्दर है तो इसमें मेरा क्या कसूर है। लेकिन मैंने केवल अपको कमर से ऊपर नंगी देखा है, कमर से नीचे नहीं। आपके पानी के निकलने के पहले ही मैं वहां से चला जाया करता था।

रत्ना,,, छी, तुम कितने बेशर्म हो गए हो देव।

देव,,, इसीलिए तो मै भी शर्मिन्दा हूं मां। लेकिन मै ये कैसे कह दूं कि मुझे अच्छा नहीं लगा। मै खुद ही अपनी भावनाओं को समझ नहीं पा रहा हूं।

ऐसा कह कर देव चुप हो जाते हैं। दोनों कुछ नहीं बोलते। लेकिन रत्ना को भी ये बातें अच्छी लग रही थी। आखिर वो भी तो अंतर्दवंद से जूझ रही थी। अब वो देव को कैसे बताती कि वो छुप छुप कर देव के लिंग को देखती है और तो और वह ये कैसे बता दें कि वह उसके लन्ड को पकड़ भी चुकी है। वह खुद कामवासना की आग में जल रही थी। मन के कोने में कहीं न कहीं रत्ना को इस बात की खुशी भी थी कि उसका पुत्र भी उसके तरफ आकर्षित है और उसे स्त्री के रूप मे देख रहा है क्योंकि रत्ना खुद ही देव के आकर्षण मे बंधी थी। दोनों मां बेटे कुछ देर बैठे रहते हैं और फिर दोनों उठ कर गुफा में सोने चले जाते हैं।
रात में अब हल्की ठंड हो रखी थी और जंगल में तो वैसे भी रात में ठंड हो जाया करती है, तो दोनों मां बेटे छाल ओढ़ कर सो गए थे। अच्छा हुआ था जो ओढ़ने के लिए उन्हें छाल मिल गई थी, नहीं तो ठंड में दोनों को बहुत परेशानी हो जाती। आज की बात से देव के अन्दर इतनी हिम्मत तो आ गई थी कि वह अपनी मां से कुछ खुल कर बातें कर पा रहा था और शायद रत्ना को भी देव के मुंह से अपनी नंगी खुबसूरती की प्रशंसा अच्छी लग रही थी।
दोनों मां बेटे सुबह उठते हैं और फिर दोनों साथ में शौच के लिए जंगल में चले जाते हैं। अब तो दोनों साथ में ही शौच के लिए बैठा करते थे और आपस में बाते भी करते थे। अब तो दोनों थोड़ा खुल भी गए थे। दोनों साथ में बैठ कर शौच कर रहे थे तो रत्ना को लन्ड देखने की इच्छा हुई, उसने अपनी नजरे देव की ओर घुमाई और देव के लिंग का दीदार किया। लेकिन देव रत्ना को देख रहे थे और उनकी नज़रों का पीछा कर वे जान गए कि मां उनका लन्ड देखना चाह रही है। देव को बड़ा अचम्भा भी हुआ और वह ये समझ गए कि मां भी लन्ड के लिए तड़प रही है। उन्होने अपनी कमर थोड़ी आगे कर ली ताकि रत्ना लंड को ठीक से देख सकें। रत्ना भी देव से कल की बात आगे बढ़ाना चाह रही थी लेकिन उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह बात कैसे आगे बढ़ाए। तभी देव कहते हैं

माते, आप ऐसे नंगी खुले में मत नहाया कीजिए। चलो मैं था तो कोई बात नहीं थी लेकिन यदि कोई और होता तो खुद पर काबू नहीं कर पाता।

इस पर रानी रत्ना कहती हैं
इस घने जंगल में तेरे सिवाय कोई और है कहां, जो मै डरूं
देव,,,, इसका मतलब आपको मेरे देखने से कोई डर नहीं है , मैं अपको नहाते देख सकता हूं, है न!!

रत्ना,,, नहीं , मैंने ऐसा तो नहीं कहा कि तुम मुझे नहाते देख सकते हो। राजकुमार आप बातों में उलझाना बखूबी सीख गए हैं।।।

देव,,, ऐसा नहीं है मां, । लेकिन एक बात तो है मैने आपको नहाते तो देख ही लिया है। एक बात कहूं। पिताश्री बहुत किस्मत वाले हैं जो उन्हें आप जैसी खुबसूरत स्त्री पत्नी के रूप में मिली जो इतनी गोरी सुंदर और आकर्षक रूपवान है। पिताश्री तो आपको देखते ही लट्टू हो गए होंगे।
रत्ना,,, धत्त, अपनी मां से कोई ऐसी बात करता है क्या
देव,,, मैने ऐसा क्या गलत कह दिया मां, सही तो कहा है, आपकी सुन्दरता की प्रशंसा ही की है। कोई भी पुरूष भाग्यशाली ही न होगा जिसकी पत्नी इतनी सुन्दर हो, उसके स्तन इतने गोरे बिल्कुल संगमरमर की तरह हो और उस पर गुलाबी चुचुक तो मन को ही मोह लेते हैं। आप नहीं जानती मां आप के नंगे स्तन कितने सुन्दर लगते हैं। सच में, पिताजी तो आपके इन सुंदर स्तनों को देख कर इन्हें बिना मसले मानते ही नहीं होंगे। शायद पिताजी क्या कोई पुरुष काबू नहीं कर पाता।मां, मैं सही कह रहा हूं ।
रत्ना,,, तो आपने कैसे खुद को काबू किया ,, ( रत्ना बातों बातों में यह बोल तो जाती है लेकिन तभी उसे अहसास हुआ कि उसने गलत बोल दिया)
देव,,, अब क्या कहूं मां कैसे काबू किया मैंने खुद को ।
इस कामुक वार्तालाप से देव का लन्ड पूरा खड़ा हो जाता है और धोती से बाहर निकल आया जिसे तिरछी नजरों से देख कर रानी रत्ना आहें भर रही थी। इधर ये बातें कह कर देव चुप हो जाते हैं। कुछ देर तक दोनों चुप चाप बैठे रहते हैं। लेकिन रत्ना को ये चुप्पी काट रही थी और उसे देव के मुंह से खुली बातें सुनना अच्छी लग रही थी। वह देव के मुंह से और बातें सुनना चाह रही थी, इसलिए वह सन्नाटे को तोड़ते हुए बोली,,,
रत्ना,,, लेकिन एक बात पूछूं पुत्र,,, आपने मुझे कमर के नीचे तो नंगी नहीं देखा ना ,,
देव समझ गए कि रत्ना को उनकी बातें अच्छी लग रही हैं और वो और बात करना चाह रही हैं, तब देव कहते हैं
देव,,,, मैं इतना खुशकिस्मत कहां मां, जो मै आपको कमर के नीचे नंगी देख पाता।
रत्ना,,, छी, कैसी बातें करते हैं आप राजकुमार, वो भी मेरे यानि अपनी मां के बारे में
देव,,, तो इसमें गलत क्या कह रहा हूं मां। कोई भी पुरूष इतनी सुन्दर स्त्री को कमर के नीचे नंगी देखना ही चाहेगा ना।
रत्ना,,, मतलब, तुम मुझे कमर के नीचे भी नंगी देखना चाहते थे
देव इस बार बात को बदल देते हैं और कहते हैं
लेकिन एक बात है माते, मुझे लगता है जब पिता जी ने आपको कमर के नीचे नंगी देखा होगा तब तो वो पागल ही हो गए होंगे। वो तो आपको बिना पकड़े माने ही नहीं होंगे
रत्ना,,, जैसे, तुमने मुझे कल आम तोड़ते हुए जकड़ा हुआ था, है न,,,
यह बोल कर दोनो मां बेटे एक दूसरे को देखते हैं और मुस्कुरा देते हैं। रानी रत्ना की नजर देव के लंड पर पड़ती है जो उत्तेजना के मारे कुलाचें मार रहा था। रानी रत्ना की योनि भी उत्तेजना से पनिया गई थी और देव के खड़े लंड को देख कर पानी छोड़ दी थी।

तब रत्ना कहती हैं
चले पुत्र, आज काफी देर तक बाते हो गई
फिर दोनो मां बेटे प्रतिदिन की भांति नित्य क्रिया हेतु झील की ओर चल देते हैं। दोनों एक बात तो समझ चूके थे कि दोनों को ये बातें अच्छी लग रही हैं और दोनों अब खुल कर बातें भी कर रहे हैं।
दिन भर दोनों मां बेटे फल संग्रह और सुखी लकड़ियों को इकट्ठा करने में व्यस्त रहे और अंधेरा होने के बाद उन्होने खाना खाया और खाना खा कर दोनो गुफा के अंदर एक पत्थर के चबूतरे पर आमने सामने बैठ गए और बाते करने लगे।
रत्ना,,, पता नहीं राज्य में क्या हो रहा होगा

देव,,, सब ठीक होगा माते,

रत्ना,,, मुझे भी पूरा विश्वास है कि महाराज युद्ध में विजयी रहे होंगे, और जल्दी ही हम अपने राज्य वापस लौटेंगे।
देव,,, हां माते, मुझे भी पूरा विश्वास है। माते आपको भी हल्की ठंड लग रही है क्या। आप कहे तो छाल को अपने पैरों पर डाल दे क्या

रत्ना,,, हां पुत्र, डाल दो ना, मुझे भी हल्की ठंड लग रही है
इस पर देव छाल को अपने और रत्ना के पैरों पर डाल देते हैं और दोनों गुफा की दीवार से टेक लेकर बैठ कर बात करते रहते हैं। दोनों आमने सामने बैठे थे इसलिए दोनों के पैर एक दूसरे से छू भी रहे थे।

देव,,, मां यहां जंगल में कितनी शान्ति है न

रत्ना,,,, हां ये तो है और हां कितने तरह के फल हैं यहां जो हम जानते भी नहीं थे

देव,, और कल जो वो आम अपने हाथों से तोड़ा था वो कितने अच्छे थे

रत्ना,,, हां देखा, कितने रसीला और मीठा था

देव,,,, हां, लेकिन आपके आम से अच्छा नहीं था ( देव ने रत्ना के स्तनों के तरफ इशारा करते हुए मुस्कुराते हुए कहा)
पहले तो रत्ना नहीं समझी , लेकिन जब समझी तब वो भी मुस्कुराते हुए बोली
रत्ना,,,,, छी : , बड़े बेशरम होते जा रहे हो तुम, कोई अपनी मां से ऐसे बात करता है भला
और ये बोल कर रत्ना मुस्करा देती है। उसे भी ये बातें अच्छी लग रही थी। इसी बीच छाल के अन्दर देव और रत्ना ने थोड़े पैर फैलाए क्योंकि पहले दोनों पैर चढ़ा कर बैठे थे लेकिन जैसे ही इन्होंने पैर फैलाए ऐसी स्थिति बनी की रत्ना के दोनों पैरों के बीच में देव का पैर और देव के दोनों पैरों के बीच में रत्ना का पैर आ गया। रत्ना के पैर तो छोटे थे और देव के पैर लम्बे।
देव,,, सही कह रहा हूं मां, आपके आम उस पेड़ पर के आम से अच्छे हैं
रत्ना,,, मुस्कुराते हुए,, ठीक है ठीक है, बहुत हो गई मां की प्रशंसा
इसी क्रम में देव अंगड़ाई लेते हुए अपने पैर के पंजों को आगे की ओर मोड़ते है। लेकिन पंजे आगे मोड़ने से ऐसा कुछ हुआ जिसकी कल्पना ना तो देव ने , ना ही रत्ना ने की थी। हुआ ये कि देव का पंजा सीधे रत्ना की बुर से सट गया जिससे रत्ना की सिसकी निकल गई। देव को भी रत्ना की बुर की झांटे अनुभव हुई। देव ने तुरन्त अपने पंजे पीछे कर लिए। लेकिन उसे यह बहुत अच्छा लगा, वही रत्ना को भी यह अच्छा लगा। देव और रत्ना फिर ऐसे ही बाते करते रहे और एक बार फिर देव ने जान बूझ कर अपने पैर का पंजा आगे मोड़ा और फिर से रत्ना की योनि से सटा दिया और इस बार थोड़ा दबा भी दिया जिससे रत्ना चिहुक गई। लेकिन इस बार देब ने अपने पंजे रत्ना की बुर से नहीं हटाया। और अपना पंजा रत्ना की बुर से सटा कर बातें करने लगा।

देव,,, मां मैं झूठ नहीं बोल रहा हूं। आप हो इतनी सुन्दर!!! आपकी सुन्दरता की ख्याति ऐसे ही सब जगह नहीं है।
रत्ना,,, मुस्कुराते हुए कहती है,, हा ये बात तो है, जब तुम्हारे पिता जी ने मुझे पहली बार देखा था तो वो मुझे देखते ही रह गए थे, वो तो नंदिनी दीदी ने आकर खांसा तब जाकर तेरे पिताजी ने मुझसे नजर हटाई।

देव,, वही तो, मैं जानता था कि जरुर ऐसा ही हुआ होगा
देव ये बोलते रहे और अब धीरे धीर अपने पंजे को जो रत्ना की बुर से सटा था, उससे रत्ना की बुर सहलाने लगे। वो रत्ना से बाते भी कर रहे थे और उसकी बुर भी सहला रहे थे।
देव,,, मां, आप तो दुलहन के जोड़े में और भी सुंदर दिख रही होंगी

रत्ना,,,, ऊ ऊ ऊ हु हू ऊ ऊ,,, अब सभी तो ऐसा ही कह रहे थे
रत्ना के मुंह से अब आवाज नहीं निकल रही थी बल्कि आह निकल रही थीं। क्योंकि देव उनकी योनि को सहला रहे थे। देव को थोड़ा डर भी लगा कि कहीं कुछ ज्यादा तो नहीं हो रहा, तो उन्होने अपने पैर रत्ना की बुर से हटाना चाहा और अपने पैर हल्के से हटाया। इधर रत्ना को जैसे अहसास हुआ कि देव अपने पैर हटा रहा है उसने अपनी जांघों से देव के पैर को दबोच लिया जिससे देव को बड़ा अचंभा हुआ। वो कहते है न कि स्त्री की जब कामभावना प्रबल हो जाती है तो वह सब कुछ भुल जाती है,,,वही अभी रत्ना ने भी किया। देव को तो अच्छा लग ही रहा था, तो अब देव लगातार रत्ना की बुर को अपने पैर से सहलाए जा रहे थे।
दोनों बात तो कर रहे थे लेकिन बुर सहलाई का मजा भी ले रहे थे। दोनो ऐसे व्यवहार कर रहे थे मानों इन्हें पता ही न हो की छाल के नीचे देव अपने पैर से रत्ना की बुर सहला रहा है। दोनों आपस में सामान्य बातचीत भी किए जा रहे थे। देव कहते हैं
मै जानता हूं आप बहुत खूबसूरत लग रही होंगी, जब आज आप इतनी सुन्दर लगती हैं, तो आप अपने विवाह के समय तो और खूबसूरत दिखती होंगी

रत्ना,,, मै इतनी सुन्दर लगती हूं तुम्हें

देव,, ,, हां मां, इस पर भी कोई शक है क्या

इस पर रत्ना हल्का मुस्कुराती है। रत्ना बुर के सहलाने से कामवासना से भर गई थी और वो कहती हैं
क्या अच्छा लगा तुम्हें मुझमें

देव,,, सब कुछ मां, आपका पूरा नंगा बदन, आपके गोरे सुडौल स्तन जो हमेशा कसे रहते हैं और ये गुलाबी चुचुक,,, और,,,,, सब कुछ मां, सब कुछ

रत्ना,, तुम ऐसे ही झूठ बोलते हो, अब मैं बूढ़ी हो गई हूं, मुझमें अब क्या आकर्षण पुत्र

रत्ना अब काम भावना से ओतप्रोत हो गई थी। एक तो देव की कामुक बातें और दूसरा उसके बुर सहलाने से उसकी काम भावनाएं भड़क गई थी और उसे भी अपने पुत्र के साथ कामुक वार्तालाप अच्छा लग रहा था। तब देव कहते हैं
मै झूठ नहीं बोल रहा हूं माते, आप कहां बूढ़ी हुई हैं !!! दो दो बच्चों को जन्म देने के बाद भी आपका बदन अभी भी कसा हुआ है। लगता ही नहीं है कि आप दो जवान बच्चों की मां हो । कोई देखे तो अभी भी आपको कुंवारी ही समझ ले। और अभी भी आपको राजकुमारों के रिश्ते शादी के लिए आ जाएं

रत्ना,,, ,, कहां बदन कसा हुआ है मेरा, । झुर्रियां तो पड़ गई है चेहरे पे

देव,,,,, सही कह रहा हूं मां, अपने स्तन तो देखो कितने कसे और सुडौल हैं। इन्हें ही तो नहाते समय नंगी देख कर मेरा लन्ड खड़ा हो जाता है और मैं अपने हाथों से अपना लन्ड मसल मसल कर आपके नंगे स्तन का दीदार किया करता था।
रत्ना कामुक वार्तालाप और बुर सहलाई से उत्तेजित हो कर अपने चरम के करीब तक पहुंच जाती है और जैसे ही देव ने लन्ड का नाम लिया , वो चुहुक जाती है और झड़ जाती है। आज पहली बार अपनी मां के सामने देव ने लन्ड शब्द का प्रयोग किया था और उत्तेजना के मारे उसकी योनि भलभला कर झड़ जाती है और अपनी योनि से पानी की धार बहा देती है । देव के तलवे पर रानी रत्ना की योनि का योनि रस लग जाता है। रत्ना को अपनी इस हरकत से बहुत आत्मग्लानि होती है। वह अपने पैर समेत कर उठती है और बाहर पेसाब करने चली जाती है। पीछे से देव भी पेशाब करने चले जाते हैं, आखिर दोनो मां बेटे साथ में र्पेशाब जो करते हैं

To be continued
 
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Raja jani

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सही कह रहा हूं मां, अपने स्तन तो देखो कितने कसे और सुडौल हैं। इन्हें ही तो नहाते समय नंगी देख कर मेरा लन्ड खड़ा हो जाता है और मैं अपने हाथों से अपना लन्ड मसल मसल कर आपके नंगे स्तन का दीदार किया करता था। अद्भुत कामोत्तेजक मस्त कर देने वाला अपडेट था बंधु पर इंतजार और का भी है।
 

Ravi2019

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Bahut hi behtarin updates…

Mast hain bhai. Accha hain dono mein pyar tho tha hi. Ab aakarshan bhi badh Gaya hain. Waise tho dono shauch tho kar rahe hain. Agar maa bete ko jaise bachpan mein shauch ke baad dhoti thi waise hi abhi bhi dhone jaise kuch action ho tho shauch saath mein karne ka arth pura hojaayega, issi bahaane dev bhi uski maa ko dho sakta hain apne haatho se, ki maathe yadi aap hamare peeche haatha se dho sakti hain tho hum bhi Aisa hi karna chahte hain aur aapko shud kar sakte hain. Aur aage maate ki peshaab ki Hui yoni ko bhi chaate thaaki Rani ratna Devi ki mithi yoni ka mitha peshaab ka swaad dev ko itna madhosh karde ki ek pal ke liye bhi dev apni maa ko chhodke kahin reh hi na paaye. Consider it Bhai. Request hain.thank you.

बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
घने जंगल में रह रहे देव और राणी रत्ना एक दुसरे की ओर काम भावना से आकर्षित हो रहें हैं
राणी रत्ना तो निंद में देव के खडे लंड से खिलवाड कर चरम सुख पा लिया वही रत्ना को देखकर देव भी चरम सुख प्राप्त कर लिया
अब तो देव ने अपनी माँ राणी रत्ना को नहाते समय अर्ध नग्न अवस्था में देखकर उत्तेजना महसुस कर रहे हैं
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा

Awesome update Bhai ☺️ 😊

बहुत ही सुंदर कथानक
👌👌



बहुत ही शानदार अपडेट
Update posted bhai, plz read and comment
 
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बहुत बढ़िया अब राजकुमार अपनी मां के मोटे भोसड़े में अपना लन्ड ठोक के अपनी मां की रण्डी की तरह चुदायी करेंगे।
 
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