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Adultery राजमाता कौशल्यादेवी

sunoanuj

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Bahut hi behtarin updates… Rajmata ka kya game hai… yeh dekhna bahut hi adbhut hoga ….

Waiting for next update….
 

vakharia

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vakharia Bhai Yahaan tak ke 2-3 episode padhe... bohot maza aaya... uttejna aur kamukta se bharpur....

udhar Maharaj ne Chanda ko choda ya Chanda ne Maharaj ko ... bechaare Maharaj abhi tak apni nunni pakad ke soch rahe honge... 😂😂
FInally Maharani ki becheni dur hui.. kyuki wo chut mein chudai to kar nahi sakti thi.... to unhone gaand hi marwali Shakti Singh se..... waaaaahhhhhh aur bohot mast chudai thi....

Aur jab Shakti Singh ne gaand maarna seekh hi liya to peechhe kyu rehta... uske baad usne kamaan pakdi aur chadh gaya Rajmata ki gaand mein.... bohot mast.....

aagey ka padhkar aagey comment karunga.....
Thanks❤️💖❤️
 

Dirty_mind

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Adultery राजमाता कौशल्यादेवी
Thread startervakharia Start dateMar 1, 2024 65,361
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#241
vakharia said:
अब महारानी ने अपनी टांगों से शक्तिसिंह को इतनी सख्ती से जकड़ा की उसे लगा जैसे उसकी हड्डियाँ तोड़ देगी। शक्तिसिंह से ओर बर्दाश्त ना हुआ... उसके सुपाड़े ने गरम गरम वीर्य की ८ - १० लंबी पिचकारियाँ महारानी की चुत में छोड़ दिए। महारानी के गर्भाशय ने उस मजेदार वीर्य का खुले दिल से स्वागत किया।दोनों एक दूसरे के सामने देख मुस्कुराये। नीचे लंड और चुत भिन्न रसों से द्रवित हो चुके थे। दोनों के जिस्म पसीने से तरबतर हो गए थे। आँखों में संतुष्टि की अनोखी चमक भी थी।स्खलन के बाद भी शक्तिसिंह का लंड नरम नहीं पड़ा। शक्तिसिंह ने अब धीरे से अपने घुटने मोड और संभालकर महारानी को जमीन पर लिटा दिया। उस दौरान उसने यह ध्यान रखा की एक पल के लिए भी उसका लंड महारानी की चुत से बाहर ना निकले।इसने नए आसन में लंड और चुत को अनोखा मज़ा आने लगा। शक्तिसिंह ने महारानी की दोनों टांगों को अपने कंधे पर ले लिया और उनके शरीर के ऊपर आते हुए जोरदार धक्के लगाने लगा।ऐसा प्रतीत हो रहा था की आज रात शक्तिसिंह का लंड नरम होगा ही नहीं। अमूमन महारानी भी यही चाहती थी की यह दमदार चुदाई का दौर चलता ही रहे। सैनिक और महारानी दोनों अब काफी थक भी चुके थे। चुदते हुए महारानी ने अपने हाथों से शक्तिसिंह के टट्टों को पकड़कर सहलाना शुरू किया। शक्तिसिंह अब फिरसे चिल्लाते हुए वीर्यस्खलित करने लगा और साथ ही साथ महारानी का भी पानी निकल गया।वह थका हुआ सैनिक, महारानी के स्तनों पर ही ढेर हो गया और उसी अवस्था में दोनों की आँख लग गई।राजमाता दबे पाँव अपने तंबू की तरफ निकल ली। इन दोनों ने तो अपनी आग बुझा ली थी पर उनकी चुत में घमासान मचा हुआ था।------------------------------------------------------------------------------------------------------आश्रम के एक कक्ष में, महारानी पद्मिनी एक बड़े से पत्थर पर लेटी हुई थी। ऊपर लटके हुए कलश के छेद से तेल की धारा रानी के सर पर ऊपर गिरकर उन्हे एक अनोखी शांति अर्पित कर रही थी। महारानी को गजब का स्वर्गीय सुख मिल रहा था। योगी के आश्रम में इन जड़ीबूटी युक्त तेल से चल रहा उपचार महारानी के रोमरोम को जागृत कर रहा था।ऐसी सुविधाएं तो उनके महल में भी मौजूद थी। पर यहाँ के शुद्ध वातावरण और परिवेश में बदलाव ने उन्हे अनोखी ऊर्जा प्रदान की थी।पिछले कुछ दिनों से शक्तिसिंह द्वारा मिल रही सेवा ने उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर बड़ा ही सकारात्मक बदलाव किया था। दोनों के बीच रोज बड़ी ही दमदार चुदाई होती थी और महारानी को बड़े ऊर्जावान अंदाज में चोदा गया था। लगातार चुदाई के कारण उनकी जांघों का अंदरूनी हिस्सा छील गया था और उनकी चुत भी काफी फैल गई थी। अंग अंग दर्द कर रहा था पर उस दर्द में ऐसी मिठास थी की दिल चाहता था की उसमे ओर इजाफा हो।आश्रम मे मालिश करने वाली स्त्री बड़ी ही काबिल थी। उसने महारानी के जिस्म के कोने कोने पर जड़ीबूटी वाला तेल रगड़ कर पूरे जिस्म को शिथिल कर दिया था। शरीर में नवचेतन का प्रसार होते ही महारानी पद्मिनी की चुत फिर से अपने जीवन में आए नए मर्द के लंड को तरसने लगी थी। हवस ऐसे सर पर सवार हो रही थी की वह चाहती थी की अभी वह मालिश वाली औरत को ही दबोच ले। पर अब शक्तिसिंह के वापिस लौटने का समय या चुका था और वह उसके संग एक आखिरी रात बिताना चाहती थी।पिछले कुछ दिनों में राजमाता ने महारानी और शक्तिसिंह जिस कदर चुदाई करते देखा था उसके बाद उन्हे महारानी के गर्भवती हो जाने पर जरा सा भी संशय नहीं बचा था। उस तगड़े सैनिक ने कई बार महारणी की चुत में वीर्य की धार की थी। यहाँ तक की उन दोनों की चुदाई देख देख कर राजमाता की भूख भड़क चुकी थी।लेकिन अपनी जिम्मेदारियों को संभालते हुए, योजना के तहत उन्होंने शक्तिसिंह को अपने दल के साथ सूरजगढ़ वापिस लौट जाने का हुकूम दे दिया था। अब कुछ गिने चुने सैनिक और दासियाँ आश्रम में महारानी के साथ तब तक रहेंगे जब तक गर्भाधान की पुष्टि ना हो जाए। जब वापिस जाने का समय आएगा तब उन्हे संदेश देकर बुलाया जाएगा पर अभी के लिए उनकी कोई आवश्यकता नहीं थी।उस रात, शक्तिसिंह और महारानी ने फर्श पर सोते हुए घंटों चुदाई की। एक बार स्खलित हो जाने के बाद महारानी तुरंत उसका लंड मुंह में लेकर चूसने लगती और फिर से चुदने के लिए तैयार हो जाती। कामशास्त्र के हर आसन में वह दोनों चोद चुके थे। महरानी ने सिसकते कराहते हुए तब तक चुदवाया जब तक उनकी चुत छील ना गई। पूरी रात इन दोनों की आवाज के कारण राजमाता भी ठीक से सो नहीं पाई।दूसरी सुबह, शक्तिसिंह अपना सामान बांध रहा था जब महारानी की सबसे विश्वसनीय दासी ने आकार उसे यह संदेश दिया"तुम जाओ उससे पहले महारानी साहेब तुम से मिलना चाहती है""वो कहाँ है अभी?" शक्तिसिंह को सुबह से महारानी कहीं दिख नहीं रही थी और राजमाता से पूछने पर उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया था"वहाँ आश्रम के कोने में बनी घास की कुटिया में वह मालिश करवा रही है" दासी ने शरमाते हुए कहा। उसे महारानी और शक्तिसिंह के रात्री-खेल के बारे में पता लग चुका था "शक्तिसिंह सही में गजब की ठुकाई करता होगा तभी तो महारानी ने उसके लिए अपना घाघरा उठाया होगा" वह सोच रही थीपद्मिनी वहाँ कुटिया में नंगी होकर लैटी हुई थी। मालिश करने वाली ने उसके अंग अंग को मलकर इतना हल्का कर दिया था की उनका पूरा शरीर नवपल्लवित हो गया था। हालांकि शरीर का एक हिस्सा ऐसा था जिसे मालिश के बाद भी चैन नहीं थी। महारानी की जांघों के बीच बसी चुत अब भी फड़फड़ा रही थी। शक्तिसिंह ने महारानी की संभोग तृष्णा इस कदर बढ़ा दी थी की महारानी तय नहीं कर पा रही थी की उसका क्या किया जाए!! वह बेहद व्यथित थी की शक्तिसिंह वापिस सूरजगढ़ लौट रहा था।शायद उन्हे ज्यादा सावधानी बरत कर राजमाता से छुपकर इस काम को अंजाम देना चाहिए था। अब जब राजमाता को इस बारे में पता चल गया था तो वह अपने नियम और अंकुश लादकर उन्हे एक दूसरे से दूर कर रही थी।महारानी पद्मिनी का शरीर, शक्तिसिंह के खुरदरे हाथों से ठीक उन्हीं स्थानों पर मालिश करवाने के लिए धड़क रहा था, जहां मालिश करने वाली सेविका के नरम लेकिन दृढ़ हाथ घूम रहे थे।शक्तिसिंह ने उस कुटिया में प्रवेश किया। महारानी को वहाँ नंगा लैटे हुए देख वह एक पल के लिए चोंक गया। मालिश से तर होकर उनकी दोनों गोरी चूचियाँ चमक रही थी। शारीरिक घर्षण के कारण उनकी निप्पल सख्त हो गई थी। वह सेविका अब महारानी की जांघे चौड़ी कर अंदरूनी हिस्सों में तेल मले जा रही थी। शक्तिसिंह के लंड ने महारानी के नंगे जिस्म को धोती के अंदर से ही सलामी ठोक दी।पिछले कुछ दिनों से शक्तिसिंह का लंड ज्यादातर खड़ा ही रहता था। उसे राहत तब मिलती थी जब उसे महारानी की चुत के गरम होंठों के बीच घुसने का मौका मिले। शक्तिसिंह के आने का ज्ञान होते ही महारानी ने अपनी खुली जांघों के बीच के चुत को उभार कर ऊपर कर लिया, जैसे वह शक्तिसिंह के सामने उसे पेश कर रही हो। चुत के बाल तेल से लिप्त थे और चुत के होंठों पर तेल लगा हुआ था। गरम तो वह पहले से ही थी। छोटी सी कुटिया में उनकी गरम चुत की भांप ने एक अलग तरह की गंध छोड़ रखी थी।शक्तिसिंह को अपने करीब बुलाते हुए महारानी ने कहा"शक्तिसिंह, यह मालिश वाली अपना काम ठीक से कर नहीं पा रही है" आँखें नचाते हुए बड़े ही गहरे स्वर में वह फुसफुसाई। यह कहते हुए उन्होंने अपनी एक चुची को पकड़कर मसला और अपना निचला होंठ दांतों तले दबा दिया।"महारानी साहेबा... " शक्तिसिंह धीरे से उनके कानों के पास बोला"अममम... महारानी साहेब नहीं, मुझे पद्मिनी कहकर बुलाओ" शक्तिसिंह की धोती के अंदर वह लंड टटोलने लगीधोती के ऊपर से ही लंड को पकड़कर वह गहरी आवाज में बोली "मेरी अच्छे से मालिश कर दो तुम" अपनी टांगों को पूरी तरह से फेला दिया उन्होंनेइस वासना से भरी स्त्री को शक्तिसिंह देखता ही रहा... उसके जाने का वक्त हो चला था... और अब वह दोनों कभी फिर इस तरह दोबारा मिल नहीं पाएंगे। शक्तिसिंह ने उसकी नरम मांसल जांघों पर अपना सख्त खुरदरा हाथ रख दिया।जांघों के ऊपर उसे पनियाई चुत के होंठ, गहरी नाभि, और दो शानदार स्तनों के बीच से महारानी उसकी तरफ देखती नजर आई। उसकी नजर महारानी की चुत पर थी और वह चाहता था की अपनी लपलपाती जीभ उस गुलाबी छेद के अंदर डाल दे।
बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
ये महाराणी कामवासना दिनों दिन बढती ही जा रही है
लगता हैं महाराणी की डोर राजमाता के हाथ से छूट जाने की संभावना लगती हैं
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
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vakharia
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#242
ROB177A said:
Awesome update
Thanks :thanks:
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जीवन के रंग - इरोटिका (सम्पूर्ण) ---જીવન ના રંગ - ઇરોટીકા (સંપૂર્ણ) --- શીલા ના છાનગપતિયાં
મારા ભાભી ના ભાઈ--- નોકર ની પત્ની નું શિયળભંગ --- કેસર અને કુંદનLikeReactions: Smith_15
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#244
vakharia said:
वह अब महारानी के पैरों के बीच आधा लेट गया। अपने मजबूत हाथों से उसने घुटनों से लेकर जंघा-मूल तक हाथ फेरकर मालिश करना शुरू किया। महारानी ने आँखें बंद कर इस स्वर्गीय आनंद का रसपान शुरू कर दिया। शक्तिसिंह अपना हाथ चुत तक ले जाता पर उसका स्पर्श न करता। इस कारण महारानी तड़प रही थी। वह जान बूझकर महारानी के धैर्य की परीक्षा ले रहा था। उसके हर स्पर्श के साथ चुत के होंठ सिकुड़ कर द्रवित हो जाते थे।शक्तिसिंह ने ऐसे कुशलतापूर्वक उसकी जांघों के सभी संवेदनशील हिस्सों को रगड़ा की महारानी कांप उठी। उन्होंने अपने घुटनों को ऊपर की और उठाकर अपनी तड़प रही चुत के प्रति शक्तिसिंह का ध्यान आकर्षित करने का प्रयत्न किया।शक्तिसिंह ने अपने दोनों अंगूठों से चुत के इर्दगिर्द मसाज किया। अंगूठे से दबाकर उसने चुत के होंठों को चौड़ा कर दिया। अंदर का गुलाबी हिस्सा काम-रस से भर चुका था। होंठों के खुलते ही अंदर से रस की धारा बाहर निकालकर महारानी के गाँड़ के छेद तक बह गई। महारानी की क्लिटोरिस फूलकर लाल हो गई थी। शक्तिसिंह बिना चुत का स्पर्श किए ऊपर ऊपर से ही उससे खेलता रहा।"क्या कर रहे हो, शक्तिसिंह??" महारानी कराह उठीशक्तिसिंह ने फिर से अपने दोनों अंगूठों की मदद से क्लिटोरिस के इर्दगिर्द दबाव बनाया और उसे उकसाने लगा। चुत ने एक डकार मारी और उसमे से काफी मात्र में द्रव्य निकलने लगा। वह महारानी की चुत को जिस स्थिति में लाना चाहता था वह अब प्राप्त हो चुकी थी। उसका लंड धोती में तंबू बनाए कब से अपने मालिक की हरकतों को महसूस कर रहा था।शक्तिसिंह बारी बारी क्लिटोरिस को दोनों तरफ से बिना स्पर्श किए हुए फैलाता और दबाता। बड़ा ही अनोखा सुख मिल रहा था महारानी को पर उन्हे यह समझ में नहीं आ रहा था की वह क्लिटोरिस को सीधे सीधे क्यों नहीं रगड़ देता!!! बर्दाश्त की हद पार हो जाने पर महारानी ने शक्तिसिंह के हाथ को पकड़कर अपनी क्लिटोरिस पर दबा दिया।शक्तिसिंह ने अपना हाथ वापिस खींच लिया और क्लिटोरिस से पूर्ववत छेड़खानी शुरू कर दी। महारानी की निप्पल अब इस खेल के कारण लाल लाल हो गई थी। वह खुद अपने स्तनों को इतनी निर्दयता से मसल और मरोड़ रही थी... !!शक्तिसिंह महारानी के शरीर के ऊपर आ गया। उसकी गरम साँसे महारानी के उत्तेजित स्तनों को छु रही थी। उस दौरान उसके कड़े लंड का स्पर्श रानी को अपनी चुत के ऊपर महसूस हुआ।क्लिटोरिस से लेकर निप्पल तक जैसे बिजली कौंध गई। उसने फिर से अपने स्तनों को दबोचना चाहा पर शक्तिसिंह ने उनके हाथों को दूर हटा दिया।"यह दोनों अब मेरे है... " गुर्राते हुए वह बोला।महारानी तड़पती हुई अपने सिर को यहाँ से वहाँ हिला रही थी। वह अपने जिस्म के विविध हिस्सों को छुना और रगड़ना चाहती थी पर शक्तिसिंह उसे ऐसा करने नहीं दे रहा था। वह जानबूझकर उन्हे तड़पा रहा था।शक्तिसिंह फिर नीचे महारानी की टांगों के बीच चला गया। उसने अपनी जीभ को एक बार चुत की लकीर पर घुमाया और चुत के रस को अपनी जीभ पर लेकर महारानी की नाभि से लेकर स्तनों के बीच तक लगा दिया। महारानी सिहर उठी।जितनी बार शक्तिसिंह उनके स्तनों के करीब आता था, महारानी को लगता था की वह अभी उनपर टूट पड़ेगा। पर हर बार शक्तिसिंह, स्तनों को बिना छूए वापिस नीचे चला जाता था। हर बार अपनी जीभ से चुत के रस लेकर आता और महारानी के विविध अंगों पर उस रस को अपनी जीभ से लेप करता गया।लाचार होकर महारानी आँखें बंद कर इस एहसास को महसूस कर रही थी तभी.... शक्तिसिंह ने दोनों हाथों से बड़ी ही निर्दयता से उनके स्तनों को पकड़ लिया। महरानी कराहने लगी, उन्होंने अपनी चुत और स्तनों को और ऊपर उभार लिया ताकि शक्तिसिंह के जिस्म से ज्यादा से ज्यादा संपर्क हो पाए। पास पड़े पात्र में से तेल लेकर उसने महारानी के दोनों स्तनों को गोल गोल घुमाते हुए मालिश करना शुरू कर दिया।महारानी कराह रही थी। उनकी दोनों निप्पल कड़ी होकर शक्तिसिंह को अपनी और आकर्षित करने का प्रयास कर रही थी। शक्तिसिंह ने स्तनों से लेकर चुत तक तेल की धार गिरा दी और अपने हाथों को फैलाकर मालिश करने लगा। महारानी अब बेशर्मों की तरह चिल्ला रही थी। शक्तिसिंह मुसकुराते हुए महारानी की इस लाचारी का आनंद उठा रहा था।शक्तिसिंह ने बड़ी ही सहजता से अपने सर को महारानी के जिस्म के नीचे के हिस्से तक ले गया... उनकी जांघों को अपने हाथों से चौड़ा किया... और अपनी गरम जीभ को महारानी की चुत के होंठों पर रगड़ना शुरू कर दिया।महारानी की दोनों आँखें ऊपर चढ़ गई । शक्तिसिंह की खुरदरी जीभ ने उनकी चुत में ऐसा भूचाल मचाया की वह तुरंत अपने गांड के छिद्र को सिकुड़ते हुए झड़ गई..!!! उन्होंने अपने दोनों हाथों से बड़ी ही मजबूती से शक्तिसिंह के सर को अपनी चुत पर ऐसे दबा दिया था की शक्तिसिंह चाहकर भी उनकी चुत से दूर ना हट सके। वह अपनी कमर उठाकर शक्तिसिंह की जीभ से अपनी चुत को चुदवाने लगी। शक्तिसिंह की लार से अब उनकी चुत का अमृत मिश्रित होकर जंघामूल के रास्ते नीचे टपक रहा था।शक्तिसिंह का ध्यान अब चुत के होंठों से हटकर, ऊपर की तरफ, मुनक्का जितनी बड़ी क्लिटोरिस पर जा टीका। उसने अपनी जीभ को क्लिटोरिस पर लपलपाई और फिर उसे हल्के से मरोड़ दिया।महारानी ने आनंद मिश्रित चीख दे मारी... उनकी चीख की गूंज ने उस कुटिया को हिलाकर रख दिया। महारानी को अब किसी की भी परवाह नहीं थी.. अपने संवेदन और भावनाओ को ज्यों का त्यों व्यक्त करने से अब वह पीछे नहीं हटती थी। वह बार बार चीखती रही "आह्हहह शक्तिसिंह... क्या कर दिया तुमने!!" उनके स्वर से यह बड़ा ही स्पष्ट था की उन्हे कितना मज़ा आ रहा था।शक्तिसिंह ने चुत के इर्दगिर्द, क्लिटोरिस पर और चुत के होंठों पर, सब जगह जीभ फेरते हुए अपनी नजर महारानी के चेहरे पर केंद्रित की। उसने यह ढूंढ निकाला की महारानी की चुत का कौन सा हिस्सा सब से ज्यादा संवेदनशील है... और फिर अपनी जीभ को उसी पर केंद्रित कर दिया।"आह्हह... हाँ हाँ... वहीं पर... ऊईई माँ... मर गई में... ईशशश..." महारानी के पूरे जिस्म में तूफान सा उमड़ पड़ा था। वह आँखें बंद कर शक्तिसिंह के दोनों कानों को पकड़कर मरोड़ रही थी। उनकी टाँगे वह बार बार पटक रही थी। उनके चूतड़ बड़ी ही लय में ऊपर नीचे हो रहे थे।महारानी की इन हलचलों की वजह से अब शक्तिसिंह किसी एक जगह पर अपनी जीभ को केंद्रित नहीं कर पा रहा था। हालांकि उससे अब कुछ ज्यादा फरक नहीं पड़ रहा था क्योंकी महारानी अपनी पराकाष्ठा की और दिव्य सफर पर निकल चुकी थी।"आहहहहहहहहहहह.....................!!!!!!!!!" महारानी अब अपनी जांघों से शक्तिसिंह को जकड़कर ऐसे घुमाया रही थी जैसे मल्लयुद्ध के दांव आजमा रही हो। शक्तिसिंह ने अपने हाथों से उनकी चूचियों को पकड़कर निप्पलों की चुटकी काट ली। उसकी उंगलियों ने निप्पलों पर अपना अत्याचार जारी रखा। महारानी आनंद के समंदर में गोते लगा रही थी। शक्तिसिंह की गर्दन के अगलबगल में उन्होंने अपनी जांघों को ऐसे बंद कर दिया था की शक्तिसिंह को घुटन सी होने लगी थी।अचानक से स्खलन के आवेगों ने महारानी को अपने वश में कर लिया...!! वह बुरी तरह तड़पती हुई अस्पष्ट उदगार निकालनी लगी। अपने पंजों से शक्तिसिंह के बालों को नोचती हुई वह पैर पटकने लगी। उनकी योनि मार्ग ने एक आखिरी बार संकुचित होकर अपना मुंह खोला और अपना गरम गरम काम रस बहाने लगी। यह रस इतनी मात्रा में बह रहा था की शक्तिसिंह चाहकर भी उसे पूरा चाट नहीं पा रहा था।"अब मुझे मन भर कर चोद... इतना चोद की मेरी आत्मा तृप्त हो जाए... की आज अगर मेरी मृत्यु भी हो जाए तो मुझे कोई आपत्ति ना हो!!" स्खलित होते ही उसकी चुत ने अब लंड को प्राप्त करने के लिए आंदोलन शुरू कर दिया था।उसने शक्तिसिंह को अपनी जांघों से मुक्त किया और खड़ी हो गई। धोती में से उसने अपने खिलाड़ी को ढूंढ निकाली। शक्तिसिंह का लंड फुँकारे मारता हुआ कब से तैयार बैठा था। पास पड़े पात्र से हाथों में तेल लेकर, पद्मिनी ने शक्तिसिंह के लंड पर मलना शुरू कर दिया।------------------------------------------------------------------"महारानी साहेब, अब मुझसे और बर्दाश्त नहीं हो पाएगा... मुझे अंदर डालने दीजिए!!" शक्तिसिंह ने बड़ी ही भारी स्वर में कहामहारानी ने पूरे सुपाड़े को तेल से चिपचिपा करते हुए मालिश की और फिर लंड को चूम लिया। उनकी चुत दोनों जांघों के बीच से भांप निकालते हुए चौड़ी होकर इस लंड को अपने अंदर लेने के लिए तड़प रही थी। उन दोनों के जिस्म पर इतनी मात्रा में तेल लगा हुआ था की शक्तिसिंह को यह संदेह था की इतनी चिपचिपी अवस्था में क्या वह पूर्ण नियंत्रण से महारानी को पकड़कर ठीक से चोद पाएगा भी या नहीं।शक्त

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vakharia

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बहुत ही गरमागरम कामुक और जबरदस्त अपडेट हैं भाई मजा आ गया
युद्ध भुमी पर राजमाता की चुदाई वो भी शक्ती सिंह को चंदा राणी को चोदे बगैर आने से तो उसने इतना खतरनाक तरीके से बुर और गांड की चुदाई करी की राजमाता तृप्त हो गई
बहुत ही खतरनाक अपडेट है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
Thanks bhai💖💕💖💕❤️
 

vakharia

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राजमाता ने कमरे में प्रवेश किया। पहले खंड से गुजरकर अंदर के विशाल शयनखंड में जा पहुंची।

बलवानसिंह बाहें फैलाए राजमाता के स्वागत के लिए तैयार खड़ा था... थोड़ी सी झिझक के साथ राजमाता उसके करीब जा पहुंची।

प्रथम थोड़ी क्षणों के लिए तो वह राजमाता के बेनमून हुस्न को निहारता ही रह गया... कोई इतना सुंदर कैसे हो सकता है!! वह मन ही मन सोच रहा था...

005-1
अब उससे और रहा न गया

उसने धीरे से राजमाता को अपने बाहुपाश में घेर लिया और फिर अपने होंठ उनके होंठों से चिपका दिए। उस घृणास्पद कुरूप बलवानसिंह के चुंबन से राजमाता विचलित हो उठी और अपने आप को छुड़ाने के लिए संघर्ष करने लगी। लेकिन बलवानसिंह अब उन्हे छोड़ने वाला नही था। उसने राजमाता को अपनी बलिष्ठ भुजाओं से मजबूती से पकड़ लिया और अपना एक हाथ उनके सिर के पीछे ले जाकर उनका चेहरा स्थिर पकड़ रखा, और उसने फिर से अपने होंठ उसके होंठों पर दबा दिए। थोड़ी देर के लिए उसे प्रतिरोध महसूस हुआ और फिर राजमाता ने विरोध त्याग दिया।

चुंबन से मुक्त होकर बलवानसिंह धीरे से नीचे सरक गया. राजमाता के गालों को चूमा, फिर गर्दन को और फिर उनके चोली में ढके हुए स्तनों के ऊपरी हिस्से को चूमा। उसके एक हाथ ने उनकी गर्दन के पिछले हिस्से को मजबूती से पकड़ रखा था, जबकि दूसरा उनकी पीठ से होते हुए उनके विशाल गोलाकार नितंबों तक पहुँच गया, जिनमें से प्रत्येक को वह बारी बारी धीरे से दबाता जा रहा था। राजमाता के नितंब बेहद शानदार थे। उनके मांसल नितंबों को दबाते ही राजमाता सिहरने लगी। राजमाता के आगे के हिस्से के स्तनों की परिधि और पीछे के नितंबों का कद लगभग समान थे।

008
राजमाता के स्तन बलवानसिंह की विशाल हथेली से भी बड़े थे। चोली की गांठ खोलकर जब उन दोनों महाकाय स्तनों को मुक्त किया गया तब उन पहाड़ जैसी चूचियों की सुंदरता देखकर बलवानसिंह का जबड़ा लटक गया। बेदाग गोरी त्वचा से बने माँस के वह विशाल गोले... और उनपर लगी लंबी गुलाबी निप्पल... उन्हे देखते ही बलवानसिंह का लंड उसकी धोती में ही कथकली करने लगा...

उन आकर्षक निप्पलों को अपनी उंगलियों से दबाते हुए बलवानसिंह धन्य हो गया... स्पर्श प्राप्त होते ही वह चूचक सख्त होकर तन गए। बलवानसिंह अपने होंठ उन निपल्स के पास ले गया और उन्हें अपनी जीभ से छेड़ने लगा, पहले एक और फिर दूसरे को। उसने अपने हाथों को राजमाता के सुडौल शरीर पर फिराया - कोमल और सुडौल, जिसमें ज़रा भी झुर्रियाँ नहीं थीं। उसने राजमाता के दोनों स्तनों को अपनी हथेलियों से मसलना शुरू कर दिया...

राजमाता अब बलवानसिंह की हरकतों का विरोध नहीं कर रही थी। धीरे धीरे वह उत्तेजना की धुंध में खोने लगी थी। उनके जीवन का यह पहला प्रसंग था जब उन्होंने किसी अनचाहे पुरुष को अपना जिस्म सौंपा हो... अपना उत्तेजित होना उन्हे भी समझ में नही आ रहा था... अब तक के सारे संभोग उन्होंने खुद संचालित किए थे... यह पहला मौका था जब वह संचालन नही कर रही थी बल्कि संचालित हो रही थी.. शायद यही उनका उत्तेजित होने का कारण भी था...

वह वास्तव में आहें भर रही थी और हांफ रही थी। बलवानसिंह के हाथ अब उसकी योनी को घाघरे के ऊपर से ही पकड़ रहा था और उसके ढंके हुए चुत के होंठों को रगड़ रहा था।

बलवानसिंह ने साहसपूर्वक अपना हाथ राजमाता की साड़ी और अंतःवस्त्र के बंधे हुए सिरे के नीचे सरकाया और उनके शानदार झांटों के बीच स्थित गीले योनि द्वार को अपनी उंगलियों से महसूस किया। धीरे से, उसने उभरे हुए अंदरूनी हिस्से में एक उंगली डाली तब राजमाता और भी अधिक हांफने लगी। उसने राजमाता के मुँह को अपने मुँह से मिला लिया और अपनी जीभ उनके मुख में अंदर तक डाल दी।

राजमाता ने सहजता से उसकी जीभ को चूसकर जवाब दिया और इससे बलवानसिंह इतना उत्तेजित हो गया कि उसने दो उंगलियां उसकी चिपचिपा शहद छोड़ रही योनी में डाल दीं और उन्हें अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया। सारी सज्जनता अब ख़त्म हो गई थी, अब वह बेशर्मी से राजमाता को अपनी उंगलियों से चोद रहा था और राजमाता भी उतनी ही बेशर्मी से खुद को उन क्रूर उंगलियों पर उछालकर जवाब दे रही थी।

फिर अचानक दबी हुई चीख से हाँफती हुई वह स्खलित हो गई। बलवानसिंह के साथ पहली बार उन्हे चरमसुख प्राप्त हुआ। उस स्खलन की तीव्रता से वह लगभग होश खो बैठी।

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लड़खड़ाती राजमाता को बलवानसिंह सहारा देते हुए बिस्तर तक ले गया। नरम आलीशान बिस्तर पर राजमाता को लिटाकर वह भी उनके बगल में लेट गया। तकिये पर आँख बंद कर लेटी हुई राजमाता के हसीन चेहरे पर वह जगह जगह चूमे जा रहा था। उनके चेहरे की निर्दोष त्वचा, अप्रतिम संरचना और बादाम के आकार की भूरी भूरी आँखें!! कितना भी देख लें, मन ही नही भरता था...

अपने स्खलन से धीरे धीरे होश में आ रही राजमाता को बलवानसिंह ने कामोन्माद की ऊंचाइयों से उतरने दिया। फिर वह धीरे-धीरे उन्हे निर्वस्त्र करने लगा।

उस लंपट लीचड़ राजा ने धीरे-धीरे अनावृत होने वाली हर चीज का आनंद लिया - चिकनी सफेद लहरदार त्वचा, मांसल गदराया जिस्म, लंबी गुलाबी निप्पलें, सुडौल परिपूर्ण विशाल स्तन, गहरी नाभि जो सपाट पेट पर उसकी उत्तेजित सांसों के साथ कामुकता से उठती और गिरती थी, लचकदार कमर जिसे वह पूरी तरह से देख सकता था उसे अपने हाथों से घेरा। फिर जैसे ही उसने राजमाता की साड़ी उतारी - उसे नजर आई वह योनी जिसे उसने संभोग सुख के लिए उंगलियों से छुआ था, मलाईदार जांघें जो झुके हुए घुटनों तक फैली हुई थीं और उसके नीचे सूडोल पैर और आकर्षक उँगलियाँ... वह राजमाता के नंगे शरीर को देखकर चकित रह गया, घूमफिर कर वही बात बार बार दिमाग में आती थी कि उसने राजमाता से अधिक सुंदर स्त्री अपने जीवन में कभी नही देखी थी।

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अब बलवानसिंह का मन वही करने को चाह रहा था जो राजमाता की उस गूँदाज चुत को देखनेवाले हर किसी का होगा... उसने कई कामी स्त्रियों से चुत-चटाई के पाठ पढे थे... और फिलहाल उसके सामने एक ऐसी योनि थी जो उन सब कलाकारियों की पूर्ण हकदार थी।

राजमाता ने बलवंतसिंह को उनकी चुत को घूरते हुए पकड़ लिया। वह मुस्कुराकर पलट गई ताकि वह उनके सुंदर नितंबों को पूरी तरह से देख सके। वे अद्भुत नितंब, जो पूर्णतः मांसल थे, गोरी त्वचा में लिपटे हुए वह माँस के गोले जिन्हे देखते ही बलवानसिंह को उन्हे अलग कर अपना लंड घुसाने की तीव्र इच्छा हुई।

अब राजमाता ने इशारे से उसे अपने कपड़े उतारने को कहा।

वह अपने कपड़े उतारने के लिए खड़ा हुआ और कुछ ही पल में सम्पूर्ण नग्न हो गया। काले आबनूस जैसा उसका शरीर बालों से भरा पड़ा था। देखने पर ऐसा लग रहा था जैसे कोई जंगली भालू हो!! लेकिन राजमाता को इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ा, वह उसके कठोर शरीर को घूर रही थी और उसके कद में छोटे पर कलाई जीतने मोटे लंड को तांक रही थी।

बलवानसिंह ने राजमाता की उन पेड़ के तनों जैसी तंदूरस्त जाँघों को अलग कर दिया और अपना चेहरा उनकी दिव्य योनी पर रख दिया। उसने अपनी जीभ से चुत के होठों को अलग किया और उनकी उत्तेजित योनी का रस चाटने लगा। उसने इस उत्तेजित खूबसूरत महिला की ताज़ी खुशबू को महसूस किया। फिर उसने अपनी जीभ बाहर निकाली और उनकी योनि के होंठों का स्वाद चखा। अपनी जांघों के बीच उसके काले सिर को देखकर एक पल के लिए राजमाता घृणा से भर गई - वह इधर-उधर फड़फड़ाने लगी और खुद को अलग करने की कोशिश करने लगी।

बलवानसिंह को इस साधारण प्रतिरोध से कोई फरक नही पड़ा। उसने राजमाता की योनि पर हमले की तीव्रता बढ़ा दी और उनकी अद्भुत जाँघों को मजबूती से पकड़ लिया। उसने राजमाता के भगोष्ठ को चाटा तब महसूस किया कि कामोत्तेजना के कारण अंगूर के जैसे फूला हुआ था और जाहिर तौर पर उसका हर छोटा हिस्सा संवेदनशील था क्योंकि वह कराह रही थी और छटपटा रही थी, और कुछ ही समय में, जैसे ही उसने अपनी जीभ को योनिमार्ग के अंदर घुसेड़कर गुदगुदाया, राजमाता एक और स्खलन से कांप उठी।

राजमाता की जाँघों के बीच की सुंदरता में बलवानसिंह पूर्णतः खो गया। कुछ महिलाओं के चेहरे तो बदसूरत होते हैं लेकिन योनि सुंदर होती है; अन्य आकर्षक महिलाओं की चुत बदसूरतनी होती है - जैसे अनियमित बदरंग चुत के होंठ वाली या फिर फड़फड़ाते मांसल होंठों के बीच गहरे खुले छेद वाली।


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राजमाता के पास सुंदर चेहरा और आकर्षक योनि दोनों थे। बलवानसिंह अपनी जीभ से उस सुंदर चुत को उत्तेजित किए जा रहा था। उसकी उंगलियाँ उनकी जाँघों पर और फिर उनके चमड़ी के छत्र के नीचे छिपे हुए भगोष्ठ पर घूम रही थीं, जिससे वह दाना अंकुरित होकर मोटा हो गया था। राजमाता फिर से नई चरमसीमा की ओर यात्रा कर रही थी। जब बलवानसिंह की खुरदरी जीभ उनके दाने से घिसती तब राजमाता के चेहरे पर उत्तेजक जज़्बातों की बाढ़ आ जाती थी और उनकी जाँघें आपस में भिड़कर लयबद्ध तरीके से बलवानसिंह के सिर को कुचल देती थीं।

एक बार फिर से स्खलित होकर जब राजमाता की जाँघों ने आख़िरकार उसके सिर को आज़ाद किया तब उन्होंने बलवानसिंह की ओर देखा.. उसका पूरा चेहरा ओर दाढ़ी, चुत के रस से भीगे हुए थे... राजा अपना मुंह ऊपर तक ले गया और योनिरस से लिप्त जीभ से वह राजमाता की जीभ को चाटने लगा ताकि राजमाता को भी अपनी चुत के रस का स्वाद मिले। उसका लंड सटकर उनकी चुत के होंठों के बीच अटक गया था और उनकी चिपचिपी नाली में घुसने के लीये फुदक रहा था।

बलवानसिंह का लंड ज्यादा लंबा नही था पर थोड़ा मोटा जरूर था... उसने एक ही झटके में राजमाता की रसदार चुत में लंड पेल दिया... दोनों के झाँट एक दूसरे के संग उलझ गए। और वह उन पर सवार हो गया और अपने लंड को उनकी चुत के अंदर मथनी की तरह मथते हुए घुमाने लगा , इस दौरान वह अपने मुंह ने उनकी जीभ को चाटने लगा और लार को चूसने लगा।

हथोड़े की तरह तेजी से राजमाता की चुत में ठोक रहा था... योनि की दीवारों के बीच उसके लंड को जो अनोखी अनुभूति हुई उससे वह गुर्राते हुए वीर्य स्खलित कर बैठा... राजमाता की योनी को इतने गरम तरल वीर्य से भर दिया कि वह वीर्य चुत से छलक कर उनके झाँट, जांघ और बिस्तर की चादर पर फैल गया।

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पस्त होकर बलवानसिंह, राजमाता के दो स्तनों पर गिर पड़ा... अभी भी उसका लंड राजमाता की गुनगुनी चुत के अंदर ही था... यह विश्राम का दौर कुछ ही वक्त तक सीमित रहा...बलवानसिंह के लंड ने उनकी योनी में फिर से हरकत शुरू कर दी और कुछ ही समय में फिर से सख्त हो गया। उसने खुद को ऊपर उठाया और राजमाता के चेहरे को देखा और अपना मुंह उनके मुंह से चिपका लिया और अपने लंड से उसकी योनी पर हमला करते हुए अपनी जीभ से उनके मुंह को बेरहमी से चोदने लगा।

राजमाता ने धीरे से लेकिन दृढ़ता से उसे अपने से दूर धकेल दिया। अब वह उसकी सवारी करने जा रही थी, संभोग का नियंत्रण अपने हाथ में लेकर उसे चोदने जा रही थी, वह खुद को आनंदित करने के लिए प्रतिबद्ध होकर आगे बढ़ रही थी।

जैसे ही राजमाता उठी, बलवानसिंह उस नरम बिस्तर पर लेट गया। राजमाता ने उसके दोनों ओर अपने मुड़े हुए पैर रखकर उसके सख्त लंड को पकड़ लिया और धीरे से उसे अपनी चुत के होंठों पर रखकर अंदर ग्रहण कर लिया।

राजमाता उसके लंड पर सवार हो गयी. वह अपने उभारों को तब तक ऊपर उठाती जब तक बलवानसिंह के लंड का केवल सिरा ही उनकी योनी में रह जाए और फिर बेतहाशा नीचे उतरते हुए पूरे लंड को अपने अंदर समाहित कर लेती। उन्हों ने अपने स्तनों को नीचे किया और एक निप्पल को बलवानसिंह के मुँह में डाल दिया। इस दौरान वह अपने चूतड़ों को गोल गोल घुमाते हुए लंड के मजे अपनी योनि में लेने लगी।

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राजमाता ने धीरे-धीरे गति और उत्तेजना के स्तर को बढ़ाया। बलवानसिंह एक के बाद एक दोनों निप्पलों को चूसे जा रहा था। अब वह भी नीचे से धक्के लगाते हुए राजमाता के धक्कों का सामना करने लगा। बलवानसिंह ने उनके पूर्ण नितंबों को पकड़ लिया और अपनी उंगलियों को उनके गांड के छिद्र की ओर बढ़ाना शुरू कर दिया।

तभी राजमाता ने अपने एक पैर में बंधी पायल को खोल दिया और जोर से जमीन पर फेंका... उस पायल की खनक सुनते ही शक्तिसिंह खंड का द्वार खोलकर अंदर आ गया। क्योंकी बलवानसिंह की नज़रे और ध्यान राजमाता के पुष्ट स्तनों को चूसने पर केंद्रित था इसलिए उसे शक्तिसिंह के अंदर आने की भनक नही लगी।
 
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