राजमाता ने कमरे में प्रवेश किया। पहले खंड से गुजरकर अंदर के विशाल शयनखंड में जा पहुंची।
बलवानसिंह बाहें फैलाए राजमाता के स्वागत के लिए तैयार खड़ा था... थोड़ी सी झिझक के साथ राजमाता उसके करीब जा पहुंची।
प्रथम थोड़ी क्षणों के लिए तो वह राजमाता के बेनमून हुस्न को निहारता ही रह गया... कोई इतना सुंदर कैसे हो सकता है!! वह मन ही मन सोच रहा था...
अब उससे और रहा न गया
उसने धीरे से राजमाता को अपने बाहुपाश में घेर लिया और फिर अपने होंठ उनके होंठों से चिपका दिए। उस घृणास्पद कुरूप बलवानसिंह के चुंबन से राजमाता विचलित हो उठी और अपने आप को छुड़ाने के लिए संघर्ष करने लगी। लेकिन बलवानसिंह अब उन्हे छोड़ने वाला नही था। उसने राजमाता को अपनी बलिष्ठ भुजाओं से मजबूती से पकड़ लिया और अपना एक हाथ उनके सिर के पीछे ले जाकर उनका चेहरा स्थिर पकड़ रखा, और उसने फिर से अपने होंठ उसके होंठों पर दबा दिए। थोड़ी देर के लिए उसे प्रतिरोध महसूस हुआ और फिर राजमाता ने विरोध त्याग दिया।
चुंबन से मुक्त होकर बलवानसिंह धीरे से नीचे सरक गया. राजमाता के गालों को चूमा, फिर गर्दन को और फिर उनके चोली में ढके हुए स्तनों के ऊपरी हिस्से को चूमा। उसके एक हाथ ने उनकी गर्दन के पिछले हिस्से को मजबूती से पकड़ रखा था, जबकि दूसरा उनकी पीठ से होते हुए उनके विशाल गोलाकार नितंबों तक पहुँच गया, जिनमें से प्रत्येक को वह बारी बारी धीरे से दबाता जा रहा था। राजमाता के नितंब बेहद शानदार थे। उनके मांसल नितंबों को दबाते ही राजमाता सिहरने लगी। राजमाता के आगे के हिस्से के स्तनों की परिधि और पीछे के नितंबों का कद लगभग समान थे।
राजमाता के स्तन बलवानसिंह की विशाल हथेली से भी बड़े थे। चोली की गांठ खोलकर जब उन दोनों महाकाय स्तनों को मुक्त किया गया तब उन पहाड़ जैसी चूचियों की सुंदरता देखकर बलवानसिंह का जबड़ा लटक गया। बेदाग गोरी त्वचा से बने माँस के वह विशाल गोले... और उनपर लगी लंबी गुलाबी निप्पल... उन्हे देखते ही बलवानसिंह का लंड उसकी धोती में ही कथकली करने लगा...
उन आकर्षक निप्पलों को अपनी उंगलियों से दबाते हुए बलवानसिंह धन्य हो गया... स्पर्श प्राप्त होते ही वह चूचक सख्त होकर तन गए। बलवानसिंह अपने होंठ उन निपल्स के पास ले गया और उन्हें अपनी जीभ से छेड़ने लगा, पहले एक और फिर दूसरे को। उसने अपने हाथों को राजमाता के सुडौल शरीर पर फिराया - कोमल और सुडौल, जिसमें ज़रा भी झुर्रियाँ नहीं थीं। उसने राजमाता के दोनों स्तनों को अपनी हथेलियों से मसलना शुरू कर दिया...
राजमाता अब बलवानसिंह की हरकतों का विरोध नहीं कर रही थी। धीरे धीरे वह उत्तेजना की धुंध में खोने लगी थी। उनके जीवन का यह पहला प्रसंग था जब उन्होंने किसी अनचाहे पुरुष को अपना जिस्म सौंपा हो... अपना उत्तेजित होना उन्हे भी समझ में नही आ रहा था... अब तक के सारे संभोग उन्होंने खुद संचालित किए थे... यह पहला मौका था जब वह संचालन नही कर रही थी बल्कि संचालित हो रही थी.. शायद यही उनका उत्तेजित होने का कारण भी था...
वह वास्तव में आहें भर रही थी और हांफ रही थी। बलवानसिंह के हाथ अब उसकी योनी को घाघरे के ऊपर से ही पकड़ रहा था और उसके ढंके हुए चुत के होंठों को रगड़ रहा था।
बलवानसिंह ने साहसपूर्वक अपना हाथ राजमाता की साड़ी और अंतःवस्त्र के बंधे हुए सिरे के नीचे सरकाया और उनके शानदार झांटों के बीच स्थित गीले योनि द्वार को अपनी उंगलियों से महसूस किया। धीरे से, उसने उभरे हुए अंदरूनी हिस्से में एक उंगली डाली तब राजमाता और भी अधिक हांफने लगी। उसने राजमाता के मुँह को अपने मुँह से मिला लिया और अपनी जीभ उनके मुख में अंदर तक डाल दी।
राजमाता ने सहजता से उसकी जीभ को चूसकर जवाब दिया और इससे बलवानसिंह इतना उत्तेजित हो गया कि उसने दो उंगलियां उसकी चिपचिपा शहद छोड़ रही योनी में डाल दीं और उन्हें अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया। सारी सज्जनता अब ख़त्म हो गई थी, अब वह बेशर्मी से राजमाता को अपनी उंगलियों से चोद रहा था और राजमाता भी उतनी ही बेशर्मी से खुद को उन क्रूर उंगलियों पर उछालकर जवाब दे रही थी।
फिर अचानक दबी हुई चीख से हाँफती हुई वह स्खलित हो गई। बलवानसिंह के साथ पहली बार उन्हे चरमसुख प्राप्त हुआ। उस स्खलन की तीव्रता से वह लगभग होश खो बैठी।
लड़खड़ाती राजमाता को बलवानसिंह सहारा देते हुए बिस्तर तक ले गया। नरम आलीशान बिस्तर पर राजमाता को लिटाकर वह भी उनके बगल में लेट गया। तकिये पर आँख बंद कर लेटी हुई राजमाता के हसीन चेहरे पर वह जगह जगह चूमे जा रहा था। उनके चेहरे की निर्दोष त्वचा, अप्रतिम संरचना और बादाम के आकार की भूरी भूरी आँखें!! कितना भी देख लें, मन ही नही भरता था...
अपने स्खलन से धीरे धीरे होश में आ रही राजमाता को बलवानसिंह ने कामोन्माद की ऊंचाइयों से उतरने दिया। फिर वह धीरे-धीरे उन्हे निर्वस्त्र करने लगा।
उस लंपट लीचड़ राजा ने धीरे-धीरे अनावृत होने वाली हर चीज का आनंद लिया - चिकनी सफेद लहरदार त्वचा, मांसल गदराया जिस्म, लंबी गुलाबी निप्पलें, सुडौल परिपूर्ण विशाल स्तन, गहरी नाभि जो सपाट पेट पर उसकी उत्तेजित सांसों के साथ कामुकता से उठती और गिरती थी, लचकदार कमर जिसे वह पूरी तरह से देख सकता था उसे अपने हाथों से घेरा। फिर जैसे ही उसने राजमाता की साड़ी उतारी - उसे नजर आई वह योनी जिसे उसने संभोग सुख के लिए उंगलियों से छुआ था, मलाईदार जांघें जो झुके हुए घुटनों तक फैली हुई थीं और उसके नीचे सूडोल पैर और आकर्षक उँगलियाँ... वह राजमाता के नंगे शरीर को देखकर चकित रह गया, घूमफिर कर वही बात बार बार दिमाग में आती थी कि उसने राजमाता से अधिक सुंदर स्त्री अपने जीवन में कभी नही देखी थी।
अब बलवानसिंह का मन वही करने को चाह रहा था जो राजमाता की उस गूँदाज चुत को देखनेवाले हर किसी का होगा... उसने कई कामी स्त्रियों से चुत-चटाई के पाठ पढे थे... और फिलहाल उसके सामने एक ऐसी योनि थी जो उन सब कलाकारियों की पूर्ण हकदार थी।
राजमाता ने बलवंतसिंह को उनकी चुत को घूरते हुए पकड़ लिया। वह मुस्कुराकर पलट गई ताकि वह उनके सुंदर नितंबों को पूरी तरह से देख सके। वे अद्भुत नितंब, जो पूर्णतः मांसल थे, गोरी त्वचा में लिपटे हुए वह माँस के गोले जिन्हे देखते ही बलवानसिंह को उन्हे अलग कर अपना लंड घुसाने की तीव्र इच्छा हुई।
अब राजमाता ने इशारे से उसे अपने कपड़े उतारने को कहा।
वह अपने कपड़े उतारने के लिए खड़ा हुआ और कुछ ही पल में सम्पूर्ण नग्न हो गया। काले आबनूस जैसा उसका शरीर बालों से भरा पड़ा था। देखने पर ऐसा लग रहा था जैसे कोई जंगली भालू हो!! लेकिन राजमाता को इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ा, वह उसके कठोर शरीर को घूर रही थी और उसके कद में छोटे पर कलाई जीतने मोटे लंड को तांक रही थी।
बलवानसिंह ने राजमाता की उन पेड़ के तनों जैसी तंदूरस्त जाँघों को अलग कर दिया और अपना चेहरा उनकी दिव्य योनी पर रख दिया। उसने अपनी जीभ से चुत के होठों को अलग किया और उनकी उत्तेजित योनी का रस चाटने लगा। उसने इस उत्तेजित खूबसूरत महिला की ताज़ी खुशबू को महसूस किया। फिर उसने अपनी जीभ बाहर निकाली और उनकी योनि के होंठों का स्वाद चखा। अपनी जांघों के बीच उसके काले सिर को देखकर एक पल के लिए राजमाता घृणा से भर गई - वह इधर-उधर फड़फड़ाने लगी और खुद को अलग करने की कोशिश करने लगी।
बलवानसिंह को इस साधारण प्रतिरोध से कोई फरक नही पड़ा। उसने राजमाता की योनि पर हमले की तीव्रता बढ़ा दी और उनकी अद्भुत जाँघों को मजबूती से पकड़ लिया। उसने राजमाता के भगोष्ठ को चाटा तब महसूस किया कि कामोत्तेजना के कारण अंगूर के जैसे फूला हुआ था और जाहिर तौर पर उसका हर छोटा हिस्सा संवेदनशील था क्योंकि वह कराह रही थी और छटपटा रही थी, और कुछ ही समय में, जैसे ही उसने अपनी जीभ को योनिमार्ग के अंदर घुसेड़कर गुदगुदाया, राजमाता एक और स्खलन से कांप उठी।
राजमाता की जाँघों के बीच की सुंदरता में बलवानसिंह पूर्णतः खो गया। कुछ महिलाओं के चेहरे तो बदसूरत होते हैं लेकिन योनि सुंदर होती है; अन्य आकर्षक महिलाओं की चुत बदसूरतनी होती है - जैसे अनियमित बदरंग चुत के होंठ वाली या फिर फड़फड़ाते मांसल होंठों के बीच गहरे खुले छेद वाली।
राजमाता के पास सुंदर चेहरा और आकर्षक योनि दोनों थे। बलवानसिंह अपनी जीभ से उस सुंदर चुत को उत्तेजित किए जा रहा था। उसकी उंगलियाँ उनकी जाँघों पर और फिर उनके चमड़ी के छत्र के नीचे छिपे हुए भगोष्ठ पर घूम रही थीं, जिससे वह दाना अंकुरित होकर मोटा हो गया था। राजमाता फिर से नई चरमसीमा की ओर यात्रा कर रही थी। जब बलवानसिंह की खुरदरी जीभ उनके दाने से घिसती तब राजमाता के चेहरे पर उत्तेजक जज़्बातों की बाढ़ आ जाती थी और उनकी जाँघें आपस में भिड़कर लयबद्ध तरीके से बलवानसिंह के सिर को कुचल देती थीं।
एक बार फिर से स्खलित होकर जब राजमाता की जाँघों ने आख़िरकार उसके सिर को आज़ाद किया तब उन्होंने बलवानसिंह की ओर देखा.. उसका पूरा चेहरा ओर दाढ़ी, चुत के रस से भीगे हुए थे... राजा अपना मुंह ऊपर तक ले गया और योनिरस से लिप्त जीभ से वह राजमाता की जीभ को चाटने लगा ताकि राजमाता को भी अपनी चुत के रस का स्वाद मिले। उसका लंड सटकर उनकी चुत के होंठों के बीच अटक गया था और उनकी चिपचिपी नाली में घुसने के लीये फुदक रहा था।
बलवानसिंह का लंड ज्यादा लंबा नही था पर थोड़ा मोटा जरूर था... उसने एक ही झटके में राजमाता की रसदार चुत में लंड पेल दिया... दोनों के झाँट एक दूसरे के संग उलझ गए। और वह उन पर सवार हो गया और अपने लंड को उनकी चुत के अंदर मथनी की तरह मथते हुए घुमाने लगा , इस दौरान वह अपने मुंह ने उनकी जीभ को चाटने लगा और लार को चूसने लगा।
हथोड़े की तरह तेजी से राजमाता की चुत में ठोक रहा था... योनि की दीवारों के बीच उसके लंड को जो अनोखी अनुभूति हुई उससे वह गुर्राते हुए वीर्य स्खलित कर बैठा... राजमाता की योनी को इतने गरम तरल वीर्य से भर दिया कि वह वीर्य चुत से छलक कर उनके झाँट, जांघ और बिस्तर की चादर पर फैल गया।
पस्त होकर बलवानसिंह, राजमाता के दो स्तनों पर गिर पड़ा... अभी भी उसका लंड राजमाता की गुनगुनी चुत के अंदर ही था... यह विश्राम का दौर कुछ ही वक्त तक सीमित रहा...बलवानसिंह के लंड ने उनकी योनी में फिर से हरकत शुरू कर दी और कुछ ही समय में फिर से सख्त हो गया। उसने खुद को ऊपर उठाया और राजमाता के चेहरे को देखा और अपना मुंह उनके मुंह से चिपका लिया और अपने लंड से उसकी योनी पर हमला करते हुए अपनी जीभ से उनके मुंह को बेरहमी से चोदने लगा।
राजमाता ने धीरे से लेकिन दृढ़ता से उसे अपने से दूर धकेल दिया। अब वह उसकी सवारी करने जा रही थी, संभोग का नियंत्रण अपने हाथ में लेकर उसे चोदने जा रही थी, वह खुद को आनंदित करने के लिए प्रतिबद्ध होकर आगे बढ़ रही थी।
जैसे ही राजमाता उठी, बलवानसिंह उस नरम बिस्तर पर लेट गया। राजमाता ने उसके दोनों ओर अपने मुड़े हुए पैर रखकर उसके सख्त लंड को पकड़ लिया और धीरे से उसे अपनी चुत के होंठों पर रखकर अंदर ग्रहण कर लिया।
राजमाता उसके लंड पर सवार हो गयी. वह अपने उभारों को तब तक ऊपर उठाती जब तक बलवानसिंह के लंड का केवल सिरा ही उनकी योनी में रह जाए और फिर बेतहाशा नीचे उतरते हुए पूरे लंड को अपने अंदर समाहित कर लेती। उन्हों ने अपने स्तनों को नीचे किया और एक निप्पल को बलवानसिंह के मुँह में डाल दिया। इस दौरान वह अपने चूतड़ों को गोल गोल घुमाते हुए लंड के मजे अपनी योनि में लेने लगी।
राजमाता ने धीरे-धीरे गति और उत्तेजना के स्तर को बढ़ाया। बलवानसिंह एक के बाद एक दोनों निप्पलों को चूसे जा रहा था। अब वह भी नीचे से धक्के लगाते हुए राजमाता के धक्कों का सामना करने लगा। बलवानसिंह ने उनके पूर्ण नितंबों को पकड़ लिया और अपनी उंगलियों को उनके गांड के छिद्र की ओर बढ़ाना शुरू कर दिया।
तभी राजमाता ने अपने एक पैर में बंधी पायल को खोल दिया और जोर से जमीन पर फेंका... उस पायल की खनक सुनते ही शक्तिसिंह खंड का द्वार खोलकर अंदर आ गया। क्योंकी बलवानसिंह की नज़रे और ध्यान राजमाता के पुष्ट स्तनों को चूसने पर केंद्रित था इसलिए उसे शक्तिसिंह के अंदर आने की भनक नही लगी।