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Adultery राजमाता कौशल्यादेवी

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तभी राजमाता ने अपने एक पैर में बंधी पायल को खोल दिया और जोर से जमीन पर फेंका... उस पायल की खनक सुनते ही शक्तिसिंह खंड का द्वार खोलकर अंदर आ गया। क्योंकी बलवानसिंह की नज़रे और ध्यान राजमाता के पुष्ट स्तनों को चूसने पर केंद्रित था इसलिए उसे शक्तिसिंह के अंदर आने की भनक नही लगी।

शक्तिसिंह उन दोनों के करीब पहुँच तब तक उसने अपने वस्त्र उतार दिए थे।

बलवानसिंह की नजर अब शक्तिसिंह के ऊपर गई। उस नग्न विकराल पुरुष को इस समय कक्ष में देखकर एक पल के लिए वह चोंक गया। लेकिन उसकी मौजूदगी पर राजमाता ने कोई आपत्ति न जताई इसलिए वह भी कुछ नही बोला.. उसे इतना तो पता चला की वह राजमाता की आज्ञा से ही अंदर आया था। चूंकि अब संभोग का संचालन राजमाता के पास था इसलिए बलवानसिंह ने बिना कुछ कहे ही धक्के लगाना जारी रखा।

शक्तिसिंह अपना तना हुआ लिंग हाथ में पकड़कर राजमाता के निर्देश का इंतज़ार कर रहा था।

बलवानसिंह को अपना लंड बहुत बड़ा लगता था पर शक्तिसिंह के लंड के आगे उसका लंड एक छोटी सी पुंगी के बराबर ही था।

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बलवानसिंह और राजमाता के बीच चले रहे इस आनंदमय सहवास को देखकर शक्तिसिंह भी काफी उत्तेजित हो गया था। बलवानसिंह के लंड पर राजमाता के नंगे गुलाबी नितंबों का ऊपर-नीचे होते देखा वह अपने लंड की त्वचा को आगे पीछे करते हुए हिलाने लगा।

लंड हिलाते शक्तिसिंह की आँखों में देखकर राजमाता ने इशारा किया। राजमाता की ओर से हरी झंडी मिलते ही शक्तिसिंह ने अपने मुंह से काफी मात्रा में लार निकाली और अपने लंड पर उस गर्म तरल पदार्थ को फैलाते हुए उसकी पूरी लंबाई पर मालिश की। बिस्तर पर लेटे बलवानसिंह के ऊपर राजमाता सवार थी। शक्तिसिंह अब राजमाता के पिछवाड़े की ओर पहुंचा। उसने राजमाता के नितम्बों को चौड़ा किया, गुलाबी सिकुड़ी हुई गांड पर लार लगाई और पहले एक और फिर दोनों उंगलियाँ उनकी गांड के छेद में डाल दी।

जब वह अपनी उंगलियों को राजमाता की गांड के अंदर और बाहर घुमा रहा था तब राजमाता सिहर कर बलवानसिंह के लंड पर ओर तेजी से कूदने लगी। शक्तिसिंह ने राजमाता के कंधों को पकड़कर उनकी गति को नियंत्रित कर उन्हे स्थिर किया ताकि उसे अपना लंड उनके छेद में डालने की सहूलियत हो। राजमाता की चुत में घुसे बलवानसिंह के लँड के कारण उनकी गांड में लंड घुसा पाना थोड़ा सा कठिन था।

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शक्तिसिंह ने दोनों हाथों से राजमाता की कमर पकड़ी और अपना लिंग छेद के अंदर धकेल दिया। एक ही झटके में उसका सुपाड़ा गाँड़ के छिद्र के अंदर गुज़र गया और राजमाता अचानक दर्द से कराह उठी। "शांत रहिए, राजमाता," शक्तिसिंह बड़बड़ाया और अपने लंड को धीरे धीरे और अंदर डालने लगा।

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धीरे-धीरे शक्तिसिंह ने दबाव बनाए रखा और उसका लिंग राजमाता की गांड में गायब होने लगा। राजमाता ने बलवानसिंह की सवारी बंद कर दी थी और अब दो लंड एक साथ लेकर उनका चेहरा पीला पड़ गया था और वह ठंडे पसीने से लथपथ हो गई थी।

लेकिन उन्होंने शक्तिसिंह को रुकने के लिए नही कहा। वह झुकी हुई पड़ी रही और तब तक स्थिर रही जब तक शक्तिसिंह का पूरा लंड उनकी गांड के अंदर नही घुस गया। शक्तिसिंह ने स्वीकृति भरी घुरघुराहट के साथ अपने लंड को उसके सिरे तक बाहर खींचा और तेजी से गति बढ़ाते हुए उसे वापस अंदर घुसा दिया।

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राजमाता और शक्तिसिंह के बीच जो चल रहा था उसके सदमे के कारण बलवानसिंह के लंड ने अपनी सख्ती खो दी थी। एक कारण यह भी था की आज तक उसने कभी भी अपनी चुदाई के साथी को किसी अन्य पुरुष के साथ साझा नहीं किया था। उसका लंड मुरझा गया लेकिन पूरी तरह से नहीं और वह अभी भी राजमाता की योनी में घुसा हुआ था। मजे की बात यह थी कि राजमाता का यह दोहरा उत्पात इतने करीब से देख कर वह फिर से उत्तेजित होने लगा। अपने लंड को फिर से सख्त होता महसूस किया।

अब राजमाता फिर से बलवानसिंह के ऊपर सवारी करने लगी; अपनी गांड में हो रहे दर्द के अनुभव से वह उभर चुकी थी। अब जब शक्तिसिंह अपने लंड को उनकी गांड से बाहर खींचता तब वह अपनी योनि को बलवानसिंह के लंड पर नीचे कर देती और जैसे ही वह अपने चूतड़ ऊपर उठाती, शक्तिसिंह अपना लंड पेल देता। इस तरह दोनों लंड के तालमेल से वह तालबद्ध तरीके से चुद रही थी।

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तीनों ने बड़ी ही बखूबी से एक लय सी बना ली थी। बलवानसिंह अब तेजी से ऊपर की ओर जोर लगा रहा था। थोड़ी ही देर में, एक कर्कश चीख के साथ वह स्खलित हो गया और उसने राजमाता की योनिगुफा को गरम वीर्य से भर दिया। फिलहाल उसका कार्य समाप्त हो गया।

शक्तिसिंह ने राजमाता की गांड मारना जारी रखा। उसने राजमाता के शरीर को बलवानसिंह के ऊपर से उठा लिया और खड़ा हो गया। फिर उनको जाँघों से पकड़कर अपने लंड पर घुमाने लगा। उसका लंड अभी भी राजमाता की गांड में गड़ा हुआ था।

राजमाता पीछे की ओर मुड़ी और अपनी बाँहें उसकी गर्दन के चारों ओर लपेट दीं। शक्तिसिंह ने उन्हे नितंबों से उचक रखा था। बलवानसिंह देख सकता था कि शक्तिसिंह का मूसल लंड हिंसक रूप से राजमाता की गांड के अंदर बाहर हो रहा था।

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राजमाता पसीने से नहा रही थी और बुरी तरह कराह भी रही थी क्योंकि शक्तिसिंह उसे एक गुड़िया की तरह अपने लंड पर के ऊपर उछाल रहा था। अब उसने अपना लंड उनकी गांड के छेद से निकाले बिना ही उन्हे ज़मीन पर उतार दिया। राजमाता अब फर्श पर चारों पैरों हो गई और शक्तिसिंह ने पीछे से वार करना शुरू कर दिया।

शक्तिसिंह ने अपने विशाल हाथ राजमाता की योनि पर रखे और उसकी उंगलियाँ उनके भगोष्ठ से से खेलने लगी। आख़िरकार, वह स्खलित होने की कगार पर पहुँच गया और एक ज़ोर की चीख के साथ राजमाता की गांड में झड़ गया।


काफी देर तक दोनों वैसे ही पड़े रहे. राजमाता अपने हाथों और घुटनों पर, हांफते हुए, और उनके पीछे शक्तिसिंह। उसका लंड धीरे-धीरे आकार में छोटा होता जा रहा था और उसकी फैली हुई गांड में धीरे-धीरे सिकुड़ रहा था। अंत में पक्क की आवाज के साथ उसका लंड उनके छेद से बाहर निकल गया और फिर राजमाता का छेद पूरी तरह से बंद हो गया।

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आगे जो हुआ उससे देख बलवानसिंह स्तब्ध हो गया!! राजमाता ने पलट कर शक्तिसिंह के लंड को अपने मुँह में भर लिया और लगभग आधा लंड निगल लिया। फिर वह उस डंडे को चाटने लगी जो अभी-अभी उनकी गांड से बाहर निकला था!!

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राजमाता ने बड़े प्यार से अपनी जीभ को सुपाड़े से लेकर नीचे तक और फिर पीछे तक, तब तक चलाया जब तक कि वह फिर से ताव में न आ गया।

घृणित होने के बजाय उसे यह दृश्य अत्यंत उत्तेजक लगा। क्योंकि इस घृणित कार्य को करते समय भी राजमाता इतनी सुंदर और नियंत्रित दिख रही थी! और फिर राजमाता ने शक्तिसिंह के विशाल अंडकोश पर भी जीभ फेरना शुरू कर दिया और उन दोनों गेंदों को अपने मुंह में भर लिया। बलवानसिंह के लिए यह आश्चर्यचकित करने वाला द्रश्य था। और अगला द्रश्य देखकर तो बलवानसिंह के जैसे होश ही उड़ गए।

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राजमाता ने शक्तिसिंह को जमीन पर लिटा दिया। वह उसके ऊपर चढ़ गई और अपनी गांड उसके चेहरे पर रख दी। शक्तिसिंह ने बड़ी ही नम्रता से राजमाता के नितंबों को चाटना शुरू कर दिया और फिर उनकी गांड के छेद को उजागर करके उसे अपनी जीभ से वास्तव में चोदना शुरू कर दिया। राजमाता अब इस तरह घूम गई कि वह शक्तिसिंह के पैरों को देख सके और उस दौरान उन्हों ने एक क्षण के लिए भी शक्तिसिंह की जीभ को अपने गुदा से बाहर नहीं जाने दिया। अब राजमाता ने उसकी बालों वाली छाती पर पेशाब की बूंदें टपका दीं और अपनी दोनों हथेलियों से उस प्रवाही को शक्तिसिंह की छाती पर रगड़ने लगी।

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"गजब की स्त्री है यह राजमाता" बलवानसिंह सोच रहा था। तभी राजमाता ने झुककर शक्तिसिंह का लंड अपने मुंह में भर लिया और चूसने लगी। तब तक चूसती रही जब तक वह खड़ा नही हो गया। अब वह चुदने के लिए फिर से तैयार हो रही थी!!

राजमाता ने अपने चूतड़ शक्तिसिंह के मुंह से उठाए और उसके लंड पर सवार हो गई, उसकी गति उसकी वासना के साथ बढ़ती गई। इस दौरान शक्तिसिंह ने अपनी उँगलियाँ राजमाता की गांड में डालकर अंदर बाहर करना शुरू किया।

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शक्तिसिंह ने इशारे से बलवानसिंह को इस कार्रवाई में शामिल होकर राजमाता की खुली गांड में अपना लंड डालने के लिए आमंत्रित किया। इन दोनों को इस तरह चोदते देखकर बलवानसिंह का लंड कब से सख्त हुए खड़ा था।

बलवानसिंह खड़ा होकर राजमाता के पीछे पहुँच गया, अपने लंड पर थूका और बिना सोचे-समझे एक जोरदार धक्के में अपना लंड उनकी गांड में ठोक दिया। इतनी बेरहमी से अप्राकृतिक यौनाचार किए जाने पर राजमाता की अनैच्छिक चीख निकली जिसे शक्तिसिंह ने उनके मुंह पर अपना मुंह दबाकर तुरंत दबा दिया।

बलवानसिंह के लिए तो यह स्वर्ग था। गांड मारना उसे बेहद पसंद था। और इस अप्सरा की गांड सब से अनोखी थी। राजमाता की योनी में शक्तिसिंह का विशाल लंड घुसे होने के कारण राजमाता की गांड इतनी कसी हुई और चुस्त लग रही थी जैसे उन्होंने कभीअप्राकृतिक यौनाचार किया ही न हो।

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बलवानसिंह ने इस स्वर्गीय क्षण का पूरा आनंद लिया और अपने लंड को स्थिर और पूरी तरह से जड़े रखा। सचमुच उसके लंड को गांड के अंदर हिलाना मुश्किल हो रहा था पर साथ ही साथ उसके लंड में अविश्वसनीयअनुभूति भी हो रही थी। आज तक जीतने छेदों में उसने लंड घुसाया था उन सब में यह सब से ज्यादा तंग और कसा हुआ छेद था।।

इस दौरान बलवानसिंह ने राजमाता के जिस्म को शक्तिसिंह के ऊपर से उठाने की कोशिश भी की, लेकिन शक्तिसिंह का लंड उनकी चुत में ऐसा फंसा हुआ था की दोनों अलग होने का नाम ही नही ले रहे थे।

राजमाता की कसैली गांड में थोड़ी ही देर में बलवानसिंह के लंड ने अपना वीर्य उगल दिया। उसके लिए यह अब तक की श्रेष्ठ चुदाई थी। थका हुआ बलवानसिंह बिस्तर पर ढेर होकर अपनी साँसे पूर्ववत करने का प्रयत्न कर रहा था।

राजमाता अब शक्तिसिंह के लंड पर से उठ खड़ी हुई... और चलते चलते बलवानसिंह के बगल में लेट गई.. शक्तिसिंह भी लपक कर बिस्तर पर कूद पड़ा और राजमाता के पैर फैलाकर उनकी चुत में लंड घुसाते हुए धमाधम पेलने लगा। धक्कों की गति तीव्र हो गई और कुछ ही देर में वह चरमसीमा पर पहुँच गया... चुत के अंदर विपुल मात्रा में द्रव्य छोड़कर वह निढाल हो कर बिस्तर पर गिर गया।

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काफी देर तक तीनों बिस्तर पर लेटे हांफते रहे। कुछ देर बाद शक्तिसिंह उठ खड़ा हुआ और अपने वस्त्र पहनने लगा... बिस्तर के पास बलवानसिंह और राजमाता के वस्त्र यहाँ-वहाँ बिखरे पड़े थे...

"राजमाता," बलवानसिंह ने कहा, "क्या आप मेरी रानी बनेंगी?" वह निश्चित रूप से इस तथ्य का जिक्र कर रहे थे कि उनके दोनों राज्य भविष्य में एकजुटता से कार्य करने जा रहे थे।

राजमाता ने एक लंबी सांस लेते हुए बलवानसिंह के गले को अपनी बाहों में भरकर कहा, "दुर्भाग्य से यह संभव नहीं होगा। मैं एक शासक और जीतना मेरी आदत है और मैं इस तथ्य को बर्दाश्त करने में असमर्थ हूं कि आपने मेरे सैनिकों को बंधक बनाया। में आज एक ऐसे उदाहरण की रचना करने जा रही हूँ की जिसके बाद कोई भी मेरी सेना पर हमला करने की हिम्मत न कर सके। आपकी गुस्ताखी को उचित प्रतिशोध से उत्तर देने का समय आ चुका है।"

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यह कहते ही राजमाता चीते की तरह झपटी और बलवानसिंह की गर्दन पर सवार हो गई। तभी शक्तिसिंह ने बलवानसिंह के उतारे हुए वस्त्रों के बीच से उसकी कटार उठा ली... इससे पहले की बलवानसिंह कुछ बोल या समझ पाता... वह छलांग लगाकर बिस्तर के करीब आया... और राजमाता के बोझ तले दबे हुए बलवानसिंह की गर्दन पर कटार की धार फेर दी!!!

गरम रक्त का एक फव्वारा सा उड़ा और राजमाता का आधे से ज्यादा शरीर खून से सन गया... स्तब्ध होकर दोनों यह द्रश्य देखते ही रहे... बलवानसिंह की आँख फटी की फटी रह गई... और एक ही झटके में उसके प्राण निकल गए...

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"शक्ति, वो कटार मुझे दो... और तुम अभी के अभी हमारे सैनिक और उन दासियों के पास पहुँच जाओ" आंखे फाड़कर देख रहे शक्तिसिंह को राजमाता की आवाज ने झकझोर दिया...

बलवानसिंह की कटार राजमाता के हाथ में थमाकर उसने दीवार पर सुशोभन के लिए लगी तलवार निकाल ली और तुरंत शयनखंड के बाहर गया। बहार खड़े सैनिक को एक झटके में उड़ाकर वह दरबार के खंड तक भागता हुआ गया। दरबार के आगे वाले खंड में सूरजगढ़ के बंदी सैनिक और राजमाता की १०० दासियों बैठे हुए थे। शक्तिसिंह का इशारा मिलते ही सारी दासियों ने कपड़े उतारना शुरू कर दिए... हकीकत में वह सैनिक ही थे जो महिला के वस्त्र पहनकर, अंदर शस्त्र छुपाकर, घूँघट तानकर, राजमाता के साथ अंदर घुस आए थे।

सैनिकों ने अपने घाघरे उतारकर पैरों के साथ बंधी तलवारों को बहार निकाला... उन बंदी सैनिकों को एक एक शस्त्र थमा दिया गया.. अब कुल मिलाकर २०० सैनिकों का दल शक्तिसिंह के सामने तैयार खड़ा था और उसके निर्देश का इंतज़ार कर रहा था।

"आप लोग दो दलों में बँट जाओ... एक दल आगे के द्वार की ओर जाएगा और एक दल पीछे की ओर... हमारा प्रयत्न यह रहेगा की हम जल्द से जल्द द्वार को खोल सके ताकि हमारी सेना अंदर दाखिल हो सके... एक बार सेना अंदर घुस गई फिर हमे हावी होने में समय नही लगेगा... में और चन्दा तब तक किले के बुर्ज पर खड़े सिपाहीयों से निपटते है। याद रहे, यह हमारे लिए आखिरी मौका है... ऐसे शौर्य से लड़ो की शत्रु घुटने टेक दे... सूरजगढ़ की जय हो!!" विजयी घोष करते हुए सैनिक दो दिशाओं में दौड़ गए...

शक्तिसिंह और चन्दा तेजी से भागते हुए किले के बुर्ज पर चढ़ने की सीढ़ी से होते हुए ऊपर चढ़ गए... राह में जीतने भी सैनिक आए उसे बड़ी ही बहादुरी से दोनों मारते गए... करीब १५ सैनिकों को ऊपर पहुंचकर केवल आखिरी सैनिक की गर्दन पर तलवार रखते हुए शक्तिसिंह ने उसे लकड़ी का पूल गिराने को कहा... बेचारे सैनिक के पास और कोई विकल्प न था... रस्सी को खोलकर उसने लकड़ी का पुल गिरा दिया... उस सैनिक का काम खतम होते ही शक्तिसिंह ने उसे धक्का देकर किले की दीवार के उस पार फेंक दिया।

पुल का रास्ता खुल चुका था.. अब जरूरत थी किले के दरवाजे को खोलने की!! शक्तिसिंह और चन्दा अब नीचे उतार आए जहां सूरजगढ़ के सैनिक बलवानसिंह की सेना से वीरतापूर्वक लड़ रहे थे... स्थापना-दिवस का उत्सव मनाते सैनिक शराब के नशे में धुत होकर लड़ रहे थे इसलिए उनकी तरफ से अधिक प्रतिरोध नही हो रहा था। फिर भी उनका संखयाबल अधिक था इसलिए शक्तिसिंह अपनी मनमानी कर नही पा रहा था...

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भीषण युद्ध हुआ... सूरजगढ़ के सैनिक पूरे जोश से शौर्यगढ़ की सेना पर टूट पड़े थे... फिर भी उनके प्रयास सफल होते नजर नही आ रहे थे। शौर्यगढ़ के सनिकों की संख्या कम ही नही हो रही थी... परिश्रम के कारण अब शक्तिसिंह और उसके सैनिक काफी थक भी गए थे।

तभी... एक काले अश्व पर सवार होकर रणचंडी की तरह राजमाता महल से निकलकर उस युद्धस्थल पर पहुंची... उनके बाल खुले हुए थे और कपड़े रक्तरंजित थे... और उनके हाथ में था, बलवानसिंह का कटा हुआ सर.. !!!

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अपने राजा का कट हुआ सर देखकर, शौर्ययगढ़ के सैनिकों के हौसले पस्त हो गए... पूरी सेना में अफरातफरी मच गई और सब यहाँ वहाँ भागने लगे... यही मौका था!! शक्तिसिंह और उसके सैनिक उन पुर पूरे जोश से टूट पड़े... शौर्यगढ़ के सैनिक गाजर-मुली की तरह कटने लगे। अश्व पर बैठे अपनी तलवार से राजमाता ने भी कहर बरसा दिया...

उसी दौरान कुछ सैनिकों ने किले का मुख्य द्वार खोल दिया... द्वार खुलते ही सेनापति के नेतृत्व में सूरजगढ़ की सेना ने अंदर प्रवेश किया... अगले एक घंटे के अंदर, शौर्यगढ़ की आधे से ज्यादा सेना मर चुकी थी और बाकी आधी को बंदी बना लिया गया था।

यह सारी योजना राजमाता की ही थी। सैनिकों के दासियों के रूप में अंदर ले जाना... बलवानसिंह के साथ संभोग में अधिक से अधिक समय व्यतीत करना ताकि वह थक जाए और सामना करने की स्थिति में न रहे... और उस दौरान उत्सव में व्यस्त सैनिक भी शराब के नशे में चूर हो जाए ताकि उनका प्रतिरोध ना के बराबर हो!!

आखिरकार राजमाता ने शौर्यगढ़ को जीत लिया और अपना बदला भी ले लिया...
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विजयी होकर वापिस सूरजगढ़ पहुंची सेना और राजमाता का नगरवासियों बड़े हर्षोल्लास के साथ स्वागत किया..

अगले दो महीनों में शक्तिसिंह को शौर्यगढ़ का नया सूबेदार घोषित कर दिया गया... शक्तिसिंह अब सूरजगढ़ के ताबे में शौर्यगढ़ पर शासन करेगा... अपने सेनापति के रूप में शक्तिसिंह ने चन्दा को चुना था.. यह काबिल जोड़ा अब बड़ी ही बखूबी से शौर्यगढ़ का संचालन करने लगा।

पूर्व से लेकर पश्चिम तक सारे राज्य, कस्बे और रजवाड़े अब राजमाता के शासन तले थे.. जिस प्रकार की साम्राज्ञी बनने की उनकी ख्वाहिश थी.. वो अब पूरी हो गई थी.. विद्याधर के सिखाए राह पर चलकर और शक्तिसिंह के सहयोग से राजमाता ने यह असामान्य सिद्धि हाँसील कर ली थी।


समाप्त

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राजमाता ने कमरे में प्रवेश किया। पहले खंड से गुजरकर अंदर के विशाल शयनखंड में जा पहुंची।

बलवानसिंह बाहें फैलाए राजमाता के स्वागत के लिए तैयार खड़ा था... थोड़ी सी झिझक के साथ राजमाता उसके करीब जा पहुंची।

प्रथम थोड़ी क्षणों के लिए तो वह राजमाता के बेनमून हुस्न को निहारता ही रह गया... कोई इतना सुंदर कैसे हो सकता है!! वह मन ही मन सोच रहा था...

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अब उससे और रहा न गया

उसने धीरे से राजमाता को अपने बाहुपाश में घेर लिया और फिर अपने होंठ उनके होंठों से चिपका दिए। उस घृणास्पद कुरूप बलवानसिंह के चुंबन से राजमाता विचलित हो उठी और अपने आप को छुड़ाने के लिए संघर्ष करने लगी। लेकिन बलवानसिंह अब उन्हे छोड़ने वाला नही था। उसने राजमाता को अपनी बलिष्ठ भुजाओं से मजबूती से पकड़ लिया और अपना एक हाथ उनके सिर के पीछे ले जाकर उनका चेहरा स्थिर पकड़ रखा, और उसने फिर से अपने होंठ उसके होंठों पर दबा दिए। थोड़ी देर के लिए उसे प्रतिरोध महसूस हुआ और फिर राजमाता ने विरोध त्याग दिया।

चुंबन से मुक्त होकर बलवानसिंह धीरे से नीचे सरक गया. राजमाता के गालों को चूमा, फिर गर्दन को और फिर उनके चोली में ढके हुए स्तनों के ऊपरी हिस्से को चूमा। उसके एक हाथ ने उनकी गर्दन के पिछले हिस्से को मजबूती से पकड़ रखा था, जबकि दूसरा उनकी पीठ से होते हुए उनके विशाल गोलाकार नितंबों तक पहुँच गया, जिनमें से प्रत्येक को वह बारी बारी धीरे से दबाता जा रहा था। राजमाता के नितंब बेहद शानदार थे। उनके मांसल नितंबों को दबाते ही राजमाता सिहरने लगी। राजमाता के आगे के हिस्से के स्तनों की परिधि और पीछे के नितंबों का कद लगभग समान थे।

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राजमाता के स्तन बलवानसिंह की विशाल हथेली से भी बड़े थे। चोली की गांठ खोलकर जब उन दोनों महाकाय स्तनों को मुक्त किया गया तब उन पहाड़ जैसी चूचियों की सुंदरता देखकर बलवानसिंह का जबड़ा लटक गया। बेदाग गोरी त्वचा से बने माँस के वह विशाल गोले... और उनपर लगी लंबी गुलाबी निप्पल... उन्हे देखते ही बलवानसिंह का लंड उसकी धोती में ही कथकली करने लगा...

उन आकर्षक निप्पलों को अपनी उंगलियों से दबाते हुए बलवानसिंह धन्य हो गया... स्पर्श प्राप्त होते ही वह चूचक सख्त होकर तन गए। बलवानसिंह अपने होंठ उन निपल्स के पास ले गया और उन्हें अपनी जीभ से छेड़ने लगा, पहले एक और फिर दूसरे को। उसने अपने हाथों को राजमाता के सुडौल शरीर पर फिराया - कोमल और सुडौल, जिसमें ज़रा भी झुर्रियाँ नहीं थीं। उसने राजमाता के दोनों स्तनों को अपनी हथेलियों से मसलना शुरू कर दिया...

राजमाता अब बलवानसिंह की हरकतों का विरोध नहीं कर रही थी। धीरे धीरे वह उत्तेजना की धुंध में खोने लगी थी। उनके जीवन का यह पहला प्रसंग था जब उन्होंने किसी अनचाहे पुरुष को अपना जिस्म सौंपा हो... अपना उत्तेजित होना उन्हे भी समझ में नही आ रहा था... अब तक के सारे संभोग उन्होंने खुद संचालित किए थे... यह पहला मौका था जब वह संचालन नही कर रही थी बल्कि संचालित हो रही थी.. शायद यही उनका उत्तेजित होने का कारण भी था...

वह वास्तव में आहें भर रही थी और हांफ रही थी। बलवानसिंह के हाथ अब उसकी योनी को घाघरे के ऊपर से ही पकड़ रहा था और उसके ढंके हुए चुत के होंठों को रगड़ रहा था।

बलवानसिंह ने साहसपूर्वक अपना हाथ राजमाता की साड़ी और अंतःवस्त्र के बंधे हुए सिरे के नीचे सरकाया और उनके शानदार झांटों के बीच स्थित गीले योनि द्वार को अपनी उंगलियों से महसूस किया। धीरे से, उसने उभरे हुए अंदरूनी हिस्से में एक उंगली डाली तब राजमाता और भी अधिक हांफने लगी। उसने राजमाता के मुँह को अपने मुँह से मिला लिया और अपनी जीभ उनके मुख में अंदर तक डाल दी।

राजमाता ने सहजता से उसकी जीभ को चूसकर जवाब दिया और इससे बलवानसिंह इतना उत्तेजित हो गया कि उसने दो उंगलियां उसकी चिपचिपा शहद छोड़ रही योनी में डाल दीं और उन्हें अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया। सारी सज्जनता अब ख़त्म हो गई थी, अब वह बेशर्मी से राजमाता को अपनी उंगलियों से चोद रहा था और राजमाता भी उतनी ही बेशर्मी से खुद को उन क्रूर उंगलियों पर उछालकर जवाब दे रही थी।

फिर अचानक दबी हुई चीख से हाँफती हुई वह स्खलित हो गई। बलवानसिंह के साथ पहली बार उन्हे चरमसुख प्राप्त हुआ। उस स्खलन की तीव्रता से वह लगभग होश खो बैठी।

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लड़खड़ाती राजमाता को बलवानसिंह सहारा देते हुए बिस्तर तक ले गया। नरम आलीशान बिस्तर पर राजमाता को लिटाकर वह भी उनके बगल में लेट गया। तकिये पर आँख बंद कर लेटी हुई राजमाता के हसीन चेहरे पर वह जगह जगह चूमे जा रहा था। उनके चेहरे की निर्दोष त्वचा, अप्रतिम संरचना और बादाम के आकार की भूरी भूरी आँखें!! कितना भी देख लें, मन ही नही भरता था...

अपने स्खलन से धीरे धीरे होश में आ रही राजमाता को बलवानसिंह ने कामोन्माद की ऊंचाइयों से उतरने दिया। फिर वह धीरे-धीरे उन्हे निर्वस्त्र करने लगा।

उस लंपट लीचड़ राजा ने धीरे-धीरे अनावृत होने वाली हर चीज का आनंद लिया - चिकनी सफेद लहरदार त्वचा, मांसल गदराया जिस्म, लंबी गुलाबी निप्पलें, सुडौल परिपूर्ण विशाल स्तन, गहरी नाभि जो सपाट पेट पर उसकी उत्तेजित सांसों के साथ कामुकता से उठती और गिरती थी, लचकदार कमर जिसे वह पूरी तरह से देख सकता था उसे अपने हाथों से घेरा। फिर जैसे ही उसने राजमाता की साड़ी उतारी - उसे नजर आई वह योनी जिसे उसने संभोग सुख के लिए उंगलियों से छुआ था, मलाईदार जांघें जो झुके हुए घुटनों तक फैली हुई थीं और उसके नीचे सूडोल पैर और आकर्षक उँगलियाँ... वह राजमाता के नंगे शरीर को देखकर चकित रह गया, घूमफिर कर वही बात बार बार दिमाग में आती थी कि उसने राजमाता से अधिक सुंदर स्त्री अपने जीवन में कभी नही देखी थी।

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अब बलवानसिंह का मन वही करने को चाह रहा था जो राजमाता की उस गूँदाज चुत को देखनेवाले हर किसी का होगा... उसने कई कामी स्त्रियों से चुत-चटाई के पाठ पढे थे... और फिलहाल उसके सामने एक ऐसी योनि थी जो उन सब कलाकारियों की पूर्ण हकदार थी।

राजमाता ने बलवंतसिंह को उनकी चुत को घूरते हुए पकड़ लिया। वह मुस्कुराकर पलट गई ताकि वह उनके सुंदर नितंबों को पूरी तरह से देख सके। वे अद्भुत नितंब, जो पूर्णतः मांसल थे, गोरी त्वचा में लिपटे हुए वह माँस के गोले जिन्हे देखते ही बलवानसिंह को उन्हे अलग कर अपना लंड घुसाने की तीव्र इच्छा हुई।

अब राजमाता ने इशारे से उसे अपने कपड़े उतारने को कहा।

वह अपने कपड़े उतारने के लिए खड़ा हुआ और कुछ ही पल में सम्पूर्ण नग्न हो गया। काले आबनूस जैसा उसका शरीर बालों से भरा पड़ा था। देखने पर ऐसा लग रहा था जैसे कोई जंगली भालू हो!! लेकिन राजमाता को इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ा, वह उसके कठोर शरीर को घूर रही थी और उसके कद में छोटे पर कलाई जीतने मोटे लंड को तांक रही थी।

बलवानसिंह ने राजमाता की उन पेड़ के तनों जैसी तंदूरस्त जाँघों को अलग कर दिया और अपना चेहरा उनकी दिव्य योनी पर रख दिया। उसने अपनी जीभ से चुत के होठों को अलग किया और उनकी उत्तेजित योनी का रस चाटने लगा। उसने इस उत्तेजित खूबसूरत महिला की ताज़ी खुशबू को महसूस किया। फिर उसने अपनी जीभ बाहर निकाली और उनकी योनि के होंठों का स्वाद चखा। अपनी जांघों के बीच उसके काले सिर को देखकर एक पल के लिए राजमाता घृणा से भर गई - वह इधर-उधर फड़फड़ाने लगी और खुद को अलग करने की कोशिश करने लगी।

बलवानसिंह को इस साधारण प्रतिरोध से कोई फरक नही पड़ा। उसने राजमाता की योनि पर हमले की तीव्रता बढ़ा दी और उनकी अद्भुत जाँघों को मजबूती से पकड़ लिया। उसने राजमाता के भगोष्ठ को चाटा तब महसूस किया कि कामोत्तेजना के कारण अंगूर के जैसे फूला हुआ था और जाहिर तौर पर उसका हर छोटा हिस्सा संवेदनशील था क्योंकि वह कराह रही थी और छटपटा रही थी, और कुछ ही समय में, जैसे ही उसने अपनी जीभ को योनिमार्ग के अंदर घुसेड़कर गुदगुदाया, राजमाता एक और स्खलन से कांप उठी।

राजमाता की जाँघों के बीच की सुंदरता में बलवानसिंह पूर्णतः खो गया। कुछ महिलाओं के चेहरे तो बदसूरत होते हैं लेकिन योनि सुंदर होती है; अन्य आकर्षक महिलाओं की चुत बदसूरतनी होती है - जैसे अनियमित बदरंग चुत के होंठ वाली या फिर फड़फड़ाते मांसल होंठों के बीच गहरे खुले छेद वाली।


bes
राजमाता के पास सुंदर चेहरा और आकर्षक योनि दोनों थे। बलवानसिंह अपनी जीभ से उस सुंदर चुत को उत्तेजित किए जा रहा था। उसकी उंगलियाँ उनकी जाँघों पर और फिर उनके चमड़ी के छत्र के नीचे छिपे हुए भगोष्ठ पर घूम रही थीं, जिससे वह दाना अंकुरित होकर मोटा हो गया था। राजमाता फिर से नई चरमसीमा की ओर यात्रा कर रही थी। जब बलवानसिंह की खुरदरी जीभ उनके दाने से घिसती तब राजमाता के चेहरे पर उत्तेजक जज़्बातों की बाढ़ आ जाती थी और उनकी जाँघें आपस में भिड़कर लयबद्ध तरीके से बलवानसिंह के सिर को कुचल देती थीं।

एक बार फिर से स्खलित होकर जब राजमाता की जाँघों ने आख़िरकार उसके सिर को आज़ाद किया तब उन्होंने बलवानसिंह की ओर देखा.. उसका पूरा चेहरा ओर दाढ़ी, चुत के रस से भीगे हुए थे... राजा अपना मुंह ऊपर तक ले गया और योनिरस से लिप्त जीभ से वह राजमाता की जीभ को चाटने लगा ताकि राजमाता को भी अपनी चुत के रस का स्वाद मिले। उसका लंड सटकर उनकी चुत के होंठों के बीच अटक गया था और उनकी चिपचिपी नाली में घुसने के लीये फुदक रहा था।

बलवानसिंह का लंड ज्यादा लंबा नही था पर थोड़ा मोटा जरूर था... उसने एक ही झटके में राजमाता की रसदार चुत में लंड पेल दिया... दोनों के झाँट एक दूसरे के संग उलझ गए। और वह उन पर सवार हो गया और अपने लंड को उनकी चुत के अंदर मथनी की तरह मथते हुए घुमाने लगा , इस दौरान वह अपने मुंह ने उनकी जीभ को चाटने लगा और लार को चूसने लगा।

हथोड़े की तरह तेजी से राजमाता की चुत में ठोक रहा था... योनि की दीवारों के बीच उसके लंड को जो अनोखी अनुभूति हुई उससे वह गुर्राते हुए वीर्य स्खलित कर बैठा... राजमाता की योनी को इतने गरम तरल वीर्य से भर दिया कि वह वीर्य चुत से छलक कर उनके झाँट, जांघ और बिस्तर की चादर पर फैल गया।

rj3
पस्त होकर बलवानसिंह, राजमाता के दो स्तनों पर गिर पड़ा... अभी भी उसका लंड राजमाता की गुनगुनी चुत के अंदर ही था... यह विश्राम का दौर कुछ ही वक्त तक सीमित रहा...बलवानसिंह के लंड ने उनकी योनी में फिर से हरकत शुरू कर दी और कुछ ही समय में फिर से सख्त हो गया। उसने खुद को ऊपर उठाया और राजमाता के चेहरे को देखा और अपना मुंह उनके मुंह से चिपका लिया और अपने लंड से उसकी योनी पर हमला करते हुए अपनी जीभ से उनके मुंह को बेरहमी से चोदने लगा।

राजमाता ने धीरे से लेकिन दृढ़ता से उसे अपने से दूर धकेल दिया। अब वह उसकी सवारी करने जा रही थी, संभोग का नियंत्रण अपने हाथ में लेकर उसे चोदने जा रही थी, वह खुद को आनंदित करने के लिए प्रतिबद्ध होकर आगे बढ़ रही थी।

जैसे ही राजमाता उठी, बलवानसिंह उस नरम बिस्तर पर लेट गया। राजमाता ने उसके दोनों ओर अपने मुड़े हुए पैर रखकर उसके सख्त लंड को पकड़ लिया और धीरे से उसे अपनी चुत के होंठों पर रखकर अंदर ग्रहण कर लिया।

राजमाता उसके लंड पर सवार हो गयी. वह अपने उभारों को तब तक ऊपर उठाती जब तक बलवानसिंह के लंड का केवल सिरा ही उनकी योनी में रह जाए और फिर बेतहाशा नीचे उतरते हुए पूरे लंड को अपने अंदर समाहित कर लेती। उन्हों ने अपने स्तनों को नीचे किया और एक निप्पल को बलवानसिंह के मुँह में डाल दिया। इस दौरान वह अपने चूतड़ों को गोल गोल घुमाते हुए लंड के मजे अपनी योनि में लेने लगी।

4
राजमाता ने धीरे-धीरे गति और उत्तेजना के स्तर को बढ़ाया। बलवानसिंह एक के बाद एक दोनों निप्पलों को चूसे जा रहा था। अब वह भी नीचे से धक्के लगाते हुए राजमाता के धक्कों का सामना करने लगा। बलवानसिंह ने उनके पूर्ण नितंबों को पकड़ लिया और अपनी उंगलियों को उनके गांड के छिद्र की ओर बढ़ाना शुरू कर दिया।

तभी राजमाता ने अपने एक पैर में बंधी पायल को खोल दिया और जोर से जमीन पर फेंका... उस पायल की खनक सुनते ही शक्तिसिंह खंड का द्वार खोलकर अंदर आ गया। क्योंकी बलवानसिंह की नज़रे और ध्यान राजमाता के पुष्ट स्तनों को चूसने पर केंद्रित था इसलिए उसे शक्तिसिंह के अंदर आने की भनक नही लगी।

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राजमाता ने कमरे में प्रवेश किया। पहले खंड से गुजरकर अंदर के विशाल शयनखंड में जा पहुंची।

बलवानसिंह बाहें फैलाए राजमाता के स्वागत के लिए तैयार खड़ा था... थोड़ी सी झिझक के साथ राजमाता उसके करीब जा पहुंची।

प्रथम थोड़ी क्षणों के लिए तो वह राजमाता के बेनमून हुस्न को निहारता ही रह गया... कोई इतना सुंदर कैसे हो सकता है!! वह मन ही मन सोच रहा था...

005-1
अब उससे और रहा न गया

उसने धीरे से राजमाता को अपने बाहुपाश में घेर लिया और फिर अपने होंठ उनके होंठों से चिपका दिए। उस घृणास्पद कुरूप बलवानसिंह के चुंबन से राजमाता विचलित हो उठी और अपने आप को छुड़ाने के लिए संघर्ष करने लगी। लेकिन बलवानसिंह अब उन्हे छोड़ने वाला नही था। उसने राजमाता को अपनी बलिष्ठ भुजाओं से मजबूती से पकड़ लिया और अपना एक हाथ उनके सिर के पीछे ले जाकर उनका चेहरा स्थिर पकड़ रखा, और उसने फिर से अपने होंठ उसके होंठों पर दबा दिए। थोड़ी देर के लिए उसे प्रतिरोध महसूस हुआ और फिर राजमाता ने विरोध त्याग दिया।

चुंबन से मुक्त होकर बलवानसिंह धीरे से नीचे सरक गया. राजमाता के गालों को चूमा, फिर गर्दन को और फिर उनके चोली में ढके हुए स्तनों के ऊपरी हिस्से को चूमा। उसके एक हाथ ने उनकी गर्दन के पिछले हिस्से को मजबूती से पकड़ रखा था, जबकि दूसरा उनकी पीठ से होते हुए उनके विशाल गोलाकार नितंबों तक पहुँच गया, जिनमें से प्रत्येक को वह बारी बारी धीरे से दबाता जा रहा था। राजमाता के नितंब बेहद शानदार थे। उनके मांसल नितंबों को दबाते ही राजमाता सिहरने लगी। राजमाता के आगे के हिस्से के स्तनों की परिधि और पीछे के नितंबों का कद लगभग समान थे।

008
राजमाता के स्तन बलवानसिंह की विशाल हथेली से भी बड़े थे। चोली की गांठ खोलकर जब उन दोनों महाकाय स्तनों को मुक्त किया गया तब उन पहाड़ जैसी चूचियों की सुंदरता देखकर बलवानसिंह का जबड़ा लटक गया। बेदाग गोरी त्वचा से बने माँस के वह विशाल गोले... और उनपर लगी लंबी गुलाबी निप्पल... उन्हे देखते ही बलवानसिंह का लंड उसकी धोती में ही कथकली करने लगा...

उन आकर्षक निप्पलों को अपनी उंगलियों से दबाते हुए बलवानसिंह धन्य हो गया... स्पर्श प्राप्त होते ही वह चूचक सख्त होकर तन गए। बलवानसिंह अपने होंठ उन निपल्स के पास ले गया और उन्हें अपनी जीभ से छेड़ने लगा, पहले एक और फिर दूसरे को। उसने अपने हाथों को राजमाता के सुडौल शरीर पर फिराया - कोमल और सुडौल, जिसमें ज़रा भी झुर्रियाँ नहीं थीं। उसने राजमाता के दोनों स्तनों को अपनी हथेलियों से मसलना शुरू कर दिया...

राजमाता अब बलवानसिंह की हरकतों का विरोध नहीं कर रही थी। धीरे धीरे वह उत्तेजना की धुंध में खोने लगी थी। उनके जीवन का यह पहला प्रसंग था जब उन्होंने किसी अनचाहे पुरुष को अपना जिस्म सौंपा हो... अपना उत्तेजित होना उन्हे भी समझ में नही आ रहा था... अब तक के सारे संभोग उन्होंने खुद संचालित किए थे... यह पहला मौका था जब वह संचालन नही कर रही थी बल्कि संचालित हो रही थी.. शायद यही उनका उत्तेजित होने का कारण भी था...

वह वास्तव में आहें भर रही थी और हांफ रही थी। बलवानसिंह के हाथ अब उसकी योनी को घाघरे के ऊपर से ही पकड़ रहा था और उसके ढंके हुए चुत के होंठों को रगड़ रहा था।

बलवानसिंह ने साहसपूर्वक अपना हाथ राजमाता की साड़ी और अंतःवस्त्र के बंधे हुए सिरे के नीचे सरकाया और उनके शानदार झांटों के बीच स्थित गीले योनि द्वार को अपनी उंगलियों से महसूस किया। धीरे से, उसने उभरे हुए अंदरूनी हिस्से में एक उंगली डाली तब राजमाता और भी अधिक हांफने लगी। उसने राजमाता के मुँह को अपने मुँह से मिला लिया और अपनी जीभ उनके मुख में अंदर तक डाल दी।

राजमाता ने सहजता से उसकी जीभ को चूसकर जवाब दिया और इससे बलवानसिंह इतना उत्तेजित हो गया कि उसने दो उंगलियां उसकी चिपचिपा शहद छोड़ रही योनी में डाल दीं और उन्हें अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया। सारी सज्जनता अब ख़त्म हो गई थी, अब वह बेशर्मी से राजमाता को अपनी उंगलियों से चोद रहा था और राजमाता भी उतनी ही बेशर्मी से खुद को उन क्रूर उंगलियों पर उछालकर जवाब दे रही थी।

फिर अचानक दबी हुई चीख से हाँफती हुई वह स्खलित हो गई। बलवानसिंह के साथ पहली बार उन्हे चरमसुख प्राप्त हुआ। उस स्खलन की तीव्रता से वह लगभग होश खो बैठी।

019
लड़खड़ाती राजमाता को बलवानसिंह सहारा देते हुए बिस्तर तक ले गया। नरम आलीशान बिस्तर पर राजमाता को लिटाकर वह भी उनके बगल में लेट गया। तकिये पर आँख बंद कर लेटी हुई राजमाता के हसीन चेहरे पर वह जगह जगह चूमे जा रहा था। उनके चेहरे की निर्दोष त्वचा, अप्रतिम संरचना और बादाम के आकार की भूरी भूरी आँखें!! कितना भी देख लें, मन ही नही भरता था...

अपने स्खलन से धीरे धीरे होश में आ रही राजमाता को बलवानसिंह ने कामोन्माद की ऊंचाइयों से उतरने दिया। फिर वह धीरे-धीरे उन्हे निर्वस्त्र करने लगा।

उस लंपट लीचड़ राजा ने धीरे-धीरे अनावृत होने वाली हर चीज का आनंद लिया - चिकनी सफेद लहरदार त्वचा, मांसल गदराया जिस्म, लंबी गुलाबी निप्पलें, सुडौल परिपूर्ण विशाल स्तन, गहरी नाभि जो सपाट पेट पर उसकी उत्तेजित सांसों के साथ कामुकता से उठती और गिरती थी, लचकदार कमर जिसे वह पूरी तरह से देख सकता था उसे अपने हाथों से घेरा। फिर जैसे ही उसने राजमाता की साड़ी उतारी - उसे नजर आई वह योनी जिसे उसने संभोग सुख के लिए उंगलियों से छुआ था, मलाईदार जांघें जो झुके हुए घुटनों तक फैली हुई थीं और उसके नीचे सूडोल पैर और आकर्षक उँगलियाँ... वह राजमाता के नंगे शरीर को देखकर चकित रह गया, घूमफिर कर वही बात बार बार दिमाग में आती थी कि उसने राजमाता से अधिक सुंदर स्त्री अपने जीवन में कभी नही देखी थी।

007
अब बलवानसिंह का मन वही करने को चाह रहा था जो राजमाता की उस गूँदाज चुत को देखनेवाले हर किसी का होगा... उसने कई कामी स्त्रियों से चुत-चटाई के पाठ पढे थे... और फिलहाल उसके सामने एक ऐसी योनि थी जो उन सब कलाकारियों की पूर्ण हकदार थी।

राजमाता ने बलवंतसिंह को उनकी चुत को घूरते हुए पकड़ लिया। वह मुस्कुराकर पलट गई ताकि वह उनके सुंदर नितंबों को पूरी तरह से देख सके। वे अद्भुत नितंब, जो पूर्णतः मांसल थे, गोरी त्वचा में लिपटे हुए वह माँस के गोले जिन्हे देखते ही बलवानसिंह को उन्हे अलग कर अपना लंड घुसाने की तीव्र इच्छा हुई।

अब राजमाता ने इशारे से उसे अपने कपड़े उतारने को कहा।

वह अपने कपड़े उतारने के लिए खड़ा हुआ और कुछ ही पल में सम्पूर्ण नग्न हो गया। काले आबनूस जैसा उसका शरीर बालों से भरा पड़ा था। देखने पर ऐसा लग रहा था जैसे कोई जंगली भालू हो!! लेकिन राजमाता को इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ा, वह उसके कठोर शरीर को घूर रही थी और उसके कद में छोटे पर कलाई जीतने मोटे लंड को तांक रही थी।

बलवानसिंह ने राजमाता की उन पेड़ के तनों जैसी तंदूरस्त जाँघों को अलग कर दिया और अपना चेहरा उनकी दिव्य योनी पर रख दिया। उसने अपनी जीभ से चुत के होठों को अलग किया और उनकी उत्तेजित योनी का रस चाटने लगा। उसने इस उत्तेजित खूबसूरत महिला की ताज़ी खुशबू को महसूस किया। फिर उसने अपनी जीभ बाहर निकाली और उनकी योनि के होंठों का स्वाद चखा। अपनी जांघों के बीच उसके काले सिर को देखकर एक पल के लिए राजमाता घृणा से भर गई - वह इधर-उधर फड़फड़ाने लगी और खुद को अलग करने की कोशिश करने लगी।

बलवानसिंह को इस साधारण प्रतिरोध से कोई फरक नही पड़ा। उसने राजमाता की योनि पर हमले की तीव्रता बढ़ा दी और उनकी अद्भुत जाँघों को मजबूती से पकड़ लिया। उसने राजमाता के भगोष्ठ को चाटा तब महसूस किया कि कामोत्तेजना के कारण अंगूर के जैसे फूला हुआ था और जाहिर तौर पर उसका हर छोटा हिस्सा संवेदनशील था क्योंकि वह कराह रही थी और छटपटा रही थी, और कुछ ही समय में, जैसे ही उसने अपनी जीभ को योनिमार्ग के अंदर घुसेड़कर गुदगुदाया, राजमाता एक और स्खलन से कांप उठी।

राजमाता की जाँघों के बीच की सुंदरता में बलवानसिंह पूर्णतः खो गया। कुछ महिलाओं के चेहरे तो बदसूरत होते हैं लेकिन योनि सुंदर होती है; अन्य आकर्षक महिलाओं की चुत बदसूरतनी होती है - जैसे अनियमित बदरंग चुत के होंठ वाली या फिर फड़फड़ाते मांसल होंठों के बीच गहरे खुले छेद वाली।


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राजमाता के पास सुंदर चेहरा और आकर्षक योनि दोनों थे। बलवानसिंह अपनी जीभ से उस सुंदर चुत को उत्तेजित किए जा रहा था। उसकी उंगलियाँ उनकी जाँघों पर और फिर उनके चमड़ी के छत्र के नीचे छिपे हुए भगोष्ठ पर घूम रही थीं, जिससे वह दाना अंकुरित होकर मोटा हो गया था। राजमाता फिर से नई चरमसीमा की ओर यात्रा कर रही थी। जब बलवानसिंह की खुरदरी जीभ उनके दाने से घिसती तब राजमाता के चेहरे पर उत्तेजक जज़्बातों की बाढ़ आ जाती थी और उनकी जाँघें आपस में भिड़कर लयबद्ध तरीके से बलवानसिंह के सिर को कुचल देती थीं।

एक बार फिर से स्खलित होकर जब राजमाता की जाँघों ने आख़िरकार उसके सिर को आज़ाद किया तब उन्होंने बलवानसिंह की ओर देखा.. उसका पूरा चेहरा ओर दाढ़ी, चुत के रस से भीगे हुए थे... राजा अपना मुंह ऊपर तक ले गया और योनिरस से लिप्त जीभ से वह राजमाता की जीभ को चाटने लगा ताकि राजमाता को भी अपनी चुत के रस का स्वाद मिले। उसका लंड सटकर उनकी चुत के होंठों के बीच अटक गया था और उनकी चिपचिपी नाली में घुसने के लीये फुदक रहा था।

बलवानसिंह का लंड ज्यादा लंबा नही था पर थोड़ा मोटा जरूर था... उसने एक ही झटके में राजमाता की रसदार चुत में लंड पेल दिया... दोनों के झाँट एक दूसरे के संग उलझ गए। और वह उन पर सवार हो गया और अपने लंड को उनकी चुत के अंदर मथनी की तरह मथते हुए घुमाने लगा , इस दौरान वह अपने मुंह ने उनकी जीभ को चाटने लगा और लार को चूसने लगा।

हथोड़े की तरह तेजी से राजमाता की चुत में ठोक रहा था... योनि की दीवारों के बीच उसके लंड को जो अनोखी अनुभूति हुई उससे वह गुर्राते हुए वीर्य स्खलित कर बैठा... राजमाता की योनी को इतने गरम तरल वीर्य से भर दिया कि वह वीर्य चुत से छलक कर उनके झाँट, जांघ और बिस्तर की चादर पर फैल गया।

rj3
पस्त होकर बलवानसिंह, राजमाता के दो स्तनों पर गिर पड़ा... अभी भी उसका लंड राजमाता की गुनगुनी चुत के अंदर ही था... यह विश्राम का दौर कुछ ही वक्त तक सीमित रहा...बलवानसिंह के लंड ने उनकी योनी में फिर से हरकत शुरू कर दी और कुछ ही समय में फिर से सख्त हो गया। उसने खुद को ऊपर उठाया और राजमाता के चेहरे को देखा और अपना मुंह उनके मुंह से चिपका लिया और अपने लंड से उसकी योनी पर हमला करते हुए अपनी जीभ से उनके मुंह को बेरहमी से चोदने लगा।

राजमाता ने धीरे से लेकिन दृढ़ता से उसे अपने से दूर धकेल दिया। अब वह उसकी सवारी करने जा रही थी, संभोग का नियंत्रण अपने हाथ में लेकर उसे चोदने जा रही थी, वह खुद को आनंदित करने के लिए प्रतिबद्ध होकर आगे बढ़ रही थी।

जैसे ही राजमाता उठी, बलवानसिंह उस नरम बिस्तर पर लेट गया। राजमाता ने उसके दोनों ओर अपने मुड़े हुए पैर रखकर उसके सख्त लंड को पकड़ लिया और धीरे से उसे अपनी चुत के होंठों पर रखकर अंदर ग्रहण कर लिया।

राजमाता उसके लंड पर सवार हो गयी. वह अपने उभारों को तब तक ऊपर उठाती जब तक बलवानसिंह के लंड का केवल सिरा ही उनकी योनी में रह जाए और फिर बेतहाशा नीचे उतरते हुए पूरे लंड को अपने अंदर समाहित कर लेती। उन्हों ने अपने स्तनों को नीचे किया और एक निप्पल को बलवानसिंह के मुँह में डाल दिया। इस दौरान वह अपने चूतड़ों को गोल गोल घुमाते हुए लंड के मजे अपनी योनि में लेने लगी।

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राजमाता ने धीरे-धीरे गति और उत्तेजना के स्तर को बढ़ाया। बलवानसिंह एक के बाद एक दोनों निप्पलों को चूसे जा रहा था। अब वह भी नीचे से धक्के लगाते हुए राजमाता के धक्कों का सामना करने लगा। बलवानसिंह ने उनके पूर्ण नितंबों को पकड़ लिया और अपनी उंगलियों को उनके गांड के छिद्र की ओर बढ़ाना शुरू कर दिया।

तभी राजमाता ने अपने एक पैर में बंधी पायल को खोल दिया और जोर से जमीन पर फेंका... उस पायल की खनक सुनते ही शक्तिसिंह खंड का द्वार खोलकर अंदर आ गया। क्योंकी बलवानसिंह की नज़रे और ध्यान राजमाता के पुष्ट स्तनों को चूसने पर केंद्रित था इसलिए उसे शक्तिसिंह के अंदर आने की भनक नही लगी।
बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
राजमाता और बलवान सिंह के बीच चुदाई का वर्णन बहुत ही जबरदस्त हैं
राजमाता ने चुदाई का नियंत्रण अपने हाथ में लेकर वो बलवान सिंह की सवारी करने लगी फिर उसने अपना दाॅंव चल कर अपनी एक पायल फेक कर शक्ती सिंह को अंदर आने का इशारा दिया और शक्ती सिंह भी शयनकक्ष में दाखिल हो गया वो भी बलवान सिंह को पता लगे बीना तो देखते हैं आगे क्या होता है
 

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तभी राजमाता ने अपने एक पैर में बंधी पायल को खोल दिया और जोर से जमीन पर फेंका... उस पायल की खनक सुनते ही शक्तिसिंह खंड का द्वार खोलकर अंदर आ गया। क्योंकी बलवानसिंह की नज़रे और ध्यान राजमाता के पुष्ट स्तनों को चूसने पर केंद्रित था इसलिए उसे शक्तिसिंह के अंदर आने की भनक नही लगी।

शक्तिसिंह उन दोनों के करीब पहुँच तब तक उसने अपने वस्त्र उतार दिए थे।

बलवानसिंह की नजर अब शक्तिसिंह के ऊपर गई। उस नग्न विकराल पुरुष को इस समय कक्ष में देखकर एक पल के लिए वह चोंक गया। लेकिन उसकी मौजूदगी पर राजमाता ने कोई आपत्ति न जताई इसलिए वह भी कुछ नही बोला.. उसे इतना तो पता चला की वह राजमाता की आज्ञा से ही अंदर आया था। चूंकि अब संभोग का संचालन राजमाता के पास था इसलिए बलवानसिंह ने बिना कुछ कहे ही धक्के लगाना जारी रखा।

शक्तिसिंह अपना तना हुआ लिंग हाथ में पकड़कर राजमाता के निर्देश का इंतज़ार कर रहा था।

बलवानसिंह को अपना लंड बहुत बड़ा लगता था पर शक्तिसिंह के लंड के आगे उसका लंड एक छोटी सी पुंगी के बराबर ही था।

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बलवानसिंह और राजमाता के बीच चले रहे इस आनंदमय सहवास को देखकर शक्तिसिंह भी काफी उत्तेजित हो गया था। बलवानसिंह के लंड पर राजमाता के नंगे गुलाबी नितंबों का ऊपर-नीचे होते देखा वह अपने लंड की त्वचा को आगे पीछे करते हुए हिलाने लगा।

लंड हिलाते शक्तिसिंह की आँखों में देखकर राजमाता ने इशारा किया। राजमाता की ओर से हरी झंडी मिलते ही शक्तिसिंह ने अपने मुंह से काफी मात्रा में लार निकाली और अपने लंड पर उस गर्म तरल पदार्थ को फैलाते हुए उसकी पूरी लंबाई पर मालिश की। बिस्तर पर लेटे बलवानसिंह के ऊपर राजमाता सवार थी। शक्तिसिंह अब राजमाता के पिछवाड़े की ओर पहुंचा। उसने राजमाता के नितम्बों को चौड़ा किया, गुलाबी सिकुड़ी हुई गांड पर लार लगाई और पहले एक और फिर दोनों उंगलियाँ उनकी गांड के छेद में डाल दी।

जब वह अपनी उंगलियों को राजमाता की गांड के अंदर और बाहर घुमा रहा था तब राजमाता सिहर कर बलवानसिंह के लंड पर ओर तेजी से कूदने लगी। शक्तिसिंह ने राजमाता के कंधों को पकड़कर उनकी गति को नियंत्रित कर उन्हे स्थिर किया ताकि उसे अपना लंड उनके छेद में डालने की सहूलियत हो। राजमाता की चुत में घुसे बलवानसिंह के लँड के कारण उनकी गांड में लंड घुसा पाना थोड़ा सा कठिन था।

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शक्तिसिंह ने दोनों हाथों से राजमाता की कमर पकड़ी और अपना लिंग छेद के अंदर धकेल दिया। एक ही झटके में उसका सुपाड़ा गाँड़ के छिद्र के अंदर गुज़र गया और राजमाता अचानक दर्द से कराह उठी। "शांत रहिए, राजमाता," शक्तिसिंह बड़बड़ाया और अपने लंड को धीरे धीरे और अंदर डालने लगा।

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धीरे-धीरे शक्तिसिंह ने दबाव बनाए रखा और उसका लिंग राजमाता की गांड में गायब होने लगा। राजमाता ने बलवानसिंह की सवारी बंद कर दी थी और अब दो लंड एक साथ लेकर उनका चेहरा पीला पड़ गया था और वह ठंडे पसीने से लथपथ हो गई थी।

लेकिन उन्होंने शक्तिसिंह को रुकने के लिए नही कहा। वह झुकी हुई पड़ी रही और तब तक स्थिर रही जब तक शक्तिसिंह का पूरा लंड उनकी गांड के अंदर नही घुस गया। शक्तिसिंह ने स्वीकृति भरी घुरघुराहट के साथ अपने लंड को उसके सिरे तक बाहर खींचा और तेजी से गति बढ़ाते हुए उसे वापस अंदर घुसा दिया।

dp0
राजमाता और शक्तिसिंह के बीच जो चल रहा था उसके सदमे के कारण बलवानसिंह के लंड ने अपनी सख्ती खो दी थी। एक कारण यह भी था की आज तक उसने कभी भी अपनी चुदाई के साथी को किसी अन्य पुरुष के साथ साझा नहीं किया था। उसका लंड मुरझा गया लेकिन पूरी तरह से नहीं और वह अभी भी राजमाता की योनी में घुसा हुआ था। मजे की बात यह थी कि राजमाता का यह दोहरा उत्पात इतने करीब से देख कर वह फिर से उत्तेजित होने लगा। अपने लंड को फिर से सख्त होता महसूस किया।

अब राजमाता फिर से बलवानसिंह के ऊपर सवारी करने लगी; अपनी गांड में हो रहे दर्द के अनुभव से वह उभर चुकी थी। अब जब शक्तिसिंह अपने लंड को उनकी गांड से बाहर खींचता तब वह अपनी योनि को बलवानसिंह के लंड पर नीचे कर देती और जैसे ही वह अपने चूतड़ ऊपर उठाती, शक्तिसिंह अपना लंड पेल देता। इस तरह दोनों लंड के तालमेल से वह तालबद्ध तरीके से चुद रही थी।

dp1
तीनों ने बड़ी ही बखूबी से एक लय सी बना ली थी। बलवानसिंह अब तेजी से ऊपर की ओर जोर लगा रहा था। थोड़ी ही देर में, एक कर्कश चीख के साथ वह स्खलित हो गया और उसने राजमाता की योनिगुफा को गरम वीर्य से भर दिया। फिलहाल उसका कार्य समाप्त हो गया।

शक्तिसिंह ने राजमाता की गांड मारना जारी रखा। उसने राजमाता के शरीर को बलवानसिंह के ऊपर से उठा लिया और खड़ा हो गया। फिर उनको जाँघों से पकड़कर अपने लंड पर घुमाने लगा। उसका लंड अभी भी राजमाता की गांड में गड़ा हुआ था।

राजमाता पीछे की ओर मुड़ी और अपनी बाँहें उसकी गर्दन के चारों ओर लपेट दीं। शक्तिसिंह ने उन्हे नितंबों से उचक रखा था। बलवानसिंह देख सकता था कि शक्तिसिंह का मूसल लंड हिंसक रूप से राजमाता की गांड के अंदर बाहर हो रहा था।

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राजमाता पसीने से नहा रही थी और बुरी तरह कराह भी रही थी क्योंकि शक्तिसिंह उसे एक गुड़िया की तरह अपने लंड पर के ऊपर उछाल रहा था। अब उसने अपना लंड उनकी गांड के छेद से निकाले बिना ही उन्हे ज़मीन पर उतार दिया। राजमाता अब फर्श पर चारों पैरों हो गई और शक्तिसिंह ने पीछे से वार करना शुरू कर दिया।

शक्तिसिंह ने अपने विशाल हाथ राजमाता की योनि पर रखे और उसकी उंगलियाँ उनके भगोष्ठ से से खेलने लगी। आख़िरकार, वह स्खलित होने की कगार पर पहुँच गया और एक ज़ोर की चीख के साथ राजमाता की गांड में झड़ गया।


काफी देर तक दोनों वैसे ही पड़े रहे. राजमाता अपने हाथों और घुटनों पर, हांफते हुए, और उनके पीछे शक्तिसिंह। उसका लंड धीरे-धीरे आकार में छोटा होता जा रहा था और उसकी फैली हुई गांड में धीरे-धीरे सिकुड़ रहा था। अंत में पक्क की आवाज के साथ उसका लंड उनके छेद से बाहर निकल गया और फिर राजमाता का छेद पूरी तरह से बंद हो गया।

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आगे जो हुआ उससे देख बलवानसिंह स्तब्ध हो गया!! राजमाता ने पलट कर शक्तिसिंह के लंड को अपने मुँह में भर लिया और लगभग आधा लंड निगल लिया। फिर वह उस डंडे को चाटने लगी जो अभी-अभी उनकी गांड से बाहर निकला था!!

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राजमाता ने बड़े प्यार से अपनी जीभ को सुपाड़े से लेकर नीचे तक और फिर पीछे तक, तब तक चलाया जब तक कि वह फिर से ताव में न आ गया।

घृणित होने के बजाय उसे यह दृश्य अत्यंत उत्तेजक लगा। क्योंकि इस घृणित कार्य को करते समय भी राजमाता इतनी सुंदर और नियंत्रित दिख रही थी! और फिर राजमाता ने शक्तिसिंह के विशाल अंडकोश पर भी जीभ फेरना शुरू कर दिया और उन दोनों गेंदों को अपने मुंह में भर लिया। बलवानसिंह के लिए यह आश्चर्यचकित करने वाला द्रश्य था। और अगला द्रश्य देखकर तो बलवानसिंह के जैसे होश ही उड़ गए।

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राजमाता ने शक्तिसिंह को जमीन पर लिटा दिया। वह उसके ऊपर चढ़ गई और अपनी गांड उसके चेहरे पर रख दी। शक्तिसिंह ने बड़ी ही नम्रता से राजमाता के नितंबों को चाटना शुरू कर दिया और फिर उनकी गांड के छेद को उजागर करके उसे अपनी जीभ से वास्तव में चोदना शुरू कर दिया। राजमाता अब इस तरह घूम गई कि वह शक्तिसिंह के पैरों को देख सके और उस दौरान उन्हों ने एक क्षण के लिए भी शक्तिसिंह की जीभ को अपने गुदा से बाहर नहीं जाने दिया। अब राजमाता ने उसकी बालों वाली छाती पर पेशाब की बूंदें टपका दीं और अपनी दोनों हथेलियों से उस प्रवाही को शक्तिसिंह की छाती पर रगड़ने लगी।

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"गजब की स्त्री है यह राजमाता" बलवानसिंह सोच रहा था। तभी राजमाता ने झुककर शक्तिसिंह का लंड अपने मुंह में भर लिया और चूसने लगी। तब तक चूसती रही जब तक वह खड़ा नही हो गया। अब वह चुदने के लिए फिर से तैयार हो रही थी!!

राजमाता ने अपने चूतड़ शक्तिसिंह के मुंह से उठाए और उसके लंड पर सवार हो गई, उसकी गति उसकी वासना के साथ बढ़ती गई। इस दौरान शक्तिसिंह ने अपनी उँगलियाँ राजमाता की गांड में डालकर अंदर बाहर करना शुरू किया।

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शक्तिसिंह ने इशारे से बलवानसिंह को इस कार्रवाई में शामिल होकर राजमाता की खुली गांड में अपना लंड डालने के लिए आमंत्रित किया। इन दोनों को इस तरह चोदते देखकर बलवानसिंह का लंड कब से सख्त हुए खड़ा था।

बलवानसिंह खड़ा होकर राजमाता के पीछे पहुँच गया, अपने लंड पर थूका और बिना सोचे-समझे एक जोरदार धक्के में अपना लंड उनकी गांड में ठोक दिया। इतनी बेरहमी से अप्राकृतिक यौनाचार किए जाने पर राजमाता की अनैच्छिक चीख निकली जिसे शक्तिसिंह ने उनके मुंह पर अपना मुंह दबाकर तुरंत दबा दिया।

बलवानसिंह के लिए तो यह स्वर्ग था। गांड मारना उसे बेहद पसंद था। और इस अप्सरा की गांड सब से अनोखी थी। राजमाता की योनी में शक्तिसिंह का विशाल लंड घुसे होने के कारण राजमाता की गांड इतनी कसी हुई और चुस्त लग रही थी जैसे उन्होंने कभीअप्राकृतिक यौनाचार किया ही न हो।

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बलवानसिंह ने इस स्वर्गीय क्षण का पूरा आनंद लिया और अपने लंड को स्थिर और पूरी तरह से जड़े रखा। सचमुच उसके लंड को गांड के अंदर हिलाना मुश्किल हो रहा था पर साथ ही साथ उसके लंड में अविश्वसनीयअनुभूति भी हो रही थी। आज तक जीतने छेदों में उसने लंड घुसाया था उन सब में यह सब से ज्यादा तंग और कसा हुआ छेद था।।

इस दौरान बलवानसिंह ने राजमाता के जिस्म को शक्तिसिंह के ऊपर से उठाने की कोशिश भी की, लेकिन शक्तिसिंह का लंड उनकी चुत में ऐसा फंसा हुआ था की दोनों अलग होने का नाम ही नही ले रहे थे।

राजमाता की कसैली गांड में थोड़ी ही देर में बलवानसिंह के लंड ने अपना वीर्य उगल दिया। उसके लिए यह अब तक की श्रेष्ठ चुदाई थी। थका हुआ बलवानसिंह बिस्तर पर ढेर होकर अपनी साँसे पूर्ववत करने का प्रयत्न कर रहा था।

राजमाता अब शक्तिसिंह के लंड पर से उठ खड़ी हुई... और चलते चलते बलवानसिंह के बगल में लेट गई.. शक्तिसिंह भी लपक कर बिस्तर पर कूद पड़ा और राजमाता के पैर फैलाकर उनकी चुत में लंड घुसाते हुए धमाधम पेलने लगा। धक्कों की गति तीव्र हो गई और कुछ ही देर में वह चरमसीमा पर पहुँच गया... चुत के अंदर विपुल मात्रा में द्रव्य छोड़कर वह निढाल हो कर बिस्तर पर गिर गया।

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काफी देर तक तीनों बिस्तर पर लेटे हांफते रहे। कुछ देर बाद शक्तिसिंह उठ खड़ा हुआ और अपने वस्त्र पहनने लगा... बिस्तर के पास बलवानसिंह और राजमाता के वस्त्र यहाँ-वहाँ बिखरे पड़े थे...

"राजमाता," बलवानसिंह ने कहा, "क्या आप मेरी रानी बनेंगी?" वह निश्चित रूप से इस तथ्य का जिक्र कर रहे थे कि उनके दोनों राज्य भविष्य में एकजुटता से कार्य करने जा रहे थे।

राजमाता ने एक लंबी सांस लेते हुए बलवानसिंह के गले को अपनी बाहों में भरकर कहा, "दुर्भाग्य से यह संभव नहीं होगा। मैं एक शासक और जीतना मेरी आदत है और मैं इस तथ्य को बर्दाश्त करने में असमर्थ हूं कि आपने मेरे सैनिकों को बंधक बनाया। में आज एक ऐसे उदाहरण की रचना करने जा रही हूँ की जिसके बाद कोई भी मेरी सेना पर हमला करने की हिम्मत न कर सके। आपकी गुस्ताखी को उचित प्रतिशोध से उत्तर देने का समय आ चुका है।"

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यह कहते ही राजमाता चीते की तरह झपटी और बलवानसिंह की गर्दन पर सवार हो गई। तभी शक्तिसिंह ने बलवानसिंह के उतारे हुए वस्त्रों के बीच से उसकी कटार उठा ली... इससे पहले की बलवानसिंह कुछ बोल या समझ पाता... वह छलांग लगाकर बिस्तर के करीब आया... और राजमाता के बोझ तले दबे हुए बलवानसिंह की गर्दन पर कटार की धार फेर दी!!!

गरम रक्त का एक फव्वारा सा उड़ा और राजमाता का आधे से ज्यादा शरीर खून से सन गया... स्तब्ध होकर दोनों यह द्रश्य देखते ही रहे... बलवानसिंह की आँख फटी की फटी रह गई... और एक ही झटके में उसके प्राण निकल गए...

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"शक्ति, वो कटार मुझे दो... और तुम अभी के अभी हमारे सैनिक और उन दासियों के पास पहुँच जाओ" आंखे फाड़कर देख रहे शक्तिसिंह को राजमाता की आवाज ने झकझोर दिया...

बलवानसिंह की कटार राजमाता के हाथ में थमाकर उसने दीवार पर सुशोभन के लिए लगी तलवार निकाल ली और तुरंत शयनखंड के बाहर गया। बहार खड़े सैनिक को एक झटके में उड़ाकर वह दरबार के खंड तक भागता हुआ गया। दरबार के आगे वाले खंड में सूरजगढ़ के बंदी सैनिक और राजमाता की १०० दासियों बैठे हुए थे। शक्तिसिंह का इशारा मिलते ही सारी दासियों ने कपड़े उतारना शुरू कर दिए... हकीकत में वह सैनिक ही थे जो महिला के वस्त्र पहनकर, अंदर शस्त्र छुपाकर, घूँघट तानकर, राजमाता के साथ अंदर घुस आए थे।

सैनिकों ने अपने घाघरे उतारकर पैरों के साथ बंधी तलवारों को बहार निकाला... उन बंदी सैनिकों को एक एक शस्त्र थमा दिया गया.. अब कुल मिलाकर २०० सैनिकों का दल शक्तिसिंह के सामने तैयार खड़ा था और उसके निर्देश का इंतज़ार कर रहा था।

"आप लोग दो दलों में बँट जाओ... एक दल आगे के द्वार की ओर जाएगा और एक दल पीछे की ओर... हमारा प्रयत्न यह रहेगा की हम जल्द से जल्द द्वार को खोल सके ताकि हमारी सेना अंदर दाखिल हो सके... एक बार सेना अंदर घुस गई फिर हमे हावी होने में समय नही लगेगा... में और चन्दा तब तक किले के बुर्ज पर खड़े सिपाहीयों से निपटते है। याद रहे, यह हमारे लिए आखिरी मौका है... ऐसे शौर्य से लड़ो की शत्रु घुटने टेक दे... सूरजगढ़ की जय हो!!" विजयी घोष करते हुए सैनिक दो दिशाओं में दौड़ गए...

शक्तिसिंह और चन्दा तेजी से भागते हुए किले के बुर्ज पर चढ़ने की सीढ़ी से होते हुए ऊपर चढ़ गए... राह में जीतने भी सैनिक आए उसे बड़ी ही बहादुरी से दोनों मारते गए... करीब १५ सैनिकों को ऊपर पहुंचकर केवल आखिरी सैनिक की गर्दन पर तलवार रखते हुए शक्तिसिंह ने उसे लकड़ी का पूल गिराने को कहा... बेचारे सैनिक के पास और कोई विकल्प न था... रस्सी को खोलकर उसने लकड़ी का पुल गिरा दिया... उस सैनिक का काम खतम होते ही शक्तिसिंह ने उसे धक्का देकर किले की दीवार के उस पार फेंक दिया।

पुल का रास्ता खुल चुका था.. अब जरूरत थी किले के दरवाजे को खोलने की!! शक्तिसिंह और चन्दा अब नीचे उतार आए जहां सूरजगढ़ के सैनिक बलवानसिंह की सेना से वीरतापूर्वक लड़ रहे थे... स्थापना-दिवस का उत्सव मनाते सैनिक शराब के नशे में धुत होकर लड़ रहे थे इसलिए उनकी तरफ से अधिक प्रतिरोध नही हो रहा था। फिर भी उनका संखयाबल अधिक था इसलिए शक्तिसिंह अपनी मनमानी कर नही पा रहा था...

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भीषण युद्ध हुआ... सूरजगढ़ के सैनिक पूरे जोश से शौर्यगढ़ की सेना पर टूट पड़े थे... फिर भी उनके प्रयास सफल होते नजर नही आ रहे थे। शौर्यगढ़ के सनिकों की संख्या कम ही नही हो रही थी... परिश्रम के कारण अब शक्तिसिंह और उसके सैनिक काफी थक भी गए थे।

तभी... एक काले अश्व पर सवार होकर रणचंडी की तरह राजमाता महल से निकलकर उस युद्धस्थल पर पहुंची... उनके बाल खुले हुए थे और कपड़े रक्तरंजित थे... और उनके हाथ में था, बलवानसिंह का कटा हुआ सर.. !!!

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अपने राजा का कट हुआ सर देखकर, शौर्ययगढ़ के सैनिकों के हौसले पस्त हो गए... पूरी सेना में अफरातफरी मच गई और सब यहाँ वहाँ भागने लगे... यही मौका था!! शक्तिसिंह और उसके सैनिक उन पुर पूरे जोश से टूट पड़े... शौर्यगढ़ के सैनिक गाजर-मुली की तरह कटने लगे। अश्व पर बैठे अपनी तलवार से राजमाता ने भी कहर बरसा दिया...

उसी दौरान कुछ सैनिकों ने किले का मुख्य द्वार खोल दिया... द्वार खुलते ही सेनापति के नेतृत्व में सूरजगढ़ की सेना ने अंदर प्रवेश किया... अगले एक घंटे के अंदर, शौर्यगढ़ की आधे से ज्यादा सेना मर चुकी थी और बाकी आधी को बंदी बना लिया गया था।

यह सारी योजना राजमाता की ही थी। सैनिकों के दासियों के रूप में अंदर ले जाना... बलवानसिंह के साथ संभोग में अधिक से अधिक समय व्यतीत करना ताकि वह थक जाए और सामना करने की स्थिति में न रहे... और उस दौरान उत्सव में व्यस्त सैनिक भी शराब के नशे में चूर हो जाए ताकि उनका प्रतिरोध ना के बराबर हो!!

आखिरकार राजमाता ने शौर्यगढ़ को जीत लिया और अपना बदला भी ले लिया...
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विजयी होकर वापिस सूरजगढ़ पहुंची सेना और राजमाता का नगरवासियों बड़े हर्षोल्लास के साथ स्वागत किया..

अगले दो महीनों में शक्तिसिंह को शौर्यगढ़ का नया सूबेदार घोषित कर दिया गया... शक्तिसिंह अब सूरजगढ़ के ताबे में शौर्यगढ़ पर शासन करेगा... अपने सेनापति के रूप में शक्तिसिंह ने चन्दा को चुना था.. यह काबिल जोड़ा अब बड़ी ही बखूबी से शौर्यगढ़ का संचालन करने लगा।

पूर्व से लेकर पश्चिम तक सारे राज्य, कस्बे और रजवाड़े अब राजमाता के शासन तले थे.. जिस प्रकार की साम्राज्ञी बनने की उनकी ख्वाहिश थी.. वो अब पूरी हो गई थी.. विद्याधर के सिखाए राह पर चलकर और शक्तिसिंह के सहयोग से राजमाता ने यह असामान्य सिद्धि हाँसील कर ली थी।


समाप्त
एक अप्रतिम कहानी का एक अविस्मरणीय समापन
बहुत ही जबरदस्त
राजमाता ने बलवान सिंह के साथ संभोग में शक्ती सिंह को सामिल कर अपनी बनायी योजना के साथ बलवान सिंह का कत्ल कर शौर्य गड पर फतेह पा ली
शक्ती सिंह को भी पुरस्कार के रूप में शौर्य गड की सुभेदारी और चंदा मिली
अद्भुत रमणिय समापन
 

Ajju Landwalia

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राजमाता ने कमरे में प्रवेश किया। पहले खंड से गुजरकर अंदर के विशाल शयनखंड में जा पहुंची।

बलवानसिंह बाहें फैलाए राजमाता के स्वागत के लिए तैयार खड़ा था... थोड़ी सी झिझक के साथ राजमाता उसके करीब जा पहुंची।

प्रथम थोड़ी क्षणों के लिए तो वह राजमाता के बेनमून हुस्न को निहारता ही रह गया... कोई इतना सुंदर कैसे हो सकता है!! वह मन ही मन सोच रहा था...

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अब उससे और रहा न गया

उसने धीरे से राजमाता को अपने बाहुपाश में घेर लिया और फिर अपने होंठ उनके होंठों से चिपका दिए। उस घृणास्पद कुरूप बलवानसिंह के चुंबन से राजमाता विचलित हो उठी और अपने आप को छुड़ाने के लिए संघर्ष करने लगी। लेकिन बलवानसिंह अब उन्हे छोड़ने वाला नही था। उसने राजमाता को अपनी बलिष्ठ भुजाओं से मजबूती से पकड़ लिया और अपना एक हाथ उनके सिर के पीछे ले जाकर उनका चेहरा स्थिर पकड़ रखा, और उसने फिर से अपने होंठ उसके होंठों पर दबा दिए। थोड़ी देर के लिए उसे प्रतिरोध महसूस हुआ और फिर राजमाता ने विरोध त्याग दिया।

चुंबन से मुक्त होकर बलवानसिंह धीरे से नीचे सरक गया. राजमाता के गालों को चूमा, फिर गर्दन को और फिर उनके चोली में ढके हुए स्तनों के ऊपरी हिस्से को चूमा। उसके एक हाथ ने उनकी गर्दन के पिछले हिस्से को मजबूती से पकड़ रखा था, जबकि दूसरा उनकी पीठ से होते हुए उनके विशाल गोलाकार नितंबों तक पहुँच गया, जिनमें से प्रत्येक को वह बारी बारी धीरे से दबाता जा रहा था। राजमाता के नितंब बेहद शानदार थे। उनके मांसल नितंबों को दबाते ही राजमाता सिहरने लगी। राजमाता के आगे के हिस्से के स्तनों की परिधि और पीछे के नितंबों का कद लगभग समान थे।

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राजमाता के स्तन बलवानसिंह की विशाल हथेली से भी बड़े थे। चोली की गांठ खोलकर जब उन दोनों महाकाय स्तनों को मुक्त किया गया तब उन पहाड़ जैसी चूचियों की सुंदरता देखकर बलवानसिंह का जबड़ा लटक गया। बेदाग गोरी त्वचा से बने माँस के वह विशाल गोले... और उनपर लगी लंबी गुलाबी निप्पल... उन्हे देखते ही बलवानसिंह का लंड उसकी धोती में ही कथकली करने लगा...

उन आकर्षक निप्पलों को अपनी उंगलियों से दबाते हुए बलवानसिंह धन्य हो गया... स्पर्श प्राप्त होते ही वह चूचक सख्त होकर तन गए। बलवानसिंह अपने होंठ उन निपल्स के पास ले गया और उन्हें अपनी जीभ से छेड़ने लगा, पहले एक और फिर दूसरे को। उसने अपने हाथों को राजमाता के सुडौल शरीर पर फिराया - कोमल और सुडौल, जिसमें ज़रा भी झुर्रियाँ नहीं थीं। उसने राजमाता के दोनों स्तनों को अपनी हथेलियों से मसलना शुरू कर दिया...

राजमाता अब बलवानसिंह की हरकतों का विरोध नहीं कर रही थी। धीरे धीरे वह उत्तेजना की धुंध में खोने लगी थी। उनके जीवन का यह पहला प्रसंग था जब उन्होंने किसी अनचाहे पुरुष को अपना जिस्म सौंपा हो... अपना उत्तेजित होना उन्हे भी समझ में नही आ रहा था... अब तक के सारे संभोग उन्होंने खुद संचालित किए थे... यह पहला मौका था जब वह संचालन नही कर रही थी बल्कि संचालित हो रही थी.. शायद यही उनका उत्तेजित होने का कारण भी था...

वह वास्तव में आहें भर रही थी और हांफ रही थी। बलवानसिंह के हाथ अब उसकी योनी को घाघरे के ऊपर से ही पकड़ रहा था और उसके ढंके हुए चुत के होंठों को रगड़ रहा था।

बलवानसिंह ने साहसपूर्वक अपना हाथ राजमाता की साड़ी और अंतःवस्त्र के बंधे हुए सिरे के नीचे सरकाया और उनके शानदार झांटों के बीच स्थित गीले योनि द्वार को अपनी उंगलियों से महसूस किया। धीरे से, उसने उभरे हुए अंदरूनी हिस्से में एक उंगली डाली तब राजमाता और भी अधिक हांफने लगी। उसने राजमाता के मुँह को अपने मुँह से मिला लिया और अपनी जीभ उनके मुख में अंदर तक डाल दी।

राजमाता ने सहजता से उसकी जीभ को चूसकर जवाब दिया और इससे बलवानसिंह इतना उत्तेजित हो गया कि उसने दो उंगलियां उसकी चिपचिपा शहद छोड़ रही योनी में डाल दीं और उन्हें अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया। सारी सज्जनता अब ख़त्म हो गई थी, अब वह बेशर्मी से राजमाता को अपनी उंगलियों से चोद रहा था और राजमाता भी उतनी ही बेशर्मी से खुद को उन क्रूर उंगलियों पर उछालकर जवाब दे रही थी।

फिर अचानक दबी हुई चीख से हाँफती हुई वह स्खलित हो गई। बलवानसिंह के साथ पहली बार उन्हे चरमसुख प्राप्त हुआ। उस स्खलन की तीव्रता से वह लगभग होश खो बैठी।

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लड़खड़ाती राजमाता को बलवानसिंह सहारा देते हुए बिस्तर तक ले गया। नरम आलीशान बिस्तर पर राजमाता को लिटाकर वह भी उनके बगल में लेट गया। तकिये पर आँख बंद कर लेटी हुई राजमाता के हसीन चेहरे पर वह जगह जगह चूमे जा रहा था। उनके चेहरे की निर्दोष त्वचा, अप्रतिम संरचना और बादाम के आकार की भूरी भूरी आँखें!! कितना भी देख लें, मन ही नही भरता था...

अपने स्खलन से धीरे धीरे होश में आ रही राजमाता को बलवानसिंह ने कामोन्माद की ऊंचाइयों से उतरने दिया। फिर वह धीरे-धीरे उन्हे निर्वस्त्र करने लगा।

उस लंपट लीचड़ राजा ने धीरे-धीरे अनावृत होने वाली हर चीज का आनंद लिया - चिकनी सफेद लहरदार त्वचा, मांसल गदराया जिस्म, लंबी गुलाबी निप्पलें, सुडौल परिपूर्ण विशाल स्तन, गहरी नाभि जो सपाट पेट पर उसकी उत्तेजित सांसों के साथ कामुकता से उठती और गिरती थी, लचकदार कमर जिसे वह पूरी तरह से देख सकता था उसे अपने हाथों से घेरा। फिर जैसे ही उसने राजमाता की साड़ी उतारी - उसे नजर आई वह योनी जिसे उसने संभोग सुख के लिए उंगलियों से छुआ था, मलाईदार जांघें जो झुके हुए घुटनों तक फैली हुई थीं और उसके नीचे सूडोल पैर और आकर्षक उँगलियाँ... वह राजमाता के नंगे शरीर को देखकर चकित रह गया, घूमफिर कर वही बात बार बार दिमाग में आती थी कि उसने राजमाता से अधिक सुंदर स्त्री अपने जीवन में कभी नही देखी थी।

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अब बलवानसिंह का मन वही करने को चाह रहा था जो राजमाता की उस गूँदाज चुत को देखनेवाले हर किसी का होगा... उसने कई कामी स्त्रियों से चुत-चटाई के पाठ पढे थे... और फिलहाल उसके सामने एक ऐसी योनि थी जो उन सब कलाकारियों की पूर्ण हकदार थी।

राजमाता ने बलवंतसिंह को उनकी चुत को घूरते हुए पकड़ लिया। वह मुस्कुराकर पलट गई ताकि वह उनके सुंदर नितंबों को पूरी तरह से देख सके। वे अद्भुत नितंब, जो पूर्णतः मांसल थे, गोरी त्वचा में लिपटे हुए वह माँस के गोले जिन्हे देखते ही बलवानसिंह को उन्हे अलग कर अपना लंड घुसाने की तीव्र इच्छा हुई।

अब राजमाता ने इशारे से उसे अपने कपड़े उतारने को कहा।

वह अपने कपड़े उतारने के लिए खड़ा हुआ और कुछ ही पल में सम्पूर्ण नग्न हो गया। काले आबनूस जैसा उसका शरीर बालों से भरा पड़ा था। देखने पर ऐसा लग रहा था जैसे कोई जंगली भालू हो!! लेकिन राजमाता को इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ा, वह उसके कठोर शरीर को घूर रही थी और उसके कद में छोटे पर कलाई जीतने मोटे लंड को तांक रही थी।

बलवानसिंह ने राजमाता की उन पेड़ के तनों जैसी तंदूरस्त जाँघों को अलग कर दिया और अपना चेहरा उनकी दिव्य योनी पर रख दिया। उसने अपनी जीभ से चुत के होठों को अलग किया और उनकी उत्तेजित योनी का रस चाटने लगा। उसने इस उत्तेजित खूबसूरत महिला की ताज़ी खुशबू को महसूस किया। फिर उसने अपनी जीभ बाहर निकाली और उनकी योनि के होंठों का स्वाद चखा। अपनी जांघों के बीच उसके काले सिर को देखकर एक पल के लिए राजमाता घृणा से भर गई - वह इधर-उधर फड़फड़ाने लगी और खुद को अलग करने की कोशिश करने लगी।

बलवानसिंह को इस साधारण प्रतिरोध से कोई फरक नही पड़ा। उसने राजमाता की योनि पर हमले की तीव्रता बढ़ा दी और उनकी अद्भुत जाँघों को मजबूती से पकड़ लिया। उसने राजमाता के भगोष्ठ को चाटा तब महसूस किया कि कामोत्तेजना के कारण अंगूर के जैसे फूला हुआ था और जाहिर तौर पर उसका हर छोटा हिस्सा संवेदनशील था क्योंकि वह कराह रही थी और छटपटा रही थी, और कुछ ही समय में, जैसे ही उसने अपनी जीभ को योनिमार्ग के अंदर घुसेड़कर गुदगुदाया, राजमाता एक और स्खलन से कांप उठी।

राजमाता की जाँघों के बीच की सुंदरता में बलवानसिंह पूर्णतः खो गया। कुछ महिलाओं के चेहरे तो बदसूरत होते हैं लेकिन योनि सुंदर होती है; अन्य आकर्षक महिलाओं की चुत बदसूरतनी होती है - जैसे अनियमित बदरंग चुत के होंठ वाली या फिर फड़फड़ाते मांसल होंठों के बीच गहरे खुले छेद वाली।


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राजमाता के पास सुंदर चेहरा और आकर्षक योनि दोनों थे। बलवानसिंह अपनी जीभ से उस सुंदर चुत को उत्तेजित किए जा रहा था। उसकी उंगलियाँ उनकी जाँघों पर और फिर उनके चमड़ी के छत्र के नीचे छिपे हुए भगोष्ठ पर घूम रही थीं, जिससे वह दाना अंकुरित होकर मोटा हो गया था। राजमाता फिर से नई चरमसीमा की ओर यात्रा कर रही थी। जब बलवानसिंह की खुरदरी जीभ उनके दाने से घिसती तब राजमाता के चेहरे पर उत्तेजक जज़्बातों की बाढ़ आ जाती थी और उनकी जाँघें आपस में भिड़कर लयबद्ध तरीके से बलवानसिंह के सिर को कुचल देती थीं।

एक बार फिर से स्खलित होकर जब राजमाता की जाँघों ने आख़िरकार उसके सिर को आज़ाद किया तब उन्होंने बलवानसिंह की ओर देखा.. उसका पूरा चेहरा ओर दाढ़ी, चुत के रस से भीगे हुए थे... राजा अपना मुंह ऊपर तक ले गया और योनिरस से लिप्त जीभ से वह राजमाता की जीभ को चाटने लगा ताकि राजमाता को भी अपनी चुत के रस का स्वाद मिले। उसका लंड सटकर उनकी चुत के होंठों के बीच अटक गया था और उनकी चिपचिपी नाली में घुसने के लीये फुदक रहा था।

बलवानसिंह का लंड ज्यादा लंबा नही था पर थोड़ा मोटा जरूर था... उसने एक ही झटके में राजमाता की रसदार चुत में लंड पेल दिया... दोनों के झाँट एक दूसरे के संग उलझ गए। और वह उन पर सवार हो गया और अपने लंड को उनकी चुत के अंदर मथनी की तरह मथते हुए घुमाने लगा , इस दौरान वह अपने मुंह ने उनकी जीभ को चाटने लगा और लार को चूसने लगा।

हथोड़े की तरह तेजी से राजमाता की चुत में ठोक रहा था... योनि की दीवारों के बीच उसके लंड को जो अनोखी अनुभूति हुई उससे वह गुर्राते हुए वीर्य स्खलित कर बैठा... राजमाता की योनी को इतने गरम तरल वीर्य से भर दिया कि वह वीर्य चुत से छलक कर उनके झाँट, जांघ और बिस्तर की चादर पर फैल गया।

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पस्त होकर बलवानसिंह, राजमाता के दो स्तनों पर गिर पड़ा... अभी भी उसका लंड राजमाता की गुनगुनी चुत के अंदर ही था... यह विश्राम का दौर कुछ ही वक्त तक सीमित रहा...बलवानसिंह के लंड ने उनकी योनी में फिर से हरकत शुरू कर दी और कुछ ही समय में फिर से सख्त हो गया। उसने खुद को ऊपर उठाया और राजमाता के चेहरे को देखा और अपना मुंह उनके मुंह से चिपका लिया और अपने लंड से उसकी योनी पर हमला करते हुए अपनी जीभ से उनके मुंह को बेरहमी से चोदने लगा।

राजमाता ने धीरे से लेकिन दृढ़ता से उसे अपने से दूर धकेल दिया। अब वह उसकी सवारी करने जा रही थी, संभोग का नियंत्रण अपने हाथ में लेकर उसे चोदने जा रही थी, वह खुद को आनंदित करने के लिए प्रतिबद्ध होकर आगे बढ़ रही थी।

जैसे ही राजमाता उठी, बलवानसिंह उस नरम बिस्तर पर लेट गया। राजमाता ने उसके दोनों ओर अपने मुड़े हुए पैर रखकर उसके सख्त लंड को पकड़ लिया और धीरे से उसे अपनी चुत के होंठों पर रखकर अंदर ग्रहण कर लिया।

राजमाता उसके लंड पर सवार हो गयी. वह अपने उभारों को तब तक ऊपर उठाती जब तक बलवानसिंह के लंड का केवल सिरा ही उनकी योनी में रह जाए और फिर बेतहाशा नीचे उतरते हुए पूरे लंड को अपने अंदर समाहित कर लेती। उन्हों ने अपने स्तनों को नीचे किया और एक निप्पल को बलवानसिंह के मुँह में डाल दिया। इस दौरान वह अपने चूतड़ों को गोल गोल घुमाते हुए लंड के मजे अपनी योनि में लेने लगी।

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राजमाता ने धीरे-धीरे गति और उत्तेजना के स्तर को बढ़ाया। बलवानसिंह एक के बाद एक दोनों निप्पलों को चूसे जा रहा था। अब वह भी नीचे से धक्के लगाते हुए राजमाता के धक्कों का सामना करने लगा। बलवानसिंह ने उनके पूर्ण नितंबों को पकड़ लिया और अपनी उंगलियों को उनके गांड के छिद्र की ओर बढ़ाना शुरू कर दिया।

तभी राजमाता ने अपने एक पैर में बंधी पायल को खोल दिया और जोर से जमीन पर फेंका... उस पायल की खनक सुनते ही शक्तिसिंह खंड का द्वार खोलकर अंदर आ गया। क्योंकी बलवानसिंह की नज़रे और ध्यान राजमाता के पुष्ट स्तनों को चूसने पर केंद्रित था इसलिए उसे शक्तिसिंह के अंदर आने की भनक नही लगी।


Bahut hi shandar update he vakharia Bhai,

As expected, Rajmata aur shaktisingh ka hi plan tha, balwansingh ko apne husn ke jaal me fansa kar uska kaam tamam karna.............

Gazab Bhai...........simply awesome
 
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