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Adultery राजमाता कौशल्यादेवी

DEVIL MAXIMUM

"सर्वेभ्यः सर्वभावेभ्यः सर्वात्मना नमः।"
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रात्री का समय था... तंबू में अंधकार था... बिस्तर पर दो जिस्म आपस में लिपटे हुए थे... एक दूसरे के अंगों को सहला रहा थे... पर फिर भी दोनों में से किसी के मन में आज रत्तीभर भी वासना या हवस नही थी... थी तो बस सहानुभूति, प्रेम और सांत्वना की भावना...

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दूसरी सुबह, शक्तिसिंह अपने साथ राजमाता का सहमति-संदेश लेकर राजा बलवानसिंह के दरबार में पहुंचा...

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संदेश को पढ़कर, बलवानसिंह की आँखें चमक उठी... उसके चेहरे की मुस्कान छुपाई छिपती न थी...

"आखिर आ गया न ऊंट पहाड़ के नीचे... " अपनी मुछ पर ताव देते हुए बलवानसिंह ने कहा

"भला आपकी बात को कौन टाल सकता है महाराज... " सर झुकाए खड़े शक्तिसिंह ने कहा... शक्तिसिंह ने, न चाहते हुए भी निर्बल रूप धारण कर रखा था... वह नहीं चाहता था की गुस्से में कहे गए कोई भी शब्द, उसके साथियों की... और खासकर चन्दा की जान के लिए खतरा बन जाए... वह मन बनाकर आया था की वह जितनी हो सके, राजा की खुशामद करेगा...

"फिर किस बात की प्रतीक्षा है? अभी हाजिर करो अपनी राजमाता को" बलवानसिंह उस खूबसूरत जिस्म को भोगने की कल्पना करने लगा...

"क्षमा कीजिए महाराज... राजमाता अपनी दासियों के संग पूर्णतः तैयारी के साथ आएगी.. इसमें थोड़ा वक्त तो लगेगा... आप कहें तो वह कल आपके महल में हाजिर हो जाएगी... " शक्तिसिंह ने उत्तर दिया

"हम्म... यह भी ठीक है... कल शौर्यगढ़ में स्थापना-दिवस का उत्सव बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाने वाला है... मेरी तरफ से राजमाता को न्योता दे देना... पर ध्यान रहें, में किसी भी सैनिक को प्रवेश की अनुमति नही दूंगा... " बलवानसिंह ने कहा

"इत्मीनान रखिए महाराज, राजमाता के संग केवल उनकी दासियों का समूह रहेगा... और सिर्फ मैं... और कोई नही होगा... और वैसे भी हम दोनों राज्यों के बीच शांति स्थापित हो चुकी है... हम आशा करते है की शौर्यगढ़ और सूरजगढ़ के बीच नए संबंधों का इतिहास रचा जाएँ... दोनों महान राज्य एक दूसरे की प्रगति में योगदान देकर... नई ऊँचाइयाँ हासिल करें... " शक्तिसिंह ने बलवानसिंह की कदमबोसी कर उसे प्रसन्न करना चाहा

"अगर मेरी शर्तों पर राजमाता की सहमति हो तो दोनों राज्यों के बीच मैत्रीपूर्ण व्यवहार अवश्य स्थापित हो सकता है... अगर यही बात तुम्हारी राजमाता को पहले समज आ गई होती तो व्यर्थ में इतना रक्तपात नही होता" बलवानसिंह की भृकुटी तंग हो गई

"जो हो गया उसे भूल जाइए महाराज... आप बड़े ही दयालु है.. बीती बातें भूलकर ही हम आगे बढ़ पाएंगे... और वैसे भी... आपके जितना शक्तिशाली और महान सहयोगी प्राप्त कर, हम भी धन्यता का अनुभव कर रहे है" शक्तिसिंह के मिश्री-घुलित शब्दों से बलवानसिंह अति प्रसन्न हो गया

"सामान्य सैनिक होने के पश्चात तुम बड़े ही बुद्धिमान हो... उस मूर्ख सेनापति की बजाए अगर राजमाता तुम्हारी सलाह लेती तो आज यह दिन देखना न पड़ता... अब तुम हमारा न्योता राजमाता को देकर उन्हे सूचित करो की जल्द से जल्द यहाँ पहुँचने की तैयारी करें... मैं अधीरतापूर्वक उनकी प्रतीक्षा करूंगा... " यह कहते हुए राजा बलवानसिंह अपनी धोती के ऊपर से ही लंड को मसलते हुए बोला

शक्तिसिंह का क्रोध सारी सीमाएं पार कर गया था... फिर भी उसने बड़ी ही विनम्रता से कहा

"जी महाराज, यह संदेश तुरंत राजमाता तक पहुंचा दूंगा.. बस आप से एक विनती है मेरी" दो हाथ जोड़कर शक्तिसिंह ने कहा

"कहो... क्या विनती है तुम्हारी?" बलवानसिंह ने पूछा

"मेरे साथी... जिन्हे आपने बंदी बनाया है... क्या में उन्हे एक बार मिल सकता हूँ?" शक्तिसिंह ने कहा

"क्या आवश्यकता है? वैसे भी कल राजमाता जैसे ही मेरे कक्ष में दाखिल होगी... तुम्हारे साथियों को मुक्त कर दिया जाएगा"

"कृपा करें महाराज, मुझे सिर्फ अपने साथियों की कुशलक्षेम होने की पुष्टि करनी है... हाथ जोड़कर विनती कर रहा हूँ महाराज... मुझ गरीब को निराश मत कीजिए... " हाथ जोड़े विनम्रता का अभिनय करते हुए शक्तिसिंह ने कहा

"ठीक है... सिपाहियों, इस सैनिक को उन बंदियों से भेंट करवा दो" बलवानसिंह ने आदेश दिया

"बड़े दयालु है आप महाराज... आपका आभारी रहूँगा... " सलाम करते हुए शक्तिसिंह दरबार से निकालकर अपने साथियों से मिलने चला गया

उन बंदी सैनिकों और चन्दा को देखकर शक्तिसिंह की आँखों में आँसू टपक पड़े... उन्हे कुशल देखकर वह बड़ा ही खुश हो गया.. उनकी रिहाई का समाचार सुनकर वे अति प्रसन्न हो गए... किन शर्तों पर उन्हे छोड़ा जा रहा था, यह शक्तिसिंह ने उन्हे नही बताया था...

सैनिकों से मिलकर, खुश होते हुए शक्तिसिंह छावनी पर वापिस लौटा.. राजमाता के तंबू में जाकर उसने राजा बलवानसिंह का संदेश शब्दसः सुनाया... पूरी बात बड़ी ध्यान से सुनते हुए राजमाता की आँखों में एक अनोखी सी चमक जाग उठी... उन्होंने शक्तिसिंह को तुरंत रुखसत किया और सेनापति को बुलावा भेजा...

कुछ देर विचार विमर्श के बाद, राजमाता के निर्देश अनुसार, सेनापति ने दो सैनिकों को, पास के नगर से कुछ सामान जुटाने को कहा... महाराज बलवानसिंह ने किस तरह की मांग की थी, इसका पता राजमाता और शक्तिसिंह के अलावा किसी तीसरे को नही था... सेनापति केवल इतना ही जानते थे की राजमाता ने शांति-संदेश भेजा था... जिसका स्वीकार कर, राजा बलवानसिंह ने उन्हे स्थापना-दिवस के उत्सव में शरीक होने के लिए न्योता भेजा था, और उनकी मुलाकात के बाद, सारे बंदी सैनिकों को मुक्ति किया जाने वाला था...

उस शाम को जब शक्तिसिंह राजमाता से मिलने उनके तंबू में पहुंचा... तब वह कुर्सी पर बैठकर कोई गीत गुनगुना रही थी... राजमाता को इस तरह चिंतामुक्त देखकर शक्तिसिंह को सुखद आश्चर्य हुआ...

"आओ शक्ति... अभी तो रात भी नही हुई है... फिर कैसे आना हुआ?" बड़े ही शरारती लहजे में राजमाता ने शक्तिसिंह से पूछा

शक्तिसिंह एक पल के लिए झेंप गया... वैसे परिस्थिति की गंभीरता को देखते हुए.. ऐसा कोई विचार उसके मन में प्रकट भी नही हुआ था.. पर राजमाता को खुश देखकर उसे बहुत अच्छा महसूस हुआ... इतने समय से चल रहे जिस्मानी संबंधों के चलते अब वह ह्रदय के किसी कोने में वह राजमाता को बड़े ही स्नेह और प्रेम से देखता था और उनका अहित होते हुए नही देख सकता था...

चुपचाप खड़े शक्तिसिंह का हाथ पकड़कर राजमाता ने अपनी ओर खींचा... कुर्सी पर बैठी राजमाता के जिस्म से सटकर वह खड़ा हो गया... उसकी मजबूत जांघों पर हाथ फेरते हुए उन्होंने शक्तिसिंह के लंड को वस्त्र के ऊपर से मुठ्ठी में भर लिया... शक्तिसिंह के मुंह से आहह सरक गई.. उत्तेजित होकर शक्तिसिंह ने अपने हाथ को राजमाता के कंधे पर फेरना शुरू कर दिया... उसका हाथ जैसे ही उनकी चूचियों को दबाने पहुंचा की राजमाता ने उसका हाथ पकड़ लिया और अपने बदन से अलग कर दिया... शक्तिसिंह अचंभित होकर उन्हे देखता रहा

"कल का दिन बड़ा ही लंबा और थका देने वाला रहेगा... तुम विश्राम करो और मैं भी आज की रात पूरा आराम करूंगी" राजमाता की इशारा तुरंत समझ गया शक्तिसिंह... कल उस बलवानसिंह के सामने राजमाता नग्न होगी और फिर... इस कल्पना से भी वह भयभीत हो गया...

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राजमाता को सलाम कर वह तंबू से बाहर निकल गया।
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अगली सुबह राजमाता प्रातः काल ही अपने नित्य क्रम से फारिग होकर तैयार हो गई.. शक्तिसिंह बाहर ही तैयार बैठा था... जैसे ही राजमाता तंबू से बाहर आई... सेनापति अपने साथ लाल साड़ी में सज्ज दासियों के समूह के साथ प्रकट हुए... सारी दासियों ने अपनी छाती तक घूँघट ताने चेहरे को ढंका हुआ था... उनकी संख्या १०० के करीब थी... इतनी सारी दासियों को देखकर शक्तिसिंह भी दंग रह गया... इससे पहले की वह राजमाता को इस बारे में पूछ पाता... राजमाता रथ में सवार हो गई। शक्तिसिंह भी अपने घोड़े पर सवार हो गया और इस काफिले में जुड़ गया...

जैसे ही यह दस्ता किले के दरवाजे पर पहुंचा... द्वारपाल ने दरवाजा खोलने का निर्देश दिया... लकड़ी का सेतु गिराया गया... और उस पर बड़ी ही धीमी गति से चलते हुए वह खेमा किले के अंदर पहुँच गया... उनके अंदर जाते ही लकड़ी के सेतु को वापिस खींच लिया गया और द्वार बंद कर दिया गया।

शौर्यगढ़ का माहोल आज कुछ अलग ही नजर आ रहा था... चारों तरफ रंगबिरंगी तोरण और फूलमालाओं से नगर को सजाया गया था... रास्तों पर ढोल नगाड़े बजाए जा रहे थे... उत्सव मना रहे नगरजन और सैनिक मदिरा के प्याले पीते हुए नाच रहे थे... स्थापना-दिवस का उत्सव बड़े ही जोर-शोर से मनाया जा रहा था...

यह पूरा खेमा राजमहल के द्वार पर पहुंचा... उन्हे बड़े ही सन्मान के साथ अंदर ले जाया गया... शक्तिसिंह और दासियों के समूह को बाहर के खंड में रुकने के लिए कहा गया और केवल राजमाता को अंदर महाराज बलवानसिंह के पास ले जाया गया...

पूरा दरबार खाली था... सब दरबारी स्थापना-दिवस के उत्सव में सम्मिलित होने गए थे... राजमाता को महाराज के पास छोड़कर उनका सैनिक लौट गया

राजमाता को देखकर ही राजा की आँखें चार हो गई... आज तक उसने अनगिनत स्त्रियों को भोगा था... पर इतनी सुंदर स्त्री को उसने आज तक नही देखा था... कौशल्यादेवी के हुस्न के चर्चे तो उसने बहुत सुने थे... आज रूबरू होकर वह इस सौन्दर्य को देखकर धन्य हो गया.. इस अप्रतिम अद्वितीय सौन्दर्य का दीदार कर... राजमाता को भोगने की उसकी इच्छा अति-तीव्र हो गई...

"पधारिए राजमाता जी... शौर्यगढ़ में आपका हार्दिक स्वागत है" लार टपकाते हुए बलवानसिंह ने राजमाता से कहा

बड़ी ही गरिमा के साथ चलते हुए राजमाता ने एक नजर इस बदसूरत राजा पर डाली और फिर उनके पास पड़ी शाही कुर्सी पर बिराजमान हो गई... राजा के शरीर का रंग बिल्कुल काला था... चेहरे पर घनी दाढ़ी और मुछ के कारण वह विकराल और कुरूप लग रहा था... राजमाता के हुस्न को वह बेशर्मी से देखे जा रहा था और उसका जबड़ा लटक रहा था..

"बलवानसिंह जी, आपकी शर्त के मुताबिक मैं यहाँ आ चुकी हूँ... अब सबसे पहले उन सारे सैनिकों को रिहा कर दीजिए" बड़े ही दृढ़ता से राजमाता ने कहा

"जल्दी क्या है राजमाता जी... हम दोनों मेरे कक्ष में बैठकर एक दूसरे को ठीक से जान लेते है.. फिर सी भी मुक्त हो जाएंगे... " कुटिल मुस्कुराहट के साथ बलवानसिंह ने कहा

"नही... में आपके कक्ष में तभी प्रवेश करूंगी जब मेरे सैनिक मुक्त कर दिए जाएंगे" बेहद दृढ़ता और सख्ती से राजमाता ने कहा

बलवानसिंह के सिर पर हवस सवार हो चुकी थी... वह जल्द से जल्द इस दिव्य सौन्दर्य की साम्राज्ञी को भोगना चाहता था

"ठीक है... उन सैनिकों को मुक्त किया जाए... पर ध्यान रहे... वह बंदी सैनिक फिलहाल राजमाता की दासियों के साथ रखे जाए... वे वापिस तब ही लौटेंगे जब राजमा जी वापिस जाएंगी.. "

"मुझे मंजूर है" राजमाता ने कहा

तुरंत एक सिपाही कारागार की ओर चला गया... थोड़ी ही देर में, चन्दा और बाकी सारे सैनिकों को बेड़ियों से मुक्त किया गया और उन्हे दरबार के अग्र-खंड में दासियों के साथ स्थान दिया गया... बलवानसिंह का आकलन यह था की ऐसा न हो की सैनिक भी छूट जाएँ और राजमाता भी हाथ से निकल जाए... इसीलिए उसने सूचना दी थी की वह बंदी सैनिक तब तक किले से बाहर नही जाएंगे जब तक राजमाता उसके कमरे से बाहर निकलकर वापिस लौटने के लिए तैयार नही हो जाती। एक तरफ उसे राजमाता को जल्द से जल्द भोगने की चाह थी... तो दूसरी तरफ वह स्थापना-दिवस के समारोह में शरीक भी होना चाहता था... शौर्यगढ़ के लिए आज बहुत बड़ा दिन था... इसी दिन सदियों पहले, बलवानसिंह के पुरखों ने इस राज्य की स्थापना की थी... हर वर्ष इस दिन को बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता था...

सारे सैनिकों के क्षेमकुशल मुक्त हो गए यह सुनिश्चित करने के बाद शक्तिसिंह वापिस राजमाता के पीछे आकर खड़ा हो गया... अब राजमाता को बलवानसिंह के शयनखंड में जाना था...

"चलिए राजमाता जी... मेरे कक्ष की ओर पधारिए... " थोड़ी सी हिचकिचाहट के साथ राजमाता चलने लगी... साथ में शक्तिसिंह भी उनके पीछे गया।

बलवानसिंह के अंदर प्रवेश करने के बाद राजमाता शक्तिसिंह के कानों में फुसफुसाई "मेरा इशारा मिलते ही तुम अंदर चले आना... और उससे पहले मेरी सूचना के अनुसार... सारी जानकारी प्राप्त कर तैयार रहना... "

"जी राजमाता जी..." शक्तिसिंह ने सिर झुकाते हुए कहा

राजमाता ने कमरे में प्रवेश किया। पहले खंड से गुजरकर अंदर के विशाल शयनखंड में जा पहुंची।

बलवानसिंह बाहें फैलाए राजमाता के स्वागत के लिए तैयार खड़ा था... थोड़ी सी झिझक के साथ राजमाता उसके करीब जा पहुंची।

प्रथम थोड़ी क्षणों के लिए तो वह राजमाता के बेनमून हुस्न को निहारता ही रह गया... कोई इतना सुंदर कैसे हो सकता है!! वह मन ही मन सोच रहा था...


अब उससे और रहा न गया
Ky such me Raaj mata kuch ker paygi ya isse bhi chid jaygi
Intresting hoti Jaa rhe hai story
 
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"सर्वेभ्यः सर्वभावेभ्यः सर्वात्मना नमः।"
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तभी राजमाता ने अपने एक पैर में बंधी पायल को खोल दिया और जोर से जमीन पर फेंका... उस पायल की खनक सुनते ही शक्तिसिंह खंड का द्वार खोलकर अंदर आ गया। क्योंकी बलवानसिंह की नज़रे और ध्यान राजमाता के पुष्ट स्तनों को चूसने पर केंद्रित था इसलिए उसे शक्तिसिंह के अंदर आने की भनक नही लगी।

शक्तिसिंह उन दोनों के करीब पहुँच तब तक उसने अपने वस्त्र उतार दिए थे।

बलवानसिंह की नजर अब शक्तिसिंह के ऊपर गई। उस नग्न विकराल पुरुष को इस समय कक्ष में देखकर एक पल के लिए वह चोंक गया। लेकिन उसकी मौजूदगी पर राजमाता ने कोई आपत्ति न जताई इसलिए वह भी कुछ नही बोला.. उसे इतना तो पता चला की वह राजमाता की आज्ञा से ही अंदर आया था। चूंकि अब संभोग का संचालन राजमाता के पास था इसलिए बलवानसिंह ने बिना कुछ कहे ही धक्के लगाना जारी रखा।

शक्तिसिंह अपना तना हुआ लिंग हाथ में पकड़कर राजमाता के निर्देश का इंतज़ार कर रहा था।

बलवानसिंह को अपना लंड बहुत बड़ा लगता था पर शक्तिसिंह के लंड के आगे उसका लंड एक छोटी सी पुंगी के बराबर ही था।

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बलवानसिंह और राजमाता के बीच चले रहे इस आनंदमय सहवास को देखकर शक्तिसिंह भी काफी उत्तेजित हो गया था। बलवानसिंह के लंड पर राजमाता के नंगे गुलाबी नितंबों का ऊपर-नीचे होते देखा वह अपने लंड की त्वचा को आगे पीछे करते हुए हिलाने लगा।

लंड हिलाते शक्तिसिंह की आँखों में देखकर राजमाता ने इशारा किया। राजमाता की ओर से हरी झंडी मिलते ही शक्तिसिंह ने अपने मुंह से काफी मात्रा में लार निकाली और अपने लंड पर उस गर्म तरल पदार्थ को फैलाते हुए उसकी पूरी लंबाई पर मालिश की। बिस्तर पर लेटे बलवानसिंह के ऊपर राजमाता सवार थी। शक्तिसिंह अब राजमाता के पिछवाड़े की ओर पहुंचा। उसने राजमाता के नितम्बों को चौड़ा किया, गुलाबी सिकुड़ी हुई गांड पर लार लगाई और पहले एक और फिर दोनों उंगलियाँ उनकी गांड के छेद में डाल दी।

जब वह अपनी उंगलियों को राजमाता की गांड के अंदर और बाहर घुमा रहा था तब राजमाता सिहर कर बलवानसिंह के लंड पर ओर तेजी से कूदने लगी। शक्तिसिंह ने राजमाता के कंधों को पकड़कर उनकी गति को नियंत्रित कर उन्हे स्थिर किया ताकि उसे अपना लंड उनके छेद में डालने की सहूलियत हो। राजमाता की चुत में घुसे बलवानसिंह के लँड के कारण उनकी गांड में लंड घुसा पाना थोड़ा सा कठिन था।

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शक्तिसिंह ने दोनों हाथों से राजमाता की कमर पकड़ी और अपना लिंग छेद के अंदर धकेल दिया। एक ही झटके में उसका सुपाड़ा गाँड़ के छिद्र के अंदर गुज़र गया और राजमाता अचानक दर्द से कराह उठी। "शांत रहिए, राजमाता," शक्तिसिंह बड़बड़ाया और अपने लंड को धीरे धीरे और अंदर डालने लगा।

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धीरे-धीरे शक्तिसिंह ने दबाव बनाए रखा और उसका लिंग राजमाता की गांड में गायब होने लगा। राजमाता ने बलवानसिंह की सवारी बंद कर दी थी और अब दो लंड एक साथ लेकर उनका चेहरा पीला पड़ गया था और वह ठंडे पसीने से लथपथ हो गई थी।

लेकिन उन्होंने शक्तिसिंह को रुकने के लिए नही कहा। वह झुकी हुई पड़ी रही और तब तक स्थिर रही जब तक शक्तिसिंह का पूरा लंड उनकी गांड के अंदर नही घुस गया। शक्तिसिंह ने स्वीकृति भरी घुरघुराहट के साथ अपने लंड को उसके सिरे तक बाहर खींचा और तेजी से गति बढ़ाते हुए उसे वापस अंदर घुसा दिया।

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राजमाता और शक्तिसिंह के बीच जो चल रहा था उसके सदमे के कारण बलवानसिंह के लंड ने अपनी सख्ती खो दी थी। एक कारण यह भी था की आज तक उसने कभी भी अपनी चुदाई के साथी को किसी अन्य पुरुष के साथ साझा नहीं किया था। उसका लंड मुरझा गया लेकिन पूरी तरह से नहीं और वह अभी भी राजमाता की योनी में घुसा हुआ था। मजे की बात यह थी कि राजमाता का यह दोहरा उत्पात इतने करीब से देख कर वह फिर से उत्तेजित होने लगा। अपने लंड को फिर से सख्त होता महसूस किया।

अब राजमाता फिर से बलवानसिंह के ऊपर सवारी करने लगी; अपनी गांड में हो रहे दर्द के अनुभव से वह उभर चुकी थी। अब जब शक्तिसिंह अपने लंड को उनकी गांड से बाहर खींचता तब वह अपनी योनि को बलवानसिंह के लंड पर नीचे कर देती और जैसे ही वह अपने चूतड़ ऊपर उठाती, शक्तिसिंह अपना लंड पेल देता। इस तरह दोनों लंड के तालमेल से वह तालबद्ध तरीके से चुद रही थी।

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तीनों ने बड़ी ही बखूबी से एक लय सी बना ली थी। बलवानसिंह अब तेजी से ऊपर की ओर जोर लगा रहा था। थोड़ी ही देर में, एक कर्कश चीख के साथ वह स्खलित हो गया और उसने राजमाता की योनिगुफा को गरम वीर्य से भर दिया। फिलहाल उसका कार्य समाप्त हो गया।

शक्तिसिंह ने राजमाता की गांड मारना जारी रखा। उसने राजमाता के शरीर को बलवानसिंह के ऊपर से उठा लिया और खड़ा हो गया। फिर उनको जाँघों से पकड़कर अपने लंड पर घुमाने लगा। उसका लंड अभी भी राजमाता की गांड में गड़ा हुआ था।

राजमाता पीछे की ओर मुड़ी और अपनी बाँहें उसकी गर्दन के चारों ओर लपेट दीं। शक्तिसिंह ने उन्हे नितंबों से उचक रखा था। बलवानसिंह देख सकता था कि शक्तिसिंह का मूसल लंड हिंसक रूप से राजमाता की गांड के अंदर बाहर हो रहा था।

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राजमाता पसीने से नहा रही थी और बुरी तरह कराह भी रही थी क्योंकि शक्तिसिंह उसे एक गुड़िया की तरह अपने लंड पर के ऊपर उछाल रहा था। अब उसने अपना लंड उनकी गांड के छेद से निकाले बिना ही उन्हे ज़मीन पर उतार दिया। राजमाता अब फर्श पर चारों पैरों हो गई और शक्तिसिंह ने पीछे से वार करना शुरू कर दिया।

शक्तिसिंह ने अपने विशाल हाथ राजमाता की योनि पर रखे और उसकी उंगलियाँ उनके भगोष्ठ से से खेलने लगी। आख़िरकार, वह स्खलित होने की कगार पर पहुँच गया और एक ज़ोर की चीख के साथ राजमाता की गांड में झड़ गया।


काफी देर तक दोनों वैसे ही पड़े रहे. राजमाता अपने हाथों और घुटनों पर, हांफते हुए, और उनके पीछे शक्तिसिंह। उसका लंड धीरे-धीरे आकार में छोटा होता जा रहा था और उसकी फैली हुई गांड में धीरे-धीरे सिकुड़ रहा था। अंत में पक्क की आवाज के साथ उसका लंड उनके छेद से बाहर निकल गया और फिर राजमाता का छेद पूरी तरह से बंद हो गया।

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आगे जो हुआ उससे देख बलवानसिंह स्तब्ध हो गया!! राजमाता ने पलट कर शक्तिसिंह के लंड को अपने मुँह में भर लिया और लगभग आधा लंड निगल लिया। फिर वह उस डंडे को चाटने लगी जो अभी-अभी उनकी गांड से बाहर निकला था!!

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राजमाता ने बड़े प्यार से अपनी जीभ को सुपाड़े से लेकर नीचे तक और फिर पीछे तक, तब तक चलाया जब तक कि वह फिर से ताव में न आ गया।

घृणित होने के बजाय उसे यह दृश्य अत्यंत उत्तेजक लगा। क्योंकि इस घृणित कार्य को करते समय भी राजमाता इतनी सुंदर और नियंत्रित दिख रही थी! और फिर राजमाता ने शक्तिसिंह के विशाल अंडकोश पर भी जीभ फेरना शुरू कर दिया और उन दोनों गेंदों को अपने मुंह में भर लिया। बलवानसिंह के लिए यह आश्चर्यचकित करने वाला द्रश्य था। और अगला द्रश्य देखकर तो बलवानसिंह के जैसे होश ही उड़ गए।

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राजमाता ने शक्तिसिंह को जमीन पर लिटा दिया। वह उसके ऊपर चढ़ गई और अपनी गांड उसके चेहरे पर रख दी। शक्तिसिंह ने बड़ी ही नम्रता से राजमाता के नितंबों को चाटना शुरू कर दिया और फिर उनकी गांड के छेद को उजागर करके उसे अपनी जीभ से वास्तव में चोदना शुरू कर दिया। राजमाता अब इस तरह घूम गई कि वह शक्तिसिंह के पैरों को देख सके और उस दौरान उन्हों ने एक क्षण के लिए भी शक्तिसिंह की जीभ को अपने गुदा से बाहर नहीं जाने दिया। अब राजमाता ने उसकी बालों वाली छाती पर पेशाब की बूंदें टपका दीं और अपनी दोनों हथेलियों से उस प्रवाही को शक्तिसिंह की छाती पर रगड़ने लगी।

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"गजब की स्त्री है यह राजमाता" बलवानसिंह सोच रहा था। तभी राजमाता ने झुककर शक्तिसिंह का लंड अपने मुंह में भर लिया और चूसने लगी। तब तक चूसती रही जब तक वह खड़ा नही हो गया। अब वह चुदने के लिए फिर से तैयार हो रही थी!!

राजमाता ने अपने चूतड़ शक्तिसिंह के मुंह से उठाए और उसके लंड पर सवार हो गई, उसकी गति उसकी वासना के साथ बढ़ती गई। इस दौरान शक्तिसिंह ने अपनी उँगलियाँ राजमाता की गांड में डालकर अंदर बाहर करना शुरू किया।

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शक्तिसिंह ने इशारे से बलवानसिंह को इस कार्रवाई में शामिल होकर राजमाता की खुली गांड में अपना लंड डालने के लिए आमंत्रित किया। इन दोनों को इस तरह चोदते देखकर बलवानसिंह का लंड कब से सख्त हुए खड़ा था।

बलवानसिंह खड़ा होकर राजमाता के पीछे पहुँच गया, अपने लंड पर थूका और बिना सोचे-समझे एक जोरदार धक्के में अपना लंड उनकी गांड में ठोक दिया। इतनी बेरहमी से अप्राकृतिक यौनाचार किए जाने पर राजमाता की अनैच्छिक चीख निकली जिसे शक्तिसिंह ने उनके मुंह पर अपना मुंह दबाकर तुरंत दबा दिया।

बलवानसिंह के लिए तो यह स्वर्ग था। गांड मारना उसे बेहद पसंद था। और इस अप्सरा की गांड सब से अनोखी थी। राजमाता की योनी में शक्तिसिंह का विशाल लंड घुसे होने के कारण राजमाता की गांड इतनी कसी हुई और चुस्त लग रही थी जैसे उन्होंने कभीअप्राकृतिक यौनाचार किया ही न हो।

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बलवानसिंह ने इस स्वर्गीय क्षण का पूरा आनंद लिया और अपने लंड को स्थिर और पूरी तरह से जड़े रखा। सचमुच उसके लंड को गांड के अंदर हिलाना मुश्किल हो रहा था पर साथ ही साथ उसके लंड में अविश्वसनीयअनुभूति भी हो रही थी। आज तक जीतने छेदों में उसने लंड घुसाया था उन सब में यह सब से ज्यादा तंग और कसा हुआ छेद था।।

इस दौरान बलवानसिंह ने राजमाता के जिस्म को शक्तिसिंह के ऊपर से उठाने की कोशिश भी की, लेकिन शक्तिसिंह का लंड उनकी चुत में ऐसा फंसा हुआ था की दोनों अलग होने का नाम ही नही ले रहे थे।

राजमाता की कसैली गांड में थोड़ी ही देर में बलवानसिंह के लंड ने अपना वीर्य उगल दिया। उसके लिए यह अब तक की श्रेष्ठ चुदाई थी। थका हुआ बलवानसिंह बिस्तर पर ढेर होकर अपनी साँसे पूर्ववत करने का प्रयत्न कर रहा था।

राजमाता अब शक्तिसिंह के लंड पर से उठ खड़ी हुई... और चलते चलते बलवानसिंह के बगल में लेट गई.. शक्तिसिंह भी लपक कर बिस्तर पर कूद पड़ा और राजमाता के पैर फैलाकर उनकी चुत में लंड घुसाते हुए धमाधम पेलने लगा। धक्कों की गति तीव्र हो गई और कुछ ही देर में वह चरमसीमा पर पहुँच गया... चुत के अंदर विपुल मात्रा में द्रव्य छोड़कर वह निढाल हो कर बिस्तर पर गिर गया।

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काफी देर तक तीनों बिस्तर पर लेटे हांफते रहे। कुछ देर बाद शक्तिसिंह उठ खड़ा हुआ और अपने वस्त्र पहनने लगा... बिस्तर के पास बलवानसिंह और राजमाता के वस्त्र यहाँ-वहाँ बिखरे पड़े थे...

"राजमाता," बलवानसिंह ने कहा, "क्या आप मेरी रानी बनेंगी?" वह निश्चित रूप से इस तथ्य का जिक्र कर रहे थे कि उनके दोनों राज्य भविष्य में एकजुटता से कार्य करने जा रहे थे।

राजमाता ने एक लंबी सांस लेते हुए बलवानसिंह के गले को अपनी बाहों में भरकर कहा, "दुर्भाग्य से यह संभव नहीं होगा। मैं एक शासक और जीतना मेरी आदत है और मैं इस तथ्य को बर्दाश्त करने में असमर्थ हूं कि आपने मेरे सैनिकों को बंधक बनाया। में आज एक ऐसे उदाहरण की रचना करने जा रही हूँ की जिसके बाद कोई भी मेरी सेना पर हमला करने की हिम्मत न कर सके। आपकी गुस्ताखी को उचित प्रतिशोध से उत्तर देने का समय आ चुका है।"

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यह कहते ही राजमाता चीते की तरह झपटी और बलवानसिंह की गर्दन पर सवार हो गई। तभी शक्तिसिंह ने बलवानसिंह के उतारे हुए वस्त्रों के बीच से उसकी कटार उठा ली... इससे पहले की बलवानसिंह कुछ बोल या समझ पाता... वह छलांग लगाकर बिस्तर के करीब आया... और राजमाता के बोझ तले दबे हुए बलवानसिंह की गर्दन पर कटार की धार फेर दी!!!

गरम रक्त का एक फव्वारा सा उड़ा और राजमाता का आधे से ज्यादा शरीर खून से सन गया... स्तब्ध होकर दोनों यह द्रश्य देखते ही रहे... बलवानसिंह की आँख फटी की फटी रह गई... और एक ही झटके में उसके प्राण निकल गए...

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"शक्ति, वो कटार मुझे दो... और तुम अभी के अभी हमारे सैनिक और उन दासियों के पास पहुँच जाओ" आंखे फाड़कर देख रहे शक्तिसिंह को राजमाता की आवाज ने झकझोर दिया...

बलवानसिंह की कटार राजमाता के हाथ में थमाकर उसने दीवार पर सुशोभन के लिए लगी तलवार निकाल ली और तुरंत शयनखंड के बाहर गया। बहार खड़े सैनिक को एक झटके में उड़ाकर वह दरबार के खंड तक भागता हुआ गया। दरबार के आगे वाले खंड में सूरजगढ़ के बंदी सैनिक और राजमाता की १०० दासियों बैठे हुए थे। शक्तिसिंह का इशारा मिलते ही सारी दासियों ने कपड़े उतारना शुरू कर दिए... हकीकत में वह सैनिक ही थे जो महिला के वस्त्र पहनकर, अंदर शस्त्र छुपाकर, घूँघट तानकर, राजमाता के साथ अंदर घुस आए थे।

सैनिकों ने अपने घाघरे उतारकर पैरों के साथ बंधी तलवारों को बहार निकाला... उन बंदी सैनिकों को एक एक शस्त्र थमा दिया गया.. अब कुल मिलाकर २०० सैनिकों का दल शक्तिसिंह के सामने तैयार खड़ा था और उसके निर्देश का इंतज़ार कर रहा था।

"आप लोग दो दलों में बँट जाओ... एक दल आगे के द्वार की ओर जाएगा और एक दल पीछे की ओर... हमारा प्रयत्न यह रहेगा की हम जल्द से जल्द द्वार को खोल सके ताकि हमारी सेना अंदर दाखिल हो सके... एक बार सेना अंदर घुस गई फिर हमे हावी होने में समय नही लगेगा... में और चन्दा तब तक किले के बुर्ज पर खड़े सिपाहीयों से निपटते है। याद रहे, यह हमारे लिए आखिरी मौका है... ऐसे शौर्य से लड़ो की शत्रु घुटने टेक दे... सूरजगढ़ की जय हो!!" विजयी घोष करते हुए सैनिक दो दिशाओं में दौड़ गए...

शक्तिसिंह और चन्दा तेजी से भागते हुए किले के बुर्ज पर चढ़ने की सीढ़ी से होते हुए ऊपर चढ़ गए... राह में जीतने भी सैनिक आए उसे बड़ी ही बहादुरी से दोनों मारते गए... करीब १५ सैनिकों को ऊपर पहुंचकर केवल आखिरी सैनिक की गर्दन पर तलवार रखते हुए शक्तिसिंह ने उसे लकड़ी का पूल गिराने को कहा... बेचारे सैनिक के पास और कोई विकल्प न था... रस्सी को खोलकर उसने लकड़ी का पुल गिरा दिया... उस सैनिक का काम खतम होते ही शक्तिसिंह ने उसे धक्का देकर किले की दीवार के उस पार फेंक दिया।

पुल का रास्ता खुल चुका था.. अब जरूरत थी किले के दरवाजे को खोलने की!! शक्तिसिंह और चन्दा अब नीचे उतार आए जहां सूरजगढ़ के सैनिक बलवानसिंह की सेना से वीरतापूर्वक लड़ रहे थे... स्थापना-दिवस का उत्सव मनाते सैनिक शराब के नशे में धुत होकर लड़ रहे थे इसलिए उनकी तरफ से अधिक प्रतिरोध नही हो रहा था। फिर भी उनका संखयाबल अधिक था इसलिए शक्तिसिंह अपनी मनमानी कर नही पा रहा था...

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भीषण युद्ध हुआ... सूरजगढ़ के सैनिक पूरे जोश से शौर्यगढ़ की सेना पर टूट पड़े थे... फिर भी उनके प्रयास सफल होते नजर नही आ रहे थे। शौर्यगढ़ के सनिकों की संख्या कम ही नही हो रही थी... परिश्रम के कारण अब शक्तिसिंह और उसके सैनिक काफी थक भी गए थे।

तभी... एक काले अश्व पर सवार होकर रणचंडी की तरह राजमाता महल से निकलकर उस युद्धस्थल पर पहुंची... उनके बाल खुले हुए थे और कपड़े रक्तरंजित थे... और उनके हाथ में था, बलवानसिंह का कटा हुआ सर.. !!!

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अपने राजा का कट हुआ सर देखकर, शौर्ययगढ़ के सैनिकों के हौसले पस्त हो गए... पूरी सेना में अफरातफरी मच गई और सब यहाँ वहाँ भागने लगे... यही मौका था!! शक्तिसिंह और उसके सैनिक उन पुर पूरे जोश से टूट पड़े... शौर्यगढ़ के सैनिक गाजर-मुली की तरह कटने लगे। अश्व पर बैठे अपनी तलवार से राजमाता ने भी कहर बरसा दिया...

उसी दौरान कुछ सैनिकों ने किले का मुख्य द्वार खोल दिया... द्वार खुलते ही सेनापति के नेतृत्व में सूरजगढ़ की सेना ने अंदर प्रवेश किया... अगले एक घंटे के अंदर, शौर्यगढ़ की आधे से ज्यादा सेना मर चुकी थी और बाकी आधी को बंदी बना लिया गया था।

यह सारी योजना राजमाता की ही थी। सैनिकों के दासियों के रूप में अंदर ले जाना... बलवानसिंह के साथ संभोग में अधिक से अधिक समय व्यतीत करना ताकि वह थक जाए और सामना करने की स्थिति में न रहे... और उस दौरान उत्सव में व्यस्त सैनिक भी शराब के नशे में चूर हो जाए ताकि उनका प्रतिरोध ना के बराबर हो!!

आखिरकार राजमाता ने शौर्यगढ़ को जीत लिया और अपना बदला भी ले लिया...
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विजयी होकर वापिस सूरजगढ़ पहुंची सेना और राजमाता का नगरवासियों बड़े हर्षोल्लास के साथ स्वागत किया..

अगले दो महीनों में शक्तिसिंह को शौर्यगढ़ का नया सूबेदार घोषित कर दिया गया... शक्तिसिंह अब सूरजगढ़ के ताबे में शौर्यगढ़ पर शासन करेगा... अपने सेनापति के रूप में शक्तिसिंह ने चन्दा को चुना था.. यह काबिल जोड़ा अब बड़ी ही बखूबी से शौर्यगढ़ का संचालन करने लगा।

पूर्व से लेकर पश्चिम तक सारे राज्य, कस्बे और रजवाड़े अब राजमाता के शासन तले थे.. जिस प्रकार की साम्राज्ञी बनने की उनकी ख्वाहिश थी.. वो अब पूरी हो गई थी.. विद्याधर के सिखाए राह पर चलकर और शक्तिसिंह के सहयोग से राजमाता ने यह असामान्य सिद्धि हाँसील कर ली थी।


समाप्त

samapt
WOW WOW WOW
Very Brilliant Ending
BHot he LAJAWAB story hai bhai maja aagaya read krke
 
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Raj3465

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Maharani kaha gyi ... ?? Usko bhi to lao rum bhumi pr.... Saas bahu ka kuch tadka bhi daalo
 

Dirty_mind

Love sex without any taboo
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चुत गीली होने पर घर्षण कम होगा और स्खलन तक पहुचने की अवधि का बढ़ जाने का अंदेशा था। इस बारे में राजमाता ने पहले ही उसे चेतावनी दे रखी थी। संभोग की सीमा को न्यूनतम रखनी थी और उसे लंबा करने की जरा सी भी कोशिश नहीं करनी थी। जितना जल्दी हो सके उसे स्खलित होना था। उसने तुरंत अपना लंड रानी की चुत से बाहर निकाला और अपनी धोती के कपड़े से पोंछ लिया। पोंछते वक्त एक पल के लिए उसे लगा की वही स्खलित हो जाएगा। बड़ी मुश्किल से उसने अपने स्खलन को काबू में रखा। यदि उसका वीर्य चुत के बाहर ही निकल जाता तो पता नहीं राजमाता उसका क्या हश्र करती!!

लंड को दोबारा चुत में डालते ही महारानी की आह निकल गई। जिस तरह का आनंद उन्हे मिल रहा था उस वजह से उनकी ऐसी आवाज़ें निकल जाना स्वाभाविक था। पर फिलहाल इस खेल के नियम अलग थे और उनका पालन करवाने हेतु राजमाता उनके सर पर बैठी थी।

"ऊँहहह ... " महारानी पद्मिनी से रहा न गया और एक और आवाज निकल गई। रानी के दोनों हाथ तकिये के कौनों को पकड़कर भींच रहे थे। अगर उसने अपने हाथों को रोके नहीं रखा होता तो अब तक वह अपने नाखूनों से शक्तिसिंह की छाती को चीर देती। पर अफसोस, एक दूसरे को छूने की इजाजत नहीं थी। रानी अपनी कमर उठाकर शक्तिसिंह को जितना ज्यादा हो सके अपने अंदर ग्रहण करने की कोशिश कर रही थी।

रह रह कर शक्तिसिंह के मन में राजमाता के आदेश मंडरा रहे थे। आदेश था की लंड को केवल अंदर बाहर करना था और कुछ भी नहीं। राजमाता का आदेश उसका कर्तव्य था। उसके शरीर में प्रवेश चुके कामरूपी राक्षस को नियंत्रित करने की शक्तिसिंह ने ठान ली।

वह अपने आप से संवाद करने लगा "तुम्हें बस अंदर बाहर करना है... अंदर और बाहर.. अंदर और बाहर.. अंदर और बाहर.. और कुछ भी नहीं!!"

अब वह यंत्रवत रानी की चुत में अंदर और बाहर धक्के लगाने लगा। उसने अपनी उमड़ रही सारी भावनाओ को किनारे कर दिया। वह बस आँखें बंद कर धक्के लगाने लगा। इस बीच वह यह भी भूल गया की उसका लंड फिर से रानी के चुत रस से लिप्त होकर चिपचिपा हो गया था और उसे पोंछने की जरूरत थी।

वह ये भी भूल गया की उसके नीचे वासना से तड़पती हुई स्त्री थी जो चाहती थी की ऐसे यंत्रवत रूखे झटकों के बजाए उसकी जानदार चुदाई हो। वह चाहती थी की उनकी दोनों टांगों को शक्तिसिंह के कंधों पर टाँगकर अपनी चुत को इस हद तक चौड़ा करे की लंड के धक्के उसकी चुत की हर गहराई तक महसूस हो। उसकी चूचियाँ चोली फाड़कर बाहर आना चाहती थी ताकि मर्दाना हाथों से उन्हे मसला जा सके। पर राजमाता की उपस्थिति में ऐसा कुछ भी करना मुमकिन ना था।

फिर भी वह अपने चूतड़ों को झटके देने से रोक ना पाई। उसकी साँसे बेहद तेज चल रही थी। उसके उभार ऊपर नीचे हो रहे थे। वह रानी नहीं पर एक भूखी चुदक्कड़ स्त्री का स्वरूप धारण कर चुकी थी।

इन सारी बातों से बेखबर उनका वफादार सिपाही, आनन फानन में धक्के लगाए जा रहा था। शक्तिसिंह के मस्तिष्क में फिलहाल राजमाता के शब्द हावी हो चले थे।

पद्मिनी के जिस्म में आग लग चुकी थी। फिलहाल वह इतना चाहती थी की शक्तिसिंह के साथ उसकी चुदाई जितनी लंबी हो सके उतनी चलती रहे। उसने आखिर उत्तेजित होकर शक्तिसिंह का दाहिना हाथ पकड़ लिया। उस तरफ का द्रश्य राजमाता की नज़रों से बाहर था। इस निराशा में की वह अपने स्तनों को नहीं मसल पा रही, वह अपने दूसरे हाथ से अपनी गर्दन को सहलाने लगी।

अब तक जो कुछ भी चल रहा था वह राजमाता को योजना के मुताबिक होता नजर आया। वह जानती थी की वीर्य स्खलन के लिए शक्तिसिंह को अभी कुछ और झटकों की जरूरत थी। पिछली रात को शक्तिसिंह का लंड हिलाकर स्खलित होने में कितना वक्त लगा था उसकी गणना उनका दिमाग करने लगा। उसने कोई हस्तक्षेप करने से पहले थोड़ा और वक्त देने का फैसला किया।

राजमाता यह देख नहीं पा रही थी पर शक्तिसिंह यह महसूस कर पा रहा था की महारानी नीचे से अपनी कमर और चूतड़ उठाकर सामने से झटके लगा रही थी। उसने अपनी आँखें खोलकर अपनी नीचे लेटी वासना से लिप्त स्त्री की तरफ देखा। दोनों की नजरें मिली। महारानी पद्मिनी की आँखों में बस चुदाई का बहुत शक्तिसिंह को बखूबी नजर या रहा था। रानी के चेहरे की त्वचा उत्तेजना के कारण लाल और पसीने से लथबथ हो गई थी। रानी ने अपना चेहरा दाहिनी ओर किया और चुपके से शक्तिसिंह के उस तरफ के हाथ को चूम लिया।

शक्ति सिंह पिछले दिन से महारानी की खूबसूरती को बड़ी बेशर्मी से निहार रहा था। उसके सुडौल कूल्हे, लंबे पैर , और इन सबके ऊपर थे उसके बड़े बड़े मोटे भरे हुए स्तन!!! महारानी के चूमते ही वह बावरा हो गया। उसके लंड को स्खलन का एहसास भी होने लगा। पर वह अभी इस सिलसिले को खतम करना बिल्कुल नहीं चाहता था। अभी तो शुरुआत ही हुई थी... !! महारानी के सारे अंग, उनके हावभाव, यह चिल्ला चिल्ला कर कह रहे थे की उस दौर को चलते रहने देना चाहिए। इस बात की अनदेखी वह कैसे कर सकता था!! शक्तिसिंह ने एक नजर राजमाता पर डाली जो बड़े चाव से उन दोनों के संसर्ग को देख रही थी। वापिस उसने धक्के लगाने पर ध्यान केंद्रित किया।

शक्तिसिंह ने अब थोड़ा सा पीछे की तरफ होकर अपने हाथों को बिस्तर से उठा लिया। उसका आधा लंड महारानी की चुत से बाहर निकल गया। राजमाता यह देख पा रही थी की शक्तिसिंह का स्खलन अभी भी नहीं हुआ था, फिर ये बीच में रुक क्यूँ गया? उन्होंने गुस्से भरी आँखों से उसकी और देखा... शक्तिसिंह को उनकी क्रोधित नजर से जैसे ज्यादा फरक नहीं पड़ा। आधे से ज्यादा लंड चुत से बाहर निकल चुका था और केवल सुपाड़ा ही अंदर फंसा था। अगर वह हल्का सा खींचता तो पूरा लंड महारानी की चुत से निकल जाता। महारानी इस हरकत से बेचैन हो उठी थी। उन्होंने शक्तिसिंह के हाथ को पकड़कर अपनी तरफ खींचना चाहा पर वह उनकी पहुँच से दूर था।

राजमाता के आदेश अनुसार महारानी का उपरार्ध वस्त्रों से ढंका हुआ था। उन्होंने केवल घाघरा ऊपर कर अपनी चुत को ही खोल दिया था। चोली और घाघरे के बीच में उनका पूरा पेट भी खुला था।

राजमाता की आँखों में देखते हुए शक्तिसिंह ने घाघरे के नीचे अपनी दोनों हथेलियों को घुसाकर महारानी के चूतड़ों को पकड़ लिया। उसकी मजबूत बाहों को महारानी के नाजुक बदन का वज़न उठाने में कोई दिक्कत नहीं हुई। कूल्हों से उठाकर उसने महारानी के पूरे जिस्म को इस तरह उठाया की उसका लंड वापिस पद्मिनी की चुत में समय गया।

महारानी पद्मिनी अभी भी बिस्तर पर लेटी हुई थी पर उसकी कमर अब शक्तिसिंह की जांघों पर थी।

जननांगों के अलावा यह पहला अंदरूनी शारीरिक संपर्क था उस सैनिक और महारानी के बीच। अब शक्तिसिंह का लंड इस तरह कोण बनाकर चुत में घुसा था जिससे वह चुत के ऊपरी हिस्से पर दबाव बना रहा था। महारानी के मुंह से एक गरम आँह सरक गई और चुत में ऐसी सुरसुरी होने लगी जैसे उनका मूत्र निकलने वाला हो।

इन संवेदन का कारण यह था की शक्तिसिंह का सुपाड़ा उनके जी-स्पॉट पर जा टकराया था। योनि के अंदर करीब दो इंच के बाद, ऊपर की तरफ चर्बी का गद्दीनुमा भाग बेहद संवेदनशील होता है। अगर कोई भी मर्द अपने लिंग या उंगली से उसका मर्दन करे तो वह अपनी स्त्री को निश्चित रूप से तुरंत स्खलित कर सकता है। शक्तिसिंह आगे पीछे होते हुए ऐसे झटके लगा रहा था की उसका लंड, नगाड़े को पीट रहे डंडे की तरह, महारानी के जी-स्पॉट पर फटके लगा रहा था। महारानी की उत्तेजना की कोई सीमा न रही।

"ये क्या कर रहे हो..!!!" राजमाता चिल्लाते हुए खड़ी हो गई।

उनकी आवाज सुनकर शक्तिसिंह वहीं ठहर गया। उसकी नजर कभी अपने दो पैरों के बीच चुत खोलकर चुदवाती महारानी पर जाती तो कभी परदे के पीछे खड़ी क्रोधित राजमाता पर। जिस वक्त राजमाता उसपर चिल्ला रही थी उस वक्त महारानी अपनी चुत मांसपेशियों को संकुचन कर शक्तिसिंह के लंड को ऐसे दुह रही थी जैसे किसी गाय के थन को दुह रही हो।

शक्तिसिंह को अंदाजा तो लग गया था की राजमाता क्यों गुस्सा हुई थी!! पर अचंभा इस बात का था की इतनी अनुभवी औरत क्या यह भी नहीं समझती की ऐसी स्थिति में कुछ हरकतों का अपने आप ही हो जाना स्वाभाविक था!! क्या वह अपनी बहु की तड़पती हुई दशा नहीं देख पा रही थी? क्या वह बिना किसी प्रतिक्रिया के ही धक्के लगाए जाए? हालांकि नियम तो यही थे पर क्या उसका इतनी हद तक पालन करना जरूरी था? जब उसे महारानी को गर्भवती बनाने की छूट दे दी गई है तो इस प्रक्रिया में, दोनों पक्ष थोड़ा सा आनंद ले ले तो इसमें कौन सा आसमान टूट पड़ता!!

राजमाता को इन दोनों के बीच तुरंत हस्तक्षेप करने की तीव्र इच्छा हुई पर वह इसलिए हिचकिचाई क्योंकी अभी मंजिल हासिल नहीं हुई थी।

महारानी अपनी चुत की सुरसुरी को अपने अंदर ही रोके रखी थी, यह सोचकर की कहीं उनका पेशाब ना निकल जाए। वह चाहती थी की शक्तिसिंह दोबारा पूर्ण जोश से धक्के लगाकर उसे चोदे। वह अपने आप को चरमसीमा के बिल्कुल करीब महसूस कर रही थी जब राजमाता ने इस लाजवाब कबाब में हड्डी डाल दी। उनका शरीर तड़प रहा था... वह बिस्तर पर नागिन की तरह लोट रही थी... स्खलन की पूर्वानुमान से उनकी चूचियाँ फूल गई थी और उनकी निप्पलों में जैसी बिजली सी कौंध रही थी। दोनों चूचियाँ रेशम के चोली में कैद ऐसे छटपटा रही थी जैसे शिकारी के जाल में फंसे कबूतर!!

अब छातियों का दबाव उनसे सहा नहीं जा रहा था। बिस्तर पर कराहते वक्त, राजमाता के डर के कारण उसने यह ध्यान रखा था की वह शक्तिसिंह को उत्तेजना-वश कहीं छु न ले। पर उसकी जांघों के दाहिनी ओर, वह शक्तिसिंह की कलाइयों को बड़ी मजबूती से पकड़े हुए थी और अपने नाखून उसके हाथ में गाड़ चुकी थी। बिस्तर के दाहिनी ओर का द्रश्य राजमाता को नजर नहीं आ रहा था, यह गनीमत थी।

जब सहनशक्ति की सभी हदें पार हो गई तब महारानी ने अपने दूसरे हाथ से अपनी चूचियों को धर दबोचा। शक्तिसिंह के लंड को महारानी की मांसपेशियाँ इस कदर निचोड़ रही थी की उसे डर था किसी भी वक्त उसका वीर्य निकल जाएगा। हालांकि वह अभी स्खलन करना नहीं चाहता था। उसने अपना लंड महारानी की चुत से बाहर खींच लिया। ऐसा करते वक्त उसने संतुलन गंवा दिया और महारानी की छातियों पर जा गिरा। महारानी कराह उठी। उनकी सूजी हुई चूचियाँ अब किसी भी वक्त चोली फाड़कर बाहर निकल आने की धमकी दे रही थी। चोली के ऊपर से भी शक्तिसिंह को अपनी छाती पर उनकी कड़ी निप्पलों का एहसास हो रहा था। वह भी चाहता था की उन निप्पलों को बाहर निकालकर उन्हे मुंह में भरकर चुस ले।

शक्तिसिंह के सर पर अब शैतान सवार हो गया। उसने एक झटके में दोनों हाथों से महारानी की चोली को फाड़कर उनके मोटे मोटे बड़े स्तनों को आजाद कर दिया!! दोनों स्तन चोली से ऐसे बाहर निकले जैसे बड़ी बड़ी गोभी के फूल जमीन फाड़कर बाहर निकले हो। स्तनों की त्वचा लाल गुलाबी दिख रही थी और निप्पल तो इतनी कड़ी थी की त्वचा खरोंच दे।

महारानी ने अपने दोनों स्तनों को अपनी हथेलियों से बुरी तरह मसला। शक्तिसिंह तो बस इन शानदार उरोजों को बस देखता ही रह गया। महारानी दोनों स्तनों को मींजते हुए अपनी निप्पलों को पकड़कर मरोड़ने लगी। वह चाहती थी की शक्तिसिंह उसकी दोनों निप्पलों को बारी बारी चूसे। उसने अपनी निप्पल को इतनी जोर से खींच लाई की उनके कंठ से एक मध्यम चीख निकल गई...

"आह्ह..."

"रुक जाओ, पद्मिनी.. !!" राजमाता दहाड़ी..

राजमाता की आवाज सुनते ही महारानी ने अपनी निप्पल छोड़ दी। पर उससे रहा न गया और वह उनके आदेश को अनदेखा कर फिर अपने स्तनों को मसलने लगी। वह बार बार ऐसा कर शक्तिसिंह को उकसाना चाहती थी, जो अभी भी काफी सावधानी बरत रहा था। उसी दौरान महारानी फिर से एक बार स्खलित हो गई। उनकी दोनों जांघों के बीच फंसे लंड के इर्दगिर्द से रस की धाराएँ बहकर बिस्तर पर जमा हो गई।

अपने स्तनों को मसल मसल कर महारानी ने एक और स्खलन प्राप्त कर लिया था। एक तरह से उसने अपनी उत्तेजना को प्राथमिकता देते हुए राजमाता के अंकुश की बेड़ियों को तोड़ दिया था। अब वह शक्तिसिंह के तरफ देख रही थी, यह सोच कर की वो भी उनका अनुकरण करे। हालांकि उसे यह पता था की उनके जितनी हिम्मत वह बेचारा सैनिक कर न पाएगा।

महारानी ने शक्तिसिंह का हाथ अपनी तरफ खींच और स्तनों की तरफ ले जाना चाहा पर उसने अपने हाथ को आगे ना जाने दिया।

"क्या बात है शक्तिसिंह?" महारानी ने पूछा

स्खलित होने के पश्चात अब महारानी की निप्पल नरम हो चुकी थी। शक्तिसिंह की नजर अभी भी उन दो दिव्य स्तनों पर चिपकी हुई थी जिस पर दो अंगूर जैसी निप्पल उसे चूसने के लिए न्योता दे रही थी।

महारानी के हाथ खींचने पर शक्तिसिंह थोड़ा सा सहम गया। उसने राजमाता को बुहार लगाई

"राजमाता जी... " शक्तिसिंह ने परदे के उस तरफ राजमाता की तरफ देखा

"जब तक हम एक दूसरे के पूर्ण रूप से सुखी और संतुष्ट नहीं करते, तब तक आप मुझ में अच्छी तरह से वीर्य नहीं भर पाएंगे" शक्तिसिंह की उंगलियों से खेलते हुए, महारानी ने कहा

"यह तुम क्या कह रही हो पद्मिनी?" राजमाता ने अपना विरोध जाहीर किया

"में सही तो कह रही हूँ, राजमाता। आप मुझ पर भरोसा रखिए बस, आपको अपना पोता मिल जाएगा!!" महारानी ने उत्तर दिया। महारानी ने शक्तिसिंह की आँखों में आँखें मिलाई।

"लेकिन में... " शक्तिसिंह अब भी दुविधा में था क्योंकी राजमाता की तरफ से कोई स्पष्ट स्वीकृति या आदेश अब तक नहीं मिला था

"लेकिन वेकीन कुछ नहीं... यह हमारा हुक्म है। आप महारानी पद्मिनी देवी के आदेश को मना नहीं कर सकते। " महारानी ने थोड़े सख्त सुर में कहा

शायद शक्तिसिंह भी इसी तरह के आदेश के इंतज़ार में था। राजमाता का ना सही पर महारानी का!!

शक्तिसिंह ने अब आव देखा न ताव... दोनों हाथों से महारानी के उन बड़े बड़े स्तनों को ऐसे मसलने लगा जैसे रोटी के लिए आटा गूँदते है। स्तन मसलते हुए उसने निप्पलों को भी उंगलियों से पकड़कर मरोड़ दिया।

पद्मिनी अब पूरे जोश में आ चुकी थी "हाँ शक्तिसिंह, बिल्कुल वैसे ही प्यार करो मुझसे... जो करना है करो मेरे जिस्म के साथ... "

शक्तिसिंह फिर एक बार राजमाता की ओर उनकी प्रतिक्रिया जानने के हेतु से देखा

"उन पर ध्यान मत दो.. वह नहीं समझ पाएगी। ना मेरी हालत और ना ही तुम्हारी" रानी ने भारी साँसे छोड़ते हुए कहा

पद्मिनी ने अपने हाथ दो जांघों के बीच डालकर शक्तिसिंह के चिपचिपे लंड को बड़े ही स्नेह से पकड़ा। उसकी चुत के काम-रस से पूरा लंड लिप्त था।

शक्तिसिंह ने अब दोबारा अपनी हथेलियों से महारानी के कूल्हों को उठाकर अपना औज़ार चुत के अंदर दे मारा। महारानी ने अपने दोनों पैरों से शक्तिसिंह की कमर को चौकड़ी मारकर जकड़ लिया।

महारानी ने अपनी गर्दन को तकिये के ऊपर इस तरह दबाया की उनकी कमर उचककर शक्तिसिंह के लंड को मूल तक निगल गई। शक्तिसिंह के हर धक्के के साथ उनकी पायलों की खनक पूरे तंबू में गूंज उठती थी।

"आह महारानी साहेबा... बहोत मज़ा आ रहा है" शक्तिसिंह अब अपने आप को रोक नहीं पा रहा था

"शक्तिसिंह, तुम जैसे चाहे मुझे रगड़ो... मेरी चुत के परखच्चे उड़ाकर अपनी वफादारी और मर्दानगी का सबूत दो मुझे!!"

दोनों अब ऐसी राह पर चल पड़े थे जहां से वापिस लौटना लगभग नामुमकिन सा था। लय और ताल के साथ लगता प्रत्येक धक्का, कई अनोखी ध्वनियों को जन्म देता था। दोनों के अस्पष्ट उदगार, पायल की खनक, बिस्तर की चरमराहट और गीली चुत के अंदर घुसते लंड से उद्भवीत होती "पुचुक पुचुक" की आवाज!!

हर धक्के पर महारानी को एहसास हो रहा था की महाराज कमलसिंह का लंड तो इस मूसल के मुकाबले कुछ भी नहीं था।

अब महारानी ने अपनी कमर को धनुष्य की प्रत्यंचा की तरह ऊपर की तरफ उठा दिया। इस स्थिति में अब शक्तिसिंह का सुपाड़ा चुत की ऐसी गहराइयों को छु रहा था जो महारानी को अनूठा आनंद देता था।

"आह आह.. अब मेरा निकलने को है... महारानी जीईईई... में अभी इसे समाप्त करना नहीं चाहता.. आह" शक्तिसिंह हर एक "आह" के साथ और जोर से चुत में धक्के लगा रहा था।

महारानी ने शक्तिसिंह के एक हाथ को पकड़कर सांत्वना देते हुए कहा "कोई बात नहीं... करते जाओ"

शक्तिसिंह ने अब झुककर महारानी की निप्पल को अपने मुंह में लेकर बेतहाशा धक्के लगाने शुरू किए।

"पीछे की तरफ हो जाओ... अभी के अभी..." राजमाता ने कहा। उन्हे इस बात का भरोसा था की अब मंजिल करीब थी पर वह फिर भी अपना नियंत्रण बनाए रखना चाहती थी।

शक्तिसिंह दोनों हाथों से महारानी के स्तनों को मलते हुए उनके पेट को सहलाने लगा। फिर उनकी नाभि को कुरेदते हुए उसका हाथ नीचे गया जहां उसका लंड महारानी की चुत में नए जीव के सर्जन करने की कोशिश कर रहा था। महारानी के झांटों के बीच उसने उनके भगनासा (क्लिटोरिस) को उंगलियों से ढूंढ निकाला।

जैसे ही महारानी के भगनासा को उसने उंगलियों से छेड़ा, पद्मिनी की सांस अटक गई। शक्तिसिंह के कमर पर लपेटे पैरों से वह उसके कूल्हों को बुरी तरह पीटने लगी। उसकी आँखें ऊपर की तरफ चढ़ गई। उसका पूरा जिस्म बुरी तरह कांपने लगा।

"अब उसके अंदर स्खलित हो जाओ, जल्दी से" राजमाता ने जोर लगाया

शक्तिसिंह ने महारानी के दोनों स्तनों को कसकर दबोच लिया और धक्कों की गति और तेज कर दी।

"आह आह... लीजिए महारानी जी, मेरी प्यारी पद्मिनी... लो... मेरा रस ग्रहण करो... "

"हाँ, हाँ... भर दो मुझे, मेरी जान... " पद्मिनी की आँखों से अब आँसू बहने लगे। इस अनोखी मुलाकात से वह अब बेहद भावुक हो गई थी। बार बार स्खलित होकर वह अपनी भावनाओ पर से काबू खो बैठी थी। राजमाता के नियमों और अंकुश ने उन्हे कई तरफ से बांध कर रखा था पर फिर भी वह बेहद खुश थी की उसे अपनी मंजिल प्राप्त हो रही थी।

वीर्य की पहली धार अपनी चुत में महसूस होते ही वह चिल्लाई

"माँ, इसने मेरे अंदर वीर्य रस भर दिया है... !! ओह्ह... आह्ह!!"

हर झटके के साथ अपना गाढ़ा वीर्य छोड़ते हुए शक्तिसिंह का दिमाग सुन्न हो चला था। कुछ झटके लगाने के पश्चात वह रानी के खुले स्तनों पर लाश की तरह ढेर हो गया। यह उसकी पहली चुदाई थी... और वह भी अपनी महारानी के साथ... उसके भाग्यशाली लंड को शाही चुत में स्खलन करने का यह दिव्य मौका प्राप्त हुआ था। थकान के मारे वह अपना पूरा वज़न महारानी की छातियों पर यूं डाले सो रहा था की दोनों चूचियाँ बीच में दब चुकी थी। चुत के अंदर घुसा लंड अभी भी पिचकारियाँ मार रहा था।

महारानी अपने सैनिक की पीठ पर हाथ सहलाकर उसे शांत करने लगी। दोनों बुरी तरह हांफ रहे थे। वह अभी भी अपने भीतर मलाईदार वीर्य की गर्माहट अपनी चुत के हर हिस्से मे महसूस कर सकती थी। जो कार्य हाथ में लिया था वह तो पूरा हो चुका था पर अब बहुत बहुत कुछ और करना बाकी था।

महारानी ने शक्तिसिंह के कान पर एक हल्की सी चुम्मी दी.. और अपनी जीभ फेरकर उसे गुदगुदाया.. अपनी हथेली को शक्तिसिंह की पीठ से लेकर कूल्हों तक सहलाकर वह पश्चात-क्रीडा को अंजाम देने लगी।

दोनों की साँसे जैसे ही पूर्ववत हुई, शक्तिसिंह को पीठ को किसी ने थपथपाया.. वह राजमाता थी और संकेत दे रही थी की अब दोनों के अलग होने का समय आ गया था।

"में तुम्हारे पास दोबारा आऊँगी" अलग होने से पहले महारानी पद्मिनी शक्तिसिंह के कान में फुसफुसाई। शक्तिसिंह अपनी रानी के ऊपर से उठ खड़ा हुआ। ऊपर का वस्त्र उसने अभी भी पहने रखा था जो अथाग परिश्रम के कारण पसीने से भीग चुका था। उसके दो पैरों के बीच झूल रहे लंड अपनी सख्ती छोड़ी नहीं थी। पूरे खुमार से वह यहाँ से वहाँ हिल रहा था।

"बाप रे... " वीर्य और योनि रस से सम्पूर्ण भीगे हुए विकराल लंड को देखकर महारानी बोल पड़ी। साथ ही साथ उसे शक्तिसिंह के इस लंड पर ढेर सारा प्यार भी उमड़ पड़ा...

राजमाता ने तुरंत एक चद्दर उठाई और महारानी के खुले स्तनों को ढँक लिया... साथ ही साथ उन्होंने पैर फैलाए लेटी महारानी का घाघरा नीचे कर, उसकी चुत की दुकान बंद कर दी।

बिस्तर के बिल्कुल बाजू में पड़ी हुई धोती उठाकर शक्तिसिंह वहीं खड़े खड़े पहनने लगा। मस्ती के नशे में झूमती हुई महारानी ने लेटे लेटे ही शक्ति सिंह के लंड पर उँगलियाँ फेर दी और बोली

"जा रहे हो?"

"जी हाँ... क्यों?" शक्तिसिंह ने आश्चर्यसह पूछा

"अभी तो इसमें और जान बाकी है... इसे मेरे हवाले कर दो... फिरसे तैयार हो जाएगा" कुटिल मुस्कुराहट देते हुए महारानी बोली। जैसे राजमाता की उपस्थिति से उसे अब कोई फरक नहीं पड़ता था।

"तुम जाओ यहाँ से अब... " तीखी आवाज में राजमाता ने शक्तिसिंह को आदेश दिया। उसका बादामी रंग का चिपचिपा तगड़ा वीर्य से सना लंड देख राजमाता खुद सिहर गई। "साली ने बड़ी मस्ती से चुदवाकर मजे किए" पद्मिनी की तरफ थोड़ी सी नफरत से देखते हुए वह मन ही मन सोच रही थी।

धोती बांध रहे शक्तिसिंह के लंड पर अभी भी दोनों औरतों की नजर चिपकी हुई थी। महारानी की उँगलियाँ लंड से छूट ही नहीं रही था। राजमाता अब अपने बारे में सोच रही थी... की काश आज रात को यह हथियार का मज़ा मुझे मिल जाए!! शक्तिसिंह उलटे पैर चलते हुए सलाम करते करते तंबू से बाहर निकलने लगा। दोनों की आँखें आखिर तक उसकी धोती पर ही चिपकी रही।

अब यह राजमाता की जिम्मेदारी थी की वह राज्य के उत्तराधिकारी के वाहक की संरक्षा और देखभाल पूरी शिद्दत से करे। इस घनघोर चुदाई के बाद, महारानी के गर्भवती हो जाने की उन्हे पूरी उम्मीद थी।

राजमाता के जिस्म में अब अजीब सी हलचल होने लगी थी। एक घंटे के उस संभोग को देखकर वह असहज हो गई थी। सब योजना के मुताबिक हुआ था पर महारानी और शक्तिसिंह वासना के तारों से जुड़ गए थे, यह बात उन्हे काट कहा रही थी। हालांकि वह जानती थी की ऐसा होना स्वाभाविक था पर उनके आदेश के बावजूद हुई इस गुस्ताखी को उन्हों ने अपनी अवमानना की तरह लिया। शक्तिसिंह ने महारानी के स्तनों को दबोचा, निप्पल को मरडोकर चूस लिया, रानी ने उसकी कमर पर पैर लपेट लिया, इन सब के बावजूद वह कुछ न कर पाई।

"क्या में चाहकर भी रानी की चुत को द्रवित होते रोक पाती? क्या में शक्तिसिंह के लंड को उस क्षण पर नियंत्रित कर पाती?" राजमाता के दिमाग में प्रश्नों की झड़ी लग गई। हस्तक्षेप करने की भी अपनी सीमाए थी। फिर भी देखा जाए तो सब कुछ ठीक ही रहा था। उनके रोकने पर दोनों रुक गए थे और योजना के मुताबिक महारानी की चुत में भरपूर मात्रा में वीर्य भी बहा दिया गया था। कामावेश कम होते ही शक्तिसिंह भी आज्ञाकारी बन गया था और आदेश अनुसार उठ कर चला भी गया।

शक्तिसिंह के पसीने से तरबतर बदन और विकराल लंड का द्रश्य राजमाता की नज़रों से हट ही नहीं रहा था। महारानी ने जिस तरह शक्तिसिंह को अपने वश में कर मनमानी कर ली इससे राजमाता के मन में ईर्षा का भाव जागृत हो गया। शक्तिसिंह का तगड़ा लंड जब चुत को चीरकर अंदर घुसा होगा तब कितना आनंद आया होगा यह सोचते ही राजमाता की चुत द्रवित हो गई। बिस्तर पर लेटे लेटे कब उनका हाथ अपने घाघरे के अंदर चला गया उसका उन्हे पता भी नहीं चला। अपने दाने को घिसकर प्यास बुझाने के बाद ही उनकी आँख लगी।

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थका हुआ शक्तिसिंह अपने तंबू में आते ही ढेर हो गया। जीवन की इस प्रथम चुदाई में जितना आनंद आया था उतना ही उसका दम भी निकल गया। बिस्तर पर गिरते ही उसे गहरी नींद आ गई।

उसकी नींद में तब खलल पड़ी जब उसे अपनी धोती के अंदर कोई हलचल होती महसूस हुई। स्वभाव से चौकन्ने सैनिक ने पास पड़ी कतार उठाकर सामने धर दी। आँख खोलकर देखा तो वह महारानी पद्मिनी थी!! तुरंत ही उसने कतार को म्यान में रख दिया। उसे पता ही नहीं चला की कब रानी उसके तंबू में आकार उसके बिस्तर पर लेट गई और धोती से उसका लंड बाहर निकालकर उसे सहलाने लगी। नींद में भी वह रानी की गद्देदार चुत के सपने देख रहा था। आँख खुली तो वही सामने उसके लंड से खेलती नजर आई।

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vakharia

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बिना सेक्स के कमुख्ता का अहसास करवाना अमेज़िंग. कहानी वही जो पढ़कर आगे की कल्पनाओ मे खोने को मजबूर कर दे. ये स्टोरी फॉर्म पर आप की अलग ही छाप छोड़ेगी.

मेरा अंदाजा सही ही था. बीज धारण करना. सही परिवार अपने राज पाठ अपने रुतबे को बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है. फैसला सही भी है. अमेज़िंग क्रिएटिविटी.


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Thanks Shetan ji for the lovely review
 
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liverpool244

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Bhai log new story start ki hai jarurat title hai story ka please read kariye aap log please
 
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