महारानी उसकी बातों को सुनकर कुछ देर तक हस्ती रही और फिर बोली कि
रूपलेखा "तुम्हे क्या लगता है अब तुमको कोई पहचान पायेगा । अब तो यह संभव ही नही है बस इतना जान लो कि अब तुमको समाज मे एक नई पहचान से दुनिया के सामने आना होगा क्यूंकि अब तुम्हारी पुरानी पहचान तुम्हारे किसी काम की नही है और उससे भी बड़ी बात यह है कि अब अगर तुम अपने वास्तविक नाम से रहोगी तो हो सकता है तुम्हे जान से मारने की फिर से कोशिश की जाय जो कि ना तो तुम्हारे लिए हितकर होगा और ना ही मेरे लिए।
औरत ”तो आप क्या चाहती है कि मैं अपनी पहचान बदल लू ।तो चलिए मैं आपकी यह बात मान लेती हूं लेकिन फिर भी सवाल तो अब भी वही है कि हम रहेंगे कंहा और करेंगे क्या।"
रूपलेखा " उसकी चिंता तुम मत करो यंहा इंसानो के बीच मे जो हमारे गुलाम रहते है हम उनकी मदद ले सकते है लेकिन मैं ऐसा करने के लिए सोच भी नही सकती क्यूंकि वह राजसिंहासन के प्रति वफादार होते है ना कि किसी आदमी विशेष के लिए इसलिए अगर अब मैने उनसे मदद ली तो हो सकता है कि हमारी खबर उन तक पहुच जाए इसलिए मैं तो यही कहूंगी की हम एक साधारण जिंदगी जी सकते है जब तक कि हम उन कमीनो से लड़ने के काबिल ना बन जाये।"
औरत "ठीक है जैसा आप कहे और एक बात है अगर आपकी इजाजत हो तो कहु।"
रूपलेखा "तुम्हे कुछ भी कहने के लिये इजाजत लेने की जरूरत नही है बिना किसी संकोच के बोल सकती हो ।आखिर तुम मुझसे ज्यादा जानती हो यंहा के बारे में।"
औरत "मुझे एक बात समझ मे नही आ रही है कि आपके पुत्र ने महाराज को बन्दी क्यों बना लिया और अब आप भी डर की वजह से अपनी सारी सुख सुविधा छोड़ कर यंहा पृथ्वी पर इंसानो की भांति रहने पर मजबूर हो गयी है ।"
रूपलेखा" बस इतना समझ लो यह नियति का खेल है और आने वाले समय की मांग भी है ।इसके आगे समय आने पर पता चल जाएगा ।अब हमें ज्यादा समय यंहा पर नही व्यर्थ करना चाहिए।"
इसके बाद महारानी ने उस औरत के साथ दूसरे सहर जाने के लिए निकल पड़ी या यूं कह लीजिए कि अपनी सक्तियो के मदद से दूसरे सहर को चली गई ।जहा पर उन्होंने अपनी सक्तियो के मदद से एक घर का निर्माण किया और वंहा पर रहने के लिए सारी व्यवस्था कर दी ।
वंही दूसरी तरफ उस औरत के भागने के बाद रंजीत ने माँ और उसकी बेटी की परछाई जो कि केवल 24 घंटे के लिए बनी थी उन दोनों के साथ अपने आदमियो के मदद से दोनों का बलात्कार करके उसकी माँ को जान से मार दिया और बेटी की परछाई को लेकर अपने घर के तरफ चल दिया ।उधर पाताल लोक में राजकुमार को पता चलता है कि उसकी माँ ने भी उसे धोखा दे दिया है और पिता जी से मिलने के बाद वह महल को वापस नही आई है और अभी कुछ देर पहले वो किसी के साथ नदी के तट पर आई हुई थी और वही से वापस चली गयी है तो वह अपने गुप्तचरों के माध्यम से पता करने की कोशिश करता है लेकिन उसे कुछ भी सफलता नही मिलती है और जब तक वह सिघषन पर विराजमान नही होजाता तब तक वह अपनी माँ के बारे में पता नही कर सकता है ।इस तरह कुछ महीने बीत जाते है और वह घड़ी भी आ जाती है जब वह सिघाशन पर बैठता है लेकिन इसके बाद भी वह मा के बारे में पता करने में सफल नही हो पाता है तो वह गुरदेव से इसका कारण पूछता है तो वह बताते हैंकि महारानी ने देवी से प्राप्त वरदान का प्रयोग अपने आप को दुनिया की नजर से बचने के लिए किया है और इसकी अवधि वह कितना रक्खी है और कितने लोगों पर की है इसके बारे में पता लगाना संभव नही हैं।
आखिर में थक कर राजकुमार अपनी सक्तियो को बढ़ाने में लग जाता है ताकि समय आने पर मुकाबला कर सके