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Incest रिश्तों का कामुक संगम

moms_bachha

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अनोखी दोस्ती भाग २

सुबह से ही आज काफी तेज़ बारिश हो रही थी। सावन का महीना अपने असली रंग में आ चुका था। चारों ओर खिली हरियाली, और बारिश के शोर के साथ गीलापन घरों से लेकर खेतों तक व्याप्त था। बारिश की बूंदे तेज़ गिर रही थी, धरमदेव ऐसे मौसम में भी छाता लेकर खेतों की ओर निकल पड़े थे। खेतों में ज्यादा पानी ना भर जाए, इसलिए वहाँ नालों की निगरानी के लिए, जाना जरूरी था। वैसे तो अभी सात बज चुके थे, पर आसमान में घिरे बादल से अंधेरा पूरी तरह छाया हुआ था। बीना भी सुबह उठकर नहाकर, घर में खाना पका रही थी। उसके मन में रह रह के, कल रात की बातें याद आ रही थी। कैसे वो और राजू माँ बेटे होकर भी वो किया था, जो उन्हें नहीं करना चाहिए था। लेकिन बीना का मन इस बात से पूरी तरह राजी नहीं था,कि उसने कुछ अनैतिक किया है। राजू ने तो बस उसके काँख के बाल काटे थे, और उसने नई पैंटी पहनके दिखाई ही तो थी। इसमें गलत अगर है भी तो, उसे ग्लानि होने के बजाय रोमांच क्यों महसूस हो रहा था। घर की बेटी होने के नाते गुड्डी, को तो वो ये सब दिखाती ही, राजू भी तो उसका ही खून था। अब घर में गुड्डी के बाद कोई उसकी संतान थी तो वो राजू ही था। राजू का उसपर उतना ही हक़ था जितना गुड्डी का। मां और बेटे के बीच दोस्ती का एक नया रंग भी आ चुका था। लेकिन बीना और राजू का असली सच शायद ये था कि दोनों ही काम वासना में लीन होना चाहते थे। राजू जो अभी युवा था, और अपनी बड़ी बहन के साथ व्यभिचारिक काम क्रीड़ा का आनंद उठा चुका था, उसे भली भांति मालूम था कि घर की लड़की को चोदने में कितना मज़ा आता है। उसके अंदर जवानी का भरपूर जोश भरा हुआ था। दूसरी तरफ थी उसकी माँ बीना, जो कि जीवन के लगभग चालीस बसंत पार कर चुकी थी, काम कला में निपुण, उत्तेजना और वासना उसके शरीर से बूर के पानी के माध्यम से रिसती रहती थी। इस उम्र में उसे चुदाई की भरपूर आवश्यकता थी, उसे ऐसा मर्द चाहिए था जो उसे बिस्तर में सोने ना दे, बल्कि सारी रात उसके बूर में लण्ड घुसाके चोदता रहे, जो उसे अपने पति से मिल नहीं रही थी। अपने बेटे को देख उसे ना जाने,क्यों उसे एक मर्द की झलक मिलती थी। उधर राजू भी अपनी माँ की प्यास और गर्मी से अच्छे से वाकिफ था, वो तो उसके पीछे लट्टू था। बीना ने भी उसे थोड़ी सी छूट दे दी थी, जबसे उसने उससे पैंटी मंगवाई थी। बीना जिस तरीक़े से राजू के सामने खुल रही थी, वो समझ चुका था कि उसकी माँ के अंदर चुदाई की चिंगारी सुलग रही थी। जिस दिन वो चिंगारी भड़केगी वो खुद राजू को अपनी आग़ोश में लेकर वासना के समुंदर में डुबकी लगाएगी। राजू उस वासना के समुंदर में डूबकर अपनी माँ बीना को वो अधूरी खुशी देगा जो उसका बाप उसे दे ना सका।
आज रविवार था, तो गाय का दूध धरमदेव निकाल के गया था। राजू आज सोया ही हुआ था। बीना ने उसे उठने को नहीं कहा था। खाना पकाते हुए सुबह के आठ बज चुके थे। बीना अब राजू को उठाने और कमरे में झाड़ू लगाने के लिए उसके कमरे में गयी। राजू सोया हुआ था,लेकिन उसका लण्ड उठा हुआ बीना के स्वागत में सलामी दे रहा था। बीना उसकी ओर देख उसके लंबाई का अनुमान लगा रही थी। बेटे के तने लण्ड को देख, उसकी बूर पनियाने लगी थी। एक प्यासे को अगर कुँआ दिख जाए, तो उसका उत्तेजित होना स्वाभाविक है। बीना कमरे में अंदर आकर राजू के बिस्तर के पास खड़ी हो गयी। उसने अंदाज़ा लगाया कि राजू काफी गहरी नींद में है। बीना झाड़ू को छोड़, बिस्तर के किनारे बैठ गयी और राजू के तने हुए लण्ड को घूरने लगी। वैसे तो उसका लण्ड चड्डी के अंदर था पर उसका सुपाड़ा चड्डी के बाहर झांक रहा था। बीना उस फूले हुए सुपाड़े को देख बेचैन हो उठी। बहुत दिन बाद उसे किसी लण्ड के शिश्न के दर्शन जो हुए थे। बीना ने उंगली से उस झांकते हुए सुपाड़े को छूने के लिए हाथ आगे बढ़ाया, लेकिन अगले ही पल हाथ वापिस खींच लिया। उसने फिर कुछ सोचा और हाथ फिर आगे बढ़ाया और सुपाड़े को छू लिया। ये वही लण्ड था जिसकी वो बचपन में सरसों तेल से खूब मालिश करती थी। वो लुल्ली अब विकराल लण्ड का रूप ले चुकी थी। अपने बेटे की ओर देख, वो उसके मर्दाना जिस्म पर गर्व कर रही थी। उसका गठीला बदन और छाती पर उभरते बाल उसे बता रहे थे कि राजू अब उसका वो लल्ला नहीं रहा जो घर के आंगन में बचपन में नंगा ही घूमता था। बीना उसके पीछे दौड़ती थी, और उसे गोद में उठा लेती। फिर उसे लाड़ प्यार करती थी। बीना ने उसे देख मन में कहा," केतना बड़ा हो गइल हमार राजू। पूरा जवान हो गइल बा।"
उसके सुपाड़े को छू उसने उंगली सूंघ लिया। उसमें कल रात राजू के लण्ड से बहे मूठ की सौंधी सी खुशबू थी। राजू की गंदी चड्डी भी ऐसी ही महकती थी। बीना अपनी नाक ले जाकर उसका सुपाड़ा सूंघ रही थी। बीना की बूर बह रही थी, क्योंकि जो चीज़ उसकी काम वासना की प्यास बुझा सकता था, वो उसके सामने थी। बीना बेटे के तगड़े लण्ड से प्रभावित थी। उसकी सांसें तेज चल रही थी और दिल जोड़ों से धड़क रहा था। बीना पूरी तरह बहकने लगी थी। वो जैसे ही उसका लण्ड पकड़ने वाली थी, कि राजू उठ गया। बीना हड़बड़ा कर झाड़ू उठा बोली," के...केतना देर तक सुतल बारे, देख देर हो गइल। उठ जल्दी मुँह हाथ धो अउर नहा ले, हम खाना लगा देब। तब हमहुँ नहाएब।"
राजू," हाँ जात बानि, बाबूजी गइलन का?
बीना," हाँ, उ त सवेरे गइलन बेटा, खेत पर।
राजू," खेत पर ?
बीना," हाँ, खेत के देखभाल जरूरी बा। आपन जमीन के ध्यान अब तहरो रखे के चाही। अब तू भी सारा संपत्ति अउर आपन हक़ के हर चीज़ के देखल करअ।"
राजू," सब वक़्त पर अपने चल आई हमरा पास।"
बीना मुस्कुराते हुए झाड़ू लगा रही थी, ऐसा करते हुए उसकी बड़ी गाँड़ साड़ी के ऊपर से भी कहर ढ़ा रही थी। राजू को बीना के उभार देख मन मचल रहा था। बीना की गाँड़ भी अच्छे से मटक रही थी। राजू का मन हो रहा था, कि उसके बड़े बड़े चूतड़ों को थाम महसूस करे। बीना जान रही थी, कि राजू उसकी ओर ही देख रहा है। वो भी राजू को अपने पिछले उभार लहरा लहरा के दिखा रही थी। बीना तभी राजू से बोली," बेटा, तनि हमके छज्जा साफ करेके बा। तू कर देबु का?
राजू," माई तू जेतना बढ़िया करबू, उतना बढ़िया हम न कर पाइब। हम तहरा गोदी में उठाके रखब, तू सफाई कर लिहा।"
बीना कुछ नहीं बोली बस मुस्कुराई। राजू उसके पीछे आया और अपने हाथों को उसके कमर के इर्द गिर्द बांध उसे गोद में उठा लिया। बीना के चूतड़ राजू के लण्ड को अपनी दरार के बीचों बीच महसूस कर रहे थे। राजू की तो लॉटरी लग गयी थी, भई अंधा क्या मांगे दो आँखे। बीना अपने चूतड़ पर उसका लण्ड बड़े मजे से महसूस कर रही थी। वो अपने चूतड़ से उसका लण्ड मसल रही थी। बीना और राजू सफाई कम एक दूसरे के बदन को ज्यादा महसूस कर रहे थे। बीना भारी थी पर राजू को उसे उठाने में बोझ बिल्कुल महसूस नहीं हो रहा था। बीना की बूर से तो जैसे पानी की नदी बह गई थी।
बीना," राजू हम ज्यादा भारी बानि का। तनि बढ़िया से सफाई करेके बा। तनि देर असही रहे के पड़ी।"
राजू का चेहरा उसके कंधे के पास था," ना माई तू आराम से रगड़ रगड़ के सफाई कर हम पूरा साथ देब। तू चिंता मत कर हम उठाके रखब।"
बीना," बेटा, रगड़ाई बढ़िया से करब तभी त मन संतुष्ट होई ना। तू खाली खड़ा कइके रखिहा।"
राजू," का खड़ा करके रखी माई?
बीना शरारती मुस्कान से बोली," हमके राजू।"
राजू उसे गोद में उठाये हुए पूरा छज्जा साफ करवाया। राजू ने फिर बीना को उतारा तो बीना बोली," अब तू रुक जो, हमके नहाय दे। बहुत गंदा पड़ गईल बा। तू बाद में नहा लिहा।"
राजू," ठीक बा, तब तक गाय सबके चारा दे देब।"
बीना फिर अपने कमरे में चली गयी। वो नहाने का साबुन सर्फ कपड़े इत्यादि ले कमरे से बाहर निकलने वाली थी।
तभी उसे याद आया कि बूर के घने घुंघराले बाल काटने हैं। हमेशा कच्छी और घने बालों के बीच बूर गीली होने की वजह से खुजली सी होने लगी थी। उसने चुपके से कपड़ों के बीच कैंची रख ली। फिर नहाने चली गयी। स्नानागार में पहुंच उसने अपने कपड़े रस्सी पर डाले, फिर अपनी साड़ी उतारी, ब्लाउज, साया भी उतार दिया। घर के अंदर उसने ना तो कच्छी पहनी थी और ना ही ब्रा। वो इस समय सम्पूर्ण नंगी थी। बीना ने फिर बूर की ओर देखा और घने बालों को ऊपर से सहलाया। उसने कभी भी बूर के बाल नहीं काटे थे। उसने आंखे मीच कर कैंची से बाल काटना शुरू किया। उसकी सुंदर बूर झांटों के बीच फंसी हुई थी। बीना ने बाल्टी उल्टी कर एक पैर उपसर डाला और फिर झांटों की छटाई करने लगी। बूर के बालों की छंटाई शुरू में तो आसान थी, पर बाद में जांघों के किनारों और बूर के चीरे के आसपास बालों की कटाई टेढ़ी खीर थी। बीना ने कभी काटी नहीं थी। वो काटते हुए डर भी रही थी। उसे बूर के बाल कटने से वहां काफी हल्का महसूस हो रहा था। बूर उन झांटों से आज़ाद होकर, खुद को स्वच्छंद महसूस कर रही थी। ताज़ी हवा बूर को जब छू रही थी तो, वो सिहक उठती थी। बीना शरमाते हुए बाल काट रही थी, उसने देखा पैरों के नीचे बालों का ढेर लग गया था। अचानक से बाल काटते हुए, उसने गलती से बूर के पास दाहिने हिस्से पर चमड़ी ही काट ली। उसकी जोर की सिसकी ली और वहां से खून निकलने लगा। बीना बूर से बाल काटना छोड़ रोने लगी। घाव गहरा हो गया था और लहू भी खूब बह रहा था। राजू जो गाय को चारा देने खटाल में था, वहां अपनी माँ का शोर सुन तेज़ कदमों से पहुंचा। बीना अंदर रो रही थी, राजू ने खुले दरवाज़े को धक्का देकर अंदर गया। बीना उसे देख अपने बदन को हाथों से ढकने लगी। बीना ने एक हाथ से चूचियाँ और दूसरे से बूर को ढके खड़ी रो रही थी। राजू अपनी माँ को इस अवस्था में देख उत्तेजित हो उठा। उसके खुले बाल और नंगा जिस्म उसके अंदर के मर्द को जगाने लगा। राजू उसे सर से लेकर पैरों तक घूर के देख रहा था।
बीना," राजू बेटा, इँहा से जो देखत नइखे, हम लंगटे बानि। हम नहाय खातिर इँहा अपन कपड़ा उतार देले बानि।" वो सुबकते हुए बोली।"
राजू," उ त ठीक बा, पर तु कानत काहे बारे? का भईल बोल ना।"
बीना," उ..उ... उ बाल काटत रहनि।'
राजू," का... कउन बाल अउर कइसे?
बीना," ऊंहा के बाल, राजू।"
राजू," ना बुझनी माई बोल ना स्पष्ट कहां के।"
बीना," बूर के बाल, पहिल बेर काटत रहनि, राजू लग गईल।"
राजू," कहाँ, बूर में लग गईल का?
बीना," बूर के पास, इँहा।" उंगली से इशारे कर जवाब देते हुए बोली।
राजू," अरे बाप रे, कैंची से काटत रहलु का। अरे उ कहीं सेप्टिक ना हो जाये। ऊंहा त डेटोल लगावे के पड़ी।"
बीना," आह, राजू बहुत छनछनाता, बड़ा दुख रहल बा।"
राजू," रुक हम लेके आवत हईं, तू अइसे ही खड़ा रह।"
राजू बाहर निकलकर सीधा अपने कमरे में गया और डेटोल की शीशी ले आया। बीना अभी भी वैसे ही खड़ी थी। बीना उसे करीब आता देख, थोड़ी संकुचाई और संशय में थी। उसे अपने बेटे के लण्ड का तनाव स्पष्ट दिख रहा था। वो अच्छी तरह जानती थी कि इसकी वजह उसका ये नंगा यौवन है, जो अपनी ही सगी माँ को देख उत्तेजित हो उठा है। क्या सच में वो अभी भी किसी नवयौवना की भांति, मर्द को संभोग के लिए अपने निर्वस्त्र शरीर से निमंत्रण दे सकती है। राजू तो उसके नंगे नारीत्व को देख, उसे स्त्री के दृष्टि से देख रहा था।
वो बीना के करीब आया और उसके सामने घुटनों पर बैठ गया। बीना उसे देख रही थी, उसने रुई ली और बीना का हाथ बूर से हटाने को बोला। बीना उसकी ओर देख संशय से रोते हुए बोली," राजू हम तहार माई बानि। हम तहरा सामने लंगटे बानि। हमके लाज आवेला, तहरा लाज नइखे लागत का बेशरम। ला हमके दे दे हम लगा लेब।"
राजू," माई, एमे लाज के का बात बा? इँहा इलाज के बात बा। तहरा कट गईल एहीसे त हम डेटोल लगावे खातिर आईल बानि। तू का समझआ तारू?
बीना," तू दे दआ, हम अपने से कर लेब बेटा।"
राजू," तू चुप कर, शरम छोड़ अउर हमके उपचार करे दे, चल हाथ हटा।"
बीना," राजू, पर....कइसे,, हाय राम का करि।"
राजू," ठीक बा, खाली कटल जगह घाव देखा दअ। बाकी ढक ले।"
बीना को ये बात ठीक लगी, उसने बड़ी ही सावधानी से बूर का चीरा को ढक लिया, और घाव जो बूर के बेहद करीब थी, उसे उजागर किया। राजू ने उसे बड़े करीब से देखा और उस पर रुई से डेटोल लगाने लगा। बीना को छनछनाहट महसूस हुई, तो वो इसस..इस..कर आवाज़ें निकालते हुए रो रही थी। राजू उसे बार बार चुप रहने को बोल रहा था। बीना लेकिन चुप नहीं हो रही थी। राजू अपने सामने अपनी निर्वस्त्र माँ को, देख उत्तेजित तो था ही, पर उसे ये चुभ रहा था कि उसने अभी तक अपने यौनांग उससे छुपाए रखे थे। साथ ही वो छोटा सा दर्द बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी।
राजू," चुप कर माई, तू एतना दरद भी ना बर्दाश्त कर सकेलु का? औरत के त दरद सहे के आदत होखेला। जाने दू दू बच्चा के कइसे जनम देलु। ई छोट घाव से तू एतना परेशान होबु त काम ना चली।"
बीना कुछ न बोली, लेकिन वो अब राजू की बात सुन चुप हो गयी। दरअसल राजू के छुवन से उसे भी ठरक थोड़ी थोड़ी चढ़ रही थी। राजू उसकी जाँघे धीरे धीरे सहला रहा था। वो घाव के बेहद करीब जाकर फूंक रहा था। गीली बूर हथेली से चिपकी हुई थी, राजू गीलापन उसकी उंगली पर देख सकता था। बीना के हाथों में चूड़ी और पैरों में पायल बहुत मस्त लग रही थी। बीना राजू को लगातार देख रही थी।
बीना," राजू हो गइल का?
राजू," हाँ, लगभग।
बीना," हमके अब नहाय दअ।"
राजू," का बात करअ तारू? तू अब ना नहो। घाव गीला होई त नुकसान होई। चल घर के अंदर अउर आराम कर।"
बीना," अच्छा, लेकिन हमार बाकी झांट के काटी? वो राजू की ओर कैंची दिखाते हुए बोली।
राजू उसके हाथ से कैंची लेकर बोला," हम काट देब, लेकिन तू नहो मत। इँहा काट दी का?
बीना," काट दअ बड़ा हल्का लागत बा। हमरा से गलती हो गइल की तहरा से ना कटवईनी, अब देखआ तहरे से कटाबे के पड़ी।"
राजू बात बनती देख बोला," अरे हम बानि काहे तहरा खातिर ना, लावा हमार जांघ पर पैरवा रखआ।" उसने हाथों से जांघ पीटते हुए, बीना को पैर रखने को कहा। बीना ने वैसा ही किया। बीना अब अपनी बूर के चीरा को दो उंगली से ढक ली और बाकि खुला छोड़ दिया। राजू बिना देर किये उसके बाल काटने लगा। राजू को उसके घुंघराले बाल देख, जिज्ञासा और उत्तेजना महसूस हो रही थी। बीना अपनी बूर को उतना ढक उसे उत्तेजित कर रही थी। राजू किसी तरह बीना की उन दोनों उंगलियों को हटा देना चाहता था, क्योंकि उसके पीछे वो द्वार था जिससे वो इस दुनिया में आया था, बीना की बूर। बीच बीच में उन दोनों की निगाहें टकराती पर कोई कुछ नहीं बोलता। दोनों की प्यासी आंखें एक दूसरे के अंदर की वासना टटोलने का प्रयास कर रही थी, हालांकि माँ बेटे के रिश्ते में लंपट व्यभिचार की जगह ही नहीं है। लेकिन ये रिश्ते नाते जिस्म की आग में जल ही जाते हैं। बीना अपने बूर के बाल अच्छे से खड़े होकर कटवा रही थी, उसकी विशेष हजामत अब खत्म हो चुकी थी। राजू बार बार बूर और जांघों की जोड़ की जगह को हाथों से साफ कर रहा था, ताकि छोटे बाल अटक ना जाये। बीना के बूर के ऊपर बालों का पतला गुच्छा रह गया था, जो राजू को अच्छा लग रहा था। राजू ने उसे रहने दिया।
बीना," राजू तनि झांट के बाल रह गईल बा?
राजू," उ रहे दे, अच्छा लागेला।"
बीना," चल बेटा, अब हमके नहाय दे।"
राजू ने ऊपर से लेकर नीचे तक उसे देखते हुए कहा," अब कच्छी में गर्मी ना बुझाई, ना बाल कच्छी से बाहर झांकी।"
बीना," राजू, हाय सच कहअ तारे, जानत बारू एक त कच्छी, फेर साया अउर ऊपर से साड़ी, बहुत गर्मी बुझावेला, ढ़ेरी पसीना चुएला। अब बहुत राहत रही।" बीना अभी भी चूचियों और बूर को ढ़के हुए खड़ी थी। वो भी थोड़ी खुल चुकी थी। उसे अब जलन से आराम भी हो चुका था। राजू से वो कुछ बोलती इससे पहले राजू ने उसे देख कहा," सखि, जल्दी से नहा लआ, फेर अभी उ मैक्सी पेन्ह लिहा,हीरोइन लगबु।"
बीना मुस्कुराते हुए," कउन हीरोइन, तहार किताब जइसन का?
राजू," कसम से माई, उ किताब सब अब छोड़ देनी, जबसे तू कहलु?
बीना," अच्छा, मरद जात कुत्ता के पूँछिया जइसन होखेला, तू किताब छोड़ कुछ अउर करत होखब, हम बुझत बानि। आजकल सब गंदा गंदा फिलिम भी बनावेली, उ सब त नइखे देखत बारू।"
राजू," तू, ई का कहत बारू, हम जात हईं तू नहा ले।"
राजू के बाहर निकलते ही बीना हंस पड़ी। उसे राजू को छेड़ने में मज़ा आ रहा था। बीना नहाने लगी। उसने बदन पर ताज़ा ताज़ा ठंढा पानी डाला, और अपने खूबसूरत जिस्म को रगड़ के साफ करने लगी। बीना मग से पानी अपने बदन पर डाल रही थी। बीना का अंग अंग चमक रहा था। पानी में भीगने से उसका जिस्म और अधिक कामुक हो गयी थी। उसने अपने पूरे बदन पर पानी गिराने के बाद, अपने हाथों से बदन को मल रही थी। उसे खुद को अच्छे से साफ करना था इसलिए उसने धीरे धीरे बदन पर साबुन लगाना शुरू कर दिया। बीना के गोरे बदन पर झाग फैलने लगा। उसका नंगा बदन साबुन की झाग में पिरो गया था। बीना अपनी चूचियों और चूचक को सहलाते हुए साबुन मल रही थी। फिर उसने अपने पेट, पर साबुन मला साबुन की झाग उसकी लटकती चर्बी से गिरने लगा। कमर पर साबुन लगा लिया और फिर अपने नारीत्व की पहचान अपनी बूर पर साबुन को अच्छे से लगाने लगी। बीना अपनी बूर के चीरे पर गुलाबी बूर को साबुन से रगड़ रही थी। वो इस बात से अनजान थी कि राजू चुपके से उसे देख रहा है। वैसे तो राजू ने कई बार बीना को नंगी देखा था, पर आज वो उसके बेहद करीब थी। उसने अपनी माँ को सम्पूर्ण नंगी इतने करीब से नहीं देखा था। उसके और बीना के बीच केवल एक दीवार थी। लेकिन बीना के नंगे बदन और उसकी आंखें एक छेद से मिल रही थी। राजू ने बीना को गुड्डी से मिलाने का प्रयास किया। गुड्डी बीना की जवानी का प्रतिबिंब थी। बीना अभी अपने चूतड़ों की दरार में साबुन मल रही थी। उसके भारी भरकम चूतड़ उसकी हरकत से थिरक रहे थे। बीना अपनी गाँड़ की छेद और बूर के पास हाथों से साबुन मल रही थी। राजू का लण्ड उफान मार रहा था। अपनी सगी मां को अभी वो सिर्फ स्त्री की नज़र से देख रहा था। बीना फिर झुककर पैरों में साबुन मल रही थी। उसकी गाँड़ राजू के सामने पूरी फैली हुई थी। बीना की पायल और बिछिया से सजे पैर झनक रही थी। उसके हाथों की चूड़ी भी खनक रही थी जो राजू के लिए संगीत था। इतनी खूबसूरत माँ हो तो बेटा भी पागल हो जाये, उसने मन ही मन सोचा आखिर सामने एक स्त्री ही तो है और वो एक मर्द। स्त्री को पुरुष चाहिए, उसकी माँ की अधूरी कामुक इच्छाएं भी तो किसी मर्द को पूरी करनी होगी। नहीं तो आज नहीं तो कल उसे कोई ना कोई जरूर फंसा लेगा। गांव में तो जरूर लोग उसके माँ के बारे में गंदी बातें करते होंगे। अगर उसने उसकी इच्छा पूरी नहीं कि, तो अधूरी प्यासी औरत को पटाना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं हैं। अपने घर की चीज़ें तो उसे खुद संवारनी होगी। राजू ये सब सोचते हुए अपना लण्ड निकालके मूठ मारने लगा था। इतने में बीना अपने बदन पर दुबारा पानी डालके, झाग निकाल रही थी। उसने आसमान की ओर देखते हुए पानी अपने नंगे बदन के ऊपर डाल रही थी।चूचियों और चुचकों से टपकता पानी बेहद कामुक लग रहा था। वो पानी सरकता हुआ उसके पेट से उसकी बूर की त्रिकोण की ओर बढ़ चला। और उसकी ताज़ी चिकनी सांवली बूर को साफ कर गया। बीना अपनी बूर पर पानी डालते हुए बूर को साफ कर रही थी। बीना ने बूर की फांकों को फैलाया तो उसकी गुलाबी बूर अंदर से झांक गयी। राजू की ये देख सांसे अटक गई थी। अपनी माँ की बूर देख राजू का पानी निकल गया। वो वहां मूठ गिराके चला गया।

राजू अगले दिन जब पढ़ाई करने गया तो, बाजार से उसी दुकान से अपनी माँ के लिए एक मैरून कलर की मैक्सी खरीद लाया। जब घर पहुंचा तो बीना घर में धरमदेव के पैर दबा रही थी। उसने बीना को इशारा कर अपने कमरे में बुलाया। धरमदेव सो चुका था। बीना उठकर राजू के कमरे में गयी। राजू ने उसे पकड़कर दरवाज़े के पीछे छुपा लिया। राजू बीना की ओर देख मुस्कुराया। बीना उसकी आँखों में देख बोली," का बात बा मुस्कुरात काहे बाटे?
राजू," तहरा अब रात में आराम हो जाई?
बीना," अच्छा कइसे?
राजू उसके करीब आ थैला दिखाया।
बीना ने पूछा," का बाटे?
राजू ने बोला," तहरा खातिर हम मैक्सी ले आइनी ह। ई देखअ।"
बीना उसकी ओर देख बोली," लेकिन काहे?
राजू," उ रतिया में तू कहत रहलु ना कि, साड़ी साया में दिक्कत होता सूते में,एहीसे हम तहरा खातिर ई लेनी ह, ई में तहरा बहुत आराम होई।"
बीना," लेकिन राजू तू ई सब खरीदलु कइसे। तहरा पइसा कहाँ से आईल। कहीं तू कुछ गलत काम धंधा त नइखे करत। सच सच बताबा?
राजू," माई, हम कुछ गलत न कइनी।"
बीना," त पइसा कहां से आईल?
राजू," माई तू नाराज़ मत हो, हम बतावत बानि। तहरा खातिर हम कुछ भी कर सकेलि। लेकिन अगर हम तहरा बताईब त तू खिसिया मत जहिया।"
बीना," राजू, तू पहिले मोर कसम खाके बोलअ कहीं तू जुआ उआ त नइखे खेलत, कउनु गलत काम....बाप रे बाप?
राजू," माई, हम तहार कसम खाके कहत बानि कि हम कउनु गैर कानूनी काम ना कइनी। तू चिंता मत करअ, काहे कि ई पइसा हम हमार छात्रवृत्ति से निकलनी। पांच हज़ार आईल रहे, उ में से 1000 निकलने रहनि। एहि से तहरा खातिर सबसे पहिले ई सुंदर मैक्सी ले आउनी।"
बीना की आंखों में आँसू आ गए, बेटे ने अपनी छात्रवृत्ति से उसके लिए मैक्सी खरीद लायी थी।
राजू ने उसकी आँखों से आंसू पोछते हुए कहा," अइसन सुंदर आँखिया में ई मोट मोट आंसू बढ़िया नइखे लागत।"
बीना उससे बोली," मोर राजा बेटा, हमका माफ कर दआ, हम तहरा पर शक कइनी। हम जानत बानि कि तू गलत काम नइखे कर सकत। लेकिन उ तहार पढ़ाई खातिर रहे, उमे से काहे निकाललु पइसा? हमके एकर कउनु खास जरूरत नइखे।"
राजू," जरूरत काहे नइखे, एमे तहरा बहुत आराम रही।सूते के समय तहरा खाली इहे पेन्हे के बा। घर में काम काज के बेर में भी तू ई पहन सकेलु। पढ़ाई के खातिर पइसा बहुत बा। हम तहार बेटा बानि, लेकिन ई उपहार हम तहरा एक सहेली के हैसियत से देत बानि।"
बीना," अच्छा अब सहेली दी, त लेवे के पड़ी। लेकिन ई हम पेनहब कइसे, तहार बाबूजी पूछिहं त का जवाब देब, काहे से हम कभू ई सब पहनली ना ना?
राजू," हहम्म... ई बात बा। लेकिन तू ई बात बतहिया कि गुड्डी दीदी फोन पर, तहरा से मैक्सी के बारे में बताइल्स। एहि से तू बाजार से ख़रीदके ले आइलु।"
बीना," लेकिन राजू ई त झूठ बात बा ना, सच त इहे बा कि हमके हमार सहेली ई देले बा।"
राजू," अच्छा, त ठीक बा इहे बता दिहा।"
बीना," तहार बाबूजी खिसिया जायीं, बूझला रहे द, हम गुड्डी के ही नाम कह देब।"
राजू," ई मैक्सी पहन के देखाबा, सखि? राजू जानता था कि उसकी माँ अपनी सहेलियों को सखि ही बोलती है इसलिए उसने जानबूझ कर उसे सखि बोल संबोधित किया।
बीना," अच्छा, तहरा अब अपना माई के मैक्सी में देखे के बा सखी।" राजू की बात में सखी शब्द का जवाब उसने भी सखी से ही दिया। दोनों ने पहली बार स्पष्ट रूप से एक दूसरे को सखी कहा।
बीना उठके अंदर चली गयी। राजू उसे कमरे के अंदर जाके देखता रहा। थोड़ी ही देर में बीना अपनी साड़ी और ब्लाउज उतार चुकी थी। उसने फिर साया भी खोला और ऊपर से मैक्सी पहन ली। उस मैरून रंग की मैक्सी में वो बेहद खूबसूरत लग रही थी। बीना कमरे के बाहर निकल आयी। सामने राजू उसे देखने को बेताब था। उसके खुले बाल, उसका मासूम चेहरा, उसकी कजरारी आंखे, उसका शरीर बस उस कॉटन की मैक्सी से ढकी हुई थी, उसे देख राजू के मुंह से आह निकल गयी। बीना देहाती होते हुए भी, इस समय उस मैक्सी में किसी हाई क्लास औरत की तरह ही दिख रही थी। राजू उसके करीब पहुंचा, और उसके चारों ओर घूमके देखने लगा। बीना मुस्कुराते हुए खड़ी थी।
बीना," कइसन लागत बा?
राजू," जबरदस्त माई, तू एकदम कउनु हीरोइन से कम नइखे लागत।"
बीना," हट, बदमाश... झूठ केतना बोलत बारे।"
राजू," ना सच में, तू गर्दा बुझा रहल बारू। एकर फिटिंग भी बढ़िया बा।"
बीना," हाँ, फिटिंग बढ़िया बा। लेकिन ई में हमार बांहिया उघार रही। खाली कंधे तक कपड़ा बा।"
राजू," बढ़िया बा, गर्मी महीना तहरा खुलल खुलल बुझाई। वइसे भी कंखिया में हवा लगी, त पसीना सूख जाई।"
बीना ने अपने काँख उठाके सहलाया और बोली," हाँ, ई बात त बा सखि ।"
राजू," सखि, ई बताबा साड़ी साया से हल्का बुझा रहल बा कि ना?
बीना बोली," हाँ सखि, ई बहुत हल्का बा। अइसन बुझा रहल बा कि हम कुछ पहनने नइखे।" बीना और राजू एक दूसरे के सामने बेहद करीब खड़े थे। अचानक से राजू ने बीना को पकड़के अपने करीब खींच लिया। बीना उसके सीने से तेज़ी से टकराई। उसकी बड़ी चूचियों ने शॉक अब्सॉर्बेर का काम किया। बीना की जुल्फें पूरबाई से लहरा रही थी। बीना और उसकी आंखें टकरा गई, बीना बोली," अइसे काहे बन्हिया में खींच लेलु, कुछो चाही का?
राजू," माई हम सच बताईं त हम तहरा जइसन मेहरु चाहत बानि, जउन तहरा जइसे घर सँभारे, तहरा जइसन कद काठी हो, तहरा जइसन चाल ढाल होए, तहार जइसन सुंदर चेहरा, तहार जइसन आँखिया, तहार जइसन लाल ओठवाँ, तहार जइसन ई कारी कारी केसिया।"
बीना," अच्छा, कहीं हमहि तहरा पसंद त नइखे सखि।"
राजू," सखि, काश तू कुमारी रहित, त तहराके बियाह करके ले आउती। तहरा रानी बनाके रखति।"
बीना उसकी आँखों में देख बोली," सब मरद असही बोलेला, एक बेर बियाह हो जाता ओकरा बाद पत्नी के ध्यान ना देवेलन।"
राजू बीना को चूतड़ों से भींचके अपने करीब ले आया और बोला," हमार आँखिया में देखके बोलआ सखि, तहरा का बुझाता कि हम आपन पत्नी के प्यार ना करब का?
बीना ने उसकी ओर देखा उसके और राजू के चेहरे के बीच बहुत कम दूरी थी। बीना उसकी आँखों में देखते हुए जाने कब अपने होठ राजू के होंठ से मिला दिए। बीना राजू के सर को थामे अपने होठों को उसके होठों से मल रही थी। ये पहला मौका था कि बीना राजू के प्यार को देख बहक उठी। उसे राजू की मजबूत बांहों में समर्पित होना अच्छा लग रहा था। बीना उसके साथ बहक उठी थी और दोनों चुम्बन में लीन थे। राजू बीना को अपनी बांहों में कसके थामे था। उसी वक़्त बाहर तेज़ बिजली चमकी और बीना जो चुम्बन में खोई हुई थी, उसे होश आया। खुदको राजू से अलग किया उसकी ओर देखते हुए पीछे हटने लगी। राजू उसकी ओर हाथ बढ़ाये हुए था, पर बीना पीछे हटती रही। आखिर में बीना जल्दी से भागते हुए अपने कमरे में पहुंच गई और दरवाज़ा बंद कर लिया। बाहर तेज बारिश शुरू हो चुकी थी, जिसके छींटे अब राजू और बीना के बदन के साथ साथ दिल पर भी गिर रहे थे। दो जिस्म अब एक दूसरे की चाह में सावन में जल रहे थे।
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