शगुन और संजय दोनों कार में बैठ गए थे,,, संजय अपनी बेटी से नजर नहीं मिला पा रहा था जिसका एक कारण है रात में दोनों के बीच जिस्मानी ताल्लुकात,,, जो की पूरी तरह से अवैध था,,,।संजय यह सोच सोच कर परेशान था कि वह अपनी बेटी के साथ गलत काम कर चुका था जिसमें वह भी पूरी तरह से सहयोगी थी लेकिन फिर भी संजय का मन अंदर से कचोट रहा था,,,,अपनी बेटी से बात करना चाहता था उसे समझाना चाहता था कि जो कुछ भी हुआ है वह बिल्कुल गलत हुआ ऐसा नहीं होना चाहिए था लेकिन कैसे शुरू करें यह उसे पता ही नहीं चल रहा था आखिरकार बात की शुरुआत करते हुए सगुन हीं बोल पड़ी,,,।
आप खामोश क्यों है पापा,,,, रात को जो कुछ भी हुआ आपको मजा नहीं आया क्या,,,?
(अपने बेटे की बात सुनकर संजय पूरी तरह से हैरान था क्योंकि वह एक गंदी लड़की की तरह बात कर रही थी,,,वो कभी अपने सपने में भी सोचा नहीं था कि उसकी बेटी इस तरह से उससे बात करेगी लेकिन इसमें उसकी भी गलती थी उसे आगे नहीं बढ़ना चाहिए था,,,, संजय को अपनी बेटी की बातें सुनकर इस बात का एहसास हो रहा था कि रात कुछ कुछ भी हुआ था उससे उसकी बेटी को बहुत मजा आया था और वह इससे बिल्कुल भी परेशान नहीं है लेकिन फिर भी बाप होने के नाते उसे समझाना जरूरी था क्योंकि वह भटक चुकी थी,,,, इसलिए संजय अपनी बेटी को समझाते हुए बोला,,,)
यह कैसी बातें कर रही हो शगुन जो कुछ भी हुआ सब कुछ गलत था,,,, ऐसा बिल्कुल भी नहीं क्योंकि हम दोनों के बीच का रिश्ता औरत मर्द का नहीं बल्कि बाप बेटी का है,,,
(अपने पापा की बात सुनकर शगुन हैरान थी क्योंकि वह इस रिश्ते को आगे बढ़ाना चाहती थी उसे इस रिश्ते में मजा आने लगा था पहली बार किसी पुरुष संसर्ग की कामना की पूर्ति उसे मदहोश कर दे रही थी,,,, जब से वह अपने पापा से चुदवाई थी तब से उसे अपनी बुर की अंदर की दीवारों पर अपने पापा का लंड रगडता हुआ महसूस हो रहा था बार-बार उस पल को याद करके वह मस्त हो जा रही थी,,।)
तो क्या हुआ आप मेरे लिए हीरो हो,,,,
तुम समझने की कोशिश करो सगुन जो कुछ भी हुआ सब कुछ गलत था,,, मैं कोई तुम्हारा प्रेमी नहीं हूं,,,,।
लेकिन मैं तो आपको उसी रूप में देखती हूं,,,
पागल मत बनो सगुन,,,,,
क्या मैं खूबसूरत नहीं हु सेक्सी नहीं हुं,,,,,
यह बात बिल्कुल भी नहीं है तुम बहुत खूबसूरत हो सेक्सी हो लेकिन तुम मेरी गर्लफ्रेंड नहीं हो मेरी प्रेमिका नहीं हो,,,, मेरी बेटी हो,,,,। हम दोनों के बीच जो कुछ भी हुआ उसे सपना समझकर भूल जाना पड़ेगा मुझे भी और तुम्हें भी,,,, इसी में हम दोनों की और पूरे परिवार की भलाई है,,,, अगर ऐसा नहीं हुआ तो सब कुछ बिखर जाएगा तुम यह बात अच्छी तरह से जानती हो सगुन,,,,,
लेकिन पापा यह सब किसी को भी पता नहीं चलेगा,,,,
(शगुन की बातों को सुनकर संजय पूरी तरह से हैरान हो चुका था क्योंकि उसकी बेटी किसी भी तरह से मानने को तैयार ही नहीं थी,,,संजय बार-बार कोशिश कर रहा था लेकिन सगुन पीछे हटने का नाम ही नहीं ले रही थी,,,, संजय अच्छी तरह से समझ रहा था कि इस उमर में लड़के लड़की को अच्छे बुरे सही गलत का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं होता है,,।और यही उसकी बेटी सब उनके साथ भी हो रहा था एक रात में शरीर सुख प्राप्त करके वह पूरी तरह से मस्त हो चुकी थी और बार-बार उसी सुख की कामना कर रही थी,,, जोकि संजय के लिए नामुमकिन सा लगने लगा था क्योंकि संजय जानता था कि जो कुछ भी उसने किया था वह बिल्कुल गलत था,,,,दोनों के बीच किसी भी प्रकार की वार्तालाप नहीं हो रही थी,,, संजय कार को सड़क पर दौड़ा रहा था,,, शहर की खूबसूरती सड़क के किनारे बड़े अच्छे से नजर आ रही थी,,,, धीरे-धीरे शाम ढलने लगी थी,,, वातावरण में ठंडक बढ़ती जा रही थी और संजय होटल कार रोककर होटल में प्रवेश किया,,, होटल में काफी भीड़ थी तो वेटर उन्हें टेरेस पर खुले में डिनर के लिए आमंत्रित किया,,,, वहां पर पहुंचकर संजयऔर शगुन को काफी अच्छा लग रहा था,,,, टेरस पर चारों तरफ हर एक टेबल पर एक जोड़ा बैठा हुआ था शायद यह कपल के लिए ही बना था,,,,,, संजय खाली टेबल देख कर वहीं पर बैठ गया सामने शगुन भी बैठ गई,,,,थोड़ी देर में वेटर आया और आर्डर लेकर चला गया,,,,। संजय खामोश था,,,, इसलिए खामोशी को तोड़ते हुए शगुन बोली,,।
आप क्या चाहते हो पापा,,,,?
मैं यही चाहता हूं कि जो कुछ भी हुआ बस यहीं पर खत्म हो जाए,,,,,,।
(संजय की बातों से उसके चेहरे को देखकर साफ पता चल रहा था कि जो कुछ भी कहा था उसका उसे बहुत पछतावा था और यह सब कुछ और जल्द से जल्द खत्म कर देना चाहता था,,,)
ठीक है,,,, मैं भी सब कुछ खत्म कर दूंगी,,, हम दोनों के बीच जो कुछ भी हुआ मैं सपना समझ कर भूल जाती हु,,, लेकिन इसके बावजूद भी अगर कुछ हुआ तो,,,,
नहीं होगा कुछ भी नहीं होगा मैं गारंटी देता हूं कुछ भी नहीं होगा,,,,,,,,(संजय एकदम विश्वास भरे शब्द में बोला क्योंकि मैं जानता था कि अगर वह अपने आप पर काबू कर पाएगा तो सब कुछ सही होगा और उसे पूरा यकीन था कि वह अपने आप पर काबू कर लेगा,,,,)
अगर कहीं आप का इमान फिसल गया तो,,,,
कैसी बातें कर रही हो,,,, ऐसा भला कैसे हो सकता है,,,।
क्योंकि मैं आपको मम्मी के साथ देखी हूं उनकी लेते समय एकदम पागल हो जाते हो,,,, कल रात तो एकदम जवान लड़की के साथ सब कुछ किए हो,,, हो सकता है नएपन के कारण आप अपने आप पर काबू ना कर पाओ तो,,,।
देखो सगुन में सब कुछ कर लूंगा बस तुम अपनी जिद छोड़ दो,,,।
ठीक है जैसी आपकी मर्जी,,,, मैं तो आपको अपना हीरो समझती थी,,, समझती थी क्या आप हो मेरे हीरो,,,, खेर मैं अब अपना सारा ध्यान अपने कैरियर पर लगाऊंगी,, ठीक है,,,(शगुन अपने पापा की तरफ देख कर मुस्कुराते हुए बोली,,, जवाब में संजय भी मुस्कुराता हुआ हा में सिर हीला दिया,,,,, थोड़ी देर में वेटर ऑर्डर लेकर आ गया और दोनों बाप बेटी आराम से खाना खाने लगे शगुन को यह सब बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था,,,। वह सब कुछ यहीं खत्म नहीं करना चाहती थी बल्कि आगे बढ़ना चाहती थी क्योंकि,,, जो सुख से पापा ने रात को उसे दिया था वह उस सुख को बार-बार महसूस करना चाहती थी,,,,बार-बार उसे अपनी दोनों टांगों के बीच अपने पापा का लंड अंदर बाहर होता हुआ महसूस हो रहा था,,, उस मदहोश कर देने वाली पलकों वह भुला नहीं पा रही थी बस अच्छी नहीं थी कि उसके पापा सब कुछ इतनी जल्दी खत्म कर देंगे क्योंकि वह चाहती थी कि उसके पापा उसकी मां की बुर की रोज चुदाई करते हैं और उसकी मां के मुकाबले उसकी बुर काफी
कसी हुई थी निश्चित तौर पर उसे पूरा यकीन था कि उसकी कसी हुई बुर चोदने में उसके पापा को बहुत मजा आया होगा और उस मजे को उसके पापा बार बार लेना चाहेंगे,,,लेकिन उसके पापा ने सब कुछ खत्म कर दिया था इस रिश्ते को यहीं खत्म करने की ठान लिया था इसके लिए शगुन का मन उदास था,,, लेकिन उसे विश्वास था कि उसके माध्यम खूबसूरत सेक्सी बदन को देख कर उसके पापा का मन फिर से फिसल जाएगा इसी आस से वह खाना खाने लगी,,,,,,,दोनों खाना खा रहे थे कि संजय की नजर अपने पास वाले टेबल पर कई जहां पर एक कपल बैठा हुआ था,,, और संजय को साफ नजर आ रहा था कि वह आदमी अपने जूते निकाल कर अपने पैर को उठाकर सामने बैठी लड़कियों की स्कर्ट पहने हुए थी और इस समय में अपनी दोनों टांगों का फैलाई हुई थी ,,, और वह आदमी अपने पैर के अंगूठे से उसकी पेंटिं वाली जगह को कुरेद रहा था यह देखकर संजय कि तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ ऊठी और उसी समय शगुन की भी नजर उस कपल पर पड़ गई दोनों बाप बेटी एक साथ उस नजारे को देख रहे थे,,,, सगुन उस नजारे को देख कर मुस्कुरा दी,,,।, संजय को जब इस बात का अहसास हुआ तो वह शर्मा कर अपनी नजरें नीचे कर लिया और खाना खाने लगा दोनों ही थोड़ी देर में खाना खाकर होटल से निकल गए और जहां पर ठहरे थे उस होटल में आ गए,,,।
संजय कुर्सी पर बैठकर अपने कमरे में व्हिस्की की चुस्की ले रहा था और सिगरेट पी रहा था हालांकि ऐसा संजय तभी करता था जब उसका दिमाग टेंशन में रहता था,,, शगुन अपने पापा पर अपनी जवानी की मादकता बिखेरने को पूरी तरह से तैयार थी,,,,,, वातावरण में पहले से ही ठंडक थी लेकिन कपड़े बदलते समय जानबूझकर शगुन छोटा सा फ्रॉक की तरह नाईट ड्रेस पहन लो क्योंकि पूरी तरह से ट्रांसपेरेंट था उसमें से सब कुछ नजर आ रहा है और वह फ्रॉक टाइप का नाइट ड्रेस भी बड़ी मुश्किल से उसके नितंबों को घेराव को छुपा पा रहा था लेकिन उसमें के अंदर के नजारे को छुपा पाना उसके बस में बिल्कुल भी नहीं था लाल रंग की पेंट ट्रांसपेरेंट नाईट ड्रेस में से नजर आ रही थी और साथ ही लाल रंग की ब्रा भी,,,,,, सगुन भी कुर्सी खींच कर अपने पापा के सामने बैठ गई,,,,,, संजय एक नजर सब उनके ऊपर डाला और फिर वापस सिगरेट का कश खींचने लगा,,,, उसके हाथ में व्हिस्की का गिलास था,,, शगुन पूरी तरह से अपनी जवानी का नशा अपने बाप पर चढ़ा देना चाहती थी ईसलिएअपने पापा की आंखों के सामने उसे देखते भी अपनी एक टांग उठाकर कुर्सी पर रख दी और एक टांग को हल्के से खोल दी,,,जिससे उसके पापा को उसकी टांगों के बीच कि वह खूबसूरत जगह नजर आने लगे जिस पर पेंटी का हल्का सा पर्दा चढ़ा हुआ था,,,, और ऐसा ही हुआ संजय की नजर सीधे अपनी बेटी के दोनों टांगों के बीच चली गई और उस नजारे को देख कर उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी,,,,। संजय हडबडाकर अपनी नजरों को दूसरी तरफ फेर लिया,,,, सगुन अपने पापा की हरकत पर मुस्कुरा दी,,, वो कुछ बोल पाती ईससे पहले ही दरवाजे पर वेटर ने दस्तक दे दिया,,,।
लगता है कॉफी आ गई ,, (और इतना कहकर वह कुर्सी पर से खड़ी हो गई,,, सगुन जानती थी कि उसके पापा उसी को ही देखेंगे ,,, वह मादक चाल चलते हुए दरवाजे तक पहुंच गई,,,संजय से रहा नहीं गया और वह नजरों को तिरछी करके अपनी बेटी की तरफ देखने लगा उसकी मादक चाल उसकी गोल-गोल नितंब उसके नसों में मदहोशी का नशा भर रहा था,,,। छोटी सी ड्रेस में लाल रंग की पेंटिं शगुन की गांड किसी पैक किए हुए उपहार की तरह लग रही थी,,, जिसे देखकर संजय के मुंह में खुद पानी आने लगा था,,, दरवाजा खुलता है से पहले संजय फिर से अपनी नजरों को दुरुस्त करके व्हिस्की का पैक पीने लगा,,,,,,
दरवाजा खुलते ही बेटर मुस्कुराते हुए ट्रे में कॉफी लेकर आया और शगुन उसे मुस्कुराकर अंदर आने के लिए अभिवादन की,,, वेटर के कमरे में दाखिल होने से पहले ही उसकी नजर शगुन के खूबसूरत बदन पर गई और ट्रांसपेरेंट छोटी सी फ्रॉक को देखकर उसकी तो हालत खराब हो गई उसकी सांसे ऊपर नीचे होने लगी,,, उस ट्रांसपेरेंट फ्रॉक में से शगुन का सब कुछ नजर आ रहा था जिसे देखकर वेटर की हालत खराब हो गई और कॉफी का ट्रे उसके हाथों से छूटते छुटते बचा,,,,,,,
अंदर आकर टेबल पर रख दो,,,,,,( इतना कहने के साथ ही सगुन आगे बढ़ी और टेबल के आगे खड़ी होकर वह कुर्सी पर से मैगजीन को थोड़ा सा झुक कर हटाने लगी जो कि पहले से ही पड़ी हुई थी ,,,वह जानबूझकर झुकी थी क्योंकि उसकी पीठ वेटर की तरफ थी ओर झुकने की वजह से उसकी गोलाकार गांड एकदम उभर कर सामने नजर आ रही थी जिसे वेटर ट्रे को रखते रखते प्यासी नजरों से देख रहा था और यह नजारा संजय से बचा नहीं रह सका,,, अपनी बेटी की मदमस्त गोल गोल गांड एक वेटर के द्वारा देखता हुआ पाकर संजय को थोड़ा गुस्सा जरूर आया लेकिन वह कुछ बोला नहीं,,,, वेटर अभी भी प्यासी नजरों से शगुन की गांड को ही देख रहा था,,। यह देखकर संजय को गुस्सा आने लगा था,,,कि कि मर्दों की नजरों को संजय अच्छी तरह से जानता था और इस समय सुकून ने जिस तरह की पैंटी पहनी हुई थी पीछे से उसकी गांड साफ नजर आ रही थी क्योंकि उस पेंटिं में पतली सी डोरी लगी हुई थी जो उसकी गांड की गहराई में छुप गई थी,,,, संजय उस वेटर के पेंट के आगे वाले भाग को साफ-साफ उभरता हुआ देखा,,,क्यों किस बात की गवाही दे रहा था कि उसकी बेटी की गांड को देखकर उस वेटर का लंड खड़ा हो रहा था,,।वह वेटर अपनी नजरों को और देर सेंक पाता इससे पहले ही सगुन अपना कार्यक्रम समेट कर खड़ी हो गई थी,,,,।
थैंक यू,,,
यू वेलकम मैम एंड सर ,,,,,(संजय की तरफ देखकर वह व वेटर बोला,,,।)
ठीक है अब तुम जा सकते हो,,,(संजीव स्वेटर की तरफ देखे बिना ही बोला अभी भी उसके हाथों में व्हिस्की का गिलास था और हाथ में सिगरेट थी वह वेटर उन दोनों को बाप बेटी नहीं बल्कि किसी कपल के रूप में देख रहा था जो कि उसे ऐसा लग रहा था कि होटल में यह दोनों एंजॉय करने आए हैं क्योंकि सब उनको देखकर उसे बिल्कुल भी नहीं लग रहा था कि वह संजय की बेटी है क्योंकि उसके कपड़े इस तरह से नंग धड़ंग थे,,,.)
ठीक है सर कोई भी जरूरत हो तो कॉल कर देना,,,आप दोनों की रात मंगलमय हो,,,,(इतना कहकर वेटर कमरे से बाहर की तरफ जाने लगा तो सागू नहीं उसे दरवाजा लॉक करने के लिए बोली,,, वेटर जा चुका था और टेबल पर कॉफी रखी हुई थी और शगुन उसी तरह से कुर्सी पर अपनी एक टांग रखकर बैठ गई संजय का दील जोरों से धड़क रहा था,,, ना चाहते हुए भी उसकी नजर एक बार फिर से अपनी बेटी के दोनों टांगों के बीच चली गई और उसकी लाल रंग की पैंटी को देखना उसकी आंखों में मदहोशी छाने लगी व्हिस्की का नशा अपना असर दिखा रहा था और शगुन की मदमस्त जवानी की खुमारी अलग कहर ढा रही थी,,,।)
मैं आपको पहले शराब पीते हुए नहीं देखी हुं,,(शगुन कॉफी का कप होठों से लगाते हुए बोली)
मैं जल्दी ड्रिंक नहीं करता कभी कभार ही करता हूं और आज ठंडक कुछ ज्यादा थी तो इसलिए पी लिया,,,,(संजय बातें करते अपनी नजरों को चुराने की बहुत कोशिश कर रहा था लेकिन एक लालच थी उसके मन में अपनी बेटी की दोनों कामों के पीछे झांकने की जो कि वह रोक नहीं पा रहा था और बार-बार अपनी नजरों को दोनों टांगों के बीच ही गड़ा दे रहा था,,,।) तुम्हें ठंडी नहीं लग रही है जो ईस तरह के कपड़े पहनी हो,,,।
लगती है लेकिन मुझे रात को सोते समय इसी तरह के कपड़े में कंफर्टेबल महसूस होता है यह तो शहर से बाहर है तो इस तरह के कपड़े पहन रही हु घर पर होती तो,,,(इतना कहकर कुछ बोली नहीं बस कॉफी पीने लगी तो संजय ही पूछ बैठा)
घर पर होती तो,,,?
(शकुन अपने पापा के कहने का मतलब को अच्छी तरह से समझ रही थी वह और कुछ सुनना चाहते थे और शगुन भी सब कुछ कहने के लिए तैयार थे क्योंकि रात भर ओ अपने पापा से चुदवाने का सुख भोग चुकी थी इसलिए उसकी शर्म खत्म हो चुकी थी,,, इसलिए कॉफी की चुस्की लेते हुए बेधड़क बोली,,)
घर पर होती तो बिना कपड़ों के एकदम नंगी सोती,,,,
(अपनी बेटी के मुंह से इस तरह से बेधड़क जवाब सुनकर संजय की हालत खराब हो गई खास करके उसके मुंह से नंगी शब्द सुनकर उसके होश उड़ गए उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी,, जवाब सुनकर संजय का चेहरा देखने लायक था वह अपने बाप के चेहरे को देखकर मंद मंद मुस्कुरा रही थी और जानबूझकर अपने बाप के सामने ही अपनी बुर खुजलाने का नाटक करते हुए बोली,,)
मुझे रात को कपड़े पहन कर सोने में बिल्कुल भी आरामदायक महसूस नहीं होता,,, इसलिए मैं रात को कपड़े उतार कर सोती हूं,,,,
(अपनी बेटी की बात सुनकर संजय की हालत खराब होने लगी उत्तेजना की लहर दौडने लगी,,,अपनी बेटी को लेकर अपने मन में किसी भी प्रकार की गंदी भावनाओं को जन्म ना देने की कसम खाकर वादा करके संजय अपने मन को मजबूत किए हुए था लेकिन इस समय ऐसा लग रहा था कि जैसे उसका लंड उसके साथ बगावत करने पर उतारू हो चुका था पेंट में उसका लंड धीरे-धीरे खड़ा होने लगा था,,, संजय कुर्सी पर पीठ का ठेका लेकर आगे को पैर फैलाए बैठा हुआ था जिससे शगुन को अपने पापा के पेंट के आगे वाला भाग उठता हुआ महसूस हो रहा था और यह देखकर शगुन की आंखों में चमक आ गई,,,,सगुन उसी तरह से कुछ देर तक अपनी दोनों टांगे फैलाए बैठी रही,,,,संजय की नर्सरी बार-बार अपनी बेटी के दोनों टांगों के बीच चली जा रही थी ऐसा लग रहा था जैसे कि वह दोनों टांगों के बीच कुछ ढुंढ रहा था लेकिन पेंटी का परदा होने की वजह से उसे मिल नहीं पा रहा था,,,। शगुन ही बात को आगे बढ़ाते हुए बोली,,)
मेरी एग्जाम तो खत्म हो चुकी है मैं सोच रही थी कल जाने की जगह 2 दिन और रुक जाते हैं तो वहां घूम फिर लेते और अपना टुर भी हो जाता,,,।(संजय कुछ बोला नहीं क्योंकि उसके तन बदन में उसे बदलाव होता हुआ महसूस हो रहा था वह अपने मन पर बिल्कुल भी काबू नहीं कर पा रहा था उसकी बेटी की मादक अदाएं उसका नशीला बदन और उसके कामुक हरकते थे उसके और उड़ा दी थी,,,, शगुन भी अपने पापा का जवाब सुने बिना ही कुर्सी पर से खड़ी हुई और कॉफी का कप लेकर खिड़की की तरफ अपनी गांड को मटकाते हुए जाने लगी,,, संजय प्यासी नजरों से अपनी बेटी की हर एक चाल को देख रहा था इसकी गोल गोल का पानी भरे गुब्बारे की तरह एक एक तरफ लुढ़क जा रही थी,,,, संजय से सहा नहीं जा रहा था,,,, शगुन खिड़की के पास पहुंच कर खिड़की को खोल दी जिसमें से ठंडी हवा कमरे में फैल गई और वह कॉफी का कप लेकर अपने हाथ की कोहनी का सहारा लेकर खिड़की के रेलिंग पर टिका कर खड़ी हो गई जिसकी वजह से उसकी गोल गोल गांड उपर की तरफ उठ गई,,,, शगुन जानती थी कि जिस अवस्था में वह खड़ी थी उसके पापा की नजर उसके पिछवाड़े पर ही होगी और यही तसल्ली करने के लिए पीछे की तरफ नजरघुमा कर देखिए तो संजय को अपनी और ही देखता हुआ पाकर वह मुस्कुराकर खिड़की से बाहर देखने लगी और कॉफी की गर्माहट का मजा लेने लगी,,,, पीछे की तरफ देखने की वजह से संजय की नजरें अपनी बेटी की नजरों से टकरा गई जिसमें उसे सांप अपनी तरफ आगे बढ़ने का आमंत्रण दिख रहा था उस ऐसा लग रहा था कि उसकी बेटी उसे अपने पास बुला रही हो शगुन भी जानबूझकर अपनी गांड को दांय-बाय हिला रही थीऐसा लग रहा था कि हाथों का काम उसकी गांड कर रही थी उसे अपने पास बुला रही थी,,,,,। संजय को समझ नहीं आ रहा था कि ऐसे हालात में वह क्या करें उत्तेजना के मारे उसका लंड पेंट फाड़ कर बाहर आने को उतारू हो गया था,,। संजय को अपनी बेटी की गांड बहुत ही खूबसूरत नजर आ रही थी संजय का मन उसे अपनी हथेली में पकड़कर दबाने को कर रहा था,,,,एक बार फिर अपने लंड को उसकी बुर की गहराई में उतार कर चोदने को कर रहा था,,,,। शगुन को पूरा विश्वास था कि जो वो चाहती है वही होगा वह खुशी का आखिरी घूंट की पीकर बिना पीछे कदम बढ़ाए वह उसी अवस्था में नीचे झुकी और कॉफी के कप को नीचे फर्श पर रखती लेकिन इस तरह से झुकने पर उसकी गोल-गोल गांड और पूरी तरह से उभर कर सामने नजर आने लगी,,,, जो कि संजय से बर्दाश्त के बाहर था उसे रहने 11 वा व्हिस्की का आखरी खुद एक सांस में अपने गले से नीचे उतारकर गिलास को टेबल पर रखा और सिगरेट का आखरी कस खींच कर एश ट्रे में रखकर बुझा दिया,,, सिगरेट की आग तो बुझ चुकी थी लेकिन संजय के बदन की आग फिर से प्रज्वलित हो चुकी थी,,, और यह इस तरह से बुझने वाली नहीं थी,,,।
कुर्सी पर से खड़ा हुआ है सीधे खिड़की के पास अपनी बेटी के करीब पहुंच गया और पीछे से अपना हाथ अपनी बेटी की गांड पर रख दिया,,,, कसमे वादे सब सिगरेट के धुएं में उड़ चुका था,,,, अपनी गांड पर अपने पापा की हथेली महसूस होते ही शगुन के तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी उसके होठों पर मुस्कान तेरने लगी उसे जिस बात की उम्मीद थी वह पूरा होता हुआ महसूस होने लगा,,, संजय बारी बारी से अपनी बेटी की गांड की दोनों फांकों को अपनी हथेली में दबा कर उसका आनंद लुटने लगा,,,।
सहहहहह आआआहहहहहहहह,,,,,((उत्तेजना के मारे सड़कों की सिसकारी फूट पड़ी) क्या हुआ पापा ,,,? (वह मदहोशी भरे कांपते स्वर में बोली,, लेकिन संजय कुछ बोला नहीं उसे अपनी बाहों में भरकर अपने होठों को उसके होठों पर रखकर चूसना शुरू कर दिया,,,, वह कसके शगुन को अपनी बाहों में भर लिया था जिससे पेंट के अंदर उसका खड़ा लंड सीधे उसकी दोनों टांगों के बीच ठोकर मारने लगा था,,,अपने पापा के लंड को अपनी दोनों टांगों के बीच महसुस करते ही शगुन की दिल की धड़कन बढ़ने लगी,,,,
शगुन भी उत्तेजित होने लगी वह भी उत्तेजना के मारे अपने पापा का साथ देते हुए अपने होठों को खोल दी और संजय अपनी जीत को सुकून के मुंह में डालकर चूसने लगा,,,,कुछ देर तक संजय इसी तरह से अपनी बेटी के होठों को चूसता रहा वह जब शांत होगा तो सगुन गर्म सांसे लेते हुए बोली,,,।
दोपहर में तो तुम कसम खाई थी कि अब ऐसा नहीं होगा सब कुछ यहीं खत्म करना होगा,,,,।
नहीं मुझ से नहीं हो सकता,,,, तुम्हारी खूबसूरत बदन में बहुत नशा है,,,, मुझसे बिल्कुल भी नहीं रहा जाएगा,,,(चंडी गहरी सांस लेते हुए बोला और अपने दोनों हाथ नीचे करके अपनी बेटी की गांड को पकड़कर उसे अपनी गोद में उठा लिया और बिस्तर पर लाकर पटक दिया,,, दोनों बाप बेटी के बदन से कब कपड़े अलग हुए यह दोनों को पता नहीं चला,,, दोनों बिस्तर पर एकदम नंगे थे और सगुन खुद अपने पापा के बाल को पकड़ कर उसे अपनी दोनों टांगों के बीच ले जा रही थी संजय अपने बेटी के इशारे को समझ गया था और देखते ही देखते वह अपनी बेटी के दोनों टांगों के बीच आकर उसकी रसीली बुर को लपालप चाटना शुरू कर दिया,,,, शगुन के मुंह से गरम सिसकारी गुंजने लगी,,, दिन भर संजय अपने हाथों में गलत काम के पश्चाताप की आग में जल रहा था और ऐसा ना करने की कसम खा रहा था लेकिन रात को ,,, सब कुछ भूल गया था अपनी बेटी की खूबसूरत जिस्म की खुशबू उसे मदहोश कर गई थी वो पागल हो गया था उसकी आंखों में मदहोशी की खुमारी छा गई थी और इसीलिए वह ईस समय बिस्तर पर अपनी बेटी की दोनों टांगों के बीच मुंह मार रहा था,,,, संजय जितना हो सकता था उतनी जीभ अपनी बेटी की बुर में डालकर उसकी मलाई को चाट रहा था,,,,।
संजय दो बार अपनी बेटी की बुर चाट कर ही उसका पानी निकाल चुका था,,,, शगुन मचल उठी थी अपने बाप के लंड को अपनी बुर में लेने के लिए,,,।
आहहहह ,,,,सहहहहहह ,,, मुझसे रहा नहीं जा रहा पापा,,,,आहहहहह मेरी बुर में लंड डाल दो,,, चोदो मुझे,,,,आहहहहह पापा,,,,,आहहहहहहहह,,,,,
(अपनी बेटी की बातों को सुनकर उसकी गरमा गरम सिसकारी को सुनकर संजय की हालत खराब हो रही थी उसका जोश बढ़ रहा था,,,। वह भी जल्द से जल्द अपने लंड को अपनी बेटी की बुर में डाल देना चाहता था,,,, लेकिन उससे पहले वह अपना लंड चुसवाना चाहता था,,,
इसलिए वह अपने लंड को सगुन के मुंह में डाल दिया और शगुन उसे लॉलीपॉप की तरह आराम से चूसने लगी उसे लंड चूसने में भी बहुत मजा आता था,,,, और कुछ देर बाद वह शगुन की टांगों के बीच आकर अपने मोटे लंड को अपनी बेटी की बुर में डालकर चोदना शुरू कर दिया,,,,जैसा संजय के लिए बेहद अद्भुत था वह पूरी तरह से उत्तेजना से भरा हुआ था दिन भर के उतार-चढ़ाव कशमकश को वह दूर करते हुए शगुन की जबरदस्त चुदाई कर रहा था,,,पूरा कमरा शगुन की गर्म सिसकारी से गुंज रहा था उसे बहुत मजा आ रहा था,,,,,,, क्या सिलसिला होटल के उस कमरे में सुबह के 4:00 बजे तक चलता रहा इसके बाद संजय वहां 2 दिन और रुकने का फैसला किया,,
एक-दो दिन में संजय और शगुन पूरी तरह से एक दूसरे के हो चुके थे दोनों के बीच बाप बेटी का रिश्ता खत्म हो चुका था संजय शगुन के जवान बदन का भरपूर आनंद लूट रहा था,,,, सगुन के लिए यह सब पहली बार था इसलिए संभोग सुख को भरपूर तरीके से उसका आनंद लुट रही थी। दूसरी तरफ सोनू और संध्या दोनों मां बेटे चुदाई का भरपूर मजा ले रहे थे,,,,,,, जितने दिन सुकून और संजय दोनों बाहर थे इतने दिन सोनू और संध्या अपने तरीके से जिंदगी को जी रहे थे और यही काम शगुन और संजय भी कर रहे थे,,,।
लेकिन संध्या और संजय दोनों को अपनी-अपनी चोरी पकड़े जाने का डर बहुत था करे चोरी पकड़ी जाती हो तुम दोनों एक दूसरे की नजरों में गिर जाते हैं और परिवार तबाह होने का पूरा डर था बदनामी अलग से,,,,।
इसलिए समाज में किसी भी प्रकार की कानाफुसी ना हो किसी को इस बात का कानो कान खबर ना हो इसलिए संजय और शगुन दोनों एक दूसरे से वादा किए थे कि घर पर पहुंचते ही वह दोनों उसी तरह से रहेंगे जैसा कि पहले रहते थे अगर मौका मिला तो वह दोनों फिर से संभोग सुख एक दूसरे से प्राप्त करेंगे और यही वादा संध्या और सोनू दोनों मां-बेटे आपस में मिलकर किए थे क्योंकि वह लोग अच्छी तरह से जानते थे कि घर में अगर इस तरह से चलता रहा तो एक न एक दिन दोनों पकड़े जाएंगे और ऐसा वह दोनों बिल्कुल भी नहीं चाहते थे,,,,। जिस तरह से वादा किया था उस तरह से चलने लगा मां बेटे का बाप बेटी दोनों को जब भी मौका मिलता था दोनों चुदाई का सुख भोग लेते लेकिन कभी भी एक दूसरे की हाजिरी में वह दोनों संजय और शगुन और ना ही संध्या और सोनू ने कभी भी गलती नहीं किया इसलिए वह लोग दुनिया की नजर में समाज के नजर में,,, परिवार की नजर में मां बेटी और बाप बेटी बने रहते थे लेकिन जैसे एकांत पाते वह लोग केवल मर्द औरत हो जाते थे जो एक दूसरे से संभोग का भरपूर सुख प्राप्त करते थे,,,।
The end ,,,,,,,,,,,,,, समाप्त,,,,,,,,,,,