रात के 11:00 बज रहे थे और सरिता हॉस्पिटल में बने संजय के कमरे में जाने के लिए अपने आप को पूरी तरह से तैयार कर ली थी,,,,, उसका दिल जोरों से धड़क रहा था,, अपने पति की खैरियत और उसकी खुशी की खातिर अपने आप को संजय के हाथों में सौंप चुकी थी,,,, लेकिन शायद संजय कातिल उसके खूबसूरत बदन से एक बार में भरा नहीं था इसलिए बात दोबारा उसे अपने कमरे में आने के लिए बोला था और यह बात सरिता अच्छी तरह से समझ रही थी भले ही वह मध्यमवर्ग की महिला थी लेकिन खूबसूरती के मामले में बेहद उच्च स्तर की औरत थी भगवान ने दोनों हाथों से भर भर कर खूबसूरती उसके अंदर समर्पित कीया था,,,,, संजय हॉस्पिटल में बने अपने आराम कक्ष में बैठकर सरिता का बेसब्री से इंतजार कर रहा था बार-बार वह दीवार में टंगी हुई घड़ी की तरफ भागती हुई सुईयो को देख रहा था,,,संजय ने अब तक ना जाने कितनी औरतों को भोग चुका था लेकिन सरिता को भोगने के लिए उसका मन तड़प रहा था एक अजीब सी कशिश एक अद्भुत आकर्षण सरिता के बदन में था जो कि संजय को उसकी तरफ बढ़ने के लिए विवश कर दे रहा था,, इसमें संजय कि कोई भी गलती नहीं थी सरिता का रूप रंग ही कुछ ऐसा था साधारण औरत होने के बावजूद भी अद्भुत सुंदर की मालकिन थी,,, और संजय उसकी खूबसूरती का गुलाम बनने के लिए तैयार था,,,दिन में उसके खूबसूरत कोमल अंग में अपने कठोर अंग की रगड़ को अच्छी तरह से महसूस करके इस समय भी उस पल को याद करके वह एकदम गरम हो चुका था,,, छातियों पर जवानी की डाली पर झुलते हुए उसके दशहरी आम को लटकता हुआ देखकर उसके मुंह में जिस तरह से पानी का सैलाब उठा था संजय दोनों दशहरी आम को अपने मुंह में लेकर चूस कर अपनी त्रष्णा को शांत करना चाहता था,,,,, जिस तरह से संजय सरिता एक बार फिर से एकाकार होने के लिए तड़प रहा था उसी तरह की तड़प सरिता के तन बदन में भी उठ रही थी आखिरकार एक पत्नी होने से पहले वह एक औरत थी वही औरत हाड मांस की बनी हुई जिसके बदन की कुछ जरूरते थी कुछ चाहत थी,,, पति शहर में रहता था और वह गांव में जिससे वह अपने शरीर की जरूरत पूरी नहीं कर पाती थी लेकिन जब भी वह अपने पति से मिलती थी फिर भी उसका पति उस तरह का सुख नहीं दे पाता था जिस तरह का सुख एक ही बार में संजय सिंह ने अपने मोटे तगड़े लंड को उसकी बुर में डालकर उसे संभोग के असली सुख से वाकिफ कराया था,,,,और उसी सुख को दोबारा पाने के लिए सरिता का मन मचल रहा था,,, ऐसी विवशता ऐसी तड़प उसे पहले कभी भी महसूस नहीं हुई थी पति से दूर होने के बावजूद भी वह अपने आप में खुश थी अपने पति से बहुत प्यार करती थी अपने पति के द्वारा प्राप्त शरीर सुख से वह संतुष्ट थी, इससे ज्यादा की कामना शायद उसके मन में कभी नहीं थी लेकिन अपने पति की खातिर मजबूर होकर एक माने जाने बड़े डॉक्टर के साथ संभोग करके इतना तो समझ ही गई थी कि जिस तरह का संभोग उसका पति उसके साथ करता था वह संभोग के नाम पर केवल खिलवाड़ था असली सुख तो उसे डॉक्टर से प्राप्त हुआ था उसके मर्दाना ताकत से भरे यंत्र को अपनी दूर में महसूस करके जिस तरह की गर्मी से पिघलने का अनुभव उसमें अपनी दोनों टांगों के बीच की पत्नी दरार में महसूस की थी उस तरह का सुख उसके पति ने उसे कभी नहीं दिया था और इस बात से भी अनजान वह बिल्कुल नहीं थी कि डॉक्टर के लंड से उसके पति का लंड आधा भी नहीं था,,,।
मजबूरी में ही सही डॉक्टर के कमरे में जाने के लिए सरिता का भी मन लालाइत था एक बार फिर से वह डॉक्टर के कठोर अंग को अपने गुलाब की पंखुड़ी जैसे कोमल अंग में महसूस करना चाहती थी उसकी गर्माहट भरी रगड़ से अपनी मदहोश जवानी को पिघलता हुआ महसूस करना चाहती थी,,,, उसके दोनों हाथों में अपने बड़े-बड़े नितंबों को थमा कर उससे मसल वाना चाहती थी,,,, अपने पके हुए दशहरी आम का स्वाद डॉक्टर को चखाना चाहती थी,,,। सरिता शर्म और संस्कार दोनों से भरी हुई थी,,, लेकिन जवानी के भार से उसके पैर डगमगा रहे थे इसलिए मर्यादा की दीवार पर अपने शर्म संस्कार और संकोच तीनों को टांग कर वह ,,,,, लक्ष्मण रेखा पार करके डॉक्टर के कमरे में जाने के लिए तैयार हो चुकी थी जिसमें अब उसकी खुद की रजामंदी थी अब अपने पति के इलाज की चिंता उसे बिल्कुल भी नहीं थी,,,पति के इलाज का खामियाजा उसने खुद को डॉक्टर के हाथों में समर्पित करके भुगत चुकी थी अब वह अपने लिए डॉक्टर के कमरे में जाना चाहती थी अपनी खुशी के लिए अपनी खुशी के लिए अपने शरीर की जरूरत के लिए संभोग सुख की अद्भुत अहसास को महसूस करने के लिए वह डॉक्टर के कमरे में जाना चाहती थी,,,
रात के 11:00 बज चुके थे,, लगभग लगभग सभी लोग सो चुके थे इमरजेंसी केस ना होने की वजह से रात की ड्यूटी वाले डॉक्टर और नर्स वे लोग भी अपना काम खत्म करके सो गए थे मौका देख कर सरिता अपने पति के पास से खड़ी हुई और सीधा ऊपर के फ्लोर पर पहुंच गई,,,, अजीब सी हलचल उसके तन मन में हो रही थी उसे इस बात का अहसास अच्छी तरह से हो रहा था जो कुछ भी हो कर रही है वह गलत है लेकिन मजबूर थी और जरूरत भी,,, उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि वह सबसे गंदी औरत है और रात को सबसे नजरें बचाकर व गैर मर्द के कमरे में संभोग के लिए जा रही है,,, वास्तव में ऐसी औरतों चरित्रहीन गंदी होती हैं जो अपने पति के साथ छल करते हुए,, किसी गैर मर्द के साथ जिस्मानी ताल्लुकात बनाती है,,, लेकिन शायद यह बात समाज भूल जाता है कि भूख तो भूख होती है चाहे पेट की हो या फिर चाहे शरीर की ,,, हर हाल में दोनों की भूख मिटाना जरूरी होता है और अक्सर लोग स्वादिष्ट भोजन की तरफ ही पढ़ते हैं वह तो मजबूरी में स्वादिष्ट ना होने पर भी उसे खाकर संतुष्टि का अहसास करते हैं लेकिन जब आंखों के सामने स्वादिष्ट भोजन परोसा गया हो तो भला बेस्वाद भोजन करने का किसका मन करेगा,,,।
सरिता डॉक्टर के कमरे के बाहर खड़ी थी दरवाजा बंद है जरूर था लेकिन लोक नहीं था लेकिन फिर भी सरिता अपने आप से दरवाजा खोल कर अंदर जाने की हिम्मत जुटा नहीं पाई उसके पैर थरथर कांप रहे थे क्योंकि जो काम करने जा रही थी वह जिंदगी में पहली बार कर रही थी,,,घबराहट में चारों तरफ नजर घुमाकर देख भी ले रही थी कि कहीं कोई देख तो नहीं रहा है लेकिन सभी लोग गहरी नींद में सो रहे थे वैसे भी ऊपर के फ्लोर पर डॉक्टर के कमरे के इर्द-गिर्द कुछ भी नहीं था जिससे वहां पर किसी के भी होने की शंका बिल्कुल भी नहीं थी,,।
सरिता की सांसे गहरी चल रही थी वह बार-बार साड़ी के पल्लू से अपने चेहरे को छुपाने की कोशिश कर रही थी क्योंकि उसके मन में ऐसा भ्रम हो रहा था कि उसे कोई देख रहा है,,, आखिर कार वह सीधी-सादी गांव की संस्कारी औरत थी इसलिए उसके मन में इस तरह की शंका होना जायज था,,,, उसके मुंह से शब्द नहीं पूछ रहे थे इसलिए वह दरवाजे पर दस्तक देने लगी,,, और दरवाजे पर हो रही दस्तक की आवाज सुनते ही संजय के तन बदन में उत्तेजना की लहर उठने लगी उसके चेहरे पर प्रसन्नता के भाव तैरने लगे,,,,वह जल्दी से बिस्तर पर से उठ कर खड़ा हो गया और जल्दी से दरवाजे की तरफ आगे बढ़ा जो कि खुला हुआ ही था उसे जल्दी से खोल कर अपनी आंखों के सामने सरिता को देख कर वह एकदम से उसे अपनी बाहों में भरने के लिए मचल उठा और एक पल की भी देरी किए बिना उसका हाथ पकड़कर कमरे के अंदर खींच लिया और तुरंत दरवाजा बंद करके लॉक कर दिया,,,, संजय के द्वारा इस तरह से अपना हाथ पकड़े जाने पर सरिता के तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी,,,, और दरवाजा बंद करते ही समझे उसे अपनी बांहों में भरते हुए बोला,,,,।
ओहो सरिता तुम नहीं जानती कि तुमसे मिलने के लिए मेरा मन कितना उतावला था,,,,(इतना कहने के साथ ही वह सरिता के गर्दन पर चुम्बनो की झड़ी बरसा दीया,,,, सरिता एकदम से कांप उठी,,, और देखते ही देखते संजय उसके लाल लाल रस से भरे हुए होठों को अपने फोटो में भरकर चूसना शुरू कर दिया,,,, सरिता उसकी इस हरकत से एकदम सूखे हुए पत्ते की तरह थरथरा गई,,, जिस तरह का चुंबन वह उसके होठों को अपने मुंह में भर कर कर रहा था इस तरह की चुंबन उसके पति ने कभी नहीं किया था,,, संजय उसके लाल-लाल होठों के रस को पी रहा था और साथ ही अपने दोनों हाथों को उसकी चिकनी पीठ पर घुमा रहा था जिससे सरिता के तन बदन में उत्तेजना की लहर उठने लगी थी दोनों मदहोश हुए जा रहे थे,,, सरिता अपने आप को संभालने की कोशिश कर रही थी लेकिन उतना ज्यादा वह बहकती जा रही थी,,,और जैसे ही संजय अपने दोनों हथेली को उसकी चिकनी फीट से होते हुए उसकी कमर के नीचे नितंबों के उभार पर रखकर जितना हो सकता था उतना हाथ की हथेली में उसकी गांड को भरकर जोर से दबा या वैसे ही सरिता के मुंह से सिसकारी की आवाज फूट पड़ी,,,,
सीईईईईईईई,,,,,,,
(इस तरह की कामुक आवाज सरिता के मुंह से सुनते ही संजय एकदम से उसका दीवाना हो गया और वह जोर-जोर से उसकी गांड को दबाना शुरू कर दिया वह सरिता को एकदम कसके अपनी बाहों में भरे हुए था जिससे उसका खाना लंड पेंट में होने के बावजूद भी बड़ी कठोरता के साथ उसकी दोनों टांगों के बीच ठोकर मार रहा था और सरिता अपनी दोनों टांगों के बीच अपनी मखमली बुर के मुख्य द्वार पर उसके कठोरपन की दस्तक को महसूस करके एकदम मस्त हुए जा रही थी... । लेकिन अभी तक वह मस्ती के आलम में भी अपने आप को अपने काबू में रखे हुए थी क्योंकि अभी तक वह संजय के बदन पर अपना हाथ नहीं रखी थी वह उसी तरह से मूर्ति बनकर खड़ी थी लेकिन कब तक वह अपने आप को संभाल पाती संजय के लंड की ठोकर बराबर उसकी बुर के मुख्य द्वार पर लग रही थी,,,, वह मदहोश में जा रही थी संजय अपनी हरकतों से फल खाने से पागल बनाता जा रहा था अपनी जवानी का रस उसकी जवानी में घोल रहा था लाल-लाल होठों का रसपान करते हुए वह स्वर्ग के सुख को महसूस कर रहा था,,, आखिरकार संजय की कामुक हरकतों और अपने वतन की जरूरत से मजबूर होकर वह घुटने टेक दी और जिंदगी में पहली बार अद्भुत चुंबन का लुफ्त उठाते हुए सरिता भी संजय के होठों को अपनी गुलाबी होठों में भरकर चूसना शुरु कर दी दोनों एक दूसरे के मुंह में अपनी अपनी जीभ डाल कर एक दूसरे की जीभ को आपस में लड़ा रहे थे,,, संजय काफी अनुभवी था और सरिता इस तरह के सुख से बिल्कुल अनजान थी संजय बार बार उसकी रसीली जीभ को अपने होंठों के बीच दबा कर इसे चूसना शुरु कर देता,, था,, और संजय की इस हरकत की वजह से सरिता को अपनी दोनों टांगों के बीच अपनी पतली दरार में सैलाब सा ऊठता हुआ महसूस हो रहा था,,,,
क्या पति के इलाज के पैसे के बदले में यह सब करना जरूरी है,,,।
हां क्यों नहीं सरिता हर काम का दाम होता है वह चाहे जिस रूप में हो उसे तय इंसान ही करता है,,,, वैसे तो मैं तुमसे एक रुपया भी नहीं लेता लेकिन तुम्हारी खूबसूरती की चमक मुझे मजबूर कर दे रही है अपना दाम वसूल करने के लिए तुम्हें देखते ही मेरे तन बदन में ना जाने कैसी हलचल होने लगी तुम्हें पाने को मेरा मन मचलने लगा,,,,(संजय सरिता के चेहरे पर आ रही बालों के लट को अपनी उंगली से उसके कानों के पीछे ले जाते हुए बोला) सच कहूं तो सरिता मैंने आज तक तुमसे खूबसूरत औरत कभी नहीं देखा,,,,
(संजय के मुंह से अपनी खूबसूरती की तारीफ सुनकर सरिता मन ही मन प्रसन्न होने लगी और अपने चेहरे पर आई शर्म की लालिमा को छुपाने के लिए वह अपने चेहरे को उसके सीने में छिपा दी और संजय उसे एक बार फिर से अपनी बाहों में भर कर उसकी बड़ी बड़ी गांड को अपने दोनों हाथों में भरकर दबाना शुरू कर दिया सरिता मचल उठी मदहोश होने लगी संजय बेकाबू हुआ जा रहा था उत्तेजना के परम शिखर पर अपने आप उड़ता चला जा रहा था वह साड़ी के ऊपर से ही सरिता की बड़ी बड़ी गांड को दबाता हुआ उस पर भी और जोर से चपत लगा रहा था जिससे सरिता को तो हल्का दर्द हो रहा था लेकिन उसे अद्भुत आनंद की प्राप्ति भी हो रही थी जिस तरह की हरकत संजय उसकी गांड के साथ कर रहा था उसके पति ने उस तरह से उसकी गांड से कभी नहीं खेला था,,,।
दूसरी तरफ संध्या अपने कमरे में बिस्तर पर लेटी हुई थी आज जो अपनेबेटे के साथ मिलकर झाड़ियों के पीछे जिस तरह का कामुक दृश्य वह देखी वह उसकी आंखों से बिल्कुल भी ओझल नहीं हो पा रहा है,,, उसका मन विचलित हो रहा था तन बदन में अजीब सी हलचल हो रही थी उसे यह भी अच्छी तरह से याद था कि जब वह दौड़ लगा रही थी तो उसके बेटे की नजर उसके हिलते हुए नितंबों पर टिकी हुई थी,,,,उस पल जिस तरह की हलचल उसके तन बदन में महसूस हुई थी उसी तरह की हलचल उसे इस समय महसूस हो रही थी,,, बिस्तर पर पीठ के बल लेट कर संध्या उस पल को याद कर रही थी जब उसकी ऊछलती हुई चुचियों को उसका बेटा प्यासी नजरों से देख रहा था,,, उन पलों को याद करके संध्या काम भावना से ग्रस्त होते जा रही थी उसे यह सब अच्छा लगने लगा था प्यासी नजरों से अपने ही बदन को अपने ही बेटे के द्वारा देखे जाने पर उसे उत्तेजित किए जा रही थी,,,, संध्या किंग साइज बेड पर करवटें बदल रही थी क्योंकि इस समय उसकी दोनों टांगों के बीच की गर्मी को शांत करने वाला संजय घर पर नहीं था,,। वो धीरे धीरे अपने गाउन का बटन खोलने लगी,,,,
सोनू अपने कमरे में मदहोश हुआ जा रहा था खास करके अपनी मां की मदहोश कर देने वाली जवानी के दर्शन करके हालांकि अब तक वह अपनी मां को नग्न अवस्था में नहीं देख पाया था लेकिन फिर भी कपड़ों के ऊपर से ही उसके उभार लिए हुए अंको का हर एक कटाव उसे साफ नजर आता था,,,घर से निकलने से पहले अपनी मां की बड़ी बड़ी गांड जिसमें उसकी पजामी फसी हुई थी,,, उसे फंसी हुई पजामी को देखकरसोनू को अनुभव ना होने के बावजूद भी अपनी मां की बड़ी बड़ी गांड का एहसास साफ तौर पर हो रहा था और बगीचे में तो दौड़ते समय उसकी मां ने अपने हिलते हुए गांड के दर्शन करा कर सोनू के दिल पर छुरियां चला दी थी ,,,,सोनू को बगीचे में इस बात का एहसास हुआ कि उसकी मां की गांड के साथ-साथ उसकी मां की चूचियां भी बहुत बड़ी है,,, जोकि लूज टीशर्ट में कयामत ढा रही थी,,, उसकी मां की मदहोश कर देने वाली जवानी के साथ-साथ झाड़ियों के पीछे चल रहे चुदाई के दृश्य को देखकर सोनू के तन बदन में आग लगी हुई थी जो कि वह तेरी सुबह अपनी मां के ठीक पीछे खड़ा हो कर देख रहा था और उस समय उसे इस बात का अहसास तक नहीं हुआ था कि पर जाने में उसका खड़ा लंड उसकी मां की गांड पर ठोकर लगा रहा था,,,इस बात का एहसास सोनू को एकदम मदहोश करने लगा और वह मदहोशी के आलम में अपना एक हाथ अपने पजामे में डालकर अपने खड़े लंड को सहलाने लगा,,,, झाड़ियों के पीछे औरत और वह लड़का एकदम उसके और उसकी मां की उम्र के थे ना चाहते हुए भी सोनू की कल्पनाओं का घोड़ा दौड़ने लगा और उस औरत की जगह वह अपनी मां की कल्पना करने लगा और उस लड़के की जगह खुद अपनी,,, इस तरह की कामुक कल्पना करते ही,,,सोनू के तन बदन में उत्तेजना किधर दौड़ने लगी उसका जोश दोगुना होने लगा और वह ना चाहते हुए भी अपने लंड को मुट्ठी में भरकर हस्तमैथुन वाली हरकत करने लगा हालांकि अब तक उसने कभी मुठिया तक नहीं मारा था जब भी उसका संखलन होता था,,, वह सपने में किसी कामुक दृश्य को देखकर अपने आप हो जाता था इसलिए यह कहना संभव ही था कि सोनू को मुठिया मारने नहीं आता था लेकिन फिर भी अनजाने में वह उसी क्रिया को कर रहा था उस लड़के की जगह अपने आप को रखकर और उस औरत की जगह अपनी मां को इस तरह की कल्पना करते हुए अपने लंड को हीना शुरू कर दिया,,,, उसकी आंखें बंद थी और कल्पना का घोड़ा बड़ी तेजी से आगे बढ़ रहा था,,,, जहां पर संजय संध्या और सोनू तीनों अपनी-अपनी जगह पर लगे हुए थे वहीं पर शगुन भली कहां पीछे हटने वाली थी,,,,उस दिन के दृश्य को देखकर जिस तरह की गर्माहट और जवानी वह अपने बदन में महसूस की थी एक बार फिर से उसका मन मचलने लगा था खिड़की से अंदर के दृश्य को देखने के लिए और वही देखने के लिए वह अपनी मां के कमरे की तरफ गई थी लेकिन तब उसे याद आया कि आज उसके पापा घर पर आए नहीं है तो वह निराश होकर अपने कमरे में चली गई लेकिन जवानी का जोश उबाल मार रहा था इसलिए वह कमरे में घुसते ही दरवाजा बंद करके अपने सारे कपड़े उतार कर नंगी हो गई और बिस्तर पर लेट गई,,,
वही हॉस्पिटल के ऊपर वाले फ्लोर पर संजय सरिता के साथ पूरी तरह से मदहोश हो चुका था इस समय सरिता के लाल लाल होठों से उसे स्वर्ग का अमृत का स्वाद मिल रहा था सरिता की बड़ी-बड़ी गांव उसके लिए सबसे बड़ी उत्तेजना का केंद्र बिंदु बनी हुई थी जिसे वह बार-बार अपने हाथों में लेकर जोर-जोर से दबाता हुआ उस पर चपत लगा रहा था संजय का इस तरह से उसके बदन के साथ खेलना सरिता के तन बदन में आग लगा रहा था कभी सपने में भी नहीं सोची थी कि औरत के बदन के साथ इस तरह से भी खेला जाता है वरना उसका पति इच्छा होने पर बस उसके ऊपर चढ़ जाता था और काम खत्म होने पर उतर जाता था बस इतना ही संभोग के नाम पर सुख भोगती थी,,,, सरिता की सांसे ऊपर नीचे हो रही थी अनजान जगह पर अजनबी हाथों में वह अपनी संपूर्ण जवानी सौंप चुकी थी,,,,लेकिन उसे इस बात का एहसास हो गया था कि वह अपनी जवानी को किसी बेवकूफ और नादान हाथों में नहीं सौंपी थी बल्कि अनुभव से भरे हुए हाथों में सौंपी थी जिसका उसे भी गर्व के साथ साथ आनंद का अनुभव हो रहा था,,, संजय सरिता के कंधे पर से साड़ी का पल्लू नीचे गिरा दिया था जिससे उसकी भारी भरकम छातियां उसकी आंखों के सामने उजागर हो चुकी थी ब्लाउज में से झांकती उसकी चूचियों के बीच की गहरी रेखा ऐसी लग रही थी मानो जैसे संजय को अपने अंदर समा लेने के लिए बुला रही हो,,,, संजय भी पागलों की तरह सरिता की चूचियों की गहराई में डूबने के लिए तैयार था और अपने दोनों हाथ आगे बढ़ाकर वह ब्लाउज के ऊपर से ही सरिता के दोनों दशहरी आम को थाम कर अपने होठों को उसकी चूचियों के बीच की गहरी लकीर में डालकर ऊसे चाटना शुरु कर दिया,,,,,
सससहहहहह आहहहहहहह,,,,,,,ं(सरिता के मुंह से मदहोशी भरी आवाज आने लगी थी,,,, देखते ही देखते संजय शंकर के ब्लाउज का बटन खोलने लगा और अगले ही पल के ब्लाउज के बटन खोल कर उसके बदन से ब्लाउज निकालकर नीचे फेंक दिया उसकी अनमोल रसीली गोलाईयों को छुपाने के लिए लाल रंग की ब्रा अभी भी उसके बदन पर थी,, सरिता शर्मा रही थी संकुचा रही थी वह अपनी खूबसूरत बदन को संजय की नजरों से बचाना चाहती थी,,,,जिस अनमोल खजाने को अब तक उसका पति देखता रहा था आज उसके ना चाहने के बावजूद भी संजय उसके खूबसूरत बदन का रसपान अपनी नजरों से कर रहा था जिसमें धीरे धीरे सरिता की भी सहमति होती जा रही थी सरिता अभी पूरी तरह से जवान थी एक बच्चे की मां थी,,,खेतों में काम करने की वजह से उसका बदन पूरी तरह से गठीला और सुडौल था जिसे देखकर किसी का भी लंड खड़ा होकर सलामी भरने लगे,,,,, संजय उसके ब्लाउज को उतारकर एक पल के लिए उसके खूबसूरत बदन को ऊपर से नीचे तक देखने लगा जो की कमर के नीचे अभी भी साड़ी में लिपटी हुई उसकी मदमस्त गांड कयामत ढा रही थी संजय सरिता के नंगे बदन को देखना चाहता था उसके खूबसूरत गांड को अपने हाथ में लेना चाहता था,,,, वह बेहद खुश था।
तुम बहुत खूबसूरत हो सरिता ने कभी सपने में भी सोच नहीं सकता था कि तुम इतनी खूबसूरत होगी,,,(अपनी तारीफ सुनकर सरिता के चेहरे पर प्रसन्नता के भाव झलक ने लगे उसके पति ने अब तक कितने प्यार से उसकी तारीफ कभी नहीं किया था वह अपने काम में ही बिजी रहता था बीवी पर तो कभी ध्यान ही नहीं दिया था इसलिए संजय की इस तरह की बातें उसके दिल के अंदर तक उतर जा रही थी और इतना कहने के साथ ही संजय उसकी साड़ी की किनारी पकड़कर इतनी जोर से खींचा की सरिता दो चार बार अपने आप अपनी जगह पर घूम कर बिस्तर पर गिर गई,,,, वह बिस्तर पर पीठ के बल गिर गई थी,,उसे इस बात का अंदाजा नहीं था कि संजय इस तरह की हरकत करेगा इसलिए वह अपने आप को संभाल नहीं पाई थी लेकिन संजय की इस हरकत पर उसके होठों पर मुस्कान बिखर गई और उसकी मुस्कुराहट संजय के दिन में छोरियां चलाने लगी बेहद प्यारी मुस्कान थी सरिता की,,,)
वाह सरिता तुम मुस्कुराती हो तो ऐसा लगता है कि जैसे गुलाब का फूल खिल रहा हो,,,(सरिता बोली कुछ नहीं बस शर्मा कर जवाब में वह अपने दोनों हाथों से अपने चेहरे को ढक ली उसका चेहरा पूरी तरह से शर्म से लाल लाल हो चुकी थी,,। वो बिस्तर पर ब्रा और पेटीकोट में थी संजय सिंह अपने शर्ट के बटन खोलने लगा सरिता अपने चेहरे को ढके हुए ही उंगलियों के बीच में से संजय की तरफ देख रही थी संजय शर्ट के बटन खोल रहा था यह देखकर उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी थी,,, एक औरत के लिए वह पल में उत्तेजना से भरा होता है जब वह शर्मा कर बिस्तर पर पड़ी होती है और मर्द उसकी आंखों के सामने अपने शर्ट के बटन खोल कर अपने कपड़े उतार रहा होता है क्योंकि उस समय औरत अच्छी तरह से इस बात को समझती है कि वह कपड़े उतार कर उसके साथ क्या करने वाला है और वही सरिता के तन बदन में हलचल पैदा कर रहा था देखते ही देखते संजय अपने सारे कपड़े उतार कर केवल अंडर वियर में बिस्तर के किनारे खड़ा था,,,। और उसके अंडरवियर में बना हुआ तंबू सरिता के होश उड़ा रहा था,,,, दोपहर में एक बार वाह संजय के लंड को अपनी बुर की अंदरूनी दीवारों पर महसूस कर चुकी थी एक बार फिर से उसे अपने अंदर लेने के लिए वह मचल उठी लेकिन वह पहल नहीं कर सकती लेकिन इस बात से भी अनजान नहीं थी कि संजय उसे संपूर्ण सुख की अनुभूति कराएगा,,,, और वही हुआ भी जैसे-जैसे संजय अपने कदम आगे बढ़ाकर बिस्तर पर घुटनों के बल आगे बढ़ने लगा वैसे वैसे सरिता के दिल की धड़कन बढ़ने लगी दिल की धड़कन के साथ साथ ब्रा के अंदर कैद उसकी चूचियां ऊपर नीचे हो रही थी जिस पर ना चाहते हुए भी संजय का ध्यान चला जा रहा था क्योंकि वह इस समय पूरा ध्यान सरिता की दोनों टांगों के बीच केंद्रित करना चाहता था औरत होती ही ऐसी गजब की चीज है कि उसके हर एक अंग से जी भर के प्यार करने का मन करता है,,,,
संजय घुटनों के बल उसके बेहद करीब पहुंच चुका था उसके पेटीकोट की डोरी को खोलने लगा था,,,, संजय की हरकत की वजह से सरिता का बदन कसमसा रहा था उसे अच्छी तरह से मालूम था कि संजय उसकी पेटीकोट को उतारने जा रहा है और देखते ही देखते संजय उसके पेटीकोट की दूरी को खोल कर उसकी पेटीकोट को दोनों हाथों से पकड़कर नीचे की तरफ सरका ने लगा लेकिन भारी भरकम गांड के दबाव के नीचे उसकी पेटीकोट दबी की दबी रह गई और नीचे नहीं आ रही थी सरिता जानती थी कि बिना उसके सहकार केसंजय उसकी पेटीकोट नहीं उतार पाएगा इसलिए वह खुद अपनी कमर को ऊपर की तरफ उठा ली,,, जिसमें संजय को आगे बढ़ने की संपूर्ण रूप से अनुमति थी,,, सरिता को अपनी गांड उठाते हुए देखकर संजय तुरंत पेटीकोट को खींचकर उसके पैरों से बाहर निकाल कर नीचे फर्श पर फेंक दिया इस समय सरिता उसकी आंखों के सामने लाल रंग की ब्रा और लाल रंग की पैंटी में बेहद कमाल की स्वर्ग से उतरी हुई अप्सरा लग रही थी,,, सरिता की गहरी नाभि रसीली बुर से कम नहीं थीऔर संजय एक बार उसकी दोनों टांगों के बीच आने से पहले अपनी जीभ को उसकी नाभि में डाल कर चाटना शुरू कर दिया सरिता गदगद हो गई उत्तेजना के मारे उसकी कमर में कंपन हो रहा था जिससे उसका चिकना पेट पानी भरे गुब्बारे की तरह लहरा रहा था,,,,संजय उसी तरह से उसकी नाभि चाटते हुए अपना एक हाथ उसकी पैंटी के अंदर डालकर उसकी बुर को सहलाने लगा जो की पूरी तरह से गीली हो चुकी थी,, और वह सरिता की गीली बुर को सहलाते हुए बोला,,,।
ओहहहहहहसरिता तुम तो एकदम गीली हो गई हो तुम्हारी बुर पानी फेंक रही है,,,,,,सससहहहहह आहहहहहहहह,,(संजय सरिता की गीली बुर को सहलआते हुए गर्म आहे भर रहा था,,,, संजय की इस तरह की बातें सुनकर सरिता,, शर्म से पानी पानी हो गई और एक बार फिर से वह शर्मा कर दूसरी तरफ अपना मुंह फेर ली,,, संजय कुछ देर तक यु ही उसकी बुर और नाभि के साथ खेलने के बाद उसकी पैंटी को दोनों हाथों से पकड़ कर नीचे की तरफ सरका ने लगा,,,इस बार भी सरिता संजय की मदद करते हुए अपनी गांड को ऊपर उठा ली ताकि उसकी पेंटी आराम से निकल सके और देखते ही देखते संजय उसकी पैंटी उतार कर कमर के नीचे उसे एकदम नंगी कर दिया,,,,,सरिता की रसीली चिकनी और फूली हुई बुर को देखकर संजय के मुंह के साथ-साथ उसके लंड में भी पानी आ गया,,, संजय मदहोश हुआ जा रहा था जल्द से जल्द वह सरिता की बुर का मदन रस अपनी जीभ से चाटना चाहता था,,,,उसकी अभिलाषा पूरी हो रही थी वह सरिता के संपूर्ण बदन से खेलना चाहता था उसकी इत्मीनान से लेना चाहता था,,,।सरिता को ऐसा था कि आप समझे उसकी बुर में लंड डालेगा लेकिन उसके सोच के मुताबिक संजय कहां चलने वाला था वह तो घाट घाट का पानी जो पी चुका था वह औरतों के बदन से जी भर कर खेलने के बाद ही उसको चोदता था,,, और देखते ही देखते संजय सरिता की दोनों टांगों के बीच आ गया उसकी मोटी मोटी चिकनी जांघें ट्यूबलाइट की रोशनी में और ज्यादा चमक रही थी,,, संजय की आंखों में सरिता की बुर को देखकर अजीब सी चमक आ रही थी,,,,संजय को इस बात का भी एहसास हो गया कि दोपहर में जब वहां सरिता की चुदाई किया था तब उसके बुर के ऊपर हल्के हल्के बाल थे और इसी में उसकी बुर पूरी तरह से चिकनी थी,,, इसका मतलब सरिता पूरी तरह से चुदवाने के लिए तैयार थी,,,, संजय यह बात सोचते ही पूरी तरह से मदहोश हो गया उत्तेजना से तरबतर हो गया और वह अपनी दो ऊंगली को एक साथ सरिता की बुर में डालकर बोला,,।
सरिता,,,,,
ऊंहहहह,,,
दोपहर में जब मैं तुम्हारी चुदाई किया था तब तो तुम्हारी बुर पर बाल था,,, लेकिन इस समय तो एकदम चिकनी है क्या तुमने अपने हाथों से इसे साफ करके आई हो,,,।
(संजय की यह बात उसे शर्म से पानी पानी कर रही थी लेकिन फिर भी संजय अपनी बात पर अड़ा हुआ था और फिर से बोला)
बोलो ना सरिता तुम्हारी बुर मुझे बहुत खूबसूरत लग रही है चिकनी बुर मुझे बेहद पसंद है,,,
आप इतने बड़े डॉक्टर हैं सफाई का ख्याल रखते होंगे इसलिए मुझे अपनी बुर को क्रीम लगाकर साफ करना पड़ा,,,(सरिता शरमाते हुए अपने चेहरे को दोनों हाथों से ढक कर बोली और संजय सरिता के मुंह से दूर शब्द सुनकर पूरी तरह से जोश से भर गया और एक पल की भी देन किए बिना अपना मुंह सरिता की दोनों टांगों के बीच डाल दिया और उसकी बुर को चाटना शुरू कर दिया यह हरकत सरिता के सोच के बिल्कुल विरुद्ध थी वह कभी सपने में भी नहीं सोची थी कि इतना बड़ा डॉक्टर उसकी बुर को अपना मुंह लगाकर चाहेगा वह पूरी तरह से मदहोश हो गई और जैसे ही डॉक्टर की जीभ का स्पर्श वह अपनी बुर पर महसूस की वैसे ही उत्तेजना के मारे अपने आप उसकी कमर ऊपर की तरफ उठती चली गई,,, और संजय उसकी कमर को दोनों हाथों से पकड़कर कसके थामे रह गया,,, सरिता की यह जवानी के दिनों से ख्वाहिश थी कि उसका पति उसकी बुर को अपना मुंह लगाकर चाटे,,, लेकिन उसकी एक हमारी उसका पति कभी पूरी नहीं कर पाया था वह यह कह कर सरिता के मन को मार देता था कि। औरतों की बुर कोई चाटने की चीज है छी,,,,,,और सरिता अपना मन मसोस कर रह जाती थी लेकिन आज उसकी ख्वाहिश पूरी हो रही थी वह भी अपने पति के द्वारा नहीं बल्कि एक डॉक्टर के द्वारा,,, संजय अपनी जीभ का कमाल उसकी बुर पर दिखा रहा था,,, संजय अपना पूरा अनुभव सरिता की जवानी को चाटने में लगा दे रहा था सरिता मस्त हुए जा रही थी वह अपनी आंखों को बंद करके इस एहसास में पूरी तरह से अपने आप को डुबो दे रही थी संजय जितना हो सकता था उतना अपना जी भर के अंदर डालकर उसकी मलाई को चाट रहा था,,, और सरिता सूखे हुए पत्ते की तरह थरथरा रही थी,,,, संजय सरिता की बुर को चाटते हुए सरिता का हाथ पकड़कर उसे अपने अंडरवियर पर रख दिया,,, सरिता जानती थी कि उसे क्या करना है इस समय में पूरी तरह से मदहोश हो चुकी थी जवानी के नशे में अपने आप को डुबो चुकी थी,,, और देखते ही देखते कामाग्नि की आग में जलते हुए सरिता अपने आप अपना हाथ संजय की अंडरवियर में डाल कर उसके खड़े लंड को अपने हाथ से पकड़ ली संजय के गरमा गरम मोटे तगड़े लंड को अपने हाथ में पकड़ते ही ऐसा लग रहा था कि जैसे उसके हाथ में नहीं बल्कि कोई सुलगता हुआ लोहे का रोड पकड़ा दिया हो,,, उसकी गर्माहट में सरिता की दोनों टांगों के बीच की पतली दरार पिघलना शुरू कर दी जिसमें से निकल रहे मदन रस को संजय अपनी जीभ से चाट कर मस्त हुआ जा रहा था,,,,
स?हहहहह आहहहहहहह ऊइइइइइइइइ,,,,आहहहहहहहह,,,,,(सरिता के मुख से गर्म सिसकारी की आवाज गूंजने लगी आखिरकार वह कब तक अपनी मदहोश कर देने वाली आवाज को अपने अंदर दबा कर रखती,,उसकी मदहोश कर देने वाली आवाज को सुनकर संजय का जोश दोगुना होता जा रहा था वह और जोर-जोर से अपनी जीभ को उसकी बुर के अंदर चला रहा था सरिता पूरी तरह से गर्मा चुकी थीउसे अब अपनी बुर के अंदर संजय का मोटा लंड चाहिए था इसलिए वह जोर-जोर से संजय के लंड को दबाकर उसे ईसारा कर रही थी,,, और साथ संजय भी उसके इशारे को समझ चुका था इसलिए वह सरिता की दोनों टांगों के बीच से अपना मुंह हटा लिया संजय एकदम मदहोश हो चुका था उसकी सांसे बड़ी तेजी से चल रही थी सरिता उसके होठों से टपकते हुए अपनी बुर के मदनरस को देखकर शर्म से पानी पानी हो गई,,,। संजय बिस्तर पर पड़ी सरिता की चड्डी को उठाकर अपना मुंह साफ करते हुए बोला,,,
ओहहहह,,, सरिता इतनी लाजवाब बुर मैंने आज तक कभी नहीं देखा आज तो मजा आ गया तुम्हारी बुर चाटकर,,, आज देखना तुम्हें एकदम मस्त कर दूंगा मेरी जान,,,, तुम्हें कैसा लगा सरिता,,,,
(सरिता बोली कुछ नहीं बस शर्मा कर अपना मुंह दूसरी तरफ फेर ली जिसमें उसकी हा थी,,,,, संजय का मन ऊसे चोदने को कर रहा था लेकिन सरिता का हाथ अभी भी उसके अंडरवियर में था इसलिए संजय अपनी अंडरवियर को उतारकर एकदम नंगा हो गया सरिता को इस समय ना जाने क्यों अपनी मदहोश कर देने वाली जवानी पर गर्व हो रहा था कि उसकी जवानी को देखकर एक हॉस्पिटल का बड़ा डॉक्टर नंगा हो चुका था उसे पाने के लिए,,,संजय अपने लंड को पकड़कर खिलाते हुए घुटनों के बल आगे बढ़ा और सरिता के कंधों के इर्द-गिर्द अपना घुटना रखकर उसके होठों पर अपना लंड रगडने लगा,,,, बुर चाटना जिसे पसंद नहीं था वह खुद अपना लंड उसे चटाता था,,, इसलिए सरिता को क्या करना है यह अच्छी तरह से जानती थी इसलिए वह अपना मुंह खोल कर संजय के लंड को अपने मुंह में ले ली और से चूसना शुरु कर दी,,,, अपने पति के लंड को जब भी वह मुंह में लेती थी तो ऐसा लगता था कि जैसे छोटा गाजर मूली मुंह में लेकर काट रही हो लेकिन संजय का लंड काफी मोटा था और पूरा मुंह खोलने के बावजूद भी संजय का लंड बड़ी मुश्किल से सरिता के मुंह में जा रहा था,,,और इस बात से सरिता एकदम उत्तेजित हुए जा रही थी क्योंकि,,, पहली बार जिंदगी में उसे लंड चूसने का आनंद जो प्राप्त हो रहा था,,,, पहली बार सही मायने में वह एक लंड को अपने मुंह में ली थी,,, सरिता के द्वारा लंड चाटने पर संजय मदहोश हुआ जा रहा था वह हल्की-हल्की अपनी कमर को हिलाता हुआ उसके मुंह को चोद रहा था अभी भी सरिता के बदन पर लाल रंग की ब्रा थी जिसमें उसकी दोनों चूचियां कह दी थी संजय दोनों हाथों से उसकी ब्रा पकड़ कर ऊपर की तरफ खींच दिया जिससे उसके दोनों कबूतर आजाद हो गए,,,, और संजय उसके दोनों कबूतरों को हाथ में लेकर जोर-जोर से उसका गला घुटना शुरू कर दिया,,, लेकिन सरिता को मजा आ रहा था संजय बड़ी बेरहमी से उसकी दोनों चूचियों को दबा रहा था देखते देखते उसकी गोरे रंग की चूचियां टमाटर की तरह लाल हो गई सरिता दोनों तरफ से मजा ले रही थी संजय के लंड को हुआ धीरे-धीरे अपने गले तक उतार लेती थी लेकिन घुटने की वजह से उसे फिर वापस बाहर निकाल देती थी,,,, संजय का लंड पूरी तरह से तैयार हो चुका था सरिता की बुर के अंदर गदर मचाने के लिए। संजय धीरे से सरिता के मुंह में से अपना लंड वापस बाहर खींच लिया,,, सरिता हांफ रही थी,,संजय के मन में सरिता की चुचियों को मुंह में लेकर पीने की लालच जाग रही थी इसलिए वह एक बार फिर से सरिता की दोनों चुचियों पर टूट पड़ा और बच्चे की तरह उसकी दोनों चूचियों को मुंह में बारी-बारी से लेकर चूसना शुरू कर दिया,,,, एक बार फिर से सरिता मस्ती के सागर में खो गई उसे मजा आ रहा था संजय बारी-बारी से उसकी दोनों दशहरी आम को अपने मुंह में लेकर उसे जी भर कर चूस रहा था,,,, सरिता की बुर पानी छोड़ रही थी,,, वह ना चाहते हुए भी अपना हाथ नीचे की तरफ ले जाकर के अपनी बुर की गुलाबी पत्तियों को मसल रही थी,,,, संजय सरिता की यह कामुक हरकत को तिरछी नजर से देख लिया और उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई वह उसकी दोनों चूचियों को छोड़ता हुआ बोला,,,।
सरिता मेरी रानी तुम्हें अपनी बुर के अंदर में मेरा लंड चाहिए ना,,,
(सरिता जवाब नहीं बोली कुछ नहीं बस हां में सिर हिला दी वह बड़ी मासूम लग रही थी संजय उसकी हर एक अदा पर मर मिट रहा था इस बार वह सरिता की दोनों टांगों के बीच अपने लिए जगह बना लिया,,वह सरिता की कमर को दोनों हाथों से पकड़ कर उसे अपनी तरफ खींच लिया और देखते ही देखते सरिता की मोटी मोटी जांगे संजय की जांघों पर आ गई,,, यह पोजीशन चुदाई करने के लिए एकदम ठीक थी और देखते ही देखते संजय एक बार फिर से अपने लंड को सरिता की बुर में डाल दिया और धीरे-धीरे अपनी कमर को हिलाना शुरू कर दिया,,,,, उत्तेजना के मारे सरिता का गला सूखा जा रहा था और वह बार-बार अपने थुक से अपने गले को गीला करने की कोशिश कर रही थी,,,, संजय का लंड धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ने लगा था वह सरिता की दोनों चूचियों को अपने हाथों से थाम कर उसको चोदना शुरू कर दिया था,,, सरिता को अच्छी तरह से महसूस हो रहा था कि संजय का लंड रगड़ रगड़ कर उसकी बुर के अंदर बाहर हो रहा था।
संजय को मजा आ रहा था हॉस्पिटल के स्टाफ के किसी भी मेंबर को इस बात का अंदाजा तक नहीं था कि हॉस्पिटल के ऊपर के फ्लोर पर हॉस्पिटल का मालिक सबसे बड़ा डॉक्टर मरीज की औरत की चुदाई कर रहा है,,,, सब लोग गहरी नींद में थे लेकिन दोनों की आंखों से लिए कोसों दूर जा चुकी थी,,,, संजय का लंड सरिता की भरी हुई जवानी को तार-तार कर रहा था,,,संजय दोनों हाथों को आगे बढ़ा कर उसकी दोनों चूचियों को काम कर अपनी कमर जोर जोर से हिला रहा था और सरिता हर धक्के के साथ आहहह ऊहहह की आवाज निकाल रही थी,,,, उसे जितना दर्द हो रहा था उससे कहीं ज्यादा मजा आ रहा था,,, हर धक्के के साथ सरिता लहरा उठती थी,,,किंग साइज का देश संजय के हर धक्के के साथ चरर मरर की आवाज कर रहा था,,,, सरिता का मुंह खुला का खुला रह गया वह अपने हाथों की कानून का सहारा लेकर हल्के से उठकर अपनी दोनों टांगों के बीच की स्थिति को देख रही थी जो कि बेहद मदहोश कर देने वाली स्थिति में संजय का मोटा तगड़ा लंबा लंड उसकी बुर की गुलाबी क्षेंद में बड़े आराम से अंदर बाहर हो रहा था,,,।
संजय बड़ी तेजी से अपनी कमर हिलाता हुआ सरिता को चोदते हुए बोला,,,।
ओहहह सरिता मेरी जान तुम्हारी मदहोश कर देने वाली जवानी मेरे होश उड़ा दी कसम से मुझे तो आज जन्नत का मजा मिल रहा है तुम्हें खुश करने के लिए तुम्हें चोदने के लिए मेरे जैसे मर्द की जरूरत है मुझे नहीं लगता कि तुम्हारा पति तुम्हें संतुष्ट कर पाता होगा,,,, क्यों सरिता सच कह रहा हूं ना मैं,,,,
(इस बार भी सरिता बोली कुछ नहीं बस हां में सिर हिला दी,, और सरिता की हामी को देखकर संजय अपनी रफ्तार को और तेजी से बढ़ा दिया वह ईतनी जोर जोर से धक्के लगा रहा था कि उसके हर धक्के के साथ सरिता आगे की तरफ खसक जा रही थी और इसलिए संजय उसके दोनों कंधों को पकड़कर उसके कंधों का सहारा लेकर जोर जोर से धक्के पेल रहा था,,, तकरीबन आधे घंटे की जबरदस्त घमासान चुदाई के बाद दोनों एक साथ झड़ गए संजय अपना पानी निकालते समय उसे अपनी बाहों में कस कर दबोच लिया था संजय के जबरदस्त पानी की पिचकारी को सरिता अपनी बुर के बच्चेदानी के दीवार पर अच्छी तरह से महसूस करके एकदम तृप्त हो चुकी थी जिंदगी में पहली बार उसे इस तरह के सुख की प्राप्ति हो रही थी वह बेहद खुश थी,,,
दूसरी तरफ संध्या बिस्तर पर एकदम नंगी हो चुकी थी और अपनी दोनों टांगों को फैला कर अपनी बुर के अंदर एक साथ अपनी दो उंगलियां डालकर अपने बेटे के बारे में सोच रही थी क्योंकि उसके भी कल्पना में झाड़ियों के पीछे के दृश्य में उस औरत की जगह वह खुद को उस लड़के की जगह अपने बेटे को रखकर उस कल्पना का आनंद लेते हुए अपनी बुर में उंगली डाल रही थी,,,,जिस तरह से उसका बेटा उसे प्यासी नजरों से देख रहा था और झाड़ियों के पीछे के कृषि को देखते हुए उसी से एकदम सटकर अपने लंड की चुभन को उसकी गांड पर महसूस करा रहा था इस बात से संध्या को लगने लगा था कि फुटपाथ पर खड़े जो दो लड़के बातें कर रहे थे उनमें किसी हद तक सच्चाई जरूर है क्योंकि पहली बार वह सोनू की आंखों में हवस और प्यास देखी थी,,,।लेकिन अपने बेटे के इस तरह के बदलते नजरिए से ना जाने कि उसके मन में क्रोध की भावना बिल्कुल भी नहीं थी बल्कि उसे तो अपने बेटे के इस तरह के नजरिया को देखकर अच्छा महसूस हो रहा था।इसलिए तो उसकी कल्पना को ज्यादा ही रंगीन होती जा रही थी वह आंखों को बंद करके उसे झाड़ियों के पीछे की कल्पना कर रही थी उसे साफ नजर आ रहा था कि वह उस औरत की जगह खुद अपनी साड़ी को कमर तक उठाकर खड़ी है और उसके पीछे उसका बेटा सोनू उसकी कमर को थाम कर अपनी खड़े लंड को उसकी बुर में डालकर चोद रहा है यह कल्पना इतना जबरदस्त था कि कुछ ही पल में अपनी उंगली से ही वह संतुष्ट हो गई,,,
और सोनू भी अपनी मां की कल्पना में खोया हुआ था वह अपने पजामे को घुटनों तक खींचकर अपने लंड को सहला रहा था,,, उसे मजा आ रहा था,,,,वह भी उसी देश की कल्पना कर रहा था जिस तरह की दृश्य की कल्पना करते हुए उसकी मां अपना पानी निकाल चुकी थी,,,वहभी कल्पना में झाड़ियों के पीछे खड़ा होकर खुद अपने हाथों से अपनी मां की साड़ी को कमर तक उठाकर उसकी बड़ी-बड़ी गांड को अपने हाथों में ले लेकर दबाते हुए अपनी खड़े लंड को उसके गुलाबी बुर में डालकर चोद रहा था,,, उसे मजा आ रहा था उसे मुठिया मारना बिल्कुल भी नहीं आता था लेकिन फिर भी वह अपने लंड से मजा ले रहा था उसकी आंखें बंद थी वह जोर-जोर से अपनी लंबी को दबा रहा था और देखते ही देखते हैं वह इतना ज्यादा उत्तेजित हो गया कि अपनी मां की चुदाई की कल्पना करते हुए उसका पानी फेंक दिया और पानी इतना तेज रफ्तार से उसके नंबर से बाहर निकला कि लगभग 1 मीटर तक उछल कर खुद उसके ऊपर गिर गया,,,
शगुन को जो दृश्य देखने की इच्छा हो रही थी आज वह नहीं देख पा रही थी इसलिए अपने बिस्तर पर एकदम नंगी होकर अपनी दोनों टांगों को फैला कर अपनी बुर में उंगली करते हुए अपनी मां की जगह अपने आप को और अपने पापा को अपनी दोनों टांगों के बीच पोजीशन लेते हुए देखकर कल्पना करके एकदम मस्त हुए जा रही थी,,, उसे साफ महसूस हो रहा था कि वह अपनी आंखों को बंद करके अपने पापा की कल्पना कर रही है और उसके पापा उसकी दोनों टांगों को फैला कर उसकी बुर के साथ जी भर कर खेल रहे हैं,,,देखते ही देखते उसके पापा उसकी आंखों के सामने अपने कपड़े उतार कर एकदम नंगे हो गए और शगुन खुदअपने पापा के लंड को पकड़ कर अपनी गुलाबी बुर के गुलाबी छेद पर रखते हुए उन्हें चोदने के लिए बोल रही है और देखते ही देखते उसके पापा अपना मोटा तगड़ा लंबा लंड उसकी बुर की गहराई में उतार कर उसे चोदना शुरू कर दिए,,, शगुन अपने पापा की कल्पना में खो कर अपनी बुर में खुद ही उंगली कर रही थी और देखते ही देखते उसकी बुर से भी पानी की धार फूट पड़ी,,,
संजय को लगा कि सरिता चुदवाने के बाद कमरे से बाहर निकल जाएगी लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं हुआ वह उसी तरह से बिस्तर पर लेटी रह गई तब संजय को इस बात का एहसास हो गया कि वह फिर से चुदवाना चाहती है वैसे भी संजय एक बार फिर से सरिता की मदमस्त बड़ी बड़ी गांड को देखकर मदहोश होने लगा था और उसका लंड एक बार फिर से कमरे की छत की तरफ देखता हुआ मुंह ऊठा लिया था सरिता भी संजय के खड़े होते लंड को देखकर मदहोश होने लगी और इस बार बिना किसी डॉक्टर के दिए दिशा निर्देश के वह खुद खड़ी हुई और संजय के लंड पर अपनी गुलाबी बुर का गुलाबी छेद रखकर बैठने लगी,,, एक बार फिर से दोनों एकाकार हो गए इस बार सरिता पूरी तरह से चार्ज संभाल ली थी वह संजय के दोनों कंधों को पकड़कर अपनी गांड को जोर-जोर से उसके लंड पर पटक रही थी।
एक बार फिर से दोनों मधुर मिलन की तृप्ति के एहसास में झड़ गए यह सिलसिला लगभग 3:00 बजे तक चला संजय सरिता की हर तरीके से हर तरह से पूरे कमरे में घूम घूम कर उसकी चुदाई किया सरिता भी एकदम तृप्त हो चुकी थी,,, पहली बार उसे अपने पास पैसे ना होने का सुख प्राप्त हो रहा था,,, इसके बाद संजय 3:00 बजे अपने घर के लिए निकल गया और सरिता नीचे अपने पति के पास आकर सो गई।