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दोनोंगीली बुर और खड़े लंड पर पानी फिर गया था,,, इस समय संध्या और सोनू दोनों को डोरबेल की आवाज इतनी खराब लगी थी कि पूछो मत,,, दोनों का मूड खराब हो गया था संध्या इतनी मेहनत करके हिम्मत दिखाते हुए अपने बेटे को रिझाने के लिए अपने खूबसूरत अंगों का प्रदर्शन कर रही थी,,, लेकिन दूरबीन की आवाज नहीं सब कुछ मानो उजाड़ सा दिया था,,,संध्या को पूरा यकीन था कि उसकी हरकत की वजह से उसका बेटा पूरी तरह से लाइन पर आ रहा था,, उसकी आंखों के सामने बैठकर पेशाब करने वाली हरकत ने उसके बेटे के तन बदन में वासना की चिंगारी को शोला का रूप दे दिया था,,, लेकिन यह शोला आग में तब्दील होती उससे पहले ही उस पर पानी पड़ चुका था,,, दरवाजा खोलने का मन सोनू का बिल्कुल भी नहीं कर रहा था और ना ही संध्या चाहती थी कि उसका बेटा जाकर दरवाजा खोले क्योंकि वह जानती थी कि अब ना जाने कभी ऐसा मौका मिले और कब वह इतनी हिम्मत दिखाते हुए अपने अंगो का प्रदर्शन अपने बेटे की आंखों के सामने कर पाएगी,,, कर पाएगी भी या नहीं यही सब सवाल उसके मन में घूम रहा था और इसीलिए वह चाहती थी कि उसका बेटा दरवाजा ना खोलें,,,। लेकिन लगातार डोर बेल की आवाज कमरे में गूंज रही थी,,,।
सोनू दरवाजे की तरफ जा चुका था,,,उसके पजामे में अभी भी तंबू बना हुआ था लेकिन यह तंबू अब थोड़ा सुस्त हो चुका था हालांकि डोर बेल बजने से पहले सोनू अपनी मां की बड़ी बड़ी खूबसूरत नंगी गांड को देखकर और खास करके उसे पेशाब करता हुआ देखकर पूरी तरह से उत्तेजना के परम शिखर पर विराजमान हो गया था जिसके चलते उसका लोहे के रोड की तरह पूरी तरह से गरमा गरम होकर खड़ा हो गया था,,, सोनू के लिए अपनी मां को इस अवस्था में इस तरह से देखना पहला मौका था,,, और वह इस मौके का पूरा का पूरा फायदा उठा लेना चाहता था लेकिन बात कुछ बनी नहीं थी,,।
आखिरकार बेमन से सोनू दरवाजा खोला और दरवाजे पर शगुन खड़ी थी,,।
इतनी देर क्यों कर दी मैं कब से बेल बजा रही हूं,,, और अपनी हालत क्या कर दिया है,,,(इतना कहते हुए सगुन सोनू को ऊपर से नीचे तक नजर मार कर देखी तो उसकी निगाह पल भर के लिए उसके पजामें में बने तंबू पर ठहर गई,,, थोड़ा कम लेकिन फिर भी एक औरत के लिए सोनू के पजामी बना तंबू पूरी तरह से आकर्षण का केंद्र बिंदु था और उत्तेजना का भी इसलिए तो सब उनके तन बदन में अजीब सी हलचल सी मचने लगी,,,,)
वो मै मम्मी के साथ कपड़े धोने में मदद कर रहा था,,,(सोनू एकदम निराश होता हुआ बोला,,)
तू मदद कर रहा था और वह भी कपड़े धोने में,,, वाशिंग मशीन,,,,
वह चल नहीं रही है इसलिए मम्मी ने मुझे कपड़े धोने में मदद करने के लिए बोली,,,,
(सोनू एकदम सहज भाव से बोल रहा था लेकिन शब्दों में निराशा साफ झलक रही थी और सगुन की नजर रह-रहकर उसके पजामे की तरफ चली जा रही थी,,, सोनू अभी भी इस बात से पूरी तरह से अनजान था कि उसके पहचाने में लंड खड़ा होने की वजह से तंबू बना हुआ है और जिस पर उसकी बड़ी बहन की नजर बार-बार चली जा रही है,,,)
चल ठीक है मैं फ्रेश होकर आती हूं,,,(इतना कह कर सगुन अपने कमरे की तरफ चली गई और सोनू दरवाजा बंद कर दिया,,, बातचीत की आवाज सुनकर संध्या को इतना तो पता चल गया था कि सगुन आई है,,, इसलिए वह अपने कपड़ों को पूरी तरह से दुरुस्त कर ली अपने ब्लाउज का ऊपर वाला बटन जोकि वह जानबूझकर खोल दी थी जल्दी से बंद कर दी,,, और अपनी साड़ी का एकदम दुरुस्त कर ली,,, शगुन अपने कमरे में फ्रेश होने के लिए चली गई थी उसके जाते ही सोनू को इस बात का एहसास हुआ कि वह जब तक शगुन फ्रेश नहीं हो जाती तब तक वह अपनी मां के खूबसूरत बदन को देख कर अपने आप को गर्म कर सकेगा इसलिए वह वापस बाथरूम में घुस गया लेकिन इधर भी उसे निराशा हाथ लगी,, बाथरूम में घुसते ही वह सबसे पहले,, अपनी मा के खूबसूरत छातीयों पर नजर डाला,,लेकिन डोरबेल बजने से पहले जो ब्लाउज का बटन खुला हुआ था वह अब बंद हो चुका था,,, गोरी गोरी पिंडलिया साड़ी से ढक चुकी थी,,,वह, एकदम से निराश हो गया,,, निराशा संध्या के चेहरे पर भी साफ दिखाई दे रहा था अपना अंग प्रदर्शन अपने बेटे के सामने करने में उसे आनंद के साथ साथ उत्तेजना भी महसूस हो रही थी,,, सोनू फिर भी कपड़े धोने में अपनी मां की मदद करने लगा और अपने मन में यह सोचने लगा कि उसकी मैं जानबूझकर तो अपने अंगों को ऊसे नहीं दिखा रही थी,,,अगर अनजाने में ऐसा होता तो उसका ब्लाउज का बटन खुला होता है और सारी घुटनों तक चढ़ी होती सगुन के आने के बाद सब कुछ बदल गया था मतलब साफ था कि वह अनजाने में नहीं बल्कि जान पहुंचकर उसे अपना सब कुछ दिखा रही थी,,,यह ख्याल मन में आते ही सोनू के बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी उत्तेजना के मारे उसके शरीर में कंपन होने लगाअब तो कुछ ऐसा ही लग रहा था कि सब कुछ अनजाने में हो रहा है लेकिन अब सब कुछ साफ था वह समझ चुका था कि उसकी मां जानबूझकर उसे अपना अंग दिखा रही थी,,,, और तो और उसका पेशाब करना भी जानबूझकर ही था वह चाहती तो दरवाजे की कड़ी लगाकर पेशाब कर सकती थी,,, भले ही कितनी जोरों से क्यों ना लगी हो औरत हमेशा दरवाजे की कड़ी लगाकर ही पेशाब करती है लेकिन उसकी मां ने ऐसा नहीं कि वह जानबूझकर दरवाजा खुला छोड़ रखी थी उसे मालूम था कि थोड़ी देर में वह वापस आने वाला है और ऐसा ही हुआ उसने अपनी मां को पेशाब करते हुए देख लिया यह सब ख्याल मन में आते ही सोनू पूरी तरह से उत्तेजित होने लगा और जो कि थोड़ा बहुत ढीला हो चुका लंड अब अपनी मां के ख्यालों और उसकी साजिश को समझते ही एक बार फिर से टनटनाकर खड़ा हो गया,,, सोनू अच्छी तरह से समझ गया था कि एक औरत अपने जिस्म की नुमाइश कब एक मर्द के सामने करती है,, वह समझ गया था कि उसकी मां उसके साथ चुदवाना चाहती है,,, पल भर में उसकी आंखों के सामने सब कुछ फिल्म की तरह चलने लगा बगीचे वाला दृश्य,,, जब वह अपनी मां के ठीक नीचे खड़ा होकर अपना लंड उसकी गांड पर रगड़ रहा था अगर उसकी मां को जरा भी ऐतराज होता तो वह हट जाती या उसे डांटती,,, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ बल्कि वह तो उसे और ज्यादा उक साते हुए अपनी गांड को पीछे की तरफ खेल रही थी और झाड़ियों के अंदर उस मां बेटे की जबरदस्त चुदाई का आनंद ले रहीथी,,,, सोनू को धीरे-धीरे सब कुछ समझ में आ रहा था,,,,
और दूसरी तरफ सगुन अपने कमरे में पहुंचकर अपने कपड़े उतारते हुए सोनू के बारे में सोच रही थी उसके पजामें में बने तंबू के बारे में सोच रही थी,,,वह सोच रही थी कि अगर मां अपनी मां की मदद कर रहा था तो उसका लंड क्यों खड़ा हो गया,,, और सोनू ने तो आज तक कभी भी मां की मदद नहीं किया खासकर के कपड़ों को धोने में,,, सोनू बाथरूम के अंदर ऐसा क्या देख लिया कि उसका लंड खड़ा हो गया जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए था,,, शगुन इतना तो जानती थी कि एक मर्द का लंड क्यों खड़ा होता है वह तभी खड़ा होते हैं जब वह चुदवासा हो या तो वह कोई गरमा गरम द्रशय देख लिया हो,,,,,, शगुन बेचैन हुए जा रही थी अपने छोटे भाई और अपनी मां के बारे में सोच सोच कर उसकी हालत खराब हो रही थी पल भर में उसे इस बात का एहसास होने लगा कि कहीं जिस तरह से वह अपने पापा को उसके पापा उसे देखकर उत्तेजित हो जाते हैं कहीं ऐसा तो नहीं सोनू मां को देखकर और मां सोनू के प्रति पूरी तरह आकर्षित हुए जा रही है,,, वरना ऐसा कैसे हो सकता है बाथरूम से निकलने के बाद सोनू का लंड खड़ा क्यों था,,?
कहीं ऐसा तो नहीं जिस तरह से वह अपने पापा का लंड देख चुकी है,,, कहीं मां ने भी तो सोनू का लंड नहीं देख लिया,,, और कहीं सोनू ने तो मां को एकदम नंगी नहीं देख लिया या माने तो कहीं जानबूझकर उसे अपने नंगे पन का दर्शन तो नहीं करा दिया,,,,यह सब सोचकर उसका माता घूमने लगा था और साथ ही उसकी दोनों टांगों के बीच की पतली दरार में से मदन रस का बहाव होना शुरू हो गया था,,, शगुन भले ही अपने भाई और अपनी मां के बारे में इस तरह की बातें सोच रही थी जिससे उसे अंदर ही अंदर गुस्सा भी आ रहा था लेकिन जिस तरह से उसकी बुर में से नमकीन पानी टपक रहा था जाहिर था कि उसे अपने भाई और अपनी मां के बीच इस तरह के आकर्षण के बारे में सोचकर मज़ा भी आ रहा था,,,वह अपने शक को पूरी तरह से तसल्ली कर लेना चाहती थी इसलिए जल्दी से कपड़े पहन कर कमरे से बाहर आ गई और बाथरूम में चली गई जहां पर उसका भाई और उसकी मां कपड़े धो रहे थे,,,।
मम्मी आज क्या बात है सोनू तुम्हारी मदद कर रहा है,,,
हां रे मैंने हीं ईसे मदद करने के लिए कही थी,,, वो क्या है ना कि आज वाशिंग मशीन चालू नहीं हो रहा था,,,,।
चलो कोई बात नहीं मैं भी मदद कर देती हूं,,,(इतना कहने के साथ सगुन भी धुले हुए कपड़ों को पानी में डालकर धोनी लगी और अपनी नजर को अपनी मां के ऊपर ऊपर से नीचे तक घुमाने लगी उसे इस बात का एहसास हो गया कि उसकी मां के कपड़े पानी में पूरी तरह से गीले हो चुके थे,,, उसकी नजर जब उसके ब्लाउज पर गई तो उसके होश उड़ गए,,, शगुन बड़े गौर से अपनी मां की ब्लाउज की तरफ देख रही थी क्योंकि पानी में इस कदर कि नहीं हो चुके थे कि मानो उस पर जानबूझकर पानी डाला गया हो,,,क्योंकि वह भी साफ तौर पर देख पा रही थी कि उसकी मां की तनी हुई निप्पल एकदम साफ नजर आ रही थी,,,और उसे यह भी दिखाई दे रहा था कि उसकी मां ने ब्लाउज के अंदर ब्रा नहीं पहनी हुई थी जो कि ऐसा भी कभी नहीं हुआ था,,,बिना ब्रा के उसकी मां ब्लाउज नहीं पहनती थी तो आज ऐसा क्यों हुआ,,, अपने मन में सोचने लगी कि कहीं मैंने जानबूझकर तो ब्लाउज के अंदर ब्रा नहीं पहनी है और जानबूझकर अपने ऊपर पानी डाल दि हो ताकि ब्लाउज गीला होने से उसकी चूची एकदम साफ नजर आने लगे और ऐसा हो भी रहा था उसकी चुची एकदम साफ नजर आ रही थी,,,,,,, यह सब देख कर शगुन का दिमाग चकरा रहा था,,,,एक बार फिर से उसकी नजर सोनू के पजामे की तरफ गई तो उसके होश उड़ गए,,, क्योंकि जब सोनू ने दरवाजा खोला था तब उसके पजामे में बने तंबू का आकार और इस समय बाथरूम के अंदर पहुंचने के बाद उसके तंबू का आकार कुछ ज्यादा ही था या यूं कह लो कि,,, उसका लंड पूरी तरह से खड़ा हो गया था तो दरवाजा खोलने के बाद बाथरूम में आते ही उसने ऐसा क्या देख लिया कि उसका लंड पूरी तरह से खड़ा हो गया,,,, शगुन को अपने ही सवाल का जवाब अपनी मां के गीले ब्लाउज को देखकर मिल चुका था गीली ब्लाउज में से उसकी चूचियां साफ़ नजर आ रही थी क्योंकि वह जानबूझकर ब्रा ना पहनकर सोनू को दिखाने के लिए ही ब्लाउज को गीला कर ली थी,,,
एक बार फिर से साबुन अपनी नजरों और सोच को पूरी तरह से तसल्ली कि शक्ल देने के लिए अपनी मां की तरफ देखी तो वह तिरछी नजर से सोनू के पजामे बने तंबू को ही देख रही थी,,, सोने की तरह देखे तो सोनू भी चोर नजरों से अपनी मां के गीले ब्लाउज में से झलक रही उसकी चूचियों को ही घूर रहा था दोनों को इस बात का आभास तक नहीं बाकी सब उनको दोनों की नजरों के बारे में पता चल गया है उन दोनों को यही लग रहा था कि सगुन कपड़े धोने में मदद करने के लिए बाथरूम में आई है,,,
खैर जैसे-तैसे करके,,, कपड़ों को तीनों ने मिलकर धो लिया,,, तो संध्या ने सगुन को छत के ऊपर कपड़ों को डालने के लिए बोली,,,, और शगुन बहाना बनाकर सोनू को कपड़े डालने के लिए बोल दी ,,, सोनू कपड़ों की बाल्टी लेकर छत के ऊपर चला गया और संध्या अपने गीले कपड़ों को निकालकर नहाने की तैयारी कर रही थी और सगुन बाथरुम से बाहर आ गई,,, वह सोनू से बात करना चाहती थी इसलिए थोड़ी देर बाद वह भी छत की तरफ जाने लगी,,,,,,
संध्या के सारे किए कराए पर ,, पानी फिर चुका था ,, बदन की गर्माहट ठंडक में बदल जाती इससे पहले ही वह बाथरूम के दरवाजे की कड़ी लगाकर,, अपने गीले कपड़ों को उतारकर एकदम नंगी हो गई,,।,,, संध्या अत्यधिक उत्तेजना से भरी हुई थी वह अपने आपे में बिल्कुल भी नहीं थी,, पल-पल उसे क्या हो रहा है था वह खुद नहीं जानती थी रह रह कर अपने बेटे के प्रति बढ़ता हुआ शारीरिक आकर्षण की वजह से वह अपने आप को धिक्कारती भी थी,, और दोबारा ऐसा ना करने का अपने आपको वचन भी देती थी,,, लेकिन अगले ही पल सब बेकार सारे वचन सारे कश्मे धरी की धरी रह जाती थी,,, आखिरकार शारीरिक आकर्षण और वासना चीज ही ऐसी होती है जो किसी भी रिश्ते नाते संस्कार की दीवारों उसके बंधनों को ना मानते हुए उन्हें तोड़कर आगे बढ़ने की पूरी कोशिश करते हैं,,, और यही संध्या भी कर रही थी,,,अपने पति से संपूर्ण रूप से संतुष्ट होने के बावजूद भी उसे अपने बेटे में अपनी प्यास नजर आती थी,,
बाथरूम में इस समय वह पूरी तरह से नंगी हो चुकी थी,,, वासना की आग में जल रहा बदन ठंडा होने का नाम नहीं ले रहा था जवानी की आग में संध्या तप रही थी,, अपनी नंगी चूचियों को अपने दोनों हाथ में लेकर वह खुद ही उसे दबा दबा कर स्तनमर्दन का आनंद लेने लगी,,, वह पहले ऐसी बिल्कुल भी ना थी लेकिन कब उसका पूरा वजूद बदल गया उसे अहसास तक नहीं हुआ,,, भले ही शारीरिक आकर्षण और वासना के चलते वह अपने बेटे को पूरी तरह से पाने को वह अपनी मंजिल बना ली थी,,, उस मंजिल तक पहुंचने में राह बहुत कठिन थी,,, लेकिन फिर भी इस रास्ते पर चलने में संध्या को बेहद मजा आ रहा था इसलिए वो और ज्यादा आगे बढ़ना चाहती थी क्योंकि उसे इस बात का एहसास हो रहा था कि जब सफर में इतना मजा आ रहा है तो,,, मंजिल पर पहुंचने पर कितना मजा आएगा,,,इसी एहसास के साथ वह अपनी दोनों चुचियों को जोर जोर से दबा रही थी,,, जो कि रात में उसके पति ने उस पर बहुत मेहनत की थी,,, अपने हाथों से ही स्तन मर्दन करते हुए संध्या के मुंह से गर्म सिसकारी की आवाज फूट रही थी,,,, संध्या को मजा आ रहा था,,, संध्या की बुर में आग लगी हुई थी इसलिए वह एक हाथ आगे बढ़ाकर सावर के हत्थे को अपने हाथ में पकड़ ली और सावर चालू करके उसके बौछार अपनी एक टांग को कमोड के ऊपर रखकर अपनी बुर पर मारने लगी,,, लेकिन ठंडे पानी की मार बुर की गुलाबी पत्तियों पर पड़ते ही,,, ठंडी होने की जगह वह और ज्यादा गर्म होने लगी,,, संध्या से रहा नहीं जा रहा था इसलिए वह अपने हाथ की दो उंगली एक साथ अपनी बुर में डालकर उसे अंदर बाहर करने लगी,,
ससससहहहह ,,,आहहहहहहह,,,, सोनू,,, मेरे बेटे,,,आहहहहहह,,,,,,,,
(संध्या एक दम मस्त हो चुकी थी और मस्तीयाते हुए,,वह अपनी आंखों को बंद करके अपनी बुर में अपनी दो उंगली पेल रही थी,, और ऐसा महसूस कर रही थी कि जैसे,, उसका बेटा सोनू उसको चोद रहा हो इसलिए तो वह और ज्यादा मस्त हो रही थी,,,, आखिरकार अपने बदन की गर्मी को अपनी उंगली से शांत करने की पूरी कोशिश करते हुए झड़ गई,,, दूसरी तरफ शगुन धीरे-धीरे अपने पैर बढ़ाते हुए सीढ़ियां चढ़ रही थी,,, दीवार की ओट के पीछे खड़ी होकर अपने भाई सोनू को देखने लगी जोकि धीरे-धीरे एक-एक करके कपड़ों को उठाकर रस्सी पर डाल रहा था,,, बाथरूम वाली बात के बारे में शगुन खुलासा करना चाहती थी वह सोनू से बात करना चाहती थी इसलिए जैसे ही वह पांव बढ़ाई वैसे ही उसकी आंखों ने जो देखा उसे देखकर वह वही खड़ी की खड़ी रह गई,,, सोनू के हाथ में लाल रंग की पैंटी आ चुकी थी शकुन सोनू के हाथ में उस लाल रंग की पेंटिं को देखकर यह सोच रही थी कि वह शर्मा कर उसे कपड़ों के नीचे टांग देगा,,, लेकिन उसके सोचने के विरुद्ध सोनू उस लाल रंग की पेंटिं को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर इधर-उधर घुमा कर देख रहा था,,, यह देखकर शगुन वहीं खड़ी रही,,, तभी शगुन के होश उड़ गए जब वह उस पेंटिं को अपने होठों से लगाकर उसे चूमने लगा और अपनी नाक से जोर से उसकी खुशबू को अपने अंदर भरने लगा ऐसा करते हुए सोनू के चेहरे पर उत्तेजना के भाव साफ झलक रहे थे और यह देखकर सगुन दंग रह गई,,, सोनू जानता था कि वह लाल रंग की पेंटी उसकी मां की है,,।और वह उस लाल रंग की पैंटी के अंदर अपनी मां की पड़ी पड़ी गोलीकांड की कल्पना करते हुए उसे अपने हाथों में लेकर मानो जैसे अपनी मां की गांड को सहला रहा हो इस तरह की कल्पना कर रहा था और साथ ही उसे नाक से लगाकर सुंघते समय ऐसा महसूस कर रहा था कि जैसे वह अपनी मां की बुर को सुंघ रहा हो,, यह सब काफी उत्तेजित कर देने वाला था सोनू मस्त हुआ जा रहा था,,। अपने भाई की हरकत को देखकर सगुन के तनबदन में अजीब सी हलचल हो रही थी,,,उसे अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था वह यकीन नहीं कर पा रही थी कि जो उसकी आंखें देख रही है वास्तव में सच है उसे अपने भाई से ऐसी उम्मीद बिल्कुल भी नहीं थी वह तो तहत सीधा साधा और संस्कारी लड़का था लेकिन शगुन पूरी तरह से हैरान थी अपने भाई के रवैए को देखकर,,, जब से वह घर में आई थी तब से वह अपने भाई पर नजर गड़ाए हुए थी,,। उसके तने के तंबू को देखकर ही उसके मन में शंका चाहती थी पर अपने संका की तसल्ली के लिएवह बाथरूम में अपनी मां की मदद करने के बहाने कहीं भी थी और बाथरूम के अंदर वह अपनी मां और अपने भाई के बीच में जिस प्रकार का आकर्षण हो रहा था उसे देखकर हैरान थी,,,
अभी भी सगुन को साफ नजर आ रहा था कि उसके भाई के पजामे में तंबू बना हुआ है,,, और उस तंबू को देखकर ना चाहते हुए भी सगुन की भी हालत खराब हो रही थी,,, सोनू मदहोश हो चुका था अपनी मां की पेंटिं से खेलते हुए उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे उसका लंड फट जाएगा इसलिए वह अपने लंड को शांत करने के लिए अपनी मां की पैंटी को अपने पजामे में डाल कर,,, अपने लंड पर रगड़ना शुरू कर दिया यह देखकर शगुन की आंखें फटी की फटी रह गई,,, उसे अब तो और भी विश्वास नहीं हो रहा था कि उसकी आंखों के सामने खड़ा लड़का उसका सगा भाई है,,,। सोनू की आंखों में वासना भरी हुई थी लेकिन अपनी भाई की हरकत को देखकर ना चाहते हुए भी शगुन खुद उत्तेजित होने लगी थी,,, उसे गुस्सा भी आ रहा था लेकिन कर भी क्या सकती थी सामने के गरमा-गरम दृश्य को देखकर ऊसके पाव वही जम गए थे,, कुछ देर तक सोनू अपनी मां की पेंटी को,, अपने लंड पर रगड़ता रहा,,, फिर उस पेंटिं को अपनी मां के साड़ी के नीचे टांग दिया और दूसरों कपड़ों को रस्सी पर टांगने लगा,,, तभी उसे अपनी बहन की पेंटी नजर आई उसे उठाकर हाथ में लेकर उसे भी इधर-उधर घुमा कर देखने लगा रघु के हाथों में एक और पेंटिं को देखकर शगुन सन्न रह गई,, अच्छी तरह से पहचानती थी कि सोनू के हाथ में,, जो पेंटी है वह उसकी खुद की है,,, यह देखते ही शगुन के दोनों टांगों के बीच हलचल होने लगी उसे यकीन था कि वह उसकी पैंटी को भी अपने पजामे में डालेगा और उसके सोचने के मुताबिक वैसा ही हुआ सोनू अपनी बहन की पेंटी को भी अपने पजामे में डाल कर उसे कुछ देर तक अपने खड़े लंड पर रगड़ता रहा,,, शगुन का दिमाग काम नहीं कर रहा था वह छत पर अपने भाई से बात करने के लिए आई थी की उसके और उसकी मां के बीच क्या चल रहा है लेकिन उसके खुद के होश उड़ चुके थे अपने भाई की हरकत को देखकर वह कुछ बोलने लायक नहीं थी बस देख रही थी और उसका भाई था कि एकदम बेशर्मी की तरह रिश्तेदारों को एक तरफ रख कर अपनी ही मां बहन की पेंटिं को अपने लंड से रगड रहा था,,। कुछ देर तक अपनी बहन की भी पेंटिं के साथ खेलने के बाद वह उसे भी अपनी बहन के कपड़े के नीचे टांग दिया,,, और अपनी बहन के कपड़ों पर अपने गाल को रगडने लगा,,,,,, मानो जैसेउस कपड़े में उसकी बहन का खूबसूरत जिस्म हो,,,,,
अपनी मां और अपनी बड़ी बहन की ब्रा को भी उसी तरह से वह रख चुका था,,, लेकिन ब्रा के साथ वह किसी भी प्रकार की हरकत नहीं किया था,, मानो जैसे उसे अपनी मां बहन की चूचियों से नहीं बल्कि अपनी मां बहन की गांड और उसकी बुर से मतलब हो,,,,
सोनू कपड़ों को टांग चुका था इसलिए ज्यादा देर तक यहां रुकना ठीक नहीं था और शगुन वैसे ही दबे पांव वापस अपने कमरे में आ गई,,, शगुन दरवाजा बंद करके बिस्तर पर बैठ गई,, और जो कुछ भी अपनी आंखों से देखेी उसके बारे में सोचने लगी,,, उसे अभी भी समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब क्या हो रहा है दरअसल वो यकीन नहीं कर पा रही थी अपनी मां और अपने भाई की हरकत को देख कर,,, अपने आप से सवाल कर रही थी क्या सच में उसकी मां और उसका भाई एक दूसरे के प्रति आकर्षित हुए जा रहे हैं,,,लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है एक मां और बेटे के बीच में इस तरह का रिश्ता,,, नहीं-नहीं ऐसा सोच भी नहीं सकती,,, शगुन अपने मन में यह सब विचार करके खुद ही इसे मानने से इंकार कर रही थी,,,, लेकिन तभी उसे अपनी और अपनी बाप के बीच बढ़ रहे आकर्षण के बारे में ख्याल आया और अपने मन में सोचने लगी,,, हो कैसे नहीं सकता हैवह भी तो अपने पापा की प्रति आकर्षित हुए जा रही है रात दिन अपने पापा के लंड के बारे में सोचती रहती है,,, और वह खुद क्यो,,, उसके पापा भी तो उसको देखकर मस्त होते हैं,,, उसके नंगे पन के एहसास से उनके चेहरे पर बदलते भाव को अच्छी तरह से पहचानती थी,,, वह भी तो मेरी नंगी गांड को देखकर कैसे मस्त हो गए थे,,,। यह सब सोचकर उसे लगने लगा कि आपसी रिश्तो में भी आकर्षण होता है,,,, उसे अपनी बुर गीली होती हुई महसूस होने लगी,,,, उसके बदन में भी खुमारी चढने लगी,,, और देखते ही देखतेवह अपने सारे कपड़े उतार कर बिस्तर पर एकदम नंगी हो गई और अपनी दोनों टांगों को फैला कर नरम नरम तकिए को अपनी मुलायम बुर के गुलाबी पत्तियों के बीच रगड़ना शुरू कर दी और तब तक रगडती रही जब तक कि उसका पानी नहीं निकल गया,,।
सोनू दरवाजे की तरफ जा चुका था,,,उसके पजामे में अभी भी तंबू बना हुआ था लेकिन यह तंबू अब थोड़ा सुस्त हो चुका था हालांकि डोर बेल बजने से पहले सोनू अपनी मां की बड़ी बड़ी खूबसूरत नंगी गांड को देखकर और खास करके उसे पेशाब करता हुआ देखकर पूरी तरह से उत्तेजना के परम शिखर पर विराजमान हो गया था जिसके चलते उसका लोहे के रोड की तरह पूरी तरह से गरमा गरम होकर खड़ा हो गया था,,, सोनू के लिए अपनी मां को इस अवस्था में इस तरह से देखना पहला मौका था,,, और वह इस मौके का पूरा का पूरा फायदा उठा लेना चाहता था लेकिन बात कुछ बनी नहीं थी,,।
आखिरकार बेमन से सोनू दरवाजा खोला और दरवाजे पर शगुन खड़ी थी,,।
इतनी देर क्यों कर दी मैं कब से बेल बजा रही हूं,,, और अपनी हालत क्या कर दिया है,,,(इतना कहते हुए सगुन सोनू को ऊपर से नीचे तक नजर मार कर देखी तो उसकी निगाह पल भर के लिए उसके पजामें में बने तंबू पर ठहर गई,,, थोड़ा कम लेकिन फिर भी एक औरत के लिए सोनू के पजामी बना तंबू पूरी तरह से आकर्षण का केंद्र बिंदु था और उत्तेजना का भी इसलिए तो सब उनके तन बदन में अजीब सी हलचल सी मचने लगी,,,,)
वो मै मम्मी के साथ कपड़े धोने में मदद कर रहा था,,,(सोनू एकदम निराश होता हुआ बोला,,)
तू मदद कर रहा था और वह भी कपड़े धोने में,,, वाशिंग मशीन,,,,
वह चल नहीं रही है इसलिए मम्मी ने मुझे कपड़े धोने में मदद करने के लिए बोली,,,,
(सोनू एकदम सहज भाव से बोल रहा था लेकिन शब्दों में निराशा साफ झलक रही थी और सगुन की नजर रह-रहकर उसके पजामे की तरफ चली जा रही थी,,, सोनू अभी भी इस बात से पूरी तरह से अनजान था कि उसके पहचाने में लंड खड़ा होने की वजह से तंबू बना हुआ है और जिस पर उसकी बड़ी बहन की नजर बार-बार चली जा रही है,,,)
चल ठीक है मैं फ्रेश होकर आती हूं,,,(इतना कह कर सगुन अपने कमरे की तरफ चली गई और सोनू दरवाजा बंद कर दिया,,, बातचीत की आवाज सुनकर संध्या को इतना तो पता चल गया था कि सगुन आई है,,, इसलिए वह अपने कपड़ों को पूरी तरह से दुरुस्त कर ली अपने ब्लाउज का ऊपर वाला बटन जोकि वह जानबूझकर खोल दी थी जल्दी से बंद कर दी,,, और अपनी साड़ी का एकदम दुरुस्त कर ली,,, शगुन अपने कमरे में फ्रेश होने के लिए चली गई थी उसके जाते ही सोनू को इस बात का एहसास हुआ कि वह जब तक शगुन फ्रेश नहीं हो जाती तब तक वह अपनी मां के खूबसूरत बदन को देख कर अपने आप को गर्म कर सकेगा इसलिए वह वापस बाथरूम में घुस गया लेकिन इधर भी उसे निराशा हाथ लगी,, बाथरूम में घुसते ही वह सबसे पहले,, अपनी मा के खूबसूरत छातीयों पर नजर डाला,,लेकिन डोरबेल बजने से पहले जो ब्लाउज का बटन खुला हुआ था वह अब बंद हो चुका था,,, गोरी गोरी पिंडलिया साड़ी से ढक चुकी थी,,,वह, एकदम से निराश हो गया,,, निराशा संध्या के चेहरे पर भी साफ दिखाई दे रहा था अपना अंग प्रदर्शन अपने बेटे के सामने करने में उसे आनंद के साथ साथ उत्तेजना भी महसूस हो रही थी,,, सोनू फिर भी कपड़े धोने में अपनी मां की मदद करने लगा और अपने मन में यह सोचने लगा कि उसकी मैं जानबूझकर तो अपने अंगों को ऊसे नहीं दिखा रही थी,,,अगर अनजाने में ऐसा होता तो उसका ब्लाउज का बटन खुला होता है और सारी घुटनों तक चढ़ी होती सगुन के आने के बाद सब कुछ बदल गया था मतलब साफ था कि वह अनजाने में नहीं बल्कि जान पहुंचकर उसे अपना सब कुछ दिखा रही थी,,,यह ख्याल मन में आते ही सोनू के बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी उत्तेजना के मारे उसके शरीर में कंपन होने लगाअब तो कुछ ऐसा ही लग रहा था कि सब कुछ अनजाने में हो रहा है लेकिन अब सब कुछ साफ था वह समझ चुका था कि उसकी मां जानबूझकर उसे अपना अंग दिखा रही थी,,,, और तो और उसका पेशाब करना भी जानबूझकर ही था वह चाहती तो दरवाजे की कड़ी लगाकर पेशाब कर सकती थी,,, भले ही कितनी जोरों से क्यों ना लगी हो औरत हमेशा दरवाजे की कड़ी लगाकर ही पेशाब करती है लेकिन उसकी मां ने ऐसा नहीं कि वह जानबूझकर दरवाजा खुला छोड़ रखी थी उसे मालूम था कि थोड़ी देर में वह वापस आने वाला है और ऐसा ही हुआ उसने अपनी मां को पेशाब करते हुए देख लिया यह सब ख्याल मन में आते ही सोनू पूरी तरह से उत्तेजित होने लगा और जो कि थोड़ा बहुत ढीला हो चुका लंड अब अपनी मां के ख्यालों और उसकी साजिश को समझते ही एक बार फिर से टनटनाकर खड़ा हो गया,,, सोनू अच्छी तरह से समझ गया था कि एक औरत अपने जिस्म की नुमाइश कब एक मर्द के सामने करती है,, वह समझ गया था कि उसकी मां उसके साथ चुदवाना चाहती है,,, पल भर में उसकी आंखों के सामने सब कुछ फिल्म की तरह चलने लगा बगीचे वाला दृश्य,,, जब वह अपनी मां के ठीक नीचे खड़ा होकर अपना लंड उसकी गांड पर रगड़ रहा था अगर उसकी मां को जरा भी ऐतराज होता तो वह हट जाती या उसे डांटती,,, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ बल्कि वह तो उसे और ज्यादा उक साते हुए अपनी गांड को पीछे की तरफ खेल रही थी और झाड़ियों के अंदर उस मां बेटे की जबरदस्त चुदाई का आनंद ले रहीथी,,,, सोनू को धीरे-धीरे सब कुछ समझ में आ रहा था,,,,
और दूसरी तरफ सगुन अपने कमरे में पहुंचकर अपने कपड़े उतारते हुए सोनू के बारे में सोच रही थी उसके पजामें में बने तंबू के बारे में सोच रही थी,,,वह सोच रही थी कि अगर मां अपनी मां की मदद कर रहा था तो उसका लंड क्यों खड़ा हो गया,,, और सोनू ने तो आज तक कभी भी मां की मदद नहीं किया खासकर के कपड़ों को धोने में,,, सोनू बाथरूम के अंदर ऐसा क्या देख लिया कि उसका लंड खड़ा हो गया जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए था,,, शगुन इतना तो जानती थी कि एक मर्द का लंड क्यों खड़ा होता है वह तभी खड़ा होते हैं जब वह चुदवासा हो या तो वह कोई गरमा गरम द्रशय देख लिया हो,,,,,, शगुन बेचैन हुए जा रही थी अपने छोटे भाई और अपनी मां के बारे में सोच सोच कर उसकी हालत खराब हो रही थी पल भर में उसे इस बात का एहसास होने लगा कि कहीं जिस तरह से वह अपने पापा को उसके पापा उसे देखकर उत्तेजित हो जाते हैं कहीं ऐसा तो नहीं सोनू मां को देखकर और मां सोनू के प्रति पूरी तरह आकर्षित हुए जा रही है,,, वरना ऐसा कैसे हो सकता है बाथरूम से निकलने के बाद सोनू का लंड खड़ा क्यों था,,?
कहीं ऐसा तो नहीं जिस तरह से वह अपने पापा का लंड देख चुकी है,,, कहीं मां ने भी तो सोनू का लंड नहीं देख लिया,,, और कहीं सोनू ने तो मां को एकदम नंगी नहीं देख लिया या माने तो कहीं जानबूझकर उसे अपने नंगे पन का दर्शन तो नहीं करा दिया,,,,यह सब सोचकर उसका माता घूमने लगा था और साथ ही उसकी दोनों टांगों के बीच की पतली दरार में से मदन रस का बहाव होना शुरू हो गया था,,, शगुन भले ही अपने भाई और अपनी मां के बारे में इस तरह की बातें सोच रही थी जिससे उसे अंदर ही अंदर गुस्सा भी आ रहा था लेकिन जिस तरह से उसकी बुर में से नमकीन पानी टपक रहा था जाहिर था कि उसे अपने भाई और अपनी मां के बीच इस तरह के आकर्षण के बारे में सोचकर मज़ा भी आ रहा था,,,वह अपने शक को पूरी तरह से तसल्ली कर लेना चाहती थी इसलिए जल्दी से कपड़े पहन कर कमरे से बाहर आ गई और बाथरूम में चली गई जहां पर उसका भाई और उसकी मां कपड़े धो रहे थे,,,।
मम्मी आज क्या बात है सोनू तुम्हारी मदद कर रहा है,,,
हां रे मैंने हीं ईसे मदद करने के लिए कही थी,,, वो क्या है ना कि आज वाशिंग मशीन चालू नहीं हो रहा था,,,,।
चलो कोई बात नहीं मैं भी मदद कर देती हूं,,,(इतना कहने के साथ सगुन भी धुले हुए कपड़ों को पानी में डालकर धोनी लगी और अपनी नजर को अपनी मां के ऊपर ऊपर से नीचे तक घुमाने लगी उसे इस बात का एहसास हो गया कि उसकी मां के कपड़े पानी में पूरी तरह से गीले हो चुके थे,,, उसकी नजर जब उसके ब्लाउज पर गई तो उसके होश उड़ गए,,, शगुन बड़े गौर से अपनी मां की ब्लाउज की तरफ देख रही थी क्योंकि पानी में इस कदर कि नहीं हो चुके थे कि मानो उस पर जानबूझकर पानी डाला गया हो,,,क्योंकि वह भी साफ तौर पर देख पा रही थी कि उसकी मां की तनी हुई निप्पल एकदम साफ नजर आ रही थी,,,और उसे यह भी दिखाई दे रहा था कि उसकी मां ने ब्लाउज के अंदर ब्रा नहीं पहनी हुई थी जो कि ऐसा भी कभी नहीं हुआ था,,,बिना ब्रा के उसकी मां ब्लाउज नहीं पहनती थी तो आज ऐसा क्यों हुआ,,, अपने मन में सोचने लगी कि कहीं मैंने जानबूझकर तो ब्लाउज के अंदर ब्रा नहीं पहनी है और जानबूझकर अपने ऊपर पानी डाल दि हो ताकि ब्लाउज गीला होने से उसकी चूची एकदम साफ नजर आने लगे और ऐसा हो भी रहा था उसकी चुची एकदम साफ नजर आ रही थी,,,,,,, यह सब देख कर शगुन का दिमाग चकरा रहा था,,,,एक बार फिर से उसकी नजर सोनू के पजामे की तरफ गई तो उसके होश उड़ गए,,, क्योंकि जब सोनू ने दरवाजा खोला था तब उसके पजामे में बने तंबू का आकार और इस समय बाथरूम के अंदर पहुंचने के बाद उसके तंबू का आकार कुछ ज्यादा ही था या यूं कह लो कि,,, उसका लंड पूरी तरह से खड़ा हो गया था तो दरवाजा खोलने के बाद बाथरूम में आते ही उसने ऐसा क्या देख लिया कि उसका लंड पूरी तरह से खड़ा हो गया,,,, शगुन को अपने ही सवाल का जवाब अपनी मां के गीले ब्लाउज को देखकर मिल चुका था गीली ब्लाउज में से उसकी चूचियां साफ़ नजर आ रही थी क्योंकि वह जानबूझकर ब्रा ना पहनकर सोनू को दिखाने के लिए ही ब्लाउज को गीला कर ली थी,,,
एक बार फिर से साबुन अपनी नजरों और सोच को पूरी तरह से तसल्ली कि शक्ल देने के लिए अपनी मां की तरफ देखी तो वह तिरछी नजर से सोनू के पजामे बने तंबू को ही देख रही थी,,, सोने की तरह देखे तो सोनू भी चोर नजरों से अपनी मां के गीले ब्लाउज में से झलक रही उसकी चूचियों को ही घूर रहा था दोनों को इस बात का आभास तक नहीं बाकी सब उनको दोनों की नजरों के बारे में पता चल गया है उन दोनों को यही लग रहा था कि सगुन कपड़े धोने में मदद करने के लिए बाथरूम में आई है,,,
खैर जैसे-तैसे करके,,, कपड़ों को तीनों ने मिलकर धो लिया,,, तो संध्या ने सगुन को छत के ऊपर कपड़ों को डालने के लिए बोली,,,, और शगुन बहाना बनाकर सोनू को कपड़े डालने के लिए बोल दी ,,, सोनू कपड़ों की बाल्टी लेकर छत के ऊपर चला गया और संध्या अपने गीले कपड़ों को निकालकर नहाने की तैयारी कर रही थी और सगुन बाथरुम से बाहर आ गई,,, वह सोनू से बात करना चाहती थी इसलिए थोड़ी देर बाद वह भी छत की तरफ जाने लगी,,,,,,
संध्या के सारे किए कराए पर ,, पानी फिर चुका था ,, बदन की गर्माहट ठंडक में बदल जाती इससे पहले ही वह बाथरूम के दरवाजे की कड़ी लगाकर,, अपने गीले कपड़ों को उतारकर एकदम नंगी हो गई,,।,,, संध्या अत्यधिक उत्तेजना से भरी हुई थी वह अपने आपे में बिल्कुल भी नहीं थी,, पल-पल उसे क्या हो रहा है था वह खुद नहीं जानती थी रह रह कर अपने बेटे के प्रति बढ़ता हुआ शारीरिक आकर्षण की वजह से वह अपने आप को धिक्कारती भी थी,, और दोबारा ऐसा ना करने का अपने आपको वचन भी देती थी,,, लेकिन अगले ही पल सब बेकार सारे वचन सारे कश्मे धरी की धरी रह जाती थी,,, आखिरकार शारीरिक आकर्षण और वासना चीज ही ऐसी होती है जो किसी भी रिश्ते नाते संस्कार की दीवारों उसके बंधनों को ना मानते हुए उन्हें तोड़कर आगे बढ़ने की पूरी कोशिश करते हैं,,, और यही संध्या भी कर रही थी,,,अपने पति से संपूर्ण रूप से संतुष्ट होने के बावजूद भी उसे अपने बेटे में अपनी प्यास नजर आती थी,,
बाथरूम में इस समय वह पूरी तरह से नंगी हो चुकी थी,,, वासना की आग में जल रहा बदन ठंडा होने का नाम नहीं ले रहा था जवानी की आग में संध्या तप रही थी,, अपनी नंगी चूचियों को अपने दोनों हाथ में लेकर वह खुद ही उसे दबा दबा कर स्तनमर्दन का आनंद लेने लगी,,, वह पहले ऐसी बिल्कुल भी ना थी लेकिन कब उसका पूरा वजूद बदल गया उसे अहसास तक नहीं हुआ,,, भले ही शारीरिक आकर्षण और वासना के चलते वह अपने बेटे को पूरी तरह से पाने को वह अपनी मंजिल बना ली थी,,, उस मंजिल तक पहुंचने में राह बहुत कठिन थी,,, लेकिन फिर भी इस रास्ते पर चलने में संध्या को बेहद मजा आ रहा था इसलिए वो और ज्यादा आगे बढ़ना चाहती थी क्योंकि उसे इस बात का एहसास हो रहा था कि जब सफर में इतना मजा आ रहा है तो,,, मंजिल पर पहुंचने पर कितना मजा आएगा,,,इसी एहसास के साथ वह अपनी दोनों चुचियों को जोर जोर से दबा रही थी,,, जो कि रात में उसके पति ने उस पर बहुत मेहनत की थी,,, अपने हाथों से ही स्तन मर्दन करते हुए संध्या के मुंह से गर्म सिसकारी की आवाज फूट रही थी,,,, संध्या को मजा आ रहा था,,, संध्या की बुर में आग लगी हुई थी इसलिए वह एक हाथ आगे बढ़ाकर सावर के हत्थे को अपने हाथ में पकड़ ली और सावर चालू करके उसके बौछार अपनी एक टांग को कमोड के ऊपर रखकर अपनी बुर पर मारने लगी,,, लेकिन ठंडे पानी की मार बुर की गुलाबी पत्तियों पर पड़ते ही,,, ठंडी होने की जगह वह और ज्यादा गर्म होने लगी,,, संध्या से रहा नहीं जा रहा था इसलिए वह अपने हाथ की दो उंगली एक साथ अपनी बुर में डालकर उसे अंदर बाहर करने लगी,,
ससससहहहह ,,,आहहहहहहह,,,, सोनू,,, मेरे बेटे,,,आहहहहहह,,,,,,,,
(संध्या एक दम मस्त हो चुकी थी और मस्तीयाते हुए,,वह अपनी आंखों को बंद करके अपनी बुर में अपनी दो उंगली पेल रही थी,, और ऐसा महसूस कर रही थी कि जैसे,, उसका बेटा सोनू उसको चोद रहा हो इसलिए तो वह और ज्यादा मस्त हो रही थी,,,, आखिरकार अपने बदन की गर्मी को अपनी उंगली से शांत करने की पूरी कोशिश करते हुए झड़ गई,,, दूसरी तरफ शगुन धीरे-धीरे अपने पैर बढ़ाते हुए सीढ़ियां चढ़ रही थी,,, दीवार की ओट के पीछे खड़ी होकर अपने भाई सोनू को देखने लगी जोकि धीरे-धीरे एक-एक करके कपड़ों को उठाकर रस्सी पर डाल रहा था,,, बाथरूम वाली बात के बारे में शगुन खुलासा करना चाहती थी वह सोनू से बात करना चाहती थी इसलिए जैसे ही वह पांव बढ़ाई वैसे ही उसकी आंखों ने जो देखा उसे देखकर वह वही खड़ी की खड़ी रह गई,,, सोनू के हाथ में लाल रंग की पैंटी आ चुकी थी शकुन सोनू के हाथ में उस लाल रंग की पेंटिं को देखकर यह सोच रही थी कि वह शर्मा कर उसे कपड़ों के नीचे टांग देगा,,, लेकिन उसके सोचने के विरुद्ध सोनू उस लाल रंग की पेंटिं को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर इधर-उधर घुमा कर देख रहा था,,, यह देखकर शगुन वहीं खड़ी रही,,, तभी शगुन के होश उड़ गए जब वह उस पेंटिं को अपने होठों से लगाकर उसे चूमने लगा और अपनी नाक से जोर से उसकी खुशबू को अपने अंदर भरने लगा ऐसा करते हुए सोनू के चेहरे पर उत्तेजना के भाव साफ झलक रहे थे और यह देखकर सगुन दंग रह गई,,, सोनू जानता था कि वह लाल रंग की पेंटी उसकी मां की है,,।और वह उस लाल रंग की पैंटी के अंदर अपनी मां की पड़ी पड़ी गोलीकांड की कल्पना करते हुए उसे अपने हाथों में लेकर मानो जैसे अपनी मां की गांड को सहला रहा हो इस तरह की कल्पना कर रहा था और साथ ही उसे नाक से लगाकर सुंघते समय ऐसा महसूस कर रहा था कि जैसे वह अपनी मां की बुर को सुंघ रहा हो,, यह सब काफी उत्तेजित कर देने वाला था सोनू मस्त हुआ जा रहा था,,। अपने भाई की हरकत को देखकर सगुन के तनबदन में अजीब सी हलचल हो रही थी,,,उसे अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था वह यकीन नहीं कर पा रही थी कि जो उसकी आंखें देख रही है वास्तव में सच है उसे अपने भाई से ऐसी उम्मीद बिल्कुल भी नहीं थी वह तो तहत सीधा साधा और संस्कारी लड़का था लेकिन शगुन पूरी तरह से हैरान थी अपने भाई के रवैए को देखकर,,, जब से वह घर में आई थी तब से वह अपने भाई पर नजर गड़ाए हुए थी,,। उसके तने के तंबू को देखकर ही उसके मन में शंका चाहती थी पर अपने संका की तसल्ली के लिएवह बाथरूम में अपनी मां की मदद करने के बहाने कहीं भी थी और बाथरूम के अंदर वह अपनी मां और अपने भाई के बीच में जिस प्रकार का आकर्षण हो रहा था उसे देखकर हैरान थी,,,
अभी भी सगुन को साफ नजर आ रहा था कि उसके भाई के पजामे में तंबू बना हुआ है,,, और उस तंबू को देखकर ना चाहते हुए भी सगुन की भी हालत खराब हो रही थी,,, सोनू मदहोश हो चुका था अपनी मां की पेंटिं से खेलते हुए उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे उसका लंड फट जाएगा इसलिए वह अपने लंड को शांत करने के लिए अपनी मां की पैंटी को अपने पजामे में डाल कर,,, अपने लंड पर रगड़ना शुरू कर दिया यह देखकर शगुन की आंखें फटी की फटी रह गई,,, उसे अब तो और भी विश्वास नहीं हो रहा था कि उसकी आंखों के सामने खड़ा लड़का उसका सगा भाई है,,,। सोनू की आंखों में वासना भरी हुई थी लेकिन अपनी भाई की हरकत को देखकर ना चाहते हुए भी शगुन खुद उत्तेजित होने लगी थी,,, उसे गुस्सा भी आ रहा था लेकिन कर भी क्या सकती थी सामने के गरमा-गरम दृश्य को देखकर ऊसके पाव वही जम गए थे,, कुछ देर तक सोनू अपनी मां की पेंटी को,, अपने लंड पर रगड़ता रहा,,, फिर उस पेंटिं को अपनी मां के साड़ी के नीचे टांग दिया और दूसरों कपड़ों को रस्सी पर टांगने लगा,,, तभी उसे अपनी बहन की पेंटी नजर आई उसे उठाकर हाथ में लेकर उसे भी इधर-उधर घुमा कर देखने लगा रघु के हाथों में एक और पेंटिं को देखकर शगुन सन्न रह गई,, अच्छी तरह से पहचानती थी कि सोनू के हाथ में,, जो पेंटी है वह उसकी खुद की है,,, यह देखते ही शगुन के दोनों टांगों के बीच हलचल होने लगी उसे यकीन था कि वह उसकी पैंटी को भी अपने पजामे में डालेगा और उसके सोचने के मुताबिक वैसा ही हुआ सोनू अपनी बहन की पेंटी को भी अपने पजामे में डाल कर उसे कुछ देर तक अपने खड़े लंड पर रगड़ता रहा,,, शगुन का दिमाग काम नहीं कर रहा था वह छत पर अपने भाई से बात करने के लिए आई थी की उसके और उसकी मां के बीच क्या चल रहा है लेकिन उसके खुद के होश उड़ चुके थे अपने भाई की हरकत को देखकर वह कुछ बोलने लायक नहीं थी बस देख रही थी और उसका भाई था कि एकदम बेशर्मी की तरह रिश्तेदारों को एक तरफ रख कर अपनी ही मां बहन की पेंटिं को अपने लंड से रगड रहा था,,। कुछ देर तक अपनी बहन की भी पेंटिं के साथ खेलने के बाद वह उसे भी अपनी बहन के कपड़े के नीचे टांग दिया,,, और अपनी बहन के कपड़ों पर अपने गाल को रगडने लगा,,,,,, मानो जैसेउस कपड़े में उसकी बहन का खूबसूरत जिस्म हो,,,,,
अपनी मां और अपनी बड़ी बहन की ब्रा को भी उसी तरह से वह रख चुका था,,, लेकिन ब्रा के साथ वह किसी भी प्रकार की हरकत नहीं किया था,, मानो जैसे उसे अपनी मां बहन की चूचियों से नहीं बल्कि अपनी मां बहन की गांड और उसकी बुर से मतलब हो,,,,
सोनू कपड़ों को टांग चुका था इसलिए ज्यादा देर तक यहां रुकना ठीक नहीं था और शगुन वैसे ही दबे पांव वापस अपने कमरे में आ गई,,, शगुन दरवाजा बंद करके बिस्तर पर बैठ गई,, और जो कुछ भी अपनी आंखों से देखेी उसके बारे में सोचने लगी,,, उसे अभी भी समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब क्या हो रहा है दरअसल वो यकीन नहीं कर पा रही थी अपनी मां और अपने भाई की हरकत को देख कर,,, अपने आप से सवाल कर रही थी क्या सच में उसकी मां और उसका भाई एक दूसरे के प्रति आकर्षित हुए जा रहे हैं,,,लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है एक मां और बेटे के बीच में इस तरह का रिश्ता,,, नहीं-नहीं ऐसा सोच भी नहीं सकती,,, शगुन अपने मन में यह सब विचार करके खुद ही इसे मानने से इंकार कर रही थी,,,, लेकिन तभी उसे अपनी और अपनी बाप के बीच बढ़ रहे आकर्षण के बारे में ख्याल आया और अपने मन में सोचने लगी,,, हो कैसे नहीं सकता हैवह भी तो अपने पापा की प्रति आकर्षित हुए जा रही है रात दिन अपने पापा के लंड के बारे में सोचती रहती है,,, और वह खुद क्यो,,, उसके पापा भी तो उसको देखकर मस्त होते हैं,,, उसके नंगे पन के एहसास से उनके चेहरे पर बदलते भाव को अच्छी तरह से पहचानती थी,,, वह भी तो मेरी नंगी गांड को देखकर कैसे मस्त हो गए थे,,,। यह सब सोचकर उसे लगने लगा कि आपसी रिश्तो में भी आकर्षण होता है,,,, उसे अपनी बुर गीली होती हुई महसूस होने लगी,,,, उसके बदन में भी खुमारी चढने लगी,,, और देखते ही देखतेवह अपने सारे कपड़े उतार कर बिस्तर पर एकदम नंगी हो गई और अपनी दोनों टांगों को फैला कर नरम नरम तकिए को अपनी मुलायम बुर के गुलाबी पत्तियों के बीच रगड़ना शुरू कर दी और तब तक रगडती रही जब तक कि उसका पानी नहीं निकल गया,,।
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