छत पर हल्की हल्की धूप बिखरी हुई थी,,,,,, संध्या पहले ही छत पर पहुंच गई थी वह छत पर अपने बेटे का इंतजार कर रही थी,,, घर में अकेलेपन होने का एहसास उसे अच्छी तरह से हो रहा था वह जानती थी कि इस समय वह अपने बेटे के साथ घर में अकेली है,,, वह अपने मन का कर सकती थी वह यह बात भी जानती थी कि एक जवान लड़की को इस उम्र में क्या चाहिए और एक जवानी से भरी हुई औरत को इस उमर में किस की जरूरत होती है संध्या को पूरा एहसास था,,,, वह चाहती थी कि उसका बेटा भी उसके साथ वही करें जो बगीचे में वह लड़का अपनी मां के साथ कर रहा था वह बात भी जानती थी कि ऐसा करने से दोनों के बीच के पवित्र रिश्ते की मर्यादा तार-तार हो जाएगी लेकिन ना जाने क्यों वह ऐसा ही करना चाहती थी लेकिन कैसे करना है इसी सोच में वह पड़ी हुई थी उसे कोई राह नजर नहीं आ रही थी,,,,
दूसरी तरफ यही हाल सोनू का भी था वह किसी भी तरह से अपनी मां को पूरी तरह से उत्तेजित करना चाहता था ताकि वह खुद अपने मुंह से चोदने के लिए बोले,,,,संभोग की संपूर्ण अध्याय से अपरिचित होने के बावजूद भी सोनू संभोग के सुख से परिचित होना चाहता था,,, वह यह बात अच्छी तरह से जानता था कि संभोग में दुनिया का सबसे अतुल्य और अद्भुत सुख छुपा हुआ है,,, और इस सुख को पाकर वह भी धन्य होना चाहता है,,,, धीरे धीरे बाल्टी को हाथ में लिए हुए मन में आगे की राह की तांता बा्ता बुनते हुए सोनू छत पर पहुंच गया जहां पर पहले से ही उसकी मां मौजूद थी जिसे देखते ही सोनू के चेहरे पर मुस्कान तैरने लगी और पेंट में हलचल होने लगी,,,, सोनू छत पर पहुंचकर बाल्टी नीचे रख दिया यह देखकर संध्या उसकी तरफ आगे बढ़ी और बोली,,,।
अच्छा हुआ तू बाल्टी छत पर ले आया आज मेरी कमर बहुत दुख रही है,,,, ला में कपड़े रस्सी पर डाल देती हूं,,,,(ऐसा कहते हो मैं संध्या बाल्टी में से कपड़े खोलने के लिए नीचे झुकी और उसकी सारी का पल्लू तुरंत नीचे गिर गया और उसकी भारी-भरकम छातिया ब्लाउज के अंदर से नज़र आने लगी,,,, यह देखते ही सोनु की हालत खराब हो गई,,,, क्योंकि उसकी मां की चुचियों का ज्यादातर हिस्सा ब्लाउज के बाहर छलक आया था,,,, सोनू के पेंट में हलचल होने लगा यह नजारा उसके लिए आग में घी का काम कर रहा था,,,वह अपनी मां की चूचियों को बेहद नजदीक से देखना चाहता था इसलिए तुरंत अपनी मां को रोकते हुए नीचे झुका और बाल्टी में से कपड़े लेते हुए बोला,)
रहने दो मम्मी मैं डाल देता हूं,,,,(इतना कहते हुए सोनू अपनी मां की चूचियों से पूरी तरह से आकर्षित होकर बाल्टी में हाथ डाले हुए ही उसकी भारी-भरकम छातियों की तरफ नजर गड़ाए हुए झुका रह गया,,, संध्या को भी इस बात का एहसास हो गया कि इस तरह से झुकने की वजह से उसकी साडी का पल्लू कंधे पर से नीचे गिर गई है जिसकी वजह से उसकी ज्यादातर चूचियां नजर आने लगी,,,,,,, यही तो वह चाहती थी लेकिन यह जो कुछ भी हुआ था वह अनजाने में हुआ था लेकिन उसके मन का हुआ था वह उसी तरह से जानबूझकर झुकी रह गई वह अपनी मदमस्त चूचियों को अपने बेटे को दिखाना चाहती थी,,, सोनू की वासना भरी नशे में चूर निगाहों को अपनी चुचियों पर घूमता हुआ पाकर वह पूरी तरह से बेहाल हो गई,,,,,, उसके मन में हो रहा था कि काश उसका बेटा अपने दोनो हाथो आगे बढ़ाकर ब्लाउज के बटन को खोल दे और उसकी बड़ी बड़ी चूची को बाहर निकालकर अपने हाथ में भरकर जोर-जोर से मसले,,,, यही सोच कर वह उत्तेजित हो रही थी और उसकी सांसे गहरी चलने लगी थी जिसकी वजह से उसकी झुकी हुई चूचियां ऊपर नीचे हो रही थी सोनू तो अपनी मां की दशहरी रूपी चूची को देखकर मस्त हो रहा था उसके मुंह में पानी आ रहा था जो बात उसकी मां सोच रही थी वही बात वह अपने मन में सोच रहा था कि काश उस में इतनी हिम्मत होती वह अपने हाथ पाकर बनाकर अपनी मां की ब्लाउज के बटन को खोल कर उसकी बड़ी बड़ी चूचियों को अपने हाथों में लेकर दबाता उसे मुंह में लेकर पीता,,,, लेकिन इतनी हिम्मत उसमें बिल्कुल भी नहीं थी,,,, सोनू की भी सांसे भारी चलने लगी थी वह साफ तौर पर अपनी मां के ब्लाउज को देख रहा था और उस में लगा हुआ बटन को देख रहा था अपनी मां की भारी-भरकम चुचियों के वजन को देखते हुए उसे ऐसा लग रहा था कि कहीं उसकी मां के ब्लाउज का बटन चुचियों के भार से टूट ना जाए,,,। वह अच्छी तरह से जानता था कि उसकी मां की चुचियों में बेहद दम है,,,, कुछ सेकंड तक दोनों इसी तरह से चुके रहे एक दूसरे की आंखों में डूब जाने वाली निगाहों से देखते रहे आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई थी,,,, लेकिन तभी संध्या को एहसास हुआ और शर्मा कर अपनी नजरों को दूसरी तरफ कर ली और अपनी पल्लू को वापस अपने कंधे पर डालते हुए खड़ी हो गई,,,, जानबूझकर अपनी कमर पकड़कर बोली,,,।
आहहहहहहह,,,, मेरी कमर आज तो हालत खराब हो गई है,,,,
क्या हुआ मम्मी कुछ ज्यादा दर्द कर रही है क्या,,,।
हां,,,रे आज तो मेरी कमर बहुत दर्द कर रही है,,,,,, (इतना कहने के साथ ही संध्या छत पर पड़ी खटिया पर बैठ गई,,,)
ठीक है मम्मी तुम यहीं बैठो मैं कपड़ों को रस्सी पर डाल देता हूं,,,,(सोनू मन में खुश होता हुआ बोला और वह आगे बढ़कर बाल्टी में से एक एक करके कपड़ों को निकालकर रस्सी पर डालने लगा,,, संध्या खटिया पर बैठे हुए अपने बेटे के गठीले बदन को देख रही थी,,, अपने मन में यही सोच रही थी कि अपने बेटे की बाहों में उसे कैसा महसूस होगा जवान मर्दहो चुका उसका बेटा जब उसे खुद अपनी बाहों में करेगा तो कैसा लगेगा यह सोचकर उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ रही थी,,, और दूसरी तरफ सोनू को अपनी मां की ब्रा और पेंटी को अपने हाथ में उसकी आंखों के सामने लेने का इंतजार था और,,, देखते ही देखते सोनू बाल्टी में से अपनी मां की ब्रा को उठा लिया,,, लाल रंग की वह ब्रा एकदम जालीदार थी जिसमें से संध्या की चुचियों का संपूर्ण भूगोल खुली आंखों से नजर आता था,,,संध्या अपने बेटे को ही बड़े गौर से देख रही थी वह यह बात को बिल्कुल भूल चुकी थी की बाल्टी में उसके अंडर गारमेंट भी धोकर रखे हुए हैं लेकिन जैसे ही उसे अपनी ब्रा अपने बेटे की हाथ में नजर आई वैसे ही उसके बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी,,, उसकी आंखों में चमक आ गई,,,, उसे लगा था कि वह ब्रा को भी रस्सी पर सूखने के लिए डाल देगा लेकिन वह उसे घुमा फिरा कर देखने लगा अपने बेटे से संध्या को इसकी उम्मीद बिल्कुल भी नहीं थी,,,,,, इसलिए संध्या की उत्सुकता और ज्यादा बढने लगी,,,,सोनू जानबूझकर अपनी मां की आंखों के सामने ही उसकी ब्रा को उलट पलट कर देख रहा था मानो के जैसे उसके हाथों में उसकी मां की ब्रा नहीं बल्कि उसकी मां की चूची आ गई हो,,,संध्या को समझ में नहीं आ रहा था कि उसका बेटा उसकी ब्रा के साथ कर क्या रहा है लेकिन उसकी हर एक हरकत संध्या के तन बदन में आग लगा रही थी,,,, तभी अपनी मां की आंखों के सामने ही बेशर्म बनता हुआ बुरा के कब को अपनी हथेली मैं एक गेंद की तरह पकड़ते हुए वह अपनी मां से बोला,,,।
यह किसकी ब्रा है मम्मी,,,?(सोनु उत्सुकता दिखाते हुए बोला,,,, अपने बेटे के इस सवाल पर थोड़ा सा झेंप गईक्योंकि सोनू इस तरह से सीधे-सीधे उसे यह सवाल पूछ लेगा इसकी उम्मीद उसे बिल्कुल भी नहीं थी संध्या अपने बेटे को और उसकी हरकत को बड़े गौर से देख रही थी वह अभी भी ब्रा के कप को अपनी हथेली में गेंद की तरह पकड़ने की कोशिश कर रहा था,,। फिर भी अपने तन बदन में चल रही मादकता बड़ी हलचल की वजह से संध्या भी एकदम सपाट उत्तर देते हुए बोली,,,)
मेरी ही तो है तुझे नहीं मालूम क्या,,,,?
मुझे कैसे मालूम होगा मैं देखा हूं क्या,,,?
फिर पूछ कैसे रहा था,,,,?
वह तो बस अंदाजा लगा रहा था,,,,
और अंदाजा कैसे लगा रहा था,,,,
ब्रा की कप की गोलाई देखकर,,,,(सोनू अभी भी पर आकर कब को अपनी हथेली में लेते हुए बोला अपने बेटे की यह हरकत संध्या के तन बदन में आग लगा रही थी क्योंकि उसे ऐसा ही लग रहा था कि जैसे वापरा के कप का नहीं बल्कि उसकी चूची को ही अपने हाथ में लेकर दबा रहा हो,,,)
और क्या अंदाजा लगाया गोलाई देखकर,,,,?
यही कि मम्मी है तुम्हारी नहीं लग रही है और दीदी की भी नहीं लग रही है,,,,(सोनू बड़े गौर से जानबूझकर अपना सारा ध्यान ब्रा की तरफ लगाते हुए बोला,,, और सोनू के मुंह पर इस हालात में अपनी बड़ी बेटी का जिक्र आते ही संध्या के तन बदन में ना जाने क्यों और उत्सुकता बढ़ने लगी,,,)
तुझे ऐसा क्यों लग रहा है,,,,?
क्योंकि ब्रा की जो साइज है उसे देखते हुए मुझे नहीं लगता कि आप की चुची,,,(इतना कहते ही सोनू एकदम से खामोश हो गया और आश्चर्य से अपनी मां की तरफ देखने लगा जैसे कि वह कोई गलती कर दिया हो और उसका क्या परिणाम आता है यह देख रहा हूं संध्या भी अपने बेटे के मुंह से चूची शब्द सुनकर एकदम से सिहर उठी,,, लेकिन बोली कुछ नहीं वह जानती थी कि ऐसे हालात में अगर वह अपने बेटे को इन शब्दों के लिए डांट देती है तो शायद उसका काम बनता हुआ भी बिगड़ जाए इसलिए वह कुछ बोली नहीं और अपनी मां को खामोश देखकर वह अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,,) मेरा मतलब है कि आप की वो,,,,
वो,,, क्या जरा फिर से बोलना तो,,,,(संध्या एकदम से चहकते हुए बोली,,,)
अरे कुछ नहीं वही वह तो मेरे मुंह से निकल गया,,,,
क्या निकल गया था तेरे मुंह से मैं फिर से सुनना चाहती हूं,,,
अब मैं कैसे बोलूं मुझे तो शर्म आती है वह तो अचानक ही मेरे मुंह से निकल गया था,,,,(सोनू ब्रा के कप को अपनी मां की चूची समझ कर उसे हल्के हल्के सहलाते हुए बोला,,,)
अरे क्या निकल गया था अचानक मैं भी तो सुनना चाहती हूं,,,, बोलना शर्मा क्यों रहा है मुझसे,,,, बोल बोल शर्मा मत,,,,
(अपनी मां की बातें सुनकर सोनू को लगने लगा कि उसकी मां वही शब्द सुनना चाहती है जो शब्द वह जानबूझकर बोला था वह समझ गया था कि उसके मुंह से उसकी मां चुची शब्द सुनना चाहती हैं,,,, इसमें भला सोनू को क्या दिक्कत थी वह तो चाहता ही था अपनी मां से व खुले शब्दों में बात करें लेकिन फिर भी जानबूझकर अपनी मां के सामने शर्माने का नाटक करते हुए वह बोला,,,)
चचचचचच,,, चुची,,,,, मेरा मतलब है कि ब्रा के कप के साइज के मुकाबले आप की चुची कुछ ज्यादा ही बड़ी है,,,, मुझे नहीं लगता कि इस ब्रा में आप की चूची पूरी तरह से समा जाती होगी,,,,(सोनू एक साथ में ही सब कुछ बोल गया,,, लेकिन यह बात बोलने में उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी थी उसके पजामे का आकार बढ़ने लगा था,,,, संध्या हैरान थी लेकिन हैरानी से ज्यादा उसे अपने बेटे के इन शब्दों में आनंद की अनुभूति हो रही थी वह आंख फाड़े अपने बेटे को देख रही थी,,,, और बिना किसी शर्म के वह बोली,,,)
वाह,,,, तू तो बड़ा हो गया सोनु,,,, औरतों की (हथेली से अपनी चूचियों की तरफ इशारा करते हुए) इसे क्या कहते हैं तुझे पता चल गया जानकार हो गया है तु,,,(अपनी मां की बातों को सुनकर सोनू एकदम से शर्मा क्या उसे लगने लगा कि कहीं वह गलत तो नहीं बोल गया वह इस बात से और ज्यादा घबरा गया था कि कहीं वह अपनी मां के मन को समझने में भूल तो नहीं कर गया,,, संध्या खटिया पर से उठी और स धीरे-धीरे अपने बेटे की तरफ आगे कदम बढ़ाने लगी ,,,, सोनू अभी भी अपनी मां की ब्रा को अपने हाथ में पकड़े हुए था,,, सोनू घबरा रहा था उसकी मां उसके बेहद करीब पहुंच गई थी,,,, संख्या को लगने लगा कि उसका बेटा घबरा रहा है और वो नहीं चाहती थी कि उसका बेटा लग रहा है इसलिए वह एकदम सहज होते हुए बोली,,,)
यह तो अपने हाथ में पकड़े हुए हैं ना यह मेरी ही है यह मेरी ही ब्रा,,, और इसमें मेरी बड़ी बड़ी ये,,,(एक बार फिर से अपने हाथों से अपनी चूचू की तरफ इशारा करते हुए) अच्छी तरह से समझ आती है थोड़ी मुश्किल होती है लेकिन फिर भी एक दम कंफर्टेबल तरीके से आ जाती है,,,, तुझे यकीन नहीं हो रहा है ना सोनु,,,(अपनी मां की सहजता से कही गई बात को सुनकर सोनू को राहत महसूस हो रही थी और वह फिर से अपनी मां को जवाब देते हुए बोला,,,)
नहीं मम्मी मुझे बिल्कुल भी विश्वास नहीं हो रहा है,,,, मैं भला कैसे विश्वास करूं,,,,की एक अच्छा खासा बड़ा खरबूजा जेब में आ जाएगा,,,,
(अपने बेटे की यह बात सुनकर संध्या खिलखिला कर हंसने लगी उसे अपने बेटे की बात पर हंसी आने लगी और उसके हंसने की वजह से उसकी भारी भरकम छातियां ऊपर नीचे होने लगी,,, यह देख कर सोनू की हालत खराब होने लगी,,,)
तेरी बातें बड़ी अजीब होती है,,, ना चाहते हुए भी मुझे हंसी आ गई,,,, मेरी चूचियां क्या,,,, सॉरी मेरा मतलब है कि मेरी ये,,, खरबूजे जैसी है जो तू इन्हें खरबूजा कह रहा है,,,।
(संध्या जानबूझकर अपने मुंह से चूची शब्द कही थी वह अपने बेटे को अपनी बातों से उत्तेजित करना चाहती थी,, और सोनू की अपनी मां के मुंह से चूची शब्द सुनकर गनगना गया,,,)
नहीं मम्मी मेरा कहने का बिल्कुल भी ऐसा मतलब नहीं था लेकिन इनकी साइज एकदम खरबूजे जैसी ही है इसलिए तो मुझे यकीन नहीं हो रहा है कि इतना बड़ा होने के बावजूद भी,,, इतनी छोटे से कप में,,(ब्रा के कप में अपनी हथेली डूबाते हुए,,,) आ कैसे जाता है,,,,।
(संध्या अपने बेटे की हरकत और उसकी बातों को देखकर यही समझ रही थी कि वाकई में उसके बेटे को लगता है कि छोटे से ब्रा मे उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां कैसे समा जाती है,,, जबकि वह अपनी इस शंका भरी बातों से अपनी मां को ऊकसा रहा था,,, और उसकी मां भी अपने बेटे के मन में आए शंका को दूर करने के लिए बोली,,)
रुक जा तूझे में दिखाती हुं,,,,(इतना कहने के साथ ही अपने बेटे की आंखों के सामने ही वह अपने ब्लाउज के बटन को खोलना शुरू करके देख कर सोनू के तन बदन में आग लगने लगी उसकी आंखें फटी की फटी रह गई उसे उम्मीद नहीं थी कि उसकी आंखों के सामने उसकी मां इस तरह की हरकत करने लगेगी वह अपने बटन को खोलते हुए बोली,,,) अभी तुझे यकीन आ जाएगा जब अपनी आंखों से देखेगा,,,(ऐसा कहते हुए संध्या अपने ब्लाउज का आखिरी बटन भी खोल दी अगर चाहता तो सोनू अपनी मां को ऐसा करने से रोक सकता था लेकिन वह तो यही चाहता ही था,,, जो चाहता था उसकी मां वही कर रही थी क्योंकि उसके मन में भी यही हो रहा था कि वह अपने बेटे को अपनी भारी-भरकम छातीया नजदीक से दिखाएं,,, जैसे-जैसे संध्या अपने ब्लाउज का आखिरी बटन खोल रही थी उसकी नरम नरम नाज़ुक उंगलियों को आखरी बटन पर इधर-उधर घूमता हुआ देखकर सोनू के पजामे में हलचल होने लगी थी ,,,,सोनू को लग रहा था कि उसके उकसाने से उसकी मां अपने ब्लाउज के बटन खोल रही है लेकिन संध्या जानबूझकर अपनी छातियां दिखाने के लिए अपने ब्लाउज के बटन खोल रही थी दोनों एक दूसरे को अपनी तरफ से पूरी तरह से उकसा रहे थे आगे बढ़ने के लिए,,,, दोनों मंजिल पाना चाहते थे लेकिन सफर में दोनों इधर-उधर हो जा रहे थे,,,,सोनू के पजामे के आगे वाले भाग का साइज बढ़ना शुरू कर दिया था,,,,,)