Nasn
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बहुत ही जबरदस्त आग लगी है
शगुन और उसके पापा के अंग में
अभी और तड़पने दो ,दोनों को...
फिर चुदाई घमासान करवाना...
शगुन और उसके पापा के अंग में
अभी और तड़पने दो ,दोनों को...
फिर चुदाई घमासान करवाना...
उम्मीद है कि अगले अपडेट में सोनू और संध्या का जबरदस्त घमासान होगा eagerly waiting for next updateशगुन और संजय दोनों बाप बेटी एक दूसरे की उत्तेजक अंगों के दर्शन कर चुके थे,, और उस अंग को लेकर अपने मन में अद्भुत कल्पना को आकार दे रहे थे,,, शगुन की आंखों के सामने बार-बार उसके पापा के द्वारा लंड हिला हिला कर पेशाब करने वाला द्रशय याद आ रहा था,,, और वह दृश्य शगुन के कोमल मन पर भारी पड़ रहा था बार बार उसको अपनी पेंटिं गीली होते हुए महसूस हो रही थी,,, उसका मन बहक रहा था अपने पापा के मोटे तगड़े खड़े लंड को अपने हाथों से छूना चाहती थी उसे दबाना चाहती थी,,, और तो और उसे मुंह में लेकर उसे चूसने की कल्पना तक वह कर डाल रही थी,,, शगुन के कल्पनाओं का घोड़ा बड़ी तेजी से गतिमान हो रहा था उसके मन में रह-रहकर कल्पनाओं का बवंडर सा ऊड रहा था,,, बिस्तर पर पड़े पड़े वह आंखों को बंद करके कल्पना कर रही थी कि वह कैसे अपने पापा के मोटे तगड़े लंड को पकड़ कर उसे मुंह में लेकर चूस रही है,, और उसी लंड को उसके पापा उसकी दोनों टांगों को अपने हाथों से फैला कर उसकी मखमली गुलाबी छेद पर रख कर उसे धीरे धीरे अंदर डाल रहे हैं हालांकि शगुन अब तक किसी दूसरे के लंड को ना तो कभी देखी थी और ना ही उसके बारे में कल्पना की थी,,, यह पहली बार था जब वह अपने पापा के लंड को देखी थी,,, लंड को मुंह में लेकर चूसना और संभोग क्रिया को सुबह ठीक तरह से समझती भी नहीं थी लेकिन फिर भी कल्पना में उस क्रिया के बारे में सोच कर ही वह पूरी तरह से गीली होते हुए झड़ चुकी थी,,,।
दूसरी तरफ संजय का बुरा हाल था,,, गाड़ी चलाते समय भी उसकी आंखों के सामने उसकी बेटी शगुन की गोरी गोरी कोरपड़ गांड नजर आ रही थी जिसे वह अंतिम क्षण पर नजर भर कर देख लिया था वरना कुछ सेकेंड की देरी हो जाती तो शायद इतना लुभावना दृश्य वह अपनी आंखों से कभी नहीं देख पाता,, उसने अपनी जिंदगी में ना जाने कितनी जवान लड़कियों के नंगे बदन को अपनी आंखों से देख चुका था और उन्हें भोग भी चुका था लेकिन अपनी बेटी शगुन की मात्र गोलाकार नितंब की झलक भर देख लेने से उसकी हालत खराब हो रही थी दुनिया की सबसे खूबसूरत गांड उसे अपनी बेटी शगुन की लग रही थी,,, हालांकि सर्वश्रेष्ठ और उत्तम किस्म की औरत का पति होने के बावजूद भी उसका मन बहक रहा था,,, और घर पर पहुंचते ही अपने बदन की अपनी जवानी की गर्मी को शांत करने के लिए वह एक बहाने से संध्या को अपने कमरे में ले जाकर तुरंत अपने हाथों से संपूर्ण रूप से नंगी करके और खुद भी नंगा हो करके उसे बिस्तर पर पटक कर चोदना शुरू कर दिया,,, आज उसके जेहन में शगुन की मादकता भरी गांड बसी हुई थी इसलिए वह अपनी बीवी संध्या की गांड को शगुन की गांड समझकर जोर-जोर से चोद रहा था संध्या भी हैरान थी अपने पति की ताकत को देख कर वह पहले ही अपने बेटे सोनू की वजह से काम ज्वाला में तप रही थी इसलिए अपने पति के द्वारा चुदाई होने पर वह अपने पति की जगह अपने बेटे सोनू की कल्पना करके चुदाई का मजा ले रही थी,,, जिससे उसकी भी उत्तेजना अत्यधिक बढ़ चुकी थी और उसे अपने पति से चुदाई का भरपूर मजा मिल रहा था,,,
सोनू सुबह-सुबह बगीचे में झाड़ियों के अंदर का दृश्य देखते हुए अनजाने में जो उसने अपनी मां के साथ हरकत कर दिया था और झड़ गया था,, इसलिए वहां शर्मिंदा होकर अपनी मां से नजर तक मिला नहीं पा रहा था और यह बात संध्या अच्छी तरह से समझ रही थी इसलिए वह एकदम सहज बनी हुई थी,,, लेकिन वास्तव में झाड़ियों के अंदर के दृश्य को देखकर उस मां बेटे की गरमा गरम चुदाई को देखकर इस तरह की हरकत वह खुद और सोनू उसके साथ किया था उससे उसके पूरे बदन में गर्मी छा गई थी,,, अपनी गांड पर अपनी बेटे के लंड के कड़क पन की रगड बार-बार उसे अपने नितंबों पर महसूस हो रही थी,,,, जिस तरह से वह उसकी चूची को दबा रहा था उसे पूरा यकीन था कि मौका मिलने पर उसका बेटा उसकी दोनों चुची से उसका सारा रस निचोड़ डालेगा,,,
धीरे धीरे 1 सप्ताह बीत गया लेकिन सोनू अपनी मां से खुल कर बात नहीं कर पाया और ना ही उससे नजरें मिला पा रहा था,,,,। लेकिन संध्या की हालत खराब होती जा रही थी अपने पति से भरपूर प्यार और शारीरिक सुख पाने के बावजूद उसका मन भटक रहा था,, हर एक औरत में उसके मन के कोने में कहीं ना कहीं चोरी छुपे या खुलकर किसी गैर से शारीरिक संबंध बनाकर भरपूर संतुष्टि प्राप्त करने का लालच छिपा होता है,,, और अधिकतर औरतें इस बारे में कल्पना भी करती रहती हैं लेकिन समाज अपने संस्कार और परिवार की इज्जत के खातिर अधिकतर औरतें इस तरह के कदम उठाने से कतराती रहती हैं,,, लेकिन अगर कोई ऐसा मिल जाए जिसके साथ शारीरिक संबंध बनाने के बाद किसी को इस बारे में कानो कान पता ना चल जाने की गारंटी हो तो औरतें इस तरह के संबंध बनाने से बिल्कुल भी नहीं कतराती,,,। और वैसे भी चोरी छुपे किसी गैर के साथ शारीरिक संबंध बनाने में जो सुख प्राप्त होता है वैसा सुख पति या पत्नी के साथ घर के बिस्तर में कभी नहीं मिलता,,और संध्या की इस बात को अच्छी तरह से जानती थी कि अगर वह अपने ही बेटे सोनू के साथ सारिक संबंध बनाती है तो इस बारे में किसी को खबर तक नहीं पड़ेगी और उसे अपने बेटे के साथ संपूर्ण संतुष्टि का अहसास होगा जो कि उसे उसके पति के साथ भी बराबर मिल रहा था लेकिन पति को छोड़कर घर में किसी अपने सदस्य के साथ शारीरिक संबंध बनाने का मजा ही कुछ और होता है,,,।
संध्या बार-बार अपने बेटे के बारे में कल्पना करके उत्तेजित हो जाती थी,,, वह बार-बार यही सोचती रहती थी कि जिस तरह से उसने झाड़ियों के अंदर मां बेटे के बीच गरमागरम चुदाई का नजारा देखकर उसका बेटा उसकी गांड पर अपना लंड रगड़ रहा था और उसकी चूची दबा रहा था अब तक कोई और होता तो उसकी चुदाई कर दिया होता,,, यह बात अपने मन में सोच कर संध्या को अपने बेटे पर थोड़ा गुस्सा भी आता,,, था,,,, लेकिन वो अच्छी तरह से समझती थी कि अगर उसकी जगह कोई और औरत होती तो शायद उसका बेटा उस दिन बगीचे में हीं उसकी चुदाई कर दिया होता,,, शायद सोनू क्या आगे बढ़ने में मां बेटे का रिश्ता बाधा डाल रहा था लेकिन मैं भी अच्छी तरह से जानती थी कि सोनू मौका मिलने पर अपना कदम पीछे नहीं हटाएगा बल्कि उसके ऊपर चढ़ जाएगा,,, यह सोचकर संध्या के बदन में उत्तेजना की लाइट दौड़ने लगती थी,,, संध्या को लगता था कि सोनू को आगे बढ़ने में थोड़ा वक्त लगेगा उसे और ज्यादा उकसाने की जरूरत है,,,, यही सोचकर व अपने मन में उसे उकसाने की युक्ति ढूंढने लगी लेकिन उसका दिमाग काम नहीं कर रहा था ऐसे ही एक दिन रविवार का दिन था शगुन एक्स्ट्रा क्लासेस के लिए बाहर गई हुई थी और संजय भी हॉस्पिटल के काम में व्यस्त था घर पर केवल सोनू और संध्या ही थे,,,। 10:00 का समय हो रहा था संध्या के खुराफाती दिमाग में अपने बेटे को उकसाने की युक्ति सुझ रही थी,,, रविवार के दिन संध्या को ढेर सारे कपड़े धोने होते हैं जो कि वह वाशिंग मशीन में ही धोती थी,,,। वह सोनू के कमरे में गई,,, कमरे का दरवाजा हल्का सा खुला हुआ था,,,। वह दरवाजे पर दस्तक दीए बिना हीं दरवाजे को खोलते हुए सोनू को आवाज लगाते हुए बोली,,,
सोनू,,,,,,(और इतना कहने के साथ ही वह आगे नहीं बोल पाई,,, क्योंकि उसकी आंखों ने जो देखा उसे देखते ही रह गई उसकी आंखें फटी की फटी रह गई सोनू टेबल पर अपनी गांड टीकाएं मोबाइल में व्यस्त था,,, व्यस्त क्या था मोबाइल में पोर्न मूवीस देख रहा था इसलिए पूरी तरह से उत्तेजित था और इस समय वह केवल अंडर वियर में ही था,,,और पोर्न मूवीस देखने की वजह से उत्तेजित अवस्था में वह पूरी तरह से मस्त हो चुका था,,,उसकी मस्ती उसकी दोनों टांगों के बीच छाई हुई थी जिसकी वजह से उसकी छोटी सी अंदर भी और में बहुत ही विशाल तंबू बना हुआ था माना कि कोई हैंगर हो और उस पर कपड़े टांगा जाता हो,,, उस अद्भुत और लंबे-तंबु को देखकर संध्या की आंखें फटी की फटी रह गई वह एक टक अपने बेटे के अंडरवियर को ही देखते रह गई जिसमें उसका लंड पूरी तरह से खड़ा होकर तंबू बनाया हुआ था मानो कि कोई शामियाना लगने वाला,,, संध्या उसके अंडरवियर में बने तंबू को देख कर आश्चर्य के साथ-साथ मस्त भी हुए जा रही थी,,,, वह तंबू को देखकर उसके अंदर के बंबू की लंबाई और मोटाई का अंदाजा अच्छी तरह से लगा पा रही थी,,,, सोनू चुदाई वाली मूवी देखने में मस्त था,,, लेकिन यु एकाएक दरवाजा खोलने की वजह से वो एकदम से चौक गया और तुरंत पास में पड़ी टावल को अपने कमर से लपेट लिया लेकिन फिर भी वह अपने तंबू को छुपा नहीं पाया टावल मे भी तंबू बना हुआ था,,,,। वह तुरंत बिस्तर पर बैठ गया और हकलाते हुए बोला,,,।
मममम,,, मम्मी तुम यहां,,,,
क्यों नहीं आ सकती,,, मुझे अंदर आने की इजाजत नहीं है क्या,,,(संध्या एकदम सहज स्वर में बोली,,)
नहीं नही मम्मी ऐसी कोई भी बात नहीं है तुम तो जब चाहे तब कमरे में आ सकती हो,,,
फिर इतना घबराया हुआ क्यों है,,,(संध्या एकदम सहज होते हुए बोल रही थी ताकि उसके बेटे को यह आभास ना हो कि उसने वह सब कुछ देख ली है जो वह छुपाने की कोशिश कर रहा है,,,,)
नहीं नहीं मैं कहां घबराया हुआ,,,हुं,,,वो तो में कपड़े नहीं पहना हु इसलिए,,,,,
मेरे सामने क्यों इतना शर्मा रहा है,,,, जानता है ना मैं तेरी मां हूं मैं तुझे हर हाल में देख चुकी हूं चाहे कपड़े पहना हो या फिर नंगा हो,,,(संध्या नंगा शब्द पर कुछ ज्यादा ही जोर देते हुए बोली,,,) मुझसे शर्माने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है,,.
(अपनी मां को इस तरह से शहर छोड़ कर बात करते हुए देख कर सोनू को महसूस होने लगा कि उसकी मां ने वह कुछ भी नहीं देखी है जो वह छुपा रहा है इसलिए वह भी सामान्य होने लगा इसलिए बोला,,,)
कोई काम था क्या मम्मी,,,।
हारे कपड़े धोने थे और वॉशिंग मशीन चल नहीं रही है,,,मैं सोच रही थी तू अगर मेरे काम में हाथ बता देता तो अच्छा होता,,,।
मैं,,,(आश्चर्य से सोनू बोला)
हां हां तू क्या तू अपनी मां का हाथ नहीं बटाएगा जानता है ना तो अच्छा बेटा वही होता है जो अपनी मां के काम में हाथ बंटाता है उसकी मदद करता है,,, क्या तू अच्छा बेटा नहीं है,,)
नहीं नहीं मैं अच्छा बेटा हूं मैं तुम्हारे काम में हाथ बटाऊंगा,,,
तो फिर जल्दी से आजा,,, बाथरूम में,,,,(बाथरूम शब्द संध्या बेहद मादक स्वर में बोली,,,सोनू को अपनी मां का इस तरह से बाथरूम में बुलाना रोमांचित कर गया मानो कि जैसे उसकी मां बाथरूम के अंदर उससे चुदवाने के लिए बुला रही हो,,, संध्या मादक स्वर बिखेरते हुए कमरे से जा चुकी थी,,, और सोनू का तंबू भी शांत होकर बैठ चुका था वह जल्दी से कपड़े पहना और अपनी मां का हाथ बताने के लिए अपने कमरे से बाहर आ गया,,,।)