शगुन बेहद उत्सुक थी शहर के बाहर जाकर एग्जाम देने के लिए क्योंकि उसका सपना जो पूरा होने वाला था यही एग्जाम था जो पास करके वह डॉक्टर बन सकती थी,,,।उससे भी ज्यादा उत्सुकता उसे इस बात की थी कि वहां 3 दिन तक अपने पापा के साथ शहर से बाहर रहने वाली थी,,, डॉक्टर बनने के सपने के साथ-साथ उसे जवानी की जरूरत भी पूरी होती हुई महसूस हो रही थी उसे लगने लगा था कि इन 10 दिनों में जरूर उसके मन की और तन की इच्छा पूरी होगी,,, इसलिए वह एक बैग में अपने कपड़े समेटने लगी,,, दूसरी तरफ संजय की भी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी जब से वह शगुन की कोरी चिकनी बुर के दर्शन किया था तब से उसकी हालत दिन-ब-दिन बदतर होती जा रही थी,,, उसकी आंखों के सामने बार बार अपनी ही बेटी की मदमस्त रसीली फूली हुई बुर नजर आती थी,,,, वह बार-बार अपने मन को दूसरी तरफ लगाने की कोशिश करता था लेकिन वह इस कोशिश में कामयाब नहीं हो पाता था पूरी तरह से शगुन उसके दिलो-दिमाग पर छा चुकी थी उसके खूबसूरत महकते जिस्म की खुशबू महसूस होते ही संजय का लंड खड़ा हो जाता था,,, यह सफर उसकी भी जीवन का बेहद अनमोल पल बनने वाला था जिसका उसे बेसब्री से इंतजार था आखिरकार इंतजार की घड़ी खत्म हो चुकी थी और वह भी बैग में अपने कपड़े भर रहा था संध्या दौड़ दौड़ कर उन दोनों की जरूरतों की चीजें लाकर दे रही थी ऐसा लग रहा था कि मानो वह उन दोनों को जल्द से जल्द घर से बाहर भेजना चाहती थी जिसमें उसका ही अपना स्वार्थ छिपा हुआ था,,, वह भी इस बात से बेहद उत्सुक थी कि 3 दिन तक वह अपने बेटे के साथ अकेली रहने वाली थी और इन 3 दिनों में ही वह अपने बेटे को पूरी तरह से अपने काबू में कर लेना चाहती थी वैसे भी उसे इस बात का अहसास था कि उसका बेटा पूरी तरह से उसके खूबसूरत जिस्म के आकर्षण में डूब चुका है जिसका जीता जागता सबूत वह बार-बार पा चुकी थी,,,और जब से वह अपनी आंखों से अपने बेटे को बाथरूम के अंदर उसका नाम लेकर मुट्ठ मारते हुए देखी थी तब से अपने ही बेटे के साथ चुदवाने का उसकी इच्छा प्रबल होती जा रही थी,,,।
सुबह के 10:00 बजने वाले थे और संजय और शगुन शहर से बाहर जाने के लिए पूरी तरह से तैयार हो चुके थे,,,।
शगुन रास्ते के लिए मैंने खाना बनाकर टिफिन में रख दी हूं दोपहर में तुम ओर तुम्हारे पापा खा लेना,,,, कब तक पहुंचोगो वहां पर,,,,(संध्या संजय की तरफ देखते हुए बोली,,,)
रात के 8:00 बज जाएंगे वहां पहुंचने के बाद हमें कोई होटल में रुकना होगा,,,(होटल का नाम सुनते ही सब उनके तन बदन में हलचल मचने लगी,, उसकी दोनों टांगों के बीच की कड़ी दरार में कुलबुलाहट होने लगी,,,,) और सुबह 11:00 एग्जाम देने जाने के लिए सेंटर पर जाना होगा,,,,
चलो कोई बात नहीं आराम से पहुंच जाना और बेटा सगुन अच्छे से परीक्षा देना ताकि इस बार पहले ट्राई में ही तुम डॉक्टर बन जाओ,,,
तुम चिंता मत करो मम्मी ऐसा ही होगा,,,,(शगुन अपने बैग की चैन को बंद करते हुए बोली).
चलो ठीक है,,,,(इतना कहने के साथ ही संध्या लगभग भागते हुए किचन में गई और एक कटोरी में दही लेकर आई और चम्मच से पहले शगुन को उसके बाद संजय को खिलाते हुए बोली) भगवान सब कुछ ठीक करेंगे,,,
(सारे क्रियाकलाप को सोनू वहीं पास में बैठा देख रहा था उन लोगों की बातो पर उसका ध्यान बिल्कुल भी नहीं था वह केवल अपनी मां को देख रहा था उसके खूबसूरत बदन को देख रहा था उसके कमर में कसी हुई साड़ी को देख रहा था जिसमें उसकी गोलाकार नितंब बेहद उधार लिए हुए नजर आ रहे थे और जब वो चलती थी तू उसमें हो रही थीरकन को देखकर उसका मन मचल उठ रहा था,,, सोनू के पेंट में बगावत हो रही थी अपनी मां की खूबसूरत हो जिसमें को साड़ी में लिपटा हुआ देखकर उसके तन बदन में उत्तेजना के शोले भड़क रहे थे वह भी अपने पापा और अपने बहन के बाहर जाने का इंतजार कर रहा था वह चाहता था कि इन 3 दिनों में,,, जो वह चाहता है वह हो जाए,,, वहीं 3 दिनों का भरपूर फायदा उठाना चाहता था वह जानता था कि जो उसके मन में चल रहा है वही उसकी मां के भी मन में चल रहा है,,, तभी तो उसकी हरकत पर उसकी मां बिल्कुल भी प्रतिक्रिया नहीं करती थी उसे रोक की नहीं थी उसे डांटती नहीं थी मैं उसे समझाने की कोशिश करती थी बल्कि मौका मिलते ही किसी न किसी बहाने अपने अंगों को दिखाने की भरपूर कोशिश करती थी और जब से वह अपनी मां के कमरे में जाकर उसे अर्धनग्न अवस्था में देखकर उसकी मदमस्त प्रमुख नौकरी डाला था तब से उसका मन अपनी बांकीपुर में उंगली की जगह अपना लंड डालने को कर रहा था हालांकि अब तक सोनू संभोग के महआ अध्याय से बिल्कुल परिचित नहीं था उसे बिल्कुल भी क्या नहीं था की औरतों की चुदाई कैसे की जाती है क्या किया जाता है कैसे किया जाता है लेकिन फिर भी अपनी मां को लेकर उसके मन में अरमान जाग रहे थे वह किसी भी तरह से अपनी मां को चोदना चाहता था संभोग सुख से तृप्त होना चाहता था लेकिन वह आया कैसे करेगा इस बारे में भी उसे बिल्कुल भी पता नहीं था उसकी हिम्मत नहीं होती थी उसे डर लगता था और अपनी मंजिल तक पहुंचना भी चाहता था,,,, उसके मन में अपनी मां को लेकर ढेर सारी भावनाएं जाग रही थी देखते ही देखते हैं संजय और सगुन दोनों बाहर जाने के लिए तैयार हो गए,,, अपने भाई को ख्यालों में खोया हुआ देखकर सगुन बोली,,)
अरे कहां खोया हुआ है नींद आ रही है क्या तुझे,,,
नहीं नहीं दीदी ऐसी कोई भी बात नहीं है बस तुम लोग जा रहे थे तो अच्छा नहीं लग रहा था,,,।
अरे हमेशा के लिए थोड़ी जा रही है 3 दिनों की तो बात है और वैसे भी एग्जाम देने जा रही हूं सब कुछ सही हो गया तो इस घर में एक और डॉक्टर बन जाएगी,,,।
ऐसा ही होगा दीदी मुझे तुम पर पूरा भरोसा है,,,,
अरे मेरा बुद्धू भाई,,,(ऐसा कहते हुए शगुन आगे बढ़कर अपने भाई को गले लगा ली,, सोनु भी अपने दोनों हाथ को सकून की पीठ पर रख दिया लेकिन सगुन कुछ ज्यादा ही गर्मजोशी दिखाते हुए उसे अपने गले लगाने की जिससे उसकी दोनों चूचियां सोनू की छाती पर महसूस होने लगी सोनू एकदम से गनगना गया,,,ऊसे,इस बात का एहसास हो गया था कि उसकी बहन की दोनों चूचियां उसकी छाती पर रगड़ खा रही है,,, उसके तन बदन में उत्तेजना की चिंगारी फूटने लगी,,,, पल भर में वह भी उत्तेजित हो गया और जिस तरह से उसकी बहन उसे अपनी बाहों में भरकर उसे गले लगाई थी उसी तरह से वह भी अपनी दोनों हथेली को उसकी पीठ पर कसते हुए दबाव बनाने लगा,,,,,, इससे सोनू को उसकी बहन की दोनों अच्छे से अपनी छाती पर महसूस होने लगी उसे अपनी छाती के दोनों हिस्सों पर कुछ नुकीली चीज चुभती हुई महसूस हो रही थी सोनू को यह समझते देर नहीं लगी कि वह दोनों नुकीली चीज कुछ और नहीं बल्कि उसकी बहन की चुचियों की दोनों निप्पल है,,, एहसास से सोनू पूरी तरह से उत्तेजना से भर गया,,,, कुछ देर तक और वह अपनी बाहों में मुझे अपनी बहन की चूची का मजा लेता इससे पहले ही संजय बोला,,,।
चलो जल्दी करो शगुन जल्दी निकलना है,,,,।
(इतना सुनते ही सगुन अलग हुई और संजय और सगुन दोनों घर से बाहर निकल गएसोनू और संध्या दोनों बाहर तक छोड़ने आए और तब तक खड़े रह जब तक की कार उनकी आंखों से ओझल नहीं हो गई नजरों से कार के दूर होते ही वापस घर में कदम रखते ही संध्या की हालत खराब होने लगी उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ क्योंकि आप 3 दिन तक वह और उसका बेटा अकेले रहने वाले थे,,,लेकिन उसे समझ में नहीं आ रहा था की शुरुआत कैसे करें क्योंकि वह अच्छी तरह से जानती थी कि उसका बेटा आगे से पहल नहीं कर पाएगा क्योंकि वह कमरे में ही उसकी हरकत को देख ली थी जिस तरह से वह भाग खड़ा हुआ था अगर उसकी जगह कोई और होता तो जिस तरह से अपनी उंगली उसकी बुर में डाल रहा था,,, वह उसके खूबसूरत बदन को देखकर उंगली नहीं बल्कि अपना लंड उसकी पुर में डाल देता,,,,इसलिए अपने मन में सोच रही थी कि शुरुआत उसे ही करना होगा लेकिन कैसे उसे समझ में नहीं आ रहा था कुछ सोच नहीं रहा था,,,,
दूसरी तरफ सोनू की भी हालत खराब थी क्योंकि उसे भी पता था कि आप 3 दिन तक पूरे घर में वह और उसकी मां अकेले ही रहने वाले हैं उसके लिए अरमान जाग रहे थे,,, लेकिन पहल करने से उसे भी डर लग रहा था,,,।
दोनों सीढ़ियां चढ़ने लगे,,,, तो संध्या उससे बोली,,,
अरे सोनू बेटा जरा बाथरूम में से धुले हुए कपड़े की बाल्टी ला देना तो,,,, ऊपर छत पर सुखाना है,,,,।
अरे तुम क्यों चिंता करती हो मम्मी मैं लेकर आता हूं ना,,, तुम छत पर चलो,,,
अच्छा ठीक है ,,,,(और इतना कहकर संध्या छत के ऊपर चली गई,,, सोनू तुरंत बाथरूम में पहुंच गया और धुले हुए कपड़ों की बाल्टी में कपड़ों को ढूंढने लगा वह धोए हुए कपड़ों में ब्रा और पेंटी ढूंढ रहा था,,, वह इन 3 दिनों में कुछ ऐसा उत्तेजना पूर्ण करना चाहता था कि जिसे देखकर उसकी मां खुद उसे से चुदवाने के लिए पहन कर दे और यही सोचकर वह बाल्टी में ब्रा और पेंटी ढूंढ रहा था ताकि वह अपनी मां के सामने उन कपड़ों को रस्सी पर डाल सके और यह देख सके कि उसके हाथों में अपनी खुद की ब्रा और पैंटी देख कर उसके चेहरे पर क्या प्रतिक्रिया आती है,,, जल्द ही उसे उस बाल्टी में अपनी मां की ब्रा और पेंटिं के साथ-साथ अपनी बहन की भी ब्रा और पेंटिं हाथ लग गई,,, सोनू जानबूझकर उसे बाल्टी में ओर नीचे रखकर बाल्टी लेकर छत पर पहुंच गया,,,।