- 38,353
- 54,345
- 304
रूप स्वयं अब दर्पण होता जाता है
दर्पण अपना पानी खोता जाता है
आहे जब गीतों मैं ढलती जाती है
मधुरिम स्वर -संयोजन होता जाता है
दर्पण अपना पानी खोता जाता है
आहे जब गीतों मैं ढलती जाती है
मधुरिम स्वर -संयोजन होता जाता है
Bahut hi umda,,,,,शब्दों की अनबोली पायल बजती है
गोपन हर संप्रेषण होता जाता है
अब जब बलि होगी विराट की बलि होगी
मेरा मन तो वामन होता जाता है
जिस दामन ने दाग छुपाये दुनिया के
तार - तार वह दामन होता जाता है
Behad umda,,,,रूप की लौ पर पर्वानों की भीड़ झुलसती रहती है
दीपशिखा उन दीवानो की धुन पर हँसती रहती है
प्यार की छलना के मरुवंन मैं मन के भोले हिरणों की
आस छली जाती आयी है प्यास तरसती रहती है
bhai iske sath inka meaning bhi batate chalo na, bahut kuchh samjh bhi nahi aa raha hai... Thoda explain kar do ki bhaw kya haiआवरण तन का हटा हर दृश्य दर्पण हो गया
भ्रांत दृष्टि-मरीचिकाए पारदर्शी हो गयी
प्यास कामातुर हुई तो स्वरिणी पतिता हुई
तृप्ति ने तप को वरा पियूषवर्षी हो गई
जब थका पुरुषार्थ ,जब असिधार का पानी घटा
संधि की संभावनाएं चीर-विमर्शी हो गई