update 175
रीना मेरी तरफ देख रही थी.
मैं : देखो रीना ..मैं समझ सकता हु की इस समय तुम क्या चाहती हो...और सच बताऊ...मैं भी तुम्हे पुरे मजे देना चाहता हु...पर अंशिका को शक न हो जाए...इसलिए कल तक का इन्तजार करो....तुम्हारी प्यास मैं बुझाकर रहूँगा....ओके..
मेरी बात सुनकर वो शर्मा सी गयी...चुदने के लिए पूरी तरह से तैयार थी वो भी...पर मेरी बात शायद समझ गयी थी वो...और पहली बार में ज्यादा जिद करके वो बुरी भी नहीं बनना चाहती थी शायद...
मैं वापिस ऊपर की तरफ भागा...अंशिका के पास.
*********
अब आगे
*********
मैंने दरवाजा खोला और अन्दर से बंद करके मैं अंशिका की तरफ मुड़ा, तो उसे देखकर मैं दंग सा रह गया, वो बेड के ऊपर , लाल साडी में सजी हुई, दुल्हन की भाँती बैठी थी, जैसे मैं उसका दूल्हा, सुहागरात वाले दिन, कमरे में आया हु.
वो अपने साथ साडी और ये सब सामान भी लायी थी, यानी वो ये सब करना चाहती थी, और जब मैं पहले भी कमरे में आया था तो उसने अपने ऊपर रजाई ले रखी थी, इसलिए शायद मैं उसके कपडे देख नहीं पाया था.
लाल साडी, बिंदी, लिपिस्टिक और हाथो में चुडा, जो ब्याहता लडकिय पहनती है, मैं तो उसके रंग रूप को देखकर मंत्र्मुघ्ध सा रह गया.
मैं धीरे-२ चलकर बेड के पास पहुंचा, वो उठी और मेरे पैरो को हाथ लगाने लगी, मैंने उसे बीच में ही पकड़ लिया..
मैं : अरे अंशिका...ये क्या..कर रही हो..
अंशिका : वही...जो एक शादीशुदा लड़की करती है, शादी के बाद..
मैं : देखो अंशिका...इन सबकी कोई जरुरत नहीं है...मैं वो सब तो कर ही रहा हु न तुम्हारे साथ ....
मेरा मतलब चुदाई से था...जो वो समझ गयी..और उसके चेहरे पर हल्का सा गुस्सा आ गया..
अंशिका : विशाल...तुम ये बात कभी नहीं समझ सकते, की मेरे दिल में इस समय क्या चल रहा है...मैं जानती हु और तुम भी की हमारी शादी कभी नहीं हो सकती, पर सच मानो, मैंने जब से तुमसे फिसिकल रिलेशन बनाया है, हर लड़की की तरह, मैंने भी तुम्हे अपनी जिन्दगी और दिल का शेह्जादा माना है..और यही कारण है की यहाँ आकर मैंने तुमसे हसबेंड और वाईफ की तरह रहने को कहा, और इन सब के बीच मैंने सोचा की क्यों न अपनी जिन्दगी की सुहागरात भी मैं यही मना लू, तुम्हारे साथ...मुझे मालुम है की अब तुम्हारे लिए इन सबका कोई मतलब नहीं है, पर मेरे लिए ये बहुत मायने रखता है...
ये सब कहते-२ उसकी आँखों में आंसू आ गए थे..
और सच कहू, आज पहली बार मेरे दिल में एक तीस सी उभरी थी, ये सोचकर की मेरी शादी अंशिका के साथ क्यों नहीं हो सकती...इतना प्यार करने वाली मुझे और कहाँ मिलेगी, हम दोनों एक दुसरे को कितना समझते हैं, एक दुसरे को हर तरह का शारीरिक सुख तो दिया ही है..पर क्या मैंने कभी अंशिका की तरह उसके आगे भी सोचा है...सेक्स के अलावा मैंने क्या कभी अंशिका को अपने प्यार, अपने महबूब की नजर से देखा है....नहीं...ऐसा कभी नहीं किया मैंने...मैं तो हमेशा से सेक्स के पीछे ही भागता रहा और अंशिका ने भी मुझे कभी मना नहीं किया...और आज जब उसके मन में इस तरह के विचार आ रहे है तो मुझे भी उसकी भावनाओ को समझना चाहिए...और उसका साथ देना चाहिए..
मैंने उसे गले से लगा लिया...भरी भरकम साडी में लिप्त उसका बदन मेरी बाहों में आते ही बेकाबू सा हो गया और वो फूट-फूट कर रोने लगी...
अंशिका : ओह्ह्ह....विशाल.....तुम नहीं समझ सकते ...मैं तुम्हारे बारे में क्या सोचती हु....उनहू.....उनहू....
मैंने उसका चेहरा अपने हाथो में पकड़ा और उसके आंसूओ के ऊपर मैंने जीभ फेरकर उन्हें पी लिया...
मैं : अपनी सुहागरात वाले दिन तुम रो रही हो...लगता है तुम्हे डर लग रहा है की मैं कहीं चुदाई करते वक़्त तुम्हे तकलीफ न पहुँचाऊ...है न..
मेरी बात सुनकर उसके रोते हुए चेहरे पर हंसी आ गयी.
मैं : मैं वादा करता हु अंशिका, मैं तुम्हारे साथ सिर्फ सेक्स नहीं...बल्कि प्यार से भी प्यारा, प्यार करूँगा...जैसा आजतक किसी ने भी नहीं किया होगा...
मैं कहता जा रहा था और उसकी गर्दन और गालो पर किस्स देता जा रहा था.
उसका शरीर कांपने सा लगा...ऐसा लग रहा था की जैसे ये सब उसके साथ पहली बार हो रहा है.
मेरा लंड भी अपने रूप में आने लगा था.
मैंने उसकी साडी का पल्लू नीचे गिरा दिया...और उसकी साडी को खींच कर निकालने लगा, वो साडी के निकलने के साथ-२ घुमती जा रही थी.
और अंत में मैंने उसकी भारी भरकम साडी को निकाल कर एक तरफ रख दिया.
रीना मेरी तरफ देख रही थी.
मैं : देखो रीना ..मैं समझ सकता हु की इस समय तुम क्या चाहती हो...और सच बताऊ...मैं भी तुम्हे पुरे मजे देना चाहता हु...पर अंशिका को शक न हो जाए...इसलिए कल तक का इन्तजार करो....तुम्हारी प्यास मैं बुझाकर रहूँगा....ओके..
मेरी बात सुनकर वो शर्मा सी गयी...चुदने के लिए पूरी तरह से तैयार थी वो भी...पर मेरी बात शायद समझ गयी थी वो...और पहली बार में ज्यादा जिद करके वो बुरी भी नहीं बनना चाहती थी शायद...
मैं वापिस ऊपर की तरफ भागा...अंशिका के पास.
*********
अब आगे
*********
मैंने दरवाजा खोला और अन्दर से बंद करके मैं अंशिका की तरफ मुड़ा, तो उसे देखकर मैं दंग सा रह गया, वो बेड के ऊपर , लाल साडी में सजी हुई, दुल्हन की भाँती बैठी थी, जैसे मैं उसका दूल्हा, सुहागरात वाले दिन, कमरे में आया हु.
वो अपने साथ साडी और ये सब सामान भी लायी थी, यानी वो ये सब करना चाहती थी, और जब मैं पहले भी कमरे में आया था तो उसने अपने ऊपर रजाई ले रखी थी, इसलिए शायद मैं उसके कपडे देख नहीं पाया था.
लाल साडी, बिंदी, लिपिस्टिक और हाथो में चुडा, जो ब्याहता लडकिय पहनती है, मैं तो उसके रंग रूप को देखकर मंत्र्मुघ्ध सा रह गया.
मैं धीरे-२ चलकर बेड के पास पहुंचा, वो उठी और मेरे पैरो को हाथ लगाने लगी, मैंने उसे बीच में ही पकड़ लिया..
मैं : अरे अंशिका...ये क्या..कर रही हो..
अंशिका : वही...जो एक शादीशुदा लड़की करती है, शादी के बाद..
मैं : देखो अंशिका...इन सबकी कोई जरुरत नहीं है...मैं वो सब तो कर ही रहा हु न तुम्हारे साथ ....
मेरा मतलब चुदाई से था...जो वो समझ गयी..और उसके चेहरे पर हल्का सा गुस्सा आ गया..
अंशिका : विशाल...तुम ये बात कभी नहीं समझ सकते, की मेरे दिल में इस समय क्या चल रहा है...मैं जानती हु और तुम भी की हमारी शादी कभी नहीं हो सकती, पर सच मानो, मैंने जब से तुमसे फिसिकल रिलेशन बनाया है, हर लड़की की तरह, मैंने भी तुम्हे अपनी जिन्दगी और दिल का शेह्जादा माना है..और यही कारण है की यहाँ आकर मैंने तुमसे हसबेंड और वाईफ की तरह रहने को कहा, और इन सब के बीच मैंने सोचा की क्यों न अपनी जिन्दगी की सुहागरात भी मैं यही मना लू, तुम्हारे साथ...मुझे मालुम है की अब तुम्हारे लिए इन सबका कोई मतलब नहीं है, पर मेरे लिए ये बहुत मायने रखता है...
ये सब कहते-२ उसकी आँखों में आंसू आ गए थे..
और सच कहू, आज पहली बार मेरे दिल में एक तीस सी उभरी थी, ये सोचकर की मेरी शादी अंशिका के साथ क्यों नहीं हो सकती...इतना प्यार करने वाली मुझे और कहाँ मिलेगी, हम दोनों एक दुसरे को कितना समझते हैं, एक दुसरे को हर तरह का शारीरिक सुख तो दिया ही है..पर क्या मैंने कभी अंशिका की तरह उसके आगे भी सोचा है...सेक्स के अलावा मैंने क्या कभी अंशिका को अपने प्यार, अपने महबूब की नजर से देखा है....नहीं...ऐसा कभी नहीं किया मैंने...मैं तो हमेशा से सेक्स के पीछे ही भागता रहा और अंशिका ने भी मुझे कभी मना नहीं किया...और आज जब उसके मन में इस तरह के विचार आ रहे है तो मुझे भी उसकी भावनाओ को समझना चाहिए...और उसका साथ देना चाहिए..
मैंने उसे गले से लगा लिया...भरी भरकम साडी में लिप्त उसका बदन मेरी बाहों में आते ही बेकाबू सा हो गया और वो फूट-फूट कर रोने लगी...
अंशिका : ओह्ह्ह....विशाल.....तुम नहीं समझ सकते ...मैं तुम्हारे बारे में क्या सोचती हु....उनहू.....उनहू....
मैंने उसका चेहरा अपने हाथो में पकड़ा और उसके आंसूओ के ऊपर मैंने जीभ फेरकर उन्हें पी लिया...
मैं : अपनी सुहागरात वाले दिन तुम रो रही हो...लगता है तुम्हे डर लग रहा है की मैं कहीं चुदाई करते वक़्त तुम्हे तकलीफ न पहुँचाऊ...है न..
मेरी बात सुनकर उसके रोते हुए चेहरे पर हंसी आ गयी.
मैं : मैं वादा करता हु अंशिका, मैं तुम्हारे साथ सिर्फ सेक्स नहीं...बल्कि प्यार से भी प्यारा, प्यार करूँगा...जैसा आजतक किसी ने भी नहीं किया होगा...
मैं कहता जा रहा था और उसकी गर्दन और गालो पर किस्स देता जा रहा था.
उसका शरीर कांपने सा लगा...ऐसा लग रहा था की जैसे ये सब उसके साथ पहली बार हो रहा है.
मेरा लंड भी अपने रूप में आने लगा था.
मैंने उसकी साडी का पल्लू नीचे गिरा दिया...और उसकी साडी को खींच कर निकालने लगा, वो साडी के निकलने के साथ-२ घुमती जा रही थी.
और अंत में मैंने उसकी भारी भरकम साडी को निकाल कर एक तरफ रख दिया.