• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Erotica लेडीज - गर्ल्स टॉक [ गर्ल्स व् लेडीज की आपसी बातचीत ]

कितने पुरुष पाठको ने अपनी पत्नी को या अपनी महिला मित्र को ब्रा या पेंटी ला कर दी है बिना उसको बताये

  • खुश हुई

    Votes: 4 40.0%
  • आश्चर्य चकित .... आपसे उम्मीद नहीं थी .. सही साइज़ ले आओगे

    Votes: 1 10.0%
  • मेरी साइज़ आपको याद रही

    Votes: 1 10.0%
  • शुक्रिया लाये तो ... पर साइज़ ठीक नहीं या कलर पसंद नहीं आया

    Votes: 0 0.0%
  • इतने नखरे है ..... कौन लाये ...

    Votes: 2 20.0%
  • एक तो लाओ फिर सरदर्दी वापस बदलवाने कि

    Votes: 2 20.0%

  • Total voters
    10
  • Poll closed .

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
40,645
103,260
304
तेज़ी से , अपने रूम मैं भागी। किया दरवाजा बंद , पीछे मुड़ी

सांस ऊपर की उप्पर और निचे की नीचे , माँ खड़ी थी सामने , हाथ मैं नयी बेडशीट लेकर खड़ी थी, शायद चेंज करनी आयी थी।

माँ - निहारिका। ....................
.........................................

प्रिय सहेलिओं ,


निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,

अब आगे ,

मेरी हालत दस सेकंड के लिए ख़राब हो गयी थी , माँ के सामने सिर्फ टॉवल मैं खड़ी थी जोबन से टॉवल थोड़ा सरक गया था भागते हुए
हलके से निप्पल तक दिखयी दे रहा था, मैंने जोबन को देखा फिर माँ को देखा माँ मेरे जोबन को देख रही थी पर कुछ बोल नहीं पा रही थी। फिर माँ बोली। ..

माँ - निहारिका, क्या है यह, तू टॉवल मैं क्यों घूम रही है , पुरे घर मैं. कपडे नहीं है क्या ?

मैं - माँ, वो ले जाना भूल गई आज.

माँ - पागल लड़की, देख तो जरा , जवान हो गयी है, शर्म हैं या नहीं , तेरे जोबन , उफ़ बाहर आ रहे है ठीक कर।


मैं - टॉवल को खोला , हल्का सा फिर कसा अपने जोबन पर, कुछ जायदा ही कस लिया था शायद , जोबन आपस मैं चिपक गए थे और क्लीवेज बन गया था।

माँ - हँसते हुए, उफ़, क्या हो रहा रहा है तुझे, क्या कर रही है.

मैं, उस समय किसी फ़िल्मी हीरोइन के जैसे , सिर्फ टॉवल मैं जोबन कसे, लूटने का इंतज़ार कर रही थी, निचे देख कर, हाँ , हूँ कर रही थी.

पैर के अंगूठे से कुरेदने लगी थी निचे देखते हुए , बालो मैं से पानी टपक रहा था, हलकी ठण्ड भी लग रही थी. सोच रही थी की, अब माँ के सामने कैसे चेंज करू, अंदर तो कुछ नहीं था.

तभी माँ बोली,

माँ - निहारिका , तेरा दिमाग तो ठीक है, ऐसे ही खड़ी रहेगी , "
गीली", ठण्ड लग जाएगी। चेंज कर, कपडे पहन।

"गीली" तो थी उस समय पर "नीचे" से , पर माँ को क्या कहती एकहाथ अपने आप "नीचे" जा लगा.

माँ - चादर, बेड पर फेंकती हुए बोली, मैं जा रही हूँ , जल्दी कपडे पहन सर्दी लग जाएगी, आज वैसे भी खूब पानी मैं खेल लिया तूने।

अब जाकर सांस आयी, मैं बोली

मैं - हाँ , माँ ठीक है.

फिर, माँ गयी रूम से बहार हंसती हुई, और बोल रही थी, अब तेरा कुछ करना ही पड़ेगा।
शादी का.

"शादी" उफ़, मेरे निप्पल ठण्ड से खड़े थे , "नीचे" से गीली थी और माँ ने एक बार और शादी की बात कर दी , अजीब बैचनी हो रही थी.

"बैचनी", का सबब
अब समझ आता है , मैं पीरियड्स की आखिरी दिनों मैं गर्म हो जाती थी, पर उस समय यह समझ नहीं आता था, दिमाग काम करना बंद कर देता था , "कुछ" चाहिए था "जिस्म " को पर पता नहीं था, और बोलती भी कैसे कर किसको पता तो हो "क्या" चाहिए।

आज, भी यही हाल है मेरा, पर , अब "मिल" जाता है "जो" चाहिए था मेरे जिस्म को.

आप लोग , यह सब पढ़ कर मुझे मूर्ख, या बुद्धू बोलेंगे हम्म, सही है, मैं थी, शायद हर लड़की होती है कुछ समय तक , मैं कुछ जयादा ही थी, औरत को आज भी अपनी इच्छा की बारे मैं ठीक से नहीं पता होता है, "सही" सवाल न होने से, गलत जबाब ही मिलते हैं.

खैर, फिर मैंने अपने टॉवल पकड़ा एक हाथ से और दरवाजा बंद किया , चिटकनी लगायी अरु ग़हरी सांस ली, फिर सोचा जल्दी से कपडे फेहेन लो, आज तो शामत होनी ही है.

अलमारी खोली,
टॉवल फेंका बिस्तर पर, मैं बिना किसी कपडे के कड़ी थी,
अलमारी खोले, मेरी अलमारी मैं एक तरफ कांच था, और वो ही साइड बंद थी,
अचानक मेरी नज़र मेरे जिस्म पर पड़ी, "जोबन" , कमर, "नीचे" वाली
कुछ जांघो पे दिखा , हाथ लगाया तो "चाशनी" थी, टपकी हुई.

एक स्माइल आ गई, खुद को देख कर, फिर स्टाइल मरते हुए, बालो को आगे , पीछे, करते कभी जोबन पर डालते हुए, हाथ कमर पर रख के पोज़ बनते हुए, फिर मैं पीछे मुड़ी उफ़, आज ध्यान से देखे थे मैंने मेरे, "पीछे" वाले "गोल- मटोल" एकदम राउंड गोल - गोल चिकने।

"शर्म" आ गयी , फिर ध्यान आया, पागल लड़की, कपडे तो पहन ले, माँ आती होंगी।

फिर मैंने , ब्रा - और पैंटी निकली, ब्रा - काले कलर की थी और पैंटी भी काली ही थी जिस पर कमर के इलास्टिक से नीचे एक नेट की लैसी लाइन थी फिर बाद मैं कपडा था. यह पैंटी मुझे बड़ी पसंद थी. फिर याद आया की पैड्स की जरूरत पड सकती है, हालाँकि फ्लो लगभग ख़तम सा ही था,
पर लड़कियां रिस्क नहीं लेती "इस" मामले मैं।

निकला पैड्स पैकेट मैं से , और पैंटी पहनते हुए लगा लिया , थोड़ा एडजस्ट किया कमर की इलास्टिक मैं उँगलियाँ घुमा के चेक किया सब ठीक.

ब्रा के स्ट्रैप्स हाथ मैं डाले, और पीछे से हुक लगाने की कोशिश करने लगी, चार - पांच बार कोशिश किया, उफ़, नहीं आज भी फ़ैल,
निहारिका तुझे कब आएगी पीछे से हुक लगाना।

हाँ अब मैं लगा लेती हूँ, पीछे से पर दस मैं से दो - तीन बार, नहीं तो ब्रा को उलटी घुमा के आगे से हुक लगा लिए फिर वापस पीछे घुमा कर स्ट्रैप्स चढ़ा लिए कन्धो पे और हो गया.

आज भी जब समय होता है तैयार होने का , तब कोशिश कर के लगा ही लेती हूँ, नहीं तो "पतिदेव" की मदद, पर उनकी मदद भारी पड़ती है, एक तो लिपस्टिक वापस लगाओ, लिप किस जो देनी पड़ती है, और जोबन दबवाओ जो अलग से. कर वो तो इसी फ़िराक मैं रहेते हैं की मैं कब उनको देखु और बोलू, "जी , ब्रा का हुक लगा दो न".

हमम, अब मैं ब्रा - पैंटी मैं थी, सोच रही थी आज क्या ड्रेस पहेनू सलवार - कुर्ती, जीन्स - टॉप, फिर एक स्कर्ट हाथ मैं आ गयी, सोचा आज यह ही ठीक है, बहार तो जाना नहीं है, चल जाएगी, लाल रंग की लॉन्ग स्कर्ट थी, घेर वाली, आज भी याद है, मार्किट मैं पहेली नज़र मैं पसंद आ गयी थी. फिर एक ब्लैक टॉप निकला, थोड़ा टाइट लगा पहने बाद, फिर सोचा अभी कुछ समय पहले तक तो ठीक आए रहा था, इसे क्या हुआ. ब्लैक टॉप मैं ब्लैक ब्रा नहीं दिखेगी, नहीं तो माँ आज इस पर भी भजन सुना देंगी। बड़ी हो गयी, कपडे पहनने के लखन नहीं हैं , नाक कटवा दो सारे ज़माने मैं माँ - पिताजी की. .....

फिर टॉप पेहन न लेने के बाद , अलमारी बंद कर, देखा, टॉप मैं से मेरे जोबान उफ़, क्या बताऊ। मैं खुद ही शर्मा गयी देख कर , फिर सोचा, माँ सही ही कह रही हैं शायद, "शादी" हो ही जानी चाहिए ..... एक करंट सा दौड़ा, "नीचे" से "उप्पर" "जोबन" तक.

उफ़,
कितने अरमान होते हैं लड़कियों के , घंटो आईने मैं मैं खुद दे बात कर लेती हैं, सपनो की दुनिया , सपनो का राजकुमार, गुड्डे - गुड़िया का खेल, और न जाने क्या - क्या , और मैं मूर्ख, बस अपने आप को देख के ही खुश हुए जा रही थी.

अचानक , घंटी बजी, दरवाजे की, कोई आया था , मैं जल्दी से रूम से बहार निकली , ट्वॉयल था हाथ मैं, डालना था बहार सूखने के लिए , हाथ मैं कंघा और टॉवल को गीले बालो मैं रगड़ते हुए मैं चली, दरवाजे की और, माँ भी आ ही गयी खोलने मेरे साथ ही.

माँ ने दरवाजा खोला, देखा।

........................
Awesome update.
Lovely Line :- "जी , ब्रा का हुक लगा दो न".
 

Niharika

Member
330
929
94
Awesome update.
Lovely Line :- "जी , ब्रा का हुक लगा दो न".

Iron Man जी

शुक्रिया आपका

यही हम औरते अक्सर बोल देती हैं ,,, हाँ कुछ - कुछ देना भी पड़ता है .... फीस मैं .... लिप - किस तो होनी ही है . पर जैसे मैंने फील किया बस उन्ही फीलिंग्स को शब्दों मैं उकेर दिया ....

आपको मेरी कहानी पसंद आयी .... बस इतना ही काफी है ..... मेरे अंदर बसी लेखिका को जिन्दा रखने के लिए ....

साथ व् प्यार बनाये रखे .......
 
  • Like
Reactions: kamdev99008

Niharika

Member
330
929
94
उफ़, कितने अरमान होते हैं लड़कियों के , घंटो आईने मैं मैं खुद दे बात कर लेती हैं, सपनो की दुनिया , सपनो का राजकुमार, गुड्डे - गुड़िया का खेल, और न जाने क्या - क्या , और मैं मूर्ख, बस अपने आप को देख के ही खुश हुए जा रही थी.

अचानक ,
घंटी बजी, दरवाजे की, कोई आया था , मैं जल्दी से रूम से बहार निकली , ट्वॉयल था हाथ मैं, डालना था बहार सूखने के लिए , हाथ मैं कंघा और टॉवल को गीले बालो मैं रगड़ते हुए मैं चली, दरवाजे की और, माँ भी आ ही गयी खोलने मेरे साथ ही.

माँ ने दरवाजा खोला, देखा।
........................

प्रिय सहेलिओं ,

निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,

अब आगे ,


मैं , एक तो डरी हुई थी की आज क्या होगा मेरे साथ , माँ के भजन सुनना पड़ेंगे दिन भर, कॉलेज नहीं गयी, और वो "मूड्स" वाली बात तो गयी थी, माँ पड़ोस वाली भाभी से बात कर रही थी और मैं अपने आप से , फिर मुझे दोनों की बाते सुनाई दी.

सुमन भाभी कही जाने की बात बोल रही थी माँ को, होश मैं आयी जब सुमन भाभी ने मेरा नाम लिया "
निहारिका" को भी साथ ले आना इसकी भी"उम्र" हो गयी है अब तो, और हंसने लगी दोनों, माँ बोली अच्छा ले आउंगी कितने बजे आना है.

भाभी - आज शाम छे बजे से होगा शुरू फंक्शन , खाना खाना भी वही है , आना जरूर।

माँ - अच्छा सुमन , ठीक है, आ जाउंगी निहारिका के साथ.

मैं - कुछ सुना नहीं, जबकि मैं वही थी, साला आज का दिन ही ,ख़राब है. मैंने बस हंस के स्माइल पास कर दी भाभी को और नीचे देखने लगी. और करती भी क्या ?

भाभी - "निहारिका" आना जरूर , अभी बहुत कुछ सीखना है, फिर हंसने लगी।

मेरी हालत, उफ़,क्या बताऊ सहेलियों , मेरी समझ मैं कुछ नहीं आ रहा था , मैं बस स्माइल पास कर रही थी और माँ को देख रही थी, और माँ और सुमन भाभी दोनों मुझे।

फिर भाभी गयी, माँ ने दरवाजा बंद किया और बोला "निहारिका" आज शाम को जाना है फंक्शन मैं।

मैं - ,
हाँ माँ पर कौन सा फंक्शन कोई भजन - कीर्तन हैं तो मैं नहीं जाने वाली , एकदम पक जाती हु आपके साथ जाकर , रहो दो - तीन घंटे और थोड़ा सा प्रसाद लेकर आ जाओ.

- माँ -
पागल लड़की, तूने सुना नहीं , क्या बोला सुमन ने , भजन नहीं है " गोद - भराई " की रसम है। क्या हो गया है तुझे। सही कह रही थी सुमन , बहुत सिखाना पड़ेगा नहीं तो तू मेरी नाक ही कटा देगी।

मैं, पूरी कन्फ्यूज्ड , परेशां , क्या बोलू, "यह "गोद - भराई" क्या होती हैं, अब आज सुबह से अभी तक जो हुआ उसके बाद मेरी हिम्मत नहीं हुई माँ से कुछ पूछ लू.

मैं - ठीक है माँ , बस यही बोल पायी।

- माँ - चल ठीक है, एक काम कर तेरा एक अच्छा सा सूट निकाल ले शाम के लिए , मे
री साड़ी - ब्लाउज भी निकल देना। मैचिंग पेटीकोट के साथ।

क्या होगा इस लड़की का , भगवन अब तू ही कुछ कर, मैं तो हार गयी इस लड़की से, कहाँ तक सम्भालूंगी इस बावली को.
आगे जाकर न जाने क्या करेगी, उफ़.....

कुछ - कुछ बोलती हुई, माँ गयी खाने की तैयारी करने , और मैं गयी अलमारी मैं से कपडे निकलने।
माँ के रूम मैं जाते ही, एक उत्तेजना हुई, "वो मूड्स" का पैकेट पड़ा होगा, अब देख लेती हु.

जल्दी से , अल्मारी खोली, "मूड्स" उफ़, नहीं दिख रहा था, फिर इधर - उधर देखा नतीजा सिफर , अब गया चांस अब नहीं मिलेगा,
जरूर माँ ने रख दिया होगा छुपा कर , जाने दो. कॉलेज मैं पूछती हु , साली बड़ी - बड़ी बाते करती हैं , देखती हूँ कुछ बता पाती हैं या यु ही फेंकती है.

फिर , माँ के लिए एक साड़ी निकली , हरा - नीला कलर था , पेटीकोट निकलने की सोचा नीला लू या हरा, नीला कलर जायदा था साड़ी मैं, सोचा नीला ही चल जायेगा , पर माँ से पूछ लेती हूँ, कौन डांट खाये .

गयी, माँ के पास और साड़ी दिखते हुए बोली, ठीक है, यह पेटीकोट नीला वाला, इस .साड़ी मैं , चल जायेगा।

माँ - उफ़, लड़की, क्या हुआ है तुझे आज, अरे,पागल , " गोद - भराई " की रसम है।
कुछ लाल - पीला निकल यह क्या कलर लायी है, कुछ अंदाज़ा नहीं है तुझे फंक्शन का।

अब, मैं फिर फंस गयी, हाँ बोलू तो मरू न बोलू तो भी, फिर मैंने बोला , बस ऐसे ही ले आयी माँ, सबसे पहले यह ही दिखाई दी.

- माँ - अच्छा , रहने दे , मैं निकल लुंगी। अपने सूट निकल ले.

-मैं अच्छा माँ, मैं बस मुड़ी ही थी, की माँ की आवाज आयी,

- माँ - "निहारिका", सुन वो पिंक वाला सूट हैं न तेरा , चूड़ीदार पजामी के साथं जिसके दुपट्टे पर कुछ काम है, वो ही निकल लेना।

अच्छा
हुआ माँ ने बता दिया , नहीं तो मैं, येलो एंड ब्लैक पटियाला निकलने वाली थी. बच गयी , ही ,ही [ मन मैं सोचा]

मैं - ठीक है , माँ.

देखते हुए बोली,
तू तैयार हैं न, फिर मेरे "जोबन" को देखा, टॉप - टी थोड़ा टाइट ही था , मेरे जोबन कुछ जयादा ही बड़े दिख रहे थे.

फिर माँ बोली, ठीक ही है,
दुपट्टा ले लेना उप्पर से, अच्छे से , अभी मार्किट जाना है. खाना बना देती हूँ, बस रोटी ही बाकि हैं, फिर चलते हैं.

मैं - ,हाँ माँ ठीक है.

फिर मैं गयी अपने रूम मैं, एक वाइट दुपट्टा लिया जिसमे चारो और गुलाबी लैस लगी थी. ले कर रखा बेड पर और लगी बाल बनाने , सुख चुके थे।

बाल बने, हुए यह सोच रही थी की " गोद - भराई " की रसम क्या है। और माँ , मार्किट क्या लेने जा रही है. दिन मैं, अक्सर माँ, मार्किट शाम को ही जाती थी पिताजी के साथ या संडे सुबहे। जल्दी से बाल सुलझाए और रबर बैंड लगा लिया और दुपट्टा लेकर आ गयी बहार, माँ खाना लिए तैयार थी।

मैं - आ गयी माँ, लाओ।

मैं और माँ ,
खाने बैठ गए, भरवां टिंडे बनाये थे माँ ने, कहते के हाथ मैं जादू होता हैं, सही कहते हैं. गज्जब का स्वाद था.

मैं,बना लेती हूँ, पर वो स्वाद हाथो मैं था , मुझे पागल के हाथो मैं नहीं, पर "
ये " ऐसे कहते हैं स्वाद लेकर, जैसे छप्पन भोग हो.


पर पेट थोड़ा न भरता है, जब तक "चाशनी" का भोग न लगे , एक तो खाना बनाओ, खिलाओ फिर "ये" खुश और मेरी क़यामत।

"अच्छा" लगता हैं जब "ये", तृप्त हो कर , मुझे धीरे -धीरे , गरम कर के खाते हैं, "चाशनी" का मज़ा लेते हैं, मैं बस आँख बंद कर कर लेट जाती हूँ, और एक हाथ "इनके " सर पर , और दूसरा अपने "जोबन" पर , फिर पता नहीं कुछ मुझे।

[ उफ़,थोड़ा गर्म, और गीली हो गयी हूँ, बस कुछ लाइन और ही लिख पाउंगी। ..... आपकी कसम ]

हाँ, तो हम, खाना खा रहे थे , फिर माँ बोली, अभी मार्किट चलना है, गिफ्ट लाने, जल्दी खा , वापस आना हैं, तैयार होना हैं. अच्छा तू बता क्या गिफ्ट मैं। .

मैं - क्या बोलू, ले लेना कुछ भी, वाल पेंटिंग , फ्लावर, और कोई गिफ्ट आइटम, दुकान पे मिल जाएँगी बहुत से।

माँ- मुझे देखती हैं,
अपना खाना रोक के, उफ़, तुझे तो शादी वाले घर मैं ही छोड़ देना चाहिए, क्या करु तेरा, अब जल्दी खा।

मैं यह सोचती रह गयी , क्या गलत बोला मैंने। ..............
 

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
40,645
103,260
304
उफ़, कितने अरमान होते हैं लड़कियों के , घंटो आईने मैं मैं खुद दे बात कर लेती हैं, सपनो की दुनिया , सपनो का राजकुमार, गुड्डे - गुड़िया का खेल, और न जाने क्या - क्या , और मैं मूर्ख, बस अपने आप को देख के ही खुश हुए जा रही थी.

अचानक , घंटी बजी, दरवाजे की, कोई आया था , मैं जल्दी से रूम से बहार निकली , ट्वॉयल था हाथ मैं, डालना था बहार सूखने के लिए , हाथ मैं कंघा और टॉवल को गीले बालो मैं रगड़ते हुए मैं चली, दरवाजे की और, माँ भी आ ही गयी खोलने मेरे साथ ही.

माँ ने दरवाजा खोला, देखा।
........................

प्रिय सहेलिओं ,


निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,

अब आगे ,


मैं , एक तो डरी हुई थी की आज क्या होगा मेरे साथ , माँ के भजन सुनना पड़ेंगे दिन भर, कॉलेज नहीं गयी, और वो "मूड्स" वाली बात तो गयी थी, माँ पड़ोस वाली भाभी से बात कर रही थी और मैं अपने आप से , फिर मुझे दोनों की बाते सुनाई दी.

सुमन भाभी कही जाने की बात बोल रही थी माँ को, होश मैं आयी जब सुमन भाभी ने मेरा नाम लिया "
निहारिका" को भी साथ ले आना इसकी भी"उम्र" हो गयी है अब तो, और हंसने लगी दोनों, माँ बोली अच्छा ले आउंगी कितने बजे आना है.

भाभी - आज शाम छे बजे से होगा शुरू फंक्शन , खाना खाना भी वही है , आना जरूर।

माँ - अच्छा सुमन , ठीक है, आ जाउंगी निहारिका के साथ.

मैं - कुछ सुना नहीं, जबकि मैं वही थी, साला आज का दिन ही ,ख़राब है. मैंने बस हंस के स्माइल पास कर दी भाभी को और नीचे देखने लगी. और करती भी क्या ?


भाभी - "निहारिका" आना जरूर , अभी बहुत कुछ सीखना है, फिर हंसने लगी।

मेरी हालत, उफ़,क्या बताऊ सहेलियों , मेरी समझ मैं कुछ नहीं आ रहा था , मैं बस स्माइल पास कर रही थी और माँ को देख रही थी, और माँ और सुमन भाभी दोनों मुझे।

फिर भाभी गयी, माँ ने दरवाजा बंद किया और बोला "निहारिका" आज शाम को जाना है फंक्शन मैं।

मैं - ,
हाँ माँ पर कौन सा फंक्शन कोई भजन - कीर्तन हैं तो मैं नहीं जाने वाली , एकदम पक जाती हु आपके साथ जाकर , रहो दो - तीन घंटे और थोड़ा सा प्रसाद लेकर आ जाओ.

- माँ -
पागल लड़की, तूने सुना नहीं , क्या बोला सुमन ने , भजन नहीं है " गोद - भराई " की रसम है। क्या हो गया है तुझे। सही कह रही थी सुमन , बहुत सिखाना पड़ेगा नहीं तो तू मेरी नाक ही कटा देगी।

मैं, पूरी कन्फ्यूज्ड , परेशां , क्या बोलू, "यह "गोद - भराई" क्या होती हैं, अब आज सुबह से अभी तक जो हुआ उसके बाद मेरी हिम्मत नहीं हुई माँ से कुछ पूछ लू.

मैं - ठीक है माँ , बस यही बोल पायी।

- माँ - चल ठीक है, एक काम कर तेरा एक अच्छा सा सूट निकाल ले शाम के लिए , मे
री साड़ी - ब्लाउज भी निकल देना। मैचिंग पेटीकोट के साथ।

क्या होगा इस लड़की का , भगवन अब तू ही कुछ कर, मैं तो हार गयी इस लड़की से, कहाँ तक सम्भालूंगी इस बावली को.आगे जाकर न जाने क्या करेगी, उफ़.....

कुछ - कुछ बोलती हुई, माँ गयी खाने की तैयारी करने , और मैं गयी अलमारी मैं से कपडे निकलने। माँ के रूम मैं जाते ही, एक उत्तेजना हुई, "वो मूड्स" का पैकेट पड़ा होगा, अब देख लेती हु.

जल्दी से , अल्मारी खोली, "मूड्स" उफ़, नहीं दिख रहा था, फिर इधर - उधर देखा नतीजा सिफर , अब गया चांस अब नहीं मिलेगा, जरूर माँ ने रख दिया होगा छुपा कर , जाने दो. कॉलेज मैं पूछती हु , साली बड़ी - बड़ी बाते करती हैं , देखती हूँ कुछ बता पाती हैं या यु ही फेंकती है.

फिर , माँ के लिए एक साड़ी निकली , हरा - नीला कलर था , पेटीकोट निकलने की सोचा नीला लू या हरा, नीला कलर जायदा था साड़ी मैं, सोचा नीला ही चल जायेगा , पर माँ से पूछ लेती हूँ, कौन डांट खाये .

गयी, माँ के पास और साड़ी दिखते हुए बोली, ठीक है, यह पेटीकोट नीला वाला, इस .साड़ी मैं , चल जायेगा।

माँ - उफ़, लड़की, क्या हुआ है तुझे आज, अरे,पागल , " गोद - भराई " की रसम है।
कुछ लाल - पीला निकल यह क्या कलर लायी है, कुछ अंदाज़ा नहीं है तुझे फंक्शन का।

अब, मैं फिर फंस गयी, हाँ बोलू तो मरू न बोलू तो भी, फिर मैंने बोला , बस ऐसे ही ले आयी माँ, सबसे पहले यह ही दिखाई दी.

- माँ - अच्छा , रहने दे , मैं निकल लुंगी। अपने सूट निकल ले.

-मैं अच्छा माँ, मैं बस मुड़ी ही थी, की माँ की आवाज आयी,

- माँ - "निहारिका", सुन वो पिंक वाला सूट हैं न तेरा , चूड़ीदार पजामी के साथं जिसके दुपट्टे पर कुछ काम है, वो ही निकल लेना।

अच्छा
हुआ माँ ने बता दिया , नहीं तो मैं, येलो एंड ब्लैक पटियाला निकलने वाली थी. बच गयी , ही ,ही [ मन मैं सोचा]

मैं - ठीक है , माँ.

देखते हुए बोली,
तू तैयार हैं न, फिर मेरे "जोबन" को देखा, टॉप - टी थोड़ा टाइट ही था , मेरे जोबन कुछ जयादा ही बड़े दिख रहे थे.

फिर माँ बोली, ठीक ही है,
दुपट्टा ले लेना उप्पर से, अच्छे से , अभी मार्किट जाना है. खाना बना देती हूँ, बस रोटी ही बाकि हैं, फिर चलते हैं.

मैं - ,हाँ माँ ठीक है.

फिर मैं गयी अपने रूम मैं, एक वाइट दुपट्टा लिया जिसमे चारो और गुलाबी लैस लगी थी. ले कर रखा बेड पर और लगी बाल बनाने , सुख चुके थे।

बाल बने, हुए यह सोच रही थी की " गोद - भराई " की रसम क्या है। और माँ , मार्किट क्या लेने जा रही है. दिन मैं, अक्सर माँ, मार्किट शाम को ही जाती थी पिताजी के साथ या संडे सुबहे। जल्दी से बाल सुलझाए और रबर बैंड लगा लिया और दुपट्टा लेकर आ गयी बहार, माँ खाना लिए तैयार थी।

मैं - आ गयी माँ, लाओ।

मैं और माँ ,
खाने बैठ गए, भरवां टिंडे बनाये थे माँ ने, कहते के हाथ मैं जादू होता हैं, सही कहते हैं. गज्जब का स्वाद था.

मैं,बना लेती हूँ, पर वो स्वाद हाथो मैं था , मुझे पागल के हाथो मैं नहीं, पर "ये " ऐसे कहते हैं स्वाद लेकर, जैसे छप्पन भोग हो.

पर पेट थोड़ा न भरता है, जब तक "चाशनी" का भोग न लगे , एक तो खाना बनाओ, खिलाओ फिर "ये" खुश और मेरी क़यामत।

"अच्छा" लगता हैं जब "ये", तृप्त हो कर , मुझे धीरे -धीरे , गरम कर के खाते हैं, "चाशनी" का मज़ा लेते हैं, मैं बस आँख बंद कर कर लेट जाती हूँ, और एक हाथ "इनके " सर पर , और दूसरा अपने "जोबन" पर , फिर पता नहीं कुछ मुझे।

[ उफ़,थोड़ा गर्म, और गीली हो गयी हूँ, बस कुछ लाइन और ही लिख पाउंगी। ..... आपकी कसम ]

हाँ, तो हम, खाना खा रहे थे , फिर माँ बोली, अभी मार्किट चलना है, गिफ्ट लाने, जल्दी खा , वापस आना हैं, तैयार होना हैं. अच्छा तू बता क्या गिफ्ट मैं। .

मैं - क्या बोलू, ले लेना कुछ भी, वाल पेंटिंग , फ्लावर, और कोई गिफ्ट आइटम, दुकान पे मिल जाएँगी बहुत से।

माँ- मुझे देखती हैं,
अपना खाना रोक के, उफ़, तुझे तो शादी वाले घर मैं ही छोड़ देना चाहिए, क्या करु तेरा, अब जल्दी खा।


मैं यह सोचती रह गयी , क्या गलत बोला मैंने। ..............
Awesome update.
Dekhte hai god bharai me kya dhamal hota hai ?
 

Imyours

Well-Known Member
5,871
6,828
144
फिर एक कुर्ती के नीचे, अपनी ब्रा और पैंटी डाली, और एक पेटिकोट के नीचे माँ की पैंटी डाल दी सूखेने , माँ को भी ऐसे ही देखा था , ब्रा - पैंटी ढक कर सूखाते हुए, सो मैंने भी वही किया।

अलग से सुखाते हुए शर्म आ रही थी, पड़ोस वाली भाभी देख लेंगी तो क्या सोचेंगी।
फिर जल्दी से, अंदर आ गयी,
सोचा अब नहा लेती हु,
..............

प्रिय सहेलिओं ,


निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,

अब आगे ,

हम्म , आज लिखते हुए यह सोच रही थी, आज भी मेरी वो ही आदत है , पेटीकोट के निचे ब्रा और पैंटी सूखाने की, जवानी से आज तक यही होता आया है , हिम्मत ही नहीं हुई की ब्रा - पैंटी अलग से सूखा दू, अगर सिर्फ ब्रा - पैंटी धोकर रखती हु तो बाथरूम मैं ही, बाहर डालने ही हिम्मत नहीं होती।


सभी, महिला पाठको से गुंजारिश, क्या आप भी मेरी जैसे , - कपड़ो [जैसे - पेटीकोट या साड़ी ] के नीचे सुखाती है हाँ या न , प्लीज शेयर करे यदि नहीं, तो मेरा सलाम है आपको, पर यह जरूर बताये की इतनी हिम्मत कहाँ से ला पायी आप.

फिर, अपनी दुनिया से बीती यादो मैं। ..... एक सफर सुनहरी यादो का।

बाथरूम मैं आकर, दरवाजा बंद किया , जल्दी से फिर उतारी कुर्ती जो काफी भीग गयी थी फिर सलवार भी उसका भी वो ही हाल था, गीली। दोनों को "निरमा" डाल दी, ब्रा खोली फिर आईने मैं अपने जोबन को देखा एकदम उठे हुए , गोल हल्का भूरा कलर था निप्पल का , फिर माँ की बात याद आयी "शादी" की , "सच्ची" निप्पल कड़े व् खड़े हो गए थे और वो "नीचे वाली" एक करंट सा अहसास हुआ था , पता नहीं क्या हुआ था. फिर मैंने पैंटी उतार दी, देखा "चाशनी " से भरी हुई थी, उफ़, इतना हाय यह क्या।

फिर , कुछ होश आया, पागल अभी नहाना भी है, कुर्ती भी धोनी है. जल्दी कर नहीं तो माँ की आवाज आने वाली है.

फिर , जल्दी से "रिन" लगाया कपड़ो [ कुर्ती,सलवार, -ब्रा पैंटी] मैं, निकले साफ़ पानी से और टांग दिए खूंटी पर फिर बालो मैं शैम्पू लगया, पाउच था "सिनसिल्क" का खोला उसे, फिर झाग से खेलना ही , ही। ....

बाल्टी से पानी लिया , आँख बंद और लगी बाल धोने , फिर बालो का हल्का जुड़ा बनाया और साबुन लिया, "संतूर" था, हाँ , माँ को वो ही पसंद था, अक्सर वो यही लाया करती थी, मुझे लक्स, या लिरिल पसंद था पर कभी - कभी ही ला पाती थी.
लगाने लगी "संतूर" जोबन पर , उफ़,क्या अहसास था , साबुन जब जोबन पर उतरता व् चढ़ता था , क्या बताऊ कैसा लगता था , करीब पांच मिनिट्स थक यही करती रही. फिर पीठ और पैर पर लगाने लगी, जहंघो के बीच "वहां" ,सब साफ़ था , अक्सर पीरियड्स से पहले "वीट " से सब साफ़.

साबुन हाथ मैं मला और लगाने लगी "वहां" नीचे आज तो कुछ अजीब ही था , करंट चल रहा हो जैसे , हर बार हात लगते हुए जोबन तक.

उफ़, क्या परेशानी है ये , फिर जल्दी से पानी डाला बदन पर , कुछ करंट कम हुआ, फिर नहा कर जैसे उठी देखा,

"
टॉवल" उफ़,वो तो लायी ही नहीं। अब , मुश्किल , सुनो माँ के भजन.

दो मिनिट्स तक, खड़ी रही "निप्पल" भी खड़े थे ठंडी से, हलके कड़क भी थे , फिर हिम्मत कर के माँ को आवाज लगायी।

मैं - माँ, माँ , आना जरा इधर।

कुछ देर मैं माँ आयी, बाथरूम के दरवाजे के बाहर , बोली।

माँ - क्या हुआ, निहारिका , सब ठीक.

मैं है, माँ , सब ठीक, पर मैं "टॉवल" लाना भूल गयी , ला दो न।

माँ - पा
गल लड़की , ऐसे कोई जाता है बाथरूम मैं नहाने को, बिना टॉवल के. सुधर ले अपनी आदतों को , जवान हो गई , शादी के लायक और ये हरकत , उफ़ भगवान जाने क्या होगा इस लड़की का.

और भी " सुवचन" "भजन" जो अब शायद दिन भर ही सुनने थे , कुछ - कुछ बोलती चली गयी, कुछ सुनाई दिया कुछ नहीं। फिर टॉवल देकर बोली, जल्दी आ.

मैं - हाँ, माँ.

फिर गड़बड़, अब तो पीटना ही है माँ के हाथ से, निहारिका गयी आज तो तू.

कपडे नहीं लायी, कैसे भूल गई, ओह, कपडे सुखाने के बाद शर्म से सीधा बाथरूम मैं भाग आयी, कोई ब्रा - पैंटी न सूखाते देख ले.

फिर सुखाया बदन को, जोबन पर लपेटा , आईने मैं देखा "
सेक्सी" लग रही थी, निप्पल फिर कड़े हो गए , धत्त, अब बाहर यह सोच कर धीरे से दरवाजा खोला बाथरूम का , देखा माँ नहीं दिखी , बच गए।

तेज़ी से , अपने रूम मैं भागी। किया दरवाजा बंद , पीछे मुड़ी

सांस ऊपर की उप्पर और निचे की नीचे , माँ खड़ी थी सामने , हाथ मैं नयी बेडशीट लेकर खड़ी थी, शायद चेंज करनी आयी थी।


माँ - निहारिका। ....................
Shaandaar . :love2:
 

Niharika

Member
330
929
94
Very nice updated

Kapil Bajaj जी

शुक्रिया आपका

आपको मेरी कहानी पसंद आयी .... बस इतना ही काफी है ..... मेरे अंदर बसी लेखिका को जिन्दा रखने के लिए ....

साथ व् प्यार बनाये रखे .......

 

Niharika

Member
330
929
94
wonderfully writen

justraj जी

नमस्कार , आपने शायद पहली बार दस्तक दी है यहाँ ....

आपको मेरी लिखी हुई कहानी पसंद आई शुक्रिया ....

अपना साथ व् प्यार बनाये रखे ....
 
  • Like
Reactions: kamdev99008

Niharika

Member
330
929
94
माँ- मुझे देखती हैं, अपना खाना रोक के, उफ़, तुझे तो शादी वाले घर मैं ही छोड़ देना चाहिए, क्या करु तेरा, अब जल्दी खा।

मैं यह सोचती रह गयी , क्या गलत बोला मैंने। ..............
........................

प्रिय सहेलिओं ,

निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,

अब आगे ,

अब तक आप लोग मेरी नादानी को समझ ही चुके होंगे , कितनी नासमझ थी मैं, ब
स अपने आप मैं खोयी रहती थी, "नीचे" वाली से जायदा लगाव नहीं था उस समय पर "जोबन" को देखना , निहारना , थोड़ी टाइट ब्रा पहन कर इतराना और कभी मेरी सहेली मुझे छेड देती जोबन को लेकर "देख उसे , बाइक पर जो बैठा है, तेरे जोबन घूर रहा है, जो खिला दे , पुण्य का काम है", मैं कहती "तुझे जायदा चिंता हो रही है, तो तू ही जा न , तेरे कौन से कम हैं, और बढ़ जायेंगे "

कह तो देती, बुरा सा मुँह बना के , प
र अंदर से , इच्छा होती की जाओ, पुण्य कमाओ, खिलालो न सही , हाथ ही लगवा लो. अब तक बाथरूम मैं , बस अपने हाथ से ही, खेला करती थी, निप्पल एकदम टाइट और नीचे से गीली , समझ नहीं आता था, पर अच्छा लगता था, खासकर पीरियड्स के आखिर दिनों मैं।

खैर , अब आगे, चलते हैं उन सुनहरी यादो मैं। ..

खाते हुए एकदम चुप, मैं अंदर ही अंदर यह सोचे जा रही थी, गिफ्ट ही तो हैं, ले लो कोई भी, इसमें मुझ शादी वाले घर मैं छोड़ देने की क्या बात हुई , पता नहीं माँ कभी - कभी क्या बोलती रहती है.

माँ - लड़की, जल्दी कर , खा लिया , और रोटी लौ।

मैं - माँ , बस हो गया.

माँ - ले , यह सब ले जाकर किचन मैं रख, और चल मार्किट।

मैं - अच्छा माँ

और मैं, उठ गयी और चल दी किचन की और, थैली , कटोरी व् गिलास रखने , तभी माँ की आवाज।।

माँ - निहारिका, ताला - चाभी भी लेती आना , फ्रिज पर पड़ा है.

मैं - अच्छा माँ, ठीक है.

फिर, ताला लिया, और आ गयी माँ के पास , चलो माँ.

माँ -
लड़की, तेरा दुपट्टा कहाँ है, समझ ही नहीं है, ऐसे जायेगी मार्किट मैं, उफ़. जा , जल्दी ला दुपट्टा और बाहर निकल।

मैं - माँ , मैं वो किचन मैं गयी थी न, इसीलिए भूल गयी. अभी लायी दुपट्टा। बस एक मिनिट।

फिर मैंने दुपट्टा लिया, और
"एकदम ठीक" से जोबन ढके , सर पे भी ले लिया था धुप की वजह से। मुझे देख कर माँ खुश

माँ - हम्म, अब ठीक है, अच्छे घर की लड़कियां "
खुला" नहीं घूमती , समझ कर , बड़ी हो गयी है, कब सीखेगी [ मेरे जोबन को देख कर बोली]।

मैं - हम्म, [आगे कुछ बोलने को रह ही कहँ गया था]

हम दोनों ने एक साइकिल रिक्शा किया जिसने हमे मार्किट तक छोड़ दिया, रिक्शे वाले भी मुझे घूर रहा था, इनका तो रोज़ का काम है, बात कुछ करना और देखना "कही" और. मेरे हलके जोबन दुपट्टे मैं से दिख से रहे थे और
स्कर्ट मैं से गोल - मटोल का साफ़ अहसास।

अब चढ़ती जवानी को छिपा पाना किसी के बस मैं नहीं , झलक दिख ही जाती है , मेरे साथ भी हुआ, रिक्शे से उतारते हुए , सर से दुपट्टा उतर गया और पल्ला "
जोबन से ढलक" गया माँ उसे पैसे देने मैं व्यस्त थी, पांच या दस सेकंड ही हुए होंगे, उसकी नज़र, मेरे जोबन पर, माँ की नज़र मेरे जोबन पर , मेरी नज़र माँ पर, फिर मैंने रिक्शे वाले को देखा , उसकी आँखों मैं "चमक".

उफ़, क्या बताऊ, माँ ने मेरे हाथ को लगभग खींचते हुए कहा, जल्दी चल, सामान लेना है। मैंने दुपट्टा फिर सर पर रखा और "सामने" से "ठीक" किया , अब चैन पड़ा माँ को.

न जाने, क्यों एक हलकी हंसी आ गयी थी, मेरी प्यारी पाठिकाओं, अगर आपको इस मुस्कान का पता है तो बताओ जल्दी ......

आखिर हम आ गए मार्किट, फिर मेरी बेवकूफी हाजिर , मैंने तपाक से कहा माँ.

मैं - माँ , गिफ्ट गैलरी "अर****" उधर है, उन दिनों काफी फेमस थी,
हर लड़की के लिए कार्ड वही से आता था , मैं भी गयी थी सहेली के साथ, "वैलेंटाइन" कार्ड लेने , उफ़ कितना महंगे थे , उस वीक, बाद मैं वो ही नार्मल रेट.

माँ - तू चुप
रह, अरे " गोद - भराई " की रसम है, पागल लड़की। वहां क्या मिलेगा। तू चल.

फिर हम लोग एक सुनार की दुकान पर आ गए, हमारे पहुंचते ही, आइये भाभी जी, नमस्कार , सब कुशल - मंगल

माँ - जी , भाईसाहब। सब कुशल - मंगल। कुछ दिखािये। ..

इससे पहले माँ कुछ आगे बोलती , दुकानवाला बोल पड़ा.

दुकानवाला - जी, भाभी
जी, बेटी के लिए , सगाई , रोका के लिए कुछ।

मेरी , हालत ख़राब, उफ़. माँ ने कही पिताजी से कोई बात तो नहीं कर ली मेरी शादी की।

यह सुनार, भी ऐसा ही कुछ कह रहा है, न जाने क्या हुआ था मुझे, आँखों मैं चमक , साँसे तेज़, पसीना, हलकी स्माइल। सब एक साथ. सामने लगे कांच मैं मैंने अपने आप को देखा, दुपट्टा से पसीना पोंछा , जोबन पर ठीक किया फिर लगाए कान उन दोनों की बातो पर।

माँ - अरे भाईसाहब , अभी कहाँ , खोज बीन जारी है, अच्छा लड़का कहाँ आसानी से मिल जाता है,
देखो कब भाग जगता है,

मैं , कुछ रिलेक्स फील करि, चलो आज तो बच गए, "शादी" क्या होगा मेरा पता नहीं।

माँ - जी, कुछ कंगन दिखाइए छोटे बच्चे के लिए , " गोद - भराई " है. शाम को जाना है।

दुकानवाला - जी, भाभी जी, अभी लीजिये, पर कंगन - गेहने आपको हमारी ही दुकान से लेने हैं, बिटिया की शादी के लिए, ध्यान रखना , ही , ही , ही। ...

मैं - [मन मैं। ..
साले, अभी करा दे शादी, पीछे ही पड गया है. और माँ भी हसे जा रही है ]

फिर , हमने कंगन पसंद किये , चांदी के थे काले दाने वाले। पैसे दिए और निकल आये बाहर, मैं सोच रही थी, मेरी शादी के गहने दे कर ही भेजेगा आज दुकानवाला।

मैं - माँ , इतने छोटे कंगन, किसके लिए. फिर मेरा सवाल, जो माँ को शायद पसंद नही आया. वो कुछ न बोली।

मेरा हाथ पकड़ा कर आगे चल दी , सामने एक साडी ही दुकान थी, जहाँ एक से एक शानदार साड़ी मिलती थी शहर की जानी - मानी दुकान थी.

दुकानवाला - आइये भाभीजी , क्या लेंगे, ठंडा मांगउ , छोटे दो ठंडा ले कर आ भाभीजी और बिटिया के लिए।

हाँ तो भाभीजी क्या दिखाऊ , साडी या लेहंगा - चोली , आपके
लिए या बिटिया रानी के लिए , शादी टाइप या कुछ फैंसी।

मैं [ मन मैं - एक तो वो सुनार, अब यह भी, उफ़ मेरी शादी आज यह लोग करा के ही मानेंगे ]

माँ - भाईसाहब, अभी कहाँ, जोग ही नहीं बैठ रहे , बिटिया की शादी का , आप से ही लेना हे शादी का जोड़ा, निहारिका के लिए ।

दुकानववाला - वाह , कितना खूबसूरत नाम है, "निहारिका", एकदम अलग , हाँ जी क्या दिखाऊ अभी. इतने मैं ठंडा आ गया था. "ऑरेंज" वाला शायद "
मिरनडा" था.

मैंने लिया और लगी पीने, फिर माँ बोली , " गोद - भराई " ककी रसम है उसके लिए कुछ दिखा दो, जल्दी से.

दुकानवाला - अरे , छोटू, वो नया माल आया है न , कल उसमे से निकल कर ला , चटक रंग लाना।

फिर, माँ ने , साड़ी पसंद करि, मस्त कलर था, सुनहरी बॉर्डर के साथ पीला बेस और पल्ला रानी कलर का साथ ही चटक हरा ब्लाउज।

माँ ने मुझसे पूछा, कैसे है, यह ले ले, या दूसरी निकलवाओ।

मैं - अच्छी है माँ, एकदम मस्त, कलर भी अच्छा है.

माँ - जी, इसे पैक करवा दीजिये।

दुकानवाला - और क्या दू, भाभीजी , कुछ आपके लिए , या बिटिया के लिए , एक - आध साड़ी तो लेनी ही पड़ेगी, आपकी अपनी दुकान है.

माँ - जी, मेरे पास तो बहुत हैं, अभी रहने दीजिये।

दुकानवाला - बिटिया के लिए, काम आ जाएगी किसी शादी - फंक्शन मैं।

माँ - हम्म, एक शादी है तो जून मैं, चलिए दिखा दीजिये। इसके काम आ जाएगी

दुकानवाला - भाभी जी , सेमि -फैंसी, या फुल फैंसी आजकल लड़कियों के लिए खूब सारे पैटर्न आ गए हैं.

माँ - सेमि - फैंसी दिखा दीजिये।

फिर, दुकानवाले ने क्या मस्त साड़ी दिखाई , मेरा मन किया सारी ले लू, फिर माँ ने एक साड़ी निकली जो पिंक कलर की थी, ऑफ वाइट बॉर्डर
व् साथ मैं सेमि - नेट का ब्लाउज था आसमानी रंग का .

ब्लाउज को लेकर माँ , बोली,

भाई साहब , यह ब्लाउज चेंज हो जायेगा, नेट वाला है,

दुकानवाला - भाभीजी, यह सारे डिज़ाइनर पीसेज हैं, चेंज नहीं हो पायेगा। नार्मल साड़ी के तो हम चेंज कर भी देवे , फिर यह बिकेगा भी नहीं, बिना साड़ी के. बेकार हो जायेगा यह सेट.

माँ - ठीक है, इसे ही पैक कर दीजिये , पैसे ठीक लगाना।

दुकानवाला - जी, भाभी जी , आप
को नाराज थोड़ी करना है, भी तो बिटिया की शादी का जोड़ा भी तो देना है , ही ही ही। ..

मैं -
[मन मैं , साले, अभी दे दे , यही कर लेती हूँ शादी, मज़ाक बना दिया है]

उफ़, उस समय तो बड़ा बुरा लग रहा था, अब जा कर समझ पाई, की उम्र ही शादी की थी,
और जवानी को देख कर, जोबन के उठाव को देखकर, लोग सही अंदाजा लगा रहे थे।

फिर माँ ने पैसे दिए, कुछ काम ही दिए जितने मांगे थे उस से
, औरत कभी पुरे पैसे नहीं देती शॉपिंग के मामले मैं, जन्मसिद्ध अधिकार होता है हमारा।

दाम कम देना और दुसरो को जायदा बताना , आखिर औरत हैं न हम.

फिर हम ने किया साइकिल रिक्शा , और आ गए घर इस बार उतारते हुए मैंने ध्यान रखा की दुपट्टा न फिसल जाये नहीं तो शामत पक्की थी.

माँ - निहारिका , एक गिलास पानी पीला, थक गयी मैं.

मैं - अभी लायी माँ.
पानी पीकर माँ बोली।

माँ - अरे निहारिका, ऐसा करना तू सुमन के साथ अकेले चले जाना, मैं उसे फ़ोन कर देती हु.

मैं - क्यों माँ,

माँ - पागल, मैं अभी पूरी साफ़ नहीं हुई।

मैं - ओह, अच्छां माँ , ठीक है.

मैं - टेंशन मैं, करुँगी क्या वहां जाकर, माँ साथ होती तो ठीक था, सुमन भाभी के साथ, अब क्या। .......

तभी माँ बोली - निहारिका क्या हुआ,


मैं - कुछ नहीं, वो मुझे करना क्या है, वहां, " गोद - भराई " .....................................................
 
Top