Iron Man
Try and fail. But never give up trying
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Awesome update.तेज़ी से , अपने रूम मैं भागी। किया दरवाजा बंद , पीछे मुड़ी
सांस ऊपर की उप्पर और निचे की नीचे , माँ खड़ी थी सामने , हाथ मैं नयी बेडशीट लेकर खड़ी थी, शायद चेंज करनी आयी थी।
माँ - निहारिका। ....................
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प्रिय सहेलिओं ,
निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,
अब आगे ,
मेरी हालत दस सेकंड के लिए ख़राब हो गयी थी , माँ के सामने सिर्फ टॉवल मैं खड़ी थी जोबन से टॉवल थोड़ा सरक गया था भागते हुए हलके से निप्पल तक दिखयी दे रहा था, मैंने जोबन को देखा फिर माँ को देखा माँ मेरे जोबन को देख रही थी पर कुछ बोल नहीं पा रही थी। फिर माँ बोली। ..
माँ - निहारिका, क्या है यह, तू टॉवल मैं क्यों घूम रही है , पुरे घर मैं. कपडे नहीं है क्या ?
मैं - माँ, वो ले जाना भूल गई आज.
माँ - पागल लड़की, देख तो जरा , जवान हो गयी है, शर्म हैं या नहीं , तेरे जोबन , उफ़ बाहर आ रहे है ठीक कर।
मैं - टॉवल को खोला , हल्का सा फिर कसा अपने जोबन पर, कुछ जायदा ही कस लिया था शायद , जोबन आपस मैं चिपक गए थे और क्लीवेज बन गया था।
माँ - हँसते हुए, उफ़, क्या हो रहा रहा है तुझे, क्या कर रही है.
मैं, उस समय किसी फ़िल्मी हीरोइन के जैसे , सिर्फ टॉवल मैं जोबन कसे, लूटने का इंतज़ार कर रही थी, निचे देख कर, हाँ , हूँ कर रही थी.
पैर के अंगूठे से कुरेदने लगी थी निचे देखते हुए , बालो मैं से पानी टपक रहा था, हलकी ठण्ड भी लग रही थी. सोच रही थी की, अब माँ के सामने कैसे चेंज करू, अंदर तो कुछ नहीं था.
तभी माँ बोली,
माँ - निहारिका , तेरा दिमाग तो ठीक है, ऐसे ही खड़ी रहेगी , "गीली", ठण्ड लग जाएगी। चेंज कर, कपडे पहन।
"गीली" तो थी उस समय पर "नीचे" से , पर माँ को क्या कहती एकहाथ अपने आप "नीचे" जा लगा.
माँ - चादर, बेड पर फेंकती हुए बोली, मैं जा रही हूँ , जल्दी कपडे पहन सर्दी लग जाएगी, आज वैसे भी खूब पानी मैं खेल लिया तूने।
अब जाकर सांस आयी, मैं बोली
मैं - हाँ , माँ ठीक है.
फिर, माँ गयी रूम से बहार हंसती हुई, और बोल रही थी, अब तेरा कुछ करना ही पड़ेगा। शादी का.
"शादी" उफ़, मेरे निप्पल ठण्ड से खड़े थे , "नीचे" से गीली थी और माँ ने एक बार और शादी की बात कर दी , अजीब बैचनी हो रही थी.
"बैचनी", का सबब अब समझ आता है , मैं पीरियड्स की आखिरी दिनों मैं गर्म हो जाती थी, पर उस समय यह समझ नहीं आता था, दिमाग काम करना बंद कर देता था , "कुछ" चाहिए था "जिस्म " को पर पता नहीं था, और बोलती भी कैसे कर किसको पता तो हो "क्या" चाहिए।
आज, भी यही हाल है मेरा, पर , अब "मिल" जाता है "जो" चाहिए था मेरे जिस्म को.
आप लोग , यह सब पढ़ कर मुझे मूर्ख, या बुद्धू बोलेंगे हम्म, सही है, मैं थी, शायद हर लड़की होती है कुछ समय तक , मैं कुछ जयादा ही थी, औरत को आज भी अपनी इच्छा की बारे मैं ठीक से नहीं पता होता है, "सही" सवाल न होने से, गलत जबाब ही मिलते हैं.
खैर, फिर मैंने अपने टॉवल पकड़ा एक हाथ से और दरवाजा बंद किया , चिटकनी लगायी अरु ग़हरी सांस ली, फिर सोचा जल्दी से कपडे फेहेन लो, आज तो शामत होनी ही है.
अलमारी खोली,
टॉवल फेंका बिस्तर पर, मैं बिना किसी कपडे के कड़ी थी,
अलमारी खोले, मेरी अलमारी मैं एक तरफ कांच था, और वो ही साइड बंद थी,
अचानक मेरी नज़र मेरे जिस्म पर पड़ी, "जोबन" , कमर, "नीचे" वाली
कुछ जांघो पे दिखा , हाथ लगाया तो "चाशनी" थी, टपकी हुई.
एक स्माइल आ गई, खुद को देख कर, फिर स्टाइल मरते हुए, बालो को आगे , पीछे, करते कभी जोबन पर डालते हुए, हाथ कमर पर रख के पोज़ बनते हुए, फिर मैं पीछे मुड़ी उफ़, आज ध्यान से देखे थे मैंने मेरे, "पीछे" वाले "गोल- मटोल" एकदम राउंड गोल - गोल चिकने।
"शर्म" आ गयी , फिर ध्यान आया, पागल लड़की, कपडे तो पहन ले, माँ आती होंगी।
फिर मैंने , ब्रा - और पैंटी निकली, ब्रा - काले कलर की थी और पैंटी भी काली ही थी जिस पर कमर के इलास्टिक से नीचे एक नेट की लैसी लाइन थी फिर बाद मैं कपडा था. यह पैंटी मुझे बड़ी पसंद थी. फिर याद आया की पैड्स की जरूरत पड सकती है, हालाँकि फ्लो लगभग ख़तम सा ही था, पर लड़कियां रिस्क नहीं लेती "इस" मामले मैं।
निकला पैड्स पैकेट मैं से , और पैंटी पहनते हुए लगा लिया , थोड़ा एडजस्ट किया कमर की इलास्टिक मैं उँगलियाँ घुमा के चेक किया सब ठीक.
ब्रा के स्ट्रैप्स हाथ मैं डाले, और पीछे से हुक लगाने की कोशिश करने लगी, चार - पांच बार कोशिश किया, उफ़, नहीं आज भी फ़ैल, निहारिका तुझे कब आएगी पीछे से हुक लगाना।
हाँ अब मैं लगा लेती हूँ, पीछे से पर दस मैं से दो - तीन बार, नहीं तो ब्रा को उलटी घुमा के आगे से हुक लगा लिए फिर वापस पीछे घुमा कर स्ट्रैप्स चढ़ा लिए कन्धो पे और हो गया.
आज भी जब समय होता है तैयार होने का , तब कोशिश कर के लगा ही लेती हूँ, नहीं तो "पतिदेव" की मदद, पर उनकी मदद भारी पड़ती है, एक तो लिपस्टिक वापस लगाओ, लिप किस जो देनी पड़ती है, और जोबन दबवाओ जो अलग से. कर वो तो इसी फ़िराक मैं रहेते हैं की मैं कब उनको देखु और बोलू, "जी , ब्रा का हुक लगा दो न".
हमम, अब मैं ब्रा - पैंटी मैं थी, सोच रही थी आज क्या ड्रेस पहेनू सलवार - कुर्ती, जीन्स - टॉप, फिर एक स्कर्ट हाथ मैं आ गयी, सोचा आज यह ही ठीक है, बहार तो जाना नहीं है, चल जाएगी, लाल रंग की लॉन्ग स्कर्ट थी, घेर वाली, आज भी याद है, मार्किट मैं पहेली नज़र मैं पसंद आ गयी थी. फिर एक ब्लैक टॉप निकला, थोड़ा टाइट लगा पहने बाद, फिर सोचा अभी कुछ समय पहले तक तो ठीक आए रहा था, इसे क्या हुआ. ब्लैक टॉप मैं ब्लैक ब्रा नहीं दिखेगी, नहीं तो माँ आज इस पर भी भजन सुना देंगी। बड़ी हो गयी, कपडे पहनने के लखन नहीं हैं , नाक कटवा दो सारे ज़माने मैं माँ - पिताजी की. .....
फिर टॉप पेहन न लेने के बाद , अलमारी बंद कर, देखा, टॉप मैं से मेरे जोबान उफ़, क्या बताऊ। मैं खुद ही शर्मा गयी देख कर , फिर सोचा, माँ सही ही कह रही हैं शायद, "शादी" हो ही जानी चाहिए ..... एक करंट सा दौड़ा, "नीचे" से "उप्पर" "जोबन" तक.
उफ़, कितने अरमान होते हैं लड़कियों के , घंटो आईने मैं मैं खुद दे बात कर लेती हैं, सपनो की दुनिया , सपनो का राजकुमार, गुड्डे - गुड़िया का खेल, और न जाने क्या - क्या , और मैं मूर्ख, बस अपने आप को देख के ही खुश हुए जा रही थी.
अचानक , घंटी बजी, दरवाजे की, कोई आया था , मैं जल्दी से रूम से बहार निकली , ट्वॉयल था हाथ मैं, डालना था बहार सूखने के लिए , हाथ मैं कंघा और टॉवल को गीले बालो मैं रगड़ते हुए मैं चली, दरवाजे की और, माँ भी आ ही गयी खोलने मेरे साथ ही.
माँ ने दरवाजा खोला, देखा।
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Lovely Line :- "जी , ब्रा का हुक लगा दो न".