chintu222
Sab Moh Maya Hai
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Great update Niharika jiiमैं - टेंशन मैं, करुँगी क्या वहां जाकर, माँ साथ होती तो ठीक था, सुमन भाभी के साथ, अब क्या। .......
तभी माँ बोली - निहारिका क्या हुआ,
मैं - कुछ नहीं, वो मुझे करना क्या है, वहां, " गोद - भराई " ...................
..................................
प्रिय सहेलिओं ,
निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,
अब आगे ,
मैं, टेंशन मैं थी, वहां जाकर करना क्या है, साथ मैं तो ठीक था, सुन लेती माँ के भजन, रोज का है. पर सुमन भाभी उफ़, पूरी मोहल्ले की डाकिया है, जब तक एक बात पुरे मोहल्ले की औरतो को न बता दे खाना हजम नहीं होता।
अगर, मेरी कोई बेवकूफी या कोइ गलती हो गयी, तो समझ लो, "डाकिया डाक लाया"- हो जायेगा।
अब मैं क्या करू?
इतने मैं माँ बोली - निहारिका , सुन. तेरा सूट निकल ले, प्रेस कर लेना अगर जरुरत लगे तो। और यह गिफ्ट, "साड़ी" सुमन के साथ उसे दे देना। समझी।
मैं - हा , माँ ठीक है,एकदम धीरे से बोली, और करती भी क्या।
फिर याद आया, छोटे - छोटे कंगन।
मैं - माँ,वो कंगन भी तो लाये थे न, वो नहीं देने क्या ?
माँ - अरे , पागल अभी नहीं, वो तो बच्चा हो जाये तब, देने के लिए मैंने पहले ही ले लिए , कौन जाता बाद मैं फिर.
मैं - "बच्चा" , अब यह "बच्चा" कहाँ से आ गया , "गोद - भराई " मैं. और बाद मैं क्यों, छुट्टी पाओ अभी देकर।
पर,अब कुछ पूछने की हिम्मत नहीं थी, पारा वैसे ही चढ़ा हुआ था .माँ का. सोचा भलाई इसी मैं है की चलो सूट निकलने।
मैं - माँ, मैं सूट को देखती हूँ, शायद प्रेस की जरुरत हो.
मैं गयी, अलमारी के पास, खोला, निकला सूट , देखा खोलकर, ठीक लगा मुझे तो. फिर बेड पर रख दिया। फिर सोचा हाथ - मुँह धो कर फ्रेश हो जाती हूँ, अभी तो टाइम है.
गयी, बाथरूम, दुपट्टा निकल कर बाथरूम के दरवाजे पर टांगा और लगी मुँह धोने, ठंडे पानी से एकदम ताज़गी आ गयी , दोनों हाथो पानी लेकर छपाक सीधा मुँह पर , कुछ पानी मेरे जोबन पर भी गिर गया , अब क्या ?
माँ ने देखा तो फिर भजन, दुपट्टा लिया, डाला कंधे पर , टॉवल से मुँह पोंछते हुए, सीधा कमरे मैं. अब क्या करू, अगर माँ ने बुला लिया तो , कर लेती हूँ चेंज टॉप को.
एक पीली टी - शर्ट निकली और पहन ली, थोड़ी पुरानी थी, गले से कुछ ढीली हो गयी थी, इसे अक्सर रात को सोते समय ही पहन लेती थी, गले की साइड से ब्रा का स्ट्राप दिख रहा था , पर जल्दी मैं ध्यान नहीं दिया। सोचा माँ को चाय बना कर दू , कुछ मूड ठीक होगा, साथ मैं भी पी लुंगी।
आ गई माँ के पास, बोली, माँ चाय बना दू, पियोगी ?
माँ - हाँ, मेरी बच्ची , कितनी समझदार है, जा बना ले.
मैं, खुश , अब डांट नहीं पड़ेगी। बच गयी.
माँ - निहारिका, तेरे दूसरी टी- शर्ट नहीं है, देख तो जरा, ब्रा का स्ट्राप दिख रहा है, पागल अब तो नादानी छोड़ , जवान हो गयी है. इधर बैठ, मेरे पास, फिर मेरी टी - शर्ट को ठीक करती हुई बोली।
माँ - बेटा, जमाना ख़राब है, लड़कियों को ही सम्भल कर चलना होता है, बोलने वाले नहीं चूका करते, चल घर मैं तो ठीक है, सोने के लिए, पर रूम से बहार आये तो ठीक कपडे पहना कर. अब जा , अच्छी सी चाय बना ला.
-मैं - जी,माँ. ।अभी लायी।
मैं, गयी किचन मैं, चाय का पानी चढ़ा दिया गैस पर , पत्ती डाली, थोड़ी अदरक डाली कूट कर, माँ को पसंद थी अदरक वाली चाय, दूध और शक्कर डाल कर इंतज़ार किया , दो - चार उफान आने पर गैस बंद करि, और कप मैं चाय डाली और ले आयी माँ के पास.
माँ - निहारिका, वाह अच्छी चाय बनाई तूने, चलो कुछ तो आया तुझे, फिर हंसने लगी,....
मैं - क्या माँ, खाना भी तो बना लेती हूँ, वो बात अलग है, रोटी कभी - कभी जल जाती हैं. ही , ही
ऐसे ही हंसी - मजाक मैं चाय ख़तम हुई, फिर माँ बोली, तू जा सूट चेक कर ले , एक बार प्रेस घुमा ही ले, मैं किचन मैं रख के थोड़ा आराम कर लेती हूँ.
अरे,सुमन को फ़ोन भी करना था, पहले वो ही कर लू, तू रख आ कप किचन मैं.
मैं - ठीक है, लाओ माँ.
माँ , फोन लगाती है, सुमन भाभी को.
माँ - हेलो, सुमन , कैसी है, सब आनंद - मंगल।
सुमन भाभी - हाँ जी, सब कुशल - मंगल, आप बताओ। कैसे फोन किया ?
माँ - अरे , सुबह तुझे बताना भूल गयी , मैं अभी साफ़ नहीं हुई पूरी तरह, मैं नहीं आ पाऊँगी आज.
सुमन भाभी - ओह, अब क्या, अब क्या करे मैंने तो उसे बोल दिया की मैं निहारिका और उसकी माँ को लेती आउंगी।
माँ - ऐसा कर , सुमन निहारिका को ही ले जाना , पागल कुछ तो सीखेगी। , ही ही,
सुमन भाभी - हाँ भाभी, शादी लायक हो गयी है, पर समझ इतनी नहीं है
माँ - हाँ री , अब क्या करू, कोशिश तो करती हूँ, पर अटक जाती हूँ, एक बाद एक बेवकुफो वाली हरकत मेरा दिमाग ही चढ़ जाता है.
सुमन भाभी - अच्छा , आप आराम करो , मैं आ कर ले जाउंगी निहारिका को.
माँ - अच्छा , सुमन मैं रखती हूँ।
सुमन भाभी - जी भाभी।
हो गयी थी दोनों की बात , मुझ बकरी को हलाल करने प्लानिंग। अभी शाम को समय था, माँ गयी आराम करने, मैंने सोचा , सूट प्रेस कर के मैं भी कुछ देर आराम कर लू.
सूट को फैलाया, देखा, जायदा सल नहीं थे पर गुंजाईश थी प्रेस की. सो निकाल ली प्रेस ही देर मैं, सूट ठीक, उसे टांगा
हेंगर पर और प्रेस साइड मैं रख कर पर.
आँख बंद करते ही , टेंशन, वहां जाकर करना क्या है, अरे अभी पूछ लेती माँ से, अब तक सो गयी होंगी , कहाँ फंसा दिया।
थोड़ी देर के बाद ,उठ गयी, नींद आयी पर थोड़ा आराम मिल गया, मार्किट की थकन जो थी.
अब मैं फ्रेश थी, सोचा माँ को उठाऊ।
Maza aa gaya...alag tarah ki writing skill
Hahaha... bakri toh halal ho gayi..lets see kya hota haiमुझ बकरी को हलाल करने प्लानिंग।
waiting for next