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Erotica लेडीज - गर्ल्स टॉक [ गर्ल्स व् लेडीज की आपसी बातचीत ]

कितने पुरुष पाठको ने अपनी पत्नी को या अपनी महिला मित्र को ब्रा या पेंटी ला कर दी है बिना उसको बताये

  • खुश हुई

    Votes: 4 40.0%
  • आश्चर्य चकित .... आपसे उम्मीद नहीं थी .. सही साइज़ ले आओगे

    Votes: 1 10.0%
  • मेरी साइज़ आपको याद रही

    Votes: 1 10.0%
  • शुक्रिया लाये तो ... पर साइज़ ठीक नहीं या कलर पसंद नहीं आया

    Votes: 0 0.0%
  • इतने नखरे है ..... कौन लाये ...

    Votes: 2 20.0%
  • एक तो लाओ फिर सरदर्दी वापस बदलवाने कि

    Votes: 2 20.0%

  • Total voters
    10
  • Poll closed .

chintu222

Sab Moh Maya Hai
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158
उफ़, कितने अरमान होते हैं लड़कियों के , घंटो आईने मैं मैं खुद दे बात कर लेती हैं, सपनो की दुनिया , सपनो का राजकुमार, गुड्डे - गुड़िया का खेल, और न जाने क्या - क्या , और मैं मूर्ख, बस अपने आप को देख के ही खुश हुए जा रही थी.

अचानक , घंटी बजी, दरवाजे की, कोई आया था , मैं जल्दी से रूम से बहार निकली , ट्वॉयल था हाथ मैं, डालना था बहार सूखने के लिए , हाथ मैं कंघा और टॉवल को गीले बालो मैं रगड़ते हुए मैं चली, दरवाजे की और, माँ भी आ ही गयी खोलने मेरे साथ ही.

माँ ने दरवाजा खोला, देखा।
........................

प्रिय सहेलिओं ,


निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,

अब आगे ,


मैं , एक तो डरी हुई थी की आज क्या होगा मेरे साथ , माँ के भजन सुनना पड़ेंगे दिन भर, कॉलेज नहीं गयी, और वो "मूड्स" वाली बात तो गयी थी, माँ पड़ोस वाली भाभी से बात कर रही थी और मैं अपने आप से , फिर मुझे दोनों की बाते सुनाई दी.

सुमन भाभी कही जाने की बात बोल रही थी माँ को, होश मैं आयी जब सुमन भाभी ने मेरा नाम लिया "
निहारिका" को भी साथ ले आना इसकी भी"उम्र" हो गयी है अब तो, और हंसने लगी दोनों, माँ बोली अच्छा ले आउंगी कितने बजे आना है.

भाभी - आज शाम छे बजे से होगा शुरू फंक्शन , खाना खाना भी वही है , आना जरूर।

माँ - अच्छा सुमन , ठीक है, आ जाउंगी निहारिका के साथ.

मैं - कुछ सुना नहीं, जबकि मैं वही थी, साला आज का दिन ही ,ख़राब है. मैंने बस हंस के स्माइल पास कर दी भाभी को और नीचे देखने लगी. और करती भी क्या ?


भाभी - "निहारिका" आना जरूर , अभी बहुत कुछ सीखना है, फिर हंसने लगी।

मेरी हालत, उफ़,क्या बताऊ सहेलियों , मेरी समझ मैं कुछ नहीं आ रहा था , मैं बस स्माइल पास कर रही थी और माँ को देख रही थी, और माँ और सुमन भाभी दोनों मुझे।

फिर भाभी गयी, माँ ने दरवाजा बंद किया और बोला "निहारिका" आज शाम को जाना है फंक्शन मैं।

मैं - ,
हाँ माँ पर कौन सा फंक्शन कोई भजन - कीर्तन हैं तो मैं नहीं जाने वाली , एकदम पक जाती हु आपके साथ जाकर , रहो दो - तीन घंटे और थोड़ा सा प्रसाद लेकर आ जाओ.

- माँ -
पागल लड़की, तूने सुना नहीं , क्या बोला सुमन ने , भजन नहीं है " गोद - भराई " की रसम है। क्या हो गया है तुझे। सही कह रही थी सुमन , बहुत सिखाना पड़ेगा नहीं तो तू मेरी नाक ही कटा देगी।

मैं, पूरी कन्फ्यूज्ड , परेशां , क्या बोलू, "यह "गोद - भराई" क्या होती हैं, अब आज सुबह से अभी तक जो हुआ उसके बाद मेरी हिम्मत नहीं हुई माँ से कुछ पूछ लू.

मैं - ठीक है माँ , बस यही बोल पायी।

- माँ - चल ठीक है, एक काम कर तेरा एक अच्छा सा सूट निकाल ले शाम के लिए , मे
री साड़ी - ब्लाउज भी निकल देना। मैचिंग पेटीकोट के साथ।

क्या होगा इस लड़की का , भगवन अब तू ही कुछ कर, मैं तो हार गयी इस लड़की से, कहाँ तक सम्भालूंगी इस बावली को.आगे जाकर न जाने क्या करेगी, उफ़.....

कुछ - कुछ बोलती हुई, माँ गयी खाने की तैयारी करने , और मैं गयी अलमारी मैं से कपडे निकलने। माँ के रूम मैं जाते ही, एक उत्तेजना हुई, "वो मूड्स" का पैकेट पड़ा होगा, अब देख लेती हु.

जल्दी से , अल्मारी खोली, "मूड्स" उफ़, नहीं दिख रहा था, फिर इधर - उधर देखा नतीजा सिफर , अब गया चांस अब नहीं मिलेगा, जरूर माँ ने रख दिया होगा छुपा कर , जाने दो. कॉलेज मैं पूछती हु , साली बड़ी - बड़ी बाते करती हैं , देखती हूँ कुछ बता पाती हैं या यु ही फेंकती है.

फिर , माँ के लिए एक साड़ी निकली , हरा - नीला कलर था , पेटीकोट निकलने की सोचा नीला लू या हरा, नीला कलर जायदा था साड़ी मैं, सोचा नीला ही चल जायेगा , पर माँ से पूछ लेती हूँ, कौन डांट खाये .

गयी, माँ के पास और साड़ी दिखते हुए बोली, ठीक है, यह पेटीकोट नीला वाला, इस .साड़ी मैं , चल जायेगा।

माँ - उफ़, लड़की, क्या हुआ है तुझे आज, अरे,पागल , " गोद - भराई " की रसम है।
कुछ लाल - पीला निकल यह क्या कलर लायी है, कुछ अंदाज़ा नहीं है तुझे फंक्शन का।

अब, मैं फिर फंस गयी, हाँ बोलू तो मरू न बोलू तो भी, फिर मैंने बोला , बस ऐसे ही ले आयी माँ, सबसे पहले यह ही दिखाई दी.

- माँ - अच्छा , रहने दे , मैं निकल लुंगी। अपने सूट निकल ले.

-मैं अच्छा माँ, मैं बस मुड़ी ही थी, की माँ की आवाज आयी,

- माँ - "निहारिका", सुन वो पिंक वाला सूट हैं न तेरा , चूड़ीदार पजामी के साथं जिसके दुपट्टे पर कुछ काम है, वो ही निकल लेना।

अच्छा
हुआ माँ ने बता दिया , नहीं तो मैं, येलो एंड ब्लैक पटियाला निकलने वाली थी. बच गयी , ही ,ही [ मन मैं सोचा]

मैं - ठीक है , माँ.

देखते हुए बोली,
तू तैयार हैं न, फिर मेरे "जोबन" को देखा, टॉप - टी थोड़ा टाइट ही था , मेरे जोबन कुछ जयादा ही बड़े दिख रहे थे.

फिर माँ बोली, ठीक ही है,
दुपट्टा ले लेना उप्पर से, अच्छे से , अभी मार्किट जाना है. खाना बना देती हूँ, बस रोटी ही बाकि हैं, फिर चलते हैं.

मैं - ,हाँ माँ ठीक है.

फिर मैं गयी अपने रूम मैं, एक वाइट दुपट्टा लिया जिसमे चारो और गुलाबी लैस लगी थी. ले कर रखा बेड पर और लगी बाल बनाने , सुख चुके थे।

बाल बने, हुए यह सोच रही थी की " गोद - भराई " की रसम क्या है। और माँ , मार्किट क्या लेने जा रही है. दिन मैं, अक्सर माँ, मार्किट शाम को ही जाती थी पिताजी के साथ या संडे सुबहे। जल्दी से बाल सुलझाए और रबर बैंड लगा लिया और दुपट्टा लेकर आ गयी बहार, माँ खाना लिए तैयार थी।

मैं - आ गयी माँ, लाओ।

मैं और माँ ,
खाने बैठ गए, भरवां टिंडे बनाये थे माँ ने, कहते के हाथ मैं जादू होता हैं, सही कहते हैं. गज्जब का स्वाद था.

मैं,बना लेती हूँ, पर वो स्वाद हाथो मैं था , मुझे पागल के हाथो मैं नहीं, पर "ये " ऐसे कहते हैं स्वाद लेकर, जैसे छप्पन भोग हो.

पर पेट थोड़ा न भरता है, जब तक "चाशनी" का भोग न लगे , एक तो खाना बनाओ, खिलाओ फिर "ये" खुश और मेरी क़यामत।

"अच्छा" लगता हैं जब "ये", तृप्त हो कर , मुझे धीरे -धीरे , गरम कर के खाते हैं, "चाशनी" का मज़ा लेते हैं, मैं बस आँख बंद कर कर लेट जाती हूँ, और एक हाथ "इनके " सर पर , और दूसरा अपने "जोबन" पर , फिर पता नहीं कुछ मुझे।

[ उफ़,थोड़ा गर्म, और गीली हो गयी हूँ, बस कुछ लाइन और ही लिख पाउंगी। ..... आपकी कसम ]

हाँ, तो हम, खाना खा रहे थे , फिर माँ बोली, अभी मार्किट चलना है, गिफ्ट लाने, जल्दी खा , वापस आना हैं, तैयार होना हैं. अच्छा तू बता क्या गिफ्ट मैं। .

मैं - क्या बोलू, ले लेना कुछ भी, वाल पेंटिंग , फ्लावर, और कोई गिफ्ट आइटम, दुकान पे मिल जाएँगी बहुत से।

माँ- मुझे देखती हैं,
अपना खाना रोक के, उफ़, तुझे तो शादी वाले घर मैं ही छोड़ देना चाहिए, क्या करु तेरा, अब जल्दी खा।


मैं यह सोचती रह गयी , क्या गलत बोला मैंने। ..............
Great update Niharika ji :claps:
Keep it up :)
 

chintu222

Sab Moh Maya Hai
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माँ- मुझे देखती हैं, अपना खाना रोक के, उफ़, तुझे तो शादी वाले घर मैं ही छोड़ देना चाहिए, क्या करु तेरा, अब जल्दी खा।

मैं यह सोचती रह गयी , क्या गलत बोला मैंने। ..............
........................

प्रिय सहेलिओं ,

निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,

अब आगे ,

अब तक आप लोग मेरी नादानी को समझ ही चुके होंगे , कितनी नासमझ थी मैं, ब
स अपने आप मैं खोयी रहती थी, "नीचे" वाली से जायदा लगाव नहीं था उस समय पर "जोबन" को देखना , निहारना , थोड़ी टाइट ब्रा पहन कर इतराना और कभी मेरी सहेली मुझे छेड देती जोबन को लेकर "देख उसे , बाइक पर जो बैठा है, तेरे जोबन घूर रहा है, जो खिला दे , पुण्य का काम है", मैं कहती "तुझे जायदा चिंता हो रही है, तो तू ही जा न , तेरे कौन से कम हैं, और बढ़ जायेंगे "

कह तो देती, बुरा सा मुँह बना के , प
र अंदर से , इच्छा होती की जाओ, पुण्य कमाओ, खिलालो न सही , हाथ ही लगवा लो. अब तक बाथरूम मैं , बस अपने हाथ से ही, खेला करती थी, निप्पल एकदम टाइट और नीचे से गीली , समझ नहीं आता था, पर अच्छा लगता था, खासकर पीरियड्स के आखिर दिनों मैं।

खैर , अब आगे, चलते हैं उन सुनहरी यादो मैं। ..

खाते हुए एकदम चुप, मैं अंदर ही अंदर यह सोचे जा रही थी, गिफ्ट ही तो हैं, ले लो कोई भी, इसमें मुझ शादी वाले घर मैं छोड़ देने की क्या बात हुई , पता नहीं माँ कभी - कभी क्या बोलती रहती है.

माँ - लड़की, जल्दी कर , खा लिया , और रोटी लौ।

मैं - माँ , बस हो गया.

माँ - ले , यह सब ले जाकर किचन मैं रख, और चल मार्किट।

मैं - अच्छा माँ

और मैं, उठ गयी और चल दी किचन की और, थैली , कटोरी व् गिलास रखने , तभी माँ की आवाज।।

माँ - निहारिका, ताला - चाभी भी लेती आना , फ्रिज पर पड़ा है.

मैं - अच्छा माँ, ठीक है.

फिर, ताला लिया, और आ गयी माँ के पास , चलो माँ.

माँ -
लड़की, तेरा दुपट्टा कहाँ है, समझ ही नहीं है, ऐसे जायेगी मार्किट मैं, उफ़. जा , जल्दी ला दुपट्टा और बाहर निकल।

मैं - माँ , मैं वो किचन मैं गयी थी न, इसीलिए भूल गयी. अभी लायी दुपट्टा। बस एक मिनिट।

फिर मैंने दुपट्टा लिया, और
"एकदम ठीक" से जोबन ढके , सर पे भी ले लिया था धुप की वजह से। मुझे देख कर माँ खुश

माँ - हम्म, अब ठीक है, अच्छे घर की लड़कियां "
खुला" नहीं घूमती , समझ कर , बड़ी हो गयी है, कब सीखेगी [ मेरे जोबन को देख कर बोली]।

मैं - हम्म, [आगे कुछ बोलने को रह ही कहँ गया था]

हम दोनों ने एक साइकिल रिक्शा किया जिसने हमे मार्किट तक छोड़ दिया, रिक्शे वाले भी मुझे घूर रहा था, इनका तो रोज़ का काम है, बात कुछ करना और देखना "कही" और. मेरे हलके जोबन दुपट्टे मैं से दिख से रहे थे और
स्कर्ट मैं से गोल - मटोल का साफ़ अहसास।

अब चढ़ती जवानी को छिपा पाना किसी के बस मैं नहीं , झलक दिख ही जाती है , मेरे साथ भी हुआ, रिक्शे से उतारते हुए , सर से दुपट्टा उतर गया और पल्ला "जोबन से ढलक" गया माँ उसे पैसे देने मैं व्यस्त थी, पांच या दस सेकंड ही हुए होंगे, उसकी नज़र, मेरे जोबन पर, माँ की नज़र मेरे जोबन पर , मेरी नज़र माँ पर, फिर मैंने रिक्शे वाले को देखा , उसकी आँखों मैं "चमक".

उफ़, क्या बताऊ, माँ ने मेरे हाथ को लगभग खींचते हुए कहा, जल्दी चल, सामान लेना है। मैंने दुपट्टा फिर सर पर रखा और "सामने" से "ठीक" किया , अब चैन पड़ा माँ को.


न जाने, क्यों एक हलकी हंसी आ गयी थी, मेरी प्यारी पाठिकाओं, अगर आपको इस मुस्कान का पता है तो बताओ जल्दी ......

आखिर हम आ गए मार्किट, फिर मेरी बेवकूफी हाजिर , मैंने तपाक से कहा माँ.

मैं - माँ , गिफ्ट गैलरी "अर****" उधर है, उन दिनों काफी फेमस थी,
हर लड़की के लिए कार्ड वही से आता था , मैं भी गयी थी सहेली के साथ, "वैलेंटाइन" कार्ड लेने , उफ़ कितना महंगे थे , उस वीक, बाद मैं वो ही नार्मल रेट.

माँ - तू चुप
रह, अरे " गोद - भराई " की रसम है, पागल लड़की। वहां क्या मिलेगा। तू चल.

फिर हम लोग एक सुनार की दुकान पर आ गए, हमारे पहुंचते ही, आइये भाभी जी, नमस्कार , सब कुशल - मंगल

माँ - जी , भाईसाहब। सब कुशल - मंगल। कुछ दिखािये। ..

इससे पहले माँ कुछ आगे बोलती , दुकानवाला बोल पड़ा.

दुकानवाला - जी, भाभी
जी, बेटी के लिए , सगाई , रोका के लिए कुछ।

मेरी , हालत ख़राब, उफ़. माँ ने कही पिताजी से कोई बात तो नहीं कर ली मेरी शादी की।

यह सुनार, भी ऐसा ही कुछ कह रहा है, न जाने क्या हुआ था मुझे, आँखों मैं चमक , साँसे तेज़, पसीना, हलकी स्माइल। सब एक साथ. सामने लगे कांच मैं मैंने अपने आप को देखा, दुपट्टा से पसीना पोंछा , जोबन पर ठीक किया फिर लगाए कान उन दोनों की बातो पर।

माँ - अरे भाईसाहब , अभी कहाँ , खोज बीन जारी है, अच्छा लड़का कहाँ आसानी से मिल जाता है,
देखो कब भाग जगता है,

मैं , कुछ रिलेक्स फील करि, चलो आज तो बच गए, "शादी" क्या होगा मेरा पता नहीं।

माँ - जी, कुछ कंगन दिखाइए छोटे बच्चे के लिए , " गोद - भराई " है. शाम को जाना है।

दुकानवाला - जी, भाभी जी, अभी लीजिये, पर कंगन - गेहने आपको हमारी ही दुकान से लेने हैं, बिटिया की शादी के लिए, ध्यान रखना , ही , ही , ही। ...

मैं - [मन मैं। ..
साले, अभी करा दे शादी, पीछे ही पड गया है. और माँ भी हसे जा रही है ]

फिर , हमने कंगन पसंद किये , चांदी के थे काले दाने वाले। पैसे दिए और निकल आये बाहर, मैं सोच रही थी, मेरी शादी के गहने दे कर ही भेजेगा आज दुकानवाला।

मैं - माँ , इतने छोटे कंगन, किसके लिए. फिर मेरा सवाल, जो माँ को शायद पसंद नही आया. वो कुछ न बोली।

मेरा हाथ पकड़ा कर आगे चल दी , सामने एक साडी ही दुकान थी, जहाँ एक से एक शानदार साड़ी मिलती थी शहर की जानी - मानी दुकान थी.

दुकानवाला - आइये भाभीजी , क्या लेंगे, ठंडा मांगउ , छोटे दो ठंडा ले कर आ भाभीजी और बिटिया के लिए।

हाँ तो भाभीजी क्या दिखाऊ , साडी या लेहंगा - चोली , आपके
लिए या बिटिया रानी के लिए , शादी टाइप या कुछ फैंसी।

मैं [ मन मैं - एक तो वो सुनार, अब यह भी, उफ़ मेरी शादी आज यह लोग करा के ही मानेंगे ]


माँ - भाईसाहब, अभी कहाँ, जोग ही नहीं बैठ रहे , बिटिया की शादी का , आप से ही लेना हे शादी का जोड़ा, निहारिका के लिए ।

दुकानववाला - वाह , कितना खूबसूरत नाम है, "निहारिका", एकदम अलग , हाँ जी क्या दिखाऊ अभी. इतने मैं ठंडा आ गया था. "ऑरेंज" वाला शायद "
मिरनडा" था.

मैंने लिया और लगी पीने, फिर माँ बोली , " गोद - भराई " ककी रसम है उसके लिए कुछ दिखा दो, जल्दी से.

दुकानवाला - अरे , छोटू, वो नया माल आया है न , कल उसमे से निकल कर ला , चटक रंग लाना।

फिर, माँ ने , साड़ी पसंद करि, मस्त कलर था, सुनहरी बॉर्डर के साथ पीला बेस और पल्ला रानी कलर का साथ ही चटक हरा ब्लाउज।

माँ ने मुझसे पूछा, कैसे है, यह ले ले, या दूसरी निकलवाओ।

मैं - अच्छी है माँ, एकदम मस्त, कलर भी अच्छा है.

माँ - जी, इसे पैक करवा दीजिये।

दुकानवाला - और क्या दू, भाभीजी , कुछ आपके लिए , या बिटिया के लिए , एक - आध साड़ी तो लेनी ही पड़ेगी, आपकी अपनी दुकान है.

माँ - जी, मेरे पास तो बहुत हैं, अभी रहने दीजिये।

दुकानवाला - बिटिया के लिए, काम आ जाएगी किसी शादी - फंक्शन मैं।

माँ - हम्म, एक शादी है तो जून मैं, चलिए दिखा दीजिये। इसके काम आ जाएगी

दुकानवाला - भाभी जी , सेमि -फैंसी, या फुल फैंसी आजकल लड़कियों के लिए खूब सारे पैटर्न आ गए हैं.

माँ - सेमि - फैंसी दिखा दीजिये।

फिर, दुकानवाले ने क्या मस्त साड़ी दिखाई , मेरा मन किया सारी ले लू, फिर माँ ने एक साड़ी निकली जो पिंक कलर की थी, ऑफ वाइट बॉर्डर
व् साथ मैं सेमि - नेट का ब्लाउज था आसमानी रंग का .

ब्लाउज को लेकर माँ , बोली,

भाई साहब , यह ब्लाउज चेंज हो जायेगा, नेट वाला है,

दुकानवाला - भाभीजी, यह सारे डिज़ाइनर पीसेज हैं, चेंज नहीं हो पायेगा। नार्मल साड़ी के तो हम चेंज कर भी देवे , फिर यह बिकेगा भी नहीं, बिना साड़ी के. बेकार हो जायेगा यह सेट.

माँ - ठीक है, इसे ही पैक कर दीजिये , पैसे ठीक लगाना।

दुकानवाला - जी, भाभी जी , आप
को नाराज थोड़ी करना है, भी तो बिटिया की शादी का जोड़ा भी तो देना है , ही ही ही। ..

मैं - [मन मैं , साले, अभी दे दे , यही कर लेती हूँ शादी, मज़ाक बना दिया है]

उफ़, उस समय तो बड़ा बुरा लग रहा था, अब जा कर समझ पाई, की उम्र ही शादी की थी, और जवानी को देख कर, जोबन के उठाव को देखकर, लोग सही अंदाजा लगा रहे थे।

फिर माँ ने पैसे दिए, कुछ काम ही दिए जितने मांगे थे उस से , औरत कभी पुरे पैसे नहीं देती शॉपिंग के मामले मैं, जन्मसिद्ध अधिकार होता है हमारा।

दाम कम देना और दुसरो को जायदा बताना , आखिर औरत हैं न हम.

फिर हम ने किया साइकिल रिक्शा , और आ गए घर इस बार उतारते हुए मैंने ध्यान रखा की दुपट्टा न फिसल जाये नहीं तो शामत पक्की थी.

माँ - निहारिका , एक गिलास पानी पीला, थक गयी मैं.

मैं - अभी लायी माँ.
पानी पीकर माँ बोली।

माँ - अरे निहारिका, ऐसा करना तू सुमन के साथ अकेले चले जाना, मैं उसे फ़ोन कर देती हु.

मैं - क्यों माँ,

माँ - पागल, मैं अभी पूरी साफ़ नहीं हुई।

मैं - ओह, अच्छां माँ , ठीक है.

मैं - टेंशन मैं, करुँगी क्या वहां जाकर, माँ साथ होती तो ठीक था, सुमन भाभी के साथ, अब क्या। .......

तभी माँ बोली - निहारिका क्या हुआ,


मैं - कुछ नहीं, वो मुझे करना क्या है, वहां, " गोद - भराई " .....................................................
Kaafi bhadiaa update tha Niharika ji :claps:
Saree ki shopping ho gayi...abb dekhte hain Godbharayi mein kya hota hai :D
Dhire dhire aap updates bade de rahi hain...bas aise hee likhte rahiye :approve:
Waiting for next :)
 

Niharika

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Kaafi bhadiaa update tha Niharika ji :claps:
Saree ki shopping ho gayi...abb dekhte hain Godbharayi mein kya hota hai :D
Dhire dhire aap updates bade de rahi hain...bas aise hee likhte rahiye :approve:
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chintu222 जी

शुक्रिया आपका ,

जी जब भी समय मिल जाता है .... लिख लेती हूँ ....

जी , गोद भराई का यह पहला मौका था ..... मैं अनजान थी उस समय ....

साथ बनाये रखे ......
 
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Niharika

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Very nice updated

Kapil Bajaj जी

शुक्रिया आपका ,

साथ बनाये रखे .......
 

Niharika

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मैं - टेंशन मैं, करुँगी क्या वहां जाकर, माँ साथ होती तो ठीक था, सुमन भाभी के साथ, अब क्या। .......

तभी माँ बोली - निहारिका क्या हुआ,


मैं - कुछ नहीं, वो मुझे करना क्या है, वहां, " गोद - भराई "
...................
..................................

प्रिय सहेलिओं ,

निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,

अब आगे ,

मैं, टेंशन मैं थी, वहां जाकर करना क्या है, साथ मैं तो ठीक था, सुन लेती माँ के भजन, रोज का है. पर सुमन भाभी उफ़,
पूरी मोहल्ले की डाकिया है, जब तक एक बात पुरे मोहल्ले की औरतो को न बता दे खाना हजम नहीं होता।

अगर, मेरी कोई बेवकूफी या कोइ गलती हो गयी,
तो समझ लो, "डाकिया डाक लाया"- हो जायेगा।

अब मैं क्या करू?

इतने मैं माँ बोली - निहारिका , सुन. तेरा सूट निकल ले, प्रेस कर लेना अगर जरुरत लगे तो। और यह गिफ्ट, "साड़ी" सुमन के साथ उसे दे देना। समझी।

मैं - हा , माँ ठीक है,एकदम धीरे से बोली, और करती भी क्या।

फिर याद आया, छोटे - छोटे कंगन।

मैं - माँ,वो कंगन भी तो लाये थे न, वो नहीं देने क्या ?

माँ - अरे , पागल अभी नहीं, वो तो बच्चा हो जाये तब, देने के लिए मैंने पहले ही ले लिए , कौन जाता बाद मैं फिर.

मैं - "बच्चा" ,
अब यह "बच्चा" कहाँ से आ गया , "गोद - भराई " मैं. और बाद मैं क्यों, छुट्टी पाओ अभी देकर।

पर,अब कुछ पूछने की हिम्मत नहीं थी, पारा वैसे ही चढ़ा हुआ था .माँ का. सोचा भलाई इसी मैं है की चलो सूट निकलने।

मैं - माँ, मैं सूट को देखती हूँ, शायद प्रेस की जरुरत हो.

मैं गयी, अलमारी के पास, खोला, निकला सूट , देखा खोलकर, ठीक लगा मुझे तो. फिर बेड पर रख दिया। फिर सोचा हाथ - मुँह धो कर फ्रेश हो जाती हूँ, अभी तो टाइम है.

गयी, बाथरूम, दुपट्टा निकल कर बाथरूम के दरवाजे पर टांगा और लगी मुँह धोने, ठंडे पानी से एकदम ताज़गी आ गयी , दोनों हाथो पानी लेकर छपाक सीधा मुँह पर , कुछ पानी मेरे जोबन पर भी गिर गया , अब क्या ?

माँ ने देखा तो फिर भजन, दुपट्टा लिया, डाला कंधे पर , टॉवल से मुँह पोंछते हुए, सीधा कमरे मैं. अब क्या करू, अगर माँ ने बुला लिया तो , कर लेती हूँ चेंज टॉप को.

एक पीली टी - शर्ट निकली और पहन ली, थोड़ी पुरानी थी, गले से कुछ ढीली हो गयी थी, इसे अक्सर रात को सोते समय ही पहन लेती थी,
गले की साइड से ब्रा का स्ट्राप दिख रहा था , पर जल्दी मैं ध्यान नहीं दिया। सोचा माँ को चाय बना कर दू , कुछ मूड ठीक होगा, साथ मैं भी पी लुंगी।

आ गई माँ के पास, बोली, माँ चाय बना दू, पियोगी ?

माँ - हाँ, मेरी बच्ची , कितनी समझदार है, जा बना ले.

मैं, खुश , अब डांट नहीं पड़ेगी। बच गयी.

माँ - निहारिका, तेरे दूसरी टी- शर्ट नहीं है,
देख तो जरा, ब्रा का स्ट्राप दिख रहा है, पागल अब तो नादानी छोड़ , जवान हो गयी है. इधर बैठ, मेरे पास, फिर मेरी टी - शर्ट को ठीक करती हुई बोली।

माँ -
बेटा, जमाना ख़राब है, लड़कियों को ही सम्भल कर चलना होता है, बोलने वाले नहीं चूका करते, चल घर मैं तो ठीक है, सोने के लिए, पर रूम से बहार आये तो ठीक कपडे पहना कर. अब जा , अच्छी सी चाय बना ला.

-मैं - जी,माँ. ।अभी लायी।

मैं, गयी किचन मैं, चाय का पानी चढ़ा दिया गैस पर , पत्ती डाली, थोड़ी अदरक डाली कूट कर, माँ को पसंद थी अदरक वाली चाय, दूध और शक्कर डाल कर इंतज़ार किया , दो - चार उफान आने पर गैस बंद करि, और कप मैं चाय डाली और ले आयी माँ के पास.

माँ - निहारिका, वाह अच्छी चाय बनाई तूने, चलो कुछ तो आया तुझे, फिर हंसने लगी,....

मैं - क्या माँ,
खाना भी तो बना लेती हूँ, वो बात अलग है, रोटी कभी - कभी जल जाती हैं. ही , ही

ऐसे ही हंसी - मजाक मैं चाय ख़तम हुई, फिर माँ बोली, तू जा सूट चेक कर ले , एक बार प्रेस घुमा ही ले, मैं किचन मैं रख के थोड़ा आराम कर लेती हूँ.

अरे,सुमन को फ़ोन भी करना था, पहले वो ही कर लू, तू रख आ कप किचन मैं.

मैं - ठीक है, लाओ माँ.

माँ , फोन लगाती है, सुमन भाभी को.

माँ - हेलो, सुमन , कैसी है, सब आनंद - मंगल।

सुमन भाभी - हाँ जी, सब कुशल - मंगल, आप बताओ। कैसे फोन किया ?

माँ - अरे , सुबह तुझे बताना भूल गयी , मैं अभी साफ़ नहीं हुई पूरी तरह, मैं नहीं आ पाऊँगी आज.

सुमन भाभी - ओह, अब क्या, अब क्या करे मैंने तो उसे बोल दिया की मैं निहारिका और उसकी माँ को लेती आउंगी।

माँ - ऐसा कर , सुमन
निहारिका को ही ले जाना , पागल कुछ तो सीखेगी। , ही ही,

सुमन भाभी - हाँ भाभी, शादी लायक हो गयी है, पर समझ इतनी नहीं है

माँ - हाँ री , अब क्या करू, कोशिश तो करती हूँ, पर अटक जाती हूँ, एक बाद एक बेवकुफो वाली हरकत मेरा दिमाग ही चढ़ जाता है.

सुमन भाभी - अच्छा , आप आराम करो , मैं आ कर ले जाउंगी निहारिका को.

माँ - अच्छा , सुमन मैं रखती हूँ।

सुमन भाभी - जी भाभी।

हो गयी थी दोनों की बात ,
मुझ बकरी को हलाल करने प्लानिंग। अभी शाम को समय था, माँ गयी आराम करने, मैंने सोचा , सूट प्रेस कर के मैं भी कुछ देर आराम कर लू.

सूट को फैलाया, देखा, जायदा सल नहीं थे पर गुंजाईश थी प्रेस की. सो निकाल ली प्रेस ही देर मैं, सूट ठीक, उसे टांगा
हेंगर पर और प्रेस साइड मैं रख कर पर.

आँख बंद करते ही , टेंशन, वहां जाकर करना क्या है, अरे अभी पूछ लेती माँ से, अब तक सो गयी होंगी , कहाँ फंसा दिया।

थोड़ी देर के बाद ,उठ गयी, नींद आयी पर थोड़ा आराम मिल गया, मार्किट की थकन जो थी.

अब मैं फ्रेश थी, सोचा माँ को उठाऊ।
 

Himalaya rahel

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मैम प्रणाम। मै xossip पर भी आपकी यह पोस्ट पढ़ हु ,वहां कभी कमेंट नहीं किया। आप बहुत कामुक और उपयुक्त शब्दो के चयन से कहानी लिखत लिखती हैं। मैम Xforum पर आप ,अपने पति के साथ प्रारंभिक यौन रति आकंक्षा और अनुभव साझा नहीं की ,और कहानी बंद कर दी।यहाँ ऐसा मत करियेगा, और पति के साथ रति क्रिया को भी साझा करियेगा। निवेदन है आपसे ,यह मेरी इच्छा है जिसे मैने आपको बता दिया किंतु बहुत से पाठक है ,जो यह चाहते हैं किंतु कमेंट करके बता नहीं रहे हैं
 
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Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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मैं - टेंशन मैं, करुँगी क्या वहां जाकर, माँ साथ होती तो ठीक था, सुमन भाभी के साथ, अब क्या। .......

तभी माँ बोली - निहारिका क्या हुआ,

मैं - कुछ नहीं, वो मुझे करना क्या है, वहां, " गोद - भराई " ...................
..................................

प्रिय सहेलिओं ,


निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,

अब आगे ,

मैं, टेंशन मैं थी, वहां जाकर करना क्या है, साथ मैं तो ठीक था, सुन लेती माँ के भजन, रोज का है. पर सुमन भाभी उफ़,
पूरी मोहल्ले की डाकिया है, जब तक एक बात पुरे मोहल्ले की औरतो को न बता दे खाना हजम नहीं होता।

अगर, मेरी कोई बेवकूफी या कोइ गलती हो गयी,
तो समझ लो, "डाकिया डाक लाया"- हो जायेगा।

अब मैं क्या करू?

इतने मैं माँ बोली - निहारिका , सुन. तेरा सूट निकल ले, प्रेस कर लेना अगर जरुरत लगे तो। और यह गिफ्ट, "साड़ी" सुमन के साथ उसे दे देना। समझी।

मैं - हा , माँ ठीक है,एकदम धीरे से बोली, और करती भी क्या।

फिर याद आया, छोटे - छोटे कंगन।

मैं - माँ,वो कंगन भी तो लाये थे न, वो नहीं देने क्या ?

माँ - अरे , पागल अभी नहीं, वो तो बच्चा हो जाये तब, देने के लिए मैंने पहले ही ले लिए , कौन जाता बाद मैं फिर.

मैं - "बच्चा" ,
अब यह "बच्चा" कहाँ से आ गया , "गोद - भराई " मैं. और बाद मैं क्यों, छुट्टी पाओ अभी देकर।

पर,अब कुछ पूछने की हिम्मत नहीं थी, पारा वैसे ही चढ़ा हुआ था .माँ का. सोचा भलाई इसी मैं है की चलो सूट निकलने।

मैं - माँ, मैं सूट को देखती हूँ, शायद प्रेस की जरुरत हो.

मैं गयी, अलमारी के पास, खोला, निकला सूट , देखा खोलकर, ठीक लगा मुझे तो. फिर बेड पर रख दिया। फिर सोचा हाथ - मुँह धो कर फ्रेश हो जाती हूँ, अभी तो टाइम है.

गयी, बाथरूम, दुपट्टा निकल कर बाथरूम के दरवाजे पर टांगा और लगी मुँह धोने, ठंडे पानी से एकदम ताज़गी आ गयी , दोनों हाथो पानी लेकर छपाक सीधा मुँह पर , कुछ पानी मेरे जोबन पर भी गिर गया , अब क्या ?

माँ ने देखा तो फिर भजन, दुपट्टा लिया, डाला कंधे पर , टॉवल से मुँह पोंछते हुए, सीधा कमरे मैं. अब क्या करू, अगर माँ ने बुला लिया तो , कर लेती हूँ चेंज टॉप को.

एक पीली टी - शर्ट निकली और पहन ली, थोड़ी पुरानी थी, गले से कुछ ढीली हो गयी थी, इसे अक्सर रात को सोते समय ही पहन लेती थी,
गले की साइड से ब्रा का स्ट्राप दिख रहा था , पर जल्दी मैं ध्यान नहीं दिया। सोचा माँ को चाय बना कर दू , कुछ मूड ठीक होगा, साथ मैं भी पी लुंगी।

आ गई माँ के पास, बोली, माँ चाय बना दू, पियोगी ?

माँ - हाँ, मेरी बच्ची , कितनी समझदार है, जा बना ले.

मैं, खुश , अब डांट नहीं पड़ेगी। बच गयी.

माँ - निहारिका, तेरे दूसरी टी- शर्ट नहीं है,
देख तो जरा, ब्रा का स्ट्राप दिख रहा है, पागल अब तो नादानी छोड़ , जवान हो गयी है. इधर बैठ, मेरे पास, फिर मेरी टी - शर्ट को ठीक करती हुई बोली।

माँ -
बेटा, जमाना ख़राब है, लड़कियों को ही सम्भल कर चलना होता है, बोलने वाले नहीं चूका करते, चल घर मैं तो ठीक है, सोने के लिए, पर रूम से बहार आये तो ठीक कपडे पहना कर. अब जा , अच्छी सी चाय बना ला.

-मैं - जी,माँ. ।अभी लायी।

मैं, गयी किचन मैं, चाय का पानी चढ़ा दिया गैस पर , पत्ती डाली, थोड़ी अदरक डाली कूट कर, माँ को पसंद थी अदरक वाली चाय, दूध और शक्कर डाल कर इंतज़ार किया , दो - चार उफान आने पर गैस बंद करि, और कप मैं चाय डाली और ले आयी माँ के पास.

माँ - निहारिका, वाह अच्छी चाय बनाई तूने, चलो कुछ तो आया तुझे, फिर हंसने लगी,....

मैं - क्या माँ,
खाना भी तो बना लेती हूँ, वो बात अलग है, रोटी कभी - कभी जल जाती हैं. ही , ही

ऐसे ही हंसी - मजाक मैं चाय ख़तम हुई, फिर माँ बोली, तू जा सूट चेक कर ले , एक बार प्रेस घुमा ही ले, मैं किचन मैं रख के थोड़ा आराम कर लेती हूँ.

अरे,सुमन को फ़ोन भी करना था, पहले वो ही कर लू, तू रख आ कप किचन मैं.

मैं - ठीक है, लाओ माँ.

माँ , फोन लगाती है, सुमन भाभी को.

माँ - हेलो, सुमन , कैसी है, सब आनंद - मंगल।

सुमन भाभी - हाँ जी, सब कुशल - मंगल, आप बताओ। कैसे फोन किया ?

माँ - अरे , सुबह तुझे बताना भूल गयी , मैं अभी साफ़ नहीं हुई पूरी तरह, मैं नहीं आ पाऊँगी आज.

सुमन भाभी - ओह, अब क्या, अब क्या करे मैंने तो उसे बोल दिया की मैं निहारिका और उसकी माँ को लेती आउंगी।

माँ - ऐसा कर , सुमन
निहारिका को ही ले जाना , पागल कुछ तो सीखेगी। , ही ही,

सुमन भाभी - हाँ भाभी, शादी लायक हो गयी है, पर समझ इतनी नहीं है

माँ - हाँ री , अब क्या करू, कोशिश तो करती हूँ, पर अटक जाती हूँ, एक बाद एक बेवकुफो वाली हरकत मेरा दिमाग ही चढ़ जाता है.

सुमन भाभी - अच्छा , आप आराम करो , मैं आ कर ले जाउंगी निहारिका को.

माँ - अच्छा , सुमन मैं रखती हूँ।

सुमन भाभी - जी भाभी।

हो गयी थी दोनों की बात ,
मुझ बकरी को हलाल करने प्लानिंग। अभी शाम को समय था, माँ गयी आराम करने, मैंने सोचा , सूट प्रेस कर के मैं भी कुछ देर आराम कर लू.

सूट को फैलाया, देखा, जायदा सल नहीं थे पर गुंजाईश थी प्रेस की. सो निकाल ली प्रेस ही देर मैं, सूट ठीक, उसे टांगा
हेंगर पर और प्रेस साइड मैं रख कर पर.

आँख बंद करते ही , टेंशन, वहां जाकर करना क्या है, अरे अभी पूछ लेती माँ से, अब तक सो गयी होंगी , कहाँ फंसा दिया।


थोड़ी देर के बाद ,उठ गयी, नींद आयी पर थोड़ा आराम मिल गया, मार्किट की थकन जो थी.

अब मैं फ्रेश थी, सोचा माँ को उठाऊ।
Awesome update
 
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