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Erotica लेडीज - गर्ल्स टॉक [ गर्ल्स व् लेडीज की आपसी बातचीत ]

कितने पुरुष पाठको ने अपनी पत्नी को या अपनी महिला मित्र को ब्रा या पेंटी ला कर दी है बिना उसको बताये

  • खुश हुई

    Votes: 4 40.0%
  • आश्चर्य चकित .... आपसे उम्मीद नहीं थी .. सही साइज़ ले आओगे

    Votes: 1 10.0%
  • मेरी साइज़ आपको याद रही

    Votes: 1 10.0%
  • शुक्रिया लाये तो ... पर साइज़ ठीक नहीं या कलर पसंद नहीं आया

    Votes: 0 0.0%
  • इतने नखरे है ..... कौन लाये ...

    Votes: 2 20.0%
  • एक तो लाओ फिर सरदर्दी वापस बदलवाने कि

    Votes: 2 20.0%

  • Total voters
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chintu222

Sab Moh Maya Hai
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सहेली - क्या हुआ , परेशान है , बता क्या बात है

मैं - वो , यार बाजार जाना था। ...................

......................................................................................................

प्रिय सहेलिओं ,

निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,

अब आगे ,
.....


सहेली - तो चल न, कहाँ जाना है, क्या लाना है , कब चलना है,

मैं - उफ़, इतने सवाल , यह लड़की भी न , कुछ काम है, आजा मेरे घर जल्दी

सहेली - अच्छा बाबा आती हूँ , ओके बाय

मैं - हम्म,

फिर फ़ोन रख दिया, मन मैं सोचा की, अब भाभी ज़रूर पूछेगी तो क्या बोलूंगी

भाभी - ओह ू, तो बाजार जाना है , शॉपिंग कुछ खास , मैं भी चलू

मैं - ओह, भाभी कुछ खास नहीं , बस कुछ बुक्स वग़ैरा

भाभी - हम्म, ठीक है,

मैं - बाय , भाभी ,मन मैं सोचा , बच गए।

भाभी - बाई, निहारिका

घर जा कर , सोचा कुछ चेंज कर लू, बाजार जाना है , एक नया सूट जो पिंक कलर का था निकल लिया , सोचा नहा भी लू, मेरी सहेली जरा लेट लतीफ़ है , जब तक नहा लेती हूँ.

टॉवल ले कर , बाथरूम मैं गई , धड़कन तेज़ हो रही थी, वो पूछेगी की क्या लाना है, उफ़, पागल घर मैं न बोल दे सब के सामने , ये सोचते हुए कुर्ती उतरी , फिर सलवार, पैंटी उतर के एक और रख दी।

मैं सिर्फ ब्रा मै थी, और आईने मैं खुद को देख रही रही थी , सोच रही थी कैसे ब्रा लू , किस कलर की, शेप कैसा लू, नयी ब्रा मैं कैसी लगूंगी। ......................

फिर शावर ऑन किया , ब्रा उतारी , जोबन को दबाया , एक हलचल उठी, और पानी की फुहार जिस्म पर पड़ती चली गई।

पानी कि फुहार जिस्म और जोबन पर पड़ते ही एक करंट सा लगा जो जोबन से होते हुए सीधा मेरी "नीचे वाली" तक जा पहुंचा और साथ ही मेरा हाथ भी .....
...................

न जाने किस दुनिया मैं थी मैं। ......
Nice update Niharika ji :applause:
Waiting for more :waiting:
 

chintu222

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जी,

शुक्रिया

कोशिश करती हूँ बड़े उप्दतेस कि लेकिन, अब घर के काम और लोक डाउन ..... उम्मीद है आप सब समझ गए होंगे , एक औरत को सब देखना पड़ता है.


जल्दी मिलती हूँ ......
Jaisa bhi aapko thik lage aap waise hee likhiye :approve:
 
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Kapil Bajaj

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आपकी कहानी बहुत अच्छी है ऐसे ही लिखते रहें और नई कहानी के लिए बहुत-बहुत बधाई हमें लगा था टाइटल पड़ते लैसबियन स्टोरी होगी देखते हैं भाभी पानी में क्या होता है पर कहानी अच्छी नई कहानी पर आपको बधाई ऐसे ही हिंदी में लिखते हैं आपका दोस्त????????
 
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Niharika

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आपकी कहानी बहुत अच्छी है ऐसे ही लिखते रहें और नई कहानी के लिए बहुत-बहुत बधाई हमें लगा था टाइटल पड़ते लैसबियन स्टोरी होगी देखते हैं भाभी पानी में क्या होता है पर कहानी अच्छी नई कहानी पर आपको बधाई ऐसे ही हिंदी में लिखते हैं आपका दोस्त????????

जी,

शुक्रिया आपका

सही कहा आपने टाइटल पढ़ कर , हम्म..... पर यह मेरी अपनी कहानी है, अनगिनित रंगों से भरी हुई उम्मीद करती हूँ काफी औरतो कि कहानी भी मिली जुली ही होगी हर रंग मिलेगा यहाँ अपना साथ बनाये रखिये .

निहारिका
 

Niharika

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ब्रा उतारी , जोबन को दबाया , एक हलचल उठी, और पानी की फुहार जिस्म पर पड़ती चली गई। ...................

जाने किस दुनिया मैं थी मैं। ......


...........................................
प्रिय सहेलिओं ,

निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,

अब आगे ,
.....
फिर , जल्दी से नहा कर बहार आयी , ब्रा पहनी , पैंटी पहनी , समीज भी, नहीं तो माँ कच्छ चबा जाती, पिंक सूट डाला जल्दी से सलवार का नाडा बंधा गीले बालो को सुखा कर टॉवल को बहार सूखने डाला , तभी गेट पैर देखा मेरी सहेली आ गई थी और माँ से बात कर रही थी.

मैंने हाथ हिला कर "हाई " बोलै और उसके पास आ गई,

माँ - रे निहारिका, ये कैसे आयी, और तू तैयार हो कर कहाँ जा रही है.

मैं- वो, कुछ नहीं माँ, इसको कुछ लेना था बाजार से , बस

माँ -अच्छा , ये भी ठीक हुआ, मैं भी बाजार जाने की सोच रही थी , पर किचन समेटना है, एक काम कर बराज जा तो रही हैं न तू, दो पीस लाल ब्लाउज के लेती आना और एक लाल और एक पीली फॉल साड़ी के लिए।

मैं - अच्छा माँ, अब जाउ।

माँ - अच्छा, पर आँचल जरा ठीक से , यु गाल पर मत चिपका लेना , बड़ी हो गई है समझा कर.

मैं - ओह , माँ, मैं समाज गई।

मैं सहेली का हाथ पकड़के लगभाग खेचतीं हुई बहार भागी , कही माँ कुछ न पूछ ले.

माँ- अंदर जाती हुई, कहती है , ये लड़किया भी न, हर डाब उछाल कूद, भागना , हसना, जाने कब सायानी होंगी।

सहेली - क्यों री , निहरिका की बच्ची, मेरी छोटी खेचते हुए बोली, मेरा काम था बाज़ार मैं , अभी जा कर बोलू आंटी को।

मैं - पागल है क्या तू, चल आगे बताती हु सब, घर से कुछ दूर आ कर। ....

सुन, मुझे न , वो बाजार से , उफ़ ,वो लानी है.

सहेली - पागल, क्या "वो", पूरी बात बता

मैं - यार, सुन मुझे नयी ब्रा लेनी है, और अकेले जा नहीं सकती और माँ से डर लगता और , शर्म भी आती है।

सहेली - अच्छा, हम्म, तो ये बात है , चल चलते हैं , कलर कौन सा लेना है,

मैं - पिंक, वाइट, रेड, ब्लैक

सहेली - पूरी दुकान लेनी है क्या। ......................
 

chintu222

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ब्रा उतारी , जोबन को दबाया , एक हलचल उठी, और पानी की फुहार जिस्म पर पड़ती चली गई। ...................

जाने किस दुनिया मैं थी मैं। ......

...........................................
प्रिय सहेलिओं ,

निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,

अब आगे ,
.....
फिर , जल्दी से नहा कर बहार आयी , ब्रा पहनी , पैंटी पहनी , समीज भी, नहीं तो माँ कच्छ चबा जाती, पिंक सूट डाला जल्दी से सलवार का नाडा बंधा गीले बालो को सुखा कर टॉवल को बहार सूखने डाला , तभी गेट पैर देखा मेरी सहेली आ गई थी और माँ से बात कर रही थी.

मैंने हाथ हिला कर "हाई " बोलै और उसके पास आ गई,

माँ - रे निहारिका, ये कैसे आयी, और तू तैयार हो कर कहाँ जा रही है.

मैं- वो, कुछ नहीं माँ, इसको कुछ लेना था बाजार से , बस

माँ -अच्छा , ये भी ठीक हुआ, मैं भी बाजार जाने की सोच रही थी , पर किचन समेटना है, एक काम कर बराज जा तो रही हैं न तू, दो पीस लाल ब्लाउज के लेती आना और एक लाल और एक पीली फॉल साड़ी के लिए।

मैं - अच्छा माँ, अब जाउ।

माँ - अच्छा, पर आँचल जरा ठीक से , यु गाल पर मत चिपका लेना , बड़ी हो गई है समझा कर.

मैं - ओह , माँ, मैं समाज गई।

मैं सहेली का हाथ पकड़के लगभाग खेचतीं हुई बहार भागी , कही माँ कुछ न पूछ ले.

माँ- अंदर जाती हुई, कहती है , ये लड़किया भी न, हर डाब उछाल कूद, भागना , हसना, जाने कब सायानी होंगी।

सहेली - क्यों री , निहरिका की बच्ची, मेरी छोटी खेचते हुए बोली, मेरा काम था बाज़ार मैं , अभी जा कर बोलू आंटी को।

मैं - पागल है क्या तू, चल आगे बताती हु सब, घर से कुछ दूर आ कर। ....

सुन, मुझे न , वो बाजार से , उफ़ ,वो लानी है.

सहेली - पागल, क्या "वो", पूरी बात बता

मैं - यार, सुन मुझे नयी ब्रा लेनी है, और अकेले जा नहीं सकती और माँ से डर लगता और , शर्म भी आती है।

सहेली - अच्छा, हम्म, तो ये बात है , चल चलते हैं , कलर कौन सा लेना है,

मैं - पिंक, वाइट, रेड, ब्लैक


सहेली - पूरी दुकान लेनी है क्या। ......................
Nice update Niharika ji :claps: :claps:
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Nice story...waiting for nest.
 

Iron Man

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प्रिय सहेलिओं ,

निहारिका का प्यार भरा नमस्कार ,

अब आगे ,
.....


चढ़ती जवानी के साथ जोबन पर निहकर आना शुरू हुआ , बस फिर क्या था , नहाते हुए मेरा पसंदीदा खेल , जोबन के साथ खेलना, छूना, दबाना, मसलना। .... गिला होना।

बाथरूम मैं एक - डेढ़ घंटा कैसे निकल जाता था पता ही नहीं चलता था , जब तक माँ की आवाज़ नहीं आती। .. "अरे अंदर ही रहना है क्या , जल्दी आ किचन मैं। "



उफ़, इतना टाइम तो आज भी लगता है। ............. बाथरूम मैं.

मेरे पास सिंपल कुर्ती थी , ढीली व् पायजामा , एक दिन मेरी सहेली ने अपनी नै ड्रेस दिखाई मैंने भी उसकी तारीफ करी तब उसने कहा तू भी पहन के दिखा उसका साइज मेरे जितना था उस समय ३२ बी।

कुर्ती पिंक कलर की थी व् वाइट चूड़ीदार था , वाओ तू थो बड़ी सेक्सी लग रही है , मैं शर्मा गयी पर

एक बात घर कर गयी मुझे भी टाइट कुर्ती लेनी है , जिसमें मेरा जोबन साफ़ दिखे। ...................... औरत की ज़िंदगी एक के बाद एक पड़ाव आते और जाते हैं ... सचमुच उसकी चद्ती जवानी के माइलस्टोन होते हैं.

यह औरत ही समझ सकती है। पहली बार ब्रा का खरीदना ....... सचमुच एक अलग अहसास होता है, जब जोबन दिखने शुरू होते हैं तो माँ की हिदायत व् पूरी नज़र होती है लड़की पर। .. कही फिसल न जाये।

मुझे याद है , पहली बार ब्रा का खरीदना ..... एक पुरानी ब्रा थी माँ की, ३४ बी की, पर मेरी साइज ३२ बी थी पिन लगा के पहेली बार पहनी थी, आज तो एक नई ब्रा लानी है बाजार से। ..... उलझन अकेले कैसे जाओ

फिर सोचा माँ के साथ , न बाबा कुछ बोल दिया तो, पड़ोस भाभी से बात करू उफ़ क्या सोचेगी जवानी आ रही है लड़की पे , क्या करू यही सोचते संडे का आधा दिन निकल गया , दोपहर को खाना खा कर जैसे तैसे खा लिया ,

पर अब क्या करू हिम्मत कर के सहेली को फ़ोन लगाने के लिए पड़ोस की भाभी के पास गयी , भाभी नमस्ते

भाभी - आओ निहारिका , कहा रहती हो आजकल ?

मैं - भांभी यही तो, घर के काम बस , और क्या

भाभी - कैसे आना हुआ ?

- मैं - भाभी, वो एक फ़ोन करना थी, सहेली को

भाभी - अच्छा, आजा कर ले

मैं - हम्म

अब , मन मैं सोच रही थी कैसे बात करुँगी ? भाभी पास ही होंगी , सुन लेंगी उफ़। करना तो है ही आज

मैंने फ़ोन उठाया , दबा दिए फ़ोन नंबर , इधर फ़ोन की रिंग जाती , उधर मेरी धड़कन। ...............

है ,कैसे है तू, मैं निहारिका , खाना खा लिया तूने ?

- सहेली - हाँ , खा लिया ,और तू ने ?

मैं - हम्म,

सहेली - क्या हुआ , परेशान है , बता क्या बात है


मैं - वो , यार बाजार जाना था। .................
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मैं - वो , यार बाजार जाना था। ...................

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अब आगे ,
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सहेली - तो चल न, कहाँ जाना है, क्या लाना है , कब चलना है,

मैं - उफ़, इतने सवाल , यह लड़की भी न , कुछ काम है, आजा मेरे घर जल्दी

सहेली - अच्छा बाबा आती हूँ , ओके बाय

मैं - हम्म,

फिर फ़ोन रख दिया, मन मैं सोचा की, अब भाभी ज़रूर पूछेगी तो क्या बोलूंगी

भाभी - ओह ू, तो बाजार जाना है , शॉपिंग कुछ खास , मैं भी चलू

मैं - ओह, भाभी कुछ खास नहीं , बस कुछ बुक्स वग़ैरा

भाभी - हम्म, ठीक है,

मैं - बाय , भाभी ,मन मैं सोचा , बच गए।

भाभी - बाई, निहारिका

घर जा कर , सोचा कुछ चेंज कर लू, बाजार जाना है , एक नया सूट जो पिंक कलर का था निकल लिया , सोचा नहा भी लू, मेरी सहेली जरा लेट लतीफ़ है , जब तक नहा लेती हूँ.

टॉवल ले कर , बाथरूम मैं गई , धड़कन तेज़ हो रही थी, वो पूछेगी की क्या लाना है, उफ़, पागल घर मैं न बोल दे सब के सामने , ये सोचते हुए कुर्ती उतरी , फिर सलवार, पैंटी उतर के एक और रख दी।

मैं सिर्फ ब्रा मै थी, और आईने मैं खुद को देख रही रही थी , सोच रही थी कैसे ब्रा लू , किस कलर की, शेप कैसा लू, नयी ब्रा मैं कैसी लगूंगी। ......................

फिर शावर ऑन किया , ब्रा उतारी , जोबन को दबाया , एक हलचल उठी, और पानी की फुहार जिस्म पर पड़ती चली गई।

पानी कि फुहार जिस्म और जोबन पर पड़ते ही एक करंट सा लगा जो जोबन से होते हुए सीधा मेरी "नीचे वाली" तक जा पहुंचा और साथ ही मेरा हाथ भी .....
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फिर , जल्दी से नहा कर बहार आयी , ब्रा पहनी , पैंटी पहनी , समीज भी, नहीं तो माँ कच्छ चबा जाती, पिंक सूट डाला जल्दी से सलवार का नाडा बंधा गीले बालो को सुखा कर टॉवल को बहार सूखने डाला , तभी गेट पैर देखा मेरी सहेली आ गई थी और माँ से बात कर रही थी.

मैंने हाथ हिला कर "हाई " बोलै और उसके पास आ गई,

माँ - रे निहारिका, ये कैसे आयी, और तू तैयार हो कर कहाँ जा रही है.

मैं- वो, कुछ नहीं माँ, इसको कुछ लेना था बाजार से , बस

माँ -अच्छा , ये भी ठीक हुआ, मैं भी बाजार जाने की सोच रही थी , पर किचन समेटना है, एक काम कर बराज जा तो रही हैं न तू, दो पीस लाल ब्लाउज के लेती आना और एक लाल और एक पीली फॉल साड़ी के लिए।

मैं - अच्छा माँ, अब जाउ।

माँ - अच्छा, पर आँचल जरा ठीक से , यु गाल पर मत चिपका लेना , बड़ी हो गई है समझा कर.

मैं - ओह , माँ, मैं समाज गई।

मैं सहेली का हाथ पकड़के लगभाग खेचतीं हुई बहार भागी , कही माँ कुछ न पूछ ले.

माँ- अंदर जाती हुई, कहती है , ये लड़किया भी न, हर डाब उछाल कूद, भागना , हसना, जाने कब सायानी होंगी।

सहेली - क्यों री , निहरिका की बच्ची, मेरी छोटी खेचते हुए बोली, मेरा काम था बाज़ार मैं , अभी जा कर बोलू आंटी को।

मैं - पागल है क्या तू, चल आगे बताती हु सब, घर से कुछ दूर आ कर। ....

सुन, मुझे न , वो बाजार से , उफ़ ,वो लानी है.

सहेली - पागल, क्या "वो", पूरी बात बता

मैं - यार, सुन मुझे नयी ब्रा लेनी है, और अकेले जा नहीं सकती और माँ से डर लगता और , शर्म भी आती है।

सहेली - अच्छा, हम्म, तो ये बात है , चल चलते हैं , कलर कौन सा लेना है,

मैं - पिंक, वाइट, रेड, ब्लैक


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Jawani ki Alahdpan ki aadayeein
 
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