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Incest वशीकरण

Lovely lover

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Welcome. sundar sexy shaandaar.
 

Ek number

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वश मे करने के बाद की भी कई बाते थी जिसे पढ़ने में पूरा दिन लगने वाला था , और इतना टाइम उसके पास नही था
पर इतना तो वो पढ़ ही चुकी थी की वो प्रक्रिया आज भी करेंगे, क्योंकि 3 बार करने के बाद ही वो प्रक्रिया पूरी होनी थी

एक बार फिर से रात वाली बात का सोचकर उसकी बुर गीली हुए जा रही थी ,मन तो उसका कर रहा था की अपनी उँगलियाँ डालकर उसे रगड़ डाले

पर सबसे पहले उसे वो किताब वापिस रखनी थी, क्योंकि पिताजी को इसी में से देखकर वो मन्त्र पढ़ने थे ,आज की रात और भी ज्यादा मजेदार होने वाली थी

अब आगे
**********

किताब वापिस रखने के बाद मैने कमरे की सॉफ सफाई का काम भी निपटाया
क्योंकि मैं नही चाहती थी की माँ को मुझे ताने मारने का कोई और मौका मिल सके

फिर आराम से अपने कमरे में आकर लेट गयी, मोबाइल में मैने किताब के कई पन्नो की तस्वीर भी खींच ली थी
ताकि बाद में उस विद्या को और गहराई से समझ सकूँ
जिसका फायदा उठाकर पिताजी अपनी जवान बेटियो से मज़े लेने का सोच रहे थे

आज मुझे ऐसा एहसास हो रहा था जैसे परीक्षा से पहले प्रश्न पत्र लीक होकर मेरे हाथ लग गया हो
और आने वाली परीक्षा का अब मैं उसी प्रकार से अभ्यास करने वाली थी जैसा प्रश्नपत्र था

दोपहर को पिताजी आए और खाना खाने के बाद रोज की तरह अपने कमरे में कुछ देर तक सुस्ताने के लिए चले गये
मैं बाहर वाली खिड़की से छुप कर देख रही थी, वो अपने बेड पर लेटकर उसी पुस्तक को पढ़ रहे थे
यानी आज रात की तैयारी चल रही थी

मेरी योनि में एक सुरसुरी सी होने लगी
माँ पड़ोस वाली चाची के घर गयी हुई थी गप्पे मारने
मैं पिताजी के पास चल दी अंदर, कुछ मज़े लेने

पिताजी ने जैसे ही मुझे आते देखा, झट से उस किताब को तकिये के नीचे छुपा दिया, मैं मुस्कुरा दी, क्योंकि जब सच पता हो तो सामने वाले की हरकत अक्सर ऐसी मुस्कान ले आती है चेहरे पर



पिताजी भी जानते थे की माँ पड़ोस में गयी है और इस वक़्त सिर्फ़ हम दोनो ही है घर पर
वो अपनी बाहें फेला कर बोले

पिताजी : “आजा मेरी लाडो….अच्छा हुआ आज कॉलेज नही गयी, बाहर लू सी चल री है आज तो, मेरी बच्ची काली पड़ जाती”
मैं : “रहने दो पिताजी, इतनी भी गोरी नही हूँ मैं , दीदी तो मुझे कालो-2 कहकर बुलाती रहती है”
पिताजी : “अर्रे, पागल है वो चोरी तो…देख तो कैसे केसर दूध जैसा रंग है मेरी बेटी है, एकदम हेरोइन जैसी लगती है”

तब तक मैं आकर उनके बेड के किनारे पर बैठ गयी, वो चेयर पर होते तो पक्का मुझे गोद मे बिठा लेते
पर यहाँ भी उन्होने मुझे स्पर्श करने का अवसर नही छोड़ा

मेरे पेट पर अपनी बाहो का आलिंगन बनाकर मुझे अपनी तरफ खींचकर चिपका लिया
अपनी तारीफ सुनकर अब मेरे चेहरे और आँखो में एक चमक आ चुकी थी
तारीफ आख़िर किसे पसंद नही होती

मैं : “पिताजी, सिर्फ़ आप ही हो पूरे घर में जो मुझसे इतना प्यार करते हो, वरना माँ का तो आपको पता ही है”

पिताजी दूसरे हाथ से मेरी कमर को सहलाते हुए बोले : “अर्रे तू उसकी फ़िक्र ना किया करे, मैने उसको समझा रखा है की मेरी चाँद सी बच्ची को ज़्यादा परेशान ना किया करे, वरना मुझसे बुरा कोई ना होवेगा “

कहते हुए उनके हाथ अचानक मेरी ब्रा के हुक्स पर आकर रुक गये

मेरे दिल की धड़कन तेज हो गयी क्योंकि आज तक मैने किसी को भी इतना करीब नही आने दिया था की कोई मेरी ब्रा के स्ट्रेप्स को भी टच कर सके

पर यहाँ मैं अंजान बनने का नाटक करती हुई उनसे बात करने में मशगूल रही
जैसे उस छोटी से बात से मुझे कोई फ़र्क ही नही पड़ रहा था

पर पिताजी के अनुभवी हाथ बता रहे थे की वो उंगली और अंगूठे को क्लिच करेंगे तो एक पल में वो ब्रा खुल जाएगी
मेरी तो साँसे रुक गयी ये सोचकर की पिताजी ने ये कर दिया तो मैं कैसे रिएक्ट करूँगी
पर उन्होने ऐसा कुछ नही किया

पिताजी : “अच्छा वो सब छोड़, तुझे नींद तो अच्छे से आ रही है ना आजकल “

मेरी आँखे गोल हो गयी ये सुनकर
फिर समझी की आख़िर पिताजी ये क्यो पूछ रहे है

मैं : “हां पिताजी, आजकल तो मैं भी दीदी की तरहा कुंभकरण की नींद सोने लगी हूँ , कॉलेज से आकर इतना थक जाती हूँ की रात को होश ही नही रहता की कहाँ पड़ी हूँ , ऐसे में तो कोई मुझे उठाकर भी ले जाए तो मुझे पता ना चले हा हा”

पिताजी मुस्कुरा दिए
उनकी आँखे चमक उठी थी ये सुनकर और शायद रात वाले प्रोग्राम में कुछ एक्सट्रा होने वाला था

तभी माँ आ गयी, और मैं दरवाजा खोलने भागी
उनके आलिंगन से निकलते हुए उनका हाथ एक बार फिर से मेरे स्तनो को छू गया

और इस बार तो मैने उनकी उंगलियो की हल्की सी पकड़ को भी महसूस किया अपने स्तन पर

पर मैं भागी ही ऐसी तेज़ी से थी की वो मेरे चेहरे पर आए उस एहसास को ना देख पाए जिसे महसूस करके मेरे होंठो से एक सिसकारी निकल गयी थी

ये पिताजी मेरी जान लेकर रहेंगे
दरवाजा खोला तो मैं हाँफ सी रही थी
माँ की नजरें सबसे पहले मेरे ढोँकनी की चल से चल रहे सीने पर गयी और बोली

“दिन ब दिन जवान हुए जा रही है पर अकल ढेले भर की भी नही है, गले में चुन्नी लेकर घूमा कर, देख ज़रा, बटन चमकाए फिर रही है”

मैने नीचे देखा तो माँ सच कह रही थी, मेरे निप्पल ब्रा पहने होने के बावजूद चमक कर टी शर्ट से बाहर दिख रहे थे



अब उन्हे कौन समझाए की पहली बार की छुवन का एहसास ही ऐसा है
वो तो निप्पल बेचारे मेरे सीने से बँधे हुए है, वरना इनका बस चले तो फाड़ कर बाहर निकल आए और पूरे गाँव को इस एहसास से अवगत करवाए

मैं वापिस अपने कमरे में चली गयी, माँ अंदर गयी तो पिताजी को सोते हुए पाया
पिताजी भी शायद नही चाहते थे की उनकी वजह से माँ को किसी भी प्रकार के शक का मौका मिले

करीब एक घंटे बाद पिताजी उठे और खेतो में भाई के पास चले गये
मैं भी तब तक सामान्य होकर बाहर आ चुकी थी
दीदी भी स्कूल से आ गयी थी तब तक

शाम को हर दिन की तरह मैने माँ के साथ किचन में उनकी मदद की

और फिर वो पल भी आ गया जिसका मैं सुबह से इंतजार कर रही थी
खाना खाकर मैं दीदी के साथ अपने रूम में आ गयी

रात के वक़्त मुझे दीदी के साथ चिपकने में और मस्ती करने में मज़ा आता था
जब उनका मूड होता तो वो भी मस्ती करती और जब थकी हुई होती तो मुझे डाँटकर पीछे करती और सो जाती

आज दीदी का मूड अच्छा था
मैं उनसे लिपटी तो ये एहसास हो गया की उन्होने ब्रा नही पहनी है
उनके बूब्स मेरे से ज़्यादा बड़े है, माँ के जितने

इसलिए उन मोटे स्तनो को छूने का एहसास काफ़ी अक्चा था
वो मुझे अक्सर ऐसा करने से रोकती पर मैं नही मानती थी



कुछ देर बाद की मस्ती के बाद दीदी सो गयी, उन्हे स्कूल भी जाना था
जाना तो मेरा भी ज़रूरी था कॉलेज पर मैं आज रात मिलने वाले मज़े को खोना नही चाहती थी

अब तक मुझे टाइम का तो पता चल ही चूका था
4 बजे से पहले नही आने वाले थे पिताजी
इसलिए मैने अपने कान के पास मोबाइल में अलार्म लगा कर रख लिया ताकि नींद आधा घंटा पहले खुल जाए

और जब अलार्म बजा तो मैं एकदम बदहवास सी होकर उठी और जल्दी से अलार्म बंद किया ताकि उसे कोई और ना सुन ले
करीब 10 मिनट में मैं सामान्य हो गयी, अब मेरी नींद पूरी तरह से खुल चुकी थी

दीदी को मैने हिला डुलाकर देखा, वो तो घोड़े बेचकर सो रही थी हमेशा की तरह
मैने चेक करने के लिए उनके बूब्स को पकड़ कर दबाया पर उनकी नींद में कोई खलल नही पड़ा
फिर मैंने एक हाथ उनकी शॉर्ट्स में डालकर उनकी मखमली गांड को भी सहलाया और नीचे लेजाकर उनकी योनि को भी छुआ
मैं आश्चर्यचकित रह गयी ये देखकर की उन्होने अपनी योनि के बाल सॉफ कर रखे है

और एक मैं हूँ , मैने आज तक वहां शेव करने की सोची ही नही थी
घना जंगल था मेरी योनि पर



और तभी हमारे रूम का दरवाजा खुला
मैने अपना हाथ वापिस खींच लिया और पीठ के बल सामने मुँह करके सोने का नाटक करने लगी
मैं अपना चेहरा पिताजी की तरफ रखना चाहती थी ताकि मैं उनकी हरकतें देख सकूँ

वो कल की तरह हमारे बेड पर आकर बैठ गये और अपने हाथ में पकड़ी किताब को उन्होने खोल कर अपनी गोद में रख लिया
सिर्फ़ ज़ीरो वॉट का बल्ब जल रहा था कमरे में
पर पिताजी की नज़रें उसमें भी पढ़ सकने में समर्थ थी
मैं भी हैरान थी

खैर, मंत्र पढ़ने के बाद उन्होने अपनी धोती से अपना लिंग बाहर निकाला
वो पहले से अकड़ कर खड़ा हुआ था

मैने मूंदी आँखो से उसे देखा, आज तो वो कल से ज़्यादा कड़क और सुंदर लग रहा था
भले ही काला था पर मन कर रहा था की उसे हाथ में पकड़ कर उससे खेलूं
उसे अपने बूब्स से टच करवाऊं
Behtreen update
 

Ek number

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सस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्सस्स
इस एहसास ने मेरी योनि को एक पल में गीला कर दिया
अब वो अपने लिंग को उपर नीचे करने लगे
हर बार जब वो अपने हाथ को उस लिंग की चमड़ी से खींचकर नीचे करते तो उसका लाल रंग का टोपा चमक कर बाहर निकल आता और ना जाने क्यो मेरे मुँह से उस दृशय को देखकर पानी निकलने लगा

मन कर रहा था की मुँह से निकलने वाले पानी से इस टोपे को नहला दूँ
जैसा कुछ वीडियोस में देखा था मैने

उन्हे देखते वक़्त तो उबकाई सी आ रही थी
पर इस वक़्त वही सब करने की इच्छा मात्र से मेरा बदन जल सा रहा था

अचानक पिताजी के हाथ कल रात की तरह मेरी जाँघ पर आ लगे

और कल की तरह आज भी मेरे काँप रहे शरीर को देखकर वो कुछ पल के लिए मेरे चेहरे को देखकर ये कन्फर्म करने लगे की मैं जाग तो नही रही

फिर शायद उन्हे मेरी सुबह वाली बात याद आ गयी की मैं तो आजकल गहरी नींद सोती हूँ
फिर क्या था
उनका हाथ नाग बनकर मेरे शरीर के हर हिस्से को डसने लगा
और मैं अभागन उस दंश की पीड़ा से कराह भी नही सकती थी

अचानक पिताजी का हाथ सीधा मेरी योनि पर आ टीका
वो तो पहले से ही गीली थी
उन्हे भी नमीं का एहसास हुआ
वो उसे बेदर्दी से रगड़ने लगे

उफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ्फ़
मेरी योनि पर पहला स्पर्श और वो भी इतनी बेदर्दी से
काश कोई फरिश्ता आकर पिताजी के कान में ये कहदे की प्यार से करो, अपनी ही बच्ची है

पर पिताजी ठहरे ठेठ देहाती
उन्हे प्यार से क्या मतलब
फिर उनके हाथ थोड़ा उपर आकर मेरे पेट पर कुछ टटोलने लगे
मैं भी हैरान की यहाँ क्या होता है भला

फिर उन्होने अपनी उंगली से मेरी नाभि को कुरेदना शुरू कर दिया
अब तो मुझे गुदगुदी सी होने लगी



क्योंकि इस नाभि को कुरेदकर मस्ती करने का काम तो मैं दीदी के साथ अक्सर किया करती थी
इसमे भला क्या मिलता है
ये मेरी समझ से परे था

पर कुछ देर तक जब उन्होने नाभि को सहलाया तो मेरे शरीर में हर जगह वहां से निकल रही तरंगो का प्रवाह होने लगा
नाभि से लेकर मेरी योनि तक
और उपर की तरफ मेरे दोनो वक्षो पर भी

और वो तरंगे वहीं नही रुकी
मेरी गर्दन से होती हुई वो मेरे पूरे शरीर और मस्तिष्क को भी झनझना रही थी

और फिर पिताजी का हाथ थोड़ा और उपर आया
अब मेरा दिल जोरों से धक् -2 करने लगा
क्योंकि अगला स्टेशन मेरे स्तन थे
और वही हुआ

उनके हाथ का मुसाफिर सीधा आकर मेरे उस स्टेशन पर उतरा और उसे अपने पंजो में जकड़ लिया
मेरी तो साँसे उपर की उपर और नीचे की नीचे रह गयी
उनके बाएँ हाथ में मेरा दाँया स्तन था
पूरा का पूरा
मेरे कड़क हो चुके निप्पल उनकी हथेली पर चुभ रहे थे
पर मज़ाल थी की वो अपना हाथ हटा लेते
उपर से वो उसे दबाने लगे
जैसे वो कोई बॉल हो



हाआआआआआयययययययययययययी
क्या उत्तेजक एहसास था ये
इस वक़्त पिताजी अगर फिर से मेरी योनि को छू लेते तो उन्हे ऐसा लगता जैसे किसी चाशनी में हाथ दे मारा हो
इतना पानी निकल रहा था वहां से

पर उन्हे तो खेलने के लिए जैसे कोई खिलोना मिल गया था
वो उस बॉल को दबाकर, निचोड़कर और हर तरह से महसूस करके देख रहे थे
शायद उन्होने मेरी गहरी नींद वाली बात को कुछ ज़्यादा ही गंभीरता से ले लिया था

इतना स्तन मर्दन तो कोई मुझे नींद में भी करता तो मेरी गहरी से गहरी नींद भी खुल जाती
यहाँ तो मैं पूरी जाग रही थी

फिर पिताजी ने अपना हाथ वहां से हटा लिया और उस हाथ से अपने लिंग को घिसने लगे
फिर जो हाथ इतनी देर से घिसाई कर रहा था उस हाथ से वो दीदी को टटोलने लगे
मैने अधखुली आँखो से देखा, उसे तो वो मेरे से भी ज़्यादा रगड़ रहे थे
पर मज़ाल थी की दीदी जाग जाती
वो उसी प्रकार खर्राटे मारती हुई सोती रही

फिर वो पल भी आ गया जब उनकी साँसे गहरी होने लगी
मैं समझ गयी की मौसम बिगड़ रहा है
किसी भी समय बारिश हो सकती है
मेरा अंदाज़ा सही निकला
पिताजी के लिंग से सफेद बूंदे बारिश बनकर हम दोनो बहनो के शरीर को भिगोने लगी



पिताजी की आँखे बंद थी
वो तो बस अपना पाइप कभी इधर और कभी उधर करके हम दोनो को बराबर मात्रा में भिगो रहे थे

पर मैं आँखे खोलकर और साथ ही अपना मुँह खोलकर उन बूँदो को अपने मुँह में भरकर उनका सेवन करने मे लगी थी

कुछ ही पलों में वो अध्यात्मिक खेल ख़त्म हो गया
और पिताजी ने अपना तान तपूरा समेटा और वहां से निकल गये

और मैने कल रात की तरह अपने और दीदी के शरीर पर लगी उस स्वादिष्ट मलाई को इकट्ठा करके चाट लिया
आज पिताजी के 3 दिन की साधना संपन्न हो चुकी थी
अब देखना ये था की इसका क्या फायदा मिलता है उन्हे

क्या सच में इसके बाद वो हम दोनो को अपने वश में कर पाएँगे
ये तो आने वाला कल ही बताएगा
Mast update
 

sophistications

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Nice update
 

Curiousbull

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Kya likha hai wah kya upmae di adbhut. Station barish ki bauchhar. 😀😀😀😀
 
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chandamadam

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Hello
I am a great fan of your stories... I remember reading and loving your story of widow and the priest almost half a decade ago...
 
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Ashadaran update
 

malikarman

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सस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्सस्स
इस एहसास ने मेरी योनि को एक पल में गीला कर दिया
अब वो अपने लिंग को उपर नीचे करने लगे
हर बार जब वो अपने हाथ को उस लिंग की चमड़ी से खींचकर नीचे करते तो उसका लाल रंग का टोपा चमक कर बाहर निकल आता और ना जाने क्यो मेरे मुँह से उस दृशय को देखकर पानी निकलने लगा

मन कर रहा था की मुँह से निकलने वाले पानी से इस टोपे को नहला दूँ
जैसा कुछ वीडियोस में देखा था मैने

उन्हे देखते वक़्त तो उबकाई सी आ रही थी
पर इस वक़्त वही सब करने की इच्छा मात्र से मेरा बदन जल सा रहा था

अचानक पिताजी के हाथ कल रात की तरह मेरी जाँघ पर आ लगे

और कल की तरह आज भी मेरे काँप रहे शरीर को देखकर वो कुछ पल के लिए मेरे चेहरे को देखकर ये कन्फर्म करने लगे की मैं जाग तो नही रही

फिर शायद उन्हे मेरी सुबह वाली बात याद आ गयी की मैं तो आजकल गहरी नींद सोती हूँ
फिर क्या था
उनका हाथ नाग बनकर मेरे शरीर के हर हिस्से को डसने लगा
और मैं अभागन उस दंश की पीड़ा से कराह भी नही सकती थी

अचानक पिताजी का हाथ सीधा मेरी योनि पर आ टीका
वो तो पहले से ही गीली थी
उन्हे भी नमीं का एहसास हुआ
वो उसे बेदर्दी से रगड़ने लगे

उफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ्फ़
मेरी योनि पर पहला स्पर्श और वो भी इतनी बेदर्दी से
काश कोई फरिश्ता आकर पिताजी के कान में ये कहदे की प्यार से करो, अपनी ही बच्ची है

पर पिताजी ठहरे ठेठ देहाती
उन्हे प्यार से क्या मतलब
फिर उनके हाथ थोड़ा उपर आकर मेरे पेट पर कुछ टटोलने लगे
मैं भी हैरान की यहाँ क्या होता है भला

फिर उन्होने अपनी उंगली से मेरी नाभि को कुरेदना शुरू कर दिया
अब तो मुझे गुदगुदी सी होने लगी



क्योंकि इस नाभि को कुरेदकर मस्ती करने का काम तो मैं दीदी के साथ अक्सर किया करती थी
इसमे भला क्या मिलता है
ये मेरी समझ से परे था

पर कुछ देर तक जब उन्होने नाभि को सहलाया तो मेरे शरीर में हर जगह वहां से निकल रही तरंगो का प्रवाह होने लगा
नाभि से लेकर मेरी योनि तक
और उपर की तरफ मेरे दोनो वक्षो पर भी

और वो तरंगे वहीं नही रुकी
मेरी गर्दन से होती हुई वो मेरे पूरे शरीर और मस्तिष्क को भी झनझना रही थी

और फिर पिताजी का हाथ थोड़ा और उपर आया
अब मेरा दिल जोरों से धक् -2 करने लगा
क्योंकि अगला स्टेशन मेरे स्तन थे
और वही हुआ

उनके हाथ का मुसाफिर सीधा आकर मेरे उस स्टेशन पर उतरा और उसे अपने पंजो में जकड़ लिया
मेरी तो साँसे उपर की उपर और नीचे की नीचे रह गयी
उनके बाएँ हाथ में मेरा दाँया स्तन था
पूरा का पूरा
मेरे कड़क हो चुके निप्पल उनकी हथेली पर चुभ रहे थे
पर मज़ाल थी की वो अपना हाथ हटा लेते
उपर से वो उसे दबाने लगे
जैसे वो कोई बॉल हो



हाआआआआआयययययययययययययी
क्या उत्तेजक एहसास था ये
इस वक़्त पिताजी अगर फिर से मेरी योनि को छू लेते तो उन्हे ऐसा लगता जैसे किसी चाशनी में हाथ दे मारा हो
इतना पानी निकल रहा था वहां से

पर उन्हे तो खेलने के लिए जैसे कोई खिलोना मिल गया था
वो उस बॉल को दबाकर, निचोड़कर और हर तरह से महसूस करके देख रहे थे
शायद उन्होने मेरी गहरी नींद वाली बात को कुछ ज़्यादा ही गंभीरता से ले लिया था

इतना स्तन मर्दन तो कोई मुझे नींद में भी करता तो मेरी गहरी से गहरी नींद भी खुल जाती
यहाँ तो मैं पूरी जाग रही थी

फिर पिताजी ने अपना हाथ वहां से हटा लिया और उस हाथ से अपने लिंग को घिसने लगे
फिर जो हाथ इतनी देर से घिसाई कर रहा था उस हाथ से वो दीदी को टटोलने लगे
मैने अधखुली आँखो से देखा, उसे तो वो मेरे से भी ज़्यादा रगड़ रहे थे
पर मज़ाल थी की दीदी जाग जाती
वो उसी प्रकार खर्राटे मारती हुई सोती रही

फिर वो पल भी आ गया जब उनकी साँसे गहरी होने लगी
मैं समझ गयी की मौसम बिगड़ रहा है
किसी भी समय बारिश हो सकती है
मेरा अंदाज़ा सही निकला
पिताजी के लिंग से सफेद बूंदे बारिश बनकर हम दोनो बहनो के शरीर को भिगोने लगी



पिताजी की आँखे बंद थी
वो तो बस अपना पाइप कभी इधर और कभी उधर करके हम दोनो को बराबर मात्रा में भिगो रहे थे

पर मैं आँखे खोलकर और साथ ही अपना मुँह खोलकर उन बूँदो को अपने मुँह में भरकर उनका सेवन करने मे लगी थी

कुछ ही पलों में वो अध्यात्मिक खेल ख़त्म हो गया
और पिताजी ने अपना तान तपूरा समेटा और वहां से निकल गये

और मैने कल रात की तरह अपने और दीदी के शरीर पर लगी उस स्वादिष्ट मलाई को इकट्ठा करके चाट लिया
आज पिताजी के 3 दिन की साधना संपन्न हो चुकी थी
अब देखना ये था की इसका क्या फायदा मिलता है उन्हे

क्या सच में इसके बाद वो हम दोनो को अपने वश में कर पाएँगे
ये तो आने वाला कल ही बताएगा
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