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yes theek haiAshok bhai kya hua.taviyat to thik hai aapki
thanks
par kaam ki vajha se time nahi nikaal paa raha
karta hu jald hi post.
yes theek haiAshok bhai kya hua.taviyat to thik hai aapki
karna to yahi haiWaiting For Next Update
Abi papa ka chapter khatam kro, Bhai par focus kro yar.
Papa ko ab side kro , papa ne kar liya jo karna tha.
Abi Bhai ko laoo main lead me , bahane aur maa ke sath.
Agle update ka intzar rahega
Aap thik hai ye jaan kar khushi huyi update to aate rahenge bas aap or apke chahne wale thik rahe.koyi nahi aap apne hisab se update Denayes theek hai
thanks
par kaam ki vajha se time nahi nikaal paa raha
karta hu jald hi post.
Bole to jhakaas update Ashok bhai.aapke update ka hum aise hi intzaar nahi karte hai.ab next update ka besabri se intzaar rahegaऔर वो सब ध्यान आते ही एक बार फिर से मेरे निप्पल्स उसी आकार में आ गये जैसे अभी कुछ देर पहले तक थे
और तभी घेसू बाबा ने सीधा हमला उन्ही निप्पल्स पर बोल दिया और अपने दाढ़ी मूँछ से भरे चेहरे को मेरे स्तनों पर रखकर उसे ज़ोर से चुभलाने लगे
अब मैं चीख तो सकती नही थी
वरना मेरी सिसकारी ही निकल जाती कुछ इस तरह से
“सस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्सस्स………………………..आआआआआआआआआआआआआआआहह……. ओह बाबा……भेंन चोद ……मजाआाआआआ आआआआआआ गय्ाआआआआआ रे”
हालाँकि घेसू बाबा की दाढ़ी मूँछे मुझे बुरी तरह से चुभ रही थी
पर वो जिस अंदाज से मेरे बूब्स को चूस रहे थे उसका भी अलग ही मज़ा मिल रहा था
मेरा मन तो कर रहा था की उनके सिर को पकड़ कर अपनी छाती पर घिस डालु
पर हाथ उठाने की ताक़त नही छोड़ी थी उस निगोड़े धुंवे ने
कुछ देर तक मेरे दोनो बूब्स को अच्छे से चूसकर लाल करने के बाद वो मेरे होंठो की तरफ आए और उनपर धावा बोल दिया
डर के मारे मैने अपनी आँखे बंद कर ली
क्योंकि उनका चेहरा और दाँत इतने डरावने से लग रहे थे की आँखे खोलकर मैं स्मूच नही कर सकती थी
पर स्मूच करने की क्रिया में वो माहिर थे
जिस अंदाज से उन्होने मेरे बूब्स को चूसा था उसी जोशीले अंदाज से मेरे लिप्स को भी चूसा…
चबाया …
खाया…
और इतना मज़ा मिला मुझे की आँखे खोलनी ही पड़ी मुझे
और सामने उनकी हंसती हुई आँखे सॉफ दर्शा रही थी की उनकी कला की आगे मुझे हारता हुआ देखकर वो कितना खुश है
मैं भी मसूकुरा उठी और उनकी किस्स को एंजाय करने लगी
और फिर कुछ देर बाद नंबर आया उनके काले भुसन्ड लॅंड का
जो अपने विकराल रूप में आ चूका था
वो अपने लॅंड को मेरे चेहरे तक लेकर आए और उस लार टपकाते लॅंड को मेरे चेहरे से टकराकर उसकी कठोरता का एहसास मुझे दिलाने लगे
उनके लॅंड से भी वही मादकता से भरी खुश्बू आ रही थी
उस लॅंड पर हल्की सी सफेद पपड़ी जमी हुई थी
जो इस बात का सबूत था की शायद कुछ घंटो पहले ही उन्होने किसी की चूत मारी थी
और अपना लॅंड धोया तक नही था उसके बाद
घेसू बाबा ने उस मोटे लॅंड को मेरे गुलाबी होंठो के बीच फँसाया और धक्का मारकर उसे अंदर डालने लगे
वो इतना मोटा था की मैने पूरा मुँह खोल लिया फिर भी रगड़ - 2 कर बड़ी मुश्किल से वो अंदर जा पा रही था मेरे दांतो से रगड़ाई करवाता हुआ
और मादकता से भरी वो महक इसलिए भी थी क्योंकि उस लॅंड पर घेसू बाबा के वीर्य के साथ-2 किसी औरत की चूत से निकला पानी भी लगा हुआ था
पपड़ी अब पिघल कर रस बन चुकी थी
मेरे गरम मुँह मे जाने के बाद वो पिघलकर फिर से रस बन गया और मेरे गले से नीचे उतरता चला गया
उफफफफ्फ़
क्या मिठास थी उस लॅंड के पानी मे
ऐसा लगा जैसे ठंडा नारियल पानी पी लिया हो मैने
अपना पूरा लॅंड मेरी हलक तक उतारने के बाद वो रुके और फिर धीरे-2 उसे वापिस खींचने लगे
हालाँकि अभी करीब 2 इंच और लॅंड बाहर रह गया था उनका
पर मेरा गला पूरा अंत तक भर चुका था
इसके बाद तो मेरे टॉन्सिल्स को फाड़कर अंदर घुस जाना था उसने
वो अपने लॅंड को मेरे मुँह के अंदर बाहर करते रहे और अपनी आँखे बंद करके मज़े लेते रहे
मेरी नज़रें पापा की तरफ गयी
मुझे तो लगा था की अपनी बेटी को इस हालत मे देखकर वो झेंप रहे होंगे
पर वो तो अपने लॅंड को धोती से बाहर निकालकर मसलने में लगे थे और इस सीन का पूरा मज़ा ले रहे थे
पता नही कौनसी साँठगाँठ की थी इन्होने बाबा के साथ जो अपनी जवान बेटी को उनके हवाले कर दिया
पर जो भी था
इस सबमे मुझे मज़ा बहुत आ रहा था इस वक़्त
सिर्फ़ हाथ पैर और ज़ुबान ही तो नही चला पा रही थी
बाकी सब तो सही ही हो रहा था मेरे साथ
अचानक घेसू के लॅंड ने फूलना शुरू कर दिया
और ये इस बात का प्रमाण था की वो झड़ने के करीब है
और वो ऐसा अभी तो हरगिज़ नही होने देना चाहता था
इसलिए उन्होने तुरंत अपना लॅंड मेरे मुँह से निकाल लिया
मेरे मुँह से थूक और लार की एक महीन सी डोर उनके लॅंड से बँधकर दूर तक खींचती चली गयी
फिर कुछ देर के लिए वो शांत हुए और मेरे बूब्स और नंगे पेट पर हाथ फेराते रहे
घेसू : “सुमेर, तेरी ये लड़की कुछ ज़्यादा ही गरम है….लगता है तेरे अलावा भी कई लॅंड ले चुकी है ये अपनी चूत और मुँह में, तभी इतनी गर्मी भरी हुई है इसके अंदर…“
पर पापा को इस वक़्त मेरी ये तारीफ सुनाई ही नही दे रही थी
वो तो मस्ती में अपने लॅंड को पीटने में लगे हुए थे
अब तक वो अपने सारे कपड़े निकाल कर फेंक चुके थे
मेरी नज़रें उनके लॅंड पर थी की अचानक मेरी चूत पर घेसू बाबा ने जीभ रख दी
कसम से
मैं हलक फाड़कर चिल्ला पड़ती उनकी इस हरकत से
पर चाहकर भी घुऊँ-2 के सिवा कुछ ना कर पाई
जो केंचुवा इतनी देर से मेरी चूत को खाने में लगा हुआ था
घेसू ने अपना पूरा मुँह खोलकर उस केंचुवे समेत मेरी चूत को निगल लिया और उसे चौसा आम की तरह चूसने लगे
मेरी चूत की हड्डी को गुठली समझकर बाकी का सारा गुदा वो अपने मुँह में भरकर उसका रस पीने में लगे रहे
मेरी चूत के दोनो होंठ पूरी तरह से उनके मुँह के अंदर थे
और वो उसके अंदर जीभ डालकर उसे रगड़ भी रहे थे और मेरी चूत को पूरा मुँह में डालकर चूस भी रहे थे
हााययय
ये कहाँ से सीख कर आया है इस जंगलिपन से चूत को चूसना
मैं किसी कोमा में पड़े मरीज की तरह उस बिस्तर पर पड़ी हुई सिर्फ़ तड़प रही थी
बाकी सब तो वो घेसू कर रहा था
और अचानक मेरी चूत ने ढेर सारा रस निकाल कर उनके मुँह मे छोड़ दिया
मैं बुरी तरह से झड़ने लगी
और हाँफते हुए मेरी आँखे उपर चढ़ गयी
जैसे मैं बेहोश होने वाली हूँ
पर वो निर्दयी ऐसा नही चाहता था अभी
वो सीधा हुआ और अपने लॅंड पर ढेर सारी थूक मलकर उसे मेरी चूत पर लगा दिया
और मेरी आँखो में देखते हुए एक तेज और करारे झटके के साथ उसे मेरी चूत की गहराइयों में उतार दिया
मैं मन ही मन चिल्ला उठी
“आआआआआआआआआआहह……………..सस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्सस्स…………… माआआआआअर डाआाआाअलाआाआ रीईई…….. उफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ्फ़ कितना मोटा लॅंड है तुम्हारा………”
पर ऐसा मैं सिर्फ़ आँखो ही आँखो से कह पाई उन्हे
वो आँखे जो बाहर निकल चुकी थी उस लॅंड के अंदर जाने की वजह से
वो झुके और उन्होने मेरे दाँये मुममे को मुँह में भरा और उसे चूस डाला
नीचे झुकने की वजह से बचा खुचा लॅंड भी मेरी चूत के अंदर घुसता चला गया
अब वो एक फूटा लॅंड पूरा का पूरा मेरी चूत के अंदर था
ऐसा लग रहा था जैसे मैंने एक साथ 2 मोटे खीरे अंदर डाल दिए हो
ऐसा भराव तो आज तक महसूस नही किया था मैने
पर इस कड़क लॅंड को अंदर महसूस करके मेरी उत्तेजना आज एक अलग ही मुकाम पर पहुँच चुकी थी
अभी कुछ देर पहले ही झड़ी थी मैं
पर उस मोटे लॅंड की वजह से एक बार फिर से सेंसेशन सा होने लगा अंदर
घेसू बाबा का लॅंड धीरे-2 अंदर बाहर होने लगा मेरी छूट के
उन्होने मेरी दोनो टांगे उपर उठाई और अपने लॅंड से मेरी चूत को बुरी तहर से पेलने लगे
और बुदबुदाने लगे
“सुमेर…तेरी ये लड़की रांड है रांड….. मेरा लॅंड कितनी आसानी से हर कोई अंदर नही ले पता….साली पहले भी लॅंड ले चुकी है….वरना अभी तक तो लहुलुहान हो जाती…..रांड है ये तेरी लड़की…लिख के ले ले मुझसे…”
वो बड़बड़ाते रहे और मेरी तारीफों के पुल बाँधते रहे
पापा भी उसे सुनकर फूले नही समा रहे थे
क्योंकि मोटा लॅंड तो उनका ही गया था मेरे अंदर
पर उन्हे ये पता नही था की उनका पहला लॅंड नही था मेरी चूत में जाने वाला
पर अभी के लिए तो मुझे अपनी लाइफ के सबसे मोटे और लंबे लॅंड को महसूस करने की फिकर थी
इसलिए मैं उस अंदर बाहर होते लॅंड से मिल रहे सेंसेशन को महसूस करके मन ही मन सिसकारियाँ मारती रही
और कुछ ही देर में वो पल आ गया जिसे घेसू बाबा ने बड़ी मुश्किल से आने से रोका हुआ था
यानी उनके लॅंड का झड़ाव
और पिछली बार की तरह ही आख़िरी वक़्त पर उन्होने लॅंड को बाहर खींच लिया
पर उसमे से निकलने वाले रस को बाहर निकलने से नही रोक सके
परिणामस्वरूप उनके लॅंड से निकला ढेर सारा गाड़ा रस मेरे पुर शरीर पर पिचकारियाँ बनकर बरसने लगा
और ये पिचकारी अकेली नही थी
दूसरे कोने से पापा भी भागते हुए से आए और मेरे चेहरे के उपर आकर उन्होने अपने लॅंड का सारा माल निकालना शुरू कर दिया
जिस आशीर्वाद की बात पापा कर रहे थे वो दोनो ने मिलकर एक साथ दे दिया था मुझे…
और उस आशीर्वाद में नहाई हुई मैं एक बार फिर से झड़कर
बिना कोई आवाज़ निकाले
गहरी साँसे लेती हुई उन दोनो मर्दों के सामने नंगी पड़ी थी
[/url]
मेरे पुर शरीर पर उनके लॅंड से निकली स्याही ने अपनी कहानियाँ लिख दी थी
जो बरसों तक मेरे जहन में एक कभी ना भूलने वाली कहानी बनकर रहने वाली थी
Shandaar updateअपने पिताजी को मैं मज़ा दे पाई, इस से अच्छी बात और क्या हो सकती है भला , ये तो हर जवान लड़की का फ़र्ज़ होता है
मैने अपना फ़र्ज़ पूरा कर दिया था, और सच में आज मैं बहुत खुश थी, चुदाई की ये नयी दुनिया मुझे बहुत पसंद आ रही थी , आने वाले दिनों में मैं इस मज़े को बरकरार रखना चाहती थी, और इन बातों से अनजान की पिताजी ने मेरे और दीदी के लिए अपने दोस्त घेसू बाबा से क्या सौदा कर रखा है, मैं अपने सपने बुनने में लगी थी की कैसे और कब और ज्यादा मजे मिल सकते हैं , वो तो आने वाला वक़्त ही बताएगा.
*********
अब आगे
*********
चुदाई के बाद तो मेरा शरीर ऐसा हो गया जैसे मैने कोई गहरा नशा किया हो
कुछ भी करने का या खाने का मन ही नही कर रहा था
इसलिए मैं चुपचाप जाकर अपने कमरे में सो गयी
माँ मंदिर से कब वापिस आई
दीदी कब आई स्कूल से
मुझे कुछ भी पता नही था
मैं तो बस बेसूध सी होकर सोती रही
ऐसी नींद में तो पिताजी अगर एक बार फिर से मुझे चोद देते तो भी शायद मुझे पता नही चलता
पर आज का कोटा तो मेरा पूरा हो चुका था
सोते हुए भी मुझे सपने में वही चुदाई याद आती रही
हर एंगल से
और सपनो में तो मैं भी पूरी तरह से एंजाय कर रही थी
क्योंकि उनमें तो मैं बिना किसी डर के
बिना किसी वशीकरण के
पिताजी से चुदवा रही थी
मैं सपना एन्जॉय कर रही थी की अचानक दीदी ने मुझे हिलाकर उठाया
“चंदा…ओ चंदा…उठ जा….अभी तक तेरी तबीयत ठीक नही हुई क्या ??….चल पिताजी के साथ चलना है बैंक, वो हमारे खाते खुलवाने है ना आज ..…”
मैं आधी नींद में थी
मैने आँखे खोली और बोली : “नही दीदी, मुझसे बिल्कुल भी उठा नही जा रहा…तू चली जा..मैं फिर कभी चली जाउंगी …”
पिताजी ने कल भी घर आते ही कहा था की बैंक जाकर दोनो के खाते खुलवाने है तैयार रहना
पर मेरी हालत ही नही थी कही जाने की
उन्होंने मुझे किसी काबिल छोड़ा ही नहीं था आज
चुदाई के चक्कर में बैंक का काम रह गया मेरा आज…
वो चली गयी और उसने पिताजी को सब ज्यो का त्यो बोल दिया
वो भी समझ गये की मैं ऐसा क्यों बोल रही हूँ
आख़िर उनकी चुदाई का ही तो असर था ये
इसलिए वो भी ज़्यादा कुछ नही बोले और दीदी को लेकर चले गये
पर मैं ये नही जानती थी की इसमे मेरा ही घाटा था
पिताजी मुझे और दीदी को बैंक के बहाने घेसू बाबा के पास ले जाना चाहते थे
जिसके लिए उन्होने उस से वादा किया था
ताकि बदले में वो उन्हे वो विद्या या शक्ति दे सके जो बिना किसी वशीकरण किताब या मंत्र के वही काम करती है
और उसमें कोई समय-सीमा भी नही रहती
दीदी को कितना मज़ा आने वाला था ये तो उन्हे वहां जाकर ही पता चलता
और उस मज़े से मैं वंचित रहने वाली थी आज
खैर
खाना खाने के बाद पिताजी अपने साथ दीदी को लेकर चल दिए और मैं एक बार फिर से नींद के आगोश में चुदाई के सपने देखने चली गयी
अब मेरे सोते-2 आपको ये कैसे पता चलेगा की दीदी के साथ क्या हुआ और उन्हे कैसा फील हुआ
इसलिए आगे की कहानी
दीदी की ज़ुबानी
चंद्रिका दीदी
****************
पापा के साथ उनकी बुलेट पर बैठकर जब मैं जा रही थी तो मुझे रह रहकर रात वाली बातें याद आ रही थी
आज दिन भर स्कूल में भी वही सब याद आता रहा
उनके लोहे जैसे मोटे लॅंड से चुदकर मेरी चूत का एक-2 पुर्जा हिल चूका था
असली चुदाई क्या होती है और कितनी गहराई तक होती है
ये मैने पापा का लॅंड अंदर लेने के बाद ही जाना था
पर ये पापा भी ना पता नही किस मनहूस वशीकरण किताब को लेकर घूमते रहते है
इतने समझदार हो चुके है
अभी तक तो उन्हे पता लग जाना चाहिए था की मेरा शरीर भी वही चाहता है जो वो वशीकरण की आढ़ में करते है
फिर इस बेकार की चीज़ को बीच में लाकर क्यों इस खेल का मज़ा किरकिरा करते है भला
खुल कर चोदो न अपनी बेटी को
अपनी है, किसी पड़ोसी की थोड़े ही है जो इतने आडम्बर करने में लगे हो
मुझे अपनी बेटी की तरह ही प्यार करो
खुल कर चोदो मुझे ताकि मैं भी खुल कर सिसकारियाँ ले पाऊं
और मज़े भी
ये सोचते-2 मैं मुस्कुरा दी और इसी सोच में कब मेरे निप्पल तनकर ब्रा में खड़े हो गये, मुझे भी पता नही चला
पर उन्हे मैं महसूस कर पा रही थी
मैने पापा के मोठे लंड को याद करते हुए अपना हाथ उठा कर अपनी चुचि को ज़ोर से दबा दिया
और ऐसा करते ही मेरे मुँह से एक संगीतमयी सिसकारी निकल पड़ी
हालाँकि ट्रैफिक का शोर काफ़ी ज़्यादा था पर फिर भी पास बैठे होने की वजह से पापा ने वो सिसकारी सुन ली और एकदम से बाइक रोक दी
“क्या हुआ बेटी….तू ठीक से तो बैठी है ना…”
मैं एकदम से झेंप गयी….और बोली : “उम्म्म…..हाँ …..पापा …..वो बस…पैर थोड़ा …..सायलेंसर पर लग गया….गर्म है वो काफ़ी….”
अब उनसे भला क्या कहती
पापा : “अर्रे…..बेटा…ध्यान से बैठ ना फिर….एक काम कर , दोनो तरफ पैर करके बैठ ले…फिर पैर फुटरेस्ट पर रहेंगे तो सायलेंसर से दूर रहेगी….तेरी माँ भी कितनी बार अपना पैर जला चुकी है इसपर….उसे तो वैसे बैठने में शर्म लगती है, पर तू तो जवान है, तू बैठ जा….”
बेटी की जवानी का गुणगान करते हुए वो मेरे तने हुए स्तनों को घूर कर देख रहे थे…
शायद उन्हे भी मेरे खड़े हुए निप्पल्स दिख गये थे…
वो अपने होंठो पर जीभ फेरा रहे थे, क्योंकि इन्ही होंठो से उन्होने मेरे निप्पल्स को रात को चूसा था
उन्होने जब अपने होंठो पर जीभ फेरी तो ऐसा लगा मानो मेरी चूत पर केंचुवा रेंग गया
होले -2 वो फिसलकर मेरी चिकनी चूत पर चल रहा है
ठीक वैसे ही जैसे कोई बड़े ही प्यार से चूत को जीभ से चाटता है..
काश पापा भी मेरी चूत को ऐसे ही आराम से चाटें
और मैं कोहनी के बल बेड पर लेटकर उन्हे ऐसा करते देख पाऊं
उफ़फ्फ़
ये सब महसूस करके कितना अच्छा एहसास होता है पूरे शरीर को
सच में
ये सैक्स नाम की चीज़ सबसे बढ़िया बनाई है उपर वाले ने
मैं पापा के कहे अनुसार दोनो तरफ पैर करके बैठ गयी और अपने हाथ उनके कंधो पर रख दिए
पर मेरे भरे हुए स्तन अब उनकी पीठ से सटकर उन्हे और मुझे एक अलग ही मज़ा दे रहे थे
मैं भी जान बूझकर हर आने वाले स्पीड ब्रेकर पर और बाइक की ब्रेक लगने पर उनके उपर गिर पड़ती
उनकी पीठ पर मेरे स्तन लगते ही ऐसा महसूस होता जैसे पानी से भरे दो बड़े गुब्बारे सख़्त दीवार से टकरा कर फेल गये हो
ऐसा करते-2 हम कब बैंक पहुँच गये, पता ही नहीं चला
पर मुझे क्या पता था की ये बैंक तो सिर्फ़ एक बहाना था
मकसद तो कही और का था
5 मिनट में ही मेरे खाते से संबंधित कागजो पर मेरे साइन हो गये और मेरा ख़ाता खुल गया
बैंक में पिताजी की जान पहचान के कई लोग थे
इसलिए कम टाइम लगा..
पर असली काम तो अब शुरू होने वाला था
बैंक से बाहर आते ही पापा बोले : “बेटा, मुझे एक जगह और जाना है, बस 10 मिनट का ही काम है, उसके बाद घर चलते है..”
मैने हाँ में सिर हिलाया और उनके पीछे दोनो तरफ पैर करके बैठ गयी
मुझे क्या पता था की उनकी क्या मंशा है
मैं तो बैठने के बाद उसी मासूमियत से अपनी चुचियाँ उनकी पीठ पर घिसती रही और उत्तेजित होती रही
कुछ ही देर मे पापा ने अपनी बाइक रोकी
ये जंगल में स्थित एक बड़ा सा झोपड़ा था
जैसे कोई साधु सन्यासी लोगो का होता है
वो मुझे लेकर अंदर चले गये
वहां एक बड़े से आसन पर एक बाबा बैठे थे
और उनके सामने करीब 4-5 लोग बैठकर बारी-2 से अपनी समस्या का समाधान करवा रहे थे
पापा भी ना
आजकल के युग में भी इन ढोंगी लोगो पर विश्वास करते है
पर मैं कुछ नही बोली
क्योंकि पापा का प्यार एक तरफ है उनका गुस्सा दूसरी तरफ
और मैं उन्हें इस वक़्त कुछ भी बोलकर गुस्सा नहीं दिलवाना चाहती थी
बाबा ने भी पापा को देखा और हंसते हुए उनका अभिवादन स्वीकार करके उन्ह एक तरफ बैठने के लिए कहा
और फिर उन्होने मुझे देखा, उपर से नीचे तक
जैसे मेरा एक्सरे उतार रहे हो
और उन्होने भी अपने होंठो पर जीभ फेरते हुए मेरे स्तनों को घूरा
ठीक वैसे ही जैसे कुछ देर पहले पापा ने किया था
मेरी चूत पर बैठा केंचुवा फिर से रेंगते हुए आगे बढ़ने लगा
इस नज़र और होंठो पर जीभ फेरने के तरीके को मैं अच्छे से पहचानती हूँ
ऐसे कई ठर्कियों से मैं दिन में 10 बार टकराती हूँ
पर मुझे बिल्कुल भी बुरा नही लगता
बल्कि अच्छा ही लगता है
आख़िर मेरे हुस्न को देखकर ही तो वो ऐसे रिएक्ट करते हैं
जब उपर वाले ने मुझे बेपनाह हुस्न दिया है तो उसका सदुपयोग करना मेरा परम धर्म है
बाबा ने मुझे भी इशारे से बैठने का हुक्म दिया
मैं बैठ गयी
पर बैठने से पहले ना चाहते हुए भी मैने अपनी चूत को हाथों से सहला दिया
जो शायद बाबा ने भी देख लिया था
तभी वो कुटिल मुस्कान के साथ मुझे घूर रहे थे
कुछ ही देर मे उन्होने सभी भक्तों को निपटा दिया
अब उस झोपड़ी मे सिर्फ़ मैं और पापा ही बचे थे
पापा : “बेटा ये घेसू बाबा हैं, बड़े पहुँचे हुए बाबा है ये, आज मैं जो कुछ भी हूँ, इन्ही के आशीर्वाद की वजह से हूँ, आज इन्ही का आशीर्वाद दिलवाने मैं तुम्हे यहाँ लाया हूँ…जाओ इनका आशीर्वाद लो”
मैं अपनी जगह से उठी और उनके सामने जाकर बैठ गयी, जैसे अभी कुछ देर पहले तक दूसरे भक्त लोग बैठे थे और उनके पैरों को छूकर मैने आशीर्वाद लिया
उन्होने अपना भारी भरकम हाथ मेरे सिर पर रखा और मुझे सहला दिया
मेरा पूरा शरीर सिहर कर रह गया
ऐसा लगा जैसे कोई बर्फ़ीली हवा का झोंका मेरे करीब से निकल गया हो
उनके शरीर से अजीब सी महक आ रही थी
जो मुझे उनकी तरफ खींच रही थी
बाबा : “तुम्हारी बेटी तो बहुत खूबसूरत है सुमेर….दूसरी बेटी नही आई”
वो तो पापा से ऐसे शिकायती लहजे में पूछ रहे थे जैसे दो का वादा था
एक ही क्यों लाए
पापा : “वो दरअसल चंदा बिटिया की तबीयत ठीक नही थी….इसलिए सिर्फ़ चन्द्रिका ही आ सकी आज … उसे कल या परसों ले आऊंगा ”
और तब मुझे एहसास हुआ की पापा का असली मकसद तो मुझे और दीदी को यहाँ लाना था
ना की बैंक में ख़ाता खुलवाना…
वो तो चंदा की तबीयत ठीक नही थी वरना वो भी इस अजीब सी कुटिया में मेरे साथ बैठकर यही सोच रही होती की आख़िर पापा हमे यहाँ क्यो लाए हैं …
वो बाबा कुछ देर तक तो सोचते रहे फिर बोले : “ तुम्हे बताया तो था, की जब दोनो आएँगी तभी उस किताब से अगले पड़ाव का रास्ता तुम्हे दिखा पाउँगा …”