अब वक़्त था भाई को उठाकर उसे अपने वश में करने का
मैने उपर वाले का नाम लिया और झंझोड़ कर भाई को उठाने लगी
“भाई…….ओ भाई……सूरज भाई …उठो…..उठो ना…..”
ऐसा करते-2 मैने उनके चेहरे पर हल्की चपत भी लगा दी
अगले ही पल वो हड़बड़ा कर उठ बैठा
और उठते ही जो उसने देखा, तो उसकी आँखे फटी की फटी रह गयी
उसकी दोनो बहने पूरी नंगी होकर उसके कमरे में उसी के सामने बैठी थी
वो कुछ बोल पाता इस से पहले ही मैने वो सिक्का उसके चेहरे के सामने लहरा दिया और बोली
"इसे देखो…..देखो इसे….देखते रहो ........ "
और मैने जल्दी से गिनती चालू कर दी
1,2,3,4,5,6,7,8,9,10
भाई कुछ देर तक तो मुझे घूरता रहा
फिर उस सिक्के को देखकर उसी में खो सा गया
मेरा और दीदी का दिल धाड़-2 करके बाज रहा था
इस वक़्त कोई ग़लती हो जाती तो भाई ने हम दोनो की जान ले लेनी थी
हम दोनो दम साधे अगले पल की प्रतीक्षा करने लगे
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अब आगे
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सूरज अवाक सा होकर उन्हें देख रहा था
समझ नहीं आ रहा था कि ये सपना है या हकीकत
सपना ही होगा
क्योंकि हकीकत में उसकी बहनें ऐसा हरगिज नहीं करेंगी
ऐसे नंगी होकर उसके कमरे में आकार भला वो क्यों एकसाथ उसके ऊपर हमला बोलेंगी
वो अपनी बहन को अच्छे से जानता था
चंदा तो पिछले कुछ दिनों से भले ही उसे अपना जिस्म दिखाने में लगी थी
पर चंद्रिका तो ऐसा बिलकुल भी नहीं कर सकती
वो घर की बड़ी भी थी और उसमें चंदा से ज्यादा अक्ल भी थी
ऐसी समझदार लड़की भला ये क्यों करेगी
उसने हाथ पर चूंटी काटी
उसे दर्द हुआ
यानी ये सपना नहीं था
अगले ही पल वो चिल्ला उठा
“चंदा…चंद्रिका….ये…ये क्या हो रहा है….ऐसे क्यों तुम दोनों बिना कपड़ो के यहाँ हो”
उसे ये बोलते हुए शर्म भी आ रही थी और गुस्सा भी
क्योंकि अपनी बहन से ऐसी बेशर्मी की उम्मीद हरगिज़ नहीं थी
वो उनका बड़ा भाई था
भले ही उसके मन में कई बार उन्हें लेकर गंदे विचार आये
पर आख़िरकार वो था तो उनका भाई ही
अपनी बहनों की इस बचकानी हरकतों पर वो उन्हें नहीं डाँटेगा तो कौन डाँटेगा
अब उसके अंदर एक भाई जाग चुका था
हालांकी ये मौका ऐसा था कि वो उनकी लय में लय बनाकर मजे ले सकता था
पर पता नहीं क्यों उसके अंतरमन से यही आवाज आई कि एक भाई होने के नाते ये करना सही नहीं है
अंदर ही अंदर समाज का और माता पिता का भी डर था
क्योंकि उसे लग रहा था कि अभी तो ये जवानी के जोश में आकर ऐसी हरकतें कर रही है
बाद में जब उन्हें पछतावा होगा तो वो भला क्या जवाब देगा
बड़ा होने के नाते ये उसका फर्ज था कि वो खुद समझदारी से काम ले
जवान बहनों का बड़ा भाई होना भी किसी टॉर्चर से कम नहीं है
उनको चोदने का मन भी करता है और समाज से डर भी लगता है
पर इस वक़्त तो एक भाई जगा हुआ था
चंदा भी ये सब देख कर हैरान परेशान हो रही थी
“हे भगवान….ये क्या हो गया….भाई पर तो वशीकरण का कोई असर हुआ ही नहीं….पर….पर ये कैसा हो सकता है…..ये किताब ने तो आजतक हमेशा काम किया है…”
अब तो सिर्फ एक ही तरकीब रह गई है
दोनों मिलकर एक साथ कूदती हैं भाई पर
जो होगा देखा जाएगा
मैंने सर घुमा कर चंद्रिका दीदी को देखा तो वो डर से थर-2 कांप रही थी
शायद भाई की डांट का कुछ ज्यादा ही असर हुआ था उसपर
मैं कुछ बोलती, इस से पहले ही उसने अपने कपडे समेटे और वहां से नंगी भी भागती हुई अपने कमरे की तरफ दौड़ पड़ी
मेरा सारा प्लान चौपट हो गया
अब मेरे पास भी कोई और चारा नहीं था
सिवाय वहां से भागने के
मैंने भी अपनी टी शर्ट और शॉर्ट्स उठाई और दीदी के पीछे भाग पड़ी
पीछे से भाई कुछ-2 बोल रहा था
जिसे मैं सुन नहीं पाई
कमरे में पहुंची तो दीदी अपने बिस्तर पर ओंधी पड़ी रो रही थी
शायद इस योजना की नाकामयाबी का गहरा धक्का लगा था
एक तो भाई वशीकरण में नहीं आया और ऊपर से उसने उन्हें डांट भी दिया
मैं : “अरे दीदी….रो क्यों रही हो….अब जो हो गया तो हो गया ना….इसमें रोने वाली क्या बात है…”
दीदी (गुस्से में बिफरती हुई): “ये सब तेरी वजह से ही हुआ है…तू तो बोल रही थी कि वशीकरण की किताब में जो लिखा है वो करने से काम करेगी…देख लिया ना…उसपर कोई असर नहीं हुआ…ऊपर से हमें रंगे हाथो नंगा पकड़ लिया भाई ने....अब पूरी जिंदगी मैं उनसे कैसे आंख मिला पाऊँगी ..."
इतना कहते हुए वो फिर से रो पड़ी
बात तो सही थी
हमारा प्लान धाराशायी जो हो गया था
मैं : "दीदी...ये इतनी मशहूर किताब है...जरूर हमारे से कोई क्रिया मिस हो गई है, वरना ये जरूर काम करती...।"
दीदी: “काम करती है…आजकल के आधुनिक जमाने में भी तुझे बातों पर भरोसा है कि कोई वशीकरण किसी से कुछ भी करवा सकता है…ये सिर्फ किताबों और कहानियों में होता है…और काम करता है ये तुझे कैसे मालूम….जब पापा ने तुझपर या मुझपर इस्तेमाल किया तो क्या इस वशीकरण ने काम किया...जी नहीं...नहीं किया...क्योंकि हम दोनों ही जाग रहे थे , इसलिए हम दोनों ने जान बुझकर पिता जी का साथ दिया, उन्हें ये विश्वास दिलाया कि उनकी ये किताब काम कर रही है...वो इसलिए संभव हो पाया क्योंकि हम दोनों भी यहीं चाहते थे...''
मैं सोच में पड़ गई
बात तो वो सही कह रही थी
पिताजी ने जब भी हमारे साथ मजे लिये हैं
यही किताब की मदद ली है
और हर बार हम दोनो पहले से तैयार भी थी और जाग भी रही थी
उनका पूरा साथ दिया हमने
पर भाई के साथ जब असल में वशीकरण के असर की बात आई तो वो उसपर हुआ नहीं
और परिणामस्वरूप आज ये सारा रायता फेल गया
मैं भी अपना सर पकड़ कर बैठ गयी
केवल अति आत्मविश्वास की वजह से ही ये सब हुआ था
वो पूरी रात मैने जागकर निकाल दी
सुबह स्कूल के लिए जल्दी निकल गई ताकि भाई से सामना न हो सके
दीदी भी मेरे साथ ही अपनी नौकरी पर निकल गई
वो मुझसे बात तक नहीं कर रही थी
पता नहीं उनकी ये नाराजगी मैं कैसे दूर कर पाऊंगी
स्कूल में भी मेरा मन नहीं लग रहा था
रह कर रात की सारी घटना मेरी आँखों के सामने चल रही थी
आज नहीं तो कल भाई से सामना तो होगा ही
उनसे नजरें कैसे मिला पाऊंगी मैं
यही सोचती हुई मैं जैसे ही स्कूल की छुट्टी के बाद बाहर निकली तो पापा को बाहर खड़े पाया
वो अपनी बुलेट बाइक पर मेरा ही इंतज़ार कर रहे हैं
मैं उन्हें देखता ही चहक उठी: “अरे….पापा….आप…आज मुझे लेने कैसे आ गए”
पापा: “चंदा, कल ही बताया था वो बैंक का काम और वो बाबाजी…।”
मैं : “ओह…..ठीक है…ठीक है, चलिए फिर…”
इतना कहते हुए मैं उछलकर उनके पीछे बैठ गई
मेरा स्कूल बैग पेरी पीठ पर था और मेरे स्तन पापा की पीठ पर