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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

Mr. X
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Mastmalang

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👉सत्तावनवां अपडेट
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XXXXX कॉलेज
बुधवार

कॉलेज अभी शुरू नहीं हुआ है l अभी तक कोई नहीं आया है l पर असेंबली हॉल के स्टेज पर रॉकी अपने दोस्तों के साथ लकी ड्रॉ निकालने वाली ग्लोब नुमा जालीदार बॉल को चेक कर रहा है l

रॉकी - सुशील... क्या यह अब ठीक है...
सुशील - (खीज कर) अबे ऑए.. मजनू की छटी औलाद... सुबह सुबह हमारी नींद खराब कर यहाँ लेकर आया है... कमीने हमें कुली की तरह लगया हुआ है... साले कमीने आशिकी तेरी... पर नींद और चैन हमारी खराब है....
रॉकी - तो क्या हुआ कमीने... बदले में खाने पीने की पार्टी भी तो देता हूँ.... वह भी अपने होटल के रॉयल शूट में...
सुशील - उसकी कीमत भी तो वसूल करता है... हमे गधे की तरह दौड़ा कर काम करवा कर....
रॉकी - ठीक है... ठीक है.. वक़्त जाया ना करो... बोलो कहाँ तक यह प्लान वर्क आउट करेगा...
सुशील - अबे जब प्लान आशीष का है... तो काम उससे ही लेना चाहिए था...
आशीष - ऑए... कब से बड़बड़ कर रहा है... काम पुरा कर अपना...
रवि - हाँ यार सुबह से लगा हुआ है... पर उखड़ा उससे कुछ भी नहीं...
सुशील - अबे तुम सब काओं काओं बंद करो... लो यह अब हो गया...
सब - क्या... हो गया...
सुशील - हाँ... हो गया..
रॉकी - चलो डेमो दिखाओ...

सुशील - यह देखो... इसमें कुछ काग़ज़ के चिट डालेंगे.... ऐसे (काग़ज़ के चिट डालते हुए) अब मैं स्विच ऑन करता हूँ...

स्विच ऑन करते ही वह ग्लोब आढ़ा टेढ़ा सीधा उल्टा हो कर घूमने लगता है फिर उसमें से एक चिट बाहर निकालता है l रॉकी वह चिट उठा कर देखता है उसमें नंदिनी का नाम लिखा हुआ है l यह देख कर सभी ताली बजाते हैं l

आशीष - फ़िर भी एक लोचा है...
सब - क्या...
आशीष - बीएससी फर्स्ट ईयर बैच के स्टूडेंट्स के बीच यह कंपटीशन है... क्या सभी अपना नाम चिट पर लिख कर डालेंगे...
रवी - हाँ.. यह एक पॉइंट है...
रॉकी - ठीक है... एक तरकीब लगाऊंगा... प्रिन्सिपल से करवाऊंगा...
राजु - क्या तेरा तरकीब... काम करेगा... वह रूप नंदिनी सिंह क्षेत्रपाल है...
रॉकी - मुझे तो लगता है... जरूर करेगी... पहले से ही हम जानते हैं... वह अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश में है... इसलिए मेरा दिल कहता है... वह ज़रूर करेगी...
रवि - लो कर लो बात... दिल कह रहा है इसका...
आशीष - हाँ उसके दिल के हिसाब से चलते हैं... आखिर यह तो मानना ही पड़ेगा... लड़की अपने हीरो से अभी अभी इम्प्रेस तो हुई है...
सब - ह्म्म्म्म... तो फिर ठीक है...
रॉकी - कोई दुसरा पॉइंट भी है क्या...
आशीष - हाँ... वह खुद को रूप कहलाना पसंद नहीं करती... तो उसकी चिट में वह अपना क्या नाम लिखेगी... रूप नंदिनी.. या सिर्फ़ नंदिनी...
रवि - वह जो भी लिखे... नाम तो उसका ही आना है ना...
सुशील - लो लग गए लौड़े.... अबे तो अब तक मैं क्या यहाँ झक् मार रहा था... (रॉकी के तरफ देख कर) आशीष सही बोल रहा है हीरो... लड़की पहले ही दिन से अपने नाम पर सबको कंफ्यूज कर रखा है...
रॉकी - हाँ यह भी पॉइंट है...
आशीष - और एक बात... चिट निकलने के बाद... अगर लड़की ने यह कहा कि... चिट उसकी नहीं है... तो...
रॉकी - ह्म्म्म्म... फ़िर...
राजु - फ़िर क्या... उसका भाई वीर सिंह और विक्रम सिंह... हमारी ही हाथों से... हमारी मैयत उठवाएंगे...
रॉकी - हम्म्म....
सभी - देख रॉकी... हम कहीं जोश जोश में... लोचा कर गए... तो लेने के देने पड़ जाएंगे...
रॉकी - ठीक है... देखो अपना सिस्टम तैयार है... बाकी उन लड़कियों की बैच.... कैसे इनवल्व होगी... मैं प्रिन्सिपल से मिलकर कोई रास्ता बनाता हूँ....

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ESS ऑफिस

वीर अपनी कैबिन में चहल कदम कर रहा है l उसे एक कोने से दुसरे कोने तक चहल कदम करते हुए अनु अपने दाएं हाथ की नाखुन को दांतों तले दबा कर देख रही है I वीर अपनी दाएं हाथ की मुट्ठी को बाएं हाथ की हथेली पर मारते हुए घूमना शुरू कर देता है l यह देख कर अनु घबराते हुए अपनी वैनिटी पर्स से स्माइली बॉल्स झट से निकाल कर वीर को देखने लगती है l जब वीर उसे नहीं देखता तो धीरे से अनु वीर को आवाज देती है

अनु - राज कुमार जी... (वीर नहीं सुनता) अहेम... अहेम... (वीर फिर भी नहीं सुनता) राजकुमार जी... (थोड़ी ऊँची आवाज़ में)
वीर - (अनु की ओर देखते हुए) क्या हुआ अनु जी...
अनु - (रुक रुक कर) वह.. आप... कुछ... त.. तनाव में दिख रहे हैं... (बॉल दिखा कर) यह.. यह लीजिए...
वीर - (उसे देखने लगता है, क्या कहे उसे कुछ समझ में नहीं आता) हूँ... (बस इतना ही कह पाता है)
अनु - लीजिए ना...
वीर - (थोड़ा मुस्कराते हुए) अनु.. जी.. मैं एक दिन बॉल पकड़ुंगा... पर अभी टाइम नहीं आया है... जब आएगा... जमके पकड़ुंगा... कसके पकड़ुंगा और दबाके पकड़ुंगा.... वादा रहा... पर अब मैं कुछ और सोच रहा हूँ...
अनु - क्या.. आप और क्या सोच रहे हैं...
वीर - मैं यह सोच रहा हूँ... की कौनसा भेष बदलुं... और कितने बजे जाऊँ... सब को चेक करने के लिए...
अनु - (अपना सिर हिलाते हुए) ओ... ह्म्म्म्म...

तभी टेबल पर रखी वीर की मोबाइल बजने लगती है l अनु जाती है और मोबाइल फोन लाकर वीर को देती है l

वीर - अरे अनु जी... आप हमारी पीए हैं... आप रीसीव लीजिए... और बात कीजिए... पूछिए कौन है... क्या काम है... सब समझने के बाद... हमे दीजिए...
अनु - जी... (तब तक रिंग बंद हो जाती है) ओह... लगता है फोन कट गया...
वीर - कोई नहीं... मोबाइल पर नाम दिखा तो होगा ना...
अनु - हाँ... महांती कमीना... ऐसा कुछ लिखा था...
वीर - (फौरन अनु की हाथ से मोबाइल ले लेता है) देखो अनु... अब मैं जो कहूँ... उसे ध्यान से सुनना और याद रखना... महांती, युवराज और छोटे राजा नाम दिखे तो सीधे फोन को मुझे दे देना... बाकी जिसकी भी आए... तो तुम ही उठाना... बात करना... समझना और मुझे समझा कर दे देना... समझी...

अनु अपना सिर हिला कर हाँ कहती है, फोन फिर से बजने लगती है, इसबार भी डिस्प्ले में महांती कमीना दिखता है l अनु वीर को मोबाइल बढ़ा देती है l

वीर - (मोबाइल लेते हुए) गुड... (महांती का कॉल उठाते हुए) हाँ महांती बोल... क्या बात है...
महांती - एक बहुत बड़ी इंफॉर्मेशन हाथ लगी है... मेयर साहब... मेरा मतलब छोटे राजाजी पर आज हमला हो सकता है... युवराज जी को फोन लगा रहा हूँ पर पर वह मिल नहीं रहे हैं... वह कहाँ हैं...
वीर - हाँ वह... छोटे राजा जी के साथ पार्टी मीटिंग अटेंड करने... पुरी में स्थित पार्टी ऑफिस गए हैं... वह छोटे राजाजी के साथ हैं...
महांती - छोटे राजा जी पर हमला हो सकता है... उन लोगों ने स्पॉट देख ली है... रूट पर वह लोग थोड़े कंफ्यूज हैं... यह बात युवराज जी का जानना जरूरी है...
वीर - ठीक है... वह लोग पार्टी मीटिंग में होंगे... इसलिए उनके फोन शायद रीसेप्शन में डिपोजिट होंगे... मैं मैसेज किए देता हूँ... आप भी कर कीजिए...
महांती - क्या हम पार्टी ऑफिस में मैसेज कर दें...
वीर - नहीं... नहीं हो सकता है... कोई वहाँ पर उनकी रेकी कर रहा हो... मैं मैसेज कर देता हूँ... और कोशिश करता हूँ... वहाँ मीटिंग में पहुंचने की...
महांती - हाँ यह बढ़िया है... पर जल्दबाजी में मत जाइएगा... हो सकता है.... आपकी जल्दबाजी देख कर वह अपना प्लान बदल दें... एक काम लीजिए... आप पूरी कनाल रोड पर जाइए.... मैं ओल्ड भुवनेश्वर रोड से पूरी जाता हूँ...
वीर - ठीक है...(फोन काट देता है, और अनु को देखते हुए) तुम यहाँ पर रुको... और फोन वगैरह आए तो अटेंड करो... ठीक है...
अनु - जी ठीक है...

वीर वहाँ से हल्दी में निकल जाता है l

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XXX पार्टी ऑफिस
मीटिंग खतम हो जाता है l उसके बाद पिनाक सिंह और विक्रम सिंह रीसेप्शन में जमा किए हुए अपने फोन वापस लेते हैं l विक्रम अपने फोन पर देखता है महांती और वीर के बहुत से मिस कॉल हैं l विक्रम महांती को फोन लगाता है l

महांती - (फोन उठाकर) हैलो युवराज जी...
विक्रम - हाँ महांती... इतने मिस कॉल...
महांती - सर... उन्होंने... अपना स्पॉट चुन लिया है...
विक्रम - ह्म्म्म्म... एक मिनट... पहले मैं गाड़ी में पहुँच जाऊँ... (विक्रम अपनी गाड़ी में आ जाता है) हाँ अब बोलो...
महांती - मैं यह कह रहा था... उन लोगों ने स्पॉट फिक्स कर लिया है...
विक्रम - कौनसे रूट पर...
महांती - वे लोग दो रूट पर... घात लगाएंगे... पहला पुरी कनाल रोड पर... दुसरी भुवनेश्वर पुरी रोड पर...
विक्रम - मतलब... छोटे राजा जी के पुरी से आते वक़्त... हमला हो सकता है...(मोबाइल पर वीर की कॉल आ रहा है) यह राजकुमार भी बार बार फोन कर रहे हैं...
महांती - वह आप ही के पास जा रहे हैं... मैं भी ऑन द रोड हूँ...
विक्रम - ठीक है... मैं उन्हें भी कंफेरेंश में ले लेता हूँ.... (वीर को कंफेरेंश में ऐड करने के बाद) हाँ राजकुमार जी...
वीर - क्या आपकी महांती से बात हो गई...
विक्रम - हाँ हो रहा है... और आप अभी कांफ्रेंस में हैं...
वीर - ठीक है... फिर आप छोटे राजा जी को... कांफ्रेंस में ले लीजिए... हम भी अपना प्लान सेट करते हैं...
विक्रम - ओके... लाइन पर रहीए... (विक्रम पिनाक को कंफेरेंश में लेने की कोशिश करता है पर उसका फोन बिजी आता है) शीट...
महांती और वीर - क्या हुआ...
विक्रम - उनका फोन बिजी आ रहा है...
महांती - ठीक है... आप तो उनके साथ हैं ना...
विक्रम - हाँ.. पर दुसरे गाड़ी में...
महांती - ठीक है... अब हमें मालूम है क्या होने वाला है... वह लोग हमारे सर्विलांस में हैं... अब बताइए हमे क्या करना है...
विक्रम - महांती... हम उन्हें इसबार फैल करते हैं....
वीर - फैल करते हैं मतलब...
विक्रम - इस बार हम उन्हें नहीं दबोचेंगे... बल्कि हम रास्ता बदल देंगे...
महांती - कौनसा रास्ता लेंगे फिर...
विक्रम - पुरी रामेश्वर रोड पर... हम रामेश्वर रोड से जा कर एनएच पर निकलेंगे...
वीर - इससे फायदा...
विक्रम - हमारा दुश्मन एक घोस्ट है... वह कौन है... उसकी प्लानिंग क्या है... हम नहीं जानते... जैसा कि महांती ने पहले ही बता चुका है... वह घोस्ट, अपने ही आदमियों से भी छुपा हुआ है... उसके एक दो प्लान ऐसे फैल कर देने से... वह बौखलाएगा... बिलबिलाएगा... तब वह गलती करेगा...
महांती - तब शायद वह बाहर भी निकल सकता है...
विक्रम - हाँ...
वीर - बढ़िया... तो अब हम क्या करें...
विक्रम - एक मिनट छोटे राजा जी का कॉल आ रहा है... मैं उन्हें कांफ्रेंस में लेता हूँ... (कांफ्रेंस में लेने के बाद) छोटे राजा जी... आज आप पर दोबारा हमला होने वाला है...
पिनाक - तो चलो धर दबोच कर नर्क दिखाते हैं उन्हें...
विक्रम - नहीं छोटे राजा जी... हमे उस हराम खोर के चमचों के बारे में पता है... पर उस अदृश्य दुश्मन के बारे में नहीं... हम उसका प्लान फैल कर देते हैं...
पिनाक - नहीं ऐसा नहीं हो सकता... अगर उसे मालुम हुआ तो खिल्ली उड़ाएगा...
विक्रम - नहीं उड़ाएगा... हम एक रुटीन प्रोसिजर बना कर रूट बदलेंगे... आज उसका प्लान फैल हुआ तो... वह चिढ़ जाएगा... तब शायद कोई गलती भी करेगा... हो सकता है... उसे सामने आना पड़े...
पिनाक - ठीक है युवराज... चाहे कुछ भी हो... मुझ पर भगोड़ा का छाप लगनी नहीं चाहिए...
विक्रम - नहीं लगेगा... आप अपने ड्राइवर से कहिए... वह गाड़ी को रामेश्वर रोड पर ले जाए... और राजकुमार... आप वापस ऑफिस जाओ... महांती तुम भी पहुंचो... हम रामेश्वर रोड पर छोटे राजा जी को लेकर ऑफिस पहुँचते हैं....
दोनों - ओके...

विक्रम फोन काट देता है l पिनाक सिंह अपने ड्राइवर को रामेश्वर रोड पर ले जाने को बोलता है l ड्राइवर भी अपनी गाड़ी को रामेश्वर रोड की ओर मोड़ देता है l

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कॉलेज की कैन्टीन में छटी गैंग मस्ती कर रही है l तभी कैन्टीन की माइक पर प्रिन्सिपल की आवाज गूंजने लगती है l

प्रिन्सिपल - हैलो स्टूडेंट्स... मैं आपका प्रिन्सिपल बोल रहा हूँ... बीएससी फर्स्ट ईयर स्टूडेंट्स आप लोग तुरंत असेंबली हॉल में पहुंचे... आपके पास सिर्फ़ दस मिनट है... जो नहीं आयेंगे... उनको पनीश्मेंट दी जाएगी... सो डोंट बी लेट... बी हर्री...
बनानी - व्हाट... लो फ्रेंड्स... ब्रेक का सत्यानाश हो गया...
दीप्ति - कुछ भी हो... जाना तो पड़ेगा ही... वरना पता नहीं बुढ़उ ने क्या पनीश्मेंट सोचा होगा...
तब्बसुम - हाँ यार... बुड्ढे को सिर्फ बनानी को ही शॉक से उबार ने का प्लान बनाना चाहिए था... क्यूँ के शॉक तो उसे लगा था ना...
बनानी - अपना मुहँ बंद रख... यह मत भूलो... मेरे साथ तुम सभी भी शॉक्ड थे...
भाश्वती - पर फायदा क्या... चिट में तो किसी एक का नाम आएगा... कितना अच्छा होता ना... अगर हम सब मिलकर एफएम में टास्क पुरा करते...
इतिश्री - कमाल है... हम सब तब से चपड़ चपड़ करते जा रहे हैं... पर राजकुमारी जी हैं कि चुप्पी साधे हुए हैं...
नंदिनी - (इतिश्री की हाथ में जोर से चिकोटी काटते हुए) कमीनी अगर फिर कभी नंदिनी के वजाए...
इतिश्री - आ... आ... ह्ह्ह्... (चिल्लाने लगती है)
नंदिनी - राजकुमारी कहा तो... तेरी ऐसी कुटाई करूंगी के तुझे तेरी छटी का दुध याद आ जाएगी...(छोड़ देती है)
इतिश्री - उई माँ... (अपने हाथ को मलते हुए) डायन कहीं की... थोड़ी देर और ऐसे ही रहती तो... मांस ही बाहर आ जाती...
बनानी - ओह ओ... अब छोड़ो भी यह सब... इससे पहले कि प्रिन्सिपल दोबारा माइक पर भोंकने लगे... हमें असेंबली हॉल में पहुँच जाना चाहिए...
दीप्ति - हाँ हाँ... जल्दी चलो... देखें तो सही वहाँ होता क्या है...
नंदिनी - ठीक है.. चलो... अपनी पंचायत हम कल बिठायेंगे...
सब - हाँ हाँ चलो चलो...

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सेंट्रल जैल
लाइब्रेरी

दास एक अर्दली के साथ अंदर आता है l अर्दली के हाथ में खाने की थाली है वह विश्व के पास थाली रखते कर बाहर चला जाता है l विश्व एक नजर दास को देखता है फ़िर किताबों में घुस जाता है l

दास - विश्व... खाना खा लो यार...
विश्व - (किताबों से सिर बाहर निकाल कर) दास बाबु... जो आप कहने आए हैं... वह कह दीजिए... मैं बाद में खा लूँगा...
दास - तुम्हें कैसे मालुम हुआ... मैं कुछ कहने आया हूँ...
विश्व - रोज आप अर्दली के साथ चले जाते थे... आज आप रुक गए हैं...
दास - तकल्लुफ मत करो... तुम खाना खा लो... मैं... मैं यहाँ इंतजार कर लेता हूँ...
विश्व - दास बाबु... बात तकल्लुफ की ही है... साथ खाना खाने बैठे होते... तो बात अलग थी... मैं खाना खाऊँ और आप खड़े हो कर देखते रहें... मुझे ऐंबार्समेंट फील होगा... प्लीज... आप ही का जैल है... और मैं यहाँ कुछ ही दिनों का मेहमान हूँ...
दास - हमारे संस्कार में... मेहमान का दर्जा जानते हो ना...
विश्व - गलती हो गई... खुद को मेहमान कह गया... मुहँ से निकल गया... फिर भी... खाना बाद में हो जाएगा... आप पहले क्या कहने आए थे... यह बताइए...
दास - ओके... तुम जीते मैं हारा... (कह कर विश्व के सामने बैठ जाता है)
विश्व - अब तो कह ही दीजिए... बात क्या है...
दास - यह... आज... हमारा... आखिरी मुलाकात है...
विश्व - क्यूँ... आपका कहीं ट्रांसफ़र हो गया क्या....
दास - हाँ... मैंने पहले भी... सेनापति सर जी से मना किया था... पर उन्होंने मेरे बारे में कुछ रिपोर्ट बना कर... डीपीसी भेज दिया था...
विश्व - डीपीसी... यह डीपीसी क्या होता है...
दास - डिपार्टमेंटल प्रमोशन कमेटी...
विश्व - ओ... तो... आप प्रमोशन में जा रहे हैं...
दास - हाँ... डबल प्रमोशन... आईआईसी बन जाऊँगा... कल ही मुझे अंगुल ट्रेनिंग ऑफिस में तीन महीने ट्रेनिंग के लिए रिपोर्ट करना है... और जब ट्रेनिंग खतम होगी... पता नहीं फिर कहाँ पर पोस्टिंग होगी... फिर मिलना होगा या नहीं... इसलिए...
विश्व - ओ.. वाव... कंग्रेचुलेशन दास सर... यह तो खुशी की बात है...
दास - (चुप रहता है)
विश्व - (उसे देख कर) क्यूँ आपको यह प्रोमोशन नहीं चाहिए था क्या...
दास - नहीं ऐसी बात नहीं... मुझे यह थोड़ी देर बाद मिलता तो अच्छा लगता...
विश्व - (अपना सिर थोड़ा पीछे लेता फिर आगे कर हँसते हुए कहता है) दास बाबु... थैंक्यू... थैंक्यू वेरी मच...
दास - किस बात के लिए थैंक्यू...
विश्व - दास बाबु... आपने मुझे अपना दोस्त समझा इसलिए...
दास - (अपना सिर नीचे कर लेता है)
विश्व - सच पूछिये तो आप जैसा ईमानदार, साहसी लोग.. समाज के उन हिस्सों में होना चाहिए... जहां... लोग पुलिस के बारे में चुटकुले बनाने के वजाए...या गाली देने के वजाए.. उसकी तारीफ़ में कसीदे पढ़ें...
दास - (चुप रहता है)
विश्व - आप तो जानते हैं ना दास बाबु... सैनिकों को प्रथम पंक्ति के सुरक्षा बल कहा जाता है... क्यूंकि वह लोग देश की सीमा व अखंडता का रक्षा करते हैं... और पुलिस को द्वितीय पंक्ति के सुरक्षा बल... क्यूंकि वह आंतरिक धर्म, विश्वास व न्याय की रक्षा करते हैं... जरा सोचिए अगर राजगड़ में एक ऑफिसर आप जैसा होता... तो... आज विश्व कभी यहाँ विश्वा भाई ना होता...
दास - (चुप रहता है)
विश्व - जानते हैं... मुझे दीदी हमेशा एक बात कहा करती थी... हम जिस समाज का हिस्सा हैं... वह समाज भले ही हमें छोड़ दे... पर उस समाज को हम छोड़ नहीं सकते... खास कर तब.. जब समाज को हमारी जरूरत हो... पर यह निर्णय समाज को नहीं हमे खुद करना चाहिए...
दास - ठीक है ... ठीक है... अगर ज्यादा देर यहाँ बैठा... तो तुम्हारा भाषण बंद नहीं होगा... मैं चलता हूँ... मैं बस यह कहने आया था... की मैं कहीं भी रहूँ... किसी तरह की काम पड़ जाए... तो हिचकिचाना मत... (आवाज़ भर्रा जाता है)

बड़ी कोशिशों के बावजूद दास अपनी आँखों से आंसू नहीं रोक पाता इसलिए जल्दी से उठ कर वहाँ से जाने लगता है l विश्व अपनी जगह से उठ कर दास के बैठे हुए जगह पर जाता है l वहाँ टेबल पर कुछ आँसुओं के बूंद दिखाई देती है l विश्व उन बूँदों पर अपना हाथ फेरते हुए

विश्व - एक मिनट दास बाबु... (दास रुक जाता है) आप का मैं आभारी रहूँगा...
दास - (बिना पीछे मुड़े) वह क्यूँ...
विश्व - आप चौथे व्यक्ति हैं... जो मेरे लिए दिल से आँसू बहाए हैं...

दास ना कुछ कहता है ना ही कुछ सुनता है l बिना पीछे मुड़े बिना विश्व को देखे उस लाइब्रेरी से निकल जाता है l

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असेंबली हॉल,
स्टेज पर माइक पर प्रिन्सिपल खड़ा है और स्टेज के बीचों-बीच रॉकी एंड ग्रुप खड़े हैं l उनके सामने एक बड़ा सा ग्लोब जैसा जाली नुमा बॉल एक स्टैंड के साथ अटैच है l

प्रिन्सिपल - वेलकम टु ऑल... अब एक काम कीजिए... मेरे बाएँ तरफ सभी लड़के आ जाएं... और मेरे दाएँ तरफ सभी लड़कियाँ आ जाएं...

हॉल में मौजूद सभी स्टूडेंट्स वही करते हैं l लड़के एक तरफ आ जाते हैं और लड़किया एक तरफ हो जाती हैं l

प्रिन्सिपल - अब आप सबको वल्युंटीयर्स एक एक चिट देंगे... आप सब अपने अपने दोस्त का नाम लिखें... और हाँ जो भी यहाँ मौजूद है उनके नाम की चिट हमारे पास मिलनी चाहिए... अगर नहीं मिली... तो उनको पनीश किया जाएगा...

स्टेज से राजू और सुशील काग़ज़ लेकर सभी स्टूडेंट्स को देने लगते हैं l

आशीष - तो यह तेरा प्लान था... जाहिर सी बात है उसके दोस्त उसका नाम जो लिखेंगे... तुमको खबर हो जाएगा...
रॉकी - (हँसते हुए) हाँ...
आशीष - अगर उसकी चिट गायब हो गई तो...
रॉकी - नहीं होगी...
आशीष - कैसे....
रॉकी - तु बस देखता जा...

राजु और सुशील सारे चिट बांट कर वापस स्टेज पर पहुँच जाते हैं l

प्रिन्सिपल - अब सब अपने अपने दोस्त के नाम लिखो... और ध्यान रहे जिसका नाम नहीं मिलेगा... उसको पनीश्मेंट मिलेगा...

ल़डकियों के बीच
तब्बसुम - चलो चलो हम में से डिसाइड करो... कौन किसका नाम लिखेगा...
दीप्ति - हाँ... हम छह हैं... पर हमे तीन जोड़ी में बंट जाना है...
नंदिनी - ठीक है... मैं बनानी का नाम लिखती हूँ... बनानी मेरा नाम लिखेगी... तब्बसुम दीप्ति का नाम लिखेगी और दीप्ति तब्बसुम का नाम... और फाइनली.. भाश्वती इतिश्री का नाम और इतिश्री भाश्वती का नाम...
सभी - ओके

लड़कियाँ अपनी अपनी चिट लिख कर फ़ोल्ड कर देते हैं l

प्रिन्सिपल - अब उन चिट को... ल़डकियों के तरफ से नंदिनी कलेक्ट करेंगी... और लड़कों के तरफ से xxxxx कलेक्ट करेंगे... इसलिए आप सब उन्हें अपनी अपनी चिट दें....

नंदिनी पहले हैरान हो जाती है फिर खुशी से सबकी चिट कलेक्ट करती है l दोनों ग्रुप की चिट कलेक्शन हो जाने के बाद नंदिनी और xxxxx स्टेज पर आते हैं l रॉकी उस ग्लोब का ढक्कन खोल देता है l और सारे चिट्स उसमें डालने को कहता है l दोनों वही करते हैं l

प्रिन्सिपल - अब आप दोनों अपने दोस्तों के पास जा कर बैठ जाएं... (दोनों स्टेज से उतर कर अपने अपने दोस्तों के पास चले जाते हैं) आज इन चिट्स के बीच एक नाम को लकी ड्रॉ के जरिए एफएम रेडियो के जॉकी सुरेश साहब निकलेंगे... (सभी स्टूडेंट्स तालियां बजाने लगते हैं) आइए सुरेश साहब...

सुरेश स्टेज पर आता है l और उस सिस्टम को ऑन करता है जिसमें वह ग्लोब अटैच था l ग्लोब थोड़ी देर घूमने के बाद एक चिट बाहर गिरती है l सुरेश वह चिट प्रिन्सिपल को दे देता है l

प्रिन्सिपल - हाँ तो इस चिट में जिनका नाम आया है... मैं उनको पहले बधाई देता हूँ... आप हैं... मिस रूप नंदिनी सिंह क्षेत्रपाल...

सभी स्टूडेंट्स तालियाँ बजाने लगते हैं l स्टेज पर मौजूद सभी लोग और प्रिन्सिपल भी ताली बजाने लगते हैं l लड़कियाँ सभी नंदिनी को बधाई देते हैं और चीयर करने लगते हैं l

नंदिनी अपना नाम सुन कर पहले से ही शॉक थी l उस पर सब उसे जिस तरह से बधाई दे रहे हैं l वह नर्वस फिल करने लगती है l

प्रिन्सिपल - आइए नंदिनी जी... स्टेज पर आइए...

नंदिनी बड़ी नर्वस नेस के साथ स्टेज पर जाति है l स्टेज पर पहुंचते ही उसके सारे दोस्त चीयर करते हुए हूटिंग करते हैं l

प्रिन्सिपल - मिस. नंदिनी.. क्या आप नर्वस फिल कर रही हैं...
नंदिनी - जी.. जी सर...
प्रिन्सिपल - जीवन में कई चुनौतियाँ आयेंगी... इससे भी बड़े बड़े... इसे आप स्वीकार करने का साहस करें... फिर सभी आसान हो जाएगा...
नंदिनी - जी...
प्रिन्सिपल - तो आपको आज टास्क सुरेश जी देंगे... और इन दो दिनों में यहाँ पर एक टेंपोररी साउंड प्रूफ़ स्टूडियो बनाया जाएगा... आप लोग यहाँ पर लाइव देख व सुन सकें... (सभी स्टूडेंट्स फिर से तालियां बजाने लगते हैं) (प्रिन्सिपल हाथ दिखा कर इशारे से ताली रोकने को कहता है, ताली रुक जाती है) हाँ... तो सुरेश साहब... दीजिए इन्हें एक टास्क...(माइक से हट जाता है)
सुरेश - (माइक पर आकर) पहली बात... नंदिनी जी आप घबराएँ नहीं... यह टास्क ही सही... पर यह एक एक्सपोजर भी है... आप अपने भीतर एक नए व्यक्तित्व को ढूंढेंगी... सो प्लीज बी नॉर्मल... शांत हो जाइए...
नंदिनी - जी... जी मैं.. ठीक हुँ...
सुरेश - गुड... तो क्या मैं आपको टास्क दूँ...
नंदिनी - श्योर...
सुरेश - तो दोस्तों... मैं आज आपके सामने मिस नंदिनी जी को... एक टास्क दे रहा हूँ... वह शनिवार को बारह बजे के बाद... रेडियो एफएम 97 में... मेरे साथ लाइव रहेंगी... और उस दिन वह प्रेजेंट करेंगी एक विषय
"HUMAN EVOLUTION TWENTY FIRST CENTURY AND THE WOMEN"
यानी मानव क्रमिक विकास, इक्कीसवीं सदी और औरत...

कुछ देर के लिए हॉल में सन्नाटा पसर जाता है l पहले प्रिन्सिपल ताली बजाता है फिर सभी लोग ताली बजाने लगते हैं l पुरा का पुरा हॉल तालियों से गूंजने लगती है l

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ESS ऑफिस
कंफेरेंश रूम में महांती, विक्रम, वीर और पिनाक बैठे हुए हैं l पिनाक सिंह अपनी मुट्ठी को टेबल पर धीरे धीरे ठोक रहा है l

विक्रम - आप इतना खीज क्यूँ रहे हैं...
पिनाक - आप समझ नहीं रहे हैं युवराज... ऐसा लग रहा है... जैसे हम अपना रास्ता इसलिए बदल दिया... वह भी किसीके डर से...
विक्रम - हम चाहे कितने भी सहरी क्यूँ ना हो जाये... हम हैं तो जंगली ही... यह खेल शिकार और शिकारी वाला है... हमारा शिकार छुपा हुआ है... वह हमे छकाये हुए है... बस एक बार वह बाहर निकल जाए... फिर ऐसा शिकार होगा कि उसके पुश्तों तक के रूह कांप उठेगी...
पिनाक - खेल अगर शिकार और शिकारी वाला है... तो हमें उसे मौका देना चाहिए था... हम उसे बाहर निकालने के लिए चारा बनने के लिए तैयार हैं... पर बेचारा बन कर नहीं रह सकते...
महांती - गुस्ताखी माफ छोटे राजा जी... शेर भी कभी कभी शिकार करने से पहले दो कदम पीछे जाता ही है... हम डर कर नहीं... बल्कि उसे बौखलाने के लिए रास्ता बदला है... वह आपको ज़रूर फोन करेगा... आप बस उसे एहसास मत होने दीजियेगा... के हमें उसके प्लान का अंदाजा हो चुका था... वह आपको उसकायेगा... पर आप शांत रहें... आपका शांत रहना उसे और भी बौखलाएगा... और बौखलाहट उससे गलती करवाएगा...
वीर - हाँ... बहुत ही बढ़िया प्लान है... महांती बिल्कुल सही कह रहा है...
पिनाक - बस महफ़िल में आप ही की कमी थी... अच्छा हुआ... उगल दिए आपने वरना बदहजमी हो जाती आपको...
वीर - ओ... मेरे कुछ कहने से आपको अगर पसंद नहीं आ रहा... तो मेरा यहाँ रुकना बेकार है...
पिनाक - मैं नहीं हम कहिए... आप राजकुमार हैं...
वीर - हम का दम तब भरते... जब बंदे का इज़्ज़त हो...
विक्रम - राजकुमार... आप आपे से बाहर हो रहे हैं...
वीर - नहीं... अपने आप में आ रहे हैं... सॉरी

वीर वहाँ पर सबको बैठा छोड़ कर कांफ्रेंस रूम से निकल जाता है l

विक्रम - (पिनाक सिंह से) आखिर आप अपनी खीज... राजकुमार पर उतार ही दिया...
महांती - हाँ छोटे राजा जी... खबर मिलते ही... राजकुमार जी फौरन पुरी के लिए निकल पड़े थे...
पिनाक - वह हम थोड़ा... सॉरी... हम बाद में उनसे बात कर लेंगे...

तभी पिनाक सिंह की मोबाइल बजने लगता है l पिनाक मोबाइल के डिस्प्ले पर अन नोन कॉल देखता है l उस पर कोई नंबर नहीं दिखता है वह उस डिस्प्ले को विक्रम और महांती को दिखाता है l दोनों इशारे में बात करते रहने के लिए कहते हैं I

पिनाक - हैलो...
-X- क्या बात है... फोन उठाने में इतनी देरी... क्यूँ फट रही थी क्या...
पिनाक - फट तो तेरी रही है हरामजादे... सामने नहीं आ रहा है...
-X- बहुत जल्दी है मुझसे मिलने की... जिस देखेगा... उस दिन आगे से गिला और पीछे से पीला हो जाएगा...
पिनाक - अब एक बात का कंफर्म हो गया... तु ज़रूर किसी फटीचर सर्कस में जोकर रहा होगा... सिर्फ़ जोक मारने के सिवा कुछ भी नहीं आता तुझे...
-X- उस दिन की गोली बारी मजाक लग रहा है तुझे... याद है ना... गाड़ी बदली थी तुने... हाँ यह बात और है... घर जा कर चड्डी भी बदला होगा तुने... जो न्यूज वालों ने बताया नहीं किसी को...
पिनाक - तो भोषड़ी के... फिर हमला क्यूँ नहीं करवा रहा है... कौनसे बिल में छुप कर भौंक रहा है....
-X- भौंक नहीं रहा हूँ... दहाड़ रहा हूँ... बहुत जल्द... सारा सहर देखेगा... तु रोड पर जान बचा कर भाग रहा होगा.... और कसम से टीवी पर यह लाइव चल रहा होगा...
पिनाक - क्षेत्रपाल से बात कर रहा है... मादरचोद क्षेत्रपाल से... बस एक बार मेरे सामने आजा... तुझे तेरी ही जुबान से फांसी पर टांग ना दिया... तो हम क्षेत्रपाल नहीं...
-X- ठीक है फिर बहुत जल्द तेरे सामने आऊँगा... पहचानना तो दूर तु जान भी नहीं पाएगा... तेरी ऐसी गांड मार कर जाऊँगा...
पिनाक - ठीक है आजा फिर...
-X- अरे वाह... बड़ी जल्दी है... मुझसे मरवाने की...
पिनाक - (चिल्लाता है) हरामजादे.... (फोन कट हो जाता है) तु बस एक बार सामने आ... हैलो.. हैलो...
विक्रम - क्या पता चला महांती....
महांती - यह एक इंटेरनेट कॉल था... बहुत चालाक है.... ना सिर्फ़ इसकी लोकेशन हर दस सेकंड में बाउंस कर रहा था... बल्कि उलझाने के लिए अपनी कॉल को हर नेटवर्क पर बारी बारी से शिफ्ट कर रहा था...
विक्रम - तो क्या हम उसे ट्रेस नहीं कर सकते...
महांती - क्यूँ नहीं कर सकते... अगली बार कॉल करेगा तो... उसकी एक्जाक्ट लोकेशन मिल जाएगी...
पिनाक - ठीक है... महांती... तुम बस उसका लोकेशन का पता लगाओ... फ़िर हम उसकी वह हश्र करेंगे... वह हश्र करेंगे....

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वीर गुस्सा और नाराज होकर कांफ्रेंस रूम से निकल कर अपने कैबिन में आ कर बैठा हुआ है l कुछ देर बाद उसके कमरे में अनु कॉफी की कप लेकर अंदर आती है और वीर के सामने रख देती है l वीर के मन में पिनाक की कही बातें चल रही है l इसलिए उसे ध्यान नहीं रहता की उसके टेबल पर अनु ने कॉफी रख दिया है l अनु को एहसास होता है, वीर का मन ठीक नहीं है इसलिए वह फिर से अपनी पर्स से स्माइली बॉल निकाल कर वीर देखती है l उसे समझ में नहीं आता कि कैसे उन बॉल्स को वीर के हाथों में दे l इसलिए टेंशन में वह बॉल्स को दबाने लगती है l
कुछ देर बाद वीर अपनी ख़यालों से बाहर आता है तो अनु को स्माइली बॉल्स को दबाते हुए देखता है l

वीर - यह तुम क्या कर रही हो...
अनु - जी (अपने हाथ में बॉल देख कर) जी यह.. मैं वह.. आप.. कैसे...
वीर - क्या कह रही हो...
अनु - जी...मु.. मम्म्म्म.. मुझे समझ में नहीं आया.. यह बॉल कब और क.. कैसे.. आपके हाथ में दूँ...
वीर - (चेहरे पर मुस्कान आ जाती है) लाओ बॉल दो... (अनु दे देती है)(वीर बॉल्स दबाने लगता है) तुम अभी दबा रही थी ना... क्यूँ...
अनु - वह आपको टेंशन में देख कर... मेरे समझ में नहीं आया मैं क्या करूं...
वीर - (बॉल्स को दबाते हुए) अच्छा जब मैं यहाँ नहीं था... कुछ फोन वगैरह आया था...
अनु - जी.. जी नहीं... नहीं आया था...
वीर - (बॉल्स अनु को देते हुए) ह्म्म्म्म यह लो... रख लो... (अनु बॉल्स रख लेती है) अच्छा अनु... तुम मेरी क्या हो...
अनु - जी मैं आपकी... पीएस और पीए दोनों हूँ..
वीर - अच्छा.. तुम मेरे लिए यहाँ क्या करती हो...
अनु - जी आपके खाने पीने से लेकर वह सभी काम... जो आप मुझसे कहते हैं...
वीर - और छुट्टी के दिन...
अनु - छुट्टी के दिन तो छुट्टी होता है ना...
वीर - हाँ होता तो है... पर जानती हो... जो पर्सनल सेक्रेटरी या पर्सनल अस्सिटेंट होते हैं... वह चौबीस घंटे ड्यूटी पर होते हैं...
अनु - (हैरान हो कर) हे भगवान... तो फिर वह लोग खाते पीते सोते कब होंगे...
वीर - सब उनके बॉस के साथ ही करते हैं...
अनु - क्या...(और भी हैरान हो जाती है) सब उनके बॉस के साथ करते हैं...
वीर - अरे मेरा मतलब है... जब वह लोग अपने बॉस के साथ होते हैं... तो खयाल रखते हैं... और जब साथ नहीं होते तो फोन पर बात करते हुए खयाल रखते हैं...
अनु - ओ.. अच्छा... पर मेरे पास तो फोन है ही नहीं...
वीर - (अपनी टेबल का ड्रयर खिंचता है उसमे से एक मोबाइल निकाल कर अनु को देता है) यह लो... यह कंपनी के तरफ से... अपने बॉस के साथ चौबीसों घंटे टच में रहने के लिए...
अनु - (झिझकते हुए फोन लेती है) वह... असल में... मुझे मोबाइल चलानी नहीं आती...
वीर - क्या... तुम मेरी असिस्टेंट हो... सेक्रेटरी हो... तुम को यह सब नहीं आती...
अनु - (अपना सिर हिला कर ना कहती है)
वीर - व्हाट... तुम्हारा पनीश्मेंट में एक और पनीश्मेंट ऐड हुआ...
अनु - (रुआँसी हो जाती है)
वीर - (उसकी रुआँसी सुरत देख कर) ठीक है ठीक है... मैं इसबार माफ करता हूँ... यहाँ मेरे पास आकर बैठो... मैं तुम्हें मोबाइल चलाना सीखा देता हूँ... आओ यहाँ...

वीर अनु के हाथ खिंच कर अपनी कुर्सी के आर्म रेस्ट पर बिठा देता है और अनु के हाथ में मोबाइल थमा कर उसे चैटिंग और कॉल करने के बारे में समझाने लगता है
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Lib am

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इस फोरम में मेरे पेज से गुजरने वाले सभी दोस्तों को होली की हार्दिक शुभकामनायें
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Rajesh

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👉दसवां अपडेट
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वीर म्युनिसिपल ऑफिस के अंदर आता है और पिनाक सिंह के चैम्बर की तरफ बढ़ता है l बाहर ऑफिस के एक मुलाजिम उसे देखते ही सलाम ठोकता है l
एक आदमी - यहाँ कैसे आना हुआ राजकुमार जी....
वीर - अपने ही रियासत में... किसीकी इजाज़त लेने की जरूरत है क्या...
आदमी - नहीं नहीं.... ऐसे ही पुछ लिया.... वैसे बहुत दिनों बाद आप यहाँ आये हैं....
वीर - राज कुमार हैं.... अपनी प्रजा के हालत का जायजा लेने आये हैं...
वैसे मेयर जी अपने चेंबर ही हैं ना.......
आदमी - जी नहीं राजकुमार जी..... अभी पार्टी मुख्यालय से अध्यक्ष जी का बुलावा आया था.... इसलिए वह वहाँ गए हैं....
वीर - अच्छा..... कब तक लौट सकते हैं...
आदमी - यह मैं कैसे बता सकता हूँ.... हाँ आप चाहें तो उनके चेंबर में उनका इंतजार कर सकते हैं....
वीर - हाँ... यही ठीक रहेगा....
इतना कह कर वीर पिनाक सिंह के चेंबर में घुस जाता है l अंदर ऐसी चालू कर पिनाक सिंह के चेयर पर बैठ जाता है l थोड़ी देर बाद वही आदमी एक कुल ड्रिंक का बॉटल लेकर आता है और टेबल पर रख देता है l
वीर - और स्वाइं क्या चल रहा है...
स्वाइं - सब आपकी कृपा है....
वीर - (कुल ड्रिंक पीते हुए) ह्म्म्म्म अच्छा... मेयर साहब कुछ काम रह गया है.. क्या... जो मुझसे हो...
स्वाइं- पता नहीं... एक औरत अभी थोड़ी देर पहले अपनी पोती को लेकर आयी है.... मेयर साहब के पास....
वीर - (उसकी आंखों में एक चमक आ जाती है) क्यूँ... किस लिए....
स्वाइं- वो... कल... मेयर साहब... एक साइट पर गए थे.... वहीँ एक औरत से मिले... उसके दुख देख कर.... उसे और उसकी पोती को आज बुलाया था.... शायद कहीं नौकरी पे लगा दें...
वीर - अरे.... मेयर साहब के पास... कहाँ नौकरी है... नौकरी तो हमारे पास है..... जाओ अगर नौकरी की ही बात है.... तो मैं भी उस लड़की को एंनगेज कर सकता हूँ....
स्वाइं - यह तो और भी अच्छी बात है.... मैं अभी उन दादी पोती को आपके पास भेजता हूँ....
इतना कह कर स्वाइं वहाँ से निकल जाता है l वीर अपना कुल ड्रिंक खतम करने में मसरूफ हो जाता है l थोड़ी देर बाद स्वाइं दो औरतों के साथ रूम में आता है l वीर देखता है एक अधेड़ औरत जो थोड़ी बीमार लग रही है और उसके साथ एक लड़की साँवली सी, पर तीखे नैन नक्स के साथ दुबली पर जहां भरी होनी चाहिए वहीं पर भरी हुई है l
उस लड़की को देखकर वीर मन ही मन बोला - परफेक्ट.... क्या बॉडी है और क्या बम्पर है... ह्म्म्म्म परफेक्ट...
वह बुढ़ी औरत और वह लड़की दोनों वीर को नमस्कार करते हैं l
वीर - जी नमस्ते... आइए.. बैठिए...
औरत - जी नहीं राजकुमार जी.... आप के सामने हम खड़े जो कर बात कर पा रहे हैं... यही हमारी अहोभाग्य है....
वीर - आरे.... आप कौनसे ज़माने की बात कर रहे हैं....
औरत - नहीं राज कुमार जी... हम छोटे लोग हैं.... हमे आप अपने जुते तक ही रहने दीजिए...
वीर - ठीक है.... कहिए आपको कैसी मदत चाहिए....
औरत हाथ जोड़ कर अपनी पोती की ओर इशारा करते हुए - राजकुमार जी यह मेरी पोती है... बचपन से अनाथ है बिचारी.... अब मैं भी कब तक इसके साथ रह पाउंगी नहीं जानती.... इसे कहीं नौकरी पर रख दीजिए.... ताकि आगे चलते उसकी शादी हो जाए.... तो मैं आराम से पूरी जा कर मर सकूंगी...
वीर - (उस लड़की से) कहाँ तक पढ़ी हो....
लड़की - जी जी वो म मैट्रिक तक....
वीर - ह्म्म्म्म आगे क्यों नहीं पढ़ी....
औरत - कैसे पढ़ती... पढ़ाई में बहुत कमजोर है.... मैट्रिक भी तीन बार में पास हुई है....
वीर - अच्छा.... ह्म्म्म्म... वैसे क्या नाम बताया तुमने....
लड़की - जी अभी तक बताया नहीं मैंने....
वीर - अच्छा... अरे.. हाँ... मैंने पूछा कहाँ है....ह्म्म्म्म बोलो फ़िर...
लड़की-जी क्या....
वीर - अरे.... तुम्हारा नाम...

लड़की-जी मेरा नाम अनु है..
वीर - बड़ा प्यारा नाम है.... मेरा मतलब है... बहुत ही सुंदर नाम है... वैसे दादी जी सिर्फ मैट्रिक पास कर लेने से... वह भी तीन बार में..... क्या लगता है... नौकरी मिल जाएगी...
औरत - अब क्या बताऊँ... राज कुमार जी... बाप इलेक्ट्रिसियन था एक दिन बिजली की खंबे पर ही चल बसा और इसकी माँ अपने पति के दुख में चल बसी...
इस अभागिन को मेरे पल्लू से बांध गए... लड़की मंद बुद्धि है..... छोटी सी उम्र में माँ बाप देहांत के बाद मेरे लाड-प्यार से सांसारिक ज्ञान से भी दूर रही.... अब मुझे कब बुलावा आ जाए.... अगर यह किसी किनारे लग जाए... तो मैं समझूँगी चन्द्रभागा नहा ली मैंने....
वीर - तो व्याह क्यूँ नहीं करा दिया...
औरत - व्याह ही तो कराना है.. राजकुमार जी.... फूटी कौड़ी नहीं है... अगर नौकरी लग गई तो शायद... नौकरी को देख कर कोई व्याह करले.... आप तो जानते हैं... जवान लड़की अगर घर में रहेगी.... तो उस पर आसपास की भी बुरी नजर लग सकती है... इसलिए... अब आप से ही आस है....
वीर - ठीक है अनु.... समझो तुम्हें नौकरी मिल गई..... कल ठीक साढ़े दस बजे ESS ऑफिस में आ कर मुझसे मिलो.... तुम्हें... नौकरी मिल जाएगी....

औरत - जुग जुग जियो राजकुमार.... आपको यह बुढ़िया आशीर्वाद ही दे सकती है....
वीर - बस बस यही काफी है.... अच्छा अब आप जाइए....
अनु और उसकी दादी वीर को नमस्कार कर बाहर निकल जाते हैं l
स्वाइं - वाह राजकुमार जी वाह... आपने तो उनके दुख दूर कर दिए..
वीर - अरे नौकरी जैसी छोटी छोटी बातों के लिए मेयर साहब को मेरे पास भेजना चाहिए.... ना कि खुद इस बात में सर खपाना चाहिए....
अच्छा जाओ यार कुछ गरमा गरम भेजो....
स्वाइं- जी राजकुमार जी...
स्वाइं बाहर चला जाता है l वीर अनु के ख़यालों में खो जाता है, अपने पैंट के भीतर करवट ले रहा लंड को मसलने लगा और बुदबुदाने लगता है - क्या गरम माल थी.... उफ... कौन कहता है रंग ही सब कुछ है.... साँवली सलोनी... वह भी हर जगह से दूसरी कसी हुई..... ओ... ह.. मैंने कितना सम्भाला खुदको... पता नहीं कुछ और देर रहती तो उठा कर यहीं पटक कर चोद देता....
तभी दरवाजा खुलता है l वीर देखता है अनु अंदर झाँक रही है l
वीर - क्या हुआ अनु....
अनु - जी मैं अंदर आऊं...
वीर - हाँ आओ...
अनु आकर वीर के पास आती है और झट से उसके पैर पकड लेती है l
वीर - अरे.. अरे... यह क्या कर रही हो....
अनु - आप नहीं जानते राजकुमार जी...(वीर के पैर पकड़े हुए और अपनी नजर झुकाए हुए) अपने मेरे और दादी के लिए क्या किया है... किस तरह आपका धन्यबाद अर्पण करूँ...
वीर - अररे... नजरें झुका कर क्यूँ बात कर रहे हो....
अनु- दादी ने कहा कि.... आप... अन्नदाता हैं... आपसे कभी नजरे नहीँ मिलाना चाहिए...
वीर के पैर पकड़े हुए अनु विनम्रता से और झुक गई तो वीर की नजर अनु के कुर्ते क्लीवेज से झाँकती हुई चुचों पर ठहर गई l वीर की आंखों में चमक आ गई,
बड़ी मुश्किल से वीर खुदको सम्भाला और अनु के चुचों को घूरते हुए अपने गले से थूक निगल कर कहा - अनु मुझसे तुम्हारा दुध.. ख.. (गले का खराश ठीक करते हुए) दुख देखा नहीं जा रहा है...
अनु वैसे ही वीर के पैर पकड़े हुए और नजरें झुका कर - दादी ठीक कह रही थी... आप बड़े लोग बड़े दिल वाले हैं... आज से आप हमारे मालिक हैं.....
वीर - (जुबान लड़खड़ाने लगी, मुहँ में लार भरने लगा) तुम्हारे भी तो कम नहीं है.... दुख.... कैसे उठाती हो इतने बड़े बड़े दुख.... अब बिल्कुल चिंता मत करो... मैं अपने दोनों हाथों से उठाऊंगा... तुम्हारे दुख...
अनु - जी मालिक.. जी..
वीर - अनु अब तुम जाओ....और थोड़ी देर अगर तुम रुकी तो तुम्हारे दुखों को देख कर रो दूँगा...
जाओ अनु जाओ और कल ESS ऑफिस पहुंच जाना... अपने वक्त पर...
अनु - जी मालिक....
अनु उठती है और अपना सर झुकाए बाहर निकलने को होती है l
वीर - सुनो अनु...
अनु - जी मालिक....
वीर अनु के नर्म मुलायम हाथों को पकड़ता है और उसके हाथों में कुछ पैसे रख देता है l
वीर - यह लो... यह शगुन है... तुम्हारे नए जीवन की.... कल याद कर के आ जाना...
अनु ने अपना सर हिला कर बाहर निकल गई, उसके जाते ही वीर जल्दी से वश रूम में घुस जाता है और अपना पैंट निकाल कर मूठ मारने लगता है l रिलेक्स होने के बाद अपना हाथ साफ करता है l उसे बाहर कुछ चिल्लाने की आवाज आती है l वीर वश रूम से बाहर आता है तो पिनाक सिंह को स्वाइं पर चिल्लाते देखता है l
वीर - क्या हुआ छोटे राजा जी...
पिनाक - तुम मेरे फटे में क्यूँ टांग अड़ाने लगे....

पिनाक - स्वाइं तुम बाहर जाओ... (स्वाइं बाहर निकल जाता है, पिनाक वीर के तरफ मुड़ कर) बाथरूम जा कर हल्के हो लिए....
वीर - हाँ....

पिनाक - तुम कबसे लोगों को नौकरी बांटने लगे....
वीर - सेक्योरिटी सर्विस मेरे हिस्से में आता है... और लड़की के पास क्वालिफीकेशन भी नहीं है... इसलिए मैंने उसे फिमेल ग्रुप में शामिल करने का फैसला किया है...
पिनाक - अच्छा.... और वह वहाँ पर क्या करेगी....
वीर - आज कल मेरा स्ट्रेस लेवल बहुत बढ़ रहा है... डॉक्टर ने मुझे स्माइली बॉल दबाते रहने को कहा है...
पिनाक - अच्छा तो जनाब को BP की शिकायत है...
वीर - हाँ... डॉक्टर ने यह भी कहा है.. चाहे रोज बॉल मिले ना मिले... पर रोज दबाते रहना चाहिए... इसलिए वह लड़की परफेक्ट है...
पिनाक - यू...(गुस्से से टेबल पर रखे फाइल को नीचे फेंक देता है)
तभी टेबल पर रखी फोन बजने लगती है l पिनाक गुस्से से फोन को स्पीकर पर डालता है और चिल्ला के पूछता है - हैलो....
पिनाक की यह हालत देख कर वीर मन ही मन मुस्कराने लगता है l फोन के दूसरे तरफ कोई जवाब नहीं आते देख फिर से चिल्लाता है - हैलो कौन है..
फोन - चिल्ला क्यूँ रहा है बे.. किसीने तेरी मार कर पैसे नहीं दी है क्या....
पिनाक - कौन है बे हरामी... किसकी मौत आयी है.. जो हमसे ऐसी बात कर रहा है...
फोन - मैं तेरी मौत बोल रहा हूँ...
पिनाक - (झल्ला कर) कौन है कुत्ते...
फोन - मैं तेरा कर्मा....
पिनाक - अबे पागल तु जानता भी है... तु किससे बात कर रहा है...
फोन - पिनाक सिंह क्षेत्रपाल... मेयर भुवनेश्वर से बात कर रहा हूँ... जिसके दुकान पर बहुत जल्द लात मारने वाला हूँ....
पिनाक - तु सच में पागल हो गया है.... क्षेत्रपाल हूँ मैं क्षेत्रपाल... यह जान कर भी तुने फोन पर बकवास कर मेरा वक्त बर्बाद करने की जुर्म में.... तुझे तेरे खानदान समेत नर्क भेज दिआ जाएगा.. ...
फोन - हा हा हा... कितना अच्छा जोक मारा... पास होता तो तुझे टीप देता... हा हा हा.. अच्छा... चल...तेरे बकचोदी के जुर्म में अगले हफ्ते तुझ पर जानलेवा हमला होगा....
पिनाक - क्या...
फोन - तैयार रहना बे हरामी...
फोन कट जाता है l वीर जो अब तक चुपचाप सुन रहा था, अब कुछ सोचने पर मजबूर हो गया l
पिनाक - प्रांक कॉल था...

वीर - (अपना सर ना में हिलाते हुए) मुझे नहीं लगता.... जरूर कोई नया दुश्मन है... पता लगाना होगा.....

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किचन में प्रतिभा बर्तन साफ कर रही है l पास खड़ी वैदेही घूर कर देख रही है l
प्रतिभा - तू चाहे कैसे भी देख... बर्तन में तुझे मांजने नहीं देने वाली...
वैदेही - पर क्यूँ मासी....
प्रतिभा - आज तु मेहमान... बनने का लुफ्त उठा ले.... आगे से जब आयेगी... मेजबान बन जाना.... पर आज नहीं...
वैदेही - वाह इसे कहते हैं चालाकी.... मुझे गिल्टी फिल् करवा कर... फिर से आने का फरमान जारी कर दिया....
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... अब समझी.... तेरा पाला किसी वकील से पड़ा है...
दोनों हंसने लगते हैं l
प्रतिभा - अच्छा... मेरा काम खतम हो गया....
चल बैठक में बैठते हैं... और तुझसे तेरी कहानी सुनते हैं....
वैदेही - रुकिए मासी...
प्रतिभा - अब क्या हुआ...
वैदेही - मासी... मेरे ज़ख्म बहुत गहरे हैं... आज अगर इस बंद चारदीवारी में खुरचती हूँ... तो दिलसे, आंखों से खुन की फब्बारें निकलेगी.... कहीं बाहर चलते हैं... मैं आपको वहीँ सब बताने की कोशिश करूंगी....

प्रतिभा उसे देखती है l वैदेही के चेहरे पर आ रहे भावों को देख कर उसे कहती है - अच्छा चल.... कहीं बाहर चलते हैं.... मैं सेनापति जी को बोल देती हूँ... फिर बाहर निकलते हैं...

प्रतिभा किचन से बाहर निकल कर बेडरुम से कपड़े बदल कर तुरंत आ जाती है और तापस को आवाज देती है - सेनापति जी....
तापस - जी... जी कहिए... क्या खिदमत करें आपकी...
प्रतिभा - हो गया...
तापस - अभी कहाँ...
प्रतिभा - ओह ओ... कुछ तो शर्म करो... भतीजी के सामने कुछ भी...
तापस - अरे वैदेही को मालूम है कि मैं उसकी मासी से बात कर रहा हूँ... क्यूँ वैदेही...
प्रतिभा - सेना... पति... जी..
तापस - अच्छा आप कहिए... क्या.... हुआ
प्रतिभा - हम दोनों बाहर जा रहे हैं.... आते आते थोड़ी देर हो जाएगी...
तापस-उम्र की इस मोड़ पर... तुम मुझे अकेले में किसके सहारे छोड़े जा रहे हो...
प्रतिभा कुछ नहीं कहती l नथुने फूला कर तापस को घूरने लगती है l तापस किसी भीगी बिल्ली के जैसे अपने कमरे में घुस जाता है l
कुछ देर से पति पत्नी की नोक झोंक देख कर बड़ी देर से अपनी हंसी रोके रखी थी वैदेही l तापस के कमरे में घुसते ही जोर जोर से अपना पेट पकड़ कर हंसने लगती है l
प्रतिभा - ठीक है ठीक है ज्यादा दांत मत दिखा... चल बाहर चलते हैं.....

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रॉकी अपने सभी दोस्तों को बारी बारी से फोन लगाता है और सबको कंफेरेंसिंग में लेता है l
रॉकी - मित्रों,मेरे चड्डी बड्डी लवड़ो, खुशामदीन...
भूल ना जाना... आज तुम सबको मीटिंग में है आना... आज हमारी मीटिंग है...
राजु - अच्छा... इसका मतलब... एक हफ्ता हो गया...
आशीष - यह दिन भी कितने तेजी से गुजर रहे हैं....
रॉकी - ऑए... तेजी से मतलब.... अबे हम सबने एक मिशन शुरू की है... उसे अंजाम तक पहुंचाने का काम बाकी है.... और तुम कमीनों ने वादा जो किया है... मुझे और नंदिनी को मिलाने की...
सभी दोस्त - अच्छा अच्छा... आज विकेंड है... और सब वहीँ मिलेंगे मॉकटेल पार्टी में...
सुशील - अबे रॉकी... तु.. मॉकटेल पर ही क्यु रुक गया है... कॉकटेल तक कब पहुंचेगा...
रॉकी - ना भाई ना... मुझे सिर्फ नंदिनी के नशे में झूमना है... किसी और नशे में नहीं....
रवि - वाव रॉकी वाव... इसलिए तो हम चड्डी बड्डी हैं.... और अपना टेढ़े मेढ़े येड़े ग्रुप का मोटो है....
वन फॉर ऑल.. ऑल फॉर वन है
सभी - यी.... ये... (चिल्लाने लगते हैं)

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गाड़ी आकर दया नदी के पास रुकती है l प्रतिभा और वैदेही दोनों गाड़ी से उतर कर नदी के किनारे पर एक पेड़ के नीचे वाले एक घाट के पत्थरों पर आ कर बैठते हैं l
प्रतिभा - वैदेही देख इस नदी को.... इस नदी का नाम पुरे इतिहास में प्रसिद्ध है... दया नदी....
वैदेही इसी नदी के किनारे इतिहास का वह प्रसिध्द कलिंग युद्ध हुआ था.... जब अशोक ने कौरबकी के लिए पुरे कलिंग को लहू-लुहान कर दिया था...... यह नदी उस युद्ध में मरने वाले और घायल होने वालों के रक्त से लाल हो गया था.... जिसे देख कर चंडा अशोक, धर्माशोक में परिवर्तित हो गया था......
तूने कहा था कि तेरे सोये ज़ख्मों से जो खुन की फव्वारे निकलेंगे उसे उस घर की चारदीवारी समेट नहीं पाएगी.....
पर यह दया नदी है.... यह तेरे दुख सुन कर तेरे लहू को निगल लेगी.... देखना....
प्रतिभा यह सब बिना वैदेही को देख कर कहती चली गई l अपनी बात खतम करने के बाद वैदेही को देखने लगी l वैदेही जो अब तक एक मूक गुड़िया की तरह सुन रही थी, प्रतिभा से अपना नजर हटा कर दया नदी को देखने लगी l
(वैदेही अपना अतीत कुछ फ्लैश बैक में और कुछ वर्तमान में रहकर कहेगी)
वैदेही - मासी क्या बताऊँ, कहाँ से बताऊँ.... जब से होश सम्भाला मैंने खुद को एक महल में पाया... मेरी माँ मेरे पास कभी कभी ही आ पाती थी... मेरे पास मेरी देखभाल के लिए एक औरत हमेशा रहती थी.... मैं उसे गौरी काकी कहा करती थी.....
पर मैंने कभी अपने पिता को नहीं देखा.... ना मेरे कोई दोस्त थे ना ही कोई भाई बहन और ना ही कोई और रिश्तेदार....
सिर्फ़ दो ही औरत जिनके पास मेरी पूरी दुनिया थी.... एक मेरी माँ और एक गौरी काकी....
एक दिन गौरी काकी ने आकर मुझसे कहा कि मेरा या तो कोई बहन या भाई आनेवाले हैं...
मैं खुश हो गई.... अब मेरी माँ मेरे साथ रहने जो लगी थी... मैं देख रही थी माँ का पेट बढ़ रहा था.... मुझे बस इतना मालुम था... मेरा भाई या बहन कोई तो इस पेट में हैं.... जिसके बाहर आते ही मुझे उसका खयाल रखना होगा.... जैसे काकी मेरी रखती है.... मैं काकी के बनाए हुए कपड़ों के गुड्डे गुड्डीयों को अपना भाई बहन बना कर रोज खेला करती थी....
एक दिन माँ का दर्द उठा.... तब कुछ औरतें आयीं और माँ को कहीं ले गईं....
अगले दिन काकी रोती हुई मेरे पास आई और बिना कुछ बताए मुझे अपने साथ ले गई l मैं बचपन से महल के एक हिस्से में पल बढ़ आयी थी.... पर काकी जिस हिस्से में ले कर आई थी वहाँ पर मैं पहली बार आई थी.... काकी मुझे एक कमरे में ले गई... मैंने वहाँ पर देखा मेरी माँ का रो रो कर बहुत बुरा हाल हो गया था.... उसके आँखों में आंसू सुख चुके थे... उस कमरे में कुछ टूटे हुए कांच गिरे हुए थे......
मैंने माँ को पुकारा... माँ ने मेरी तरफ देखा.... अपनी बाहें फैला कर मुझे अपने पास बुलाया.... मैं भाग कर माँ के गले लग गई.... माँ मुझे गले से लगा कर बहुत देर तक रोती रही.... फिर अचानक मुझे चूमने लगी.... चूमते चूमते मेरे माथे पर एक लंबा चुंबन जड़ा.... फ़िर पता नहीं क्या हुआ माँ ने एक कांच का टुकड़ा उठाया और मेरे दाहिने हाथ में गड़ा दिया.... (वैदेही ने अपने दाहिने हाथ पर एक कटा हुआ पुराना निसान प्रतिभा को दिखाया) मेरे हाथ में कांच का टुकड़ा घुसा हुआ था.... मैं जोर जोर से चिल्ला कर रो रही थी.... यह ज़ख्म देते हुए मेरी माँ ने मुझसे कहा - देख वैदेही मैंने तुझे यह ज़ख़्म इसलिए दिआ ताकि तु यह बात याद रखे.... अगर भूल भी जाएगी तो यह ज़ख़्म तुझे मेरी यह बात याद दिलाती रहेगी....
इतना कह कर मेरी माँ ने अपनी साड़ी से एक टुकड़ा फाड़ कर मेरी हाथ में पट्टी बांध दी.... फिर मेरे चेहरे को अपने दोनों हाथों से लेकर कहा - मेरी बच्ची... मैं मजबूर हूँ... इसके सिवा कोई और चारा नहीं था.... उन्होंने तेरे भाई को मार डाला.... (इतना सुनते ही मेरा रोना बंद हो गया, मुझे ऐसा लगा जैसे किसीने मेरे कानों में जलता हुआ कोयला डाल दिया, माँ फिर कहने लगी) बेटी तुझे यह काकी यहाँ से दूर छोड़ देगी.... फिर तु कहीं भी चले जाना.... मगर मुझे वचन दे.... की तु कभी भी... इस रंग महल को लौट कर नहीं आएगी.... वचन दे... (माँ ने हाथ बढ़ाया पर मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था, मैंने बस अपना हाथ माँ के हाथ में रख दिया, फिर माँ ने रोते हुए मुझे अपने सीने से लगाया और कहा) बेटी मुझे माफ कर देना... मैं तेरे भाई को ना बचा पाई... अगर तु यहीं रहेगी तो मैं तुझे भी ना बचा पाऊँगी..... इसलिए तुझे काकी बाहर तक छोड़ देगी.... फिर तु पीछे बिना मुड़े यहाँ से चली जा.... फिर कभी मत आना... तुझे कसम है.... अपनी माँ की... तु कभी वापस मत आना....
फिर माँ ने एक पोटली मेरे हाथ में दी और काकी के साथ भेज दिया.... काकी ने मुझे अंधेरे में कुछ दूर ले जाकर मुझे छोड़ दिया....
काकी - जा वैदेही जा.... यहाँ सिर्फ़ राक्षस रहते हैं.... अपनी माँ की बात याद रखना.... कुछ भी हो जाए वापस मत आना....
इतना कह कर काकी भी वापस चली गई लेकिन मैं सिर्फ पांच साल की लड़की, अपनी ज़ख्मी हाथ में पोटली लिए बिना पीछे मुड़े चली जा रही थी.... पता नहीं कितनी देर चलती रही... मुझे कमज़ोरी मेहसूस होने लगी फ़िर मैं एक घर के आँगन के बाहर सो गई... फ़िर जब नींद टूटी तो मैंने खुद को एक बिस्तर पर पाया... मेरे सर पर कोई अपने हाथ से सहला रहा था... मैंने अपने हाथ को देखा माँ की कपड़े के पट्टी के जगह एक सफेद पट्टी बंधी हुई थी.... अपनी आँखे ऊपर कर देखा तो मेरे सिरहाने एक देवी बैठी हुई थी... मेरे मुहँ से निकल गया माँ...
वह देवी इतना सुनते ही आवाज दी अजी सुनते हो... लड़की को होश आ गया... मुझे अभी भी कमज़ोरी महसूस हो रही थी... तभी एक आदमी अपने हाथ में एक दुध की ग्लास लाकर उस देवी को दिए... उस देवी ने मुझे उठा कर बिठाया और ग्लास देते हुए कहा - इसे पी ले बेटी यह हल्दी व लौंग वाला दुध है... सुबह तक तेरी कमजोरी भाग जाएगी.... मैंने वह दुध पी कर सो गई....

सुबह जब जगी तो उसी देवी को फिर अपने सिरहाने पाया...
उस देवी ने मुझ से मेरी हालत के बारे में पूछा.... और मेरे साथ जो बिता था मैंने सब बता दिआ.... सब सुनते ही उस देवी ने आवाज़ दी - सुनिए.... फिर वही आदमी आया, उसे देखते ही देवी ने कहा - यह वैदेही है और आज से यह हमारी बेटी है....
वैदेही आज से मैं तेरी माँ और ये तेरे बाबा हैं....

मुझे सपना जैसा लग रहा था l जैसे कोई कहानी की तरह जो मुझे कभी सुलाने के लिए काकी सुनाया करती थी.....

क्यूंकि मैं बेशक महल के किसी अनजान कोने में जन्मी, पली थी पर सिर्फ माँ और काकी को छोड़ किसीको ना जानती थी ना ही किसीसे माँ मिलने देती थी.... पर यहाँ तो रिश्तों का अंबार था... घर के भीतर मेरे नए माँ और बाबुजी.... बाहर...
मौसा, मौसी, भैया, भाभी, मामा, मामी, चाचा, चाची, नाना, नानी ना रिश्ते कम थे ना लोग.... जो भी दिखते थे हर कोई किसी ना किसी रिश्ते में बंध जाता था...
सच कहूँ तो मेरा परिवार (अपने दोनों हाथों को फैला कर) इतना बड़ा हो गया था....
एक दिन बाबुजी मुझे स्कुल ले गए... मेरा एडमिशन कराने.... मेरा नाम लिखवाया "वैदेही महापात्र"
पिता का नाम - रघुनाथ महापात्र
माता का नाम - सरला महापात्र
मैं स्कुल में दोस्त बनाये... अब मेरे दोस्त सिर्फ अपने गली मोहल्ले में ही नहीं थे.... स्कुल में भी थे....
एक दिन जब स्कुल से लौटी तो माँ को बिस्तर पर पाया... पड़ोस की मौसी पास माँ से कुछ गपशप कर रही थी...
मैंने माँ से पूछा - माँ आपको क्या हुआ...
माँ ने हंस कर मुझे पास बिठाया और पूछा - अच्छा बोल तुझे भाई चाहिए या बहन...
मुझे भाई का ग़म था इसलिए तपाक से बोला - मुझे भाई चाहिए...
माँ और मौसी दोनों हंस पड़े...
मौसी - अगर बहन हुई तो...
मैं - तो भी चलेगा... लेकिन बेटी तो मैं हूँ... तो माँ और बाबा को बेटा चाहिए कि नहीं...
माँ ने बड़े प्यार से मेरे सर पर हाथ फिराया और कहा - भाई हो या बहन... भगवान हमे जो भी देगा... तु उसे बहुत प्यार करना... ह्म्म्म्म
मैंने हाँ में सर हिलाया... जब शाम को बाबुजी आए मैंने उनसे उछल कर कहा जानते हो बाबा मेरी बहन या भाई आने वाले हैं...
बाबा - अच्छा हमे तो मालुम ही नहीं है.... क्या आप हमे अपने भाई से खेलने दोगे....
मैं - हाँ हाँ क्यूँ नहीं...
माँ और बाबुजी दोनों हंस पड़े....
रात को जब हम सो रहे थे,मैं नींद में नहीं थी पर आँखे मूँदे सोई हुई थी और माँ मेरे सर पर हाथ फ़ेर रही थी तब माँ ने बाबुजी से कहा - देखा वैदेही के कदम कितने शुभ हैं.... आते ही हमे माँ बाप की खुशियाँ देती... और आज इतने सालों बाद मैं सच में माँ बन रही हूँ....
बाबा - हाँ सरला.... लक्ष्मी है लक्ष्मी हमारी वैदेही....
ऐसे बातेँ करते हुए सब सो गए पर मुझे माँ और बाबा के व ह बाते गुदगुदा रहे थे....
पर दुखों को तो जैसे मेरी हर छोटी छोटी खुशी से बैर था....
फिर मेरे जीवन में दुख का आना बाकी था
Nice update bro
 
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Rajesh

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सुबह का अखबार लिए तापस अपने बैठक में बैठा ख़बर पढ़ रहा था l
तापस - अरे जान.... सुनती हो....
प्रतिभा - xxxx
तापस - जान...
प्रतिभा - हूं....
तापस - क्या हुआ मेरे यार को... बेजार से लग रहे हैं...
प्रतिभा - (अपने आपको सम्हालते हुए) हाँ... क्या चाहिए आपको...
तापस - (उसके चेहरे को गौर से देखता है, और गाते हुए ) मुझे तेरी हाथ का चाय मिल जाए तो क्या बात हो...
प्रतिभा - (बिना कोई प्रतिक्रिया दिए) अभी लाती हूँ....
प्रतिभा किचन के अंदर चली जाती है, उसे जाते हुए देख तापस कुछ सोच में पड़ जाता है l थोड़ी देर बाद उसका ध्यान टूटता है जब प्रतिभा चाय का कप बढ़ाती है और वहीँ खड़ी रहती है, तापस उससे चाय ले लेता है l
तापस - क्या हुआ....
प्रतिभा - नहीं तो... कुछ भी तो नहीं हुआ....
तापस-(प्रतिभा का हाथ पकड़ कर अपने पास बिठाता है) क्या बात है... जब से वैदेही को छोड़ कर आई हो... खोई खोई सी रहती हो.... कहाँ है... मेरी जान...
प्रतिभा....
प्रतिभा तापस को देखती है और कहती है - सेनापति जी क्या हम आज पूरी चलें.... जगन्नाथ जी के दर्शन को...
तापस - अभी या शाम को....
प्रतिभा - क्यूँ आपका कुछ काम था क्या....
तापस - अरे वही अपना नो ड्यू और एन ओ सी लाने जैल जाना है और जगन का काम हो गया है... उसे भी उसका लेटर देना है...
प्रतिभा - क्या यह सब काम दोपहर के बाद हो नहीं सकता...
तापस - हाँ हो सकता है... पर अभी भी तुमने वजह नहीं बताई...
प्रतिभा - मुझे भगवान से माफी मंगनी है.... और दुआ मन्नत भी करनी है...
तापस - दुआ और मन्नत...
प्रतिभा - हाँ सेनापति जी... प्लीज आप जाकर तैयार हो जाइए ना...
तापस - एक शर्त है....
प्रतिभा - क्या...
तापस - मुझे मेरी जान मिल जाए तो आपकी हर हुकुम सिर आँखों पर...
प्रतिभा मुस्कराने की कोशिश करती है पर मुस्करा नहीं पाती l
तापस - (प्रतिभा का हाथ पकड़ कर) क्या हुआ बताओ... दिल में कुछ भी मत रखो...
प्रतिभा, तापस के गले लग जाती है और सुबकने लगती है
तापस - क्या हुआ प्रतिभा.... (उसके सर पर हाथ रखते हुए)
प्रतिभा - (खुदको सम्हालते हुए) व वो वैदेही की कहानी जानने के बाद दिल बहुत भारी हो गया है....
इसलिए भगवान के पास जाना चाहती हूँ...
फिर वैदेही की कहानी जितनी सुनी थी सब तापस को बता देती है l तापस सब सुनने के बाद एक गहरी सांस लेता है
तापस - हूँ... पर तुम मंदिर क्यूँ जाना चाहती हो...
प्रतिभा - जानते हैं सेनापति जी.... जब जब दुखों का पहाड़ टूटा हम पर... भगवान पर मेरा विश्वास डगमगाया... पर वह फूल सी जान जिस पर दुखों का ज़लज़ला टूटा है... उसका विश्वास भगवान से जरा भी नहीं हिला... डॉक्टर बनना था उसको... किस्मत ने उसे क्या बना दिआ... फिर भी आज वह अपने लिए नहीं बल्कि आज भी वह अपनों के लिए भगवान से दुआ मांगती है... वह भी अटूट श्रद्धा और आस्था के साथ...
तापस - यही तो फर्क़ है उनमें और हम में... बेशक वह डॉक्टर नहीं बन पाई... पर आज भी वह अपने समाज की बीमारी से लड़ रही है... और ठीक कहा तुमने... हमे उसकी इस लड़ाई के लिए दुआ मन्नत करनी चाहिए...
तुम रुको अभी मैं तैयार हो कर आता हूँ...

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कॉलेज में...

रॉकी टेंशन में है,वह छत पर एक कोने से दूसरे कोने तक चहल कदम कर रहा है, राजू उसे इस तरह से इधर उधर होते हुए देख रहा है,
रॉकी - अबे... और कितना टाइम लगेगा... उस रवि को यहाँ आने के लिए...
राजू - अब मुझे क्या पता... कितना टाइम लगेगा... आता ही होगा.. अभी क्लास भी कहाँ शुरू हुआ है... सो चील...
रॉकी - अबे तेरा चील गया तेल लेने... साला सर पर कौवे मंडरा रहे हैं.... और इन कमीनों का अब तक कोई खबर भी नहीं है....
इतने में आशीष, सुशील और रवि आकर पहुंचते हैं,
रवि - क्या हुआ... इतना टेंशन में क्यूँ है...
रॉकी - देख प्लान तूने बनाया है.... अब मुझे बिट टू बिट बता...
रवि - आ बैठ.... बताता हूं...
सब पानी के टंकी के छाँव में आकर बैठ जाते हैं
रवि - देख हमको उस छटी गैंग का गुरुवार को होने वाली हर मूवमेंट मालूम हो चुका है..... इसलिए हमे भी अपना प्लान परफेक्ट रूप से एक्जिक्युट करना है... जरा सी गलती.... जानते हो सब क्या हो सकता है....(सब ने अपना अपना सर हिलाया)
रवि - देखो हम जो करने जा रहे हैं.... वह सिर्फ छटी गैंग को लपेटे में लेने के लिए नहीं... बल्कि पूरे कॉलेज को यकीन दिलाने के लिए भी.....(रवि हाथ बढ़ाता है) देखो ना तो हम प्रोफेशनल हैं... और ना ही क्रिमिनलस हैं..... हम स्टूडेंट्स हैं... इसलिए वन फॉर ऑल एंड ऑल फॉर वन... (सब उसके हाथ पर अपना हाथ रखते हैं)
रवि - देखो उनका प्लान था सिर्फ़ गिफ्ट देने की.. पर फ़िर टाइमिंग का प्रॉब्लम हुआ इसलिए उन्होंने गिफ्ट को केक के साथ जोड़ दिया... मतलब उनको केक के साथ गिफ्ट डिलीवर होगा....
रॉकी - अच्छा तो उनका टाइमिंग क्या है...
रवि - ठीक दो बजे... डिलिवरी लेने नंदिनी और दीप्ति दोनों प्रिन्सिपल के ऑफिस जाएंगे...
रॉकी - ह्म्म्म्म....
रवि - बनानी उस वक्त लैब के वश रूम में होगी... बाहर क्या हो रहा है उसे मालुम भी नहीं होगी... सबका प्लान है उसे चौकाने के लिए... पर वह चौकेगी जरूर... हम उसे चौकाएंगे....
रॉकी - यही तो... कब और कैसे...
रवि - देखो मैंने मनोज से पता लगा लिया है... पहला तो टोटल लैब इंश्योरड् है..
आशीष - अब यह मनोज कौन है...
रवि - अबे ओ गजनी की औलाद.... भूल गया क्या... लैब असिस्टेंट...
आशीष - ओ... हाँ..
रॉकी - लैब का कितना नुकसान हो सकता है...
रवि - क्यूँ...
तू इंश्योरेंस एजेंट है क्या.....
रॉकी - अबे मैं इसलिए पूछा.. अगर आग ज्यादा फैल गया तो रिस्क बहुत ज्यादा होगा....
रवि - तु उसकी फ़िकर ना कर... प्लान में इंप्रोवाइजेशन परफेक्ट हुआ है... ज्यादा नुकसान नहीं होगा... सिर्फ कंसेंट्रेटेड् लिक्विड सोल्यूशन जलेगा... बस तुझे उस के ऊपर अग्निपथ के अमिताभ बच्चन की तरह भाग कर बनानी तक पहुंचना होगा... और अपनी बाहों में उठा कर उसे बाहर लाना होगा.... उसे हस्पताल या नर्सिंग होम लेना या ना ले जाना कॉलेज एडमिनिस्ट्रेशन पर छोड़ देंगे....
सब - क्यूँ...
रवि - ज्यादा सीन बनाने से शक़ कर सकते हैं... और हाँ फ़िर से रिमाइंड कर रहा हूँ... तू उस दिन अपने सर पर जेल लगा कर मस्त हेर स्टाइल में आना...
रॉकी - वह क्यूँ....
रवि - क्यूंकि आग के लपटों में तेरा चेहरा और बाल खराब हो सकता है... इसी लिए अगर उस दिन सर पे जेल लगा कर आएगा.. तो तुझे अनफ्लेमेबल जेल लगाने पर कोई शक नहीं कर पाएगा... और सुन तेरा हीरोइजम सिर्फ छटी गैंग के इम्प्रेस करने के लिए नहीं... बल्कि पूरे कॉलेज को चुतिआ बनाने के लिए भी होगा... इसलिए कोई गलती नहीं...
सुशील - देख रॉकी हम सब जोश में तो हाँ कह दिए.... पर अब सब तेरे हाथ में है... यहाँ अपना फ्यूचर और कैरियर दोनों दाव पर लगी हुई है...
रॉकी - अबे डरा मत... कुछ लफड़ा हुआ तो मैं अपने उपर सब ले लूँगा... हाँ रवि अब पूरा सीन समझा...

रवि - हाँ तो सीन यह है... जब नंदिनी को खबर मिलेगी कि उसका पार्सल आया है... तब वे लोग बनानी को किसी तरह से वश रूम भेज देंगे.... बनानी के वश में जाते ही नंदिनी और दीप्ति भागते हुए प्रिन्सिपल के ऑफिस जाएंगे.... उनके नीचे जाते ही अपना रॉकी लिफ्ट से लैब तक पहुंचेगा.. पर तुझे लिफ्ट के अंदर यह जेल(एक जेल की शीशी दिखा कर)...... अपने चेहरे और बालों पर लगा लेगा...आग ठीक दो बज कर पांच मिनिट पर लगेगी.... दो बज कर सात मिनिट में आग आग चिल्ला कर सारे ल़डकियों को मनोज बाहर निकाल देगा...
रॉकी - तो क्या बनानी बाहर नहीं आ पाएगी.... क्यूँ की आवाज तो बनानी भी सुन पाएगी...
रवि - नहीं एक कंसेंट्रेटेड सोल्यूशन लैब में वश रूम के एंट्रेंस तक फैली होगी.... वह वश रूम में फंस जाएगी... तुझे बाहर तेरे लिए पहले तैयार एप्रन जो मनोज पहना होगा उसे ले लेना....उसे पहन कर अंदर जा कर बनानी तक पहुंच जाना...बनानी को अपनी दोनों हाथो से उठा कर जब बाहर निकलेगा तब तेरे एप्रन में आग लगेगी तेरे बाहर आते ही फायर एष्टींगुसर से मनोज तुझ पे लगी आग बुझा देगा... तू बनानी को छोड़ कर सीधे जेन्ट्स वश रूम को भागेगा... वहां कपड़ों के साथ वश ले लेगा और एप्रन वहीँ उतार फेंक बाहर निकल कर सीधे घर चला जाएगा... तेरे जाते ही नंदिनी और दीप्ति पहुंच जाएंगी.... अगले दिन तू अपने बाल छोटे कर पहुंच जाना.... ताकि सबको लगे के तुने अपने जले हुए बालों के वजह से बाल छोटे किए हैं...
इतना कह कर रवि चुप हो जाता है l सब ख़ामोशी से आंखें फाड़ रवि को सुन लेने के बाद सबका मुँह खुला रह गया l
रॉकी - क्या दिमाग है बे तेरा... बोले तो एकदम झकास...
राजू - साला पुलिस भी चकरा जाएगा...
सुशील - वाव... कमीना.. साला शैतान का दिमाग रखा है बे तूने..
रवि - अबे कमीनों... बस भी करो... इतने प्लानिंग में ही डीसेंट्री हो गई है... सालों मरवाओगे क्या...
रॉकी - वन फॉर ऑल... ऑल फॉर वन...
सब फ़िर से अपने हाथ मिलाते हैं


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कैन्टीन में छटी गैंग अपनी मस्ती में मजा कर रहा है l तभी कैन्टीन के अंदर वीर सिंह आता है l जिसे देख कर सिर्फ छटी गैंग को छोड़ कर सभी टेबल खाली कर चले जाते हैं l
नंदिनी - खबरदार तुम में से कोई यहां से हिला तो... मैं अभी उसे भगा कर आती हूँ...
नंदिनी अपनी टेबल से उठ कर वीर सिंह के पास जाती है l
वीर - कैसी हैं राज कुमारी जी...
नंदिनी - अच्छी हूँ...
वीर - तो दोस्त बन गए आपके...
नंदिनी - जी...
वीर - हमसे पहचान नहीं करवायेंगी...
नंदिनी - जी नहीं.... सब आपको आपसे बेहतर जानते हैं...
वीर - माय कंप्लीमेंट...
नंदिनी - आप यहाँ से शीघ्र जाएं...
वीर - हमे भगाने की जल्दी है आपको...
नंदिनी - जी राजकुमार जी... हम नहीं चाहते हमारे कोई दोस्त हमसे इसलिए दोस्ती तोड़ दें... क्यूंकि आप हमारे भाई हैं...
वीर - ओ... तो बात ऐसी है... मतलब आपके लिए दोस्त आपके भाई से ज्यादा महत्व रखते हैं...
नंदिनी - हाँ... फ़िलहाल.. इस वक्त तो हाँ...
वीर सिंह मुस्कराता हुआ बाहर निकल जाता है l नंदिनी एक गहरी सांस छोड़ती है और रिलैक्स फिल् करती है, और अपने टेबल पर हंसते हुए वापस आती है l
उधर वीर सिंह अपने क्लास में पहुंचता है l जहां एक लेक्चरर सोशलिज्म पर पढ़ा रहा है l जैसे ही वीर सिंह को देखते है लेक्चरर समेत सारे छात्र खड़े हो जाते हैं l
वीर - क्या बात है सर... आप आज समाजवाद पर पढ़ा रहे हैं... वाह बहुत अच्छा विषय है..
लेक्चरर - कहिए राजकुमार जी... कैसे आना हुआ...
वीर - मैं आया हूँ... तो मेरा अटेंडेंश कंफर्म कर दीजिए....
लेक्चरर - जी राज कुमार जी...
वीर - गुड... अच्छा मैं चलता हूँ..
इतना कह कर वीर निकल जाता है, उसके जाते ही लेक्चरर अपना लेक्चर शुरू करने वाला होता है कि तब एक छात्र खड़ा हो जाता है और कहता है - सर.... मेरा एक सवाल है सर....
लेक्चरर - येस...
छात्र - आप सोशलिज्म पर पढ़ा रहे हैं... पर आप मॉनार्की के आगे सर झुकाते हैं...
लेक्चरर - वेरी गुड.. बहुत अच्छा सवाल है... मैं इसका ज़वाब अवश्य दूँगा.... अगली बार जब वीर सिंह यहां आए तब उसके सामने यह सवाल करना... मैं ज़वाब वीर सिंह के सामने ही देना चाहूंगा....
छात्र अपना मुहँ बना कर बैठ जाता है l और लेक्चरर अपनी पढ़ाई आगे बढ़ाता है l


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खान अपने चैम्बर में कुछ फाइलें चेक कर साइन कर रहा है l
मे आई कम इन.... एक आवाज़
अपने चश्मे को सही करते खान कुर्सी से उठ कर,
खान - अरे... सेनापति... क्या मज़ाक कर रहे हो... अमा यार यह तुम्हारा ही ऑफिस है...
तापस - ऊँ हूं... यह अब तुम्हारी ऑफिस है... और मैंने तुम्हें हैंड ओवर कर दिआ है... वैसे भी.. सरकार ने मेरी VRS को मंजूरी दे दी है....
खान - चलो... तुम्हारी ना सही... अपने दोस्त की ऑफिस समझ कर आ जाओ यार...
तापस हंसते हुए अंदर आता है और खान अपने चेयर से उठ कर तापस के पास जाकर उसे गले लगा लेता है l
खान - नजरें तरस गईं राह तकतें तकतें
बहुत देर कर दी हजूर आते आते
तापस - हा हा हा... अभी भी शायरी....
खान - हाँ यार... ना तुमने मज़ाक छोड़ा.. ना हमने शायरी... आ बैठ..
दोनों अपने अपने जगह पर बैठ जाते हैं l खान बेल बजाता है l जगन दौड़ कर आता है l जगन भीतर आकर दोनों को बड़े जोश के साथ सैल्यूट देता है l खान के कुछ कहने से पहले एक ठंडा पानी का ग्लास तापस के आगे रख देता है l
तापस - कैसे हो जगन...
जगन - सब आपकी कृपा है...
तापस - अरे यार... हमे इंसान ही रहने दो... (इतना कह कर अपने जेब से एक लिफाफा निकाल कर) यह लो तुम्हारा हेल्पर कांस्टेबल पोस्ट पर कमिश्नरेट से क्लीयरेंस...
जगन लेटर हाथ में लिए तापस के पैरों में गिर जाता है l तापस उसे उठा कर कहता है - देखो मैंने तुमसे वादा किया था l और यह क्या.... जब भी वर्दी में हो.. किसीके पैरों में गिर मत जाना... सैल्यूट तक ही रहना... समझे... (आँखों में धन्यबाद के आंसू लिए जगन हाँ में सर हिलाता है) और अगले महीने तुम तीन महीनों के लिए नयागड़ ट्रेनिंग के लिए जा रहे हो l सो तैयार हो जाओ...
खान - आख़िर तुमने अपना किया हुआ वादा पुरा कर दिआ....
तापस - हाँ यार... यही एक बोझ था... लो उतर गया... लाओ यार मेरा नो ड्यू और एन ओ सी...
खान - जगन जाओ और दास से कहो सेनापति के फाइल ले कर यहाँ आए..
जगन - जी सर.... सैल्यूट दे कर जगन बाहर चला जाता है l थोड़ी देर बाद दास एक फाइल ले कर अंदर आता है l
दास दोनों को सैल्यूट करता है और फाइल को खान के टेबल पर रख देता है l
खान - थैंक यु दास... (तापस की तरफ फाइल बढ़ा कर) यह लो साइन करो...
सेनापति साइन करदेता है l खान भी एक साइन कर देता है फ़िर एक काग़ज़ सेनापति को दे देता है l
खान, दास को इशारा करता है l दास वह फाइल ले कर चला जाता है l
खान - लो भाई हमने भी अपना काम कर दिआ...
तापस - हाँ.. यार.. बहुत बहुत धन्यबाद... अच्छा अब मुझे इजाज़त दो..
खान - अमा यार कभी दावत पर भी बुलाओ... अर्सा हो गया है... भाभी जी के हाथों का जाफ्रानी पुलाव खाए हुए...
तापस - क्यूँ नहीं... इस इतवार को... छुट्टी भी होगा और मौका भी, दस्तूर भी...
खान - तो ठीक है... तुम्हारे VRS की खुशी में...
तापस - डन....
अपना काग़ज़ लेकर तापस चला जाता है l खान उसे जाते हुए देखता रहता है l

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वीर सिंह ESS ऑफिस आता है l गेट के बाहर उसे अनु दिखती है
वीर - अरे तुम यहाँ... इस वक्त...
अनु - जी वह आपने इसी ऑफिस को आने के लिए बोला था..
वीर - हाँ... पर कल आने को बोला था ना... कल क्यूँ नहीं आयी..
अनु - हाँ पर कल रवि वार था ना..
वीर - तो... तो.. क्या हुआ...
अनु - क्या रवि वार को भी ऑफिस खुला रहती है क्या..
वीर - हाँ... एक मिनिट.. हम बाहर क्यूँ बात कर रहे हैं... चलो अंदर..
दोनों ऑफिस के अंदर आते हैं, और वीर एक चैम्बर में घुस जाता है, उसके पीछे पीछे अनु भी घुस जाती है
वीर पहले तो हैरान हो जाता है, फिर वह मुस्करा देता है
वीर - चलो ठीक है... पर सुबह जॉइन ना कर अब तक क्या कर रही थी...
अनु - वह नौकरी मुझे आप देंगे बोले थे... इसलिए आपकी इंतजार कर रही थी..
वीर - अच्छा...
अनु - आपने बताया नहीं... यहाँ सातों दिन काम होता है क्या.
वीर - यहाँ ऑफिस सातों दिन खुला रहता है.... पर ड्यूटी के दिन छह दिन ही होते हैं.. और एक दिन छुट्टी..
अनु - हाँ... तब तो ठीक है... अच्छा.. मुझे पैसे कितने मिलेंगे..
वीर - तुम ही बताओ... तुम्हें कितना चाहिए..
अनु - (हकलाते हुए) अ.. अठारह .... ह.. जार..
वीर - अठारह.. हजार..
अनु- ज्यादा है..
वीर - जानती हो अठारह हजार के लिए तुम्हें यहां पर तीन तीन नौकरी करनी पड़ेगी....
अनु - (हैरान होते हुए) तीन, तीन....
वीर - हाँ...
अनु - तो मैं घर कब जाऊँगी...
वीर - अरे... ऑफिस के टाइम में ही तुम्हें तीनों के काम करने होंगे....
अनु अपनी दाहिनी हाथ की नाखुन चबाती है... और कुछ सोच में पड़ जाती है l
अनु - क्या क्या करना पड़ेगा...
वीर - अरे कुछ नहीं... तुम्हारे लिए ज्यादा काम नहीं होगा...
अनु - फिर भी मुझे क्या करना होगा....
वीर - देखो, यह सेक्योरिटी सर्विस है तो तुम्हारा पहला काम यहां पर गार्ड बनना... तुम्हारे लिए आसान कर देता हूँ.. तुम मेरी इसी ऑफिस की कमरे को ही गार्ड करोगी ठीक है......
अनु-(खुशी से चहकते हुए) आ... ह... और... एक नौकरी...
वीर - और दो...
अनु - हाँ मेरा मतलब है... दुसरी...
वीर - हाँ दुसरी... मेरी पर्सनल असिस्टेंट की...
अनु - उसमें क्या करना होगा...
वीर - उसमें (एक डायरी को बढ़ाते हुए) यह डायरी लेना और मैं जिसे फोन लगाने को बोलूँ... उसे लगा देना...
अनु - क्यूँ.. आपके मोबाइल फोन में... यह सब नंबर नहीं हैं क्या...
वीर - मैं तुम्हें तीन तीन नौकरी तुम्हारी सहूलियत के लिए दे रहा हूँ... तुम मुझे काम समझा रही हो...
अनु - (घबराते हुए) नहीं नहीं मेरा यह मतलब नहीं था...
वीर - ठीक है.. ठीक है..यह दुसरी नौकरी मंजुर है...
अनु - जी जी.. हाँ... जी... और तीसरी...
वीर - वह मेरी पर्सनल सेक्रेटरी की....
अनु - सेक्रेटरी की.... वाव... उसमे क्या करना पड़ता है...
वीर - पड़ता है....
अनु - मेरा मतलब... क्या करना पड़ेगा...
वीर - कुछ नहीं..(ड्रॉयर से दो स्माइली बॉल निकालता है) आज कल इतना काम बढ़ गया है कि... मुझे इस उम्र में ही BP की शिकायत होने लगी है... तो यह दो बॉल अपने पास रखना... जब मुझे गुस्सा आ जाए... या ज्यादा पसीना आ जाए... तब यह दोनों मुझे दे देना.. ताकि मैं इसे दबाता रहूँ... ऐसे दबाना ही मेरी दवा है... कभी इसे खो मत देना... क्युकी मुझे अगर दबाने को कुछ ना मिला तो मैं पागल सा हो जाऊँगा...
अनु - ओह...
वीर - क्या तुम कर पाओगी...
अनु - हाँ हाँ क्यूँ नहीं... मैं यह तीनों काम सम्हाल सकती हूँ
वीर - शाबाश..
वीर इंटरकॉम पर किसीको ऑर्डर किया
एक एपइंटमेंट लेटर में जॉब डेसक्रिपशन का कॉलम और सैलरी कॉलम खाली रख कर मेरे पास लाओ l
कुछ देर बाद एक लड़की चुइंगम चबाते हुए एक फॉर्म लाकर वीर को देती है और एक नजर अनु पर डालती है और मुस्कराकर बाहर निकल जाती है l
वीर उस फॉर्म को भर देता है, और अनु को उस पर साइन करने को कहा l अनु चहकते हुए अपना नाम साइन करने फॉर्म मांगती है, लेकिन फॉर्म को वीर पकड कर कहाँ साइन करना है दिखाता है l अनु साइन अपने सीट से उठती है और जैसे ही साइन करने के लिए झुकती है उसके बड़े बड़े चुचें उसकी कुर्ती से वैसे ही उछलकर झांकने लगते हैं l यह देख कर वीर सिंह का पूरा जबड़ा खुल जाता है l वह थूक निगल कर उस आठवें अजूबे को आँखे फाड़ कर घूरने लगता है और टेबल पर रखे स्माइली बॉल को जोर जोर से दबाने लगता है l
अनु उसे बॉल यूँ दबाते देख कर - राज कुमार जी क्या हुआ आपको..
वीर - क.. कुछ.. नहीं... तुम साइन करते रहो...
सारे कागजात पर साइन करने के बाद वीर सिंह को काग़ज़ वापस कर देती है l
वीर - वाह... कितनी अच्छी सिग्नेचर है... जी करता है... अब सारे ऑफिस के कागजात साइन करने के लिए तुम्हें दे दूँ.... (बॉल और जोर से दबाने लगा)
अनु - राजकुमार जी यह मेरे किस हिस्से में आएगा...
वीर - पर्सनल असिस्टेंट..
अनु - ठीक है... मैं कर दिआ करूंगी...
वीर - गुड़.... आरे... तुम तो बहुत अच्छी हो... जाओ कल से ड्यूटी पर आ जाना...
अनु - राजकुमार जी... धन्यबाद...
वीर - यह लो.... यह दोनों बॉल अपने पास रखो....
अनु - जी.. (वह दोनों बॉल ले लेती है) और बाहर अपनी कुल्हे मटकाते निकल जाती है l
वीर - एक चुत... साला एक चुत... आदमी को हरामी बना देता है...
Super update hai bhai
 
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