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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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parkas

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👉अट्ठावनवां अपडेट
---------------------
शनिवार
सेंट्रल जैल
सुपरिटेंडेंट कैबिन

विश्व - क्या मैं अंदर आ सकता हूँ...
खान - आओ विश्व आओ... यार तुम अब सिर्फ़ महीने भर के लिए मेहमान हो... परमीशन लेने की कोई जरूरत नहीं है...
विश्व - सर यह ऑफिस है... यहाँ पर मिनिमम डेकोरम तो मेंटेन करना ही चाहिए...
खान - हर सवाल का जवाब... तुम्हारे पास तैयार रहता है...
विश्व - (कुछ नहीं कहता है, बस एक फीकी मुस्कान मुस्करा देता है)
खान - विश्व... एक बात पूछूं...
विश्व - जी...
खान - तुम आखिरी बार... कब हँसे थे...
विश्व - (थोड़ा असमंजस हो जाता है) (फिर थोड़ा संभल कर) पता नहीं सर...
खान - बुरा मत मानना... तुम्हारे चेहरे पर मुस्कराहट एक मुखौटा लगता है...
विश्व - जी... मैं मानता हूँ... पर सच, यह है सर... मुस्कराने के लिए या हँसने के लिए मेरे पास अभी कोई जायज वजह नहीँ है...

खान टेबल पर रखे एक थैला विश्व की बढ़ाता है l विश्व उसे हैरानी भरे नजरों से देखता है l

खान - अरे यार... यह तुम्हारे कपड़े हैं... थोड़ी देर बाद... तुम्हारी मुहँ बोली माँ और मेरी मुहँ बोली बहन आ जाएंगी... इसलिए तैयार हो जाओ... हाँ... तुम कपड़े बदलने के लिए... मेरी टॉयलेट इस्तेमाल कर सकते हो...
विश्व - थैंक्यू सर...
खान - इट्स ओके... नाउ गो एंड गेट रेडी..

विश्व अपना सिर हिलाते हुए वह थैला उठा लेता है और अटैच बाथरूम में घुस जाता है l थोड़ी देर बाद कपड़े बदल कर बाहर आता है l तभी अर्दली आकर खबर करता है कि बाहर प्रतिभा आई हुई है l

खान - देखा... तुम्हारी माँ आ गई... चलो कम से कम मैं तुम्हें बाहर तक छोड़ आऊँ...

विश्व और खान बाहर आते हैं l बाहर प्रतिभा बेचैनी भरे निगाह में विश्व की इंतजार कर रही थी l विश्व को देखते ही जल्दी से उसके करीब आती है विश्व भी उसके तरफ जाता है l दोनों एक दुसरे के गले लग जाते हैं l

खान - अहेम अहेम अहेम... अगर माँ बेटे का मिलाप हो गया हो तो... (दोनों अलग होते हैं) थैंक्यू... तो मैं यह कह रहा था... कल शाम छह बजने से पहले... आपके बेटे को...
प्रतिभा - आप फ़िक्र ना करें... खान भाई साहब... अब प्रताप कल शाम को ही आएगा... और थैंक्यू... थैंक्यू वेरी मच...
खान - अच्छा... तो फिर मैं इजाज़त चाहूँगा... (कह कर खान वापस चला जाता है)

प्रतिभा विश्व की कान खिंचती है l विश्व दर्द से कराहता है l

विश्व - आह.. माँ.. दर्द हो रहा है... प्लीज छोड़ो ना...
प्रतिभा - जैल में तो नाई आता है ना... यह किस लैला के लिए दाढ़ी और बाल छोड़े हैं तुने...
विश्व - माँ.. वह पढ़ाई में बिजी था... इसलिए... प्रतिभा- (कान छोड़ कर) चल मेरे साथ... (विश्व को गाड़ी की ओर खिंच कर ले जाती है)
विश्व - कहाँ... घर...
प्रतिभा - नहीं पहले... सलून... फिर तेरे लिए कपड़ों और जुतों की मार्केटिंग... फिर हम दोनों बाहर खाना खायेंगे... घूमेंगे... फिर थक हार कर शाम को घर जाएंगे...
विश्व - अगर हम शाम को घर जाएंगे... तो सेनापति सर क्या करेंगे दिन भर.. (दोनों गाड़ी में बैठ जाते हैं)
प्रतिभा - तु उनकी चिंता ना कर... (गाड़ी स्टार्ट करते हुए) वह दिन भर नए घर की तलाश में रहेंगे...
विश्व - नए घर.... वह क्यूँ...
प्रतिभा - (गाड़ी चलाते हुए) हमें इसी महीने क्वार्टर खाली करना है... इसलिए रहने के लिए एक भाड़े का घर का इंतजाम करने गए हैं...
विश्व - ओ...
प्रतिभा - तेरे छूटने से पहले... मैंने उन्हें घर ढूंढने में लगा दिया है... इसलिए तु उनकी फिक्र ना कर... वह दिन भर इसी काम में बिजी रहेंगे... और हम माँ बेटे आपनी मस्ती में...

प्रतिभा की बातेँ सुन कर विश्व मुस्करा देता है l उसे अंदर से महसुस हो जाता है l प्रतिभा उसके साथ वक़्त बिताने के लिए कितनी बेताब है l

विश्व - तो माँ... पहले हम कहाँ जा रहे हैं...
प्रतिभा - कहा तो था....सलून... तुझे पहले हैंडसम डैशींग और जेंटलमेन बनाना है...
विश्व - क्यूँ... क्या मैं हैंडसम डैशींग और जेंटलमेन नहीं हूँ...
प्रतिभा - तु... तु अभी मुझे कोई मेंटलमेन लग रहा है...
विश्व - ओह माँ... आप तो ऐसे कह रही हो... जैसे मुझे कोई लड़की देखने जाना है...
प्रतिभा - तेरे मुहँ में घी शक्कर... कास के आज ऐसा ही हो...
विश्व - हे भगवान... क्यूँ ऐसी बातेँ सोच रही हो...
प्रतिभा - तु चुप रह... मैं जानती हूँ.. तु कहना क्या चाहता है... पर सुन ले... जब तक मैं अपनी पोते और पोतीयों को अपनी गोद में नहीं खिलाती... तब तक मैं इस दुनिया से जाने वाली नहीं हूँ...

विश्व अब चुप रहने में ही अपनी भलाई समझता है l वह प्रतिभा को देखने लगता है प्रतिभा गाड़ी चलाते हुए सामने देख रही है पर उसके चेहरे पर जो खुशी के एक अलग भाव झलक रहे हैं वह कितना शुद्ध, कितना निर्मल लग रहा है l विश्व अपनी नजर अब रोड की ओर कर देता है l चर्र्र्र्र्र्र गाड़ी रुक जाती है l विश्व देखता है सामने एक बहुत बड़ा सलून है l सलून को देखते ही विश्व समझ जाता है कि यहाँ बाल कटवाना बहुत महँगा होगा l

विश्व - माँ... कहीं और चलते हैं... यह देखो... सिर्फ़ बाल कटवाने के लिए पाँच सौ रुपये से शुरू हो रही है...
प्रतिभा - देख मार खाएगा मुझसे... तुझे मेरी खुशियों का कुछ भी खयाल नहीं.... चल चुप चाप अंदर चल...

प्रतिभा आगे आगे सलून के अंदर जाती है और विश्व भी उसके पीछे सलून के अंदर पहुँचता है l विश्व देखता है अंदर लड़के और लड़कियाँ सभी एक यूनीफॉर्म में हैं l एक खूबसूरत लड़की प्रतिभा के सामने आती है

लड़की - यस मैम... व्हट कैन वी डु फॉर यु...
प्रतिभा - (विश्व को दिखाते हुए) यह मेरा बेटा है... इसके बाल और दाढ़ी बनवानी है...
लड़की - श्योर मैम...

दो लड़कीयाँ आकर विश्व की बांह पकड़ कर ले जाने लगते हैं तो विश्व अपनी बांह छुड़ा कर प्रतिभा के पीछे चला जाता है l प्रतिभा उसे अपने सामने खिंच कर लाती है

प्रतिभा - अरे... तु शर्मा क्यूँ रहा है... गर्ल्स.. इसे ले जाओ... यह बहुत शर्मिला है...

वहाँ पर जितने भी लड़कियाँ थी सभी खिलखिला कर हँसने लगे l विश्व फिर भी आनाकानी करने लगता है तो प्रतिभा उसे आँखे दिखाती है l विश्व अपना मन मार कर उन लड़कियों के साथ चला जाता है l प्रतिभा वहीँ पर बैठ कर मैग्ज़ीन पलट ने लगती है l

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अनु के घर में,
अनु अपनी यूनीफॉर्म पहन कर ऑफिस जाने के लिए तैयार है l अभी वह अपनी हाथ में मोबाइल ले कर नाश्ता कर रही है l खाना खाते वक़्त वह बीच बीच में मोबाइल देख रही है l

दादी - चुप चाप तु नाश्ता नहीं कर सकती... यह बीच बीच में फोन को आईना बना कर क्यूँ देख रही है... जिस दिन से लाई है... उसी दिन से फोनमें घुसी पड़ी है...
अनु - तु नहीं जानती दादी... इस फोन को सम्हालने के लिए भी मुझे तनख्वा मिलती है... इसलिए बार बार देख रही हूँ...
दादी - अरे पागल लड़की... इसे अपने पर्स में रख... जब बजना होगा तब बजेगा... तब निकाल कर देख लेना...
अनु - नहीं नहीं.. मैं ऐसा नहीं कर सकती... कहीं राजकुमार जी का कोई मैसेज आ गया तो...
दादी - हाँ हाँ... एक तुझे ही मिले हैं... राजकुमार... अरे मुई... उनको कोई काम धंधा नहीं है क्या... तुझे ही मैसेज करते फिरेंगे...

तभी अनु की मोबाइल में टुँन.. टुणुन... की ट्यून आती है l मोबाइल स्क्रीन पर राजकुमार डिस्प्ले होता है l अनु मैसेज देखते ही मोबाइल अपनी दादी को दिखा कर

अनु - देखा... अभी अभी राजकुमार जी ने मुझे मैसेज किया है... अगर पर्स में रखती तो मालुम कैसे होता मुझे...
दादी - क्यूँ... सुनाई नहीं देता तुझे...
अनु - हाँ सुनाई तो देता... पर... चलो पहले मैं देख तो लूँ... आखिर उन्होंने मैसेज किया क्या है....

अनु अपना हाथ साफ करने के बाद मोबाइल की लॉक खोल कर मैसेज दिखती है

वीर - कहाँ हो तुम...


जी घर में - अनु

वीर - जानती हो ना... हमें आज भेष बदल कर चेकिंग के लिए जाना है...

हाँ याद है... मैं अभी ऑफिस के लिए निकल रही हूँ... - अनु

वीर - नहीं नहीं... एक काम करो... मैं तुम्हारे मुहल्ले से थोड़ी दुर मार्केट के xxxx दुकान के बाहर गाड़ी लेकर आया हूँ... तुम सीधे आकर गाड़ी में बैठ जाना... और हाँ... यह बहुत सीक्रेट है... किसीको बताना मत...

ठीक है... अभी निकलती हूँ... - अनु

मोबाइल अपनी पर्स में रख कर जल्दी जल्दी निकलती है l उसे जल्दी जल्दी जाते देख उसकी दादी उसे आँखे फाड़े देखती है l

उधर वीर कभी रियर व्यू मिरर तो कभी साइड मिरर पर देख रहा है l उसे कुछ देर बाद रियर मिरर में अनु दीखती है l अनु के दीखते ही वीर की चेहरा खिल जाता है l अनु आकर पहले गाड़ी के पास खड़ी होती है फिर बाएं तरफ जाकर खिड़की से झाँक कर देखती l वीर को देखते ही उसके चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कराहट खिल उठता है l वह कार की दरवाजा खोल कर वीर के बगल वाली सीट पर बैठ जाती है l अनु के बैठते ही वीर गाड़ी को उस मार्केट से दुर दौड़ा देता है l

वीर - तो अनु तैयार हो...
अनु - जी... पर हम कौनसे भेष बदलेंगे... और हम कहाँ पर भेष बदलेंगे...
वीर - कौनसा भेष... यह तो वहाँ जा कर पता चलेगा... जहां हम जा रहे हैं.. वहाँ पर मैंने तुम्हारे लिए कुछ भेष सिलेक्ट कर लिया है... पहुँचते ही भेष बदलेंगे...
अनु - अच्छा... तो आप क्या बनने का फैसला किया है...
वीर - पता नहीं... वहाँ पहुँच कर डीसाइड करेंगे... (अनु सोच में देख कर) क्या सोच रही हो...
अनु - मैं सोच रही हूँ.... कौनसा भेष बदलना है...
वीर - अच्छा... तुम सोच रही हो... कौनसा...
अनु - माता पार्वती जी का...

चर्र्र्र्र्र्र्र वीर गाड़ी में ब्रेक लगाता है l वीर अनु को ऐसे देखता है जैसे उसे जोरदार शॉक लगा हो l

वीर - क्या कहा... माता पार्वती जी का...
अनु - (चहकते हुए) हाँ... एक बार मैंने नाटक में देखा था... उनके केश खुल जाते हैं... आँखे बड़ी हो जाती है और (अपनी माथे की ओर दिखाते हुए) यहाँ पर... ये बड़ा सिंदूर... देखिएगा कोई नहीं पहचान पाएगा...
वीर - अच्छा (हैरानी भरे नजरों से देखते हुए) तो मेरे लिए भी कुछ सोचा है तुमने...
अनु - हाँ (चहक कर) सोचा है ना...
वीर - अच्छा... तो अभी तक बताया क्यूँ नहीं...
अनु - (मुहँ बनाते हुए) अगर आपको गुस्सा आ गया तो...
वीर - (हँसने की कोशिश करते हुए) नहीं.. नहीं करूँगा...
अनु - (चहकते हुए) आप ना... हनुमान बन जाइए... बड़ा मजा आएगा... और कोई पहचान भी ना पायेगा...

वीर इतना सुनते ही जोर जोर से हँसने लगता है l अपनी सीट की लीभर खिंच लेता है जिससे सीट पीछे की ओर लुढ़क जाती है, फिर वीर अपनी पेट पकड़ कर पैर पटकते हुए हँसने लगता है l अनु उसको यूँ हँसता देख कर मुहँ रुआँसी बना लेती है l थोड़ी देर बाद

वीर - (वीर उसकी रुआँसी चेहरा देख कर) ओ.. अनु... अनु.. जरा सोचो... हम छुपने के लिए भेष बदलने वाले हैं... मतलब लोगों के बीच घुल-मिल कर...उन्हीं के जैसे बन कर... तुम अगर पार्वती और मैं हनुमान बना... लोग सब काम धंधा छोड़ हमारे इर्द गिर्द भीड़ जमायेंगे.... है कि नहीं...
अनु - (अपना सिर हिला कर हाँ कहती है)
वीर - चलो वहाँ पहुँच कर देखते हैं... हम क्या बन सकते हैं...

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XXXXकॉलेज

छटी गैंग कैन्टीन में बैठी हुई है l सब के सब नंदिनी को देख रहे हैं l नंदिनी के चेहरे पर टेंशन साफ दिख रहा है l

बनानी - तु... इतनी टेंशन में क्यूँ है...
दीप्ति - हाँ... तुझे प्रीपेयर होने के लिए सब्जेक्ट भी तो मिला था..
नंदिनी - बात अगर पढ़ाई के रिलेटेड होती... शायद इतना डरती भी नहीं... पर यह तो सोशल रिलेटेड है... अब साइंस स्टूडेंट्स को... इस तरह की सब्जेक्ट मिले.... टेंशन तो होगी ही ना...
तब्बसुम - अरे सोशल प्लेटफॉर्म पर... सोशल मैसेज वाली ही टास्क मिल सकती थी ना...
इतिश्री - हाँ... अब अगर.. यह हमारे ग्रुप को मिली होती... तो मजा आ गया होता...
भाश्वती - वह तो हुआ नहीं... अब इस बेचारी की तोते उड़ रहे हैं...
बनानी - ओह स्टॉप इट... यह पहले से ही नर्वस है... तुम लोग इसकी जोश बढ़ाने के वजाए... और भी नर्वस कर रही हो...
रॉकी - यह तो बढ़िया मौका है... अपने अंदर के आत्मविश्वास को जगाने का... (अंदर आते हुए) अपने अंदर की व्यक्तित्व को बाहर लाने का...

सब रॉकी की ओर देखते हैं l रॉकी अपने ग्रुप के साथ थोड़ी ही दूरी पर खड़ा हुआ है l बनानी कुछ कहने को होती है कि तभी प्रिन्सिपल ऑफिस का पियोन आता है और सीधे नंदिनी से कहता है

पियोन - नंदिनी जी... आपको प्रिन्सिपल सर ने बुलाया है...

नंदिनी कुछ नहीं कहती है चुप चाप उठ कर पियोन के साथ चली जाती है l

रॉकी - क्या बात है गर्ल्स... मैंने कुछ गलत कह दिया क्या... आपकी दोस्त ने जवाब दिए वगैर चली गई...
बनानी - नहीं ऐसी बात नहीं है... वह थोड़ी नर्वस है...
रॉकी - हाँ... वह तो दिख ही रहा है...

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मेयर ऑफिस

पिनाक सिंह विक्रम के साथ अपनी ऑफिस में घुसते हुए

पिनाक - अब तीन दिन हो गए हैं... आप मेरे साथ ही चिपके हुए हैं...
विक्रम - हाँ हम अब उस दुश्मन से मिलना चाहते हैं... आखिर वह कौन है... जिसने क्षेत्रपाल के मूछों पर हाथ नहीं.. घात मारने की सोची है...
पिनाक - (अपनी कुर्सी में बैठते हुए) बड़ी बड़ी हाँका है... हमारी तैयारी देख कर... फट गई होगी उसकी....
विक्रम - (पिनाक के सामने बैठते हुए) नहीं... उसे हमारी तैयारी का अंदाजा हो सकता है... बस हमे ही नहीं मालुम उसकी तैयारी क्या क्या है...
पिनाक - महांती... अब तक कहाँ पहुँचा...
विक्रम - मैंने उसे बुलाया है... वह पहुँचता ही होगा... वैसे... क्या आपने राजकुमार से बात की...
पिनाक - उनकी बात छोड़िए युवराज... वह अभी इन सब में जुझने के काबिल नहीं हुए हैं.... नए नए ल़डकियों की तलाश में रहते हैं... जब उससे मन भरेगा... तब शायद कुछ करने के काबिल हो पाएं....
विक्रम - ह्म्म्म्म... पर आप कभी कभी उन्हें झिड़क देते हैं... वह ठीक नहीं लगता...
पिनाक - उन्हें कुछ फर्क़ नहीं पड़ता....
विक्रम - इतने हल्के में मत लीजिए... वह जवानी के उस मोड़ पर हैं... जब खुन में हद से ज्यादा गर्म रहाता है...
पिनाक - वह खानदानी क्षेत्रपाल हैं युवराज... और हम शत प्रतिशत निश्चिंत हैं... हमारे राजकुमार अपनी गर्मी उतारने के लिए... कोई साधन जुगाड़ कर लिया होगा....
विक्रम - क्या मतलब...
पिनाक - आप उस दौर में जहाँ झिझकते थे... राजकुमार उस दौर में चिड़िया फंसा कर हज़म कर जाते हैं....
विक्रम - (कुछ नहीं कहता अपना चेहरा घुमा लेता है)

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वीर अनु को लेकर एक दुकान पर आता है जहाँ लोगों का मेकअप किया जाता है l वहाँ पर लड़कियों की एक ग्रुप खड़ी थी l वीर उन ल़डकियों के पास आकर

वीर - गर्ल्स... आपको इनका मेकअप कराना है...
लड़कियाँ - यस सर...
वीर - (अनु से) आप इनके साथ जाइए... यह लोग आपका मेकअप कर देंगे...
अनु - (वीर के कान में धीरे से) यह लोग हमारे भेष बदलेंगे...
वीर - (अनु के कान में) हाँ... पर हमारे नहीं... तुम्हारे...
अनु - क्या.. कौनसा भेष..
वीर - वह उन पर छोड़ दो ना... अब कोई बड़बड़ नहीं... सीधे उनके साथ जाओ... (उन लड़कियों से) गर्ल्स प्लीज...

लड़कीयाँ आकर अनु को ले जाने लगती हैं l अनु झिझकते हुए वीर को पीछे मुड़ कर देखते हुए अंदर जाती है l वीर उस दुकान की मालकिन से कहता है

वीर - उनका मेकअप हो जाने के बाद... उनसे कहिएगा मैं नीचे गाड़ी के पास इंतजार कर रहा हूँ...
मालकिन - जी सर...

फिर वीर नीचे चला जाता है और गाड़ी की डिकी खोल कर एक लाल रंग का लेदर जैकेट निकाल कर पहन लेता और एक गॉगल पहन लेता है l फिर गाड़ी पर पीठ लगा कर खड़े होकर उस दुकान की दरवाजे पर नजर गड़ा कर देखने लगता है l करीब एक घंटे बाद दुकान का दरवाजा खुलता है तो वीर की आँखे फटी की फटी रह जाती है l
अनु खूबसूरत तो थी पर आज ऐसा लग रहा था जैसे अनु की खूबसूरती हीरे की तरह कोयले की खदान को चीरते हुए निखर कर आई है l अनु कुछ ल़डकियों के साथ सीढियों से उतर कर ऐसे आ रही थी मानो बादलों पर चल कर आ रही हो l

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माँ...

यह सुन कर प्रतिभा अपना सिर मैग्जीन से निकाल कर विश्व को देखती है l

प्रतिभा - Awwww... कितना हैंडसम है मेरा बच्चा...(खड़े होकर)

प्रतिभा देखती है वहाँ पर काम करने वाली सभी लड़कियाँ विश्व को एक आशा और लालच भरे नजरों से घूर रही हैं l प्रतिभा फौरन अपनी आँख से काजल निकाल कर विश्व के कान के नीचे लगा देती है और विश्व को खिंच कर बाहर ले जा कर खड़ा कर देती है l

प्रतिभा - तु... यहीं पर रुक... मैं पेमेंट कर आती हूँ... (प्रतिभा अंदर वापस जाती है और कुछ देर बाद बाहर आकर) चल अभी चलते हैं...
विश्व - अब कहाँ चलना है...
प्रतिभा - अरे.. तेरे लिए नए कपड़े भी तो लेने हैं... और नए जूते भी...
विश्व - अब यह सब किसलिए माँ...
प्रतिभा - (गाड़ी में बैठते हुए) चल आजा बैठ जा...
विश्व - क्या माँ... आज दिन भर यही करना है क्या...
प्रतिभा - हाँ... अब बैठता है या नहीं...

विश्व बिना कुछ कहे चुपचाप बैठ जाता है, प्रतिभा गाड़ी स्टार्ट करती है l

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प्रिन्सिपल ऑफिस

नंदिनी - मे आई... कम इन.. सर..
प्रिन्सिपल - यस यस मिस रूप नंदिनी... प्लीज कम इन...
नंदिनी - सर... आपने मुझे अभी यहाँ क्यूँ बुलाया है...
प्रिन्सिपल - देखिए मिस...
नंदिनी - सर नंदिनी... प्लीज नंदिनी...
प्रिन्सिपल - ऐसा क्यूँ...
नंदिनी - (खामोश रहती है)
प्रिन्सिपल - आप उस आइडेंटी से खुद को दूर क्यूँ रखना चाहती हैं... जो आपको आपके पिता ने दी है...
नंदिनी - (सिर झुका कर खामोश रहती है और अगल बगल देखने लगती है)
प्रिन्सिपल - क्यूँकी... एक कशमकश है... आपके भीतर... ख्वाहिश है... एक अलग पहचान बनाने की... खुदको साबित करने के लिए... है ना...
नंदिनी - (अपना सिर उठा कर देखती है)
प्रिन्सिपल - जिस दिन आप पहली बार मुझसे अपनी अलग आइडेंटिटी के बात की... उसी दिन मैं कुछ कुछ समझ गया था...
नंदिनी - (फिर अपना सिर झुका लेती है)
प्रिन्सिपल - चलो मैं इस बात को आगे नहीं खिंचता... बस इतना कहूँगा नंदिनी जी... मैं खुद उस टास्क की सब्जेक्ट से हैरान हूँ... पर इतना ज़रूर कहूँगा... यह वह सब्जेक्ट है... जिससे आपकी अपनी एक विशेष पहचान बनेगी... जो बहुतों को प्रभावित करेगी... इसलिए आप अपना हंड्रेड पर्सेन्ट दें... बस इतना ही कहूँगा...
नंदिनी - (प्रिन्सिपल को देख कर) जी सर... आई वील ट्राय माय लेवल बेस्ट...
प्रिन्सिपल - ओके... गुड.. तो अभी... एक काम कीजिए... सुरेश... वह रेडियो जॉकी... असेंबली हॉल में आपका इंतजार कर रहा है... एक छोटा सा रीहरसल के बाद... ट्रांसमिशन लाइव होगा...
नंदिनी - ठीक है सर... तो मैं जाऊँ...
प्रिन्सिपल - यस... यस.. प्लीज...

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वीर की नजर अनु की पहनावे पर पर ठहर जाती है l ब्लैक स्लीवलेस ब्लाउस टॉप जो अनु की नाभि तक पहुँच रही है l उसके ऊपर सफेद जाली कारीगरी वाली घुटने तक जोधपुरी एथिनीक जैकेट वीथ फुल लेंथ स्कर्ट l वीर की नजर अनु की खूबसूरती को निहारते निहारते नाभि पर ठहर जाता है l वीर का मुहं खुल जाता है थरथरा कर एक गहरी सांस लेता है l उस दुकान की ल़डकियों की बीच झिझकते हुए अनु वीर के पास पहुंचती है l

एक लड़की - सर यह ड्रेस पहनाने के लिए हमें बहुत मशक्कत करनी पड़ी...

वीर सबको कुछ पैसे देकर विदा करता है l खुद गाड़ी में बैठ कर इशारे से अनु को बैठने के लिए कहता है l अनु बैठती है l वीर गाड़ी स्टार्ट करता है l गाड़ी के चलते ही

वीर - वाव अनु... तुम्हें सच में पहचान नहीं पाया...
अनु - (कुछ नहीं कहती झिझक और शर्म साफ उसके चेहरे पर झलकती है)
वीर - घबराओ नहीं.. कहा ना.. मैं.. जो तुम्हें रोज सुबह से शाम तक देखता हूं... पहचान नहीं पाया... तो तुम्हें कोई भी पहचान नहीं पाएगा...
अनु - (थोड़ी हैरानी भरी भाव से) पर आपने तो खुदको नहीं छुपाया...
वीर - मैं भी खुदको छुपा लूँगा... देखना...
अनु - हम.. कहाँ जा रहे हैं...
वीर - ओरायन मॉल...
अनु - वहाँ हम क्या करेंगे...
वीर - बस दिन भर... वहाँ रहकर हमारे सिक्युरिटी गार्ड्स पर नजर रखेंगे... कौन कैसे ड्यूटी कर रहा है... लोगों से कैसे पेश आ रहे हैं... वगैरह वगैरह...
अनु - ओ अच्छा...

वीर अनु की बात सुन कर हँसता है l और गाड़ी को ओरायन मॉल की ओर ले चलता है l थोड़ी दूर ड्राइविंग करने के बाद वीर की गाड़ी मॉल की अंडरग्राउंड पार्किंग में पहुँचता है l पहले वह उतरता है l जल्दी जल्दी निकलने में उसका एक पैर दुसरे पैर में फंस जाता है l वीर अनबैलंस हो कर आगे की ओर गिरने लगता है तो कोई उसे थाम लेता है l वीर को संभाल कर वह शख्स खड़ा कर देता है l तभी पीछे से अनु भागते हुए आती है और

अनु - राजकुमार जी...
वीर - मैं ठीक हुँ... अनु.. मैं ठीक हुँ...
अनु - (उस शख्स से) आपका शुक्रिया भैया ... बहुत बहुत शुक्रिया...
शख्स - कोई बात नहीं... इसमे शुक्रिया की क्या बात है...
वीर - (उस शख्स को) हैलो आई एम वीर... एंड थैंक्यू...

इससे पहले कि वह शख्स कुछ कहता एक औरत वहाँ पर आती है और कहती है

- यह मेरा बेटा... प्रताप... और मैं एडवोकेट प्रतिभा महापात्र...
वीर - ओह हैलो प्रताप...(अपना हाथ बढ़ाता है)
प्रताप - हैलो (प्रताप भी अपना हाथ बढ़ा कर हाथ मिलाता है)
वीर - आप यहाँ पर...
प्रतिभा - ओवीयसली.. हम यहाँ पर खरीदारी करने आए हैं... और आप दोनों...

वीर और अनु दोनों चुप रहते हैं और एक दुसरे को चोर नजर से देख कर प्रतिभा और विश्व से नजरें चुराने लगते हैं l उनकी हालत देख कर प्रतिभा मुस्कराने लगती है l

प्रतिभा - ओके... ओके मैं समझ गई... अच्छा हम चले अपनी मार्केटिंग पर... मौका हाथ लगा तो... मिलते हैं बाद में...
वीर - जी... जी ज़रूर...

माँ बेटे के वहाँ से चले जाने के बाद अनु वीर की ओर देखती है और पूछती है

अनु - राजकुमार जी... आप ने अभी तक कोई भेष बदला ही नहीं...
वीर - अभी बदल लेता हूँ... एक मिनट...

कह कर वीर अपनी गाड़ी के पिछे चला जाता है l अपनी जेब से एक नकली, मोटा मूँछ निकाल कर अपने मुहँ पर लगा लेता है और बाएं गाल पर आँखों के नीचे एक मस्सा लगा लेता है l उस पर आँखों पर एक गॉगल लगा कर अनु के सामने खड़ा हो जाता है l अनु उसे पहचान नहीं पाती, वीर की यह हुलिया देख कर वह चीखने को होती है कि वीर उसकी मुहँ पर जोर से हाथ रख देता है l

वीर - अनु यह मैं हूँ... (अनु की आँखे बड़ी हो जाती है) अब तुम्हारे मुहँ से हाथ हाटऊँ... (अनु इशारे से अपना सिर हिला कर हाँ कहती है, तो वीर अपना हाथ हटा लेता है)
अनु - राजकुमार जी... सच में... मैं तो आपको पहचान ही नहीं पाई...
वीर - ह्म्म्म्म... चलो अब अंदर चलते हैं... (लिफ्ट की ओर चलने लगता है)
अनु - ठीक है...(वीर के साथ चलते हुए) पर हम यहाँ पर करेंगे क्या...
वीर - यहाँ पर हम कहीं खाना खाएंगे... कहीं थोड़ी बहुत खरीदारी करेंगे... और जरूरत पड़ी तो... एक फिल्म देख लेंगे...
अनु - ओ माँ... इतना कुछ करेंगे... पर हम तो यहाँ... चेकिंग के लिए आए हैं ना...
वीर - अरे वही तो करेंगे... दिन भर... चलो पहले कहीं बैठ कर... फ्रूट जूस पीते हैं....

अनु और कुछ नहीं कहती अपना सिर हिला कर वीर के साथ हो लेती है l दोनों एक जूस और पुडलींग स्टॉल पर पहुँचते हैं l वीर अनु एक टेबल देख कर बैठने के लिए कहता है और खुद जा कर जूस के लिए ऑर्डर करता है l कुछ मिनट बाद जब जूस लेकर अनु के पास आता है तो देखता है वहाँ पर दो लड़के अनु से बात करने की कोशिश कर रहे हैं l अनु के चेहरे पर झिझक व डर दिखता है l वीर जैसे ही टेबल पर पहुँचता है वह लड़के वीर को देखने लगते हैं I वीर की पर्सनालिटी देख कर थोड़ा डरने लगते हैं l अनु भी वीर को देख कर रीलैक्स फिल करती है l

वीर - कोई तकलीफ़...
एक लड़का - जी.. जी... वह.. हम इन्हें अकेले देखा तो...
वीर - तो... चांस मारने आ गए...
दुसरा - ओह कॉम ऑन ड्युड... जस्ट चील... हम तो बस दोस्ती करने आए थे...
वीर - ऑए चील के बच्चे... जरा स्पीड कम कर... वरना... आँख कान और जुबान सब छिल जाएंगे...

दोनों लड़के वहाँ से उठ कर चले जाते हैं l वीर अनु को जूस की एक ग्लास बढ़ाता है l अनु एक मुस्कराहट के साथ वीर के हाथों से जूस ले लेती है l
उधर उसी मॉल के ड्रेस सेक्शन में विश्व अभी तक पाँच जोड़ी ड्रेस पहन कर प्रतिभा को दिखा चुका है l प्रतिभा सब रिजेक्ट कर विश्व की सिर दर्द बढ़ा चुकी है l आख़िर में एक गहरी काले रंग पेंट के उपर एक सफ़ेद शर्ट पहन कर प्रतिभा के सामने आता है

प्रतिभा - Awww... यह हुई ना बात... अब लग रहे हो... कल के होने वाले मशहूर वकील...
विश्व - माँ पहले की कह देतीं... मैं यही पहन लिया होता... आपने अभी मुझसे पाँच जोड़ी कपड़े बदलवाए...
प्रतिभा - हाँ तो क्या हुआ... अगर यह लोग ड्रेस चुज एंड ट्राए का ऑप्शन दे रखे हैं... तो हमे भी उसका फायदा उठाना चाहिए कि नहीं...
विश्व - (हँसते हुए) माँ... तुम्हारी हरकतें किसी बच्चे जैसी है... अगर तुम ऐसी हरकतें करती रहोगी... कौन मानेगा की तुम्हारा (खुद को दिखाते हुए) इतना बड़ा बेटा है...
प्रतिभा - माँ में बचपना अपनी बच्चों के लिए होता है... और कौन नहीं मानेगा के तु मेरा बेटा है... (शो रुम के अंदर चिल्लाते हुए) हैलो हैलो हैलो... सुनो प्लीज... (सब मौजूद लोग और सेल्स मेन व सेल्स गर्ल्स प्रतिभा की ओर देखते हैं) गौर से देखिए... यह मेरा बेटा है... कितना हैंडसम है... है ना...
विश्व - (प्रतिभा की मुहँ पर हाथ रख देता है) माँ यह क्या कर रही हो... फिर से अगर ऐसा कुछ किया तो मैं यहाँ से भाग जाऊँगा...
प्रतिभा - (मुहं बंद है) उम्म् उम्म्
विश्व - ठीक है हाथ निकालता हूँ... (अपना हाथ निकाल देता है)
प्रतिभा - (ऊंची आवाज़ में) देखिए लोगों...(विश्व से थोड़ी दुर जा कर) आज कल के बच्चें... माँ बाप को छोड़ कर भागने की धमकी दे रहे हैं...

विश्व अपना माथा पीट लेता है l वहाँ पर मौजूद सभी विश्व की हालत देख कर मुस्कराने लगते हैं l तभी मॉल के हर दुकान व हर जगह जहाँ माइक थे एनाउंसमेंट होने लगती है l

" यह एक विशेष सूचना है... ओरायन मॉल पर उपस्थित सभी ग्राहक व कर्मचारियों के लिए... अभी कुछ ही देर में एफएम 97 पर आने वाली एक प्रोग्राम का प्रसारण किया किया जाएगा... कृपाया उसे सुनें... यह एफएम सर्विस वालों के अनुरोध पर किया जा रहा है और सुन कर अपना मत fm97xxxxx. Co. In पर व्यक्त रखें...

XXXXX कॉलेज
असेंबली हॉल खचाखच भरा हुआ है l स्टेज पर बने एक कांच की घर के भीतर रेडियो जॉकी सुरेश और नंदिनी बैठे हुए हैं l सुरेश प्रोग्राम को शुरू करता है l

सुरेश - हैलो अउडीयंस.. मैं आपका अपना सुरेश.... आज आपके लिए एक लाइव एंड थ्रिलींग मोमेंट ले कर आया हूँ XXXXX कॉलेज से... मेरे साथ बैठी हैं... मिस नंदिनी... यह अपनी कॉलेज में लकी ड्रॉ के जरिए सिलेक्ट हुई हैं... आपको एक सोशल मैसेज देने के लिए... दोस्तों हमनें इन्हें दो दिन पहले ही टास्क दिया था... HUMAN EVOLUTION, TWENTY FIRST CENTURY AND THE WOMAN...
इसलिए मैं अभी यह माइक यह सिस्टम पूरी तरह से मिस नंदिनी जी के हवाले कर रहा हूँ... अब नंदिनी जी आपके सामने हमारी उसी टास्क को अपने अंदाज में आपके सामने प्रेजेंट करेंगी... मिस नंदिनी... प्लीज...
नंदिनी माइक पर आती है, अपनी आँखे बंद कर एक गहरी सांस लेती है फिर खुद को नॉर्मल करती है l

नंदिनी - हैलो... मैं नंदिनी... नंदिनी सिंह... बीएससी फर्स्ट ईयर की स्टुडेंट.... अभी आपने बात करने से पहले मुझे पता चला... की सुरेश जी ऐसे ही कभी कभी कहीं भी पहुंच कर ऐसे ही चौंका देते हैं... मुझे भी चौंका दिया था... बुधवार को... फ़िर एक टास्क दिया... मानव क्रमिक विकास, इक्कीसवीं सदी और औरत... पहले जब मानव विकास सुना... एज अ साइंस स्टुडेंट मैं साइंस की नजरिए से समझने की कोशिश की... फिर इक्कीसवीं सदी... इसमे भी साइंस ही दिखी थी मुझे... पर अंत कहा... औरत... तब मुझे लगा कि यह तो एक सोशल सब्जेक्ट है... मैं एक साइंस की स्टूडेंट इसे कैसे प्रेजेंट करूँ... यह बात मैंने अपनी भाभी जी से पूछी... भाभी... मेरी सबसे अच्छी सहेली... दोस्त... माँ... दीदी और गुरु भी... उन्होंने कहा... क्यूँ नहीं... आख़िर मानव सामाजिक प्राणी है... और बात समाज की है... तो क्यूँ नहीं... पर मैं जिसने समाज को ठीक से देखा भी ना हो... समझा भी ना हो वह कैसे समाज की इतनी बड़ी विषय पर टिप्पणी कर सकती हूँ...
तब भाभी जी ने मुझे गुरुवार से लेकर आज तक... अकेले कॉलेज चलते हुए जाने के लिए कहा और लोगों की चारों तरफ की परिस्थितियों में खुद को फिट कर,.. वहाँ पर अपनी स्थिति को समझ कर... एक्सपेरियंस करने के लिए कहा

इन ढाई दिनों में मैंने जो एक्सपीरियंस किया... वही आज मेरे की टास्क की जीस्ट है....

औरत... औरत क्या है... एक वस्तु या एक शख्सियत... मुझे एक ऐसे समाज में... एक ऐसे तथ्य पर राय रखने के लिए कहा गया है... जहां खुद यह समाज ही दीग भ्रमित है... यह समाज वस्तु वादी है... जहां निर्जीव वस्तुओं में अपनी हर्ष ढूंढते हैं... उस समाज की सोच में औरत एक वस्तु ही तो है....

औरत की समाज में आवश्यकता है... वजह एक नई पीढ़ी को लाने के लिए... माँ प्रथम गुरु होती है... दीदी प्रथम मित्र होती है... मौसी माँ सी होती है... भाभी... एक माँ, बहन, सखी और गुरू भी होती है... और हर रुप में वह पहले औरत ही होती है... शास्त्र कहता है
‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः’
पर सच मानिये इन ढाई दिनों में मैंने ऐसा कुछ भी नहीं देखा....
एक लड़की जो किसी बाप की लाडली, माँ की दुलारी भाई की अभिमान होती है... वह घर से निकलते ही दुसरे मर्दों की आँखों के एक्स्रै से स्कैन की जाती है... यही सच्चाई है... खैर मुझे तो टास्क को प्रेजेंट करना है... तो ढाई दिन की एक्सपीरियंस को एक ही कहानी में पिरो कर बताती हूँ...

एक सुबह घर से निकली.... चलते हुए अपनी घर से कुछ दुर एक पान सिगरेट की दुकान के पास... कॉलेज जाने के लिए बस की इंतजार करने लगी... उस दुकान पर बहुत से लड़के व मर्द खड़े थे... कोई पान खरीद रहा था तो कोई सिगरेट तो कोई गुटखा... सब की भीड़ वहीँ पर इसलिए थी क्यूंकि... वहीँ से बहुत सी लड़कियाँ कॉलेज जाने के लिए बस पकड़ती हैं...
उस पान दुकान वाले की दो बेटियाँ हैं... पर वह खुश नहीं है... क्यूँ... क्यूंकि उसे वंश चलाने के लिए एक बेटा चाहिए... इसलिए वह हर पल अपनी किस्मत, अपनी बीवी और अपनी बेटियों को कोशता रहता है... उसकी बड़ी बेटी अपनी छोटी बहन के साथ उसी दुकान के पास एक कुत्ते से दोस्ती कर दिन भर खेलती रहती है.... पर उस दिन कुछ बंद था इसलिए कोई बस या ऑटो नहीं चल रहा था... हम कुछ लड़कियाँ फैसला किए... चलते हुए कॉलेज जाने के लिए...
हम ल़डकियों का एक ग्रुप चलते हुए कॉलेज निकले.... एक मोड़ पर आगे जाना मुश्किल हो गया... क्यूंकि उस मोड़ पर बिजली की तार से उलझ कर एक कौवा मर गया था... इसलिए वहाँ पर गुजरने वाले हर इंसान पर कौवे अपने साथी के मरने की गुस्सा उतार रहे थे.... हम ल़डकियों ने रास्ता बदल कर दुसरे रास्ते में जाने लगे... उस रास्ते में हैदराबाद की एक डॉक्टर के बलात्कार के विरुद्ध प्रदर्शन व रैली चल रही थी... हम वहीँ पर खड़े होकर रैली की गुजरने की इंतजार करने लगे... उसी रैली में हिस्सा लिए कुछ क्रांतिकारियों ने हमें देखकर कमेंट करने लगे... कोई हमारी रंग पर... कोई हमारी अंग के कटाव पर टिप्पणी करते हुए गुजरे... एक औरत के साथ हुई दुराचार के विरुद्ध कुछ क्रांतिकारी रास्ते पर खड़े दुसरे औरतों पर फब्तीयाँ गढ रहे थे... एक और जहां अपनी धरना प्रदर्शन से अपनी जिम्मेदारी निभा रहे थे... वहीँ दुसरी और वह लोग रास्ते पर खड़े हुए औरतों में मौका तलाश रहे थे... हम लोग किसी तरह कॉलेज पहुँचे... फिर मैंने क्लासेस खतम कर... शेयर ऑटो से घर को निकली... उसी पान दुकान वाली जंक्शन से थोड़ी दूर पर पहुँची....
वहाँ पहुँच कर देखा वह कुत्ता भोंकते हुए लोगों को अपने तरफ आने को मजबूर कर रही है... पर कोई नहीं जा रहा... शायद कोई समझ ही नहीं पा रहा था... मैंने हिम्मत करके कुत्ते के साथ गई... मेरे देखा देखी कुछ लोग कुत्ते के पीछे गए...
वह पान दुकान वाला अपने घर में आग लगा रहा था... उसकी बीवी और बड़ी बेटी उसे रोकने की कोशिश कर रही थीं... पर वह रुका नहीं हमारे पहुँचते पहुँचते आग लग चुकी थी... वहाँ पर पहुँचे लोगों ने पहले उस पान वाले को पकड़ लिया और कुछ लोग आग को बुझाने की कोशिश करने लगे... तभी औरत चिल्लाने लगी उसकी छोटी बेटी आग में फंस गई है... किसीने हिम्मत नहीं करी आग में घुस कर बच्ची को बचाने के लिए... पर वह कुत्ता जो हमे वहाँ लाया था... वह अचानक आग के भीतर कुद गया... कुछ देर बाद छोटी लड़की को खिंचते हुए बाहर लेकर आया.... कुछ देर बाद पुलिस पहुँच कर हमारी गवाही लेकर उस पान वाले को गिरफ्तार कर लिया.... उस पान वाले की बीवी और बच्चे वहीँ रह गए... हम लोग जो वहाँ पर मौजूद थे ने कुछ पैसे कलेक्शन कर उसे देकर अपने अपने घर चले गए...
मैं घर पर पहुँची... किताबें रख कर पुरी दिन में घटित घटनाओं के बारे में सोच रही थी... तब सोनी मैक्स पर... अमिताभ बच्चन अभिनीत अग्निपथ फिल्म की एक सीन चल रही थी....
उस सीन में विजय चौहान अपनी माँ से कहता है पुरे बांबे में उसकी माँ और बहन को छेड़ने वाला कोई नहीं है... क्यूंकि सब जानते हैं... किसीने ऐसी हिमाकत की... तो वह उन्हें बीच से काट डालेगा...
ज़वाब में उसकी माँ सुहाषीनी चैहान कहती है - वाह क्या खूब तरक्की कर ली है तुने... तेरे पिता कहा करते थे... हज़ारों बरस लग गए... इंसान को जानवर से इंसान बनने के लिए... तुने तो जरा भी देर नहीं लगाई... वापस जानवर बनने के लिए....


यह भले ही एक फिल्मी डायलॉग थी... पर उस दिन घटित हुए सारे घटनाओं के बारे में सोच रही थी... जहाँ एक और इंसान अपने कद से गिर कर... जानवर बन कर... अपनी ही आशियाना को आग में झोंक दिया था... वहीँ एक जानवर अपने कद से उपर उठकर आग से इंसान की अगली पीढ़ी को बचा लाया....
शायद यही मानव का क्रमिक विकास के वस्तुवादी इक्कीसवीं सदी में औरत जिम्मेदारी कम मौका जादा लगती है
Bahut hi badhiya update diya hai Kala Nag bhai....
Nice and awesome update...
 

Kala Nag

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sunoanuj

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Bahut hi behtarin update… superb 👏🏻👏🏻👏🏻
 

RAJIV SHAW

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Super update hai Bhai
 

Lib am

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👉अट्ठावनवां अपडेट
---------------------
शनिवार
सेंट्रल जैल
सुपरिटेंडेंट कैबिन

विश्व - क्या मैं अंदर आ सकता हूँ...
खान - आओ विश्व आओ... यार तुम अब सिर्फ़ महीने भर के लिए मेहमान हो... परमीशन लेने की कोई जरूरत नहीं है...
विश्व - सर यह ऑफिस है... यहाँ पर मिनिमम डेकोरम तो मेंटेन करना ही चाहिए...
खान - हर सवाल का जवाब... तुम्हारे पास तैयार रहता है...
विश्व - (कुछ नहीं कहता है, बस एक फीकी मुस्कान मुस्करा देता है)
खान - विश्व... एक बात पूछूं...
विश्व - जी...
खान - तुम आखिरी बार... कब हँसे थे...
विश्व - (थोड़ा असमंजस हो जाता है) (फिर थोड़ा संभल कर) पता नहीं सर...
खान - बुरा मत मानना... तुम्हारे चेहरे पर मुस्कराहट एक मुखौटा लगता है...
विश्व - जी... मैं मानता हूँ... पर सच, यह है सर... मुस्कराने के लिए या हँसने के लिए मेरे पास अभी कोई जायज वजह नहीँ है...

खान टेबल पर रखे एक थैला विश्व की बढ़ाता है l विश्व उसे हैरानी भरे नजरों से देखता है l

खान - अरे यार... यह तुम्हारे कपड़े हैं... थोड़ी देर बाद... तुम्हारी मुहँ बोली माँ और मेरी मुहँ बोली बहन आ जाएंगी... इसलिए तैयार हो जाओ... हाँ... तुम कपड़े बदलने के लिए... मेरी टॉयलेट इस्तेमाल कर सकते हो...
विश्व - थैंक्यू सर...
खान - इट्स ओके... नाउ गो एंड गेट रेडी..

विश्व अपना सिर हिलाते हुए वह थैला उठा लेता है और अटैच बाथरूम में घुस जाता है l थोड़ी देर बाद कपड़े बदल कर बाहर आता है l तभी अर्दली आकर खबर करता है कि बाहर प्रतिभा आई हुई है l

खान - देखा... तुम्हारी माँ आ गई... चलो कम से कम मैं तुम्हें बाहर तक छोड़ आऊँ...

विश्व और खान बाहर आते हैं l बाहर प्रतिभा बेचैनी भरे निगाह में विश्व की इंतजार कर रही थी l विश्व को देखते ही जल्दी से उसके करीब आती है विश्व भी उसके तरफ जाता है l दोनों एक दुसरे के गले लग जाते हैं l

खान - अहेम अहेम अहेम... अगर माँ बेटे का मिलाप हो गया हो तो... (दोनों अलग होते हैं) थैंक्यू... तो मैं यह कह रहा था... कल शाम छह बजने से पहले... आपके बेटे को...
प्रतिभा - आप फ़िक्र ना करें... खान भाई साहब... अब प्रताप कल शाम को ही आएगा... और थैंक्यू... थैंक्यू वेरी मच...
खान - अच्छा... तो फिर मैं इजाज़त चाहूँगा... (कह कर खान वापस चला जाता है)

प्रतिभा विश्व की कान खिंचती है l विश्व दर्द से कराहता है l

विश्व - आह.. माँ.. दर्द हो रहा है... प्लीज छोड़ो ना...
प्रतिभा - जैल में तो नाई आता है ना... यह किस लैला के लिए दाढ़ी और बाल छोड़े हैं तुने...
विश्व - माँ.. वह पढ़ाई में बिजी था... इसलिए... प्रतिभा- (कान छोड़ कर) चल मेरे साथ... (विश्व को गाड़ी की ओर खिंच कर ले जाती है)
विश्व - कहाँ... घर...
प्रतिभा - नहीं पहले... सलून... फिर तेरे लिए कपड़ों और जुतों की मार्केटिंग... फिर हम दोनों बाहर खाना खायेंगे... घूमेंगे... फिर थक हार कर शाम को घर जाएंगे...
विश्व - अगर हम शाम को घर जाएंगे... तो सेनापति सर क्या करेंगे दिन भर.. (दोनों गाड़ी में बैठ जाते हैं)
प्रतिभा - तु उनकी चिंता ना कर... (गाड़ी स्टार्ट करते हुए) वह दिन भर नए घर की तलाश में रहेंगे...
विश्व - नए घर.... वह क्यूँ...
प्रतिभा - (गाड़ी चलाते हुए) हमें इसी महीने क्वार्टर खाली करना है... इसलिए रहने के लिए एक भाड़े का घर का इंतजाम करने गए हैं...
विश्व - ओ...
प्रतिभा - तेरे छूटने से पहले... मैंने उन्हें घर ढूंढने में लगा दिया है... इसलिए तु उनकी फिक्र ना कर... वह दिन भर इसी काम में बिजी रहेंगे... और हम माँ बेटे आपनी मस्ती में...

प्रतिभा की बातेँ सुन कर विश्व मुस्करा देता है l उसे अंदर से महसुस हो जाता है l प्रतिभा उसके साथ वक़्त बिताने के लिए कितनी बेताब है l

विश्व - तो माँ... पहले हम कहाँ जा रहे हैं...
प्रतिभा - कहा तो था....सलून... तुझे पहले हैंडसम डैशींग और जेंटलमेन बनाना है...
विश्व - क्यूँ... क्या मैं हैंडसम डैशींग और जेंटलमेन नहीं हूँ...
प्रतिभा - तु... तु अभी मुझे कोई मेंटलमेन लग रहा है...
विश्व - ओह माँ... आप तो ऐसे कह रही हो... जैसे मुझे कोई लड़की देखने जाना है...
प्रतिभा - तेरे मुहँ में घी शक्कर... कास के आज ऐसा ही हो...
विश्व - हे भगवान... क्यूँ ऐसी बातेँ सोच रही हो...
प्रतिभा - तु चुप रह... मैं जानती हूँ.. तु कहना क्या चाहता है... पर सुन ले... जब तक मैं अपनी पोते और पोतीयों को अपनी गोद में नहीं खिलाती... तब तक मैं इस दुनिया से जाने वाली नहीं हूँ...

विश्व अब चुप रहने में ही अपनी भलाई समझता है l वह प्रतिभा को देखने लगता है प्रतिभा गाड़ी चलाते हुए सामने देख रही है पर उसके चेहरे पर जो खुशी के एक अलग भाव झलक रहे हैं वह कितना शुद्ध, कितना निर्मल लग रहा है l विश्व अपनी नजर अब रोड की ओर कर देता है l चर्र्र्र्र्र्र गाड़ी रुक जाती है l विश्व देखता है सामने एक बहुत बड़ा सलून है l सलून को देखते ही विश्व समझ जाता है कि यहाँ बाल कटवाना बहुत महँगा होगा l

विश्व - माँ... कहीं और चलते हैं... यह देखो... सिर्फ़ बाल कटवाने के लिए पाँच सौ रुपये से शुरू हो रही है...
प्रतिभा - देख मार खाएगा मुझसे... तुझे मेरी खुशियों का कुछ भी खयाल नहीं.... चल चुप चाप अंदर चल...

प्रतिभा आगे आगे सलून के अंदर जाती है और विश्व भी उसके पीछे सलून के अंदर पहुँचता है l विश्व देखता है अंदर लड़के और लड़कियाँ सभी एक यूनीफॉर्म में हैं l एक खूबसूरत लड़की प्रतिभा के सामने आती है

लड़की - यस मैम... व्हट कैन वी डु फॉर यु...
प्रतिभा - (विश्व को दिखाते हुए) यह मेरा बेटा है... इसके बाल और दाढ़ी बनवानी है...
लड़की - श्योर मैम...

दो लड़कीयाँ आकर विश्व की बांह पकड़ कर ले जाने लगते हैं तो विश्व अपनी बांह छुड़ा कर प्रतिभा के पीछे चला जाता है l प्रतिभा उसे अपने सामने खिंच कर लाती है

प्रतिभा - अरे... तु शर्मा क्यूँ रहा है... गर्ल्स.. इसे ले जाओ... यह बहुत शर्मिला है...

वहाँ पर जितने भी लड़कियाँ थी सभी खिलखिला कर हँसने लगे l विश्व फिर भी आनाकानी करने लगता है तो प्रतिभा उसे आँखे दिखाती है l विश्व अपना मन मार कर उन लड़कियों के साथ चला जाता है l प्रतिभा वहीँ पर बैठ कर मैग्ज़ीन पलट ने लगती है l

_____×_____×_____×_____×_____×_____×

अनु के घर में,
अनु अपनी यूनीफॉर्म पहन कर ऑफिस जाने के लिए तैयार है l अभी वह अपनी हाथ में मोबाइल ले कर नाश्ता कर रही है l खाना खाते वक़्त वह बीच बीच में मोबाइल देख रही है l

दादी - चुप चाप तु नाश्ता नहीं कर सकती... यह बीच बीच में फोन को आईना बना कर क्यूँ देख रही है... जिस दिन से लाई है... उसी दिन से फोनमें घुसी पड़ी है...
अनु - तु नहीं जानती दादी... इस फोन को सम्हालने के लिए भी मुझे तनख्वा मिलती है... इसलिए बार बार देख रही हूँ...
दादी - अरे पागल लड़की... इसे अपने पर्स में रख... जब बजना होगा तब बजेगा... तब निकाल कर देख लेना...
अनु - नहीं नहीं.. मैं ऐसा नहीं कर सकती... कहीं राजकुमार जी का कोई मैसेज आ गया तो...
दादी - हाँ हाँ... एक तुझे ही मिले हैं... राजकुमार... अरे मुई... उनको कोई काम धंधा नहीं है क्या... तुझे ही मैसेज करते फिरेंगे...

तभी अनु की मोबाइल में टुँन.. टुणुन... की ट्यून आती है l मोबाइल स्क्रीन पर राजकुमार डिस्प्ले होता है l अनु मैसेज देखते ही मोबाइल अपनी दादी को दिखा कर

अनु - देखा... अभी अभी राजकुमार जी ने मुझे मैसेज किया है... अगर पर्स में रखती तो मालुम कैसे होता मुझे...
दादी - क्यूँ... सुनाई नहीं देता तुझे...
अनु - हाँ सुनाई तो देता... पर... चलो पहले मैं देख तो लूँ... आखिर उन्होंने मैसेज किया क्या है....

अनु अपना हाथ साफ करने के बाद मोबाइल की लॉक खोल कर मैसेज दिखती है

वीर - कहाँ हो तुम...


जी घर में - अनु

वीर - जानती हो ना... हमें आज भेष बदल कर चेकिंग के लिए जाना है...

हाँ याद है... मैं अभी ऑफिस के लिए निकल रही हूँ... - अनु

वीर - नहीं नहीं... एक काम करो... मैं तुम्हारे मुहल्ले से थोड़ी दुर मार्केट के xxxx दुकान के बाहर गाड़ी लेकर आया हूँ... तुम सीधे आकर गाड़ी में बैठ जाना... और हाँ... यह बहुत सीक्रेट है... किसीको बताना मत...

ठीक है... अभी निकलती हूँ... - अनु

मोबाइल अपनी पर्स में रख कर जल्दी जल्दी निकलती है l उसे जल्दी जल्दी जाते देख उसकी दादी उसे आँखे फाड़े देखती है l

उधर वीर कभी रियर व्यू मिरर तो कभी साइड मिरर पर देख रहा है l उसे कुछ देर बाद रियर मिरर में अनु दीखती है l अनु के दीखते ही वीर की चेहरा खिल जाता है l अनु आकर पहले गाड़ी के पास खड़ी होती है फिर बाएं तरफ जाकर खिड़की से झाँक कर देखती l वीर को देखते ही उसके चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कराहट खिल उठता है l वह कार की दरवाजा खोल कर वीर के बगल वाली सीट पर बैठ जाती है l अनु के बैठते ही वीर गाड़ी को उस मार्केट से दुर दौड़ा देता है l

वीर - तो अनु तैयार हो...
अनु - जी... पर हम कौनसे भेष बदलेंगे... और हम कहाँ पर भेष बदलेंगे...
वीर - कौनसा भेष... यह तो वहाँ जा कर पता चलेगा... जहां हम जा रहे हैं.. वहाँ पर मैंने तुम्हारे लिए कुछ भेष सिलेक्ट कर लिया है... पहुँचते ही भेष बदलेंगे...
अनु - अच्छा... तो आप क्या बनने का फैसला किया है...
वीर - पता नहीं... वहाँ पहुँच कर डीसाइड करेंगे... (अनु सोच में देख कर) क्या सोच रही हो...
अनु - मैं सोच रही हूँ.... कौनसा भेष बदलना है...
वीर - अच्छा... तुम सोच रही हो... कौनसा...
अनु - माता पार्वती जी का...

चर्र्र्र्र्र्र्र वीर गाड़ी में ब्रेक लगाता है l वीर अनु को ऐसे देखता है जैसे उसे जोरदार शॉक लगा हो l

वीर - क्या कहा... माता पार्वती जी का...
अनु - (चहकते हुए) हाँ... एक बार मैंने नाटक में देखा था... उनके केश खुल जाते हैं... आँखे बड़ी हो जाती है और (अपनी माथे की ओर दिखाते हुए) यहाँ पर... ये बड़ा सिंदूर... देखिएगा कोई नहीं पहचान पाएगा...
वीर - अच्छा (हैरानी भरे नजरों से देखते हुए) तो मेरे लिए भी कुछ सोचा है तुमने...
अनु - हाँ (चहक कर) सोचा है ना...
वीर - अच्छा... तो अभी तक बताया क्यूँ नहीं...
अनु - (मुहँ बनाते हुए) अगर आपको गुस्सा आ गया तो...
वीर - (हँसने की कोशिश करते हुए) नहीं.. नहीं करूँगा...
अनु - (चहकते हुए) आप ना... हनुमान बन जाइए... बड़ा मजा आएगा... और कोई पहचान भी ना पायेगा...

वीर इतना सुनते ही जोर जोर से हँसने लगता है l अपनी सीट की लीभर खिंच लेता है जिससे सीट पीछे की ओर लुढ़क जाती है, फिर वीर अपनी पेट पकड़ कर पैर पटकते हुए हँसने लगता है l अनु उसको यूँ हँसता देख कर मुहँ रुआँसी बना लेती है l थोड़ी देर बाद

वीर - (वीर उसकी रुआँसी चेहरा देख कर) ओ.. अनु... अनु.. जरा सोचो... हम छुपने के लिए भेष बदलने वाले हैं... मतलब लोगों के बीच घुल-मिल कर...उन्हीं के जैसे बन कर... तुम अगर पार्वती और मैं हनुमान बना... लोग सब काम धंधा छोड़ हमारे इर्द गिर्द भीड़ जमायेंगे.... है कि नहीं...
अनु - (अपना सिर हिला कर हाँ कहती है)
वीर - चलो वहाँ पहुँच कर देखते हैं... हम क्या बन सकते हैं...

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XXXXकॉलेज

छटी गैंग कैन्टीन में बैठी हुई है l सब के सब नंदिनी को देख रहे हैं l नंदिनी के चेहरे पर टेंशन साफ दिख रहा है l

बनानी - तु... इतनी टेंशन में क्यूँ है...
दीप्ति - हाँ... तुझे प्रीपेयर होने के लिए सब्जेक्ट भी तो मिला था..
नंदिनी - बात अगर पढ़ाई के रिलेटेड होती... शायद इतना डरती भी नहीं... पर यह तो सोशल रिलेटेड है... अब साइंस स्टूडेंट्स को... इस तरह की सब्जेक्ट मिले.... टेंशन तो होगी ही ना...
तब्बसुम - अरे सोशल प्लेटफॉर्म पर... सोशल मैसेज वाली ही टास्क मिल सकती थी ना...
इतिश्री - हाँ... अब अगर.. यह हमारे ग्रुप को मिली होती... तो मजा आ गया होता...
भाश्वती - वह तो हुआ नहीं... अब इस बेचारी की तोते उड़ रहे हैं...
बनानी - ओह स्टॉप इट... यह पहले से ही नर्वस है... तुम लोग इसकी जोश बढ़ाने के वजाए... और भी नर्वस कर रही हो...
रॉकी - यह तो बढ़िया मौका है... अपने अंदर के आत्मविश्वास को जगाने का... (अंदर आते हुए) अपने अंदर की व्यक्तित्व को बाहर लाने का...

सब रॉकी की ओर देखते हैं l रॉकी अपने ग्रुप के साथ थोड़ी ही दूरी पर खड़ा हुआ है l बनानी कुछ कहने को होती है कि तभी प्रिन्सिपल ऑफिस का पियोन आता है और सीधे नंदिनी से कहता है

पियोन - नंदिनी जी... आपको प्रिन्सिपल सर ने बुलाया है...

नंदिनी कुछ नहीं कहती है चुप चाप उठ कर पियोन के साथ चली जाती है l

रॉकी - क्या बात है गर्ल्स... मैंने कुछ गलत कह दिया क्या... आपकी दोस्त ने जवाब दिए वगैर चली गई...
बनानी - नहीं ऐसी बात नहीं है... वह थोड़ी नर्वस है...
रॉकी - हाँ... वह तो दिख ही रहा है...

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मेयर ऑफिस

पिनाक सिंह विक्रम के साथ अपनी ऑफिस में घुसते हुए

पिनाक - अब तीन दिन हो गए हैं... आप मेरे साथ ही चिपके हुए हैं...
विक्रम - हाँ हम अब उस दुश्मन से मिलना चाहते हैं... आखिर वह कौन है... जिसने क्षेत्रपाल के मूछों पर हाथ नहीं.. घात मारने की सोची है...
पिनाक - (अपनी कुर्सी में बैठते हुए) बड़ी बड़ी हाँका है... हमारी तैयारी देख कर... फट गई होगी उसकी....
विक्रम - (पिनाक के सामने बैठते हुए) नहीं... उसे हमारी तैयारी का अंदाजा हो सकता है... बस हमे ही नहीं मालुम उसकी तैयारी क्या क्या है...
पिनाक - महांती... अब तक कहाँ पहुँचा...
विक्रम - मैंने उसे बुलाया है... वह पहुँचता ही होगा... वैसे... क्या आपने राजकुमार से बात की...
पिनाक - उनकी बात छोड़िए युवराज... वह अभी इन सब में जुझने के काबिल नहीं हुए हैं.... नए नए ल़डकियों की तलाश में रहते हैं... जब उससे मन भरेगा... तब शायद कुछ करने के काबिल हो पाएं....
विक्रम - ह्म्म्म्म... पर आप कभी कभी उन्हें झिड़क देते हैं... वह ठीक नहीं लगता...
पिनाक - उन्हें कुछ फर्क़ नहीं पड़ता....
विक्रम - इतने हल्के में मत लीजिए... वह जवानी के उस मोड़ पर हैं... जब खुन में हद से ज्यादा गर्म रहाता है...
पिनाक - वह खानदानी क्षेत्रपाल हैं युवराज... और हम शत प्रतिशत निश्चिंत हैं... हमारे राजकुमार अपनी गर्मी उतारने के लिए... कोई साधन जुगाड़ कर लिया होगा....
विक्रम - क्या मतलब...
पिनाक - आप उस दौर में जहाँ झिझकते थे... राजकुमार उस दौर में चिड़िया फंसा कर हज़म कर जाते हैं....
विक्रम - (कुछ नहीं कहता अपना चेहरा घुमा लेता है)

_____×_____×_____×_____×_____×_____×

वीर अनु को लेकर एक दुकान पर आता है जहाँ लोगों का मेकअप किया जाता है l वहाँ पर लड़कियों की एक ग्रुप खड़ी थी l वीर उन ल़डकियों के पास आकर

वीर - गर्ल्स... आपको इनका मेकअप कराना है...
लड़कियाँ - यस सर...
वीर - (अनु से) आप इनके साथ जाइए... यह लोग आपका मेकअप कर देंगे...
अनु - (वीर के कान में धीरे से) यह लोग हमारे भेष बदलेंगे...
वीर - (अनु के कान में) हाँ... पर हमारे नहीं... तुम्हारे...
अनु - क्या.. कौनसा भेष..
वीर - वह उन पर छोड़ दो ना... अब कोई बड़बड़ नहीं... सीधे उनके साथ जाओ... (उन लड़कियों से) गर्ल्स प्लीज...

लड़कीयाँ आकर अनु को ले जाने लगती हैं l अनु झिझकते हुए वीर को पीछे मुड़ कर देखते हुए अंदर जाती है l वीर उस दुकान की मालकिन से कहता है

वीर - उनका मेकअप हो जाने के बाद... उनसे कहिएगा मैं नीचे गाड़ी के पास इंतजार कर रहा हूँ...
मालकिन - जी सर...

फिर वीर नीचे चला जाता है और गाड़ी की डिकी खोल कर एक लाल रंग का लेदर जैकेट निकाल कर पहन लेता और एक गॉगल पहन लेता है l फिर गाड़ी पर पीठ लगा कर खड़े होकर उस दुकान की दरवाजे पर नजर गड़ा कर देखने लगता है l करीब एक घंटे बाद दुकान का दरवाजा खुलता है तो वीर की आँखे फटी की फटी रह जाती है l
अनु खूबसूरत तो थी पर आज ऐसा लग रहा था जैसे अनु की खूबसूरती हीरे की तरह कोयले की खदान को चीरते हुए निखर कर आई है l अनु कुछ ल़डकियों के साथ सीढियों से उतर कर ऐसे आ रही थी मानो बादलों पर चल कर आ रही हो l

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माँ...

यह सुन कर प्रतिभा अपना सिर मैग्जीन से निकाल कर विश्व को देखती है l

प्रतिभा - Awwww... कितना हैंडसम है मेरा बच्चा...(खड़े होकर)

प्रतिभा देखती है वहाँ पर काम करने वाली सभी लड़कियाँ विश्व को एक आशा और लालच भरे नजरों से घूर रही हैं l प्रतिभा फौरन अपनी आँख से काजल निकाल कर विश्व के कान के नीचे लगा देती है और विश्व को खिंच कर बाहर ले जा कर खड़ा कर देती है l

प्रतिभा - तु... यहीं पर रुक... मैं पेमेंट कर आती हूँ... (प्रतिभा अंदर वापस जाती है और कुछ देर बाद बाहर आकर) चल अभी चलते हैं...
विश्व - अब कहाँ चलना है...
प्रतिभा - अरे.. तेरे लिए नए कपड़े भी तो लेने हैं... और नए जूते भी...
विश्व - अब यह सब किसलिए माँ...
प्रतिभा - (गाड़ी में बैठते हुए) चल आजा बैठ जा...
विश्व - क्या माँ... आज दिन भर यही करना है क्या...
प्रतिभा - हाँ... अब बैठता है या नहीं...

विश्व बिना कुछ कहे चुपचाप बैठ जाता है, प्रतिभा गाड़ी स्टार्ट करती है l

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प्रिन्सिपल ऑफिस

नंदिनी - मे आई... कम इन.. सर..
प्रिन्सिपल - यस यस मिस रूप नंदिनी... प्लीज कम इन...
नंदिनी - सर... आपने मुझे अभी यहाँ क्यूँ बुलाया है...
प्रिन्सिपल - देखिए मिस...
नंदिनी - सर नंदिनी... प्लीज नंदिनी...
प्रिन्सिपल - ऐसा क्यूँ...
नंदिनी - (खामोश रहती है)
प्रिन्सिपल - आप उस आइडेंटी से खुद को दूर क्यूँ रखना चाहती हैं... जो आपको आपके पिता ने दी है...
नंदिनी - (सिर झुका कर खामोश रहती है और अगल बगल देखने लगती है)
प्रिन्सिपल - क्यूँकी... एक कशमकश है... आपके भीतर... ख्वाहिश है... एक अलग पहचान बनाने की... खुदको साबित करने के लिए... है ना...
नंदिनी - (अपना सिर उठा कर देखती है)
प्रिन्सिपल - जिस दिन आप पहली बार मुझसे अपनी अलग आइडेंटिटी के बात की... उसी दिन मैं कुछ कुछ समझ गया था...
नंदिनी - (फिर अपना सिर झुका लेती है)
प्रिन्सिपल - चलो मैं इस बात को आगे नहीं खिंचता... बस इतना कहूँगा नंदिनी जी... मैं खुद उस टास्क की सब्जेक्ट से हैरान हूँ... पर इतना ज़रूर कहूँगा... यह वह सब्जेक्ट है... जिससे आपकी अपनी एक विशेष पहचान बनेगी... जो बहुतों को प्रभावित करेगी... इसलिए आप अपना हंड्रेड पर्सेन्ट दें... बस इतना ही कहूँगा...
नंदिनी - (प्रिन्सिपल को देख कर) जी सर... आई वील ट्राय माय लेवल बेस्ट...
प्रिन्सिपल - ओके... गुड.. तो अभी... एक काम कीजिए... सुरेश... वह रेडियो जॉकी... असेंबली हॉल में आपका इंतजार कर रहा है... एक छोटा सा रीहरसल के बाद... ट्रांसमिशन लाइव होगा...
नंदिनी - ठीक है सर... तो मैं जाऊँ...
प्रिन्सिपल - यस... यस.. प्लीज...

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वीर की नजर अनु की पहनावे पर पर ठहर जाती है l ब्लैक स्लीवलेस ब्लाउस टॉप जो अनु की नाभि तक पहुँच रही है l उसके ऊपर सफेद जाली कारीगरी वाली घुटने तक जोधपुरी एथिनीक जैकेट वीथ फुल लेंथ स्कर्ट l वीर की नजर अनु की खूबसूरती को निहारते निहारते नाभि पर ठहर जाता है l वीर का मुहं खुल जाता है थरथरा कर एक गहरी सांस लेता है l उस दुकान की ल़डकियों की बीच झिझकते हुए अनु वीर के पास पहुंचती है l

एक लड़की - सर यह ड्रेस पहनाने के लिए हमें बहुत मशक्कत करनी पड़ी...

वीर सबको कुछ पैसे देकर विदा करता है l खुद गाड़ी में बैठ कर इशारे से अनु को बैठने के लिए कहता है l अनु बैठती है l वीर गाड़ी स्टार्ट करता है l गाड़ी के चलते ही

वीर - वाव अनु... तुम्हें सच में पहचान नहीं पाया...
अनु - (कुछ नहीं कहती झिझक और शर्म साफ उसके चेहरे पर झलकती है)
वीर - घबराओ नहीं.. कहा ना.. मैं.. जो तुम्हें रोज सुबह से शाम तक देखता हूं... पहचान नहीं पाया... तो तुम्हें कोई भी पहचान नहीं पाएगा...
अनु - (थोड़ी हैरानी भरी भाव से) पर आपने तो खुदको नहीं छुपाया...
वीर - मैं भी खुदको छुपा लूँगा... देखना...
अनु - हम.. कहाँ जा रहे हैं...
वीर - ओरायन मॉल...
अनु - वहाँ हम क्या करेंगे...
वीर - बस दिन भर... वहाँ रहकर हमारे सिक्युरिटी गार्ड्स पर नजर रखेंगे... कौन कैसे ड्यूटी कर रहा है... लोगों से कैसे पेश आ रहे हैं... वगैरह वगैरह...
अनु - ओ अच्छा...

वीर अनु की बात सुन कर हँसता है l और गाड़ी को ओरायन मॉल की ओर ले चलता है l थोड़ी दूर ड्राइविंग करने के बाद वीर की गाड़ी मॉल की अंडरग्राउंड पार्किंग में पहुँचता है l पहले वह उतरता है l जल्दी जल्दी निकलने में उसका एक पैर दुसरे पैर में फंस जाता है l वीर अनबैलंस हो कर आगे की ओर गिरने लगता है तो कोई उसे थाम लेता है l वीर को संभाल कर वह शख्स खड़ा कर देता है l तभी पीछे से अनु भागते हुए आती है और

अनु - राजकुमार जी...
वीर - मैं ठीक हुँ... अनु.. मैं ठीक हुँ...
अनु - (उस शख्स से) आपका शुक्रिया भैया ... बहुत बहुत शुक्रिया...
शख्स - कोई बात नहीं... इसमे शुक्रिया की क्या बात है...
वीर - (उस शख्स को) हैलो आई एम वीर... एंड थैंक्यू...

इससे पहले कि वह शख्स कुछ कहता एक औरत वहाँ पर आती है और कहती है

- यह मेरा बेटा... प्रताप... और मैं एडवोकेट प्रतिभा महापात्र...
वीर - ओह हैलो प्रताप...(अपना हाथ बढ़ाता है)
प्रताप - हैलो (प्रताप भी अपना हाथ बढ़ा कर हाथ मिलाता है)
वीर - आप यहाँ पर...
प्रतिभा - ओवीयसली.. हम यहाँ पर खरीदारी करने आए हैं... और आप दोनों...

वीर और अनु दोनों चुप रहते हैं और एक दुसरे को चोर नजर से देख कर प्रतिभा और विश्व से नजरें चुराने लगते हैं l उनकी हालत देख कर प्रतिभा मुस्कराने लगती है l

प्रतिभा - ओके... ओके मैं समझ गई... अच्छा हम चले अपनी मार्केटिंग पर... मौका हाथ लगा तो... मिलते हैं बाद में...
वीर - जी... जी ज़रूर...

माँ बेटे के वहाँ से चले जाने के बाद अनु वीर की ओर देखती है और पूछती है

अनु - राजकुमार जी... आप ने अभी तक कोई भेष बदला ही नहीं...
वीर - अभी बदल लेता हूँ... एक मिनट...

कह कर वीर अपनी गाड़ी के पिछे चला जाता है l अपनी जेब से एक नकली, मोटा मूँछ निकाल कर अपने मुहँ पर लगा लेता है और बाएं गाल पर आँखों के नीचे एक मस्सा लगा लेता है l उस पर आँखों पर एक गॉगल लगा कर अनु के सामने खड़ा हो जाता है l अनु उसे पहचान नहीं पाती, वीर की यह हुलिया देख कर वह चीखने को होती है कि वीर उसकी मुहँ पर जोर से हाथ रख देता है l

वीर - अनु यह मैं हूँ... (अनु की आँखे बड़ी हो जाती है) अब तुम्हारे मुहँ से हाथ हाटऊँ... (अनु इशारे से अपना सिर हिला कर हाँ कहती है, तो वीर अपना हाथ हटा लेता है)
अनु - राजकुमार जी... सच में... मैं तो आपको पहचान ही नहीं पाई...
वीर - ह्म्म्म्म... चलो अब अंदर चलते हैं... (लिफ्ट की ओर चलने लगता है)
अनु - ठीक है...(वीर के साथ चलते हुए) पर हम यहाँ पर करेंगे क्या...
वीर - यहाँ पर हम कहीं खाना खाएंगे... कहीं थोड़ी बहुत खरीदारी करेंगे... और जरूरत पड़ी तो... एक फिल्म देख लेंगे...
अनु - ओ माँ... इतना कुछ करेंगे... पर हम तो यहाँ... चेकिंग के लिए आए हैं ना...
वीर - अरे वही तो करेंगे... दिन भर... चलो पहले कहीं बैठ कर... फ्रूट जूस पीते हैं....

अनु और कुछ नहीं कहती अपना सिर हिला कर वीर के साथ हो लेती है l दोनों एक जूस और पुडलींग स्टॉल पर पहुँचते हैं l वीर अनु एक टेबल देख कर बैठने के लिए कहता है और खुद जा कर जूस के लिए ऑर्डर करता है l कुछ मिनट बाद जब जूस लेकर अनु के पास आता है तो देखता है वहाँ पर दो लड़के अनु से बात करने की कोशिश कर रहे हैं l अनु के चेहरे पर झिझक व डर दिखता है l वीर जैसे ही टेबल पर पहुँचता है वह लड़के वीर को देखने लगते हैं I वीर की पर्सनालिटी देख कर थोड़ा डरने लगते हैं l अनु भी वीर को देख कर रीलैक्स फिल करती है l

वीर - कोई तकलीफ़...
एक लड़का - जी.. जी... वह.. हम इन्हें अकेले देखा तो...
वीर - तो... चांस मारने आ गए...
दुसरा - ओह कॉम ऑन ड्युड... जस्ट चील... हम तो बस दोस्ती करने आए थे...
वीर - ऑए चील के बच्चे... जरा स्पीड कम कर... वरना... आँख कान और जुबान सब छिल जाएंगे...

दोनों लड़के वहाँ से उठ कर चले जाते हैं l वीर अनु को जूस की एक ग्लास बढ़ाता है l अनु एक मुस्कराहट के साथ वीर के हाथों से जूस ले लेती है l
उधर उसी मॉल के ड्रेस सेक्शन में विश्व अभी तक पाँच जोड़ी ड्रेस पहन कर प्रतिभा को दिखा चुका है l प्रतिभा सब रिजेक्ट कर विश्व की सिर दर्द बढ़ा चुकी है l आख़िर में एक गहरी काले रंग पेंट के उपर एक सफ़ेद शर्ट पहन कर प्रतिभा के सामने आता है

प्रतिभा - Awww... यह हुई ना बात... अब लग रहे हो... कल के होने वाले मशहूर वकील...
विश्व - माँ पहले की कह देतीं... मैं यही पहन लिया होता... आपने अभी मुझसे पाँच जोड़ी कपड़े बदलवाए...
प्रतिभा - हाँ तो क्या हुआ... अगर यह लोग ड्रेस चुज एंड ट्राए का ऑप्शन दे रखे हैं... तो हमे भी उसका फायदा उठाना चाहिए कि नहीं...
विश्व - (हँसते हुए) माँ... तुम्हारी हरकतें किसी बच्चे जैसी है... अगर तुम ऐसी हरकतें करती रहोगी... कौन मानेगा की तुम्हारा (खुद को दिखाते हुए) इतना बड़ा बेटा है...
प्रतिभा - माँ में बचपना अपनी बच्चों के लिए होता है... और कौन नहीं मानेगा के तु मेरा बेटा है... (शो रुम के अंदर चिल्लाते हुए) हैलो हैलो हैलो... सुनो प्लीज... (सब मौजूद लोग और सेल्स मेन व सेल्स गर्ल्स प्रतिभा की ओर देखते हैं) गौर से देखिए... यह मेरा बेटा है... कितना हैंडसम है... है ना...
विश्व - (प्रतिभा की मुहँ पर हाथ रख देता है) माँ यह क्या कर रही हो... फिर से अगर ऐसा कुछ किया तो मैं यहाँ से भाग जाऊँगा...
प्रतिभा - (मुहं बंद है) उम्म् उम्म्
विश्व - ठीक है हाथ निकालता हूँ... (अपना हाथ निकाल देता है)
प्रतिभा - (ऊंची आवाज़ में) देखिए लोगों...(विश्व से थोड़ी दुर जा कर) आज कल के बच्चें... माँ बाप को छोड़ कर भागने की धमकी दे रहे हैं...

विश्व अपना माथा पीट लेता है l वहाँ पर मौजूद सभी विश्व की हालत देख कर मुस्कराने लगते हैं l तभी मॉल के हर दुकान व हर जगह जहाँ माइक थे एनाउंसमेंट होने लगती है l

" यह एक विशेष सूचना है... ओरायन मॉल पर उपस्थित सभी ग्राहक व कर्मचारियों के लिए... अभी कुछ ही देर में एफएम 97 पर आने वाली एक प्रोग्राम का प्रसारण किया किया जाएगा... कृपाया उसे सुनें... यह एफएम सर्विस वालों के अनुरोध पर किया जा रहा है और सुन कर अपना मत fm97xxxxx. Co. In पर व्यक्त रखें...

XXXXX कॉलेज
असेंबली हॉल खचाखच भरा हुआ है l स्टेज पर बने एक कांच की घर के भीतर रेडियो जॉकी सुरेश और नंदिनी बैठे हुए हैं l सुरेश प्रोग्राम को शुरू करता है l

सुरेश - हैलो अउडीयंस.. मैं आपका अपना सुरेश.... आज आपके लिए एक लाइव एंड थ्रिलींग मोमेंट ले कर आया हूँ XXXXX कॉलेज से... मेरे साथ बैठी हैं... मिस नंदिनी... यह अपनी कॉलेज में लकी ड्रॉ के जरिए सिलेक्ट हुई हैं... आपको एक सोशल मैसेज देने के लिए... दोस्तों हमनें इन्हें दो दिन पहले ही टास्क दिया था... HUMAN EVOLUTION, TWENTY FIRST CENTURY AND THE WOMAN...
इसलिए मैं अभी यह माइक यह सिस्टम पूरी तरह से मिस नंदिनी जी के हवाले कर रहा हूँ... अब नंदिनी जी आपके सामने हमारी उसी टास्क को अपने अंदाज में आपके सामने प्रेजेंट करेंगी... मिस नंदिनी... प्लीज...
नंदिनी माइक पर आती है, अपनी आँखे बंद कर एक गहरी सांस लेती है फिर खुद को नॉर्मल करती है l

नंदिनी - हैलो... मैं नंदिनी... नंदिनी सिंह... बीएससी फर्स्ट ईयर की स्टुडेंट.... अभी आपने बात करने से पहले मुझे पता चला... की सुरेश जी ऐसे ही कभी कभी कहीं भी पहुंच कर ऐसे ही चौंका देते हैं... मुझे भी चौंका दिया था... बुधवार को... फ़िर एक टास्क दिया... मानव क्रमिक विकास, इक्कीसवीं सदी और औरत... पहले जब मानव विकास सुना... एज अ साइंस स्टुडेंट मैं साइंस की नजरिए से समझने की कोशिश की... फिर इक्कीसवीं सदी... इसमे भी साइंस ही दिखी थी मुझे... पर अंत कहा... औरत... तब मुझे लगा कि यह तो एक सोशल सब्जेक्ट है... मैं एक साइंस की स्टूडेंट इसे कैसे प्रेजेंट करूँ... यह बात मैंने अपनी भाभी जी से पूछी... भाभी... मेरी सबसे अच्छी सहेली... दोस्त... माँ... दीदी और गुरु भी... उन्होंने कहा... क्यूँ नहीं... आख़िर मानव सामाजिक प्राणी है... और बात समाज की है... तो क्यूँ नहीं... पर मैं जिसने समाज को ठीक से देखा भी ना हो... समझा भी ना हो वह कैसे समाज की इतनी बड़ी विषय पर टिप्पणी कर सकती हूँ...
तब भाभी जी ने मुझे गुरुवार से लेकर आज तक... अकेले कॉलेज चलते हुए जाने के लिए कहा और लोगों की चारों तरफ की परिस्थितियों में खुद को फिट कर,.. वहाँ पर अपनी स्थिति को समझ कर... एक्सपेरियंस करने के लिए कहा

इन ढाई दिनों में मैंने जो एक्सपीरियंस किया... वही आज मेरे की टास्क की जीस्ट है....

औरत... औरत क्या है... एक वस्तु या एक शख्सियत... मुझे एक ऐसे समाज में... एक ऐसे तथ्य पर राय रखने के लिए कहा गया है... जहां खुद यह समाज ही दीग भ्रमित है... यह समाज वस्तु वादी है... जहां निर्जीव वस्तुओं में अपनी हर्ष ढूंढते हैं... उस समाज की सोच में औरत एक वस्तु ही तो है....

औरत की समाज में आवश्यकता है... वजह एक नई पीढ़ी को लाने के लिए... माँ प्रथम गुरु होती है... दीदी प्रथम मित्र होती है... मौसी माँ सी होती है... भाभी... एक माँ, बहन, सखी और गुरू भी होती है... और हर रुप में वह पहले औरत ही होती है... शास्त्र कहता है
‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः’
पर सच मानिये इन ढाई दिनों में मैंने ऐसा कुछ भी नहीं देखा....
एक लड़की जो किसी बाप की लाडली, माँ की दुलारी भाई की अभिमान होती है... वह घर से निकलते ही दुसरे मर्दों की आँखों के एक्स्रै से स्कैन की जाती है... यही सच्चाई है... खैर मुझे तो टास्क को प्रेजेंट करना है... तो ढाई दिन की एक्सपीरियंस को एक ही कहानी में पिरो कर बताती हूँ...

एक सुबह घर से निकली.... चलते हुए अपनी घर से कुछ दुर एक पान सिगरेट की दुकान के पास... कॉलेज जाने के लिए बस की इंतजार करने लगी... उस दुकान पर बहुत से लड़के व मर्द खड़े थे... कोई पान खरीद रहा था तो कोई सिगरेट तो कोई गुटखा... सब की भीड़ वहीँ पर इसलिए थी क्यूंकि... वहीँ से बहुत सी लड़कियाँ कॉलेज जाने के लिए बस पकड़ती हैं...
उस पान दुकान वाले की दो बेटियाँ हैं... पर वह खुश नहीं है... क्यूँ... क्यूंकि उसे वंश चलाने के लिए एक बेटा चाहिए... इसलिए वह हर पल अपनी किस्मत, अपनी बीवी और अपनी बेटियों को कोशता रहता है... उसकी बड़ी बेटी अपनी छोटी बहन के साथ उसी दुकान के पास एक कुत्ते से दोस्ती कर दिन भर खेलती रहती है.... पर उस दिन कुछ बंद था इसलिए कोई बस या ऑटो नहीं चल रहा था... हम कुछ लड़कियाँ फैसला किए... चलते हुए कॉलेज जाने के लिए...
हम ल़डकियों का एक ग्रुप चलते हुए कॉलेज निकले.... एक मोड़ पर आगे जाना मुश्किल हो गया... क्यूंकि उस मोड़ पर बिजली की तार से उलझ कर एक कौवा मर गया था... इसलिए वहाँ पर गुजरने वाले हर इंसान पर कौवे अपने साथी के मरने की गुस्सा उतार रहे थे.... हम ल़डकियों ने रास्ता बदल कर दुसरे रास्ते में जाने लगे... उस रास्ते में हैदराबाद की एक डॉक्टर के बलात्कार के विरुद्ध प्रदर्शन व रैली चल रही थी... हम वहीँ पर खड़े होकर रैली की गुजरने की इंतजार करने लगे... उसी रैली में हिस्सा लिए कुछ क्रांतिकारियों ने हमें देखकर कमेंट करने लगे... कोई हमारी रंग पर... कोई हमारी अंग के कटाव पर टिप्पणी करते हुए गुजरे... एक औरत के साथ हुई दुराचार के विरुद्ध कुछ क्रांतिकारी रास्ते पर खड़े दुसरे औरतों पर फब्तीयाँ गढ रहे थे... एक और जहां अपनी धरना प्रदर्शन से अपनी जिम्मेदारी निभा रहे थे... वहीँ दुसरी और वह लोग रास्ते पर खड़े हुए औरतों में मौका तलाश रहे थे... हम लोग किसी तरह कॉलेज पहुँचे... फिर मैंने क्लासेस खतम कर... शेयर ऑटो से घर को निकली... उसी पान दुकान वाली जंक्शन से थोड़ी दूर पर पहुँची....
वहाँ पहुँच कर देखा वह कुत्ता भोंकते हुए लोगों को अपने तरफ आने को मजबूर कर रही है... पर कोई नहीं जा रहा... शायद कोई समझ ही नहीं पा रहा था... मैंने हिम्मत करके कुत्ते के साथ गई... मेरे देखा देखी कुछ लोग कुत्ते के पीछे गए...
वह पान दुकान वाला अपने घर में आग लगा रहा था... उसकी बीवी और बड़ी बेटी उसे रोकने की कोशिश कर रही थीं... पर वह रुका नहीं हमारे पहुँचते पहुँचते आग लग चुकी थी... वहाँ पर पहुँचे लोगों ने पहले उस पान वाले को पकड़ लिया और कुछ लोग आग को बुझाने की कोशिश करने लगे... तभी औरत चिल्लाने लगी उसकी छोटी बेटी आग में फंस गई है... किसीने हिम्मत नहीं करी आग में घुस कर बच्ची को बचाने के लिए... पर वह कुत्ता जो हमे वहाँ लाया था... वह अचानक आग के भीतर कुद गया... कुछ देर बाद छोटी लड़की को खिंचते हुए बाहर लेकर आया.... कुछ देर बाद पुलिस पहुँच कर हमारी गवाही लेकर उस पान वाले को गिरफ्तार कर लिया.... उस पान वाले की बीवी और बच्चे वहीँ रह गए... हम लोग जो वहाँ पर मौजूद थे ने कुछ पैसे कलेक्शन कर उसे देकर अपने अपने घर चले गए...
मैं घर पर पहुँची... किताबें रख कर पुरी दिन में घटित घटनाओं के बारे में सोच रही थी... तब सोनी मैक्स पर... अमिताभ बच्चन अभिनीत अग्निपथ फिल्म की एक सीन चल रही थी....
उस सीन में विजय चौहान अपनी माँ से कहता है पुरे बांबे में उसकी माँ और बहन को छेड़ने वाला कोई नहीं है... क्यूंकि सब जानते हैं... किसीने ऐसी हिमाकत की... तो वह उन्हें बीच से काट डालेगा...
ज़वाब में उसकी माँ सुहाषीनी चैहान कहती है - वाह क्या खूब तरक्की कर ली है तुने... तेरे पिता कहा करते थे... हज़ारों बरस लग गए... इंसान को जानवर से इंसान बनने के लिए... तुने तो जरा भी देर नहीं लगाई... वापस जानवर बनने के लिए....


यह भले ही एक फिल्मी डायलॉग थी... पर उस दिन घटित हुए सारे घटनाओं के बारे में सोच रही थी... जहाँ एक और इंसान अपने कद से गिर कर... जानवर बन कर... अपनी ही आशियाना को आग में झोंक दिया था... वहीँ एक जानवर अपने कद से उपर उठकर आग से इंसान की अगली पीढ़ी को बचा लाया....
शायद यही मानव का क्रमिक विकास के वस्तुवादी इक्कीसवीं सदी में औरत जिम्मेदारी कम मौका जादा लगती है
बेचारा विश्व प्रतिभा के हत्थे चढ़ गया आज कायाकल्प होने के लिए। वीर और अनु की कहानी में कुछ तो ट्विस्ट आने वाला है। विश्व और वीर का पार्किग में टकराना इत्तेफाक है या प्लान। नंदिनी ने अपने विषय को बहुत ही सरल और प्रभावी तरीके से समझाया है। उत्तम अति उत्तम।
 
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