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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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Kala Nag

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भई वाह मजा आ गया, विश्व ने पहले अपने व्यवहार से फिर अपनी ताकत से रूप को इंप्रेस कर ही दिया। विक्रम और उसके चूजों को उनकी औकात भी दिला दी। लगता है अब रूप भी विश्व मैं इंट्रेस्ट लेगी। देखते है विक्रम इस बेइज्जती का बदला कैसे लेगा। झकास अपडेट।
दुश्मनी भी तो पक्के दुश्मनों के साथ होनी चाहिए
क्यूँ है ना Lib am भाई
 

Kala Nag

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Bahut hi shaandar update diya hai Kala Nag bhai....
Nice and lovely update.....
धन्यबाद मित्र parkas बहुत बहुत धन्यबाद
 
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Kala Nag

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Awesome Updateeee

Maza aagaya padh kee. Vikram ko achha dhoya Vishwa ne. Maza aagaya padhke. Vikram jis naam ke upar uchalta tha usi naam ko chott pahonchaya hai Vishwa ne.

Vishwa ke iss karnaame se koi aur toh nhi Roop jarur impress hogi aur bahot jyaada impress hogi. Aakhir uski nazar mein koi pehli baar aaya hai jo Chetrapal se takra sakta hai.
कोई शक़ Jaguaar भाई
पर उनके दुबारा मिलने और बातेँ करने में अभी भी वक़्त लगेगा
 

Lib am

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दुश्मनी भी तो पक्के दुश्मनों के साथ होनी चाहिए
क्यूँ है ना Lib am भाई
Kala Nag भाई सही में आपकी स्टोरी पढ़ के दिल खुश हो जाता है। शुद्ध लेखन ना बिना बात का सेक्स और फालतू की इरोटिक सिचुएशन। ना कहानी का प्लॉट कहीं भटका कई और हर अपडेट दिल को खुश कर देता है। बहुत कम लेखक और बहुत ही कम कहानियां है ऐसी इस फोरम पर, मजा आ गया।
 

Kala Nag

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Kala Nag भाई सही में आपकी स्टोरी पढ़ के दिल खुश हो जाता है। शुद्ध लेखन ना बिना बात का सेक्स और फालतू की इरोटिक सिचुएशन। ना कहानी का प्लॉट कहीं भटका कई और हर अपडेट दिल को खुश कर देता है। बहुत कम लेखक और बहुत ही कम कहानियां है ऐसी इस फोरम पर, मजा आ गया।
Lib am भाई आपकी इस टिप्पणी के लिए मैं आपका आभार व्यक्त करता हूँ l जीवन में नौ रस है l नौ रस में शृंगार रस भी एक रस है I इस फोरम में इस रस के लेखन में निपुण भी बहुत से लेखक हैं l पर मैं इस लेखन के मामले में मैं निहायत ही कमजोर हूँ l मैं जो लिख रहा हूँ उस भाव और रस के भी पाठक हैं समीक्षक हैं और विश्लेषक हैं यही पर्याप्त है l अब आगे कहानी में छोटे छोटे फ्लैशबैक आयेंगे, रोमांचक व रोचक क्षण भी आयेंगे, कुछ गुदगुदाते क्षण भी आएंगे, रोंगटे खड़े करने वाले क्षण के साथ साथ दुख के क्षण भी आयेंगे l पर कहीं पर भी कहानी ना भटके यही कोशिश रहेगी मेरी l
मेरी हौसला अफजाई के लिए फिर से बहुत बहुत धन्यबाद
 

Kala Nag

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दोस्तों
एक बात और
अगला अपडेट आने में इस बार थोड़ा समय लगेगा वजह मेरे ऑफिस में फिनानंसीयल ईयर की लास्ट ऑडिट चल रही है इसलिए मौका बहुत कम मिलेगा I इस बात के लिए मैं क्षमा चाहूँगा l
बस अनुरोध है जुड़े रहें साथ देते रहे उत्साह बढ़ाते रहें और कमेंट्स ज़रूर देते रहें ताकि मुझे एहसास तो हो मेरे लेखन के प्रतीक्षा में मेरे मित्र हैं
 

RAJIV SHAW

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Super update hai Bhai
 

ANUJ KUMAR

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👉अट्ठावनवां अपडेट
---------------------
शनिवार
सेंट्रल जैल
सुपरिटेंडेंट कैबिन

विश्व - क्या मैं अंदर आ सकता हूँ...
खान - आओ विश्व आओ... यार तुम अब सिर्फ़ महीने भर के लिए मेहमान हो... परमीशन लेने की कोई जरूरत नहीं है...
विश्व - सर यह ऑफिस है... यहाँ पर मिनिमम डेकोरम तो मेंटेन करना ही चाहिए...
खान - हर सवाल का जवाब... तुम्हारे पास तैयार रहता है...
विश्व - (कुछ नहीं कहता है, बस एक फीकी मुस्कान मुस्करा देता है)
खान - विश्व... एक बात पूछूं...
विश्व - जी...
खान - तुम आखिरी बार... कब हँसे थे...
विश्व - (थोड़ा असमंजस हो जाता है) (फिर थोड़ा संभल कर) पता नहीं सर...
खान - बुरा मत मानना... तुम्हारे चेहरे पर मुस्कराहट एक मुखौटा लगता है...
विश्व - जी... मैं मानता हूँ... पर सच, यह है सर... मुस्कराने के लिए या हँसने के लिए मेरे पास अभी कोई जायज वजह नहीँ है...

खान टेबल पर रखे एक थैला विश्व की बढ़ाता है l विश्व उसे हैरानी भरे नजरों से देखता है l

खान - अरे यार... यह तुम्हारे कपड़े हैं... थोड़ी देर बाद... तुम्हारी मुहँ बोली माँ और मेरी मुहँ बोली बहन आ जाएंगी... इसलिए तैयार हो जाओ... हाँ... तुम कपड़े बदलने के लिए... मेरी टॉयलेट इस्तेमाल कर सकते हो...
विश्व - थैंक्यू सर...
खान - इट्स ओके... नाउ गो एंड गेट रेडी..

विश्व अपना सिर हिलाते हुए वह थैला उठा लेता है और अटैच बाथरूम में घुस जाता है l थोड़ी देर बाद कपड़े बदल कर बाहर आता है l तभी अर्दली आकर खबर करता है कि बाहर प्रतिभा आई हुई है l

खान - देखा... तुम्हारी माँ आ गई... चलो कम से कम मैं तुम्हें बाहर तक छोड़ आऊँ...

विश्व और खान बाहर आते हैं l बाहर प्रतिभा बेचैनी भरे निगाह में विश्व की इंतजार कर रही थी l विश्व को देखते ही जल्दी से उसके करीब आती है विश्व भी उसके तरफ जाता है l दोनों एक दुसरे के गले लग जाते हैं l

खान - अहेम अहेम अहेम... अगर माँ बेटे का मिलाप हो गया हो तो... (दोनों अलग होते हैं) थैंक्यू... तो मैं यह कह रहा था... कल शाम छह बजने से पहले... आपके बेटे को...
प्रतिभा - आप फ़िक्र ना करें... खान भाई साहब... अब प्रताप कल शाम को ही आएगा... और थैंक्यू... थैंक्यू वेरी मच...
खान - अच्छा... तो फिर मैं इजाज़त चाहूँगा... (कह कर खान वापस चला जाता है)

प्रतिभा विश्व की कान खिंचती है l विश्व दर्द से कराहता है l

विश्व - आह.. माँ.. दर्द हो रहा है... प्लीज छोड़ो ना...
प्रतिभा - जैल में तो नाई आता है ना... यह किस लैला के लिए दाढ़ी और बाल छोड़े हैं तुने...
विश्व - माँ.. वह पढ़ाई में बिजी था... इसलिए... प्रतिभा- (कान छोड़ कर) चल मेरे साथ... (विश्व को गाड़ी की ओर खिंच कर ले जाती है)
विश्व - कहाँ... घर...
प्रतिभा - नहीं पहले... सलून... फिर तेरे लिए कपड़ों और जुतों की मार्केटिंग... फिर हम दोनों बाहर खाना खायेंगे... घूमेंगे... फिर थक हार कर शाम को घर जाएंगे...
विश्व - अगर हम शाम को घर जाएंगे... तो सेनापति सर क्या करेंगे दिन भर.. (दोनों गाड़ी में बैठ जाते हैं)
प्रतिभा - तु उनकी चिंता ना कर... (गाड़ी स्टार्ट करते हुए) वह दिन भर नए घर की तलाश में रहेंगे...
विश्व - नए घर.... वह क्यूँ...
प्रतिभा - (गाड़ी चलाते हुए) हमें इसी महीने क्वार्टर खाली करना है... इसलिए रहने के लिए एक भाड़े का घर का इंतजाम करने गए हैं...
विश्व - ओ...
प्रतिभा - तेरे छूटने से पहले... मैंने उन्हें घर ढूंढने में लगा दिया है... इसलिए तु उनकी फिक्र ना कर... वह दिन भर इसी काम में बिजी रहेंगे... और हम माँ बेटे आपनी मस्ती में...

प्रतिभा की बातेँ सुन कर विश्व मुस्करा देता है l उसे अंदर से महसुस हो जाता है l प्रतिभा उसके साथ वक़्त बिताने के लिए कितनी बेताब है l

विश्व - तो माँ... पहले हम कहाँ जा रहे हैं...
प्रतिभा - कहा तो था....सलून... तुझे पहले हैंडसम डैशींग और जेंटलमेन बनाना है...
विश्व - क्यूँ... क्या मैं हैंडसम डैशींग और जेंटलमेन नहीं हूँ...
प्रतिभा - तु... तु अभी मुझे कोई मेंटलमेन लग रहा है...
विश्व - ओह माँ... आप तो ऐसे कह रही हो... जैसे मुझे कोई लड़की देखने जाना है...
प्रतिभा - तेरे मुहँ में घी शक्कर... कास के आज ऐसा ही हो...
विश्व - हे भगवान... क्यूँ ऐसी बातेँ सोच रही हो...
प्रतिभा - तु चुप रह... मैं जानती हूँ.. तु कहना क्या चाहता है... पर सुन ले... जब तक मैं अपनी पोते और पोतीयों को अपनी गोद में नहीं खिलाती... तब तक मैं इस दुनिया से जाने वाली नहीं हूँ...

विश्व अब चुप रहने में ही अपनी भलाई समझता है l वह प्रतिभा को देखने लगता है प्रतिभा गाड़ी चलाते हुए सामने देख रही है पर उसके चेहरे पर जो खुशी के एक अलग भाव झलक रहे हैं वह कितना शुद्ध, कितना निर्मल लग रहा है l विश्व अपनी नजर अब रोड की ओर कर देता है l चर्र्र्र्र्र्र गाड़ी रुक जाती है l विश्व देखता है सामने एक बहुत बड़ा सलून है l सलून को देखते ही विश्व समझ जाता है कि यहाँ बाल कटवाना बहुत महँगा होगा l

विश्व - माँ... कहीं और चलते हैं... यह देखो... सिर्फ़ बाल कटवाने के लिए पाँच सौ रुपये से शुरू हो रही है...
प्रतिभा - देख मार खाएगा मुझसे... तुझे मेरी खुशियों का कुछ भी खयाल नहीं.... चल चुप चाप अंदर चल...

प्रतिभा आगे आगे सलून के अंदर जाती है और विश्व भी उसके पीछे सलून के अंदर पहुँचता है l विश्व देखता है अंदर लड़के और लड़कियाँ सभी एक यूनीफॉर्म में हैं l एक खूबसूरत लड़की प्रतिभा के सामने आती है

लड़की - यस मैम... व्हट कैन वी डु फॉर यु...
प्रतिभा - (विश्व को दिखाते हुए) यह मेरा बेटा है... इसके बाल और दाढ़ी बनवानी है...
लड़की - श्योर मैम...

दो लड़कीयाँ आकर विश्व की बांह पकड़ कर ले जाने लगते हैं तो विश्व अपनी बांह छुड़ा कर प्रतिभा के पीछे चला जाता है l प्रतिभा उसे अपने सामने खिंच कर लाती है

प्रतिभा - अरे... तु शर्मा क्यूँ रहा है... गर्ल्स.. इसे ले जाओ... यह बहुत शर्मिला है...

वहाँ पर जितने भी लड़कियाँ थी सभी खिलखिला कर हँसने लगे l विश्व फिर भी आनाकानी करने लगता है तो प्रतिभा उसे आँखे दिखाती है l विश्व अपना मन मार कर उन लड़कियों के साथ चला जाता है l प्रतिभा वहीँ पर बैठ कर मैग्ज़ीन पलट ने लगती है l

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अनु के घर में,
अनु अपनी यूनीफॉर्म पहन कर ऑफिस जाने के लिए तैयार है l अभी वह अपनी हाथ में मोबाइल ले कर नाश्ता कर रही है l खाना खाते वक़्त वह बीच बीच में मोबाइल देख रही है l

दादी - चुप चाप तु नाश्ता नहीं कर सकती... यह बीच बीच में फोन को आईना बना कर क्यूँ देख रही है... जिस दिन से लाई है... उसी दिन से फोनमें घुसी पड़ी है...
अनु - तु नहीं जानती दादी... इस फोन को सम्हालने के लिए भी मुझे तनख्वा मिलती है... इसलिए बार बार देख रही हूँ...
दादी - अरे पागल लड़की... इसे अपने पर्स में रख... जब बजना होगा तब बजेगा... तब निकाल कर देख लेना...
अनु - नहीं नहीं.. मैं ऐसा नहीं कर सकती... कहीं राजकुमार जी का कोई मैसेज आ गया तो...
दादी - हाँ हाँ... एक तुझे ही मिले हैं... राजकुमार... अरे मुई... उनको कोई काम धंधा नहीं है क्या... तुझे ही मैसेज करते फिरेंगे...

तभी अनु की मोबाइल में टुँन.. टुणुन... की ट्यून आती है l मोबाइल स्क्रीन पर राजकुमार डिस्प्ले होता है l अनु मैसेज देखते ही मोबाइल अपनी दादी को दिखा कर

अनु - देखा... अभी अभी राजकुमार जी ने मुझे मैसेज किया है... अगर पर्स में रखती तो मालुम कैसे होता मुझे...
दादी - क्यूँ... सुनाई नहीं देता तुझे...
अनु - हाँ सुनाई तो देता... पर... चलो पहले मैं देख तो लूँ... आखिर उन्होंने मैसेज किया क्या है....

अनु अपना हाथ साफ करने के बाद मोबाइल की लॉक खोल कर मैसेज दिखती है

वीर - कहाँ हो तुम...


जी घर में - अनु

वीर - जानती हो ना... हमें आज भेष बदल कर चेकिंग के लिए जाना है...

हाँ याद है... मैं अभी ऑफिस के लिए निकल रही हूँ... - अनु

वीर - नहीं नहीं... एक काम करो... मैं तुम्हारे मुहल्ले से थोड़ी दुर मार्केट के xxxx दुकान के बाहर गाड़ी लेकर आया हूँ... तुम सीधे आकर गाड़ी में बैठ जाना... और हाँ... यह बहुत सीक्रेट है... किसीको बताना मत...

ठीक है... अभी निकलती हूँ... - अनु

मोबाइल अपनी पर्स में रख कर जल्दी जल्दी निकलती है l उसे जल्दी जल्दी जाते देख उसकी दादी उसे आँखे फाड़े देखती है l

उधर वीर कभी रियर व्यू मिरर तो कभी साइड मिरर पर देख रहा है l उसे कुछ देर बाद रियर मिरर में अनु दीखती है l अनु के दीखते ही वीर की चेहरा खिल जाता है l अनु आकर पहले गाड़ी के पास खड़ी होती है फिर बाएं तरफ जाकर खिड़की से झाँक कर देखती l वीर को देखते ही उसके चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कराहट खिल उठता है l वह कार की दरवाजा खोल कर वीर के बगल वाली सीट पर बैठ जाती है l अनु के बैठते ही वीर गाड़ी को उस मार्केट से दुर दौड़ा देता है l

वीर - तो अनु तैयार हो...
अनु - जी... पर हम कौनसे भेष बदलेंगे... और हम कहाँ पर भेष बदलेंगे...
वीर - कौनसा भेष... यह तो वहाँ जा कर पता चलेगा... जहां हम जा रहे हैं.. वहाँ पर मैंने तुम्हारे लिए कुछ भेष सिलेक्ट कर लिया है... पहुँचते ही भेष बदलेंगे...
अनु - अच्छा... तो आप क्या बनने का फैसला किया है...
वीर - पता नहीं... वहाँ पहुँच कर डीसाइड करेंगे... (अनु सोच में देख कर) क्या सोच रही हो...
अनु - मैं सोच रही हूँ.... कौनसा भेष बदलना है...
वीर - अच्छा... तुम सोच रही हो... कौनसा...
अनु - माता पार्वती जी का...

चर्र्र्र्र्र्र्र वीर गाड़ी में ब्रेक लगाता है l वीर अनु को ऐसे देखता है जैसे उसे जोरदार शॉक लगा हो l

वीर - क्या कहा... माता पार्वती जी का...
अनु - (चहकते हुए) हाँ... एक बार मैंने नाटक में देखा था... उनके केश खुल जाते हैं... आँखे बड़ी हो जाती है और (अपनी माथे की ओर दिखाते हुए) यहाँ पर... ये बड़ा सिंदूर... देखिएगा कोई नहीं पहचान पाएगा...
वीर - अच्छा (हैरानी भरे नजरों से देखते हुए) तो मेरे लिए भी कुछ सोचा है तुमने...
अनु - हाँ (चहक कर) सोचा है ना...
वीर - अच्छा... तो अभी तक बताया क्यूँ नहीं...
अनु - (मुहँ बनाते हुए) अगर आपको गुस्सा आ गया तो...
वीर - (हँसने की कोशिश करते हुए) नहीं.. नहीं करूँगा...
अनु - (चहकते हुए) आप ना... हनुमान बन जाइए... बड़ा मजा आएगा... और कोई पहचान भी ना पायेगा...

वीर इतना सुनते ही जोर जोर से हँसने लगता है l अपनी सीट की लीभर खिंच लेता है जिससे सीट पीछे की ओर लुढ़क जाती है, फिर वीर अपनी पेट पकड़ कर पैर पटकते हुए हँसने लगता है l अनु उसको यूँ हँसता देख कर मुहँ रुआँसी बना लेती है l थोड़ी देर बाद

वीर - (वीर उसकी रुआँसी चेहरा देख कर) ओ.. अनु... अनु.. जरा सोचो... हम छुपने के लिए भेष बदलने वाले हैं... मतलब लोगों के बीच घुल-मिल कर...उन्हीं के जैसे बन कर... तुम अगर पार्वती और मैं हनुमान बना... लोग सब काम धंधा छोड़ हमारे इर्द गिर्द भीड़ जमायेंगे.... है कि नहीं...
अनु - (अपना सिर हिला कर हाँ कहती है)
वीर - चलो वहाँ पहुँच कर देखते हैं... हम क्या बन सकते हैं...

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XXXXकॉलेज

छटी गैंग कैन्टीन में बैठी हुई है l सब के सब नंदिनी को देख रहे हैं l नंदिनी के चेहरे पर टेंशन साफ दिख रहा है l

बनानी - तु... इतनी टेंशन में क्यूँ है...
दीप्ति - हाँ... तुझे प्रीपेयर होने के लिए सब्जेक्ट भी तो मिला था..
नंदिनी - बात अगर पढ़ाई के रिलेटेड होती... शायद इतना डरती भी नहीं... पर यह तो सोशल रिलेटेड है... अब साइंस स्टूडेंट्स को... इस तरह की सब्जेक्ट मिले.... टेंशन तो होगी ही ना...
तब्बसुम - अरे सोशल प्लेटफॉर्म पर... सोशल मैसेज वाली ही टास्क मिल सकती थी ना...
इतिश्री - हाँ... अब अगर.. यह हमारे ग्रुप को मिली होती... तो मजा आ गया होता...
भाश्वती - वह तो हुआ नहीं... अब इस बेचारी की तोते उड़ रहे हैं...
बनानी - ओह स्टॉप इट... यह पहले से ही नर्वस है... तुम लोग इसकी जोश बढ़ाने के वजाए... और भी नर्वस कर रही हो...
रॉकी - यह तो बढ़िया मौका है... अपने अंदर के आत्मविश्वास को जगाने का... (अंदर आते हुए) अपने अंदर की व्यक्तित्व को बाहर लाने का...

सब रॉकी की ओर देखते हैं l रॉकी अपने ग्रुप के साथ थोड़ी ही दूरी पर खड़ा हुआ है l बनानी कुछ कहने को होती है कि तभी प्रिन्सिपल ऑफिस का पियोन आता है और सीधे नंदिनी से कहता है

पियोन - नंदिनी जी... आपको प्रिन्सिपल सर ने बुलाया है...

नंदिनी कुछ नहीं कहती है चुप चाप उठ कर पियोन के साथ चली जाती है l

रॉकी - क्या बात है गर्ल्स... मैंने कुछ गलत कह दिया क्या... आपकी दोस्त ने जवाब दिए वगैर चली गई...
बनानी - नहीं ऐसी बात नहीं है... वह थोड़ी नर्वस है...
रॉकी - हाँ... वह तो दिख ही रहा है...

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मेयर ऑफिस

पिनाक सिंह विक्रम के साथ अपनी ऑफिस में घुसते हुए

पिनाक - अब तीन दिन हो गए हैं... आप मेरे साथ ही चिपके हुए हैं...
विक्रम - हाँ हम अब उस दुश्मन से मिलना चाहते हैं... आखिर वह कौन है... जिसने क्षेत्रपाल के मूछों पर हाथ नहीं.. घात मारने की सोची है...
पिनाक - (अपनी कुर्सी में बैठते हुए) बड़ी बड़ी हाँका है... हमारी तैयारी देख कर... फट गई होगी उसकी....
विक्रम - (पिनाक के सामने बैठते हुए) नहीं... उसे हमारी तैयारी का अंदाजा हो सकता है... बस हमे ही नहीं मालुम उसकी तैयारी क्या क्या है...
पिनाक - महांती... अब तक कहाँ पहुँचा...
विक्रम - मैंने उसे बुलाया है... वह पहुँचता ही होगा... वैसे... क्या आपने राजकुमार से बात की...
पिनाक - उनकी बात छोड़िए युवराज... वह अभी इन सब में जुझने के काबिल नहीं हुए हैं.... नए नए ल़डकियों की तलाश में रहते हैं... जब उससे मन भरेगा... तब शायद कुछ करने के काबिल हो पाएं....
विक्रम - ह्म्म्म्म... पर आप कभी कभी उन्हें झिड़क देते हैं... वह ठीक नहीं लगता...
पिनाक - उन्हें कुछ फर्क़ नहीं पड़ता....
विक्रम - इतने हल्के में मत लीजिए... वह जवानी के उस मोड़ पर हैं... जब खुन में हद से ज्यादा गर्म रहाता है...
पिनाक - वह खानदानी क्षेत्रपाल हैं युवराज... और हम शत प्रतिशत निश्चिंत हैं... हमारे राजकुमार अपनी गर्मी उतारने के लिए... कोई साधन जुगाड़ कर लिया होगा....
विक्रम - क्या मतलब...
पिनाक - आप उस दौर में जहाँ झिझकते थे... राजकुमार उस दौर में चिड़िया फंसा कर हज़म कर जाते हैं....
विक्रम - (कुछ नहीं कहता अपना चेहरा घुमा लेता है)

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वीर अनु को लेकर एक दुकान पर आता है जहाँ लोगों का मेकअप किया जाता है l वहाँ पर लड़कियों की एक ग्रुप खड़ी थी l वीर उन ल़डकियों के पास आकर

वीर - गर्ल्स... आपको इनका मेकअप कराना है...
लड़कियाँ - यस सर...
वीर - (अनु से) आप इनके साथ जाइए... यह लोग आपका मेकअप कर देंगे...
अनु - (वीर के कान में धीरे से) यह लोग हमारे भेष बदलेंगे...
वीर - (अनु के कान में) हाँ... पर हमारे नहीं... तुम्हारे...
अनु - क्या.. कौनसा भेष..
वीर - वह उन पर छोड़ दो ना... अब कोई बड़बड़ नहीं... सीधे उनके साथ जाओ... (उन लड़कियों से) गर्ल्स प्लीज...

लड़कीयाँ आकर अनु को ले जाने लगती हैं l अनु झिझकते हुए वीर को पीछे मुड़ कर देखते हुए अंदर जाती है l वीर उस दुकान की मालकिन से कहता है

वीर - उनका मेकअप हो जाने के बाद... उनसे कहिएगा मैं नीचे गाड़ी के पास इंतजार कर रहा हूँ...
मालकिन - जी सर...

फिर वीर नीचे चला जाता है और गाड़ी की डिकी खोल कर एक लाल रंग का लेदर जैकेट निकाल कर पहन लेता और एक गॉगल पहन लेता है l फिर गाड़ी पर पीठ लगा कर खड़े होकर उस दुकान की दरवाजे पर नजर गड़ा कर देखने लगता है l करीब एक घंटे बाद दुकान का दरवाजा खुलता है तो वीर की आँखे फटी की फटी रह जाती है l
अनु खूबसूरत तो थी पर आज ऐसा लग रहा था जैसे अनु की खूबसूरती हीरे की तरह कोयले की खदान को चीरते हुए निखर कर आई है l अनु कुछ ल़डकियों के साथ सीढियों से उतर कर ऐसे आ रही थी मानो बादलों पर चल कर आ रही हो l

_____×_____×_____×_____×_____×_____×

माँ...

यह सुन कर प्रतिभा अपना सिर मैग्जीन से निकाल कर विश्व को देखती है l

प्रतिभा - Awwww... कितना हैंडसम है मेरा बच्चा...(खड़े होकर)

प्रतिभा देखती है वहाँ पर काम करने वाली सभी लड़कियाँ विश्व को एक आशा और लालच भरे नजरों से घूर रही हैं l प्रतिभा फौरन अपनी आँख से काजल निकाल कर विश्व के कान के नीचे लगा देती है और विश्व को खिंच कर बाहर ले जा कर खड़ा कर देती है l

प्रतिभा - तु... यहीं पर रुक... मैं पेमेंट कर आती हूँ... (प्रतिभा अंदर वापस जाती है और कुछ देर बाद बाहर आकर) चल अभी चलते हैं...
विश्व - अब कहाँ चलना है...
प्रतिभा - अरे.. तेरे लिए नए कपड़े भी तो लेने हैं... और नए जूते भी...
विश्व - अब यह सब किसलिए माँ...
प्रतिभा - (गाड़ी में बैठते हुए) चल आजा बैठ जा...
विश्व - क्या माँ... आज दिन भर यही करना है क्या...
प्रतिभा - हाँ... अब बैठता है या नहीं...

विश्व बिना कुछ कहे चुपचाप बैठ जाता है, प्रतिभा गाड़ी स्टार्ट करती है l

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प्रिन्सिपल ऑफिस

नंदिनी - मे आई... कम इन.. सर..
प्रिन्सिपल - यस यस मिस रूप नंदिनी... प्लीज कम इन...
नंदिनी - सर... आपने मुझे अभी यहाँ क्यूँ बुलाया है...
प्रिन्सिपल - देखिए मिस...
नंदिनी - सर नंदिनी... प्लीज नंदिनी...
प्रिन्सिपल - ऐसा क्यूँ...
नंदिनी - (खामोश रहती है)
प्रिन्सिपल - आप उस आइडेंटी से खुद को दूर क्यूँ रखना चाहती हैं... जो आपको आपके पिता ने दी है...
नंदिनी - (सिर झुका कर खामोश रहती है और अगल बगल देखने लगती है)
प्रिन्सिपल - क्यूँकी... एक कशमकश है... आपके भीतर... ख्वाहिश है... एक अलग पहचान बनाने की... खुदको साबित करने के लिए... है ना...
नंदिनी - (अपना सिर उठा कर देखती है)
प्रिन्सिपल - जिस दिन आप पहली बार मुझसे अपनी अलग आइडेंटिटी के बात की... उसी दिन मैं कुछ कुछ समझ गया था...
नंदिनी - (फिर अपना सिर झुका लेती है)
प्रिन्सिपल - चलो मैं इस बात को आगे नहीं खिंचता... बस इतना कहूँगा नंदिनी जी... मैं खुद उस टास्क की सब्जेक्ट से हैरान हूँ... पर इतना ज़रूर कहूँगा... यह वह सब्जेक्ट है... जिससे आपकी अपनी एक विशेष पहचान बनेगी... जो बहुतों को प्रभावित करेगी... इसलिए आप अपना हंड्रेड पर्सेन्ट दें... बस इतना ही कहूँगा...
नंदिनी - (प्रिन्सिपल को देख कर) जी सर... आई वील ट्राय माय लेवल बेस्ट...
प्रिन्सिपल - ओके... गुड.. तो अभी... एक काम कीजिए... सुरेश... वह रेडियो जॉकी... असेंबली हॉल में आपका इंतजार कर रहा है... एक छोटा सा रीहरसल के बाद... ट्रांसमिशन लाइव होगा...
नंदिनी - ठीक है सर... तो मैं जाऊँ...
प्रिन्सिपल - यस... यस.. प्लीज...

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वीर की नजर अनु की पहनावे पर पर ठहर जाती है l ब्लैक स्लीवलेस ब्लाउस टॉप जो अनु की नाभि तक पहुँच रही है l उसके ऊपर सफेद जाली कारीगरी वाली घुटने तक जोधपुरी एथिनीक जैकेट वीथ फुल लेंथ स्कर्ट l वीर की नजर अनु की खूबसूरती को निहारते निहारते नाभि पर ठहर जाता है l वीर का मुहं खुल जाता है थरथरा कर एक गहरी सांस लेता है l उस दुकान की ल़डकियों की बीच झिझकते हुए अनु वीर के पास पहुंचती है l

एक लड़की - सर यह ड्रेस पहनाने के लिए हमें बहुत मशक्कत करनी पड़ी...

वीर सबको कुछ पैसे देकर विदा करता है l खुद गाड़ी में बैठ कर इशारे से अनु को बैठने के लिए कहता है l अनु बैठती है l वीर गाड़ी स्टार्ट करता है l गाड़ी के चलते ही

वीर - वाव अनु... तुम्हें सच में पहचान नहीं पाया...
अनु - (कुछ नहीं कहती झिझक और शर्म साफ उसके चेहरे पर झलकती है)
वीर - घबराओ नहीं.. कहा ना.. मैं.. जो तुम्हें रोज सुबह से शाम तक देखता हूं... पहचान नहीं पाया... तो तुम्हें कोई भी पहचान नहीं पाएगा...
अनु - (थोड़ी हैरानी भरी भाव से) पर आपने तो खुदको नहीं छुपाया...
वीर - मैं भी खुदको छुपा लूँगा... देखना...
अनु - हम.. कहाँ जा रहे हैं...
वीर - ओरायन मॉल...
अनु - वहाँ हम क्या करेंगे...
वीर - बस दिन भर... वहाँ रहकर हमारे सिक्युरिटी गार्ड्स पर नजर रखेंगे... कौन कैसे ड्यूटी कर रहा है... लोगों से कैसे पेश आ रहे हैं... वगैरह वगैरह...
अनु - ओ अच्छा...

वीर अनु की बात सुन कर हँसता है l और गाड़ी को ओरायन मॉल की ओर ले चलता है l थोड़ी दूर ड्राइविंग करने के बाद वीर की गाड़ी मॉल की अंडरग्राउंड पार्किंग में पहुँचता है l पहले वह उतरता है l जल्दी जल्दी निकलने में उसका एक पैर दुसरे पैर में फंस जाता है l वीर अनबैलंस हो कर आगे की ओर गिरने लगता है तो कोई उसे थाम लेता है l वीर को संभाल कर वह शख्स खड़ा कर देता है l तभी पीछे से अनु भागते हुए आती है और

अनु - राजकुमार जी...
वीर - मैं ठीक हुँ... अनु.. मैं ठीक हुँ...
अनु - (उस शख्स से) आपका शुक्रिया भैया ... बहुत बहुत शुक्रिया...
शख्स - कोई बात नहीं... इसमे शुक्रिया की क्या बात है...
वीर - (उस शख्स को) हैलो आई एम वीर... एंड थैंक्यू...

इससे पहले कि वह शख्स कुछ कहता एक औरत वहाँ पर आती है और कहती है

- यह मेरा बेटा... प्रताप... और मैं एडवोकेट प्रतिभा महापात्र...
वीर - ओह हैलो प्रताप...(अपना हाथ बढ़ाता है)
प्रताप - हैलो (प्रताप भी अपना हाथ बढ़ा कर हाथ मिलाता है)
वीर - आप यहाँ पर...
प्रतिभा - ओवीयसली.. हम यहाँ पर खरीदारी करने आए हैं... और आप दोनों...

वीर और अनु दोनों चुप रहते हैं और एक दुसरे को चोर नजर से देख कर प्रतिभा और विश्व से नजरें चुराने लगते हैं l उनकी हालत देख कर प्रतिभा मुस्कराने लगती है l

प्रतिभा - ओके... ओके मैं समझ गई... अच्छा हम चले अपनी मार्केटिंग पर... मौका हाथ लगा तो... मिलते हैं बाद में...
वीर - जी... जी ज़रूर...

माँ बेटे के वहाँ से चले जाने के बाद अनु वीर की ओर देखती है और पूछती है

अनु - राजकुमार जी... आप ने अभी तक कोई भेष बदला ही नहीं...
वीर - अभी बदल लेता हूँ... एक मिनट...

कह कर वीर अपनी गाड़ी के पिछे चला जाता है l अपनी जेब से एक नकली, मोटा मूँछ निकाल कर अपने मुहँ पर लगा लेता है और बाएं गाल पर आँखों के नीचे एक मस्सा लगा लेता है l उस पर आँखों पर एक गॉगल लगा कर अनु के सामने खड़ा हो जाता है l अनु उसे पहचान नहीं पाती, वीर की यह हुलिया देख कर वह चीखने को होती है कि वीर उसकी मुहँ पर जोर से हाथ रख देता है l

वीर - अनु यह मैं हूँ... (अनु की आँखे बड़ी हो जाती है) अब तुम्हारे मुहँ से हाथ हाटऊँ... (अनु इशारे से अपना सिर हिला कर हाँ कहती है, तो वीर अपना हाथ हटा लेता है)
अनु - राजकुमार जी... सच में... मैं तो आपको पहचान ही नहीं पाई...
वीर - ह्म्म्म्म... चलो अब अंदर चलते हैं... (लिफ्ट की ओर चलने लगता है)
अनु - ठीक है...(वीर के साथ चलते हुए) पर हम यहाँ पर करेंगे क्या...
वीर - यहाँ पर हम कहीं खाना खाएंगे... कहीं थोड़ी बहुत खरीदारी करेंगे... और जरूरत पड़ी तो... एक फिल्म देख लेंगे...
अनु - ओ माँ... इतना कुछ करेंगे... पर हम तो यहाँ... चेकिंग के लिए आए हैं ना...
वीर - अरे वही तो करेंगे... दिन भर... चलो पहले कहीं बैठ कर... फ्रूट जूस पीते हैं....

अनु और कुछ नहीं कहती अपना सिर हिला कर वीर के साथ हो लेती है l दोनों एक जूस और पुडलींग स्टॉल पर पहुँचते हैं l वीर अनु एक टेबल देख कर बैठने के लिए कहता है और खुद जा कर जूस के लिए ऑर्डर करता है l कुछ मिनट बाद जब जूस लेकर अनु के पास आता है तो देखता है वहाँ पर दो लड़के अनु से बात करने की कोशिश कर रहे हैं l अनु के चेहरे पर झिझक व डर दिखता है l वीर जैसे ही टेबल पर पहुँचता है वह लड़के वीर को देखने लगते हैं I वीर की पर्सनालिटी देख कर थोड़ा डरने लगते हैं l अनु भी वीर को देख कर रीलैक्स फिल करती है l

वीर - कोई तकलीफ़...
एक लड़का - जी.. जी... वह.. हम इन्हें अकेले देखा तो...
वीर - तो... चांस मारने आ गए...
दुसरा - ओह कॉम ऑन ड्युड... जस्ट चील... हम तो बस दोस्ती करने आए थे...
वीर - ऑए चील के बच्चे... जरा स्पीड कम कर... वरना... आँख कान और जुबान सब छिल जाएंगे...

दोनों लड़के वहाँ से उठ कर चले जाते हैं l वीर अनु को जूस की एक ग्लास बढ़ाता है l अनु एक मुस्कराहट के साथ वीर के हाथों से जूस ले लेती है l
उधर उसी मॉल के ड्रेस सेक्शन में विश्व अभी तक पाँच जोड़ी ड्रेस पहन कर प्रतिभा को दिखा चुका है l प्रतिभा सब रिजेक्ट कर विश्व की सिर दर्द बढ़ा चुकी है l आख़िर में एक गहरी काले रंग पेंट के उपर एक सफ़ेद शर्ट पहन कर प्रतिभा के सामने आता है

प्रतिभा - Awww... यह हुई ना बात... अब लग रहे हो... कल के होने वाले मशहूर वकील...
विश्व - माँ पहले की कह देतीं... मैं यही पहन लिया होता... आपने अभी मुझसे पाँच जोड़ी कपड़े बदलवाए...
प्रतिभा - हाँ तो क्या हुआ... अगर यह लोग ड्रेस चुज एंड ट्राए का ऑप्शन दे रखे हैं... तो हमे भी उसका फायदा उठाना चाहिए कि नहीं...
विश्व - (हँसते हुए) माँ... तुम्हारी हरकतें किसी बच्चे जैसी है... अगर तुम ऐसी हरकतें करती रहोगी... कौन मानेगा की तुम्हारा (खुद को दिखाते हुए) इतना बड़ा बेटा है...
प्रतिभा - माँ में बचपना अपनी बच्चों के लिए होता है... और कौन नहीं मानेगा के तु मेरा बेटा है... (शो रुम के अंदर चिल्लाते हुए) हैलो हैलो हैलो... सुनो प्लीज... (सब मौजूद लोग और सेल्स मेन व सेल्स गर्ल्स प्रतिभा की ओर देखते हैं) गौर से देखिए... यह मेरा बेटा है... कितना हैंडसम है... है ना...
विश्व - (प्रतिभा की मुहँ पर हाथ रख देता है) माँ यह क्या कर रही हो... फिर से अगर ऐसा कुछ किया तो मैं यहाँ से भाग जाऊँगा...
प्रतिभा - (मुहं बंद है) उम्म् उम्म्
विश्व - ठीक है हाथ निकालता हूँ... (अपना हाथ निकाल देता है)
प्रतिभा - (ऊंची आवाज़ में) देखिए लोगों...(विश्व से थोड़ी दुर जा कर) आज कल के बच्चें... माँ बाप को छोड़ कर भागने की धमकी दे रहे हैं...

विश्व अपना माथा पीट लेता है l वहाँ पर मौजूद सभी विश्व की हालत देख कर मुस्कराने लगते हैं l तभी मॉल के हर दुकान व हर जगह जहाँ माइक थे एनाउंसमेंट होने लगती है l

" यह एक विशेष सूचना है... ओरायन मॉल पर उपस्थित सभी ग्राहक व कर्मचारियों के लिए... अभी कुछ ही देर में एफएम 97 पर आने वाली एक प्रोग्राम का प्रसारण किया किया जाएगा... कृपाया उसे सुनें... यह एफएम सर्विस वालों के अनुरोध पर किया जा रहा है और सुन कर अपना मत fm97xxxxx. Co. In पर व्यक्त रखें...

XXXXX कॉलेज
असेंबली हॉल खचाखच भरा हुआ है l स्टेज पर बने एक कांच की घर के भीतर रेडियो जॉकी सुरेश और नंदिनी बैठे हुए हैं l सुरेश प्रोग्राम को शुरू करता है l

सुरेश - हैलो अउडीयंस.. मैं आपका अपना सुरेश.... आज आपके लिए एक लाइव एंड थ्रिलींग मोमेंट ले कर आया हूँ XXXXX कॉलेज से... मेरे साथ बैठी हैं... मिस नंदिनी... यह अपनी कॉलेज में लकी ड्रॉ के जरिए सिलेक्ट हुई हैं... आपको एक सोशल मैसेज देने के लिए... दोस्तों हमनें इन्हें दो दिन पहले ही टास्क दिया था... HUMAN EVOLUTION, TWENTY FIRST CENTURY AND THE WOMAN...
इसलिए मैं अभी यह माइक यह सिस्टम पूरी तरह से मिस नंदिनी जी के हवाले कर रहा हूँ... अब नंदिनी जी आपके सामने हमारी उसी टास्क को अपने अंदाज में आपके सामने प्रेजेंट करेंगी... मिस नंदिनी... प्लीज...
नंदिनी माइक पर आती है, अपनी आँखे बंद कर एक गहरी सांस लेती है फिर खुद को नॉर्मल करती है l

नंदिनी - हैलो... मैं नंदिनी... नंदिनी सिंह... बीएससी फर्स्ट ईयर की स्टुडेंट.... अभी आपने बात करने से पहले मुझे पता चला... की सुरेश जी ऐसे ही कभी कभी कहीं भी पहुंच कर ऐसे ही चौंका देते हैं... मुझे भी चौंका दिया था... बुधवार को... फ़िर एक टास्क दिया... मानव क्रमिक विकास, इक्कीसवीं सदी और औरत... पहले जब मानव विकास सुना... एज अ साइंस स्टुडेंट मैं साइंस की नजरिए से समझने की कोशिश की... फिर इक्कीसवीं सदी... इसमे भी साइंस ही दिखी थी मुझे... पर अंत कहा... औरत... तब मुझे लगा कि यह तो एक सोशल सब्जेक्ट है... मैं एक साइंस की स्टूडेंट इसे कैसे प्रेजेंट करूँ... यह बात मैंने अपनी भाभी जी से पूछी... भाभी... मेरी सबसे अच्छी सहेली... दोस्त... माँ... दीदी और गुरु भी... उन्होंने कहा... क्यूँ नहीं... आख़िर मानव सामाजिक प्राणी है... और बात समाज की है... तो क्यूँ नहीं... पर मैं जिसने समाज को ठीक से देखा भी ना हो... समझा भी ना हो वह कैसे समाज की इतनी बड़ी विषय पर टिप्पणी कर सकती हूँ...
तब भाभी जी ने मुझे गुरुवार से लेकर आज तक... अकेले कॉलेज चलते हुए जाने के लिए कहा और लोगों की चारों तरफ की परिस्थितियों में खुद को फिट कर,.. वहाँ पर अपनी स्थिति को समझ कर... एक्सपेरियंस करने के लिए कहा

इन ढाई दिनों में मैंने जो एक्सपीरियंस किया... वही आज मेरे की टास्क की जीस्ट है....

औरत... औरत क्या है... एक वस्तु या एक शख्सियत... मुझे एक ऐसे समाज में... एक ऐसे तथ्य पर राय रखने के लिए कहा गया है... जहां खुद यह समाज ही दीग भ्रमित है... यह समाज वस्तु वादी है... जहां निर्जीव वस्तुओं में अपनी हर्ष ढूंढते हैं... उस समाज की सोच में औरत एक वस्तु ही तो है....

औरत की समाज में आवश्यकता है... वजह एक नई पीढ़ी को लाने के लिए... माँ प्रथम गुरु होती है... दीदी प्रथम मित्र होती है... मौसी माँ सी होती है... भाभी... एक माँ, बहन, सखी और गुरू भी होती है... और हर रुप में वह पहले औरत ही होती है... शास्त्र कहता है
‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः’
पर सच मानिये इन ढाई दिनों में मैंने ऐसा कुछ भी नहीं देखा....
एक लड़की जो किसी बाप की लाडली, माँ की दुलारी भाई की अभिमान होती है... वह घर से निकलते ही दुसरे मर्दों की आँखों के एक्स्रै से स्कैन की जाती है... यही सच्चाई है... खैर मुझे तो टास्क को प्रेजेंट करना है... तो ढाई दिन की एक्सपीरियंस को एक ही कहानी में पिरो कर बताती हूँ...

एक सुबह घर से निकली.... चलते हुए अपनी घर से कुछ दुर एक पान सिगरेट की दुकान के पास... कॉलेज जाने के लिए बस की इंतजार करने लगी... उस दुकान पर बहुत से लड़के व मर्द खड़े थे... कोई पान खरीद रहा था तो कोई सिगरेट तो कोई गुटखा... सब की भीड़ वहीँ पर इसलिए थी क्यूंकि... वहीँ से बहुत सी लड़कियाँ कॉलेज जाने के लिए बस पकड़ती हैं...
उस पान दुकान वाले की दो बेटियाँ हैं... पर वह खुश नहीं है... क्यूँ... क्यूंकि उसे वंश चलाने के लिए एक बेटा चाहिए... इसलिए वह हर पल अपनी किस्मत, अपनी बीवी और अपनी बेटियों को कोशता रहता है... उसकी बड़ी बेटी अपनी छोटी बहन के साथ उसी दुकान के पास एक कुत्ते से दोस्ती कर दिन भर खेलती रहती है.... पर उस दिन कुछ बंद था इसलिए कोई बस या ऑटो नहीं चल रहा था... हम कुछ लड़कियाँ फैसला किए... चलते हुए कॉलेज जाने के लिए...
हम ल़डकियों का एक ग्रुप चलते हुए कॉलेज निकले.... एक मोड़ पर आगे जाना मुश्किल हो गया... क्यूंकि उस मोड़ पर बिजली की तार से उलझ कर एक कौवा मर गया था... इसलिए वहाँ पर गुजरने वाले हर इंसान पर कौवे अपने साथी के मरने की गुस्सा उतार रहे थे.... हम ल़डकियों ने रास्ता बदल कर दुसरे रास्ते में जाने लगे... उस रास्ते में हैदराबाद की एक डॉक्टर के बलात्कार के विरुद्ध प्रदर्शन व रैली चल रही थी... हम वहीँ पर खड़े होकर रैली की गुजरने की इंतजार करने लगे... उसी रैली में हिस्सा लिए कुछ क्रांतिकारियों ने हमें देखकर कमेंट करने लगे... कोई हमारी रंग पर... कोई हमारी अंग के कटाव पर टिप्पणी करते हुए गुजरे... एक औरत के साथ हुई दुराचार के विरुद्ध कुछ क्रांतिकारी रास्ते पर खड़े दुसरे औरतों पर फब्तीयाँ गढ रहे थे... एक और जहां अपनी धरना प्रदर्शन से अपनी जिम्मेदारी निभा रहे थे... वहीँ दुसरी और वह लोग रास्ते पर खड़े हुए औरतों में मौका तलाश रहे थे... हम लोग किसी तरह कॉलेज पहुँचे... फिर मैंने क्लासेस खतम कर... शेयर ऑटो से घर को निकली... उसी पान दुकान वाली जंक्शन से थोड़ी दूर पर पहुँची....
वहाँ पहुँच कर देखा वह कुत्ता भोंकते हुए लोगों को अपने तरफ आने को मजबूर कर रही है... पर कोई नहीं जा रहा... शायद कोई समझ ही नहीं पा रहा था... मैंने हिम्मत करके कुत्ते के साथ गई... मेरे देखा देखी कुछ लोग कुत्ते के पीछे गए...
वह पान दुकान वाला अपने घर में आग लगा रहा था... उसकी बीवी और बड़ी बेटी उसे रोकने की कोशिश कर रही थीं... पर वह रुका नहीं हमारे पहुँचते पहुँचते आग लग चुकी थी... वहाँ पर पहुँचे लोगों ने पहले उस पान वाले को पकड़ लिया और कुछ लोग आग को बुझाने की कोशिश करने लगे... तभी औरत चिल्लाने लगी उसकी छोटी बेटी आग में फंस गई है... किसीने हिम्मत नहीं करी आग में घुस कर बच्ची को बचाने के लिए... पर वह कुत्ता जो हमे वहाँ लाया था... वह अचानक आग के भीतर कुद गया... कुछ देर बाद छोटी लड़की को खिंचते हुए बाहर लेकर आया.... कुछ देर बाद पुलिस पहुँच कर हमारी गवाही लेकर उस पान वाले को गिरफ्तार कर लिया.... उस पान वाले की बीवी और बच्चे वहीँ रह गए... हम लोग जो वहाँ पर मौजूद थे ने कुछ पैसे कलेक्शन कर उसे देकर अपने अपने घर चले गए...
मैं घर पर पहुँची... किताबें रख कर पुरी दिन में घटित घटनाओं के बारे में सोच रही थी... तब सोनी मैक्स पर... अमिताभ बच्चन अभिनीत अग्निपथ फिल्म की एक सीन चल रही थी....
उस सीन में विजय चौहान अपनी माँ से कहता है पुरे बांबे में उसकी माँ और बहन को छेड़ने वाला कोई नहीं है... क्यूंकि सब जानते हैं... किसीने ऐसी हिमाकत की... तो वह उन्हें बीच से काट डालेगा...
ज़वाब में उसकी माँ सुहाषीनी चैहान कहती है - वाह क्या खूब तरक्की कर ली है तुने... तेरे पिता कहा करते थे... हज़ारों बरस लग गए... इंसान को जानवर से इंसान बनने के लिए... तुने तो जरा भी देर नहीं लगाई... वापस जानवर बनने के लिए....


यह भले ही एक फिल्मी डायलॉग थी... पर उस दिन घटित हुए सारे घटनाओं के बारे में सोच रही थी... जहाँ एक और इंसान अपने कद से गिर कर... जानवर बन कर... अपनी ही आशियाना को आग में झोंक दिया था... वहीँ एक जानवर अपने कद से उपर उठकर आग से इंसान की अगली पीढ़ी को बचा लाया....
शायद यही मानव का क्रमिक विकास के वस्तुवादी इक्कीसवीं सदी में औरत जिम्मेदारी कम मौका जादा लगती है
Awesome update
 

ANUJ KUMAR

Well-Known Member
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Fa
👉उनसठवां अपडेट
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XXXX कॉलेज
असेंबली हॉल
नंदिनी चुप हो जाती है और वह महसूस करती है उसके आसपास का माहौल एक दम खामोश है I असेंबली हॉल में मौजूद सभी लेक्चरर, सभी स्टूडेंट्स, सब, यहाँ तक सुरेश भी स्तब्ध हो गए हैं l इतनी ख़ामोशी पसरी हुई है कि अगर एक सुई भी गिर जाए तो उसकी भी आवाज़ जोर से सुनाई देगा l फिर सुरेश अपनी जगह पर खड़ा हो जाता है और ताली बजाने लगता है l उसके बाद सभी ताली बजाने लगते हैं l पूरा का पूरा असेंबली हॉल तालियों के गड़गड़ाहट से थर्राने लगता है l बनानी अपनी दोस्तों के साथ चिल्लाने लगती है l

बनानी - थ्री चियर्स फॉर नंदिनी... हिप हिप
सभी - हुर्रे...
बनानी - हिप हिप
सभी - हुर्रे...
बनानी - हिप हिप
सभी - हुर्रे...

उधर रॉकी के सभी दोस्त जोर जोर से ताली बजा रहे हैं पर रॉकी ऐसे हैरान और खामोश है जैसे कोई अद्भुत देख लिया हो l एक तरह से रॉकी शॉक्ड था जैसे उसके कल्पना से परे कुछ और हो गया है l

रवि - वाव... क्या बात है रॉकी... जो तु चाहता था... जैसा तु चाहता था.. वही और वैसे ही हो गया...
आशीष - हाँ यार... तूने तो उसे लाइम लाइट दे दिया यार... तुने उसको.. उसके भीतर के एक नए शख्सियत से मुलाकात कराया है... कुछ नहीं तो... कम से कम दोस्ती तो पक्की...
सुशील - नहीं नहीं... पहले इम्प्रेस थी... अब अपना यार उसके दिल दिमाग पर छा जाएगा... (रॉकी को खामोश देख कर) क्या बात है हीरो... किन खयालों में खोया है...
रॉकी - क.. कु.. कुछ नहीं...

जब ताली बजना बंद होता है तो सबको पता चलता है कि वहाँ पर नंदिनी है ही नहीं l सबको असेंबली हॉल में छोड़ कर नंदिनी बाहर जा कर अपनी गाड़ी में बैठ जाती है l

नंदिनी - (ड्राइवर से) गुरु काका....
गुरु - जी... बेटी जी...
नंदिनी - मेरा यहाँ दम घुट रहा है... मुझे इस कैंपस से बाहर ले चलिए...
गुरु - बाहर मतलब कहाँ... बेटी जी...
नंदिनी - ओहो.... पहले इस कैपस से तो निकालिए...
गुरु - जी.... जी बेटी जी...

गुरु गाड़ी को कैंपस से बाहर निकाल कर रोड पर ले जाता है l

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ओरायन मॉल में फ़ूड कोर्ट हो या ड्रेस बुटीक हर जगह जैसे ही नंदिनी की प्रेजेंटेशन खतम हुई मॉल में मौजूद सभी लोग भी ताली बजाने लगे l पुरी की पुरी मॉल तालियों से गुंजने लगी l अनु भी सबको ताली बजाते देख वह भी ताली बजाने लगती है l अनु देखती है वीर किन्हीं ख़यालों में खोया हुआ है l वह अपना हाथ आगे बढ़ा कर वीर की हाथों को हिलाती है l वीर अपनी ख़यालों से बाहर आता है देखता है वहाँ पर मौजूद सभी लोग ताली बजा रहे हैं, अनु भी इधर उधर देख कर ताली बजा रही है I अनु इशारे से ताली बजाने को कहती है, वीर अपने चेहरे पर एक मुस्कान लाने की कोशिश करते हुए ताली बजाने लगता है l

बुटीक में भी जितने कस्टमर थे सेल्स मेन व गर्ल्स के साथ साथ विश्व और प्रतिभा भी ताली बजाने हैं l सबकी ताली रुक जाने के बाद

विश्व - वाव... माँ यह नंदिनी जो भी हैं... कितनी खूबी से और आसानी से.... समाज को आईना दिखा दिया...
प्रतिभा - हाँ बेटा... वाकई... छोटी सी कहानी में... कितना कुछ कह दिया... समाज और सभ्यता को...
विश्व - कभी मौका मिला तो उनसे मिलना जरूर चाहूँगा...
प्रतिभा - क्यूँ...(भवें नचा कर) प्रपोज करेगा...
विश्व - ओह माँ... तुमसे कुछ भी कहना.... छोड़ो... यहाँ पर काम खतम हुआ... अब कहीं और चलें...
प्रतिभा - हाँ रुक... पहले मैं पेमेंट तो कर लूँ...
विश्व - तब तक मैं... ड्रेस चेंज कर लेता हूँ...
प्रतिभा - अरे... क्यूँ... अब दिन भर इसी में रह... घर जाकर बदलना...
विश्व - पर यह तो आपने कल के लिए खरीदा है ना...
प्रतिभा - तो क्या हुआ... घर जाकर देख लेंगे... (चहकते हुए) अभी इन कपड़ों में कितना अच्छा दिख रहा है... ऐसे ही रह...
विश्व - (हथियार डालने वाले अंदाज में) ठीक है माँ... आप पेमेंट तो कर लो...

प्रतिभा काउंटर पर जा कर पेमेंट कर देती है और एक रसीद ले लेती है l वहीँ काउंटर पर विश्व की पुराने कपड़े बाद में लेंगे बोल कर पैकेट में रखवा देती है l उसके बाद बुटीक से विश्व को लेकर उसी फ्लोर पर एक बड़े शू स्टोर की ओर जाती है l प्रतिभा विश्व को देखती है, विश्व अपना सिर हिलाते हुए कुछ सोच रहा है l

प्रतिभा - क्या सोच रहा है...
विश्व - कुछ नहीं माँ... पहली बार... अपने से कम उम्र के... किसीके विचारों से प्रभावित हुआ हूँ... बार बार वह रेडियो वाली नंदिनी की बातेँ मेरे कानों में गूँज रही है... अगर कभी उनसे मिलना हुआ तो... (विश्व रुक जाता है)
प्रतिभा - तो... (अपनी भवें नचा कर)
विश्व - ओह माँ... तुम भी ना... फ़िर से शुरू मत हो जाना... मैं यह कह रहा था... अगर कभी उन नंदिनी जी से मिलना हुआ... तो मैं उन्हें... एप्राइज करूंगा... एप्रीसिएट करूंगा...
प्रतिभा - हाँ हाँ... जरूर करना... पर एक बड़ा सा फ्लॉवर बुके देते हुए करना...
विश्व - हाँ.... (फिर अचानक चौंकते हुए) क्या.... क्यूँ...
प्रतिभा - हा हा हा हा...
विश्व - ओह... माँ... तुम्हारे पास ना... किसी लड़की का जिक्र करना मतलब...
प्रतिभा - हाँ... मतलब...
विश्व - यह लीजिए... शू स्टोर आ गया...
प्रतिभा - तुने मतलब बताया नहीं (विश्व कुछ जवाब नहीं देता, स्टोर में घुस जाता है) अरे सुन तो...

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गुरु एक पार्क देख कर गाड़ी रोक देता है l गुरु देखता है नंदिनी की आँखे डबडबाई हुई हैं l

गुरु - क्या हुआ बेटी जी...
नंदिनी - (खुद को संभालते हुए) कुछ नहीं काका... मन थोड़ा भारी लग रहा है... (गाड़ी से उतर कर) मैं यहीं पर थोड़ा चहल कदम कर रही हूँ... आप इंतजार कीजिए...
गुरु - पर बेटी जी...
नंदिनी - घबराईए नहीं काका... मैं आपकी नजरों से दूर नहीं हूँ... मैं (सामने दिखाते हुए) पार्क के बाहर वाली बेंच पर थोड़ी देर के लिए बैठना चाहती हूँ...
गुरु - ठीक है बेटी जी...

नंदिनी जाकर उस बेंच पर बैठ जाती है l उसकी आँखे फिरसे नम हो जाती है l अपनी आँखों को पोछते हुए वह शुभ्रा को फोन लगाती है

शुभ्रा - (फोन पीक अप करते ही) वाह मेरी शेरनी वाह... आज तो तुमने मैदान मार ली... वाव क्या प्रेजेंटेशन दिया... माइंड ब्लोइंग... तुमने आज ना जाने कितनों को स्पेलबउंड कर दिया...
नंदिनी - (भर्राते हुए) छो... छोड़िए ना भाभी...
शुभ्रा - रूप... तुम रो क्यूँ रही हो...
नंदिनी - मैं नहीं जानती भाभी... बस रोना आ रहा है... प्लीज भाभी... आप आ जाओ... मुझे इस वक़्त आपकी सख्त जरूरत है...
शुभ्रा - अच्छा अच्छा आ रही हूँ... तुम अभी हो कहाँ पर...
नंदनी - वह मैं यहाँ xxxx पार्क के बाहर बेंच पर बैठी हूँ...
शुभ्रा - ओके ओके... तुम वहीँ पर रुको... मैं अभी दस मिनट में पहुँच रही हूँ....
नंदिनी - हाँ भाभी... मैं यहाँ पर आपका इंतजार कर रही हूँ...

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ESS ऑफिस

विक्रम अपने कैबिन में बैठा कुछ सोच रहा है l तभी उसका मोबाइल फोन बजने लगती है l डिस्प्ले में शुभ्रा का नाम देख कर उसे अंदर ही अंदर एक खुशी महसुस होती है l वह फोन उठाता है

विक्रम - (खुशी और झिझक के साथ) हैलो...
शुभ्रा - जी मैं राजकुमारी जी को लेकर... यहीं आसपास किसी मॉल में जा रही हूँ...
विक्रम - मॉल... पर क्यूँ.. आपके और उनके लिए हर सामान पहुँचा दिया जाएगा... आप उन्हें लेकर क्यूँ जाना चाहती हैं...
शुभ्रा - सुनिए... औरतों के कुछ चीजें... अगर वही खरीदारी करें तो ठीक रहती है... आप समझने की कोशिश करें... यह औरतों वाली बातेँ हैं...
विक्रम - ओ... ठीक है... पर कौनसे मॉल...
शुभ्रा - शायद ओरायन...
विक्रम - ठीक है... सू (फोन कट जाती है)...


विक्रम मायूस हो जाता है और अपनी आँखे मूँद लेता है l दरवाजे पर दस्तक होती है l विक्रम दरवाजे की तरफ देखता है तो उसे महांती दिखता है

विक्रम - क्या हुआ महांती...
महांती - सर कुछ इंफॉर्मेशन हाथ लगे हैं...
विक्रम - अंदर आओ... (महांती अंदर आता है) तुम यहाँ पार्टनर हो... बॉस भी हो... मेरे कैबिन में आने के लिए कम से कम तुम्हें मेरी परमिशन की ज़रूरत नहीं...
महांती - (बैठते हुए) युवराज जी... कुछ भी हो... मैं उम्र में भले ही आपसे बड़ा हूँ... पर मेरे गॉड फादर तो आप ही हैं...
विक्रम - लीव इट... अभी वह बताओ... जो कहने आए हो...
महांती - सर... छोटे राजा जी पर जो हमले हुए हैं... वह हमले में कुछ तथ्य सामने आए हैं...

यह सुन कर विक्रम अपनी कुर्सी पर सीधा हो कर बैठ जाता है,

विक्रम - क्या पता चला है... कौन है इसके पीछे
महांती - सर इसके पीछे कौन है... यह तो अभी तक पता नहीं चला है... लेकिन जो भी पता चला है... हम शायद किसी निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं...
विक्रम - ह्म्म्म्म... आगे बोलो...
महांती - सर वह जो शूट आउट हुआ था... तब उनका मेन मोटीव कत्ल तो था नहीं...
विक्रम - पर फोन पर कहा था कि...
महांती - यही के इतना डरायेगा... इतना मज़बूर कर देगा... की छोटे राजा जी खुद अपने लिए मौत मांगेंगे...
विक्रम - हाँ...
महांती - इसका मतलब यह हुआ... वह पहले सनसनी फैलाना चाहता है... फिर दहशत भर देना चाहता है...
विक्रम - हूँ...
महांती - इस काम के लिए उसने बाहर से चार शुटर बुलवाया है...
विक्रम - हूँ....
महांती - पर उन्हें सपोर्ट लोकल मिल रहा है...
विक्रम - व्हाट...
महांती - जी सर... और जिनसे सपोर्ट मिल रहा है... उनका स्टाइल ऑफ वर्क कुछ कुछ हमारे जैसे हैं...
विक्रम - (उछल पड़ता है) व्हाट...
महांती - पर वह लोग हमारे आदमी नहीं हैं...
विक्रम - देखो महांती... अब तुम मुझे कंफ्यूज कर रहे हो...
महांती - नहीं सर...
विक्रम - ठीक है... अब बिना रुके पुरी बात बताओ...
महांती - सर... पहली बात... जो भी है... वह अभी भी बीहाइंड द स्क्रीन है... पर हम सबके दुश्मनों को इकट्ठा कर रहा है... और उन्हें ऑपरेट कर रहा है...
विक्रम - मतलब...
महांती - रॉय ग्रुप सिक्युरिटी सर्विस याद है...
विक्रम - एक मिनट... तुम कहना चाहते हो कि रॉय इसके पीछे है...
महांती - नहीं... वह भी एक मोहरा है... क्यूंकि हमने उसे बर्बाद कर दिया है... इसलिए उनके साथ हो लिया है... इसलिए तो मैंने कहा... उनका स्टाइल कुछ कुछ हमारे जैसे है... क्यूंकि वहाँ पर... गार्ड्स को ट्रेनिंग मैं ही दिया करता था...
विक्रम - ओ... तो अब...
महांती - सर मैंने पिछले कुछ दिनों से... स्टडी कर रहा था... कुछ फैक्ट्स सामने आए हैं... आपको सुरा याद है... जो केके को धमकी दिया करता था... अपने उसे और उसकी माशुका को रंग महल भेज दिया था...
विक्रम - हाँ...
महांती - सर मैंने पता लगाया है... उसका बड़ा भाई कुछ दिन हुए भुवनेश्वर में है... केशव... केशव नाम है उसका...
विक्रम - और तुम यह कहोगे... वह भी मोहरा है...
महांती - यस सर... अभी भी जो असली खिलाड़ी है.. वह... पर्दे के पीछे है... और सबसे खास बात...
विक्रम - क्या...
महांती - वह लोग अब सिर्फ़ छोटे राजा साहब की रेकी नहीं कर रहे हैं... बल्कि भुवनेश्वर में आपके परिवार के सभी लोगों पर नजर रखे हुए हैं... रेकी कर रहे हैं...
विक्रम - व्हाट...
महांती - जी सर...

विक्रम की आँखों में खुन उतर आता है l और गुस्से भरे नजरों से महांती के ओर देखता है l

महांती - सर डोंट वरी... इफ दे आर स्मार्ट... देन वी आर मच स्मार्टर देन देम...
विक्रम - तो हम किसका इंतजार कर रहे हैं...
महांती - सर अगर हम एक्शन लेंगे... तो वह जो पर्दे के पीछे से ऑपरेट कर रहा है... उसका सिर्फ नेटवर्क ही बर्बाद होगा... पर वह सामने नहीं आएगा... वह फिरसे अपना नेट वर्क सेट कर लेगा... सर मैं कहता हूँ थोड़ा और इंतजार करते हैं....
विक्रम - पर महांती... तुमने अभी अभी कहा... उसके आदमी हमारे फॅमिली के हर सदस्य पर नजर रखे हुए हैं...
महांती - सर वह लोग हमारे नजरों में हैं...
विक्रम - हमारी बात तो ठीक है.. पर घर के औरतों पर... इसका मतलब यह हुआ... उसने क्षेत्रपाल परिवार के पुरूषार्थ को ललकारा है...
महांती - युवराज जी... आप... इतने इमोशनल ना होइए...
विक्रम - महांती... अभी अभी युवराणी और राजकुमारी दोनों वह क्या है.... हाँ ओरायन... ओरायन मॉल को जाने वाले हैं...
महांती - सर प्लीज... डोंट बी पैनीक... उस मॉल की सिक्युरिटी हमारे ही अंडर है...
विक्रम - अच्छा महांती... राजकुमार कहाँ हैं... वह दिखाई नहीं दे रहे हैं...
महांती - सर... वह भी ओरायन मॉल में हैं...
विक्रम - क्या... वह और मॉल...
महांती - सर उनके साथ एक लड़की भी है...
विक्रम - लड़की... कौन लड़की...
महांती - सर वही लड़की... जिसे उन्होंने खुद रिक्रूट किया था...

विक्रम मन ही मन सोचने लगता है - हूँ... छोटे राजा जी ठीक कह रहे थे... वह अपना दिल बहलाने के लिए किसी लड़की को साथ लेगा... हम्म... अब क्या होगा उस लड़की का....

महांती - ( विक्रम को कुछ सोचते देख) सर आप फिक्र ना करें.... आपकी फॅमिली के हर मेंबर हमारे निगरानी में हैं... कोई गड़बड़ नहीं होगी...

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अनु देखती है जब से रेडियो पर नंदिनी नाम की लड़की को सुना है तभी से वीर कुछ सोच में डुबा हुआ है, खोया खोया सा है l

अनु - क्या हुआ राजकुमार जी...
वीर - (ध्यान टुटता है) हम्म... नहीं... कुछ नहीं..
अनु - क्या आप... अपने पहचाने जाने से डर रहे हैं.... सच कहती हूँ... मुझे शायद कोई पहचान ले... पर आप बिल्कुल भी पहचाने नहीं जा रहे हैं...
वीर - (अनु की बात सुनकर थोड़ा हँसते हुए) नहीं... मैं उस लड़की... नंदिनी की कही हर बात को याद कर रहा हूँ... या यूँ कहूँ... मैं महसूस कर रहा हूँ...

तभी वही दो लड़के वीर और अनु के पास आते हैं l वीर और अनु उन दोनों को देखते हैं l

वीर - क्या हुआ
एक लड़का - वह... हम... आप दोनों से माफी मांगने आए हैं...
वीर - (उन्हें घुरता है पर कुछ नहीं कहता है)
दुसरा लड़का - वह आपने हमे कहा था... की हम चांस मार रहे थे... वह सच था...
पहला लड़का - वह रेडियो में... सुनने के बाद... हमें जिम्मेदारी और मौका में फर्क़ समझ में आ गया...
दोनों लड़के - सॉरी.. (अनु से) सॉरी... (कह कर वह लड़के चले जाते हैं)
अनु - (उनके जाते ही) वाह... उन नंदिनी जी को मानना पड़ेगा... कितना असरदार है उनकी बातें... उनके परिवार वालों को भी मानना पड़ेगा... कितनी क्रांतिकारी विचार व संस्कार दिए हैं अपनी बेटी को... जरूर उनके भाई होंगे जो मजबुत और नेक इरादों वाले होंगे... हाथ जोड़ कर नमस्कार करना पड़ेगा...
वीर - (हल्के से खांसने लगता है) अब चलें...
अनु - कहाँ...
वीर - कुछ खरीदारी करते हैं...
अनु - ठीक है चलिए...

वीर अनु के साथ जूस मार्ट से निकलता है और इधर उधर देखने लगता है l उसे एक खिलौने की दुकान दिखता है l वह अनु को लेकर वहाँ जाने लगता है l जब दोनों उस दुकान पर पहुँचते हैं कुछ छोटे छोटे बच्चे उनके पास एक रेडक्रॉस डोनेशन बॉक्स लेकर आते हैं l उन बच्चों में से एक छोटी लड़की डोनेशन बॉक्स को वीर के सामने कर देती है l

लड़की - भैया.. कुछ डोनेशन दीजिए ना...

अनु बड़ी उत्सुकता से वीर की ओर देखती है, वीर भी अनु के चेहरे को देखता है l इससे पहले वह कुछ रिएक्ट करती वीर अपना पर्स अनु के हाथ में रख देता है l अनु वीर को हैरान हो कर देखती है l

वीर - (अनु के कान में) घबराओ मत... दे दो... तुम मेरी पीएस हो... मेरी सेक्रेटरी हो... इसलिए ऐसे काम के लिए मेरी पर्स निकाल कर पैसे दे सकती हो... आखिर मेरी इज़्ज़त तुम्हारी इज़्ज़त है....

अनु एक नजर वीर को देखती है और कांपते हुए हाथ से एक दो हजार का नोट निकाल कर बच्चों की डोनेशन बॉक्स में डाल देती है l बच्चे खुशी से उछल कर ताली बजाने लगते हैं l
वह छोटी लड़की खुशी के मारे अनु को खिंच कर नीचे बिठा देती है और अनु के गाल पर किस करती है और अनु भी उसके गालों पर किस करती है l फिर वह लड़की वीर को नीचे खींचती है और वीर को भी किस करती है फिर धीरे से वीर के कान में
- भैया... भाभी बहुत अच्छी हैं... और मीठी भी...

वीर यह सुन कर स्तब्ध हो कर खड़ा हो जाता है l बच्चे वहाँ से दुसरी और चले जाते हैं l वीर अनु से झेंपने लगता है और नजरें नहीं मिला पाता l अनु इशारे से पूछती है l वीर हँसने की कोशिश करते हुए सिर ना में हिलाता है l तभी वह लड़की ऊंची आवाज में पुकारती है
- भैया....

वीर और अनु उस लड़की की तरफ देखते हैं, वह लड़की अपने हाथ के अंगूठे और तर्जनी से ओ बना कर इशारा करती है और फिर हाथ हिला कर बाय कहती है l वीर फ़िर से झेंप जाता है l पर बदले में अनु मुस्कराते हुए उस लड़की को हाथ हिला कर बाय करती है l वीर भी हाथ हिला कर बाय करता है के तभी आगे की ओर से वीर को शुभ्रा और रुप अंदर दाखिल होते हुए दिखते हैं l वह झटपट अनु के हाथ पकड़ कर उसे खिंचते हुए दुसरी तरफ एक्जिट की ओर चला जाता है l

अनु - हम कहीं जाने वाले हैं क्या...
वीर - हाँ... नहीं... आज का काम खतम हो गया... चलो मैं तुम्हें तुम्हारे घर पर छोड़ दूँ...
अनु - इन कपड़ों में... नहीं... मैं घर इन कपड़ों में नहीं जा सकती...
वीर - ठीक है... तुम्हारे कपड़े उसी दुकान पर होंगी... वहाँ पर चेंज कर लेना...
अनु - जी बढ़िया...
वीर - तो चलो फिर...

वीर अनु के हाथ थाम कर खिंचते हुए बाहर ले जाता है l उधर शुभ्रा रूप को लेकर वहीँ फूड एंड रिफ्रेशमेंट फ्लोर आती है l

शुभ्रा - चलो अभी पहले पार्टी करते हैं...
रूप - भाभी... थैंक्स... अच्छा हुआ आप अकेली गाड़ी लेकर आईं... और गुरु काका को वापस भेज दिया...
शुभ्रा - कैसे नहीं आती... जब मुझे मेहसूस हुआ कि तुम्हें मेरी सख्त जरूरत है... तो क्यूँ नहीं आती... आखिर रेडियो पर तुमने मुझे... माँ, सहेली गुरु... नजाने क्या क्या कहा...
रूप - पर मैंने जो भी कहा सच ही तो कहा था... वैसे भाभी... क्या आप अकेली कभी आती हैं... यहाँ पर...
शुभ्रा - अरे नहीं... शादी के बाद...पहली बार आई हूँ... वह भी अपनी ननद के साथ...
रूप - क्या...
शुभ्रा - हूँ...
रूप - तो अब हम जा कहाँ रहे हैं...
शुभ्रा - आइसक्रीम पार्लर...

दोनों एक आइसक्रीम पार्लर में आते हैं और एक खाली टेबल देख कर बैठ जाते हैं l एक वेटर आता है तो शुभ्रा उस पार्लर की सैटर डे स्पेशल दो आइसक्रीम ऑर्डर कर देती है l

शुभ्रा - अच्छा यह बताओ... तुम्हारा प्रोग्राम सबसे बेस्ट प्रेजेंटेशन था... तुम्हें एप्रीसिएशन भी मिला होगा ना...
रुप - बहुतों ने फोन किया.. पर मैंने किसीका फोन नहीं उठाया...
शुभ्रा - क्यूँ...
रुप - भाभी... मैं अंदर से ऐसी एक्सपोजर के लिए तैयार नहीं थी... एक चैलेंज था... इसलिए पार्टीसीपेट किया... वरना...
शुभ्रा - पर क्यूँ रुप... तुमने छोटी सी कहानी में इतना कुछ कह दिया.... मैं चैलेंज के साथ कह सकती हूँ... चाहे देखने वाले हों.. या सुनने वाले... हर कोई स्पेलबउंड हुआ होगा... रॉकी ने भले ही तिकड़म लगाया... पर तुमने भी अपना मौका सही तरीके भुनाया है... रॉकी के लिए इनाम तो बनता ही है...
रुप - आपने सही कहा भाभी... इनाम तो बनता है... और डेफिनेटली मिलेगा... वैसे भाभी...(पार्लर में बैठे सारे कपल्स को देख कर) इन लोगों को देख कर नहीं लगता... इन इवन लोगों के बीच हम ऑड लोग बैठ गए हैं... कोई कोई हमें देख रहे हैं और... घूर भी रहे हैं...
शुभ्रा - हाँ... हैं तो हम ऑड... आखिर यहाँ सब लव बर्ड्स जो बैठे हुए हैं... लेकिन ऑड हम नहीं हैं... सारे लड़के तुम्हारी तरफ देख रहे हैं... और इसलिए लड़कियाँ तुम्हें देख कर जल रही हैं...
रूप - क्या भाभी... यह बात तो आप पर भी लागू होती है...
शुभ्रा - हाँ कह सकती हो... पर ऑड वाला थ्योरी.. वह देख ( एक अधेड़ औरत अपने साथ एक नौजवान के हाथ पकड़ कर खिंचते हुए पार्लर में दाखिल होती है ) बुढ़ी घोड़ी... लाल लगाम... मतलब जवान घोड़ा...
रुप - (उन दोनों को देख कर) भाभी... यह अपने कैसे सोच लिया... के वे लोग भी... लव बर्ड्स हैं... कुछ और भी... मेरा मतलब है कि माँ बेटे भी तो हो सकते हैं ना...
शुभ्रा - नहीं.. बिल्कुल नहीं हो सकते... अगर माँ बेटे होते भी... उन्हें क्या जरूरत पड़ी है... यहाँ पर आने की... तुम जानती हो रुप... मैं तुम्हारे भैया के साथ पार्टियों में क्यूँ नहीं जाती...
रुप - (अपनी गर्दन हिला कर मना करती है)
शुभ्रा - उन पार्टियों में... हाई क्लास सोसाईटी की जो भी औरतें आती हैं.... उनमें एक होड़ लगी रहती है... एक दुसरे से उम्र में कम दिखने की और कम बताने की... कभी कभी लगेगा जैसे अभी अभी पैदा हो कर हस्पताल से आए हैं... उनके बीच डिस्कशन में.. साड़ीयों के प्राइस पर... स्टाइल पर.. गहनों के डिजाईन पर... कीमत पर... होती रहती है... चलो वहाँ तक भी ठीक है... पर शादीशुदा होने के बावजूद... अपने पैसों के दम पर... वह लोग कितनी कम उम्र लड़के के साथ संबंध बनाए... यह सब उनके बीच हॉट टॉपिक होते हैं...
रूप - (हैरान हो कर सुन रही थी) इइइयय... क्या सच में ऐसा होता है...
शुभ्रा - हाँ... और वह औरतें बड़ी बेशरमी के साथ... वह बातें कहते हैं..
रूप - व्हाट....

वह अधेड़ औरत उस नौजवान के हाथ पकड़ कर इन दोनों के बगल वाली एक खाली टेबल पर बैठ जाती है

शुभ्रा - और नहीं तो...(धीरे से) उस औरत को देख कर मुझे तो यही लगता है... वह जरूर हाई सोसाइटी की होगी... और वह लड़का जरूर पैसों के चक्कर में उससे फंसा होगा...
रूप - ह्म्म्म्म... शायद आप ठीक कह रहे हैं...

वेटर दो बड़े कप में आइसक्रीम लाकर रख देता है l दोनों खाना शुरु करते हैं l तभी उसी वेटर को वह अधेड़ औरत आवाज देती है l वेटर उनके पास जाता है l

औरत - (नौजवान से) कहो क्या खाओगे...
नौजवान - कुछ भी... मुझे इन सब पर कोई भी आइडिया नहीं है...
औरत - अरे... कैसे लड़के हो.. आइसक्रीम के बारे में आइडिया नहीं है... कोई नहीं (वेटर से) जाओ बेटे... आज का स्पेशल ले आओ... आज हमारा डेट है भाई..

वेटर उनकी बात सुन कर हँसते हुए चला जाता है l रुप डेट शब्द सुन कर खांसने लगती है l शुभ्रा उसके सिर पर धीरे धीरे चपत लगाती है l

रुप - सुना भाभी...(धीरे से) डेट...

शुभ्रा भी अपनी पलकें झुका कर हामी भरती है l पर तभी

नौजवान - ओ हो.... माँ.. कहीं भी कुछ भी... कभी माँ और बेटे डेट पर जाते हैं क्या... वह वेटर और दुसरे लोग क्या सोचेंगे...

नौजवान की बात सुन कर शुभ्रा को खांसी आ जाती है l रुप उठ कर शुभ्रा के सिर पर धीरे धीरे चपत लगाती है l शुभ्रा थोड़ा गिल्टी फिल करती हुई रूप को देखती है l रुप भी पलकें झपका कर आश्वासन देती है l तभी वह अधेड़ औरत अपनी चेयर से उठ कर पार्लर में सभी लोगों से मुखातिब हो कर

औरत - सुनिए सुनिए सुनिए... अटेंशन प्लीज... यह नौजवान... मेरा बेटा है... ताड़ के पेड़ जितना लंबा हो गया... पर दिमाग खिसक कर इसके घुटने पर आ गया... कह रहा है... माँ बेटे कभी डेट करते हैं क्या... अरे... डेट का मतलब क्या है... दो लोग एक दूसरे को समय देने को ही तो डेट कहते हैं... हैं ना...
कुछ जोड़े - जी हाँ...
औरत - तो अब मैं अपने बेटे के साथ किसी ख़ुशनुमा माहौल में पल दो पल बिताने आई हूँ... क्या गलत है...
सभी - नहीं... बिल्कुल नहीं...
औरत - क्या यह डेट नहीं है...
सभी - जी.. बिल्कुल है...

तभी कुछ ल़डकियों ने उस औरत को पूछते हैं l
- आंटी... वैसे आपके बेटे का नाम क्या है... बड़ा हैंडसम है...

औरत अपने बेटे को खड़ा करती है और उसे गले से लगा कर
- है ना बड़ा हैंडसम... यह मेरा बेटा है... नाम है प्रताप... कैसा है...
लड़कियाँ - वाव... आंटी.. झकास...
प्रताप - (विश्व भी गले लगाते हुए) और यह मेरी माँ...
प्रतिभा - (अलग होते हुए) बस... बस.... चल बैठ...
प्रताप - आपका इंट्रोडक्शन खतम हो गया ना...
प्रतिभा - हाँ...
प्रताप - माँ.. लेकिन इस वक़्त आइसक्रीम खाना बकवास नहीं लग रहा... अभी अगर आइसक्रीम खाए... तो भूक मर जाएगी... फिर खाने के टाइम ठीक से खा भी नहीं पाएंगे... (तभी वेटर आइसक्रीम कप रख देता है)
प्रतिभा - एक कप आइसक्रीम खा लेने से कहाँ भूक मर जाएगी... खाने के टाइम में भी हम जम कर खाएंगे...

दोनों आइसक्रीम खाना चालू करते हैं l शुभ्रा और रुप आइसक्रीम जल्दी जल्दी खतम कर बिल दे कर पार्लर के बाहर चले जाते हैं l

रुप - एक बात तो है भाभी... किसीको देख कर ओपीनियन बना लेना नहीं चाहिए...
शुभ्रा - सच कहा... मैं अपनी कड़वे अनुभवों को आधार बनाकर... माँ बेटे की रिश्ते पर उंगली उठा दी... छी...
रूप - कोई बात नहीं भाभी... पर माँ बेटे की जोड़ी बहुत जबरदस्त थी ना... देख कर मन खुश हो गया...
शुभ्रा - हाँ.... वाकई... अनोखी जोड़ी है..

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वीरअपनी गाड़ी के बाहर इंतजार कर रहा है l अनु उसी दुकान में गई है अपनी सुबह वाली ड्रेस पहनने के लिए l थोड़ी देर बाद अनु अपनी सुबह वाली ड्रेस में वापस आती है l वीर को अब उसकी सादगी में भी अनु बहुत खूबसूरत लगती है l अनु एक पैकेट वीर को देती है l

वीर - यह क्या है अनु...
अनु - जी वह कपड़े... जिससे मैंने भेष बदले थे...
वीर - रख लो...
अनु - नहीं नहीं... दादी पूछेगी तो क्या कहूँगी...
वीर - कुछ भी कह लेना...
अनु - नहीं... मैं नहीं ले सकती...
वीर - हूँ... (एक गहरी सांस छोड़ता है) ठीक है... गाड़ी में डाल दो...

अनु बैक सीट पर वह ड्रेस का पैकेट रख देती है और वीर के बगल में बैठ जाती है l वीर अनु को उसी जगह पर उतार देता है जहाँ से पीक अप किया था l अनु उतर कर जाने लगती है

वीर - अनु... (अनु पीछे मुड़ कर देखती है, वीर वह पैकेट हाथ में लिया हुआ है) ले लोना... प्लीज...

अनु वीर की चेहरे को देखती है फिर धीरे से पास आकर पैकेट ले लेती है और तुरंत मुड़ कर जाने लगती है l

वीर - अनु... (फिर से पीछे मुड़ कर देखती है) फोन पर... खैरियत पूछती रहना...

अनु एक दमकती मुस्कराहट के साथ अपना सिर हिला कर हाँ कहती है l

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शबरी क्रास कॉफी स्टॉल पर रुप बैठी हुई है l शुभ्रा कॉफी लेने काउंटर पर गई है l रुप जिस टेबल पर बैठी है ठीक उसके पीछे वाली टेबल पर रुप की ओर पीठ करके विश्व आकर बैठता है और उसके बगल दाएँ वाली सीट पर प्रतिभा बैठ जाती है l

प्रतिभा - अच्छा अब बता... इतने देर से मॉल में हैं... कोई पसंद आई..
विश्व - माँ... क्यूँ मज़ाक कर रही हो... जो कभी होना ही नहीं है... तुम उसकी उम्मीद क्यूँ पाल रही हो...
प्रतिभा - क्यूँ.. क्यूँ ना पालुँ... मेरी खुशियाँ जिसमें है... उसकी ख्वाहिश भी ना करूँ...
विश्व - पर.... माँ... कोई भी हो... उसे क्या कह कर मेरे लिए तैयार करोगी... (प्रतिभा कुछ नहीं कह पाती) देखा... तुम्हारे पास भी कोई जवाब नहीं है...
प्रतिभा - ठीक है मेरी गलती है... माफ कर दे मुझे...
विश्व - (प्रतिभा की हाथ को पकड़ कर) माँ... मेरी अच्छी माँ... मेरी भोली माँ... मेरी प्यारी माँ... मन छोटा ना करो... वह सेनापति सर... कभी कभी कहते हैं ना... जब जब जो जो होना है... तब तब सो सो होता है...
प्रतिभा - (विश्व की कान को खिंच कर) तु मुझे मनाने में माहिर हो गया है...
विश्व - आह... माँ कान मत खिंचो... लोग देखेंगे तो क्या सोचेंगे...
(इनकी बातचीत सुन कर रुप मन ही मन हँसने लगती है) (प्रतिभा विश्व की कान छोड़ देती है)
प्रतिभा - अच्छा... एक बात बता... हम दोनों कई बार कई जगह गए हैं... ना जाने कितने लड़कियों को देखा है तुने... क्या कभी भी कोई.. तेरे आँखों को भी अच्छी नहीं लगी...
विश्व - माँ... फिर बात को घुमा कर वहीँ ला रही हो...
प्रतिभा - नहीं तो...
विश्व - तो अब क्या कर रही हो....
प्रतिभा - मैंने तुझे इसलिए पुछा... के मान ले... अगर... वह रेडियो वाली नंदिनी कहीं मिली... तो तब... तु क्या करेगा... (रूप अपने बारे में सुन कर कान खड़े कर लेती है)
विश्व - (थोड़ा हँसते हुए) माँ वह रेडियो वाली... अरे माँ... मैं उसे पहचानुंगा कैसे...
प्रतिभा - मान ले... अगर मिल गई.. तो...
विश्व - तो... मैं उनको.. उनके विचार धारा के लिए... साधुवाद दूँगा... उनको... कहूँगा के वह अपनी विचार धारा को कभी ना छिड़े.... और... और... बस इतना ही..
प्रतिभा - बस... इतना ही...
विश्व - हाँ... और क्या करूँगा...
प्रतिभा - हे भगवान... इस लड़के से कुछ नहीं होगा... उठा ले...उठा ले रे देवा... मुझे उठा ले... मगर उससे पहले... मुझे पोते पोतीयों का मुहँ दिखा दे...

यह सुन कर रुप बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी को रोकती है

विश्व - माँ... मैं जा रहा हूँ...
प्रतिभा - कहाँ...
विश्व - काउंटर पर... कुछ ऑर्डर कर ले आऊँ.. तुम्हारे पास बैठा रहा तो पागल हो जाऊँगा..

विश्व मन मन बड़बड़ाते हुए काउंटर पर जाता है, वहाँ शुभ्रा अपनी ऑर्डर की प्रतीक्षा कर रही है l शुभ्रा विश्व को देखते ही झेंप जाती है और एक किनारे हो जाती है l विश्व को बड़बड़ाते देख शुभ्रा उत्सुकता वश विश्व से पूछती है

शुभ्रा - आप किसी को गाली दे रहे हैं क्या..
विश्व - नहीं... नहीं बहनजी नहीं... सॉरी ...अगर आपको ऐसा लगा तो.. उधर देखिए..(शुभ्रा उस तरफ देखती है) वह मेरी माँ है... आपको क्या लगता है... कितनी उम्र होगी उनकी...
शुभ्रा - (प्रतिभा को देख कर, हँसते हुए ) होगी वह कोई पैंतालीस या पचास की...
विश्व - नहीं वह बाहर से ऐसी दिखती है... असल में वह पाँच या छह साल की हैं...
शुभ्रा - (हिचकिचाते हुए) कोई मेंटल डीस-ऑर्डर है क्या...
विश्व - नहीं नहीं... वह अपनी सोसायटी की बड़ी रीनॉउन पर्सन हैं... बस मैं कभी कभी इनके पास आता हूँ... और जब भी आता हूँ... ना जगह देखती हैं ना वक़्त... उनकी बचपना शुरू हो जाती है...
शुभ्रा - हा हा हा.. सॉरी.. बट.. यु बोथ आर ठु गुड...

उधर विश्व के जाने के बाद रुप उन माँ बेटे की बात याद करते हँसी को दबाने की कोशिश में उसकी पर्स गीर जाती है तो पीछे से प्रतिभा वह पर्स उठा कर रुप को वापस देती है l

रुप - थैंक्यू... आंटी..
प्रतिभा - इसमे थैंक्यू की क्या बात है बेटी... क्या अकेली आई हो...
रुप - जी... जी नहीं आंटी...
प्रतिभा - ओ... अपने किसी दोस्त के साथ आई हो...
रूप - नहीं आंटी... मैं अपनी भाभी के साथ आई हूँ...
प्रतिभा - ओ... अच्छा... क्या नाम है तुम्हारा बेटा...
रुप - (कुछ पल के लिए सोच में पड़ जाती है, फ़िर) जी... जी.. मेरा नाम... नंदिनी है...
प्रतिभा - (बहुत खुश होते हुए) क्या... नंदिनी... रेडियो वाली...
रूप - जी.... जी नहीं... आंटी... मैं... कोई रेडियो वाली नहीं हूँ...
प्रतिभा - ओह... कोई बात नहीं बेटा... वह (विश्व को दिखाते हुए) मेरा बेटा है... प्रताप... आज रेडियो में... नंदिनी को सुन कर... बहुत इम्प्रेस हुआ है... इसलिए एक्साइटमेंट पुछ बैठी... बुरा मत मानना...
रूप - जी... जी नहीं आंटी...

फिर रूप सामने की ओर पलट जाती है और देखती है जैसे ही शुभ्रा ऑर्डर किए कॉफी हाथ में लेती है रुप उठ कर वहाँ चली जाती है और इशारे से एक ओर बुलाती है l शुभ्रा रुप के पास चली जाती है l

शुभ्रा - क्या हुआ...
रूप - भाभी... मैं थोड़ी देर वहाँ बैठती तो... वह आंटी है ना... मुझे अपनी बहु बना कर ही दम लेती... एक दम पागल है... पता नहीं उन्हें उनका बेटा कैसे झेलता है...
शुभ्रा - हाँ ठीक कहा... उनका बेटा अभी अभी काउंटर पर मिला था... मैंने उससे... उसकी माँ के बारे में बात की... वह भी उसकी माँ की पागलपन से परेसान है... अब तुम्हारी बात सुन कर उस बेचारे पर तरस आ रहा है... हा हा हा...

रूप भी शुभ्रा के साथ हँसने लगती है l तभी शुभ्रा की मोबाइल बजने लगती है l शुभ्रा अपनी कॉफी ग्लास रुप को थमा कर देखती है विक्रम का कॉल है l

शुभ्रा - हैलो...
विक्रम - आप मॉल पर ही रुकी रहिए... हम थोड़ी ही देर में पहुँच रहे हैं...
शुभ्रा - क्यूँ कोई प्रॉब्लम है क्या...
विक्रम - हाँ... है.. हमारे दुश्मन आप लोगों की रेकी कर रहे थे... अब शायद घेराबंदी कर रहे हैं... पिछली बार छोटे राजा जी पर हमला हुआ था... इसलिए हम कोई रिस्क नहीं ले सकते... हम आ रहे हैं... आप और राजकुमारी हमारी ही ऐसकॉट में घर जाएंगी...
Fantastic update
 
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