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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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Kala Nag

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Shandar update he bhai, bahut hi umda update hai ye, isme pehli baar comedy aai aapki story me....
Kisi dushman ke aane ki aahat lag rahi hain

Waiting for the next update
प्रत्युष वाले अपडेट में भी थोड़ी बहुत कॉमेडी थी.... पर इसबार कॉमेडी में प्रतिभा विश्व और शुभ्रा के साथ रुप भी है

विलेन कोई भी हो पर वह भैरव सिंह क्षेत्रपाल से ज्यादा खतरनाक तो हो नहीं सकता
 

Rajesh

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👉पंद्रहवा अपडेट
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शाम ढल चुकी है, रात परवान चढ़ रही है l एकाम्र रिसॉर्ट को दुल्हन की तरह सजा दी गई है l रौशनी से रिसॉर्ट जग मगा रहा है l अंदर मेहमान आने शुरू हो गए हैं l सारे मेहमानों को महांती के साथ KK बाहर खड़े हो कर स्वागत कर रहे हैं और अंदर पिनाक नौकरों को सबको ठंडा गरम पूछने को हिदायत दे रहा है l विक्रम और वीर एक जगह पर बैठे हुए हैं l
विक्रम - क्या बात है.... राजकुमार.... तुम कब सुधरोगे.... राजकुमार हो... राजकुमार जैसे दिखो तो सही.... सिर्फ धौंस ज़माने के लिए राजकुमार वाला एटिट्यूड दिखाने से क्या होगा..... कपड़ों से और चेहरे से वह रौब और रुतबा झलकना चाहिए....
वीर - अब आप भी... छोटे राजाजी की तरह बोलने लगे....
विक्रम - तो क्या गलत बोलते हैं... छोटे राजाजी...
वीर - xxxxxxx
विक्रम - पार्टी हम दे रहे हैं... हमारे रौब और रुतबा भी अनुरूप होना चाहिए....
वीर - xxxxxxx
विक्रम - राजकुमार जी...
वीर - युवराज जी.... मैं समझ रहा हूँ... चूंकि आपको बोर लग रहा है... इसलिए आप मुझे पका रहे हैं....
विक्रम - xxxxxxx
वीर - आप मुझे समझा नहीं रहे हैं.... बल्कि खीज निकाल रहे हैं....
विक्रम - xxxxxx
वीर - क्या बात है युवराज..... लगता है... आपके दिल में कोई बात है....
विक्रम वहाँ से उठ कर चला जाता है l वीर उसे जाते हुए देखता है l
"राजकुमार" आवाज़ सुन कर वीर पलट कर देखता है l पिनाक उसे इशारे से बुला रहा है l वीर अपने जगह से उठता है और पिनाक के पास जाता है l
वीर - क्या हुआ... छोटे राजा जी.... नौकर चाकर मर गए क्या.... आपको आवाज़ दे कर बुलाना पड़ रहा है.....
पिनाक - कुछ खास लोगों से पहचान करवानी थी.... इसलिए आवाज़ दे कर बुलाया आपको.... इनसे मिलिए... यह हैं छत्तीसगड से रायगड़ के राजा हैं भास्कर सिंह जुदेव....
वीर - प्रणाम... महाराज...
भास्कर - यशस्वी भव... राजकुमार... क्या कर रहे हैं आज कल...
वीर -( एक गहरी सांस लेने के बाद) एम कॉम फाइनल ईयर में हूँ... स्टूडेंट्स यूनियन प्रेसिडेंट हूँ और अभी जो सेक्यूरिटी सर्विस देख रहे हैं अपने इर्द गिर्द मैं उस संस्थान में CEO हूँ...
भास्कर - वाव... ग्रेट.. इतनी सी उम्र में... इतना कुछ..सम्भाल रखा है आपने... वैसे आप इंडिया में क्यूँ पढ़ाई कर रहे हैं.... फॉरेन में क्यूँ नहीं की.....
वीर - (पिनाक पर एक नजर डालने के बाद) अपनी मिट्टी से दूर होने से लोगों के बीच रौब और रुतबा कम हो जाता है....
भास्कर - ठीक.. ठीक... वाह छोटे राजा जी... आपका राजकुमार तो हीरा है..
पिनाक-कोई शक़...
भास्कर - वैसे राजकुमार... मानना पड़ेगा आपके ESS गार्ड्स को.... मैं इस साल झारसुगड़ा में मित्तल ग्रुप के फंक्शन में गेस्ट बन कर गया था... वहीँ पर ESS कमांडोज की डेमॉनस्टेशन देखा था... वाकई किसी भी सरकारी कमांडोज को मात दे सकते हैं....
वीर - शुक्रिया... महाराज जी...
भास्कर - अरे छोटे राजा जी यह राजा साहब कब आयेंगे...
पिनाक - राजा साहब वक्त के साथ नहीं... वक्त राजा साहब के साथ चलता है... घड़ी में कुछ ही सेकंड रह गए हैं... यकीन मानिये... राजा साहब पहुंच ही जायेंगे...
इतने में सभी गार्ड्स मैन गेट के तरफ भागते हैं, एक सफेद रंग की रॉल्स रॉयस आकर रुकती है, जिस पर 0001 का नंबर लिखा हुआ है l जब सारे गार्ड्स अपनी पोजीशन ले लेते हैं तभी भैरव सिंह गाड़ी से उतरता है l KK उसकी गाड़ी का दरवाजा खोलता है l
भैरव सिंह अकड़ और गुरूर के साथ पहनावे को ठीक करते हुए लॉन में बने पंडाल की बढ़ने लगा l सब मेहमान उसे ही देख रहे हैं l पंडाल पर पहुंच कर सीधे अपनी कुर्सी पर बैठ गया l किसीको कोई अभिवादन नहीं किया ना ही किसीको हाथ उठा कर नमस्ते किया l पर सभी मेहमान उसे सम्मान के साथ बधाई भी दे रहा था l पिनाक भास्कर को लेकर पंडाल की ओर बढ़ गया l वीर जा कर विक्रम के पास खड़ा हो गया l
वीर KK को भाग दौड़ करते हुए देख कर विक्रम को कहा - युवराज जी इस पार्टी में होस्ट कौन है और घोस्ट कौन... पता ही नहीं चल रहा है...
विक्रम - ह्म्म्म्म....
पंडाल में पहले दीप प्रज्वलन किया जाता है l फ़िर ग्यारह ओड़िशी नर्तकियाँ मंगला चरण नृत्य प्रस्तुत करते हैं l
विक्रम अपनी जगह से निकला और एक वेटर से दो शराब की बोतल ले कर कहीं बाहर चला जाता है l वीर उसे जाता देख कर उसके पीछे चला जाता है l विक्रम रिसॉर्ट के एक तरफ़ जहां एक नकली झरना बना हुआ है उसके तालाब के किनारे जा कर बैठ जाता है और एक बोतल खोल कर सीधे गटक ने लगता है l उसे देख कर वीर भाग कर जाता है और कहता है
वीर - यह क्या कर रहे हैं राजकुमार... ऐसे रॉ पियेंगे तो लिवर जल जायेगा...
विक्रम - (आधी बोतल गटकने के बाद) जले हुए को क्या जलायेगा...
वीर - युवराज जी... यह आप अपनी ऐसी हालत क्यों बना रखी है...
विक्रम - (उसे देखते हुए ) जानते हो राज कुमार हम दोनों का रिस्ता क्या है....
वीर - हम... भाई हैं... क्षेत्रपाल परिवार के वारिस हैं...
विक्रम - फिर तुम्हें मैं राजकुमार क्यूँ कह रहा हूँ... और तुम मुझे युवराज....
वीर - xxxxxx
विक्रम - क्यूंकि हमे बचपन से यही दिव्य और ब्रह्म ज्ञान दिया गया है... यही पहचान है घर दुनिया के लिए और हर रिश्तों के लिए....
वीर इस बार भी चुप रहता है और विक्रम के पास बैठ जाता है l
विक्रम - हमे यही सिखाया गया... कभी किसीके आगे मत झुकना.... अभी तुमने देखा ना... सब राजा साहब को हाथ जोड़ रहे थे... बधाई दे रहे थे... पर राजा साहब किसीको ना अभिवादन किया... यही उन्होंने हमे विरासत में दी है....
जिसकी वजन के नीचे हमारी आपसी रिश्ते दम तोड़ चुकी हैं..... हम राजा साहब की धौंस को सब पर थोप रहे हैं... यही हमे सिखाया गया है... कोई हमे पहचाने या ना पहचाने पर सबके मन में राजा साहब का डर होना चाहिए... और हमे यह रेस्पांसीबिलीटी दी गई है... के हम राजा साहब की खौफ को जन जन तक पहुंचाए.....
विक्रम बोतल उठाकर उसे खाली कर देता है और खाली बोतल को फेंक देता है l
मैंने उसे टूटकर चाहा.... इतना चाहा कि.... राजा साहब के इच्छा के विरुद्ध जा कर शादी भी की... पर ना उसका प्यार मिला ना उसका दिल जीत सका....
जानते हो.... राजा साहब भी शादी के लिए तैयार क्यूँ हुए.. क्यूंकि उसकी पिता जगबंधु सामंत सिंहार का पार्टी में राजा साहब से भी बड़ा और जबरदस्त रुतबा था.... इसलिए मजबूरी में शादी को राजी हुए.... पर अकड़ देखो ऐसा जैसे किसीके आगे नहीं झुकते....
हम झूट और नकली जिंदगी जी रहे हैं....

वीर विक्रम के कंधे पर अपना हाथ रखता है l विक्रम भी अपना एक हाथ कंधे पर ले कर वीर के हाथ पर रख देता है.
मैं हर सुबह एक आस लिये उठता हूँ... के एक बार... हाँ एक बार... उसकी आँखों में अपने लिए सिर्फ एक बार चाहत देखूँ... उसके लिए मैं कई मौतें मरने के लिए तैयार भी हूँ... पर हर शाम सूरज की तरह मेरी आस भी डूब जाती है... फिर एक नई सुबह के इंतजार में....
उसके और मेरे बीच एक समंदर के जितना फासला है.... उस समंदर के जितना मेरे दिल में उसके लिए प्यार है.... हाँ यह बात और है कि उसी समंदर के जितना मेरे लिए उसके दिल में नफरत है....
विक्रम और एक बोतल खोलता है, वीर उसे रोकने की कोशिश करता है तो विक्रम उसके हाथों को छिटक देता है, और फ़िर बोतल को अपने मुहँ से लगा कर कुछ घूंट पीता है l
विक्रम - राजा साहब उसे बहु नहीं मानते.... भले ही उसे उपर से कभी कभी बहु बुलाते हैं... वह राजगड़ में नहीं रह सकीं तो हम भुवनेश्वर आ गए... और यहाँ हम इतने बड़े घर में सिर्फ़ चार लोग रहते हैं.. हमारी अपनी अपनी चारदीवारी है... पर उस घर में हम एक दूसरे से पीठ किए खड़े हुए हैं और जुड़े हुए हैं....
मैं... भगवान को नहीं मानता, क्यूँकी हम राक्षस हैं.... शायद राक्षस भी बहुत छोटा हो जाएगा हमारे कर्मों के आगे....
तुम पूछ रहे थे ना मैं क्यूँ रंग महल नहीं जा रहा हूँ.... रंग महल में हम क्या बन जाते हैं... हमारे बीच क्या कोई रिस्ता रहता भी है... शराब, कबाब और औरत को वहाँ हम आपस में ऐसे बांटते हैं जैसे भेड़िये गोश्त को आपस में बांटते हैं....
मैं ऊब गया हूँ... इन सब चीजों से.... मेरा इन सबमें ना.... साचुरेशन लेवल पर आ गया है.... हम क्षेत्रपाल हैं... कभी राम की राह पर नहीं चल सकते हैं.... और रावण भी छोटा लगने लगता है... ऐसे कर्म करने लगे हैं....
बस एक ही ख्वाहिश है... एक मुस्कान उसके चेहरे पर, वह भी अपने लिए... एक बार देख लूँ... पर यह अब कभी मुमकिन नहीं होगा...
शादी के फोरॉन बाद जब मुझे पता चला...... कि वह माँ बनने वाली है... तब मैंने कसम खाई की उसके कदमों में दुनिया की हर खुशी ला कर रख दूँ... मैं उस दिन सहर के एक दुकान से सारे खिलौने ख़रीद कर घर ले आया था... पर उसी दिन मुझे मालूम हुआ... उसने मेरे बच्चे को गिरा दिया है....
यह कह कर विक्रम की रुलाई फुट पड़ती है, और वीर यह नई बात जान कर बहुत हैरान हो जाता है l रोते रोते विक्रम बेहोश हो जाता है l वीर अपने चारो तरफ देखता है, कोई उनके तरफ नहीं देख रहा है, शायद उन पर किसीका ध्यान ही नहीं है l वीर विक्रम को अपने कंधे पर उठा कर अपनी गाड़ी के पिछले सीट पर सुला देता है और चारों तरफ नजर दौड़ाता है, सभी लोग पार्टी में इंजॉय कर रहे हैं l वीर गाड़ी की ड्राइविंग सीट पर बैठ जाता है और गाड़ी स्टार्ट कर रिसॉर्ट से निकल कर घर की ओर चल देता है l आज विक्रम के बारे में कुछ ऐसा मालूम हुआ है जो उसके दिमाग को हिला कर रख दिया है l वह सोचने लगता है - "युवराज और शुभ्रा भाभी जी के बीच संबंध इतने खराब हैं.... युवराज जी कितने बहादुर हैं, मजबूत हैं... पर अंदर से इतने टूटे हुए.... युवराज जी प्यार करते हैं... टूट कर चाहते हैं.. शुभ्रा भाभी जी को... उनकी एक मुस्कराहट के लिए खुद को मिटा सकते हैं... ऐसा कह रहे थे.... क्या कोई ऐसा कर सकता है..
ओह ऊफ मैं क्यूँ ऐसा सोच रहा हूँ....
नहीं... नहीं
ऐसे सोचते सोचते घर पहुंच जाता है l गाड़ी को पार्क कर पिछला दरवाजा खोलता है, विक्रम गाड़ी से निकाल कर अपने कंधे पर डाल कर घर दरवाजे पर पहुंचता है और बेल बजाता है l एक नौकर दरवाजा खोलता है और किनारे खड़ा हो जाता है l वीर विक्रम को ले कर उसके कमरे में बेड सुला देता है और अपने कमरे की बढ़ जाता है l जैसे ही अपने कमरे का दरवाज़ा बंद करने को होता है तो देखता है कि विक्रम के कमरे की ओर शुभ्रा को जाते हुए l वीर चुपके से विक्रम के कमरे के बाहर खड़े हो कर अंदर देखता है l कमरे के अंदर शुभ्रा विक्रम के जुते उतार देती है, और बिस्तर पर विक्रम को सही दिशा में सुलाती है फिर उसके ऊपर चादर ओढ़ देती है l शुभ्रा जैसे ही मुड़ती है, वीर दबे पांव में वापस अपने कमरे में वापस आ जाता है और शुभ्रा को विक्रम के कमरे से निकल कर जाते हुए देखता है, शुभ्रा के जाते ही वीर भी अपने कमरे का दरवाजा बंद कर अपने बिस्तर पर गिर जाता है l उसे रह रह कर विक्रम की कही सारी बातेँ याद आ रही है l वह अपने बिस्तर पर बैठ जाता है, इधर उधर नजर दौड़ाने लगता है, उसे उसकी टेबल पर एक पेन स्टैंड पर पड़ती है जो एक क्रिकेट के बल के डिजाइन की थी, उस बॉल नुमा पेन स्टैंड को देखते ही उसे अनु और अनु के हाथ में दो स्माइली बॉल याद आ जाती है l अनु के याद आते ही वीर के होठों पर मुस्कान आ जाती है l वह एक तकिया को सीने से लगा कर अनु को याद करते हुए अपनी आँखे मूँद लेता है l
सुबह नौ बजे वीर की आँखें खुलती हैं तो वह हड़बड़ा कर उठ जाता है l जल्दी जल्दी बाथरूम में फ्रेश हो कर अच्छे कपड़े पहन कर, कंघी कर नीचे दौड़ते हुए उतरता है l डायनिंग टेबल पर सिर्फ विक्रम बैठा था जो दोनों हाथों से अपना सर पकड़ कर बैठा हुआ है, और उसके सामने नींबू पानी का ग्लास रखा हुआ है l विक्रम जैसे ही वीर को देखता है पूछता है - कहाँ चल दिए... राजकुमार जी...
वीर - जी ऑफिस...
विक्रम - ऑफिस....(एक नौकर को इशारा करते हुए) इनके लिए भी निंबु पानी के तीन ग्लास लेकर आओ...
वीर - युवराज जी... आप शायद भूल रहे हैं... कल शराब आपने पी रखी थी... मैं नहीं...
विक्रम - पर नशा आपको हुआ है... राजकुमार जी...
वीर - जी नहीं...
विक्रम - जी हाँ...
वीर - कैसे....
विक्रम - आज सन डे है...
वीर - क्या.... ओ... हाँ... वह मैं... कुछ इंस्पेक्शन करना था इसलिए ऑफिस जा रहा था....
विक्रम - ओ... अच्छा.. ठीक है... जाओ...
वीर - नहीं... आप अगर मना कर रहे हैं... तो नहीं जाता हूँ...
विक्रम - मैंने कब मना किया....
वीर - अभी आपने किया ना.... युवराज जी आपको नशा बहुत जोर का हो गया है.... (नौकर को) ऐ अच्छे से युवराज जी को नींबू की पानी देना... हाँ...
कह कर वीर अपने कमरे की ओर चला जाता है

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तापस ट्रैक शूट पहन कर अपने बैठक में बैठे अख़बार पढ़ रहा है, और प्रतिभा किचन में व्यस्त है, कॉलींग बेल बजती है l
तापस - अरे जानेमन जाने जिगर, जरा ध्यान दो इधर... लगता है कोई आया है... ना जाने क्या खबर लाया है....
प्रतिभा अपने हाथ में एक बेलन लेकर आती है, उसे बेलन की अवतार में देख कर तापस टी पोय पर अखबार रख देता है l
तापस - माँ गो बेलन धारिणी...
जगदंबे तारिणी क्षमा क्षमा
मैं जाता हूँ दरवाजा खोलता हूँ आप रसोई में जाएं हमारे लिए बिना शक्कर वाली चाय लाएं...
प्रतिभा - हो गया आपका...
तापस - हाँ.. हाँ.. वैसे दो चाय लाना...
प्रतिभा - ठीक है...
तापस दरवाजा खोलता है और सामने खान को देख कर
तापस - वाह क्या बात है... वह आए हमारे क्वार्टर में उनकी मेहरबानी और खुदा की कुदरत है...
कभी हम उनको और अपने फटीचर क्वार्टर को देखते हैं....
खान - हा हा हा हा... इरशाद इरशाद...
तापस और खान दोनों बैठक में आते हैं l तापस खान को बैठने का इशारा करता है l खान सोफ़े पर बैठ जाता है l प्रतिभा ट्रे में दो चाय के कप के साथ अंदर आती है l
प्रतिभा - कैसे हैं खान भाई...
खान - नमस्ते भाभी...
प्रतिभा - यह लीजिए चाय... गरमा गरम.. वह भी बिना चीनी के....
खान - वाह भाभी... आपको तो सब याद है...
प्रतिभा - कैसी बात कर रहे हैं... खान भाई... मलकानगिरी में तीन साल हम आपस में पड़ोसी थे....
और आज आपके बहाने से यह भी आज जाफरानी पुलाव खाने वाले हैं....
सब एक साथ हंसते हैं l प्रतिभा वापस किचन में चली जाती है l खान अपने कोट के भीतरी जेब से एक फाइल निकाल कर टीपोय के ऊपर रखता है l फिर धीरे धीरे चाय पीते हुए तापस को देखने लगता है l तापस फाइल पर एक नजर डालकर मजे में चाय पीने लगता है l चाय खतम होने के बाद तापस कप टी पोय पर रख देता है और खान भी अपना कप रख देता है l
तापस - भाई मेरे... मुझ पर ही पुलिसिया तकनीक आजमाओगे...
खान - मतलब तुम जानते हो मैं क्या जानकारी चाहता हूँ...
तापस - देखो तुम मेरे बारे में अच्छे तरह से जानते हो और मैं तुम्हारे बारे में.... तुम्हारे मन में उत्सुकता है... तो जानकारी लो और मिटाओ.... माना कि अब तुम जॉब में हो और मैं नहीं हूँ.... पर हमने कोई क्राइम तो नहीं कि है.... जिस देश का कानून... फांसी की सजा पाने वाले को भी शादी की परमिशन देता हो... उस कानून का मुहाफीज रहा हूँ... और हमने कोई गुनाह नहीं किया है... यह तुम भी जानते हो...
खान - हाँ... मैं बस तुम्हारा कॉन्फिडेंस देखना चाहता था....
खान अपनी जगह से उठता है और कहता है - सेनापति... हम ट्रेनिंग मेट थे... कुछ जगहों में मिलकर काम किया है... हमने नक्सल प्रभावित इलाकों में साथ साथ कुंभींग ऑपरेशन को अंजाम दिया है... बस आखिरी के दस साल तुमसे दूर रहा... पर फिर भी इतना तो कह ही सकता हूँ... तुम्हें गुनहगारों से कितनी नफरत है... इसलिए जब जैल में जाना कि तुम्हें एक कैदी जो कि एक सजायाफ्ता मुजरिम है... उससे लगाव हो गया है... बल्कि उसकी पढ़ाई का भी ध्यान रख रहे हो... और तो और भाभी उसे अपना बेटा मानतीं हैं... तब से दिल में तुम्हारे और उस विश्व प्रताप के बारे में जानने की जिज्ञासा है.... मुझे लगता है... तुम मुझे यह सब बता सकते थे... पर बताया नहीं... क्यूँ...
तापस - उसे ज्ञान फ़ालतू में देना नहीं चाहिए.... जिस के मन में जानने की इच्छा ना हो... इसलिए दोस्त होने के बावजूद जब तक तुमने जानने की इच्छा नहीं की... तब तक मैंने बताने की जरूरत नहीं समझी...
खान - तो अब...
तापस - बताऊँगा जरूर... पर पहले कुछ विषयों पर और तथ्यों पर विमर्ष कर लें....
खान - (सोफ़े पर बैठते हुए) ठीक है....
तापस - हाँ तो पहले यह बताओ... तुमने क्या पता किया और क्या जानना चाहते हो...
खान - पता क्या करना है... मेरे सबअर्डीनेट, कॉलीग सब कहते हैं.... विश्वा ज़रूर बेकसूर है...
तो सवाल है.. अगर बेकसूर है तो.. कोर्ट में रि हियरींग पिटीशन की अर्जी क्यूँ नहीं दी.....
मेरा यार और उसकी बीवी दोनों ही कानून के सिपाही हैं, मुहाफिज हैं.. और तो और जिनके मजबुत दलीलों के दम पर विश्वा सजायाफ्ता है... मेरी भाभी जी उसे अपना बेटा मानते हैं...
वह BA इम्तिहान के लिए पैरॉल में बाहर जाता रहा... उस वक़्त उसके लिए पैरॉल का इंतजाम जयंत चौधरी नामक वकील करता रहा था... उसे जब ट्रेस किया तो पता चला... वह असल में पोलिटिकल सुपारी किलर और ईस्टर्न बेल्ट अंडरवर्ल्ड डॉन डैनी का वक़ील था... अब यहां मैं कैसे मान लूँ की विश्वा बेकसूर रहा होगा... जिसका पैरॉल एक डॉन का वकील कर रहा हो.... सब कहते हैं कि उसने आज से साढ़े चार साल पहले जैल में जो दंगा हुआ था... उसमें तुम्हें और दूसरे पुलिस वालों को बचाया था.... जबकि तुमने खुद रिपोर्ट बनाया है... दंगो में पुलिस व मुज़रिमों की बीच मुठभेड़ हुई थी.... जिससे पुलिस की तरफ से बाषठ राउन्ड गोलियां चली और सारे हथियार बंद अपराधी मारे गए थे....
हाँ और एक बात... एक लड़की जैल विजिटर लिस्ट में वैदेही नाम है उसका... वह आती थी सिर्फ तुमसे मिलकर चली जाती थी... पर जब से भाभी विश्वा से जैल में मिलने गई... उसके बाद वह फिर कभी जैल नहीं गई....
विश्वा जैल में रहकर लॉ किया.... सारा इंतज़ाम उसके लिए भाभी जी ने की.... और तो और (कहकर एक लिफ़ाफ़ा निकाल कर टेबल पर रखते हुए) AIBE इम्तिहान के लिए स्टेट बार काउंसिल से रजिस्ट्रेशन और रिकॉमेंडेशन भी जरूर भाभी ने कराई होगी.... आखिर वे स्वयं भी बार काउंसिल में पोस्ट पर हैं.... अब यह जानने के बाद... किसका सिर नहीं चकराएगा....
तापस - ह्म्म्म्म... खान लगता है... आज तुम सिर्फ दुपहर का खाना ही नहीं.... रात का खाना खा कर ही जाओगे....
खान - ह्म्म्म्म... तो.. फ़िर..
तापस अब सोफ़े से उठता है और अपने बैठक के दीवार पर लगे ओड़िशा के मानचित्र के सामने खड़ा होता है l
तापस - खान..... यह मैप अपना राज्य ओड़िशा की पोलिटिकल मैप है.... क्या तुम मुझे यशपुर या राजगड़ दिखा सकते हो....
खान अपनी जगह से उठ कर तापस के बगल में खड़े हो कर मैप देखने लगता है, फ़िर अपना सर हिला कर ना में इशारा करता है l
तापस - ठीक है... कम से कम यह तो दिखा सकते हो... कहाँ हो सकता है....
खान केंदुझर, देवगड़ और सुंदरगड़ के सीमा पर हाथ रख देता है l
तापस - ठीक... अच्छा यह बताओ तुम राजगड़ के बारे में क्या जानकारी रखते हो...
खान - ज्यादा कुछ नहीं... बस ओड़िशा के राजनीति में जो परिवार अपना दबदबा और दखल रखता है... वह इसी क्षेत्र से आते हैं...
तापस - बिल्कुल सही... कभी सोचा है... एक जगह जिसे मानचित्र में ढूंढे तो नहीं मिलती मगर... ऐसी जगह से आने वाला एक परिवार राज्य की राजनीति में इतना प्रभाव या दखल रखती है.. कैसे और क्यों...
खान - नहीं... कभी.. सोचा नहीं... या यूँ कहूँ कभी ज़रूरत ही नहीं पड़ी....
तापस - ह्म्म्म्म... कभी मेरी सोच भी तुम्हारी ही तरह थी.... पर तब तक.... जब तक विश्व से नहीं जुड़ा था... (खान के तरफ देख कर) आओ अब सोफ़े पर बैठते हैं.....
दोनों आकर सोफ़े पर बैठते हैं l
तापस - खान.... मैं जानता हूं... तुम्हें कोई हैरानी नहीं हुई होगी... जब मैंने तुमसे राजगड़ के पूछा...
खान - नहीं... क्यूंकि मैंने विश्व की फाइल पढ़ी है... वह राजगड़ से है और तुमनें इसलिए राज़गड़ का जिक्र छेड़ा है...
तापस - हाँ... अब कहानी पर आने से पहले... तुम क्षेत्रपाल परिवार के बारे में क्या जानते हो....
खान - (अपना सर ना में हिलाते हुए) नहीं.. कुछ भी नहीं जानता...
तापस - तो तुम पहले इस राजवंश के बारे में सब कुछ जान लो.... फिर मेरी कहानी और भावनाओं को समझ सकोगे....

तापस फ़िर से सोफा छोड़ कर खड़ा होता है, फिर ओड़िशा के मानचित्र के सामने आकर रुक जाता है l कुछ बातेँ हैं जो ओड़िशा को भारत में स्वतंत्र पहचान देती है,अगर सही मानों में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लोगों की सशस्त्र संग्राम की बात करें तो पहली बार 1803 पाइक विद्रोह था भारत का पहला स्वतंत्रता विद्रोह.... पहली भाषा भीतिक राज्य बना ओड़िशा 1936 में.... यहाँ तक रसगुल्ला ओड़िशा का है जो रथयात्रा के बाद लक्ष्मी जी भोग लगाया जाता है... वह ओड़िशा का है.... जिसका इतिहास में ग्यारहवीं शताब्दी में स्पष्ट जिक्र मिलता है और जिसे हाल ही में जियो इंडेक्स का सर्टिफिकेट भी मिला है....
खान - हाँ मैं जानता हूँ... पर इस कहानी में इन सबका क्या काम है....
तापस - जब भोई राजवंश की अगुवाई में सन 1795 से 1803 तक जो पाइक विद्रोह हुआ... उस विद्रोह को दमन करने के लिए पाटना से इस्ट इंडिया के ईस्टर्न रेजिमेंट जब आज के यशपुर के रास्ते खुर्दा जाती थी... तब उनकी असलहा, बारूद व रसद सब लूट ली जाती थी... और वह ग्रुप कोई आम नागरिक का ग्रुप नहीं था... बल्कि डकैतों का गिरोह हुआ करता था... अब अंग्रेज अपने कुट नीति के जरिए उस डकैतों के सरदार के पास सुलह के लिए संदेश भेजा...
उनकी सुलह वाली मीटिंग में यह तय हुआ आज का यशपुर प्रांत के ढाई सौ गांव को उस डाकुओं के सरदार यश वर्धन सिंह को दे दिआ जाएगा.. और उन्हें एक राजा का मान्यता दी जाएगी....
यह डील पक्की होते ही यश वर्धन के ग्रुप अंग्रेजों के साथ दिया.... और ओड़िशा के पतन के साथ एक नए राजवंश सामने आया....
चूंकि वह इलाक़ा बियाबान, बीहड़ व जंगलों से भरा हुआ था... इसलिए ओड़िशा के पतन के बाद वह इलाक़ा अंग्रेजों के काम की नहीं थी.... पर यश वर्धन के काम की थी... उसने अपने नाम के अनुसार उस प्रांत के नाम "यशपुर" रखा... और जहां महल बनाया उस इलाके का नाम राजगड़ रखा... चूंकि अब यश वर्धन राजा था... इसलिए दूसरे राजाओं की तरह उसने भी अपने वंश के लिए एक नया सरनेम जोड़ा "क्षेत्रपाल"... यह है इस राज वंश की आरंभ की कहानी.... अंग्रेजों ने क्षेत्रपाल की राज पाठ व झंडा को मान्यता दे दी...
खान - ठीक है... पर विश्व से उस राजवंश का क्या संबंध...
तापस - बताता हूँ...आजादी के बाद जब भारत में लोक तंत्र के लिए चुनाव कराए जाने लगे, तो जाहिर है यश पुर इससे अछूता नहीं रह सका... तब सारे राज पाठ भारत में खत्म किए जा रहे थे.... इसलिए शासन दंड को हाथों में रखने के लिए.... यश पुर के तत्कालीन राजा सौरभ सिंह क्षेत्रपाल भैरव सिंह क्षेत्रपाल के परदादा जी ने भी चुनाव लड़ने का निश्चय किया.... तब राजगड़ के एक स्कूल शिक्षक लंबोदर पाइकराय लोक तंत्र की मंत्र व शक्ति को लोगों तक पहुंचाने के लिए कमर कस ली... वे चुनाव में सौरभ सिंह के खिलाफ़ लड़े.... नतीज़ा.... लंबोदर भारी मतों से जीत दर्ज की.....
राजा सौरभ सिंह को अंदाजा नहीं था के लोग उसे हरा देंगे.... उसकी हार पूरे यशपुर पर अभिशाप बन कर टूटा... सौरभ सिंह ने हार की शर्म के मारे आत्म हत्या कर ली... उस दिन लोग लंबोदर के जीत के साथ राज साही से आजादी की जश्न दिन भर मनाते रहे.... फ़िर आई वह काली रात.... जिसकी सुबह आज तक यश पुर वाले नहीं देखे हैं... (इतना कह कर तापस थोड़ी देर चुप रहा) उस रात सौरभ सिंह का बेटा रुद्र सिंह क्षेत्रपाल का अहम तांडव बनकर पूरे राज गड़ में नाचा.... रुद्र सिंह अपने सारे लोगों को इकट्ठा किया और सबसे पहले लंबोदर पाइकराय को पूरे राजगड़ में घोड़ों से बाँध कर गली गली खिंचा... फ़िर उसके बीवी और बहनों को उठा कर ले गया.... पाइकराय परिवार के सारे मर्द उस रात मारे गए.... और औरतों का बलात्कार होता रहा... तुम्हें शायद यकीन ना आये... उन औरतों से जनम लेने वाली ल़डकियों के साथ भी वही सलूक किया जाता रहा.... कुछ देर पहले तुमने वैदेही का जिक्र किया था ना.... यह वैदेही क्षेत्रपाल व पाइकराय परिवार की अंतिम बायोलॉजीकाल पीढ़ी है....
खान - या.. अल्लाह... (अपने दोनों हाथों से अपना चेहरा ढक लिया)
तापस - मैंने तुम्हें उस परिवार की इतिहास इसलिए बताई... ताकि तुम उसे वर्तमान से जोड़ कर देख सको...
Bahut hi behtareen update hai bhai
 
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सेंट्रल जैल
सुपरिटेंडेंट कैबिन

विश्व - क्या मैं अंदर आ सकता हूँ...
खान - आओ विश्व आओ... यार तुम अब सिर्फ़ महीने भर के लिए मेहमान हो... परमीशन लेने की कोई जरूरत नहीं है...
विश्व - सर यह ऑफिस है... यहाँ पर मिनिमम डेकोरम तो मेंटेन करना ही चाहिए...
खान - हर सवाल का जवाब... तुम्हारे पास तैयार रहता है...
विश्व - (कुछ नहीं कहता है, बस एक फीकी मुस्कान मुस्करा देता है)
खान - विश्व... एक बात पूछूं...
विश्व - जी...
खान - तुम आखिरी बार... कब हँसे थे...
विश्व - (थोड़ा असमंजस हो जाता है) (फिर थोड़ा संभल कर) पता नहीं सर...
खान - बुरा मत मानना... तुम्हारे चेहरे पर मुस्कराहट एक मुखौटा लगता है...
विश्व - जी... मैं मानता हूँ... पर सच, यह है सर... मुस्कराने के लिए या हँसने के लिए मेरे पास अभी कोई जायज वजह नहीँ है...

खान टेबल पर रखे एक थैला विश्व की बढ़ाता है l विश्व उसे हैरानी भरे नजरों से देखता है l

खान - अरे यार... यह तुम्हारे कपड़े हैं... थोड़ी देर बाद... तुम्हारी मुहँ बोली माँ और मेरी मुहँ बोली बहन आ जाएंगी... इसलिए तैयार हो जाओ... हाँ... तुम कपड़े बदलने के लिए... मेरी टॉयलेट इस्तेमाल कर सकते हो...
विश्व - थैंक्यू सर...
खान - इट्स ओके... नाउ गो एंड गेट रेडी..

विश्व अपना सिर हिलाते हुए वह थैला उठा लेता है और अटैच बाथरूम में घुस जाता है l थोड़ी देर बाद कपड़े बदल कर बाहर आता है l तभी अर्दली आकर खबर करता है कि बाहर प्रतिभा आई हुई है l

खान - देखा... तुम्हारी माँ आ गई... चलो कम से कम मैं तुम्हें बाहर तक छोड़ आऊँ...

विश्व और खान बाहर आते हैं l बाहर प्रतिभा बेचैनी भरे निगाह में विश्व की इंतजार कर रही थी l विश्व को देखते ही जल्दी से उसके करीब आती है विश्व भी उसके तरफ जाता है l दोनों एक दुसरे के गले लग जाते हैं l

खान - अहेम अहेम अहेम... अगर माँ बेटे का मिलाप हो गया हो तो... (दोनों अलग होते हैं) थैंक्यू... तो मैं यह कह रहा था... कल शाम छह बजने से पहले... आपके बेटे को...
प्रतिभा - आप फ़िक्र ना करें... खान भाई साहब... अब प्रताप कल शाम को ही आएगा... और थैंक्यू... थैंक्यू वेरी मच...
खान - अच्छा... तो फिर मैं इजाज़त चाहूँगा... (कह कर खान वापस चला जाता है)

प्रतिभा विश्व की कान खिंचती है l विश्व दर्द से कराहता है l

विश्व - आह.. माँ.. दर्द हो रहा है... प्लीज छोड़ो ना...
प्रतिभा - जैल में तो नाई आता है ना... यह किस लैला के लिए दाढ़ी और बाल छोड़े हैं तुने...
विश्व - माँ.. वह पढ़ाई में बिजी था... इसलिए... प्रतिभा- (कान छोड़ कर) चल मेरे साथ... (विश्व को गाड़ी की ओर खिंच कर ले जाती है)
विश्व - कहाँ... घर...
प्रतिभा - नहीं पहले... सलून... फिर तेरे लिए कपड़ों और जुतों की मार्केटिंग... फिर हम दोनों बाहर खाना खायेंगे... घूमेंगे... फिर थक हार कर शाम को घर जाएंगे...
विश्व - अगर हम शाम को घर जाएंगे... तो सेनापति सर क्या करेंगे दिन भर.. (दोनों गाड़ी में बैठ जाते हैं)
प्रतिभा - तु उनकी चिंता ना कर... (गाड़ी स्टार्ट करते हुए) वह दिन भर नए घर की तलाश में रहेंगे...
विश्व - नए घर.... वह क्यूँ...
प्रतिभा - (गाड़ी चलाते हुए) हमें इसी महीने क्वार्टर खाली करना है... इसलिए रहने के लिए एक भाड़े का घर का इंतजाम करने गए हैं...
विश्व - ओ...
प्रतिभा - तेरे छूटने से पहले... मैंने उन्हें घर ढूंढने में लगा दिया है... इसलिए तु उनकी फिक्र ना कर... वह दिन भर इसी काम में बिजी रहेंगे... और हम माँ बेटे आपनी मस्ती में...

प्रतिभा की बातेँ सुन कर विश्व मुस्करा देता है l उसे अंदर से महसुस हो जाता है l प्रतिभा उसके साथ वक़्त बिताने के लिए कितनी बेताब है l

विश्व - तो माँ... पहले हम कहाँ जा रहे हैं...
प्रतिभा - कहा तो था....सलून... तुझे पहले हैंडसम डैशींग और जेंटलमेन बनाना है...
विश्व - क्यूँ... क्या मैं हैंडसम डैशींग और जेंटलमेन नहीं हूँ...
प्रतिभा - तु... तु अभी मुझे कोई मेंटलमेन लग रहा है...
विश्व - ओह माँ... आप तो ऐसे कह रही हो... जैसे मुझे कोई लड़की देखने जाना है...
प्रतिभा - तेरे मुहँ में घी शक्कर... कास के आज ऐसा ही हो...
विश्व - हे भगवान... क्यूँ ऐसी बातेँ सोच रही हो...
प्रतिभा - तु चुप रह... मैं जानती हूँ.. तु कहना क्या चाहता है... पर सुन ले... जब तक मैं अपनी पोते और पोतीयों को अपनी गोद में नहीं खिलाती... तब तक मैं इस दुनिया से जाने वाली नहीं हूँ...

विश्व अब चुप रहने में ही अपनी भलाई समझता है l वह प्रतिभा को देखने लगता है प्रतिभा गाड़ी चलाते हुए सामने देख रही है पर उसके चेहरे पर जो खुशी के एक अलग भाव झलक रहे हैं वह कितना शुद्ध, कितना निर्मल लग रहा है l विश्व अपनी नजर अब रोड की ओर कर देता है l चर्र्र्र्र्र्र गाड़ी रुक जाती है l विश्व देखता है सामने एक बहुत बड़ा सलून है l सलून को देखते ही विश्व समझ जाता है कि यहाँ बाल कटवाना बहुत महँगा होगा l

विश्व - माँ... कहीं और चलते हैं... यह देखो... सिर्फ़ बाल कटवाने के लिए पाँच सौ रुपये से शुरू हो रही है...
प्रतिभा - देख मार खाएगा मुझसे... तुझे मेरी खुशियों का कुछ भी खयाल नहीं.... चल चुप चाप अंदर चल...

प्रतिभा आगे आगे सलून के अंदर जाती है और विश्व भी उसके पीछे सलून के अंदर पहुँचता है l विश्व देखता है अंदर लड़के और लड़कियाँ सभी एक यूनीफॉर्म में हैं l एक खूबसूरत लड़की प्रतिभा के सामने आती है

लड़की - यस मैम... व्हट कैन वी डु फॉर यु...
प्रतिभा - (विश्व को दिखाते हुए) यह मेरा बेटा है... इसके बाल और दाढ़ी बनवानी है...
लड़की - श्योर मैम...

दो लड़कीयाँ आकर विश्व की बांह पकड़ कर ले जाने लगते हैं तो विश्व अपनी बांह छुड़ा कर प्रतिभा के पीछे चला जाता है l प्रतिभा उसे अपने सामने खिंच कर लाती है

प्रतिभा - अरे... तु शर्मा क्यूँ रहा है... गर्ल्स.. इसे ले जाओ... यह बहुत शर्मिला है...

वहाँ पर जितने भी लड़कियाँ थी सभी खिलखिला कर हँसने लगे l विश्व फिर भी आनाकानी करने लगता है तो प्रतिभा उसे आँखे दिखाती है l विश्व अपना मन मार कर उन लड़कियों के साथ चला जाता है l प्रतिभा वहीँ पर बैठ कर मैग्ज़ीन पलट ने लगती है l

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अनु के घर में,
अनु अपनी यूनीफॉर्म पहन कर ऑफिस जाने के लिए तैयार है l अभी वह अपनी हाथ में मोबाइल ले कर नाश्ता कर रही है l खाना खाते वक़्त वह बीच बीच में मोबाइल देख रही है l

दादी - चुप चाप तु नाश्ता नहीं कर सकती... यह बीच बीच में फोन को आईना बना कर क्यूँ देख रही है... जिस दिन से लाई है... उसी दिन से फोनमें घुसी पड़ी है...
अनु - तु नहीं जानती दादी... इस फोन को सम्हालने के लिए भी मुझे तनख्वा मिलती है... इसलिए बार बार देख रही हूँ...
दादी - अरे पागल लड़की... इसे अपने पर्स में रख... जब बजना होगा तब बजेगा... तब निकाल कर देख लेना...
अनु - नहीं नहीं.. मैं ऐसा नहीं कर सकती... कहीं राजकुमार जी का कोई मैसेज आ गया तो...
दादी - हाँ हाँ... एक तुझे ही मिले हैं... राजकुमार... अरे मुई... उनको कोई काम धंधा नहीं है क्या... तुझे ही मैसेज करते फिरेंगे...

तभी अनु की मोबाइल में टुँन.. टुणुन... की ट्यून आती है l मोबाइल स्क्रीन पर राजकुमार डिस्प्ले होता है l अनु मैसेज देखते ही मोबाइल अपनी दादी को दिखा कर

अनु - देखा... अभी अभी राजकुमार जी ने मुझे मैसेज किया है... अगर पर्स में रखती तो मालुम कैसे होता मुझे...
दादी - क्यूँ... सुनाई नहीं देता तुझे...
अनु - हाँ सुनाई तो देता... पर... चलो पहले मैं देख तो लूँ... आखिर उन्होंने मैसेज किया क्या है....

अनु अपना हाथ साफ करने के बाद मोबाइल की लॉक खोल कर मैसेज दिखती है

वीर - कहाँ हो तुम...


जी घर में - अनु

वीर - जानती हो ना... हमें आज भेष बदल कर चेकिंग के लिए जाना है...

हाँ याद है... मैं अभी ऑफिस के लिए निकल रही हूँ... - अनु

वीर - नहीं नहीं... एक काम करो... मैं तुम्हारे मुहल्ले से थोड़ी दुर मार्केट के xxxx दुकान के बाहर गाड़ी लेकर आया हूँ... तुम सीधे आकर गाड़ी में बैठ जाना... और हाँ... यह बहुत सीक्रेट है... किसीको बताना मत...

ठीक है... अभी निकलती हूँ... - अनु

मोबाइल अपनी पर्स में रख कर जल्दी जल्दी निकलती है l उसे जल्दी जल्दी जाते देख उसकी दादी उसे आँखे फाड़े देखती है l

उधर वीर कभी रियर व्यू मिरर तो कभी साइड मिरर पर देख रहा है l उसे कुछ देर बाद रियर मिरर में अनु दीखती है l अनु के दीखते ही वीर की चेहरा खिल जाता है l अनु आकर पहले गाड़ी के पास खड़ी होती है फिर बाएं तरफ जाकर खिड़की से झाँक कर देखती l वीर को देखते ही उसके चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कराहट खिल उठता है l वह कार की दरवाजा खोल कर वीर के बगल वाली सीट पर बैठ जाती है l अनु के बैठते ही वीर गाड़ी को उस मार्केट से दुर दौड़ा देता है l

वीर - तो अनु तैयार हो...
अनु - जी... पर हम कौनसे भेष बदलेंगे... और हम कहाँ पर भेष बदलेंगे...
वीर - कौनसा भेष... यह तो वहाँ जा कर पता चलेगा... जहां हम जा रहे हैं.. वहाँ पर मैंने तुम्हारे लिए कुछ भेष सिलेक्ट कर लिया है... पहुँचते ही भेष बदलेंगे...
अनु - अच्छा... तो आप क्या बनने का फैसला किया है...
वीर - पता नहीं... वहाँ पहुँच कर डीसाइड करेंगे... (अनु सोच में देख कर) क्या सोच रही हो...
अनु - मैं सोच रही हूँ.... कौनसा भेष बदलना है...
वीर - अच्छा... तुम सोच रही हो... कौनसा...
अनु - माता पार्वती जी का...

चर्र्र्र्र्र्र्र वीर गाड़ी में ब्रेक लगाता है l वीर अनु को ऐसे देखता है जैसे उसे जोरदार शॉक लगा हो l

वीर - क्या कहा... माता पार्वती जी का...
अनु - (चहकते हुए) हाँ... एक बार मैंने नाटक में देखा था... उनके केश खुल जाते हैं... आँखे बड़ी हो जाती है और (अपनी माथे की ओर दिखाते हुए) यहाँ पर... ये बड़ा सिंदूर... देखिएगा कोई नहीं पहचान पाएगा...
वीर - अच्छा (हैरानी भरे नजरों से देखते हुए) तो मेरे लिए भी कुछ सोचा है तुमने...
अनु - हाँ (चहक कर) सोचा है ना...
वीर - अच्छा... तो अभी तक बताया क्यूँ नहीं...
अनु - (मुहँ बनाते हुए) अगर आपको गुस्सा आ गया तो...
वीर - (हँसने की कोशिश करते हुए) नहीं.. नहीं करूँगा...
अनु - (चहकते हुए) आप ना... हनुमान बन जाइए... बड़ा मजा आएगा... और कोई पहचान भी ना पायेगा...

वीर इतना सुनते ही जोर जोर से हँसने लगता है l अपनी सीट की लीभर खिंच लेता है जिससे सीट पीछे की ओर लुढ़क जाती है, फिर वीर अपनी पेट पकड़ कर पैर पटकते हुए हँसने लगता है l अनु उसको यूँ हँसता देख कर मुहँ रुआँसी बना लेती है l थोड़ी देर बाद

वीर - (वीर उसकी रुआँसी चेहरा देख कर) ओ.. अनु... अनु.. जरा सोचो... हम छुपने के लिए भेष बदलने वाले हैं... मतलब लोगों के बीच घुल-मिल कर...उन्हीं के जैसे बन कर... तुम अगर पार्वती और मैं हनुमान बना... लोग सब काम धंधा छोड़ हमारे इर्द गिर्द भीड़ जमायेंगे.... है कि नहीं...
अनु - (अपना सिर हिला कर हाँ कहती है)
वीर - चलो वहाँ पहुँच कर देखते हैं... हम क्या बन सकते हैं...

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XXXXकॉलेज

छटी गैंग कैन्टीन में बैठी हुई है l सब के सब नंदिनी को देख रहे हैं l नंदिनी के चेहरे पर टेंशन साफ दिख रहा है l

बनानी - तु... इतनी टेंशन में क्यूँ है...
दीप्ति - हाँ... तुझे प्रीपेयर होने के लिए सब्जेक्ट भी तो मिला था..
नंदिनी - बात अगर पढ़ाई के रिलेटेड होती... शायद इतना डरती भी नहीं... पर यह तो सोशल रिलेटेड है... अब साइंस स्टूडेंट्स को... इस तरह की सब्जेक्ट मिले.... टेंशन तो होगी ही ना...
तब्बसुम - अरे सोशल प्लेटफॉर्म पर... सोशल मैसेज वाली ही टास्क मिल सकती थी ना...
इतिश्री - हाँ... अब अगर.. यह हमारे ग्रुप को मिली होती... तो मजा आ गया होता...
भाश्वती - वह तो हुआ नहीं... अब इस बेचारी की तोते उड़ रहे हैं...
बनानी - ओह स्टॉप इट... यह पहले से ही नर्वस है... तुम लोग इसकी जोश बढ़ाने के वजाए... और भी नर्वस कर रही हो...
रॉकी - यह तो बढ़िया मौका है... अपने अंदर के आत्मविश्वास को जगाने का... (अंदर आते हुए) अपने अंदर की व्यक्तित्व को बाहर लाने का...

सब रॉकी की ओर देखते हैं l रॉकी अपने ग्रुप के साथ थोड़ी ही दूरी पर खड़ा हुआ है l बनानी कुछ कहने को होती है कि तभी प्रिन्सिपल ऑफिस का पियोन आता है और सीधे नंदिनी से कहता है

पियोन - नंदिनी जी... आपको प्रिन्सिपल सर ने बुलाया है...

नंदिनी कुछ नहीं कहती है चुप चाप उठ कर पियोन के साथ चली जाती है l

रॉकी - क्या बात है गर्ल्स... मैंने कुछ गलत कह दिया क्या... आपकी दोस्त ने जवाब दिए वगैर चली गई...
बनानी - नहीं ऐसी बात नहीं है... वह थोड़ी नर्वस है...
रॉकी - हाँ... वह तो दिख ही रहा है...

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मेयर ऑफिस

पिनाक सिंह विक्रम के साथ अपनी ऑफिस में घुसते हुए

पिनाक - अब तीन दिन हो गए हैं... आप मेरे साथ ही चिपके हुए हैं...
विक्रम - हाँ हम अब उस दुश्मन से मिलना चाहते हैं... आखिर वह कौन है... जिसने क्षेत्रपाल के मूछों पर हाथ नहीं.. घात मारने की सोची है...
पिनाक - (अपनी कुर्सी में बैठते हुए) बड़ी बड़ी हाँका है... हमारी तैयारी देख कर... फट गई होगी उसकी....
विक्रम - (पिनाक के सामने बैठते हुए) नहीं... उसे हमारी तैयारी का अंदाजा हो सकता है... बस हमे ही नहीं मालुम उसकी तैयारी क्या क्या है...
पिनाक - महांती... अब तक कहाँ पहुँचा...
विक्रम - मैंने उसे बुलाया है... वह पहुँचता ही होगा... वैसे... क्या आपने राजकुमार से बात की...
पिनाक - उनकी बात छोड़िए युवराज... वह अभी इन सब में जुझने के काबिल नहीं हुए हैं.... नए नए ल़डकियों की तलाश में रहते हैं... जब उससे मन भरेगा... तब शायद कुछ करने के काबिल हो पाएं....
विक्रम - ह्म्म्म्म... पर आप कभी कभी उन्हें झिड़क देते हैं... वह ठीक नहीं लगता...
पिनाक - उन्हें कुछ फर्क़ नहीं पड़ता....
विक्रम - इतने हल्के में मत लीजिए... वह जवानी के उस मोड़ पर हैं... जब खुन में हद से ज्यादा गर्म रहाता है...
पिनाक - वह खानदानी क्षेत्रपाल हैं युवराज... और हम शत प्रतिशत निश्चिंत हैं... हमारे राजकुमार अपनी गर्मी उतारने के लिए... कोई साधन जुगाड़ कर लिया होगा....
विक्रम - क्या मतलब...
पिनाक - आप उस दौर में जहाँ झिझकते थे... राजकुमार उस दौर में चिड़िया फंसा कर हज़म कर जाते हैं....
विक्रम - (कुछ नहीं कहता अपना चेहरा घुमा लेता है)

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वीर अनु को लेकर एक दुकान पर आता है जहाँ लोगों का मेकअप किया जाता है l वहाँ पर लड़कियों की एक ग्रुप खड़ी थी l वीर उन ल़डकियों के पास आकर

वीर - गर्ल्स... आपको इनका मेकअप कराना है...
लड़कियाँ - यस सर...
वीर - (अनु से) आप इनके साथ जाइए... यह लोग आपका मेकअप कर देंगे...
अनु - (वीर के कान में धीरे से) यह लोग हमारे भेष बदलेंगे...
वीर - (अनु के कान में) हाँ... पर हमारे नहीं... तुम्हारे...
अनु - क्या.. कौनसा भेष..
वीर - वह उन पर छोड़ दो ना... अब कोई बड़बड़ नहीं... सीधे उनके साथ जाओ... (उन लड़कियों से) गर्ल्स प्लीज...

लड़कीयाँ आकर अनु को ले जाने लगती हैं l अनु झिझकते हुए वीर को पीछे मुड़ कर देखते हुए अंदर जाती है l वीर उस दुकान की मालकिन से कहता है

वीर - उनका मेकअप हो जाने के बाद... उनसे कहिएगा मैं नीचे गाड़ी के पास इंतजार कर रहा हूँ...
मालकिन - जी सर...

फिर वीर नीचे चला जाता है और गाड़ी की डिकी खोल कर एक लाल रंग का लेदर जैकेट निकाल कर पहन लेता और एक गॉगल पहन लेता है l फिर गाड़ी पर पीठ लगा कर खड़े होकर उस दुकान की दरवाजे पर नजर गड़ा कर देखने लगता है l करीब एक घंटे बाद दुकान का दरवाजा खुलता है तो वीर की आँखे फटी की फटी रह जाती है l
अनु खूबसूरत तो थी पर आज ऐसा लग रहा था जैसे अनु की खूबसूरती हीरे की तरह कोयले की खदान को चीरते हुए निखर कर आई है l अनु कुछ ल़डकियों के साथ सीढियों से उतर कर ऐसे आ रही थी मानो बादलों पर चल कर आ रही हो l

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माँ...

यह सुन कर प्रतिभा अपना सिर मैग्जीन से निकाल कर विश्व को देखती है l

प्रतिभा - Awwww... कितना हैंडसम है मेरा बच्चा...(खड़े होकर)

प्रतिभा देखती है वहाँ पर काम करने वाली सभी लड़कियाँ विश्व को एक आशा और लालच भरे नजरों से घूर रही हैं l प्रतिभा फौरन अपनी आँख से काजल निकाल कर विश्व के कान के नीचे लगा देती है और विश्व को खिंच कर बाहर ले जा कर खड़ा कर देती है l

प्रतिभा - तु... यहीं पर रुक... मैं पेमेंट कर आती हूँ... (प्रतिभा अंदर वापस जाती है और कुछ देर बाद बाहर आकर) चल अभी चलते हैं...
विश्व - अब कहाँ चलना है...
प्रतिभा - अरे.. तेरे लिए नए कपड़े भी तो लेने हैं... और नए जूते भी...
विश्व - अब यह सब किसलिए माँ...
प्रतिभा - (गाड़ी में बैठते हुए) चल आजा बैठ जा...
विश्व - क्या माँ... आज दिन भर यही करना है क्या...
प्रतिभा - हाँ... अब बैठता है या नहीं...

विश्व बिना कुछ कहे चुपचाप बैठ जाता है, प्रतिभा गाड़ी स्टार्ट करती है l

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प्रिन्सिपल ऑफिस

नंदिनी - मे आई... कम इन.. सर..
प्रिन्सिपल - यस यस मिस रूप नंदिनी... प्लीज कम इन...
नंदिनी - सर... आपने मुझे अभी यहाँ क्यूँ बुलाया है...
प्रिन्सिपल - देखिए मिस...
नंदिनी - सर नंदिनी... प्लीज नंदिनी...
प्रिन्सिपल - ऐसा क्यूँ...
नंदिनी - (खामोश रहती है)
प्रिन्सिपल - आप उस आइडेंटी से खुद को दूर क्यूँ रखना चाहती हैं... जो आपको आपके पिता ने दी है...
नंदिनी - (सिर झुका कर खामोश रहती है और अगल बगल देखने लगती है)
प्रिन्सिपल - क्यूँकी... एक कशमकश है... आपके भीतर... ख्वाहिश है... एक अलग पहचान बनाने की... खुदको साबित करने के लिए... है ना...
नंदिनी - (अपना सिर उठा कर देखती है)
प्रिन्सिपल - जिस दिन आप पहली बार मुझसे अपनी अलग आइडेंटिटी के बात की... उसी दिन मैं कुछ कुछ समझ गया था...
नंदिनी - (फिर अपना सिर झुका लेती है)
प्रिन्सिपल - चलो मैं इस बात को आगे नहीं खिंचता... बस इतना कहूँगा नंदिनी जी... मैं खुद उस टास्क की सब्जेक्ट से हैरान हूँ... पर इतना ज़रूर कहूँगा... यह वह सब्जेक्ट है... जिससे आपकी अपनी एक विशेष पहचान बनेगी... जो बहुतों को प्रभावित करेगी... इसलिए आप अपना हंड्रेड पर्सेन्ट दें... बस इतना ही कहूँगा...
नंदिनी - (प्रिन्सिपल को देख कर) जी सर... आई वील ट्राय माय लेवल बेस्ट...
प्रिन्सिपल - ओके... गुड.. तो अभी... एक काम कीजिए... सुरेश... वह रेडियो जॉकी... असेंबली हॉल में आपका इंतजार कर रहा है... एक छोटा सा रीहरसल के बाद... ट्रांसमिशन लाइव होगा...
नंदिनी - ठीक है सर... तो मैं जाऊँ...
प्रिन्सिपल - यस... यस.. प्लीज...

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वीर की नजर अनु की पहनावे पर पर ठहर जाती है l ब्लैक स्लीवलेस ब्लाउस टॉप जो अनु की नाभि तक पहुँच रही है l उसके ऊपर सफेद जाली कारीगरी वाली घुटने तक जोधपुरी एथिनीक जैकेट वीथ फुल लेंथ स्कर्ट l वीर की नजर अनु की खूबसूरती को निहारते निहारते नाभि पर ठहर जाता है l वीर का मुहं खुल जाता है थरथरा कर एक गहरी सांस लेता है l उस दुकान की ल़डकियों की बीच झिझकते हुए अनु वीर के पास पहुंचती है l

एक लड़की - सर यह ड्रेस पहनाने के लिए हमें बहुत मशक्कत करनी पड़ी...

वीर सबको कुछ पैसे देकर विदा करता है l खुद गाड़ी में बैठ कर इशारे से अनु को बैठने के लिए कहता है l अनु बैठती है l वीर गाड़ी स्टार्ट करता है l गाड़ी के चलते ही

वीर - वाव अनु... तुम्हें सच में पहचान नहीं पाया...
अनु - (कुछ नहीं कहती झिझक और शर्म साफ उसके चेहरे पर झलकती है)
वीर - घबराओ नहीं.. कहा ना.. मैं.. जो तुम्हें रोज सुबह से शाम तक देखता हूं... पहचान नहीं पाया... तो तुम्हें कोई भी पहचान नहीं पाएगा...
अनु - (थोड़ी हैरानी भरी भाव से) पर आपने तो खुदको नहीं छुपाया...
वीर - मैं भी खुदको छुपा लूँगा... देखना...
अनु - हम.. कहाँ जा रहे हैं...
वीर - ओरायन मॉल...
अनु - वहाँ हम क्या करेंगे...
वीर - बस दिन भर... वहाँ रहकर हमारे सिक्युरिटी गार्ड्स पर नजर रखेंगे... कौन कैसे ड्यूटी कर रहा है... लोगों से कैसे पेश आ रहे हैं... वगैरह वगैरह...
अनु - ओ अच्छा...

वीर अनु की बात सुन कर हँसता है l और गाड़ी को ओरायन मॉल की ओर ले चलता है l थोड़ी दूर ड्राइविंग करने के बाद वीर की गाड़ी मॉल की अंडरग्राउंड पार्किंग में पहुँचता है l पहले वह उतरता है l जल्दी जल्दी निकलने में उसका एक पैर दुसरे पैर में फंस जाता है l वीर अनबैलंस हो कर आगे की ओर गिरने लगता है तो कोई उसे थाम लेता है l वीर को संभाल कर वह शख्स खड़ा कर देता है l तभी पीछे से अनु भागते हुए आती है और

अनु - राजकुमार जी...
वीर - मैं ठीक हुँ... अनु.. मैं ठीक हुँ...
अनु - (उस शख्स से) आपका शुक्रिया भैया ... बहुत बहुत शुक्रिया...
शख्स - कोई बात नहीं... इसमे शुक्रिया की क्या बात है...
वीर - (उस शख्स को) हैलो आई एम वीर... एंड थैंक्यू...

इससे पहले कि वह शख्स कुछ कहता एक औरत वहाँ पर आती है और कहती है

- यह मेरा बेटा... प्रताप... और मैं एडवोकेट प्रतिभा महापात्र...
वीर - ओह हैलो प्रताप...(अपना हाथ बढ़ाता है)
प्रताप - हैलो (प्रताप भी अपना हाथ बढ़ा कर हाथ मिलाता है)
वीर - आप यहाँ पर...
प्रतिभा - ओवीयसली.. हम यहाँ पर खरीदारी करने आए हैं... और आप दोनों...

वीर और अनु दोनों चुप रहते हैं और एक दुसरे को चोर नजर से देख कर प्रतिभा और विश्व से नजरें चुराने लगते हैं l उनकी हालत देख कर प्रतिभा मुस्कराने लगती है l

प्रतिभा - ओके... ओके मैं समझ गई... अच्छा हम चले अपनी मार्केटिंग पर... मौका हाथ लगा तो... मिलते हैं बाद में...
वीर - जी... जी ज़रूर...

माँ बेटे के वहाँ से चले जाने के बाद अनु वीर की ओर देखती है और पूछती है

अनु - राजकुमार जी... आप ने अभी तक कोई भेष बदला ही नहीं...
वीर - अभी बदल लेता हूँ... एक मिनट...

कह कर वीर अपनी गाड़ी के पिछे चला जाता है l अपनी जेब से एक नकली, मोटा मूँछ निकाल कर अपने मुहँ पर लगा लेता है और बाएं गाल पर आँखों के नीचे एक मस्सा लगा लेता है l उस पर आँखों पर एक गॉगल लगा कर अनु के सामने खड़ा हो जाता है l अनु उसे पहचान नहीं पाती, वीर की यह हुलिया देख कर वह चीखने को होती है कि वीर उसकी मुहँ पर जोर से हाथ रख देता है l

वीर - अनु यह मैं हूँ... (अनु की आँखे बड़ी हो जाती है) अब तुम्हारे मुहँ से हाथ हाटऊँ... (अनु इशारे से अपना सिर हिला कर हाँ कहती है, तो वीर अपना हाथ हटा लेता है)
अनु - राजकुमार जी... सच में... मैं तो आपको पहचान ही नहीं पाई...
वीर - ह्म्म्म्म... चलो अब अंदर चलते हैं... (लिफ्ट की ओर चलने लगता है)
अनु - ठीक है...(वीर के साथ चलते हुए) पर हम यहाँ पर करेंगे क्या...
वीर - यहाँ पर हम कहीं खाना खाएंगे... कहीं थोड़ी बहुत खरीदारी करेंगे... और जरूरत पड़ी तो... एक फिल्म देख लेंगे...
अनु - ओ माँ... इतना कुछ करेंगे... पर हम तो यहाँ... चेकिंग के लिए आए हैं ना...
वीर - अरे वही तो करेंगे... दिन भर... चलो पहले कहीं बैठ कर... फ्रूट जूस पीते हैं....

अनु और कुछ नहीं कहती अपना सिर हिला कर वीर के साथ हो लेती है l दोनों एक जूस और पुडलींग स्टॉल पर पहुँचते हैं l वीर अनु एक टेबल देख कर बैठने के लिए कहता है और खुद जा कर जूस के लिए ऑर्डर करता है l कुछ मिनट बाद जब जूस लेकर अनु के पास आता है तो देखता है वहाँ पर दो लड़के अनु से बात करने की कोशिश कर रहे हैं l अनु के चेहरे पर झिझक व डर दिखता है l वीर जैसे ही टेबल पर पहुँचता है वह लड़के वीर को देखने लगते हैं I वीर की पर्सनालिटी देख कर थोड़ा डरने लगते हैं l अनु भी वीर को देख कर रीलैक्स फिल करती है l

वीर - कोई तकलीफ़...
एक लड़का - जी.. जी... वह.. हम इन्हें अकेले देखा तो...
वीर - तो... चांस मारने आ गए...
दुसरा - ओह कॉम ऑन ड्युड... जस्ट चील... हम तो बस दोस्ती करने आए थे...
वीर - ऑए चील के बच्चे... जरा स्पीड कम कर... वरना... आँख कान और जुबान सब छिल जाएंगे...

दोनों लड़के वहाँ से उठ कर चले जाते हैं l वीर अनु को जूस की एक ग्लास बढ़ाता है l अनु एक मुस्कराहट के साथ वीर के हाथों से जूस ले लेती है l
उधर उसी मॉल के ड्रेस सेक्शन में विश्व अभी तक पाँच जोड़ी ड्रेस पहन कर प्रतिभा को दिखा चुका है l प्रतिभा सब रिजेक्ट कर विश्व की सिर दर्द बढ़ा चुकी है l आख़िर में एक गहरी काले रंग पेंट के उपर एक सफ़ेद शर्ट पहन कर प्रतिभा के सामने आता है

प्रतिभा - Awww... यह हुई ना बात... अब लग रहे हो... कल के होने वाले मशहूर वकील...
विश्व - माँ पहले की कह देतीं... मैं यही पहन लिया होता... आपने अभी मुझसे पाँच जोड़ी कपड़े बदलवाए...
प्रतिभा - हाँ तो क्या हुआ... अगर यह लोग ड्रेस चुज एंड ट्राए का ऑप्शन दे रखे हैं... तो हमे भी उसका फायदा उठाना चाहिए कि नहीं...
विश्व - (हँसते हुए) माँ... तुम्हारी हरकतें किसी बच्चे जैसी है... अगर तुम ऐसी हरकतें करती रहोगी... कौन मानेगा की तुम्हारा (खुद को दिखाते हुए) इतना बड़ा बेटा है...
प्रतिभा - माँ में बचपना अपनी बच्चों के लिए होता है... और कौन नहीं मानेगा के तु मेरा बेटा है... (शो रुम के अंदर चिल्लाते हुए) हैलो हैलो हैलो... सुनो प्लीज... (सब मौजूद लोग और सेल्स मेन व सेल्स गर्ल्स प्रतिभा की ओर देखते हैं) गौर से देखिए... यह मेरा बेटा है... कितना हैंडसम है... है ना...
विश्व - (प्रतिभा की मुहँ पर हाथ रख देता है) माँ यह क्या कर रही हो... फिर से अगर ऐसा कुछ किया तो मैं यहाँ से भाग जाऊँगा...
प्रतिभा - (मुहं बंद है) उम्म् उम्म्
विश्व - ठीक है हाथ निकालता हूँ... (अपना हाथ निकाल देता है)
प्रतिभा - (ऊंची आवाज़ में) देखिए लोगों...(विश्व से थोड़ी दुर जा कर) आज कल के बच्चें... माँ बाप को छोड़ कर भागने की धमकी दे रहे हैं...

विश्व अपना माथा पीट लेता है l वहाँ पर मौजूद सभी विश्व की हालत देख कर मुस्कराने लगते हैं l तभी मॉल के हर दुकान व हर जगह जहाँ माइक थे एनाउंसमेंट होने लगती है l

" यह एक विशेष सूचना है... ओरायन मॉल पर उपस्थित सभी ग्राहक व कर्मचारियों के लिए... अभी कुछ ही देर में एफएम 97 पर आने वाली एक प्रोग्राम का प्रसारण किया किया जाएगा... कृपाया उसे सुनें... यह एफएम सर्विस वालों के अनुरोध पर किया जा रहा है और सुन कर अपना मत fm97xxxxx. Co. In पर व्यक्त रखें...

XXXXX कॉलेज
असेंबली हॉल खचाखच भरा हुआ है l स्टेज पर बने एक कांच की घर के भीतर रेडियो जॉकी सुरेश और नंदिनी बैठे हुए हैं l सुरेश प्रोग्राम को शुरू करता है l

सुरेश - हैलो अउडीयंस.. मैं आपका अपना सुरेश.... आज आपके लिए एक लाइव एंड थ्रिलींग मोमेंट ले कर आया हूँ XXXXX कॉलेज से... मेरे साथ बैठी हैं... मिस नंदिनी... यह अपनी कॉलेज में लकी ड्रॉ के जरिए सिलेक्ट हुई हैं... आपको एक सोशल मैसेज देने के लिए... दोस्तों हमनें इन्हें दो दिन पहले ही टास्क दिया था... HUMAN EVOLUTION, TWENTY FIRST CENTURY AND THE WOMAN...
इसलिए मैं अभी यह माइक यह सिस्टम पूरी तरह से मिस नंदिनी जी के हवाले कर रहा हूँ... अब नंदिनी जी आपके सामने हमारी उसी टास्क को अपने अंदाज में आपके सामने प्रेजेंट करेंगी... मिस नंदिनी... प्लीज...
नंदिनी माइक पर आती है, अपनी आँखे बंद कर एक गहरी सांस लेती है फिर खुद को नॉर्मल करती है l

नंदिनी - हैलो... मैं नंदिनी... नंदिनी सिंह... बीएससी फर्स्ट ईयर की स्टुडेंट.... अभी आपने बात करने से पहले मुझे पता चला... की सुरेश जी ऐसे ही कभी कभी कहीं भी पहुंच कर ऐसे ही चौंका देते हैं... मुझे भी चौंका दिया था... बुधवार को... फ़िर एक टास्क दिया... मानव क्रमिक विकास, इक्कीसवीं सदी और औरत... पहले जब मानव विकास सुना... एज अ साइंस स्टुडेंट मैं साइंस की नजरिए से समझने की कोशिश की... फिर इक्कीसवीं सदी... इसमे भी साइंस ही दिखी थी मुझे... पर अंत कहा... औरत... तब मुझे लगा कि यह तो एक सोशल सब्जेक्ट है... मैं एक साइंस की स्टूडेंट इसे कैसे प्रेजेंट करूँ... यह बात मैंने अपनी भाभी जी से पूछी... भाभी... मेरी सबसे अच्छी सहेली... दोस्त... माँ... दीदी और गुरु भी... उन्होंने कहा... क्यूँ नहीं... आख़िर मानव सामाजिक प्राणी है... और बात समाज की है... तो क्यूँ नहीं... पर मैं जिसने समाज को ठीक से देखा भी ना हो... समझा भी ना हो वह कैसे समाज की इतनी बड़ी विषय पर टिप्पणी कर सकती हूँ...
तब भाभी जी ने मुझे गुरुवार से लेकर आज तक... अकेले कॉलेज चलते हुए जाने के लिए कहा और लोगों की चारों तरफ की परिस्थितियों में खुद को फिट कर,.. वहाँ पर अपनी स्थिति को समझ कर... एक्सपेरियंस करने के लिए कहा

इन ढाई दिनों में मैंने जो एक्सपीरियंस किया... वही आज मेरे की टास्क की जीस्ट है....

औरत... औरत क्या है... एक वस्तु या एक शख्सियत... मुझे एक ऐसे समाज में... एक ऐसे तथ्य पर राय रखने के लिए कहा गया है... जहां खुद यह समाज ही दीग भ्रमित है... यह समाज वस्तु वादी है... जहां निर्जीव वस्तुओं में अपनी हर्ष ढूंढते हैं... उस समाज की सोच में औरत एक वस्तु ही तो है....

औरत की समाज में आवश्यकता है... वजह एक नई पीढ़ी को लाने के लिए... माँ प्रथम गुरु होती है... दीदी प्रथम मित्र होती है... मौसी माँ सी होती है... भाभी... एक माँ, बहन, सखी और गुरू भी होती है... और हर रुप में वह पहले औरत ही होती है... शास्त्र कहता है
‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः’
पर सच मानिये इन ढाई दिनों में मैंने ऐसा कुछ भी नहीं देखा....
एक लड़की जो किसी बाप की लाडली, माँ की दुलारी भाई की अभिमान होती है... वह घर से निकलते ही दुसरे मर्दों की आँखों के एक्स्रै से स्कैन की जाती है... यही सच्चाई है... खैर मुझे तो टास्क को प्रेजेंट करना है... तो ढाई दिन की एक्सपीरियंस को एक ही कहानी में पिरो कर बताती हूँ...

एक सुबह घर से निकली.... चलते हुए अपनी घर से कुछ दुर एक पान सिगरेट की दुकान के पास... कॉलेज जाने के लिए बस की इंतजार करने लगी... उस दुकान पर बहुत से लड़के व मर्द खड़े थे... कोई पान खरीद रहा था तो कोई सिगरेट तो कोई गुटखा... सब की भीड़ वहीँ पर इसलिए थी क्यूंकि... वहीँ से बहुत सी लड़कियाँ कॉलेज जाने के लिए बस पकड़ती हैं...
उस पान दुकान वाले की दो बेटियाँ हैं... पर वह खुश नहीं है... क्यूँ... क्यूंकि उसे वंश चलाने के लिए एक बेटा चाहिए... इसलिए वह हर पल अपनी किस्मत, अपनी बीवी और अपनी बेटियों को कोशता रहता है... उसकी बड़ी बेटी अपनी छोटी बहन के साथ उसी दुकान के पास एक कुत्ते से दोस्ती कर दिन भर खेलती रहती है.... पर उस दिन कुछ बंद था इसलिए कोई बस या ऑटो नहीं चल रहा था... हम कुछ लड़कियाँ फैसला किए... चलते हुए कॉलेज जाने के लिए...
हम ल़डकियों का एक ग्रुप चलते हुए कॉलेज निकले.... एक मोड़ पर आगे जाना मुश्किल हो गया... क्यूंकि उस मोड़ पर बिजली की तार से उलझ कर एक कौवा मर गया था... इसलिए वहाँ पर गुजरने वाले हर इंसान पर कौवे अपने साथी के मरने की गुस्सा उतार रहे थे.... हम ल़डकियों ने रास्ता बदल कर दुसरे रास्ते में जाने लगे... उस रास्ते में हैदराबाद की एक डॉक्टर के बलात्कार के विरुद्ध प्रदर्शन व रैली चल रही थी... हम वहीँ पर खड़े होकर रैली की गुजरने की इंतजार करने लगे... उसी रैली में हिस्सा लिए कुछ क्रांतिकारियों ने हमें देखकर कमेंट करने लगे... कोई हमारी रंग पर... कोई हमारी अंग के कटाव पर टिप्पणी करते हुए गुजरे... एक औरत के साथ हुई दुराचार के विरुद्ध कुछ क्रांतिकारी रास्ते पर खड़े दुसरे औरतों पर फब्तीयाँ गढ रहे थे... एक और जहां अपनी धरना प्रदर्शन से अपनी जिम्मेदारी निभा रहे थे... वहीँ दुसरी और वह लोग रास्ते पर खड़े हुए औरतों में मौका तलाश रहे थे... हम लोग किसी तरह कॉलेज पहुँचे... फिर मैंने क्लासेस खतम कर... शेयर ऑटो से घर को निकली... उसी पान दुकान वाली जंक्शन से थोड़ी दूर पर पहुँची....
वहाँ पहुँच कर देखा वह कुत्ता भोंकते हुए लोगों को अपने तरफ आने को मजबूर कर रही है... पर कोई नहीं जा रहा... शायद कोई समझ ही नहीं पा रहा था... मैंने हिम्मत करके कुत्ते के साथ गई... मेरे देखा देखी कुछ लोग कुत्ते के पीछे गए...
वह पान दुकान वाला अपने घर में आग लगा रहा था... उसकी बीवी और बड़ी बेटी उसे रोकने की कोशिश कर रही थीं... पर वह रुका नहीं हमारे पहुँचते पहुँचते आग लग चुकी थी... वहाँ पर पहुँचे लोगों ने पहले उस पान वाले को पकड़ लिया और कुछ लोग आग को बुझाने की कोशिश करने लगे... तभी औरत चिल्लाने लगी उसकी छोटी बेटी आग में फंस गई है... किसीने हिम्मत नहीं करी आग में घुस कर बच्ची को बचाने के लिए... पर वह कुत्ता जो हमे वहाँ लाया था... वह अचानक आग के भीतर कुद गया... कुछ देर बाद छोटी लड़की को खिंचते हुए बाहर लेकर आया.... कुछ देर बाद पुलिस पहुँच कर हमारी गवाही लेकर उस पान वाले को गिरफ्तार कर लिया.... उस पान वाले की बीवी और बच्चे वहीँ रह गए... हम लोग जो वहाँ पर मौजूद थे ने कुछ पैसे कलेक्शन कर उसे देकर अपने अपने घर चले गए...
मैं घर पर पहुँची... किताबें रख कर पुरी दिन में घटित घटनाओं के बारे में सोच रही थी... तब सोनी मैक्स पर... अमिताभ बच्चन अभिनीत अग्निपथ फिल्म की एक सीन चल रही थी....
उस सीन में विजय चौहान अपनी माँ से कहता है पुरे बांबे में उसकी माँ और बहन को छेड़ने वाला कोई नहीं है... क्यूंकि सब जानते हैं... किसीने ऐसी हिमाकत की... तो वह उन्हें बीच से काट डालेगा...
ज़वाब में उसकी माँ सुहाषीनी चैहान कहती है - वाह क्या खूब तरक्की कर ली है तुने... तेरे पिता कहा करते थे... हज़ारों बरस लग गए... इंसान को जानवर से इंसान बनने के लिए... तुने तो जरा भी देर नहीं लगाई... वापस जानवर बनने के लिए....


यह भले ही एक फिल्मी डायलॉग थी... पर उस दिन घटित हुए सारे घटनाओं के बारे में सोच रही थी... जहाँ एक और इंसान अपने कद से गिर कर... जानवर बन कर... अपनी ही आशियाना को आग में झोंक दिया था... वहीँ एक जानवर अपने कद से उपर उठकर आग से इंसान की अगली पीढ़ी को बचा लाया....
शायद यही मानव का क्रमिक विकास के वस्तुवादी इक्कीसवीं सदी में औरत जिम्मेदारी कम मौका जादा लगती है
Speechless...I have no words for describing this beautiful update.
Outstanding bro. :hug:
 
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कभी कभी तो आप ऐसी ऐसी चीजें लिख देते हैं कि मेरे बदन के रोएं खड़े हो जाते हैं । नंदिनी का आकाशवाणी पर दिया हुआ व्याख्यान.... उसके तुरंत बाद ही उसका इमोशनल हो जाना... फिर अपनी भाभी को अपने पास बुलाना , बहुत बहुत बढ़िया था ।
एक वक्त में ही कई जगहों पर घटनाओं का वर्णन... कहीं कामेडी का जायका तो कहीं थ्रीलर का रोमांच तो कहीं भावनाओं का समावेश ! आउटस्टैंडिंग एंड ब्रिलिएंट स्किल ब्लैक नाग भाई !

मुझे प्रतिभा जी को फिर से हसंते खिलखिलाते हुए देखकर बहुत बढ़िया लगा । जिस महिला के एक बच्चे की मृत्यु बचपन मे हो गई हो और दूसरे जवान बच्चे का कत्ल उनके आंखों के सामने कर दिया गया हो , उसकी हालत क्या होगी , यह हम सही तरह से अनुमान नहीं लगा सकते हैं । यह तो वो औरत समझ सकती है जिसके साथ ऐसा दुखद घटना घटा हो ।
विश्व का फर्ज बनता है , वो उस महिला का प्रताप बनकर दिखाए । उसके बुढ़ापे का सहारा बने ।

बहुत ही बेहतरीन लिख रहे हैं आप भाई ।
अपडेट के लिए यही कह सकता हूं - " जगमग जगमग "।
 

Kala Nag

Mr. X
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Speechless...I have no words for describing this beautiful update.
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भाई मैंने नहीं आपको नंदिनी ने स्पेलबउंड किया होगा
फिर भी मेरे लिए आपकी समीक्षा व विश्लेषण बहुत मायने रखता है
 

Kala Nag

Mr. X
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कभी कभी तो आप ऐसी ऐसी चीजें लिख देते हैं कि मेरे बदन के रोएं खड़े हो जाते हैं । नंदिनी का आकाशवाणी पर दिया हुआ व्याख्यान.... उसके तुरंत बाद ही उसका इमोशनल हो जाना... फिर अपनी भाभी को अपने पास बुलाना , बहुत बहुत बढ़िया था ।
एक वक्त में ही कई जगहों पर घटनाओं का वर्णन... कहीं कामेडी का जायका तो कहीं थ्रीलर का रोमांच तो कहीं भावनाओं का समावेश ! आउटस्टैंडिंग एंड ब्रिलिएंट स्किल ब्लैक नाग भाई !

मुझे प्रतिभा जी को फिर से हसंते खिलखिलाते हुए देखकर बहुत बढ़िया लगा । जिस महिला के एक बच्चे की मृत्यु बचपन मे हो गई हो और दूसरे जवान बच्चे का कत्ल उनके आंखों के सामने कर दिया गया हो , उसकी हालत क्या होगी , यह हम सही तरह से अनुमान नहीं लगा सकते हैं । यह तो वो औरत समझ सकती है जिसके साथ ऐसा दुखद घटना घटा हो ।
विश्व का फर्ज बनता है , वो उस महिला का प्रताप बनकर दिखाए । उसके बुढ़ापे का सहारा बने ।

बहुत ही बेहतरीन लिख रहे हैं आप भाई ।
अपडेट के लिए यही कह सकता हूं - " जगमग जगमग "।
धन्यबाद धन्यबाद धन्यबाद
आप इस फोरम के बेहतरीन पाठक समीक्षक व विश्लेषक हैं
कहानी में विश्व भी तभी हँस पाता है जब प्रतिभा उसके साथ होती है
आगे भी सीरियसनेस आयेंगी और गुदगुदाती पल भी आयेंगी
 

Kala Nag

Mr. X
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👉साठवां अपडेट
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रूप हाथों में कॉफी लिए शुभ्रा को फोन पर बातेँ करते हुए सुन रही थी l उसे शुभ्रा के चेहरे पर चिंताएं दिखने लगती हैं l

शुभ्रा - य... यह आप क्या कह रहे हैं...
विक्रम - आप घबराइए नहीं... मॉल के बाहर वह लोग पोजिशन बना रहे हैं... मॉल के अंदर हमारी सिक्युरिटी सर्विस है.... इसलिए आप घबराए नहीं...
शुभ्रा - अच्छा ठीक है... तो अब हम क्या... क्या करें...
विक्रम - आप किसी रेस्तरां में जाकर कुछ देर के लिए बैठ जाइए... वहाँ पर टाइम स्पेंट कीजिए... हम आ रहे हैं...
शुभ्रा - आप... कब तक पहुँचेंगे....
विक्रम - हम निकल चुके हैं... ट्रैफिक बहुत है... फ़िर भी ज्यादा से ज्यादा एक घंटा लगेगा... आप फिक्र ना करें... हम पहुँचते ही आपको कॉन्टेक्ट करेंगे...
शुभ्रा - (अपना सिर हिलाते हुए) ठीक है...

फोन कट हो जाती है l शुभ्रा को चिंतित देख कर रुप पूछती है

रुप - क्या हुआ भाभी... आप फोन पर बात करते हुए परेशान दिखीं... कोई बड़ी बात...
शुभ्रा - चलो किसी रेस्तरां में बैठते हैं... वहीँ पर आराम से बात करते हैं...
रुप - ठीक है... चलते हैं...

फिर दोनों उसी फ्लोर पर एक रेस्तरां में चले जाते हैं l उधर विक्रम की गाड़ी ट्रैफिक में रेंग रही है l गाड़ी के ड्राइविंग सीट पर बैठे बैठे विक्रम चिढ़ने लगा था l बगल में बैठा महांती फोन पर बात कर रहा है l बात खतम कर विक्रम से

महांती - सर... मुझे लगता है आप ज्यादा स्ट्रेस ले रहे हैं... वहाँ पर सिर्फ़ तीन लोग एक पॉइंट पर असेंबल होते दिखे हैं... पर वह लोग कोई एक्शन करेंगे... मुझे नहीं लगता...
विक्रम - तो फ़िर एक ही जगह पर इकट्ठे हो कर क्यूँ बार बार स्कैटर्ड हो रहे हैं.... पोजीशन बदल रहे हैं... क्यूँ... और तुमने ही कहा था... वह लोग हम सबकी रेकी कर रहे हैं...
महांती - हाँ पर मुझे लगता है... वह लोग हमे स्टडी कर रहे हैं...
विक्रम - किस लिए...
महांती - सर कुछ लोग उनमें ऐसे हैं... जो मेरे पेरेंट् सिक्युरिटी सर्विस से जुड़े थे... इत्तेफ़ाक से वह लोग भी एक्स सर्विस मेन हैं... इसलिए मैं अपनी एक्सपेरियंस से कह रहा हूँ... कुछ और हो रहा है...
विक्रम - जो भी हो महांती... तुम जानते हो... युवराणी हमारे लिए क्या मायने रखती हैं... हम उन्हें कभी भी चारा बनने नहीं दे सकते... अगर वह खतरे में हैं... तो समझ लो हमारी दुनिया खतरे में है...

महांती कुछ नहीं कहता है l वह सिर्फ अपना सिर हिला कर खिड़की से बाहर देखने लगता है l विक्रम थोड़ी स्पेस मिलते ही गाड़ी को भगाने की कशिश कर रहा है पर ट्रैफ़िक के वजह से वह धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है l

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उधर कॉफी के दो ग्लास लेकर विश्व प्रतिभा के पास पहुँचता है l टेबल पर ग्लास रख कर

विश्व - यह लो माँ.. यह भी आज की स्पेशल कॉफी है...
प्रतिभा - (बेमन से कॉफी लेती है) हूँ...
विश्व - क्या हुआ... तुम्हारा मुहँ क्यूँ लटका हुआ है... किसी ने कुछ कहा क्या...
प्रतिभा - नहीं.... कुछ भी नहीं... यही तो ग़म है... किसीने कुछ कहा नहीं...
विश्व - फ़िर... कहीं... सेनापति सर की याद तो नहीं आ रही है...(भवें नचा कर चिढ़ाते हुए)
प्रतिभा - चुप कर... उनकी क्यूँ याद आयेगी मुझे... मैं किसी और बात को लेकर सोच में हूँ...
विश्व - अच्छा.. तो बताओ ना माँ... क्या बात है...
प्रतिभा - मैं ना...(खुश होते हुए) अभी अभी... कुछ देर पहले नंदिनी से मिली थी...
विश्व - (हैरान हो कर) क्या... तुम सच कह रही हो...
प्रतिभा - (अब हँसने लगती है) हा हा हा... ओ हो... नंदिनी का नाम लिया तो चेहरा कैसे खिल गया... देखो तो लौंडे को...
विश्व - (हकलाते हुए) न.. नहीं ए.. ऐसा कुछ नहीं है माँ... म.. मैंने पहले भी तुमसे कहा है... मैं उनसे प्रभावित हुआ हूँ... पर तुम उनका नाम लेकर आज दिन भर में ना जाने कितनी बार... मेरा पोपट बना रही हो.....
प्रतिभा - अरे मैं सच कह रही हूँ... नंदिनी से मिली थी अभी कुछ देर पहले... हाँ यह बात और है... वह रेडियो वाली नंदिनी नहीं थी...
विश्व - तो फिर...
प्रतिभा - मैं ना... उससे दोस्ती करने के लिए बातेँ बढ़ा रही थी... पर वह कब चली गई मुझे मालुम ही नहीं पड़ा...
विश्व - (हँसने लगता है)हा हा हा... मुझे मालुम है... तुम क्यूँ दोस्ती करना चाहती थी... और... मुझे शक़ है... उसे भी अंदाजा हो गया होगा... इसलिए वह भाग गई.. (हा हा हा हा)
प्रतिभा - (मुहँ बनाते हुए) उड़ाले उड़ाले.. मेरा मजाक उड़ाले...
विश्व - (प्रतिभा के हाथ को पकड़ लेता है) माँ... जितनी ख्वाहिशें भी ना थी इस जिंदगी से.... जिंदगी ने उससे ज्यादा दे दिया है... वैसे भी मेरे आचार्य जी कहा करते थे... वक़्त से पहले और तकदीर से ज्यादा किसीको कुछ भी हासिल नहीं होता...
प्रतिभा - यह मत भूल... तु होने वाला एडवोकेट है... कोर्ट में यह फिलासफी बातेँ अमान्य होतीं हैं...
विश्व - जानता हूँ माँ... पर यही बातेँ... जिंदगी में तो मायने रखते हैं ना...
प्रतिभा - क्या करूँ मैं... तु आता भी है तो जुगनू की चमक की तरह... ठहरता भी तो नहीं... और जब एक महीने के बाद सज़ा पुरी हो जाएगी... तब भी... सिर्फ़ एक महीने के लिए ही मेरे पास रुकेगा... (प्रतिभा विश्व की हाथों को पकड़ कर) वादा कर.... गांव जाने के बाद भी... तु आता जाता रहेगा...
विश्व - माँ... इस बारे में हमने कई बार बातेँ की है... हमेशा मैंने तुमसे वादा किया है... क्या मेरे वादे पर विश्वास नहीं...
प्रतिभा - (थोड़ा उदास हो कर) ऐसी बात नहीं है... माँ हूँ... मन नहीं भरता... क्यूंकि किस्मत पर भरोसा जो नहीं है...
विश्व - तो ठीक है माँ... मैं फिर से अपना वादा दोहराता हूँ... मैं छूटने के बाद पुरे एक महीने के लिए तुम्हारे पास रूकुंगा... फिर अपनी जीवन की सबसे बड़ी मकसद को पुरा करने जाऊँगा... इस बीच हर हफ्ते दस दिन में आता रहूँगा... तुमसे मिलने... और जब मकसद हासिल हो जाएगी... मैं हमेशा के लिए तुम्हारे पास लौट आऊंगा... यह वादा करता हूँ... (प्रतिभा मुस्करा देती है) पर तुम भी एक वादा करो...
प्रतिभा - कुछ भी मांग ले... (विश्व कहने को होता है) रुक पूरी बात तो सुन ले...(विश्व चुप हो जाता है) मैं बहु ढूंढना नहीं छोड़ने वाली... हाँ...
विश्व - लो... (प्रतिभा की हाथ को छोड़ते हुए) पहले से ही मेरे जुबान पर ताला मार दिया तुमने... अब क्या ख़ाक वादा मांगूंगा...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... अपनी माँ से चालाकी... आँ..
विश्व - अच्छा माँ...(हाथ जोड़ कर) गलती हो गई... अब खाना खाने चलें या ऐसे ही...
प्रतिभा - हाँ हाँ चलो... इसी फ्लोर पर एक रेस्तरां है... बढ़िया खाना मिलता है वहाँ... चल पेट भर कर खाना खाते हैं... फिर घर चलते हैं...
विश्व - (उठते हुए)हाँ तो चलो फिर...

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मॉल पहुँचने के लिए देरी होता देख विक्रम वीर को फोन लगाता है l वीर तब तक घर पहुँच चुका था और अपने बेड पर लेटा हुआ था I वीर आधी नींद में फोन उठाता है

विक्रम - हैलो राजकुमार...
वीर - जी कहिए युवराज...
विक्रम - क्या... आप सोये हुए लग रहे हैं... आप हैं कहाँ पर...
वीर - (नींद भरे आवाज में) अपने कमरे में...
विक्रम - क्या... आप घर पर कब आए...
वीर - कुछ ही देर हुए हैं... बस जरा सा आँख लग गई थी कि (उबासी लेते हुए) आपका फोन आगया....
विक्रम - ओ अच्छा...
वीर - क्या है युवराज जी...
विक्रम - कुछ नहीं... आप आराम कीजिए... बाद में बात करते हैं...
वीर - ठीक है....

विक्रम फोन काट देता है l और महांती को देखने लगता है तो महांती कहता है

महांती - युवराज आप मुझसे पूछ लेते... मुझे नहीं पता था कि आपने राजकुमार जी को फोन लगाया था... मेरे पास इंफॉर्मेशन थी... जब युवराणी और राजकुमारी मॉल के अंदर गईं थीं.... उसके थोड़ी देर बाद राजकुमार वहाँ से लड़की को साथ लेकर वापस चले गए...
विक्रम - सॉरी महांती... यु नो.. युवराणी मिन्स व्हाट टु मि... इसलिए हमसे ऐसी बेवकूफ़ी भरी हरकतें हो रहे हैं...
महांती - कोई बात नहीं सर... उन्हें कुछ नहीं होगा....
विक्रम - थैंक्यू... महांती.. थैंक्यू...

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मॉल के फुड कोर्ट में एक रेस्तरां है जिसका नाम है डालमा रेस्तरां l उस रेस्तरां के एक कॉर्नर टेबल पर शुभ्रा और रुप स्टार्टर के साथ साथ सुप पी रहे हैं l

रूप - हम अगर अपनी गाड़ी से चले गए होते... तो शायद अब तक घर पर पहुँच गए होते... उससे क्या कोई प्रॉब्लम हो जाता...
शुभ्रा - पता नहीं... रुप तुम अच्छी तरह से जानती हो... भले ही तुम कॉलेज जा रही हो... पर सच्चाई भी यही है कि... तुम हो या मैं.... हम हमेशा तुम्हारे बड़े भैया के निगरानी में हैं... अगर वह खुद आ रहे हैं... मतलब कुछ तो सीरियस बात होगी...
रुप - हाँ भाभी आप ठीक कह रही हो.... यह राजगड़ तो नहीं है...
शुभ्रा - हाँ... और कभी हो भी नहीं सकता... यहाँ पर सब अपने अपने इगो को भाव देते रहते हैं और बढ़ाते रहते हैं... अगर दुश्मनी हो.... तो घात लगाने के लिए ताक में रहते हैं... लगता है इन सात सालों की सफर में... किसीके इगो को जबरदस्त ठेस पहुँची है... जिसके वजह से वह... क्षेत्रपाल के अहंकार पर शायद प्रतिघात करने के लिए घात लगा रहा है...
रुप - (एक फीकी मुस्कान के साथ) राजगड़ में... अपनों के वजह से... बाहर नहीं निकल पा रही थी.... और यहाँ किसी और के वजह से कहीं बाहर निकालना बंद ना हो जाए...
शुभ्रा - हूँ... मुझे तुम्हारे लिए बुरा तो लगेगा... अगर तुम्हारा कॉलेज आना जाना बंद हो गया तो...
रुप - (एक गहरी सांस छोड़ कर) और कितनी देर भाभी...
शुभ्रा - पता नहीं... तुम्हारे भैया जब तक यहाँ ना पहुँचे तब तक तो नहीं....
रुप - उई माँ.. (कहकर मेन्यू कार्ड अपने चेहरे के सामने कर लेती है)
शुभ्रा - क्या... क्या हुआ रुप...
रुप - पता नहीं भाभी... आज मेरी कुंडली में यह माँ बेटे क्यूँ... राहु केतु की तरह जब देखो टपक रहे हैं...

शुभ्रा घुम कर पीछे देखती है प्रतिभा और विश्व अंदर आकर एक वेटर से बात कर रहे हैं l वह वेटर उन्ही के तरफ एक खाली टेबल की ओर इशारा करता है l यह देख

रुप - भाभी आप एक काम करो प्लीज...
शुभ्रा - क्या...
रुप - आप मेरी जगह आ जाओ... मैं आपकी जगह पर बैठ जाती हूँ...(कह कर उठ जाती है और शुभ्रा के पास पहुँच जाती है, शुभ्रा भी हँसते हुए जगह बदल देती है)
शुभ्रा - (हँसते हुए) बाप रे... इतना डर...(रुप इतने में अपनी जुड़ा खोल देती है) अरे... यह अपने बाल क्यूँ खुला छोड़ रही हो...
रुप - यह आज कल की स्टाइल है भाभी...
शुभ्रा - हाँ... हाँ... हाँ... यह क्यूँ नहीं कहती अपनी चेहरा छुपा रही हो...
रुप - आप जानती हो ना... फ़िर क्यूँ पुछ रही हो...
शुभ्रा - (अपनी हँसी को दबाते हुए, धीरे से) वैसे रुप... तुम मानो या ना मानो.... लड़का... है तुम्हारे टक्कर का...
रुप - (अपनी आँख दिखाते हुए) भाभी...
शुभ्रा - (अपनी हँसी को दबाते हुए) क्यूँ क्या गलत कह दिया...
रुप - (अपनी दांत चबाते हुए धीरे से) आप सब कुछ देख कर भी... समझ नहीं पा रही हैं...
शुभ्रा - क्या... क्या समझ नहीं पा रही हूँ...
रुप - वह प्रताप अभी भी... ममास् बॉय है... उसकी माँ उसे इन माहौल में ढालने की कोशिश कर रही हैं... पर उसमें... ना झिझक कम हो रहा है ना शर्म टुट रहा है...
शुभ्रा - हूँ.. म्म्म.. अच्छा जज किया है तुमने... पर फिर भी... तुमको उसे नजर भर देखना चाहिए... क्या गजब का सेक्स अपील है यार... उसकी पर्सनालिटी में...
रुप - (हैरानी से अपनी आँखे बड़ी करते हुए) हाँ..आँ... भाभी आप.. यह कैसी बात कर रही हैं...
शुभ्रा - ओह कॉम ऑन.. मैं तुम्हारे लिए कह रही हूँ...
रुप - भाभी... पहली बात... यु नो वेरी वेल... आई एम फिक्स्ड... कुछ इधर की उधर हुई तो...(मायूसी भरी आवाज़ में) आप अच्छे से जानते हो क्या हो सकता है... क्षेत्रपाल के अहं के नीचे रौंद दिए जाएंगे... यह और उसकी फॅमिली... वैसे भी क्षेत्रपाल के आँखों में आँख डालने वाला... अगर इस स्टेट में नहीं... तो शायद ... इस दुनिया में कहीं हो... पर कम से कम यह तो नहीं... (हँसने की कोशिश करते हुए) बात बात पर झिझकने वाला... शर्माने वाला... (अपना सिर को ना में हिलाते हुए) कतई नहीं...
शुभ्रा - ह्म्म्म्म... (अपना सिर हिलाते हुए) हूँ..
रुप - क्या हम्म.. क्या हूँ..
शुभ्रा - (एक दिलासा देने वाली हँसी के साथ रुप के हाथों पर हाथ रखते हुए) तुम्हारे अंदर एक उम्मीद मैंने देख ली है... तुमको किसीका इंतजार तो है... जो तुम्हें इस क्षेत्रपाल नाम की की पिंजरे से ले उड़े...

रुप अपना सिर झुका लेती है और चुप भी हो जाती है l उधर प्रतिभा और विश्व के टेबल पर ऑर्डर किया हुआ खाना पहुँच जाता है l

विश्व - एक बात कहूँ माँ..
प्रतिभा - हाँ बोल...
विश्व - हमे आज बाहर का खाना नहीं खाना चाहिए था...
प्रतिभा - क्यूँ....
विश्व - माँ... कल शाम तक ही आपके पास रूक रहा हूँ... इसलिए आपको मुझे अपनी हाथों से खाना बना कर खिलाना चाहिए था...
प्रतिभा - हाँ मानती हूँ... मेरी इच्छा भी यही थी... पर सुबह तेरी अवतार देख कर... तुझे सलून ले जाना बहुत जरूरी था... ऊपर से मैं तेरे लिए खरीदारी भी तो करना चाहती थी... इसलिए हमें यहाँ पर लंच करना पड़ रहा है...
विश्व - तो लंच के बाद सीधे घर को ही जायेंगे ना...
प्रतिभा - बिल्कुल...
विश्व - ठीक है फिर...

उनकी बातेँ हल्की हल्की मगर साफ सुनाई देती थी l उनकी बातेँ सुनने के बाद

शुभ्रा - ओ... तो यह जनाब प्रताप... कहीं बाहर रहता है... शायद किसी काम से भुवनेश्वर आया है... अब अपनी माँ से मिल लिया है... और कल शाम को वापस चला जाएगा....
रुप - यह आपने... कैसे समझ लिया...
शुभ्रा - कॉफी स्टॉल पर उससे जितनी बातेँ हुई थी... और अब इनकी बातेँ सुनने के बाद मुझे सब समझ में आ गया...
रुप - ओ...
शुभ्रा - चूंकि यह लड़का बाहर रहता है... इसलिए इसकी माँ जल्द से जल्द शादी करा देना चाहती है...
रुप - हम्म... शायद आप सही हो...

उधर विश्व खाना खा रहा है और उसे प्रतिभा मुस्कराते हुए खाना खाते हुए देख रही है l विश्व जब देखता है कि प्रतिभा उसे एक टक देखे जा रही है l

विश्व - अरे माँ... तुम खाना क्यूँ नहीं खा रही हो...
प्रतिभा - तुझे खाना खाते देख... मेरा पेट और मन दोनों भरे जा रहे हैं...

विश्व अपना थाली लेकर प्रतिभा के पास जाकर बैठ जाता है और खाने के कोर बना कर प्रतिभा को खिलाता है l यह दृश्य शुभ्रा देखती है और वह इशारे से रुप को उस तरफ देखने को कहती है l रुप अपना चेहरा को कंधे से नीचे ले कर पीछे मुड़कर देखती है फिर आगे देखने लगती है l

शुभ्रा - कुछ भी हो रुप... माँ बेटे में प्यार मगर बहुत है...
रुप - हूँ...
शुभ्रा - हम शायद झेल ना पाएँ... उन माँ बेटे को... क्यूंकि उनके बीच कोई पागलपन नहीं है... प्यार ममता और वात्सल्य है... जो हमे पागलपन लगा...
रुप - हूँ...
शुभ्रा - तुम चुप क्यूँ हो गई...
रुप - (आँखों में पानी आ जाती है) माँ जैसी चाची तो थी मेरे पास... उन्होंने प्यार और ममता लुटाने में भी... कोई कंजूसी नहीं की... पर माँ... माँ नहीं थी मेरे पास... शायद इसलिए उस औरत के प्यार को... अपने बेटे के लिए, पागलपन समझ बैठी...
शुभ्रा - हूँ... खैर जो भी कहो... यह माँ बेटे हैं यूनीक....

रुप मुस्कराकर अपनी सिर को हिला कर और पलकें झपका कर अपनों हामी जाहिर करती है l उधर विश्व के हाथों से प्रतिभा को खाना खाते हुए रेस्तरां में मौजूद सभी लोग उत्सुकता से देख रहे थे l थोड़ी देर बाद उनका खाना खतम हो जाता है, दोनों लेमन बाउल में हाथ धो लेने के बाद, प्रतिभा बिल पेमेंट कर देती है और दोनों रेस्तरां से बाहर निकलने को होते हैं कि उन्हें एक बुढ़े उम्र दराज़ जोड़ा सामने से आकर रोक देते हैं l उन जोड़े में से बुढ़ी औरत विश्व के सामने आकर विश्व के सिर पर बड़े प्यार से हाथ फेरती है l विश्व और प्रतिभा स्तब्ध हो कर उन दोनों को देखने लगते हैं l उस बुढ़ी औरत की पति विश्व और प्रतिभा से कहता है
- हमारे तीन औलादें हैं... पर हमारे पास कोई नहीं हैं... वह लोग बहुत खुश हैं... बिजी हैं... इतने बिजी हैं... के हमारे लिए.. उनके पास वक़्त ही नहीं है... इसलिए हम एक दुसरे के साथ सुख दुख के लम्हें निकाल कर आपस में बांट लेते हैं... (प्रतिभा से) आप वाकई बहुत भाग्यवान हैं... (प्रतिभा मुस्कराते हुए अपना सिर गर्व से हिला कर हाँ कहती है)

विश्व यह सुन कर उस बुढ़ी औरत को गले से लगा लेता है l यह दृश्य रेस्तरां में बैठे सभी देख रहे थे l रुप से रहा नहीं जाता एक्साइटमेंट में ताली बजाने लगती है l उसे ताली बजाते देख वहाँ पर सभी लोग भी ताली बजाने लगते हैं l सबको ताली बजाते देख विश्व शर्मा कर उस औरत से अलग हो जाता है और प्रतिभा के हाथ पकड़ कर रेस्तरां से बाहर निकल जाता है l शुभ्रा रुप के हाथ को पकड़ कर ताली बजाने से रोक देती है l

शुभ्रा - वाह.... आख़िर लड़का इम्प्रेस कर ही दिया तुम्हें...
रुप - हाँ... पर मैं इम्प्रेस हुई हूँ उसकी नेक काम के वजह से ... ना कि उससे... इस काम के लिए... उसे एप्रीसिएशन तो मिलनी ही चाहिए...
शुभ्रा - वाह क्या बात है... आज लड़का तुमसे इम्प्रेस था... तुम्हें एप्रीसिएशन देना चाहता था... और अब... तुम उसे एप्रीसिएशन देना चाहती हो.... क्या बात है... वाह... दोनों के एप्रीसिएशन एक दुसरे के लिए बाकी रह गई... बचा के रखना हाँ... बाद में काम आएगा... हा हा...
रुप - भाभी... क्या हम इस टॉपिक से बाहर नहीं निकल सकते...
शुभ्रा - हाँ हाँ क्यूँ नहीं...

_____×_____×_____×_____×_____×_____×

विक्रम की गाड़ी मॉल से कुछ ही दुर पर पहुँचती है l तभी महांती की फोन बजने लगती है l

महांती - हैलो...
- XXXX
महांती - व्हाट...
- XXXX
महांती - ओके...
- XXXX
महांती - युवराज जी...
विक्रम - क्या बात है महांती...
महांती - छोटे राजा...
विक्रम - (गाड़ी रोक कर) क्या हुआ... क्या हुआ उन्हें...
महांती - जी... जी वह... घ... घायल हैं...
विक्रम - व्हाट...
महांती - जी...
विक्रम - कैसे... कहाँ पर हमला हुआ...
महांती - म्युनिसिपलटी ऑफिस में...
विक्रम - (चुप रहता है, बड़ी बेबसी से महांती को देखता है)
महांती - यह.... एक डाइवर्जन था... मतलब हम उनके चाल में फंस गए...
विक्रम - अभी... छोटे राजा जी की कैसी हालत है...
महांती - सीरियस नहीं है... पर... हस्पताल में एडमिट हैं...
विक्रम - कैसे... कैसे हुआ यह सब...
महांती - युवराज जी... अब उनसे बात करने के बाद ही सब मालुम हो पाएगा... सिर्फ़ छोटा सा घाव लगा है...

विक्रम की मुट्ठी स्टीयरिंग पर भींच जाती है l वह अपना सिर स्टियरिंग पर पीट देता है l एक गहरी सांस छोड़ते हुए महांती से

विक्रम - महांती एक काम करो.... तुम छोटे राजा जी के पास जाओ... जब यहाँ तक आ गए हैं तो हम युवराणी और राजकुमारी जी को घर पर पहुँचा कर... उनसे मिलने जाएंगे...
महांती - ठीक है युवराज जी... मैं यहाँ अपनी कंपनी के सर्विस गाड़ी लेकर चला जाता हूँ... आप युवराणी और राजकुमारी जी को छोड़ कर पहुँचे...

महांती गाड़ी से उतर जाता है और फोन कर ESS सर्विस गाड़ी से अलग दिशा में चला जाता है l विक्रम शुभ्रा को फोन लगाता है l

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पार्किंग में पहुँचते ही प्रतिभा अपने सिर पर हाथ रखकर खड़ी हो जाती है और कहती है

प्रतिभा - है भगवान...
विश्व - क्या हुआ माँ... कुछ भुल गई क्या...
प्रतिभा - हाँ... (अपनी पर्स से दो रसीद निकाल कर विश्व को देती है) यह ले... यह कपड़ों की रसीद है और यह जुते की... जाकर ले आ...
विश्व - क्या माँ... वह पुराने कपड़े हैं... और जुता भी पुराना है... रहने दो ना...
प्रतिभा - सुन... दुकान पर पुराने चीजें छोड़ नहीं सकते.... हमारे जो काम ना आए... उसे हम किसी और को दे सकते हैं... जिनके वह काम आएगा... इसलिए जा ले कर आ...
विश्व - ठीक है माँ... तुम गाड़ी के पास जाओ... मुझे पाँच सात मिनट लगेंगे...
प्रतिभा - ठीक है...

विश्व लिफ्ट की ओर तेजी से भागता है और प्रतिभा अपनी गाड़ी के पास जाती है l उधर रुप और शुभ्रा रेस्तरां में अभी भी बैठे हुए बातेँ कर रहे हैं, तभी शुभ्रा को विक्रम का फोन आता है

शुभ्रा - हैलो
विक्रम - आप लोग पार्किंग में पहुँचे... हम भी पहुँच रहे हैं...
शुभ्रा - जी... अभी हम निकलते हैं...
विक्रम - कितने नंबर की पार्किंग एरिया में हमे पहुँचना है...
शुभ्रा - जी ट्वेल्व नंबर पार्किंग में...
विक्रम - ठीक है... हम पाँच मिनट में पहुँच रहे हैं...
शुभ्रा - जी... (फोन काट देती है) चलो रुप... तुम्हारे भैया हमे लेने आए हैं...
रुप - ठीक है भाभी... चलिए.... पेमेंट क्लीयर कर निकलते हैं...

दोनों काउंटर पर जाते हैं, और पेमेंट करने लगते हैं l उधर विश्व रसीद लेकर पहले बुटीक पर पहुँचता है l जैसे ही वह काउंटर पर रसीद देता है काउंटर पर बैठा मैनेजर विश्व को छह पैकेट थमा देता है l

विश्व - अरे... यह क्या... आप मुझे इतने सारे पैकेट क्यूँ दे रहे हैं....

मैनेजर - जी... इनमें वह पांच जोड़ी कपड़े हैं... जिन्हें आपने ट्रायल किया था... और एक... जो आप पहन कर आए थे...... वह भी इन पैकेट्स में है... आपकी माता जी ने सबकी पेमेंट कर दी है...
विश्व - (यह सुन कर हैरान हो जाता है और फिर मुस्करा देता है)
मैनेजर - क्या हुआ सर...
विश्व - कुछ नहीं भाई... मेरी माँ ने भूलने का अच्छा बहाना बनाया... कितनी प्यार करती हैं मुझसे... एक जोड़ी बता कर पाँच जोड़ी खरीद लिया... और मुझे पता ना चले इसलिए चुपचाप पेमेंट भी कर दिया... अब मुझे यहाँ भेज कर... मुझे ख़ुश कर रही हैं... मुझे खुशी देते वह थकती नहीं हैं... क्यूंकि वह मेरी खुशी में ही... अपनी खुशी देखती हैं...
मैनेजर - सर एक बात कहूँ... आप बहुत लकी हो सर...
विश्व - हाँ... सो तो हूँ... कोई शक़...

फिर विश्व वहाँ से निकल कर शू स्टोर में पहुँचता है l वहाँ पर भी रसीद दिखाने पर उसे और छह जोड़ी जुतों की पैकेट मिलता है l विश्व इस बार दुकान दार से कुछ नहीं कहता l कपड़े और जुतों का पैकेट ले कर लिफ्ट के तरफ भाग कर जाता है l वहाँ पहुँच कर लिफ्ट का बटन दबाता है l लिफ्ट आकर रुकता है और दरवाजा खुल जाता है l लिफ्ट के अंदर दो लड़कियाँ थी l विश्व उन्हें देख कर अंदर जाने के वजाए रुक जाता है और इधर उधर देखने लगता है l ना वह कहीं जा पाता है ना ही अंदर l वहीँ खड़े खड़े हिचकिचाता रहता है, झिझकने लगता है l लिफ्ट के अंदर वह लड़कियाँ कोई और नहीं बल्कि रुप और शुभ्रा हैं l विश्व को हिचकिचाते देख

शुभ्रा - आइए प्रताप भैया... हम भी नीचे पार्किंग में जा रहे हैं... आप चाहें तो आ सकते हैं... (विश्व अंदर आ जाता है, और दोनों की तरफ पीठ करके खड़ा हो जाता है)
विश्व - (बिना उन्हें देखे) बुरा ना मानिये बहन जी... आपको मेरा नाम कैसे मालुम है...
शुभ्रा - अरे भैया... आपकी इंट्रोडक्शन तो आपकी माताजी ने... आइसक्रीम पार्लर में दे दी थी... और आप इतनी जल्दी भुल गए... घंटे भर पहले आप मुझसे कॉफी स्टॉल पर बात भी की थी...
विश्व - जी...(हैरान हो कर) जी... (फिर याद करते हुए) जी जी...
शुभ्रा - वैसे प्रताप भैया... आप ल़डकियों से शर्माते हैं या डरते हैं..
विश्व - जी... (बिना पीछे मुड़े) म... मालुम नहीं...

रुप - हम लड़की हैं... पर हमे नाजुक समझने की भुल ना कीजिएगा... हम बहुत खतरनाक भी हैं.... (यह सुन कर शुभ्रा रुप को कोहनी मारती है)
विश्व - (बिना पीछे मुड़े) जी मैं एक लड़का हूँ... जो भी हूँ... जैसा भी हूँ... पर खतरनाक बिल्कुल नहीं हूँ....

विश्व की यह बात सुनने के बाद रुप शर्मा जाती है और शर्म से उसके गालों पर लाली छा जाती है l

शुभ्रा - हमारी गाड़ी ट्वेलव नंबर पार्किंग पर खड़ी है... और आपकी... (अब रुप उसे कोहनी मारती है)
विश्व - (बिना पीछे मुड़े) जी हमारी गाड़ी नाइन नंबर पार्किग एरिया में है..

पार्किंग फ्लोर पर लिफ्ट पहुँचती है, दरवाजा खुलते ही विश्व जल्दी से निकल भागता है l शुभ्रा और रुप विश्व को भागते देख हँसने लगते हैं और अपनी गाड़ी की ओर जाने लगते हैं l वहीँ नौ नंबर पार्किंग में अपनी गाड़ी के पास प्रतिभा टहल रही है l उसी वक़्त विक्रम की ऐसकॉट और उसके पीछ गार्ड्स की दो गाड़ीयाँ तेजी से पार्किंग में घुसती है और तेजी से बारह नंबर पार्किंग की बढ़ती है l प्रतिभा के पास से पहले गार्ड वाली गाड़ी तेजी से गुजरता है फ़िर ऐसकॉट तेजी से गुजर जाता है जिससे प्रतिभा की साड़ी की आंचल थोड़ी उड़ने लगती है तभी पीछे से आ रही गार्ड्स की दुसरी गाड़ी के बम्पर गार्ड में प्रतिभा की साड़ी की आँचल फंस जाती है जिसके वजह से प्रतिभा गाड़ी के पीछे घिसटने लगती है l प्रतिभा चिल्लाने लगती है l
विश्व जैसे ही देखता है प्रतिभा की साड़ी एक गाड़ी में फंस गई है और गाड़ी प्रतिभा को घिसटते हुए लिए जा रही है l

विश्व - (हाथ से पैकेट फेंक कर चिल्लाता है) माँ..... (गाड़ी के पीछे भागता है)

वह गाड़ी थोड़ी ही दुर जा कर रुक जाती है l विश्व प्रतिभा के पास पहुँच कर देखता है सिर पर चोट लगने के कारण थोड़ा खून बह रहा है, दोनों कोहनी छील गए हैं और साड़ी घिसककर खराब हो गई है l
विश्व - (आँखों में आँसु आ जाते हैं) माँ...आँ..
प्रतिभा - (कराहते हुए) ओह... ओ... माँ...

प्रतिभा की दर्द के मारे बहुत बुरा हाल था, वह दर्द से कराह रही थी l गार्ड्स अपने गाड़ी से उतर कर विश्व और प्रतिभा को देखते हैं और ड्राइविंग साइड पर बैठा गार्ड प्रतिभा की साड़ी को गाड़ी की बम्पर से निकाल कर प्रतिभा के ओर फेंकते हुए

गार्ड - साली बुढ़िया... मरने के लिए तुझे कोई और गाड़ी नहीं मिली...

विश्व उस ड्राइवर और उन गार्ड्स को देखता है, फिर अपनी जेब से रुमाल निकाल कर प्रतिभा के माथे पर बांध देता है l और प्रतिभा को अपनी बाहों में उठा कर गाड़ी के पास घुटने के ऊँचाई बराबर एक वॉल पर पिलर के सहारे बिठा देता है l

विश्व - माँ... तुम यहीँ पर बैठी रहो... मैं अभी थोड़ी देर में आया..
प्रतिभा - रुक प्रताप...(दर्द से कराहते हुए) तु जा कहाँ रहा है...
विश्व - तुम्हारे लिए...(दाँतों को चबाते हुए) फर्स्ट ऐड लेकर आ रहा हूँ....
प्रतिभा - रुक ना...

पर विश्व प्रतिभा को वहीँ पर छोड़ कर उन गार्ड्स के तरफ चला जाता है l
उधर ऐसकॉट में शुभ्रा और रुप बैठ चुके हैं l विक्रम गार्ड्स को तैयार होने के लिए कहता है और खुद ड्राइविंग सीट की ओर जाता है l तीन गाडियों में पहली गार्ड वाली कार चलने लगती है l विश्व गाड़ियों को स्टार्ट होते देख इधर उधर देखने लगता है l उसे फायर अलार्म के पर एक लोहे का हामर दिखता है l विश्व भाग कर वह हामर निकाल लेता है l जैसे ही गालियों की काफिला चलने लगती है विश्व उस रास्ते पर सामने आकर हामर को फेंक मारता है l हामर ड्राइवर के सामने की काँच पर लगती है और काँच में मकड़ी की जाल की तरह क्रैक्स पड़ जाते हैं l तो ड्राइवर गाड़ी की स्टीयरिंग मोड़ देता है और गाड़ी एक पिलर से टकरा जाती है l उसके पीछे आने वाली विक्रम की गाड़ी और दुसरी गार्ड्स वाली गाड़ी रुक जाती हैं l एक्सीडेंट वाली गाड़ी से सभी चार गार्ड्स उतर जाते हैं l विश्व वहाँ पहुँच कर उस गार्ड को जिसने प्रतिभा की साड़ी को निकाल कर फेंका था उसे अपने तरफ खिंचता है और उसपर झन्नाटेदार थप्पड़ों की बारिश कर देता है, उस गार्ड को बचने का फुर्सत भी नहीं मिलता थप्पड़ खा खा कर वह गार्ड नीचे गिर जाता है, दुसरे गार्ड्स विश्व को हैरान हो कर मुहँ फाड़े देखे जा रहे थे l उनमें से एक विश्व के पास आकर विश्व की कलर पकड़ने की कोशिश करता है l विश्व भी उसे कोई मौका दिए वगैर थप्पड़ पर थप्पड़ मारे जाता है l वह भी नीचे गिर जाता है l बाकी दो गार्ड्स में से एक
गार्ड - अरे पागल हो गया क्या... क्यूँ मारे जा रहे हो...

विश्व उसे देखता है, फ़िर उसे पकड़ कर थप्पड़ मारने लगता है l यह सब ऐसकॉट में बैठा ना सिर्फ़ विक्रम बल्कि शुभ्रा और रुप भी देख रहे थे l विश्व जिस तरह से विक्रम के गार्ड्स को थप्पड़ों से ट्रीट कर रहा था उसे देख रुप की हँसी निकल जाती है जिसे विक्रम सुन लेता है l विक्रम गुस्से से पीछे मुड़ कर देखता है तो रुप अपनी भाभी के पीछे दुबक जाती है l इतने में पीछे वाली गाड़ी से बाकी चार गार्ड्स आ पहुँचते हैं I विक्रम अपनी गाड़ी की खिड़की की काँच उतारते हुए l

विक्रम - क्या हो रहा है वहाँ... कौन है वह.. क्या प्रॉब्लम हुआ है...
एक गार्ड - सर... इसी लड़के की माँ की साड़ी.. फंस गई थी हमारी गाड़ी में...
विक्रम - व्हाट... इस बात के लिए वह हमारे लोगों को मारेगा... तुम लोग ESS के ट्रैंन्ड कमांडोज हो... जाओ अपने स्टाइल से इसे सॉल्व करो...
गार्ड्स - यस सर....

फिर एक गार्ड जो विक्रम के पास खड़ा था वह अचानक विश्व के तरफ भाग कर एक फ्लाइंग किक मारता है l विश्व उसके लिए तैयार नहीं था l किक लगते ही विश्व कुछ दूर जा कर गिरता है l

वह गार्ड - ऐ... उठो रे सब.. हम.. ESS के कमांडोज हैं.... कोई ऐरा गैरा नथु खैरा नहीं हैं... चलो इसको सबक सीखते हैं...
यह सुन कर सभी गार्ड्स उठ खड़े होते हैं l विश्व भी उसकी बातेँ सुन कर खड़ा होता है l वह गार्ड जिसने विश्व को फ्लाइंग किक मारा था वह फ़िर से विश्व की ओर भागता है विश्व भी उसके तरफ भागता है l गार्ड जम्प लगा कर फ्लाइंग बैक किक मारता है जवाब में विश्व भी उसी समय फ्लाइंग राउन्ड हाउस किक मारता है l गार्ड की किक लगने से पहले विश्व की किक लगती है और वह गार्ड हवा में ही किक के इम्पैक्ट से साइड में खड़े एक कार पर गिरता है जिससे उस कार की सिक्युरिटी अलार्म बजने लगता है l उस गार्ड के गिरते ही बाकी गार्ड्स विश्व को हैरानी भरे नजरों से देखने लगते हैं l विक्रम भी अपनी गाड़ी से उतर जाता है l

बाकी बचे सातों गार्ड एक दुसरे को इशारा करते हुए विश्व को घेरते हैं और पोजिशन लेते हैं l

विश्व - (उन गार्ड्स से चिल्ला कर) तुमने जिसे बुढ़िया कहा और अपनी गाड़ी के पीछे घसीटा है... वह मेरी माँ है... बेहतर यही होगा... तुम सब उनके पैरों पर गिर माफी मांग लो... चलो...
उन गार्ड्स में से एक - नहीं तो....
विश्व - नहीं तो... तुम लोग अपने गाड़ी से नहीं... एम्बुलेंस से बाहर निकलोगे...

सभी गार्ड्स जो विश्व को घेरे हुए थे उनमे से एक विश्व को पीछे से किक उठा कर हमला करता है l विश्व आसानी से डॉज करते हुए बच जाता है और घुटने पर बैठ कर फ़ॉन्ट हाउस किक मारता है जिसे वह गार्ड पीठ के बल गिरता है l उसके बाद दुसरा सामने वाला पुश किक मारता है विश्व लोअर डाउन वार्ड डॉज करता है फिर एक जाब पंच उसके पसलियों पर मारता है l तीसरा गार्ड साइड किक मारता है उससे बचते हुए एक फ़ॉन्ट हूकींग किक गार्ड के ठुड्डी पर मारता है l चौथा गार्ड विश्व के चेहरे पर पंच मारने वाला होता है विश्व घुम कर एक क्रॉस एलबॉ मारता है जो उसके चेहरे पर लगता है l फिर विश्व झुक कर घुटनों के बल स्किड करते हुए पाँचवे गार्ड के पास खड़े हो कर एक अपर कट पंच मार देता है l छटा गार्ड विश्व पर छलांग लगाता है विश्व थोड़ा झुक कर उसे हवा में ही उठाकर फेंक देता है और सातवें को घूम कर दोनों हाथों का डबल हामर पंच मारता है l सब के सब नीचे गिरे पड़े हैं l

विक्रम हैरान हो कर विश्व को देखता है l यही हालत रुप और शुभ्रा की भी है l क्यूँ के जो भी हुआ सब कुछ सेकेंड में हो गया था l ESS के हाईली ट्रेंड आठ कमांडोज कुछ ही सेकंड में धुल चाट रहे थे l विश्व एक गार्ड को उठाता है और उसके कलर पकड़ कर घसीटते हुए लेकर जाने लगता है l

विक्रम - ऑए... (चिल्ला कर) ऑए लड़के... यह क्या हो रहा... वह हमारा आदमी है... छोड़ो उसे...
विश्व - (उस गार्ड को पकड़े हुए रुक जाता है) यह मेरी माँ का गुनहगार है... जब तक माफी नहीं मांग लेता... तब तक यह कहीं नहीं जा सकता है...
विक्रम - ऑए...(गुर्राते हुए) जानता है किससे बात कर रहा है... किसके आदमियों से पंगा ले रहा है... छोड़ दे उसे...
विश्व - (उस गार्ड को उठाकर दो और थप्पड़ मार देता है) अगर यह तेरे दम पर मेरी माँ से बत्तमीजी की है... तो माफी माँगना अब तेरा बनता है.... या तो यह माफी मांगेगा या फिर तु... फैसला कर लो...
विक्रम - क्या... माफी.. वह भी हम... हम कुछ मांगते नहीं है... या तो देते हैं... या फिर छिनते हैं... लगता है तेरी मौत तुझसे बुलवा रहा है...

विश्व - फैसला कर ले... या तो यह... या फिर तु...

तभी कुछ गार्ड्स उठ खड़े होते हैं l उनमे से एक


गार्ड - सर हम इसे देख लेंगे... आप... आप गाड़ी में बैठिए...
विक्रम - (उन गार्ड्स से) उठो... संभलो... इसे पकड़ कर इतना मारो... के फिर कभी किसीसे जुबान लड़ाने पहले... सौ बार सोचेगा...

विक्रम के इतने कहते ही सातों गार्ड्स अपनी पुरी ताकत लगा कर विश्व को पकड़ने भागते हैं l विश्व जिस गार्ड को पकड़ा हुआ था उसके कनपटी पर एक घुसा जड़ देता है l वह गार्ड वहीँ नीचे ढेर हो जाता है l इतने में विश्व को बाकी बचे सात गार्ड्स आकर फिरसे घेर लेते हैं l विश्व अब अपने सामने वाले को छकाकर पीछे खड़े गार्ड को एक बैक राउंड हाउस किक मारता है फिर सामने वाले को फ़ॉन्ट थ्रॉस्ट किक फिर तीसरे के पेट में पंच फिर घूम कर कोहनी गाल के ऊपर आँख के नीचे l चौथा जिस तेजी से विश्व की ओर आता है विश्व उसीकी तेजी को इस्तमाल करके उठा कर फेंक देता है फिर बाएं घुटने पर बैठ कर दाएं पैर की लोअर स्पिन टर्न किक मारता है जिससे पांचवां पीठ के बल गिर जाता है l विश्व उठकर छटे पर छलांग लगा कर घुटना मोड़ कर सीने पर मारता है l फिर पलट कर एक साइड किक पांचवे को, इतने में सातवां विश्व को घुसा मारता है विश्व पीठ को पीछे की ओर मोड़ कर बचता है फिर वह जैसे वह सातवां विश्व की ओर मुड़ता है विश्व एक जबरदस्त हामर पंच उसके नाक पर जड़ देता है जिससे उस सातवें गार्ड की नाक कचूमर बन जाता है और वह नीचे गिर कर छटपटाने लगता है l पुरा कर पुरा दृश्य एक्शन रीप्ले की तरह ही दिखा कुछ ही सेकंड में सभी ढेर, फिर विश्व पहले से अधमरे हो चुके सभी गार्ड्स को विक्रम के सामने किसी खिलौने की तरह उठा कर सबको बारी बारी से पटक देता है l इतने में विक्रम एक फ्लाइंग किक मारता है, किक विश्व के चेहरे पर लगती है और विश्व दूर छिटक कर गिरता है l विश्व उसके लिए तैयार बिल्कुल नहीं था विक्रम के देखते हुए विश्व खड़ा होता है l विक्रम विश्व के पास आकर रिवर्स फ़ॉन्ट राउन्ड हाउस किक मारता है l पर इस बार विश्व अपनी जगह से हिलता भी नहीं है l विक्रम तरह तरह से पंच किक आजमाने लगता है विश्व सबको आसानी से और फुर्ती से डॉज करने लगता है फिर एक मंकी ब्लॉक लेकर विक्रम के पेट में एक ताकत भरा पंच मार देता है l विक्रम कुछ दूर स्कीड हो कर गीर जाता है l थोड़ी देर बार वापस खड़े हो कर पोजीशन बनाने की कोशिश करता है कि तभी विश्व उसके तरफ दौड़ कर जम्प लगा देता है और दायां घुटने को मोड़ कर शॉट हिट करता है जो सीधा विक्रम के चेहरे पर लगती है और विक्रम उड़ते हुए अपनी ही ऐसकॉट पर गिरता है l गाड़ी के भीतर यह देख कर शुभ्रा और रुप डर जाते हैं l विश्व अब बेकाबु हो चुका था वह विक्रम को मारने के लिए दौड़ लगाने वाला ही था कि उसके कानों में प्रतिभा की आवाज पड़ती है

प्रतिभा - प्र.. ता....प...(विश्व रुक जाता है l और पीछे मुड़ कर देखता है) बस बेटा... बहुत हो गया... जाने दे...
विश्व - नहीं माँ...(अपनी दांतों को चबाते हुए) जब तक यह कंजर्फ तुमसे माफी नहीं मांगेगा... मैं इसे नहीं छोडूंगा...
प्रतिभा - तु... (कराहते हुए) तु मेरी बात... नहीं मानेगा...

विश्व कुछ नहीं कहता सिर झुका कर विक्रम और उन गार्ड्स सबको उन्हीं के हाल में छोड़ कर प्रतिभा की ओर जाने लगता है l विक्रम के लिए यह बर्दास्त के बाहर था वह गाड़ी के ऊपर से लुढ़क कर विश्व पर चिल्लाता है

विक्रम - ऑए... कमीने... हराम जादे... तुने किससे पंगा लिया है... नहीं जानता है तु...

विश्व उसे मुड़ कर देखता है l प्रतिभा विश्व को फ़िर से आवाज देती है (नहीं प्रताप नहीं...) l इसलिए विश्व वापस प्रतिभा की ओर जाने लगता है l

विक्रम - आज... तुने किसकी हुकूमत से टकराया है... जानता है तु.... नहीं जानता है ना...

विश्व पीछे मुड़ कर नहीं देखता और सीधे प्रतिभा के पास पहुँच जाता है l

विक्रम - तुने अपनी मौत को छेड़ा है... जानता है... मेरा बाप कौन है
विश्व - (मूड जाता है और कहता है) क्यूँ... तु नहीं जानता... तेरा बाप कौन है... तो जा... जाकर अपनी माँ से पुछ... वह बताएगी तेरा बाप कौन है... (कह कर मूड जाता है और प्रतिभा के साथ जाने लगता है)
विक्रम - (यह सुन कर शुन हो जाता है) (फिर होश में आता है) या.... आ... आ.. (चिल्लाता है) भैरव सिंह क्षेत्रपाल.... मेरे बाप का नाम... अब तु अपनी जिंदगी के दिन गिनना शुरू कर दे... हराम जादे...

विश्व यह नाम सुनते ही रुक जाता है, उसके आँखों में खुन उतर आता है, उसके सारे जिस्म थर्राने लगता है, प्रतिभा भी उसके चेहरे को देख कर डरने लगती है l विश्व जल्दी से पीछे मुड़ता है और विक्रम के पास पहुँच कर एक जोरदार फ्रंट थ्रस्ट किक विक्रम के सीने पर मारता है l इसबार विक्रम अपनी गाड़ी के कांच के उपर गिरता है l कांच पुरी तरह से टूटती तो नहीं पर कांच में मकड़ी की जाल की तरह क्रैक्स पड़ जाते हैं l विश्व जम्प लगा कर गाड़ी की बोनेट पर चढ़ जाता है और विक्रम के कलर पकड़ कर जैसे ही पंच मारने को होता है शुभ्रा गाड़ी से उतर कर

शुभ्रा - भैया.... प्रताप भैया... (अपनी मंगलसूत्र को दिखाते हुए) प्लीज भैया... (गिड़गिड़ाते हुए) प्लीज...(रोने लगती है)

विश्व - (शुभ्रा को देख कर और उसकी बिनती के वजह से अपना हाथ रोक देता है, पर विक्रम से) सुन बे क्षेत्रपाल के चुजे... तेरा हर काम.. वह क्षेत्रपाल ही करेगा क्या... फ़िर तु क्या करेगा... या फिर तुझसे कुछ होता नहीं... इसलिए कुछ करने के लिए... तुझे क्षेत्रपाल टैग चाहिए... हाँ... (विक्रम के मुहँ से नाक से खुन बह रहा है, गहरी गहरी सांसे लेते हुए गुस्से से विश्व को देखते हुए) तुम लोगों ने मेरी माँ के साथ जो बत्तमीजी की... उसके लिए... कायदे से जान से मार देना चाहिए था... पर (शुभ्रा को दिखाते हुए) इन्हें अनजाने में सही बहन कहा है... इनके साथ उस रिश्ते का लिहाज करते हुए तुम लोगों को छोड़ रहा हूँ...
 
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