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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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Rajesh

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👉अट्ठाइसवां अपडेट
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सातपड़ा चेट्टीस् गेस्टहाउस
ओंकार चेट्टि - छोटे राजा जी... आप धैर्य रखें... सब ठीक हो जाएगा... मैं तो कहता हूँ... आप यहाँ चीलीका में.. बोटिंग और फीसींग का मजा लीजिए.... और आपके बंदों कों.... उनका काम करने दीजिए...
पिनाक - मुझे इन दोनों पर पूरा भरोसा है.... सच कहूँ तो राजा साहब कभी भी कोई टेंशन नहीं लेते.... क्यूंकि सारे टेंशन हमे ही उठाने पड़ते हैं... विश्वास न होगा आपको ओंकार जी... यही टेंशन ढो ढो कर शरीर अब हाइपर टेंशन का शिकार है....
ओंकार - अरे आप ऐसे ना कहिए... छोटे राजा जी.. एक मामूली सा केस ही तो है.... आज नहीं तो कल ही सही... हमारी एसआइटी ने जब विश्व को दोषी ठहराया है... तो अदालत भी उसे सजा देगी जरूर... अरे भाई सरकार अपनी है... और राजा साहब भी तो हमारे अपने हैं....
पिनाक - हाँ... किस्सा घोटाले में... हिस्सा सबका अपना अपना... पर टेंशन सिर्फ़ मेरा...
बल्लभ - ऐसे ना कहिए... छोटे राजा जी... हमे भी कहाँ दिन का चैन और रात का सुकून है.... सब कुछ छोड़ छाड़ कर... राजा साहब जी के लिए... दिन रात एक कर रहे हैं...
ओंकार - देखिए... यह बहुत गलत बात है... आप राज्य के स्वास्थ्य मंत्री के गेस्ट हाउस में... स्वास्थ मंत्री के सामने बैठे हुए हैं.... और यह रोग और वैराग की बात ना करें... अछा नहीं लगता.....
रोणा - मैं तो पहले से ही कहता था... ठोक देते हैं.. पर किसीने मेरी सुनी ही नहीं.... विश्व को ठोक दिए होते... तो यह झंझट जी नहीं रहता....
पिनाक - अबे... गोबर दिमाग.... तुझे पुलिस में भर्ती कौन किया बे... एक तो इतने बड़े रकम की हड़प... ऊपर से हत्याएं... केस अगर केंद्र सरकार के हाथ चली गई होती.... तो लेने के देने पड़ जाते....
बल्लभ - छोटे राजा जी ठीक कह रहे हैं.... केस जब तक अपनी सरकार और सिस्टम के पास है.... तब तक आस है...
पिनाक - क्या मतलब है बे तेरा.... आस है.... अबे तेरा दिमाग ठीक से चला..... नहीं तो कुछ देर बाद कहेगा... गले में फांस है...

बल्लभ - छोटे राजा जी... मैं वकील हूँ... हर तरह के... सिचुएशन के लिए खुदको तैयार रखता हूँ.... ताकि वक्त पर सिचुएशन को सही तरीके से टैकल किया जा सके....
ओंकार - देखिए... छोटे राजा जी.... आपका यह बल्लभ.... मुझे तो बंदा सही लग रहा है.... हमने अपने अपने लेवल पर.... जितना हो सके.... कोशिश कर तो रहे हैं... अब देखिए... सीएम साहब से राजा साहब की.... कैजुअली बात हुई थी.... हमने होम मिनिस्टर को लपेटे में.... लेकर अपना एसआइटी बना दिया... अब सीएम साहब को थोड़े ना मालूम है... क्या हुआ है... और कैसे हुआ है...
पिनाक - पर होम मिनिस्टर को तो मालुम था ना.... उसे कोई और वकील नहीं मिला सिफारिश के लिए....
ओंकार - छोटे राजा जी.... सिफारिश होम मिनिस्टर ने नहीं... कानून मंत्री ने किया था.... अब उसे थोड़े ही मालूम था... वह साला बुड्ढा राजी हो जाएगा.... पर कोई नहीं... एसआइटी की टीम और बाकी प्यादे तो अपने हैं ना.... और पूरे देश को मालुम भी तो होना चाहिए.... के न्याय सबके लिए बराबर है....
मतलब... न्याय के तराजू में.... कभी एक पलड़ा भारी तो कभी दुसरा पलड़ा भारी... हो तो खबर में... विश्वसनीयता बनी रहती है.....
पिनाक - ठीक है.... पर... अभी तक... वह आया नहीं.....
ओंकार - आ जाएगा... आ जाएगा... आख़िर.... सबसे छुपकर... उसे आना है...
थोड़ी देर बाद एक नौकर आकर कहता है कोई आया है l
ओंकार - लीजिए... छोटे राजा जी... आपने शैतान को याद किया.... और वह हाजिर हो गया.... जाओ बुला कर अंदर लाओ उसे....
नौकर चला जाता है और थोड़ी देर बाद एक आदमी अंदर आता है l कोई सरकारी महकमा का मुलाजिम लग रहा था l
ओंकार - आओ... आओ... बर्खुर्दार आओ... आते वक्त किसीने देखा तो नहीं...

आदमी - जी नहीं... हाँ अगर कटक या भुवनेश्वर होता तो... शायद किसीके नजर में आ सकता था.... पर यहाँ सातपड़ा में.... कोई भी मुझे ट्राक नहीं कर सकता.... वैसे भी... आई एम प्रोफेशनल....
ओंकार - ठीक है... डींगे मत मार.... अब काम की बातें कर लें....

आदमी - जी... जरूर...
बल्लभ - परसों... पहली पेशी आपकी होगी मिस्टर परीडा जी....
परीडा - क्यूँ... ऐसा क्यूँ...
बल्लभ - क्यूँकी आपको... टेक्निकली समन सबसे पहले प्राप्त हुई.... इसलिए....
परीडा - ठीक है... फिर आगे क्या करना होगा...
बल्लभ - आपको... अपनी बयान पर टिके रहना होगा.... मेरा मतलब है... आप बयान कुछ ऐसे देंगे.... के हमारी केस की नींव मजबूत होगी.... जिसपर हम अपनी झूठ की इमारत खड़ी कर सकें...
परीडा - ह्म्म्म्म... पर मुझसे शुरू करने का मतलब....
बल्लभ - आप... एसआइटी के चीफ ऑफिसर हैं... इसलिए हमने जो प्लॉट बनाए हैं.... उस पर झूठ की नींव को आपकी बयान मजबूत करेगी....
परीडा - ठीक है.... और मुझे कहना क्या होगा....
पिनाक - अभी तो तुमने कहा.... यु आर अ प्रोफेशनल....
परीडा - ठीक है... आई विल मैनेज...
ओंकार - देखो बर्खुर्दार... शरूआत तुमसे ही रही है... अब केस की दारोमदार तुम पर है...
परीडा - ठीक है... अगर काम परफेक्ट हुआ... तो क्या इंसेंटिव मिलेगा....
पिनाक - मिलेगा... और अगर... गलती हो गई.... तुम्हें... रंग महल याद है ना....
परीडा - (अपनी थूक निगलते हुए) जी... छोटे राजा जी... य.... याद है...
पिनाक - काम अच्छा हो तो कीमत अच्छी होती है... और काम गलत हो जाए तो अंजाम भी अनुरूप होती है...
परीडा - जी तो फिर काम अच्छा ही होगा....

पिनाक - तो फिर इंसेंटिव भी मिलेगा....
तभी कोई चिल्लाता है
- हजूर, मालिक, माई बाप... कुछ छींटे हम पर भी मार दीजिएगा....

यह आवाज़ सबका ध्यान अपनी ओर खिंचता है l सब आवाज़ की तरफ देखते हैं l एक धोती और कुर्ता पहने, चमेली के तेल में भिगा हुआ सर के साथ एक अधेड़ उम्र का आदमी खड़ा है l अपनी मुँह में पान चबाते हुए और कंधे में पड़े गमछे से मुहँ को साफ करते हुए अपनी काले दांत दिखा कर हंसते हुए
- हजूर... हम भी आपके नाव में... हैं... आप तो पुर्ण गंगा हैं.... आप जिसे चाहें... उससे डुबकी लगवा दें... हम पर इतना कृपा रखें... थोडे थोड़े छींटे मारते रहें...
पिनाक - आ गया कुत्ता...
आदमी - ही.. ही.. ही.. जी मालिक... आपका वफादार कुत्ता... काटना हमारा स्वभाव नहीं है... बस अभाव ही अभाव है... जब राजा साहब थुकते हैं... हम जाकर चाटते हैं... ही.. ही.. ही.
ओंकार - अब यह जोकर कौन है....
परीडा - यह है... दिलीप कर... हमारा पहला सरकारी गवाह...
कर - जी... मैं.. कर... छोटे राजा जी के सेवा में उपस्थित हूँ...
बल्लभ - इसे मैंने ही बुलाया है.... इस वक्त यहां पर... तीन प्रमुख गवाह मौजूद हैं... परीडा, कर और रोणा... चौथा अभी तक नहीं पहुंचा....
ओंकार - छोटे राजा जी... आपका यह कर... बहुत ही बेशरम, बेग़ैरत इंसान है... क्यूँ भई... तुझे हमारे नौकर या गार्ड्स ने रोका नहीं...
कर - जी रोका ना... रोका... पर मैंने उनके हाथ पकड़ लिए.... पैर पकड़ लिया... रोया... गिड़गिड़ाया.... तब जाकर मेरे दुख को वह समझ कर मुझे छोड़ दिए... ही.. ही ही
पिनाक - तभी तो इसको कुत्ता बोला.... अभी आप कुछ ही देर में समझ जाओगे... आओ सभी बैठते हैं... और आगे की सोचते हैं....
पिनाक और ओंकार एक बड़े से डबल सीटेड सोफ़े पर बैठ जाते हैं l बल्लभ और परीडा भी एक एक सिंगल सीट सोफ़े पर बैठ जाते हैं l पर रोणा एक टेबल पर बैठ जाता है और दिलीप कर नीचे फर्श पर ग़मछा बिछा कर बैठ जाता है l ओंकार उसे ऐसे नीचे बैठा देख कर हंसता है
ओंकार - वास्तव में छोटे राजा जी.... क्या नमूना है... यह..
पिनाक - पर प्रधान... तुमने सुबुद्धी को नहीं बुलाया था क्या...
बल्लभ - बुलाया था.... और उसे कर के साथ आने के लिए कहा भी था....
पिनाक - फिर वह आया क्यूँ नहीं....
कर - मालिक... मैं थोड़ा... कउं...
पिनाक - हाँ भोंक...
कर - मालिक... जबसे उसने अदालत से अपने नाम का समन के बारे में सुना.... तब से उसे डायरिया हो गया... वह अपने परिवार समेत कहीं गायब हो गया है.....
बल्लभ - इसका मतलब.. अब अदालत में जिरह सिर्फ़ तीन लोगों की होगी....
रोणा - क्यूँ..... राजा साहब जी को भी तो समन गया होगा....
बल्लभ - हाँ... मैंने नये एडीएम पत्री को कह कर... राजगड़ से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए... वह अदालत को अपनी गवाही देंगे... ऐसा इंतजाम कर दिया है....
रोणा - क्या... अदालत इसके लिए तैयार होगी....
बल्लभ - हाँ.. तैयार होगी.... पत्री ने सारा इंतजाम कर दिया है....
पिनाक - बहुत अच्छा किया.... प्रधान.... वरना राजा साहब... गवाही के लिए... कटक आते.... तो अच्छा नहीं होता....
ओंकार - तो अब....
बल्लभ - अब मेरे पास केस की पूरी डिटेल्स है.... अब मैं इस केस की डिटेल्स पढ़ूंगा.... और आप सबको आपको भूमिका समझाउंगा.... ध्यान रहे.. जयंत... ट्रिक करेगा.... पर आप में से कोई... उसमें फंसेगा नहीं.... टस से मस नहीं होगा.... इज़ ईट क्लीयर...
परीडा और रोणा - येस..
कर - जी.. जी... बिल्कुल जी... मेरा भी पूरा येस जी....

फिर बल्लभ केस डिटेल्स पढ़ कर सबको उनकी भूमिका समझाता है l सब अपनी अपनी भूमिका समझ कर सब बल्लभ को हाँ कहते हैं l ओंकार उनकी बातों को ध्यान लगा कर सुन रहा है पर पिनाक किसी खयाल में खोया हुआ है l तभी ओंकार ताली मारते हुए
-आओ... आओ मेरे जिगर के टुकड़े आओ... सो जेंटलमैन... दिस इस माय सन.... आ हा हा... मेरा बेटा...
सबकी नजरें उस तरफ घुम जाती है l एक नौजवान पूरा का पूरा सफेद लिबास में उस कमरे में प्रवेश करता है l सिर्फ उसके गले का स्कार्फ और गॉगल लाल रंग का है l अपने चेहरे पर मुस्कान लिए खड़ा होता है l
ओंकार - लुक एट हिम... आ हा हा... माय सन... यश... यशवर्द्धन ईश्वर चंद्र चेट्टी... हमे राजनीती की मैदान में जिस तरह ओआईसी कहा जाता है.... इसे उसी तरह पूरे बिजनैस की दुनियां में वाइआइसी कहा जाता है.... आ हा हा....
सब उसे देख रहे हैं और वह भी सबको देख कर हाइ कहता है, जवाब में सब उसे हाइ कहते हैं l

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प्रत्युष अपने कमरे में मजे से सोया हुआ है l आज रविवार है इसलिए रात भर पढ़ते पढ़ते देर को सोया था l प्रतिभा प्रत्युष के कमरे में आती है l आते ही उल्टे झाड़ू से प्रत्युष के पिछवाड़े पर मारती है l
प्रत्युष - उइ माँ... आ... मर गया रे... आ.. ह...
प्रतिभा फौरन झाड़ू को पलंक के पास छुपा देती है
प्रतिभा - ओ हो.. क्या हुआ मेरे लाल को... क्यूँ चिल्ला रहा है... मेरा बच्चा....
प्रत्युष - (अपनी आँखों को मलते हुए) आह माँ... क्या बताऊँ... तेरे लाल को ना.... सपने में कोई मार रहा था....

प्रतिभा - ओ हो... चु.. चु... चु.... मेरे लाल को सपने में कोई मार रहा था..... कोई नहीं... अब सच में तुझे मार पड़ेगी... हाँ.... (कह कर प्रतिभा नीचे छुपाई हुई झाड़ू निकालती है)
प्रत्युष - (हैरानी से) क्या कहा आपने माँ...
प्रत्युष - तुझे सपनें में नहीं.... तुझे सच में जगाते हुए... मारना चाहिए...
प्रत्युष - ऐ... माँ... रुक रुक.... यह कौनसा अवतार है तेरी...
प्रतिभा - नालायक सुबह के दस बज रहे हैं... अभी भी घोड़े बेच कर सोया हुआ है.... चल उठ..
प्रत्युष - घोड़े बेचकर नहीं माँ... किताबें पढ़ कर....
प्रतिभा - अब तु उठेगा या पीटेगा...
प्रत्युष - वह लाल ही क्या माँ... जो माँ के हाथों से पीटते पीटते लाल ना हो जाए.....(कह कर फिरसे सो जाता है)
प्रतिभा - तो ठीक है... आज तो तु सच में लाल हो जाएगा... (कह कर प्रतिभा फिर झाड़ू से मारती है)
प्रत्युष अब झटपट से अपनी बिस्तर से उठ कर भाग जाता है l उधर ड्रॉइंग रूम में तापस अपनी वकींग शु उतार रहा है l उसे देख कर
प्रत्युष - डैड... सुबह के दस बजे... आप वकींग से लौट रहे हैं.... कितनी शर्म की बात है... माँ... मेरी माँ... मेरी प्यारी माँ... आज आपके वजह से... आपका गुस्सा मुझ पर उतार दिया है....
तापस - सुनो मिस्टर घन चक्कर.... अभी सिर्फ सुबह के आठ बजे हैं....
प्रत्युष - क्या.... पिताजी.... (रोते हुए) आ.. हा हा आ.. मुझे गले से लगा लीजिए पिताजी... आज जिंदगी में पहली बार माँ ने मुझे झाड़ू से मारा है....
तापस - अरे वाह... आज इस ऑकेजन को सेलिब्रिट करना चाहिए...
प्रत्युष - क्यूँ... माँ ने मुझे झाड़ू से मारा इसलिए...
तापस - नहीं मेरे पीले... तुने आज डैड को पिताजी कहा इसलिए...
प्रत्युष - हाँ... तब तो.. सेलिब्रेशन बनता है...
प्रतिभा - और सेलिब्रेशन के लिए.... हम आज बाहर जा रहे हैं....
प्रत्युष - कहाँ....
प्रतिभा - जहां तेरे पिताजी ले जाए....
प्रत्युष - तब तो आप एक काम करो माँ... आप लोग तैयार हो जाओ.... मैं अभी गया तैयार हो कर यूँ अभी आया....
तापस - अरे नामाकूल कितना टाइम लगेगा तुझे....
प्रत्युष - अरे फ़िकर नॉट... आप बस पांच मिनिट ठहरो... मैं एक घंटे बाद आया... (कह कर वापस अपने कमरे में घुस जाता है)
प्रतिभा - है.. भगवान... कितनी मुश्किल से उठाया... यह फिर अंदर घुस गया....(कह कर प्रत्युष के कमरे की ओर जा रही होती है कि तापस उसके हाथ पकड़ कर अपने पास बिठाता है,
तापस - क्या बात है जान...
प्रतिभा - क्या हुआ.. कुछ भी तो नहीं...
तापस - देखो... हम दोनों... एक दुसरे को अच्छी तरह से जानते हैं और समझते हैं..... तुम्हारे भीतर कुछ चल रहा है...जिसे तुम छुपाने की कोशिश कर रही हो...
प्रतिभा - सेनापति जी.... (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) एक्चुआली... मैंने जब पहली बार.... कोर्ट में केस लड़ा था... तब मुझे जैसा लग रहा था... आज इस केस में मुझे बिल्कुल वैसा ही लग रहा है... मैं सच में.. नर्वस फिल् कर रही हूँ... क्यूँ की असली एसीड टेस्ट कल से शुरू होगी....
तापस - जान... मैंने तब भी कहा था... आज भी कह रहा हूँ.... यह केस भी तुम्हारी हर पिछली केस की तरह है... जिन्हें आज तक तुमने लड़ा है.... इसे अपने दिल व दिमाग पर हावी मत होने दो.... ना तुम्हारा उस विश्व से कोई संबंध है... और ना ही उसे सजा दिलाने पर तुम्हें कोई पछता वा होना चाहिए..... बी प्रोफेशनल... जान
प्रतिभा - आप ठीक कह रहे हैं... सेनापति जी... मन नहीं लग रहा था.... इसलिए प्रत्युष छेड़ रही थी....
इतने में प्रत्युष बिल्कुल तैयार हो कर बाहर निकलता है
प्रत्युष - यह देखो माँ,... मैं तैयार हो गया.... टैन टैना....
प्रतिभा - तु.... तैयार हो गया....
प्रत्युष - यो...
प्रतिभा - नहाया, धोया है भी या नहीं....
प्रत्युष- उसकी क्या जरूरत है.... मैं सिर्फ कपड़े बदलकर आ गया...
प्रतिभा - क्या.... तूने नहाया नहीं है.... ब्रश भी किया है.. या वह भी नहीं....
प्रत्युष - ओह.... माय डियर माँ... तुमने कभी हाती को देखा है.... ब्रश करते हुए....
तापस - अब यह उल्टा झाड़ू खाएगा... मैं निकल लेता हूँ....
प्रतिभा झाड़ू को उल्टा करती है और प्रत्युष को गुस्से से देखती है l
प्रत्युष - वह देख माँ... डैड मुझे छोड़ कर भाग रहे हैं....
प्रतिभा पीछे मुड़ कर देखती है l तापस वहीं खड़ा मिलता है l जब प्रत्युष के तरफ मुड़ती है, प्रत्युष को गायब पाती है l प्रतिभा की हालत देख कर तापस अपनी हंसी रोक नहीं पाता है l प्रतिभा उसे गुस्से से देखती है और वह भी तापस के साथ हंसने लगती है l

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विश्व प्रताप महापात्र और मनरेगा घोटाले की सुनवाई में..... दोनों पक्षों के तरफ से.... अपनी अपनी दलीलें अदालत के समक्ष प्रस्तुत कर चुके हैं.... जहां एक तरफ अभियोजन पक्ष ने इस घोटाले में जहां विश्व प्रताप को मुख्य अपराधी के तौर पर प्रस्तुत किया... वहीँ अभियुक्त पक्ष ने इसे एक षडयंत्र कहा.... आज से गवाहों की जिरह आरंभ होने जा रही है... सूत्र बताते हैं कि आज एसआइटी के मुख्य श्री कृष्ण चंद्र परीडा जी से..... दोनों पक्ष अपनी अपनी तरीके से जिरह करेंगे... अभी अभी मुल्जिम को लाया जा चुका है.... और थोड़ी ही देर बाद अदालत की कारवाई शुरू हो जाएगी... आगे की खबर जानने के लिए आप लोग हमारे साथ जुड़े रहें.... कैमरा मैंन सतवीर के साथ मैं प्रज्ञा आपको स्टूडियो लिए चलती हूँ अरुंधति के पास....
एफएम बंद करता है बल्लभ l
रोणा - यार यह तुमने सही किया.... इस केस को उछालने के लिए रेडियो और टीवी वालों का संगम करा दिया... पर हम भी अंदर कारवाई देख पाते तो और भी अच्छा होता....
बल्लभ - क्यूँ... इतनी जल्दी क्या है.... परसों से वैसे भी हम कोर्ट रूम के अंदर ही होंगे...
रोणा - वह कैसे.... समन तो हमे हुआ है....
बल्लभ - अबे भूतनी के.... राजगड़ से जितने भी गवाह आयेंगे... सबका वकील मैं हूँ... और सारी जिरह मेरे सामने ही होगी.... ऐसा परमिशन मैंने ले ली है...
रोणा - तो... परीडा के लिए भी ले लेना था....
बल्लभ - वह मुमकिन नहीं था.... वह एक सरकारी अधिकारी है.... और उसकी पोस्टिंग भुवनेश्वर सेक्रेट्रिएट में है... वह अगर किसीको हायर... करेगा तो या तो कटक से या फिर भुवनेश्वर से....
रोणा - ओ... ऐसा कुछ टेक्नीकली... होता है क्या...
बल्लभ - हाँ.... और ज्यादा मत अंदर घुस... तु अपने साथ मेरा दिमाग भी खराब कर रहा है... (तभी बल्लभ के मोबाइल में एक मैसेज आता है, उस मैसेज को पढ़ने के बाद ) लो अब कारवाई शुरू हो गई है....

अदालत के अंदर
वीटनेस बॉक्स में परीडा खड़ा है और उसे गीता पर हाथ रख कर कसम खाने के लिए कोर्ट की एक मुलाजिम कह रहा है
- कहिए मैं गीता पर हाथ रख कर वचन देता हूँ... मैं अदालत को जो भी कहूँगा सच कहूँगा... सच के सिवा कुछ नहीं कहूंगा....
परीडा - मैं गीता पर हाथ रख कर वचन देता हूँ... जो भी कहूँगा सच कहूँगा... सच के सिवा कुछ नहीं कहूंगा....
अपनी कुर्सी से प्रतिभा उठती है और परीडा के पास आती है
प्रतिभा - हाँ तो परीडा जी... अभी अभी आपने कसम खाई है... की इस अदालत को सच बतायेंगे.... क्यूंकि जिस केस ने पूरे राज्य को हिला कर रख दिया है.... उसके मुख्य जांच अधिकारी आप हैं.... और जांच में आपने मुल्जिम श्री विश्व को अपराधी करार दिया है....
परीडा - जी...
प्रतिभा - चलिए फिर पहले आप अपनी परिचय को संक्षिप्त में बता दीजिए....
परीडा - जी मेरा नाम... कृष्ण चंद्र परीडा है.... मैं अभी सेक्रेट्रिएट में... होम सेक्रेटरी के अंडर कार्य कर रहा हूँ... इससे पूर्व मैं... आईबी में कार्यरत था...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म आई बी मतलब इंटेलिजंस बुरो... क्या यही वजह है कि आपको इस एसआइटी के लिए चुना गया....
परीडा - शायद....
प्रतिभा - परीडा जी आपकी एसआइटी कैसे बनी..... और कैसे ऑपरेट हुई... और कैसे आप लोग नतीजे पर पहुंचे... क्या विस्तार से प्रकाश डालेंगे....
परीडा - जी जरूर..... जैसा कि मैंने पहले बताया कि मैं सेक्रेट्रिएट में कार्यरत हूँ.... और होम सेक्रेटरी को रिपोर्ट करता हूँ.... एक दिन मुझे होम मिनिस्टर जी के ऑफिस से कॉल आया.... तो मैं तुरंत उनसे मिलने उनके कार्यालय में पहुच गया....
होम मिनिस्टर जी ने मुझसे कहा कि.... राजगड़ से राजा साहब यानी भैरव सिंह क्षेत्रपाल जी आए थे.... और उन्होंने मुख्यमंत्री जी से अपने इलाके में... मनरेगा घोटाले पर जांच की आग्रह किया है.... पर कुछ दिन के लिए इस जांच को गुप्त रूप से किया जाए.... तो मुख्यमंत्री जी ने उन्हें आश्वासन दिया है... की एक अंडर कवर टीम इस जांच को अंजाम देगी.... इसलिए मुझे यह दायित्व निभाने का अवसर दिया गया.... मुझे और तीन जनों की टीम में शामिल करने को कहा गया... तो मैंने अपने दो सबअर्डीनेट और एक चार्टर्ड अकाउंटेंट को शामिल किया और एक ऑडिट टीम की तरह यशपुर पहुंचे अपना काम को अंजाम देने के लिए....
प्रतिभा - ह्म्म्म्म अब तक ठीक है.... यशपुर पहुंचने के बाद आपने क्या किया.....
परीडा - जी यशपुर पहुंचने के बाद.... हमने राजा साहब जी से कॉन्टैक्ट की... चूंकि राजा साहब जी के शिकायत पर.... जांच आरंभ हुआ था.... इसलिए प्राथमिक गवाह के रूप में हमने राजा साहब जी का बयान लेने के लिए खबर भिजवाया.... राजा साहब जी ने हमको अपने महल में बुलाया.... और हमसे कहा कैसे विश्व को उन्होंने ही राजगड़ के विकास के लिए सरपंच बनने का आग्रह किया था....पर आज उन्हें अपने उस आग्रह पर बहुत पछतावा हो रहा है.... उन्हें दर-असल पंचायत समिति के एक सभ्य श्री उमाकांत आचार्य जी ने विश्व के करप्शन की जानकारी दी थी.... इसलिए पूरे सबूतों के साथ गिरफ्तार करने के लिए ही.... मुख्यमंत्री जी से एक निष्पक्ष जांच की आग्रह किया था.... तब मैं और मेरी टीम ने यह निश्चय किया कि... हम सबसे पहले श्री उमाकांत जी से मिलेंगे... तो राजा साहब ने अपने लोगों के जरिए.... श्री आचार्य जी को बुलावा भेजा था.... पर विडंबना यह रही कि राजा साहब जी के लोग... आचार्य जी मौत की खबर ले कर आए... आचार्य जी स्नान के लिए नदी के किनारे गए हुए थे.... तो वहाँ पर उन्हें सांप ने काट लीआ.... हमे घोटाले की सिरा मिलते मिलते रह गया था.... तो हमने यशपुर लौट कर तहसील ऑफिस की ऑडिट की तो पाया साढ़े सात सौ करोड़ रुपए का घोटाला सामने आया.... हम ने हर डाक्यूमेंट्स में... सिर्फ और सिर्फ विश्व के ही दस्तखत नजर आए.... पर हमे शक हुआ... कहीं विश्व को कोई फंसा तो नहीं रहा है.... इसलिए हम एक दिन तहसील ऑफिस के कर्मचारी बता कर विश्व से मिले.... तो पाया... श्री विश्व अपने करनी को बड़े शान से बखान कर रहे हैं.... तो हमने चालाकी से उनकी सिग्नेचर हासिल की... फिर सारे डाक्यूमेंट्स के सिग्नेचर से मिलान फॉरेंसिक लैब में कराया तो सही पाया.... इस बीच हमे इत्तेफाक से दिलीप कर मिले.... वह भी विश्व के जाल में फंसे हुए थे.... कभी वह विश्व के पिता के दोस्त हुआ करते थे.... उन्होंने यह भी बताया कैसे राजा साहब से इंकार करने के बाद उमाकांत आचार्य के साथ मिलकर विश्व को सरपंच बनने के लिए तैयार किया.... आज उसी निर्णय पर रो रहे हैं.... हमने उनकी पूरी कहानी सुनने के बाद... उन्हें सबसे पहले सरकारी गवाह बनाया.... फिर हमें जांच का सही सिरा मिल गया... कैसे पांच हजार मृतकों के आधार कार्ड के जरिए... मनरेगा के बकाया राशि को उनके अकाउंट में कैसे जमा कराया... कैसे मृतकों के नाम पर कॉन्ट्रैक्ट उठाया गया.... और उनके बैंक अकाउंट को इसिएस के जरिए राजगड़ उन्नयन परिषद यानी रूप के अकाउंट में पहुंचाया गया...... और जैसे ही पैसे रूप के अकाउंट में पहुंचे... मृतकों की मृत सर्टिफिकेट जमा कर बैंक अकाउंट को डी-ऐक्टिव किया गया.... यह सब जांच में हमने पाया.... राजगड़ पंचायत के सरपंच, यशपुर के तहसीलदार, बीडीओ, रेवेन्यू इंस्पेक्टर और बैंक मैनेजर यह पांचो इस घोटाले में प्राइम सस्पेक्ट निकले.... हमने जांच पूरी कर रिपोर्ट सौंपने होम मिनिस्टर जी से मिलने भुवनेश्वर गए.... रिपोर्ट सौंपते वक्त हमे खबर मिली... के एडिएम, बीडीओ फरार हो गए हैं... बैंक मैनेजर और तहसील ऑफिस के क्लार्क की हत्या हो गई और रेवेन्यू इंस्पेक्टर की गुमशुदगी की रिपोर्ट मिली.... कहीं विश्व भी हाथ से निकल ना जाए इसलिए हमने तुरंत देवगड़ एडिएम.... जो कि उस वक्त यशपुर तहसील के एडिशनल इंचार्ज भी थे... उनके हाथों विश्व के गिरफ्तारी की आदेश भिजवाया... होम सेक्रेट्रिएट के ऑफिस से.... बाकी सब आपके सामने है....
प्रतिभा - बहुत अच्छे... परीडा जी.... (जज के तरफ घूम कर) योर ऑनर यह संक्षिप्त विवरण था... कैसे विश्व को घोटाले की मुख्य अभियुक्त रूप जांच अधिकारी द्वारा... प्रस्तुत किया गया.... अब बचाव पक्ष... श्री परीडा जी से सवाल कर सकती है.....
जज - क्या डिफेंस.... श्री परीडा जी का क्रॉस एक्जाम करना चाहेगी...
जयंत - ऑफ कोर्स योर ऑनर.... जरूर....
जयंत - हाँ तो परीडा जी आपने अपने संक्षिप्त परिचय में कहा कि आप आईबी में पदाधिकारी थे.... और प्रमोशन के चलते सेक्रेट्रिएट में आए...
परीडा - जी....
जयंत - हाँ तो आप को होम सेक्रेट्रिएट से ऑर्डर मिला.... इसलिए आपने यह मनरेगा घोटाले की जांच शुरू की....
परीडा - जी...
जयंत - क्या आपको आश्चर्य नहीं लगा... के ऐसे अपराध की आप जांच कर रहे हैं.... जिस के ऊपर कोई लिखित अभियोग पत्र आपके पास नहीं है....
परीडा - जी.... वह... मैं.. मेरा मतलब है कि... हमे रिटीन ऑर्डर मिला था....
जयंत - और ऑर्डर में क्या लिखा था....
परीडा - जी सिर्फ जांच की रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए...
जयंत - जाहिर सी बात है... आपने वही किया भी... पर जब जांच रिपोर्ट आपने अदालत में सबमिट की... उसमे किस लिखित कंप्लेंट को आधार बना कर जांच किया बस यह नहीं बता पाए.... ह्म्म्म्म...
प्रतिभा अपने टेबल पर फाइलें पलट कर देखती है कि उसमें विश्व के खिलाफ या मनरेगा घोटाले की विरुद्ध कोई रिटीन कंप्लेंट नहीं है l
जयंत - योर ऑनर... यह राजा साहब के व्यक्तित्व ही है... जिनके मौखिक कंप्लेंट पर भी सिस्टम की हाई लेवल इंक्वायरी टीम ऐक्टिव हो गई....
प्रतिभा - आई ऑब्जेक्ट योर ऑनर.... मनरेगा का पैसा... सारे भारत वासियों का पैसा है... और कोई भी जागरूक नागरिक इस पर अपना विरोध मौखिक भी दर्ज करा सकता है.... इसमें यह कोई इशू नहीं है... क्यूंकि पुलिस भी फोन पर कंप्लेंट सुन कर हरकत में आती है.... प्रश्न है... जांच सही था या नहीं.... और यहां साढ़े सात सौ करोड़ रुपए की घोटाला सामने आया है.... इसलिए डिफेंस लॉयर... इसे किसीकी व्यक्तित्व को जोड़ कर ना देखें....
जज - सस्टैन.... डिफेंस लॉयर...अदालत को यह रिटीन कंप्लेंट की आवश्यकता यहां पर महसूस नहीं हो रही है.... आपको आगे पूछना है....
जयंत - जी... योर ऑनर...
जज - प्रोसिड...
जयंत - हाँ तो परीडा जी.... जांच के दौरान यशपुर में आप रुके कहाँ पर थे....
परीडा - जी.. यशपुर के सर्किट हाउस में....
जयंत - ह्म्म चूंकि आप सरकारी कार्य में गए थे... तो जाहिर सी बात है कि आप सर्किट हाउस में ही रुकते... वैसे... आप किस तरह की ऑडिटर बन कर गए थे...
परीडा - जी आरपीडीसी रेवेन्यू ऑडिटर बन कर...
जयंत - यह... आरपीडीसी होता क्या है...
परीडा - जी रूरल पेरिफेरल डेवलपमेंट कमेटी....
जयंत - तो आपने क्या पाया...
परीडा - जी कैसे प्रोजेक्ट कंप्लीशन सर्टिफिकेट और यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट देकर करोड़ों हड़प लिए गए...
जयंत - ह्म्म... यह मृत् लोगों के आधार कार्ड.. का क्या चक्कर है... परीडा जी...
परीडा - जी... सर... पहले जब काम शरू हुआ था... जिन कॉन्ट्रैक्टर्स को काम दिया गया था.... उनकी काम की क्वालिटी को देख कर.. उन कॉन्ट्रैक्टर्स को पहले ब्लैक लिस्ट किया गया..... फिर उन प्रोजेक्ट्स को कंप्लीट करने के लिए.... मृत् व्यक्तियों के आधार कार्ड का सहारा लिया गया.... उनके नाम पर कुछ फेक कंस्ट्रक्शन कंपनीयाँ बनाई गई.... और उनके नाम पर जो करंट अकाउंट बनाया गया था.... उन अकाउंट्स पर पैसे भेजे गए थे और उन अकाउंट्स से इसिएस के जरिए पैसे.... विश्व के बनाए एनजीओ रूप के अकाउंट को वापस आ जाती थी डोनेशन के रूप में..... और सर रूप के अकाउंट को ऑपरेट करने की अधिकार सिर्फ़ दो लोगों के पास था.... एक विश्व और दूसरे बैंक अधिकारी जिनकी बाद में हत्या हो गई....
जयंत - अच्छा.... ह्म्म्म्म.... एक अंतिम प्रश्न.... क्या विश्व के साइन किए सभी चेक के पैसे.... क्या मृतकों के अकाउंट को गई थी....
परीडा - जी सभी के सभी.... और मैंने उसकी लिस्ट भी दी है.... आप रिपोर्ट में देख सकते हैं...
जयंत - आर यू श्योर... (इतना कह कर जयंत फाइलों के सारे काग़ज़ को उलट पलट करने लगा) नहीं नहीं... पता नहीं पर शायद.... मुझे लगता है... विश्व के साइन किए सभी चेक.... कैसे... परीडा जी..... कहीं आप गलती तो नहीं कर रहे हैं....
परीडा - जी मैंने अपनी रिपोर्ट में... सबमिट किया है... आप देख सकते हैं...
जयंत - (अपनी कुर्सी पर बैठ कर अपने सर पर हाथ रख कर) नहीं मुझे देखने की कोई जरूरत नहीं.... (बड़े दुखी मन से) मैं बस आपसे इतना जानना चाहता हूँ.... क्या विश्व अपने सरपंच बनने के काल में शुरू से लेकर गिरफ्तार होने से पहले तक.... जितने भी चेक साइन किए... क्या वे सभी मृतकों के अकाउंट्स थे...
परीडा - जी हाँ.... मैं फिर से दोहरा रहा हूँ... विश्व के द्वारा साइन किए गए.... सभी चेक के पैसे मृतकों के अकाउंट को ही जाती थी....
फिर जयंत चुप हो जाता है और अपनी जगह पर पहुंच कर टेबल पर अपनी दाहिने हाथ की मुट्ठी से ठक ठक ठक कर मारता है l उसके चेहरे पर तनाव साफ़ दिख रहा है l
जज - डिफेंस लॉयर... क्या आपको और जिरह नहीं करना है....
जयंत - ह्म्म्म्म नो... नो योर ऑनर... बस... मुझे यही जानना था.... ठीक है... धन्यबाद... परीडा जी.... अगर जरूरत पड़ी तो आपको दोबारा यहाँ आना पड़ेगा...
यह सुन कर प्रतिभा के चेहरे पर एक खुशी भरी मुस्कान खिल उठी l
परीडा - जी मैं कानून और न्याय की सेवा करने के लिए... हमेशा से तैयार रहता हूँ...
जयंत - वेल... माय लॉर्ड... आज के लिए इतना ही.... अगर प्रोसिक्यूशन चाहें तो परीडा जी के जत किंचीत संचित ज्ञान से बंचित जिरह कंटीन्यु कर सकती हैं...
जज - क्या प्रोसिक्यूशन कारवाई को आगे बढ़ाएगी....
प्रतिभा - नो... माय लॉर्ड...
जज - तो फिर ठीक है... अगली सुनवाई... बुधवार को होगी.... आज के लिए कारवाई स्थगित किया जाता है.... टुडेस् कोर्ट इज़ एडजॉर्न.... (कह कर टेबल पर हथोड़ा मारता है)
सभी अपनी जगह पर खड़े हो जाते हैं l तीनों जज बाहर चले जाते हैं l उनके जाते ही, सभी कोर्ट रूम खाली करते हैं सिर्फ़ जयंत अपनी जगह बैठा रह जाता है l

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चेट्टीस् गेस्ट हाउस में
सब - चियर्स....
सब के हाथ में ग्लास है l ओंकार और पिनाक एक जगह पर बैठ कर हाथ में ग्लास लिए बैठे हैं l बार काउन्टर पर एक नौकर बैठा सबके लिए पेग बना रहा है और एक एक को बढ़ा रहा है लेकिन, सबसे ज्यादा खुश रोणा दिख रहा है l
रोणा - वाह.. वाह.. परीडा जी... वाह वाह... क्या बुनियाद रखा है आपने वाह.... पहली बार.... वह साला बुढ़उ गच्चा खा गया....
परीडा - चियर्स.... रोणा... चियर्स... अरे... ऐसे कितने जयंत देखे हैं.. मैंने... यह मुझे क्या लपेटता मैंने ही उसे लपेट लीआ.... हा हा हा हा
कर - (अपने दोनों हाथ जोड़ कर, नशे में धुत) मैं वहाँ आऊँ.... कुछ कउँ...
रोणा - बोल कुत्ते... आज जी भर के... कउँ.. कउँ... कर ले...
कर - ही.. ही.. ही... प.. परीडा स् साब जी.... आपने हमारी म...नरेगा... इमारत की... क्या नींव डाली है... अब ह् ह्.. हमारी बारी... हम दीवार उठाएंगे.... यह खाकी वाला छत डालेगा... और अंत में... राजा सहाब... टीवी से कीवाट लगाएंगे... स... साला कोई अंदर ही घुस नहीं पाएगा.... ही ही ही ही...
पिनाक - अभी तो कुछ भी नहीं है.... विश्व को सज़ा हो जाने दो.... फिर देखो क्या पार्टी होती है... वैसे... प्रधान... कितने साल के लिए अंदर जाएगा....
बल्लभ - कहना... मुश्किल है.... अगर हमारे लगाए चार्जस स्टैंड करते हैं... तो चौदह से बीस साल की सजा हो सकती है....
पिनाक - स्टैंड करती है... मतलब... अबे... स्टैंड... करेगी... नहीं तो.. बैसाखी लगवा कर... स्टैंड करवाना पड़ेगा... समझा...
ओंकार - अरे.. अरे... छोटे राजा जी...( एक नौकर को इशारा कर) ऐ छोटे राजा जी के ग्लास में... दो चार बर्फ के टुकड़े डाल.... (फिर पिनाक से) छोटे राजा जी... पी तो रहे हैं... हॉट ड्रिंक... पर कुल रहिए.. कुल...
रोणा - छोटे राजा जी.... आप यहां... स्टेट के स्वस्थ्य मंत्री के पास बैठे हुए हैं.... और आप वाइआइसी फार्मास्यूटिकल्स के गेस्ट हाउस में हैं.... यहां आपको हर मर्ज की दवा मिल जाएगी.... इसलिए शांत रहें...
पिनाक - हाँ... रोणा... सही कह रहे हो... जब खुशी मिले... तब जश्न मनाने से चूकना नहीं चाहिए....
कर - क्या थूकना... मैं सिर्फ़ राजा साहब के थूक चाट सकता हूँ...
बल्लभ - इसे ज्यादा.. चढ़ गई है... ऐ (नौकर से) इसे लेकर उसके कमरे में फेंक आओ...
दो नौकर दिलीप कर को उठा कर ले जाते हैं l
परीडा - क्या बात है.. वकील... तुम्हारे हाथ में जाम तो है... पर तुम क्यूँ नहीं पी रहे हो....
बल्लभ - जब तक... (ग्लास को हिलाते हुए) विश्व को सजा नहीं हो जाता.... तब तक नहीं...
परीडा - अरे फ़िकर नॉट... विश्व का वकील... अगर स्ट्रॉन्ग है... अपनी भी प्रतिभा बहुत मजबूत है.... साला बुढ़उ... दो मिनिट के लिए ही सही.... मेरा दिमाग हिला दिया था.... रिटीन कंप्लेंट के बारे में पूछ कर.... पर प्रतिभा ने क्या.. पटखनी दी... बुढ़उ सोचा भी नहीं होगा... ऐसी पटखनी मिलेगी.....
बल्लभ कुछ नहीं कहता है, वह चुप रहता है और अपने हाथ में लिए शराब की ग्लास को हिलाता रहता है l
पिनाक - क्या बात है... प्रधान... आज जश्न मनाने में... कंजूसी क्यूँ...
बल्लभ - मैं यह सोच रहा हूँ.... आज की कारवाई में जयंत ने... ज्यादा कुछ पूछा नहीं.... शायद इसलिए कि परीडा सिर्फ़ एक इन्वेस्टीगेशन ऑफिसर था... कहीं यह उसका स्मार्ट मूव तो नहीं....
रोणा - बोला... अपनी काली जुबान से बोला... साला काले कोट वाले... जब भी मुहँ खोलेगा... काली जुबान से ही बोलेगा...
पिनाक - प्रधान... तु... हमसे किस जनम का बैर निकाल रहा है बे... हम जश्न मना रहे हैं.... और तु रंग में भंग डाल रहा है....
परीडा - खैर मैंने तो अपना काम कर दिया है.... अगली सुनवाई उस कर की है....
पिनाक - ह्म्म्म्म... जानते हैं.... कर बहुत... पुराना खिलाड़ी है.... सम्भाल लेगा..
Awesome update bro maza aa gaya
 

parkas

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वीर अपने कमरे में गहरी नींद में सोया हुआ है l फोन की लगातार बजने से उसकी नींद टूट जाती है l वीर अपनी कमरे में देखता है बहुत अंधेरा है I नाइट बल्ब भी नहीं जल रही है पर एसी चल रही है और उस कमरे में जितनी भी रौशनी दिख रही है मोबाइल फोन के डिस्प्ले से आ रही है l वह उठ कर मोबाइल हाथ में लेता है और कॉल लेकर

वीर - हैलो... (उबासी लेते हुए) कौन है... इतनी रात को क्या प्रॉब्लम है...
- हैलो... राजकुमार जी.. मैं... महांती बोल रहा हूँ...
वीर - महांती... इतनी रात को... अरे यार... क्या हो गया...
महांती - राजकुमार जी... अभी तो शाम के सिर्फ़ सात ही बजे हैं...
वीर - (झट से उठ बैठता है) क्या... सिर्फ शाम के सात बजे हैं... आज शनिवार ही है ना...
महांती - जी राजकुमार जी...
वीर - (अपने कमरे की लाइट जलाता है) ओ... अरे हाँ... अच्छा महांती... कुछ जरूरी काम था क्या...
महांती - जी.. राजकुमार जी... आज का दिन बहुत ही खराब गया है... क्षेत्रपाल परिवार के लिए... आप जल्दी ESS ऑफिस में आ जाइए... प्लीज...यहाँ आपकी सख्त जरूरत है...
वीर - (हैरान होते हुए) क्या... क्या हुआ...
महांती - युवराज जी ने खुद को... अपने कैबिन के रेस्ट रूम में बंद कर रखा है...
वीर - क्यूँ... किसलिए...
महांती - और छोटे राजा जी ने खुद को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज करा लिया है और यहीं पर आ रहे हैं...
वीर - छोटे राजा जी हॉस्पिटल से आ रहे हैं... क्या मतलब हुआ इसका... हुआ क्या है आज....
महांती - राजकुमार जी प्लीज... आप यहाँ आ जाइए... मैं... मैं आपको सब बताता हूँ...
वीर - ठीक है... मैं थोड़ा रिफ्रेश हो लेता हूँ... फिर गाड़ी से निकाल कर... बस पाँच मिनट...हाँ... मैं.. मैं निकल रहा हूँ...

वीर तैयार होने के लिए बाथरूम में घुस जाता है l उधर ESS ऑफिस में अपने कैबिन के रेस्ट रूम के अंदर विक्रम एक आदम कद आईने के सामने खड़ा है और खुद को चाबुक से मार रहा है l क्यूँकी उसके कानों में, मॉल के पार्किंग एरिया में टकराए उस आदमी के कहे हर लफ्ज़ तीर के तरह उसके जेहन में चुभ रहे हैं l उसके आँखों में दर्द और नफरत के मिलीजुली भाव दिख रहे हैं l


"अगर यह तेरे दम पर मेरी माँ से बत्तमीजी की है... तो माफी माँगना अब तेरा बनता है"

विक्रम अपने हाथ का चाबुक जोर से चलाता है l च..ट्टा.....क्क्क्क्क्... विक्रम के पीठ पर एक लाल रंग का धारी वाला निशान बन जाता है l

"क्यूँ... तु नहीं जानता... तेरा बाप कौन है... तो जा... जाकर अपनी माँ से पुछ... वह बताएगी तेरा बाप कौन है..."

विक्रम फिर से चाबुक चलाता है l और एक लाल रंग का धार उसके पीठ पर नजर आता है l इस बार उस धार से खुन निकलने लगता है l पर विक्रम के चेहरे पर भाव ऐसे आ रहे हैं जैसे उसे जिस्मानी दर्द का कोई एहसास ही नहीं हो रहा है l उसके कानों में उस आदमी के कहे हर बात नश्तर की तरह उसके आत्मा में घुसे जा रहे हैं l

"सुन बे क्षेत्रपाल के चुजे... तेरा हर काम.. वह क्षेत्रपाल ही करेगा क्या... फ़िर तु क्या करेगा... या फिर तुझसे कुछ होता नहीं... इसलिए कुछ करने के लिए... तुझे क्षेत्रपाल टैग चाहिए... हाँ..."

फिर से विक्रम अपनी चाबुक चलाता है l फिर से उसके जिस्म पर और एक धार नजर आती है और उस धार के किनारे से खुन बहने लगती है l विक्रम अंदर खुद पर चाबुक चला रहा है यह बाहर किसीको भी पता नहीं चल पा रहा है l चूँकि वहाँ पर किसीमें इतनी हिम्मत है ही नहीं, विक्रम के कैबिन में जाए और रेस्ट रूम को जा कर उससे कुछ पूछे या खबर ले l इसलिए कुछ गार्ड्स और महांती ESS के कांफ्रेंस हॉल के बैठक में खड़े हुए हैं l इतने में महांती की फोन बजने लगता है l महांती देखता है कॉल वीर का है तो झटके से फोन उठाता है l

महांती - हैलो...
वीर - हाँ महांती... मैं गाड़ी में... ड्राइविंग कर रहा हूँ... अब मुझे डिटेल्स में बताओ... क्या हुआ है...
महांती - राजकुमार जी आप यहाँ आ जाइए... मैं डिटेल्स में बताता हूँ...
वीर - देखो जो भी है... फोन पर बताओ... पिक्चर तो दिखाओगे नहीं वहाँ... जब बताना ही है... अभी बताओ... क्या हो सकता है वहाँ पहुँचते ही डिसाइड करेंगे...
महांती - ओके...

महांती सभी गार्ड्स को इशारा करता है l सभी गार्ड्स वहाँ से चले जाते हैं l अब कांफ्रेंस हॉल में सिर्फ अकेला महांती बैठा हुआ है, सब चले गए यह निश्चिंत कर लेने के बाद

महांती - आज... छोटे राजा जी पर हमला हुआ है... वह प्राइमरी ट्रीटमेंट करा कर हॉस्पिटल से आ रहे हैं l...
वीर - क्या... क्या कह रहे हो... महांती... इस बार... हमारी इंटेलिजंस फैल कैसे हो गई...
महांती - हम... उसके स्नाइपर्स पर नजरे रखे हुए थे... इसलिए वह दुसरा रास्ता निकाल कर... छोटे राजाजी को सिर्फ घायल कर दिया...
वीर - सिर्फ़ घायल कर दिया... इसका क्या मतलब है महांती...
महांती - इस बार भी जान से मारना उसका लक्ष नहीं था... इस बार....(रुक जाता है)
वीर - हूँ... इसबार...
महांती - इसबार उन्होंने म्युनिसिपलटी ऑफिस में घुसपैठ किया...
वीर - व्हाट... हमारे सिक्युरिटी गार्ड्स के होते हुए...
वीर - राजकुमार... आप भूल रहे हैं... हमारी प्राइवेट सिक्युरिटी सर्विस है... सरकारी संस्थानों को उनकी अपनी सिक्युरिटी संस्थान मतलब... होम गार्ड्स सिक्युरिटी सर्विस होती है... हम सिर्फ पर्सन को सिक्युरिटी दे सकते हैं... पर सरकारी ऑफिस के अंदर हम एलावुड नहीं हैं... इसलिए अगर ऑफिस के अंदर कोई कुछ करता है... सिवाय सीसीटीवी के और कुछ हम हासिल नहीं कर सकते....
वीर - अच्छा... तो... उनपर हमला कैसे हुआ...
महांती - (चुप रहता है)
वीर - क्या बात है महांती....
महांती - राजकुमार जी... उसने किसी कारीगर के जरिए... छोटे राजा जी के कुर्सी को छेड़छाड़ किया है...
वीर - अरे यार महांती... कब से तुम सस्पेंस बना रखे हो... साफ साफ कहो... और झिझक छोड़ कर कहो...
महांती - ओके देन... जिसने भी वह किया है... उसका इरादा छोटे राजा जी को... सबके सामने जलील करना था... इसलिए उसने छोटे राजा जी के चेयर पर एक वंशी कांटे जैसी कील को सेट कर दिया था.... और उसकी सेटिंग कुछ ऐसी थी के कोई भी बैठे... तो उस कील के पुट्ठ में घुसने के बाद घूम जाती है... और उसे निकालने के लिए... एक सर्जन की जरूरत पड़ती है....
वीर - मतलब एक कील इंप्लांट किया गया... छोटे राजाजी को जलील करने के लिए...
महांती - (चुप रहता है)
वीर - क्या इसी बात के लिए... युवराज खुद को रेस्ट रूम में बंद कर रखा है....
महांती - (अपना सिर झुका कर) नहीं... उनके साथ... कुछ और हुआ है... और बहुत बुरा हुआ है...
वीर - क्या... (हैरान हो कर) उनके साथ कुछ और हुआ है का मतलब...

महांती सुबह से जो जो इंफॉर्मेशन हाथ लगी थी वह विक्रम के साथ कैसे शेयर किया और क्यूँ विक्रम ओरायन मॉल गया और पार्किंग एरिया में कैसे एक शख्स ने विक्रम और ESS के कमांडोज को कुछ ही समय में धुल चटा दी, सब वीर को बताता है l वीर यह सब सुन कर हैरान हो जाता है l

वीर - क्या... एक आदमी ने... युवराज और उनके गार्ड्स को अकेले...
महांती - जी... अकेले...
वीर - उस आदमी के बारे में कुछ पता चला....
महांती - नहीं...
वीर - कैसे... क्यूँ... क्यूँ नहीं पता चला... मॉल में सीसीटीवी होंगे... उसकी मदत से... आख़िर हमारी ही सिक्युरिटी सर्विलांस है वहाँ पर...
महांती - (चुप रहता है)
वीर - महांती.... क्या बात है...
महांती - राज कुमार जी... यह कांड होने के तुरंत बाद... एक आदमी पुलिस की वर्दी में... फेक डॉक्यूमेंट्स के साथ... मॉल में हमारे कंट्रोल रूम में घुस गया... और आज की सारे सीसीटीवी फुटेज और पार्किंग एरिया के रिकॉर्ड्स सब अपने साथ ले गया....
वीर - व्हाट.... (गाड़ी के भीतर ही ऐसे उछलता है जैसे महांती ने कोई बम फोड़ दिया) व.. व्हाट... क... क्या मतलब हुआ इसका... क्या यह अटैक कोई प्लांड था...
महांती - आई डोंट थिंक सो... पार्किंग एरिया में जो हुआ... वह इत्तेफ़ाक था...
वीर - कैसे... तुमने ही कहा कि... रॉय ग्रुप के पुराने मुलाजिम मॉल के बाहर असेंबल हो रहे थे... तो यह पार्किंग एरिया वाला आदमी... यह उनका आदमी भी हो सकता है...
महांती - नहीं... वह लोग हफ्ते भर से हमारे सर्विलांस में हैं... उनके किसी भी कॉन्टैक्ट में... कोई बाहरी आदमी या उसकी माँ नहीं है...
वीर - बाहरी आदमी और माँ... यह क्या पहेलियाँ बुझा रहे हो...
महांती - राज कुमार जी... हमारे जी गार्ड्स अभी हस्पताल में इलाज करवा रहे हैं... उन्होंने जो बताया... (कह कर पार्किंग एरिया में जो हुआ बताता है)
वीर - एक आदमी और उसकी माँ... (कुछ याद करने की कोशिश करते हुए) एक... आदमी.... और... उसकी माँ...
महांती - क्या हुआ राजकुमार जी...
वीर - वैसे... क्या हुलिया था उसका...
महांती - पता नहीं...
वीर - व्हाट डु यु मिन... पता नहीं...
महांती - हमारे जो कमांडोज थे... वह नहीं बता रहे हैं...
वीर - क्यूँ...
महांती - उनको.... युवराज ने मना किया हुआ है.... मतलब हुकुम दिया है...
वीर - क्या.... क्यूँ... किसलिए....
महांती - यह बात... युवराज जी से मैं भी जानना चाहता हूँ... आप यहाँ आकर पहले उन्हें रेस्ट रूम से बाहर लाएं... प्लीज...
वीर - ओके... पहुँच रहा हूँ....

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तापस के क्वार्टर में
एक कोने में विश्व अपनी कान पकड़े खड़ा है l उसके सामने प्रतिभा गुस्से से गहरी सांसे लेती हुई मतलब हांफती हुई एक कुर्सी पर बैठी हुई है l प्रतिभा के हाथ में एक झाड़ू है l

विश्व - माँ (प्रतिभा उसके तरफ देखती है) जब से घर आए हैं... मुझे तुमने ऐसे ही दौड़ा रही हो... और झाड़ू से मार भी रही हो... अब मैं तुम्हारे पास आऊँ...

प्रतिभा अपनी जगह से उठती है और झाड़ू से विश्व के पैरों को मारने लगती है l विश्व उछलते कुदते मार खाने लगता है और चिल्लाने लगता है l

विश्व - आ.. ह्.... ओ... ह्...
प्रतिभा - (गुस्से से) बंद कर यह ओवर ऐक्टिंग... मुझे पता है... तुझे कोई दर्द वर्द नहीं हो रहा है... गुदगुदी हो रही है... असल में तू मुझे चिढ़ा रहा है... आने दे सेनापति जी को... उनके स्टिक से आज तुझे मन भरने तक मारूंगी...
विश्व - तब तक मैं थोड़ा बैठ जाऊँ... (सोफ़े पर बैठते हुए)
प्रतिभा - खबरदार जो बैठा तो... (विश्व फिर भाग कर सोफ़े के पीछे खड़ा हो जाता है)
विश्व - माँ... मैं थोड़ा बाथरूम हो कर आता हूँ... जोर की लगी है... और तुम भी थोड़ा आराम कर लो... देखो कितनी थक गई हो... मुझे मारते मारते तुम्हारे हाथ भी दर्द करने लगे होंगे... देखो सर पर पट्टी बंधी है और हाथ में भी...
प्रतिभा - (फिर झाड़ू उठा कर विश्व के पीछे भागती है) आ.. ह्... मुझे परेशान कर रहा है... (हांफते हुए) बात... बात नहीं मान रहा है... और... और...
विश्व - तभी तो कह रहा हूँ... थोड़ा सा आराम कर लो... कहो तो हाथ पैर दबा देता हूँ... जब थोड़ा अच्छा लगे... तब दोबारा से मारना चालू कर देना...
प्रतिभा - बदमाश... ऐसा कह कर तीन बार मेरे पैर दबाये... फिर दौड़ा रहा है.. हाथ भी नहीं आ रहा है...
विश्व - माँ... यह गलत बात है... मैं बराबर मार तो खा ही रहा हूँ...
प्रतिभा - ठीक है... इधर आ... आज तेरा पेट (झाड़ू उठा कर) इसीसे भर देती हूँ...
विश्व - माँ इससे मेरा पेट कैसे भरेगा... फिर तुम... अगर मैं तुम्हारे हाथ का बना नहीं खाया... तुम भी तो भूखी रह जाओगी...
प्रतिभा - नहीं... (झाड़ू को नीचे फेंकते हुए) तुझे जो करना है... कर... (सोफ़े पर बैठते हुए) सेनापति जी को आने दे... आज तेरा फैसला... सेनापति जी करेंगे...
विश्व - (भाग कर प्रतिभा के गोद में अपना सिर रख देता है और अपने दोनों हाथों से प्रतिभा को जोर से पकड़ लेता है) माँ... अब हम दोनों के बीच... सेनापति सर को क्यूँ ला रही है...
प्रतिभा - (विश्व को अपने से अलग करने की कोशिश करते हुए) ऊंह्... छोड़.... छोड़ मुझे...
विश्व - नहीं छोडूंगा....
प्रतिभा - तो बैठा रह यहीं पर... सेनापति जी को आने दो... वही फैसला करेंगे...
तापस - (अंदर आते हुए) अरे क्या फैसला करेंगे हम... (प्रतिभा को देख कर) अरे भाग्यवान यह तुम्हारे माथे पर पट्टी और कुहनियों भी पट्टी... क्या हुआ...
प्रतिभा - (रोनी सूरत बनाकर) जानते हैं आज क्या हुआ है....

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बड़ी हिम्मत जुटा कर रुप शुभ्रा की कमरे में आती है lशुभ्रा अपने बेड के हेड बोर्ड पर तकिये के सहारे टेक लगा कर आँखे मूँद कर बैठी हुई है l शुभ्रा के पास जाने के लिए रुप हिम्मत नहीं जुटा पा रही है l थोड़ी देर दरवाज़े के पास खड़े हो कर फिर मुड़ने लगती है l

शुभ्रा - क्या बात है रुप...
रुप - (मुड़ कर देखती है, शुभ्रा की आँखे लाल दिख रही हैं )(शायद बहुत रोई है) (रुप तेजी से भाग कर शुभ्रा के पैर पकड़ लेती है) मुझे माफ़ कर दीजिए भाभी... ना मैं जानती थी... ना ही मैं चाहती थी... ऐसा कुछ हो... आई एम सॉरी... भाभी...
शुभ्रा - (चुप रहती है और रुप को देखती रहती है)
रुप - मैं... मैं... सच में करमजली हूँ... (रोने लगती है) मैं अगर कॉलेज से घर आ गई होती... तो... तो यह सब नहीं हुआ होता...भाभी.... प्लीज.... भाभी... प्लीज... मुझे माफ़ कर दीजिए...
शुभ्रा - रुप... (भर्राई हुई आवाज में) सच सच बताओ... क्या तुम प्रताप को पहले से जानती हो...

यह सवाल सुनते ही रुप स्तब्ध हो जाती है l वह शुभ्रा के आँखों में देखती है l रुप महसुस करती है शुभ्रा उसे शक की नजरों से देख रही है l

रुप - भाभी... मैं कसम खाकर कहती हूँ... मैं उस प्रताप को नहीं जानती...
शुभ्रा - (चुप रहती है पर रुप को गौर से देख रही है)
रुप - भाभी... मैंने खुले आम... सबके सामने.... आपको माँ का दर्जा दिया है.... आपसे हरगिज़ झूठ नहीं बोल सकती हूँ... मैं (शुभ्रा के पैर पकड़ कर) आपकी चरणों की कसम खाकर कह रही हूँ... मैं उसे नहीं जानती... नहीं जानती... नहीं जानती... (रो देती है)
शुभ्रा - मैं मानतीं हूँ... तुम उसे नहीं जानती हो... फिर भी मुझे कुछ क्लैरिफीकेशन चाहिए...
रुप - पूछिए भाभी...(सुबकते हुए)
शुभ्रा - हम जब लिफ्ट में थे.... तब तुमने... प्रताप से कुछ ऐसा कहा... जो मेरे हिसाब से गैर जरूरी था... और उसके जवाब सुन कर तुम शर्मा गई... और जब वह गार्ड्स से लड़ रहा था... तुमने अपने फिंगर क्रॉस कर लिए थे... और तुम्हारे भाई से जब लड़ रहा था तब... तुमने दोनों हाथों की मुट्ठी बना लिया था और... अपने दोनों अंगूठे को... एक दुसरे के ऊपर रगड़ रही थी... ऐसा कोई तब करता है.... जब सामने युद्ध में दोनों उसके अपने हों... इसलिए अब मुझे सच जानना है... सब सच सच बताओ....
रुप - (स्तब्ध हो जाती है) भाभी मैं फिर से अपनी बात दोहराती हूँ... मैं प्रताप को नहीं जानती... मगर... (चुप हो जाती है)
शुभ्रा - (उसे घूर कर देखती है) मगर...
रुप - पता नहीं भाभी... कैसे कहूँ... वह... वह मुझे... वह मुझे जाना पहचाना लगा...
शुभ्रा - क्या... वह प्रताप तुमको जाना पहचाना लगा... कैसे रुप...
रूप - भाभी... आप धीरज धरें और मेरी पुरी बात सुनें... याद है मैंने एक दिन आपसे अपनी बचपन की यादें शेयर करते हुए कहा था... के मुझे कोई पढ़ा रहा था...
शुभ्रा - अनाम...
रुप - हाँ... जब माँ की हत्या हुई थी...
शुभ्रा - क्या... सासु माँ की हत्या हुई थी...
रुप - भाभी... आत्महत्या भी एक तरह से हत्या ही होती है... किसीको जान देने के लिए विवश करना... उकसाना... क्या हत्या नहीं है...
शुभ्रा - चुप रहती है...
रुप - खैर चलो.. मैं ऐसे कहती हूँ... माँ के चले जाने के बाद... उस बड़े से महल में... मैं अकेली थी... ऐसे... जैसे एक सांप के पिटारे में... कोई चिड़िया का चूजा पलता हो... मैं चाची माँ के पास रहा करती थी.... वह जब मेरे पास नहीं होती थी... वह पुरा महल मुझे भुतहा लगता था... काटने को आता था...

बहुत ही दर्द भरी आवाज में कही थी रुप ने शुभ्रा को l रुप के हर एक लफ्ज़ में रुप की दर्द को महसुस कर रही थी शुभ्रा

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वीर ESS ऑफिस के कांफ्रेंस हॉल में घुस जाता है तो वहाँ सिर्फ महांती को बैठा पाता है l

महांती - राजकुमार... आप... युवराज जी के कैबिन में जा कर... उन्हें पहले यहाँ पर लाएं....

विश्व कांफ्रेंस हॉल से निकल कर विक्रम के कैबिन में घुसता है l वहाँ उसे टेबल पर आधी खाली शराब की बोतल दिखता है, और कुर्सी पर विक्रम के कपड़े दिखाई देते हैं l वह उधर उधर देखने लगता है l तभी उसको बाथरुम से पानी बहने की आवाज़ सुनाई देता है l वह बाथरूम के दरवाजे पर दस्तक देने लगता है

वीर - युवराज जी... दरवाज़ा खोलिए... प्लीज...

अंदर से कोई जवाब नहीं आता l वीर जोर जोर से दरवाज़े पर दस्तक देने लगता है और बार बार दरवाजा खोलने के लिए कहता है l

वीर - युवराज जी... आप दरवाजा खोलीए... नहीं तो हम दरवाजा तोड़ देंगे....

बाथरूम का दरवाज़े के नॉब पर हरकत होती है फिर धीरे से दरवाजा खुल जाता है l वीर के सामने विक्रम खड़ा था l विक्रम की आंखें लाल दिख रही थी और उसका बदन कमर से ऊपर नंगा था l उसके बदन पर कोड़ों के ताजा निशान साफ साफ दिख रहे थे l कुछ कुछ जगहों पर से खुन बह रहे थे l पर वीर के लिए सबसे ज्यादा चौकाने वाला जो था वह था विक्रम ने अपनी मूंछें मुंडवा लिया था l वीर के सामने वाला विक्रम एक दम अलग था l चेहरा कठोर और गम्भीर हो चुका था l वीर को कुछ सूझता नहीं वह विक्रम के हाथ पकड़ कर चेयर पर बिठा देता है l

वीर - यह... यह क्या है युवराज... आपने... अपनी मूंछें क्यूँ मुंडवा ली... क्यूँ... और... और खुदको इस कदर क्यूँ सजा दी है आपने...
विक्रम - उसे मूंछें रखने का कोई हक़ नहीं... जिसकी जिंदगी... उसके औरत ने हाथ जोड़ कर भीख में माँगी हो...
वीर - बस इतनी सी बात पर आपने... अपनी मूंछें मुंडवा ली...
विक्रम - इतनी सी बात... (गुर्राते हुए) यह आपको इतनी सी बात लग रही है... मेरी पुरूषार्थ तार तार हो गई है...(कहते हुए ऐसा लग रहा था जैसे उसके आँखों से अंगारे बरस रहे हैं) आपको इतनी सी बात लग रही है....
वीर - सॉरी युवराज...(हैरान हो कर) आप... हम से... मैं पर आ गए....
विक्रम - मैंने कहा ना... मेरी पुरूषार्थ अब लहू लुहान है...
वीर - (क्या कहे उसे समझ में नहीं आता) आपने अपनी मूंछें मुंडवा ली... समझ में आ गया... पर खुदको कोड़े से क्युं सजा दी...
विक्रम - मैं यह देख रहा था... कोड़े से कितना दर्द होता है... पर उसके कहे बातों के आगे... कोड़े से बने घाव में कुछ भी दर्द हो नहीं है... जरा सा भी नहीं...
वीर - क्या...
विक्रम - यकीन नहीं आ रहा है ना... जाओ... वह शराब की बोतल ला कर मेरे ज़ख्मों में डालो... (वीर उसे हैरानी भरे नजरों से देखता है, तो विक्रम उसे कहता है) जाओ... वह शराब की बोतल लाओ... (कड़क आवाज़ में)

वीर पहली बार आज विक्रम की हालत और आवाज़ से डर जाता है l वीर कांपते हुए शराब की बोतल लाकर विक्रम के ज़ख्मों पर शराब डालने लगता है l शराब डालते हुए वीर उन घावों की टीस को महसुस कर पाता है पर विक्रम के चेहरे पर कोई भाव उसे नजर नहीं आता है l विक्रम के चेहरे पर कोई भाव ना देख कर वीर के हाथों से बोतल छूट जाता है l

वीर - युव... युवराज जी... ऐसा क्या कह दिया है उसने जिसके दर्द के आगे.... कोड़ों का दर्द भी महसुस नहीं हो रहा है आपको...

विक्रम चुप रहता है, विक्रम की यह ख़ामोशी वीर को बहुत खलता है, उसी वक़्त वीर के मोबाइल फोन पर महांती का कॉल आता है l


वीर - हाँ बोलो... महांती...
महांती - युवराज और आप... कांफ्रेंस हॉल में जल्दी पहुँच जाइए... छोटे राजाजी आ गए हैं...

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तापस को बैठक में देख कर विश्व प्रतिभा को छोड़ कर एक कोने पर खड़ा हो जाता है l और प्रतिभा तापस देख कर मुहँ बना कर सिसकने लगती है l

तापस - अरे भाग्यवान क्या हुआ...
प्रतिभा - जानते हैं... आज क्या हुआ है...
तापस - नहीं जानता... इसलिए तो पूछा क्या हुआ है...
प्रतिभा - यह (विश्व को दिखाते हुए) आज ही पेरोल पर बाहर निकला है... और आज ही इसने मार पीट की है... और जानते हैं किससे...
तापस - (जिज्ञासा और हैरानी से) किससे....
प्रतिभा - विक्रम सिंह क्षेत्रपाल से...
तापस - क्या... वाकई... पर क्यूँ
विश्व - हाँ हाँ... अब बताओ...
प्रतिभा - तु तो मुझसे बात ही मत कर...
तापस - ठीक है... बताओ तो सही... तुम्हारा प्रताप... उनसे मार क्यूँ खा कर आया...
प्रतिभा - यह क्यूँ मार खाएगा... उल्टा इसने उन सबको धोया है...

फिर प्रतिभा तापस को पार्किंग एरिया में घटे सभी वाक्या, सब कुछ विस्तार से बताती है l सब कुछ सुनने के बाद तापस प्रतिभा से

तापस - हम्म... इसमे तो कहीं भी प्रताप का दोष नजर नहीं आ रहा है... और जो भी हुआ है ऑन द स्पॉट... वह सब सीसीटीवी में रिकॉर्ड हुआ होगा... और तुम अब जानीमानी वकील हो... इतने से ही डर गई...
प्रतिभा - हो गया... आप भी इस के साथ हो लिए... ठीक है... मैं... मैं किसी से भी बात नहीं करूंगी...

इतना कह कर प्रतिभा किचन की ओर चली जाती है l वहाँ पर सिर्फ़ तापस और विश्व रह जाते हैं l प्रतिभा को कैसे मनाया जाए, उसके लिए विश्व, तापस को इशारे से मूक भाषा में पूछता है l
तापस भी हैरान हो कर इशारे से मूक भाषा में पूछता है - क्या कहा...
विश्व - (इशारे से) किचन की ओर दिखा कर... आप जाओ ना... (अनुरोध करने की स्टाइल में) माँ को मनाओ ना...
तापस - (अपने दोनों हाथ ऊपर उठा कर इशारे में ही) ना... तुमने गुस्सा दिलाया है... तुम ही जा कर मनाओ...
विश्व - (इशारे से) मैं... मैं कैसे मनाऊँ... (अपने होठों को अपनी हाथों से स्माइल जैसा बना कर) उनके चेहरे पर मुस्कान कैसे लाऊँ....
तापस - (कुछ सोचने के अंदाज में) (फिर इशारे से) तुम किचन के अंदर जाओ... और उसे पीछे से पकड़ लो... और गालों पर एक चुम्मी ले लो... और तब तक मत छोड़ना... जब तक ना मान ले...
विश्व - (इशारे से) मान तो जायेंगी ना..
तापस - (इशारे में ही) अररे... पहले कोशिश तो कर...
विश्व - (मन ही मन में) ठीक है... हे भगवान... मदत करना... (ऊपर छत को देख हाथ जोड़ कर प्रार्थना करता है, फिर किचन की ओर जाता है)

विश्व की हालत देख कर तापस अपनी हँसी को दबा कर बाहर बालकनी में चला जाता है l विश्व किचन में पहुँच कर प्रतिभा के कमर के इर्द-गिर्द अपनी बांह कस लेता है और प्रतिभा के गाल पर एक चुम्मी लेता है l

विश्व - माँ... गुस्सा थूक दो ना...

प्रतिभा जिस चिमटे से गैस पर रोटी सेंक रही थी उसे विश्व के हाथ में लगा देती है l

विश्व - (अपना हाथ निकाल देता है) आ... ह्.. माँ.. देखो... क्या किया तुमने... हाथ जल गया... आ... ह्
प्रतिभा - हो गया तेरा ड्रामा... या और एक बार फिर से लगाऊँ...
विश्व - नहीं... हो गया माँ... हो गया... ए माँ... प्लीज मान जाओ ना... प्लीज गुस्सा थूक दो ना...
प्रतिभा - (मुस्कराते हुए) वह बाद में देखेंगे...(विश्व की ओर देखते हुए) पहले यह बता... सेनापति जी ने तुझे यहाँ भेजा है ना...
विश्व - (मुस्करा देता है, और अपना सिर हाँ में हिलाता है)
प्रतिभा - और तुम दोनों ने जरूर मूक भाषा में बात की होगी... इशारों इशारों में... है ना...
विश्व - (हैरान हो कर) माँ यह आपने कैसे जान लिया...
प्रतिभा - तु भले ही मेरे कोख से नहीं आया... पर तु मेरे आत्मा से जुड़ा हुआ है... तेरी यह हरकत भी मैं समझ गई थी...
विश्व - माँ... (थोड़ा सीरियस हो कर) अगर तुम्हारी आत्मा से जुड़ा हुआ हूँ... तो मेरी दर्द को भी समझी होगी ना... उस पार्किंग में जो तुम्हारे साथ हुआ... वह मंज़र मेरे लिए कितना दर्दनाक था....(विश्व के आँखों में आंसू के बूंदे दिखने लगते हैं)
प्रतिभा - (उसकी आँखों को पोछते हुए) जानती हूँ... पर तु भी समझ पा रहा होगा ना... मुझे किस बात का दर्द हो रहा था...
विश्व - (अपना सिर हाँ में हिलाते हुए) हूँ...
प्रतिभा - खैर... अब जो होगा देखा जाएगा... पहले यह बता... तेरे और सेनापति जी के बीच वह कौनसी मौन दीवार है... जिसके वजह से... ना तो वह तुझे बेटा कह पा रहे हैं... और ना ही तु उन्हें डैड...
विश्व - (अपना सिर झुका लेता है, और कुछ कह नहीं पाता)
प्रतिभा - अगर कोई दीवार था भी... तो आज गिर चुकी है...
विश्व - (हैरानी से सवालिया नजरों से प्रतिभा की ओर देखता है)
प्रतिभा - वह जरूर अब बालकनी में होंगे...
विश्व - आपको कैसे पता...
प्रतिभा - (विश्व की चेहरे को अपने दोनों हथेली में लेकर) क्यूंकि यह इशारों वाली मूक भाषा में... प्रत्युष बातेँ किया करता था... आज तुने इशारों में बात करके... उन्हें प्रत्युष की याद दिला दी...
विश्व - (हैरान हो जाता है)
प्रतिभा - अब तेरा फ़र्ज़ बनता है... तु उन्हें... उस दुख में देखेगा या... उस दुख से उबारेगा....जा

विश्व हिचकिचाते हुए प्रतिभा को देखता है l प्रतिभा उसे इशारे से बालकनी जाने को कहती है l विश्व एक झिझक के साथ बालकनी की ओर जाने लगता है l प्रतिभा भगवान को याद करते हुए हाथ जोड़ कर आँखे मूँद लेती है l

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रुप अपनी पुराने दिनों की याद में खो गई थी l शुभ्रा उसे झिंझोडती है I रुप होश में आती है l

रुप - हाँ.... हाँ... भाभी... आज से... पंद्रह साल पहले मैं पुरी तरह से अनाथ हो गई थी... माँ की जगह चाची माँ ने ले तो ली थी... हाँ बहुत प्यार भी दिया है उन्होंने... पर मैं बाहर कहीं नहीं जा सकती थी... (एक फीकी हँसी हँसते हुए) आखिर क्षेत्रपाल परिवार की बेटी थी... राज कुमारी थी... मैं सिर्फ़ घर पर रह सकती थी... किसीसे दोस्ती... हूँह्.. सोच भी नहीं सकती थी... मेरे भाई भी मेरे पास नहीं थे... शुरु से ही बोर्डिंग में पढ़ रहे थे... मुझे पढ़ाने के लिए कोई सोच भी नहीं रहे थे... वह तो चाची ने बहुत कहा... के रुप कभी ना कभी किसी राज घराने में जाएगी... अगर क्षेत्रपाल घर की बेटी अनपढ़ होगी तो... क्षेत्रपाल परिवार की इज़्ज़त क्या रह जाएगी... तब छोटे राजा जी ने एक रास्ता निकाला... गांव के स्कुल के प्रधानाचार्य श्री उमाकांत आचार्य जी से मदत के लिए कहा गया... तब एक दिन आचार्य जी.. एक लड़के को साथ लेकर छोटे राजाजी और चाची माँ के साथ आए...

फ्लैश बैक...

पंद्रह साल पहले
क्षेत्रपाल महल

पांच साल की रुप अपनी कमरे की बालकनी में खड़ी बाहर आसमान में उड़ रहे चिडियों को देख रही थी l तभी कमरे में पिनाक सिंह, सुषमा, आचार्य जी एक तेरह साल के लड़के के साथ आते हैं l

पिनाक - राजकुमारी जी... (रुप पीछे मुड़ती है और अपने कमरे में आती है) यह हैं आपके स्कुल के हेड मास्टर... उमाकांत आचार्य... (रुप हैरान हो कर सुषमा को देखती है)
सुषमा - हाँ राजकुमारी... आपका एडमिशन करा दिया गया है... स्कुल में... अब आप पढ़ेंगी... (पढ़ने की बात सुन कर रुप के चेहरे पर एक खुशी दिखती है) यह आपके (उमाकांत आचार्य को दिखाते हुए) प्रधान आचार्य जी हैं...
पिनाक - नहीं.. आप स्कुल नहीं जा रही हैं... (रुप को झटका लगता है) (आचार्य जी से) ए मास्टर... बताओ... हमारी राजकुमारी को... उनकी पढ़ाई कैसे होने वाली है...
आचार्य - राजकुमारी जी... यह लड़का (अपने साथ लाए लड़के को दिखा कर) आपको पढ़ाएगा... आप घर में रह कर पढ़ाई करेंगी... आपको स्कुल सिर्फ परीक्षा के दिन आना होगा... बाकी साल भर आपको यह लड़का पढ़ाएगा....
पिनाक - (उस लड़के से) ऐ लड़के... जैसा समझाया गया है... बिल्कुल वैसे ही... वरना तेरी खाल उधेड ली जाएगी...
सुषमा - (रुप के पास आकर) बेटी... आप इस लड़के के बात कीजिए... अगर आपको अच्छा लगे... तभी आपकी पढ़ाई आगे जाएगी... (रुप अपना सिर हिला कर हाँ कहती है) (पिनाक से) तो हम कुछ देर के लिए बाहर चलें... अगर राजकुमारी जी को अच्छा लगेगा... तो हम आगे की सोचेंगे...
आचार्य - जी जैसा आप ठीक समझे...
पिनाक - तो फिर चलते हैं... आधे घंटे के बाद आकर देखते हैं...

तीनों कमरे से बाहर चले जाते हैं l रुप उस लड़के को घुर के देखती है l वह लड़का अपना सिर झुका कर खड़ा है l

रुप - ह्म्म्म्म... ऐ लड़के.... तुम्हारा नाम क्या है..
लड़का - जी राजकुमारी...
रुप - वह तुम मुझे कहोगे... मैंने क्या पुछा सुनाई नहीं दिया... बहरे हो क्या... क्या नाम है तुम्हारा...
लड़का - जी.... मेरा नाम... वह... मेरा नाम... अनाम है...
रुप - यह क्या बकवास है... अनाम भी कोई नाम होता है... सच सच बताओ... वरना अभी बुलाती हूँ सबको...
अनाम - (वैसे ही अपना सिर झुका कर) जी सच कह रहा हूँ... मेरा नाम अनाम है... और मैं इसका मतलब भी समझा सकता हूँ...
रुप - (अपनी छोटी सी चेयर पर बैठ जाती है) बताओ हमे...
अनाम - जी जिसे हम नाम समझते हैं... असल में उस नाम में... रुप, चरित्र और गुण... उस नाम की सीमा में बंध जाते हैं... जबकि ईश्वर के वास्तविक स्वरुप... निर्गुण व निराकार... ऐसा स्वरुप... जो नाम ना बांध पाए... उसे अनाम कहते हैं...
रुप - ह्म्म्म्म समझ में तो कुछ नहीं आया... पर अच्छा लगा...
अनाम - जी धन्यबाद..
रुप - और सुनो... अपने कान खोल कर सुनो... तुम मुझसे बड़े हो... और लड़के भी हो... पढ़ाने आए हो... इसका मतलब यह नहीं... के मुझ पर रौब झाड़ोगे... यह तो सोचने की गलती... कभी ना करना... की यह लड़की है... नाजुक है... ऐसा.... समझे... ऐसा समझने की भूल मत करना... मैं बहुत खतरनाक हूँ....
अनाम - जी राजकुमारी जी... समझ गया... मैं भले ही लड़का हूँ... पर जो भी हूँ... जैसा भी हूँ... खतरनाक बिल्कुल नहीं हूँ....

फ्लैशबैक से बाहर आकर

रुप - मेरे बचपन का सात साल... उसके साथ गुज़रा है भाभी... मेरा एक अकेला दोस्त... जब वह मेरे साथ होता था... मुझे लगता था कि मैं राजकुमारी हूँ... वरना... शेर के पिंजरे में दुबकी हुई भेड़ से ज्यादा औकात नहीं थी मेरी... जब वह मेरे पास होता था... मैं आसमान में उड़ने वाली कोई पंछी होती थी... एक वही था... जिससे मैं रूठ सकती थी... और वह मनाता था... मेरी हर खुशियों का खयाल रखता था... मैं अपनी सारी खीज.... अपना सारा डर को गुस्से में ढाल कर उस पर उतार देती थी... वह हँसते हँसते सब सह लेता था... पर जब मैं बारह वर्ष की हुई... मेरा पहला मासिक धर्म अनुभव हुआ... तब सब खतम हो गया... उसका आना बंद कर दिया गया... आठ साल हो गये हैं मुझे उससे अलग हुए... जब प्रताप को देखा तो मन में एक सवाल उठा... कहीं यह अनाम तो नहीं... इसलिए जिज्ञासा वश मैंने लिफ्ट में वह सवाल किया... और भाभी ताज्जुब की बात यह थी... ज़वाब बिल्कुल वही था... इसलिए एक अनजानी खुशी के मारे मैं शर्मा गई थी... पर भाभी (आवाज़ भर्रा जाती है) यह... यह अनाम हो नहीं सकता....
शुभ्रा - क्यूँ... क्यूँ नहीं हो सकता...
रुप - क्यूँकी... अनाम अनाथ था भाभी.... अनाथ था... बचपन में ही उसकी माँ का देहांत हो गया था... उसकी एक बड़ी बहन थी... जिसे डाकुओं ने उसके पिता की हत्या कर उठा लिया था... और यह मॉल वाला प्रताप... अपने माँ के साथ आया था... और उस औरत को देख कर लगता है... प्रताप का बाप जिंदा है.... भाभी.... यही सच है....

कह कर रुप सुबकने लगती है l शुभ्रा रुप को अपने गले से लगा लेती है और दिलासा देते हुए रुप की पीठ पर हाथ सहलाते हू फेरती है l

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कांफ्रेंस हॉल में वीर और विक्रम आते हैं l विक्रम की बिना मूँछ वाली चेहरा देखकर पिनाक और महांती हैरान हो जाते हैं l वीर के चेहरे पर जहां थोड़ी बहुत परेशानी दिख रही है वहीँ विक्रम के चेहरे पर कठोरता झलक रही है l

पिनाक - यह... यह क्या है युवराज....
वीर - वह... वह... आपको जलील होने से नहीं रोक पाए ना... इसलिए... इसलिए युवराज अपनी मूंछें मुंडवा ली...
पिनाक - ओह... शाबाश युवराज... शाबाश... अब हमारे दुश्मन की खैर नहीं... उस बात की कीमत बहुत होती है... जिसके लिए दाव पर जान, जुबान और इज़्ज़त लगी हो... आई एम डैम श्योर... अब हमारा दुश्मन पाताल में भी छुप जाए... बच नहीं सकता...
वीर - जी जरूर... मेरा मतलब है कोई शक़...
पिनाक - यह... आप क्यूँ बार बार ज़वाब दे रहे हैं राजकुमार...
वीर - वह... वह... एक्चुयली... आपके घायल होने पर युवराज ने... दुख भरा मौन धर लिया है...
पिनाक - ओह.. युवराज... आपने तो... इसे दिल पे ले लिया है... अब दिलसे कैसे उतरेगी यह भी सोच लीजिए....

तभी पिनाक का फोन बजने लगती है l पिनाक देखता है अननोन प्राइवेट नंबर डिस्प्ले हो रहा है l पिनाक समझ जाता है के ज़रूर उसके दुश्मन ने फोन किया है l फोन के लगातार बजने से सबका ध्यान पिनाक के तरफ चला जाता है l पिनाक सब पर एक नजर डालता है और फिर फोन उठाता है

पिनाक - हाँ बोल हराम जादे...
xxx- अरे वाह.... आपने नाजायज बाप को पहचान लिया... ऑए शाबाश... हा हा हा हा...
पिनाक - हरामी के औलाद... जितना चाहे हँस ले... यह तेरी आखिरी हँसी है... क्यूंकि अगली बार से... तु सिर्फ़ रोएगा....
xxx - अच्छा यह तो ब्रेकिंग न्यूज है... कौनसे चैनल में आ रहा है...
पिनाक - भोषड़ी के... मादरचोद... जितना तेरे हिस्से में था... उतना उछल लिया है... अब अपनी मैयत की तैयारी कर ले...
xxx - अरे यार... मैंने तो सिर्फ़ तेरी गांड मारने की कही और मार भी ली... पर तु तो धुआँ धुआँ हो गया है... हा हा हा हा... मजा आ गया... लोगों से काम ले कर बीच राह में गांड मारने की आदत थी... अब कैसा लग रहा है... भाई मुझे तो मजा आ रहा है.... हा हा हा...

पिनाक फोन काट देता है और वह उन तीनों को देखता है l फिर तीनों से

पिनाक - यह फोन आखिरी होनी चाहिए... कैसे होगा... यह तुम लोग सोच लो....

कह कर पिनाक वहाँ से चला जाता है l महांती विक्रम की ओर देखता है और पूछता है

महांती - युवराज जी... क्या करें... ऑर्डर दीजिए...
वीर - मैं ऑर्डर करता हूँ... महांती... उनके तरफ के कितने लोग हमारे सर्विलांस में हैं...
महांती - वह चार शूटर और... कुछ और लोग...
वीर - ठीक है... सबको एक साथ उठा लो..
महांती - क्या... (उछल पड़ता है) सबको...
वीर - क्यूँ... कोई प्रॉब्लम...
महांती - नहीं... बिल्कुल नहीं... उठाकर करना क्या है...
वीर - सबको... राजगड़ ले जाओ... आखेट के लिए... एक एक को... लकड़बग्घों के सामने डालो... और वह सब उन्हें लाइव दिखाओ... वह भी पास से... उसे देख कर और झेल कर... वहाँ पर जो जितना टूटेगा... वह उतना लिंक देगा... फिर उस लिंक को फॉलो करो... आई थींक वी कैन क्रैक ईट....
महांती - ओके...
वीर - यह तुम पर्सनली हैंडल करो... जाओ अब...
महांती - ठीक है...

कह कर महांती वहाँ से चला जाता है l अब कांफ्रेंस हॉल में सिर्फ़ वीर और विक्रम रह जाते हैं l वीर विक्रम की ओर देखता है

वीर - सब चले गए... आप क्या सोच रहे हैं... युवराज...
विक्रम - यही... मेरी प्रैक्टिस में कहाँ कमी रह गई....
वीर - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) युवराज... आप जिनके साथ प्रैक्टिस कर रहे थे... वह हमारे ही मुलाजिम थे... वह कभी भी आप पर हावी होने की कोशिश नहीं की... इसलिए...
विक्रम - ह्म्म्म्म... आप सही कह रहे हैं... अपने ही मुलाजिमों से लड़ते हुए.. उनसे जीत कर... खुद को अनबीटन समझने लगा था... यही गलती हो गई थी मुझसे...
वीर - (चुप रहता है)
विक्रम - उसकी तेजी... उसकी फुर्ती... उसके ताकत के सामने... मैं ठहर नहीं पाया... मैं जहां उन्नीस था वह बीस नहीं इक्कीस था... उससे लड़ते वक़्त लग रहा था जैसे कोई कंक्रीट के स्ट्रक्चर से लड़ रहा हूँ...
वीर - सिर्फ़ इतनी सी बात पर खुदको सजा दी आपने...
विक्रम - बात अगर मार पीट तक होती तो... सिर्फ़ इतनी सी बात होती... उसके दिए वह तानें... मेरी वज़ूद को नेस्तनाबूद कर दिया है...(विक्रम उठ खड़ा होता है) अब हमारी फिरसे मुलाकात होगी... उस मुलाकात में या तो उसकी हार होगी या फिर मेरी मौत...

वीर के जिस्म में एक सिहरन दौड़ जाती है l वह भी खड़ा हो जाता है

वीर - ठीक है... युवराज जी... हम सब मिलकर उसे ढूंढेंगे...
विक्रम - नहीं... ही इज़ ऑनली माइन... अब उसके और मेरे बीच तीसरा कोई नहीं आएगा... आप भी नहीं... और तब तक इस ESS को आप संभालीये...
वीर - पर युवराज... मैं कैसे... मतलब...
विक्रम - अब मेरा लक्ष... बदल चुका है... अब मुझे ना चैन होगा ना सुकून होगा... जब तक इन हाथों को उसके खुन ना होगा....

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बाल्कनी में तापस सहर की तरफ देख रहा है l विश्व उसके पास आकर खड़ा होता है l तापस की ओर देखे वगैर

विश्व - सॉरी...
तापस - (विश्व की ओर देखे वगैर) किस लिए...
विश्व - वह... मेरे वजह से... आपकी आँखे नम हो गई...
तापस - ईट्स ओके... पर थैंक्स...
विश्व - किस लिए...
तापस - पल भर के लिए सही... उस बहुत ही खूबसूरत पल का... उसे याद दिलाने के लिए... कभी जिसका हिस्सा हुआ करता था...
विश्व - आप भले ही याद किए... पर सच यह भी है... आज उस पल का आप हिस्सा थे और आज इस पल के भी हैं.... और मैं चाहता हूँ... आने वाले दिनों में ऐसे अनगिनत पल आते रहें...
तापस - (विश्व की ओर हैरान हो कर देख कर) क्या...
विश्व - जो बीत गया वह अतीत था... जो बीत रहा है वह वर्तमान है... और जो बितेगा... बितेगा तो जरूर... वह आने वाला कल है...
तापस - (कुछ समझ नहीं पाता) मतलब...
विश्व - (तापस की ओर मुड़ता है) क्या... मैं आपको... डैड कहूँ...

कुछ देर के लिए बालकनी में सन्नाटा छा जाता है l तापस विश्व को हैरान हो कर आँखे फाड़ कर देखने लगता है l

विश्व - ठीक है... अगर आपको बुरा लगा तो... (आगे कुछ नहीं कह पाता है मुड़ कर अंदर जाने लगता है)
तापस - रुको... (विश्व रुक जाता है)
विश्व - क्या बात है डैड...
तापस - मैंने कहा भी नहीं है और तुम...
विश्व - हाँ... आपने मुझे पीछे से बुलाया है तो... मतलब यही है... के आपको मंजूर है.. है ना डैड...
तापस - ऑए... डैड के बच्चे... बातेँ बड़ी बड़ी करता है... गले से लग कर भी तो पुछ सकता था...
विश्व - हाँ कर तो सकता था... खैर आप भी क्या याद रखेंगे... यह शिकायत भी दूर किए देता हूँ... (कह कर तापस के गले लग जाता है)

विश्व के गले लगते ही तापस की रुलाई फुट पड़ती है और वह देखता है प्रतिभा खुसी के मारे उन दोनों के तरफ एक टक देखे जा रही है l

प्रतिभा - क्या मैं भी तुम लोगों के साथ जॉइन हो जाऊँ....

तापस अपनी बांह खोल देता है प्रतिभा भी आकर दोनों के गले लग जाती है l कुछ देर बाद प्रतिभा कहती है

- चलो चलो मैंने खाना लगा दिया है... वहीँ टेबल पर खाते हुए बातेँ करेंगे...

सब डायनिंग टेबल पर आकर बैठ जाते हैं l प्रतिभा सबके प्लेट लगा देती है और खाना परोस देती है l खाना खाते वक़्त

तापस - विश्व...
प्रतिभा - क्या... (गुस्से से घूरती है)
तापस - ओके ओके... प्रताप...
विश्व - जी....
तापस - इन सात सालों में... तुमको शरारत करते हुए... आज पहली बार देख रहा हूँ... तुम्हारे चरित्र का ऐसा भी एक एंगल हो सकता है... यह मैं नहीं जानता था...
विश्व - क्यूँकी... आज से पहले... (उन दोनों के हाथ पकड़ लेता है) आप दोनों मेरे जिंदगी में नहीं थे...

तापस और प्रतिभा को अंदरुनी बहुत खुशी महसूस होती है l दोनों एक दूसरे को देखते हैं फिर विश्व के हाथ पर अपना हाथ रख कर थपथपाते है l उसके बाद तीनों खाना खाने लग जाते हैं l तापस को महसूस होता है कि प्रतिभा खाना खाते वक़्त थोड़ी खोई खोई लग रही है l

तापस - क्या बात है भाग्यवान... आज फॅमिली रीयुनीअन हो जाने के बाद भी... तुम खोई खोई सी हो...
प्रतिभा - हाँ... वह.. प्रताप आज पेरोल पर बाहर है... और आज ही... (चुप हो जाती है)
तापस - कुछ नहीं होगा...
प्रतिभा - यह आप कैसे कह सकते हैं... मॉल की सिक्युरिटी और सर्विलांस उनके हाथ में है... अगर कुछ मैनीपुलेट हुआ... तो गड़बड़ हो जाएगी... यही चिंता सताये जा रही है...
विश्व - माँ (प्रतिभा के हाथ पर हाथ रख कर) कुछ नहीं होगा...
तापस - हाँ... प्रताप ठीक कह रहा है... कुछ नहीं होगा...
प्रतिभा - (तापस से) इसकी बात छोड़िए... यह तो कुछ भी बोल देगा... पर मुझे हैरानी इस बात पर है... की इतने बड़े कांड हो जाने पर भी... आपके चेहरे पर कोई शिकन तक नहीं....
तापस - सबुत होगा तो मैनीपुलेट होगा ना...
प्रतिभा - मतलब...
विश्व - यही की... सारे सीसीटीवी की फुटेज को डैड ने गायब कर दिया है...
प्रतिभा - क्या... यह कब हुआ... और तु... तु कैसे जानता है... कहीं तुम दोनों की कोई खिचड़ी तो नहीं...
विश्व - माँ... क्या लगता है... मैं तुमको झूठ बोल रहा हूँ...

प्रतिभा पहले तापस को देखती है तापस भी हैरान है और फिर विश्व को देखती है और अपना सिर ना में हिलाती है l

विश्व - पहले तुम... जब मेरा पेरोल करा कर मुझे बाहर ले जाया करती थी... तब डैड एक दिन की छुट्टी लेकर हमारा पीछा किया करते थे... अब चूँकि वीआरएस पर हैं... तो छुट्टी ही छुट्टी है...
प्रतिभा - क्या...(तापस से) मतलब... आप घर देखने नहीं गए थे... (विश्व से) और तुझे पता था कि यह हमारे पीछे हैं...
विश्व - मालुम तो नहीं था... पर अंदाजा था... और जब डैड ने कहा कि सबुत होगा तो मैनीपुलेट होगा... बस तब पुरी बात समझ में आ गई...
प्रतिभा - क्या समझ में आ गई...
विश्व - यही के... डैड पुलिस की वर्दी में जाकर... झूठे वारंट के कागजात दिखा कर...शुरु से सर्विलांस रुम में होंगे... जब कांड होते देखा होगा... मास्टर रिकॉर्डिंग गायब कर दिए होंगे....
तापस - ह्म्म्म्म... चलो एक बात तो पता चला... स्मार्ट हो गए हो... आँख और कान हमेशा खुले रखते हो...

विश्व कुछ नहीं कहता है सिर्फ़ मुस्करा देता है l

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शुभ्रा - रुप... मैं तुम्हारी कही हर बात पर विश्वास करती हूँ... पर यह तुम भी जानती हो... आज जो हुआ... ठीक नहीं हुआ...
रुप - हाँ भाभी... अब सच में... मुझे डर लगने लगा है...
शुभ्रा - अच्छा रुप... अनाम और प्रताप का चेहरा मिलता-जुलता है क्या...
रुप - पता नहीं भाभी... अनाम का चेहरा धुँधला सा याद है... शायद प्रताप उसके जैसा दिखता हो...
शुभ्रा - हाँ... हो सकता है... और लिफ्ट में जो हुआ... वह इत्तेफ़ाक भी हो...
रुप - शायद... पर भाभी अब यह सब सोचने से क्या फायदा... बनने से पहले सब बिगड़ गया ना...
शुभ्रा - (थोड़ा हँसते हुए) मतलब... तुम सच में प्रताप से इम्प्रेस हुई थी...
रुप - पता नहीं (अपना सिर झुका लेती है)
शुभ्रा - (रुप के गाल पर हाथ फेरते हुए) तुमको क्या लगता है... राज परिवार या राजनीति में रसूखदार परिवार को छोड़... तुम्हारे रिश्ते को... और कहीं मंजुरी मिल सकती है... यह कुछ दिन बाद भी होता... तो यह सब होता जरूर... हाँ वजह कुछ और होता... मगर यह होता जरूर...
शुभ्रा - भाभी... आपको... भैया के लिए बुरा लग रहा है ना....
शुभ्रा - हाँ लग रहा है... पर प्रॉब्लम यह है कि... प्रताप कहीं पर भी गलत नहीं है... और तेरे भैया उस वक्त गलत थे....
रुप - (अपने होठों को दबा कर अंदर कर लेती है दुसरी ओर देखने लगती है) अब भैया क्या करेंगे....
शुभ्रा - रूप... पहली बार किसीने... तेरे भाई को हार दिखाया है... और चोट... उनके भीतर को पहुँचाया है... अब या तो वह टुट कर बिखर जाएंगे... या फिर उभर कर निखर जाएंगे....
Bahut hi shaandar update diya hai Kala Nag bhai......
Nice and awesome update.....
 

Rajesh

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👉उनतीसवां अपडेट
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विश्व डायनिंग हॉल में एक कोने में पड़ा टेबल पर बैठ कर खाना खा रहा है और किसी सोच में खोया हुआ है l डैनी अपना थाली लेकर उसके पास आकर बैठता है l
डैनी - क्यूँ हीरो... कल क्या हुआ था... कोर्ट में...
विश्व अपना सर उठाकर देखता है और कहता है
- अरे डैनी साहब...
डैनी - क्यूँ भई किसी और की... इंतजार कर रहा था क्या.....
विश्व - जी... जी. नहीं.. नहीं... मैं यहाँ कैसे और किसका इंतजार करूंगा....
डैनी - अब... तु भले ही किसीका इंतजार ना करे... पर तेरा चाहने वाला अभी बाहर है... तुझसे यहाँ मिलने के लिए तड़प रहा है...
विश्व हैरानी से डैनी को देखता है l
डैनी - अरे यार.. वही जिसका पिछवाड़ा तेरे नाम से आह भरता है...
विश्व - (हंस देता है) ओ...
डैनी - और बता कल क्या हुआ....
विश्व - कल... कुछ खास नहीं...
डैनी - ह्म्म्म्म... कुछ तो हुआ है.... वरना इतना खोया खोया हुआ क्यूँ है....
विश्व - कल पहली बार... जयंत सर के माथे पर मैंने बल पड़ते हुए देखा... उनके चेहरे पर शिकन साफ़ दिखा मुझे....
डैनी - ह्म्म्म्म तो यह बात है..... देख वह कोर्ट रूम है... वहाँ वकीलों के बीच... दाव पेच का खेल होता है... कभी कोई हावी हो जाता है... तो कभी कोई सरेंडर हो जाता है...
विश्व - (अपना सर हिलाते हुए) ह्म्म्म्म... अब मुझे इन सब बातों का ज्ञान कहाँ.... मैं तो जीवन में पहली बार... राजगड़ से बाहर निकला.... वह भी एक घायल कैदी की तरह.... और न्यायालय की लाल कोठी भी देखा जीवन में पहली बार..... यहाँ आ कर... बस यहाँ पर लोगों को समझ नहीं पा रहा हूँ.... सच कहूँ तो.... कहाँ मैं अपने राजगड़ के लोगों को समझ पाया... पल पल हर पल लोगों के बदलता रंग देख.... हैरानी हो रही है मुझे....
डैनी - हा हा हा हा... यह तो कुछ भी नहीं... अगर यहाँ तु लंबा नप गया ना... तो यहाँ से बिना निकले भी.... सारे ब्रह्मांड का ज्ञान से धनी हो जाएगा.... अच्छा यह बता तुझे अब डर लग रहा है क्या....
विश्व - नहीं... अब बिल्कुल भी नहीं.... पर जब जयंत सर को चिंतित देखता हूँ... मुझे बुरा जरूर लगता है.... मुझे मेरे अंजाम की परवाह नहीं.... पर पता नहीं क्यूँ... मैं उन्हें हारते हुए नहीं देख सकता हूँ...
डैनी - ह्म्म्म्म बहुत जज्बाती हो रहे हो... क्या इसलिए के वह तेरे लिए लड़ रहा है....
विश्व - हाँ... शायद...
डैनी का खाना खतम हो जाता है l वह अपना थाली लेकर उठता है और धोने के लिए चला जाता है l थाली जमा करने के बाद फिर विश्व के पास आता है l
डैनी - तु... उनके लिए सोच रहा है... उनके लिए परेसान है... अच्छी बात है... पर यह मुकदमा है... कुछ भी हो सकता है.... वह तेरे लिए निस्वार्थ लड़ रहे हैं.... तु भी अपने मन में उमड़ रही भावनाओं में... उनके लिए निस्वार्थ भाव रख.... याद है तुने ही कहा था... के जब तु भगवान को याद करता है... तो तुझे उनका चेहरा दिखता है...
विश्व - हाँ...
डैनी - तो अपने भगवान पर विश्वास रख.... तुने अपना नैया उनके हाथ में दिया है पार लगाने के लिए.... तो अपने खीवैया पर भरोसा रख... उनकी जीत पर जश्न मनाना... पर उनके हार पर कभी दुख भी मत करना....
इतना कह कर डैनी वहाँ से चला जाता है l बेशक विश्व को छोड़ डैनी वहाँ से निकल जाता है, पर विश्व के कानों में डैनी की कही हर एक शब्द गूंजती रहती है l

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जगन्नाथ मंदिर में एक टोकरी भर कमल के फूलों से भरा हुआ है l पास बैठी वैदेही सुई धागा हाथ में लेकर माला गुंथ रही है l
पुजारी उसे माला गुंथते हुए देख रहा है और उसे लग रहा है कि भले ही वैदेही माला गुंथ रही है पर उसका ध्यान कहीं और है l कुछ देर बाद वैदेही के उंगली में सुई चुभ जाती है l उसके हाथों से सुई धागा और फूल छूट जाते हैं l
पुजारी - मैंने पहले से ही कहा था.... तुमसे नहीं होगा.... मंदिर में फूल गूँथने के लिए और भी लोग हैं.... तुम क्यूँ यह कष्ट उठा रही हो...
वैदेही - क्या बात कर रहे हैं पुजारी जी.... मैं क्यूँ नहीं गुंथ सकती... भगवान के लिए माला...
पुजारी - क्यूँकी सुबह से देख रहा हूँ... तुम्हारा ध्यान कहीं और है...
वैदेही - नहीं ऐसी बात नहीं है... पंडित जी... वह मैं...
पुजारी - देखो बेटी... तुम्हारा मन कल से ही विचलित है... कोर्ट से आने के बाद... तुम खोई खोई सी हो...
वैदेही चुप रहती है l
पुजारी - ह्म्म लगता है... कल का दिन... तुम्हारे उम्मीद के मुताबिक नहीं गया....
वैदेही अपने होठों पर चुप्पी लिए सर झुका लेती है l
पुजारी - (वैदेही के पास बैठ कर) देखो बेटी... मैं मानता हूँ आशा है... तो जीवन है... पर भगवान ना करे... मानलो कभी आशा टूट जाती है... इसका मतलब यह तो नहीं... जीवन रुक जाती है....
वैदेही पुजारी को मुरझाइ नजर से देखने लगती है
पुजारी - देखो बेटी.... मैं यह तो नहीं जानता कल कोर्ट में क्या हुआ.... पर इतना कहूँगा निरास कभी मत होना.... क्यूँकी तुम्हारे भाई का केस लड़ने वाला जयंत... भले ही साधारण कद काठी का है.... पर यह मैं दावे के साथ कह सकता हूँ.... जब तक वह मैदान में है... तब तक तुम्हारे भाई सुरक्षित है...
वैदेही फिरभी कुछ नहीं कहती है, पुजारी को देखती है फ़िर अपनी नजरें नीचे कर लेती है l
पुजारी - अच्छा तुमने वह कहावत तो सुनी होगी ना.... के शेर अपने शिकार पर अंतिम प्रहार करने से पहले.... दो कदम पीछे हटता है.... कभी दो सांढों को लड़ते देखा है... या फिर... दो भेड़ों को.... एक जोरदार हमला करने से पहले... कुछ कदम पीछे हटते हैं.... समझो कल कोर्ट में वही हुआ होगा...
वैदेही की आंखे हैरानी से चौड़ी हो जाती है l
पुजारी - अब तुम चाहो तो... फूल गुंथ सकती हो..
इतना सुनते ही,वैदेही के चेहरे पर उदासी हट जाती है और मुस्कान आ जाती है l
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कोर्ट रूम की ओर जाते हुए जयंत को कॉरीडोर में वैदेही दिखती है l वैदेही उसे देख अपनी खुशी जाहिर करती हुई एक हंसी के साथ जयंत को अभिवादन करती है l जयंत भी उसके तरफ मुस्कराते हुए देखता है l ठीक उसी वक्त तापस विश्व को लेकर वहीँ पहुंचता है l
विश्व - (जयंत से) नमस्ते सर....
जयंत - नमस्ते... क्या बात है... आज भाई बहन कुछ अलग ही मुड़ में हैं.... या फिर कोई खास दिन है आज...
वैदेही - मुड़ में हम आपके वजह से हैं.... सर.... और आपके वजह से अब हर दिन खास होता जा रहा है....
जयंत - वाकई.... हा हा हा.... अच्छा चलो... जल्दी चलते हैं... देखते हैं... आज क्या होने वाला है...
दोनों - जी...
फिर तापस विश्व को लेकर चला जाता है l वैदेही और जयंत भी कोर्ट रूम की और चले जाते हैं l
कोर्ट रूम के भीतर आज कुछ और सदस्य उन्हें नजर आते हैं l दरवाजे के पास जयंत और वैदेही दोनों रुक जाते हैं l जयंत उन अजनबियों को देख रहा है l
वैदेही - सर यह सब हमारे राजगड़ से आए हुए हैं... वह जो धोती कुर्ता में है... उसका नाम दिलीप कर है... बहुत ही नीच और कमीना है... वह जो सफारी शूट में है... वह है इंस्पेक्टर अनिकेत रोणा... इसके आगे तो कमीनापन भी कहीं ठहर ही नहीं सकता.... और वह जो कोट पहने बैठा हुआ है... वह है राजा साहब का वकील बल्लभ प्रधान... राजा भैरव सिंह के हर काले कारनामों का काला चिट्ठा, सब का लेखा जोखा रखता है...
जयंत - ह्म्म्म्म
वैदेही - पर यह समझ में नहीं आ रहा है... बल्लभ का नाम तो गवाहों लिस्ट में नहीं था... फिर यह यहाँ कैसे....
जयंत - (मुस्कराते हुए) सिम्पल... राजगड़ से आने वाला हर गवाह का... वकील बन कर आया है.... अपने सामने सबका जिरह देखेगा... पर कारवाई में उसका कोई दखल नहीं होगा....
वैदेही - ओ...
जयंत - चलो... हम अपनी जगह बैठते हैं...
इतना कह कर दोनों अपनी अपनी जगह पर आ कर बैठ जाते हैं l वैदेही उनके तरफ देखती है तो तीनों वैदेही को देख कर अपने चेहरे पर कमीनी मुस्कान लाते हैं l वैदेही घृणा से अपना चेहरा घुमा लेती है l
हॉकर जजों के आने का संकेत देता है l सब अपनी जगह पर खड़े हो जाते हैं l तीनों जज अपनी अपनी जगह पर बैठ जाते हैं l फिर औपचारिकता समाप्त होते ही गवाह के रूप में दिलीप कर को बुलाया जाता है l
दिलीप कर के वीटनेस बॉक्स में पहुंचते ही कोर्ट के एक मुलाजिम गीता लेकर उसके पास पहुंचता है तो गीता पर हाथ रख कर कर कहता है -
- मैं जो भी कहूँगा सच कहूँगा... सच की सिवा कुछ नहीं कहूंगा...
प्रतिभा अपनी कुर्सी से उठ कर दिलीप कर के पास आती है l
प्रतिभा - हाँ तो आप... अदालत को अपना परिचय देने का कष्ट करेंगे....
कर - उसमें कष्ट कैसा... माई बाप.... मेरा नाम दिलीप कुमार कर है... मेरे माता-पिता दोनों इस संसार में नहीं हैं.... मैं राजगड़ पंचायत के... मानिया शासन गांव से वार्ड मेंबर और पंचायत समिति सभ्य हूँ...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... उस कटघरे में जो शख्स खड़ा है... क्या आप उसे जानते हैं....
कर - जी अच्छी तरह से... पहले तो कम ही जानता था.... पर अब... अब अच्छी तरह से जान चुका हूँ और समझ भी चुका हूँ....
प्रतिभा - क्या मतलब...
कर - मतलब... यह... स्वजाती भक्षु... मतलब अपनी ही जाती को खा जाने वाला... अपने कुल का कलंक है... नमक हराम है और एहसान फरामोस है...
यह सुनते ही वैदेही को बहुत गुस्सा आता है l वह अपनी दांत पिसते हुए जबड़े भींच लेती है l
प्रतिभा - ऐसा आप क्यूँ कह रहे हैं....
कर - हमने.... क्या समझ कर... इसको सरपंच बनाया था... पर इसने क्या कर दिया....
प्रतिभा - वही तो अदालत जानना चाहती है... की इस शख्स ने क्या किया.... और आप उसके सारे काले कारनामों का गवाह हैं... अदालत अब आपसे विस्तार से जानना चाहती है.... और आप किस तरह से... एसआइटी की मदत किए...
कर - ठीक है... वकील साहिबा जी (फिर जज की ओर मुड़ कर) माय बाप... एक दिन राजा साहब जी के महल में सारे पंचायत के समिति सभ्य इकट्ठे हुए थे... हमारे पूर्व सरपंच जी का देहांत... उनके कार्यकाल के पुरा होने से सात महीने पहले हो गया था... और क्यूंकि राज्य के दूसरे हिस्सों के मुकाबले हमारा यशपुर पिछड़ा हुआ रहा है.... पंचायत चुनाव का समय भी निकट आ रहा था तब.... हम सबने राजा साहब से कुछ बदलाव की सुझाव मांगने के लिए गए थे... तो राजा साहब ने हमको कहा... चूंकि शायद हम सब पुराने ज़माने के... पुराने ख़यालात के हैं... इसलिए हम से सारे काम धीरे धीरे हो रहे हैं.... तेजी से बदल रही इस दुनिया में... बदलाव के लिए... नए ज़माने का नया जोश भरा... नए खून से लबालब... नया नव युवक को इस बार... मौका दिआ जाए....
हम सबने... उनकी बातों का समर्थन किया और पूछा भी... कौन हो सकता है ऐसा नवयुवक... तब राजा साहब ने इस नमक हराम... एहसान फरामोस... विश्व का नाम सुझाया.....
वैदेही - (चिल्ला कर) यह झूठ कह रहा है जज साहब.... और यह बार बार मेरे भाई को गाली भी दे रहा है....
जज - ऑर्डर... ऑर्डर.... मोहतरमा आप... इस तरह से अदालत के कारवाई में दखल नहीं दे सकती.... आपके भाई के तरफ से कहने के लिए... आपका वकील नियुक्त हैं... इसलिए सयम बरतें... कृपाया आप अपना स्थान ग्रहण करें....
जयंत भी वैदेही को चुप रहने के लिए इशारा करता है और इशारे से बैठने के लिए कहता है l वैदेही बैठ जाती है और गुस्से से दिलीप कर को देखती है, दिलीप कर जवाब में उसे देख कर एक कमीनी हंसी अपने चेहरे पर ला कर वैदेही को देखता है l
प्रतिभा - हाँ तो कर बाबु... राजा साहब ने विश्व का नाम सुझाया... फिर...
कर - फिर राजा साहब जी ने विश्व को बुलाया... समझाया... पर वह नमक हराम.... राजा साहब को मना ही कर दिया था... पर फिर राजा साहब जी ने उमाकांत आचार्य जी को बुलाया... और राजगड़ विकास के लिए सामुहिक तौर पर... विश्व को मनाने के लिए आचार्य जी को दायित्व दिया... और आचार्य जी के साथ मैं भी गया था... विश्व को मनाने के लिए... माय बाप.... एक तरफ इस कम्बख्त विश्व को आचार्य जी समझा रहे थे... और दूसरी तरफ... मैं इस बदबख्त के पैरों में गिर कर राजा साहब की मान को बचाने के लिए गुहार लगा रहा था.... (इतना कह कर कर वैदेही की ओर अपने काले दांत दिखाते हुए हंसता है, उसकी यह कमीनी हरकत देख कर वैदेही के तन बदन में आग लग जाती है) माय बाप... विश्व के मान जाने के बाद... विश्व का नामांकन से लेकर चुनाव जीतने तक हम सबने.... दिन रात एक कर दिया था... ताकि विश्व हमारे राजगड़ को उन्नती के शिखर पर पहुंचा दे... पर इस एहसान फरामोस ने एक ऐसा काला दिन दिखाया... के इसे सरपंच बनाना.... राजा साहब और हम सबकी बड़ी भूल साबित हुई.....
माय बाप.... मेरे गाँव में तीन कलवर्ट कामों के सिर्फ पचपन लाख रुपये कंट्राक्टर को देने बाकी थे... इसलिए मैं विश्व के पास चेक साइन कराने गया था... पर विश्व ने पचपन के जगह पचहत्तर लाख लिख कर साइन किया.... मैं हैरान रह गया... मैंने पूछा... इतना क्यूँ... तो विश्व ने कहा... के देखते हैं... अगर पैसा मिल जाता है... तो बांट लेंगे... नहीं तो चेक बदल देंगे... मैं हैरान रह गया... क्या यह वही विश्व है... जिसके पिता मेरे परम मित्र रघुनाथ महापात्र है... क्या यह सम्भव है.... पर आज लग रहा है... क्यूँ नहीं जब महर्षि विश्रवा का बेटा रावण हो सकता है... तो रघुनाथ का बेटा विश्व ऐसा क्यूँ नहीं हो सकता है...
वैदेही - नहीं (चिल्लाते हुए अपनी जगह पर खड़ी हो जाती है) जज साहब यह बहुत ही नीच और गलीच इंसान है... झूठ पर झूठ और तोहमत लगाए जा रहा है...
वैदेही के ऐसे चिल्ला कर बात करने से जयंत भी अपनी जगह से उठ जाता है
जज - ऑर्डर ऑर्डर... वैदेही जी.... अगर आप फिरसे अदालत की कारवाई में... दखल देने की कोशिश की... तो मजबूरन अदालत आपको जिरह के समय इस कमरे से दूर रखेगी....
जयंत - योर ऑनर.... प्लीज... इस जिरह को थोड़ी देर के लिए रोक दिया जाए.... हमे एक स्वल्प विराम दिआ जाए.... मैं अपने क्लाइंट और उसके संबंधी को थोड़ी देर के लिए... यहाँ से अलग कमरे में ले जा कर समझना चाहता हूँ....
जज - ठीक है... यह अदालत बचाव पक्ष वकील के बात को मानते हुए... दोनों पक्षों को आधे घंटे का विराम.... देती है... और ठीक आधे घंटे के बाद कारवाई फिर यहीँ से शुरू होगी....
इतना कह कर तीनों जज वहाँ से चले जाते हैं l उनके जाते ही जयंत वैदेही और विश्व को लेकर पास के एक कमरे में आता है l कमरे के भीतर पहुंच कर जयंत वैदेही के तरफ मुड़ कर
जयंत - वैदेही... यह क्या कर रही हो.... वह तुम दोनों को उकसा रहे हैं... और तुम उनकी षड्यंत्र को कामयाब होने दे रही हो..
वैदेही - देखिए ना.. सर... (रोती सूरत बना कर) वह मेरे भाई को... रावण कह रहा है... कितना झूठ बोल रहा है...
जयंत - देखो मैं जानता हूँ... उसे उसकी मर्जी की करने दो.... जब वह मेरे पाले में आएगा... तब वह अपना झूठ भी नहीं पचा पाएगा....
विश्व - दीदी... जयंत सर ठीक कह रहे हैं...
जयंत - देखो वैदेही... मैंने विश्व को पहले ही दिन से समझा दिया था... के कारवाई के दौरान उत्तेजित ना होने के लिए... वह तुम से छोटा है... फ़िर भी सयम बनाए हुए है... पर तुम ना सिर्फ अपना सयम खो रही हो... बल्कि अगर तुम्हें किसी भी तरह से जज छोटी ही सही... सजा देते हैं.. तो विश्व पर मानसिक रूप से प्रभाव पड़ेगा... और यही तो वह लोग चाहते हैं...
वैदेही - म.. मुझे... माफ कर दीजिए... मैं चुप रहूंगी...(कह कर पास रखे एक कुर्सी पर बैठ जाती है)
विश्व उसके पास जा कर उसके सर को पकड़ कर झुक कर अपने सीने से लगा लेता
विश्व - दीदी... मैं जानता हूँ... आप मुझसे बहुत प्यार करती हो... पर हमने इतना कुछ सहा है... तो कुछ और सही....
वैदेही - (अपनी आँखों में आंसू लिए) ह्म्म्म्म
जयंत - ह्म्म्म्म अब तुम थोड़ा पानी पी लो... (कह कर एक डिस्पोजेबल ग्लास में पानी लाकर देता है)
उधर एक और कमरे में
रोणा - वाह... साले हरामी.... वाह... तुने तो... उस वैदेही की झांटे ही सुलगा दी...
कर - ही.. ही.. (एक पान निकाल कर खाते हुए) बच्ची है... बिचारी.... अभी अभी राजगड़ से बाहर की दुनिया देख रही है... इसलिए पचा नहीं पा रही है भड़क गई... साली कुत्तीआ... ही ही ही
परीडा - वाकई... उन पर... तो साइकोलॉजीकल एडवांटेज हमने ले लिया है... अभी...
रोणा - और नहीं तो क्या... वह लोग जितना फटेंगे... उतना ही टूटेंगे...
कर - मैं तो इस फन में माहिर हूँ... आदमी जितना भड़केगा... वह खुद पर.. नियंत्रण उतना ही खो देगा.... और जो ना किया हो उसे स्वीकार भी कर लेगा....
परीडा - बिल्कुल... अभी सिर्फ़ उसकी बहन... रिएक्ट कर रही है.... विश्व का रिऐक्ट होना बाकी है... फिर उनसे गलतियां होती जाएंगी... और हम उन पर हावी होते जाएंगे....
रोणा - सौ टका सही... सुन बे कर.. तु लगा रह... आज सुनवाई खत्म होने दे..... साले तुझे आज शराब में नहला दूँगा....
कर - मैं तो पहले से ही कहा था.... हमारे परीडा जी ने... नींव डाल रखी है... अब मैं उस पर दीवार चढ़ा रहा हूँ.... रोणा बाबु.... छत ढंग से डाल देंगे..... और राजा साहब... किवाट और खिड़की लगा देंगे... ना कानून.. ना कोई तितर... उसके भीतर... पहुंच ही नहीं पाएंगे....
रोणा - बिल्कुल... क्यूँ बे वकील... सब तेरी ही स्क्रिप्ट के हिसाब से... काम बढ़ रहा है... फ़िर भी तेरे चेहरे पर... खुशी नहीं दिख रही है....
बल्लभ - वैदेही... कितना भड़कती है... यहाँ पर... यह जरूरी नहीं है.... हमारा टार्गेट... विश्व है... उसे इतना भड़काना है... की वह अपना आपा खो बैठे.... तब हमारी हर चाल कामयाब होगी....
कर - उसी की तो कोशिश कर रहा हूँ... पर उससे पहले उसकी बहन सुलग रही है... कमीनी जैसे सुलग सुलग कर उड़ रही है....
बल्लभ को छोड़ सभी हंसते हैं l
रोणा - हाँ बिल्कुल दिवाली की रॉकेट की तरह... उड़ती तभी है.. जब पिछवाड़ा सुलगती है....
(हा हा हा हा हा) फिरसे सभी हंस देते हैं l
बल्लभ - तुने राजगड़ में... दिवाली कब मनाई...
रोणा - नहीं मनाई... पर अपने यहाँ जाकर तो मनाई है.... ना
परीडा - क्यूँ.. राजगड़ में.. क्यूँ नहीं मनाई...
कर - श्.. श्..श्... (धीरे से) राजगड़ में क्षेत्रपाल परिवार का विधान है... आम लोग खुशियां या मातम इकट्ठे होकर... भीड़ बना कर.. नहीं मना सकते... जिसको मनाना होता है.... वह लोग अपनी चार दीवारी के भीतर मनाते हैं.... वह भी किसीको मालुम ना हो पाए ऐसे.... राजगड़ में उत्सव, खुशियाँ और मातम सिर्फ़ महल में होती है... जहां लोग भीड़ बना कर सामिल हो सकते हैं....
परीडा - ओह माय गॉड... म.. मतलब... मुझे यह मालूम नहीं था...
रोणा - इसलिए तुम अपना काम करो.... और राजा साहब या राजगड़ के बारे में... जितना कम जानों... उतना ही अच्छा है....
बल्लभ - यार.. यह बे सिर पैर की बातों को किनारे करो अब... देख कर अभी टाइम हो जाएगा... किसी भी तरह से... अपने बयान इसी तरह जारी रख... और तुझको विश्व को भड़काना है... ऐसे भड़काना है कि वह अपना आपा खो बैठे.... पर अपनी भाषा को नियंत्रित रखना.... वरना लेने के देने पड़ जाएंगे....
कर - ठीक है... अबकी की बार देखो मेरा कमाल....
इन सबकी काना फुसी चल ही रही थी कि तभी एक कांस्टेबल वहाँ आकर खबर करता है कि अदालत शुरू होने वाली है l सभी जल्दी से सुनवाई के कमरे में पहुंचते हैं l कमरे के भीतर विश्व अपनी कठघरे में खड़ा है l जयंत और वैदेही अपनी अपनी जगह पर बैठे हुए हैं l यह लोग भी अपने जगहों पर बैठ जाते हैं l कुछ देर बाद तीनों जज अपने अपने कुर्सी पर बैठ जाते हैं l फिर दिलीप कर को विटनेस बॉक्स में बुलाया जाता है l
प्रतिभा - (उसके पास पहुंच कर) हाँ तो कर बाबु.... आपने कहा कि... कंट्राक्टर को बकाया पैसे देनें थे... इसलिए अपने पचपन लाख रुपये की चेक मांगा... बदले में.. विश्व ने पचहत्तर लाख रुपये की चेक साइन कर जमा करने के लिए कहा... I
कर - जी...
प्रतिभा - अब आगे क्या हुआ कहिए....
कर - मैं तो बहुत हैरान हो गया था.... पर पता नहीं... कैसे और कहां से विश्व के पास बाकी के बीस लाख रुपये पहुंचे.... विश्व ने मुझे कसम देकर... दस लाख रुपये दिए... अब मैं... बीच भंवर में फंस चुका था.... मुक्ति की राह तलाश रहा था... तो मैंने एक दिन फोन कर... यशपुर तहसीलदार जी को विश्व का यह कारनामा बताया... एक दिन तहसील ऑफिस से विश्व को बुलावा आया.... मैं बहुत खुश हो गया... लगा अब अंकुश लगेगा... विश्व और मैं तहसील ऑफिस पहुंचे... पर मुझे ऑफिस के बाहर रुकने को बोल... विश्व अकेले गया था तहसीलदार जी से मिलने... करीब करीब आधा दिन बीत गया... तब विश्व बाहर आया... उसके चेहरे पर एक अलग खुशी झलक रही थी.... जैसे कोई मैदान मार लिया हो.... मैं समझ नहीं पाया... एक तरफ विश्व के दिए हुए पैसे मेरे गले में फांस बन चुका था.... और दूसरी तरफ तहसील ऑफिस से विश्व का खुश हो कर वापस आना.... मुझे और भी डराने लगा....
अगले दिन पंचायत ऑफिस में.. बड़े बड़े लोग आ पहुंचे... तहसीलदार, ब्लाक अधिकारी, बैंक अधिकारी, रेवेन्यू इंस्पेक्टर, और विश्व के बीच बंद कमरे में एक मीटिंग हुई...
उसके बाद विश्व बाहर आकर हमे कहा... के राजगड़ विकास के लिए... उन्होंने तय किया है.. की एक गैर सरकारी संस्था के जरिए आम जनता से चंदा के जरिए देश विदेश के लोगों से... पैसे इकट्ठा करके... जनता की भलाई करेंगे.... हमे बहुत अच्छा लगा सुन कर.... तो एक महीने के भीतर "राजगड़ उन्नयन परिषद" पंजीकृत हुआ... इससे हमारे राजा साहब भी बड़े खुश हुए... उन्होंने अपने तरफ से.. पच्चीस लाख रुपये का दान चेक के जरिए दिया.... मैंने भी.. जो मेरे गले में फांस बनाकर विश्व ने... दस लाख रुपए दिया था.... वही दस लाख रुपये माय बाप दान दे दिया....
उसके बाद क्या होता रहा,.. क्यूँ होता रहा... मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था... एक दिन तहसील ऑफिस गया था... वहाँ पर पहुंच कर देखा... तहसील ऑफिस के एक कर्मचारी को विश्व बहुत मार रहा है... मैंने जा कर उसे रोका.... और विश्व को वहाँ से भेज दिया... फिर उस कर्माचारी को भी घर जाने को कहा... तभी वह कर्मचारी ने मुझे बताया कि कई सौ करोड़ों रुपये विश्व, तहसीलदार और ब्लॉक अधिकारी मिलकर लूट लिए हैं.... मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई... मैं तुरंत भागा... भागते भागते आचार्य जी को गुहार लगाई.... आचार्य जी को बहुत दुख हुआ... वह गए... सीधे राजा साहब से माफ़ी मांगने.... राजा साहब को भी दुख हुआ.... यह सब जानने के बाद.... राजा साहब ने.... आचार्य जी को... आश्वासन दिया.. की वह जल्दी कुछ करेंगे... फिर इसी तरह कुछ दिन बीत गए... फिर हमे खबर मिली... आचार्य जी को सांप ने काट लिया है... और हस्पताल जाने से पहले उनका देहांत हो गया.... मैं पूरी तरह से टूट गया माय बाप... इसलिए एक दिन निश्चय किया और यशपुर के महादेव मंदिर में भगवान को... साष्टांग प्रणाम किया और कहा... हे महादेव.. कहाँ हो आप... मैं यह सब अनर्थ नहीं देख सकता हूँ... या तो अपना त्रीनेत्र खोल कर तांडव करो... या.. या मेरे प्राण लेले... या फिर कोई जरिया देदे... जिससे मैं उस बदबख्त विश्व को सजा दिला सकूं..... तभी माय बाप मंदिर की घंटी बजी... मैं नीचे से उठा... विभोर हो गया... भगवान ने मेरी सुन ली.... मैं मंदिर में उस व्यक्ति को ढूंढने लगा जिसने घंटी बजायी... तब मुझे (परीडा की ओर हाथ दिखा कर) यह महाशय दिखे... मैंने उन पर नजर रखा और उनकी बातों को सुनने लगा... जब मुझे मालूम हुआ... की यह लोग तो राजगड़ में हुए घोटाले की जांच करने आए हैं.... मैं पहले भगवान को धन्यबाद किया... फ़िर इनसे मिला और अपनी सारी दुखड़ा रोया... बाकी सब आपके सामने है माय बाप... बाकी सब आपके सामने है....
प्रतिभा - ह्म्म्म्म तो यह थी... विश्व रूप कि कहानी...
कर - जी....
प्रतिभा - तो विश्व महापात्र जी... क्या यह दिलीप कर सच कह रहे हैं...
विश्व - (अपनी दांत पिसते हुए) यह आदमी... पूरा का पूरा झूठा है... और जो भी कहा है सब झूठ कहा है....
प्रतिभा - यह तो आपके डिफेंस लॉयर को साबित करने दीजिए... फ्रोम माय साइड... दैट्स ऑल योर ऑनर... (जयंत को देख कर) नाउ योर टर्न....
जयंत यह सुन कर मुस्कुराता है l
जज - क्या बचाव पक्ष इस गवाह से जिरह करना चाहेंगे...
जयंत -(अपनी कुर्सी से उठते हुए) जी... माय लॉर्ड.. जरूर...
जज - ठीक है... शुरू कीजिए....
जयंत दिलीप कर को देखता है l कर अपने होठों को अपने गमछे से साफ करता है l उसे ऐसा करते देख जयंत उसे मुस्करा कर देखता है, जवाब में दिलीप कर मुस्करा देता है l
Nice update bro
 

Rajesh

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जयंत - हाँ तो कर बाबु... आपकी कहानी ने मुझे... भावुक कर दिया.... एक बात तो है... आप बहुत बड़े भगवत विश्वासी हैं... भगवान पर आपकी आस्था अटूट है... भाई वाह....
कर - देखिए वकील साहब.... या तो आप मेरी भक्ति की मज़ाक उड़ा रहे हैं... या फिर मेरी भक्ति की शक्ति से आपको जलन हो रही है....
जयंत - अरे ना ना... कैसी बातेँ कर रहे हैं... मुझे तो लगता है कि... आधुनिक काल में... प्रभु जगन्नाथ जी के सर्वश्रेष्ठ भक्तों में जैसे सालबैग का नाम लिया जाता है.. उसी तरह प्रभु एकाम्रेश्वर श्री लिंगराज भगवान जी के भक्तों में आपकी गिनती प्रथम होगी.....
कर - ही ही ही... देखिए आप.... आप मुझे शर्मिंदा कर रहे हैं...
जयंत - अरे इसमें... शर्मिंदा होने वाली क्या बात है.... अपने मंदिर में भगवान से न्याय मांगा... तो भगवान ने आपको घंटी बजा कर संदेश दिया..... और आज इस न्याय की मंदिर में भी... आपकी वजह से न्याय की घंटी बजेगी.... मुझे ऐसा लग रहा है... आपको कैसा लग रहा है...
कर - ही ही ही... जरूर... सब उन्हीं के कृपा से संभव होगा... जय शिव शंभू...
जयंत - जय शिव शंभू... तो कर बाबु... अभी तक आपने जो भी जानकारी अदालत को उपलब्ध कारवाई.... और एसआईटी ने जो जानकारी दी है... उसमें अब मैं कुछ कुछ जोड़ कर... कहानी को आगे बढ़ाऊंगा.... जहां गलत हो जाउं... तब आप कृपा करके मुझे टोक दीजिएगा...
कर - ( जयंत को देखते हुए ) जी.. जी... जरूर जरूर...
जयंत - योर ऑनर... आज अपनी बात को आगे ले जाने से पहले... मैंने कुछ बात गौर किए... उन सबको लिख कर चार चार कॉपी बना कर... तीन आपके लिए... और एक प्रोसिक्यूशन के लिए तैयार किया है... जिसमें मैंने कुछ लिखें हैं... आप देख सकते हैं (कह कर तीनों जजों को एक एक फाइल दे देता है, और प्रतिभा को एक फाइल देता है, चारों फाइल खोल कर देखते हैं ) जैसा कि आपने देखा.. के मैंने कुछ लिखा है.... पर आप सबसे अनुरोध है.... यह फाइल आप मेरे जिरह खतम होने के बाद ही, पूरी तरह देखें... और तथ्यों पर गौर करें....
जज - (फाइल बंद कर रखते हुए) ठीक है... आप जिरह आरंभ कीजिए....
जयंत प्रतिभा को देखता है, तो प्रतिभा भी फाइल बंद कर रख देती है l
जयंत - (मुस्करा कर) थैंक्यू.. थैंक्यू... एंड थैंक्यू....
जयंत अदालत में सब पर एक नजर दौड़ाता है, फ़िर
जयंत - माय लॉर्ड... यह महाशय.. श्री दिलीप कर... मानिया शासन गांव से हैं.... और मुल्जिम श्री विश्व... पाइकपड़ा गांव से हैं.... इस तरह बहुत से गांव है.. राजगड़ पंचायत में... जैसे सिंधी पार, कासीनी पदर, चंपा पदर, अँला बाड़ी, चारांगुल, इत्यादि इत्यादि ऐसे बहुत से गांव है... क्यूँ कर बाबु मैंने ठीक कहा ना...
कर - जी बिलकुल..
जयंत - हाँ तो योर ऑनर... यह जीन प्रोजेक्ट के पैसे मनरेगा के जरिए हड़प लिए गए... यह सारे प्रोजेक्ट... पिछले पंचायत के काल की नहीं है योर ऑनर... उससे पहले पंचायत काल की है.... अर्थात करीबन सात साल पहले... यशपुर विकास के लिए सारे राजनीतिक व्यक्तित्व मतलब... उस इलाके के... सारे एमपी और एमएलए वहाँ के सारे सरकारी अधिकारी गण मिलकर.... आरपीडिसी का गठन किया... ओड़िशा में किसी मुख्य प्रांत को लक्ष में रख कर.... उस प्रांत व उसके इर्द गिर्द प्रांतों के उन्नती के लिए जो सरकारी कमेटी बनती है... उसे आरपीडिसी कहते हैं... पर राजगड़ के लिए आरपीडिसी का सरकारी मतलब था... राजगड़ एंड पेरिफेरल डेवलपमेंट कमेटी.... जो मुख्यमंत्री के निगरानी में हुआ... उसी आरपीडिसी मीटिंग में... राजगड़ के विकास को प्राथमिकता देते हुए... कुछ प्रोजेक्ट्स के प्रपोजल को मंजुर करवाने की जिम्मेदारी तहसीलदार जी ने स्वयं ली... और केंद्र एवं राज्य सरकार की मंजूरी के बाद.... बजट भी आ गया था... प्रोजेक्ट शुरू करने के लिए... टेन्डर के द्वारा... कॉन्ट्रैक्ट,
कॉन्ट्रेक्टरों को दिआ गया... पिछले सरपंच के समय यह सब शुरू भी हो गया.... क्यूँ कर बाबु मैं यहाँ तक ठीक हुँ...
कर - जी जी... बिलकुल... आप पूरे सही जा रहे हैं...
जयंत - थैंक्यू कर बाबु... तो माय लॉर्ड... पिछले सरपंच के काल में.. काम शुरू हुआ... यहाँ मैं एक बात कहना भूल गया.... के जब तहसील को बजट आ गया... आरपीडिसी में यह तय हुआ... की वह पैसे कॉन्ट्रेक्टरों को सरपंच के किए दस्तखत के जरिए पंचायत फंड से मिलेगी... पर पैसा तहसील ऑफिस से रिलीज़ होगी... क्या मैं इस बार भी सही हूँ...
कर - जी हाँ... आपने सही कहा है...
जयंत - तो योर ऑनर... काम शुरू हुआ और हर जगह पंद्रह से बीस प्रतिशत काम होने के बाद... बंद भी हो गया.... इशू बना रेत, ईंट, सीमेंट इत्यादि... के क्वालिटी का... वह सारे कंट्राक्टर ब्लैक लिस्ट करा दिए गए...ऐसी हालत में... आरपीडिसी ने सरपंच को यह अधिकार भी दिया था... के वह लोकल कंट्राक्टर्स को लेकर उसी बजट में काम पूरा कर सकते हैं.... ऐसे में... सारे प्रोजेक्ट्स को लोकल कंट्राक्टर्स के जरिए पूरा करने की कोशिश की गई.... पर उसमें भी सही समय पर... बिल पास ना हो पाना... एक इशू रहा जिसके वजह से... बहुत से काम साठ से सत्तर प्रतिशत ही पूरा हो पाया.... ऐसे समय में... पुराने सरपंच का देहांत हो गया.... क्यूँ कर बाबु... मैंने यह भी सही कहा है ना...
कर - जी बिलकुल...
जयंत - हाँ योर ऑनर... एक तरफ सरपंच जी का देहांत... दूसरी ओर आधे अधूरे प्रोजेक्ट्स... अगर कंप्लीशन सर्टिफिकेट ना दिया गया... तो पैसे वापस जा सकती थी... इसलिए... एक कार्यकारी सरपंच को चुना गया.... मेरा मतलब स्वयं श्री... दिलीप कुमार कर जी को... क्यूँ कर बाबु... अभी भी.. मैं सही हूँ...
कर - जी सही हैं आप... तो इसमे कोई अपराध हो गया क्या.... माय बाप... मैंने वह सारे प्रोजेक्ट पूरा करवाया... पर इस शर्त पर... के प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद ही... बकाया राशि की भुगतान होगी...
जयंत - जी... जी.. मैं भी यही कहना चाहता था... माय लॉर्ड... कर बाबु... आप उत्तेजित ना हों... मैं तो वही कह रहा हूँ... जो अपने एसआइटी को बताया है...
कर - जी... जी...
जयंत - तो योर ऑनर... चूंकि... अंतिम कंट्राक्टर्स को इसी शर्त पर कंट्राक्ट दी गई थी... के काम पूरा होने के बाद ही... उन्हें पैसों की भुगतान होगी.... इसलिए विश्व के सरपंच बनने के बाद... मानिया गांव के तीन पुलिया मतलब कल्वर्ट के काम के बकाया राशि.... पचपन लाख रुपये का चेक विश्व से साइन कराया गया.... क्यूँ कर बाबु मैं सही कह रहा हूँ...
कर - जी नहीं... आप गलत कह रहे हैं... विश्व ने पचहत्तर लाख रुपये का चेक साइन किया...
जयंत - ओ हाँ... आपने एसआईटी को.. यही बताया है... पर अगर आपको कांट्रेक्टर को पचपन लाख ही देने थे... तो विश्व ने पचहत्तर लाख कैसे भरे...
कर - वह.. मुझे क्या पता... हो सकता है... विश्व ने उस कंट्राक्टर के साथ सांठगांठ किया हो...
जयंत - कमाल करते हैं... कर बाबु आप भी.... कंट्राक्टर आपके गांव का... आपने उसे टेन्डर दिया... इस शर्त पर के कंट्राक्ट खतम होने के बाद... आपने उसे पेमेंट करने का वादा किया... पर चेक में... रकम विश्व कैसे भर सकता है...
कर - माय बाप... मैं फिर से यहां पर डंके के चोट पर कहता हूँ... विश्व ने मेरे सामने उस चेक पर रकम बीस लाख बढ़ा कर भरा... और बाद में मुझे जबर्दस्ती कसम खिला कर दस लाख रुपये दिए... जो आगे चलकर मैंने.. रूप को दान दे दिए....
जयंत - ठीक है... ठीक है... आप तो बहुत उत्तेजित हो रहे हैं... कर बाबु... ठीक है... चलिए एक बात बताइए... रकम.. कंट्राक्टर के अकाउंट को ही जाता है ना..
कर - जी हाँ...
जयंत - ह्म्म्म्म... अच्छा.... तो एक बात बताइए... वह चेक अपने साइन करा कर किसे दिया... नवात्यस कंस्ट्रक्शन के कंट्राक्टर को ही ना... जो आपके गांव का कंट्राक्टर था....
कर - जी मैं फ़िर से कह रहा हूँ... विश्व ने उससे सांठगांठ कर रकम भरा था...
जयंत - इस बात का कोई सबूत....
कर - वह... वह मुझे कुछ नहीं पता... विश्व ने फिर कहाँ से... वह दस लाख मुझे लाकर दिया... जो मैंने रूप में दान दिया....
जयंत - विश्व ने आपको कुछ दिया ही नहीं है... यह तो आप कह रहे हैं... के विश्व ने आपको दिया... इसका आपके पास कोई सबूत भी तो नहीं है...
कर - पर मैंने रूप को दस लाख दिए हैं... इस बात का तो सबूत है... चंदा की रसीद है...
जयंत - हाँ... है... पर यहीं पर ही सब गडबड हो गई है... कर बाबु...
कर - जज साहब... यह वकील... मुझे अपनी बातों के जाल में फंसा रहे हैं... इन्हें आप कहें... की सबूत लेकर बात करें...
जज - मिस्टर... डिफेंस लॉयर.. आप तथ्य प्रदान कर रहे हैं... या थ्योरी गढ रहे हैं....
जयंत - मैं प्रैक्टिकल कह रहा हूँ... माय लॉर्ड....
प्रतिभा - (अपनी जगह से उठ कर) माय लॉर्ड... डिफेंस लॉयर अगर सबूत पेश करें तो अच्छा होगा...
जयंत - ठीक है प्रोसिक्यूशन मैं.. अब सबूत भी रखता हूँ... हाँ तो कर बाबु... आपके गांव में जो प्रोजेक्ट्स पुरे हुए... उसमे तीन फेज में... तीन कंट्राक्टरों ने काम किए...
प्रतिभा - योर ऑनर... इस बात को कितनी बार दोहराएंगे.. मिस्टर डिफेंस लॉयर...
जज - अदालत को लग रहा है.. डिफेंस लॉयर... बेवजह केस को खिंच रहे हैं...
जयंत - नो... माय लॉर्ड.. नो... अभी... आपके सामने सब साफ हो जाएगा... क्यूँ के कर बाबु साफ साफ झूठ बोल रहे हैं...
कर - देखिए माय लॉर्ड... यह वकील साहब कैसे भरी अदालत में... मुझे झूठा कह रहे हैं...
जज - डिफेंस लॉयर... प्लीज..
जयंत - माय लॉर्ड... मैं यह कह रहा हूँ... अगर विश्व ने कंट्राक्टर से सांठगांठ की होगी तो... एसआईटी की रिपोर्ट गलत हो जाएगी...
प्रतिभा - व्हाट आर यु टॉकींग.. मिस्टर डिफेंस... एसआईटी रिपोर्ट कैसे गलत हो जाएगी..
जयंत - वह इसलिए.. क्यूंकि.. परीडा जी ने.. यहीँ पर सीना ठोक के कहा था... विश्व के सरपंच बनने के बाद... और गिरफ्तार होने से पहले... जितने भी चेक साइन किया... सभी के अकाउंट मृतकों के हैं.... (हसते हुए) फिर वह बीस लाख विश्व को... कोई भूत ही आकर दिए होंगे... क्यूँ परीडा जी.. मैं ठीक कह रहा हूँ ना..
परीडा का मुहँ हैरानी से खुला रह जाता है l उधर कर के साथ साथ बल्लभ और रोणा का चेहरे पर हवाईयाँ उड़ने लगती है l इस खुलासे से प्रतिभा भी हैरान रह जाती है l वैदेही अपनी जगह से उठ कर खुशी के मारे ताली बजाने लगती है l
जज - ऑर्डर... ऑर्डर.. देखिए.. मिस वैदेही... यह आपको अंतिम बार.. आगाह किया जाता है... अपनी भावनाओं पर काबु रखें... वरना आपको इस रूम से निकाल दिया जाएगा...
वैदेही आपना जीभ दांतों तले दबा कर कुर्सी पर दुबक कर बैठ जाती है l प्रतिभा गुस्से से बल्लभ, रोणा और परीडा को देखती है l वह तीनों अपना चेहरा झुका लेते हैं l फिर भी प्रतिभा मोर्चा सम्हालते हुए,
प्रतिभा - ठीक है जज साहब... विश्व के पास कोई भूत तो नहीं आया होगा... क्या डिफेंस उस बीस लाख रुपये पर रौशनी डालेंगे... जिसके बारे में... बार बार कर बाबु जिक्र कर रहे हैं...
जयंत - जी जरूर.... प्रोसिक्यूशन को अभी पता चल जाएगा....
हाँ तो कर बाबु... आपके गांव के प्रोजेक्ट के लिए जो दूसरी बार.. जिस कंट्राक्टर को आपने टेंडर दिया... उस कंट्राक्टर का नाम क्या है...
कर - जी... व.. व. वह सत्यवान कंस्ट्रक्शन...
जयंत - लगता है... आपने मेरे प्रश्न को समझा नहीं... ठीक है... अब मुझे बताएं... सत्यवान कंस्ट्रक्शन के प्रोपराइटर का नाम बताएं...
कर खांसने लगता है तो जयंत अपनी ग्लास में पानी लेकर कर को देता है l कर एक घूंट पीने के बाद अपनी गमच्छे से मुहँ साफ़ करता है l
जयंत - माय लॉर्ड... उस सत्यवान कंस्ट्रक्शन के मालिक का नाम है... सत्यब्रत कर.... मतलब हमारे एसआईटी के प्रथम सरकारी गवाह के... मरहुम पिताजी... मेरा मतलब है... दिलीप कर के स्वर्गीय पिताजी... (फिर परीडा के तरफ घुम कर) क्यूँ परीडा जी मैं... ठीक कह रहा हूँ ना...
परीडा के चेहरे पर ऐसे भाव दिख रहे हैं जैसे उसके हाथों से तोते उड़ गए हों l
प्रतिभा - माय लॉर्ड... ठीक है.. दुसरे कंट्राक्टर कर बाबु के पिता हैं... पर विश्व ने साइन कर पैसा तीसरे कंट्राक्टर को दिआ... जिससे पैसे विश्व ने लिए... ऐसा दिलीप कर कह रहे हैं... उसके बारे में बताएं....
जयंत - माय लॉर्ड... यह तो साबित हो ही चुका है... विश्व के साइन किए चेक के सभी रकम मृतकों के अकाउंट में जमा हुए... ठीक है... अब आते हैं... तीसरे कंट्राक्टर के पास.... तो कर बाबु... कहिए तीसरे कंट्राक्टर का नाम और उसके कंस्ट्रक्शन कंपनी का नाम....
कर वीकनेस बॉक्स में सर झुकाए चुपचाप खड़ा रहता है l
जयंत - माय लॉर्ड... कर बाबु की घंटी बज गई है... वह तो अब कहने से रहे... इसलिए मैं ही खुलासा किए देता हूँ... योर ऑनर... तीसरे कंस्ट्रक्शन कंपनी का नाम है... नवात्यस.... चालाकी का जबरदस्त नमुना.... मतलब सत्यवान शब्द का उल्टा... पर इसबार पोपाराइटर का नाम.. स्वर्णलता कर है... हमारे दिलीप कर के मरहुम माताजी... मतलब स्वर्गीया श्रीमति स्वर्णलता कर...

सबको झटके जैसा लगता है l सब खामोश हो जाते हैं l अदालत में इतनी शांति महसूस हो रही है कि सिर्फ पंखे की घूमने की आवाज सुनाई दे रही है l प्रतिभा भारी मन से अपनी जगह पर बैठ जाती है l
जयंत - योर ऑनर... अब कर बाबु के माता पिता के आत्मा से... विश्व ने कैसे सम्पर्क किया... और उनसे कैसे बीस लाख रुपए लेकर दस लाख रुपये... कर बाबु को दिया... क्या अदालत को बताना पड़ेगा...
जज - पर केस के आरंभ में... आपने कहा कि विश्व ने पचपन लाख रुपये पर दस्तखत किए... तो उसे कर बाबु किसलिए और कैसे मैनिपुलेशन किया...

जयंत - इस बारे में माय लॉर्ड... सबूत तो एसआइटी रख चुकी है... और इस बात को मैंने लिख कर.. आपको दे दिया है....

जज - क्या मतलब....
जयंत - माय लॉर्ड... आप को मैंने जो फाइल अभी दिया था... उसे देख सकते हैं....
जज वह फाइल खोल कर देखते हैं, अंदर जो पन्ने हैं, उसमें सारी लिखावटें ग़ायब मिलती है l सिर्फ जयंत की सिग्नेचर ही पन्ने पर दिख रही है l प्रतिभा को भी जयंत के दिए फाइल में सिवाय जयंत के सिग्नेचर को छोड़ सभी लिखावट गायब मिलती है l जजों के साथ प्रतिभा भी हैरान हो जाती है l
जज - यह क्या मज़ाक है... डिफेंस लॉयर...
जयंत - मज़ाक नहीं है... योर ऑनर... हकीकत...
जज - क्या मतलब....
जयंत - गौर से देखीए... योर ऑनर.. उस फाइल के पन्ने पर... मेरी सिग्नेचर को छोड़ सभी लिखावट गायब हो गया है... सिग्नेचर इस लिए बचा हुआ है... क्यूंकि उसके उपर सेलो टेप चिपका हुआ है...
जज - हाँ... तो इससे क्या साबित होता है...
जयंत - माय लॉर्ड... एसआइटी ने विश्व के साइन किए चेक जमा किया है... उसे गौर से देखिए... और एक दो कॉपी... प्रोसिक्यूशन को देखने के लिए दीजिए...
एसआइटी के द्वारा जमा किए गए सबूतों में, विश्व के साइन किए चेक जज देखते हैं और एक मुलाजिम के हांथों कुछ चेक प्रतिभा को दिया जाता है l
जयंत - गौर से देखिए... योर ऑनर... सभी चेक पे विश्व के सिग्नेचर हैं... पर सभी सिग्नेचर पर सेलो टेप लगाए गए हैं...
जज - इसका क्या मतलब हुआ...
जयंत - थाइमोप्थालीन, इथाइल एल्कोहल, सोडियम हाइड्रक्साइड सोल्यूशन और इलेवन पीएच की पानी की घोल या मिश्रण से बनता है... ऐसी स्याही... उस पर सेलो टेप चिपका दिया जाए... तो वह... उड़ता नहीं... वरना हवा के संस्पर्श में यह सिर्फ चौबीस घंटे तक ही टिक सकता है....
तीनों जज और प्रतिभा के मुहँ हैरानी से खुला रह जाता है, और बल्लभ एंड कंपनी का मुहँ शर्म से उतर जाता है l
जज - इससे यह कैसे साबित हो सकता है... की विश्व ने पचपन लाख पर साइन किया था... ना कि पचहत्तर लाख रुपए पर....
जयंत - बहुत आसान है... योर ऑनर... किसी भी बैंक में... प्रोसिजर है... बिजनस अकाउंट पैइ चेक में आमाउंट मैनिपुलेशन न हो पाए.. इसी लिए.. सभी बैंकों में आमाउंट पर ही सेलो टेप लगाया जाता है.... पर विश्व के केस में उल्टा हुआ है... आमाउंट के वजाए सिग्नेचर पर सेलो टेप.. चिपकाया गया है....
जयंत के इतना कह देने के बाद पूरे कोर्ट रूम में मरघट की शांति छा जाती है l तभी अचानक कर के मुहँ से थूक बहने लगता है, वह ऐसे झटके खाने लगता है जैसे उसे मिर्गी के दौरा पड़ा हो l वह विटनेस बॉक्स में गिर जाता है l सभी मुलाजिम और पुलिस कर के पास भाग कर जाते हैं l
जज - इन्हें सीधे हस्पताल पहुंचाने की व्यवस्था करो...
कुछ ही देर में, स्टेचर ले कर दो पुरुष नर्स आते हैं और बाहर खड़े एम्बुलेंस में कर को हस्पताल ले जाते हैं l
जज - आज की कारवाई यहीँ पर रोक दी जाती है... डिफेंस को दिलीप कर की गवाही लेने के लिए... उनके स्वस्थ्य होने की प्रतीक्षा करनी होगी...
जयंत - जी नहीं योर ऑनर... मुझे अब दिलीप कर की गवाही की अब कोई जरूरत नहीं है.... इसलिए आगे की कार्रवाई... रूटीन के अनुसार बढ़ाया जाए... हाँ अगर प्रोसिक्यूशन चाहे तो... दिलीप कर से... गवाही ले सकती है...
प्रतिभा - जी नहीं... योर ऑनर...
जज - ठीक है... अगली सुनवाई को... राजगड़ के आइआइसी श्री अनिकेत रोणा जी की गवाही ली जाएगी... आज के लिए बस इतना ही... यह अदालत आज की कारवाई को स्थगित करती है... नाउ द कोर्ट इज़ एडजर्न...
जज के कारवाई स्थगित करने के बाद वैदेही अपनी जगह से उठ कर ताली बजाने लगती है l उसके आंखों से आँसू लगातार बह रही है, फ़िर भी वह अपनी आंसुओं को पोछते हुए ताली बजाती रहती है l उसकी यह हालत देख कर विश्व के चेहरे पर हंसी आ जाती है l विश्व की हंसी देख कर वैदेही भाग कर जाती है और विश्व के गले लग कर रो देती है l
विश्व - बस... दीदी बस...
वैदेही उससे अलग होती है और अपने चेहरे पर मुस्कान लाने की कोशिश करती है l
विश्व - ठीक है दीदी... चलता हूँ... अब अगली सुनवाई को मिलता हूँ...
वैदेही अपना सर हिला कर हामी भरती है और विश्व से अलग होती है l तापस विश्व को लेकर बाहर जाता है l तापस विश्व को वैन पर चढ़ा देता है और दास को उसके साथ भेज देता है l तापस के पीछे पीछे वैदेही कोर्ट परिसर में विश्व को वैन से जाते हुए देखती है l
जयंत - ह्म्म्म्म... तो वैदेही... चलें... तुम अपने रास्ते और मैं भी अपने रास्ते...
वैदेही खुशी से अपना सर हिला कर हाँ में ज़वाब देती है और वे लोग भी निकल जाते हैं l तापस वापस कोर्ट रूम के अंदर आता है l प्रतिभा वहीँ अपनी कुर्सी पर बैठी मिलती है l
तापस - जान... क्या हम चलें..
प्रतिभा तापस को गौर से देखती है,और अपना सर हिला कर उठती है l बाहर तापस गाड़ी का दरवाज़ा खोलता है, प्रतिभा चुप गुमसुम सी बैठ जाती है l तापस गाड़ी स्टार्ट करता है और कोर्ट के बाहर निकल कर दौड़ा देता है l प्रतिभा को आभास भी नहीं होता कि गाड़ी जा कहाँ रही है l तापस जब उसे हिलाता है तब उसे होश आता है l वह देखती है कि नदी के किनारे पर गाड़ी खड़ी है
प्रतिभा - सेनापति जी... हम यहाँ... आप मुझे यहाँ क्यूँ ले कर आए हैं...
तापस - मैं तुम्हें अपनी सोच में खोया हुआ देखकर... यहाँ लेकर आया हूँ... ताकि तुम्हारा दिल पर जो बोझ है... वह थोड़ा हल्का हो जाए...
प्रतिभा गाड़ी से उतर कर नदी के किनारे पहुंचती है l तापस उसके पास खड़ा हो जाता है l
प्रतिभा - (नदी की बहती हुई लहरों को देख कर) सेनापति जी.... आपने सही कहा था... हम जाने अनजाने में... अनचाहे... एक षडयंत्र का हिस्सा बन गए हैं...
(तापस चुप रहता है) जानते हैं... मैं यह केस हाथों में नहीं लेना चाहती थी... पर जब आप विश्व की... कटक हस्पताल से भुवनेश्वर कैपिटल हस्पताल को शिफ्ट की बात कही... मुझे तब इसी केस को लड़ने कहा गया... मैंने इसे एक आम केस ही समझ लिया था... अटॉर्नी जनरल के पार्टी से आने के बाद भी आपने... मुझे चेताया... पर मैं अड़ी रही... जानते हैं क्यूँ... हर पुलिस इनवेस्टिगेशन को मैं आपकी ईमानदारी की कसौटी पर तोलती रहती थी... पर मैं गलत निकली.... उस बिचारी वैदेही को.... कितना कुछ कहा मैंने... उसका दिल दुखाया मैंने....
तापस - देखो जान... तुमने एज अ पब्लिक प्रोसिक्यूटर... जो किया सही किया.... यह अगर तुम ना करती... तो कोई और करता... तुम्हें तो खुश होना चाहिए... की तुम्हारे हाथों से... पाप होने से... भगवान ने तुम्हें बचा लिया... वरना तुम कभी भी... खुदको माफ़ नहीं कर पाती....
प्रतिभा - (अपना सर हिला कर हाँ कहती है) सेनापति जी... सोच रही हूँ... यह केस खतम होने के बाद... मैं वैदेही से माफी मांग लुंगी....
तापस - हाँ... जरूर मांग लेना... वैसे अब तुम कैसा फिल कर रही हो...
प्रतिभा - मानना पड़ेगा जयंत सर को.. जो सबूत मेरे सामने था... वही सबूत उनके सामने भी था... पर जो मुझे नहीं दिखा... वह ऊन सबूतों को... कितनी आसानी से ढूंढ निकाला....
तापस - देखो जान.... जयंत सर डिफेंस लॉयर हैं... उनका वही काम होता है... जो सामने हो पर दिखता ना हो... उसे ढूंढ निकालना ही उनका जॉब था... और यहाँ तो... केस फैब्रिकेटेड था... जो उनकी पारखी नजर ने पकड़ लिया....
प्रतिभा कुछ कहती नहीं है बस अपनी दोनों पलकों को थोड़ी देर के लिए बंद कर देती है और एक गहरी सांस लेकर अपनी सर को हिला कर इशारे से हाँ कहती है l

उधर चेट्टीस् गेस्ट हाउस में सबके चेहरे पर बारह बजे हुए हैं l ओंकार एक कुर्सी पर बैठा हुआ है और कमरे में पिनाक पीछे हाथ बंधे इधर उधर टहल रहा है l कमरे में मौजूद सब के सब गहरे सदमें में दिख रहे हैं l
परीडा - जयंत ने केस को क्रैक कर दिया.... उसने कितनी आसानी से हमारी सारी थीसिस की धज्जियाँ उड़ा दी....
पिनाक - कुछ करो... कुछ भी करो.... जयंत राजा साहब तक पहुंचना नहीं चाहिए.... वरना.... (ओंकार को देखते हुए) ओंकार जी कुछ कीजिए... यह बल्लभ तो नाकारा निकला....
ओंकार - छोटे राजा जी.... मैं ऐसे कामों के लिए... अपने बेटे की मदत लेता हूँ.... आज दो पहर से उसको फ़ोन पर ट्राय कर रहा हूँ.... पर वह मिल नहीं रहा है...
रोणा - एक ही रास्ता है... या तो जयंत को रास्ते से हटा दिया जाए... या फिर जजों को अपने तरफ कर लिया जाए....
पिनाक - क्यूँ वकील साहब... अबे काहे का वकील... साला तू अगर कभी कोई केस लड़ेगा... तो पक्का सब के सब हार जाएगा.... वकालत क्या होता है... जा... उस बुड्ढे जयंत से सीख... साला लीगल एडवाइजर बना फ़िर रहा है.... भूतनी के... जयंत के एक ही फूँक से... देख केस कहाँ उड़ा जा रहा है...
बल्लभ कुछ नहीं कहता है, सब की वह सुने जा रहा है l किसी पर कोई प्रतिक्रिया नहीं नहीं दिखा रहा है l
ओंकार - छोटे राजा जी... मैं अब भी कह रहा हूँ... आपका यह प्रधान बहुत काम का है.... देखा ना आज कोर्ट में जो भी हुआ... मीडिया में कैसे मैनेज कर दिया है.... आधे अधूरे खबर के साथ..... और तो और... इस कर को सरकारी हस्पताल से छुट्टी दिलवा कर... हमारे निरोग हस्पताल में एडमिट दिखा दिया है.....
पिनाक - पर कब तक... जयंत अब आँधी बन चुका है... उसके आगे हमारे सारे प्लॉट किए गए सबूत टिक नहीं पाए... सब उड़ गए... यह साला कुत्ता कर.... बड़बोला... अपनी ही जाल में खुद ही फंस गया और हमें भी फंसा गया....
कर भी सर झुकाए वहीँ खड़ा है l
ओंकार - कास मेरे बेटे का फ़ोन मिल जाता तो... प्रॉब्लम सॉल्व हो जाता...
इतने में पिनाक का फोन बजने लगता है l फोन के डिस्प्ले देख कर पिनाक के चेहरे पर पर तनाव साफ़ दिखने लगता है l पिनाक फोन उठा कर हैलो कहता है l फिर उस तरफ से कुछ सुनने के बाद पिनाक धप् कर सोफ़े पर बैठ जाता है l
ओंकार - क्या हुआ... छोटे राजा जी...
पिनाक सबको देखता है सब उसको देख रहे हैं l
पिनाक - कल शाम तक... राजा साहब... कटक पहुंच रहे हैं... वह रोणा की गवाही... अपनी आंखों से देखेंगे... और वीडियो कंफेरेंस से नहीं... वीटनेस बॉक्स में खड़े हो कर गवाही देंगे....
यह सुनते ही सिवाय ओंकार हैरान हो जाता है पर सबके चेहरे पर हवाईयाँ उड़ने लगती है l
ओंकार - राजा साहब को आने की क्या जरूरत है...
बल्लभ - राजा साहब का यहाँ आने का मतलब.... हम पर उनका विश्वास उठ गया है... वह अब खुद मोर्चा संभालेंगे... मतलब हम सबके सब नाकारा साबित हो गए..

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विक्रम अपने कमरे में टहल रहा है l वीर उसे देख रहा है l वीर को अपने तरफ घूरते हू देख

विक्रम - क्यूँ राज कुमार... आज मोबाइल में गेम खत्म हो गया है क्या....
वीर - मोबाइल फोन में... टाइम पास करते करते... बोर गए हैं... पता नहीं क्यूँ पर.. किसीको पकड़ कर जी भरने तक कूटने को दिल कर रहा है...
विक्रम - क्यूँ किस पर ... गुस्सा हैं क्या... आप..
वीर - नहीं... ऐसे ही... सिर्फ़ कॉलेज जाते हैं... फिर यहाँ पर आते हैं... जैसे जीवन में करने को कुछ बाकी रहा ही नहीं है....
विक्रम - तो किसीको पीटने से... जीवन में कुछ कर लोगे...
वीर - तो... क्या करें... हमे... आदेश दिया गया है... हम किसीसे दोस्ती नहीं कर सकते हैं.... तो करें क्या.... हमे कहा जाता है... हमे सब कुछ करने की आजादी है... पर कहाँ है.... हम गुस्सा भी करते हैं... तो उतारते किन पर... दीवारों पर... टेबल पर... बर्तनों पर... (इतना कह कर वीर अपना सर के बालों को पकड़ कर) आ... आ... आ... ह
विक्रम - अच्छा... सुनिए... (वीर उसके तरफ देखता है) बहुत जल्द हम एक... सेक्यूरिटी संस्था शुरू करने जा रहे हैं.... आप उसनें खुद को बिजी रखिए... और कल नॉमिनेशन फाइल की आखिरी तारीख है... अगर कल कोई फाइल नहीं करता... तो हम ऑन-कांटेस्ट डिक्लैर कर दिए जाएंगे... फिर शायद पार्टी में... कोई पोस्ट लेकर... पार्टी के कामों में बिजी हो जाएंगे... तब कॉलेज में सब कुछ आपको ही सम्भालने होंगे...
वीर - ह्म्म्म्म... तब तक के लिए.. मुझे करना क्या चाहिए....
विक्रम चुप रहता है l क्यूंकि उसे भी कुछ सूझ नहीं रहा है l इतने में विक्रम की फोन बजने लगती है l विक्रम को फोन के डिस्प्ले पर छोटे राजा दीखता है, फोन उठा कर
विक्रम - हैलो...

पिनाक - अभी अभी मैंने आपको... फोन पर एक फोटो और डिटेल्स भेजा है.... कुछ भी कर के... उस आदमी का पता आज रात तक ढूँढ़िये.... बहुत जरूरी है... और राजा साहब कल... शाम तक आ रहे हैं.... उससे पहले इस आदमी से मिलना बहुत जरूरी है....
विक्रम - सिर्फ़ पता करना है... या...
पिनाक - युवराज... हमारा उसके पास काम है.... उसका पता मिलते ही... हमे खबर कीजिए... फिर क्या करना है... हम आपको बतायेंगे....
विक्रम - ठीक है... (फोन काट कर, अपने मैसेज बॉक्स में वह फोटो और नाम पता पढ़ता है)
वीर - आपका तो बढ़िया है.... आप कम से कम बिजी तो रहते हो... हमारे हिस्से में... सिर्फ़ मच्छर मारना ही है....
विक्रम उसके पास आता है और उसके सर पर अपना हाथ फेरता है l फिर वीर के गालों को सहला कर बाहर चला जाता है l बाहर अपने गाड़ी में बैठ कर महांती को फोन लगाता है l
विक्रम - हाँ.... महांती... मैंने एक फोटो और उसका नाम पता भेजा है... उसका पता करो.... आज रात तक.... कुछ भी करो.... पर... ढूंढ निकालो उसे...
महांती - ठीक है सर... आई विल ट्राय माय बेस्ट...
विक्रम फोन काट देता है और गाड़ी स्टार्ट कर निकल जाता है l मन में वह वीर के बातों पर गौर करने लगता है l सच ही तो कहा था वीर ने l जो बंदिशें कलकत्ते में नहीं थी l यहाँ पर वही बंदिशें हैं l किसीसे दोस्ती नहीं है, पर हुकूमत सब पर करनी है l ऐसे अपने सोच में गुम किसी मॉल में पहुंचता है l गाड़ी पार्क कर उस मॉल के अंदर जाता है l अंदर पहुंचते ही उसे अच्छा लगने लगता है l उसे अचानक महसुस होता है जैसे एक हवा का झोंका उसके कानों को छु कर गुजर रही है l विक्रम का चेहरा उस तरफ मुड़ जाता है l एक कांच की लिफ्ट जो उपर की मंज़िल से उतर रही है, एक लड़की चुइंगम चबाते हुए बबल बना रही है l बबल जितना बड़ा हो रहा है उसकी आँखे उतनी ही बड़ी हो रही है और अचानक वह बबल फुट जाता है l फुट जाते ही उसकी के चेहरे पर एक छोटे बच्चे जैसी खुशी देखने को मिलती है l उसकी वह चुलबुला पन देख कर विक्रम के चेहरे पर खुशी झलक उठती है lफिर उस लड़की नजर विक्रम से मिलती है l लिफ्ट के रुकते ही वह लड़की दुसरी तरफ से बाहर निकालती है और सीधे विक्रम के पास आकर खड़ी हो जाती है l

लड़की - क्यूँ विक्रम साहब... बड़े दिनों बाद...
विक्रम - हम तो हरदम यहीं थे... बस आप ही ईद के चांद हो गए...
लड़की - (अपना सर हिलाते हुए) हूँ... वह क्या है कि... आपकी कॉलेज और हमारी कॉलेज अलग है ना... इसलिए...
विक्रम - आप हमारी कॉलेज में.... आकर... हमे फंसा कर चल दिए....
लड़की खिल खिला कर हंस देती है l विक्रम उसकी हंसी में खो जाता है l
लड़की - आप फंस गए... यह आपकी गलती है.... आप मना भी तो कर सकते थे....
(विक्रम चुप रहता है, उसे समझ में नहीं आता क्या ज़वाब दे) अच्छा चलें एक एक कॉफी हो जाए....
विक्रम - जरूर.... पर क्या आज भी अजनबी रहेंगी... या... जान पहचान बढ़ेगी....
लड़की फिर से खिलखिला कर हंस देती है और विक्रम की हाथ पकड़ कर एक कैफे के सामने बैठ जाती है l
लड़की - जाइए... जा कर कॉफी लेकर आइए....
विक्रम हंस देता है और काउन्टर पर जा कर दो स्पेशल कॉफी ऑर्डर करता है फ़िर लड़की के सामने आ कर बैठ जाता है l
लड़की - अब आपका इलेक्शन कैसा चल रहा है...
विक्रम - अब आपने हमे खड़ा कर दिया है तो... आपके इज़्ज़त के ख़ातिर हम लड़ रहे हैं...
लड़की - वाह... आप तो बड़े... फर्माबर्दार निकले... ह्म्म्म्म तो अब आपके साथ थोड़ी सी पहचान बढ़ाया जा सकता है....
तभी काउन्टर से विक्रम का नंबर चिल्लाता है l
विक्रम - एक मिनिट (कह कर जाता है और दो कॉफी के ग्लास ले कर आता है) हाँ अब बोलिए...
लड़की - ठीक है... पहले कॉफी तो पी लेने दीजिए...

विक्रम देखता है लड़की पहले शुगर पाउच को फाड़ कर कॉफी में डालती है और दिए हुए लकड़ी के स्पून से घोलने लगती है l विक्रम भी वैसा करता है l फिर लड़की कॉफी की सीप लेती है, तो उसके उपर के होंटों पर एक सफेद झाग की लाइन उभर जाती है जिसे अपनी जीभ से लड़की मिटा देती है l जीभ निकाल कर होठों पर उस लाइन को जिस अदा से मिटाती है, विक्रम का मुहँ खुल जाता है और दिल धक कर जाता है l लड़की देखती है विक्रम उसे एक टक देखे जा रहा है l वह अपनी आँखों के भौवें नचा कर इशारे से पूछती है l विक्रम सकपका जाता है और अपना नजर हटा लेता है l
विक्रम - क्या... अब हम... अभी भी अजनबी हैं...
लड़की - नहीं नहीं... विक्रम जी... मैं तो आपको जानती हूँ...
विक्रम - पर मैं कहाँ आपको जानता हूँ....
लड़की - (खिल खिला कर हंसते हुए) ठीक है... मैं आपको एक हींट देती हूँ... मेरे नाम में.. सफ़ेदी शब्द से जुड़ा हुआ है...
विक्रम - यह कैसा हींट है...
लड़की - अब आपको मुझसे जान पहचान बढ़ानी है.... तो थोड़ा दिमाग भी लगाईये....
विक्रम - (अपने मन में) जहां दिल लगाने की बात हो वहाँ दिमाग लगाने की बोल रही है..... क्या लड़की है....
इतने में लड़की की कॉफी खतम हो जाती है और वह उठ जाती है l
विक्रम - अरे... आप अभी से...
लड़की - अभी तो आपको काम मिला है... और यह बात अगली मुलाकात के लिए बचाकर रखिए...
इतना कह कर लड़की वहाँ से निकल जाती है l विक्रम अपने चेहरे पर एक मुस्कान लिए वहीँ बैठा रहता है l तभी विक्रम का फोन बजने लगता है l विक्रम का ध्यान टूटता है और फोन पर उसे महांती का नंबर दिखता है l
विक्रम - हाँ महांती बोलो... कहाँ है यह शख्स....
महांती उसे फोन पर उस शख्स के बारे में सारी जानकारी देता है, विक्रम उसकी बात सुनकर उठ खड़ा होता है और पार्किंग में पहुंच कर पिनाक को फोन कर बताता है l
पिनाक - ठीक है... युवराज जी... बस एक छोटा सा काम और है... आप जाकर उस शख्स को यहाँ सातपड़ा में चेट्टीस् गेस्ट हाउस में पहुंचा दीजिए... प्लीज यह काम आप पर्सनली कीजिए.... हम आपकी पहचान...... उस तक पहुंचा देते हैं...
विक्रम - ठीक है... छोटे राजा जी...

विक्रम फोन बंद करता है, और गाड़ी में बैठ कर मैप ऑन करता है फिर गाड़ी को पार्किंग से निकाल कर भगाता है
Superb update bro
 

Jaguaar

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😁शुक्रिया दोस्त शुक्रिया
उम्मीद है
आपकी नई कहानी बहुत जल्द फोरम पर पढ़ने को मिलेगी
Mujhe bhi yehi umeed hai jaldi hi mera schedule normal hojaaye
 

Rajesh

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Brilliant update bro
👉इकतीसवां अपडेट
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विक्रम की गाड़ी कटक के इंडस्ट्रीयल इस्टेट जगतपुर रोड पर भाग रही है l विक्रम कुछ सोचने के बाद महांती को फोन लगाता है l

विक्रम - हैलो... महांती... हाँ... एक बात बताओगे...
महांती - जी युवराज कहिए...
विक्रम - इस बंदे को... इसका बाप भी ढूंढ नहीं पाया... तुमने कैसे ढूंढ निकाला....
महांती - सर बहुत आसान था.... इसके कंपनी में... रॉय ग्रुप सेक्यूरिटी सर्विस के लोग सर्विस में हैं... और कभी मैंने ही उसके कंपनी के सेक्यूरिटी को फाइनल किया था.... आज भले ही मैं... रॉय ग्रुप में नहीं हूँ... पर रॉय ग्रुप में... आज भी मेरे लोग हैं.... और बहुत जल्द सारे के सारे... हमारे एक्जीक्युटिव सेक्यूरिटी सर्विस में जॉइन करेंगे...
विक्रम - दैट्स द स्पिरिट... महांती... वैसे.. छोटे राजा जी कह रहे थे... मेरे बारे में उसे खबर कर दी गई है...
महांती - यह तो अच्छी बात है....
विक्रम - ह्म्म्म्म... अच्छा महांती... इसके बारे में कुछ बताओ....
महांती - सर... रईस है... ऐयाश है... पर जो भी है... सेल्फ मेड है... इतना रुतबा तो रखता है... की पोलिटिकल फिल्ड में... अपने डोनेशन के दम पर... कुछ भी करवा लेता है....
विक्रम - ह्म्म्म्म... और कुछ...
महांती - नशा करता है... और अपनी दुनिया में.... बहुत बिजी रहता है... पर है बहुत प्रोफेशनल... आदमी की परख रखता है....
विक्रम - ठीक है महांती.... काम हो जाने के बाद.. बात करते हैं...

विक्रम बात इसलिए खतम करता है, क्यूंकि उसकी गाड़ी पर गूगल मैप मंजिल पर पहुंचने का संदेश दे दिया है l विक्रम एक बहुत बड़े इलाके में फैले, एक फार्मास्यूटिकल्स कंपनी के बाहर गाड़ी खड़ा कर उतरता है l गेट पर बने बहुत बड़े आर्क पर लिखा हुआ है "वाई आई सी फार्मसुटीकल" l तभी एक गार्ड बाइक पर आता है और अपने पीछे अंदर आने को कहता है l विक्रम उसके पीछे पीछे जाता है l अंदर एक जगह अपनी गाड़ी को पार्क करता है l गार्ड उसके पास आता है और विक्रम को सैल्यूट मारता है l
गार्ड - चेट्टी सर.. आपका ही इंतजार कर रहे हैं....
विक्रम - तो ले चलो उनके पास...
गार्ड - नहीं सर... ना तो वह कहां है हमे एक्जैट पता है... और ना ही हमें वहाँ जाने की इजाजत है.... आप (एक तरफ इशारा करते हुए) वहाँ से लिफ्ट से तीसरे मंजिल पर जाएं.... और (एक जीपीएस घड़ी दे कर) इस घड़ी को उस मंजिल में लिफ्ट के बाहर, जो फ्लोर मैप होगा... उस पर जहां व्हैर टु गो... लिखा होगा यह कोड **** फ़ीड कर दीजिएगा... तो यह जीपीएस घड़ी आपको उन तक पहुंचा देगा....
इतना कह कर गार्ड विक्रम को लिफ्ट के बाहर छोड़ कर चला जाता है l विक्रम वैसा ही करता है जैसे गार्ड ने उसे बताया था l तीसरे मंजिल पर विक्रम पहुंच कर देखता है, एक टचस्क्रीन वाला एलसीडी फ्लोर मैप लगा हुआ है l विक्रम व्हैर टुगो में कोड डालता है, उसके हाथ में जीपीएस वाली घड़ी पर एक रूट मैप दिखने लगता है l विक्रम उसे फॉलो कर एक कमरे के बाहर पहुंचता है l कमरे के बाहर वह असमंजस में खड़ा रहता है l तभी एक आवाज़ उसके कानो को सुनाई देता है l
- आओ विक्रम सिंह... आओ... अंदर आ जाओ...

विक्रम कमरे के अंदर जाता है, अंदर उसे अध नंगी ल़डकियों की झुंड अपनी अपनी कामों में व्यस्त दिख रहे हैं l उनको अध नंगी के वजाए पूरी नंगी कहा जाए तो शायद ठीक रहेगा l ल़डकियों के बदन पर कपड़े तो हैं, पर चुचें और गांड का हिस्सा पूरी तरह से खुला हुआ है l एक लड़की ट्रै में शराब के कुछ ग्लास लेकर विक्रम के पास आती है, पर विक्रम ना तो शराब के ग्लास को ना उस लड़की को देखता है l वह हर तरफ नजर दौड़ाता है और फिर उस लड़की को हाथ दिखा कर मना करता है l
आवाज़ - वाह... क्या बात है... विक्रम... बड़े सख्त लौंडे हो....
विक्रम - कहाँ हो तुम...
आवाज़ - बड़ी जल्दी में हो....
विक्रम - मैं नहीं... हमारे छोटे राजा जी.... उनको शायद आपसे काम है...
आवाज - हाँ युवराज जी...हा हा हा हा.. वैसे विक्रम... तुमको.. युवराज ही कहा जाता है.. ना...
विक्रम - हाँ...
आवाज - वेल ... आई एम इम्प्रेसड.. मेरा बाप मुझे ढूंढ नहीं पाया... पर तुमने मुझे कुछ ही घंटों में... ढूंढ निकाला....
विक्रम - कुछ कामों में... मैं बहुत माहिर हूँ....
आवाज - फिरसे.... तुमने मुझे इम्प्रेस कर दिया.... इसलिए मैं.... तुम्हारे सामने आ रहा हूँ...

विक्रम फिर हर और नजर दौड़ाता है l कुछ देर बाद विक्रम के सामने एक आदमी घुटने भी ढक नहीं रही है, ऐसी टर्कीस बाथ शुट पहने खड़ा होता है l वह विक्रम की ओर अपना हाथ बढ़ाता है l

आदमी - हाय... आई एम... यश वर्धन ईश्वर चंद्र चेट्टी... बिजनस वर्ल्ड में मुझे... वाईआईसी कहा जाता है...

विक्रम कुछ देर सोचता है, फिर उससे हाथ मिलाता है l

यश - जानते हो... तुमने एक और बात पर भी मुझे... इम्प्रेस किया है...
विक्रम अपनी भौवें सिकुड़ कर यश को सवालिया नजर से देखता है

यश - अरे यार... बहुत सख्त लौंडे हो... इतनी हसीन परियों को देख कर भी... नहीं मचले तुम... (विक्रम फिर से अपना नजर चारो ओर दौड़ा कर यश पर जमा देता है, यश भी उसे ऐसे देखता देख) नो... माय... फ्रेंड... दे आर नॉट प्रोस्टीचुट्स.... एंड आई एम नॉट एक्सप्लोइटींग एनी वन.... यह मेरे इंप्लोइज हैं... यहाँ सब अपनी मर्जी से... ऐसे हैं... किसी के साथ कोई जबरदस्ती नहीं... इसके बदले इनको एक्स्ट्रा सैलरी भी तो मिलता है...
विक्रम - ह्म्म्म्म... इन सब का मतलब....
यश - जब मेरी कोई डील फाइनल होती है... उसकी खुशी में... मैं.. दोस्तों को... स्टाफस् को पार्टी देता हूँ... फिर उसके बाद... जी भरने तक ऐयाशी करता हूँ... और तब मैं खुद को... दुनिया जहां से काट कर रखता हूँ....
विक्रम - ओ...
यश - आओ कुछ दिखाता हूँ... (एक कमरे में विक्रम को लेकर आता है, उस कमरे में एक खूब सूरत लड़की पूरी तरह से नंगी बेड पर लेटी हुई है, उस लड़की को दिखा कर) क्या खयाल है.. इस लड़की के बारे में...
विक्रम - (बिना किसी हाव भाव के) कुछ नहीं...
यश - वाव... मान गए... युवराज... मान गए... (कह कर कमरे में पड़े सोफ़े पर बैठ जाता है और विक्रम को पास पड़े दुसरे सोफ़े पर बैठने को कहता है, विक्रम के बैठने के बाद) जानते हो विक्रम... खुली औरत... खुला पैसा... किसी भी मर्द के ईमान को बहका सकता है.... पर तुम उनमें से नहीं हो....
विक्रम - पैसे हमारे जुती बराबर है... और ल़डकियों को नीचे सुलाने का पैमाना.... या पैरामीटर हम तय किया करते हैं....
यश - वाव... क्या बात है... अगन इम्प्रेसड... (बेड पर लेटी उस लड़की को दिखा कर) जानते हो यह कौन है...
विक्रम उस लड़की को देखता है और अपना सर हिला कर इशारे से ना कहता है l
यश - यह एक टॉप मॉडल है... निहारिका... मैंने इसे... अपनी फार्मास्यूटिकल्स कंपनी के नए प्रेग्नेंसी किट के लिए.... और प्रेग्नेंसी प्रोटेक्शन की पिल के लिए... मॉडलिंग की ऑफर किया है... इसलिए पहले प्रेग्नेंसी किट के लिए टेस्ट ले रहा हूँ.... और कुछ दिनों बाद... पिल की टेस्ट लीआ जाएगा.... उसके लिए मैंने इसे बहुत पैसा दिया है.... (इतना कह कर वह अपनी जेब से एक गोली निकाल कर खाता है, और विक्रम से कहता है) विक्रम बस एक आध घंटे बाद निकलते हैं... तुम चाहो तो बैठ कर... लाइव शो देख सकते हो.... या फिर इस कमरे के बाहर मेरा इंतजार कर सकते हो...
विक्रम यह सुनते ही कमरे से बाहर निकल जाता है और बाहर सोफ़े पर आकर बैठ जाता है l कुछ देर बाद अंदर से लड़की की चीखने और चिल्लाने की आवाज़ आती रहती है l विक्रम को ऑक्वरड सा लगता है l अगर उसे पिनाक ने अनुरोध भरे लहजे में ना कहा होता तो विक्रम यहाँ बिल्कुल नहीं रुकता l चूंकि पिनाक सिंह का काम है और यह ओंकार चेट्टी का बेटा है, इसलिए बर्दास्त कर बैठा रहता है l एक घंटे बाद यश कमरे से तैयार हो कर निकालता है l
यश - चलें... विक्रम...
विक्रम उठता है और दोनों मिलकर नीचे पार्किंग में आते हैं l
विक्रम - यश... अगर बुरा ना मानों तो... क्या मेरे गाड़ी में....
यश - ओह हाँ.. क्यूँ नहीं...
यश एक गार्ड को इशारा करता और अपनी जेब से चाबी निकाल कर गार्ड की ओर फेंकता है l
फिर दोनों पार्किंग की ओर चलकर आते हैं l वहाँ खड़ी विक्रम के गाड़ी में दोनों बैठ जाते हैं l विक्रम गाड़ी स्टार्ट करता है और सातपड़ा की ओर गाड़ी को बढ़ाता है l
विक्रम - यश... तुम सेक्स से पहले... टेबलेट लेते हो क्या....
यश - ना... ना... ना... विक्रम.... आई एम परफेक्ट.... एंड.. तुम शायद नहीं जानते... आई एम अ फार्मास्यूटिकल इंजीनियर.... गोल्ड मेडलिस्ट... बेंगलुरु से... यह कंपनी मैंने अपने दम पर खड़ा किया है... सिर्फ अपने दम पर... हाँ बाप की पलिटिकल कैरियर भी मुझे थोड़ा हेल्प किया है...
विक्रम - पर तुमने... जवाब नहीं दिया.... मैंने देखा तुमने... निहारिका से.... सेक्स करने से पहले.... गोली ली...
यश - हा हा हा हा हा... विक्रम... विक्रम... ओ... विक्रम.... ना मैं कमजोर हूँ... ना ही मैं कोई ड्रग् एडिट हूँ.... मैंने वह ड्रग् खुद बनाया है... हाँ... कुछ रेस्ट्रीक्टेड दवाओं से बनाया है....
विक्रम - जैसे....
यश - हैरोइन... स्मैक और एफ्रोडिसीयाक का एक महत्वपूर्ण और बेहतरीन मिश्रण से बनाया गया है वह गोली... वह भी सिर्फ मेरे लिए.... क्यूंकि मैं जानता हूँ... कितनी क्वांटीटी लेना है...
विक्रम - व्हाट... पर क्यूँ...
यश - बीकॉज... आई लव माय बीस्ट... इनसाइड मी... मुझे मेरे अंदर के जानवर से, जंगली पन से, वहशी पन से बहुत बहुत प्यार है.... उसे बाहर निकालने के लिए... कभी कभी मैं वह गोली खाता हूँ....
विक्रम - ओ... अच्छा..
यश - मैंने निहारिका के साथ... हर तरह से सेक्स किया.... बस एक जानवर की तरह सेक्स करना चाहता था.... कोई दया माया नहीं करना था मुझे.... इसलिए मैंने वह गोली ली....
विक्रम - बड़े... ग़ज़ब के शौक पालते हो....
यश - मेरे ऐशगाह में... ल़डकियों को देख कर यह मत समझ लेना की मैं हर किसीके साथ सो जाता हूँ.... कौन मेरे नीचे सोयेगी..... उसका पैरामिटर मैं भी तुम्हारी तरह तय करता हूँ... और जब वह मेरे नीचे आती है.... एक बार तो जंगली बन कर सेक्स करता ही हूँ...
विक्रम - ह्म्म्म्म... पर मैंने अब तक किसी से सेक्स किया नहीं है...
यश - व्हाट... क्या बात कर रहे हो.... तुम राजाओं के खानदान से हो.... यह शौक तो तुम्हारे खुन में होना चाहिए.... वैसे मैंने देखा तुमने... शराब या शबाब... दोनों में से किसीको नहीं छुआ.... क्यूँ... रॉयल फैमिली से हो कर भी .. इस शौक से दूर कैसे हो... भई...
विक्रम - हमे अभी इसकी इजाजत नहीं है... मतलब हम अभी तक एलिजीबल नहीं हुए हैं.... हमारा जब तक... रंग महल में प्रवेश नहीं हो जाता... तब तक हम वह शौक नहीं पाल सकते हैं...
यश - वाव... और तुम्हारे खानदान में एलिजीबल होते कब हो...
विक्रम - जब बाप खुद... अपने बेटे की हाथ पकड़ कर.... रंग महल में प्रवेश करा दे....
यश - वाव... वाव... वाव... क्या बात है... यह कोई परंपरा की तरह है क्या....
विक्रम - शायद हाँ... क्षेत्रपाल वंश की यही परंपरा है....
यश - हाँ... शायद इसीलिए... की.. तुम... रॉयल फॅमिली से हो.... पर अपना यहाँ अलग स्वैग... है.... बाप का जुता... पैर में आ जाए... तो हम अपने आप एलिजीबल हो जाते हैं...
विक्रम - ह्म्म्म्म...
यश - और आज हम इतने... एलिजीबल हैं... की बाप अपने काम के लिए.... हमे ढूंढता है....
इस तरह बात करते करते दोनों सातपड़ा में चेट्टीस् गेस्ट हाउस में पहुंच जाते हैं l विक्रम गाड़ी रोकता है, यश गाड़ी से उतरता है l यश के गाड़ी से उतरने के बाद विक्रम वापस गाड़ी घुमाता है l
यश - अरे... विक्रम... यह क्या... मुझे छोड़ कर... कहाँ चल दिए...
विक्रम - उस मीटिंग में बैठने के लिए... हम अभी भी एलिजीबल नहीं हैं....
यश- ओ.. तेरी....

विक्रम तब तक अपनी गाड़ी लेकर जा चुका है l एक नौकर दौड़ कर आता है और सलाम ठोकते हुए अंदर जाने को कहता है, यश अंदर आकर देखता है, अंदर मौजूद हर एक का चेहरा उतरा हुआ है l एक ओंकार के चेहरे पर कुछ परेशानियाँ झलक रही है l
यश - क्या बात है... पुज्य पिताजी... क्यूँ मुझे याद किया....
ओंकार - अगर याद किया है.... तो वजह ज़रूर... परेशान करने वाली ही होगी....
यश - ह्म्म्म्म.... तो बताइए... पूरी राम कहानी.... ताकि... रावण की एंट्री कहाँ और कैसी हो.... हम तय करेंगे....
बल्लभ उसे विश्व की केस के बारे में जानकारी देता है और अब तक हुए डेवलपमेंट के बारे में सब कुछ बताता है और साथ ही साथ भैरव सिंह के आने की सूचना भी देता है l यश सब सुनने के बाद आपनी आँखे बंद कर कुछ सोचने लगता है l कुछ देर सोचने के बाद,
यश - ह्म्म्म्म... बहुत ही विकट समस्या है.... ठीक है... कल राजा साहब को आने दीजिए... कल तक मैं कुछ सोच भी लूँगा.... तब तक.... आप लोग बेफिक्र रहें.... और आराम करें.....
सब एक दूसरे के मुहँ को देखते हैं l फ़िर ओंकार की ओर देखने लगते हैं l
ओंकार - देखिए.... उसे सोचने देना चाहिए.... वह पहले से शामिल होता... तो कुछ जरूर... सोच लीआ होता.... क्यूंकि प्लान में अब... शामिल हुआ है... इसलिए... हम कल तक इंतजार कर लेते हैं....

सभी अपना सर हिला कर मौन में हाँ कहते हैं l
_____×_____×_____×_____×___ __×_____×

अगले दिन
सेंट्रल जैल
विश्व अपने सेल में बेड पर पड़े पड़े कुछ सोच में खोया हुआ है l तभी एक आवाज़ से उसका ध्यान टूटता है l वह उस आवाज़ की तरफ देखता है, संत्री उसके सेल की दरवाज़ा खोलते हुए,

संत्री - विश्व... सुपरिटेंडेंट साहब ने तुमको याद किया है... जाओ उनसे मिल लो...

विश्व अपने सेल से निकल कर सीधे ऑफिस की ओर जाता है l ऑफिस में पहुंच कर विश्व, तापस को नमस्ते करता है l
तापस - आओ विश्व... सुप्रभात... कैसे हो...
विश्व - जी अच्छा हूँ...
तापस - लगता है... अब कुछ ही दिनों की बात है... फिर शायद तुम आजाद हो कर अपने गांव चले जाओगे...
विश्व - धन्यबाद... सर... आपकी शुभकामनाएं हैं... इसलिए...
तापस - अरे नहीं... ऐसी बात नहीं... वैसे विश्व... अगर बुरा ना मानों तो एक बात पूछूं...
विश्व - जी...
तापस - तुम्हारे खिलाफ जो वकील लड़ रही हैं... क्या तुम उनके बारे में जानते हो....

विश्व खामोश रहता है, और ना में अपना सर हिलाता है l

तापस - मुझे लगता शायद तुम जानते हो... फ़िर भी मैं तुम्हें बता देता हूँ... वह... मेरी धर्म पत्नी हैं...

विश्व सुन कर चुप रहता है और अपनी नजर झुका लेता है l

तापस - देखो विश्व... उन पर तुम अपने मन में... कुछ गुस्सा मत पाल लेना... वह अपनी वृत्ति के कारण... तुम्हारे खिलाफ लड़ रही हैं.... जिस तरह जयंत सर सरकार के तरफ से... तुम्हारे लिए नियुक्त हैं... उसी तरह प्रतिभा भी नियुक्त है.... सरकार के तरफ से... तुम्हारे विरुद्ध लड़ने के लिए...
विश्व - जी... सुपरिटेंडेंट सर... मेरे मन में उनके लिए कोई मैल नहीं है....
तापस - थैंक्यू... विश्व... थैंक्यू... वेरी मच... वैसे सॉरी.. तुमसे मिलने तुम्हारी दीदी आई हैं... मैंने उन्हें ऊपर लाइब्रेरी में बिठाया है.... तुम जाकर मिल लो....
विश्व - जी...

इतना कह कर हाथ जोड़ कर नमस्कार करता है और लाइब्रेरी की ओर चला जाता है l लाइब्रेरी में पहुंच कर देखता है वैदेही खिड़की से बाहर देख रही है l विश्व उसके पास आकर खड़ा होता है l
विश्व - क्या देख रही हो दीदी....
वैदेही मूड कर विश्व को देखती है
वैदेही - कुछ नहीं विशु... आशा और निराशा के भंवर में राह ढूंढ रही हूँ.... अब तक जो हुआ... और अभी जो हो रहा है... और आने वाली कल को लेकर... मैं उसके उधेडबुन में खोई हुई हूँ.......
विश्व - पता नहीं... जो हुआ... क्यूँ हुआ.. पर जो हो रहा है... उसमें... शायद मेरी कुछ गलती तो है...
वैदेही - नहीं विशु... नहीं... जो भी हुआ है... और जो हो रहा है... आने वाले कल के किसी विशाल परिवर्तन के लिए.. हुआ या हो रहा है शायद....
विश्व - परिवर्तन... कैसा परिवर्तन... ऐसी ही एक परिवर्तन के लिए तो.... मैं सरपंच बनने के लिए तैयार हुआ.... पर परिणाम क्या हुआ...
वैदेही - विशु... हम राजगड़ से कभी बाहर निकले ही नहीं थे... राजगड़ के बाहर भी दुनिया है... जहां लोग बसते हैं... यह सिर्फ किताबों में पढ़ा था... आज देख भी लिया... शायद इसके पीछे भी नियति का कोई खेल छिपा हो....
विश्व - कैसी नियति.... किसकी नियति... कुछ भी हासिल करने की मैंने कभी कोशिश नहीं की.... पर कीमत बहुत भारी चुका रहा हुँ....
वैदेही - अगर दुनिया में... भैरव सिंह जैसे लोग हैं... तो जयंत सर जैसे लोग भी हैं... जरा सोच...
विश्व - हाँ दीदी... वह इंसान मुझे बिलकुल भी समझ नहीं आ रहे हैं...
वैदेही - मतलब....
विश्व - एक दिन वह मुझसे मिलने आए थे.... यहाँ... जैल में... अकेले... उन्होंने मुझसे कहा कि... अगर वह शादीशुदा होते तो... उनका पोता जरूर मुझसे सात या आठ साल छोटा होता.... उन्होंने मुझसे यह भी कहा कि.... वह मुझे कुछ देना चाहते हैं.... और मुझसे कहा कि... मैं वह रख लूँ... उसके बाद कहा कि मैं उन्हें दरवाजे तक छोड़ दूँ... मैं उन्हें छोड़ने भी गया.... फिर वह पीछे मूड कर देखे और मुस्करा कर चले गए.... उन्होंने ऐसा क्यूँ किया... और किसलिए किया... मेरे समझ में कुछ भी नहीं आया.....
वैदेही - जानता है... आज अगर कटक में... मैं सही सलामत हूँ... तो उनके वजह से ही हूँ... पता नहीं कौनसे जनम में... कौनसा रिस्ता था उनसे... जो वह निभा रहे हैं.... और हमें कर्ज दार बना रहे हैं....
विश्व - हाँ दीदी... तुम सच कर रही हो.... उन्होंने मुझसे मेरे बारे में... मेरे केस के बारे में.... कुछ भी नहीं पूछा.... पर कितनी आसानी से.... कोर्ट में दिलीप कर की धज्जियाँ उड़ा के रख दी....
वैदेही - बस यही बात अब मुझे डरा रही है.... विशु.... डरा रही है... जयंत सर एक घायल शेर की तरह वार पे वार किए जा रहे हैं..... पता नहीं दुश्मन... कैसे और कब पलट वार कर दे....
विश्व - हाँ दीदी.... इस बात से मैं भी डरा हुआ हूँ... जंगल का गणित कहता है... एक शेर तीन लकड़बग्घों से भीड़ सकता है.... पर यहाँ तो लकड़बग्घों का झुंड है दीदी.... अब मुझे उनकी फ़िकर होने लगी है....
वैदेही - विशु.... मान ले... अगर तु रिहा हो गया.... तो क्या तु.... वापस... राजगड़ जाएगा.....
विश्व - (हैरान हो कर वैदेही को देखता है) तुम... ऐसे क्यूँ पूछ रही हो दीदी...
वैदेही - (खिड़की से बाहर देखते हुए) क्यूँ ना हम यहीं रह जाएं.... और बाकी जिंदगी जयंत सर की सेवा करते हुए.... गुजार दें....
विश्व - य़ह.... तुम कह रही हो दीदी.... तुम... माना... हम जयंत सर के ऋणी हैं.... पर... नहीं दीदी... नहीं.... मैं यहाँ नहीं रह सकता.... चाहे अभी रिहा हो जाऊँ... या सजा के बाद... जाऊँगा तो पहले राजगड़ ही....

वैदेही उसे ध्यान से देखती है, विश्व के आंखों में एक दृढ़ संकल्प दिख रहा है l

विश्व - मुझे इस राह पर चलने के लिए.... तुमने कहा.... तुमने मुझे समझाया... मातृभूमि के कर्ज के बारे में.... हमारे आसपास के लोगों से जुड़े रिश्तों के बारे में.... और तो और... मुझ पर तुम्हारे तीन थप्पड़ों का कर्ज़ है..... उन्हें उतारे बिना.... मैं राजगड़ छोड़ नहीं सकता.... मेरी छोड़िए... आपने भी तो सौगंध उठाया है.... के जबतक राजगड़ के लोगों के जीवनी शैली में.... आपसी रिश्तों में... परिवर्तन नहीं आ जाता... तब तक आप नंगी पैर ही रहेंगी....

वैदेही अपने चेहरे पर एक पीड़ा दायक मुस्कान लाने की कोशिश करती है l वह विश्व से अपनी नजरें हटा कर फिर खिड़की से बाहर देखती है l

विश्व - दीदी....
वैदेही - हूँ....
विश्व - आप अपना.... और.... जयंत सर का खयाल रखना....

वैदेही अपना सर हिला कर हाँ कहती है l विश्व और कुछ नहीं कहता ना ही वैदेही से कुछ सुनने के लिए रुकता है l वह मुड़ कर वापस चला जाता है l वैदेही उसे अपनी आंखों से ओझल होते हुए देखती रहती है l

वैदेही - मैं जानती हूँ... मेरे भाई.... मैं जानती हूँ.... मैं तुझे अच्छी तरह से जानती हूँ.... तु अब पीछे नहीं हटेगा.... पर तु अकेला है.... जो गणित जयंत सर के लिए बताई है.... वह गणित... क्या तुझ पर लागू नहीं होगी....

इतना कह कर वैदेही रोने लगती है l रोते रोते वह वहीँ खिड़की के पास बैठ जाती है l तापस वहाँ आता है l

तापस - वैदेही.... तुम.... वह विश्व... मतलब... तुम रो क्यूँ रही हो...
वैदेही - कुछ नहीं....(सुबकते हुए) सुपरिटेंडेंट साहब.... आज अपनी कुछ करनी पर रोना आ रहा है (अपनी आँसू पोछती है)
तापस - तुम्हारी करनी... मतलब....

वैदेही - मेरी उंगली थाम कर.... विश्व ने चलना सीखा.... (फिर अपनी जगह से उठ कर) मैंने उसे एक मंजिल दिखा कर.... एक राह पर दौड़ने के लिए छोड़ दिया.... उस राह पर वह इतना दूर जा चुका है... की अब वह लौटना नहीं चाहता है.... और इस मोड़ पर.... मंजिल कहीं खो सी गई है... पर वह राह नहीं छोड़ रहा है.... बस इसी बात का दुख है.... सुपरिटेंडेंट साहब.... इसी बात का दुख है.....

वैदेही की कही हुई सारी बातें तापस के सिर के ऊपर चला जाता है l

वैदेही - आपका बहुत बहुत धन्यबाद.... सुपरिटेंडेंट साहब... मुझे एकांत में... विश्व से मिलने दिए....
तापस - कोई बात नहीं.... वैदेही... कोई बात नहीं है.... वैसे.... अगर मैं एक अपनी निजी विषय के लिए.... तुमसे अनुरोध करूँ.... तो क्या तुम सुनोगी...
वैदेही - (उसे हैरानी की नजरों से देखते हुए) ज़ी कहिए...
तापस - वह... मैं...(एक ही सांस में) क्या तुम मेरी पत्नी को माफ कर सकोगी....

यह सुनकर क्या प्रतिक्रिया दे, वैदेही को समझ नहीं आता l वह पहले इधर उधर देखती है फ़िर अपना चेहरा नीचे झुका लेती है l

तापस - देखो वैदेही... तुम प्रतिभा के लिए अपने मन में... कोई मैल ना पालना.... वह एक सरकारी वकील है.... जिस पर यह जिम्मेदारी थी... की हर हाल में... अभियुक्त को दोषी साबित करे....
वैदेही - यह आप मुझसे.... क्यूँ कह रहे हैं...
तापस - तुम्हारे गाँव के... दिलीप कर के जिरह के बाद.... प्रतिभा आत्मग्लानि के बोध में घिरी हुई है.... वह तुमसे मिलकर.... तुमसे माफी माँगना चाहती है..... इसलिए मैं.... (तापस और कुछ कह नहीं पाता)
वैदेही - सुपरिटेंडेंट साहब.... मेरे मन में उनके लिए ज़रा भी मैल नहीं है....
तापस - थैंक्यू... वैदेही... थैंक्यू....

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शाम का समय
चिलीका झील के बीचों-बीच एक हाउस बोट के अंदर
एक बड़े से सोफ़े पर दोनों बांह फैलाए और अपना दाहिना पैर मोड़ कर बाएं पैर पर रख कर भैरव सिंह बैठा है l
उसके बगल में दाहिने तरफ एक सिंगल सोफ़े पर ओंकार बैठा हुआ है और बाएं तरफ एक सिंगल सोफ़े पर पिनाक बैठा हुआ है l
थोडे दूर एक डायनिंग चेयर पर दुबक कर बैठा हुआ बल्लभ प्रधान, उसके पीछे दीवार पर पीठ लगाए खड़ा है रोणा और फर्श पर अपने गमच्छे को हाथ में लिए हाथ जोड़ कर अपने तलुवों पर बैठा हुआ है l और उन सबके बीच अपने दाढ़ी खुजाते हुए टहल रहा है यश l

ओंकार - बस करो... यश... बस... कबसे राजा साहब.... यहाँ बैठे हुए हैं.... तुम कल से सोच ही रहे हो....
यश - ऐसी बात नहीं है... पिताजी.... मैंने सोच लीआ है...
ओंकार - अगर सोच लीआ है.... तो कहो भई...
यश - कह तो दूँ... पर जिनको जरूरत है... उन्होंने मुझसे कुछ पूछा जो नहीं है...

यह सुन कर भैरव सिंह के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान दिखती है l

भैरव - तो यश जी... आपने हमारे लिए क्या सोचा है.... हमें बताने की कष्ट करेंगे....

यश के चेहरे पर एक गहरी मुस्कान छा जाती है l

यश - राजा साहब.... जयंत के सीन में उतरने के बाद से अब तक.... आपके सिपहसलार थोड़ा सा गलत खेल गए....
भैरव - विस्तार से बताओ.... यश बाबु...
यश - मेरा कहना है कि... जब पैसा जनता जनार्दन का है.... जनता को ही सीधे... युद्ध में उतार दीजिए....
पिनाक - अरे... यश बाबु... बात को ऐसे उपस्थापीत कीजिए... की सबको समझ में आए....
यश - मेरे कहने का मतलब यह है कि.... जिस तरह पहले विश्व के खिलाफ... प्रदर्शन, धरने वगैरा किया गया और मीडिया का इस्तमाल किया गया.... अब उसीको जयंत के खिलाफ़ इस्तमाल कीजिए....(सब चुप हो कर यश को घूर कर देखते हैं)
यश - देखिए आप यह तो मानेंगे ही...लोगों के प्रदर्शन के चलते ही.... सरकार ने तीन जजों का पैनल बनाया और लगातार सुनवाई के लिए आदेश भी जारी किया....
बल्लभ - हाँ...
यश - क्यूंकि सरकार को लगा.... जनता में विश्व के खिलाफ आक्रोश है... अब जनता का यही आक्रोश को.... जयंत के खिलाफ इस्तेमाल कीजिए....
रोणा - इससे क्या फायदा होगा... उसे सरकारी सुरक्षा मिली हुई है....
यश - सरकारी सुरक्षा इसलिए मिली है.... ताकि उनपर कोई हमला ना हो जाए.... धरने और प्रदर्शन के लिए नहीं...

पहली बार सबके चहरे पर इतने दिनों बाद मुस्कान दिखता है l

पिनाक - इससे शायद... जयंत के आत्मविश्वास को... ठेस पहुंचे...
यश - सिर्फ़ आत्मविश्वास ही नहीं... आत्मसम्मान को भी ठेस पहुंचेगी.... बुढ़उ को पहले से ही दो बार हार्ट अटैक हो चुका है... हमारी हरकत ऐसी होगी के लोगों को, सरकार को और मीडिया वालों को लगेगा.... की लोगों का आक्रोश अब विश्व के वजाए.... विश्व को बचाने की कोशिश में लगे.... वकील के खिलाफ हो गई है....
बल्लभ - वाह... क्या बात है.... यश बाबु... वाह.... आपके खून में सचमुच... राजनीति दौड़
रही है... वैसे कल रोणा की गवाही है.... और सोमवार को... (चुप हो जाता है)
भैरव- सोमवार को हमारे गिरेबान पर हाथ रखेगा जयंत...
यश - कल शुक्रवार है... और सोमवार के भीतर दो दिन है राजा साहब.... इन दो दिनों में बहुत कुछ हो सकता है... क्यूँ के इज़्ज़दार लोगों को... बैज्जती बर्दास्त नहीं होती.... और हम होने ही नहीं देंगे...
भैरव - ह्म्म्म्म... बहुत अच्छे... यश... बहुत अच्छे.... अगर जयंत हम तक नहीं पहुंच पाया.... तो हम तुम्हारे लिए अपना ख़ज़ाना खोल देंगे...
यश - माय प्लेजर.... राजा साहब... हाँ तो... प्रधान बाबु.... मीडिया में अब से जयंत खिलाफ डिबेट हो पर.... प्रत्यक्ष रूप में नहीं... अप्रत्यक्ष रूप से.... शुक्रवार की शाम से ही... शनिवार की सुबह से भीड़ उनके खिलाफ उग्र प्रदर्शन करेगी... जिसका संचालन... मैं स्वयं करूंगा.... और राजा साहब यह यश वर्धन का वादा है.... जयंत की हाथ.... आपकी गिरेबान तो दूर... उसकी आँखे भी आप तक नहीं पहुंचेगी....

यश की इस बात पर सब तालियां बजाने लगते हैं l

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अगले दिन
सब कोर्ट में पहुंचते हैं l
वैदेही और जयंत जैसे ही अंदर आते हैं एक नए शख्स को देख कर ठिठक जाते हैं l वैदेही के आंखों में घृणा उतर आता है l वह शख्स वैदेही को देख कर एक हल्की मगर खतरनाक मुस्कान के साथ अपनी मूछों पर ताव देता है l वैदेही अपनी नजर फ़ेर लेती है l यह सब जयंत देख लेता है l

जयंत - क्या हुआ...
वैदेही - कुछ नहीं सर... वह जो नया शख्स दिख रहा है... वह....
जयंत - भैरव सिंह क्षेत्रपाल है....
वैदेही - आप जानते हैं...
जयंत - नहीं... पर अंदाजा हो गया... वह दूसरों के पीछे अकेला बैठा हुआ है... दोनों बाहें अपने दोनों तरफ फैलाए.... पैर पर पैर रख कर अपना रसूख दिखा रहा है....
वैदेही - यह खुदको राजा कहता है.... तो अपने गुलामों के पीछे क्यूँ बैठा है....
जयंत - इसलिए कि... जब जज साहब आयें... उसे खड़ा होना ना पड़े.... चलो हम भी अपनी जगह बैठ जाते हैं...

फिर दोनों अपनी अपनी जगह पर आकर बैठ जाते हैं l फिर कोर्ट रूम में होने वाली औपचारिकता होती है l हॉकर जजों के आने का संकेत देता है l सब अपनी जगह खड़े हो जाते हैं l पर वैदेही पीछे मुड़ कर देखती है भैरव सिंह खड़ा नहीं हुआ है l फिर सब बैठ जाते हैं l
वैदेही - (फुसफुसाते हुए जयंत से ) सर आपने जैसा कहा था... बिल्कुल वैसा ही हुआ... भैरव सिंह अपने जगह से उठा ही नहीं...
जयंत - (धीरे से) मैं जानता हूँ... इसलिए तुम चुप रहो....
जज - ऑर्डर ऑर्डर... अदालत की कारवाई शुरू किया जाए...
कोर्ट रूम में ख़ामोशी छा जाती है l
जज - जैसा कि... पिछले सुनवाई में... गवाह दिलीप कर की जिरह के वक्त... वह बेहोश हो गए थे.... जिसके कारण उनकी गवाही अधूरी रह गई.... पर उस दिन... बचाव पक्ष के तरफ से जिरह की खात्मा की घोषणा की गई.... पर आज फ़िर से... बचाव पक्ष को पूछा जा रहा है.... क्या वह... फिर से दिलीप कर की गवाही लेना चाहेंगे....
जयंत - (अपनी कुर्सी से उठ कर) जी नहीं मायलर्ड... हमारी तरफ से... दिलीप कर की जिरह खत्म हो चुका है... हाँ उस जिरह के बाद के तथ्यों को... अदालत के समक्ष प्रस्तुत करने का अवसर नहीं मिला.... पर मैं आज राजगड़ थाना के प्रभारी... श्री अनिकेत रोणा... जी से जिरह से पहले... उन तथ्यों को... अदालत के समक्ष प्रस्तुत करना चाहूँगा.... मायलर्ड....
जज - ठीक है... आप अपना तथ्य प्रस्तुत करें... और दिलीप कर के द्वारा किए गए... जालसाजी को रूप के जरिए हुए... आर्थिक घोटाले से सबंध स्थापित करें....
जयंत - श्योर... मायलर्ड... श्योर.... (फिर जयंत पुरे कोर्ट में स्थित सभी लोगों पर नजर डालता है, फिर बोलना शुरू करता है) मायलर्ड... कर ने जो चेक विश्व से साइन करवाए थे.... असल में... वह एक... पीलीमीनारी टेस्ट था.... मतलब एक ट्रायल.... जिसकी कामयाबी पर... रूप के जरिए आर्थिक घोटाले को अंजाम दिया जा सकता था.....
जज - कैसे....
जयंत - मायलर्ड.... जैसा कि... अदालत में.... मैंने अपना पक्ष रखते हुए कहा था.... "रोम नेवर बिल्ट इन वन नाइट"... उसी तरह ऐसे षडयंत्र भी... एक दिन.. एक महीना या एक साल की नहीं होती है.... इस षडयंत्र का बीज उसी दिन बो दी गई थी... मायलर्ड... जिस दिन सरकार के द्वारा राजगड़ के विकास के लिए.... प्रोजेक्ट्स को मंजूरी दी गई थी.... इसीलिए..... उसी दिन से... सबसे पहले फेक.... कंट्राक्टर्स तैयार किए गए..... जिनके नाम पर... बैंकों में... अकाउंट भी खोले गए... अब बारी था... उसके बाद... इस संगठित लुट को अंजाम देने के लिए... राजगड़ विकास के लिए मंजूर किए गए प्रोजेक्ट्स को पैसों की मशीन की तरह इस्तेमाल किया गया.... लेकिन इनमें शामिल सभी लोगों को अंदाजा था... योर ऑनर... एक दिन ना एक दिन.... कभी ना कभी... एनक्वेरी हो सकता है.... इसलिए बचे हुए पैसों को... एक ऐसे अकाउंट तक पहुंचा जाना जरूरी था.... जिसका ऑपरेटिंग अधिकार सिर्फ एक व्यक्ति के पास हो.... और यह केवल रूप से ही संभव हो सकता था... इसलिए जब दिलीप कर ने विश्व से चेक साइन करा लिया और रकम भी हासिल कर लिया.... तब इस घोटाले में शामिल लोगों का मकसद कामयाब होता नजर आया योर ऑनर....
जज - मिस्टर डिफेंस... आप तथ्य को... प्रमाण के साथ प्रस्तुत करें....
जयंत - इस बारे में... प्रामाणिक तथ्य तो... एसआइटी प्रस्तूत कर चुकी है... बस उनके तथ्य को मैं.... सही ढंग से प्रस्तुत करूंगा.... मायलर्ड....
जज - ठीक है.... आगे बढ़ीए.....
जयंत - जैसा कि दिलीप कर ने अपने बयान में कहा था.... तहसील ऑफिस तहसीलदार और विश्व के बीच एक मीटिंग हुई.... असल में.. उस मीटिंग में... तहसीलदार ने... राजगड़ प्रांत के विकास के लिए... विश्व को यह कह कर अपने शीशे में उतारा.... के राजगड़ के विकास के लिए.... सरकारी राशि पर्याप्त नहीं है.... इसलिए बहुत लोग हैं... जिन्हें वह जानते हैं.... जो जन सेवा के लिए पैसे दान देते हैं.... और उनके दान की हुई राशि को जमा करने के लिए... एक एनजीओ "राजगड़ उन्नयन परिषद" यानी रूप का गठन किया जाए... जिसमें प्रमुख पांच व्यक्ति मुख्य सभ्य होंगे.... विश्व, तहसीलदार, ब्लाक अधिकारी, रीवेन्यू इंस्पेक्टर और बैंक अधिकारी.... बाकी जो भी सदस्य होंगे... वे केवल साधारण सभ्य ही होंगे.... इस बात पर विश्व... प्रभावित हुआ... और अपनी पंचायत ऑफिस में इस बाबत मीटिंग रखी.... अगले दिन वह प्रमुख व्यक्ति सब आकर अपना सहमति दी और जिम्मेदारी भी ली.... रूप कि रजिस्ट्रेशन कराने के लिए..... रजिस्ट्रेशन के लिए एक बाई-लॉ भी बनाया गया... उस बाई-लॉ में यह प्रावधान रखा गया... के रूप के अकाउंट को एक ही व्यक्ति ऑपरेट कर सकता है.... सिर्फ़ सरपंच... यानी सिर्फ़ विश्व....
जज - हाँ... ऐसा तो दिलीप कर... के बयान से साबित हुआ है... और एसआईटी की रिपोर्ट भी यही कह रहा है.... पर पैसे तो हज़ारों लोगों के अकाउंट से आया है.... वह भी मृतक... यह कैसे
जयंत - जी योर ऑनर... अब... इसके लिए अगली चाल यह थी... रूप के अकाउंट से उन सभी लोगों की अकाउंट को ईसीएस से जोड़ना.... इस तथ्य से विश्व को अवगत कराया गया..... पर चूँकि विश्व को ईसीएस के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं थी..... इसलिए उससे बैंक अधिकारी ने ईसीएस के नाम पर... कैंसिलेशन चेक पर साइन लिए वह भी उस गायब होने वाली स्याही से..... और राजगड़ विकास के लिए..... विश्व ने सभी चेक पर साइन कर दिए.... जैसे ही विश्व ने सभी चेक साइन कर दिया..... विश्व से मतलब ख़त्म हो गया....
जज - ह्म्म्म्म... पर इससे मनरेगा का क्या संबंध.....
जयंत - मायलर्ड.... संबंध है.... बहुत ही गहरा संबंध है.... राजगड़ विकास के लिए... जितने भी प्रोजेक्ट्स आए.... सभी के सभी मनरेगा के अंतर्गत ही आए.... मायलर्ड.... इन प्रोजेक्ट्स में.... पहले फेज के कंट्राक्टर असली थे.... पर बाद के दोनों फेज में फेक कंट्राक्टरस से जरिए काम खतम दिखाया गया.... और सबसे मजेदार बात... पहली फेज में जितने लोगों ने श्रम दान दिया उनको पारिश्रमिक मिले.... पर दूसरे फेज में जिन्होंने श्रम दान किया.... उनको पारिश्रमिक नहीं मिला... दस्तावेज में काम करने वालों को पारिश्रमिक दे दिया गया.... ऐसा लिखा गया.... पर असल में दिया ही नहीं गया..... चूंकि दुसरे और तीसरे फेज में.... दिलीप कर यह अदालत को कहना भूल गए... सभी श्रमजीवियों को प्रोजेक्ट खतम होने के बाद ही पैसा मिलेगा... यह कह कर उनसे काम करवाया गया था.... और दुसरे और तीसरे फेज में जिन श्रमजीवियों की रजिस्ट्रेशन हुई थी... वे सभी मृतक थे.... और उनके अकाउंट पैसा तभी जा सकता था... जब विश्व पंचायत के अकाउंट चेक पर साइन करता.... चूंकि सभी गाँव वालों को पैसे दिलाने थे.... इसलिए विश्व ने... वहीँ बैंक जा कर सभी चेक साइन कर दिया....

जयंत इतना कह कर चुप हो गया l जयंत के बातों को सुन कर सब शुन हो जाते हैं l जयंत एक नजर जजों पर डालता है l तीनों जज मुहँ फाड़े जयंत के दिए विवरण सुन कर उसे देख रहे हैं l

जज - एसआईटी रिपोर्ट कह रही है... तकरीबन पांच हजार लोगों ने श्रम दान दिया.... और यह रिपोर्ट यह भी कह रही है... वह पांच हजार लोग... जो इन प्रोजेक्ट्स में श्रमदान के लिए रजिस्टर्ड हुए.... सभी के सभी मृतक हैं....
जयंत - जी योर ऑनर... उन पांच हजार मृतकों को इसलिए ढूँढा गया.... क्यूँ की भारत सरकार ने... मनरेगा में काम करने वालों के लिए.... आधार कार्ड व बैंक के जन-धन अकाउंट को अनिवार्य कर दिया.... और सबको पारिश्रमिक ई-पेमेंट जरिए करने के लिए बाध्य कर दिया.... जहां सरकार आम लोगों के हितों की रक्षा के लिए यह कदम उठाए.... वहीँ इन लोगों को... इसमे एक मौका दिखा.... इस मौके पर चौका मारने के लिए... रिवेन्यू इंस्पेक्टर, विडीओ, तहसीलदार और बैंक अधिकारी सब मिलकर प्रोजेक्ट्स के आरंभ से ही.... मृत् लोगों के आधार कार्ड संग्रह, उनके बैंक अकाउंट खुलवाना, फिर उनके डेथ सर्टिफिकेट हासिल करना और उनके अकाउंट को रूप के अकाउंट से जोड़ने के बाद.... काम निकलने पर अकाउंट को डी-एक्टिवेट करने तक सभी कामों को बखूबी अंजाम दिया....
 
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