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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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Rajesh

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👉उनसठवां अपडेट
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XXXX कॉलेज
असेंबली हॉल
नंदिनी चुप हो जाती है और वह महसूस करती है उसके आसपास का माहौल एक दम खामोश है I असेंबली हॉल में मौजूद सभी लेक्चरर, सभी स्टूडेंट्स, सब, यहाँ तक सुरेश भी स्तब्ध हो गए हैं l इतनी ख़ामोशी पसरी हुई है कि अगर एक सुई भी गिर जाए तो उसकी भी आवाज़ जोर से सुनाई देगा l फिर सुरेश अपनी जगह पर खड़ा हो जाता है और ताली बजाने लगता है l उसके बाद सभी ताली बजाने लगते हैं l पूरा का पूरा असेंबली हॉल तालियों के गड़गड़ाहट से थर्राने लगता है l बनानी अपनी दोस्तों के साथ चिल्लाने लगती है l

बनानी - थ्री चियर्स फॉर नंदिनी... हिप हिप
सभी - हुर्रे...
बनानी - हिप हिप
सभी - हुर्रे...
बनानी - हिप हिप
सभी - हुर्रे...

उधर रॉकी के सभी दोस्त जोर जोर से ताली बजा रहे हैं पर रॉकी ऐसे हैरान और खामोश है जैसे कोई अद्भुत देख लिया हो l एक तरह से रॉकी शॉक्ड था जैसे उसके कल्पना से परे कुछ और हो गया है l

रवि - वाव... क्या बात है रॉकी... जो तु चाहता था... जैसा तु चाहता था.. वही और वैसे ही हो गया...
आशीष - हाँ यार... तूने तो उसे लाइम लाइट दे दिया यार... तुने उसको.. उसके भीतर के एक नए शख्सियत से मुलाकात कराया है... कुछ नहीं तो... कम से कम दोस्ती तो पक्की...
सुशील - नहीं नहीं... पहले इम्प्रेस थी... अब अपना यार उसके दिल दिमाग पर छा जाएगा... (रॉकी को खामोश देख कर) क्या बात है हीरो... किन खयालों में खोया है...
रॉकी - क.. कु.. कुछ नहीं...

जब ताली बजना बंद होता है तो सबको पता चलता है कि वहाँ पर नंदिनी है ही नहीं l सबको असेंबली हॉल में छोड़ कर नंदिनी बाहर जा कर अपनी गाड़ी में बैठ जाती है l

नंदिनी - (ड्राइवर से) गुरु काका....
गुरु - जी... बेटी जी...
नंदिनी - मेरा यहाँ दम घुट रहा है... मुझे इस कैंपस से बाहर ले चलिए...
गुरु - बाहर मतलब कहाँ... बेटी जी...
नंदिनी - ओहो.... पहले इस कैपस से तो निकालिए...
गुरु - जी.... जी बेटी जी...

गुरु गाड़ी को कैंपस से बाहर निकाल कर रोड पर ले जाता है l

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ओरायन मॉल में फ़ूड कोर्ट हो या ड्रेस बुटीक हर जगह जैसे ही नंदिनी की प्रेजेंटेशन खतम हुई मॉल में मौजूद सभी लोग भी ताली बजाने लगे l पुरी की पुरी मॉल तालियों से गुंजने लगी l अनु भी सबको ताली बजाते देख वह भी ताली बजाने लगती है l अनु देखती है वीर किन्हीं ख़यालों में खोया हुआ है l वह अपना हाथ आगे बढ़ा कर वीर की हाथों को हिलाती है l वीर अपनी ख़यालों से बाहर आता है देखता है वहाँ पर मौजूद सभी लोग ताली बजा रहे हैं, अनु भी इधर उधर देख कर ताली बजा रही है I अनु इशारे से ताली बजाने को कहती है, वीर अपने चेहरे पर एक मुस्कान लाने की कोशिश करते हुए ताली बजाने लगता है l

बुटीक में भी जितने कस्टमर थे सेल्स मेन व गर्ल्स के साथ साथ विश्व और प्रतिभा भी ताली बजाने हैं l सबकी ताली रुक जाने के बाद

विश्व - वाव... माँ यह नंदिनी जो भी हैं... कितनी खूबी से और आसानी से.... समाज को आईना दिखा दिया...
प्रतिभा - हाँ बेटा... वाकई... छोटी सी कहानी में... कितना कुछ कह दिया... समाज और सभ्यता को...
विश्व - कभी मौका मिला तो उनसे मिलना जरूर चाहूँगा...
प्रतिभा - क्यूँ...(भवें नचा कर) प्रपोज करेगा...
विश्व - ओह माँ... तुमसे कुछ भी कहना.... छोड़ो... यहाँ पर काम खतम हुआ... अब कहीं और चलें...
प्रतिभा - हाँ रुक... पहले मैं पेमेंट तो कर लूँ...
विश्व - तब तक मैं... ड्रेस चेंज कर लेता हूँ...
प्रतिभा - अरे... क्यूँ... अब दिन भर इसी में रह... घर जाकर बदलना...
विश्व - पर यह तो आपने कल के लिए खरीदा है ना...
प्रतिभा - तो क्या हुआ... घर जाकर देख लेंगे... (चहकते हुए) अभी इन कपड़ों में कितना अच्छा दिख रहा है... ऐसे ही रह...
विश्व - (हथियार डालने वाले अंदाज में) ठीक है माँ... आप पेमेंट तो कर लो...

प्रतिभा काउंटर पर जा कर पेमेंट कर देती है और एक रसीद ले लेती है l वहीँ काउंटर पर विश्व की पुराने कपड़े बाद में लेंगे बोल कर पैकेट में रखवा देती है l उसके बाद बुटीक से विश्व को लेकर उसी फ्लोर पर एक बड़े शू स्टोर की ओर जाती है l प्रतिभा विश्व को देखती है, विश्व अपना सिर हिलाते हुए कुछ सोच रहा है l

प्रतिभा - क्या सोच रहा है...
विश्व - कुछ नहीं माँ... पहली बार... अपने से कम उम्र के... किसीके विचारों से प्रभावित हुआ हूँ... बार बार वह रेडियो वाली नंदिनी की बातेँ मेरे कानों में गूँज रही है... अगर कभी उनसे मिलना हुआ तो... (विश्व रुक जाता है)
प्रतिभा - तो... (अपनी भवें नचा कर)
विश्व - ओह माँ... तुम भी ना... फ़िर से शुरू मत हो जाना... मैं यह कह रहा था... अगर कभी उन नंदिनी जी से मिलना हुआ... तो मैं उन्हें... एप्राइज करूंगा... एप्रीसिएट करूंगा...
प्रतिभा - हाँ हाँ... जरूर करना... पर एक बड़ा सा फ्लॉवर बुके देते हुए करना...
विश्व - हाँ.... (फिर अचानक चौंकते हुए) क्या.... क्यूँ...
प्रतिभा - हा हा हा हा...
विश्व - ओह... माँ... तुम्हारे पास ना... किसी लड़की का जिक्र करना मतलब...
प्रतिभा - हाँ... मतलब...
विश्व - यह लीजिए... शू स्टोर आ गया...
प्रतिभा - तुने मतलब बताया नहीं (विश्व कुछ जवाब नहीं देता, स्टोर में घुस जाता है) अरे सुन तो...

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गुरु एक पार्क देख कर गाड़ी रोक देता है l गुरु देखता है नंदिनी की आँखे डबडबाई हुई हैं l

गुरु - क्या हुआ बेटी जी...
नंदिनी - (खुद को संभालते हुए) कुछ नहीं काका... मन थोड़ा भारी लग रहा है... (गाड़ी से उतर कर) मैं यहीं पर थोड़ा चहल कदम कर रही हूँ... आप इंतजार कीजिए...
गुरु - पर बेटी जी...
नंदिनी - घबराईए नहीं काका... मैं आपकी नजरों से दूर नहीं हूँ... मैं (सामने दिखाते हुए) पार्क के बाहर वाली बेंच पर थोड़ी देर के लिए बैठना चाहती हूँ...
गुरु - ठीक है बेटी जी...

नंदिनी जाकर उस बेंच पर बैठ जाती है l उसकी आँखे फिरसे नम हो जाती है l अपनी आँखों को पोछते हुए वह शुभ्रा को फोन लगाती है

शुभ्रा - (फोन पीक अप करते ही) वाह मेरी शेरनी वाह... आज तो तुमने मैदान मार ली... वाव क्या प्रेजेंटेशन दिया... माइंड ब्लोइंग... तुमने आज ना जाने कितनों को स्पेलबउंड कर दिया...
नंदिनी - (भर्राते हुए) छो... छोड़िए ना भाभी...
शुभ्रा - रूप... तुम रो क्यूँ रही हो...
नंदिनी - मैं नहीं जानती भाभी... बस रोना आ रहा है... प्लीज भाभी... आप आ जाओ... मुझे इस वक़्त आपकी सख्त जरूरत है...
शुभ्रा - अच्छा अच्छा आ रही हूँ... तुम अभी हो कहाँ पर...
नंदनी - वह मैं यहाँ xxxx पार्क के बाहर बेंच पर बैठी हूँ...
शुभ्रा - ओके ओके... तुम वहीँ पर रुको... मैं अभी दस मिनट में पहुँच रही हूँ....
नंदिनी - हाँ भाभी... मैं यहाँ पर आपका इंतजार कर रही हूँ...

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ESS ऑफिस

विक्रम अपने कैबिन में बैठा कुछ सोच रहा है l तभी उसका मोबाइल फोन बजने लगती है l डिस्प्ले में शुभ्रा का नाम देख कर उसे अंदर ही अंदर एक खुशी महसुस होती है l वह फोन उठाता है

विक्रम - (खुशी और झिझक के साथ) हैलो...
शुभ्रा - जी मैं राजकुमारी जी को लेकर... यहीं आसपास किसी मॉल में जा रही हूँ...
विक्रम - मॉल... पर क्यूँ.. आपके और उनके लिए हर सामान पहुँचा दिया जाएगा... आप उन्हें लेकर क्यूँ जाना चाहती हैं...
शुभ्रा - सुनिए... औरतों के कुछ चीजें... अगर वही खरीदारी करें तो ठीक रहती है... आप समझने की कोशिश करें... यह औरतों वाली बातेँ हैं...
विक्रम - ओ... ठीक है... पर कौनसे मॉल...
शुभ्रा - शायद ओरायन...
विक्रम - ठीक है... सू (फोन कट जाती है)...


विक्रम मायूस हो जाता है और अपनी आँखे मूँद लेता है l दरवाजे पर दस्तक होती है l विक्रम दरवाजे की तरफ देखता है तो उसे महांती दिखता है

विक्रम - क्या हुआ महांती...
महांती - सर कुछ इंफॉर्मेशन हाथ लगे हैं...
विक्रम - अंदर आओ... (महांती अंदर आता है) तुम यहाँ पार्टनर हो... बॉस भी हो... मेरे कैबिन में आने के लिए कम से कम तुम्हें मेरी परमिशन की ज़रूरत नहीं...
महांती - (बैठते हुए) युवराज जी... कुछ भी हो... मैं उम्र में भले ही आपसे बड़ा हूँ... पर मेरे गॉड फादर तो आप ही हैं...
विक्रम - लीव इट... अभी वह बताओ... जो कहने आए हो...
महांती - सर... छोटे राजा जी पर जो हमले हुए हैं... वह हमले में कुछ तथ्य सामने आए हैं...

यह सुन कर विक्रम अपनी कुर्सी पर सीधा हो कर बैठ जाता है,

विक्रम - क्या पता चला है... कौन है इसके पीछे
महांती - सर इसके पीछे कौन है... यह तो अभी तक पता नहीं चला है... लेकिन जो भी पता चला है... हम शायद किसी निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं...
विक्रम - ह्म्म्म्म... आगे बोलो...
महांती - सर वह जो शूट आउट हुआ था... तब उनका मेन मोटीव कत्ल तो था नहीं...
विक्रम - पर फोन पर कहा था कि...
महांती - यही के इतना डरायेगा... इतना मज़बूर कर देगा... की छोटे राजा जी खुद अपने लिए मौत मांगेंगे...
विक्रम - हाँ...
महांती - इसका मतलब यह हुआ... वह पहले सनसनी फैलाना चाहता है... फिर दहशत भर देना चाहता है...
विक्रम - हूँ...
महांती - इस काम के लिए उसने बाहर से चार शुटर बुलवाया है...
विक्रम - हूँ....
महांती - पर उन्हें सपोर्ट लोकल मिल रहा है...
विक्रम - व्हाट...
महांती - जी सर... और जिनसे सपोर्ट मिल रहा है... उनका स्टाइल ऑफ वर्क कुछ कुछ हमारे जैसे हैं...
विक्रम - (उछल पड़ता है) व्हाट...
महांती - पर वह लोग हमारे आदमी नहीं हैं...
विक्रम - देखो महांती... अब तुम मुझे कंफ्यूज कर रहे हो...
महांती - नहीं सर...
विक्रम - ठीक है... अब बिना रुके पुरी बात बताओ...
महांती - सर... पहली बात... जो भी है... वह अभी भी बीहाइंड द स्क्रीन है... पर हम सबके दुश्मनों को इकट्ठा कर रहा है... और उन्हें ऑपरेट कर रहा है...
विक्रम - मतलब...
महांती - रॉय ग्रुप सिक्युरिटी सर्विस याद है...
विक्रम - एक मिनट... तुम कहना चाहते हो कि रॉय इसके पीछे है...
महांती - नहीं... वह भी एक मोहरा है... क्यूंकि हमने उसे बर्बाद कर दिया है... इसलिए उनके साथ हो लिया है... इसलिए तो मैंने कहा... उनका स्टाइल कुछ कुछ हमारे जैसे है... क्यूंकि वहाँ पर... गार्ड्स को ट्रेनिंग मैं ही दिया करता था...
विक्रम - ओ... तो अब...
महांती - सर मैंने पिछले कुछ दिनों से... स्टडी कर रहा था... कुछ फैक्ट्स सामने आए हैं... आपको सुरा याद है... जो केके को धमकी दिया करता था... अपने उसे और उसकी माशुका को रंग महल भेज दिया था...
विक्रम - हाँ...
महांती - सर मैंने पता लगाया है... उसका बड़ा भाई कुछ दिन हुए भुवनेश्वर में है... केशव... केशव नाम है उसका...
विक्रम - और तुम यह कहोगे... वह भी मोहरा है...
महांती - यस सर... अभी भी जो असली खिलाड़ी है.. वह... पर्दे के पीछे है... और सबसे खास बात...
विक्रम - क्या...
महांती - वह लोग अब सिर्फ़ छोटे राजा साहब की रेकी नहीं कर रहे हैं... बल्कि भुवनेश्वर में आपके परिवार के सभी लोगों पर नजर रखे हुए हैं... रेकी कर रहे हैं...
विक्रम - व्हाट...
महांती - जी सर...

विक्रम की आँखों में खुन उतर आता है l और गुस्से भरे नजरों से महांती के ओर देखता है l

महांती - सर डोंट वरी... इफ दे आर स्मार्ट... देन वी आर मच स्मार्टर देन देम...
विक्रम - तो हम किसका इंतजार कर रहे हैं...
महांती - सर अगर हम एक्शन लेंगे... तो वह जो पर्दे के पीछे से ऑपरेट कर रहा है... उसका सिर्फ नेटवर्क ही बर्बाद होगा... पर वह सामने नहीं आएगा... वह फिरसे अपना नेट वर्क सेट कर लेगा... सर मैं कहता हूँ थोड़ा और इंतजार करते हैं....
विक्रम - पर महांती... तुमने अभी अभी कहा... उसके आदमी हमारे फॅमिली के हर सदस्य पर नजर रखे हुए हैं...
महांती - सर वह लोग हमारे नजरों में हैं...
विक्रम - हमारी बात तो ठीक है.. पर घर के औरतों पर... इसका मतलब यह हुआ... उसने क्षेत्रपाल परिवार के पुरूषार्थ को ललकारा है...
महांती - युवराज जी... आप... इतने इमोशनल ना होइए...
विक्रम - महांती... अभी अभी युवराणी और राजकुमारी दोनों वह क्या है.... हाँ ओरायन... ओरायन मॉल को जाने वाले हैं...
महांती - सर प्लीज... डोंट बी पैनीक... उस मॉल की सिक्युरिटी हमारे ही अंडर है...
विक्रम - अच्छा महांती... राजकुमार कहाँ हैं... वह दिखाई नहीं दे रहे हैं...
महांती - सर... वह भी ओरायन मॉल में हैं...
विक्रम - क्या... वह और मॉल...
महांती - सर उनके साथ एक लड़की भी है...
विक्रम - लड़की... कौन लड़की...
महांती - सर वही लड़की... जिसे उन्होंने खुद रिक्रूट किया था...

विक्रम मन ही मन सोचने लगता है - हूँ... छोटे राजा जी ठीक कह रहे थे... वह अपना दिल बहलाने के लिए किसी लड़की को साथ लेगा... हम्म... अब क्या होगा उस लड़की का....

महांती - ( विक्रम को कुछ सोचते देख) सर आप फिक्र ना करें.... आपकी फॅमिली के हर मेंबर हमारे निगरानी में हैं... कोई गड़बड़ नहीं होगी...

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अनु देखती है जब से रेडियो पर नंदिनी नाम की लड़की को सुना है तभी से वीर कुछ सोच में डुबा हुआ है, खोया खोया सा है l

अनु - क्या हुआ राजकुमार जी...
वीर - (ध्यान टुटता है) हम्म... नहीं... कुछ नहीं..
अनु - क्या आप... अपने पहचाने जाने से डर रहे हैं.... सच कहती हूँ... मुझे शायद कोई पहचान ले... पर आप बिल्कुल भी पहचाने नहीं जा रहे हैं...
वीर - (अनु की बात सुनकर थोड़ा हँसते हुए) नहीं... मैं उस लड़की... नंदिनी की कही हर बात को याद कर रहा हूँ... या यूँ कहूँ... मैं महसूस कर रहा हूँ...

तभी वही दो लड़के वीर और अनु के पास आते हैं l वीर और अनु उन दोनों को देखते हैं l

वीर - क्या हुआ
एक लड़का - वह... हम... आप दोनों से माफी मांगने आए हैं...
वीर - (उन्हें घुरता है पर कुछ नहीं कहता है)
दुसरा लड़का - वह आपने हमे कहा था... की हम चांस मार रहे थे... वह सच था...
पहला लड़का - वह रेडियो में... सुनने के बाद... हमें जिम्मेदारी और मौका में फर्क़ समझ में आ गया...
दोनों लड़के - सॉरी.. (अनु से) सॉरी... (कह कर वह लड़के चले जाते हैं)
अनु - (उनके जाते ही) वाह... उन नंदिनी जी को मानना पड़ेगा... कितना असरदार है उनकी बातें... उनके परिवार वालों को भी मानना पड़ेगा... कितनी क्रांतिकारी विचार व संस्कार दिए हैं अपनी बेटी को... जरूर उनके भाई होंगे जो मजबुत और नेक इरादों वाले होंगे... हाथ जोड़ कर नमस्कार करना पड़ेगा...
वीर - (हल्के से खांसने लगता है) अब चलें...
अनु - कहाँ...
वीर - कुछ खरीदारी करते हैं...
अनु - ठीक है चलिए...

वीर अनु के साथ जूस मार्ट से निकलता है और इधर उधर देखने लगता है l उसे एक खिलौने की दुकान दिखता है l वह अनु को लेकर वहाँ जाने लगता है l जब दोनों उस दुकान पर पहुँचते हैं कुछ छोटे छोटे बच्चे उनके पास एक रेडक्रॉस डोनेशन बॉक्स लेकर आते हैं l उन बच्चों में से एक छोटी लड़की डोनेशन बॉक्स को वीर के सामने कर देती है l

लड़की - भैया.. कुछ डोनेशन दीजिए ना...

अनु बड़ी उत्सुकता से वीर की ओर देखती है, वीर भी अनु के चेहरे को देखता है l इससे पहले वह कुछ रिएक्ट करती वीर अपना पर्स अनु के हाथ में रख देता है l अनु वीर को हैरान हो कर देखती है l

वीर - (अनु के कान में) घबराओ मत... दे दो... तुम मेरी पीएस हो... मेरी सेक्रेटरी हो... इसलिए ऐसे काम के लिए मेरी पर्स निकाल कर पैसे दे सकती हो... आखिर मेरी इज़्ज़त तुम्हारी इज़्ज़त है....

अनु एक नजर वीर को देखती है और कांपते हुए हाथ से एक दो हजार का नोट निकाल कर बच्चों की डोनेशन बॉक्स में डाल देती है l बच्चे खुशी से उछल कर ताली बजाने लगते हैं l
वह छोटी लड़की खुशी के मारे अनु को खिंच कर नीचे बिठा देती है और अनु के गाल पर किस करती है और अनु भी उसके गालों पर किस करती है l फिर वह लड़की वीर को नीचे खींचती है और वीर को भी किस करती है फिर धीरे से वीर के कान में
- भैया... भाभी बहुत अच्छी हैं... और मीठी भी...

वीर यह सुन कर स्तब्ध हो कर खड़ा हो जाता है l बच्चे वहाँ से दुसरी और चले जाते हैं l वीर अनु से झेंपने लगता है और नजरें नहीं मिला पाता l अनु इशारे से पूछती है l वीर हँसने की कोशिश करते हुए सिर ना में हिलाता है l तभी वह लड़की ऊंची आवाज में पुकारती है
- भैया....

वीर और अनु उस लड़की की तरफ देखते हैं, वह लड़की अपने हाथ के अंगूठे और तर्जनी से ओ बना कर इशारा करती है और फिर हाथ हिला कर बाय कहती है l वीर फ़िर से झेंप जाता है l पर बदले में अनु मुस्कराते हुए उस लड़की को हाथ हिला कर बाय करती है l वीर भी हाथ हिला कर बाय करता है के तभी आगे की ओर से वीर को शुभ्रा और रुप अंदर दाखिल होते हुए दिखते हैं l वह झटपट अनु के हाथ पकड़ कर उसे खिंचते हुए दुसरी तरफ एक्जिट की ओर चला जाता है l

अनु - हम कहीं जाने वाले हैं क्या...
वीर - हाँ... नहीं... आज का काम खतम हो गया... चलो मैं तुम्हें तुम्हारे घर पर छोड़ दूँ...
अनु - इन कपड़ों में... नहीं... मैं घर इन कपड़ों में नहीं जा सकती...
वीर - ठीक है... तुम्हारे कपड़े उसी दुकान पर होंगी... वहाँ पर चेंज कर लेना...
अनु - जी बढ़िया...
वीर - तो चलो फिर...

वीर अनु के हाथ थाम कर खिंचते हुए बाहर ले जाता है l उधर शुभ्रा रूप को लेकर वहीँ फूड एंड रिफ्रेशमेंट फ्लोर आती है l

शुभ्रा - चलो अभी पहले पार्टी करते हैं...
रूप - भाभी... थैंक्स... अच्छा हुआ आप अकेली गाड़ी लेकर आईं... और गुरु काका को वापस भेज दिया...
शुभ्रा - कैसे नहीं आती... जब मुझे मेहसूस हुआ कि तुम्हें मेरी सख्त जरूरत है... तो क्यूँ नहीं आती... आखिर रेडियो पर तुमने मुझे... माँ, सहेली गुरु... नजाने क्या क्या कहा...
रूप - पर मैंने जो भी कहा सच ही तो कहा था... वैसे भाभी... क्या आप अकेली कभी आती हैं... यहाँ पर...
शुभ्रा - अरे नहीं... शादी के बाद...पहली बार आई हूँ... वह भी अपनी ननद के साथ...
रूप - क्या...
शुभ्रा - हूँ...
रूप - तो अब हम जा कहाँ रहे हैं...
शुभ्रा - आइसक्रीम पार्लर...

दोनों एक आइसक्रीम पार्लर में आते हैं और एक खाली टेबल देख कर बैठ जाते हैं l एक वेटर आता है तो शुभ्रा उस पार्लर की सैटर डे स्पेशल दो आइसक्रीम ऑर्डर कर देती है l

शुभ्रा - अच्छा यह बताओ... तुम्हारा प्रोग्राम सबसे बेस्ट प्रेजेंटेशन था... तुम्हें एप्रीसिएशन भी मिला होगा ना...
रुप - बहुतों ने फोन किया.. पर मैंने किसीका फोन नहीं उठाया...
शुभ्रा - क्यूँ...
रुप - भाभी... मैं अंदर से ऐसी एक्सपोजर के लिए तैयार नहीं थी... एक चैलेंज था... इसलिए पार्टीसीपेट किया... वरना...
शुभ्रा - पर क्यूँ रुप... तुमने छोटी सी कहानी में इतना कुछ कह दिया.... मैं चैलेंज के साथ कह सकती हूँ... चाहे देखने वाले हों.. या सुनने वाले... हर कोई स्पेलबउंड हुआ होगा... रॉकी ने भले ही तिकड़म लगाया... पर तुमने भी अपना मौका सही तरीके भुनाया है... रॉकी के लिए इनाम तो बनता ही है...
रुप - आपने सही कहा भाभी... इनाम तो बनता है... और डेफिनेटली मिलेगा... वैसे भाभी...(पार्लर में बैठे सारे कपल्स को देख कर) इन लोगों को देख कर नहीं लगता... इन इवन लोगों के बीच हम ऑड लोग बैठ गए हैं... कोई कोई हमें देख रहे हैं और... घूर भी रहे हैं...
शुभ्रा - हाँ... हैं तो हम ऑड... आखिर यहाँ सब लव बर्ड्स जो बैठे हुए हैं... लेकिन ऑड हम नहीं हैं... सारे लड़के तुम्हारी तरफ देख रहे हैं... और इसलिए लड़कियाँ तुम्हें देख कर जल रही हैं...
रूप - क्या भाभी... यह बात तो आप पर भी लागू होती है...
शुभ्रा - हाँ कह सकती हो... पर ऑड वाला थ्योरी.. वह देख ( एक अधेड़ औरत अपने साथ एक नौजवान के हाथ पकड़ कर खिंचते हुए पार्लर में दाखिल होती है ) बुढ़ी घोड़ी... लाल लगाम... मतलब जवान घोड़ा...
रुप - (उन दोनों को देख कर) भाभी... यह अपने कैसे सोच लिया... के वे लोग भी... लव बर्ड्स हैं... कुछ और भी... मेरा मतलब है कि माँ बेटे भी तो हो सकते हैं ना...
शुभ्रा - नहीं.. बिल्कुल नहीं हो सकते... अगर माँ बेटे होते भी... उन्हें क्या जरूरत पड़ी है... यहाँ पर आने की... तुम जानती हो रुप... मैं तुम्हारे भैया के साथ पार्टियों में क्यूँ नहीं जाती...
रुप - (अपनी गर्दन हिला कर मना करती है)
शुभ्रा - उन पार्टियों में... हाई क्लास सोसाईटी की जो भी औरतें आती हैं.... उनमें एक होड़ लगी रहती है... एक दुसरे से उम्र में कम दिखने की और कम बताने की... कभी कभी लगेगा जैसे अभी अभी पैदा हो कर हस्पताल से आए हैं... उनके बीच डिस्कशन में.. साड़ीयों के प्राइस पर... स्टाइल पर.. गहनों के डिजाईन पर... कीमत पर... होती रहती है... चलो वहाँ तक भी ठीक है... पर शादीशुदा होने के बावजूद... अपने पैसों के दम पर... वह लोग कितनी कम उम्र लड़के के साथ संबंध बनाए... यह सब उनके बीच हॉट टॉपिक होते हैं...
रूप - (हैरान हो कर सुन रही थी) इइइयय... क्या सच में ऐसा होता है...
शुभ्रा - हाँ... और वह औरतें बड़ी बेशरमी के साथ... वह बातें कहते हैं..
रूप - व्हाट....

वह अधेड़ औरत उस नौजवान के हाथ पकड़ कर इन दोनों के बगल वाली एक खाली टेबल पर बैठ जाती है

शुभ्रा - और नहीं तो...(धीरे से) उस औरत को देख कर मुझे तो यही लगता है... वह जरूर हाई सोसाइटी की होगी... और वह लड़का जरूर पैसों के चक्कर में उससे फंसा होगा...
रूप - ह्म्म्म्म... शायद आप ठीक कह रहे हैं...

वेटर दो बड़े कप में आइसक्रीम लाकर रख देता है l दोनों खाना शुरु करते हैं l तभी उसी वेटर को वह अधेड़ औरत आवाज देती है l वेटर उनके पास जाता है l

औरत - (नौजवान से) कहो क्या खाओगे...
नौजवान - कुछ भी... मुझे इन सब पर कोई भी आइडिया नहीं है...
औरत - अरे... कैसे लड़के हो.. आइसक्रीम के बारे में आइडिया नहीं है... कोई नहीं (वेटर से) जाओ बेटे... आज का स्पेशल ले आओ... आज हमारा डेट है भाई..

वेटर उनकी बात सुन कर हँसते हुए चला जाता है l रुप डेट शब्द सुन कर खांसने लगती है l शुभ्रा उसके सिर पर धीरे धीरे चपत लगाती है l

रुप - सुना भाभी...(धीरे से) डेट...

शुभ्रा भी अपनी पलकें झुका कर हामी भरती है l पर तभी

नौजवान - ओ हो.... माँ.. कहीं भी कुछ भी... कभी माँ और बेटे डेट पर जाते हैं क्या... वह वेटर और दुसरे लोग क्या सोचेंगे...

नौजवान की बात सुन कर शुभ्रा को खांसी आ जाती है l रुप उठ कर शुभ्रा के सिर पर धीरे धीरे चपत लगाती है l शुभ्रा थोड़ा गिल्टी फिल करती हुई रूप को देखती है l रुप भी पलकें झपका कर आश्वासन देती है l तभी वह अधेड़ औरत अपनी चेयर से उठ कर पार्लर में सभी लोगों से मुखातिब हो कर

औरत - सुनिए सुनिए सुनिए... अटेंशन प्लीज... यह नौजवान... मेरा बेटा है... ताड़ के पेड़ जितना लंबा हो गया... पर दिमाग खिसक कर इसके घुटने पर आ गया... कह रहा है... माँ बेटे कभी डेट करते हैं क्या... अरे... डेट का मतलब क्या है... दो लोग एक दूसरे को समय देने को ही तो डेट कहते हैं... हैं ना...
कुछ जोड़े - जी हाँ...
औरत - तो अब मैं अपने बेटे के साथ किसी ख़ुशनुमा माहौल में पल दो पल बिताने आई हूँ... क्या गलत है...
सभी - नहीं... बिल्कुल नहीं...
औरत - क्या यह डेट नहीं है...
सभी - जी.. बिल्कुल है...

तभी कुछ ल़डकियों ने उस औरत को पूछते हैं l
- आंटी... वैसे आपके बेटे का नाम क्या है... बड़ा हैंडसम है...

औरत अपने बेटे को खड़ा करती है और उसे गले से लगा कर
- है ना बड़ा हैंडसम... यह मेरा बेटा है... नाम है प्रताप... कैसा है...
लड़कियाँ - वाव... आंटी.. झकास...
प्रताप - (विश्व भी गले लगाते हुए) और यह मेरी माँ...
प्रतिभा - (अलग होते हुए) बस... बस.... चल बैठ...
प्रताप - आपका इंट्रोडक्शन खतम हो गया ना...
प्रतिभा - हाँ...
प्रताप - माँ.. लेकिन इस वक़्त आइसक्रीम खाना बकवास नहीं लग रहा... अभी अगर आइसक्रीम खाए... तो भूक मर जाएगी... फिर खाने के टाइम ठीक से खा भी नहीं पाएंगे... (तभी वेटर आइसक्रीम कप रख देता है)
प्रतिभा - एक कप आइसक्रीम खा लेने से कहाँ भूक मर जाएगी... खाने के टाइम में भी हम जम कर खाएंगे...

दोनों आइसक्रीम खाना चालू करते हैं l शुभ्रा और रुप आइसक्रीम जल्दी जल्दी खतम कर बिल दे कर पार्लर के बाहर चले जाते हैं l

रुप - एक बात तो है भाभी... किसीको देख कर ओपीनियन बना लेना नहीं चाहिए...
शुभ्रा - सच कहा... मैं अपनी कड़वे अनुभवों को आधार बनाकर... माँ बेटे की रिश्ते पर उंगली उठा दी... छी...
रूप - कोई बात नहीं भाभी... पर माँ बेटे की जोड़ी बहुत जबरदस्त थी ना... देख कर मन खुश हो गया...
शुभ्रा - हाँ.... वाकई... अनोखी जोड़ी है..

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वीरअपनी गाड़ी के बाहर इंतजार कर रहा है l अनु उसी दुकान में गई है अपनी सुबह वाली ड्रेस पहनने के लिए l थोड़ी देर बाद अनु अपनी सुबह वाली ड्रेस में वापस आती है l वीर को अब उसकी सादगी में भी अनु बहुत खूबसूरत लगती है l अनु एक पैकेट वीर को देती है l

वीर - यह क्या है अनु...
अनु - जी वह कपड़े... जिससे मैंने भेष बदले थे...
वीर - रख लो...
अनु - नहीं नहीं... दादी पूछेगी तो क्या कहूँगी...
वीर - कुछ भी कह लेना...
अनु - नहीं... मैं नहीं ले सकती...
वीर - हूँ... (एक गहरी सांस छोड़ता है) ठीक है... गाड़ी में डाल दो...

अनु बैक सीट पर वह ड्रेस का पैकेट रख देती है और वीर के बगल में बैठ जाती है l वीर अनु को उसी जगह पर उतार देता है जहाँ से पीक अप किया था l अनु उतर कर जाने लगती है

वीर - अनु... (अनु पीछे मुड़ कर देखती है, वीर वह पैकेट हाथ में लिया हुआ है) ले लोना... प्लीज...

अनु वीर की चेहरे को देखती है फिर धीरे से पास आकर पैकेट ले लेती है और तुरंत मुड़ कर जाने लगती है l

वीर - अनु... (फिर से पीछे मुड़ कर देखती है) फोन पर... खैरियत पूछती रहना...

अनु एक दमकती मुस्कराहट के साथ अपना सिर हिला कर हाँ कहती है l

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शबरी क्रास कॉफी स्टॉल पर रुप बैठी हुई है l शुभ्रा कॉफी लेने काउंटर पर गई है l रुप जिस टेबल पर बैठी है ठीक उसके पीछे वाली टेबल पर रुप की ओर पीठ करके विश्व आकर बैठता है और उसके बगल दाएँ वाली सीट पर प्रतिभा बैठ जाती है l

प्रतिभा - अच्छा अब बता... इतने देर से मॉल में हैं... कोई पसंद आई..
विश्व - माँ... क्यूँ मज़ाक कर रही हो... जो कभी होना ही नहीं है... तुम उसकी उम्मीद क्यूँ पाल रही हो...
प्रतिभा - क्यूँ.. क्यूँ ना पालुँ... मेरी खुशियाँ जिसमें है... उसकी ख्वाहिश भी ना करूँ...
विश्व - पर.... माँ... कोई भी हो... उसे क्या कह कर मेरे लिए तैयार करोगी... (प्रतिभा कुछ नहीं कह पाती) देखा... तुम्हारे पास भी कोई जवाब नहीं है...
प्रतिभा - ठीक है मेरी गलती है... माफ कर दे मुझे...
विश्व - (प्रतिभा की हाथ को पकड़ कर) माँ... मेरी अच्छी माँ... मेरी भोली माँ... मेरी प्यारी माँ... मन छोटा ना करो... वह सेनापति सर... कभी कभी कहते हैं ना... जब जब जो जो होना है... तब तब सो सो होता है...
प्रतिभा - (विश्व की कान को खिंच कर) तु मुझे मनाने में माहिर हो गया है...
विश्व - आह... माँ कान मत खिंचो... लोग देखेंगे तो क्या सोचेंगे...
(इनकी बातचीत सुन कर रुप मन ही मन हँसने लगती है) (प्रतिभा विश्व की कान छोड़ देती है)
प्रतिभा - अच्छा... एक बात बता... हम दोनों कई बार कई जगह गए हैं... ना जाने कितने लड़कियों को देखा है तुने... क्या कभी भी कोई.. तेरे आँखों को भी अच्छी नहीं लगी...
विश्व - माँ... फिर बात को घुमा कर वहीँ ला रही हो...
प्रतिभा - नहीं तो...
विश्व - तो अब क्या कर रही हो....
प्रतिभा - मैंने तुझे इसलिए पुछा... के मान ले... अगर... वह रेडियो वाली नंदिनी कहीं मिली... तो तब... तु क्या करेगा... (रूप अपने बारे में सुन कर कान खड़े कर लेती है)
विश्व - (थोड़ा हँसते हुए) माँ वह रेडियो वाली... अरे माँ... मैं उसे पहचानुंगा कैसे...
प्रतिभा - मान ले... अगर मिल गई.. तो...
विश्व - तो... मैं उनको.. उनके विचार धारा के लिए... साधुवाद दूँगा... उनको... कहूँगा के वह अपनी विचार धारा को कभी ना छिड़े.... और... और... बस इतना ही..
प्रतिभा - बस... इतना ही...
विश्व - हाँ... और क्या करूँगा...
प्रतिभा - हे भगवान... इस लड़के से कुछ नहीं होगा... उठा ले...उठा ले रे देवा... मुझे उठा ले... मगर उससे पहले... मुझे पोते पोतीयों का मुहँ दिखा दे...

यह सुन कर रुप बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी को रोकती है

विश्व - माँ... मैं जा रहा हूँ...
प्रतिभा - कहाँ...
विश्व - काउंटर पर... कुछ ऑर्डर कर ले आऊँ.. तुम्हारे पास बैठा रहा तो पागल हो जाऊँगा..

विश्व मन मन बड़बड़ाते हुए काउंटर पर जाता है, वहाँ शुभ्रा अपनी ऑर्डर की प्रतीक्षा कर रही है l शुभ्रा विश्व को देखते ही झेंप जाती है और एक किनारे हो जाती है l विश्व को बड़बड़ाते देख शुभ्रा उत्सुकता वश विश्व से पूछती है

शुभ्रा - आप किसी को गाली दे रहे हैं क्या..
विश्व - नहीं... नहीं बहनजी नहीं... सॉरी ...अगर आपको ऐसा लगा तो.. उधर देखिए..(शुभ्रा उस तरफ देखती है) वह मेरी माँ है... आपको क्या लगता है... कितनी उम्र होगी उनकी...
शुभ्रा - (प्रतिभा को देख कर, हँसते हुए ) होगी वह कोई पैंतालीस या पचास की...
विश्व - नहीं वह बाहर से ऐसी दिखती है... असल में वह पाँच या छह साल की हैं...
शुभ्रा - (हिचकिचाते हुए) कोई मेंटल डीस-ऑर्डर है क्या...
विश्व - नहीं नहीं... वह अपनी सोसायटी की बड़ी रीनॉउन पर्सन हैं... बस मैं कभी कभी इनके पास आता हूँ... और जब भी आता हूँ... ना जगह देखती हैं ना वक़्त... उनकी बचपना शुरू हो जाती है...
शुभ्रा - हा हा हा.. सॉरी.. बट.. यु बोथ आर ठु गुड...

उधर विश्व के जाने के बाद रुप उन माँ बेटे की बात याद करते हँसी को दबाने की कोशिश में उसकी पर्स गीर जाती है तो पीछे से प्रतिभा वह पर्स उठा कर रुप को वापस देती है l

रुप - थैंक्यू... आंटी..
प्रतिभा - इसमे थैंक्यू की क्या बात है बेटी... क्या अकेली आई हो...
रुप - जी... जी नहीं आंटी...
प्रतिभा - ओ... अपने किसी दोस्त के साथ आई हो...
रूप - नहीं आंटी... मैं अपनी भाभी के साथ आई हूँ...
प्रतिभा - ओ... अच्छा... क्या नाम है तुम्हारा बेटा...
रुप - (कुछ पल के लिए सोच में पड़ जाती है, फ़िर) जी... जी.. मेरा नाम... नंदिनी है...
प्रतिभा - (बहुत खुश होते हुए) क्या... नंदिनी... रेडियो वाली...
रूप - जी.... जी नहीं... आंटी... मैं... कोई रेडियो वाली नहीं हूँ...
प्रतिभा - ओह... कोई बात नहीं बेटा... वह (विश्व को दिखाते हुए) मेरा बेटा है... प्रताप... आज रेडियो में... नंदिनी को सुन कर... बहुत इम्प्रेस हुआ है... इसलिए एक्साइटमेंट पुछ बैठी... बुरा मत मानना...
रूप - जी... जी नहीं आंटी...

फिर रूप सामने की ओर पलट जाती है और देखती है जैसे ही शुभ्रा ऑर्डर किए कॉफी हाथ में लेती है रुप उठ कर वहाँ चली जाती है और इशारे से एक ओर बुलाती है l शुभ्रा रुप के पास चली जाती है l

शुभ्रा - क्या हुआ...
रूप - भाभी... मैं थोड़ी देर वहाँ बैठती तो... वह आंटी है ना... मुझे अपनी बहु बना कर ही दम लेती... एक दम पागल है... पता नहीं उन्हें उनका बेटा कैसे झेलता है...
शुभ्रा - हाँ ठीक कहा... उनका बेटा अभी अभी काउंटर पर मिला था... मैंने उससे... उसकी माँ के बारे में बात की... वह भी उसकी माँ की पागलपन से परेसान है... अब तुम्हारी बात सुन कर उस बेचारे पर तरस आ रहा है... हा हा हा...

रूप भी शुभ्रा के साथ हँसने लगती है l तभी शुभ्रा की मोबाइल बजने लगती है l शुभ्रा अपनी कॉफी ग्लास रुप को थमा कर देखती है विक्रम का कॉल है l

शुभ्रा - हैलो...
विक्रम - आप मॉल पर ही रुकी रहिए... हम थोड़ी ही देर में पहुँच रहे हैं...
शुभ्रा - क्यूँ कोई प्रॉब्लम है क्या...
विक्रम - हाँ... है.. हमारे दुश्मन आप लोगों की रेकी कर रहे थे... अब शायद घेराबंदी कर रहे हैं... पिछली बार छोटे राजा जी पर हमला हुआ था... इसलिए हम कोई रिस्क नहीं ले सकते... हम आ रहे हैं... आप और राजकुमारी हमारी ही ऐसकॉट में घर जाएंगी...
Super update hai bhai
 
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Waiting Sir
 
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Rajesh

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Beautiful update bro
👉साठवां अपडेट
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रूप हाथों में कॉफी लिए शुभ्रा को फोन पर बातेँ करते हुए सुन रही थी l उसे शुभ्रा के चेहरे पर चिंताएं दिखने लगती हैं l

शुभ्रा - य... यह आप क्या कह रहे हैं...
विक्रम - आप घबराइए नहीं... मॉल के बाहर वह लोग पोजिशन बना रहे हैं... मॉल के अंदर हमारी सिक्युरिटी सर्विस है.... इसलिए आप घबराए नहीं...
शुभ्रा - अच्छा ठीक है... तो अब हम क्या... क्या करें...
विक्रम - आप किसी रेस्तरां में जाकर कुछ देर के लिए बैठ जाइए... वहाँ पर टाइम स्पेंट कीजिए... हम आ रहे हैं...
शुभ्रा - आप... कब तक पहुँचेंगे....
विक्रम - हम निकल चुके हैं... ट्रैफिक बहुत है... फ़िर भी ज्यादा से ज्यादा एक घंटा लगेगा... आप फिक्र ना करें... हम पहुँचते ही आपको कॉन्टेक्ट करेंगे...
शुभ्रा - (अपना सिर हिलाते हुए) ठीक है...

फोन कट हो जाती है l शुभ्रा को चिंतित देख कर रुप पूछती है

रुप - क्या हुआ भाभी... आप फोन पर बात करते हुए परेशान दिखीं... कोई बड़ी बात...
शुभ्रा - चलो किसी रेस्तरां में बैठते हैं... वहीँ पर आराम से बात करते हैं...
रुप - ठीक है... चलते हैं...

फिर दोनों उसी फ्लोर पर एक रेस्तरां में चले जाते हैं l उधर विक्रम की गाड़ी ट्रैफिक में रेंग रही है l गाड़ी के ड्राइविंग सीट पर बैठे बैठे विक्रम चिढ़ने लगा था l बगल में बैठा महांती फोन पर बात कर रहा है l बात खतम कर विक्रम से

महांती - सर... मुझे लगता है आप ज्यादा स्ट्रेस ले रहे हैं... वहाँ पर सिर्फ़ तीन लोग एक पॉइंट पर असेंबल होते दिखे हैं... पर वह लोग कोई एक्शन करेंगे... मुझे नहीं लगता...
विक्रम - तो फ़िर एक ही जगह पर इकट्ठे हो कर क्यूँ बार बार स्कैटर्ड हो रहे हैं.... पोजीशन बदल रहे हैं... क्यूँ... और तुमने ही कहा था... वह लोग हम सबकी रेकी कर रहे हैं...
महांती - हाँ पर मुझे लगता है... वह लोग हमे स्टडी कर रहे हैं...
विक्रम - किस लिए...
महांती - सर कुछ लोग उनमें ऐसे हैं... जो मेरे पेरेंट् सिक्युरिटी सर्विस से जुड़े थे... इत्तेफ़ाक से वह लोग भी एक्स सर्विस मेन हैं... इसलिए मैं अपनी एक्सपेरियंस से कह रहा हूँ... कुछ और हो रहा है...
विक्रम - जो भी हो महांती... तुम जानते हो... युवराणी हमारे लिए क्या मायने रखती हैं... हम उन्हें कभी भी चारा बनने नहीं दे सकते... अगर वह खतरे में हैं... तो समझ लो हमारी दुनिया खतरे में है...

महांती कुछ नहीं कहता है l वह सिर्फ अपना सिर हिला कर खिड़की से बाहर देखने लगता है l विक्रम थोड़ी स्पेस मिलते ही गाड़ी को भगाने की कशिश कर रहा है पर ट्रैफ़िक के वजह से वह धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है l

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उधर कॉफी के दो ग्लास लेकर विश्व प्रतिभा के पास पहुँचता है l टेबल पर ग्लास रख कर

विश्व - यह लो माँ.. यह भी आज की स्पेशल कॉफी है...
प्रतिभा - (बेमन से कॉफी लेती है) हूँ...
विश्व - क्या हुआ... तुम्हारा मुहँ क्यूँ लटका हुआ है... किसी ने कुछ कहा क्या...
प्रतिभा - नहीं.... कुछ भी नहीं... यही तो ग़म है... किसीने कुछ कहा नहीं...
विश्व - फ़िर... कहीं... सेनापति सर की याद तो नहीं आ रही है...(भवें नचा कर चिढ़ाते हुए)
प्रतिभा - चुप कर... उनकी क्यूँ याद आयेगी मुझे... मैं किसी और बात को लेकर सोच में हूँ...
विश्व - अच्छा.. तो बताओ ना माँ... क्या बात है...
प्रतिभा - मैं ना...(खुश होते हुए) अभी अभी... कुछ देर पहले नंदिनी से मिली थी...
विश्व - (हैरान हो कर) क्या... तुम सच कह रही हो...
प्रतिभा - (अब हँसने लगती है) हा हा हा... ओ हो... नंदिनी का नाम लिया तो चेहरा कैसे खिल गया... देखो तो लौंडे को...
विश्व - (हकलाते हुए) न.. नहीं ए.. ऐसा कुछ नहीं है माँ... म.. मैंने पहले भी तुमसे कहा है... मैं उनसे प्रभावित हुआ हूँ... पर तुम उनका नाम लेकर आज दिन भर में ना जाने कितनी बार... मेरा पोपट बना रही हो.....
प्रतिभा - अरे मैं सच कह रही हूँ... नंदिनी से मिली थी अभी कुछ देर पहले... हाँ यह बात और है... वह रेडियो वाली नंदिनी नहीं थी...
विश्व - तो फिर...
प्रतिभा - मैं ना... उससे दोस्ती करने के लिए बातेँ बढ़ा रही थी... पर वह कब चली गई मुझे मालुम ही नहीं पड़ा...
विश्व - (हँसने लगता है)हा हा हा... मुझे मालुम है... तुम क्यूँ दोस्ती करना चाहती थी... और... मुझे शक़ है... उसे भी अंदाजा हो गया होगा... इसलिए वह भाग गई.. (हा हा हा हा)
प्रतिभा - (मुहँ बनाते हुए) उड़ाले उड़ाले.. मेरा मजाक उड़ाले...
विश्व - (प्रतिभा के हाथ को पकड़ लेता है) माँ... जितनी ख्वाहिशें भी ना थी इस जिंदगी से.... जिंदगी ने उससे ज्यादा दे दिया है... वैसे भी मेरे आचार्य जी कहा करते थे... वक़्त से पहले और तकदीर से ज्यादा किसीको कुछ भी हासिल नहीं होता...
प्रतिभा - यह मत भूल... तु होने वाला एडवोकेट है... कोर्ट में यह फिलासफी बातेँ अमान्य होतीं हैं...
विश्व - जानता हूँ माँ... पर यही बातेँ... जिंदगी में तो मायने रखते हैं ना...
प्रतिभा - क्या करूँ मैं... तु आता भी है तो जुगनू की चमक की तरह... ठहरता भी तो नहीं... और जब एक महीने के बाद सज़ा पुरी हो जाएगी... तब भी... सिर्फ़ एक महीने के लिए ही मेरे पास रुकेगा... (प्रतिभा विश्व की हाथों को पकड़ कर) वादा कर.... गांव जाने के बाद भी... तु आता जाता रहेगा...
विश्व - माँ... इस बारे में हमने कई बार बातेँ की है... हमेशा मैंने तुमसे वादा किया है... क्या मेरे वादे पर विश्वास नहीं...
प्रतिभा - (थोड़ा उदास हो कर) ऐसी बात नहीं है... माँ हूँ... मन नहीं भरता... क्यूंकि किस्मत पर भरोसा जो नहीं है...
विश्व - तो ठीक है माँ... मैं फिर से अपना वादा दोहराता हूँ... मैं छूटने के बाद पुरे एक महीने के लिए तुम्हारे पास रूकुंगा... फिर अपनी जीवन की सबसे बड़ी मकसद को पुरा करने जाऊँगा... इस बीच हर हफ्ते दस दिन में आता रहूँगा... तुमसे मिलने... और जब मकसद हासिल हो जाएगी... मैं हमेशा के लिए तुम्हारे पास लौट आऊंगा... यह वादा करता हूँ... (प्रतिभा मुस्करा देती है) पर तुम भी एक वादा करो...
प्रतिभा - कुछ भी मांग ले... (विश्व कहने को होता है) रुक पूरी बात तो सुन ले...(विश्व चुप हो जाता है) मैं बहु ढूंढना नहीं छोड़ने वाली... हाँ...
विश्व - लो... (प्रतिभा की हाथ को छोड़ते हुए) पहले से ही मेरे जुबान पर ताला मार दिया तुमने... अब क्या ख़ाक वादा मांगूंगा...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... अपनी माँ से चालाकी... आँ..
विश्व - अच्छा माँ...(हाथ जोड़ कर) गलती हो गई... अब खाना खाने चलें या ऐसे ही...
प्रतिभा - हाँ हाँ चलो... इसी फ्लोर पर एक रेस्तरां है... बढ़िया खाना मिलता है वहाँ... चल पेट भर कर खाना खाते हैं... फिर घर चलते हैं...
विश्व - (उठते हुए)हाँ तो चलो फिर...

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मॉल पहुँचने के लिए देरी होता देख विक्रम वीर को फोन लगाता है l वीर तब तक घर पहुँच चुका था और अपने बेड पर लेटा हुआ था I वीर आधी नींद में फोन उठाता है

विक्रम - हैलो राजकुमार...
वीर - जी कहिए युवराज...
विक्रम - क्या... आप सोये हुए लग रहे हैं... आप हैं कहाँ पर...
वीर - (नींद भरे आवाज में) अपने कमरे में...
विक्रम - क्या... आप घर पर कब आए...
वीर - कुछ ही देर हुए हैं... बस जरा सा आँख लग गई थी कि (उबासी लेते हुए) आपका फोन आगया....
विक्रम - ओ अच्छा...
वीर - क्या है युवराज जी...
विक्रम - कुछ नहीं... आप आराम कीजिए... बाद में बात करते हैं...
वीर - ठीक है....

विक्रम फोन काट देता है l और महांती को देखने लगता है तो महांती कहता है

महांती - युवराज आप मुझसे पूछ लेते... मुझे नहीं पता था कि आपने राजकुमार जी को फोन लगाया था... मेरे पास इंफॉर्मेशन थी... जब युवराणी और राजकुमारी मॉल के अंदर गईं थीं.... उसके थोड़ी देर बाद राजकुमार वहाँ से लड़की को साथ लेकर वापस चले गए...
विक्रम - सॉरी महांती... यु नो.. युवराणी मिन्स व्हाट टु मि... इसलिए हमसे ऐसी बेवकूफ़ी भरी हरकतें हो रहे हैं...
महांती - कोई बात नहीं सर... उन्हें कुछ नहीं होगा....
विक्रम - थैंक्यू... महांती.. थैंक्यू...

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मॉल के फुड कोर्ट में एक रेस्तरां है जिसका नाम है डालमा रेस्तरां l उस रेस्तरां के एक कॉर्नर टेबल पर शुभ्रा और रुप स्टार्टर के साथ साथ सुप पी रहे हैं l

रूप - हम अगर अपनी गाड़ी से चले गए होते... तो शायद अब तक घर पर पहुँच गए होते... उससे क्या कोई प्रॉब्लम हो जाता...
शुभ्रा - पता नहीं... रुप तुम अच्छी तरह से जानती हो... भले ही तुम कॉलेज जा रही हो... पर सच्चाई भी यही है कि... तुम हो या मैं.... हम हमेशा तुम्हारे बड़े भैया के निगरानी में हैं... अगर वह खुद आ रहे हैं... मतलब कुछ तो सीरियस बात होगी...
रुप - हाँ भाभी आप ठीक कह रही हो.... यह राजगड़ तो नहीं है...
शुभ्रा - हाँ... और कभी हो भी नहीं सकता... यहाँ पर सब अपने अपने इगो को भाव देते रहते हैं और बढ़ाते रहते हैं... अगर दुश्मनी हो.... तो घात लगाने के लिए ताक में रहते हैं... लगता है इन सात सालों की सफर में... किसीके इगो को जबरदस्त ठेस पहुँची है... जिसके वजह से वह... क्षेत्रपाल के अहंकार पर शायद प्रतिघात करने के लिए घात लगा रहा है...
रुप - (एक फीकी मुस्कान के साथ) राजगड़ में... अपनों के वजह से... बाहर नहीं निकल पा रही थी.... और यहाँ किसी और के वजह से कहीं बाहर निकालना बंद ना हो जाए...
शुभ्रा - हूँ... मुझे तुम्हारे लिए बुरा तो लगेगा... अगर तुम्हारा कॉलेज आना जाना बंद हो गया तो...
रुप - (एक गहरी सांस छोड़ कर) और कितनी देर भाभी...
शुभ्रा - पता नहीं... तुम्हारे भैया जब तक यहाँ ना पहुँचे तब तक तो नहीं....
रुप - उई माँ.. (कहकर मेन्यू कार्ड अपने चेहरे के सामने कर लेती है)
शुभ्रा - क्या... क्या हुआ रुप...
रुप - पता नहीं भाभी... आज मेरी कुंडली में यह माँ बेटे क्यूँ... राहु केतु की तरह जब देखो टपक रहे हैं...

शुभ्रा घुम कर पीछे देखती है प्रतिभा और विश्व अंदर आकर एक वेटर से बात कर रहे हैं l वह वेटर उन्ही के तरफ एक खाली टेबल की ओर इशारा करता है l यह देख

रुप - भाभी आप एक काम करो प्लीज...
शुभ्रा - क्या...
रुप - आप मेरी जगह आ जाओ... मैं आपकी जगह पर बैठ जाती हूँ...(कह कर उठ जाती है और शुभ्रा के पास पहुँच जाती है, शुभ्रा भी हँसते हुए जगह बदल देती है)
शुभ्रा - (हँसते हुए) बाप रे... इतना डर...(रुप इतने में अपनी जुड़ा खोल देती है) अरे... यह अपने बाल क्यूँ खुला छोड़ रही हो...
रुप - यह आज कल की स्टाइल है भाभी...
शुभ्रा - हाँ... हाँ... हाँ... यह क्यूँ नहीं कहती अपनी चेहरा छुपा रही हो...
रुप - आप जानती हो ना... फ़िर क्यूँ पुछ रही हो...
शुभ्रा - (अपनी हँसी को दबाते हुए, धीरे से) वैसे रुप... तुम मानो या ना मानो.... लड़का... है तुम्हारे टक्कर का...
रुप - (अपनी आँख दिखाते हुए) भाभी...
शुभ्रा - (अपनी हँसी को दबाते हुए) क्यूँ क्या गलत कह दिया...
रुप - (अपनी दांत चबाते हुए धीरे से) आप सब कुछ देख कर भी... समझ नहीं पा रही हैं...
शुभ्रा - क्या... क्या समझ नहीं पा रही हूँ...
रुप - वह प्रताप अभी भी... ममास् बॉय है... उसकी माँ उसे इन माहौल में ढालने की कोशिश कर रही हैं... पर उसमें... ना झिझक कम हो रहा है ना शर्म टुट रहा है...
शुभ्रा - हूँ.. म्म्म.. अच्छा जज किया है तुमने... पर फिर भी... तुमको उसे नजर भर देखना चाहिए... क्या गजब का सेक्स अपील है यार... उसकी पर्सनालिटी में...
रुप - (हैरानी से अपनी आँखे बड़ी करते हुए) हाँ..आँ... भाभी आप.. यह कैसी बात कर रही हैं...
शुभ्रा - ओह कॉम ऑन.. मैं तुम्हारे लिए कह रही हूँ...
रुप - भाभी... पहली बात... यु नो वेरी वेल... आई एम फिक्स्ड... कुछ इधर की उधर हुई तो...(मायूसी भरी आवाज़ में) आप अच्छे से जानते हो क्या हो सकता है... क्षेत्रपाल के अहं के नीचे रौंद दिए जाएंगे... यह और उसकी फॅमिली... वैसे भी क्षेत्रपाल के आँखों में आँख डालने वाला... अगर इस स्टेट में नहीं... तो शायद ... इस दुनिया में कहीं हो... पर कम से कम यह तो नहीं... (हँसने की कोशिश करते हुए) बात बात पर झिझकने वाला... शर्माने वाला... (अपना सिर को ना में हिलाते हुए) कतई नहीं...
शुभ्रा - ह्म्म्म्म... (अपना सिर हिलाते हुए) हूँ..
रुप - क्या हम्म.. क्या हूँ..
शुभ्रा - (एक दिलासा देने वाली हँसी के साथ रुप के हाथों पर हाथ रखते हुए) तुम्हारे अंदर एक उम्मीद मैंने देख ली है... तुमको किसीका इंतजार तो है... जो तुम्हें इस क्षेत्रपाल नाम की की पिंजरे से ले उड़े...

रुप अपना सिर झुका लेती है और चुप भी हो जाती है l उधर प्रतिभा और विश्व के टेबल पर ऑर्डर किया हुआ खाना पहुँच जाता है l

विश्व - एक बात कहूँ माँ..
प्रतिभा - हाँ बोल...
विश्व - हमे आज बाहर का खाना नहीं खाना चाहिए था...
प्रतिभा - क्यूँ....
विश्व - माँ... कल शाम तक ही आपके पास रूक रहा हूँ... इसलिए आपको मुझे अपनी हाथों से खाना बना कर खिलाना चाहिए था...
प्रतिभा - हाँ मानती हूँ... मेरी इच्छा भी यही थी... पर सुबह तेरी अवतार देख कर... तुझे सलून ले जाना बहुत जरूरी था... ऊपर से मैं तेरे लिए खरीदारी भी तो करना चाहती थी... इसलिए हमें यहाँ पर लंच करना पड़ रहा है...
विश्व - तो लंच के बाद सीधे घर को ही जायेंगे ना...
प्रतिभा - बिल्कुल...
विश्व - ठीक है फिर...

उनकी बातेँ हल्की हल्की मगर साफ सुनाई देती थी l उनकी बातेँ सुनने के बाद

शुभ्रा - ओ... तो यह जनाब प्रताप... कहीं बाहर रहता है... शायद किसी काम से भुवनेश्वर आया है... अब अपनी माँ से मिल लिया है... और कल शाम को वापस चला जाएगा....
रुप - यह आपने... कैसे समझ लिया...
शुभ्रा - कॉफी स्टॉल पर उससे जितनी बातेँ हुई थी... और अब इनकी बातेँ सुनने के बाद मुझे सब समझ में आ गया...
रुप - ओ...
शुभ्रा - चूंकि यह लड़का बाहर रहता है... इसलिए इसकी माँ जल्द से जल्द शादी करा देना चाहती है...
रुप - हम्म... शायद आप सही हो...

उधर विश्व खाना खा रहा है और उसे प्रतिभा मुस्कराते हुए खाना खाते हुए देख रही है l विश्व जब देखता है कि प्रतिभा उसे एक टक देखे जा रही है l

विश्व - अरे माँ... तुम खाना क्यूँ नहीं खा रही हो...
प्रतिभा - तुझे खाना खाते देख... मेरा पेट और मन दोनों भरे जा रहे हैं...

विश्व अपना थाली लेकर प्रतिभा के पास जाकर बैठ जाता है और खाने के कोर बना कर प्रतिभा को खिलाता है l यह दृश्य शुभ्रा देखती है और वह इशारे से रुप को उस तरफ देखने को कहती है l रुप अपना चेहरा को कंधे से नीचे ले कर पीछे मुड़कर देखती है फिर आगे देखने लगती है l

शुभ्रा - कुछ भी हो रुप... माँ बेटे में प्यार मगर बहुत है...
रुप - हूँ...
शुभ्रा - हम शायद झेल ना पाएँ... उन माँ बेटे को... क्यूंकि उनके बीच कोई पागलपन नहीं है... प्यार ममता और वात्सल्य है... जो हमे पागलपन लगा...
रुप - हूँ...
शुभ्रा - तुम चुप क्यूँ हो गई...
रुप - (आँखों में पानी आ जाती है) माँ जैसी चाची तो थी मेरे पास... उन्होंने प्यार और ममता लुटाने में भी... कोई कंजूसी नहीं की... पर माँ... माँ नहीं थी मेरे पास... शायद इसलिए उस औरत के प्यार को... अपने बेटे के लिए, पागलपन समझ बैठी...
शुभ्रा - हूँ... खैर जो भी कहो... यह माँ बेटे हैं यूनीक....

रुप मुस्कराकर अपनी सिर को हिला कर और पलकें झपका कर अपनों हामी जाहिर करती है l उधर विश्व के हाथों से प्रतिभा को खाना खाते हुए रेस्तरां में मौजूद सभी लोग उत्सुकता से देख रहे थे l थोड़ी देर बाद उनका खाना खतम हो जाता है, दोनों लेमन बाउल में हाथ धो लेने के बाद, प्रतिभा बिल पेमेंट कर देती है और दोनों रेस्तरां से बाहर निकलने को होते हैं कि उन्हें एक बुढ़े उम्र दराज़ जोड़ा सामने से आकर रोक देते हैं l उन जोड़े में से बुढ़ी औरत विश्व के सामने आकर विश्व के सिर पर बड़े प्यार से हाथ फेरती है l विश्व और प्रतिभा स्तब्ध हो कर उन दोनों को देखने लगते हैं l उस बुढ़ी औरत की पति विश्व और प्रतिभा से कहता है
- हमारे तीन औलादें हैं... पर हमारे पास कोई नहीं हैं... वह लोग बहुत खुश हैं... बिजी हैं... इतने बिजी हैं... के हमारे लिए.. उनके पास वक़्त ही नहीं है... इसलिए हम एक दुसरे के साथ सुख दुख के लम्हें निकाल कर आपस में बांट लेते हैं... (प्रतिभा से) आप वाकई बहुत भाग्यवान हैं... (प्रतिभा मुस्कराते हुए अपना सिर गर्व से हिला कर हाँ कहती है)

विश्व यह सुन कर उस बुढ़ी औरत को गले से लगा लेता है l यह दृश्य रेस्तरां में बैठे सभी देख रहे थे l रुप से रहा नहीं जाता एक्साइटमेंट में ताली बजाने लगती है l उसे ताली बजाते देख वहाँ पर सभी लोग भी ताली बजाने लगते हैं l सबको ताली बजाते देख विश्व शर्मा कर उस औरत से अलग हो जाता है और प्रतिभा के हाथ पकड़ कर रेस्तरां से बाहर निकल जाता है l शुभ्रा रुप के हाथ को पकड़ कर ताली बजाने से रोक देती है l

शुभ्रा - वाह.... आख़िर लड़का इम्प्रेस कर ही दिया तुम्हें...
रुप - हाँ... पर मैं इम्प्रेस हुई हूँ उसकी नेक काम के वजह से ... ना कि उससे... इस काम के लिए... उसे एप्रीसिएशन तो मिलनी ही चाहिए...
शुभ्रा - वाह क्या बात है... आज लड़का तुमसे इम्प्रेस था... तुम्हें एप्रीसिएशन देना चाहता था... और अब... तुम उसे एप्रीसिएशन देना चाहती हो.... क्या बात है... वाह... दोनों के एप्रीसिएशन एक दुसरे के लिए बाकी रह गई... बचा के रखना हाँ... बाद में काम आएगा... हा हा...
रुप - भाभी... क्या हम इस टॉपिक से बाहर नहीं निकल सकते...
शुभ्रा - हाँ हाँ क्यूँ नहीं...

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विक्रम की गाड़ी मॉल से कुछ ही दुर पर पहुँचती है l तभी महांती की फोन बजने लगती है l

महांती - हैलो...
- XXXX
महांती - व्हाट...
- XXXX
महांती - ओके...
- XXXX
महांती - युवराज जी...
विक्रम - क्या बात है महांती...
महांती - छोटे राजा...
विक्रम - (गाड़ी रोक कर) क्या हुआ... क्या हुआ उन्हें...
महांती - जी... जी वह... घ... घायल हैं...
विक्रम - व्हाट...
महांती - जी...
विक्रम - कैसे... कहाँ पर हमला हुआ...
महांती - म्युनिसिपलटी ऑफिस में...
विक्रम - (चुप रहता है, बड़ी बेबसी से महांती को देखता है)
महांती - यह.... एक डाइवर्जन था... मतलब हम उनके चाल में फंस गए...
विक्रम - अभी... छोटे राजा जी की कैसी हालत है...
महांती - सीरियस नहीं है... पर... हस्पताल में एडमिट हैं...
विक्रम - कैसे... कैसे हुआ यह सब...
महांती - युवराज जी... अब उनसे बात करने के बाद ही सब मालुम हो पाएगा... सिर्फ़ छोटा सा घाव लगा है...

विक्रम की मुट्ठी स्टीयरिंग पर भींच जाती है l वह अपना सिर स्टियरिंग पर पीट देता है l एक गहरी सांस छोड़ते हुए महांती से

विक्रम - महांती एक काम करो.... तुम छोटे राजा जी के पास जाओ... जब यहाँ तक आ गए हैं तो हम युवराणी और राजकुमारी जी को घर पर पहुँचा कर... उनसे मिलने जाएंगे...
महांती - ठीक है युवराज जी... मैं यहाँ अपनी कंपनी के सर्विस गाड़ी लेकर चला जाता हूँ... आप युवराणी और राजकुमारी जी को छोड़ कर पहुँचे...

महांती गाड़ी से उतर जाता है और फोन कर ESS सर्विस गाड़ी से अलग दिशा में चला जाता है l विक्रम शुभ्रा को फोन लगाता है l

_____×_____×_____×_____×_____×_____×

पार्किंग में पहुँचते ही प्रतिभा अपने सिर पर हाथ रखकर खड़ी हो जाती है और कहती है

प्रतिभा - है भगवान...
विश्व - क्या हुआ माँ... कुछ भुल गई क्या...
प्रतिभा - हाँ... (अपनी पर्स से दो रसीद निकाल कर विश्व को देती है) यह ले... यह कपड़ों की रसीद है और यह जुते की... जाकर ले आ...
विश्व - क्या माँ... वह पुराने कपड़े हैं... और जुता भी पुराना है... रहने दो ना...
प्रतिभा - सुन... दुकान पर पुराने चीजें छोड़ नहीं सकते.... हमारे जो काम ना आए... उसे हम किसी और को दे सकते हैं... जिनके वह काम आएगा... इसलिए जा ले कर आ...
विश्व - ठीक है माँ... तुम गाड़ी के पास जाओ... मुझे पाँच सात मिनट लगेंगे...
प्रतिभा - ठीक है...

विश्व लिफ्ट की ओर तेजी से भागता है और प्रतिभा अपनी गाड़ी के पास जाती है l उधर रुप और शुभ्रा रेस्तरां में अभी भी बैठे हुए बातेँ कर रहे हैं, तभी शुभ्रा को विक्रम का फोन आता है

शुभ्रा - हैलो
विक्रम - आप लोग पार्किंग में पहुँचे... हम भी पहुँच रहे हैं...
शुभ्रा - जी... अभी हम निकलते हैं...
विक्रम - कितने नंबर की पार्किंग एरिया में हमे पहुँचना है...
शुभ्रा - जी ट्वेल्व नंबर पार्किंग में...
विक्रम - ठीक है... हम पाँच मिनट में पहुँच रहे हैं...
शुभ्रा - जी... (फोन काट देती है) चलो रुप... तुम्हारे भैया हमे लेने आए हैं...
रुप - ठीक है भाभी... चलिए.... पेमेंट क्लीयर कर निकलते हैं...

दोनों काउंटर पर जाते हैं, और पेमेंट करने लगते हैं l उधर विश्व रसीद लेकर पहले बुटीक पर पहुँचता है l जैसे ही वह काउंटर पर रसीद देता है काउंटर पर बैठा मैनेजर विश्व को छह पैकेट थमा देता है l

विश्व - अरे... यह क्या... आप मुझे इतने सारे पैकेट क्यूँ दे रहे हैं....

मैनेजर - जी... इनमें वह पांच जोड़ी कपड़े हैं... जिन्हें आपने ट्रायल किया था... और एक... जो आप पहन कर आए थे...... वह भी इन पैकेट्स में है... आपकी माता जी ने सबकी पेमेंट कर दी है...
विश्व - (यह सुन कर हैरान हो जाता है और फिर मुस्करा देता है)
मैनेजर - क्या हुआ सर...
विश्व - कुछ नहीं भाई... मेरी माँ ने भूलने का अच्छा बहाना बनाया... कितनी प्यार करती हैं मुझसे... एक जोड़ी बता कर पाँच जोड़ी खरीद लिया... और मुझे पता ना चले इसलिए चुपचाप पेमेंट भी कर दिया... अब मुझे यहाँ भेज कर... मुझे ख़ुश कर रही हैं... मुझे खुशी देते वह थकती नहीं हैं... क्यूंकि वह मेरी खुशी में ही... अपनी खुशी देखती हैं...
मैनेजर - सर एक बात कहूँ... आप बहुत लकी हो सर...
विश्व - हाँ... सो तो हूँ... कोई शक़...

फिर विश्व वहाँ से निकल कर शू स्टोर में पहुँचता है l वहाँ पर भी रसीद दिखाने पर उसे और छह जोड़ी जुतों की पैकेट मिलता है l विश्व इस बार दुकान दार से कुछ नहीं कहता l कपड़े और जुतों का पैकेट ले कर लिफ्ट के तरफ भाग कर जाता है l वहाँ पहुँच कर लिफ्ट का बटन दबाता है l लिफ्ट आकर रुकता है और दरवाजा खुल जाता है l लिफ्ट के अंदर दो लड़कियाँ थी l विश्व उन्हें देख कर अंदर जाने के वजाए रुक जाता है और इधर उधर देखने लगता है l ना वह कहीं जा पाता है ना ही अंदर l वहीँ खड़े खड़े हिचकिचाता रहता है, झिझकने लगता है l लिफ्ट के अंदर वह लड़कियाँ कोई और नहीं बल्कि रुप और शुभ्रा हैं l विश्व को हिचकिचाते देख

शुभ्रा - आइए प्रताप भैया... हम भी नीचे पार्किंग में जा रहे हैं... आप चाहें तो आ सकते हैं... (विश्व अंदर आ जाता है, और दोनों की तरफ पीठ करके खड़ा हो जाता है)
विश्व - (बिना उन्हें देखे) बुरा ना मानिये बहन जी... आपको मेरा नाम कैसे मालुम है...
शुभ्रा - अरे भैया... आपकी इंट्रोडक्शन तो आपकी माताजी ने... आइसक्रीम पार्लर में दे दी थी... और आप इतनी जल्दी भुल गए... घंटे भर पहले आप मुझसे कॉफी स्टॉल पर बात भी की थी...
विश्व - जी...(हैरान हो कर) जी... (फिर याद करते हुए) जी जी...
शुभ्रा - वैसे प्रताप भैया... आप ल़डकियों से शर्माते हैं या डरते हैं..
विश्व - जी... (बिना पीछे मुड़े) म... मालुम नहीं...

रुप - हम लड़की हैं... पर हमे नाजुक समझने की भुल ना कीजिएगा... हम बहुत खतरनाक भी हैं.... (यह सुन कर शुभ्रा रुप को कोहनी मारती है)
विश्व - (बिना पीछे मुड़े) जी मैं एक लड़का हूँ... जो भी हूँ... जैसा भी हूँ... पर खतरनाक बिल्कुल नहीं हूँ....

विश्व की यह बात सुनने के बाद रुप शर्मा जाती है और शर्म से उसके गालों पर लाली छा जाती है l

शुभ्रा - हमारी गाड़ी ट्वेलव नंबर पार्किंग पर खड़ी है... और आपकी... (अब रुप उसे कोहनी मारती है)
विश्व - (बिना पीछे मुड़े) जी हमारी गाड़ी नाइन नंबर पार्किग एरिया में है..

पार्किंग फ्लोर पर लिफ्ट पहुँचती है, दरवाजा खुलते ही विश्व जल्दी से निकल भागता है l शुभ्रा और रुप विश्व को भागते देख हँसने लगते हैं और अपनी गाड़ी की ओर जाने लगते हैं l वहीँ नौ नंबर पार्किंग में अपनी गाड़ी के पास प्रतिभा टहल रही है l उसी वक़्त विक्रम की ऐसकॉट और उसके पीछ गार्ड्स की दो गाड़ीयाँ तेजी से पार्किंग में घुसती है और तेजी से बारह नंबर पार्किंग की बढ़ती है l प्रतिभा के पास से पहले गार्ड वाली गाड़ी तेजी से गुजरता है फ़िर ऐसकॉट तेजी से गुजर जाता है जिससे प्रतिभा की साड़ी की आंचल थोड़ी उड़ने लगती है तभी पीछे से आ रही गार्ड्स की दुसरी गाड़ी के बम्पर गार्ड में प्रतिभा की साड़ी की आँचल फंस जाती है जिसके वजह से प्रतिभा गाड़ी के पीछे घिसटने लगती है l प्रतिभा चिल्लाने लगती है l
विश्व जैसे ही देखता है प्रतिभा की साड़ी एक गाड़ी में फंस गई है और गाड़ी प्रतिभा को घिसटते हुए लिए जा रही है l

विश्व - (हाथ से पैकेट फेंक कर चिल्लाता है) माँ..... (गाड़ी के पीछे भागता है)

वह गाड़ी थोड़ी ही दुर जा कर रुक जाती है l विश्व प्रतिभा के पास पहुँच कर देखता है सिर पर चोट लगने के कारण थोड़ा खून बह रहा है, दोनों कोहनी छील गए हैं और साड़ी घिसककर खराब हो गई है l
विश्व - (आँखों में आँसु आ जाते हैं) माँ...आँ..
प्रतिभा - (कराहते हुए) ओह... ओ... माँ...


प्रतिभा की दर्द के मारे बहुत बुरा हाल था, वह दर्द से कराह रही थी l गार्ड्स अपने गाड़ी से उतर कर विश्व और प्रतिभा को देखते हैं और ड्राइविंग साइड पर बैठा गार्ड प्रतिभा की साड़ी को गाड़ी की बम्पर से निकाल कर प्रतिभा के ओर फेंकते हुए

गार्ड - साली बुढ़िया... मरने के लिए तुझे कोई और गाड़ी नहीं मिली...

विश्व उस ड्राइवर और उन गार्ड्स को देखता है, फिर अपनी जेब से रुमाल निकाल कर प्रतिभा के माथे पर बांध देता है l और प्रतिभा को अपनी बाहों में उठा कर गाड़ी के पास घुटने के ऊँचाई बराबर एक वॉल पर पिलर के सहारे बिठा देता है l

विश्व - माँ... तुम यहीँ पर बैठी रहो... मैं अभी थोड़ी देर में आया..
प्रतिभा - रुक प्रताप...(दर्द से कराहते हुए) तु जा कहाँ रहा है...
विश्व - तुम्हारे लिए...(दाँतों को चबाते हुए) फर्स्ट ऐड लेकर आ रहा हूँ....
प्रतिभा - रुक ना...

पर विश्व प्रतिभा को वहीँ पर छोड़ कर उन गार्ड्स के तरफ चला जाता है l
उधर ऐसकॉट में शुभ्रा और रुप बैठ चुके हैं l विक्रम गार्ड्स को तैयार होने के लिए कहता है और खुद ड्राइविंग सीट की ओर जाता है l तीन गाडियों में पहली गार्ड वाली कार चलने लगती है l विश्व गाड़ियों को स्टार्ट होते देख इधर उधर देखने लगता है l उसे फायर अलार्म के पर एक लोहे का हामर दिखता है l विश्व भाग कर वह हामर निकाल लेता है l जैसे ही गालियों की काफिला चलने लगती है विश्व उस रास्ते पर सामने आकर हामर को फेंक मारता है l हामर ड्राइवर के सामने की काँच पर लगती है और काँच में मकड़ी की जाल की तरह क्रैक्स पड़ जाते हैं l तो ड्राइवर गाड़ी की स्टीयरिंग मोड़ देता है और गाड़ी एक पिलर से टकरा जाती है l उसके पीछे आने वाली विक्रम की गाड़ी और दुसरी गार्ड्स वाली गाड़ी रुक जाती हैं l एक्सीडेंट वाली गाड़ी से सभी चार गार्ड्स उतर जाते हैं l विश्व वहाँ पहुँच कर उस गार्ड को जिसने प्रतिभा की साड़ी को निकाल कर फेंका था उसे अपने तरफ खिंचता है और उसपर झन्नाटेदार थप्पड़ों की बारिश कर देता है, उस गार्ड को बचने का फुर्सत भी नहीं मिलता थप्पड़ खा खा कर वह गार्ड नीचे गिर जाता है, दुसरे गार्ड्स विश्व को हैरान हो कर मुहँ फाड़े देखे जा रहे थे l उनमें से एक विश्व के पास आकर विश्व की कलर पकड़ने की कोशिश करता है l विश्व भी उसे कोई मौका दिए वगैर थप्पड़ पर थप्पड़ मारे जाता है l वह भी नीचे गिर जाता है l बाकी दो गार्ड्स में से एक
गार्ड - अरे पागल हो गया क्या... क्यूँ मारे जा रहे हो...


विश्व उसे देखता है, फ़िर उसे पकड़ कर थप्पड़ मारने लगता है l यह सब ऐसकॉट में बैठा ना सिर्फ़ विक्रम बल्कि शुभ्रा और रुप भी देख रहे थे l विश्व जिस तरह से विक्रम के गार्ड्स को थप्पड़ों से ट्रीट कर रहा था उसे देख रुप की हँसी निकल जाती है जिसे विक्रम सुन लेता है l विक्रम गुस्से से पीछे मुड़ कर देखता है तो रुप अपनी भाभी के पीछे दुबक जाती है l इतने में पीछे वाली गाड़ी से बाकी चार गार्ड्स आ पहुँचते हैं I विक्रम अपनी गाड़ी की खिड़की की काँच उतारते हुए l

विक्रम - क्या हो रहा है वहाँ... कौन है वह.. क्या प्रॉब्लम हुआ है...
एक गार्ड - सर... इसी लड़के की माँ की साड़ी.. फंस गई थी हमारी गाड़ी में...
विक्रम - व्हाट... इस बात के लिए वह हमारे लोगों को मारेगा... तुम लोग ESS के ट्रैंन्ड कमांडोज हो... जाओ अपने स्टाइल से इसे सॉल्व करो...
गार्ड्स - यस सर....

फिर एक गार्ड जो विक्रम के पास खड़ा था वह अचानक विश्व के तरफ भाग कर एक फ्लाइंग किक मारता है l विश्व उसके लिए तैयार नहीं था l किक लगते ही विश्व कुछ दूर जा कर गिरता है l

वह गार्ड - ऐ... उठो रे सब.. हम.. ESS के कमांडोज हैं.... कोई ऐरा गैरा नथु खैरा नहीं हैं... चलो इसको सबक सीखते हैं...
यह सुन कर सभी गार्ड्स उठ खड़े होते हैं l विश्व भी उसकी बातेँ सुन कर खड़ा होता है l वह गार्ड जिसने विश्व को फ्लाइंग किक मारा था वह फ़िर से विश्व की ओर भागता है विश्व भी उसके तरफ भागता है l गार्ड जम्प लगा कर फ्लाइंग बैक किक मारता है जवाब में विश्व भी उसी समय फ्लाइंग राउन्ड हाउस किक मारता है l गार्ड की किक लगने से पहले विश्व की किक लगती है और वह गार्ड हवा में ही किक के इम्पैक्ट से साइड में खड़े एक कार पर गिरता है जिससे उस कार की सिक्युरिटी अलार्म बजने लगता है l उस गार्ड के गिरते ही बाकी गार्ड्स विश्व को हैरानी भरे नजरों से देखने लगते हैं l विक्रम भी अपनी गाड़ी से उतर जाता है l

बाकी बचे सातों गार्ड एक दुसरे को इशारा करते हुए विश्व को घेरते हैं और पोजिशन लेते हैं l

विश्व - (उन गार्ड्स से चिल्ला कर) तुमने जिसे बुढ़िया कहा और अपनी गाड़ी के पीछे घसीटा है... वह मेरी माँ है... बेहतर यही होगा... तुम सब उनके पैरों पर गिर माफी मांग लो... चलो...
उन गार्ड्स में से एक - नहीं तो....
विश्व - नहीं तो... तुम लोग अपने गाड़ी से नहीं... एम्बुलेंस से बाहर निकलोगे...

सभी गार्ड्स जो विश्व को घेरे हुए थे उनमे से एक विश्व को पीछे से किक उठा कर हमला करता है l विश्व आसानी से डॉज करते हुए बच जाता है और घुटने पर बैठ कर फ़ॉन्ट हाउस किक मारता है जिसे वह गार्ड पीठ के बल गिरता है l उसके बाद दुसरा सामने वाला पुश किक मारता है विश्व लोअर डाउन वार्ड डॉज करता है फिर एक जाब पंच उसके पसलियों पर मारता है l तीसरा गार्ड साइड किक मारता है उससे बचते हुए एक फ़ॉन्ट हूकींग किक गार्ड के ठुड्डी पर मारता है l चौथा गार्ड विश्व के चेहरे पर पंच मारने वाला होता है विश्व घुम कर एक क्रॉस एलबॉ मारता है जो उसके चेहरे पर लगता है l फिर विश्व झुक कर घुटनों के बल स्किड करते हुए पाँचवे गार्ड के पास खड़े हो कर एक अपर कट पंच मार देता है l छटा गार्ड विश्व पर छलांग लगाता है विश्व थोड़ा झुक कर उसे हवा में ही उठाकर फेंक देता है और सातवें को घूम कर दोनों हाथों का डबल हामर पंच मारता है l सब के सब नीचे गिरे पड़े हैं l

विक्रम हैरान हो कर विश्व को देखता है l यही हालत रुप और शुभ्रा की भी है l क्यूँ के जो भी हुआ सब कुछ सेकेंड में हो गया था l ESS के हाईली ट्रेंड आठ कमांडोज कुछ ही सेकंड में धुल चाट रहे थे l विश्व एक गार्ड को उठाता है और उसके कलर पकड़ कर घसीटते हुए लेकर जाने लगता है l

विक्रम - ऑए... (चिल्ला कर) ऑए लड़के... यह क्या हो रहा... वह हमारा आदमी है... छोड़ो उसे...
विश्व - (उस गार्ड को पकड़े हुए रुक जाता है) यह मेरी माँ का गुनहगार है... जब तक माफी नहीं मांग लेता... तब तक यह कहीं नहीं जा सकता है...
विक्रम - ऑए...(गुर्राते हुए) जानता है किससे बात कर रहा है... किसके आदमियों से पंगा ले रहा है... छोड़ दे उसे...
विश्व - (उस गार्ड को उठाकर दो और थप्पड़ मार देता है) अगर यह तेरे दम पर मेरी माँ से बत्तमीजी की है... तो माफी माँगना अब तेरा बनता है.... या तो यह माफी मांगेगा या फिर तु... फैसला कर लो...
विक्रम - क्या... माफी.. वह भी हम... हम कुछ मांगते नहीं है... या तो देते हैं... या फिर छिनते हैं... लगता है तेरी मौत तुझसे बुलवा रहा है...

विश्व - फैसला कर ले... या तो यह... या फिर तु...

तभी कुछ गार्ड्स उठ खड़े होते हैं l उनमे से एक


गार्ड - सर हम इसे देख लेंगे... आप... आप गाड़ी में बैठिए...
विक्रम - (उन गार्ड्स से) उठो... संभलो... इसे पकड़ कर इतना मारो... के फिर कभी किसीसे जुबान लड़ाने पहले... सौ बार सोचेगा...


विक्रम के इतने कहते ही सातों गार्ड्स अपनी पुरी ताकत लगा कर विश्व को पकड़ने भागते हैं l विश्व जिस गार्ड को पकड़ा हुआ था उसके कनपटी पर एक घुसा जड़ देता है l वह गार्ड वहीँ नीचे ढेर हो जाता है l इतने में विश्व को बाकी बचे सात गार्ड्स आकर फिरसे घेर लेते हैं l विश्व अब अपने सामने वाले को छकाकर पीछे खड़े गार्ड को एक बैक राउंड हाउस किक मारता है फिर सामने वाले को फ़ॉन्ट थ्रॉस्ट किक फिर तीसरे के पेट में पंच फिर घूम कर कोहनी गाल के ऊपर आँख के नीचे l चौथा जिस तेजी से विश्व की ओर आता है विश्व उसीकी तेजी को इस्तमाल करके उठा कर फेंक देता है फिर बाएं घुटने पर बैठ कर दाएं पैर की लोअर स्पिन टर्न किक मारता है जिससे पांचवां पीठ के बल गिर जाता है l विश्व उठकर छटे पर छलांग लगा कर घुटना मोड़ कर सीने पर मारता है l फिर पलट कर एक साइड किक पांचवे को, इतने में सातवां विश्व को घुसा मारता है विश्व पीठ को पीछे की ओर मोड़ कर बचता है फिर वह जैसे वह सातवां विश्व की ओर मुड़ता है विश्व एक जबरदस्त हामर पंच उसके नाक पर जड़ देता है जिससे उस सातवें गार्ड की नाक कचूमर बन जाता है और वह नीचे गिर कर छटपटाने लगता है l पुरा कर पुरा दृश्य एक्शन रीप्ले की तरह ही दिखा कुछ ही सेकंड में सभी ढेर, फिर विश्व पहले से अधमरे हो चुके सभी गार्ड्स को विक्रम के सामने किसी खिलौने की तरह उठा कर सबको बारी बारी से पटक देता है l इतने में विक्रम एक फ्लाइंग किक मारता है, किक विश्व के चेहरे पर लगती है और विश्व दूर छिटक कर गिरता है l विश्व उसके लिए तैयार बिल्कुल नहीं था विक्रम के देखते हुए विश्व खड़ा होता है l विक्रम विश्व के पास आकर रिवर्स फ़ॉन्ट राउन्ड हाउस किक मारता है l पर इस बार विश्व अपनी जगह से हिलता भी नहीं है l विक्रम तरह तरह से पंच किक आजमाने लगता है विश्व सबको आसानी से और फुर्ती से डॉज करने लगता है फिर एक मंकी ब्लॉक लेकर विक्रम के पेट में एक ताकत भरा पंच मार देता है l विक्रम कुछ दूर स्कीड हो कर गीर जाता है l थोड़ी देर बार वापस खड़े हो कर पोजीशन बनाने की कोशिश करता है कि तभी विश्व उसके तरफ दौड़ कर जम्प लगा देता है और दायां घुटने को मोड़ कर शॉट हिट करता है जो सीधा विक्रम के चेहरे पर लगती है और विक्रम उड़ते हुए अपनी ही ऐसकॉट पर गिरता है l गाड़ी के भीतर यह देख कर शुभ्रा और रुप डर जाते हैं l विश्व अब बेकाबु हो चुका था वह विक्रम को मारने के लिए दौड़ लगाने वाला ही था कि उसके कानों में प्रतिभा की आवाज पड़ती है

प्रतिभा - प्र.. ता....प...(विश्व रुक जाता है l और पीछे मुड़ कर देखता है) बस बेटा... बहुत हो गया... जाने दे...
विश्व - नहीं माँ...(अपनी दांतों को चबाते हुए) जब तक यह कंजर्फ तुमसे माफी नहीं मांगेगा... मैं इसे नहीं छोडूंगा...
प्रतिभा - तु... (कराहते हुए) तु मेरी बात... नहीं मानेगा...

विश्व कुछ नहीं कहता सिर झुका कर विक्रम और उन गार्ड्स सबको उन्हीं के हाल में छोड़ कर प्रतिभा की ओर जाने लगता है l विक्रम के लिए यह बर्दास्त के बाहर था वह गाड़ी के ऊपर से लुढ़क कर विश्व पर चिल्लाता है

विक्रम - ऑए... कमीने... हराम जादे... तुने किससे पंगा लिया है... नहीं जानता है तु...

विश्व उसे मुड़ कर देखता है l प्रतिभा विश्व को फ़िर से आवाज देती है (नहीं प्रताप नहीं...) l इसलिए विश्व वापस प्रतिभा की ओर जाने लगता है l

विक्रम - आज... तुने किसकी हुकूमत से टकराया है... जानता है तु.... नहीं जानता है ना...

विश्व पीछे मुड़ कर नहीं देखता और सीधे प्रतिभा के पास पहुँच जाता है l

विक्रम - तुने अपनी मौत को छेड़ा है... जानता है... मेरा बाप कौन है
विश्व - (मूड जाता है और कहता है) क्यूँ... तु नहीं जानता... तेरा बाप कौन है... तो जा... जाकर अपनी माँ से पुछ... वह बताएगी तेरा बाप कौन है... (कह कर मूड जाता है और प्रतिभा के साथ जाने लगता है)
विक्रम - (यह सुन कर शुन हो जाता है) (फिर होश में आता है) या.... आ... आ.. (चिल्लाता है) भैरव सिंह क्षेत्रपाल.... मेरे बाप का नाम... अब तु अपनी जिंदगी के दिन गिनना शुरू कर दे... हराम जादे...


विश्व यह नाम सुनते ही रुक जाता है, उसके आँखों में खुन उतर आता है, उसके सारे जिस्म थर्राने लगता है, प्रतिभा भी उसके चेहरे को देख कर डरने लगती है l विश्व जल्दी से पीछे मुड़ता है और विक्रम के पास पहुँच कर एक जोरदार फ्रंट थ्रस्ट किक विक्रम के सीने पर मारता है l इसबार विक्रम अपनी गाड़ी के कांच के उपर गिरता है l कांच पुरी तरह से टूटती तो नहीं पर कांच में मकड़ी की जाल की तरह क्रैक्स पड़ जाते हैं l विश्व जम्प लगा कर गाड़ी की बोनेट पर चढ़ जाता है और विक्रम के कलर पकड़ कर जैसे ही पंच मारने को होता है शुभ्रा गाड़ी से उतर कर

शुभ्रा - भैया.... प्रताप भैया... (अपनी मंगलसूत्र को दिखाते हुए) प्लीज भैया... (गिड़गिड़ाते हुए) प्लीज...(रोने लगती है)
विश्व - (शुभ्रा को देख कर और उसकी बिनती के वजह से अपना हाथ रोक देता है, पर विक्रम से) सुन बे क्षेत्रपाल के चुजे... तेरा हर काम.. वह क्षेत्रपाल ही करेगा क्या... फ़िर तु क्या करेगा... या फिर तुझसे कुछ होता नहीं... इसलिए कुछ करने के लिए... तुझे क्षेत्रपाल टैग चाहिए... हाँ... (विक्रम के मुहँ से नाक से खुन बह रहा है, गहरी गहरी सांसे लेते हुए गुस्से से विश्व को देखते हुए) तुम लोगों ने मेरी माँ के साथ जो बत्तमीजी की... उसके लिए... कायदे से जान से मार देना चाहिए था... पर (शुभ्रा को दिखाते हुए) इन्हें अनजाने में सही बहन कहा है... इनके साथ उस रिश्ते का लिहाज करते हुए तुम लोगों को छोड़ रहा हूँ...
 

Rajesh

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👉इकसठवां अपडेट
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वीर अपने कमरे में गहरी नींद में सोया हुआ है l फोन की लगातार बजने से उसकी नींद टूट जाती है l वीर अपनी कमरे में देखता है बहुत अंधेरा है I नाइट बल्ब भी नहीं जल रही है पर एसी चल रही है और उस कमरे में जितनी भी रौशनी दिख रही है मोबाइल फोन के डिस्प्ले से आ रही है l वह उठ कर मोबाइल हाथ में लेता है और कॉल लेकर

वीर - हैलो... (उबासी लेते हुए) कौन है... इतनी रात को क्या प्रॉब्लम है...
- हैलो... राजकुमार जी.. मैं... महांती बोल रहा हूँ...
वीर - महांती... इतनी रात को... अरे यार... क्या हो गया...
महांती - राजकुमार जी... अभी तो शाम के सिर्फ़ सात ही बजे हैं...
वीर - (झट से उठ बैठता है) क्या... सिर्फ शाम के सात बजे हैं... आज शनिवार ही है ना...
महांती - जी राजकुमार जी...
वीर - (अपने कमरे की लाइट जलाता है) ओ... अरे हाँ... अच्छा महांती... कुछ जरूरी काम था क्या...
महांती - जी.. राजकुमार जी... आज का दिन बहुत ही खराब गया है... क्षेत्रपाल परिवार के लिए... आप जल्दी ESS ऑफिस में आ जाइए... प्लीज...यहाँ आपकी सख्त जरूरत है...
वीर - (हैरान होते हुए) क्या... क्या हुआ...
महांती - युवराज जी ने खुद को... अपने कैबिन के रेस्ट रूम में बंद कर रखा है...
वीर - क्यूँ... किसलिए...
महांती - और छोटे राजा जी ने खुद को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज करा लिया है और यहीं पर आ रहे हैं...
वीर - छोटे राजा जी हॉस्पिटल से आ रहे हैं... क्या मतलब हुआ इसका... हुआ क्या है आज....
महांती - राजकुमार जी प्लीज... आप यहाँ आ जाइए... मैं... मैं आपको सब बताता हूँ...
वीर - ठीक है... मैं थोड़ा रिफ्रेश हो लेता हूँ... फिर गाड़ी से निकाल कर... बस पाँच मिनट...हाँ... मैं.. मैं निकल रहा हूँ...

वीर तैयार होने के लिए बाथरूम में घुस जाता है l उधर ESS ऑफिस में अपने कैबिन के रेस्ट रूम के अंदर विक्रम एक आदम कद आईने के सामने खड़ा है और खुद को चाबुक से मार रहा है l क्यूँकी उसके कानों में, मॉल के पार्किंग एरिया में टकराए उस आदमी के कहे हर लफ्ज़ तीर के तरह उसके जेहन में चुभ रहे हैं l उसके आँखों में दर्द और नफरत के मिलीजुली भाव दिख रहे हैं l


"अगर यह तेरे दम पर मेरी माँ से बत्तमीजी की है... तो माफी माँगना अब तेरा बनता है"

विक्रम अपने हाथ का चाबुक जोर से चलाता है l च..ट्टा.....क्क्क्क्क्... विक्रम के पीठ पर एक लाल रंग का धारी वाला निशान बन जाता है l

"क्यूँ... तु नहीं जानता... तेरा बाप कौन है... तो जा... जाकर अपनी माँ से पुछ... वह बताएगी तेरा बाप कौन है..."

विक्रम फिर से चाबुक चलाता है l और एक लाल रंग का धार उसके पीठ पर नजर आता है l इस बार उस धार से खुन निकलने लगता है l पर विक्रम के चेहरे पर भाव ऐसे आ रहे हैं जैसे उसे जिस्मानी दर्द का कोई एहसास ही नहीं हो रहा है l उसके कानों में उस आदमी के कहे हर बात नश्तर की तरह उसके आत्मा में घुसे जा रहे हैं l

"सुन बे क्षेत्रपाल के चुजे... तेरा हर काम.. वह क्षेत्रपाल ही करेगा क्या... फ़िर तु क्या करेगा... या फिर तुझसे कुछ होता नहीं... इसलिए कुछ करने के लिए... तुझे क्षेत्रपाल टैग चाहिए... हाँ..."

फिर से विक्रम अपनी चाबुक चलाता है l फिर से उसके जिस्म पर और एक धार नजर आती है और उस धार के किनारे से खुन बहने लगती है l विक्रम अंदर खुद पर चाबुक चला रहा है यह बाहर किसीको भी पता नहीं चल पा रहा है l चूँकि वहाँ पर किसीमें इतनी हिम्मत है ही नहीं, विक्रम के कैबिन में जाए और रेस्ट रूम को जा कर उससे कुछ पूछे या खबर ले l इसलिए कुछ गार्ड्स और महांती ESS के कांफ्रेंस हॉल के बैठक में खड़े हुए हैं l इतने में महांती की फोन बजने लगता है l महांती देखता है कॉल वीर का है तो झटके से फोन उठाता है l

महांती - हैलो...
वीर - हाँ महांती... मैं गाड़ी में... ड्राइविंग कर रहा हूँ... अब मुझे डिटेल्स में बताओ... क्या हुआ है...
महांती - राजकुमार जी आप यहाँ आ जाइए... मैं डिटेल्स में बताता हूँ...
वीर - देखो जो भी है... फोन पर बताओ... पिक्चर तो दिखाओगे नहीं वहाँ... जब बताना ही है... अभी बताओ... क्या हो सकता है वहाँ पहुँचते ही डिसाइड करेंगे...
महांती - ओके...

महांती सभी गार्ड्स को इशारा करता है l सभी गार्ड्स वहाँ से चले जाते हैं l अब कांफ्रेंस हॉल में सिर्फ अकेला महांती बैठा हुआ है, सब चले गए यह निश्चिंत कर लेने के बाद

महांती - आज... छोटे राजा जी पर हमला हुआ है... वह प्राइमरी ट्रीटमेंट करा कर हॉस्पिटल से आ रहे हैं l...
वीर - क्या... क्या कह रहे हो... महांती... इस बार... हमारी इंटेलिजंस फैल कैसे हो गई...
महांती - हम... उसके स्नाइपर्स पर नजरे रखे हुए थे... इसलिए वह दुसरा रास्ता निकाल कर... छोटे राजाजी को सिर्फ घायल कर दिया...
वीर - सिर्फ़ घायल कर दिया... इसका क्या मतलब है महांती...
महांती - इस बार भी जान से मारना उसका लक्ष नहीं था... इस बार....(रुक जाता है)
वीर - हूँ... इसबार...
महांती - इसबार उन्होंने म्युनिसिपलटी ऑफिस में घुसपैठ किया...
वीर - व्हाट... हमारे सिक्युरिटी गार्ड्स के होते हुए...
वीर - राजकुमार... आप भूल रहे हैं... हमारी प्राइवेट सिक्युरिटी सर्विस है... सरकारी संस्थानों को उनकी अपनी सिक्युरिटी संस्थान मतलब... होम गार्ड्स सिक्युरिटी सर्विस होती है... हम सिर्फ पर्सन को सिक्युरिटी दे सकते हैं... पर सरकारी ऑफिस के अंदर हम एलावुड नहीं हैं... इसलिए अगर ऑफिस के अंदर कोई कुछ करता है... सिवाय सीसीटीवी के और कुछ हम हासिल नहीं कर सकते....
वीर - अच्छा... तो... उनपर हमला कैसे हुआ...
महांती - (चुप रहता है)
वीर - क्या बात है महांती....
महांती - राजकुमार जी... उसने किसी कारीगर के जरिए... छोटे राजा जी के कुर्सी को छेड़छाड़ किया है...
वीर - अरे यार महांती... कब से तुम सस्पेंस बना रखे हो... साफ साफ कहो... और झिझक छोड़ कर कहो...
महांती - ओके देन... जिसने भी वह किया है... उसका इरादा छोटे राजा जी को... सबके सामने जलील करना था... इसलिए उसने छोटे राजा जी के चेयर पर एक वंशी कांटे जैसी कील को सेट कर दिया था.... और उसकी सेटिंग कुछ ऐसी थी के कोई भी बैठे... तो उस कील के पुट्ठ में घुसने के बाद घूम जाती है... और उसे निकालने के लिए... एक सर्जन की जरूरत पड़ती है....
वीर - मतलब एक कील इंप्लांट किया गया... छोटे राजाजी को जलील करने के लिए...
महांती - (चुप रहता है)
वीर - क्या इसी बात के लिए... युवराज खुद को रेस्ट रूम में बंद कर रखा है....
महांती - (अपना सिर झुका कर) नहीं... उनके साथ... कुछ और हुआ है... और बहुत बुरा हुआ है...
वीर - क्या... (हैरान हो कर) उनके साथ कुछ और हुआ है का मतलब...

महांती सुबह से जो जो इंफॉर्मेशन हाथ लगी थी वह विक्रम के साथ कैसे शेयर किया और क्यूँ विक्रम ओरायन मॉल गया और पार्किंग एरिया में कैसे एक शख्स ने विक्रम और ESS के कमांडोज को कुछ ही समय में धुल चटा दी, सब वीर को बताता है l वीर यह सब सुन कर हैरान हो जाता है l

वीर - क्या... एक आदमी ने... युवराज और उनके गार्ड्स को अकेले...
महांती - जी... अकेले...
वीर - उस आदमी के बारे में कुछ पता चला....
महांती - नहीं...
वीर - कैसे... क्यूँ... क्यूँ नहीं पता चला... मॉल में सीसीटीवी होंगे... उसकी मदत से... आख़िर हमारी ही सिक्युरिटी सर्विलांस है वहाँ पर...
महांती - (चुप रहता है)
वीर - महांती.... क्या बात है...
महांती - राज कुमार जी... यह कांड होने के तुरंत बाद... एक आदमी पुलिस की वर्दी में... फेक डॉक्यूमेंट्स के साथ... मॉल में हमारे कंट्रोल रूम में घुस गया... और आज की सारे सीसीटीवी फुटेज और पार्किंग एरिया के रिकॉर्ड्स सब अपने साथ ले गया....
वीर - व्हाट.... (गाड़ी के भीतर ही ऐसे उछलता है जैसे महांती ने कोई बम फोड़ दिया) व.. व्हाट... क... क्या मतलब हुआ इसका... क्या यह अटैक कोई प्लांड था...
महांती - आई डोंट थिंक सो... पार्किंग एरिया में जो हुआ... वह इत्तेफ़ाक था...
वीर - कैसे... तुमने ही कहा कि... रॉय ग्रुप के पुराने मुलाजिम मॉल के बाहर असेंबल हो रहे थे... तो यह पार्किंग एरिया वाला आदमी... यह उनका आदमी भी हो सकता है...
महांती - नहीं... वह लोग हफ्ते भर से हमारे सर्विलांस में हैं... उनके किसी भी कॉन्टैक्ट में... कोई बाहरी आदमी या उसकी माँ नहीं है...
वीर - बाहरी आदमी और माँ... यह क्या पहेलियाँ बुझा रहे हो...
महांती - राज कुमार जी... हमारे जी गार्ड्स अभी हस्पताल में इलाज करवा रहे हैं... उन्होंने जो बताया... (कह कर पार्किंग एरिया में जो हुआ बताता है)
वीर - एक आदमी और उसकी माँ... (कुछ याद करने की कोशिश करते हुए) एक... आदमी.... और... उसकी माँ...
महांती - क्या हुआ राजकुमार जी...
वीर - वैसे... क्या हुलिया था उसका...
महांती - पता नहीं...
वीर - व्हाट डु यु मिन... पता नहीं...
महांती - हमारे जो कमांडोज थे... वह नहीं बता रहे हैं...
वीर - क्यूँ...
महांती - उनको.... युवराज ने मना किया हुआ है.... मतलब हुकुम दिया है...
वीर - क्या.... क्यूँ... किसलिए....
महांती - यह बात... युवराज जी से मैं भी जानना चाहता हूँ... आप यहाँ आकर पहले उन्हें रेस्ट रूम से बाहर लाएं... प्लीज...
वीर - ओके... पहुँच रहा हूँ....

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तापस के क्वार्टर में
एक कोने में विश्व अपनी कान पकड़े खड़ा है l उसके सामने प्रतिभा गुस्से से गहरी सांसे लेती हुई मतलब हांफती हुई एक कुर्सी पर बैठी हुई है l प्रतिभा के हाथ में एक झाड़ू है l

विश्व - माँ (प्रतिभा उसके तरफ देखती है) जब से घर आए हैं... मुझे तुमने ऐसे ही दौड़ा रही हो... और झाड़ू से मार भी रही हो... अब मैं तुम्हारे पास आऊँ...

प्रतिभा अपनी जगह से उठती है और झाड़ू से विश्व के पैरों को मारने लगती है l विश्व उछलते कुदते मार खाने लगता है और चिल्लाने लगता है l

विश्व - आ.. ह्.... ओ... ह्...
प्रतिभा - (गुस्से से) बंद कर यह ओवर ऐक्टिंग... मुझे पता है... तुझे कोई दर्द वर्द नहीं हो रहा है... गुदगुदी हो रही है... असल में तू मुझे चिढ़ा रहा है... आने दे सेनापति जी को... उनके स्टिक से आज तुझे मन भरने तक मारूंगी...
विश्व - तब तक मैं थोड़ा बैठ जाऊँ... (सोफ़े पर बैठते हुए)
प्रतिभा - खबरदार जो बैठा तो... (विश्व फिर भाग कर सोफ़े के पीछे खड़ा हो जाता है)
विश्व - माँ... मैं थोड़ा बाथरूम हो कर आता हूँ... जोर की लगी है... और तुम भी थोड़ा आराम कर लो... देखो कितनी थक गई हो... मुझे मारते मारते तुम्हारे हाथ भी दर्द करने लगे होंगे... देखो सर पर पट्टी बंधी है और हाथ में भी...
प्रतिभा - (फिर झाड़ू उठा कर विश्व के पीछे भागती है) आ.. ह्... मुझे परेशान कर रहा है... (हांफते हुए) बात... बात नहीं मान रहा है... और... और...
विश्व - तभी तो कह रहा हूँ... थोड़ा सा आराम कर लो... कहो तो हाथ पैर दबा देता हूँ... जब थोड़ा अच्छा लगे... तब दोबारा से मारना चालू कर देना...
प्रतिभा - बदमाश... ऐसा कह कर तीन बार मेरे पैर दबाये... फिर दौड़ा रहा है.. हाथ भी नहीं आ रहा है...
विश्व - माँ... यह गलत बात है... मैं बराबर मार तो खा ही रहा हूँ...
प्रतिभा - ठीक है... इधर आ... आज तेरा पेट (झाड़ू उठा कर) इसीसे भर देती हूँ...
विश्व - माँ इससे मेरा पेट कैसे भरेगा... फिर तुम... अगर मैं तुम्हारे हाथ का बना नहीं खाया... तुम भी तो भूखी रह जाओगी...
प्रतिभा - नहीं... (झाड़ू को नीचे फेंकते हुए) तुझे जो करना है... कर... (सोफ़े पर बैठते हुए) सेनापति जी को आने दे... आज तेरा फैसला... सेनापति जी करेंगे...
विश्व - (भाग कर प्रतिभा के गोद में अपना सिर रख देता है और अपने दोनों हाथों से प्रतिभा को जोर से पकड़ लेता है) माँ... अब हम दोनों के बीच... सेनापति सर को क्यूँ ला रही है...
प्रतिभा - (विश्व को अपने से अलग करने की कोशिश करते हुए) ऊंह्... छोड़.... छोड़ मुझे...
विश्व - नहीं छोडूंगा....
प्रतिभा - तो बैठा रह यहीं पर... सेनापति जी को आने दो... वही फैसला करेंगे...
तापस - (अंदर आते हुए) अरे क्या फैसला करेंगे हम... (प्रतिभा को देख कर) अरे भाग्यवान यह तुम्हारे माथे पर पट्टी और कुहनियों भी पट्टी... क्या हुआ...
प्रतिभा - (रोनी सूरत बनाकर) जानते हैं आज क्या हुआ है....

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बड़ी हिम्मत जुटा कर रुप शुभ्रा की कमरे में आती है lशुभ्रा अपने बेड के हेड बोर्ड पर तकिये के सहारे टेक लगा कर आँखे मूँद कर बैठी हुई है l शुभ्रा के पास जाने के लिए रुप हिम्मत नहीं जुटा पा रही है l थोड़ी देर दरवाज़े के पास खड़े हो कर फिर मुड़ने लगती है l

शुभ्रा - क्या बात है रुप...
रुप - (मुड़ कर देखती है, शुभ्रा की आँखे लाल दिख रही हैं )(शायद बहुत रोई है) (रुप तेजी से भाग कर शुभ्रा के पैर पकड़ लेती है) मुझे माफ़ कर दीजिए भाभी... ना मैं जानती थी... ना ही मैं चाहती थी... ऐसा कुछ हो... आई एम सॉरी... भाभी...
शुभ्रा - (चुप रहती है और रुप को देखती रहती है)
रुप - मैं... मैं... सच में करमजली हूँ... (रोने लगती है) मैं अगर कॉलेज से घर आ गई होती... तो... तो यह सब नहीं हुआ होता...भाभी.... प्लीज.... भाभी... प्लीज... मुझे माफ़ कर दीजिए...
शुभ्रा - रुप... (भर्राई हुई आवाज में) सच सच बताओ... क्या तुम प्रताप को पहले से जानती हो...

यह सवाल सुनते ही रुप स्तब्ध हो जाती है l वह शुभ्रा के आँखों में देखती है l रुप महसुस करती है शुभ्रा उसे शक की नजरों से देख रही है l

रुप - भाभी... मैं कसम खाकर कहती हूँ... मैं उस प्रताप को नहीं जानती...
शुभ्रा - (चुप रहती है पर रुप को गौर से देख रही है)
रुप - भाभी... मैंने खुले आम... सबके सामने.... आपको माँ का दर्जा दिया है.... आपसे हरगिज़ झूठ नहीं बोल सकती हूँ... मैं (शुभ्रा के पैर पकड़ कर) आपकी चरणों की कसम खाकर कह रही हूँ... मैं उसे नहीं जानती... नहीं जानती... नहीं जानती... (रो देती है)
शुभ्रा - मैं मानतीं हूँ... तुम उसे नहीं जानती हो... फिर भी मुझे कुछ क्लैरिफीकेशन चाहिए...
रुप - पूछिए भाभी...(सुबकते हुए)
शुभ्रा - हम जब लिफ्ट में थे.... तब तुमने... प्रताप से कुछ ऐसा कहा... जो मेरे हिसाब से गैर जरूरी था... और उसके जवाब सुन कर तुम शर्मा गई... और जब वह गार्ड्स से लड़ रहा था... तुमने अपने फिंगर क्रॉस कर लिए थे... और तुम्हारे भाई से जब लड़ रहा था तब... तुमने दोनों हाथों की मुट्ठी बना लिया था और... अपने दोनों अंगूठे को... एक दुसरे के ऊपर रगड़ रही थी... ऐसा कोई तब करता है.... जब सामने युद्ध में दोनों उसके अपने हों... इसलिए अब मुझे सच जानना है... सब सच सच बताओ....
रुप - (स्तब्ध हो जाती है) भाभी मैं फिर से अपनी बात दोहराती हूँ... मैं प्रताप को नहीं जानती... मगर... (चुप हो जाती है)
शुभ्रा - (उसे घूर कर देखती है) मगर...
रुप - पता नहीं भाभी... कैसे कहूँ... वह... वह मुझे... वह मुझे जाना पहचाना लगा...
शुभ्रा - क्या... वह प्रताप तुमको जाना पहचाना लगा... कैसे रुप...
रूप - भाभी... आप धीरज धरें और मेरी पुरी बात सुनें... याद है मैंने एक दिन आपसे अपनी बचपन की यादें शेयर करते हुए कहा था... के मुझे कोई पढ़ा रहा था...
शुभ्रा - अनाम...
रुप - हाँ... जब माँ की हत्या हुई थी...
शुभ्रा - क्या... सासु माँ की हत्या हुई थी...
रुप - भाभी... आत्महत्या भी एक तरह से हत्या ही होती है... किसीको जान देने के लिए विवश करना... उकसाना... क्या हत्या नहीं है...
शुभ्रा - चुप रहती है...
रुप - खैर चलो.. मैं ऐसे कहती हूँ... माँ के चले जाने के बाद... उस बड़े से महल में... मैं अकेली थी... ऐसे... जैसे एक सांप के पिटारे में... कोई चिड़िया का चूजा पलता हो... मैं चाची माँ के पास रहा करती थी.... वह जब मेरे पास नहीं होती थी... वह पुरा महल मुझे भुतहा लगता था... काटने को आता था...

बहुत ही दर्द भरी आवाज में कही थी रुप ने शुभ्रा को l रुप के हर एक लफ्ज़ में रुप की दर्द को महसुस कर रही थी शुभ्रा

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वीर ESS ऑफिस के कांफ्रेंस हॉल में घुस जाता है तो वहाँ सिर्फ महांती को बैठा पाता है l

महांती - राजकुमार... आप... युवराज जी के कैबिन में जा कर... उन्हें पहले यहाँ पर लाएं....

विश्व कांफ्रेंस हॉल से निकल कर विक्रम के कैबिन में घुसता है l वहाँ उसे टेबल पर आधी खाली शराब की बोतल दिखता है, और कुर्सी पर विक्रम के कपड़े दिखाई देते हैं l वह उधर उधर देखने लगता है l तभी उसको बाथरुम से पानी बहने की आवाज़ सुनाई देता है l वह बाथरूम के दरवाजे पर दस्तक देने लगता है

वीर - युवराज जी... दरवाज़ा खोलिए... प्लीज...

अंदर से कोई जवाब नहीं आता l वीर जोर जोर से दरवाज़े पर दस्तक देने लगता है और बार बार दरवाजा खोलने के लिए कहता है l

वीर - युवराज जी... आप दरवाजा खोलीए... नहीं तो हम दरवाजा तोड़ देंगे....

बाथरूम का दरवाज़े के नॉब पर हरकत होती है फिर धीरे से दरवाजा खुल जाता है l वीर के सामने विक्रम खड़ा था l विक्रम की आंखें लाल दिख रही थी और उसका बदन कमर से ऊपर नंगा था l उसके बदन पर कोड़ों के ताजा निशान साफ साफ दिख रहे थे l कुछ कुछ जगहों पर से खुन बह रहे थे l पर वीर के लिए सबसे ज्यादा चौकाने वाला जो था वह था विक्रम ने अपनी मूंछें मुंडवा लिया था l वीर के सामने वाला विक्रम एक दम अलग था l चेहरा कठोर और गम्भीर हो चुका था l वीर को कुछ सूझता नहीं वह विक्रम के हाथ पकड़ कर चेयर पर बिठा देता है l

वीर - यह... यह क्या है युवराज... आपने... अपनी मूंछें क्यूँ मुंडवा ली... क्यूँ... और... और खुदको इस कदर क्यूँ सजा दी है आपने...
विक्रम - उसे मूंछें रखने का कोई हक़ नहीं... जिसकी जिंदगी... उसके औरत ने हाथ जोड़ कर भीख में माँगी हो...
वीर - बस इतनी सी बात पर आपने... अपनी मूंछें मुंडवा ली...
विक्रम - इतनी सी बात... (गुर्राते हुए) यह आपको इतनी सी बात लग रही है... मेरी पुरूषार्थ तार तार हो गई है...(कहते हुए ऐसा लग रहा था जैसे उसके आँखों से अंगारे बरस रहे हैं) आपको इतनी सी बात लग रही है....
वीर - सॉरी युवराज...(हैरान हो कर) आप... हम से... मैं पर आ गए....
विक्रम - मैंने कहा ना... मेरी पुरूषार्थ अब लहू लुहान है...
वीर - (क्या कहे उसे समझ में नहीं आता) आपने अपनी मूंछें मुंडवा ली... समझ में आ गया... पर खुदको कोड़े से क्युं सजा दी...
विक्रम - मैं यह देख रहा था... कोड़े से कितना दर्द होता है... पर उसके कहे बातों के आगे... कोड़े से बने घाव में कुछ भी दर्द हो नहीं है... जरा सा भी नहीं...
वीर - क्या...
विक्रम - यकीन नहीं आ रहा है ना... जाओ... वह शराब की बोतल ला कर मेरे ज़ख्मों में डालो... (वीर उसे हैरानी भरे नजरों से देखता है, तो विक्रम उसे कहता है) जाओ... वह शराब की बोतल लाओ... (कड़क आवाज़ में)

वीर पहली बार आज विक्रम की हालत और आवाज़ से डर जाता है l वीर कांपते हुए शराब की बोतल लाकर विक्रम के ज़ख्मों पर शराब डालने लगता है l शराब डालते हुए वीर उन घावों की टीस को महसुस कर पाता है पर विक्रम के चेहरे पर कोई भाव उसे नजर नहीं आता है l विक्रम के चेहरे पर कोई भाव ना देख कर वीर के हाथों से बोतल छूट जाता है l

वीर - युव... युवराज जी... ऐसा क्या कह दिया है उसने जिसके दर्द के आगे.... कोड़ों का दर्द भी महसुस नहीं हो रहा है आपको...

विक्रम चुप रहता है, विक्रम की यह ख़ामोशी वीर को बहुत खलता है, उसी वक़्त वीर के मोबाइल फोन पर महांती का कॉल आता है l


वीर - हाँ बोलो... महांती...
महांती - युवराज और आप... कांफ्रेंस हॉल में जल्दी पहुँच जाइए... छोटे राजाजी आ गए हैं...

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तापस को बैठक में देख कर विश्व प्रतिभा को छोड़ कर एक कोने पर खड़ा हो जाता है l और प्रतिभा तापस देख कर मुहँ बना कर सिसकने लगती है l

तापस - अरे भाग्यवान क्या हुआ...
प्रतिभा - जानते हैं... आज क्या हुआ है...
तापस - नहीं जानता... इसलिए तो पूछा क्या हुआ है...
प्रतिभा - यह (विश्व को दिखाते हुए) आज ही पेरोल पर बाहर निकला है... और आज ही इसने मार पीट की है... और जानते हैं किससे...
तापस - (जिज्ञासा और हैरानी से) किससे....
प्रतिभा - विक्रम सिंह क्षेत्रपाल से...
तापस - क्या... वाकई... पर क्यूँ
विश्व - हाँ हाँ... अब बताओ...
प्रतिभा - तु तो मुझसे बात ही मत कर...
तापस - ठीक है... बताओ तो सही... तुम्हारा प्रताप... उनसे मार क्यूँ खा कर आया...
प्रतिभा - यह क्यूँ मार खाएगा... उल्टा इसने उन सबको धोया है...

फिर प्रतिभा तापस को पार्किंग एरिया में घटे सभी वाक्या, सब कुछ विस्तार से बताती है l सब कुछ सुनने के बाद तापस प्रतिभा से

तापस - हम्म... इसमे तो कहीं भी प्रताप का दोष नजर नहीं आ रहा है... और जो भी हुआ है ऑन द स्पॉट... वह सब सीसीटीवी में रिकॉर्ड हुआ होगा... और तुम अब जानीमानी वकील हो... इतने से ही डर गई...
प्रतिभा - हो गया... आप भी इस के साथ हो लिए... ठीक है... मैं... मैं किसी से भी बात नहीं करूंगी...

इतना कह कर प्रतिभा किचन की ओर चली जाती है l वहाँ पर सिर्फ़ तापस और विश्व रह जाते हैं l प्रतिभा को कैसे मनाया जाए, उसके लिए विश्व, तापस को इशारे से मूक भाषा में पूछता है l
तापस भी हैरान हो कर इशारे से मूक भाषा में पूछता है - क्या कहा...
विश्व - (इशारे से) किचन की ओर दिखा कर... आप जाओ ना... (अनुरोध करने की स्टाइल में) माँ को मनाओ ना...
तापस - (अपने दोनों हाथ ऊपर उठा कर इशारे में ही) ना... तुमने गुस्सा दिलाया है... तुम ही जा कर मनाओ...
विश्व - (इशारे से) मैं... मैं कैसे मनाऊँ... (अपने होठों को अपनी हाथों से स्माइल जैसा बना कर) उनके चेहरे पर मुस्कान कैसे लाऊँ....
तापस - (कुछ सोचने के अंदाज में) (फिर इशारे से) तुम किचन के अंदर जाओ... और उसे पीछे से पकड़ लो... और गालों पर एक चुम्मी ले लो... और तब तक मत छोड़ना... जब तक ना मान ले...
विश्व - (इशारे से) मान तो जायेंगी ना..
तापस - (इशारे में ही) अररे... पहले कोशिश तो कर...
विश्व - (मन ही मन में) ठीक है... हे भगवान... मदत करना... (ऊपर छत को देख हाथ जोड़ कर प्रार्थना करता है, फिर किचन की ओर जाता है)

विश्व की हालत देख कर तापस अपनी हँसी को दबा कर बाहर बालकनी में चला जाता है l विश्व किचन में पहुँच कर प्रतिभा के कमर के इर्द-गिर्द अपनी बांह कस लेता है और प्रतिभा के गाल पर एक चुम्मी लेता है l

विश्व - माँ... गुस्सा थूक दो ना...

प्रतिभा जिस चिमटे से गैस पर रोटी सेंक रही थी उसे विश्व के हाथ में लगा देती है l

विश्व - (अपना हाथ निकाल देता है) आ... ह्.. माँ.. देखो... क्या किया तुमने... हाथ जल गया... आ... ह्
प्रतिभा - हो गया तेरा ड्रामा... या और एक बार फिर से लगाऊँ...
विश्व - नहीं... हो गया माँ... हो गया... ए माँ... प्लीज मान जाओ ना... प्लीज गुस्सा थूक दो ना...
प्रतिभा - (मुस्कराते हुए) वह बाद में देखेंगे...(विश्व की ओर देखते हुए) पहले यह बता... सेनापति जी ने तुझे यहाँ भेजा है ना...
विश्व - (मुस्करा देता है, और अपना सिर हाँ में हिलाता है)
प्रतिभा - और तुम दोनों ने जरूर मूक भाषा में बात की होगी... इशारों इशारों में... है ना...
विश्व - (हैरान हो कर) माँ यह आपने कैसे जान लिया...
प्रतिभा - तु भले ही मेरे कोख से नहीं आया... पर तु मेरे आत्मा से जुड़ा हुआ है... तेरी यह हरकत भी मैं समझ गई थी...
विश्व - माँ... (थोड़ा सीरियस हो कर) अगर तुम्हारी आत्मा से जुड़ा हुआ हूँ... तो मेरी दर्द को भी समझी होगी ना... उस पार्किंग में जो तुम्हारे साथ हुआ... वह मंज़र मेरे लिए कितना दर्दनाक था....(विश्व के आँखों में आंसू के बूंदे दिखने लगते हैं)
प्रतिभा - (उसकी आँखों को पोछते हुए) जानती हूँ... पर तु भी समझ पा रहा होगा ना... मुझे किस बात का दर्द हो रहा था...
विश्व - (अपना सिर हाँ में हिलाते हुए) हूँ...
प्रतिभा - खैर... अब जो होगा देखा जाएगा... पहले यह बता... तेरे और सेनापति जी के बीच वह कौनसी मौन दीवार है... जिसके वजह से... ना तो वह तुझे बेटा कह पा रहे हैं... और ना ही तु उन्हें डैड...
विश्व - (अपना सिर झुका लेता है, और कुछ कह नहीं पाता)
प्रतिभा - अगर कोई दीवार था भी... तो आज गिर चुकी है...
विश्व - (हैरानी से सवालिया नजरों से प्रतिभा की ओर देखता है)
प्रतिभा - वह जरूर अब बालकनी में होंगे...
विश्व - आपको कैसे पता...
प्रतिभा - (विश्व की चेहरे को अपने दोनों हथेली में लेकर) क्यूंकि यह इशारों वाली मूक भाषा में... प्रत्युष बातेँ किया करता था... आज तुने इशारों में बात करके... उन्हें प्रत्युष की याद दिला दी...
विश्व - (हैरान हो जाता है)
प्रतिभा - अब तेरा फ़र्ज़ बनता है... तु उन्हें... उस दुख में देखेगा या... उस दुख से उबारेगा....जा

विश्व हिचकिचाते हुए प्रतिभा को देखता है l प्रतिभा उसे इशारे से बालकनी जाने को कहती है l विश्व एक झिझक के साथ बालकनी की ओर जाने लगता है l प्रतिभा भगवान को याद करते हुए हाथ जोड़ कर आँखे मूँद लेती है l

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रुप अपनी पुराने दिनों की याद में खो गई थी l शुभ्रा उसे झिंझोडती है I रुप होश में आती है l

रुप - हाँ.... हाँ... भाभी... आज से... पंद्रह साल पहले मैं पुरी तरह से अनाथ हो गई थी... माँ की जगह चाची माँ ने ले तो ली थी... हाँ बहुत प्यार भी दिया है उन्होंने... पर मैं बाहर कहीं नहीं जा सकती थी... (एक फीकी हँसी हँसते हुए) आखिर क्षेत्रपाल परिवार की बेटी थी... राज कुमारी थी... मैं सिर्फ़ घर पर रह सकती थी... किसीसे दोस्ती... हूँह्.. सोच भी नहीं सकती थी... मेरे भाई भी मेरे पास नहीं थे... शुरु से ही बोर्डिंग में पढ़ रहे थे... मुझे पढ़ाने के लिए कोई सोच भी नहीं रहे थे... वह तो चाची ने बहुत कहा... के रुप कभी ना कभी किसी राज घराने में जाएगी... अगर क्षेत्रपाल घर की बेटी अनपढ़ होगी तो... क्षेत्रपाल परिवार की इज़्ज़त क्या रह जाएगी... तब छोटे राजा जी ने एक रास्ता निकाला... गांव के स्कुल के प्रधानाचार्य श्री उमाकांत आचार्य जी से मदत के लिए कहा गया... तब एक दिन आचार्य जी.. एक लड़के को साथ लेकर छोटे राजाजी और चाची माँ के साथ आए...

फ्लैश बैक...

पंद्रह साल पहले
क्षेत्रपाल महल

पांच साल की रुप अपनी कमरे की बालकनी में खड़ी बाहर आसमान में उड़ रहे चिडियों को देख रही थी l तभी कमरे में पिनाक सिंह, सुषमा, आचार्य जी एक तेरह साल के लड़के के साथ आते हैं l

पिनाक - राजकुमारी जी... (रुप पीछे मुड़ती है और अपने कमरे में आती है) यह हैं आपके स्कुल के हेड मास्टर... उमाकांत आचार्य... (रुप हैरान हो कर सुषमा को देखती है)
सुषमा - हाँ राजकुमारी... आपका एडमिशन करा दिया गया है... स्कुल में... अब आप पढ़ेंगी... (पढ़ने की बात सुन कर रुप के चेहरे पर एक खुशी दिखती है) यह आपके (उमाकांत आचार्य को दिखाते हुए) प्रधान आचार्य जी हैं...
पिनाक - नहीं.. आप स्कुल नहीं जा रही हैं... (रुप को झटका लगता है) (आचार्य जी से) ए मास्टर... बताओ... हमारी राजकुमारी को... उनकी पढ़ाई कैसे होने वाली है...
आचार्य - राजकुमारी जी... यह लड़का (अपने साथ लाए लड़के को दिखा कर) आपको पढ़ाएगा... आप घर में रह कर पढ़ाई करेंगी... आपको स्कुल सिर्फ परीक्षा के दिन आना होगा... बाकी साल भर आपको यह लड़का पढ़ाएगा....
पिनाक - (उस लड़के से) ऐ लड़के... जैसा समझाया गया है... बिल्कुल वैसे ही... वरना तेरी खाल उधेड ली जाएगी...
सुषमा - (रुप के पास आकर) बेटी... आप इस लड़के के बात कीजिए... अगर आपको अच्छा लगे... तभी आपकी पढ़ाई आगे जाएगी... (रुप अपना सिर हिला कर हाँ कहती है) (पिनाक से) तो हम कुछ देर के लिए बाहर चलें... अगर राजकुमारी जी को अच्छा लगेगा... तो हम आगे की सोचेंगे...
आचार्य - जी जैसा आप ठीक समझे...
पिनाक - तो फिर चलते हैं... आधे घंटे के बाद आकर देखते हैं...

तीनों कमरे से बाहर चले जाते हैं l रुप उस लड़के को घुर के देखती है l वह लड़का अपना सिर झुका कर खड़ा है l

रुप - ह्म्म्म्म... ऐ लड़के.... तुम्हारा नाम क्या है..
लड़का - जी राजकुमारी...
रुप - वह तुम मुझे कहोगे... मैंने क्या पुछा सुनाई नहीं दिया... बहरे हो क्या... क्या नाम है तुम्हारा...
लड़का - जी.... मेरा नाम... वह... मेरा नाम... अनाम है...
रुप - यह क्या बकवास है... अनाम भी कोई नाम होता है... सच सच बताओ... वरना अभी बुलाती हूँ सबको...
अनाम - (वैसे ही अपना सिर झुका कर) जी सच कह रहा हूँ... मेरा नाम अनाम है... और मैं इसका मतलब भी समझा सकता हूँ...
रुप - (अपनी छोटी सी चेयर पर बैठ जाती है) बताओ हमे...
अनाम - जी जिसे हम नाम समझते हैं... असल में उस नाम में... रुप, चरित्र और गुण... उस नाम की सीमा में बंध जाते हैं... जबकि ईश्वर के वास्तविक स्वरुप... निर्गुण व निराकार... ऐसा स्वरुप... जो नाम ना बांध पाए... उसे अनाम कहते हैं...
रुप - ह्म्म्म्म समझ में तो कुछ नहीं आया... पर अच्छा लगा...
अनाम - जी धन्यबाद..
रुप - और सुनो... अपने कान खोल कर सुनो... तुम मुझसे बड़े हो... और लड़के भी हो... पढ़ाने आए हो... इसका मतलब यह नहीं... के मुझ पर रौब झाड़ोगे... यह तो सोचने की गलती... कभी ना करना... की यह लड़की है... नाजुक है... ऐसा.... समझे... ऐसा समझने की भूल मत करना... मैं बहुत खतरनाक हूँ....
अनाम - जी राजकुमारी जी... समझ गया... मैं भले ही लड़का हूँ... पर जो भी हूँ... जैसा भी हूँ... खतरनाक बिल्कुल नहीं हूँ....

फ्लैशबैक से बाहर आकर

रुप - मेरे बचपन का सात साल... उसके साथ गुज़रा है भाभी... मेरा एक अकेला दोस्त... जब वह मेरे साथ होता था... मुझे लगता था कि मैं राजकुमारी हूँ... वरना... शेर के पिंजरे में दुबकी हुई भेड़ से ज्यादा औकात नहीं थी मेरी... जब वह मेरे पास होता था... मैं आसमान में उड़ने वाली कोई पंछी होती थी... एक वही था... जिससे मैं रूठ सकती थी... और वह मनाता था... मेरी हर खुशियों का खयाल रखता था... मैं अपनी सारी खीज.... अपना सारा डर को गुस्से में ढाल कर उस पर उतार देती थी... वह हँसते हँसते सब सह लेता था... पर जब मैं बारह वर्ष की हुई... मेरा पहला मासिक धर्म अनुभव हुआ... तब सब खतम हो गया... उसका आना बंद कर दिया गया... आठ साल हो गये हैं मुझे उससे अलग हुए... जब प्रताप को देखा तो मन में एक सवाल उठा... कहीं यह अनाम तो नहीं... इसलिए जिज्ञासा वश मैंने लिफ्ट में वह सवाल किया... और भाभी ताज्जुब की बात यह थी... ज़वाब बिल्कुल वही था... इसलिए एक अनजानी खुशी के मारे मैं शर्मा गई थी... पर भाभी (आवाज़ भर्रा जाती है) यह... यह अनाम हो नहीं सकता....
शुभ्रा - क्यूँ... क्यूँ नहीं हो सकता...
रुप - क्यूँकी... अनाम अनाथ था भाभी.... अनाथ था... बचपन में ही उसकी माँ का देहांत हो गया था... उसकी एक बड़ी बहन थी... जिसे डाकुओं ने उसके पिता की हत्या कर उठा लिया था... और यह मॉल वाला प्रताप... अपने माँ के साथ आया था... और उस औरत को देख कर लगता है... प्रताप का बाप जिंदा है.... भाभी.... यही सच है....

कह कर रुप सुबकने लगती है l शुभ्रा रुप को अपने गले से लगा लेती है और दिलासा देते हुए रुप की पीठ पर हाथ सहलाते हू फेरती है l

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कांफ्रेंस हॉल में वीर और विक्रम आते हैं l विक्रम की बिना मूँछ वाली चेहरा देखकर पिनाक और महांती हैरान हो जाते हैं l वीर के चेहरे पर जहां थोड़ी बहुत परेशानी दिख रही है वहीँ विक्रम के चेहरे पर कठोरता झलक रही है l

पिनाक - यह... यह क्या है युवराज....
वीर - वह... वह... आपको जलील होने से नहीं रोक पाए ना... इसलिए... इसलिए युवराज अपनी मूंछें मुंडवा ली...
पिनाक - ओह... शाबाश युवराज... शाबाश... अब हमारे दुश्मन की खैर नहीं... उस बात की कीमत बहुत होती है... जिसके लिए दाव पर जान, जुबान और इज़्ज़त लगी हो... आई एम डैम श्योर... अब हमारा दुश्मन पाताल में भी छुप जाए... बच नहीं सकता...
वीर - जी जरूर... मेरा मतलब है कोई शक़...
पिनाक - यह... आप क्यूँ बार बार ज़वाब दे रहे हैं राजकुमार...
वीर - वह... वह... एक्चुयली... आपके घायल होने पर युवराज ने... दुख भरा मौन धर लिया है...
पिनाक - ओह.. युवराज... आपने तो... इसे दिल पे ले लिया है... अब दिलसे कैसे उतरेगी यह भी सोच लीजिए....

तभी पिनाक का फोन बजने लगती है l पिनाक देखता है अननोन प्राइवेट नंबर डिस्प्ले हो रहा है l पिनाक समझ जाता है के ज़रूर उसके दुश्मन ने फोन किया है l फोन के लगातार बजने से सबका ध्यान पिनाक के तरफ चला जाता है l पिनाक सब पर एक नजर डालता है और फिर फोन उठाता है

पिनाक - हाँ बोल हराम जादे...
xxx- अरे वाह.... आपने नाजायज बाप को पहचान लिया... ऑए शाबाश... हा हा हा हा...
पिनाक - हरामी के औलाद... जितना चाहे हँस ले... यह तेरी आखिरी हँसी है... क्यूंकि अगली बार से... तु सिर्फ़ रोएगा....
xxx - अच्छा यह तो ब्रेकिंग न्यूज है... कौनसे चैनल में आ रहा है...
पिनाक - भोषड़ी के... मादरचोद... जितना तेरे हिस्से में था... उतना उछल लिया है... अब अपनी मैयत की तैयारी कर ले...
xxx - अरे यार... मैंने तो सिर्फ़ तेरी गांड मारने की कही और मार भी ली... पर तु तो धुआँ धुआँ हो गया है... हा हा हा हा... मजा आ गया... लोगों से काम ले कर बीच राह में गांड मारने की आदत थी... अब कैसा लग रहा है... भाई मुझे तो मजा आ रहा है.... हा हा हा...

पिनाक फोन काट देता है और वह उन तीनों को देखता है l फिर तीनों से

पिनाक - यह फोन आखिरी होनी चाहिए... कैसे होगा... यह तुम लोग सोच लो....

कह कर पिनाक वहाँ से चला जाता है l महांती विक्रम की ओर देखता है और पूछता है

महांती - युवराज जी... क्या करें... ऑर्डर दीजिए...
वीर - मैं ऑर्डर करता हूँ... महांती... उनके तरफ के कितने लोग हमारे सर्विलांस में हैं...
महांती - वह चार शूटर और... कुछ और लोग...
वीर - ठीक है... सबको एक साथ उठा लो..
महांती - क्या... (उछल पड़ता है) सबको...
वीर - क्यूँ... कोई प्रॉब्लम...
महांती - नहीं... बिल्कुल नहीं... उठाकर करना क्या है...
वीर - सबको... राजगड़ ले जाओ... आखेट के लिए... एक एक को... लकड़बग्घों के सामने डालो... और वह सब उन्हें लाइव दिखाओ... वह भी पास से... उसे देख कर और झेल कर... वहाँ पर जो जितना टूटेगा... वह उतना लिंक देगा... फिर उस लिंक को फॉलो करो... आई थींक वी कैन क्रैक ईट....
महांती - ओके...
वीर - यह तुम पर्सनली हैंडल करो... जाओ अब...
महांती - ठीक है...

कह कर महांती वहाँ से चला जाता है l अब कांफ्रेंस हॉल में सिर्फ़ वीर और विक्रम रह जाते हैं l वीर विक्रम की ओर देखता है

वीर - सब चले गए... आप क्या सोच रहे हैं... युवराज...
विक्रम - यही... मेरी प्रैक्टिस में कहाँ कमी रह गई....
वीर - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) युवराज... आप जिनके साथ प्रैक्टिस कर रहे थे... वह हमारे ही मुलाजिम थे... वह कभी भी आप पर हावी होने की कोशिश नहीं की... इसलिए...
विक्रम - ह्म्म्म्म... आप सही कह रहे हैं... अपने ही मुलाजिमों से लड़ते हुए.. उनसे जीत कर... खुद को अनबीटन समझने लगा था... यही गलती हो गई थी मुझसे...
वीर - (चुप रहता है)
विक्रम - उसकी तेजी... उसकी फुर्ती... उसके ताकत के सामने... मैं ठहर नहीं पाया... मैं जहां उन्नीस था वह बीस नहीं इक्कीस था... उससे लड़ते वक़्त लग रहा था जैसे कोई कंक्रीट के स्ट्रक्चर से लड़ रहा हूँ...
वीर - सिर्फ़ इतनी सी बात पर खुदको सजा दी आपने...
विक्रम - बात अगर मार पीट तक होती तो... सिर्फ़ इतनी सी बात होती... उसके दिए वह तानें... मेरी वज़ूद को नेस्तनाबूद कर दिया है...(विक्रम उठ खड़ा होता है) अब हमारी फिरसे मुलाकात होगी... उस मुलाकात में या तो उसकी हार होगी या फिर मेरी मौत...

वीर के जिस्म में एक सिहरन दौड़ जाती है l वह भी खड़ा हो जाता है

वीर - ठीक है... युवराज जी... हम सब मिलकर उसे ढूंढेंगे...
विक्रम - नहीं... ही इज़ ऑनली माइन... अब उसके और मेरे बीच तीसरा कोई नहीं आएगा... आप भी नहीं... और तब तक इस ESS को आप संभालीये...
वीर - पर युवराज... मैं कैसे... मतलब...
विक्रम - अब मेरा लक्ष... बदल चुका है... अब मुझे ना चैन होगा ना सुकून होगा... जब तक इन हाथों को उसके खुन ना होगा....

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बाल्कनी में तापस सहर की तरफ देख रहा है l विश्व उसके पास आकर खड़ा होता है l तापस की ओर देखे वगैर

विश्व - सॉरी...
तापस - (विश्व की ओर देखे वगैर) किस लिए...
विश्व - वह... मेरे वजह से... आपकी आँखे नम हो गई...
तापस - ईट्स ओके... पर थैंक्स...
विश्व - किस लिए...
तापस - पल भर के लिए सही... उस बहुत ही खूबसूरत पल का... उसे याद दिलाने के लिए... कभी जिसका हिस्सा हुआ करता था...
विश्व - आप भले ही याद किए... पर सच यह भी है... आज उस पल का आप हिस्सा थे और आज इस पल के भी हैं.... और मैं चाहता हूँ... आने वाले दिनों में ऐसे अनगिनत पल आते रहें...
तापस - (विश्व की ओर हैरान हो कर देख कर) क्या...
विश्व - जो बीत गया वह अतीत था... जो बीत रहा है वह वर्तमान है... और जो बितेगा... बितेगा तो जरूर... वह आने वाला कल है...
तापस - (कुछ समझ नहीं पाता) मतलब...
विश्व - (तापस की ओर मुड़ता है) क्या... मैं आपको... डैड कहूँ...

कुछ देर के लिए बालकनी में सन्नाटा छा जाता है l तापस विश्व को हैरान हो कर आँखे फाड़ कर देखने लगता है l

विश्व - ठीक है... अगर आपको बुरा लगा तो... (आगे कुछ नहीं कह पाता है मुड़ कर अंदर जाने लगता है)
तापस - रुको... (विश्व रुक जाता है)
विश्व - क्या बात है डैड...
तापस - मैंने कहा भी नहीं है और तुम...
विश्व - हाँ... आपने मुझे पीछे से बुलाया है तो... मतलब यही है... के आपको मंजूर है.. है ना डैड...
तापस - ऑए... डैड के बच्चे... बातेँ बड़ी बड़ी करता है... गले से लग कर भी तो पुछ सकता था...
विश्व - हाँ कर तो सकता था... खैर आप भी क्या याद रखेंगे... यह शिकायत भी दूर किए देता हूँ... (कह कर तापस के गले लग जाता है)

विश्व के गले लगते ही तापस की रुलाई फुट पड़ती है और वह देखता है प्रतिभा खुसी के मारे उन दोनों के तरफ एक टक देखे जा रही है l

प्रतिभा - क्या मैं भी तुम लोगों के साथ जॉइन हो जाऊँ....

तापस अपनी बांह खोल देता है प्रतिभा भी आकर दोनों के गले लग जाती है l कुछ देर बाद प्रतिभा कहती है

- चलो चलो मैंने खाना लगा दिया है... वहीँ टेबल पर खाते हुए बातेँ करेंगे...

सब डायनिंग टेबल पर आकर बैठ जाते हैं l प्रतिभा सबके प्लेट लगा देती है और खाना परोस देती है l खाना खाते वक़्त

तापस - विश्व...
प्रतिभा - क्या... (गुस्से से घूरती है)
तापस - ओके ओके... प्रताप...
विश्व - जी....
तापस - इन सात सालों में... तुमको शरारत करते हुए... आज पहली बार देख रहा हूँ... तुम्हारे चरित्र का ऐसा भी एक एंगल हो सकता है... यह मैं नहीं जानता था...
विश्व - क्यूँकी... आज से पहले... (उन दोनों के हाथ पकड़ लेता है) आप दोनों मेरे जिंदगी में नहीं थे...

तापस और प्रतिभा को अंदरुनी बहुत खुशी महसूस होती है l दोनों एक दूसरे को देखते हैं फिर विश्व के हाथ पर अपना हाथ रख कर थपथपाते है l उसके बाद तीनों खाना खाने लग जाते हैं l तापस को महसूस होता है कि प्रतिभा खाना खाते वक़्त थोड़ी खोई खोई लग रही है l

तापस - क्या बात है भाग्यवान... आज फॅमिली रीयुनीअन हो जाने के बाद भी... तुम खोई खोई सी हो...
प्रतिभा - हाँ... वह.. प्रताप आज पेरोल पर बाहर है... और आज ही... (चुप हो जाती है)
तापस - कुछ नहीं होगा...
प्रतिभा - यह आप कैसे कह सकते हैं... मॉल की सिक्युरिटी और सर्विलांस उनके हाथ में है... अगर कुछ मैनीपुलेट हुआ... तो गड़बड़ हो जाएगी... यही चिंता सताये जा रही है...
विश्व - माँ (प्रतिभा के हाथ पर हाथ रख कर) कुछ नहीं होगा...
तापस - हाँ... प्रताप ठीक कह रहा है... कुछ नहीं होगा...
प्रतिभा - (तापस से) इसकी बात छोड़िए... यह तो कुछ भी बोल देगा... पर मुझे हैरानी इस बात पर है... की इतने बड़े कांड हो जाने पर भी... आपके चेहरे पर कोई शिकन तक नहीं....
तापस - सबुत होगा तो मैनीपुलेट होगा ना...
प्रतिभा - मतलब...
विश्व - यही की... सारे सीसीटीवी की फुटेज को डैड ने गायब कर दिया है...
प्रतिभा - क्या... यह कब हुआ... और तु... तु कैसे जानता है... कहीं तुम दोनों की कोई खिचड़ी तो नहीं...
विश्व - माँ... क्या लगता है... मैं तुमको झूठ बोल रहा हूँ...

प्रतिभा पहले तापस को देखती है तापस भी हैरान है और फिर विश्व को देखती है और अपना सिर ना में हिलाती है l

विश्व - पहले तुम... जब मेरा पेरोल करा कर मुझे बाहर ले जाया करती थी... तब डैड एक दिन की छुट्टी लेकर हमारा पीछा किया करते थे... अब चूँकि वीआरएस पर हैं... तो छुट्टी ही छुट्टी है...
प्रतिभा - क्या...(तापस से) मतलब... आप घर देखने नहीं गए थे... (विश्व से) और तुझे पता था कि यह हमारे पीछे हैं...
विश्व - मालुम तो नहीं था... पर अंदाजा था... और जब डैड ने कहा कि सबुत होगा तो मैनीपुलेट होगा... बस तब पुरी बात समझ में आ गई...
प्रतिभा - क्या समझ में आ गई...
विश्व - यही के... डैड पुलिस की वर्दी में जाकर... झूठे वारंट के कागजात दिखा कर...शुरु से सर्विलांस रुम में होंगे... जब कांड होते देखा होगा... मास्टर रिकॉर्डिंग गायब कर दिए होंगे....
तापस - ह्म्म्म्म... चलो एक बात तो पता चला... स्मार्ट हो गए हो... आँख और कान हमेशा खुले रखते हो...

विश्व कुछ नहीं कहता है सिर्फ़ मुस्करा देता है l

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शुभ्रा - रुप... मैं तुम्हारी कही हर बात पर विश्वास करती हूँ... पर यह तुम भी जानती हो... आज जो हुआ... ठीक नहीं हुआ...
रुप - हाँ भाभी... अब सच में... मुझे डर लगने लगा है...
शुभ्रा - अच्छा रुप... अनाम और प्रताप का चेहरा मिलता-जुलता है क्या...
रुप - पता नहीं भाभी... अनाम का चेहरा धुँधला सा याद है... शायद प्रताप उसके जैसा दिखता हो...
शुभ्रा - हाँ... हो सकता है... और लिफ्ट में जो हुआ... वह इत्तेफ़ाक भी हो...
रुप - शायद... पर भाभी अब यह सब सोचने से क्या फायदा... बनने से पहले सब बिगड़ गया ना...
शुभ्रा - (थोड़ा हँसते हुए) मतलब... तुम सच में प्रताप से इम्प्रेस हुई थी...
रुप - पता नहीं (अपना सिर झुका लेती है)
शुभ्रा - (रुप के गाल पर हाथ फेरते हुए) तुमको क्या लगता है... राज परिवार या राजनीति में रसूखदार परिवार को छोड़... तुम्हारे रिश्ते को... और कहीं मंजुरी मिल सकती है... यह कुछ दिन बाद भी होता... तो यह सब होता जरूर... हाँ वजह कुछ और होता... मगर यह होता जरूर...
शुभ्रा - भाभी... आपको... भैया के लिए बुरा लग रहा है ना....
शुभ्रा - हाँ लग रहा है... पर प्रॉब्लम यह है कि... प्रताप कहीं पर भी गलत नहीं है... और तेरे भैया उस वक्त गलत थे....
रुप - (अपने होठों को दबा कर अंदर कर लेती है दुसरी ओर देखने लगती है) अब भैया क्या करेंगे....
शुभ्रा - रूप... पहली बार किसीने... तेरे भाई को हार दिखाया है... और चोट... उनके भीतर को पहुँचाया है... अब या तो वह टुट कर बिखर जाएंगे... या फिर उभर कर निखर जाएंगे....
Bahut shaandar update hai bhai maza aa gaya
 

Kala Nag

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Kala Nag भाई अपडेट कब तक आएगा
कल शाम तक
आज दो दिन से मैं एक टूर पर हुँ l आधा ही लिख पाया हूँ
कल सुबह तक घर पहुँच जाऊँगा और शाम तक दे पाऊँगा
 

Kala Nag

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Superb update bro

Nice update bro

Awesome update bro

Super update hai bhai

Bahut shaandar update hai bhai maza aa gaya
धन्यबाद मेरे भाई बहुत बहुत धन्यबाद
हर एक पोस्ट पर आपने अपनी प्रतिक्रया व्यक्त किया है
आभार
अब आप इस सफर से जुड़ चुके हैं और जुड़े रहें
फिर से दिल से
धन्यबाद
 

Rajesh

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👉बासठवां अपडेट
-------------------
रवीवार
राजगड़

वैदेही अपनी चाय नाश्ते की दुकान के आगे एक तख्ती टांग देती है l उसने लिखा है

"आज का दिन खास है,

नाश्ते में जितना खाना है ख़ालो,
पैसा नहीं लिया जाएगा, बिल्कुल मुफ़्त"

गौरी - (पढ़ती है) यह क्या है... वैदेही... आज इस गांव के मुफ्त खोरों को मुफ्त में खिलाओगी...
वैदेही - (हँसकर) काकी... घर में जब कोई खुशियाँ मनाई जाए... तब पहले के ज़माने में अन्न छत्र लगाया जाता था... अब राजगड़ में तो मंदिर है नहीं... इसलिए... मैं अपनी दुकान में आज अन्न छत्र खोलने का विचार किया...
गौरी - अररे... किन नामाकुल, नाशुक्रे, नासपीटों को अन्न देगी.. अन्न छत्र में अन्न खाने वाले... अन्न का मान भी रखते हैं... यह लोग क्या रखेंगे... सिर्फ़ भेड़ बकरियों की तरह चरने आयेंगे... चरके चले जाएंगे....
वैदेही - तो जाने दो ना काकी... आज बहुत ही खास दिन है... बहुत ही खुशी का दिन है मेरे लिए... अपनी खुशी बांट रही हूँ... और फिर दो महीने बाद... फिरसे जब विशु यहाँ आएगा... तब...
गौरी - पर तु तो कह रही थी... विशु अगले महीने छूटने वाला है... फिर दो महीने क्यूँ...
वैदेही - काकी... उसका कुछ काम है... उसे निपटाने के बाद ही यहाँ आयेगा....
गौरी - इसलिए तुझसे खुशी संभल नहीं रही है...

वैदेही कुछ नहीं कहती है सिर्फ़ मुस्करा देती है l अपने हाथ में कर्पूर लेकर जलाती है और घंटी बजाते हुए चूल्हे में डाल देती है l चुल्हे में आग लग जाती है l गौरी बड़ी सी डेकची रख देती है l फ़िर गौरी के तरफ देखती है l गौरी उसे एक टक देखे जा रही है l

वैदेही - क्या बात है काकी... ऐसे क्या देख रही हो...
गौरी - तुम भाई बहन के बारे में सोच रही हूँ... एक बात तो है... तुम दोनों एक दुसरे के ताकत हो... ना कि कमजोरी...
वैदेही - वह तो है... वह मेरा ताकत है...
गौरी - जिस बदलाव के लिए तुम यह सब कर रही हो... भगवान करे... मेरे जीते जी हो जाए बस...
वैदेही - क्यूँ... तुम्हें इतनी जल्दी क्यूँ है... अगर मरना चाहोगी तो भी यमराज के सामने मैं खड़ी हो जाऊँगी... यह बदलाव सिर्फ़ तुम नहीं... यहाँ के हर बच्चा बच्चा देखेगा.... क्रांति की निंव डल चुकी है...(वैदेही के चेहरे की भाव बदल जाती है) उसे करवट लेते... उसे आकार लेते सब देखेंगे... सब गवाह होंगे...
गौरी - कभी कभी तेरी बातेँ मेरी पल्ले नहीं पड़ती...

तभी हरिया लक्ष्मी के साथ पहुँचता है l वह तख्ती में लिखा पढ़ता है l

हरिया - तो आज सबको मुफ्त खिलाने वाली हो... वैदेही...
गौरी - हाँ... तु आगया ना... अब धीरे धीरे कौवे... मंडराने लगेंगे...
हरिया - ऐ बुढ़िया... गल्ले पर बैठी है तो क्या खुदको मालकिन समझने लगी है... मुफ्त लिखा है... तभी तो खाने आए हैं...
वैदेही - ऐ हरिया... तमीज से... यह मालकिन ही हैं... और मेरी काकी भी... जिसके लिए आया है... वह मिल जाएगा... मुँह मार लेना... अगर फिरसे तमीज छोड़ा तो औकात दिखा दूंगी तुझे...
हरिया - जी.. जी वैदेही... गलती हो गई... माफी काकी जी
गौरी - ठीक है.. ठीक है... जा जाकर बैठ और हाँ... मुफ्त का मिल रहा है... रौब मत झाड़ना...

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विक्रम अपने कमरे के बाथरुम में आईने के सामने खड़ा है l वह कल रात विक्रम शराब के नशे में धुत था, उसे कल वीर ने लाकर उसके कमरे में छोड़ कर गया था l विक्रम यह अच्छी तरह से जानता था कि जब वह नींद सो जाता है शुभ्रा उसे देखने आती है l इसलिए कल वीर के जाते ही अपने कमरे का दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया था l शुभ्रा बीते रात को आई भी थी विक्रम को देखने और कमरे का दरवाज़ा खोलने की कोशिश की थी l पर विक्रम नशे में था और जिस हालत में था वह नहीं चाहता था कि शुभ्रा उसे देखे, इसलिए दरवाजा नहीं खोला था l पिछली रात को आक्रोश के वजह से चाबुक की मार से हुई ज़ख्मों का दर्द महसुस नहीं कर पाया था l पर आज सुबह से ही उसका बदन बहुत दर्द कर रहा था l बाथरुम के आईने में अपना चेहरा देख रहा था l आज उसके चेहरे पर एक भारी बदलाव था, आज खुद को आईने में बिन मूंछों के देख रहा था l शुभ्रा को उसके चेहरे पर मूँछे अच्छी लगती थी, कभी कभी प्यार में कह देती थी,
"पुरी दुनिया में मूँछ मुण्डों के झुंड में... आपकी मूँछें आपको खास बनाती है... मूछों में तो आप मर्द लगते हैं"
यह बात याद आते ही विक्रम के जबड़े भींच जाते हैं और आँखें बंद कर लेता है l उसके जेहन में वह वाक्या गुजरने लगता है जब वह आदमी ऐसकॉट गाड़ी के ऊपर विक्रम के गिरेबान को हाथ में लिए पंच मारने ही वाला था कि शुभ्रा का उसके आगे गिड़गिड़ाना
" भैया.... प्रताप भैया... (अपनी मंगलसूत्र को दिखाते हुए) प्लीज भैया... (गिड़गिड़ाते हुए) प्लीज..."

अचानक विक्रम की आँखे खुल जाती हैं l वह बड़बड़ाने लगता है प्रताप... उसका नाम प्रताप है l शुब्बु ने उसे प्रताप भैया कहा था... क्या शुब्बु उसे पहले से ही जानती है....

विक्रम फ़िर से अपनी आँखे भींच लेता है और याद करने लगता है प्रताप ने शुभ्रा के लिए क्या कहा था
"तुम लोगों ने मेरी माँ के साथ जो बत्तमीजी की... उसके लिए... कायदे से जान से मार देना चाहिए था... पर (शुभ्रा को दिखाते हुए) इन्हें अनजाने में सही बहन कहा है... इनके साथ उस रिश्ते का लिहाज करते हुए तुम लोगों को छोड़ रहा हूँ..."

विक्रम फिर अपनी आँखे मूँद लेता है और मन ही मन बड़बड़ाने लगता है - अनजाने में सही... मतलब... मॉल में ही परिचय हुआ होगा... ह्म्म्म्म यही हुआ होगा... तो फ़िर मुझसे क्या छूट रहा है....

अचानक विक्रम आपनी आँखे खोल देता है l उसे याद आता है जब उसने अपने बाप भैरव सिंह क्षेत्रपाल का नाम लिया तब वह प्रताप पलटा और, विक्रम की आँखे फैल जाती हैं फिर बड़बड़ाने लगता है मतलब प्रताप और राजा साहब के बीच कुछ हुआ है... पर वह तो मेरे हम उम्र लग रहा था... उसका और राजा साहब का क्या हो सकता है... क्या वह राजगड़ से है... पर कैसे... वह इतना अच्छा ट्रेन्ड फाइटर है... क्या आर्मी से हो सकता है.... नहीं... नहीं... उसकी एपीयरेंस बिल्कुल आर्मी जैसी नहीं थी... आर्मी वालों के जैसी एटीट्यूड भी नहीं थी... फिर वह है कौन.... मुझे ढूंढना होगा... हर हाल में ढूंढना होगा... (उसके चेहरा कठोर होने लगता है) उससे अपनी बेइज्जती का बदला लेना होगा... उसके लिए मुझे खुद को... अपने लेवल से भी उपर एलीवेट करना होगा...

फिर एक गहरी सांस छोड़ कर अपने ज़ख्मों को डेटॉल से साफ करता है I फिर बाथरुम से निकल कर वार्डरोब से अपने लिए एक ढीला सा शर्ट निकालता है और उसे पहन लेता है l फिर वह पुरी तरह तैयार हो कर कमरे से निकालता है I जैसे ही कमरे से बाहर आता है उसे सामने हाथ में नाश्ते की थाली लिए शुभ्रा खड़ी मिलती है I

शुभ्रा - वह... मैं आपके लिए नाश्ता लाई थी...

विक्रम शुभ्रा को देखता है l शुभ्रा के चेहरे पर हैरानी के साथ साथ दुख, दर्द और घबराहट भी दिखता है l

विक्रम - छोटा सी ख्वाहिश थी...
बड़े सिद्दत से पाला था...
दो पल के साथ में...
पुरी जिंदगी जी लेना था...
मेरी तसब्बुर मेरे सामने है....
पर यह वक़्त और है...
वक़्त का तकाज़ा कुछ और है...
फिर कभी...

इतना कह कर विक्रम शुभ्रा को वहीँ छोड़ कर बाहर की ओर जाने लगता है l

शुभ्रा - रु.. रुकिए... (विक्रम रुक जाता है पर शुभ्रा की ओर मुड़ कर नहीं देखता) आप... कहाँ जा रहे हैं...
विक्रम - मैं.. हफ्ते दस दिन के लिए बाहर जा रहा हूँ... आ जाऊँगा...

यह कह कर विक्रम वगैर रुके चला जाता है l शुभ्रा पीछे आँखों में आंसू लिए खड़ी रह जाती है l रुप यह सब अपने कमरे से देख रही थी l शुभ्रा वह नाश्ते की थाली लेकर वहाँ से चली जाती है l उसके वहाँ जाते ही रुप भी खुद को अपने कमरे में बंद कर लेती है l


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विश्व एक बढ़िया सा ड्रेस पहन कर ड्रॉइंग रूम में बैठा हुआ है l तापस भी तैयार हो कर ड्रॉइंग रूम में आता है

तापस - (विश्व से) क्या मैं लेट हो गया...
विश्व - नहीं बिल्कुल नहीं... हमारे पास टाइम काफी है....
प्रतिभा - (ड्रॉइंग रूम में आकर हाथ में एक छोटी सी कटोरे में दही चीनी की घोल लिए) ले यह खा ले... (विश्व को चम्मच से दही चीनी की घोल खिला देती है) लो अब मैं भी रेडी हूँ...
तापस - (हैरान हो कर) तुम.... तुम क्यूँ भाग्यवान...
प्रतिभा - क्या कहा... मैं क्यूँ... आज इतना बड़ा दिन है... और मैं ना जाऊँ....
विश्व - हाँ माँ... तुम क्यूँ...
प्रतिभा - ऑए... जुम्मा जुम्मा कुछ ही घंटे हुए हैं... तुम बाप बेटे के मिलन को... अभी से मेरे खिलाफ षडयंत्र शुरु...
तापस - जान यह क्या कह रही हो... षडयंत्र हम करेंगे... वह भी तुम्हारे खिलाफ...
प्रतिभा - तो मुझे जाने से क्यूँ रोक रहे हो....
तापस - कल मॉल में जो हुआ... उसके बाद प्रताप को... ESS के गार्ड्स पागल कुत्ते की तरह ढूंढ रहे होंगे... और अगर प्रताप ना मिला तो उस औरत को भी ढूंढ रहे होंगे... जो उस मॉल में प्रताप के साथ थी... यानी के तुम...
प्रतिभा - ना उन्होंने मुझे ठीक से देखा है... और ना ही मैंने उनमें से किसी को... क्यूंकि प्रताप ने मेरे चेहरे पर रुमाल बांध दिआ था...
तापस - पर यह (माथे की मरहम पट्टी को दिखा कर) देख कर उन्हें शक भी तो हो सकता है...
प्रतिभा - लो अभी निकाल देती हूँ... (कह कर पट्टी निकाल देती है)
विश्व - आरे माँ... पट्टी निकालने से ज़ख़्म हरा हो जाएगा...
प्रतिभा - तु मेरी ज़ख्मों का फ़िक्र ना कर... वैसे तुम लोग किससे जाने वाले थे...
तापस - बाइक पर... और दोनों हेल्मेट लगा कर जाने वाले हैं...
प्रतिभा - ओ हो... मतलब कार को बेकार कर... बाइक से रफु चक्कर होने वाले हो... अब साफ साफ बताओ... मुझे ले कर जा रहे हो या नहीं... नहीं तो...
तापस - हाँ... नहीं तो..
प्रतिभा - अभी ESS वालों को फोन कर कहूँगी... के जिस लड़के ने तुम्हारे बाप को ओरायन मॉल में धोया था... वह अब एक सिरफिरे अड़ियल बुड्ढे खुसट सांढ के साथ XXXX कॉलेज में परिक्षा देनें गया हुआ है....
तापस - (अपनी हाथ जोड़ कर) हे प्रताप की जननी जगदंबे... त्राहि... त्राहि... आप अपनी निर्दयी वाणी से.. हमें... यूँ ना भयभीत कीजिए... पहले यह बताएं... यह ज़ख्म कैसे छुपायेंगे...
प्रतिभा - हे मूर्ख मानव... मैं फूल लेंथ ब्लाउज पहन कर हांथों के ज़ख़्म छुपा लुंगी... और साधना कट हेयर स्टाइल में अपने माथे की ज़ख्म छुपा लुंगी... इसमे जरा भी विलंब नहीं होगी...
विश्व - हे माँ... जैसी आपकी इच्छा... कृपा करें और शीघ्र पधारें...
प्रतिभा - बस पाँच मिनट में गई... और आधे घंटे में आई....

कह कर प्रतिभा अंदर चली जाती है l विश्व तापस को देखता है और तापस भी विश्व को देखता है l

विश्व - डैड... मेरी बात तो समझ में आता है... बेटा हूँ... माँ के जिद के आगे लाचार हूँ... पर वह तो आपकी अर्धांगिनी है...
तापस - बेटा... वह क्या है ना... शास्त्रों में लिखा गया है... अर्धांगिनी... इसलिए तो ले जाना चाहिए...
विश्व - जब इतना शास्त्रों का ज्ञान था... तो सुबह सुबह किस खुशी में यह मास्टर प्लान बनाया था... की माँ को छोड़ कर जाते हैं...
तापस - गलती बेटा गलती.... वैसे गलती किससे नहीं होती...
विश्व - अब नया कोई गुरु ज्ञान मत दीजिए...
तापस - अरे वत्स फ्री में दे रहा हूँ ले लीजिए...
विश्व - कहिए...
तापस - विवाह समाज में एक ऐसा आयोजन है... जहां एक पुरुष अपना बैचलर डिग्री हारता है और स्त्री अपनी मास्टर डिग्री को प्राप्त करती है...
विश्व - अच्छा....
तापस - हाँ... जानता हूँ... तेरे सिर के ऊपर निकल गया है... यह वह ब्रह्म ज्ञान है... जिससे हर पुरुष... शादी तक वंचित रहता है...

तभी प्रतिभा तैयार होकर आती है l दोनों देखते हैं, प्रतिभा आज साड़ी के साथ साथ एक फूल लेंथ ब्लाउज पहनी हुई है बिल्कुल एक बंगालन की परिधान में और बालों को भौहों तक साइज से बनाया है कि उसके सिर के ज़ख़्म नहीं दिख रहे हैं l

प्रतिभा - क्यूँ सेनापति जी... आज से पहले आपने हमे ऐसे कभी नहीं देखा जी...
तापस - नहीं जी... आज से पहले आपको यूँ... टिपीकल बंगाली परिधान में भी तो कभी नहीं देखा....
प्रतिभा - वह पिछली बार... वर्किंग वुमन एसोसिएशन की फंक्शन में... मुझे कुछ औरतों ने गिफ्ट किया था...
तापस - वाव... क्या बात है... एक शेर अर्ज़ है..
विश्व - इरशाद इरशाद...
तापस - आप यूँ... बन संवर के आये... कभी हम आपको... कभी हम इस फटीचर कार को देखते हैं...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... कितना घटिया शेर... हो गया.... अब चलें...
दोनों - हाँ हाँ चलो चलो

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वीर अपनी आँखे खोलता है और घड़ी की ओर देखता है सुबह के दस बज रहे हैं l

वीर - ओ तेरी... धत.. कल देर शाम तक सोया था... इसलिए... अभी लेट हो गया...

वीर मोबाइल पर देखता है और बोलने लगता है - अरे... आज तो सन डे है... जल्दी उठकर भी क्या करना है... एक मिनट... कोई मैसेज या कॉल.... ह्म्म्म्म... नहीं.... (हैरान हो कर) नहीं... पर क्यूँ नहीं... अभी कॉल करता हूँ...

वीर कॉल लगाता है तो दुसरे तरफ से अनु उबासी आवाज़ में जवाब देती है

अनु - हे... लो...
वीर - हम्म... हम राजकुमार बोल रहे हैं...
अनु - (जैसे झटका खाती है) क... क्या र.. राज.. कु... कुमार...
वीर - अरे... अरे... रिलेक्स... हकला क्यूँ रही हो...
अनु - म.. म.. मैं.. अभी तैयार होती हूँ... और ऑफिस पहुँचती हूँ...
वीर - अच्छा...
अनु - वह... मुझे माफ़ कर दीजिए... राज कुमार जी... लगता है... दो दिन से सो रही हूँ...
वीर - (हैरान हो कर) दो दिन से... हैइ... तुम क्या कह रही हो...
अनु - आप ऑफिस पहुँच गए...
वीर - क्यूँ...
अनु - आज सोमवार है ना...
वीर - अनु.. अनु... अनु... आज इतवार है...
अनु - ओह अच्छा... (अपने सिर पर टफली मारते हुए) मैं समझी आज सोमवार है... इसलिए हड़बड़ा गई थी... अगर छुट्टी है तो आपने फोन क्यूँ किया...
वीर - (थोड़ी कड़क आवाज में) क्या कहा....
अनु - सॉरी सॉरी... (रोनी आवाज़ में) मुझसे गलती हो गई...
वीर - है... तुम रो क्यूँ रही हो...
अनु - आप गुस्सा हो गए इसलिए...
वीर - अच्छा... मेरे गुस्सा होने से तुमको डर लगता है....
अनु - जी...
वीर - तो तुम्हारा फर्ज यह बनता है कि मुझे... कभी गुस्सा ना आए... ऐसे काम तुम्हें करने चाहिए... है ना...
अनु - हाँ...
वीर - तो फिर कल तुमने... मेरी खैरियत क्यूँ नहीं पूछी...
अनु - इसीलिये आप गुस्सा हैं...
वीर - नहीं... बस थोड़ा दुखी हूँ...
अनु - क्यूँ...
वीर - मेरी पर्सनल सेक्रेटरी कम मेरी पर्सनल अस्सिटेंट हो तुम... तुमको फोन भी इसीलिए दिया गया है... बॉस की खैरियत पूछने के लिए... पर तुम तो भूल ही गई...
अनु - ओ... पर राजकुमार जी... मैं भूली नहीं थी... वह फोन को चार्ज मे लगा कर... थोड़ा सो गई थी...
वीर - अच्छा... दोपहर को खाना खा कर सो गई थी...
अनु - हाँ...
वीर - तो फिर रात को कर सकती थी ना...
अनु - हाँ... सोचा... आप सो गए होंगे... इसलिए नहीं किया...
वीर - वैसे... कितने बजे तक सोई तुम...
अनु - पूरे सात बजे तक...
वीर - क्या.... सच कह रही हो...
अनु - हाँ सच्ची...
वीर - ह्म्म्म्म... तो फिर किसीने जगाया या खुद जाग गई...
अनु - कहाँ... खाट पर उल्टी लेटी हुई थी... दादी ने पीछे झाड़ु से मार लगाई... तब जा कर नींद टूटी...
वीर - (मन ही मन बहुत हँसता है) अच्छा... फिर रात को नींद नहीं आई होगी...
अनु - हाँ... आपको कैसे पता...
वीर - खैर... आज तुम्हें दादी ने जगाया नहीं...
अनु - कैसे जगाती... मैंने दरवाजा बंद कर रखा है... बाहर ही दरवाजे पर दस्तक दे कर चिढ़ कर चली गई होगी... मैं भी ढीठ हूँ... बोला था... रविवार छुट्टी है... इसलिए दस बजे तक सोउंगी...
वीर - और देखो कितना उल्टा हुआ... आज मैं तुमसे तुम्हारी खैरियत पूछ रहा हूँ...
अनु - (शर्माते हुए) सॉरी राज कुमार जी... कल से पक्का...
वीर - कल से पक्का... मतलब...
अनु - मैं कल से फोन कर आपसे आपकी खैरियत पुछुंगी...
वीर - ह्म्म्म्म... पर आज से क्यूँ नहीं... मेरा मतलब है... अभी से क्यूँ नहीं...
अनु - अभी से...
वीर - हाँ... अभी से...
अनु - ह्म्म्म्म... क्या पूछूं...
वीर - अच्छा एक बात बताओ...
अनु - जी
वीर - तुम अभी हो कहाँ पर....
अनु - जी मैं अपने कमरे में... अपनी खाट पर बैठी हुई हूँ...
वीर - तो एक काम करो...
अनु - जी...
वीर - अपनी आँखे बंद करो...
अनु - जी कर लिया...
वीर - अपनी बंद आँखों से मुझे देखो...
अनु - क्या राजकुमार जी... आँखे बंद कर लेने से... मुझे मेरा कमरा ही नहीं दिख रहा... मैं आपको कैसे देखूँ...
वीर - यु स्टुपीड गर्ल... मैं जो कह रहा हूँ... वह कर..
अनु - (डर के मारे) जी.. जी... जी...
वीर - अपनी आँखे बंद कर ली...
अनु - जी कर ली...
वीर - अब सोचो... मैं और तुम... तुम और मैं... ऑफिस में... मेरे कैबिन में हैं...
अनु - जी...
वीर - मैं चेयर पर बैठा हुआ हूँ... और तुम मेरे सामने बैठी हुई हो...
अनु - जी...
वीर - मैं.. तुम्हें दिख रहा हूँ ना...
अनु - जी...
वीर - अब पूछो...
अनु - क्या...
वीर - मेरी खैरियत...
अनु - ठीक है...
वीर - तो पूछो....
अनु - आपने खाना खाया... क्या खाया...
वीर - (चुप रहता है)
अनु - (धीरे से) राजकुमार जी... आप वहीँ पर हैं ना...
वीर - अनु... तुम अपनी मन की आँखों से मुझको देख रही हो ना...
अनु - हाँ...
वीर - तो क्यूँ पूछ रही हो.. मैं हूँ या नहीं...
अनु - वह आपने जवाब नहीं दिया...
वीर - यह खाने को छोड़ो.. कुछ और पूछो...
अनु - ह्म्म्म्म... (अनु खामोश हो जाती है)
वीर - अनु... ऐ अनु...
अनु - कुछ सूझ नहीं रहा है...
वीर - क्यूँ...
अनु - क्यूंकि ऑफिस में तो मैंने कभी कुछ पूछा ही नहीं है....
वीर - हूँ.... यह तो है...
अच्छा.... आज रात को सोने से पहले मुझे पूछ लेना...
अनु - क्या... क्या पूछूं मैं...
वीर - यही... के दिन भर क्या किया... क्या खाया... क्या पढ़ा... ऐसा ही कुछ...
अनु - जी...
वीर - और एक खास बात...
अनु - जी कहिए...
वीर - अपने घर से मुझसे जब भी बात करना... अपनी आँखे बंद कर मुझे अपने सामने इमेजिन करते हुए बात करना...
अनु - जी...
वीर - मुझे तुम्हें याद दिलाना ना पड़े...
अनु - जी...
वीर - तो आज रात सोने से पहले... मुझे तुम्हारा फोन का इंतजार रहेगा...
अनु - जी...
वीर - यार एक काम करो... फोन बंद करो... शुरु से ही तुम्हारा जी पुराण चल रहा है...
अनु - जी...
वीर - फिर जी...

अनु अपनी जीभ बाहर निकाल कर फोन काट देती है l उधर फोन कटते ही वीर मोबाइल को देखता है और मुस्कराते हुए अपने सिर पर चपत लगाता है l


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राजगड़ के चौराहे से भैरव सिंह का काफिला गुज़रती है l चौराहे पर भीड़ देख कर ड्राइवर हॉर्न बजाता है l गाड़ी के अंदर बैठा भैरव सिंह भी हैरान हो जाता है l क्यूँकी उत्सव हो या मातम क्षेत्रपाल महल में ही मनाई जाती है l यहाँ किस बात को लेकर भीड़ इकट्ठा है यह जानने के लिए भैरव सिंह गाड़ी रुकवाता है l गाड़ी के रुकते ही भीमा गाड़ी के पास पहुँचता है

भैरव - भीमा...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव - यहाँ भीड़ किस लिए है... जाओ... पता कर आओ...

भीमा जाकर लोगों से पूछताछ कर वापस आता है और भैरव सिंह से कहता है

भीमा - हुकुम...
भैरव - क्या है...
भीमा - जी... वह वैदेही... अपनी चाय नाश्ते की दुकान में... आज सब को मुफ्त खिला रही है... इसलिए यहाँ पर भीड़ है... क्यूंकि... सब अपनी अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं...

यह सुनने के बाद भैरव सिंह अपनी गाड़ी से उतरता है l अपने बीच भैरव सिंह को देख कर कुछ ही पलों में भीड़ गायब हो जाती है l लोगों का यूँ चले जाना वैदेही को अखरता है उसे समझ में नहीं आता, वह दुकान के बाहर आकर देखती है तो कुछ दूर पर भैरव सिंह खड़ा दिखता है l भैरव सिंह को देखते ही वैदेही की जबड़े भींच जाती हैं और आँखों में गुस्सा और नफ़रत उतरने लगती है l भैरव सिंह तीन बार चुटकी बजाता है, भीमा और उसके आदमी सब समझ जाते हैं l भीमा सभी आदमियों को इशारा करता है तो सारे आदमी पीछे जाकर अपनी अपनी गाड़ियों के पास खड़े हो जाते हैं l भैरव सिंह आगे दुकान की ओर जाता है, तो वैदेही भी आगे जा कर उसके सामने खड़ी हो जाती है l

भैरव - (एक कुटील मुस्कान अपने चेहरे पर ला कर) कौन मर गया... जो इन भीकारीयों को मुफत खिला रही है... कहीं तेरा भाई... भैरव सिंह के खौफ में तो नहीं मर गया....
वैदेही - नहीं... भैरव... वह तो तेरा काल है... उसे क्या होगा... हाँ... तेरे मरने के बाद... कोई श्राद्ध में भोज तो देगा नहीं... इसलिए तेरे मरने से पहले... तेरी श्राद्ध की भोज... मैं दे रही हूँ...
भैरव - वाह.... क्या बात है... (चिढ़ाते हुए) इतना प्यार करती है हमे...
वैदेही - हाँ... (गुर्राते हुए) कुत्ते... इतना की तेरे जीते जी तेरा श्राद्ध... गांव वालों को खिला रही हूँ...
भैरव - आ ह्... तु... जब जब मुझसे गुस्सा होती है... मुझे गाली देती है... तेरी कसम... मेरी रंडी.... साली... बड़ा मजा आता है... दे चल दे... आज कुछ गालीयां मुझे दे दे... कितना सुकून मिलता है... तेरे मुहँ से गाली सुन कर...
वैदेही - बस... कुछ दिन और कुत्ते...कुछ दिन और...
भैरव - कुछ दिन और..क्यूँ... क्या हो जाएगा... क्या सुरज पश्चिम में निकलेगा... अरे हाँ... सात साल पुरे होने को है... तेरा वह भाई... छूटने वाला होगा... है ना... वह मेरे झांट के बाल बराबर भी नहीं है... क्या उखाड़ लेगा मेरा....
वैदेही - जी तो चाहता है... तेरा मुहँ नोच लूँ... यहीं पर...
भैरव - पर तु... कुछ नहीं कर सकती... जानती है क्यूँ... मेरे वह सात थप्पड़ याद है ना... बेहोश हो गई थी...
वैदेही - हाँ... कुत्ते हाँ... मेरे वह सात बद्दुआयें याद रखना.... अगर भूल भी गया हो... तो कोई बात नहीं... मेरा विशु आकर तुझे याद दिला देगा.... तु जैसे ही उसे देखेगा... तुझे सब याद आ जाएगा...
भैरव - ज्यादा मत उच्छल... रंग महल की रंडी... ज्यादा मत उछल... जिनकी नजरें आसमान के बुलंदियों पर होता है... वह कभी नीचे फुदकने वाले टिड्डों के तरफ नहीं देखते...
वैदेही - (चुप रहती है)
भैरव - तेरे उस भाई का चेहरा याद रखने लायक था ही नहीं... तो मैं क्यूँ याद करूँ... क्यूँ... जो मेरी निगाह के बराबर या उपर ना हो... मैं उसे देखता भी नहीं... और तेरा भाई तो पैरों की जुते के बराबर भी नहीं... गौर से देख मुझे... मैं भैरव सिंह क्षेत्रपाल... फूलों का हार या नोटों का हार तक नहीं पहनता... क्यूंकि उसके लिए भी सर झुकाना पड़ता है... जुतें चाहे लाखों की भी हो... मैं उसके तरफ नहीं देखता... क्यूंकि उसके लिए भी झुकना पड़ता है... फिर दो टके का तेरा भाई... वह क्या... उसका औकात क्या...
वैदेही - इतनी अकड़... किस बात के लिए... कोई बात नहीं... इसे बनाए रखना... भैरव सिंह... यह गर्दन भी झुकेगा और तु हार भी पहनेगा... वह भी जुतों की....
भैरव सिंह - चु चु चु चु... तरस आता है तुझ पर... और कसम से मजा भी बहुत आ रहा है... ले... तुने जो श्राद्ध भोज मेरे प्यार मे लगाया था... उसके सारे कौवे उड़ गए... बेकार गया ना तेरी श्राद्ध भोज....
वैदेही - फिक्र मत कर कुत्ते.... ऐसा दिन फिर आएगा...
भैरव सिंह - तेरी कसम है... उस दिन भी कौवे उड़ाने... मैं आ जाऊँगा... हा हा हा.... (पलट कर अपनी गाड़ी के तरफ चला जाता है)
वैदेही - (जबड़े और मुट्ठी भींच लेती है)

भैरव सिंह के अपने काफिले के साथ चले जाने के बाद गौरी वैदेही के पास पहुँचती है l

गौरी - तेरे और भैरव सिंह में... क्या गुफ़्तगू हो रही थी.... ना उसके आदमीयों को सुनाई दिया ना हमे...
वैदेही - यह उसके और मेरे बीच का रिश्ता है... नफ़रत का... ना वह किसीको बांट सकता है... ना मैं...

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प्रतिभा और तापस की गाड़ी रास्ते पर खड़ी है l दोनों गाड़ी के बाहर खड़े हैं l उस रास्ते पर गुजरने वाले हर गाड़ी से तापस लिफ्ट मांग रहा था l पर कोई गाड़ी रोक कर उन्हें लिफ्ट नहीं दे रहा था I

प्रतिभा - ओ हो.. क्या ज़माना आ गया है... कोई लिफ्ट देने की सोच भी नहीं रहा है... आखिर आपको क्या पड़ी थी... एक्जाम हॉल को छोड़ इतने दुर आने की...
तापस - लो उल्टा चोर कोतुआल को डांटे... प्रताप के एक्जाम हॉल के अंदर जाते ही तुम्हींने कहा कि... ढाई घंटे हम बाहर क्या करेंगे... चलिए लिंगराज मंदिर में प्रताप के नाम पर पूजा कर आते हैं... अब तुम उल्टा दोष मुझ पर मढ रही हो...
प्रतिभा - हाँ हाँ... सारा दोष तो मेरा ही है... आपका तो कुछ भी नहीं है... आपको चाहिए था... की गाड़ी को भला चंगा रखना... वह तो नहीं किया आपने...
तापस - हे भाग्यवान... भगवान से तो डरो... हम जिस रास्ते से वापस आए... वह रास्ता खराब था... मैंने मना भी किया था... पर तुमने माना नहीं... हम्प्स से टकरा ऑइल सील टुट गया... इंजिन ऑइल ड्रेन हो गया... अब इसमें मैं क्या कर सकता हूँ...
प्रतिभा - वह मैं कुछ नहीं जानती.... अभी आधा घंटा और है... एक्जाम के खतम होने में... मुझे XXXX कॉलेज पहुँचना है.... (प्रतिभा अपनी मुहँ फ़ेर लेती है)
तापस - (खीज कर) आरे... लिफ्ट तो मांग रहा हूँ... अब कोई दे नहीं रहा है... तो मैं क्या करूं... इस रास्ते पर... कोई ऑटो या टैक्सी भी नहीं दिख रहा है....

इतने में एक मर्सिडिज आता दिखता है l तापस उस गाड़ी को देख कर लिफ्ट मांगता है l गाड़ी रुक जाती है l पासेंजर साइड खिड़की नीचे सरक जाती है l गाड़ी में बैठा शख्स को देख कर

तापस - सर, हमारी गाड़ी खराब हो गई है... हमे आगे XXXX कॉलेज जाना है... अगर हमें आप अगले जंक्शन तक लिफ्ट दे देंगे तो... बड़ी मेहरबानी होगी...

गाड़ी में बैठा शख्स इशारे से बैठने को कहता है l तापस प्रतिभा से कहता है

तापस - आरे भाग्यवान... हमे यह महाशय लिफ्ट देनें के लिए तैयार हो गए हैं... आओ बैठ जाओ...

प्रतिभा खुश होकर गाड़ी के पिछले सीट पर बैठ जाती है और तापस उस शख्स के साथ आगे बैठ जाता है l

प्रतिभा - (गाड़ी में बैठ कर) थैंक्यू... थैंक्यू बेटा... बहुत बहुत थैंक्यू...
शख्स - (जवाब में कुछ नहीं कहता)
प्रतिभा - क्या हुआ बेटा... आपने जवाब नहीं दिया...
शख्स - जी... जी थैंक्यू की कोई जरूरत नहीं...
प्रतिभा - हाँ... आपको जरूरत नहीं होगी... पर हमे थैंक्यू कहने में कोई कंजूसी नहीं है... हम लोग एक्चुयली लिंगराज मंदिर गए थे....
शख्स - ओह...

फिर गाड़ी में ख़ामोशी छा जाती है l कुछ देर बाद प्रतिभा उस शख्स से पूछती है

प्रतिभा - अच्छा बेटा.. आपका नाम क्या है...
शख्स - (ज़वाब दिए वगैर गाड़ी चलाने में ध्यान लगाता है)
प्रतिभा - सॉरी बेटा... आपको शायद मेरा ऐसे बातेँ करना अच्छा नहीं लग रहा है... सॉरी..
शख्स - देखिए... आप मुझे... यह बार बार बेटा ना कहें... मुझे ऐसे रिश्ता बनाना और उसे निभाना अच्छा नहीं लगता...
प्रतिभा - ओह... सॉरी... लगता है... तुम किसीसे बहुत नाराज हो...
शख्स - (चुप रहता है)
तापस - (पीछे मुड़ कर) भाग्यवान... यह हमारी मदत कर रहे हैं... और तुम हो कि.... इन्हें क्यूँ अपनी बातों से बोर कर रहे हो...

तापस के कहने पर प्रतिभा चुप हो जाती है l वह शख्स अपने में खोया हुआ है और इधर उधर देखते हुए ख़ामोशी से गाड़ी चला रहा है l प्रतिभा से रहा नहीं जाता वह उस शख्स से पूछती है

प्रतिभा - किसीको ढूंढ रहे हो क्या बेटा...
शख्स - (कुछ नहीं कहता)
प्रतिभा - खुद से नाराज़ लग रहे हो... कोई दिल के करीब था.. तुमसे खो गया...
शख्स - हाँ... कोई दिल में उतर गया है... उसीको ढूंढ रहा हूँ...
प्रतिभा - हाँ... लगा ही था... दिल का मामला है... ह्म्म्म्म
शख्स - हाँ ऐसा ही कुछ... वह जब तक नहीं मिल जाता... ना मेरे दिल को चैन मिलेगा... ना मेरे रूह को सुकून मिलेगा...
प्रतिभा - आरे वाह... यह हुई ना बात... सच्चे आशिकों वाली बात... कितना लकी है वह... जिसे बड़ी शिद्दत से चाह रहे हो... ढूंढ रहे हो... बेटा... तुम्हारी तड़प देख कर इतना जरूर कहूँगी... तुम्हें तुम्हारी मंजिल तुमको जरूर मिल जाएगी...
शख्स - थैंक्यू...
प्रतिभा - आरे... इसमें थैंक्यू कैसी... तुमने हमारी इतनी मदत जो की है... मैं ज़रूर भगवान से प्रार्थना करुँगी... तुम्हारे लिए...
शख्स - जी....

फिर गाड़ी में ख़ामोशी छा जाती है l थोड़ी देर बाद XXXX कॉलेज आ जाती है l

तापस - बस बस... यहीं... हाँ... यहीं.. पर...

शख्स अपनी गाड़ी रोक देता है l दोनों सेनापति दंपती गाड़ी से उतर जाते हैं l गाड़ी से उतर कर प्रतिभा उस शख्स से

प्रतिभा - शुक्रिया बेटा... अच्छा... तुमने अपना नाम नहीं बताया...
शख्स - आपने भी भी तो नहीं बताया...
प्रतिभा - मैं एडवोकेट प्रतिभा सेनापति.... और यह मेरे पति... तापस सेनापति.... और तुम....
शख्स - जी... फ़िलहाल मेरा नाम... मेरी पहचान गुम हो गया है... जिस दिन आपकी दुआओं के असर से... मेरी मंजिल मुझे मिल जाएगी... उस दिन मुझे मेरा नाम और पहचान वापस मील जाएगा...
प्रतिभा - अच्छा बेटा... मुझे आज का दिन याद रहेगा... मैं तुम्हारे लिए... भगवान से ज़रूर प्रार्थना करुँगी...

वह शख्स कुछ नहीं कहता गाड़ी की शीशे को ऊपर उठाकर आगे निकल जाता है l उसके जाते ही प्रतिभा तापस से कहती है

प्रतिभा - कितना अच्छा लड़का है ना...
तापस - हाँ... जिस रास्ते पर किसीने हमारी मदत नहीं किया... यह एक देवदूत की तरह आ कर हमें यहां तक लिफ्ट दी... यही तो फर्क़ है... अच्छा चलो... प्रताप आता ही होगा... हमारे पास और चार पांच घंटे हैं... उसे खान के हवाले करने के लिए....
प्रतिभा - हाँ... ठीक है... चलिए...

गेट से बाहर निकल कर प्रताप चिल्लाता है "माँ" l दोनों सेनापति दंपती प्रताप की ओर देखते हैं और उस तरफ जाने लगते हैं l

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गाड़ी के अंदर बैठते हुए भैरव सिंह कुछ सोचे जा रहा है l उसने कुछ सोचने के बाद एक फोन लगाता है l

भैरव सिंह - हाँ महांती... कहाँ तक पहुँचे...
महांती - राजा साहब... हम रंग महल पहुँच गए हैं.... आपकी प्रतीक्षा हो रही है....
भैरव सिंह - कितने आदमी उठाये हैं...
महांती - पुरे दस बंदे हैं...
भैरव सिंह - कोई छूट गया....
महांती - हाँ सर... पूरे बारह लोग हमारे सर्विलांस में थे.... पर दो लोग ऐन मैके पर ही गायब हो गए....
भैरव - अच्छा... कुछ और भी हुआ है क्या...
महांती - जी कुछ और मतलब...
भैरव - सिर्फ़ छोटे राजा जी का कांड ही ना... कुछ और तो नहीं हुआ है...
महांती - जी... जी नहीं... (भैरव सिंह चुप रहता है) राजा साहब.... क्या हुआ...
भैरव - महांती... तुमको मेरा एक काम करना है... और किसीको कानों कान खबर नहीं होना है...
महांती - जी कहिए...
भैरव - देखो... जिनको तुम लाए ही... तुम्हें उनसे क्या उगलवाना है... यह तुम्हारा काम है... हम तुम्हें इस काम के लिए... पुरा रंग महल तुम्हारे हवाले करते हैं...
महांती - जी... समझ गया... आप काम बताइए....
भैरव - एक आदमी के बारे में... वह भुवनेश्वर में है...
महांती - जी...
भैरव - वह क्या कर है.... या कहाँ है... वगैरह वगैरह... यह सब पता कर के मुझे बताना है....
महांती - जी... जरूर... यह काम तो... हमारे ESS में से कोई भी आदमी कर देगा...
भैरव - ठीक है... हम... एक जरूरी काम के लिए... यशपुर तहसील जा रहे हैं... हमें शाम तक खबर कर दो... उसके बारे में....
महांती - जी... पर उसका नाम...
भैरव - (चुप रहता है)
महांती - राजा साहब... राजा साहब...

भैरव सिंह को वैदेही से बातचित करने के बाद उसे अपना किया हुआ वादा याद आता है

"वैदेही - विश्व से डरता है तु.... इसलिए... उसे लंगड़ा करने की कोशिश की थी तुने.... उसका हुक्का पानी बंद करवा रखा है तुने....
भैरव - वह इसलिए... के वह जब जब गली गली भीख मांगता... तब तेरे तड़प देख कर मैं... खुश होता....
वैदेही - पर भाग्य ने यह होने नहीं दिया....
भैरव - भाग्य... जब जब भाग्य मुझसे... पंजा लड़ाया है... मैंने तब तब किसी और का भाग्य लिखा है.....
वैदेही - इतना अहं.... पचा नहीं पाओगे... यह तब तक... है जब तक... विश्व अंदर है... वह जब आएगा... तु बहुत रोएगा... उसके इरादों के आँधी के आगे... तेरा साम्राज्य तिनका तिनका उड़ जाएगा.... उसके नफ़रत के सैलाब से.... तेरा जर्रा जर्रा बह जाएगा.... देखना.... आखिर उस पर... मेरे तीन थप्पड़ों का.... कर्ज है...
भैरव - आई शाबाश... मुझे अब तुझ पर प्यार आ रहा है... मेरी रंडी कुत्तीआ.... चल आज तेरी खुशी के लिए... मैं सात साल तक विश्व को भूल जाता हूँ... तो बता विश्व आकर मेरा क्या उखाड़ेगा...."

महांती - राजा साहब... क्या आप... लाइन में हैं...
भैरव - हाँ.... हाँ.. महांती.. जाने दो... जाने दो...
महांती - राजा साहब क्या हुआ...
भैरव - कुछ नहीं... हमे हमारी हैसियत याद आ गया....
महांती - जी मैं समझा नहीं....
भैरव - हमने जो कहा... उसे भूल जाओ... और हाँ ख़बरदार... भूलकर भी हमारी नाफरमानी हो ना पाए...
महांती - जी... जैसा आपका हुकुम...

भैरव सिंह अपना फोन काट देता है l उधर महांती सब सुन कर कुछ सोचने लगता है l

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रात हो चुकी है
सुबह से रुप खुद को कमरे में बंद कर रखा था l कल हुई हादसे के वजह से वह अपने भाभी के सामने जाने से कतरा रही थी l ऊपर से विक्रम को एक नए अवतार में देख कर हैरान रह गई थी, और जिस तरह से विक्रम घर से निकल गया शुभ्रा के हाथ में नाश्ते की थाली वैसी की वैसी रह गई थी l रुप अपनी कमरे से बाहर निकलती है और शुभ्रा के कमरे की ओर जाती है l शुभ्रा के कमरे का दरवाज़ा खुला हुआ मिलता है l वह दरवाजे को हल्के से धक्का दे कर खोलती है l अंदर शुभ्रा बेड पर हेड रेस्ट से टेक लगा कर कोई किताब पढ़ रही थी l दरवाज़ा खुलते ही शुभ्रा रुप की तरफ देखती है l रुप अपना सिर झुकाए दरवाजे के पास खड़ी हुई है l

शुभ्रा - क्या हुआ रुप... वहाँ क्यूँ रुक गई... आओ...

रुप की रुलाई फुट पड़ती है, वह रोते रोते हुए शुभ्रा के पास जाती है और उसके गोद में अपना सिर छुपा कर रोने लगती है l

शुभ्रा - क्या हुआ रुप... क्यूँ रो रही हो...
रुप - आ.. आ.. प... मुझसे न... नाराज हैं ना...
शुभ्रा - यह तुम क्या कह रही हो... भला मैं तुमसे क्यूँ नाराज़ होने लगी...
रुप - व... वह... आ.. आप...
शुभ्रा - एक मिनट... यह रोना धोना बंद करो... (पानी की ग्लास रुप को देते हुए) पहले यह पानी पी लो... फिर मुझसे बात करो....

रुप आधी ग्लास पानी पी लेती है तो उसका सुबकना बहुत कम हो जाती है l अपनी रोने पर कंट्रोल करते हुए l

रुप - आज भैया के बिना खाए जाने से.... आपको बहुत दुख पहुँचा... उसके बाद... आप दिन भर ना मेरे पास आए ना अपने पास बुलाया... मैं.. मैं समझ सकती हूँ... आपको कितना ठेस पहुँची है.... पर भाभी मैं सच कहती हूँ... मैंने जान बुझ कर कुछ नहीं किया... जो भी हुआ... वह एक्सीडेंट था...
शुभ्रा - (रुप के सिर पर हाथ फेरती है और पूछती है) रुप... क्या दोपहर को... तुमने खाना खाया है....
रुप - (अपना सिर हिला कर ना कहती है) आपने भी तो नहीं खाया है...
शुभ्रा - एक मिनट...

फिर शुभ्रा फिर से नीचे किचन को फोन करती है और रात का खाना अपने कमरे में लाने के लिए नौकरों से कह देती है l

रुप - भाभी...
शुभ्रा - हूँ...
रुप - भैया सुबह से गए हैं... अभी तक नहीं लौटे हैं... आपको चिंता नहीं हो रही...
शुभ्रा - नहीं... क्यूंकि वह मुझसे कह कर गए हैं... हफ्ते दस दिन के लिए वह कहीं बाहर जा रहे हैं... और इतने बड़े घर में... तुम्हारे दोनों भाई कब आते हैं... कब जाते हैं... कोई नहीं जानता...
रुप - उनका... इस वक़्त ऐसे बाहर जाना... अपने आपको... इतना बदल देना... आपको अखर नहीं रहा...
शुभ्रा - रुप... तुम भले ही उनकी बहन हो... पर मैं उन्हें तुमसे ज्यादा जानती हूँ.... वह इस वक़्त अपने अंदर के ज़ख्मों से उठ रहे टीस को शांत करने के लिए.... प्रताप को ढूंढने निकले हैं.... पर उन्हें प्रताप नहीं मिलेगा... कम से कम एक महीने के लिए... बाद में क्या होगा.... यह वक़्त आने पर देखेंगे...
रुप - आज आपको उनकी हुलिया देख कर... कुछ अजीब नहीं लगा...
शुभ्रा - हाँ लगा... पर इसमे उनका क्या दोष... अगर तुम यह सोच रही हो... की क्षेत्रपाल नाम की अहं को चोट के कारण उन्होंने अपनी मूंछें मुंडवाया है... तो तुम सोला आने गलत हो... हाँ... उन्होंने अपनी मूँछों पर हमेशा क्षेत्रपाल बन कर ताव दिया है.... पर... उनके अंदर की मर्द होने के अहं को चोट पहुँची है.... वह भी मेरी वजह से... इसलिए उन्होंने अपनी मूंछें मुंडवा लिया है...
रुप - आपके वजह से... पर आपने कुछ गलत तो नहीं कि थी...
शुभ्रा - ऐसा तुम सोच रही हो... पर तुम यह नहीं जानती कि इन सात साल सालों में... उन्होंने इस सहर में क्या कमाया था... मैंने देखा है उन्हें... गोलियों के बौछारों के बीच अकेले किसी शेर की तरह गुजर जाते थे... ऐसा आदमी जिसने अपने दम पर... ना सिर्फ़ भुवनेश्वर में हर गुंडे मवालियों बीच.... बल्कि पुलिस वालो के बीच भी खौफ बनाए रखा था... ऐसे आदमी के लिए... उसकी व्याहता किसी के आगे घुटने टेक दे... हाथ जोड़ दे तो...
रुप - मैं अभी भी कह रही हूँ... आपने वक़्त की नजाकत को भांपकर... वैसा किया था....
शुभ्रा - तुम फिर भी नहीं समझ रही हो... सदियों से एक विचार धारा है... औरत को मर्द अपनी ताकत के बूते सुरक्षा देता है... ज़माने की बुरी नजर व नीयत से बचाता है.... और उनके रगों में तो... राजसी खुन बह रहा है... प्रतिकार करना और प्रतिघात करना उनके खुन में है... ऐसे में उनकी अर्धांगिनी के घुटने टेक कर... उनके लिए जान की भीख माँगना... उनके मर्द होने के अहं को नेस्तनाबूद कर दिया है... इसी ग़म से हल्का होने गए हैं...
रुप - कहीं कुछ उल्टा सीधा....
शुभ्रा - (टोकते हुए) नहीं... वह ना तो कायर हैं ना ही बुजदिल...
रुप - हाँ... पर...
शुभ्रा - बस रुप बस... अब इस टॉपिक पर... और नहीं... लेट चेंज द टॉपिक...
रुप - क्या...
शुभ्रा - तुम... अनाम से बहुत अटैच थी ना...
रुप - हाँ...
शुभ्रा - क्या तुम्हें... अभी भी उसका इंतजार है...
रुप - (अपना मुहँ फ़ेर लेती है और चुप रहती है)
शुभ्रा - ओके... मुझे मेरा जवाब मिल गया... (रुप के फिरभी खामोश रहने पर) वेल... मैं कभी आजाद परिंदे की तरह थी... पर आज.... खैर छोड़ो... अच्छा बताओ... अनाम ने कभी तुम्हें आजादी की फिल कराया है...
रुप - भाभी... (थोड़ा हंसते हुए) आपने टॉपिक भी क्या बदला है... खैर आप मेरे लिए... मेरी माँ... गुरु.. सखी... सब कुछ तो हो... आप से क्या और क्यूँ छुपाना... भाभी... जानती हैं... घर पर कभी भी... मेरा जनम दिन नहीं मनाया जाता था... और ना ही मनाया जाता है.... वजह.. तीन पीढ़ियों बाद... मैं लड़की जो पैदा हुई थी.... ऐसे में... मेरी छटी से लेकर ग्यारहवीं साल गिरह तक... अनाम ने ही मेरे साथ... मेरा जन्मदिन मनाया था....
शुभ्रा - ओ... तभी... अनाम का तुम्हारे जीवन पर प्रभाव छोड़ना बनता है...
रुप - हाँ... भाभी... मेरी छटी साल गिरह के पहले दिन जब मुझे मेरे कमरे में.... अनाम पढ़ा रहा था...

फ्लैशबैक में--

रुप की बचपन
अपने कमरे में रुप पढ़ रही है और उसे अनाम पढ़ा रहा है I रुप की कमरे की सजावट ऐसी है जैसे एक स्कुल की क्लासरूम I अनाम पढ़ाते पढ़ाते रुक जाता है l क्यूँकी वहाँ पर छोटी रानी सुषमा पहुँचती है l

सुषमा - अनाम... और कितना समय...
अनाम - जी बस खतम हो समझीये... (ब्लैक बोर्ड को साफ करते हुए) बाकी की पढ़ाई हम कल कर लेंगे...
सुषमा - ठीक है... (रुप से) अच्छा राजकुमारी... आप कल सुबह तैयार रहिएगा... हम जल्दी जल्दी मंदिर जा कर आ जाएंगे....
अनाम - क्षमा... छोटी रानी जी... क्या कल कोई खास दिन है...
सुषमा - हाँ... अनाम... कल राजकुमारी जी का जन्मदिन है....
अनाम - आरे वाह... तो फ़िर कल दावत होगी...

सुषमा और रुप के चेहरे पर दुख और निराशा दिखता है l

रुप - तुमको मेरे जन्मदिन से ज्यादा दावत से मतलब है... भुक्कड कहीं के....
अनाम - अरे... आपका जन्मदिन है... मतलब राजगड़ की राजकुमारी का जन्मदिन... हम दावत की उम्मीद भी ना करें...
सुषमा - अनाम... इस घर में... लड़की या औरतों के लिए कोई खुशियाँ नहीं मनाया जाता.... हाँ अगर तुमको दावत चाहिए तो... मैं तुम्हें कुछ खास बना कर खिला दूंगी... पर कोशिश करना... किसीको को खबर ना हो...

इतने में एक नौकरानी भागते हुए आती है और सुषमा से कहती है

नौकरानी - छोटी रानी.... छोटे राजा जी ने आपको याद किया है...
सुषमा - ओ अच्छा... (अनाम से) अगर कुछ बाकी रह गया है... तो अभी खतम कर दो... और हाँ कल रात का खाना खा कर ही जाना... (इतना कह कर सुषमा वहाँ से चली जाती है)

अनाम रुप की ओर देखता है l रुप अपनी कुर्सी से उतर कर दीवार पर लगी अपनी माँ के फोटो के सामने खड़ी हो जाती है और उसके आँखों से आँसू बहने लगती हैं l अनाम उसके पास आ कर

अनाम - अच्छा राजकुमारी जी... एक बात पूछूं... (आंसू भरे आँख से अनाम को देखती है) किसीको भी मालुम नहीं होगा... क्या हम ऐसे आपके जन्मदिन मनाएं...
रुप - अगर किसीको पता चल गया तो...
अनाम - किसीको पता नहीं चलेगा... सिर्फ़ आप और मैं....
रुप - (मुस्कान से चेहरा खिल जाता है) सच...
अनाम - मुच...

फ्लैशबैक खतम

शुभ्रा - वाव... मतलब तुम्हारा हर जन्मदिन... तुम अनाम के साथ मनाती थी...
रुप - हाँ...
शुभ्रा - तभी... तभी मैं सोचूँ... अनाम तुम्हारे जीवन में इतना स्पेशल क्यूँ है... अच्छा... उससे तुमने कुछ वादा भी लिया था क्या...
रुप - (मुस्कराते हुए) जब मैं अपनी दसवीं साल गिरह उसके साथ मनाया था... तब मैंने उससे एक वादा लिया था...
शुभ्रा - क्या... (हैरान हो कर) व्हाट... ओह माय गॉड.... वादा... सच में... मैंने तो ऐसे ही तुक्का लगाया था.... कैसा वादा...
रुप - (थोड़ा हँसते हुए) यही की... जब मैं शादी के लायक हो जाऊँ... तब वह मुझे व्याह लेगा...
शुभ्रा - क्या... (हैरान हो कर) यु आर इंपसीबल... रीयली... एक मिनट... एक मिनट.... तुम... सिर्फ़ दस साल की थी... तब... तब शायद वह अट्ठारह साल को होगा... आज तुम्हें उसका चेहरा तक ठीक से याद नहीं है... और तुमने उससे वादा लिया था... वह भी शादी का...
रुप - दस साल की थी... पर प्यार... एफेक्शन... अच्छी तरह से समझती थी... एडोलसेंस को भी समझ पा रही थी.... हाँ हम जब जुदा हुए... तब मैं बचपन को छोड़ किशोर पन में जा रही थी.... और अनाम किशोर पन छोड़ कर जवानी में जा रहा था...
शुभ्रा - रुप... क्या अभी भी... तुम्हें अनाम का इंतजार है...
रुप - (चुप रहती है)
शुभ्रा - शायद हाँ.... इसलिए ना... तुमने प्रताप में अनाम को ढूंढने की कोशिश की...
रुप - (कुछ नहीं कहती है अपना चेहरा झुका लेती है)
शुभ्रा - पर रुप... वह अब अट्ठाइस साल का होगा शायद... क्या तुम्हें लगता है... वह वाकई तुम्हारे लिए... कुँवारा बैठा होगा... क्यूंकि था तो वह एक मुलाजिम ही... और उसे क्षेत्रपाल परिवार के बारे में भी जानकारी होगी... ऐसे में... अगर उसकी शादी... यु नो व्हाट आई मीन...
रुप - मैं समझती हूँ... भाभी... मैंने कुछ वादों में से एक वादा ऐसा भी लिया था... के वह कभी किसी और लड़की को मुहँ उठा कर नहीं देखेगा...
शुभ्रा - व्हाट... ओह माय गॉड... रुप... तुम बचपन में ही इतनी शातिर थी...
रुप - (हँसते हुए शर्मा जाती है और अपना सिर झुका लेती है)
शुभ्रा - अब समझ में आ रहा है... तुमको प्रताप में अनाम की झलक क्यूँ दिखी... हम्म...
रुप - (चुप्पी के साथ अपना सिर झुका लेती है)
शुभ्रा - अररे हाँ... बिंगो... रुप अगले महीने तुम्हारा जन्मदिन है... है ना...
रुप - (चेहरा उतर जाता है) हाँ भाभी...
शुभ्रा - ठीक है... भले ही... राजगड़ वाले तुम्हारा जन्मदिन ना मनाया हो... पर तुम्हारी भाभी जरूर मनाएगी...
रुप - मुझे कोई इंट्रेस्ट नहीं है... भाभी...
शुभ्रा - अरे... घबराओ नहीं... भगवान ने चाहा तो सब ठीक हो जाएगा... तुमने सुना नहीं था... अगले महीने प्रताप भी आने वाला होगा... मैं तो कहती हूँ... कुछ ना कुछ कनेक्शन जरूर है...
रुप - कैसा कनेक्शन...
शुभ्रा - जैसे तुम्हें लगा शायद... प्रताप अनाम हो सकता है... वैसे अब मुझे भी लग रहा है...
रुप - (हैरान हो कर) क्या....
शुभ्रा - हाँ... क्यूंकि... मॉल में कितनी लड़कियाँ उसे तक रही थीं... पर उसने किसीकी ओर देखने की जरा भी कोशिश नहीं की...
रुप - (कुछ नहीं कहती, चुप हो जाती है)
शुभ्रा - अच्छा छोड़ो... यह सब हम अगले महीने डिस्कस करेंगे.... यह बताओ... कल से तुम अपने कॉलेज जाओगी... अब तो तुम एफएम 97 की सेलिब्रिटी हो... क्या करोगी....
रुप - (अपनी भाभी के गोद में सिर रख कर) कुछ नहीं भाभी... बस यह रॉकी के टेढ़े मेढ़े येड़े ग्रुप को अच्छे से समझना है

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खाना खा लेने के बाद अनु अपने बेड के पास इधर उधर हो रही है l उसके बेड पर रखे मोबाइल को बार बार देख रही है l आखिर अपने बेड पर बैठ जाती है और एक झिझक के साथ फोन उठाती है l फिर वह वीर की नंबर निकालती है l वीर के नंबर उसके मोबाइल पर राजकुमार नाम से सेव है, उस नंबर को देखते ही अनजाने में ही उसके चेहरे पर एक मुस्कान खिल उठती है l वह फोन डायल करती है, उधर वीर की मोबाइल भी वीर के बेड पर पड़ा हुआ है और वीर भी अपने बेड के पास इधर उधर हो रहा है I जैसे ही उसका फोन बजता है वह धप कर कुद कर फोन के पास पहुँचता है और उसे डिस्पले में स्टुपीड लड़की नाम दिखता है l यह नाम देख कर वह खुश हो जाता है l

वीर - (फोन उठा कर उबासी लेने के स्टाइल में) हैलो...
अनु - रा.. राजकुमार जी... आप सो गए...
वीर - अरे अनु... तुम...
अनु - जी... क्या आप सो गए थे...
वीर - हाँ... तुम्हारे फोन के इंतजार में... मेरी आँख लग गई थी...
अनु - क्या.... सॉरी... सॉरी...... मैंने आपकी नींद खराब कर दी...
वीर - अरे बेवक़ूफ़ लड़की... मैंने कहा कि तुम्हारे फोन के इंतजार में... तो तुम्हें किस बात के लिए फोन पर माफी मांगनी चाहिए थी...
अनु - मुझे क्या पता... आपने ही कहा था कि... रात को सोने से पहले फोन करने के लिए...
वीर - (समझ नहीं पाता क्या कहे) अच्छा अनु जी... आप ने इस वक्त फोन क्यूँ किया...
अनु - जी आपने ही कहा था... सोने से पहले आपकी खैरियत पूछने के लिए...
वीर - अच्छा... तो पूछिये...
अनु - आप ने खाना खा लिया....
वीर - (फोन को बेड पर पटक कर अपना सिर तकिए पर फोड़ ने लगता है)
अनु - राजकुमार जी... राजकुमार जी...
वीर - (फोन को स्पीकर पर डालते हुए) हाँ अनु जी... बोलिए...
अनु - आपने बताया नहीं... क्या खाया...
वीर - वही... वही जो रोज रात को खाता हूँ...
अनु - ओ... पानी भी पी लिया...
वीर - नहीं अब पीने वाला हूँ...
अनु - ओ... तब तो आपको सो जाना चाहिए...
वीर - हाँ... वही तो किया था...
अनु - आपकी नींद टुट गई... इसके लिए मैंने आपसे सॉरी तो कह दिया है ना....
वीर - हाँ... अनु... इस खाने पीने के सिवा... क्या खैरियत पूछने के लिए कुछ भी नहीं है...
अनु - जी... मुझे कुछ सूझ नहीं रहा... आप ही बताइए ना....
वीर - अच्छा मैंने कहा था... जब भी बात करो... अपनी आँखे बंद कर इमेजिन करो... के तुम मेरे सामने हो...
अनु - जी... ओह... मैं तो भूल ही गई थी...
वीर - तो अब...
अनु - तो अब...
वीर - अपनी आँखे बंद करो...
अनु - जी...
वीर - क्या मैं दिख रहा हूँ...
अनु - जी...
वीर - अब पूछो...
अनु - क... क्या...
वीर - कुछ भी...
अनु - आ.. आप..
वीर - हाँ मैं...
अनु - अ.. आप.. क्या कर रहे हैं...
वीर - मैं तुम्हारे पास ही हूँ... तुम्हें देख रहा हूँ... इतना पास... के तुम्हारी सांसों को महसुस कर पा रहा हूँ...
अनु - क.... क्या... (अनु अपनी आँखे खोल देती है) (वह महसुस करती है कि उसकी सांसे भारी होने लगी हैं) वह अपनी फोन बंद कर देती है l

वीर - अनु... अनु... (वीर देखता है फोन कट चुका है)
 
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