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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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ANUJ KUMAR

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सोमवार की सुबह
तापस की क्वार्टर


तापस की नींद टुटती है, वह बेड पर नजर डालता है उसे बेड पर प्रतिभा नहीं मिलती वह घड़ी देखता है सुबह के पांच बजे हैं l तापस उठ कर ड्रॉइंग रुम में आता है, देखता है प्रतिभा अपने दोनों हाथों को सीने पर बांध कर छत की ओर अपना सिर टिकाए आँखे बंद कर सोफ़े पर बैठी हुई है, उसके आँखों के किनारे आंसुओं के बूंद दिख रहे हैं और होठों पर एक मुस्कान ठहरी हुई है l तापस उसके पास बैठ जाता है l

तापस - क्या बात है जान... कल जब से प्रताप को खान के हवाले कर आई हो... तब से तुम अंदर ही अंदर तड़प रही थी... मैं जानता था... पर अब... रिलेक्स... प्रताप इज़ इन सैफ हैंड... अब सिर्फ तीन हफ्ते रह गए हैं... उसके बाद प्रताप हमेशा के लिए छूट जाएगा....
प्रतिभा - (तापस की ओर देखते हुए) जानती हूँ.... पर यह दिल कभी कभी बड़ा स्वार्थी हो जाता है... पानी के बुलबुलों जैसी खुशियाँ जीवन में आ रही है.... अपनी मुट्ठी में कस कर पकड़ने की कोशिश करती हूँ उन लम्हों को... पर रेत की तरह फिसल जाती है... तीन हफ्ते बाद.... प्रताप छूट जाएगा... पर... हमारे साथ सिर्फ एक महीना ही रहेगा... फिर जीवन में वही खाली पन और इंतजार....
तापस - जान... प्रताप एक इंसान नहीं रह गया है... एक आशा है... एक विश्वास है... एक उम्मीद है... एक नया क्रांति है... उस पर हमारा हक़ बाद में आता है.... उस पर राजगड़ के लोगों का हक ज्यादा है... उस पर अपने गांव में बदलाव लाने का संकल्प हावी है... जब तक वह संकल्प पुरा नहीं हो जाता... तब तक वह हमारा हो कर भी हमारा नहीं रह पाएगा...
प्रतिभा - (तापस की हाथ पकड़ लेती है) वह कामयाब हो कर... हमारे पास आ जाएगा ना...
तापस - (प्रतिभा के दोनों हाथों को अपनी हाथों में लेते हुए) हाँ जान हाँ... उस पर कोई आंच नहीं आएगा... अब वह अकेला कहाँ है... हम उसके साथ हैं... उसे हम हारने कैसे दे सकते हैं...
प्रतिभा - हाँ सच कहा आपने... अब बस उसका बार काउंसिल लाइसेंस आ जाए...
तापस - वैसे कितने दिन लगते हैं... लाइसेंस नंबर आने में...
प्रतिभा - तीन महीने...
तापसे - ह्म्म्म्म... लगभग दो महीने यहाँ रहेगा... और गांव जाने के महीने बाद लाइसेंस नंबर आ जाएगा...
प्रतिभा - हाँ... नंबर मिलते ही... हर महकमे में हड़कंप मच जाएगा...
तापस - वह कैसे...
प्रतिभा - जिस एसआईटी को सरकार कोल्ड बॉक्स में डाल कर टाइम पास कर रही है... उस के डेवलपमेंट पर जब प्रताप पीआईएल दाखिल करेगा... बहुतों के हाथों से तोते उड़ जाएंगे...
तापस - हाँ... वह तो है... पर जब पुरानी फाइलें फिर से खुल जाएंगी... उस वक़्त सबसे ज्यादा चौकन्ना... हमे रहना होगा...
प्रतिभा - मतलब...
तापस - किसी भी मोड़ पर हमे प्रताप का कमजोरी नहीं बनना है... उसके साथ... उसके लिए... हमे उसकी ताकत बनना है... मजबूती से उसके साथ डटे रहना है...
प्रतिभा - हाँ... अच्छा... अब हम ज्यादा दिन तक तो इस सरकारी क्वार्टर में नहीं रह सकते... आपने कोई घर देखा है...
तापस - (मुस्कुराते हुए) हाँ... देखा है और बुक भी कर दिया है...

प्रतिभा - क्या... और यह मुझे अब बता रहे हैं...
तापस - वह क्या है कि... मेरी जान अपने प्रताप के साथ खुशी में इस कदर झूम रही थी... मैं उस खुशी का कबाड़ा नहीं करना चाहता था...
प्रतिभा - यह बता दिए होते तो खुशी डबल हो गई होती ना...
तापस - हाँ... हो तो गई होती... फिर उसके बाद आज की तरफ प्रताप के बिछोह में मूड खराब किए होती...
प्रतिभा - अच्छा... तो यह बात आप मुझे कब बताने वाले थे...
तापस - आज ही... लो बता भी दिया...
प्रतिभा - कहाँ लिया...
तापस - पटीया.... रघुनाथपुर के पास... तीन कमरे वाला फ्लैट लिया है...
प्रतिभा - (खुश होते हुए) यह बहुत अच्छा किया आपने... पर तीन कमरे क्यूँ... ज्यादा नहीं हो जाएगा...
तापस - अरे जान... एक हम दोनों के लिए... दुसरा प्रताप के लिए... और तीसरा... तुम दोनों माँ बेटे के लिए... आखिर दोनों एडवोकेट जो हो...
प्रतिभा - वाव.... चलिए... आपने साबित तो किया... आपका दिमाग कभी कभी चलने लगता है...
तापस - ऑए... एडवोकेट मोहतरमा... आपका मतलब क्या है...
प्रतिभा - क्या... (अपनी कमर पर हाथ रखकर) आप मुझसे लड़ना चाहते हैं...
तापस - गुस्ताखी माफ़ जज साहिबा... अब कहिए... गृह प्रवेश कब करना है...
प्रतिभा - वह तो जिस दिन प्रताप छूटेगा... उसी दिन गृह प्रवेश होगा...
तापस - और तब तक... आप क्या करेंगे...
प्रतिभा - प्रताप के लिए... एक अच्छी सी लड़की देखूंगी...
तापस - क्या... (ऐसे चौंकता है जैसे चार सौ चालीस वोल्ट का झटका लगा हो) क्या...
प्रतिभा - आप ऐसे क्यूँ रिएक्शन दे रहे हैं... मैंने ऐसा क्या कह दिया...
तापस - अच्छा... मेरे दिमाग की बात करने वाली... जज साहिबा... आप रिश्ता किससे मांगेगी... हमारे जान पहचान वालों से... क्या कहेंगी... सात साल जैल में रहकर बीए एलएलबी किया है...
प्रतिभा - मैं जानती थी... आप से मेरी खुशियाँ देखी नहीं जाती...
तापस - अच्छा.... तो बताओ... कहाँ से आप अपनी बहु लाएंगी... सीधे लड़की से संबाद करेंगी या उसके माँ बाप से....
प्रतिभा - आप तो ऐसे कह रहे हैं... जैसे भगवान ने मेरे प्रताप के लिए कोई लड़की बनाया ही नहीं...
तापस - अरे भाग्यवान... बनी क्यूँ नहीं होगी... पर अभी.... कैसे...
प्रतिभा - हूं ह्.... मेरा दिल कह रहा है... उसके जीवन में बहुत जल्द कोई आने वाली है.... और देख लेना.... हमारे नए घर में ही उसके शुभ कदम... जल्दी पड़ेंगे...
तापस - अरे भाग्यवान ब्रेक लगाओ... ब्रेक लगाओ... तुम्हारी गाड़ी बहुत फास्ट जा रही है...

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कॉलेज कैंपस में नंदिनी की गाड़ी रुकती है l गाड़ी की दरवाजा खोल कर नंदिनी उतरती है l सभी स्टूडेंट्स की नजर नंदिनी की ओर टिकी हुई है l वजह शनिवार के दिन की रेडियो पर उसकी प्रेजेंटेशन l पर नंदिनी की नजर उसके दोस्तों तलाश रही थी l जब कोई नहीं दिखे तो वह सीधे कैन्टीन की ओर चल दी l कैन्टीन में पहुँच कर देखती है उसकी छटी गैंग के सभी सदस्य एक टेबल पर कब्जा जमाए बैठे हुए हैं l सबको देख कर नंदिनी खुश हो जाती है l टेबल के पास पहुँच कर सबको "हाय" कहती है l सभी उसे देखते हैं और सभी एक साथ अपने अपने होंठ के पउट बना कर सब एक साथ दाहिनी ओर मोड़ कर मुहँ फ़ेर लेती हैं I

नंदिनी - क्या बात है दोस्तों... अगर कुछ शिकवा या शिकायत है... तो गिला करो ना... (एक चेयर पर बैठते हुए)
बनानी - ओ हैलो... आप हैं कौन... हम यहाँ अपनी दोस्त नंदिनी की इंतजार कर रहे हैं...
दीप्ति - और बाय द वे... आप जिस चेयर पर बैठ गई हैं... यह हमारी दोस्त नंदिनी की है... चलो चलो... उठो यहाँ से...

नंदिनी सबको मुस्कराते हुए सुनती है और सर्विस बॉय को आवाज दे कर कहती है

नंदिनी - छोटु.... तीन बटा छह... स्पेशल चाय...
तब्बसुम - देखो तो इस लड़की को... ऐ लड़की कुछ शर्म वर्म है कि नहीं तुझमें...
नंदिनी - नहीं है... पैदाइशी बेशरम हूँ... अब बोलो क्या करोगी...
भाश्वती - अब करना क्या है... अब आप स्टार हो... हम ठहरे गाय... हमें थोड़ी ना घास डालोगी... भई बड़े लोग फोन मिला रहे होंगे... हमारी फोन देख कर स्विच ऑफ मोड अपने आप ऑन हो जाता है... है ना...
नंदिनी - सॉरी यार.. अब माफ़ भी कर दो... अब तुम लोग सजा देना चाहते हो तो दो... पर मुझसे ऐसे दुर मत हो... प्लीज यारों माफ करो..
इतिश्री - कर देंगे कर देंगे... पहले पार्टी का वादा तो करो...
नंदिनी - ठीक है करती हूँ... पर बाहर कहीं नहीं... मेरे घर में...
सब - वह क्यूँ... क्यूँ.. हाँ हाँ क्यूँ...
नंदिनी - (एक गहरी सांस लेते हुए) देखो दोस्तों... मैं तुम लोगों की तरह नहीं हूँ... मेरे बारे में... तुम लोग सब जानते भी हो... मैं काफी रेस्ट्रीकशन्स के बीच पली बढ़ी हूँ... अपनी जिंदगी में कभी इतने लोगों के बीच कोई प्रेजेंटेशन नहीं दी थी... इसलिए जब लकी ड्रॉ हुआ... तब मैं उपरवाले से दुआ मांग रही थी... कि... किसीका भी नाम आए पर मेरा नाम ना आए... पर मेरा नाम चिट में निकला... तभी से मैं नर्वस थी... और प्रेजेंटेशन के बाद जब सब लोगों ने तालियों से जवाब दिया... तो मैं और भी नर्वस हो गई थी... इसलिए मैं वहाँ से भाग गई और अपने भाभी के पास चली गई... खुद को नॉर्मल करने के लिए... बड़ी मुश्किल से नॉर्मल हुई हूँ.... सच कहती हूँ दोस्तों... मैं इस लायक बिल्कुल भी नहीं थी.... किसी से बात कर सकूँ... अगेन सॉरी...
बनानी - कोई नहीं... हम बहुत खुश हैं... तुम्हारा प्रेजेंटेशन तो... क्या कहें यार... वर्ड्स नहीं मिल रहे हैं... एक्सलेंट, मार्वलस...
इतिश्री - रॉब्बीश... इवन यह वर्ड्स भी तेरे प्रेजेंटेशन के आगे छोटे लगते हैं....
दीप्ति - हाँ तभी तो तुझे इतने फोन लगाए... पर तु... असेंबली हॉल से गधे की सिर से सिंग तरह गायब क्या हुई... आज जाकर मिल रही है...

तभी छोटु चाय की छह ग्लास रख कर उनमें चाय डालने लगता है l सबके ग्लास में चाय देने के बाद वहाँ से निकल जाता है l

नंदिनी - इसी लिए तो सॉरी कह रही हूँ... बस यार... बात को खिंचो मत... मैं समझ पा रही हूँ... तुम लोगों के दिल में क्या गुजरी है...
बनानी - ठीक है... ठीक है... हम पता नहीं कबसे.. एक ही टॉपिक के अराउंड घूम रहे हैं... अब बताओ पार्टी कब दे रही हो...
सभी - हाँ हाँ... बोलो बोलो... पार्टी कब दे रही हो...
नंदिनी - ओके... ओके... मैं घर जाकर... एक बार भाभी से पुछ लेती हूँ... उनके साथ बैठ कर प्लान बनाती हूँ... फिर मैं तुम सबको अपने घर में पार्टी दूंगी... ओके...
सभी - ओके... (कह कर सब ताली बजाने लगते हैं)

तभी प्रिन्सिपल ऑफिस का पीओन आता है और सीधे नंदिनी के पास आकर खड़ा हो जाता है l

दीप्ति - क्या हुआ (पीओन से) प्रिन्सिपल साहब ने फिर से याद किया क्या...
पीओन - जी... नंदिनी जी से बात करना चाहते हैं...
नंदिनी - ओके... भैया... आप जाइए मैं पाँच मिनट बाद पहुँच जाऊँगी...

पीओन वहाँ से चला जाता है l उसके जाते ही सभी नंदिनी को देखने लगते हैं l

भाश्वती - सो अब एप्रीसिएशन के लिए... प्रिन्सिपल ऑफिस से बुलावा आया है...
इतिश्री - हाँ... देखना... अब प्रिन्सिपल सर भी पार्टी मांगेंगे...

सभी इतिश्री की बात सुनकर हँस देते हैं l नंदिनी वहाँ से उठ कर प्रिन्सिपल ऑफिस की ओर निकलती है और कैन्टीन के दरवाजे के पास मुड़ कर पीछे देखती है और

नंदिनी - अच्छा... मैं प्रिन्सिपल सर जी से मिल लेने के बाद.... पहले यहाँ आऊंगी... और अगर तुम लोग यहाँ नहीँ मिले तो...
बनानी - सीधे क्लास में आ जाना... वहीँ पर मुलाकात होगी...
नंदिनी - ओके...

इतना कहकर नंदिनी वहाँ से चली जाती है l उसके जाने के बाद दीप्ति बनानी से पूछती है

दीप्ति - वह प्रिन्सिपल के ऑफिस जा रही है... तो तुझे क्यूँ नहीं बुलाया... कम से कम ऑफिस तक तो बुला ही सकती थी...
बनानी - यह कोई बात नहीं हुई... ना जाने कितनी बार वह प्रिन्सिपल के ऑफिस गई है... उसने कभी नहीं बुलाया और ना ही हमने कभी उससे पुछा... दिस इज़ नॉट एन इशू... वह हमे साथ लेकर जाती भी तो क्या होता... हम दरवाजे के बाहर ही होते... इससे बेहतर है कि वह अकेली जा कर आ जाए...
तब्बसुम - ओह या...

दीप्ति चुप हो जाती है l सभी दोस्त चाय खत्म कर इधर उधर की बातों में लग जाते हैं l उधर कॉलेज के दुसरी तरफ रॉकी बाइक स्टैंड से सटे गार्डन में अपने ग्रुप के साथ बैठा हुआ है l

रवि - क्या बात है ड्यूड... नंदिनी की प्रेजेंटेशन हिट होने के बाद... अपना रॉकी कहीं खो गया है...
सुशील - हाँ... प्रोग्राम तो हिट गया.... पर अपना हीरो शॉक्ड हो गया... लगता है... इसे ही उम्मीद नहीं थी... नंदिनी इतनी बेटर प्रेजेंटेशन दे पायेगी...
आशीष - हाँ... प्लान तो यही था... अगर प्रोग्राम हिट गया... तो बधाई देने का... अगर पीट गया तो दुखी नंदिनी को सिसकने के लिए कंधा देने का...
रॉकी - ओह स्टॉप इट... हाँ मैं शॉक्ड हो गया था... सच कहूँ तो... मुझे बिल्कुल इस तरह की... प्रेजेंटेशन की... उम्मीद नहीं थी.... और जब मैं उसे बधाई देना चाहा... तब वह असेंबली हॉल से जा चुकी थी.... यही मेरे चिंता का कारण है... अब अगर उससे मुलाकात हुई... तो मैं क्या कहूँगा और उसका रिएक्शन क्या होगी... अच्छा राजु... तुझे क्या लगता है...

सब राजु की ओर देखने लगते हैं l क्यूँकी पुरे डिस्कशन में राजु सबको सुन तो रहा था पर कोई कमेंट नहीं किया था अब तक l जैसे ही राजु को एहसास होता है कि सब उसे देख रहे हैं

राजु - देख रॉकी... तु जिस लड़की की बात कर रहा है... वह खुद पिंजरे में कैद बुलबुल की जैसी है... वह राजगड़ के स्कुल में क्लास अटेंड करने कभी कभी ही आती थी.... चाहे क्लास हो या एक्जाम... उसके लिए सेपरेट अरेंजमेंट होता था.... वह हम सबसे अलग बैठती थी.... उसके कोई दोस्त नहीं थे.... फ़िर इंटर के तीन साल बाद वह ग्रैजुएशन करने आई है... यहीँ पर उसने पहली बार दोस्त बनाए हैं.... यहाँ इस कॉलेज में उसके साथ जो भी हो रहा है... पहली बार हो रहा है.... इसलिए इस नए हालत से खुदको एडजस्ट करने की कोशिश कर रही है.... उसने ना तो कभी ऐसी भीड़ देखी थी... और ना ही ऐसे कभी किसीके सामने कोई प्रेजेंटेशन दी थी... इसलिए वह जितनी शॉक्ड थी... उतनी ही नर्वस भी.... अब इस वक़्त उसके मन में क्या चल रहा होगा... यह कहना मुश्किल है... सच कहूँ तो... मुझे अब डर लगने लगा है... हमने अब तक जो किया या कर रहे हैं.... क्या वह सही है... कहीं हम उसके दिल में अपने रॉकी के लिए फिलिंग्स जगाने के चक्कर में.... आग से तो नहीं खेल रहे हैं....
रॉकी - हो गया बेड़ा गर्क मेरा... साला कितना लंबा लेक्चर झाड़ दिया... कम्बख्त खुद तो डरा हुआ है... हमको भी डरा रहा है....
आशीष - हाँ यार... हम लोग इतना सोच समझ कर... प्लान एक्जिक्युट कर रहे हैं... कोई गलती हुई नहीं है अब तक... चुक हुई नहीं है अब तक...
रवि - (सबको) चुप रहो सब... (धीरे से) यह कॉलेज है... ऐसी डिस्कशन हम बाहर जाके कर सकते हैं... वह नंदिनी इसी तरफ आ रही है... चुप रहो सब...

सब गार्डन की एंट्रेंस की ओर देखते हैं l नंदिनी वहाँ से इन्हीं के तरफ आ रही है l सब अंदर ही अंदर डरने लगते हैं l नंदिनी सीधे आ कर इन लोगों के सामने खड़ी हो जाती है l

नंदिनी - हाय... हैलो बॉय्स...
सभी - हाय... हैलो...
नंदिनी - (रॉकी से) थैंक्स...
रॉकी - फॉर व्हाट...
नंदिनी - रॉकी... पहली बात... तुम वाकई हीरो हो... फायर एक्सीडेंट में तुमने बनानी को बचाया... टॉक ऑफ द कॉलेज ही नहीं टॉक ऑफ द टाउन हो गए... बेशक हमारे कालेज के सिक्युरिटी अलर्ट पर बहुत नेगेटिव कमेंट्स आए... पर तुमने लास्ट वीक जो रेडियो ब्रॉडकास्ट प्रोग्राम बनाया... जिसके वजह से... हमारे कालेज के लिए अब पॉजिटिव कमेंट्स आ रहे हैं... इसके लिए थैंक्स...
रॉकी - इ... इट्स ओके... अज अ जनरल सेक्रेटरी यह मेरा ड्युटी था... पर यह सब...
नंदिनी - ओ हाँ... अभी अभी मैं प्रिन्सिपल ऑफिस से आ रही हूँ... उन्होंने जितनी एप्रीसिएशन मेरी की... उतनी ही तुम्हारी भी की... वाकई यु आर अ हीरो...
रॉकी - (मुस्कराने की कोशिश करते हुए) थ.. थैंक्स...
नंदिनी - (हाथ को आगे बढ़ा कर) फ्रेंड्स...
रॉकी - (थरथराते हुए हाथ से नंदिनी की हाथ पकड़ कर) फ्रेंड्स...
नंदिनी - सो रॉकी... अगर बुरा ना मानों तो मैं तुम्हें एक फ्रेंडशिप गिफ्ट देना चाहती हूँ...
रॉकी - (हैरान व खुशी के साथ अपने दोस्तों को देखते हुए) जरूर... आई डोंट माइंड...

नंदिनी अपनी पर्स से एक डिजिटल घड़ी निकालती है और रॉकी की बाएं हाथ को हाथ में लेकर बांध देती है l

नंदिनी - अगर फ्रेंडशिप बैंड होता तो... वह बैंड बांध देती... पर हमारी फ्रेंडशिप बहुत वैल्युवल है तो सोचा बैंड भी वैल्युवल होनी चाहिए.... इसलिए मैंने तुम्हारे लिए यह खरीदा है....

नंदिनी के घड़ी पहनाने के बाद रॉकी उस घड़ी को गौर से देखता है l

नंदिनी - यह वेयर हेल्थ वॉच है... फ़िलहाल अभी इसके स्क्रीन पर ब्लू टूथ की डिस्पले ही दिखेगा... जैसे ही तुम अपने मोबाइल फोन को ब्लू टूथ के जरिए इससे कनेक्ट करोगे... तुम्हारे मोबाइल पर एक लिंक आएगा... फिर ऐप स्टोर से इसका ऐप डाउन लोड कर लेना... और उसके हिसाब से प्रोग्राम कर लेना... यह तुम्हारा हेल्थ गार्ड करेगा... हार्ट बीट.. पल्स रेट वगैरह सब बतायेगा... तुम्हारा कैलोरी बर्न के बारे में जानकारी देगा... और तुम्हारे शरीर को पानी कब चाहिए... यह भी अलर्ट कर देगा....
रॉकी - (घड़ी को देखते हुए) वाव...
नंदिनी - ह्म्म्म्म और भी फीचर्स हैं... जितना डीप जाओगे... उतना जान जाओगे...
रॉकी - थैंक्स... नंदिनी... पर इतनी कॉस्टली गिफ्ट...
नंदिनी - तुम दोस्त ही इतने क़ीमती हो... तुम्हारे दोस्ती के आगे... यह मामूली ही है....
रॉकी - (उस डिजिटल घड़ी को देखता ही रहता है)
नंदिनी - और हाँ यह वॉटर प्रूफ़ भी है... चाहो तो चौबीसों घंटे इसे पहन सकते हो... (मुस्कराते हुए) मुझे बहुत खुशी भी होगी... अगर तुम इसे हरदम पहने रहो तो... ओके गॅयस... मैं क्लास जा रही हूँ... एंजॉय योर डे....

इतना कह कर नंदिनी वहाँ से चली जाती है l उसके आँखों से ओझल होते ही सभी रॉकी पर टुट पड़ते हैं l

आशिष - अबे... लौंडे ने मैदान मार लिया रे...
सुशील - हाँ यार... चल आज पार्टी दे दे यार... मैं तो बोलता हूँ... आज रात भर पार्टी करते हैं... साले सिर्फ तीन स्टेप पर ही मंजिल मिल गई...
रवि - अपनी हीरो की तो लॉटरी लग गई

रॉकी शर्माने लगता है l सभी उसके इर्द गिर्द हैइ हैइ चिल्लाते हुए घूमने लगते हैं l

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वीर ऑफिस में अपने कैबिन में पहुँचता है और अपने कुर्सी पर बैठ जाता है l वह अपनी चारो तरफ नजर घुमाने लगता है l उसे कहीं पर भी अनु नहीं दिखती है l वह अपना मोबाइल फोन निकाल कर अनु की नंबर निकाल कर डायल करने को होता है कि उसका फोन बजने लगता है l वीर देखता है महांती का फोन है l

वीर - हाँ... महांती... बोलो क्या हुआ है...
महांती - राजकुमार जी... मैं कब से युवराज जी को फोन लगा रहा हूँ... पर वह नहीं उठा रहे हैं....
वीर - अगर वह नहीं उठा रहे हैं... तो हम क्या करें...
महांती - आपने जैसा कहा था... हमने वैसा ही तो किया... पर एज ESS डायरेक्टर... उन्हें मैं रिपोर्ट करना चाहता था.... पर वह नहीं मिल रहे हैं...
वीर - तो हमे बताओ... हम जब युवराज जी से मिलेंगे... तो उनको बता देंगे...
महांती - ठीक है... उन्हें बता दीजिए... केस नाइंटी पर्सेंट सॉल्व हो गया है... और मैं कल पहुंच कर बाकी रिपोर्ट प्रेजेंट करूंगा....
वीर - वाव... मतलब... हमारे हाथ कुछ मगरमच्छ लगे हैं...
महांती - मगरमच्छ तो नहीं... पर उस मगरमच्छ के साथ देने वाले सब हमारे रेडार पर आ गए हैं...
वीर - गुड... ठीक है... हम युवराज को इंफॉर्म कर देंगे...
महांती - थैंक्यू... राज कुमार... थ.. (वीर फोन काट देता है)

वीर - साला कमीना कबाब में हड्डी... हमेशा रॉंग टाइम पर फोन करता है...

फिर अनु की नंबर निकाल कर डायल करता है l फोन पर रिंग टोन सुनाई देने लगता है l कुछ देर बाद फोन कट जाता है l वीर फिर से डायल करता है l फोन बजने लगता है पर इस बार भी अनु फोन नहीं उठाती है l वीर गुस्से से फोन काट कर अपने रिवॉल्वींग चेयर पर इधर उधर होने लगता है l फिर खीजे हुए मन से विक्रम की कैबिन की ओर जाने लगता है l विक्रम के कैबिन के सामने पहुँचकर दरवाजे पर धक्का देता है l दरवाज़ा नहीं खुलता है तो वह दरवाजे पर दस्तक देता है l तभी वहाँ पर एक गार्ड आता है

गार्ड - राजकुमार जी... युवराज अपने कैबिन में नहीं हैं...
वीर - क्यूँ... अभी तक ऑफिस नहीं गए हैं क्या...
गार्ड - वह कल रात से ही ऑफिस में हैं... शायद घर नहीं गए हैं...
वीर - (हैरान हो कर) क्या... (फिर संभल कर) ओके.. ओके... अभी कहाँ हैं वह...
गार्ड - जी अभी ट्रेनिंग ग्राउंड के पास... ट्रेनिंग हॉल में...
वीर - अच्छा... ओके... अब जाओ... तुम...

वीर मन ही मन सोचने लगता है - क्या... युवराज कल रात भर घर नहीं गए... यह क्या माजरा है... घर पर कोई जानता भी है या नहीं... क्या युवराणी जी को पता है... शायद पता होगा.... पर युवराज और उनके बीच तो बातचीत बंद है.... पता नहीं शायद कबसे... हर रात तो वह युवराज जी को देखने के बाद अपने कमरे में सोने जाते हैं... तो क्या उनको कोई चिंता नहीं हुआ...

ऐसे सोचते सोचते वीर ट्रेनिंग हॉल में पहुँचता है l वहाँ देखता है विक्रम एक चेयर पर पसीने से लथपथ बैठा हुआ है l वीर समझ जाता है विक्रम ने ज़रूर जम कर एक्सर्साइज और प्रैक्टिस की है l वह एक टवेल उठा कर विक्रम के पास पहुंचता है l वीर उसके पास खड़ा है यह विक्रम को एहसास हो जाता है वह वीर की ओर देखता है और वीर के हाथों से टवेल ले कर अपना चेहरा पोंछता है I

विक्रम - कहिए राजकुमार... कैसे आना हुआ...
वीर - वह... महांती का फोन आया था... आपने नहीं उठाया तो उसने मुझे फोन किया...
विक्रम - (अपना फोन निकाल कर मिस कॉल चेक करता है) ह्म्म्म्म... मैंने देखा नहीं था...
वीर - आपके मुहँ से... यह हम के वजाए मैं सुनना... अच्छा नहीं लगता...
विक्रम - आदत डाल लीजिए...
वीर - कभी सोचा है... आप राजा साहब जी के सामने कैसे जाएंगे... क्या उनको समझा पाएंगे कि आपने अपनी मूंछें क्यूँ मुंडवा लिया... या... आप हम के वजाए... मैं क्यूँ कह रहे हैं....
विक्रम - (चुप रहता है)
वीर - आप कल घर भी नहीं गए...
विक्रम - उसे घर क्यूँ कह रहे हैं... राजकुमार... उसे मैंने बड़े चाव से बनाया था ... और उसका नाम द हैल रखा था... मतलब नर्क... अब सचमुच वह नर्क लगने लगा है... क्या करें... अपनी ही करनी है... नर्क भोग रहे हैं....
वीर - आप... ऐसे क्यूँ बात कर रहे हैं...
विक्रम - (एक नजर वीर पर डालता है और) जानते हैं... राजकुमार... आप मुझसे... बातों से, सोच में और ज़ज्बात समझने में... बहुत आगे हैं... कभी कभी मुझे आपसे जलन होती है...
वीर - यह... यह आप कैसी... बहकी बहकी बातेँ कर रहे हैं....
विक्रम - हाँ... राजकुमारजी... हाँ... आपकी हर सोच हमेशा युनीडाइरेक्शनल होता है... फोकस्ड रहता है... पर मैं... मैं हमेशा खुद को दो राहे पर पाता रहा हूँ... खुद को भटका हुआ महसुस करता हूँ...
वीर - युवराज जी... प्लीज आप ऐसे बातेँ मत कीजिए.... आप हमेशा मेरे आईडल रहे हैं... मैं तो आपको फॉलो कर रहा हूँ...
विक्रम - (दर्द भरे आवाज़ में) मत कीजिए फॉलो मुझे... आई एम अ लुज़र...
वीर - प्लीज...
विक्रम - ना दिल जीत पाया... ना दुनिया...
वीर - युवराज जी.... आप को क्या हो गया है... आप मुझे बताइए क्या हुआ था उस दिन... किस तरह से तोड़ कर रख दिया है आपको... मैं... मैं उसे नहीं छोड़ूंगा...
विक्रम - (चीख कर) नहीं... (नॉर्मल होते हुए) नहीं... वह मेरा है... उसने मेरे शख्सियत से क्षेत्रपाल को नोंच फेंका है... मेरी वज़ूद को झिंझोडा है... उसे मैं ही निपटुंगा....
वीर - ऐसा क्यूँ... युवराज... ऐसा क्यूँ...

विक्रम वीर को ओरायन मॉल के पार्किंग एरिया में हुए पुरे वाक्या का विवरण देता है, सिवाय नाम के l वीर सब सुनने के बाद कुछ सोच में पड़ जाता है l

वीर - ओ... युवराणी जी का उस शख्स के आगे हाथ जोड़ना...(चुप हो जाता है)
विक्रम - हूँ... जानते हैं राजकुमार... एक दिन मैंने फैसला किया था... मैं अपने लिए कुछ नहीं करूँगा... सिर्फ़ वही करूँगा... जिससे भैरव सिंह क्षेत्रपाल जी के नाम का सिक्का चले... इन छह सालों में... मैंने वही किया... पर उस शख्स ने... क्षेत्रपाल के साये में दबे... मेरे वज़ूद को ललकारा है... इसलिए जब तक उसे विक्रम ज़वाब नहीं दे देता... तब तक विक्रम को क्षेत्रपाल नाम ढोने का हक भी नहीं है...
वीर - (उसे हैरानी से देखता रहता है, क्यूंकि हर लफ्ज़ के साथ साथ विक्रम के चेहरे पर भाव गम्भीर होता जा रहा था)
विक्रम - इसीलिए मैं यहीँ अपने वज़ूद को तलाश रहा हूँ... तराश रहा हूँ... अब मेरी सोच किसी दोराहे पर नहीं है... मुझे बस... उस शख्स को मुहँ तोड़ ज़वाब देना है...
वीर - पर अब आप घर कब तक नहीं जाएंगे...
विक्रम - (वीर के तरफ देख कर हल्की सी हँसी हँसता है) आपको कब मालुम हुआ... मैं घर नहीं गया हूँ...
वीर - (अपना सिर झुका लेता है) य... यहीं... थोड़ी देर पहले...
विक्रम - हा हा हा हा... देखा वह घर नहीं है... वह नर्क है... द हैल... जिसे मैंने बनाया है... वहाँ मेरे खुन के रिश्ते में लोग रहते हैं... और दिल के रिश्ते में कोई रहती है... पर किसीको को खबर नहीं थी...(विक्रम के आवाज में दर्द निकल आता है) किसीको इंतजार नहीं थी....
वीर - (कुछ कह नहीं पाता)
विक्रम - अब आप जाएं राजकुमार.... अब आप जाएं... (ना चाहते हुए भी वीर वहाँ से उठ कर जाने लगता है) बस एक फेवर कीजिएगा... (वीर पीछे मुड़ कर देखता है) कुछ दिनों के लिए ESS को पुरी तरह से आप ही संभालीये...

वीर अपने दिल में एक भारी पन महसुस करने लगता है l भारी मन लिए अपने कैबिन में पहुँचता है और अपने चेयर पर बैठ कर विक्रम की कहे बातों पर सोचने लगता है l विक्रम की बातों को सोचते सोचते वह अपने बचपन में पहुँच जाता है l

फ्लैशबैक

बचपन में एक दिन
अपनी गुड़िया सी नन्ही बहन के साथ खेल रहा था तभी पिनाक सिंह उसके पास आकर

पिनाक - (ऊंची आवाज़ में) राज कुमार...
वीर - जी.. जी छोटे राजा जी....
पिनाक - अब आपका खेलने का समय खतम हो चुका है.... पढ़ाई के लिए आपको युवराज जी के पास कलकत्ता जाना पड़ेगा...
वीर - क्या रुप भी हमारे साथ जाएगी...
पिनाक - (ऊंची आवाज़ में) खबरदार... (ऊंची आवाज़ से नन्ही रुप रोने लगती है) हमारे वंश में लड़कीयों को पढ़ने लिखने की इजाज़त नहीं है... और यह क्या रुप कह रहे हैं...
वीर - हमारी छोटी बहन है.... तो हम क्या कहें...
पिनाक - राजकुमारी कहेंगे... राजवंशीयों के बीच रिश्ते नहीं ओहदे होते हैं... और जब कलकत्ता जायेंगे वहीँ पर... युवराज जी को युवराज ही कहेंगे... भाई या भैया नहीं...

फ्लैशबैक खतम

वीर को विक्रम के भीतर का दर्द महसूस होने लगता है l वह अपने इसी सोच में खोया हुआ है तभी उसे एहसास होता है कि उसके सामने बैठे दो बड़ी बड़ी हिरनी जैसी आँखे घूर रही हैं l वह उन आँखों को देखने लगता है l जैसे ही वह आँखे झपकने लगती हैं वीर के होठों पर हल्की सी मुस्कराहट आकर ठहर जाता है l

अनु - अहेम... अहेम...
वीर - (फिर भी उसकी आंखों को निहार रहा है)
अनु - (धीरे से) राज कुमार जी...
वीर - (कोई जवाब नहीं देता)
अनु - राजकुमार जी (थोड़ी ऊंची आवाज में)
वीर - (ध्यान टुटता है) हूँ.. हाँ... क्या... क्या हुआ..
अनु - आप मुझसे गुस्सा हैं ना...
वीर - क्यूँ...
अनु - (झिझकते हुए) वह मैंने कल... (जल्दी जल्दी) मुझसे फोन कट गया...
वीर - हूँ... ठीक है...
अनु - (धीरे से) आपको बुरा लगा...
वीर - हाँ... नहीं... नहीं... (थोड़ी देर चुप रहने के बाद) अनु...
अनु - जी...
वीर - अपनी बचपन के बारे में कुछ कहो...
अनु - (हैरान हो कर) जी...
वीर - मेरा मतलब... तुम्हारा बचपन कैसा था... अनु...
अनु - (चेहरे पर एक भोली सी मुस्कान लिए) अपना बचपन किसे अच्छा नहीं लगता राजकुमार जी... वह बचपन जहां हर जिद पुरी होती थी... रोने पर बापू मुझे बुड्ढी के बाल लाकर देते थे... जब मेला लगता था... अपनी कंधे पर बिठा कर मेला दिखाते थे... (फिर चहकते हुए) बचपन में पता नहीं कितने खेल खेलते थे... घो घो राणी... लुका छुपी... बहु चोरी.... क्या बताऊँ कितना मजा आता था... हमारे पास वाले गली में एक आम का बाग होता था... जब जब आम चोरी करने जाते थे... बड़ा मजा आता था... कभी कभी पकड़े भी जाते थे... फिर भी आम चोरी नहीं छोड़ा था... पर ज्यों ज्यों उम्र बढ़ती गई... दादी ने मेरा बाहर जाना और सहेलियों के साथ खेलने पर पाबंदी लगा दी...
वीर - वाकई... तुम्हारा बचपन लाजवाब था... सबकी बचपन ऐसी नहीं होती... (कह कर वीर चुप हो जाता है)
अनु - (झिझकते हुए) आ.. आप.. का बचपन...
वीर - नहीं अनु... हमारी जैसी बचपन किसीको नसीब ना हो... सब-कुछ आँखों के सामने होता है... हाथ की पहुँच में होते हुए भी... कुछ हासिल नहीं होता है... बड़े बदनसीब होते हैं हम जैसे...
अनु - (हैरानी से आँखे फैल जाती है) आ... आप तो... राजकुमार हैं ना...
वीर - हाँ अनु... यही अभिशाप लेकर हम जी रहे हैं....

फिर कुछ देर तक चुप्पी छा जाती है l वीर और अनु एक दुसरे को देखने लगते हैं l

वीर - तुम कब आई अनु...
अनु - (शर्मा जाती है) वह आई तो थी... पर...
वीर - पर... आज मेरी फोन भी नहीं उठाया...
अनु - वह आ.. आपके सामने आ... आने से मुझे शर्म आ रही थी...
वीर - क्यूँ... मैंने क्या किया...
अनु - (गाल लाल हो जाती हैं, अपना सिर झुका लेती है)

वीर को याद आता है अनु से उसके क्या कहा था l वीर के चेहरे पर फ़िर से मुस्कराहट आ जाती है l

वीर - अनु....
अनु - (अपना सिर झुकाए) हूँ...
वीर - अच्छा मान लो... फिर से बचपन जीने का मौका मिला... तो क्या करोगी...
अनु - (अपना चेहरा उठाकर चहकते हुए) तब तो मजा ही आ जाए.. मैं तो पहले किसी झूले में झूला झूलती... फ़िर समंदर के किनारे रेत की घर बनाती... फिर... बुड्ढी के बाल ख़ुद बना कर खाती.... फिर से आम चोरी करती.... पता नहीं क्या क्या करती....
वीर - (अनु की बातों को गौर से सुनता रहता है)
अनु - (वीर को अपने तरफ देखते हुए पाती है) आप ऐसे क्या देख रहे हैं...
वीर - तुममें अभी भी बहुत बचपना है... लगता ही नहीं के तुम बड़ी हो गई हो... बस शरीर से बड़ी दिखती हो... और जब जब शर्माती हो... तभी शायद तुमको एहसास होता है... की तुम अब बच्ची नहीं रही हो...
अनु - (फ़िर से शर्मा कर अपना सिर झुका लेती है, और चोरी चोरी वीर को देखने लगती है)
वीर - अच्छा अनु...
अनु - हूँ...
वीर - जब तुम अपनी बचपन को दोबारा जीना चाहोगी... मुझसे जरूर कहना...
अनु - (हैरानी से) क्यूँ... मतलब कैसे...
वीर - मैं... तुम्हारे साथ... एक दिन के लिए... अपना खोया हुआ बचपन जीना चाहता हूँ... वह बचपन जिसकी ख्वाहिश तो थी पर.... कभी जी नहीं पाया...
अनु - (हैरान हो कर) आप मेरे साथ... हम दोस्त भी नहीं हैं...
वीर - तो बना लो ना...
अनु - आप लड़के हैं... और मैं लड़की... हमारे बीच दोस्ती थोड़ी ना हो सकती है...
वीर - क्यूँ... क्यूँ नहीं हो सकती...
अनु - ह... हम... बच्चे नहीं हैं...
वीर - बच्चे होते... तो हो सकते थे...
अनु - हाँ...
वीर - मैं वही तो कह रहा हूँ... बस एक दिन... तुम्हरी ख्वाहिशों की तरह... तुम्हारे साथ बचपन जीना चाहता हूँ...
अनु - वह सब तो मैं... अपनी किसी सहेली के साथ.... (चुप हो जाती है)
वीर - तो एक काम करो... मुझे अपना सहेला बना दो...
अनु - जी... सहेला मतलब...
वीर - लड़की दोस्त हो.. तो सहेली होती है.... और लड़का दोस्त हो... तो सहेला... क्यूँ है ना...
अनु - (हैरान हो कर) ऐसा थोडे ना होता है...
वीर - फिर कैसा होता है...
अनु - (कुछ नहीं कहती, बिल्कुल चुप हो जाती है)
वीर - अनु.... (वैसे ही सिर झुकाए बैठी रहती है) कब जाना है... कहाँ जाना है... क्या क्या करना है... यह मैं पुरी तरह से तुम पर छोड़ता हूँ... यूँ समझ लो... यह मेरी एक ऐसी ख्वाहिश है... जो मैं जीना चाहता हूँ... भले ही तुम मेरी पर्सनल सेक्रेटरी हो... पर यह बात मैं पुरी तरह से तुम पर छोड़ता हूँ... मुझे बस एक दिन एक बच्चा बन कर बचपन को जीना है...
 

Rajesh

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सोमवार की सुबह
तापस की क्वार्टर


तापस की नींद टुटती है, वह बेड पर नजर डालता है उसे बेड पर प्रतिभा नहीं मिलती वह घड़ी देखता है सुबह के पांच बजे हैं l तापस उठ कर ड्रॉइंग रुम में आता है, देखता है प्रतिभा अपने दोनों हाथों को सीने पर बांध कर छत की ओर अपना सिर टिकाए आँखे बंद कर सोफ़े पर बैठी हुई है, उसके आँखों के किनारे आंसुओं के बूंद दिख रहे हैं और होठों पर एक मुस्कान ठहरी हुई है l तापस उसके पास बैठ जाता है l

तापस - क्या बात है जान... कल जब से प्रताप को खान के हवाले कर आई हो... तब से तुम अंदर ही अंदर तड़प रही थी... मैं जानता था... पर अब... रिलेक्स... प्रताप इज़ इन सैफ हैंड... अब सिर्फ तीन हफ्ते रह गए हैं... उसके बाद प्रताप हमेशा के लिए छूट जाएगा....
प्रतिभा - (तापस की ओर देखते हुए) जानती हूँ.... पर यह दिल कभी कभी बड़ा स्वार्थी हो जाता है... पानी के बुलबुलों जैसी खुशियाँ जीवन में आ रही है.... अपनी मुट्ठी में कस कर पकड़ने की कोशिश करती हूँ उन लम्हों को... पर रेत की तरह फिसल जाती है... तीन हफ्ते बाद.... प्रताप छूट जाएगा... पर... हमारे साथ सिर्फ एक महीना ही रहेगा... फिर जीवन में वही खाली पन और इंतजार....
तापस - जान... प्रताप एक इंसान नहीं रह गया है... एक आशा है... एक विश्वास है... एक उम्मीद है... एक नया क्रांति है... उस पर हमारा हक़ बाद में आता है.... उस पर राजगड़ के लोगों का हक ज्यादा है... उस पर अपने गांव में बदलाव लाने का संकल्प हावी है... जब तक वह संकल्प पुरा नहीं हो जाता... तब तक वह हमारा हो कर भी हमारा नहीं रह पाएगा...
प्रतिभा - (तापस की हाथ पकड़ लेती है) वह कामयाब हो कर... हमारे पास आ जाएगा ना...
तापस - (प्रतिभा के दोनों हाथों को अपनी हाथों में लेते हुए) हाँ जान हाँ... उस पर कोई आंच नहीं आएगा... अब वह अकेला कहाँ है... हम उसके साथ हैं... उसे हम हारने कैसे दे सकते हैं...
प्रतिभा - हाँ सच कहा आपने... अब बस उसका बार काउंसिल लाइसेंस आ जाए...
तापस - वैसे कितने दिन लगते हैं... लाइसेंस नंबर आने में...
प्रतिभा - तीन महीने...
तापसे - ह्म्म्म्म... लगभग दो महीने यहाँ रहेगा... और गांव जाने के महीने बाद लाइसेंस नंबर आ जाएगा...
प्रतिभा - हाँ... नंबर मिलते ही... हर महकमे में हड़कंप मच जाएगा...
तापस - वह कैसे...
प्रतिभा - जिस एसआईटी को सरकार कोल्ड बॉक्स में डाल कर टाइम पास कर रही है... उस के डेवलपमेंट पर जब प्रताप पीआईएल दाखिल करेगा... बहुतों के हाथों से तोते उड़ जाएंगे...
तापस - हाँ... वह तो है... पर जब पुरानी फाइलें फिर से खुल जाएंगी... उस वक़्त सबसे ज्यादा चौकन्ना... हमे रहना होगा...
प्रतिभा - मतलब...
तापस - किसी भी मोड़ पर हमे प्रताप का कमजोरी नहीं बनना है... उसके साथ... उसके लिए... हमे उसकी ताकत बनना है... मजबूती से उसके साथ डटे रहना है...
प्रतिभा - हाँ... अच्छा... अब हम ज्यादा दिन तक तो इस सरकारी क्वार्टर में नहीं रह सकते... आपने कोई घर देखा है...
तापस - (मुस्कुराते हुए) हाँ... देखा है और बुक भी कर दिया है...

प्रतिभा - क्या... और यह मुझे अब बता रहे हैं...
तापस - वह क्या है कि... मेरी जान अपने प्रताप के साथ खुशी में इस कदर झूम रही थी... मैं उस खुशी का कबाड़ा नहीं करना चाहता था...
प्रतिभा - यह बता दिए होते तो खुशी डबल हो गई होती ना...
तापस - हाँ... हो तो गई होती... फिर उसके बाद आज की तरफ प्रताप के बिछोह में मूड खराब किए होती...
प्रतिभा - अच्छा... तो यह बात आप मुझे कब बताने वाले थे...
तापस - आज ही... लो बता भी दिया...
प्रतिभा - कहाँ लिया...
तापस - पटीया.... रघुनाथपुर के पास... तीन कमरे वाला फ्लैट लिया है...
प्रतिभा - (खुश होते हुए) यह बहुत अच्छा किया आपने... पर तीन कमरे क्यूँ... ज्यादा नहीं हो जाएगा...
तापस - अरे जान... एक हम दोनों के लिए... दुसरा प्रताप के लिए... और तीसरा... तुम दोनों माँ बेटे के लिए... आखिर दोनों एडवोकेट जो हो...
प्रतिभा - वाव.... चलिए... आपने साबित तो किया... आपका दिमाग कभी कभी चलने लगता है...
तापस - ऑए... एडवोकेट मोहतरमा... आपका मतलब क्या है...
प्रतिभा - क्या... (अपनी कमर पर हाथ रखकर) आप मुझसे लड़ना चाहते हैं...
तापस - गुस्ताखी माफ़ जज साहिबा... अब कहिए... गृह प्रवेश कब करना है...
प्रतिभा - वह तो जिस दिन प्रताप छूटेगा... उसी दिन गृह प्रवेश होगा...
तापस - और तब तक... आप क्या करेंगे...
प्रतिभा - प्रताप के लिए... एक अच्छी सी लड़की देखूंगी...
तापस - क्या... (ऐसे चौंकता है जैसे चार सौ चालीस वोल्ट का झटका लगा हो) क्या...
प्रतिभा - आप ऐसे क्यूँ रिएक्शन दे रहे हैं... मैंने ऐसा क्या कह दिया...
तापस - अच्छा... मेरे दिमाग की बात करने वाली... जज साहिबा... आप रिश्ता किससे मांगेगी... हमारे जान पहचान वालों से... क्या कहेंगी... सात साल जैल में रहकर बीए एलएलबी किया है...
प्रतिभा - मैं जानती थी... आप से मेरी खुशियाँ देखी नहीं जाती...
तापस - अच्छा.... तो बताओ... कहाँ से आप अपनी बहु लाएंगी... सीधे लड़की से संबाद करेंगी या उसके माँ बाप से....
प्रतिभा - आप तो ऐसे कह रहे हैं... जैसे भगवान ने मेरे प्रताप के लिए कोई लड़की बनाया ही नहीं...
तापस - अरे भाग्यवान... बनी क्यूँ नहीं होगी... पर अभी.... कैसे...
प्रतिभा - हूं ह्.... मेरा दिल कह रहा है... उसके जीवन में बहुत जल्द कोई आने वाली है.... और देख लेना.... हमारे नए घर में ही उसके शुभ कदम... जल्दी पड़ेंगे...
तापस - अरे भाग्यवान ब्रेक लगाओ... ब्रेक लगाओ... तुम्हारी गाड़ी बहुत फास्ट जा रही है...

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कॉलेज कैंपस में नंदिनी की गाड़ी रुकती है l गाड़ी की दरवाजा खोल कर नंदिनी उतरती है l सभी स्टूडेंट्स की नजर नंदिनी की ओर टिकी हुई है l वजह शनिवार के दिन की रेडियो पर उसकी प्रेजेंटेशन l पर नंदिनी की नजर उसके दोस्तों तलाश रही थी l जब कोई नहीं दिखे तो वह सीधे कैन्टीन की ओर चल दी l कैन्टीन में पहुँच कर देखती है उसकी छटी गैंग के सभी सदस्य एक टेबल पर कब्जा जमाए बैठे हुए हैं l सबको देख कर नंदिनी खुश हो जाती है l टेबल के पास पहुँच कर सबको "हाय" कहती है l सभी उसे देखते हैं और सभी एक साथ अपने अपने होंठ के पउट बना कर सब एक साथ दाहिनी ओर मोड़ कर मुहँ फ़ेर लेती हैं I

नंदिनी - क्या बात है दोस्तों... अगर कुछ शिकवा या शिकायत है... तो गिला करो ना... (एक चेयर पर बैठते हुए)
बनानी - ओ हैलो... आप हैं कौन... हम यहाँ अपनी दोस्त नंदिनी की इंतजार कर रहे हैं...
दीप्ति - और बाय द वे... आप जिस चेयर पर बैठ गई हैं... यह हमारी दोस्त नंदिनी की है... चलो चलो... उठो यहाँ से...

नंदिनी सबको मुस्कराते हुए सुनती है और सर्विस बॉय को आवाज दे कर कहती है

नंदिनी - छोटु.... तीन बटा छह... स्पेशल चाय...
तब्बसुम - देखो तो इस लड़की को... ऐ लड़की कुछ शर्म वर्म है कि नहीं तुझमें...
नंदिनी - नहीं है... पैदाइशी बेशरम हूँ... अब बोलो क्या करोगी...
भाश्वती - अब करना क्या है... अब आप स्टार हो... हम ठहरे गाय... हमें थोड़ी ना घास डालोगी... भई बड़े लोग फोन मिला रहे होंगे... हमारी फोन देख कर स्विच ऑफ मोड अपने आप ऑन हो जाता है... है ना...
नंदिनी - सॉरी यार.. अब माफ़ भी कर दो... अब तुम लोग सजा देना चाहते हो तो दो... पर मुझसे ऐसे दुर मत हो... प्लीज यारों माफ करो..
इतिश्री - कर देंगे कर देंगे... पहले पार्टी का वादा तो करो...
नंदिनी - ठीक है करती हूँ... पर बाहर कहीं नहीं... मेरे घर में...
सब - वह क्यूँ... क्यूँ.. हाँ हाँ क्यूँ...
नंदिनी - (एक गहरी सांस लेते हुए) देखो दोस्तों... मैं तुम लोगों की तरह नहीं हूँ... मेरे बारे में... तुम लोग सब जानते भी हो... मैं काफी रेस्ट्रीकशन्स के बीच पली बढ़ी हूँ... अपनी जिंदगी में कभी इतने लोगों के बीच कोई प्रेजेंटेशन नहीं दी थी... इसलिए जब लकी ड्रॉ हुआ... तब मैं उपरवाले से दुआ मांग रही थी... कि... किसीका भी नाम आए पर मेरा नाम ना आए... पर मेरा नाम चिट में निकला... तभी से मैं नर्वस थी... और प्रेजेंटेशन के बाद जब सब लोगों ने तालियों से जवाब दिया... तो मैं और भी नर्वस हो गई थी... इसलिए मैं वहाँ से भाग गई और अपने भाभी के पास चली गई... खुद को नॉर्मल करने के लिए... बड़ी मुश्किल से नॉर्मल हुई हूँ.... सच कहती हूँ दोस्तों... मैं इस लायक बिल्कुल भी नहीं थी.... किसी से बात कर सकूँ... अगेन सॉरी...
बनानी - कोई नहीं... हम बहुत खुश हैं... तुम्हारा प्रेजेंटेशन तो... क्या कहें यार... वर्ड्स नहीं मिल रहे हैं... एक्सलेंट, मार्वलस...
इतिश्री - रॉब्बीश... इवन यह वर्ड्स भी तेरे प्रेजेंटेशन के आगे छोटे लगते हैं....
दीप्ति - हाँ तभी तो तुझे इतने फोन लगाए... पर तु... असेंबली हॉल से गधे की सिर से सिंग तरह गायब क्या हुई... आज जाकर मिल रही है...

तभी छोटु चाय की छह ग्लास रख कर उनमें चाय डालने लगता है l सबके ग्लास में चाय देने के बाद वहाँ से निकल जाता है l

नंदिनी - इसी लिए तो सॉरी कह रही हूँ... बस यार... बात को खिंचो मत... मैं समझ पा रही हूँ... तुम लोगों के दिल में क्या गुजरी है...
बनानी - ठीक है... ठीक है... हम पता नहीं कबसे.. एक ही टॉपिक के अराउंड घूम रहे हैं... अब बताओ पार्टी कब दे रही हो...
सभी - हाँ हाँ... बोलो बोलो... पार्टी कब दे रही हो...
नंदिनी - ओके... ओके... मैं घर जाकर... एक बार भाभी से पुछ लेती हूँ... उनके साथ बैठ कर प्लान बनाती हूँ... फिर मैं तुम सबको अपने घर में पार्टी दूंगी... ओके...
सभी - ओके... (कह कर सब ताली बजाने लगते हैं)

तभी प्रिन्सिपल ऑफिस का पीओन आता है और सीधे नंदिनी के पास आकर खड़ा हो जाता है l

दीप्ति - क्या हुआ (पीओन से) प्रिन्सिपल साहब ने फिर से याद किया क्या...
पीओन - जी... नंदिनी जी से बात करना चाहते हैं...
नंदिनी - ओके... भैया... आप जाइए मैं पाँच मिनट बाद पहुँच जाऊँगी...

पीओन वहाँ से चला जाता है l उसके जाते ही सभी नंदिनी को देखने लगते हैं l

भाश्वती - सो अब एप्रीसिएशन के लिए... प्रिन्सिपल ऑफिस से बुलावा आया है...
इतिश्री - हाँ... देखना... अब प्रिन्सिपल सर भी पार्टी मांगेंगे...

सभी इतिश्री की बात सुनकर हँस देते हैं l नंदिनी वहाँ से उठ कर प्रिन्सिपल ऑफिस की ओर निकलती है और कैन्टीन के दरवाजे के पास मुड़ कर पीछे देखती है और

नंदिनी - अच्छा... मैं प्रिन्सिपल सर जी से मिल लेने के बाद.... पहले यहाँ आऊंगी... और अगर तुम लोग यहाँ नहीँ मिले तो...
बनानी - सीधे क्लास में आ जाना... वहीँ पर मुलाकात होगी...
नंदिनी - ओके...

इतना कहकर नंदिनी वहाँ से चली जाती है l उसके जाने के बाद दीप्ति बनानी से पूछती है

दीप्ति - वह प्रिन्सिपल के ऑफिस जा रही है... तो तुझे क्यूँ नहीं बुलाया... कम से कम ऑफिस तक तो बुला ही सकती थी...
बनानी - यह कोई बात नहीं हुई... ना जाने कितनी बार वह प्रिन्सिपल के ऑफिस गई है... उसने कभी नहीं बुलाया और ना ही हमने कभी उससे पुछा... दिस इज़ नॉट एन इशू... वह हमे साथ लेकर जाती भी तो क्या होता... हम दरवाजे के बाहर ही होते... इससे बेहतर है कि वह अकेली जा कर आ जाए...
तब्बसुम - ओह या...

दीप्ति चुप हो जाती है l सभी दोस्त चाय खत्म कर इधर उधर की बातों में लग जाते हैं l उधर कॉलेज के दुसरी तरफ रॉकी बाइक स्टैंड से सटे गार्डन में अपने ग्रुप के साथ बैठा हुआ है l

रवि - क्या बात है ड्यूड... नंदिनी की प्रेजेंटेशन हिट होने के बाद... अपना रॉकी कहीं खो गया है...
सुशील - हाँ... प्रोग्राम तो हिट गया.... पर अपना हीरो शॉक्ड हो गया... लगता है... इसे ही उम्मीद नहीं थी... नंदिनी इतनी बेटर प्रेजेंटेशन दे पायेगी...
आशीष - हाँ... प्लान तो यही था... अगर प्रोग्राम हिट गया... तो बधाई देने का... अगर पीट गया तो दुखी नंदिनी को सिसकने के लिए कंधा देने का...
रॉकी - ओह स्टॉप इट... हाँ मैं शॉक्ड हो गया था... सच कहूँ तो... मुझे बिल्कुल इस तरह की... प्रेजेंटेशन की... उम्मीद नहीं थी.... और जब मैं उसे बधाई देना चाहा... तब वह असेंबली हॉल से जा चुकी थी.... यही मेरे चिंता का कारण है... अब अगर उससे मुलाकात हुई... तो मैं क्या कहूँगा और उसका रिएक्शन क्या होगी... अच्छा राजु... तुझे क्या लगता है...

सब राजु की ओर देखने लगते हैं l क्यूँकी पुरे डिस्कशन में राजु सबको सुन तो रहा था पर कोई कमेंट नहीं किया था अब तक l जैसे ही राजु को एहसास होता है कि सब उसे देख रहे हैं

राजु - देख रॉकी... तु जिस लड़की की बात कर रहा है... वह खुद पिंजरे में कैद बुलबुल की जैसी है... वह राजगड़ के स्कुल में क्लास अटेंड करने कभी कभी ही आती थी.... चाहे क्लास हो या एक्जाम... उसके लिए सेपरेट अरेंजमेंट होता था.... वह हम सबसे अलग बैठती थी.... उसके कोई दोस्त नहीं थे.... फ़िर इंटर के तीन साल बाद वह ग्रैजुएशन करने आई है... यहीँ पर उसने पहली बार दोस्त बनाए हैं.... यहाँ इस कॉलेज में उसके साथ जो भी हो रहा है... पहली बार हो रहा है.... इसलिए इस नए हालत से खुदको एडजस्ट करने की कोशिश कर रही है.... उसने ना तो कभी ऐसी भीड़ देखी थी... और ना ही ऐसे कभी किसीके सामने कोई प्रेजेंटेशन दी थी... इसलिए वह जितनी शॉक्ड थी... उतनी ही नर्वस भी.... अब इस वक़्त उसके मन में क्या चल रहा होगा... यह कहना मुश्किल है... सच कहूँ तो... मुझे अब डर लगने लगा है... हमने अब तक जो किया या कर रहे हैं.... क्या वह सही है... कहीं हम उसके दिल में अपने रॉकी के लिए फिलिंग्स जगाने के चक्कर में.... आग से तो नहीं खेल रहे हैं....
रॉकी - हो गया बेड़ा गर्क मेरा... साला कितना लंबा लेक्चर झाड़ दिया... कम्बख्त खुद तो डरा हुआ है... हमको भी डरा रहा है....
आशीष - हाँ यार... हम लोग इतना सोच समझ कर... प्लान एक्जिक्युट कर रहे हैं... कोई गलती हुई नहीं है अब तक... चुक हुई नहीं है अब तक...
रवि - (सबको) चुप रहो सब... (धीरे से) यह कॉलेज है... ऐसी डिस्कशन हम बाहर जाके कर सकते हैं... वह नंदिनी इसी तरफ आ रही है... चुप रहो सब...

सब गार्डन की एंट्रेंस की ओर देखते हैं l नंदिनी वहाँ से इन्हीं के तरफ आ रही है l सब अंदर ही अंदर डरने लगते हैं l नंदिनी सीधे आ कर इन लोगों के सामने खड़ी हो जाती है l

नंदिनी - हाय... हैलो बॉय्स...
सभी - हाय... हैलो...
नंदिनी - (रॉकी से) थैंक्स...
रॉकी - फॉर व्हाट...
नंदिनी - रॉकी... पहली बात... तुम वाकई हीरो हो... फायर एक्सीडेंट में तुमने बनानी को बचाया... टॉक ऑफ द कॉलेज ही नहीं टॉक ऑफ द टाउन हो गए... बेशक हमारे कालेज के सिक्युरिटी अलर्ट पर बहुत नेगेटिव कमेंट्स आए... पर तुमने लास्ट वीक जो रेडियो ब्रॉडकास्ट प्रोग्राम बनाया... जिसके वजह से... हमारे कालेज के लिए अब पॉजिटिव कमेंट्स आ रहे हैं... इसके लिए थैंक्स...
रॉकी - इ... इट्स ओके... अज अ जनरल सेक्रेटरी यह मेरा ड्युटी था... पर यह सब...
नंदिनी - ओ हाँ... अभी अभी मैं प्रिन्सिपल ऑफिस से आ रही हूँ... उन्होंने जितनी एप्रीसिएशन मेरी की... उतनी ही तुम्हारी भी की... वाकई यु आर अ हीरो...
रॉकी - (मुस्कराने की कोशिश करते हुए) थ.. थैंक्स...
नंदिनी - (हाथ को आगे बढ़ा कर) फ्रेंड्स...
रॉकी - (थरथराते हुए हाथ से नंदिनी की हाथ पकड़ कर) फ्रेंड्स...
नंदिनी - सो रॉकी... अगर बुरा ना मानों तो मैं तुम्हें एक फ्रेंडशिप गिफ्ट देना चाहती हूँ...
रॉकी - (हैरान व खुशी के साथ अपने दोस्तों को देखते हुए) जरूर... आई डोंट माइंड...

नंदिनी अपनी पर्स से एक डिजिटल घड़ी निकालती है और रॉकी की बाएं हाथ को हाथ में लेकर बांध देती है l

नंदिनी - अगर फ्रेंडशिप बैंड होता तो... वह बैंड बांध देती... पर हमारी फ्रेंडशिप बहुत वैल्युवल है तो सोचा बैंड भी वैल्युवल होनी चाहिए.... इसलिए मैंने तुम्हारे लिए यह खरीदा है....

नंदिनी के घड़ी पहनाने के बाद रॉकी उस घड़ी को गौर से देखता है l

नंदिनी - यह वेयर हेल्थ वॉच है... फ़िलहाल अभी इसके स्क्रीन पर ब्लू टूथ की डिस्पले ही दिखेगा... जैसे ही तुम अपने मोबाइल फोन को ब्लू टूथ के जरिए इससे कनेक्ट करोगे... तुम्हारे मोबाइल पर एक लिंक आएगा... फिर ऐप स्टोर से इसका ऐप डाउन लोड कर लेना... और उसके हिसाब से प्रोग्राम कर लेना... यह तुम्हारा हेल्थ गार्ड करेगा... हार्ट बीट.. पल्स रेट वगैरह सब बतायेगा... तुम्हारा कैलोरी बर्न के बारे में जानकारी देगा... और तुम्हारे शरीर को पानी कब चाहिए... यह भी अलर्ट कर देगा....
रॉकी - (घड़ी को देखते हुए) वाव...
नंदिनी - ह्म्म्म्म और भी फीचर्स हैं... जितना डीप जाओगे... उतना जान जाओगे...
रॉकी - थैंक्स... नंदिनी... पर इतनी कॉस्टली गिफ्ट...
नंदिनी - तुम दोस्त ही इतने क़ीमती हो... तुम्हारे दोस्ती के आगे... यह मामूली ही है....
रॉकी - (उस डिजिटल घड़ी को देखता ही रहता है)
नंदिनी - और हाँ यह वॉटर प्रूफ़ भी है... चाहो तो चौबीसों घंटे इसे पहन सकते हो... (मुस्कराते हुए) मुझे बहुत खुशी भी होगी... अगर तुम इसे हरदम पहने रहो तो... ओके गॅयस... मैं क्लास जा रही हूँ... एंजॉय योर डे....

इतना कह कर नंदिनी वहाँ से चली जाती है l उसके आँखों से ओझल होते ही सभी रॉकी पर टुट पड़ते हैं l

आशिष - अबे... लौंडे ने मैदान मार लिया रे...
सुशील - हाँ यार... चल आज पार्टी दे दे यार... मैं तो बोलता हूँ... आज रात भर पार्टी करते हैं... साले सिर्फ तीन स्टेप पर ही मंजिल मिल गई...
रवि - अपनी हीरो की तो लॉटरी लग गई

रॉकी शर्माने लगता है l सभी उसके इर्द गिर्द हैइ हैइ चिल्लाते हुए घूमने लगते हैं l

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वीर ऑफिस में अपने कैबिन में पहुँचता है और अपने कुर्सी पर बैठ जाता है l वह अपनी चारो तरफ नजर घुमाने लगता है l उसे कहीं पर भी अनु नहीं दिखती है l वह अपना मोबाइल फोन निकाल कर अनु की नंबर निकाल कर डायल करने को होता है कि उसका फोन बजने लगता है l वीर देखता है महांती का फोन है l

वीर - हाँ... महांती... बोलो क्या हुआ है...
महांती - राजकुमार जी... मैं कब से युवराज जी को फोन लगा रहा हूँ... पर वह नहीं उठा रहे हैं....
वीर - अगर वह नहीं उठा रहे हैं... तो हम क्या करें...
महांती - आपने जैसा कहा था... हमने वैसा ही तो किया... पर एज ESS डायरेक्टर... उन्हें मैं रिपोर्ट करना चाहता था.... पर वह नहीं मिल रहे हैं...
वीर - तो हमे बताओ... हम जब युवराज जी से मिलेंगे... तो उनको बता देंगे...
महांती - ठीक है... उन्हें बता दीजिए... केस नाइंटी पर्सेंट सॉल्व हो गया है... और मैं कल पहुंच कर बाकी रिपोर्ट प्रेजेंट करूंगा....
वीर - वाव... मतलब... हमारे हाथ कुछ मगरमच्छ लगे हैं...
महांती - मगरमच्छ तो नहीं... पर उस मगरमच्छ के साथ देने वाले सब हमारे रेडार पर आ गए हैं...
वीर - गुड... ठीक है... हम युवराज को इंफॉर्म कर देंगे...
महांती - थैंक्यू... राज कुमार... थ.. (वीर फोन काट देता है)

वीर - साला कमीना कबाब में हड्डी... हमेशा रॉंग टाइम पर फोन करता है...

फिर अनु की नंबर निकाल कर डायल करता है l फोन पर रिंग टोन सुनाई देने लगता है l कुछ देर बाद फोन कट जाता है l वीर फिर से डायल करता है l फोन बजने लगता है पर इस बार भी अनु फोन नहीं उठाती है l वीर गुस्से से फोन काट कर अपने रिवॉल्वींग चेयर पर इधर उधर होने लगता है l फिर खीजे हुए मन से विक्रम की कैबिन की ओर जाने लगता है l विक्रम के कैबिन के सामने पहुँचकर दरवाजे पर धक्का देता है l दरवाज़ा नहीं खुलता है तो वह दरवाजे पर दस्तक देता है l तभी वहाँ पर एक गार्ड आता है

गार्ड - राजकुमार जी... युवराज अपने कैबिन में नहीं हैं...
वीर - क्यूँ... अभी तक ऑफिस नहीं गए हैं क्या...
गार्ड - वह कल रात से ही ऑफिस में हैं... शायद घर नहीं गए हैं...
वीर - (हैरान हो कर) क्या... (फिर संभल कर) ओके.. ओके... अभी कहाँ हैं वह...
गार्ड - जी अभी ट्रेनिंग ग्राउंड के पास... ट्रेनिंग हॉल में...
वीर - अच्छा... ओके... अब जाओ... तुम...

वीर मन ही मन सोचने लगता है - क्या... युवराज कल रात भर घर नहीं गए... यह क्या माजरा है... घर पर कोई जानता भी है या नहीं... क्या युवराणी जी को पता है... शायद पता होगा.... पर युवराज और उनके बीच तो बातचीत बंद है.... पता नहीं शायद कबसे... हर रात तो वह युवराज जी को देखने के बाद अपने कमरे में सोने जाते हैं... तो क्या उनको कोई चिंता नहीं हुआ...

ऐसे सोचते सोचते वीर ट्रेनिंग हॉल में पहुँचता है l वहाँ देखता है विक्रम एक चेयर पर पसीने से लथपथ बैठा हुआ है l वीर समझ जाता है विक्रम ने ज़रूर जम कर एक्सर्साइज और प्रैक्टिस की है l वह एक टवेल उठा कर विक्रम के पास पहुंचता है l वीर उसके पास खड़ा है यह विक्रम को एहसास हो जाता है वह वीर की ओर देखता है और वीर के हाथों से टवेल ले कर अपना चेहरा पोंछता है I

विक्रम - कहिए राजकुमार... कैसे आना हुआ...
वीर - वह... महांती का फोन आया था... आपने नहीं उठाया तो उसने मुझे फोन किया...
विक्रम - (अपना फोन निकाल कर मिस कॉल चेक करता है) ह्म्म्म्म... मैंने देखा नहीं था...
वीर - आपके मुहँ से... यह हम के वजाए मैं सुनना... अच्छा नहीं लगता...
विक्रम - आदत डाल लीजिए...
वीर - कभी सोचा है... आप राजा साहब जी के सामने कैसे जाएंगे... क्या उनको समझा पाएंगे कि आपने अपनी मूंछें क्यूँ मुंडवा लिया... या... आप हम के वजाए... मैं क्यूँ कह रहे हैं....
विक्रम - (चुप रहता है)
वीर - आप कल घर भी नहीं गए...
विक्रम - उसे घर क्यूँ कह रहे हैं... राजकुमार... उसे मैंने बड़े चाव से बनाया था ... और उसका नाम द हैल रखा था... मतलब नर्क... अब सचमुच वह नर्क लगने लगा है... क्या करें... अपनी ही करनी है... नर्क भोग रहे हैं....
वीर - आप... ऐसे क्यूँ बात कर रहे हैं...
विक्रम - (एक नजर वीर पर डालता है और) जानते हैं... राजकुमार... आप मुझसे... बातों से, सोच में और ज़ज्बात समझने में... बहुत आगे हैं... कभी कभी मुझे आपसे जलन होती है...
वीर - यह... यह आप कैसी... बहकी बहकी बातेँ कर रहे हैं....
विक्रम - हाँ... राजकुमारजी... हाँ... आपकी हर सोच हमेशा युनीडाइरेक्शनल होता है... फोकस्ड रहता है... पर मैं... मैं हमेशा खुद को दो राहे पर पाता रहा हूँ... खुद को भटका हुआ महसुस करता हूँ...
वीर - युवराज जी... प्लीज आप ऐसे बातेँ मत कीजिए.... आप हमेशा मेरे आईडल रहे हैं... मैं तो आपको फॉलो कर रहा हूँ...
विक्रम - (दर्द भरे आवाज़ में) मत कीजिए फॉलो मुझे... आई एम अ लुज़र...
वीर - प्लीज...
विक्रम - ना दिल जीत पाया... ना दुनिया...
वीर - युवराज जी.... आप को क्या हो गया है... आप मुझे बताइए क्या हुआ था उस दिन... किस तरह से तोड़ कर रख दिया है आपको... मैं... मैं उसे नहीं छोड़ूंगा...
विक्रम - (चीख कर) नहीं... (नॉर्मल होते हुए) नहीं... वह मेरा है... उसने मेरे शख्सियत से क्षेत्रपाल को नोंच फेंका है... मेरी वज़ूद को झिंझोडा है... उसे मैं ही निपटुंगा....
वीर - ऐसा क्यूँ... युवराज... ऐसा क्यूँ...

विक्रम वीर को ओरायन मॉल के पार्किंग एरिया में हुए पुरे वाक्या का विवरण देता है, सिवाय नाम के l वीर सब सुनने के बाद कुछ सोच में पड़ जाता है l

वीर - ओ... युवराणी जी का उस शख्स के आगे हाथ जोड़ना...(चुप हो जाता है)
विक्रम - हूँ... जानते हैं राजकुमार... एक दिन मैंने फैसला किया था... मैं अपने लिए कुछ नहीं करूँगा... सिर्फ़ वही करूँगा... जिससे भैरव सिंह क्षेत्रपाल जी के नाम का सिक्का चले... इन छह सालों में... मैंने वही किया... पर उस शख्स ने... क्षेत्रपाल के साये में दबे... मेरे वज़ूद को ललकारा है... इसलिए जब तक उसे विक्रम ज़वाब नहीं दे देता... तब तक विक्रम को क्षेत्रपाल नाम ढोने का हक भी नहीं है...
वीर - (उसे हैरानी से देखता रहता है, क्यूंकि हर लफ्ज़ के साथ साथ विक्रम के चेहरे पर भाव गम्भीर होता जा रहा था)
विक्रम - इसीलिए मैं यहीँ अपने वज़ूद को तलाश रहा हूँ... तराश रहा हूँ... अब मेरी सोच किसी दोराहे पर नहीं है... मुझे बस... उस शख्स को मुहँ तोड़ ज़वाब देना है...
वीर - पर अब आप घर कब तक नहीं जाएंगे...
विक्रम - (वीर के तरफ देख कर हल्की सी हँसी हँसता है) आपको कब मालुम हुआ... मैं घर नहीं गया हूँ...
वीर - (अपना सिर झुका लेता है) य... यहीं... थोड़ी देर पहले...
विक्रम - हा हा हा हा... देखा वह घर नहीं है... वह नर्क है... द हैल... जिसे मैंने बनाया है... वहाँ मेरे खुन के रिश्ते में लोग रहते हैं... और दिल के रिश्ते में कोई रहती है... पर किसीको को खबर नहीं थी...(विक्रम के आवाज में दर्द निकल आता है) किसीको इंतजार नहीं थी....
वीर - (कुछ कह नहीं पाता)
विक्रम - अब आप जाएं राजकुमार.... अब आप जाएं... (ना चाहते हुए भी वीर वहाँ से उठ कर जाने लगता है) बस एक फेवर कीजिएगा... (वीर पीछे मुड़ कर देखता है) कुछ दिनों के लिए ESS को पुरी तरह से आप ही संभालीये...

वीर अपने दिल में एक भारी पन महसुस करने लगता है l भारी मन लिए अपने कैबिन में पहुँचता है और अपने चेयर पर बैठ कर विक्रम की कहे बातों पर सोचने लगता है l विक्रम की बातों को सोचते सोचते वह अपने बचपन में पहुँच जाता है l

फ्लैशबैक

बचपन में एक दिन
अपनी गुड़िया सी नन्ही बहन के साथ खेल रहा था तभी पिनाक सिंह उसके पास आकर

पिनाक - (ऊंची आवाज़ में) राज कुमार...
वीर - जी.. जी छोटे राजा जी....
पिनाक - अब आपका खेलने का समय खतम हो चुका है.... पढ़ाई के लिए आपको युवराज जी के पास कलकत्ता जाना पड़ेगा...
वीर - क्या रुप भी हमारे साथ जाएगी...
पिनाक - (ऊंची आवाज़ में) खबरदार... (ऊंची आवाज़ से नन्ही रुप रोने लगती है) हमारे वंश में लड़कीयों को पढ़ने लिखने की इजाज़त नहीं है... और यह क्या रुप कह रहे हैं...
वीर - हमारी छोटी बहन है.... तो हम क्या कहें...
पिनाक - राजकुमारी कहेंगे... राजवंशीयों के बीच रिश्ते नहीं ओहदे होते हैं... और जब कलकत्ता जायेंगे वहीँ पर... युवराज जी को युवराज ही कहेंगे... भाई या भैया नहीं...

फ्लैशबैक खतम

वीर को विक्रम के भीतर का दर्द महसूस होने लगता है l वह अपने इसी सोच में खोया हुआ है तभी उसे एहसास होता है कि उसके सामने बैठे दो बड़ी बड़ी हिरनी जैसी आँखे घूर रही हैं l वह उन आँखों को देखने लगता है l जैसे ही वह आँखे झपकने लगती हैं वीर के होठों पर हल्की सी मुस्कराहट आकर ठहर जाता है l

अनु - अहेम... अहेम...
वीर - (फिर भी उसकी आंखों को निहार रहा है)
अनु - (धीरे से) राज कुमार जी...
वीर - (कोई जवाब नहीं देता)
अनु - राजकुमार जी (थोड़ी ऊंची आवाज में)
वीर - (ध्यान टुटता है) हूँ.. हाँ... क्या... क्या हुआ..
अनु - आप मुझसे गुस्सा हैं ना...
वीर - क्यूँ...
अनु - (झिझकते हुए) वह मैंने कल... (जल्दी जल्दी) मुझसे फोन कट गया...
वीर - हूँ... ठीक है...
अनु - (धीरे से) आपको बुरा लगा...
वीर - हाँ... नहीं... नहीं... (थोड़ी देर चुप रहने के बाद) अनु...
अनु - जी...
वीर - अपनी बचपन के बारे में कुछ कहो...
अनु - (हैरान हो कर) जी...
वीर - मेरा मतलब... तुम्हारा बचपन कैसा था... अनु...
अनु - (चेहरे पर एक भोली सी मुस्कान लिए) अपना बचपन किसे अच्छा नहीं लगता राजकुमार जी... वह बचपन जहां हर जिद पुरी होती थी... रोने पर बापू मुझे बुड्ढी के बाल लाकर देते थे... जब मेला लगता था... अपनी कंधे पर बिठा कर मेला दिखाते थे... (फिर चहकते हुए) बचपन में पता नहीं कितने खेल खेलते थे... घो घो राणी... लुका छुपी... बहु चोरी.... क्या बताऊँ कितना मजा आता था... हमारे पास वाले गली में एक आम का बाग होता था... जब जब आम चोरी करने जाते थे... बड़ा मजा आता था... कभी कभी पकड़े भी जाते थे... फिर भी आम चोरी नहीं छोड़ा था... पर ज्यों ज्यों उम्र बढ़ती गई... दादी ने मेरा बाहर जाना और सहेलियों के साथ खेलने पर पाबंदी लगा दी...
वीर - वाकई... तुम्हारा बचपन लाजवाब था... सबकी बचपन ऐसी नहीं होती... (कह कर वीर चुप हो जाता है)
अनु - (झिझकते हुए) आ.. आप.. का बचपन...
वीर - नहीं अनु... हमारी जैसी बचपन किसीको नसीब ना हो... सब-कुछ आँखों के सामने होता है... हाथ की पहुँच में होते हुए भी... कुछ हासिल नहीं होता है... बड़े बदनसीब होते हैं हम जैसे...
अनु - (हैरानी से आँखे फैल जाती है) आ... आप तो... राजकुमार हैं ना...
वीर - हाँ अनु... यही अभिशाप लेकर हम जी रहे हैं....

फिर कुछ देर तक चुप्पी छा जाती है l वीर और अनु एक दुसरे को देखने लगते हैं l

वीर - तुम कब आई अनु...
अनु - (शर्मा जाती है) वह आई तो थी... पर...
वीर - पर... आज मेरी फोन भी नहीं उठाया...
अनु - वह आ.. आपके सामने आ... आने से मुझे शर्म आ रही थी...
वीर - क्यूँ... मैंने क्या किया...
अनु - (गाल लाल हो जाती हैं, अपना सिर झुका लेती है)

वीर को याद आता है अनु से उसके क्या कहा था l वीर के चेहरे पर फ़िर से मुस्कराहट आ जाती है l

वीर - अनु....
अनु - (अपना सिर झुकाए) हूँ...
वीर - अच्छा मान लो... फिर से बचपन जीने का मौका मिला... तो क्या करोगी...
अनु - (अपना चेहरा उठाकर चहकते हुए) तब तो मजा ही आ जाए.. मैं तो पहले किसी झूले में झूला झूलती... फ़िर समंदर के किनारे रेत की घर बनाती... फिर... बुड्ढी के बाल ख़ुद बना कर खाती.... फिर से आम चोरी करती.... पता नहीं क्या क्या करती....
वीर - (अनु की बातों को गौर से सुनता रहता है)
अनु - (वीर को अपने तरफ देखते हुए पाती है) आप ऐसे क्या देख रहे हैं...
वीर - तुममें अभी भी बहुत बचपना है... लगता ही नहीं के तुम बड़ी हो गई हो... बस शरीर से बड़ी दिखती हो... और जब जब शर्माती हो... तभी शायद तुमको एहसास होता है... की तुम अब बच्ची नहीं रही हो...
अनु - (फ़िर से शर्मा कर अपना सिर झुका लेती है, और चोरी चोरी वीर को देखने लगती है)
वीर - अच्छा अनु...
अनु - हूँ...
वीर - जब तुम अपनी बचपन को दोबारा जीना चाहोगी... मुझसे जरूर कहना...
अनु - (हैरानी से) क्यूँ... मतलब कैसे...
वीर - मैं... तुम्हारे साथ... एक दिन के लिए... अपना खोया हुआ बचपन जीना चाहता हूँ... वह बचपन जिसकी ख्वाहिश तो थी पर.... कभी जी नहीं पाया...
अनु - (हैरान हो कर) आप मेरे साथ... हम दोस्त भी नहीं हैं...
वीर - तो बना लो ना...
अनु - आप लड़के हैं... और मैं लड़की... हमारे बीच दोस्ती थोड़ी ना हो सकती है...
वीर - क्यूँ... क्यूँ नहीं हो सकती...
अनु - ह... हम... बच्चे नहीं हैं...
वीर - बच्चे होते... तो हो सकते थे...
अनु - हाँ...
वीर - मैं वही तो कह रहा हूँ... बस एक दिन... तुम्हरी ख्वाहिशों की तरह... तुम्हारे साथ बचपन जीना चाहता हूँ...
अनु - वह सब तो मैं... अपनी किसी सहेली के साथ.... (चुप हो जाती है)
वीर - तो एक काम करो... मुझे अपना सहेला बना दो...
अनु - जी... सहेला मतलब...
वीर - लड़की दोस्त हो.. तो सहेली होती है.... और लड़का दोस्त हो... तो सहेला... क्यूँ है ना...
अनु - (हैरान हो कर) ऐसा थोडे ना होता है...
वीर - फिर कैसा होता है...
अनु - (कुछ नहीं कहती, बिल्कुल चुप हो जाती है)
वीर - अनु.... (वैसे ही सिर झुकाए बैठी रहती है) कब जाना है... कहाँ जाना है... क्या क्या करना है... यह मैं पुरी तरह से तुम पर छोड़ता हूँ... यूँ समझ लो... यह मेरी एक ऐसी ख्वाहिश है... जो मैं जीना चाहता हूँ... भले ही तुम मेरी पर्सनल सेक्रेटरी हो... पर यह बात मैं पुरी तरह से तुम पर छोड़ता हूँ... मुझे बस एक दिन एक बच्चा बन कर बचपन को जीना है...
Bahut hi behtareen update hai bhai maza aa gaya
 

Death Kiñg

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जीवन में कई बार ऐसे मौके आते हैं जब इंसान अपने आप को एक दोराहे पर खड़ा पाता है। हालांकि, उस वक्त सही फैसला करना काफी मुश्किल हो जाता है पर यदि कोई हो उस व्यक्ति के साथ, जो उसे सही रास्ता दिखाए तब मुश्किलें आसान हो जाती हैं। विक्रम ने शुरू से ही खुद को दोराहे पर ही खड़ा पाया है, पहले शुभ्रा से प्यार का इज़हार करे या न करे, उसके बाद शुभ्रा को अपने क्षेत्रपाल होने के चलते किए गए पाप की हकीकत बताए या ना बताए, फिर भैरव सिंह के नाम का सिक्का सबसे ऊंचा करने के लिए जो कुछ भी विक्रम करता आया... वो सब उसे शुभ्रा से, अपनी बहन नंदिनी से, और अब शायद खुद की हकीकत से भी दूर ले आया है।

विश्वा के साथ हुई लड़ाई के बाद विक्रम पर बेहद गहरा असर पड़ा है और एक बार फिर वो सही फैसला लेने से शायद चूक गया है। उसे भ्रम है के इस बार उसके पास मात्र एक ही रास्ता है, आने वाले वक्त में वो एक दफा फिर खुदको दोराहे पर खड़ा पाएगा। शुभ्रा का इंतज़ार अभी लंबा होने वाला है। पर कहीं न कहीं मुझे लगता है के अगर शुभ्रा अपने प्रेम से विक्रम को सही मार्ग दिखाने की कोशिश करे तो निश्चित ही वो भैरव सिंह से अलग हो ही जाएगा। अब देखना ये है के विक्रम को जो कसम उसकी मरती हुई मां ने दी थी, जिसे वो गलत समझ बैठा है, उस कसम का सही अर्थ उसे कौन समझाएगा?

रॉकी के मंसूबों से नंदिनी पूरी तरह अवगत है और इसमें कोई शख नहीं के जो घड़ी उसने रॉकी को भेंट में दी है, वो उसके किसी प्लान का ही हिस्सा है। मुझे लगता है के जल्द ही रॉकी का काम भी तमाम होने वाला है। शायद विश्वा भी आगे चलकर इस मामले में हिस्सा हो सकता है। खैर, अब देखना ये है के विश्वा को नंदिनी के साथ बिताए वो पुराने पल याद हैं या नहीं, जहां तक मैं अभी तक समझ पाया हूं विश्वा को, वो जरूर नंदिनी के जन्मदिन पर कुछ खास करेगा। अब देखना ये है के वो खास चीज नंदिनी के लिए होगी या भैरव सिंह के लिए।

वीर और अनु की नजदीकियां भी बढ़ रही हैं। कहानी में अनु के आने से एक नया ही माहौल बन जाता है, उसकी मासूमियत और बचपने का ही वीर दीवाना हुआ है, पर देखना होगा के क्या वो सचमुच में इतनी नादान है या किसी कारण से नाटक कर रही है?

साथ ही पिनाक पर जो हमले हो रहे हैं, जिसने उसे अस्पताल तक पहुंचा दिया, वो कौन है? शायद से डैनी इस सब के पीछे हो सकता है, या फिर शायद कोई और क्षेत्रपालों का सताया हुआ बंदा। देखते हैं उसकी असलियत कब और कैसे सामने आती है।

बहुत ही खूबसूरत तरीके से आप कहानी को आगे बढ़ा रहें हैं Kala Nag भाई। कहीं भी जल्दबाजी नही की गई है और हर एक अपडेट को आपने बड़ी ही शालीनता से लिखा है। इसी तरह लिखते रहिए भाई, और अपने लेखन से हम सबको विस्मित करते रहिए।

आउटस्टैंडिंग अपडेट्स भाई.. अगली कड़ी की प्रतीक्षा में।
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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नाग भाई -
आज फुर्सत हुई तो बासठवाँ और तिरसठवाँ अपडेट पढ़ा। बहुत ही सुन्दर लेखनी है - यह तो कह कह कर मेरी जीभ (यहाँ मेरी उँगलियाँ) घिस गई है!
लेकिन आप उसकी परवाह न करें, और ऐसे ही लिखते रहें।
अनु और वीर का किस्सा पढ़ कर एक पुरानी बात याद आती है - मेरे पड़ोस में एक बेहद संभ्रांत दम्पति का एक बेहद मवाली टाइप लड़का था। दम्पति जितना पढ़े लिखे थे, ये उतना ही जाहिल, और निकम्मा था। काम के नाम पर अपने ही मोहल्ले में लोगों से पैसे की उगाही करता था। एक बार तो किसी ने अच्छे से उसको कूटा भी था इस काम के लिए। खैर, तो इस मवाली की शादी एक अच्छे परिवार की भोली भाली और अति-सुन्दर लड़की से कर दी गई। जैसा कि अरेंज्ड मैरिज में होता है - केवल परिवार देखा होगा लड़की वालों ने। लड़का नहीं! खैर! इतना कहना बहुत होगा कि उस बेचारी की ज़िन्दगी नरक हो गई।
अब इस कहानी में ये देखना है कि अनु के कारण वीर का रास्ता सीधा होता है, या अनु की लाइफ खराब होती है। या फिर जैसा ऊपर सुझाया गया है - क्या अनु वाकई इतनी भोली है? फिर तो वीर गया काम से!
चूँकि हमको मालूम है कि नंदिनी का विश्व से कनेक्शन होना तय है - तो फिर ये रॉकी वाला एपिसोड थोड़ा खटकता है मुझे। मारो साले को दो लात और दफ़ा करो! हा हा हा! :evillaugh:
वैसे कहानी आपकी है, तो आप जैसा मन करे, लिखें! हम तो बस लफंगों को अच्छे लोगों से दूर करना चाहते हैं बस :smile:
प्रतिभा ऑन्टी, मेरी कहानियों की माओं जैसी हैं - अपने बच्चों को ले कर समर्पित! उनकी ममता और स्नेह का मेघ अपने बच्चों और उनसे जुड़े प्रत्येक व्यक्ति पर बरसता रहता है। उनका एपिसोड पढ़ कर मुस्कान ज़रूर आती है।
ऐसे ही लिखते रहें - आनंद ही आनंद!
 

Kala Nag

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जीवन में कई बार ऐसे मौके आते हैं जब इंसान अपने आप को एक दोराहे पर खड़ा पाता है। हालांकि, उस वक्त सही फैसला करना काफी मुश्किल हो जाता है पर यदि कोई हो उस व्यक्ति के साथ, जो उसे सही रास्ता दिखाए तब मुश्किलें आसान हो जाती हैं। विक्रम ने शुरू से ही खुद को दोराहे पर ही खड़ा पाया है, पहले शुभ्रा से प्यार का इज़हार करे या न करे, उसके बाद शुभ्रा को अपने क्षेत्रपाल होने के चलते किए गए पाप की हकीकत बताए या ना बताए, फिर भैरव सिंह के नाम का सिक्का सबसे ऊंचा करने के लिए जो कुछ भी विक्रम करता आया... वो सब उसे शुभ्रा से, अपनी बहन नंदिनी से, और अब शायद खुद की हकीकत से भी दूर ले आया है।

विश्वा के साथ हुई लड़ाई के बाद विक्रम पर बेहद गहरा असर पड़ा है और एक बार फिर वो सही फैसला लेने से शायद चूक गया है। उसे भ्रम है के इस बार उसके पास मात्र एक ही रास्ता है, आने वाले वक्त में वो एक दफा फिर खुदको दोराहे पर खड़ा पाएगा। शुभ्रा का इंतज़ार अभी लंबा होने वाला है। पर कहीं न कहीं मुझे लगता है के अगर शुभ्रा अपने प्रेम से विक्रम को सही मार्ग दिखाने की कोशिश करे तो निश्चित ही वो भैरव सिंह से अलग हो ही जाएगा। अब देखना ये है के विक्रम को जो कसम उसकी मरती हुई मां ने दी थी, जिसे वो गलत समझ बैठा है, उस कसम का सही अर्थ उसे कौन समझाएगा?

रॉकी के मंसूबों से नंदिनी पूरी तरह अवगत है और इसमें कोई शख नहीं के जो घड़ी उसने रॉकी को भेंट में दी है, वो उसके किसी प्लान का ही हिस्सा है। मुझे लगता है के जल्द ही रॉकी का काम भी तमाम होने वाला है। शायद विश्वा भी आगे चलकर इस मामले में हिस्सा हो सकता है। खैर, अब देखना ये है के विश्वा को नंदिनी के साथ बिताए वो पुराने पल याद हैं या नहीं, जहां तक मैं अभी तक समझ पाया हूं विश्वा को, वो जरूर नंदिनी के जन्मदिन पर कुछ खास करेगा। अब देखना ये है के वो खास चीज नंदिनी के लिए होगी या भैरव सिंह के लिए।

वीर और अनु की नजदीकियां भी बढ़ रही हैं। कहानी में अनु के आने से एक नया ही माहौल बन जाता है, उसकी मासूमियत और बचपने का ही वीर दीवाना हुआ है, पर देखना होगा के क्या वो सचमुच में इतनी नादान है या किसी कारण से नाटक कर रही है?

साथ ही पिनाक पर जो हमले हो रहे हैं, जिसने उसे अस्पताल तक पहुंचा दिया, वो कौन है? शायद से डैनी इस सब के पीछे हो सकता है, या फिर शायद कोई और क्षेत्रपालों का सताया हुआ बंदा। देखते हैं उसकी असलियत कब और कैसे सामने आती है।

बहुत ही खूबसूरत तरीके से आप कहानी को आगे बढ़ा रहें हैं Kala Nag भाई। कहीं भी जल्दबाजी नही की गई है और हर एक अपडेट को आपने बड़ी ही शालीनता से लिखा है। इसी तरह लिखते रहिए भाई, और अपने लेखन से हम सबको विस्मित करते रहिए।

आउटस्टैंडिंग अपडेट्स भाई.. अगली कड़ी की प्रतीक्षा में।
धन्यबाद Death Kiñg भाई
आपने बहुत ही बढ़िया समीक्षा प्रदान किया है
इस कहानी में पात्र कहाँ क्या और कैसे अपने चरित्र को निखारेंगे यह आगे चल कर मालुम होगा
और आपको पसंद भी आएगा ऐसा आशा करता हूँ
धन्यबाद व आभार
 

Kala Nag

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नाग भाई -
आज फुर्सत हुई तो बासठवाँ और तिरसठवाँ अपडेट पढ़ा। बहुत ही सुन्दर लेखनी है - यह तो कह कह कर मेरी जीभ (यहाँ मेरी उँगलियाँ) घिस गई है!
लेकिन आप उसकी परवाह न करें, और ऐसे ही लिखते रहें।
अनु और वीर का किस्सा पढ़ कर एक पुरानी बात याद आती है - मेरे पड़ोस में एक बेहद संभ्रांत दम्पति का एक बेहद मवाली टाइप लड़का था। दम्पति जितना पढ़े लिखे थे, ये उतना ही जाहिल, और निकम्मा था। काम के नाम पर अपने ही मोहल्ले में लोगों से पैसे की उगाही करता था। एक बार तो किसी ने अच्छे से उसको कूटा भी था इस काम के लिए। खैर, तो इस मवाली की शादी एक अच्छे परिवार की भोली भाली और अति-सुन्दर लड़की से कर दी गई। जैसा कि अरेंज्ड मैरिज में होता है - केवल परिवार देखा होगा लड़की वालों ने। लड़का नहीं! खैर! इतना कहना बहुत होगा कि उस बेचारी की ज़िन्दगी नरक हो गई।
अब इस कहानी में ये देखना है कि अनु के कारण वीर का रास्ता सीधा होता है, या अनु की लाइफ खराब होती है। या फिर जैसा ऊपर सुझाया गया है - क्या अनु वाकई इतनी भोली है? फिर तो वीर गया काम से!
चूँकि हमको मालूम है कि नंदिनी का विश्व से कनेक्शन होना तय है - तो फिर ये रॉकी वाला एपिसोड थोड़ा खटकता है मुझे। मारो साले को दो लात और दफ़ा करो! हा हा हा! :evillaugh:
वैसे कहानी आपकी है, तो आप जैसा मन करे, लिखें! हम तो बस लफंगों को अच्छे लोगों से दूर करना चाहते हैं बस :smile:
प्रतिभा ऑन्टी, मेरी कहानियों की माओं जैसी हैं - अपने बच्चों को ले कर समर्पित! उनकी ममता और स्नेह का मेघ अपने बच्चों और उनसे जुड़े प्रत्येक व्यक्ति पर बरसता रहता है। उनका एपिसोड पढ़ कर मुस्कान ज़रूर आती है।
ऐसे ही लिखते रहें - आनंद ही आनंद!
अंत में इतना जरूर कहूँगा
आपको वीर और अनु की प्रेम कहानी अवश्य प्रभावित करेगी
वीर चाहे कैसा भी हो पर वह इरादों का पक्का है, निडर है
आगे देखते हैं क्या होता है
धन्यबाद व आभार
 

Kala Nag

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मित्रों
आज क्षमा चाहता हूँ
कल दोपहर बारह बजे अपडेट आयेगा
एक जगह फंस गया हूँ
इसलिए अपडेट को अंजाम दे नहीं पा रहा हूँ
🙏 🙏 🙏 🙏 🙏 🙏
 

parkas

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मित्रों
आज क्षमा चाहता हूँ
कल दोपहर बारह बजे अपडेट आयेगा
एक जगह फंस गया हूँ
इसलिए अपडेट को अंजाम दे नहीं पा रहा हूँ
🙏 🙏 🙏 🙏 🙏 🙏
Intezaar rahega....
 
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