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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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सोमवार की सुबह
तापस की क्वार्टर


तापस की नींद टुटती है, वह बेड पर नजर डालता है उसे बेड पर प्रतिभा नहीं मिलती वह घड़ी देखता है सुबह के पांच बजे हैं l तापस उठ कर ड्रॉइंग रुम में आता है, देखता है प्रतिभा अपने दोनों हाथों को सीने पर बांध कर छत की ओर अपना सिर टिकाए आँखे बंद कर सोफ़े पर बैठी हुई है, उसके आँखों के किनारे आंसुओं के बूंद दिख रहे हैं और होठों पर एक मुस्कान ठहरी हुई है l तापस उसके पास बैठ जाता है l

तापस - क्या बात है जान... कल जब से प्रताप को खान के हवाले कर आई हो... तब से तुम अंदर ही अंदर तड़प रही थी... मैं जानता था... पर अब... रिलेक्स... प्रताप इज़ इन सैफ हैंड... अब सिर्फ तीन हफ्ते रह गए हैं... उसके बाद प्रताप हमेशा के लिए छूट जाएगा....
प्रतिभा - (तापस की ओर देखते हुए) जानती हूँ.... पर यह दिल कभी कभी बड़ा स्वार्थी हो जाता है... पानी के बुलबुलों जैसी खुशियाँ जीवन में आ रही है.... अपनी मुट्ठी में कस कर पकड़ने की कोशिश करती हूँ उन लम्हों को... पर रेत की तरह फिसल जाती है... तीन हफ्ते बाद.... प्रताप छूट जाएगा... पर... हमारे साथ सिर्फ एक महीना ही रहेगा... फिर जीवन में वही खाली पन और इंतजार....
तापस - जान... प्रताप एक इंसान नहीं रह गया है... एक आशा है... एक विश्वास है... एक उम्मीद है... एक नया क्रांति है... उस पर हमारा हक़ बाद में आता है.... उस पर राजगड़ के लोगों का हक ज्यादा है... उस पर अपने गांव में बदलाव लाने का संकल्प हावी है... जब तक वह संकल्प पुरा नहीं हो जाता... तब तक वह हमारा हो कर भी हमारा नहीं रह पाएगा...
प्रतिभा - (तापस की हाथ पकड़ लेती है) वह कामयाब हो कर... हमारे पास आ जाएगा ना...
तापस - (प्रतिभा के दोनों हाथों को अपनी हाथों में लेते हुए) हाँ जान हाँ... उस पर कोई आंच नहीं आएगा... अब वह अकेला कहाँ है... हम उसके साथ हैं... उसे हम हारने कैसे दे सकते हैं...
प्रतिभा - हाँ सच कहा आपने... अब बस उसका बार काउंसिल लाइसेंस आ जाए...
तापस - वैसे कितने दिन लगते हैं... लाइसेंस नंबर आने में...
प्रतिभा - तीन महीने...
तापसे - ह्म्म्म्म... लगभग दो महीने यहाँ रहेगा... और गांव जाने के महीने बाद लाइसेंस नंबर आ जाएगा...
प्रतिभा - हाँ... नंबर मिलते ही... हर महकमे में हड़कंप मच जाएगा...
तापस - वह कैसे...
प्रतिभा - जिस एसआईटी को सरकार कोल्ड बॉक्स में डाल कर टाइम पास कर रही है... उस के डेवलपमेंट पर जब प्रताप पीआईएल दाखिल करेगा... बहुतों के हाथों से तोते उड़ जाएंगे...
तापस - हाँ... वह तो है... पर जब पुरानी फाइलें फिर से खुल जाएंगी... उस वक़्त सबसे ज्यादा चौकन्ना... हमे रहना होगा...
प्रतिभा - मतलब...
तापस - किसी भी मोड़ पर हमे प्रताप का कमजोरी नहीं बनना है... उसके साथ... उसके लिए... हमे उसकी ताकत बनना है... मजबूती से उसके साथ डटे रहना है...
प्रतिभा - हाँ... अच्छा... अब हम ज्यादा दिन तक तो इस सरकारी क्वार्टर में नहीं रह सकते... आपने कोई घर देखा है...
तापस - (मुस्कुराते हुए) हाँ... देखा है और बुक भी कर दिया है...

प्रतिभा - क्या... और यह मुझे अब बता रहे हैं...
तापस - वह क्या है कि... मेरी जान अपने प्रताप के साथ खुशी में इस कदर झूम रही थी... मैं उस खुशी का कबाड़ा नहीं करना चाहता था...
प्रतिभा - यह बता दिए होते तो खुशी डबल हो गई होती ना...
तापस - हाँ... हो तो गई होती... फिर उसके बाद आज की तरफ प्रताप के बिछोह में मूड खराब किए होती...
प्रतिभा - अच्छा... तो यह बात आप मुझे कब बताने वाले थे...
तापस - आज ही... लो बता भी दिया...
प्रतिभा - कहाँ लिया...
तापस - पटीया.... रघुनाथपुर के पास... तीन कमरे वाला फ्लैट लिया है...
प्रतिभा - (खुश होते हुए) यह बहुत अच्छा किया आपने... पर तीन कमरे क्यूँ... ज्यादा नहीं हो जाएगा...
तापस - अरे जान... एक हम दोनों के लिए... दुसरा प्रताप के लिए... और तीसरा... तुम दोनों माँ बेटे के लिए... आखिर दोनों एडवोकेट जो हो...
प्रतिभा - वाव.... चलिए... आपने साबित तो किया... आपका दिमाग कभी कभी चलने लगता है...
तापस - ऑए... एडवोकेट मोहतरमा... आपका मतलब क्या है...
प्रतिभा - क्या... (अपनी कमर पर हाथ रखकर) आप मुझसे लड़ना चाहते हैं...
तापस - गुस्ताखी माफ़ जज साहिबा... अब कहिए... गृह प्रवेश कब करना है...
प्रतिभा - वह तो जिस दिन प्रताप छूटेगा... उसी दिन गृह प्रवेश होगा...
तापस - और तब तक... आप क्या करेंगे...
प्रतिभा - प्रताप के लिए... एक अच्छी सी लड़की देखूंगी...
तापस - क्या... (ऐसे चौंकता है जैसे चार सौ चालीस वोल्ट का झटका लगा हो) क्या...
प्रतिभा - आप ऐसे क्यूँ रिएक्शन दे रहे हैं... मैंने ऐसा क्या कह दिया...
तापस - अच्छा... मेरे दिमाग की बात करने वाली... जज साहिबा... आप रिश्ता किससे मांगेगी... हमारे जान पहचान वालों से... क्या कहेंगी... सात साल जैल में रहकर बीए एलएलबी किया है...
प्रतिभा - मैं जानती थी... आप से मेरी खुशियाँ देखी नहीं जाती...
तापस - अच्छा.... तो बताओ... कहाँ से आप अपनी बहु लाएंगी... सीधे लड़की से संबाद करेंगी या उसके माँ बाप से....
प्रतिभा - आप तो ऐसे कह रहे हैं... जैसे भगवान ने मेरे प्रताप के लिए कोई लड़की बनाया ही नहीं...
तापस - अरे भाग्यवान... बनी क्यूँ नहीं होगी... पर अभी.... कैसे...
प्रतिभा - हूं ह्.... मेरा दिल कह रहा है... उसके जीवन में बहुत जल्द कोई आने वाली है.... और देख लेना.... हमारे नए घर में ही उसके शुभ कदम... जल्दी पड़ेंगे...
तापस - अरे भाग्यवान ब्रेक लगाओ... ब्रेक लगाओ... तुम्हारी गाड़ी बहुत फास्ट जा रही है...

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कॉलेज कैंपस में नंदिनी की गाड़ी रुकती है l गाड़ी की दरवाजा खोल कर नंदिनी उतरती है l सभी स्टूडेंट्स की नजर नंदिनी की ओर टिकी हुई है l वजह शनिवार के दिन की रेडियो पर उसकी प्रेजेंटेशन l पर नंदिनी की नजर उसके दोस्तों तलाश रही थी l जब कोई नहीं दिखे तो वह सीधे कैन्टीन की ओर चल दी l कैन्टीन में पहुँच कर देखती है उसकी छटी गैंग के सभी सदस्य एक टेबल पर कब्जा जमाए बैठे हुए हैं l सबको देख कर नंदिनी खुश हो जाती है l टेबल के पास पहुँच कर सबको "हाय" कहती है l सभी उसे देखते हैं और सभी एक साथ अपने अपने होंठ के पउट बना कर सब एक साथ दाहिनी ओर मोड़ कर मुहँ फ़ेर लेती हैं I

नंदिनी - क्या बात है दोस्तों... अगर कुछ शिकवा या शिकायत है... तो गिला करो ना... (एक चेयर पर बैठते हुए)
बनानी - ओ हैलो... आप हैं कौन... हम यहाँ अपनी दोस्त नंदिनी की इंतजार कर रहे हैं...
दीप्ति - और बाय द वे... आप जिस चेयर पर बैठ गई हैं... यह हमारी दोस्त नंदिनी की है... चलो चलो... उठो यहाँ से...

नंदिनी सबको मुस्कराते हुए सुनती है और सर्विस बॉय को आवाज दे कर कहती है

नंदिनी - छोटु.... तीन बटा छह... स्पेशल चाय...
तब्बसुम - देखो तो इस लड़की को... ऐ लड़की कुछ शर्म वर्म है कि नहीं तुझमें...
नंदिनी - नहीं है... पैदाइशी बेशरम हूँ... अब बोलो क्या करोगी...
भाश्वती - अब करना क्या है... अब आप स्टार हो... हम ठहरे गाय... हमें थोड़ी ना घास डालोगी... भई बड़े लोग फोन मिला रहे होंगे... हमारी फोन देख कर स्विच ऑफ मोड अपने आप ऑन हो जाता है... है ना...
नंदिनी - सॉरी यार.. अब माफ़ भी कर दो... अब तुम लोग सजा देना चाहते हो तो दो... पर मुझसे ऐसे दुर मत हो... प्लीज यारों माफ करो..
इतिश्री - कर देंगे कर देंगे... पहले पार्टी का वादा तो करो...
नंदिनी - ठीक है करती हूँ... पर बाहर कहीं नहीं... मेरे घर में...
सब - वह क्यूँ... क्यूँ.. हाँ हाँ क्यूँ...
नंदिनी - (एक गहरी सांस लेते हुए) देखो दोस्तों... मैं तुम लोगों की तरह नहीं हूँ... मेरे बारे में... तुम लोग सब जानते भी हो... मैं काफी रेस्ट्रीकशन्स के बीच पली बढ़ी हूँ... अपनी जिंदगी में कभी इतने लोगों के बीच कोई प्रेजेंटेशन नहीं दी थी... इसलिए जब लकी ड्रॉ हुआ... तब मैं उपरवाले से दुआ मांग रही थी... कि... किसीका भी नाम आए पर मेरा नाम ना आए... पर मेरा नाम चिट में निकला... तभी से मैं नर्वस थी... और प्रेजेंटेशन के बाद जब सब लोगों ने तालियों से जवाब दिया... तो मैं और भी नर्वस हो गई थी... इसलिए मैं वहाँ से भाग गई और अपने भाभी के पास चली गई... खुद को नॉर्मल करने के लिए... बड़ी मुश्किल से नॉर्मल हुई हूँ.... सच कहती हूँ दोस्तों... मैं इस लायक बिल्कुल भी नहीं थी.... किसी से बात कर सकूँ... अगेन सॉरी...
बनानी - कोई नहीं... हम बहुत खुश हैं... तुम्हारा प्रेजेंटेशन तो... क्या कहें यार... वर्ड्स नहीं मिल रहे हैं... एक्सलेंट, मार्वलस...
इतिश्री - रॉब्बीश... इवन यह वर्ड्स भी तेरे प्रेजेंटेशन के आगे छोटे लगते हैं....
दीप्ति - हाँ तभी तो तुझे इतने फोन लगाए... पर तु... असेंबली हॉल से गधे की सिर से सिंग तरह गायब क्या हुई... आज जाकर मिल रही है...

तभी छोटु चाय की छह ग्लास रख कर उनमें चाय डालने लगता है l सबके ग्लास में चाय देने के बाद वहाँ से निकल जाता है l

नंदिनी - इसी लिए तो सॉरी कह रही हूँ... बस यार... बात को खिंचो मत... मैं समझ पा रही हूँ... तुम लोगों के दिल में क्या गुजरी है...
बनानी - ठीक है... ठीक है... हम पता नहीं कबसे.. एक ही टॉपिक के अराउंड घूम रहे हैं... अब बताओ पार्टी कब दे रही हो...
सभी - हाँ हाँ... बोलो बोलो... पार्टी कब दे रही हो...
नंदिनी - ओके... ओके... मैं घर जाकर... एक बार भाभी से पुछ लेती हूँ... उनके साथ बैठ कर प्लान बनाती हूँ... फिर मैं तुम सबको अपने घर में पार्टी दूंगी... ओके...
सभी - ओके... (कह कर सब ताली बजाने लगते हैं)

तभी प्रिन्सिपल ऑफिस का पीओन आता है और सीधे नंदिनी के पास आकर खड़ा हो जाता है l

दीप्ति - क्या हुआ (पीओन से) प्रिन्सिपल साहब ने फिर से याद किया क्या...
पीओन - जी... नंदिनी जी से बात करना चाहते हैं...
नंदिनी - ओके... भैया... आप जाइए मैं पाँच मिनट बाद पहुँच जाऊँगी...

पीओन वहाँ से चला जाता है l उसके जाते ही सभी नंदिनी को देखने लगते हैं l

भाश्वती - सो अब एप्रीसिएशन के लिए... प्रिन्सिपल ऑफिस से बुलावा आया है...
इतिश्री - हाँ... देखना... अब प्रिन्सिपल सर भी पार्टी मांगेंगे...

सभी इतिश्री की बात सुनकर हँस देते हैं l नंदिनी वहाँ से उठ कर प्रिन्सिपल ऑफिस की ओर निकलती है और कैन्टीन के दरवाजे के पास मुड़ कर पीछे देखती है और

नंदिनी - अच्छा... मैं प्रिन्सिपल सर जी से मिल लेने के बाद.... पहले यहाँ आऊंगी... और अगर तुम लोग यहाँ नहीँ मिले तो...
बनानी - सीधे क्लास में आ जाना... वहीँ पर मुलाकात होगी...
नंदिनी - ओके...

इतना कहकर नंदिनी वहाँ से चली जाती है l उसके जाने के बाद दीप्ति बनानी से पूछती है

दीप्ति - वह प्रिन्सिपल के ऑफिस जा रही है... तो तुझे क्यूँ नहीं बुलाया... कम से कम ऑफिस तक तो बुला ही सकती थी...
बनानी - यह कोई बात नहीं हुई... ना जाने कितनी बार वह प्रिन्सिपल के ऑफिस गई है... उसने कभी नहीं बुलाया और ना ही हमने कभी उससे पुछा... दिस इज़ नॉट एन इशू... वह हमे साथ लेकर जाती भी तो क्या होता... हम दरवाजे के बाहर ही होते... इससे बेहतर है कि वह अकेली जा कर आ जाए...
तब्बसुम - ओह या...

दीप्ति चुप हो जाती है l सभी दोस्त चाय खत्म कर इधर उधर की बातों में लग जाते हैं l उधर कॉलेज के दुसरी तरफ रॉकी बाइक स्टैंड से सटे गार्डन में अपने ग्रुप के साथ बैठा हुआ है l

रवि - क्या बात है ड्यूड... नंदिनी की प्रेजेंटेशन हिट होने के बाद... अपना रॉकी कहीं खो गया है...
सुशील - हाँ... प्रोग्राम तो हिट गया.... पर अपना हीरो शॉक्ड हो गया... लगता है... इसे ही उम्मीद नहीं थी... नंदिनी इतनी बेटर प्रेजेंटेशन दे पायेगी...
आशीष - हाँ... प्लान तो यही था... अगर प्रोग्राम हिट गया... तो बधाई देने का... अगर पीट गया तो दुखी नंदिनी को सिसकने के लिए कंधा देने का...
रॉकी - ओह स्टॉप इट... हाँ मैं शॉक्ड हो गया था... सच कहूँ तो... मुझे बिल्कुल इस तरह की... प्रेजेंटेशन की... उम्मीद नहीं थी.... और जब मैं उसे बधाई देना चाहा... तब वह असेंबली हॉल से जा चुकी थी.... यही मेरे चिंता का कारण है... अब अगर उससे मुलाकात हुई... तो मैं क्या कहूँगा और उसका रिएक्शन क्या होगी... अच्छा राजु... तुझे क्या लगता है...

सब राजु की ओर देखने लगते हैं l क्यूँकी पुरे डिस्कशन में राजु सबको सुन तो रहा था पर कोई कमेंट नहीं किया था अब तक l जैसे ही राजु को एहसास होता है कि सब उसे देख रहे हैं

राजु - देख रॉकी... तु जिस लड़की की बात कर रहा है... वह खुद पिंजरे में कैद बुलबुल की जैसी है... वह राजगड़ के स्कुल में क्लास अटेंड करने कभी कभी ही आती थी.... चाहे क्लास हो या एक्जाम... उसके लिए सेपरेट अरेंजमेंट होता था.... वह हम सबसे अलग बैठती थी.... उसके कोई दोस्त नहीं थे.... फ़िर इंटर के तीन साल बाद वह ग्रैजुएशन करने आई है... यहीँ पर उसने पहली बार दोस्त बनाए हैं.... यहाँ इस कॉलेज में उसके साथ जो भी हो रहा है... पहली बार हो रहा है.... इसलिए इस नए हालत से खुदको एडजस्ट करने की कोशिश कर रही है.... उसने ना तो कभी ऐसी भीड़ देखी थी... और ना ही ऐसे कभी किसीके सामने कोई प्रेजेंटेशन दी थी... इसलिए वह जितनी शॉक्ड थी... उतनी ही नर्वस भी.... अब इस वक़्त उसके मन में क्या चल रहा होगा... यह कहना मुश्किल है... सच कहूँ तो... मुझे अब डर लगने लगा है... हमने अब तक जो किया या कर रहे हैं.... क्या वह सही है... कहीं हम उसके दिल में अपने रॉकी के लिए फिलिंग्स जगाने के चक्कर में.... आग से तो नहीं खेल रहे हैं....
रॉकी - हो गया बेड़ा गर्क मेरा... साला कितना लंबा लेक्चर झाड़ दिया... कम्बख्त खुद तो डरा हुआ है... हमको भी डरा रहा है....
आशीष - हाँ यार... हम लोग इतना सोच समझ कर... प्लान एक्जिक्युट कर रहे हैं... कोई गलती हुई नहीं है अब तक... चुक हुई नहीं है अब तक...
रवि - (सबको) चुप रहो सब... (धीरे से) यह कॉलेज है... ऐसी डिस्कशन हम बाहर जाके कर सकते हैं... वह नंदिनी इसी तरफ आ रही है... चुप रहो सब...

सब गार्डन की एंट्रेंस की ओर देखते हैं l नंदिनी वहाँ से इन्हीं के तरफ आ रही है l सब अंदर ही अंदर डरने लगते हैं l नंदिनी सीधे आ कर इन लोगों के सामने खड़ी हो जाती है l

नंदिनी - हाय... हैलो बॉय्स...
सभी - हाय... हैलो...
नंदिनी - (रॉकी से) थैंक्स...
रॉकी - फॉर व्हाट...
नंदिनी - रॉकी... पहली बात... तुम वाकई हीरो हो... फायर एक्सीडेंट में तुमने बनानी को बचाया... टॉक ऑफ द कॉलेज ही नहीं टॉक ऑफ द टाउन हो गए... बेशक हमारे कालेज के सिक्युरिटी अलर्ट पर बहुत नेगेटिव कमेंट्स आए... पर तुमने लास्ट वीक जो रेडियो ब्रॉडकास्ट प्रोग्राम बनाया... जिसके वजह से... हमारे कालेज के लिए अब पॉजिटिव कमेंट्स आ रहे हैं... इसके लिए थैंक्स...
रॉकी - इ... इट्स ओके... अज अ जनरल सेक्रेटरी यह मेरा ड्युटी था... पर यह सब...
नंदिनी - ओ हाँ... अभी अभी मैं प्रिन्सिपल ऑफिस से आ रही हूँ... उन्होंने जितनी एप्रीसिएशन मेरी की... उतनी ही तुम्हारी भी की... वाकई यु आर अ हीरो...
रॉकी - (मुस्कराने की कोशिश करते हुए) थ.. थैंक्स...
नंदिनी - (हाथ को आगे बढ़ा कर) फ्रेंड्स...
रॉकी - (थरथराते हुए हाथ से नंदिनी की हाथ पकड़ कर) फ्रेंड्स...
नंदिनी - सो रॉकी... अगर बुरा ना मानों तो मैं तुम्हें एक फ्रेंडशिप गिफ्ट देना चाहती हूँ...
रॉकी - (हैरान व खुशी के साथ अपने दोस्तों को देखते हुए) जरूर... आई डोंट माइंड...

नंदिनी अपनी पर्स से एक डिजिटल घड़ी निकालती है और रॉकी की बाएं हाथ को हाथ में लेकर बांध देती है l

नंदिनी - अगर फ्रेंडशिप बैंड होता तो... वह बैंड बांध देती... पर हमारी फ्रेंडशिप बहुत वैल्युवल है तो सोचा बैंड भी वैल्युवल होनी चाहिए.... इसलिए मैंने तुम्हारे लिए यह खरीदा है....

नंदिनी के घड़ी पहनाने के बाद रॉकी उस घड़ी को गौर से देखता है l

नंदिनी - यह वेयर हेल्थ वॉच है... फ़िलहाल अभी इसके स्क्रीन पर ब्लू टूथ की डिस्पले ही दिखेगा... जैसे ही तुम अपने मोबाइल फोन को ब्लू टूथ के जरिए इससे कनेक्ट करोगे... तुम्हारे मोबाइल पर एक लिंक आएगा... फिर ऐप स्टोर से इसका ऐप डाउन लोड कर लेना... और उसके हिसाब से प्रोग्राम कर लेना... यह तुम्हारा हेल्थ गार्ड करेगा... हार्ट बीट.. पल्स रेट वगैरह सब बतायेगा... तुम्हारा कैलोरी बर्न के बारे में जानकारी देगा... और तुम्हारे शरीर को पानी कब चाहिए... यह भी अलर्ट कर देगा....
रॉकी - (घड़ी को देखते हुए) वाव...
नंदिनी - ह्म्म्म्म और भी फीचर्स हैं... जितना डीप जाओगे... उतना जान जाओगे...
रॉकी - थैंक्स... नंदिनी... पर इतनी कॉस्टली गिफ्ट...
नंदिनी - तुम दोस्त ही इतने क़ीमती हो... तुम्हारे दोस्ती के आगे... यह मामूली ही है....
रॉकी - (उस डिजिटल घड़ी को देखता ही रहता है)
नंदिनी - और हाँ यह वॉटर प्रूफ़ भी है... चाहो तो चौबीसों घंटे इसे पहन सकते हो... (मुस्कराते हुए) मुझे बहुत खुशी भी होगी... अगर तुम इसे हरदम पहने रहो तो... ओके गॅयस... मैं क्लास जा रही हूँ... एंजॉय योर डे....

इतना कह कर नंदिनी वहाँ से चली जाती है l उसके आँखों से ओझल होते ही सभी रॉकी पर टुट पड़ते हैं l

आशिष - अबे... लौंडे ने मैदान मार लिया रे...
सुशील - हाँ यार... चल आज पार्टी दे दे यार... मैं तो बोलता हूँ... आज रात भर पार्टी करते हैं... साले सिर्फ तीन स्टेप पर ही मंजिल मिल गई...
रवि - अपनी हीरो की तो लॉटरी लग गई

रॉकी शर्माने लगता है l सभी उसके इर्द गिर्द हैइ हैइ चिल्लाते हुए घूमने लगते हैं l

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वीर ऑफिस में अपने कैबिन में पहुँचता है और अपने कुर्सी पर बैठ जाता है l वह अपनी चारो तरफ नजर घुमाने लगता है l उसे कहीं पर भी अनु नहीं दिखती है l वह अपना मोबाइल फोन निकाल कर अनु की नंबर निकाल कर डायल करने को होता है कि उसका फोन बजने लगता है l वीर देखता है महांती का फोन है l

वीर - हाँ... महांती... बोलो क्या हुआ है...
महांती - राजकुमार जी... मैं कब से युवराज जी को फोन लगा रहा हूँ... पर वह नहीं उठा रहे हैं....
वीर - अगर वह नहीं उठा रहे हैं... तो हम क्या करें...
महांती - आपने जैसा कहा था... हमने वैसा ही तो किया... पर एज ESS डायरेक्टर... उन्हें मैं रिपोर्ट करना चाहता था.... पर वह नहीं मिल रहे हैं...
वीर - तो हमे बताओ... हम जब युवराज जी से मिलेंगे... तो उनको बता देंगे...
महांती - ठीक है... उन्हें बता दीजिए... केस नाइंटी पर्सेंट सॉल्व हो गया है... और मैं कल पहुंच कर बाकी रिपोर्ट प्रेजेंट करूंगा....
वीर - वाव... मतलब... हमारे हाथ कुछ मगरमच्छ लगे हैं...
महांती - मगरमच्छ तो नहीं... पर उस मगरमच्छ के साथ देने वाले सब हमारे रेडार पर आ गए हैं...
वीर - गुड... ठीक है... हम युवराज को इंफॉर्म कर देंगे...
महांती - थैंक्यू... राज कुमार... थ.. (वीर फोन काट देता है)

वीर - साला कमीना कबाब में हड्डी... हमेशा रॉंग टाइम पर फोन करता है...

फिर अनु की नंबर निकाल कर डायल करता है l फोन पर रिंग टोन सुनाई देने लगता है l कुछ देर बाद फोन कट जाता है l वीर फिर से डायल करता है l फोन बजने लगता है पर इस बार भी अनु फोन नहीं उठाती है l वीर गुस्से से फोन काट कर अपने रिवॉल्वींग चेयर पर इधर उधर होने लगता है l फिर खीजे हुए मन से विक्रम की कैबिन की ओर जाने लगता है l विक्रम के कैबिन के सामने पहुँचकर दरवाजे पर धक्का देता है l दरवाज़ा नहीं खुलता है तो वह दरवाजे पर दस्तक देता है l तभी वहाँ पर एक गार्ड आता है

गार्ड - राजकुमार जी... युवराज अपने कैबिन में नहीं हैं...
वीर - क्यूँ... अभी तक ऑफिस नहीं गए हैं क्या...
गार्ड - वह कल रात से ही ऑफिस में हैं... शायद घर नहीं गए हैं...
वीर - (हैरान हो कर) क्या... (फिर संभल कर) ओके.. ओके... अभी कहाँ हैं वह...
गार्ड - जी अभी ट्रेनिंग ग्राउंड के पास... ट्रेनिंग हॉल में...
वीर - अच्छा... ओके... अब जाओ... तुम...

वीर मन ही मन सोचने लगता है - क्या... युवराज कल रात भर घर नहीं गए... यह क्या माजरा है... घर पर कोई जानता भी है या नहीं... क्या युवराणी जी को पता है... शायद पता होगा.... पर युवराज और उनके बीच तो बातचीत बंद है.... पता नहीं शायद कबसे... हर रात तो वह युवराज जी को देखने के बाद अपने कमरे में सोने जाते हैं... तो क्या उनको कोई चिंता नहीं हुआ...

ऐसे सोचते सोचते वीर ट्रेनिंग हॉल में पहुँचता है l वहाँ देखता है विक्रम एक चेयर पर पसीने से लथपथ बैठा हुआ है l वीर समझ जाता है विक्रम ने ज़रूर जम कर एक्सर्साइज और प्रैक्टिस की है l वह एक टवेल उठा कर विक्रम के पास पहुंचता है l वीर उसके पास खड़ा है यह विक्रम को एहसास हो जाता है वह वीर की ओर देखता है और वीर के हाथों से टवेल ले कर अपना चेहरा पोंछता है I

विक्रम - कहिए राजकुमार... कैसे आना हुआ...
वीर - वह... महांती का फोन आया था... आपने नहीं उठाया तो उसने मुझे फोन किया...
विक्रम - (अपना फोन निकाल कर मिस कॉल चेक करता है) ह्म्म्म्म... मैंने देखा नहीं था...
वीर - आपके मुहँ से... यह हम के वजाए मैं सुनना... अच्छा नहीं लगता...
विक्रम - आदत डाल लीजिए...
वीर - कभी सोचा है... आप राजा साहब जी के सामने कैसे जाएंगे... क्या उनको समझा पाएंगे कि आपने अपनी मूंछें क्यूँ मुंडवा लिया... या... आप हम के वजाए... मैं क्यूँ कह रहे हैं....
विक्रम - (चुप रहता है)
वीर - आप कल घर भी नहीं गए...
विक्रम - उसे घर क्यूँ कह रहे हैं... राजकुमार... उसे मैंने बड़े चाव से बनाया था ... और उसका नाम द हैल रखा था... मतलब नर्क... अब सचमुच वह नर्क लगने लगा है... क्या करें... अपनी ही करनी है... नर्क भोग रहे हैं....
वीर - आप... ऐसे क्यूँ बात कर रहे हैं...
विक्रम - (एक नजर वीर पर डालता है और) जानते हैं... राजकुमार... आप मुझसे... बातों से, सोच में और ज़ज्बात समझने में... बहुत आगे हैं... कभी कभी मुझे आपसे जलन होती है...
वीर - यह... यह आप कैसी... बहकी बहकी बातेँ कर रहे हैं....
विक्रम - हाँ... राजकुमारजी... हाँ... आपकी हर सोच हमेशा युनीडाइरेक्शनल होता है... फोकस्ड रहता है... पर मैं... मैं हमेशा खुद को दो राहे पर पाता रहा हूँ... खुद को भटका हुआ महसुस करता हूँ...
वीर - युवराज जी... प्लीज आप ऐसे बातेँ मत कीजिए.... आप हमेशा मेरे आईडल रहे हैं... मैं तो आपको फॉलो कर रहा हूँ...
विक्रम - (दर्द भरे आवाज़ में) मत कीजिए फॉलो मुझे... आई एम अ लुज़र...
वीर - प्लीज...
विक्रम - ना दिल जीत पाया... ना दुनिया...
वीर - युवराज जी.... आप को क्या हो गया है... आप मुझे बताइए क्या हुआ था उस दिन... किस तरह से तोड़ कर रख दिया है आपको... मैं... मैं उसे नहीं छोड़ूंगा...
विक्रम - (चीख कर) नहीं... (नॉर्मल होते हुए) नहीं... वह मेरा है... उसने मेरे शख्सियत से क्षेत्रपाल को नोंच फेंका है... मेरी वज़ूद को झिंझोडा है... उसे मैं ही निपटुंगा....
वीर - ऐसा क्यूँ... युवराज... ऐसा क्यूँ...

विक्रम वीर को ओरायन मॉल के पार्किंग एरिया में हुए पुरे वाक्या का विवरण देता है, सिवाय नाम के l वीर सब सुनने के बाद कुछ सोच में पड़ जाता है l

वीर - ओ... युवराणी जी का उस शख्स के आगे हाथ जोड़ना...(चुप हो जाता है)
विक्रम - हूँ... जानते हैं राजकुमार... एक दिन मैंने फैसला किया था... मैं अपने लिए कुछ नहीं करूँगा... सिर्फ़ वही करूँगा... जिससे भैरव सिंह क्षेत्रपाल जी के नाम का सिक्का चले... इन छह सालों में... मैंने वही किया... पर उस शख्स ने... क्षेत्रपाल के साये में दबे... मेरे वज़ूद को ललकारा है... इसलिए जब तक उसे विक्रम ज़वाब नहीं दे देता... तब तक विक्रम को क्षेत्रपाल नाम ढोने का हक भी नहीं है...
वीर - (उसे हैरानी से देखता रहता है, क्यूंकि हर लफ्ज़ के साथ साथ विक्रम के चेहरे पर भाव गम्भीर होता जा रहा था)
विक्रम - इसीलिए मैं यहीँ अपने वज़ूद को तलाश रहा हूँ... तराश रहा हूँ... अब मेरी सोच किसी दोराहे पर नहीं है... मुझे बस... उस शख्स को मुहँ तोड़ ज़वाब देना है...
वीर - पर अब आप घर कब तक नहीं जाएंगे...
विक्रम - (वीर के तरफ देख कर हल्की सी हँसी हँसता है) आपको कब मालुम हुआ... मैं घर नहीं गया हूँ...
वीर - (अपना सिर झुका लेता है) य... यहीं... थोड़ी देर पहले...
विक्रम - हा हा हा हा... देखा वह घर नहीं है... वह नर्क है... द हैल... जिसे मैंने बनाया है... वहाँ मेरे खुन के रिश्ते में लोग रहते हैं... और दिल के रिश्ते में कोई रहती है... पर किसीको को खबर नहीं थी...(विक्रम के आवाज में दर्द निकल आता है) किसीको इंतजार नहीं थी....
वीर - (कुछ कह नहीं पाता)
विक्रम - अब आप जाएं राजकुमार.... अब आप जाएं... (ना चाहते हुए भी वीर वहाँ से उठ कर जाने लगता है) बस एक फेवर कीजिएगा... (वीर पीछे मुड़ कर देखता है) कुछ दिनों के लिए ESS को पुरी तरह से आप ही संभालीये...

वीर अपने दिल में एक भारी पन महसुस करने लगता है l भारी मन लिए अपने कैबिन में पहुँचता है और अपने चेयर पर बैठ कर विक्रम की कहे बातों पर सोचने लगता है l विक्रम की बातों को सोचते सोचते वह अपने बचपन में पहुँच जाता है l

फ्लैशबैक

बचपन में एक दिन
अपनी गुड़िया सी नन्ही बहन के साथ खेल रहा था तभी पिनाक सिंह उसके पास आकर

पिनाक - (ऊंची आवाज़ में) राज कुमार...
वीर - जी.. जी छोटे राजा जी....
पिनाक - अब आपका खेलने का समय खतम हो चुका है.... पढ़ाई के लिए आपको युवराज जी के पास कलकत्ता जाना पड़ेगा...
वीर - क्या रुप भी हमारे साथ जाएगी...
पिनाक - (ऊंची आवाज़ में) खबरदार... (ऊंची आवाज़ से नन्ही रुप रोने लगती है) हमारे वंश में लड़कीयों को पढ़ने लिखने की इजाज़त नहीं है... और यह क्या रुप कह रहे हैं...
वीर - हमारी छोटी बहन है.... तो हम क्या कहें...
पिनाक - राजकुमारी कहेंगे... राजवंशीयों के बीच रिश्ते नहीं ओहदे होते हैं... और जब कलकत्ता जायेंगे वहीँ पर... युवराज जी को युवराज ही कहेंगे... भाई या भैया नहीं...

फ्लैशबैक खतम

वीर को विक्रम के भीतर का दर्द महसूस होने लगता है l वह अपने इसी सोच में खोया हुआ है तभी उसे एहसास होता है कि उसके सामने बैठे दो बड़ी बड़ी हिरनी जैसी आँखे घूर रही हैं l वह उन आँखों को देखने लगता है l जैसे ही वह आँखे झपकने लगती हैं वीर के होठों पर हल्की सी मुस्कराहट आकर ठहर जाता है l

अनु - अहेम... अहेम...
वीर - (फिर भी उसकी आंखों को निहार रहा है)
अनु - (धीरे से) राज कुमार जी...
वीर - (कोई जवाब नहीं देता)
अनु - राजकुमार जी (थोड़ी ऊंची आवाज में)
वीर - (ध्यान टुटता है) हूँ.. हाँ... क्या... क्या हुआ..
अनु - आप मुझसे गुस्सा हैं ना...
वीर - क्यूँ...
अनु - (झिझकते हुए) वह मैंने कल... (जल्दी जल्दी) मुझसे फोन कट गया...
वीर - हूँ... ठीक है...
अनु - (धीरे से) आपको बुरा लगा...
वीर - हाँ... नहीं... नहीं... (थोड़ी देर चुप रहने के बाद) अनु...
अनु - जी...
वीर - अपनी बचपन के बारे में कुछ कहो...
अनु - (हैरान हो कर) जी...
वीर - मेरा मतलब... तुम्हारा बचपन कैसा था... अनु...
अनु - (चेहरे पर एक भोली सी मुस्कान लिए) अपना बचपन किसे अच्छा नहीं लगता राजकुमार जी... वह बचपन जहां हर जिद पुरी होती थी... रोने पर बापू मुझे बुड्ढी के बाल लाकर देते थे... जब मेला लगता था... अपनी कंधे पर बिठा कर मेला दिखाते थे... (फिर चहकते हुए) बचपन में पता नहीं कितने खेल खेलते थे... घो घो राणी... लुका छुपी... बहु चोरी.... क्या बताऊँ कितना मजा आता था... हमारे पास वाले गली में एक आम का बाग होता था... जब जब आम चोरी करने जाते थे... बड़ा मजा आता था... कभी कभी पकड़े भी जाते थे... फिर भी आम चोरी नहीं छोड़ा था... पर ज्यों ज्यों उम्र बढ़ती गई... दादी ने मेरा बाहर जाना और सहेलियों के साथ खेलने पर पाबंदी लगा दी...
वीर - वाकई... तुम्हारा बचपन लाजवाब था... सबकी बचपन ऐसी नहीं होती... (कह कर वीर चुप हो जाता है)
अनु - (झिझकते हुए) आ.. आप.. का बचपन...
वीर - नहीं अनु... हमारी जैसी बचपन किसीको नसीब ना हो... सब-कुछ आँखों के सामने होता है... हाथ की पहुँच में होते हुए भी... कुछ हासिल नहीं होता है... बड़े बदनसीब होते हैं हम जैसे...
अनु - (हैरानी से आँखे फैल जाती है) आ... आप तो... राजकुमार हैं ना...
वीर - हाँ अनु... यही अभिशाप लेकर हम जी रहे हैं....

फिर कुछ देर तक चुप्पी छा जाती है l वीर और अनु एक दुसरे को देखने लगते हैं l

वीर - तुम कब आई अनु...
अनु - (शर्मा जाती है) वह आई तो थी... पर...
वीर - पर... आज मेरी फोन भी नहीं उठाया...
अनु - वह आ.. आपके सामने आ... आने से मुझे शर्म आ रही थी...
वीर - क्यूँ... मैंने क्या किया...
अनु - (गाल लाल हो जाती हैं, अपना सिर झुका लेती है)

वीर को याद आता है अनु से उसके क्या कहा था l वीर के चेहरे पर फ़िर से मुस्कराहट आ जाती है l

वीर - अनु....
अनु - (अपना सिर झुकाए) हूँ...
वीर - अच्छा मान लो... फिर से बचपन जीने का मौका मिला... तो क्या करोगी...
अनु - (अपना चेहरा उठाकर चहकते हुए) तब तो मजा ही आ जाए.. मैं तो पहले किसी झूले में झूला झूलती... फ़िर समंदर के किनारे रेत की घर बनाती... फिर... बुड्ढी के बाल ख़ुद बना कर खाती.... फिर से आम चोरी करती.... पता नहीं क्या क्या करती....
वीर - (अनु की बातों को गौर से सुनता रहता है)
अनु - (वीर को अपने तरफ देखते हुए पाती है) आप ऐसे क्या देख रहे हैं...
वीर - तुममें अभी भी बहुत बचपना है... लगता ही नहीं के तुम बड़ी हो गई हो... बस शरीर से बड़ी दिखती हो... और जब जब शर्माती हो... तभी शायद तुमको एहसास होता है... की तुम अब बच्ची नहीं रही हो...
अनु - (फ़िर से शर्मा कर अपना सिर झुका लेती है, और चोरी चोरी वीर को देखने लगती है)
वीर - अच्छा अनु...
अनु - हूँ...
वीर - जब तुम अपनी बचपन को दोबारा जीना चाहोगी... मुझसे जरूर कहना...
अनु - (हैरानी से) क्यूँ... मतलब कैसे...
वीर - मैं... तुम्हारे साथ... एक दिन के लिए... अपना खोया हुआ बचपन जीना चाहता हूँ... वह बचपन जिसकी ख्वाहिश तो थी पर.... कभी जी नहीं पाया...
अनु - (हैरान हो कर) आप मेरे साथ... हम दोस्त भी नहीं हैं...
वीर - तो बना लो ना...
अनु - आप लड़के हैं... और मैं लड़की... हमारे बीच दोस्ती थोड़ी ना हो सकती है...
वीर - क्यूँ... क्यूँ नहीं हो सकती...
अनु - ह... हम... बच्चे नहीं हैं...
वीर - बच्चे होते... तो हो सकते थे...
अनु - हाँ...
वीर - मैं वही तो कह रहा हूँ... बस एक दिन... तुम्हरी ख्वाहिशों की तरह... तुम्हारे साथ बचपन जीना चाहता हूँ...
अनु - वह सब तो मैं... अपनी किसी सहेली के साथ.... (चुप हो जाती है)
वीर - तो एक काम करो... मुझे अपना सहेला बना दो...
अनु - जी... सहेला मतलब...
वीर - लड़की दोस्त हो.. तो सहेली होती है.... और लड़का दोस्त हो... तो सहेला... क्यूँ है ना...
अनु - (हैरान हो कर) ऐसा थोडे ना होता है...
वीर - फिर कैसा होता है...
अनु - (कुछ नहीं कहती, बिल्कुल चुप हो जाती है)
वीर - अनु.... (वैसे ही सिर झुकाए बैठी रहती है) कब जाना है... कहाँ जाना है... क्या क्या करना है... यह मैं पुरी तरह से तुम पर छोड़ता हूँ... यूँ समझ लो... यह मेरी एक ऐसी ख्वाहिश है... जो मैं जीना चाहता हूँ... भले ही तुम मेरी पर्सनल सेक्रेटरी हो... पर यह बात मैं पुरी तरह से तुम पर छोड़ता हूँ... मुझे बस एक दिन एक बच्चा बन कर बचपन को जीना है...
Awesome Updateee

Veer bhi ab dheere dheere badal raha hai. Usse bhi apna bachpan yaad aaraha hai jab uspe yeh jhoothe Rajsi sambhandh jode gaye the. Ab woh Anu ke saath milke ek din ke liye apna bachpan jeena chahta hai.

Idher Roop aur Rocky ki dosti hogyi hai. Aur dosti ke badle Roop ne Rocky ko ek ghadi de di. Mujhe aisa kyo lag raha hai yeh Ghadi rocky ka jo main plan hai uska pardafash karne mein madad karegi.

Dekhte hai aage kya hota hai.
 

Kala Nag

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Awesome Updateee

Veer bhi ab dheere dheere badal raha hai. Usse bhi apna bachpan yaad aaraha hai jab uspe yeh jhoothe Rajsi sambhandh jode gaye the. Ab woh Anu ke saath milke ek din ke liye apna bachpan jeena chahta hai.

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Jaguaar भाई
इस बार आपने शत प्रतिशत सही अनुमान लगाया है
धन्यबाद
 

Rajesh

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👉पचपनवां अपडेट(A)
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तापस और प्रतिभा खान को ऐसे देखने लगते हैं जैसे उनके सामने कोई भूत बैठा हो l दोनों का मुहँ खुला रह जाता है और हैरानी से कभी एक दुसरे को तो कभी खान को देखने लगते हैं I

तापस - ये.. यह... क्या मज़ाक है... खान... तुम विश्व पर आरोप मढ रहे हो...
खान - नहीं बिल्कुल नहीं... तुम्हें लगता है कि मैं मज़ाक करने के मूड में हूँ...
तापस - देन... व्हाट रॉब्बीश... तुम जानते हो... जैल में जितने भी कैदी सुधार प्रोग्राम हो रहे हैं.... सब विश्व की दी हुई आइडिया से है... सुधरने की कोशिश करने वाले क़ैदियों को स्वरोजगार और स्वावलंब की जितनी भी प्रोग्राम है... सब के सब विश्व के आइडिया है.... आज कैन्टीन में जो टीवी और न्यूज पेपर उपलब्ध है वह भी विश्व का आइडिया है.... और अभी अभी मैंने तुमको बताया कैसे... कैसे विश्व ने जैल में दंगा भड़कने से रोका और कैदियों के साथ साथ हम पुलिस वालों की भी जान बचाई... बाय द वे... तुम जिसे हत्या कह रहे हो.... वह एक हादसा था... यह इंक्वायरी में साबित भी हो चुका है... तो फिर किस बिनाह पर तुम उसे क़ातिल बता रहे हो...(एक ही सांस में बिना रुके बोलता है)
खान - रिलैक्स... रिलैक्स... तुम इतना हाइपर क्यूँ हो रहे हो...
तापस - (खुदको संभालते हुए) सॉरी... पर तुम बिना सबुत के कैसे किसी पर आरोप लगा सकते हो...
खान - हाँ सबुत तो है नहीं... पर मैं लॉजिक बिठा सकता हूँ....
प्रतिभा - अगर सबुत ही नहीं है... तो हम क्यूँ बे फिजूल डिस्कस कर रहे हैं...
खान - सबुत तो... यश ने भी नहीं छोड़ा था...
तापस - इनॉफ...(आवाज़ में थोड़ा गुस्सा झलकता है) तुम विश्व और यश को मत मिलाओ... तुम यह सब इसलिए कह रहे हो... क्यूंकि यश ने हम सबका कुछ ना कुछ बिगाड़ा था.... पर वह... जो भी हुआ था... वह एक हादसा था... उस वक़्त मैं था भी नहीं... और उस हादसे पर रिपोर्ट.... इंटरनल इनवेस्टिगेशन पैनल ने बनाई थी... और वह इंफ्लुयंस्ड नहीं थे...
खान - आई नो... पर मैंने कहा ना मैं लॉजिक बिठा सकता हूँ...

तापस वाकई हाइपर होने लगा था l उसकी सांस ऊपर नीचे होने लगी थी l प्रतिभा ने उसका हाथ थाम लिया l

तापस - (थोड़ा नॉर्मल होते हुए) ठीक है... बताओ तुम क्या जानते हो...
खान - (मुस्कराकर) तुमने खुद बताया... विश्व... एक मासूम गाँव वाला... पर अब.... अब कहाँ से कहाँ पहुँच गया है...
तापस - खान प्लीज...
खान - ओके ओके... ठीक है... तो मैं बताता हूँ.... जैसा कि विश्व अगले महीने छूटने वाला है... तो जाहिर सी बात है... मुझे उसके अब तक जितने दिन भी रहा है... उसके चाल चलन पर रिपोर्ट बना कर मंत्रालय को भेजना था... तभी मैंने उसके फाइल में यह भी देखा था... की उसे एक इंटरनल इंक्वायरी का सामना करना पड़ा है... रिपोर्ट में उसके साथ और पाँच सस्पेक्ट और भी थे... बट ऑल क्लीयर... पर तुम्हारे कहानी सुनने के बाद.... मुझे न्यूज पेपर पर पढ़े... और टीवी पर देखे सुने न्यूज... कुछ कुछ याद आने लगे... आख़िर पुलिस वाला हूँ... मैंने अपना लॉजिक बिठा दिया...
तापस - पर ऐसे कैसे...
खान - सेनापति... हम दोनों एक दुसरे को... अच्छी तरह से जानते हैं... हमने कई कंभींग ऑपरेशन साथ किया है... तुम जानते हो... मैं बे फिजूल कोई बात करता नहीं...
तापस - (चुप रहता है)
खान - वह हादसा था या हत्या... यह बाद की बात है... पर सच यह भी है... की यश से बदला लेने के लिए... विश्व के पास दो दो वजह थे.... एक जयंत राउत और दुसरा प्रत्युष....

तापस और प्रतिभा चुप रहते हैं l खान भी उनकी प्रतिक्रिया देखने के लिए कुछ दूर चुप रहता है l फ़िर ख़ामोशियों को तोड़ते हुए तापस पूछता है

तापस - ओ... तो तुम अपना लॉजिक बिठा रहे हो...
खान - सिर्फ़ लॉजिक नहीं... एक दम सलिड लॉजिक...
तापस - ठीक है... असल मुद्दे पर आओ...
खान - बताता हूँ... जैसे कि मैंने कहा तुम्हारे और विश्व के अतीत में झांकने के बाद ही.... मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूँ... इसलिए मैं भी तुम्हें... दो साल पहले लिए चलता हूँ... जो उस वक़्त पेपर के हेडलाइंस बने हुए थे... दो साल पहले... चेट्टीस् ओर क्षेत्रपालों की बीच दूरियां आ चुकी थी.... वजह का तो पता नहीं... पर क्यूँकी जब विक्रम सिंह क्षेत्रपाल की शादी हुई थी तब... तब उसके शादी में चेट्टीस् का ना जाना बहुत ही बड़ी न्यूज थी... आखिर क्षेत्रपाल परिवार को राजनीति में लाने वाले चेट्टीस् जो थे.... उसके बाद तो जैसे... चेट्टीस् के सियासत और निजी जिंदगी में पतझड़ो का सिलसिला ही शुरू हो गया... वजह... वही लोग जानें... मगर उसके बाद से ही ओंकार चेट्टी की सियासत को और यश चेट्टी की व्यापार सब को ग्रहण लगना शुरू हो गया था.... दो साल पहले... नयी नयी एक उभरती मीडिया चैनल... नभ वाणी के रिपोर्टर प्रवीण रथ ने... पहले यश पर सनसनी आरोप लगाया कि... यश एक लड़की बाज और ऐयाश किस्म का आदमी है... तब मीडिया में वॉर छिड़ गई थी... यश के बचाव में कुछ आ गए थे... और हमले में सिर्फ कुछ एक ही मीडिया थे.... और उन सबमें सबसे आगे था... नभ वाणी... फिर एक दिन प्राइम टाइम न्यूज में.... निहारिका नाम की एक टॉप मॉडल आकर यश पर इल्ज़ाम लगा देती है... की पाँच सालों से वह और यश लिव इन रिलेशनशिप में थे... अब जब वह उसके बच्चे की माँ बनने वाली है... तब यश ने उसे धक्के मार कर घर से निकाल दिया है.... इस पर यश ने काउंटर प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए... निहारिका पर पाँच सौ करोड़ रुपए की... डिफेम केस शूट कर दिया.....
क्यूँ है ना....
प्रतिभा - हाँ... यह तो सब जानते हैं... इसमें नया क्या है...
खान - नया क्या है... वह मैं आखिर में कहूँगा... फ़िलहाल में कड़ी से कड़ी जोड़ रहा हूँ....
तापस - ठीक है... कहो....
खान - जब यश जैसा बिजनस टाईकुन... पांच सौ करोड़ की डिफेम शूट किया हो... तो उससे बचने के लिए... कोई नामी या फिर दमदार वकील होना चाहिए कि नहीं.... भाभीजी तभी धीरे धीरे ग्रूम कर रही थीं... इतनी नामी तो थी नहीं.... पर फ़िर भी... निहारिका ने अपनी केस लड़ने के लिए.... आपके पास आई... और आप यश के खिलाफ केस लड़ने के लिए.... किसी भी हद तक जा सकती थीं.... यह बात निहारिका अच्छी तरह से जानती थी.... आपने भी हाथ में केस लेने की जरा भी देरी ना लगाई.... और कोर्ट में... आपकी क्लाएंट को यश से जान की खतरा है.... और अगर निहारिका को कुछ भी हो जाता है तो.... उसका जिम्मेदार सिर्फ़ व सिर्फ़ यश ही होगा... ऐसा हलफनामा दायर किया....
है ना....
प्रतिभा - हाँ यह सच है और यह बात सबको पता है...
खान - हाँ... इस बार यश बौरा गया था... अपनी आदत के अनुसार दुश्मन को खुद मारने निकला और इसलिए... खुद ही अपनी गाड़ी से निहारिका की एक्सीडेंट कर दिया... पुलिस की तफ्तीश आगे बढ़ी तो शक़ यश पर आया... चूंकि आपने पहले से ही अदालत में हलफनामा दायर कर चुकीं थी... तो यश के नाम पर वारंट अदालत से निकली... तब मज़बूर हो कर यश ने खुद को अदालत में सरेंडर करा दिया... पर अदालत में यह भी कहा.... उसको जैल सुपरिटेंडेंट तापस सेनापति से जान का खतरा हो सकता है... इसलिए उसे किसी और जैल में रखा जाए... और अदालत ने आपकी और यश के अतीत को देख कर.... यश को झारपड़ा जैल में भेज दिया....
है ना...
तापसा - (अपना सिर हाँ में हिलाते हुए) हूँ...
खान - झारपड़ा जैल में जब यश चौदह दिनों की रिमांड पर था... तब...

अब खान की जुबानी फ्लैशबैक जो वह बीच बीच में ब्रेक लेकर सुनाएगा

सेंट्रल जैल
विश्व स्किल अपग्रेडेशन सेंटर में कारपेंट्री का काम कर रहा है l उसके पास सीलु आता है पर विश्व को कुछ नहीं कहता वहीँ जगह देख कर बैठ जाता है l

विश्व - क्या बात है... ऐसे मुहँ लटकाये क्यूँ बैठा है...
सीलु - वह भाई तुमसे एक बात करनी है...
विश्व - हाँ तो कहो...
सीलु - भाई... वह...
विश्व - (अपना काम रोक देता है, और सीलु को अपने साथ सेंटर से बाहर आता है) अब बोलो क्या बात है... बेझिझक बोलो...
सीलु - भाई मैं और जिलु यहाँ साथ हैं.. मिलु और टीलु बाहर हैं... तो वही इंसपेक्टर ने उन दोनों को एक बड़ा ऑफर दिया है...
विश्व - क्या ऑफर दिया है....
सीलु - भाई हम हमेशा हिट एंड रन केस को... अपने ऊपर ले लेते हैं... बदले में हमारी तगड़ी कमाई भी हो जाती है... पर हर हिट एंड रन केस में... कभी किसीकी जान नहीं गई थी... पर इस बार मामला थोड़ा अलग है...
विश्व - मतलब अब इस बार किसीकी जान गई है...
सीलु - हाँ... हम कभी पाँच या छह महीने से ज्यादा जैल में रुके भी नहीं है... पर इसबार बात अलग है...
विश्व - क्या अलग है...
सीलु -.. वह इंस्पेक्टर... इसबार कह रहा है... की हिट एंड रन केस में... पाँच साल की सजा हो सकती है.... अनइंटेंश्नली मर्डर चार्जर्स लग सकते हैं... पर हर एक साल की ऐवज में दो करोड़... मतलब हम चारों को दस दस करोड़ रुपये...
विश्व - ह्म्म्म्म... तो तुम लोग मुझसे चाहते क्या हो...
सीलु - भाई... हमने पहले भी कहा था... की हम यह काम छोड़ देंगे... और तुम्हारे साथ ही रहेंगे... बात अगर दो साल की होती तो हम मान लेते... पर पाँच साल...
विश्व - (सीलु को घूर कर देखता है) सीलु... मैं तब भी चाहता था... और अब भी चाहता हूँ... तुम लोग यह काम छोड़ दो...
सीलु - हम छोड़ तो दें... पर वह इंस्पेक्टर हमे नहीं छोड़ रहा है ना...
विश्व - वैसे यह किस बंदे के लिए... कह रहा है...
सीलु - मालुम नहीं भाई... हमारे उस इंस्पेक्टर के साथ पहले ही डील है... हमको उनके बारे में... कोई जानकारी नहीं दी जाती...
विश्व - अच्छा... पहले कितना ऑफर होता था...
सीलु - यही कोई पचास हजार या लाख या ज्यादा से ज्यादा डेढ़ लाख...
विश्व - (भवें तन जाती है) इस बार करोड़ों...
सीलु - हाँ भाई....
विश्व - (सीलु को अपने तरफ घुमाता है और उसके दोनों कंधे पर अपना हाथ रख कर) सीलु मुझसे सच सच कहो... क्या वाकई तुम लोग इस दल दल से निकालना चाहते हो...
सीलु - हाँ भाई कसम से...
विश्व - तो मुझे कल तक का समय दो... फिर मैं जैसा कहूँगा... तुम मिलु और टीलु से कहना... वह लोग सब बिल्कुल वैसे ही करेंगे...
सीलु - ठीक है भाई...

फिर वहीँ, सीलु को छोड़ कर तापस के कैबिन की ओर जाता है l वहाँ पहुँच कर देखता है तापस किसी गहरी सोच में डूबा हुआ है l

विश्व - क्या मैं अंदर आ सकता हूँ...
तापस - (होश में आते हुए) हूँ... हाँ... विश्व आओ... कहो क्या बात है...
विश्व - मुझे आपका फोन चाहिए...
तापस - क्यूँ प्रतिभा से बात करनी है क्या...
विश्व - हाँ...
तापस - यह लो...
विश्व - (फोन लगाता है)...
प्रतिभा - (दुसरी तरफ से) हाँ बेटा बोल...
विश्व - अरे माँ.. तुमको कैसे पता... मैंने आपको फोन लगाया है...
प्रतिभा - बेटे को कब माँ की जरूरत पड़ती है... माँ समझ जाती है... अच्छा अब बोल... तूने फोन क्यूँ किया...
विश्व - माँ.. वह यश... बचने के लिए... जुगाड़ लगा रहा है... वह अपने बदले किसी और से इकबालिया बयान दिला कर... खुद को बचाने के चक्कर में है... आपको कुछ करना पड़ेगा...
प्रतिभा - (हैरान होते हुए) तुझे कैसे पता....
विश्व - माँ... यहाँ पर मेरे चार दोस्त हैं (विश्व उनके बारे में और वह लोग कैसे जैल में आते हैं सब बता देता है) माँ... मैंने उनसे वादा किया था... की उनको एक दिन उस दल दल से निकालूँगा... अब वक़्त आ गया है...
प्रतिभा - ठीक है पर कैसे...
विश्व - आप उस इंस्पेक्टर की स्टिंग ऑपरेशन करोगे... मेरे दोस्तों के जरिए... मेरे यही दोस्त सरकारी गवाह बनकर... यश के खिलाफ सबूत बन जाएंगे...
प्रतिभा - (आवाज़ में खुशी जाहिर करते हुए) बहुत ही बढ़िया आइडिया दिया है तुमने... एक काम करो... तुम अपने दोस्तों के डिटेल्स दो... और जो बाहर हैं... उन्हें कहो मुझसे कहीं... न्यूट्रल वेन्यू पर मिले...
विश्व - ठीक है माँ... अच्छा अब बस इतना ही... बाद में कभी...
प्रतिभा - बाय बेटा... लव यू...
विश्व - लव यू ठु माँ...

कह कर फोन काट देता है और तापस को दे देता है l विश्व गौर करता है तापस उसे घूर कर देख रहा है l

विश्व - आप ऐसे क्यूँ घूर रहे हैं...
तापस - कितना दिमाग चला लेते हो... एक दिन बहुत बड़ा वकील बनोगे...

विश्व थोड़ा शर्मा कर सकुचाते हुए बाहर चला जाता है l
कुछ दिनों बाद स्टिंग ऑपरेशन में चन्द्रशेखर पुर थाने के इंस्पेक्टर यश का नाम खुलासा करते हुए पाया जाता है l उसके बाद वह इंस्पेक्टर सस्पेंड कर दिया जाता है l चौदह दिन की रिमांड के बाद अदालत की पेशी में यश की रिमांड और चौदह दिन और बढ़ जाता है l अदालत के बाहर यश और प्रतिभा का मुलाकात होती है

यश - यह स्टिंग ऑपरेशन तुने ही कराया था ना बुढ़िया.... अच्छी चाल थी... पर तेरे हाथ कुछ नहीं लगेगा....
प्रतिभा - यह तो शुरुआत है... यश वर्धन... तुम्हें अंजाम तक पहुंचाने के लिए... मैं किसी भी हद तक जा सकती हूँ...
यश - ठीक है बुढ़िया... ठीक है... पहली चाल तूने चल दी... अब मेरी चाल बाकी है...
प्रतिभा - ठीक है... देखते हैं...

दो दिन बाद
कमिश्नर ऑफिस में

तापस - व्हाट इज़ दिस सर... मेरी ईमानदारी और वफ़ादारी का यह सिला दे रहा है मुझे... मेरी डिपार्टमेंट...
कमिश्नर - देखो सेनापति... यह अदालती प्रोसिजर है...
तापस - सर यह क्या नॉनसेंस है... एक कंविक्टेड अदालत में... पिटीशन फाइल कर कर कहता है... बाकी के रिमांड दिन... स्पेशल सेल में रहना है... और जब तक उसकी रिमांड पूरी नहीं होती... तब तक उस जैल की अधिकारी तापस सेनापति नहीं रहेगा.... और अदालत उसकी यह अर्जी मान भी लेती है...
कमिश्नर - तुम ऐसे क्यूँ रिएक्ट हो रहे हो... ऐसा नहीं कि मैं तुम्हारे लिए नहीं लड़ा... पर हम इस सिस्टम में अपनी अपनी सीमा में बंधे हुए हैं... हमारी अपनी लिमिटेशन है... एंड डोंट फॉरगेट वह एक मिनिस्टर का बेटा है और खुद में बड़ा बिजनेसमैन है... अभी भी उनके इंफ्लुयंस कम नहीं हुए हैं.... इसलिए मैंने स्पेशयली तुम्हारे लिए डिपार्टमेंटल लिव सांकशन किया है... अभी तुम अपनी पत्नी को लेकर... कहीं भी जाओ... एंजॉय करो... टीए, डीए और स्टे सब डिपार्टमेंट देगी...
तापस - सर इससे बढ़िया होता.. के आप मुझे सस्पेंड कर दें...
कमिश्नर - बस... बहुत हो गया.... यह अदालत का ऑर्डर है... डिपार्टमेंट का कोई रोल नहीं है... तुम इतने सीनियर ऑफिसर हो.... फ़िर भी तुम एक नासमझ की तरह आर्गयु कर रहे हो...
तापस - सॉरी सर...
कमिश्नर - देखो... सब जानते हैं... यश पर सबसे पहले एफआईआर दर्ज कराने वाले सेनापति दंपति हैं... और इस बात को मान कर ही अदालत ने यह फैसला दिया है....
तापस - ठीक है सर... यह वाकई पहली बार ऐसा हो रहा है.... मुजरिम के अर्जी पर... एक पुलिस वाले का तड़ीपार किया जा रहा है...
कमिश्नर - तुम फ़िर शुरू हो गए.... यश ने यह चार्जर्स लगाया है... की तुम जैल में उसके खिलाफ कभी भी.. वायलंट हो सकते हो... इसीलिए अदालत ने यह ऑर्डर निकाला है...
तापस - अगैंन सॉरी...
कमिश्नर - नाउ... नो मोर डिस्कशन... डिसमिस...

तापस सैल्यूट दे कर चला जाता है l और अपने ऑफिस में पहुंच कर दास को बुलाता है l दास आकर उसे सैल्यूट मारता है तो तापस उसे एक चिट्ठी थमा देता है l

दास - यह क्या है सर...
तापस - सिर्फ़ दो दिन में... स्पेशल सेल तैयार रखो.... एक बहुत बड़ा बिजनैस टाईकुन आने वाला है...
दास - ओ...
तापस - दास... मुझे फ़िलहाल एक महीने के लिए... दिल्ली डेपुटेशन में भेजा जा रहा है... इस एक एक महीने के लिए झारपड़ा जैल के इनचार्ज इस जैल के एडीशनल चार्ज में रहेंगे... तब तक यश तुम्हारा मेहमान है...
दास - ओ अच्छा... यह बात है...
तापस - हूँ... एक बात और... कोशिश करना... विश्व और यश का आमना सामना जितना कम हो...
दास - ठीक है सर... मैं समझ सकता हूँ...

अगले दिन प्रतिभा को लेकर तापस दिल्ली चला जाता है l उधर स्पेशल सेल के एक दो रूम को तैयार किया जा रहा है l जैल में सबको मालूम हो चुका है कि यश वर्धन आ रहा है l यश के आने की खबर मिलने के बाद विश्व अपनी सेल से निकला नहीं है l यह बात दास नोटिस कर लेता है l फ़िर एक दिन बीत जाता है दास देखता है कि दो दिन हो चुका है फ़िर भी विश्व अपने सेल से बाहर नहीं आया है l दास से रहा नहीं जाता तो वह विश्व के पास आता है l

दास - क्या बात है विश्व... तुम अपने सेल से बाहर क्यूँ नहीं निकल रहे हो...
विश्व - क्या यह सच है... की सुपरिटेंडेंट सर की डेपुटेशन के पीछे यश का हाथ है...
दास - देखो विश्व... मैं समझ सकता हूँ... पर तुम रिएक्ट मत हो... हमने जैल की उस वारदात को कितनी अच्छी तरह से हैंडल किया है... की कोई अब तक नहीं जानता कि... तुम्हारा क्या रोल था उसमें... वरना यश कभी भी स्पेशल सेल के लिए यहाँ नहीं आता... और यहाँ कैदियों में... तुम्हारा और सुपरिटेंडेंट सर जी के बीच क्या रिस्ता है... कोई नहीं जानता... इसलिए तुम अगर यश को देख भी लो तो... रिएक्ट मत हो जाना... प्लीज...
विश्व - ठीक है...
दास - तो तुम बाहर निकलो... इससे पहले कि कोई मतलब निकाले..
विश्व - ठीक है... दास बाबु... आपकी बात सर आँखों पर...
दास - इतनी सी बात मान लेने के लिए थैंक्स... अच्छा मैं चलता हूँ... अब बाहर निकलो... सबके साथ वैसे ही मिलो... जैसे मिलते थे...
विश्व - ठीक है... आप जाइए...

दास वहाँ से चला जाता है l विश्व भी तैयार हो कर बाहर आता है l सारे कैदी विश्व की इज़्ज़त करते हैं वजह था कि इन दिनों में जितने भी शैटर डे स्कैरी नाइट सोल्यूशन फाइट हुए हैं उनमें विश्व ही जीता है अब तक l विश्व स्किल डिवेलपमेंट सेंटर जा कर अपना काम करने लगता है l काम करने के समय उससे सीलु और जिलु मिलने आते हैं l

सीलु - क्या बात है भाई... दो दिन से दिखे नहीं आप...
विश्व - कुछ नहीं... मैं कुछ प्लान कर रहा था... अब अमल करने का वक़्त आ गया है... तुम दोनों को साथ देना है...
जिलु - बोलो भाई... क्या करना है...
विश्व - यहाँ पर सबको यह यक़ीन दिलाओ... के जैल से छूटने के बाद... विश्वा भाई... सेनापति दंपती से बदला लेने वाला है...
सीलु - यह क्या बोल रहे हो भाई... आपके कहने पर तो... सेनापति मैडम ने हमें... अंडर कवर सरकारी गवाह बनाया... और इस बार छूटने के बाद... हम पर अब तक के सभी चार्जर्स हटा देंगे... फिर आप...
विश्व - (बीच में बात को काट कर) पहले यह बताओ... मैंने जो कहा... वह करोगे या नहीं...
जिलु - क्या बात कर रहे हो भाई... हम आपके लिए... जान भी दे सकते हैं...
विश्व - तो फ़िर यहाँ के सारे कैदी... अपनी जुबान पर हर दिन सौ बातेँ भले ही करते हों... पर उसमें एक बात ज़रूर कहें... के विश्व जब छूटेगा... तब वह इस जैलर की पत्नी से बदला लेगा...
दोनों - ठीक है... भाई... आपने प्लान किया है तो कुछ ना कुछ सोचा जरूर होगा... अब देखिए हमारा कमाल...
विश्व - यह बात.. दुसरे कैदी कितना कहेंगे जरूरी नहीं... पर कल जो नया मेहमान आ रहा है... उसके दिल दिमाग में यह बात पूरी तरह से छप जानी चाहिए...
दोनों - मतलब...
विश्व - मतलब यह है कि... तुम दोनों उसके पक्के चापलूस बन जाओगे...
दोनों - इससे क्या होगा...
विश्व - अब तक मैंने यहाँ जैसा सेट उप किया हुआ है... अंदर से और बाहर से.... समझ लो उसका एसिड टेस्ट होने वाला है...
दोनों - ओ... तो ठीक है भाई...
विश्व - और आखिरी बात... यह नया मेहमान जितना भी दिन यहाँ रुकेगा... तुम दोनों उसके पक्के चमचे बन जाओगे... और मेरे खिलाफ जितना हो सके... उसके कान भरोगे...
दोनों - वह क्यूँ... (विश्व उनको घूर के देखता है) ठीक है भाई.... ठीक है...

अगले दिन यश को लाया जाता है और उसे सीधे स्पेशल सेल में रखा जाता है l सीलु ओर जिलु दोनों पुरे जैल में यह बात फैलाने में कामयाब हो गए थे कि विश्व और सेनापति दंपति के बीच जानी दुश्मनी है l ऐसे ही दो दिन गुजर जाते हैं l यश भी अपने सेल से बाहर निकल कर डायनिंग हॉल और लाइब्रेरी जाने लगता है l विश्व के प्लान के मुताबिक सीलु और जिलु यश की चापलूसी और चमचागीरी जम कर करने लगते हैं और दुसरे कैदियों पर यश का इम्प्रेशन ज़माने लगते हैं l यश भी विश्व के बारे में कुछ कैदियों से जानकारी लेने लगता है l तीसरे दिन लंच के वक़्त वह देखता है कि विश्व एक कोने में टेबल पर अपना लंच ले रहा है l यश के साथ सीलु और जिलु बैठ कर खाना खा रहे हैं l

यश - यह....यह विश्वा है क्या...
सीलु - (उस तरफ देख कर) हाँ भाई... वही विश्वा है...
यश - हूँ... किस जुर्म में है...
जिलु - पता नहीं बॉस.... पर इतना मालुम है... की चार सौ बीस का लफड़ा है...
यश - हम्म...

फिर यश देखता है के विश्व अपना खाना खतम कर वॉश रूम जा रहा है l यश भी अपनी जगह से उठता है और वॉश रूम में पहुँचता है l वहाँ देखता है विश्व अपना थाली साफ कर हाथ मुहँ धो रहा है l यश उस पर नजर गड़ाए देखता है l विश्व उसे देखता है और फिर वहाँ से जा कर थाली वापस कर बाहर चला जाता है l विश्व के जाने के बाद यश भी वहाँ से निकल कर लाइब्रेरी जाता है l लाइब्रेरी में कुछ वक़्त गुजारने के बाद वह लाइब्रेरी से निकल कर स्किल सेंटर जाता है l वहाँ पहुँच कर देखता है l वहाँ पर मौजूद सारे कैदी कामों में लगे हुए हैं l कोई मोटर वाइंडींग कर रहा है, कोई कार्पेंट्री का काम कर रहा है, कोई गाड़ी रिपेयर का काम l सभी किसी ना किसी काम में लगे हुए हैं l पर यश की नजरें विश्व को ढूंढ रहे थे l वह देखता है एक जगह विश्व वेल्डिंग मशीन से रॉड काटने और जोड़ने का काम कर रहा है l यश वहाँ पहुँचता है और विश्व को घूरने लगता है l विश्व उसे देखता है फिर अपने काम में लग जाता है l खुद को ऐसे घूरे जाने पर विश्व का ध्यान भटकने लगता है l विश्व अपना काम रोक देता है l पहले अपना एप्रन उतार देता है फ़िर गॉगल l

विश्व - क्या... क्या हुआ... सुबह से मेरे पीछे क्यूँ पड़े हो...
यश - पता नहीं... मैंने तुम्हारे बारे में जो सुना... वह तुम्हारे शख्सियत के साथ मैच नहीं कर रहा...
विश्व - ऐ... इधर मेरे बारे में... कोई बकचोदी कर रहा है... तो उसका कंफर्मेशन के लिए आया है... चल निकल यहाँ से...
यश - तुम ऊपर से जितना दिख रहे हो... तुम उतने ही गहरे में छुपे हुए हो... मतलब चेहरे के एक हिस्सा उजाले में दिख रहा है... तो दुसरा हिस्सा अंधेरे में छुपा हुआ है...
विश्व - (उसके पास आकर) ज्यादा मत सोचो... मेरे बारे में जानोगे... तो तुम्हारे दिमाग की नसें फट जाएंगी... और तुम स्पेशल सेल के वजाए... किसी पागल खाने में नजर आओगे....
यश - (उसे गौर से देखते हुए, अपना सर ना में हिलाते हुए) एक आदमी जिसके कहने पर... सेनापति यहाँ स्किल सेंटर बनवाता है... वह उसकी बीवी से बदला लेगा... ऐसे लगते नहीं हो तुम..
विश्व - तु होता कौन है... मुझे सर्टिफिकेट देने वाला...
यश - तुम्हारे बारे में यहाँ बहुत गॉसिप हो रहे हैं... इसलिए तुम्हें समझना चाहता था...
विश्व - सुन बे स्पेशल सेल के कबूतर... कुछ ही दिनों में तुझे उड़ जाना है ना... तो अपनी उड़ने की तैयारी कर... यहाँ दिमाग़ का दही मत कर... एक बात भेजे में डाल ले... मैं एक नाग हूँ... काला नाग... और फ़िलहाल मैं ऐकडीशिस में हूँ... जिस दिन मेरी केंचुली उतरेगी... उस दिन शिकार को निकलूँगा... उस दिन मैं इतना जहरीला हुंगा... के किसीको डंस दिया ना.. वह पानी भी नहीं मांगेगा... इसलिए मुझसे दूर रह समझा....

इतना कह कर विश्व उसे वहीँ छोड़ कर चला जाता है l उसे जाते देख कर यश के चेहरे पर एक मुस्कान आ जाती है l उधर विश्व के चेहरे पर भी एक मुस्कान आ कर गायब हो जाती है l
और तीन दिन गुजर जाता है
विश्व लाइब्रेरी में बैठ कर दरवाजे की तरफ पीठ कर पेपर पढ़ रहा है l विश्व को लगता है कोई उसे दरवाजे के पास खड़े हो कर देख रहा है l

विश्व - कहो यश बाबु... आज फिर क्यूँ खुजली हो रही है... तुम्हारी...
यश - वाव... क्या बात है... बिना देखे ही जान गए... की मैं हूँ... (कहते कहते विश्व के सामने वाली चेयर पर बैठ जाता है)
विश्व - कहिए... अब आपको क्या प्रॉब्लम है...
यश - मैं तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ...
विश्व - आप गलत जगह आए हैं... मिस्टर यश वर्धन... मैं ना तो किसीसे आसानी से दोस्ती करता हूँ... ना ही दुश्मनी छोड़ता हूँ... आई एम अ रौंग गय... फॉर यु... नीदर यु कैन हैंडल... नर यु कैन डील वीथ...
यश - यु नो वन थिंग... तुम जितने मिस्ट्रीयस हो... उतने ही इंट्रेस्टिंग... मुझे पहले तुम पर शक हुआ... इसलिए अपने वकील से... एक जासूस को हायर किया... अब जब सब जान गया हूँ... इसलिए तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ....
विश्व - क्या पता किया तुमने...
यश - तुम... राजगड़ से हो... तुम्हारी ज्याती दुश्मनी... क्षेत्रपाल से है... तुमने डैनी की वकील की मदत से बीए किया है... और अपने आप लॉ भी कर रहे हो...
विश्व - और कुछ...
यश - मैंने बस उतना ही जाना... जितना मुझे जानना चाहिए था...
विश्व - (मन ही मन) कैसे जानेगा भड़वे... पेरोल पर बाहर निकालने के लिए... मैंने हमेशा माँ को मना करता रहा... दुसरे वकील को अपने अकाउंट से हायर करके... लॉ की एक्जाम दे रहा हूँ... तु क्या तेरा बाप भी नहीं जान सकता... यही तो एसिड टेस्ट थी... मैं पास तु फैल...
यश - क्या सोचने लगे...
विश्व - यही के... तुम मेरे बारे में... इतना इंक्वायरी क्यूँ करवा रहे हो... कहीं अपनी बहन का रिस्ता तो मुझसे नहीं करवाना चाहते....
यश - शायद करवा देता... पर मेरी कोई बहन नहीं है...
विश्व - फ़िर किस बात के लिए इंक्वायरी करवा रहे थे...
यश - तुमसे दोस्ती करनी चाहिए या नहीं...
विश्व - मुझसे दोस्ती के लिये... क्यूँ इतना मरे जा रहे हो...
यश - क्यूँकी... एक मशहूर कहावत है... दुश्मन का दुश्मन दोस्त हो सकता है... तुम्हारी दुश्मनी क्षेत्रपाल से है... और मेरी भी... तुम्हारी रंजिश प्रतिभा सेनापति से है... मेरी भी...
विश्व - मेरी तो ठीक है... प्रतिभा जी से... तुम्हारी क्या प्रॉब्लम है...
यश - उनकी स्टिंग ऑपरेशन के वजह से ही... मैं यहाँ पर हुँ... और वह मेरे पीछे हाथ धो कर पड़े हुए हैं...
विश्व - कहीं तुम वह तो नहीं... जिसने.. उनके बेटे की हत्या की थी...
यश - (सकपका जाता है) ये.. य... यह तुम क.. क्या कह रहे हो... मैं भला ऐसा क्यूँ करूंगा...
विश्व - तो फिर तुम मुझसे किस बिनाह पर दोस्ती चाहते हो...
यश - कहा ना दुश्मनी...
विश्व - तुम मुझसे क्या चाहते हो...
यश - फ़िलहाल तुम मेरे लिए जैल के अंदर काम करोगे... और जब बाहर आओगे... मेरे फार्म में लॉ सेक्शन संभालोगे...
विश्व - (चुप रहता है)
यश - क्या सोच रहे हो...
विश्व - यही की अंदर से क्या मदत चाहिए तुम्हें...
यश - देखो अब मैं तुमको पूरा डिटेल्स में बताता हूँ... सुनो...
मुझसे एक अनइंटेंशनली एक्सीडेंट हो गया है... उसमें किसीकी जान चली गई है...
विश्व - तो...
यश - मुझे एक आदमी चाहिए... जो मेरी जगह ले और सजा भुगते... बदले में... मैं उसे पच्चीस करोड़ दे सकता हूँ...
विश्व - तो फिर तुम गलत जगह आए हो... मैं पहले से ही सजायाफ्ता हूँ... दो साल बाद निकलना है... और उसके बाद मैं कभी वापस नहीं आना चाहता...
यश - नहीं नहीं... मैंने इस बारे में... किसी और से बात की है... पर वह मान नहीं रहा है...
विश्व - हाँ तो... कोई मानेगा क्यूँ...
यश - देखो विश्व... तुम्हारा बाहर कोई नेटवर्क नहीं है... पर यहाँ एक बंदा है... बाहर जिसका अपना गैंग है और नेट वर्क भी...
विश्व - कौन है वह...
यश - देखो विश्व... इस जैल में बहुत से ग्रुप हैं... पर उन ग्रुपस् में लेनीन ग्रुप बहुत स्ट्रॉन्ग है और लोकल में अच्छा इंफ्लुयंश रखते हैं... पर उसके गैंग को तैयार तुम कर सकते हो...
विश्व - किस चीज़ के लिए...
यश - उनके किसी गैंग मेंबर से इकबालिया बयान दिलवा कर... मैं... मैं उन्हें मुहँ मांगा रकम दे सकता हूँ...
विश्व - तो तुम चाहते हो... मैं तुम्हारे लिए लेनिन को राजी करूँ....
यश - हाँ मैं जानता हूँ... तुम अगर उसे मनाओगे... वह तुमसे नहीं मना नहीं... क्यूंकि यहाँ पर सभी कैदियों पर तुम्हारा जबरदस्त इंप्रेशन और कमांड है... वजह यह है कि... यहाँ पर तुमने अब तक चार फाइट लड़ चुके हो.... और हर फाइट में तुमने सबको धुल चटाया है... और पहले भी लेनिन तुमसे मुहं की खा चुका है...
विश्व - तो फिर...
यश - देखो विश्व... मेरी रिमांड का टाइम खतम हो रहा है... मुझे कुछ सूझ नहीं रहा है... इसलिए तुम से मदत मांग रहा हूँ...
विश्व - जो भी कहना है... साफ साफ कहो...
यश - मैं चाहता हूँ... के तुम किसी तरह से लेनिन को राजी करो... वह तुम्हारी बात मान सकता है...
विश्व - ठीक है... मैं बात करता हूँ... पर अगर राजी नहीं हुआ तो....
यश - (विश्व के हाथ को पकड़ लेता है) यार विश्व... मैंने इतने दिनों में... सारे कैदियों पर तुम्हार इम्प्रेशन को जज किया है... इसलिए प्लीज... तुम मेरे लिए यह काम कर दो... मैं... मैं बाहर जाने के बाद... तुम्हारा हर तरह से मदत करूँगा... प्लीज प्लीज... (गिड़गिड़ाने लगता है)
विश्व - ठीक है... मैं लेनिन से बात करूँगा...

यश - थैंक्स दोस्त.... सच कहता हूँ दोस्त... मैं इस जैल में नहीं रह सकता.... अगर कुछ और दिन रहा तो मर जाऊँगा... मैं इस बार किसी भी तरह बाहर निकल जाऊँ.... फिर कभी इस जैल में नहीं रहूँगा... इस जैल में क्या... मैं इस मुल्क में नहीं रहूँगा... तुमने अगर मेरा इतना सा काम कर दिया... तो वादा करता हूं दोस्त... तुम्हारे बाकी की जिंदगी ऐश से गुजरेगी... थैंक्स... थैंक्स.. (कहकर यश वहाँ से उठ कर जाने लगता है)
विश्व - यश (बुलाता है, यश पीछे मुड़ कर विश्व को देखता है) मैं वादा करता हूँ... यह तुम्हारा आखिरी रिमांड होगा... प्रॉमिस...

विश्व इस बात पर यश गदगद हो जाता है और अपनी खुशी को आँखों से जाहिर कर वहाँ से चला जाता है l उसके जाते ही विश्व का चेहरे का रंग बदल जाता है l
उसी दिन शाम को गेम हॉल में यश आता है l गेम हॉल के अंदर वह देखता है कि विश्व और लेनिन कुछ बात कर रहे हैं l विश्व दरवाजे की तरफ देखता है और यश के देख कर अपने पास बुलाता है l विश्व यश और लेनिन एक टेबल पर बैठ जाते हैं l

लेनिन - हाँ तो यश बाबु... तुम को मेरे से हेल्प चाहिए...
यश - हाँ...
लेनिन - देखो यश बाबु... मैं इधर विश्वा भाई का इज़्ज़त करता है... क्यूँ... क्यूंकि उन्होंने मेरे को हराया था... इसलिए... अब देखो मैं तुम्हारे लिए किसीको बलि पर चढ़ायेगा.... माना कि तुम उसको.. मुहँ मांगा रकम देगा... पर इसमें मेरे को क्या...
यश - देखो... मैं इसके लिए भी तुमको... मुहँ माँगा रकम दूँगा...
लेनिन - बात रकम की नहीं... बात इज़्ज़त की है... मैं उसके लिए कुछ करता है... जिसके लिए मेरे दिल में इज़्ज़त हो...
यश - तो तुम समझ लो यह विश्व कह रहा है तुमसे...
लेनिन - हाँ... सच में... क्या विश्वा भाई...
विश्व - देखो लेनिन... मुझे कोई मतलब नहीं है... तुमको पैसा चाहिए... और यह पैसा देने को तैयार है... मैं बीच में... सिर्फ़ मांडवाली करा रहा हूँ... मेरा रोल यहीं तक है... यश बाबु... बात को आगे बढ़ाओ...
यश - (कसमसा जाता है) मैं.. मैं... मैं कैसे... (विश्व के तरफ देखने लगता है)
विश्व - लेनिन... तुम इसके लिए अपने गैंग से किसीको कह सकते हो... जो इसका गुनाह अपने सर लेले...
लेनिन - भाई... मैं किसीको बोल के देखता हूँ...
विश्व - देखो यह कल या परसों तक हो जाना चाहिए...
लेनिन - हूँ... मैं जानता हूँ... यश बाबु... आप पहले मेरे को एडवांस्ड दिलाओ... अगर कल शाम तक पैसे मिला तो रात तक मेरा एक बंदा जाकर अपनी गिरफ्तारी देगा...
यश - कितना चाहिए...
लेनिन - दस करोड़...
यश - डन... कल मेरा वकील आएगा... मैं उसे कह दूँगा... वह पैसे कब कहाँ और कैसे देगा यह डिटेल् मुजे बता दो...
लेनिन - ठीक है...
विश्व - रुको... मेरा रोल यहीं पर खतम होता है... अब जो भी करो... तुम दोनों आपस में बात चित कर खतम करो...
दोनों - ठीक है
विश्व - तुम दोनों को... मेरे बेस्ट ऑफ लक...

विश्व उन दोनों को छोड़ कर वहाँ से उठ जाता है l विश्व की पीठ उन दोनों के तरफ था और चेहरा धीरे धीरे कठोर होता जा रहा था l
Nice update bro
 

Rajesh

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👉पचपनवां अपडेट(B)
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अगले दिन
शाम को डिनर के समय
डायनिंग हॉल में

सारे कैदी खाना खा रहे हैं l अचानक टीवी पर न्यूज स्क्रोलींग चलने लगा -
ब्रेकिंग न्यूज - आज शाम धउली गिरी के पास एडवोकेट श्री xxxxx और एक गैंगस्टर xxxxx के बीच दस करोड़ रुपये की लेन देन होते हुए दर दबोचे गए l अब मिली हुई रकम को ईडी ने अपने कब्जे में लेकर पूछताछ कर रही है l

यह खबर सुनकर यश के हाथों से थाली छुट जाता है l थाली के गिरने से सबका ध्यान यश के तरफ हो जाता है l यश खुद को संभालता है और अपनी थाली उठा कर वॉश रूम चला जाता है l वहाँ अपना हाथ मुहँ को बार बार धोने लगता है l फिर वह डायनिंग हॉल में नजर घुमाता है तो देखता है लेनिन उसे गुस्से से घूर रहा है l वह फिर विश्व को ढूंढने लगता है I विश्व उसे एक कोने में अपना खाना खाते दिखता है l यश उसके सामने बैठ जाता है l

यश - अब तो... किस्मत भी दगा कर रहा है... विश्वा मैं क्या करूं अब...
विश्व - (खाना खाते हुए) तुम्हारे पास टाइम अभी कुछ और है... फिरसे कोशिश कर सकते हो...
यश - तुम समझ नहीं रहे हो... (तभी वहाँ पर लेनिन आकर बैठ जाता है) यह केस अब ईडी के हाथ चला गया है... (वह लेनिन को देखने लगता है)
लेनिन - (विश्व से) देखा विश्वा भाई.... कैसा लोचा हो गया...
विश्व - पहली बात... इस टेबल पर कोई सीन नहीं होनी चाहिए.... दुसरी बात... यश बाबु... जो रकम जप्त की गई है... वह आपकी दौलत की दरिया का छोटी सी बूंद भी नहीं है.... और लेनिन... तेरा आदमी पकड़ा गया है... तो वजह कुछ और भी हो सकता है... इसके लिए कोई हल्ला नहीं... क्यूंकि वहाँ कोई... बेकसूर गिरफ्तार नहीं हुआ है...
यश - विश्वा तुम समझ नहीं रहे हो... अब ईडी पैसों की सोर्स का पता लगाएगी... तब मैं और भी मुश्किल में आ जाऊँगा... मुझे अब हर हाल में बाहर जाना होगा... नहीं तो कुछ भी ठीक नहीं होगा... मैं बाहर जाते ही सब संभाल सकता हूँ...
विश्व - तुमसे संभला नहीं... तभी तो अंदर आए हो... वैसे भी तुम अरब या खरब पति हो... बहुत बड़े बिजनेसमैन हो... फिर किस सोर्स की बात कर रहे हो...
यश - ( जेब से एक च्वींगम निकाल कर चबाने लगता है) विश्व... (एक हल्का सा सांस लेता है) पैसा हमेशा एक ही सोर्स से नहीं आता... जरा सोचो... किसीके कहने पर दस करोड़ रुपये सामने लाया गया... कैसे... कहाँ से... यहीं पर सब पेच है... जितना व्हाइट मनी... उसके बैकअप के लिए उससे कहीं ज्यादा ब्लैक मनी....
लेनिन - मतलब... तुम्हारे पास पैसों का झाड़ होगा... हिलाओ तो झड़ने लगेगा...
यश - (चुप रहता है)
विश्व - पैसा... दुनिया में जिनके पास पैसे नहीं होते... वह लोग.. हाय पैसा.. हाय पैसा करते-करते मरते हैं... और जिनके पास पैसा ही पैसा होता है... वह लोग उफ पैसा.. ओह पैसा... कर मर रहे हैं... पैसों की भुख... कितना कमा लो... फिर भी... पैसों की भुख मरने के वजाए बढ़ती ही जा रही है...
यश - (होठों पर हल्की सी हँसी झलकती है) पैसा है ही ऐसा... कम हो... मन नहीं भरता और ज्यादा हो तो दिल नहीं भरता... पैसा खुदा ना सही पर खुदा से कम भी तो नहीं है....
विश्व - और पैसा जहां जरूरत से ज्यादा होता है... वहाँ पैसा अपना इज़्ज़त खो देता है... वरना पैसा खुदा के बराबर हो सकता है... खैर अब जो भी है... वह तुम लोगों को... करनी है... (यश से) तुमको बाहर बस (लेनिन को दिखा कर) यही आदमी निकाल सकता है... (लेनिन से) तुम्हारे पैसों की जरूरत (यश को दिखा कर) यही पूरा कर सकता है... इसलिए तुम दोनों अब एक हो कर सोचो.... कहाँ गलती हो गई... कहाँ तुम चूक गए... तभी तुम क़ामयाब हो सकते हो...

विश्व यह कह कर वहाँ से अपना थाली उठा कर वॉशरुम चला जाता है l यश और लेनिन वहीँ पर बैठे रह जाते हैं l

अगले दिन
सेंट्रल जैल की स्किल डिवेलपमेंट सेंटर में

विश्व एक गाड़ी की इंजिन में लगा हुआ है l तभी उसके पीछे यश आकर खड़ा होता है l विश्व बिना पीछे मुड़े ही

विश्व - क्या है यश बाबु... कैसे आना हुआ...
यश - आज मैंने अपने दुसरे कॉन्टेक्ट के जरिए... रिमांड और सात दिन बढ़ाने के लिए कह दिया है...
विश्व - हम्म... क्यूँ बढ़ाया अपना रिमांड...
यश - इसलिए के तुम झूठे ना हो जाओ....
विश्व - कैसा झूठ...
यश - यही... के तुमने कहा था... की यह स्टे... मेरा आखिरी स्टे होगा...
विश्व - हाँ पहले तो थैंक्स... मुझे तुमने झूठा होने से बचा लिया... और सॉरी... पुलिस ने तुम्हारी किस्मत पर भाजी मारी...
यश - इटस् ओके... मेरी फ्रस्ट्रेशन लेवल बढ़ती जा रही है... दिमाग में आइडियास् आ नहीं रहे हैं... (कह कर एक च्वींगम का पैकेट फाड़ कर उनमें से चार पाँच च्वींगम एक साथ चबाने लगता है) क्या करूँ समझ में नहीं आ रहा है...
विश्व - क्या तुम जब भी नर्वस होते हो... ऐसे ही च्वींगम चबाते हो...
यश - हाँ... यह मुझे शांत रखते हैं...
विश्व - यह च्वींगम पहली बार देख रहा हूँ...
यश - यह मार्केट के लिए नहीं है... यह मेरे लिए है... इसे मैंने बनाया है...
विश्व - जब खतम हो जाएगी...
यश - मेरे पास पहुँचा दिया जाएगा...
विश्व - अच्छा... तुम अपने पिताजी के जरिए... बाहर मांडवाली क्यूँ नहीं करते...
यश - अभी इलेक्शन नजदीक है... मेरी गिरफ्तारी पर जोश जोश में कह दिया था... इसमें किसी प्रकार की... इंटरफेरेंश नहीं करेंगे... अब वह अगर इस मामले में घुसे... और मीडिया में तूल पकड़ा... तो हो सकता है... उनको टिकट भी ना मिले... इसलिए... वह चाहते हैं... की इलेक्शन खतम होने तक मैं रिमांड में रहूँ.... पर... मैं जैल में नहीं रह सकता... बिल्कुल भी नहीं...
विश्व - ह्म्म्म्म... क्या नसीब है... जब जरूरत पड़ी... ना बाप काम आ रहा है... ना पैसा... जब कि दोनों ही पास मौजूद हैं... पर साथ नहीं...
यश - (और एक च्वींगम चबाता है) वह एक कहावत है.... जब तकदीर हो गांडु... तब क्या करेगा पाण्डु...
विश्व - तो अब तुमने क्या डिसाइड किया...
यश - अब मैं पैसे के लिए... किसके पास संदेशा भेजना चाहता हूँ...
विश्व - तो भेजो...
यश - पर कैसे... किसके जरिए....
विश्व - देखो इस मामले में... लेनिन ही तुम्हारा मदत कर सकता है... मैंने तुम दोनों को मिला दिया है... तुम भी जानते हो... बाहर का नेटवर्क लेनिन अपनी जेब में रखता है...
यश - ठीक है... अगर मैं मदत के लिए तुम्हारे आया... तो...
विश्व - मैं अपनी जुबान दी है... तुम यहाँ से अबकी बार जो जाओगे... फिर कभी लौट कर ना आओगे...
यश - थैंक्स... दोस्त थैंक्स...

विश्व अपनी पलकें झपका कर यश का थैंक्स स्वीकार करता है l यश वहाँ से चला जाता है l उसके जाने के बाद एक संत्री विश्व के पास पहुंचता है

संत्री - विश्वा...
विश्व - जी कहिए... कैसे आना हुआ...
संत्री - वह कपड़े साफ करते हुए... बालू का पैर फ़िसल गया है... उसने खबर भिजवाया है... क्या तुम...
विश्व - (बीच में टोक कर) हाँ हाँ क्यूँ नहीं...

फिर विश्व संत्री के साथ चल कर कपड़े साफ करने वाली पानी की टंकी के नीचे पहुँचता है l वहाँ बालू को एक संत्री और उसके दो चेले उठा कर ले जा रहे हैं l विश्व वहाँ पहुँच कर बचे हुए कपड़े धोने के लिए पत्थर के पास पहुँचता है l वहाँ पर जिलु पहले से ही कपड़े निचोड़ रहा है l


विश्व - संत्री जी आप जाइए... मैं जिलु के साथ कपड़े धो दूँगा...
संत्री - पक्का...
विश्व - आप जानते हैं... संत्री जी...
संत्री - आरे मैं तो मजाक कर रहा था... मैं आधे घंटे बाद आता हूँ...
विश्व - जी... (संत्री के जाते ही, जिलु से) यह तुमने किया...
जिलु - हाँ विश्व भाई.. मैंने ही बालू को गिरा दिया... बेचारा जान नहीं पाया....
विश्व - ह्म्म्म्म....(कपड़ा उठा कर पत्थर पर पटकता है) तो फिर बोलो क्या खबर है...
जिलु - जैसा आपने कहा था... सीलु ने उनके दिमाग में.. वैसा ही बो दिया है...
विश्व - अच्छा... पर बड़ा मासूम बन कर मेरे पास आया था... वह यश...
जिलु - हाँ गया होगा... आपको शीशे में उतारने के लिए...
विश्व - तो अब वह लोग क्या करने वाले हैं...
जिलु - वह तो मालुम नहीं... पर जब सीलु ने यह कहा कि... उनका पैसा पकड़े जाने के पीछे विश्व हो सकता है... तब से आपसे बदला लेने के लिए... दोनों कोई ना कोई खिचड़ी पकाने वाले हैं...
विश्व - गुड... बहुत अच्छे...
जिलु - अब आगे क्या करना है....
विश्व - करना उन्हें है... मुझे साथ देना है...
जिलु - ठीक है भाई... बेस्ट ऑफ लक...

उसी दिन शाम को
डायनिंग हॉल डिनर के वक़्त और एक बुरी खबर आती है l सभी थाली लेकर हॉल में बैठ कर खाना खा रहे होते हैं तभी नभ वाणी न्यूज चैनल में रिपोर्टर प्रवीण रथ कहता है - मेरे राज्य वासियों... हमारी युवा पीढ़ी... जिसे यूथ आईकॉन समझ कर पुज रहा है... असल में वह अपने पिता की राजनीतिक पदवी का दुरूपयोग कर यहाँ तक पहुँचे हैं... चूँकि स्वस्थ्य व्यवस्था उनके आधीन आता है... इसीलिए बाप और बेटा मिलकर स्वस्थ्य का व्यापार और स्वस्थ से खिलवाड़ करना आरंभ कर दिया... हाँ दोस्तों मैं किसी और की नहीं... राज्य के स्वस्थ्य मंत्री श्री ओंकार चेट्टी और उनके सुपुत्र यश वर्धन चेट्टी जी के विषय में कह रहा हूँ... अभी हमारे हाथ में वाइआइसी फार्मास्युटिकल के दवाओं की सरकारी जाँच रिपोर्ट है... जिसमें साफ लिखा है कि उनके द्वारा वितरित किए गए दवाओं में.... प्रतिबंधित दवाओं का मात्र मिला है... जी हाँ दर्शकों आपने ठीक सुना है...विश्व स्वस्थ्य संगठन द्वारा प्रतिबंधित दवाओं का मिश्रण पाया गया है... इस खबर और रिपोर्ट की पुष्टि होते ही... फूड सैफटी एंड ड्रग्स अथॉरिटी वालों से तुरंत कारवाई करते हुए.... वाइआइसी फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड को सीज कर दिया है...

यह ख़बर सुनने के बाद सारे कैदी यश के तरफ देखने लगते हैं l यश वहाँ से उठ कर अपने सेल की ओर चला जाता है l सारे कैदी अब यश के खिलाफ खुसुर-पुसुर करने लगते हैं l विश्व सब सुनता है और मन ही मन अपने आप से यह कहते हुए हँसने लगता है
"वाह रे ऊपर वाले... तेरे खेल गजब और निराले... यह कैद खाना एक हमाम है... सब कैदी यहाँ नंगे हैं... फिरभी जो पहले उठा... उँगलियाँ उस पर उठाई गई.... वह देखो... वह हमसे ज्यादा नंगा है भाई...

अगले दिन
सेंट्रल जैल के लाइब्रेरी में विश्व अपनी किताबों में खोया हुआ है l उसे एहसास हो जाता है के दरवाजे पर यश खड़ा है l

विश्व - आइए यश बाबु... आइए...
यश - (अंदर आते हुए) क्यूँ विश्वा... पहले दिन तु जा... फिर तुम आओ... आज आइए... हाँ भाई... तुम भी ताने मार लो...
विश्व - कपड़े उतारे जाने पर नंगा पन का एहसास होता है.... पर असली नंगा पन यही होता है... कपड़ों से भी ढका नहीं जा सकता है... मैं इस दौर से गुजर चुका हूँ...
यश - ह्म्म्म्म... तब तो तुम मेरे दर्द को समझ सकते हो...
विश्व - (अपनी किताबें रख देता है और यश को बैठने के लिए इशारा करता है) कहिए... मैं अब आपके लिया क्या कर सकता हूँ... जब कि मैं अच्छी तरह से जानता हूँ... की आप भी अच्छी तरह से जानते हैं... मैं आपके लिए कुछ भी नहीं कर सकता....
यश - नहीं विश्वा नहीं... (गिड़गिड़ाते हुए) तुम मेरी आखिरी उम्मीद हो... जानते हो... उस दिन जब मेरा वकील और लेनिन का आदमी पकड़े गए... तो वह लड़का... क्या नाम है उसका... हाँ सीलु.. सीलु ने लेनिन के कान भरे थे... के.. हो ना हो... उन पैसों के पकड़े जाने के पीछे तुम्हारा ही हाथ है...
विश्व - व्हाट... और लेनिन ने मान लिया... और तुम...
यश - ना... मुझे पहले भी तुम पर भरोसा था.. और अब भी है...
विश्व - पर अब मैं आपके किस काम आ सकता हूँ..
यश - सिर्फ तुम ही आ सकते हो...
विश्व - क्या... क्या काम आ सकता हूँ...
यश - देखो विश्वा... अब मेरे अकाउंट सब फ्रिज कर दिया गया है... मेरे वकील अब ईडी के रेडार पर है... इसलिए मैं अब लेनिन के लिए पैसा भी अरेंज नहीं कर सकता...
विश्व - किस्मत कैसे पलट गया देखो.... ऊफ पैसा से... हाय पैसा तक के सफर पर पहुँचा दिया... पर यश बाबु... पैसे तो मेरे पास नहीं है...
यश - बात पैसे की नहीं है....
विश्व - तो...
यश - देखो विश्व... मुझे सिर्फ़ लेनिन ही मदत कर सकता है... यह तो मानते हो ना तुम...
विश्व - हाँ...
यश - तो उसने मुझसे एक... काम करने के लिए कहा है....
विश्व - तो करो...
यश - एक्चुएली... वह तुमसे एक बार...
विश्व - (चेयर पर सीधा हो कर बैठता है) हाँ मुझसे... एक बार... क्या..
यश - देखो.... मैं यह... घुमा फिरा कर बात नहीं कर सकता... वह तुम्हें एक बार हराना चाहता है...
विश्व - ओ... तो वह... मुझे...... हराना चाहता है... हम्म... क्या फाइट में...
यश - नहीं...
विश्व - तो फिर... किसमें...
यश - वह... हँसना मत...
विश्व - नहीं.. बिल्कुल नहीं...
यश - कबड्डी में...
विश्व - क्या... क्या मैंने सही सुना...
यश - हाँ... कबड्डी में...
विश्व - अच्छा... तो अकेले अकेले में कबड्डी मैच खेलेगा मुझसे....
यश - नहीं... लेनिन की टीम... वर्सेस... विश्वा की टीम...
विश्व - और तुम क्या... रेफरी बनोगे...
यश - नहीं... मैं भी टीम में हूँ... पर लेनिन के...
विश्व - ओ... तो तुम लोगों ने... टीम भी बना लिया है...
यश - हाँ... मेरे उसके टीम में होने से... उसको जितने का ग्यारंटी मिल जाएगा...
विश्व - अच्छा ऐसा क्यूँ...
यश - चूंकि मैं तुम्हारे अगेंस्ट खेलुंगा... तो तुम मुझे हारने नहीं दोगे...
विश्व - ह्म्म्म्म ऐसा तुमने सोच लिया... या...
यश - नहीं... यह मैंने सोचा है...
विश्व - ठीक है... पर पहले बताओ... कभी पहले भी कबड्डी खेला है...
यश - नहीं... पर कालेज बहुत बार... रग्बी खेला है... और मेरे हिसाब से... कबड्डी रग्बी का देशी वर्जन है...
विश्व - वाह... क्या बात है.... चलो यह बात आज मुझे पता चला... की कबड्डी... रग्बी का देशी वर्जन है... खैर उनकी बात छोड़ो... क्या तुम खेल पाओगे... इसमे सांस पर बहुत कंट्रोल करना पड़ता है... ताकत के साथ साथ स्टेमिना और स्फूर्ति की जरूरत पड़ती है... तुम्हारा फील्ड में क्या काम... कम से कम तुम खुद को... इस खेल से दूर रखना चाहिए...
यश - (अपनी दाँतों को चबा कर) तुम मुझे बहुत कम आंक रहे हो...
विश्व - जाहिर सी बात है... चौबीसों घंटे ऐसी में रहने वाले... कभी भी पसीना ना बहाने वाले... वह क्या कहते हैं.... अरे हाँ... ना बेटा...(खिल्ली उड़ाते हुए) तुमसे ना हो पाएगा...
यश - (अपने चेयर से उठ खड़ा होता है) तुमने मुझे बहुत कम आंका है... इसका ज़वाब तुम्हें मैदान में दूँगा... (फ़िर खुद को संभाल कर) देखो दोस्त तैस में आकर कह दिया... दिल पर मत ले लेना... हार जरूर जाना... प्लीज....
विश्व - ठीक है... जाओ तैयारी करो...
यश - थैंक्स...

कह कर वापस मुड़ जाता है, और लाइब्रेरी से बाहर निकल कर जाने लगता है l उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान आ जाती है पर वह नहीं देख पाया विश्व के चेहरे पर भी वैसी ही मुस्कान आकर गायब हो जाती है l यश लाइब्रेरी से निकल कर गेम हॉल में पहुँचता है l गेम हॉल में लेनिन और उसके पट्ठे कैरम खेल रहे हैं l उसके पास ही सीलु और जिलु खड़े होकर खेल देख रहे हैं l यश को देख कर दोनों उसे चीयर करते हैं l यश एक स्टूल खिंच कर वहाँ बैठ जाता है l लेनिन उसे देखता है तो यश अपना सर हिला कर हाँ में इशारा करता है l लेनिन मुस्कराते हुए एक शॉट मारता है लाल गोटी गिर जाता है l सब ताली बजाते हैं l

लेनिन - देखा... आखिर लाल गोटी गिर गया ना...
सीलु - कैसे नहीं गिरेगा लेनिन भाई... आखिर बॉस ने उसे शीशे में उतार जो लिया है..
यश - पर... लेनिन... यह कैसा शर्त... उसके साथ कबड्डी खेलना है... क्यूँ...
लेनिन - यश बाबु... तुम जानते नहीं हो... विश्वा ग़ज़ब का फाइटर है... हमेशा अकेला रहता है... किसी से उसकी दोस्ती नहीं है... दुश्मनी से घबराता नहीं है... इस जैल में हम जैसा... जो भी आता है... वह बाप बनने की कोशिश करता है... पर विश्वा सबका बाप बना हुआ है...और है भी... मैंने उसे चैलेंज किया था... सिर्फ़ एक मिनट... पूरा महीना लगा था.. ठीक होने में... सिर्फ़ एक मिनट में... मैं नीचे गिरा पड़ा था... तब से उसे टपकाने कई प्लान किया... पर बहुत ही ढीठ जान है उसकी....
यश - तुम मुझे बाहर भेज कर भी पैसे ले सकते थे...
लेनिन - हाँ... पर वह कहावत है ना... यह मुहँ और मसूर की दाल... (लेनिन यश की और देखता है, यश के जबड़े सख्त हो गए हैं) तुम्हारे पास सिर्फ फटा हुआ ढोल ही होगा... क्यूंकि.. (एक शॉट मारते हुए) तुम्हारे सारे अकाउंट तो फ्रिज हैं... तुम पैसे लाओगे कहाँ से...
यश - मेरे पास दुसरे भी सोर्स हैं...
लेनिन - हाँ तुम्हारा वह वकील... अभी भी... अंदर ही है ना... (यश कुछ नहीं कहता, बस कसमसा कर रह जाता है, यशकी हालत देख कर) अच्छा छोड़ो यह बात... क्या क्या बातें हुई... यह तो बताओ...

यश बताता है कैसे उसने विश्व को तैयार किया l सब सुनने के बाद लेनिन कुछ सोचने लगता है l उसे सोचता देख कर यश पूछता है

यश - किस सोच में पड़ गए...
लेनिन - बात तो उसने सही कहा है... तुम क्या उसी ताकत और स्टेमिना लेकर खेल सकते हो...
लेनिन - तुम ही जबरदस्ती मुझे खेलने के लिए कह रहे हो...
लेनिन - ऑए... कबड्डी का आइडिया मेरा नहीं था... यह तेरा चमचा सीलु... इसी ने आइडिया दिया था... पर मेरे को भा गया... मेरा बदला पुरा हो सकता है... तुझे अपना इंश्योरेंस बना कर अपनी टीम में रखा है... तु रहेगा तो... मेरे इरादों पर विश्व को शक़ नहीँ होगा....
यश - गुस्सा क्यूँ हो रहे हो... हम एक दूसरे के काम तो आ रहे हैं ना... पर अगर मैं पूरी ताकत से ना खेला तो प्रॉब्लम क्या है...
लेनिन - पहली बात... विश्व को थोड़ा थकाना है... तब अपना प्लान को काम में लाना है... तुमको थोड़ा दम लगा कर खेलना होगा... क्यूंकि देखने वालों की हूटिंग और ताने सुनने पड़ेंगे... बर्दास्त कर सको तो कोई बात नहीं...
जिलु - हाँ बॉस... दो चार च्वींगम मुहँ में ठूँस लेना... फिर दम लगा देना बॉस...
सीलु - हाँ भाई... मेरा मतलब है बॉस... आप आप नर्वस फिल मत करना...
यश - हूँ... (कुछ सोचते हुए अपना सर हिलाता है) ठीक है... तो मैं ऐसे खेलुंगा के विश्व भी हैरान रह जाएगा... (खड़ा हो जाता है) घबराओ मत.... अब टाइम आ गया है... असली यश को बाहर लाने की... (लेनिन को देख कर) मैच कब रखेंगे....
लेनिन - तीन दिन बाद....

दास सुपरिटेंडेंट के कैबिन में घुस पर सैल्यूट देता है और पूछता है

दास - आपने मुझे बुलाया सर...

अशोक बेहरा टेंपररी इनचार्ज अपना सर उठा कर देखता है और कहता है

बेहरा - हाँ दास... देखो मैं यहाँ टेंपररी इनचार्ज हूँ... इस जैल के बारे में और यहाँ के कैदियों के बारे में तुम मुझसे ज्यादा जानते हो... अभी अभी यश वर्धन चेट्टी आया था... तीन दिन बाद इस जैल में कबड्डी प्रतियोगिता का आयोजन के लिए कह रहा था...
दास - सर अचानक... कबड्डी... कुछ समझ में नहीं आ रहा...
बेहरा - मैंने भी यश से यही सवाल किया... पर जवाब में उसने कहा कि... यह उसका लास्ट स्टे है... इसे यादगार बना कर जाना चाहता है...
दास - क्या सर आप भी... वह रिमांड पर है... अगर कंवीक्शन प्रुव हुआ तो परमानेंटली यहीं रहेगा...
बेहरा - आरे यार उसे हमें क्या लेना देना... अगर नहीं राजी हुए... तो कल उसका बाप यहाँ पर ड्रामा करेगा...
दास - धमकी दी है क्या उसने...
बेहरा - दी तो नहीं पर... कल उसका बाप आ रहा है... यश से मिलने... कहीं बखेड़ा ना खड़ा कर दे...
दास - ओ.. तो यह बात है... सर अगर यश प्रपोजल दिया है... तो क्या टीम भी बना लिया है...
बेहरा - हाँ... दो टीम... यह देखो...

कह कर एक काग़ज़ दास की ओर बढ़ा देता है l दास देखता है पहली टीम में लेनिन, यश और लेनिन के पाँच हट्टे कट्टे आदमी l दुसरी टीम में सिर्फ़ विश्व और उसके साथ औने-पौने छह आदमी l टीम देख कर दास को हैरानी होती है l

दास - (काग़ज़ लौटाते हुए) ठीक है सर... हमें क्या करना है...
बेहरा - तैयारी.. हमें.. कैदियों के मनोरंजन के लिए... तैयारी करनी है... तुम कुछ स्टाफस् को रेडी करो रेफरी और लाइन मैन बानो...
दास - ओके.. ओके सर...

सैल्यूट मार कर दास सुपरिटेंडेंट के कैबिन से निकल कर अपनी घड़ी देखता है फिर जगन को भेज कर विश्व को अपने कैबिन में बुलाने को कहता है I दास अपने कैबिन में विश्व का इंतजार कर रहा है l थोड़ी देर बाद विश्व उसके कैबिन में पहुँच जाता है l

दास - यह क्या है विश्व... तुम एक टीम लेकर लेनिन और यश के खिलाफ कबड्डी में उतरोगे...
विश्व - यश अपनी विदाई को यादगार बनाना चाहता है... इसलिए मुझसे कबड्डी मैच के लिए कहा... मैंने भी हाँ कर दिया...
दास - पता नहीं क्यूँ मुझे... उसके और लेनिन के इंटेंशन मुझे ठीक नहीं लग रहे हैं... ऐसा लगता है... उनके मन में कुछ और ही चल रहा है...
विश्व - अच्छा... तो आपको ऐसा लग रहा है.... मतलब हर कोई अपने मन में अपनी अपनी इंटेंशन पाले हुए हैं... पर दास सर... यह खेल है... यहाँ टाइमिंग और टेक्निक मायने रखते हैं... जो खेल गया... वह जीत गया...
दास - ह्म्म्म्म... कह तो तुम ठीक रहे हो.... पर... खैर... मैं वहाँ रेफरी बन कर साथ रहूँगा... (हाथ बढ़ाता है) ऑल द बेस्ट...
विश्व - थैंक्यू सर... (हाथ मिला कर)

उसी दिन शाम को डिनर के समय डायनिंग हॉल में

यश सीलु और जिलु के साथ अंदर आता है l विश्व वहाँ अपनी रेगुलर कोने में बैठा खाना खा रहा है l वहीँ दुसरे कोने में लेनिन अपने पट्ठों के बीच बैठा खाना खा रहा है l जैसे ही लेनिन यश को देखता है अपना सर हिला कर इशारे से कुछ कहता है l यश भी अनुरूप अपना सर हिला कर इशारे से जवाब देता है l ठीक उसी समय विश्व सीलु को अपना बायाँ भवां उठा कर हल्का इशारा करता है, ज़वाब में सीलु अपने दाएँ हाथ की अंगूठे से नाक खुजा कर इशारा करता है l यश डायनिंग हॉल के बीच में एक टेबल पर खड़ा हो जाता है और कहना शुरू करता है

यश - सुनो.. सुनो... यहाँ पर जो भी हैं गौर से सुनो... आज से तीन दिन बाद हमारे जैल के ग्राउंड में... एक कबड्डी मैच का आयोजन किया गया है.... एक टीम है... लेनिन पोद्दार की... और दुसरी टीम है... विश्व प्रताप महापात्र की... हमारे पास तैयारी के लिए दो दिन है... सो कलसे हम जमकर तैयारी करेंगे और प्रैक्टिस करेंगे...

यह घोषणा सुन कर सब एक दुसरे के मुहँ ताकने लगते हैं l यह देख कर सीलु सबसे पहले ताली मारता है l उसके देखा देखी सभी ताली बजाने लगते हैं l

यश - सो दोस्तों इस मैच को... मेरा फ़ेरवेल समझ कर... सब देखने जरूर आयें... पहली बार विश्वा हारेगा... (सब की ताली रुक जाती है) हाँ.. हा हा हा... हाँ हाँ हाँ... आपका विश्वा भाई... इसबार हारने वाला है... सो फॉर नाउ एंजॉय द नाइट...

कह कर विश्व को आँख मारते हुए यश अपना थाली लेने काउन्टर पर जाता है l सब कैदी विश्व के तरफ चोर नजर से देखने लगते हैं l विश्व किसी की ओर ध्यान दिए वगैर अपना खाना जारी रखता है l

तीन दिन बाद

गेम हॉल से सटे ग्राउंड में सारे कैदी आयताकार में जमे हुए हैं l पहली बार ऐसा खेल हो रहा था इसलिए एक ट्रायपड पर दास अपनी मोबाइल को मैच की रिकॉर्डिंग के लिए सेट कर दिया है l दास खुद रेफरी बना हुआ है और चार संत्री लाइन मेन बने हुए हैं l दोनों तरफ बारह बारह प्लेयरस् चुने गए हैं l जज के रूप में खुद अशोक बेहरा बैठा हुआ है l

मैदान में दोनों ग्रुप के सात सात खिलाड़ी उतरते हैं l दास खेल शुरु करा देता है l खेल ज्यूं ज्यूं आगे बढ़ने लगती है खिलाडियों के साथ साथ दर्शकों का भी खुन गरमाने लगती है l दर्शक भी अब दो हिस्सों में बंट चुके हैं l जब कोई स्कोर करता है पक्ष के दर्शक चीयर करने लगते हैं और विपक्ष के दर्शक चिढ़ाने लगते हैं l ऐसा माहौल ना लेनिन के लिए नया था ना ही विश्व के लिए l पर धीरे धीरे यश की खीज बढ़ रही थी l ऐसे में हाफ टाइम होता है l स्कोर था विश्व ग्रुप 48 और लेनिन ग्रुप 36 l हाफ टाइम में विश्व के पास यश आता है l विश्व देखता है यश बहुत थका थका लग रहा है l

यश - यह क्या विश्व.. तुम्हारा स्कोर हमसे ज्यादा है...
विश्व - यह सेकंड हाफ में मेक अप हो जाएगा... पर मैंने तुमसे पहले ही कहा था... तुमको बाहर देखने वालों में होना चाहिए था... एक काम करो... तुम सबस्टीच्युट लेलो और बाहर बैठ जाओ...
यश - अभी हाफ टाइम हुआ है... और आधा खेल बाकी है... मैंने बड़बोलेपन से सही तुम्हें हराने की बात कह दी थी... अब इज़्ज़त का सवाल है... प्लीज विश्वा हार जाओ...
विश्व - ठीक है... सेकंड हाफ में... मैं शांत हो जाता हूँ... तुम्हें स्कोर मेक अप करने में तकलीफ़ नहीं होगी... ठीक आखिरी मोमेंट में... तुम्हारे पास मौका होगा... स्कोर उपर ले जाने के लिए...
यश - ठीक है...


इतना कह कर यश बाथरूम चला जाता है l उसके आने के बाद फ़िर से खेल शुरु हो जाता है l इस बार स्कोर विश्व के 70 और लेनिन के 72 हो चुका है l अब विश्व के साइड में विश्व के साथ और एक बंदा है पर लेनिन के साइड में सिर्फ यश और दो बंदे हैं l अंतिम दौर शुरू होती है, विश्व अब कबड्डी कबड्डी रटते हुए आगे बढ़ता है l यश विश्व के पैरों पर छलांग लगा कर उसे गिरा देता है, फिर विश्व के उपर आकर विश्व के गले में बांह की फाँस बना कर कसने लगता है l विश्व की साँसे घुटने लगती हैं l

यश - (दांतों को चबा चबा कर विश्व के कानों में) विश्व... यार आज तु मेरे हाथों से मर जा... क्यूंकि लेनिन मेरे लिए आदमी इसी शर्त पर देने वाला है... तुझे मारने के लिए... मैंने स्टेरॉयड और ड्रग्स ली है... आज मेरे फंदे से तु बच नहीं पाएगा... तेरा एहसान होगा मुझ पर... तु अगर मर गया... तो वादा करता हूँ... तेरा बदला... मेरा बदला... मैं उन क्षेत्रपालों को तेरा नाम ले लेकर बरबाद करुंगा... इसलिए आज मेरे हाथों से... तु... कुत्ते की मौत मर जा...
विश्व - (आवाज़ को मुस्किल से हलक से निकालते हुए) मैं जानता हूँ... हराम जादे... पर आज मेरी नहीं... तेरी मौत होगी... और नर्क में... क्षेत्रपालों का इंतजार करना... तेरे पीछे पीछे मैं ही उन्हें भेजूंगा...

कह कर विश्व अपने बाएं हाथ को वहाँ लेता है जहाँ यश ने ग्रीप बनाया था I फिर किसी तरह उसके हाथ की छोटी उंगली पकड़ उल्टा मोड़ देता है l यश चिल्ला कर ग्रीप लूज कर देता है ऐसे में विश्व लकीर की ओर घिसटते हुए आगे बढ़ने लगता है, यश विश्व को पकड़ कर पलट जाता है l अब यश नीचे पीठ के बल और विश्व पीठ के बल उसके ऊपर, पर यश और जोर से अपनी बांह कस लेता है और चिल्लाता है
- लेनिन... आओ पकड़ लो इसे... मेरे पकड़.... छूट रहा है... यह... छूट गया तो.. तू गया...

लेनिन और उसके साथी सब एक साथ दोनों के उपर छलांग लगा देते हैं l ऐन वक़्त पर विश्व घुम जाता है l जब सब लोग उन दोनों पर गिरते हैं तब विश्व नीचे होता है और यश ऊपर होता है l इसे फाउल करार देकर दास व्हीसल बजाता है l सभी लाइन मेन और दुसरे कैदी आकर लेनिन और उसके साथियों को उन दोनों के ऊपर से हटाते हैं l पर दो लोग वैसे ही पड़े रहते हैं l नीचे मुहँ के विश्व और उसके ऊपर यश l दास मुस्किल से यश के हाथों को विश्व के गले से अलग करता है l यश का शरीर बेज़ान हो चुका है और वह एक तरफ लुढ़क जाता है l उसके होंठ और नाक के पास खुन आकर जमा हुआ है l पर विश्व वैसे ही मुहँ के बल पड़ा हुआ है l दास उसे पलटता है, विश्व की सांस देखता है, विश्व के चेहरे पर थप्पड़ पर थप्पड़ मारने लगता है l फिर अचानक से एक गहरी सांस लेते हुए विश्व उठाता है और खांसने लगता है l फिर खांसते खांसते अपने बगल में देखता है यश मरा पड़ा है l

खान अपनी बात को यहीं रोक देता है, चुप हो कर दोनों को देखने लगता है l

प्रतिभा - हाँ तो इसमे हत्या कहाँ है... यह तो हादसा हुआ ना... आपने कहाँ और कैसे ऑब्जर्व कर लिया...
खान - उस मैदान में उस दिन जो हुआ... वहाँ सिर्फ दो लोग ही जानते थे... वह हादसा नहीं मर्डर था... पहला विश्व और दुसरा लेनिन... चूंकि जिस वक़्त सारे खिलाड़ी विश्व को मारने के लिए उस पर कुदे थे... तभी विश्व पलट गया था... उसकी कोहनी ठीक यश के छाती के नीचे खड़ा कर रखा था... जब सभी उस पर गिरे तो यश की पसलियाँ टुट गईं थीं... जिसके कारण उसकी सांस रुक गई... और यश दम तोड़ दिया l
तापस - तुमने अभी भी जो कहा... वह एक्सीडेंट ही है... मर्डर नहीं... उल्टा यश विश्व का गला दबा कर मारने कोशिश किया था...
खान - हाँ... वीडियो रिकॉर्डिंग में तो यही जाहिर हुआ... यश के पोस्ट मॉर्टेम रिपोर्ट में... रेस्ट्रीक्टेड ड्रग्स और स्टेरॉयड की ओवर डोज मिला था... जिसके वजह से वह खेल के दौरान वायलेंट हो गया था... यह सब उसके बाप ने उसे मुहैया कराया था... जब वह मिलने आया था... पर यह सब लेने का आइडिया यश को इनडायरेक्टली... विश्व और उसके जासूसों ने दिया था... यश जिस तरह से विश्व का गला दबाया था... उसे फाइट रिंग में चोक कहते हैं... डैनी ने उसे पक्का सिखाया होगा... चोक से कैसे बचा जाए...
तापस - फिर भी तुम अंदाजा लगा रहे हो... साबित कुछ नहीं कर सकते...
खान - मैंने कहा था.. मैं लॉजिक बिठा रहा हूँ...
तापस - हत्या कहने की वजह...
खान - जैसा कि मैंने पहले ही कहा था... उस दिन सिर्फ दो लोगों को ही मालुम था... पहला विश्व और दुसरा लेनिन... उस दिन के बाद लेनिन विश्व से दूर रहने लगा... और रिहा होने के बाद फिर कभी भुवनेश्वर में नहीं दिखा.... यश एक राज नेता का बेटा था... बॉर्न वीथ गोल्डेन स्पून इन माउथ... उसने कभी लाइफ में रॉफ पैचेस नहीं देखे थे... इसलिए जैल में उसकी सोचने समझने की काबलियत को विश्व ने हाइजैक कर लिया था.... यश वही सब करता गया... जो विश्व ने उससे करवाया... विश्व ने उसका पैसा पकड़वाया... उसकी फार्मास्यूटिकल्स कंपनी पर रैड भी करवाया....
तापस - रैड ना तो विश्व ने करवाया ना ही हमने... यह तुक्का तुम्हारा गलत है....
खान - ठीक है... पर उस वक़्त जो भी हुआ... वह विश्व के मुताबिक और यश के खिलाफ होता गया.... लेनिन के बाद इसे कत्ल जानने और समझने वाले... तीसरे शख्स थी भाभीजी...
प्रतिभा - (बिदक कर) यह... यह आप कैसे कह सकते हैं... खान भाई साहब...
तापस - खान तुम बेवजह अंधेरे में तीर चला रहे हो... और वक़्त खामखा बर्बाद कर रहे हो...
खान - दिल्ली में आपको खबर मिलती है... यश की जान चली गई है... सेनापति सारी डिटेल्स दास से लेकर भुवनेश्वर आते हो.... तब भाभीजी विश्व से अकेले में मिलती हैं...

फ्लैशबैक में

लाइब्रेरी में
प्रतिभा विश्व के हाथ अपने सर पर रख कर

प्रतिभा - तु मेरी कसम खा कर बोल... यश कैसे मरा...

विश्व अपने हाथ खिंच लेता है l जिससे प्रतिभा को गुस्सा आता है और वह एक चांटा मार देती है l

प्रतिभा - तुने यह सिला दिया... मैंने तुझे अपने दिल से बेटा माना है.. पर लगता है... तुने मुझे दिल से माँ नहीं माना...
विश्व - (प्रतिभा के दोनों हाथों को पकड़ लेता है) ऐसी बात मत करो माँ... चाहो तो और मार लो... मगर यह गाली मत दो...
प्रतिभा - उसे मारते वक़्त तुझे... जयंत सर याद नहीं आए... अरे उन्होंने तुझे कानून की राह पकड़ने के लिए अपनी पूंजी तेरे हवाले कर दी... ताकि तु बदले की आग में कभी... कानून की राह ना छोड़े... आज उनकी आत्मा को कितनी तकलीफ़ पहुंची होगी सोचा भी है तुमने...
विश्व - क्या करूँ माँ... काश के उस वक्त तुम मेरे पास होती... साथ होती... तो शायद यह हरगिज नहीं होता...पर जब जब उसे देखता था... मैं तड़प उठता था... कैसे जयंत सर भरी अदालत में चल बसे... कैसे प्रत्युष हमारे बीच नहीं है... बस बर्दास्त नहीं हुआ... तब डैनी भाई की एक बात याद आई... दिखाओ कुछ... लोग देखें कुछ... बताओ कुछ... लोग समझें कुछ... करवाओ कुछ... और हो जाए कुछ... जिस कानून और सिस्टम को उसने अपनी करनी से बेबस कर दिया था... उसी बेबस कानून और सिस्टम को उसकी मौत का गवाह बना दिया...
प्रतिभा - (अपनी जबड़े भींच लेती है)
विश्व - माँ.. तुम कुछ भी सजा दे दो माँ... प्लीज मुझसे बात करो... प्लीज (विश्व के आँखों में आँसू आ जाती है)
प्रतिभा - ठीक है... मुझे वचन दे... तु... चाहे किसी से भी बदला लेगा तब भी... खुदको कानून की दायरे में रख कर... उसे कानून की सजा देगा... वचन दे...
विश्व - (प्रतिभा के सर पर हाथ रख कर) मैं वचन देता हूँ... अब जिसे भी सजा देनी होगी... उसे कानून की सजा कानून से दिलवाउंगा...

फ्लैशबैक खतम

प्रतिभा - यह... यह बात आपको कैसे मालुम हुआ... यह तो मेरे और प्रताप के बीच की बातेँ थीं...
खान - एक दिन मैं.... अपने पुलिस हॉस्टल में विश्व की फाइल को ले जा कर.... उसकी प्रोफाइल चेक कर रहा था... उस दिन जगन मेरे साथ था... मेरे मुहँ से निकल गया कि... यह जैल से निकलने के बाद भी... क्रिमिनल बनेगा... तब जगन ने कहा था... की विश्व ने आपसे से वादा किया है... कभी क्राइम नहीं करेगा... मैंने पूछा कब... जगन ने कहा था दो साल पहले... इसलिए मैं सभी लॉजिक बिठा पाया...

इतना कह कर खान चुप हो जाता है l प्रतिभा और तापस भी चुप हो जाते हैं l कुछ देर ख़ामोशी के बाद

तापस - तुम अब क्या करोगे खान...
खान - कुछ नहीं... कुछ भी नहीं... क्यूंकि भाभी जी ने उसे अपनी कसम दे कर कानून के खिलाफ जाने से रोका है... इसलिए मैंने कुछ कहा नहीं और तुमने कुछ सुना नहीं....

प्रतिभा और तापस के चेहरे पर रौनक आ जाती है l खान अपनी जेब से विश्व का AIBE एक्जाम एंट्रेंस की एडमिट कार्ड और लेटर निकाल कर प्रतिभा की ओर बढ़ाता है l प्रतिभा उसे ले लेती है l

खान - भाभी यह रहा आपके बेटे का AIBE एंट्रेंस लेटर... आप फिक्र ना करें... आपने एक बेटा खोया है... तो एक अच्छा बेटा पाया भी है... प्रत्युष सिर्फ़ शरीर के रोगों का इलाज कर सकता था... पर आपका प्रताप तो समाज के रोगों का इलाज करने वाला है... आप यूँ समझ लीजिए... आपका बेटा अभी उसके मामा के यहाँ मेहमान है... अगले शनिवार सुबह आकर अपने प्रताप को पेरोल में ले जाइए... और इतवार शाम को लौटा दीजियेगा...

प्रतिभा - (खुशी से चहकते हुए) शुक्रिया.. शुक्रिया खान भाई... शुक्रिया...
Awesome update bro
 

Rajesh

Well-Known Member
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Superb update bro
👉छप्पनवां अपडेट
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द हैल
विक्रम सिंह का बंगला

डायनिंग टेबल पर बैठ कर विक्रम, शुभ्रा को एक नौकरानी के साथ नास्ता लेकर रूप कि कमरे की ओर जाते हुए देखता है तो वह अपना सिर नीचे कर खाली प्लेट को देखता है और डायनिंग टेबल के चारों तरफ अपनी नजरें घुमाता है l नौकर ट्रॉली में नाश्ता ला कर टेबल के पास पहुँचा ही था कि विक्रम पानी की ग्लास उठा कर पिता है और बाहर चला जाता है l नौकर उसे जाते हुए देखता है l उधर शुभ्रा रूप के कमरे के सामने पहुँच कर दरवाज़ा खटखटाने लगती है l

रूप - (अंदर से) आइए भाभी.... आप मेरे कमरे में आने के लिए कबसे दरवाजा खटखटाने लगीं...

शुभ्रा और नौकरानी दोनों कमरे के भीतर आते हैं l शुभ्रा नौकरानी को नाश्ता लगाने के लिए इशारा करती है l नौकरानी खाना लगा देती है तब

शुभ्रा - (नौकरानी से) अब तुम जाओ... (नौकरानी सर झुका कर बिना पीठ पीछे किए वापस चली जाती है) (रूप से) हाँ तो क्या पूछ रही थी....
रूप - (नाश्ते के लिए बैठते हुए) क्या भाभी... आप को मेरे कमरे में आने के लिए... दरवाज़ा कब से खटखटाने लगीं... और क्यूँ भला...
शुभ्रा - (उसके साथ बैठ कर) वह क्या है कि... शायद राजकुमारी जी किसीके लिए तैयार हो रहे हों... ऐसे मोमेंट के लिए प्राइवेसी की जरूरत होती है ना...
रूप - (खीजते हुए) भाभी....
शुभ्रा - हा हा हा... (खिल खिला कर हँस देती है)
रूप - (उसकी हँसी देख कर) वा... व.... भाभी तुम हँसती हो तो कितनी खूबसूरत दिखती हो... सच भाभी आपके चेहरे पर हँसी शूट करती है...
शुभ्रा - (हँसी रुक जाती है)
रूप - (मुहँ उतर जाता है) सॉरी भाभी... अगर गलत कह दिया तो...
शुभ्रा - तुमने गलत तो नहीं कहा... पर... (रुक जाती है)
रूप - पर क्या भाभी... हाँ इससे पहले मैंने आपको... इतना खुलकर हँसते हुए देखा नहीं था... सच भाभी आप हँसते हुए... बहुत खूबसूरत लगती हैं...
शुभ्रा - मैं तो दो सालों से... हँसना भूल चुकी थी... रूप... तुम्हारे वजह से... कभी कभी मेरे चेहरे पर हँसी और खुशी के पल मिल जाते हैं...
रूप - (शुभ्रा की हाथ पकड़ कर) देखो भाभी... प्लीज... आप मुझे रूप ना बुलाओ... नंदिनी कहो...
शुभ्रा - (हँसते हुए) ठीक है ठीक है... नंदिनी जी...
शुभ्रा - (खीज कर) आ.आ..ह्... भाभी... प्लीज...
शुभ्रा - (हँसते हुए) ओके.. ओके... नंदिनी...
रूप - हाँ यह ठीक है...
(शुभ्रा बड़े प्यार से रूप के गालों पर हाथ फेरती है, रूप उसके हाथों को पकड़ लेती है) और भाभी... अगर आप मेरे वजह से हँस पा रही हो.. खुश हो पा रही हो... तो प्लीज भाभी... आप ऐसे ही रहिए... सच आप हँसते हुए कोई देवी लगती हो...
शुभ्रा - बस बस... बहुत हुआ हाँ... तुम कॉलेज जा कर बहुत बातेँ सीखने लगी हो...
रूप - राजगड़ छुटा... तो बातेँ दिलसे निकल रही हैं... वरना राजगड़ में तो... बातेँ सिर्फ़ जुबान से ही निकलती थीं...

नाश्ता खतम हो जाता है l दोनों अपने हाथों को साफ करते हैं l शुभ्रा जूठे बर्तनों को ट्रॉली के नीचे वाले सेल्फ पर रख देती है l रूप अपनी बैग में कुछ किताबें और नोट बुक्स रखती है और मोबाइल लेकर

रूप - अच्छा भाभी... चलती हूँ...
शुभ्रा - (टोक कर) एक मिनट नंदिनी... (पास आकर) तुम कॉलेज जा रही हो... यह क्या कोई मेक अप नहीं... ऐसे कैसे... और देखो तुमने घड़ी भी नहीं पहना है... (ड्रेसिंग टेबल से घड़ी ला कर पहनाते हुए) कितनी सुंदर हो... थोड़ा सज संवर जाओगी... तो अप्सरा लगोगी...
रूप - भाभी... आपने अभी कहा ना मैं सुंदर हूँ... बस यही काफी है... और सजने संवरने की बात तो भाभी... मुझे किसी को रिझाने की जरूरत नहीं...
शुभ्रा - अरे ऐसे कैसे नहीं... (खिंच कर उसे ड्रेसिंग टेबल के सामने बिठा देती है) अरे लड़की हो... थोड़ा सज संवर जाओगी तो तुम्हारा क्या बिगड़ जाएगा... (रूप को संवारने लगती है) उल्टा कितनों के दिलों पर छुरी चलेगी जानती हो...
रूप - अच्छा... यह सब जानने में... मुझे कोई इंट्रेस्ट नहीं है... तो पता कैसे चलेगा...
शुभ्रा - कितनों पर छुरीयाँ चली... कितने घायल हो गए... इसकी खबर तुझे तेरे दोस्त देंगे... (रूप के कानों के पास धीरे से) मेरा एक्सपेरियंस है... (आईना को दिखाते हुए) देखो तो कितनी खूबसूरत लग रही हो...
शुभ्रा - भाभी..(शर्मा कर) प्लीज... (फ़िर उदास हो कर) मेरी शादी तय हो चुकी है... यह आप जानती हैं... मैं यहाँ पढ़ने भी इसी वज़ह से आई हूँ... (झट से अपनी जगह से उठ जाती है) क्षेत्रपाल घर की औरतों को... सपने देखना मना है... (कह कर शुभ्रा के गले लग जाती है) अच्छा चलती हूँ... बाय...
शुभ्रा - (उसे जाते हुए देखती है और मुरझाए स्वर में कहती है) बाय

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सेंट्रल जैल

दास और विश्व दोनों जल्दी जल्दी लाइब्रेरी की ओर जा रहे हैं l

दास - पता नहीं... यह खान सर के दिमाग में क्या चल रहा है... कल सेनापति सर जी घर गए थे... दोपहर का और रात का खाना कुटने... बस यही समझ में नहीं आ रहा है... की बदहजमी हुआ है या सब हज़म कर आए हैं...
विश्व - यह आप क्या बोल रहे हैं... दास बाबु...
दास - अरे भाई... सच कह रहा हूँ... सुबह सुबह ऑफिस आकर कहने लगे... जाओ विश्व को बुलाओ... मैं लाइब्रेरी में उसका इंतजार कर रहा हूँ... पर क्यूँ यह नहीं बताया... पहली बार अपने चैम्बर... मतलब कैबिन के वजाए लाइब्रेरी...
विश्व - होगा कोई काम... पर उसके लिए... यूँ भाग कर जाना जरूरी है क्या...
दास - क्या बताऊँ... मैं आज खान सर का मुड़ पढ़ नहीं पाया...
विश्व - ठीक है... कोई बात नहीं...

दोनों यूँही तेज तेज चलते हुए लाइब्रेरी में आते हैं l खान टेबल पर कुछ किताबें पढ़ रहा था l विश्व को देख कर


खान - आओ विश्वा... आओ... क्या तुम जानते हो... तुम्हारा AIB एक्जाम कब है...
विश्व - नहीं... शायद... अगले हफ्ते...
खान - हाँ... अगले इतवार को.... इसलिए तुम्हारे पास सिर्फ पांच दिन है... तैयारी करने के लिए... मतलब जुमे रात तक....
विश्व - क्यूँ... शनिवार भी तो है...
खान - हाँ है... पर उस दिन तुम पेरोल पर बाहर जाने वाले हो... और मुझे नहीं लगता उस दिन पढ़ पाओगे... इसलिए... तुम्हारे पास यह पांच दिन है... तैयारी कर लो... हर रोज दोपहर को... तुम्हारी माँ आएँगी... शाम तक तुम्हें ट्यूशन देंगी...
विश्व - ओ... मतलब माँ ने ऐसा कहा है...
खान - हाँ भाई... वह तुम्हारी माँ हैं तो... मेरी बहन भी हैं... अगर उनकी बेटे की खातिर दारी में कोई कमी रह गई... तो वह मेरी हालत खराब कर देंगी...

खान के यह कहने के बाद विश्व और दास एक दुसरे को मुहँ फाड़े देखने लगते हैं l

खान - दास...
दास - यस सर...
खान - विश्व के खाने का इंतजाम यहीं कर देना...
दास - क्या... मेरा मतलब है... यस.. यस सर...
खान - गुड... सो... विश्वा... बेस्ट ऑफ लक...
विश्व - जी... जी सर... थैंक्यू...

खान लाइब्रेरी से निकल कर चला जाता है l दास और विश्व एक दुसरे को देखते हैं l

दास - अच्छा विश्व तुम पढ़ो... तैयारी करो... बस खाने के समय तुम्हारे पास खाना पहुँच जाएगा...

यह कह कर दास वहाँ से निकल जाता है l विश्व लाइब्रेरी में लॉ के किताबों के सामने बैठ जाता है l

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ESS ऑफिस

विक्रम अपने चैम्बर मैं पहुँच कर टेबल पर रखे बेल बजाता है l एक गार्ड अंदर आता है और सैल्यूट देता है l

विक्रम - देखो... महांती अगर आया होगा तो उसे कहो... कंफेरेंस हॉल में थोड़ी देर बाद पहुँचने के लिए कहना....

गार्ड वहाँ से चला जाता है l विक्रम अपना मोबाइल निकाल कर फोन लिस्ट में नंबर ढूंढने लगता है I बार बार स्कोलींग करने के बावजूद उसकी तलाश वीर की नंबर पर आकर रुक जाती है l कुछ देर तक वीर की नंबर को देखने के बाद वह वीर की नंबर पर कॉल लगा देता है l थोड़ी देर की रिंग के बाद वीर फोन उठाता है l

वीर - जी कहिए युवराज जी....
विक्रम - आप ऑफिस कब आ रहे हैं... राज कुमार...
वीर - अभी तो निकले हैं... बीच रास्ते में हैं... दस पंद्रह मिनट में... पहुँच रहे हैं....
विक्रम - ठीक है... आप आते ही... कंफेरेंस रुम में पहुँच जाइए...
वीर - ओके... कुछ जरूरी काम आ गया क्या...
विक्रम - हाँ... (कह कर फोन काट देता है)

विक्रम अपनी जगह से उठता है और कंफेरेंस रूम की तरफ जाता है l थोड़ी देर बाद उसे महांती दिख जाता है l फिर दोनों कमरे में आकर बैठ जाते हैं l

महांती - कहिए... युवराज जी... क्या काम निकल आया...
विक्रम - महांती... हमने इन कुछ दिनों में... उस हमलावर के बारे में गौर किया है... हमें कुछ शक़ सा हो रहा है...
महांती - युवराज जी... मैं समझ सकता हूँ.... आपको लगता है... कोई घर का भेदी है...
विक्रम - हाँ...
महांती - युवराज जी... मैं आपके शक़ को नकार नहीं सकता... इसलिए मैंने अपने हर आदमी पर... नजर रखने की कोशिश कर दिया है... पर्सनली...
विक्रम - यह आसान नहीं होगा महांती... हम ने जो आर्मी तैयार किया है... उस पर हमे खुद ही नजर रखनी पड़ रही है...
महांती - मज़बूरी है... दुश्मन वार तभी कर सकता है.... जब उसके साथ कोई घर का भेदी हो... पर छोटे राजा जी की वह प्रोग्राम फिक्स थी...
विक्रम - हाँ... पर हम जब कंफेरेंस हॉल में मौजूद थे... तभी फोन आया था... लैंडलाइन पर... इसलिए उस दिन जो भी यहाँ पर मौजूद था... उन्हीं पर निगरानी रखो...
महांती - वह मैं पहले ही कर चुका हूँ....
विक्रम - और कोई खास खबर...
महांती - सिवाय इसके कि... वह चार शूटर... हमारे सर्विलांस मैं हैं... उनका अगला कदम हमे उठाने की देर है...
विक्रम - गुड... ओके... तुम जा सकते हो...
महांती - थैंक्यू... सर... (कह कर चला जाता है)

उसके जाते ही कंफेरेंस रुम में विक्रम अकेला बैठा दरवाजे की ओर देखने लगता है l

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XXXX कॉलेज

नंदिनी कॉलेज में पहुँचती है l वह गाड़ी से उतर कर चारो ओर नजर दौड़ाती है l उसे उसके दोस्त दिख जाते हैं l वह उनके तरफ जाने लगती है l वहीँ दुसरे कोने पर रॉकी अपने दोस्तों के साथ बाइक पार्किंग में अपनी बाइक पर बैठा हुआ है l जैसे ही उसकी नजर नंदिनी पर पड़ती है

रॉकी - वाव... वहाँ देखो दोस्तों... क़यामत... हुस्न की मल्लिका... रूप कि देवी... उफ्फ... क्या कहूँ.... आज नंदिनी क्या दिख रही है... यारों...

रॉकी के सभी दोस्त नंदिनी की ओर देखने लगते हैं l असल में आज कॉलेज में सभी नंदिनी को चोर नजर से देख रहे हैं l ना जाने कितने तड़प तड़प कर आहें भर रहे हैं पर कोई भी जाहिर नहीं कर रहा है l क्यूँकी सभी जानते हैं नंदिनी कॉलेज के प्रेसिडेंट वीर सिंह की बहन है I उनकी जरा सी नादानी उनको खतरनाक अंजाम तक पहुँचा सकता है l रॉकी और उसके दोस्तों का भी वही हाल है l नंदिनी अपने दोस्तों के पास जाती है और सब से हाय फाय करती है l

रवि - काश यह अपने रॉकी के साथ भी... हाय फाय करती...
रॉकी - कोई नहीं... वह टाइम भी बहुत जल्द आएगा....
राजु - पता नहीं किसका टाइम आएगा...
रॉकी - आबे चुप... काली जुबान वाले... कुछ अच्छा सोच... वह कहते हैं ना... पहले सोच बदलो... फ़िर दुनिया बदलेगी...
आशीष - आबे रॉकी... याद है ना... आज तुझे प्रिन्सिपल के पास जाना है...
रॉकी - हाँ मालूम है रे... पाँच मिनट का काम है... और पूरा दिन पड़ा है... वह फूलों की रानी... बहारों की मल्लिका... उसका यूँ संवर के आना ग़ज़ब ढा रहा है...

सभी देखते हैं नंदिनी और उसके दोस्त उन्हीं के पास आ रहे हैं l सभी अपनी अपनी गाड़ी से उतर जाते हैं और अपने अपने हाथों को सीने पर मोड़ कर रख देते हैं l

नंदिनी - हैलो बॉयज...
सभी - हैलो...
नंदिनी - (रॉकी से) आपके हीरोइजम के चर्चे पूरे शहर में हैं... और कुछ लोग तो काफी इम्प्रेस भी हुए हैं...
रॉकी - (कुछ नहीं कहता, सिर्फ़ मुस्करा देता है)

तभी नंदिनी को बनानी कान में कुछ कहती है l नंदिनी उसकी बात पर हल्का सा मुस्करा देती है और

नंदिनी - अच्छा दोस्तों... हम क्लास जा रहे हैं... ब्रेक में मिलते हैं... बाय... सी यु अगेन...
सभी - बाय...

लड़कियों की टोली वहाँ से चली जाती है l रॉकी के सभी दोस्त रॉकी को देखते हैं l रॉकी उनके रिएक्शन देख कर शर्माने लगता है तो

सभी - ऑए होय... क्या बात है... टमाटर के भाव गिरने वाले हैं... लौंडे के गाल तो देखो...
रॉकी - चुप हो जाओ सालों...
आशीष - ऑए... तु पहले तय कर ले... हम साले हैं के भाई...
रॉकी - आरे कमीनों वह दिलदार है.. पर तुम लोग तो अपने यार हो....
रवि - तो इस बात पर क्यूँ ना किसी बीच पर पार्टी रखा जाए...
रॉकी - जरूर... पर पार्टी... इस हफ्ते की मिशन पुरी होने के बाद ही...
सभी - डन...

उनकी बातचीत के बीच प्रिन्सिपल ऑफिस का पीयोन वहाँ पहुँचता है l

पीयोन - रॉकी बाबु...
रॉकी - हाँ भाई बोल...
पीयोन - आपको प्रिन्सिपल सर ने याद किया...
रॉकी - अभी...
पीयोन - जी अभी...
रॉकी - ठीक है... आप चलो... मैं दो मिनट में... पहुँचता हूँ...
पीयोन - ठीक है...

पीयोन चला जाता है l उसके जाते ही रॉकी आशीष के तरफ देखता है l आशीष समझ जाता है, उनसे थोड़ा दूर जाकर अपने मोबाइल पर एक कॉल लगाता है l कुछ देर बात करने के बाद रॉकी को अपना अंगूठा दिखा कर हाँ में इशारा करता है l आशीष का चेहरा एकदम से चमक उठता है l

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ESS ऑफिस
कंफेरेंस रुम
विक्रम अपनी रीवॉल्वींग चेयर पर घुमते हुए किन्हीं ख़यालों में खोया हुआ है l वह ख़यालों से बाहर निकालता है तो अपने सामने वीर को बैठा पाता है l

विक्रम - (सीधा होकर बैठता है) अररे... राज कुमार... आप....आप कब आए...
वीर - ज्यादा नहीं.. सिर्फ़ पाँच मिनट ही हुए हैं...
विक्रम - व्हाट... आप....यहाँ पाँच मिनट से बैठे हुए हैं....
वीर - हाँ... हमे लगा... आप किसी गहरी सोच में खोए हुए हैं....
विक्रम - ओ हाँ... (फिर अपने सर को चेयर पर टिका कर छत की देखते हुए) हम खुद में खोए हुए थे... और खुद ही में खुद को ढूंढ रहे थे...
वीर - आज कल आप... बहुत खोए खोए रहने लगे हैं...
विक्रम - (चुप रहता है)
वीर - हम कुछ और बात करें...
विक्रम - अगर है... तो लीजिए....
वीर - नहीं.... आप कीजिए... हम साथ देंगे...
विक्रम - (अपना सिर वीर की ओर मोड़ते हुए) क्या कहें...
वीर - युवराज जी.... आप राजकुमार को तभी ढूंढते हैं... जब आपके दिल में कुछ चुभ रहा हो... क्यूंकि मुझसे.... आपने कभी काम की बातेँ तो कि ही नहीं...
विक्रम - (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) जब हम कलकत्ता से आए थे... तब हमें छोटे राजा जी ने एक टास्क दिया था... हमने भी जोश जोश में... उस टास्क में अपना मंज़िल तय करने की ठान ली... अपनी वज़ूद बनाने की ठान ली... यही अब हम पर भारी पड़ने लगा है....
वीर - (चुप रहता है)
विक्रम - (वीर की ओर देखता है, फिर छत की ओर देख कर) पता नहीं क्या सोच कर... हमने अपने बंगले का नाम... द हैल रखा... अब सच में वह हैल ही लग रहा है... अब थकने लगा है... यह जिस्म... यह रूह... क्षेत्रपाल नाम को... ढोते ढोते... ना हम क्षेत्रपाल बन पाए... ना हम विक्रम सिंह बने रह पाए... एक सीने से लगना चाहते हैं.... उसकी धड़कनों में अपना नाम सुनना चाहते हैं... कभी कंधे पर... सर रख कर... शिकायत करना चाहते हैं.... पर नहीं... वह हमारी किस्मत हैं... ठुकरा चुकी हैं हमें...(कह कर वीर को देखता है)
वीर - (चुप रहता है)
विक्रम - क्या बात है राज कुमार.... कम से कम आप तो कुछ कहिए..
वीर - क्या कहें... बस एक सवाल.... क्या हम पूछें...
विक्रम - पूछिये...
वीर - आप को जब होश आया होगा... तब से आप जानते होंगे... के आप... विक्रम सिंह क्षेत्रपाल हैं... ऐसा दिन आएगा... क्या आप नहीं जानते थे...
विक्रम - (चुप रहता है)
वीर - आप अच्छी तरह से जानते थे... फिर किस बात पर अफ़सोस कर रहे हैं... तब हमने आप से कहा था... दिल प्यार इश्क़ वगैरह वगैरह की बातेँ ना किया कीजिए... पर आपने की... फिर उसका परिणाम झेलते हुए तकलीफ क्यूँ हो रही है आपको....
विक्रम - (चुप रहता है)
वीर - आपके और भाभी जी के बीच क्या हुआ... यह आपकी पर्सनल मैटर है... चार दीवारों के बीच की बात कभी चार लोगों के बीच ना होनी चाहिए... ना ही आनी चाहिए... यु चुज योर डेस्टीनी.. यु मेड योर फेट... नाउ यु कैंट अवॉइड इट... अब आपके पास आर या पार ऑप्शन है... या तो पूरी तरह क्षेत्रपाल बन जाइए... या फिर सब कुछ छोड़ दीजिए.... अपनी मज़बूरी का नाम लेकर... खुद से एसक्युज लेना छोड़ दीजिए.... आगे आपकी मर्जी....

इतना कह कर वीर वहाँ से उठ जाता है l विक्रम उसी तरह चेयर पर टेक लगाए वीर को जाते हुए देखता है l वीर के कमरे से निकल जाने के बाद विक्रम बुदबुदाने लगता है
- सच कह रहे हैं मेरे भाई...आप सच कह रहे हैं.... मैं दुनिया से कम... खुद से जुझ रहा हूँ... इसलिए अपनी तकलीफ कभी कभी आपसे कह देता हूँ.... घर अपनों से होती है... सपनों का होता है... ईंट सीमेंट के बंगले में.... ना कोई अपना है... ना कोई सपना है... यह हमने खुद चुना है... इसे हम छोड़ेंगे भी नहीं....

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XXXX कॉलेज
प्रिन्सिपल की ऑफिस में

प्रिन्सिपल - तो राकेश पहले तो थैंक्स... तुम्हारे वजह से हमारे कालेज में एक्सीडेंट होते होते रह गई... तुमने अपनी जान पर खेल कर एक जान भी बचाई...
रॉकी - सर... इसमें थैंक्स कहने की क्या जरूरत है... मेरी जगह कोई और होता... तो वह भी वही करता...
प्रिन्सिपल - वेल... यु मे बी राइट... लेकिन हमारे अपील के बाद भी... वह वीडियो वायरल हो ही गया.... खैर सबकी मन पर या हरकत पर तो हमारा वश भी नहीं है... अब तुम अपनी कॉलेज में ही नहीं... दुसरे कॉलेज में भी टॉक ऑफ द टॉपिक हो...
रॉकी - (शर्मा कर चुप रहता है और अपना सिर नीचे कर लेता है)
प्रिन्सिपल - डोंट बी साय... इटस् फैक्ट...
रॉकी - बस भी कीजिए सर... आप बे फिजूल इतनी तारीफ ना करें... वरना उसकी बोझ से सर उठाना भी मुश्किल हो जाए...
प्रिन्सिपल - ओके ओके... अच्छा तुम जानते ही होगे... मैंने तुम्हें यहाँ पर क्यूँ बुलाया है...
रॉकी - जी जानता हूँ... आपने कहा था कि... उस एक्सीडेंट के वजह से.... कुछ स्टूडेंट्स ट्रॉमा में हैं.... कुछ ऐसी ऐक्टिविटी हो... जिससे... सभी स्टूडेंट्स के मन से उस हादसे की छाप मीट जाए...
प्रिन्सिपल - देन... डु यु हेव एनी आइडिया...
रॉकी - यस सर...
प्रिन्सिपल - देन... स्पीक... लेट मि नो... व्हाट इज द आइडिया..
रॉकी - सर आपने एफएम 97 सुना होगा...
प्रिन्सिपल - हाँ...
रॉकी - सर उसमें मेरा दोस्त आशीष का कॉजीन सुरेश काम करता है...
प्रिन्सिपल - हाँ... पर... एफएम रेडियो से क्या मतलब है तुम्हारा...
रॉकी - सर... वह... रेडियो एफएम में... ऑडियंस के बीच कुछ भी इशू के ऊपर... लाइव प्रोग्राम करता है... उसका यह प्रोग्राम... हर शनिवार को दिन के बारह बजे आता है... लाइव...
प्रिन्सिपल - हाँ तो...
रॉकी - तो सर हम बुधवार को सभी स्टूडेंट्स को असेंबली हॉल में इकट्ठे होने के लिए कहेंगे... फिर सबको उनके अपने नाम एक चिट पर लिख कर देने को कहेंगे... फ़िर लकी ड्रॉ के जरिए... हम किसी एक का नाम निकाल कर डिक्लेर करेंगे... और सुरेश उसी दिन उस स्टूडेंट को एक टास्क देंगे... और शनिवार को सभी स्टूडेंट्स के सामने... लकी ड्रॉ में नाम जितने वाले स्टूडेंट को टास्क कंप्लीट करना पड़ेगा... वह सिर्फ़ हमारे कालेज के स्टूडेंट्स के सामने ही नहीं बल्कि हर उस एफएम सुनने वालों के सामने लाइव सेशन होगा...
प्रिन्सिपल - ह्म्म्म्म... बहुत अच्छे... अच्छा कांसेप्ट है... गुड... मैं पहले अपने स्टाफस् को इन्फॉर्म कर दूँ... फ़िर मैं लास्ट आवर में... अनाउंसमेंट कर दूँगा...
रॉकी - ठीक है सर...
प्रिन्सिपल - देखो रॉकी... इस प्रोग्राम की तैयारी और कामयाबी की जिम्मेवारी तुम्हारी...
रॉकी - श्योर सर...

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वीर अपने कैबिन में चेयर पर बैठ कर, आँखे मूँद कर अपनी सोच में खोया हुआ है l दाएँ हाथ से पेपर वेट को टेबल पर घुमा रहा है l उसे होश ही नहीं है कब से वह ऐसा कर रहा है l अचानक उसका पेपर वेट घुमाना बंद हो जाता है, उसे एहसास होता है कि उसे कोई देख रहा है l वह आँखे खोल कर देखता है l अनु अपने हाथ में दो स्माइली बॉल लिए उसे आँखे फाड़े हैरानी भरी नजरों से देख रही है l अनु सामने ऐसे देखते ही वीर के चेहरे पर एक मुस्कान आ जाती है l

वीर - क्या बात है अनु जी... आप हमें ऐसे क्यूँ देख रहे हैं...
अनु - जी आप... जब से यहाँ आए हैं... तबसे... यह... पेपर वेट घुमा रहे हैं... मुझे लगा कि... शायद आपको... (स्माइली बॉलस् को दिखा कर) इन बॉलस् की ज़रूरत है...
वीर - (मुस्कान गहरी हो जाती है) है तो... पर तुमने देर कर दी...
अनु - क्या... (हैरानी से आँखे बड़ी हो जाती हैं) यह तो मुझसे बड़ी गलती हो गई... (रोनी सुरत जैसी हो जाती है) आप गुस्सा हो गए ना...
वीर - (पिघल जाता है) आरे नहीं... मैं यह पेपर वेट घुमा कर ठीक हो गया देखो...
अनु - फ़िर भी मैंने गलती की है... सजा तो बनती है...
वीर - (मन ही मन हँसने लगता है) हूँ... सजा तो बनती है... अब तुम ही बोलो मैं तुम्हें क्या सजा दूँ....
अनु - अब मैं क्या बताऊँ...
वीर - अच्छा... कैसी सजा दूँ... जो तुम अपने ऊपर ले सको...
अनु - मैं... कान पकड़ कर... उठक बैठक करूँ...(बड़ी मासूमियत के साथ पूछती है)
वीर - (अपनी हँसी को रोकते हुए) हूँ करो...

अनु झट से अपनी कान पकड़ लेती है और उठक बैठक लगाना शुरू कर देता है l विश्व उसके उठक बैठक देख कर अपनी हँसी और रोक नहीं पाता अपना पेट पकड़ कर जोर जोर से हँसने लगता है l वीर हँसते हँसते हुए देखता है अनु अपनी कान को पकड़े वीर को हैरान हो कर देख रही है l

वीर - (अपनी हँसी को काबु करते हुए) रुको रुको... यहाँ मत करो... लोग देखेंगे तो उन्हें बुरा लगेगा... तुम पर सजा उधार रहा... ठीक है... फ़िर कभी अकेले में... जब कोई ना देखता हो तब... तब.. तुम सौ उठक बैठक कर लेना... ठीक है...
अनु - (खुशी से दमकते हुए) ठीक है... (फ़िर भी कान पकड़ी हुई है)
वीर - आरे... अब तो अपने कान छोड़ो...
अनु - (शर्मा जाती है) ओ हाँ... (कान छोड़ कर) सर...
वीर - हूँ...
अनु - वह आप किसलिए... तनाव में थे...
वीर - तनाव... हाँ वह.. (उसे कुछ सूझता नहीं) वह... मैं...

वीर अनु को देखता है, अनु अपनी भवें तन कर मुहँ खोले जिज्ञासा भरे नजरों से देख रही है l उसकी ऐसी हालत देख कर वीर अपनी हँसी को फिर से काबु करते हुए

वीर - वह... युवराज जी ने... कहा है कि... हमारी (खराश लेते हुए) सिक्युरिटी सर्विस जहां जहां तैनात है... वहाँ भेष बदल कर जाओ... और... प्रतिपुष्टि करो... मतलब फीडबैक दो... वह लोग कैसे अपने ड्यूटी को अंजाम दे रहे हैं....
अनु - ओ... (प्रतिक्रिया ऐसे देती है जैसे सब समझ में आ गया)
वीर - तो बताओ... मुझे क्या करना चाहिए...
अनु - अगर युवराज मालिक ने कहा है... तो ठीक ही कहा होगा... आपको अपना भेष बदल कर उसकी प्रतिपुष्टि करनी चाहिए....
वीर - पर अगर मैं अकेला जाऊँगा... तो...
अनु - तो आप किसी को साथ ले जाइए...
वीर - (अपना सर हिलाते हुए) ह्म्म्म्म... क्या तुम चलोगी...
अनु - हाँ... (फिर जोर से) क्या... न न नहीं... म म.. मैं कैसे...
वीर - क्यूँ... डर लग रहा है मुझसे......

अनु पहले हाँ में सिर हिलती है फिर ना में फिर ऐसे हिलाती है जिसे ना हाँ में समझ आए ना, ना में समझ आए l

वीर - अच्छा एक काम करते हैं...
अनु - क्या...
वीर - तुम्हारी सजा... बदल देते हैं...
अनु - (चेहरे पर हैरानी भरे भाव में अपनी भवें तन कर) क्या... मतलब अब क्या करना होगा...
वीर - कुछ नहीं... मैं अब रोज अपनी सिक्युरिटी जवानों की चुस्ती... और ड्यूटी के प्रति समर्पण देखने जाऊँगा... और तुम मेरे साथ जाओगी....
अनु - आप भेष बदल लोगे... तो आप नहीं पहचाने जाओगे... पर मुझे तो लोग पहचान जाएंगे...
वीर - नहीं पहचानेंगे... तुम भी मेरे साथ अपना भेष बदलोगी...
अनु - भेष बदलने से... कोई आपको पहचान नहीं पाएगा... तो मैं आपको कैसे पहचान पाऊँगी... और मैं कौनसा भेष बदलुंगी... और अगर आप भी मुझे नहीं पहचान पाए तो...

वीर अपने अंदर ही अंदर जो हँस रहा था, उसकी हँसी बंद हो जाती है l वह अनु को मुहँ फाड़े हल्के हल्के से पलकें झपकाते हुए अनु को देखने लगता है l

वीर - कोई नहीं... मैं तुम्हारे सामने भेष बदलुंगा... और तुम... मेरे सामने भेष बदल लेना.... ठीक है...
अनु - (खुश होते हुए) हाँ यह ठीक रहेगा....

वीर उसे देखते हुए सोचने लगता है l यह लड़की मासूम है यह बेवकूफ़ या फिर दोनों l जो कह रही है या कर रही है मासूमियत भरा बेवकूफ़ी या बेवकूफ़ी भरा मासूमियत I

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कॉलेज से आकर रुप अपनी कमरे में आती है l अपनी किताबें टेबल पर रख कर बाथरूम फ्रेश होने चली जाती है l जब फ्रेश होकर कमरे में वापस आती है तो देखती है शुभ्रा उसके बेड पर बैठे उसका इंतजार कर रही है l

रुप - आरे... भाभी.. आप...
शुभ्रा - क्यूँ.. नहीं आना चाहिए था... तुम्हारा प्राइवेसी डिस्टर्ब हो रहा है... अच्छा ठीक है... मैं अब चलती हूँ...
रुप - क्या... भाभी... आपसे कभी मेरी प्राइवेसी डिस्टर्ब हो सकती है....
शुभ्रा - हाँ... हो सकती है...
रुप - (शुभ्रा के पास बैठते हुए) कैसे...
शुभ्रा - जब कमरे में तुम... अपने साजन के साथ होती...
रुप - आ.. ह् (तकिया उठा कर शुभ्रा की ओर फेंकती है) भाभी...
शुभ्रा - हा हा हा... क्यूँ मेरे होने के बाद भी... अपने साजन के साथ... हाँ... कमरे में... उम्म...
रूप - (शुभ्रा पर झपटते हुए) भाभी.... आज मैं आपको नहीं छोड़ुंगी...

शुभ्रा हँसते हँसते पहले कुछ प्रतिरोध करती है पर फिर रुक जाती है l और रुप को अपने गले से लगा लेती है l

शुभ्रा - थैंक्स रुप...
रुप - किस बात के लिए भाभी...
शुभ्रा - बहुत दिन हो गए थे... मैं हँसना भूल गई थी.... आज बेवजह ही सही पर खुलकर हँसी हूँ...
रुप - अगर मुझे छेड़ने पर... आपको खुशी और हँसी मिल रहा है... (शुभ्रा के गले से अलग हो कर) तो आप मुझे रोज छेड़ा करें...
शुभ्रा - वही तो कर रही हूँ...

रुप - अच्छा... तब तो आपकी सौ खता माफ...
शुभ्रा - (मासूम सा चेहरा बना कर) अच्छा अगर गलती से... एक सौ एक खता हो गई तो...
रुप - (थोड़ा चेहरा उतर जाता है) क्या सच में भाभी... आपको लगता है... मेरी बीएससी खतम होते होते... आप एक सौ एक खता कर पाओगे...
शुभ्रा - (थोड़ी सीरियस हो कर) तुम्हें ऐसा क्यूँ लगता है... रुप...
रुप - (अपनी विस्तर से उठ कर पढ़ाई के टेबल के पास बैठ जाती है) काश कि मैं कभी... पढ़ी ही ना होती....
शुभ्रा - ओ...(चुप हो जाती है)
रुप - देखा... आपको भी मेरा दर्द का एहसास हो गया...
शुभ्रा - हूँ...
रुप - पढ़ाई जितना आगे जा रहा है... ख्वाहिशों को पंख उतने ही मिल रहे हैं... जब कि उसकी उड़ान सिर्फ़ पिंजरे के भीतर ही सीमित रहने वाली है... अपने हिस्से का आकाश... क्षेत्रपाल नाम में कहीं छुप गया है....
शुभ्रा - (बड़ी मुश्किल से) हूँ... (आँखे नम हो जाती हैं)
रुप - (शुभ्रा की आँखों में नमी देख कर) ओह... सॉरी... सॉरी भाभी... प्लीज सॉरी...
शुभ्रा - (अपनी आँखों को पोछते हुए) चलो छोड़ो... किस बात के लिए सॉरी... इस सच्चाई को मैंने स्वीकार कर लिया है... अब तुम स्वीकार कर रही हो... फिर भी तसल्ली इस बात की है... तुम एकदिन क्षेत्रपाल नहीं रहोगी...
शुभ्रा - (मुस्कराने की कोशिश करती है, पर मुस्करा नहीं पाती)
शुभ्रा - (रुप की भावनाओं को समझ पाती है) खैर छोड़ो... हम किस बे सिर पैर वाली बातों में वक़्त जाया कर रहे हैं... अच्छा यह बताओ... आज कितने घायल हुए... कितने शायर हुए...
रुप - (चेहरे पर मुस्कान आ जाती है) क्या... भाभी... जो हो नहीं सकता... हम उसकी आशा क्यूँ करें...
शुभ्रा - (सीरियस मुड़ बना कर) क्या बात कर रही हो... (छेड़ते हुए) यह तो हो ही नहीं सकता... के हुस्न राह से गुजरे और दीवाने आह ना भरें...
रुप - छोड़ो ना भाभी...(शर्माते हुए) क्यूँ छेड़ रही हैं...
शुभ्रा - अच्छा चलो... किसी लड़के ने... हिम्मत ना दिखाई... पर तुम्हारे दोस्त तो तुमको बताए होंगे...
रुप - हूँ... (शर्मा कर अपना चेहरा घुमा लेती है)
शुभ्रा - (जिज्ञासा भरे चहकते हुए) कितने लोग घायल होने की बात कही...
रुप - बहुत... (शुभ्रा को नहीं देखती)
शुभ्रा - उम्म्म... उनमें वह लड़का भी होगा शायद... (अपनी ठुड्डी पर दाएं हाथ की तर्जनी उंगली लगा कर) आँ... शायद... हाँ... हाँ (चुटकी बजा कर) रॉकी... रॉकी... उसकी क्या हालत हुई होगी...
रुप - (थोड़ी सीरियस होते हुए) पता नहीं भाभी....
शुभ्रा - क्या मतलब पता नहीं.....
रुप - वह चारा तो डाल रहा है... पर किसके लिए... यही कंफ्यूजन है...
शुभ्रा - तुम्हारे सिवा... किसी ओर के लिए चारा डाल सकता है क्या....
रुप - शायद...
शुभ्रा - क्या मतलब है शायद... मुझे तो लगता है कि वह तुम पर... चांस मार रहा है...
रुप - पहली बात... भाभी... कॉलेज में सभी मुझसे कतराते हैं... वजह... क्षेत्रपाल... हाँ यह रॉकी कुछ खिचड़ी पका जरूर रहा है... इस पर मैं शनिवार तक... शायद कंफर्म हो जाऊँगी...
शुभ्रा - शनिवार तक... ऐसा क्यूँ...

रुप - आज प्रिन्सिपल ने बताया... जिस बैच के साथ वह आग वाला हादसा हुआ था... उसी बैच के लिए... रेडियो 97 एफएम का प्रोग्राम कंडक्ट किया जाएगा... बुधवार को लॉकी ड्रॉ से नाम चुना जाएगा... जिसका नाम आएगा... बुधवार को ही उसे एक टास्क दिया जाएगा... उसे उस टास्क पर... टॉपिक बना कर... रेडियो पर लाइव प्रेजेंटेशन देना होगा...
शुभ्रा - हाँ तो इसमें... उस रॉकी का क्या रोल है...
रुप - यह सारा प्रोग्राम रॉकी ही कर रहा है... या फिर करवा रहा है... मुझे बस यह पता करना है... वह किसे टार्गेट कर रहा है....


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तापस और प्रतिभा दोनों डायनिंग टेबल पर बैठे हुए हैं l दोनों के सामने थाली पर खाना परोसा हुआ है पर खा कोई नहीं रहा है l दोनों ही किसी सोच में डूबे हुए हैं l फिर दोनों एक दुसरे को देखते हैं l

दोनों - मुझे कुछ कहना है... (एक दुसरे को देख कर)
तापस - मुझे तुम्हारे प्रताप के बारे में बात करनी है...
प्रतिभा - मैं भी आपसे... प्रताप के बारे में बात करना चाहती हूँ....
तापस - (अपना दाहिना हाथ प्रतिभा के बाएँ हाथ पर रखते हुए) ठीक है... पहले तुम कहो...
प्रतिभा - (अपने दोनों हाथों से तापस के हाथ को जोर से पकड़ कर) अब जब प्रताप... कुछ ही दिनों बाद छूटने वाला है.... तो मेरे मन में... आपके और प्रताप के बीच की... ख़ामोशी वाला रिस्ते को लेकर एक असमंजस की स्थिति है....
तापस - (अपना दुसरा हाथ लाकर प्रतिभा के दोनों हाथों पर रख देता है) देखो जान... कभी यह मत समझना मुझे वह पसंद नहीं है... या मुझे उसे लेकर कोई शिकायत है.... मैं उसे तब से पसंद करता था... जब तुमने उसे देखा भी नहीं था.... दिन व दिन वह मेरे अजीज होता चला गया... जब प्रत्युष हमसे छिन गया... तुम पुरी तरह से बिखर गई थी.... तुम्हें उससे माफ़ी माँगनी थी... पर उस पर तुमने अपना ममता लुटा दिया... प्यार और ज़ज्बात इंसान को इंसान बनाए रखते हैं... तुमको उसमें अपने प्रताप को महसुस किया... इसलिए तुमने उसे गले से लगा लिया... तुम्हारे गले से लगते ही... जिस प्यार से वह महरूम था... उस प्यार की उष्मा को उसने महसुस किया और तुम्हें भी अपनी माँ स्वीकार कर लिया... उस रात तुम सोई वह भी बिना नींद की गोली लिए... तुम्हें अपना माँ मानता है... तभी तो फिर कभी कानून को अपने हाथ में ना लेने की कसम लीआ और वादा भी किया.... मैं अब उसका ऋणी हो चुका हूँ... उसने पहले मेरी इज़्ज़त बचाई... फिर जान... और फिर उसके बाद उसके वजह से... मुझे मेरी जान मिल गई...
तुम दोनों आपस में जितने खुल गए... मेरे और विश्व में वह नहीं हो पाया है अब तक... इसलिए एक ख़ामोशी की रिस्ता है... वह तुम्हारे लिए सिर्फ़ प्रताप है... पर मेरे लिए वह विश्व प्रताप है... शायद यह ख़ामोशी किसी दिन टूटेगी... उस दिन हमारे रिश्ते पर रंग चढ़ेगा...
प्रतिभा - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) मुझे उस दिन का इंतजार रहेगा.... अब आप बताओ... आप प्रताप के बारे में क्या कहना चाहते थे...
तापस - तुम अच्छी तरह से जानती हो... विश्व छूटने के बाद हमारे साथ सिर्फ़ एक महीना रहेगा... उसके बाद वह अपना गांव चला जाएगा... हाँ बीच बीच में आता रहेगा... जैसे अब वैदेही आती है... जब तक वह अपने मकसद पर कामयाब नहीं हो जाता... (तापस प्रतिभा की हाथों को जोर से पकड़ लेता है) मुझे डर है... कहीं प्रताप के दूर जाने से... मैं....
प्रतिभा - आप आगे कुछ मत कहिए.... आपको डर है... कहीं उसकी जुदाई मुझसे बर्दास्त ना हुआ... और मैं फ़िर से पागलों की तरह हो गई तो... यही सोच रहे हैं ना आप...
तापस - (अपना सिर झुका लेता है और कुछ नहीं कहता है)
प्रतिभा - आप फ़िक्र ना करें... पहली बात... मेरे प्रताप को कुछ नहीं होगा... कुछ भी नहीं होगा... एक एक माँ का विश्वास बोल रहा है.... वह बहुत जल्द अपना मकसद पुरा करेगा... फिर हमेशा के लिए हमारे पास आ जाएगा...
 

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सोमवार की सुबह
तापस की क्वार्टर


तापस की नींद टुटती है, वह बेड पर नजर डालता है उसे बेड पर प्रतिभा नहीं मिलती वह घड़ी देखता है सुबह के पांच बजे हैं l तापस उठ कर ड्रॉइंग रुम में आता है, देखता है प्रतिभा अपने दोनों हाथों को सीने पर बांध कर छत की ओर अपना सिर टिकाए आँखे बंद कर सोफ़े पर बैठी हुई है, उसके आँखों के किनारे आंसुओं के बूंद दिख रहे हैं और होठों पर एक मुस्कान ठहरी हुई है l तापस उसके पास बैठ जाता है l

तापस - क्या बात है जान... कल जब से प्रताप को खान के हवाले कर आई हो... तब से तुम अंदर ही अंदर तड़प रही थी... मैं जानता था... पर अब... रिलेक्स... प्रताप इज़ इन सैफ हैंड... अब सिर्फ तीन हफ्ते रह गए हैं... उसके बाद प्रताप हमेशा के लिए छूट जाएगा....
प्रतिभा - (तापस की ओर देखते हुए) जानती हूँ.... पर यह दिल कभी कभी बड़ा स्वार्थी हो जाता है... पानी के बुलबुलों जैसी खुशियाँ जीवन में आ रही है.... अपनी मुट्ठी में कस कर पकड़ने की कोशिश करती हूँ उन लम्हों को... पर रेत की तरह फिसल जाती है... तीन हफ्ते बाद.... प्रताप छूट जाएगा... पर... हमारे साथ सिर्फ एक महीना ही रहेगा... फिर जीवन में वही खाली पन और इंतजार....
तापस - जान... प्रताप एक इंसान नहीं रह गया है... एक आशा है... एक विश्वास है... एक उम्मीद है... एक नया क्रांति है... उस पर हमारा हक़ बाद में आता है.... उस पर राजगड़ के लोगों का हक ज्यादा है... उस पर अपने गांव में बदलाव लाने का संकल्प हावी है... जब तक वह संकल्प पुरा नहीं हो जाता... तब तक वह हमारा हो कर भी हमारा नहीं रह पाएगा...
प्रतिभा - (तापस की हाथ पकड़ लेती है) वह कामयाब हो कर... हमारे पास आ जाएगा ना...
तापस - (प्रतिभा के दोनों हाथों को अपनी हाथों में लेते हुए) हाँ जान हाँ... उस पर कोई आंच नहीं आएगा... अब वह अकेला कहाँ है... हम उसके साथ हैं... उसे हम हारने कैसे दे सकते हैं...
प्रतिभा - हाँ सच कहा आपने... अब बस उसका बार काउंसिल लाइसेंस आ जाए...
तापस - वैसे कितने दिन लगते हैं... लाइसेंस नंबर आने में...
प्रतिभा - तीन महीने...
तापसे - ह्म्म्म्म... लगभग दो महीने यहाँ रहेगा... और गांव जाने के महीने बाद लाइसेंस नंबर आ जाएगा...
प्रतिभा - हाँ... नंबर मिलते ही... हर महकमे में हड़कंप मच जाएगा...
तापस - वह कैसे...
प्रतिभा - जिस एसआईटी को सरकार कोल्ड बॉक्स में डाल कर टाइम पास कर रही है... उस के डेवलपमेंट पर जब प्रताप पीआईएल दाखिल करेगा... बहुतों के हाथों से तोते उड़ जाएंगे...
तापस - हाँ... वह तो है... पर जब पुरानी फाइलें फिर से खुल जाएंगी... उस वक़्त सबसे ज्यादा चौकन्ना... हमे रहना होगा...
प्रतिभा - मतलब...
तापस - किसी भी मोड़ पर हमे प्रताप का कमजोरी नहीं बनना है... उसके साथ... उसके लिए... हमे उसकी ताकत बनना है... मजबूती से उसके साथ डटे रहना है...
प्रतिभा - हाँ... अच्छा... अब हम ज्यादा दिन तक तो इस सरकारी क्वार्टर में नहीं रह सकते... आपने कोई घर देखा है...
तापस - (मुस्कुराते हुए) हाँ... देखा है और बुक भी कर दिया है...

प्रतिभा - क्या... और यह मुझे अब बता रहे हैं...
तापस - वह क्या है कि... मेरी जान अपने प्रताप के साथ खुशी में इस कदर झूम रही थी... मैं उस खुशी का कबाड़ा नहीं करना चाहता था...
प्रतिभा - यह बता दिए होते तो खुशी डबल हो गई होती ना...
तापस - हाँ... हो तो गई होती... फिर उसके बाद आज की तरफ प्रताप के बिछोह में मूड खराब किए होती...
प्रतिभा - अच्छा... तो यह बात आप मुझे कब बताने वाले थे...
तापस - आज ही... लो बता भी दिया...
प्रतिभा - कहाँ लिया...
तापस - पटीया.... रघुनाथपुर के पास... तीन कमरे वाला फ्लैट लिया है...
प्रतिभा - (खुश होते हुए) यह बहुत अच्छा किया आपने... पर तीन कमरे क्यूँ... ज्यादा नहीं हो जाएगा...
तापस - अरे जान... एक हम दोनों के लिए... दुसरा प्रताप के लिए... और तीसरा... तुम दोनों माँ बेटे के लिए... आखिर दोनों एडवोकेट जो हो...
प्रतिभा - वाव.... चलिए... आपने साबित तो किया... आपका दिमाग कभी कभी चलने लगता है...
तापस - ऑए... एडवोकेट मोहतरमा... आपका मतलब क्या है...
प्रतिभा - क्या... (अपनी कमर पर हाथ रखकर) आप मुझसे लड़ना चाहते हैं...
तापस - गुस्ताखी माफ़ जज साहिबा... अब कहिए... गृह प्रवेश कब करना है...
प्रतिभा - वह तो जिस दिन प्रताप छूटेगा... उसी दिन गृह प्रवेश होगा...
तापस - और तब तक... आप क्या करेंगे...
प्रतिभा - प्रताप के लिए... एक अच्छी सी लड़की देखूंगी...
तापस - क्या... (ऐसे चौंकता है जैसे चार सौ चालीस वोल्ट का झटका लगा हो) क्या...
प्रतिभा - आप ऐसे क्यूँ रिएक्शन दे रहे हैं... मैंने ऐसा क्या कह दिया...
तापस - अच्छा... मेरे दिमाग की बात करने वाली... जज साहिबा... आप रिश्ता किससे मांगेगी... हमारे जान पहचान वालों से... क्या कहेंगी... सात साल जैल में रहकर बीए एलएलबी किया है...
प्रतिभा - मैं जानती थी... आप से मेरी खुशियाँ देखी नहीं जाती...
तापस - अच्छा.... तो बताओ... कहाँ से आप अपनी बहु लाएंगी... सीधे लड़की से संबाद करेंगी या उसके माँ बाप से....
प्रतिभा - आप तो ऐसे कह रहे हैं... जैसे भगवान ने मेरे प्रताप के लिए कोई लड़की बनाया ही नहीं...
तापस - अरे भाग्यवान... बनी क्यूँ नहीं होगी... पर अभी.... कैसे...
प्रतिभा - हूं ह्.... मेरा दिल कह रहा है... उसके जीवन में बहुत जल्द कोई आने वाली है.... और देख लेना.... हमारे नए घर में ही उसके शुभ कदम... जल्दी पड़ेंगे...
तापस - अरे भाग्यवान ब्रेक लगाओ... ब्रेक लगाओ... तुम्हारी गाड़ी बहुत फास्ट जा रही है...

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कॉलेज कैंपस में नंदिनी की गाड़ी रुकती है l गाड़ी की दरवाजा खोल कर नंदिनी उतरती है l सभी स्टूडेंट्स की नजर नंदिनी की ओर टिकी हुई है l वजह शनिवार के दिन की रेडियो पर उसकी प्रेजेंटेशन l पर नंदिनी की नजर उसके दोस्तों तलाश रही थी l जब कोई नहीं दिखे तो वह सीधे कैन्टीन की ओर चल दी l कैन्टीन में पहुँच कर देखती है उसकी छटी गैंग के सभी सदस्य एक टेबल पर कब्जा जमाए बैठे हुए हैं l सबको देख कर नंदिनी खुश हो जाती है l टेबल के पास पहुँच कर सबको "हाय" कहती है l सभी उसे देखते हैं और सभी एक साथ अपने अपने होंठ के पउट बना कर सब एक साथ दाहिनी ओर मोड़ कर मुहँ फ़ेर लेती हैं I

नंदिनी - क्या बात है दोस्तों... अगर कुछ शिकवा या शिकायत है... तो गिला करो ना... (एक चेयर पर बैठते हुए)
बनानी - ओ हैलो... आप हैं कौन... हम यहाँ अपनी दोस्त नंदिनी की इंतजार कर रहे हैं...
दीप्ति - और बाय द वे... आप जिस चेयर पर बैठ गई हैं... यह हमारी दोस्त नंदिनी की है... चलो चलो... उठो यहाँ से...

नंदिनी सबको मुस्कराते हुए सुनती है और सर्विस बॉय को आवाज दे कर कहती है

नंदिनी - छोटु.... तीन बटा छह... स्पेशल चाय...
तब्बसुम - देखो तो इस लड़की को... ऐ लड़की कुछ शर्म वर्म है कि नहीं तुझमें...
नंदिनी - नहीं है... पैदाइशी बेशरम हूँ... अब बोलो क्या करोगी...
भाश्वती - अब करना क्या है... अब आप स्टार हो... हम ठहरे गाय... हमें थोड़ी ना घास डालोगी... भई बड़े लोग फोन मिला रहे होंगे... हमारी फोन देख कर स्विच ऑफ मोड अपने आप ऑन हो जाता है... है ना...
नंदिनी - सॉरी यार.. अब माफ़ भी कर दो... अब तुम लोग सजा देना चाहते हो तो दो... पर मुझसे ऐसे दुर मत हो... प्लीज यारों माफ करो..
इतिश्री - कर देंगे कर देंगे... पहले पार्टी का वादा तो करो...
नंदिनी - ठीक है करती हूँ... पर बाहर कहीं नहीं... मेरे घर में...
सब - वह क्यूँ... क्यूँ.. हाँ हाँ क्यूँ...
नंदिनी - (एक गहरी सांस लेते हुए) देखो दोस्तों... मैं तुम लोगों की तरह नहीं हूँ... मेरे बारे में... तुम लोग सब जानते भी हो... मैं काफी रेस्ट्रीकशन्स के बीच पली बढ़ी हूँ... अपनी जिंदगी में कभी इतने लोगों के बीच कोई प्रेजेंटेशन नहीं दी थी... इसलिए जब लकी ड्रॉ हुआ... तब मैं उपरवाले से दुआ मांग रही थी... कि... किसीका भी नाम आए पर मेरा नाम ना आए... पर मेरा नाम चिट में निकला... तभी से मैं नर्वस थी... और प्रेजेंटेशन के बाद जब सब लोगों ने तालियों से जवाब दिया... तो मैं और भी नर्वस हो गई थी... इसलिए मैं वहाँ से भाग गई और अपने भाभी के पास चली गई... खुद को नॉर्मल करने के लिए... बड़ी मुश्किल से नॉर्मल हुई हूँ.... सच कहती हूँ दोस्तों... मैं इस लायक बिल्कुल भी नहीं थी.... किसी से बात कर सकूँ... अगेन सॉरी...
बनानी - कोई नहीं... हम बहुत खुश हैं... तुम्हारा प्रेजेंटेशन तो... क्या कहें यार... वर्ड्स नहीं मिल रहे हैं... एक्सलेंट, मार्वलस...
इतिश्री - रॉब्बीश... इवन यह वर्ड्स भी तेरे प्रेजेंटेशन के आगे छोटे लगते हैं....
दीप्ति - हाँ तभी तो तुझे इतने फोन लगाए... पर तु... असेंबली हॉल से गधे की सिर से सिंग तरह गायब क्या हुई... आज जाकर मिल रही है...

तभी छोटु चाय की छह ग्लास रख कर उनमें चाय डालने लगता है l सबके ग्लास में चाय देने के बाद वहाँ से निकल जाता है l

नंदिनी - इसी लिए तो सॉरी कह रही हूँ... बस यार... बात को खिंचो मत... मैं समझ पा रही हूँ... तुम लोगों के दिल में क्या गुजरी है...
बनानी - ठीक है... ठीक है... हम पता नहीं कबसे.. एक ही टॉपिक के अराउंड घूम रहे हैं... अब बताओ पार्टी कब दे रही हो...
सभी - हाँ हाँ... बोलो बोलो... पार्टी कब दे रही हो...
नंदिनी - ओके... ओके... मैं घर जाकर... एक बार भाभी से पुछ लेती हूँ... उनके साथ बैठ कर प्लान बनाती हूँ... फिर मैं तुम सबको अपने घर में पार्टी दूंगी... ओके...
सभी - ओके... (कह कर सब ताली बजाने लगते हैं)

तभी प्रिन्सिपल ऑफिस का पीओन आता है और सीधे नंदिनी के पास आकर खड़ा हो जाता है l

दीप्ति - क्या हुआ (पीओन से) प्रिन्सिपल साहब ने फिर से याद किया क्या...
पीओन - जी... नंदिनी जी से बात करना चाहते हैं...
नंदिनी - ओके... भैया... आप जाइए मैं पाँच मिनट बाद पहुँच जाऊँगी...

पीओन वहाँ से चला जाता है l उसके जाते ही सभी नंदिनी को देखने लगते हैं l

भाश्वती - सो अब एप्रीसिएशन के लिए... प्रिन्सिपल ऑफिस से बुलावा आया है...
इतिश्री - हाँ... देखना... अब प्रिन्सिपल सर भी पार्टी मांगेंगे...

सभी इतिश्री की बात सुनकर हँस देते हैं l नंदिनी वहाँ से उठ कर प्रिन्सिपल ऑफिस की ओर निकलती है और कैन्टीन के दरवाजे के पास मुड़ कर पीछे देखती है और

नंदिनी - अच्छा... मैं प्रिन्सिपल सर जी से मिल लेने के बाद.... पहले यहाँ आऊंगी... और अगर तुम लोग यहाँ नहीँ मिले तो...
बनानी - सीधे क्लास में आ जाना... वहीँ पर मुलाकात होगी...
नंदिनी - ओके...

इतना कहकर नंदिनी वहाँ से चली जाती है l उसके जाने के बाद दीप्ति बनानी से पूछती है

दीप्ति - वह प्रिन्सिपल के ऑफिस जा रही है... तो तुझे क्यूँ नहीं बुलाया... कम से कम ऑफिस तक तो बुला ही सकती थी...
बनानी - यह कोई बात नहीं हुई... ना जाने कितनी बार वह प्रिन्सिपल के ऑफिस गई है... उसने कभी नहीं बुलाया और ना ही हमने कभी उससे पुछा... दिस इज़ नॉट एन इशू... वह हमे साथ लेकर जाती भी तो क्या होता... हम दरवाजे के बाहर ही होते... इससे बेहतर है कि वह अकेली जा कर आ जाए...
तब्बसुम - ओह या...

दीप्ति चुप हो जाती है l सभी दोस्त चाय खत्म कर इधर उधर की बातों में लग जाते हैं l उधर कॉलेज के दुसरी तरफ रॉकी बाइक स्टैंड से सटे गार्डन में अपने ग्रुप के साथ बैठा हुआ है l

रवि - क्या बात है ड्यूड... नंदिनी की प्रेजेंटेशन हिट होने के बाद... अपना रॉकी कहीं खो गया है...
सुशील - हाँ... प्रोग्राम तो हिट गया.... पर अपना हीरो शॉक्ड हो गया... लगता है... इसे ही उम्मीद नहीं थी... नंदिनी इतनी बेटर प्रेजेंटेशन दे पायेगी...
आशीष - हाँ... प्लान तो यही था... अगर प्रोग्राम हिट गया... तो बधाई देने का... अगर पीट गया तो दुखी नंदिनी को सिसकने के लिए कंधा देने का...
रॉकी - ओह स्टॉप इट... हाँ मैं शॉक्ड हो गया था... सच कहूँ तो... मुझे बिल्कुल इस तरह की... प्रेजेंटेशन की... उम्मीद नहीं थी.... और जब मैं उसे बधाई देना चाहा... तब वह असेंबली हॉल से जा चुकी थी.... यही मेरे चिंता का कारण है... अब अगर उससे मुलाकात हुई... तो मैं क्या कहूँगा और उसका रिएक्शन क्या होगी... अच्छा राजु... तुझे क्या लगता है...

सब राजु की ओर देखने लगते हैं l क्यूँकी पुरे डिस्कशन में राजु सबको सुन तो रहा था पर कोई कमेंट नहीं किया था अब तक l जैसे ही राजु को एहसास होता है कि सब उसे देख रहे हैं

राजु - देख रॉकी... तु जिस लड़की की बात कर रहा है... वह खुद पिंजरे में कैद बुलबुल की जैसी है... वह राजगड़ के स्कुल में क्लास अटेंड करने कभी कभी ही आती थी.... चाहे क्लास हो या एक्जाम... उसके लिए सेपरेट अरेंजमेंट होता था.... वह हम सबसे अलग बैठती थी.... उसके कोई दोस्त नहीं थे.... फ़िर इंटर के तीन साल बाद वह ग्रैजुएशन करने आई है... यहीँ पर उसने पहली बार दोस्त बनाए हैं.... यहाँ इस कॉलेज में उसके साथ जो भी हो रहा है... पहली बार हो रहा है.... इसलिए इस नए हालत से खुदको एडजस्ट करने की कोशिश कर रही है.... उसने ना तो कभी ऐसी भीड़ देखी थी... और ना ही ऐसे कभी किसीके सामने कोई प्रेजेंटेशन दी थी... इसलिए वह जितनी शॉक्ड थी... उतनी ही नर्वस भी.... अब इस वक़्त उसके मन में क्या चल रहा होगा... यह कहना मुश्किल है... सच कहूँ तो... मुझे अब डर लगने लगा है... हमने अब तक जो किया या कर रहे हैं.... क्या वह सही है... कहीं हम उसके दिल में अपने रॉकी के लिए फिलिंग्स जगाने के चक्कर में.... आग से तो नहीं खेल रहे हैं....
रॉकी - हो गया बेड़ा गर्क मेरा... साला कितना लंबा लेक्चर झाड़ दिया... कम्बख्त खुद तो डरा हुआ है... हमको भी डरा रहा है....
आशीष - हाँ यार... हम लोग इतना सोच समझ कर... प्लान एक्जिक्युट कर रहे हैं... कोई गलती हुई नहीं है अब तक... चुक हुई नहीं है अब तक...
रवि - (सबको) चुप रहो सब... (धीरे से) यह कॉलेज है... ऐसी डिस्कशन हम बाहर जाके कर सकते हैं... वह नंदिनी इसी तरफ आ रही है... चुप रहो सब...

सब गार्डन की एंट्रेंस की ओर देखते हैं l नंदिनी वहाँ से इन्हीं के तरफ आ रही है l सब अंदर ही अंदर डरने लगते हैं l नंदिनी सीधे आ कर इन लोगों के सामने खड़ी हो जाती है l

नंदिनी - हाय... हैलो बॉय्स...
सभी - हाय... हैलो...
नंदिनी - (रॉकी से) थैंक्स...
रॉकी - फॉर व्हाट...
नंदिनी - रॉकी... पहली बात... तुम वाकई हीरो हो... फायर एक्सीडेंट में तुमने बनानी को बचाया... टॉक ऑफ द कॉलेज ही नहीं टॉक ऑफ द टाउन हो गए... बेशक हमारे कालेज के सिक्युरिटी अलर्ट पर बहुत नेगेटिव कमेंट्स आए... पर तुमने लास्ट वीक जो रेडियो ब्रॉडकास्ट प्रोग्राम बनाया... जिसके वजह से... हमारे कालेज के लिए अब पॉजिटिव कमेंट्स आ रहे हैं... इसके लिए थैंक्स...
रॉकी - इ... इट्स ओके... अज अ जनरल सेक्रेटरी यह मेरा ड्युटी था... पर यह सब...
नंदिनी - ओ हाँ... अभी अभी मैं प्रिन्सिपल ऑफिस से आ रही हूँ... उन्होंने जितनी एप्रीसिएशन मेरी की... उतनी ही तुम्हारी भी की... वाकई यु आर अ हीरो...
रॉकी - (मुस्कराने की कोशिश करते हुए) थ.. थैंक्स...
नंदिनी - (हाथ को आगे बढ़ा कर) फ्रेंड्स...
रॉकी - (थरथराते हुए हाथ से नंदिनी की हाथ पकड़ कर) फ्रेंड्स...
नंदिनी - सो रॉकी... अगर बुरा ना मानों तो मैं तुम्हें एक फ्रेंडशिप गिफ्ट देना चाहती हूँ...
रॉकी - (हैरान व खुशी के साथ अपने दोस्तों को देखते हुए) जरूर... आई डोंट माइंड...

नंदिनी अपनी पर्स से एक डिजिटल घड़ी निकालती है और रॉकी की बाएं हाथ को हाथ में लेकर बांध देती है l

नंदिनी - अगर फ्रेंडशिप बैंड होता तो... वह बैंड बांध देती... पर हमारी फ्रेंडशिप बहुत वैल्युवल है तो सोचा बैंड भी वैल्युवल होनी चाहिए.... इसलिए मैंने तुम्हारे लिए यह खरीदा है....

नंदिनी के घड़ी पहनाने के बाद रॉकी उस घड़ी को गौर से देखता है l

नंदिनी - यह वेयर हेल्थ वॉच है... फ़िलहाल अभी इसके स्क्रीन पर ब्लू टूथ की डिस्पले ही दिखेगा... जैसे ही तुम अपने मोबाइल फोन को ब्लू टूथ के जरिए इससे कनेक्ट करोगे... तुम्हारे मोबाइल पर एक लिंक आएगा... फिर ऐप स्टोर से इसका ऐप डाउन लोड कर लेना... और उसके हिसाब से प्रोग्राम कर लेना... यह तुम्हारा हेल्थ गार्ड करेगा... हार्ट बीट.. पल्स रेट वगैरह सब बतायेगा... तुम्हारा कैलोरी बर्न के बारे में जानकारी देगा... और तुम्हारे शरीर को पानी कब चाहिए... यह भी अलर्ट कर देगा....
रॉकी - (घड़ी को देखते हुए) वाव...
नंदिनी - ह्म्म्म्म और भी फीचर्स हैं... जितना डीप जाओगे... उतना जान जाओगे...
रॉकी - थैंक्स... नंदिनी... पर इतनी कॉस्टली गिफ्ट...
नंदिनी - तुम दोस्त ही इतने क़ीमती हो... तुम्हारे दोस्ती के आगे... यह मामूली ही है....
रॉकी - (उस डिजिटल घड़ी को देखता ही रहता है)
नंदिनी - और हाँ यह वॉटर प्रूफ़ भी है... चाहो तो चौबीसों घंटे इसे पहन सकते हो... (मुस्कराते हुए) मुझे बहुत खुशी भी होगी... अगर तुम इसे हरदम पहने रहो तो... ओके गॅयस... मैं क्लास जा रही हूँ... एंजॉय योर डे....

इतना कह कर नंदिनी वहाँ से चली जाती है l उसके आँखों से ओझल होते ही सभी रॉकी पर टुट पड़ते हैं l

आशिष - अबे... लौंडे ने मैदान मार लिया रे...
सुशील - हाँ यार... चल आज पार्टी दे दे यार... मैं तो बोलता हूँ... आज रात भर पार्टी करते हैं... साले सिर्फ तीन स्टेप पर ही मंजिल मिल गई...
रवि - अपनी हीरो की तो लॉटरी लग गई

रॉकी शर्माने लगता है l सभी उसके इर्द गिर्द हैइ हैइ चिल्लाते हुए घूमने लगते हैं l

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वीर ऑफिस में अपने कैबिन में पहुँचता है और अपने कुर्सी पर बैठ जाता है l वह अपनी चारो तरफ नजर घुमाने लगता है l उसे कहीं पर भी अनु नहीं दिखती है l वह अपना मोबाइल फोन निकाल कर अनु की नंबर निकाल कर डायल करने को होता है कि उसका फोन बजने लगता है l वीर देखता है महांती का फोन है l

वीर - हाँ... महांती... बोलो क्या हुआ है...
महांती - राजकुमार जी... मैं कब से युवराज जी को फोन लगा रहा हूँ... पर वह नहीं उठा रहे हैं....
वीर - अगर वह नहीं उठा रहे हैं... तो हम क्या करें...
महांती - आपने जैसा कहा था... हमने वैसा ही तो किया... पर एज ESS डायरेक्टर... उन्हें मैं रिपोर्ट करना चाहता था.... पर वह नहीं मिल रहे हैं...
वीर - तो हमे बताओ... हम जब युवराज जी से मिलेंगे... तो उनको बता देंगे...
महांती - ठीक है... उन्हें बता दीजिए... केस नाइंटी पर्सेंट सॉल्व हो गया है... और मैं कल पहुंच कर बाकी रिपोर्ट प्रेजेंट करूंगा....
वीर - वाव... मतलब... हमारे हाथ कुछ मगरमच्छ लगे हैं...
महांती - मगरमच्छ तो नहीं... पर उस मगरमच्छ के साथ देने वाले सब हमारे रेडार पर आ गए हैं...
वीर - गुड... ठीक है... हम युवराज को इंफॉर्म कर देंगे...
महांती - थैंक्यू... राज कुमार... थ.. (वीर फोन काट देता है)

वीर - साला कमीना कबाब में हड्डी... हमेशा रॉंग टाइम पर फोन करता है...

फिर अनु की नंबर निकाल कर डायल करता है l फोन पर रिंग टोन सुनाई देने लगता है l कुछ देर बाद फोन कट जाता है l वीर फिर से डायल करता है l फोन बजने लगता है पर इस बार भी अनु फोन नहीं उठाती है l वीर गुस्से से फोन काट कर अपने रिवॉल्वींग चेयर पर इधर उधर होने लगता है l फिर खीजे हुए मन से विक्रम की कैबिन की ओर जाने लगता है l विक्रम के कैबिन के सामने पहुँचकर दरवाजे पर धक्का देता है l दरवाज़ा नहीं खुलता है तो वह दरवाजे पर दस्तक देता है l तभी वहाँ पर एक गार्ड आता है

गार्ड - राजकुमार जी... युवराज अपने कैबिन में नहीं हैं...
वीर - क्यूँ... अभी तक ऑफिस नहीं गए हैं क्या...
गार्ड - वह कल रात से ही ऑफिस में हैं... शायद घर नहीं गए हैं...
वीर - (हैरान हो कर) क्या... (फिर संभल कर) ओके.. ओके... अभी कहाँ हैं वह...
गार्ड - जी अभी ट्रेनिंग ग्राउंड के पास... ट्रेनिंग हॉल में...
वीर - अच्छा... ओके... अब जाओ... तुम...

वीर मन ही मन सोचने लगता है - क्या... युवराज कल रात भर घर नहीं गए... यह क्या माजरा है... घर पर कोई जानता भी है या नहीं... क्या युवराणी जी को पता है... शायद पता होगा.... पर युवराज और उनके बीच तो बातचीत बंद है.... पता नहीं शायद कबसे... हर रात तो वह युवराज जी को देखने के बाद अपने कमरे में सोने जाते हैं... तो क्या उनको कोई चिंता नहीं हुआ...

ऐसे सोचते सोचते वीर ट्रेनिंग हॉल में पहुँचता है l वहाँ देखता है विक्रम एक चेयर पर पसीने से लथपथ बैठा हुआ है l वीर समझ जाता है विक्रम ने ज़रूर जम कर एक्सर्साइज और प्रैक्टिस की है l वह एक टवेल उठा कर विक्रम के पास पहुंचता है l वीर उसके पास खड़ा है यह विक्रम को एहसास हो जाता है वह वीर की ओर देखता है और वीर के हाथों से टवेल ले कर अपना चेहरा पोंछता है I

विक्रम - कहिए राजकुमार... कैसे आना हुआ...
वीर - वह... महांती का फोन आया था... आपने नहीं उठाया तो उसने मुझे फोन किया...
विक्रम - (अपना फोन निकाल कर मिस कॉल चेक करता है) ह्म्म्म्म... मैंने देखा नहीं था...
वीर - आपके मुहँ से... यह हम के वजाए मैं सुनना... अच्छा नहीं लगता...
विक्रम - आदत डाल लीजिए...
वीर - कभी सोचा है... आप राजा साहब जी के सामने कैसे जाएंगे... क्या उनको समझा पाएंगे कि आपने अपनी मूंछें क्यूँ मुंडवा लिया... या... आप हम के वजाए... मैं क्यूँ कह रहे हैं....
विक्रम - (चुप रहता है)
वीर - आप कल घर भी नहीं गए...
विक्रम - उसे घर क्यूँ कह रहे हैं... राजकुमार... उसे मैंने बड़े चाव से बनाया था ... और उसका नाम द हैल रखा था... मतलब नर्क... अब सचमुच वह नर्क लगने लगा है... क्या करें... अपनी ही करनी है... नर्क भोग रहे हैं....
वीर - आप... ऐसे क्यूँ बात कर रहे हैं...
विक्रम - (एक नजर वीर पर डालता है और) जानते हैं... राजकुमार... आप मुझसे... बातों से, सोच में और ज़ज्बात समझने में... बहुत आगे हैं... कभी कभी मुझे आपसे जलन होती है...
वीर - यह... यह आप कैसी... बहकी बहकी बातेँ कर रहे हैं....
विक्रम - हाँ... राजकुमारजी... हाँ... आपकी हर सोच हमेशा युनीडाइरेक्शनल होता है... फोकस्ड रहता है... पर मैं... मैं हमेशा खुद को दो राहे पर पाता रहा हूँ... खुद को भटका हुआ महसुस करता हूँ...
वीर - युवराज जी... प्लीज आप ऐसे बातेँ मत कीजिए.... आप हमेशा मेरे आईडल रहे हैं... मैं तो आपको फॉलो कर रहा हूँ...
विक्रम - (दर्द भरे आवाज़ में) मत कीजिए फॉलो मुझे... आई एम अ लुज़र...
वीर - प्लीज...
विक्रम - ना दिल जीत पाया... ना दुनिया...
वीर - युवराज जी.... आप को क्या हो गया है... आप मुझे बताइए क्या हुआ था उस दिन... किस तरह से तोड़ कर रख दिया है आपको... मैं... मैं उसे नहीं छोड़ूंगा...
विक्रम - (चीख कर) नहीं... (नॉर्मल होते हुए) नहीं... वह मेरा है... उसने मेरे शख्सियत से क्षेत्रपाल को नोंच फेंका है... मेरी वज़ूद को झिंझोडा है... उसे मैं ही निपटुंगा....
वीर - ऐसा क्यूँ... युवराज... ऐसा क्यूँ...

विक्रम वीर को ओरायन मॉल के पार्किंग एरिया में हुए पुरे वाक्या का विवरण देता है, सिवाय नाम के l वीर सब सुनने के बाद कुछ सोच में पड़ जाता है l

वीर - ओ... युवराणी जी का उस शख्स के आगे हाथ जोड़ना...(चुप हो जाता है)
विक्रम - हूँ... जानते हैं राजकुमार... एक दिन मैंने फैसला किया था... मैं अपने लिए कुछ नहीं करूँगा... सिर्फ़ वही करूँगा... जिससे भैरव सिंह क्षेत्रपाल जी के नाम का सिक्का चले... इन छह सालों में... मैंने वही किया... पर उस शख्स ने... क्षेत्रपाल के साये में दबे... मेरे वज़ूद को ललकारा है... इसलिए जब तक उसे विक्रम ज़वाब नहीं दे देता... तब तक विक्रम को क्षेत्रपाल नाम ढोने का हक भी नहीं है...
वीर - (उसे हैरानी से देखता रहता है, क्यूंकि हर लफ्ज़ के साथ साथ विक्रम के चेहरे पर भाव गम्भीर होता जा रहा था)
विक्रम - इसीलिए मैं यहीँ अपने वज़ूद को तलाश रहा हूँ... तराश रहा हूँ... अब मेरी सोच किसी दोराहे पर नहीं है... मुझे बस... उस शख्स को मुहँ तोड़ ज़वाब देना है...
वीर - पर अब आप घर कब तक नहीं जाएंगे...
विक्रम - (वीर के तरफ देख कर हल्की सी हँसी हँसता है) आपको कब मालुम हुआ... मैं घर नहीं गया हूँ...
वीर - (अपना सिर झुका लेता है) य... यहीं... थोड़ी देर पहले...
विक्रम - हा हा हा हा... देखा वह घर नहीं है... वह नर्क है... द हैल... जिसे मैंने बनाया है... वहाँ मेरे खुन के रिश्ते में लोग रहते हैं... और दिल के रिश्ते में कोई रहती है... पर किसीको को खबर नहीं थी...(विक्रम के आवाज में दर्द निकल आता है) किसीको इंतजार नहीं थी....
वीर - (कुछ कह नहीं पाता)
विक्रम - अब आप जाएं राजकुमार.... अब आप जाएं... (ना चाहते हुए भी वीर वहाँ से उठ कर जाने लगता है) बस एक फेवर कीजिएगा... (वीर पीछे मुड़ कर देखता है) कुछ दिनों के लिए ESS को पुरी तरह से आप ही संभालीये...

वीर अपने दिल में एक भारी पन महसुस करने लगता है l भारी मन लिए अपने कैबिन में पहुँचता है और अपने चेयर पर बैठ कर विक्रम की कहे बातों पर सोचने लगता है l विक्रम की बातों को सोचते सोचते वह अपने बचपन में पहुँच जाता है l

फ्लैशबैक

बचपन में एक दिन
अपनी गुड़िया सी नन्ही बहन के साथ खेल रहा था तभी पिनाक सिंह उसके पास आकर

पिनाक - (ऊंची आवाज़ में) राज कुमार...
वीर - जी.. जी छोटे राजा जी....
पिनाक - अब आपका खेलने का समय खतम हो चुका है.... पढ़ाई के लिए आपको युवराज जी के पास कलकत्ता जाना पड़ेगा...
वीर - क्या रुप भी हमारे साथ जाएगी...
पिनाक - (ऊंची आवाज़ में) खबरदार... (ऊंची आवाज़ से नन्ही रुप रोने लगती है) हमारे वंश में लड़कीयों को पढ़ने लिखने की इजाज़त नहीं है... और यह क्या रुप कह रहे हैं...
वीर - हमारी छोटी बहन है.... तो हम क्या कहें...
पिनाक - राजकुमारी कहेंगे... राजवंशीयों के बीच रिश्ते नहीं ओहदे होते हैं... और जब कलकत्ता जायेंगे वहीँ पर... युवराज जी को युवराज ही कहेंगे... भाई या भैया नहीं...

फ्लैशबैक खतम

वीर को विक्रम के भीतर का दर्द महसूस होने लगता है l वह अपने इसी सोच में खोया हुआ है तभी उसे एहसास होता है कि उसके सामने बैठे दो बड़ी बड़ी हिरनी जैसी आँखे घूर रही हैं l वह उन आँखों को देखने लगता है l जैसे ही वह आँखे झपकने लगती हैं वीर के होठों पर हल्की सी मुस्कराहट आकर ठहर जाता है l

अनु - अहेम... अहेम...
वीर - (फिर भी उसकी आंखों को निहार रहा है)
अनु - (धीरे से) राज कुमार जी...
वीर - (कोई जवाब नहीं देता)
अनु - राजकुमार जी (थोड़ी ऊंची आवाज में)
वीर - (ध्यान टुटता है) हूँ.. हाँ... क्या... क्या हुआ..
अनु - आप मुझसे गुस्सा हैं ना...
वीर - क्यूँ...
अनु - (झिझकते हुए) वह मैंने कल... (जल्दी जल्दी) मुझसे फोन कट गया...
वीर - हूँ... ठीक है...
अनु - (धीरे से) आपको बुरा लगा...
वीर - हाँ... नहीं... नहीं... (थोड़ी देर चुप रहने के बाद) अनु...
अनु - जी...
वीर - अपनी बचपन के बारे में कुछ कहो...
अनु - (हैरान हो कर) जी...
वीर - मेरा मतलब... तुम्हारा बचपन कैसा था... अनु...
अनु - (चेहरे पर एक भोली सी मुस्कान लिए) अपना बचपन किसे अच्छा नहीं लगता राजकुमार जी... वह बचपन जहां हर जिद पुरी होती थी... रोने पर बापू मुझे बुड्ढी के बाल लाकर देते थे... जब मेला लगता था... अपनी कंधे पर बिठा कर मेला दिखाते थे... (फिर चहकते हुए) बचपन में पता नहीं कितने खेल खेलते थे... घो घो राणी... लुका छुपी... बहु चोरी.... क्या बताऊँ कितना मजा आता था... हमारे पास वाले गली में एक आम का बाग होता था... जब जब आम चोरी करने जाते थे... बड़ा मजा आता था... कभी कभी पकड़े भी जाते थे... फिर भी आम चोरी नहीं छोड़ा था... पर ज्यों ज्यों उम्र बढ़ती गई... दादी ने मेरा बाहर जाना और सहेलियों के साथ खेलने पर पाबंदी लगा दी...
वीर - वाकई... तुम्हारा बचपन लाजवाब था... सबकी बचपन ऐसी नहीं होती... (कह कर वीर चुप हो जाता है)
अनु - (झिझकते हुए) आ.. आप.. का बचपन...
वीर - नहीं अनु... हमारी जैसी बचपन किसीको नसीब ना हो... सब-कुछ आँखों के सामने होता है... हाथ की पहुँच में होते हुए भी... कुछ हासिल नहीं होता है... बड़े बदनसीब होते हैं हम जैसे...
अनु - (हैरानी से आँखे फैल जाती है) आ... आप तो... राजकुमार हैं ना...
वीर - हाँ अनु... यही अभिशाप लेकर हम जी रहे हैं....

फिर कुछ देर तक चुप्पी छा जाती है l वीर और अनु एक दुसरे को देखने लगते हैं l

वीर - तुम कब आई अनु...
अनु - (शर्मा जाती है) वह आई तो थी... पर...
वीर - पर... आज मेरी फोन भी नहीं उठाया...
अनु - वह आ.. आपके सामने आ... आने से मुझे शर्म आ रही थी...
वीर - क्यूँ... मैंने क्या किया...
अनु - (गाल लाल हो जाती हैं, अपना सिर झुका लेती है)

वीर को याद आता है अनु से उसके क्या कहा था l वीर के चेहरे पर फ़िर से मुस्कराहट आ जाती है l

वीर - अनु....
अनु - (अपना सिर झुकाए) हूँ...
वीर - अच्छा मान लो... फिर से बचपन जीने का मौका मिला... तो क्या करोगी...
अनु - (अपना चेहरा उठाकर चहकते हुए) तब तो मजा ही आ जाए.. मैं तो पहले किसी झूले में झूला झूलती... फ़िर समंदर के किनारे रेत की घर बनाती... फिर... बुड्ढी के बाल ख़ुद बना कर खाती.... फिर से आम चोरी करती.... पता नहीं क्या क्या करती....
वीर - (अनु की बातों को गौर से सुनता रहता है)
अनु - (वीर को अपने तरफ देखते हुए पाती है) आप ऐसे क्या देख रहे हैं...
वीर - तुममें अभी भी बहुत बचपना है... लगता ही नहीं के तुम बड़ी हो गई हो... बस शरीर से बड़ी दिखती हो... और जब जब शर्माती हो... तभी शायद तुमको एहसास होता है... की तुम अब बच्ची नहीं रही हो...
अनु - (फ़िर से शर्मा कर अपना सिर झुका लेती है, और चोरी चोरी वीर को देखने लगती है)
वीर - अच्छा अनु...
अनु - हूँ...
वीर - जब तुम अपनी बचपन को दोबारा जीना चाहोगी... मुझसे जरूर कहना...
अनु - (हैरानी से) क्यूँ... मतलब कैसे...
वीर - मैं... तुम्हारे साथ... एक दिन के लिए... अपना खोया हुआ बचपन जीना चाहता हूँ... वह बचपन जिसकी ख्वाहिश तो थी पर.... कभी जी नहीं पाया...
अनु - (हैरान हो कर) आप मेरे साथ... हम दोस्त भी नहीं हैं...
वीर - तो बना लो ना...
अनु - आप लड़के हैं... और मैं लड़की... हमारे बीच दोस्ती थोड़ी ना हो सकती है...
वीर - क्यूँ... क्यूँ नहीं हो सकती...
अनु - ह... हम... बच्चे नहीं हैं...
वीर - बच्चे होते... तो हो सकते थे...
अनु - हाँ...
वीर - मैं वही तो कह रहा हूँ... बस एक दिन... तुम्हरी ख्वाहिशों की तरह... तुम्हारे साथ बचपन जीना चाहता हूँ...
अनु - वह सब तो मैं... अपनी किसी सहेली के साथ.... (चुप हो जाती है)
वीर - तो एक काम करो... मुझे अपना सहेला बना दो...
अनु - जी... सहेला मतलब...
वीर - लड़की दोस्त हो.. तो सहेली होती है.... और लड़का दोस्त हो... तो सहेला... क्यूँ है ना...
अनु - (हैरान हो कर) ऐसा थोडे ना होता है...
वीर - फिर कैसा होता है...
अनु - (कुछ नहीं कहती, बिल्कुल चुप हो जाती है)
वीर - अनु.... (वैसे ही सिर झुकाए बैठी रहती है) कब जाना है... कहाँ जाना है... क्या क्या करना है... यह मैं पुरी तरह से तुम पर छोड़ता हूँ... यूँ समझ लो... यह मेरी एक ऐसी ख्वाहिश है... जो मैं जीना चाहता हूँ... भले ही तुम मेरी पर्सनल सेक्रेटरी हो... पर यह बात मैं पुरी तरह से तुम पर छोड़ता हूँ... मुझे बस एक दिन एक बच्चा बन कर बचपन को जीना है...
Bahut hi shaandar update diya hai Kala Nag bhai....
Nice and beautiful update....
 

Rajesh

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👉सत्तावनवां अपडेट
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XXXXX कॉलेज
बुधवार

कॉलेज अभी शुरू नहीं हुआ है l अभी तक कोई नहीं आया है l पर असेंबली हॉल के स्टेज पर रॉकी अपने दोस्तों के साथ लकी ड्रॉ निकालने वाली ग्लोब नुमा जालीदार बॉल को चेक कर रहा है l

रॉकी - सुशील... क्या यह अब ठीक है...
सुशील - (खीज कर) अबे ऑए.. मजनू की छटी औलाद... सुबह सुबह हमारी नींद खराब कर यहाँ लेकर आया है... कमीने हमें कुली की तरह लगया हुआ है... साले कमीने आशिकी तेरी... पर नींद और चैन हमारी खराब है....
रॉकी - तो क्या हुआ कमीने... बदले में खाने पीने की पार्टी भी तो देता हूँ.... वह भी अपने होटल के रॉयल शूट में...
सुशील - उसकी कीमत भी तो वसूल करता है... हमे गधे की तरह दौड़ा कर काम करवा कर....
रॉकी - ठीक है... ठीक है.. वक़्त जाया ना करो... बोलो कहाँ तक यह प्लान वर्क आउट करेगा...
सुशील - अबे जब प्लान आशीष का है... तो काम उससे ही लेना चाहिए था...
आशीष - ऑए... कब से बड़बड़ कर रहा है... काम पुरा कर अपना...
रवि - हाँ यार सुबह से लगा हुआ है... पर उखड़ा उससे कुछ भी नहीं...
सुशील - अबे तुम सब काओं काओं बंद करो... लो यह अब हो गया...
सब - क्या... हो गया...
सुशील - हाँ... हो गया..
रॉकी - चलो डेमो दिखाओ...

सुशील - यह देखो... इसमें कुछ काग़ज़ के चिट डालेंगे.... ऐसे (काग़ज़ के चिट डालते हुए) अब मैं स्विच ऑन करता हूँ...

स्विच ऑन करते ही वह ग्लोब आढ़ा टेढ़ा सीधा उल्टा हो कर घूमने लगता है फिर उसमें से एक चिट बाहर निकालता है l रॉकी वह चिट उठा कर देखता है उसमें नंदिनी का नाम लिखा हुआ है l यह देख कर सभी ताली बजाते हैं l

आशीष - फ़िर भी एक लोचा है...
सब - क्या...
आशीष - बीएससी फर्स्ट ईयर बैच के स्टूडेंट्स के बीच यह कंपटीशन है... क्या सभी अपना नाम चिट पर लिख कर डालेंगे...
रवी - हाँ.. यह एक पॉइंट है...
रॉकी - ठीक है... एक तरकीब लगाऊंगा... प्रिन्सिपल से करवाऊंगा...
राजु - क्या तेरा तरकीब... काम करेगा... वह रूप नंदिनी सिंह क्षेत्रपाल है...
रॉकी - मुझे तो लगता है... जरूर करेगी... पहले से ही हम जानते हैं... वह अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश में है... इसलिए मेरा दिल कहता है... वह ज़रूर करेगी...
रवि - लो कर लो बात... दिल कह रहा है इसका...
आशीष - हाँ उसके दिल के हिसाब से चलते हैं... आखिर यह तो मानना ही पड़ेगा... लड़की अपने हीरो से अभी अभी इम्प्रेस तो हुई है...
सब - ह्म्म्म्म... तो फिर ठीक है...
रॉकी - कोई दुसरा पॉइंट भी है क्या...
आशीष - हाँ... वह खुद को रूप कहलाना पसंद नहीं करती... तो उसकी चिट में वह अपना क्या नाम लिखेगी... रूप नंदिनी.. या सिर्फ़ नंदिनी...
रवि - वह जो भी लिखे... नाम तो उसका ही आना है ना...
सुशील - लो लग गए लौड़े.... अबे तो अब तक मैं क्या यहाँ झक् मार रहा था... (रॉकी के तरफ देख कर) आशीष सही बोल रहा है हीरो... लड़की पहले ही दिन से अपने नाम पर सबको कंफ्यूज कर रखा है...
रॉकी - हाँ यह भी पॉइंट है...
आशीष - और एक बात... चिट निकलने के बाद... अगर लड़की ने यह कहा कि... चिट उसकी नहीं है... तो...
रॉकी - ह्म्म्म्म... फ़िर...
राजु - फ़िर क्या... उसका भाई वीर सिंह और विक्रम सिंह... हमारी ही हाथों से... हमारी मैयत उठवाएंगे...
रॉकी - हम्म्म....
सभी - देख रॉकी... हम कहीं जोश जोश में... लोचा कर गए... तो लेने के देने पड़ जाएंगे...
रॉकी - ठीक है... देखो अपना सिस्टम तैयार है... बाकी उन लड़कियों की बैच.... कैसे इनवल्व होगी... मैं प्रिन्सिपल से मिलकर कोई रास्ता बनाता हूँ....

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ESS ऑफिस

वीर अपनी कैबिन में चहल कदम कर रहा है l उसे एक कोने से दुसरे कोने तक चहल कदम करते हुए अनु अपने दाएं हाथ की नाखुन को दांतों तले दबा कर देख रही है I वीर अपनी दाएं हाथ की मुट्ठी को बाएं हाथ की हथेली पर मारते हुए घूमना शुरू कर देता है l यह देख कर अनु घबराते हुए अपनी वैनिटी पर्स से स्माइली बॉल्स झट से निकाल कर वीर को देखने लगती है l जब वीर उसे नहीं देखता तो धीरे से अनु वीर को आवाज देती है

अनु - राज कुमार जी... (वीर नहीं सुनता) अहेम... अहेम... (वीर फिर भी नहीं सुनता) राजकुमार जी... (थोड़ी ऊँची आवाज़ में)
वीर - (अनु की ओर देखते हुए) क्या हुआ अनु जी...
अनु - (रुक रुक कर) वह.. आप... कुछ... त.. तनाव में दिख रहे हैं... (बॉल दिखा कर) यह.. यह लीजिए...
वीर - (उसे देखने लगता है, क्या कहे उसे कुछ समझ में नहीं आता) हूँ... (बस इतना ही कह पाता है)
अनु - लीजिए ना...
वीर - (थोड़ा मुस्कराते हुए) अनु.. जी.. मैं एक दिन बॉल पकड़ुंगा... पर अभी टाइम नहीं आया है... जब आएगा... जमके पकड़ुंगा... कसके पकड़ुंगा और दबाके पकड़ुंगा.... वादा रहा... पर अब मैं कुछ और सोच रहा हूँ...
अनु - क्या.. आप और क्या सोच रहे हैं...
वीर - मैं यह सोच रहा हूँ... की कौनसा भेष बदलुं... और कितने बजे जाऊँ... सब को चेक करने के लिए...
अनु - (अपना सिर हिलाते हुए) ओ... ह्म्म्म्म...

तभी टेबल पर रखी वीर की मोबाइल बजने लगती है l अनु जाती है और मोबाइल फोन लाकर वीर को देती है l

वीर - अरे अनु जी... आप हमारी पीए हैं... आप रीसीव लीजिए... और बात कीजिए... पूछिए कौन है... क्या काम है... सब समझने के बाद... हमे दीजिए...
अनु - जी... (तब तक रिंग बंद हो जाती है) ओह... लगता है फोन कट गया...
वीर - कोई नहीं... मोबाइल पर नाम दिखा तो होगा ना...
अनु - हाँ... महांती कमीना... ऐसा कुछ लिखा था...
वीर - (फौरन अनु की हाथ से मोबाइल ले लेता है) देखो अनु... अब मैं जो कहूँ... उसे ध्यान से सुनना और याद रखना... महांती, युवराज और छोटे राजा नाम दिखे तो सीधे फोन को मुझे दे देना... बाकी जिसकी भी आए... तो तुम ही उठाना... बात करना... समझना और मुझे समझा कर दे देना... समझी...

अनु अपना सिर हिला कर हाँ कहती है, फोन फिर से बजने लगती है, इसबार भी डिस्प्ले में महांती कमीना दिखता है l अनु वीर को मोबाइल बढ़ा देती है l

वीर - (मोबाइल लेते हुए) गुड... (महांती का कॉल उठाते हुए) हाँ महांती बोल... क्या बात है...
महांती - एक बहुत बड़ी इंफॉर्मेशन हाथ लगी है... मेयर साहब... मेरा मतलब छोटे राजाजी पर आज हमला हो सकता है... युवराज जी को फोन लगा रहा हूँ पर पर वह मिल नहीं रहे हैं... वह कहाँ हैं...
वीर - हाँ वह... छोटे राजा जी के साथ पार्टी मीटिंग अटेंड करने... पुरी में स्थित पार्टी ऑफिस गए हैं... वह छोटे राजाजी के साथ हैं...
महांती - छोटे राजा जी पर हमला हो सकता है... उन लोगों ने स्पॉट देख ली है... रूट पर वह लोग थोड़े कंफ्यूज हैं... यह बात युवराज जी का जानना जरूरी है...
वीर - ठीक है... वह लोग पार्टी मीटिंग में होंगे... इसलिए उनके फोन शायद रीसेप्शन में डिपोजिट होंगे... मैं मैसेज किए देता हूँ... आप भी कर कीजिए...
महांती - क्या हम पार्टी ऑफिस में मैसेज कर दें...
वीर - नहीं... नहीं हो सकता है... कोई वहाँ पर उनकी रेकी कर रहा हो... मैं मैसेज कर देता हूँ... और कोशिश करता हूँ... वहाँ मीटिंग में पहुंचने की...
महांती - हाँ यह बढ़िया है... पर जल्दबाजी में मत जाइएगा... हो सकता है.... आपकी जल्दबाजी देख कर वह अपना प्लान बदल दें... एक काम लीजिए... आप पूरी कनाल रोड पर जाइए.... मैं ओल्ड भुवनेश्वर रोड से पूरी जाता हूँ...
वीर - ठीक है...(फोन काट देता है, और अनु को देखते हुए) तुम यहाँ पर रुको... और फोन वगैरह आए तो अटेंड करो... ठीक है...
अनु - जी ठीक है...

वीर वहाँ से हल्दी में निकल जाता है l

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XXX पार्टी ऑफिस
मीटिंग खतम हो जाता है l उसके बाद पिनाक सिंह और विक्रम सिंह रीसेप्शन में जमा किए हुए अपने फोन वापस लेते हैं l विक्रम अपने फोन पर देखता है महांती और वीर के बहुत से मिस कॉल हैं l विक्रम महांती को फोन लगाता है l

महांती - (फोन उठाकर) हैलो युवराज जी...
विक्रम - हाँ महांती... इतने मिस कॉल...
महांती - सर... उन्होंने... अपना स्पॉट चुन लिया है...
विक्रम - ह्म्म्म्म... एक मिनट... पहले मैं गाड़ी में पहुँच जाऊँ... (विक्रम अपनी गाड़ी में आ जाता है) हाँ अब बोलो...
महांती - मैं यह कह रहा था... उन लोगों ने स्पॉट फिक्स कर लिया है...
विक्रम - कौनसे रूट पर...
महांती - वे लोग दो रूट पर... घात लगाएंगे... पहला पुरी कनाल रोड पर... दुसरी भुवनेश्वर पुरी रोड पर...
विक्रम - मतलब... छोटे राजा जी के पुरी से आते वक़्त... हमला हो सकता है...(मोबाइल पर वीर की कॉल आ रहा है) यह राजकुमार भी बार बार फोन कर रहे हैं...
महांती - वह आप ही के पास जा रहे हैं... मैं भी ऑन द रोड हूँ...
विक्रम - ठीक है... मैं उन्हें भी कंफेरेंश में ले लेता हूँ.... (वीर को कंफेरेंश में ऐड करने के बाद) हाँ राजकुमार जी...
वीर - क्या आपकी महांती से बात हो गई...
विक्रम - हाँ हो रहा है... और आप अभी कांफ्रेंस में हैं...
वीर - ठीक है... फिर आप छोटे राजा जी को... कांफ्रेंस में ले लीजिए... हम भी अपना प्लान सेट करते हैं...
विक्रम - ओके... लाइन पर रहीए... (विक्रम पिनाक को कंफेरेंश में लेने की कोशिश करता है पर उसका फोन बिजी आता है) शीट...
महांती और वीर - क्या हुआ...
विक्रम - उनका फोन बिजी आ रहा है...
महांती - ठीक है... आप तो उनके साथ हैं ना...
विक्रम - हाँ.. पर दुसरे गाड़ी में...
महांती - ठीक है... अब हमें मालूम है क्या होने वाला है... वह लोग हमारे सर्विलांस में हैं... अब बताइए हमे क्या करना है...
विक्रम - महांती... हम उन्हें इसबार फैल करते हैं....
वीर - फैल करते हैं मतलब...
विक्रम - इस बार हम उन्हें नहीं दबोचेंगे... बल्कि हम रास्ता बदल देंगे...
महांती - कौनसा रास्ता लेंगे फिर...
विक्रम - पुरी रामेश्वर रोड पर... हम रामेश्वर रोड से जा कर एनएच पर निकलेंगे...
वीर - इससे फायदा...
विक्रम - हमारा दुश्मन एक घोस्ट है... वह कौन है... उसकी प्लानिंग क्या है... हम नहीं जानते... जैसा कि महांती ने पहले ही बता चुका है... वह घोस्ट, अपने ही आदमियों से भी छुपा हुआ है... उसके एक दो प्लान ऐसे फैल कर देने से... वह बौखलाएगा... बिलबिलाएगा... तब वह गलती करेगा...
महांती - तब शायद वह बाहर भी निकल सकता है...
विक्रम - हाँ...
वीर - बढ़िया... तो अब हम क्या करें...
विक्रम - एक मिनट छोटे राजा जी का कॉल आ रहा है... मैं उन्हें कांफ्रेंस में लेता हूँ... (कांफ्रेंस में लेने के बाद) छोटे राजा जी... आज आप पर दोबारा हमला होने वाला है...
पिनाक - तो चलो धर दबोच कर नर्क दिखाते हैं उन्हें...
विक्रम - नहीं छोटे राजा जी... हमे उस हराम खोर के चमचों के बारे में पता है... पर उस अदृश्य दुश्मन के बारे में नहीं... हम उसका प्लान फैल कर देते हैं...
पिनाक - नहीं ऐसा नहीं हो सकता... अगर उसे मालुम हुआ तो खिल्ली उड़ाएगा...
विक्रम - नहीं उड़ाएगा... हम एक रुटीन प्रोसिजर बना कर रूट बदलेंगे... आज उसका प्लान फैल हुआ तो... वह चिढ़ जाएगा... तब शायद कोई गलती भी करेगा... हो सकता है... उसे सामने आना पड़े...
पिनाक - ठीक है युवराज... चाहे कुछ भी हो... मुझ पर भगोड़ा का छाप लगनी नहीं चाहिए...
विक्रम - नहीं लगेगा... आप अपने ड्राइवर से कहिए... वह गाड़ी को रामेश्वर रोड पर ले जाए... और राजकुमार... आप वापस ऑफिस जाओ... महांती तुम भी पहुंचो... हम रामेश्वर रोड पर छोटे राजा जी को लेकर ऑफिस पहुँचते हैं....
दोनों - ओके...

विक्रम फोन काट देता है l पिनाक सिंह अपने ड्राइवर को रामेश्वर रोड पर ले जाने को बोलता है l ड्राइवर भी अपनी गाड़ी को रामेश्वर रोड की ओर मोड़ देता है l

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कॉलेज की कैन्टीन में छटी गैंग मस्ती कर रही है l तभी कैन्टीन की माइक पर प्रिन्सिपल की आवाज गूंजने लगती है l

प्रिन्सिपल - हैलो स्टूडेंट्स... मैं आपका प्रिन्सिपल बोल रहा हूँ... बीएससी फर्स्ट ईयर स्टूडेंट्स आप लोग तुरंत असेंबली हॉल में पहुंचे... आपके पास सिर्फ़ दस मिनट है... जो नहीं आयेंगे... उनको पनीश्मेंट दी जाएगी... सो डोंट बी लेट... बी हर्री...
बनानी - व्हाट... लो फ्रेंड्स... ब्रेक का सत्यानाश हो गया...
दीप्ति - कुछ भी हो... जाना तो पड़ेगा ही... वरना पता नहीं बुढ़उ ने क्या पनीश्मेंट सोचा होगा...
तब्बसुम - हाँ यार... बुड्ढे को सिर्फ बनानी को ही शॉक से उबार ने का प्लान बनाना चाहिए था... क्यूँ के शॉक तो उसे लगा था ना...
बनानी - अपना मुहँ बंद रख... यह मत भूलो... मेरे साथ तुम सभी भी शॉक्ड थे...
भाश्वती - पर फायदा क्या... चिट में तो किसी एक का नाम आएगा... कितना अच्छा होता ना... अगर हम सब मिलकर एफएम में टास्क पुरा करते...
इतिश्री - कमाल है... हम सब तब से चपड़ चपड़ करते जा रहे हैं... पर राजकुमारी जी हैं कि चुप्पी साधे हुए हैं...
नंदिनी - (इतिश्री की हाथ में जोर से चिकोटी काटते हुए) कमीनी अगर फिर कभी नंदिनी के वजाए...
इतिश्री - आ... आ... ह्ह्ह्... (चिल्लाने लगती है)
नंदिनी - राजकुमारी कहा तो... तेरी ऐसी कुटाई करूंगी के तुझे तेरी छटी का दुध याद आ जाएगी...(छोड़ देती है)
इतिश्री - उई माँ... (अपने हाथ को मलते हुए) डायन कहीं की... थोड़ी देर और ऐसे ही रहती तो... मांस ही बाहर आ जाती...
बनानी - ओह ओ... अब छोड़ो भी यह सब... इससे पहले कि प्रिन्सिपल दोबारा माइक पर भोंकने लगे... हमें असेंबली हॉल में पहुँच जाना चाहिए...
दीप्ति - हाँ हाँ... जल्दी चलो... देखें तो सही वहाँ होता क्या है...
नंदिनी - ठीक है.. चलो... अपनी पंचायत हम कल बिठायेंगे...
सब - हाँ हाँ चलो चलो...

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सेंट्रल जैल
लाइब्रेरी

दास एक अर्दली के साथ अंदर आता है l अर्दली के हाथ में खाने की थाली है वह विश्व के पास थाली रखते कर बाहर चला जाता है l विश्व एक नजर दास को देखता है फ़िर किताबों में घुस जाता है l

दास - विश्व... खाना खा लो यार...
विश्व - (किताबों से सिर बाहर निकाल कर) दास बाबु... जो आप कहने आए हैं... वह कह दीजिए... मैं बाद में खा लूँगा...
दास - तुम्हें कैसे मालुम हुआ... मैं कुछ कहने आया हूँ...
विश्व - रोज आप अर्दली के साथ चले जाते थे... आज आप रुक गए हैं...
दास - तकल्लुफ मत करो... तुम खाना खा लो... मैं... मैं यहाँ इंतजार कर लेता हूँ...
विश्व - दास बाबु... बात तकल्लुफ की ही है... साथ खाना खाने बैठे होते... तो बात अलग थी... मैं खाना खाऊँ और आप खड़े हो कर देखते रहें... मुझे ऐंबार्समेंट फील होगा... प्लीज... आप ही का जैल है... और मैं यहाँ कुछ ही दिनों का मेहमान हूँ...
दास - हमारे संस्कार में... मेहमान का दर्जा जानते हो ना...
विश्व - गलती हो गई... खुद को मेहमान कह गया... मुहँ से निकल गया... फिर भी... खाना बाद में हो जाएगा... आप पहले क्या कहने आए थे... यह बताइए...
दास - ओके... तुम जीते मैं हारा... (कह कर विश्व के सामने बैठ जाता है)
विश्व - अब तो कह ही दीजिए... बात क्या है...
दास - यह... आज... हमारा... आखिरी मुलाकात है...
विश्व - क्यूँ... आपका कहीं ट्रांसफ़र हो गया क्या....
दास - हाँ... मैंने पहले भी... सेनापति सर जी से मना किया था... पर उन्होंने मेरे बारे में कुछ रिपोर्ट बना कर... डीपीसी भेज दिया था...
विश्व - डीपीसी... यह डीपीसी क्या होता है...
दास - डिपार्टमेंटल प्रमोशन कमेटी...
विश्व - ओ... तो... आप प्रमोशन में जा रहे हैं...
दास - हाँ... डबल प्रमोशन... आईआईसी बन जाऊँगा... कल ही मुझे अंगुल ट्रेनिंग ऑफिस में तीन महीने ट्रेनिंग के लिए रिपोर्ट करना है... और जब ट्रेनिंग खतम होगी... पता नहीं फिर कहाँ पर पोस्टिंग होगी... फिर मिलना होगा या नहीं... इसलिए...
विश्व - ओ.. वाव... कंग्रेचुलेशन दास सर... यह तो खुशी की बात है...
दास - (चुप रहता है)
विश्व - (उसे देख कर) क्यूँ आपको यह प्रोमोशन नहीं चाहिए था क्या...
दास - नहीं ऐसी बात नहीं... मुझे यह थोड़ी देर बाद मिलता तो अच्छा लगता...
विश्व - (अपना सिर थोड़ा पीछे लेता फिर आगे कर हँसते हुए कहता है) दास बाबु... थैंक्यू... थैंक्यू वेरी मच...
दास - किस बात के लिए थैंक्यू...
विश्व - दास बाबु... आपने मुझे अपना दोस्त समझा इसलिए...
दास - (अपना सिर नीचे कर लेता है)
विश्व - सच पूछिये तो आप जैसा ईमानदार, साहसी लोग.. समाज के उन हिस्सों में होना चाहिए... जहां... लोग पुलिस के बारे में चुटकुले बनाने के वजाए...या गाली देने के वजाए.. उसकी तारीफ़ में कसीदे पढ़ें...
दास - (चुप रहता है)
विश्व - आप तो जानते हैं ना दास बाबु... सैनिकों को प्रथम पंक्ति के सुरक्षा बल कहा जाता है... क्यूंकि वह लोग देश की सीमा व अखंडता का रक्षा करते हैं... और पुलिस को द्वितीय पंक्ति के सुरक्षा बल... क्यूंकि वह आंतरिक धर्म, विश्वास व न्याय की रक्षा करते हैं... जरा सोचिए अगर राजगड़ में एक ऑफिसर आप जैसा होता... तो... आज विश्व कभी यहाँ विश्वा भाई ना होता...
दास - (चुप रहता है)
विश्व - जानते हैं... मुझे दीदी हमेशा एक बात कहा करती थी... हम जिस समाज का हिस्सा हैं... वह समाज भले ही हमें छोड़ दे... पर उस समाज को हम छोड़ नहीं सकते... खास कर तब.. जब समाज को हमारी जरूरत हो... पर यह निर्णय समाज को नहीं हमे खुद करना चाहिए...
दास - ठीक है ... ठीक है... अगर ज्यादा देर यहाँ बैठा... तो तुम्हारा भाषण बंद नहीं होगा... मैं चलता हूँ... मैं बस यह कहने आया था... की मैं कहीं भी रहूँ... किसी तरह की काम पड़ जाए... तो हिचकिचाना मत... (आवाज़ भर्रा जाता है)

बड़ी कोशिशों के बावजूद दास अपनी आँखों से आंसू नहीं रोक पाता इसलिए जल्दी से उठ कर वहाँ से जाने लगता है l विश्व अपनी जगह से उठ कर दास के बैठे हुए जगह पर जाता है l वहाँ टेबल पर कुछ आँसुओं के बूंद दिखाई देती है l विश्व उन बूँदों पर अपना हाथ फेरते हुए

विश्व - एक मिनट दास बाबु... (दास रुक जाता है) आप का मैं आभारी रहूँगा...
दास - (बिना पीछे मुड़े) वह क्यूँ...
विश्व - आप चौथे व्यक्ति हैं... जो मेरे लिए दिल से आँसू बहाए हैं...

दास ना कुछ कहता है ना ही कुछ सुनता है l बिना पीछे मुड़े बिना विश्व को देखे उस लाइब्रेरी से निकल जाता है l

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असेंबली हॉल,
स्टेज पर माइक पर प्रिन्सिपल खड़ा है और स्टेज के बीचों-बीच रॉकी एंड ग्रुप खड़े हैं l उनके सामने एक बड़ा सा ग्लोब जैसा जाली नुमा बॉल एक स्टैंड के साथ अटैच है l

प्रिन्सिपल - वेलकम टु ऑल... अब एक काम कीजिए... मेरे बाएँ तरफ सभी लड़के आ जाएं... और मेरे दाएँ तरफ सभी लड़कियाँ आ जाएं...

हॉल में मौजूद सभी स्टूडेंट्स वही करते हैं l लड़के एक तरफ आ जाते हैं और लड़किया एक तरफ हो जाती हैं l

प्रिन्सिपल - अब आप सबको वल्युंटीयर्स एक एक चिट देंगे... आप सब अपने अपने दोस्त का नाम लिखें... और हाँ जो भी यहाँ मौजूद है उनके नाम की चिट हमारे पास मिलनी चाहिए... अगर नहीं मिली... तो उनको पनीश किया जाएगा...

स्टेज से राजू और सुशील काग़ज़ लेकर सभी स्टूडेंट्स को देने लगते हैं l

आशीष - तो यह तेरा प्लान था... जाहिर सी बात है उसके दोस्त उसका नाम जो लिखेंगे... तुमको खबर हो जाएगा...
रॉकी - (हँसते हुए) हाँ...
आशीष - अगर उसकी चिट गायब हो गई तो...
रॉकी - नहीं होगी...
आशीष - कैसे....
रॉकी - तु बस देखता जा...

राजु और सुशील सारे चिट बांट कर वापस स्टेज पर पहुँच जाते हैं l

प्रिन्सिपल - अब सब अपने अपने दोस्त के नाम लिखो... और ध्यान रहे जिसका नाम नहीं मिलेगा... उसको पनीश्मेंट मिलेगा...

ल़डकियों के बीच
तब्बसुम - चलो चलो हम में से डिसाइड करो... कौन किसका नाम लिखेगा...
दीप्ति - हाँ... हम छह हैं... पर हमे तीन जोड़ी में बंट जाना है...
नंदिनी - ठीक है... मैं बनानी का नाम लिखती हूँ... बनानी मेरा नाम लिखेगी... तब्बसुम दीप्ति का नाम लिखेगी और दीप्ति तब्बसुम का नाम... और फाइनली.. भाश्वती इतिश्री का नाम और इतिश्री भाश्वती का नाम...
सभी - ओके

लड़कियाँ अपनी अपनी चिट लिख कर फ़ोल्ड कर देते हैं l

प्रिन्सिपल - अब उन चिट को... ल़डकियों के तरफ से नंदिनी कलेक्ट करेंगी... और लड़कों के तरफ से xxxxx कलेक्ट करेंगे... इसलिए आप सब उन्हें अपनी अपनी चिट दें....

नंदिनी पहले हैरान हो जाती है फिर खुशी से सबकी चिट कलेक्ट करती है l दोनों ग्रुप की चिट कलेक्शन हो जाने के बाद नंदिनी और xxxxx स्टेज पर आते हैं l रॉकी उस ग्लोब का ढक्कन खोल देता है l और सारे चिट्स उसमें डालने को कहता है l दोनों वही करते हैं l

प्रिन्सिपल - अब आप दोनों अपने दोस्तों के पास जा कर बैठ जाएं... (दोनों स्टेज से उतर कर अपने अपने दोस्तों के पास चले जाते हैं) आज इन चिट्स के बीच एक नाम को लकी ड्रॉ के जरिए एफएम रेडियो के जॉकी सुरेश साहब निकलेंगे... (सभी स्टूडेंट्स तालियां बजाने लगते हैं) आइए सुरेश साहब...

सुरेश स्टेज पर आता है l और उस सिस्टम को ऑन करता है जिसमें वह ग्लोब अटैच था l ग्लोब थोड़ी देर घूमने के बाद एक चिट बाहर गिरती है l सुरेश वह चिट प्रिन्सिपल को दे देता है l

प्रिन्सिपल - हाँ तो इस चिट में जिनका नाम आया है... मैं उनको पहले बधाई देता हूँ... आप हैं... मिस रूप नंदिनी सिंह क्षेत्रपाल...

सभी स्टूडेंट्स तालियाँ बजाने लगते हैं l स्टेज पर मौजूद सभी लोग और प्रिन्सिपल भी ताली बजाने लगते हैं l लड़कियाँ सभी नंदिनी को बधाई देते हैं और चीयर करने लगते हैं l

नंदिनी अपना नाम सुन कर पहले से ही शॉक थी l उस पर सब उसे जिस तरह से बधाई दे रहे हैं l वह नर्वस फिल करने लगती है l

प्रिन्सिपल - आइए नंदिनी जी... स्टेज पर आइए...

नंदिनी बड़ी नर्वस नेस के साथ स्टेज पर जाति है l स्टेज पर पहुंचते ही उसके सारे दोस्त चीयर करते हुए हूटिंग करते हैं l

प्रिन्सिपल - मिस. नंदिनी.. क्या आप नर्वस फिल कर रही हैं...
नंदिनी - जी.. जी सर...
प्रिन्सिपल - जीवन में कई चुनौतियाँ आयेंगी... इससे भी बड़े बड़े... इसे आप स्वीकार करने का साहस करें... फिर सभी आसान हो जाएगा...
नंदिनी - जी...
प्रिन्सिपल - तो आपको आज टास्क सुरेश जी देंगे... और इन दो दिनों में यहाँ पर एक टेंपोररी साउंड प्रूफ़ स्टूडियो बनाया जाएगा... आप लोग यहाँ पर लाइव देख व सुन सकें... (सभी स्टूडेंट्स फिर से तालियां बजाने लगते हैं) (प्रिन्सिपल हाथ दिखा कर इशारे से ताली रोकने को कहता है, ताली रुक जाती है) हाँ... तो सुरेश साहब... दीजिए इन्हें एक टास्क...(माइक से हट जाता है)
सुरेश - (माइक पर आकर) पहली बात... नंदिनी जी आप घबराएँ नहीं... यह टास्क ही सही... पर यह एक एक्सपोजर भी है... आप अपने भीतर एक नए व्यक्तित्व को ढूंढेंगी... सो प्लीज बी नॉर्मल... शांत हो जाइए...
नंदिनी - जी... जी मैं.. ठीक हुँ...
सुरेश - गुड... तो क्या मैं आपको टास्क दूँ...
नंदिनी - श्योर...
सुरेश - तो दोस्तों... मैं आज आपके सामने मिस नंदिनी जी को... एक टास्क दे रहा हूँ... वह शनिवार को बारह बजे के बाद... रेडियो एफएम 97 में... मेरे साथ लाइव रहेंगी... और उस दिन वह प्रेजेंट करेंगी एक विषय
"HUMAN EVOLUTION TWENTY FIRST CENTURY AND THE WOMEN"
यानी मानव क्रमिक विकास, इक्कीसवीं सदी और औरत...

कुछ देर के लिए हॉल में सन्नाटा पसर जाता है l पहले प्रिन्सिपल ताली बजाता है फिर सभी लोग ताली बजाने लगते हैं l पुरा का पुरा हॉल तालियों से गूंजने लगती है l

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ESS ऑफिस
कंफेरेंश रूम में महांती, विक्रम, वीर और पिनाक बैठे हुए हैं l पिनाक सिंह अपनी मुट्ठी को टेबल पर धीरे धीरे ठोक रहा है l

विक्रम - आप इतना खीज क्यूँ रहे हैं...
पिनाक - आप समझ नहीं रहे हैं युवराज... ऐसा लग रहा है... जैसे हम अपना रास्ता इसलिए बदल दिया... वह भी किसीके डर से...
विक्रम - हम चाहे कितने भी सहरी क्यूँ ना हो जाये... हम हैं तो जंगली ही... यह खेल शिकार और शिकारी वाला है... हमारा शिकार छुपा हुआ है... वह हमे छकाये हुए है... बस एक बार वह बाहर निकल जाए... फिर ऐसा शिकार होगा कि उसके पुश्तों तक के रूह कांप उठेगी...
पिनाक - खेल अगर शिकार और शिकारी वाला है... तो हमें उसे मौका देना चाहिए था... हम उसे बाहर निकालने के लिए चारा बनने के लिए तैयार हैं... पर बेचारा बन कर नहीं रह सकते...
महांती - गुस्ताखी माफ छोटे राजा जी... शेर भी कभी कभी शिकार करने से पहले दो कदम पीछे जाता ही है... हम डर कर नहीं... बल्कि उसे बौखलाने के लिए रास्ता बदला है... वह आपको ज़रूर फोन करेगा... आप बस उसे एहसास मत होने दीजियेगा... के हमें उसके प्लान का अंदाजा हो चुका था... वह आपको उसकायेगा... पर आप शांत रहें... आपका शांत रहना उसे और भी बौखलाएगा... और बौखलाहट उससे गलती करवाएगा...
वीर - हाँ... बहुत ही बढ़िया प्लान है... महांती बिल्कुल सही कह रहा है...
पिनाक - बस महफ़िल में आप ही की कमी थी... अच्छा हुआ... उगल दिए आपने वरना बदहजमी हो जाती आपको...
वीर - ओ... मेरे कुछ कहने से आपको अगर पसंद नहीं आ रहा... तो मेरा यहाँ रुकना बेकार है...
पिनाक - मैं नहीं हम कहिए... आप राजकुमार हैं...
वीर - हम का दम तब भरते... जब बंदे का इज़्ज़त हो...
विक्रम - राजकुमार... आप आपे से बाहर हो रहे हैं...
वीर - नहीं... अपने आप में आ रहे हैं... सॉरी

वीर वहाँ पर सबको बैठा छोड़ कर कांफ्रेंस रूम से निकल जाता है l

विक्रम - (पिनाक सिंह से) आखिर आप अपनी खीज... राजकुमार पर उतार ही दिया...
महांती - हाँ छोटे राजा जी... खबर मिलते ही... राजकुमार जी फौरन पुरी के लिए निकल पड़े थे...
पिनाक - वह हम थोड़ा... सॉरी... हम बाद में उनसे बात कर लेंगे...

तभी पिनाक सिंह की मोबाइल बजने लगता है l पिनाक मोबाइल के डिस्प्ले पर अन नोन कॉल देखता है l उस पर कोई नंबर नहीं दिखता है वह उस डिस्प्ले को विक्रम और महांती को दिखाता है l दोनों इशारे में बात करते रहने के लिए कहते हैं I

पिनाक - हैलो...
-X- क्या बात है... फोन उठाने में इतनी देरी... क्यूँ फट रही थी क्या...
पिनाक - फट तो तेरी रही है हरामजादे... सामने नहीं आ रहा है...
-X- बहुत जल्दी है मुझसे मिलने की... जिस देखेगा... उस दिन आगे से गिला और पीछे से पीला हो जाएगा...
पिनाक - अब एक बात का कंफर्म हो गया... तु ज़रूर किसी फटीचर सर्कस में जोकर रहा होगा... सिर्फ़ जोक मारने के सिवा कुछ भी नहीं आता तुझे...
-X- उस दिन की गोली बारी मजाक लग रहा है तुझे... याद है ना... गाड़ी बदली थी तुने... हाँ यह बात और है... घर जा कर चड्डी भी बदला होगा तुने... जो न्यूज वालों ने बताया नहीं किसी को...
पिनाक - तो भोषड़ी के... फिर हमला क्यूँ नहीं करवा रहा है... कौनसे बिल में छुप कर भौंक रहा है....
-X- भौंक नहीं रहा हूँ... दहाड़ रहा हूँ... बहुत जल्द... सारा सहर देखेगा... तु रोड पर जान बचा कर भाग रहा होगा.... और कसम से टीवी पर यह लाइव चल रहा होगा...
पिनाक - क्षेत्रपाल से बात कर रहा है... मादरचोद क्षेत्रपाल से... बस एक बार मेरे सामने आजा... तुझे तेरी ही जुबान से फांसी पर टांग ना दिया... तो हम क्षेत्रपाल नहीं...
-X- ठीक है फिर बहुत जल्द तेरे सामने आऊँगा... पहचानना तो दूर तु जान भी नहीं पाएगा... तेरी ऐसी गांड मार कर जाऊँगा...
पिनाक - ठीक है आजा फिर...
-X- अरे वाह... बड़ी जल्दी है... मुझसे मरवाने की...
पिनाक - (चिल्लाता है) हरामजादे.... (फोन कट हो जाता है) तु बस एक बार सामने आ... हैलो.. हैलो...
विक्रम - क्या पता चला महांती....
महांती - यह एक इंटेरनेट कॉल था... बहुत चालाक है.... ना सिर्फ़ इसकी लोकेशन हर दस सेकंड में बाउंस कर रहा था... बल्कि उलझाने के लिए अपनी कॉल को हर नेटवर्क पर बारी बारी से शिफ्ट कर रहा था...
विक्रम - तो क्या हम उसे ट्रेस नहीं कर सकते...
महांती - क्यूँ नहीं कर सकते... अगली बार कॉल करेगा तो... उसकी एक्जाक्ट लोकेशन मिल जाएगी...
पिनाक - ठीक है... महांती... तुम बस उसका लोकेशन का पता लगाओ... फ़िर हम उसकी वह हश्र करेंगे... वह हश्र करेंगे....

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वीर गुस्सा और नाराज होकर कांफ्रेंस रूम से निकल कर अपने कैबिन में आ कर बैठा हुआ है l कुछ देर बाद उसके कमरे में अनु कॉफी की कप लेकर अंदर आती है और वीर के सामने रख देती है l वीर के मन में पिनाक की कही बातें चल रही है l इसलिए उसे ध्यान नहीं रहता की उसके टेबल पर अनु ने कॉफी रख दिया है l अनु को एहसास होता है, वीर का मन ठीक नहीं है इसलिए वह फिर से अपनी पर्स से स्माइली बॉल निकाल कर वीर देखती है l उसे समझ में नहीं आता कि कैसे उन बॉल्स को वीर के हाथों में दे l इसलिए टेंशन में वह बॉल्स को दबाने लगती है l
कुछ देर बाद वीर अपनी ख़यालों से बाहर आता है तो अनु को स्माइली बॉल्स को दबाते हुए देखता है l

वीर - यह तुम क्या कर रही हो...
अनु - जी (अपने हाथ में बॉल देख कर) जी यह.. मैं वह.. आप.. कैसे...
वीर - क्या कह रही हो...
अनु - जी...मु.. मम्म्म्म.. मुझे समझ में नहीं आया.. यह बॉल कब और क.. कैसे.. आपके हाथ में दूँ...
वीर - (चेहरे पर मुस्कान आ जाती है) लाओ बॉल दो... (अनु दे देती है)(वीर बॉल्स दबाने लगता है) तुम अभी दबा रही थी ना... क्यूँ...
अनु - वह आपको टेंशन में देख कर... मेरे समझ में नहीं आया मैं क्या करूं...
वीर - (बॉल्स को दबाते हुए) अच्छा जब मैं यहाँ नहीं था... कुछ फोन वगैरह आया था...
अनु - जी.. जी नहीं... नहीं आया था...
वीर - (बॉल्स अनु को देते हुए) ह्म्म्म्म यह लो... रख लो... (अनु बॉल्स रख लेती है) अच्छा अनु... तुम मेरी क्या हो...
अनु - जी मैं आपकी... पीएस और पीए दोनों हूँ..
वीर - अच्छा.. तुम मेरे लिए यहाँ क्या करती हो...
अनु - जी आपके खाने पीने से लेकर वह सभी काम... जो आप मुझसे कहते हैं...
वीर - और छुट्टी के दिन...
अनु - छुट्टी के दिन तो छुट्टी होता है ना...
वीर - हाँ होता तो है... पर जानती हो... जो पर्सनल सेक्रेटरी या पर्सनल अस्सिटेंट होते हैं... वह चौबीस घंटे ड्यूटी पर होते हैं...
अनु - (हैरान हो कर) हे भगवान... तो फिर वह लोग खाते पीते सोते कब होंगे...
वीर - सब उनके बॉस के साथ ही करते हैं...
अनु - क्या...(और भी हैरान हो जाती है) सब उनके बॉस के साथ करते हैं...
वीर - अरे मेरा मतलब है... जब वह लोग अपने बॉस के साथ होते हैं... तो खयाल रखते हैं... और जब साथ नहीं होते तो फोन पर बात करते हुए खयाल रखते हैं...
अनु - ओ.. अच्छा... पर मेरे पास तो फोन है ही नहीं...
वीर - (अपनी टेबल का ड्रयर खिंचता है उसमे से एक मोबाइल निकाल कर अनु को देता है) यह लो... यह कंपनी के तरफ से... अपने बॉस के साथ चौबीसों घंटे टच में रहने के लिए...
अनु - (झिझकते हुए फोन लेती है) वह... असल में... मुझे मोबाइल चलानी नहीं आती...
वीर - क्या... तुम मेरी असिस्टेंट हो... सेक्रेटरी हो... तुम को यह सब नहीं आती...
अनु - (अपना सिर हिला कर ना कहती है)
वीर - व्हाट... तुम्हारा पनीश्मेंट में एक और पनीश्मेंट ऐड हुआ...
अनु - (रुआँसी हो जाती है)
वीर - (उसकी रुआँसी सुरत देख कर) ठीक है ठीक है... मैं इसबार माफ करता हूँ... यहाँ मेरे पास आकर बैठो... मैं तुम्हें मोबाइल चलाना सीखा देता हूँ... आओ यहाँ...

वीर अनु के हाथ खिंच कर अपनी कुर्सी के आर्म रेस्ट पर बिठा देता है और अनु के हाथ में मोबाइल थमा कर उसे चैटिंग और कॉल करने के बारे में समझाने लगता है
Nice update bro
 
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👉अट्ठावनवां अपडेट
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शनिवार
सेंट्रल जैल
सुपरिटेंडेंट कैबिन

विश्व - क्या मैं अंदर आ सकता हूँ...
खान - आओ विश्व आओ... यार तुम अब सिर्फ़ महीने भर के लिए मेहमान हो... परमीशन लेने की कोई जरूरत नहीं है...
विश्व - सर यह ऑफिस है... यहाँ पर मिनिमम डेकोरम तो मेंटेन करना ही चाहिए...
खान - हर सवाल का जवाब... तुम्हारे पास तैयार रहता है...
विश्व - (कुछ नहीं कहता है, बस एक फीकी मुस्कान मुस्करा देता है)
खान - विश्व... एक बात पूछूं...
विश्व - जी...
खान - तुम आखिरी बार... कब हँसे थे...
विश्व - (थोड़ा असमंजस हो जाता है) (फिर थोड़ा संभल कर) पता नहीं सर...
खान - बुरा मत मानना... तुम्हारे चेहरे पर मुस्कराहट एक मुखौटा लगता है...
विश्व - जी... मैं मानता हूँ... पर सच, यह है सर... मुस्कराने के लिए या हँसने के लिए मेरे पास अभी कोई जायज वजह नहीँ है...

खान टेबल पर रखे एक थैला विश्व की बढ़ाता है l विश्व उसे हैरानी भरे नजरों से देखता है l

खान - अरे यार... यह तुम्हारे कपड़े हैं... थोड़ी देर बाद... तुम्हारी मुहँ बोली माँ और मेरी मुहँ बोली बहन आ जाएंगी... इसलिए तैयार हो जाओ... हाँ... तुम कपड़े बदलने के लिए... मेरी टॉयलेट इस्तेमाल कर सकते हो...
विश्व - थैंक्यू सर...
खान - इट्स ओके... नाउ गो एंड गेट रेडी..

विश्व अपना सिर हिलाते हुए वह थैला उठा लेता है और अटैच बाथरूम में घुस जाता है l थोड़ी देर बाद कपड़े बदल कर बाहर आता है l तभी अर्दली आकर खबर करता है कि बाहर प्रतिभा आई हुई है l

खान - देखा... तुम्हारी माँ आ गई... चलो कम से कम मैं तुम्हें बाहर तक छोड़ आऊँ...

विश्व और खान बाहर आते हैं l बाहर प्रतिभा बेचैनी भरे निगाह में विश्व की इंतजार कर रही थी l विश्व को देखते ही जल्दी से उसके करीब आती है विश्व भी उसके तरफ जाता है l दोनों एक दुसरे के गले लग जाते हैं l

खान - अहेम अहेम अहेम... अगर माँ बेटे का मिलाप हो गया हो तो... (दोनों अलग होते हैं) थैंक्यू... तो मैं यह कह रहा था... कल शाम छह बजने से पहले... आपके बेटे को...
प्रतिभा - आप फ़िक्र ना करें... खान भाई साहब... अब प्रताप कल शाम को ही आएगा... और थैंक्यू... थैंक्यू वेरी मच...
खान - अच्छा... तो फिर मैं इजाज़त चाहूँगा... (कह कर खान वापस चला जाता है)

प्रतिभा विश्व की कान खिंचती है l विश्व दर्द से कराहता है l

विश्व - आह.. माँ.. दर्द हो रहा है... प्लीज छोड़ो ना...
प्रतिभा - जैल में तो नाई आता है ना... यह किस लैला के लिए दाढ़ी और बाल छोड़े हैं तुने...
विश्व - माँ.. वह पढ़ाई में बिजी था... इसलिए... प्रतिभा- (कान छोड़ कर) चल मेरे साथ... (विश्व को गाड़ी की ओर खिंच कर ले जाती है)
विश्व - कहाँ... घर...
प्रतिभा - नहीं पहले... सलून... फिर तेरे लिए कपड़ों और जुतों की मार्केटिंग... फिर हम दोनों बाहर खाना खायेंगे... घूमेंगे... फिर थक हार कर शाम को घर जाएंगे...
विश्व - अगर हम शाम को घर जाएंगे... तो सेनापति सर क्या करेंगे दिन भर.. (दोनों गाड़ी में बैठ जाते हैं)
प्रतिभा - तु उनकी चिंता ना कर... (गाड़ी स्टार्ट करते हुए) वह दिन भर नए घर की तलाश में रहेंगे...
विश्व - नए घर.... वह क्यूँ...
प्रतिभा - (गाड़ी चलाते हुए) हमें इसी महीने क्वार्टर खाली करना है... इसलिए रहने के लिए एक भाड़े का घर का इंतजाम करने गए हैं...
विश्व - ओ...
प्रतिभा - तेरे छूटने से पहले... मैंने उन्हें घर ढूंढने में लगा दिया है... इसलिए तु उनकी फिक्र ना कर... वह दिन भर इसी काम में बिजी रहेंगे... और हम माँ बेटे आपनी मस्ती में...

प्रतिभा की बातेँ सुन कर विश्व मुस्करा देता है l उसे अंदर से महसुस हो जाता है l प्रतिभा उसके साथ वक़्त बिताने के लिए कितनी बेताब है l

विश्व - तो माँ... पहले हम कहाँ जा रहे हैं...
प्रतिभा - कहा तो था....सलून... तुझे पहले हैंडसम डैशींग और जेंटलमेन बनाना है...
विश्व - क्यूँ... क्या मैं हैंडसम डैशींग और जेंटलमेन नहीं हूँ...
प्रतिभा - तु... तु अभी मुझे कोई मेंटलमेन लग रहा है...
विश्व - ओह माँ... आप तो ऐसे कह रही हो... जैसे मुझे कोई लड़की देखने जाना है...
प्रतिभा - तेरे मुहँ में घी शक्कर... कास के आज ऐसा ही हो...
विश्व - हे भगवान... क्यूँ ऐसी बातेँ सोच रही हो...
प्रतिभा - तु चुप रह... मैं जानती हूँ.. तु कहना क्या चाहता है... पर सुन ले... जब तक मैं अपनी पोते और पोतीयों को अपनी गोद में नहीं खिलाती... तब तक मैं इस दुनिया से जाने वाली नहीं हूँ...

विश्व अब चुप रहने में ही अपनी भलाई समझता है l वह प्रतिभा को देखने लगता है प्रतिभा गाड़ी चलाते हुए सामने देख रही है पर उसके चेहरे पर जो खुशी के एक अलग भाव झलक रहे हैं वह कितना शुद्ध, कितना निर्मल लग रहा है l विश्व अपनी नजर अब रोड की ओर कर देता है l चर्र्र्र्र्र्र गाड़ी रुक जाती है l विश्व देखता है सामने एक बहुत बड़ा सलून है l सलून को देखते ही विश्व समझ जाता है कि यहाँ बाल कटवाना बहुत महँगा होगा l

विश्व - माँ... कहीं और चलते हैं... यह देखो... सिर्फ़ बाल कटवाने के लिए पाँच सौ रुपये से शुरू हो रही है...
प्रतिभा - देख मार खाएगा मुझसे... तुझे मेरी खुशियों का कुछ भी खयाल नहीं.... चल चुप चाप अंदर चल...

प्रतिभा आगे आगे सलून के अंदर जाती है और विश्व भी उसके पीछे सलून के अंदर पहुँचता है l विश्व देखता है अंदर लड़के और लड़कियाँ सभी एक यूनीफॉर्म में हैं l एक खूबसूरत लड़की प्रतिभा के सामने आती है

लड़की - यस मैम... व्हट कैन वी डु फॉर यु...
प्रतिभा - (विश्व को दिखाते हुए) यह मेरा बेटा है... इसके बाल और दाढ़ी बनवानी है...
लड़की - श्योर मैम...

दो लड़कीयाँ आकर विश्व की बांह पकड़ कर ले जाने लगते हैं तो विश्व अपनी बांह छुड़ा कर प्रतिभा के पीछे चला जाता है l प्रतिभा उसे अपने सामने खिंच कर लाती है

प्रतिभा - अरे... तु शर्मा क्यूँ रहा है... गर्ल्स.. इसे ले जाओ... यह बहुत शर्मिला है...

वहाँ पर जितने भी लड़कियाँ थी सभी खिलखिला कर हँसने लगे l विश्व फिर भी आनाकानी करने लगता है तो प्रतिभा उसे आँखे दिखाती है l विश्व अपना मन मार कर उन लड़कियों के साथ चला जाता है l प्रतिभा वहीँ पर बैठ कर मैग्ज़ीन पलट ने लगती है l

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अनु के घर में,
अनु अपनी यूनीफॉर्म पहन कर ऑफिस जाने के लिए तैयार है l अभी वह अपनी हाथ में मोबाइल ले कर नाश्ता कर रही है l खाना खाते वक़्त वह बीच बीच में मोबाइल देख रही है l

दादी - चुप चाप तु नाश्ता नहीं कर सकती... यह बीच बीच में फोन को आईना बना कर क्यूँ देख रही है... जिस दिन से लाई है... उसी दिन से फोनमें घुसी पड़ी है...
अनु - तु नहीं जानती दादी... इस फोन को सम्हालने के लिए भी मुझे तनख्वा मिलती है... इसलिए बार बार देख रही हूँ...
दादी - अरे पागल लड़की... इसे अपने पर्स में रख... जब बजना होगा तब बजेगा... तब निकाल कर देख लेना...
अनु - नहीं नहीं.. मैं ऐसा नहीं कर सकती... कहीं राजकुमार जी का कोई मैसेज आ गया तो...
दादी - हाँ हाँ... एक तुझे ही मिले हैं... राजकुमार... अरे मुई... उनको कोई काम धंधा नहीं है क्या... तुझे ही मैसेज करते फिरेंगे...

तभी अनु की मोबाइल में टुँन.. टुणुन... की ट्यून आती है l मोबाइल स्क्रीन पर राजकुमार डिस्प्ले होता है l अनु मैसेज देखते ही मोबाइल अपनी दादी को दिखा कर

अनु - देखा... अभी अभी राजकुमार जी ने मुझे मैसेज किया है... अगर पर्स में रखती तो मालुम कैसे होता मुझे...
दादी - क्यूँ... सुनाई नहीं देता तुझे...
अनु - हाँ सुनाई तो देता... पर... चलो पहले मैं देख तो लूँ... आखिर उन्होंने मैसेज किया क्या है....

अनु अपना हाथ साफ करने के बाद मोबाइल की लॉक खोल कर मैसेज दिखती है

वीर - कहाँ हो तुम...


जी घर में - अनु

वीर - जानती हो ना... हमें आज भेष बदल कर चेकिंग के लिए जाना है...

हाँ याद है... मैं अभी ऑफिस के लिए निकल रही हूँ... - अनु

वीर - नहीं नहीं... एक काम करो... मैं तुम्हारे मुहल्ले से थोड़ी दुर मार्केट के xxxx दुकान के बाहर गाड़ी लेकर आया हूँ... तुम सीधे आकर गाड़ी में बैठ जाना... और हाँ... यह बहुत सीक्रेट है... किसीको बताना मत...

ठीक है... अभी निकलती हूँ... - अनु

मोबाइल अपनी पर्स में रख कर जल्दी जल्दी निकलती है l उसे जल्दी जल्दी जाते देख उसकी दादी उसे आँखे फाड़े देखती है l

उधर वीर कभी रियर व्यू मिरर तो कभी साइड मिरर पर देख रहा है l उसे कुछ देर बाद रियर मिरर में अनु दीखती है l अनु के दीखते ही वीर की चेहरा खिल जाता है l अनु आकर पहले गाड़ी के पास खड़ी होती है फिर बाएं तरफ जाकर खिड़की से झाँक कर देखती l वीर को देखते ही उसके चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कराहट खिल उठता है l वह कार की दरवाजा खोल कर वीर के बगल वाली सीट पर बैठ जाती है l अनु के बैठते ही वीर गाड़ी को उस मार्केट से दुर दौड़ा देता है l

वीर - तो अनु तैयार हो...
अनु - जी... पर हम कौनसे भेष बदलेंगे... और हम कहाँ पर भेष बदलेंगे...
वीर - कौनसा भेष... यह तो वहाँ जा कर पता चलेगा... जहां हम जा रहे हैं.. वहाँ पर मैंने तुम्हारे लिए कुछ भेष सिलेक्ट कर लिया है... पहुँचते ही भेष बदलेंगे...
अनु - अच्छा... तो आप क्या बनने का फैसला किया है...
वीर - पता नहीं... वहाँ पहुँच कर डीसाइड करेंगे... (अनु सोच में देख कर) क्या सोच रही हो...
अनु - मैं सोच रही हूँ.... कौनसा भेष बदलना है...
वीर - अच्छा... तुम सोच रही हो... कौनसा...
अनु - माता पार्वती जी का...

चर्र्र्र्र्र्र्र वीर गाड़ी में ब्रेक लगाता है l वीर अनु को ऐसे देखता है जैसे उसे जोरदार शॉक लगा हो l

वीर - क्या कहा... माता पार्वती जी का...
अनु - (चहकते हुए) हाँ... एक बार मैंने नाटक में देखा था... उनके केश खुल जाते हैं... आँखे बड़ी हो जाती है और (अपनी माथे की ओर दिखाते हुए) यहाँ पर... ये बड़ा सिंदूर... देखिएगा कोई नहीं पहचान पाएगा...
वीर - अच्छा (हैरानी भरे नजरों से देखते हुए) तो मेरे लिए भी कुछ सोचा है तुमने...
अनु - हाँ (चहक कर) सोचा है ना...
वीर - अच्छा... तो अभी तक बताया क्यूँ नहीं...
अनु - (मुहँ बनाते हुए) अगर आपको गुस्सा आ गया तो...
वीर - (हँसने की कोशिश करते हुए) नहीं.. नहीं करूँगा...
अनु - (चहकते हुए) आप ना... हनुमान बन जाइए... बड़ा मजा आएगा... और कोई पहचान भी ना पायेगा...

वीर इतना सुनते ही जोर जोर से हँसने लगता है l अपनी सीट की लीभर खिंच लेता है जिससे सीट पीछे की ओर लुढ़क जाती है, फिर वीर अपनी पेट पकड़ कर पैर पटकते हुए हँसने लगता है l अनु उसको यूँ हँसता देख कर मुहँ रुआँसी बना लेती है l थोड़ी देर बाद

वीर - (वीर उसकी रुआँसी चेहरा देख कर) ओ.. अनु... अनु.. जरा सोचो... हम छुपने के लिए भेष बदलने वाले हैं... मतलब लोगों के बीच घुल-मिल कर...उन्हीं के जैसे बन कर... तुम अगर पार्वती और मैं हनुमान बना... लोग सब काम धंधा छोड़ हमारे इर्द गिर्द भीड़ जमायेंगे.... है कि नहीं...
अनु - (अपना सिर हिला कर हाँ कहती है)
वीर - चलो वहाँ पहुँच कर देखते हैं... हम क्या बन सकते हैं...

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XXXXकॉलेज

छटी गैंग कैन्टीन में बैठी हुई है l सब के सब नंदिनी को देख रहे हैं l नंदिनी के चेहरे पर टेंशन साफ दिख रहा है l

बनानी - तु... इतनी टेंशन में क्यूँ है...
दीप्ति - हाँ... तुझे प्रीपेयर होने के लिए सब्जेक्ट भी तो मिला था..
नंदिनी - बात अगर पढ़ाई के रिलेटेड होती... शायद इतना डरती भी नहीं... पर यह तो सोशल रिलेटेड है... अब साइंस स्टूडेंट्स को... इस तरह की सब्जेक्ट मिले.... टेंशन तो होगी ही ना...
तब्बसुम - अरे सोशल प्लेटफॉर्म पर... सोशल मैसेज वाली ही टास्क मिल सकती थी ना...
इतिश्री - हाँ... अब अगर.. यह हमारे ग्रुप को मिली होती... तो मजा आ गया होता...
भाश्वती - वह तो हुआ नहीं... अब इस बेचारी की तोते उड़ रहे हैं...
बनानी - ओह स्टॉप इट... यह पहले से ही नर्वस है... तुम लोग इसकी जोश बढ़ाने के वजाए... और भी नर्वस कर रही हो...
रॉकी - यह तो बढ़िया मौका है... अपने अंदर के आत्मविश्वास को जगाने का... (अंदर आते हुए) अपने अंदर की व्यक्तित्व को बाहर लाने का...

सब रॉकी की ओर देखते हैं l रॉकी अपने ग्रुप के साथ थोड़ी ही दूरी पर खड़ा हुआ है l बनानी कुछ कहने को होती है कि तभी प्रिन्सिपल ऑफिस का पियोन आता है और सीधे नंदिनी से कहता है

पियोन - नंदिनी जी... आपको प्रिन्सिपल सर ने बुलाया है...

नंदिनी कुछ नहीं कहती है चुप चाप उठ कर पियोन के साथ चली जाती है l

रॉकी - क्या बात है गर्ल्स... मैंने कुछ गलत कह दिया क्या... आपकी दोस्त ने जवाब दिए वगैर चली गई...
बनानी - नहीं ऐसी बात नहीं है... वह थोड़ी नर्वस है...
रॉकी - हाँ... वह तो दिख ही रहा है...

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मेयर ऑफिस

पिनाक सिंह विक्रम के साथ अपनी ऑफिस में घुसते हुए

पिनाक - अब तीन दिन हो गए हैं... आप मेरे साथ ही चिपके हुए हैं...
विक्रम - हाँ हम अब उस दुश्मन से मिलना चाहते हैं... आखिर वह कौन है... जिसने क्षेत्रपाल के मूछों पर हाथ नहीं.. घात मारने की सोची है...
पिनाक - (अपनी कुर्सी में बैठते हुए) बड़ी बड़ी हाँका है... हमारी तैयारी देख कर... फट गई होगी उसकी....
विक्रम - (पिनाक के सामने बैठते हुए) नहीं... उसे हमारी तैयारी का अंदाजा हो सकता है... बस हमे ही नहीं मालुम उसकी तैयारी क्या क्या है...
पिनाक - महांती... अब तक कहाँ पहुँचा...
विक्रम - मैंने उसे बुलाया है... वह पहुँचता ही होगा... वैसे... क्या आपने राजकुमार से बात की...
पिनाक - उनकी बात छोड़िए युवराज... वह अभी इन सब में जुझने के काबिल नहीं हुए हैं.... नए नए ल़डकियों की तलाश में रहते हैं... जब उससे मन भरेगा... तब शायद कुछ करने के काबिल हो पाएं....
विक्रम - ह्म्म्म्म... पर आप कभी कभी उन्हें झिड़क देते हैं... वह ठीक नहीं लगता...
पिनाक - उन्हें कुछ फर्क़ नहीं पड़ता....
विक्रम - इतने हल्के में मत लीजिए... वह जवानी के उस मोड़ पर हैं... जब खुन में हद से ज्यादा गर्म रहाता है...
पिनाक - वह खानदानी क्षेत्रपाल हैं युवराज... और हम शत प्रतिशत निश्चिंत हैं... हमारे राजकुमार अपनी गर्मी उतारने के लिए... कोई साधन जुगाड़ कर लिया होगा....
विक्रम - क्या मतलब...
पिनाक - आप उस दौर में जहाँ झिझकते थे... राजकुमार उस दौर में चिड़िया फंसा कर हज़म कर जाते हैं....
विक्रम - (कुछ नहीं कहता अपना चेहरा घुमा लेता है)

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वीर अनु को लेकर एक दुकान पर आता है जहाँ लोगों का मेकअप किया जाता है l वहाँ पर लड़कियों की एक ग्रुप खड़ी थी l वीर उन ल़डकियों के पास आकर

वीर - गर्ल्स... आपको इनका मेकअप कराना है...
लड़कियाँ - यस सर...
वीर - (अनु से) आप इनके साथ जाइए... यह लोग आपका मेकअप कर देंगे...
अनु - (वीर के कान में धीरे से) यह लोग हमारे भेष बदलेंगे...
वीर - (अनु के कान में) हाँ... पर हमारे नहीं... तुम्हारे...
अनु - क्या.. कौनसा भेष..
वीर - वह उन पर छोड़ दो ना... अब कोई बड़बड़ नहीं... सीधे उनके साथ जाओ... (उन लड़कियों से) गर्ल्स प्लीज...

लड़कीयाँ आकर अनु को ले जाने लगती हैं l अनु झिझकते हुए वीर को पीछे मुड़ कर देखते हुए अंदर जाती है l वीर उस दुकान की मालकिन से कहता है

वीर - उनका मेकअप हो जाने के बाद... उनसे कहिएगा मैं नीचे गाड़ी के पास इंतजार कर रहा हूँ...
मालकिन - जी सर...

फिर वीर नीचे चला जाता है और गाड़ी की डिकी खोल कर एक लाल रंग का लेदर जैकेट निकाल कर पहन लेता और एक गॉगल पहन लेता है l फिर गाड़ी पर पीठ लगा कर खड़े होकर उस दुकान की दरवाजे पर नजर गड़ा कर देखने लगता है l करीब एक घंटे बाद दुकान का दरवाजा खुलता है तो वीर की आँखे फटी की फटी रह जाती है l
अनु खूबसूरत तो थी पर आज ऐसा लग रहा था जैसे अनु की खूबसूरती हीरे की तरह कोयले की खदान को चीरते हुए निखर कर आई है l अनु कुछ ल़डकियों के साथ सीढियों से उतर कर ऐसे आ रही थी मानो बादलों पर चल कर आ रही हो l

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माँ...

यह सुन कर प्रतिभा अपना सिर मैग्जीन से निकाल कर विश्व को देखती है l

प्रतिभा - Awwww... कितना हैंडसम है मेरा बच्चा...(खड़े होकर)

प्रतिभा देखती है वहाँ पर काम करने वाली सभी लड़कियाँ विश्व को एक आशा और लालच भरे नजरों से घूर रही हैं l प्रतिभा फौरन अपनी आँख से काजल निकाल कर विश्व के कान के नीचे लगा देती है और विश्व को खिंच कर बाहर ले जा कर खड़ा कर देती है l

प्रतिभा - तु... यहीं पर रुक... मैं पेमेंट कर आती हूँ... (प्रतिभा अंदर वापस जाती है और कुछ देर बाद बाहर आकर) चल अभी चलते हैं...
विश्व - अब कहाँ चलना है...
प्रतिभा - अरे.. तेरे लिए नए कपड़े भी तो लेने हैं... और नए जूते भी...
विश्व - अब यह सब किसलिए माँ...
प्रतिभा - (गाड़ी में बैठते हुए) चल आजा बैठ जा...
विश्व - क्या माँ... आज दिन भर यही करना है क्या...
प्रतिभा - हाँ... अब बैठता है या नहीं...

विश्व बिना कुछ कहे चुपचाप बैठ जाता है, प्रतिभा गाड़ी स्टार्ट करती है l

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प्रिन्सिपल ऑफिस

नंदिनी - मे आई... कम इन.. सर..
प्रिन्सिपल - यस यस मिस रूप नंदिनी... प्लीज कम इन...
नंदिनी - सर... आपने मुझे अभी यहाँ क्यूँ बुलाया है...
प्रिन्सिपल - देखिए मिस...
नंदिनी - सर नंदिनी... प्लीज नंदिनी...
प्रिन्सिपल - ऐसा क्यूँ...
नंदिनी - (खामोश रहती है)
प्रिन्सिपल - आप उस आइडेंटी से खुद को दूर क्यूँ रखना चाहती हैं... जो आपको आपके पिता ने दी है...
नंदिनी - (सिर झुका कर खामोश रहती है और अगल बगल देखने लगती है)
प्रिन्सिपल - क्यूँकी... एक कशमकश है... आपके भीतर... ख्वाहिश है... एक अलग पहचान बनाने की... खुदको साबित करने के लिए... है ना...
नंदिनी - (अपना सिर उठा कर देखती है)
प्रिन्सिपल - जिस दिन आप पहली बार मुझसे अपनी अलग आइडेंटिटी के बात की... उसी दिन मैं कुछ कुछ समझ गया था...
नंदिनी - (फिर अपना सिर झुका लेती है)
प्रिन्सिपल - चलो मैं इस बात को आगे नहीं खिंचता... बस इतना कहूँगा नंदिनी जी... मैं खुद उस टास्क की सब्जेक्ट से हैरान हूँ... पर इतना ज़रूर कहूँगा... यह वह सब्जेक्ट है... जिससे आपकी अपनी एक विशेष पहचान बनेगी... जो बहुतों को प्रभावित करेगी... इसलिए आप अपना हंड्रेड पर्सेन्ट दें... बस इतना ही कहूँगा...
नंदिनी - (प्रिन्सिपल को देख कर) जी सर... आई वील ट्राय माय लेवल बेस्ट...
प्रिन्सिपल - ओके... गुड.. तो अभी... एक काम कीजिए... सुरेश... वह रेडियो जॉकी... असेंबली हॉल में आपका इंतजार कर रहा है... एक छोटा सा रीहरसल के बाद... ट्रांसमिशन लाइव होगा...
नंदिनी - ठीक है सर... तो मैं जाऊँ...
प्रिन्सिपल - यस... यस.. प्लीज...

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वीर की नजर अनु की पहनावे पर पर ठहर जाती है l ब्लैक स्लीवलेस ब्लाउस टॉप जो अनु की नाभि तक पहुँच रही है l उसके ऊपर सफेद जाली कारीगरी वाली घुटने तक जोधपुरी एथिनीक जैकेट वीथ फुल लेंथ स्कर्ट l वीर की नजर अनु की खूबसूरती को निहारते निहारते नाभि पर ठहर जाता है l वीर का मुहं खुल जाता है थरथरा कर एक गहरी सांस लेता है l उस दुकान की ल़डकियों की बीच झिझकते हुए अनु वीर के पास पहुंचती है l

एक लड़की - सर यह ड्रेस पहनाने के लिए हमें बहुत मशक्कत करनी पड़ी...

वीर सबको कुछ पैसे देकर विदा करता है l खुद गाड़ी में बैठ कर इशारे से अनु को बैठने के लिए कहता है l अनु बैठती है l वीर गाड़ी स्टार्ट करता है l गाड़ी के चलते ही

वीर - वाव अनु... तुम्हें सच में पहचान नहीं पाया...
अनु - (कुछ नहीं कहती झिझक और शर्म साफ उसके चेहरे पर झलकती है)
वीर - घबराओ नहीं.. कहा ना.. मैं.. जो तुम्हें रोज सुबह से शाम तक देखता हूं... पहचान नहीं पाया... तो तुम्हें कोई भी पहचान नहीं पाएगा...
अनु - (थोड़ी हैरानी भरी भाव से) पर आपने तो खुदको नहीं छुपाया...
वीर - मैं भी खुदको छुपा लूँगा... देखना...
अनु - हम.. कहाँ जा रहे हैं...
वीर - ओरायन मॉल...
अनु - वहाँ हम क्या करेंगे...
वीर - बस दिन भर... वहाँ रहकर हमारे सिक्युरिटी गार्ड्स पर नजर रखेंगे... कौन कैसे ड्यूटी कर रहा है... लोगों से कैसे पेश आ रहे हैं... वगैरह वगैरह...
अनु - ओ अच्छा...

वीर अनु की बात सुन कर हँसता है l और गाड़ी को ओरायन मॉल की ओर ले चलता है l थोड़ी दूर ड्राइविंग करने के बाद वीर की गाड़ी मॉल की अंडरग्राउंड पार्किंग में पहुँचता है l पहले वह उतरता है l जल्दी जल्दी निकलने में उसका एक पैर दुसरे पैर में फंस जाता है l वीर अनबैलंस हो कर आगे की ओर गिरने लगता है तो कोई उसे थाम लेता है l वीर को संभाल कर वह शख्स खड़ा कर देता है l तभी पीछे से अनु भागते हुए आती है और

अनु - राजकुमार जी...
वीर - मैं ठीक हुँ... अनु.. मैं ठीक हुँ...
अनु - (उस शख्स से) आपका शुक्रिया भैया ... बहुत बहुत शुक्रिया...
शख्स - कोई बात नहीं... इसमे शुक्रिया की क्या बात है...
वीर - (उस शख्स को) हैलो आई एम वीर... एंड थैंक्यू...

इससे पहले कि वह शख्स कुछ कहता एक औरत वहाँ पर आती है और कहती है

- यह मेरा बेटा... प्रताप... और मैं एडवोकेट प्रतिभा महापात्र...
वीर - ओह हैलो प्रताप...(अपना हाथ बढ़ाता है)
प्रताप - हैलो (प्रताप भी अपना हाथ बढ़ा कर हाथ मिलाता है)
वीर - आप यहाँ पर...
प्रतिभा - ओवीयसली.. हम यहाँ पर खरीदारी करने आए हैं... और आप दोनों...

वीर और अनु दोनों चुप रहते हैं और एक दुसरे को चोर नजर से देख कर प्रतिभा और विश्व से नजरें चुराने लगते हैं l उनकी हालत देख कर प्रतिभा मुस्कराने लगती है l

प्रतिभा - ओके... ओके मैं समझ गई... अच्छा हम चले अपनी मार्केटिंग पर... मौका हाथ लगा तो... मिलते हैं बाद में...
वीर - जी... जी ज़रूर...

माँ बेटे के वहाँ से चले जाने के बाद अनु वीर की ओर देखती है और पूछती है

अनु - राजकुमार जी... आप ने अभी तक कोई भेष बदला ही नहीं...
वीर - अभी बदल लेता हूँ... एक मिनट...

कह कर वीर अपनी गाड़ी के पिछे चला जाता है l अपनी जेब से एक नकली, मोटा मूँछ निकाल कर अपने मुहँ पर लगा लेता है और बाएं गाल पर आँखों के नीचे एक मस्सा लगा लेता है l उस पर आँखों पर एक गॉगल लगा कर अनु के सामने खड़ा हो जाता है l अनु उसे पहचान नहीं पाती, वीर की यह हुलिया देख कर वह चीखने को होती है कि वीर उसकी मुहँ पर जोर से हाथ रख देता है l

वीर - अनु यह मैं हूँ... (अनु की आँखे बड़ी हो जाती है) अब तुम्हारे मुहँ से हाथ हाटऊँ... (अनु इशारे से अपना सिर हिला कर हाँ कहती है, तो वीर अपना हाथ हटा लेता है)
अनु - राजकुमार जी... सच में... मैं तो आपको पहचान ही नहीं पाई...
वीर - ह्म्म्म्म... चलो अब अंदर चलते हैं... (लिफ्ट की ओर चलने लगता है)
अनु - ठीक है...(वीर के साथ चलते हुए) पर हम यहाँ पर करेंगे क्या...
वीर - यहाँ पर हम कहीं खाना खाएंगे... कहीं थोड़ी बहुत खरीदारी करेंगे... और जरूरत पड़ी तो... एक फिल्म देख लेंगे...
अनु - ओ माँ... इतना कुछ करेंगे... पर हम तो यहाँ... चेकिंग के लिए आए हैं ना...
वीर - अरे वही तो करेंगे... दिन भर... चलो पहले कहीं बैठ कर... फ्रूट जूस पीते हैं....

अनु और कुछ नहीं कहती अपना सिर हिला कर वीर के साथ हो लेती है l दोनों एक जूस और पुडलींग स्टॉल पर पहुँचते हैं l वीर अनु एक टेबल देख कर बैठने के लिए कहता है और खुद जा कर जूस के लिए ऑर्डर करता है l कुछ मिनट बाद जब जूस लेकर अनु के पास आता है तो देखता है वहाँ पर दो लड़के अनु से बात करने की कोशिश कर रहे हैं l अनु के चेहरे पर झिझक व डर दिखता है l वीर जैसे ही टेबल पर पहुँचता है वह लड़के वीर को देखने लगते हैं I वीर की पर्सनालिटी देख कर थोड़ा डरने लगते हैं l अनु भी वीर को देख कर रीलैक्स फिल करती है l

वीर - कोई तकलीफ़...
एक लड़का - जी.. जी... वह.. हम इन्हें अकेले देखा तो...
वीर - तो... चांस मारने आ गए...
दुसरा - ओह कॉम ऑन ड्युड... जस्ट चील... हम तो बस दोस्ती करने आए थे...
वीर - ऑए चील के बच्चे... जरा स्पीड कम कर... वरना... आँख कान और जुबान सब छिल जाएंगे...

दोनों लड़के वहाँ से उठ कर चले जाते हैं l वीर अनु को जूस की एक ग्लास बढ़ाता है l अनु एक मुस्कराहट के साथ वीर के हाथों से जूस ले लेती है l
उधर उसी मॉल के ड्रेस सेक्शन में विश्व अभी तक पाँच जोड़ी ड्रेस पहन कर प्रतिभा को दिखा चुका है l प्रतिभा सब रिजेक्ट कर विश्व की सिर दर्द बढ़ा चुकी है l आख़िर में एक गहरी काले रंग पेंट के उपर एक सफ़ेद शर्ट पहन कर प्रतिभा के सामने आता है

प्रतिभा - Awww... यह हुई ना बात... अब लग रहे हो... कल के होने वाले मशहूर वकील...
विश्व - माँ पहले की कह देतीं... मैं यही पहन लिया होता... आपने अभी मुझसे पाँच जोड़ी कपड़े बदलवाए...
प्रतिभा - हाँ तो क्या हुआ... अगर यह लोग ड्रेस चुज एंड ट्राए का ऑप्शन दे रखे हैं... तो हमे भी उसका फायदा उठाना चाहिए कि नहीं...
विश्व - (हँसते हुए) माँ... तुम्हारी हरकतें किसी बच्चे जैसी है... अगर तुम ऐसी हरकतें करती रहोगी... कौन मानेगा की तुम्हारा (खुद को दिखाते हुए) इतना बड़ा बेटा है...
प्रतिभा - माँ में बचपना अपनी बच्चों के लिए होता है... और कौन नहीं मानेगा के तु मेरा बेटा है... (शो रुम के अंदर चिल्लाते हुए) हैलो हैलो हैलो... सुनो प्लीज... (सब मौजूद लोग और सेल्स मेन व सेल्स गर्ल्स प्रतिभा की ओर देखते हैं) गौर से देखिए... यह मेरा बेटा है... कितना हैंडसम है... है ना...
विश्व - (प्रतिभा की मुहँ पर हाथ रख देता है) माँ यह क्या कर रही हो... फिर से अगर ऐसा कुछ किया तो मैं यहाँ से भाग जाऊँगा...
प्रतिभा - (मुहं बंद है) उम्म् उम्म्
विश्व - ठीक है हाथ निकालता हूँ... (अपना हाथ निकाल देता है)
प्रतिभा - (ऊंची आवाज़ में) देखिए लोगों...(विश्व से थोड़ी दुर जा कर) आज कल के बच्चें... माँ बाप को छोड़ कर भागने की धमकी दे रहे हैं...

विश्व अपना माथा पीट लेता है l वहाँ पर मौजूद सभी विश्व की हालत देख कर मुस्कराने लगते हैं l तभी मॉल के हर दुकान व हर जगह जहाँ माइक थे एनाउंसमेंट होने लगती है l

" यह एक विशेष सूचना है... ओरायन मॉल पर उपस्थित सभी ग्राहक व कर्मचारियों के लिए... अभी कुछ ही देर में एफएम 97 पर आने वाली एक प्रोग्राम का प्रसारण किया किया जाएगा... कृपाया उसे सुनें... यह एफएम सर्विस वालों के अनुरोध पर किया जा रहा है और सुन कर अपना मत fm97xxxxx. Co. In पर व्यक्त रखें...

XXXXX कॉलेज
असेंबली हॉल खचाखच भरा हुआ है l स्टेज पर बने एक कांच की घर के भीतर रेडियो जॉकी सुरेश और नंदिनी बैठे हुए हैं l सुरेश प्रोग्राम को शुरू करता है l

सुरेश - हैलो अउडीयंस.. मैं आपका अपना सुरेश.... आज आपके लिए एक लाइव एंड थ्रिलींग मोमेंट ले कर आया हूँ XXXXX कॉलेज से... मेरे साथ बैठी हैं... मिस नंदिनी... यह अपनी कॉलेज में लकी ड्रॉ के जरिए सिलेक्ट हुई हैं... आपको एक सोशल मैसेज देने के लिए... दोस्तों हमनें इन्हें दो दिन पहले ही टास्क दिया था... HUMAN EVOLUTION, TWENTY FIRST CENTURY AND THE WOMAN...
इसलिए मैं अभी यह माइक यह सिस्टम पूरी तरह से मिस नंदिनी जी के हवाले कर रहा हूँ... अब नंदिनी जी आपके सामने हमारी उसी टास्क को अपने अंदाज में आपके सामने प्रेजेंट करेंगी... मिस नंदिनी... प्लीज...
नंदिनी माइक पर आती है, अपनी आँखे बंद कर एक गहरी सांस लेती है फिर खुद को नॉर्मल करती है l

नंदिनी - हैलो... मैं नंदिनी... नंदिनी सिंह... बीएससी फर्स्ट ईयर की स्टुडेंट.... अभी आपने बात करने से पहले मुझे पता चला... की सुरेश जी ऐसे ही कभी कभी कहीं भी पहुंच कर ऐसे ही चौंका देते हैं... मुझे भी चौंका दिया था... बुधवार को... फ़िर एक टास्क दिया... मानव क्रमिक विकास, इक्कीसवीं सदी और औरत... पहले जब मानव विकास सुना... एज अ साइंस स्टुडेंट मैं साइंस की नजरिए से समझने की कोशिश की... फिर इक्कीसवीं सदी... इसमे भी साइंस ही दिखी थी मुझे... पर अंत कहा... औरत... तब मुझे लगा कि यह तो एक सोशल सब्जेक्ट है... मैं एक साइंस की स्टूडेंट इसे कैसे प्रेजेंट करूँ... यह बात मैंने अपनी भाभी जी से पूछी... भाभी... मेरी सबसे अच्छी सहेली... दोस्त... माँ... दीदी और गुरु भी... उन्होंने कहा... क्यूँ नहीं... आख़िर मानव सामाजिक प्राणी है... और बात समाज की है... तो क्यूँ नहीं... पर मैं जिसने समाज को ठीक से देखा भी ना हो... समझा भी ना हो वह कैसे समाज की इतनी बड़ी विषय पर टिप्पणी कर सकती हूँ...
तब भाभी जी ने मुझे गुरुवार से लेकर आज तक... अकेले कॉलेज चलते हुए जाने के लिए कहा और लोगों की चारों तरफ की परिस्थितियों में खुद को फिट कर,.. वहाँ पर अपनी स्थिति को समझ कर... एक्सपेरियंस करने के लिए कहा

इन ढाई दिनों में मैंने जो एक्सपीरियंस किया... वही आज मेरे की टास्क की जीस्ट है....

औरत... औरत क्या है... एक वस्तु या एक शख्सियत... मुझे एक ऐसे समाज में... एक ऐसे तथ्य पर राय रखने के लिए कहा गया है... जहां खुद यह समाज ही दीग भ्रमित है... यह समाज वस्तु वादी है... जहां निर्जीव वस्तुओं में अपनी हर्ष ढूंढते हैं... उस समाज की सोच में औरत एक वस्तु ही तो है....

औरत की समाज में आवश्यकता है... वजह एक नई पीढ़ी को लाने के लिए... माँ प्रथम गुरु होती है... दीदी प्रथम मित्र होती है... मौसी माँ सी होती है... भाभी... एक माँ, बहन, सखी और गुरू भी होती है... और हर रुप में वह पहले औरत ही होती है... शास्त्र कहता है
‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः’
पर सच मानिये इन ढाई दिनों में मैंने ऐसा कुछ भी नहीं देखा....
एक लड़की जो किसी बाप की लाडली, माँ की दुलारी भाई की अभिमान होती है... वह घर से निकलते ही दुसरे मर्दों की आँखों के एक्स्रै से स्कैन की जाती है... यही सच्चाई है... खैर मुझे तो टास्क को प्रेजेंट करना है... तो ढाई दिन की एक्सपीरियंस को एक ही कहानी में पिरो कर बताती हूँ...

एक सुबह घर से निकली.... चलते हुए अपनी घर से कुछ दुर एक पान सिगरेट की दुकान के पास... कॉलेज जाने के लिए बस की इंतजार करने लगी... उस दुकान पर बहुत से लड़के व मर्द खड़े थे... कोई पान खरीद रहा था तो कोई सिगरेट तो कोई गुटखा... सब की भीड़ वहीँ पर इसलिए थी क्यूंकि... वहीँ से बहुत सी लड़कियाँ कॉलेज जाने के लिए बस पकड़ती हैं...
उस पान दुकान वाले की दो बेटियाँ हैं... पर वह खुश नहीं है... क्यूँ... क्यूंकि उसे वंश चलाने के लिए एक बेटा चाहिए... इसलिए वह हर पल अपनी किस्मत, अपनी बीवी और अपनी बेटियों को कोशता रहता है... उसकी बड़ी बेटी अपनी छोटी बहन के साथ उसी दुकान के पास एक कुत्ते से दोस्ती कर दिन भर खेलती रहती है.... पर उस दिन कुछ बंद था इसलिए कोई बस या ऑटो नहीं चल रहा था... हम कुछ लड़कियाँ फैसला किए... चलते हुए कॉलेज जाने के लिए...
हम ल़डकियों का एक ग्रुप चलते हुए कॉलेज निकले.... एक मोड़ पर आगे जाना मुश्किल हो गया... क्यूंकि उस मोड़ पर बिजली की तार से उलझ कर एक कौवा मर गया था... इसलिए वहाँ पर गुजरने वाले हर इंसान पर कौवे अपने साथी के मरने की गुस्सा उतार रहे थे.... हम ल़डकियों ने रास्ता बदल कर दुसरे रास्ते में जाने लगे... उस रास्ते में हैदराबाद की एक डॉक्टर के बलात्कार के विरुद्ध प्रदर्शन व रैली चल रही थी... हम वहीँ पर खड़े होकर रैली की गुजरने की इंतजार करने लगे... उसी रैली में हिस्सा लिए कुछ क्रांतिकारियों ने हमें देखकर कमेंट करने लगे... कोई हमारी रंग पर... कोई हमारी अंग के कटाव पर टिप्पणी करते हुए गुजरे... एक औरत के साथ हुई दुराचार के विरुद्ध कुछ क्रांतिकारी रास्ते पर खड़े दुसरे औरतों पर फब्तीयाँ गढ रहे थे... एक और जहां अपनी धरना प्रदर्शन से अपनी जिम्मेदारी निभा रहे थे... वहीँ दुसरी और वह लोग रास्ते पर खड़े हुए औरतों में मौका तलाश रहे थे... हम लोग किसी तरह कॉलेज पहुँचे... फिर मैंने क्लासेस खतम कर... शेयर ऑटो से घर को निकली... उसी पान दुकान वाली जंक्शन से थोड़ी दूर पर पहुँची....
वहाँ पहुँच कर देखा वह कुत्ता भोंकते हुए लोगों को अपने तरफ आने को मजबूर कर रही है... पर कोई नहीं जा रहा... शायद कोई समझ ही नहीं पा रहा था... मैंने हिम्मत करके कुत्ते के साथ गई... मेरे देखा देखी कुछ लोग कुत्ते के पीछे गए...
वह पान दुकान वाला अपने घर में आग लगा रहा था... उसकी बीवी और बड़ी बेटी उसे रोकने की कोशिश कर रही थीं... पर वह रुका नहीं हमारे पहुँचते पहुँचते आग लग चुकी थी... वहाँ पर पहुँचे लोगों ने पहले उस पान वाले को पकड़ लिया और कुछ लोग आग को बुझाने की कोशिश करने लगे... तभी औरत चिल्लाने लगी उसकी छोटी बेटी आग में फंस गई है... किसीने हिम्मत नहीं करी आग में घुस कर बच्ची को बचाने के लिए... पर वह कुत्ता जो हमे वहाँ लाया था... वह अचानक आग के भीतर कुद गया... कुछ देर बाद छोटी लड़की को खिंचते हुए बाहर लेकर आया.... कुछ देर बाद पुलिस पहुँच कर हमारी गवाही लेकर उस पान वाले को गिरफ्तार कर लिया.... उस पान वाले की बीवी और बच्चे वहीँ रह गए... हम लोग जो वहाँ पर मौजूद थे ने कुछ पैसे कलेक्शन कर उसे देकर अपने अपने घर चले गए...
मैं घर पर पहुँची... किताबें रख कर पुरी दिन में घटित घटनाओं के बारे में सोच रही थी... तब सोनी मैक्स पर... अमिताभ बच्चन अभिनीत अग्निपथ फिल्म की एक सीन चल रही थी....
उस सीन में विजय चौहान अपनी माँ से कहता है पुरे बांबे में उसकी माँ और बहन को छेड़ने वाला कोई नहीं है... क्यूंकि सब जानते हैं... किसीने ऐसी हिमाकत की... तो वह उन्हें बीच से काट डालेगा...
ज़वाब में उसकी माँ सुहाषीनी चैहान कहती है - वाह क्या खूब तरक्की कर ली है तुने... तेरे पिता कहा करते थे... हज़ारों बरस लग गए... इंसान को जानवर से इंसान बनने के लिए... तुने तो जरा भी देर नहीं लगाई... वापस जानवर बनने के लिए....


यह भले ही एक फिल्मी डायलॉग थी... पर उस दिन घटित हुए सारे घटनाओं के बारे में सोच रही थी... जहाँ एक और इंसान अपने कद से गिर कर... जानवर बन कर... अपनी ही आशियाना को आग में झोंक दिया था... वहीँ एक जानवर अपने कद से उपर उठकर आग से इंसान की अगली पीढ़ी को बचा लाया....
शायद यही मानव का क्रमिक विकास के वस्तुवादी इक्कीसवीं सदी में औरत जिम्मेदारी कम मौका जादा लगती है
Awesome update bro
 
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