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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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Kala Nag

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👉सड़सठवां अपडेट
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रविवार

रुप अपनी बेड पर सोई हुई है l शुभ्रा आकर उसे जगाती है l

शुभ्रा - चलो उठो रुप... जल्दी उठो...
रुप - (उठ कर करवट लेते हुए) भाभी सोने दीजिए ना...
शुभ्रा - क्यूँ राजकुमारी जी... क्यूँ...
रुप - (झट से उठ कर बेड पर बैठ जाती है) भाभी... आप मुझे यह राजकुमारी कहा ना करें..
शुभ्रा - ठीक है... नंदिनी जी... आज दुपहर को पार्टी की इंवीटेशन दे दिया तुमने... और तैयारी नहीं करनी है क्या...
रुप - आप ही कर दो ना...
शुभ्रा - हाँ कर तो दूँ... बशर्ते तुम्हें मैं राजकुमारी कहती रहूँ तो...
रुप - बिल्कुल नहीं...
शुभ्रा - तो तैयार हो जाओ...
रुप - ठीक है... मैं तैयार होती हूँ... पर करुँगी क्या...
शुभ्रा - कुकिंग... यानी रसोई...
रुप - क्या... मैं और रसोई... हा हा हा हा... भाभी.... आप मजाक कर रही हो ना...
शुभ्रा - नहीं... बिल्कुल नहीं... आई एम सीरियस...
रुप - भाभी... आप जानती हैं ना... मुझे कुकिंग नहीं आती....
शुभ्रा - अरे.... अपनी दोस्तों को तुमने बुलाया है... नौकरों से खाना बना कर खिलाओगी क्या...
रुप - तो... किचन में... मैं क्या पकाउंगी...
शुभ्रा - खाना...
रुप - भा.. ह.. भी... क्यूँ मेरे दोस्तों के सामने मेरी नाक कटवाने पर तुली हुई हो...
शुभ्रा - तुम घबराओ मत... मैं पुरे दिन भर तुम्हारे साथ रहूँगी... और तुम्हें खाना बनाने में मदद करुँगी...
रुप - (चहकते हुए) क्या... मतलब... आपको खाना बनाना आता है...
शुभ्रा - हाँ... वह भी बहुत ही अच्छे से...
रुप - वाव... तब तो ठीक है... पर भाभी... विक्रम भैया और वीर भैया... वह क्या...
शुभ्रा - तेरे बड़े भाई तो शायद कल या परसों तक आ जायें... और तेरे वीर भैया... वह शायद अभी तक उठे नहीं हैं...
रुप - ओ... हाँ... आज संडे है ना...

उधर अपने कमरे में वीर सोया हुआ है l उसकी नींद टूट जाती है l क्यूँकी बेड पर रखे उसकी मोबाइल फोन बजने लगती है l नींद भरे आँखों में वीर को डिस्प्ले पर स्टुपीड गर्ल दिखता है l वह झट से फोन उठाता है l

वीर - हैलो.. हैलो... हैलो..

फोन कट चुका था I वीर वापस फोन लगाता है l पर अनु फोन काट देती है l वीर फिर फोन लगाता है l इस बार भी अनु फोन काट देती है l वीर खीज जाता है l तभी उसके मोबाइल पर मैसेज रिंग टोन बजने लगती है l वीर मैसेज देखता है अनु की मैसेज थी, लिखा था

मैं पटीया रघुनाथ पुर के जगन्नाथ मंदिर में इंतजार कर रही हूँ... अगर आपको बचपन का एक दिन मेरे साथ जीना है... तो नौ साढ़े नौ के बीच आ जाइएगा... और पुरा दिन मेरे साथ गुजारीये...- अनु

वीर - ठीक है मैं पहुँच जाऊँगा...


जल्दी कीजिए आठ बज चुके हैं - अनु

वीर - (मोबाइल पर टाइम देखता है) ओह माय गॉड...

कह कर झटपट बेड से उठ कर बाथरूम को भागता है l बाथरूम में जल्दी जल्दी तैयार होने लगता है l

उधर नहा धोके तैयार हो कर किचन में पहुँच कर रुप देखती है वहाँ कोई नहीं हैं l रुप को सारे नौकर बाहर किचन के बाहर दिखते हैं l पर कोई किचन के अंदर नहीं है l

रुप - भाभी... आज किचन में कोई भी नहीं है... क्यूँ...
शुभ्रा - मैंने उन्हें मना किया है...
रुप - क्यूँ.. क्यूँ..
शुभ्रा - क्यूँकी सबकुछ करना तुम्हें ही है... इन लोगों से और मुझसे छोटी मोटी हेल्प ही ले सकती हो...
रुप - किस तरह की हेल्प...
शुभ्रा - सभी तरह के हेल्प... सिवाय गैस पर खाना बनाने के...
रुप - हे भगवान... अब क्या करूँ... अगर कुछ गड़बड़ हुई तो भाभी... मेरी दोस्ती टुटेगी अलग... मेरा मजाक बन जाएगा वह अलग..
शुभ्रा - अरे ऐसे कैसे तुम्हारी दोस्ती टुट जाएगी.... ऐसे कैसे कोई तुम्हारा मज़ाक उड़ाएगा... मैं हूँ ना... चलो आज सबसे पहले चाय बनाओ...
रुप - क्या... नहीं.. यह मुझसे नहीं होगा प्लीज भाभी...
शुभ्रा - ओह कॉमन... मैं हूँ ना...

रुप आसमान के तरफ देख कर हाथ जोड़ती है और चाय की पैन को गैस पर रख देती है l टी पैन गैस बर्नर पर रखने के बाद रुप शुभ्रा की ओर देखती है l शुभ्रा हँसते हुए चाय बनाने की बिधि बताती जाती है और रुप बिल्कुल वैसी ही करती जाती है l फाइनली चाय बन कर तैयार हो जाती है l उसके बाद शुभ्रा रुप को ब्रेड बटर टोस्ट के साथ आलू मसाला बनाना सिखाती है l नाश्ता भी बन जाने के बाद शुभ्रा एक नौकर को डायनिंग टेबल पर लगाने को कह कर रुप को डायनिंग हॉल में लेकर आ जाती है l दोनों डायनिंग टेबल पर बैठने को होते हैं कि वीर तैयार डायनिंग हॉल में आकर सीधे डायनिंग टेबल पर बैठ जाता है और नौकरों से

वीर - जल्दी से... चाय लाओ और नाश्ता लगाओ...

सभी नौकर शुभ्रा की ओर देखते हैं l शुभ्रा इशारे से चाय नाश्ता देने को कहती है l नौकर वीर के लिए चाय नाश्ता सर्व कर देते हैं l वीर चाय पीता है, नाश्ता भी कर लेता है और बाहर चला जाता है l उसके जाते ही रुप खुश हो जाती है

रुप - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) हुस्स्स्स्स्... वाव भाभी... मैं डर रही थी... चाय नाश्ता बढ़िया बना है या नहीं... पर वीर भैया जिस तरह बिना रिएक्शन दिए पुरा नाश्ता खतम कर गए हैं... मतलब ठीक ही बना है... (नौकरों से) चलो चलो हमें भी नाश्ता दो...

यह कह कर एक्साइटमेंट के साथ टेबल पर बैठ जाती है और शुभ्रा को इशारे से अपने पास बिठाती है l नौकर भी बिना देर किए चाय नाश्ता टेबल पर सर्व कर देते हैं l जैसे ही दोनों चाय को होठों से लगाती हैं, दोनों का चेहरा बिगड़ जाता है l शुभ्रा और रुप एक दुसरे को देखते हैं l

शुभ्रा - (अपनी जीभ को दांतों तले दबा कर) कोई बात नहीं... चाय में बाद में भी चीनी डाली जा सकती है... (कह कर नौकर से) शुगर क्यूब लाना जरा...
रुप - भाभी... चाय तक तो ठीक है... कहीं नाश्ते में तो गड़बड़ी नहीं हो गई... (कह कर आलू मसाला चखती है) ईईईई... नमक... नमक नहीं है...(शुभ्रा से) भाभी... आपको सच में खाना बनाना आता है ना...
शुभ्रा - देखो रुप.. मैं तीन साल बाद किचन में घुसी हूँ... पर कोई मेजर मिस्टेक तो नहीं हुआ है ना... वैसे भी शुगर चाय में बाद में डाल कर पीते हैं... और नमक बाद में भी स्वाद अनुसार डाला जा सकता है... यु नो...
रुप - भाभी... क्या सच में... दोपहर का खाना हम ही बनायेंगे या फिर...
शुभ्रा - हा हा... (हँसते हुए) बस इतने में घबरा गई... कोई नहीं.... हम दोनों आज बहुत ही बढ़िया खाना बनायेंगे...
रुप - (जैसे डाऊट हो) सच में...
शुभ्रा - आई प्रॉमिस... (रुप मुस्करा देती है) पर एक बात समझ में नहीं आई...
रुप - क्या...
शुभ्रा - राजकुमार ने बिना चीनी के चाय पी ली.... और बिना नमक वाले आलू मसाला के साथ ब्रेड टोस्ट कैसे खा लिए...
रुप - हाँ... भाभी... क्या वीर भैया रोज... ऐसी बिना टेस्ट वाला खाना खाते हैं...

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पलासुणी
होटल सिंफनी हाइटस
रॉकी अपनी गाड़ी से उतरता है l सुबह सुबह रॉकी को होटल के सामने देख कर एक गार्ड भागते हुए आता है और एक जोरदार सैल्यूट करता है l रॉकी मुस्करा कर उसे हाथ दिखा कर ओके कहता है और होटल के अंदर दाखिल होता है I लिफ्ट के जरिए सबसे ऊपर पाँचवी मंजिल के बंकेट हॉल में पहुँचता है l बंकेट हॉल में अभी सजावट चल रही है l मैनेजर वहीँ पर खड़ा था, वह रॉकी को देख कर भागते हुए आया

मैनेजर - सर शाम होने से पहले हो जाएगा...
रॉकी - गुड जॉब... ओके तुम जाओ... मैं कुछ देर बैठ कर... चला जाऊँगा...

मैनेजर वहाँ से चला जाता है l सजावट की ओर देखते हुए खुद से मन ही मन मुस्कराने लगता है l
क्यूँकी इनके कई होटल्स हैं l यही सिंफनी होटल उनका इकलौता फाइव स्टार होटल है और बाकी सभी थ्री या फोर स्टार होटल्स हैं l सभी होटल्स में सेक्यूरिटी ESS के हवाले है, सिवाय सिंफनी हाइटस को छोड़ कर l क्यूँकी इस होटल में रेनोवेशन चल रहा है, और जिस कंट्रैक्टर यह रेनोवेशन कंट्राक्ट उठाया है उसने इसी शर्त पर काम पुरा करने का बिड़ा उठाया कि काम खतम होने तक वह अपनी सिक्युरिटी सर्विस के सुपरविजन में देख रेख करेगा l इसलिए इस होटल में ESS सेक्योरिटी गार्ड्स के वजाए SSS सेक्योरिटी गार्ड्स गार्ड दे रहे हैं l इसलिए अगर रुप आती भी है तो वह पहचानी नहीं जाएगी l और चूँकि रेनोवेशन में सिर्फ बंकेट हॉल का काम पुरा हो चुका है, इसलिए रॉकी ने इसी हॉल में एक हजार कैंडल लैम्प लगाने के लिए मैनेजर से कहा था l जिसका अभी काम चल रहा है l काम देखने के बाद रॉकी लिफ्ट में आता है और लिफ्ट का अच्छे से मुआयना करता है l मुआयना करने के बाद लिफ्ट ऑपरेटिंग कंट्रोल रुम में जाता है l कंट्रोल रुम में बैठे सर्विस गार्ड्स रॉकी को सैल्यूट ठोकते हैं l रॉकी उनसे लिफ्ट ऑपरेशन के बारे में डिटेल्स में पूछता है l गार्ड्स उसे लिफ्ट ऑपरेशन, लोड कंट्रोल वगैरह सब समझाते हैं l

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पटीया रघुनाथ पुर
जगन्नाथ मंदिर
वीर गाड़ी से पहुँचता है l गाड़ी से उतर कर इधर उधर देखने लगता है l उसे अनु मंदिर के मुख्य द्वार पर खड़ी दिखती है l बदन पर नीली रंग की कुर्ती पहनी हुई है और सफेद रंग की ओढ़नी डाली हुई है l वीर को देखते ही अनु की चेहरे पर एक दमक भरी मुस्कान छा जाती है l वीर उसके पास पहुँचता है l

अनु - गुड मॉर्निंग राजकुमार जी...
वीर - गुड मॉर्निंग अनु... सो... आज का क्या प्लान है...
अनु - राजकुमार जी ... आज हम मेरे बचपन का एक दिन को दोहराएंगे... वह दिन... जो मेरे लिए सबसे यादगार है....
वीर - मतलब... तुम्हारे बचपन के एक दिन का... हम एक्शन रीप्ले करेंगे. ..
अनु - हाँ... वह दिन जो मुझे आज भी सबसे ज्यादा प्यारा है... याद आने पर गुदगुदाता है... हँसाता है...
वीर - वाव... अनु... आई एम सो एक्साइटेड...
अनु - राजकुमार जी... आपको बस आज मुझे फालो करना है....
वीर - ओके...
अनु - और एक बात सर...
वीर - क्या...
अनु - आज आप राजकुमार या वीआईपी बनकर आराम नहीं ढूंढेंगे... बल्कि एक आम आदमी बन कर मेरे साथ रहेंगे....
वीर - (थोड़ा सोच में पड़ जाता है) ठीक है... आई एम रेडी...
अनु - और एक आखरी बात... आज जो भी खर्चा होगा... सब मेरे तरफ से... आप अपनी जेब से फूटी कौड़ी भी नहीं निकलेंगे...
वीर - व्हाट... व्हाट नॉनसेंस अनु... इच्छा मेरी है... और खर्चा तुम करोगी.. यह ठीक नहीं लगेगा...
अनु - सर शर्त तो यही है... आज एक बचपन को जिएंगे... बचपन के पास पैसे नहीं होते...
वीर - (एक गहरी सांस लेता है और छोड़ कर) ठीक है... पर तुम्हें बाद में पैसे वापस कर दूँगा...
अनु - तब... जब आप मुझे ऐसे ही कभी घुमाने ले जाएं...
वीर - ह्म्म्म्म... ठीक है...

फिर अनु वीर को एक थैला थमा देती है l वीर उस थैले में देखता है कि एक जोड़ी साधारण से कपड़े हैं l कपड़े देख कर वीर अनु को देखता है l

अनु - राजकुमार जी आप ऐसे ना देखिए... आज आप एक आम आदमी के लिबास में होंगे... एक आम सी जिंदगी... और आम सा... मगर बहुत क़ीमती बचपन जिएंगे... समझ लीजिए यह उसका ड्रेस कोड है...
वीर - (अनु को देख कर मुस्करा देता है, और अपना सिर उपर नीचे हिलाते हुए) ठीक है... तो लगे हाथ यह भी बता दो... बदलुँ कहाँ पर यह ड्रेस...
अनु - मैंने इस मंदिर में बात कर ली है... आइए चलते हैं... मैं एक कमरा दिखाऊंगी... वहाँ जा कर अपनी कपड़े बदल लीजिए...
वीर - हूँ... ठीक है... (चलने को होता है) एक मिनट... आज दिन भर तुम घर से बाहर रहोगी... तुम्हारी दादी... मान गई...
अनु - हाँ... मान गई... पर मैंने वजह कुछ और बताया है... और आज के दिन... वह मुझे कभी मना नहीं करती...
वीर - क्यूँ... आज का दिन कुछ खास है क्या...
अनु - है भी और.... नहीं भी... (वीर कुछ पूछने को होता है) राजकुमार जी... हम बातों में ही टाइम बर्बाद कर रहे हैं... प्लीज...

वीर कुछ कह नहीं पाता l वह अनु के पीछे पीछे चल देता है l अनु मंदिर के एक कमरे में वीर को भेज देती है l थोड़ी देर बाद वीर अनु के दिए कपड़ों में अनु के सामने आता है l अनु वीर से वह थैला ले लेती है जिसमें वीर अपने कपड़े रख दिए थे l

अनु - राजकुमार जी... अब आप अपना पर्स दीजिए... (वीर पर्स निकाल कर दे देता है) और मोबाइल भी... (मोबाइल भी निकाल कर दे देता है) अब... गाड़ी की चाबी... (अनु को गाड़ी की चाबी भी दे देता है)

अनु वीर की सारे सामान लेकर वीर की गाड़ी में रख देती है और गाड़ी को लॉक कर चाबी वीर को दे देती है l अनु एक दुकान पर जा कर पुजा के लिए कुछ सामान खरीद कर वीर को मंदिर के भीतर ले जाती है l वहाँ पुजा कराने के बाद मंदिर के बाइस पावछ(बाइस सीढ़ी) पर बैठ जाती है और वीर को बैठने को इशारा करती है l वीर अनु के पास बैठ जाता है l

वीर - ह्म्म्म्म.. तो... मंदिर में पूजा-अर्चना से... बचपना शुरु...
अनु - (मुस्कराते हुए) हाँ...
वीर - तो अब हम कहाँ जाएं...
अनु - यहीँ कुछ दुर पैदल... पहले कुछ नाश्ता कर लेते हैं...
वीर - मैं तो घर से ही नाश्ता कर आया हूँ....
अनु - वह जवान वीर सिंह ने खाए होंगे... अब बच्चा वीर सिंह बच्ची अनु के साथ खाएंगे....
वीर - ह्म्म्म्म... ठीक है... क्या खाना है...
अनु - आइए... चलते हुए थोड़ी दूर आगे चलते हैं...

अनु और वीर दोनों रास्ते के किनारे किनारे होकर कुछ दूर चलते हैं l थोड़ी दूर बाद एक बड़ी सी छतरी के नीचे जहां एक आदमी ओड़िशा का पारंपरिक स्ट्रीट नाश्ता आलुदम दहीबडा बेच रहा था उसके पास पहुँचते हैं l

अनु - भैया... दो प्लेट आलुदम दहीबडा देना...
वीर - क्या.. यह... स्ट्रीट फूड... सो अनहाइजेनीक...
अनु - आज पुरे दिन भर के लिए... बड़े वाले वीर को भुला दीजिए ना... बस छोटे वाले वीर को आगे लाइये... जिसमें दुनियादारी की बिल्कुल इल्म ना हो... जिसमें बचपना के साथ साथ उत्सुकता भी हो...

वीर खामोश रहता है और चुपचाप अपना प्लेट लेकर लकड़ी के स्पून से खाना शुरु ही किया था कि

अनु - नहीं नहीं... ऐसे... (वीर को दिखाते हुए) अपनी हाथ से खाइए... (कह कर अनु स्पुन के वगैर अपनी हाथ से खा कर दिखाती है)

वीर भी अनु की तरह हाथ से खाता है l पहली बार उसे खाने में मजा आ रहा था l वह बड़े चाव से खाने के बाद अनु को देखता है, अनु आलूदम की ग्रैवी और दहीबड़े की मसाला दही की मिक्स बड़ी चाव से प्लेट को मुहँ से लगा कर पी रही थी l वीर भी वैसा ही करता है l दोनों फिर से वही गैवी मिक्स मांग कर पीते हैं l हाथ धोने के लिए अनु उस स्टॉल में रखे एक बोतल उठा कर हाथ धोती है l वीर भी वही करता है l अनु पैसे चुका देती है l फिर दोनों आगे की ओर चलने लगते हैं l

वीर - अनु अब हाथ कहाँ पोंछे... रूमाल तो गाड़ी में रह गया...
अनु - ऐसे... (अपने कपड़े के ऊपर हाथ फ़ेर कर पोंछ लेती है)

वीर झिझकते हुए अपने कपड़ों पर हाथ फ़ेर कर हाथ पोंछने लगता है I हाथ पोंछ लेने के बाद वीर अनु मुहँ बना कर देखता है l अनु घबरा जाती है उसे लगता है शायद वीर को पसंद नहीं आया, पर अचानक

वीर - हा हा हा हा... (हँसने लगता है)
अनु - (हैरान हो कर) क्या हुआ...
वीर - वाह अनु वाह... मजा आ गया... हा हा हा (अनु भी मुस्करा देता है)

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शुभ्रा किचन के अंदर सब्जियां काटने में लगी है l रुप उसके पास खड़ी हो कर देख रही है l शुभ्रा बीच बीच में रुप को देख रही है l

शुभ्रा - क्या बात है नंदिनी... कोई परेशानी है...
रुप - नहीं... ऐसी तो कोई बात नहीं... आपको ऐसा क्यूँ लगा...
शुभ्रा - (सब्जियाँ काटना छोड़ कर रुप की दोनों हाथों को पकड़ कर) नंदिनी... कल जब से तुम कॉलेज से आई हो... पता नहीं क्यूँ मुझे लग रहा है... की तुम मुझसे कुछ कहाना चाहती हो... पर शायद तुम्हें किसी बात पर कंफ्यूजन है... जो तुमको रोक रही है...
रुप - (थोड़ी देर के लिए चुप रहती है) भाभी... वह मैं कल.. उस मॉल वाली आंटी से मिली थी...
शुभ्रा - कौन मॉल वाली आंटी....
रुप - वह.. है ना... वह प्रताप को माँ...
शुभ्रा - (रुप की हाथ छूट जाती है) क्या... क... किसलिए...
रुप - कल ही बताया तो था... गाड़ी पंक्चर हो गई थी...
शुभ्रा - हाँ तो...
रुप - तभी उनसे मुलाकात हुई थी...
शुभ्रा - (किचन की स्लैब की ओर नजर फ़ेर लेती है)
रुप - नहीं... वह मुझे... कॉफी स्टॉल वाली लड़की के रूप में पहचान कर बात की... और कुछ नहीं...
शुभ्रा - ओह... और
रुप - उनका नाम एडवोकेट प्रतिभा सेनापति है...
शुभ्रा - अच्छा... (फिर चौंकते हुए) व्हाट...
रुप - हाँ वही... सुचरिता मैग्जीन में कॉलम लिखती हैं...
शुभ्रा - ओह माय गॉड.... औरतों पर इतनी अच्छी कॉलम लिखने वाली... अपने बेटे के प्यार में किस कदर पागल है... पर...
रुप - पर क्या भाभी...
शुभ्रा - क्या यह वही प्रतिभा सेनापति हैं... जिनके बारे में... मुझे थोड़ी बहुत जानकारी है... या कोई और...
रुप - कोई और... मतलब... प्रतिभा सेनापति एडवोकेट कोई और भी हैं क्या....
शुभ्रा - पता नहीं... पर... मैं जिन प्रतिभा सेनापति को जानती हूँ... उनका एक बेटा था... और उसकी हत्या हो गई थी...
रुप - (चौंकते हुए) क्या...
शुभ्रा - हाँ...
रुप - तो... व... वह... प.. प्रताप...
शुभ्रा - यहीं पर तो मैं भी अब कंफ्यूज हो गई हूँ... तुमने जिन्हें देखा है... क्या वह प्रतिभा सेनापति हैं... या कोई और... उन माँ बेटे का प्यार देख कर लगता नहीं है की...
रुप - की...
शुभ्रा - यह प्रताप और प्रतिभा सेनापति... शायद कोई और हैं... जिन्हें मैं नहीँ जानती...
रुप - (खामोश हो जाती है और उसकी नजरें झुक जाती हैं)
शुभ्रा - मैं... समझ सकती हूँ...

तभी इंटरकम फोन की घंटी बजने लगती है l इंटरकम की आवाज सुन कर दोनों अपनी अपनी खयालों से बाहर आते हैं l एक नौकर कुछ देर बाद उनके पास आता है और

नौकर - युवराण जी... चार पाँच लड़कियाँ आई हैं... राजकुमारी जी के लिए पुछ रहे हैं...

शुभ्रा - (खुश होकर नौकर से) हाँ हाँ गेट पर कहो... उनको इज़्ज़त के साथ अंदर भेज दें...
नौकर - जी अच्छा...

इतना कह कर नौकर वहाँ से चला जाता है l नौकर के जाते ही रुप शुभ्रा की ओर सवालिया नजर से देखती है l

शुभ्रा - मुझे नहीं पता था कि... तुम्हारे दोस्त इतने जल्दी आ जाएंगे...

रुप अपनी जीभ दांतों तले दबा कर किचन से बाहर भाग जाती है l कुछ देर बाद रुप के सभी दोस्त ड्रॉइंग हॉल में आते हैं l रुप पहले से ही ड्रॉइंग हॉल में थी सबके पहुँचते ही खुशी से उछलते हुए सबसे गले लग जाती है l हॉल में शुभ्रा भी पहुँचती है l

रुप - यह... (शुभ्रा को दिखाते हुए) यह मेरी भाभी हैं...
दीप्ति - तुम्हारी.. माँ... गुरु... सखी.. सहेली... एटसेट्रा...
शुभ्रा - ओ... तो तुम दीप्ति हो...
दीप्ति - वाव भाभी... (अपनी जीभ को दांतों तले दबा देती है और फिर ) क्या... मैं आपको भाभी कह सकती हूँ...
शुभ्रा - सिर्फ़ तुम ही क्यों... तुम सब कह सकते हो... पर पहले यह बताओ... इतनी जल्दी यहाँ कैसे और क्यूँ...
बनानी - वह भाभी... (रुप की ओर देखती है) नंदिनी ने ही बुलाया है हमें... जल्दी आने के लिए...
शुभ्रा - ओ... हूँ... वह क्यूँ भला...
भाश्वती - वह इसलिए कि आज आपने उसे किचन में फंसा दिया है... उसे बचाने हम आए हैं...

इतना ही कहा था भाश्वती ने की रुप उसके मुहँ पर एक कुशन फेंक मारती है l

भाश्वती - आ ह्...

भाश्वती भी वही कुशन उठा कर वापस नंदिनी के ऊपर फेंकती है l अब नंदिनी दो दो कुशन फेंकती है इस बार दीप्ति और तब्बसुम को लगती है l फिर सब के सब सोफ़े से कुशन उठा कर कुशन युद्ध करने लगते हैं और चिल्लाने लगते हैं l यह सब देख कर शुभ्रा हँसने लगती है और उनको वहीँ छोड़ कर किचन में आ जाती है l

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कुछ दूर आगे चलने के बाद वीर और अनु एक बस स्टॉप पर आकर खड़े हुए थे l स्टॉप पर इक्का दुक्का लोग ही थे l क्यूँकी आज वर्किंग डे नहीं था इसलिए भीड़ ना के बराबर थी l वीर वहीँ पर खड़े खड़े पाँच मिनट में ही पक जाता है l

वीर - और कितनी देर अनु...
अनु - वह बत्तीस नंबर की बस आ जाए... उसके बाद...
वीर - क्यूँ कहाँ जाना है...
अनु - (मुस्कराते हुए) नंदन कानन...
वीर - क्या... चिड़िया घर... क्यूँ...
अनु - कभी गए हैं आप...
वीर - नहीं.. पर...
अनु - (कुछ नहीं कहती है सिर्फ़ मुस्करा कर वीर को देखती है)
वीर - (अपना सिर हिलाते हुए) ठीक है... जहां तुम ले चलो...

कुछ देर बाद बस आ जाती है l दोनों बस पर चढ़ जाते हैं l अनु नंदन कानन के लिए दो टिकेट कर लेती है l वीर का यह पहला बस एक्सपेरियंस था l वह गर्मी में पक जा रहा था, वह अनु के बगल में बैठा सोच रहा था
"बचपन को एक्सपेरियंस करने के चक्कर में यह क्या एक्सपेरियंस कर रहा हूँ l रास्ते पर नाश्ता वाकई बहुत बढ़िया रहा, बस की खिड़की से रास्ते भर नजाने कितने स्ट्रीट फूड की स्टॉल दिख रहे हैं और सभी स्टॉल पर बच्चों से लेकर जवान लड़के लड़कियों की भीड़ लगी हुई है l मतलब सभी वह स्ट्रीट फूड एंजॉय कर रहे हैं l ठीक है अब देखते हैं आगे क्या एक्सपेरियंस होने वाला है I "

यह सोचते सोचते वीर के चेहरे पर एक अनजानी मुस्कराहट छा जाती है l उसे होश तब आती है जब अनु उतरने के लिए कहती है l दोनों उतर जाते हैं l अनु जा कर नंदन कानन जु के एंट्रैंस पर टिकट खरीद लेती है l फिर दोनों अंदर जाते हैं l अंदर जाते ही अनु दो बुड्ढी के बाल खरीद कर लाती है और एक वीर को देती है l वीर देखता है यह रुई जैसी मिठाई सारे बच्चे ही खा रहे हैं l वीर के हाथ में बुड्ढी के बाल देख कर वहाँ पर मौजूद सब बड़े वीर की देखते हैं l वीर भी चिढ़ाने के स्टाइल में बुड्ढी के बाल खाना शुरु करता है l फिर अनु और वह चिड़िया घर घुमने लगते हैं, घूमते घूमते वीर देखता है अनु बहुत ही एक्साइटेड है l पुरा चिड़िया घर घुम लेने के बाद दोनों टॉय ट्रेन के स्टेशन पर पहुँचते हैं l वहाँ पर लंबी लाइन लगी हुई है l अनु किसी तरह से टिकट का इंतजाम करती है l फिर दोनों टॉय ट्रेन में भी घूमते हैं l टॉय ट्रेन चिड़िया घर के उस हिस्से से गुज़रती है जहां पर बड़ा सा तालाब है और उस तालाब के एक हिस्से में बोटिंग हो रही है और दुसरे हिस्से में पानी के पक्षियों की जमावाड़ा है जैसे जैसे ट्रेन गुजरती है पक्षियां उड़ने लगती हैं l उड़ते पक्षियों को देख कर ट्रेन में बैठे बच्चे और बच्चों के साथ अनु भी चिल्लाने लगती है l वीर उसे बच्चों की तरह चहकते हुए देख हँसने लगता है l ट्रेन की जर्नी खतम होते ही अनु वीर को साथ लेकर बोटिंग के लिए पहुँचती है l अनु पैडल बोट के लिए टिकट लेती है l अब वीर भी अनु के साथ एंजॉय करने लगा था l वह खुशी से अनु के साथ बोटिंग करने लगता है l पैडलिंग के साथ साथ चेहरे और शरीर के ऊपर पानी के छींटे पड़ने से अनु की रिएक्शन देख कर वीर बहुत खुश हो जाता है l बोटिंग के दौरान वीर अनु पर पानी की छींटे मरने लगता है, जिससे अनु बचने की कोशिश करती है और वह भी वीर पर पानी की छींटों की बरसात करने लगती है l ऐसे उनकी बोटिंग खतम हो जाती है l उसके बाद वीर और अनु चिड़िया घर से बाहर निकलते हैं l वीर को अब जबर्दस्त भुख लगने लगी l वह अनु को जिस तरह से देखता है अनु उसकी हालत समझ जाती है l चिड़िया घर के बाहर अनु एक ऑटो रिक्शा लेती है और रिक्शेवाले को एक जगह की पता बताती है l

वीर - यह हम कहाँ जा रहे हैं....
अनु - कुछ मजेदार खाने...
वीर - हू स्स्स्स्... थैंक्स अनु... मेरी तो हालात सच में... खराब हो चली थी...

अनु कुछ नहीं कहती वीर को देखकर सिर्फ मुस्करा देती है l वीर की हालत भले ही भुख और थकान के मारे खराब थी पर अनु की इस मुस्कान ने उसके अंदर जान भर देती है l वीर देखता है अनु ऑटो से बाहर देख रही है और उसकी लटें चेहरे पर उड़ रहे हैं और अनु बार बार अपनी उड़ती लटों को अपनी कान के पीछे किए जा रही है l यह देख कर वीर को अंदर से अच्छा लगने लगता है l उसके होठों पर एक हँसी झलकने लगती है l

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डायनिंग हॉल में बड़े से टेबल पर सब अपनी अपनी जगह बैठे हुए हैं l शुभ्रा और रुप कुकिंग ऐप्रॉन के साथ खाना ट्रॉली में लाते हैं l

तब्बसुम - भाभी... नंदिनी... आप परोसने की जहमत ना उठाएँ... खाना बस आप टेबल पर रख दीजिए... हम आपस में बांट लेंगे...
शुभ्रा - ठीक है...

रुप और शुभ्रा टेबल पर खाने के सारे आइटम रख देते हैं और दोनों अपनी अपनी एप्रन उतार कर डायनिंग टेबल के पास अपनी जगह बना लेते हैं l

दीप्ति - भाभी... क्या हम शुरु करें...
शुभ्रा - हाँ... हाँ पूछने की क्या बात है... अपना ही घर समझो...
दीप्ति - चलो फ्रेंड्स... टुट पड़ो...

उसके बाद सब खाने की बाउल को बारी बारी से लेकर अपनी अपनी थाली में परोसने लगते हैं, फिर खाना शुरू करते हैं l

शुभ्रा - हाँ तो.. छटी गैंग के मेंबर्स... अब बोलो.. मैंने तुम्हारे दोस्त को कैसे और कहाँ फंसाया...
बनानी - वह भाभी... नंदिनी ने हमें मैसेज भेज कर कहा कि... भाभी मुझसे खाना बनवा रही हैं... मुझे आकर बचाओ...
शुभ्रा - ओ.... तो तुम लोग जल्दी इसलिए आए... ताकी तुम्हारे दोस्त को किचन में घुसना ना पड़े...
इतिश्री - जी भाभी... क्यूँ नंदिनी... यही कहा था ना तुमने...

रुप खाना खाते हुए सबको अपनी आँख और मुहँ सिकुड़ कर देखती है l पर उसके सारे दोस्त उसकी परवाह किए वगैर उसके भाभी के कान में बढ़ा चढ़ा कर रुप के बुलावे को पेश कर रहे थे l शुभ्रा भी उनकी बातों का मजा ले रही थी l पुरे खाने के सेशन में रुप चुप रही और अपनी दोस्तों को आँखे दिखाती रही l
खाना खतम हो जाने के बाद सभी रुप के कमरे में जाते हैं और अपनी सेक्योरिटी के लिए शुभ्रा को अपने साथ लेकर जाते हैं l रुप सिर्फ़ अपनी हाथ मलती रह जाती है l

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ऑटो रुकती है l अनु और वीर उतर जाते हैं l अनु ऑटो वाले को पैसे दे कर विदा कर देती है l वीर चारो ओर देख रहा है पर उसे कहीं भी आसपास खाने की दुकान तो दुर घर भी नहीं दिख रहा है l

वीर - अनु... यह हम कहाँ आ गए... अपना खाना पीना कहाँ होगा...
अनु - यह बारंग रोड पर स्थित मशहूर पलेइ फार्म है... यहाँ इस वक़्त हमें.. ककड़ी, तरबूज अनानास मिल जाएगा... आज हम यही खाएंगे... अगर मिला तो...
वीर - व्हाट डु यु मीन मिला तो...
अनु - क्यूँ की हम यहाँ खरीद कर नहीं... चोरी कर खाएंगे...
वीर - क्या... (ऐसे रिएक्ट करता है जैसे चार सौ चालीस वोल्ट का शॉक लगा हो) क्या... हम यह सब चोरी कर खाएंगे... इसमें बचपना कहाँ है...
अनु - राजकुमार जी... मैंने पहले से ही कहा था... आज आपको सिर्फ मुझे ही फॉलो करना है...
वीर - पर चोरी...
अनु - चोरी तब चोरी कहलाएगी... जब पकड़े जाएंगे... और जब पकड़े जाएंगे... तो पैसे दे देंगे...

वीर हैरानी से अपना आँख और मुहँ फाड़ कर देखने लगता है l अनु उसकी हालत देख कर मुस्करा देती है l

वीर - ठीक है... हम फार्म के अंदर चोरी से जाएंगे कैसे...
अनु - मैंने अपने बस्ती के लड़कों से एक चोर रास्ता का पता किया है... आप बस मेरे पीछे पीछे आइए...

इतना कह कर अनु आगे आगे चलती है और वीर उसके पीछे पीछे l फिर अनु को बाउंड्री के एक जगह तारों के बीच रास्ता दिख जाता है अनु झुक कर उन तारों के बीच से जाती है l वीर बड़ी मुस्किल से उन तारों के बीच से घुसता है I फिर अनु और वीर को सबसे पहले छोटे छोटे कांटे दार ककड़ी दिखते हैं l वीर से रहा नहीं जाता उन ककड़ीयों पर टुट पड़ता है और कई दिनों के भूखे की तरह खाने लगता है I अनु भी उसके साथ खाने लगती है l फिर अनु थोड़ी आगे जाती है जहां उसे कुछ भाड़े नजर आते हैं l अनु समझ जाती है वहाँ जरूर तरबूज होंगे l अनु वीर की हाथ पकड़ कर खिंचते हुए वहाँ ले जाती है l वीर को वहाँ पर तरबूज दिखते है पर उसे समझ में नहीं आता कौनसा तोड़े l वह अनु की तरफ देखता है l अनु इशारे से एक तरबूज दिखती है l वीर उसे तोड़ लाता है पर उसे खाए कैसे l अनु उसके हाथ से तरबूज लेकर नीचे फोड़ देती है फिर वहीँ आलती पालती मार कर बैठ जाती है और फटे हुए तरबूज को खाने लगती है l वीर भी उसका साथ देते हुए अनु के पास आलती पालती मार कर बैठ जाता है और मिट्टी पर गिरे तरबूज को उठा कर खाने लगता है l ऐसे ही दोनों पाँच तरबूज खा लेते हैं l तरबूज खाने के बाद वीर और अनु दोनों एक साथ डकार भरते हैं l दोनों का एक साथ डकार निकल जाने पर वीर बहुत जोर से हँसने लगता है l तभी कोई चिल्लाता है
- कौन है वहाँ...

वीर की हँसी रुक जाती है और वह उस तरफ देखता है l एक आदमी हाथ में डंडा लिए उनके तरफ भागते हुए आ रहा है l अनु वीर की हाथ पकड़ कर उठ कर भागने लगती है l वीर भी अनु के पीछे भागता है l दोनों उसी जगह पहुँचते हैं जहां से अंदर घुसे थे l पहले वीर अनु को बाहर भेजता है और फिर खुद बाहर निकलता है l दोनों फिर पीछे बिना मुड़े भागते हैं और मैंन रोड पर आकर अपने घुटने पर हाथ रख कर हांफने लगते हैं फिर दोनों अपने कमर पर हाथ रखकर खड़े हो जाते हैं l कुछ देर के लिए दोनों खामोश रहते हैं और फिर एक दुसरे को देखते हुए जोर जोर से हँसने लगते हैं l

वीर - (हँसते हँसते) ओ अनु... तुम तो बड़ी शैतान निकली...

अनु सिर्फ हँस रही थी और हँसते हँसते उसकी बातों का समर्थन में शर्मा रही थी l

वीर - (बड़ी मुस्किल से अपनी हँसी को रोकने के बाद) अब... क्या बाकी है अनु...
अनु - (अनु भी अपनी हँसी रोकते हुए) अब... अब हम चंद्रभागा जाएंगे... आज की आखिरी पड़ाव...
वीर - ठीक है... पर वहाँ करेंगे क्या...
अनु - समंदर की लहरों पर भागेंगे... गुब्बारे हवा में उड़ाएंगे... लहरों की पानी वापस जाने पर.. रेत पर जहां बुलबुले उठेंगी... हम वहाँ खोद कर छोटे छोटे केकड़े पकड़ेंगे...
वीर - वाव... कुछ भी समझ में नहीं आया... पर लगता है जरूर एक्साइटमेंट होगा... पर जाएंगे कैसे...
अनु - अब हम कुछ दूर यहाँ से चलते हुए जाएंगे... एक ऑटो लेकर... आपकी गाड़ी के पास जाएंगे... फिर आपकी गाड़ी से चंद्रभागा जाएंगे...
वीर - ठीक है... चलो... अपनी गाड़ी कुछ तो काम आई...

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दीप्ति - अच्छा भाभी... अब हम चलते हैं... काफी देर हो गई है...
नंदिनी - अरे... कहाँ... सुरज कहाँ ढला है...
शुभ्रा - हाँ और थोड़ी देर के लिए रुक जाओ... मैं आइसक्रीम मंगवाती हूँ...
तब्बसुम - नहीं भाभी जी... अभी हमे जाना ही चाहिए... हम जो एंजॉयमेंट बाहर रहकर कर सकते थे... यहाँ आकार उससे कई गुना ज्यादा किया है...
बनानी - हाँ भाभी... हम आज उनसे मिल लिए... जो हमारी दोस्त नंदिनी की एक्चुयल गार्डियन हैं... आप...
इतिश्री - और अपने ही दोस्त की टांग उसके ही घर में खिंचे... क्या यह कम मजेदार बात है...
भाश्वती - (रुप से) सॉरी यार... दिल पे मत लेना...
रुप - (भाश्वती को गले लगा कर) मैं तो तुम लोगों की कर्जदार हो गई हूँ... और क्या कहूँ... इस पिंजरे में भी तुम लोगों ने मुझे आजादी का एहसास दिला दिया... थैंक्यू...
बनानी - ओ हैलो.. यह थैंक्यू किसे दे रही हो... हमारा हक़ बनता है तुम पर...
रुप - हाँ.. सो तो है... और वादा रहा... यह हक़ उतारूंगी जरूर...
दीप्ति - हाँ हाँ उतार देना... पहले हमे बाहर तो छोड़ दो...
सब - हाँ हाँ... होस्ट की ड्यूटी होती है कि गेस्ट को बाहर छोड़ आए...
रुप - वह गेस्ट के लिए होता है... घोस्ट के लिए नहीं...
दीप्ति - देखिए ना भाभी....
शुभ्रा - (हँसते हुए) नंदिनी... जाओ अपने दोस्तों को छोड़ आओ.. जाओ...
नंदिनी - ठीक है भाभी...

फिर रुप सब दोस्तों के साथ बाहर आती है और सबको विदा करती है l सबके चले जाने के बाद रुप आकर अपनी भाभी के गले लग जाती है l

रुप - ओ भाभी... (खुशी के मारे उछलते हुए) आई लव यू.. भाभी.. थैंक्यू.. थैंक्यू... वेरी मच...
शुभ्रा - अरे... अरे.. अरे... इसमे.. थैंक्यू कैसे आ गया...
रुप - आप नहीं जानती भाभी... अपनी दोस्तों के साथ मैं एक ऐसा ही दिन बिताना चाहती थी... आपके वजह से वह अपने ख्वाहिश भी पुरी हो गई... बाहर भले ही ना जा सकी... पर घर में आजादी इतना महसूस हुआ कि... लगा ही नहीं के पार्टी और मौज मस्ती हम घर में कर रहे हैं...
शुभ्रा - कोई नहीं... तुम्हारे लिए कुछ भी...
रुप - थैंक्यू भाभी... (कह कर फिर से गले लग जाती है) बस और एक फेवर कर दीजिए...
शुभ्रा - (उसे अपने से अलग करते हुए) कैसा फेवर....

शुभ्रा अपने इस सवाल के जवाब में देखती है रुप की जबड़े भींच गई है और चेहरा कठोर हो गया है

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शाम ढल रही है
चंद्रभागा समुद्री रेत पर वीर और अनु लेटे हुए हैं l दोनों आसमान की ओर देख रहे हैं l नीले आसमान में टुटे बिखरे हुए छोटे छोटे बादल आसमान की नजारे को बहुत ही खुबसुरत बना रही थी l सुरज की रौशनी मंद हो रही थी और समंदर की ओर से आ रही हवा वीर के थके बदन को आराम पहुँचा रही थी l वीर करवट लेकर अनु की तरफ घुमता है l

वीर - अनु...
अनु - (वीर की तरफ करवट बदलती है) जी...
वीर - थैंक्यू..
अनु - (कुछ नहीं कहती सिर्फ मुस्करा देती है)
वीर - (उठ कर बैठ जाता है) अनु... तुमने कहा था कि... तुम अपनी बचपन की सबसे बढ़िया दिन को दोबारा जीना चाहती हो... अगर आज हमने जो जिया वह तुम्हारे बचपन की सबसे हसीन दिन था... तो वाकई तुम्हारा बचपन बहुत ही शानदार थी....
अनु - (उठ कर बैठ जाती है और जवाब में मुस्करा देती है)
वीर - आज हम मंदिर गए... फिर नाश्ता किया... वह भी स्ट्रीट फ़ूड... फिर चिड़ियाघर गए... बहुत मजे किए... सबसे मजा तो पलेइ फार्म में चोरी की रही.. और अब... पहले लहरों पर भागे... लहरें के किनारे पर रेत में उठ रहे बुलबुलों के पास छोटे छोटे केकड़े पकड़ना... फिर अपना नाम लिखना लहरों में अपने नाम को मिटते देखना... वाह क्या बात है... फिर हम दोनों का मिलकर रेत की मंदिर बनाना.... आई... आई कैंट एक्सप्लेन... व्हाट आई रियली गट... थैंक्स अगेन... वाकई तुम्हारा बचपन लाज़वाब था...
अनु - (आँखे नम हो जाती है, मुस्कराते हुए अपनी नजरें फ़ेर लेती है)
वीर - (अनु के आंसू दिख जाते हैं) (बात संभालते हुए) अनु... पता नहीं क्यूँ पर मुझे ऐसा लगा... जैसे आज हम किसीकी बर्थ डे जी रहे हैं.... है ना...
अनु - (इसबार भी कुछ नहीं कह पाती अपना सिर हिला कर हाँ कहती है)
वीर - (हैरान हो कर) कहीं... कहीं आज तुम्हारा बर्थ डे तो नहीं...
अनु - (मुस्करा कर आपनी आँखे ब्लींक करती है)
वीर - ओह शीट... व्हाट इज दिस अनु... आज तुम्हारा बर्थ डे है और... मुझे तुम ट्रीट दे रही हो...
अनु - (थोड़ा संभल कर) तो क्या हुआ राजकुमार जी.... आपको एक बचपन जीना था... और मुझे उस दिन को दोबारा जीना था... जो आठ साल पहले मैंने अपने बाबा के साथ आखिरी बार जिया था.... अगर आप ना होते... तो मैं आज अपनी वह यादगार बचपन दोबारा ना जी पाती... इसलिए मुझे आपको थैंक्यू कहना चाहिए...

अनु की बातेँ वीर के दिल में हलचल मचा देते हैं l वीर के हाथ अपने आप अनु के गालों तक पहुँच जाते हैं पर अनु के गालों को छू नहीं पाता l झिझक के साथ हाथ हटा कर लहरों के पास जा कर खड़ा हो जाता है l वीर के इस झिझक भरी हरकत ने अनु के चेहरे पर एक विश्वास से भरी मुस्कान बिखेर देती है l अनु भी चलते हुए वीर के करीब आकर खड़ी होती है l

वीर - (अनु को देखे वगैर) अनु... तुम बहुत अच्छी हो... वाकई... बहुत.. बहुत ही अच्छी हो... और उतनी ही मासूम भी... पर तुम नहीं जानती... मैं... बहुत... बहुत ही बुरा हूँ... शायद ही ऐसी कोई बुराई बाकी हो दुनिया में... जो मुझमें नहीं है... (अनु के तरफ देख कर) सच सच बताना... तुम्हें कभी... किसीने भी.. मेरे बारे में बुरा नहीं कहा...
अनु - (बड़ी आत्मविश्वास के साथ वीर के आँखों में आँखे डाल कर) बहुतों ने कहा... यहाँ तक मेरी दादी ने भी...
वीर - फिर... क्या तुम्हें मुझसे डर नहीं लगा...
अनु - (अपना सिर ना में हिलाती है)
वीर - क्यूँ...
अनु - (मुस्कराने की कोशिश करते हुए) आज से आठ साल पहले... मेरे बाबा का देहांत हो गया... पैदा होने के कुछ सालो बाद माँ हमे छोड़ कर जा चुकी थी... बाबा के जाने के बाद मेरी जिम्मेदारी दादी पर आ गई... किसी भी रिश्तेदार ने मुझे नहीं स्वीकारा... पर दादी ने हिम्मत नहीं हारी... मुझे अपने सीने से लगा कर परवरिश करने लगी... कभी किसी मिल में तो कभी किसी ईंट की भट्टी में काम करते हुए मेरी परवरिश के साथ साथ गुजारा करने लगी... स्कुल से जब जल्दी आ जाया करती थी... तो आस पास के पड़ोस में दादी के लौटने तक रुक जाती थी... उनमें से किसी को मामा, किसीको काका, किसीको चाचा, किसीको भैया... ऐसे रिश्तों से पुकारा करती थी... पर ज्यूं ज्यूं बड़ी होती जा रही थी... उन रिश्तों ने... मुझ में मौका ढूंढना शुरू कर दिया... कोई ज़बरदस्ती मुझे अपने गोद में बिठाता था... तो कोई.. कहीं भी हाथ मारता था... यह सब स्कुल में भी हो रहा था... और पड़ोस में भी... मुझे उन सबसे डर लगने लगा... इसलिए मैंने जिद की दादी से... की मैं भी काम करने जाऊँगी... पर घर पर या किसी पड़ोसी के घर पर नहीं रुकुंगी... इस तरह से मैं आपकी ऑफिस पहुँच गई.... ऑफिस से लेकर मुझे जितने लोग पहचानते थे... सभी ने आपके खिलाफ बहुत कुछ कहा.... दादी कहती है मैं मंद बुद्धि हूँ... हे हे हे... स्कुल में मेरे टीचर मुझे ट्यूब लाइट कहा करते थे.... क्यूंकि बातों को समझने में मैं देर करती हूँ... पर समझती तो हूँ ना... सच यह है कि... मुझे कभी भी आपसे डर नहीं लगा... उल्टा... जब भी मैं आपके साथ थी... मुझे लगता था कि मैं हर तरफ से सुरक्षित हूँ... मुझे किसी से कोई खतरा नहीं है... और मुझे... अभी इस वक़्त भी भी ऐसा ही लग रहा है....

वीर अनु को एक टक सुनता ही जा रहा था l अनु की हर बात हर शब्द उसके जेहन में हथोड़े की तरह पड़ रहे थे I वीर एक गहरी सांस लेता है और अपना मुहँ फिर से समंदर की ओर कर देता है l

वीर - (समंदर की ओर देखते हुए) अनु... दिन खतम हो रहा है... इससे पहले कि अंधेरा हो... चलो मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ दूँ....

ज़वाब में अनु उसे कुछ कहती नहीं है l वीर गाड़ी की तरफ बढ़ जाता है और अनु इसके पीछे पीछे चली जाती है l

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शाम के सात बजे
पलासुणी
होटल सिंफनी हाइट्स
बफेट टेबल पर दो मॉकटेल की ग्लास है I रॉकी अपने जेब से एक छोटी सी शीशी निकाल कर एक ग्लास में कुछ डालता है l और फिर बंकेट हॉल को अच्छी तरह से देखता है फिर लिफ्ट से नीचे आकर होटल के गेट के सामने खड़ा हो जाता है l कुछ देर इंतजार करने के बाद होटल के सामने एक चमचमाती हुई गाड़ी रुकती है l गाड़ी को देखते ही रॉकी की दिल की धड़कने बहुत तेज हो जाती हैं l कार की दरवाजा खुलती है और नंदिनी हाथ में गिफ्ट लिए गाड़ी से उतरती है l रॉकी एक गार्ड को इशारा करता है तो वह गार्ड एक खूबसूरत और रंगबिरंगी गुलाबों से सजी एक बुके लाकर रॉकी के हाथ में दे देता है l

रॉकी - (बुके को नंदिनी को देते हुए) ब्यूटीफुल फ्लवर्स फॉर द मोस्ट ब्यूटीफुल एंड गर्जियस गर्ल...
नंदिनी - (बुके लेते हुए) ओह थैंक्यू... (बुके को ड्राइवर को दे देती है) तो पार्टी कहाँ पर हो रही है...
रॉकी - ऊपर...
नंदिनी - ओ तो चलें...
रॉकी - श्योर... पार्टी आखिर खास आप ही के लिए रखा गया है...
नंदिनी - ओ... तब तो बिल्कुल भी देर नहीं करनी चाहिए... क्यूँ...

रॉकी मुस्करा देता है और हाथ से इशारा करते हुए रास्ता दिखाता है और नंदिनी को साथ आने के लिए कहता है l दोनों लिफ्ट से पाँचवी फ्लोर पर आते हैं l बंकेट हॉल में में घुसते ही नंदिनी हैरान हो जाती है l पुरे हॉल में बीचों-बीच एक डायनिंग टेबल लगा हुआ है और उस टेबल के बगल में बफेट लगा हुआ है l डायनिंग टेबल के ऊपर क्रिस्टल ग्लास के झूमर लगे हुए हैं और टेबल पर एक कैंडल लैम्प लगा हुआ है l पुरा बंकेट हॉल लाइट और इल्युजन के लिए सिर्फ कैंडल लैम्पों से सजाया गया है l अंदर का इल्युजन वाकई बहुत जबरदस्त था l नंदिनी का रास्ता बनाते हुए डायनिंग टेबल के पास रॉकी आता है और नंदिनी के लिए चेयर खिंच कर बैठने के लिए इशारा करता है l

नंदिनी - (बैठने के बाद) क्या बात है रॉकी जी... लगता है आप अपनी बर्थ डे पर मुझे इम्प्रेस करने के लिए... कोई कसर छोड़ना नहीं चाहते.... और कहीं पर भी चूकना नहीं चाहते...
रॉकी - (नंदिनी के सामने बैठते हुए) हाँ... आज कोई चूक ना हो... इसलिए यह सब अरेंजमेंट किया है...
नंदिनी - ह्म्म्म्म... देखते हैं...
रॉकी - वैसे थैंक्यू... थैंक्यू वेरी मच... सच कहूँ तो मुझे एक पर्सेंट भी उम्मीद नहीं थी... के आप आयेंगी... या यूँ कहूँ कि आप आ सकेंगी... ऐसा सोचा नहीं था... पर दिल में एक आस थी... की आप जरूर आयेंगी...
नंदिनी - हाँ मेरा घर से निकलना लगभग ना मुमकिन है.... पर सोचा आपके लिये थोड़ा रिस्क उठाया जाए....
रॉकी - ओह... थैंक्यू... वैसे आज आप बहुत खूबसूरत लग रही हैं...
नंदिनी - हा हा हा (हँसते हुए) जब से गाड़ी से उतरी हूँ... तब से.. फ्लर्ट किए जा रहे हैं...
रॉकी - सच बोलना फ्लर्ट कैसे हो सकता है... नंदिनी जी...
नंदिनी - ह्म्म्म्म ठीक है... थोड़ी देर में पता चल ही जाएगा... वैसे यह पार्टी.... क्या सिर्फ़ मेरे लिए रखा है आपने...
रॉकी - जी..
नंदिनी - क्यूँ...
रॉकी - वह... मैं... इस.. लिए...
नंदिनी - ह्म्म्म्म ऐसी इम्प्रेशन उस लड़की पर जमाया जाता है... जिससे प्यार हो गया हो... कहीं ऐसा तो नहीं...
रॉकी - (शर्मा कर) ह... हाँ...
नंदिनी - हा हा हा हा... (हँसने लगती है) क्या मुझसे प्यार... क्यूँ...
रॉकी - क्यूँ का क्या मतलब कहूँ... बस प्यार हो गया... और क्या....
नंदिनी - वही तो मुझसे ही क्यूँ... बनानी से नहीं... दीप्ति से नहीं... इतिश्री या भाश्वती या तब्बसुम से नहीं... मुझसे ही क्यूँ...
रॉकी - (हकला जाता है) वह... वह... आ.. आप... बहुत... खास हैं...
नंदिनी - अच्छा... ऐसी क्या खासियत है मुझमें...
रॉकी - आ.. आ.. आप...
नंदिनी - हाँ हाँ मैं...
रॉकी - लगता है... आप मेरी खिंचाई कर रही हैं...
नंदिनी - बिल्कुल नहीं... मैं आपके अंदर की फिलिंग्स को जानना चाहती हूँ...
रॉकी - एक काम करते हैं... यह मॉकटेल पीते पीते बात करें...
नंदिनी - श्योर...

रॉकी बफेट टेबल के पास जाता है और वहाँ से दो ग्लास मॉकटेल के लेकर आता है और एक नंदिनी को देता है l नंदिनी ड्रिंक को अपनी होठों से लगाती है तो रॉकी मन ही मन खुश हो जाता है पर तभी

नंदिनी - मैंने एक सीप ले ली है... आप भी अपनी ड्रिंक से एक सीप लो... फिर बातें करते हैं...
रॉकी - ओके (कह कर ड्रिंक से एक सीप पीता है)

नंदिनी अपनी जगह से उठती है और रॉकी से अपना ग्लास एक्सचेंज कर देती है l और अपनी जगह बैठ जाती है l अचानक क्या हुआ यह रॉकी कुछ समझ पाता उससे पहले

नंदिनी - अब झूठन ग्लास एक्सचेंज कर पीने से.. आपसी रिश्ता बहुत मजबूत होता है... लो अब मैं तुम्हारे ग्लास से पीती हूँ... तुम मेरे ग्लास से पियो... यह इश्क़ की सबसे हसीं रस्म है...
रॉकी - (ग्लास को टेबल पर रख देता है) अभी दिल की बातेँ हमने कही कहाँ है.. के यह रस्म अदा की जाए... पहले इजहार तो हो... फिर इकरार हो... फिर यह रस्म भी अदा हो जाएगी...
नंदिनी - वाह क्या बात है... बातों में अब वजन आने लगा है...
रॉकी - तो फिर बंदे के बारे में क्या खयाल है...
नंदिनी - (कुछ देर रॉकी को गौर से देखती है और चुप रहती है, फिर) डरपोक... कायर... बुझ दिल...
रॉकी - (हड़ बड़ा जाता है) यह... यह क्या कह रही हैं... मैं... डरपोक नहीं... कायर नहीं... ऐसा होता तो...
नंदिनी - (हँसते हुए) हा हा हा हा... हाँ हाँ तो...
रॉकी - (सीरियस हो कर) कॉलेज में हजार लड़के थे... पर आपकी दोस्त को बचाने के लिए... एक ही लड़का अपनी जान पर खेल गया था...
नंदिनी - अरे हाँ... (मुस्कराते हुए) और वह लड़का तो आप ही हैं क्यूँ... कितना बड़ा रिस्क लिया था आपने... वाव...
रॉकी - (अपनी नजरें चुराते हुए) अब मैं क्या कहूँ...
नंदिनी - नहीं... इस बारे में तो... पुरा कॉलेज और शहर बात कर रहा है... और इसी बात पर आप मेरी यह गिफ्ट को लें और खोल कर देखें...
रॉकी - (अपनी घबराहट छुपाने की कोशिश करते हुए) ज़रूर...

रॉकी नंदिनी से गिफ्ट लेकर रैपर खोलता है और गिफ्ट को देखते ही पहले हैरान हो जाता है और घबराहट के साथ नंदिनी को देखता है l रॉकी के हाथ में साइंस लैब की एप्रन थी l

रॉकी - यह... यह क्या है... नंदिनी...
नंदिनी - अरे वाह... नंदिनी जी से... सीधे नंदिनी... बड़े जल्दी औकात पर आ गए...
रॉकी - (अपनी जगह पर खड़ा हो जाता है और एप्रन को नीचे फेंक कर) व्हाट इज़ दिस नॉनसेंस नंदिनी...
नंदिनी - यही रिस्क लिया था ना तुमने... रिस्क... वाह क्या लफ्ज़ है... किसी महान कमीने ने कहा है कि... नो रीस्क नो गैंन...
रॉकी - (झटका खाते हुए) क.. क.. क्या कह रही हो...
नंदिनी - गौर से देखो... यह वही लैबोरेट्री एप्रन है... जिसे पहन कर तुमने बनानी को बचाया था... इतनी जल्दी भुल गए...
रॉकी - (चेहरे पर पसीने छूटने लगते हैं) त... त.. तुम्हें क.. कैसे प.. प.. पता चला...
नंदिनी - क्राइम करो... तो उसे परफेक्शन के साथ अंजाम दो... सबुत नहीं छोड़ना चाहिए था... जैसे कि यह एप्रन...
रॉकी - (अपनी हलक से बड़ी मुश्किल से थूक निगलता है)
नंदिनी - बढ़िया प्लान था... हीरो बनने का... कॉलेज में ही नहीं... टॉक ऑफ द टाउन भी बन गए... तो वहीं पर रुक जाना चाहिए था... किस बात की जल्दी थी... रॉकी...
रॉकी - (हकलाते हुए) म... म.. मतलब... तुम्हें पहले से ही सब कुछ पता था...
नंदिनी - नहीं... पर बाद में पता चला...
रॉकी - (अपनी जेब से रुमाल निकाल कर अपना चेहरा पोंछता है)
नंदिनी - बनानी के बर्थ डे के दिन... सारा कांड करके... तुम तो हीरो बन कर चले गए... पर मैं उस दिन सबसे ज्यादा गिल्टी फिल कर रही थी... कोई नहीं था वहाँ... इसलिए सबके जाने के बाद मैं हड़बड़ी में जेन्ट्स वॉशरुम में जाकर अपना चेहरा धो रही थी कि.... शावर के नीचे यह एप्रन मिला... तब मुझे बताया गया था कि... बनानी को बचाते वक़्त एप्रन में आग लग गई थी.... और तुमने आग बुझाने के लिए शावर ली थी.... शावर के नीचे एप्रन देख कर मुझे थोड़ा शक हुआ... वीडियो में... हमने देखा था... एप्रन में आग लगी थी... पर.... कमाल की बात यह थी... की एप्रन में कहीं भी... कोई बर्न मार्क नहीं थे... मैंने वहीँ से एप्रन उठा लिया.... बाद में अपने ड्राइवर काका के मदत से... एप्रन की लैब टेस्ट कराया... हा हा हा हा... रिपोर्ट में... एप्रन पर अनफ्लेमेबल जैली लगा हुआ था... (रॉकी को देख कर) क्या बात है रॉकी.... तुम्हें इतना पसीना क्यूँ आ रहा है...
रॉकी - (होश में आता है और फिर से अपना चेहरा पोंछता है) अगर मालुम हो गया था... तो दोस्ती का हाथ क्यूँ बढ़ाया...
नंदिनी - हाँ यह बात तो है... दोस्ती का हाथ क्यूँ बढ़ाया... मैं यह सोचती रही... आखिर क्यूँ... एक कॉमर्स स्ट्रीम का लड़का... साइंस स्ट्रीम में ऐसी हरकत क्यूँ की... कौन है उसका टार्गेट... फिर मेरे दिल ने यह कहा कि... हो ना हो... यह स्कीम उस लड़की के लिए था... जिसको बचाया गया... पर तुम्हारे रेडियो कांड ने मुझे गलत साबित कर दिया...
रॉकी - (और भी हैरान हो जाता है)
नंदिनी - तुम्हारे लैब वाले कांड के वजह से.... बनानी के दिल में तुम्हारे लिए एहसास और ज़ज्बात जनम ले चुकी थी... इसलिए रेडियो एफएम के सिलेक्शन के दिन... यानी लकी ड्रॉ के दिन... जब चिट कलेक्शन हो रहा था... तो मैंने हमारे ग्रुप से सारे चिट लेकर गायब कर दिए थे... और सिर्फ़ बनानी के नाम की छह चिट डाला था... और भगवान से प्रार्थना कर रही थी... की चिट में बनानी का नाम ही आए... पर... वहाँ तो चमत्कार हो गया... चिट में मेरा नाम आया... खैर... हम ठहरे रॉयल ब्लड वाले हैं... हर चैलेंज एसेप्ट करते हैं.... सो मैंने प्रेजेंटेशन दे दिया...
रॉकी - यह सब जानने के बाद भी... मुझे यह घड़ी... (अपना हाथ दिखाते हुए) तोहफे में क्यूँ दी...
नंदिनी - तुम्हें शक़ हुआ था ना... मैंने घड़ी तो दी तुमको... पर यह बात मैंने अपने सारे दोस्तों से छुपाया था...
रॉकी - (हैरानी से आँखे फैल जाते हैं) यह तुम्हें कैसे पता चला...
नंदिनी - ऑए हीरो... (नंदिनी चेयर के आर्म रेस्ट पर अपना हाथ रख कर अपना बायाँ पैर दाहिने पैर के ऊपर रखती है) तुम नहीं आप बोल... हम राजसी खुन के हैं... औकात में रह...
रॉकी - (बड़ी मुश्किल से अपनी हलक से आवाज निकाल कर) यह... आपको कैसे मालुम हुआ...
नंदिनी - हा हा हा हा...(हँसने लगती है) कहा था ना... तु कायर है... बुजदिल है... बस इतने में डर गया...
रॉकी - (शर्म से अपना सिर झुका लेता है)
नंदिनी - यह जो घड़ी तेरे हाथ में दौड़ रही है ना... यह वेयर हेल्थ की स्पाय वाच है... इसे स्पेशियलि मेरे युवराज भैया ने भाभी के लिए डिजाईन किया था... भाभी ने इसे मेरी सेफ्टी के लिए मुझे दिया था... और मैंने इसी तरह की एक नई घड़ी को तुझे गिफ्ट में दे दिया...
रॉकी - (अपने हाथ में पहने घड़ी को गौर से देखता है)
नंदिनी - यह घड़ी प्रोग्राम्ड है... जैसे ही किसी स्मार्ट फोन से ब्लू टूथ से जुड़ता है... इसके अंदर की प्रोग्राम एक्टिव हो जाती है... फोन पर एसएमएस के जरिए एक लिंक आता है... जैसे ही वह लिंक खुलता है इसका ऐप अपने आप इंस्टाल हो जाता है... और कॉल से लेकर नेट सर्फ तक सबका रिकार्ड एडमिन के मोबाइल पर भेजता रहता है...
रॉकी - (अपना टाई को ढीला करता है, धीमी और थके हुए आवाज में) ठीक है... पर मैं जब फोन नंबर ढूंढ रहा था... तब आपने मुझे फोन क्यूँ की... और यहाँ क्यूँ आईं...
नंदिनी - क्यूंकि मैं नहीं चाहती थी... के तुम जोश जोश में और कोई बेवकूफ़ी करो... जिससे... तुम और तुम्हारे दोस्त... और तुम सबके परिवार... मेरे भाइयों के नजर में आ जाए... क्यूंकि अगर मेरे भाइयों को जरा सा भी आभास हो गया होता... तो तुम सोच भी नहीं सकते हो... क्या क्या हो सकता था तुम लोगों के साथ... तुम क्षेत्रपाल बंधुओं की बहन को ड्रग मिला ड्रिंक दे रहे थे... क्या करते मेरे साथ...
रॉकी - यह कैसे मालुम हुआ...
नंदिनी - अभी अभी तो बताया... कॉल से लेकर नेट पर सर्फ की गई सारी जानकारी... मुझे उपलब्ध करा चुकी है यह घड़ी.... तुमने अपने मोबाइल फोन पर डेट ड्रग्स पर सर्च किया... फिर रसूलगड़ के केमिस्ट से यह ड्रग् खरीद कर मेरे ड्रिंक में मिलाया था... है ना... (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) क्या करते मेरे साथ... लिफ्ट में...
रॉकी - (खामोश रहता है) अब क्या करोगी मेरे साथ...
नंदिनी - रॉकी तुम जैसे भी हो... उतने बुरे नहीं हो... जितना बनने की कोशिश कर रहे हो... और मैं नहीं चाहती थी कि तुमसे और कोई बेवकूफ़ी हो.... मैं तुम्हें और तुम्हारे परिवार को क्षेत्रपाल बंधुओं के आक्रोश से बचाना चाहती थी.... और भी एक वजह है... बनानी... जो तुमसे बहुत प्यार करने लगी है... इसलिए यह मामला जल्दी खतम करने के लिए... मुझे आना पड़ा... अब बताओ... मेरे परिवार से क्या रंजिश है... जिसे उतारने के लिए... तुमने मुझे टार्गेट किया....
रॉकी - (चिल्लाते हुए) हाँ हाँ... मुझे तुम क्षेत्रपाल से नफरत है... मैं तुम्हें लिफ्ट में फंसा कर मरवा देना चाहता था... जैसे तुम्हारे भाई विक्रम ने.... मेरे बड़े भाई को लिफ्ट में फंसा कर मारा था... और तुम जिन्हें अपनी भाभी कह रही हो... वह कभी हमारे खानदान की होने वाली बहु थीं... मेरी होने वाली भाभी थी... मेरे पिता और शुभ्रा सामंतराय के पिता बिरजा कींकर सामंतराय... दोस्त हुआ करते थे... तुम्हारे भाई ने हमारे घर की चिराग बुझा कर... शुभ्रा जी से ज़बरदस्ती शादी की थी... पर याद रखना वह शादी नहीं था... बलात्कार था...

रॉकी कहते कहते हांफने लगता है l पर उसकी कही हर बात नंदिनी के सिर पर जैसे बिजली बन कर गिरती है l यह एक नया खुलासा था l नंदिनी वहाँ और नहीं रुक पाती l सीढियों से उतर कर नीचे आती है और अपनी गाड़ी में बैठ कर वापस घर की ओर चल देती है
 

Jaguaar

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रविवार

रुप अपनी बेड पर सोई हुई है l शुभ्रा आकर उसे जगाती है l

शुभ्रा - चलो उठो रुप... जल्दी उठो...
रुप - (उठ कर करवट लेते हुए) भाभी सोने दीजिए ना...
शुभ्रा - क्यूँ राजकुमारी जी... क्यूँ...
रुप - (झट से उठ कर बेड पर बैठ जाती है) भाभी... आप मुझे यह राजकुमारी कहा ना करें..
शुभ्रा - ठीक है... नंदिनी जी... आज दुपहर को पार्टी की इंवीटेशन दे दिया तुमने... और तैयारी नहीं करनी है क्या...
रुप - आप ही कर दो ना...
शुभ्रा - हाँ कर तो दूँ... बशर्ते तुम्हें मैं राजकुमारी कहती रहूँ तो...
रुप - बिल्कुल नहीं...
शुभ्रा - तो तैयार हो जाओ...
रुप - ठीक है... मैं तैयार होती हूँ... पर करुँगी क्या...
शुभ्रा - कुकिंग... यानी रसोई...
रुप - क्या... मैं और रसोई... हा हा हा हा... भाभी.... आप मजाक कर रही हो ना...
शुभ्रा - नहीं... बिल्कुल नहीं... आई एम सीरियस...
रुप - भाभी... आप जानती हैं ना... मुझे कुकिंग नहीं आती....
शुभ्रा - अरे.... अपनी दोस्तों को तुमने बुलाया है... नौकरों से खाना बना कर खिलाओगी क्या...
रुप - तो... किचन में... मैं क्या पकाउंगी...
शुभ्रा - खाना...
रुप - भा.. ह.. भी... क्यूँ मेरे दोस्तों के सामने मेरी नाक कटवाने पर तुली हुई हो...
शुभ्रा - तुम घबराओ मत... मैं पुरे दिन भर तुम्हारे साथ रहूँगी... और तुम्हें खाना बनाने में मदद करुँगी...
रुप - (चहकते हुए) क्या... मतलब... आपको खाना बनाना आता है...
शुभ्रा - हाँ... वह भी बहुत ही अच्छे से...
रुप - वाव... तब तो ठीक है... पर भाभी... विक्रम भैया और वीर भैया... वह क्या...
शुभ्रा - तेरे बड़े भाई तो शायद कल या परसों तक आ जायें... और तेरे वीर भैया... वह शायद अभी तक उठे नहीं हैं...
रुप - ओ... हाँ... आज संडे है ना...

उधर अपने कमरे में वीर सोया हुआ है l उसकी नींद टूट जाती है l क्यूँकी बेड पर रखे उसकी मोबाइल फोन बजने लगती है l नींद भरे आँखों में वीर को डिस्प्ले पर स्टुपीड गर्ल दिखता है l वह झट से फोन उठाता है l

वीर - हैलो.. हैलो... हैलो..

फोन कट चुका था I वीर वापस फोन लगाता है l पर अनु फोन काट देती है l वीर फिर फोन लगाता है l इस बार भी अनु फोन काट देती है l वीर खीज जाता है l तभी उसके मोबाइल पर मैसेज रिंग टोन बजने लगती है l वीर मैसेज देखता है अनु की मैसेज थी, लिखा था


मैं पटीया रघुनाथ पुर के जगन्नाथ मंदिर में इंतजार कर रही हूँ... अगर आपको बचपन का एक दिन मेरे साथ जीना है... तो नौ साढ़े नौ के बीच आ जाइएगा... और पुरा दिन मेरे साथ गुजारीये...- अनु

वीर - ठीक है मैं पहुँच जाऊँगा...

जल्दी कीजिए आठ बज चुके हैं - अनु

वीर - (मोबाइल पर टाइम देखता है) ओह माय गॉड...

कह कर झटपट बेड से उठ कर बाथरूम को भागता है l बाथरूम में जल्दी जल्दी तैयार होने लगता है l

उधर नहा धोके तैयार हो कर किचन में पहुँच कर रुप देखती है वहाँ कोई नहीं हैं l रुप को सारे नौकर बाहर किचन के बाहर दिखते हैं l पर कोई किचन के अंदर नहीं है l

रुप - भाभी... आज किचन में कोई भी नहीं है... क्यूँ...
शुभ्रा - मैंने उन्हें मना किया है...
रुप - क्यूँ.. क्यूँ..
शुभ्रा - क्यूँकी सबकुछ करना तुम्हें ही है... इन लोगों से और मुझसे छोटी मोटी हेल्प ही ले सकती हो...
रुप - किस तरह की हेल्प...
शुभ्रा - सभी तरह के हेल्प... सिवाय गैस पर खाना बनाने के...
रुप - हे भगवान... अब क्या करूँ... अगर कुछ गड़बड़ हुई तो भाभी... मेरी दोस्ती टुटेगी अलग... मेरा मजाक बन जाएगा वह अलग..
शुभ्रा - अरे ऐसे कैसे तुम्हारी दोस्ती टुट जाएगी.... ऐसे कैसे कोई तुम्हारा मज़ाक उड़ाएगा... मैं हूँ ना... चलो आज सबसे पहले चाय बनाओ...
रुप - क्या... नहीं.. यह मुझसे नहीं होगा प्लीज भाभी...
शुभ्रा - ओह कॉमन... मैं हूँ ना...

रुप आसमान के तरफ देख कर हाथ जोड़ती है और चाय की पैन को गैस पर रख देती है l टी पैन गैस बर्नर पर रखने के बाद रुप शुभ्रा की ओर देखती है l शुभ्रा हँसते हुए चाय बनाने की बिधि बताती जाती है और रुप बिल्कुल वैसी ही करती जाती है l फाइनली चाय बन कर तैयार हो जाती है l उसके बाद शुभ्रा रुप को ब्रेड बटर टोस्ट के साथ आलू मसाला बनाना सिखाती है l नाश्ता भी बन जाने के बाद शुभ्रा एक नौकर को डायनिंग टेबल पर लगाने को कह कर रुप को डायनिंग हॉल में लेकर आ जाती है l दोनों डायनिंग टेबल पर बैठने को होते हैं कि वीर तैयार डायनिंग हॉल में आकर सीधे डायनिंग टेबल पर बैठ जाता है और नौकरों से

वीर - जल्दी से... चाय लाओ और नाश्ता लगाओ...

सभी नौकर शुभ्रा की ओर देखते हैं l शुभ्रा इशारे से चाय नाश्ता देने को कहती है l नौकर वीर के लिए चाय नाश्ता सर्व कर देते हैं l वीर चाय पीता है, नाश्ता भी कर लेता है और बाहर चला जाता है l उसके जाते ही रुप खुश हो जाती है

रुप - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) हुस्स्स्स्स्... वाव भाभी... मैं डर रही थी... चाय नाश्ता बढ़िया बना है या नहीं... पर वीर भैया जिस तरह बिना रिएक्शन दिए पुरा नाश्ता खतम कर गए हैं... मतलब ठीक ही बना है... (नौकरों से) चलो चलो हमें भी नाश्ता दो...

यह कह कर एक्साइटमेंट के साथ टेबल पर बैठ जाती है और शुभ्रा को इशारे से अपने पास बिठाती है l नौकर भी बिना देर किए चाय नाश्ता टेबल पर सर्व कर देते हैं l जैसे ही दोनों चाय को होठों से लगाती हैं, दोनों का चेहरा बिगड़ जाता है l शुभ्रा और रुप एक दुसरे को देखते हैं l

शुभ्रा - (अपनी जीभ को दांतों तले दबा कर) कोई बात नहीं... चाय में बाद में भी चीनी डाली जा सकती है... (कह कर नौकर से) शुगर क्यूब लाना जरा...
रुप - भाभी... चाय तक तो ठीक है... कहीं नाश्ते में तो गड़बड़ी नहीं हो गई... (कह कर आलू मसाला चखती है) ईईईई... नमक... नमक नहीं है...(शुभ्रा से) भाभी... आपको सच में खाना बनाना आता है ना...
शुभ्रा - देखो रुप.. मैं तीन साल बाद किचन में घुसी हूँ... पर कोई मेजर मिस्टेक तो नहीं हुआ है ना... वैसे भी शुगर चाय में बाद में डाल कर पीते हैं... और नमक बाद में भी स्वाद अनुसार डाला जा सकता है... यु नो...
रुप - भाभी... क्या सच में... दोपहर का खाना हम ही बनायेंगे या फिर...
शुभ्रा - हा हा... (हँसते हुए) बस इतने में घबरा गई... कोई नहीं.... हम दोनों आज बहुत ही बढ़िया खाना बनायेंगे...
रुप - (जैसे डाऊट हो) सच में...
शुभ्रा - आई प्रॉमिस... (रुप मुस्करा देती है) पर एक बात समझ में नहीं आई...
रुप - क्या...
शुभ्रा - राजकुमार ने बिना चीनी के चाय पी ली.... और बिना नमक वाले आलू मसाला के साथ ब्रेड टोस्ट कैसे खा लिए...
रुप - हाँ... भाभी... क्या वीर भैया रोज... ऐसी बिना टेस्ट वाला खाना खाते हैं...

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पलासुणी
होटल सिंफनी हाइटस
रॉकी अपनी गाड़ी से उतरता है l सुबह सुबह रॉकी को होटल के सामने देख कर एक गार्ड भागते हुए आता है और एक जोरदार सैल्यूट करता है l रॉकी मुस्करा कर उसे हाथ दिखा कर ओके कहता है और होटल के अंदर दाखिल होता है I लिफ्ट के जरिए सबसे ऊपर पाँचवी मंजिल के बंकेट हॉल में पहुँचता है l बंकेट हॉल में अभी सजावट चल रही है l मैनेजर वहीँ पर खड़ा था, वह रॉकी को देख कर भागते हुए आया

मैनेजर - सर शाम होने से पहले हो जाएगा...
रॉकी - गुड जॉब... ओके तुम जाओ... मैं कुछ देर बैठ कर... चला जाऊँगा...

मैनेजर वहाँ से चला जाता है l सजावट की ओर देखते हुए खुद से मन ही मन मुस्कराने लगता है l
क्यूँकी इनके कई होटल्स हैं l यही सिंफनी होटल उनका इकलौता फाइव स्टार होटल है और बाकी सभी थ्री या फोर स्टार होटल्स हैं l सभी होटल्स में सेक्यूरिटी ESS के हवाले है, सिवाय सिंफनी हाइटस को छोड़ कर l क्यूँकी इस होटल में रेनोवेशन चल रहा है, और जिस कंट्रैक्टर यह रेनोवेशन कंट्राक्ट उठाया है उसने इसी शर्त पर काम पुरा करने का बिड़ा उठाया कि काम खतम होने तक वह अपनी सिक्युरिटी सर्विस के सुपरविजन में देख रेख करेगा l इसलिए इस होटल में ESS सेक्योरिटी गार्ड्स के वजाए SSS सेक्योरिटी गार्ड्स गार्ड दे रहे हैं l इसलिए अगर रुप आती भी है तो वह पहचानी नहीं जाएगी l और चूँकि रेनोवेशन में सिर्फ बंकेट हॉल का काम पुरा हो चुका है, इसलिए रॉकी ने इसी हॉल में एक हजार कैंडल लैम्प लगाने के लिए मैनेजर से कहा था l जिसका अभी काम चल रहा है l काम देखने के बाद रॉकी लिफ्ट में आता है और लिफ्ट का अच्छे से मुआयना करता है l मुआयना करने के बाद लिफ्ट ऑपरेटिंग कंट्रोल रुम में जाता है l कंट्रोल रुम में बैठे सर्विस गार्ड्स रॉकी को सैल्यूट ठोकते हैं l रॉकी उनसे लिफ्ट ऑपरेशन के बारे में डिटेल्स में पूछता है l गार्ड्स उसे लिफ्ट ऑपरेशन, लोड कंट्रोल वगैरह सब समझाते हैं l

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पटीया रघुनाथ पुर
जगन्नाथ मंदिर
वीर गाड़ी से पहुँचता है l गाड़ी से उतर कर इधर उधर देखने लगता है l उसे अनु मंदिर के मुख्य द्वार पर खड़ी दिखती है l बदन पर नीली रंग की कुर्ती पहनी हुई है और सफेद रंग की ओढ़नी डाली हुई है l वीर को देखते ही अनु की चेहरे पर एक दमक भरी मुस्कान छा जाती है l वीर उसके पास पहुँचता है l

अनु - गुड मॉर्निंग राजकुमार जी...
वीर - गुड मॉर्निंग अनु... सो... आज का क्या प्लान है...
अनु - राजकुमार जी ... आज हम मेरे बचपन का एक दिन को दोहराएंगे... वह दिन... जो मेरे लिए सबसे यादगार है....
वीर - मतलब... तुम्हारे बचपन के एक दिन का... हम एक्शन रीप्ले करेंगे. ..
अनु - हाँ... वह दिन जो मुझे आज भी सबसे ज्यादा प्यारा है... याद आने पर गुदगुदाता है... हँसाता है...
वीर - वाव... अनु... आई एम सो एक्साइटेड...
अनु - राजकुमार जी... आपको बस आज मुझे फालो करना है....
वीर - ओके...
अनु - और एक बात सर...
वीर - क्या...
अनु - आज आप राजकुमार या वीआईपी बनकर आराम नहीं ढूंढेंगे... बल्कि एक आम आदमी बन कर मेरे साथ रहेंगे....
वीर - (थोड़ा सोच में पड़ जाता है) ठीक है... आई एम रेडी...
अनु - और एक आखरी बात... आज जो भी खर्चा होगा... सब मेरे तरफ से... आप अपनी जेब से फूटी कौड़ी भी नहीं निकलेंगे...
वीर - व्हाट... व्हाट नॉनसेंस अनु... इच्छा मेरी है... और खर्चा तुम करोगी.. यह ठीक नहीं लगेगा...
अनु - सर शर्त तो यही है... आज एक बचपन को जिएंगे... बचपन के पास पैसे नहीं होते...
वीर - (एक गहरी सांस लेता है और छोड़ कर) ठीक है... पर तुम्हें बाद में पैसे वापस कर दूँगा...
अनु - तब... जब आप मुझे ऐसे ही कभी घुमाने ले जाएं...
वीर - ह्म्म्म्म... ठीक है...

फिर अनु वीर को एक थैला थमा देती है l वीर उस थैले में देखता है कि एक जोड़ी साधारण से कपड़े हैं l कपड़े देख कर वीर अनु को देखता है l

अनु - राजकुमार जी आप ऐसे ना देखिए... आज आप एक आम आदमी के लिबास में होंगे... एक आम सी जिंदगी... और आम सा... मगर बहुत क़ीमती बचपन जिएंगे... समझ लीजिए यह उसका ड्रेस कोड है...
वीर - (अनु को देख कर मुस्करा देता है, और अपना सिर उपर नीचे हिलाते हुए) ठीक है... तो लगे हाथ यह भी बता दो... बदलुँ कहाँ पर यह ड्रेस...
अनु - मैंने इस मंदिर में बात कर ली है... आइए चलते हैं... मैं एक कमरा दिखाऊंगी... वहाँ जा कर अपनी कपड़े बदल लीजिए...
वीर - हूँ... ठीक है... (चलने को होता है) एक मिनट... आज दिन भर तुम घर से बाहर रहोगी... तुम्हारी दादी... मान गई...
अनु - हाँ... मान गई... पर मैंने वजह कुछ और बताया है... और आज के दिन... वह मुझे कभी मना नहीं करती...
वीर - क्यूँ... आज का दिन कुछ खास है क्या...
अनु - है भी और.... नहीं भी... (वीर कुछ पूछने को होता है) राजकुमार जी... हम बातों में ही टाइम बर्बाद कर रहे हैं... प्लीज...

वीर कुछ कह नहीं पाता l वह अनु के पीछे पीछे चल देता है l अनु मंदिर के एक कमरे में वीर को भेज देती है l थोड़ी देर बाद वीर अनु के दिए कपड़ों में अनु के सामने आता है l अनु वीर से वह थैला ले लेती है जिसमें वीर अपने कपड़े रख दिए थे l

अनु - राजकुमार जी... अब आप अपना पर्स दीजिए... (वीर पर्स निकाल कर दे देता है) और मोबाइल भी... (मोबाइल भी निकाल कर दे देता है) अब... गाड़ी की चाबी... (अनु को गाड़ी की चाबी भी दे देता है)

अनु वीर की सारे सामान लेकर वीर की गाड़ी में रख देती है और गाड़ी को लॉक कर चाबी वीर को दे देती है l अनु एक दुकान पर जा कर पुजा के लिए कुछ सामान खरीद कर वीर को मंदिर के भीतर ले जाती है l वहाँ पुजा कराने के बाद मंदिर के बाइस पावछ(बाइस सीढ़ी) पर बैठ जाती है और वीर को बैठने को इशारा करती है l वीर अनु के पास बैठ जाता है l

वीर - ह्म्म्म्म.. तो... मंदिर में पूजा-अर्चना से... बचपना शुरु...
अनु - (मुस्कराते हुए) हाँ...
वीर - तो अब हम कहाँ जाएं...
अनु - यहीँ कुछ दुर पैदल... पहले कुछ नाश्ता कर लेते हैं...
वीर - मैं तो घर से ही नाश्ता कर आया हूँ....
अनु - वह जवान वीर सिंह ने खाए होंगे... अब बच्चा वीर सिंह बच्ची अनु के साथ खाएंगे....
वीर - ह्म्म्म्म... ठीक है... क्या खाना है...
अनु - आइए... चलते हुए थोड़ी दूर आगे चलते हैं...

अनु और वीर दोनों रास्ते के किनारे किनारे होकर कुछ दूर चलते हैं l थोड़ी दूर बाद एक बड़ी सी छतरी के नीचे जहां एक आदमी ओड़िशा का पारंपरिक स्ट्रीट नाश्ता आलुदम दहीबडा बेच रहा था उसके पास पहुँचते हैं l

अनु - भैया... दो प्लेट आलुदम दहीबडा देना...
वीर - क्या.. यह... स्ट्रीट फूड... सो अनहाइजेनीक...
अनु - आज पुरे दिन भर के लिए... बड़े वाले वीर को भुला दीजिए ना... बस छोटे वाले वीर को आगे लाइये... जिसमें दुनियादारी की बिल्कुल इल्म ना हो... जिसमें बचपना के साथ साथ उत्सुकता भी हो...

वीर खामोश रहता है और चुपचाप अपना प्लेट लेकर लकड़ी के स्पून से खाना शुरु ही किया था कि

अनु - नहीं नहीं... ऐसे... (वीर को दिखाते हुए) अपनी हाथ से खाइए... (कह कर अनु स्पुन के वगैर अपनी हाथ से खा कर दिखाती है)

वीर भी अनु की तरह हाथ से खाता है l पहली बार उसे खाने में मजा आ रहा था l वह बड़े चाव से खाने के बाद अनु को देखता है, अनु आलूदम की ग्रैवी और दहीबड़े की मसाला दही की मिक्स बड़ी चाव से प्लेट को मुहँ से लगा कर पी रही थी l वीर भी वैसा ही करता है l दोनों फिर से वही गैवी मिक्स मांग कर पीते हैं l हाथ धोने के लिए अनु उस स्टॉल में रखे एक बोतल उठा कर हाथ धोती है l वीर भी वही करता है l अनु पैसे चुका देती है l फिर दोनों आगे की ओर चलने लगते हैं l

वीर - अनु अब हाथ कहाँ पोंछे... रूमाल तो गाड़ी में रह गया...
अनु - ऐसे... (अपने कपड़े के ऊपर हाथ फ़ेर कर पोंछ लेती है)

वीर झिझकते हुए अपने कपड़ों पर हाथ फ़ेर कर हाथ पोंछने लगता है I हाथ पोंछ लेने के बाद वीर अनु मुहँ बना कर देखता है l अनु घबरा जाती है उसे लगता है शायद वीर को पसंद नहीं आया, पर अचानक

वीर - हा हा हा हा... (हँसने लगता है)
अनु - (हैरान हो कर) क्या हुआ...
वीर - वाह अनु वाह... मजा आ गया... हा हा हा (अनु भी मुस्करा देता है)

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शुभ्रा किचन के अंदर सब्जियां काटने में लगी है l रुप उसके पास खड़ी हो कर देख रही है l शुभ्रा बीच बीच में रुप को देख रही है l

शुभ्रा - क्या बात है नंदिनी... कोई परेशानी है...
रुप - नहीं... ऐसी तो कोई बात नहीं... आपको ऐसा क्यूँ लगा...
शुभ्रा - (सब्जियाँ काटना छोड़ कर रुप की दोनों हाथों को पकड़ कर) नंदिनी... कल जब से तुम कॉलेज से आई हो... पता नहीं क्यूँ मुझे लग रहा है... की तुम मुझसे कुछ कहाना चाहती हो... पर शायद तुम्हें किसी बात पर कंफ्यूजन है... जो तुमको रोक रही है...
रुप - (थोड़ी देर के लिए चुप रहती है) भाभी... वह मैं कल.. उस मॉल वाली आंटी से मिली थी...
शुभ्रा - कौन मॉल वाली आंटी....
रुप - वह.. है ना... वह प्रताप को माँ...
शुभ्रा - (रुप की हाथ छूट जाती है) क्या... क... किसलिए...
रुप - कल ही बताया तो था... गाड़ी पंक्चर हो गई थी...
शुभ्रा - हाँ तो...
रुप - तभी उनसे मुलाकात हुई थी...
शुभ्रा - (किचन की स्लैब की ओर नजर फ़ेर लेती है)
रुप - नहीं... वह मुझे... कॉफी स्टॉल वाली लड़की के रूप में पहचान कर बात की... और कुछ नहीं...
शुभ्रा - ओह... और
रुप - उनका नाम एडवोकेट प्रतिभा सेनापति है...
शुभ्रा - अच्छा... (फिर चौंकते हुए) व्हाट...
रुप - हाँ वही... सुचरिता मैग्जीन में कॉलम लिखती हैं...
शुभ्रा - ओह माय गॉड.... औरतों पर इतनी अच्छी कॉलम लिखने वाली... अपने बेटे के प्यार में किस कदर पागल है... पर...
रुप - पर क्या भाभी...
शुभ्रा - क्या यह वही प्रतिभा सेनापति हैं... जिनके बारे में... मुझे थोड़ी बहुत जानकारी है... या कोई और...
रुप - कोई और... मतलब... प्रतिभा सेनापति एडवोकेट कोई और भी हैं क्या....
शुभ्रा - पता नहीं... पर... मैं जिन प्रतिभा सेनापति को जानती हूँ... उनका एक बेटा था... और उसकी हत्या हो गई थी...
रुप - (चौंकते हुए) क्या...
शुभ्रा - हाँ...
रुप - तो... व... वह... प.. प्रताप...
शुभ्रा - यहीं पर तो मैं भी अब कंफ्यूज हो गई हूँ... तुमने जिन्हें देखा है... क्या वह प्रतिभा सेनापति हैं... या कोई और... उन माँ बेटे का प्यार देख कर लगता नहीं है की...
रुप - की...
शुभ्रा - यह प्रताप और प्रतिभा सेनापति... शायद कोई और हैं... जिन्हें मैं नहीँ जानती...
रुप - (खामोश हो जाती है और उसकी नजरें झुक जाती हैं)
शुभ्रा - मैं... समझ सकती हूँ...

तभी इंटरकम फोन की घंटी बजने लगती है l इंटरकम की आवाज सुन कर दोनों अपनी अपनी खयालों से बाहर आते हैं l एक नौकर कुछ देर बाद उनके पास आता है और

नौकर - युवराण जी... चार पाँच लड़कियाँ आई हैं... राजकुमारी जी के लिए पुछ रहे हैं...

शुभ्रा - (खुश होकर नौकर से) हाँ हाँ गेट पर कहो... उनको इज़्ज़त के साथ अंदर भेज दें...
नौकर - जी अच्छा...

इतना कह कर नौकर वहाँ से चला जाता है l नौकर के जाते ही रुप शुभ्रा की ओर सवालिया नजर से देखती है l

शुभ्रा - मुझे नहीं पता था कि... तुम्हारे दोस्त इतने जल्दी आ जाएंगे...

रुप अपनी जीभ दांतों तले दबा कर किचन से बाहर भाग जाती है l कुछ देर बाद रुप के सभी दोस्त ड्रॉइंग हॉल में आते हैं l रुप पहले से ही ड्रॉइंग हॉल में थी सबके पहुँचते ही खुशी से उछलते हुए सबसे गले लग जाती है l हॉल में शुभ्रा भी पहुँचती है l

रुप - यह... (शुभ्रा को दिखाते हुए) यह मेरी भाभी हैं...
दीप्ति - तुम्हारी.. माँ... गुरु... सखी.. सहेली... एटसेट्रा...
शुभ्रा - ओ... तो तुम दीप्ति हो...
दीप्ति - वाव भाभी... (अपनी जीभ को दांतों तले दबा देती है और फिर ) क्या... मैं आपको भाभी कह सकती हूँ...
शुभ्रा - सिर्फ़ तुम ही क्यों... तुम सब कह सकते हो... पर पहले यह बताओ... इतनी जल्दी यहाँ कैसे और क्यूँ...
बनानी - वह भाभी... (रुप की ओर देखती है) नंदिनी ने ही बुलाया है हमें... जल्दी आने के लिए...
शुभ्रा - ओ... हूँ... वह क्यूँ भला...
भाश्वती - वह इसलिए कि आज आपने उसे किचन में फंसा दिया है... उसे बचाने हम आए हैं...

इतना ही कहा था भाश्वती ने की रुप उसके मुहँ पर एक कुशन फेंक मारती है l

भाश्वती - आ ह्...

भाश्वती भी वही कुशन उठा कर वापस नंदिनी के ऊपर फेंकती है l अब नंदिनी दो दो कुशन फेंकती है इस बार दीप्ति और तब्बसुम को लगती है l फिर सब के सब सोफ़े से कुशन उठा कर कुशन युद्ध करने लगते हैं और चिल्लाने लगते हैं l यह सब देख कर शुभ्रा हँसने लगती है और उनको वहीँ छोड़ कर किचन में आ जाती है l

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कुछ दूर आगे चलने के बाद वीर और अनु एक बस स्टॉप पर आकर खड़े हुए थे l स्टॉप पर इक्का दुक्का लोग ही थे l क्यूँकी आज वर्किंग डे नहीं था इसलिए भीड़ ना के बराबर थी l वीर वहीँ पर खड़े खड़े पाँच मिनट में ही पक जाता है l

वीर - और कितनी देर अनु...
अनु - वह बत्तीस नंबर की बस आ जाए... उसके बाद...
वीर - क्यूँ कहाँ जाना है...
अनु - (मुस्कराते हुए) नंदन कानन...
वीर - क्या... चिड़िया घर... क्यूँ...
अनु - कभी गए हैं आप...
वीर - नहीं.. पर...
अनु - (कुछ नहीं कहती है सिर्फ़ मुस्करा कर वीर को देखती है)
वीर - (अपना सिर हिलाते हुए) ठीक है... जहां तुम ले चलो...

कुछ देर बाद बस आ जाती है l दोनों बस पर चढ़ जाते हैं l अनु नंदन कानन के लिए दो टिकेट कर लेती है l वीर का यह पहला बस एक्सपेरियंस था l वह गर्मी में पक जा रहा था, वह अनु के बगल में बैठा सोच रहा था
"बचपन को एक्सपेरियंस करने के चक्कर में यह क्या एक्सपेरियंस कर रहा हूँ l रास्ते पर नाश्ता वाकई बहुत बढ़िया रहा, बस की खिड़की से रास्ते भर नजाने कितने स्ट्रीट फूड की स्टॉल दिख रहे हैं और सभी स्टॉल पर बच्चों से लेकर जवान लड़के लड़कियों की भीड़ लगी हुई है l मतलब सभी वह स्ट्रीट फूड एंजॉय कर रहे हैं l ठीक है अब देखते हैं आगे क्या एक्सपेरियंस होने वाला है I "

यह सोचते सोचते वीर के चेहरे पर एक अनजानी मुस्कराहट छा जाती है l उसे होश तब आती है जब अनु उतरने के लिए कहती है l दोनों उतर जाते हैं l अनु जा कर नंदन कानन जु के एंट्रैंस पर टिकट खरीद लेती है l फिर दोनों अंदर जाते हैं l अंदर जाते ही अनु दो बुड्ढी के बाल खरीद कर लाती है और एक वीर को देती है l वीर देखता है यह रुई जैसी मिठाई सारे बच्चे ही खा रहे हैं l वीर के हाथ में बुड्ढी के बाल देख कर वहाँ पर मौजूद सब बड़े वीर की देखते हैं l वीर भी चिढ़ाने के स्टाइल में बुड्ढी के बाल खाना शुरु करता है l फिर अनु और वह चिड़िया घर घुमने लगते हैं, घूमते घूमते वीर देखता है अनु बहुत ही एक्साइटेड है l पुरा चिड़िया घर घुम लेने के बाद दोनों टॉय ट्रेन के स्टेशन पर पहुँचते हैं l वहाँ पर लंबी लाइन लगी हुई है l अनु किसी तरह से टिकट का इंतजाम करती है l फिर दोनों टॉय ट्रेन में भी घूमते हैं l टॉय ट्रेन चिड़िया घर के उस हिस्से से गुज़रती है जहां पर बड़ा सा तालाब है और उस तालाब के एक हिस्से में बोटिंग हो रही है और दुसरे हिस्से में पानी के पक्षियों की जमावाड़ा है जैसे जैसे ट्रेन गुजरती है पक्षियां उड़ने लगती हैं l उड़ते पक्षियों को देख कर ट्रेन में बैठे बच्चे और बच्चों के साथ अनु भी चिल्लाने लगती है l वीर उसे बच्चों की तरह चहकते हुए देख हँसने लगता है l ट्रेन की जर्नी खतम होते ही अनु वीर को साथ लेकर बोटिंग के लिए पहुँचती है l अनु पैडल बोट के लिए टिकट लेती है l अब वीर भी अनु के साथ एंजॉय करने लगा था l वह खुशी से अनु के साथ बोटिंग करने लगता है l पैडलिंग के साथ साथ चेहरे और शरीर के ऊपर पानी के छींटे पड़ने से अनु की रिएक्शन देख कर वीर बहुत खुश हो जाता है l बोटिंग के दौरान वीर अनु पर पानी की छींटे मरने लगता है, जिससे अनु बचने की कोशिश करती है और वह भी वीर पर पानी की छींटों की बरसात करने लगती है l ऐसे उनकी बोटिंग खतम हो जाती है l उसके बाद वीर और अनु चिड़िया घर से बाहर निकलते हैं l वीर को अब जबर्दस्त भुख लगने लगी l वह अनु को जिस तरह से देखता है अनु उसकी हालत समझ जाती है l चिड़िया घर के बाहर अनु एक ऑटो रिक्शा लेती है और रिक्शेवाले को एक जगह की पता बताती है l

वीर - यह हम कहाँ जा रहे हैं....
अनु - कुछ मजेदार खाने...
वीर - हू स्स्स्स्... थैंक्स अनु... मेरी तो हालात सच में... खराब हो चली थी...

अनु कुछ नहीं कहती वीर को देखकर सिर्फ मुस्करा देती है l वीर की हालत भले ही भुख और थकान के मारे खराब थी पर अनु की इस मुस्कान ने उसके अंदर जान भर देती है l वीर देखता है अनु ऑटो से बाहर देख रही है और उसकी लटें चेहरे पर उड़ रहे हैं और अनु बार बार अपनी उड़ती लटों को अपनी कान के पीछे किए जा रही है l यह देख कर वीर को अंदर से अच्छा लगने लगता है l उसके होठों पर एक हँसी झलकने लगती है l

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डायनिंग हॉल में बड़े से टेबल पर सब अपनी अपनी जगह बैठे हुए हैं l शुभ्रा और रुप कुकिंग ऐप्रॉन के साथ खाना ट्रॉली में लाते हैं l

तब्बसुम - भाभी... नंदिनी... आप परोसने की जहमत ना उठाएँ... खाना बस आप टेबल पर रख दीजिए... हम आपस में बांट लेंगे...
शुभ्रा - ठीक है...

रुप और शुभ्रा टेबल पर खाने के सारे आइटम रख देते हैं और दोनों अपनी अपनी एप्रन उतार कर डायनिंग टेबल के पास अपनी जगह बना लेते हैं l

दीप्ति - भाभी... क्या हम शुरु करें...
शुभ्रा - हाँ... हाँ पूछने की क्या बात है... अपना ही घर समझो...
दीप्ति - चलो फ्रेंड्स... टुट पड़ो...

उसके बाद सब खाने की बाउल को बारी बारी से लेकर अपनी अपनी थाली में परोसने लगते हैं, फिर खाना शुरू करते हैं l

शुभ्रा - हाँ तो.. छटी गैंग के मेंबर्स... अब बोलो.. मैंने तुम्हारे दोस्त को कैसे और कहाँ फंसाया...
बनानी - वह भाभी... नंदिनी ने हमें मैसेज भेज कर कहा कि... भाभी मुझसे खाना बनवा रही हैं... मुझे आकर बचाओ...
शुभ्रा - ओ.... तो तुम लोग जल्दी इसलिए आए... ताकी तुम्हारे दोस्त को किचन में घुसना ना पड़े...
इतिश्री - जी भाभी... क्यूँ नंदिनी... यही कहा था ना तुमने...

रुप खाना खाते हुए सबको अपनी आँख और मुहँ सिकुड़ कर देखती है l पर उसके सारे दोस्त उसकी परवाह किए वगैर उसके भाभी के कान में बढ़ा चढ़ा कर रुप के बुलावे को पेश कर रहे थे l शुभ्रा भी उनकी बातों का मजा ले रही थी l पुरे खाने के सेशन में रुप चुप रही और अपनी दोस्तों को आँखे दिखाती रही l
खाना खतम हो जाने के बाद सभी रुप के कमरे में जाते हैं और अपनी सेक्योरिटी के लिए शुभ्रा को अपने साथ लेकर जाते हैं l रुप सिर्फ़ अपनी हाथ मलती रह जाती है l

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ऑटो रुकती है l अनु और वीर उतर जाते हैं l अनु ऑटो वाले को पैसे दे कर विदा कर देती है l वीर चारो ओर देख रहा है पर उसे कहीं भी आसपास खाने की दुकान तो दुर घर भी नहीं दिख रहा है l

वीर - अनु... यह हम कहाँ आ गए... अपना खाना पीना कहाँ होगा...
अनु - यह बारंग रोड पर स्थित मशहूर पलेइ फार्म है... यहाँ इस वक़्त हमें.. ककड़ी, तरबूज अनानास मिल जाएगा... आज हम यही खाएंगे... अगर मिला तो...
वीर - व्हाट डु यु मीन मिला तो...
अनु - क्यूँ की हम यहाँ खरीद कर नहीं... चोरी कर खाएंगे...
वीर - क्या... (ऐसे रिएक्ट करता है जैसे चार सौ चालीस वोल्ट का शॉक लगा हो) क्या... हम यह सब चोरी कर खाएंगे... इसमें बचपना कहाँ है...
अनु - राजकुमार जी... मैंने पहले से ही कहा था... आज आपको सिर्फ मुझे ही फॉलो करना है...
वीर - पर चोरी...
अनु - चोरी तब चोरी कहलाएगी... जब पकड़े जाएंगे... और जब पकड़े जाएंगे... तो पैसे दे देंगे...

वीर हैरानी से अपना आँख और मुहँ फाड़ कर देखने लगता है l अनु उसकी हालत देख कर मुस्करा देती है l

वीर - ठीक है... हम फार्म के अंदर चोरी से जाएंगे कैसे...
अनु - मैंने अपने बस्ती के लड़कों से एक चोर रास्ता का पता किया है... आप बस मेरे पीछे पीछे आइए...

इतना कह कर अनु आगे आगे चलती है और वीर उसके पीछे पीछे l फिर अनु को बाउंड्री के एक जगह तारों के बीच रास्ता दिख जाता है अनु झुक कर उन तारों के बीच से जाती है l वीर बड़ी मुस्किल से उन तारों के बीच से घुसता है I फिर अनु और वीर को सबसे पहले छोटे छोटे कांटे दार ककड़ी दिखते हैं l वीर से रहा नहीं जाता उन ककड़ीयों पर टुट पड़ता है और कई दिनों के भूखे की तरह खाने लगता है I अनु भी उसके साथ खाने लगती है l फिर अनु थोड़ी आगे जाती है जहां उसे कुछ भाड़े नजर आते हैं l अनु समझ जाती है वहाँ जरूर तरबूज होंगे l अनु वीर की हाथ पकड़ कर खिंचते हुए वहाँ ले जाती है l वीर को वहाँ पर तरबूज दिखते है पर उसे समझ में नहीं आता कौनसा तोड़े l वह अनु की तरफ देखता है l अनु इशारे से एक तरबूज दिखती है l वीर उसे तोड़ लाता है पर उसे खाए कैसे l अनु उसके हाथ से तरबूज लेकर नीचे फोड़ देती है फिर वहीँ आलती पालती मार कर बैठ जाती है और फटे हुए तरबूज को खाने लगती है l वीर भी उसका साथ देते हुए अनु के पास आलती पालती मार कर बैठ जाता है और मिट्टी पर गिरे तरबूज को उठा कर खाने लगता है l ऐसे ही दोनों पाँच तरबूज खा लेते हैं l तरबूज खाने के बाद वीर और अनु दोनों एक साथ डकार भरते हैं l दोनों का एक साथ डकार निकल जाने पर वीर बहुत जोर से हँसने लगता है l तभी कोई चिल्लाता है
- कौन है वहाँ...

वीर की हँसी रुक जाती है और वह उस तरफ देखता है l एक आदमी हाथ में डंडा लिए उनके तरफ भागते हुए आ रहा है l अनु वीर की हाथ पकड़ कर उठ कर भागने लगती है l वीर भी अनु के पीछे भागता है l दोनों उसी जगह पहुँचते हैं जहां से अंदर घुसे थे l पहले वीर अनु को बाहर भेजता है और फिर खुद बाहर निकलता है l दोनों फिर पीछे बिना मुड़े भागते हैं और मैंन रोड पर आकर अपने घुटने पर हाथ रख कर हांफने लगते हैं फिर दोनों अपने कमर पर हाथ रखकर खड़े हो जाते हैं l कुछ देर के लिए दोनों खामोश रहते हैं और फिर एक दुसरे को देखते हुए जोर जोर से हँसने लगते हैं l

वीर - (हँसते हँसते) ओ अनु... तुम तो बड़ी शैतान निकली...

अनु सिर्फ हँस रही थी और हँसते हँसते उसकी बातों का समर्थन में शर्मा रही थी l

वीर - (बड़ी मुस्किल से अपनी हँसी को रोकने के बाद) अब... क्या बाकी है अनु...
अनु - (अनु भी अपनी हँसी रोकते हुए) अब... अब हम चंद्रभागा जाएंगे... आज की आखिरी पड़ाव...
वीर - ठीक है... पर वहाँ करेंगे क्या...
अनु - समंदर की लहरों पर भागेंगे... गुब्बारे हवा में उड़ाएंगे... लहरों की पानी वापस जाने पर.. रेत पर जहां बुलबुले उठेंगी... हम वहाँ खोद कर छोटे छोटे केकड़े पकड़ेंगे...
वीर - वाव... कुछ भी समझ में नहीं आया... पर लगता है जरूर एक्साइटमेंट होगा... पर जाएंगे कैसे...
अनु - अब हम कुछ दूर यहाँ से चलते हुए जाएंगे... एक ऑटो लेकर... आपकी गाड़ी के पास जाएंगे... फिर आपकी गाड़ी से चंद्रभागा जाएंगे...
वीर - ठीक है... चलो... अपनी गाड़ी कुछ तो काम आई...

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दीप्ति - अच्छा भाभी... अब हम चलते हैं... काफी देर हो गई है...
नंदिनी - अरे... कहाँ... सुरज कहाँ ढला है...
शुभ्रा - हाँ और थोड़ी देर के लिए रुक जाओ... मैं आइसक्रीम मंगवाती हूँ...
तब्बसुम - नहीं भाभी जी... अभी हमे जाना ही चाहिए... हम जो एंजॉयमेंट बाहर रहकर कर सकते थे... यहाँ आकार उससे कई गुना ज्यादा किया है...
बनानी - हाँ भाभी... हम आज उनसे मिल लिए... जो हमारी दोस्त नंदिनी की एक्चुयल गार्डियन हैं... आप...
इतिश्री - और अपने ही दोस्त की टांग उसके ही घर में खिंचे... क्या यह कम मजेदार बात है...
भाश्वती - (रुप से) सॉरी यार... दिल पे मत लेना...
रुप - (भाश्वती को गले लगा कर) मैं तो तुम लोगों की कर्जदार हो गई हूँ... और क्या कहूँ... इस पिंजरे में भी तुम लोगों ने मुझे आजादी का एहसास दिला दिया... थैंक्यू...
बनानी - ओ हैलो.. यह थैंक्यू किसे दे रही हो... हमारा हक़ बनता है तुम पर...
रुप - हाँ.. सो तो है... और वादा रहा... यह हक़ उतारूंगी जरूर...
दीप्ति - हाँ हाँ उतार देना... पहले हमे बाहर तो छोड़ दो...
सब - हाँ हाँ... होस्ट की ड्यूटी होती है कि गेस्ट को बाहर छोड़ आए...
रुप - वह गेस्ट के लिए होता है... घोस्ट के लिए नहीं...
दीप्ति - देखिए ना भाभी....
शुभ्रा - (हँसते हुए) नंदिनी... जाओ अपने दोस्तों को छोड़ आओ.. जाओ...
नंदिनी - ठीक है भाभी...

फिर रुप सब दोस्तों के साथ बाहर आती है और सबको विदा करती है l सबके चले जाने के बाद रुप आकर अपनी भाभी के गले लग जाती है l

रुप - ओ भाभी... (खुशी के मारे उछलते हुए) आई लव यू.. भाभी.. थैंक्यू.. थैंक्यू... वेरी मच...
शुभ्रा - अरे... अरे.. अरे... इसमे.. थैंक्यू कैसे आ गया...
रुप - आप नहीं जानती भाभी... अपनी दोस्तों के साथ मैं एक ऐसा ही दिन बिताना चाहती थी... आपके वजह से वह अपने ख्वाहिश भी पुरी हो गई... बाहर भले ही ना जा सकी... पर घर में आजादी इतना महसूस हुआ कि... लगा ही नहीं के पार्टी और मौज मस्ती हम घर में कर रहे हैं...
शुभ्रा - कोई नहीं... तुम्हारे लिए कुछ भी...
रुप - थैंक्यू भाभी... (कह कर फिर से गले लग जाती है) बस और एक फेवर कर दीजिए...
शुभ्रा - (उसे अपने से अलग करते हुए) कैसा फेवर....

शुभ्रा अपने इस सवाल के जवाब में देखती है रुप की जबड़े भींच गई है और चेहरा कठोर हो गया है

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शाम ढल रही है
चंद्रभागा समुद्री रेत पर वीर और अनु लेटे हुए हैं l दोनों आसमान की ओर देख रहे हैं l नीले आसमान में टुटे बिखरे हुए छोटे छोटे बादल आसमान की नजारे को बहुत ही खुबसुरत बना रही थी l सुरज की रौशनी मंद हो रही थी और समंदर की ओर से आ रही हवा वीर के थके बदन को आराम पहुँचा रही थी l वीर करवट लेकर अनु की तरफ घुमता है l

वीर - अनु...
अनु - (वीर की तरफ करवट बदलती है) जी...
वीर - थैंक्यू..
अनु - (कुछ नहीं कहती सिर्फ मुस्करा देती है)
वीर - (उठ कर बैठ जाता है) अनु... तुमने कहा था कि... तुम अपनी बचपन की सबसे बढ़िया दिन को दोबारा जीना चाहती हो... अगर आज हमने जो जिया वह तुम्हारे बचपन की सबसे हसीन दिन था... तो वाकई तुम्हारा बचपन बहुत ही शानदार थी....
अनु - (उठ कर बैठ जाती है और जवाब में मुस्करा देती है)
वीर - आज हम मंदिर गए... फिर नाश्ता किया... वह भी स्ट्रीट फ़ूड... फिर चिड़ियाघर गए... बहुत मजे किए... सबसे मजा तो पलेइ फार्म में चोरी की रही.. और अब... पहले लहरों पर भागे... लहरें के किनारे पर रेत में उठ रहे बुलबुलों के पास छोटे छोटे केकड़े पकड़ना... फिर अपना नाम लिखना लहरों में अपने नाम को मिटते देखना... वाह क्या बात है... फिर हम दोनों का मिलकर रेत की मंदिर बनाना.... आई... आई कैंट एक्सप्लेन... व्हाट आई रियली गट... थैंक्स अगेन... वाकई तुम्हारा बचपन लाज़वाब था...
अनु - (आँखे नम हो जाती है, मुस्कराते हुए अपनी नजरें फ़ेर लेती है)
वीर - (अनु के आंसू दिख जाते हैं) (बात संभालते हुए) अनु... पता नहीं क्यूँ पर मुझे ऐसा लगा... जैसे आज हम किसीकी बर्थ डे जी रहे हैं.... है ना...
अनु - (इसबार भी कुछ नहीं कह पाती अपना सिर हिला कर हाँ कहती है)
वीर - (हैरान हो कर) कहीं... कहीं आज तुम्हारा बर्थ डे तो नहीं...
अनु - (मुस्करा कर आपनी आँखे ब्लींक करती है)
वीर - ओह शीट... व्हाट इज दिस अनु... आज तुम्हारा बर्थ डे है और... मुझे तुम ट्रीट दे रही हो...
अनु - (थोड़ा संभल कर) तो क्या हुआ राजकुमार जी.... आपको एक बचपन जीना था... और मुझे उस दिन को दोबारा जीना था... जो आठ साल पहले मैंने अपने बाबा के साथ आखिरी बार जिया था.... अगर आप ना होते... तो मैं आज अपनी वह यादगार बचपन दोबारा ना जी पाती... इसलिए मुझे आपको थैंक्यू कहना चाहिए...

अनु की बातेँ वीर के दिल में हलचल मचा देते हैं l वीर के हाथ अपने आप अनु के गालों तक पहुँच जाते हैं पर अनु के गालों को छू नहीं पाता l झिझक के साथ हाथ हटा कर लहरों के पास जा कर खड़ा हो जाता है l वीर के इस झिझक भरी हरकत ने अनु के चेहरे पर एक विश्वास से भरी मुस्कान बिखेर देती है l अनु भी चलते हुए वीर के करीब आकर खड़ी होती है l

वीर - (अनु को देखे वगैर) अनु... तुम बहुत अच्छी हो... वाकई... बहुत.. बहुत ही अच्छी हो... और उतनी ही मासूम भी... पर तुम नहीं जानती... मैं... बहुत... बहुत ही बुरा हूँ... शायद ही ऐसी कोई बुराई बाकी हो दुनिया में... जो मुझमें नहीं है... (अनु के तरफ देख कर) सच सच बताना... तुम्हें कभी... किसीने भी.. मेरे बारे में बुरा नहीं कहा...
अनु - (बड़ी आत्मविश्वास के साथ वीर के आँखों में आँखे डाल कर) बहुतों ने कहा... यहाँ तक मेरी दादी ने भी...
वीर - फिर... क्या तुम्हें मुझसे डर नहीं लगा...
अनु - (अपना सिर ना में हिलाती है)
वीर - क्यूँ...
अनु - (मुस्कराने की कोशिश करते हुए) आज से आठ साल पहले... मेरे बाबा का देहांत हो गया... पैदा होने के कुछ सालो बाद माँ हमे छोड़ कर जा चुकी थी... बाबा के जाने के बाद मेरी जिम्मेदारी दादी पर आ गई... किसी भी रिश्तेदार ने मुझे नहीं स्वीकारा... पर दादी ने हिम्मत नहीं हारी... मुझे अपने सीने से लगा कर परवरिश करने लगी... कभी किसी मिल में तो कभी किसी ईंट की भट्टी में काम करते हुए मेरी परवरिश के साथ साथ गुजारा करने लगी... स्कुल से जब जल्दी आ जाया करती थी... तो आस पास के पड़ोस में दादी के लौटने तक रुक जाती थी... उनमें से किसी को मामा, किसीको काका, किसीको चाचा, किसीको भैया... ऐसे रिश्तों से पुकारा करती थी... पर ज्यूं ज्यूं बड़ी होती जा रही थी... उन रिश्तों ने... मुझ में मौका ढूंढना शुरू कर दिया... कोई ज़बरदस्ती मुझे अपने गोद में बिठाता था... तो कोई.. कहीं भी हाथ मारता था... यह सब स्कुल में भी हो रहा था... और पड़ोस में भी... मुझे उन सबसे डर लगने लगा... इसलिए मैंने जिद की दादी से... की मैं भी काम करने जाऊँगी... पर घर पर या किसी पड़ोसी के घर पर नहीं रुकुंगी... इस तरह से मैं आपकी ऑफिस पहुँच गई.... ऑफिस से लेकर मुझे जितने लोग पहचानते थे... सभी ने आपके खिलाफ बहुत कुछ कहा.... दादी कहती है मैं मंद बुद्धि हूँ... हे हे हे... स्कुल में मेरे टीचर मुझे ट्यूब लाइट कहा करते थे.... क्यूंकि बातों को समझने में मैं देर करती हूँ... पर समझती तो हूँ ना... सच यह है कि... मुझे कभी भी आपसे डर नहीं लगा... उल्टा... जब भी मैं आपके साथ थी... मुझे लगता था कि मैं हर तरफ से सुरक्षित हूँ... मुझे किसी से कोई खतरा नहीं है... और मुझे... अभी इस वक़्त भी भी ऐसा ही लग रहा है....

वीर अनु को एक टक सुनता ही जा रहा था l अनु की हर बात हर शब्द उसके जेहन में हथोड़े की तरह पड़ रहे थे I वीर एक गहरी सांस लेता है और अपना मुहँ फिर से समंदर की ओर कर देता है l

वीर - (समंदर की ओर देखते हुए) अनु... दिन खतम हो रहा है... इससे पहले कि अंधेरा हो... चलो मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ दूँ....

ज़वाब में अनु उसे कुछ कहती नहीं है l वीर गाड़ी की तरफ बढ़ जाता है और अनु इसके पीछे पीछे चली जाती है l

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शाम के सात बजे
पलासुणी
होटल सिंफनी हाइट्स
बफेट टेबल पर दो मॉकटेल की ग्लास है I रॉकी अपने जेब से एक छोटी सी शीशी निकाल कर एक ग्लास में कुछ डालता है l और फिर बंकेट हॉल को अच्छी तरह से देखता है फिर लिफ्ट से नीचे आकर होटल के गेट के सामने खड़ा हो जाता है l कुछ देर इंतजार करने के बाद होटल के सामने एक चमचमाती हुई गाड़ी रुकती है l गाड़ी को देखते ही रॉकी की दिल की धड़कने बहुत तेज हो जाती हैं l कार की दरवाजा खुलती है और नंदिनी हाथ में गिफ्ट लिए गाड़ी से उतरती है l रॉकी एक गार्ड को इशारा करता है तो वह गार्ड एक खूबसूरत और रंगबिरंगी गुलाबों से सजी एक बुके लाकर रॉकी के हाथ में दे देता है l

रॉकी - (बुके को नंदिनी को देते हुए) ब्यूटीफुल फ्लवर्स फॉर द मोस्ट ब्यूटीफुल एंड गर्जियस गर्ल...
नंदिनी - (बुके लेते हुए) ओह थैंक्यू... (बुके को ड्राइवर को दे देती है) तो पार्टी कहाँ पर हो रही है...
रॉकी - ऊपर...
नंदिनी - ओ तो चलें...
रॉकी - श्योर... पार्टी आखिर खास आप ही के लिए रखा गया है...
नंदिनी - ओ... तब तो बिल्कुल भी देर नहीं करनी चाहिए... क्यूँ...

रॉकी मुस्करा देता है और हाथ से इशारा करते हुए रास्ता दिखाता है और नंदिनी को साथ आने के लिए कहता है l दोनों लिफ्ट से पाँचवी फ्लोर पर आते हैं l बंकेट हॉल में में घुसते ही नंदिनी हैरान हो जाती है l पुरे हॉल में बीचों-बीच एक डायनिंग टेबल लगा हुआ है और उस टेबल के बगल में बफेट लगा हुआ है l डायनिंग टेबल के ऊपर क्रिस्टल ग्लास के झूमर लगे हुए हैं और टेबल पर एक कैंडल लैम्प लगा हुआ है l पुरा बंकेट हॉल लाइट और इल्युजन के लिए सिर्फ कैंडल लैम्पों से सजाया गया है l अंदर का इल्युजन वाकई बहुत जबरदस्त था l नंदिनी का रास्ता बनाते हुए डायनिंग टेबल के पास रॉकी आता है और नंदिनी के लिए चेयर खिंच कर बैठने के लिए इशारा करता है l

नंदिनी - (बैठने के बाद) क्या बात है रॉकी जी... लगता है आप अपनी बर्थ डे पर मुझे इम्प्रेस करने के लिए... कोई कसर छोड़ना नहीं चाहते.... और कहीं पर भी चूकना नहीं चाहते...
रॉकी - (नंदिनी के सामने बैठते हुए) हाँ... आज कोई चूक ना हो... इसलिए यह सब अरेंजमेंट किया है...
नंदिनी - ह्म्म्म्म... देखते हैं...
रॉकी - वैसे थैंक्यू... थैंक्यू वेरी मच... सच कहूँ तो मुझे एक पर्सेंट भी उम्मीद नहीं थी... के आप आयेंगी... या यूँ कहूँ कि आप आ सकेंगी... ऐसा सोचा नहीं था... पर दिल में एक आस थी... की आप जरूर आयेंगी...
नंदिनी - हाँ मेरा घर से निकलना लगभग ना मुमकिन है.... पर सोचा आपके लिये थोड़ा रिस्क उठाया जाए....
रॉकी - ओह... थैंक्यू... वैसे आज आप बहुत खूबसूरत लग रही हैं...
नंदिनी - हा हा हा (हँसते हुए) जब से गाड़ी से उतरी हूँ... तब से.. फ्लर्ट किए जा रहे हैं...
रॉकी - सच बोलना फ्लर्ट कैसे हो सकता है... नंदिनी जी...
नंदिनी - ह्म्म्म्म ठीक है... थोड़ी देर में पता चल ही जाएगा... वैसे यह पार्टी.... क्या सिर्फ़ मेरे लिए रखा है आपने...
रॉकी - जी..
नंदिनी - क्यूँ...
रॉकी - वह... मैं... इस.. लिए...
नंदिनी - ह्म्म्म्म ऐसी इम्प्रेशन उस लड़की पर जमाया जाता है... जिससे प्यार हो गया हो... कहीं ऐसा तो नहीं...
रॉकी - (शर्मा कर) ह... हाँ...
नंदिनी - हा हा हा हा... (हँसने लगती है) क्या मुझसे प्यार... क्यूँ...
रॉकी - क्यूँ का क्या मतलब कहूँ... बस प्यार हो गया... और क्या....
नंदिनी - वही तो मुझसे ही क्यूँ... बनानी से नहीं... दीप्ति से नहीं... इतिश्री या भाश्वती या तब्बसुम से नहीं... मुझसे ही क्यूँ...
रॉकी - (हकला जाता है) वह... वह... आ.. आप... बहुत... खास हैं...
नंदिनी - अच्छा... ऐसी क्या खासियत है मुझमें...
रॉकी - आ.. आ.. आप...
नंदिनी - हाँ हाँ मैं...
रॉकी - लगता है... आप मेरी खिंचाई कर रही हैं...
नंदिनी - बिल्कुल नहीं... मैं आपके अंदर की फिलिंग्स को जानना चाहती हूँ...
रॉकी - एक काम करते हैं... यह मॉकटेल पीते पीते बात करें...
नंदिनी - श्योर...

रॉकी बफेट टेबल के पास जाता है और वहाँ से दो ग्लास मॉकटेल के लेकर आता है और एक नंदिनी को देता है l नंदिनी ड्रिंक को अपनी होठों से लगाती है तो रॉकी मन ही मन खुश हो जाता है पर तभी

नंदिनी - मैंने एक सीप ले ली है... आप भी अपनी ड्रिंक से एक सीप लो... फिर बातें करते हैं...
रॉकी - ओके (कह कर ड्रिंक से एक सीप पीता है)

नंदिनी अपनी जगह से उठती है और रॉकी से अपना ग्लास एक्सचेंज कर देती है l और अपनी जगह बैठ जाती है l अचानक क्या हुआ यह रॉकी कुछ समझ पाता उससे पहले

नंदिनी - अब झूठन ग्लास एक्सचेंज कर पीने से.. आपसी रिश्ता बहुत मजबूत होता है... लो अब मैं तुम्हारे ग्लास से पीती हूँ... तुम मेरे ग्लास से पियो... यह इश्क़ की सबसे हसीं रस्म है...
रॉकी - (ग्लास को टेबल पर रख देता है) अभी दिल की बातेँ हमने कही कहाँ है.. के यह रस्म अदा की जाए... पहले इजहार तो हो... फिर इकरार हो... फिर यह रस्म भी अदा हो जाएगी...
नंदिनी - वाह क्या बात है... बातों में अब वजन आने लगा है...
रॉकी - तो फिर बंदे के बारे में क्या खयाल है...
नंदिनी - (कुछ देर रॉकी को गौर से देखती है और चुप रहती है, फिर) डरपोक... कायर... बुझ दिल...
रॉकी - (हड़ बड़ा जाता है) यह... यह क्या कह रही हैं... मैं... डरपोक नहीं... कायर नहीं... ऐसा होता तो...
नंदिनी - (हँसते हुए) हा हा हा हा... हाँ हाँ तो...
रॉकी - (सीरियस हो कर) कॉलेज में हजार लड़के थे... पर आपकी दोस्त को बचाने के लिए... एक ही लड़का अपनी जान पर खेल गया था...
नंदिनी - अरे हाँ... (मुस्कराते हुए) और वह लड़का तो आप ही हैं क्यूँ... कितना बड़ा रिस्क लिया था आपने... वाव...
रॉकी - (अपनी नजरें चुराते हुए) अब मैं क्या कहूँ...
नंदिनी - नहीं... इस बारे में तो... पुरा कॉलेज और शहर बात कर रहा है... और इसी बात पर आप मेरी यह गिफ्ट को लें और खोल कर देखें...
रॉकी - (अपनी घबराहट छुपाने की कोशिश करते हुए) ज़रूर...

रॉकी नंदिनी से गिफ्ट लेकर रैपर खोलता है और गिफ्ट को देखते ही पहले हैरान हो जाता है और घबराहट के साथ नंदिनी को देखता है l रॉकी के हाथ में साइंस लैब की एप्रन थी l

रॉकी - यह... यह क्या है... नंदिनी...
नंदिनी - अरे वाह... नंदिनी जी से... सीधे नंदिनी... बड़े जल्दी औकात पर आ गए...
रॉकी - (अपनी जगह पर खड़ा हो जाता है और एप्रन को नीचे फेंक कर) व्हाट इज़ दिस नॉनसेंस नंदिनी...
नंदिनी - यही रिस्क लिया था ना तुमने... रिस्क... वाह क्या लफ्ज़ है... किसी महान कमीने ने कहा है कि... नो रीस्क नो गैंन...
रॉकी - (झटका खाते हुए) क.. क.. क्या कह रही हो...
नंदिनी - गौर से देखो... यह वही लैबोरेट्री एप्रन है... जिसे पहन कर तुमने बनानी को बचाया था... इतनी जल्दी भुल गए...
रॉकी - (चेहरे पर पसीने छूटने लगते हैं) त... त.. तुम्हें क.. कैसे प.. प.. पता चला...
नंदिनी - क्राइम करो... तो उसे परफेक्शन के साथ अंजाम दो... सबुत नहीं छोड़ना चाहिए था... जैसे कि यह एप्रन...
रॉकी - (अपनी हलक से बड़ी मुश्किल से थूक निगलता है)
नंदिनी - बढ़िया प्लान था... हीरो बनने का... कॉलेज में ही नहीं... टॉक ऑफ द टाउन भी बन गए... तो वहीं पर रुक जाना चाहिए था... किस बात की जल्दी थी... रॉकी...
रॉकी - (हकलाते हुए) म... म.. मतलब... तुम्हें पहले से ही सब कुछ पता था...
नंदिनी - नहीं... पर बाद में पता चला...
रॉकी - (अपनी जेब से रुमाल निकाल कर अपना चेहरा पोंछता है)
नंदिनी - बनानी के बर्थ डे के दिन... सारा कांड करके... तुम तो हीरो बन कर चले गए... पर मैं उस दिन सबसे ज्यादा गिल्टी फिल कर रही थी... कोई नहीं था वहाँ... इसलिए सबके जाने के बाद मैं हड़बड़ी में जेन्ट्स वॉशरुम में जाकर अपना चेहरा धो रही थी कि.... शावर के नीचे यह एप्रन मिला... तब मुझे बताया गया था कि... बनानी को बचाते वक़्त एप्रन में आग लग गई थी.... और तुमने आग बुझाने के लिए शावर ली थी.... शावर के नीचे एप्रन देख कर मुझे थोड़ा शक हुआ... वीडियो में... हमने देखा था... एप्रन में आग लगी थी... पर.... कमाल की बात यह थी... की एप्रन में कहीं भी... कोई बर्न मार्क नहीं थे... मैंने वहीँ से एप्रन उठा लिया.... बाद में अपने ड्राइवर काका के मदत से... एप्रन की लैब टेस्ट कराया... हा हा हा हा... रिपोर्ट में... एप्रन पर अनफ्लेमेबल जैली लगा हुआ था... (रॉकी को देख कर) क्या बात है रॉकी.... तुम्हें इतना पसीना क्यूँ आ रहा है...
रॉकी - (होश में आता है और फिर से अपना चेहरा पोंछता है) अगर मालुम हो गया था... तो दोस्ती का हाथ क्यूँ बढ़ाया...
नंदिनी - हाँ यह बात तो है... दोस्ती का हाथ क्यूँ बढ़ाया... मैं यह सोचती रही... आखिर क्यूँ... एक कॉमर्स स्ट्रीम का लड़का... साइंस स्ट्रीम में ऐसी हरकत क्यूँ की... कौन है उसका टार्गेट... फिर मेरे दिल ने यह कहा कि... हो ना हो... यह स्कीम उस लड़की के लिए था... जिसको बचाया गया... पर तुम्हारे रेडियो कांड ने मुझे गलत साबित कर दिया...
रॉकी - (और भी हैरान हो जाता है)
नंदिनी - तुम्हारे लैब वाले कांड के वजह से.... बनानी के दिल में तुम्हारे लिए एहसास और ज़ज्बात जनम ले चुकी थी... इसलिए रेडियो एफएम के सिलेक्शन के दिन... यानी लकी ड्रॉ के दिन... जब चिट कलेक्शन हो रहा था... तो मैंने हमारे ग्रुप से सारे चिट लेकर गायब कर दिए थे... और सिर्फ़ बनानी के नाम की छह चिट डाला था... और भगवान से प्रार्थना कर रही थी... की चिट में बनानी का नाम ही आए... पर... वहाँ तो चमत्कार हो गया... चिट में मेरा नाम आया... खैर... हम ठहरे रॉयल ब्लड वाले हैं... हर चैलेंज एसेप्ट करते हैं.... सो मैंने प्रेजेंटेशन दे दिया...
रॉकी - यह सब जानने के बाद भी... मुझे यह घड़ी... (अपना हाथ दिखाते हुए) तोहफे में क्यूँ दी...
नंदिनी - तुम्हें शक़ हुआ था ना... मैंने घड़ी तो दी तुमको... पर यह बात मैंने अपने सारे दोस्तों से छुपाया था...
रॉकी - (हैरानी से आँखे फैल जाते हैं) यह तुम्हें कैसे पता चला...
नंदिनी - ऑए हीरो... (नंदिनी चेयर के आर्म रेस्ट पर अपना हाथ रख कर अपना बायाँ पैर दाहिने पैर के ऊपर रखती है) तुम नहीं आप बोल... हम राजसी खुन के हैं... औकात में रह...
रॉकी - (बड़ी मुश्किल से अपनी हलक से आवाज निकाल कर) यह... आपको कैसे मालुम हुआ...
नंदिनी - हा हा हा हा...(हँसने लगती है) कहा था ना... तु कायर है... बुजदिल है... बस इतने में डर गया...
रॉकी - (शर्म से अपना सिर झुका लेता है)
नंदिनी - यह जो घड़ी तेरे हाथ में दौड़ रही है ना... यह वेयर हेल्थ की स्पाय वाच है... इसे स्पेशियलि मेरे युवराज भैया ने भाभी के लिए डिजाईन किया था... भाभी ने इसे मेरी सेफ्टी के लिए मुझे दिया था... और मैंने इसी तरह की एक नई घड़ी को तुझे गिफ्ट में दे दिया...
रॉकी - (अपने हाथ में पहने घड़ी को गौर से देखता है)
नंदिनी - यह घड़ी प्रोग्राम्ड है... जैसे ही किसी स्मार्ट फोन से ब्लू टूथ से जुड़ता है... इसके अंदर की प्रोग्राम एक्टिव हो जाती है... फोन पर एसएमएस के जरिए एक लिंक आता है... जैसे ही वह लिंक खुलता है इसका ऐप अपने आप इंस्टाल हो जाता है... और कॉल से लेकर नेट सर्फ तक सबका रिकार्ड एडमिन के मोबाइल पर भेजता रहता है...
रॉकी - (अपना टाई को ढीला करता है, धीमी और थके हुए आवाज में) ठीक है... पर मैं जब फोन नंबर ढूंढ रहा था... तब आपने मुझे फोन क्यूँ की... और यहाँ क्यूँ आईं...
नंदिनी - क्यूंकि मैं नहीं चाहती थी... के तुम जोश जोश में और कोई बेवकूफ़ी करो... जिससे... तुम और तुम्हारे दोस्त... और तुम सबके परिवार... मेरे भाइयों के नजर में आ जाए... क्यूंकि अगर मेरे भाइयों को जरा सा भी आभास हो गया होता... तो तुम सोच भी नहीं सकते हो... क्या क्या हो सकता था तुम लोगों के साथ... तुम क्षेत्रपाल बंधुओं की बहन को ड्रग मिला ड्रिंक दे रहे थे... क्या करते मेरे साथ...
रॉकी - यह कैसे मालुम हुआ...
नंदिनी - अभी अभी तो बताया... कॉल से लेकर नेट पर सर्फ की गई सारी जानकारी... मुझे उपलब्ध करा चुकी है यह घड़ी.... तुमने अपने मोबाइल फोन पर डेट ड्रग्स पर सर्च किया... फिर रसूलगड़ के केमिस्ट से यह ड्रग् खरीद कर मेरे ड्रिंक में मिलाया था... है ना... (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) क्या करते मेरे साथ... लिफ्ट में...
रॉकी - (खामोश रहता है) अब क्या करोगी मेरे साथ...
नंदिनी - रॉकी तुम जैसे भी हो... उतने बुरे नहीं हो... जितना बनने की कोशिश कर रहे हो... और मैं नहीं चाहती थी कि तुमसे और कोई बेवकूफ़ी हो.... मैं तुम्हें और तुम्हारे परिवार को क्षेत्रपाल बंधुओं के आक्रोश से बचाना चाहती थी.... और भी एक वजह है... बनानी... जो तुमसे बहुत प्यार करने लगी है... इसलिए यह मामला जल्दी खतम करने के लिए... मुझे आना पड़ा... अब बताओ... मेरे परिवार से क्या रंजिश है... जिसे उतारने के लिए... तुमने मुझे टार्गेट किया....
रॉकी - (चिल्लाते हुए) हाँ हाँ... मुझे तुम क्षेत्रपाल से नफरत है... मैं तुम्हें लिफ्ट में फंसा कर मरवा देना चाहता था... जैसे तुम्हारे भाई विक्रम ने.... मेरे बड़े भाई को लिफ्ट में फंसा कर मारा था... और तुम जिन्हें अपनी भाभी कह रही हो... वह कभी हमारे खानदान की होने वाली बहु थीं... मेरी होने वाली भाभी थी... मेरे पिता और शुभ्रा सामंतराय के पिता बिरजा कींकर सामंतराय... दोस्त हुआ करते थे... तुम्हारे भाई ने हमारे घर की चिराग बुझा कर... शुभ्रा जी से ज़बरदस्ती शादी की थी... पर याद रखना वह शादी नहीं था... बलात्कार था...

रॉकी कहते कहते हांफने लगता है l पर उसकी कही हर बात नंदिनी के सिर पर जैसे बिजली बन कर गिरती है l यह एक नया खुलासा था l नंदिनी वहाँ और नहीं रुक पाती l सीढियों से उतर कर नीचे आती है और अपनी गाड़ी में बैठ कर वापस घर की ओर चल देती है
Awesome Updateee

Mujhe laga hi thaaa Rocky ke parivaar ke saath Chetrapal ne kuch na kuch kiyaa thaa tabhi woh Nandini ke pichhe thaa. Par Nandini toh Rocky se 1 nhi 2 kadam aage thi. Uske har plan har step ke baare mein pehle se jaanti thi.

Dekhte hai ab aage kya hota hai. Roop yeh sach janne ke baad kyaa karti hai.
 

Kala Nag

Mr. X
Prime
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Awesome Updateee

Mujhe laga hi thaaa Rocky ke parivaar ke saath Chetrapal ne kuch na kuch kiyaa thaa tabhi woh Nandini ke pichhe thaa. Par Nandini toh Rocky se 1 nhi 2 kadam aage thi. Uske har plan har step ke baare mein pehle se jaanti thi.

Dekhte hai ab aage kya hota hai. Roop yeh sach janne ke baad kyaa karti hai.
हाँ सच कहा
आख़िर सबने अपनी क़ाबिलियत साबित किए हैं
रुप भी कुछ कम नहीं है यह रुप ने साबित कर दिया
अब आगे एक फ्लैशबैक होगा शुभ्रा की जुबानी
जिससे रुप को मालुम होगा विक्रम और शुभ्रा के बीच की दूरी के बारे में
 
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