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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

Mr. X
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parkas

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👉दसवां अपडेट
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वीर म्युनिसिपल ऑफिस के अंदर आता है और पिनाक सिंह के चैम्बर की तरफ बढ़ता है l बाहर ऑफिस के एक मुलाजिम उसे देखते ही सलाम ठोकता है l
एक आदमी - यहाँ कैसे आना हुआ राजकुमार जी....
वीर - अपने ही रियासत में... किसीकी इजाज़त लेने की जरूरत है क्या...
आदमी - नहीं नहीं.... ऐसे ही पुछ लिया.... वैसे बहुत दिनों बाद आप यहाँ आये हैं....
वीर - राज कुमार हैं.... अपनी प्रजा के हालत का जायजा लेने आये हैं...
वैसे मेयर जी अपने चेंबर ही हैं ना.......
आदमी - जी नहीं राजकुमार जी..... अभी पार्टी मुख्यालय से अध्यक्ष जी का बुलावा आया था.... इसलिए वह वहाँ गए हैं....
वीर - अच्छा..... कब तक लौट सकते हैं...
आदमी - यह मैं कैसे बता सकता हूँ.... हाँ आप चाहें तो उनके चेंबर में उनका इंतजार कर सकते हैं....
वीर - हाँ... यही ठीक रहेगा....
इतना कह कर वीर पिनाक सिंह के चेंबर में घुस जाता है l अंदर ऐसी चालू कर पिनाक सिंह के चेयर पर बैठ जाता है l थोड़ी देर बाद वही आदमी एक कुल ड्रिंक का बॉटल लेकर आता है और टेबल पर रख देता है l
वीर - और स्वाइं क्या चल रहा है...
स्वाइं - सब आपकी कृपा है....
वीर - (कुल ड्रिंक पीते हुए) ह्म्म्म्म अच्छा... मेयर साहब कुछ काम रह गया है.. क्या... जो मुझसे हो...
स्वाइं- पता नहीं... एक औरत अभी थोड़ी देर पहले अपनी पोती को लेकर आयी है.... मेयर साहब के पास....
वीर - (उसकी आंखों में एक चमक आ जाती है) क्यूँ... किस लिए....
स्वाइं- वो... कल... मेयर साहब... एक साइट पर गए थे.... वहीँ एक औरत से मिले... उसके दुख देख कर.... उसे और उसकी पोती को आज बुलाया था.... शायद कहीं नौकरी पे लगा दें...
वीर - अरे.... मेयर साहब के पास... कहाँ नौकरी है... नौकरी तो हमारे पास है..... जाओ अगर नौकरी की ही बात है.... तो मैं भी उस लड़की को एंनगेज कर सकता हूँ....
स्वाइं - यह तो और भी अच्छी बात है.... मैं अभी उन दादी पोती को आपके पास भेजता हूँ....
इतना कह कर स्वाइं वहाँ से निकल जाता है l वीर अपना कुल ड्रिंक खतम करने में मसरूफ हो जाता है l थोड़ी देर बाद स्वाइं दो औरतों के साथ रूम में आता है l वीर देखता है एक अधेड़ औरत जो थोड़ी बीमार लग रही है और उसके साथ एक लड़की साँवली सी, पर तीखे नैन नक्स के साथ दुबली पर जहां भरी होनी चाहिए वहीं पर भरी हुई है l
उस लड़की को देखकर वीर मन ही मन बोला - परफेक्ट.... क्या बॉडी है और क्या बम्पर है... ह्म्म्म्म परफेक्ट...
वह बुढ़ी औरत और वह लड़की दोनों वीर को नमस्कार करते हैं l
वीर - जी नमस्ते... आइए.. बैठिए...
औरत - जी नहीं राजकुमार जी.... आप के सामने हम खड़े जो कर बात कर पा रहे हैं... यही हमारी अहोभाग्य है....
वीर - आरे.... आप कौनसे ज़माने की बात कर रहे हैं....
औरत - नहीं राज कुमार जी... हम छोटे लोग हैं.... हमे आप अपने जुते तक ही रहने दीजिए...
वीर - ठीक है.... कहिए आपको कैसी मदत चाहिए....
औरत हाथ जोड़ कर अपनी पोती की ओर इशारा करते हुए - राजकुमार जी यह मेरी पोती है... बचपन से अनाथ है बिचारी.... अब मैं भी कब तक इसके साथ रह पाउंगी नहीं जानती.... इसे कहीं नौकरी पर रख दीजिए.... ताकि आगे चलते उसकी शादी हो जाए.... तो मैं आराम से पूरी जा कर मर सकूंगी...
वीर - (उस लड़की से) कहाँ तक पढ़ी हो....
लड़की - जी जी वो म मैट्रिक तक....
वीर - ह्म्म्म्म आगे क्यों नहीं पढ़ी....
औरत - कैसे पढ़ती... पढ़ाई में बहुत कमजोर है.... मैट्रिक भी तीन बार में पास हुई है....
वीर - अच्छा.... ह्म्म्म्म... वैसे क्या नाम बताया तुमने....
लड़की - जी अभी तक बताया नहीं मैंने....
वीर - अच्छा... अरे.. हाँ... मैंने पूछा कहाँ है....ह्म्म्म्म बोलो फ़िर...
लड़की-जी क्या....
वीर - अरे.... तुम्हारा नाम...

लड़की-जी मेरा नाम अनु है..
वीर - बड़ा प्यारा नाम है.... मेरा मतलब है... बहुत ही सुंदर नाम है... वैसे दादी जी सिर्फ मैट्रिक पास कर लेने से... वह भी तीन बार में..... क्या लगता है... नौकरी मिल जाएगी...
औरत - अब क्या बताऊँ... राज कुमार जी... बाप इलेक्ट्रिसियन था एक दिन बिजली की खंबे पर ही चल बसा और इसकी माँ अपने पति के दुख में चल बसी...
इस अभागिन को मेरे पल्लू से बांध गए... लड़की मंद बुद्धि है..... छोटी सी उम्र में माँ बाप देहांत के बाद मेरे लाड-प्यार से सांसारिक ज्ञान से भी दूर रही.... अब मुझे कब बुलावा आ जाए.... अगर यह किसी किनारे लग जाए... तो मैं समझूँगी चन्द्रभागा नहा ली मैंने....
वीर - तो व्याह क्यूँ नहीं करा दिया...
औरत - व्याह ही तो कराना है.. राजकुमार जी.... फूटी कौड़ी नहीं है... अगर नौकरी लग गई तो शायद... नौकरी को देख कर कोई व्याह करले.... आप तो जानते हैं... जवान लड़की अगर घर में रहेगी.... तो उस पर आसपास की भी बुरी नजर लग सकती है... इसलिए... अब आप से ही आस है....
वीर - ठीक है अनु.... समझो तुम्हें नौकरी मिल गई..... कल ठीक साढ़े दस बजे ESS ऑफिस में आ कर मुझसे मिलो.... तुम्हें... नौकरी मिल जाएगी....

औरत - जुग जुग जियो राजकुमार.... आपको यह बुढ़िया आशीर्वाद ही दे सकती है....
वीर - बस बस यही काफी है.... अच्छा अब आप जाइए....
अनु और उसकी दादी वीर को नमस्कार कर बाहर निकल जाते हैं l
स्वाइं - वाह राजकुमार जी वाह... आपने तो उनके दुख दूर कर दिए..
वीर - अरे नौकरी जैसी छोटी छोटी बातों के लिए मेयर साहब को मेरे पास भेजना चाहिए.... ना कि खुद इस बात में सर खपाना चाहिए....
अच्छा जाओ यार कुछ गरमा गरम भेजो....
स्वाइं- जी राजकुमार जी...
स्वाइं बाहर चला जाता है l वीर अनु के ख़यालों में खो जाता है, अपने पैंट के भीतर करवट ले रहा लंड को मसलने लगा और बुदबुदाने लगता है - क्या गरम माल थी.... उफ... कौन कहता है रंग ही सब कुछ है.... साँवली सलोनी... वह भी हर जगह से दूसरी कसी हुई..... ओ... ह.. मैंने कितना सम्भाला खुदको... पता नहीं कुछ और देर रहती तो उठा कर यहीं पटक कर चोद देता....
तभी दरवाजा खुलता है l वीर देखता है अनु अंदर झाँक रही है l
वीर - क्या हुआ अनु....
अनु - जी मैं अंदर आऊं...
वीर - हाँ आओ...
अनु आकर वीर के पास आती है और झट से उसके पैर पकड लेती है l
वीर - अरे.. अरे... यह क्या कर रही हो....
अनु - आप नहीं जानते राजकुमार जी...(वीर के पैर पकड़े हुए और अपनी नजर झुकाए हुए) अपने मेरे और दादी के लिए क्या किया है... किस तरह आपका धन्यबाद अर्पण करूँ...
वीर - अररे... नजरें झुका कर क्यूँ बात कर रहे हो....
अनु- दादी ने कहा कि.... आप... अन्नदाता हैं... आपसे कभी नजरे नहीँ मिलाना चाहिए...
वीर के पैर पकड़े हुए अनु विनम्रता से और झुक गई तो वीर की नजर अनु के कुर्ते क्लीवेज से झाँकती हुई चुचों पर ठहर गई l वीर की आंखों में चमक आ गई,
बड़ी मुश्किल से वीर खुदको सम्भाला और अनु के चुचों को घूरते हुए अपने गले से थूक निगल कर कहा - अनु मुझसे तुम्हारा दुध.. ख.. (गले का खराश ठीक करते हुए) दुख देखा नहीं जा रहा है...
अनु वैसे ही वीर के पैर पकड़े हुए और नजरें झुका कर - दादी ठीक कह रही थी... आप बड़े लोग बड़े दिल वाले हैं... आज से आप हमारे मालिक हैं.....
वीर - (जुबान लड़खड़ाने लगी, मुहँ में लार भरने लगा) तुम्हारे भी तो कम नहीं है.... दुख.... कैसे उठाती हो इतने बड़े बड़े दुख.... अब बिल्कुल चिंता मत करो... मैं अपने दोनों हाथों से उठाऊंगा... तुम्हारे दुख...
अनु - जी मालिक.. जी..
वीर - अनु अब तुम जाओ....और थोड़ी देर अगर तुम रुकी तो तुम्हारे दुखों को देख कर रो दूँगा...
जाओ अनु जाओ और कल ESS ऑफिस पहुंच जाना... अपने वक्त पर...
अनु - जी मालिक....
अनु उठती है और अपना सर झुकाए बाहर निकलने को होती है l
वीर - सुनो अनु...
अनु - जी मालिक....
वीर अनु के नर्म मुलायम हाथों को पकड़ता है और उसके हाथों में कुछ पैसे रख देता है l
वीर - यह लो... यह शगुन है... तुम्हारे नए जीवन की.... कल याद कर के आ जाना...
अनु ने अपना सर हिला कर बाहर निकल गई, उसके जाते ही वीर जल्दी से वश रूम में घुस जाता है और अपना पैंट निकाल कर मूठ मारने लगता है l रिलेक्स होने के बाद अपना हाथ साफ करता है l उसे बाहर कुछ चिल्लाने की आवाज आती है l वीर वश रूम से बाहर आता है तो पिनाक सिंह को स्वाइं पर चिल्लाते देखता है l
वीर - क्या हुआ छोटे राजा जी...
पिनाक - तुम मेरे फटे में क्यूँ टांग अड़ाने लगे....

पिनाक - स्वाइं तुम बाहर जाओ... (स्वाइं बाहर निकल जाता है, पिनाक वीर के तरफ मुड़ कर) बाथरूम जा कर हल्के हो लिए....
वीर - हाँ....

पिनाक - तुम कबसे लोगों को नौकरी बांटने लगे....
वीर - सेक्योरिटी सर्विस मेरे हिस्से में आता है... और लड़की के पास क्वालिफीकेशन भी नहीं है... इसलिए मैंने उसे फिमेल ग्रुप में शामिल करने का फैसला किया है...
पिनाक - अच्छा.... और वह वहाँ पर क्या करेगी....
वीर - आज कल मेरा स्ट्रेस लेवल बहुत बढ़ रहा है... डॉक्टर ने मुझे स्माइली बॉल दबाते रहने को कहा है...
पिनाक - अच्छा तो जनाब को BP की शिकायत है...
वीर - हाँ... डॉक्टर ने यह भी कहा है.. चाहे रोज बॉल मिले ना मिले... पर रोज दबाते रहना चाहिए... इसलिए वह लड़की परफेक्ट है...
पिनाक - यू...(गुस्से से टेबल पर रखे फाइल को नीचे फेंक देता है)
तभी टेबल पर रखी फोन बजने लगती है l पिनाक गुस्से से फोन को स्पीकर पर डालता है और चिल्ला के पूछता है - हैलो....
पिनाक की यह हालत देख कर वीर मन ही मन मुस्कराने लगता है l फोन के दूसरे तरफ कोई जवाब नहीं आते देख फिर से चिल्लाता है - हैलो कौन है..
फोन - चिल्ला क्यूँ रहा है बे.. किसीने तेरी मार कर पैसे नहीं दी है क्या....
पिनाक - कौन है बे हरामी... किसकी मौत आयी है.. जो हमसे ऐसी बात कर रहा है...
फोन - मैं तेरी मौत बोल रहा हूँ...
पिनाक - (झल्ला कर) कौन है कुत्ते...
फोन - मैं तेरा कर्मा....
पिनाक - अबे पागल तु जानता भी है... तु किससे बात कर रहा है...
फोन - पिनाक सिंह क्षेत्रपाल... मेयर भुवनेश्वर से बात कर रहा हूँ... जिसके दुकान पर बहुत जल्द लात मारने वाला हूँ....
पिनाक - तु सच में पागल हो गया है.... क्षेत्रपाल हूँ मैं क्षेत्रपाल... यह जान कर भी तुने फोन पर बकवास कर मेरा वक्त बर्बाद करने की जुर्म में.... तुझे तेरे खानदान समेत नर्क भेज दिआ जाएगा.. ...
फोन - हा हा हा... कितना अच्छा जोक मारा... पास होता तो तुझे टीप देता... हा हा हा.. अच्छा... चल...तेरे बकचोदी के जुर्म में अगले हफ्ते तुझ पर जानलेवा हमला होगा....
पिनाक - क्या...
फोन - तैयार रहना बे हरामी...
फोन कट जाता है l वीर जो अब तक चुपचाप सुन रहा था, अब कुछ सोचने पर मजबूर हो गया l
पिनाक - प्रांक कॉल था...

वीर - (अपना सर ना में हिलाते हुए) मुझे नहीं लगता.... जरूर कोई नया दुश्मन है... पता लगाना होगा.....

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किचन में प्रतिभा बर्तन साफ कर रही है l पास खड़ी वैदेही घूर कर देख रही है l
प्रतिभा - तू चाहे कैसे भी देख... बर्तन में तुझे मांजने नहीं देने वाली...
वैदेही - पर क्यूँ मासी....
प्रतिभा - आज तु मेहमान... बनने का लुफ्त उठा ले.... आगे से जब आयेगी... मेजबान बन जाना.... पर आज नहीं...
वैदेही - वाह इसे कहते हैं चालाकी.... मुझे गिल्टी फिल् करवा कर... फिर से आने का फरमान जारी कर दिया....
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... अब समझी.... तेरा पाला किसी वकील से पड़ा है...
दोनों हंसने लगते हैं l
प्रतिभा - अच्छा... मेरा काम खतम हो गया....
चल बैठक में बैठते हैं... और तुझसे तेरी कहानी सुनते हैं....
वैदेही - रुकिए मासी...
प्रतिभा - अब क्या हुआ...
वैदेही - मासी... मेरे ज़ख्म बहुत गहरे हैं... आज अगर इस बंद चारदीवारी में खुरचती हूँ... तो दिलसे, आंखों से खुन की फब्बारें निकलेगी.... कहीं बाहर चलते हैं... मैं आपको वहीँ सब बताने की कोशिश करूंगी....

प्रतिभा उसे देखती है l वैदेही के चेहरे पर आ रहे भावों को देख कर उसे कहती है - अच्छा चल.... कहीं बाहर चलते हैं.... मैं सेनापति जी को बोल देती हूँ... फिर बाहर निकलते हैं...

प्रतिभा किचन से बाहर निकल कर बेडरुम से कपड़े बदल कर तुरंत आ जाती है और तापस को आवाज देती है - सेनापति जी....
तापस - जी... जी कहिए... क्या खिदमत करें आपकी...
प्रतिभा - हो गया...
तापस - अभी कहाँ...
प्रतिभा - ओह ओ... कुछ तो शर्म करो... भतीजी के सामने कुछ भी...
तापस - अरे वैदेही को मालूम है कि मैं उसकी मासी से बात कर रहा हूँ... क्यूँ वैदेही...
प्रतिभा - सेना... पति... जी..
तापस - अच्छा आप कहिए... क्या.... हुआ
प्रतिभा - हम दोनों बाहर जा रहे हैं.... आते आते थोड़ी देर हो जाएगी...
तापस-उम्र की इस मोड़ पर... तुम मुझे अकेले में किसके सहारे छोड़े जा रहे हो...
प्रतिभा कुछ नहीं कहती l नथुने फूला कर तापस को घूरने लगती है l तापस किसी भीगी बिल्ली के जैसे अपने कमरे में घुस जाता है l
कुछ देर से पति पत्नी की नोक झोंक देख कर बड़ी देर से अपनी हंसी रोके रखी थी वैदेही l तापस के कमरे में घुसते ही जोर जोर से अपना पेट पकड़ कर हंसने लगती है l
प्रतिभा - ठीक है ठीक है ज्यादा दांत मत दिखा... चल बाहर चलते हैं.....

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रॉकी अपने सभी दोस्तों को बारी बारी से फोन लगाता है और सबको कंफेरेंसिंग में लेता है l
रॉकी - मित्रों,मेरे चड्डी बड्डी लवड़ो, खुशामदीन...
भूल ना जाना... आज तुम सबको मीटिंग में है आना... आज हमारी मीटिंग है...
राजु - अच्छा... इसका मतलब... एक हफ्ता हो गया...
आशीष - यह दिन भी कितने तेजी से गुजर रहे हैं....
रॉकी - ऑए... तेजी से मतलब.... अबे हम सबने एक मिशन शुरू की है... उसे अंजाम तक पहुंचाने का काम बाकी है.... और तुम कमीनों ने वादा जो किया है... मुझे और नंदिनी को मिलाने की...
सभी दोस्त - अच्छा अच्छा... आज विकेंड है... और सब वहीँ मिलेंगे मॉकटेल पार्टी में...
सुशील - अबे रॉकी... तु.. मॉकटेल पर ही क्यु रुक गया है... कॉकटेल तक कब पहुंचेगा...
रॉकी - ना भाई ना... मुझे सिर्फ नंदिनी के नशे में झूमना है... किसी और नशे में नहीं....
रवि - वाव रॉकी वाव... इसलिए तो हम चड्डी बड्डी हैं.... और अपना टेढ़े मेढ़े येड़े ग्रुप का मोटो है....
वन फॉर ऑल.. ऑल फॉर वन है
सभी - यी.... ये... (चिल्लाने लगते हैं)

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गाड़ी आकर दया नदी के पास रुकती है l प्रतिभा और वैदेही दोनों गाड़ी से उतर कर नदी के किनारे पर एक पेड़ के नीचे वाले एक घाट के पत्थरों पर आ कर बैठते हैं l
प्रतिभा - वैदेही देख इस नदी को.... इस नदी का नाम पुरे इतिहास में प्रसिद्ध है... दया नदी....
वैदेही इसी नदी के किनारे इतिहास का वह प्रसिध्द कलिंग युद्ध हुआ था.... जब अशोक ने कौरबकी के लिए पुरे कलिंग को लहू-लुहान कर दिया था...... यह नदी उस युद्ध में मरने वाले और घायल होने वालों के रक्त से लाल हो गया था.... जिसे देख कर चंडा अशोक, धर्माशोक में परिवर्तित हो गया था......
तूने कहा था कि तेरे सोये ज़ख्मों से जो खुन की फव्वारे निकलेंगे उसे उस घर की चारदीवारी समेट नहीं पाएगी.....
पर यह दया नदी है.... यह तेरे दुख सुन कर तेरे लहू को निगल लेगी.... देखना....
प्रतिभा यह सब बिना वैदेही को देख कर कहती चली गई l अपनी बात खतम करने के बाद वैदेही को देखने लगी l वैदेही जो अब तक एक मूक गुड़िया की तरह सुन रही थी, प्रतिभा से अपना नजर हटा कर दया नदी को देखने लगी l
(वैदेही अपना अतीत कुछ फ्लैश बैक में और कुछ वर्तमान में रहकर कहेगी)
वैदेही - मासी क्या बताऊँ, कहाँ से बताऊँ.... जब से होश सम्भाला मैंने खुद को एक महल में पाया... मेरी माँ मेरे पास कभी कभी ही आ पाती थी... मेरे पास मेरी देखभाल के लिए एक औरत हमेशा रहती थी.... मैं उसे गौरी काकी कहा करती थी.....
पर मैंने कभी अपने पिता को नहीं देखा.... ना मेरे कोई दोस्त थे ना ही कोई भाई बहन और ना ही कोई और रिश्तेदार....
सिर्फ़ दो ही औरत जिनके पास मेरी पूरी दुनिया थी.... एक मेरी माँ और एक गौरी काकी....
एक दिन गौरी काकी ने आकर मुझसे कहा कि मेरा या तो कोई बहन या भाई आनेवाले हैं...
मैं खुश हो गई.... अब मेरी माँ मेरे साथ रहने जो लगी थी... मैं देख रही थी माँ का पेट बढ़ रहा था.... मुझे बस इतना मालुम था... मेरा भाई या बहन कोई तो इस पेट में हैं.... जिसके बाहर आते ही मुझे उसका खयाल रखना होगा.... जैसे काकी मेरी रखती है.... मैं काकी के बनाए हुए कपड़ों के गुड्डे गुड्डीयों को अपना भाई बहन बना कर रोज खेला करती थी....
एक दिन माँ का दर्द उठा.... तब कुछ औरतें आयीं और माँ को कहीं ले गईं....
अगले दिन काकी रोती हुई मेरे पास आई और बिना कुछ बताए मुझे अपने साथ ले गई l मैं बचपन से महल के एक हिस्से में पल बढ़ आयी थी.... पर काकी जिस हिस्से में ले कर आई थी वहाँ पर मैं पहली बार आई थी.... काकी मुझे एक कमरे में ले गई... मैंने वहाँ पर देखा मेरी माँ का रो रो कर बहुत बुरा हाल हो गया था.... उसके आँखों में आंसू सुख चुके थे... उस कमरे में कुछ टूटे हुए कांच गिरे हुए थे......
मैंने माँ को पुकारा... माँ ने मेरी तरफ देखा.... अपनी बाहें फैला कर मुझे अपने पास बुलाया.... मैं भाग कर माँ के गले लग गई.... माँ मुझे गले से लगा कर बहुत देर तक रोती रही.... फिर अचानक मुझे चूमने लगी.... चूमते चूमते मेरे माथे पर एक लंबा चुंबन जड़ा.... फ़िर पता नहीं क्या हुआ माँ ने एक कांच का टुकड़ा उठाया और मेरे दाहिने हाथ में गड़ा दिया.... (वैदेही ने अपने दाहिने हाथ पर एक कटा हुआ पुराना निसान प्रतिभा को दिखाया) मेरे हाथ में कांच का टुकड़ा घुसा हुआ था.... मैं जोर जोर से चिल्ला कर रो रही थी.... यह ज़ख्म देते हुए मेरी माँ ने मुझसे कहा - देख वैदेही मैंने तुझे यह ज़ख़्म इसलिए दिआ ताकि तु यह बात याद रखे.... अगर भूल भी जाएगी तो यह ज़ख़्म तुझे मेरी यह बात याद दिलाती रहेगी....
इतना कह कर मेरी माँ ने अपनी साड़ी से एक टुकड़ा फाड़ कर मेरी हाथ में पट्टी बांध दी.... फिर मेरे चेहरे को अपने दोनों हाथों से लेकर कहा - मेरी बच्ची... मैं मजबूर हूँ... इसके सिवा कोई और चारा नहीं था.... उन्होंने तेरे भाई को मार डाला.... (इतना सुनते ही मेरा रोना बंद हो गया, मुझे ऐसा लगा जैसे किसीने मेरे कानों में जलता हुआ कोयला डाल दिया, माँ फिर कहने लगी) बेटी तुझे यह काकी यहाँ से दूर छोड़ देगी.... फिर तु कहीं भी चले जाना.... मगर मुझे वचन दे.... की तु कभी भी... इस रंग महल को लौट कर नहीं आएगी.... वचन दे... (माँ ने हाथ बढ़ाया पर मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था, मैंने बस अपना हाथ माँ के हाथ में रख दिया, फिर माँ ने रोते हुए मुझे अपने सीने से लगाया और कहा) बेटी मुझे माफ कर देना... मैं तेरे भाई को ना बचा पाई... अगर तु यहीं रहेगी तो मैं तुझे भी ना बचा पाऊँगी..... इसलिए तुझे काकी बाहर तक छोड़ देगी.... फिर तु पीछे बिना मुड़े यहाँ से चली जा.... फिर कभी मत आना... तुझे कसम है.... अपनी माँ की... तु कभी वापस मत आना....
फिर माँ ने एक पोटली मेरे हाथ में दी और काकी के साथ भेज दिया.... काकी ने मुझे अंधेरे में कुछ दूर ले जाकर मुझे छोड़ दिया....
काकी - जा वैदेही जा.... यहाँ सिर्फ़ राक्षस रहते हैं.... अपनी माँ की बात याद रखना.... कुछ भी हो जाए वापस मत आना....
इतना कह कर काकी भी वापस चली गई लेकिन मैं सिर्फ पांच साल की लड़की, अपनी ज़ख्मी हाथ में पोटली लिए बिना पीछे मुड़े चली जा रही थी.... पता नहीं कितनी देर चलती रही... मुझे कमज़ोरी मेहसूस होने लगी फ़िर मैं एक घर के आँगन के बाहर सो गई... फ़िर जब नींद टूटी तो मैंने खुद को एक बिस्तर पर पाया... मेरे सर पर कोई अपने हाथ से सहला रहा था... मैंने अपने हाथ को देखा माँ की कपड़े के पट्टी के जगह एक सफेद पट्टी बंधी हुई थी.... अपनी आँखे ऊपर कर देखा तो मेरे सिरहाने एक देवी बैठी हुई थी... मेरे मुहँ से निकल गया माँ...
वह देवी इतना सुनते ही आवाज दी अजी सुनते हो... लड़की को होश आ गया... मुझे अभी भी कमज़ोरी महसूस हो रही थी... तभी एक आदमी अपने हाथ में एक दुध की ग्लास लाकर उस देवी को दिए... उस देवी ने मुझे उठा कर बिठाया और ग्लास देते हुए कहा - इसे पी ले बेटी यह हल्दी व लौंग वाला दुध है... सुबह तक तेरी कमजोरी भाग जाएगी.... मैंने वह दुध पी कर सो गई....

सुबह जब जगी तो उसी देवी को फिर अपने सिरहाने पाया...
उस देवी ने मुझ से मेरी हालत के बारे में पूछा.... और मेरे साथ जो बिता था मैंने सब बता दिआ.... सब सुनते ही उस देवी ने आवाज़ दी - सुनिए.... फिर वही आदमी आया, उसे देखते ही देवी ने कहा - यह वैदेही है और आज से यह हमारी बेटी है....
वैदेही आज से मैं तेरी माँ और ये तेरे बाबा हैं....

मुझे सपना जैसा लग रहा था l जैसे कोई कहानी की तरह जो मुझे कभी सुलाने के लिए काकी सुनाया करती थी.....

क्यूंकि मैं बेशक महल के किसी अनजान कोने में जन्मी, पली थी पर सिर्फ माँ और काकी को छोड़ किसीको ना जानती थी ना ही किसीसे माँ मिलने देती थी.... पर यहाँ तो रिश्तों का अंबार था... घर के भीतर मेरे नए माँ और बाबुजी.... बाहर...
मौसा, मौसी, भैया, भाभी, मामा, मामी, चाचा, चाची, नाना, नानी ना रिश्ते कम थे ना लोग.... जो भी दिखते थे हर कोई किसी ना किसी रिश्ते में बंध जाता था...
सच कहूँ तो मेरा परिवार (अपने दोनों हाथों को फैला कर) इतना बड़ा हो गया था....
एक दिन बाबुजी मुझे स्कुल ले गए... मेरा एडमिशन कराने.... मेरा नाम लिखवाया "वैदेही महापात्र"
पिता का नाम - रघुनाथ महापात्र
माता का नाम - सरला महापात्र
मैं स्कुल में दोस्त बनाये... अब मेरे दोस्त सिर्फ अपने गली मोहल्ले में ही नहीं थे.... स्कुल में भी थे....
एक दिन जब स्कुल से लौटी तो माँ को बिस्तर पर पाया... पड़ोस की मौसी पास माँ से कुछ गपशप कर रही थी...
मैंने माँ से पूछा - माँ आपको क्या हुआ...
माँ ने हंस कर मुझे पास बिठाया और पूछा - अच्छा बोल तुझे भाई चाहिए या बहन...
मुझे भाई का ग़म था इसलिए तपाक से बोला - मुझे भाई चाहिए...
माँ और मौसी दोनों हंस पड़े...
मौसी - अगर बहन हुई तो...
मैं - तो भी चलेगा... लेकिन बेटी तो मैं हूँ... तो माँ और बाबा को बेटा चाहिए कि नहीं...
माँ ने बड़े प्यार से मेरे सर पर हाथ फिराया और कहा - भाई हो या बहन... भगवान हमे जो भी देगा... तु उसे बहुत प्यार करना... ह्म्म्म्म
मैंने हाँ में सर हिलाया... जब शाम को बाबुजी आए मैंने उनसे उछल कर कहा जानते हो बाबा मेरी बहन या भाई आने वाले हैं...
बाबा - अच्छा हमे तो मालुम ही नहीं है.... क्या आप हमे अपने भाई से खेलने दोगे....
मैं - हाँ हाँ क्यूँ नहीं...
माँ और बाबुजी दोनों हंस पड़े....
रात को जब हम सो रहे थे,मैं नींद में नहीं थी पर आँखे मूँदे सोई हुई थी और माँ मेरे सर पर हाथ फ़ेर रही थी तब माँ ने बाबुजी से कहा - देखा वैदेही के कदम कितने शुभ हैं.... आते ही हमे माँ बाप की खुशियाँ देती... और आज इतने सालों बाद मैं सच में माँ बन रही हूँ....
बाबा - हाँ सरला.... लक्ष्मी है लक्ष्मी हमारी वैदेही....
ऐसे बातेँ करते हुए सब सो गए पर मुझे माँ और बाबा के व ह बाते गुदगुदा रहे थे....
पर दुखों को तो जैसे मेरी हर छोटी छोटी खुशी से बैर था....
फिर मेरे जीवन में दुख का आना बाकी था
Nice and excellent update....
 

Jaguaar

Well-Known Member
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वीर म्युनिसिपल ऑफिस के अंदर आता है और पिनाक सिंह के चैम्बर की तरफ बढ़ता है l बाहर ऑफिस के एक मुलाजिम उसे देखते ही सलाम ठोकता है l
एक आदमी - यहाँ कैसे आना हुआ राजकुमार जी....
वीर - अपने ही रियासत में... किसीकी इजाज़त लेने की जरूरत है क्या...
आदमी - नहीं नहीं.... ऐसे ही पुछ लिया.... वैसे बहुत दिनों बाद आप यहाँ आये हैं....
वीर - राज कुमार हैं.... अपनी प्रजा के हालत का जायजा लेने आये हैं...
वैसे मेयर जी अपने चेंबर ही हैं ना.......
आदमी - जी नहीं राजकुमार जी..... अभी पार्टी मुख्यालय से अध्यक्ष जी का बुलावा आया था.... इसलिए वह वहाँ गए हैं....
वीर - अच्छा..... कब तक लौट सकते हैं...
आदमी - यह मैं कैसे बता सकता हूँ.... हाँ आप चाहें तो उनके चेंबर में उनका इंतजार कर सकते हैं....
वीर - हाँ... यही ठीक रहेगा....
इतना कह कर वीर पिनाक सिंह के चेंबर में घुस जाता है l अंदर ऐसी चालू कर पिनाक सिंह के चेयर पर बैठ जाता है l थोड़ी देर बाद वही आदमी एक कुल ड्रिंक का बॉटल लेकर आता है और टेबल पर रख देता है l
वीर - और स्वाइं क्या चल रहा है...
स्वाइं - सब आपकी कृपा है....
वीर - (कुल ड्रिंक पीते हुए) ह्म्म्म्म अच्छा... मेयर साहब कुछ काम रह गया है.. क्या... जो मुझसे हो...
स्वाइं- पता नहीं... एक औरत अभी थोड़ी देर पहले अपनी पोती को लेकर आयी है.... मेयर साहब के पास....
वीर - (उसकी आंखों में एक चमक आ जाती है) क्यूँ... किस लिए....
स्वाइं- वो... कल... मेयर साहब... एक साइट पर गए थे.... वहीँ एक औरत से मिले... उसके दुख देख कर.... उसे और उसकी पोती को आज बुलाया था.... शायद कहीं नौकरी पे लगा दें...
वीर - अरे.... मेयर साहब के पास... कहाँ नौकरी है... नौकरी तो हमारे पास है..... जाओ अगर नौकरी की ही बात है.... तो मैं भी उस लड़की को एंनगेज कर सकता हूँ....
स्वाइं - यह तो और भी अच्छी बात है.... मैं अभी उन दादी पोती को आपके पास भेजता हूँ....
इतना कह कर स्वाइं वहाँ से निकल जाता है l वीर अपना कुल ड्रिंक खतम करने में मसरूफ हो जाता है l थोड़ी देर बाद स्वाइं दो औरतों के साथ रूम में आता है l वीर देखता है एक अधेड़ औरत जो थोड़ी बीमार लग रही है और उसके साथ एक लड़की साँवली सी, पर तीखे नैन नक्स के साथ दुबली पर जहां भरी होनी चाहिए वहीं पर भरी हुई है l
उस लड़की को देखकर वीर मन ही मन बोला - परफेक्ट.... क्या बॉडी है और क्या बम्पर है... ह्म्म्म्म परफेक्ट...
वह बुढ़ी औरत और वह लड़की दोनों वीर को नमस्कार करते हैं l
वीर - जी नमस्ते... आइए.. बैठिए...
औरत - जी नहीं राजकुमार जी.... आप के सामने हम खड़े जो कर बात कर पा रहे हैं... यही हमारी अहोभाग्य है....
वीर - आरे.... आप कौनसे ज़माने की बात कर रहे हैं....
औरत - नहीं राज कुमार जी... हम छोटे लोग हैं.... हमे आप अपने जुते तक ही रहने दीजिए...
वीर - ठीक है.... कहिए आपको कैसी मदत चाहिए....
औरत हाथ जोड़ कर अपनी पोती की ओर इशारा करते हुए - राजकुमार जी यह मेरी पोती है... बचपन से अनाथ है बिचारी.... अब मैं भी कब तक इसके साथ रह पाउंगी नहीं जानती.... इसे कहीं नौकरी पर रख दीजिए.... ताकि आगे चलते उसकी शादी हो जाए.... तो मैं आराम से पूरी जा कर मर सकूंगी...
वीर - (उस लड़की से) कहाँ तक पढ़ी हो....
लड़की - जी जी वो म मैट्रिक तक....
वीर - ह्म्म्म्म आगे क्यों नहीं पढ़ी....
औरत - कैसे पढ़ती... पढ़ाई में बहुत कमजोर है.... मैट्रिक भी तीन बार में पास हुई है....
वीर - अच्छा.... ह्म्म्म्म... वैसे क्या नाम बताया तुमने....
लड़की - जी अभी तक बताया नहीं मैंने....
वीर - अच्छा... अरे.. हाँ... मैंने पूछा कहाँ है....ह्म्म्म्म बोलो फ़िर...
लड़की-जी क्या....
वीर - अरे.... तुम्हारा नाम...

लड़की-जी मेरा नाम अनु है..
वीर - बड़ा प्यारा नाम है.... मेरा मतलब है... बहुत ही सुंदर नाम है... वैसे दादी जी सिर्फ मैट्रिक पास कर लेने से... वह भी तीन बार में..... क्या लगता है... नौकरी मिल जाएगी...
औरत - अब क्या बताऊँ... राज कुमार जी... बाप इलेक्ट्रिसियन था एक दिन बिजली की खंबे पर ही चल बसा और इसकी माँ अपने पति के दुख में चल बसी...
इस अभागिन को मेरे पल्लू से बांध गए... लड़की मंद बुद्धि है..... छोटी सी उम्र में माँ बाप देहांत के बाद मेरे लाड-प्यार से सांसारिक ज्ञान से भी दूर रही.... अब मुझे कब बुलावा आ जाए.... अगर यह किसी किनारे लग जाए... तो मैं समझूँगी चन्द्रभागा नहा ली मैंने....
वीर - तो व्याह क्यूँ नहीं करा दिया...
औरत - व्याह ही तो कराना है.. राजकुमार जी.... फूटी कौड़ी नहीं है... अगर नौकरी लग गई तो शायद... नौकरी को देख कर कोई व्याह करले.... आप तो जानते हैं... जवान लड़की अगर घर में रहेगी.... तो उस पर आसपास की भी बुरी नजर लग सकती है... इसलिए... अब आप से ही आस है....
वीर - ठीक है अनु.... समझो तुम्हें नौकरी मिल गई..... कल ठीक साढ़े दस बजे ESS ऑफिस में आ कर मुझसे मिलो.... तुम्हें... नौकरी मिल जाएगी....

औरत - जुग जुग जियो राजकुमार.... आपको यह बुढ़िया आशीर्वाद ही दे सकती है....
वीर - बस बस यही काफी है.... अच्छा अब आप जाइए....
अनु और उसकी दादी वीर को नमस्कार कर बाहर निकल जाते हैं l
स्वाइं - वाह राजकुमार जी वाह... आपने तो उनके दुख दूर कर दिए..
वीर - अरे नौकरी जैसी छोटी छोटी बातों के लिए मेयर साहब को मेरे पास भेजना चाहिए.... ना कि खुद इस बात में सर खपाना चाहिए....
अच्छा जाओ यार कुछ गरमा गरम भेजो....
स्वाइं- जी राजकुमार जी...
स्वाइं बाहर चला जाता है l वीर अनु के ख़यालों में खो जाता है, अपने पैंट के भीतर करवट ले रहा लंड को मसलने लगा और बुदबुदाने लगता है - क्या गरम माल थी.... उफ... कौन कहता है रंग ही सब कुछ है.... साँवली सलोनी... वह भी हर जगह से दूसरी कसी हुई..... ओ... ह.. मैंने कितना सम्भाला खुदको... पता नहीं कुछ और देर रहती तो उठा कर यहीं पटक कर चोद देता....
तभी दरवाजा खुलता है l वीर देखता है अनु अंदर झाँक रही है l
वीर - क्या हुआ अनु....
अनु - जी मैं अंदर आऊं...
वीर - हाँ आओ...
अनु आकर वीर के पास आती है और झट से उसके पैर पकड लेती है l
वीर - अरे.. अरे... यह क्या कर रही हो....
अनु - आप नहीं जानते राजकुमार जी...(वीर के पैर पकड़े हुए और अपनी नजर झुकाए हुए) अपने मेरे और दादी के लिए क्या किया है... किस तरह आपका धन्यबाद अर्पण करूँ...
वीर - अररे... नजरें झुका कर क्यूँ बात कर रहे हो....
अनु- दादी ने कहा कि.... आप... अन्नदाता हैं... आपसे कभी नजरे नहीँ मिलाना चाहिए...
वीर के पैर पकड़े हुए अनु विनम्रता से और झुक गई तो वीर की नजर अनु के कुर्ते क्लीवेज से झाँकती हुई चुचों पर ठहर गई l वीर की आंखों में चमक आ गई,
बड़ी मुश्किल से वीर खुदको सम्भाला और अनु के चुचों को घूरते हुए अपने गले से थूक निगल कर कहा - अनु मुझसे तुम्हारा दुध.. ख.. (गले का खराश ठीक करते हुए) दुख देखा नहीं जा रहा है...
अनु वैसे ही वीर के पैर पकड़े हुए और नजरें झुका कर - दादी ठीक कह रही थी... आप बड़े लोग बड़े दिल वाले हैं... आज से आप हमारे मालिक हैं.....
वीर - (जुबान लड़खड़ाने लगी, मुहँ में लार भरने लगा) तुम्हारे भी तो कम नहीं है.... दुख.... कैसे उठाती हो इतने बड़े बड़े दुख.... अब बिल्कुल चिंता मत करो... मैं अपने दोनों हाथों से उठाऊंगा... तुम्हारे दुख...
अनु - जी मालिक.. जी..
वीर - अनु अब तुम जाओ....और थोड़ी देर अगर तुम रुकी तो तुम्हारे दुखों को देख कर रो दूँगा...
जाओ अनु जाओ और कल ESS ऑफिस पहुंच जाना... अपने वक्त पर...
अनु - जी मालिक....
अनु उठती है और अपना सर झुकाए बाहर निकलने को होती है l
वीर - सुनो अनु...
अनु - जी मालिक....
वीर अनु के नर्म मुलायम हाथों को पकड़ता है और उसके हाथों में कुछ पैसे रख देता है l
वीर - यह लो... यह शगुन है... तुम्हारे नए जीवन की.... कल याद कर के आ जाना...
अनु ने अपना सर हिला कर बाहर निकल गई, उसके जाते ही वीर जल्दी से वश रूम में घुस जाता है और अपना पैंट निकाल कर मूठ मारने लगता है l रिलेक्स होने के बाद अपना हाथ साफ करता है l उसे बाहर कुछ चिल्लाने की आवाज आती है l वीर वश रूम से बाहर आता है तो पिनाक सिंह को स्वाइं पर चिल्लाते देखता है l
वीर - क्या हुआ छोटे राजा जी...
पिनाक - तुम मेरे फटे में क्यूँ टांग अड़ाने लगे....

पिनाक - स्वाइं तुम बाहर जाओ... (स्वाइं बाहर निकल जाता है, पिनाक वीर के तरफ मुड़ कर) बाथरूम जा कर हल्के हो लिए....
वीर - हाँ....

पिनाक - तुम कबसे लोगों को नौकरी बांटने लगे....
वीर - सेक्योरिटी सर्विस मेरे हिस्से में आता है... और लड़की के पास क्वालिफीकेशन भी नहीं है... इसलिए मैंने उसे फिमेल ग्रुप में शामिल करने का फैसला किया है...
पिनाक - अच्छा.... और वह वहाँ पर क्या करेगी....
वीर - आज कल मेरा स्ट्रेस लेवल बहुत बढ़ रहा है... डॉक्टर ने मुझे स्माइली बॉल दबाते रहने को कहा है...
पिनाक - अच्छा तो जनाब को BP की शिकायत है...
वीर - हाँ... डॉक्टर ने यह भी कहा है.. चाहे रोज बॉल मिले ना मिले... पर रोज दबाते रहना चाहिए... इसलिए वह लड़की परफेक्ट है...
पिनाक - यू...(गुस्से से टेबल पर रखे फाइल को नीचे फेंक देता है)
तभी टेबल पर रखी फोन बजने लगती है l पिनाक गुस्से से फोन को स्पीकर पर डालता है और चिल्ला के पूछता है - हैलो....
पिनाक की यह हालत देख कर वीर मन ही मन मुस्कराने लगता है l फोन के दूसरे तरफ कोई जवाब नहीं आते देख फिर से चिल्लाता है - हैलो कौन है..
फोन - चिल्ला क्यूँ रहा है बे.. किसीने तेरी मार कर पैसे नहीं दी है क्या....
पिनाक - कौन है बे हरामी... किसकी मौत आयी है.. जो हमसे ऐसी बात कर रहा है...
फोन - मैं तेरी मौत बोल रहा हूँ...
पिनाक - (झल्ला कर) कौन है कुत्ते...
फोन - मैं तेरा कर्मा....
पिनाक - अबे पागल तु जानता भी है... तु किससे बात कर रहा है...
फोन - पिनाक सिंह क्षेत्रपाल... मेयर भुवनेश्वर से बात कर रहा हूँ... जिसके दुकान पर बहुत जल्द लात मारने वाला हूँ....
पिनाक - तु सच में पागल हो गया है.... क्षेत्रपाल हूँ मैं क्षेत्रपाल... यह जान कर भी तुने फोन पर बकवास कर मेरा वक्त बर्बाद करने की जुर्म में.... तुझे तेरे खानदान समेत नर्क भेज दिआ जाएगा.. ...
फोन - हा हा हा... कितना अच्छा जोक मारा... पास होता तो तुझे टीप देता... हा हा हा.. अच्छा... चल...तेरे बकचोदी के जुर्म में अगले हफ्ते तुझ पर जानलेवा हमला होगा....
पिनाक - क्या...
फोन - तैयार रहना बे हरामी...
फोन कट जाता है l वीर जो अब तक चुपचाप सुन रहा था, अब कुछ सोचने पर मजबूर हो गया l
पिनाक - प्रांक कॉल था...

वीर - (अपना सर ना में हिलाते हुए) मुझे नहीं लगता.... जरूर कोई नया दुश्मन है... पता लगाना होगा.....

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किचन में प्रतिभा बर्तन साफ कर रही है l पास खड़ी वैदेही घूर कर देख रही है l
प्रतिभा - तू चाहे कैसे भी देख... बर्तन में तुझे मांजने नहीं देने वाली...
वैदेही - पर क्यूँ मासी....
प्रतिभा - आज तु मेहमान... बनने का लुफ्त उठा ले.... आगे से जब आयेगी... मेजबान बन जाना.... पर आज नहीं...
वैदेही - वाह इसे कहते हैं चालाकी.... मुझे गिल्टी फिल् करवा कर... फिर से आने का फरमान जारी कर दिया....
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... अब समझी.... तेरा पाला किसी वकील से पड़ा है...
दोनों हंसने लगते हैं l
प्रतिभा - अच्छा... मेरा काम खतम हो गया....
चल बैठक में बैठते हैं... और तुझसे तेरी कहानी सुनते हैं....
वैदेही - रुकिए मासी...
प्रतिभा - अब क्या हुआ...
वैदेही - मासी... मेरे ज़ख्म बहुत गहरे हैं... आज अगर इस बंद चारदीवारी में खुरचती हूँ... तो दिलसे, आंखों से खुन की फब्बारें निकलेगी.... कहीं बाहर चलते हैं... मैं आपको वहीँ सब बताने की कोशिश करूंगी....

प्रतिभा उसे देखती है l वैदेही के चेहरे पर आ रहे भावों को देख कर उसे कहती है - अच्छा चल.... कहीं बाहर चलते हैं.... मैं सेनापति जी को बोल देती हूँ... फिर बाहर निकलते हैं...

प्रतिभा किचन से बाहर निकल कर बेडरुम से कपड़े बदल कर तुरंत आ जाती है और तापस को आवाज देती है - सेनापति जी....
तापस - जी... जी कहिए... क्या खिदमत करें आपकी...
प्रतिभा - हो गया...
तापस - अभी कहाँ...
प्रतिभा - ओह ओ... कुछ तो शर्म करो... भतीजी के सामने कुछ भी...
तापस - अरे वैदेही को मालूम है कि मैं उसकी मासी से बात कर रहा हूँ... क्यूँ वैदेही...
प्रतिभा - सेना... पति... जी..
तापस - अच्छा आप कहिए... क्या.... हुआ
प्रतिभा - हम दोनों बाहर जा रहे हैं.... आते आते थोड़ी देर हो जाएगी...
तापस-उम्र की इस मोड़ पर... तुम मुझे अकेले में किसके सहारे छोड़े जा रहे हो...
प्रतिभा कुछ नहीं कहती l नथुने फूला कर तापस को घूरने लगती है l तापस किसी भीगी बिल्ली के जैसे अपने कमरे में घुस जाता है l
कुछ देर से पति पत्नी की नोक झोंक देख कर बड़ी देर से अपनी हंसी रोके रखी थी वैदेही l तापस के कमरे में घुसते ही जोर जोर से अपना पेट पकड़ कर हंसने लगती है l
प्रतिभा - ठीक है ठीक है ज्यादा दांत मत दिखा... चल बाहर चलते हैं.....

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रॉकी अपने सभी दोस्तों को बारी बारी से फोन लगाता है और सबको कंफेरेंसिंग में लेता है l
रॉकी - मित्रों,मेरे चड्डी बड्डी लवड़ो, खुशामदीन...
भूल ना जाना... आज तुम सबको मीटिंग में है आना... आज हमारी मीटिंग है...
राजु - अच्छा... इसका मतलब... एक हफ्ता हो गया...
आशीष - यह दिन भी कितने तेजी से गुजर रहे हैं....
रॉकी - ऑए... तेजी से मतलब.... अबे हम सबने एक मिशन शुरू की है... उसे अंजाम तक पहुंचाने का काम बाकी है.... और तुम कमीनों ने वादा जो किया है... मुझे और नंदिनी को मिलाने की...
सभी दोस्त - अच्छा अच्छा... आज विकेंड है... और सब वहीँ मिलेंगे मॉकटेल पार्टी में...
सुशील - अबे रॉकी... तु.. मॉकटेल पर ही क्यु रुक गया है... कॉकटेल तक कब पहुंचेगा...
रॉकी - ना भाई ना... मुझे सिर्फ नंदिनी के नशे में झूमना है... किसी और नशे में नहीं....
रवि - वाव रॉकी वाव... इसलिए तो हम चड्डी बड्डी हैं.... और अपना टेढ़े मेढ़े येड़े ग्रुप का मोटो है....
वन फॉर ऑल.. ऑल फॉर वन है
सभी - यी.... ये... (चिल्लाने लगते हैं)

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गाड़ी आकर दया नदी के पास रुकती है l प्रतिभा और वैदेही दोनों गाड़ी से उतर कर नदी के किनारे पर एक पेड़ के नीचे वाले एक घाट के पत्थरों पर आ कर बैठते हैं l
प्रतिभा - वैदेही देख इस नदी को.... इस नदी का नाम पुरे इतिहास में प्रसिद्ध है... दया नदी....
वैदेही इसी नदी के किनारे इतिहास का वह प्रसिध्द कलिंग युद्ध हुआ था.... जब अशोक ने कौरबकी के लिए पुरे कलिंग को लहू-लुहान कर दिया था...... यह नदी उस युद्ध में मरने वाले और घायल होने वालों के रक्त से लाल हो गया था.... जिसे देख कर चंडा अशोक, धर्माशोक में परिवर्तित हो गया था......
तूने कहा था कि तेरे सोये ज़ख्मों से जो खुन की फव्वारे निकलेंगे उसे उस घर की चारदीवारी समेट नहीं पाएगी.....
पर यह दया नदी है.... यह तेरे दुख सुन कर तेरे लहू को निगल लेगी.... देखना....
प्रतिभा यह सब बिना वैदेही को देख कर कहती चली गई l अपनी बात खतम करने के बाद वैदेही को देखने लगी l वैदेही जो अब तक एक मूक गुड़िया की तरह सुन रही थी, प्रतिभा से अपना नजर हटा कर दया नदी को देखने लगी l
(वैदेही अपना अतीत कुछ फ्लैश बैक में और कुछ वर्तमान में रहकर कहेगी)
वैदेही - मासी क्या बताऊँ, कहाँ से बताऊँ.... जब से होश सम्भाला मैंने खुद को एक महल में पाया... मेरी माँ मेरे पास कभी कभी ही आ पाती थी... मेरे पास मेरी देखभाल के लिए एक औरत हमेशा रहती थी.... मैं उसे गौरी काकी कहा करती थी.....
पर मैंने कभी अपने पिता को नहीं देखा.... ना मेरे कोई दोस्त थे ना ही कोई भाई बहन और ना ही कोई और रिश्तेदार....
सिर्फ़ दो ही औरत जिनके पास मेरी पूरी दुनिया थी.... एक मेरी माँ और एक गौरी काकी....
एक दिन गौरी काकी ने आकर मुझसे कहा कि मेरा या तो कोई बहन या भाई आनेवाले हैं...
मैं खुश हो गई.... अब मेरी माँ मेरे साथ रहने जो लगी थी... मैं देख रही थी माँ का पेट बढ़ रहा था.... मुझे बस इतना मालुम था... मेरा भाई या बहन कोई तो इस पेट में हैं.... जिसके बाहर आते ही मुझे उसका खयाल रखना होगा.... जैसे काकी मेरी रखती है.... मैं काकी के बनाए हुए कपड़ों के गुड्डे गुड्डीयों को अपना भाई बहन बना कर रोज खेला करती थी....
एक दिन माँ का दर्द उठा.... तब कुछ औरतें आयीं और माँ को कहीं ले गईं....
अगले दिन काकी रोती हुई मेरे पास आई और बिना कुछ बताए मुझे अपने साथ ले गई l मैं बचपन से महल के एक हिस्से में पल बढ़ आयी थी.... पर काकी जिस हिस्से में ले कर आई थी वहाँ पर मैं पहली बार आई थी.... काकी मुझे एक कमरे में ले गई... मैंने वहाँ पर देखा मेरी माँ का रो रो कर बहुत बुरा हाल हो गया था.... उसके आँखों में आंसू सुख चुके थे... उस कमरे में कुछ टूटे हुए कांच गिरे हुए थे......
मैंने माँ को पुकारा... माँ ने मेरी तरफ देखा.... अपनी बाहें फैला कर मुझे अपने पास बुलाया.... मैं भाग कर माँ के गले लग गई.... माँ मुझे गले से लगा कर बहुत देर तक रोती रही.... फिर अचानक मुझे चूमने लगी.... चूमते चूमते मेरे माथे पर एक लंबा चुंबन जड़ा.... फ़िर पता नहीं क्या हुआ माँ ने एक कांच का टुकड़ा उठाया और मेरे दाहिने हाथ में गड़ा दिया.... (वैदेही ने अपने दाहिने हाथ पर एक कटा हुआ पुराना निसान प्रतिभा को दिखाया) मेरे हाथ में कांच का टुकड़ा घुसा हुआ था.... मैं जोर जोर से चिल्ला कर रो रही थी.... यह ज़ख्म देते हुए मेरी माँ ने मुझसे कहा - देख वैदेही मैंने तुझे यह ज़ख़्म इसलिए दिआ ताकि तु यह बात याद रखे.... अगर भूल भी जाएगी तो यह ज़ख़्म तुझे मेरी यह बात याद दिलाती रहेगी....
इतना कह कर मेरी माँ ने अपनी साड़ी से एक टुकड़ा फाड़ कर मेरी हाथ में पट्टी बांध दी.... फिर मेरे चेहरे को अपने दोनों हाथों से लेकर कहा - मेरी बच्ची... मैं मजबूर हूँ... इसके सिवा कोई और चारा नहीं था.... उन्होंने तेरे भाई को मार डाला.... (इतना सुनते ही मेरा रोना बंद हो गया, मुझे ऐसा लगा जैसे किसीने मेरे कानों में जलता हुआ कोयला डाल दिया, माँ फिर कहने लगी) बेटी तुझे यह काकी यहाँ से दूर छोड़ देगी.... फिर तु कहीं भी चले जाना.... मगर मुझे वचन दे.... की तु कभी भी... इस रंग महल को लौट कर नहीं आएगी.... वचन दे... (माँ ने हाथ बढ़ाया पर मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था, मैंने बस अपना हाथ माँ के हाथ में रख दिया, फिर माँ ने रोते हुए मुझे अपने सीने से लगाया और कहा) बेटी मुझे माफ कर देना... मैं तेरे भाई को ना बचा पाई... अगर तु यहीं रहेगी तो मैं तुझे भी ना बचा पाऊँगी..... इसलिए तुझे काकी बाहर तक छोड़ देगी.... फिर तु पीछे बिना मुड़े यहाँ से चली जा.... फिर कभी मत आना... तुझे कसम है.... अपनी माँ की... तु कभी वापस मत आना....
फिर माँ ने एक पोटली मेरे हाथ में दी और काकी के साथ भेज दिया.... काकी ने मुझे अंधेरे में कुछ दूर ले जाकर मुझे छोड़ दिया....
काकी - जा वैदेही जा.... यहाँ सिर्फ़ राक्षस रहते हैं.... अपनी माँ की बात याद रखना.... कुछ भी हो जाए वापस मत आना....
इतना कह कर काकी भी वापस चली गई लेकिन मैं सिर्फ पांच साल की लड़की, अपनी ज़ख्मी हाथ में पोटली लिए बिना पीछे मुड़े चली जा रही थी.... पता नहीं कितनी देर चलती रही... मुझे कमज़ोरी मेहसूस होने लगी फ़िर मैं एक घर के आँगन के बाहर सो गई... फ़िर जब नींद टूटी तो मैंने खुद को एक बिस्तर पर पाया... मेरे सर पर कोई अपने हाथ से सहला रहा था... मैंने अपने हाथ को देखा माँ की कपड़े के पट्टी के जगह एक सफेद पट्टी बंधी हुई थी.... अपनी आँखे ऊपर कर देखा तो मेरे सिरहाने एक देवी बैठी हुई थी... मेरे मुहँ से निकल गया माँ...
वह देवी इतना सुनते ही आवाज दी अजी सुनते हो... लड़की को होश आ गया... मुझे अभी भी कमज़ोरी महसूस हो रही थी... तभी एक आदमी अपने हाथ में एक दुध की ग्लास लाकर उस देवी को दिए... उस देवी ने मुझे उठा कर बिठाया और ग्लास देते हुए कहा - इसे पी ले बेटी यह हल्दी व लौंग वाला दुध है... सुबह तक तेरी कमजोरी भाग जाएगी.... मैंने वह दुध पी कर सो गई....

सुबह जब जगी तो उसी देवी को फिर अपने सिरहाने पाया...
उस देवी ने मुझ से मेरी हालत के बारे में पूछा.... और मेरे साथ जो बिता था मैंने सब बता दिआ.... सब सुनते ही उस देवी ने आवाज़ दी - सुनिए.... फिर वही आदमी आया, उसे देखते ही देवी ने कहा - यह वैदेही है और आज से यह हमारी बेटी है....
वैदेही आज से मैं तेरी माँ और ये तेरे बाबा हैं....

मुझे सपना जैसा लग रहा था l जैसे कोई कहानी की तरह जो मुझे कभी सुलाने के लिए काकी सुनाया करती थी.....

क्यूंकि मैं बेशक महल के किसी अनजान कोने में जन्मी, पली थी पर सिर्फ माँ और काकी को छोड़ किसीको ना जानती थी ना ही किसीसे माँ मिलने देती थी.... पर यहाँ तो रिश्तों का अंबार था... घर के भीतर मेरे नए माँ और बाबुजी.... बाहर...
मौसा, मौसी, भैया, भाभी, मामा, मामी, चाचा, चाची, नाना, नानी ना रिश्ते कम थे ना लोग.... जो भी दिखते थे हर कोई किसी ना किसी रिश्ते में बंध जाता था...
सच कहूँ तो मेरा परिवार (अपने दोनों हाथों को फैला कर) इतना बड़ा हो गया था....
एक दिन बाबुजी मुझे स्कुल ले गए... मेरा एडमिशन कराने.... मेरा नाम लिखवाया "वैदेही महापात्र"
पिता का नाम - रघुनाथ महापात्र
माता का नाम - सरला महापात्र
मैं स्कुल में दोस्त बनाये... अब मेरे दोस्त सिर्फ अपने गली मोहल्ले में ही नहीं थे.... स्कुल में भी थे....
एक दिन जब स्कुल से लौटी तो माँ को बिस्तर पर पाया... पड़ोस की मौसी पास माँ से कुछ गपशप कर रही थी...
मैंने माँ से पूछा - माँ आपको क्या हुआ...
माँ ने हंस कर मुझे पास बिठाया और पूछा - अच्छा बोल तुझे भाई चाहिए या बहन...
मुझे भाई का ग़म था इसलिए तपाक से बोला - मुझे भाई चाहिए...
माँ और मौसी दोनों हंस पड़े...
मौसी - अगर बहन हुई तो...
मैं - तो भी चलेगा... लेकिन बेटी तो मैं हूँ... तो माँ और बाबा को बेटा चाहिए कि नहीं...
माँ ने बड़े प्यार से मेरे सर पर हाथ फिराया और कहा - भाई हो या बहन... भगवान हमे जो भी देगा... तु उसे बहुत प्यार करना... ह्म्म्म्म
मैंने हाँ में सर हिलाया... जब शाम को बाबुजी आए मैंने उनसे उछल कर कहा जानते हो बाबा मेरी बहन या भाई आने वाले हैं...
बाबा - अच्छा हमे तो मालुम ही नहीं है.... क्या आप हमे अपने भाई से खेलने दोगे....
मैं - हाँ हाँ क्यूँ नहीं...
माँ और बाबुजी दोनों हंस पड़े....
रात को जब हम सो रहे थे,मैं नींद में नहीं थी पर आँखे मूँदे सोई हुई थी और माँ मेरे सर पर हाथ फ़ेर रही थी तब माँ ने बाबुजी से कहा - देखा वैदेही के कदम कितने शुभ हैं.... आते ही हमे माँ बाप की खुशियाँ देती... और आज इतने सालों बाद मैं सच में माँ बन रही हूँ....
बाबा - हाँ सरला.... लक्ष्मी है लक्ष्मी हमारी वैदेही....
ऐसे बातेँ करते हुए सब सो गए पर मुझे माँ और बाबा के व ह बाते गुदगुदा रहे थे....
पर दुखों को तो जैसे मेरी हर छोटी छोटी खुशी से बैर था....
फिर मेरे जीवन में दुख का आना बाकी था
Fantastic Update
 

Kala Nag

Mr. X
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👉ग्यारहवाँ अपडेट
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हाँ मेरे जीवन में दुखों का आना बाकी था....
कहते कहते वैदेही खामोश हो गई l प्रतिभा को उसके आँखों के कोने में चमकते आँसू दिखने लगे, फिर अचानक वैदेही अपनी आँखों को पोछते हुए कहा - माँ को जब नवें महीने का दर्द शुरू हुआ बाबा अपने काम से बाहर गए थे.... माँ का दर्द बढ़ रहा था.... घर में मैं अकेली... मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था.... क्या करूँ... फ़िर भी माँ को नीचे दीवार के सहारे बिठा कर... मैं बाहर निकली और चिल्लायी... मौसी, काकी, मामी, भाभी.... कोई तो आओ मेरी माँ को दर्द हो रहा है....
मोहल्ले के सारी औरतें भाग कर आयी.... मेरी माँ के पास... सबने किसी तरह से बैल गाड़ी का इंतज़ाम किया और माँ को हस्पताल ले गए.... पर उस हस्पताल में कोई डॉक्टर नहीं था... एक कंपाउंडर और एक RMP थे..
किसी तरह बाबा को ख़बर किया गया था.... बाबा भी आ पहुंचे थे.... पर ख़बर भेजने के बावज़ूद डॉक्टर नहीं आया था.... गांव के कुछ धाई मिलकर बच्चा पैदा होने में मदत की... पर माँ की हालत बहुत खराब हो गई थी.... बच्चा पैदा हुआ.... उसके बाद डॉक्टर पहुंच भी गया था.... पर उसका भी क्या दोष... गांव में वह हर किसीके पास जाता था... इसलिए समय पर पहुंच ना पाया... बच्चा जनते वक़्त धाईयों के लापरवाही से कोई नस कट गया था... इसलिए माँ को बचाना नामुमकिन था... ऐसा कहा था डॉक्टर ने..
बाबुजी का मन बहुत ख़राब हो गया...आस पास के सभी औरतें रोना शुरू कर दिया था... पर मुझे समझ में नहीं आ रहा था.... की मेरा भाई आया है... तो सब रो क्यूँ रहे हैं.. इतने में एक औरत बाहर आ कर मुझे बुलाया... मैं उसके साथ अंदर गई... माँ बहुत कमजोर दिख रही थी... माँ ने इशारे से पास बुलाया.... और बच्चे को दिखाया..... और कहा - देख तेरा भाई आया है... क्या नाम रखेगी...
मैंने कहा - माँ वो कल स्कुल में ना मास्टर जी पढ़ा रहे थे... विश्व के प्रतापी राजाओं में खारबेल जी का नाम आता है.... तो क्यूँ ना हम भाई को विश्व प्रताप कहें.... माँ ने बड़ी ममता से मेरे चेहरे पर हाथ फेरा और कहा वाह... फिर बच्चे को अपने हाथ में लेकर पुकारा विश्व प्रताप हाँ आज से तेरा नाम विश्व प्रताप है.... और यह तेरी दीदी है... आज से यह तेरा और तु इसका खयाल रखना...
जा बेटी जा अपने बाबा को बुला ला.... मैं बाहर गई और बाबा से कहा - बाबा माँ बुला रही है..
बाबा और मैं अंदर आए तो माँ ने उन्हें कहा - अजी जानते हैं... हमारे मुन्ना का नामकरण हो गया... वैदेही ने नाम दिआ है "विश्व प्रताप" अब मेरे दोनों बच्चे आपके हवाले...
बाबा और सम्भाल ना पाए और रो पड़े - सरला...
माँ - नहीं जी... आप मुझे ऐसे विदा ना करें... मुझे वचन दीजिए... मेरे बच्चों को आप डॉक्टर बनाओगे.... ताकि कल को किसीकी यहां मेरी तरह हालत ना हो.... मैं तो भाग्यवान हूँ... माँ बनी और सुहागन जा रही हूँ...
बाबा - सरला...
माँ - बस... (माँ ने इतना कह कर बाबा को रोक दिया) वैदेही... अपने भाई का खयाल रखेगी ना...
मैंने अपना सर हिला कर हाँ कहा l फिर माँ खामोश हो गई... मैं देख रही थी सब रो रहे थे... सिर्फ मैं और मेरे भाई को छोड़ कर... क्यूंकि तब किसीका मरना मुझे मालुम नहीं था....और मेरा विशु अभी अभी तो दुनिया में आया है...

पर कुछ दीन दिनो बाद हाँ कुछ दिनों बाद माँ की कमी मुझे महसूस हुई l मैंने बाबा से पूछा तो बाबा ने मुझे माँ की तस्वीर के सामने खड़ा कर कहा - बेटी तेरी माँ भगवान के पास गई है.... और तुझे जिम्मेदारी दे कर गई के तु अपने भाई का खयाल रखेगी.... जब तु अच्छे से खयाल रख कर अपने भाई को क़ाबिल बना देगी... तब तेरी माँ आएगी.... बोल अपनी माँ को दिए वचन निभाएगी ना..
मैंने अपना सर हिला कर हाँ ज़वाब दिआ...
उसके बाद मैं विशु का खयाल रखने लगी...
अपना स्कुल व विशु दोनों के बीच समय को बैलेंस कर बाबा के साथ जी रही थी... फिर विशु का स्कुल जाने का वक्त आ गया... एडमिशन के वक्त जब आचार्य ने नाम पुछा मैंने बड़े गर्व से कहा "विश्व प्रताप महापात्र"...
उसके बाद अपनी पढ़ाई के साथ मैं विशु की पढ़ाई पर भी ध्यान देने लगी... इसी तरह विशु सातवीं में पहुंच गया और मैं बारहवीं में हम दोनों की बोर्ड परीक्षा हुई ...
मेरी बारहवीं की बोर्ड और विशु की NRTS बोर्ड... हम दोनों ने पुरे यश पुर को चौका दिआ था... हम दोनों भाई बहन अपने अपने कक्षा के परीक्षा में ज़िले में प्रथम हुए थे.....
सब हमें और बाबा को बधाईयाँ दे रहे थे... गांव में ज्यादा कोई सोचते नहीं थे... इसलिए सब मेरी शादी के लिए प्रस्ताव ले कर बाबा के पास आते थे.... और बाबा बड़ी विनम्रता से सारे प्रस्तावों को मना कर देते थे..
एक दिन पड़ोस के मौसी ने इस बारे में पूछा तो बाबा ने कहा वैदेही पहले डॉक्टर बनेगी.... मैंने उसके माँ को वचन दिया था... अब पुरा करने का वक्त आ गया है....
मैं यह सुन कर बहुत खुश हुई... छुट्टियां चल रही थी... हम भाई बहन गांव में खूब मस्तियाँ कर रहे थे.... एक दिन डाक में एक पत्र आया... बाबा देख कर खुश हो गए....
बोले वैदेही...
मैं - जी बाबा...
बाबा - यह देख बेटी... तेरी डॉक्टरी एंट्रेंस का कॉल लेटर आ गाय...
हम सात दिन बाद कटक जाएंगे...
मैं - खुशी से बाबा को गले लगाया और उछालते कुदते विशु को अपने हाथों से उठा कर झूमने लगी...
विशु - दीदी मुझे उतरो ना... मेरा सर चकरा रहा है... प्लीज उतारो ना...
मैं - (विशु को उतार कर) विशु मेरे भाई... मैं अब डॉक्टर बन जाऊँगी...
मैं और विशु मस्ती में नाचने लगे.... और बाबा हमे देख कर खुश हो रहे थे...
सात दिन बाद बाबा ने एक टेंपो किया था..... यश पुर जाने के लिए... टेंपो पर हम अपना समान रखने के बाद सब आस पास पड़ोस वालों से जाने की इजाजत मांगने लगे... पड़ोस के सभी पहचान वाले हमे हिदायत दे कर विदा करने आए थे...
हमारा टेंपो गली से बाहर निकला ही था कि चार चार जीप से राजा साहब के लोग पहुंचे और टेंपो को रोक कर ड्राइवर को धक्का दिया... ड्राइवर गाड़ी छोड़ कर भाग गया... उनमे से एक आदमी मुझसे बोला - चल राजा साहब आज तेरी नथ उतारेंगे..
बाबा - क्या बकवास कर रहे हो...
आदमी - तु चुप बे बुड्ढे...
इतना कह कर उसने बाबा को लात मारी और कुछ लोग विशु को बाहर खिंच कर फ़ेंक दिए.... विशु जा कर एक लकड़ी के गट्ठे पर गिरा... जिस आदमी ने विशु को उठा कर फेंका था उसी ने मेरे हाथ पकड़ कर मुझे खिंचने लगा... ठीक उसी वक़्त पता नहीं कहाँ से विशु के हाथ में एक कुल्हाड़ी आ गई थी... राजा साहब के लोग इस बात से अनजान थे... वह जो आदमी मेरा हाथ खिंच रहा था... विशु कूदते हुए उस पर कुल्हाड़ी चला दी... उस आदमी का हाथ जिस्म से अलग हो कर उखड़ चुका था...

विशु - (चिल्लाते हुआ) दीदी आप घर चले जाओ....
बाबा - हाँ बेटी घर के भीतर जाओ और दरवाजा अंदर से बंद करलेना....
विशु सिर्फ तेरह साल का था... पर उसके हाथ में खुन से सनी कुल्हाड़ी उसको और भी खतरनाक बना दिया था... वह जो आदमी मुझे खिंच रहा था.... वह नीचे पड़े छटपटा रहा था...
विशु - दीदी (चिल्लाया)
मैं होश में आयी और अपने घर की तरफ भागने लगी.... विशु और बाबा उनको रोके हुए थे... मैं घर में घुस कर दरवाजा बंद कर दिया.... पर कुछ ही समय में दरवाजा टूट कर गीर गया.... राजा साहब के कुछ लोग मुझे घर से खिंच कर ले जा रहे थे.... मैं चिल्लायी - सुर मामा, धीरू भैया, रमेश चाचा, सुनाम काका, कोई आओ मुझे बचाओ...
पर कोई नहीं आया... वह लोग मुझे खिंचते हुए ले जा रहे थे... मैंने बाबा को बुलाया.. बाबा मुझे बचाओ....
पर बाबा के जिस्म में कोई हरकत नहीं हुआ.... मैंने विशु चिल्लाया... विशु पेट के बल नीचे जमीन पर गिरा हुआ था... एक आदमी ने उसे अपने पैरों के नीचे दबा कर रखा था.... मैंने फ़िर से चिल्लाया विशु....
इस बार विशु बड़ी मुश्किल से उठा... पर उस आदमी ने उसके बालों को पकड़ कर खींच कर बिठा दिआ... मगर विशु हार नहीं मानी... किसी तरह उस आदमी के हाथ को लेकर अपने मुहँ में काट लिया... उस आदमी के हाथ से विशु छुट गया और रास्ते में पड़े कुछ पत्थरों से उन लोगों पर हमला बोल दिया... पर वह नन्हा सा जान कब तक लड़ पाता... एक आदमी ने लाठी चलाई सीधे विशु के सिर पर लगा और विशु वहीं गिर गया....
मैं फिर से चिल्लाने लगी.. काका, मामा, चाचा... कोई तो आओ मेरे विशु को बचाओ.. पर कोई नहीं आया..
और वह सारे लोग मुझे जीप में डाल कर ले जाने लगे... मैं रास्ते में चिल्लाती रही... हर पहचान वाले से मदत को गुहार लगाती रही पर कोई नहीं आया... वह दरिंदे मुझे रंग महल ले गए...
यह कहते ही वैदेही की आवाज़ भर्रा गई.... गहरी गहरी सांसे लेने लगी...
प्रतिभा यह सुन कर शुन हो गई, उसके मुहँ से कोई बोल नहीं निकल रही थी बस एक टक देखे जा रही थी l फिर वैदेही ने कहना शुरू किया - मेरे दोनों हाथ बांध दिए गए थे... और मुहँ में कपड़ा ठूँस कर मेरे मुहं पर टेप चिपका दिआ था... उन चांडालो ने... मुझे उसी हालत में लेकर रंग महल के बैठक में फेंक कर चल दिए...
तभी एक औरत मेरे पास घिसटते हुए आ कर गिरी..
मैं उसे पहचानने की कोशिश कर रही थी...
राजा साहब - देख कमीनी देख... इसे तु हमारे ऐस गाह से भगा दिआ था..... तो क्या समझी थी हम उसे ढूंढ नहीं पाएंगे... आज तेरे सामने तेरी लौंडीया की नथ उतरेगी...
इतना सुन कर मैं समझने की कोशिश कर रही थी...
वह औरत - राजा साहब इसे छोड़ दीजिए.... इसकी कसूर क्या है बताइए....
राजा - इसका कसूर यह है कि यह पाइकराय वंश के वृक्ष की डाली है जिसे आज टूटना है..
औरत - यह कैसे पाइकराय परिवार की हुई.... यह आपकी वंश की बीज है... यह आपकी बेटी है...
बड़े राजा - चुप कर कुत्तीआ... हमारे पिताजी ने कसम खाई थी... के पाइकराय वंश के औरतों को पीढ़ी दर पीढ़ी रंडी बना कर रखा जाएगा.... इसलिए पाइकराय खानदान के औरतों को क्षेत्रपाल के मर्द चोदेंगे और पैदा होने वाली खानदान के वृक्ष की केवल ल़डकियों को जिंदा रखा जाएगा और लड़कों को मार दिया जाएगा.... देखा नहीं था तूने कैसे तेरी कोख से जनने वाले लड़के को मगरमच्छ का निवाला बना दिया था... आज यह चुदेगी और इससे पैदा होने वाली लड़कियां भी इस रंग महल की रंडी बनेंगी...
इतना सुनते ही मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे....
मुझे समझ में आ गया था कि वह जो मिन्नते कर रही है वह मुझे जनम देने वाली माँ है.... यह औरत मेरी माँ है... अब धीरे धीरे मुझे बचपन की वह सारी बातेँ याद आने लगी... पर मैं हैरान थी... इन दरिंदों ने मुझे ढूंढ कैसे निकाला....
माँ - नहीं राजा साहब यह गलत है... पाप है... अपने खुन के साथ ऐसा अनर्थ ना कीजिए.... यह आपके ही वंश का अंश है... इसे बक्श दीजिए...
राजा और उसका बाप हंसने लगे, उनकी शैतानी हंसी से रंग महल भी थर्रा गया l अब माँ से बर्दाश्त ना हुआ वह भाग कर दीवार में लगी एक तलवार खिंच कर राजा के सामने खड़ी हो गई
माँ - खबरदार अगर किसीने मेरी बेटी को छूने की भी कोशिश की....
राजा की हंसी और भी शैतानी हो गई, और जोर जोर से हंसने लगा
राजा - क्या कहा था तुने... हमारे वंश वृक्ष का अंश है.... हा हा हा... तो अपने ही लगाए पेड़ का फल हम ना खा कर किसी और को कैसे खाने दें... हा हा हा
माँ - ऐ... भैरव... अपने वंश का फल खाएगा तु... इसका मतलब जब रूप जवान हो जाएगी तो उसे भी अपने नीचे सुलाएगा तु...
भैरव - कमीनी रूप कि तुलना तेरी रंडी बेटी से कर रही है....
इतना कह कर भैरव माँ के तरफ बढ़ने लगा, माँ ने तलवार उठा कर भैरव सिंह पर चलाया... पर माँ कमजोर थी और वह एक राक्षस.... तलवार की वार से बच कर पुरी ताकत से माँ को लात मारी... माँ छिटक कर ऐसे गिरी के वह उठ नहीं पाई....
माँ मुझे देख कर बस इतना कहा मुझे माफ कर दे बेटी...
इतने में भैरव सिंह मुझे मेरे बालों सहित खिंचते हुए वहीं बैठक के एक बिस्तर पर गिरा दिया... फ़िर मेरे पैरों को बिस्तर की पैरों के साथ बांध दिया और फिर हाथों को भी खोल कर बिस्तर के पैरों के साथ बांध दिआ... मैं पीठ बल उस बिस्तर बंधी हुई थी....
इतने में माँ सम्भल चुकी थी... वह फिर से तलवार उठा कर अपनी अंतिम प्रयास किया...
माँ - भैरव सिंह....
पर बीच रास्ते में ही बड़े राजा उर्फ़ नागेंद्र ने रोक दिया... और मेरी माँ को पास रखे कुर्सी पर पटक कर माँ के हाथों से तलवार छिन कर माँ के कंधे में ही कुर्सी के साथ ही वही तलवार घुषेड़ दिआ... माँ अब कुर्सी से हिल नहीं पा रही थी...
फिर नागेंद्र अपने कपड़े उतारते हुए मेरे पास आया और मेरी माँ को देखते हुए बोला - अब तेरी लौंडीया कली से फुल बनेगी... तेरे ही आँखों के सामने... और इससे जो लड़की पैदा होगी वह भी हमारे नीचे सोयेगी....
माँ बुरी तरह ज़ख्मी थी उसकी आँखे पत्थरा गई थी...
नागेंद्र अब पूरी तरह से नंगा हो कर मेरे पेट के उपर बैठ कर मुझ पर चाटों पर चाटें बरसाने लगा..
कमीनी - इस घर से भाग गई थी.... अब तेरी नथ ऐसे उतरेगी की फिर कभी भाग नहीं पाएगी..
इतना कह कर मेरे सारे कपड़े फाड़ कर निकाल दिया...
मैंने जिसकी कभी कल्पना तक नहीं की थी वह मेरे साथ होने लगा... मेरे शरीर के हर कोमल हिस्से को बड़ी बेरहमी से नोचने काटने लगा... पर चिल्ला भी नहीं पा रही थी... मेरे मुहं पर टेप लगा हुआ था... फिर वह दरिंदगी हद से जा कर मेरा बलात्कार करने लगा.... मैं बेहोश हो गई... फिर बीच में जब होश आया तो मेरे ऊपर नागेंद्र नहीं भैरव सिंह था... पर मैं ज्यादा देर बर्दाश्त ना कर सकी, फिर बेहोश हो गई....
जब आँख खुली तो खुदको किसी हस्पताल में पाया... मेरी हालत इतनी खराब हो गई थी कि उन्होंने मुझे इलेक्ट्रिक शॉक दे कर मुझमें जान डाला था..
पर मैं अब जीना नहीं चाहती थी.. मैं खुद को कुछ कर देना चाहती थी.. पर हस्पताल के बेड पर मेरे हाथ बंधे थे... पास खाड़ी डॉक्टरनी को मेरी हालत व मनःस्थिति समझ में आ गई l उसने मुझसे हाथ जोड़ कर बिनती करते हुए कहा - देखो मैं जानती हूं... तुम्हारे साथ क्या हुआ है... तुम्हारा खुन बहना नहीं रुका और तुम होश में भी नहीं आई इसलिए तुम्हें इस हस्पताल लाया गया.....पर प्लीज तुम आत्महत्या मत कर लेना... अगर जिंदा और सही सलामत महल ना लौटी तो उनके कब्जे में मेरा परिवार है... वह लोग उन्हें मार डालेंगे... प्लीज....
मैं उस मजबूर डॉक्टरनी को देख कर कुछ सोचा फ़िर मैंने कहा
मैं - तो फिर एक शर्त पर...
डॉक्टरनी- मुझे तुम्हारी हर शर्त मंजूर है...
मैं - मेरे शरीर से युटेरस निकाल दीजिए...
डॉक्टरनी - क्या....
मैं - यही मेरी शर्त है...
डॉक्टरनी ने मेरा ऑपरेशन कर युटेरस निकाल दिया और दो महीने बाद जब मैं ठीक हुई तो मुझे महल ले जाया गया
अभी भी मेरे सामने कुछ अनसुलझे सवाल थे....
जिस अतीत को मैं पूरी तरह से भूल चुकी थी.. वह इस तरह मेरे सामने कैसे आया
मेरे बाबा और विशु का क्या हुआ
रंग महल में मुझे गौरी काकी मिली, क्यूंकि बचपन की बातेँ अब याद आ चुकी थी,इसलिए मैंने गौरी काकी को पहचान लिया था l मैंने गौरी काकी से मेरे अनसुलझे सवालों का जवाब मांगा
काकी - तेरी माँ की अंधी ममता तेरे लिए श्राप हो गई वैदेही....
मैं - कैसे काकी...
काकी - तु जिले में अव्वल आई... तेरी फोटो अखबार में आयी थी... वह अखबार राजा जी लेकर यहां आए थे... तेरी माँ ने अखबार में देख कर तुझे पहचान लीआ था... उसने अगर अपनी भावनाओं को रोका होता तो आज तु कहीं और होती.... पर उसकी ममता ने उसे बेबस कर दिया... एक दिन वह छुप कर तुझे देखने चली गई थी... बस राजा जी को ख़बर हो गई... उसके बाद.... (इतना कह कर काकी रोने लगी)
मैं - काकी मेरे बाबा और विशु....
काकी - उनके बारे में कुछ नहीं पता....
इतने में भैरव सिंह आया और कहा.... वह लोग जिंदा हैं... अगर तूने कुछ भी चालाकी की तो दोनों की बोटियां लकड़बग्घों को खिला दी जाएगी...
बस मैं चुप रह गई... फिर आठ सालों का नर्क... जब आठ सालों तक मुझसे कोई बच्चा नहीं हुआ तो डॉक्टरनी को बुलाया गया... शुक्र था कि वह डॉक्टरनी ही थी.. वह चेक करने के बाद मुझे बाँझ कहा...
जिससे भैरव सिंह के अहं को ठेस पहुंचा.... इतने दिनों के नर्क यातना के पहली बार मुझे एक तृप्ति भरा आनंद मिला...
पर चूंकि उस वंश की शपथ अब किसी काम की नहीं थी इसलिए भैरव सिंह ने मुझे महल के बाहर निकलने का फैसला किया पर वह ऐसे तो नहीं छोड़ सकता था इसलिए एक दिन महल में में मुझे नंगा कर दिया गया और चुड़ैल कह कर मुझे बीच गांव में भगाया गया...... पहले मुझे पत्थर भैरव सिंह के लोग मारना शुरू किया फ़िर जब गाँव वालों ने भी वही किया तो भैरव सिंह के लोग वहाँ से चले गए, पर गांव के लोग मुझे दौड़ा रहे थे... मैं एकदम से थक कर एक पेड़ के पीछे छिपने कोशिश की... पर लोग मुझे पत्थर मारते रहे....
ऐसे वक्त पर एक नौजवान पहुंचा उसने एक चादर से मुझे ढक दिया... फिर चिल्लाया क्यूँ मार रहे हो...
एक - यह चुड़ैल है.. इसलिए....
नौजवान - किसने कहा...
दूसरा - राजा साहब के लोगों ने....
नौजवान - कहाँ है वे लोग...
गांव वाले आपस में बात करने लगे
नौजवान - उन्होंने झूट कह कर तुम्हारे ही हाथों से किसीकी हत्या करा रहे थे....
गांव वालों को बात अब समझ में आ गई थी
नौजवान - अब जाओ यहाँ से....
सब गांव वाले हम दोनों को छोड़ कर चले गए
वह नौजवान मुझे अपने साथ ले जाने लगा...
फिर एक घर के भीतर ले गया.... उस घर में आ कर... मैं हैरान रह गई... मैं उस नौजवान को गौर से देखने लगी.. विशु मेरे मुहँ से निकला...
अचानक वैदेही के कहानी को विराम देते हुए वैदेही की मोबाइल बजने लगी l अपने अतीत से निकल कर वैदेही वर्तमान में आई और फ़ोन उठाई,
वैदेही - ह.. हे... हैलो..
फोन - xxxxxxxxxx
वैदेही - ठीक है काकी... मैं थोड़ी देर बाद निकलुंगी.... और सुबह तक पहुंच जाउंगी...
इधर वैदेही फोन पर बातेँ कर रही थी उधर प्रतिभा पश्चिम आकाश में डूब रहे सूरज को देखने लगी l सफेद बादलों के पीछे सूरज बहुत लाल दिखने लगी है... सूरज की रौशनी से बादलों के धार भी लाल रंग से रंग गई है, जिसके प्रभाव से दया नदी का पानी लाल दिख रहा है l प्रतिभा को लगा आज दया नदी भी वैदेही के यादों के ज़ख्मों से निकले लहू से लाल हो गया है l
वैदेही - अच्छा मासी मेरी कहानी अधूरी रह गई.... फिर कभी मौका मिला तो...
प्रतिभा - कितना झूट कहा था तुमने.... के तु सगी नहीं है प्रताप के... जब कि तु तो सगी से भी बढ़ कर है...
वैदेही - ऐसी बात नहीं है मासी...
प्रतिभा - नहीं... अब मुझे समझ में आ रहा है... तुने क्यूँ कहा था माँ बेटी का रिश्ता तेरे लिए एक श्राप है.... और देख तेरे दुख से दया नदी भी लाल हो गई है...
वैदेही चुप रही
प्रतिभा - अच्छा, तेरे फोन से लगा... तु अब जो भी बस मिले उसमें गांव चली जाएगी.....
वैदेही - जी मासी...
प्रतिभा - चल तुझे बस स्टैंड पर छोड़ देती हूँ.....
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शाम का सुरज ढ़ल चुका है, अंधेरा निकल रहा है फिर भी पश्चिमी आकाश में लाली दिख रही है जो धीरे धीरे मद्धिम हो रही है l
होटल ब्लू इन, कमरा नंबर 504,
कमरे में मॉकटेल पार्टी अपने पुरे रंग में है l एक सम्बलपुरी धुन में सभी थिरक रहे हैं और सबकी हाथों में अपनी अपनी पसंदीदा कुल ड्रिंक की बॉटल है l सब नाचते नाचते थकने लगे तो उनके बीच से रॉकी निकल कर म्युजिक सिस्टम के पास पहुंचकर म्युजिक को बंद कर देता है l म्युजिक के बंद होते ही नाच नाच कर जो हांफने लगे थे सब अपनी अपनी जगह पर बैठ जाते हैं l
सब बैठते ही रॉकी फ़िर से व्हाइट बोर्ड को सबके सामने लाता है और उसमे लिखता है मिशन नंदिनी l
रॉकी - मित्रों, मेरे प्यारे चड्डी बड्डी कमीनों, मेरे टेढ़े मेड़े येड़े दोस्तों.... आज हम सब फ़िर से इकट्ठे हुए हैं... मिशन नंदिनी पर अगले कदम उठाए जाने की चर्चा के लिए.... जैसा कि हमने पिछले हफ्ते प्लान किया था.. अब उससे आगे निकलने का वक्त आ गया है.... क्यूँ भाई लोग....
आशीष - ऑए ठंड रख ठंड... पहला कदम कितना सही गया उसका भी चर्चा कर लें...
सुशील - उस पर चर्चा क्यूँ... वह काम तो हो चुका है ना... क्यूँ रवि..
रवि - हाँ मेरी गर्लफ्रेंड नंदिनी की छटी गैंग से दोस्ती भी कर ली है.....
राजु - तो पहला कदम क़ामयाब रहा.... पर यह कोई बड़ी बात नहीं.. क्यूँ की अब सही में प्लान बनाया जाएगा और उस पर अमल होगा... और अंत में.... रिजल्ट पर स्कोर भी डिक्लेर होगा...
रॉकी - हाँ तो पहले.... नंदिनी की दोस्तों पर और उनके प्लान्स पर चर्चा कर लेते हैं...
राजु - हाँ तो रवि... चल बता... अब तक हमें क्या पता चला है और हमारे काम की क्या इंफॉर्मेशन है ....
रवि - देखो उनकी दोस्ती हुए अभी तीन चार दिन ही हुए हैं.... पर जितना मालुम हुआ उसको हम रॉकी के टेढ़े मेढ़े यडे ग्रुप वालों के डिस्कस व एनालिसिस करने के बाद..... इस नतीजे पर पहुंचे कि नंदिनी.... जो शायद बीस वर्ष की होने वाली है.... वह अपनी जिंदगी में बहुत अकेली रही है... भुवनेश्वर आने के बाद ही उसके जिंदगी में दोस्त अब आए हैं... वह पहले कभी ज्यादा बात नहीं करती थी पर अब अपने दोस्तों से बहुत बातेँ करती है.... इतना करती है कि सुनने वाला कंफ्यूज हो जाए कि नंदिनी सांस कब ले रही है.....
आशीष - रॉकी भाई मेरे... मैं जितना समझा हूँ.... तु थोड़ी कोशिश करेगा तो.... वह लड़की जो तेरे ख्वाबों ख़यालों में है बहुत जल्द
तेरी बाहों में होगी... और वह शिद्दत से तुझे चाहेगी...
रॉकी - यह तु कैसे बता सकता है....
आशीष - देख उसकी जिंदगी में बहुत खाली पन है जो वह.... अपने दोस्तों के जरिए भरना चाहती है.... उसे नए और बहुत अच्छे दोस्त चाहिए....
सुशील - हाँ.... अब उसकी ल़डकियों वाली दोस्तों का कोटा.... फुल हो चुका है... अब लड़के उससे कोई दोस्ती करने से तो रहे...
राजु - और मैं भी कहूंगा कि तु भी दोस्ती की पहल मत कर...
रॉकी - अबे.... अगर पहल नहीं करूंगा तो कोई और उड़ा ले जाएगा....
आशीष - अबे ढक्कन.... तुझे हमने पहले दिन से ही बता दिया था.... की कंपटीशन में तु अकेला है....
रॉकी - हाँ... अच्छा अच्छा... अरे यार वह एक्साइटमेंट में... भूल गया था...
रवि - देख उसके जिंदगी के खाली पन को दूर करने के लिए.... उसे जितने दोस्त चाहिए थे मिल गए.... अब उसे एक हीरो की ज़रूरत है.... और इस उम्र में जाहिर है हर लड़की का बॉयफ्रेंड ही उसका हीरो होता है....
राजु - हाँ बाबा जी ने सौ फीसद सही कहा है....
सब हंस देते हैं तो रवि का मुहँ खट्टा हो जाता है l
राजु - जस्ट किडींग.... दिल पे मत ले यार...
रवि - ठीक है....
रॉकी - ओके गयज.... लेटस प्रोसीड...
सुशील - हाँ राजु ने सही कहा.... अब नंदिनी को एक हीरो की जरूरत है...
रॉकी - अच्छा हीरो बनने के लिए मुझे क्या करना होगा.... चड्डी पहन कर आसमान में उड़ना होगा.... या फ़िर दीवारों पर मकड़ी की तरह चलना होगा या वीर सिंह का सिर फोड़ना होगा........
राजु - तब तो हो गई रुप तेरी....
रॉकी - क्या मतलब.......
आशीष - अबे हीरो नहीं तु विलेन बन जाएगा.....
रॉकी - तो मैं क्या करूं...
रवि - देख गुरुवार को दीप्ति लोगों की केमिस्ट्री प्रैक्टिकल क्लास है.... और उस दिन केमिस्ट्री लैब में आग लग जाएगी....
रॉकी - वाव क्या बात है.... नंदिनी आग के बीचों-बीच फंसी होगी.... और मैं जा कर उसे बचा लूँगा... तब तो मैं नंदिनी के ही नहीं उसके भाई के नजर में भी.... हीरो बन जाऊँगा...
रवि - अबे ओ शेख चिल्ली जरा दम ले.... उस आग में नंदिनी नहीं.... नंदिनी की दोस्त बनानी होगी...
सब एक साथ - "क्या"
रवि - हाँ मैंने पता किया है.... बनानी का उस दिन बर्थ डे है.... और सारी लड़कियाँ उस दिन बनानी के साथ थोड़ा एटीट्यूड दिखाएंगी..... तो बनानी उस दिन थोड़ी उखड़ी रहेगी.... और उस दिन उसके कपड़े पर दीप्ति कुछ जेली डाल देगी जिसे साफ़ करने बनानी लैब के वश रूम जायेगी... जब बनानी वश रूम में होगी, सारी लड़कियाँ उसे बाहर आने पर बर्थ डे विश करेंगी......ऐसा उनका प्लान है... पर यहीँ पर हम भांजी मार लेंगे.... लैब में आग लगेगी, सारी लड़कियाँ बाहर को भागेंगी और उस वक़्त अपना चिकना जा कर पर उस बनानी को बचा लेना..... बस
सुशील - बस नहीं कार.... अबे भोंदु यहाँ पर कुछ लॉजिक् मिसींग है....
रॉकी - मसलन....
सुशील - प्लान की डिटेल्स बाद में लेंगे.... पहला मिसींग लॉजिक्.... अगर बनानी आग में घिरी होगी तो उसे बचाने की कोशिश नंदिनी भी कर सकती है.... जरूरी तो नहीं कि वह भी दूसरों की तरह आग से डर जाए.... और दुसरा मिसींग लॉजिक्... अपना चिकना रॉकी उसी टाइम पर होगा वह भी कॉमर्स स्ट्रीम के बजाय साइंस के स्ट्रीम में वह भी केमिकल लैब के बाहर....
रॉकी - वाह क्या सोचा है...
अब बोल बे मेटिंग प्लानर
रवि - उसका भी प्लान है...
आशिष - तो उगल ना बे...
रवि - सुनो...चूँकि गुरुवार को बनानी का बर्थडे है.... तो दीप्ति और नंदिनी दोनों ने प्लान बनाया है कि बुधवार को बनानी के लिए ऑनलाइन ब्रेसलेट खरीदने की....... जाहिर सी बात है डेलिवरी की तो वह अपने हाथ है.... चूंकि प्लान के तहत गिफ्ट दोपहर दो बजे कॉलेज पहुँचेगी.... तो रिसीव करने नंदिनी को लैब से बाहर जाना ही होगा.... क्यूँकी अपना चिकना जो हीरोइजम दिखाएगा और उसका हीरोइजम टॉक ऑफ द कॉलेज होगा, तो वह नंदिनी के कानों में पड़नी चाहिए पर नंदिनी को दिखनी नहीं चाहिए....
सुशील - ह्म्म्म्म प्लान तो जबरदस्त है.... ठीक है चलो दूसरे मिसींग लॉजिक् पर अपना ज्ञान का पिटारा खोल......
रवि - इसका भी सोल्यूशन है... लैब का जो अटेंडेंट है मनोज, वह अपना यार है.... उसने अपना रॉकी से उधार लिया था जो लौटाने के लिए रॉकी को पौने दो बजे फ़ोन कर बुलाएगा.... और रॉकी उससे पैसे लेने वहाँ दो बजे तक पहुंच जाएगा....
सुशील - वाह... तू तो सच में कितना बड़ा कमीना निकला बे... तुझे तो शेरलॉक होम्स होना चाहिए बे....
रॉकी - ह्म्म्म्म
आशीष - बढ़िया... पर आग लगेगी कैसे... मेरा मतलब लगायेगा कौन... और आग लगने के वजह से लैब अटेंडेंट मनोज पर डीसीप्लिनारी एक्शन भी हो सकता है....
रवि - हाँ हो सकता है.... इसलिए वह पांच लाख रुपये लेगा....
राजु - क्यूँ रॉकी.... अपनी जेब ढीली करने के लिए तैयार हो जा....
रॉकी - पैसों की चिंता मत करो.... बस प्लान एक्जीक्यूट करो....
आशीष - पर रवि अगर आग के बीचों-बीच घुस कर बनानी को बचाना है... तो अपना हीरो भी तो ज़ख्मी हो सकता है.....
रवि - हाँ मैंने... इसके बारे में भी सोच रखा है.... रॉकी के पूरे जिस्म और अपने कपड़ों पर में अनबर्न व अनफ्लेमेबल जेली लगाएगा... जब वह लिफ्ट से केमिकल लैब पहुँचेगा...
और उसके शर्ट में जो सोल्यूशन लगा होगा उससे पूरे डेढ़ मिनिट तक आग तो जलेगी पर त्वचा तक नहीं पहुंचेगी....
उतने समय में अपना मनोज फायर एस्टींगुइसर की मदत से आग बुझा देगा.... इसलिए रॉकी बिंदास अंदर जाएगा.... और बिंदास बनानी को बचा कर पास के नर्सिंग होम ले जाएगा... और इस तरह से तु नंदिनी और उसके ग्रुप की नज़र में उनके प्यारी दोस्त को बचाने वाला हीरो होगा...
यह सुन कर सभी ताली बजाते हैं l

रॉकी - अबे मैं तो तुझे हरामी कमीना समझ रहा था बे.... पर तु तो एकदम देव मानुष निकला बे..
रवि - साले कमीने लाइन पे आ.... नहीं तो प्लान कैंसिल....
रॉकी - नाराज मत हो... मेरी जान... आई लव यू रे...
रवि - ठीक है... मेरे को कमीना ही रहने दे...
सुशील - रवि प्लान वाकई बहुत जबरदस्त है... पर एक्जिक्युट कैसे करें...
रवि - देख लंच ब्रेक के बाद उनका प्रैक्टिकल है... तुम लोगों को लॉजिस्टिक्स पर ध्यान देना होगा.... वजह मैंने बताया है बाकी प्लान पर अमल करो लैबोरेट्री के पास पहुंचोगे तो जरूर मगर लिफ्ट के जरिए.... अपनी गाड़ी से कितनी जल्दी अपने पहचान वाले नर्सिंग होम में दाखिला कराओगे.....
क्यूंकि रिपोर्ट उसी आधार पर बनाने हैं और कुछ दिन बनानी को उस नर्सिंग होम में... ट्रीट देनी है... ताकि उससे मिलने बीच बीच में नंदिनी आती रहे..
जैसे ही रवि की बात खतम हुई वैसे रॉकी उठ कर रवि को गले लगा लेता है l सब दोस्त रवि को शाबासी देते हैं l
रॉकी (रवि के दोनों हाथों को पकड़ कर) यार मैं तेरी और तेरी वाली का जिंदगी भर आभारी रहूँगा....
सो दोस्तों मैं लॉजिस्टिक्स पर ध्यान देता हूँ.... और तुम लोग सब कंटाक्ट में रहना... लेट फिंगर क्रॉस एंड होप फॉर बेस्ट.... अब इस कमरे में अगले हफ्ते मुलाकात होगी.........
गुड़ नाइट यारों
 
Last edited:

Kala Nag

Mr. X
4,253
16,460
144
षडयंत्र जो केवल सोच व बातों में है अब वह वास्तव में जमीन में उतरेंगी
बारहवां अपडेट में
 

parkas

Well-Known Member
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61,576
303
👉ग्यारहवाँ अपडेट
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हाँ मेरे जीवन में दुखों का आना बाकी था....
कहते कहते वैदेही खामोश हो गई l प्रतिभा को उसके आँखों के कोने में चमकते आँसू दिखने लगे, फिर अचानक वैदेही अपनी आँखों को पोछते हुए कहा - माँ को जब नवें महीने का दर्द शुरू हुआ बाबा अपने काम से बाहर गए थे.... माँ का दर्द बढ़ रहा था.... घर में मैं अकेली... मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था.... क्या करूँ... फ़िर भी माँ को नीचे दीवार के सहारे बिठा कर... मैं बाहर निकली और चिल्लायी... मौसी, काकी, मामी, भाभी.... कोई तो आओ मेरी माँ को दर्द हो रहा है....
मोहल्ले के सारी औरतें भाग कर आयी.... मेरी माँ के पास... सबने किसी तरह से बैल गाड़ी का इंतज़ाम किया और माँ को हस्पताल ले गए.... पर उस हस्पताल में कोई डॉक्टर नहीं था... एक कंपाउंडर और एक RMP थे..
किसी तरह बाबा को ख़बर किया गया था.... बाबा भी आ पहुंचे थे.... पर ख़बर भेजने के बावज़ूद डॉक्टर नहीं आया था.... गांव के कुछ धाई मिलकर बच्चा पैदा होने में मदत की... पर माँ की हालत बहुत खराब हो गई थी.... बच्चा पैदा हुआ.... उसके बाद डॉक्टर पहुंच भी गया था.... पर उसका भी क्या दोष... गांव में वह हर किसीके पास जाता था... इसलिए समय पर पहुंच ना पाया... बच्चा जनते वक़्त धाईयों के लापरवाही से कोई नस कट गया था... इसलिए माँ को बचाना नामुमकिन था... ऐसा कहा था डॉक्टर ने..
बाबुजी का मन बहुत ख़राब हो गया...आस पास के सभी औरतें रोना शुरू कर दिया था... पर मुझे समझ में नहीं आ रहा था.... की मेरा भाई आया है... तो सब रो क्यूँ रहे हैं.. इतने में एक औरत बाहर आ कर मुझे बुलाया... मैं उसके साथ अंदर गई... माँ बहुत कमजोर दिख रही थी... माँ ने इशारे से पास बुलाया.... और बच्चे को दिखाया..... और कहा - देख तेरा भाई आया है... क्या नाम रखेगी...
मैंने कहा - माँ वो कल स्कुल में ना मास्टर जी पढ़ा रहे थे... विश्व के प्रतापी राजाओं में खारबेल जी का नाम आता है.... तो क्यूँ ना हम भाई को विश्व प्रताप कहें.... माँ ने बड़ी ममता से मेरे चेहरे पर हाथ फेरा और कहा वाह... फिर बच्चे को अपने हाथ में लेकर पुकारा विश्व प्रताप हाँ आज से तेरा नाम विश्व प्रताप है.... और यह तेरी दीदी है... आज से यह तेरा और तु इसका खयाल रखना...
जा बेटी जा अपने बाबा को बुला ला.... मैं बाहर गई और बाबा से कहा - बाबा माँ बुला रही है..
बाबा और मैं अंदर आए तो माँ ने उन्हें कहा - अजी जानते हैं... हमारे मुन्ना का नामकरण हो गया... वैदेही ने नाम दिआ है "विश्व प्रताप" अब मेरे दोनों बच्चे आपके हवाले...
बाबा और सम्भाल ना पाए और रो पड़े - सरला...
माँ - नहीं जी... आप मुझे ऐसे विदा ना करें... मुझे वचन दीजिए... मेरे बच्चों को आप डॉक्टर बनाओगे.... ताकि कल को किसीकी यहां मेरी तरह हालत ना हो.... मैं तो भाग्यवान हूँ... माँ बनी और सुहागन जा रही हूँ...
बाबा - सरला...
माँ - बस... (माँ ने इतना कह कर बाबा को रोक दिया) वैदेही... अपने भाई का खयाल रखेगी ना...
मैंने अपना सर हिला कर हाँ कहा l फिर माँ खामोश हो गई... मैं देख रही थी सब रो रहे थे... सिर्फ मैं और मेरे भाई को छोड़ कर... क्यूंकि तब किसीका मरना मुझे मालुम नहीं था....और मेरा विशु अभी अभी तो दुनिया में आया है...

पर कुछ दीन दिनो बाद हाँ कुछ दिनों बाद माँ की कमी मुझे महसूस हुई l मैंने बाबा से पूछा तो बाबा ने मुझे माँ की तस्वीर के सामने खड़ा कर कहा - बेटी तेरी माँ भगवान के पास गई है.... और तुझे जिम्मेदारी दे कर गई के तु अपने भाई का खयाल रखेगी.... जब तु अच्छे से खयाल रख कर अपने भाई को क़ाबिल बना देगी... तब तेरी माँ आएगी.... बोल अपनी माँ को दिए वचन निभाएगी ना..
मैंने अपना सर हिला कर हाँ ज़वाब दिआ...
उसके बाद मैं विशु का खयाल रखने लगी...
अपना स्कुल व विशु दोनों के बीच समय को बैलेंस कर बाबा के साथ जी रही थी... फिर विशु का स्कुल जाने का वक्त आ गया... एडमिशन के वक्त जब आचार्य ने नाम पुछा मैंने बड़े गर्व से कहा "विश्व प्रताप महापात्र"...
उसके बाद अपनी पढ़ाई के साथ मैं विशु की पढ़ाई पर भी ध्यान देने लगी... इसी तरह विशु सातवीं में पहुंच गया और मैं बारहवीं में हम दोनों की बोर्ड परीक्षा हुई ...
मेरी बारहवीं की बोर्ड और विशु की NRTS बोर्ड... हम दोनों ने पुरे यश पुर को चौका दिआ था... हम दोनों भाई बहन अपने अपने कक्षा के परीक्षा में ज़िले में प्रथम हुए थे.....
सब हमें और बाबा को बधाईयाँ दे रहे थे... गांव में ज्यादा कोई सोचते नहीं थे... इसलिए सब मेरी शादी के लिए प्रस्ताव ले कर बाबा के पास आते थे.... और बाबा बड़ी विनम्रता से सारे प्रस्तावों को मना कर देते थे..
एक दिन पड़ोस के मौसी ने इस बारे में पूछा तो बाबा ने कहा वैदेही पहले डॉक्टर बनेगी.... मैंने उसके माँ को वचन दिया था... अब पुरा करने का वक्त आ गया है....
मैं यह सुन कर बहुत खुश हुई... छुट्टियां चल रही थी... हम भाई बहन गांव में खूब मस्तियाँ कर रहे थे.... एक दिन डाक में एक पत्र आया... बाबा देख कर खुश हो गए....
बोले वैदेही...
मैं - जी बाबा...
बाबा - यह देख बेटी... तेरी डॉक्टरी एंट्रेंस का कॉल लेटर आ गाय...
हम सात दिन बाद कटक जाएंगे...
मैं - खुशी से बाबा को गले लगाया और उछालते कुदते विशु को अपने हाथों से उठा कर झूमने लगी...
विशु - दीदी मुझे उतरो ना... मेरा सर चकरा रहा है... प्लीज उतारो ना...
मैं - (विशु को उतार कर) विशु मेरे भाई... मैं अब डॉक्टर बन जाऊँगी...
मैं और विशु मस्ती में नाचने लगे.... और बाबा हमे देख कर खुश हो रहे थे...
सात दिन बाद बाबा ने एक टेंपो किया था..... यश पुर जाने के लिए... टेंपो पर हम अपना समान रखने के बाद सब आस पास पड़ोस वालों से जाने की इजाजत मांगने लगे... पड़ोस के सभी पहचान वाले हमे हिदायत दे कर विदा करने आए थे...
हमारा टेंपो गली से बाहर निकला ही था कि चार चार जीप से राजा साहब के लोग पहुंचे और टेंपो को रोक कर ड्राइवर को धक्का दिया... ड्राइवर गाड़ी छोड़ कर भाग गया... उनमे से एक आदमी मुझसे बोला - चल राजा साहब आज तेरी नथ उतारेंगे..
बाबा - क्या बकवास कर रहे हो...
आदमी - तु चुप बे बुड्ढे...
इतना कह कर उसने बाबा को लात मारी और कुछ लोग विशु को बाहर खिंच कर फ़ेंक दिए.... विशु जा कर एक लकड़ी के गट्ठे पर गिरा... जिस आदमी ने विशु को उठा कर फेंका था उसी ने मेरे हाथ पकड़ कर मुझे खिंचने लगा... ठीक उसी वक़्त पता नहीं कहाँ से विशु के हाथ में एक कुल्हाड़ी आ गई थी... राजा साहब के लोग इस बात से अनजान थे... वह जो आदमी मेरा हाथ खिंच रहा था... विशु कूदते हुए उस पर कुल्हाड़ी चला दी... उस आदमी का हाथ जिस्म से अलग हो कर उखड़ चुका था...

विशु - (चिल्लाते हुआ) दीदी आप घर चले जाओ....
बाबा - हाँ बेटी घर के भीतर जाओ और दरवाजा अंदर से बंद करलेना....
विशु सिर्फ तेरह साल का था... पर उसके हाथ में खुन से सनी कुल्हाड़ी उसको और भी खतरनाक बना दिया था... वह जो आदमी मुझे खिंच रहा था.... वह नीचे पड़े छटपटा रहा था...
विशु - दीदी (चिल्लाया)
मैं होश में आयी और अपने घर की तरफ भागने लगी.... विशु और बाबा उनको रोके हुए थे... मैं घर में घुस कर दरवाजा बंद कर दिया.... पर कुछ ही समय में दरवाजा टूट कर गीर गया.... राजा साहब के कुछ लोग मुझे घर से खिंच कर ले जा रहे थे.... मैं चिल्लायी - सुर मामा, धीरू भैया, रमेश चाचा, सुनाम काका, कोई आओ मुझे बचाओ...
पर कोई नहीं आया... वह लोग मुझे खिंचते हुए ले जा रहे थे... मैंने बाबा को बुलाया.. बाबा मुझे बचाओ....
पर बाबा के जिस्म में कोई हरकत नहीं हुआ.... मैंने विशु चिल्लाया... विशु पेट के बल नीचे जमीन पर गिरा हुआ था... एक आदमी ने उसे अपने पैरों के नीचे दबा कर रखा था.... मैंने फ़िर से चिल्लाया विशु....
इस बार विशु बड़ी मुश्किल से उठा... पर उस आदमी ने उसके बालों को पकड़ कर खींच कर बिठा दिआ... मगर विशु हार नहीं मानी... किसी तरह उस आदमी के हाथ को लेकर अपने मुहँ में काट लिया... उस आदमी के हाथ से विशु छुट गया और रास्ते में पड़े कुछ पत्थरों से उन लोगों पर हमला बोल दिया... पर वह नन्हा सा जान कब तक लड़ पाता... एक आदमी ने लाठी चलाई सीधे विशु के सिर पर लगा और विशु वहीं गिर गया....
मैं फिर से चिल्लाने लगी.. काका, मामा, चाचा... कोई तो आओ मेरे विशु को बचाओ.. पर कोई नहीं आया..
और वह सारे लोग मुझे जीप में डाल कर ले जाने लगे... मैं रास्ते में चिल्लाती रही... हर पहचान वाले से मदत को गुहार लगाती रही पर कोई नहीं आया... वह दरिंदे मुझे रंग महल ले गए...
यह कहते ही वैदेही की आवाज़ भर्रा गई.... गहरी गहरी सांसे लेने लगी...
प्रतिभा यह सुन कर शुन हो गई, उसके मुहँ से कोई बोल नहीं निकल रही थी बस एक टक देखे जा रही थी l फिर वैदेही ने कहना शुरू किया - मेरे दोनों हाथ बांध दिए गए थे... और मुहँ में कपड़ा ठूँस कर मेरे मुहं पर टेप चिपका दिआ था... उन चांडालो ने... मुझे उसी हालत में लेकर रंग महल के बैठक में फेंक कर चल दिए...
तभी एक औरत मेरे पास घिसटते हुए आ कर गिरी..
मैं उसे पहचानने की कोशिश कर रही थी...
राजा साहब - देख कमीनी देख... इसे तु हमारे ऐस गाह से भगा दिआ था..... तो क्या समझी थी हम उसे ढूंढ नहीं पाएंगे... आज तेरे सामने तेरी लौंडीया की नथ उतरेगी...
इतना सुन कर मैं समझने की कोशिश कर रही थी...
वह औरत - राजा साहब इसे छोड़ दीजिए.... इसकी कसूर क्या है बताइए....
राजा - इसका कसूर यह है कि यह पाइकराय वंश के वृक्ष की डाली है जिसे आज टूटना है..
औरत - यह कैसे पाइकराय परिवार की हुई.... यह आपकी वंश की बीज है... यह आपकी बेटी है...
बड़े राजा - चुप कर कुत्तीआ... हमारे पिताजी ने कसम खाई थी... के पाइकराय वंश के औरतों को पीढ़ी दर पीढ़ी रंडी बना कर रखा जाएगा.... इसलिए पाइकराय खानदान के औरतों को क्षेत्रपाल के मर्द चोदेंगे और पैदा होने वाली खानदान के वृक्ष की केवल ल़डकियों को जिंदा रखा जाएगा और लड़कों को मार दिया जाएगा.... देखा नहीं था तूने कैसे तेरी कोख से जनने वाले लड़के को मगरमच्छ का निवाला बना दिया था... आज यह चुदेगी और इससे पैदा होने वाली लड़कियां भी इस रंग महल की रंडी बनेंगी...
इतना सुनते ही मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे....
मुझे समझ में आ गया था कि वह जो मिन्नते कर रही है वह मुझे जनम देने वाली माँ है.... यह औरत मेरी माँ है... अब धीरे धीरे मुझे बचपन की वह सारी बातेँ याद आने लगी... पर मैं हैरान थी... इन दरिंदों ने मुझे ढूंढ कैसे निकाला....
माँ - नहीं राजा साहब यह गलत है... पाप है... अपने खुन के साथ ऐसा अनर्थ ना कीजिए.... यह आपके ही वंश का अंश है... इसे बक्श दीजिए...
राजा और उसका बाप हंसने लगे, उनकी शैतानी हंसी से रंग महल भी थर्रा गया l अब माँ से बर्दाश्त ना हुआ वह भाग कर दीवार में लगी एक तलवार खिंच कर राजा के सामने खड़ी हो गई
माँ - खबरदार अगर किसीने मेरी बेटी को छूने की भी कोशिश की....
राजा की हंसी और भी शैतानी हो गई, और जोर जोर से हंसने लगा
राजा - क्या कहा था तुने... हमारे वंश वृक्ष का अंश है.... हा हा हा... तो अपने ही लगाए पेड़ का फल हम ना खा कर किसी और को कैसे खाने दें... हा हा हा
माँ - ऐ... भैरव... अपने वंश का फल खाएगा तु... इसका मतलब जब रूप जवान हो जाएगी तो उसे भी अपने नीचे सुलाएगा तु...
भैरव - कमीनी रूप कि तुलना तेरी रंडी बेटी से कर रही है....
इतना कह कर भैरव माँ के तरफ बढ़ने लगा, माँ ने तलवार उठा कर भैरव सिंह पर चलाया... पर माँ कमजोर थी और वह एक राक्षस.... तलवार की वार से बच कर पुरी ताकत से माँ को लात मारी... माँ छिटक कर ऐसे गिरी के वह उठ नहीं पाई....
माँ मुझे देख कर बस इतना कहा मुझे माफ कर दे बेटी...
इतने में भैरव सिंह मुझे मेरे बालों सहित खिंचते हुए वहीं बैठक के एक बिस्तर पर गिरा दिया... फ़िर मेरे पैरों को बिस्तर की पैरों के साथ बांध दिया और फिर हाथों को भी खोल कर बिस्तर के पैरों के साथ बांध दिआ... मैं पीठ बल उस बिस्तर बंधी हुई थी....
इतने में माँ सम्भल चुकी थी... वह फिर से तलवार उठा कर अपनी अंतिम प्रयास किया...
माँ - भैरव सिंह....
पर बीच रास्ते में ही बड़े राजा उर्फ़ नागेंद्र ने रोक दिया... और मेरी माँ को पास रखे कुर्सी पर पटक कर माँ के हाथों से तलवार छिन कर माँ के कंधे में ही कुर्सी के साथ ही वही तलवार घुषेड़ दिआ... माँ अब कुर्सी से हिल नहीं पा रही थी...
फिर नागेंद्र अपने कपड़े उतारते हुए मेरे पास आया और मेरी माँ को देखते हुए बोला - अब तेरी लौंडीया कली से फुल बनेगी... तेरे ही आँखों के सामने... और इससे जो लड़की पैदा होगी वह भी हमारे नीचे सोयेगी....
माँ बुरी तरह ज़ख्मी थी उसकी आँखे पत्थरा गई थी...
नागेंद्र अब पूरी तरह से नंगा हो कर मेरे पेट के उपर बैठ कर मुझ पर चाटों पर चाटें बरसाने लगा..
कमीनी - इस घर से भाग गई थी.... अब तेरी नथ ऐसे उतरेगी की फिर कभी भाग नहीं पाएगी..
इतना कह कर मेरे सारे कपड़े फाड़ कर निकाल दिया...
मैंने जिसकी कभी कल्पना तक नहीं की थी वह मेरे साथ होने लगा... मेरे शरीर के हर कोमल हिस्से को बड़ी बेरहमी से नोचने काटने लगा... पर चिल्ला भी नहीं पा रही थी... मेरे मुहं पर टेप लगा हुआ था... फिर वह दरिंदगी हद से जा कर मेरा बलात्कार करने लगा.... मैं बेहोश हो गई... फिर बीच में जब होश आया तो मेरे ऊपर नागेंद्र नहीं भैरव सिंह था... पर मैं ज्यादा देर बर्दाश्त ना कर सकी, फिर बेहोश हो गई....
जब आँख खुली तो खुदको किसी हस्पताल में पाया... मेरी हालत इतनी खराब हो गई थी कि उन्होंने मुझे इलेक्ट्रिक शॉक दे कर मुझमें जान डाला था..
पर मैं अब जीना नहीं चाहती थी.. मैं खुद को कुछ कर देना चाहती थी.. पर हस्पताल के बेड पर मेरे हाथ बंधे थे... पास खाड़ी डॉक्टरनी को मेरी हालत व मनःस्थिति समझ में आ गई l उसने मुझसे हाथ जोड़ कर बिनती करते हुए कहा - देखो मैं जानती हूं... तुम्हारे साथ क्या हुआ है... तुम्हारा खुन बहना नहीं रुका और तुम होश में भी नहीं आई इसलिए तुम्हें इस हस्पताल लाया गया.....पर प्लीज तुम आत्महत्या मत कर लेना... अगर जिंदा और सही सलामत महल ना लौटी तो उनके कब्जे में मेरा परिवार है... वह लोग उन्हें मार डालेंगे... प्लीज....
मैं उस मजबूर डॉक्टरनी को देख कर कुछ सोचा फ़िर मैंने कहा
मैं - तो फिर एक शर्त पर...
डॉक्टरनी- मुझे तुम्हारी हर शर्त मंजूर है...
मैं - मेरे शरीर से युटेरस निकाल दीजिए...
डॉक्टरनी - क्या....
मैं - यही मेरी शर्त है...
डॉक्टरनी ने मेरा ऑपरेशन कर युटेरस निकाल दिया और दो महीने बाद जब मैं ठीक हुई तो मुझे महल ले जाया गया
अभी भी मेरे सामने कुछ अनसुलझे सवाल थे....
जिस अतीत को मैं पूरी तरह से भूल चुकी थी.. वह इस तरह मेरे सामने कैसे आया
मेरे बाबा और विशु का क्या हुआ
रंग महल में मुझे गौरी काकी मिली, क्यूंकि बचपन की बातेँ अब याद आ चुकी थी,इसलिए मैंने गौरी काकी को पहचान लिया था l मैंने गौरी काकी से मेरे अनसुलझे सवालों का जवाब मांगा
काकी - तेरी माँ की अंधी ममता तेरे लिए श्राप हो गई वैदेही....
मैं - कैसे काकी...
काकी - तु जिले में अव्वल आई... तेरी फोटो अखबार में आयी थी... वह अखबार राजा जी लेकर यहां आए थे... तेरी माँ ने अखबार में देख कर तुझे पहचान लीआ था... उसने अगर अपनी भावनाओं को रोका होता तो आज तु कहीं और होती.... पर उसकी ममता ने उसे बेबस कर दिया... एक दिन वह छुप कर तुझे देखने चली गई थी... बस राजा जी को ख़बर हो गई... उसके बाद.... (इतना कह कर काकी रोने लगी)
मैं - काकी मेरे बाबा और विशु....
काकी - उनके बारे में कुछ नहीं पता....
इतने में भैरव सिंह आया और कहा.... वह लोग जिंदा हैं... अगर तूने कुछ भी चालाकी की तो दोनों की बोटियां लकड़बग्घों को खिला दी जाएगी...
बस मैं चुप रह गई... फिर आठ सालों का नर्क... जब आठ सालों तक मुझसे कोई बच्चा नहीं हुआ तो डॉक्टरनी को बुलाया गया... शुक्र था कि वह डॉक्टरनी ही थी.. वह चेक करने के बाद मुझे बाँझ कहा...
जिससे भैरव सिंह के अहं को ठेस पहुंचा.... इतने दिनों के नर्क यातना के पहली बार मुझे एक तृप्ति भरा आनंद मिला...
पर चूंकि उस वंश की शपथ अब किसी काम की नहीं थी इसलिए भैरव सिंह ने मुझे महल के बाहर निकलने का फैसला किया पर वह ऐसे तो नहीं छोड़ सकता था इसलिए एक दिन महल में में मुझे नंगा कर दिया गया और चुड़ैल कह कर मुझे बीच गांव में भगाया गया...... पहले मुझे पत्थर भैरव सिंह के लोग मारना शुरू किया फ़िर जब गाँव वालों ने भी वही किया तो भैरव सिंह के लोग वहाँ से चले गए, पर गांव के लोग मुझे दौड़ा रहे थे... मैं एकदम से थक कर एक पेड़ के पीछे छिपने कोशिश की... पर लोग मुझे पत्थर मारते रहे....
ऐसे वक्त पर एक नौजवान पहुंचा उसने एक चादर से मुझे ढक दिया... फिर चिल्लाया क्यूँ मार रहे हो...
एक - यह चुड़ैल है.. इसलिए....
नौजवान - किसने कहा...
दूसरा - राजा साहब के लोगों ने....
नौजवान - कहाँ है वे लोग...
गांव वाले आपस में बात करने लगे
नौजवान - उन्होंने झूट कह कर तुम्हारे ही हाथों से किसीकी हत्या करा रहे थे....
गांव वालों को बात अब समझ में आ गई थी
नौजवान - अब जाओ यहाँ से....
सब गांव वाले हम दोनों को छोड़ कर चले गए
वह नौजवान मुझे अपने साथ ले जाने लगा...
फिर एक घर के भीतर ले गया.... उस घर में आ कर... मैं हैरान रह गई... मैं उस नौजवान को गौर से देखने लगी.. विशु मेरे मुहँ से निकला...
अचानक वैदेही के कहानी को विराम देते हुए वैदेही की मोबाइल बजने लगी l अपने अतीत से निकल कर वैदेही वर्तमान में आई और फ़ोन उठाई,
वैदेही - ह.. हे... हैलो..
फोन - xxxxxxxxxx
वैदेही - ठीक है काकी... मैं थोड़ी देर बाद निकलुंगी.... और सुबह तक पहुंच जाउंगी...
इधर वैदेही फोन पर बातेँ कर रही थी उधर प्रतिभा पश्चिम आकाश में डूब रहे सूरज को देखने लगी l सफेद बादलों के पीछे सूरज बहुत लाल दिखने लगी है... सूरज की रौशनी से बादलों के धार भी लाल रंग से रंग गई है, जिसके प्रभाव से दया नदी का पानी लाल दिख रहा है l प्रतिभा को लगा आज दया नदी भी वैदेही के यादों के ज़ख्मों से निकले लहू से लाल हो गया है l
वैदेही - अच्छा मासी मेरी कहानी अधूरी रह गई.... फिर कभी मौका मिला तो...
प्रतिभा - कितना झूट कहा था तुमने.... के तु सगी नहीं है प्रताप के... जब कि तु तो सगी से भी बढ़ कर है...
वैदेही - ऐसी बात नहीं है मासी...
प्रतिभा - नहीं... अब मुझे समझ में आ रहा है... तुने क्यूँ कहा था माँ बेटी का रिश्ता तेरे लिए एक श्राप है.... और देख तेरे दुख से दया नदी भी लाल हो गई है...
वैदेही चुप रही
प्रतिभा - अच्छा, तेरे फोन से लगा... तु अब जो भी बस मिले उसमें गांव चली जाएगी.....
वैदेही - जी मासी...
प्रतिभा - चल तुझे बस स्टैंड पर छोड़ देती हूँ.....
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शाम का सुरज ढ़ल चुका है, अंधेरा निकल रहा है फिर भी पश्चिमी आकाश में लाली दिख रही है जो धीरे धीरे मद्धिम हो रही है l
होटल ब्लू इन, कमरा नंबर 504,
कमरे में मॉकटेल पार्टी अपने पुरे रंग में है l एक सम्बलपुरी धुन में सभी थिरक रहे हैं और सबकी हाथों में अपनी अपनी पसंदीदा कुल ड्रिंक की बॉटल है l सब नाचते नाचते थकने लगे तो उनके बीच से रॉकी निकल कर म्युजिक सिस्टम के पास पहुंचकर म्युजिक को बंद कर देता है l म्युजिक के बंद होते ही नाच नाच कर जो हांफने लगे थे सब अपनी अपनी जगह पर बैठ जाते हैं l
सब बैठते ही रॉकी फ़िर से व्हाइट बोर्ड को सबके सामने लाता है और उसमे लिखता है मिशन नंदिनी l
रॉकी - मित्रों, मेरे प्यारे चड्डी बड्डी कमीनों, मेरे टेढ़े मेड़े येड़े दोस्तों.... आज हम सब फ़िर से इकट्ठे हुए हैं... मिशन नंदिनी पर अगले कदम उठाए जाने की चर्चा के लिए.... जैसा कि हमने पिछले हफ्ते प्लान किया था.. अब उससे आगे निकलने का वक्त आ गया है.... क्यूँ भाई लोग....
आशीष - ऑए ठंड रख ठंड... पहला कदम कितना सही गया उसका भी चर्चा कर लें...
सुशील - उस पर चर्चा क्यूँ... वह काम तो हो चुका है ना... क्यूँ रवि..
रवि - हाँ मेरी गर्लफ्रेंड नंदिनी की छटी गैंग से दोस्ती भी कर ली है.....
राजु - तो पहला कदम क़ामयाब रहा.... पर यह कोई बड़ी बात नहीं.. क्यूँ की अब सही में प्लान बनाया जाएगा और उस पर अमल होगा... और अंत में.... रिजल्ट पर स्कोर भी डिक्लेर होगा...
रॉकी - हाँ तो पहले.... नंदिनी की दोस्तों पर और उनके प्लान्स पर चर्चा कर लेते हैं...
राजु - हाँ तो रवि... चल बता... अब तक हमें क्या पता चला है और हमारे काम की क्या इंफॉर्मेशन है ....
रवि - देखो उनकी दोस्ती हुए अभी तीन चार दिन ही हुए हैं.... पर जितना मालुम हुआ उसको हम रॉकी के टेढ़े मेढ़े यडे ग्रुप वालों के डिस्कस व एनालिसिस करने के बाद..... इस नतीजे पर पहुंचे कि नंदिनी.... जो शायद बीस वर्ष की होने वाली है.... वह अपनी जिंदगी में बहुत अकेली रही है... भुवनेश्वर आने के बाद ही उसके जिंदगी में दोस्त अब आए हैं... वह पहले कभी ज्यादा बात नहीं करती थी पर अब अपने दोस्तों से बहुत बातेँ करती है.... इतना करती है कि सुनने वाला कंफ्यूज हो जाए कि नंदिनी सांस कब ले रही है.....
आशीष - रॉकी भाई मेरे... मैं जितना समझा हूँ.... तु थोड़ी कोशिश करेगा तो.... वह लड़की जो तेरे ख्वाबों ख़यालों में है बहुत जल्द
तेरी बाहों में होगी... और वह शिद्दत से तुझे चाहेगी...
रॉकी - यह तु कैसे बता सकता है....
आशीष - देख उसकी जिंदगी में बहुत खाली पन है जो वह.... अपने दोस्तों के जरिए भरना चाहती है.... उसे नए और बहुत अच्छे दोस्त चाहिए....
सुशील - हाँ.... अब उसकी ल़डकियों वाली दोस्तों का कोटा.... फुल हो चुका है... अब लड़के उससे कोई दोस्ती करने से तो रहे...
राजु - और मैं भी कहूंगा कि तु भी दोस्ती की पहल मत कर...
रॉकी - अबे.... अगर पहल नहीं करूंगा तो कोई और उड़ा ले जाएगा....
आशीष - अबे ढक्कन.... तुझे हमने पहले दिन से ही बता दिया था.... की कंपटीशन में तु अकेला है....
रॉकी - हाँ... अच्छा अच्छा... अरे यार वह एक्साइटमेंट में... भूल गया था...
रवि - देख उसके जिंदगी के खाली पन को दूर करने के लिए.... उसे जितने दोस्त चाहिए थे मिल गए.... अब उसे एक हीरो की ज़रूरत है.... और इस उम्र में जाहिर है हर लड़की का बॉयफ्रेंड ही उसका हीरो होता है....
राजु - हाँ बाबा जी ने सौ फीसद सही कहा है....
सब हंस देते हैं तो रवि का मुहँ खट्टा हो जाता है l
राजु - जस्ट किडींग.... दिल पे मत ले यार...
रवि - ठीक है....
रॉकी - ओके गयज.... लेटस प्रोसीड...
सुशील - हाँ राजु ने सही कहा.... अब नंदिनी को एक हीरो की जरूरत है...
रॉकी - अच्छा हीरो बनने के लिए मुझे क्या करना होगा.... चड्डी पहन कर आसमान में उड़ना होगा.... या फ़िर दीवारों पर मकड़ी की तरह चलना होगा या वीर सिंह का सिर फोड़ना होगा........
राजु - तब तो हो गई रुप तेरी....
रॉकी - क्या मतलब.......
आशीष - अबे हीरो नहीं तु विलेन बन जाएगा.....
रॉकी - तो मैं क्या करूं...
रवि - देख गुरुवार को दीप्ति लोगों की केमिस्ट्री प्रैक्टिकल क्लास है.... और उस दिन केमिस्ट्री लैब में आग लग जाएगी....
रॉकी - वाव क्या बात है.... नंदिनी आग के बीचों-बीच फंसी होगी.... और मैं जा कर उसे बचा लूँगा... तब तो मैं नंदिनी के ही नहीं उसके भाई के नजर में भी.... हीरो बन जाऊँगा...
रवि - अबे ओ शेख चिल्ली जरा दम ले.... उस आग में नंदिनी नहीं.... नंदिनी की दोस्त बनानी होगी...
सब एक साथ - "क्या"
रवि - हाँ मैंने पता किया है.... बनानी का उस दिन बर्थ डे है.... और सारी लड़कियाँ उस दिन बनानी के साथ थोड़ा एटीट्यूड दिखाएंगी..... तो बनानी उस दिन थोड़ी उखड़ी रहेगी.... और उस दिन उसके कपड़े पर दीप्ति कुछ जेली डाल देगी जिसे साफ़ करने बनानी लैब के वश रूम जायेगी... जब बनानी वश रूम में होगी, सारी लड़कियाँ उसे बाहर आने पर बर्थ डे विश करेंगी......ऐसा उनका प्लान है... पर यहीँ पर हम भांजी मार लेंगे.... लैब में आग लगेगी, सारी लड़कियाँ बाहर को भागेंगी और उस वक़्त अपना चिकना जा कर पर उस बनानी को बचा लेना..... बस
सुशील - बस नहीं कार.... अबे भोंदु यहाँ पर कुछ लॉजिक् मिसींग है....
रॉकी - मसलन....
सुशील - प्लान की डिटेल्स बाद में लेंगे.... पहला मिसींग लॉजिक्.... अगर बनानी आग में घिरी होगी तो उसे बचाने की कोशिश नंदिनी भी कर सकती है.... जरूरी तो नहीं कि वह भी दूसरों की तरह आग से डर जाए.... और दुसरा मिसींग लॉजिक्... अपना चिकना रॉकी उसी टाइम पर होगा वह भी कॉमर्स स्ट्रीम के बजाय साइंस के स्ट्रीम में वह भी केमिकल लैब के बाहर....
रॉकी - वाह क्या सोचा है...
अब बोल बे मेटिंग प्लानर
रवि - उसका भी प्लान है...
आशिष - तो उगल ना बे...
रवि - सुनो...चूँकि गुरुवार को बनानी का बर्थडे है.... तो दीप्ति और नंदिनी दोनों ने प्लान बनाया है कि बुधवार को बनानी के लिए ऑनलाइन ब्रेसलेट खरीदने की....... जाहिर सी बात है डेलिवरी की तो वह अपने हाथ है.... चूंकि प्लान के तहत गिफ्ट दोपहर दो बजे कॉलेज पहुँचेगी.... तो रिसीव करने नंदिनी को लैब से बाहर जाना ही होगा.... क्यूँकी अपना चिकना जो हीरोइजम दिखाएगा और उसका हीरोइजम टॉक ऑफ द कॉलेज होगा, तो वह नंदिनी के कानों में पड़नी चाहिए पर नंदिनी को दिखनी नहीं चाहिए....
सुशील - ह्म्म्म्म प्लान तो जबरदस्त है.... ठीक है चलो दूसरे मिसींग लॉजिक् पर अपना ज्ञान का पिटारा खोल......
रवि - इसका भी सोल्यूशन है... लैब का जो अटेंडेंट है मनोज, वह अपना यार है.... उसने अपना रॉकी से उधार लिया था जो लौटाने के लिए रॉकी को पौने दो बजे फ़ोन कर बुलाएगा.... और रॉकी उससे पैसे लेने वहाँ दो बजे तक पहुंच जाएगा....
सुशील - वाह... तू तो सच में कितना बड़ा कमीना निकला बे... तुझे तो शेरलॉक होम्स होना चाहिए बे....
रॉकी - ह्म्म्म्म
आशीष - बढ़िया... पर आग लगेगी कैसे... मेरा मतलब लगायेगा कौन... और आग लगने के वजह से लैब अटेंडेंट मनोज पर डीसीप्लिनारी एक्शन भी हो सकता है....
रवि - हाँ हो सकता है.... इसलिए वह पांच लाख रुपये लेगा....
राजु - क्यूँ रॉकी.... अपनी जेब ढीली करने के लिए तैयार हो जा....
रॉकी - पैसों की चिंता मत करो.... बस प्लान एक्जीक्यूट करो....
आशीष - पर रवि अगर आग के बीचों-बीच घुस कर बनानी को बचाना है... तो अपना हीरो भी तो ज़ख्मी हो सकता है.....
रवि - हाँ मैंने... इसके बारे में भी सोच रखा है.... रॉकी के पूरे जिस्म और अपने कपड़ों पर में अनबर्न व अनफ्लेमेबल जेली लगाएगा... जब वह लिफ्ट से केमिकल लैब पहुँचेगा...
और उसके शर्ट में जो सोल्यूशन लगा होगा उससे पूरे डेढ़ मिनिट तक आग तो जलेगी पर त्वचा तक नहीं पहुंचेगी....
उतने समय में अपना मनोज फायर एस्टींगुइसर की मदत से आग बुझा देगा.... इसलिए रॉकी बिंदास अंदर जाएगा.... और बिंदास बनानी को बचा कर पास के नर्सिंग होम ले जाएगा... और इस तरह से तु नंदिनी और उसके ग्रुप की नज़र में उनके प्यारी दोस्त को बचाने वाला हीरो होगा...
यह सुन कर सभी ताली बजाते हैं l

रॉकी - अबे मैं तो तुझे हरामी कमीना समझ रहा था बे.... पर तु तो एकदम देव मानुष निकला बे..
रवि - साले कमीने लाइन पे आ.... नहीं तो प्लान कैंसिल....
रॉकी - नाराज मत हो... मेरी जान... आई लव यू रे...
रवि - ठीक है... मेरे को कमीना ही रहने दे...
सुशील - रवि प्लान वाकई बहुत जबरदस्त है... पर एक्जिक्युट कैसे करें...
रवि - देख लंच ब्रेक के बाद उनका प्रैक्टिकल है... तुम लोगों को लॉजिस्टिक्स पर ध्यान देना होगा.... वजह मैंने बताया है बाकी प्लान पर अमल करो लैबोरेट्री के पास पहुंचोगे तो जरूर मगर लिफ्ट के जरिए.... अपनी गाड़ी से कितनी जल्दी अपने पहचान वाले नर्सिंग होम में दाखिला कराओगे.....
क्यूंकि रिपोर्ट उसी आधार पर बनाने हैं और कुछ दिन बनानी को उस नर्सिंग होम में... ट्रीट देनी है... ताकि उससे मिलने बीच बीच में नंदिनी आती रहे..
जैसे ही रवि की बात खतम हुई वैसे रॉकी उठ कर रवि को गले लगा लेता है l सब दोस्त रवि को शाबासी देते हैं l
रॉकी (रवि के दोनों हाथों को पकड़ कर) यार मैं तेरी और तेरी वाली का जिंदगी भर आभारी रहूँगा....
सो दोस्तों मैं लॉजिस्टिक्स पर ध्यान देता हूँ.... और तुम लोग सब कंटाक्ट में रहना... लेट फिंगर क्रॉस एंड होप फॉर बेस्ट.... अब इस कमरे में अगले हफ्ते मुलाकात होगी.........
गुड़ नाइट यारों
Nice and awesome update...
 
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Kala Nag

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Nice and awesome update...
आपका बहुत बहुत धन्यबाद
आपका कमेंट मेरा उत्साह बढ़ाए जा रहा है..
 
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Jaguaar

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👉ग्यारहवाँ अपडेट
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हाँ मेरे जीवन में दुखों का आना बाकी था....
कहते कहते वैदेही खामोश हो गई l प्रतिभा को उसके आँखों के कोने में चमकते आँसू दिखने लगे, फिर अचानक वैदेही अपनी आँखों को पोछते हुए कहा - माँ को जब नवें महीने का दर्द शुरू हुआ बाबा अपने काम से बाहर गए थे.... माँ का दर्द बढ़ रहा था.... घर में मैं अकेली... मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था.... क्या करूँ... फ़िर भी माँ को नीचे दीवार के सहारे बिठा कर... मैं बाहर निकली और चिल्लायी... मौसी, काकी, मामी, भाभी.... कोई तो आओ मेरी माँ को दर्द हो रहा है....
मोहल्ले के सारी औरतें भाग कर आयी.... मेरी माँ के पास... सबने किसी तरह से बैल गाड़ी का इंतज़ाम किया और माँ को हस्पताल ले गए.... पर उस हस्पताल में कोई डॉक्टर नहीं था... एक कंपाउंडर और एक RMP थे..
किसी तरह बाबा को ख़बर किया गया था.... बाबा भी आ पहुंचे थे.... पर ख़बर भेजने के बावज़ूद डॉक्टर नहीं आया था.... गांव के कुछ धाई मिलकर बच्चा पैदा होने में मदत की... पर माँ की हालत बहुत खराब हो गई थी.... बच्चा पैदा हुआ.... उसके बाद डॉक्टर पहुंच भी गया था.... पर उसका भी क्या दोष... गांव में वह हर किसीके पास जाता था... इसलिए समय पर पहुंच ना पाया... बच्चा जनते वक़्त धाईयों के लापरवाही से कोई नस कट गया था... इसलिए माँ को बचाना नामुमकिन था... ऐसा कहा था डॉक्टर ने..
बाबुजी का मन बहुत ख़राब हो गया...आस पास के सभी औरतें रोना शुरू कर दिया था... पर मुझे समझ में नहीं आ रहा था.... की मेरा भाई आया है... तो सब रो क्यूँ रहे हैं.. इतने में एक औरत बाहर आ कर मुझे बुलाया... मैं उसके साथ अंदर गई... माँ बहुत कमजोर दिख रही थी... माँ ने इशारे से पास बुलाया.... और बच्चे को दिखाया..... और कहा - देख तेरा भाई आया है... क्या नाम रखेगी...
मैंने कहा - माँ वो कल स्कुल में ना मास्टर जी पढ़ा रहे थे... विश्व के प्रतापी राजाओं में खारबेल जी का नाम आता है.... तो क्यूँ ना हम भाई को विश्व प्रताप कहें.... माँ ने बड़ी ममता से मेरे चेहरे पर हाथ फेरा और कहा वाह... फिर बच्चे को अपने हाथ में लेकर पुकारा विश्व प्रताप हाँ आज से तेरा नाम विश्व प्रताप है.... और यह तेरी दीदी है... आज से यह तेरा और तु इसका खयाल रखना...
जा बेटी जा अपने बाबा को बुला ला.... मैं बाहर गई और बाबा से कहा - बाबा माँ बुला रही है..
बाबा और मैं अंदर आए तो माँ ने उन्हें कहा - अजी जानते हैं... हमारे मुन्ना का नामकरण हो गया... वैदेही ने नाम दिआ है "विश्व प्रताप" अब मेरे दोनों बच्चे आपके हवाले...
बाबा और सम्भाल ना पाए और रो पड़े - सरला...
माँ - नहीं जी... आप मुझे ऐसे विदा ना करें... मुझे वचन दीजिए... मेरे बच्चों को आप डॉक्टर बनाओगे.... ताकि कल को किसीकी यहां मेरी तरह हालत ना हो.... मैं तो भाग्यवान हूँ... माँ बनी और सुहागन जा रही हूँ...
बाबा - सरला...
माँ - बस... (माँ ने इतना कह कर बाबा को रोक दिया) वैदेही... अपने भाई का खयाल रखेगी ना...
मैंने अपना सर हिला कर हाँ कहा l फिर माँ खामोश हो गई... मैं देख रही थी सब रो रहे थे... सिर्फ मैं और मेरे भाई को छोड़ कर... क्यूंकि तब किसीका मरना मुझे मालुम नहीं था....और मेरा विशु अभी अभी तो दुनिया में आया है...

पर कुछ दीन दिनो बाद हाँ कुछ दिनों बाद माँ की कमी मुझे महसूस हुई l मैंने बाबा से पूछा तो बाबा ने मुझे माँ की तस्वीर के सामने खड़ा कर कहा - बेटी तेरी माँ भगवान के पास गई है.... और तुझे जिम्मेदारी दे कर गई के तु अपने भाई का खयाल रखेगी.... जब तु अच्छे से खयाल रख कर अपने भाई को क़ाबिल बना देगी... तब तेरी माँ आएगी.... बोल अपनी माँ को दिए वचन निभाएगी ना..
मैंने अपना सर हिला कर हाँ ज़वाब दिआ...
उसके बाद मैं विशु का खयाल रखने लगी...
अपना स्कुल व विशु दोनों के बीच समय को बैलेंस कर बाबा के साथ जी रही थी... फिर विशु का स्कुल जाने का वक्त आ गया... एडमिशन के वक्त जब आचार्य ने नाम पुछा मैंने बड़े गर्व से कहा "विश्व प्रताप महापात्र"...
उसके बाद अपनी पढ़ाई के साथ मैं विशु की पढ़ाई पर भी ध्यान देने लगी... इसी तरह विशु सातवीं में पहुंच गया और मैं बारहवीं में हम दोनों की बोर्ड परीक्षा हुई ...
मेरी बारहवीं की बोर्ड और विशु की NRTS बोर्ड... हम दोनों ने पुरे यश पुर को चौका दिआ था... हम दोनों भाई बहन अपने अपने कक्षा के परीक्षा में ज़िले में प्रथम हुए थे.....
सब हमें और बाबा को बधाईयाँ दे रहे थे... गांव में ज्यादा कोई सोचते नहीं थे... इसलिए सब मेरी शादी के लिए प्रस्ताव ले कर बाबा के पास आते थे.... और बाबा बड़ी विनम्रता से सारे प्रस्तावों को मना कर देते थे..
एक दिन पड़ोस के मौसी ने इस बारे में पूछा तो बाबा ने कहा वैदेही पहले डॉक्टर बनेगी.... मैंने उसके माँ को वचन दिया था... अब पुरा करने का वक्त आ गया है....
मैं यह सुन कर बहुत खुश हुई... छुट्टियां चल रही थी... हम भाई बहन गांव में खूब मस्तियाँ कर रहे थे.... एक दिन डाक में एक पत्र आया... बाबा देख कर खुश हो गए....
बोले वैदेही...
मैं - जी बाबा...
बाबा - यह देख बेटी... तेरी डॉक्टरी एंट्रेंस का कॉल लेटर आ गाय...
हम सात दिन बाद कटक जाएंगे...
मैं - खुशी से बाबा को गले लगाया और उछालते कुदते विशु को अपने हाथों से उठा कर झूमने लगी...
विशु - दीदी मुझे उतरो ना... मेरा सर चकरा रहा है... प्लीज उतारो ना...
मैं - (विशु को उतार कर) विशु मेरे भाई... मैं अब डॉक्टर बन जाऊँगी...
मैं और विशु मस्ती में नाचने लगे.... और बाबा हमे देख कर खुश हो रहे थे...
सात दिन बाद बाबा ने एक टेंपो किया था..... यश पुर जाने के लिए... टेंपो पर हम अपना समान रखने के बाद सब आस पास पड़ोस वालों से जाने की इजाजत मांगने लगे... पड़ोस के सभी पहचान वाले हमे हिदायत दे कर विदा करने आए थे...
हमारा टेंपो गली से बाहर निकला ही था कि चार चार जीप से राजा साहब के लोग पहुंचे और टेंपो को रोक कर ड्राइवर को धक्का दिया... ड्राइवर गाड़ी छोड़ कर भाग गया... उनमे से एक आदमी मुझसे बोला - चल राजा साहब आज तेरी नथ उतारेंगे..
बाबा - क्या बकवास कर रहे हो...
आदमी - तु चुप बे बुड्ढे...
इतना कह कर उसने बाबा को लात मारी और कुछ लोग विशु को बाहर खिंच कर फ़ेंक दिए.... विशु जा कर एक लकड़ी के गट्ठे पर गिरा... जिस आदमी ने विशु को उठा कर फेंका था उसी ने मेरे हाथ पकड़ कर मुझे खिंचने लगा... ठीक उसी वक़्त पता नहीं कहाँ से विशु के हाथ में एक कुल्हाड़ी आ गई थी... राजा साहब के लोग इस बात से अनजान थे... वह जो आदमी मेरा हाथ खिंच रहा था... विशु कूदते हुए उस पर कुल्हाड़ी चला दी... उस आदमी का हाथ जिस्म से अलग हो कर उखड़ चुका था...

विशु - (चिल्लाते हुआ) दीदी आप घर चले जाओ....
बाबा - हाँ बेटी घर के भीतर जाओ और दरवाजा अंदर से बंद करलेना....
विशु सिर्फ तेरह साल का था... पर उसके हाथ में खुन से सनी कुल्हाड़ी उसको और भी खतरनाक बना दिया था... वह जो आदमी मुझे खिंच रहा था.... वह नीचे पड़े छटपटा रहा था...
विशु - दीदी (चिल्लाया)
मैं होश में आयी और अपने घर की तरफ भागने लगी.... विशु और बाबा उनको रोके हुए थे... मैं घर में घुस कर दरवाजा बंद कर दिया.... पर कुछ ही समय में दरवाजा टूट कर गीर गया.... राजा साहब के कुछ लोग मुझे घर से खिंच कर ले जा रहे थे.... मैं चिल्लायी - सुर मामा, धीरू भैया, रमेश चाचा, सुनाम काका, कोई आओ मुझे बचाओ...
पर कोई नहीं आया... वह लोग मुझे खिंचते हुए ले जा रहे थे... मैंने बाबा को बुलाया.. बाबा मुझे बचाओ....
पर बाबा के जिस्म में कोई हरकत नहीं हुआ.... मैंने विशु चिल्लाया... विशु पेट के बल नीचे जमीन पर गिरा हुआ था... एक आदमी ने उसे अपने पैरों के नीचे दबा कर रखा था.... मैंने फ़िर से चिल्लाया विशु....
इस बार विशु बड़ी मुश्किल से उठा... पर उस आदमी ने उसके बालों को पकड़ कर खींच कर बिठा दिआ... मगर विशु हार नहीं मानी... किसी तरह उस आदमी के हाथ को लेकर अपने मुहँ में काट लिया... उस आदमी के हाथ से विशु छुट गया और रास्ते में पड़े कुछ पत्थरों से उन लोगों पर हमला बोल दिया... पर वह नन्हा सा जान कब तक लड़ पाता... एक आदमी ने लाठी चलाई सीधे विशु के सिर पर लगा और विशु वहीं गिर गया....
मैं फिर से चिल्लाने लगी.. काका, मामा, चाचा... कोई तो आओ मेरे विशु को बचाओ.. पर कोई नहीं आया..
और वह सारे लोग मुझे जीप में डाल कर ले जाने लगे... मैं रास्ते में चिल्लाती रही... हर पहचान वाले से मदत को गुहार लगाती रही पर कोई नहीं आया... वह दरिंदे मुझे रंग महल ले गए...
यह कहते ही वैदेही की आवाज़ भर्रा गई.... गहरी गहरी सांसे लेने लगी...
प्रतिभा यह सुन कर शुन हो गई, उसके मुहँ से कोई बोल नहीं निकल रही थी बस एक टक देखे जा रही थी l फिर वैदेही ने कहना शुरू किया - मेरे दोनों हाथ बांध दिए गए थे... और मुहँ में कपड़ा ठूँस कर मेरे मुहं पर टेप चिपका दिआ था... उन चांडालो ने... मुझे उसी हालत में लेकर रंग महल के बैठक में फेंक कर चल दिए...
तभी एक औरत मेरे पास घिसटते हुए आ कर गिरी..
मैं उसे पहचानने की कोशिश कर रही थी...
राजा साहब - देख कमीनी देख... इसे तु हमारे ऐस गाह से भगा दिआ था..... तो क्या समझी थी हम उसे ढूंढ नहीं पाएंगे... आज तेरे सामने तेरी लौंडीया की नथ उतरेगी...
इतना सुन कर मैं समझने की कोशिश कर रही थी...
वह औरत - राजा साहब इसे छोड़ दीजिए.... इसकी कसूर क्या है बताइए....
राजा - इसका कसूर यह है कि यह पाइकराय वंश के वृक्ष की डाली है जिसे आज टूटना है..
औरत - यह कैसे पाइकराय परिवार की हुई.... यह आपकी वंश की बीज है... यह आपकी बेटी है...
बड़े राजा - चुप कर कुत्तीआ... हमारे पिताजी ने कसम खाई थी... के पाइकराय वंश के औरतों को पीढ़ी दर पीढ़ी रंडी बना कर रखा जाएगा.... इसलिए पाइकराय खानदान के औरतों को क्षेत्रपाल के मर्द चोदेंगे और पैदा होने वाली खानदान के वृक्ष की केवल ल़डकियों को जिंदा रखा जाएगा और लड़कों को मार दिया जाएगा.... देखा नहीं था तूने कैसे तेरी कोख से जनने वाले लड़के को मगरमच्छ का निवाला बना दिया था... आज यह चुदेगी और इससे पैदा होने वाली लड़कियां भी इस रंग महल की रंडी बनेंगी...
इतना सुनते ही मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे....
मुझे समझ में आ गया था कि वह जो मिन्नते कर रही है वह मुझे जनम देने वाली माँ है.... यह औरत मेरी माँ है... अब धीरे धीरे मुझे बचपन की वह सारी बातेँ याद आने लगी... पर मैं हैरान थी... इन दरिंदों ने मुझे ढूंढ कैसे निकाला....
माँ - नहीं राजा साहब यह गलत है... पाप है... अपने खुन के साथ ऐसा अनर्थ ना कीजिए.... यह आपके ही वंश का अंश है... इसे बक्श दीजिए...
राजा और उसका बाप हंसने लगे, उनकी शैतानी हंसी से रंग महल भी थर्रा गया l अब माँ से बर्दाश्त ना हुआ वह भाग कर दीवार में लगी एक तलवार खिंच कर राजा के सामने खड़ी हो गई
माँ - खबरदार अगर किसीने मेरी बेटी को छूने की भी कोशिश की....
राजा की हंसी और भी शैतानी हो गई, और जोर जोर से हंसने लगा
राजा - क्या कहा था तुने... हमारे वंश वृक्ष का अंश है.... हा हा हा... तो अपने ही लगाए पेड़ का फल हम ना खा कर किसी और को कैसे खाने दें... हा हा हा
माँ - ऐ... भैरव... अपने वंश का फल खाएगा तु... इसका मतलब जब रूप जवान हो जाएगी तो उसे भी अपने नीचे सुलाएगा तु...
भैरव - कमीनी रूप कि तुलना तेरी रंडी बेटी से कर रही है....
इतना कह कर भैरव माँ के तरफ बढ़ने लगा, माँ ने तलवार उठा कर भैरव सिंह पर चलाया... पर माँ कमजोर थी और वह एक राक्षस.... तलवार की वार से बच कर पुरी ताकत से माँ को लात मारी... माँ छिटक कर ऐसे गिरी के वह उठ नहीं पाई....
माँ मुझे देख कर बस इतना कहा मुझे माफ कर दे बेटी...
इतने में भैरव सिंह मुझे मेरे बालों सहित खिंचते हुए वहीं बैठक के एक बिस्तर पर गिरा दिया... फ़िर मेरे पैरों को बिस्तर की पैरों के साथ बांध दिया और फिर हाथों को भी खोल कर बिस्तर के पैरों के साथ बांध दिआ... मैं पीठ बल उस बिस्तर बंधी हुई थी....
इतने में माँ सम्भल चुकी थी... वह फिर से तलवार उठा कर अपनी अंतिम प्रयास किया...
माँ - भैरव सिंह....
पर बीच रास्ते में ही बड़े राजा उर्फ़ नागेंद्र ने रोक दिया... और मेरी माँ को पास रखे कुर्सी पर पटक कर माँ के हाथों से तलवार छिन कर माँ के कंधे में ही कुर्सी के साथ ही वही तलवार घुषेड़ दिआ... माँ अब कुर्सी से हिल नहीं पा रही थी...
फिर नागेंद्र अपने कपड़े उतारते हुए मेरे पास आया और मेरी माँ को देखते हुए बोला - अब तेरी लौंडीया कली से फुल बनेगी... तेरे ही आँखों के सामने... और इससे जो लड़की पैदा होगी वह भी हमारे नीचे सोयेगी....
माँ बुरी तरह ज़ख्मी थी उसकी आँखे पत्थरा गई थी...
नागेंद्र अब पूरी तरह से नंगा हो कर मेरे पेट के उपर बैठ कर मुझ पर चाटों पर चाटें बरसाने लगा..
कमीनी - इस घर से भाग गई थी.... अब तेरी नथ ऐसे उतरेगी की फिर कभी भाग नहीं पाएगी..
इतना कह कर मेरे सारे कपड़े फाड़ कर निकाल दिया...
मैंने जिसकी कभी कल्पना तक नहीं की थी वह मेरे साथ होने लगा... मेरे शरीर के हर कोमल हिस्से को बड़ी बेरहमी से नोचने काटने लगा... पर चिल्ला भी नहीं पा रही थी... मेरे मुहं पर टेप लगा हुआ था... फिर वह दरिंदगी हद से जा कर मेरा बलात्कार करने लगा.... मैं बेहोश हो गई... फिर बीच में जब होश आया तो मेरे ऊपर नागेंद्र नहीं भैरव सिंह था... पर मैं ज्यादा देर बर्दाश्त ना कर सकी, फिर बेहोश हो गई....
जब आँख खुली तो खुदको किसी हस्पताल में पाया... मेरी हालत इतनी खराब हो गई थी कि उन्होंने मुझे इलेक्ट्रिक शॉक दे कर मुझमें जान डाला था..
पर मैं अब जीना नहीं चाहती थी.. मैं खुद को कुछ कर देना चाहती थी.. पर हस्पताल के बेड पर मेरे हाथ बंधे थे... पास खाड़ी डॉक्टरनी को मेरी हालत व मनःस्थिति समझ में आ गई l उसने मुझसे हाथ जोड़ कर बिनती करते हुए कहा - देखो मैं जानती हूं... तुम्हारे साथ क्या हुआ है... तुम्हारा खुन बहना नहीं रुका और तुम होश में भी नहीं आई इसलिए तुम्हें इस हस्पताल लाया गया.....पर प्लीज तुम आत्महत्या मत कर लेना... अगर जिंदा और सही सलामत महल ना लौटी तो उनके कब्जे में मेरा परिवार है... वह लोग उन्हें मार डालेंगे... प्लीज....
मैं उस मजबूर डॉक्टरनी को देख कर कुछ सोचा फ़िर मैंने कहा
मैं - तो फिर एक शर्त पर...
डॉक्टरनी- मुझे तुम्हारी हर शर्त मंजूर है...
मैं - मेरे शरीर से युटेरस निकाल दीजिए...
डॉक्टरनी - क्या....
मैं - यही मेरी शर्त है...
डॉक्टरनी ने मेरा ऑपरेशन कर युटेरस निकाल दिया और दो महीने बाद जब मैं ठीक हुई तो मुझे महल ले जाया गया
अभी भी मेरे सामने कुछ अनसुलझे सवाल थे....
जिस अतीत को मैं पूरी तरह से भूल चुकी थी.. वह इस तरह मेरे सामने कैसे आया
मेरे बाबा और विशु का क्या हुआ
रंग महल में मुझे गौरी काकी मिली, क्यूंकि बचपन की बातेँ अब याद आ चुकी थी,इसलिए मैंने गौरी काकी को पहचान लिया था l मैंने गौरी काकी से मेरे अनसुलझे सवालों का जवाब मांगा
काकी - तेरी माँ की अंधी ममता तेरे लिए श्राप हो गई वैदेही....
मैं - कैसे काकी...
काकी - तु जिले में अव्वल आई... तेरी फोटो अखबार में आयी थी... वह अखबार राजा जी लेकर यहां आए थे... तेरी माँ ने अखबार में देख कर तुझे पहचान लीआ था... उसने अगर अपनी भावनाओं को रोका होता तो आज तु कहीं और होती.... पर उसकी ममता ने उसे बेबस कर दिया... एक दिन वह छुप कर तुझे देखने चली गई थी... बस राजा जी को ख़बर हो गई... उसके बाद.... (इतना कह कर काकी रोने लगी)
मैं - काकी मेरे बाबा और विशु....
काकी - उनके बारे में कुछ नहीं पता....
इतने में भैरव सिंह आया और कहा.... वह लोग जिंदा हैं... अगर तूने कुछ भी चालाकी की तो दोनों की बोटियां लकड़बग्घों को खिला दी जाएगी...
बस मैं चुप रह गई... फिर आठ सालों का नर्क... जब आठ सालों तक मुझसे कोई बच्चा नहीं हुआ तो डॉक्टरनी को बुलाया गया... शुक्र था कि वह डॉक्टरनी ही थी.. वह चेक करने के बाद मुझे बाँझ कहा...
जिससे भैरव सिंह के अहं को ठेस पहुंचा.... इतने दिनों के नर्क यातना के पहली बार मुझे एक तृप्ति भरा आनंद मिला...
पर चूंकि उस वंश की शपथ अब किसी काम की नहीं थी इसलिए भैरव सिंह ने मुझे महल के बाहर निकलने का फैसला किया पर वह ऐसे तो नहीं छोड़ सकता था इसलिए एक दिन महल में में मुझे नंगा कर दिया गया और चुड़ैल कह कर मुझे बीच गांव में भगाया गया...... पहले मुझे पत्थर भैरव सिंह के लोग मारना शुरू किया फ़िर जब गाँव वालों ने भी वही किया तो भैरव सिंह के लोग वहाँ से चले गए, पर गांव के लोग मुझे दौड़ा रहे थे... मैं एकदम से थक कर एक पेड़ के पीछे छिपने कोशिश की... पर लोग मुझे पत्थर मारते रहे....
ऐसे वक्त पर एक नौजवान पहुंचा उसने एक चादर से मुझे ढक दिया... फिर चिल्लाया क्यूँ मार रहे हो...
एक - यह चुड़ैल है.. इसलिए....
नौजवान - किसने कहा...
दूसरा - राजा साहब के लोगों ने....
नौजवान - कहाँ है वे लोग...
गांव वाले आपस में बात करने लगे
नौजवान - उन्होंने झूट कह कर तुम्हारे ही हाथों से किसीकी हत्या करा रहे थे....
गांव वालों को बात अब समझ में आ गई थी
नौजवान - अब जाओ यहाँ से....
सब गांव वाले हम दोनों को छोड़ कर चले गए
वह नौजवान मुझे अपने साथ ले जाने लगा...
फिर एक घर के भीतर ले गया.... उस घर में आ कर... मैं हैरान रह गई... मैं उस नौजवान को गौर से देखने लगी.. विशु मेरे मुहँ से निकला...
अचानक वैदेही के कहानी को विराम देते हुए वैदेही की मोबाइल बजने लगी l अपने अतीत से निकल कर वैदेही वर्तमान में आई और फ़ोन उठाई,
वैदेही - ह.. हे... हैलो..
फोन - xxxxxxxxxx
वैदेही - ठीक है काकी... मैं थोड़ी देर बाद निकलुंगी.... और सुबह तक पहुंच जाउंगी...
इधर वैदेही फोन पर बातेँ कर रही थी उधर प्रतिभा पश्चिम आकाश में डूब रहे सूरज को देखने लगी l सफेद बादलों के पीछे सूरज बहुत लाल दिखने लगी है... सूरज की रौशनी से बादलों के धार भी लाल रंग से रंग गई है, जिसके प्रभाव से दया नदी का पानी लाल दिख रहा है l प्रतिभा को लगा आज दया नदी भी वैदेही के यादों के ज़ख्मों से निकले लहू से लाल हो गया है l
वैदेही - अच्छा मासी मेरी कहानी अधूरी रह गई.... फिर कभी मौका मिला तो...
प्रतिभा - कितना झूट कहा था तुमने.... के तु सगी नहीं है प्रताप के... जब कि तु तो सगी से भी बढ़ कर है...
वैदेही - ऐसी बात नहीं है मासी...
प्रतिभा - नहीं... अब मुझे समझ में आ रहा है... तुने क्यूँ कहा था माँ बेटी का रिश्ता तेरे लिए एक श्राप है.... और देख तेरे दुख से दया नदी भी लाल हो गई है...
वैदेही चुप रही
प्रतिभा - अच्छा, तेरे फोन से लगा... तु अब जो भी बस मिले उसमें गांव चली जाएगी.....
वैदेही - जी मासी...
प्रतिभा - चल तुझे बस स्टैंड पर छोड़ देती हूँ.....
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शाम का सुरज ढ़ल चुका है, अंधेरा निकल रहा है फिर भी पश्चिमी आकाश में लाली दिख रही है जो धीरे धीरे मद्धिम हो रही है l
होटल ब्लू इन, कमरा नंबर 504,
कमरे में मॉकटेल पार्टी अपने पुरे रंग में है l एक सम्बलपुरी धुन में सभी थिरक रहे हैं और सबकी हाथों में अपनी अपनी पसंदीदा कुल ड्रिंक की बॉटल है l सब नाचते नाचते थकने लगे तो उनके बीच से रॉकी निकल कर म्युजिक सिस्टम के पास पहुंचकर म्युजिक को बंद कर देता है l म्युजिक के बंद होते ही नाच नाच कर जो हांफने लगे थे सब अपनी अपनी जगह पर बैठ जाते हैं l
सब बैठते ही रॉकी फ़िर से व्हाइट बोर्ड को सबके सामने लाता है और उसमे लिखता है मिशन नंदिनी l
रॉकी - मित्रों, मेरे प्यारे चड्डी बड्डी कमीनों, मेरे टेढ़े मेड़े येड़े दोस्तों.... आज हम सब फ़िर से इकट्ठे हुए हैं... मिशन नंदिनी पर अगले कदम उठाए जाने की चर्चा के लिए.... जैसा कि हमने पिछले हफ्ते प्लान किया था.. अब उससे आगे निकलने का वक्त आ गया है.... क्यूँ भाई लोग....
आशीष - ऑए ठंड रख ठंड... पहला कदम कितना सही गया उसका भी चर्चा कर लें...
सुशील - उस पर चर्चा क्यूँ... वह काम तो हो चुका है ना... क्यूँ रवि..
रवि - हाँ मेरी गर्लफ्रेंड नंदिनी की छटी गैंग से दोस्ती भी कर ली है.....
राजु - तो पहला कदम क़ामयाब रहा.... पर यह कोई बड़ी बात नहीं.. क्यूँ की अब सही में प्लान बनाया जाएगा और उस पर अमल होगा... और अंत में.... रिजल्ट पर स्कोर भी डिक्लेर होगा...
रॉकी - हाँ तो पहले.... नंदिनी की दोस्तों पर और उनके प्लान्स पर चर्चा कर लेते हैं...
राजु - हाँ तो रवि... चल बता... अब तक हमें क्या पता चला है और हमारे काम की क्या इंफॉर्मेशन है ....
रवि - देखो उनकी दोस्ती हुए अभी तीन चार दिन ही हुए हैं.... पर जितना मालुम हुआ उसको हम रॉकी के टेढ़े मेढ़े यडे ग्रुप वालों के डिस्कस व एनालिसिस करने के बाद..... इस नतीजे पर पहुंचे कि नंदिनी.... जो शायद बीस वर्ष की होने वाली है.... वह अपनी जिंदगी में बहुत अकेली रही है... भुवनेश्वर आने के बाद ही उसके जिंदगी में दोस्त अब आए हैं... वह पहले कभी ज्यादा बात नहीं करती थी पर अब अपने दोस्तों से बहुत बातेँ करती है.... इतना करती है कि सुनने वाला कंफ्यूज हो जाए कि नंदिनी सांस कब ले रही है.....
आशीष - रॉकी भाई मेरे... मैं जितना समझा हूँ.... तु थोड़ी कोशिश करेगा तो.... वह लड़की जो तेरे ख्वाबों ख़यालों में है बहुत जल्द
तेरी बाहों में होगी... और वह शिद्दत से तुझे चाहेगी...
रॉकी - यह तु कैसे बता सकता है....
आशीष - देख उसकी जिंदगी में बहुत खाली पन है जो वह.... अपने दोस्तों के जरिए भरना चाहती है.... उसे नए और बहुत अच्छे दोस्त चाहिए....
सुशील - हाँ.... अब उसकी ल़डकियों वाली दोस्तों का कोटा.... फुल हो चुका है... अब लड़के उससे कोई दोस्ती करने से तो रहे...
राजु - और मैं भी कहूंगा कि तु भी दोस्ती की पहल मत कर...
रॉकी - अबे.... अगर पहल नहीं करूंगा तो कोई और उड़ा ले जाएगा....
आशीष - अबे ढक्कन.... तुझे हमने पहले दिन से ही बता दिया था.... की कंपटीशन में तु अकेला है....
रॉकी - हाँ... अच्छा अच्छा... अरे यार वह एक्साइटमेंट में... भूल गया था...
रवि - देख उसके जिंदगी के खाली पन को दूर करने के लिए.... उसे जितने दोस्त चाहिए थे मिल गए.... अब उसे एक हीरो की ज़रूरत है.... और इस उम्र में जाहिर है हर लड़की का बॉयफ्रेंड ही उसका हीरो होता है....
राजु - हाँ बाबा जी ने सौ फीसद सही कहा है....
सब हंस देते हैं तो रवि का मुहँ खट्टा हो जाता है l
राजु - जस्ट किडींग.... दिल पे मत ले यार...
रवि - ठीक है....
रॉकी - ओके गयज.... लेटस प्रोसीड...
सुशील - हाँ राजु ने सही कहा.... अब नंदिनी को एक हीरो की जरूरत है...
रॉकी - अच्छा हीरो बनने के लिए मुझे क्या करना होगा.... चड्डी पहन कर आसमान में उड़ना होगा.... या फ़िर दीवारों पर मकड़ी की तरह चलना होगा या वीर सिंह का सिर फोड़ना होगा........
राजु - तब तो हो गई रुप तेरी....
रॉकी - क्या मतलब.......
आशीष - अबे हीरो नहीं तु विलेन बन जाएगा.....
रॉकी - तो मैं क्या करूं...
रवि - देख गुरुवार को दीप्ति लोगों की केमिस्ट्री प्रैक्टिकल क्लास है.... और उस दिन केमिस्ट्री लैब में आग लग जाएगी....
रॉकी - वाव क्या बात है.... नंदिनी आग के बीचों-बीच फंसी होगी.... और मैं जा कर उसे बचा लूँगा... तब तो मैं नंदिनी के ही नहीं उसके भाई के नजर में भी.... हीरो बन जाऊँगा...
रवि - अबे ओ शेख चिल्ली जरा दम ले.... उस आग में नंदिनी नहीं.... नंदिनी की दोस्त बनानी होगी...
सब एक साथ - "क्या"
रवि - हाँ मैंने पता किया है.... बनानी का उस दिन बर्थ डे है.... और सारी लड़कियाँ उस दिन बनानी के साथ थोड़ा एटीट्यूड दिखाएंगी..... तो बनानी उस दिन थोड़ी उखड़ी रहेगी.... और उस दिन उसके कपड़े पर दीप्ति कुछ जेली डाल देगी जिसे साफ़ करने बनानी लैब के वश रूम जायेगी... जब बनानी वश रूम में होगी, सारी लड़कियाँ उसे बाहर आने पर बर्थ डे विश करेंगी......ऐसा उनका प्लान है... पर यहीँ पर हम भांजी मार लेंगे.... लैब में आग लगेगी, सारी लड़कियाँ बाहर को भागेंगी और उस वक़्त अपना चिकना जा कर पर उस बनानी को बचा लेना..... बस
सुशील - बस नहीं कार.... अबे भोंदु यहाँ पर कुछ लॉजिक् मिसींग है....
रॉकी - मसलन....
सुशील - प्लान की डिटेल्स बाद में लेंगे.... पहला मिसींग लॉजिक्.... अगर बनानी आग में घिरी होगी तो उसे बचाने की कोशिश नंदिनी भी कर सकती है.... जरूरी तो नहीं कि वह भी दूसरों की तरह आग से डर जाए.... और दुसरा मिसींग लॉजिक्... अपना चिकना रॉकी उसी टाइम पर होगा वह भी कॉमर्स स्ट्रीम के बजाय साइंस के स्ट्रीम में वह भी केमिकल लैब के बाहर....
रॉकी - वाह क्या सोचा है...
अब बोल बे मेटिंग प्लानर
रवि - उसका भी प्लान है...
आशिष - तो उगल ना बे...
रवि - सुनो...चूँकि गुरुवार को बनानी का बर्थडे है.... तो दीप्ति और नंदिनी दोनों ने प्लान बनाया है कि बुधवार को बनानी के लिए ऑनलाइन ब्रेसलेट खरीदने की....... जाहिर सी बात है डेलिवरी की तो वह अपने हाथ है.... चूंकि प्लान के तहत गिफ्ट दोपहर दो बजे कॉलेज पहुँचेगी.... तो रिसीव करने नंदिनी को लैब से बाहर जाना ही होगा.... क्यूँकी अपना चिकना जो हीरोइजम दिखाएगा और उसका हीरोइजम टॉक ऑफ द कॉलेज होगा, तो वह नंदिनी के कानों में पड़नी चाहिए पर नंदिनी को दिखनी नहीं चाहिए....
सुशील - ह्म्म्म्म प्लान तो जबरदस्त है.... ठीक है चलो दूसरे मिसींग लॉजिक् पर अपना ज्ञान का पिटारा खोल......
रवि - इसका भी सोल्यूशन है... लैब का जो अटेंडेंट है मनोज, वह अपना यार है.... उसने अपना रॉकी से उधार लिया था जो लौटाने के लिए रॉकी को पौने दो बजे फ़ोन कर बुलाएगा.... और रॉकी उससे पैसे लेने वहाँ दो बजे तक पहुंच जाएगा....
सुशील - वाह... तू तो सच में कितना बड़ा कमीना निकला बे... तुझे तो शेरलॉक होम्स होना चाहिए बे....
रॉकी - ह्म्म्म्म
आशीष - बढ़िया... पर आग लगेगी कैसे... मेरा मतलब लगायेगा कौन... और आग लगने के वजह से लैब अटेंडेंट मनोज पर डीसीप्लिनारी एक्शन भी हो सकता है....
रवि - हाँ हो सकता है.... इसलिए वह पांच लाख रुपये लेगा....
राजु - क्यूँ रॉकी.... अपनी जेब ढीली करने के लिए तैयार हो जा....
रॉकी - पैसों की चिंता मत करो.... बस प्लान एक्जीक्यूट करो....
आशीष - पर रवि अगर आग के बीचों-बीच घुस कर बनानी को बचाना है... तो अपना हीरो भी तो ज़ख्मी हो सकता है.....
रवि - हाँ मैंने... इसके बारे में भी सोच रखा है.... रॉकी के पूरे जिस्म और अपने कपड़ों पर में अनबर्न व अनफ्लेमेबल जेली लगाएगा... जब वह लिफ्ट से केमिकल लैब पहुँचेगा...
और उसके शर्ट में जो सोल्यूशन लगा होगा उससे पूरे डेढ़ मिनिट तक आग तो जलेगी पर त्वचा तक नहीं पहुंचेगी....
उतने समय में अपना मनोज फायर एस्टींगुइसर की मदत से आग बुझा देगा.... इसलिए रॉकी बिंदास अंदर जाएगा.... और बिंदास बनानी को बचा कर पास के नर्सिंग होम ले जाएगा... और इस तरह से तु नंदिनी और उसके ग्रुप की नज़र में उनके प्यारी दोस्त को बचाने वाला हीरो होगा...
यह सुन कर सभी ताली बजाते हैं l

रॉकी - अबे मैं तो तुझे हरामी कमीना समझ रहा था बे.... पर तु तो एकदम देव मानुष निकला बे..
रवि - साले कमीने लाइन पे आ.... नहीं तो प्लान कैंसिल....
रॉकी - नाराज मत हो... मेरी जान... आई लव यू रे...
रवि - ठीक है... मेरे को कमीना ही रहने दे...
सुशील - रवि प्लान वाकई बहुत जबरदस्त है... पर एक्जिक्युट कैसे करें...
रवि - देख लंच ब्रेक के बाद उनका प्रैक्टिकल है... तुम लोगों को लॉजिस्टिक्स पर ध्यान देना होगा.... वजह मैंने बताया है बाकी प्लान पर अमल करो लैबोरेट्री के पास पहुंचोगे तो जरूर मगर लिफ्ट के जरिए.... अपनी गाड़ी से कितनी जल्दी अपने पहचान वाले नर्सिंग होम में दाखिला कराओगे.....
क्यूंकि रिपोर्ट उसी आधार पर बनाने हैं और कुछ दिन बनानी को उस नर्सिंग होम में... ट्रीट देनी है... ताकि उससे मिलने बीच बीच में नंदिनी आती रहे..
जैसे ही रवि की बात खतम हुई वैसे रॉकी उठ कर रवि को गले लगा लेता है l सब दोस्त रवि को शाबासी देते हैं l
रॉकी (रवि के दोनों हाथों को पकड़ कर) यार मैं तेरी और तेरी वाली का जिंदगी भर आभारी रहूँगा....
सो दोस्तों मैं लॉजिस्टिक्स पर ध्यान देता हूँ.... और तुम लोग सब कंटाक्ट में रहना... लेट फिंगर क्रॉस एंड होप फॉर बेस्ट.... अब इस कमरे में अगले हफ्ते मुलाकात होगी.........
गुड़ नाइट यारों
Superbb Updateee
 
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