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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

Mr. X
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*Index *
 
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क्या बात है राइटर साहब ! आप ने मेरा दिल खुश कर दिया । क्या लाजबाव शब्दों का जाल बुना है आपने इस अपडेट में ! आउटस्टैंडिंग ।

विश्व की पैरवी भले ही जयंत सर कर रहे हों पर दिमाग का इस्तेमाल तो आपने ही किया है । आइडिया तो आप की ही है । मजा आ गया कोर्ट में जयंत सर को वकालत करते हुए देखकर । और क्या खूब मिशाल दिया था उन्होंने ! " Rome never built in one night " इस मिशाल के थ्रू जज साहब को सोचने पर मजबुर तो जरूर कर दिया होगा कि इतना बड़ा घोटाला सिर्फ सात महीने के अंदर ही नहीं किया जा सकता ।

उनकी कही गई सारी बातें आउटस्टैंडिंग थी । बहुत उम्दा लिखा है आपने ।

इसके पहले उन्होंने वैदेही को धर्मशाला में ठहराने की व्यवस्था की थी । वैदेही से मुझे बहुत ज्यादा सहानुभूति हो गई है । उसकी वर्तमान पीड़ा को मैं बहुत अच्छी तरह से महसूस कर रहा हूं । जयंत सर ने उसकी मदद करके हमारा दिल जीत लिया ।
विश्व सही कहता है वो भगवान तुल्य है ।

हिंदी में आप की नोलेज सच में बहुत ही अच्छी है । वेश्याओं के लिए सम्मान सूचक शब्द नगर बधू होता है । एक भद्र पुरुष ही ऐसे शब्दों का उच्चारण कर सकता है ।

सब कुछ , एवरी वर्ड , एवरी लाइन वाज आउटस्टैंडिंग ।
जगमग जगमग करता हुआ अपडेट था यह ।
 
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kamdev99008 bhai ! Please read this story.
 

parkas

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👉सत्ताईसवां अपडेट
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प्रतिभा सुबह सुबह तापस और प्रत्युष को चाय नाश्ता दे कर डायनिंग टेबल पर अपनी चाय की कप लेकर बैठ जाती है l दोनों बाप बेटे गौर करते हैं, प्रतिभा चाय की कप में शुगर क्यूब डाल कर चम्मच से घोल रही है, और उसका ध्यान कहीं और है l
प्रत्युष, तापस को आखों के इशारे से प्रतिभा को दिखा कर पूछता है - माँ को क्या हुआ है,
तापस अपने कंधे उचका कर और मुहं पिचका कर इशारे से कहता है - मुझे नहीं पता
प्रत्युष फिर अपनी माँ को गौर से देखता है, अभी भी प्रतिभा चम्मच को चाय में हिला रही है l प्रत्युष अपनी गले का खारास ठीक करता है l फ़िर भी प्रतिभा का ध्यान नहीं टूटती l
प्रत्युष - माँ...
प्रतिभा - (चौंक कर) हाँ... क... क्या.. कहा..
प्रत्युष - अरे माँ.... क्या हुआ है... आपको आज... आपका ध्यान कहाँ है....
प्रतिभा - क.. कुछ.. (अपना सर ना में हिलाते हुए) कुछ नहीं....
प्रत्युष - डैड... आपको कुछ मालूम है...
तापस - ऑफकोर्स माय सन... मैं जानता हूं....
प्रतिभा - खीज कर... अच्छा तो जानते हैं आप...
प्रत्युष - आप रुको मॉम... अभी थोड़ी देर पहले डैड ने मुझसे झूठ कहा था....
तापस - मैंने कब झूठ बोला.... वैसे माँ से मॉम... यह ट्रांसफर्मेशन कब हुआ....
प्रत्युष - जब आपने मुझे झूठ बोला....
प्रतिभा - ओह ओ... यह क्या... फ़ालतू बकवास ले कर बैठ गए तुम लोग.... वैसे सेनापति जी... आपको मालूम क्या है.... बताने का कष्ट करेंगे....
तापस - प्रोफेशनल टैक्लींग में मात खा गई तुम....
प्रतिभा - व्हाट....
प्रत्युष - यह क्या बला है... डैड...
तापस - बेटे वकालत में... केस के सुनवाई के दौरान... वकील एक दुसरे पर... साइकोलॉजीकल दबाव बना कर एक तरह से जिरह के दौरान.... एडवांटेज लेने की कशिश करते हैं..... इसमें कोई शक नहीं... की तुम्हारी माँ... अपनी फील्ड में एक्सपेरियंस्ड है... पर वह जिनको टक्कर दे रही हैं... वह एक वेटरन हैं.... इसलिए तुम्हारी माँ का ध्यान भटका हुआ है....
प्रत्युष - ओ.... तो यह बात है...
तापस - देखो भाग्यवान... तुम अपनी कोशिश पूरी रखना.... बाकी.... वक्त पर छोड़ दो....
प्रतिभा एक गहरी सांस छोड़ कर हाँ में सर हिलाती है l
प्रत्युष - (प्रतिभा के हाथ पकड़ कर) हे... माँ... चीयर अप...
प्रतिभा प्रत्युष के हाथ को पकड़ कर मुस्करा कर अपनी आँखे वींक करती है और तापस से पूछती है
प्रतिभा - आपने कैसे अंदाजा लगाया....
तापस - कल मैं देख रहा था.... तुम अपनी प्रेजेंटेशन के दौरान... कुछ खास पॉइंट पर जब जोर दे रही थी.... तब तुम जयंत सर को भी देख रही थी.... और वह एक दम निर्विकार भाव से बैठे हुए थे.... तब तुम भले ही जाहिर ना किया हो... पर अंदर ही अंदर तुम ऑनइज़ी फिल् कर रही थी... यह मैंने तब महसूस कर ली थी....
प्रतिभा - ओ ह...
तापस - भाग्यवान... इतना कहूँगा.... तुम इस केस को... प्रोफेशनली डील करो... ना कि पर्सनली..... तुम पब्लिक प्रोसिक्यूटर हो.... सरकारी वकील.... इस केस को अपने दिल या दिमाग पर हावी होने मत दो...
प्रतिभा मुस्कराते हुए अपनी गर्दन हाँ में हिलती है l
प्रत्युष - दैट्स माय मॉम.... मतलब मेरी प्यारी माँ...

तीनों हंस देते हैं
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उसी समय एक कमरे में रोणा और बल्लभ दोनों खड़े हुए हैं और उनके सामने पिनाक कमरे में एक तरफ से दुसरे तरफ तक अपने दोनों हाथों को पीठ के पीछे बांध कर, तो कभी अपने दाहिने हाथ की मुट्ठी को अपने बाएं हाथ पर मारते हुए चहल पहल कर रहा है और उसके चेहरे पर तनाव साफ झलक रही है l
पिनाक - तुम दोनों पिछले दो दिनों से कटक से भुवनेश्वर,... भुवनेश्वर से कटक हो रहे हो... हमसे मिलने की ज़हमत भी नहीं उठा सके.... जब कि तुम लोगों के राजगड़ से निकालते ही... भीमा ने हमे खबर कर दी थी...
बल्लभ - वह... हम.. यहां रह कर केस की... हर पहलू पर काम कर रहे थे...
पिनाक - काम कर रहे थे.... या झक मार रहे थे...
बल्लभ - एक गलती तो हुई है.... हमे अपनी तरफ से वकील देना चाहिए था....
पिनाक - तो... भोषड़ी के... राजा साहब को यह आइडिया दी क्यूँ नहीं... उस वक़्त... तु हमारा कानूनी जानकार है.... सलाहकार है... तो आइडिया भी तुझे ही देना चाहिए था ना....
बल्लभ - छोटे राजा जी... हम सलाह तब देते हैं... जब पूछा जाए... अगर हम अपने तरफ से.... राय दिए... तो अंजाम सभी जानते हैं... राजा साहब किसीके सुनते नहीं हैं.... और राजा साहब जो कह दें... उसकी तामील करना... हमारा धर्म...
पिनाक - ह्म्म्म्म... तो जब तुझे पूछा था... सरकार विश्व के लिए वकील दे रहा है... तब तो तु बड़ी डिंगे हांक रहा था.... सब परफेक्ट है... कुछ नहीं होगा....
बल्लभ - हाँ... तब मैंने राजा साहब जी के.. सरकार पर प्रभाव को देख कर... इस बात को हल्के में ले लिया था...
पिनाक - अब.... देखो प्रधान... मैंने तब भी कहा था.... आज भी दोहरा रहा हूं... यह राजा साहब के नाक और मूँछ का सवाल है....
बल्लभ - इसलिए तो हम दोनों... यहाँ आए हुए हैं...
पिनाक - क्या... हम... जयंत से बात करें...
बल्लभ - जी नहीं छोटे राजा जी.... बिल्कुल नहीं.... मैंने... जयंत पर पूरी छानबीन कर ली है.... हम बात करेंगे तो बाहर आ सकते हैं... और यह आत्मघाती होगा...
पिनाक - ह्म्म्म्म
रोणा - मैं तो कहता हूँ... उसका एक्सीडेंट ही करा देते हैं.... उन दो बॉडी गार्ड्स के साथ.... सारा झंझट ही खतम...
पिनाक - तब... सरकार... और एक सरकारी वकील नियुक्त करेगी..... तो हरामजादे कितनों को मारता रहेगा..
रोणा कुछ कहने को होता है पर बल्लभ इशारे से उसे चुप रहने को कहता है l पिनाक एक सोफ़े पर धप कर बैठ जाता है l और अपने दोनों हाथो से अपना सर पकड़ लेता है l
पिनाक - प्रधान..... कुछ सोचो.... याद रखो... राजासाहब वह डाइनामाइट है.... अगर फटे.... तबाही और बरबादी होगी सो अलग.... लाशें कितनी बिछेंगी और किन किन की... गिनना मुश्किल हो जाएगा..... इसलिए सोचो... जिस तरह से... उस जयंत ने... अपनी दो बार उपस्थिति में...ना सिर्फ अपनी ही चलाई है... बल्कि अदालत की रुख को अपने हिसाब से मोड़ा है....
बल्लभ - छोटे राजा जी... हम पहले जयंत क्या कहेगा कल कोर्ट में... वह पहले सुन लेते हैं.... बाद में उसी हिसाब से... हम गवाहों को हैंडल करेंगे.... ताकि कोई गवाह ना टूटे....
पिनाक - ठीक है... इस बाबत कुछ कदम उठाए हैं क्या तुमने....
बल्लभ - जी मैं और रोणा पहले से ही इसी काम में लग चुके हैं.... सावधानी से कर रहे हैं... ताकि हम में से किसीका नाम बाहर निकल कर ना आए....
पिनाक - ठीक है.... और हाँ कुछ भी करने से पहले.... मुझे इन्फॉर्म कर दिया करो.... क्यूंकि यह याद रहे.... यह ना तो यशपुर है और ना ही राजगड़ है... यह भुवनेश्वर और कटक है.... और यहाँ पर अभी तक... ना हमने पांव पसारे हैं... और ना ही पंख फैलाए हैं....

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उधर जैल में डायनिंग टेबल पर अपनी थाली हाथ में लिए विश्व बैठा हुआ है और वह भी किसी सोच में गुम है l
-क्या हुआ है... हीरो... किस सोच में तु खोया हुआ है....
डैनी अपना थाली ले कर विश्व के पास बैठते हुआ कहा l
विश्व अपना सर हिलाते हुआ ना कहा l
डैनी - पहले न्यूज में... जिस तरह धज्जियाँ उड़ाया जा रहा था... तेरा... अब वैसा नहीं हो रहा है...
विश्व - हाँ.. वह जयंत... सर ने... कोर्ट में... मीडिया एक्टिविटी को गलत ठहरा दिया... यही वजह है...
डैनी - एक बात तो है.... तुझे वकील... वाकई बहुत जबरदस्त मिला है... वह भी सरकारी ख़र्चे पर.... तेरे केस में सबसे इंट्रेस्टिंग क्या है... जानता है तेरी वाट लगाने के लिए भी सरकारी वकील... और तेरा बेड़ा पार करने वाला भी सरकारी वकील... और दोनों कामों के लिए सरकार अपनी जेब ढीली कर रही है.... हा हा हा हा...
विश्व - आप यहां कितने सालों के लिए हैं...
डैनी - मैं भी बहुत खास मुज़रिम हुं... सरकार के लिए.... हाँ... यह बात और है.. मैं यहाँ... अपनी मर्जी से आता हूँ... और अपनी मर्जी से जाता हूँ....
विश्व - वह कैसे... और आप यहाँ... कौनसे बैरक में रहते हैं...
डैनी - मैं यहाँ स्पेशल सेल में रहता हूँ.... क्यूंकि मैं यहाँ... स्पेशल अपराधी हूँ... मेरी जान को खतरा बता कर... मैं यहाँ... छुट्टियां इंजॉय कर रहा हूँ... ख़ैर तुने बताया नहीं... किस सोच में डूबा हुआ था...
विश्व - वह... मैं जयंत सर जी के बारे में.. सोच रहा था... मैं उनके व्यक्तित्व को... बिल्कुल भी समझ नहीं पा रहा हूँ...
डैनी - क्यूँ... तुझे... उन पर शक हो रहा है... क्या....
विश्व - नहीं... बिल्कुल नहीं... सच कहूँ तो... आज..... जब भी भगवान को याद करते हुए अपनी आँखे बंद करता हूँ..... मुझे सिर्फ उनका ही चेहरा दिखता है....
डैनी - तो फिर.... उनके बारे सोच क्या रहा है...अगर उनको भगवान के जगह रख दिया है.... तो उनके बारे में सोचना भी मत... क्यूँ की भगवान किसीके भी सोच से परे हैं.... पर यह बता... तुझे उन इतना भरोसा कैसे हो गया...
विश्व - नहीं जानता... पर जब भी काले कोट में अदालत में उनको मेरे लिए खड़े होते देखता हूँ... तो मुझे अंदर से ऐसा लगता है.... मुझ होने वाले जैसे दुनिया भर की हमलों के आगे..... वह ढाल बन कर खड़े हुए हैं.... और जब तक वह खड़े हों.... दुनिया की कोई भी बुरी ताकत... मुझे छू भी नहीं सकती....
डैनी - वाह.... क्या बात है.... अगर तू इतना ही उन परभरोसा करता है.... तो फिर उनके बारे में... सोच क्या रहा है....
विश्व - हमने हमेशा एक बात सुनी है... अपने बड़ों से.. या फिर... किसी और से.... की सफेद कोट वाले से.... मतलब डॉक्टर से... अपनी बीमारी के बारे में... और काले कोट वाले से, मतलब वकील से... अपनी गलतियों के बारे में.... कभी भी कुछ भी छुपाना नहीं चाहिए...
डैनी - हाँ.... यह बात तो है.... क्यूँ तूने कुछ छुपाया है.. क्या....
विश्व - छुपाता तब ना.... जब उन्होंने... मुझसे कुछ पूछा हो.... उन्होंने मुझसे कुछ पूछा ही नहीं है..... पर वह मेरे लिए... मुझे इन्साफ देने के लिए... जिस तरह लड़ रहे हैं.... मुझे कुछ भी नहीं होगा ऐसा मुझे लगता है... जब भी उन्हें देखता हूँ.... पर कल वह मेरा पक्ष रखेंगे.... अदालत में... क्या रखेंगे... कैसे रखेंगे.... बस यही सोच रहा हूँ.....
डैनी - ह्म्म्म्म... तेरे बात सुन कर... मेरा सिर घूम गया है.... फिर भी... बेस्ट ऑफ लक...
विश्व - जी... बहुत बहुत शुक्रिया....

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काठजोड़ी नदी के गणेश घाट के पास सिमेंट से बनी एक कुर्सी पर वैदेही बैठी हुई है l शाम की चहल पहल बढ़ गई है l बहुत से बुजुर्ग कोई हाथ में लकड़ी लेकर और कोई अपने साथ कुत्तों को लेकर इवनिंग वक कर रहे हैं l

-अरे वैदेही तुम यहाँ.... यहाँ क्या कर रही हो....
वैदेही की ध्यान टूटती है और आवाज़ को तरफ देखती है जयंत वहाँ पर खड़ा हुआ है l
वैदेही - जी नमस्ते जयंत सर...
जयंत - हाँ... नमस्ते.... पर तुमने बताया नहीं... के इस वक्त तुम यहाँ क्या कर रही हो....
वैदेही - (मुस्कराने की कोशिश करते हुए) जी फिलहाल यहाँ बैठी हुई हूँ...
जयंत - अच्छा... मुझसे ही होशियारी.... ह्म्म्म्म
वैदेही - जी... माफ कर दीजिए... दर असल... कल विश्व के तरफ से.... आप क्या कहेंगे... और उस पर जज साहब की... क्या प्रतिक्रिया होगी... बस यही सोच रही थी...
जयंत - अरे... इतनी सी बात पर तुम डर गई.... बिल्कुल एक तोते की तरह पटर पटर कैसे बोल गई...
वैदेही अपने चेहरे पर मुस्कान लाने की कोशिश करती है
जयंत - ह्म्म्म्म (वैदेही के पास बैठते हुए) तो तुम्हें क्या लगता है..
कहीं मुझसे भरोसा तो नहीं उठ गया....
वैदेही - क्या बात कर रहे हैं सर... मैंने तो उसी दिन कह दिया था आपको.... अब हमे अंजाम की कोई परवाह नहीं है.... पर फिर भी एक जिज्ञासा तो मन में है ही....

जयंत - ह्म्म्म्म तो यह बात है... देखो वैदेही... मैं अपनी मुवकील से... सहानुभूति से या भावनात्मक रूप से जुड़ना नहीं चाहता हूँ.... बस केस से जुड़े तथ्यों को छोड़ मैं किसी भी प्रकार से दूसरे निजी तथ्यों से किनारा कर लेता हूँ... क्यूंकि मैं अपनी मुवकील को जज के सामने या न्यायालय में बेचारा साबित नहीं करना चाहता हूँ.... या तो दोषी साबित करूं.. या फ़िर निर्दोष..... अब सरकार ने खुद मुझे यह जिम्मा सौंपा है... के मैं तुम्हारे भाई को निर्दोष साबित करूँ... तो मेरी कोशिश तो पूरी यही रहेगी...
यह सब सुन कर वैदेही के चेहरे पर एक खुशी छा जाती है, जो जयंत को साफ दिख भी जाता है l
जयंत - अच्छा... कल जब सुनवाई है... तो अब तुम यहीँ... कटक में रहोगी या... अपने गांव चली जाओगी....
वैदेही - वह मैं... एक हफ्ते से गांव नहीं गई हूँ.... यहीं... रेल्वे स्टेशन जा कर... जनरल टिकेट कर देती हूँ.... और जनाना प्रतीक्षालय में रात को सो जाती हूँ... और वहीँ शौचालय में... अपना नहाना धोना कर लेती हूँ... फिर दिन भर बाहर इधर-उधर होती रहती हूँ....

जयंत का चेहरा इतना सुनते ही सख्त हो जाता है l वह अपनी आँखे बंद कर लेता है l इतने में वैदेही पूछती है l
वैदेही - सर आपके वह... बॉडी गार्ड्स कहाँ हैं... दिखाई नहीं दे रहे हैं....
जयंत - वह देखो.... उस चने बेचने वाले के पास चने चर रहे हैं....
यह सुनते ही वैदेही की हंसी निकल जाती है
जयंत - (उठता है) चलो मेरे साथ...
वैदेही - (चौंकते हुए) जी... ज... जी... कहाँ...
जयंत - तुम्हारे लिए... रात का बंदोबस्त करने....
वैदेही - पर....
जयंत - अरे... चलो भी.... मैं तुम्हें... अपने घर नहीं ले जा रहा हूँ... तुम लड़की हो... कहीं कोई ऊँच नीच हो गई तो.... इसलिए बातेँ हम चलते चलते या बाद में कर लेंगे... अब बिना देरी किए मेरे साथ चलो....
वैदेही उठती है और जयंत के पीछे चल देती है l उन दोनों के पीछे जयंत के बॉडी गार्ड्स भी चलने लगते हैं l जयंत चांदनी चौक के जगन्नाथ मंदिर में पहुंच कर एक दुकान से छोटी टोकरी में पूजा का सामान लेता है और मंदिर के अंदर जाता है l वैदेही भी उसके पीछे पीछे चल देती है l मंदिर में पहुंचते ही मं
दिर के पुजारी उसे देख कर बाहर आता है और जयंत के हाथों में से पूजा की टोकरी ले जाता है
पुजारी - अहोभाग्य हमारे... जगन्नाथ के घर में जयंत पधारे...
दोनों - हा हा हा हा हा...
पुजारी - क्यूँ भई वकील... आज मंदिर... क्या बात है...
जयंत- कुछ नहीं पंडा जी... कुछ नहीं.... जिंदगी पेड़ के पत्ता हिल रहा है... पता नहीं कब झड़ जाए.... मतलब बुलावा आ जाए... इसलिए... उसके पास जाने से पहले... मस्का लगाने आ गया...
पुजारी - तुम नहीं सुधरोगे... भगवान घर में ठिठोली....
इतना कह कर पुजारी मंदिर के गर्भ गृह में जा कर, पूजा करता है और पूजा की टोकरी ला कर जयंत को लौटा देता है l
पंडा - कहो... आज कई सालों बाद... मंदिर में... अपने लिए तो नहीं आए होगे.... बोलो किसके लिए....
जयंत - क्या... पंडा... अरे... मैं कोर्ट में... अपनी नौकरी पेशा जीवन का... अंतिम केस लड़ रहा हूँ... इसलिए कई सालों बाद आया हूँ... कालीया को भोग का मस्का लगाने...
पंडा - फिर.. ठिठोली... तुम... भले ही मंदिर ना आओ.... पर इस मंदिर के कमेटी में हो.... और कमेटी मीटिंग बराबर.... अटेंड करते हो.... क्या भगवान को इस बात का भान नहीं है....(जयंत चुप रहता है) पर तुमने तो केस लेना बंद कर दिया था ना..... फिर अचानक यह केस...
दोनों मंदिर की परिक्रमा करते हुये
जयंत - पंडा..... तुम्हें क्या लगता है.... सारे राज्य वासियों के भावना के विरुद्ध... मैं वह केस लड़ रहा हूँ....
पंडा - देखो जयंत.... मैं दुनिया की नहीं जानता.... पर तुम्हें अच्छी तरह से जानता हूँ... तुम कभी गलत हो ही नहीं सकते.... और मैं यह भी जानता हूँ... जब तक कोर्ट में तुम डटे हुए हो..... कोई भी उस लड़के का बाल भी बांका नहीं कर सकता....
जयंत, थोड़ा मुस्करा देता है l तभी जयंत की नजर एक जगह ठहर जाता है l
जयंत - वैदेही.... सुनो तो जरा...
वैदेही उस वक्त मंदिर के आनंद बाजार (जहां अन्न प्रसाद मिलता है) के एक खंबे के टेक् लगा कर वैदेही खड़े हो कर उनकी बातें सुन रही है l
जयंत - आरे... वैदेही... तुम यहाँ.... आओ
पंडा - तुम जानते हो इस लड़की को.... यह रोज दो पहर को... आ जाती है और अन्न प्रसाद सेवन तक यहीं बैठी रहती है....
जयंत - आरे.... पंडा... यह पागल लड़की.... का यहीं... मंदिर के धर्म शाला में रहने की प्रबंध कर दो....
वैदेही - आरे... सर... आप हमारे लिए... इतना तो कर रहे हैं...
जयंत - अरे... मूर्ख... अगर मैंने केस हाथ में लिया है... तो केस की सुनवाई खत्म होने तक... विश्व की तरह तुम भी मेरी... जिम्मेदारी हो...
वैदेही चुप रहती है
जयंत - मैं अब अपने घर में... तुम्हें रख नहीं सकता.... क्यूँकी मेरे घर में.... मेरे साथ... मेरे सुरक्षा के लिए... और दो मर्द रह रहे हैं... पर कटक सहर में... मैं तुम्हारे रहने का बंदोबस्त तो कर सकता हूँ....
वैदेही उसे नजर उठा कर देखती है
जयंत - (पुजारी को देख कर) अरे पंडा... मंदिर के धर्मशाला में... एक कमरा... इस लड़की के लिए...
पंडा - समझ गया.... देखो वैदेही... अब हमारे मंदिर की धर्मशाला में एक कमरा लेलो.... और चूंकि तुम्हारी सिफारिश जयंत ने की है.... इसलिए मैं तुमको... नियम के बाहर जा कर.... जब तक केस समाप्त नहीं हो जाती... तब तक भाड़े में रह सकती हो....
जयंत - घबराओ नहीं.... भाड़ा.. भी नहीं लगेगा.... नियम में यह भी है.... ट्रस्टी के रिकॉमेंड हो... तो पैसा भी नहीं लगता...
पंडा, जयंत को मुहं फाड़े देखता है l वैदेही खुश हो कर जयंत को हाथ जोड़ती है l
जयंत - अच्छा जाओ (हाथ दिखा कर) वहां धर्मशाला... अरे पंडा... जाओ यार इस लड़की को कमरा दे दो...
पंडा अपना सर को हिलाते हुए, वैदेही को धर्मशाला की ओर ले जाता है l वैदेही को एक कमरा दिलाने के बाद, जयंत के पास वापस आता है l
पंडा - भई... कौनसे नियम के अनुसार... ट्रस्टी के सिफारिश हो... तो पैसा देना नहीं पड़ता...

जयंत - पंडा.... यह लड़की बहुत गरीब है.... और मैं तो ठहरा... अकेला.... पैसे इस गरीब के भले के लिए थोड़े खर्च हो जाए... तो क्या फर्क़ पड़ता है.... उसकी बिल मुझे भेज देना.... मैं भर दूँगा..... और हाँ... उसे मालुम ना हो.... क्यूंकि बहुत खुद्दार किस्म के लोग है यह.....

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आज कानून के बड़े बड़े दिग्गज और विशेषज्ञों की नजरे अदालत के आज की कारवाई पर टिकी हुई है.... पिछली सुनवाई में अभियोजन पक्ष की वकील श्रीमती प्रतिभा सेनापति जी ने एसआइटी और पुलिस के जांच को अपनी मजबूत दलीलों को अदालत के सम्मुख प्रस्तुत किया था..... आज का दिन भी इस केस के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है.... क्यूंकि आज अभियुक्त पक्ष के दलीलों को अदालत के समक्ष श्री जयंत कुमार राउत प्रस्तुत करेंगे.... एसआइटी जांच में दोषी पाए गए अभियुक्त श्री विश्व के पक्ष अपनी किन मजबूत दलीलों के द्वारा अदालत को प्रभावित करेंगे यह देखना दिलचस्प होगा.... चूंकि अभी कुछ ही समय पूर्व अभियुक्त को पुलिस की सुरक्षा के घेरे में ले जाया गया है.... थोड़ी देर बाद सुनवाई शुरू हो जाएगी.... सुनवाई के फौरन बाद... आज अदालत में क्या क्या हुआ... हम दर्शकों के सामने लाएंगे.... तब तक के लिए कैमरा मैन सतबीर के साथ मैं प्रज्ञा..... खबर ओड़िशा के लिए....
इस खबर की प्रसारण कर रिपोर्टर ने अपना माइक निकाला और अदालत के बाहर पुलिस के द्वारा बनाए गए बैरिगेट के पास चली जाती है l उधर कोर्ट की स्पेशल रूम में पिछले दिनों की तरह ही दृश्य दिख रहा है l हमेशा की तरह तीनों जज अपनी अपनी कुर्सियों पर बैठ जाते हैं l औपचारिकता के बाद
मुख्य जज - ऑर्डर ऑर्डर... आज की कारवाई शुरू की जाए..
हॉकर - अभियुक्त श्री विश्व प्रताप को हाजिर किया जाए...
पुलिस विश्व को लेकर मुल्जिम वाले कटघरे में खड़ा कर देती है
जज - जैसा कि पिछली सुनवाई में... अभियोजन पक्ष.... पुलिस और एसआइटी की जांच की पक्ष और साथ साथ गवाहों के बयानात और गवाहों के नाम... अदालत और बचाव पक्ष को उपलब्ध कराया... है... आज का दिन केवल बचाव पक्ष की दलीलें सुनी जाएंगे.... और यह अदालत दोनों पक्षों को सूचित करती है.... के पिछली सुनवाई बाद सभी गवाहों को समन कर दी गई है.... इसलिए अगले हफ्ते में जो गवाह आयेंगे.... उनकी गवाही की दोनों पक्षों के द्वारा जिरह की जाएगी.... पर अभी के लिए.... अभियुक्त पक्ष के वकील श्री जयंत राउत जी को अपना पक्ष रखने के लिए अनुमती देते हुए कारवाई को आगे बढ़ाया जाता है.... श्री जयंत जी आप अपना पक्ष रखें....
जयंत - जी धन्यबाद... योर ऑनर.....
अपनी जगह से उठते हुए जयंत ने कहा l जयंत के उठते ही कुछ लोगों की धड़कने उत्सुकता वश तेज हो गई l इन में विश्व और वैदेही तो हैं ही, प्रतिभा, तापस ही नहीं यहाँ तक जज भी जयंत के द्वारा दी जाने वाली दलील को सुनने के बेताब हो उठे l पूरा कोर्ट रूम में केवल शांति ही शांति विराजमान है l
जयंत - योर ऑनर.... मैं प्रोसिक्युशन की इस बात से इत्तेफाक रखता हूँ.... के आज अदालत में चल रही इस केस की ओर.... साधारण जन मानस बड़े ध्यान से देख रही है.... और न्याय प्रक्रिया के दौरान और समाप्त होने तक... न्याय की परिभाषा क्या होगी यह आने वाली समय के गर्भ छुपा हुआ है......
माय लॉर्ड.... अंग्रेजी में एक कहावत है.... रोम नेवर बिल्ट इन वन नाइट.... अर्थात बड़े बड़े साम्राज्य... या बड़े बड़े स्वर्णिम अध्याय... कभी अचानक से नहीं बनते... क्रम अनुसार, धीरे धीरे बनते बनते समयानुसार विशाल रूप में प्रकट होती है... षडयंत्र भी इसी तरह होते हैं.... माय लॉर्ड... षडयंत्र, वह भी आर्थिक घोटाले की... एक काले साम्राज्य की तरह होता है... योर ऑनर.... यह भी धीरे धीरे.... दिमाग से निकल कर... वास्तविकता में उतर कर... आकार लेते लेते विशाल हो जाता है... यह आर्थिक घोटाले... आर्थिक अनाचार... एक समाज में एक नए नगर बधु की तरह होती है.... हर सामर्थ्य व पुरूषार्थ रखने वाला... इसे लूटना चाहता तो है... पर उसके साथ अपने परिचय को स्वीकार नहीं करता.... अगर उसके कर्म फूटने को होते हैं... तब वह सामर्थ्यबान किसी ऐसे व्यक्ति का जुगाड़ करते हैं... जिस पर अपनी काली करनी को थोप देते हैं....
आज का यह मनरेगा घोटाला केस भी ऐसा है योर ऑनर....
एक बच्चे को जन्म लेने के लिए.... प्रकृति ने नौ महीने का विधान किया है... पर उसके लिए भी पुरुष एवं स्त्री की मिलन की प्रस्तुति की जाती है..... इस प्रक्रिया में भी समय लगता है योर ऑनर.... पर यहाँ एसआइटी के जांच रिपोर्ट यह दर्शा रही है.... की यह कांड विश्व के सरपंच बनने के सिर्फ़ सात महीने में पूरा हो गया.... कितनी प्यारी... और मासूम... थ्योरी है...
इतना कह कर जयंत थोड़ी देर रुक जाता है और अपने टेबल के पास आकर एक फाइल उठा लेता है l
जयंत - योर ऑनर... प्रोसिक्युशन ने... पिछले सुनवाई के दौरान... अपना तथ्य प्रस्तुत किया... पहले पन्ने पर मुल्जिम की परिचय, शिक्षा गत योग्यता और देव पुरुष राजा साहब की उदारता का उल्लेख किया.... उसके बाद हम आते हैं... दूसरे पन्ने पर... जहां विश्व के इक्कीस वर्ष होने की बात की गई है... और उसके बाद...(प्रतिभा भी अपनी फाइल खोल कर देखने लगती है) योर ऑनर... यह तीसरी लाइन को गौर से पढ़ा जाए.... जहां पर यह लिखा गया है... राजा साहब ने... राजगड़ व उसके आसपास इलाकों के विकास के लिए एक नया जोश, एक नया खून वाले नौ जवान विश्व को सरपंच चुनाव में... भाग लेने के लिए कहा.... इसके आगे की लाइन को प्रोसिक्युशन पढ़ना या बताना शायद भूल गई.... मगर यह जांच रिपोर्ट में साफ साफ लिखा है... योर ऑनर.... राजा साहब के आग्रह को विश्व ने पहले इंकार कर दिया... पर विश्व के पारिवारिक मित्र और उसके गुरु श्री उमाकांत आचार्य जी के कहने पर... विश्व चुनाव लड़ने के लिए तैयार हुआ.... मतलब एक वर्ग ऐसा जरूर था... जो चाहता था... की विश्व सरपंच बनें.... ताकि उनके किए कुकर्मों को ढोने वाला कंधा विश्व के हो.... और ताजूब की बात यह है कि.... विश्व के किए घोटाले की... योर ऑनर... विश्व के जरिए जिस आवंटित राशि की बात की जा रही है.... वह राशि पिछले सरपंच के काल की हैं.... ना कि विश्व के काल की... और राशि है किसकी.... पीएम आवास योजना, पीएम ग्राम सड़क योजना, नए कैनाल बनाने की योजना, कैनाल सफाई के योजना, नए तालाब निर्माण योजना और कैनाल पर बनने वाले कल्वर्ट निर्माण योजना... इस सब योजना के ब्लू प्रिंट... पहले बनी होगी.... उसकी बजट एस्टीमेशन के बाद... प्रोजेक्ट अप्रूवल के ब्लाक ऑफिस फिर तहसील ऑफिस गई होगी.... फिर उसके बाद उस प्रोजेक्ट का पैसा तहसील को आया होगा... फिर उस प्रोजेक्ट शुरू करने के लिए... टेन्डर के जरिए कंट्रैक्ट अवॉर्ड हुआ होगा... फ़िर काम शुरू हुआ होगा.... तभी तो आवंटित राशि वापस लौट ना सकी... पर चूंकि प्रोजेक्ट कंप्लीशन सर्टिफिकेट और पहले अलॉट किए राशि की युटीलाइजेशन सर्टिफिकेट ना हो तो बकाया राशि की भुगतान नहीं हो सकती थी.... इसलिए वह खास वर्ग... विश्व को चुना... क्यूंकि.. विश्व एक नव युवक था और इस राजनीति के खेल में अनभिज्ञ भी.....
इतनी बड़ी राशि को लूटने के लिए.... प्रोसिक्युशन की मानें तो विश्व के पास प्लान बना कर उसे एक्जीक्युट करने के लिए सिर्फ़ सात महीने थे... योर ऑनर... और इन साथ महीनों में उसे टीम भी बनानी थी... जिसे सौ सेल कंपनीयों के रजिस्ट्रेशन करना था... ऊपर से इन्हीं सात महीनों में उसे रूप यानी... राजगड़ उन्नयन परिषद नाम की एनजीओ का रजिस्ट्रेशन के साथ साथ उसके अकाउंट भी ऑपरेट कर.. उसके पैसे हथियाने थे... और सबसे अहम बात योर ऑनर.... यह सब प्रोसिजर को परफेक्ट करने के लिए... विश्व को पांच हजार मृत् लोगों के आधार कार्ड भी जुगाड़ने थे इन्हीं सात महीने में.... वाह क्या जांच है... और क्या कहानी है....
योर ऑनर... मैं और इसे ज्यादा नहीं खींचना चाहता हूँ....
प्रोसिक्यूशन के तरफ से जितने बयान और गवाहों के नामों का उल्लेख किया है.... उनमें प्रमुख सिर्फ पांच गवाह हैं... जिनसे बचाव पक्ष जिरह करना चाहती है... योर ऑनर...
जज - वह गवाह... कौन कौन हैं.... डिफेंस लॉयर...
जयंत - पहले गवाह हैं... मिस्टर दिलीप कुमार कर... जो पहले तो विश्व से चेक साइन करवाया और आगे चल कर एसआइटी के सरकारी गवाह बनें....
दुसरे - तहसील ऑफिस के एक और क्लर्क... मिस्टर एके सुबुद्धी... जिनके सामने तहसील ऑफिस के अंदर यह सारे कांड हुए...
तीसरे - राजगड़ थाना के प्रभारी... श्री अनिकेत रोणा...
चौथे - राजा साहब... श्री भैरव सिंह क्षेत्रपाल जी...
और अंत में एसआइटी के मुख्य जांच अधिकारी श्री के सी परीडा
जज - ठीक है... क्या प्रोसिक्यूशन को कोई ऐतराज है....
प्रतिभा - (अपनी जगह से उठकर) जी नहीं योर ऑनर...
जज - ठीक है... जयंत बाबु... आपको किन क्रम में... गवाहों से जिरह करेंगे....
जयंत - कोई फर्क़ नहीं पड़ता... योर ऑनर... कोई भी किसी भी क्रम में आ सकते हैं... या फिर गवाही के लिए अपनी उपस्थिति दर्ज करवा सकते हैं....
जज - ठीक है... आज बचाव पक्ष के दलीलों को सुनने के बाद... अगले हफ्ते से गवाहों से दोनों पक्ष अपने अपने तरीके से जिरह करेंगे... आज बचाव पक्ष ने जिन नामों की उल्लेख किया है... सबसे पहले उन्हीं लोगों को समन किया जाए.... इसके साथ ही अदालत की कारवाई आज के लिए स्थगित कि या जाता है....
Nice and awesome update...
 

Kala Nag

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बहुत बढ़िया अपडेट! जयंत बहुत ही काबिल वकील है।
और अवश्य ही वो दिखाना न चाहता हो, उसको वैदेही और विश्व से हमदर्दी अवश्य है।
इक्कीस साल के लड़के के लिए, केवल सात महीने में ऐसा घोटाला करना!
लेकिन जब बलि का बकरा चुन ही लिया गया है, तो फिर बलि भी दे ही दी जाएगी।
राजा साहब ने गलती कर दी - उसको न मार के। पुराने पापों का मोल भी भारी चुकाना पड़ेगा।
धन्यबाद मित्र
आपका कमेंट वाकई ला ज़वाब है
 

Kala Nag

Mr. X
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Nice and awesome update...
धन्यबाद मित्र बहुत बहुत धन्यबाद
आप कहानी से जुड़े हुए हैं और आपकी कमेंट्स मुझे प्रेरणा देती है आगे लिखने के लिए
 

Kala Nag

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क्या बात है राइटर साहब ! आप ने मेरा दिल खुश कर दिया । क्या लाजबाव शब्दों का जाल बुना है आपने इस अपडेट में ! आउटस्टैंडिंग ।

विश्व की पैरवी भले ही जयंत सर कर रहे हों पर दिमाग का इस्तेमाल तो आपने ही किया है । आइडिया तो आप की ही है । मजा आ गया कोर्ट में जयंत सर को वकालत करते हुए देखकर । और क्या खूब मिशाल दिया था उन्होंने ! " Rome never built in one night " इस मिशाल के थ्रू जज साहब को सोचने पर मजबुर तो जरूर कर दिया होगा कि इतना बड़ा घोटाला सिर्फ सात महीने के अंदर ही नहीं किया जा सकता ।

उनकी कही गई सारी बातें आउटस्टैंडिंग थी । बहुत उम्दा लिखा है आपने ।

इसके पहले उन्होंने वैदेही को धर्मशाला में ठहराने की व्यवस्था की थी । वैदेही से मुझे बहुत ज्यादा सहानुभूति हो गई है । उसकी वर्तमान पीड़ा को मैं बहुत अच्छी तरह से महसूस कर रहा हूं । जयंत सर ने उसकी मदद करके हमारा दिल जीत लिया ।
विश्व सही कहता है वो भगवान तुल्य है ।

हिंदी में आप की नोलेज सच में बहुत ही अच्छी है । वेश्याओं के लिए सम्मान सूचक शब्द नगर बधू होता है । एक भद्र पुरुष ही ऐसे शब्दों का उच्चारण कर सकता है ।

सब कुछ , एवरी वर्ड , एवरी लाइन वाज आउटस्टैंडिंग ।
जगमग जगमग करता हुआ अपडेट था यह ।
अब क्या कहूँ
आप सच में हर शब्दों की गहराई तक नाप लेते हैं
धन्यबाद बंधु बहुत बहुत धन्यबाद
 

Jaguaar

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👉सत्ताईसवां अपडेट
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प्रतिभा सुबह सुबह तापस और प्रत्युष को चाय नाश्ता दे कर डायनिंग टेबल पर अपनी चाय की कप लेकर बैठ जाती है l दोनों बाप बेटे गौर करते हैं, प्रतिभा चाय की कप में शुगर क्यूब डाल कर चम्मच से घोल रही है, और उसका ध्यान कहीं और है l
प्रत्युष, तापस को आखों के इशारे से प्रतिभा को दिखा कर पूछता है - माँ को क्या हुआ है,
तापस अपने कंधे उचका कर और मुहं पिचका कर इशारे से कहता है - मुझे नहीं पता
प्रत्युष फिर अपनी माँ को गौर से देखता है, अभी भी प्रतिभा चम्मच को चाय में हिला रही है l प्रत्युष अपनी गले का खारास ठीक करता है l फ़िर भी प्रतिभा का ध्यान नहीं टूटती l
प्रत्युष - माँ...
प्रतिभा - (चौंक कर) हाँ... क... क्या.. कहा..
प्रत्युष - अरे माँ.... क्या हुआ है... आपको आज... आपका ध्यान कहाँ है....
प्रतिभा - क.. कुछ.. (अपना सर ना में हिलाते हुए) कुछ नहीं....
प्रत्युष - डैड... आपको कुछ मालूम है...
तापस - ऑफकोर्स माय सन... मैं जानता हूं....
प्रतिभा - खीज कर... अच्छा तो जानते हैं आप...
प्रत्युष - आप रुको मॉम... अभी थोड़ी देर पहले डैड ने मुझसे झूठ कहा था....
तापस - मैंने कब झूठ बोला.... वैसे माँ से मॉम... यह ट्रांसफर्मेशन कब हुआ....
प्रत्युष - जब आपने मुझे झूठ बोला....
प्रतिभा - ओह ओ... यह क्या... फ़ालतू बकवास ले कर बैठ गए तुम लोग.... वैसे सेनापति जी... आपको मालूम क्या है.... बताने का कष्ट करेंगे....
तापस - प्रोफेशनल टैक्लींग में मात खा गई तुम....
प्रतिभा - व्हाट....
प्रत्युष - यह क्या बला है... डैड...
तापस - बेटे वकालत में... केस के सुनवाई के दौरान... वकील एक दुसरे पर... साइकोलॉजीकल दबाव बना कर एक तरह से जिरह के दौरान.... एडवांटेज लेने की कशिश करते हैं..... इसमें कोई शक नहीं... की तुम्हारी माँ... अपनी फील्ड में एक्सपेरियंस्ड है... पर वह जिनको टक्कर दे रही हैं... वह एक वेटरन हैं.... इसलिए तुम्हारी माँ का ध्यान भटका हुआ है....
प्रत्युष - ओ.... तो यह बात है...
तापस - देखो भाग्यवान... तुम अपनी कोशिश पूरी रखना.... बाकी.... वक्त पर छोड़ दो....
प्रतिभा एक गहरी सांस छोड़ कर हाँ में सर हिलाती है l
प्रत्युष - (प्रतिभा के हाथ पकड़ कर) हे... माँ... चीयर अप...
प्रतिभा प्रत्युष के हाथ को पकड़ कर मुस्करा कर अपनी आँखे वींक करती है और तापस से पूछती है
प्रतिभा - आपने कैसे अंदाजा लगाया....
तापस - कल मैं देख रहा था.... तुम अपनी प्रेजेंटेशन के दौरान... कुछ खास पॉइंट पर जब जोर दे रही थी.... तब तुम जयंत सर को भी देख रही थी.... और वह एक दम निर्विकार भाव से बैठे हुए थे.... तब तुम भले ही जाहिर ना किया हो... पर अंदर ही अंदर तुम ऑनइज़ी फिल् कर रही थी... यह मैंने तब महसूस कर ली थी....
प्रतिभा - ओ ह...
तापस - भाग्यवान... इतना कहूँगा.... तुम इस केस को... प्रोफेशनली डील करो... ना कि पर्सनली..... तुम पब्लिक प्रोसिक्यूटर हो.... सरकारी वकील.... इस केस को अपने दिल या दिमाग पर हावी होने मत दो...
प्रतिभा मुस्कराते हुए अपनी गर्दन हाँ में हिलती है l
प्रत्युष - दैट्स माय मॉम.... मतलब मेरी प्यारी माँ...

तीनों हंस देते हैं
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उसी समय एक कमरे में रोणा और बल्लभ दोनों खड़े हुए हैं और उनके सामने पिनाक कमरे में एक तरफ से दुसरे तरफ तक अपने दोनों हाथों को पीठ के पीछे बांध कर, तो कभी अपने दाहिने हाथ की मुट्ठी को अपने बाएं हाथ पर मारते हुए चहल पहल कर रहा है और उसके चेहरे पर तनाव साफ झलक रही है l
पिनाक - तुम दोनों पिछले दो दिनों से कटक से भुवनेश्वर,... भुवनेश्वर से कटक हो रहे हो... हमसे मिलने की ज़हमत भी नहीं उठा सके.... जब कि तुम लोगों के राजगड़ से निकालते ही... भीमा ने हमे खबर कर दी थी...
बल्लभ - वह... हम.. यहां रह कर केस की... हर पहलू पर काम कर रहे थे...
पिनाक - काम कर रहे थे.... या झक मार रहे थे...
बल्लभ - एक गलती तो हुई है.... हमे अपनी तरफ से वकील देना चाहिए था....
पिनाक - तो... भोषड़ी के... राजा साहब को यह आइडिया दी क्यूँ नहीं... उस वक़्त... तु हमारा कानूनी जानकार है.... सलाहकार है... तो आइडिया भी तुझे ही देना चाहिए था ना....
बल्लभ - छोटे राजा जी... हम सलाह तब देते हैं... जब पूछा जाए... अगर हम अपने तरफ से.... राय दिए... तो अंजाम सभी जानते हैं... राजा साहब किसीके सुनते नहीं हैं.... और राजा साहब जो कह दें... उसकी तामील करना... हमारा धर्म...
पिनाक - ह्म्म्म्म... तो जब तुझे पूछा था... सरकार विश्व के लिए वकील दे रहा है... तब तो तु बड़ी डिंगे हांक रहा था.... सब परफेक्ट है... कुछ नहीं होगा....
बल्लभ - हाँ... तब मैंने राजा साहब जी के.. सरकार पर प्रभाव को देख कर... इस बात को हल्के में ले लिया था...
पिनाक - अब.... देखो प्रधान... मैंने तब भी कहा था.... आज भी दोहरा रहा हूं... यह राजा साहब के नाक और मूँछ का सवाल है....
बल्लभ - इसलिए तो हम दोनों... यहाँ आए हुए हैं...
पिनाक - क्या... हम... जयंत से बात करें...
बल्लभ - जी नहीं छोटे राजा जी.... बिल्कुल नहीं.... मैंने... जयंत पर पूरी छानबीन कर ली है.... हम बात करेंगे तो बाहर आ सकते हैं... और यह आत्मघाती होगा...
पिनाक - ह्म्म्म्म
रोणा - मैं तो कहता हूँ... उसका एक्सीडेंट ही करा देते हैं.... उन दो बॉडी गार्ड्स के साथ.... सारा झंझट ही खतम...
पिनाक - तब... सरकार... और एक सरकारी वकील नियुक्त करेगी..... तो हरामजादे कितनों को मारता रहेगा..
रोणा कुछ कहने को होता है पर बल्लभ इशारे से उसे चुप रहने को कहता है l पिनाक एक सोफ़े पर धप कर बैठ जाता है l और अपने दोनों हाथो से अपना सर पकड़ लेता है l
पिनाक - प्रधान..... कुछ सोचो.... याद रखो... राजासाहब वह डाइनामाइट है.... अगर फटे.... तबाही और बरबादी होगी सो अलग.... लाशें कितनी बिछेंगी और किन किन की... गिनना मुश्किल हो जाएगा..... इसलिए सोचो... जिस तरह से... उस जयंत ने... अपनी दो बार उपस्थिति में...ना सिर्फ अपनी ही चलाई है... बल्कि अदालत की रुख को अपने हिसाब से मोड़ा है....
बल्लभ - छोटे राजा जी... हम पहले जयंत क्या कहेगा कल कोर्ट में... वह पहले सुन लेते हैं.... बाद में उसी हिसाब से... हम गवाहों को हैंडल करेंगे.... ताकि कोई गवाह ना टूटे....
पिनाक - ठीक है... इस बाबत कुछ कदम उठाए हैं क्या तुमने....
बल्लभ - जी मैं और रोणा पहले से ही इसी काम में लग चुके हैं.... सावधानी से कर रहे हैं... ताकि हम में से किसीका नाम बाहर निकल कर ना आए....
पिनाक - ठीक है.... और हाँ कुछ भी करने से पहले.... मुझे इन्फॉर्म कर दिया करो.... क्यूंकि यह याद रहे.... यह ना तो यशपुर है और ना ही राजगड़ है... यह भुवनेश्वर और कटक है.... और यहाँ पर अभी तक... ना हमने पांव पसारे हैं... और ना ही पंख फैलाए हैं....

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उधर जैल में डायनिंग टेबल पर अपनी थाली हाथ में लिए विश्व बैठा हुआ है और वह भी किसी सोच में गुम है l
-क्या हुआ है... हीरो... किस सोच में तु खोया हुआ है....
डैनी अपना थाली ले कर विश्व के पास बैठते हुआ कहा l
विश्व अपना सर हिलाते हुआ ना कहा l
डैनी - पहले न्यूज में... जिस तरह धज्जियाँ उड़ाया जा रहा था... तेरा... अब वैसा नहीं हो रहा है...
विश्व - हाँ.. वह जयंत... सर ने... कोर्ट में... मीडिया एक्टिविटी को गलत ठहरा दिया... यही वजह है...
डैनी - एक बात तो है.... तुझे वकील... वाकई बहुत जबरदस्त मिला है... वह भी सरकारी ख़र्चे पर.... तेरे केस में सबसे इंट्रेस्टिंग क्या है... जानता है तेरी वाट लगाने के लिए भी सरकारी वकील... और तेरा बेड़ा पार करने वाला भी सरकारी वकील... और दोनों कामों के लिए सरकार अपनी जेब ढीली कर रही है.... हा हा हा हा...
विश्व - आप यहां कितने सालों के लिए हैं...
डैनी - मैं भी बहुत खास मुज़रिम हुं... सरकार के लिए.... हाँ... यह बात और है.. मैं यहाँ... अपनी मर्जी से आता हूँ... और अपनी मर्जी से जाता हूँ....
विश्व - वह कैसे... और आप यहाँ... कौनसे बैरक में रहते हैं...
डैनी - मैं यहाँ स्पेशल सेल में रहता हूँ.... क्यूंकि मैं यहाँ... स्पेशल अपराधी हूँ... मेरी जान को खतरा बता कर... मैं यहाँ... छुट्टियां इंजॉय कर रहा हूँ... ख़ैर तुने बताया नहीं... किस सोच में डूबा हुआ था...
विश्व - वह... मैं जयंत सर जी के बारे में.. सोच रहा था... मैं उनके व्यक्तित्व को... बिल्कुल भी समझ नहीं पा रहा हूँ...
डैनी - क्यूँ... तुझे... उन पर शक हो रहा है... क्या....
विश्व - नहीं... बिल्कुल नहीं... सच कहूँ तो... आज..... जब भी भगवान को याद करते हुए अपनी आँखे बंद करता हूँ..... मुझे सिर्फ उनका ही चेहरा दिखता है....
डैनी - तो फिर.... उनके बारे सोच क्या रहा है...अगर उनको भगवान के जगह रख दिया है.... तो उनके बारे में सोचना भी मत... क्यूँ की भगवान किसीके भी सोच से परे हैं.... पर यह बता... तुझे उन इतना भरोसा कैसे हो गया...
विश्व - नहीं जानता... पर जब भी काले कोट में अदालत में उनको मेरे लिए खड़े होते देखता हूँ... तो मुझे अंदर से ऐसा लगता है.... मुझ होने वाले जैसे दुनिया भर की हमलों के आगे..... वह ढाल बन कर खड़े हुए हैं.... और जब तक वह खड़े हों.... दुनिया की कोई भी बुरी ताकत... मुझे छू भी नहीं सकती....
डैनी - वाह.... क्या बात है.... अगर तू इतना ही उन परभरोसा करता है.... तो फिर उनके बारे में... सोच क्या रहा है....
विश्व - हमने हमेशा एक बात सुनी है... अपने बड़ों से.. या फिर... किसी और से.... की सफेद कोट वाले से.... मतलब डॉक्टर से... अपनी बीमारी के बारे में... और काले कोट वाले से, मतलब वकील से... अपनी गलतियों के बारे में.... कभी भी कुछ भी छुपाना नहीं चाहिए...
डैनी - हाँ.... यह बात तो है.... क्यूँ तूने कुछ छुपाया है.. क्या....
विश्व - छुपाता तब ना.... जब उन्होंने... मुझसे कुछ पूछा हो.... उन्होंने मुझसे कुछ पूछा ही नहीं है..... पर वह मेरे लिए... मुझे इन्साफ देने के लिए... जिस तरह लड़ रहे हैं.... मुझे कुछ भी नहीं होगा ऐसा मुझे लगता है... जब भी उन्हें देखता हूँ.... पर कल वह मेरा पक्ष रखेंगे.... अदालत में... क्या रखेंगे... कैसे रखेंगे.... बस यही सोच रहा हूँ.....
डैनी - ह्म्म्म्म... तेरे बात सुन कर... मेरा सिर घूम गया है.... फिर भी... बेस्ट ऑफ लक...
विश्व - जी... बहुत बहुत शुक्रिया....

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काठजोड़ी नदी के गणेश घाट के पास सिमेंट से बनी एक कुर्सी पर वैदेही बैठी हुई है l शाम की चहल पहल बढ़ गई है l बहुत से बुजुर्ग कोई हाथ में लकड़ी लेकर और कोई अपने साथ कुत्तों को लेकर इवनिंग वक कर रहे हैं l

-अरे वैदेही तुम यहाँ.... यहाँ क्या कर रही हो....
वैदेही की ध्यान टूटती है और आवाज़ को तरफ देखती है जयंत वहाँ पर खड़ा हुआ है l
वैदेही - जी नमस्ते जयंत सर...
जयंत - हाँ... नमस्ते.... पर तुमने बताया नहीं... के इस वक्त तुम यहाँ क्या कर रही हो....
वैदेही - (मुस्कराने की कोशिश करते हुए) जी फिलहाल यहाँ बैठी हुई हूँ...
जयंत - अच्छा... मुझसे ही होशियारी.... ह्म्म्म्म
वैदेही - जी... माफ कर दीजिए... दर असल... कल विश्व के तरफ से.... आप क्या कहेंगे... और उस पर जज साहब की... क्या प्रतिक्रिया होगी... बस यही सोच रही थी...
जयंत - अरे... इतनी सी बात पर तुम डर गई.... बिल्कुल एक तोते की तरह पटर पटर कैसे बोल गई...
वैदेही अपने चेहरे पर मुस्कान लाने की कोशिश करती है
जयंत - ह्म्म्म्म (वैदेही के पास बैठते हुए) तो तुम्हें क्या लगता है..
कहीं मुझसे भरोसा तो नहीं उठ गया....
वैदेही - क्या बात कर रहे हैं सर... मैंने तो उसी दिन कह दिया था आपको.... अब हमे अंजाम की कोई परवाह नहीं है.... पर फिर भी एक जिज्ञासा तो मन में है ही....

जयंत - ह्म्म्म्म तो यह बात है... देखो वैदेही... मैं अपनी मुवकील से... सहानुभूति से या भावनात्मक रूप से जुड़ना नहीं चाहता हूँ.... बस केस से जुड़े तथ्यों को छोड़ मैं किसी भी प्रकार से दूसरे निजी तथ्यों से किनारा कर लेता हूँ... क्यूंकि मैं अपनी मुवकील को जज के सामने या न्यायालय में बेचारा साबित नहीं करना चाहता हूँ.... या तो दोषी साबित करूं.. या फ़िर निर्दोष..... अब सरकार ने खुद मुझे यह जिम्मा सौंपा है... के मैं तुम्हारे भाई को निर्दोष साबित करूँ... तो मेरी कोशिश तो पूरी यही रहेगी...
यह सब सुन कर वैदेही के चेहरे पर एक खुशी छा जाती है, जो जयंत को साफ दिख भी जाता है l
जयंत - अच्छा... कल जब सुनवाई है... तो अब तुम यहीँ... कटक में रहोगी या... अपने गांव चली जाओगी....
वैदेही - वह मैं... एक हफ्ते से गांव नहीं गई हूँ.... यहीं... रेल्वे स्टेशन जा कर... जनरल टिकेट कर देती हूँ.... और जनाना प्रतीक्षालय में रात को सो जाती हूँ... और वहीँ शौचालय में... अपना नहाना धोना कर लेती हूँ... फिर दिन भर बाहर इधर-उधर होती रहती हूँ....

जयंत का चेहरा इतना सुनते ही सख्त हो जाता है l वह अपनी आँखे बंद कर लेता है l इतने में वैदेही पूछती है l
वैदेही - सर आपके वह... बॉडी गार्ड्स कहाँ हैं... दिखाई नहीं दे रहे हैं....
जयंत - वह देखो.... उस चने बेचने वाले के पास चने चर रहे हैं....
यह सुनते ही वैदेही की हंसी निकल जाती है
जयंत - (उठता है) चलो मेरे साथ...
वैदेही - (चौंकते हुए) जी... ज... जी... कहाँ...
जयंत - तुम्हारे लिए... रात का बंदोबस्त करने....
वैदेही - पर....
जयंत - अरे... चलो भी.... मैं तुम्हें... अपने घर नहीं ले जा रहा हूँ... तुम लड़की हो... कहीं कोई ऊँच नीच हो गई तो.... इसलिए बातेँ हम चलते चलते या बाद में कर लेंगे... अब बिना देरी किए मेरे साथ चलो....
वैदेही उठती है और जयंत के पीछे चल देती है l उन दोनों के पीछे जयंत के बॉडी गार्ड्स भी चलने लगते हैं l जयंत चांदनी चौक के जगन्नाथ मंदिर में पहुंच कर एक दुकान से छोटी टोकरी में पूजा का सामान लेता है और मंदिर के अंदर जाता है l वैदेही भी उसके पीछे पीछे चल देती है l मंदिर में पहुंचते ही मं
दिर के पुजारी उसे देख कर बाहर आता है और जयंत के हाथों में से पूजा की टोकरी ले जाता है
पुजारी - अहोभाग्य हमारे... जगन्नाथ के घर में जयंत पधारे...
दोनों - हा हा हा हा हा...
पुजारी - क्यूँ भई वकील... आज मंदिर... क्या बात है...
जयंत- कुछ नहीं पंडा जी... कुछ नहीं.... जिंदगी पेड़ के पत्ता हिल रहा है... पता नहीं कब झड़ जाए.... मतलब बुलावा आ जाए... इसलिए... उसके पास जाने से पहले... मस्का लगाने आ गया...
पुजारी - तुम नहीं सुधरोगे... भगवान घर में ठिठोली....
इतना कह कर पुजारी मंदिर के गर्भ गृह में जा कर, पूजा करता है और पूजा की टोकरी ला कर जयंत को लौटा देता है l
पंडा - कहो... आज कई सालों बाद... मंदिर में... अपने लिए तो नहीं आए होगे.... बोलो किसके लिए....
जयंत - क्या... पंडा... अरे... मैं कोर्ट में... अपनी नौकरी पेशा जीवन का... अंतिम केस लड़ रहा हूँ... इसलिए कई सालों बाद आया हूँ... कालीया को भोग का मस्का लगाने...
पंडा - फिर.. ठिठोली... तुम... भले ही मंदिर ना आओ.... पर इस मंदिर के कमेटी में हो.... और कमेटी मीटिंग बराबर.... अटेंड करते हो.... क्या भगवान को इस बात का भान नहीं है....(जयंत चुप रहता है) पर तुमने तो केस लेना बंद कर दिया था ना..... फिर अचानक यह केस...
दोनों मंदिर की परिक्रमा करते हुये
जयंत - पंडा..... तुम्हें क्या लगता है.... सारे राज्य वासियों के भावना के विरुद्ध... मैं वह केस लड़ रहा हूँ....
पंडा - देखो जयंत.... मैं दुनिया की नहीं जानता.... पर तुम्हें अच्छी तरह से जानता हूँ... तुम कभी गलत हो ही नहीं सकते.... और मैं यह भी जानता हूँ... जब तक कोर्ट में तुम डटे हुए हो..... कोई भी उस लड़के का बाल भी बांका नहीं कर सकता....
जयंत, थोड़ा मुस्करा देता है l तभी जयंत की नजर एक जगह ठहर जाता है l
जयंत - वैदेही.... सुनो तो जरा...
वैदेही उस वक्त मंदिर के आनंद बाजार (जहां अन्न प्रसाद मिलता है) के एक खंबे के टेक् लगा कर वैदेही खड़े हो कर उनकी बातें सुन रही है l
जयंत - आरे... वैदेही... तुम यहाँ.... आओ
पंडा - तुम जानते हो इस लड़की को.... यह रोज दो पहर को... आ जाती है और अन्न प्रसाद सेवन तक यहीं बैठी रहती है....
जयंत - आरे.... पंडा... यह पागल लड़की.... का यहीं... मंदिर के धर्म शाला में रहने की प्रबंध कर दो....
वैदेही - आरे... सर... आप हमारे लिए... इतना तो कर रहे हैं...
जयंत - अरे... मूर्ख... अगर मैंने केस हाथ में लिया है... तो केस की सुनवाई खत्म होने तक... विश्व की तरह तुम भी मेरी... जिम्मेदारी हो...
वैदेही चुप रहती है
जयंत - मैं अब अपने घर में... तुम्हें रख नहीं सकता.... क्यूँकी मेरे घर में.... मेरे साथ... मेरे सुरक्षा के लिए... और दो मर्द रह रहे हैं... पर कटक सहर में... मैं तुम्हारे रहने का बंदोबस्त तो कर सकता हूँ....
वैदेही उसे नजर उठा कर देखती है
जयंत - (पुजारी को देख कर) अरे पंडा... मंदिर के धर्मशाला में... एक कमरा... इस लड़की के लिए...
पंडा - समझ गया.... देखो वैदेही... अब हमारे मंदिर की धर्मशाला में एक कमरा लेलो.... और चूंकि तुम्हारी सिफारिश जयंत ने की है.... इसलिए मैं तुमको... नियम के बाहर जा कर.... जब तक केस समाप्त नहीं हो जाती... तब तक भाड़े में रह सकती हो....
जयंत - घबराओ नहीं.... भाड़ा.. भी नहीं लगेगा.... नियम में यह भी है.... ट्रस्टी के रिकॉमेंड हो... तो पैसा भी नहीं लगता...
पंडा, जयंत को मुहं फाड़े देखता है l वैदेही खुश हो कर जयंत को हाथ जोड़ती है l
जयंत - अच्छा जाओ (हाथ दिखा कर) वहां धर्मशाला... अरे पंडा... जाओ यार इस लड़की को कमरा दे दो...
पंडा अपना सर को हिलाते हुए, वैदेही को धर्मशाला की ओर ले जाता है l वैदेही को एक कमरा दिलाने के बाद, जयंत के पास वापस आता है l
पंडा - भई... कौनसे नियम के अनुसार... ट्रस्टी के सिफारिश हो... तो पैसा देना नहीं पड़ता...

जयंत - पंडा.... यह लड़की बहुत गरीब है.... और मैं तो ठहरा... अकेला.... पैसे इस गरीब के भले के लिए थोड़े खर्च हो जाए... तो क्या फर्क़ पड़ता है.... उसकी बिल मुझे भेज देना.... मैं भर दूँगा..... और हाँ... उसे मालुम ना हो.... क्यूंकि बहुत खुद्दार किस्म के लोग है यह.....

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आज कानून के बड़े बड़े दिग्गज और विशेषज्ञों की नजरे अदालत के आज की कारवाई पर टिकी हुई है.... पिछली सुनवाई में अभियोजन पक्ष की वकील श्रीमती प्रतिभा सेनापति जी ने एसआइटी और पुलिस के जांच को अपनी मजबूत दलीलों को अदालत के सम्मुख प्रस्तुत किया था..... आज का दिन भी इस केस के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है.... क्यूंकि आज अभियुक्त पक्ष के दलीलों को अदालत के समक्ष श्री जयंत कुमार राउत प्रस्तुत करेंगे.... एसआइटी जांच में दोषी पाए गए अभियुक्त श्री विश्व के पक्ष अपनी किन मजबूत दलीलों के द्वारा अदालत को प्रभावित करेंगे यह देखना दिलचस्प होगा.... चूंकि अभी कुछ ही समय पूर्व अभियुक्त को पुलिस की सुरक्षा के घेरे में ले जाया गया है.... थोड़ी देर बाद सुनवाई शुरू हो जाएगी.... सुनवाई के फौरन बाद... आज अदालत में क्या क्या हुआ... हम दर्शकों के सामने लाएंगे.... तब तक के लिए कैमरा मैन सतबीर के साथ मैं प्रज्ञा..... खबर ओड़िशा के लिए....
इस खबर की प्रसारण कर रिपोर्टर ने अपना माइक निकाला और अदालत के बाहर पुलिस के द्वारा बनाए गए बैरिगेट के पास चली जाती है l उधर कोर्ट की स्पेशल रूम में पिछले दिनों की तरह ही दृश्य दिख रहा है l हमेशा की तरह तीनों जज अपनी अपनी कुर्सियों पर बैठ जाते हैं l औपचारिकता के बाद
मुख्य जज - ऑर्डर ऑर्डर... आज की कारवाई शुरू की जाए..
हॉकर - अभियुक्त श्री विश्व प्रताप को हाजिर किया जाए...
पुलिस विश्व को लेकर मुल्जिम वाले कटघरे में खड़ा कर देती है
जज - जैसा कि पिछली सुनवाई में... अभियोजन पक्ष.... पुलिस और एसआइटी की जांच की पक्ष और साथ साथ गवाहों के बयानात और गवाहों के नाम... अदालत और बचाव पक्ष को उपलब्ध कराया... है... आज का दिन केवल बचाव पक्ष की दलीलें सुनी जाएंगे.... और यह अदालत दोनों पक्षों को सूचित करती है.... के पिछली सुनवाई बाद सभी गवाहों को समन कर दी गई है.... इसलिए अगले हफ्ते में जो गवाह आयेंगे.... उनकी गवाही की दोनों पक्षों के द्वारा जिरह की जाएगी.... पर अभी के लिए.... अभियुक्त पक्ष के वकील श्री जयंत राउत जी को अपना पक्ष रखने के लिए अनुमती देते हुए कारवाई को आगे बढ़ाया जाता है.... श्री जयंत जी आप अपना पक्ष रखें....
जयंत - जी धन्यबाद... योर ऑनर.....
अपनी जगह से उठते हुए जयंत ने कहा l जयंत के उठते ही कुछ लोगों की धड़कने उत्सुकता वश तेज हो गई l इन में विश्व और वैदेही तो हैं ही, प्रतिभा, तापस ही नहीं यहाँ तक जज भी जयंत के द्वारा दी जाने वाली दलील को सुनने के बेताब हो उठे l पूरा कोर्ट रूम में केवल शांति ही शांति विराजमान है l
जयंत - योर ऑनर.... मैं प्रोसिक्युशन की इस बात से इत्तेफाक रखता हूँ.... के आज अदालत में चल रही इस केस की ओर.... साधारण जन मानस बड़े ध्यान से देख रही है.... और न्याय प्रक्रिया के दौरान और समाप्त होने तक... न्याय की परिभाषा क्या होगी यह आने वाली समय के गर्भ छुपा हुआ है......
माय लॉर्ड.... अंग्रेजी में एक कहावत है.... रोम नेवर बिल्ट इन वन नाइट.... अर्थात बड़े बड़े साम्राज्य... या बड़े बड़े स्वर्णिम अध्याय... कभी अचानक से नहीं बनते... क्रम अनुसार, धीरे धीरे बनते बनते समयानुसार विशाल रूप में प्रकट होती है... षडयंत्र भी इसी तरह होते हैं.... माय लॉर्ड... षडयंत्र, वह भी आर्थिक घोटाले की... एक काले साम्राज्य की तरह होता है... योर ऑनर.... यह भी धीरे धीरे.... दिमाग से निकल कर... वास्तविकता में उतर कर... आकार लेते लेते विशाल हो जाता है... यह आर्थिक घोटाले... आर्थिक अनाचार... एक समाज में एक नए नगर बधु की तरह होती है.... हर सामर्थ्य व पुरूषार्थ रखने वाला... इसे लूटना चाहता तो है... पर उसके साथ अपने परिचय को स्वीकार नहीं करता.... अगर उसके कर्म फूटने को होते हैं... तब वह सामर्थ्यबान किसी ऐसे व्यक्ति का जुगाड़ करते हैं... जिस पर अपनी काली करनी को थोप देते हैं....
आज का यह मनरेगा घोटाला केस भी ऐसा है योर ऑनर....
एक बच्चे को जन्म लेने के लिए.... प्रकृति ने नौ महीने का विधान किया है... पर उसके लिए भी पुरुष एवं स्त्री की मिलन की प्रस्तुति की जाती है..... इस प्रक्रिया में भी समय लगता है योर ऑनर.... पर यहाँ एसआइटी के जांच रिपोर्ट यह दर्शा रही है.... की यह कांड विश्व के सरपंच बनने के सिर्फ़ सात महीने में पूरा हो गया.... कितनी प्यारी... और मासूम... थ्योरी है...
इतना कह कर जयंत थोड़ी देर रुक जाता है और अपने टेबल के पास आकर एक फाइल उठा लेता है l
जयंत - योर ऑनर... प्रोसिक्युशन ने... पिछले सुनवाई के दौरान... अपना तथ्य प्रस्तुत किया... पहले पन्ने पर मुल्जिम की परिचय, शिक्षा गत योग्यता और देव पुरुष राजा साहब की उदारता का उल्लेख किया.... उसके बाद हम आते हैं... दूसरे पन्ने पर... जहां विश्व के इक्कीस वर्ष होने की बात की गई है... और उसके बाद...(प्रतिभा भी अपनी फाइल खोल कर देखने लगती है) योर ऑनर... यह तीसरी लाइन को गौर से पढ़ा जाए.... जहां पर यह लिखा गया है... राजा साहब ने... राजगड़ व उसके आसपास इलाकों के विकास के लिए एक नया जोश, एक नया खून वाले नौ जवान विश्व को सरपंच चुनाव में... भाग लेने के लिए कहा.... इसके आगे की लाइन को प्रोसिक्युशन पढ़ना या बताना शायद भूल गई.... मगर यह जांच रिपोर्ट में साफ साफ लिखा है... योर ऑनर.... राजा साहब के आग्रह को विश्व ने पहले इंकार कर दिया... पर विश्व के पारिवारिक मित्र और उसके गुरु श्री उमाकांत आचार्य जी के कहने पर... विश्व चुनाव लड़ने के लिए तैयार हुआ.... मतलब एक वर्ग ऐसा जरूर था... जो चाहता था... की विश्व सरपंच बनें.... ताकि उनके किए कुकर्मों को ढोने वाला कंधा विश्व के हो.... और ताजूब की बात यह है कि.... विश्व के किए घोटाले की... योर ऑनर... विश्व के जरिए जिस आवंटित राशि की बात की जा रही है.... वह राशि पिछले सरपंच के काल की हैं.... ना कि विश्व के काल की... और राशि है किसकी.... पीएम आवास योजना, पीएम ग्राम सड़क योजना, नए कैनाल बनाने की योजना, कैनाल सफाई के योजना, नए तालाब निर्माण योजना और कैनाल पर बनने वाले कल्वर्ट निर्माण योजना... इस सब योजना के ब्लू प्रिंट... पहले बनी होगी.... उसकी बजट एस्टीमेशन के बाद... प्रोजेक्ट अप्रूवल के ब्लाक ऑफिस फिर तहसील ऑफिस गई होगी.... फिर उसके बाद उस प्रोजेक्ट का पैसा तहसील को आया होगा... फिर उस प्रोजेक्ट शुरू करने के लिए... टेन्डर के जरिए कंट्रैक्ट अवॉर्ड हुआ होगा... फ़िर काम शुरू हुआ होगा.... तभी तो आवंटित राशि वापस लौट ना सकी... पर चूंकि प्रोजेक्ट कंप्लीशन सर्टिफिकेट और पहले अलॉट किए राशि की युटीलाइजेशन सर्टिफिकेट ना हो तो बकाया राशि की भुगतान नहीं हो सकती थी.... इसलिए वह खास वर्ग... विश्व को चुना... क्यूंकि.. विश्व एक नव युवक था और इस राजनीति के खेल में अनभिज्ञ भी.....
इतनी बड़ी राशि को लूटने के लिए.... प्रोसिक्युशन की मानें तो विश्व के पास प्लान बना कर उसे एक्जीक्युट करने के लिए सिर्फ़ सात महीने थे... योर ऑनर... और इन साथ महीनों में उसे टीम भी बनानी थी... जिसे सौ सेल कंपनीयों के रजिस्ट्रेशन करना था... ऊपर से इन्हीं सात महीनों में उसे रूप यानी... राजगड़ उन्नयन परिषद नाम की एनजीओ का रजिस्ट्रेशन के साथ साथ उसके अकाउंट भी ऑपरेट कर.. उसके पैसे हथियाने थे... और सबसे अहम बात योर ऑनर.... यह सब प्रोसिजर को परफेक्ट करने के लिए... विश्व को पांच हजार मृत् लोगों के आधार कार्ड भी जुगाड़ने थे इन्हीं सात महीने में.... वाह क्या जांच है... और क्या कहानी है....
योर ऑनर... मैं और इसे ज्यादा नहीं खींचना चाहता हूँ....
प्रोसिक्यूशन के तरफ से जितने बयान और गवाहों के नामों का उल्लेख किया है.... उनमें प्रमुख सिर्फ पांच गवाह हैं... जिनसे बचाव पक्ष जिरह करना चाहती है... योर ऑनर...
जज - वह गवाह... कौन कौन हैं.... डिफेंस लॉयर...
जयंत - पहले गवाह हैं... मिस्टर दिलीप कुमार कर... जो पहले तो विश्व से चेक साइन करवाया और आगे चल कर एसआइटी के सरकारी गवाह बनें....
दुसरे - तहसील ऑफिस के एक और क्लर्क... मिस्टर एके सुबुद्धी... जिनके सामने तहसील ऑफिस के अंदर यह सारे कांड हुए...
तीसरे - राजगड़ थाना के प्रभारी... श्री अनिकेत रोणा...
चौथे - राजा साहब... श्री भैरव सिंह क्षेत्रपाल जी...
और अंत में एसआइटी के मुख्य जांच अधिकारी श्री के सी परीडा
जज - ठीक है... क्या प्रोसिक्यूशन को कोई ऐतराज है....
प्रतिभा - (अपनी जगह से उठकर) जी नहीं योर ऑनर...
जज - ठीक है... जयंत बाबु... आपको किन क्रम में... गवाहों से जिरह करेंगे....
जयंत - कोई फर्क़ नहीं पड़ता... योर ऑनर... कोई भी किसी भी क्रम में आ सकते हैं... या फिर गवाही के लिए अपनी उपस्थिति दर्ज करवा सकते हैं....
जज - ठीक है... आज बचाव पक्ष के दलीलों को सुनने के बाद... अगले हफ्ते से गवाहों से दोनों पक्ष अपने अपने तरीके से जिरह करेंगे... आज बचाव पक्ष ने जिन नामों की उल्लेख किया है... सबसे पहले उन्हीं लोगों को समन किया जाए.... इसके साथ ही अदालत की कारवाई आज के लिए स्थगित कि या जाता है....
Awesome Update
 
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