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प्रतिभा सुबह सुबह तापस और प्रत्युष को चाय नाश्ता दे कर डायनिंग टेबल पर अपनी चाय की कप लेकर बैठ जाती है l दोनों बाप बेटे गौर करते हैं, प्रतिभा चाय की कप में शुगर क्यूब डाल कर चम्मच से घोल रही है, और उसका ध्यान कहीं और है l प्रत्युष, तापस को आखों के इशारे से प्रतिभा को दिखा कर पूछता है - माँ को क्या हुआ है,
तापस अपने कंधे उचका कर और मुहं पिचका कर इशारे से कहता है - मुझे नहीं पता
प्रत्युष फिर अपनी माँ को गौर से देखता है, अभी भी प्रतिभा चम्मच को चाय में हिला रही है l प्रत्युष अपनी गले का खारास ठीक करता है l फ़िर भी प्रतिभा का ध्यान नहीं टूटती l
प्रत्युष - माँ...
प्रतिभा - (चौंक कर) हाँ... क... क्या.. कहा..
प्रत्युष - अरे माँ.... क्या हुआ है... आपको आज... आपका ध्यान कहाँ है....
प्रतिभा - क.. कुछ.. (अपना सर ना में हिलाते हुए) कुछ नहीं....
प्रत्युष - डैड... आपको कुछ मालूम है...
तापस - ऑफकोर्स माय सन... मैं जानता हूं....
प्रतिभा - खीज कर... अच्छा तो जानते हैं आप...
प्रत्युष - आप रुको मॉम... अभी थोड़ी देर पहले डैड ने मुझसे झूठ कहा था....
तापस - मैंने कब झूठ बोला.... वैसे माँ से मॉम... यह ट्रांसफर्मेशन कब हुआ....
प्रत्युष - जब आपने मुझे झूठ बोला....
प्रतिभा - ओह ओ... यह क्या... फ़ालतू बकवास ले कर बैठ गए तुम लोग.... वैसे सेनापति जी... आपको मालूम क्या है.... बताने का कष्ट करेंगे....
तापस - प्रोफेशनल टैक्लींग में मात खा गई तुम....
प्रतिभा - व्हाट....
प्रत्युष - यह क्या बला है... डैड...
तापस - बेटे वकालत में... केस के सुनवाई के दौरान... वकील एक दुसरे पर... साइकोलॉजीकल दबाव बना कर एक तरह से जिरह के दौरान.... एडवांटेज लेने की कशिश करते हैं..... इसमें कोई शक नहीं... की तुम्हारी माँ... अपनी फील्ड में एक्सपेरियंस्ड है... पर वह जिनको टक्कर दे रही हैं... वह एक वेटरन हैं.... इसलिए तुम्हारी माँ का ध्यान भटका हुआ है....
प्रत्युष - ओ.... तो यह बात है...
तापस - देखो भाग्यवान... तुम अपनी कोशिश पूरी रखना.... बाकी.... वक्त पर छोड़ दो....
प्रतिभा एक गहरी सांस छोड़ कर हाँ में सर हिलाती है l
प्रत्युष - (प्रतिभा के हाथ पकड़ कर) हे... माँ... चीयर अप...
प्रतिभा प्रत्युष के हाथ को पकड़ कर मुस्करा कर अपनी आँखे वींक करती है और तापस से पूछती है
प्रतिभा - आपने कैसे अंदाजा लगाया....
तापस - कल मैं देख रहा था.... तुम अपनी प्रेजेंटेशन के दौरान... कुछ खास पॉइंट पर जब जोर दे रही थी.... तब तुम जयंत सर को भी देख रही थी.... और वह एक दम निर्विकार भाव से बैठे हुए थे.... तब तुम भले ही जाहिर ना किया हो... पर अंदर ही अंदर तुम ऑनइज़ी फिल् कर रही थी... यह मैंने तब महसूस कर ली थी....
प्रतिभा - ओ ह...
तापस - भाग्यवान... इतना कहूँगा.... तुम इस केस को... प्रोफेशनली डील करो... ना कि पर्सनली..... तुम पब्लिक प्रोसिक्यूटर हो.... सरकारी वकील.... इस केस को अपने दिल या दिमाग पर हावी होने मत दो...
प्रतिभा मुस्कराते हुए अपनी गर्दन हाँ में हिलती है l
प्रत्युष - दैट्स माय मॉम.... मतलब मेरी प्यारी माँ... तीनों हंस देते हैं
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उसी समय एक कमरे में रोणा और बल्लभ दोनों खड़े हुए हैं और उनके सामने पिनाक कमरे में एक तरफ से दुसरे तरफ तक अपने दोनों हाथों को पीठ के पीछे बांध कर, तो कभी अपने दाहिने हाथ की मुट्ठी को अपने बाएं हाथ पर मारते हुए चहल पहल कर रहा है और उसके चेहरे पर तनाव साफ झलक रही है l
पिनाक - तुम दोनों पिछले दो दिनों से कटक से भुवनेश्वर,... भुवनेश्वर से कटक हो रहे हो... हमसे मिलने की ज़हमत भी नहीं उठा सके.... जब कि तुम लोगों के राजगड़ से निकालते ही... भीमा ने हमे खबर कर दी थी...
बल्लभ - वह... हम.. यहां रह कर केस की... हर पहलू पर काम कर रहे थे...
पिनाक - काम कर रहे थे.... या झक मार रहे थे...
बल्लभ - एक गलती तो हुई है.... हमे अपनी तरफ से वकील देना चाहिए था....
पिनाक - तो... भोषड़ी के... राजा साहब को यह आइडिया दी क्यूँ नहीं... उस वक़्त... तु हमारा कानूनी जानकार है.... सलाहकार है... तो आइडिया भी तुझे ही देना चाहिए था ना....
बल्लभ - छोटे राजा जी... हम सलाह तब देते हैं... जब पूछा जाए... अगर हम अपने तरफ से.... राय दिए... तो अंजाम सभी जानते हैं... राजा साहब किसीके सुनते नहीं हैं.... और राजा साहब जो कह दें... उसकी तामील करना... हमारा धर्म...
पिनाक - ह्म्म्म्म... तो जब तुझे पूछा था... सरकार विश्व के लिए वकील दे रहा है... तब तो तु बड़ी डिंगे हांक रहा था.... सब परफेक्ट है... कुछ नहीं होगा....
बल्लभ - हाँ... तब मैंने राजा साहब जी के.. सरकार पर प्रभाव को देख कर... इस बात को हल्के में ले लिया था...
पिनाक - अब.... देखो प्रधान... मैंने तब भी कहा था.... आज भी दोहरा रहा हूं... यह राजा साहब के नाक और मूँछ का सवाल है....
बल्लभ - इसलिए तो हम दोनों... यहाँ आए हुए हैं...
पिनाक - क्या... हम... जयंत से बात करें...
बल्लभ - जी नहीं छोटे राजा जी.... बिल्कुल नहीं.... मैंने... जयंत पर पूरी छानबीन कर ली है.... हम बात करेंगे तो बाहर आ सकते हैं... और यह आत्मघाती होगा...
पिनाक - ह्म्म्म्म
रोणा - मैं तो कहता हूँ... उसका एक्सीडेंट ही करा देते हैं.... उन दो बॉडी गार्ड्स के साथ.... सारा झंझट ही खतम...
पिनाक - तब... सरकार... और एक सरकारी वकील नियुक्त करेगी..... तो हरामजादे कितनों को मारता रहेगा..
रोणा कुछ कहने को होता है पर बल्लभ इशारे से उसे चुप रहने को कहता है l पिनाक एक सोफ़े पर धप कर बैठ जाता है l और अपने दोनों हाथो से अपना सर पकड़ लेता है l
पिनाक - प्रधान..... कुछ सोचो.... याद रखो... राजासाहब वह डाइनामाइट है.... अगर फटे.... तबाही और बरबादी होगी सो अलग.... लाशें कितनी बिछेंगी और किन किन की... गिनना मुश्किल हो जाएगा..... इसलिए सोचो... जिस तरह से... उस जयंत ने... अपनी दो बार उपस्थिति में...ना सिर्फ अपनी ही चलाई है... बल्कि अदालत की रुख को अपने हिसाब से मोड़ा है....
बल्लभ - छोटे राजा जी... हम पहले जयंत क्या कहेगा कल कोर्ट में... वह पहले सुन लेते हैं.... बाद में उसी हिसाब से... हम गवाहों को हैंडल करेंगे.... ताकि कोई गवाह ना टूटे....
पिनाक - ठीक है... इस बाबत कुछ कदम उठाए हैं क्या तुमने....
बल्लभ - जी मैं और रोणा पहले से ही इसी काम में लग चुके हैं.... सावधानी से कर रहे हैं... ताकि हम में से किसीका नाम बाहर निकल कर ना आए....
पिनाक - ठीक है.... और हाँ कुछ भी करने से पहले.... मुझे इन्फॉर्म कर दिया करो.... क्यूंकि यह याद रहे.... यह ना तो यशपुर है और ना ही राजगड़ है... यह भुवनेश्वर और कटक है.... और यहाँ पर अभी तक... ना हमने पांव पसारे हैं... और ना ही पंख फैलाए हैं....
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उधर जैल में डायनिंग टेबल पर अपनी थाली हाथ में लिए विश्व बैठा हुआ है और वह भी किसी सोच में गुम है l
-क्या हुआ है... हीरो... किस सोच में तु खोया हुआ है....
डैनी अपना थाली ले कर विश्व के पास बैठते हुआ कहा l
विश्व अपना सर हिलाते हुआ ना कहा l
डैनी - पहले न्यूज में... जिस तरह धज्जियाँ उड़ाया जा रहा था... तेरा... अब वैसा नहीं हो रहा है...
विश्व - हाँ.. वह जयंत... सर ने... कोर्ट में... मीडिया एक्टिविटी को गलत ठहरा दिया... यही वजह है...
डैनी - एक बात तो है.... तुझे वकील... वाकई बहुत जबरदस्त मिला है... वह भी सरकारी ख़र्चे पर.... तेरे केस में सबसे इंट्रेस्टिंग क्या है... जानता है तेरी वाट लगाने के लिए भी सरकारी वकील... और तेरा बेड़ा पार करने वाला भी सरकारी वकील... और दोनों कामों के लिए सरकार अपनी जेब ढीली कर रही है.... हा हा हा हा...
विश्व - आप यहां कितने सालों के लिए हैं...
डैनी - मैं भी बहुत खास मुज़रिम हुं... सरकार के लिए.... हाँ... यह बात और है.. मैं यहाँ... अपनी मर्जी से आता हूँ... और अपनी मर्जी से जाता हूँ....
विश्व - वह कैसे... और आप यहाँ... कौनसे बैरक में रहते हैं...
डैनी - मैं यहाँ स्पेशल सेल में रहता हूँ.... क्यूंकि मैं यहाँ... स्पेशल अपराधी हूँ... मेरी जान को खतरा बता कर... मैं यहाँ... छुट्टियां इंजॉय कर रहा हूँ... ख़ैर तुने बताया नहीं... किस सोच में डूबा हुआ था...
विश्व - वह... मैं जयंत सर जी के बारे में.. सोच रहा था... मैं उनके व्यक्तित्व को... बिल्कुल भी समझ नहीं पा रहा हूँ...
डैनी - क्यूँ... तुझे... उन पर शक हो रहा है... क्या....
विश्व - नहीं... बिल्कुल नहीं... सच कहूँ तो... आज..... जब भी भगवान को याद करते हुए अपनी आँखे बंद करता हूँ..... मुझे सिर्फ उनका ही चेहरा दिखता है....
डैनी - तो फिर.... उनके बारे सोच क्या रहा है...अगर उनको भगवान के जगह रख दिया है.... तो उनके बारे में सोचना भी मत... क्यूँ की भगवान किसीके भी सोच से परे हैं.... पर यह बता... तुझे उन इतना भरोसा कैसे हो गया...
विश्व - नहीं जानता... पर जब भी काले कोट में अदालत में उनको मेरे लिए खड़े होते देखता हूँ... तो मुझे अंदर से ऐसा लगता है.... मुझ होने वाले जैसे दुनिया भर की हमलों के आगे..... वह ढाल बन कर खड़े हुए हैं.... और जब तक वह खड़े हों.... दुनिया की कोई भी बुरी ताकत... मुझे छू भी नहीं सकती....
डैनी - वाह.... क्या बात है.... अगर तू इतना ही उन परभरोसा करता है.... तो फिर उनके बारे में... सोच क्या रहा है....
विश्व - हमने हमेशा एक बात सुनी है... अपने बड़ों से.. या फिर... किसी और से.... की सफेद कोट वाले से.... मतलब डॉक्टर से... अपनी बीमारी के बारे में... और काले कोट वाले से, मतलब वकील से... अपनी गलतियों के बारे में.... कभी भी कुछ भी छुपाना नहीं चाहिए...
डैनी - हाँ.... यह बात तो है.... क्यूँ तूने कुछ छुपाया है.. क्या....
विश्व - छुपाता तब ना.... जब उन्होंने... मुझसे कुछ पूछा हो.... उन्होंने मुझसे कुछ पूछा ही नहीं है..... पर वह मेरे लिए... मुझे इन्साफ देने के लिए... जिस तरह लड़ रहे हैं.... मुझे कुछ भी नहीं होगा ऐसा मुझे लगता है... जब भी उन्हें देखता हूँ.... पर कल वह मेरा पक्ष रखेंगे.... अदालत में... क्या रखेंगे... कैसे रखेंगे.... बस यही सोच रहा हूँ.....
डैनी - ह्म्म्म्म... तेरे बात सुन कर... मेरा सिर घूम गया है.... फिर भी... बेस्ट ऑफ लक...
विश्व - जी... बहुत बहुत शुक्रिया....
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काठजोड़ी नदी के गणेश घाट के पास सिमेंट से बनी एक कुर्सी पर वैदेही बैठी हुई है l शाम की चहल पहल बढ़ गई है l बहुत से बुजुर्ग कोई हाथ में लकड़ी लेकर और कोई अपने साथ कुत्तों को लेकर इवनिंग वक कर रहे हैं l -अरे वैदेही तुम यहाँ.... यहाँ क्या कर रही हो....
वैदेही की ध्यान टूटती है और आवाज़ को तरफ देखती है जयंत वहाँ पर खड़ा हुआ है l
वैदेही - जी नमस्ते जयंत सर...
जयंत - हाँ... नमस्ते.... पर तुमने बताया नहीं... के इस वक्त तुम यहाँ क्या कर रही हो....
वैदेही - (मुस्कराने की कोशिश करते हुए) जी फिलहाल यहाँ बैठी हुई हूँ...
जयंत - अच्छा... मुझसे ही होशियारी.... ह्म्म्म्म
वैदेही - जी... माफ कर दीजिए... दर असल... कल विश्व के तरफ से.... आप क्या कहेंगे... और उस पर जज साहब की... क्या प्रतिक्रिया होगी... बस यही सोच रही थी...
जयंत - अरे... इतनी सी बात पर तुम डर गई.... बिल्कुल एक तोते की तरह पटर पटर कैसे बोल गई...
वैदेही अपने चेहरे पर मुस्कान लाने की कोशिश करती है
जयंत - ह्म्म्म्म (वैदेही के पास बैठते हुए) तो तुम्हें क्या लगता है..
कहीं मुझसे भरोसा तो नहीं उठ गया....
वैदेही - क्या बात कर रहे हैं सर... मैंने तो उसी दिन कह दिया था आपको.... अब हमे अंजाम की कोई परवाह नहीं है.... पर फिर भी एक जिज्ञासा तो मन में है ही.... जयंत - ह्म्म्म्म तो यह बात है... देखो वैदेही... मैं अपनी मुवकील से... सहानुभूति से या भावनात्मक रूप से जुड़ना नहीं चाहता हूँ.... बस केस से जुड़े तथ्यों को छोड़ मैं किसी भी प्रकार से दूसरे निजी तथ्यों से किनारा कर लेता हूँ... क्यूंकि मैं अपनी मुवकील को जज के सामने या न्यायालय में बेचारा साबित नहीं करना चाहता हूँ.... या तो दोषी साबित करूं.. या फ़िर निर्दोष..... अब सरकार ने खुद मुझे यह जिम्मा सौंपा है... के मैं तुम्हारे भाई को निर्दोष साबित करूँ... तो मेरी कोशिश तो पूरी यही रहेगी...
यह सब सुन कर वैदेही के चेहरे पर एक खुशी छा जाती है, जो जयंत को साफ दिख भी जाता है l
जयंत - अच्छा... कल जब सुनवाई है... तो अब तुम यहीँ... कटक में रहोगी या... अपने गांव चली जाओगी....
वैदेही - वह मैं... एक हफ्ते से गांव नहीं गई हूँ.... यहीं... रेल्वे स्टेशन जा कर... जनरल टिकेट कर देती हूँ.... और जनाना प्रतीक्षालय में रात को सो जाती हूँ... और वहीँ शौचालय में... अपना नहाना धोना कर लेती हूँ... फिर दिन भर बाहर इधर-उधर होती रहती हूँ.... जयंत का चेहरा इतना सुनते ही सख्त हो जाता है l वह अपनी आँखे बंद कर लेता है l इतने में वैदेही पूछती है l
वैदेही - सर आपके वह... बॉडी गार्ड्स कहाँ हैं... दिखाई नहीं दे रहे हैं....
जयंत - वह देखो.... उस चने बेचने वाले के पास चने चर रहे हैं....
यह सुनते ही वैदेही की हंसी निकल जाती है
जयंत - (उठता है) चलो मेरे साथ...
वैदेही - (चौंकते हुए) जी... ज... जी... कहाँ...
जयंत - तुम्हारे लिए... रात का बंदोबस्त करने....
वैदेही - पर....
जयंत - अरे... चलो भी.... मैं तुम्हें... अपने घर नहीं ले जा रहा हूँ... तुम लड़की हो... कहीं कोई ऊँच नीच हो गई तो.... इसलिए बातेँ हम चलते चलते या बाद में कर लेंगे... अब बिना देरी किए मेरे साथ चलो....
वैदेही उठती है और जयंत के पीछे चल देती है l उन दोनों के पीछे जयंत के बॉडी गार्ड्स भी चलने लगते हैं l जयंत चांदनी चौक के जगन्नाथ मंदिर में पहुंच कर एक दुकान से छोटी टोकरी में पूजा का सामान लेता है और मंदिर के अंदर जाता है l वैदेही भी उसके पीछे पीछे चल देती है l मंदिर में पहुंचते ही मंदिर के पुजारी उसे देख कर बाहर आता है और जयंत के हाथों में से पूजा की टोकरी ले जाता है पुजारी - अहोभाग्य हमारे... जगन्नाथ के घर में जयंत पधारे...
दोनों - हा हा हा हा हा...
पुजारी - क्यूँ भई वकील... आज मंदिर... क्या बात है...
जयंत- कुछ नहीं पंडा जी... कुछ नहीं.... जिंदगी पेड़ के पत्ता हिल रहा है... पता नहीं कब झड़ जाए.... मतलब बुलावा आ जाए... इसलिए... उसके पास जाने से पहले... मस्का लगाने आ गया...
पुजारी - तुम नहीं सुधरोगे... भगवान घर में ठिठोली....
इतना कह कर पुजारी मंदिर के गर्भ गृह में जा कर, पूजा करता है और पूजा की टोकरी ला कर जयंत को लौटा देता है l
पंडा - कहो... आज कई सालों बाद... मंदिर में... अपने लिए तो नहीं आए होगे.... बोलो किसके लिए....
जयंत - क्या... पंडा... अरे... मैं कोर्ट में... अपनी नौकरी पेशा जीवन का... अंतिम केस लड़ रहा हूँ... इसलिए कई सालों बाद आया हूँ... कालीया को भोग का मस्का लगाने...
पंडा - फिर.. ठिठोली... तुम... भले ही मंदिर ना आओ.... पर इस मंदिर के कमेटी में हो.... और कमेटी मीटिंग बराबर.... अटेंड करते हो.... क्या भगवान को इस बात का भान नहीं है....(जयंत चुप रहता है) पर तुमने तो केस लेना बंद कर दिया था ना..... फिर अचानक यह केस...
दोनों मंदिर की परिक्रमा करते हुये
जयंत - पंडा..... तुम्हें क्या लगता है.... सारे राज्य वासियों के भावना के विरुद्ध... मैं वह केस लड़ रहा हूँ....
पंडा - देखो जयंत.... मैं दुनिया की नहीं जानता.... पर तुम्हें अच्छी तरह से जानता हूँ... तुम कभी गलत हो ही नहीं सकते.... और मैं यह भी जानता हूँ... जब तक कोर्ट में तुम डटे हुए हो..... कोई भी उस लड़के का बाल भी बांका नहीं कर सकता....
जयंत, थोड़ा मुस्करा देता है l तभी जयंत की नजर एक जगह ठहर जाता है l
जयंत - वैदेही.... सुनो तो जरा...
वैदेही उस वक्त मंदिर के आनंद बाजार (जहां अन्न प्रसाद मिलता है) के एक खंबे के टेक् लगा कर वैदेही खड़े हो कर उनकी बातें सुन रही है l
जयंत - आरे... वैदेही... तुम यहाँ.... आओ
पंडा - तुम जानते हो इस लड़की को.... यह रोज दो पहर को... आ जाती है और अन्न प्रसाद सेवन तक यहीं बैठी रहती है....
जयंत - आरे.... पंडा... यह पागल लड़की.... का यहीं... मंदिर के धर्म शाला में रहने की प्रबंध कर दो....
वैदेही - आरे... सर... आप हमारे लिए... इतना तो कर रहे हैं...
जयंत - अरे... मूर्ख... अगर मैंने केस हाथ में लिया है... तो केस की सुनवाई खत्म होने तक... विश्व की तरह तुम भी मेरी... जिम्मेदारी हो...
वैदेही चुप रहती है
जयंत - मैं अब अपने घर में... तुम्हें रख नहीं सकता.... क्यूँकी मेरे घर में.... मेरे साथ... मेरे सुरक्षा के लिए... और दो मर्द रह रहे हैं... पर कटक सहर में... मैं तुम्हारे रहने का बंदोबस्त तो कर सकता हूँ....
वैदेही उसे नजर उठा कर देखती है
जयंत - (पुजारी को देख कर) अरे पंडा... मंदिर के धर्मशाला में... एक कमरा... इस लड़की के लिए...
पंडा - समझ गया.... देखो वैदेही... अब हमारे मंदिर की धर्मशाला में एक कमरा लेलो.... और चूंकि तुम्हारी सिफारिश जयंत ने की है.... इसलिए मैं तुमको... नियम के बाहर जा कर.... जब तक केस समाप्त नहीं हो जाती... तब तक भाड़े में रह सकती हो....
जयंत - घबराओ नहीं.... भाड़ा.. भी नहीं लगेगा.... नियम में यह भी है.... ट्रस्टी के रिकॉमेंड हो... तो पैसा भी नहीं लगता...
पंडा, जयंत को मुहं फाड़े देखता है l वैदेही खुश हो कर जयंत को हाथ जोड़ती है l
जयंत - अच्छा जाओ (हाथ दिखा कर) वहां धर्मशाला... अरे पंडा... जाओ यार इस लड़की को कमरा दे दो...
पंडा अपना सर को हिलाते हुए, वैदेही को धर्मशाला की ओर ले जाता है l वैदेही को एक कमरा दिलाने के बाद, जयंत के पास वापस आता है l
पंडा - भई... कौनसे नियम के अनुसार... ट्रस्टी के सिफारिश हो... तो पैसा देना नहीं पड़ता... जयंत - पंडा.... यह लड़की बहुत गरीब है.... और मैं तो ठहरा... अकेला.... पैसे इस गरीब के भले के लिए थोड़े खर्च हो जाए... तो क्या फर्क़ पड़ता है.... उसकी बिल मुझे भेज देना.... मैं भर दूँगा..... और हाँ... उसे मालुम ना हो.... क्यूंकि बहुत खुद्दार किस्म के लोग है यह.....
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आज कानून के बड़े बड़े दिग्गज और विशेषज्ञों की नजरे अदालत के आज की कारवाई पर टिकी हुई है.... पिछली सुनवाई में अभियोजन पक्ष की वकील श्रीमती प्रतिभा सेनापति जी ने एसआइटी और पुलिस के जांच को अपनी मजबूत दलीलों को अदालत के सम्मुख प्रस्तुत किया था..... आज का दिन भी इस केस के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है.... क्यूंकि आज अभियुक्त पक्ष के दलीलों को अदालत के समक्ष श्री जयंत कुमार राउत प्रस्तुत करेंगे.... एसआइटी जांच में दोषी पाए गए अभियुक्त श्री विश्व के पक्ष अपनी किन मजबूत दलीलों के द्वारा अदालत को प्रभावित करेंगे यह देखना दिलचस्प होगा.... चूंकि अभी कुछ ही समय पूर्व अभियुक्त को पुलिस की सुरक्षा के घेरे में ले जाया गया है.... थोड़ी देर बाद सुनवाई शुरू हो जाएगी.... सुनवाई के फौरन बाद... आज अदालत में क्या क्या हुआ... हम दर्शकों के सामने लाएंगे.... तब तक के लिए कैमरा मैन सतबीर के साथ मैं प्रज्ञा..... खबर ओड़िशा के लिए....
इस खबर की प्रसारण कर रिपोर्टर ने अपना माइक निकाला और अदालत के बाहर पुलिस के द्वारा बनाए गए बैरिगेट के पास चली जाती है l उधर कोर्ट की स्पेशल रूम में पिछले दिनों की तरह ही दृश्य दिख रहा है l हमेशा की तरह तीनों जज अपनी अपनी कुर्सियों पर बैठ जाते हैं l औपचारिकता के बाद
मुख्य जज - ऑर्डर ऑर्डर... आज की कारवाई शुरू की जाए..
हॉकर - अभियुक्त श्री विश्व प्रताप को हाजिर किया जाए...
पुलिस विश्व को लेकर मुल्जिम वाले कटघरे में खड़ा कर देती है
जज - जैसा कि पिछली सुनवाई में... अभियोजन पक्ष.... पुलिस और एसआइटी की जांच की पक्ष और साथ साथ गवाहों के बयानात और गवाहों के नाम... अदालत और बचाव पक्ष को उपलब्ध कराया... है... आज का दिन केवल बचाव पक्ष की दलीलें सुनी जाएंगे.... और यह अदालत दोनों पक्षों को सूचित करती है.... के पिछली सुनवाई बाद सभी गवाहों को समन कर दी गई है.... इसलिए अगले हफ्ते में जो गवाह आयेंगे.... उनकी गवाही की दोनों पक्षों के द्वारा जिरह की जाएगी.... पर अभी के लिए.... अभियुक्त पक्ष के वकील श्री जयंत राउत जी को अपना पक्ष रखने के लिए अनुमती देते हुए कारवाई को आगे बढ़ाया जाता है.... श्री जयंत जी आप अपना पक्ष रखें....
जयंत - जी धन्यबाद... योर ऑनर.....
अपनी जगह से उठते हुए जयंत ने कहा l जयंत के उठते ही कुछ लोगों की धड़कने उत्सुकता वश तेज हो गई l इन में विश्व और वैदेही तो हैं ही, प्रतिभा, तापस ही नहीं यहाँ तक जज भी जयंत के द्वारा दी जाने वाली दलील को सुनने के बेताब हो उठे l पूरा कोर्ट रूम में केवल शांति ही शांति विराजमान है l
जयंत - योर ऑनर.... मैं प्रोसिक्युशन की इस बात से इत्तेफाक रखता हूँ.... के आज अदालत में चल रही इस केस की ओर.... साधारण जन मानस बड़े ध्यान से देख रही है.... और न्याय प्रक्रिया के दौरान और समाप्त होने तक... न्याय की परिभाषा क्या होगी यह आने वाली समय के गर्भ छुपा हुआ है......
माय लॉर्ड.... अंग्रेजी में एक कहावत है.... रोम नेवर बिल्ट इन वन नाइट.... अर्थात बड़े बड़े साम्राज्य... या बड़े बड़े स्वर्णिम अध्याय... कभी अचानक से नहीं बनते... क्रम अनुसार, धीरे धीरे बनते बनते समयानुसार विशाल रूप में प्रकट होती है... षडयंत्र भी इसी तरह होते हैं.... माय लॉर्ड... षडयंत्र, वह भी आर्थिक घोटाले की... एक काले साम्राज्य की तरह होता है... योर ऑनर.... यह भी धीरे धीरे.... दिमाग से निकल कर... वास्तविकता में उतर कर... आकार लेते लेते विशाल हो जाता है... यह आर्थिक घोटाले... आर्थिक अनाचार... एक समाज में एक नए नगर बधु की तरह होती है.... हर सामर्थ्य व पुरूषार्थ रखने वाला... इसे लूटना चाहता तो है... पर उसके साथ अपने परिचय को स्वीकार नहीं करता.... अगर उसके कर्म फूटने को होते हैं... तब वह सामर्थ्यबान किसी ऐसे व्यक्ति का जुगाड़ करते हैं... जिस पर अपनी काली करनी को थोप देते हैं....
आज का यह मनरेगा घोटाला केस भी ऐसा है योर ऑनर....
एक बच्चे को जन्म लेने के लिए.... प्रकृति ने नौ महीने का विधान किया है... पर उसके लिए भी पुरुष एवं स्त्री की मिलन की प्रस्तुति की जाती है..... इस प्रक्रिया में भी समय लगता है योर ऑनर.... पर यहाँ एसआइटी के जांच रिपोर्ट यह दर्शा रही है.... की यह कांड विश्व के सरपंच बनने के सिर्फ़ सात महीने में पूरा हो गया.... कितनी प्यारी... और मासूम... थ्योरी है...
इतना कह कर जयंत थोड़ी देर रुक जाता है और अपने टेबल के पास आकर एक फाइल उठा लेता है l
जयंत - योर ऑनर... प्रोसिक्युशन ने... पिछले सुनवाई के दौरान... अपना तथ्य प्रस्तुत किया... पहले पन्ने पर मुल्जिम की परिचय, शिक्षा गत योग्यता और देव पुरुष राजा साहब की उदारता का उल्लेख किया.... उसके बाद हम आते हैं... दूसरे पन्ने पर... जहां विश्व के इक्कीस वर्ष होने की बात की गई है... और उसके बाद...(प्रतिभा भी अपनी फाइल खोल कर देखने लगती है) योर ऑनर... यह तीसरी लाइन को गौर से पढ़ा जाए.... जहां पर यह लिखा गया है... राजा साहब ने... राजगड़ व उसके आसपास इलाकों के विकास के लिए एक नया जोश, एक नया खून वाले नौ जवान विश्व को सरपंच चुनाव में... भाग लेने के लिए कहा.... इसके आगे की लाइन को प्रोसिक्युशन पढ़ना या बताना शायद भूल गई.... मगर यह जांच रिपोर्ट में साफ साफ लिखा है... योर ऑनर.... राजा साहब के आग्रह को विश्व ने पहले इंकार कर दिया... पर विश्व के पारिवारिक मित्र और उसके गुरु श्री उमाकांत आचार्य जी के कहने पर... विश्व चुनाव लड़ने के लिए तैयार हुआ.... मतलब एक वर्ग ऐसा जरूर था... जो चाहता था... की विश्व सरपंच बनें.... ताकि उनके किए कुकर्मों को ढोने वाला कंधा विश्व के हो.... और ताजूब की बात यह है कि.... विश्व के किए घोटाले की... योर ऑनर... विश्व के जरिए जिस आवंटित राशि की बात की जा रही है.... वह राशि पिछले सरपंच के काल की हैं.... ना कि विश्व के काल की... और राशि है किसकी.... पीएम आवास योजना, पीएम ग्राम सड़क योजना, नए कैनाल बनाने की योजना, कैनाल सफाई के योजना, नए तालाब निर्माण योजना और कैनाल पर बनने वाले कल्वर्ट निर्माण योजना... इस सब योजना के ब्लू प्रिंट... पहले बनी होगी.... उसकी बजट एस्टीमेशन के बाद... प्रोजेक्ट अप्रूवल के ब्लाक ऑफिस फिर तहसील ऑफिस गई होगी.... फिर उसके बाद उस प्रोजेक्ट का पैसा तहसील को आया होगा... फिर उस प्रोजेक्ट शुरू करने के लिए... टेन्डर के जरिए कंट्रैक्ट अवॉर्ड हुआ होगा... फ़िर काम शुरू हुआ होगा.... तभी तो आवंटित राशि वापस लौट ना सकी... पर चूंकि प्रोजेक्ट कंप्लीशन सर्टिफिकेट और पहले अलॉट किए राशि की युटीलाइजेशन सर्टिफिकेट ना हो तो बकाया राशि की भुगतान नहीं हो सकती थी.... इसलिए वह खास वर्ग... विश्व को चुना... क्यूंकि.. विश्व एक नव युवक था और इस राजनीति के खेल में अनभिज्ञ भी.....
इतनी बड़ी राशि को लूटने के लिए.... प्रोसिक्युशन की मानें तो विश्व के पास प्लान बना कर उसे एक्जीक्युट करने के लिए सिर्फ़ सात महीने थे... योर ऑनर... और इन साथ महीनों में उसे टीम भी बनानी थी... जिसे सौ सेल कंपनीयों के रजिस्ट्रेशन करना था... ऊपर से इन्हीं सात महीनों में उसे रूप यानी... राजगड़ उन्नयन परिषद नाम की एनजीओ का रजिस्ट्रेशन के साथ साथ उसके अकाउंट भी ऑपरेट कर.. उसके पैसे हथियाने थे... और सबसे अहम बात योर ऑनर.... यह सब प्रोसिजर को परफेक्ट करने के लिए... विश्व को पांच हजार मृत् लोगों के आधार कार्ड भी जुगाड़ने थे इन्हीं सात महीने में.... वाह क्या जांच है... और क्या कहानी है....
योर ऑनर... मैं और इसे ज्यादा नहीं खींचना चाहता हूँ....
प्रोसिक्यूशन के तरफ से जितने बयान और गवाहों के नामों का उल्लेख किया है.... उनमें प्रमुख सिर्फ पांच गवाह हैं... जिनसे बचाव पक्ष जिरह करना चाहती है... योर ऑनर...
जज - वह गवाह... कौन कौन हैं.... डिफेंस लॉयर...
जयंत - पहले गवाह हैं... मिस्टर दिलीप कुमार कर... जो पहले तो विश्व से चेक साइन करवाया और आगे चल कर एसआइटी के सरकारी गवाह बनें....
दुसरे - तहसील ऑफिस के एक और क्लर्क... मिस्टर एके सुबुद्धी... जिनके सामने तहसील ऑफिस के अंदर यह सारे कांड हुए...
तीसरे - राजगड़ थाना के प्रभारी... श्री अनिकेत रोणा...
चौथे - राजा साहब... श्री भैरव सिंह क्षेत्रपाल जी...
और अंत में एसआइटी के मुख्य जांच अधिकारी श्री के सी परीडा
जज - ठीक है... क्या प्रोसिक्यूशन को कोई ऐतराज है....
प्रतिभा - (अपनी जगह से उठकर) जी नहीं योर ऑनर...
जज - ठीक है... जयंत बाबु... आपको किन क्रम में... गवाहों से जिरह करेंगे....
जयंत - कोई फर्क़ नहीं पड़ता... योर ऑनर... कोई भी किसी भी क्रम में आ सकते हैं... या फिर गवाही के लिए अपनी उपस्थिति दर्ज करवा सकते हैं....
जज - ठीक है... आज बचाव पक्ष के दलीलों को सुनने के बाद... अगले हफ्ते से गवाहों से दोनों पक्ष अपने अपने तरीके से जिरह करेंगे... आज बचाव पक्ष ने जिन नामों की उल्लेख किया है... सबसे पहले उन्हीं लोगों को समन किया जाए.... इसके साथ ही अदालत की कारवाई आज के लिए स्थगित कि या जाता है....
सातपड़ा चेट्टीस् गेस्टहाउस ओंकार चेट्टि - छोटे राजा जी... आप धैर्य रखें... सब ठीक हो जाएगा... मैं तो कहता हूँ... आप यहाँ चीलीका में.. बोटिंग और फीसींग का मजा लीजिए.... और आपके बंदों कों.... उनका काम करने दीजिए...
पिनाक - मुझे इन दोनों पर पूरा भरोसा है.... सच कहूँ तो राजा साहब कभी भी कोई टेंशन नहीं लेते.... क्यूंकि सारे टेंशन हमे ही उठाने पड़ते हैं... विश्वास न होगा आपको ओंकार जी... यही टेंशन ढो ढो कर शरीर अब हाइपर टेंशन का शिकार है....
ओंकार - अरे आप ऐसे ना कहिए... छोटे राजा जी.. एक मामूली सा केस ही तो है.... आज नहीं तो कल ही सही... हमारी एसआइटी ने जब विश्व को दोषी ठहराया है... तो अदालत भी उसे सजा देगी जरूर... अरे भाई सरकार अपनी है... और राजा साहब भी तो हमारे अपने हैं....
पिनाक - हाँ... किस्सा घोटाले में... हिस्सा सबका अपना अपना... पर टेंशन सिर्फ़ मेरा...
बल्लभ - ऐसे ना कहिए... छोटे राजा जी... हमे भी कहाँ दिन का चैन और रात का सुकून है.... सब कुछ छोड़ छाड़ कर... राजा साहब जी के लिए... दिन रात एक कर रहे हैं...
ओंकार - देखिए... यह बहुत गलत बात है... आप राज्य के स्वास्थ्य मंत्री के गेस्ट हाउस में... स्वास्थ मंत्री के सामने बैठे हुए हैं.... और यह रोग और वैराग की बात ना करें... अछा नहीं लगता.....
रोणा - मैं तो पहले से ही कहता था... ठोक देते हैं.. पर किसीने मेरी सुनी ही नहीं.... विश्व को ठोक दिए होते... तो यह झंझट जी नहीं रहता....
पिनाक - अबे... गोबर दिमाग.... तुझे पुलिस में भर्ती कौन किया बे... एक तो इतने बड़े रकम की हड़प... ऊपर से हत्याएं... केस अगर केंद्र सरकार के हाथ चली गई होती.... तो लेने के देने पड़ जाते....
बल्लभ - छोटे राजा जी ठीक कह रहे हैं.... केस जब तक अपनी सरकार और सिस्टम के पास है.... तब तक आस है...
पिनाक - क्या मतलब है बे तेरा.... आस है.... अबे तेरा दिमाग ठीक से चला..... नहीं तो कुछ देर बाद कहेगा... गले में फांस है... बल्लभ - छोटे राजा जी... मैं वकीलहूँ... हर तरह के... सिचुएशन के लिए खुदको तैयार रखता हूँ.... ताकि वक्त पर सिचुएशन को सही तरीके से टैकल किया जा सके.... ओंकार - देखिए... छोटे राजा जी.... आपका यह बल्लभ.... मुझे तो बंदा सही लग रहा है.... हमने अपने अपने लेवल पर.... जितना हो सके.... कोशिश कर तो रहे हैं... अब देखिए... सीएम साहब से राजा साहब की.... कैजुअली बात हुई थी.... हमने होम मिनिस्टर को लपेटे में.... लेकर अपना एसआइटी बना दिया... अब सीएम साहब को थोड़े ना मालूम है... क्या हुआ है... और कैसे हुआ है... पिनाक - पर होम मिनिस्टर को तो मालुम था ना.... उसे कोई और वकील नहीं मिला सिफारिश के लिए....
ओंकार - छोटे राजा जी.... सिफारिश होम मिनिस्टर ने नहीं... कानून मंत्री ने किया था.... अब उसे थोड़े ही मालूम था... वह साला बुड्ढा राजी हो जाएगा.... पर कोई नहीं... एसआइटी की टीम और बाकी प्यादे तो अपने हैं ना.... और पूरे देश को मालुम भी तो होना चाहिए.... के न्याय सबके लिए बराबर है.... मतलब... न्याय के तराजू में.... कभी एक पलड़ा भारी तो कभी दुसरा पलड़ा भारी... हो तो खबर में... विश्वसनीयता बनी रहती है..... पिनाक - ठीक है.... पर... अभी तक... वह आया नहीं.....
ओंकार - आ जाएगा... आ जाएगा... आख़िर.... सबसे छुपकर... उसे आना है...
थोड़ी देर बाद एक नौकर आकर कहता है कोई आया है l
ओंकार - लीजिए... छोटे राजा जी... आपने शैतान को याद किया.... और वह हाजिर हो गया.... जाओ बुला कर अंदर लाओ उसे....
नौकर चला जाता है और थोड़ी देर बाद एक आदमी अंदर आता है l कोई सरकारी महकमा का मुलाजिम लग रहा था l
ओंकार - आओ... आओ... बर्खुर्दार आओ... आते वक्त किसीने देखा तो नहीं... आदमी - जी नहीं... हाँ अगर कटक या भुवनेश्वर होता तो... शायद किसीके नजर में आ सकता था.... पर यहाँ सातपड़ा में.... कोई भी मुझे ट्राक नहीं कर सकता.... वैसे भी... आई एम प्रोफेशनल....
ओंकार - ठीक है... डींगे मत मार.... अब काम की बातें कर लें.... आदमी - जी... जरूर...
बल्लभ - परसों... पहली पेशी आपकी होगी मिस्टर परीडा जी....
परीडा - क्यूँ... ऐसा क्यूँ...
बल्लभ - क्यूँकी आपको... टेक्निकली समन सबसे पहले प्राप्त हुई.... इसलिए....
परीडा - ठीक है... फिर आगे क्या करना होगा...
बल्लभ - आपको... अपनी बयान पर टिके रहना होगा.... मेरा मतलब है... आप बयान कुछ ऐसे देंगे.... के हमारी केस की नींव मजबूत होगी.... जिसपर हम अपनी झूठ की इमारत खड़ी कर सकें...
परीडा - ह्म्म्म्म... पर मुझसे शुरू करने का मतलब....
बल्लभ - आप... एसआइटी के चीफ ऑफिसर हैं... इसलिए हमने जो प्लॉट बनाए हैं.... उस पर झूठ की नींव को आपकी बयान मजबूत करेगी....
परीडा - ठीक है.... और मुझे कहना क्या होगा....
पिनाक - अभी तो तुमने कहा.... यु आर अ प्रोफेशनल....
परीडा - ठीक है... आई विल मैनेज...
ओंकार - देखो बर्खुर्दार... शरूआत तुमसे ही रही है... अब केस की दारोमदार तुम पर है...
परीडा - ठीक है... अगर काम परफेक्ट हुआ... तो क्या इंसेंटिव मिलेगा....
पिनाक - मिलेगा... और अगर... गलती हो गई.... तुम्हें... रंग महल याद है ना....
परीडा - (अपनी थूक निगलते हुए) जी... छोटे राजा जी... य.... याद है...
पिनाक - काम अच्छा हो तो कीमत अच्छी होती है... और काम गलत हो जाए तो अंजाम भी अनुरूप होती है...
परीडा - जी तो फिर काम अच्छा ही होगा.... पिनाक - तो फिर इंसेंटिव भीमिलेगा....
तभी कोई चिल्लाता है
- हजूर, मालिक, माई बाप... कुछ छींटे हम पर भी मार दीजिएगा.... यह आवाज़ सबका ध्यान अपनी ओर खिंचता है l सब आवाज़ की तरफ देखते हैं l एक धोती और कुर्ता पहने, चमेली के तेल में भिगा हुआ सर के साथ एक अधेड़ उम्र का आदमी खड़ा है l अपनी मुँह में पान चबाते हुए और कंधे में पड़े गमछे से मुहँ को साफ करते हुए अपनी काले दांत दिखा कर हंसते हुए
- हजूर... हम भी आपके नाव में... हैं... आप तो पुर्ण गंगा हैं.... आप जिसे चाहें... उससे डुबकी लगवा दें... हम पर इतना कृपा रखें... थोडे थोड़े छींटे मारते रहें...
पिनाक - आ गया कुत्ता...
आदमी - ही.. ही.. ही.. जी मालिक... आपका वफादार कुत्ता... काटना हमारा स्वभाव नहीं है... बस अभाव ही अभाव है... जब राजा साहब थुकते हैं... हम जाकर चाटते हैं... ही.. ही.. ही.
ओंकार - अब यह जोकर कौन है....
परीडा - यह है... दिलीप कर... हमारा पहला सरकारी गवाह...
कर - जी... मैं.. कर... छोटे राजा जी के सेवा में उपस्थित हूँ...
बल्लभ - इसे मैंने ही बुलाया है.... इस वक्त यहां पर... तीन प्रमुख गवाह मौजूद हैं... परीडा, कर और रोणा... चौथा अभी तक नहीं पहुंचा....
ओंकार - छोटे राजा जी... आपका यह कर... बहुत ही बेशरम, बेग़ैरत इंसान है... क्यूँ भई... तुझे हमारे नौकर या गार्ड्स ने रोका नहीं...
कर - जी रोका ना... रोका... पर मैंने उनके हाथ पकड़ लिए.... पैर पकड़ लिया... रोया... गिड़गिड़ाया.... तब जाकर मेरे दुख को वह समझ कर मुझे छोड़ दिए... ही.. ही ही
पिनाक - तभी तो इसको कुत्ता बोला.... अभी आप कुछ ही देर में समझ जाओगे... आओ सभी बैठते हैं... और आगे की सोचते हैं....
पिनाक और ओंकार एक बड़े से डबल सीटेड सोफ़े पर बैठ जाते हैं l बल्लभ और परीडा भी एक एक सिंगल सीट सोफ़े पर बैठ जाते हैं l पर रोणा एक टेबल पर बैठ जाता है और दिलीप कर नीचे फर्श पर ग़मछा बिछा कर बैठ जाता है l ओंकार उसे ऐसे नीचे बैठा देख कर हंसता है
ओंकार - वास्तव में छोटे राजा जी.... क्या नमूना है... यह..
पिनाक - पर प्रधान... तुमने सुबुद्धी को नहीं बुलाया था क्या...
बल्लभ - बुलाया था.... और उसे कर के साथ आने के लिए कहा भी था....
पिनाक - फिर वह आया क्यूँ नहीं....
कर - मालिक... मैं थोड़ा... कउं...
पिनाक - हाँ भोंक...
कर - मालिक... जबसे उसने अदालत से अपने नाम का समन के बारे में सुना.... तब से उसे डायरिया हो गया... वह अपने परिवार समेत कहीं गायब हो गया है.....
बल्लभ - इसका मतलब.. अब अदालत में जिरह सिर्फ़ तीन लोगों की होगी....
रोणा - क्यूँ..... राजा साहब जी को भी तो समन गया होगा....
बल्लभ - हाँ... मैंने नये एडीएम पत्री को कह कर... राजगड़ से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए... वह अदालत को अपनी गवाही देंगे... ऐसा इंतजाम कर दिया है....
रोणा - क्या... अदालत इसके लिए तैयार होगी....
बल्लभ - हाँ.. तैयार होगी.... पत्री ने सारा इंतजाम कर दिया है....
पिनाक - बहुत अच्छा किया.... प्रधान.... वरना राजा साहब... गवाही के लिए... कटक आते.... तो अच्छा नहीं होता....
ओंकार - तो अब....
बल्लभ - अब मेरे पास केस की पूरी डिटेल्स है.... अब मैं इस केस की डिटेल्स पढ़ूंगा.... और आप सबको आपको भूमिका समझाउंगा.... ध्यान रहे.. जयंत... ट्रिक करेगा.... पर आप में से कोई... उसमें फंसेगा नहीं.... टस से मस नहीं होगा.... इज़ ईट क्लीयर...
परीडा और रोणा - येस..
कर - जी.. जी... बिल्कुल जी... मेरा भी पूरा येस जी.... फिर बल्लभ केस डिटेल्स पढ़ कर सबको उनकी भूमिका समझाता है l सब अपनी अपनी भूमिका समझ कर सब बल्लभ को हाँ कहते हैं l ओंकार उनकी बातों को ध्यान लगा कर सुन रहा है पर पिनाक किसी खयाल में खोया हुआ है l तभी ओंकार ताली मारते हुए
-आओ... आओ मेरे जिगर के टुकड़े आओ... सो जेंटलमैन... दिस इस माय सन.... आ हा हा... मेरा बेटा...
सबकी नजरें उस तरफ घुम जाती है l एक नौजवान पूरा का पूरा सफेद लिबास में उस कमरे में प्रवेश करता है l सिर्फ उसके गले का स्कार्फ और गॉगल लाल रंग का है l अपने चेहरे पर मुस्कान लिए खड़ा होता है l
ओंकार - लुक एट हिम... आ हा हा... माय सन... यश... यशवर्द्धन ईश्वर चंद्र चेट्टी... हमे राजनीती की मैदान में जिस तरह ओआईसी कहा जाता है.... इसे उसी तरह पूरे बिजनैस की दुनियां में वाइआइसी कहा जाता है.... आ हा हा....
सब उसे देख रहे हैं और वह भी सबको देख कर हाइ कहता है, जवाब में सब उसे हाइ कहते हैं l
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प्रत्युष अपने कमरे में मजे से सोया हुआ है l आज रविवार है इसलिए रात भर पढ़ते पढ़ते देर को सोया था l प्रतिभा प्रत्युष के कमरे में आती है l आते ही उल्टे झाड़ू से प्रत्युष के पिछवाड़े पर मारती है l
प्रत्युष - उइ माँ... आ... मर गया रे... आ.. ह...
प्रतिभा फौरन झाड़ू को पलंक के पास छुपा देती है
प्रतिभा - ओ हो.. क्या हुआ मेरे लाल को... क्यूँ चिल्ला रहा है... मेरा बच्चा....
प्रत्युष - (अपनी आँखों को मलते हुए) आह माँ... क्या बताऊँ... तेरे लाल को ना.... सपने में कोई मार रहा था.... प्रतिभा - ओ हो... चु.. चु... चु.... मेरे लाल को सपने में कोई मार रहा था..... कोई नहीं... अब सच में तुझे मार पड़ेगी... हाँ.... (कह कर प्रतिभा नीचे छुपाई हुई झाड़ू निकालती है) प्रत्युष - (हैरानी से) क्या कहा आपने माँ...
प्रत्युष - तुझे सपनें में नहीं.... तुझे सच में जगाते हुए... मारना चाहिए...
प्रत्युष - ऐ... माँ... रुक रुक.... यह कौनसा अवतार है तेरी...
प्रतिभा - नालायक सुबह के दस बज रहे हैं... अभी भी घोड़े बेच कर सोया हुआ है.... चल उठ..
प्रत्युष - घोड़े बेचकर नहीं माँ... किताबें पढ़ कर....
प्रतिभा - अब तु उठेगा या पीटेगा...
प्रत्युष - वह लाल ही क्या माँ... जो माँ के हाथों से पीटते पीटते लाल ना हो जाए.....(कह कर फिरसे सो जाता है)
प्रतिभा - तो ठीक है... आज तो तु सच में लाल हो जाएगा... (कह कर प्रतिभा फिर झाड़ू से मारती है)
प्रत्युष अब झटपट से अपनी बिस्तर से उठ कर भाग जाता है l उधर ड्रॉइंग रूम में तापस अपनी वकींग शु उतार रहा है l उसे देख कर
प्रत्युष - डैड... सुबह के दस बजे... आप वकींग से लौट रहे हैं.... कितनी शर्म की बात है... माँ... मेरी माँ... मेरी प्यारी माँ... आज आपके वजह से... आपका गुस्सा मुझ पर उतार दिया है....
तापस - सुनो मिस्टर घन चक्कर.... अभी सिर्फ सुबह के आठ बजे हैं....
प्रत्युष - क्या.... पिताजी.... (रोते हुए) आ.. हा हा आ.. मुझे गले से लगा लीजिए पिताजी... आज जिंदगी में पहली बार माँ ने मुझे झाड़ू से मारा है....
तापस - अरे वाह... आज इस ऑकेजन को सेलिब्रिट करना चाहिए...
प्रत्युष - क्यूँ... माँ ने मुझे झाड़ू से मारा इसलिए...
तापस - नहीं मेरे पीले... तुने आज डैड को पिताजी कहा इसलिए...
प्रत्युष - हाँ... तब तो.. सेलिब्रेशन बनता है...
प्रतिभा - और सेलिब्रेशन के लिए.... हम आज बाहर जा रहे हैं....
प्रत्युष - कहाँ....
प्रतिभा - जहां तेरे पिताजी ले जाए....
प्रत्युष - तब तो आप एक काम करो माँ... आप लोग तैयार हो जाओ.... मैं अभी गया तैयार हो कर यूँ अभी आया....
तापस - अरे नामाकूल कितना टाइम लगेगा तुझे....
प्रत्युष - अरे फ़िकर नॉट... आप बस पांच मिनिट ठहरो... मैं एक घंटे बाद आया... (कह कर वापस अपने कमरे में घुस जाता है)
प्रतिभा - है.. भगवान... कितनी मुश्किल से उठाया... यह फिर अंदर घुस गया....(कह कर प्रत्युष के कमरे की ओर जा रही होती है कि तापस उसके हाथ पकड़ कर अपने पास बिठाता है,
तापस - क्या बात है जान...
प्रतिभा - क्या हुआ.. कुछ भी तो नहीं...
तापस - देखो... हम दोनों... एक दुसरे को अच्छी तरह से जानते हैं और समझते हैं..... तुम्हारे भीतर कुछ चल रहा है...जिसे तुम छुपाने की कोशिश कर रही हो...
प्रतिभा - सेनापति जी.... (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) एक्चुआली... मैंने जब पहली बार.... कोर्ट में केस लड़ा था... तब मुझे जैसा लग रहा था... आज इस केस में मुझे बिल्कुल वैसा ही लग रहा है... मैं सच में.. नर्वस फिल् कर रही हूँ... क्यूँ की असली एसीड टेस्ट कल से शुरू होगी....
तापस - जान... मैंने तब भी कहा था... आज भी कह रहा हूँ.... यह केस भी तुम्हारी हर पिछली केस की तरह है... जिन्हें आज तक तुमने लड़ा है.... इसे अपने दिल व दिमाग पर हावी मत होने दो.... ना तुम्हारा उस विश्व से कोई संबंध है... और ना ही उसे सजा दिलाने पर तुम्हें कोई पछता वा होना चाहिए..... बी प्रोफेशनल... जान
प्रतिभा - आप ठीक कह रहे हैं... सेनापति जी... मन नहीं लग रहा था.... इसलिए प्रत्युष छेड़ रही थी....
इतने में प्रत्युष बिल्कुल तैयार हो कर बाहर निकलता है
प्रत्युष - यह देखो माँ,... मैं तैयार हो गया.... टैन टैना....
प्रतिभा - तु.... तैयार हो गया....
प्रत्युष - यो...
प्रतिभा - नहाया, धोया है भी या नहीं....
प्रत्युष- उसकी क्या जरूरत है.... मैं सिर्फ कपड़े बदलकर आ गया...
प्रतिभा - क्या.... तूने नहाया नहीं है.... ब्रश भी किया है.. या वह भी नहीं....
प्रत्युष - ओह.... माय डियर माँ... तुमने कभी हाती को देखा है.... ब्रश करते हुए....
तापस - अब यह उल्टा झाड़ू खाएगा... मैं निकल लेता हूँ....
प्रतिभा झाड़ू को उल्टा करती है और प्रत्युष को गुस्से से देखती है l
प्रत्युष - वह देख माँ... डैड मुझे छोड़ कर भाग रहे हैं....
प्रतिभा पीछे मुड़ कर देखती है l तापस वहीं खड़ा मिलता है l जब प्रत्युष के तरफ मुड़ती है, प्रत्युष को गायब पाती है l प्रतिभा की हालत देख कर तापस अपनी हंसी रोक नहीं पाता है l प्रतिभा उसे गुस्से से देखती है और वह भी तापस के साथ हंसने लगती है l
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विश्व प्रताप महापात्र और मनरेगा घोटाले की सुनवाई में..... दोनों पक्षों के तरफ से.... अपनी अपनी दलीलें अदालत के समक्ष प्रस्तुत कर चुके हैं.... जहां एक तरफ अभियोजन पक्ष ने इस घोटाले में जहां विश्व प्रताप को मुख्य अपराधी के तौर पर प्रस्तुत किया... वहीँ अभियुक्त पक्ष ने इसे एक षडयंत्र कहा.... आज से गवाहों की जिरह आरंभ होने जा रही है... सूत्र बताते हैं कि आज एसआइटी के मुख्य श्री कृष्ण चंद्र परीडा जी से..... दोनों पक्ष अपनी अपनी तरीके से जिरह करेंगे... अभी अभी मुल्जिम को लाया जा चुका है.... और थोड़ी ही देर बाद अदालत की कारवाई शुरू हो जाएगी... आगे की खबर जानने के लिए आप लोग हमारे साथ जुड़े रहें.... कैमरा मैंन सतवीर के साथ मैं प्रज्ञा आपको स्टूडियो लिए चलती हूँ अरुंधति के पास....
एफएम बंद करता है बल्लभ l
रोणा - यार यह तुमने सही किया.... इस केस को उछालने के लिए रेडियो और टीवी वालों का संगम करा दिया... पर हम भी अंदर कारवाई देख पाते तो और भी अच्छा होता....
बल्लभ - क्यूँ... इतनी जल्दी क्या है.... परसों से वैसे भी हम कोर्ट रूम के अंदर ही होंगे...
रोणा - वह कैसे.... समन तो हमे हुआ है....
बल्लभ - अबे भूतनी के.... राजगड़ से जितने भी गवाह आयेंगे... सबका वकील मैं हूँ... और सारी जिरह मेरे सामने ही होगी.... ऐसा परमिशन मैंने ले ली है...
रोणा - तो... परीडा के लिए भी ले लेना था....
बल्लभ - वह मुमकिन नहीं था.... वह एक सरकारी अधिकारी है.... और उसकी पोस्टिंग भुवनेश्वर सेक्रेट्रिएट में है... वह अगर किसीको हायर... करेगा तो या तो कटक से या फिर भुवनेश्वर से....
रोणा - ओ... ऐसा कुछ टेक्नीकली... होता है क्या...
बल्लभ - हाँ.... और ज्यादा मत अंदर घुस... तु अपने साथ मेरा दिमाग भी खराब कर रहा है... (तभी बल्लभ के मोबाइल में एक मैसेज आता है, उस मैसेज को पढ़ने के बाद ) लो अब कारवाई शुरू हो गई है....
अदालत के अंदर
वीटनेस बॉक्स में परीडा खड़ा है और उसे गीता पर हाथ रख कर कसम खाने के लिए कोर्ट की एक मुलाजिम कह रहा है
- कहिए मैं गीता पर हाथ रख कर वचन देता हूँ... मैं अदालत को जो भी कहूँगा सच कहूँगा... सच के सिवा कुछ नहीं कहूंगा....
परीडा - मैं गीता पर हाथ रख कर वचन देता हूँ... जो भी कहूँगा सच कहूँगा... सच के सिवा कुछ नहीं कहूंगा....
अपनी कुर्सी से प्रतिभा उठती है और परीडा के पास आती है
प्रतिभा - हाँ तो परीडा जी... अभी अभी आपने कसम खाई है... की इस अदालत को सच बतायेंगे.... क्यूंकि जिस केस ने पूरे राज्य को हिला कर रख दिया है.... उसके मुख्य जांच अधिकारी आप हैं.... और जांच में आपने मुल्जिम श्री विश्व को अपराधी करार दिया है....
परीडा - जी...
प्रतिभा - चलिए फिर पहले आप अपनी परिचय को संक्षिप्त में बता दीजिए....
परीडा - जी मेरा नाम... कृष्ण चंद्र परीडा है.... मैं अभी सेक्रेट्रिएट में... होम सेक्रेटरी के अंडर कार्य कर रहा हूँ... इससे पूर्व मैं... आईबी में कार्यरत था...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म आई बी मतलब इंटेलिजंस बुरो... क्या यही वजह है कि आपको इस एसआइटी के लिए चुना गया....
परीडा - शायद....
प्रतिभा - परीडा जी आपकी एसआइटी कैसे बनी..... और कैसे ऑपरेट हुई... और कैसे आप लोग नतीजे पर पहुंचे... क्या विस्तार से प्रकाश डालेंगे....
परीडा - जी जरूर..... जैसा कि मैंने पहले बताया कि मैं सेक्रेट्रिएट में कार्यरत हूँ.... और होम सेक्रेटरी को रिपोर्ट करता हूँ.... एक दिन मुझे होम मिनिस्टर जी के ऑफिस से कॉल आया.... तो मैं तुरंत उनसे मिलने उनके कार्यालय में पहुच गया....
होम मिनिस्टर जी ने मुझसे कहा कि.... राजगड़ से राजा साहब यानी भैरव सिंह क्षेत्रपाल जी आए थे.... और उन्होंने मुख्यमंत्री जी से अपने इलाके में... मनरेगा घोटाले पर जांच की आग्रह किया है.... पर कुछ दिन के लिए इस जांच को गुप्त रूप से किया जाए.... तो मुख्यमंत्री जी ने उन्हें आश्वासन दिया है... की एक अंडर कवर टीम इस जांच को अंजाम देगी.... इसलिए मुझे यह दायित्व निभाने का अवसर दिया गया.... मुझे और तीन जनों की टीम में शामिल करने को कहा गया... तो मैंने अपने दो सबअर्डीनेट और एक चार्टर्ड अकाउंटेंट को शामिल किया और एक ऑडिट टीम की तरह यशपुर पहुंचे अपना काम को अंजाम देने के लिए....
प्रतिभा - ह्म्म्म्म अब तक ठीक है.... यशपुर पहुंचने के बाद आपने क्या किया.....
परीडा - जी यशपुर पहुंचने के बाद.... हमने राजा साहब जी से कॉन्टैक्ट की... चूंकि राजा साहब जी के शिकायत पर.... जांच आरंभ हुआ था.... इसलिए प्राथमिक गवाह के रूप में हमने राजा साहब जी का बयान लेने के लिए खबर भिजवाया.... राजा साहब जी ने हमको अपने महल में बुलाया.... और हमसे कहा कैसे विश्व को उन्होंने ही राजगड़ के विकास के लिए सरपंच बनने का आग्रह किया था....पर आज उन्हें अपने उस आग्रह पर बहुत पछतावा हो रहा है.... उन्हें दर-असल पंचायत समिति के एक सभ्य श्री उमाकांत आचार्य जी ने विश्व के करप्शन की जानकारी दी थी.... इसलिए पूरे सबूतों के साथ गिरफ्तार करने के लिए ही.... मुख्यमंत्री जी से एक निष्पक्ष जांच की आग्रह किया था.... तब मैं और मेरी टीम ने यह निश्चय किया कि... हम सबसे पहले श्री उमाकांत जी से मिलेंगे... तो राजा साहब ने अपने लोगों के जरिए.... श्री आचार्य जी को बुलावा भेजा था.... पर विडंबना यह रही कि राजा साहब जी के लोग... आचार्य जी मौत की खबर ले कर आए... आचार्य जी स्नान के लिए नदी के किनारे गए हुए थे.... तो वहाँ पर उन्हें सांप ने काट लीआ.... हमे घोटाले की सिरा मिलते मिलते रह गया था.... तो हमने यशपुर लौट कर तहसील ऑफिस की ऑडिट की तो पाया साढ़े सात सौ करोड़ रुपए का घोटाला सामने आया.... हम ने हर डाक्यूमेंट्स में... सिर्फ और सिर्फ विश्व के ही दस्तखत नजर आए.... पर हमे शक हुआ... कहीं विश्व को कोई फंसा तो नहीं रहा है.... इसलिए हम एक दिन तहसील ऑफिस के कर्मचारी बता कर विश्व से मिले.... तो पाया... श्री विश्व अपने करनी को बड़े शान से बखान कर रहे हैं.... तो हमने चालाकी से उनकी सिग्नेचर हासिल की... फिर सारे डाक्यूमेंट्स के सिग्नेचर से मिलान फॉरेंसिक लैब में कराया तो सही पाया.... इस बीच हमे इत्तेफाक से दिलीप कर मिले.... वह भी विश्व के जाल में फंसे हुए थे.... कभी वह विश्व के पिता के दोस्त हुआ करते थे.... उन्होंने यह भी बताया कैसे राजा साहब से इंकार करने के बाद उमाकांत आचार्य के साथ मिलकर विश्व को सरपंच बनने के लिए तैयार किया.... आज उसी निर्णय पर रो रहे हैं.... हमने उनकी पूरी कहानी सुनने के बाद... उन्हें सबसे पहले सरकारी गवाह बनाया.... फिर हमें जांच का सही सिरा मिल गया... कैसे पांच हजार मृतकों के आधार कार्ड के जरिए... मनरेगा के बकाया राशि को उनके अकाउंट में कैसे जमा कराया... कैसे मृतकों के नाम पर कॉन्ट्रैक्ट उठाया गया.... और उनके बैंक अकाउंट को इसिएस के जरिए राजगड़ उन्नयन परिषद यानी रूप के अकाउंट में पहुंचाया गया...... और जैसे ही पैसे रूप के अकाउंट में पहुंचे... मृतकों की मृत सर्टिफिकेट जमा कर बैंक अकाउंट को डी-ऐक्टिव किया गया.... यह सब जांच में हमने पाया.... राजगड़ पंचायत के सरपंच, यशपुर के तहसीलदार, बीडीओ, रेवेन्यू इंस्पेक्टर और बैंक मैनेजर यह पांचो इस घोटाले में प्राइम सस्पेक्ट निकले.... हमने जांच पूरी कर रिपोर्ट सौंपने होम मिनिस्टर जी से मिलने भुवनेश्वर गए.... रिपोर्ट सौंपते वक्त हमे खबर मिली... के एडिएम, बीडीओ फरार हो गए हैं... बैंक मैनेजर और तहसील ऑफिस के क्लार्क की हत्या हो गई और रेवेन्यू इंस्पेक्टर की गुमशुदगी की रिपोर्ट मिली.... कहीं विश्व भी हाथ से निकल ना जाए इसलिए हमने तुरंत देवगड़ एडिएम.... जो कि उस वक्त यशपुर तहसील के एडिशनल इंचार्ज भी थे... उनके हाथों विश्व के गिरफ्तारी की आदेश भिजवाया... होम सेक्रेट्रिएट के ऑफिस से.... बाकी सब आपके सामने है....
प्रतिभा - बहुत अच्छे... परीडा जी.... (जज के तरफ घूम कर) योर ऑनर यह संक्षिप्त विवरण था... कैसे विश्व को घोटाले की मुख्य अभियुक्त रूप जांच अधिकारी द्वारा... प्रस्तुत किया गया.... अब बचाव पक्ष... श्री परीडा जी से सवाल कर सकती है.....
जज - क्या डिफेंस.... श्री परीडा जी का क्रॉस एक्जाम करना चाहेगी...
जयंत - ऑफ कोर्स योर ऑनर.... जरूर....
जयंत - हाँ तो परीडा जी आपने अपने संक्षिप्त परिचय में कहा कि आप आईबी में पदाधिकारी थे.... और प्रमोशन के चलते सेक्रेट्रिएट में आए...
परीडा - जी....
जयंत - हाँ तो आप को होम सेक्रेट्रिएट से ऑर्डर मिला.... इसलिए आपने यह मनरेगा घोटाले की जांच शुरू की....
परीडा - जी...
जयंत - क्या आपको आश्चर्य नहीं लगा... के ऐसे अपराध की आप जांच कर रहे हैं.... जिस के ऊपर कोई लिखित अभियोग पत्र आपके पास नहीं है....
परीडा - जी.... वह... मैं.. मेरा मतलब है कि... हमे रिटीन ऑर्डर मिला था....
जयंत - और ऑर्डर में क्या लिखा था....
परीडा - जी सिर्फ जांच की रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए...
जयंत - जाहिर सी बात है... आपने वही किया भी... पर जब जांच रिपोर्ट आपने अदालत में सबमिट की... उसमे किस लिखित कंप्लेंट को आधार बना कर जांच किया बस यह नहीं बता पाए.... ह्म्म्म्म...
प्रतिभा अपने टेबल पर फाइलें पलट कर देखती है कि उसमें विश्व के खिलाफ या मनरेगा घोटाले की विरुद्ध कोई रिटीन कंप्लेंट नहीं है l
जयंत - योर ऑनर... यह राजा साहब के व्यक्तित्व ही है... जिनके मौखिक कंप्लेंट पर भी सिस्टम की हाई लेवल इंक्वायरी टीम ऐक्टिव हो गई....
प्रतिभा - आई ऑब्जेक्ट योर ऑनर.... मनरेगा का पैसा... सारे भारत वासियों का पैसा है... और कोई भी जागरूक नागरिक इस पर अपना विरोध मौखिक भी दर्ज करा सकता है.... इसमें यह कोई इशू नहीं है... क्यूंकि पुलिस भी फोन पर कंप्लेंट सुन कर हरकत में आती है.... प्रश्न है... जांच सही था या नहीं.... और यहां साढ़े सात सौ करोड़ रुपए की घोटाला सामने आया है.... इसलिए डिफेंस लॉयर... इसे किसीकी व्यक्तित्व को जोड़ कर ना देखें....
जज - सस्टैन.... डिफेंस लॉयर...अदालत को यह रिटीन कंप्लेंट की आवश्यकता यहां पर महसूस नहीं हो रही है.... आपको आगे पूछना है....
जयंत - जी... योर ऑनर...
जज - प्रोसिड...
जयंत - हाँ तो परीडा जी.... जांच के दौरान यशपुर में आप रुके कहाँ पर थे....
परीडा - जी.. यशपुर के सर्किट हाउस में....
जयंत - ह्म्म चूंकि आप सरकारी कार्य में गए थे... तो जाहिर सी बात है कि आप सर्किट हाउस में ही रुकते... वैसे... आप किस तरह की ऑडिटर बन कर गए थे...
परीडा - जी आरपीडीसी रेवेन्यू ऑडिटर बन कर...
जयंत - यह... आरपीडीसी होता क्या है...
परीडा - जी रूरल पेरिफेरल डेवलपमेंट कमेटी....
जयंत - तो आपने क्या पाया...
परीडा - जी कैसे प्रोजेक्ट कंप्लीशन सर्टिफिकेट और यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट देकर करोड़ों हड़प लिए गए...
जयंत - ह्म्म... यह मृत् लोगों के आधार कार्ड.. का क्या चक्कर है... परीडा जी...
परीडा - जी... सर... पहले जब काम शरू हुआ था... जिन कॉन्ट्रैक्टर्स को काम दिया गया था.... उनकी काम की क्वालिटी को देख कर.. उन कॉन्ट्रैक्टर्स को पहले ब्लैक लिस्ट किया गया..... फिर उन प्रोजेक्ट्स को कंप्लीट करने के लिए.... मृत् व्यक्तियों के आधार कार्ड का सहारा लिया गया.... उनके नाम पर कुछ फेक कंस्ट्रक्शन कंपनीयाँ बनाई गई.... और उनके नाम पर जो करंट अकाउंट बनाया गया था.... उन अकाउंट्स पर पैसे भेजे गए थे और उन अकाउंट्स से इसिएस के जरिए पैसे.... विश्व के बनाए एनजीओ रूप के अकाउंट को वापस आ जाती थी डोनेशन के रूप में..... और सर रूप के अकाउंट को ऑपरेट करने की अधिकार सिर्फ़ दो लोगों के पास था.... एक विश्व और दूसरे बैंक अधिकारी जिनकी बाद में हत्या हो गई....
जयंत - अच्छा.... ह्म्म्म्म.... एक अंतिम प्रश्न.... क्या विश्व के साइन किए सभी चेक के पैसे.... क्या मृतकों के अकाउंट को गई थी....
परीडा - जी सभी के सभी.... और मैंने उसकी लिस्ट भी दी है.... आप रिपोर्ट में देख सकते हैं...
जयंत - आर यू श्योर... (इतना कह कर जयंत फाइलों के सारे काग़ज़ को उलट पलट करने लगा) नहीं नहीं... पता नहीं पर शायद.... मुझे लगता है... विश्व के साइन किए सभी चेक.... कैसे... परीडा जी..... कहीं आप गलती तो नहीं कर रहे हैं....
परीडा - जी मैंने अपनी रिपोर्ट में... सबमिट किया है... आप देख सकते हैं...
जयंत - (अपनी कुर्सी पर बैठ कर अपने सर पर हाथ रख कर) नहीं मुझे देखने की कोई जरूरत नहीं.... (बड़े दुखी मन से) मैं बस आपसे इतना जानना चाहता हूँ.... क्या विश्व अपने सरपंच बनने के काल में शुरू से लेकर गिरफ्तार होने से पहले तक.... जितने भी चेक साइन किए... क्या वे सभी मृतकों के अकाउंट्स थे...
परीडा - जी हाँ.... मैं फिर से दोहरा रहा हूँ... विश्व के द्वारा साइन किए गए.... सभी चेक के पैसे मृतकों के अकाउंट को ही जाती थी....
फिर जयंत चुप हो जाता है और अपनी जगह पर पहुंच कर टेबल पर अपनी दाहिने हाथ की मुट्ठी से ठक ठक ठक कर मारता है l उसके चेहरे पर तनाव साफ़ दिख रहा है l
जज - डिफेंस लॉयर... क्या आपको और जिरह नहीं करना है....
जयंत - ह्म्म्म्म नो... नो योर ऑनर... बस... मुझे यही जानना था.... ठीक है... धन्यबाद... परीडा जी.... अगर जरूरत पड़ी तो आपको दोबारा यहाँ आना पड़ेगा...
यह सुन कर प्रतिभा के चेहरे पर एक खुशी भरी मुस्कान खिल उठी l
परीडा - जी मैं कानून और न्याय की सेवा करने के लिए... हमेशा से तैयार रहता हूँ...
जयंत - वेल... माय लॉर्ड... आज के लिए इतना ही.... अगर प्रोसिक्यूशन चाहें तो परीडा जी के जत किंचीत संचित ज्ञान से बंचित जिरह कंटीन्यु कर सकती हैं...
जज - क्या प्रोसिक्यूशन कारवाई को आगे बढ़ाएगी....
प्रतिभा - नो... माय लॉर्ड...
जज - तो फिर ठीक है... अगली सुनवाई... बुधवार को होगी.... आज के लिए कारवाई स्थगित किया जाता है.... टुडेस् कोर्ट इज़ एडजॉर्न.... (कह कर टेबल पर हथोड़ा मारता है)
सभी अपनी जगह पर खड़े हो जाते हैं l तीनों जज बाहर चले जाते हैं l उनके जाते ही, सभी कोर्ट रूम खाली करते हैं सिर्फ़ जयंत अपनी जगह बैठा रह जाता है l
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चेट्टीस् गेस्ट हाउस में
सब - चियर्स....
सब के हाथ में ग्लास है l ओंकार और पिनाक एक जगह पर बैठ कर हाथ में ग्लास लिए बैठे हैं l बार काउन्टर पर एक नौकर बैठा सबके लिए पेग बना रहा है और एक एक को बढ़ा रहा है लेकिन, सबसे ज्यादा खुश रोणा दिख रहा है l
रोणा - वाह.. वाह.. परीडा जी... वाह वाह... क्या बुनियाद रखा है आपने वाह.... पहली बार.... वह साला बुढ़उ गच्चा खा गया....
परीडा - चियर्स.... रोणा... चियर्स... अरे... ऐसे कितने जयंत देखे हैं.. मैंने... यह मुझे क्या लपेटता मैंने ही उसे लपेट लीआ.... हा हा हा हा
कर - (अपने दोनों हाथ जोड़ कर, नशे में धुत) मैं वहाँ आऊँ.... कुछ कउँ...
रोणा - बोल कुत्ते... आज जी भर के... कउँ.. कउँ... कर ले...
कर - ही.. ही.. ही... प.. परीडा स् साब जी.... आपने हमारी म...नरेगा... इमारत की... क्या नींव डाली है... अब ह् ह्.. हमारी बारी... हम दीवार उठाएंगे.... यह खाकी वाला छत डालेगा... और अंत में... राजा सहाब... टीवी से कीवाट लगाएंगे... स... साला कोई अंदर ही घुस नहीं पाएगा.... ही ही ही ही...
पिनाक - अभी तो कुछ भी नहीं है.... विश्व को सज़ा हो जाने दो.... फिर देखो क्या पार्टी होती है... वैसे... प्रधान... कितने साल के लिए अंदर जाएगा....
बल्लभ - कहना... मुश्किल है.... अगर हमारे लगाए चार्जस स्टैंड करते हैं... तो चौदह से बीस साल की सजा हो सकती है....
पिनाक - स्टैंड करती है... मतलब... अबे... स्टैंड... करेगी... नहीं तो.. बैसाखी लगवा कर... स्टैंड करवाना पड़ेगा... समझा...
ओंकार - अरे.. अरे... छोटे राजा जी...( एक नौकर को इशारा कर) ऐ छोटे राजा जी के ग्लास में... दो चार बर्फ के टुकड़े डाल.... (फिर पिनाक से) छोटे राजा जी... पी तो रहे हैं... हॉट ड्रिंक... पर कुल रहिए.. कुल...
रोणा - छोटे राजा जी.... आप यहां... स्टेट के स्वस्थ्य मंत्री के पास बैठे हुए हैं.... और आप वाइआइसी फार्मास्यूटिकल्स के गेस्ट हाउस में हैं.... यहां आपको हर मर्ज की दवा मिल जाएगी.... इसलिए शांत रहें...
पिनाक - हाँ... रोणा... सही कह रहे हो... जब खुशी मिले... तब जश्न मनाने से चूकना नहीं चाहिए....
कर - क्या थूकना... मैं सिर्फ़ राजा साहब के थूक चाट सकता हूँ...
बल्लभ - इसे ज्यादा.. चढ़ गई है... ऐ (नौकर से) इसे लेकर उसके कमरे में फेंक आओ...
दो नौकर दिलीप कर को उठा कर ले जाते हैं l
परीडा - क्या बात है.. वकील... तुम्हारे हाथ में जाम तो है... पर तुम क्यूँ नहीं पी रहे हो....
बल्लभ - जब तक... (ग्लास को हिलाते हुए) विश्व को सजा नहीं हो जाता.... तब तक नहीं...
परीडा - अरे फ़िकर नॉट... विश्व का वकील... अगर स्ट्रॉन्ग है... अपनी भी प्रतिभा बहुत मजबूत है.... साला बुढ़उ... दो मिनिट के लिए ही सही.... मेरा दिमाग हिला दिया था.... रिटीन कंप्लेंट के बारे में पूछ कर.... पर प्रतिभा ने क्या.. पटखनी दी... बुढ़उ सोचा भी नहीं होगा... ऐसी पटखनी मिलेगी.....
बल्लभ कुछ नहीं कहता है, वह चुप रहता है और अपने हाथ में लिए शराब की ग्लास को हिलाता रहता है l
पिनाक - क्या बात है... प्रधान... आज जश्न मनाने में... कंजूसी क्यूँ...
बल्लभ - मैं यह सोच रहा हूँ.... आज की कारवाई में जयंत ने... ज्यादा कुछ पूछा नहीं.... शायद इसलिए कि परीडा सिर्फ़ एक इन्वेस्टीगेशन ऑफिसर था... कहीं यह उसका स्मार्ट मूव तो नहीं....
रोणा - बोला... अपनी काली जुबान से बोला... साला काले कोट वाले... जब भी मुहँ खोलेगा... काली जुबान से ही बोलेगा...
पिनाक - प्रधान... तु... हमसे किस जनम का बैर निकाल रहा है बे... हम जश्न मना रहे हैं.... और तु रंग में भंग डाल रहा है....
परीडा - खैर मैंने तो अपना काम कर दिया है.... अगली सुनवाई उस कर की है....
पिनाक - ह्म्म्म्म... जानते हैं.... कर बहुत... पुराना खिलाड़ी है.... सम्भाल लेगा..
विश्व डायनिंग हॉल में एक कोने में पड़ा टेबल पर बैठ कर खाना खा रहा है और किसी सोच में खोया हुआ है l डैनी अपना थाली लेकर उसके पास आकर बैठता है l
डैनी - क्यूँ हीरो... कल क्या हुआ था... कोर्ट में...
विश्व अपना सर उठाकर देखता है और कहता है
- अरे डैनी साहब...
डैनी - क्यूँ भई किसी और की... इंतजार कर रहा था क्या.....
विश्व - जी... जी. नहीं.. नहीं... मैं यहाँ कैसे और किसका इंतजार करूंगा....
डैनी - अब... तु भले ही किसीका इंतजार ना करे... पर तेरा चाहने वाला अभी बाहर है... तुझसे यहाँ मिलने के लिए तड़प रहा है...
विश्व हैरानी से डैनी को देखता है l
डैनी - अरे यार.. वही जिसका पिछवाड़ा तेरे नाम से आह भरता है...
विश्व - (हंस देता है) ओ...
डैनी - और बता कल क्या हुआ....
विश्व - कल... कुछ खास नहीं...
डैनी - ह्म्म्म्म... कुछ तो हुआ है.... वरना इतना खोया खोया हुआ क्यूँ है....
विश्व - कल पहली बार... जयंत सर के माथे पर मैंने बल पड़ते हुए देखा... उनके चेहरे पर शिकन साफ़ दिखा मुझे....
डैनी - ह्म्म्म्म तो यह बात है..... देख वह कोर्ट रूम है... वहाँ वकीलों के बीच... दाव पेच का खेल होता है... कभी कोई हावी हो जाता है... तो कभी कोई सरेंडर हो जाता है...
विश्व - (अपना सर हिलाते हुए) ह्म्म्म्म... अब मुझे इन सब बातों का ज्ञान कहाँ.... मैं तो जीवन में पहली बार... राजगड़ से बाहर निकला.... वह भी एक घायल कैदी की तरह.... और न्यायालय की लाल कोठी भी देखा जीवन में पहली बार..... यहाँ आ कर... बस यहाँ पर लोगों को समझ नहीं पा रहा हूँ.... सच कहूँ तो.... कहाँ मैं अपने राजगड़ के लोगों को समझ पाया... पल पल हर पल लोगों के बदलता रंग देख.... हैरानी हो रही है मुझे....
डैनी - हा हा हा हा... यह तो कुछ भी नहीं... अगर यहाँ तु लंबा नप गया ना... तो यहाँ से बिना निकले भी.... सारे ब्रह्मांड का ज्ञान से धनी हो जाएगा.... अच्छा यह बता तुझे अब डर लग रहा है क्या....
विश्व - नहीं... अब बिल्कुल भी नहीं.... पर जब जयंत सर को चिंतित देखता हूँ... मुझे बुरा जरूर लगता है.... मुझे मेरे अंजाम की परवाह नहीं.... पर पता नहीं क्यूँ... मैं उन्हें हारते हुए नहीं देख सकता हूँ...
डैनी - ह्म्म्म्म बहुत जज्बाती हो रहे हो... क्या इसलिए के वह तेरे लिए लड़ रहा है....
विश्व - हाँ... शायद...
डैनी का खाना खतम हो जाता है l वह अपना थाली लेकर उठता है और धोने के लिए चला जाता है l थाली जमा करने के बाद फिर विश्व के पास आता है l
डैनी - तु... उनके लिए सोच रहा है... उनके लिए परेसान है... अच्छी बात है... पर यह मुकदमा है... कुछ भी हो सकता है.... वह तेरे लिए निस्वार्थ लड़ रहे हैं.... तु भी अपने मन में उमड़ रही भावनाओं में... उनके लिए निस्वार्थ भाव रख.... याद है तुने ही कहा था... के जब तु भगवान को याद करता है... तो तुझे उनका चेहरा दिखता है...
विश्व - हाँ...
डैनी - तो अपने भगवान पर विश्वास रख.... तुने अपना नैया उनके हाथ में दिया है पार लगाने के लिए.... तो अपने खीवैया पर भरोसा रख... उनकी जीत पर जश्न मनाना... पर उनके हार पर कभी दुख भी मत करना....
इतना कह कर डैनी वहाँ से चला जाता है l बेशक विश्व को छोड़ डैनी वहाँ से निकल जाता है, पर विश्व के कानों में डैनी की कही हर एक शब्द गूंजती रहती है l
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जगन्नाथ मंदिर में एक टोकरी भर कमल के फूलों से भरा हुआ है l पास बैठी वैदेही सुई धागा हाथ में लेकर माला गुंथ रही है l
पुजारी उसे माला गुंथते हुए देख रहा है और उसे लग रहा है कि भले ही वैदेही माला गुंथ रही है पर उसका ध्यान कहीं और है l कुछ देर बाद वैदेही के उंगली में सुई चुभ जाती है l उसके हाथों से सुई धागा और फूल छूट जाते हैं l
पुजारी - मैंने पहले से ही कहा था.... तुमसे नहीं होगा.... मंदिर में फूल गूँथने के लिए और भी लोग हैं.... तुम क्यूँ यह कष्ट उठा रही हो...
वैदेही - क्या बात कर रहे हैं पुजारी जी.... मैं क्यूँ नहीं गुंथ सकती... भगवान के लिए माला...
पुजारी - क्यूँकी सुबह से देख रहा हूँ... तुम्हारा ध्यान कहीं और है...
वैदेही - नहीं ऐसी बात नहीं है... पंडित जी... वह मैं...
पुजारी - देखो बेटी... तुम्हारा मन कल से ही विचलित है... कोर्ट से आने के बाद... तुम खोई खोई सी हो...
वैदेही चुप रहती है l
पुजारी - ह्म्म लगता है... कल का दिन... तुम्हारे उम्मीद के मुताबिक नहीं गया....
वैदेही अपने होठों पर चुप्पी लिए सर झुका लेती है l
पुजारी - (वैदेही के पास बैठ कर) देखो बेटी... मैं मानता हूँ आशा है... तो जीवन है... पर भगवान ना करे... मानलो कभी आशा टूट जाती है... इसका मतलब यह तो नहीं... जीवन रुक जाती है....
वैदेही पुजारी को मुरझाइ नजर से देखने लगती है
पुजारी - देखो बेटी.... मैं यह तो नहीं जानता कल कोर्ट में क्या हुआ.... पर इतना कहूँगा निरास कभी मत होना.... क्यूँकी तुम्हारे भाई का केस लड़ने वाला जयंत... भले ही साधारण कद काठी का है.... पर यह मैं दावे के साथ कह सकता हूँ.... जब तक वह मैदान में है... तब तक तुम्हारे भाई सुरक्षित है...
वैदेही फिरभी कुछ नहीं कहती है, पुजारी को देखती है फ़िर अपनी नजरें नीचे कर लेती है l
पुजारी - अच्छा तुमने वह कहावत तो सुनी होगी ना.... के शेर अपने शिकार पर अंतिम प्रहार करने से पहले.... दो कदम पीछे हटता है.... कभी दो सांढों को लड़ते देखा है... या फिर... दो भेड़ों को.... एक जोरदार हमला करने से पहले... कुछ कदम पीछे हटते हैं.... समझो कल कोर्ट में वही हुआ होगा...
वैदेही की आंखे हैरानी से चौड़ी हो जाती है l
पुजारी - अब तुम चाहो तो... फूल गुंथ सकती हो..
इतना सुनते ही,वैदेही के चेहरे पर उदासी हट जाती है और मुस्कान आ जाती है l
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कोर्ट रूम की ओर जाते हुए जयंत को कॉरीडोर में वैदेही दिखती है l वैदेही उसे देख अपनी खुशी जाहिर करती हुई एक हंसी के साथ जयंत को अभिवादन करती है l जयंत भी उसके तरफ मुस्कराते हुए देखता है l ठीक उसी वक्त तापस विश्व को लेकर वहीँ पहुंचता है l
विश्व - (जयंत से) नमस्ते सर....
जयंत - नमस्ते... क्या बात है... आज भाई बहन कुछ अलग ही मुड़ में हैं.... या फिर कोई खास दिन है आज...
वैदेही - मुड़ में हम आपके वजह से हैं.... सर.... और आपके वजह से अब हर दिन खास होता जा रहा है....
जयंत - वाकई.... हा हा हा.... अच्छा चलो... जल्दी चलते हैं... देखते हैं... आज क्या होने वाला है...
दोनों - जी...
फिर तापस विश्व को लेकर चला जाता है l वैदेही और जयंत भी कोर्ट रूम की और चले जाते हैं l
कोर्ट रूम के भीतर आज कुछ और सदस्य उन्हें नजर आते हैं l दरवाजे के पास जयंत और वैदेही दोनों रुक जाते हैं l जयंत उन अजनबियों को देख रहा है l
वैदेही - सर यह सब हमारे राजगड़ से आए हुए हैं... वह जो धोती कुर्ता में है... उसका नाम दिलीप कर है... बहुत ही नीच और कमीना है... वह जो सफारी शूट में है... वह है इंस्पेक्टर अनिकेत रोणा... इसके आगे तो कमीनापन भी कहीं ठहर ही नहीं सकता.... और वह जो कोट पहने बैठा हुआ है... वह है राजा साहब का वकील बल्लभ प्रधान... राजा भैरव सिंह के हर काले कारनामों का काला चिट्ठा, सब का लेखा जोखा रखता है...
जयंत - ह्म्म्म्म
वैदेही - पर यह समझ में नहीं आ रहा है... बल्लभ का नाम तो गवाहों लिस्ट में नहीं था... फिर यह यहाँ कैसे....
जयंत - (मुस्कराते हुए) सिम्पल... राजगड़ से आने वाला हर गवाह का... वकील बन कर आया है.... अपने सामने सबका जिरह देखेगा... पर कारवाई में उसका कोई दखल नहीं होगा....
वैदेही - ओ...
जयंत - चलो... हम अपनी जगह बैठते हैं...
इतना कह कर दोनों अपनी अपनी जगह पर आ कर बैठ जाते हैं l वैदेही उनके तरफ देखती है तो तीनों वैदेही को देख कर अपने चेहरे पर कमीनी मुस्कान लाते हैं l वैदेही घृणा से अपना चेहरा घुमा लेती है l
हॉकर जजों के आने का संकेत देता है l सब अपनी जगह पर खड़े हो जाते हैं l तीनों जज अपनी अपनी जगह पर बैठ जाते हैं l फिर औपचारिकता समाप्त होते ही गवाह के रूप में दिलीप कर को बुलाया जाता है l
दिलीप कर के वीटनेस बॉक्स में पहुंचते ही कोर्ट के एक मुलाजिम गीता लेकर उसके पास पहुंचता है तो गीता पर हाथ रख कर कर कहता है -
- मैं जो भी कहूँगा सच कहूँगा... सच की सिवा कुछ नहीं कहूंगा...
प्रतिभा अपनी कुर्सी से उठ कर दिलीप कर के पास आती है l
प्रतिभा - हाँ तो आप... अदालत को अपना परिचय देने का कष्ट करेंगे....
कर - उसमें कष्ट कैसा... माई बाप.... मेरा नाम दिलीप कुमार कर है... मेरे माता-पिता दोनों इस संसार में नहीं हैं.... मैं राजगड़ पंचायत के... मानिया शासन गांव से वार्ड मेंबर और पंचायत समिति सभ्य हूँ...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... उस कटघरे में जो शख्स खड़ा है... क्या आप उसे जानते हैं....
कर - जी अच्छी तरह से... पहले तो कम ही जानता था.... पर अब... अब अच्छी तरह से जान चुका हूँ और समझ भी चुका हूँ....
प्रतिभा - क्या मतलब...
कर - मतलब... यह... स्वजाती भक्षु... मतलब अपनी ही जाती को खा जाने वाला... अपने कुल का कलंक है... नमक हराम है और एहसान फरामोस है...
यह सुनते ही वैदेही को बहुत गुस्सा आता है l वह अपनी दांत पिसते हुए जबड़े भींच लेती है l
प्रतिभा - ऐसा आप क्यूँ कह रहे हैं....
कर - हमने.... क्या समझ कर... इसको सरपंच बनाया था... पर इसने क्या कर दिया....
प्रतिभा - वही तो अदालत जानना चाहती है... की इस शख्स ने क्या किया.... और आप उसके सारे काले कारनामों का गवाह हैं... अदालत अब आपसे विस्तार से जानना चाहती है.... और आप किस तरह से... एसआइटी की मदत किए...
कर - ठीक है... वकील साहिबा जी (फिर जज की ओर मुड़ कर) माय बाप... एक दिन राजा साहब जी के महल में सारे पंचायत के समिति सभ्य इकट्ठे हुए थे... हमारे पूर्व सरपंच जी का देहांत... उनके कार्यकाल के पुरा होने से सात महीने पहले हो गया था... और क्यूंकि राज्य के दूसरे हिस्सों के मुकाबले हमारा यशपुर पिछड़ा हुआ रहा है.... पंचायत चुनाव का समय भी निकट आ रहा था तब.... हम सबने राजा साहब से कुछ बदलाव की सुझाव मांगने के लिए गए थे... तो राजा साहब ने हमको कहा... चूंकि शायद हम सब पुराने ज़माने के... पुराने ख़यालात के हैं... इसलिए हम से सारे काम धीरे धीरे हो रहे हैं.... तेजी से बदल रही इस दुनिया में... बदलाव के लिए... नए ज़माने का नया जोश भरा... नए खून से लबालब... नया नव युवक को इस बार... मौका दिआ जाए....
हम सबने... उनकी बातों का समर्थन किया और पूछा भी... कौन हो सकता है ऐसा नवयुवक... तब राजा साहब ने इस नमक हराम... एहसान फरामोस... विश्व का नाम सुझाया.....
वैदेही - (चिल्ला कर) यह झूठ कह रहा है जज साहब.... और यह बार बार मेरे भाई को गाली भी दे रहा है....
जज - ऑर्डर... ऑर्डर.... मोहतरमा आप... इस तरह से अदालत के कारवाई में दखल नहीं दे सकती.... आपके भाई के तरफ से कहने के लिए... आपका वकील नियुक्त हैं... इसलिए सयम बरतें... कृपाया आप अपना स्थान ग्रहण करें....
जयंत भी वैदेही को चुप रहने के लिए इशारा करता है और इशारे से बैठने के लिए कहता है l वैदेही बैठ जाती है और गुस्से से दिलीप कर को देखती है, दिलीप कर जवाब में उसे देख कर एक कमीनी हंसी अपने चेहरे पर ला कर वैदेही को देखता है l
प्रतिभा - हाँ तो कर बाबु... राजा साहब ने विश्व का नाम सुझाया... फिर...
कर - फिर राजा साहब जी ने विश्व को बुलाया... समझाया... पर वह नमक हराम.... राजा साहब को मना ही कर दिया था... पर फिर राजा साहब जी ने उमाकांत आचार्य जी को बुलाया... और राजगड़ विकास के लिए सामुहिक तौर पर... विश्व को मनाने के लिए आचार्य जी को दायित्व दिया... और आचार्य जी के साथ मैं भी गया था... विश्व को मनाने के लिए... माय बाप.... एक तरफ इस कम्बख्त विश्व को आचार्य जी समझा रहे थे... और दूसरी तरफ... मैं इस बदबख्त के पैरों में गिर कर राजा साहब की मान को बचाने के लिए गुहार लगा रहा था.... (इतना कह कर कर वैदेही की ओर अपने काले दांत दिखाते हुए हंसता है, उसकी यह कमीनी हरकत देख कर वैदेही के तन बदन में आग लग जाती है) माय बाप... विश्व के मान जाने के बाद... विश्व का नामांकन से लेकर चुनाव जीतने तक हम सबने.... दिन रात एक कर दिया था... ताकि विश्व हमारे राजगड़ को उन्नती के शिखर पर पहुंचा दे... पर इस एहसान फरामोस ने एक ऐसा काला दिन दिखाया... के इसे सरपंच बनाना.... राजा साहब और हम सबकी बड़ी भूल साबित हुई.....
माय बाप.... मेरे गाँव में तीन कलवर्ट कामों के सिर्फ पचपन लाख रुपये कंट्राक्टर को देने बाकी थे... इसलिए मैं विश्व के पास चेक साइन कराने गया था... पर विश्व ने पचपन के जगह पचहत्तर लाख लिख कर साइन किया.... मैं हैरान रह गया... मैंने पूछा... इतना क्यूँ... तो विश्व ने कहा... के देखते हैं... अगर पैसा मिल जाता है... तो बांट लेंगे... नहीं तो चेक बदल देंगे... मैं हैरान रह गया... क्या यह वही विश्व है... जिसके पिता मेरे परम मित्र रघुनाथ महापात्र है... क्या यह सम्भव है.... पर आज लग रहा है... क्यूँ नहीं जब महर्षि विश्रवा का बेटा रावण हो सकता है... तो रघुनाथ का बेटा विश्व ऐसा क्यूँ नहीं हो सकता है...
वैदेही - नहीं (चिल्लाते हुए अपनी जगह पर खड़ी हो जाती है) जज साहब यह बहुत ही नीच और गलीच इंसान है... झूठ पर झूठ और तोहमत लगाए जा रहा है...
वैदेही के ऐसे चिल्ला कर बात करने से जयंत भी अपनी जगह से उठ जाता है
जज - ऑर्डर ऑर्डर... वैदेही जी.... अगर आप फिरसे अदालत की कारवाई में... दखल देने की कोशिश की... तो मजबूरन अदालत आपको जिरह के समय इस कमरे से दूर रखेगी....
जयंत - योर ऑनर.... प्लीज... इस जिरह को थोड़ी देर के लिए रोक दिया जाए.... हमे एक स्वल्प विराम दिआ जाए.... मैं अपने क्लाइंट और उसके संबंधी को थोड़ी देर के लिए... यहाँ से अलग कमरे में ले जा कर समझना चाहता हूँ....
जज - ठीक है... यह अदालत बचाव पक्ष वकील के बात को मानते हुए... दोनों पक्षों को आधे घंटे का विराम.... देती है... और ठीक आधे घंटे के बाद कारवाई फिर यहीँ से शुरू होगी....
इतना कह कर तीनों जज वहाँ से चले जाते हैं l उनके जाते ही जयंत वैदेही और विश्व को लेकर पास के एक कमरे में आता है l कमरे के भीतर पहुंच कर जयंत वैदेही के तरफ मुड़ कर
जयंत - वैदेही... यह क्या कर रही हो.... वह तुम दोनों को उकसा रहे हैं... और तुम उनकी षड्यंत्र को कामयाब होने दे रही हो..
वैदेही - देखिए ना.. सर... (रोती सूरत बना कर) वह मेरे भाई को... रावण कह रहा है... कितना झूठ बोल रहा है...
जयंत - देखो मैं जानता हूँ... उसे उसकी मर्जी की करने दो.... जब वह मेरे पाले में आएगा... तब वह अपना झूठ भी नहीं पचा पाएगा....
विश्व - दीदी... जयंत सर ठीक कह रहे हैं...
जयंत - देखो वैदेही... मैंने विश्व को पहले ही दिन से समझा दिया था... के कारवाई के दौरान उत्तेजित ना होने के लिए... वह तुम से छोटा है... फ़िर भी सयम बनाए हुए है... पर तुम ना सिर्फ अपना सयम खो रही हो... बल्कि अगर तुम्हें किसी भी तरह से जज छोटी ही सही... सजा देते हैं.. तो विश्व पर मानसिक रूप से प्रभाव पड़ेगा... और यही तो वह लोग चाहते हैं...
वैदेही - म.. मुझे... माफ कर दीजिए... मैं चुप रहूंगी...(कह कर पास रखे एक कुर्सी पर बैठ जाती है)
विश्व उसके पास जा कर उसके सर को पकड़ कर झुक कर अपने सीने से लगा लेता
विश्व - दीदी... मैं जानता हूँ... आप मुझसे बहुत प्यार करती हो... पर हमने इतना कुछ सहा है... तो कुछ और सही....
वैदेही - (अपनी आँखों में आंसू लिए) ह्म्म्म्म
जयंत - ह्म्म्म्म अब तुम थोड़ा पानी पी लो... (कह कर एक डिस्पोजेबल ग्लास में पानी लाकर देता है)
उधर एक और कमरे में
रोणा - वाह... साले हरामी.... वाह... तुने तो... उस वैदेही की झांटे ही सुलगा दी...
कर - ही.. ही.. (एक पान निकाल कर खाते हुए) बच्ची है... बिचारी.... अभी अभी राजगड़ से बाहर की दुनिया देख रही है... इसलिए पचा नहीं पा रही है भड़क गई... साली कुत्तीआ... ही ही ही
परीडा - वाकई... उन पर... तो साइकोलॉजीकल एडवांटेज हमने ले लिया है... अभी...
रोणा - और नहीं तो क्या... वह लोग जितना फटेंगे... उतना ही टूटेंगे...
कर - मैं तो इस फन में माहिर हूँ... आदमी जितना भड़केगा... वह खुद पर.. नियंत्रण उतना ही खो देगा.... और जो ना किया हो उसे स्वीकार भी कर लेगा....
परीडा - बिल्कुल... अभी सिर्फ़ उसकी बहन... रिएक्ट कर रही है.... विश्व का रिऐक्ट होना बाकी है... फिर उनसे गलतियां होती जाएंगी... और हम उन पर हावी होते जाएंगे....
रोणा - सौ टका सही... सुन बे कर.. तु लगा रह... आज सुनवाई खत्म होने दे..... साले तुझे आज शराब में नहला दूँगा....
कर - मैं तो पहले से ही कहा था.... हमारे परीडा जी ने... नींव डाल रखी है... अब मैं उस पर दीवार चढ़ा रहा हूँ.... रोणा बाबु.... छत ढंग से डाल देंगे..... और राजा साहब... किवाट और खिड़की लगा देंगे... ना कानून.. ना कोई तितर... उसके भीतर... पहुंच ही नहीं पाएंगे....
रोणा - बिल्कुल... क्यूँ बे वकील... सब तेरी ही स्क्रिप्ट के हिसाब से... काम बढ़ रहा है... फ़िर भी तेरे चेहरे पर... खुशी नहीं दिख रही है....
बल्लभ - वैदेही... कितना भड़कती है... यहाँ पर... यह जरूरी नहीं है.... हमारा टार्गेट... विश्व है... उसे इतना भड़काना है... की वह अपना आपा खो बैठे.... तब हमारी हर चाल कामयाब होगी....
कर - उसी की तो कोशिश कर रहा हूँ... पर उससे पहले उसकी बहन सुलग रही है... कमीनी जैसे सुलग सुलग कर उड़ रही है....
बल्लभ को छोड़ सभी हंसते हैं l
रोणा - हाँ बिल्कुल दिवाली की रॉकेट की तरह... उड़ती तभी है.. जब पिछवाड़ा सुलगती है....
(हा हा हा हा हा) फिरसे सभी हंस देते हैं l
बल्लभ - तुने राजगड़ में... दिवाली कब मनाई...
रोणा - नहीं मनाई... पर अपने यहाँ जाकर तो मनाई है.... ना
परीडा - क्यूँ.. राजगड़ में.. क्यूँ नहीं मनाई...
कर - श्.. श्..श्... (धीरे से) राजगड़ में क्षेत्रपाल परिवार का विधान है... आम लोग खुशियां या मातम इकट्ठे होकर... भीड़ बना कर.. नहीं मना सकते... जिसको मनाना होता है.... वह लोग अपनी चार दीवारी के भीतर मनाते हैं.... वह भी किसीको मालुम ना हो पाए ऐसे.... राजगड़ में उत्सव, खुशियाँ और मातम सिर्फ़ महल में होती है... जहां लोग भीड़ बना कर सामिल हो सकते हैं....
परीडा - ओह माय गॉड... म.. मतलब... मुझे यह मालूम नहीं था...
रोणा - इसलिए तुम अपना काम करो.... और राजा साहब या राजगड़ के बारे में... जितना कम जानों... उतना ही अच्छा है....
बल्लभ - यार.. यह बे सिर पैर की बातों को किनारे करो अब... देख कर अभी टाइम हो जाएगा... किसी भी तरह से... अपने बयान इसी तरह जारी रख... और तुझको विश्व को भड़काना है... ऐसे भड़काना है कि वह अपना आपा खो बैठे.... पर अपनी भाषा को नियंत्रित रखना.... वरना लेने के देने पड़ जाएंगे....
कर - ठीक है... अबकी की बार देखो मेरा कमाल....
इन सबकी काना फुसी चल ही रही थी कि तभी एक कांस्टेबल वहाँ आकर खबर करता है कि अदालत शुरू होने वाली है l सभी जल्दी से सुनवाई के कमरे में पहुंचते हैं l कमरे के भीतर विश्व अपनी कठघरे में खड़ा है l जयंत और वैदेही अपनी अपनी जगह पर बैठे हुए हैं l यह लोग भी अपने जगहों पर बैठ जाते हैं l कुछ देर बाद तीनों जज अपने अपने कुर्सी पर बैठ जाते हैं l फिर दिलीप कर को विटनेस बॉक्स में बुलाया जाता है l
प्रतिभा - (उसके पास पहुंच कर) हाँ तो कर बाबु.... आपने कहा कि... कंट्राक्टर को बकाया पैसे देनें थे... इसलिए अपने पचपन लाख रुपये की चेक मांगा... बदले में.. विश्व ने पचहत्तर लाख रुपये की चेक साइन कर जमा करने के लिए कहा... I
कर - जी...
प्रतिभा - अब आगे क्या हुआ कहिए....
कर - मैं तो बहुत हैरान हो गया था.... पर पता नहीं... कैसे और कहां से विश्व के पास बाकी के बीस लाख रुपये पहुंचे.... विश्व ने मुझे कसम देकर... दस लाख रुपये दिए... अब मैं... बीच भंवर में फंस चुका था.... मुक्ति की राह तलाश रहा था... तो मैंने एक दिन फोन कर... यशपुर तहसीलदार जी को विश्व का यह कारनामा बताया... एक दिन तहसील ऑफिस से विश्व को बुलावा आया.... मैं बहुत खुश हो गया... लगा अब अंकुश लगेगा... विश्व और मैं तहसील ऑफिस पहुंचे... पर मुझे ऑफिस के बाहर रुकने को बोल... विश्व अकेले गया था तहसीलदार जी से मिलने... करीब करीब आधा दिन बीत गया... तब विश्व बाहर आया... उसके चेहरे पर एक अलग खुशी झलक रही थी.... जैसे कोई मैदान मार लिया हो.... मैं समझ नहीं पाया... एक तरफ विश्व के दिए हुए पैसे मेरे गले में फांस बन चुका था.... और दूसरी तरफ तहसील ऑफिस से विश्व का खुश हो कर वापस आना.... मुझे और भी डराने लगा....
अगले दिन पंचायत ऑफिस में.. बड़े बड़े लोग आ पहुंचे... तहसीलदार, ब्लाक अधिकारी, बैंक अधिकारी, रेवेन्यू इंस्पेक्टर, और विश्व के बीच बंद कमरे में एक मीटिंग हुई...
उसके बाद विश्व बाहर आकर हमे कहा... के राजगड़ विकास के लिए... उन्होंने तय किया है.. की एक गैर सरकारी संस्था के जरिए आम जनता से चंदा के जरिए देश विदेश के लोगों से... पैसे इकट्ठा करके... जनता की भलाई करेंगे.... हमे बहुत अच्छा लगा सुन कर.... तो एक महीने के भीतर "राजगड़ उन्नयन परिषद" पंजीकृत हुआ... इससे हमारे राजा साहब भी बड़े खुश हुए... उन्होंने अपने तरफ से.. पच्चीस लाख रुपये का दान चेक के जरिए दिया.... मैंने भी.. जो मेरे गले में फांस बनाकर विश्व ने... दस लाख रुपए दिया था.... वही दस लाख रुपये माय बाप दान दे दिया....
उसके बाद क्या होता रहा,.. क्यूँ होता रहा... मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था... एक दिन तहसील ऑफिस गया था... वहाँ पर पहुंच कर देखा... तहसील ऑफिस के एक कर्मचारी को विश्व बहुत मार रहा है... मैंने जा कर उसे रोका.... और विश्व को वहाँ से भेज दिया... फिर उस कर्माचारी को भी घर जाने को कहा... तभी वह कर्मचारी ने मुझे बताया कि कई सौ करोड़ों रुपये विश्व, तहसीलदार और ब्लॉक अधिकारी मिलकर लूट लिए हैं.... मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई... मैं तुरंत भागा... भागते भागते आचार्य जी को गुहार लगाई.... आचार्य जी को बहुत दुख हुआ... वह गए... सीधे राजा साहब से माफ़ी मांगने.... राजा साहब को भी दुख हुआ.... यह सब जानने के बाद.... राजा साहब ने.... आचार्य जी को... आश्वासन दिया.. की वह जल्दी कुछ करेंगे... फिर इसी तरह कुछ दिन बीत गए... फिर हमे खबर मिली... आचार्य जी को सांप ने काट लिया है... और हस्पताल जाने से पहले उनका देहांत हो गया.... मैं पूरी तरह से टूट गया माय बाप... इसलिए एक दिन निश्चय किया और यशपुर के महादेव मंदिर में भगवान को... साष्टांग प्रणाम किया और कहा... हे महादेव.. कहाँ हो आप... मैं यह सब अनर्थ नहीं देख सकता हूँ... या तो अपना त्रीनेत्र खोल कर तांडव करो... या.. या मेरे प्राण लेले... या फिर कोई जरिया देदे... जिससे मैं उस बदबख्त विश्व को सजा दिला सकूं..... तभी माय बाप मंदिर की घंटी बजी... मैं नीचे से उठा... विभोर हो गया... भगवान ने मेरी सुन ली.... मैं मंदिर में उस व्यक्ति को ढूंढने लगा जिसने घंटी बजायी... तब मुझे (परीडा की ओर हाथ दिखा कर) यह महाशय दिखे... मैंने उन पर नजर रखा और उनकी बातों को सुनने लगा... जब मुझे मालूम हुआ... की यह लोग तो राजगड़ में हुए घोटाले की जांच करने आए हैं.... मैं पहले भगवान को धन्यबाद किया... फ़िर इनसे मिला और अपनी सारी दुखड़ा रोया... बाकी सब आपके सामने है माय बाप... बाकी सब आपके सामने है....
प्रतिभा - ह्म्म्म्म तो यह थी... विश्व रूप कि कहानी...
कर - जी....
प्रतिभा - तो विश्व महापात्र जी... क्या यह दिलीप कर सच कह रहे हैं...
विश्व - (अपनी दांत पिसते हुए) यह आदमी... पूरा का पूरा झूठा है... और जो भी कहा है सब झूठ कहा है....
प्रतिभा - यह तो आपके डिफेंस लॉयर को साबित करने दीजिए... फ्रोम माय साइड... दैट्स ऑल योर ऑनर... (जयंत को देख कर) नाउ योर टर्न....
जयंत यह सुन कर मुस्कुराता है l
जज - क्या बचाव पक्ष इस गवाह से जिरह करना चाहेंगे...
जयंत -(अपनी कुर्सी से उठते हुए) जी... माय लॉर्ड.. जरूर...
जज - ठीक है... शुरू कीजिए....
जयंत दिलीप कर को देखता है l कर अपने होठों को अपने गमछे से साफ करता है l उसे ऐसा करते देख जयंत उसे मुस्करा कर देखता है, जवाब में दिलीप कर मुस्करा देता है l
विश्व डायनिंग हॉल में एक कोने में पड़ा टेबल पर बैठ कर खाना खा रहा है और किसी सोच में खोया हुआ है l डैनी अपना थाली लेकर उसके पास आकर बैठता है l
डैनी - क्यूँ हीरो... कल क्या हुआ था... कोर्ट में...
विश्व अपना सर उठाकर देखता है और कहता है
- अरे डैनी साहब...
डैनी - क्यूँ भई किसी और की... इंतजार कर रहा था क्या.....
विश्व - जी... जी. नहीं.. नहीं... मैं यहाँ कैसे और किसका इंतजार करूंगा....
डैनी - अब... तु भले ही किसीका इंतजार ना करे... पर तेरा चाहने वाला अभी बाहर है... तुझसे यहाँ मिलने के लिए तड़प रहा है...
विश्व हैरानी से डैनी को देखता है l
डैनी - अरे यार.. वही जिसका पिछवाड़ा तेरे नाम से आह भरता है...
विश्व - (हंस देता है) ओ...
डैनी - और बता कल क्या हुआ....
विश्व - कल... कुछ खास नहीं...
डैनी - ह्म्म्म्म... कुछ तो हुआ है.... वरना इतना खोया खोया हुआ क्यूँ है....
विश्व - कल पहली बार... जयंत सर के माथे पर मैंने बल पड़ते हुए देखा... उनके चेहरे पर शिकन साफ़ दिखा मुझे....
डैनी - ह्म्म्म्म तो यह बात है..... देख वह कोर्ट रूम है... वहाँ वकीलों के बीच... दाव पेच का खेल होता है... कभी कोई हावी हो जाता है... तो कभी कोई सरेंडर हो जाता है...
विश्व - (अपना सर हिलाते हुए) ह्म्म्म्म... अब मुझे इन सब बातों का ज्ञान कहाँ.... मैं तो जीवन में पहली बार... राजगड़ से बाहर निकला.... वह भी एक घायल कैदी की तरह.... और न्यायालय की लाल कोठी भी देखा जीवन में पहली बार..... यहाँ आ कर... बस यहाँ पर लोगों को समझ नहीं पा रहा हूँ.... सच कहूँ तो.... कहाँ मैं अपने राजगड़ के लोगों को समझ पाया... पल पल हर पल लोगों के बदलता रंग देख.... हैरानी हो रही है मुझे....
डैनी - हा हा हा हा... यह तो कुछ भी नहीं... अगर यहाँ तु लंबा नप गया ना... तो यहाँ से बिना निकले भी.... सारे ब्रह्मांड का ज्ञान से धनी हो जाएगा.... अच्छा यह बता तुझे अब डर लग रहा है क्या....
विश्व - नहीं... अब बिल्कुल भी नहीं.... पर जब जयंत सर को चिंतित देखता हूँ... मुझे बुरा जरूर लगता है.... मुझे मेरे अंजाम की परवाह नहीं.... पर पता नहीं क्यूँ... मैं उन्हें हारते हुए नहीं देख सकता हूँ...
डैनी - ह्म्म्म्म बहुत जज्बाती हो रहे हो... क्या इसलिए के वह तेरे लिए लड़ रहा है....
विश्व - हाँ... शायद...
डैनी का खाना खतम हो जाता है l वह अपना थाली लेकर उठता है और धोने के लिए चला जाता है l थाली जमा करने के बाद फिर विश्व के पास आता है l
डैनी - तु... उनके लिए सोच रहा है... उनके लिए परेसान है... अच्छी बात है... पर यह मुकदमा है... कुछ भी हो सकता है.... वह तेरे लिए निस्वार्थ लड़ रहे हैं.... तु भी अपने मन में उमड़ रही भावनाओं में... उनके लिए निस्वार्थ भाव रख.... याद है तुने ही कहा था... के जब तु भगवान को याद करता है... तो तुझे उनका चेहरा दिखता है...
विश्व - हाँ...
डैनी - तो अपने भगवान पर विश्वास रख.... तुने अपना नैया उनके हाथ में दिया है पार लगाने के लिए.... तो अपने खीवैया पर भरोसा रख... उनकी जीत पर जश्न मनाना... पर उनके हार पर कभी दुख भी मत करना....
इतना कह कर डैनी वहाँ से चला जाता है l बेशक विश्व को छोड़ डैनी वहाँ से निकल जाता है, पर विश्व के कानों में डैनी की कही हर एक शब्द गूंजती रहती है l
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जगन्नाथ मंदिर में एक टोकरी भर कमल के फूलों से भरा हुआ है l पास बैठी वैदेही सुई धागा हाथ में लेकर माला गुंथ रही है l
पुजारी उसे माला गुंथते हुए देख रहा है और उसे लग रहा है कि भले ही वैदेही माला गुंथ रही है पर उसका ध्यान कहीं और है l कुछ देर बाद वैदेही के उंगली में सुई चुभ जाती है l उसके हाथों से सुई धागा और फूल छूट जाते हैं l
पुजारी - मैंने पहले से ही कहा था.... तुमसे नहीं होगा.... मंदिर में फूल गूँथने के लिए और भी लोग हैं.... तुम क्यूँ यह कष्ट उठा रही हो...
वैदेही - क्या बात कर रहे हैं पुजारी जी.... मैं क्यूँ नहीं गुंथ सकती... भगवान के लिए माला...
पुजारी - क्यूँकी सुबह से देख रहा हूँ... तुम्हारा ध्यान कहीं और है...
वैदेही - नहीं ऐसी बात नहीं है... पंडित जी... वह मैं...
पुजारी - देखो बेटी... तुम्हारा मन कल से ही विचलित है... कोर्ट से आने के बाद... तुम खोई खोई सी हो...
वैदेही चुप रहती है l
पुजारी - ह्म्म लगता है... कल का दिन... तुम्हारे उम्मीद के मुताबिक नहीं गया....
वैदेही अपने होठों पर चुप्पी लिए सर झुका लेती है l
पुजारी - (वैदेही के पास बैठ कर) देखो बेटी... मैं मानता हूँ आशा है... तो जीवन है... पर भगवान ना करे... मानलो कभी आशा टूट जाती है... इसका मतलब यह तो नहीं... जीवन रुक जाती है....
वैदेही पुजारी को मुरझाइ नजर से देखने लगती है
पुजारी - देखो बेटी.... मैं यह तो नहीं जानता कल कोर्ट में क्या हुआ.... पर इतना कहूँगा निरास कभी मत होना.... क्यूँकी तुम्हारे भाई का केस लड़ने वाला जयंत... भले ही साधारण कद काठी का है.... पर यह मैं दावे के साथ कह सकता हूँ.... जब तक वह मैदान में है... तब तक तुम्हारे भाई सुरक्षित है...
वैदेही फिरभी कुछ नहीं कहती है, पुजारी को देखती है फ़िर अपनी नजरें नीचे कर लेती है l
पुजारी - अच्छा तुमने वह कहावत तो सुनी होगी ना.... के शेर अपने शिकार पर अंतिम प्रहार करने से पहले.... दो कदम पीछे हटता है.... कभी दो सांढों को लड़ते देखा है... या फिर... दो भेड़ों को.... एक जोरदार हमला करने से पहले... कुछ कदम पीछे हटते हैं.... समझो कल कोर्ट में वही हुआ होगा...
वैदेही की आंखे हैरानी से चौड़ी हो जाती है l
पुजारी - अब तुम चाहो तो... फूल गुंथ सकती हो..
इतना सुनते ही,वैदेही के चेहरे पर उदासी हट जाती है और मुस्कान आ जाती है l
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कोर्ट रूम की ओर जाते हुए जयंत को कॉरीडोर में वैदेही दिखती है l वैदेही उसे देख अपनी खुशी जाहिर करती हुई एक हंसी के साथ जयंत को अभिवादन करती है l जयंत भी उसके तरफ मुस्कराते हुए देखता है l ठीक उसी वक्त तापस विश्व को लेकर वहीँ पहुंचता है l
विश्व - (जयंत से) नमस्ते सर....
जयंत - नमस्ते... क्या बात है... आज भाई बहन कुछ अलग ही मुड़ में हैं.... या फिर कोई खास दिन है आज...
वैदेही - मुड़ में हम आपके वजह से हैं.... सर.... और आपके वजह से अब हर दिन खास होता जा रहा है....
जयंत - वाकई.... हा हा हा.... अच्छा चलो... जल्दी चलते हैं... देखते हैं... आज क्या होने वाला है...
दोनों - जी...
फिर तापस विश्व को लेकर चला जाता है l वैदेही और जयंत भी कोर्ट रूम की और चले जाते हैं l
कोर्ट रूम के भीतर आज कुछ और सदस्य उन्हें नजर आते हैं l दरवाजे के पास जयंत और वैदेही दोनों रुक जाते हैं l जयंत उन अजनबियों को देख रहा है l
वैदेही - सर यह सब हमारे राजगड़ से आए हुए हैं... वह जो धोती कुर्ता में है... उसका नाम दिलीप कर है... बहुत ही नीच और कमीना है... वह जो सफारी शूट में है... वह है इंस्पेक्टर अनिकेत रोणा... इसके आगे तो कमीनापन भी कहीं ठहर ही नहीं सकता.... और वह जो कोट पहने बैठा हुआ है... वह है राजा साहब का वकील बल्लभ प्रधान... राजा भैरव सिंह के हर काले कारनामों का काला चिट्ठा, सब का लेखा जोखा रखता है...
जयंत - ह्म्म्म्म
वैदेही - पर यह समझ में नहीं आ रहा है... बल्लभ का नाम तो गवाहों लिस्ट में नहीं था... फिर यह यहाँ कैसे....
जयंत - (मुस्कराते हुए) सिम्पल... राजगड़ से आने वाला हर गवाह का... वकील बन कर आया है.... अपने सामने सबका जिरह देखेगा... पर कारवाई में उसका कोई दखल नहीं होगा....
वैदेही - ओ...
जयंत - चलो... हम अपनी जगह बैठते हैं...
इतना कह कर दोनों अपनी अपनी जगह पर आ कर बैठ जाते हैं l वैदेही उनके तरफ देखती है तो तीनों वैदेही को देख कर अपने चेहरे पर कमीनी मुस्कान लाते हैं l वैदेही घृणा से अपना चेहरा घुमा लेती है l
हॉकर जजों के आने का संकेत देता है l सब अपनी जगह पर खड़े हो जाते हैं l तीनों जज अपनी अपनी जगह पर बैठ जाते हैं l फिर औपचारिकता समाप्त होते ही गवाह के रूप में दिलीप कर को बुलाया जाता है l
दिलीप कर के वीटनेस बॉक्स में पहुंचते ही कोर्ट के एक मुलाजिम गीता लेकर उसके पास पहुंचता है तो गीता पर हाथ रख कर कर कहता है -
- मैं जो भी कहूँगा सच कहूँगा... सच की सिवा कुछ नहीं कहूंगा...
प्रतिभा अपनी कुर्सी से उठ कर दिलीप कर के पास आती है l
प्रतिभा - हाँ तो आप... अदालत को अपना परिचय देने का कष्ट करेंगे....
कर - उसमें कष्ट कैसा... माई बाप.... मेरा नाम दिलीप कुमार कर है... मेरे माता-पिता दोनों इस संसार में नहीं हैं.... मैं राजगड़ पंचायत के... मानिया शासन गांव से वार्ड मेंबर और पंचायत समिति सभ्य हूँ...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... उस कटघरे में जो शख्स खड़ा है... क्या आप उसे जानते हैं....
कर - जी अच्छी तरह से... पहले तो कम ही जानता था.... पर अब... अब अच्छी तरह से जान चुका हूँ और समझ भी चुका हूँ....
प्रतिभा - क्या मतलब...
कर - मतलब... यह... स्वजाती भक्षु... मतलब अपनी ही जाती को खा जाने वाला... अपने कुल का कलंक है... नमक हराम है और एहसान फरामोस है...
यह सुनते ही वैदेही को बहुत गुस्सा आता है l वह अपनी दांत पिसते हुए जबड़े भींच लेती है l
प्रतिभा - ऐसा आप क्यूँ कह रहे हैं....
कर - हमने.... क्या समझ कर... इसको सरपंच बनाया था... पर इसने क्या कर दिया....
प्रतिभा - वही तो अदालत जानना चाहती है... की इस शख्स ने क्या किया.... और आप उसके सारे काले कारनामों का गवाह हैं... अदालत अब आपसे विस्तार से जानना चाहती है.... और आप किस तरह से... एसआइटी की मदत किए...
कर - ठीक है... वकील साहिबा जी (फिर जज की ओर मुड़ कर) माय बाप... एक दिन राजा साहब जी के महल में सारे पंचायत के समिति सभ्य इकट्ठे हुए थे... हमारे पूर्व सरपंच जी का देहांत... उनके कार्यकाल के पुरा होने से सात महीने पहले हो गया था... और क्यूंकि राज्य के दूसरे हिस्सों के मुकाबले हमारा यशपुर पिछड़ा हुआ रहा है.... पंचायत चुनाव का समय भी निकट आ रहा था तब.... हम सबने राजा साहब से कुछ बदलाव की सुझाव मांगने के लिए गए थे... तो राजा साहब ने हमको कहा... चूंकि शायद हम सब पुराने ज़माने के... पुराने ख़यालात के हैं... इसलिए हम से सारे काम धीरे धीरे हो रहे हैं.... तेजी से बदल रही इस दुनिया में... बदलाव के लिए... नए ज़माने का नया जोश भरा... नए खून से लबालब... नया नव युवक को इस बार... मौका दिआ जाए....
हम सबने... उनकी बातों का समर्थन किया और पूछा भी... कौन हो सकता है ऐसा नवयुवक... तब राजा साहब ने इस नमक हराम... एहसान फरामोस... विश्व का नाम सुझाया.....
वैदेही - (चिल्ला कर) यह झूठ कह रहा है जज साहब.... और यह बार बार मेरे भाई को गाली भी दे रहा है....
जज - ऑर्डर... ऑर्डर.... मोहतरमा आप... इस तरह से अदालत के कारवाई में दखल नहीं दे सकती.... आपके भाई के तरफ से कहने के लिए... आपका वकील नियुक्त हैं... इसलिए सयम बरतें... कृपाया आप अपना स्थान ग्रहण करें....
जयंत भी वैदेही को चुप रहने के लिए इशारा करता है और इशारे से बैठने के लिए कहता है l वैदेही बैठ जाती है और गुस्से से दिलीप कर को देखती है, दिलीप कर जवाब में उसे देख कर एक कमीनी हंसी अपने चेहरे पर ला कर वैदेही को देखता है l
प्रतिभा - हाँ तो कर बाबु... राजा साहब ने विश्व का नाम सुझाया... फिर...
कर - फिर राजा साहब जी ने विश्व को बुलाया... समझाया... पर वह नमक हराम.... राजा साहब को मना ही कर दिया था... पर फिर राजा साहब जी ने उमाकांत आचार्य जी को बुलाया... और राजगड़ विकास के लिए सामुहिक तौर पर... विश्व को मनाने के लिए आचार्य जी को दायित्व दिया... और आचार्य जी के साथ मैं भी गया था... विश्व को मनाने के लिए... माय बाप.... एक तरफ इस कम्बख्त विश्व को आचार्य जी समझा रहे थे... और दूसरी तरफ... मैं इस बदबख्त के पैरों में गिर कर राजा साहब की मान को बचाने के लिए गुहार लगा रहा था.... (इतना कह कर कर वैदेही की ओर अपने काले दांत दिखाते हुए हंसता है, उसकी यह कमीनी हरकत देख कर वैदेही के तन बदन में आग लग जाती है) माय बाप... विश्व के मान जाने के बाद... विश्व का नामांकन से लेकर चुनाव जीतने तक हम सबने.... दिन रात एक कर दिया था... ताकि विश्व हमारे राजगड़ को उन्नती के शिखर पर पहुंचा दे... पर इस एहसान फरामोस ने एक ऐसा काला दिन दिखाया... के इसे सरपंच बनाना.... राजा साहब और हम सबकी बड़ी भूल साबित हुई.....
माय बाप.... मेरे गाँव में तीन कलवर्ट कामों के सिर्फ पचपन लाख रुपये कंट्राक्टर को देने बाकी थे... इसलिए मैं विश्व के पास चेक साइन कराने गया था... पर विश्व ने पचपन के जगह पचहत्तर लाख लिख कर साइन किया.... मैं हैरान रह गया... मैंने पूछा... इतना क्यूँ... तो विश्व ने कहा... के देखते हैं... अगर पैसा मिल जाता है... तो बांट लेंगे... नहीं तो चेक बदल देंगे... मैं हैरान रह गया... क्या यह वही विश्व है... जिसके पिता मेरे परम मित्र रघुनाथ महापात्र है... क्या यह सम्भव है.... पर आज लग रहा है... क्यूँ नहीं जब महर्षि विश्रवा का बेटा रावण हो सकता है... तो रघुनाथ का बेटा विश्व ऐसा क्यूँ नहीं हो सकता है...
वैदेही - नहीं (चिल्लाते हुए अपनी जगह पर खड़ी हो जाती है) जज साहब यह बहुत ही नीच और गलीच इंसान है... झूठ पर झूठ और तोहमत लगाए जा रहा है...
वैदेही के ऐसे चिल्ला कर बात करने से जयंत भी अपनी जगह से उठ जाता है
जज - ऑर्डर ऑर्डर... वैदेही जी.... अगर आप फिरसे अदालत की कारवाई में... दखल देने की कोशिश की... तो मजबूरन अदालत आपको जिरह के समय इस कमरे से दूर रखेगी....
जयंत - योर ऑनर.... प्लीज... इस जिरह को थोड़ी देर के लिए रोक दिया जाए.... हमे एक स्वल्प विराम दिआ जाए.... मैं अपने क्लाइंट और उसके संबंधी को थोड़ी देर के लिए... यहाँ से अलग कमरे में ले जा कर समझना चाहता हूँ....
जज - ठीक है... यह अदालत बचाव पक्ष वकील के बात को मानते हुए... दोनों पक्षों को आधे घंटे का विराम.... देती है... और ठीक आधे घंटे के बाद कारवाई फिर यहीँ से शुरू होगी....
इतना कह कर तीनों जज वहाँ से चले जाते हैं l उनके जाते ही जयंत वैदेही और विश्व को लेकर पास के एक कमरे में आता है l कमरे के भीतर पहुंच कर जयंत वैदेही के तरफ मुड़ कर
जयंत - वैदेही... यह क्या कर रही हो.... वह तुम दोनों को उकसा रहे हैं... और तुम उनकी षड्यंत्र को कामयाब होने दे रही हो..
वैदेही - देखिए ना.. सर... (रोती सूरत बना कर) वह मेरे भाई को... रावण कह रहा है... कितना झूठ बोल रहा है...
जयंत - देखो मैं जानता हूँ... उसे उसकी मर्जी की करने दो.... जब वह मेरे पाले में आएगा... तब वह अपना झूठ भी नहीं पचा पाएगा....
विश्व - दीदी... जयंत सर ठीक कह रहे हैं...
जयंत - देखो वैदेही... मैंने विश्व को पहले ही दिन से समझा दिया था... के कारवाई के दौरान उत्तेजित ना होने के लिए... वह तुम से छोटा है... फ़िर भी सयम बनाए हुए है... पर तुम ना सिर्फ अपना सयम खो रही हो... बल्कि अगर तुम्हें किसी भी तरह से जज छोटी ही सही... सजा देते हैं.. तो विश्व पर मानसिक रूप से प्रभाव पड़ेगा... और यही तो वह लोग चाहते हैं...
वैदेही - म.. मुझे... माफ कर दीजिए... मैं चुप रहूंगी...(कह कर पास रखे एक कुर्सी पर बैठ जाती है)
विश्व उसके पास जा कर उसके सर को पकड़ कर झुक कर अपने सीने से लगा लेता
विश्व - दीदी... मैं जानता हूँ... आप मुझसे बहुत प्यार करती हो... पर हमने इतना कुछ सहा है... तो कुछ और सही....
वैदेही - (अपनी आँखों में आंसू लिए) ह्म्म्म्म
जयंत - ह्म्म्म्म अब तुम थोड़ा पानी पी लो... (कह कर एक डिस्पोजेबल ग्लास में पानी लाकर देता है)
उधर एक और कमरे में
रोणा - वाह... साले हरामी.... वाह... तुने तो... उस वैदेही की झांटे ही सुलगा दी...
कर - ही.. ही.. (एक पान निकाल कर खाते हुए) बच्ची है... बिचारी.... अभी अभी राजगड़ से बाहर की दुनिया देख रही है... इसलिए पचा नहीं पा रही है भड़क गई... साली कुत्तीआ... ही ही ही
परीडा - वाकई... उन पर... तो साइकोलॉजीकल एडवांटेज हमने ले लिया है... अभी...
रोणा - और नहीं तो क्या... वह लोग जितना फटेंगे... उतना ही टूटेंगे...
कर - मैं तो इस फन में माहिर हूँ... आदमी जितना भड़केगा... वह खुद पर.. नियंत्रण उतना ही खो देगा.... और जो ना किया हो उसे स्वीकार भी कर लेगा....
परीडा - बिल्कुल... अभी सिर्फ़ उसकी बहन... रिएक्ट कर रही है.... विश्व का रिऐक्ट होना बाकी है... फिर उनसे गलतियां होती जाएंगी... और हम उन पर हावी होते जाएंगे....
रोणा - सौ टका सही... सुन बे कर.. तु लगा रह... आज सुनवाई खत्म होने दे..... साले तुझे आज शराब में नहला दूँगा....
कर - मैं तो पहले से ही कहा था.... हमारे परीडा जी ने... नींव डाल रखी है... अब मैं उस पर दीवार चढ़ा रहा हूँ.... रोणा बाबु.... छत ढंग से डाल देंगे..... और राजा साहब... किवाट और खिड़की लगा देंगे... ना कानून.. ना कोई तितर... उसके भीतर... पहुंच ही नहीं पाएंगे....
रोणा - बिल्कुल... क्यूँ बे वकील... सब तेरी ही स्क्रिप्ट के हिसाब से... काम बढ़ रहा है... फ़िर भी तेरे चेहरे पर... खुशी नहीं दिख रही है....
बल्लभ - वैदेही... कितना भड़कती है... यहाँ पर... यह जरूरी नहीं है.... हमारा टार्गेट... विश्व है... उसे इतना भड़काना है... की वह अपना आपा खो बैठे.... तब हमारी हर चाल कामयाब होगी....
कर - उसी की तो कोशिश कर रहा हूँ... पर उससे पहले उसकी बहन सुलग रही है... कमीनी जैसे सुलग सुलग कर उड़ रही है....
बल्लभ को छोड़ सभी हंसते हैं l
रोणा - हाँ बिल्कुल दिवाली की रॉकेट की तरह... उड़ती तभी है.. जब पिछवाड़ा सुलगती है....
(हा हा हा हा हा) फिरसे सभी हंस देते हैं l
बल्लभ - तुने राजगड़ में... दिवाली कब मनाई...
रोणा - नहीं मनाई... पर अपने यहाँ जाकर तो मनाई है.... ना
परीडा - क्यूँ.. राजगड़ में.. क्यूँ नहीं मनाई...
कर - श्.. श्..श्... (धीरे से) राजगड़ में क्षेत्रपाल परिवार का विधान है... आम लोग खुशियां या मातम इकट्ठे होकर... भीड़ बना कर.. नहीं मना सकते... जिसको मनाना होता है.... वह लोग अपनी चार दीवारी के भीतर मनाते हैं.... वह भी किसीको मालुम ना हो पाए ऐसे.... राजगड़ में उत्सव, खुशियाँ और मातम सिर्फ़ महल में होती है... जहां लोग भीड़ बना कर सामिल हो सकते हैं....
परीडा - ओह माय गॉड... म.. मतलब... मुझे यह मालूम नहीं था...
रोणा - इसलिए तुम अपना काम करो.... और राजा साहब या राजगड़ के बारे में... जितना कम जानों... उतना ही अच्छा है....
बल्लभ - यार.. यह बे सिर पैर की बातों को किनारे करो अब... देख कर अभी टाइम हो जाएगा... किसी भी तरह से... अपने बयान इसी तरह जारी रख... और तुझको विश्व को भड़काना है... ऐसे भड़काना है कि वह अपना आपा खो बैठे.... पर अपनी भाषा को नियंत्रित रखना.... वरना लेने के देने पड़ जाएंगे....
कर - ठीक है... अबकी की बार देखो मेरा कमाल....
इन सबकी काना फुसी चल ही रही थी कि तभी एक कांस्टेबल वहाँ आकर खबर करता है कि अदालत शुरू होने वाली है l सभी जल्दी से सुनवाई के कमरे में पहुंचते हैं l कमरे के भीतर विश्व अपनी कठघरे में खड़ा है l जयंत और वैदेही अपनी अपनी जगह पर बैठे हुए हैं l यह लोग भी अपने जगहों पर बैठ जाते हैं l कुछ देर बाद तीनों जज अपने अपने कुर्सी पर बैठ जाते हैं l फिर दिलीप कर को विटनेस बॉक्स में बुलाया जाता है l
प्रतिभा - (उसके पास पहुंच कर) हाँ तो कर बाबु.... आपने कहा कि... कंट्राक्टर को बकाया पैसे देनें थे... इसलिए अपने पचपन लाख रुपये की चेक मांगा... बदले में.. विश्व ने पचहत्तर लाख रुपये की चेक साइन कर जमा करने के लिए कहा... I
कर - जी...
प्रतिभा - अब आगे क्या हुआ कहिए....
कर - मैं तो बहुत हैरान हो गया था.... पर पता नहीं... कैसे और कहां से विश्व के पास बाकी के बीस लाख रुपये पहुंचे.... विश्व ने मुझे कसम देकर... दस लाख रुपये दिए... अब मैं... बीच भंवर में फंस चुका था.... मुक्ति की राह तलाश रहा था... तो मैंने एक दिन फोन कर... यशपुर तहसीलदार जी को विश्व का यह कारनामा बताया... एक दिन तहसील ऑफिस से विश्व को बुलावा आया.... मैं बहुत खुश हो गया... लगा अब अंकुश लगेगा... विश्व और मैं तहसील ऑफिस पहुंचे... पर मुझे ऑफिस के बाहर रुकने को बोल... विश्व अकेले गया था तहसीलदार जी से मिलने... करीब करीब आधा दिन बीत गया... तब विश्व बाहर आया... उसके चेहरे पर एक अलग खुशी झलक रही थी.... जैसे कोई मैदान मार लिया हो.... मैं समझ नहीं पाया... एक तरफ विश्व के दिए हुए पैसे मेरे गले में फांस बन चुका था.... और दूसरी तरफ तहसील ऑफिस से विश्व का खुश हो कर वापस आना.... मुझे और भी डराने लगा....
अगले दिन पंचायत ऑफिस में.. बड़े बड़े लोग आ पहुंचे... तहसीलदार, ब्लाक अधिकारी, बैंक अधिकारी, रेवेन्यू इंस्पेक्टर, और विश्व के बीच बंद कमरे में एक मीटिंग हुई...
उसके बाद विश्व बाहर आकर हमे कहा... के राजगड़ विकास के लिए... उन्होंने तय किया है.. की एक गैर सरकारी संस्था के जरिए आम जनता से चंदा के जरिए देश विदेश के लोगों से... पैसे इकट्ठा करके... जनता की भलाई करेंगे.... हमे बहुत अच्छा लगा सुन कर.... तो एक महीने के भीतर "राजगड़ उन्नयन परिषद" पंजीकृत हुआ... इससे हमारे राजा साहब भी बड़े खुश हुए... उन्होंने अपने तरफ से.. पच्चीस लाख रुपये का दान चेक के जरिए दिया.... मैंने भी.. जो मेरे गले में फांस बनाकर विश्व ने... दस लाख रुपए दिया था.... वही दस लाख रुपये माय बाप दान दे दिया....
उसके बाद क्या होता रहा,.. क्यूँ होता रहा... मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था... एक दिन तहसील ऑफिस गया था... वहाँ पर पहुंच कर देखा... तहसील ऑफिस के एक कर्मचारी को विश्व बहुत मार रहा है... मैंने जा कर उसे रोका.... और विश्व को वहाँ से भेज दिया... फिर उस कर्माचारी को भी घर जाने को कहा... तभी वह कर्मचारी ने मुझे बताया कि कई सौ करोड़ों रुपये विश्व, तहसीलदार और ब्लॉक अधिकारी मिलकर लूट लिए हैं.... मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई... मैं तुरंत भागा... भागते भागते आचार्य जी को गुहार लगाई.... आचार्य जी को बहुत दुख हुआ... वह गए... सीधे राजा साहब से माफ़ी मांगने.... राजा साहब को भी दुख हुआ.... यह सब जानने के बाद.... राजा साहब ने.... आचार्य जी को... आश्वासन दिया.. की वह जल्दी कुछ करेंगे... फिर इसी तरह कुछ दिन बीत गए... फिर हमे खबर मिली... आचार्य जी को सांप ने काट लिया है... और हस्पताल जाने से पहले उनका देहांत हो गया.... मैं पूरी तरह से टूट गया माय बाप... इसलिए एक दिन निश्चय किया और यशपुर के महादेव मंदिर में भगवान को... साष्टांग प्रणाम किया और कहा... हे महादेव.. कहाँ हो आप... मैं यह सब अनर्थ नहीं देख सकता हूँ... या तो अपना त्रीनेत्र खोल कर तांडव करो... या.. या मेरे प्राण लेले... या फिर कोई जरिया देदे... जिससे मैं उस बदबख्त विश्व को सजा दिला सकूं..... तभी माय बाप मंदिर की घंटी बजी... मैं नीचे से उठा... विभोर हो गया... भगवान ने मेरी सुन ली.... मैं मंदिर में उस व्यक्ति को ढूंढने लगा जिसने घंटी बजायी... तब मुझे (परीडा की ओर हाथ दिखा कर) यह महाशय दिखे... मैंने उन पर नजर रखा और उनकी बातों को सुनने लगा... जब मुझे मालूम हुआ... की यह लोग तो राजगड़ में हुए घोटाले की जांच करने आए हैं.... मैं पहले भगवान को धन्यबाद किया... फ़िर इनसे मिला और अपनी सारी दुखड़ा रोया... बाकी सब आपके सामने है माय बाप... बाकी सब आपके सामने है....
प्रतिभा - ह्म्म्म्म तो यह थी... विश्व रूप कि कहानी...
कर - जी....
प्रतिभा - तो विश्व महापात्र जी... क्या यह दिलीप कर सच कह रहे हैं...
विश्व - (अपनी दांत पिसते हुए) यह आदमी... पूरा का पूरा झूठा है... और जो भी कहा है सब झूठ कहा है....
प्रतिभा - यह तो आपके डिफेंस लॉयर को साबित करने दीजिए... फ्रोम माय साइड... दैट्स ऑल योर ऑनर... (जयंत को देख कर) नाउ योर टर्न....
जयंत यह सुन कर मुस्कुराता है l
जज - क्या बचाव पक्ष इस गवाह से जिरह करना चाहेंगे...
जयंत -(अपनी कुर्सी से उठते हुए) जी... माय लॉर्ड.. जरूर...
जज - ठीक है... शुरू कीजिए....
जयंत दिलीप कर को देखता है l कर अपने होठों को अपने गमछे से साफ करता है l उसे ऐसा करते देख जयंत उसे मुस्करा कर देखता है, जवाब में दिलीप कर मुस्करा देता है l
विश्व डायनिंग हॉल में एक कोने में पड़ा टेबल पर बैठ कर खाना खा रहा है और किसी सोच में खोया हुआ है l डैनी अपना थाली लेकर उसके पास आकर बैठता है l
डैनी - क्यूँ हीरो... कल क्या हुआ था... कोर्ट में...
विश्व अपना सर उठाकर देखता है और कहता है
- अरे डैनी साहब...
डैनी - क्यूँ भई किसी और की... इंतजार कर रहा था क्या.....
विश्व - जी... जी. नहीं.. नहीं... मैं यहाँ कैसे और किसका इंतजार करूंगा....
डैनी - अब... तु भले ही किसीका इंतजार ना करे... पर तेरा चाहने वाला अभी बाहर है... तुझसे यहाँ मिलने के लिए तड़प रहा है...
विश्व हैरानी से डैनी को देखता है l
डैनी - अरे यार.. वही जिसका पिछवाड़ा तेरे नाम से आह भरता है...
विश्व - (हंस देता है) ओ...
डैनी - और बता कल क्या हुआ....
विश्व - कल... कुछ खास नहीं...
डैनी - ह्म्म्म्म... कुछ तो हुआ है.... वरना इतना खोया खोया हुआ क्यूँ है....
विश्व - कल पहली बार... जयंत सर के माथे पर मैंने बल पड़ते हुए देखा... उनके चेहरे पर शिकन साफ़ दिखा मुझे....
डैनी - ह्म्म्म्म तो यह बात है..... देख वह कोर्ट रूम है... वहाँ वकीलों के बीच... दाव पेच का खेल होता है... कभी कोई हावी हो जाता है... तो कभी कोई सरेंडर हो जाता है...
विश्व - (अपना सर हिलाते हुए) ह्म्म्म्म... अब मुझे इन सब बातों का ज्ञान कहाँ.... मैं तो जीवन में पहली बार... राजगड़ से बाहर निकला.... वह भी एक घायल कैदी की तरह.... और न्यायालय की लाल कोठी भी देखा जीवन में पहली बार..... यहाँ आ कर... बस यहाँ पर लोगों को समझ नहीं पा रहा हूँ.... सच कहूँ तो.... कहाँ मैं अपने राजगड़ के लोगों को समझ पाया... पल पल हर पल लोगों के बदलता रंग देख.... हैरानी हो रही है मुझे....
डैनी - हा हा हा हा... यह तो कुछ भी नहीं... अगर यहाँ तु लंबा नप गया ना... तो यहाँ से बिना निकले भी.... सारे ब्रह्मांड का ज्ञान से धनी हो जाएगा.... अच्छा यह बता तुझे अब डर लग रहा है क्या....
विश्व - नहीं... अब बिल्कुल भी नहीं.... पर जब जयंत सर को चिंतित देखता हूँ... मुझे बुरा जरूर लगता है.... मुझे मेरे अंजाम की परवाह नहीं.... पर पता नहीं क्यूँ... मैं उन्हें हारते हुए नहीं देख सकता हूँ...
डैनी - ह्म्म्म्म बहुत जज्बाती हो रहे हो... क्या इसलिए के वह तेरे लिए लड़ रहा है....
विश्व - हाँ... शायद...
डैनी का खाना खतम हो जाता है l वह अपना थाली लेकर उठता है और धोने के लिए चला जाता है l थाली जमा करने के बाद फिर विश्व के पास आता है l
डैनी - तु... उनके लिए सोच रहा है... उनके लिए परेसान है... अच्छी बात है... पर यह मुकदमा है... कुछ भी हो सकता है.... वह तेरे लिए निस्वार्थ लड़ रहे हैं.... तु भी अपने मन में उमड़ रही भावनाओं में... उनके लिए निस्वार्थ भाव रख.... याद है तुने ही कहा था... के जब तु भगवान को याद करता है... तो तुझे उनका चेहरा दिखता है...
विश्व - हाँ...
डैनी - तो अपने भगवान पर विश्वास रख.... तुने अपना नैया उनके हाथ में दिया है पार लगाने के लिए.... तो अपने खीवैया पर भरोसा रख... उनकी जीत पर जश्न मनाना... पर उनके हार पर कभी दुख भी मत करना....
इतना कह कर डैनी वहाँ से चला जाता है l बेशक विश्व को छोड़ डैनी वहाँ से निकल जाता है, पर विश्व के कानों में डैनी की कही हर एक शब्द गूंजती रहती है l
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जगन्नाथ मंदिर में एक टोकरी भर कमल के फूलों से भरा हुआ है l पास बैठी वैदेही सुई धागा हाथ में लेकर माला गुंथ रही है l
पुजारी उसे माला गुंथते हुए देख रहा है और उसे लग रहा है कि भले ही वैदेही माला गुंथ रही है पर उसका ध्यान कहीं और है l कुछ देर बाद वैदेही के उंगली में सुई चुभ जाती है l उसके हाथों से सुई धागा और फूल छूट जाते हैं l
पुजारी - मैंने पहले से ही कहा था.... तुमसे नहीं होगा.... मंदिर में फूल गूँथने के लिए और भी लोग हैं.... तुम क्यूँ यह कष्ट उठा रही हो...
वैदेही - क्या बात कर रहे हैं पुजारी जी.... मैं क्यूँ नहीं गुंथ सकती... भगवान के लिए माला...
पुजारी - क्यूँकी सुबह से देख रहा हूँ... तुम्हारा ध्यान कहीं और है...
वैदेही - नहीं ऐसी बात नहीं है... पंडित जी... वह मैं...
पुजारी - देखो बेटी... तुम्हारा मन कल से ही विचलित है... कोर्ट से आने के बाद... तुम खोई खोई सी हो...
वैदेही चुप रहती है l
पुजारी - ह्म्म लगता है... कल का दिन... तुम्हारे उम्मीद के मुताबिक नहीं गया....
वैदेही अपने होठों पर चुप्पी लिए सर झुका लेती है l
पुजारी - (वैदेही के पास बैठ कर) देखो बेटी... मैं मानता हूँ आशा है... तो जीवन है... पर भगवान ना करे... मानलो कभी आशा टूट जाती है... इसका मतलब यह तो नहीं... जीवन रुक जाती है....
वैदेही पुजारी को मुरझाइ नजर से देखने लगती है
पुजारी - देखो बेटी.... मैं यह तो नहीं जानता कल कोर्ट में क्या हुआ.... पर इतना कहूँगा निरास कभी मत होना.... क्यूँकी तुम्हारे भाई का केस लड़ने वाला जयंत... भले ही साधारण कद काठी का है.... पर यह मैं दावे के साथ कह सकता हूँ.... जब तक वह मैदान में है... तब तक तुम्हारे भाई सुरक्षित है...
वैदेही फिरभी कुछ नहीं कहती है, पुजारी को देखती है फ़िर अपनी नजरें नीचे कर लेती है l
पुजारी - अच्छा तुमने वह कहावत तो सुनी होगी ना.... के शेर अपने शिकार पर अंतिम प्रहार करने से पहले.... दो कदम पीछे हटता है.... कभी दो सांढों को लड़ते देखा है... या फिर... दो भेड़ों को.... एक जोरदार हमला करने से पहले... कुछ कदम पीछे हटते हैं.... समझो कल कोर्ट में वही हुआ होगा...
वैदेही की आंखे हैरानी से चौड़ी हो जाती है l
पुजारी - अब तुम चाहो तो... फूल गुंथ सकती हो..
इतना सुनते ही,वैदेही के चेहरे पर उदासी हट जाती है और मुस्कान आ जाती है l
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कोर्ट रूम की ओर जाते हुए जयंत को कॉरीडोर में वैदेही दिखती है l वैदेही उसे देख अपनी खुशी जाहिर करती हुई एक हंसी के साथ जयंत को अभिवादन करती है l जयंत भी उसके तरफ मुस्कराते हुए देखता है l ठीक उसी वक्त तापस विश्व को लेकर वहीँ पहुंचता है l
विश्व - (जयंत से) नमस्ते सर....
जयंत - नमस्ते... क्या बात है... आज भाई बहन कुछ अलग ही मुड़ में हैं.... या फिर कोई खास दिन है आज...
वैदेही - मुड़ में हम आपके वजह से हैं.... सर.... और आपके वजह से अब हर दिन खास होता जा रहा है....
जयंत - वाकई.... हा हा हा.... अच्छा चलो... जल्दी चलते हैं... देखते हैं... आज क्या होने वाला है...
दोनों - जी...
फिर तापस विश्व को लेकर चला जाता है l वैदेही और जयंत भी कोर्ट रूम की और चले जाते हैं l
कोर्ट रूम के भीतर आज कुछ और सदस्य उन्हें नजर आते हैं l दरवाजे के पास जयंत और वैदेही दोनों रुक जाते हैं l जयंत उन अजनबियों को देख रहा है l
वैदेही - सर यह सब हमारे राजगड़ से आए हुए हैं... वह जो धोती कुर्ता में है... उसका नाम दिलीप कर है... बहुत ही नीच और कमीना है... वह जो सफारी शूट में है... वह है इंस्पेक्टर अनिकेत रोणा... इसके आगे तो कमीनापन भी कहीं ठहर ही नहीं सकता.... और वह जो कोट पहने बैठा हुआ है... वह है राजा साहब का वकील बल्लभ प्रधान... राजा भैरव सिंह के हर काले कारनामों का काला चिट्ठा, सब का लेखा जोखा रखता है...
जयंत - ह्म्म्म्म
वैदेही - पर यह समझ में नहीं आ रहा है... बल्लभ का नाम तो गवाहों लिस्ट में नहीं था... फिर यह यहाँ कैसे....
जयंत - (मुस्कराते हुए) सिम्पल... राजगड़ से आने वाला हर गवाह का... वकील बन कर आया है.... अपने सामने सबका जिरह देखेगा... पर कारवाई में उसका कोई दखल नहीं होगा....
वैदेही - ओ...
जयंत - चलो... हम अपनी जगह बैठते हैं...
इतना कह कर दोनों अपनी अपनी जगह पर आ कर बैठ जाते हैं l वैदेही उनके तरफ देखती है तो तीनों वैदेही को देख कर अपने चेहरे पर कमीनी मुस्कान लाते हैं l वैदेही घृणा से अपना चेहरा घुमा लेती है l
हॉकर जजों के आने का संकेत देता है l सब अपनी जगह पर खड़े हो जाते हैं l तीनों जज अपनी अपनी जगह पर बैठ जाते हैं l फिर औपचारिकता समाप्त होते ही गवाह के रूप में दिलीप कर को बुलाया जाता है l
दिलीप कर के वीटनेस बॉक्स में पहुंचते ही कोर्ट के एक मुलाजिम गीता लेकर उसके पास पहुंचता है तो गीता पर हाथ रख कर कर कहता है -
- मैं जो भी कहूँगा सच कहूँगा... सच की सिवा कुछ नहीं कहूंगा...
प्रतिभा अपनी कुर्सी से उठ कर दिलीप कर के पास आती है l
प्रतिभा - हाँ तो आप... अदालत को अपना परिचय देने का कष्ट करेंगे....
कर - उसमें कष्ट कैसा... माई बाप.... मेरा नाम दिलीप कुमार कर है... मेरे माता-पिता दोनों इस संसार में नहीं हैं.... मैं राजगड़ पंचायत के... मानिया शासन गांव से वार्ड मेंबर और पंचायत समिति सभ्य हूँ...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... उस कटघरे में जो शख्स खड़ा है... क्या आप उसे जानते हैं....
कर - जी अच्छी तरह से... पहले तो कम ही जानता था.... पर अब... अब अच्छी तरह से जान चुका हूँ और समझ भी चुका हूँ....
प्रतिभा - क्या मतलब...
कर - मतलब... यह... स्वजाती भक्षु... मतलब अपनी ही जाती को खा जाने वाला... अपने कुल का कलंक है... नमक हराम है और एहसान फरामोस है...
यह सुनते ही वैदेही को बहुत गुस्सा आता है l वह अपनी दांत पिसते हुए जबड़े भींच लेती है l
प्रतिभा - ऐसा आप क्यूँ कह रहे हैं....
कर - हमने.... क्या समझ कर... इसको सरपंच बनाया था... पर इसने क्या कर दिया....
प्रतिभा - वही तो अदालत जानना चाहती है... की इस शख्स ने क्या किया.... और आप उसके सारे काले कारनामों का गवाह हैं... अदालत अब आपसे विस्तार से जानना चाहती है.... और आप किस तरह से... एसआइटी की मदत किए...
कर - ठीक है... वकील साहिबा जी (फिर जज की ओर मुड़ कर) माय बाप... एक दिन राजा साहब जी के महल में सारे पंचायत के समिति सभ्य इकट्ठे हुए थे... हमारे पूर्व सरपंच जी का देहांत... उनके कार्यकाल के पुरा होने से सात महीने पहले हो गया था... और क्यूंकि राज्य के दूसरे हिस्सों के मुकाबले हमारा यशपुर पिछड़ा हुआ रहा है.... पंचायत चुनाव का समय भी निकट आ रहा था तब.... हम सबने राजा साहब से कुछ बदलाव की सुझाव मांगने के लिए गए थे... तो राजा साहब ने हमको कहा... चूंकि शायद हम सब पुराने ज़माने के... पुराने ख़यालात के हैं... इसलिए हम से सारे काम धीरे धीरे हो रहे हैं.... तेजी से बदल रही इस दुनिया में... बदलाव के लिए... नए ज़माने का नया जोश भरा... नए खून से लबालब... नया नव युवक को इस बार... मौका दिआ जाए....
हम सबने... उनकी बातों का समर्थन किया और पूछा भी... कौन हो सकता है ऐसा नवयुवक... तब राजा साहब ने इस नमक हराम... एहसान फरामोस... विश्व का नाम सुझाया.....
वैदेही - (चिल्ला कर) यह झूठ कह रहा है जज साहब.... और यह बार बार मेरे भाई को गाली भी दे रहा है....
जज - ऑर्डर... ऑर्डर.... मोहतरमा आप... इस तरह से अदालत के कारवाई में दखल नहीं दे सकती.... आपके भाई के तरफ से कहने के लिए... आपका वकील नियुक्त हैं... इसलिए सयम बरतें... कृपाया आप अपना स्थान ग्रहण करें....
जयंत भी वैदेही को चुप रहने के लिए इशारा करता है और इशारे से बैठने के लिए कहता है l वैदेही बैठ जाती है और गुस्से से दिलीप कर को देखती है, दिलीप कर जवाब में उसे देख कर एक कमीनी हंसी अपने चेहरे पर ला कर वैदेही को देखता है l
प्रतिभा - हाँ तो कर बाबु... राजा साहब ने विश्व का नाम सुझाया... फिर...
कर - फिर राजा साहब जी ने विश्व को बुलाया... समझाया... पर वह नमक हराम.... राजा साहब को मना ही कर दिया था... पर फिर राजा साहब जी ने उमाकांत आचार्य जी को बुलाया... और राजगड़ विकास के लिए सामुहिक तौर पर... विश्व को मनाने के लिए आचार्य जी को दायित्व दिया... और आचार्य जी के साथ मैं भी गया था... विश्व को मनाने के लिए... माय बाप.... एक तरफ इस कम्बख्त विश्व को आचार्य जी समझा रहे थे... और दूसरी तरफ... मैं इस बदबख्त के पैरों में गिर कर राजा साहब की मान को बचाने के लिए गुहार लगा रहा था.... (इतना कह कर कर वैदेही की ओर अपने काले दांत दिखाते हुए हंसता है, उसकी यह कमीनी हरकत देख कर वैदेही के तन बदन में आग लग जाती है) माय बाप... विश्व के मान जाने के बाद... विश्व का नामांकन से लेकर चुनाव जीतने तक हम सबने.... दिन रात एक कर दिया था... ताकि विश्व हमारे राजगड़ को उन्नती के शिखर पर पहुंचा दे... पर इस एहसान फरामोस ने एक ऐसा काला दिन दिखाया... के इसे सरपंच बनाना.... राजा साहब और हम सबकी बड़ी भूल साबित हुई.....
माय बाप.... मेरे गाँव में तीन कलवर्ट कामों के सिर्फ पचपन लाख रुपये कंट्राक्टर को देने बाकी थे... इसलिए मैं विश्व के पास चेक साइन कराने गया था... पर विश्व ने पचपन के जगह पचहत्तर लाख लिख कर साइन किया.... मैं हैरान रह गया... मैंने पूछा... इतना क्यूँ... तो विश्व ने कहा... के देखते हैं... अगर पैसा मिल जाता है... तो बांट लेंगे... नहीं तो चेक बदल देंगे... मैं हैरान रह गया... क्या यह वही विश्व है... जिसके पिता मेरे परम मित्र रघुनाथ महापात्र है... क्या यह सम्भव है.... पर आज लग रहा है... क्यूँ नहीं जब महर्षि विश्रवा का बेटा रावण हो सकता है... तो रघुनाथ का बेटा विश्व ऐसा क्यूँ नहीं हो सकता है...
वैदेही - नहीं (चिल्लाते हुए अपनी जगह पर खड़ी हो जाती है) जज साहब यह बहुत ही नीच और गलीच इंसान है... झूठ पर झूठ और तोहमत लगाए जा रहा है...
वैदेही के ऐसे चिल्ला कर बात करने से जयंत भी अपनी जगह से उठ जाता है
जज - ऑर्डर ऑर्डर... वैदेही जी.... अगर आप फिरसे अदालत की कारवाई में... दखल देने की कोशिश की... तो मजबूरन अदालत आपको जिरह के समय इस कमरे से दूर रखेगी....
जयंत - योर ऑनर.... प्लीज... इस जिरह को थोड़ी देर के लिए रोक दिया जाए.... हमे एक स्वल्प विराम दिआ जाए.... मैं अपने क्लाइंट और उसके संबंधी को थोड़ी देर के लिए... यहाँ से अलग कमरे में ले जा कर समझना चाहता हूँ....
जज - ठीक है... यह अदालत बचाव पक्ष वकील के बात को मानते हुए... दोनों पक्षों को आधे घंटे का विराम.... देती है... और ठीक आधे घंटे के बाद कारवाई फिर यहीँ से शुरू होगी....
इतना कह कर तीनों जज वहाँ से चले जाते हैं l उनके जाते ही जयंत वैदेही और विश्व को लेकर पास के एक कमरे में आता है l कमरे के भीतर पहुंच कर जयंत वैदेही के तरफ मुड़ कर
जयंत - वैदेही... यह क्या कर रही हो.... वह तुम दोनों को उकसा रहे हैं... और तुम उनकी षड्यंत्र को कामयाब होने दे रही हो..
वैदेही - देखिए ना.. सर... (रोती सूरत बना कर) वह मेरे भाई को... रावण कह रहा है... कितना झूठ बोल रहा है...
जयंत - देखो मैं जानता हूँ... उसे उसकी मर्जी की करने दो.... जब वह मेरे पाले में आएगा... तब वह अपना झूठ भी नहीं पचा पाएगा....
विश्व - दीदी... जयंत सर ठीक कह रहे हैं...
जयंत - देखो वैदेही... मैंने विश्व को पहले ही दिन से समझा दिया था... के कारवाई के दौरान उत्तेजित ना होने के लिए... वह तुम से छोटा है... फ़िर भी सयम बनाए हुए है... पर तुम ना सिर्फ अपना सयम खो रही हो... बल्कि अगर तुम्हें किसी भी तरह से जज छोटी ही सही... सजा देते हैं.. तो विश्व पर मानसिक रूप से प्रभाव पड़ेगा... और यही तो वह लोग चाहते हैं...
वैदेही - म.. मुझे... माफ कर दीजिए... मैं चुप रहूंगी...(कह कर पास रखे एक कुर्सी पर बैठ जाती है)
विश्व उसके पास जा कर उसके सर को पकड़ कर झुक कर अपने सीने से लगा लेता
विश्व - दीदी... मैं जानता हूँ... आप मुझसे बहुत प्यार करती हो... पर हमने इतना कुछ सहा है... तो कुछ और सही....
वैदेही - (अपनी आँखों में आंसू लिए) ह्म्म्म्म
जयंत - ह्म्म्म्म अब तुम थोड़ा पानी पी लो... (कह कर एक डिस्पोजेबल ग्लास में पानी लाकर देता है)
उधर एक और कमरे में
रोणा - वाह... साले हरामी.... वाह... तुने तो... उस वैदेही की झांटे ही सुलगा दी...
कर - ही.. ही.. (एक पान निकाल कर खाते हुए) बच्ची है... बिचारी.... अभी अभी राजगड़ से बाहर की दुनिया देख रही है... इसलिए पचा नहीं पा रही है भड़क गई... साली कुत्तीआ... ही ही ही
परीडा - वाकई... उन पर... तो साइकोलॉजीकल एडवांटेज हमने ले लिया है... अभी...
रोणा - और नहीं तो क्या... वह लोग जितना फटेंगे... उतना ही टूटेंगे...
कर - मैं तो इस फन में माहिर हूँ... आदमी जितना भड़केगा... वह खुद पर.. नियंत्रण उतना ही खो देगा.... और जो ना किया हो उसे स्वीकार भी कर लेगा....
परीडा - बिल्कुल... अभी सिर्फ़ उसकी बहन... रिएक्ट कर रही है.... विश्व का रिऐक्ट होना बाकी है... फिर उनसे गलतियां होती जाएंगी... और हम उन पर हावी होते जाएंगे....
रोणा - सौ टका सही... सुन बे कर.. तु लगा रह... आज सुनवाई खत्म होने दे..... साले तुझे आज शराब में नहला दूँगा....
कर - मैं तो पहले से ही कहा था.... हमारे परीडा जी ने... नींव डाल रखी है... अब मैं उस पर दीवार चढ़ा रहा हूँ.... रोणा बाबु.... छत ढंग से डाल देंगे..... और राजा साहब... किवाट और खिड़की लगा देंगे... ना कानून.. ना कोई तितर... उसके भीतर... पहुंच ही नहीं पाएंगे....
रोणा - बिल्कुल... क्यूँ बे वकील... सब तेरी ही स्क्रिप्ट के हिसाब से... काम बढ़ रहा है... फ़िर भी तेरे चेहरे पर... खुशी नहीं दिख रही है....
बल्लभ - वैदेही... कितना भड़कती है... यहाँ पर... यह जरूरी नहीं है.... हमारा टार्गेट... विश्व है... उसे इतना भड़काना है... की वह अपना आपा खो बैठे.... तब हमारी हर चाल कामयाब होगी....
कर - उसी की तो कोशिश कर रहा हूँ... पर उससे पहले उसकी बहन सुलग रही है... कमीनी जैसे सुलग सुलग कर उड़ रही है....
बल्लभ को छोड़ सभी हंसते हैं l
रोणा - हाँ बिल्कुल दिवाली की रॉकेट की तरह... उड़ती तभी है.. जब पिछवाड़ा सुलगती है....
(हा हा हा हा हा) फिरसे सभी हंस देते हैं l
बल्लभ - तुने राजगड़ में... दिवाली कब मनाई...
रोणा - नहीं मनाई... पर अपने यहाँ जाकर तो मनाई है.... ना
परीडा - क्यूँ.. राजगड़ में.. क्यूँ नहीं मनाई...
कर - श्.. श्..श्... (धीरे से) राजगड़ में क्षेत्रपाल परिवार का विधान है... आम लोग खुशियां या मातम इकट्ठे होकर... भीड़ बना कर.. नहीं मना सकते... जिसको मनाना होता है.... वह लोग अपनी चार दीवारी के भीतर मनाते हैं.... वह भी किसीको मालुम ना हो पाए ऐसे.... राजगड़ में उत्सव, खुशियाँ और मातम सिर्फ़ महल में होती है... जहां लोग भीड़ बना कर सामिल हो सकते हैं....
परीडा - ओह माय गॉड... म.. मतलब... मुझे यह मालूम नहीं था...
रोणा - इसलिए तुम अपना काम करो.... और राजा साहब या राजगड़ के बारे में... जितना कम जानों... उतना ही अच्छा है....
बल्लभ - यार.. यह बे सिर पैर की बातों को किनारे करो अब... देख कर अभी टाइम हो जाएगा... किसी भी तरह से... अपने बयान इसी तरह जारी रख... और तुझको विश्व को भड़काना है... ऐसे भड़काना है कि वह अपना आपा खो बैठे.... पर अपनी भाषा को नियंत्रित रखना.... वरना लेने के देने पड़ जाएंगे....
कर - ठीक है... अबकी की बार देखो मेरा कमाल....
इन सबकी काना फुसी चल ही रही थी कि तभी एक कांस्टेबल वहाँ आकर खबर करता है कि अदालत शुरू होने वाली है l सभी जल्दी से सुनवाई के कमरे में पहुंचते हैं l कमरे के भीतर विश्व अपनी कठघरे में खड़ा है l जयंत और वैदेही अपनी अपनी जगह पर बैठे हुए हैं l यह लोग भी अपने जगहों पर बैठ जाते हैं l कुछ देर बाद तीनों जज अपने अपने कुर्सी पर बैठ जाते हैं l फिर दिलीप कर को विटनेस बॉक्स में बुलाया जाता है l
प्रतिभा - (उसके पास पहुंच कर) हाँ तो कर बाबु.... आपने कहा कि... कंट्राक्टर को बकाया पैसे देनें थे... इसलिए अपने पचपन लाख रुपये की चेक मांगा... बदले में.. विश्व ने पचहत्तर लाख रुपये की चेक साइन कर जमा करने के लिए कहा... I
कर - जी...
प्रतिभा - अब आगे क्या हुआ कहिए....
कर - मैं तो बहुत हैरान हो गया था.... पर पता नहीं... कैसे और कहां से विश्व के पास बाकी के बीस लाख रुपये पहुंचे.... विश्व ने मुझे कसम देकर... दस लाख रुपये दिए... अब मैं... बीच भंवर में फंस चुका था.... मुक्ति की राह तलाश रहा था... तो मैंने एक दिन फोन कर... यशपुर तहसीलदार जी को विश्व का यह कारनामा बताया... एक दिन तहसील ऑफिस से विश्व को बुलावा आया.... मैं बहुत खुश हो गया... लगा अब अंकुश लगेगा... विश्व और मैं तहसील ऑफिस पहुंचे... पर मुझे ऑफिस के बाहर रुकने को बोल... विश्व अकेले गया था तहसीलदार जी से मिलने... करीब करीब आधा दिन बीत गया... तब विश्व बाहर आया... उसके चेहरे पर एक अलग खुशी झलक रही थी.... जैसे कोई मैदान मार लिया हो.... मैं समझ नहीं पाया... एक तरफ विश्व के दिए हुए पैसे मेरे गले में फांस बन चुका था.... और दूसरी तरफ तहसील ऑफिस से विश्व का खुश हो कर वापस आना.... मुझे और भी डराने लगा....
अगले दिन पंचायत ऑफिस में.. बड़े बड़े लोग आ पहुंचे... तहसीलदार, ब्लाक अधिकारी, बैंक अधिकारी, रेवेन्यू इंस्पेक्टर, और विश्व के बीच बंद कमरे में एक मीटिंग हुई...
उसके बाद विश्व बाहर आकर हमे कहा... के राजगड़ विकास के लिए... उन्होंने तय किया है.. की एक गैर सरकारी संस्था के जरिए आम जनता से चंदा के जरिए देश विदेश के लोगों से... पैसे इकट्ठा करके... जनता की भलाई करेंगे.... हमे बहुत अच्छा लगा सुन कर.... तो एक महीने के भीतर "राजगड़ उन्नयन परिषद" पंजीकृत हुआ... इससे हमारे राजा साहब भी बड़े खुश हुए... उन्होंने अपने तरफ से.. पच्चीस लाख रुपये का दान चेक के जरिए दिया.... मैंने भी.. जो मेरे गले में फांस बनाकर विश्व ने... दस लाख रुपए दिया था.... वही दस लाख रुपये माय बाप दान दे दिया....
उसके बाद क्या होता रहा,.. क्यूँ होता रहा... मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था... एक दिन तहसील ऑफिस गया था... वहाँ पर पहुंच कर देखा... तहसील ऑफिस के एक कर्मचारी को विश्व बहुत मार रहा है... मैंने जा कर उसे रोका.... और विश्व को वहाँ से भेज दिया... फिर उस कर्माचारी को भी घर जाने को कहा... तभी वह कर्मचारी ने मुझे बताया कि कई सौ करोड़ों रुपये विश्व, तहसीलदार और ब्लॉक अधिकारी मिलकर लूट लिए हैं.... मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई... मैं तुरंत भागा... भागते भागते आचार्य जी को गुहार लगाई.... आचार्य जी को बहुत दुख हुआ... वह गए... सीधे राजा साहब से माफ़ी मांगने.... राजा साहब को भी दुख हुआ.... यह सब जानने के बाद.... राजा साहब ने.... आचार्य जी को... आश्वासन दिया.. की वह जल्दी कुछ करेंगे... फिर इसी तरह कुछ दिन बीत गए... फिर हमे खबर मिली... आचार्य जी को सांप ने काट लिया है... और हस्पताल जाने से पहले उनका देहांत हो गया.... मैं पूरी तरह से टूट गया माय बाप... इसलिए एक दिन निश्चय किया और यशपुर के महादेव मंदिर में भगवान को... साष्टांग प्रणाम किया और कहा... हे महादेव.. कहाँ हो आप... मैं यह सब अनर्थ नहीं देख सकता हूँ... या तो अपना त्रीनेत्र खोल कर तांडव करो... या.. या मेरे प्राण लेले... या फिर कोई जरिया देदे... जिससे मैं उस बदबख्त विश्व को सजा दिला सकूं..... तभी माय बाप मंदिर की घंटी बजी... मैं नीचे से उठा... विभोर हो गया... भगवान ने मेरी सुन ली.... मैं मंदिर में उस व्यक्ति को ढूंढने लगा जिसने घंटी बजायी... तब मुझे (परीडा की ओर हाथ दिखा कर) यह महाशय दिखे... मैंने उन पर नजर रखा और उनकी बातों को सुनने लगा... जब मुझे मालूम हुआ... की यह लोग तो राजगड़ में हुए घोटाले की जांच करने आए हैं.... मैं पहले भगवान को धन्यबाद किया... फ़िर इनसे मिला और अपनी सारी दुखड़ा रोया... बाकी सब आपके सामने है माय बाप... बाकी सब आपके सामने है....
प्रतिभा - ह्म्म्म्म तो यह थी... विश्व रूप कि कहानी...
कर - जी....
प्रतिभा - तो विश्व महापात्र जी... क्या यह दिलीप कर सच कह रहे हैं...
विश्व - (अपनी दांत पिसते हुए) यह आदमी... पूरा का पूरा झूठा है... और जो भी कहा है सब झूठ कहा है....
प्रतिभा - यह तो आपके डिफेंस लॉयर को साबित करने दीजिए... फ्रोम माय साइड... दैट्स ऑल योर ऑनर... (जयंत को देख कर) नाउ योर टर्न....
जयंत यह सुन कर मुस्कुराता है l
जज - क्या बचाव पक्ष इस गवाह से जिरह करना चाहेंगे...
जयंत -(अपनी कुर्सी से उठते हुए) जी... माय लॉर्ड.. जरूर...
जज - ठीक है... शुरू कीजिए....
जयंत दिलीप कर को देखता है l कर अपने होठों को अपने गमछे से साफ करता है l उसे ऐसा करते देख जयंत उसे मुस्करा कर देखता है, जवाब में दिलीप कर मुस्करा देता है l