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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

Mr. X
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*Index *
 
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उपन्यास हो या मूवी , अगर कहीं से फ़्लैश बैक की गुंजाइश बनती है तो वो उस की मजबूत नींव होती है ।
एक्शन मूवी " शोले " हो या " बाहुबली " , दोनों में फ्लैश बैक काफी स्ट्रॉन्ग था ।
एक साधारण लड़का विश्व क्यों बदले की आग में क्षत्रपाल के सम्राज्य को रसातल में मिला दिया , इसके लिए उसके पास्ट की कहानी जानना बहुत जरूरी हो जाता है ।
वैदेही के दर्द को उसके पास्ट के नहीं जाने बिना समझ ही नहीं सकते ।
तापस और प्रतिभा ने विश्व को क्यों सपोर्ट किया , इसके लिए भी पास्ट में जाना जरूरी था ।

फ़्लैश बैक और प्रजेंट की घटनाओं को एक साथ ही लिखना सहज नहीं होता । और मुझे लगता है आप ने इन्हें इस कहानी में बहुत ही बेहतरीन ढंग से प्रस्तुत किया है ।


फिलहाल की अपडेट भी फ़्लैश बैक पर आधारित है । विश्व का एजूकेशन और विक्रम एवं शुभ्रा के बीच पनपते रिश्ते पर था ।
भैरव सिंह की वैदेही से नफ़रत के कारण पर था ।

खैर , इस अपडेट में जो कुछ भैरव सिंह ने अपने छोटे भाई से वैदेही के लिए अपनी नफरत की भावना को कहा , उससे हमें उसके दिमाग का दिवालियापन का पता चलता है । उसके झूठे अहंकार का पता चलता है ।
एक अबला नारी के उपर ऐसी हरकतें एक गिरा हुआ और कायर इंसान ही कर सकता है । मर्दानगी किसी के उपर जुल्म करके नहीं बल्कि किसी की रक्षा करने से होती है ।

बहुत खुबसूरत अपडेट था भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग ।
 

Kala Nag

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उपन्यास हो या मूवी , अगर कहीं से फ़्लैश बैक की गुंजाइश बनती है तो वो उस की मजबूत नींव होती है ।
एक्शन मूवी " शोले " हो या " बाहुबली " , दोनों में फ्लैश बैक काफी स्ट्रॉन्ग था ।
एक साधारण लड़का विश्व क्यों बदले की आग में क्षत्रपाल के सम्राज्य को रसातल में मिला दिया , इसके लिए उसके पास्ट की कहानी जानना बहुत जरूरी हो जाता है ।
वैदेही के दर्द को उसके पास्ट के नहीं जाने बिना समझ ही नहीं सकते ।
तापस और प्रतिभा ने विश्व को क्यों सपोर्ट किया , इसके लिए भी पास्ट में जाना जरूरी था ।

फ़्लैश बैक और प्रजेंट की घटनाओं को एक साथ ही लिखना सहज नहीं होता । और मुझे लगता है आप ने इन्हें इस कहानी में बहुत ही बेहतरीन ढंग से प्रस्तुत किया है ।


फिलहाल की अपडेट भी फ़्लैश बैक पर आधारित है । विश्व का एजूकेशन और विक्रम एवं शुभ्रा के बीच पनपते रिश्ते पर था ।
भैरव सिंह की वैदेही से नफ़रत के कारण पर था ।

खैर , इस अपडेट में जो कुछ भैरव सिंह ने अपने छोटे भाई से वैदेही के लिए अपनी नफरत की भावना को कहा , उससे हमें उसके दिमाग का दिवालियापन का पता चलता है । उसके झूठे अहंकार का पता चलता है ।
एक अबला नारी के उपर ऐसी हरकतें एक गिरा हुआ और कायर इंसान ही कर सकता है । मर्दानगी किसी के उपर जुल्म करके नहीं बल्कि किसी की रक्षा करने से होती है ।

बहुत खुबसूरत अपडेट था भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग ।

आपकी समीक्षा की प्रतीक्षा थी
शायद कहानी में थ्रिल को ढूंढने वाले भावनात्मक रूप से जुड़ नहीं पा रहे हैं
कुछ पात्र क्यूँ हैं उनपर विवरण क्यूँ जरूरी है यह समझाना थोड़ी मुश्किल लगता है l
पर आशा है कहानी में विश्व के जैल से छूटते ही जब चरित्रों में टकराव होगा शायद थ्रिल महसूस हो l
हमेशा की तरह आपकी समीक्षा की प्रतीक्षा थी
धन्यबाद आभार
 

Lib am

Well-Known Member
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143
👉अड़तीसवां अपडेट
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अगले दिन
राजगड़
सुबह की धूप खिल रही है क्षेत्रपाल महल में एक गाड़ी आकर रुकती है l पिनाक सिंह उस गाड़ी से उतरता है और एक जोरदार अंगड़ाई लेता है l क्षेत्रपाल महल में वह सीधे नागेंद्र के कमरे की ओर जाता है l वहाँ नागेंद्र के सेवा में कुछ नौकर और नौकरानियां लगे हुए हैं l पिनाक के वहाँ पहुँचते ही नागेंद्र को छोड़ कर एक किनारे हो जाते हैं l

नागेंद्र - आइए... छोटे राजा जी... आइए... विराजे... (पास पड़े एक कुर्सी पर पिनाक बैठ जाता है) क्या आप विजयी हो कर लौटे हैं...
पिनाक - जी... आपका आशीर्वाद है... पार्टी में हमारी बात रख दी गई है...... पार्टी हाई कमांड तैयार हो गए हैं... इस बार बीएमसी चुनाव में... हम अप्रतिद्वंदी होंगे...
नागेंद्र - शाबाश... और युवराज.... वह क्यूँ नहीं आए...
पिनाक - जी उन्हीं की खबर देने ही आए हैं.... वह कॉलेज में... छात्र संगठन में.... अध्यक्ष चुन लिए गए हैं.... और अगले महीने *** तारीख को.... उनकी संस्था का... उद्घाटन समारोह है.... उस समारोह के उपरांत... वह और राजकुमार दोनों... राजगड़ पधारेंगे....
नागेंद्र - बहुत अच्छे... आपके साथ... राजा जी क्यूँ नहीं आए....
पिनाक - पर वह तो... कल सुबह ही.... राजगड़ के लिए... निकल गए थे...
नागेंद्र - ह्म्म्म्म.... कोर्ट में... जीत की खुशी... मनाने के लिए.... हो सकता है... रंगमहल गए होंगे....
पिनाक - हाँ... शायद...
नागेंद्र - वह सुवर की औलाद... विश्व.... अपने औकात से आगे... निकल गया.... आख़िर हमे.. अपनी ही खेमे से निकल कर... बाहर जाने को... मज़बूर कर दिया...
पिनाक - हाँ... लोक शाही की... जरूरत जो है...
नागेंद्र - लोक शाही... कैसी लोक शाही.... हमने... लोक शाही को... हमारे ठोकर पर अब तक रखे हुए हैं... आज इस राज्य में... लोक शाही रेंग भी रही है.... तो हमारी राज शाही के वैशाखी पर...
पिनाक - जी... पर वह.... लोक शाही के अंजाम तक... पहुंच गया है...
नागेंद्र - एक तरह से.... अच्छा ही हुआ.... अब जब तक... इनकी नस्लें... रहेंगी... तब तक... क्षेत्रपाल महल की और... आँखे उठाने की हिम्मत... कोई नहीं करेगा....
पिनाक - जी... दुरुस्त... फ़रमाया... आपने...
नागेंद्र - अब आप जा सकते हैं... जाईए... छोटी रानी जी... हमारी खुब सेवा किए हैं.... उनसे मिल लीजिए...
पिनाक - जी.... जरूर... नागेंद्र - और हाँ.... समय निकाल कर.... रंगमहल जा कर.... राजा जी की.. खैर खबर.... आप स्वयं लें....
पिनाक - जी... जरूर नागेंद्र - देखिए... रंग महल की चमक... फीकी ना पड़े... यह अब पूरी तरह से... आपके लोगों के जिम्मे.... क्षेत्रपाल महल हमारा रौब.... और रंगमहल हमारा रुतबा है.... हमारी उम्र अब इजाजत नहीं दे रहा है.... और शरीर भी धीरे धीरे ज़वाब दे रहा है....
पिनाक - जी... अब आज्ञा.. चाहूँगा... (कह कर पिनाक उठ कर जाने लगता है)
नागेंद्र - छोटे राजा जी... (पिनाक रुक कर मुड़ कर देखता है) उस लड़की का क्या हुआ...
पिनाक - नहीं जानते.... पर इतना जरूर जानते हैं... कल राजा जी ने... उसे उसके हक़ की... दे दी गई है....

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वैदेही धीरे-धीरे अपनी आँखे खोलती है l तो खुद को एक कमरे में नीचे बिछे बिस्तर पर पाती है l उठ कर बैठ जाती है l उसके गालों पर अभी भी सूजन है, थोड़ा दर्द भी है l वह अपने गालों को छूती है तो उसे बीती शाम की बातेँ याद आती हैं l वह सोचती है वह चाटों के मार खाने के बाद बेहोश हो गई थी l तो उसे कौन लाया और यह किसी का घर है l पर किस का l कौन लाया उसे l यह सब सोचते हुए वह बाहर आती है l उसे लक्ष्मी दिखती है l


वैदेही - ओ... लक्ष्मी...(उसकी आवाज़ ऐसी सुनाई दी, जैसे उसके मुहँ में कुछ रख कर बात कर रही है) तो... यह तुम्हारा घर है....
लक्ष्मी - हाँ वैदेही... अब कैसा लग रहा है...
वैदेही - मैं यहाँ पहुंची कैसे.....
लक्ष्मी - मेरा मरद रात में... फैक्ट्री... नाइट् शिफ्ट काम के लिए निकल गया.... तो हम माँ बेटी.... चौराहे पर जा कर ले आए तुझे....
वैदेही - तुझे डर नहीं लगा....
लक्ष्मी - लगा था.... पर फिर याद आया... कल राजा साहब ने.... तेरे हुक्के पानी पर रोक हटा दी ना...
वैदेही - अच्छा.... तेरा यह उपकार... मुझ पर उधार रहा.... मैं अपने घर चलती हूँ....
लक्ष्मी - थोड़ी देर रुक जाती..... अपनी चेहरा तो देख...
वैदेही - नहीं... अब रुकना नहीं है.... मैं फिर बाद में मिलती हूँ... तुझसे....

कह कर वैदेही अपना सामान ले कर,लक्ष्मी के घर से निकल कर अपने घर की ओर चली जाती है l रास्ते में कुछ लोग उसे देख कर डर के मारे रास्ता छोड़ देते हैं और कुछ लोग उसके पीछे पीछे चलते हुए फब्तीयाँ कसते हैं l सबको अनसुना करके वैदेही अपने घर पर पहुंच जाती है l अपनी बैग से चाबी निकाल कर ताला खोल कर घर के अंदर आती है, फ़िर दरवाज़ा बंद कर अंदर की कुए में बाल्टी डाल कर पानी निकालती है और अपने ऊपर उड़ेल देती है l पानी ऊपर गिरते ही वह हांफने लगती है l धीरे धीरे उसका चेहरा कठोर हो जाती है

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टीवी की रिमोट हाथ में लेकर सारे न्यूज चैनल छान मारने के बाद रिमोट सोफ़े पर फेंक देती है, प्रतिभा l

तापस - क्या बात है.... आज किसका गुस्सा टीवी के रिमोट पर... उतारा जा रहा है....

प्रतिभा - कितने प्रदर्शन हुए,... कितने धरने पर बैठे.... ना जाने क्या क्या... नाटक किया गया.... पर देखो भुला देने के लिए.... एक दिन भी नहीं लगा.....
तापस - कमाल करती हो.... भाग्यवान.... कल ही तो तुमने मुझसे कहा था.... विश्व एक डाईवर्जन है... उसे सजा हुई.... काम खतम... अब लोग अपनी रोजी रोटी के लिए भाग दौड़ कर सकेंगे.... मीडिया वाले... नई मसालेदार ख़बरों की खोज में... लगेंगे.... राजनीतिक गिरगिट अपना रंग बदलेंगे.... ऐसे में विश्व... या मनरेगा से... क्या मतलब है...
प्रतिभा - हाँ... सेनापति जी.... आप ठीक कह रहे हैं....
तापस - वही तो... अब हमे भी... आगे बढ़ना चाहिए.....
प्रतिभा - हाँ आप ठीक कह रहे हैं.....
तापस - सच... (खुशी से चहकते हुए) तुम तैयार हो....
प्रतिभा - (आपनी आँखे सिकुड़ कर) यह आप.. किस बात की... तैयारी कर रहे हैं...
तापस - कमाल करती हो.... भाग्यवान.... अब... लड़का डॉक्टर... बन जाएगा.... बाहर... बिजी रहेगा.... तो हम क्यूँ ना... चौथे... सदस्य को... लाने की तैयारी करें...
प्रतिभा - (अपनी कमर पर दोनों हाथ रखकर) क्या कहा आपने...
तापस - अरे क्या... कहा मैंने... मैं.. तो बस यह कह रहा था... हम तीन हैं... चलो... चार बनने की... तैयारी करते हैं...
प्रतिभा - (सोफा पर से एक कुशन उठा कर तापस की फेंकती है) आपको शर्म नहीं आती.... बुढ़ापे में ऐसी बातेँ... करते हुए...
तापस - इस में... शर्माने की... क्या बात है... मैं कह रहा था... डॉक्टर विजय से बात करूँ.... ताकि हमारे.. लाट साहब के हाथ पीले कर दिया जाए...
प्रत्युष - मैं भी यही कह रहा था....
प्रतिभा - तु.... कब आया.... और.... बड़ों के बीच में.... तु क्यूँ... घुसा जा रहा है....
प्रत्युष - बड़ों... या बूढ़ों... पहले यह कंफर्म करो...
तापस - बुड्ढा किसको बोला....
प्रत्युष - अभी बोला कहाँ है... बस पुछा ही तो है...
प्रतिभा - मैंने सिर्फ़ इतना कहा.... बड़ों के बीच में नहीं आते....
प्रत्युष - आप दोनों वहाँ हो... मैं यहाँ हूँ... बीच में कहाँ हूँ.... बाकी बड़ों के... मतलब क्या हो सकता है.... आपको यह कहना चाहिए... बूढ़ों के बीच में नहीं आना चाहिए.... क्यूंकि जवान लड़का... बूढ़ों के बीच क्या करेगा...
तापस - तुने फ़िर बुढ़ा किसको कहा....
प्रत्युष - अब इस कमरे में... जवान कहो या बच्चा... वह सिर्फ़ मैं ही हूँ....
तापस - तु.... बुढ़ा होगा तु... तेरा बाप...
प्रत्युष - फ़िर से करेक्शन... सिर्फ़ बुढ़ा होगा तेरा बाप... यही कहावत है....
तापस - रुक अभी बताता हूँ...
प्रत्युष वहाँ से भाग जाता है l उसके भागते ही प्रतिभा हँस देती है l

तापस - वैसे जान... तुमने कुछ और भी सोचा था ना... (अपनी भौंवै नचा कर पूछता है)

प्रतिभा एक प्यार भरा गुस्से से तापस को देखती है, तापस पीछे मुड़ कर हँसते हुए भाग जाता है l

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एक कमरे में वीर डायनिंग टेबल पर नाश्ता कर रहा है l और बीच बीच में अटक कर कुछ सोच रहा है l विक्रम उसे कुछ देर से देखे जा रहा है l

विक्रम - क्या बात है... राजकुमार.... बड़ी गहरी सोच में हो....
वीर - हाँ हैं हम....
विक्रम - पढ़ाई को ले कर.....
वीर - ना... पढ़ाई जब कि ही नहीं.... तो उसकी सोचें ही क्यूँ....
विक्रम - तो खाते खाते बीच में.... आप अटक क्यूँ रहे हैं....
वीर - अब खाली दिमाग़... शैतान का घर... इसलिए.... बहुत बड़ी बात दिमाग़ में.... डाल कर सोच रहे हैं.... ताकि दिमाग़ खाली ना रहे....
विक्रम - अच्छा तो हमें भी... वाकिफ़ कराएं... आपके दिमाग में... क्या चल रहा है....
वीर - यही... के अगर आप... राजा साहब के जगह लेते हैं... तो तब जाहिर है... छोटे राजा तो हम ही होंगे.... तब... अब वाले छोटे राजा जी का.... डेजिग्नेशन क्या होगा... बस... यही सोच रहे हैं...

विक्रम की खांसी निकल जाती है l थोड़ा पानी पी लेने के बाद वीर को घूर कर देखता है l

विक्रम - आपको और कुछ नहीं सूझा..... सोचने के लिए....
वीर - देखिए... युवराज जी... कभी ना कभी... बड़े राजा... सिधार जाएंगे... तब सब अपने अपने... डेजिग्नेशन से... प्रमोट होंगे.... तो मैं छोटे राजा जी के लिए... परेशान हूँ....
विक्रम - कास... आप अपने.... स्टडीज के लिए इतने परेशान होते...
वीर - परेशान होने से क्या होगा... ज्यादा से ज्यादा... आईएएस तो नहीं बनना है..... पर ऐसा पोजीशन हासिल करना है..... बड़े बड़े गोल्ड मेडलिस्ट आईएएस आगे पीछे घुमते हुए नजर आयेंगे....
विक्रम - बहुत दिमाग़ चल रहा है आपका...
वीर - कोई शक़...
विक्रम - चलो एक पहेली है... सुलझाके दिखाओ...
वीर - क्यूँ... किसी आईएएस से मेरा प्लेट साफ करवायेंगे क्या...
विक्रम - आप... यह आईएएस वालों के पीछे क्यूँ लगे हुए हैं...
वीर - क्यूंकि आपने... पढ़ाई की बात छेड़ दी...
विक्रम - अच्छा चलिए हमे माफ़ करें....
वीर - ठीक है... आप अपना पहेली पूछिए...
विक्रम - इस पहेली में... एक फोन नंबर है... जो आपको पता करना है...
वीर - अगर हमने पता कर दिया तो....
विक्रम - वादा रहा... किसी आईएएस से आपका प्लेट उठवाएंगे....
वीर - ठीक है... पहेली क्या है...
विक्रम - एक पायदानी सफर .... ऊपर से नीचे की ओर.... थमती है सफर... जब लगती है पंजे के जोड़े की जोर.... आगे नहीं सफ़र... मूड जाती है पीछे की ओर.... ना एक है ... ना दो ... ना तीन है ... ना चार... बस कुछ ऐसी है यह सफर.... इसी में है मेरा नंबर....
वीर - ह्म्म्म्म लगता है... किसी लड़की का नंबर है...
विक्रम -(झेप जाता है, हकलाने लगता है) हाँ.. हा.. व... न... ना.. नहीं... यह एक... द...द.. दोस्त का नंबर है...
वीर - तो इतना हकला क्यूँ... रहे हैं...
विक्रम - अरे भाई.... आप को... बताना है तो बताओ....
वीर - (टिशू पेपर से अपना होंठ साफ करते हुए) ठीक है... बहुत आसान है.... पर यह बताइए.... पहली... कितने दिन पहले की है...
विक्रम - (थोड़ा उदास होते हुए) क्या बताएं.... बीस दिन हो गए हैं...
वीर - क्या... आप... बीस दिन से... नहीं मिले हैं... आपस में...
विक्रम - हाँ.. क.. कौन... किससे...
वीर - वेरी सिंपल... आपकी गर्लफ्रेंड से...
विक्रम - य.. यह आ.. आ.. आप क.. क.. क्या कह रहे हैं...
वीर - तो ठीक है ना... आप हकला क्यूँ रहे हैं..
विक्रम - नहीं तो...
वीर - ठीक है... फिरसे... पहेली क्या है... बताइए...
विक्रम - एक पायदानी सफर .... ऊपर से नीचे की ओर.... थमती है सफर... जब लगती है पंजे के जोड़े की जोर.... आगे नहीं सफ़र... मूड जाती है पीछे की ओर.... ना एक है ... ना दो ... ना तीन है ... ना चार... बस कुछ ऐसी है यह सफर.... इसी में है मेरा नंबर....
वीर - ह्म्म्म्म एक पायदानी सफर... नीचे की ओर... पंजे की जोड़े ह्म्म्म्म...
मतलब पहले डिसेंडींग ऑर्डर.... फिर एसेंडींग ऑर्डर....
लो मिल गया... आपका नंबर...
विक्रम - क्या... मिल गया... क क्या है नंबर...
वीर - पायदानी सफ़र... ऊपर से नीचे की ओर मतलब 9876 पंजे की जोड़े ने रोका मतलब 55 फिर वापस भेज दिया ऊपर की ओर... 6789
उसमें... ना एक है ना दो है ना तीन है ना ही चार है.....
9876556789 बस यही नंबर है....
विक्रम - क्या... (हैरानी से चिल्लाते हुए) वाकई... वाव.. यह तो.. बहुत ही आसान था... हम तो बीस दिनों से... इसी भंवर में भटक रहे हैं...
वीर - आपको भी मालुम हो जाता... पर....
विक्रम - पर क्या....
वीर - पर अगर... अपने दिल के जगह... दिमाग़ का इस्तमाल किया होता...

विक्रम फिर से खांसने लगता है l वीर उसे अपनी आँखे सिकुड़ कर देखने लगता है l विक्रम कुछ नहीं कहता, अपना सर झुका कर कमरे से बाहर चला जाता है l

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वैदेही अपने कमरे में बैठ कर किन्ही ख़यालों में खोई हुई है अचानक वह उठती है और बाहर निकल कर उसी चौराहे पर पहुंचती है l जहां भैरव सिंह ने उस पर थप्पड़ बरसाये थे l वैदेही वहीँ खड़ी हो कर उसी जगह को देखती रहती है l कुछ मर्द वहाँ से गुज़रते हैं, पर जैसे ही वैदेही को देखते हैं वह लोग अपना रास्ता बदल कर चले जाते हैं l वैदेही वहीँ खड़ी हो कर उसी जगह को देख रही है और कुछ सोच रही है l उसके पास कुछ औरतें आती हैं l

एक औरत - क्या बात है.. वैदेही... तुम यहाँ पर क्यूँ खड़ी हो....
वैदेही - कुछ नहीं कुसुम भाभी... मैं यह सोच रही थी.... कितनी आसानी से... एक चौराहे से... किसी के घर की इज़्ज़त, किसी के घर की जन्नत, किसी के बाग की फूल... कोई आकर उठा ले जाता है... रौंदने के लिए... किसी... भाई का खुन नहीं खौलता.... किसी बाप का दिल नहीं... चीखता.... क्यूँ...
दूसरी औरत - सब का खुन... ठंडा हो चुका है... क्षेत्रपाल परिवार के दहशत से... नामर्द बन चुके हैं... सारे के सारे...
वैदेही - क्यूँ सावित्री मौसी...
सावित्री - शायद दुसरे के आंच से... खुद को इसलिए दूर रख रहे हैं... कहीं अपने दामन में... आग ना लग जाए...
वैदेही - पड़ोसी के घर की आग को ना बुझाया जाए... तो वह आग... खुद के मौहल्ले में भी... फैल सकता है...
कुसुम - यह समझते समझते... घर राख हो चुका होता है...
वैदेही - अब और वैसा... नहीं होगा... नहीं होना चाहिए... मैं.. होने ही नहीं दूंगी...

वह सारी औरतें वैदेही को देखते रह जाते हैं l उन्हें वैदेही के बातों से उसकी अंदर की निश्चितता का एहसास होने लगता है l

वैदेही - मुझे इसी जगह पर अपने लिए... कुछ चाहिए.... पर क्या... यही सोच रही हूँ.....
कुसुम - क्या... कोई जगह या घर ख़रीदना है क्या...
वैदेही -अरे हाँ... अगर मिल जाए तो... मिल सकता है... क्या...
कुसुम - पता नहीं... वह जो घर और थोड़ी सी जगह देख रही है ना... वह चगुली साबत.... बेचना चाहता था.... पर उसे... कीमत नहीं मिल रहा था....
वैदेही - क्या... क्यूँ बेचना चाहता था....
सावित्री - अरे... उसके माँ बाप चल बसे.... वह पहले से राजगड़ छोड़ कर चले जाना चाहता था.... पर उसे सरकारी कीमत भी कोई नहीं दे रहा था.... सब राजा साहब से डर कर....
वैदेही - कोई नहीं... उसे बोलो... मुझसे मिले... उसे उसकी कीमत मिल जाएगी....
सावित्री - क्या... तुम... पागल तो नहीं हो गई हो... राजा साहब से तुम नहीं डरती... पर चगुली...
वैदेही - तुम... फ़िकर मत करो... वह मैं सम्भाल लुंगी.... उसे कहो... वह मुझसे आकर मिले....

सारी औरतें उसे हैरान हो कर देखती है l वैदेही को वहाँ सोच में छोड़ कर अपनी अपनी घर की ओर चले जाते हैं l

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तापस अपने कैबिन में आकर अपने चेयर पर बैठ जाता है l अपनी टेबल पर फाइल निकाल कर देखने लगता है l तभी जगन आकर उसे सैल्यूट करता है l

तापस - क्या बात है... जगन...
जगन - वह सुबह से... विश्व... आपको.. कई बार... पुछ चुका है...
तापस - मुझे... पर क्यूँ...
जगन - यह तो वही जाने....
तापस - अच्छा जाओ... उसे बुलाओ...

जगन सैल्यूट कर बाहर चला जाता है l उसके जाते ही तापस एक गहरी सोच में पड़ जाता है l थोड़ी देर बाद विश्व दरवाजे पर खड़ा मिलता है l

तापस - अरे विश्व... आओ... तुम मुझे ढूंढ रहे थे....
विश्व - जी....
तापस - क्यूँ कोई काम था...
विश्व - जी.... मुझे आपसे कुछ मदत चाहिए था...
तापस - मदत... कैसी मदत....
विश्व - जी.. सर.. आपको शायद मालूम नहीं होगा.... मैं.. कॉरस्पांडींग में... इग्नू से... ग्रैजुएशन कर रहा हूँ... अभी सेकंड ईयर चल रहा है.... पांच महीने... वैसे ही... बरबाद हो चुके हैं... मैं इसे... कंप्लीट करना चाहता हूँ....
तापस - बहुत अच्छे... यह तो... बहुत बढ़िया बात है... तुम डीस्टेंस एजुकेशन में... कौन से फॉर्मेट और कौन से डिसीप्लीन में कर रहे हो...

विश्व उसे सब बताता है l विश्व से सब सुनने के बाद l

तापस - विश्व... तुम जिस फॉर्मेट में... कर रहे हो... वह रेगुलर स्टुडेंट्स के लिए है... जो प्राइवेट में पढ़ाई करते हैं... हर साल एक्जाम में... एपीयर करते हैं... और इस फॉर्मेट में.... तुमको पैरोल में बाहर जा कर... एक्जाम देना होगा.... और पैरोल में... बाहर निकलने के लिए... तुम्हें वकील की... जरूरत पड़ेगी....

तापस की बातें सुनकर विश्व सोच में पड़ जाता है l वह अपनी नजरें झुका कर इधर उधर देखने लगता है l उसकी हरकत से परेशानी साफ़ झलक रहा है l तापस उसकी हालत देख कर

तापस - विश्व... (विश्व तापस की ओर देखता है) देखो तुम्हारी परेशानी मैं समझ सकता हूँ... पर इसमे प्रॉब्लम... क्या है... तुम भी जानते हो... और मैं भी जानता हूँ... जयंत सर जी के... हादसे के बाद... शायद ही कोई... वकील... तुम्हारे लिए आगे आए...
विश्व - सर... कोई और रास्ता नहीं है...
तापस - मैं... एक्सप्लोर करने की... कोशिश करता हूँ... चाहे रेगुलर हो या इरेगुलर... एक्जाम के लिए तो तुम्हें बाहर जाना पड़ेगा.... अगर एनुएली... एक बार में देना चाहो... तो... मैं कुछ बंदोबस्त कर सकता हूँ... पर इरेगुलर फॉर्मेट में... रेगुलर फॉर्मेट में.... मैं ज्यादा कुछ कर नहीं... पाऊँगा...

विश्व उदास हो जाता है l और दुखी मन से वह तापस को हाथ जोड़कर नमस्कार कर बाहर की ओर मुड़ता है l

तापस - विश्व... (विश्व रुक कर पीछे मुड़ कर देखता है) तुम दस पंद्रह दिन... सोचलो.... अगर फॉर्मेट बदलना चाहो... तो... बताना... मैं... मदत करने की.. कोशिश करूंगा....

विश्व कुछ नहीं कहता है l एक फीकी हँसी के साथ हाथ जोड़कर नमस्कार कर वापस चला जाता है l

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विक्रम गाड़ी भगा रहा है l सहर कब का पीछे छूट गया है पर गाड़ी सड़क पर भाग रहा है l आज विक्रम को एक अलग सी खुशी महसुस हो रही है l उसे समझ में नहीं आ रहा क्या करे क्या ना करे l बस गाड़ी भगाए जा रहा है l उसे लग रहा है जैसे वह उड़ रहा है, उड़ते उड़ते वह कहीं जा रहा है l यह एहसास उसे गुदगुदा रहा है l तभी उसका ध्यान टूटता है l वह गाड़ी की मीडिया स्क्रीन पर देखता है, महांती का नाम डिस्प्ले हो रहा है l फोन ऑन करने के बाद

विक्रम - गुड मार्निंग महांती.... वाव... क्या बात है.... क्या टाइमिंग है... ज़रूर आज कोई ज़बरदस्त ख़बर देने वाले हो....
महांती - क्या बात है... युवराज जी.... आपको तो जैसे.... पहले से ही आभास हो जाता है...
विक्रम - बस.... हो जाता है.... अब बोलो... क्या ख़बर है....
महांती - सर सबकुछ फाइनल हो गया है... हमारा ट्रेनिंग सेंटर... ऑफिस... और इनागुरेशन का दिन.... सब फाइनल हो गया है... बहुत ही ग्रांड ओपनिंग होगी.... मज़े की बात यह है कि... मुख्य मंत्री भी राजी हो गए हैं.... हमारे मुख्य अतिथि बनने के लिए....
विक्रम - वाव... वाव.... क्या बात है.... महांती... अब तारीख़ भी... बता दो....
महांती - सर आज से ठीक.... पंद्रह दिन के बाद.... ****** तारीख़ को... हमारे सिक्युरिटी सर्विस की इनागुराल सेरेमनी होगी.... बस... एक बात की... कंफर्मेशन लेनी थी आपसे....
विक्रम - हाँ कहो....
महांती - हम... हर... प्रिंट मीडिया और... इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में अपनी... सिक्युरिटी सर्विस की... ऐड चलाएं....
विक्रम - बेशक.... करनी चाहिए.... भाई... तुम... पार्टनर हो... तुम्हारा हक़.... बनता है....
महांती - थैंक्यू... युवराज जी...
विक्रम - ओके पार्टनर.... प्रोसिड देन.... (कह कर विक्रम फोन काट देता है)

आज गाड़ी के भीतर गुनगुना रहा है l

कितनी हसरत है हमे...
तुमसे दिल लगाने की...
पास आने की तुम्हें...
जिंदगी में लाने की....

अचानक वह गाड़ी के ब्रेक लगाता है l वह बाहर निकालता है तो सामने रास्ता खतम मिलता है l सामने सिर्फ़ पानी और रेत दिखता है उसे l वह अपने सर के पीछे खुद ही चपत लगाता है और हँसने लगता है l वह फोन उठाता है फ़िर अपनी जेब में रख लेता है l ऐसा कई बार वह दोहराता है और उसे अपनी इसी हरकत पर हँसी भी आ रहा है और मजा भी आ रहा है l वहाँ पर तभी एक मछुआ जा रहा था l विक्रम उसे रोकता है

विक्रम - ऐ... भाई... जरा सुनो... यह कौनसी जगह है... मेरा मतलब... इस जगह का नाम क्या है....
मछुआ - इस जगह को... मुण्डुली कहते हैं... साहब....
विक्रम - अच्छा और इस नदी का नाम....
मछुआ - महानदी...
विक्रम - यह जगह बहुत अच्छी है.... यहाँ का नज़ारा भी बहुत बढ़िया है..... (कह कर विक्रम उस महुआ को पांच सौ रुपए निकाल कर देता है)
मछुआ - (वह मछुआ खुश होते हुए) साहब यहाँ का... सूर्यास्त भी बहुत खूबसूरत होता है....
विक्रम - अच्छा....
मछुआ - हाँ साहब...

इतना कह कर सलाम ठोक कर वहाँ से चला जाता है l विक्रम अपना फोन निकालता है और फोन अपनी लकी चार्म को फोन मिलाता है, पर उस तरफ फोन स्विच ऑफ मिलता है l उसका चेहरा उतर जाता है l कुछ सोच कर एक मैसेज टाइप करता है - हाई... आपका प्रेसिडेंट...
और पोस्ट कर देता है l फ़िर अपने कार के बॉनेट पर बैठ जाता है l

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पिनाक सिंह नागेंद्र से मिलने के बाद अपने कमरे की ओर जाने के वजाए क्षेत्रपाल महल से निकल कर अपने गाड़ी में बैठ बाहर निकल चुका है l सुषमा अपने कमरे में इंतजार करते रह गई l पिनाक नहीं आया, सुषमा को नौकरियों से खबर मिली l पिनाक जा चुका है l सुषमा अपने कमरे की दरवाजा बंद कर देती है l पिनाक की गाड़ी को ड्राइवर रंग महल की ओर लिए जा रहा है l
रंग महल में पहुंच कर पिनाक सिंह गाड़ी से उतर कर, सीधे एक गार्ड्स वालों के कमरे की ओर जाता है l वहाँ पहुँच कर भीमा के सामने अपने कमर पर हाथ रख कर खड़ा हो जाता है l भीमा उसे देख कर खड़ा हो जाता है l पिनाक इशारे से बाहर बुलाता है l भीमा बाहर आते ही पिनाक भीमा को साथ लेकर रंग महल के अंदर एक कमरे की ओर चलते हैं l

पिनाक - बड़े राजा जी को... कल राजा साहब जी का यहाँ... राजगड़ आने का खबर ही नहीं थी.... भीमा... क्या हुआ था कल....

भीमा राजगड़ में कल हुए घटना की जानकारी देता है l दोनों एक कमरे के सामने पहुंचते हैं l कमरा अंदर से बंद था l पिनाक इशारे से भीमा को दरवाजा खोलने को कहता है l भीमा डरते हुए हाथ जोड़ कर मना करता है,
भीमा- नहीं छोटे राजा जी... इस कमरे के भीतर..... जाने की हिम्मत... हम में... किसी में भी नहीं है... हमे माफ़ करें.....
भीमा के मना कर देने के बाद, पिनाक दरवाज़े पर हल्का सा धक्का देता है l दरवाज़ा खुल जाता है l पिनाक कमरे के अंदर झांकता है और कमरे में लाइट का स्विच ऑन करता है l कमरे में सिर्फ़ एक बिस्तर और उसके विपरीत दिशा के तरफ दीवार के शेल्फ शराब के बोतलों से भरी हुई है l उस कमरे में और कुछ भी नहीं है l सफ़ेद दीवार पर एक स्लाइडींग डोर दिखती है जो आधा खुला l वह कपड़ों का कबोड है l भैरव सिंह एक लुंगी पहन कर शराब के शेल्फ के पास लगे एल शेप्ड टेबल पर बैठा हुआ है l पिनाक कमरे के बाहर निकल जाता है और वह एक नौकर को भैरव सिंह के पास भेजता है, वह नौकर डरते हुए भैरव सिंह के पैरों पर झुक कर

नौकर - माफ़ी... हुकुम... माफी....
भैरव- (उसे देखता है) क्या है....
नौकर - वह... छोटे राजा जी आए हैं.... आपसे... मिलना चाहते हैं....
भैरव - ह्म्म्म्म.. भेज दो... उन्हें...

नौकर वैसे ही झुके हुए उल्टे पांव कमरे से बाहर निकल जाता है l उसको जाते हुए भैरव सिंह गौर से देख रहा है l नौकर के बाहर जाते ही भैरव सिंह हँसने लगता है l वह हँसते हुए शराब का और एक घूंट पीता है, फ़िर हँसता है l पिनाक कमरे में आकर भैरव को हँसते हुए देख कर

पिनाक - क्या बात है... राजा जी.... अपने आप क्यों... हँस रहे हैं...
भैरव - आपके आने से पहले... जो नौकर आया था... उसे... उल्टे पांव लौटते देख हँसी आ गई....
पिनाक - क्यूँ... कुछ गड़बड़ हो गया... क्या... यह तो उन लोगोंका.... हमारे प्रति सम्मान है....
भैरव - हाँ... आप बताओ.... यहाँ हमसे मिलने... क्यूँ आए.... और आप राजगड़ कब आए....
पिनाक - हम कल रात को... प्रधान और रोणा के साथ मिल कर.. यशपुर गए... वहाँ सर्किट हाउस में रात को रुके.... फिर सुबह ही निकले... राजगड़ पहुंचे..... बहुत दिनों से.... राजगड़ दूर रहे.... इसलिए दुरूस्त होने आ गए.....
भैरव - तो आपको... छोटी रानी जी के पास... होना चाहिए था.... अगर रंग महल के किसी कमरे में...आए हो... तो.. हमारे पास क्यूँ...
पिनाक - आप... कल रात आपके आने की खबर.... बड़े राजा जी को नहीं थी... वह जान कर परेशान हो रहे थे.....
भैरव - इसमे परेशानी की क्या बात है.... यह तो सब जानते हैं... हम या तो... क्षेत्रपाल महल में होंगे.... या फिर रंग महल में.... पर यह छोड़िए... बात कुछ और है.... पूछिए...
पिनाक - वह एक बात हमे ठीक नहीं लगा.... तो उस पर आपसे बात करने आए हैं....
भैरव - कौनसी बात....
पिनाक - आज आप ने... जिस तरह... वैदेही पर ... बीच चौराहे में... हाथ छोड़ा.... वह हमे ठीक नहीं लगा...
भैरव - जब बीच चौराहे से... लड़कियाँ... उठाए हैं... तब आपको बुरा नहीं लगा.... एक को चांटा क्या मारा... बुरा लग गया....
पिनाक - बीच चौराहे से... लड़की को एक मर्द ही उठा सकता है.... पर बीच चौराहे पर... हाथ उठाना.....
भैरव - बस... जुबान पर लगाम दो... (शराब का घूंट पी कर) छोटे राजा जी.... आज हम बहुत ही.. अच्छे मुड़ में हैं... और अच्छा हुआ.... यह प्रश्न आपने पुछा है....

भैरव की यह बात सुन कर पिनाक सकपका जाता है l उसे लगता है शायद बात बात में वह कुछ ज्यादा ही बोल गया l पिनाक इधर उधर देखने लगता है l जब भैरव सिंह कुछ नहीं बोलता है तो अपनी कुर्सी से उठ कर जाने लगता है l

भैरव - अगर सवाल किया है... तो ज़वाब भी लेते जाइए... छोटे राजा जी.....


पिनाक रुक जाता है l भैरव उसे बैठने के लिए इशारा करता है l पिनाक बैठ जाता है l भैरव एक ग्लास निकालता है और उसमें शराब डाल कर पिनाक की ओर बढ़ाता है l पिनाक वह ग्लास ले कर घूंट भरता है l भैरव एक और ग्लास निकालता है और आवाज़ देता है

भैरव - भीमा....
भीमा - हुकुम...
भैरव - यह लो.... (ग्लास को भीमा के तरफ उछालता है, भीमा उस ग्लास को कैच कर लेता है) अब इसे... घोट कर... तोड़ो...

भीमा अपने दोनों हाथों से दबाने लगता है l पर ग्लास बहुत ही मजबूत था, नहीं टूटता है l

भैरव - ठीक है... रहने दो... लाओ... ग्लास हमे दे दो... (भीमा से ग्लास को अपने हाथों में लेकर) छोटे राजा जी... आपने कभी किसीसे प्यार किया है....
पिनाक - (थोड़ा हँसते हुए) पता नहीं... राजा साहब... पता नहीं....
भैरव - और... (पिनाक के आँखों में देखते हुए) और... किसीसे नफरत की है....
पिनाक - नहीं जानते... शायद नहीं...
भैरव - करना चाहिए.... इंसान को... करना चाहिए...
पिनाक - क्या.... क्या करना चाहिए... प्यार या नफरत..
भैरव - कुछ भी...
पिनाक - तो क्या... आपने किसीसे... प्यार....
भैरव - प्यार....हा हा हा... माय फुट... हमने तो.... नफ़रत की है.... वह भी बड़ी... शिद्दत से.... (थोड़ा मुस्कराते हुए) और... वह भी हमसे.... उतनी ही नफ़रत करती है.... उतनी ही शिद्दत से....

भैरव सिंह इतना कह कर बोतल में जितना शराब बचा था, उसे एक ही सांस में पी लेता है l पिनाक उसे हैरानी से देख रहा है l

पिनाक - हम कुछ... समझे नहीं... राजा साहब...
भैरव - हम इंसान हैं... छोटे राजा जी... इंसान बहुत जज्बाती होता है... हर इंसान का वज़ूद के लिए.... एक एहसास... एक खास ज़ज्बात... जरूरी होता है.... जो उस इंसान को... उसके होने का... एहसास दिलाता है.... मुझे मेरे होने का एहसास... तब होता है... जब जब वैदेही के चेहरे पर... दर्द उभरता है.... पता नहीं क्यूँ... पर जब जब उसकी तकलीफ की वजह मैं होता हूँ... उसकी वह तकलीफ़ मुझे... जुनून के हद तक.... सुकून देता है....
(भैरव सिंह एक गहरी सांस छोड़ता है) उसके आँखों में अपने लिए... बेइंतहा नफरत जब देखता हूँ.... तब मुझे हिमालय जितने जैसा लगता है..... हा हा हा हा... जीने का मजा ही कुछ अलग हो जाता है.... (भैरव सिंह का चेहरा अचानक से कठोर हो जाता है, जबड़े भींच जाते हैं, आँखे अंगारों सा दहकने लगता है) जानते हैं... हम उस कमीनी से... क्यूँ इतना नफ़रत करते हैं.... क्यूंकि एक वही है.... जो मेरे अंदर के... पुरूषार्थ को... अहं को चोट पहुंचाई है.... एक वही है... जिसे देखता हूँ... तो खुद को हारा हुआ महसुस करता हूँ... उसके साथ यह रिश्ता... उसके होश सम्भालने से पहले से ही है.... जानते हैं... जब हमारे सामने... वह चेट्टी... अपने बेटे के लिए बोला.... बाप से बढ़कर बेटा.... वह लफ्ज़... मेरे लिए एक गाली था... थप्पड़ था... जानते हैं.... जब पहली बार..... हमे बड़े राजा जी.... रंग महल के भीतर लाए... हमने ऐयाशी की दुनिया में कदम रखा... तब... एक दिन वैदेही की माँ को जबरदस्ती.... अपने नीचे ला रहा था... तब वैदेही ने... अपने नन्हें नन्हें दांतों से मेरे हाथ पर काट लिया था.... नवा... नवा जवानी चढ़ रही थी... पहली बार... मैं अपनी अंदर की आग को शांत किए वगैर.... रंग महल से लौटे थे..... वह पहली हार था... हमारा.... हाँ यह बात और है.... तवज्जो नहीं दी थी हमने..... फ़िर एक दिन वह.... भाग गई रंग महल से... वह दुसरी हार थी... क्यूँकी हमे सिर्फ एक बात... मालुम था... उसे हमारा बीज ढोना था.... पर वह भाग निकली.... यह हार था.... फिर एक दिन मिली.... उसे लाते वक्त... रघुनाथ बीच में आया.... मार डाला हमने उसे....
पिनाक - क्या... रघुनाथ को आपने मारा.... वहाँ तो सब... हमारे आदमी गए हुए थे... ना...

भैरव - हाँ (उसके आँखों में एक शैतानी चमक दिखती है) मैंने उस दिन... भेष बदलकर... अपने ही आदमियों के साथ गया था... सबको... अपना मुहँ... ढंकने का हुकुम दिया था.... इसलिए... राजगड़ के लोगों को छोड़ो... वैदेही भी आज तक यही समझती है... उसे हमारे ही आदमियों ने उठाया था....
पिनाक - ओ....
भैरव - मेरे अंदर... मेरे हार को बदलने का अवसर जो था.... इसलिए... बीच में आने वाले हर एक को... मारने की... ठान लिया था हमने... पर उस दिन विश्व... बेहोश हो गया था.... जो बाद में... सुवर बनकर.... हमारे सामने आया... खैर छोड़ो... वह... (एक तरफ हाथ उठा कर इशारा करते हुए) उस बैठक में (भैरव सिंह हाथ के इशारे से दिखाता है) बड़े राजा जी ने.... उसकी नथ उतारी.... वह बेहोश हो गई थी.... बड़े राजा जी उसकी माँ को लेकर आखेट घर ले गए.... मेरे लिए बेहोश वैदेही को छोड़ कर... मैंने उसे इसी कमरे में ला कर... मार मार कर पहले होश में लाया... उसके होश में आते ही... ही ही ही... टुट पड़ा.... वह मेरे सीने के इस हिस्से को (अपने दाएं हाथ से बाएं सीने पर एक जगह फेरते हुए) फिरसे काट लिया था.... पर इस बार... मैं नहीं रुका... अपनी अंदर की को शांत किया... तब उठा... पर तब तक... उसकी हालत बहुत खराब हो चुकी थी.... पर मेरे अंदर का पुरुष को.... असीम तृप्ति मिल चुका था.... पहली बार... मुझे जीत का एहसास हुआ.... हस्पताल से वापस आने के बाद.... मैंने उसे अपने.. नीचे लाकर हर तरह से रौंदा... उसकी चीख, उसके दर्द... मुझे बहुत खुशी देती थी... पर धीरे धीरे... वह बेज़ान हो गई....किसी पुतले की तरह... उसे कोई एहसास नहीं हो रहा था... वह ना चीखती थी... ना चिल्लाती थी... बस बेज़ान सी नीचे पड़ी रहती थी... मुझे उससे कोई मतलब नहीं था.... पर वह.... पेट से नहीं हो रही थी... यह मेरी बहुत बड़ी हार थी.... मुझे मेरे मर्दानगी पर... शक़ करने पर... मज़बूर करदिया.... यह और एक हार थी मेरे लिए... जब डॉक्टर ने बताया... की वह बाँझ है.... तो यह मेरे लिए... बहुत ही तकलीफ देह थी.... मैं अपने... बाप दादा के वंशानुगत रिवाज को... हार गया था... मैं.. मैं अगर उसे मार देता... तो यह उसकी जीत होती... इसलिए... उसे चुड़ैल बता कर नंगी... राजगड़ के गालियों में दौड़ाया... उस पर पत्थर फीकवाया.... इस बार उसके चेहरे पर दर्द दिखा.... मुझे खुशी महसुस हुई.... पर ज्यादा देर के लिए नहीं.... विश्व जिसे मैंने भुला दिया था... वह बीच में आ गया.... मैं इस बार फ़िर हार गया था.... रंग महल से... कभी कोई औरत निकली ही नहीं थी... अगर निकली भी थी... तो लाश बनकर... पर इसबार वैदेही.... जिंदा थी... फ़िर उसने मुझे मेरे हारने का... एहसास दिलाया.... पर एक बात तो मालुम हुआ... विश्व उसकी दुखती रग है.... बस आगे की कहानी आप जानते हैं... (भैरव वही ग्लास उठाता है) छोटे राजा जी.... अगर हमने वैदेही पर ताकत... आजमाया होता... तो (ग्लास पर पकड़ मजबूत करते हुए) एक ही थप्पड़ से ही... मर गई होती...(कड़ की आवाज़ आती है) हम उसे तकलीफ में देखना... चाहते थे... उसके जज्बातों को कुरेदा.... एहसासों को.. नोचा...(कड़च) उसे तकलीफ़ पहुंचाई.... जो मुझे असीम खुशी दे गई..... (कड़चटाक की आवाज़ सुनाई देती है और ग्लास टुट कर भैरव सिंह के हाथ से गिरती है)
अब फ्लैशबैक तो थोड़ा फास्ट करना चाहिए ताहि कहानी वर्तमान में आगे बढ़ सके। बहुत ही जबरदस्त अपडेट।
 

Kala Nag

Mr. X
4,262
16,543
144
👉उनतालीसवां अपडेट
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दो हफ्ते बाद
सेंट्रल जैल
लाइब्रेरी
विश्व अंदर आता है l अंदर वैदेही हैरानी और गुस्से भरी नजर से उसको देखती है l विश्व की दाढ़ी बढ़ी हुई है और विश्व के माथे पर निको प्लास्टर की पट्टी चिपकी हुई है और होंठ के किनारे का हिस्सा, आँखों के नीचे का हिस्सा काला दिख रहा है l विश्व वैदेही के पास जाने के वजाए खिड़की के पास जा कर बाहर की ओर देखने लगता है l

वैदेही - यह क्या है विशु....
विश्व - क्या है... तुम यहाँ आई क्यूँ हो दीदी...
वैदेही - कुछ काम से आई थी... क्यूँ... तुझे मेरा यहाँ आना... बुरा लग रहा है.... या तुझे इस हालत में देखा... यह बुरा लग रहा है...
विश्व - मैंने आपसे कहा था.. यहाँ आ कर मुझ से ना मिलने के लिए...
वैदेही - कोई वादा... नहीं किया था... और मैं तुझसे... मिलूँ क्यूँ ना...
विश्व - xxx(चुप रहता है)
वैदेही - अब चुप क्यूँ है... एक तु ही तो है... जिसे देख कर... जिंदा हूँ... और सुन... मैं आती रहूँगी... अब यह तुझ पर है... तु मुझसे... मिलना चाहता है या नहीं...
विश्व - xxxx(चुप रहता है)
वैदेही - वैसे... तुने किन लोगों के साथ मार पीट की...है...
विश्व - मैंने किसी के साथ मार पीट नहीं की है... हाँ... कुछ लोगों ने मुझे... मारा ज़रूर है... पर.... तुमको पता कैसे चला...
वैदेही - आई थी सुपरिटेंडेंट सर से... तेरी खैर खबर लेने... उन्होंने ही बताया मुझे...
विश्व - xxxx(चुप रहता है)
वैदेही - विशु.... तु... क्यूँ किसीसे... दुश्मनी ले रहा है... हमारे दुश्मन कम हैं क्या...
विश्व - दीदी... मैंने.. किसीसे दुश्मनी नहीं की है... कुछ लोग थे... जिनके दुश्मनी के बीच आ गया... वह लोग डैनी भाई को मारने आए थे.... मैंने उनका प्लान चौपट कर दिया.... जब उनको पता चला... तो उन्होंने... अपने प्लान के नाकाम होने का गुस्सा... मुझ पर उतारा...
वैदेही - यह... डैनी भाई कौन है... और तु... उनके लिए... अपनी जान खतरे में... क्यूँ डाला...
विश्व - xxxx(चुप रहता है)
वैदेही - विशु....
विश्व - दीदी... (वैदेही की तरफ मुड़ कर) जैसे... कोर्ट रूम के अंदर.... मेरे लिए जयंत सर थे.... यहाँ... इस जैल के अंदर... डैनी भाई... मेरे लिए उतने ही मान रखते हैं... इसलिए... उनके लिए कुछ भी....

वैदेही की आँखे बड़ी हो जाती है l वह हैरानी भरी नजर से विश्व को देखने लगती है l

वैदेही - यह डैनी भाई साहब कौन हैँ... उनके बारे में... पहले कभी तुने.. मुझे बताया नहीं...
विश्व - बस उनका जिक्र हो... ऐसी हालात भी... कभी आया ही नहीं था... अच्छा दीदी... तुमने बताया कि.. कुछ काम से आईं थी...
वैदेही - वह मैं... चगुली साबत की घर को पांच साल के लिए... भाड़े पर लेने के लिए... एक एग्रीमेंट करने आई थी....
विश्व - उसके घर को... भाड़े में... क्यूँ....
वैदेही - तो क्या करूँ.... हमारी सारे खेत पर.... भैरव सिंह के पालतू कुत्ते... कब्जा लिए हैं.... मुझे गांव में रहना है.... कुछ करना है.... इसलिए... उसका घर... पांच साल के लिए..... भाड़े पर ले लिया है....
विश्व - और वह... कहाँ जाएगा....
वैदेही - दुबई... उसे दुबई जाना था.... घर कोई खरीद नहीं रहा था... भैरव सिंह के डर से....
विश्व - मैंने भी खरीदा कहाँ है.... मैंने भाड़े पर लिया है....
विश्व - ओ... अच्छा... ठीक है दीदी.... मैं चलता हूँ... अपना खयाल रखना....
वैदेही - विशु... विशु...

वैदेही पुकारते रह जाती है, पर विश्व नहीं रुकता है l विश्व के जाते ही वैदेही तापस के रूम की और जाति है l

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पिनाक, महांती और वीर एक कमरे में बैठे हुए हैं l पिनाक और महांती के चेहरे पर जहां तनाव दिख रहा है वही वीर इन दोनों के चेहरे पर आ रहे पल पल बदलते भावों को देख कर मन ही मन खीज रहा है l

पिनाक - महांती... यह अचानक...
महांती - अब हम और क्या कर सकते हैं...
पिनाक - ह्म्म्म्म... अच्छा हुआ... तुमने.. प्रोग्राम में आने वाले... गेस्ट के बारे में... कहीं पर खुलासा नहीं किया.... था...
महांती - हाँ... पर... राजा साहब चाहेंगे... तो... शायद कुछ हो सकता है...
पिनाक - नहीं महांती... इस बार.. वह भी मज़बूर हैं....
महांती - वैसे... प्रोग्राम में.. ऐन मौके पर जो... तब्दीली हुई है... उससे प्रोग्राम की... वैल्यू कम भी नहीं हुई है.... हाँ... राजा साहब होते तो बहुत अच्छा होता... तब चीफ मिनिस्टर भी आते... पर...
पिनाक - देखो महांती... प्रोग्राम... तुमने... और युवराज ने... डिजाईन किया था... राजा साहब उस समय... किसी और काम में... व्यस्त थे...
महांती - हाँ... वह मैं... जानता हूँ...
पिनाक - पर उन्होंने कहा है... कुछ भी रुकना नहीं चाहिए....
महांती - नहीं रुकेगा... राजा साहब ना सही... आप तो हैं.... प्रोग्राम बहुत ही... जबरदस्त होगा....
पिनाक - हाँ.... करना ही पड़ेगा...(वीर की ओर देख कर) राजकुमार आप जा कर... युवराज जी को कल की प्रोग्राम के लिए... मनाएं... और उन्हें... तैयार कीजिए....

वीर यह सुन कर वहाँ से उठ जाता है और एक कमरे की ओर चला जाता है l कमरे में पहुंच कर देखता है विक्रम एक कुर्सी पर बैठ कर बालकनी से बाहर की ओर देख कर गहरी सोच में डूबा हुआ है l

वीर - (अपने मन में) अब मजनूँ को... कौन समझाए... (अपने चेहरे पर हँसी लाने की कोशिश करते हुए) युवराज जी... कल हमारे डेविल आर्मी की.... ऑफिशियल इनागुरेशन है.... और यहाँ डेविल किंग... किसी लुटे हुए... आशिक की तरह बैठे हैं हैं....

विक्रम, वीर की ओर देखता है और फिर अपना मुहँ फ़ेर कर बाहर देखने लगता है l वीर उसके सामने एक चेयर डाल कर बैठ जाता है l

वीर - युवराज जी... कुछ तो कहिए... शायद मैं आपकी कुछ मदत कर सकूँ....
विक्रम - हम कलकत्ते से जब यहाँ पर आए.... तब हमे... छोटे राजा जी से एक मिशन मिला... के.. राजधानी में... क्षेत्रपाल के नाम का सिक्का जमाना है... पर इसकी शुरुवात के प्रोग्राम में ही... क्षेत्रपाल के मुखिया... नहीं आ रह रहे हैं....
वीर - क्या सिर्फ़ यही वजह है....

विक्रम कुछ नहीं कहता l वह बालकनी से बाहर की ओर देख कर कुछ सोचे जा रहा है l

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वैदेही विजिटर्स रूम में बैठी हुई है और बार बार सलाखों के पर दरवाजे की ओर देखती है l थोड़ी देर बाद एक कैदी संत्री के साथ आते देखती है l वैदेही उठ कर सलाखों के पास मीटिंग पॉइंट तक जाती है l वह कैदी भी उस पॉइंट तक आता है और वह संत्री को मुड़ कर देखता है l संत्री उन दोनों को छोड़ वहाँ से चला जाता है l वैदेही उसे गौर से देखती है लगभग पैंतालीस साल का आदमी, अपने उम्र से पांच सात साल कम दिख रहा है, उम्र का अंदाजा लगाना मुश्किल है l ऊँचा कद और स्वस्थ दिख रहा है l उसे देख कर लगता है वह जरूर वर्जिश करता होगा l वैदेही की ध्यान टूटती है l

कैदी - कहिए... आप... कौन हैं... और मुझसे क्यूँ मिलना चाहती थी....
वैदेही - आ... आप... डैनी भाई साहब हैं...
डैनी - डैनी भाई साहब नहीं... सिर्फ़ डैनी...
वैदेही - पर विशु तो... आपको डैनी भाई साहब ही कहता है ना...
डैनी - (वैदेही को घूर कर देखते हुए) यह... विशु कौन है....
वैदेही - मेरा भाई... विश्व प्रताप...
डैनी - ओ... तो आप.. विश्व की... बड़ी बहन... वैदेही जी हैं...
वैदेही - जी...
डैनी - पर आप मुझसे... क्यूँ मिलना चाहती थीं...
वैदेही - मैं... उस शख्सियत को... देखना चाहती थी.... जैल के भीतर... जिसे विशु... जयंत सर के... बराबर का दर्जा... दिया है....
डैनी - क्या... यह क्या बकवास कर रही हैं...
वैदेही - आप को... कोई मारने आया था... पर विशु के वजह से.. नहीं मार पाया.... इसलिए.. उसने... विशु पर अपना गुस्सा उतारा...
डैनी - देखिए... वैदेही जी... कोई एक मारने नहीं.... बल्कि चार चार लोग मुझे मारने आए थे.... मैं हूँ ही... क्रिमिनल... मेरे हज़ारों दुश्मन हैं... आपके विशु का एक उपकार रहेगा मुझ पर... उसने मेरे दुश्मन की पहचान की... और मुझे आगाह किया.... पर मैंने उसे समझाया था... मेरे और उनके बीच ना आने के लिए....
वैदेही - विशु है ही ऐसा... जिसको वह... अपना मान लेता है... उसके लिए... वह कुछ भी कर जाता है....

डैनी यह सुन कर वैदेही को हैरानी से देखता है l

वैदेही -(अपनी हाथ जोड़कर) हाँ भाई साहब... उसने दिल से... आपको... अपना माना है... आपका बहुत सम्मान करता है.... बस इस बहन की... इच्छा है... आप जब तक यहाँ हैं... उसे अपने छोटे भाई की तरह ही... देखें... भले ही... अपने पन से ना सही.... पर उसका खयाल रखिएगा.....

डैनी कुछ नहीं कहता, वह इधर उधर देखता है फिर हाथ जोड़ कर नमस्कार कर वहाँ से चल देता है l

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वीर - ठीक है युवराज जी... मुझे लगा... के हम एकदूसरे के सहारा हैं... क्यूंकि यह रस्मों रिवाजों के ढोंग ढोते ढोते... हम अकेले हो गए हैं... आप फिर भी... बाहर जाते हैं... किसीसे बात भी करते हैं.... पर हमारा क्या... हम किस से बात करें... ठीक है... हम बाहर जा रहे हैं... (उठ कर जाने लगता है)
विक्रम - रुकिए... राजकुमार..जी.... रुकिए... प्लीज...
वीर - (रुक जाता है, और वहीँ बैठ जाता है) अब दिल में जो भी है... उगल दीजिए... देखिएगा... आपको अच्छा भी लगेगा... और हल्का भी लगेगा....
विक्रम - कल के प्रोग्राम के लिए.... हमारे लिए... गेस्ट लिस्ट में... तीन खास लोग शामिल होने चाहिए थे... पर कल वह लोग... नहीं आ पा रहे हैं....
वीर - हम्म... पहले कौन हैं....
विक्रम - हमारे राजा साहब... हमे जिनके नाम का डंका बजाने का... जिम्मा दिया गया है....
वीर - और वह... क्यूँ नहीं आ रहे हैं....
विक्रम - मुख्य मंत्री जी ने... वाइब्रेंट ओड़िशा के लिए... इंवेस्टर्स को रिझाने अपने साथ डेलिगेशन ले कर जा रहे हैं.... उसके लिए कुछ खास लोगों को चुना है... उन लोगों में... हमारे राजा साहब भी हैं...
वीर - अच्छा... हम्म.... प्रोग्राम... पोस्टपॉन कर दें तो...
विक्रम - नहीं.. नहीं.. हो सकता है... हमने जोर शोर से... एडवर्टाइजिंग किया है... नाक का सवाल है...
वीर - और दुसरा...
विक्रम - दुसरा मतलब...
वीर - वही आपके गेस्ट लिस्ट वाले...
विक्रम - अरे हाँ... उसका नाम.. यश वर्धन चेट्टी है.... पहली बार किसी से हाथ मिलाकर... दोस्ती की है... पर वह भी मुख्यमंत्री के.... डेलिगेशन में जा रहा है...
वीर - क्यूँ... वह कोई... पोलिटिकल लीडर है क्या...
विक्रम - नहीं... वह एक.. इंडस्ट्रियलिस्ट है...
वीर - ह्म्म्म्म... और तीसरी शायद.. भाभी....
विक्रम - वह भी नहीं आ पा रही है.... क्या... क.. क... कौन... क्या पुछा तुमने....
वीर - (शरारत भरा हँसी हँसते हुए) भाभी क्यूँ नहीं आ रही हैं....

विक्रम वहाँ से उठ कर जाने लगता है l वीर भी उसके साथ उठ कर उसके सामने खड़ा हो जाता है l विक्रम फिर वापस आ कर चेयर पर बैठ जाता है l

वीर - आप बताना नहीं चाहते.... तो बात अलग है... पर अगर आप मुझे कुछ कहेंगे... तो मेरे खुराफाती दिमाग में से... कुछ आईडीया निकलेगा.... वह आपके काम आ सके...
विक्रम - नहीं ऐसी कोई बात नहीं है...
वीर - मत भूलिए... भाभी जी का नंबर... आपको मैंने दी है....

विक्रम अपना चेहरा घुमा लेता है l वीर उसके चेहरे पर आए भाव पढ़ लेता है l

वीर - ऑए.. होए... आपके गाल... टमाटर के जैसे... लाल हो गए हैं...

विक्रम - (अपनी मुस्कराहट को जबरदस्ती छुपाने की कोशिश करते हुए) चलिए राजकुमार जी.... आज आपको लॉन्ग ड्राइव के लिए... लिए चलते हैं....

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लंच के समय का हुटर बजता है l सारे कैदी अपना काम छोड़ कर डायनिंग हॉल के तरफ बढ़ जाते हैं l विश्व भी अपना काम छोड़ कर हाथ मुहँ धो कर डायनिंग हॉल में पहुंचता है l विश्व हॉल में पहुंच कर थाली हाथ में लिए लाइन में खड़ा हो जाता है l विश्व को देख कर कुछ कैदी कानाफूसी करने लगते हैं l विश्व उनकी बातों को सुनता है पर ध्यान नहीं देता l अपना खाना ले कर हमेशा की तरह कोने के टेबल पर जा कर बैठ जाता है l

डैनी - क्या बात है... हीरो... क्या हाल है....
विश्व - (डैनी को देख कर मुस्कराने करने की कोशिश करते हुए) अच्छा हूँ...
डैनी - देखा... इंसान की इज़्ज़त कैसे गिर जाता है...
विश्व - मैं समझा नहीं... इज़्ज़त... किसकी...
डैनी - जब तु.... जैल में आया था... तब तु... तास की गड्डी में एक्स्ट्रा पत्ता था... फिर खेल में नहला पर दहला बना... पर अब... तु... उसी खेल में... एक्स्ट्रा बन गया है....
विश्व - (चुप रहता है)
डैनी - तुने जब रंगा का... पिछवाड़े में चीरा लगाया... तो तेरा इज़्ज़त होने लगा था... अब चार चिरकुट तेरे चेहरे का... भूगोल क्या बदला... यही लोग... तेरे इतिहास का बंटा धार हो गया.... अब सब... तेरे नाम पर जोक मारने लगे हैं...
विश्व - (इस बार भी चुप रहता है)
डैनी - (विश्व को गौर से देखता है) विश्व... (विश्व डैनी को देखता है) तुझे कैसे मालुम हुआ... उनका टार्गेट मैं था... तुझे तेलगु भाषा समझ में आता है क्या....
विश्व - जी... समझ सकता हूँ.... पर बोल नहीं सकता....
डैनी - ह्म्म्म्म... ठीक है... मैंने तुझे.... पहले ही बता दिया था... यहाँ... कोई... किसीके फटे में... टांग नहीं अड़ाता... इतना ज्ञान देने के बावजूद तु... उनके और मेरे बीच में आया... अब देख आखिर... उसके लिए... उन लोगों ने... तुझसे पेनल्टी वसूला....
विश्व - ह्म्म्म्म...
डैनी - तुझे... तेलुगु... समझ में.. कैसे आता है... तु.. तो.. राजगड़ से बाहर.. कभी गया ही नहीं होगा....
विश्व - वह... मेरे.... गुरु थे... मेरे प्राथमिक विद्यालय के... प्रधान आचार्य...उनसे और उनके पोते से... उनसे थोड़ा थोड़ा.. सीखा था...
डैनी - स्कुल के... प्रधान आचार्य... वह भी... तेलुगु...
विश्व - नहीं... वह थे तो.. ओडिया ही... पर वह पारलाखेमुंडी से थे... आंध्र ओड़िशा सीमांत क्षेत्र से... इसलिए उन्हें... तेलुगु.. बहुत अच्छी तरह से आता था....
डैनी - ह्म्म्म्म... तुने.. जानने की... कोशिश.. नहीं की... के वह.. लोग मुझे क्यूँ मारना... चाहते थे....
विश्व - वे लोग इस बारे में... ज्यादा बात नहीं की... बस आपको मार देने की ही बात कर रहे थे.... इसलिए मैंने आकर आपको आगाह भी किया.... पर जब देखा कि... वह आपको बैरक तीन के... गार्डन में अकेला देख कर... आपके ओर बढ़ रहे हैं.... मैं तब... सिक्युरिटी रूम में... साफ सफाई कर रहा था... आप को उनके चपेट में आने से बचाने के लिए... मैंने लंच का हुटर बजा दी.... ताकि आप अलर्ट हो जाएं और सारे कैदी... काम छोड़ कर उधर से गुजरे...
डैनी - मुझे बचाने के चक्कर में... तेरी सुताई कर दी... उन्होंने.... क्यूँ....
विश्व - कोई बात नहीं... आप तो बच गए ना...
डैनी - ह्म्म्म्म... अब वक्त आ गया है... तुझे... मेरे बारे में.. जानने का... मेरे इतिहास और वर्तमान के बारे में.... पर उससे पहले... तुझे कुछ दिखाना है.... एक काम कर.... मुझसे आज शाम... बैरक पांच के... गेम हॉल में... मिल...


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विक्रम अपनी कार को भगा रहा है l गाड़ी में बगल में वीर भी बैठा हुआ है l

वीर - आप हमे ले कहाँ जा रहे हैं... युवराज जी...
विक्रम - क्यूँ.... डर लग रहा है.....
वीर - डर... जब तक युवराज हैं... राजकुमार का बाल भी कोई.... बांका नहीं कर सकता....
विक्रम - इतनी कन्फीडेंट...
वीर - अपने ऊपर नहीं.... आप पर... है... क्यूँ के.... हमारे लिए आप हैं... और आपके लिए... हम....

विक्रम ब्रेक लगाता है l गाड़ी रुक जाती है l वीर देखता है रास्ता खतम हो गया है आगे सिर्फ़ रेत ही रेत दिख रहा है और उसके आगे एक नदी की धार दिख रहा है l

वीर - यह आप हमे कहाँ ले कर आ गए हैं....
विक्रम - मुंडुली है... इस जगह का नाम...
वीर - मतलब आप पहले भी.... यहाँ आ चुके हैं...
विक्रम - जानते हैं.... यहाँ से... हम ने... आपकी भाभी से... पहली बार... फोन पर बात की थी....
वीर - अच्छा इस जगह पर... इतना महात्म्य है....
विक्रम - हाँ...
वीर - तो इसका मतलब... मैंने पहेली को सुलझा लिया था... पर यह क्या.... युवराज जी... आपने हमे इसका... पुरस्कार भी नहीं दिया....
विक्रम - कहिए... आपको क्या चाहिए...
वीर - वह.. हम बाद में... मांग लेंगे....पहले यह बताइए... इजहार किसने पहले की....आप या भाभी....
विक्रम - अरे कहाँ... अभी तक सिर्फ़ दोस्ती और.. चैटिंग तक.... ही हैं... अभी मुलाकात भी नहीं हुई है....
वीर - मतलब फोन नंबर तो पक्का है ना....
विक्रम - हाँ हाँ वही है... अपने तरीके से... कंफर्मेशन कर चुके हैं...
वीर - (विक्रम को देख कर) युवराज जी... आप कितने सिरीयस हैं....
विक्रम - सिरीयस मतलब..... हम उनसे शादी करना चाहते हैं.... पर आपने यह क्यूँ पुछा....
वीर - बतायेंगे... पहले यह बताएं... आपको पूरी दुनिया में... सिर्फ़ भाभी... ही अच्छी क्यूँ लगी....
विक्रम - पता नहीं... राजकुमार... पता नहीं... वह जब... हमारे आस पास होती हैं.... ऐसा लगता है... जैसे हम महक रहे हैं... आसमान में उड़ते एक आजाद परिंदे की तरह.... महसूस करते हैं... जब वह हमसे बात करते हैं.... वह चुलबुली हैं... जैसे बन में... उछलती कुदती हिरनी... और क्या कहूँ....
वीर - जानते हैं.... दो प्रेमी... एक दूसरे के... पूरक होते हैं... एक दूसरे में जो कमियां होती हैं.. वह एक दुसरे की खूबियों से पूरी करते हैं...

विक्रम, वीर को हैरानी भरी नजर से देखने लगता है l जैसे बातेँ वीर नहीं कोई और कर रहा है l

वीर - उनकी खूबियाँ... उनकी आज़ादी है.... और यही आपकी कमियाँ है... आप बंदिश में हैं...
विक्रम - राज कुमार.... आप कहना क्या चाहते हैं....
वीर - आप उन्हें... भूल जाएं.... राजा साहब जहां कहें... आप वहीँ.. विवाह कीजिए...
विक्रम - यह आप क्या कह रहे हैं.... राजकुमार...
वीर - क्यूंकि... आप अगर उनसे विवाह करेंगे... तो... (अपनी नजर नदी की ओर करते हुए) क्षेत्रपाल महल में... स्वर्गीय रानी माँ.... और छोटी रानी माँ... और अब भाभी....(विक्रम सुन हो जाता है) भाभी सहर की हैं... उनकी लाइफ स्टाइल... सहरी है... क्षेत्रपाल परिवार की घमंड को घूंघट बना कर... रह नहीं पाएंगी.... पर उससे भी पहले... क्या राजा साहब... इस विवाह के लिए.... सहमत होंगे...

वीर की बातेँ सुन कर विक्रम का चेहरा उतर जाता है l

वीर - युवराज जी... हमारा प्रॉब्लम यह है कि.... हम क्षेत्रपाल हैं.... आप अच्छी तरह से जानते हैं... रंग महल के बारे में... जानने के बाद... बड़ी रानी माँ ने क्या किया.... और छोटी रानी माँ... वह कैसी हैं... क्या आप कभी भी... भाभी जी को... रंग महल के बारे में... बता पाओगे...

विक्रम चुप रहता है और वह भी रेत की पठार और नदी के धार को देखता रहता है l


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विश्व अपना काम निपटा कर गेम हॉल में पहुंचता है l वहाँ एक कोने में डैनी बैठ कर अकेला कैरम खेल रहा है l विश्व को देखते ही,

डैनी - आजा ... विश्व आ... कैरम खेलना जानता है....
विश्व - नहीं...
डैनी - ऑए... क्या कह रहा है.... कोई यकीन नहीं करेगा... के तुझे कैरम खेलना नहीं आता...
विश्व - सच कह रहा हूँ... मैं सच में कैरम खेलना नहीं जानता...
डैनी - (विश्व की ओर देखते हुए) कभी गांव में... बैठ कर क्या खेलते थे...
विश्व - बाघ बकरी... कबड्डी.... लुका छुपी... वगैरह...
डैनी - आ बैठ... चल मैं तुझे... कैरम... सिखाता हूँ...

विश्व बैठ जाता है l डैनी कैरम के बारे में बताने लगता है l रानी, स्ट्राइकर, काली गोटियाँ सफ़ेद गोटियाँ, सब समझाने के बाद l डैनी गोटियाँ बोर्ड पर सजा देता है और विश्व को स्ट्राइकर देता है l

डैनी - ले... पहला स्ट्राइक तु कर...

विश्व पहला शॉट मारता है l गोटियाँ बिखर जाती हैं l डैनी स्ट्राइकर ले कर शॉट खेलता है l तीन काली गोटियाँ खानों में गिर जाते हैं l

विश्व - वाव... आप को... इस खेल में... महारत हासिल है...
डैनी - (अपना स्ट्राइक लेते हुए) अब तुमको भी महारत बनना है...(अब कोई गोटी नहीं गिरती)
विश्व - ठीक है... हम बाद में खेलेंगे... आपने बताया कि... मुझे आपका इतिहास जानने का टाइम आ गया....
डैनी - हाँ पर उससे पहले... तेरे को... कुछ दिखाना है....
विश्व - क्या....देखना है...
डैनी - अब पहले यह बता.... वह चार मुझे क्यूँ मारना चाहते हैं...
विश्व - (अपना सर हिलाते हुए) नहीं जानता...
डैनी - जानता है... वह अब भी... इसी जैल में हैं... और मुझे मारने की ताक में हैं...
विश्व - क्या... मैंने... इस बारे में... सुपरिटेंडेंट साहब को... बताया था...
डैनी - हाँ तुने बताया था... इसलिए... सुपरिटेंडेंट साहब ने... उन्हें... दो नंबर बैरक में बंद कर रखा है....
विश्व - यह तो... उन्होंने अच्छा किया...
डैनी - पर उन चारों ने एक संत्री को पैसे खिलाए हैं... कुछ समय के लिए... उनको मेरे पास आने देने के लिए...
विश्व - (चौंक कर) क्या... आ.. आपको... कैसे मालुम हुआ...
डैनी - मैं यहाँ हूँ... मतलब हर चप्पे-चप्पे से वाकिफ़ हूँ... कब कहाँ क्या हो रहा है... मुझे खबर मिल जाती है...
विश्व - तो फ़िर... इन चारों की खबर आपको कैसे... नहीं लगी....
डैनी - क्यूँकी... मुझे अंदाजा नहीं था... के.. मेरे दुश्मन... आंध्र प्रदेश से... मेरे लिए कातिल ला सकते हैं... यहाँ पर जो भी नया कैदी आता है... मैं उसकी खोज ख़बर ले लेता हूँ... इनके विषय में... मात खा गया... पर अब ग़लती... सुधारना है... इसलिए... मैं उन चारों का... यहाँ पर इंतज़ार कर रहा हूँ....
विश्व - क्या... (अपने जगह से ऐसे उठ खड़ा होता है, जैसे बिजली का झटका लगा हो) वह लोग यहाँ पर आयेंगे... और आप उनका इंतजार कर रहे हैं...
डैनी - ह्म्म्म्म... अब.. उन्होंने... जैल के एक स्टाफ को... पैसा खिलाया की.... मेरी खबर उन तक पहुंचाए.... और उनके लिए एक मौका बनाए.... मैंने अपने तरीके से... जैल के उस स्टाफ के पास.... मेरे यहाँ होने की खबर पहुंचा दिया है.... अब कुछ ही देर में... वह लोग यहाँ पर.... आ जाएंगे...

विश्व का सर चकराने लगता है l वह हैरान और परेशान हो कर डैनी को देख रहा है l पर डैनी बेफिक्र हो कर अपना शॉट खेल रहा है l रानी के गिरते ही

डैनी - जाओ... (हाथ से इशारा करते हुए) वहाँ पर छुप जाओ... उन लोगों के आने का वक्त हो गया है.....
विश्व - न ना.. नहीं... मैं आपको ऐसे... छोड़ कर नहीं जा सकता....
डैनी - श् श् श् श्... विश्व... मैंने कहा था.... आज तेरे को कुछ दिखाना है... इसलिए जा.... वहाँ से छिप कर देख यहाँ.... क्या होता है...
विश्व - अगर ऐसी बात है... तो मैं छुप नहीं सकता.... आने दीजिए... आप तक... पहुंचने से पहले... उन लोगों को... मुझसे गुज़रना होगा....

डैनी खड़ा हो जाता है और विश्व के कलर पकड़ कर उसे खड़ा कर देता है l

डैनी - सुन... मैं जो कहता हूँ... वह चुप चाप कर.... मैंने कहा है ना... तुझे कुछ दिखाऊंगा... तो पहले देख... फिर मेरे फटे में घुसने की सोचना... (विश्व को छोड़ देता है)

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विक्रम के मोबाइल पर एक मैसेज आती है l अपना मोबाइल खोल कर मैसेज पढ़ता है l एक फीकी मुस्कान आकर चेहरे से ग़ायब हो जाती है l

विक्रम - (अपनी चुप्पी तोड़ कर) यह आपने ठीक नहीं किया... राजकुमार... यह आपने ठीक नहीं किया...

वीर कुछ नहीं कहता है l वह भी रेतीली पठारों के पर बहती नदी को देख रहा है l

विक्रम - हम.. भ्रम में... थे... भ्रम में ही रहने देते...
वीर - हम... भ्रम को जी रहे हैं.... युवराज जी... वास्तव उससे भी कडवा है.....
विक्रम - हम क्या करें.... अब... हम... उनके बिना... जी नहीं पाएंगे... राजकुमार.... आप ठीक कह रहे हैं..... वह चिड़िया की तरह चहकती हैं... क्षेत्रपाल महल एक पिंजरा है.... वह हिरनी की तरह... चंचल हैं... क्षेत्रपाल महल एक... एक चिड़िया घर है.... (वीर विक्रम कि ओर देखता है, विक्रम का चेहरा उतरा हुआ है और सर झुका हुआ है) आपने सही कहा.... हममे जो... कमियां हैं... खामियाँ है.... उनमें वह भरपूर है.... एक छोटे बच्चे की मासूमियत भरा हुआ है.... उनसे विवाह करना मतलब... उन पर ज़ुल्म करना.... यह आपने ठीक नहीं किया... राज कुमार... य़ह आपने ठीक नहीं किया...

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विश्व डैनी के बताए जगह पर छुपा हुआ है l वहाँ से छुप कर वह हॉल के अंदर देख रहा है l
चार तगड़े बंदे अंदर आते हैं उनको देख कर डैनी अपनी जगह से उठ कर डरने लगता है l डैनी को डरते देख वह चार लोग हँसने लगते हैं और चारों आपस में इशारा करते हुए डैनी पर झपटते हैं l
डैनी अपनी जगह से हट जाता है और तुरंत अपना पोजिशन बदल लेता है l बंदा एक ज्यूं ही मुड़ता है एक जोरदार घुंसा उसके नाक पर लगती है l वह चिल्ला के गिर जाता है l बाकी बंदे रुक जाते हैं l बंदा एक उठ खड़ा होता है, पर कुछ ही सेकंड खड़ा हो पाता है वह बंदा अपने नाक से बहते हुए खून को अपने हाथ से पोंछ कर देखते हुए फिर नीचे गिर जाता है l अब तीन बंदे आपस में इशारा करते हुए तीन दिशाओं से घेर लेते हैं l पर डैनी बंदा दो को अपना लात आगे से उठा कर मारता हुआ दिखा कर साइड पर बंदा तीन को किक मारता है l बंदा एक पीछे से पकडने के अपनी बांह बढ़ाता है तो उसकी कलाई को डैनी अपने बाएं हाथ से पकड़ लेता है और दाएं हाथ से उसके गर्दन को पकड़ दाएं कोहनी को बंदा एक के काख में फंसा कर उठा कर कैरम के बोर्ड पर फेंक देता है l फिर एक स्पिन किक घुमा कर बंदा दो के चेहरे पर मारता है l वह भी अपने साथियों के तरह नीचे गिर जाता है l
चारों बंदे गिर चुके हैं और कराह रहे हैं l सब धीरे धीरे उठते हैं फ़िर से डैनी के तरफ बढ़ते हैं l पर डैनी की फुर्ती के आगे वह चार टिक नहीं पाते कुछ ही सेकेंड में चिल्लाते हुए गिर जाते हैं l डैनी विश्व को इशारे से बाहर निकलने को कहता है l
विश्व बाहर आकर उन्हें देखता है l और हैरानी से मुहँ फाड़े डैनी को देखता है l
डैनी - अब यह लोग हस्पताल जाएंगे... क्यूंकि इनकी ट्रीटमेंट यहाँ संभव नहीं है...
विश्व - क्यूँ....
डैनी - दो बंदों के हाथ.... कंधे के जोड़ से खिसक गए हैं.... और एक बंदे का घुटना अपनी जोड़ से खिसक गया है और लास्ट बंदे का कोहनी अपनी जोड़ से खिसक गया है....
 

Kala Nag

Mr. X
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Comment ko positive lene ke liye bahut bahut dhanyawad. Maine particularly iss update ko unnecessary nhi bola tha bas ek general view tha pichle kuch updates ka... Kyunki naine ye story Parso se hi padhna start kiya tha to general comment tha.
Aapki baat sahi hai... Kuch logo ko detailed past mein maza aata hai aur kuch ko nhi... Sare readers ko ek sath khush rakhna writer ke liye namumkin hai.. isiliye vo kijiye jo aapko sahi Lage kyunki aant mein ye kahani aapki hai.
अब शायद आपको आभास हो
अब फ्लैशबैक तो थोड़ा फास्ट करना चाहिए ताहि कहानी वर्तमान में आगे बढ़ सके। बहुत ही जबरदस्त अपडेट।
कहानी की अगली कड़ी आपके सेवा में प्रस्तुत है

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पोस्ट कर दिया है मित्रों.... कहानी के मूल भावना को रखते हुए कहानी थोड़ी जोर पकड़ेगी आशा करता हूँ l आप को पसंद आएगा
 
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