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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

Mr. X
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Last edited:

Kala Nag

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मेरे कुछ लेखक मित्रों बुरा ना मानिएगा
अगर मैं आप लोगों के पोस्ट पर ना पहुंच पाऊँ
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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भाई साहब - एक बार फिर से अपनी पुरानी बात ही दोहराऊँगा कि कहानी बड़ी बढ़िया बन पड़ी है।
ये डैनी वाला नया एंगल क्या है, देखना रोचक रहेगा।
पाठकों को इस कहानी में नई बातें जानने को मिलती हैं। सीमांध्रा के बारे में जान कर याद आया कि मेरी एक सहेली वहीं से है।
 

Kala Nag

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भाई साहब - एक बार फिर से अपनी पुरानी बात ही दोहराऊँगा कि कहानी बड़ी बढ़िया बन पड़ी है।
ये डैनी वाला नया एंगल क्या है, देखना रोचक रहेगा।
पाठकों को इस कहानी में नई बातें जानने को मिलती हैं। सीमांध्रा के बारे में जान कर याद आया कि मेरी एक सहेली वहीं से है।
धन्यबाद मित्र बहुत बहुत धन्यबाद
अब चूँकि कहानी में हीरो को अब एस्टाब्लीश करना है और थ्रिल को महसुस भी कराना है तो हीरो को इसके योग्य भी बनाना है
देखते हैं कहाँ से कहाँ तक पहुंचती है
 

Lib am

Well-Known Member
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👉उनतालीसवां अपडेट
----------------------
दो हफ्ते बाद
सेंट्रल जैल
लाइब्रेरी
विश्व अंदर आता है l अंदर वैदेही हैरानी और गुस्से भरी नजर से उसको देखती है l विश्व की दाढ़ी बढ़ी हुई है और विश्व के माथे पर निको प्लास्टर की पट्टी चिपकी हुई है और होंठ के किनारे का हिस्सा, आँखों के नीचे का हिस्सा काला दिख रहा है l विश्व वैदेही के पास जाने के वजाए खिड़की के पास जा कर बाहर की ओर देखने लगता है l

वैदेही - यह क्या है विशु....
विश्व - क्या है... तुम यहाँ आई क्यूँ हो दीदी...
वैदेही - कुछ काम से आई थी... क्यूँ... तुझे मेरा यहाँ आना... बुरा लग रहा है.... या तुझे इस हालत में देखा... यह बुरा लग रहा है...
विश्व - मैंने आपसे कहा था.. यहाँ आ कर मुझ से ना मिलने के लिए...
वैदेही - कोई वादा... नहीं किया था... और मैं तुझसे... मिलूँ क्यूँ ना...
विश्व - xxx(चुप रहता है)
वैदेही - अब चुप क्यूँ है... एक तु ही तो है... जिसे देख कर... जिंदा हूँ... और सुन... मैं आती रहूँगी... अब यह तुझ पर है... तु मुझसे... मिलना चाहता है या नहीं...
विश्व - xxxx(चुप रहता है)
वैदेही - वैसे... तुने किन लोगों के साथ मार पीट की...है...
विश्व - मैंने किसी के साथ मार पीट नहीं की है... हाँ... कुछ लोगों ने मुझे... मारा ज़रूर है... पर.... तुमको पता कैसे चला...
वैदेही - आई थी सुपरिटेंडेंट सर से... तेरी खैर खबर लेने... उन्होंने ही बताया मुझे...
विश्व - xxxx(चुप रहता है)
वैदेही - विशु.... तु... क्यूँ किसीसे... दुश्मनी ले रहा है... हमारे दुश्मन कम हैं क्या...
विश्व - दीदी... मैंने.. किसीसे दुश्मनी नहीं की है... कुछ लोग थे... जिनके दुश्मनी के बीच आ गया... वह लोग डैनी भाई को मारने आए थे.... मैंने उनका प्लान चौपट कर दिया.... जब उनको पता चला... तो उन्होंने... अपने प्लान के नाकाम होने का गुस्सा... मुझ पर उतारा...
वैदेही - यह... डैनी भाई कौन है... और तु... उनके लिए... अपनी जान खतरे में... क्यूँ डाला...
विश्व - xxxx(चुप रहता है)
वैदेही - विशु....
विश्व - दीदी... (वैदेही की तरफ मुड़ कर) जैसे... कोर्ट रूम के अंदर.... मेरे लिए जयंत सर थे.... यहाँ... इस जैल के अंदर... डैनी भाई... मेरे लिए उतने ही मान रखते हैं... इसलिए... उनके लिए कुछ भी....

वैदेही की आँखे बड़ी हो जाती है l वह हैरानी भरी नजर से विश्व को देखने लगती है l

वैदेही - यह डैनी भाई साहब कौन हैँ... उनके बारे में... पहले कभी तुने.. मुझे बताया नहीं...
विश्व - बस उनका जिक्र हो... ऐसी हालात भी... कभी आया ही नहीं था... अच्छा दीदी... तुमने बताया कि.. कुछ काम से आईं थी...
वैदेही - वह मैं... चगुली साबत की घर को पांच साल के लिए... भाड़े पर लेने के लिए... एक एग्रीमेंट करने आई थी....
विश्व - उसके घर को... भाड़े में... क्यूँ....
वैदेही - तो क्या करूँ.... हमारी सारे खेत पर.... भैरव सिंह के पालतू कुत्ते... कब्जा लिए हैं.... मुझे गांव में रहना है.... कुछ करना है.... इसलिए... उसका घर... पांच साल के लिए..... भाड़े पर ले लिया है....
विश्व - और वह... कहाँ जाएगा....
वैदेही - दुबई... उसे दुबई जाना था.... घर कोई खरीद नहीं रहा था... भैरव सिंह के डर से....
विश्व - मैंने भी खरीदा कहाँ है.... मैंने भाड़े पर लिया है....
विश्व - ओ... अच्छा... ठीक है दीदी.... मैं चलता हूँ... अपना खयाल रखना....
वैदेही - विशु... विशु...

वैदेही पुकारते रह जाती है, पर विश्व नहीं रुकता है l विश्व के जाते ही वैदेही तापस के रूम की और जाति है l

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पिनाक, महांती और वीर एक कमरे में बैठे हुए हैं l पिनाक और महांती के चेहरे पर जहां तनाव दिख रहा है वही वीर इन दोनों के चेहरे पर आ रहे पल पल बदलते भावों को देख कर मन ही मन खीज रहा है l

पिनाक - महांती... यह अचानक...
महांती - अब हम और क्या कर सकते हैं...
पिनाक - ह्म्म्म्म... अच्छा हुआ... तुमने.. प्रोग्राम में आने वाले... गेस्ट के बारे में... कहीं पर खुलासा नहीं किया.... था...
महांती - हाँ... पर... राजा साहब चाहेंगे... तो... शायद कुछ हो सकता है...
पिनाक - नहीं महांती... इस बार.. वह भी मज़बूर हैं....
महांती - वैसे... प्रोग्राम में.. ऐन मौके पर जो... तब्दीली हुई है... उससे प्रोग्राम की... वैल्यू कम भी नहीं हुई है.... हाँ... राजा साहब होते तो बहुत अच्छा होता... तब चीफ मिनिस्टर भी आते... पर...
पिनाक - देखो महांती... प्रोग्राम... तुमने... और युवराज ने... डिजाईन किया था... राजा साहब उस समय... किसी और काम में... व्यस्त थे...
महांती - हाँ... वह मैं... जानता हूँ...
पिनाक - पर उन्होंने कहा है... कुछ भी रुकना नहीं चाहिए....
महांती - नहीं रुकेगा... राजा साहब ना सही... आप तो हैं.... प्रोग्राम बहुत ही... जबरदस्त होगा....
पिनाक - हाँ.... करना ही पड़ेगा...(वीर की ओर देख कर) राजकुमार आप जा कर... युवराज जी को कल की प्रोग्राम के लिए... मनाएं... और उन्हें... तैयार कीजिए....

वीर यह सुन कर वहाँ से उठ जाता है और एक कमरे की ओर चला जाता है l कमरे में पहुंच कर देखता है विक्रम एक कुर्सी पर बैठ कर बालकनी से बाहर की ओर देख कर गहरी सोच में डूबा हुआ है l

वीर - (अपने मन में) अब मजनूँ को... कौन समझाए... (अपने चेहरे पर हँसी लाने की कोशिश करते हुए) युवराज जी... कल हमारे डेविल आर्मी की.... ऑफिशियल इनागुरेशन है.... और यहाँ डेविल किंग... किसी लुटे हुए... आशिक की तरह बैठे हैं हैं....

विक्रम, वीर की ओर देखता है और फिर अपना मुहँ फ़ेर कर बाहर देखने लगता है l वीर उसके सामने एक चेयर डाल कर बैठ जाता है l

वीर - युवराज जी... कुछ तो कहिए... शायद मैं आपकी कुछ मदत कर सकूँ....
विक्रम - हम कलकत्ते से जब यहाँ पर आए.... तब हमे... छोटे राजा जी से एक मिशन मिला... के.. राजधानी में... क्षेत्रपाल के नाम का सिक्का जमाना है... पर इसकी शुरुवात के प्रोग्राम में ही... क्षेत्रपाल के मुखिया... नहीं आ रह रहे हैं....
वीर - क्या सिर्फ़ यही वजह है....

विक्रम कुछ नहीं कहता l वह बालकनी से बाहर की ओर देख कर कुछ सोचे जा रहा है l

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वैदेही विजिटर्स रूम में बैठी हुई है और बार बार सलाखों के पर दरवाजे की ओर देखती है l थोड़ी देर बाद एक कैदी संत्री के साथ आते देखती है l वैदेही उठ कर सलाखों के पास मीटिंग पॉइंट तक जाती है l वह कैदी भी उस पॉइंट तक आता है और वह संत्री को मुड़ कर देखता है l संत्री उन दोनों को छोड़ वहाँ से चला जाता है l वैदेही उसे गौर से देखती है लगभग पैंतालीस साल का आदमी, अपने उम्र से पांच सात साल कम दिख रहा है, उम्र का अंदाजा लगाना मुश्किल है l ऊँचा कद और स्वस्थ दिख रहा है l उसे देख कर लगता है वह जरूर वर्जिश करता होगा l वैदेही की ध्यान टूटती है l

कैदी - कहिए... आप... कौन हैं... और मुझसे क्यूँ मिलना चाहती थी....
वैदेही - आ... आप... डैनी भाई साहब हैं...
डैनी - डैनी भाई साहब नहीं... सिर्फ़ डैनी...
वैदेही - पर विशु तो... आपको डैनी भाई साहब ही कहता है ना...
डैनी - (वैदेही को घूर कर देखते हुए) यह... विशु कौन है....
वैदेही - मेरा भाई... विश्व प्रताप...
डैनी - ओ... तो आप.. विश्व की... बड़ी बहन... वैदेही जी हैं...
वैदेही - जी...
डैनी - पर आप मुझसे... क्यूँ मिलना चाहती थीं...
वैदेही - मैं... उस शख्सियत को... देखना चाहती थी.... जैल के भीतर... जिसे विशु... जयंत सर के... बराबर का दर्जा... दिया है....
डैनी - क्या... यह क्या बकवास कर रही हैं...
वैदेही - आप को... कोई मारने आया था... पर विशु के वजह से.. नहीं मार पाया.... इसलिए.. उसने... विशु पर अपना गुस्सा उतारा...
डैनी - देखिए... वैदेही जी... कोई एक मारने नहीं.... बल्कि चार चार लोग मुझे मारने आए थे.... मैं हूँ ही... क्रिमिनल... मेरे हज़ारों दुश्मन हैं... आपके विशु का एक उपकार रहेगा मुझ पर... उसने मेरे दुश्मन की पहचान की... और मुझे आगाह किया.... पर मैंने उसे समझाया था... मेरे और उनके बीच ना आने के लिए....
वैदेही - विशु है ही ऐसा... जिसको वह... अपना मान लेता है... उसके लिए... वह कुछ भी कर जाता है....

डैनी यह सुन कर वैदेही को हैरानी से देखता है l

वैदेही -(अपनी हाथ जोड़कर) हाँ भाई साहब... उसने दिल से... आपको... अपना माना है... आपका बहुत सम्मान करता है.... बस इस बहन की... इच्छा है... आप जब तक यहाँ हैं... उसे अपने छोटे भाई की तरह ही... देखें... भले ही... अपने पन से ना सही.... पर उसका खयाल रखिएगा.....

डैनी कुछ नहीं कहता, वह इधर उधर देखता है फिर हाथ जोड़ कर नमस्कार कर वहाँ से चल देता है l

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वीर - ठीक है युवराज जी... मुझे लगा... के हम एकदूसरे के सहारा हैं... क्यूंकि यह रस्मों रिवाजों के ढोंग ढोते ढोते... हम अकेले हो गए हैं... आप फिर भी... बाहर जाते हैं... किसीसे बात भी करते हैं.... पर हमारा क्या... हम किस से बात करें... ठीक है... हम बाहर जा रहे हैं... (उठ कर जाने लगता है)
विक्रम - रुकिए... राजकुमार..जी.... रुकिए... प्लीज...
वीर - (रुक जाता है, और वहीँ बैठ जाता है) अब दिल में जो भी है... उगल दीजिए... देखिएगा... आपको अच्छा भी लगेगा... और हल्का भी लगेगा....
विक्रम - कल के प्रोग्राम के लिए.... हमारे लिए... गेस्ट लिस्ट में... तीन खास लोग शामिल होने चाहिए थे... पर कल वह लोग... नहीं आ पा रहे हैं....
वीर - हम्म... पहले कौन हैं....
विक्रम - हमारे राजा साहब... हमे जिनके नाम का डंका बजाने का... जिम्मा दिया गया है....
वीर - और वह... क्यूँ नहीं आ रहे हैं....
विक्रम - मुख्य मंत्री जी ने... वाइब्रेंट ओड़िशा के लिए... इंवेस्टर्स को रिझाने अपने साथ डेलिगेशन ले कर जा रहे हैं.... उसके लिए कुछ खास लोगों को चुना है... उन लोगों में... हमारे राजा साहब भी हैं...
वीर - अच्छा... हम्म.... प्रोग्राम... पोस्टपॉन कर दें तो...
विक्रम - नहीं.. नहीं.. हो सकता है... हमने जोर शोर से... एडवर्टाइजिंग किया है... नाक का सवाल है...
वीर - और दुसरा...
विक्रम - दुसरा मतलब...
वीर - वही आपके गेस्ट लिस्ट वाले...
विक्रम - अरे हाँ... उसका नाम.. यश वर्धन चेट्टी है.... पहली बार किसी से हाथ मिलाकर... दोस्ती की है... पर वह भी मुख्यमंत्री के.... डेलिगेशन में जा रहा है...
वीर - क्यूँ... वह कोई... पोलिटिकल लीडर है क्या...
विक्रम - नहीं... वह एक.. इंडस्ट्रियलिस्ट है...
वीर - ह्म्म्म्म... और तीसरी शायद.. भाभी....
विक्रम - वह भी नहीं आ पा रही है.... क्या... क.. क... कौन... क्या पुछा तुमने....
वीर - (शरारत भरा हँसी हँसते हुए) भाभी क्यूँ नहीं आ रही हैं....

विक्रम वहाँ से उठ कर जाने लगता है l वीर भी उसके साथ उठ कर उसके सामने खड़ा हो जाता है l विक्रम फिर वापस आ कर चेयर पर बैठ जाता है l

वीर - आप बताना नहीं चाहते.... तो बात अलग है... पर अगर आप मुझे कुछ कहेंगे... तो मेरे खुराफाती दिमाग में से... कुछ आईडीया निकलेगा.... वह आपके काम आ सके...
विक्रम - नहीं ऐसी कोई बात नहीं है...
वीर - मत भूलिए... भाभी जी का नंबर... आपको मैंने दी है....

विक्रम अपना चेहरा घुमा लेता है l वीर उसके चेहरे पर आए भाव पढ़ लेता है l

वीर - ऑए.. होए... आपके गाल... टमाटर के जैसे... लाल हो गए हैं...

विक्रम - (अपनी मुस्कराहट को जबरदस्ती छुपाने की कोशिश करते हुए) चलिए राजकुमार जी.... आज आपको लॉन्ग ड्राइव के लिए... लिए चलते हैं....

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लंच के समय का हुटर बजता है l सारे कैदी अपना काम छोड़ कर डायनिंग हॉल के तरफ बढ़ जाते हैं l विश्व भी अपना काम छोड़ कर हाथ मुहँ धो कर डायनिंग हॉल में पहुंचता है l विश्व हॉल में पहुंच कर थाली हाथ में लिए लाइन में खड़ा हो जाता है l विश्व को देख कर कुछ कैदी कानाफूसी करने लगते हैं l विश्व उनकी बातों को सुनता है पर ध्यान नहीं देता l अपना खाना ले कर हमेशा की तरह कोने के टेबल पर जा कर बैठ जाता है l

डैनी - क्या बात है... हीरो... क्या हाल है....
विश्व - (डैनी को देख कर मुस्कराने करने की कोशिश करते हुए) अच्छा हूँ...
डैनी - देखा... इंसान की इज़्ज़त कैसे गिर जाता है...
विश्व - मैं समझा नहीं... इज़्ज़त... किसकी...
डैनी - जब तु.... जैल में आया था... तब तु... तास की गड्डी में एक्स्ट्रा पत्ता था... फिर खेल में नहला पर दहला बना... पर अब... तु... उसी खेल में... एक्स्ट्रा बन गया है....
विश्व - (चुप रहता है)
डैनी - तुने जब रंगा का... पिछवाड़े में चीरा लगाया... तो तेरा इज़्ज़त होने लगा था... अब चार चिरकुट तेरे चेहरे का... भूगोल क्या बदला... यही लोग... तेरे इतिहास का बंटा धार हो गया.... अब सब... तेरे नाम पर जोक मारने लगे हैं...
विश्व - (इस बार भी चुप रहता है)
डैनी - (विश्व को गौर से देखता है) विश्व... (विश्व डैनी को देखता है) तुझे कैसे मालुम हुआ... उनका टार्गेट मैं था... तुझे तेलगु भाषा समझ में आता है क्या....
विश्व - जी... समझ सकता हूँ.... पर बोल नहीं सकता....
डैनी - ह्म्म्म्म... ठीक है... मैंने तुझे.... पहले ही बता दिया था... यहाँ... कोई... किसीके फटे में... टांग नहीं अड़ाता... इतना ज्ञान देने के बावजूद तु... उनके और मेरे बीच में आया... अब देख आखिर... उसके लिए... उन लोगों ने... तुझसे पेनल्टी वसूला....
विश्व - ह्म्म्म्म...
डैनी - तुझे... तेलुगु... समझ में.. कैसे आता है... तु.. तो.. राजगड़ से बाहर.. कभी गया ही नहीं होगा....
विश्व - वह... मेरे.... गुरु थे... मेरे प्राथमिक विद्यालय के... प्रधान आचार्य...उनसे और उनके पोते से... उनसे थोड़ा थोड़ा.. सीखा था...
डैनी - स्कुल के... प्रधान आचार्य... वह भी... तेलुगु...
विश्व - नहीं... वह थे तो.. ओडिया ही... पर वह पारलाखेमुंडी से थे... आंध्र ओड़िशा सीमांत क्षेत्र से... इसलिए उन्हें... तेलुगु.. बहुत अच्छी तरह से आता था....
डैनी - ह्म्म्म्म... तुने.. जानने की... कोशिश.. नहीं की... के वह.. लोग मुझे क्यूँ मारना... चाहते थे....
विश्व - वे लोग इस बारे में... ज्यादा बात नहीं की... बस आपको मार देने की ही बात कर रहे थे.... इसलिए मैंने आकर आपको आगाह भी किया.... पर जब देखा कि... वह आपको बैरक तीन के... गार्डन में अकेला देख कर... आपके ओर बढ़ रहे हैं.... मैं तब... सिक्युरिटी रूम में... साफ सफाई कर रहा था... आप को उनके चपेट में आने से बचाने के लिए... मैंने लंच का हुटर बजा दी.... ताकि आप अलर्ट हो जाएं और सारे कैदी... काम छोड़ कर उधर से गुजरे...
डैनी - मुझे बचाने के चक्कर में... तेरी सुताई कर दी... उन्होंने.... क्यूँ....
विश्व - कोई बात नहीं... आप तो बच गए ना...
डैनी - ह्म्म्म्म... अब वक्त आ गया है... तुझे... मेरे बारे में.. जानने का... मेरे इतिहास और वर्तमान के बारे में.... पर उससे पहले... तुझे कुछ दिखाना है.... एक काम कर.... मुझसे आज शाम... बैरक पांच के... गेम हॉल में... मिल...


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विक्रम अपनी कार को भगा रहा है l गाड़ी में बगल में वीर भी बैठा हुआ है l

वीर - आप हमे ले कहाँ जा रहे हैं... युवराज जी...
विक्रम - क्यूँ.... डर लग रहा है.....
वीर - डर... जब तक युवराज हैं... राजकुमार का बाल भी कोई.... बांका नहीं कर सकता....
विक्रम - इतनी कन्फीडेंट...
वीर - अपने ऊपर नहीं.... आप पर... है... क्यूँ के.... हमारे लिए आप हैं... और आपके लिए... हम....

विक्रम ब्रेक लगाता है l गाड़ी रुक जाती है l वीर देखता है रास्ता खतम हो गया है आगे सिर्फ़ रेत ही रेत दिख रहा है और उसके आगे एक नदी की धार दिख रहा है l

वीर - यह आप हमे कहाँ ले कर आ गए हैं....
विक्रम - मुंडुली है... इस जगह का नाम...
वीर - मतलब आप पहले भी.... यहाँ आ चुके हैं...
विक्रम - जानते हैं.... यहाँ से... हम ने... आपकी भाभी से... पहली बार... फोन पर बात की थी....
वीर - अच्छा इस जगह पर... इतना महात्म्य है....
विक्रम - हाँ...
वीर - तो इसका मतलब... मैंने पहेली को सुलझा लिया था... पर यह क्या.... युवराज जी... आपने हमे इसका... पुरस्कार भी नहीं दिया....
विक्रम - कहिए... आपको क्या चाहिए...
वीर - वह.. हम बाद में... मांग लेंगे....पहले यह बताइए... इजहार किसने पहले की....आप या भाभी....
विक्रम - अरे कहाँ... अभी तक सिर्फ़ दोस्ती और.. चैटिंग तक.... ही हैं... अभी मुलाकात भी नहीं हुई है....
वीर - मतलब फोन नंबर तो पक्का है ना....
विक्रम - हाँ हाँ वही है... अपने तरीके से... कंफर्मेशन कर चुके हैं...
वीर - (विक्रम को देख कर) युवराज जी... आप कितने सिरीयस हैं....
विक्रम - सिरीयस मतलब..... हम उनसे शादी करना चाहते हैं.... पर आपने यह क्यूँ पुछा....
वीर - बतायेंगे... पहले यह बताएं... आपको पूरी दुनिया में... सिर्फ़ भाभी... ही अच्छी क्यूँ लगी....
विक्रम - पता नहीं... राजकुमार... पता नहीं... वह जब... हमारे आस पास होती हैं.... ऐसा लगता है... जैसे हम महक रहे हैं... आसमान में उड़ते एक आजाद परिंदे की तरह.... महसूस करते हैं... जब वह हमसे बात करते हैं.... वह चुलबुली हैं... जैसे बन में... उछलती कुदती हिरनी... और क्या कहूँ....
वीर - जानते हैं.... दो प्रेमी... एक दूसरे के... पूरक होते हैं... एक दूसरे में जो कमियां होती हैं.. वह एक दुसरे की खूबियों से पूरी करते हैं...

विक्रम, वीर को हैरानी भरी नजर से देखने लगता है l जैसे बातेँ वीर नहीं कोई और कर रहा है l

वीर - उनकी खूबियाँ... उनकी आज़ादी है.... और यही आपकी कमियाँ है... आप बंदिश में हैं...
विक्रम - राज कुमार.... आप कहना क्या चाहते हैं....
वीर - आप उन्हें... भूल जाएं.... राजा साहब जहां कहें... आप वहीँ.. विवाह कीजिए...
विक्रम - यह आप क्या कह रहे हैं.... राजकुमार...
वीर - क्यूंकि... आप अगर उनसे विवाह करेंगे... तो... (अपनी नजर नदी की ओर करते हुए) क्षेत्रपाल महल में... स्वर्गीय रानी माँ.... और छोटी रानी माँ... और अब भाभी....(विक्रम सुन हो जाता है) भाभी सहर की हैं... उनकी लाइफ स्टाइल... सहरी है... क्षेत्रपाल परिवार की घमंड को घूंघट बना कर... रह नहीं पाएंगी.... पर उससे भी पहले... क्या राजा साहब... इस विवाह के लिए.... सहमत होंगे...

वीर की बातेँ सुन कर विक्रम का चेहरा उतर जाता है l

वीर - युवराज जी... हमारा प्रॉब्लम यह है कि.... हम क्षेत्रपाल हैं.... आप अच्छी तरह से जानते हैं... रंग महल के बारे में... जानने के बाद... बड़ी रानी माँ ने क्या किया.... और छोटी रानी माँ... वह कैसी हैं... क्या आप कभी भी... भाभी जी को... रंग महल के बारे में... बता पाओगे...

विक्रम चुप रहता है और वह भी रेत की पठार और नदी के धार को देखता रहता है l


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विश्व अपना काम निपटा कर गेम हॉल में पहुंचता है l वहाँ एक कोने में डैनी बैठ कर अकेला कैरम खेल रहा है l विश्व को देखते ही,

डैनी - आजा ... विश्व आ... कैरम खेलना जानता है....
विश्व - नहीं...
डैनी - ऑए... क्या कह रहा है.... कोई यकीन नहीं करेगा... के तुझे कैरम खेलना नहीं आता...
विश्व - सच कह रहा हूँ... मैं सच में कैरम खेलना नहीं जानता...
डैनी - (विश्व की ओर देखते हुए) कभी गांव में... बैठ कर क्या खेलते थे...
विश्व - बाघ बकरी... कबड्डी.... लुका छुपी... वगैरह...
डैनी - आ बैठ... चल मैं तुझे... कैरम... सिखाता हूँ...

विश्व बैठ जाता है l डैनी कैरम के बारे में बताने लगता है l रानी, स्ट्राइकर, काली गोटियाँ सफ़ेद गोटियाँ, सब समझाने के बाद l डैनी गोटियाँ बोर्ड पर सजा देता है और विश्व को स्ट्राइकर देता है l

डैनी - ले... पहला स्ट्राइक तु कर...

विश्व पहला शॉट मारता है l गोटियाँ बिखर जाती हैं l डैनी स्ट्राइकर ले कर शॉट खेलता है l तीन काली गोटियाँ खानों में गिर जाते हैं l

विश्व - वाव... आप को... इस खेल में... महारत हासिल है...
डैनी - (अपना स्ट्राइक लेते हुए) अब तुमको भी महारत बनना है...(अब कोई गोटी नहीं गिरती)
विश्व - ठीक है... हम बाद में खेलेंगे... आपने बताया कि... मुझे आपका इतिहास जानने का टाइम आ गया....
डैनी - हाँ पर उससे पहले... तेरे को... कुछ दिखाना है....
विश्व - क्या....देखना है...
डैनी - अब पहले यह बता.... वह चार मुझे क्यूँ मारना चाहते हैं...
विश्व - (अपना सर हिलाते हुए) नहीं जानता...
डैनी - जानता है... वह अब भी... इसी जैल में हैं... और मुझे मारने की ताक में हैं...
विश्व - क्या... मैंने... इस बारे में... सुपरिटेंडेंट साहब को... बताया था...
डैनी - हाँ तुने बताया था... इसलिए... सुपरिटेंडेंट साहब ने... उन्हें... दो नंबर बैरक में बंद कर रखा है....
विश्व - यह तो... उन्होंने अच्छा किया...
डैनी - पर उन चारों ने एक संत्री को पैसे खिलाए हैं... कुछ समय के लिए... उनको मेरे पास आने देने के लिए...
विश्व - (चौंक कर) क्या... आ.. आपको... कैसे मालुम हुआ...
डैनी - मैं यहाँ हूँ... मतलब हर चप्पे-चप्पे से वाकिफ़ हूँ... कब कहाँ क्या हो रहा है... मुझे खबर मिल जाती है...
विश्व - तो फ़िर... इन चारों की खबर आपको कैसे... नहीं लगी....
डैनी - क्यूँकी... मुझे अंदाजा नहीं था... के.. मेरे दुश्मन... आंध्र प्रदेश से... मेरे लिए कातिल ला सकते हैं... यहाँ पर जो भी नया कैदी आता है... मैं उसकी खोज ख़बर ले लेता हूँ... इनके विषय में... मात खा गया... पर अब ग़लती... सुधारना है... इसलिए... मैं उन चारों का... यहाँ पर इंतज़ार कर रहा हूँ....
विश्व - क्या... (अपने जगह से ऐसे उठ खड़ा होता है, जैसे बिजली का झटका लगा हो) वह लोग यहाँ पर आयेंगे... और आप उनका इंतजार कर रहे हैं...
डैनी - ह्म्म्म्म... अब.. उन्होंने... जैल के एक स्टाफ को... पैसा खिलाया की.... मेरी खबर उन तक पहुंचाए.... और उनके लिए एक मौका बनाए.... मैंने अपने तरीके से... जैल के उस स्टाफ के पास.... मेरे यहाँ होने की खबर पहुंचा दिया है.... अब कुछ ही देर में... वह लोग यहाँ पर.... आ जाएंगे...

विश्व का सर चकराने लगता है l वह हैरान और परेशान हो कर डैनी को देख रहा है l पर डैनी बेफिक्र हो कर अपना शॉट खेल रहा है l रानी के गिरते ही

डैनी - जाओ... (हाथ से इशारा करते हुए) वहाँ पर छुप जाओ... उन लोगों के आने का वक्त हो गया है.....
विश्व - न ना.. नहीं... मैं आपको ऐसे... छोड़ कर नहीं जा सकता....
डैनी - श् श् श् श्... विश्व... मैंने कहा था.... आज तेरे को कुछ दिखाना है... इसलिए जा.... वहाँ से छिप कर देख यहाँ.... क्या होता है...
विश्व - अगर ऐसी बात है... तो मैं छुप नहीं सकता.... आने दीजिए... आप तक... पहुंचने से पहले... उन लोगों को... मुझसे गुज़रना होगा....

डैनी खड़ा हो जाता है और विश्व के कलर पकड़ कर उसे खड़ा कर देता है l

डैनी - सुन... मैं जो कहता हूँ... वह चुप चाप कर.... मैंने कहा है ना... तुझे कुछ दिखाऊंगा... तो पहले देख... फिर मेरे फटे में घुसने की सोचना... (विश्व को छोड़ देता है)

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विक्रम के मोबाइल पर एक मैसेज आती है l अपना मोबाइल खोल कर मैसेज पढ़ता है l एक फीकी मुस्कान आकर चेहरे से ग़ायब हो जाती है l

विक्रम - (अपनी चुप्पी तोड़ कर) यह आपने ठीक नहीं किया... राजकुमार... यह आपने ठीक नहीं किया...

वीर कुछ नहीं कहता है l वह भी रेतीली पठारों के पर बहती नदी को देख रहा है l

विक्रम - हम.. भ्रम में... थे... भ्रम में ही रहने देते...
वीर - हम... भ्रम को जी रहे हैं.... युवराज जी... वास्तव उससे भी कडवा है.....
विक्रम - हम क्या करें.... अब... हम... उनके बिना... जी नहीं पाएंगे... राजकुमार.... आप ठीक कह रहे हैं..... वह चिड़िया की तरह चहकती हैं... क्षेत्रपाल महल एक पिंजरा है.... वह हिरनी की तरह... चंचल हैं... क्षेत्रपाल महल एक... एक चिड़िया घर है.... (वीर विक्रम कि ओर देखता है, विक्रम का चेहरा उतरा हुआ है और सर झुका हुआ है) आपने सही कहा.... हममे जो... कमियां हैं... खामियाँ है.... उनमें वह भरपूर है.... एक छोटे बच्चे की मासूमियत भरा हुआ है.... उनसे विवाह करना मतलब... उन पर ज़ुल्म करना.... यह आपने ठीक नहीं किया... राज कुमार... य़ह आपने ठीक नहीं किया...

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विश्व डैनी के बताए जगह पर छुपा हुआ है l वहाँ से छुप कर वह हॉल के अंदर देख रहा है l
चार तगड़े बंदे अंदर आते हैं उनको देख कर डैनी अपनी जगह से उठ कर डरने लगता है l डैनी को डरते देख वह चार लोग हँसने लगते हैं और चारों आपस में इशारा करते हुए डैनी पर झपटते हैं l
डैनी अपनी जगह से हट जाता है और तुरंत अपना पोजिशन बदल लेता है l बंदा एक ज्यूं ही मुड़ता है एक जोरदार घुंसा उसके नाक पर लगती है l वह चिल्ला के गिर जाता है l बाकी बंदे रुक जाते हैं l बंदा एक उठ खड़ा होता है, पर कुछ ही सेकंड खड़ा हो पाता है वह बंदा अपने नाक से बहते हुए खून को अपने हाथ से पोंछ कर देखते हुए फिर नीचे गिर जाता है l अब तीन बंदे आपस में इशारा करते हुए तीन दिशाओं से घेर लेते हैं l पर डैनी बंदा दो को अपना लात आगे से उठा कर मारता हुआ दिखा कर साइड पर बंदा तीन को किक मारता है l बंदा एक पीछे से पकडने के अपनी बांह बढ़ाता है तो उसकी कलाई को डैनी अपने बाएं हाथ से पकड़ लेता है और दाएं हाथ से उसके गर्दन को पकड़ दाएं कोहनी को बंदा एक के काख में फंसा कर उठा कर कैरम के बोर्ड पर फेंक देता है l फिर एक स्पिन किक घुमा कर बंदा दो के चेहरे पर मारता है l वह भी अपने साथियों के तरह नीचे गिर जाता है l
चारों बंदे गिर चुके हैं और कराह रहे हैं l सब धीरे धीरे उठते हैं फ़िर से डैनी के तरफ बढ़ते हैं l पर डैनी की फुर्ती के आगे वह चार टिक नहीं पाते कुछ ही सेकेंड में चिल्लाते हुए गिर जाते हैं l डैनी विश्व को इशारे से बाहर निकलने को कहता है l
विश्व बाहर आकर उन्हें देखता है l और हैरानी से मुहँ फाड़े डैनी को देखता है l
डैनी - अब यह लोग हस्पताल जाएंगे... क्यूंकि इनकी ट्रीटमेंट यहाँ संभव नहीं है...
विश्व - क्यूँ....
डैनी - दो बंदों के हाथ.... कंधे के जोड़ से खिसक गए हैं.... और एक बंदे का घुटना अपनी जोड़ से खिसक गया है और लास्ट बंदे का कोहनी अपनी जोड़ से खिसक गया है....
लगता है डैनी अब विश्व का संरक्षक बनेगा और उसको और मजबूत बनाएगा। बेचारा विक्रम सपना पूरा होने से पहले ही टूट रहा है उसका। खूबसूरत अपडेट।
 

parkas

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दो हफ्ते बाद
सेंट्रल जैल
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विश्व अंदर आता है l अंदर वैदेही हैरानी और गुस्से भरी नजर से उसको देखती है l विश्व की दाढ़ी बढ़ी हुई है और विश्व के माथे पर निको प्लास्टर की पट्टी चिपकी हुई है और होंठ के किनारे का हिस्सा, आँखों के नीचे का हिस्सा काला दिख रहा है l विश्व वैदेही के पास जाने के वजाए खिड़की के पास जा कर बाहर की ओर देखने लगता है l

वैदेही - यह क्या है विशु....
विश्व - क्या है... तुम यहाँ आई क्यूँ हो दीदी...
वैदेही - कुछ काम से आई थी... क्यूँ... तुझे मेरा यहाँ आना... बुरा लग रहा है.... या तुझे इस हालत में देखा... यह बुरा लग रहा है...
विश्व - मैंने आपसे कहा था.. यहाँ आ कर मुझ से ना मिलने के लिए...
वैदेही - कोई वादा... नहीं किया था... और मैं तुझसे... मिलूँ क्यूँ ना...
विश्व - xxx(चुप रहता है)
वैदेही - अब चुप क्यूँ है... एक तु ही तो है... जिसे देख कर... जिंदा हूँ... और सुन... मैं आती रहूँगी... अब यह तुझ पर है... तु मुझसे... मिलना चाहता है या नहीं...
विश्व - xxxx(चुप रहता है)
वैदेही - वैसे... तुने किन लोगों के साथ मार पीट की...है...
विश्व - मैंने किसी के साथ मार पीट नहीं की है... हाँ... कुछ लोगों ने मुझे... मारा ज़रूर है... पर.... तुमको पता कैसे चला...
वैदेही - आई थी सुपरिटेंडेंट सर से... तेरी खैर खबर लेने... उन्होंने ही बताया मुझे...
विश्व - xxxx(चुप रहता है)
वैदेही - विशु.... तु... क्यूँ किसीसे... दुश्मनी ले रहा है... हमारे दुश्मन कम हैं क्या...
विश्व - दीदी... मैंने.. किसीसे दुश्मनी नहीं की है... कुछ लोग थे... जिनके दुश्मनी के बीच आ गया... वह लोग डैनी भाई को मारने आए थे.... मैंने उनका प्लान चौपट कर दिया.... जब उनको पता चला... तो उन्होंने... अपने प्लान के नाकाम होने का गुस्सा... मुझ पर उतारा...
वैदेही - यह... डैनी भाई कौन है... और तु... उनके लिए... अपनी जान खतरे में... क्यूँ डाला...
विश्व - xxxx(चुप रहता है)
वैदेही - विशु....
विश्व - दीदी... (वैदेही की तरफ मुड़ कर) जैसे... कोर्ट रूम के अंदर.... मेरे लिए जयंत सर थे.... यहाँ... इस जैल के अंदर... डैनी भाई... मेरे लिए उतने ही मान रखते हैं... इसलिए... उनके लिए कुछ भी....

वैदेही की आँखे बड़ी हो जाती है l वह हैरानी भरी नजर से विश्व को देखने लगती है l

वैदेही - यह डैनी भाई साहब कौन हैँ... उनके बारे में... पहले कभी तुने.. मुझे बताया नहीं...
विश्व - बस उनका जिक्र हो... ऐसी हालात भी... कभी आया ही नहीं था... अच्छा दीदी... तुमने बताया कि.. कुछ काम से आईं थी...
वैदेही - वह मैं... चगुली साबत की घर को पांच साल के लिए... भाड़े पर लेने के लिए... एक एग्रीमेंट करने आई थी....
विश्व - उसके घर को... भाड़े में... क्यूँ....
वैदेही - तो क्या करूँ.... हमारी सारे खेत पर.... भैरव सिंह के पालतू कुत्ते... कब्जा लिए हैं.... मुझे गांव में रहना है.... कुछ करना है.... इसलिए... उसका घर... पांच साल के लिए..... भाड़े पर ले लिया है....
विश्व - और वह... कहाँ जाएगा....
वैदेही - दुबई... उसे दुबई जाना था.... घर कोई खरीद नहीं रहा था... भैरव सिंह के डर से....
विश्व - मैंने भी खरीदा कहाँ है.... मैंने भाड़े पर लिया है....
विश्व - ओ... अच्छा... ठीक है दीदी.... मैं चलता हूँ... अपना खयाल रखना....
वैदेही - विशु... विशु...

वैदेही पुकारते रह जाती है, पर विश्व नहीं रुकता है l विश्व के जाते ही वैदेही तापस के रूम की और जाति है l

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पिनाक, महांती और वीर एक कमरे में बैठे हुए हैं l पिनाक और महांती के चेहरे पर जहां तनाव दिख रहा है वही वीर इन दोनों के चेहरे पर आ रहे पल पल बदलते भावों को देख कर मन ही मन खीज रहा है l

पिनाक - महांती... यह अचानक...
महांती - अब हम और क्या कर सकते हैं...
पिनाक - ह्म्म्म्म... अच्छा हुआ... तुमने.. प्रोग्राम में आने वाले... गेस्ट के बारे में... कहीं पर खुलासा नहीं किया.... था...
महांती - हाँ... पर... राजा साहब चाहेंगे... तो... शायद कुछ हो सकता है...
पिनाक - नहीं महांती... इस बार.. वह भी मज़बूर हैं....
महांती - वैसे... प्रोग्राम में.. ऐन मौके पर जो... तब्दीली हुई है... उससे प्रोग्राम की... वैल्यू कम भी नहीं हुई है.... हाँ... राजा साहब होते तो बहुत अच्छा होता... तब चीफ मिनिस्टर भी आते... पर...
पिनाक - देखो महांती... प्रोग्राम... तुमने... और युवराज ने... डिजाईन किया था... राजा साहब उस समय... किसी और काम में... व्यस्त थे...
महांती - हाँ... वह मैं... जानता हूँ...
पिनाक - पर उन्होंने कहा है... कुछ भी रुकना नहीं चाहिए....
महांती - नहीं रुकेगा... राजा साहब ना सही... आप तो हैं.... प्रोग्राम बहुत ही... जबरदस्त होगा....
पिनाक - हाँ.... करना ही पड़ेगा...(वीर की ओर देख कर) राजकुमार आप जा कर... युवराज जी को कल की प्रोग्राम के लिए... मनाएं... और उन्हें... तैयार कीजिए....

वीर यह सुन कर वहाँ से उठ जाता है और एक कमरे की ओर चला जाता है l कमरे में पहुंच कर देखता है विक्रम एक कुर्सी पर बैठ कर बालकनी से बाहर की ओर देख कर गहरी सोच में डूबा हुआ है l

वीर - (अपने मन में) अब मजनूँ को... कौन समझाए... (अपने चेहरे पर हँसी लाने की कोशिश करते हुए) युवराज जी... कल हमारे डेविल आर्मी की.... ऑफिशियल इनागुरेशन है.... और यहाँ डेविल किंग... किसी लुटे हुए... आशिक की तरह बैठे हैं हैं....

विक्रम, वीर की ओर देखता है और फिर अपना मुहँ फ़ेर कर बाहर देखने लगता है l वीर उसके सामने एक चेयर डाल कर बैठ जाता है l

वीर - युवराज जी... कुछ तो कहिए... शायद मैं आपकी कुछ मदत कर सकूँ....
विक्रम - हम कलकत्ते से जब यहाँ पर आए.... तब हमे... छोटे राजा जी से एक मिशन मिला... के.. राजधानी में... क्षेत्रपाल के नाम का सिक्का जमाना है... पर इसकी शुरुवात के प्रोग्राम में ही... क्षेत्रपाल के मुखिया... नहीं आ रह रहे हैं....
वीर - क्या सिर्फ़ यही वजह है....

विक्रम कुछ नहीं कहता l वह बालकनी से बाहर की ओर देख कर कुछ सोचे जा रहा है l

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वैदेही विजिटर्स रूम में बैठी हुई है और बार बार सलाखों के पर दरवाजे की ओर देखती है l थोड़ी देर बाद एक कैदी संत्री के साथ आते देखती है l वैदेही उठ कर सलाखों के पास मीटिंग पॉइंट तक जाती है l वह कैदी भी उस पॉइंट तक आता है और वह संत्री को मुड़ कर देखता है l संत्री उन दोनों को छोड़ वहाँ से चला जाता है l वैदेही उसे गौर से देखती है लगभग पैंतालीस साल का आदमी, अपने उम्र से पांच सात साल कम दिख रहा है, उम्र का अंदाजा लगाना मुश्किल है l ऊँचा कद और स्वस्थ दिख रहा है l उसे देख कर लगता है वह जरूर वर्जिश करता होगा l वैदेही की ध्यान टूटती है l

कैदी - कहिए... आप... कौन हैं... और मुझसे क्यूँ मिलना चाहती थी....
वैदेही - आ... आप... डैनी भाई साहब हैं...
डैनी - डैनी भाई साहब नहीं... सिर्फ़ डैनी...
वैदेही - पर विशु तो... आपको डैनी भाई साहब ही कहता है ना...
डैनी - (वैदेही को घूर कर देखते हुए) यह... विशु कौन है....
वैदेही - मेरा भाई... विश्व प्रताप...
डैनी - ओ... तो आप.. विश्व की... बड़ी बहन... वैदेही जी हैं...
वैदेही - जी...
डैनी - पर आप मुझसे... क्यूँ मिलना चाहती थीं...
वैदेही - मैं... उस शख्सियत को... देखना चाहती थी.... जैल के भीतर... जिसे विशु... जयंत सर के... बराबर का दर्जा... दिया है....
डैनी - क्या... यह क्या बकवास कर रही हैं...
वैदेही - आप को... कोई मारने आया था... पर विशु के वजह से.. नहीं मार पाया.... इसलिए.. उसने... विशु पर अपना गुस्सा उतारा...
डैनी - देखिए... वैदेही जी... कोई एक मारने नहीं.... बल्कि चार चार लोग मुझे मारने आए थे.... मैं हूँ ही... क्रिमिनल... मेरे हज़ारों दुश्मन हैं... आपके विशु का एक उपकार रहेगा मुझ पर... उसने मेरे दुश्मन की पहचान की... और मुझे आगाह किया.... पर मैंने उसे समझाया था... मेरे और उनके बीच ना आने के लिए....
वैदेही - विशु है ही ऐसा... जिसको वह... अपना मान लेता है... उसके लिए... वह कुछ भी कर जाता है....

डैनी यह सुन कर वैदेही को हैरानी से देखता है l

वैदेही -(अपनी हाथ जोड़कर) हाँ भाई साहब... उसने दिल से... आपको... अपना माना है... आपका बहुत सम्मान करता है.... बस इस बहन की... इच्छा है... आप जब तक यहाँ हैं... उसे अपने छोटे भाई की तरह ही... देखें... भले ही... अपने पन से ना सही.... पर उसका खयाल रखिएगा.....

डैनी कुछ नहीं कहता, वह इधर उधर देखता है फिर हाथ जोड़ कर नमस्कार कर वहाँ से चल देता है l

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वीर - ठीक है युवराज जी... मुझे लगा... के हम एकदूसरे के सहारा हैं... क्यूंकि यह रस्मों रिवाजों के ढोंग ढोते ढोते... हम अकेले हो गए हैं... आप फिर भी... बाहर जाते हैं... किसीसे बात भी करते हैं.... पर हमारा क्या... हम किस से बात करें... ठीक है... हम बाहर जा रहे हैं... (उठ कर जाने लगता है)
विक्रम - रुकिए... राजकुमार..जी.... रुकिए... प्लीज...
वीर - (रुक जाता है, और वहीँ बैठ जाता है) अब दिल में जो भी है... उगल दीजिए... देखिएगा... आपको अच्छा भी लगेगा... और हल्का भी लगेगा....
विक्रम - कल के प्रोग्राम के लिए.... हमारे लिए... गेस्ट लिस्ट में... तीन खास लोग शामिल होने चाहिए थे... पर कल वह लोग... नहीं आ पा रहे हैं....
वीर - हम्म... पहले कौन हैं....
विक्रम - हमारे राजा साहब... हमे जिनके नाम का डंका बजाने का... जिम्मा दिया गया है....
वीर - और वह... क्यूँ नहीं आ रहे हैं....
विक्रम - मुख्य मंत्री जी ने... वाइब्रेंट ओड़िशा के लिए... इंवेस्टर्स को रिझाने अपने साथ डेलिगेशन ले कर जा रहे हैं.... उसके लिए कुछ खास लोगों को चुना है... उन लोगों में... हमारे राजा साहब भी हैं...
वीर - अच्छा... हम्म.... प्रोग्राम... पोस्टपॉन कर दें तो...
विक्रम - नहीं.. नहीं.. हो सकता है... हमने जोर शोर से... एडवर्टाइजिंग किया है... नाक का सवाल है...
वीर - और दुसरा...
विक्रम - दुसरा मतलब...
वीर - वही आपके गेस्ट लिस्ट वाले...
विक्रम - अरे हाँ... उसका नाम.. यश वर्धन चेट्टी है.... पहली बार किसी से हाथ मिलाकर... दोस्ती की है... पर वह भी मुख्यमंत्री के.... डेलिगेशन में जा रहा है...
वीर - क्यूँ... वह कोई... पोलिटिकल लीडर है क्या...
विक्रम - नहीं... वह एक.. इंडस्ट्रियलिस्ट है...
वीर - ह्म्म्म्म... और तीसरी शायद.. भाभी....
विक्रम - वह भी नहीं आ पा रही है.... क्या... क.. क... कौन... क्या पुछा तुमने....
वीर - (शरारत भरा हँसी हँसते हुए) भाभी क्यूँ नहीं आ रही हैं....

विक्रम वहाँ से उठ कर जाने लगता है l वीर भी उसके साथ उठ कर उसके सामने खड़ा हो जाता है l विक्रम फिर वापस आ कर चेयर पर बैठ जाता है l

वीर - आप बताना नहीं चाहते.... तो बात अलग है... पर अगर आप मुझे कुछ कहेंगे... तो मेरे खुराफाती दिमाग में से... कुछ आईडीया निकलेगा.... वह आपके काम आ सके...
विक्रम - नहीं ऐसी कोई बात नहीं है...
वीर - मत भूलिए... भाभी जी का नंबर... आपको मैंने दी है....

विक्रम अपना चेहरा घुमा लेता है l वीर उसके चेहरे पर आए भाव पढ़ लेता है l

वीर - ऑए.. होए... आपके गाल... टमाटर के जैसे... लाल हो गए हैं...

विक्रम - (अपनी मुस्कराहट को जबरदस्ती छुपाने की कोशिश करते हुए) चलिए राजकुमार जी.... आज आपको लॉन्ग ड्राइव के लिए... लिए चलते हैं....

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लंच के समय का हुटर बजता है l सारे कैदी अपना काम छोड़ कर डायनिंग हॉल के तरफ बढ़ जाते हैं l विश्व भी अपना काम छोड़ कर हाथ मुहँ धो कर डायनिंग हॉल में पहुंचता है l विश्व हॉल में पहुंच कर थाली हाथ में लिए लाइन में खड़ा हो जाता है l विश्व को देख कर कुछ कैदी कानाफूसी करने लगते हैं l विश्व उनकी बातों को सुनता है पर ध्यान नहीं देता l अपना खाना ले कर हमेशा की तरह कोने के टेबल पर जा कर बैठ जाता है l

डैनी - क्या बात है... हीरो... क्या हाल है....
विश्व - (डैनी को देख कर मुस्कराने करने की कोशिश करते हुए) अच्छा हूँ...
डैनी - देखा... इंसान की इज़्ज़त कैसे गिर जाता है...
विश्व - मैं समझा नहीं... इज़्ज़त... किसकी...
डैनी - जब तु.... जैल में आया था... तब तु... तास की गड्डी में एक्स्ट्रा पत्ता था... फिर खेल में नहला पर दहला बना... पर अब... तु... उसी खेल में... एक्स्ट्रा बन गया है....
विश्व - (चुप रहता है)
डैनी - तुने जब रंगा का... पिछवाड़े में चीरा लगाया... तो तेरा इज़्ज़त होने लगा था... अब चार चिरकुट तेरे चेहरे का... भूगोल क्या बदला... यही लोग... तेरे इतिहास का बंटा धार हो गया.... अब सब... तेरे नाम पर जोक मारने लगे हैं...
विश्व - (इस बार भी चुप रहता है)
डैनी - (विश्व को गौर से देखता है) विश्व... (विश्व डैनी को देखता है) तुझे कैसे मालुम हुआ... उनका टार्गेट मैं था... तुझे तेलगु भाषा समझ में आता है क्या....
विश्व - जी... समझ सकता हूँ.... पर बोल नहीं सकता....
डैनी - ह्म्म्म्म... ठीक है... मैंने तुझे.... पहले ही बता दिया था... यहाँ... कोई... किसीके फटे में... टांग नहीं अड़ाता... इतना ज्ञान देने के बावजूद तु... उनके और मेरे बीच में आया... अब देख आखिर... उसके लिए... उन लोगों ने... तुझसे पेनल्टी वसूला....
विश्व - ह्म्म्म्म...
डैनी - तुझे... तेलुगु... समझ में.. कैसे आता है... तु.. तो.. राजगड़ से बाहर.. कभी गया ही नहीं होगा....
विश्व - वह... मेरे.... गुरु थे... मेरे प्राथमिक विद्यालय के... प्रधान आचार्य...उनसे और उनके पोते से... उनसे थोड़ा थोड़ा.. सीखा था...
डैनी - स्कुल के... प्रधान आचार्य... वह भी... तेलुगु...
विश्व - नहीं... वह थे तो.. ओडिया ही... पर वह पारलाखेमुंडी से थे... आंध्र ओड़िशा सीमांत क्षेत्र से... इसलिए उन्हें... तेलुगु.. बहुत अच्छी तरह से आता था....
डैनी - ह्म्म्म्म... तुने.. जानने की... कोशिश.. नहीं की... के वह.. लोग मुझे क्यूँ मारना... चाहते थे....
विश्व - वे लोग इस बारे में... ज्यादा बात नहीं की... बस आपको मार देने की ही बात कर रहे थे.... इसलिए मैंने आकर आपको आगाह भी किया.... पर जब देखा कि... वह आपको बैरक तीन के... गार्डन में अकेला देख कर... आपके ओर बढ़ रहे हैं.... मैं तब... सिक्युरिटी रूम में... साफ सफाई कर रहा था... आप को उनके चपेट में आने से बचाने के लिए... मैंने लंच का हुटर बजा दी.... ताकि आप अलर्ट हो जाएं और सारे कैदी... काम छोड़ कर उधर से गुजरे...
डैनी - मुझे बचाने के चक्कर में... तेरी सुताई कर दी... उन्होंने.... क्यूँ....
विश्व - कोई बात नहीं... आप तो बच गए ना...
डैनी - ह्म्म्म्म... अब वक्त आ गया है... तुझे... मेरे बारे में.. जानने का... मेरे इतिहास और वर्तमान के बारे में.... पर उससे पहले... तुझे कुछ दिखाना है.... एक काम कर.... मुझसे आज शाम... बैरक पांच के... गेम हॉल में... मिल...


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विक्रम अपनी कार को भगा रहा है l गाड़ी में बगल में वीर भी बैठा हुआ है l

वीर - आप हमे ले कहाँ जा रहे हैं... युवराज जी...
विक्रम - क्यूँ.... डर लग रहा है.....
वीर - डर... जब तक युवराज हैं... राजकुमार का बाल भी कोई.... बांका नहीं कर सकता....
विक्रम - इतनी कन्फीडेंट...
वीर - अपने ऊपर नहीं.... आप पर... है... क्यूँ के.... हमारे लिए आप हैं... और आपके लिए... हम....

विक्रम ब्रेक लगाता है l गाड़ी रुक जाती है l वीर देखता है रास्ता खतम हो गया है आगे सिर्फ़ रेत ही रेत दिख रहा है और उसके आगे एक नदी की धार दिख रहा है l

वीर - यह आप हमे कहाँ ले कर आ गए हैं....
विक्रम - मुंडुली है... इस जगह का नाम...
वीर - मतलब आप पहले भी.... यहाँ आ चुके हैं...
विक्रम - जानते हैं.... यहाँ से... हम ने... आपकी भाभी से... पहली बार... फोन पर बात की थी....
वीर - अच्छा इस जगह पर... इतना महात्म्य है....
विक्रम - हाँ...
वीर - तो इसका मतलब... मैंने पहेली को सुलझा लिया था... पर यह क्या.... युवराज जी... आपने हमे इसका... पुरस्कार भी नहीं दिया....
विक्रम - कहिए... आपको क्या चाहिए...
वीर - वह.. हम बाद में... मांग लेंगे....पहले यह बताइए... इजहार किसने पहले की....आप या भाभी....
विक्रम - अरे कहाँ... अभी तक सिर्फ़ दोस्ती और.. चैटिंग तक.... ही हैं... अभी मुलाकात भी नहीं हुई है....
वीर - मतलब फोन नंबर तो पक्का है ना....
विक्रम - हाँ हाँ वही है... अपने तरीके से... कंफर्मेशन कर चुके हैं...
वीर - (विक्रम को देख कर) युवराज जी... आप कितने सिरीयस हैं....
विक्रम - सिरीयस मतलब..... हम उनसे शादी करना चाहते हैं.... पर आपने यह क्यूँ पुछा....
वीर - बतायेंगे... पहले यह बताएं... आपको पूरी दुनिया में... सिर्फ़ भाभी... ही अच्छी क्यूँ लगी....
विक्रम - पता नहीं... राजकुमार... पता नहीं... वह जब... हमारे आस पास होती हैं.... ऐसा लगता है... जैसे हम महक रहे हैं... आसमान में उड़ते एक आजाद परिंदे की तरह.... महसूस करते हैं... जब वह हमसे बात करते हैं.... वह चुलबुली हैं... जैसे बन में... उछलती कुदती हिरनी... और क्या कहूँ....
वीर - जानते हैं.... दो प्रेमी... एक दूसरे के... पूरक होते हैं... एक दूसरे में जो कमियां होती हैं.. वह एक दुसरे की खूबियों से पूरी करते हैं...

विक्रम, वीर को हैरानी भरी नजर से देखने लगता है l जैसे बातेँ वीर नहीं कोई और कर रहा है l

वीर - उनकी खूबियाँ... उनकी आज़ादी है.... और यही आपकी कमियाँ है... आप बंदिश में हैं...
विक्रम - राज कुमार.... आप कहना क्या चाहते हैं....
वीर - आप उन्हें... भूल जाएं.... राजा साहब जहां कहें... आप वहीँ.. विवाह कीजिए...
विक्रम - यह आप क्या कह रहे हैं.... राजकुमार...
वीर - क्यूंकि... आप अगर उनसे विवाह करेंगे... तो... (अपनी नजर नदी की ओर करते हुए) क्षेत्रपाल महल में... स्वर्गीय रानी माँ.... और छोटी रानी माँ... और अब भाभी....(विक्रम सुन हो जाता है) भाभी सहर की हैं... उनकी लाइफ स्टाइल... सहरी है... क्षेत्रपाल परिवार की घमंड को घूंघट बना कर... रह नहीं पाएंगी.... पर उससे भी पहले... क्या राजा साहब... इस विवाह के लिए.... सहमत होंगे...

वीर की बातेँ सुन कर विक्रम का चेहरा उतर जाता है l

वीर - युवराज जी... हमारा प्रॉब्लम यह है कि.... हम क्षेत्रपाल हैं.... आप अच्छी तरह से जानते हैं... रंग महल के बारे में... जानने के बाद... बड़ी रानी माँ ने क्या किया.... और छोटी रानी माँ... वह कैसी हैं... क्या आप कभी भी... भाभी जी को... रंग महल के बारे में... बता पाओगे...

विक्रम चुप रहता है और वह भी रेत की पठार और नदी के धार को देखता रहता है l


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विश्व अपना काम निपटा कर गेम हॉल में पहुंचता है l वहाँ एक कोने में डैनी बैठ कर अकेला कैरम खेल रहा है l विश्व को देखते ही,

डैनी - आजा ... विश्व आ... कैरम खेलना जानता है....
विश्व - नहीं...
डैनी - ऑए... क्या कह रहा है.... कोई यकीन नहीं करेगा... के तुझे कैरम खेलना नहीं आता...
विश्व - सच कह रहा हूँ... मैं सच में कैरम खेलना नहीं जानता...
डैनी - (विश्व की ओर देखते हुए) कभी गांव में... बैठ कर क्या खेलते थे...
विश्व - बाघ बकरी... कबड्डी.... लुका छुपी... वगैरह...
डैनी - आ बैठ... चल मैं तुझे... कैरम... सिखाता हूँ...

विश्व बैठ जाता है l डैनी कैरम के बारे में बताने लगता है l रानी, स्ट्राइकर, काली गोटियाँ सफ़ेद गोटियाँ, सब समझाने के बाद l डैनी गोटियाँ बोर्ड पर सजा देता है और विश्व को स्ट्राइकर देता है l

डैनी - ले... पहला स्ट्राइक तु कर...

विश्व पहला शॉट मारता है l गोटियाँ बिखर जाती हैं l डैनी स्ट्राइकर ले कर शॉट खेलता है l तीन काली गोटियाँ खानों में गिर जाते हैं l

विश्व - वाव... आप को... इस खेल में... महारत हासिल है...
डैनी - (अपना स्ट्राइक लेते हुए) अब तुमको भी महारत बनना है...(अब कोई गोटी नहीं गिरती)
विश्व - ठीक है... हम बाद में खेलेंगे... आपने बताया कि... मुझे आपका इतिहास जानने का टाइम आ गया....
डैनी - हाँ पर उससे पहले... तेरे को... कुछ दिखाना है....
विश्व - क्या....देखना है...
डैनी - अब पहले यह बता.... वह चार मुझे क्यूँ मारना चाहते हैं...
विश्व - (अपना सर हिलाते हुए) नहीं जानता...
डैनी - जानता है... वह अब भी... इसी जैल में हैं... और मुझे मारने की ताक में हैं...
विश्व - क्या... मैंने... इस बारे में... सुपरिटेंडेंट साहब को... बताया था...
डैनी - हाँ तुने बताया था... इसलिए... सुपरिटेंडेंट साहब ने... उन्हें... दो नंबर बैरक में बंद कर रखा है....
विश्व - यह तो... उन्होंने अच्छा किया...
डैनी - पर उन चारों ने एक संत्री को पैसे खिलाए हैं... कुछ समय के लिए... उनको मेरे पास आने देने के लिए...
विश्व - (चौंक कर) क्या... आ.. आपको... कैसे मालुम हुआ...
डैनी - मैं यहाँ हूँ... मतलब हर चप्पे-चप्पे से वाकिफ़ हूँ... कब कहाँ क्या हो रहा है... मुझे खबर मिल जाती है...
विश्व - तो फ़िर... इन चारों की खबर आपको कैसे... नहीं लगी....
डैनी - क्यूँकी... मुझे अंदाजा नहीं था... के.. मेरे दुश्मन... आंध्र प्रदेश से... मेरे लिए कातिल ला सकते हैं... यहाँ पर जो भी नया कैदी आता है... मैं उसकी खोज ख़बर ले लेता हूँ... इनके विषय में... मात खा गया... पर अब ग़लती... सुधारना है... इसलिए... मैं उन चारों का... यहाँ पर इंतज़ार कर रहा हूँ....
विश्व - क्या... (अपने जगह से ऐसे उठ खड़ा होता है, जैसे बिजली का झटका लगा हो) वह लोग यहाँ पर आयेंगे... और आप उनका इंतजार कर रहे हैं...
डैनी - ह्म्म्म्म... अब.. उन्होंने... जैल के एक स्टाफ को... पैसा खिलाया की.... मेरी खबर उन तक पहुंचाए.... और उनके लिए एक मौका बनाए.... मैंने अपने तरीके से... जैल के उस स्टाफ के पास.... मेरे यहाँ होने की खबर पहुंचा दिया है.... अब कुछ ही देर में... वह लोग यहाँ पर.... आ जाएंगे...

विश्व का सर चकराने लगता है l वह हैरान और परेशान हो कर डैनी को देख रहा है l पर डैनी बेफिक्र हो कर अपना शॉट खेल रहा है l रानी के गिरते ही

डैनी - जाओ... (हाथ से इशारा करते हुए) वहाँ पर छुप जाओ... उन लोगों के आने का वक्त हो गया है.....
विश्व - न ना.. नहीं... मैं आपको ऐसे... छोड़ कर नहीं जा सकता....
डैनी - श् श् श् श्... विश्व... मैंने कहा था.... आज तेरे को कुछ दिखाना है... इसलिए जा.... वहाँ से छिप कर देख यहाँ.... क्या होता है...
विश्व - अगर ऐसी बात है... तो मैं छुप नहीं सकता.... आने दीजिए... आप तक... पहुंचने से पहले... उन लोगों को... मुझसे गुज़रना होगा....

डैनी खड़ा हो जाता है और विश्व के कलर पकड़ कर उसे खड़ा कर देता है l

डैनी - सुन... मैं जो कहता हूँ... वह चुप चाप कर.... मैंने कहा है ना... तुझे कुछ दिखाऊंगा... तो पहले देख... फिर मेरे फटे में घुसने की सोचना... (विश्व को छोड़ देता है)

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विक्रम के मोबाइल पर एक मैसेज आती है l अपना मोबाइल खोल कर मैसेज पढ़ता है l एक फीकी मुस्कान आकर चेहरे से ग़ायब हो जाती है l

विक्रम - (अपनी चुप्पी तोड़ कर) यह आपने ठीक नहीं किया... राजकुमार... यह आपने ठीक नहीं किया...

वीर कुछ नहीं कहता है l वह भी रेतीली पठारों के पर बहती नदी को देख रहा है l

विक्रम - हम.. भ्रम में... थे... भ्रम में ही रहने देते...
वीर - हम... भ्रम को जी रहे हैं.... युवराज जी... वास्तव उससे भी कडवा है.....
विक्रम - हम क्या करें.... अब... हम... उनके बिना... जी नहीं पाएंगे... राजकुमार.... आप ठीक कह रहे हैं..... वह चिड़िया की तरह चहकती हैं... क्षेत्रपाल महल एक पिंजरा है.... वह हिरनी की तरह... चंचल हैं... क्षेत्रपाल महल एक... एक चिड़िया घर है.... (वीर विक्रम कि ओर देखता है, विक्रम का चेहरा उतरा हुआ है और सर झुका हुआ है) आपने सही कहा.... हममे जो... कमियां हैं... खामियाँ है.... उनमें वह भरपूर है.... एक छोटे बच्चे की मासूमियत भरा हुआ है.... उनसे विवाह करना मतलब... उन पर ज़ुल्म करना.... यह आपने ठीक नहीं किया... राज कुमार... य़ह आपने ठीक नहीं किया...

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विश्व डैनी के बताए जगह पर छुपा हुआ है l वहाँ से छुप कर वह हॉल के अंदर देख रहा है l
चार तगड़े बंदे अंदर आते हैं उनको देख कर डैनी अपनी जगह से उठ कर डरने लगता है l डैनी को डरते देख वह चार लोग हँसने लगते हैं और चारों आपस में इशारा करते हुए डैनी पर झपटते हैं l
डैनी अपनी जगह से हट जाता है और तुरंत अपना पोजिशन बदल लेता है l बंदा एक ज्यूं ही मुड़ता है एक जोरदार घुंसा उसके नाक पर लगती है l वह चिल्ला के गिर जाता है l बाकी बंदे रुक जाते हैं l बंदा एक उठ खड़ा होता है, पर कुछ ही सेकंड खड़ा हो पाता है वह बंदा अपने नाक से बहते हुए खून को अपने हाथ से पोंछ कर देखते हुए फिर नीचे गिर जाता है l अब तीन बंदे आपस में इशारा करते हुए तीन दिशाओं से घेर लेते हैं l पर डैनी बंदा दो को अपना लात आगे से उठा कर मारता हुआ दिखा कर साइड पर बंदा तीन को किक मारता है l बंदा एक पीछे से पकडने के अपनी बांह बढ़ाता है तो उसकी कलाई को डैनी अपने बाएं हाथ से पकड़ लेता है और दाएं हाथ से उसके गर्दन को पकड़ दाएं कोहनी को बंदा एक के काख में फंसा कर उठा कर कैरम के बोर्ड पर फेंक देता है l फिर एक स्पिन किक घुमा कर बंदा दो के चेहरे पर मारता है l वह भी अपने साथियों के तरह नीचे गिर जाता है l
चारों बंदे गिर चुके हैं और कराह रहे हैं l सब धीरे धीरे उठते हैं फ़िर से डैनी के तरफ बढ़ते हैं l पर डैनी की फुर्ती के आगे वह चार टिक नहीं पाते कुछ ही सेकेंड में चिल्लाते हुए गिर जाते हैं l डैनी विश्व को इशारे से बाहर निकलने को कहता है l
विश्व बाहर आकर उन्हें देखता है l और हैरानी से मुहँ फाड़े डैनी को देखता है l
डैनी - अब यह लोग हस्पताल जाएंगे... क्यूंकि इनकी ट्रीटमेंट यहाँ संभव नहीं है...
विश्व - क्यूँ....
डैनी - दो बंदों के हाथ.... कंधे के जोड़ से खिसक गए हैं.... और एक बंदे का घुटना अपनी जोड़ से खिसक गया है और लास्ट बंदे का कोहनी अपनी जोड़ से खिसक गया है....
Nice and beautiful update....
 

Kala Nag

Mr. X
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लगता है डैनी अब विश्व का संरक्षक बनेगा और उसको और मजबूत बनाएगा। बेचारा विक्रम सपना पूरा होने से पहले ही टूट रहा है उसका। खूबसूरत अपडेट।
❤️😍❤️
धन्यबाद मेरे भाई बहुत बहुत धन्यबाद
 
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फ़्लैश बैक में इतने अच्छे कैरेक्टर होने के बाद वर्तमान में दोनों भाइयों का कैरेक्टर बदल कैसे गया ? विक्रम एक प्रेमी था और उसे अच्छे बुरे की समझ भी थी । वीर को भी अपनी हवेली और रंगमहल की वास्तविकता का ज्ञान था । दोनों भाई समझते थे कि हवेली में औरतों को किस तरह से ट्रीट किया जाता है । उन्हें अपने घर की औरतों को देखकर दुःख भी होता है ।
तो फिर वो बदल कैसे गए ? उन्होंने भी रंगमहल में हवश का नंगा खेल क्यों खेला ?
विक्रम ने जानते बूझते हुए भी लड़की से शादी क्यों की ? एक जिंदादिल और चुलबुली लड़की को उदासीन क्यों बना दिया ?

डैनी का किरदार एक गाॅड फादर की तरह लग रहा है । विश्व को विश्व प्रताप बनाने का लग रहा है । उसके मार्ग दर्शक का लग रहा है । युद्ध कलाओं में उसके कौशल होने का कारण लग रहा है ।

यह अपडेट भी बहुत ही बेहतरीन था ब्लैक स्नेक भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग ।
 
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Kala Nag

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फ़्लैश बैक में इतने अच्छे कैरेक्टर होने के बाद वर्तमान में दोनों भाइयों का कैरेक्टर बदल कैसे गया ? विक्रम एक प्रेमी था और उसे अच्छे बुरे की समझ भी थी । वीर को भी अपनी हवेली और रंगमहल की वास्तविकता का ज्ञान था । दोनों भाई समझते थे कि हवेली में औरतों को किस तरह से ट्रीट किया जाता है । उन्हें अपने घर की औरतों को देखकर दुःख भी होता है ।
तो फिर वो बदल कैसे गए ? उन्होंने भी रंगमहल में हवश का नंगा खेल क्यों खेला ?
विक्रम ने जानते बूझते हुए भी लड़की से शादी क्यों की ? एक जिंदादिल और चुलबुली लड़की को उदासीन क्यों बना दिया ?

डैनी का किरदार एक गाॅड फादर की तरह लग रहा है । विश्व को विश्व प्रताप बनाने का लग रहा है । उसके मार्ग दर्शक का लग रहा है । युद्ध कलाओं में उसके कौशल होने का कारण लग रहा है ।

यह अपडेट भी बहुत ही बेहतरीन था ब्लैक स्नेक भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग ।
आपको याद होगा
मैंने एक बार कहा था कि कहानी में तीन प्रेम कहानियाँ हैं
तीनों प्रेम कहानी की अपनी अपनी आयाम है और तीनों एक दूसरे से जुदा भी हैं
किसीकी मजबूरी, तो किसीकी दिलेरी होगी
वैदेही का श्राप याद है ना
क्षेत्रपाल का परिवार तितर-बितर हो जाएगा
नफ़रत को प्यार ही काटेगा
 

Kala Nag

Mr. X
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👉चालीसवां अपडेट
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अगली सुबह
अपने कमरे में विक्रम एक फ़ोल्डींग सोफ़े पर खुद को फैला कर सर को ऊपर कर बैठा छत की ओर घूर रहा है l सामने टी पोय पर उसका फोन बजने लगता है l वह आगे झुक कर फोन उठाता है l

विक्रम - हैलो...
महांती - सर... मैं यहाँ ऑफिस में हूँ... सब पास खड़े हो कर देख रेख कर रहा हूँ.... सर दो पहर दो बजे तक आपको आ जाना है...
विक्रम - ठीक है... महांती... मैं पहुंच जाऊँगा....

इतना कह कर विक्रम अपना फोन वापस टी पोय पर रख देता है l दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आती है l विक्रम उस तरफ देखता है l वीर एक थ्री पीस शूट में अंदर आता है l

वीर - यह क्या... युवराज जी.... आप अभीतक तैयार ही नहीं हुए...
विक्रम - सिर्फ़ शूट ही पहनना है...
वीर - हाँ... पर आप... होस्ट हो.... आपको महांती के साथ होना चाहिए....

विक्रम सोफ़े का लिवर दबाता है तो सोफा सिकुड़ कर सीधा हो जाता है l विक्रम अपना हाथ बढ़ाता है तो वीर उसके हाथ पकड़ लेता है l विक्रम वीर के पकड़ के सहारे अपनी चेयर से उठता है l फ़िर कबॉड खोल कर अपना शूट निकालता है और पहनने लगता है l

तभी फोन फ़िर से बजने लगता है l वीर इस बार देखता है l फोन पर मार लकी चार्म डिस्प्ले हो रहा है l

विक्रम - किस का फोन है.... राजकुमार
वीर - आपके... बेताल का...
विक्रम - क्या.... बेताल...
वीर - जी... वही... जिनके सवालों के.. ज़वाब ढूँढते फिरते हैं...
विक्रम - ओ...
वीर - हाँ... यह बात और है... दंतकथाओं में... बेताल... पीठ पर सवार था.... यहाँ आपके दिलोदिमाग पर सवार है..
विक्रम - ठीक है... बजने दीजिए... जब बजते बजते कट जाए... तब फोन... म्यूट कर दीजिए...

वीर फोन उठाता है और रिंग बजना बंद होते ही,फोन का साइलेंस मोड़ ऑन कर देता है l फिर दोनों बाहर निकल कर गाड़ी में बैठते हैं l विक्रम गाड़ी स्टार्ट कर आगे बढ़ा देता है l गाड़ी के अंदर

वीर - लगता है आपका मुड़... ठीक नहीं है...
विक्रम - इस बारे में... हम और बातेँ ना करें तो बेहतर है....
वीर - ठीक है.. हम उस बारे में... बात नहीं करते... पर क्या... हम ESS के बारे में... बात कर सकते हैं..
विक्रम - ESS के बारे में.... क्या बात करनी है...
वीर - हमें .... आप ESS में... एंगेज कर दीजिए... ताकि... हम बिजी रह सकें.... वरना... कुछ ही दिनों में... हम पागल ही जायेंगे....
विक्रम - ठीक है.... आप... क्या बनना पसंद करेंगे....
वीर - एक ऐसी पदवी... जहां से हम.... बातेँ कर सकें... अपने अंदर की भड़ास निकाल सकें... जरूरत पड़ने पर... किसीको... जी भर के गाली दे सकें....

विक्रम वीर की बातेँ सुनकर हँस देता है l यूँही बात करते करते फंक्शन हॉल की ओर बढ़ जाते हैं

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सेंट्रल जैल
जैल की कोठरी में विश्व अपने बिस्तर पर आलती पालती मार ऐसे बैठा हुआ है जैसे कोई योगी ध्यान में बैठा हुआ है और बीते शाम को गेम हॉल में जो हुआ उसके बारे में सोच रहा है l

-चार चार मुस्टंडे सांढ जैसे देह वाले, एक साधारण सा दिखने वाला आदमी डैनी भाई से पीटे, वह भी बुरी तरह l डैनी भाई उन लोगों को उठा उठा कर पटक पटक कर मार रहे थे l ऐसे तो किस्से कहानियों में सुना करता था या फिर फ़िल्मों में देखा करता था बिल्कुल वैसे ही l मुझे तो यकीन ही नहीं हो पा रहा है l डैनी भाई में कितना आत्मविश्वास था, तभी तो अपने कहाँ होने की खबर उन लोगों तक पहुँचाया, जो लोग इस जैल में सिर्फ़ डैनी भाई को मारने के लिए ही आए थे पर हुआ उल्टा डैनी भाई ने उन चार बंदों की हालत बहुत खराब कर दिया l मैंने तो बेकार में ही डैनी भाई के दुश्मनों से पंगा ले लिया l

विश्व इन्हीं ख़यालों में अपने आप में खोया हुआ है कि सेल के दरवाजे पर ठक ठक की आवाज़ आती है l विश्व का ध्यान टूटता है, देखता है वहाँ पर एक संत्री खड़ा है l

संत्री - क्यूँ भई... किन ख़यालों में... खोए हुए हो.... लंच का हुटर बज गया है... और तुम अभी भी... होश में नहीं हो...
विश्व - (थोड़ा हड बड़ा जाता है) क्या... लंच का समय हो गया....
संत्री - (सेल का दरवाजा खोलते हुए) जी हाँ... आज तुम... काम पर गए नहीं.... रोज तो कुछ ना कुछ करने की.. जिद करते रहते थे.... पर आज अपनी मांद से निकले ही नहीं....
विश्व - वह... मेरा तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रहा है... इसलिए... वैसे कल यहाँ कुछ मार पीट हुआ था ना...
संत्री - अरे हाँ... वह जो चार नए.... तेलुगु वाले थे ना.... उनको ऐसा मार पड़ा है... के साले अब हिंदी भी बोल रहे हैं... पहले सिर्फ तेलुगु में पका रहे थे.... अब हिंदी में बोल कर.... मदत मांग रहे हैं...
विश्व - अच्छा.... कुछ पता चला.... कौन किया है....
संत्री - श् श् श् श्.... मालुम तो है.... अगर तुमको आगे पता चले.... तो चुप ही रहना...
विश्व - क्यूँ...
संत्री - देख... हमे... यहाँ रहना है... अपने परिवार और बाल बच्चों के साथ.... किसीके लफड़े में... घुसना नहीं है.... और उनके टार्गेट नहीं बनना है.... और फिर कह रहा हूँ.... तुमको मालुम भी पड़े... तो इग्नोर करीयो....
विश्व - ठीक है....
संत्री - तो खाने के लिए.. जाओगे या नहीं....
विश्व - जी जरूर... जरूर... जाऊँगा...

कह कर विश्व अपने सेल से निकलता है और संत्री के साथ जल्दी जल्दी डायनिंग हॉल के तरफ जाता है l रास्ते में

विश्व - अच्छा... उन चारों का क्या हुआ...
संत्री - होना क्या था..... कैपिटल हॉस्पिटल को ले जाया गया है उन्हें....
विश्व - उनके ठीक होने के बाद... क्या वे लोग यहाँ पर आयेंगे....
संत्री - अरे नहीं.... उनका वकील आज सुबह ही..... अलग जगह शिफ्टिंग के लिए... ऑर्डर ले कर पहुंच गया.....
विश्व - क्यूँ... उन लोगों ने... नहीं बताया.... के उनके साथ किसने यह सब किया....
संत्री - उन्होंने कुछ नहीं बताया.... तुमने भी तो... किसीका कुछ फाड़ा था.... उसने कुछ बताया था क्या... उल्टा अपना पिछवाड़ा बचाने... अपने वकील के जरिए.... अलग जगह पर शिफ्ट हो गया... और.... भाई तुम अपने काम से.... मतलब रखो... यह पुलिस वाली इंक्वायरी बंद करो.... जाओ जाकर खाना खालो...

संत्री इतना कह कर वहाँ से चला जाता है l विश्व डायनिंग हॉल में पहुँच कर अपना हाथ मुहँ साफ कर लेने के बाद अपनी थाली लेकर लाइन में खड़ा हो जाता है और चोर नजरों से डैनी को ढूंढता है l पर उसे डैनी नहीं दिखता l थाली में खाना ले कर अपना निर्धारित टेबल पर बैठ जाता है l

-क्यूँ हीरो... आ गया...
विश्व - (अपनी नजरें उठाए बगैर) जी...
डैनी - (विश्व के पास बैठते हुए) मुझे ही ढूंढ रहा था ना...
विश्व - जी...
डैनी - क्यूँ...
विश्व - (अब सीधे डैनी को देखते हुए) वह मैं... अब आपके बारे में... जानना चाहता हूँ...
डैनी - अच्छा... वह क्यूँ...
विश्व - आप ही ने कल कहा था... की आपके बारे में जानने का वक्त आ गया है... इसलिए...
डैनी - (मुस्कराते हुए) ठीक है... हीरो... बस इतना जान ले... मैं कोई अच्छा आदमी तो... बिल्कुल नहीं हूँ...
विश्व - अच्छा या बुरा... मुझे इससे कोई मतलब नहीं है.... मुझे बस आपके बारे में... जानना है...
डैनी - ह्म्म्म्म... ठीक है... पहले खाना खतम कर ले... फिर तु अपना काम निपटा ले... फ़िर... लाइब्रेरी में बैठते हैं....
विश्व - जी....

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विक्रम की गाड़ी सेरेमनी हॉल के पार्किंग में पहुंच जाती है l गाड़ी से उतर कर दोनों भाई हॉल में आकर देखते हैं l ज्यादातर गेस्ट आ चुके हैं l दीवारों पर पोस्टर में मुख्य अतिथि का नाम बीरजा कींकर सामंतराय लिखा हुआ है l *** पार्टी के अध्यक्ष हैं l

विक्रम - महांती यह... महाशय कौन हैं...
महांती - क्या... युवराज जी... यह हमारे रूलिंग पार्टी *** के अध्यक्ष हैं... बीरजा कींकर सामंतराय जी हैं.... मुख्य मंत्री जी के.... अनुपस्थिति में... यह हमारे आज के मुख्य अतिथि हैं.... और यह अपने परिवार के साथ आ रहे हैं.....
विक्रम - अच्छा.... एक्चुएली कितने... गेस्ट... इनवाइटेड हैं... और कौन कौन हैं...
महांती - जी.. मीडिया वाले... कॉर्पोरेट वाले... पेज थ्री वाले और कुछ इंडस्ट्रीयलीस्ट भी.... यही करीब करीब... दो सौ लोग होंगे.... सर सिर्फ़ वही लोग आए हैं.... जो आजके डेमनस्ट्रेशन देखने के बाद.... आगे चलकर हमसे सर्विस लेंगे....
विक्रम - गुड.... और... (मुस्करा कर) अपने राइवल ग्रुप को...
महांती - (मुस्कराते हुए) जी बिल्कुल... रॉय ग्रुप को भी बुलाया है.... आखिर आधे से ज्यादा गार्ड्स... उनको छोड़ हमे... जॉइन कर चुके हैं...
विक्रम - शाबाश.... महांती....

तभी महांती की फोन बजने लगती है l महांती फोन उठा कर बात करता है फ़िर विक्रम से कहता है
- सर... चीफ गेस्ट अभी थोड़ी देर में पहुंच जाएंगे.... हमे उनके स्वागत के लिए जाना चाहिए....
विक्रम - हाँ जाओ....
महांती - क्या.... सर.... मैंने कहा हम... प्लीज
विक्रम - ह्म्म्म्म... ओके महांती... पर हमे इन सब की आदत नहीं है...
महांती - सर आप सिर्फ़ खड़े रहें.... और मैं जब परिचय करवाऊँ... आप बस उनसे हाथ मिलाएँ...
विक्रम - ठीक है चलो....

विक्रम और वीर महांती के साथ हॉल के गेट के बाहर खड़े हो जाते हैं l कमांडोज से घिरे एक गाड़ी आ कर रुकती है l एक बीरजा कींकर सामंतराय उतरते हैं l महांती उनसे विक्रम का परिचय करवाता है l विक्रम एक फ्लावर बॉके सामंतराय को देता है l सामंतराय जी बॉके लेकर विक्रम से हाथ मिलाते हैं l अचानक विक्रम की दिल की धड़कने बढ़ने लगती है l तभी सामंतराय के परिवार के बाकी लोग उतरते हैं, उनकी पत्नी और बेटी l विक्रम उतरने वालों में उनकी बेटी को देख कर हक्का बक्का रह जाता है l
विक्रम - (अपने मन में) शु श् श्... शुभ्रा... मर गए...

शुभ्रा विक्रम को आँखे सिकुड़ कर खा जाने वाली नजर से घूर रही है l उसकी नथुनों से निकल ने वाली साँसों की ताप विक्रम को साफ महसुस हो रही है l

विक्रम - (बहुत धीरे से) मर गए....

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विश्व करीब ढाई बजे लाइब्रेरी में आता है l वहाँ डैनी को कोई पेपर पढ़ते हुआ पता है l विश्व के पहुंचते ही डैनी वह पेपर रख देता है l विश्व उसके पास पहुंच गया l विश्व को देखते ही

डैनी - आओ विश्व आओ... (विश्व जा कर डैनी के सामने वाली कुर्सी पर बैठ जाता है) ह्म्म्म्म... बोलो... अब तक तो तुमने मेरे बारे में... कुछ ना कुछ पता लगा लिया होगा...
विश्व - कुछ नहीं... पर रंगा को याद करने पर... मालूम पड़ा... यहाँ... आपके बारे में... दुसरे कैदी बहुत कुछ... जानते हैं... सिर्फ़... मुझे छोड़ कर... यहाँ कोई किसीसे भी... पंगा लेले... मगर आपसे कोई नहीं पंगा लेता...
डैनी - और यह सब समझने में... तुझे... बहुत टाइम लग गया....
विश्व - हाँ...
डैनी - तो विश्व... अब आते हैं... मेरी इंट्रोडक्सन पर.... मेरा नाम है... डैनियल फ्रेडरिक पॉल... छत्तीस परगना बंगाल से हूँ.... पिता एक पुलिस ऑफिसर थे और माता गृहिणी l हम घर में तीन भाई बहन थे l मैं मंझला मेरे ऊपर मेरा बड़ा भाई था और मुझसे छोटी एक बहन थी l मेरी बचपन में ही कुछ वाक्यात ऐसे हुए, जो मुझे जुर्म की राह में चलने के लिए, प्रेरित किया l एक दिन स्कुल छुट्टी थी तो मेरी माँ ने मुझे सब्जी लाने के लिए बाजार भेजा l बाजार में मैं जब सब्जी ख़रीद रहा था, तब मैंने देखा एक गुंडा सा दिखने वाला आदमी, एक चाकू निकाल कर चौक के बीचों-बीच एक टेबल पर गाड़ दिया और टेबल पर एक बक्सा रख दिया l उस बाजार में जितने भी लोग थे सभी कुछ कुछ पैसे निकाल कर उस बक्से में डाल रहे थे l सबके देखा देखी मैंने भी कुछ पैसे डाल कर घर चला गया l माँ ने जब बाकी के पैसों की बात पुछा, तो मैंने बाजार में जो हुआ सब बता दिया l माँ सब सुन कर चुप हो गई फिर माँ ने खाना बनाया और टिफिन में पैक कर थाने में पिताजी को देने को बोला l मैं टिफिन ले कर थाने गया l थाने में पहुंच कर देखा एक कोने में सारे पुलिस वाले लाइन हाजिरी में खड़े हुए हैं और वही गुंडा बड़े ऑफिसर की कुर्सी पर बैठा हुआ था और पुलिस वाले सब उसकी जी हजूरी कर रहे थे l फ़िर कुछ देर बाद हमारे इलाके का नेता आया और गुंडे के लिए पुलिस वालों की क्लास लिया और गुंडे के कंधे पर हाथ रख कर उसे अपने साथ अपनी गाड़ी में बिठा कर ले गया l वहीँ मालुम हुआ उस गुंडे का नाम सॉपन जॉडर था l सॉपन जॉडर वाली घटना ने मुझे इस तरह प्रभावित किया के आज मैं यहाँ तुम्हारे सामने ऐसे बैठा हुआ हूँ l
हमारे क्लास में एक लड़का हुआ करता था l हमारे क्लास में सीनियर था l क्यूंकि तीन सालों से फैल हो कर वहीँ पर जमा हुआ था l उससे सभी डरते थे l मैं भी l पर उस दिन घटना के बाद मैं थोड़ा बदल गया था l एक दिन क्लास में वह लड़का मेरी सीट पर बैठ कर मुझ पर धौंस झाड़ा और एक धक्का दिया l मैं गिर गया l मेरे स्कुल बैग से कंपस बॉक्स भी छिटक कर गिर गया l मैंने उस लड़के को गौर से देखा वह लड़का सच में बहुत तगड़ा था l पर मैंने उस दिन कुछ और करने का फैसला किया l मैं अपने कंपस बॉक्स से राउंडर निकाल कर अपने डेस्क पर गाड़ दिया l पहली बार वह लड़का डर गया और मुझे मेरी सीट वापस मिल गई l उस दिन मुझे ज्ञान मिला डर सबको लगता है l बस डराने वाला होना चाहिए l उस दिन और ज्ञान भी मुझे मिला l अगर दुश्मन चुन लिए हो तो उससे सावधान रहना चाहिए l उस दिन जब घर लौट रहा था रास्ते में उस लड़के ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर मेरी खूब धुनाई की l यह बात मुझे चुभ गई, भले ही वह मुझसे तगड़ा था पर उसने अपने दोस्तों के साथ मिलकर मुझे मारा था l मैंने घर में जिद करके कराटे क्लास सीखने लगा l ठीक एक साल बाद उसी लड़के और उसके साथियों को मैंने स्कुल में ही जमकर कुटा l परिणाम यह हुआ कि की प्रिन्सिपल ने पिताजी को बुलाकर मेरी शिकायत कर दी l घर पर पिताजी ने मार मार के बाकी कसर पुरी कर दी l मैं गुस्से में घर छोड़ कर चला गया l इत्तेफ़ाक से उसी गुंडे सॉपन जॉडर की गैंग में शामिल हो गया l फिर जुर्म की दुनिया की गाड़ी में बैठ कर चल निकला, एक ऐसी गाड़ी जिसमें ब्रेक ही नहीं थे l नए नए जवानी का जोश था, खुन में गर्मी बहुत थी और इगो.... इगो तो रोम रोम में कूट कूट कर भरा था l इसीके चलते एक दिन अपने बॉस से नहीं पटा तो अलग हो कर मैंने अपनी गैंग बनाई l अपने एक्सपेरियंस को आधार बना कर सबको ट्रैन्ड किया l जिंदगी ने मुझे इतना दूर ले जा चुकी थी, के पीछे मुड़ कर देखा कोई था ही नहीं l ऐसे में मेरा परिवार मुझे बहुत याद आया l तो उनसे मिलने गया l पर वहीँ मालुम हुआ l सॉपन जॉडर से दुश्मनी के चलते उसने मेरे माँ बाप की हत्या करा दी थी l मेरी करनी कुछ इस तरह मेरे सामने आई l मेरे भाई और मेरी बहन दोनों ने मुझसे रिस्ता नकार दिया l मुझे तो अब हिसाब बराबर करना था इसलिए एक दिन एक जबरदस्त गैंगवार छिड़ गई और उस गैंगवार में मेरे बचपन का आदर्श सॉपन जॉडर मेरे ही हाथों मारा गया l उसके मरते ही उसकी सारी पोलिटिकल बैकअप और सपोर्ट मेरी तरफ शिफ्ट हो गया l मैं पूरे झारखंड, ओडिशा बंगाल और नॉर्थ ईस्ट प्रांत का अनबीटन डॉन बन चुका था l
हाँ अब डॉन तो बन चुका था, पर पता नहीं क्यूँ मुझे मारपीट में बहुत मज़ा आता था l इसलिए मैं अंडरग्राउंड फाइटिंग में हिस्सा लेने लगा....
विश्व - यह अंडरग्राउंड फाइटिंग क्या होता है...
डैनी - एक ऐसा वन टू वन फाइट होता है.... जिसमें कोई रूल नहीं होता.... कोई स्पेशल स्टाइल नहीं होता.... असल में वह मिक्स्ड मार्शल आर्ट्स बेस्ड फाइट होता है.....
विश्व - ओ...
डैनी - हा हा हा हा हा... समझ गया... तुझे कुछ समझ में नहीं आया.... हा हा हा हा... I
विश्व - फ़िर....
डैनी - अंडर वर्ल्ड डॉन और पोलिटिकल रौडी बन चुका था... और मैं आज के दौर में... एक इंटरस्टेट क्रिमिनल हूँ.... मैं आज ओड़िशा में... इसलिए हूँ... क्यूँ की... बंगाल में... मेरे खिलाफ फाइल खुल गई है.... मैं अपनी बैकअप के लिए पहले से ही चल रही केस में... खुदको अरेस्ट करवाया... अब मैं यहाँ और डेढ़ साल रहने वाला हूँ..... क्यूंकि इतने में.... बंगाल में अगला चुनाव आ जाएगा और सरकार भी बदल जाएगा.... तब मैं यहां से चला जाऊँगा....
विश्व - बंगाल में.... आप तो कह रहे थे... की सारे पोलिटिकल सपोर्ट आपको मिल गया था...
डैनी - राजनीतिक पक्ष के विरुद्ध विपक्ष भी होता है.... और सबसे बड़ी बात.... जिसका ज्ञान.. कुछ महीने पहले हुआ.... राजनीतिक षडयंत्र में.... दिखता कुछ है.... वह करते कुछ हैं.... होता कुछ है और लोग.... समझते कुछ हैं...
विश्व - मतलब....
डैनी - सबसे बड़ा एक्जाम्पल तो तु है....
विश्व - मैं... वह कैसे...
डैनी - तुझे दिखाया कुछ.... उन्होंने किया कुछ.... तेरे साथ हुआ कुछ... और अंजाम में लोगों ने समझा कुछ.... विश्व रूप..... कुछ समझ में आया....
विश्व - (अपना सर हिला कर) हाँ...
डैनी - तुझे... जयंत सर के मौत के बारे में.... क्या महसूस होता है...
विश्व - मैं समझा नहीं....
डैनी - मुझे लगता है.... जयंत सर के साथ.... हुआ कुछ... दिखा कुछ... दिखाया गया कुछ.... और सबने समझा कुछ....
विश्व - हाँ.... उनके खिलाफ़... राजनीतिक षडयंत्र हुआ तो है... इसलिए... उनको दिल का दौरा पड़ा....
डैनी - पता नहीं विश्व... मैं जुर्म की दुनिया से... ताल्लुक रखता हूँ... जुर्म के हर दाव पेच से... वाकिफ़ हूँ.... इसलिए मुझे उनके मौत पर शक है...
विश्व - सच कहूँ तो... शक़ मुझे भी हुआ है... पर मेडिकल रिपोर्ट... में... कार्डीयाक अरेस्ट आया था....
डैनी - ह्म्म्म्म जानता हूँ... पता नहीं... शायद... मैं गलत भी हो सकता हूँ....
विश्व - शायद... पर आप यहाँ.... स्पेशल सेल में... क्यूँ रहते हैं...
डैनी - हाँ... क्यूंकि मैं यहाँ... पोलिटिकल गेस्ट हूँ....
विश्व - शायद इसलिए... आप सबकी खबर रख पाते हैं....
डैनी - इस मामले में... मैं प्रोफेशनल हूँ.... मेरा अपना नेटवर्क है... जब तु आया था... मैंने तेरे बारे में भी... सब कुछ जानकारी इकट्ठा किया जा.... कहीं तु.... मेरे दुश्मन के भेजा... कोई आदमी तो नहीं...
विश्व - ओ.... तो फिर यह मार पीट.... कैसे कर लेते हैं...
डैनी - कहा ना... मैं.. मार्शल आर्ट्स जानता हूँ...
विश्व - हाँ पर... जो आपसे लड़े थे... वह चार लोग भी... मार्शल आर्ट्स जानते थे.... ऐसा मुझे लगा.... पर वह आपके सामने टिक नहीं पाए....
डैनी - अरे वाह... अच्छा ओबजर्व किया है तुने... तो यह भी जान ले.... मेरे सामने... बड़े बड़े... मारकोस कमांडो तक टिक नहीं पाते.... फ़िर यह छछुंदर कैसे टिक जाते....
विश्व - क्या... आप.. कमांडोज से भिड़े हैं....
डैनी - हाँ... तभी तो... मैं इन सब में माहिर हूँ.....
विश्व - अच्छा...
डैनी - तुने... मुझे उनके बारे में... आगाह किया था... इस उपकार के बदले बोल... मैं तेरे लिए क्या कर सकता हूँ... बोल....
विश्व - मैं... ग्रैजुएशन को रेगुलर फॉर्मेट में.... पूरा करना चाहता हूँ.... अगर आप इसमे मेरी मदत कर पाएं तो.....
डैनी - ह्म्म्म्म.... मैं सोचा.... तु... कुछ और मांगेगा....
विश्व - नहीं मुझे अभी सिर्फ़.... ग्रैजुएशन की डिग्री चाहिए....
डैनी - ठीक है.... कल तुझसे... मेरा वकील जयंत मिलने आएगा.... उससे अपना प्रॉब्लम बता देना..... वह... तुम्हारा काम कर देगा....
विश्व - (हैरान हो कर) जयंत सर...
डैनी - नहीं नहीं... यह जयंत कुमार राउत नहीं है... यह मेरा अपना वकील है... जयंत चौधरी....
विश्व - ओ... अच्छा...

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सारे गेस्ट मुख्य अतिथि भी अपने भाषण में विक्रम के ESS को स्टार्टअप से तुलना करते हुए विक्रम की प्रशंसा कर रहे हैं l विक्रम चोर नजर से नीचे के पहली पंक्ति में बैठे लोगों के बीच बैठी शुभ्रा को देख रहा है l शुभ्रा आने के बाद से ही गुस्से भरी नजर से विक्रम को देखे जा रही है l विक्रम इधर उधर देखता है और मंच के पीछे की ओर चला जाता है और एक सुकून भरा सांस लेता है l
विक्रम - (एक गहरी सांस लेते हुए) चलो बच गए...(तभी पीछे से आवाज़ आती है)

- किससे...
विक्रम - (हड़बड़ाते हुए) क्क कौन... (शुभ्रा को देख कर) ओह्ह... आप...
शुभ्रा - ह्म्म्म्म तो... किससे बच गए....
विक्रम - कक्क किसी से नहीं....
शुभ्रा - झूठ... झूठ बोलते हुए... शर्म नहीं आती...
विक्रम - मम्म कहाँ.. कक्क क्या झूठ बोला है...
शुभ्रा - आप हम से भाग रहे थे ना....
विक्रम - हाँ... न... न.. नहीं...
शुभ्रा - क्या.. हम इतने बुरे हैं....

विक्रम क्या कहे कुछ समझ नहीं पा रहा है l फ़िर भी शुभ्रा से नजरें मिलाकर

विक्रम - नहीं आप नहीं... हम बुरे हैं...

शुभ्रा अपने दोनों हाथों को मोड़ कर दोनों कुहनियों में फंसा कर विक्रम को देखती है l

शुभ्रा - ओ... तो इसलिए... फोन नंबर पूछे.... फ़िर... चैटिंग की... अब जब चैटिंग खतम हो गई... मतलब निकल गया.... तो दोस्ती खतम.... (विक्रम कुछ नहीं कहता है, सर झुका कर खड़ा रहता है) मम्मी बिलकुल सही कहती हैं... मूँछ वालों पर... भरोसा करना ही नहीं चाहिए....
विक्रम - (हैरानी से) क्या... इसमे मूँछ कहाँ से आ गई...
शुभ्रा - मेरे पापा के मूँछ है... मम्मी उन पर बिल्कुल भरोसा नहीं करती है... और मुझे समझाया भी था... पर बेवक़ूफ़ जो ठहरी... बेवकूफी आख़िर कर ही ली....
विक्रम - मूंछो से भरोसे क्या संबंध....
शुभ्रा - आज कल मूँछ मुण्डों का दौर है.... जहां देखो मूछ मुंडे ही घुम रहे हैं... उस दौर में मुझे... एक बुरा मानस दिखता है.... तलवार की धार जैसी मूँछों वाला... सोचा बगुलों के बीच में... कोई हंस की तरह.. भरोसा क्यूँ ना किया जाए... आज पता चला... राजवंशीयों के ठाठ ही मूछें होती है.... बेकार में इतने दिन... भरोसे के नाम पर... वेस्ट हो गया....

विक्रम की हँसी निकल जाती है l फिर ख़ुद को सम्भाल कर शुभ्रा से

विक्रम - पर आप तो... हमारे इस प्रोग्राम में आने से मना कर दिया था... फ़िर आए कैसे....
शुभ्रा - आपने बताया कहाँ था.... प्रोग्राम के बारे में... आपने तो सस्पेंस बना रखा था... फ़िर भी पापा से पूछा भी था.... तो उन्होंने मना कर दिया.... पर देखिए ना... भगवान ने हमें आपके प्रोग्राम में आख़िर पहुंचा ही दिया... (थोड़ा मुहँ बना कर) आप इसलिए हमसे नाराज है ना...

शुभ्रा के ऐसे कहने पर विक्रम पूरी तरह से पिघल जाता है l

विक्रम - नहीं नहीं... ऐसी कोई बात नहीं है... हम नाराज बिलकुल नहीं हैं...
शुभ्रा - हाँ आखिर हम प्रजा जो ठहरे आपके... युवराज जी... (अपने गालों को पिचका कर छेड़ते हुए, कहती है )
विक्रम - वैसे आपको कब मालुम हुआ.... हम राजवंशी हैं....
शुभ्रा - अभी यहाँ पहुंच कर.... वैसे एक बात पूछें....
विक्रम - जी एक नहीं... सौ सवाल कीजिए.... पर पहेली मत पूछिए....
शुभ्रा - (अपनी आँखे नचा कर, एक शरारत भरी मुस्कान के साथ) क्यूँ... वह क्यूँ भला...
विक्रम - हमारे छोटे भाई आपको... बेताल कह रहे थे....
शुभ्रा - अच्छा (खिलखिला कर हँसने लगती है) वह... वह में पूछ रही थी (अचानक सिरीयस हो कर) कहीं ऐसा तो नहीं.... के आप राजवंशी सिर्फ... राजवंशीयों से ही दोस्ती रखते हैं.... गैर राजवंशीयों से नहीं....
विक्रम - अरे नहीं नहीं... ऐसी... बात नहीं... अच्छा... खाने के स्टॉल पर चलें... अभी तो कोई आने से रहा...
शुभ्रा - जी... युवराज जी...
विक्रम - प्लीज.... कम से कम... आप तो हमें... युवराज ना कहें...
शुभ्रा - (मासूमियत से) तो हम आपसे क्या कहें...
विक्रम - कुछ भी... दोस्त हैं.... कुछ ऐसा... जो एक खास दोस्त... ही बुलाए....
शुभ्रा - अच्छा... ठीक है... चलिए... सोचते हैं...

दोनों खाने के लिए बने स्टॉल की ओर जाते हैं l कुछ गार्ड्स वहाँ दो कुर्सी डाल देते हैं l यह दोनों वहाँ पर बैठ जाते हैं l

शुभ्रा - ओह... ओ.. क्या बात है... युवराज और उनके गेस्ट को... रॉयल ट्रीटमेंट....
विक्रम - ओह... कॉम ऑन....

शुभ्रा खिलखिला कर हँस देती है l शुभ्रा की हँसी देख कर विक्रम खो सा जाता है l

विक्रम - क्या लेंगी...
शुभ्रा - फ़िलहाल... अगर कॉफी मिल जाए तो...
विक्रम - (किसी को इशारा करता है) आप को कॉफी इतना पसंद है...
शुभ्रा - ऐसी बात नहीं है... आपको कॉफी डे... लिखा दिख जाता है... पर टी डे... कहीं नहीं दिखता है... है ना.... इसलिए कॉफी पसंद है.... (विक्रम उसे घूर कर देखता है) अच्छा बाबा... असल में... कॉफी ठंडा पिया जा सकता है.... गरम पिया जा सकता है.... आइसक्रीम के साथ पिया जा सकता है.... पता नहीं... क्या क्या किया जा सकता है.... पर चाय... बेड टी तक ही... ठीक लगती है...
विक्रम - बाप रे इतनी गहरी बात.... हमे नहीं मालूम था....
शुभ्रा - कोई बात नहीं... आपको हमारी संगत में... लोक ज्ञान मिलता रहेगा....

इतने में कॉफी आ जाती है l दोनों चुस्कियां भरने लगते हैं l

विक्रम - अच्छा... (थोड़ा गम्भीर हो कर) आपने कहा था.... आप जीवन में... कुछ करना चाहती हैं.... कोई गोल है क्या...
शुभ्रा - (विक्रम को देखे बगैर) है नहीं था... डॉक्टर बनना चाहती थी.... पर पापा को मंजूर नहीं था....
विक्रम - क्यूँ...
शुभ्रा - वह मुझे... एक ही कंडीशन में पढ़ाना चाहते थे.... अगर मैं उनके दोस्त के बेटे से शादी कर लूँ तो....
विक्रम - यह कैसा... कंडीशन है....
शुभ्रा - अब है तो है... क्या कर सकते हैं....
विक्रम - क्या आप मेडिकल पढ़ना चाहती हैं....
शुभ्रा - नहीं (बेफिक्री से कॉफी पीते हुए) अब अगर पापा शादी कराना चाहते हैं... तो कर लेंगे...
विक्रम - क्यूँ... अब आपका वह... कुछ करने की ख्वाहिश थी... उसका... क्या...
शुभ्रा - हाँ... पर अब कर ही क्या सकते हैं.... वैसे भी... एक साल तो बर्बाद हो चुका है... इसके लिए... मुझे अगले साल तक इंतजार करना होगा l अभी तो... साल का आधा सेशन भी खतम हो चुका है.... (कह कर शुभ्रा कॉफी खतम करती है, और बड़ी चाव से आँखे मूँद कर होठों पर बने बुलबुलों की धार पर हॉट फेरती है l उसकी इस अदा पर विक्रम की आह निकल जाती है l शुभ्रा अपनी आँखे झट से खोल देती है और विक्रम की ओर देखती है l विक्रम सकपका जाता है और अपना मुहँ दुसरी तरफ कर लेता है
 
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