• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

Mr. X
Prime
4,342
16,933
144
IMG-20211022-084409


*Index *
 
Last edited:

park

Well-Known Member
11,678
13,921
228
👉एक सौ अट्ठावनवाँ अपडेट
------------------------------

अर्ध रात्री
आकाश में तारे टिमटिमा रहे थे, क्षेत्रपाल महल के अंतर्महल की छत पर एक जोड़ा एक दूसरे के बाहों में खोए हुए थे l यह युगल कोई और नहीं हैं बल्कि हमारे कहानी के नायक व नायिका विश्वरुप ही हैं l रात शांत, हर क्षण शांत, हर फ़िजा शांत, जैसे वह आतुर हों इनके वार्तालाप सुनने के लिए l ऐसे ही बाहों में रहते हुए रुप ख़ामोशी को तोड़ती है और विश्व से कहती है l

रुप - जानते हो... मेरा दिल आज तुम्हें पुकार रहा था... और तुम आ गए...
विश्व - पर... मैंने आपको खबर भी नहीं की थी... बस छत पर आ गया था... आपको कैसे पता चला... के मैं आपको मिलने आया हूँ...
रुप - इट्स अ गर्ल थिंग... फिर भी बता देती हूँ... मेरे धड़कनों.. मेरे एहसासों... मेरे रोम रोम से पूछ कर देखो... जब भी तुम आस पास होते हो... मेरे रूह को... तुम्हारे होने का एहसास... अपने आप हो जाता है...
विश्व - क्या... आपको डर लग रहा है...
रुप - (अपना चेहरा अलग करते हुए) भला वह क्यूँ...
विश्व - राजा साहब ने... आते ही आपको जोरदार झटका जो दिया...
रुप - (विश्व के सीने से चिपक कर) वैसे कोशिश उनकी बहुत अच्छी थी... पर मैं जानती हूँ... उनकी कोशिश बेकार जाने वाली है...
विश्व - अच्छा... वह कैसे...
रुप - वह ऐसे की मैं जानती हूँ... के तुम यह शादी कभी होने ही नहीं दोगे...
विश्व - इतना भरोसा...
रुप - कोई शक़... (एक पॉज) अनाम... मेरा प्यार... मेरा विश्वास है... मेरे विश्वास का आधार... एक तुम हो... और एक भगवान... मैं जान हार सकती हूँ... पर विश्वास कभी नहीं...

विश्व कोई जवाब नहीं देता, बस दोनों की जकड़ बढ़ जाती है l थोड़ी देर बाद दोनों एक दूसरे से अलग होते हैं और पिछली बार की तरह छत पर बनी चबूतरे पर बैठ जाते हैं l आज आसमान में चाँद नहीं था फिर भी दोनों आसमान की ओर देखे जा रहे थे l विश्व एक सवाल छेड़ देता है

विश्व - आप अगर डरी नहीं थीं... तो मुझे ढूंढ क्यूँ रही थी...

रुप - (विश्व की तरफ घूम कर उसका चेहरा दोनों हाथों से पकड़ कर अपने तरफ करती है और पूछती है) मेरे आँखों में झाँक कर देखो... क्या तुम्हें डर दिख रहा है...
विश्व - नहीं.... नहीं दिख रहा है... पर फिर भी...
रुप - ( विश्व की चेहरे को छोड़ कर आसमान को ओर देखने लगती है) मैं बस.. अपनी प्यार को ... अपनी चाहत को.. उसकी गहराई को परख रही थी... कहीं मेरा प्यार... कोई तुक्का तो नहीं... पर आज तुम्हें छत पर पा कर... मुझे अपने प्यार पर यकीन हो गया है... के मेरा प्यार.. मेरी चाहत में कहीं भी कोई मिलावट नहीं है... झूठ नहीं है... (रुप की यह बात विश्व एक टक सुने जा रहा था, रुप विश्व की तरफ देख कर पूछती है) ऐसे क्या देख रहे हो...
विश्व - (मुस्करा कर) बस आपको देख रहा हूँ...
रुप - पर आसमान में चाँद नहीं है... फिर मेरे चेहरे पर क्या है... अंधेरे में तुम्हें पता कैसे चल रहा है...
विश्व - आसमान में चाँद से मुझे क्या लेना देना... मेरा चाँद तो मेरे आँखों के सामने है... मेरे इस चाँद के चाँदनी के आगे.. भला उस चाँद का क्या मुकाबला...
रुप - ओ हो... आज तो बड़े शेरों शायरी के मुड़ में हो...
विश्व - इसका दोष भी आप पर जाता है... आप हो ही इतनी सुंदर... बड़े बड़े गँवार भी शायर बन जाएंगे... इस बेपनाह हुस्न को देख कर...
रुप - बस बस... (अपने दोनों हाथों को विश्व के कंधे पर रख कर हाथ पर अपना ठुड्डी रख कर) इतना तारीफ ना कीजिए... अभी जाग रही हूँ... जागी ही रहने दीजिए... इतना तारीफ करोगे... तो सपना समझ कर नींद की आगोश में ना खो जाऊँ... (अचानक अलग होती है) एक बात पूछूँ...
विश्व - जी पूछिये...
रुप - राजा साहब तो महल में होंगे ना... फिर तुम कैसे अंदर आ गए...
विश्व - बस... आ गया...
रुप - अरे... ऐसे कैसे... याद है... जब मैंने तुम्हें आने के लिए कहा था... तब तुम... बिजली गुल कर अंदर घुसे थे...
विश्व - हाँ... तब मैं चाहता था... की राजा साहब को मालूम हो... के कोई अंदर आया था... इसलिए तो सुबह सुबह... मैंने छोटे राजा जी से... सलाम नमस्ते की थी...
रुप - पर अब...
विश्व - आप भूल रही हो... मैं इस महल के हर चप्पे-चप्पे से वाकिफ हूँ...
विश्व - सच्ची...
विश्व - ह्म्म्म्म... नहीं थोड़ी सी झूठ बोला है...
रुप - थोड़ा सी झूठ... मतलब कितना...
विश्व - राजा साहब कुछ देर पहले... रंग महल की ओर गये हैं... मैं मौका देख कर... घुस गया... और उनके आने से पहले... मुझे चले जाना होगा...
रुप - ह्म्म्म्म... मतलब तुम्हें भी डर लगता है...
विश्व - क्यूँ नहीं... मैं डर रहा था.. आपके लिए
रुप - क्यूँ...
विश्व - (चबूतरे से उठ कर छत के किनारे तक जाता है)
रुप - अनाम... तुमने बताया नहीं....
विश्व - (रुप की ओर मुड़ता है) मुझे जब खबर लगी... के राजा साहब ने... आपकी शादी तय कर दी... हाँ मैं डर गया था... (एक गहरी साँस लेकर) मुझे... वीर और अनु याद आ गए...

विश्व इतना कह कर रुक जाता है l रुप चबूतरे से उठ कर भाग कर जाती है और विश्व के सीने से लग जाती है l विश्व भी अनु को सीने में कस लेता है l

विश्व - वीर जब भी याद आता है... मुझे बहुत दर्द दे जाता है... मेरा वज़ूद... मेरी शख्सियत को कठघरे में खड़ा कर देता है... और एक सवाल हरदम झिंझोड़ता रहता है... क्यूँ आखिर क्यूँ... मैं पांच मिनट पहले नहीं पहुँचा...
रुप - (अपना सिर ऊपर उठा कर विश्व को देखते हुए) कहीं तुम मुझे ले चलने के लिए तो नहीं आए हो...
विश्व - जो आप कहेंगी वही होगा...
रुप - मैं किसी मज़बूरी या खौफ के चलते... अभी जाना नहीं चाहती... तुम बस यह शादी रुकवा दो... जिस दिन जाऊँगी... राजा साहब को बेबस देखते हुए जाऊँगी... उन्होंने हर किसी की बेबसी का फायदा उठाया है... मैं अपनी बिदाई पर.. उन्हें बेबस और लाचार देखना चाहती हूँ... वही पल... असल में बदला होगा... उनके हर एक सितम का...
विश्व - (मुस्कराते हुए) चलो... मेरा यह डर भी आपने ख़तम कर दिया...
रुप - उफ्फ्फ... कभी तो मुझे तुम कहो...
विश्व - नहीं... यह मुझसे नहीं होगा... आप राजकुमारी हो... मैं आपका गुलाम...
रुप - (बिदक कर) छोड़ो मुझे... (अलग हो जाती है) बड़े आए गुलाम...
विश्व - क्या हुआ...
रुप - वह साला कमीना... पहली मुलाकात में ही... मुझे तुम बोल रहा था...
विश्व - राज कुमारी जी... आप कबसे गाली देने लगी...
रुप - शुक्र मनाओ तुम्हें नहीं दी... बेवक़ूफ़.. हूँह्ह्... पूछा नहीं कौन था वह...
विश्व - इसमें पूछने वाली क्या बात है... मैं जानता हूँ... मेरी नकचढ़ी ने... उसको अच्छे से निचोड़ दिया होगा..

रुप हँस देती है, विश्व की तरफ जाती है l विश्व की हाथों को लेकर अपनी कमर पर रखती है l विश्व के गले में हाथ डालकर रुप विश्व के पैरों पर खड़ी हो जाती है और एड़ी उठा कर विश्व के चेहरे के सामने अपना चेहरा लाती है l विश्व की धड़कन बढ़ जाती है, रुप आगे बढ़ कर विश्व की नाक हल्के से काट लेती है l

विश्व - आह... आप हमेशा मेरी नाक के पीछे क्यूँ पड़े रहते हो...
रुप - (विश्व के नाक पर अपनी नाक रगड़ते हुए) मुझे.. अच्छा लगता है...
विश्व - (कांपते लहजे से) मुझे लगता है... अभी मुझे जाना चाहिए...
रुप - चले जाना,.. जरा ठहरो...
यह मंज़र देख कर जाना...
किसीका दम निकलता है...
विश्व - पता नहीं मुझे... पर मैं ज्यादा देर रुका... तो मेरा दम निकल जाएगा...
रुप - यु...

रुप अपना होंठ विश्व की होंठ पर रख देती है l दोनों के होठों के गुत्थम गुत्था शुरु हो जाता है l विश्व की हाथ रुप की कमर से उठ कर रुप के सिर को पकड़ लेता है और अपने में समेटने की कोशिश करता है l फिर उसका हाथ फिसलते फिसलते फिर कमर तक आ जाते हैं पर कमर पर रुक जाते हैं l कमर पर विश्व के हाथ मुट्ठी बाँध लेता है l रुप अलग होती है और विश्व के पैरों से उतरती है l दोनों हांफ रहे थे, जहां विश्व के चेहरे पर एक शॉक था वहीँ रुप के चेहरे पर एक शरारती मुस्कान था l

रुप - बहुत डरते हो... बेवक़ूफ़ तो हो ही.. अब डरपोक भी हो...
विश्व - हिरण... शेरनी से क्यूँ नहीं डरेगा...
रुप - पर यहाँ तो शेरनी खुद हिरण के हाथों शिकार होना चाहती है... पर हिरण है कि... हाथ पैर सब... अपाहिज हो जाता है...

विश्व रुप की हाथ को पकड़ कर खिंचता है l दोनों की नजरें मिलती हैं l रुप की माथे पर उड़ती लटों को हटाता है और रुप के चेहरे को दोनों हाथों से पकड़ कर कहता है l

विश्व - प्यार में बहुत गर्मी होती है... कभी कभी संभलना मुश्किल हो जाता है... प्यार में.. जब जब जो जो होना है... उसे तब तब होने देते हैं ना... जब समाज... संस्कार और भगवान का आशिर्वाद होगा... तब हमारे हिस्से की चार दीवारी और बंद दरवाजा होगा... उस दिन शायद आपको मुझसे कोई शिकायत नहीं होगी...
रुप - ओह... अनाम... (रुप विश्व के सीने से लग जाती है) तुम कितने अच्छे हो... आई लव यु...
विश्व - आई लव यु ठु.. (तभी दूर से एक सियार के भौंकने की आवाज आती है) लगता है... राजा साहब... रंग महल से निकल गए हैं... कुछ ही मिनट में पहुँच जायेंगे... (विश्व रुप की माथे पर एक किस करता है) राजकुमारी जी... आप वही करते जाइयेगा... जैसा आपको राजा साहब कहते जाएं... बाकी आप मुझ पर या अपने आप पर भरोसा मत खोइयेगा...
रुप - जैसी आपकी ख्वाहिश मेरे गुलाम...

दोनों हँसने लगते हैं l फिर विश्व इशारे से रुप को जाने के लिए कहता है l रुप जाने के लिए पलटती है और कुछ कदम चलने के बाद मुड़ती है पर तब तक विश्व गायब हो चुका होता है l रुप का मुहँ हैरानी के मारे खुल जाती है l

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×

अगले दिन
दिन के दस बजते बजते भीड़ छट चुकी थी l गौरी अपना गल्ला बंद कर अंदर जाने लगती है l वैदेही भी सारे बर्तनों को समेट कर धोने के लिए जमा करती है l इतने में दुकान पर सुषमा और शुभ्रा आते हैं l वैदेही उनके तरफ देखती है और महसुस करती है जैसे वह कुछ बात करना चाहते तो हैं पर हिचकिचाते रहे हैं l

वैदेही - आप अंदर आइए... आइए ना... (सुषमा और शुभ्रा एक दुसरे की ओर देखते हैं फिर अंदर आते हैं) बैठिए... (दोनों झिझकते हुए बैठते हैं)

वैदेही पानी की ग्लास लाकर उन्हें देती है l फिर एक कुर्सी खिंच कर उनके पास बैठ जाती है l

वैदेही - बड़े भाग्य का दिन है आज... मेरे घर... छोटी रानी और युवराणी आई हुई हैं... कहिये... क्या सेवा कर सकती हूँ..
शुभ्रा - ऐसे ना कहिये... महीनों पहले आप ऐसे कहतीं तो उस बात की कोई मायने होती... पर आज यह बात कोई मायने नहीं रखती... ना छोटी माँ आज रानी हैं... ना ही... मैं कोई युवराणी... वैसे भी... हम आज फरियादी बन कर आए हैं...
वैदेही - अरे बापरे... इतनी बड़ी बात... आप लोग मेरे सपने हैं... भला अपनों के यहाँ कोई फ़रियाद लेकर आता है... हक् से आता है.. हक जताता है... बस हुकुम कीजिए... जो बस में होगा... जरुर करूँगी...

तभी टीलु कुछ सामान हाथ में लेकर अंदर आता है l इन दोनों को देख कर थोड़ा स्तब्ध हो जाता है l फिर वैदेही की ओर देखता है l

वैदेही - आज हमारे यहाँ मेहमान आए हैं... इसलिये... दोपहर को दुकान बंद रहेगी... और आज... (शुभ्रा की ओर इशारा करते हुए) इन्हींकी मर्जी का खाना बनेगा...
शुभ्रा - नहीं नहीं...
वैदेही - अरे कैसे नहीं... मेरी माँ कहा करती थी... गर्भवती स्त्री का किसी के द्वार आना सबसे शुभ होता है... और उन्हें उनकी इच्छानुसार खाना खिलाने से... सौ जन्म का पुण्य मिलता है... इसलिए... बेझिझक बताइए... आज यहाँ आपकी ही मन पसंद का भोजन बनेगा...
शुभ्रा - वैदेही जी... हम किसी और काम से आए हैं...
वैदेही - वह भी सुन लुंगी... पर पहले मुझे आपका सेवा तो करने दीजिए...
सुषमा - वैदेही... हम यहाँ बहुत टेंशन में हैं... तुम जानती भी हो क्या हुआ है...
वैदेही - ओह... माफ कर दीजिए... मुझे लगा नहीं था कि किसी गम्भीर विषय पर बात करने के लिए आप यहाँ आए हैं...
सुषमा - बात बहुत ही गम्भीर है... और हम चाहते हैं कि... तुम हमें कोई राह दिखाओ...
वैदेही - ठीक है... मुझसे जो बन पड़ेगा... वह मैं जरुर करूंगी...
शुभ्रा - हाँ आप ही कर सकती हो... क्यूँकी... गाँव में सब कहते हैं... की आपकी इस चौखट से... ना तो कोई खाली हाथ लौटा है... ना ही कोई खाली पेट...
वैदेही - आप बात तो शुरु कीजिए... जब से आए हैं... मेरी बड़ाई किए जा रहे हैं...
टीलु - सच ही तो कहा है उन्होंने... दीदी... तुम्हारे दर से... कभी कोई जरूरत मंद ना खाली पेट लौटा है... ना खाली हाथ...
वैदेही - तु यहाँ से जा... वर्ना तु जरूर आज भूखा रहेगा...

टीलु झट से अंदर की ओर चला जाता है l उसे जाते हुए तीनों देख रहे थे l उसके जाने के बाद सुषमा वैदेही से कहना शुरु करती है l

सुषमा - देखो वैदेही... तुम्हारा यह मुहँ बोला भाई... झूठ नहीं कहा है... मैं तुम्हें बेटी नहीं कह सकती... क्यूँकी इससे... उस रिश्ते पर तोहमत लगेगी... मैं जानती हूँ... क्षेत्रपाल परिवार ने तुम्हारे साथ क्या किया है... पर तुम स्वयं सिद्धा हो... तुम देवी हो... इसलिए आज हम दोनों सास बहु... तुम्हारे दर पर आए हैं... हमारी बेटी... रुप नंदिनी के लिए... (वैदेही थोड़ी गम्भीर हो जाती है) वह पाँच साल की थी... जब उसकी माँ इस दुनिया से चली गई... मैंने अपने सीने से लगा कर बड़ा किया... मुझे अपने बच्चों से ज्यादा अजीज है... पता नहीं... तुम भाई बहन को पता है भी या नहीं... अगर पता है... तो तुम लोग गम्भीर क्यूँ नहीं हो... राजा साहब ने... नंदिनी की शादी एक अधेड़ से तय कर दी है.... मैं और मेरी बहु... यहाँ उसकी सुरक्षा मांगने आए हैं... (हाथ जोड़ देती है)
वैदेही - अरे अरे... यह आप क्या कर रही हैं...
शुभ्रा - वक़्त की विडंबना है... कभी क्षेत्रपालों को गुरुर हुआ करता था... के उनके हाथ कभी आकाश की ओर नहीं देखती... पर आज हम तुम्हारे सामने हाथ फैलाए आए हैं...
वैदेही - राजा भैरव सिंह... कल आपके पास से सीधे मेरे पास आए थे...

इतना कह कर वैदेही अपनी टेबल की ड्रॉयर खोल कर वही इंवीटेशन कार्ड निकाल कर सुषमा को दिखाती है l शुभा और सुषमा दोनों हैरान हो जाते हैं और वैदेही की ओर देखने लगते हैं l

वैदेही - जब भैरव सिंह... गिरफ्तार हो कर जा रहा था... यहाँ मुझसे मिलने आया था और चुनौती दे कर गया था... मुझे और विशु की हालत खस्ता कर देगा... और कटक छोड़ कर राजगड़ आने से पहले... विशु को भी... चेतावनी देकर आया था... के उसके तन मन और आत्मा को ज़ख्मी कर देगा...
सुषमा - मतलब तुम सब जानती हो...
वैदेही - हाँ... जानती हूँ... और यह भी जानती हूँ... यह शादी नहीं होगी...
शुभ्रा - यह आप कैसे कह सकते हैं... राजा साहब ने... अपनी नई फौज बनाई है... बाहर से लोग आए हैं...
वैदेही - फिर भी... यह शादी नहीं होगी...
सुषमा - मैं तुम्हारी आत्मविश्वास की कद्र करती हूँ... पर अति आत्मविश्वास और आत्मविश्वास के बीच बहुत ही महिम दीवार होती है...
वैदेही - यह मेरा विश्वास है... बल्कि यह मेरा ही नहीं... आपकी नंदिनी का भी यही विचार है...
सुषमा और शुभ्रा - क्या...
वैदेही - हाँ...
सुषमा - ठीक है... यह उसका विचार हो सकता है... पर... राजा साहब... अपने अहं के आगे... किसीको कुछ नहीं समझते...
सुषमा - जब किसी का अंत करीब आती है.... तो उसका बुद्धि और विवेक खो जाती है... राजा भैरव सिंह के साथ भी ऐसा ही हुआ है... वह इस विषय में... विश्व को दिली और दिमागी तौर से कमजोर करने के लिए... ऐसा कदम उठाया है... पर जब दो प्रेमी... इससे परेशान नहीं हैं... तो हम क्यूँ हों...
शुभ्रा - क्या कहा तुमने... विश्व और रुप परेशान नहीं हैं...
वैदेही - (मुस्कराती है) रात को ही... विशु... नंदिनी से मिलकर आया है... इसलिए... आप भी निश्चिंत हो जाइए... यह शादी नहीं होगी...
शुभ्रा - भगवान करे... आपकी बात सही हो... पर कल से... विक्रम जी बहुत परेशान थे... उनसे रहा नहीं गया... तो अभी कुछ देर पहले महल की ओर गए हैं...
वैदेही - तो ठीक है ना... आप उनसे सारी जानकारी प्राप्त कर सकतीं हैं... (दोनों कशमकश के साथ अपना सिर झुका लेते हैं) वह सब जाने दीजिए... शुभ्रा जी... दिल को तसल्ली दीजिए... और जो भी आपका मन पसंद हो कहिए... आपको खिलाए बिना जाने नहीं दूंगी... ह्म्म्म्म


×_____×_____×_____×_____×_____×_____×


केके पिनाक के कमरे में कुर्सी पर बैठा हुआ था l केके का पैर एक नौकर दबा रहा था l केके कमरे की चारों ओर नजर घुमा रहा था l नौकर देखता है केके किसी गहरे सोच में खोया हुआ है l कोई ऐसी बात थी जो उसे असहज कर रही थी l

नौकर - मालिक... क्या आपको हमारी सेवा अच्छी नहीं लगी...
केके - (सोच से बाहर आता है) नहीं नहीं...
नौकर - पर हम तो जी जान से आपकी सेवा कर रहे हैं...
केके - अरे नहीं... मेरा मतलब... तुम बहुत अच्छा काम कर रहे हो... हम बस कुछ और सोच रहे थे... वैसे क्या नाम है तुम्हारा...
नौकर - जी सत्यवान... पर सभी मुझे सत्तू कह कर बुलाते हैं...
केके - तो सत्तू...
सत्तू - जी... जी मालिक...
केके - तुम जानते हो... हम कौन हैं...
सत्तू - जी मालिक... आप इस परिवार के होने वाले... जामाता हैं... तभी तो... मुझे आपकी सेवा करने के लिए... जिम्मेदारी सौंपी गई है...
केके - ह्म्म्म्म... अब मेरा पैर छोडकर कुर्सी पर बैठ जाओ....
सत्तू - ना मालिक ना... हम महल के नौकर हैं... (कह कर फर्श पर पालथी मार कर बैठ जाता है) अब पूछिये...
केके - अच्छा सत्तू... क्या तुमने पूरा महल देखा हुआ है...
सत्तू - नहीं मालिक... यह पहली बार है... जब हम महल के इतने अंदर आए हैं... वर्ना... हमारी औकात बरामदे तक ही होती थी... फिर भी... आप पूछिये... क्या जानना चाहते हैं... जो मुझे मालूम होगा... मैं बता दूँगा...
केके - अच्छा... कितने कमरे हैं यहाँ...
सत्तू - वह तो नहीं पता... पर पंद्रह बीस कमरे होंगे... और जो भी हैं बड़े बड़े कमरे हैं...
केके - रहते कितने लोग हैं...
सत्तू - जनाना महल में... राजकुमारी जी रहती हैं... और एक बड़े से कमरे में... बड़े राजा जी रहते हैं... उनकी सेवा में भी बहुत लोग लगे हुए हैं...
केके - ह्म्म्म्म...
सत्तू - और कुछ...
केके - तुम...
सत्तू - हाँ हाँ पूछिये...
केके - य़ह तुम... विश्वा के बारे में क्या जानते हो...
सत्तू - ज्यादा कुछ नहीं मालिक... मुझे तो तीन साल हुए हैं... राजा साहब के महल में... पर इतना जानता हूँ... विश्वा इस महल का बहुत पुराना नौकर था... राजा साहब ने उसे सरपंच बनाया... पर यह उनसे गद्दारी पर आ गया... उसने कई कत्ल भी किए हैं... और जैल भी गया था... पर था साला पढ़ाकु... जैल में रहकर बड़ा वकील बन गया है... अब देखिए ना... उसकी एहसान फरामोशी... राजा साहब के खिलाफ अब केस लड़ रहा है...
केके - उसका और राजकुमारी का क्या रिश्ता है... कुछ जानते हो...
सत्तू - हाँ जानता हूँ ना... विश्वा... बचपन में... राजकुमारी जी को सात साल तक पढ़ाया है...
केके - ओ... मतलब पहचान.. बचपन वाला है...
सत्तू - जी मालिक...
केके - अच्छा सत्तू... राजकुमारी की शादी... किसी राज घराने में... या फिर... किसी बड़े घर में होनी चाहिए थी... है ना...
सत्तू - ऐसी बातेँ मुझसे मत पूछिये मालिक... बहुत छोटे लोग हैं... क्या बोलें... हम बस इतना जानते हैं... राजा साहब... हमारे भगवान हैं... उनकी बात और फैसला... यहाँ पर रहने और जीने वालों की जीने की फरमान होती है... राजा साहब ने अगर आपको पसंद किया है.. तो यह राजकुमारी और आपका भाग्य है...
केके - ह्म्म्म्म... वैसे... मेरे बारे में... तुम्हारे साथी कैसी बात कर रहे हैं...
सत्तू - राजा साहब के फैसले पर... हम कभी बात नहीं करते... बस उनके हुकुम बजाते हैं...
केके - अच्छा यह बताओ... राजा साहब ने कभी विश्वा को... उसकी गुस्ताखी की सजा देने का नहीं सोचा...
सत्तू - अब हम क्या कहें मालिक... विश्वा अब कोई आम विश्वा नहीं है... बवंडर है... हमने कई बार कोशिश की उसे मिटाने के लिए... पर हर बार वह हम पर भारी पड़ा... एक अकेला... बीस बीस को लपक लेता है... एक बार तो महल के बाहर ही... (सत्तू बताने लगता है कैसे गाँव वालों के जमीन और घरों के कागजात लेने वैदेही और विश्वा आए थे और कैसे कागजात लेकर गए थे)
केके - और राजा साहब खामोश हैं...
सत्तू - क्या करेंगे फिर... आखिर वह राजा हैं... किसी ऐरे गैरे को... राह चलते को... कैसे हाथ लगा सकते हैं... उनको हम पर भरोसा था... पर... हम ही खरे नहीं उतरे... इसीलिए तो अब... बाहर से लोगों को लाए हैं... अब अगर विश्वा कुछ भी हिमाकत करेगा... तो इसबार वह बच नहीं पाएगा... वैसे एक बात पूछूं मालिक...
केके - पूछो...
सत्तू - आप यह विश्वा के बारे में... इतना पूछताछ क्यूँ कर रहे हैं... क्या आप उसे पहले से जानते हैं...
केके - अरे नहीं... बस ऐसे ही सुना था... अच्छा... xxx चौक पर... एक औरत का दुकान है... उसका राजा साहब का... मतलब... कुछ...
सत्तू - वह औरत... वही तो विश्वा का बहन... वैदेही है...
केके - (चौंकता है) क्या...
सत्तू - क्यूँ... क्या हुआ मालिक...
केके - कुछ नहीं... (माथे पर चिंता की लकीर उभर आती है) राजा साहब... महल को लौटते वक़्त... उसके दुकान पर गए थे...
सत्तू - ज्यादा तो नहीं जानता पर... सुना है... कभी रंग महल में... राजा साहब के ऐस गाह की रौनक हुआ करती थी... और वही एक औरत है... पूरे राजगड़ में... जो राजा साहब से सिर उठा कर आँखों में आँखे डाल कर बात करती है...

तभी कमरे के बाहर दस्तक होती है, दोनों की नजरें दरवाजे की तरफ जाती है l एक नौकर खड़ा था l

केके - हाँ क्या हुआ...
नौकर - राजा साहब आपको... दीवान ए आम में आने के लिए कहा है...
केके - ठीक है... तुम चलो... (सत्तू से) तुम मुझे वहाँ ले चलो...
सत्तू - ठीक है मालिक....

दोनों कमरे से निकल कर दीवान ए आम की ओर जाने लगते हैं l जाते वक़्त केके अपनी नजरें चारो ओर दौड़ा रहा था l कुछ देर बाद दोनों दीवान ए आम में पहुँच जाते हैं l दोनों देखते हैं सिंहासन पर भैरव सिंह बैठा हुआ था और उसके सामने विक्रम खड़ा था l केके को देख कर भैरव सिंह केके से कहता है

भैरव सिंह - आओ केके आओ... महल में कोई शिकायत तो नहीं...
केके - जी नहीं राजा साहब...
भैरव सिंह - (विक्रम से) तो... विक्रम सिंह... बताने की कष्ट करेंगे... महल में जबरदस्ती घुसने की कोशिश क्यूँ कर रहे थे...
विक्रम - मैं यहाँ अपनी बहन से मिलने आया था...
भैरव सिंह - क्यूँ... क्यूँ आए हो... तुमने तो सभी रिश्ते नाते तोड़ कर महल से चल दिए थे...
विक्रम - मैं... महल से क्षेत्रपाल छोड़ गया था... तब भी... अपनी बहन को ले जाना चाहता था... शुक्र मनाईये... वह अपने दादा की सेवा करने के लिए रुक गई... वर्ना...
भैरव सिंह - वर्ना... हाँ हाँ... वर्ना... शायद तुम भूल रहे हो... वह तुम्हारे साथ जाती ही नहीं...
विक्रम - आप उसकी अच्छाइ.. और मासूमियत का... नाजायज फायदा उठा रहे हैं...
विक्रम - नाजायज... फायदा... जो... जिसकी... जितनी काबिल है... हम उसकी उतनी... वही किस्मत लिख रहे हैं... नंदिनी के किस्मत में वही मिल रहा है... जो उसने हमसे खोया है... और इस महल के बाहर कमाया है... हम तो बस मोहर लगा रहे हैं...
विक्रम - (केके की ओर दिखा कर) यह... इसको नंदिनी की किस्मत में थोप रहे हैं... यह हरामी गटर का सुअर... मेरी जुती चाटने वाला...
भैरव सिंह - केके...
केके - जी राजा साहब...
भैरव सिंह - आओ... हमारे बगल में बैठो...

केके जा कर भैरव सिंह के पास वाले एक कुर्सी पर बैठ जाता है l विक्रम की आँखें गुस्से से अंगारों की तरह दहकने लगती हैं l विक्रम को मुट्ठीयाँ भिंच जाती हैं l विक्रम का यह रुप देख कर केके की हलक सुख जाता है l

भैरव सिंह - अब केके की जुतें.. इस घर के नौकर साफ करते हैं...
विक्रम - मुझे यह समझ में नहीं आ रहा... आप ऐसा क्यूँ कर रहे हैं... अपनी कद से ऊपर उठने के बजाय... गिरते जा रहे हैं...
भैरव सिंह - कद किसका क्या है... कितना है... यह फैसला भी हम ही करते हैं...
विश्व - मैं आपसे कोई बहस करना नहीं चाहता... आप नंदिनी को बुलाईये... मैं उसकी मर्जी जानना चाहता हूँ...
भैरव सिंह - वही तो हम पूछ रहे हैं... किस हक से... जब आप महल से हर रिश्ते नाते तोड़ कर जा चुके हैं...
विक्रम - महल में एक रिश्ता अभी जिंदा है... मैं उसके वास्ते आया हूँ... उसकी मर्जी... और खैरियत पूछने आया हूँ....
भैरव सिंह - अगर मर्जी नहीं हुई तो...
विक्रम - तो... दुनिया इधर से उधर क्यूँ ना हो जाए... यह शादी कोई नहीं करा सकता... इस महल का... भगवान भी नहीं...
भैरव सिंह - ओ हो... खून के सामने खून खड़ा है... और खून को ललकार रहा है..
विक्रम - यही दस्तूर है... इतिहास उठाकर देख लीजिए... बात जब आन पर आ जाती है... खून को खून ही ललकारता है... और खून को खून ही हटाता है...
भैरव सिंह - बच्चे कैसे पैदा किया जाता है... यह बच्चे कभी बाप को नहीं सिखाते...
विक्रम - रजवाड़ों का खूनी इतिहास उठा कर देख लीजिए... बाप ने कभी औलादों को नहीं हटाया...
भैरव सिंह - तो खून में इतनी गर्मी आ गई... के बाप को हटाने की सोच रहे हो...
विक्रम - तब तक तो नहीं... जब तक... नंदिनी मेरी बहन है... और मुझे उससे बात करनी है...
भैरव सिंह - (कुछ देर की चुप्पी, तनाव भरा माहौल था, फिर भैरव सिंह मुस्कराते हुए) ठीक है... आज हम भी देखेंगे... हमारी लिखी किस्मत और... तुम्हारी बगावत की टक्कर होती है या नहीं... (सत्तू से) जाओ बड़े राजा जी के कमरे तक खबर पहुँचा दो... राजकुमारी जी को हमने अभी यहाँ याद किया है...

सत्तू भागते हुए चला जाता है l बाहर एक नौकरानी को नागेंद्र के कमरे जाकर रुप को बुलाने के लिए कहता है l कुछ देर के बाद रुप अंदर आती है और अंदर की नज़ारा देखती है l भैरव सिंह और केके दोनों कमरे के बीचोबीच कुर्सी पर बैठे हुए हैं और उनके आगे विक्रम खड़ा हुआ है l रुप को देख कर विक्रम आपनी बाहें फैला देता है रुप दौड़ कर उसके गले लग जाती है l थोड़ी देर बाद विक्रम उसे अलग कर उसके चेहरे को गौर से देखता है l रुप के चेहरे पर ना कोई ग़म ना कोई शिकन था l यह देख कर विक्रम को थोड़ी हैरानी होती है l

विक्रम - कैसी है मेरी गुड़िया...
रुप - बहुत अच्छी हूँ भैया... पर एक दुख तो रहेगा ना... जिस वक़्त भाभी के पास ननद को होना चाहिए... तब मैं नहीं हूँ...
विक्रम - अब भी कोई देर नहीं हुई है... चल मैं ले चलता हूँ...
रुप - क्या करूँ भैया... एक रिश्ते ने मुझे इस महल से बाँध रखा है... वर्ना चली ही जाती...
विक्रम - नंदिनी... मेरी बहन... (केके की ओर दिखा कर) तु इस आदमी के बारे जानती है...
रुप - हाँ भैया... यह वही है ना... जो सालों साल... तुम्हारे जुते चाटता था... (यह बात सुनते ही केके का चेहरा कड़वा हो जाता है)
विक्रम - यह अभी इस महल में... राजा साहब के बगल में क्यूँ है जानती हो ना..
रुप - हाँ भैया... श्मशान जाने की उम्र में... कटक से इतना दूर... अपनी फजिहत करवाने आया है...
भैरव सिंह - (गुर्राता है) नंदिनी...
विक्रम - (भैरव सिंह की ओर हाथ दिखा कर आगे कुछ बोलने से रोक देता है और रुप से) तुझे यह शादी मंजूर नहीं है ना...
रुप - भैया... शादी हो तब ना... जब यह शादी होनी ही नहीं है... फिर मैं उसकी चिंता क्यूँ करूँ...
विक्रम - तुझसे ज़बरदस्ती भी करवा सकते हैं...
रुप - ज़बरदस्ती तब करेंगे ना... जब मैं मना करूंगी...
विक्रम - मैं समझा नहीं गुड़िया...
रुप - भैया... आप ज़रूर आना... भाभी... चाची माँ और चाचाजी को लेकर... वह तमाशा... राजगड़ के साथ साथ... आप भी देखना...
विक्रम - बस बहना बस... मैं बस तेरी खैर ख़बर और मर्जी जानने आया था... तेरा यह विश्वास देख कर... मैं सब समझ गया...
रुप - देखा भैया... बातों ही बातों में भूल गई... भाभी.. चाची माँ और चाचाजी कैसे हैं...
विक्रम - तेरे लिए फिक्र मंद थे... अब मेरी फिक्र मीट गई... समझ उनकी भी मीट गई... अच्छा... अब अंदर जा...

रुप फिर से अपने भाई के गले लगती है और फिर वहाँ से निकल जाती है l विक्रम अब एक मुस्कराहट के साथ भैरव सिंह के तरफ देखता है l

भैरव सिंह - हो गई तसल्ली...
विक्रम - जी... हो गई... अब मुझे... आपकी फिक्र हो रही है...
भैरव सिंह - तुम्हें लगता है... यह शादी कोई रोक सकता है...
विक्रम - मेरी बहन की आत्मविश्वास बोल रहा है... और मुझे यह साफ एहसास हो रहा है... नंदिनी की आत्मविश्वास की आँच को आप भी महसूस कर रहे हैं...
भैरव सिंह - हम उस दिन किसी को भी... अपनी जगह से हिलने तक नहीं देंगे.... ना हवा.. ना पानी... ना खून को...
विक्रम - आप उसी पर कायम रहिएगा... जोर नंदिनी पर मत आजमा बैठिएगा... क्यूँकी चाची माँ ने कहा था... पहली बार... आप ही के अहंकार से... आप ही का खून का अहंकार टकराया है...
भैरव सिंह - और हमारे अहंकार से टकराने वाले हर वज़ूद को नकार देते हैं... हमसे कोई जीत नहीं सकता... चाहे वह हमारा खून ही क्यूँ ना हो... इसलिए हमारी फिक्र मत करो
विक्रम - आपके खून के साथ किसी और का जुनून भी टकराएगा... इसीलिए मुझे फिक्र हो रहा था... (कह कर विक्रम पलट कर जाने लगता है फिर अचानक रुक कर मुड़ता है) मुझसे नंदिनी चहकते हुए मिली... शादी के दिन भी मुझे वैसी ही मिलनी चाहिए... वर्ना... रजवाड़ी इतिहास... फिर से अपने आप को दोहराएगा....

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×

शादी को एक दिन रह गया है
उसके पूर्व संध्या के समय विश्व नदी के तट पर बने सीढ़ियों पर बैठा डूबते सूरज की देख रहा था l कोई उसके पीछे से सीढ़ियां उतरता हुआ महसूस होता है l विश्व नजर घुमा कर देखता है पिनाक सीढ़ियों से उतर कर आ रहा था l विश्व खड़ा हो जाता है l

पिनाक - यह अच्छी निशानी है... यह नदी का किनारा... ढलता हुआ शाम... डूबता हुआ सुरज... किसी को भी... खोने को मजबूर कर सकता है... पर फिर भी तुम चौकन्ना थे... मैं दबे पाँव आ रहा था... तुम सतर्क हो गए...
विश्व - (कुछ नहीं कहता चुप रहता है)
पिनाक - बैठो... मैं भी तुम्हारे साथ... कुछ देर बैठने के लिए आया हूँ... (सीढ़ियों पर बैठ जाता है, विश्व भी उसे बैठा देख कर बगल में बैठ जाता है) ज्यादातर डूबते सूरज को वही लोग देखते हैं... जिन्हें अंधेरे में कुछ खोने का डर हो...
विश्व - हाँ आपकी बात सच है... पर सुबह की तरह शाम भी एक सच है... अगर उजाले के बाद... अंधेरा आना तय है... तो राह के लिए भटकने से पहले... रौशनी का इंतजाम कर लेना चाहिए... मैं यहाँ... रौशनी ढूंढ रहा हूँ...

कुछ देर के लिए दोनों के बीच एक चुप्पी सी छा जाती है l कुछ देर बाद विश्व पिनाक से कहता है l


विश्व - आज आपको यहाँ देख कर अच्छा लगा...
पिनाक - हाँ... मुर्दों की तरह... मुर्दों के बीच जिए जा रहा था... जब जीने की ख्वाहिश जागी... तब सब कुछ लूट चुका था... जिंदा लाश बन कर रह गया हूँ...
विश्व - आपने कहा... आप मुझसे बात करने आए हैं...
पिनाक - हाँ... इससे पहले हम जब भी मिले... आपस में... रंजिश भरे दिल में मिले... अब रंजिश की जगह तो नहीं है... पर...
विश्व - पर...
पिनाक - पर एक मासूम सी जान है... जो एक राक्षस के पिंजरे में कैद है...
विश्व - आप... राजकुमारी जी की बात कर रहे हैं...
पिनाक - हाँ... मैं नंदिनी की बात कर रहा हूँ...
विश्व - (एक गहरा साँस छोड़ते हुए) आपको... क्या लगता है...
पिनाक - मैं अब क्या कहूँ... मुझे परेशान देख कर... विक्रम ने ही तुम्हारे पास यहाँ आने के लिए कहा था... क्यूँकी उसे मालूम था... तुम मुझे यहाँ मिलोगे...
विश्व - आपको... राजकुमारी जी की चिंता परेशानी में डाल रखा है...
पिनाक - हाँ... मेरी पत्नी... बहु और विक्रम तक... आश्वस्त हैं... पर मैं नहीं हो पा रहा था... इसलिए विक्रम ने मुझे तुम्हारे पास भेज दिया...
विश्व - पर आपने अभी तक... राजकुमारी जी को लेकर... कोई भी सवाल नहीं किया है...
पिनाक - विश्व... वीर को... खोने के बाद... मैं खुद को एक लुटा पीटा भिकारी समझ रहा था... पर ज्यूं ही... राजा साहब ने... शादी का कार्ड दिया... तब मुझे एहसास हुआ... मेरे पास और भी कुछ क़ीमती है... जो राजा साहब की जिद की बेदी पर बलि चढ़ने जा रही है...
विश्व - आप मुझसे क्या चाहते हैं...
पिनाक - वादा... सिर्फ एक वादा...
विश्व - कैसा... वादा...
पिनाक - विश्व रुप की एका... विश्व और रुप दो शब्द या दो प्राण नहीं होने चाहिए... जब भी नाम लिया जाए... विश्वरुप ही सुनाई दे... दिखाई दे... बस यही वादा चाहता हूँ... मेरे बेटे की आत्मा को शांति मिलेगी... क्यूँकी वह तुम दोनों के बारे जानता था... और तुम दोनों को एक होते देखना चाहता था...
विश्व - आप ही ने कहा... आपके परिवार वाले आश्वस्त हैं... क्या आपको संदेह है...
पिनाक - नहीं... पर... मैं राजा साहब के जिद को जानता हूँ... और अब ऐसा लग रहा है... जैसे तुम्हें हराने के लिए... वह किसी भी हद तक जा सकते हैं...
विश्व - ह्म्म्म्म... शादी कल शाम को है... इतने दिनों में... महल में... क्या कुछ हुआ है...
पिनाक - तुमसे कुछ छुपा तो नहीं होगा... यशपुर से कुछ औरतें बुलाई गई हैं... जो नंदिनी की शृंगार करेंगी... आज घर पर... नंदिनी की खास परिचारिका सेबती आई थी... कल नंदिनी अपने पास अपनी भाभी और चाची माँ को चाहती है... इसलिए वे कल सुबह ही महल चली जाएंगी... कमल कांत सिर्फ एक दिन ही महल में रहा... फिर उसे राजा साहब ने रंग महल भेज दिया... एक अंधी सफेद घोड़ी को लाई गई है... जिसके ऊपर वह बेशरम... बेग़ैरत... कमल कांत... रंग महल से निकल कर राजगड़ परिक्रमा करेगा... अब की बार... राजा साहब ने... बाहर से लोग बुलवाए हैं... हर एक पर नजरें जमाए हुए हैं... मुझे तो लगता है... वे तुम पर भी... नजरें गड़ाए होंगे...
विश्व - क्यूँ...
पिनाक - यह कैसा सवाल हुआ... तुम पर उनकी इसलिए नजर होगी... ताकि तुमसे कोई हरकत हो... तो पलटवार कर सकें...
विश्व - अगर मैं कोई हरकत ही ना करूँ तो...
पिनाक - (भौंहे सिकुड़ कर हैरानी भरे नजर से देखता है) तुम अगर कुछ नहीं करोगे... तो राजा साहब अपने मकसद में कामयाब हो जाएंगे... नंदिनी की जिंदगी बर्बाद हो जाएगी...
विश्व - यह शादी... राजा साहब की मकसद नहीं है... बल्कि एक छिपा हुआ मकसद है... जिसके लिए... उन्होंने यह शादी तय की है...
पिनाक - क्या... कौनसी छुपी हुई मकसद...
विश्व - असल में... राजा साहब... यह शादी ही नहीं चाहते... और यह भी अच्छी तरह से जानते हैं... यह शादी नहीं होगी...
पिनाक - (झटका खाते हुए) यह तुम किस बिनाह पर कह सकते हो...
विश्व - (मुस्कराता है) राजा साहब का पहला मकसद है... मुझे इस केस से हटाना... या भटकाना... यह तभी हो सकता है... जब मेरी कोई कमजोर नस उनके हाथ हो...
पिनाक - तो क्या नंदिनी तुम्हारी कमजोरी नहीं है...
विश्व - नहीं... वह मेरी ताकत हैं... मेरी जान... मेरी आत्मा हैं... मेरी कमजोरी... मेरे मुहँ बोले माता पिता हैं... यह शादी की बात इसलिए फैलाई गई है... किसी तरह यह खबर मेरे माता पिता को मिल जाए... मेरी माँ... इमोशनली जितनी मजबूत है... उतनी ही कमजोर भी है... यह बात... राजा साहब अच्छी तरह से जानते हैं... मेरी माँ तक अगर राजकुमारी जी की शादी की खबर पहुँच जाए... तो मेरी माँ हाय तौबा कर बाहर आ जाती... आज के दिन... राजा साहब को सरकारी तंत्र भी मदत दे रही है... ऐसे में... मेरी माँ को कब्जे में लेना... उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं होगी...
पिनाक - तुम्हें ऐसा क्यूँ लगता है... नंदिनी की शादी की खबर... प्रतिभा जी को नहीं मिलेगी...
विश्व - क्यूँकी... माँ और डैड... दोनों को... मैंने ही अंडरग्राउंड करवाया है... उन तक कौनसी खबर जाएगी... यह मैं ही तय करता हूँ...
पिनाक - (कुछ सोच में पड़ जाता है) तुम यह कैसे कह सकते हो... राजा साहब को यह शादी... मंजूर नहीं...
विश्व - पुरे स्टेट में... राजा साहब कोई मामूली व्यक्ती नहीं हैं... पर वह केवल दो ही ईंवीटेशन कार्ड प्रिंट कर लाए थे... एक मेरे और दीदी के नाम... दूसरा आपके नाम... बाकी राजगड़ से बाहर... यहाँ तक यशपुर भी नहीं... कहीं भी... किसीको भी... ना खबर किया गया है... ना ही बुलाया गया है... राजगड़ में भी लोगों को... घूम घूम कर... मुहँ जुबानी निमंत्रण दिया गया है... इससे यही साबित हो रहा है... यह शादी... राजा सहाब को मंजूर नहीं है...
पिनाक - चलो मान लिया... तुमने राजा साहब की वह छुपी हुई मकसद को नाकाम कर दिया... पर शादी... शादी कैसे नहीं होगी... राजा साहब तुम्हें तोड़ने के लिए... किसी भी हद तक जा सकते हैं... मतलब शादी... उसी केके से करवा सकते हैं...
विश्व - राजा साहब का यह मकसद भी पूरा नहीं होगी... बस यकीन रखिए...

सुरज पूरी तरह से डूब चुका था l उजाला कम हो गया था अंधेरा धीरे धीरे आने लगा था, पश्चिमी आसमान के कुछ हिस्सा अभी भी लाल दिख रहा था l तभी दोनों के कानों में विक्रम की आवाज़ सुनाई पड़ती है l

"चाचाजी"

दोनों आवाज की दिशा में मुड़ते हैं l विक्रम को देख कर पिनाक अपनी जगह से उठता है, विक्रम हाथ बढ़ा कर पिनाक का हाथ थाम लेता है l पिनाक सीढ़ियों से चढ़ते हुए जाने लगता है l पीछे पीछे विश्व भी जाने लगता है l कुछ दूर जाने के बाद पिनाक रुक जाता है और मुड़ कर विश्व से पूछता है l

पिनाक - विश्व... तुम्हें जब इस घाट पर ढलते सूरज की देखते हुए पाया... तो लगा कि तुम नंदिनी के लिए परेशान हो... पर तुम्हारे बातों से जाना... तुम नंदिनी के लिए परेशान हो ही नहीं... पर सच्चाई यही है... के तुम किसी बात को लेकर... परेशान हो... मैं अपनी शंका मिटाने आया था... मीट गया... तुम अंधेरे उजाले की बात कर रहे थे... क्या मैं तुम्हारी कोई मदत कर सकता हूँ... (विश्व क्या कहे समझ नहीं पाता, उसे यूँ असमंजस देख कर विक्रम कहता है)
विक्रम - हाँ विश्व... वैसे हम जानते हैं... तुम बहुत काबिल हो... फिर भी... कोई मदत चाहो तो पूछ सकते हो... क्यूँकी वीर ने ऐलान किया था... जब तुम और क्षेत्रपाल आमने सामने होंगे... वह तुम्हारे कंधे से कंधा मिलाकर लड़ेगा... अब वह हमारे बीच रहा नहीं... पर उसकी यह ख्वाहिश मिटनी नहीं चाहिए...
पिनाक - हाँ विश्वा... हम जो भी कह रहे हैं.. जो भी कर रहे हैं... सभी वीर के वास्ते...

विश्व अभी भी असमंजस में था l उससे कुछ पूछा नहीं जाता l विश्व की यह स्थिति देख कर दोनों चाचा भतीजा लौटने के लिए मुड़ते हैं के विश्व उन्हें पूछता है l

विश्व - वह बात... केस के सिलसिले पर ही है.... पर...
पिनाक - पूछो... क्या जानना चाहते हो...
विश्व - रुप फाउंडेशन के केस में... दो आरोपी कत्ल कर दिए गए... और दो आरोपी गायब हो गए... क्या ऐसा हो सकता है... के कोई आरोपी खुद को... गायब कर लिया हो...
विक्रम - मैं सोच रहा था... किसी मामले में... फिजीकल कुछ हेल्प एक्सटेंड कर सकूं... पर माफ करना... इस पर मेरी कोई आइडिया नहीं है... क्यूँकी राजा साहब हमें कभी भी... उनके किसी भी मामले में... सामिल नहीं करते थे...
पिनाक - अब समझा... तुम्हारे अंधेरे और उजाले की पहेली... देखो विश्व... इस केस की विशेषता यह है कि... तुम शायद इस केस में... राजा साहब की संलिप्तता सिद्ध कर सको... पर... फिर भी... राजा साहब बच जाएंगे...
विश्व - जी... मैं भी तब से यही सोच रहा हूँ... कोई ऐसा गवाह जो मेरे हाथ लग जाये... जिसके गवाही पर... राजा साहब के हर एक करनी को अंजाम तक पहुँचा सकूँ...
पिनाक - देखो विश्वा... सूरज डूबता है... पर फिर भी अंधेरे में.. हमें रौशनी की दरकार होती है... तब... कमरे में दिया जलाया जाता है... रौशनी के लिए... पर इतना याद रखना... अंधेरा पूरी तरह से छटती नहीं है.... दिन की काली करतूत को... दिए के तले वाली अंधेरे में छुपाया जाता है... तुम्हें बस दिए को ढूंढना है... अगर ढूंढ लिया... तो वह तला भी मिल जाएगा और... तले में छुपे काली करतूत...
विश्व - मैं पूरी बात समझा नहीं...
पिनाक - जैसे कि मैंने पहले भी कहा था... तुम संलिप्तता साबित कर सकते हो... पर पूरी तरह दोषी करार नहीं दे सकते... तुम ज्यादा से ज्यादा... केस में राजा साहब को घेर सकते हो... जिससे राजा साहब साफ बचके निकल जाएंगे... राजा साहब को दोषी साबित करने के लिए... तुम्हारे दोनों केस में... मॉनी ट्रेल को साबित करना होगा... उस ट्रेल का छोर और अंत राजा साहब हैं यह साबित करना होगा... यहाँ राजा साहब का अंधेरे का दिआ... कोई और नहीं... एडवोकेट बल्लभ प्रधान है... जो अपने तले... राजा साहब की हर एक काली करतूत को छुपाये रखा है...
विश्व - जानता हूँ... पर कोई ऐसी जानकारी... जो एडवोकेट प्रधान को... घुटने पर ला सके...
विक्रम - देखो विश्व... प्रधान का ठिकाना... या तो राजगड़ या यशपुर... या फिर कटक या भुवनेश्वर... बाकी जो भी तुम्हें शक है... उसे एस्टाब्लीश करने के लिए... तुम्हें अपने कॉन्टैक्ट ईस्तेमाल करने होंगे...
विश्व - (चेहरे पर एक मुस्कान उभर आती है) वाह क्या बात कही... मुझे एक उम्मीद दिला दिया आपने... थैंक्यू...

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×


अब शाम ढल चुकी थी l अंधेरा पूरी तरह से पसर चुकी थी l रंग महल के सामने एक सफेद घोड़ी को भीमा और उसके गुर्गे सजा रहे थे l जो भी लोग रंग महल में थे वे सब कल होने वाली शादी की खुशी में दारु पी रहे थे l वहीँ रंग महल के एक कमरे में केके गहरी सोच में खोया हुआ एक कुर्सी पर बैठा हुआ था l दरवाजे पर जब दस्तक होती है तो वह कहता है

केके - अंदर आ जाओ...

दरवाजा खुलता है सत्तू के साथ रॉय और रंगा आते हैं l तीनों अंदर आकर देखते हैं केके थोड़ा घबराया और परेशान सा दिख रहा था l

रॉय - क्या बात है... केके साहब... आज तो बहुत खुशी का रात है... फिर तो यह रंग महल आपका... सारी प्रॉपर्टी में आधा हिस्सा आपका... मुझे तो लगा था... आप मन ही मन यही गा रहे होंगे... यही रात अंतिम यही रात भारी... पर आप घबराए हुए क्यूँ लग रहे हैं...
रंगा - हाँ... मैं तो सोच रहा था... आपके चेहरे पर लड्डू फुट रहे होंगे... पर आप घबराए हुए दिख रहे हैं...
रॉय - हाँ... जब कि कायदे से... कल की सोच कर... दुल्हन को घबराना चाहिए... हा हा हा हा... (रॉय के साथ रंगा भी हँसने लगता है)

गुस्से से तमतमाते हुए केके कुर्सी से उठ खड़ा होता है l और दोनों पर चिल्लाता है l

केके - शॉट अप... (दोनों चुप हो जाते हैं)
रॉय - केके साहब... कल शादी है... हमें राजा साहब ने हुकुम दिया है... आपको दूल्हे की तरह सजा कर... रंग महल से... क्षेत्रपाल महल तक... घोड़ी के ऊपर बिठा कर... जुलूस के साथ ले जाने के लिए... हमें लगा था... आपकी इच्छा पूरी हो रही है... इसलिए... आप बहुत खुश होंगे पर...
रंगा - केके साहब... कल से आप राजा साहब के... जमाई बनने जा रहे हैं... फिर घबराहट किस बात की...
केके - (दोनों की तरफ देखता है फिर) रंगा... एक बात बता... तेरी... सच में... किसको देख कर फटी थी...
रंगा - आपसे मतलब...
केके - डर लग रहा है ना...
रंगा - ठीक है... विश्वा... पर इस शादी से... उसका क्या वास्ता...
केके - तुझे क्या लगता है... एक अधेड़... हम उम्र से... राजा साहब... क्यूँ अपनी बेटी को व्याहना चाहते हैं...
रंगा - मेरे को क्या पता...
रॉय - एक मिनट.. एक मिनट... कहीं आप यह तो नहीं कहना चाहते... के विश्वा और राजकुमारी...
केके - हाँ...
रंगा - यह कैसे हो सकता है... मैं नहीं मानता... विश्वा... सात साल तक... जैल में रहा... बमुश्किल सात आठ महीने हुए हैं... बाहर आए... उसकी और राजकुमारी...
केके - पर यह सच है... खुद राजकुमारी ने मुझे कहा था... और यह... जवानी वाला इश्क नहीं है... बचपन वाला लफड़ा है...
रंगा और रॉय - क्या...
केके - हाँ... इस.. (सत्तू की ओर दिखा कर) पूछो इससे...
सत्तू - (घबरा कर) मैं... मैं... कुछ नहीं जानता...
केके - क्या नहीं जानता बे... तूने ही तो कहा था... विश्व... राजकुमारी को.. बचपन से पढ़ाता था...
सत्तू - हाँ... यह तो हर कोई जानता है... पर आप जो कह रहे हैं... यह कोई नहीं जानता...
रॉय - चलो ठीक है... एक पल के लिए हम मान लेते हैं... के राजा साहब... अपनी खुन्नस निकालने के लिए... अपनी बेटी की शादी.. आपसे करा रहे हैं... तो आपको इससे प्रॉब्लम क्या है...
केके - रॉय... इन कुछ महीनों में... हमने जो भी कुछ हारा है... जरा याद करो... उसके पीछे कहीं ना कहीं... विश्वा है... या तो सीधे तौर पर... या फिर... और रंगा... याद है... जब विश्वा तेरे सामने... अचानक आ गया... तेरी क्या हालत हो गई थी...

इतना कह कर केके चुप हो जाता है l रॉय और रंगा भी कुछ देर के लिए कोई बात नहीं कहते l फिर कुछ देर बाद रंगा कहता है l

रंगा - चलो मान लेता हूँ... पर है तो यह राजा साहब का इलाक़ा... और उन्होंने अपनी लश्कर में जबरदस्त बढ़ोतरी की है... मुझे नहीं लगता... विश्वा कुछ करने के लायक होगा...
रॉय - हाँ... मेरा भी यही खयाल है...
केके - मैं भी यही सोच रहा था... पर... जिस दिन विक्रम अपनी बहन से मिलने महल आया था... उस दिन... मैंने राजकुमारी के आँखों में... बातों में... एक जबरदस्त... आत्मविश्वास देखा था... उन्होंने खुल्लमखुल्ला राजा साहब के सामने ऐलान कर दिया... यह शादी होगी ही नहीं...
केके - मतलब वह... विश्वा के साथ... भागने की चक्कर में है...
सत्तू - ना मुमकिन... आज सुबह तक तो राजकुमारी जी महल में ही हैं... और कल से उनके शृंगार के लिए... कुछ औरतों को यशपुर से बुलाया गया है.... और लगातार राजा साहब के निगरानी में हैं...
रॉय - देखा... आप खामख्वाह परेशान हो... चलिए मैं मान लिया... विश्वा से खुन्नस उतारने के लिए... राजा साहब आपसे... राजकुमारी को व्याह दे रहे हैं... तो यह उनकी नाक और मूँछ की आन की बात हो गई ना... अपनी नाक और मूँछ की आँच बचाने के लिए... कुछ भी कर सकते हैं... अगर यह विश्वा से बदला लेने की बात है... तो इस मिशन में... हमें शिद्दत के साथ... शामिल होनी चाहिए... हम सबका बदला एक साथ पुरा होगा... कोई नहीं केके साहब... राजा साहब ने वह एग्रीमेंट यूँ ही नहीं कि है... मत भूलिए... इस शादी के बाद... यह रंग महल आपका हो जाएगा... राजा साहब के सारे फैक्ट्रियों और प्रॉपर्टी में... बराबर का हिस्सा हो जाएगा...
रंगा - हाँ केके साहब... आप बस तैयार हो जाइए... सारे गाँव वाले होंगे सामने शादी होने वाली है... विश्वा को भीतर से तोड़ने के लिए... अबकी बार... मैं खुद को बाजी लगा दूँगा... यह मेरा वादा है...

रॉय और रंगा के ढांढस बाँध ने के बाद केके को थोड़ी हिम्मत मिलती है l अब वह तैयार होने के लिए बाथरूम के अंदर जाता है l
Nice and superb update.....
 
  • Love
Reactions: Kala Nag

Umakant007

चरित्रं विचित्रं..
3,948
5,039
144
Wow 😳 😲 😳 😲... Mind-blowing... Update is tooo good 😊... No words for your great writing talent 😊 ☺️...

Best wishes for next update 🙏 & your ongoing life 🙏... Take good care 💗
 

kas1709

Well-Known Member
10,002
10,548
213
👉एक सौ अट्ठावनवाँ अपडेट
------------------------------

अर्ध रात्री
आकाश में तारे टिमटिमा रहे थे, क्षेत्रपाल महल के अंतर्महल की छत पर एक जोड़ा एक दूसरे के बाहों में खोए हुए थे l यह युगल कोई और नहीं हैं बल्कि हमारे कहानी के नायक व नायिका विश्वरुप ही हैं l रात शांत, हर क्षण शांत, हर फ़िजा शांत, जैसे वह आतुर हों इनके वार्तालाप सुनने के लिए l ऐसे ही बाहों में रहते हुए रुप ख़ामोशी को तोड़ती है और विश्व से कहती है l

रुप - जानते हो... मेरा दिल आज तुम्हें पुकार रहा था... और तुम आ गए...
विश्व - पर... मैंने आपको खबर भी नहीं की थी... बस छत पर आ गया था... आपको कैसे पता चला... के मैं आपको मिलने आया हूँ...
रुप - इट्स अ गर्ल थिंग... फिर भी बता देती हूँ... मेरे धड़कनों.. मेरे एहसासों... मेरे रोम रोम से पूछ कर देखो... जब भी तुम आस पास होते हो... मेरे रूह को... तुम्हारे होने का एहसास... अपने आप हो जाता है...
विश्व - क्या... आपको डर लग रहा है...
रुप - (अपना चेहरा अलग करते हुए) भला वह क्यूँ...
विश्व - राजा साहब ने... आते ही आपको जोरदार झटका जो दिया...
रुप - (विश्व के सीने से चिपक कर) वैसे कोशिश उनकी बहुत अच्छी थी... पर मैं जानती हूँ... उनकी कोशिश बेकार जाने वाली है...
विश्व - अच्छा... वह कैसे...
रुप - वह ऐसे की मैं जानती हूँ... के तुम यह शादी कभी होने ही नहीं दोगे...
विश्व - इतना भरोसा...
रुप - कोई शक़... (एक पॉज) अनाम... मेरा प्यार... मेरा विश्वास है... मेरे विश्वास का आधार... एक तुम हो... और एक भगवान... मैं जान हार सकती हूँ... पर विश्वास कभी नहीं...

विश्व कोई जवाब नहीं देता, बस दोनों की जकड़ बढ़ जाती है l थोड़ी देर बाद दोनों एक दूसरे से अलग होते हैं और पिछली बार की तरह छत पर बनी चबूतरे पर बैठ जाते हैं l आज आसमान में चाँद नहीं था फिर भी दोनों आसमान की ओर देखे जा रहे थे l विश्व एक सवाल छेड़ देता है

विश्व - आप अगर डरी नहीं थीं... तो मुझे ढूंढ क्यूँ रही थी...

रुप - (विश्व की तरफ घूम कर उसका चेहरा दोनों हाथों से पकड़ कर अपने तरफ करती है और पूछती है) मेरे आँखों में झाँक कर देखो... क्या तुम्हें डर दिख रहा है...
विश्व - नहीं.... नहीं दिख रहा है... पर फिर भी...
रुप - ( विश्व की चेहरे को छोड़ कर आसमान को ओर देखने लगती है) मैं बस.. अपनी प्यार को ... अपनी चाहत को.. उसकी गहराई को परख रही थी... कहीं मेरा प्यार... कोई तुक्का तो नहीं... पर आज तुम्हें छत पर पा कर... मुझे अपने प्यार पर यकीन हो गया है... के मेरा प्यार.. मेरी चाहत में कहीं भी कोई मिलावट नहीं है... झूठ नहीं है... (रुप की यह बात विश्व एक टक सुने जा रहा था, रुप विश्व की तरफ देख कर पूछती है) ऐसे क्या देख रहे हो...
विश्व - (मुस्करा कर) बस आपको देख रहा हूँ...
रुप - पर आसमान में चाँद नहीं है... फिर मेरे चेहरे पर क्या है... अंधेरे में तुम्हें पता कैसे चल रहा है...
विश्व - आसमान में चाँद से मुझे क्या लेना देना... मेरा चाँद तो मेरे आँखों के सामने है... मेरे इस चाँद के चाँदनी के आगे.. भला उस चाँद का क्या मुकाबला...
रुप - ओ हो... आज तो बड़े शेरों शायरी के मुड़ में हो...
विश्व - इसका दोष भी आप पर जाता है... आप हो ही इतनी सुंदर... बड़े बड़े गँवार भी शायर बन जाएंगे... इस बेपनाह हुस्न को देख कर...
रुप - बस बस... (अपने दोनों हाथों को विश्व के कंधे पर रख कर हाथ पर अपना ठुड्डी रख कर) इतना तारीफ ना कीजिए... अभी जाग रही हूँ... जागी ही रहने दीजिए... इतना तारीफ करोगे... तो सपना समझ कर नींद की आगोश में ना खो जाऊँ... (अचानक अलग होती है) एक बात पूछूँ...
विश्व - जी पूछिये...
रुप - राजा साहब तो महल में होंगे ना... फिर तुम कैसे अंदर आ गए...
विश्व - बस... आ गया...
रुप - अरे... ऐसे कैसे... याद है... जब मैंने तुम्हें आने के लिए कहा था... तब तुम... बिजली गुल कर अंदर घुसे थे...
विश्व - हाँ... तब मैं चाहता था... की राजा साहब को मालूम हो... के कोई अंदर आया था... इसलिए तो सुबह सुबह... मैंने छोटे राजा जी से... सलाम नमस्ते की थी...
रुप - पर अब...
विश्व - आप भूल रही हो... मैं इस महल के हर चप्पे-चप्पे से वाकिफ हूँ...
विश्व - सच्ची...
विश्व - ह्म्म्म्म... नहीं थोड़ी सी झूठ बोला है...
रुप - थोड़ा सी झूठ... मतलब कितना...
विश्व - राजा साहब कुछ देर पहले... रंग महल की ओर गये हैं... मैं मौका देख कर... घुस गया... और उनके आने से पहले... मुझे चले जाना होगा...
रुप - ह्म्म्म्म... मतलब तुम्हें भी डर लगता है...
विश्व - क्यूँ नहीं... मैं डर रहा था.. आपके लिए
रुप - क्यूँ...
विश्व - (चबूतरे से उठ कर छत के किनारे तक जाता है)
रुप - अनाम... तुमने बताया नहीं....
विश्व - (रुप की ओर मुड़ता है) मुझे जब खबर लगी... के राजा साहब ने... आपकी शादी तय कर दी... हाँ मैं डर गया था... (एक गहरी साँस लेकर) मुझे... वीर और अनु याद आ गए...

विश्व इतना कह कर रुक जाता है l रुप चबूतरे से उठ कर भाग कर जाती है और विश्व के सीने से लग जाती है l विश्व भी अनु को सीने में कस लेता है l

विश्व - वीर जब भी याद आता है... मुझे बहुत दर्द दे जाता है... मेरा वज़ूद... मेरी शख्सियत को कठघरे में खड़ा कर देता है... और एक सवाल हरदम झिंझोड़ता रहता है... क्यूँ आखिर क्यूँ... मैं पांच मिनट पहले नहीं पहुँचा...
रुप - (अपना सिर ऊपर उठा कर विश्व को देखते हुए) कहीं तुम मुझे ले चलने के लिए तो नहीं आए हो...
विश्व - जो आप कहेंगी वही होगा...
रुप - मैं किसी मज़बूरी या खौफ के चलते... अभी जाना नहीं चाहती... तुम बस यह शादी रुकवा दो... जिस दिन जाऊँगी... राजा साहब को बेबस देखते हुए जाऊँगी... उन्होंने हर किसी की बेबसी का फायदा उठाया है... मैं अपनी बिदाई पर.. उन्हें बेबस और लाचार देखना चाहती हूँ... वही पल... असल में बदला होगा... उनके हर एक सितम का...
विश्व - (मुस्कराते हुए) चलो... मेरा यह डर भी आपने ख़तम कर दिया...
रुप - उफ्फ्फ... कभी तो मुझे तुम कहो...
विश्व - नहीं... यह मुझसे नहीं होगा... आप राजकुमारी हो... मैं आपका गुलाम...
रुप - (बिदक कर) छोड़ो मुझे... (अलग हो जाती है) बड़े आए गुलाम...
विश्व - क्या हुआ...
रुप - वह साला कमीना... पहली मुलाकात में ही... मुझे तुम बोल रहा था...
विश्व - राज कुमारी जी... आप कबसे गाली देने लगी...
रुप - शुक्र मनाओ तुम्हें नहीं दी... बेवक़ूफ़.. हूँह्ह्... पूछा नहीं कौन था वह...
विश्व - इसमें पूछने वाली क्या बात है... मैं जानता हूँ... मेरी नकचढ़ी ने... उसको अच्छे से निचोड़ दिया होगा..

रुप हँस देती है, विश्व की तरफ जाती है l विश्व की हाथों को लेकर अपनी कमर पर रखती है l विश्व के गले में हाथ डालकर रुप विश्व के पैरों पर खड़ी हो जाती है और एड़ी उठा कर विश्व के चेहरे के सामने अपना चेहरा लाती है l विश्व की धड़कन बढ़ जाती है, रुप आगे बढ़ कर विश्व की नाक हल्के से काट लेती है l

विश्व - आह... आप हमेशा मेरी नाक के पीछे क्यूँ पड़े रहते हो...
रुप - (विश्व के नाक पर अपनी नाक रगड़ते हुए) मुझे.. अच्छा लगता है...
विश्व - (कांपते लहजे से) मुझे लगता है... अभी मुझे जाना चाहिए...
रुप - चले जाना,.. जरा ठहरो...
यह मंज़र देख कर जाना...
किसीका दम निकलता है...
विश्व - पता नहीं मुझे... पर मैं ज्यादा देर रुका... तो मेरा दम निकल जाएगा...
रुप - यु...

रुप अपना होंठ विश्व की होंठ पर रख देती है l दोनों के होठों के गुत्थम गुत्था शुरु हो जाता है l विश्व की हाथ रुप की कमर से उठ कर रुप के सिर को पकड़ लेता है और अपने में समेटने की कोशिश करता है l फिर उसका हाथ फिसलते फिसलते फिर कमर तक आ जाते हैं पर कमर पर रुक जाते हैं l कमर पर विश्व के हाथ मुट्ठी बाँध लेता है l रुप अलग होती है और विश्व के पैरों से उतरती है l दोनों हांफ रहे थे, जहां विश्व के चेहरे पर एक शॉक था वहीँ रुप के चेहरे पर एक शरारती मुस्कान था l

रुप - बहुत डरते हो... बेवक़ूफ़ तो हो ही.. अब डरपोक भी हो...
विश्व - हिरण... शेरनी से क्यूँ नहीं डरेगा...
रुप - पर यहाँ तो शेरनी खुद हिरण के हाथों शिकार होना चाहती है... पर हिरण है कि... हाथ पैर सब... अपाहिज हो जाता है...

विश्व रुप की हाथ को पकड़ कर खिंचता है l दोनों की नजरें मिलती हैं l रुप की माथे पर उड़ती लटों को हटाता है और रुप के चेहरे को दोनों हाथों से पकड़ कर कहता है l

विश्व - प्यार में बहुत गर्मी होती है... कभी कभी संभलना मुश्किल हो जाता है... प्यार में.. जब जब जो जो होना है... उसे तब तब होने देते हैं ना... जब समाज... संस्कार और भगवान का आशिर्वाद होगा... तब हमारे हिस्से की चार दीवारी और बंद दरवाजा होगा... उस दिन शायद आपको मुझसे कोई शिकायत नहीं होगी...
रुप - ओह... अनाम... (रुप विश्व के सीने से लग जाती है) तुम कितने अच्छे हो... आई लव यु...
विश्व - आई लव यु ठु.. (तभी दूर से एक सियार के भौंकने की आवाज आती है) लगता है... राजा साहब... रंग महल से निकल गए हैं... कुछ ही मिनट में पहुँच जायेंगे... (विश्व रुप की माथे पर एक किस करता है) राजकुमारी जी... आप वही करते जाइयेगा... जैसा आपको राजा साहब कहते जाएं... बाकी आप मुझ पर या अपने आप पर भरोसा मत खोइयेगा...
रुप - जैसी आपकी ख्वाहिश मेरे गुलाम...

दोनों हँसने लगते हैं l फिर विश्व इशारे से रुप को जाने के लिए कहता है l रुप जाने के लिए पलटती है और कुछ कदम चलने के बाद मुड़ती है पर तब तक विश्व गायब हो चुका होता है l रुप का मुहँ हैरानी के मारे खुल जाती है l

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×

अगले दिन
दिन के दस बजते बजते भीड़ छट चुकी थी l गौरी अपना गल्ला बंद कर अंदर जाने लगती है l वैदेही भी सारे बर्तनों को समेट कर धोने के लिए जमा करती है l इतने में दुकान पर सुषमा और शुभ्रा आते हैं l वैदेही उनके तरफ देखती है और महसुस करती है जैसे वह कुछ बात करना चाहते तो हैं पर हिचकिचाते रहे हैं l

वैदेही - आप अंदर आइए... आइए ना... (सुषमा और शुभ्रा एक दुसरे की ओर देखते हैं फिर अंदर आते हैं) बैठिए... (दोनों झिझकते हुए बैठते हैं)

वैदेही पानी की ग्लास लाकर उन्हें देती है l फिर एक कुर्सी खिंच कर उनके पास बैठ जाती है l

वैदेही - बड़े भाग्य का दिन है आज... मेरे घर... छोटी रानी और युवराणी आई हुई हैं... कहिये... क्या सेवा कर सकती हूँ..
शुभ्रा - ऐसे ना कहिये... महीनों पहले आप ऐसे कहतीं तो उस बात की कोई मायने होती... पर आज यह बात कोई मायने नहीं रखती... ना छोटी माँ आज रानी हैं... ना ही... मैं कोई युवराणी... वैसे भी... हम आज फरियादी बन कर आए हैं...
वैदेही - अरे बापरे... इतनी बड़ी बात... आप लोग मेरे सपने हैं... भला अपनों के यहाँ कोई फ़रियाद लेकर आता है... हक् से आता है.. हक जताता है... बस हुकुम कीजिए... जो बस में होगा... जरुर करूँगी...

तभी टीलु कुछ सामान हाथ में लेकर अंदर आता है l इन दोनों को देख कर थोड़ा स्तब्ध हो जाता है l फिर वैदेही की ओर देखता है l

वैदेही - आज हमारे यहाँ मेहमान आए हैं... इसलिये... दोपहर को दुकान बंद रहेगी... और आज... (शुभ्रा की ओर इशारा करते हुए) इन्हींकी मर्जी का खाना बनेगा...
शुभ्रा - नहीं नहीं...
वैदेही - अरे कैसे नहीं... मेरी माँ कहा करती थी... गर्भवती स्त्री का किसी के द्वार आना सबसे शुभ होता है... और उन्हें उनकी इच्छानुसार खाना खिलाने से... सौ जन्म का पुण्य मिलता है... इसलिए... बेझिझक बताइए... आज यहाँ आपकी ही मन पसंद का भोजन बनेगा...
शुभ्रा - वैदेही जी... हम किसी और काम से आए हैं...
वैदेही - वह भी सुन लुंगी... पर पहले मुझे आपका सेवा तो करने दीजिए...
सुषमा - वैदेही... हम यहाँ बहुत टेंशन में हैं... तुम जानती भी हो क्या हुआ है...
वैदेही - ओह... माफ कर दीजिए... मुझे लगा नहीं था कि किसी गम्भीर विषय पर बात करने के लिए आप यहाँ आए हैं...
सुषमा - बात बहुत ही गम्भीर है... और हम चाहते हैं कि... तुम हमें कोई राह दिखाओ...
वैदेही - ठीक है... मुझसे जो बन पड़ेगा... वह मैं जरुर करूंगी...
शुभ्रा - हाँ आप ही कर सकती हो... क्यूँकी... गाँव में सब कहते हैं... की आपकी इस चौखट से... ना तो कोई खाली हाथ लौटा है... ना ही कोई खाली पेट...
वैदेही - आप बात तो शुरु कीजिए... जब से आए हैं... मेरी बड़ाई किए जा रहे हैं...
टीलु - सच ही तो कहा है उन्होंने... दीदी... तुम्हारे दर से... कभी कोई जरूरत मंद ना खाली पेट लौटा है... ना खाली हाथ...
वैदेही - तु यहाँ से जा... वर्ना तु जरूर आज भूखा रहेगा...

टीलु झट से अंदर की ओर चला जाता है l उसे जाते हुए तीनों देख रहे थे l उसके जाने के बाद सुषमा वैदेही से कहना शुरु करती है l

सुषमा - देखो वैदेही... तुम्हारा यह मुहँ बोला भाई... झूठ नहीं कहा है... मैं तुम्हें बेटी नहीं कह सकती... क्यूँकी इससे... उस रिश्ते पर तोहमत लगेगी... मैं जानती हूँ... क्षेत्रपाल परिवार ने तुम्हारे साथ क्या किया है... पर तुम स्वयं सिद्धा हो... तुम देवी हो... इसलिए आज हम दोनों सास बहु... तुम्हारे दर पर आए हैं... हमारी बेटी... रुप नंदिनी के लिए... (वैदेही थोड़ी गम्भीर हो जाती है) वह पाँच साल की थी... जब उसकी माँ इस दुनिया से चली गई... मैंने अपने सीने से लगा कर बड़ा किया... मुझे अपने बच्चों से ज्यादा अजीज है... पता नहीं... तुम भाई बहन को पता है भी या नहीं... अगर पता है... तो तुम लोग गम्भीर क्यूँ नहीं हो... राजा साहब ने... नंदिनी की शादी एक अधेड़ से तय कर दी है.... मैं और मेरी बहु... यहाँ उसकी सुरक्षा मांगने आए हैं... (हाथ जोड़ देती है)
वैदेही - अरे अरे... यह आप क्या कर रही हैं...
शुभ्रा - वक़्त की विडंबना है... कभी क्षेत्रपालों को गुरुर हुआ करता था... के उनके हाथ कभी आकाश की ओर नहीं देखती... पर आज हम तुम्हारे सामने हाथ फैलाए आए हैं...
वैदेही - राजा भैरव सिंह... कल आपके पास से सीधे मेरे पास आए थे...

इतना कह कर वैदेही अपनी टेबल की ड्रॉयर खोल कर वही इंवीटेशन कार्ड निकाल कर सुषमा को दिखाती है l शुभा और सुषमा दोनों हैरान हो जाते हैं और वैदेही की ओर देखने लगते हैं l

वैदेही - जब भैरव सिंह... गिरफ्तार हो कर जा रहा था... यहाँ मुझसे मिलने आया था और चुनौती दे कर गया था... मुझे और विशु की हालत खस्ता कर देगा... और कटक छोड़ कर राजगड़ आने से पहले... विशु को भी... चेतावनी देकर आया था... के उसके तन मन और आत्मा को ज़ख्मी कर देगा...
सुषमा - मतलब तुम सब जानती हो...
वैदेही - हाँ... जानती हूँ... और यह भी जानती हूँ... यह शादी नहीं होगी...
शुभ्रा - यह आप कैसे कह सकते हैं... राजा साहब ने... अपनी नई फौज बनाई है... बाहर से लोग आए हैं...
वैदेही - फिर भी... यह शादी नहीं होगी...
सुषमा - मैं तुम्हारी आत्मविश्वास की कद्र करती हूँ... पर अति आत्मविश्वास और आत्मविश्वास के बीच बहुत ही महिम दीवार होती है...
वैदेही - यह मेरा विश्वास है... बल्कि यह मेरा ही नहीं... आपकी नंदिनी का भी यही विचार है...
सुषमा और शुभ्रा - क्या...
वैदेही - हाँ...
सुषमा - ठीक है... यह उसका विचार हो सकता है... पर... राजा साहब... अपने अहं के आगे... किसीको कुछ नहीं समझते...
सुषमा - जब किसी का अंत करीब आती है.... तो उसका बुद्धि और विवेक खो जाती है... राजा भैरव सिंह के साथ भी ऐसा ही हुआ है... वह इस विषय में... विश्व को दिली और दिमागी तौर से कमजोर करने के लिए... ऐसा कदम उठाया है... पर जब दो प्रेमी... इससे परेशान नहीं हैं... तो हम क्यूँ हों...
शुभ्रा - क्या कहा तुमने... विश्व और रुप परेशान नहीं हैं...
वैदेही - (मुस्कराती है) रात को ही... विशु... नंदिनी से मिलकर आया है... इसलिए... आप भी निश्चिंत हो जाइए... यह शादी नहीं होगी...
शुभ्रा - भगवान करे... आपकी बात सही हो... पर कल से... विक्रम जी बहुत परेशान थे... उनसे रहा नहीं गया... तो अभी कुछ देर पहले महल की ओर गए हैं...
वैदेही - तो ठीक है ना... आप उनसे सारी जानकारी प्राप्त कर सकतीं हैं... (दोनों कशमकश के साथ अपना सिर झुका लेते हैं) वह सब जाने दीजिए... शुभ्रा जी... दिल को तसल्ली दीजिए... और जो भी आपका मन पसंद हो कहिए... आपको खिलाए बिना जाने नहीं दूंगी... ह्म्म्म्म


×_____×_____×_____×_____×_____×_____×


केके पिनाक के कमरे में कुर्सी पर बैठा हुआ था l केके का पैर एक नौकर दबा रहा था l केके कमरे की चारों ओर नजर घुमा रहा था l नौकर देखता है केके किसी गहरे सोच में खोया हुआ है l कोई ऐसी बात थी जो उसे असहज कर रही थी l

नौकर - मालिक... क्या आपको हमारी सेवा अच्छी नहीं लगी...
केके - (सोच से बाहर आता है) नहीं नहीं...
नौकर - पर हम तो जी जान से आपकी सेवा कर रहे हैं...
केके - अरे नहीं... मेरा मतलब... तुम बहुत अच्छा काम कर रहे हो... हम बस कुछ और सोच रहे थे... वैसे क्या नाम है तुम्हारा...
नौकर - जी सत्यवान... पर सभी मुझे सत्तू कह कर बुलाते हैं...
केके - तो सत्तू...
सत्तू - जी... जी मालिक...
केके - तुम जानते हो... हम कौन हैं...
सत्तू - जी मालिक... आप इस परिवार के होने वाले... जामाता हैं... तभी तो... मुझे आपकी सेवा करने के लिए... जिम्मेदारी सौंपी गई है...
केके - ह्म्म्म्म... अब मेरा पैर छोडकर कुर्सी पर बैठ जाओ....
सत्तू - ना मालिक ना... हम महल के नौकर हैं... (कह कर फर्श पर पालथी मार कर बैठ जाता है) अब पूछिये...
केके - अच्छा सत्तू... क्या तुमने पूरा महल देखा हुआ है...
सत्तू - नहीं मालिक... यह पहली बार है... जब हम महल के इतने अंदर आए हैं... वर्ना... हमारी औकात बरामदे तक ही होती थी... फिर भी... आप पूछिये... क्या जानना चाहते हैं... जो मुझे मालूम होगा... मैं बता दूँगा...
केके - अच्छा... कितने कमरे हैं यहाँ...
सत्तू - वह तो नहीं पता... पर पंद्रह बीस कमरे होंगे... और जो भी हैं बड़े बड़े कमरे हैं...
केके - रहते कितने लोग हैं...
सत्तू - जनाना महल में... राजकुमारी जी रहती हैं... और एक बड़े से कमरे में... बड़े राजा जी रहते हैं... उनकी सेवा में भी बहुत लोग लगे हुए हैं...
केके - ह्म्म्म्म...
सत्तू - और कुछ...
केके - तुम...
सत्तू - हाँ हाँ पूछिये...
केके - य़ह तुम... विश्वा के बारे में क्या जानते हो...
सत्तू - ज्यादा कुछ नहीं मालिक... मुझे तो तीन साल हुए हैं... राजा साहब के महल में... पर इतना जानता हूँ... विश्वा इस महल का बहुत पुराना नौकर था... राजा साहब ने उसे सरपंच बनाया... पर यह उनसे गद्दारी पर आ गया... उसने कई कत्ल भी किए हैं... और जैल भी गया था... पर था साला पढ़ाकु... जैल में रहकर बड़ा वकील बन गया है... अब देखिए ना... उसकी एहसान फरामोशी... राजा साहब के खिलाफ अब केस लड़ रहा है...
केके - उसका और राजकुमारी का क्या रिश्ता है... कुछ जानते हो...
सत्तू - हाँ जानता हूँ ना... विश्वा... बचपन में... राजकुमारी जी को सात साल तक पढ़ाया है...
केके - ओ... मतलब पहचान.. बचपन वाला है...
सत्तू - जी मालिक...
केके - अच्छा सत्तू... राजकुमारी की शादी... किसी राज घराने में... या फिर... किसी बड़े घर में होनी चाहिए थी... है ना...
सत्तू - ऐसी बातेँ मुझसे मत पूछिये मालिक... बहुत छोटे लोग हैं... क्या बोलें... हम बस इतना जानते हैं... राजा साहब... हमारे भगवान हैं... उनकी बात और फैसला... यहाँ पर रहने और जीने वालों की जीने की फरमान होती है... राजा साहब ने अगर आपको पसंद किया है.. तो यह राजकुमारी और आपका भाग्य है...
केके - ह्म्म्म्म... वैसे... मेरे बारे में... तुम्हारे साथी कैसी बात कर रहे हैं...
सत्तू - राजा साहब के फैसले पर... हम कभी बात नहीं करते... बस उनके हुकुम बजाते हैं...
केके - अच्छा यह बताओ... राजा साहब ने कभी विश्वा को... उसकी गुस्ताखी की सजा देने का नहीं सोचा...
सत्तू - अब हम क्या कहें मालिक... विश्वा अब कोई आम विश्वा नहीं है... बवंडर है... हमने कई बार कोशिश की उसे मिटाने के लिए... पर हर बार वह हम पर भारी पड़ा... एक अकेला... बीस बीस को लपक लेता है... एक बार तो महल के बाहर ही... (सत्तू बताने लगता है कैसे गाँव वालों के जमीन और घरों के कागजात लेने वैदेही और विश्वा आए थे और कैसे कागजात लेकर गए थे)
केके - और राजा साहब खामोश हैं...
सत्तू - क्या करेंगे फिर... आखिर वह राजा हैं... किसी ऐरे गैरे को... राह चलते को... कैसे हाथ लगा सकते हैं... उनको हम पर भरोसा था... पर... हम ही खरे नहीं उतरे... इसीलिए तो अब... बाहर से लोगों को लाए हैं... अब अगर विश्वा कुछ भी हिमाकत करेगा... तो इसबार वह बच नहीं पाएगा... वैसे एक बात पूछूं मालिक...
केके - पूछो...
सत्तू - आप यह विश्वा के बारे में... इतना पूछताछ क्यूँ कर रहे हैं... क्या आप उसे पहले से जानते हैं...
केके - अरे नहीं... बस ऐसे ही सुना था... अच्छा... xxx चौक पर... एक औरत का दुकान है... उसका राजा साहब का... मतलब... कुछ...
सत्तू - वह औरत... वही तो विश्वा का बहन... वैदेही है...
केके - (चौंकता है) क्या...
सत्तू - क्यूँ... क्या हुआ मालिक...
केके - कुछ नहीं... (माथे पर चिंता की लकीर उभर आती है) राजा साहब... महल को लौटते वक़्त... उसके दुकान पर गए थे...
सत्तू - ज्यादा तो नहीं जानता पर... सुना है... कभी रंग महल में... राजा साहब के ऐस गाह की रौनक हुआ करती थी... और वही एक औरत है... पूरे राजगड़ में... जो राजा साहब से सिर उठा कर आँखों में आँखे डाल कर बात करती है...

तभी कमरे के बाहर दस्तक होती है, दोनों की नजरें दरवाजे की तरफ जाती है l एक नौकर खड़ा था l

केके - हाँ क्या हुआ...
नौकर - राजा साहब आपको... दीवान ए आम में आने के लिए कहा है...
केके - ठीक है... तुम चलो... (सत्तू से) तुम मुझे वहाँ ले चलो...
सत्तू - ठीक है मालिक....

दोनों कमरे से निकल कर दीवान ए आम की ओर जाने लगते हैं l जाते वक़्त केके अपनी नजरें चारो ओर दौड़ा रहा था l कुछ देर बाद दोनों दीवान ए आम में पहुँच जाते हैं l दोनों देखते हैं सिंहासन पर भैरव सिंह बैठा हुआ था और उसके सामने विक्रम खड़ा था l केके को देख कर भैरव सिंह केके से कहता है

भैरव सिंह - आओ केके आओ... महल में कोई शिकायत तो नहीं...
केके - जी नहीं राजा साहब...
भैरव सिंह - (विक्रम से) तो... विक्रम सिंह... बताने की कष्ट करेंगे... महल में जबरदस्ती घुसने की कोशिश क्यूँ कर रहे थे...
विक्रम - मैं यहाँ अपनी बहन से मिलने आया था...
भैरव सिंह - क्यूँ... क्यूँ आए हो... तुमने तो सभी रिश्ते नाते तोड़ कर महल से चल दिए थे...
विक्रम - मैं... महल से क्षेत्रपाल छोड़ गया था... तब भी... अपनी बहन को ले जाना चाहता था... शुक्र मनाईये... वह अपने दादा की सेवा करने के लिए रुक गई... वर्ना...
भैरव सिंह - वर्ना... हाँ हाँ... वर्ना... शायद तुम भूल रहे हो... वह तुम्हारे साथ जाती ही नहीं...
विक्रम - आप उसकी अच्छाइ.. और मासूमियत का... नाजायज फायदा उठा रहे हैं...
विक्रम - नाजायज... फायदा... जो... जिसकी... जितनी काबिल है... हम उसकी उतनी... वही किस्मत लिख रहे हैं... नंदिनी के किस्मत में वही मिल रहा है... जो उसने हमसे खोया है... और इस महल के बाहर कमाया है... हम तो बस मोहर लगा रहे हैं...
विक्रम - (केके की ओर दिखा कर) यह... इसको नंदिनी की किस्मत में थोप रहे हैं... यह हरामी गटर का सुअर... मेरी जुती चाटने वाला...
भैरव सिंह - केके...
केके - जी राजा साहब...
भैरव सिंह - आओ... हमारे बगल में बैठो...

केके जा कर भैरव सिंह के पास वाले एक कुर्सी पर बैठ जाता है l विक्रम की आँखें गुस्से से अंगारों की तरह दहकने लगती हैं l विक्रम को मुट्ठीयाँ भिंच जाती हैं l विक्रम का यह रुप देख कर केके की हलक सुख जाता है l

भैरव सिंह - अब केके की जुतें.. इस घर के नौकर साफ करते हैं...
विक्रम - मुझे यह समझ में नहीं आ रहा... आप ऐसा क्यूँ कर रहे हैं... अपनी कद से ऊपर उठने के बजाय... गिरते जा रहे हैं...
भैरव सिंह - कद किसका क्या है... कितना है... यह फैसला भी हम ही करते हैं...
विश्व - मैं आपसे कोई बहस करना नहीं चाहता... आप नंदिनी को बुलाईये... मैं उसकी मर्जी जानना चाहता हूँ...
भैरव सिंह - वही तो हम पूछ रहे हैं... किस हक से... जब आप महल से हर रिश्ते नाते तोड़ कर जा चुके हैं...
विक्रम - महल में एक रिश्ता अभी जिंदा है... मैं उसके वास्ते आया हूँ... उसकी मर्जी... और खैरियत पूछने आया हूँ....
भैरव सिंह - अगर मर्जी नहीं हुई तो...
विक्रम - तो... दुनिया इधर से उधर क्यूँ ना हो जाए... यह शादी कोई नहीं करा सकता... इस महल का... भगवान भी नहीं...
भैरव सिंह - ओ हो... खून के सामने खून खड़ा है... और खून को ललकार रहा है..
विक्रम - यही दस्तूर है... इतिहास उठाकर देख लीजिए... बात जब आन पर आ जाती है... खून को खून ही ललकारता है... और खून को खून ही हटाता है...
भैरव सिंह - बच्चे कैसे पैदा किया जाता है... यह बच्चे कभी बाप को नहीं सिखाते...
विक्रम - रजवाड़ों का खूनी इतिहास उठा कर देख लीजिए... बाप ने कभी औलादों को नहीं हटाया...
भैरव सिंह - तो खून में इतनी गर्मी आ गई... के बाप को हटाने की सोच रहे हो...
विक्रम - तब तक तो नहीं... जब तक... नंदिनी मेरी बहन है... और मुझे उससे बात करनी है...
भैरव सिंह - (कुछ देर की चुप्पी, तनाव भरा माहौल था, फिर भैरव सिंह मुस्कराते हुए) ठीक है... आज हम भी देखेंगे... हमारी लिखी किस्मत और... तुम्हारी बगावत की टक्कर होती है या नहीं... (सत्तू से) जाओ बड़े राजा जी के कमरे तक खबर पहुँचा दो... राजकुमारी जी को हमने अभी यहाँ याद किया है...

सत्तू भागते हुए चला जाता है l बाहर एक नौकरानी को नागेंद्र के कमरे जाकर रुप को बुलाने के लिए कहता है l कुछ देर के बाद रुप अंदर आती है और अंदर की नज़ारा देखती है l भैरव सिंह और केके दोनों कमरे के बीचोबीच कुर्सी पर बैठे हुए हैं और उनके आगे विक्रम खड़ा हुआ है l रुप को देख कर विक्रम आपनी बाहें फैला देता है रुप दौड़ कर उसके गले लग जाती है l थोड़ी देर बाद विक्रम उसे अलग कर उसके चेहरे को गौर से देखता है l रुप के चेहरे पर ना कोई ग़म ना कोई शिकन था l यह देख कर विक्रम को थोड़ी हैरानी होती है l

विक्रम - कैसी है मेरी गुड़िया...
रुप - बहुत अच्छी हूँ भैया... पर एक दुख तो रहेगा ना... जिस वक़्त भाभी के पास ननद को होना चाहिए... तब मैं नहीं हूँ...
विक्रम - अब भी कोई देर नहीं हुई है... चल मैं ले चलता हूँ...
रुप - क्या करूँ भैया... एक रिश्ते ने मुझे इस महल से बाँध रखा है... वर्ना चली ही जाती...
विक्रम - नंदिनी... मेरी बहन... (केके की ओर दिखा कर) तु इस आदमी के बारे जानती है...
रुप - हाँ भैया... यह वही है ना... जो सालों साल... तुम्हारे जुते चाटता था... (यह बात सुनते ही केके का चेहरा कड़वा हो जाता है)
विक्रम - यह अभी इस महल में... राजा साहब के बगल में क्यूँ है जानती हो ना..
रुप - हाँ भैया... श्मशान जाने की उम्र में... कटक से इतना दूर... अपनी फजिहत करवाने आया है...
भैरव सिंह - (गुर्राता है) नंदिनी...
विक्रम - (भैरव सिंह की ओर हाथ दिखा कर आगे कुछ बोलने से रोक देता है और रुप से) तुझे यह शादी मंजूर नहीं है ना...
रुप - भैया... शादी हो तब ना... जब यह शादी होनी ही नहीं है... फिर मैं उसकी चिंता क्यूँ करूँ...
विक्रम - तुझसे ज़बरदस्ती भी करवा सकते हैं...
रुप - ज़बरदस्ती तब करेंगे ना... जब मैं मना करूंगी...
विक्रम - मैं समझा नहीं गुड़िया...
रुप - भैया... आप ज़रूर आना... भाभी... चाची माँ और चाचाजी को लेकर... वह तमाशा... राजगड़ के साथ साथ... आप भी देखना...
विक्रम - बस बहना बस... मैं बस तेरी खैर ख़बर और मर्जी जानने आया था... तेरा यह विश्वास देख कर... मैं सब समझ गया...
रुप - देखा भैया... बातों ही बातों में भूल गई... भाभी.. चाची माँ और चाचाजी कैसे हैं...
विक्रम - तेरे लिए फिक्र मंद थे... अब मेरी फिक्र मीट गई... समझ उनकी भी मीट गई... अच्छा... अब अंदर जा...

रुप फिर से अपने भाई के गले लगती है और फिर वहाँ से निकल जाती है l विक्रम अब एक मुस्कराहट के साथ भैरव सिंह के तरफ देखता है l

भैरव सिंह - हो गई तसल्ली...
विक्रम - जी... हो गई... अब मुझे... आपकी फिक्र हो रही है...
भैरव सिंह - तुम्हें लगता है... यह शादी कोई रोक सकता है...
विक्रम - मेरी बहन की आत्मविश्वास बोल रहा है... और मुझे यह साफ एहसास हो रहा है... नंदिनी की आत्मविश्वास की आँच को आप भी महसूस कर रहे हैं...
भैरव सिंह - हम उस दिन किसी को भी... अपनी जगह से हिलने तक नहीं देंगे.... ना हवा.. ना पानी... ना खून को...
विक्रम - आप उसी पर कायम रहिएगा... जोर नंदिनी पर मत आजमा बैठिएगा... क्यूँकी चाची माँ ने कहा था... पहली बार... आप ही के अहंकार से... आप ही का खून का अहंकार टकराया है...
भैरव सिंह - और हमारे अहंकार से टकराने वाले हर वज़ूद को नकार देते हैं... हमसे कोई जीत नहीं सकता... चाहे वह हमारा खून ही क्यूँ ना हो... इसलिए हमारी फिक्र मत करो
विक्रम - आपके खून के साथ किसी और का जुनून भी टकराएगा... इसीलिए मुझे फिक्र हो रहा था... (कह कर विक्रम पलट कर जाने लगता है फिर अचानक रुक कर मुड़ता है) मुझसे नंदिनी चहकते हुए मिली... शादी के दिन भी मुझे वैसी ही मिलनी चाहिए... वर्ना... रजवाड़ी इतिहास... फिर से अपने आप को दोहराएगा....

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×

शादी को एक दिन रह गया है
उसके पूर्व संध्या के समय विश्व नदी के तट पर बने सीढ़ियों पर बैठा डूबते सूरज की देख रहा था l कोई उसके पीछे से सीढ़ियां उतरता हुआ महसूस होता है l विश्व नजर घुमा कर देखता है पिनाक सीढ़ियों से उतर कर आ रहा था l विश्व खड़ा हो जाता है l

पिनाक - यह अच्छी निशानी है... यह नदी का किनारा... ढलता हुआ शाम... डूबता हुआ सुरज... किसी को भी... खोने को मजबूर कर सकता है... पर फिर भी तुम चौकन्ना थे... मैं दबे पाँव आ रहा था... तुम सतर्क हो गए...
विश्व - (कुछ नहीं कहता चुप रहता है)
पिनाक - बैठो... मैं भी तुम्हारे साथ... कुछ देर बैठने के लिए आया हूँ... (सीढ़ियों पर बैठ जाता है, विश्व भी उसे बैठा देख कर बगल में बैठ जाता है) ज्यादातर डूबते सूरज को वही लोग देखते हैं... जिन्हें अंधेरे में कुछ खोने का डर हो...
विश्व - हाँ आपकी बात सच है... पर सुबह की तरह शाम भी एक सच है... अगर उजाले के बाद... अंधेरा आना तय है... तो राह के लिए भटकने से पहले... रौशनी का इंतजाम कर लेना चाहिए... मैं यहाँ... रौशनी ढूंढ रहा हूँ...

कुछ देर के लिए दोनों के बीच एक चुप्पी सी छा जाती है l कुछ देर बाद विश्व पिनाक से कहता है l


विश्व - आज आपको यहाँ देख कर अच्छा लगा...
पिनाक - हाँ... मुर्दों की तरह... मुर्दों के बीच जिए जा रहा था... जब जीने की ख्वाहिश जागी... तब सब कुछ लूट चुका था... जिंदा लाश बन कर रह गया हूँ...
विश्व - आपने कहा... आप मुझसे बात करने आए हैं...
पिनाक - हाँ... इससे पहले हम जब भी मिले... आपस में... रंजिश भरे दिल में मिले... अब रंजिश की जगह तो नहीं है... पर...
विश्व - पर...
पिनाक - पर एक मासूम सी जान है... जो एक राक्षस के पिंजरे में कैद है...
विश्व - आप... राजकुमारी जी की बात कर रहे हैं...
पिनाक - हाँ... मैं नंदिनी की बात कर रहा हूँ...
विश्व - (एक गहरा साँस छोड़ते हुए) आपको... क्या लगता है...
पिनाक - मैं अब क्या कहूँ... मुझे परेशान देख कर... विक्रम ने ही तुम्हारे पास यहाँ आने के लिए कहा था... क्यूँकी उसे मालूम था... तुम मुझे यहाँ मिलोगे...
विश्व - आपको... राजकुमारी जी की चिंता परेशानी में डाल रखा है...
पिनाक - हाँ... मेरी पत्नी... बहु और विक्रम तक... आश्वस्त हैं... पर मैं नहीं हो पा रहा था... इसलिए विक्रम ने मुझे तुम्हारे पास भेज दिया...
विश्व - पर आपने अभी तक... राजकुमारी जी को लेकर... कोई भी सवाल नहीं किया है...
पिनाक - विश्व... वीर को... खोने के बाद... मैं खुद को एक लुटा पीटा भिकारी समझ रहा था... पर ज्यूं ही... राजा साहब ने... शादी का कार्ड दिया... तब मुझे एहसास हुआ... मेरे पास और भी कुछ क़ीमती है... जो राजा साहब की जिद की बेदी पर बलि चढ़ने जा रही है...
विश्व - आप मुझसे क्या चाहते हैं...
पिनाक - वादा... सिर्फ एक वादा...
विश्व - कैसा... वादा...
पिनाक - विश्व रुप की एका... विश्व और रुप दो शब्द या दो प्राण नहीं होने चाहिए... जब भी नाम लिया जाए... विश्वरुप ही सुनाई दे... दिखाई दे... बस यही वादा चाहता हूँ... मेरे बेटे की आत्मा को शांति मिलेगी... क्यूँकी वह तुम दोनों के बारे जानता था... और तुम दोनों को एक होते देखना चाहता था...
विश्व - आप ही ने कहा... आपके परिवार वाले आश्वस्त हैं... क्या आपको संदेह है...
पिनाक - नहीं... पर... मैं राजा साहब के जिद को जानता हूँ... और अब ऐसा लग रहा है... जैसे तुम्हें हराने के लिए... वह किसी भी हद तक जा सकते हैं...
विश्व - ह्म्म्म्म... शादी कल शाम को है... इतने दिनों में... महल में... क्या कुछ हुआ है...
पिनाक - तुमसे कुछ छुपा तो नहीं होगा... यशपुर से कुछ औरतें बुलाई गई हैं... जो नंदिनी की शृंगार करेंगी... आज घर पर... नंदिनी की खास परिचारिका सेबती आई थी... कल नंदिनी अपने पास अपनी भाभी और चाची माँ को चाहती है... इसलिए वे कल सुबह ही महल चली जाएंगी... कमल कांत सिर्फ एक दिन ही महल में रहा... फिर उसे राजा साहब ने रंग महल भेज दिया... एक अंधी सफेद घोड़ी को लाई गई है... जिसके ऊपर वह बेशरम... बेग़ैरत... कमल कांत... रंग महल से निकल कर राजगड़ परिक्रमा करेगा... अब की बार... राजा साहब ने... बाहर से लोग बुलवाए हैं... हर एक पर नजरें जमाए हुए हैं... मुझे तो लगता है... वे तुम पर भी... नजरें गड़ाए होंगे...
विश्व - क्यूँ...
पिनाक - यह कैसा सवाल हुआ... तुम पर उनकी इसलिए नजर होगी... ताकि तुमसे कोई हरकत हो... तो पलटवार कर सकें...
विश्व - अगर मैं कोई हरकत ही ना करूँ तो...
पिनाक - (भौंहे सिकुड़ कर हैरानी भरे नजर से देखता है) तुम अगर कुछ नहीं करोगे... तो राजा साहब अपने मकसद में कामयाब हो जाएंगे... नंदिनी की जिंदगी बर्बाद हो जाएगी...
विश्व - यह शादी... राजा साहब की मकसद नहीं है... बल्कि एक छिपा हुआ मकसद है... जिसके लिए... उन्होंने यह शादी तय की है...
पिनाक - क्या... कौनसी छुपी हुई मकसद...
विश्व - असल में... राजा साहब... यह शादी ही नहीं चाहते... और यह भी अच्छी तरह से जानते हैं... यह शादी नहीं होगी...
पिनाक - (झटका खाते हुए) यह तुम किस बिनाह पर कह सकते हो...
विश्व - (मुस्कराता है) राजा साहब का पहला मकसद है... मुझे इस केस से हटाना... या भटकाना... यह तभी हो सकता है... जब मेरी कोई कमजोर नस उनके हाथ हो...
पिनाक - तो क्या नंदिनी तुम्हारी कमजोरी नहीं है...
विश्व - नहीं... वह मेरी ताकत हैं... मेरी जान... मेरी आत्मा हैं... मेरी कमजोरी... मेरे मुहँ बोले माता पिता हैं... यह शादी की बात इसलिए फैलाई गई है... किसी तरह यह खबर मेरे माता पिता को मिल जाए... मेरी माँ... इमोशनली जितनी मजबूत है... उतनी ही कमजोर भी है... यह बात... राजा साहब अच्छी तरह से जानते हैं... मेरी माँ तक अगर राजकुमारी जी की शादी की खबर पहुँच जाए... तो मेरी माँ हाय तौबा कर बाहर आ जाती... आज के दिन... राजा साहब को सरकारी तंत्र भी मदत दे रही है... ऐसे में... मेरी माँ को कब्जे में लेना... उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं होगी...
पिनाक - तुम्हें ऐसा क्यूँ लगता है... नंदिनी की शादी की खबर... प्रतिभा जी को नहीं मिलेगी...
विश्व - क्यूँकी... माँ और डैड... दोनों को... मैंने ही अंडरग्राउंड करवाया है... उन तक कौनसी खबर जाएगी... यह मैं ही तय करता हूँ...
पिनाक - (कुछ सोच में पड़ जाता है) तुम यह कैसे कह सकते हो... राजा साहब को यह शादी... मंजूर नहीं...
विश्व - पुरे स्टेट में... राजा साहब कोई मामूली व्यक्ती नहीं हैं... पर वह केवल दो ही ईंवीटेशन कार्ड प्रिंट कर लाए थे... एक मेरे और दीदी के नाम... दूसरा आपके नाम... बाकी राजगड़ से बाहर... यहाँ तक यशपुर भी नहीं... कहीं भी... किसीको भी... ना खबर किया गया है... ना ही बुलाया गया है... राजगड़ में भी लोगों को... घूम घूम कर... मुहँ जुबानी निमंत्रण दिया गया है... इससे यही साबित हो रहा है... यह शादी... राजा सहाब को मंजूर नहीं है...
पिनाक - चलो मान लिया... तुमने राजा साहब की वह छुपी हुई मकसद को नाकाम कर दिया... पर शादी... शादी कैसे नहीं होगी... राजा साहब तुम्हें तोड़ने के लिए... किसी भी हद तक जा सकते हैं... मतलब शादी... उसी केके से करवा सकते हैं...
विश्व - राजा साहब का यह मकसद भी पूरा नहीं होगी... बस यकीन रखिए...

सुरज पूरी तरह से डूब चुका था l उजाला कम हो गया था अंधेरा धीरे धीरे आने लगा था, पश्चिमी आसमान के कुछ हिस्सा अभी भी लाल दिख रहा था l तभी दोनों के कानों में विक्रम की आवाज़ सुनाई पड़ती है l

"चाचाजी"

दोनों आवाज की दिशा में मुड़ते हैं l विक्रम को देख कर पिनाक अपनी जगह से उठता है, विक्रम हाथ बढ़ा कर पिनाक का हाथ थाम लेता है l पिनाक सीढ़ियों से चढ़ते हुए जाने लगता है l पीछे पीछे विश्व भी जाने लगता है l कुछ दूर जाने के बाद पिनाक रुक जाता है और मुड़ कर विश्व से पूछता है l

पिनाक - विश्व... तुम्हें जब इस घाट पर ढलते सूरज की देखते हुए पाया... तो लगा कि तुम नंदिनी के लिए परेशान हो... पर तुम्हारे बातों से जाना... तुम नंदिनी के लिए परेशान हो ही नहीं... पर सच्चाई यही है... के तुम किसी बात को लेकर... परेशान हो... मैं अपनी शंका मिटाने आया था... मीट गया... तुम अंधेरे उजाले की बात कर रहे थे... क्या मैं तुम्हारी कोई मदत कर सकता हूँ... (विश्व क्या कहे समझ नहीं पाता, उसे यूँ असमंजस देख कर विक्रम कहता है)
विक्रम - हाँ विश्व... वैसे हम जानते हैं... तुम बहुत काबिल हो... फिर भी... कोई मदत चाहो तो पूछ सकते हो... क्यूँकी वीर ने ऐलान किया था... जब तुम और क्षेत्रपाल आमने सामने होंगे... वह तुम्हारे कंधे से कंधा मिलाकर लड़ेगा... अब वह हमारे बीच रहा नहीं... पर उसकी यह ख्वाहिश मिटनी नहीं चाहिए...
पिनाक - हाँ विश्वा... हम जो भी कह रहे हैं.. जो भी कर रहे हैं... सभी वीर के वास्ते...

विश्व अभी भी असमंजस में था l उससे कुछ पूछा नहीं जाता l विश्व की यह स्थिति देख कर दोनों चाचा भतीजा लौटने के लिए मुड़ते हैं के विश्व उन्हें पूछता है l

विश्व - वह बात... केस के सिलसिले पर ही है.... पर...
पिनाक - पूछो... क्या जानना चाहते हो...
विश्व - रुप फाउंडेशन के केस में... दो आरोपी कत्ल कर दिए गए... और दो आरोपी गायब हो गए... क्या ऐसा हो सकता है... के कोई आरोपी खुद को... गायब कर लिया हो...
विक्रम - मैं सोच रहा था... किसी मामले में... फिजीकल कुछ हेल्प एक्सटेंड कर सकूं... पर माफ करना... इस पर मेरी कोई आइडिया नहीं है... क्यूँकी राजा साहब हमें कभी भी... उनके किसी भी मामले में... सामिल नहीं करते थे...
पिनाक - अब समझा... तुम्हारे अंधेरे और उजाले की पहेली... देखो विश्व... इस केस की विशेषता यह है कि... तुम शायद इस केस में... राजा साहब की संलिप्तता सिद्ध कर सको... पर... फिर भी... राजा साहब बच जाएंगे...
विश्व - जी... मैं भी तब से यही सोच रहा हूँ... कोई ऐसा गवाह जो मेरे हाथ लग जाये... जिसके गवाही पर... राजा साहब के हर एक करनी को अंजाम तक पहुँचा सकूँ...
पिनाक - देखो विश्वा... सूरज डूबता है... पर फिर भी अंधेरे में.. हमें रौशनी की दरकार होती है... तब... कमरे में दिया जलाया जाता है... रौशनी के लिए... पर इतना याद रखना... अंधेरा पूरी तरह से छटती नहीं है.... दिन की काली करतूत को... दिए के तले वाली अंधेरे में छुपाया जाता है... तुम्हें बस दिए को ढूंढना है... अगर ढूंढ लिया... तो वह तला भी मिल जाएगा और... तले में छुपे काली करतूत...
विश्व - मैं पूरी बात समझा नहीं...
पिनाक - जैसे कि मैंने पहले भी कहा था... तुम संलिप्तता साबित कर सकते हो... पर पूरी तरह दोषी करार नहीं दे सकते... तुम ज्यादा से ज्यादा... केस में राजा साहब को घेर सकते हो... जिससे राजा साहब साफ बचके निकल जाएंगे... राजा साहब को दोषी साबित करने के लिए... तुम्हारे दोनों केस में... मॉनी ट्रेल को साबित करना होगा... उस ट्रेल का छोर और अंत राजा साहब हैं यह साबित करना होगा... यहाँ राजा साहब का अंधेरे का दिआ... कोई और नहीं... एडवोकेट बल्लभ प्रधान है... जो अपने तले... राजा साहब की हर एक काली करतूत को छुपाये रखा है...
विश्व - जानता हूँ... पर कोई ऐसी जानकारी... जो एडवोकेट प्रधान को... घुटने पर ला सके...
विक्रम - देखो विश्व... प्रधान का ठिकाना... या तो राजगड़ या यशपुर... या फिर कटक या भुवनेश्वर... बाकी जो भी तुम्हें शक है... उसे एस्टाब्लीश करने के लिए... तुम्हें अपने कॉन्टैक्ट ईस्तेमाल करने होंगे...
विश्व - (चेहरे पर एक मुस्कान उभर आती है) वाह क्या बात कही... मुझे एक उम्मीद दिला दिया आपने... थैंक्यू...

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×


अब शाम ढल चुकी थी l अंधेरा पूरी तरह से पसर चुकी थी l रंग महल के सामने एक सफेद घोड़ी को भीमा और उसके गुर्गे सजा रहे थे l जो भी लोग रंग महल में थे वे सब कल होने वाली शादी की खुशी में दारु पी रहे थे l वहीँ रंग महल के एक कमरे में केके गहरी सोच में खोया हुआ एक कुर्सी पर बैठा हुआ था l दरवाजे पर जब दस्तक होती है तो वह कहता है

केके - अंदर आ जाओ...

दरवाजा खुलता है सत्तू के साथ रॉय और रंगा आते हैं l तीनों अंदर आकर देखते हैं केके थोड़ा घबराया और परेशान सा दिख रहा था l

रॉय - क्या बात है... केके साहब... आज तो बहुत खुशी का रात है... फिर तो यह रंग महल आपका... सारी प्रॉपर्टी में आधा हिस्सा आपका... मुझे तो लगा था... आप मन ही मन यही गा रहे होंगे... यही रात अंतिम यही रात भारी... पर आप घबराए हुए क्यूँ लग रहे हैं...
रंगा - हाँ... मैं तो सोच रहा था... आपके चेहरे पर लड्डू फुट रहे होंगे... पर आप घबराए हुए दिख रहे हैं...
रॉय - हाँ... जब कि कायदे से... कल की सोच कर... दुल्हन को घबराना चाहिए... हा हा हा हा... (रॉय के साथ रंगा भी हँसने लगता है)

गुस्से से तमतमाते हुए केके कुर्सी से उठ खड़ा होता है l और दोनों पर चिल्लाता है l

केके - शॉट अप... (दोनों चुप हो जाते हैं)
रॉय - केके साहब... कल शादी है... हमें राजा साहब ने हुकुम दिया है... आपको दूल्हे की तरह सजा कर... रंग महल से... क्षेत्रपाल महल तक... घोड़ी के ऊपर बिठा कर... जुलूस के साथ ले जाने के लिए... हमें लगा था... आपकी इच्छा पूरी हो रही है... इसलिए... आप बहुत खुश होंगे पर...
रंगा - केके साहब... कल से आप राजा साहब के... जमाई बनने जा रहे हैं... फिर घबराहट किस बात की...
केके - (दोनों की तरफ देखता है फिर) रंगा... एक बात बता... तेरी... सच में... किसको देख कर फटी थी...
रंगा - आपसे मतलब...
केके - डर लग रहा है ना...
रंगा - ठीक है... विश्वा... पर इस शादी से... उसका क्या वास्ता...
केके - तुझे क्या लगता है... एक अधेड़... हम उम्र से... राजा साहब... क्यूँ अपनी बेटी को व्याहना चाहते हैं...
रंगा - मेरे को क्या पता...
रॉय - एक मिनट.. एक मिनट... कहीं आप यह तो नहीं कहना चाहते... के विश्वा और राजकुमारी...
केके - हाँ...
रंगा - यह कैसे हो सकता है... मैं नहीं मानता... विश्वा... सात साल तक... जैल में रहा... बमुश्किल सात आठ महीने हुए हैं... बाहर आए... उसकी और राजकुमारी...
केके - पर यह सच है... खुद राजकुमारी ने मुझे कहा था... और यह... जवानी वाला इश्क नहीं है... बचपन वाला लफड़ा है...
रंगा और रॉय - क्या...
केके - हाँ... इस.. (सत्तू की ओर दिखा कर) पूछो इससे...
सत्तू - (घबरा कर) मैं... मैं... कुछ नहीं जानता...
केके - क्या नहीं जानता बे... तूने ही तो कहा था... विश्व... राजकुमारी को.. बचपन से पढ़ाता था...
सत्तू - हाँ... यह तो हर कोई जानता है... पर आप जो कह रहे हैं... यह कोई नहीं जानता...
रॉय - चलो ठीक है... एक पल के लिए हम मान लेते हैं... के राजा साहब... अपनी खुन्नस निकालने के लिए... अपनी बेटी की शादी.. आपसे करा रहे हैं... तो आपको इससे प्रॉब्लम क्या है...
केके - रॉय... इन कुछ महीनों में... हमने जो भी कुछ हारा है... जरा याद करो... उसके पीछे कहीं ना कहीं... विश्वा है... या तो सीधे तौर पर... या फिर... और रंगा... याद है... जब विश्वा तेरे सामने... अचानक आ गया... तेरी क्या हालत हो गई थी...

इतना कह कर केके चुप हो जाता है l रॉय और रंगा भी कुछ देर के लिए कोई बात नहीं कहते l फिर कुछ देर बाद रंगा कहता है l

रंगा - चलो मान लेता हूँ... पर है तो यह राजा साहब का इलाक़ा... और उन्होंने अपनी लश्कर में जबरदस्त बढ़ोतरी की है... मुझे नहीं लगता... विश्वा कुछ करने के लायक होगा...
रॉय - हाँ... मेरा भी यही खयाल है...
केके - मैं भी यही सोच रहा था... पर... जिस दिन विक्रम अपनी बहन से मिलने महल आया था... उस दिन... मैंने राजकुमारी के आँखों में... बातों में... एक जबरदस्त... आत्मविश्वास देखा था... उन्होंने खुल्लमखुल्ला राजा साहब के सामने ऐलान कर दिया... यह शादी होगी ही नहीं...
केके - मतलब वह... विश्वा के साथ... भागने की चक्कर में है...
सत्तू - ना मुमकिन... आज सुबह तक तो राजकुमारी जी महल में ही हैं... और कल से उनके शृंगार के लिए... कुछ औरतों को यशपुर से बुलाया गया है.... और लगातार राजा साहब के निगरानी में हैं...
रॉय - देखा... आप खामख्वाह परेशान हो... चलिए मैं मान लिया... विश्वा से खुन्नस उतारने के लिए... राजा साहब आपसे... राजकुमारी को व्याह दे रहे हैं... तो यह उनकी नाक और मूँछ की आन की बात हो गई ना... अपनी नाक और मूँछ की आँच बचाने के लिए... कुछ भी कर सकते हैं... अगर यह विश्वा से बदला लेने की बात है... तो इस मिशन में... हमें शिद्दत के साथ... शामिल होनी चाहिए... हम सबका बदला एक साथ पुरा होगा... कोई नहीं केके साहब... राजा साहब ने वह एग्रीमेंट यूँ ही नहीं कि है... मत भूलिए... इस शादी के बाद... यह रंग महल आपका हो जाएगा... राजा साहब के सारे फैक्ट्रियों और प्रॉपर्टी में... बराबर का हिस्सा हो जाएगा...
रंगा - हाँ केके साहब... आप बस तैयार हो जाइए... सारे गाँव वाले होंगे सामने शादी होने वाली है... विश्वा को भीतर से तोड़ने के लिए... अबकी बार... मैं खुद को बाजी लगा दूँगा... यह मेरा वादा है...

रॉय और रंगा के ढांढस बाँध ने के बाद केके को थोड़ी हिम्मत मिलती है l अब वह तैयार होने के लिए बाथरूम के अंदर जाता है l
Nice update.....
 
  • Love
Reactions: Kala Nag

dhparikh

Well-Known Member
10,427
12,036
228
👉एक सौ अट्ठावनवाँ अपडेट
------------------------------

अर्ध रात्री
आकाश में तारे टिमटिमा रहे थे, क्षेत्रपाल महल के अंतर्महल की छत पर एक जोड़ा एक दूसरे के बाहों में खोए हुए थे l यह युगल कोई और नहीं हैं बल्कि हमारे कहानी के नायक व नायिका विश्वरुप ही हैं l रात शांत, हर क्षण शांत, हर फ़िजा शांत, जैसे वह आतुर हों इनके वार्तालाप सुनने के लिए l ऐसे ही बाहों में रहते हुए रुप ख़ामोशी को तोड़ती है और विश्व से कहती है l

रुप - जानते हो... मेरा दिल आज तुम्हें पुकार रहा था... और तुम आ गए...
विश्व - पर... मैंने आपको खबर भी नहीं की थी... बस छत पर आ गया था... आपको कैसे पता चला... के मैं आपको मिलने आया हूँ...
रुप - इट्स अ गर्ल थिंग... फिर भी बता देती हूँ... मेरे धड़कनों.. मेरे एहसासों... मेरे रोम रोम से पूछ कर देखो... जब भी तुम आस पास होते हो... मेरे रूह को... तुम्हारे होने का एहसास... अपने आप हो जाता है...
विश्व - क्या... आपको डर लग रहा है...
रुप - (अपना चेहरा अलग करते हुए) भला वह क्यूँ...
विश्व - राजा साहब ने... आते ही आपको जोरदार झटका जो दिया...
रुप - (विश्व के सीने से चिपक कर) वैसे कोशिश उनकी बहुत अच्छी थी... पर मैं जानती हूँ... उनकी कोशिश बेकार जाने वाली है...
विश्व - अच्छा... वह कैसे...
रुप - वह ऐसे की मैं जानती हूँ... के तुम यह शादी कभी होने ही नहीं दोगे...
विश्व - इतना भरोसा...
रुप - कोई शक़... (एक पॉज) अनाम... मेरा प्यार... मेरा विश्वास है... मेरे विश्वास का आधार... एक तुम हो... और एक भगवान... मैं जान हार सकती हूँ... पर विश्वास कभी नहीं...

विश्व कोई जवाब नहीं देता, बस दोनों की जकड़ बढ़ जाती है l थोड़ी देर बाद दोनों एक दूसरे से अलग होते हैं और पिछली बार की तरह छत पर बनी चबूतरे पर बैठ जाते हैं l आज आसमान में चाँद नहीं था फिर भी दोनों आसमान की ओर देखे जा रहे थे l विश्व एक सवाल छेड़ देता है

विश्व - आप अगर डरी नहीं थीं... तो मुझे ढूंढ क्यूँ रही थी...

रुप - (विश्व की तरफ घूम कर उसका चेहरा दोनों हाथों से पकड़ कर अपने तरफ करती है और पूछती है) मेरे आँखों में झाँक कर देखो... क्या तुम्हें डर दिख रहा है...
विश्व - नहीं.... नहीं दिख रहा है... पर फिर भी...
रुप - ( विश्व की चेहरे को छोड़ कर आसमान को ओर देखने लगती है) मैं बस.. अपनी प्यार को ... अपनी चाहत को.. उसकी गहराई को परख रही थी... कहीं मेरा प्यार... कोई तुक्का तो नहीं... पर आज तुम्हें छत पर पा कर... मुझे अपने प्यार पर यकीन हो गया है... के मेरा प्यार.. मेरी चाहत में कहीं भी कोई मिलावट नहीं है... झूठ नहीं है... (रुप की यह बात विश्व एक टक सुने जा रहा था, रुप विश्व की तरफ देख कर पूछती है) ऐसे क्या देख रहे हो...
विश्व - (मुस्करा कर) बस आपको देख रहा हूँ...
रुप - पर आसमान में चाँद नहीं है... फिर मेरे चेहरे पर क्या है... अंधेरे में तुम्हें पता कैसे चल रहा है...
विश्व - आसमान में चाँद से मुझे क्या लेना देना... मेरा चाँद तो मेरे आँखों के सामने है... मेरे इस चाँद के चाँदनी के आगे.. भला उस चाँद का क्या मुकाबला...
रुप - ओ हो... आज तो बड़े शेरों शायरी के मुड़ में हो...
विश्व - इसका दोष भी आप पर जाता है... आप हो ही इतनी सुंदर... बड़े बड़े गँवार भी शायर बन जाएंगे... इस बेपनाह हुस्न को देख कर...
रुप - बस बस... (अपने दोनों हाथों को विश्व के कंधे पर रख कर हाथ पर अपना ठुड्डी रख कर) इतना तारीफ ना कीजिए... अभी जाग रही हूँ... जागी ही रहने दीजिए... इतना तारीफ करोगे... तो सपना समझ कर नींद की आगोश में ना खो जाऊँ... (अचानक अलग होती है) एक बात पूछूँ...
विश्व - जी पूछिये...
रुप - राजा साहब तो महल में होंगे ना... फिर तुम कैसे अंदर आ गए...
विश्व - बस... आ गया...
रुप - अरे... ऐसे कैसे... याद है... जब मैंने तुम्हें आने के लिए कहा था... तब तुम... बिजली गुल कर अंदर घुसे थे...
विश्व - हाँ... तब मैं चाहता था... की राजा साहब को मालूम हो... के कोई अंदर आया था... इसलिए तो सुबह सुबह... मैंने छोटे राजा जी से... सलाम नमस्ते की थी...
रुप - पर अब...
विश्व - आप भूल रही हो... मैं इस महल के हर चप्पे-चप्पे से वाकिफ हूँ...
विश्व - सच्ची...
विश्व - ह्म्म्म्म... नहीं थोड़ी सी झूठ बोला है...
रुप - थोड़ा सी झूठ... मतलब कितना...
विश्व - राजा साहब कुछ देर पहले... रंग महल की ओर गये हैं... मैं मौका देख कर... घुस गया... और उनके आने से पहले... मुझे चले जाना होगा...
रुप - ह्म्म्म्म... मतलब तुम्हें भी डर लगता है...
विश्व - क्यूँ नहीं... मैं डर रहा था.. आपके लिए
रुप - क्यूँ...
विश्व - (चबूतरे से उठ कर छत के किनारे तक जाता है)
रुप - अनाम... तुमने बताया नहीं....
विश्व - (रुप की ओर मुड़ता है) मुझे जब खबर लगी... के राजा साहब ने... आपकी शादी तय कर दी... हाँ मैं डर गया था... (एक गहरी साँस लेकर) मुझे... वीर और अनु याद आ गए...

विश्व इतना कह कर रुक जाता है l रुप चबूतरे से उठ कर भाग कर जाती है और विश्व के सीने से लग जाती है l विश्व भी अनु को सीने में कस लेता है l

विश्व - वीर जब भी याद आता है... मुझे बहुत दर्द दे जाता है... मेरा वज़ूद... मेरी शख्सियत को कठघरे में खड़ा कर देता है... और एक सवाल हरदम झिंझोड़ता रहता है... क्यूँ आखिर क्यूँ... मैं पांच मिनट पहले नहीं पहुँचा...
रुप - (अपना सिर ऊपर उठा कर विश्व को देखते हुए) कहीं तुम मुझे ले चलने के लिए तो नहीं आए हो...
विश्व - जो आप कहेंगी वही होगा...
रुप - मैं किसी मज़बूरी या खौफ के चलते... अभी जाना नहीं चाहती... तुम बस यह शादी रुकवा दो... जिस दिन जाऊँगी... राजा साहब को बेबस देखते हुए जाऊँगी... उन्होंने हर किसी की बेबसी का फायदा उठाया है... मैं अपनी बिदाई पर.. उन्हें बेबस और लाचार देखना चाहती हूँ... वही पल... असल में बदला होगा... उनके हर एक सितम का...
विश्व - (मुस्कराते हुए) चलो... मेरा यह डर भी आपने ख़तम कर दिया...
रुप - उफ्फ्फ... कभी तो मुझे तुम कहो...
विश्व - नहीं... यह मुझसे नहीं होगा... आप राजकुमारी हो... मैं आपका गुलाम...
रुप - (बिदक कर) छोड़ो मुझे... (अलग हो जाती है) बड़े आए गुलाम...
विश्व - क्या हुआ...
रुप - वह साला कमीना... पहली मुलाकात में ही... मुझे तुम बोल रहा था...
विश्व - राज कुमारी जी... आप कबसे गाली देने लगी...
रुप - शुक्र मनाओ तुम्हें नहीं दी... बेवक़ूफ़.. हूँह्ह्... पूछा नहीं कौन था वह...
विश्व - इसमें पूछने वाली क्या बात है... मैं जानता हूँ... मेरी नकचढ़ी ने... उसको अच्छे से निचोड़ दिया होगा..

रुप हँस देती है, विश्व की तरफ जाती है l विश्व की हाथों को लेकर अपनी कमर पर रखती है l विश्व के गले में हाथ डालकर रुप विश्व के पैरों पर खड़ी हो जाती है और एड़ी उठा कर विश्व के चेहरे के सामने अपना चेहरा लाती है l विश्व की धड़कन बढ़ जाती है, रुप आगे बढ़ कर विश्व की नाक हल्के से काट लेती है l

विश्व - आह... आप हमेशा मेरी नाक के पीछे क्यूँ पड़े रहते हो...
रुप - (विश्व के नाक पर अपनी नाक रगड़ते हुए) मुझे.. अच्छा लगता है...
विश्व - (कांपते लहजे से) मुझे लगता है... अभी मुझे जाना चाहिए...
रुप - चले जाना,.. जरा ठहरो...
यह मंज़र देख कर जाना...
किसीका दम निकलता है...
विश्व - पता नहीं मुझे... पर मैं ज्यादा देर रुका... तो मेरा दम निकल जाएगा...
रुप - यु...

रुप अपना होंठ विश्व की होंठ पर रख देती है l दोनों के होठों के गुत्थम गुत्था शुरु हो जाता है l विश्व की हाथ रुप की कमर से उठ कर रुप के सिर को पकड़ लेता है और अपने में समेटने की कोशिश करता है l फिर उसका हाथ फिसलते फिसलते फिर कमर तक आ जाते हैं पर कमर पर रुक जाते हैं l कमर पर विश्व के हाथ मुट्ठी बाँध लेता है l रुप अलग होती है और विश्व के पैरों से उतरती है l दोनों हांफ रहे थे, जहां विश्व के चेहरे पर एक शॉक था वहीँ रुप के चेहरे पर एक शरारती मुस्कान था l

रुप - बहुत डरते हो... बेवक़ूफ़ तो हो ही.. अब डरपोक भी हो...
विश्व - हिरण... शेरनी से क्यूँ नहीं डरेगा...
रुप - पर यहाँ तो शेरनी खुद हिरण के हाथों शिकार होना चाहती है... पर हिरण है कि... हाथ पैर सब... अपाहिज हो जाता है...

विश्व रुप की हाथ को पकड़ कर खिंचता है l दोनों की नजरें मिलती हैं l रुप की माथे पर उड़ती लटों को हटाता है और रुप के चेहरे को दोनों हाथों से पकड़ कर कहता है l

विश्व - प्यार में बहुत गर्मी होती है... कभी कभी संभलना मुश्किल हो जाता है... प्यार में.. जब जब जो जो होना है... उसे तब तब होने देते हैं ना... जब समाज... संस्कार और भगवान का आशिर्वाद होगा... तब हमारे हिस्से की चार दीवारी और बंद दरवाजा होगा... उस दिन शायद आपको मुझसे कोई शिकायत नहीं होगी...
रुप - ओह... अनाम... (रुप विश्व के सीने से लग जाती है) तुम कितने अच्छे हो... आई लव यु...
विश्व - आई लव यु ठु.. (तभी दूर से एक सियार के भौंकने की आवाज आती है) लगता है... राजा साहब... रंग महल से निकल गए हैं... कुछ ही मिनट में पहुँच जायेंगे... (विश्व रुप की माथे पर एक किस करता है) राजकुमारी जी... आप वही करते जाइयेगा... जैसा आपको राजा साहब कहते जाएं... बाकी आप मुझ पर या अपने आप पर भरोसा मत खोइयेगा...
रुप - जैसी आपकी ख्वाहिश मेरे गुलाम...

दोनों हँसने लगते हैं l फिर विश्व इशारे से रुप को जाने के लिए कहता है l रुप जाने के लिए पलटती है और कुछ कदम चलने के बाद मुड़ती है पर तब तक विश्व गायब हो चुका होता है l रुप का मुहँ हैरानी के मारे खुल जाती है l

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×

अगले दिन
दिन के दस बजते बजते भीड़ छट चुकी थी l गौरी अपना गल्ला बंद कर अंदर जाने लगती है l वैदेही भी सारे बर्तनों को समेट कर धोने के लिए जमा करती है l इतने में दुकान पर सुषमा और शुभ्रा आते हैं l वैदेही उनके तरफ देखती है और महसुस करती है जैसे वह कुछ बात करना चाहते तो हैं पर हिचकिचाते रहे हैं l

वैदेही - आप अंदर आइए... आइए ना... (सुषमा और शुभ्रा एक दुसरे की ओर देखते हैं फिर अंदर आते हैं) बैठिए... (दोनों झिझकते हुए बैठते हैं)

वैदेही पानी की ग्लास लाकर उन्हें देती है l फिर एक कुर्सी खिंच कर उनके पास बैठ जाती है l

वैदेही - बड़े भाग्य का दिन है आज... मेरे घर... छोटी रानी और युवराणी आई हुई हैं... कहिये... क्या सेवा कर सकती हूँ..
शुभ्रा - ऐसे ना कहिये... महीनों पहले आप ऐसे कहतीं तो उस बात की कोई मायने होती... पर आज यह बात कोई मायने नहीं रखती... ना छोटी माँ आज रानी हैं... ना ही... मैं कोई युवराणी... वैसे भी... हम आज फरियादी बन कर आए हैं...
वैदेही - अरे बापरे... इतनी बड़ी बात... आप लोग मेरे सपने हैं... भला अपनों के यहाँ कोई फ़रियाद लेकर आता है... हक् से आता है.. हक जताता है... बस हुकुम कीजिए... जो बस में होगा... जरुर करूँगी...

तभी टीलु कुछ सामान हाथ में लेकर अंदर आता है l इन दोनों को देख कर थोड़ा स्तब्ध हो जाता है l फिर वैदेही की ओर देखता है l

वैदेही - आज हमारे यहाँ मेहमान आए हैं... इसलिये... दोपहर को दुकान बंद रहेगी... और आज... (शुभ्रा की ओर इशारा करते हुए) इन्हींकी मर्जी का खाना बनेगा...
शुभ्रा - नहीं नहीं...
वैदेही - अरे कैसे नहीं... मेरी माँ कहा करती थी... गर्भवती स्त्री का किसी के द्वार आना सबसे शुभ होता है... और उन्हें उनकी इच्छानुसार खाना खिलाने से... सौ जन्म का पुण्य मिलता है... इसलिए... बेझिझक बताइए... आज यहाँ आपकी ही मन पसंद का भोजन बनेगा...
शुभ्रा - वैदेही जी... हम किसी और काम से आए हैं...
वैदेही - वह भी सुन लुंगी... पर पहले मुझे आपका सेवा तो करने दीजिए...
सुषमा - वैदेही... हम यहाँ बहुत टेंशन में हैं... तुम जानती भी हो क्या हुआ है...
वैदेही - ओह... माफ कर दीजिए... मुझे लगा नहीं था कि किसी गम्भीर विषय पर बात करने के लिए आप यहाँ आए हैं...
सुषमा - बात बहुत ही गम्भीर है... और हम चाहते हैं कि... तुम हमें कोई राह दिखाओ...
वैदेही - ठीक है... मुझसे जो बन पड़ेगा... वह मैं जरुर करूंगी...
शुभ्रा - हाँ आप ही कर सकती हो... क्यूँकी... गाँव में सब कहते हैं... की आपकी इस चौखट से... ना तो कोई खाली हाथ लौटा है... ना ही कोई खाली पेट...
वैदेही - आप बात तो शुरु कीजिए... जब से आए हैं... मेरी बड़ाई किए जा रहे हैं...
टीलु - सच ही तो कहा है उन्होंने... दीदी... तुम्हारे दर से... कभी कोई जरूरत मंद ना खाली पेट लौटा है... ना खाली हाथ...
वैदेही - तु यहाँ से जा... वर्ना तु जरूर आज भूखा रहेगा...

टीलु झट से अंदर की ओर चला जाता है l उसे जाते हुए तीनों देख रहे थे l उसके जाने के बाद सुषमा वैदेही से कहना शुरु करती है l

सुषमा - देखो वैदेही... तुम्हारा यह मुहँ बोला भाई... झूठ नहीं कहा है... मैं तुम्हें बेटी नहीं कह सकती... क्यूँकी इससे... उस रिश्ते पर तोहमत लगेगी... मैं जानती हूँ... क्षेत्रपाल परिवार ने तुम्हारे साथ क्या किया है... पर तुम स्वयं सिद्धा हो... तुम देवी हो... इसलिए आज हम दोनों सास बहु... तुम्हारे दर पर आए हैं... हमारी बेटी... रुप नंदिनी के लिए... (वैदेही थोड़ी गम्भीर हो जाती है) वह पाँच साल की थी... जब उसकी माँ इस दुनिया से चली गई... मैंने अपने सीने से लगा कर बड़ा किया... मुझे अपने बच्चों से ज्यादा अजीज है... पता नहीं... तुम भाई बहन को पता है भी या नहीं... अगर पता है... तो तुम लोग गम्भीर क्यूँ नहीं हो... राजा साहब ने... नंदिनी की शादी एक अधेड़ से तय कर दी है.... मैं और मेरी बहु... यहाँ उसकी सुरक्षा मांगने आए हैं... (हाथ जोड़ देती है)
वैदेही - अरे अरे... यह आप क्या कर रही हैं...
शुभ्रा - वक़्त की विडंबना है... कभी क्षेत्रपालों को गुरुर हुआ करता था... के उनके हाथ कभी आकाश की ओर नहीं देखती... पर आज हम तुम्हारे सामने हाथ फैलाए आए हैं...
वैदेही - राजा भैरव सिंह... कल आपके पास से सीधे मेरे पास आए थे...

इतना कह कर वैदेही अपनी टेबल की ड्रॉयर खोल कर वही इंवीटेशन कार्ड निकाल कर सुषमा को दिखाती है l शुभा और सुषमा दोनों हैरान हो जाते हैं और वैदेही की ओर देखने लगते हैं l

वैदेही - जब भैरव सिंह... गिरफ्तार हो कर जा रहा था... यहाँ मुझसे मिलने आया था और चुनौती दे कर गया था... मुझे और विशु की हालत खस्ता कर देगा... और कटक छोड़ कर राजगड़ आने से पहले... विशु को भी... चेतावनी देकर आया था... के उसके तन मन और आत्मा को ज़ख्मी कर देगा...
सुषमा - मतलब तुम सब जानती हो...
वैदेही - हाँ... जानती हूँ... और यह भी जानती हूँ... यह शादी नहीं होगी...
शुभ्रा - यह आप कैसे कह सकते हैं... राजा साहब ने... अपनी नई फौज बनाई है... बाहर से लोग आए हैं...
वैदेही - फिर भी... यह शादी नहीं होगी...
सुषमा - मैं तुम्हारी आत्मविश्वास की कद्र करती हूँ... पर अति आत्मविश्वास और आत्मविश्वास के बीच बहुत ही महिम दीवार होती है...
वैदेही - यह मेरा विश्वास है... बल्कि यह मेरा ही नहीं... आपकी नंदिनी का भी यही विचार है...
सुषमा और शुभ्रा - क्या...
वैदेही - हाँ...
सुषमा - ठीक है... यह उसका विचार हो सकता है... पर... राजा साहब... अपने अहं के आगे... किसीको कुछ नहीं समझते...
सुषमा - जब किसी का अंत करीब आती है.... तो उसका बुद्धि और विवेक खो जाती है... राजा भैरव सिंह के साथ भी ऐसा ही हुआ है... वह इस विषय में... विश्व को दिली और दिमागी तौर से कमजोर करने के लिए... ऐसा कदम उठाया है... पर जब दो प्रेमी... इससे परेशान नहीं हैं... तो हम क्यूँ हों...
शुभ्रा - क्या कहा तुमने... विश्व और रुप परेशान नहीं हैं...
वैदेही - (मुस्कराती है) रात को ही... विशु... नंदिनी से मिलकर आया है... इसलिए... आप भी निश्चिंत हो जाइए... यह शादी नहीं होगी...
शुभ्रा - भगवान करे... आपकी बात सही हो... पर कल से... विक्रम जी बहुत परेशान थे... उनसे रहा नहीं गया... तो अभी कुछ देर पहले महल की ओर गए हैं...
वैदेही - तो ठीक है ना... आप उनसे सारी जानकारी प्राप्त कर सकतीं हैं... (दोनों कशमकश के साथ अपना सिर झुका लेते हैं) वह सब जाने दीजिए... शुभ्रा जी... दिल को तसल्ली दीजिए... और जो भी आपका मन पसंद हो कहिए... आपको खिलाए बिना जाने नहीं दूंगी... ह्म्म्म्म


×_____×_____×_____×_____×_____×_____×


केके पिनाक के कमरे में कुर्सी पर बैठा हुआ था l केके का पैर एक नौकर दबा रहा था l केके कमरे की चारों ओर नजर घुमा रहा था l नौकर देखता है केके किसी गहरे सोच में खोया हुआ है l कोई ऐसी बात थी जो उसे असहज कर रही थी l

नौकर - मालिक... क्या आपको हमारी सेवा अच्छी नहीं लगी...
केके - (सोच से बाहर आता है) नहीं नहीं...
नौकर - पर हम तो जी जान से आपकी सेवा कर रहे हैं...
केके - अरे नहीं... मेरा मतलब... तुम बहुत अच्छा काम कर रहे हो... हम बस कुछ और सोच रहे थे... वैसे क्या नाम है तुम्हारा...
नौकर - जी सत्यवान... पर सभी मुझे सत्तू कह कर बुलाते हैं...
केके - तो सत्तू...
सत्तू - जी... जी मालिक...
केके - तुम जानते हो... हम कौन हैं...
सत्तू - जी मालिक... आप इस परिवार के होने वाले... जामाता हैं... तभी तो... मुझे आपकी सेवा करने के लिए... जिम्मेदारी सौंपी गई है...
केके - ह्म्म्म्म... अब मेरा पैर छोडकर कुर्सी पर बैठ जाओ....
सत्तू - ना मालिक ना... हम महल के नौकर हैं... (कह कर फर्श पर पालथी मार कर बैठ जाता है) अब पूछिये...
केके - अच्छा सत्तू... क्या तुमने पूरा महल देखा हुआ है...
सत्तू - नहीं मालिक... यह पहली बार है... जब हम महल के इतने अंदर आए हैं... वर्ना... हमारी औकात बरामदे तक ही होती थी... फिर भी... आप पूछिये... क्या जानना चाहते हैं... जो मुझे मालूम होगा... मैं बता दूँगा...
केके - अच्छा... कितने कमरे हैं यहाँ...
सत्तू - वह तो नहीं पता... पर पंद्रह बीस कमरे होंगे... और जो भी हैं बड़े बड़े कमरे हैं...
केके - रहते कितने लोग हैं...
सत्तू - जनाना महल में... राजकुमारी जी रहती हैं... और एक बड़े से कमरे में... बड़े राजा जी रहते हैं... उनकी सेवा में भी बहुत लोग लगे हुए हैं...
केके - ह्म्म्म्म...
सत्तू - और कुछ...
केके - तुम...
सत्तू - हाँ हाँ पूछिये...
केके - य़ह तुम... विश्वा के बारे में क्या जानते हो...
सत्तू - ज्यादा कुछ नहीं मालिक... मुझे तो तीन साल हुए हैं... राजा साहब के महल में... पर इतना जानता हूँ... विश्वा इस महल का बहुत पुराना नौकर था... राजा साहब ने उसे सरपंच बनाया... पर यह उनसे गद्दारी पर आ गया... उसने कई कत्ल भी किए हैं... और जैल भी गया था... पर था साला पढ़ाकु... जैल में रहकर बड़ा वकील बन गया है... अब देखिए ना... उसकी एहसान फरामोशी... राजा साहब के खिलाफ अब केस लड़ रहा है...
केके - उसका और राजकुमारी का क्या रिश्ता है... कुछ जानते हो...
सत्तू - हाँ जानता हूँ ना... विश्वा... बचपन में... राजकुमारी जी को सात साल तक पढ़ाया है...
केके - ओ... मतलब पहचान.. बचपन वाला है...
सत्तू - जी मालिक...
केके - अच्छा सत्तू... राजकुमारी की शादी... किसी राज घराने में... या फिर... किसी बड़े घर में होनी चाहिए थी... है ना...
सत्तू - ऐसी बातेँ मुझसे मत पूछिये मालिक... बहुत छोटे लोग हैं... क्या बोलें... हम बस इतना जानते हैं... राजा साहब... हमारे भगवान हैं... उनकी बात और फैसला... यहाँ पर रहने और जीने वालों की जीने की फरमान होती है... राजा साहब ने अगर आपको पसंद किया है.. तो यह राजकुमारी और आपका भाग्य है...
केके - ह्म्म्म्म... वैसे... मेरे बारे में... तुम्हारे साथी कैसी बात कर रहे हैं...
सत्तू - राजा साहब के फैसले पर... हम कभी बात नहीं करते... बस उनके हुकुम बजाते हैं...
केके - अच्छा यह बताओ... राजा साहब ने कभी विश्वा को... उसकी गुस्ताखी की सजा देने का नहीं सोचा...
सत्तू - अब हम क्या कहें मालिक... विश्वा अब कोई आम विश्वा नहीं है... बवंडर है... हमने कई बार कोशिश की उसे मिटाने के लिए... पर हर बार वह हम पर भारी पड़ा... एक अकेला... बीस बीस को लपक लेता है... एक बार तो महल के बाहर ही... (सत्तू बताने लगता है कैसे गाँव वालों के जमीन और घरों के कागजात लेने वैदेही और विश्वा आए थे और कैसे कागजात लेकर गए थे)
केके - और राजा साहब खामोश हैं...
सत्तू - क्या करेंगे फिर... आखिर वह राजा हैं... किसी ऐरे गैरे को... राह चलते को... कैसे हाथ लगा सकते हैं... उनको हम पर भरोसा था... पर... हम ही खरे नहीं उतरे... इसीलिए तो अब... बाहर से लोगों को लाए हैं... अब अगर विश्वा कुछ भी हिमाकत करेगा... तो इसबार वह बच नहीं पाएगा... वैसे एक बात पूछूं मालिक...
केके - पूछो...
सत्तू - आप यह विश्वा के बारे में... इतना पूछताछ क्यूँ कर रहे हैं... क्या आप उसे पहले से जानते हैं...
केके - अरे नहीं... बस ऐसे ही सुना था... अच्छा... xxx चौक पर... एक औरत का दुकान है... उसका राजा साहब का... मतलब... कुछ...
सत्तू - वह औरत... वही तो विश्वा का बहन... वैदेही है...
केके - (चौंकता है) क्या...
सत्तू - क्यूँ... क्या हुआ मालिक...
केके - कुछ नहीं... (माथे पर चिंता की लकीर उभर आती है) राजा साहब... महल को लौटते वक़्त... उसके दुकान पर गए थे...
सत्तू - ज्यादा तो नहीं जानता पर... सुना है... कभी रंग महल में... राजा साहब के ऐस गाह की रौनक हुआ करती थी... और वही एक औरत है... पूरे राजगड़ में... जो राजा साहब से सिर उठा कर आँखों में आँखे डाल कर बात करती है...

तभी कमरे के बाहर दस्तक होती है, दोनों की नजरें दरवाजे की तरफ जाती है l एक नौकर खड़ा था l

केके - हाँ क्या हुआ...
नौकर - राजा साहब आपको... दीवान ए आम में आने के लिए कहा है...
केके - ठीक है... तुम चलो... (सत्तू से) तुम मुझे वहाँ ले चलो...
सत्तू - ठीक है मालिक....

दोनों कमरे से निकल कर दीवान ए आम की ओर जाने लगते हैं l जाते वक़्त केके अपनी नजरें चारो ओर दौड़ा रहा था l कुछ देर बाद दोनों दीवान ए आम में पहुँच जाते हैं l दोनों देखते हैं सिंहासन पर भैरव सिंह बैठा हुआ था और उसके सामने विक्रम खड़ा था l केके को देख कर भैरव सिंह केके से कहता है

भैरव सिंह - आओ केके आओ... महल में कोई शिकायत तो नहीं...
केके - जी नहीं राजा साहब...
भैरव सिंह - (विक्रम से) तो... विक्रम सिंह... बताने की कष्ट करेंगे... महल में जबरदस्ती घुसने की कोशिश क्यूँ कर रहे थे...
विक्रम - मैं यहाँ अपनी बहन से मिलने आया था...
भैरव सिंह - क्यूँ... क्यूँ आए हो... तुमने तो सभी रिश्ते नाते तोड़ कर महल से चल दिए थे...
विक्रम - मैं... महल से क्षेत्रपाल छोड़ गया था... तब भी... अपनी बहन को ले जाना चाहता था... शुक्र मनाईये... वह अपने दादा की सेवा करने के लिए रुक गई... वर्ना...
भैरव सिंह - वर्ना... हाँ हाँ... वर्ना... शायद तुम भूल रहे हो... वह तुम्हारे साथ जाती ही नहीं...
विक्रम - आप उसकी अच्छाइ.. और मासूमियत का... नाजायज फायदा उठा रहे हैं...
भैरव सिंह - नाजायज... फायदा... जो... जिसकी... जितनी काबिल है... हम उसकी उतनी... वही किस्मत लिख रहे हैं... नंदिनी के किस्मत में वही मिल रहा है... जो उसने हमसे खोया है... और इस महल के बाहर कमाया है... हम तो बस मोहर लगा रहे हैं...
विक्रम - (केके की ओर दिखा कर) यह... इसको नंदिनी की किस्मत में थोप रहे हैं... यह हरामी गटर का सुअर... मेरी जुती चाटने वाला...
भैरव सिंह - केके...
केके - जी राजा साहब...
भैरव सिंह - आओ... हमारे बगल में बैठो...

केके जा कर भैरव सिंह के पास वाले एक कुर्सी पर बैठ जाता है l विक्रम की आँखें गुस्से से अंगारों की तरह दहकने लगती हैं l विक्रम को मुट्ठीयाँ भिंच जाती हैं l विक्रम का यह रुप देख कर केके की हलक सुख जाता है l

भैरव सिंह - अब केके की जुतें.. इस घर के नौकर साफ करते हैं...
विक्रम - मुझे यह समझ में नहीं आ रहा... आप ऐसा क्यूँ कर रहे हैं... अपनी कद से ऊपर उठने के बजाय... गिरते जा रहे हैं...
भैरव सिंह - कद किसका क्या है... कितना है... यह फैसला भी हम ही करते हैं...
विश्व - मैं आपसे कोई बहस करना नहीं चाहता... आप नंदिनी को बुलाईये... मैं उसकी मर्जी जानना चाहता हूँ...
भैरव सिंह - वही तो हम पूछ रहे हैं... किस हक से... जब आप महल से हर रिश्ते नाते तोड़ कर जा चुके हैं...
विक्रम - महल में एक रिश्ता अभी जिंदा है... मैं उसके वास्ते आया हूँ... उसकी मर्जी... और खैरियत पूछने आया हूँ....
भैरव सिंह - अगर मर्जी नहीं हुई तो...
विक्रम - तो... दुनिया इधर से उधर क्यूँ ना हो जाए... यह शादी कोई नहीं करा सकता... इस महल का... भगवान भी नहीं...
भैरव सिंह - ओ हो... खून के सामने खून खड़ा है... और खून को ललकार रहा है..
विक्रम - यही दस्तूर है... इतिहास उठाकर देख लीजिए... बात जब आन पर आ जाती है... खून को खून ही ललकारता है... और खून को खून ही हटाता है...
भैरव सिंह - बच्चे कैसे पैदा किया जाता है... यह बच्चे कभी बाप को नहीं सिखाते...
विक्रम - रजवाड़ों का खूनी इतिहास उठा कर देख लीजिए... बाप ने कभी औलादों को नहीं हटाया...
भैरव सिंह - तो खून में इतनी गर्मी आ गई... के बाप को हटाने की सोच रहे हो...
विक्रम - तब तक तो नहीं... जब तक... नंदिनी मेरी बहन है... और मुझे उससे बात करनी है...
भैरव सिंह - (कुछ देर की चुप्पी, तनाव भरा माहौल था, फिर भैरव सिंह मुस्कराते हुए) ठीक है... आज हम भी देखेंगे... हमारी लिखी किस्मत और... तुम्हारी बगावत की टक्कर होती है या नहीं... (सत्तू से) जाओ बड़े राजा जी के कमरे तक खबर पहुँचा दो... राजकुमारी जी को हमने अभी यहाँ याद किया है...

सत्तू भागते हुए चला जाता है l बाहर एक नौकरानी को नागेंद्र के कमरे जाकर रुप को बुलाने के लिए कहता है l कुछ देर के बाद रुप अंदर आती है और अंदर की नज़ारा देखती है l भैरव सिंह और केके दोनों कमरे के बीचोबीच कुर्सी पर बैठे हुए हैं और उनके आगे विक्रम खड़ा हुआ है l रुप को देख कर विक्रम आपनी बाहें फैला देता है रुप दौड़ कर उसके गले लग जाती है l थोड़ी देर बाद विक्रम उसे अलग कर उसके चेहरे को गौर से देखता है l रुप के चेहरे पर ना कोई ग़म ना कोई शिकन था l यह देख कर विक्रम को थोड़ी हैरानी होती है l

विक्रम - कैसी है मेरी गुड़िया...
रुप - बहुत अच्छी हूँ भैया... पर एक दुख तो रहेगा ना... जिस वक़्त भाभी के पास ननद को होना चाहिए... तब मैं नहीं हूँ...
विक्रम - अब भी कोई देर नहीं हुई है... चल मैं ले चलता हूँ...
रुप - क्या करूँ भैया... एक रिश्ते ने मुझे इस महल से बाँध रखा है... वर्ना चली ही जाती...
विक्रम - नंदिनी... मेरी बहन... (केके की ओर दिखा कर) तु इस आदमी के बारे जानती है...
रुप - हाँ भैया... यह वही है ना... जो सालों साल... तुम्हारे जुते चाटता था... (यह बात सुनते ही केके का चेहरा कड़वा हो जाता है)
विक्रम - यह अभी इस महल में... राजा साहब के बगल में क्यूँ है जानती हो ना..
रुप - हाँ भैया... श्मशान जाने की उम्र में... कटक से इतना दूर... अपनी फजिहत करवाने आया है...
भैरव सिंह - (गुर्राता है) नंदिनी...
विक्रम - (भैरव सिंह की ओर हाथ दिखा कर आगे कुछ बोलने से रोक देता है और रुप से) तुझे यह शादी मंजूर नहीं है ना...
रुप - भैया... शादी हो तब ना... जब यह शादी होनी ही नहीं है... फिर मैं उसकी चिंता क्यूँ करूँ...
विक्रम - तुझसे ज़बरदस्ती भी करवा सकते हैं...
रुप - ज़बरदस्ती तब करेंगे ना... जब मैं मना करूंगी...
विक्रम - मैं समझा नहीं गुड़िया...
रुप - भैया... आप ज़रूर आना... भाभी... चाची माँ और चाचाजी को लेकर... वह तमाशा... राजगड़ के साथ साथ... आप भी देखना...
विक्रम - बस बहना बस... मैं बस तेरी खैर ख़बर और मर्जी जानने आया था... तेरा यह विश्वास देख कर... मैं सब समझ गया...
रुप - देखा भैया... बातों ही बातों में भूल गई... भाभी.. चाची माँ और चाचाजी कैसे हैं...
विक्रम - तेरे लिए फिक्र मंद थे... अब मेरी फिक्र मीट गई... समझ उनकी भी मीट गई... अच्छा... अब अंदर जा...

रुप फिर से अपने भाई के गले लगती है और फिर वहाँ से निकल जाती है l विक्रम अब एक मुस्कराहट के साथ भैरव सिंह के तरफ देखता है l

भैरव सिंह - हो गई तसल्ली...
विक्रम - जी... हो गई... अब मुझे... आपकी फिक्र हो रही है...
भैरव सिंह - तुम्हें लगता है... यह शादी कोई रोक सकता है...
विक्रम - मेरी बहन की आत्मविश्वास बोल रहा है... और मुझे यह साफ एहसास हो रहा है... नंदिनी की आत्मविश्वास की आँच को आप भी महसूस कर रहे हैं...
भैरव सिंह - हम उस दिन किसी को भी... अपनी जगह से हिलने तक नहीं देंगे.... ना हवा.. ना पानी... ना खून को...
विक्रम - आप उसी पर कायम रहिएगा... जोर नंदिनी पर मत आजमा बैठिएगा... क्यूँकी चाची माँ ने कहा था... पहली बार... आप ही के अहंकार से... आप ही का खून का अहंकार टकराया है...
भैरव सिंह - और हमारे अहंकार से टकराने वाले हर वज़ूद को नकार देते हैं... हमसे कोई जीत नहीं सकता... चाहे वह हमारा खून ही क्यूँ ना हो... इसलिए हमारी फिक्र मत करो
विक्रम - आपके खून के साथ किसी और का जुनून भी टकराएगा... इसीलिए मुझे फिक्र हो रहा था... (कह कर विक्रम पलट कर जाने लगता है फिर अचानक रुक कर मुड़ता है) मुझसे नंदिनी चहकते हुए मिली... शादी के दिन भी मुझे वैसी ही मिलनी चाहिए... वर्ना... रजवाड़ी इतिहास... फिर से अपने आप को दोहराएगा....

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×

शादी को एक दिन रह गया है
उसके पूर्व संध्या के समय विश्व नदी के तट पर बने सीढ़ियों पर बैठा डूबते सूरज की देख रहा था l कोई उसके पीछे से सीढ़ियां उतरता हुआ महसूस होता है l विश्व नजर घुमा कर देखता है पिनाक सीढ़ियों से उतर कर आ रहा था l विश्व खड़ा हो जाता है l

पिनाक - यह अच्छी निशानी है... यह नदी का किनारा... ढलता हुआ शाम... डूबता हुआ सुरज... किसी को भी... खोने को मजबूर कर सकता है... पर फिर भी तुम चौकन्ना थे... मैं दबे पाँव आ रहा था... तुम सतर्क हो गए...
विश्व - (कुछ नहीं कहता चुप रहता है)
पिनाक - बैठो... मैं भी तुम्हारे साथ... कुछ देर बैठने के लिए आया हूँ... (सीढ़ियों पर बैठ जाता है, विश्व भी उसे बैठा देख कर बगल में बैठ जाता है) ज्यादातर डूबते सूरज को वही लोग देखते हैं... जिन्हें अंधेरे में कुछ खोने का डर हो...
विश्व - हाँ आपकी बात सच है... पर सुबह की तरह शाम भी एक सच है... अगर उजाले के बाद... अंधेरा आना तय है... तो राह के लिए भटकने से पहले... रौशनी का इंतजाम कर लेना चाहिए... मैं यहाँ... रौशनी ढूंढ रहा हूँ...

कुछ देर के लिए दोनों के बीच एक चुप्पी सी छा जाती है l कुछ देर बाद विश्व पिनाक से कहता है l


विश्व - आज आपको यहाँ देख कर अच्छा लगा...
पिनाक - हाँ... मुर्दों की तरह... मुर्दों के बीच जिए जा रहा था... जब जीने की ख्वाहिश जागी... तब सब कुछ लूट चुका था... जिंदा लाश बन कर रह गया हूँ...
विश्व - आपने कहा... आप मुझसे बात करने आए हैं...
पिनाक - हाँ... इससे पहले हम जब भी मिले... आपस में... रंजिश भरे दिल में मिले... अब रंजिश की जगह तो नहीं है... पर...
विश्व - पर...
पिनाक - पर एक मासूम सी जान है... जो एक राक्षस के पिंजरे में कैद है...
विश्व - आप... राजकुमारी जी की बात कर रहे हैं...
पिनाक - हाँ... मैं नंदिनी की बात कर रहा हूँ...
विश्व - (एक गहरा साँस छोड़ते हुए) आपको... क्या लगता है...
पिनाक - मैं अब क्या कहूँ... मुझे परेशान देख कर... विक्रम ने ही तुम्हारे पास यहाँ आने के लिए कहा था... क्यूँकी उसे मालूम था... तुम मुझे यहाँ मिलोगे...
विश्व - आपको... राजकुमारी जी की चिंता परेशानी में डाल रखा है...
पिनाक - हाँ... मेरी पत्नी... बहु और विक्रम तक... आश्वस्त हैं... पर मैं नहीं हो पा रहा था... इसलिए विक्रम ने मुझे तुम्हारे पास भेज दिया...
विश्व - पर आपने अभी तक... राजकुमारी जी को लेकर... कोई भी सवाल नहीं किया है...
पिनाक - विश्व... वीर को... खोने के बाद... मैं खुद को एक लुटा पीटा भिकारी समझ रहा था... पर ज्यूं ही... राजा साहब ने... शादी का कार्ड दिया... तब मुझे एहसास हुआ... मेरे पास और भी कुछ क़ीमती है... जो राजा साहब की जिद की बेदी पर बलि चढ़ने जा रही है...
विश्व - आप मुझसे क्या चाहते हैं...
पिनाक - वादा... सिर्फ एक वादा...
विश्व - कैसा... वादा...
पिनाक - विश्व रुप की एका... विश्व और रुप दो शब्द या दो प्राण नहीं होने चाहिए... जब भी नाम लिया जाए... विश्वरुप ही सुनाई दे... दिखाई दे... बस यही वादा चाहता हूँ... मेरे बेटे की आत्मा को शांति मिलेगी... क्यूँकी वह तुम दोनों के बारे जानता था... और तुम दोनों को एक होते देखना चाहता था...
विश्व - आप ही ने कहा... आपके परिवार वाले आश्वस्त हैं... क्या आपको संदेह है...
पिनाक - नहीं... पर... मैं राजा साहब के जिद को जानता हूँ... और अब ऐसा लग रहा है... जैसे तुम्हें हराने के लिए... वह किसी भी हद तक जा सकते हैं...
विश्व - ह्म्म्म्म... शादी कल शाम को है... इतने दिनों में... महल में... क्या कुछ हुआ है...
पिनाक - तुमसे कुछ छुपा तो नहीं होगा... यशपुर से कुछ औरतें बुलाई गई हैं... जो नंदिनी की शृंगार करेंगी... आज घर पर... नंदिनी की खास परिचारिका सेबती आई थी... कल नंदिनी अपने पास अपनी भाभी और चाची माँ को चाहती है... इसलिए वे कल सुबह ही महल चली जाएंगी... कमल कांत सिर्फ एक दिन ही महल में रहा... फिर उसे राजा साहब ने रंग महल भेज दिया... एक अंधी सफेद घोड़ी को लाई गई है... जिसके ऊपर वह बेशरम... बेग़ैरत... कमल कांत... रंग महल से निकल कर राजगड़ परिक्रमा करेगा... अब की बार... राजा साहब ने... बाहर से लोग बुलवाए हैं... हर एक पर नजरें जमाए हुए हैं... मुझे तो लगता है... वे तुम पर भी... नजरें गड़ाए होंगे...
विश्व - क्यूँ...
पिनाक - यह कैसा सवाल हुआ... तुम पर उनकी इसलिए नजर होगी... ताकि तुमसे कोई हरकत हो... तो पलटवार कर सकें...
विश्व - अगर मैं कोई हरकत ही ना करूँ तो...
पिनाक - (भौंहे सिकुड़ कर हैरानी भरे नजर से देखता है) तुम अगर कुछ नहीं करोगे... तो राजा साहब अपने मकसद में कामयाब हो जाएंगे... नंदिनी की जिंदगी बर्बाद हो जाएगी...
विश्व - यह शादी... राजा साहब की मकसद नहीं है... बल्कि एक छिपा हुआ मकसद है... जिसके लिए... उन्होंने यह शादी तय की है...
पिनाक - क्या... कौनसी छुपी हुई मकसद...
विश्व - असल में... राजा साहब... यह शादी ही नहीं चाहते... और यह भी अच्छी तरह से जानते हैं... यह शादी नहीं होगी...
पिनाक - (झटका खाते हुए) यह तुम किस बिनाह पर कह सकते हो...
विश्व - (मुस्कराता है) राजा साहब का पहला मकसद है... मुझे इस केस से हटाना... या भटकाना... यह तभी हो सकता है... जब मेरी कोई कमजोर नस उनके हाथ हो...
पिनाक - तो क्या नंदिनी तुम्हारी कमजोरी नहीं है...
विश्व - नहीं... वह मेरी ताकत हैं... मेरी जान... मेरी आत्मा हैं... मेरी कमजोरी... मेरे मुहँ बोले माता पिता हैं... यह शादी की बात इसलिए फैलाई गई है... किसी तरह यह खबर मेरे माता पिता को मिल जाए... मेरी माँ... इमोशनली जितनी मजबूत है... उतनी ही कमजोर भी है... यह बात... राजा साहब अच्छी तरह से जानते हैं... मेरी माँ तक अगर राजकुमारी जी की शादी की खबर पहुँच जाए... तो मेरी माँ हाय तौबा कर बाहर आ जाती... आज के दिन... राजा साहब को सरकारी तंत्र भी मदत दे रही है... ऐसे में... मेरी माँ को कब्जे में लेना... उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं होगी...
पिनाक - तुम्हें ऐसा क्यूँ लगता है... नंदिनी की शादी की खबर... प्रतिभा जी को नहीं मिलेगी...
विश्व - क्यूँकी... माँ और डैड... दोनों को... मैंने ही अंडरग्राउंड करवाया है... उन तक कौनसी खबर जाएगी... यह मैं ही तय करता हूँ...
पिनाक - (कुछ सोच में पड़ जाता है) तुम यह कैसे कह सकते हो... राजा साहब को यह शादी... मंजूर नहीं...
विश्व - पुरे स्टेट में... राजा साहब कोई मामूली व्यक्ती नहीं हैं... पर वह केवल दो ही ईंवीटेशन कार्ड प्रिंट कर लाए थे... एक मेरे और दीदी के नाम... दूसरा आपके नाम... बाकी राजगड़ से बाहर... यहाँ तक यशपुर भी नहीं... कहीं भी... किसीको भी... ना खबर किया गया है... ना ही बुलाया गया है... राजगड़ में भी लोगों को... घूम घूम कर... मुहँ जुबानी निमंत्रण दिया गया है... इससे यही साबित हो रहा है... यह शादी... राजा सहाब को मंजूर नहीं है...
पिनाक - चलो मान लिया... तुमने राजा साहब की वह छुपी हुई मकसद को नाकाम कर दिया... पर शादी... शादी कैसे नहीं होगी... राजा साहब तुम्हें तोड़ने के लिए... किसी भी हद तक जा सकते हैं... मतलब शादी... उसी केके से करवा सकते हैं...
विश्व - राजा साहब का यह मकसद भी पूरा नहीं होगी... बस यकीन रखिए...

सुरज पूरी तरह से डूब चुका था l उजाला कम हो गया था अंधेरा धीरे धीरे आने लगा था, पश्चिमी आसमान के कुछ हिस्सा अभी भी लाल दिख रहा था l तभी दोनों के कानों में विक्रम की आवाज़ सुनाई पड़ती है l

"चाचाजी"

दोनों आवाज की दिशा में मुड़ते हैं l विक्रम को देख कर पिनाक अपनी जगह से उठता है, विक्रम हाथ बढ़ा कर पिनाक का हाथ थाम लेता है l पिनाक सीढ़ियों से चढ़ते हुए जाने लगता है l पीछे पीछे विश्व भी जाने लगता है l कुछ दूर जाने के बाद पिनाक रुक जाता है और मुड़ कर विश्व से पूछता है l

पिनाक - विश्व... तुम्हें जब इस घाट पर ढलते सूरज की देखते हुए पाया... तो लगा कि तुम नंदिनी के लिए परेशान हो... पर तुम्हारे बातों से जाना... तुम नंदिनी के लिए परेशान हो ही नहीं... पर सच्चाई यही है... के तुम किसी बात को लेकर... परेशान हो... मैं अपनी शंका मिटाने आया था... मीट गया... तुम अंधेरे उजाले की बात कर रहे थे... क्या मैं तुम्हारी कोई मदत कर सकता हूँ... (विश्व क्या कहे समझ नहीं पाता, उसे यूँ असमंजस देख कर विक्रम कहता है)
विक्रम - हाँ विश्व... वैसे हम जानते हैं... तुम बहुत काबिल हो... फिर भी... कोई मदत चाहो तो पूछ सकते हो... क्यूँकी वीर ने ऐलान किया था... जब तुम और क्षेत्रपाल आमने सामने होंगे... वह तुम्हारे कंधे से कंधा मिलाकर लड़ेगा... अब वह हमारे बीच रहा नहीं... पर उसकी यह ख्वाहिश मिटनी नहीं चाहिए...
पिनाक - हाँ विश्वा... हम जो भी कह रहे हैं.. जो भी कर रहे हैं... सभी वीर के वास्ते...

विश्व अभी भी असमंजस में था l उससे कुछ पूछा नहीं जाता l विश्व की यह स्थिति देख कर दोनों चाचा भतीजा लौटने के लिए मुड़ते हैं के विश्व उन्हें पूछता है l

विश्व - वह बात... केस के सिलसिले पर ही है.... पर...
पिनाक - पूछो... क्या जानना चाहते हो...
विश्व - रुप फाउंडेशन के केस में... दो आरोपी कत्ल कर दिए गए... और दो आरोपी गायब हो गए... क्या ऐसा हो सकता है... के कोई आरोपी खुद को... गायब कर लिया हो...
विक्रम - मैं सोच रहा था... किसी मामले में... फिजीकल कुछ हेल्प एक्सटेंड कर सकूं... पर माफ करना... इस पर मेरी कोई आइडिया नहीं है... क्यूँकी राजा साहब हमें कभी भी... उनके किसी भी मामले में... सामिल नहीं करते थे...
पिनाक - अब समझा... तुम्हारे अंधेरे और उजाले की पहेली... देखो विश्व... इस केस की विशेषता यह है कि... तुम शायद इस केस में... राजा साहब की संलिप्तता सिद्ध कर सको... पर... फिर भी... राजा साहब बच जाएंगे...
विश्व - जी... मैं भी तब से यही सोच रहा हूँ... कोई ऐसा गवाह जो मेरे हाथ लग जाये... जिसके गवाही पर... राजा साहब के हर एक करनी को अंजाम तक पहुँचा सकूँ...
पिनाक - देखो विश्वा... सूरज डूबता है... पर फिर भी अंधेरे में.. हमें रौशनी की दरकार होती है... तब... कमरे में दिया जलाया जाता है... रौशनी के लिए... पर इतना याद रखना... अंधेरा पूरी तरह से छटती नहीं है.... दिन की काली करतूत को... दिए के तले वाली अंधेरे में छुपाया जाता है... तुम्हें बस दिए को ढूंढना है... अगर ढूंढ लिया... तो वह तला भी मिल जाएगा और... तले में छुपे काली करतूत...
विश्व - मैं पूरी बात समझा नहीं...
पिनाक - जैसे कि मैंने पहले भी कहा था... तुम संलिप्तता साबित कर सकते हो... पर पूरी तरह दोषी करार नहीं दे सकते... तुम ज्यादा से ज्यादा... केस में राजा साहब को घेर सकते हो... जिससे राजा साहब साफ बचके निकल जाएंगे... राजा साहब को दोषी साबित करने के लिए... तुम्हारे दोनों केस में... मॉनी ट्रेल को साबित करना होगा... उस ट्रेल का छोर और अंत राजा साहब हैं यह साबित करना होगा... यहाँ राजा साहब का अंधेरे का दिआ... कोई और नहीं... एडवोकेट बल्लभ प्रधान है... जो अपने तले... राजा साहब की हर एक काली करतूत को छुपाये रखा है...
विश्व - जानता हूँ... पर कोई ऐसी जानकारी... जो एडवोकेट प्रधान को... घुटने पर ला सके...
विक्रम - देखो विश्व... प्रधान का ठिकाना... या तो राजगड़ या यशपुर... या फिर कटक या भुवनेश्वर... बाकी जो भी तुम्हें शक है... उसे एस्टाब्लीश करने के लिए... तुम्हें अपने कॉन्टैक्ट ईस्तेमाल करने होंगे...
विश्व - (चेहरे पर एक मुस्कान उभर आती है) वाह क्या बात कही... मुझे एक उम्मीद दिला दिया आपने... थैंक्यू...

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×


अब शाम ढल चुकी थी l अंधेरा पूरी तरह से पसर चुकी थी l रंग महल के सामने एक सफेद घोड़ी को भीमा और उसके गुर्गे सजा रहे थे l जो भी लोग रंग महल में थे वे सब कल होने वाली शादी की खुशी में दारु पी रहे थे l वहीँ रंग महल के एक कमरे में केके गहरी सोच में खोया हुआ एक कुर्सी पर बैठा हुआ था l दरवाजे पर जब दस्तक होती है तो वह कहता है

केके - अंदर आ जाओ...

दरवाजा खुलता है सत्तू के साथ रॉय और रंगा आते हैं l तीनों अंदर आकर देखते हैं केके थोड़ा घबराया और परेशान सा दिख रहा था l

रॉय - क्या बात है... केके साहब... आज तो बहुत खुशी का रात है... फिर तो यह रंग महल आपका... सारी प्रॉपर्टी में आधा हिस्सा आपका... मुझे तो लगा था... आप मन ही मन यही गा रहे होंगे... यही रात अंतिम यही रात भारी... पर आप घबराए हुए क्यूँ लग रहे हैं...
रंगा - हाँ... मैं तो सोच रहा था... आपके चेहरे पर लड्डू फुट रहे होंगे... पर आप घबराए हुए दिख रहे हैं...
रॉय - हाँ... जब कि कायदे से... कल की सोच कर... दुल्हन को घबराना चाहिए... हा हा हा हा... (रॉय के साथ रंगा भी हँसने लगता है)

गुस्से से तमतमाते हुए केके कुर्सी से उठ खड़ा होता है l और दोनों पर चिल्लाता है l

केके - शॉट अप... (दोनों चुप हो जाते हैं)
रॉय - केके साहब... कल शादी है... हमें राजा साहब ने हुकुम दिया है... आपको दूल्हे की तरह सजा कर... रंग महल से... क्षेत्रपाल महल तक... घोड़ी के ऊपर बिठा कर... जुलूस के साथ ले जाने के लिए... हमें लगा था... आपकी इच्छा पूरी हो रही है... इसलिए... आप बहुत खुश होंगे पर...
रंगा - केके साहब... कल से आप राजा साहब के... जमाई बनने जा रहे हैं... फिर घबराहट किस बात की...
केके - (दोनों की तरफ देखता है फिर) रंगा... एक बात बता... तेरी... सच में... किसको देख कर फटी थी...
रंगा - आपसे मतलब...
केके - डर लग रहा है ना...
रंगा - ठीक है... विश्वा... पर इस शादी से... उसका क्या वास्ता...
केके - तुझे क्या लगता है... एक अधेड़... हम उम्र से... राजा साहब... क्यूँ अपनी बेटी को व्याहना चाहते हैं...
रंगा - मेरे को क्या पता...
रॉय - एक मिनट.. एक मिनट... कहीं आप यह तो नहीं कहना चाहते... के विश्वा और राजकुमारी...
केके - हाँ...
रंगा - यह कैसे हो सकता है... मैं नहीं मानता... विश्वा... सात साल तक... जैल में रहा... बमुश्किल सात आठ महीने हुए हैं... बाहर आए... उसकी और राजकुमारी...
केके - पर यह सच है... खुद राजकुमारी ने मुझे कहा था... और यह... जवानी वाला इश्क नहीं है... बचपन वाला लफड़ा है...
रंगा और रॉय - क्या...
केके - हाँ... इस.. (सत्तू की ओर दिखा कर) पूछो इससे...
सत्तू - (घबरा कर) मैं... मैं... कुछ नहीं जानता...
केके - क्या नहीं जानता बे... तूने ही तो कहा था... विश्व... राजकुमारी को.. बचपन से पढ़ाता था...
सत्तू - हाँ... यह तो हर कोई जानता है... पर आप जो कह रहे हैं... यह कोई नहीं जानता...
रॉय - चलो ठीक है... एक पल के लिए हम मान लेते हैं... के राजा साहब... अपनी खुन्नस निकालने के लिए... अपनी बेटी की शादी.. आपसे करा रहे हैं... तो आपको इससे प्रॉब्लम क्या है...
केके - रॉय... इन कुछ महीनों में... हमने जो भी कुछ हारा है... जरा याद करो... उसके पीछे कहीं ना कहीं... विश्वा है... या तो सीधे तौर पर... या फिर... और रंगा... याद है... जब विश्वा तेरे सामने... अचानक आ गया... तेरी क्या हालत हो गई थी...

इतना कह कर केके चुप हो जाता है l रॉय और रंगा भी कुछ देर के लिए कोई बात नहीं कहते l फिर कुछ देर बाद रंगा कहता है l

रंगा - चलो मान लेता हूँ... पर है तो यह राजा साहब का इलाक़ा... और उन्होंने अपनी लश्कर में जबरदस्त बढ़ोतरी की है... मुझे नहीं लगता... विश्वा कुछ करने के लायक होगा...
रॉय - हाँ... मेरा भी यही खयाल है...
केके - मैं भी यही सोच रहा था... पर... जिस दिन विक्रम अपनी बहन से मिलने महल आया था... उस दिन... मैंने राजकुमारी के आँखों में... बातों में... एक जबरदस्त... आत्मविश्वास देखा था... उन्होंने खुल्लमखुल्ला राजा साहब के सामने ऐलान कर दिया... यह शादी होगी ही नहीं...
केके - मतलब वह... विश्वा के साथ... भागने की चक्कर में है...
सत्तू - ना मुमकिन... आज सुबह तक तो राजकुमारी जी महल में ही हैं... और कल से उनके शृंगार के लिए... कुछ औरतों को यशपुर से बुलाया गया है.... और लगातार राजा साहब के निगरानी में हैं...
रॉय - देखा... आप खामख्वाह परेशान हो... चलिए मैं मान लिया... विश्वा से खुन्नस उतारने के लिए... राजा साहब आपसे... राजकुमारी को व्याह दे रहे हैं... तो यह उनकी नाक और मूँछ की आन की बात हो गई ना... अपनी नाक और मूँछ की आँच बचाने के लिए... कुछ भी कर सकते हैं... अगर यह विश्वा से बदला लेने की बात है... तो इस मिशन में... हमें शिद्दत के साथ... शामिल होनी चाहिए... हम सबका बदला एक साथ पुरा होगा... कोई नहीं केके साहब... राजा साहब ने वह एग्रीमेंट यूँ ही नहीं कि है... मत भूलिए... इस शादी के बाद... यह रंग महल आपका हो जाएगा... राजा साहब के सारे फैक्ट्रियों और प्रॉपर्टी में... बराबर का हिस्सा हो जाएगा...
रंगा - हाँ केके साहब... आप बस तैयार हो जाइए... सारे गाँव वाले होंगे सामने शादी होने वाली है... विश्वा को भीतर से तोड़ने के लिए... अबकी बार... मैं खुद को बाजी लगा दूँगा... यह मेरा वादा है...

रॉय और रंगा के ढांढस बाँध ने के बाद केके को थोड़ी हिम्मत मिलती है l अब वह तैयार होने के लिए बाथरूम के अंदर जाता है l
Nice update....
 
  • Love
Reactions: Kala Nag

parkas

Well-Known Member
28,229
62,435
303
👉एक सौ अट्ठावनवाँ अपडेट
------------------------------

अर्ध रात्री
आकाश में तारे टिमटिमा रहे थे, क्षेत्रपाल महल के अंतर्महल की छत पर एक जोड़ा एक दूसरे के बाहों में खोए हुए थे l यह युगल कोई और नहीं हैं बल्कि हमारे कहानी के नायक व नायिका विश्वरुप ही हैं l रात शांत, हर क्षण शांत, हर फ़िजा शांत, जैसे वह आतुर हों इनके वार्तालाप सुनने के लिए l ऐसे ही बाहों में रहते हुए रुप ख़ामोशी को तोड़ती है और विश्व से कहती है l

रुप - जानते हो... मेरा दिल आज तुम्हें पुकार रहा था... और तुम आ गए...
विश्व - पर... मैंने आपको खबर भी नहीं की थी... बस छत पर आ गया था... आपको कैसे पता चला... के मैं आपको मिलने आया हूँ...
रुप - इट्स अ गर्ल थिंग... फिर भी बता देती हूँ... मेरे धड़कनों.. मेरे एहसासों... मेरे रोम रोम से पूछ कर देखो... जब भी तुम आस पास होते हो... मेरे रूह को... तुम्हारे होने का एहसास... अपने आप हो जाता है...
विश्व - क्या... आपको डर लग रहा है...
रुप - (अपना चेहरा अलग करते हुए) भला वह क्यूँ...
विश्व - राजा साहब ने... आते ही आपको जोरदार झटका जो दिया...
रुप - (विश्व के सीने से चिपक कर) वैसे कोशिश उनकी बहुत अच्छी थी... पर मैं जानती हूँ... उनकी कोशिश बेकार जाने वाली है...
विश्व - अच्छा... वह कैसे...
रुप - वह ऐसे की मैं जानती हूँ... के तुम यह शादी कभी होने ही नहीं दोगे...
विश्व - इतना भरोसा...
रुप - कोई शक़... (एक पॉज) अनाम... मेरा प्यार... मेरा विश्वास है... मेरे विश्वास का आधार... एक तुम हो... और एक भगवान... मैं जान हार सकती हूँ... पर विश्वास कभी नहीं...

विश्व कोई जवाब नहीं देता, बस दोनों की जकड़ बढ़ जाती है l थोड़ी देर बाद दोनों एक दूसरे से अलग होते हैं और पिछली बार की तरह छत पर बनी चबूतरे पर बैठ जाते हैं l आज आसमान में चाँद नहीं था फिर भी दोनों आसमान की ओर देखे जा रहे थे l विश्व एक सवाल छेड़ देता है

विश्व - आप अगर डरी नहीं थीं... तो मुझे ढूंढ क्यूँ रही थी...

रुप - (विश्व की तरफ घूम कर उसका चेहरा दोनों हाथों से पकड़ कर अपने तरफ करती है और पूछती है) मेरे आँखों में झाँक कर देखो... क्या तुम्हें डर दिख रहा है...
विश्व - नहीं.... नहीं दिख रहा है... पर फिर भी...
रुप - ( विश्व की चेहरे को छोड़ कर आसमान को ओर देखने लगती है) मैं बस.. अपनी प्यार को ... अपनी चाहत को.. उसकी गहराई को परख रही थी... कहीं मेरा प्यार... कोई तुक्का तो नहीं... पर आज तुम्हें छत पर पा कर... मुझे अपने प्यार पर यकीन हो गया है... के मेरा प्यार.. मेरी चाहत में कहीं भी कोई मिलावट नहीं है... झूठ नहीं है... (रुप की यह बात विश्व एक टक सुने जा रहा था, रुप विश्व की तरफ देख कर पूछती है) ऐसे क्या देख रहे हो...
विश्व - (मुस्करा कर) बस आपको देख रहा हूँ...
रुप - पर आसमान में चाँद नहीं है... फिर मेरे चेहरे पर क्या है... अंधेरे में तुम्हें पता कैसे चल रहा है...
विश्व - आसमान में चाँद से मुझे क्या लेना देना... मेरा चाँद तो मेरे आँखों के सामने है... मेरे इस चाँद के चाँदनी के आगे.. भला उस चाँद का क्या मुकाबला...
रुप - ओ हो... आज तो बड़े शेरों शायरी के मुड़ में हो...
विश्व - इसका दोष भी आप पर जाता है... आप हो ही इतनी सुंदर... बड़े बड़े गँवार भी शायर बन जाएंगे... इस बेपनाह हुस्न को देख कर...
रुप - बस बस... (अपने दोनों हाथों को विश्व के कंधे पर रख कर हाथ पर अपना ठुड्डी रख कर) इतना तारीफ ना कीजिए... अभी जाग रही हूँ... जागी ही रहने दीजिए... इतना तारीफ करोगे... तो सपना समझ कर नींद की आगोश में ना खो जाऊँ... (अचानक अलग होती है) एक बात पूछूँ...
विश्व - जी पूछिये...
रुप - राजा साहब तो महल में होंगे ना... फिर तुम कैसे अंदर आ गए...
विश्व - बस... आ गया...
रुप - अरे... ऐसे कैसे... याद है... जब मैंने तुम्हें आने के लिए कहा था... तब तुम... बिजली गुल कर अंदर घुसे थे...
विश्व - हाँ... तब मैं चाहता था... की राजा साहब को मालूम हो... के कोई अंदर आया था... इसलिए तो सुबह सुबह... मैंने छोटे राजा जी से... सलाम नमस्ते की थी...
रुप - पर अब...
विश्व - आप भूल रही हो... मैं इस महल के हर चप्पे-चप्पे से वाकिफ हूँ...
विश्व - सच्ची...
विश्व - ह्म्म्म्म... नहीं थोड़ी सी झूठ बोला है...
रुप - थोड़ा सी झूठ... मतलब कितना...
विश्व - राजा साहब कुछ देर पहले... रंग महल की ओर गये हैं... मैं मौका देख कर... घुस गया... और उनके आने से पहले... मुझे चले जाना होगा...
रुप - ह्म्म्म्म... मतलब तुम्हें भी डर लगता है...
विश्व - क्यूँ नहीं... मैं डर रहा था.. आपके लिए
रुप - क्यूँ...
विश्व - (चबूतरे से उठ कर छत के किनारे तक जाता है)
रुप - अनाम... तुमने बताया नहीं....
विश्व - (रुप की ओर मुड़ता है) मुझे जब खबर लगी... के राजा साहब ने... आपकी शादी तय कर दी... हाँ मैं डर गया था... (एक गहरी साँस लेकर) मुझे... वीर और अनु याद आ गए...

विश्व इतना कह कर रुक जाता है l रुप चबूतरे से उठ कर भाग कर जाती है और विश्व के सीने से लग जाती है l विश्व भी अनु को सीने में कस लेता है l

विश्व - वीर जब भी याद आता है... मुझे बहुत दर्द दे जाता है... मेरा वज़ूद... मेरी शख्सियत को कठघरे में खड़ा कर देता है... और एक सवाल हरदम झिंझोड़ता रहता है... क्यूँ आखिर क्यूँ... मैं पांच मिनट पहले नहीं पहुँचा...
रुप - (अपना सिर ऊपर उठा कर विश्व को देखते हुए) कहीं तुम मुझे ले चलने के लिए तो नहीं आए हो...
विश्व - जो आप कहेंगी वही होगा...
रुप - मैं किसी मज़बूरी या खौफ के चलते... अभी जाना नहीं चाहती... तुम बस यह शादी रुकवा दो... जिस दिन जाऊँगी... राजा साहब को बेबस देखते हुए जाऊँगी... उन्होंने हर किसी की बेबसी का फायदा उठाया है... मैं अपनी बिदाई पर.. उन्हें बेबस और लाचार देखना चाहती हूँ... वही पल... असल में बदला होगा... उनके हर एक सितम का...
विश्व - (मुस्कराते हुए) चलो... मेरा यह डर भी आपने ख़तम कर दिया...
रुप - उफ्फ्फ... कभी तो मुझे तुम कहो...
विश्व - नहीं... यह मुझसे नहीं होगा... आप राजकुमारी हो... मैं आपका गुलाम...
रुप - (बिदक कर) छोड़ो मुझे... (अलग हो जाती है) बड़े आए गुलाम...
विश्व - क्या हुआ...
रुप - वह साला कमीना... पहली मुलाकात में ही... मुझे तुम बोल रहा था...
विश्व - राज कुमारी जी... आप कबसे गाली देने लगी...
रुप - शुक्र मनाओ तुम्हें नहीं दी... बेवक़ूफ़.. हूँह्ह्... पूछा नहीं कौन था वह...
विश्व - इसमें पूछने वाली क्या बात है... मैं जानता हूँ... मेरी नकचढ़ी ने... उसको अच्छे से निचोड़ दिया होगा..

रुप हँस देती है, विश्व की तरफ जाती है l विश्व की हाथों को लेकर अपनी कमर पर रखती है l विश्व के गले में हाथ डालकर रुप विश्व के पैरों पर खड़ी हो जाती है और एड़ी उठा कर विश्व के चेहरे के सामने अपना चेहरा लाती है l विश्व की धड़कन बढ़ जाती है, रुप आगे बढ़ कर विश्व की नाक हल्के से काट लेती है l

विश्व - आह... आप हमेशा मेरी नाक के पीछे क्यूँ पड़े रहते हो...
रुप - (विश्व के नाक पर अपनी नाक रगड़ते हुए) मुझे.. अच्छा लगता है...
विश्व - (कांपते लहजे से) मुझे लगता है... अभी मुझे जाना चाहिए...
रुप - चले जाना,.. जरा ठहरो...
यह मंज़र देख कर जाना...
किसीका दम निकलता है...
विश्व - पता नहीं मुझे... पर मैं ज्यादा देर रुका... तो मेरा दम निकल जाएगा...
रुप - यु...

रुप अपना होंठ विश्व की होंठ पर रख देती है l दोनों के होठों के गुत्थम गुत्था शुरु हो जाता है l विश्व की हाथ रुप की कमर से उठ कर रुप के सिर को पकड़ लेता है और अपने में समेटने की कोशिश करता है l फिर उसका हाथ फिसलते फिसलते फिर कमर तक आ जाते हैं पर कमर पर रुक जाते हैं l कमर पर विश्व के हाथ मुट्ठी बाँध लेता है l रुप अलग होती है और विश्व के पैरों से उतरती है l दोनों हांफ रहे थे, जहां विश्व के चेहरे पर एक शॉक था वहीँ रुप के चेहरे पर एक शरारती मुस्कान था l

रुप - बहुत डरते हो... बेवक़ूफ़ तो हो ही.. अब डरपोक भी हो...
विश्व - हिरण... शेरनी से क्यूँ नहीं डरेगा...
रुप - पर यहाँ तो शेरनी खुद हिरण के हाथों शिकार होना चाहती है... पर हिरण है कि... हाथ पैर सब... अपाहिज हो जाता है...

विश्व रुप की हाथ को पकड़ कर खिंचता है l दोनों की नजरें मिलती हैं l रुप की माथे पर उड़ती लटों को हटाता है और रुप के चेहरे को दोनों हाथों से पकड़ कर कहता है l

विश्व - प्यार में बहुत गर्मी होती है... कभी कभी संभलना मुश्किल हो जाता है... प्यार में.. जब जब जो जो होना है... उसे तब तब होने देते हैं ना... जब समाज... संस्कार और भगवान का आशिर्वाद होगा... तब हमारे हिस्से की चार दीवारी और बंद दरवाजा होगा... उस दिन शायद आपको मुझसे कोई शिकायत नहीं होगी...
रुप - ओह... अनाम... (रुप विश्व के सीने से लग जाती है) तुम कितने अच्छे हो... आई लव यु...
विश्व - आई लव यु ठु.. (तभी दूर से एक सियार के भौंकने की आवाज आती है) लगता है... राजा साहब... रंग महल से निकल गए हैं... कुछ ही मिनट में पहुँच जायेंगे... (विश्व रुप की माथे पर एक किस करता है) राजकुमारी जी... आप वही करते जाइयेगा... जैसा आपको राजा साहब कहते जाएं... बाकी आप मुझ पर या अपने आप पर भरोसा मत खोइयेगा...
रुप - जैसी आपकी ख्वाहिश मेरे गुलाम...

दोनों हँसने लगते हैं l फिर विश्व इशारे से रुप को जाने के लिए कहता है l रुप जाने के लिए पलटती है और कुछ कदम चलने के बाद मुड़ती है पर तब तक विश्व गायब हो चुका होता है l रुप का मुहँ हैरानी के मारे खुल जाती है l

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×

अगले दिन
दिन के दस बजते बजते भीड़ छट चुकी थी l गौरी अपना गल्ला बंद कर अंदर जाने लगती है l वैदेही भी सारे बर्तनों को समेट कर धोने के लिए जमा करती है l इतने में दुकान पर सुषमा और शुभ्रा आते हैं l वैदेही उनके तरफ देखती है और महसुस करती है जैसे वह कुछ बात करना चाहते तो हैं पर हिचकिचाते रहे हैं l

वैदेही - आप अंदर आइए... आइए ना... (सुषमा और शुभ्रा एक दुसरे की ओर देखते हैं फिर अंदर आते हैं) बैठिए... (दोनों झिझकते हुए बैठते हैं)

वैदेही पानी की ग्लास लाकर उन्हें देती है l फिर एक कुर्सी खिंच कर उनके पास बैठ जाती है l

वैदेही - बड़े भाग्य का दिन है आज... मेरे घर... छोटी रानी और युवराणी आई हुई हैं... कहिये... क्या सेवा कर सकती हूँ..
शुभ्रा - ऐसे ना कहिये... महीनों पहले आप ऐसे कहतीं तो उस बात की कोई मायने होती... पर आज यह बात कोई मायने नहीं रखती... ना छोटी माँ आज रानी हैं... ना ही... मैं कोई युवराणी... वैसे भी... हम आज फरियादी बन कर आए हैं...
वैदेही - अरे बापरे... इतनी बड़ी बात... आप लोग मेरे सपने हैं... भला अपनों के यहाँ कोई फ़रियाद लेकर आता है... हक् से आता है.. हक जताता है... बस हुकुम कीजिए... जो बस में होगा... जरुर करूँगी...

तभी टीलु कुछ सामान हाथ में लेकर अंदर आता है l इन दोनों को देख कर थोड़ा स्तब्ध हो जाता है l फिर वैदेही की ओर देखता है l

वैदेही - आज हमारे यहाँ मेहमान आए हैं... इसलिये... दोपहर को दुकान बंद रहेगी... और आज... (शुभ्रा की ओर इशारा करते हुए) इन्हींकी मर्जी का खाना बनेगा...
शुभ्रा - नहीं नहीं...
वैदेही - अरे कैसे नहीं... मेरी माँ कहा करती थी... गर्भवती स्त्री का किसी के द्वार आना सबसे शुभ होता है... और उन्हें उनकी इच्छानुसार खाना खिलाने से... सौ जन्म का पुण्य मिलता है... इसलिए... बेझिझक बताइए... आज यहाँ आपकी ही मन पसंद का भोजन बनेगा...
शुभ्रा - वैदेही जी... हम किसी और काम से आए हैं...
वैदेही - वह भी सुन लुंगी... पर पहले मुझे आपका सेवा तो करने दीजिए...
सुषमा - वैदेही... हम यहाँ बहुत टेंशन में हैं... तुम जानती भी हो क्या हुआ है...
वैदेही - ओह... माफ कर दीजिए... मुझे लगा नहीं था कि किसी गम्भीर विषय पर बात करने के लिए आप यहाँ आए हैं...
सुषमा - बात बहुत ही गम्भीर है... और हम चाहते हैं कि... तुम हमें कोई राह दिखाओ...
वैदेही - ठीक है... मुझसे जो बन पड़ेगा... वह मैं जरुर करूंगी...
शुभ्रा - हाँ आप ही कर सकती हो... क्यूँकी... गाँव में सब कहते हैं... की आपकी इस चौखट से... ना तो कोई खाली हाथ लौटा है... ना ही कोई खाली पेट...
वैदेही - आप बात तो शुरु कीजिए... जब से आए हैं... मेरी बड़ाई किए जा रहे हैं...
टीलु - सच ही तो कहा है उन्होंने... दीदी... तुम्हारे दर से... कभी कोई जरूरत मंद ना खाली पेट लौटा है... ना खाली हाथ...
वैदेही - तु यहाँ से जा... वर्ना तु जरूर आज भूखा रहेगा...

टीलु झट से अंदर की ओर चला जाता है l उसे जाते हुए तीनों देख रहे थे l उसके जाने के बाद सुषमा वैदेही से कहना शुरु करती है l

सुषमा - देखो वैदेही... तुम्हारा यह मुहँ बोला भाई... झूठ नहीं कहा है... मैं तुम्हें बेटी नहीं कह सकती... क्यूँकी इससे... उस रिश्ते पर तोहमत लगेगी... मैं जानती हूँ... क्षेत्रपाल परिवार ने तुम्हारे साथ क्या किया है... पर तुम स्वयं सिद्धा हो... तुम देवी हो... इसलिए आज हम दोनों सास बहु... तुम्हारे दर पर आए हैं... हमारी बेटी... रुप नंदिनी के लिए... (वैदेही थोड़ी गम्भीर हो जाती है) वह पाँच साल की थी... जब उसकी माँ इस दुनिया से चली गई... मैंने अपने सीने से लगा कर बड़ा किया... मुझे अपने बच्चों से ज्यादा अजीज है... पता नहीं... तुम भाई बहन को पता है भी या नहीं... अगर पता है... तो तुम लोग गम्भीर क्यूँ नहीं हो... राजा साहब ने... नंदिनी की शादी एक अधेड़ से तय कर दी है.... मैं और मेरी बहु... यहाँ उसकी सुरक्षा मांगने आए हैं... (हाथ जोड़ देती है)
वैदेही - अरे अरे... यह आप क्या कर रही हैं...
शुभ्रा - वक़्त की विडंबना है... कभी क्षेत्रपालों को गुरुर हुआ करता था... के उनके हाथ कभी आकाश की ओर नहीं देखती... पर आज हम तुम्हारे सामने हाथ फैलाए आए हैं...
वैदेही - राजा भैरव सिंह... कल आपके पास से सीधे मेरे पास आए थे...

इतना कह कर वैदेही अपनी टेबल की ड्रॉयर खोल कर वही इंवीटेशन कार्ड निकाल कर सुषमा को दिखाती है l शुभा और सुषमा दोनों हैरान हो जाते हैं और वैदेही की ओर देखने लगते हैं l

वैदेही - जब भैरव सिंह... गिरफ्तार हो कर जा रहा था... यहाँ मुझसे मिलने आया था और चुनौती दे कर गया था... मुझे और विशु की हालत खस्ता कर देगा... और कटक छोड़ कर राजगड़ आने से पहले... विशु को भी... चेतावनी देकर आया था... के उसके तन मन और आत्मा को ज़ख्मी कर देगा...
सुषमा - मतलब तुम सब जानती हो...
वैदेही - हाँ... जानती हूँ... और यह भी जानती हूँ... यह शादी नहीं होगी...
शुभ्रा - यह आप कैसे कह सकते हैं... राजा साहब ने... अपनी नई फौज बनाई है... बाहर से लोग आए हैं...
वैदेही - फिर भी... यह शादी नहीं होगी...
सुषमा - मैं तुम्हारी आत्मविश्वास की कद्र करती हूँ... पर अति आत्मविश्वास और आत्मविश्वास के बीच बहुत ही महिम दीवार होती है...
वैदेही - यह मेरा विश्वास है... बल्कि यह मेरा ही नहीं... आपकी नंदिनी का भी यही विचार है...
सुषमा और शुभ्रा - क्या...
वैदेही - हाँ...
सुषमा - ठीक है... यह उसका विचार हो सकता है... पर... राजा साहब... अपने अहं के आगे... किसीको कुछ नहीं समझते...
सुषमा - जब किसी का अंत करीब आती है.... तो उसका बुद्धि और विवेक खो जाती है... राजा भैरव सिंह के साथ भी ऐसा ही हुआ है... वह इस विषय में... विश्व को दिली और दिमागी तौर से कमजोर करने के लिए... ऐसा कदम उठाया है... पर जब दो प्रेमी... इससे परेशान नहीं हैं... तो हम क्यूँ हों...
शुभ्रा - क्या कहा तुमने... विश्व और रुप परेशान नहीं हैं...
वैदेही - (मुस्कराती है) रात को ही... विशु... नंदिनी से मिलकर आया है... इसलिए... आप भी निश्चिंत हो जाइए... यह शादी नहीं होगी...
शुभ्रा - भगवान करे... आपकी बात सही हो... पर कल से... विक्रम जी बहुत परेशान थे... उनसे रहा नहीं गया... तो अभी कुछ देर पहले महल की ओर गए हैं...
वैदेही - तो ठीक है ना... आप उनसे सारी जानकारी प्राप्त कर सकतीं हैं... (दोनों कशमकश के साथ अपना सिर झुका लेते हैं) वह सब जाने दीजिए... शुभ्रा जी... दिल को तसल्ली दीजिए... और जो भी आपका मन पसंद हो कहिए... आपको खिलाए बिना जाने नहीं दूंगी... ह्म्म्म्म


×_____×_____×_____×_____×_____×_____×


केके पिनाक के कमरे में कुर्सी पर बैठा हुआ था l केके का पैर एक नौकर दबा रहा था l केके कमरे की चारों ओर नजर घुमा रहा था l नौकर देखता है केके किसी गहरे सोच में खोया हुआ है l कोई ऐसी बात थी जो उसे असहज कर रही थी l

नौकर - मालिक... क्या आपको हमारी सेवा अच्छी नहीं लगी...
केके - (सोच से बाहर आता है) नहीं नहीं...
नौकर - पर हम तो जी जान से आपकी सेवा कर रहे हैं...
केके - अरे नहीं... मेरा मतलब... तुम बहुत अच्छा काम कर रहे हो... हम बस कुछ और सोच रहे थे... वैसे क्या नाम है तुम्हारा...
नौकर - जी सत्यवान... पर सभी मुझे सत्तू कह कर बुलाते हैं...
केके - तो सत्तू...
सत्तू - जी... जी मालिक...
केके - तुम जानते हो... हम कौन हैं...
सत्तू - जी मालिक... आप इस परिवार के होने वाले... जामाता हैं... तभी तो... मुझे आपकी सेवा करने के लिए... जिम्मेदारी सौंपी गई है...
केके - ह्म्म्म्म... अब मेरा पैर छोडकर कुर्सी पर बैठ जाओ....
सत्तू - ना मालिक ना... हम महल के नौकर हैं... (कह कर फर्श पर पालथी मार कर बैठ जाता है) अब पूछिये...
केके - अच्छा सत्तू... क्या तुमने पूरा महल देखा हुआ है...
सत्तू - नहीं मालिक... यह पहली बार है... जब हम महल के इतने अंदर आए हैं... वर्ना... हमारी औकात बरामदे तक ही होती थी... फिर भी... आप पूछिये... क्या जानना चाहते हैं... जो मुझे मालूम होगा... मैं बता दूँगा...
केके - अच्छा... कितने कमरे हैं यहाँ...
सत्तू - वह तो नहीं पता... पर पंद्रह बीस कमरे होंगे... और जो भी हैं बड़े बड़े कमरे हैं...
केके - रहते कितने लोग हैं...
सत्तू - जनाना महल में... राजकुमारी जी रहती हैं... और एक बड़े से कमरे में... बड़े राजा जी रहते हैं... उनकी सेवा में भी बहुत लोग लगे हुए हैं...
केके - ह्म्म्म्म...
सत्तू - और कुछ...
केके - तुम...
सत्तू - हाँ हाँ पूछिये...
केके - य़ह तुम... विश्वा के बारे में क्या जानते हो...
सत्तू - ज्यादा कुछ नहीं मालिक... मुझे तो तीन साल हुए हैं... राजा साहब के महल में... पर इतना जानता हूँ... विश्वा इस महल का बहुत पुराना नौकर था... राजा साहब ने उसे सरपंच बनाया... पर यह उनसे गद्दारी पर आ गया... उसने कई कत्ल भी किए हैं... और जैल भी गया था... पर था साला पढ़ाकु... जैल में रहकर बड़ा वकील बन गया है... अब देखिए ना... उसकी एहसान फरामोशी... राजा साहब के खिलाफ अब केस लड़ रहा है...
केके - उसका और राजकुमारी का क्या रिश्ता है... कुछ जानते हो...
सत्तू - हाँ जानता हूँ ना... विश्वा... बचपन में... राजकुमारी जी को सात साल तक पढ़ाया है...
केके - ओ... मतलब पहचान.. बचपन वाला है...
सत्तू - जी मालिक...
केके - अच्छा सत्तू... राजकुमारी की शादी... किसी राज घराने में... या फिर... किसी बड़े घर में होनी चाहिए थी... है ना...
सत्तू - ऐसी बातेँ मुझसे मत पूछिये मालिक... बहुत छोटे लोग हैं... क्या बोलें... हम बस इतना जानते हैं... राजा साहब... हमारे भगवान हैं... उनकी बात और फैसला... यहाँ पर रहने और जीने वालों की जीने की फरमान होती है... राजा साहब ने अगर आपको पसंद किया है.. तो यह राजकुमारी और आपका भाग्य है...
केके - ह्म्म्म्म... वैसे... मेरे बारे में... तुम्हारे साथी कैसी बात कर रहे हैं...
सत्तू - राजा साहब के फैसले पर... हम कभी बात नहीं करते... बस उनके हुकुम बजाते हैं...
केके - अच्छा यह बताओ... राजा साहब ने कभी विश्वा को... उसकी गुस्ताखी की सजा देने का नहीं सोचा...
सत्तू - अब हम क्या कहें मालिक... विश्वा अब कोई आम विश्वा नहीं है... बवंडर है... हमने कई बार कोशिश की उसे मिटाने के लिए... पर हर बार वह हम पर भारी पड़ा... एक अकेला... बीस बीस को लपक लेता है... एक बार तो महल के बाहर ही... (सत्तू बताने लगता है कैसे गाँव वालों के जमीन और घरों के कागजात लेने वैदेही और विश्वा आए थे और कैसे कागजात लेकर गए थे)
केके - और राजा साहब खामोश हैं...
सत्तू - क्या करेंगे फिर... आखिर वह राजा हैं... किसी ऐरे गैरे को... राह चलते को... कैसे हाथ लगा सकते हैं... उनको हम पर भरोसा था... पर... हम ही खरे नहीं उतरे... इसीलिए तो अब... बाहर से लोगों को लाए हैं... अब अगर विश्वा कुछ भी हिमाकत करेगा... तो इसबार वह बच नहीं पाएगा... वैसे एक बात पूछूं मालिक...
केके - पूछो...
सत्तू - आप यह विश्वा के बारे में... इतना पूछताछ क्यूँ कर रहे हैं... क्या आप उसे पहले से जानते हैं...
केके - अरे नहीं... बस ऐसे ही सुना था... अच्छा... xxx चौक पर... एक औरत का दुकान है... उसका राजा साहब का... मतलब... कुछ...
सत्तू - वह औरत... वही तो विश्वा का बहन... वैदेही है...
केके - (चौंकता है) क्या...
सत्तू - क्यूँ... क्या हुआ मालिक...
केके - कुछ नहीं... (माथे पर चिंता की लकीर उभर आती है) राजा साहब... महल को लौटते वक़्त... उसके दुकान पर गए थे...
सत्तू - ज्यादा तो नहीं जानता पर... सुना है... कभी रंग महल में... राजा साहब के ऐस गाह की रौनक हुआ करती थी... और वही एक औरत है... पूरे राजगड़ में... जो राजा साहब से सिर उठा कर आँखों में आँखे डाल कर बात करती है...

तभी कमरे के बाहर दस्तक होती है, दोनों की नजरें दरवाजे की तरफ जाती है l एक नौकर खड़ा था l

केके - हाँ क्या हुआ...
नौकर - राजा साहब आपको... दीवान ए आम में आने के लिए कहा है...
केके - ठीक है... तुम चलो... (सत्तू से) तुम मुझे वहाँ ले चलो...
सत्तू - ठीक है मालिक....

दोनों कमरे से निकल कर दीवान ए आम की ओर जाने लगते हैं l जाते वक़्त केके अपनी नजरें चारो ओर दौड़ा रहा था l कुछ देर बाद दोनों दीवान ए आम में पहुँच जाते हैं l दोनों देखते हैं सिंहासन पर भैरव सिंह बैठा हुआ था और उसके सामने विक्रम खड़ा था l केके को देख कर भैरव सिंह केके से कहता है

भैरव सिंह - आओ केके आओ... महल में कोई शिकायत तो नहीं...
केके - जी नहीं राजा साहब...
भैरव सिंह - (विक्रम से) तो... विक्रम सिंह... बताने की कष्ट करेंगे... महल में जबरदस्ती घुसने की कोशिश क्यूँ कर रहे थे...
विक्रम - मैं यहाँ अपनी बहन से मिलने आया था...
भैरव सिंह - क्यूँ... क्यूँ आए हो... तुमने तो सभी रिश्ते नाते तोड़ कर महल से चल दिए थे...
विक्रम - मैं... महल से क्षेत्रपाल छोड़ गया था... तब भी... अपनी बहन को ले जाना चाहता था... शुक्र मनाईये... वह अपने दादा की सेवा करने के लिए रुक गई... वर्ना...
भैरव सिंह - वर्ना... हाँ हाँ... वर्ना... शायद तुम भूल रहे हो... वह तुम्हारे साथ जाती ही नहीं...
विक्रम - आप उसकी अच्छाइ.. और मासूमियत का... नाजायज फायदा उठा रहे हैं...
भैरव सिंह - नाजायज... फायदा... जो... जिसकी... जितनी काबिल है... हम उसकी उतनी... वही किस्मत लिख रहे हैं... नंदिनी के किस्मत में वही मिल रहा है... जो उसने हमसे खोया है... और इस महल के बाहर कमाया है... हम तो बस मोहर लगा रहे हैं...
विक्रम - (केके की ओर दिखा कर) यह... इसको नंदिनी की किस्मत में थोप रहे हैं... यह हरामी गटर का सुअर... मेरी जुती चाटने वाला...
भैरव सिंह - केके...
केके - जी राजा साहब...
भैरव सिंह - आओ... हमारे बगल में बैठो...

केके जा कर भैरव सिंह के पास वाले एक कुर्सी पर बैठ जाता है l विक्रम की आँखें गुस्से से अंगारों की तरह दहकने लगती हैं l विक्रम को मुट्ठीयाँ भिंच जाती हैं l विक्रम का यह रुप देख कर केके की हलक सुख जाता है l

भैरव सिंह - अब केके की जुतें.. इस घर के नौकर साफ करते हैं...
विक्रम - मुझे यह समझ में नहीं आ रहा... आप ऐसा क्यूँ कर रहे हैं... अपनी कद से ऊपर उठने के बजाय... गिरते जा रहे हैं...
भैरव सिंह - कद किसका क्या है... कितना है... यह फैसला भी हम ही करते हैं...
विश्व - मैं आपसे कोई बहस करना नहीं चाहता... आप नंदिनी को बुलाईये... मैं उसकी मर्जी जानना चाहता हूँ...
भैरव सिंह - वही तो हम पूछ रहे हैं... किस हक से... जब आप महल से हर रिश्ते नाते तोड़ कर जा चुके हैं...
विक्रम - महल में एक रिश्ता अभी जिंदा है... मैं उसके वास्ते आया हूँ... उसकी मर्जी... और खैरियत पूछने आया हूँ....
भैरव सिंह - अगर मर्जी नहीं हुई तो...
विक्रम - तो... दुनिया इधर से उधर क्यूँ ना हो जाए... यह शादी कोई नहीं करा सकता... इस महल का... भगवान भी नहीं...
भैरव सिंह - ओ हो... खून के सामने खून खड़ा है... और खून को ललकार रहा है..
विक्रम - यही दस्तूर है... इतिहास उठाकर देख लीजिए... बात जब आन पर आ जाती है... खून को खून ही ललकारता है... और खून को खून ही हटाता है...
भैरव सिंह - बच्चे कैसे पैदा किया जाता है... यह बच्चे कभी बाप को नहीं सिखाते...
विक्रम - रजवाड़ों का खूनी इतिहास उठा कर देख लीजिए... बाप ने कभी औलादों को नहीं हटाया...
भैरव सिंह - तो खून में इतनी गर्मी आ गई... के बाप को हटाने की सोच रहे हो...
विक्रम - तब तक तो नहीं... जब तक... नंदिनी मेरी बहन है... और मुझे उससे बात करनी है...
भैरव सिंह - (कुछ देर की चुप्पी, तनाव भरा माहौल था, फिर भैरव सिंह मुस्कराते हुए) ठीक है... आज हम भी देखेंगे... हमारी लिखी किस्मत और... तुम्हारी बगावत की टक्कर होती है या नहीं... (सत्तू से) जाओ बड़े राजा जी के कमरे तक खबर पहुँचा दो... राजकुमारी जी को हमने अभी यहाँ याद किया है...

सत्तू भागते हुए चला जाता है l बाहर एक नौकरानी को नागेंद्र के कमरे जाकर रुप को बुलाने के लिए कहता है l कुछ देर के बाद रुप अंदर आती है और अंदर की नज़ारा देखती है l भैरव सिंह और केके दोनों कमरे के बीचोबीच कुर्सी पर बैठे हुए हैं और उनके आगे विक्रम खड़ा हुआ है l रुप को देख कर विक्रम आपनी बाहें फैला देता है रुप दौड़ कर उसके गले लग जाती है l थोड़ी देर बाद विक्रम उसे अलग कर उसके चेहरे को गौर से देखता है l रुप के चेहरे पर ना कोई ग़म ना कोई शिकन था l यह देख कर विक्रम को थोड़ी हैरानी होती है l

विक्रम - कैसी है मेरी गुड़िया...
रुप - बहुत अच्छी हूँ भैया... पर एक दुख तो रहेगा ना... जिस वक़्त भाभी के पास ननद को होना चाहिए... तब मैं नहीं हूँ...
विक्रम - अब भी कोई देर नहीं हुई है... चल मैं ले चलता हूँ...
रुप - क्या करूँ भैया... एक रिश्ते ने मुझे इस महल से बाँध रखा है... वर्ना चली ही जाती...
विक्रम - नंदिनी... मेरी बहन... (केके की ओर दिखा कर) तु इस आदमी के बारे जानती है...
रुप - हाँ भैया... यह वही है ना... जो सालों साल... तुम्हारे जुते चाटता था... (यह बात सुनते ही केके का चेहरा कड़वा हो जाता है)
विक्रम - यह अभी इस महल में... राजा साहब के बगल में क्यूँ है जानती हो ना..
रुप - हाँ भैया... श्मशान जाने की उम्र में... कटक से इतना दूर... अपनी फजिहत करवाने आया है...
भैरव सिंह - (गुर्राता है) नंदिनी...
विक्रम - (भैरव सिंह की ओर हाथ दिखा कर आगे कुछ बोलने से रोक देता है और रुप से) तुझे यह शादी मंजूर नहीं है ना...
रुप - भैया... शादी हो तब ना... जब यह शादी होनी ही नहीं है... फिर मैं उसकी चिंता क्यूँ करूँ...
विक्रम - तुझसे ज़बरदस्ती भी करवा सकते हैं...
रुप - ज़बरदस्ती तब करेंगे ना... जब मैं मना करूंगी...
विक्रम - मैं समझा नहीं गुड़िया...
रुप - भैया... आप ज़रूर आना... भाभी... चाची माँ और चाचाजी को लेकर... वह तमाशा... राजगड़ के साथ साथ... आप भी देखना...
विक्रम - बस बहना बस... मैं बस तेरी खैर ख़बर और मर्जी जानने आया था... तेरा यह विश्वास देख कर... मैं सब समझ गया...
रुप - देखा भैया... बातों ही बातों में भूल गई... भाभी.. चाची माँ और चाचाजी कैसे हैं...
विक्रम - तेरे लिए फिक्र मंद थे... अब मेरी फिक्र मीट गई... समझ उनकी भी मीट गई... अच्छा... अब अंदर जा...

रुप फिर से अपने भाई के गले लगती है और फिर वहाँ से निकल जाती है l विक्रम अब एक मुस्कराहट के साथ भैरव सिंह के तरफ देखता है l

भैरव सिंह - हो गई तसल्ली...
विक्रम - जी... हो गई... अब मुझे... आपकी फिक्र हो रही है...
भैरव सिंह - तुम्हें लगता है... यह शादी कोई रोक सकता है...
विक्रम - मेरी बहन की आत्मविश्वास बोल रहा है... और मुझे यह साफ एहसास हो रहा है... नंदिनी की आत्मविश्वास की आँच को आप भी महसूस कर रहे हैं...
भैरव सिंह - हम उस दिन किसी को भी... अपनी जगह से हिलने तक नहीं देंगे.... ना हवा.. ना पानी... ना खून को...
विक्रम - आप उसी पर कायम रहिएगा... जोर नंदिनी पर मत आजमा बैठिएगा... क्यूँकी चाची माँ ने कहा था... पहली बार... आप ही के अहंकार से... आप ही का खून का अहंकार टकराया है...
भैरव सिंह - और हमारे अहंकार से टकराने वाले हर वज़ूद को नकार देते हैं... हमसे कोई जीत नहीं सकता... चाहे वह हमारा खून ही क्यूँ ना हो... इसलिए हमारी फिक्र मत करो
विक्रम - आपके खून के साथ किसी और का जुनून भी टकराएगा... इसीलिए मुझे फिक्र हो रहा था... (कह कर विक्रम पलट कर जाने लगता है फिर अचानक रुक कर मुड़ता है) मुझसे नंदिनी चहकते हुए मिली... शादी के दिन भी मुझे वैसी ही मिलनी चाहिए... वर्ना... रजवाड़ी इतिहास... फिर से अपने आप को दोहराएगा....

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×

शादी को एक दिन रह गया है
उसके पूर्व संध्या के समय विश्व नदी के तट पर बने सीढ़ियों पर बैठा डूबते सूरज की देख रहा था l कोई उसके पीछे से सीढ़ियां उतरता हुआ महसूस होता है l विश्व नजर घुमा कर देखता है पिनाक सीढ़ियों से उतर कर आ रहा था l विश्व खड़ा हो जाता है l

पिनाक - यह अच्छी निशानी है... यह नदी का किनारा... ढलता हुआ शाम... डूबता हुआ सुरज... किसी को भी... खोने को मजबूर कर सकता है... पर फिर भी तुम चौकन्ना थे... मैं दबे पाँव आ रहा था... तुम सतर्क हो गए...
विश्व - (कुछ नहीं कहता चुप रहता है)
पिनाक - बैठो... मैं भी तुम्हारे साथ... कुछ देर बैठने के लिए आया हूँ... (सीढ़ियों पर बैठ जाता है, विश्व भी उसे बैठा देख कर बगल में बैठ जाता है) ज्यादातर डूबते सूरज को वही लोग देखते हैं... जिन्हें अंधेरे में कुछ खोने का डर हो...
विश्व - हाँ आपकी बात सच है... पर सुबह की तरह शाम भी एक सच है... अगर उजाले के बाद... अंधेरा आना तय है... तो राह के लिए भटकने से पहले... रौशनी का इंतजाम कर लेना चाहिए... मैं यहाँ... रौशनी ढूंढ रहा हूँ...

कुछ देर के लिए दोनों के बीच एक चुप्पी सी छा जाती है l कुछ देर बाद विश्व पिनाक से कहता है l


विश्व - आज आपको यहाँ देख कर अच्छा लगा...
पिनाक - हाँ... मुर्दों की तरह... मुर्दों के बीच जिए जा रहा था... जब जीने की ख्वाहिश जागी... तब सब कुछ लूट चुका था... जिंदा लाश बन कर रह गया हूँ...
विश्व - आपने कहा... आप मुझसे बात करने आए हैं...
पिनाक - हाँ... इससे पहले हम जब भी मिले... आपस में... रंजिश भरे दिल में मिले... अब रंजिश की जगह तो नहीं है... पर...
विश्व - पर...
पिनाक - पर एक मासूम सी जान है... जो एक राक्षस के पिंजरे में कैद है...
विश्व - आप... राजकुमारी जी की बात कर रहे हैं...
पिनाक - हाँ... मैं नंदिनी की बात कर रहा हूँ...
विश्व - (एक गहरा साँस छोड़ते हुए) आपको... क्या लगता है...
पिनाक - मैं अब क्या कहूँ... मुझे परेशान देख कर... विक्रम ने ही तुम्हारे पास यहाँ आने के लिए कहा था... क्यूँकी उसे मालूम था... तुम मुझे यहाँ मिलोगे...
विश्व - आपको... राजकुमारी जी की चिंता परेशानी में डाल रखा है...
पिनाक - हाँ... मेरी पत्नी... बहु और विक्रम तक... आश्वस्त हैं... पर मैं नहीं हो पा रहा था... इसलिए विक्रम ने मुझे तुम्हारे पास भेज दिया...
विश्व - पर आपने अभी तक... राजकुमारी जी को लेकर... कोई भी सवाल नहीं किया है...
पिनाक - विश्व... वीर को... खोने के बाद... मैं खुद को एक लुटा पीटा भिकारी समझ रहा था... पर ज्यूं ही... राजा साहब ने... शादी का कार्ड दिया... तब मुझे एहसास हुआ... मेरे पास और भी कुछ क़ीमती है... जो राजा साहब की जिद की बेदी पर बलि चढ़ने जा रही है...
विश्व - आप मुझसे क्या चाहते हैं...
पिनाक - वादा... सिर्फ एक वादा...
विश्व - कैसा... वादा...
पिनाक - विश्व रुप की एका... विश्व और रुप दो शब्द या दो प्राण नहीं होने चाहिए... जब भी नाम लिया जाए... विश्वरुप ही सुनाई दे... दिखाई दे... बस यही वादा चाहता हूँ... मेरे बेटे की आत्मा को शांति मिलेगी... क्यूँकी वह तुम दोनों के बारे जानता था... और तुम दोनों को एक होते देखना चाहता था...
विश्व - आप ही ने कहा... आपके परिवार वाले आश्वस्त हैं... क्या आपको संदेह है...
पिनाक - नहीं... पर... मैं राजा साहब के जिद को जानता हूँ... और अब ऐसा लग रहा है... जैसे तुम्हें हराने के लिए... वह किसी भी हद तक जा सकते हैं...
विश्व - ह्म्म्म्म... शादी कल शाम को है... इतने दिनों में... महल में... क्या कुछ हुआ है...
पिनाक - तुमसे कुछ छुपा तो नहीं होगा... यशपुर से कुछ औरतें बुलाई गई हैं... जो नंदिनी की शृंगार करेंगी... आज घर पर... नंदिनी की खास परिचारिका सेबती आई थी... कल नंदिनी अपने पास अपनी भाभी और चाची माँ को चाहती है... इसलिए वे कल सुबह ही महल चली जाएंगी... कमल कांत सिर्फ एक दिन ही महल में रहा... फिर उसे राजा साहब ने रंग महल भेज दिया... एक अंधी सफेद घोड़ी को लाई गई है... जिसके ऊपर वह बेशरम... बेग़ैरत... कमल कांत... रंग महल से निकल कर राजगड़ परिक्रमा करेगा... अब की बार... राजा साहब ने... बाहर से लोग बुलवाए हैं... हर एक पर नजरें जमाए हुए हैं... मुझे तो लगता है... वे तुम पर भी... नजरें गड़ाए होंगे...
विश्व - क्यूँ...
पिनाक - यह कैसा सवाल हुआ... तुम पर उनकी इसलिए नजर होगी... ताकि तुमसे कोई हरकत हो... तो पलटवार कर सकें...
विश्व - अगर मैं कोई हरकत ही ना करूँ तो...
पिनाक - (भौंहे सिकुड़ कर हैरानी भरे नजर से देखता है) तुम अगर कुछ नहीं करोगे... तो राजा साहब अपने मकसद में कामयाब हो जाएंगे... नंदिनी की जिंदगी बर्बाद हो जाएगी...
विश्व - यह शादी... राजा साहब की मकसद नहीं है... बल्कि एक छिपा हुआ मकसद है... जिसके लिए... उन्होंने यह शादी तय की है...
पिनाक - क्या... कौनसी छुपी हुई मकसद...
विश्व - असल में... राजा साहब... यह शादी ही नहीं चाहते... और यह भी अच्छी तरह से जानते हैं... यह शादी नहीं होगी...
पिनाक - (झटका खाते हुए) यह तुम किस बिनाह पर कह सकते हो...
विश्व - (मुस्कराता है) राजा साहब का पहला मकसद है... मुझे इस केस से हटाना... या भटकाना... यह तभी हो सकता है... जब मेरी कोई कमजोर नस उनके हाथ हो...
पिनाक - तो क्या नंदिनी तुम्हारी कमजोरी नहीं है...
विश्व - नहीं... वह मेरी ताकत हैं... मेरी जान... मेरी आत्मा हैं... मेरी कमजोरी... मेरे मुहँ बोले माता पिता हैं... यह शादी की बात इसलिए फैलाई गई है... किसी तरह यह खबर मेरे माता पिता को मिल जाए... मेरी माँ... इमोशनली जितनी मजबूत है... उतनी ही कमजोर भी है... यह बात... राजा साहब अच्छी तरह से जानते हैं... मेरी माँ तक अगर राजकुमारी जी की शादी की खबर पहुँच जाए... तो मेरी माँ हाय तौबा कर बाहर आ जाती... आज के दिन... राजा साहब को सरकारी तंत्र भी मदत दे रही है... ऐसे में... मेरी माँ को कब्जे में लेना... उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं होगी...
पिनाक - तुम्हें ऐसा क्यूँ लगता है... नंदिनी की शादी की खबर... प्रतिभा जी को नहीं मिलेगी...
विश्व - क्यूँकी... माँ और डैड... दोनों को... मैंने ही अंडरग्राउंड करवाया है... उन तक कौनसी खबर जाएगी... यह मैं ही तय करता हूँ...
पिनाक - (कुछ सोच में पड़ जाता है) तुम यह कैसे कह सकते हो... राजा साहब को यह शादी... मंजूर नहीं...
विश्व - पुरे स्टेट में... राजा साहब कोई मामूली व्यक्ती नहीं हैं... पर वह केवल दो ही ईंवीटेशन कार्ड प्रिंट कर लाए थे... एक मेरे और दीदी के नाम... दूसरा आपके नाम... बाकी राजगड़ से बाहर... यहाँ तक यशपुर भी नहीं... कहीं भी... किसीको भी... ना खबर किया गया है... ना ही बुलाया गया है... राजगड़ में भी लोगों को... घूम घूम कर... मुहँ जुबानी निमंत्रण दिया गया है... इससे यही साबित हो रहा है... यह शादी... राजा सहाब को मंजूर नहीं है...
पिनाक - चलो मान लिया... तुमने राजा साहब की वह छुपी हुई मकसद को नाकाम कर दिया... पर शादी... शादी कैसे नहीं होगी... राजा साहब तुम्हें तोड़ने के लिए... किसी भी हद तक जा सकते हैं... मतलब शादी... उसी केके से करवा सकते हैं...
विश्व - राजा साहब का यह मकसद भी पूरा नहीं होगी... बस यकीन रखिए...

सुरज पूरी तरह से डूब चुका था l उजाला कम हो गया था अंधेरा धीरे धीरे आने लगा था, पश्चिमी आसमान के कुछ हिस्सा अभी भी लाल दिख रहा था l तभी दोनों के कानों में विक्रम की आवाज़ सुनाई पड़ती है l

"चाचाजी"

दोनों आवाज की दिशा में मुड़ते हैं l विक्रम को देख कर पिनाक अपनी जगह से उठता है, विक्रम हाथ बढ़ा कर पिनाक का हाथ थाम लेता है l पिनाक सीढ़ियों से चढ़ते हुए जाने लगता है l पीछे पीछे विश्व भी जाने लगता है l कुछ दूर जाने के बाद पिनाक रुक जाता है और मुड़ कर विश्व से पूछता है l

पिनाक - विश्व... तुम्हें जब इस घाट पर ढलते सूरज की देखते हुए पाया... तो लगा कि तुम नंदिनी के लिए परेशान हो... पर तुम्हारे बातों से जाना... तुम नंदिनी के लिए परेशान हो ही नहीं... पर सच्चाई यही है... के तुम किसी बात को लेकर... परेशान हो... मैं अपनी शंका मिटाने आया था... मीट गया... तुम अंधेरे उजाले की बात कर रहे थे... क्या मैं तुम्हारी कोई मदत कर सकता हूँ... (विश्व क्या कहे समझ नहीं पाता, उसे यूँ असमंजस देख कर विक्रम कहता है)
विक्रम - हाँ विश्व... वैसे हम जानते हैं... तुम बहुत काबिल हो... फिर भी... कोई मदत चाहो तो पूछ सकते हो... क्यूँकी वीर ने ऐलान किया था... जब तुम और क्षेत्रपाल आमने सामने होंगे... वह तुम्हारे कंधे से कंधा मिलाकर लड़ेगा... अब वह हमारे बीच रहा नहीं... पर उसकी यह ख्वाहिश मिटनी नहीं चाहिए...
पिनाक - हाँ विश्वा... हम जो भी कह रहे हैं.. जो भी कर रहे हैं... सभी वीर के वास्ते...

विश्व अभी भी असमंजस में था l उससे कुछ पूछा नहीं जाता l विश्व की यह स्थिति देख कर दोनों चाचा भतीजा लौटने के लिए मुड़ते हैं के विश्व उन्हें पूछता है l

विश्व - वह बात... केस के सिलसिले पर ही है.... पर...
पिनाक - पूछो... क्या जानना चाहते हो...
विश्व - रुप फाउंडेशन के केस में... दो आरोपी कत्ल कर दिए गए... और दो आरोपी गायब हो गए... क्या ऐसा हो सकता है... के कोई आरोपी खुद को... गायब कर लिया हो...
विक्रम - मैं सोच रहा था... किसी मामले में... फिजीकल कुछ हेल्प एक्सटेंड कर सकूं... पर माफ करना... इस पर मेरी कोई आइडिया नहीं है... क्यूँकी राजा साहब हमें कभी भी... उनके किसी भी मामले में... सामिल नहीं करते थे...
पिनाक - अब समझा... तुम्हारे अंधेरे और उजाले की पहेली... देखो विश्व... इस केस की विशेषता यह है कि... तुम शायद इस केस में... राजा साहब की संलिप्तता सिद्ध कर सको... पर... फिर भी... राजा साहब बच जाएंगे...
विश्व - जी... मैं भी तब से यही सोच रहा हूँ... कोई ऐसा गवाह जो मेरे हाथ लग जाये... जिसके गवाही पर... राजा साहब के हर एक करनी को अंजाम तक पहुँचा सकूँ...
पिनाक - देखो विश्वा... सूरज डूबता है... पर फिर भी अंधेरे में.. हमें रौशनी की दरकार होती है... तब... कमरे में दिया जलाया जाता है... रौशनी के लिए... पर इतना याद रखना... अंधेरा पूरी तरह से छटती नहीं है.... दिन की काली करतूत को... दिए के तले वाली अंधेरे में छुपाया जाता है... तुम्हें बस दिए को ढूंढना है... अगर ढूंढ लिया... तो वह तला भी मिल जाएगा और... तले में छुपे काली करतूत...
विश्व - मैं पूरी बात समझा नहीं...
पिनाक - जैसे कि मैंने पहले भी कहा था... तुम संलिप्तता साबित कर सकते हो... पर पूरी तरह दोषी करार नहीं दे सकते... तुम ज्यादा से ज्यादा... केस में राजा साहब को घेर सकते हो... जिससे राजा साहब साफ बचके निकल जाएंगे... राजा साहब को दोषी साबित करने के लिए... तुम्हारे दोनों केस में... मॉनी ट्रेल को साबित करना होगा... उस ट्रेल का छोर और अंत राजा साहब हैं यह साबित करना होगा... यहाँ राजा साहब का अंधेरे का दिआ... कोई और नहीं... एडवोकेट बल्लभ प्रधान है... जो अपने तले... राजा साहब की हर एक काली करतूत को छुपाये रखा है...
विश्व - जानता हूँ... पर कोई ऐसी जानकारी... जो एडवोकेट प्रधान को... घुटने पर ला सके...
विक्रम - देखो विश्व... प्रधान का ठिकाना... या तो राजगड़ या यशपुर... या फिर कटक या भुवनेश्वर... बाकी जो भी तुम्हें शक है... उसे एस्टाब्लीश करने के लिए... तुम्हें अपने कॉन्टैक्ट ईस्तेमाल करने होंगे...
विश्व - (चेहरे पर एक मुस्कान उभर आती है) वाह क्या बात कही... मुझे एक उम्मीद दिला दिया आपने... थैंक्यू...

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×


अब शाम ढल चुकी थी l अंधेरा पूरी तरह से पसर चुकी थी l रंग महल के सामने एक सफेद घोड़ी को भीमा और उसके गुर्गे सजा रहे थे l जो भी लोग रंग महल में थे वे सब कल होने वाली शादी की खुशी में दारु पी रहे थे l वहीँ रंग महल के एक कमरे में केके गहरी सोच में खोया हुआ एक कुर्सी पर बैठा हुआ था l दरवाजे पर जब दस्तक होती है तो वह कहता है

केके - अंदर आ जाओ...

दरवाजा खुलता है सत्तू के साथ रॉय और रंगा आते हैं l तीनों अंदर आकर देखते हैं केके थोड़ा घबराया और परेशान सा दिख रहा था l

रॉय - क्या बात है... केके साहब... आज तो बहुत खुशी का रात है... फिर तो यह रंग महल आपका... सारी प्रॉपर्टी में आधा हिस्सा आपका... मुझे तो लगा था... आप मन ही मन यही गा रहे होंगे... यही रात अंतिम यही रात भारी... पर आप घबराए हुए क्यूँ लग रहे हैं...
रंगा - हाँ... मैं तो सोच रहा था... आपके चेहरे पर लड्डू फुट रहे होंगे... पर आप घबराए हुए दिख रहे हैं...
रॉय - हाँ... जब कि कायदे से... कल की सोच कर... दुल्हन को घबराना चाहिए... हा हा हा हा... (रॉय के साथ रंगा भी हँसने लगता है)

गुस्से से तमतमाते हुए केके कुर्सी से उठ खड़ा होता है l और दोनों पर चिल्लाता है l

केके - शॉट अप... (दोनों चुप हो जाते हैं)
रॉय - केके साहब... कल शादी है... हमें राजा साहब ने हुकुम दिया है... आपको दूल्हे की तरह सजा कर... रंग महल से... क्षेत्रपाल महल तक... घोड़ी के ऊपर बिठा कर... जुलूस के साथ ले जाने के लिए... हमें लगा था... आपकी इच्छा पूरी हो रही है... इसलिए... आप बहुत खुश होंगे पर...
रंगा - केके साहब... कल से आप राजा साहब के... जमाई बनने जा रहे हैं... फिर घबराहट किस बात की...
केके - (दोनों की तरफ देखता है फिर) रंगा... एक बात बता... तेरी... सच में... किसको देख कर फटी थी...
रंगा - आपसे मतलब...
केके - डर लग रहा है ना...
रंगा - ठीक है... विश्वा... पर इस शादी से... उसका क्या वास्ता...
केके - तुझे क्या लगता है... एक अधेड़... हम उम्र से... राजा साहब... क्यूँ अपनी बेटी को व्याहना चाहते हैं...
रंगा - मेरे को क्या पता...
रॉय - एक मिनट.. एक मिनट... कहीं आप यह तो नहीं कहना चाहते... के विश्वा और राजकुमारी...
केके - हाँ...
रंगा - यह कैसे हो सकता है... मैं नहीं मानता... विश्वा... सात साल तक... जैल में रहा... बमुश्किल सात आठ महीने हुए हैं... बाहर आए... उसकी और राजकुमारी...
केके - पर यह सच है... खुद राजकुमारी ने मुझे कहा था... और यह... जवानी वाला इश्क नहीं है... बचपन वाला लफड़ा है...
रंगा और रॉय - क्या...
केके - हाँ... इस.. (सत्तू की ओर दिखा कर) पूछो इससे...
सत्तू - (घबरा कर) मैं... मैं... कुछ नहीं जानता...
केके - क्या नहीं जानता बे... तूने ही तो कहा था... विश्व... राजकुमारी को.. बचपन से पढ़ाता था...
सत्तू - हाँ... यह तो हर कोई जानता है... पर आप जो कह रहे हैं... यह कोई नहीं जानता...
रॉय - चलो ठीक है... एक पल के लिए हम मान लेते हैं... के राजा साहब... अपनी खुन्नस निकालने के लिए... अपनी बेटी की शादी.. आपसे करा रहे हैं... तो आपको इससे प्रॉब्लम क्या है...
केके - रॉय... इन कुछ महीनों में... हमने जो भी कुछ हारा है... जरा याद करो... उसके पीछे कहीं ना कहीं... विश्वा है... या तो सीधे तौर पर... या फिर... और रंगा... याद है... जब विश्वा तेरे सामने... अचानक आ गया... तेरी क्या हालत हो गई थी...

इतना कह कर केके चुप हो जाता है l रॉय और रंगा भी कुछ देर के लिए कोई बात नहीं कहते l फिर कुछ देर बाद रंगा कहता है l

रंगा - चलो मान लेता हूँ... पर है तो यह राजा साहब का इलाक़ा... और उन्होंने अपनी लश्कर में जबरदस्त बढ़ोतरी की है... मुझे नहीं लगता... विश्वा कुछ करने के लायक होगा...
रॉय - हाँ... मेरा भी यही खयाल है...
केके - मैं भी यही सोच रहा था... पर... जिस दिन विक्रम अपनी बहन से मिलने महल आया था... उस दिन... मैंने राजकुमारी के आँखों में... बातों में... एक जबरदस्त... आत्मविश्वास देखा था... उन्होंने खुल्लमखुल्ला राजा साहब के सामने ऐलान कर दिया... यह शादी होगी ही नहीं...
केके - मतलब वह... विश्वा के साथ... भागने की चक्कर में है...
सत्तू - ना मुमकिन... आज सुबह तक तो राजकुमारी जी महल में ही हैं... और कल से उनके शृंगार के लिए... कुछ औरतों को यशपुर से बुलाया गया है.... और लगातार राजा साहब के निगरानी में हैं...
रॉय - देखा... आप खामख्वाह परेशान हो... चलिए मैं मान लिया... विश्वा से खुन्नस उतारने के लिए... राजा साहब आपसे... राजकुमारी को व्याह दे रहे हैं... तो यह उनकी नाक और मूँछ की आन की बात हो गई ना... अपनी नाक और मूँछ की आँच बचाने के लिए... कुछ भी कर सकते हैं... अगर यह विश्वा से बदला लेने की बात है... तो इस मिशन में... हमें शिद्दत के साथ... शामिल होनी चाहिए... हम सबका बदला एक साथ पुरा होगा... कोई नहीं केके साहब... राजा साहब ने वह एग्रीमेंट यूँ ही नहीं कि है... मत भूलिए... इस शादी के बाद... यह रंग महल आपका हो जाएगा... राजा साहब के सारे फैक्ट्रियों और प्रॉपर्टी में... बराबर का हिस्सा हो जाएगा...
रंगा - हाँ केके साहब... आप बस तैयार हो जाइए... सारे गाँव वाले होंगे सामने शादी होने वाली है... विश्वा को भीतर से तोड़ने के लिए... अबकी बार... मैं खुद को बाजी लगा दूँगा... यह मेरा वादा है...

रॉय और रंगा के ढांढस बाँध ने के बाद केके को थोड़ी हिम्मत मिलती है l अब वह तैयार होने के लिए बाथरूम के अंदर जाता है l
Bahut hi shaandar update diya hai Kala Nag bhai....
Nice and lovely update....
 

Luckyloda

Well-Known Member
2,459
8,081
158
👉एक सौ अट्ठावनवाँ अपडेट
------------------------------

अर्ध रात्री
आकाश में तारे टिमटिमा रहे थे, क्षेत्रपाल महल के अंतर्महल की छत पर एक जोड़ा एक दूसरे के बाहों में खोए हुए थे l यह युगल कोई और नहीं हैं बल्कि हमारे कहानी के नायक व नायिका विश्वरुप ही हैं l रात शांत, हर क्षण शांत, हर फ़िजा शांत, जैसे वह आतुर हों इनके वार्तालाप सुनने के लिए l ऐसे ही बाहों में रहते हुए रुप ख़ामोशी को तोड़ती है और विश्व से कहती है l

रुप - जानते हो... मेरा दिल आज तुम्हें पुकार रहा था... और तुम आ गए...
विश्व - पर... मैंने आपको खबर भी नहीं की थी... बस छत पर आ गया था... आपको कैसे पता चला... के मैं आपको मिलने आया हूँ...
रुप - इट्स अ गर्ल थिंग... फिर भी बता देती हूँ... मेरे धड़कनों.. मेरे एहसासों... मेरे रोम रोम से पूछ कर देखो... जब भी तुम आस पास होते हो... मेरे रूह को... तुम्हारे होने का एहसास... अपने आप हो जाता है...
विश्व - क्या... आपको डर लग रहा है...
रुप - (अपना चेहरा अलग करते हुए) भला वह क्यूँ...
विश्व - राजा साहब ने... आते ही आपको जोरदार झटका जो दिया...
रुप - (विश्व के सीने से चिपक कर) वैसे कोशिश उनकी बहुत अच्छी थी... पर मैं जानती हूँ... उनकी कोशिश बेकार जाने वाली है...
विश्व - अच्छा... वह कैसे...
रुप - वह ऐसे की मैं जानती हूँ... के तुम यह शादी कभी होने ही नहीं दोगे...
विश्व - इतना भरोसा...
रुप - कोई शक़... (एक पॉज) अनाम... मेरा प्यार... मेरा विश्वास है... मेरे विश्वास का आधार... एक तुम हो... और एक भगवान... मैं जान हार सकती हूँ... पर विश्वास कभी नहीं...

विश्व कोई जवाब नहीं देता, बस दोनों की जकड़ बढ़ जाती है l थोड़ी देर बाद दोनों एक दूसरे से अलग होते हैं और पिछली बार की तरह छत पर बनी चबूतरे पर बैठ जाते हैं l आज आसमान में चाँद नहीं था फिर भी दोनों आसमान की ओर देखे जा रहे थे l विश्व एक सवाल छेड़ देता है

विश्व - आप अगर डरी नहीं थीं... तो मुझे ढूंढ क्यूँ रही थी...

रुप - (विश्व की तरफ घूम कर उसका चेहरा दोनों हाथों से पकड़ कर अपने तरफ करती है और पूछती है) मेरे आँखों में झाँक कर देखो... क्या तुम्हें डर दिख रहा है...
विश्व - नहीं.... नहीं दिख रहा है... पर फिर भी...
रुप - ( विश्व की चेहरे को छोड़ कर आसमान को ओर देखने लगती है) मैं बस.. अपनी प्यार को ... अपनी चाहत को.. उसकी गहराई को परख रही थी... कहीं मेरा प्यार... कोई तुक्का तो नहीं... पर आज तुम्हें छत पर पा कर... मुझे अपने प्यार पर यकीन हो गया है... के मेरा प्यार.. मेरी चाहत में कहीं भी कोई मिलावट नहीं है... झूठ नहीं है... (रुप की यह बात विश्व एक टक सुने जा रहा था, रुप विश्व की तरफ देख कर पूछती है) ऐसे क्या देख रहे हो...
विश्व - (मुस्करा कर) बस आपको देख रहा हूँ...
रुप - पर आसमान में चाँद नहीं है... फिर मेरे चेहरे पर क्या है... अंधेरे में तुम्हें पता कैसे चल रहा है...
विश्व - आसमान में चाँद से मुझे क्या लेना देना... मेरा चाँद तो मेरे आँखों के सामने है... मेरे इस चाँद के चाँदनी के आगे.. भला उस चाँद का क्या मुकाबला...
रुप - ओ हो... आज तो बड़े शेरों शायरी के मुड़ में हो...
विश्व - इसका दोष भी आप पर जाता है... आप हो ही इतनी सुंदर... बड़े बड़े गँवार भी शायर बन जाएंगे... इस बेपनाह हुस्न को देख कर...
रुप - बस बस... (अपने दोनों हाथों को विश्व के कंधे पर रख कर हाथ पर अपना ठुड्डी रख कर) इतना तारीफ ना कीजिए... अभी जाग रही हूँ... जागी ही रहने दीजिए... इतना तारीफ करोगे... तो सपना समझ कर नींद की आगोश में ना खो जाऊँ... (अचानक अलग होती है) एक बात पूछूँ...
विश्व - जी पूछिये...
रुप - राजा साहब तो महल में होंगे ना... फिर तुम कैसे अंदर आ गए...
विश्व - बस... आ गया...
रुप - अरे... ऐसे कैसे... याद है... जब मैंने तुम्हें आने के लिए कहा था... तब तुम... बिजली गुल कर अंदर घुसे थे...
विश्व - हाँ... तब मैं चाहता था... की राजा साहब को मालूम हो... के कोई अंदर आया था... इसलिए तो सुबह सुबह... मैंने छोटे राजा जी से... सलाम नमस्ते की थी...
रुप - पर अब...
विश्व - आप भूल रही हो... मैं इस महल के हर चप्पे-चप्पे से वाकिफ हूँ...
विश्व - सच्ची...
विश्व - ह्म्म्म्म... नहीं थोड़ी सी झूठ बोला है...
रुप - थोड़ा सी झूठ... मतलब कितना...
विश्व - राजा साहब कुछ देर पहले... रंग महल की ओर गये हैं... मैं मौका देख कर... घुस गया... और उनके आने से पहले... मुझे चले जाना होगा...
रुप - ह्म्म्म्म... मतलब तुम्हें भी डर लगता है...
विश्व - क्यूँ नहीं... मैं डर रहा था.. आपके लिए
रुप - क्यूँ...
विश्व - (चबूतरे से उठ कर छत के किनारे तक जाता है)
रुप - अनाम... तुमने बताया नहीं....
विश्व - (रुप की ओर मुड़ता है) मुझे जब खबर लगी... के राजा साहब ने... आपकी शादी तय कर दी... हाँ मैं डर गया था... (एक गहरी साँस लेकर) मुझे... वीर और अनु याद आ गए...

विश्व इतना कह कर रुक जाता है l रुप चबूतरे से उठ कर भाग कर जाती है और विश्व के सीने से लग जाती है l विश्व भी अनु को सीने में कस लेता है l

विश्व - वीर जब भी याद आता है... मुझे बहुत दर्द दे जाता है... मेरा वज़ूद... मेरी शख्सियत को कठघरे में खड़ा कर देता है... और एक सवाल हरदम झिंझोड़ता रहता है... क्यूँ आखिर क्यूँ... मैं पांच मिनट पहले नहीं पहुँचा...
रुप - (अपना सिर ऊपर उठा कर विश्व को देखते हुए) कहीं तुम मुझे ले चलने के लिए तो नहीं आए हो...
विश्व - जो आप कहेंगी वही होगा...
रुप - मैं किसी मज़बूरी या खौफ के चलते... अभी जाना नहीं चाहती... तुम बस यह शादी रुकवा दो... जिस दिन जाऊँगी... राजा साहब को बेबस देखते हुए जाऊँगी... उन्होंने हर किसी की बेबसी का फायदा उठाया है... मैं अपनी बिदाई पर.. उन्हें बेबस और लाचार देखना चाहती हूँ... वही पल... असल में बदला होगा... उनके हर एक सितम का...
विश्व - (मुस्कराते हुए) चलो... मेरा यह डर भी आपने ख़तम कर दिया...
रुप - उफ्फ्फ... कभी तो मुझे तुम कहो...
विश्व - नहीं... यह मुझसे नहीं होगा... आप राजकुमारी हो... मैं आपका गुलाम...
रुप - (बिदक कर) छोड़ो मुझे... (अलग हो जाती है) बड़े आए गुलाम...
विश्व - क्या हुआ...
रुप - वह साला कमीना... पहली मुलाकात में ही... मुझे तुम बोल रहा था...
विश्व - राज कुमारी जी... आप कबसे गाली देने लगी...
रुप - शुक्र मनाओ तुम्हें नहीं दी... बेवक़ूफ़.. हूँह्ह्... पूछा नहीं कौन था वह...
विश्व - इसमें पूछने वाली क्या बात है... मैं जानता हूँ... मेरी नकचढ़ी ने... उसको अच्छे से निचोड़ दिया होगा..

रुप हँस देती है, विश्व की तरफ जाती है l विश्व की हाथों को लेकर अपनी कमर पर रखती है l विश्व के गले में हाथ डालकर रुप विश्व के पैरों पर खड़ी हो जाती है और एड़ी उठा कर विश्व के चेहरे के सामने अपना चेहरा लाती है l विश्व की धड़कन बढ़ जाती है, रुप आगे बढ़ कर विश्व की नाक हल्के से काट लेती है l

विश्व - आह... आप हमेशा मेरी नाक के पीछे क्यूँ पड़े रहते हो...
रुप - (विश्व के नाक पर अपनी नाक रगड़ते हुए) मुझे.. अच्छा लगता है...
विश्व - (कांपते लहजे से) मुझे लगता है... अभी मुझे जाना चाहिए...
रुप - चले जाना,.. जरा ठहरो...
यह मंज़र देख कर जाना...
किसीका दम निकलता है...
विश्व - पता नहीं मुझे... पर मैं ज्यादा देर रुका... तो मेरा दम निकल जाएगा...
रुप - यु...

रुप अपना होंठ विश्व की होंठ पर रख देती है l दोनों के होठों के गुत्थम गुत्था शुरु हो जाता है l विश्व की हाथ रुप की कमर से उठ कर रुप के सिर को पकड़ लेता है और अपने में समेटने की कोशिश करता है l फिर उसका हाथ फिसलते फिसलते फिर कमर तक आ जाते हैं पर कमर पर रुक जाते हैं l कमर पर विश्व के हाथ मुट्ठी बाँध लेता है l रुप अलग होती है और विश्व के पैरों से उतरती है l दोनों हांफ रहे थे, जहां विश्व के चेहरे पर एक शॉक था वहीँ रुप के चेहरे पर एक शरारती मुस्कान था l

रुप - बहुत डरते हो... बेवक़ूफ़ तो हो ही.. अब डरपोक भी हो...
विश्व - हिरण... शेरनी से क्यूँ नहीं डरेगा...
रुप - पर यहाँ तो शेरनी खुद हिरण के हाथों शिकार होना चाहती है... पर हिरण है कि... हाथ पैर सब... अपाहिज हो जाता है...

विश्व रुप की हाथ को पकड़ कर खिंचता है l दोनों की नजरें मिलती हैं l रुप की माथे पर उड़ती लटों को हटाता है और रुप के चेहरे को दोनों हाथों से पकड़ कर कहता है l

विश्व - प्यार में बहुत गर्मी होती है... कभी कभी संभलना मुश्किल हो जाता है... प्यार में.. जब जब जो जो होना है... उसे तब तब होने देते हैं ना... जब समाज... संस्कार और भगवान का आशिर्वाद होगा... तब हमारे हिस्से की चार दीवारी और बंद दरवाजा होगा... उस दिन शायद आपको मुझसे कोई शिकायत नहीं होगी...
रुप - ओह... अनाम... (रुप विश्व के सीने से लग जाती है) तुम कितने अच्छे हो... आई लव यु...
विश्व - आई लव यु ठु.. (तभी दूर से एक सियार के भौंकने की आवाज आती है) लगता है... राजा साहब... रंग महल से निकल गए हैं... कुछ ही मिनट में पहुँच जायेंगे... (विश्व रुप की माथे पर एक किस करता है) राजकुमारी जी... आप वही करते जाइयेगा... जैसा आपको राजा साहब कहते जाएं... बाकी आप मुझ पर या अपने आप पर भरोसा मत खोइयेगा...
रुप - जैसी आपकी ख्वाहिश मेरे गुलाम...

दोनों हँसने लगते हैं l फिर विश्व इशारे से रुप को जाने के लिए कहता है l रुप जाने के लिए पलटती है और कुछ कदम चलने के बाद मुड़ती है पर तब तक विश्व गायब हो चुका होता है l रुप का मुहँ हैरानी के मारे खुल जाती है l

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×

अगले दिन
दिन के दस बजते बजते भीड़ छट चुकी थी l गौरी अपना गल्ला बंद कर अंदर जाने लगती है l वैदेही भी सारे बर्तनों को समेट कर धोने के लिए जमा करती है l इतने में दुकान पर सुषमा और शुभ्रा आते हैं l वैदेही उनके तरफ देखती है और महसुस करती है जैसे वह कुछ बात करना चाहते तो हैं पर हिचकिचाते रहे हैं l

वैदेही - आप अंदर आइए... आइए ना... (सुषमा और शुभ्रा एक दुसरे की ओर देखते हैं फिर अंदर आते हैं) बैठिए... (दोनों झिझकते हुए बैठते हैं)

वैदेही पानी की ग्लास लाकर उन्हें देती है l फिर एक कुर्सी खिंच कर उनके पास बैठ जाती है l

वैदेही - बड़े भाग्य का दिन है आज... मेरे घर... छोटी रानी और युवराणी आई हुई हैं... कहिये... क्या सेवा कर सकती हूँ..
शुभ्रा - ऐसे ना कहिये... महीनों पहले आप ऐसे कहतीं तो उस बात की कोई मायने होती... पर आज यह बात कोई मायने नहीं रखती... ना छोटी माँ आज रानी हैं... ना ही... मैं कोई युवराणी... वैसे भी... हम आज फरियादी बन कर आए हैं...
वैदेही - अरे बापरे... इतनी बड़ी बात... आप लोग मेरे सपने हैं... भला अपनों के यहाँ कोई फ़रियाद लेकर आता है... हक् से आता है.. हक जताता है... बस हुकुम कीजिए... जो बस में होगा... जरुर करूँगी...

तभी टीलु कुछ सामान हाथ में लेकर अंदर आता है l इन दोनों को देख कर थोड़ा स्तब्ध हो जाता है l फिर वैदेही की ओर देखता है l

वैदेही - आज हमारे यहाँ मेहमान आए हैं... इसलिये... दोपहर को दुकान बंद रहेगी... और आज... (शुभ्रा की ओर इशारा करते हुए) इन्हींकी मर्जी का खाना बनेगा...
शुभ्रा - नहीं नहीं...
वैदेही - अरे कैसे नहीं... मेरी माँ कहा करती थी... गर्भवती स्त्री का किसी के द्वार आना सबसे शुभ होता है... और उन्हें उनकी इच्छानुसार खाना खिलाने से... सौ जन्म का पुण्य मिलता है... इसलिए... बेझिझक बताइए... आज यहाँ आपकी ही मन पसंद का भोजन बनेगा...
शुभ्रा - वैदेही जी... हम किसी और काम से आए हैं...
वैदेही - वह भी सुन लुंगी... पर पहले मुझे आपका सेवा तो करने दीजिए...
सुषमा - वैदेही... हम यहाँ बहुत टेंशन में हैं... तुम जानती भी हो क्या हुआ है...
वैदेही - ओह... माफ कर दीजिए... मुझे लगा नहीं था कि किसी गम्भीर विषय पर बात करने के लिए आप यहाँ आए हैं...
सुषमा - बात बहुत ही गम्भीर है... और हम चाहते हैं कि... तुम हमें कोई राह दिखाओ...
वैदेही - ठीक है... मुझसे जो बन पड़ेगा... वह मैं जरुर करूंगी...
शुभ्रा - हाँ आप ही कर सकती हो... क्यूँकी... गाँव में सब कहते हैं... की आपकी इस चौखट से... ना तो कोई खाली हाथ लौटा है... ना ही कोई खाली पेट...
वैदेही - आप बात तो शुरु कीजिए... जब से आए हैं... मेरी बड़ाई किए जा रहे हैं...
टीलु - सच ही तो कहा है उन्होंने... दीदी... तुम्हारे दर से... कभी कोई जरूरत मंद ना खाली पेट लौटा है... ना खाली हाथ...
वैदेही - तु यहाँ से जा... वर्ना तु जरूर आज भूखा रहेगा...

टीलु झट से अंदर की ओर चला जाता है l उसे जाते हुए तीनों देख रहे थे l उसके जाने के बाद सुषमा वैदेही से कहना शुरु करती है l

सुषमा - देखो वैदेही... तुम्हारा यह मुहँ बोला भाई... झूठ नहीं कहा है... मैं तुम्हें बेटी नहीं कह सकती... क्यूँकी इससे... उस रिश्ते पर तोहमत लगेगी... मैं जानती हूँ... क्षेत्रपाल परिवार ने तुम्हारे साथ क्या किया है... पर तुम स्वयं सिद्धा हो... तुम देवी हो... इसलिए आज हम दोनों सास बहु... तुम्हारे दर पर आए हैं... हमारी बेटी... रुप नंदिनी के लिए... (वैदेही थोड़ी गम्भीर हो जाती है) वह पाँच साल की थी... जब उसकी माँ इस दुनिया से चली गई... मैंने अपने सीने से लगा कर बड़ा किया... मुझे अपने बच्चों से ज्यादा अजीज है... पता नहीं... तुम भाई बहन को पता है भी या नहीं... अगर पता है... तो तुम लोग गम्भीर क्यूँ नहीं हो... राजा साहब ने... नंदिनी की शादी एक अधेड़ से तय कर दी है.... मैं और मेरी बहु... यहाँ उसकी सुरक्षा मांगने आए हैं... (हाथ जोड़ देती है)
वैदेही - अरे अरे... यह आप क्या कर रही हैं...
शुभ्रा - वक़्त की विडंबना है... कभी क्षेत्रपालों को गुरुर हुआ करता था... के उनके हाथ कभी आकाश की ओर नहीं देखती... पर आज हम तुम्हारे सामने हाथ फैलाए आए हैं...
वैदेही - राजा भैरव सिंह... कल आपके पास से सीधे मेरे पास आए थे...

इतना कह कर वैदेही अपनी टेबल की ड्रॉयर खोल कर वही इंवीटेशन कार्ड निकाल कर सुषमा को दिखाती है l शुभा और सुषमा दोनों हैरान हो जाते हैं और वैदेही की ओर देखने लगते हैं l

वैदेही - जब भैरव सिंह... गिरफ्तार हो कर जा रहा था... यहाँ मुझसे मिलने आया था और चुनौती दे कर गया था... मुझे और विशु की हालत खस्ता कर देगा... और कटक छोड़ कर राजगड़ आने से पहले... विशु को भी... चेतावनी देकर आया था... के उसके तन मन और आत्मा को ज़ख्मी कर देगा...
सुषमा - मतलब तुम सब जानती हो...
वैदेही - हाँ... जानती हूँ... और यह भी जानती हूँ... यह शादी नहीं होगी...
शुभ्रा - यह आप कैसे कह सकते हैं... राजा साहब ने... अपनी नई फौज बनाई है... बाहर से लोग आए हैं...
वैदेही - फिर भी... यह शादी नहीं होगी...
सुषमा - मैं तुम्हारी आत्मविश्वास की कद्र करती हूँ... पर अति आत्मविश्वास और आत्मविश्वास के बीच बहुत ही महिम दीवार होती है...
वैदेही - यह मेरा विश्वास है... बल्कि यह मेरा ही नहीं... आपकी नंदिनी का भी यही विचार है...
सुषमा और शुभ्रा - क्या...
वैदेही - हाँ...
सुषमा - ठीक है... यह उसका विचार हो सकता है... पर... राजा साहब... अपने अहं के आगे... किसीको कुछ नहीं समझते...
सुषमा - जब किसी का अंत करीब आती है.... तो उसका बुद्धि और विवेक खो जाती है... राजा भैरव सिंह के साथ भी ऐसा ही हुआ है... वह इस विषय में... विश्व को दिली और दिमागी तौर से कमजोर करने के लिए... ऐसा कदम उठाया है... पर जब दो प्रेमी... इससे परेशान नहीं हैं... तो हम क्यूँ हों...
शुभ्रा - क्या कहा तुमने... विश्व और रुप परेशान नहीं हैं...
वैदेही - (मुस्कराती है) रात को ही... विशु... नंदिनी से मिलकर आया है... इसलिए... आप भी निश्चिंत हो जाइए... यह शादी नहीं होगी...
शुभ्रा - भगवान करे... आपकी बात सही हो... पर कल से... विक्रम जी बहुत परेशान थे... उनसे रहा नहीं गया... तो अभी कुछ देर पहले महल की ओर गए हैं...
वैदेही - तो ठीक है ना... आप उनसे सारी जानकारी प्राप्त कर सकतीं हैं... (दोनों कशमकश के साथ अपना सिर झुका लेते हैं) वह सब जाने दीजिए... शुभ्रा जी... दिल को तसल्ली दीजिए... और जो भी आपका मन पसंद हो कहिए... आपको खिलाए बिना जाने नहीं दूंगी... ह्म्म्म्म


×_____×_____×_____×_____×_____×_____×


केके पिनाक के कमरे में कुर्सी पर बैठा हुआ था l केके का पैर एक नौकर दबा रहा था l केके कमरे की चारों ओर नजर घुमा रहा था l नौकर देखता है केके किसी गहरे सोच में खोया हुआ है l कोई ऐसी बात थी जो उसे असहज कर रही थी l

नौकर - मालिक... क्या आपको हमारी सेवा अच्छी नहीं लगी...
केके - (सोच से बाहर आता है) नहीं नहीं...
नौकर - पर हम तो जी जान से आपकी सेवा कर रहे हैं...
केके - अरे नहीं... मेरा मतलब... तुम बहुत अच्छा काम कर रहे हो... हम बस कुछ और सोच रहे थे... वैसे क्या नाम है तुम्हारा...
नौकर - जी सत्यवान... पर सभी मुझे सत्तू कह कर बुलाते हैं...
केके - तो सत्तू...
सत्तू - जी... जी मालिक...
केके - तुम जानते हो... हम कौन हैं...
सत्तू - जी मालिक... आप इस परिवार के होने वाले... जामाता हैं... तभी तो... मुझे आपकी सेवा करने के लिए... जिम्मेदारी सौंपी गई है...
केके - ह्म्म्म्म... अब मेरा पैर छोडकर कुर्सी पर बैठ जाओ....
सत्तू - ना मालिक ना... हम महल के नौकर हैं... (कह कर फर्श पर पालथी मार कर बैठ जाता है) अब पूछिये...
केके - अच्छा सत्तू... क्या तुमने पूरा महल देखा हुआ है...
सत्तू - नहीं मालिक... यह पहली बार है... जब हम महल के इतने अंदर आए हैं... वर्ना... हमारी औकात बरामदे तक ही होती थी... फिर भी... आप पूछिये... क्या जानना चाहते हैं... जो मुझे मालूम होगा... मैं बता दूँगा...
केके - अच्छा... कितने कमरे हैं यहाँ...
सत्तू - वह तो नहीं पता... पर पंद्रह बीस कमरे होंगे... और जो भी हैं बड़े बड़े कमरे हैं...
केके - रहते कितने लोग हैं...
सत्तू - जनाना महल में... राजकुमारी जी रहती हैं... और एक बड़े से कमरे में... बड़े राजा जी रहते हैं... उनकी सेवा में भी बहुत लोग लगे हुए हैं...
केके - ह्म्म्म्म...
सत्तू - और कुछ...
केके - तुम...
सत्तू - हाँ हाँ पूछिये...
केके - य़ह तुम... विश्वा के बारे में क्या जानते हो...
सत्तू - ज्यादा कुछ नहीं मालिक... मुझे तो तीन साल हुए हैं... राजा साहब के महल में... पर इतना जानता हूँ... विश्वा इस महल का बहुत पुराना नौकर था... राजा साहब ने उसे सरपंच बनाया... पर यह उनसे गद्दारी पर आ गया... उसने कई कत्ल भी किए हैं... और जैल भी गया था... पर था साला पढ़ाकु... जैल में रहकर बड़ा वकील बन गया है... अब देखिए ना... उसकी एहसान फरामोशी... राजा साहब के खिलाफ अब केस लड़ रहा है...
केके - उसका और राजकुमारी का क्या रिश्ता है... कुछ जानते हो...
सत्तू - हाँ जानता हूँ ना... विश्वा... बचपन में... राजकुमारी जी को सात साल तक पढ़ाया है...
केके - ओ... मतलब पहचान.. बचपन वाला है...
सत्तू - जी मालिक...
केके - अच्छा सत्तू... राजकुमारी की शादी... किसी राज घराने में... या फिर... किसी बड़े घर में होनी चाहिए थी... है ना...
सत्तू - ऐसी बातेँ मुझसे मत पूछिये मालिक... बहुत छोटे लोग हैं... क्या बोलें... हम बस इतना जानते हैं... राजा साहब... हमारे भगवान हैं... उनकी बात और फैसला... यहाँ पर रहने और जीने वालों की जीने की फरमान होती है... राजा साहब ने अगर आपको पसंद किया है.. तो यह राजकुमारी और आपका भाग्य है...
केके - ह्म्म्म्म... वैसे... मेरे बारे में... तुम्हारे साथी कैसी बात कर रहे हैं...
सत्तू - राजा साहब के फैसले पर... हम कभी बात नहीं करते... बस उनके हुकुम बजाते हैं...
केके - अच्छा यह बताओ... राजा साहब ने कभी विश्वा को... उसकी गुस्ताखी की सजा देने का नहीं सोचा...
सत्तू - अब हम क्या कहें मालिक... विश्वा अब कोई आम विश्वा नहीं है... बवंडर है... हमने कई बार कोशिश की उसे मिटाने के लिए... पर हर बार वह हम पर भारी पड़ा... एक अकेला... बीस बीस को लपक लेता है... एक बार तो महल के बाहर ही... (सत्तू बताने लगता है कैसे गाँव वालों के जमीन और घरों के कागजात लेने वैदेही और विश्वा आए थे और कैसे कागजात लेकर गए थे)
केके - और राजा साहब खामोश हैं...
सत्तू - क्या करेंगे फिर... आखिर वह राजा हैं... किसी ऐरे गैरे को... राह चलते को... कैसे हाथ लगा सकते हैं... उनको हम पर भरोसा था... पर... हम ही खरे नहीं उतरे... इसीलिए तो अब... बाहर से लोगों को लाए हैं... अब अगर विश्वा कुछ भी हिमाकत करेगा... तो इसबार वह बच नहीं पाएगा... वैसे एक बात पूछूं मालिक...
केके - पूछो...
सत्तू - आप यह विश्वा के बारे में... इतना पूछताछ क्यूँ कर रहे हैं... क्या आप उसे पहले से जानते हैं...
केके - अरे नहीं... बस ऐसे ही सुना था... अच्छा... xxx चौक पर... एक औरत का दुकान है... उसका राजा साहब का... मतलब... कुछ...
सत्तू - वह औरत... वही तो विश्वा का बहन... वैदेही है...
केके - (चौंकता है) क्या...
सत्तू - क्यूँ... क्या हुआ मालिक...
केके - कुछ नहीं... (माथे पर चिंता की लकीर उभर आती है) राजा साहब... महल को लौटते वक़्त... उसके दुकान पर गए थे...
सत्तू - ज्यादा तो नहीं जानता पर... सुना है... कभी रंग महल में... राजा साहब के ऐस गाह की रौनक हुआ करती थी... और वही एक औरत है... पूरे राजगड़ में... जो राजा साहब से सिर उठा कर आँखों में आँखे डाल कर बात करती है...

तभी कमरे के बाहर दस्तक होती है, दोनों की नजरें दरवाजे की तरफ जाती है l एक नौकर खड़ा था l

केके - हाँ क्या हुआ...
नौकर - राजा साहब आपको... दीवान ए आम में आने के लिए कहा है...
केके - ठीक है... तुम चलो... (सत्तू से) तुम मुझे वहाँ ले चलो...
सत्तू - ठीक है मालिक....

दोनों कमरे से निकल कर दीवान ए आम की ओर जाने लगते हैं l जाते वक़्त केके अपनी नजरें चारो ओर दौड़ा रहा था l कुछ देर बाद दोनों दीवान ए आम में पहुँच जाते हैं l दोनों देखते हैं सिंहासन पर भैरव सिंह बैठा हुआ था और उसके सामने विक्रम खड़ा था l केके को देख कर भैरव सिंह केके से कहता है

भैरव सिंह - आओ केके आओ... महल में कोई शिकायत तो नहीं...
केके - जी नहीं राजा साहब...
भैरव सिंह - (विक्रम से) तो... विक्रम सिंह... बताने की कष्ट करेंगे... महल में जबरदस्ती घुसने की कोशिश क्यूँ कर रहे थे...
विक्रम - मैं यहाँ अपनी बहन से मिलने आया था...
भैरव सिंह - क्यूँ... क्यूँ आए हो... तुमने तो सभी रिश्ते नाते तोड़ कर महल से चल दिए थे...
विक्रम - मैं... महल से क्षेत्रपाल छोड़ गया था... तब भी... अपनी बहन को ले जाना चाहता था... शुक्र मनाईये... वह अपने दादा की सेवा करने के लिए रुक गई... वर्ना...
भैरव सिंह - वर्ना... हाँ हाँ... वर्ना... शायद तुम भूल रहे हो... वह तुम्हारे साथ जाती ही नहीं...
विक्रम - आप उसकी अच्छाइ.. और मासूमियत का... नाजायज फायदा उठा रहे हैं...
भैरव सिंह - नाजायज... फायदा... जो... जिसकी... जितनी काबिल है... हम उसकी उतनी... वही किस्मत लिख रहे हैं... नंदिनी के किस्मत में वही मिल रहा है... जो उसने हमसे खोया है... और इस महल के बाहर कमाया है... हम तो बस मोहर लगा रहे हैं...
विक्रम - (केके की ओर दिखा कर) यह... इसको नंदिनी की किस्मत में थोप रहे हैं... यह हरामी गटर का सुअर... मेरी जुती चाटने वाला...
भैरव सिंह - केके...
केके - जी राजा साहब...
भैरव सिंह - आओ... हमारे बगल में बैठो...

केके जा कर भैरव सिंह के पास वाले एक कुर्सी पर बैठ जाता है l विक्रम की आँखें गुस्से से अंगारों की तरह दहकने लगती हैं l विक्रम को मुट्ठीयाँ भिंच जाती हैं l विक्रम का यह रुप देख कर केके की हलक सुख जाता है l

भैरव सिंह - अब केके की जुतें.. इस घर के नौकर साफ करते हैं...
विक्रम - मुझे यह समझ में नहीं आ रहा... आप ऐसा क्यूँ कर रहे हैं... अपनी कद से ऊपर उठने के बजाय... गिरते जा रहे हैं...
भैरव सिंह - कद किसका क्या है... कितना है... यह फैसला भी हम ही करते हैं...
विश्व - मैं आपसे कोई बहस करना नहीं चाहता... आप नंदिनी को बुलाईये... मैं उसकी मर्जी जानना चाहता हूँ...
भैरव सिंह - वही तो हम पूछ रहे हैं... किस हक से... जब आप महल से हर रिश्ते नाते तोड़ कर जा चुके हैं...
विक्रम - महल में एक रिश्ता अभी जिंदा है... मैं उसके वास्ते आया हूँ... उसकी मर्जी... और खैरियत पूछने आया हूँ....
भैरव सिंह - अगर मर्जी नहीं हुई तो...
विक्रम - तो... दुनिया इधर से उधर क्यूँ ना हो जाए... यह शादी कोई नहीं करा सकता... इस महल का... भगवान भी नहीं...
भैरव सिंह - ओ हो... खून के सामने खून खड़ा है... और खून को ललकार रहा है..
विक्रम - यही दस्तूर है... इतिहास उठाकर देख लीजिए... बात जब आन पर आ जाती है... खून को खून ही ललकारता है... और खून को खून ही हटाता है...
भैरव सिंह - बच्चे कैसे पैदा किया जाता है... यह बच्चे कभी बाप को नहीं सिखाते...
विक्रम - रजवाड़ों का खूनी इतिहास उठा कर देख लीजिए... बाप ने कभी औलादों को नहीं हटाया...
भैरव सिंह - तो खून में इतनी गर्मी आ गई... के बाप को हटाने की सोच रहे हो...
विक्रम - तब तक तो नहीं... जब तक... नंदिनी मेरी बहन है... और मुझे उससे बात करनी है...
भैरव सिंह - (कुछ देर की चुप्पी, तनाव भरा माहौल था, फिर भैरव सिंह मुस्कराते हुए) ठीक है... आज हम भी देखेंगे... हमारी लिखी किस्मत और... तुम्हारी बगावत की टक्कर होती है या नहीं... (सत्तू से) जाओ बड़े राजा जी के कमरे तक खबर पहुँचा दो... राजकुमारी जी को हमने अभी यहाँ याद किया है...

सत्तू भागते हुए चला जाता है l बाहर एक नौकरानी को नागेंद्र के कमरे जाकर रुप को बुलाने के लिए कहता है l कुछ देर के बाद रुप अंदर आती है और अंदर की नज़ारा देखती है l भैरव सिंह और केके दोनों कमरे के बीचोबीच कुर्सी पर बैठे हुए हैं और उनके आगे विक्रम खड़ा हुआ है l रुप को देख कर विक्रम आपनी बाहें फैला देता है रुप दौड़ कर उसके गले लग जाती है l थोड़ी देर बाद विक्रम उसे अलग कर उसके चेहरे को गौर से देखता है l रुप के चेहरे पर ना कोई ग़म ना कोई शिकन था l यह देख कर विक्रम को थोड़ी हैरानी होती है l

विक्रम - कैसी है मेरी गुड़िया...
रुप - बहुत अच्छी हूँ भैया... पर एक दुख तो रहेगा ना... जिस वक़्त भाभी के पास ननद को होना चाहिए... तब मैं नहीं हूँ...
विक्रम - अब भी कोई देर नहीं हुई है... चल मैं ले चलता हूँ...
रुप - क्या करूँ भैया... एक रिश्ते ने मुझे इस महल से बाँध रखा है... वर्ना चली ही जाती...
विक्रम - नंदिनी... मेरी बहन... (केके की ओर दिखा कर) तु इस आदमी के बारे जानती है...
रुप - हाँ भैया... यह वही है ना... जो सालों साल... तुम्हारे जुते चाटता था... (यह बात सुनते ही केके का चेहरा कड़वा हो जाता है)
विक्रम - यह अभी इस महल में... राजा साहब के बगल में क्यूँ है जानती हो ना..
रुप - हाँ भैया... श्मशान जाने की उम्र में... कटक से इतना दूर... अपनी फजिहत करवाने आया है...
भैरव सिंह - (गुर्राता है) नंदिनी...
विक्रम - (भैरव सिंह की ओर हाथ दिखा कर आगे कुछ बोलने से रोक देता है और रुप से) तुझे यह शादी मंजूर नहीं है ना...
रुप - भैया... शादी हो तब ना... जब यह शादी होनी ही नहीं है... फिर मैं उसकी चिंता क्यूँ करूँ...
विक्रम - तुझसे ज़बरदस्ती भी करवा सकते हैं...
रुप - ज़बरदस्ती तब करेंगे ना... जब मैं मना करूंगी...
विक्रम - मैं समझा नहीं गुड़िया...
रुप - भैया... आप ज़रूर आना... भाभी... चाची माँ और चाचाजी को लेकर... वह तमाशा... राजगड़ के साथ साथ... आप भी देखना...
विक्रम - बस बहना बस... मैं बस तेरी खैर ख़बर और मर्जी जानने आया था... तेरा यह विश्वास देख कर... मैं सब समझ गया...
रुप - देखा भैया... बातों ही बातों में भूल गई... भाभी.. चाची माँ और चाचाजी कैसे हैं...
विक्रम - तेरे लिए फिक्र मंद थे... अब मेरी फिक्र मीट गई... समझ उनकी भी मीट गई... अच्छा... अब अंदर जा...

रुप फिर से अपने भाई के गले लगती है और फिर वहाँ से निकल जाती है l विक्रम अब एक मुस्कराहट के साथ भैरव सिंह के तरफ देखता है l

भैरव सिंह - हो गई तसल्ली...
विक्रम - जी... हो गई... अब मुझे... आपकी फिक्र हो रही है...
भैरव सिंह - तुम्हें लगता है... यह शादी कोई रोक सकता है...
विक्रम - मेरी बहन की आत्मविश्वास बोल रहा है... और मुझे यह साफ एहसास हो रहा है... नंदिनी की आत्मविश्वास की आँच को आप भी महसूस कर रहे हैं...
भैरव सिंह - हम उस दिन किसी को भी... अपनी जगह से हिलने तक नहीं देंगे.... ना हवा.. ना पानी... ना खून को...
विक्रम - आप उसी पर कायम रहिएगा... जोर नंदिनी पर मत आजमा बैठिएगा... क्यूँकी चाची माँ ने कहा था... पहली बार... आप ही के अहंकार से... आप ही का खून का अहंकार टकराया है...
भैरव सिंह - और हमारे अहंकार से टकराने वाले हर वज़ूद को नकार देते हैं... हमसे कोई जीत नहीं सकता... चाहे वह हमारा खून ही क्यूँ ना हो... इसलिए हमारी फिक्र मत करो
विक्रम - आपके खून के साथ किसी और का जुनून भी टकराएगा... इसीलिए मुझे फिक्र हो रहा था... (कह कर विक्रम पलट कर जाने लगता है फिर अचानक रुक कर मुड़ता है) मुझसे नंदिनी चहकते हुए मिली... शादी के दिन भी मुझे वैसी ही मिलनी चाहिए... वर्ना... रजवाड़ी इतिहास... फिर से अपने आप को दोहराएगा....

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×

शादी को एक दिन रह गया है
उसके पूर्व संध्या के समय विश्व नदी के तट पर बने सीढ़ियों पर बैठा डूबते सूरज की देख रहा था l कोई उसके पीछे से सीढ़ियां उतरता हुआ महसूस होता है l विश्व नजर घुमा कर देखता है पिनाक सीढ़ियों से उतर कर आ रहा था l विश्व खड़ा हो जाता है l

पिनाक - यह अच्छी निशानी है... यह नदी का किनारा... ढलता हुआ शाम... डूबता हुआ सुरज... किसी को भी... खोने को मजबूर कर सकता है... पर फिर भी तुम चौकन्ना थे... मैं दबे पाँव आ रहा था... तुम सतर्क हो गए...
विश्व - (कुछ नहीं कहता चुप रहता है)
पिनाक - बैठो... मैं भी तुम्हारे साथ... कुछ देर बैठने के लिए आया हूँ... (सीढ़ियों पर बैठ जाता है, विश्व भी उसे बैठा देख कर बगल में बैठ जाता है) ज्यादातर डूबते सूरज को वही लोग देखते हैं... जिन्हें अंधेरे में कुछ खोने का डर हो...
विश्व - हाँ आपकी बात सच है... पर सुबह की तरह शाम भी एक सच है... अगर उजाले के बाद... अंधेरा आना तय है... तो राह के लिए भटकने से पहले... रौशनी का इंतजाम कर लेना चाहिए... मैं यहाँ... रौशनी ढूंढ रहा हूँ...

कुछ देर के लिए दोनों के बीच एक चुप्पी सी छा जाती है l कुछ देर बाद विश्व पिनाक से कहता है l


विश्व - आज आपको यहाँ देख कर अच्छा लगा...
पिनाक - हाँ... मुर्दों की तरह... मुर्दों के बीच जिए जा रहा था... जब जीने की ख्वाहिश जागी... तब सब कुछ लूट चुका था... जिंदा लाश बन कर रह गया हूँ...
विश्व - आपने कहा... आप मुझसे बात करने आए हैं...
पिनाक - हाँ... इससे पहले हम जब भी मिले... आपस में... रंजिश भरे दिल में मिले... अब रंजिश की जगह तो नहीं है... पर...
विश्व - पर...
पिनाक - पर एक मासूम सी जान है... जो एक राक्षस के पिंजरे में कैद है...
विश्व - आप... राजकुमारी जी की बात कर रहे हैं...
पिनाक - हाँ... मैं नंदिनी की बात कर रहा हूँ...
विश्व - (एक गहरा साँस छोड़ते हुए) आपको... क्या लगता है...
पिनाक - मैं अब क्या कहूँ... मुझे परेशान देख कर... विक्रम ने ही तुम्हारे पास यहाँ आने के लिए कहा था... क्यूँकी उसे मालूम था... तुम मुझे यहाँ मिलोगे...
विश्व - आपको... राजकुमारी जी की चिंता परेशानी में डाल रखा है...
पिनाक - हाँ... मेरी पत्नी... बहु और विक्रम तक... आश्वस्त हैं... पर मैं नहीं हो पा रहा था... इसलिए विक्रम ने मुझे तुम्हारे पास भेज दिया...
विश्व - पर आपने अभी तक... राजकुमारी जी को लेकर... कोई भी सवाल नहीं किया है...
पिनाक - विश्व... वीर को... खोने के बाद... मैं खुद को एक लुटा पीटा भिकारी समझ रहा था... पर ज्यूं ही... राजा साहब ने... शादी का कार्ड दिया... तब मुझे एहसास हुआ... मेरे पास और भी कुछ क़ीमती है... जो राजा साहब की जिद की बेदी पर बलि चढ़ने जा रही है...
विश्व - आप मुझसे क्या चाहते हैं...
पिनाक - वादा... सिर्फ एक वादा...
विश्व - कैसा... वादा...
पिनाक - विश्व रुप की एका... विश्व और रुप दो शब्द या दो प्राण नहीं होने चाहिए... जब भी नाम लिया जाए... विश्वरुप ही सुनाई दे... दिखाई दे... बस यही वादा चाहता हूँ... मेरे बेटे की आत्मा को शांति मिलेगी... क्यूँकी वह तुम दोनों के बारे जानता था... और तुम दोनों को एक होते देखना चाहता था...
विश्व - आप ही ने कहा... आपके परिवार वाले आश्वस्त हैं... क्या आपको संदेह है...
पिनाक - नहीं... पर... मैं राजा साहब के जिद को जानता हूँ... और अब ऐसा लग रहा है... जैसे तुम्हें हराने के लिए... वह किसी भी हद तक जा सकते हैं...
विश्व - ह्म्म्म्म... शादी कल शाम को है... इतने दिनों में... महल में... क्या कुछ हुआ है...
पिनाक - तुमसे कुछ छुपा तो नहीं होगा... यशपुर से कुछ औरतें बुलाई गई हैं... जो नंदिनी की शृंगार करेंगी... आज घर पर... नंदिनी की खास परिचारिका सेबती आई थी... कल नंदिनी अपने पास अपनी भाभी और चाची माँ को चाहती है... इसलिए वे कल सुबह ही महल चली जाएंगी... कमल कांत सिर्फ एक दिन ही महल में रहा... फिर उसे राजा साहब ने रंग महल भेज दिया... एक अंधी सफेद घोड़ी को लाई गई है... जिसके ऊपर वह बेशरम... बेग़ैरत... कमल कांत... रंग महल से निकल कर राजगड़ परिक्रमा करेगा... अब की बार... राजा साहब ने... बाहर से लोग बुलवाए हैं... हर एक पर नजरें जमाए हुए हैं... मुझे तो लगता है... वे तुम पर भी... नजरें गड़ाए होंगे...
विश्व - क्यूँ...
पिनाक - यह कैसा सवाल हुआ... तुम पर उनकी इसलिए नजर होगी... ताकि तुमसे कोई हरकत हो... तो पलटवार कर सकें...
विश्व - अगर मैं कोई हरकत ही ना करूँ तो...
पिनाक - (भौंहे सिकुड़ कर हैरानी भरे नजर से देखता है) तुम अगर कुछ नहीं करोगे... तो राजा साहब अपने मकसद में कामयाब हो जाएंगे... नंदिनी की जिंदगी बर्बाद हो जाएगी...
विश्व - यह शादी... राजा साहब की मकसद नहीं है... बल्कि एक छिपा हुआ मकसद है... जिसके लिए... उन्होंने यह शादी तय की है...
पिनाक - क्या... कौनसी छुपी हुई मकसद...
विश्व - असल में... राजा साहब... यह शादी ही नहीं चाहते... और यह भी अच्छी तरह से जानते हैं... यह शादी नहीं होगी...
पिनाक - (झटका खाते हुए) यह तुम किस बिनाह पर कह सकते हो...
विश्व - (मुस्कराता है) राजा साहब का पहला मकसद है... मुझे इस केस से हटाना... या भटकाना... यह तभी हो सकता है... जब मेरी कोई कमजोर नस उनके हाथ हो...
पिनाक - तो क्या नंदिनी तुम्हारी कमजोरी नहीं है...
विश्व - नहीं... वह मेरी ताकत हैं... मेरी जान... मेरी आत्मा हैं... मेरी कमजोरी... मेरे मुहँ बोले माता पिता हैं... यह शादी की बात इसलिए फैलाई गई है... किसी तरह यह खबर मेरे माता पिता को मिल जाए... मेरी माँ... इमोशनली जितनी मजबूत है... उतनी ही कमजोर भी है... यह बात... राजा साहब अच्छी तरह से जानते हैं... मेरी माँ तक अगर राजकुमारी जी की शादी की खबर पहुँच जाए... तो मेरी माँ हाय तौबा कर बाहर आ जाती... आज के दिन... राजा साहब को सरकारी तंत्र भी मदत दे रही है... ऐसे में... मेरी माँ को कब्जे में लेना... उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं होगी...
पिनाक - तुम्हें ऐसा क्यूँ लगता है... नंदिनी की शादी की खबर... प्रतिभा जी को नहीं मिलेगी...
विश्व - क्यूँकी... माँ और डैड... दोनों को... मैंने ही अंडरग्राउंड करवाया है... उन तक कौनसी खबर जाएगी... यह मैं ही तय करता हूँ...
पिनाक - (कुछ सोच में पड़ जाता है) तुम यह कैसे कह सकते हो... राजा साहब को यह शादी... मंजूर नहीं...
विश्व - पुरे स्टेट में... राजा साहब कोई मामूली व्यक्ती नहीं हैं... पर वह केवल दो ही ईंवीटेशन कार्ड प्रिंट कर लाए थे... एक मेरे और दीदी के नाम... दूसरा आपके नाम... बाकी राजगड़ से बाहर... यहाँ तक यशपुर भी नहीं... कहीं भी... किसीको भी... ना खबर किया गया है... ना ही बुलाया गया है... राजगड़ में भी लोगों को... घूम घूम कर... मुहँ जुबानी निमंत्रण दिया गया है... इससे यही साबित हो रहा है... यह शादी... राजा सहाब को मंजूर नहीं है...
पिनाक - चलो मान लिया... तुमने राजा साहब की वह छुपी हुई मकसद को नाकाम कर दिया... पर शादी... शादी कैसे नहीं होगी... राजा साहब तुम्हें तोड़ने के लिए... किसी भी हद तक जा सकते हैं... मतलब शादी... उसी केके से करवा सकते हैं...
विश्व - राजा साहब का यह मकसद भी पूरा नहीं होगी... बस यकीन रखिए...

सुरज पूरी तरह से डूब चुका था l उजाला कम हो गया था अंधेरा धीरे धीरे आने लगा था, पश्चिमी आसमान के कुछ हिस्सा अभी भी लाल दिख रहा था l तभी दोनों के कानों में विक्रम की आवाज़ सुनाई पड़ती है l

"चाचाजी"

दोनों आवाज की दिशा में मुड़ते हैं l विक्रम को देख कर पिनाक अपनी जगह से उठता है, विक्रम हाथ बढ़ा कर पिनाक का हाथ थाम लेता है l पिनाक सीढ़ियों से चढ़ते हुए जाने लगता है l पीछे पीछे विश्व भी जाने लगता है l कुछ दूर जाने के बाद पिनाक रुक जाता है और मुड़ कर विश्व से पूछता है l

पिनाक - विश्व... तुम्हें जब इस घाट पर ढलते सूरज की देखते हुए पाया... तो लगा कि तुम नंदिनी के लिए परेशान हो... पर तुम्हारे बातों से जाना... तुम नंदिनी के लिए परेशान हो ही नहीं... पर सच्चाई यही है... के तुम किसी बात को लेकर... परेशान हो... मैं अपनी शंका मिटाने आया था... मीट गया... तुम अंधेरे उजाले की बात कर रहे थे... क्या मैं तुम्हारी कोई मदत कर सकता हूँ... (विश्व क्या कहे समझ नहीं पाता, उसे यूँ असमंजस देख कर विक्रम कहता है)
विक्रम - हाँ विश्व... वैसे हम जानते हैं... तुम बहुत काबिल हो... फिर भी... कोई मदत चाहो तो पूछ सकते हो... क्यूँकी वीर ने ऐलान किया था... जब तुम और क्षेत्रपाल आमने सामने होंगे... वह तुम्हारे कंधे से कंधा मिलाकर लड़ेगा... अब वह हमारे बीच रहा नहीं... पर उसकी यह ख्वाहिश मिटनी नहीं चाहिए...
पिनाक - हाँ विश्वा... हम जो भी कह रहे हैं.. जो भी कर रहे हैं... सभी वीर के वास्ते...

विश्व अभी भी असमंजस में था l उससे कुछ पूछा नहीं जाता l विश्व की यह स्थिति देख कर दोनों चाचा भतीजा लौटने के लिए मुड़ते हैं के विश्व उन्हें पूछता है l

विश्व - वह बात... केस के सिलसिले पर ही है.... पर...
पिनाक - पूछो... क्या जानना चाहते हो...
विश्व - रुप फाउंडेशन के केस में... दो आरोपी कत्ल कर दिए गए... और दो आरोपी गायब हो गए... क्या ऐसा हो सकता है... के कोई आरोपी खुद को... गायब कर लिया हो...
विक्रम - मैं सोच रहा था... किसी मामले में... फिजीकल कुछ हेल्प एक्सटेंड कर सकूं... पर माफ करना... इस पर मेरी कोई आइडिया नहीं है... क्यूँकी राजा साहब हमें कभी भी... उनके किसी भी मामले में... सामिल नहीं करते थे...
पिनाक - अब समझा... तुम्हारे अंधेरे और उजाले की पहेली... देखो विश्व... इस केस की विशेषता यह है कि... तुम शायद इस केस में... राजा साहब की संलिप्तता सिद्ध कर सको... पर... फिर भी... राजा साहब बच जाएंगे...
विश्व - जी... मैं भी तब से यही सोच रहा हूँ... कोई ऐसा गवाह जो मेरे हाथ लग जाये... जिसके गवाही पर... राजा साहब के हर एक करनी को अंजाम तक पहुँचा सकूँ...
पिनाक - देखो विश्वा... सूरज डूबता है... पर फिर भी अंधेरे में.. हमें रौशनी की दरकार होती है... तब... कमरे में दिया जलाया जाता है... रौशनी के लिए... पर इतना याद रखना... अंधेरा पूरी तरह से छटती नहीं है.... दिन की काली करतूत को... दिए के तले वाली अंधेरे में छुपाया जाता है... तुम्हें बस दिए को ढूंढना है... अगर ढूंढ लिया... तो वह तला भी मिल जाएगा और... तले में छुपे काली करतूत...
विश्व - मैं पूरी बात समझा नहीं...
पिनाक - जैसे कि मैंने पहले भी कहा था... तुम संलिप्तता साबित कर सकते हो... पर पूरी तरह दोषी करार नहीं दे सकते... तुम ज्यादा से ज्यादा... केस में राजा साहब को घेर सकते हो... जिससे राजा साहब साफ बचके निकल जाएंगे... राजा साहब को दोषी साबित करने के लिए... तुम्हारे दोनों केस में... मॉनी ट्रेल को साबित करना होगा... उस ट्रेल का छोर और अंत राजा साहब हैं यह साबित करना होगा... यहाँ राजा साहब का अंधेरे का दिआ... कोई और नहीं... एडवोकेट बल्लभ प्रधान है... जो अपने तले... राजा साहब की हर एक काली करतूत को छुपाये रखा है...
विश्व - जानता हूँ... पर कोई ऐसी जानकारी... जो एडवोकेट प्रधान को... घुटने पर ला सके...
विक्रम - देखो विश्व... प्रधान का ठिकाना... या तो राजगड़ या यशपुर... या फिर कटक या भुवनेश्वर... बाकी जो भी तुम्हें शक है... उसे एस्टाब्लीश करने के लिए... तुम्हें अपने कॉन्टैक्ट ईस्तेमाल करने होंगे...
विश्व - (चेहरे पर एक मुस्कान उभर आती है) वाह क्या बात कही... मुझे एक उम्मीद दिला दिया आपने... थैंक्यू...

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×


अब शाम ढल चुकी थी l अंधेरा पूरी तरह से पसर चुकी थी l रंग महल के सामने एक सफेद घोड़ी को भीमा और उसके गुर्गे सजा रहे थे l जो भी लोग रंग महल में थे वे सब कल होने वाली शादी की खुशी में दारु पी रहे थे l वहीँ रंग महल के एक कमरे में केके गहरी सोच में खोया हुआ एक कुर्सी पर बैठा हुआ था l दरवाजे पर जब दस्तक होती है तो वह कहता है

केके - अंदर आ जाओ...

दरवाजा खुलता है सत्तू के साथ रॉय और रंगा आते हैं l तीनों अंदर आकर देखते हैं केके थोड़ा घबराया और परेशान सा दिख रहा था l

रॉय - क्या बात है... केके साहब... आज तो बहुत खुशी का रात है... फिर तो यह रंग महल आपका... सारी प्रॉपर्टी में आधा हिस्सा आपका... मुझे तो लगा था... आप मन ही मन यही गा रहे होंगे... यही रात अंतिम यही रात भारी... पर आप घबराए हुए क्यूँ लग रहे हैं...
रंगा - हाँ... मैं तो सोच रहा था... आपके चेहरे पर लड्डू फुट रहे होंगे... पर आप घबराए हुए दिख रहे हैं...
रॉय - हाँ... जब कि कायदे से... कल की सोच कर... दुल्हन को घबराना चाहिए... हा हा हा हा... (रॉय के साथ रंगा भी हँसने लगता है)

गुस्से से तमतमाते हुए केके कुर्सी से उठ खड़ा होता है l और दोनों पर चिल्लाता है l

केके - शॉट अप... (दोनों चुप हो जाते हैं)
रॉय - केके साहब... कल शादी है... हमें राजा साहब ने हुकुम दिया है... आपको दूल्हे की तरह सजा कर... रंग महल से... क्षेत्रपाल महल तक... घोड़ी के ऊपर बिठा कर... जुलूस के साथ ले जाने के लिए... हमें लगा था... आपकी इच्छा पूरी हो रही है... इसलिए... आप बहुत खुश होंगे पर...
रंगा - केके साहब... कल से आप राजा साहब के... जमाई बनने जा रहे हैं... फिर घबराहट किस बात की...
केके - (दोनों की तरफ देखता है फिर) रंगा... एक बात बता... तेरी... सच में... किसको देख कर फटी थी...
रंगा - आपसे मतलब...
केके - डर लग रहा है ना...
रंगा - ठीक है... विश्वा... पर इस शादी से... उसका क्या वास्ता...
केके - तुझे क्या लगता है... एक अधेड़... हम उम्र से... राजा साहब... क्यूँ अपनी बेटी को व्याहना चाहते हैं...
रंगा - मेरे को क्या पता...
रॉय - एक मिनट.. एक मिनट... कहीं आप यह तो नहीं कहना चाहते... के विश्वा और राजकुमारी...
केके - हाँ...
रंगा - यह कैसे हो सकता है... मैं नहीं मानता... विश्वा... सात साल तक... जैल में रहा... बमुश्किल सात आठ महीने हुए हैं... बाहर आए... उसकी और राजकुमारी...
केके - पर यह सच है... खुद राजकुमारी ने मुझे कहा था... और यह... जवानी वाला इश्क नहीं है... बचपन वाला लफड़ा है...
रंगा और रॉय - क्या...
केके - हाँ... इस.. (सत्तू की ओर दिखा कर) पूछो इससे...
सत्तू - (घबरा कर) मैं... मैं... कुछ नहीं जानता...
केके - क्या नहीं जानता बे... तूने ही तो कहा था... विश्व... राजकुमारी को.. बचपन से पढ़ाता था...
सत्तू - हाँ... यह तो हर कोई जानता है... पर आप जो कह रहे हैं... यह कोई नहीं जानता...
रॉय - चलो ठीक है... एक पल के लिए हम मान लेते हैं... के राजा साहब... अपनी खुन्नस निकालने के लिए... अपनी बेटी की शादी.. आपसे करा रहे हैं... तो आपको इससे प्रॉब्लम क्या है...
केके - रॉय... इन कुछ महीनों में... हमने जो भी कुछ हारा है... जरा याद करो... उसके पीछे कहीं ना कहीं... विश्वा है... या तो सीधे तौर पर... या फिर... और रंगा... याद है... जब विश्वा तेरे सामने... अचानक आ गया... तेरी क्या हालत हो गई थी...

इतना कह कर केके चुप हो जाता है l रॉय और रंगा भी कुछ देर के लिए कोई बात नहीं कहते l फिर कुछ देर बाद रंगा कहता है l

रंगा - चलो मान लेता हूँ... पर है तो यह राजा साहब का इलाक़ा... और उन्होंने अपनी लश्कर में जबरदस्त बढ़ोतरी की है... मुझे नहीं लगता... विश्वा कुछ करने के लायक होगा...
रॉय - हाँ... मेरा भी यही खयाल है...
केके - मैं भी यही सोच रहा था... पर... जिस दिन विक्रम अपनी बहन से मिलने महल आया था... उस दिन... मैंने राजकुमारी के आँखों में... बातों में... एक जबरदस्त... आत्मविश्वास देखा था... उन्होंने खुल्लमखुल्ला राजा साहब के सामने ऐलान कर दिया... यह शादी होगी ही नहीं...
केके - मतलब वह... विश्वा के साथ... भागने की चक्कर में है...
सत्तू - ना मुमकिन... आज सुबह तक तो राजकुमारी जी महल में ही हैं... और कल से उनके शृंगार के लिए... कुछ औरतों को यशपुर से बुलाया गया है.... और लगातार राजा साहब के निगरानी में हैं...
रॉय - देखा... आप खामख्वाह परेशान हो... चलिए मैं मान लिया... विश्वा से खुन्नस उतारने के लिए... राजा साहब आपसे... राजकुमारी को व्याह दे रहे हैं... तो यह उनकी नाक और मूँछ की आन की बात हो गई ना... अपनी नाक और मूँछ की आँच बचाने के लिए... कुछ भी कर सकते हैं... अगर यह विश्वा से बदला लेने की बात है... तो इस मिशन में... हमें शिद्दत के साथ... शामिल होनी चाहिए... हम सबका बदला एक साथ पुरा होगा... कोई नहीं केके साहब... राजा साहब ने वह एग्रीमेंट यूँ ही नहीं कि है... मत भूलिए... इस शादी के बाद... यह रंग महल आपका हो जाएगा... राजा साहब के सारे फैक्ट्रियों और प्रॉपर्टी में... बराबर का हिस्सा हो जाएगा...
रंगा - हाँ केके साहब... आप बस तैयार हो जाइए... सारे गाँव वाले होंगे सामने शादी होने वाली है... विश्वा को भीतर से तोड़ने के लिए... अबकी बार... मैं खुद को बाजी लगा दूँगा... यह मेरा वादा है...

रॉय और रंगा के ढांढस बाँध ने के बाद केके को थोड़ी हिम्मत मिलती है l अब वह तैयार होने के लिए बाथरूम के अंदर जाता है l
हमेशा की तरह ही शानदार अपडेट




Bhut shandaar तरीके से chakravyuh रच दिया गया है

राजा सहाब के तो लोडे लगने वाले है अगर विश्व ने कुछ नहीं किया तो.......


और अंत में

K k को सब शादी होने के बाद मिलेगा और शादी तो राजा खुद नहीं चाहता 🤣🤣🤣🤣🤣🤣🤣




ये तो सच में झोल हो गए....
 

Ronit Singh92

New Member
14
30
28
एक और बेहतरीन अपडेट काला नाग भाई। आप की लेखन कला की तारीफ के लिए शब्द कम पड़ जायेंगे। विश्व और रूप के बीच के संवाद दिल की गहराई को छू गए। भैरव सिंह और विक्रम के बीच का वार्तालाप भी बेहतरीन था।
भाई आपसे एक अनुरोध है कहानी अब अंतिम पड़ाव की ओर अग्रसर है, हो सके तो अपडेट थोड़ा जल्दी दे दिया करें, इससे पढ़ने का रोमांच बना रहेगा।
 
10,224
43,006
258
विश्वा के दिमाग पर आश्चर्य होता है कि कैसे वह दुश्मन के चाल , उसके बिछाए हुए चक्रव्यूह को पहले से ही भांप लेता है ! यह हम सोच ही नही सकते थे कि भैरव सिंह की मंशा रूप नंदिनी की शादी कमलाकांत के साथ करने की कभी थी ही नही । लेकिन विश्वा ने इसे सोच लिया और बिल्कुल ही सही सोचा ।
इसका मतलब कमलाकांत को बली का बकरा बनाया गया है । और यह सब विश्वा को उलझाने का प्लानिंग था । इसका तात्पर्य क्या निकाला जाए ? कहीं कमलाकांत साहब के जीवन के चैप्टर का द एंड तो नही ?

जैसा कि मैने कहा था भैरव सिंह के करीबी लोगों पर विश्वा को फोकस करना चाहिए और यही सलाह विश्वा को पिनाक साहब ने भी दी । एडवोकेट वल्लभ प्रधान वह व्यक्ति है जो भैरव सिंह के खिलाफ वाटरलू साबित हो सकता है । अब देखना यह है कि विश्वा कैसे इस पंक्षी को पिंजरे मे कैद कर पाता है !

इसके पहले रूप नंदिनी और विश्वा का प्रणय सीन्स जो आया वह एक बार फिर से अत्यंत ही खूबसूरत और रोमांटिक लगा । यही नही बल्कि इनके प्रेम मे चंचलता और शरारतपन भी मौजूद था ।

और जहां तक बात है भैरव सिंह के खिलाफ मनी ट्रेल साबित करने की , यह बहुत ही पेचिदा और दुरुह कार्य लग रहा है । इसके लिए विश्वा को केंद्रिय गवर्नमेंट की मदद लेनी होगी । शायद विश्वा के कुछ दोस्त जो बड़े बिजनेस मैन हों या फिर कोई बड़े प्रशासनिक अधिकारी , इस कार्य मे उसे कुछ हेल्प कर सकें !


खुबसूरत अपडेट बुज्जी भाई ।
अपनी पुत्री का ख्याल रखिएगा और मेरा उसे ढेर सारा प्यार और स्नेह कहिएगा ।

जगमग जगमग अपडेट ।
 
Top