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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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Surya_021

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👉एक सौ सत्तावनवाँ अपडेट
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तो... तुमने सेनापति सर और मैडम जी को.. भिजवा दिया...

यह सवाल था डैनी का विश्व से l पिछले दिनों की तरह वे दोनों नराज बैराज के जॉगर्स पार्क में रिवर व्यू पॉइंट पर बेंच पर बैठे हुए थे l हर दिन की तरह लोग जॉगिंग कर रहे थे l बच्चे अपने कोलाहल में व्यस्त थे l डैनी के सवाल के जवाब में विश्व कहता है

विश्व - हाँ.. यह जरूरी था... क्यूँकी मैं जानता हूँ... एक बार अगर राजगड़ में उलझ गया... तो यह केस ख़तम होने तक.... मैं निकल ही नहीं पाऊँगा...
डैनी - हाँ... यह तुमने अच्छा किया... क्यूँकी मुझे लग रहा है... भैरव सिंह अब पागल हो गया है...
विश्व - पागल...
डैनी - हाँ पागल... और थोड़ा अग्रेशन में भी लग रहा है... वैसे मुझे अभीतक यह समझ में नहीं आया... तुम्हें तो राजगड़ वापस चले जाना चाहिए था... तुम क्यूँ रुके हुए हो अब तक...
विश्व - वह इंस्पेक्टर दास बाबु का... कुछ काम रह गया है... उन्होंने ही कहा था... रुकने के लिए... ताकि मिलकर हम राजगड़ जाएं...
डैनी - जानते हो... भैरव सिंह भी राजगड़ नहीं गया है...
विश्व - हाँ... जानता हूँ... पता नहीं क्यूँ नहीं गया है अब तक...
डैनी - कुछ लोग जो पहले से अंडरग्राउंड हैं जिन्हें ढूंढ रहा है... और अदालत की इस पहल से... जो कुछ लोग अंडरग्राउंड होने की तैयारी में हैं... उनके लिए कुछ इंतजाम कर रहा है... शायद..
विश्व - क्या... आपका इशारा किसके तरफ है...
डैनी - पत्री... नरोत्तम पत्री... वह खुद को... अंडरग्राउंड करने की तैयारी में है...
विश्व - हाँ उन्होंने जो करना था कर लिया... अब बाजी मेरे और भैरव सिंह के बीच है...
डैनी - पर भैरव सिंह... कुछ भूलता नहीं है... वह इस बात का बदला लेगा जरूर...
विश्व - हाँ लेगा... पर इतनी जल्दी नहीं... क्यूँकी ना तो भैरव सिंह का पोजीशन इस वक़्त इतना मजबूत है... और ना ही... पत्री साहब कोई छोटे ओहदे वाले हैं.... पत्री साहब अपनी सरवाइवल का कुछ तो सोच रखा होगा...
डैनी - ह्म्म्म्म...

दोनों अचानक चुप हो जाते हैं l उन्हें महसूस होता है कि अभी पार्क में सिर्फ वे दोनों ही हैं l दोनों सतर्क हो जाते हैं और अपनी नजरें चारों तरफ घुमाते हैं l कुछ देर पहले जो लोग दिख रहे थे अचानक सब गायब हो गए थे l बच्चों का कोलाहल सुनाई देना तो दुर कोई आसपास दिख भी नहीं रहे थे l दोनों खड़े हो जाते हैं l धीरे धीरे कुछ लोग आकर उनसे कुछ दूरी बना कर उन्हें घेर कर खड़े हो जाते हैं l कुछ देर बाद रंगा चलते हुए सामने आता है l विश्व उसे देख कर भौंहे सिकुड़ लेता है l

रंगा - हा हा... चौंक गए...
डैनी - तुम्हारी हिम्मत की दाद देता हूँ... अपने जोकरों को लेकर हमें घेरने आए हो...
रंगा - ना ना ना... इतना हिम्मत तो मैं कभी कर ही नहीं सकता... वह भी डैनी भाई के सामने... पर मैं हूँ तो नमक हलाल ना.. अब मालिक का हुकुम है... तो मुलाकात तो बनता है ना...
डैनी - मालिक... कौन मालिक...
विश्व - भैरव सिंह...

वाह वाह... क्या बात है... (ताली बजाते हुए भैरव सिंह इनके तरफ़ चलते हुए आता है, विश्व देखता है उसके साथ बल्लभ प्रधान और केके आकर रंगा के पास रुक जाते हैं, पर भैरव सिंह उन दोनों के पास आकर खड़ा हो जाता है) बहुत अच्छा अनुमान लगाया... गुलामों को देखकर... बादशाह को पहचान लिया...
डैनी - ऐसे बादशाहों को... मैं रोज तास की गड्डी से निकाल कर टेबल पर पटकता रहता हूँ...
भैरव सिंह - पर अफसोस... मेरा झांट भी बाँका ना कर सके... ना तब... ना अब...
डैनी - बात औकात की होती है... जो पट्ठे से हो जाए... वहाँ उस्ताद क्यूँ कर क्या करेगा...
भैरव सिंह - वाकई... हाँ डैनी... तुमने अपने पट्ठे को... अच्छा ग्रूम किया है... उसने वह कर दिया... जिसकी हमने... (नफरती आवाज में) कभी दूर दूर तक सोचा भी नहीं था...
डैनी - लगता है यही सोच सोच कर... दिमाग को बहुत गरम कर रखा है... कोई नहीं... यहाँ सुबह सुबह नारियल पानी अच्छा मिलता है... पी लो.. वह भी मेरे खाते से... दिमाग ठंडा रहेगा... ताकि आगे की सोच सको...
भैरव सिंह - (लहजा थोड़ा कड़क करता है) यह नारियल पानी... अब हमें नहीं... तुम लोगों को जरूरत पड़ेगी... (विश्व से) तु... तुने अपनी सीमा लाँघ ली है... अब तेरे पास कोई लाइफ लाइन नहीं है... अब सजा के लिए तैयार रहना...
विश्व - तुने जो बोया था... आज वही काट रहा है... भैरव सिंह... वही काट रहा है... तेरी करनी... तेरे पास सूद के साथ लौट रहा है...
भैरव सिंह - (रौब के साथ) हम क्षेत्रपाल हैं.. राजगड़ ही नहीं... हर उस इलाके के... जो राजगड़ से किसी ना किसी वज़ह से ताल्लुक रखता हो... हम... (लहजे में थोड़ा दर्द) उन सबके भगवान हुआ करते थे कभी... यहाँ तक कि... सरकार तक... हमारी मर्जी से बनतीं थीं... लोगों की जिंदगी... मौत तक... हम तय करते थे... पर हमने तुझ पर जरा सी आँख क्या बंद कर ली... तुने हमारे ही चेहरे पर पंजा मार दिया...
विश्व - हाँ... वह भी ऐसा मारा... के खुदको खुदा समझने वाला... अब आईने में खुद का चेहरे देखने से घबरा रहा है...
भैरव सिंह - हाँ... ठीक कहा तुने... जिन कीड़े मकौड़ों को अपनी पांव तले हम रौंदा करते थे... वही आज हमारे मूँछ पर हमला कर दिया...
विश्व - तो अब यहाँ... इन बारातियों को लेकर... क्या करने आया है... मुझे धमकाने.. या मारने...
भैरव सिंह - तुझे इतनी आसानी से... मार दूँ... ना.. मैं यहाँ यह बताने आया हूँ... के अब की बार... तु राजगड़ आयेगा... तो नर्क किसे कहते हैं... वह देखेगा...
विश्व - अभी भी राजगड़ कौनसा स्वर्ग है...
भैरव सिंह - जो भी है... जैसा भी है... हम उसके भगवान हैं... और अब से... आज के बाद वही होगा... जो हम चाहेंगे... तेरे लिए खुला मैदान.. खुला आसमान होगा... जैसे ही अपने हाथ पैर हिलाने के लिए कोशिश करेगा... तुझे अपने हाथ पैर बंधे हुए महसूस होंगे... वादा रहा...
विश्व - वादा... तु है कौन... तेरी हस्ती क्या है...
भैरव सिंह - हम.. हम भैरव सिंह क्षेत्रपाल हैं... तु भूल कैसे गया...हैं... कैसे भूल गया... जब गाँव के लोग... चुड़ैल समझ कर, तेरी दीदी को नंगा कर दौड़ा रहते थे... पत्थरों से मार रहे थे... तब गाँव के लोग... पत्थर फेंकने इसलिए से रोक लिया था... क्यूँकी तु उनके सामने था... और तब तु क्षेत्रपाल महल का... दुम हिलाता कुत्ता हुआ करता था...

विश्व की जबड़े और मुट्ठीयाँ भिंच जाती हैं, आँखों में वह मंजर तैरने लगता है l गुस्से से नथुनें फूलने लगते हैं, तब डैनी उसके कंधे पर हाथ रख देता है l

डैनी - क्षेत्रपाल... ओह... सॉरी भैरव सिंह क्षेत्रपाल.. कितना बुरा दिन आ गया है तेरा... अपनी शेखी... दुम हिलाते कुत्ते के आगे बघार रहा है...
भैरव सिंह - (कुछ देर के लिए चुप हो जाता है) नहीं बे हरामी... उसे याद दिला रहा हूँ... कुत्ता... कुत्ता ही रहता है... कभी शेर नहीं बन जाता...
विश्व - बिल्कुल सही कहा तुमने... कुत्ता हमेशा खुद को अपनी गली में शेर समझता है... और अपनी गली से... ललकारता है...
डैनी - अरे हाँ... विश्व... यह तुम्हें राजगड़ में इसीलिए ललकार रहा है ना...
विश्व - हाँ... वह भी अपना झुंड लेकर आया है...
भैरव सिंह - कहावत है... दिया जब बुझने को होती है... तभी बहुत जोर से फड़फड़ाता है... जितना फड़फड़ाना है फड़फड़ा ले... पर जब तु बुझेगा... और बुझेगा ज़रूर... यह फड़फड़ाना भूल जाएगा... इसलिये यह अकड़... बचा कर रखना काम आएगा... क्यूँकी... हम तेरे तन... मन... और आत्मा में इतने ज़ख़्म भर देंगे... के साँस लेना भी भारी हो जाएगा... इसे कोरी धमकी मत समझ... वादा है... क्षेत्रपाल का वादा... ऐसा ही एक वादा तेरी बहन से भी कर आए थे...
विश्व - इतनी देर से... क्या यही बकैती करने... मेरे पास आया है... सिर्फ इतनी सी बात...
भैरव सिंह - नहीं सिर्फ इतनी सी बात नहीं है... हमने तेरी बहन से एक दिन वादा किया था... के चींटी जब तक हमें काटने की औकात पर ना आए... हम तब उसे मसलते भी नहीं है... क्यूँकी दुश्मनी करने के लिए भी औकात की जरूरत होती है... पर तु अपनी औकात से भी आगे बढ़ गया... तुझे क्या लगा... उस दिन हमने तुझ पर हाथ क्यूँ नहीं उठाया... दोस्ती दुश्मनी और रिश्तेदारी के लिए... हैसियत बराबर का होना जरूरी है... उस दिन अगर हम तुझे छु लेते... तो हम अपनी हैसियत से गिर गए होते... पर हमने ऐसा किया नहीं... तुझे चींटी समझने की भूल की थी... जबकि तु एक सांप निकला... तेरे साथ वही होगा... जो हर एक सांप के साथ किया जाता है... तेरा फन कुचल दिया जाएगा... वह भी राजगड़ के लोगों के सामने... तु उन गलियों में भागेगा... जिन गालियों में हम चल कर आए थे... तेरी और तेरी बहन की ऐसी हालत होगी... के आने वाली नस्लें... मिसालें देती रहेगी... ताकि आइंदा राजगड़ की मिट्टी में.. तेरी बहन.. या तेरी जैसी गंदगी कभी पैदा नहीं होंगी...
विश्व - बात बात में बहुत बोल गया... यह ख्वाब तेरे अधूरे हैं... जो कभी पुरे नहीं होंगे... खैर... मैं भी तुझसे वादा करता हूँ... तेरी हस्ती... तेरी बस्ती मिटा दूँगा... पर तुझे कभी भी हाथ नहीं लगाऊंगा... वादा... विश्व प्रताप महापात्र का वादा...
भैरव सिंह - वादा... तु मुझसे वादा कर रहा है... तेरी हस्ती.. औकात और हैसियत क्या है... डर तो अभी भी तु मुझसे रहा है... तभी तो... तेरे मुहँ बोले माँ बाप को कहीं भेज दिया है...
विश्व - हाँ भेज दिया... पागल कुत्ता कब काटने को आ जाए क्या पता... इसलिये...
भैरव सिंह - (नफरती मुस्कान के साथ) श्श्श्... मीलते हैं... बहुत जल्द...

कह कर भैरव सिंह मुड़ता है और हाथ के इशारे से सबको अपने साथ चलने के लिए कहता है l कुछ देर में पूरा पार्क खाली हो जाता है l इतनी खामोशी थी के पीछे बहती नदी की कल कल की आवाज़ सुनाई दे रही थी l

विश्व - डैनी भाई... क्या आपका भैरव सिंह से... पहले से कोई वास्ता है...
डैनी - हाँ...
विश्व - आपने पहले कभी बताया नहीं...
डैनी - तुम्हारी और मेरी कहानी में ज्यादा फर्क़ नहीं है...

डैनी अपनी कहानी कहता है, कैसे उसकी बहन को भैरव सिंह ने बर्बाद किया था l क्यूँ डैनी की बहन ने आत्महत्या कर ली थी l डैनी अपना बदला लेने के लिए निकला और कहां से कहां पहुँच गया l

विश्व - तो जैल में... आपने जो कहानी बताई थी... वह पूरी तरह झूठ था...
डैनी - हाँ... विश्वा... तुम्हारी कहानी और मेरी कहानी एक जैसी है... पर जो अलग है... वह यह है कि... तुम्हारी दीदी... मेरी बहन की तरह आत्महत्या नहीं की... ना ही तुम मेरी तरह लाचार बने... तुम दोनों लड़ना नहीं छोड़ा... मैंने भैरव सिंह से वादा किया था... उसके सामने एक ऐसा हथियार खड़ा करूँगा... जिसे वह इंसान भी ना समझता हो... इसलिए मैंने जो भी... बदला लेने के लिए कमाया था... वह सब तुम्हें दे दिया... और मुझे यह कहते हुए जरा भी झिझक नहीं है... तुम अपना बदला बिल्कुल सही तरीके से ले रहे हो... (विश्व की तरफ देख कर) तुम अपनी तैयारी करो... मैं तुमसे वादा करता हूँ... श्रीधर परीड़ा अगर मौत के जबड़े में भी होगा... तब भी... मैं उसे... मौत की जबड़े से खिंच कर तुम्हारे लिए ले आऊँगा...

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एक ट्रेन अपनी पटरी पर भागी जा रही थी l उस ट्रेन के एक फर्स्ट क्लास कंपार्टमेंट के केबिन में प्रतिभा सेनापति बैठी एक न्यूज पेपर पढ़ रही थी l तापस केबिन का दरवाजा खोल कर अंदर आता है और सामने वाली सीट पर बैठ जाता है l

तापस - क्या कर रही हो जान...
प्रतिभा - अकेले... यह लेनिन कहाँ गया...
तापस - ओहो... बताया तो था... उसे टोनी कहना.. उसने अपना आइडेंटिटी बदला हुआ है...
प्रतिभा - ठीक है... कहाँ है वह टोनी..
तापस - थोड़ा टहल रहा है...
प्रतिभा - प्रताप के साथ इसकी दोस्ती कब और कैसे हुई...
तापस - यह मैं कैसे कह सकता हूँ... जैल के अंदर भी एक दुनिया है... वहाँ पर सरवाइवल के अपने नियम होते हैं... वहाँ हर कोई अपना ग्रुप बना कर सर्वाइव करता है... और जरूरी नहीं कि हर बात... प्रताप हमसे शेयर करे...
प्रतिभा - फिर भी... उसने हमें भेज कर ठीक नहीं किया... आपने भी... उसका सपोर्ट किया...
तापस - जान... कभी कभी तुम जरूरत से ज्यादा इमोशनल हो जाती हो... अगर दिल से सोचोगी... तब तुम्हें समझ में आएगा... प्रताप तुम्हें और मुझे... मेरा मतलब है हम दोनों को... सबसे ज़्यादा भाव देता है...
प्रतिभा - कैसे... आप को तो उसके तरफ से बैटिंग करने का मौका चाहिए... अगर अपनी लड़ाई में हमें शामिल कर देता तो क्या बिगड़ जाता उसका...
तापस - उसने जब जब जो जो ठीक समझा... बेझिझक हमसे मदत ली... यह तुम भी जानती हो... देखा नहीं अनु के लिए... तुमसे कैसे पुरे शहर का... उठा पटक करवा दिया...
प्रतिभा - (असहाय सा, पेपर को मोड़ते हुए) अब मैं कैसे समझाऊँ...
तापस - आज पेपर में क्या समाचार आया है...

प्रतिभा उसके हाथ में पेपर थमा देती है l तापस पेपर लेकर उस हिस्से को पढ़ने लगता है, जिसमें विश्व और भैरव सिंह के केस की डिटेल लिखा हुआ था l

" राज्य में बहू चर्चित केस पर ओड़िशा हाइकोर्ट के द्वारा आगे की कार्रवाई की पृष्टभूमि प्रस्तुत कर दी गई है l सम्पूर्ण राज्य हैरान तब हो गई थी जब यह खबर आग की तरह फैल गई के राज्य की राजनीति और व्यवस्था में गहरा प्रभाव रखने वाले राजा भैरव सिंह को गृह बंदी कर लिया गया है l

राजा साहब के विरुद्ध उन्हीं के गाँव के लोगों ने समुह रुप से थाने में शिकायत दर्ज की थी l यह केस दरअसल राजगड़ मल्टीपर्पोज कोऑपरेटिव सोसाईटी से ताल्लुक रखता है l जिसमें लोगों ने यह आरोप लगाया है कि उनकी जमीन को अनाधिकृत रुप से बैंक में गिरवी रख कर पैसा उठाया गया था l जिस पर अडिशनल मजिस्ट्रेट श्री नरोत्तम पत्री के आधीन एक कमेटी गठित किया गया था l उनके रिपोर्ट के उपरांत राज्य सरकार और हाइकोर्ट के द्वारा स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन किया गया है जो केवल तीस दिन के भीतर इस केस की सुनवाई के साथ साथ कारवाई पूरी करेगी l इस केस में वादी के वकील श्री विश्व प्रताप महापात्र गवाहों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए हर दशवें दिन कोर्ट की स्थान बदलने का आग्रह किया जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया l

आज से ठीक आठवें दिन इस केस पर सुनवाई राजगड़ से आरंभ होगी l फिर देवगड़ फिर सोनपुर में ख़तम होगी l अब राज्य सरकार के साथ साथ राज्य के प्रत्येक नागरिक का ध्यान इसी केस पर ज़मी हुई है l"

तापस अखबार को रख देता है l और प्रतिभा की ओर देखता है l प्रतिभा अभी भी असहज लग रही थी l

तापस - जान... तुम्हारे मन में क्या है खुल कर बताओ...
प्रतिभा - लेनिन कह रहा था... जब तक केस ख़तम नहीं हो जाती... वह हमें हर दूसरे या तीसरे दिन... यूँ ही... रैल की सफर करता रहेगा...
तापस - तो क्या हुआ जान... हमें इस उम्र में तीर्थ करना चाहिए... वह टोनी करवा रहा है...
प्रतिभा - चालीस से पचास दिन... कहीं रुकना... और सफर करना... हमें लेकर प्रताप इतना ईन सिक्योर क्यूँ है...
तापस - तुम्हें तो खुश होना चाहिये...
प्रतिभा - हम भटक रहे हैं... वह पता नहीं किस हालत में है... ना वह हमें कुछ करने दे रहा है... ना ही... (चुप हो जाती है)
तापस - क्या तुम्हें अपने प्रताप पर भरोसा नहीं है...
प्रतिभा - है... बहुत है... यह कैसा सवाल हुआ...
तापस - देखो जान... प्रताप को सबसे पहले तुमने अपना बेटा माना... तुम्हें उसके काबिलियत का अंदाजा भी है... उसका हमारे लिए ईन सिक्योर होना जायज है... क्यूँकी वह भी हमें दिल से माता पिता मानता है... हमें सबसे ज्यादा मान और भाव दे रहा है... अपने दिल की तराजू में... एक पलड़े में अपने दोस्तों... अपनी दीदी... और अपना प्यार को रखा है... और दूसरे पलड़े में हमें रखा है... वह उनके बीच रहेगा... तो उनके लिए कुछ कर पाएगा... जरा याद करो... उस पर क्या गुजरी थी... जब रंगा के चंगुल से... विक्रम ने हमें बचा कर अपने घर ले गया था... ऐसा कुछ अगर फिर से हो जाता... तो हमारा प्रताप वहीँ हार जाता... इसलिये अपने दोस्त से कह कर उसने हमारी सुरक्षा की गारंटी ले ली...
प्रतिभा - पता नहीं... मन नहीं मान रहा है... तीस से चालीस दिन... और यह भैरव सिंह... अपने देखा ना... उसने कैसे... सिस्टम को अपनी तरफ कर रहा है... ना जाने कैसे कैसे चक्रव्यूह रहेंगे... हमारे प्रताप के खिलाफ...
तापस - हाँ देखा है... पर मुझे यकीन है... हमारा प्रताप... हर चक्रव्यूह को भेद लेगा... मैंने उसे जितना ज़ज किया है... मैं यकीन के साथ कह सकता हूँ... जब वह खेल को पूरी तरह से समझ जाता है... खेल का रुख अपने तरफ खिंच लेता है...
प्रतिभा - जानती हूँ... पर भैरव सिंह... वह क्या सच में... केस हार कर... सरेंडर करेगा...
तापस - नहीं... नहीं करेगा... इसीलिये तो... अपने आप को बाजी लगा कर... केस को अपने इलाके में ले कर गया है.. बस इतना जान लो... यह उसकी जिंदगी का आखिरी दाव है...
प्रतिभा - यही तो मेरी परेशानी का सबब है... अगर वह आखिरी दाव लगाया है... तो अहम को कायम रखने के लिए... पता नहीं किस हद तक जाएगा...
तापस - हाँ... वह यकीनन... हर हद लाँघ लेगा... क्यूँकी जब भी... किसीने... भैरव सिंह की आँखों में आँखे डाला है... भैरव सिंह उससे हरदम हारा ही है... भले ही हार की कीमत... उनकी बर्बादी से हासिल करने की कोशिश की है... पर हारा ज़रूर है...
प्रतिभा - (हैरानी से सवाल करती है) क्या भैरव सिंह हारा भी है...
तापस - इसमें हैरान होने वाली बात कहाँ है... पहले उमाकांत सर... उन्होंने चेताया था... सरपंच विश्व से गद्दारी... भैरव सिंह की सल्तनत में सेंध लगाएगी... उसके लिए... भले ही उमाकांत सर ने जान दे दी... पर हुआ तो वही ना... फिर... वैदेही ने भैरव सिंह के आँखों में आँखे डाल कर... उसे ललकारा... आज अंजाम देखो... भैरव सिंह के खिलाफ़ ना सिर्फ केस दर्ज हुआ... बल्कि.. अदालत में मुज़रिम वाली कठघरे में खड़ा भी हुआ... फिर... वीर ने अपने प्यार के लिए ललकारा... क्या भैरव सिंह जीत पाया... भले ही... वीर और अनु मारे गए हों... और फिर... हमारे प्रताप... क्या गत बना दी उसने भैरव सिंह की... जिस सिस्टम को... अपने पैरों की जुती समझता था... उसी सिस्टम के आगे गिड़गिड़ाने पर मजबूर कर दिया... हाँ... उसके लिए... प्रताप ने कीमत भी चुकाई है... और फिर अब... तुम्हारी बहु ने... अपने प्यार के लिए... भैरव सिंह को ललकारा है... क्या तुम्हें लगता है... भैरव सिंह जीत पाएगा... इसलिए निश्चित रहो... हमारा प्रताप... बहु को अपने साथ लेकर ही आएगा...
भैरव सिंह को यह सच्चाई अच्छी तरह से मालूम है... क्यूँकी अब गाँव के लोगों ने भी उससे आँख में आँख डाल कर उसकी क्षेत्रपाल होने को चैलेंज दिया है... यह उसकी बर्दास्त के बाहर है... इसलिए वह प्रताप को... झुकाने के लिए... हराने के लिए... किसी भी हद तक जाएगा... यह पहले से अज्युम कर... प्रताप ने... हमें लेनिन उर्फ टोनी के साथ... अंडरग्राउंड करवा दिया... यानी राजा के नहले वाली सोच पर... प्रताप ने अपनी दहले वाली चाल चल दी... इस जंग में... यह भैरव सिंह की पहली हार है...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... पर इतने दिन... हम भगौड़ों की तरह.... जैसे हम कोई क्रिमिनल हों...
तापस - ना... मुझे नहीं लगता इतने दिन लगेंगे... पहले दस दिन में ही सब कुछ तय हो जाएगा...रही क्रिमिनल होने की बात... तो मेरी जान... तुम क्रिमिनल लॉयर की माँ हो... जहां क्राइम हो... वहाँ हमारे प्रताप का दिमाग बहुत शार्प हो जाता है... वह कई साल क्रिमिनलों के बीच रहा है... उन्हें पढ़ा है... इसलिए... वह राजा भैरव सिंह के चालों को भी पढ़ लेगा... और बहुत जल्द मात देगा...
प्रतिभा - क्या... आपको ऐसा क्यूँ लगता है...
तापस - वह इसलिए मेरी जान... मुझे पक्का यकीन है... प्रताप कोई ना कोई... प्लान बी पर या तो सोच रहा होगा... या फिर काम कर रहा होगा...

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सुभाष सतपती, एसीपी एसआईटी अपने चेंबर में चहल कदमी कर रहा है l ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसे किसीकी प्रतीक्षा हो l कुछ देर बाद उसके टेबल पर इंटर कॉम घन घना जाता है l स्पीकर ऑन कर पूछता है

सतपती - येस..
ऑपरेटर - सर... आपसे मिलने... इंस्पेक्टर दाशरथी दास और उनके साथ एडवोकेट विश्व प्रताप महापात्र आए हैं...
सतपती - सेंड देम... और हाँ... दिस मीटिंग इस वेरी इम्पोर्टांट... सो... डोंट डिस्टर्ब अस...

इंटर कॉम ऑफ कर देता है, थोड़ी देर बाद दरवाजा खुलता है दास के साथ विश्व अंदर आता है l दोनों को बैठने के लिए इशारा करता है l विश्व से पूछता है

सतपती - क्या बात है विश्व... इस क्लॉज डोर मीटिंग के लिए क्यूँ कहा... वह भी मेरे ऑफिस में...
विश्व - बताता हूँ... वैसे आपको तो... अब तक.. रुप फाउंडेशन की फाइल मिल चुकी होगी..
सतपती - हाँ... पर इस पर इतनी बैचैनी किस बात की...
विश्व - होगी ही... वज़ह आप बेहतर जानते हैं... अगर कानून अपना काम कर रहा होता... तो विश्व को विश्वा ना बनना पड़ता... और केस की रि-हीयरीं और रि-इंवेस्टीगेशन ना हो रहा होता...
सतपती - प्लीज विश्व... तुम मेरे ऑफिस में... मेरे ही चेंबर में... कानून को गाली मत दो.. मैं जानता हूँ... तुम्हारे साथ बहुत गलत हुआ है... और वज़ह को समझता हूँ... पर यार... तुम और मैं आज की दौर में... कानून का ही चेहरा हैं...
विश्व - हाँ... तभी तो... मैंने कानून को अपने हाथ में नहीं लिया है अब तक... चूंकि मुझे आप पर... कानून पर और खुद पर भरोसा है...
सतपती - ओके... मैं तुम्हारा खीज और नाराजगी का सम्मान करता हूँ... बोलो तुम उस केस की फाइल मिलने की बात क्यूँ की...
विश्व - पता नहीं क्यूँ... इन कुछ दिनों में... मेरा सिक्स्थ सेंस मुझे अलर्ट कर रहा है...
सतपती - ह्वाट... तुम्हारा छटी इंद्रिय.. तुम्हें क्या कह रहा है...
विश्व - यही... के इस केस के ताल्लुक कोई गवाह है... जो इस केस की दिशा और दशा बदल सकता है...
सतपती - देखो विश्व... मैंने फाइल तो हासिल कर ली है... पर अभी तक पढ़ा नहीं है... इसलिए... मैं इस पर कोई कमेंट... फ़िलहाल नहीं कर सकता...
विश्व - पर मैंने तो पढ़ा है... मैंने इस केस की हर पहलू को जाना है... और मैं खुद इस केस का शिकार रहा हूँ...
दास - (विश्व के हाथ पर अपना हाथ रख कर) ओके ओके विश्वा... रिलेक्स...
विश्व - ओह... सॉरी...
सतपती - इट्स ओके... बोलते रहो...
विश्व - सतपती बाबु... मैं यह कहना चाहता हूँ... के कोई ना कोई इस केस के ताल्लुक गवाह है... जो इस केस में अहम भूमिका अदा कर सकता है...
सतपती - हाँ... मैं जानता हूँ... तुम श्रीधर परीड़ा की बात कर रहे हो...
विश्व - नहीं वह नहीं... कोई है... छुपा हुआ है... आठ साल से...
सतपती - आठ साल से... मतलब तुम भी अंधेरे में हो... कह रहे हो... कोई तो है... मगर कौन है... नहीं जानते... पर बता सकते हो... वह कौन है... और तुम्हें ऐसा क्यूँ लगा के कोई हो सकता है...
विश्व - क्यूँकी जिस तरह से... श्रीधर परीड़ा खुद को गायब कर दिया है... मुझे लगता है... उस वक़्त भी कुछ ऐसा हुआ था... और जो गायब हुए हैं... अगर हम... उनकी खोज करें... तो शायद...
सतपती - ठीक है... यह भी एक एंगल है...
विश्व - यह भी नहीं... बस यही एक एंगल है... क्यूँकी बाकी जो भी गवाह बन सकते थे... उन्हें भैरव सिंह ने... पागल सर्टिफाय कर दिया है...

यह सुन कर सतपती कुछ देर के लिए सोच में पड़ जाता है l कुछ देर सोचने के बाद दास से पूछता है l

सतपती - तुम्हें इस पर क्या कहना है दास...
दास - सच कहूँ तो... मैं श्योर नहीं हूँ... क्यूँकी मुझे अपनी तहकीकात में यह मालूम हुआ कि... जिन्हें भैरव सिंह गैर जरूरत समझता था... उन्हें वह अपने आखेट बाग के... लकड़बग्घों को और मगरमच्छों का निवाला बना देता था...
सतपती - हाँ... मैंने भी कुछ ऐसा ही सुना है... विश्वा... मैं सजेस्ट करूँगा... तुम फ़िलहाल... राजगड़ मल्टीपर्पोज को-ऑपरेटिव सोसाईटी वाले केस पर ध्यान दो... क्यूँकी ना तुम्हारे पास ज्यादा वक़्त है... ना मेरे पास... मुझे रुप फाउंडेशन की केस पर डिटेल समझने दो... अगर मुझे कोई लीड मिलती है... देन... आई प्रॉमिस... मैं उसे हर हाल में... सामने लाऊँगा... (विश्व अपना सिर सहमती से हिलाता है) ओके और कोई हेल्प...
विश्व - हाँ... छोटा सा... पर...
सतपती - डोंट बी शाय... बेझिझक कह सकते हो... (तभी इंटरकॉम बजने लगती है l क्रैडल उठा कर) येस...
ऑपरेटर - सर... मिस सुप्रिया आई हैं... मैंने उन्हें आपकी मीटिंग के बारे में कहा तो वह कह रही हैं... की वह भी इसी मीटिंग के लिए आई हैं...
सतपती - क्या... (विश्व और दास की ओर देखते हुए) ओके सेंड हर... और हाँ.. चार कप... कॉफी भी भेज देना... (क्रैडल इंटरकॉम पर रखते हुए, विश्व से) सुप्रिया को तुमने खबर की थी...
विश्व - ना.. नहीं... पर काम उन्हीं से था...
सतपती - तो उसे कैसे पता चला मीटिंग के बारे में...

दरवाजा खुलता है, सुप्रिया अपने ऑफिस फिट आउट में अंदर आती है l

सुप्रिया - हैलो एवरीवन... (सभी हाय कहते हैं) मैं डिस्टर्ब तो नहीं कर रही...
सतपती - ऑपरेटर तो कह रहा था... तुम इसी मीटिंग के लिए आई हो...
सुप्रिया - हाँ...
सतपती - पर यह लोग मना कर रहे हैं...
सुप्रिया - क्या... झूठ बोल रहे हैं यह...
सतपती - विश्वा... यहाँ क्या हो रहा है...
विश्वा - देखो... मैं नहीं जानता यहाँ क्या हो रहा है... पर मैं आपके पास आया ही था... मिस सुप्रिया जी के वास्ते...
सतपती - ह्वाट...
विश्व - हाँ.. मैंने सुबह से इन्हें बहुत कॉल किए... पर यह व्यस्त थीं... इसलिए उनको मेसेज भेजे थे... पर यह तो सीधे यहाँ आ गई...
सतपती - ओके... क्या बात करना चाहते थे... इनके बारे में... आई मीन... इनके बारे में.. मुझसे क्यूँ...
विश्व - ओह कॉम ऑन... हम सभी जानते हैं... आप दोनों के बीच क्या चल रहा है...
सतपती - (बिदक कर) क्या चल रहा...
विश्व - देखा दास बाबु... हम कबसे हैं... पर कॉफी तब आ रही है... जब... खैर... मैं तो बस आपसे... एक फेवर चाह रहा था...
सतपती - (झेंप कर नजरें चुराकर) ओके... क्या चाह रहे थे...
विश्व - यही के... सुप्रिया जी हर रोज की सुनवाई और कारवाई पर... स्पेशल बुलेटिन लाइव करें... वह भी राजगड़ में रह कर... (सतपती कुछ नहीं कह पाता, अगल बगल देखने लगता है) सतपती बाबु... विश्वास रखिए... उन्हें कुछ भी नहीं होगा...
सतपती - अब समझा... यह ड्रामा तुम तीनों की मिलीभगत है.. (विश्व से) तुमने इनसे पूछा होगा... राजगड़ जाने के लिए... और जाहिर है... इन्होंने मेरा नाम लिया होगा... के मैं इनके राजगड़ जाने के खिलाफ हूँ...

तभी दरवाजा खोल कर एक अटेंडेंट कॉफी ट्रॉली लेकर आती है और सबको कॉफी सर्व कर चली जाती है l सभी हाथ में कॉफी लेकर सतपती की ओर देखने लगते हैं l

सतपती - ओके... मुझे मंजूर है...

सुप्रिया खुशी से इएह इऐह कर विश्व से हाथ मिलाती है, सतपती यह देख कर मुस्करा देता है l

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×


राजगड़ की सरहद पर गाड़ियों का काफिला रुकता है l सबसे पहले वाली गाड़ी से भैरव सिंह उतरता है l दोनों हाथों को जेब में डाल कर गाँव की तरफ देखता है l उसके पीछे पीछे सभी गाड़ी से उतर कर भैरव सिंह के पीछे खड़े हो जाते हैं l सभी गाँव की ओर देखते हैं तो कुछ लोग ढोल नगाड़े लेकर भैरव सिंह के पास आकर रुकते हैं l उन लोगों के साथ भीमा अपने गुर्गों के साथ लेकर एक घोड़ा बग्गि लाया था l भीमा बग्गि से उतर कर भैरव सिंह के सामने आकर झुककर सलाम करता है l इन सबके भीड़ को चीर कर भैरव सिंह के सामने बल्लभ आता है और भैरव सिंह का अभिवादन करता है l

बल्लभ - राजा साहब... स्वागत है... आपने जैसा कहा था... वैसी ही व्यवस्था कर दी गयी है...
भैरव सिंह - हाँ... वह तो दिख रहा है... महल की क्या समाचार है...
बल्लभ - राजकुमारी तो जानती हैं... और उन्होंने सभी जनाना दासियों से कह दिया है... फूलों और दियों से आपका स्वागत करने के लिए...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... (कुछ देर का पॉज) भीमा...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - हम और यह साहब... (केके को दिखाते हुए) बग्गी में जाएंगे... और बग्गि तुम चलाओगे...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - और प्रधान...
बल्लभ - जी राजा साहब...
भैरव सिंह - कल ही तुम आ गए थे... उम्मीद है... सारी तैयारी कर चुके होगे...
बल्लभ - जी राजा साहब...

भैरव सिंह किनारे हो जाता है और पीछे की हाथ दिखा कर उनसे कहने के लिए इशारा करता है l बल्लभ देखता है पीछे रंगा और रॉय तकरीबन पचास साठ लोगों के साथ खड़े थे l बल्लभ उन्हें कहता है

बल्लभ - राजा साहब.. बग्गी से गाँव के भीतर से गुजरेंगे... और महल में जाएंगे... आप लोगों की रहने की पूरी व्यवस्था रंग महल में कर दी गई है... इसलिये अब आप लोग... राजा साहब के हुकुम के बाद... मेरे साथ रंग महल चलेंगे...

भैरव सिंह सिर सहमति से हिलाते हुए जाने को कहता है l बिना कोई देरी किए बल्लभ भैरव सिंह की गाड़ी में बैठ जाता है और निकल जाता है l उसके पीछे पीछे सारी गाड़ियों का काफिला एक एक करके चली जाती है l उन सबके जाने के बाद भीमा झुक कर बग्गि की ओर रास्ता दिखाता है l भैरव सिंह के साथ केके जाकर बग्गी में बैठ जाता है l भीमा घोड़े हांकते हुए बग्गि को चलाता है l बग्गी के सामने पारंपरिक ढोल नगाड़े के साथ साथ भेरी बजाते हुए लोग चलने लगते हैं l

भैरव सिंह - (भीमा से) पहले जाना कहाँ है... जानते हो ना...
भीमा - जी हुकुम... नगाड़े वालों को बोल दिया है... वे सब बारी बारी कर उन्हीं जगह पर रुकेंगे...

ढोल नगाड़े पूरी जोश के साथ बज रहे थे l साथ साथ भेरी और तुरी भी बज रहे थे l बग्गि पर भैरव सिंह पूरे रबाब और राजसी ठाठ के साथ पैर पर पैर मोड़ कर बैठा हुआ था l बगल में केके बड़ी ही शालीनता से बैठा हुआ था l बग्गि गाँव के भीतर से गुज़रती है लोग राजा के चेहरे पर घमंड भरी मुस्कान देख कर डर के मारे अपना सिर झुका कर रास्ते की किनारे खड़े हो जाते थे l लोगों के डरे और झुके हुए सिर भैरव सिंह के चेहरे की रौनक को बढ़ाती जा रही थी l भैरव सिंह का यह यात्रा राजगड़ मॉडल पोलिस स्टेशन के सामने रुकती है l थाने में इंस्पेक्टर दास नहीं था पर दूसरा प्रभारी भागते हुए बाहर आता है उसके साथ कुछ हवलदार और कुछ कांस्टेबल बाहर आकर अपना सिर झुका कर खड़े हो जाते हैं l भैरव सिंह बग्गि से उतरता है और सीडियां चढ़ते हुए उनके सामने खड़ा हो जाता है l ना चाहते हुए भी डर के मारे सभी पुलिस वाले भैरव सिंह को सैल्यूट ठोकते हैं l भैरव सिंह की मुस्कराहट और भी गहरी हो जाती है l

भैरव सिंह - कहाँ है तुम्हारा वह सरकारी दास...
प्रभारी - (अपना सिर उठा कर) जी वह... आज शाम तक ड्यूटी जॉइन करेंगे...
भीमा - ऐ... जानता है.. किससे बात कर रहा है... राजा साहब... सिर झुका कर ज़वाब दे...
प्रभारी - (सिर झुका कर) जी... दास सर... आज शाम तक जॉइन करेंगे...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... तुम लोगों को सरकारी आदेश मिल चुका होगा...
प्रभारी - (सवालिया) जी... (जवाबी) जी...
भैरव सिंह - क्या दिन आ गए हैं... हमें अपनी ही राज में... अपनी ही क्षेत्र के थाने में केस ख़तम होने तक... रोज उपस्थिति दर्ज कराने आना होगा... खैर... अपना रजिस्टर लाओ... और हमारी दस्तखत ले लो...

एक कांस्टेबल भागते हुए अंदर जाता है और एक रजिस्टर लेकर आता है l भैरव सिंह दस्तखत कर जाने के लिए मुड़ता है l तभी भीमा उन पुलिस वालों से कहता है

भीमा - आज जो हुआ... यह केस खत्म होने तक दोहराया जाएगा... यह केस तो महीने भर में ख़तम हो ही जायेगी... उसके बाद... सालों... तुम सब राजमहल में आकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराओगे... याद रखना... वर्ना... (उंगली दिखा कर अपनी जीभ को दांतों तले दबा कर धमकी देते हुए निकल जाता है)

भीमा के बग्गि में बैठते ही ढोल नगाड़े फिर से बजने लगते हैं l पुलिस वालों का सिर अभी भी झुका हुआ था l जब तक उनके कानों में ढोल नगाड़ों की आवाज़ गायब नहीं हो गई तब तक सिर झुकाए खड़े रहे l भैरव सिंह की यह यात्रा गाँव की गलियों से गुजर रही थी l धीरे धीरे लोग अब रास्ते के दोनों किनारे जमा हो कर अपना सिर झुकाए खड़े हो रहे थे l भैरव सिंह का यह शोभा यात्रा विश्व के पुराने घर के बाहर आकर रुकती है l विक्रम, शुभ्रा, पिनाक और सुषमा चारों ढोल नगाड़ों की आवाज़ सुन कर पहले से ही बाहर आ गए थे l घर के ठीक सामने बग्गि रुकते ही भैरव सिंह पहले रुकता है और केके को नीचे उतरने के लिए बड़ी इज़्ज़त के साथ इशारा करता है l केके उतर कर भैरव सिंह के साथ खड़ा होता है l यह सब देख कर विक्रम बहुत ही हैरान हो रहा था l भैरव सिंह उन चारों के सामने केके को साथ लेकर खड़ा होता है l

भैरव सिंह - लगता है... भीख में मिले झोपड़ी में रहने वाले... सामने राजा भैरव सिंह को देख कर खुश नहीं हुए...
विक्रम - यह झोपड़ी... भीख में नहीं... अनुराग से मिला है... वह भी एक देवी से... पर जो राजा इस झोपड़े के सामने खड़ा है.. वह किसी और की दौलत के ज़मानत पर खड़ा है...
भैरव सिंह - ओ... जुबान तीखी और धार धार हो गई है... लगता है... रंग महल का रंग उतर गया.... और दरिद्रता का रंग बहुत चढ़ गया है...
पिनाक - हाँ... हम रंक हैं... पर आजाद हैं... आज हमारी साँसें... हमारी जिंदगी पर... किसी राजा के ख्वाहिशों की बंदिश नहीं है...
विक्रम - ऐसी क्या बात हो गई है राजा साहब... चार रंको के दरवाजे पर... एक राजा को लाकर खड़ा कर दिया...
भैरव सिंह - वह क्या है कि... आज से ठीक सातवें दिन... हम पर जो केस दर्ज की गई है... उस पर स्पेशल कोर्ट की कारवाई शुरु हो रही है...
विक्रम - हाँ... यह सब हम जानते हैं...
भैरव सिंह - हाँ जानते होगे... वह क्या है कि... क्षेत्रपाल खानदान में... कुछ दिनों से... सही नहीं हो रहा था... इसलिए हमने सोचा... क्यूँ ना एक उत्सव हो... जिसमें अपने... गैर... दोस्त तो कोई रहे नहीं... तो दुश्मन ही सही... सबको शामिल किया जाए...
विक्रम - उत्सव... कैसा उत्सव...
भैरव सिंह - खानदान में जब मातम ही मातम छाई हुई हो.. उस नेगेटिविटी को दूर कर... जिंदगी में पॉजिटिविटी में बदलने के लिए... एक उत्सव मनाना ज़रूरी होता है... इसलिए... हमने महल में एक उत्सव मनाने की ठानी है... जिसमें... गाँव के बच्चे बच्चे से लेकर... गैर और दुश्मन तक सभी निमंत्रित रहेंगे...
पिनाक - विक्रम ने पूछा था.. कैसा उत्सव...
भैरव सिंह - रंक हो... रंक की तरह रहो... राजा से सवाल नहीं किया जाता... यह संस्कार चढ़े नहीं है अब तक... तो उस उत्सव में खाना पीना सब होगा... अपने परिवार के साथ आना जरूर...

इतना कह कर केके की ओर देखता है l केके उसके हाथ में एक सफेद मगर क़ीमती सोने की कारीगरी से सजा एक लिफाफा थमा देता है l भैरव सिंह उस लिफाफे को विक्रम के हाथ में दे देता है और वहाँ से मुड़ कर बग्गि की ओर जाता है l केके भी उसके साथ जाकर बग्गि में बैठ जाता है l फिर से वही दृश्य, ढोल नगाड़े तुरी भेरी बजने लगते हैं उनके पीछे भैरव सिंह की बग्गि निकल जाती है l

उनके जाने के बाद विक्रम से उस क़ीमती ईंविटेशन कार्ड को पिनाक छीन कर फाड़ने को होता ही है कि शुभ्रा उसे रोकती है

शुभ्रा - एक मिनट के लिए रुक जाइए चाचाजी... (पिनाक रुक जाता है)
पिनाक - तुम नहीं जानती बेटी... यह भाई साहब... हमारे कटे पर मिर्च रगड़ने आए थे... उत्सव... कैसा उत्सव... अपने बाहर आने की खुशी को... लोगों का दुःस्वप्न बनाने के लिए... (फिर फाड़ने को होता है)
सुषमा - बहु ठीक कह रही है... कम से कम... देख तो लीजिए... आखिर... आज से पहले महल में.. जब भी कोई उत्सव हुआ... कभी भी... उसके लिए ईंविटेशन कार्ड बना ही नहीं था... फिर अचानक... अब कार्ड की क्यूँ जरूरत पड़ी...

पिनाक कुछ कह नहीं पाता l उसके हाथ रुक जाते हैं l विक्रम उसके हाथ से कार्ड लेकर खोलता है, जैसे ही अंदर लिखे पन्नों पर नजर जाती है, उसे चक्कर आने लगते हैं कार्ड उसके हाथों से फिसल जाता है l उसकी ऐसी हालत देख कर शुभ्रा उस कार्ड को उठाकर देखती है तो उसकी आँखे डर और हैरानी के मारे फैल जाती हैं l

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अब की बार भैरव सिंह का यह यात्रा xxxx चौक पर पहुँच चुका था l जहाँ पर वैदेही की दुकान थी l भैरव सिंह को उस अवतार में देख कर वैदेही की दुकान से लोग तितर-बितर होकर गायब होने लगे थे और कुछ ही दूर जा कर चौराहे के मोड़ पर सिर झुका कर खड़े हो जाते हैं l चौराहे के बीचों-बीच भीमा बग्गि को रोक देता है l भैरव सिंह दुकान के दरवाजे पर खड़ी वैदेही को बड़े गुरूर और घमंड के साथ देखता है l वैदेही के चेहरे पर हैरानी देख कर भैरव सिंह की मुस्कान बहुत ही गहरी हो जाती है l भैरव सिंह केके के हाथ से वही ईंविटेशन वाला एक और लिफाफा लेकर उतरता है, पर इसबार वह केके को बग्गि पर बैठने के लिए कह देता है l केके भी चुपचाप बग्गि में बैठा रहता है l बड़े ताव में चलते हुए वैदेही के सामने आ कर खड़ा हो जाता है, क्यूंकि वैदेही तब तक दुकान से बाहर आ चुकी थी l दोनों एक दूसरे की आँखों में झाँक रहे थे l जहाँ भैरव सिंह के आँखों में कुटिलता साफ दिख रहा था वहीँ वैदेही के मन में लाखों असमंजस से भरे सवाल उठ रहे थे l

भैरव सिंह - कैसी है...
वैदेही - तुझसे मतलब...
भैरव सिंह - कैसी बात कर रही है.. मतलब तो रहेगा ना... अखिर दुनिया में.. दो ही तो लोग हैं.. जो भैरव सिंह को... नाम से बुलाने की हिम्मत रखते हैं... एक तू.. और दूसरा तेरा भाई... कहाँ है... वह मेरा कुत्ता... आया नहीं अभी तक...
वैदेही - उसकी छोड़... वह तेरी तरह ढोल नगाड़े पीटते हुए नहीं आएगा... वह जब भी आयेगा...मौसम से लेकर हवाएँ... मिट्टी तक बोल उठेंगे... तु बता... यहाँ मुहँ मारने आया है... या अपनी मुहँ सुजाने...
भैरव सिंह - ना मुहँ मारने... ना अपनी मुहँ सुजाने... बस बहुत दिन हो गए... कोई उत्सव या अनुष्ठान नहीं हुए इस गाँव में... तभी तो... रौनक नहीं है इस गाँव में... आज से ठीक छटवें दिन... महल में... दावत है... तू आना... अपने भाई को भी लाना... यह रही उस दावात के लिए निमंत्रण पत्र... ले.. लेले... (वैदेही के हाथ में लिफाफा थमा देता है) वह कहते हैं ना... शुभ कार्य का निमंत्रण... सबसे पहले गैरों को... फिर दुश्मनों को देनी चाहिए... ताकि कोई अमंगल घटित ना हो...
वैदेही - ओ मतलब.. तूने स्वीकार कर लिया... अखिर इस मिट्टी में कोई तो है... जो तेरे बराबर खड़े हो कर... तुझसे दुश्मनी करने के लायक है...
भैरव सिंह - हाँ... मान लेने में कोई बुराई तो नहीं... कौनसा रिश्तेदार बन जाओगे... देख ले... कार्ड में क्या है देख ले... क्षेत्रपाल महल की खुशियाँ... कहीं वैदेही और विश्व के लिए मातम का पैगाम तो नहीं... देख ले...

वैदेही भैरव सिंह को गौर से देखती है l उसके चेहरे पर कुटिलता और मक्कारी साफ झलक रही थी l कुछ सोचते हुए कार्ड खोल कर देखती है l कार्ड को देखते ही उसकी आँखें हैरानी के मारे फैल जाती हैं l फिर वह मुस्कराने लगती है धीरे धीरे उसकी वह मुस्कराहट गहरी होते हुए हँसी में बदल जाती है l

भैरव सिंह - लगा ना झटका... मैं जानता था... क्षेत्रपाल महल में खुशियाँ... तुम भाई बहन का दिमाग हिला देगी... पागल हो जाओगे तुम दोनों...
वैदेही - (अपनी हँसी को रोक कर) एक कहावत पढ़ा था... आज उसे सच होते हुए देख रही हूँ... विनाश काले विपरित बुद्धि...
भैरव सिंह - विनाश मेरी नहीं... तुम बहन भाई की होगी... हर उस शख्स की होगी... जो तुम्हारे साथ में खड़े हैं... और यह... जस्ट शुरुआत है...
वैदेही - जानता है... गाँव के लोगों में एक दहशत थी... के तु वह माई का लाल है... जिसने अदालत को... बाहर लेकर आ गया... अब तक बाजी तेरे हाथ में थी... पर अफ़सोस... सातवें दिन से... लोग तुझसे डरना छोड़ देंगे... अभी जो सिर झुकाए फिर रहे हैं... वह तेरे पीठ पीछे नहीं... तेरे मुहँ पर ताने मारते हुए बातेँ करेंगे...
भैरव सिंह - मुझे पता था... तेरी जलेगी... सुलगेगी... अब देख कितनी जोर से धुआं मार रही है... जब तेरी ऐसी हालत है... तो तेरे भाई का क्या होगा...
वैदेही - कुछ नहीं होगा... बल्कि खून का आँसू बहाना किसे कहते हैं... उस दिन तुझे मालूम होगा...
भैरव सिंह - हाँ वह दिन देखने के लिए... तुम बहन भाई को आना पड़ेगा...
वैदेही - जरूर... भैरव सिंह... जरूर... चिंता मत कर... कोई आए ना आए... हम जरूर आयेंगे... क्यूँकी उस दिन एक राजा को जोकर बनते सब देखेंगे...
भैरव सिंह - मैंने अपने लाव लश्कर बदल दिए हैं... गाँव के वही नालायक.. नाकारे लोगों को बदल दिया है... अब मेरे लश्कर में... खूंखार और दरिंदगी भरे लोगों की भरमार है... तेरा भाई कोई भी गुस्ताखी करेगा... तो जान से जाएगा... जहान से भी जाएगा...
वैदेही - चल मैं तेरी चुनौती स्वीकार करती हूँ... और यह वादा करती हूँ... उस दिन तेरे महल में... तेरा मुहँ काला होगा... जा उसकी तैयारी कर...
भैरव सिंह - आज मुझे वाकई बहुत खुशी महसुस हो रही है... तेरे अंदर की छटपटाहट मैं महसूस कर पा रहा हूँ... ठीक है... मैं जा रहा हूँ... तैयारी करने... दावत दे रहा हूँ... खास तुम बहन भाई के लिये... तुम लोग भी अपनी तैयारी कर आना...

इतना कह कर भैरव सिंह अपने चेहरे पर वही कुटिल मुस्कान लेकर वहाँ से चाला जाता है l उसके वहाँ से जाते हुए वैदेही देखती रहती है l भैरव सिंह के चले जाने के बाद टीलु और गौरी आकर वैदेही के पास खड़े होते हैं l

टीलु - वह क्यूँ आया था दीदी... (वैदेही उसके हाथ में वह ईंविटेशन कार्ड देती है, टीलु जब कार्ड खोल कर देखता है और पढ़ने के बाद चौंकता है) यह... यह क्या है... राजा यह क्या कर रहा है...

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अब बग्गि महल के परिसर में आती है l बग्गि से भैरव सिंह केके के साथ उतरता है l सीढियों पर फुल बिछे हुए थे ऊपर से दासियाँ इन दोनों के ऊपर फूल बरसा रहे थे l बाहर बग्गि को लेकर भीमा अस्तबल की ओर चला जाता है l भैरव सिंह और केके दोनों चलते हुए दिवान ए खास में पहुँचते हैं l वहाँ पहले से ही बल्लभ इनका इंतजार कर रहा था l भैरव सिंह जाकर अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है l इशारा पाने के बाद केके और बल्लभ भी आमने सामने वाली सोफ़े पर बैठ जाते हैं l भैरव सिंह ताली बजाता है, एक नौकरानी भागते हुए आती है और सिर झुका कर खड़ी हो जाती है l

भैरव सिंह - जाओ... राज कुमारी को कहो.. हमने उन्हें दिवान ए खास में याद किया...
नौकरानी - जी... हुकुम...

कह कर नौकरानी उल्टे पाँव लौट जाती है, यह सब देख कर केके के चेहरे और आँखों में एक चमक उभर रही थी l कुछ देर के बाद कमरे में रुप आती है l

रुप - आपने बुलाया...
भैरव सिंह - हाँ... प्रधान ने... आपको खबर भिजवाया था... हम आ रहे हैं...
रुप - जी... पर मुझे लगता है... आपकी स्वागत में कोई कमी नहीं रही होगी...
भैरव सिंह - यह स्वागत हम अपने लिए नहीं... इनके लिए करवाया था... इसलिए वहाँ आपको होना चाहिए था...
रुप - कमाल है... क्षेत्रपाल महल की औरतें या लड़कियाँ.. कबसे गैरों के सामने जाने लगीं..
भैरव सिंह - अब से यह गैर नहीं हैं... यह क्षेत्रपाल महल के होने वाले नए सदस्य हैं... हमने आपका विवाह इनसे निश्चय कर दिया है... आज से पाँच दिन बाद... इसी महल में... आपका विवाह इनसे होने जा रही है...

यह बातेँ सुन कर रुप चौंकती है l भैरव सिंह के हर एक शब्द उसके कानों में तेजाब की तरह गिर रहे थे l रुप की जबड़े भिंच जाती हैं l

रुप - मुझे नहीं पता था... कभी दसपल्ला राज घराने में भेज रिश्ता तय करने वाले... रास्ते में किसी को उठा कर... मेरे माथे पर थोप रहे हैं...
भैरव सिंह - क्यूँकी औकात और हैसियत दोनों आप खोए हैं... खोए नहीं बल्कि गिरे हैं... इसलिए... आप जिसकी बराबर हुईं... हम उन्हीं के साथ आपका विवाह सुनिश्चित कर दिया... वैसे भी... यह अपने क्षेत्र के किंग हैं... भुवनेश्वर में यह कंस्ट्रक्शन किंग की पहचान से जाने जाते हैं... (रुप कुछ और कहना चाहती थी के भैरव सिंह उसे टोक कर) बस... और कोई बहस नहीं... यह आज से महल में रहेंगे... छोटे राजा जी के कमरे में... और इस वक़्त आप इन्हें... उनके कमरे में ले जाइए... और नौकरियों से इनकी सेवा के लिए कह दीजिए... (केके से) देखा केके... हमने तुमसे जो वादा किया था... वह पूरा कर रहे हैं... आपको आपके कमरे तक... रुप नंदिनी पहुँचा देगी... बीच रास्ते में आप एक दुसरे से पहचान बना लीजिए...
केके - (कुर्सी से उठ कर) शुक्रिया राजा साहब... वाकई... आप अपने जुबान के पक्के हैं और वचन के धनी हैं... (रुप की तरफ देखता है)
रुप - आइए... आपको आपका कमरा दिखा देती हूँ...

रुप के पीछे पीछे केके कमरे से निकल जाता है l उनके जाते ही बल्लभ भैरव सिंह से पूछता है

बल्लभ - गुस्ताखी माफ राजा साहब... पर क्या आप सही कर रहे हैं...
भैरव - हाँ... प्रधान... हम जो कर रहे हैं... क्यूँ कर रहे हैं... यह तुम अच्छी तरह से जानते हो...

उधर रुप के साथ चलने की कोशिश करते हुए केके रुप से बात करने की कोशिश करता है l

केके - हाय.. माय सेल्फ कमल कांत... उर्फ केके...
रुप - ह्म्म्म्म...
केके - थोड़ा धीरे चलें... मैं जानता हूँ... तुम बहुत अपसेट हो...
रुप - (थोड़ी स्लो हो जाती है) फर्स्ट... डोंट एवर डेयर टू कॉल मी तुम... और दूसरी बात... यह समझने की गलती मत करना की मैं अपसेट हूँ...
केके - मतलब आपको इस रिश्ते से कोई शिकायत नहीं है...
रुप - किस बात की शिकायत... जो होने वाला ही नहीं है... मुझे तो तुम्हारी बेवकूफ़ी कर तरस आ रही है... तुमने कैसे हाँ कर दिया...
केके - जब सामने से रिश्ता आ रहा हो... तो मैं मना करने वाला कौन होता हूँ...
रुप - अच्छा... जब एक जवान लड़की से शादी की प्रस्ताव मिला... तुमने सोचा नहीं.. किसलिए यह प्रस्ताव दिया गया होगा...
केके - सोचना नहीं पड़ा... क्यूँकी मैं पूरा सीचुएशन समझ सकता था... आपका जरूर कोई लफड़ा रहा होगा... जो कि राजा साहब को ना पसंद होगा... आपको समझाया गया होगा... नहीं मानी होगीं आप... इसलिये शायद... आपको सजा देने के लिए.. राजा साहब ने यह फैसला किया होगा...
रुप - और तुमने मौका हाथ में पाकर लपक लिया...
केके - हाँ क्यूँ नहीं... राजा साहब के दिए सजा.. मेरे लिए तो मजा है ना...
रुप - ओए... इतना उड़ मत... महल में जितना दिन शांति में गुजार सकता है गुजार ले... क्यूँकी शादी के दिन के बाद... तु किसीको मुहँ दिखाने के लायक नहीं रहेगा...
केके - इतना कॉन्फिडेंस... वैसे आपने जिस लहजे में बात की... मैं बिल्कुल भी बुरा नहीं मानूँगा... कहावत है... औरत या तो तीखी होनी चाहिए... या फिर नमकीन... हे हे हे...
रुप - (रुक जाती है) यह रही... तुम्हारा कमरा... (रुप जाने को होती है)
केके - मै जानता हूँ... आप बहुत अपसेट हैं... पर आई सजेस्ट... मन को समझा लीजिए और खुद को तैयार कर लीजिए...
रुप - (अपनी भौंहे सिकुड़ कर उसे हैरानी भरे नजरों से देखती है)
केके - वाकई आपकी खूबसूरती बेइंतहा है.... कभी सोचा भी नहीं था... जिंदगी एक ऐसे मोड़ पर... इतना क़ीमती तोहफा देगा...

रुप उसकी बातेँ सुन कर हँसने लगती है l इतना हँसती है कि उसकी आँखे भीग जाती हैं l रुप को इस तरह हँसते हुए देख कर केके हैरान हो कर उसे देखता है l रुप अपनी हँसी को मुश्किल से रोकती है और फिर कहती है

रुप - अरे बेवक़ूफ़... मैं अब तक... तुझ पर तरस खा रही थी... राजा साहब... मुझे मेरी गुस्ताखी का सजा देने के लिए... क्यूँकी मैंने उससे मुहब्बत की... जिसने राजा साहब को... इस परिस्थिति में लाकर खड़ा कर दिया... उसीका गुस्सा उतारने के लिए... मुझे तुझसे बांध रहे हैं... मतलब वह बंदा कुछ तो खास होगा... जिसे चिढ़ाने के लिए... मेरी शादी का स्वाँग रच रहे हैं... (थोड़ी सीरियस हो कर) सुन ढक्कन... मुझे तेरे बारे में सबकुछ पता है... कभी मेरे भाई के पैरों पर लिपट कर रहने वाले... तेरे बेटे के साथ क्या हुआ... और तु अब तक क्या कर रहा था... सब जानती हूँ... राजा साहब ने कोई झूठ नहीं बोला है... वह दिल से तेरे हाथों में मुझे सौंपने का निर्णय लिया होगा... पर क्या है कि... मेरा जिसके साथ लफड़ा है ना... वह मेरी शादी तुझसे तो क्या... किसी और बड़े घराने में भी... नहीं होने देगा... वह जो शिशुपाल का उदाहरण देते हैं ना... अगली बार तेरे उदाहरण देंगे...
केके - कौन है वह... जिसे चिढ़ाने के लिए... राजा साहब यह शादी करवा रहे हैं...
रुप - (बड़े गर्व के साथ) अभी कहा ना... यह वही बंदा है... जिसने राजा साहब को सलाखें और कटघरा दिखा दिया... और तुझे लगता है... वह मेरी शादी तुझसे होने देगा... उसका नाम विश्व प्रताप महापात्र है...
Awesome Jabardast Update 😍🔥
 

Aks123

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नाग भाई
आपकी लेखन कला बहुत ही शानदार है
आप अपनी इस कहानी को पूरी होने के बाद किसी पब्लिकेशन से बात कर बुक के रूप मे पब्लिश करवाने का प्रयास करें

मुझे उम्मीद है की ये भी गुड सेलर बुक होंगी

ऐसी कहानी बुक के रूप मे भी 400 पेज के आसपास हो जाएगी जो एक नॉवेल के लिए पर्याप्त लम्बाई है

बेस्ट ऑफ़ लक फॉर पब्लिकेशन
 

Aks123

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नाग भाई
मने इस कहानी के लिए इस साइट पर id बनाई और इस कहानी के लिए हिंदी फॉण्ट मे टाइप करना शुरू किया है
 
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Reactions: Kala Nag

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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भाई साहब - नमस्कार। मैं पिछले कुछ दिनों से कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहा हूँ, लेकिन हर अपडेट को पढ़ अवश्य ही रहा हूँ।
पिछले दो अपडेट्स में रूप की शादी केके के साथ करवाने की बात बड़ी हास्यास्पद सी लगी थी, जिसके पीछे की भैरव सिंह की मंशा को इस अपडेट में विश्व ने हमको समझा दी। इस तरह के हरफ़नमौला हीरो की आइटम को केके जैसा कोई दोयम दर्जे का बुड्ढा ले उड़े, हम पाठक वैसे भी वो सब मानने वाले नहीं थे! :)
केके वाला करैक्टर लगता है कि जल्दी ही मरने वाला है - विश्व नहीं, भैरव सिंह के हाथों। दरोगा रोणा को महज़ इसलिए मरवा देना कि उसकी बुरी नज़र उसकी लड़की पर थी… यहाँ तो मामला उसकी ‘मूँछ’ का है! हा हा!
डैनी की भैरव सिंह से दुश्मनी का कारण पता चला है। मतलब भैरव सिंह की मुसीबत और बढ़ेगी।
बल्लभ की धरपकड़ बहुत ज़रूरी है। यह पहले ही हो जाना चाहिए था, लेकिन अभी भी देर नहीं हुई है। पुरानी कहानियों में बताते थे न - किसी राक्षस की जान किसी चिड़िये या तोते में होती थी। बल्लभ वही तोता है। वहीं से भैरव की मुक्ति का मार्ग खुलेगा।
बहुत अच्छे अच्छे अपडेट लिखे - मुझे खेद है कि मैं ठीक से लिख नहीं पा रहा हूँ।
लेकिन आप अपना और अपने परिवार का ध्यान रखें। मिलते हैं :)
 
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khubsurat update. vishw ne badi chalaki se roop se mulakat kar li mahal me ghuskar 🥰.. dono me pyar bhara scene hua aur kiss bhi .

subhra aur sushma pareshan hai shadi ko lekar isliye vaidehi ke paas Aa gayi par vaidehi ne unko aashwast kiya ki roop ki fikr mat karo .

vikram ne mahal me jakar bhairav ko warning di apni bahan ke liye agar raja ke khilaf jana pade to wo jarur jayega ,roop ka confidence dekhkar vikram befikr ho gaya hai .

vishw ko thoda rasta dikha diya pinak ne ab vishwa kaise vallabh pradhan ko kabu me karega dekhte hai 🤔🤔..

yaha kk ki fati padi hai jab usko pata chala ki roop vishwa se pyar karti hai ,usko andaja hai ki vishwa kya kar sakta hai .pichhali baate aur barbadi yaad hai usko ki kaise vishwa ne usko tabah kiya tha chahe takkar Saamne ki ho ya nahi ..
 

Doston ka dost

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bhai update kab tak aane ki ummeed karen
 
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Vickyabhi

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Wonderful creation
 
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