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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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👉एक सौ अट्ठावनवाँ अपडेट
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अर्ध रात्री
आकाश में तारे टिमटिमा रहे थे, क्षेत्रपाल महल के अंतर्महल की छत पर एक जोड़ा एक दूसरे के बाहों में खोए हुए थे l यह युगल कोई और नहीं हैं बल्कि हमारे कहानी के नायक व नायिका विश्वरुप ही हैं l रात शांत, हर क्षण शांत, हर फ़िजा शांत, जैसे वह आतुर हों इनके वार्तालाप सुनने के लिए l ऐसे ही बाहों में रहते हुए रुप ख़ामोशी को तोड़ती है और विश्व से कहती है l

रुप - जानते हो... मेरा दिल आज तुम्हें पुकार रहा था... और तुम आ गए...
विश्व - पर... मैंने आपको खबर भी नहीं की थी... बस छत पर आ गया था... आपको कैसे पता चला... के मैं आपको मिलने आया हूँ...
रुप - इट्स अ गर्ल थिंग... फिर भी बता देती हूँ... मेरे धड़कनों.. मेरे एहसासों... मेरे रोम रोम से पूछ कर देखो... जब भी तुम आस पास होते हो... मेरे रूह को... तुम्हारे होने का एहसास... अपने आप हो जाता है...
विश्व - क्या... आपको डर लग रहा है...
रुप - (अपना चेहरा अलग करते हुए) भला वह क्यूँ...
विश्व - राजा साहब ने... आते ही आपको जोरदार झटका जो दिया...
रुप - (विश्व के सीने से चिपक कर) वैसे कोशिश उनकी बहुत अच्छी थी... पर मैं जानती हूँ... उनकी कोशिश बेकार जाने वाली है...
विश्व - अच्छा... वह कैसे...
रुप - वह ऐसे की मैं जानती हूँ... के तुम यह शादी कभी होने ही नहीं दोगे...
विश्व - इतना भरोसा...
रुप - कोई शक़... (एक पॉज) अनाम... मेरा प्यार... मेरा विश्वास है... मेरे विश्वास का आधार... एक तुम हो... और एक भगवान... मैं जान हार सकती हूँ... पर विश्वास कभी नहीं...

विश्व कोई जवाब नहीं देता, बस दोनों की जकड़ बढ़ जाती है l थोड़ी देर बाद दोनों एक दूसरे से अलग होते हैं और पिछली बार की तरह छत पर बनी चबूतरे पर बैठ जाते हैं l आज आसमान में चाँद नहीं था फिर भी दोनों आसमान की ओर देखे जा रहे थे l विश्व एक सवाल छेड़ देता है

विश्व - आप अगर डरी नहीं थीं... तो मुझे ढूंढ क्यूँ रही थी...

रुप - (विश्व की तरफ घूम कर उसका चेहरा दोनों हाथों से पकड़ कर अपने तरफ करती है और पूछती है) मेरे आँखों में झाँक कर देखो... क्या तुम्हें डर दिख रहा है...
विश्व - नहीं.... नहीं दिख रहा है... पर फिर भी...
रुप - ( विश्व की चेहरे को छोड़ कर आसमान को ओर देखने लगती है) मैं बस.. अपनी प्यार को ... अपनी चाहत को.. उसकी गहराई को परख रही थी... कहीं मेरा प्यार... कोई तुक्का तो नहीं... पर आज तुम्हें छत पर पा कर... मुझे अपने प्यार पर यकीन हो गया है... के मेरा प्यार.. मेरी चाहत में कहीं भी कोई मिलावट नहीं है... झूठ नहीं है... (रुप की यह बात विश्व एक टक सुने जा रहा था, रुप विश्व की तरफ देख कर पूछती है) ऐसे क्या देख रहे हो...
विश्व - (मुस्करा कर) बस आपको देख रहा हूँ...
रुप - पर आसमान में चाँद नहीं है... फिर मेरे चेहरे पर क्या है... अंधेरे में तुम्हें पता कैसे चल रहा है...
विश्व - आसमान में चाँद से मुझे क्या लेना देना... मेरा चाँद तो मेरे आँखों के सामने है... मेरे इस चाँद के चाँदनी के आगे.. भला उस चाँद का क्या मुकाबला...
रुप - ओ हो... आज तो बड़े शेरों शायरी के मुड़ में हो...
विश्व - इसका दोष भी आप पर जाता है... आप हो ही इतनी सुंदर... बड़े बड़े गँवार भी शायर बन जाएंगे... इस बेपनाह हुस्न को देख कर...
रुप - बस बस... (अपने दोनों हाथों को विश्व के कंधे पर रख कर हाथ पर अपना ठुड्डी रख कर) इतना तारीफ ना कीजिए... अभी जाग रही हूँ... जागी ही रहने दीजिए... इतना तारीफ करोगे... तो सपना समझ कर नींद की आगोश में ना खो जाऊँ... (अचानक अलग होती है) एक बात पूछूँ...
विश्व - जी पूछिये...
रुप - राजा साहब तो महल में होंगे ना... फिर तुम कैसे अंदर आ गए...
विश्व - बस... आ गया...
रुप - अरे... ऐसे कैसे... याद है... जब मैंने तुम्हें आने के लिए कहा था... तब तुम... बिजली गुल कर अंदर घुसे थे...
विश्व - हाँ... तब मैं चाहता था... की राजा साहब को मालूम हो... के कोई अंदर आया था... इसलिए तो सुबह सुबह... मैंने छोटे राजा जी से... सलाम नमस्ते की थी...
रुप - पर अब...
विश्व - आप भूल रही हो... मैं इस महल के हर चप्पे-चप्पे से वाकिफ हूँ...
विश्व - सच्ची...
विश्व - ह्म्म्म्म... नहीं थोड़ी सी झूठ बोला है...
रुप - थोड़ा सी झूठ... मतलब कितना...
विश्व - राजा साहब कुछ देर पहले... रंग महल की ओर गये हैं... मैं मौका देख कर... घुस गया... और उनके आने से पहले... मुझे चले जाना होगा...
रुप - ह्म्म्म्म... मतलब तुम्हें भी डर लगता है...
विश्व - क्यूँ नहीं... मैं डर रहा था.. आपके लिए
रुप - क्यूँ...
विश्व - (चबूतरे से उठ कर छत के किनारे तक जाता है)
रुप - अनाम... तुमने बताया नहीं....
विश्व - (रुप की ओर मुड़ता है) मुझे जब खबर लगी... के राजा साहब ने... आपकी शादी तय कर दी... हाँ मैं डर गया था... (एक गहरी साँस लेकर) मुझे... वीर और अनु याद आ गए...

विश्व इतना कह कर रुक जाता है l रुप चबूतरे से उठ कर भाग कर जाती है और विश्व के सीने से लग जाती है l विश्व भी अनु को सीने में कस लेता है l

विश्व - वीर जब भी याद आता है... मुझे बहुत दर्द दे जाता है... मेरा वज़ूद... मेरी शख्सियत को कठघरे में खड़ा कर देता है... और एक सवाल हरदम झिंझोड़ता रहता है... क्यूँ आखिर क्यूँ... मैं पांच मिनट पहले नहीं पहुँचा...
रुप - (अपना सिर ऊपर उठा कर विश्व को देखते हुए) कहीं तुम मुझे ले चलने के लिए तो नहीं आए हो...
विश्व - जो आप कहेंगी वही होगा...
रुप - मैं किसी मज़बूरी या खौफ के चलते... अभी जाना नहीं चाहती... तुम बस यह शादी रुकवा दो... जिस दिन जाऊँगी... राजा साहब को बेबस देखते हुए जाऊँगी... उन्होंने हर किसी की बेबसी का फायदा उठाया है... मैं अपनी बिदाई पर.. उन्हें बेबस और लाचार देखना चाहती हूँ... वही पल... असल में बदला होगा... उनके हर एक सितम का...
विश्व - (मुस्कराते हुए) चलो... मेरा यह डर भी आपने ख़तम कर दिया...
रुप - उफ्फ्फ... कभी तो मुझे तुम कहो...
विश्व - नहीं... यह मुझसे नहीं होगा... आप राजकुमारी हो... मैं आपका गुलाम...
रुप - (बिदक कर) छोड़ो मुझे... (अलग हो जाती है) बड़े आए गुलाम...
विश्व - क्या हुआ...
रुप - वह साला कमीना... पहली मुलाकात में ही... मुझे तुम बोल रहा था...
विश्व - राज कुमारी जी... आप कबसे गाली देने लगी...
रुप - शुक्र मनाओ तुम्हें नहीं दी... बेवक़ूफ़.. हूँह्ह्... पूछा नहीं कौन था वह...
विश्व - इसमें पूछने वाली क्या बात है... मैं जानता हूँ... मेरी नकचढ़ी ने... उसको अच्छे से निचोड़ दिया होगा..

रुप हँस देती है, विश्व की तरफ जाती है l विश्व की हाथों को लेकर अपनी कमर पर रखती है l विश्व के गले में हाथ डालकर रुप विश्व के पैरों पर खड़ी हो जाती है और एड़ी उठा कर विश्व के चेहरे के सामने अपना चेहरा लाती है l विश्व की धड़कन बढ़ जाती है, रुप आगे बढ़ कर विश्व की नाक हल्के से काट लेती है l

विश्व - आह... आप हमेशा मेरी नाक के पीछे क्यूँ पड़े रहते हो...
रुप - (विश्व के नाक पर अपनी नाक रगड़ते हुए) मुझे.. अच्छा लगता है...
विश्व - (कांपते लहजे से) मुझे लगता है... अभी मुझे जाना चाहिए...
रुप - चले जाना,.. जरा ठहरो...
यह मंज़र देख कर जाना...
किसीका दम निकलता है...
विश्व - पता नहीं मुझे... पर मैं ज्यादा देर रुका... तो मेरा दम निकल जाएगा...
रुप - यु...

रुप अपना होंठ विश्व की होंठ पर रख देती है l दोनों के होठों के गुत्थम गुत्था शुरु हो जाता है l विश्व की हाथ रुप की कमर से उठ कर रुप के सिर को पकड़ लेता है और अपने में समेटने की कोशिश करता है l फिर उसका हाथ फिसलते फिसलते फिर कमर तक आ जाते हैं पर कमर पर रुक जाते हैं l कमर पर विश्व के हाथ मुट्ठी बाँध लेता है l रुप अलग होती है और विश्व के पैरों से उतरती है l दोनों हांफ रहे थे, जहां विश्व के चेहरे पर एक शॉक था वहीँ रुप के चेहरे पर एक शरारती मुस्कान था l

रुप - बहुत डरते हो... बेवक़ूफ़ तो हो ही.. अब डरपोक भी हो...
विश्व - हिरण... शेरनी से क्यूँ नहीं डरेगा...
रुप - पर यहाँ तो शेरनी खुद हिरण के हाथों शिकार होना चाहती है... पर हिरण है कि... हाथ पैर सब... अपाहिज हो जाता है...

विश्व रुप की हाथ को पकड़ कर खिंचता है l दोनों की नजरें मिलती हैं l रुप की माथे पर उड़ती लटों को हटाता है और रुप के चेहरे को दोनों हाथों से पकड़ कर कहता है l

विश्व - प्यार में बहुत गर्मी होती है... कभी कभी संभलना मुश्किल हो जाता है... प्यार में.. जब जब जो जो होना है... उसे तब तब होने देते हैं ना... जब समाज... संस्कार और भगवान का आशिर्वाद होगा... तब हमारे हिस्से की चार दीवारी और बंद दरवाजा होगा... उस दिन शायद आपको मुझसे कोई शिकायत नहीं होगी...
रुप - ओह... अनाम... (रुप विश्व के सीने से लग जाती है) तुम कितने अच्छे हो... आई लव यु...
विश्व - आई लव यु ठु.. (तभी दूर से एक सियार के भौंकने की आवाज आती है) लगता है... राजा साहब... रंग महल से निकल गए हैं... कुछ ही मिनट में पहुँच जायेंगे... (विश्व रुप की माथे पर एक किस करता है) राजकुमारी जी... आप वही करते जाइयेगा... जैसा आपको राजा साहब कहते जाएं... बाकी आप मुझ पर या अपने आप पर भरोसा मत खोइयेगा...
रुप - जैसी आपकी ख्वाहिश मेरे गुलाम...

दोनों हँसने लगते हैं l फिर विश्व इशारे से रुप को जाने के लिए कहता है l रुप जाने के लिए पलटती है और कुछ कदम चलने के बाद मुड़ती है पर तब तक विश्व गायब हो चुका होता है l रुप का मुहँ हैरानी के मारे खुल जाती है l

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अगले दिन
दिन के दस बजते बजते भीड़ छट चुकी थी l गौरी अपना गल्ला बंद कर अंदर जाने लगती है l वैदेही भी सारे बर्तनों को समेट कर धोने के लिए जमा करती है l इतने में दुकान पर सुषमा और शुभ्रा आते हैं l वैदेही उनके तरफ देखती है और महसुस करती है जैसे वह कुछ बात करना चाहते तो हैं पर हिचकिचाते रहे हैं l

वैदेही - आप अंदर आइए... आइए ना... (सुषमा और शुभ्रा एक दुसरे की ओर देखते हैं फिर अंदर आते हैं) बैठिए... (दोनों झिझकते हुए बैठते हैं)

वैदेही पानी की ग्लास लाकर उन्हें देती है l फिर एक कुर्सी खिंच कर उनके पास बैठ जाती है l

वैदेही - बड़े भाग्य का दिन है आज... मेरे घर... छोटी रानी और युवराणी आई हुई हैं... कहिये... क्या सेवा कर सकती हूँ..
शुभ्रा - ऐसे ना कहिये... महीनों पहले आप ऐसे कहतीं तो उस बात की कोई मायने होती... पर आज यह बात कोई मायने नहीं रखती... ना छोटी माँ आज रानी हैं... ना ही... मैं कोई युवराणी... वैसे भी... हम आज फरियादी बन कर आए हैं...
वैदेही - अरे बापरे... इतनी बड़ी बात... आप लोग मेरे सपने हैं... भला अपनों के यहाँ कोई फ़रियाद लेकर आता है... हक् से आता है.. हक जताता है... बस हुकुम कीजिए... जो बस में होगा... जरुर करूँगी...

तभी टीलु कुछ सामान हाथ में लेकर अंदर आता है l इन दोनों को देख कर थोड़ा स्तब्ध हो जाता है l फिर वैदेही की ओर देखता है l

वैदेही - आज हमारे यहाँ मेहमान आए हैं... इसलिये... दोपहर को दुकान बंद रहेगी... और आज... (शुभ्रा की ओर इशारा करते हुए) इन्हींकी मर्जी का खाना बनेगा...
शुभ्रा - नहीं नहीं...
वैदेही - अरे कैसे नहीं... मेरी माँ कहा करती थी... गर्भवती स्त्री का किसी के द्वार आना सबसे शुभ होता है... और उन्हें उनकी इच्छानुसार खाना खिलाने से... सौ जन्म का पुण्य मिलता है... इसलिए... बेझिझक बताइए... आज यहाँ आपकी ही मन पसंद का भोजन बनेगा...
शुभ्रा - वैदेही जी... हम किसी और काम से आए हैं...
वैदेही - वह भी सुन लुंगी... पर पहले मुझे आपका सेवा तो करने दीजिए...
सुषमा - वैदेही... हम यहाँ बहुत टेंशन में हैं... तुम जानती भी हो क्या हुआ है...
वैदेही - ओह... माफ कर दीजिए... मुझे लगा नहीं था कि किसी गम्भीर विषय पर बात करने के लिए आप यहाँ आए हैं...
सुषमा - बात बहुत ही गम्भीर है... और हम चाहते हैं कि... तुम हमें कोई राह दिखाओ...
वैदेही - ठीक है... मुझसे जो बन पड़ेगा... वह मैं जरुर करूंगी...
शुभ्रा - हाँ आप ही कर सकती हो... क्यूँकी... गाँव में सब कहते हैं... की आपकी इस चौखट से... ना तो कोई खाली हाथ लौटा है... ना ही कोई खाली पेट...
वैदेही - आप बात तो शुरु कीजिए... जब से आए हैं... मेरी बड़ाई किए जा रहे हैं...
टीलु - सच ही तो कहा है उन्होंने... दीदी... तुम्हारे दर से... कभी कोई जरूरत मंद ना खाली पेट लौटा है... ना खाली हाथ...
वैदेही - तु यहाँ से जा... वर्ना तु जरूर आज भूखा रहेगा...

टीलु झट से अंदर की ओर चला जाता है l उसे जाते हुए तीनों देख रहे थे l उसके जाने के बाद सुषमा वैदेही से कहना शुरु करती है l

सुषमा - देखो वैदेही... तुम्हारा यह मुहँ बोला भाई... झूठ नहीं कहा है... मैं तुम्हें बेटी नहीं कह सकती... क्यूँकी इससे... उस रिश्ते पर तोहमत लगेगी... मैं जानती हूँ... क्षेत्रपाल परिवार ने तुम्हारे साथ क्या किया है... पर तुम स्वयं सिद्धा हो... तुम देवी हो... इसलिए आज हम दोनों सास बहु... तुम्हारे दर पर आए हैं... हमारी बेटी... रुप नंदिनी के लिए... (वैदेही थोड़ी गम्भीर हो जाती है) वह पाँच साल की थी... जब उसकी माँ इस दुनिया से चली गई... मैंने अपने सीने से लगा कर बड़ा किया... मुझे अपने बच्चों से ज्यादा अजीज है... पता नहीं... तुम भाई बहन को पता है भी या नहीं... अगर पता है... तो तुम लोग गम्भीर क्यूँ नहीं हो... राजा साहब ने... नंदिनी की शादी एक अधेड़ से तय कर दी है.... मैं और मेरी बहु... यहाँ उसकी सुरक्षा मांगने आए हैं... (हाथ जोड़ देती है)
वैदेही - अरे अरे... यह आप क्या कर रही हैं...
शुभ्रा - वक़्त की विडंबना है... कभी क्षेत्रपालों को गुरुर हुआ करता था... के उनके हाथ कभी आकाश की ओर नहीं देखती... पर आज हम तुम्हारे सामने हाथ फैलाए आए हैं...
वैदेही - राजा भैरव सिंह... कल आपके पास से सीधे मेरे पास आए थे...

इतना कह कर वैदेही अपनी टेबल की ड्रॉयर खोल कर वही इंवीटेशन कार्ड निकाल कर सुषमा को दिखाती है l शुभा और सुषमा दोनों हैरान हो जाते हैं और वैदेही की ओर देखने लगते हैं l

वैदेही - जब भैरव सिंह... गिरफ्तार हो कर जा रहा था... यहाँ मुझसे मिलने आया था और चुनौती दे कर गया था... मुझे और विशु की हालत खस्ता कर देगा... और कटक छोड़ कर राजगड़ आने से पहले... विशु को भी... चेतावनी देकर आया था... के उसके तन मन और आत्मा को ज़ख्मी कर देगा...
सुषमा - मतलब तुम सब जानती हो...
वैदेही - हाँ... जानती हूँ... और यह भी जानती हूँ... यह शादी नहीं होगी...
शुभ्रा - यह आप कैसे कह सकते हैं... राजा साहब ने... अपनी नई फौज बनाई है... बाहर से लोग आए हैं...
वैदेही - फिर भी... यह शादी नहीं होगी...
सुषमा - मैं तुम्हारी आत्मविश्वास की कद्र करती हूँ... पर अति आत्मविश्वास और आत्मविश्वास के बीच बहुत ही महिम दीवार होती है...
वैदेही - यह मेरा विश्वास है... बल्कि यह मेरा ही नहीं... आपकी नंदिनी का भी यही विचार है...
सुषमा और शुभ्रा - क्या...
वैदेही - हाँ...
सुषमा - ठीक है... यह उसका विचार हो सकता है... पर... राजा साहब... अपने अहं के आगे... किसीको कुछ नहीं समझते...
सुषमा - जब किसी का अंत करीब आती है.... तो उसका बुद्धि और विवेक खो जाती है... राजा भैरव सिंह के साथ भी ऐसा ही हुआ है... वह इस विषय में... विश्व को दिली और दिमागी तौर से कमजोर करने के लिए... ऐसा कदम उठाया है... पर जब दो प्रेमी... इससे परेशान नहीं हैं... तो हम क्यूँ हों...
शुभ्रा - क्या कहा तुमने... विश्व और रुप परेशान नहीं हैं...
वैदेही - (मुस्कराती है) रात को ही... विशु... नंदिनी से मिलकर आया है... इसलिए... आप भी निश्चिंत हो जाइए... यह शादी नहीं होगी...
शुभ्रा - भगवान करे... आपकी बात सही हो... पर कल से... विक्रम जी बहुत परेशान थे... उनसे रहा नहीं गया... तो अभी कुछ देर पहले महल की ओर गए हैं...
वैदेही - तो ठीक है ना... आप उनसे सारी जानकारी प्राप्त कर सकतीं हैं... (दोनों कशमकश के साथ अपना सिर झुका लेते हैं) वह सब जाने दीजिए... शुभ्रा जी... दिल को तसल्ली दीजिए... और जो भी आपका मन पसंद हो कहिए... आपको खिलाए बिना जाने नहीं दूंगी... ह्म्म्म्म


×_____×_____×_____×_____×_____×_____×


केके पिनाक के कमरे में कुर्सी पर बैठा हुआ था l केके का पैर एक नौकर दबा रहा था l केके कमरे की चारों ओर नजर घुमा रहा था l नौकर देखता है केके किसी गहरे सोच में खोया हुआ है l कोई ऐसी बात थी जो उसे असहज कर रही थी l

नौकर - मालिक... क्या आपको हमारी सेवा अच्छी नहीं लगी...
केके - (सोच से बाहर आता है) नहीं नहीं...
नौकर - पर हम तो जी जान से आपकी सेवा कर रहे हैं...
केके - अरे नहीं... मेरा मतलब... तुम बहुत अच्छा काम कर रहे हो... हम बस कुछ और सोच रहे थे... वैसे क्या नाम है तुम्हारा...
नौकर - जी सत्यवान... पर सभी मुझे सत्तू कह कर बुलाते हैं...
केके - तो सत्तू...
सत्तू - जी... जी मालिक...
केके - तुम जानते हो... हम कौन हैं...
सत्तू - जी मालिक... आप इस परिवार के होने वाले... जामाता हैं... तभी तो... मुझे आपकी सेवा करने के लिए... जिम्मेदारी सौंपी गई है...
केके - ह्म्म्म्म... अब मेरा पैर छोडकर कुर्सी पर बैठ जाओ....
सत्तू - ना मालिक ना... हम महल के नौकर हैं... (कह कर फर्श पर पालथी मार कर बैठ जाता है) अब पूछिये...
केके - अच्छा सत्तू... क्या तुमने पूरा महल देखा हुआ है...
सत्तू - नहीं मालिक... यह पहली बार है... जब हम महल के इतने अंदर आए हैं... वर्ना... हमारी औकात बरामदे तक ही होती थी... फिर भी... आप पूछिये... क्या जानना चाहते हैं... जो मुझे मालूम होगा... मैं बता दूँगा...
केके - अच्छा... कितने कमरे हैं यहाँ...
सत्तू - वह तो नहीं पता... पर पंद्रह बीस कमरे होंगे... और जो भी हैं बड़े बड़े कमरे हैं...
केके - रहते कितने लोग हैं...
सत्तू - जनाना महल में... राजकुमारी जी रहती हैं... और एक बड़े से कमरे में... बड़े राजा जी रहते हैं... उनकी सेवा में भी बहुत लोग लगे हुए हैं...
केके - ह्म्म्म्म...
सत्तू - और कुछ...
केके - तुम...
सत्तू - हाँ हाँ पूछिये...
केके - य़ह तुम... विश्वा के बारे में क्या जानते हो...
सत्तू - ज्यादा कुछ नहीं मालिक... मुझे तो तीन साल हुए हैं... राजा साहब के महल में... पर इतना जानता हूँ... विश्वा इस महल का बहुत पुराना नौकर था... राजा साहब ने उसे सरपंच बनाया... पर यह उनसे गद्दारी पर आ गया... उसने कई कत्ल भी किए हैं... और जैल भी गया था... पर था साला पढ़ाकु... जैल में रहकर बड़ा वकील बन गया है... अब देखिए ना... उसकी एहसान फरामोशी... राजा साहब के खिलाफ अब केस लड़ रहा है...
केके - उसका और राजकुमारी का क्या रिश्ता है... कुछ जानते हो...
सत्तू - हाँ जानता हूँ ना... विश्वा... बचपन में... राजकुमारी जी को सात साल तक पढ़ाया है...
केके - ओ... मतलब पहचान.. बचपन वाला है...
सत्तू - जी मालिक...
केके - अच्छा सत्तू... राजकुमारी की शादी... किसी राज घराने में... या फिर... किसी बड़े घर में होनी चाहिए थी... है ना...
सत्तू - ऐसी बातेँ मुझसे मत पूछिये मालिक... बहुत छोटे लोग हैं... क्या बोलें... हम बस इतना जानते हैं... राजा साहब... हमारे भगवान हैं... उनकी बात और फैसला... यहाँ पर रहने और जीने वालों की जीने की फरमान होती है... राजा साहब ने अगर आपको पसंद किया है.. तो यह राजकुमारी और आपका भाग्य है...
केके - ह्म्म्म्म... वैसे... मेरे बारे में... तुम्हारे साथी कैसी बात कर रहे हैं...
सत्तू - राजा साहब के फैसले पर... हम कभी बात नहीं करते... बस उनके हुकुम बजाते हैं...
केके - अच्छा यह बताओ... राजा साहब ने कभी विश्वा को... उसकी गुस्ताखी की सजा देने का नहीं सोचा...
सत्तू - अब हम क्या कहें मालिक... विश्वा अब कोई आम विश्वा नहीं है... बवंडर है... हमने कई बार कोशिश की उसे मिटाने के लिए... पर हर बार वह हम पर भारी पड़ा... एक अकेला... बीस बीस को लपक लेता है... एक बार तो महल के बाहर ही... (सत्तू बताने लगता है कैसे गाँव वालों के जमीन और घरों के कागजात लेने वैदेही और विश्वा आए थे और कैसे कागजात लेकर गए थे)
केके - और राजा साहब खामोश हैं...
सत्तू - क्या करेंगे फिर... आखिर वह राजा हैं... किसी ऐरे गैरे को... राह चलते को... कैसे हाथ लगा सकते हैं... उनको हम पर भरोसा था... पर... हम ही खरे नहीं उतरे... इसीलिए तो अब... बाहर से लोगों को लाए हैं... अब अगर विश्वा कुछ भी हिमाकत करेगा... तो इसबार वह बच नहीं पाएगा... वैसे एक बात पूछूं मालिक...
केके - पूछो...
सत्तू - आप यह विश्वा के बारे में... इतना पूछताछ क्यूँ कर रहे हैं... क्या आप उसे पहले से जानते हैं...
केके - अरे नहीं... बस ऐसे ही सुना था... अच्छा... xxx चौक पर... एक औरत का दुकान है... उसका राजा साहब का... मतलब... कुछ...
सत्तू - वह औरत... वही तो विश्वा का बहन... वैदेही है...
केके - (चौंकता है) क्या...
सत्तू - क्यूँ... क्या हुआ मालिक...
केके - कुछ नहीं... (माथे पर चिंता की लकीर उभर आती है) राजा साहब... महल को लौटते वक़्त... उसके दुकान पर गए थे...
सत्तू - ज्यादा तो नहीं जानता पर... सुना है... कभी रंग महल में... राजा साहब के ऐस गाह की रौनक हुआ करती थी... और वही एक औरत है... पूरे राजगड़ में... जो राजा साहब से सिर उठा कर आँखों में आँखे डाल कर बात करती है...

तभी कमरे के बाहर दस्तक होती है, दोनों की नजरें दरवाजे की तरफ जाती है l एक नौकर खड़ा था l

केके - हाँ क्या हुआ...
नौकर - राजा साहब आपको... दीवान ए आम में आने के लिए कहा है...
केके - ठीक है... तुम चलो... (सत्तू से) तुम मुझे वहाँ ले चलो...
सत्तू - ठीक है मालिक....

दोनों कमरे से निकल कर दीवान ए आम की ओर जाने लगते हैं l जाते वक़्त केके अपनी नजरें चारो ओर दौड़ा रहा था l कुछ देर बाद दोनों दीवान ए आम में पहुँच जाते हैं l दोनों देखते हैं सिंहासन पर भैरव सिंह बैठा हुआ था और उसके सामने विक्रम खड़ा था l केके को देख कर भैरव सिंह केके से कहता है

भैरव सिंह - आओ केके आओ... महल में कोई शिकायत तो नहीं...
केके - जी नहीं राजा साहब...
भैरव सिंह - (विक्रम से) तो... विक्रम सिंह... बताने की कष्ट करेंगे... महल में जबरदस्ती घुसने की कोशिश क्यूँ कर रहे थे...
विक्रम - मैं यहाँ अपनी बहन से मिलने आया था...
भैरव सिंह - क्यूँ... क्यूँ आए हो... तुमने तो सभी रिश्ते नाते तोड़ कर महल से चल दिए थे...
विक्रम - मैं... महल से क्षेत्रपाल छोड़ गया था... तब भी... अपनी बहन को ले जाना चाहता था... शुक्र मनाईये... वह अपने दादा की सेवा करने के लिए रुक गई... वर्ना...
भैरव सिंह - वर्ना... हाँ हाँ... वर्ना... शायद तुम भूल रहे हो... वह तुम्हारे साथ जाती ही नहीं...
विक्रम - आप उसकी अच्छाइ.. और मासूमियत का... नाजायज फायदा उठा रहे हैं...
भैरव सिंह - नाजायज... फायदा... जो... जिसकी... जितनी काबिल है... हम उसकी उतनी... वही किस्मत लिख रहे हैं... नंदिनी के किस्मत में वही मिल रहा है... जो उसने हमसे खोया है... और इस महल के बाहर कमाया है... हम तो बस मोहर लगा रहे हैं...
विक्रम - (केके की ओर दिखा कर) यह... इसको नंदिनी की किस्मत में थोप रहे हैं... यह हरामी गटर का सुअर... मेरी जुती चाटने वाला...
भैरव सिंह - केके...
केके - जी राजा साहब...
भैरव सिंह - आओ... हमारे बगल में बैठो...

केके जा कर भैरव सिंह के पास वाले एक कुर्सी पर बैठ जाता है l विक्रम की आँखें गुस्से से अंगारों की तरह दहकने लगती हैं l विक्रम को मुट्ठीयाँ भिंच जाती हैं l विक्रम का यह रुप देख कर केके की हलक सुख जाता है l

भैरव सिंह - अब केके की जुतें.. इस घर के नौकर साफ करते हैं...
विक्रम - मुझे यह समझ में नहीं आ रहा... आप ऐसा क्यूँ कर रहे हैं... अपनी कद से ऊपर उठने के बजाय... गिरते जा रहे हैं...
भैरव सिंह - कद किसका क्या है... कितना है... यह फैसला भी हम ही करते हैं...
विश्व - मैं आपसे कोई बहस करना नहीं चाहता... आप नंदिनी को बुलाईये... मैं उसकी मर्जी जानना चाहता हूँ...
भैरव सिंह - वही तो हम पूछ रहे हैं... किस हक से... जब आप महल से हर रिश्ते नाते तोड़ कर जा चुके हैं...
विक्रम - महल में एक रिश्ता अभी जिंदा है... मैं उसके वास्ते आया हूँ... उसकी मर्जी... और खैरियत पूछने आया हूँ....
भैरव सिंह - अगर मर्जी नहीं हुई तो...
विक्रम - तो... दुनिया इधर से उधर क्यूँ ना हो जाए... यह शादी कोई नहीं करा सकता... इस महल का... भगवान भी नहीं...
भैरव सिंह - ओ हो... खून के सामने खून खड़ा है... और खून को ललकार रहा है..
विक्रम - यही दस्तूर है... इतिहास उठाकर देख लीजिए... बात जब आन पर आ जाती है... खून को खून ही ललकारता है... और खून को खून ही हटाता है...
भैरव सिंह - बच्चे कैसे पैदा किया जाता है... यह बच्चे कभी बाप को नहीं सिखाते...
विक्रम - रजवाड़ों का खूनी इतिहास उठा कर देख लीजिए... बाप ने कभी औलादों को नहीं हटाया...
भैरव सिंह - तो खून में इतनी गर्मी आ गई... के बाप को हटाने की सोच रहे हो...
विक्रम - तब तक तो नहीं... जब तक... नंदिनी मेरी बहन है... और मुझे उससे बात करनी है...
भैरव सिंह - (कुछ देर की चुप्पी, तनाव भरा माहौल था, फिर भैरव सिंह मुस्कराते हुए) ठीक है... आज हम भी देखेंगे... हमारी लिखी किस्मत और... तुम्हारी बगावत की टक्कर होती है या नहीं... (सत्तू से) जाओ बड़े राजा जी के कमरे तक खबर पहुँचा दो... राजकुमारी जी को हमने अभी यहाँ याद किया है...

सत्तू भागते हुए चला जाता है l बाहर एक नौकरानी को नागेंद्र के कमरे जाकर रुप को बुलाने के लिए कहता है l कुछ देर के बाद रुप अंदर आती है और अंदर की नज़ारा देखती है l भैरव सिंह और केके दोनों कमरे के बीचोबीच कुर्सी पर बैठे हुए हैं और उनके आगे विक्रम खड़ा हुआ है l रुप को देख कर विक्रम आपनी बाहें फैला देता है रुप दौड़ कर उसके गले लग जाती है l थोड़ी देर बाद विक्रम उसे अलग कर उसके चेहरे को गौर से देखता है l रुप के चेहरे पर ना कोई ग़म ना कोई शिकन था l यह देख कर विक्रम को थोड़ी हैरानी होती है l

विक्रम - कैसी है मेरी गुड़िया...
रुप - बहुत अच्छी हूँ भैया... पर एक दुख तो रहेगा ना... जिस वक़्त भाभी के पास ननद को होना चाहिए... तब मैं नहीं हूँ...
विक्रम - अब भी कोई देर नहीं हुई है... चल मैं ले चलता हूँ...
रुप - क्या करूँ भैया... एक रिश्ते ने मुझे इस महल से बाँध रखा है... वर्ना चली ही जाती...
विक्रम - नंदिनी... मेरी बहन... (केके की ओर दिखा कर) तु इस आदमी के बारे जानती है...
रुप - हाँ भैया... यह वही है ना... जो सालों साल... तुम्हारे जुते चाटता था... (यह बात सुनते ही केके का चेहरा कड़वा हो जाता है)
विक्रम - यह अभी इस महल में... राजा साहब के बगल में क्यूँ है जानती हो ना..
रुप - हाँ भैया... श्मशान जाने की उम्र में... कटक से इतना दूर... अपनी फजिहत करवाने आया है...
भैरव सिंह - (गुर्राता है) नंदिनी...
विक्रम - (भैरव सिंह की ओर हाथ दिखा कर आगे कुछ बोलने से रोक देता है और रुप से) तुझे यह शादी मंजूर नहीं है ना...
रुप - भैया... शादी हो तब ना... जब यह शादी होनी ही नहीं है... फिर मैं उसकी चिंता क्यूँ करूँ...
विक्रम - तुझसे ज़बरदस्ती भी करवा सकते हैं...
रुप - ज़बरदस्ती तब करेंगे ना... जब मैं मना करूंगी...
विक्रम - मैं समझा नहीं गुड़िया...
रुप - भैया... आप ज़रूर आना... भाभी... चाची माँ और चाचाजी को लेकर... वह तमाशा... राजगड़ के साथ साथ... आप भी देखना...
विक्रम - बस बहना बस... मैं बस तेरी खैर ख़बर और मर्जी जानने आया था... तेरा यह विश्वास देख कर... मैं सब समझ गया...
रुप - देखा भैया... बातों ही बातों में भूल गई... भाभी.. चाची माँ और चाचाजी कैसे हैं...
विक्रम - तेरे लिए फिक्र मंद थे... अब मेरी फिक्र मीट गई... समझ उनकी भी मीट गई... अच्छा... अब अंदर जा...

रुप फिर से अपने भाई के गले लगती है और फिर वहाँ से निकल जाती है l विक्रम अब एक मुस्कराहट के साथ भैरव सिंह के तरफ देखता है l

भैरव सिंह - हो गई तसल्ली...
विक्रम - जी... हो गई... अब मुझे... आपकी फिक्र हो रही है...
भैरव सिंह - तुम्हें लगता है... यह शादी कोई रोक सकता है...
विक्रम - मेरी बहन की आत्मविश्वास बोल रहा है... और मुझे यह साफ एहसास हो रहा है... नंदिनी की आत्मविश्वास की आँच को आप भी महसूस कर रहे हैं...
भैरव सिंह - हम उस दिन किसी को भी... अपनी जगह से हिलने तक नहीं देंगे.... ना हवा.. ना पानी... ना खून को...
विक्रम - आप उसी पर कायम रहिएगा... जोर नंदिनी पर मत आजमा बैठिएगा... क्यूँकी चाची माँ ने कहा था... पहली बार... आप ही के अहंकार से... आप ही का खून का अहंकार टकराया है...
भैरव सिंह - और हमारे अहंकार से टकराने वाले हर वज़ूद को नकार देते हैं... हमसे कोई जीत नहीं सकता... चाहे वह हमारा खून ही क्यूँ ना हो... इसलिए हमारी फिक्र मत करो
विक्रम - आपके खून के साथ किसी और का जुनून भी टकराएगा... इसीलिए मुझे फिक्र हो रहा था... (कह कर विक्रम पलट कर जाने लगता है फिर अचानक रुक कर मुड़ता है) मुझसे नंदिनी चहकते हुए मिली... शादी के दिन भी मुझे वैसी ही मिलनी चाहिए... वर्ना... रजवाड़ी इतिहास... फिर से अपने आप को दोहराएगा....

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शादी को एक दिन रह गया है
उसके पूर्व संध्या के समय विश्व नदी के तट पर बने सीढ़ियों पर बैठा डूबते सूरज की देख रहा था l कोई उसके पीछे से सीढ़ियां उतरता हुआ महसूस होता है l विश्व नजर घुमा कर देखता है पिनाक सीढ़ियों से उतर कर आ रहा था l विश्व खड़ा हो जाता है l

पिनाक - यह अच्छी निशानी है... यह नदी का किनारा... ढलता हुआ शाम... डूबता हुआ सुरज... किसी को भी... खोने को मजबूर कर सकता है... पर फिर भी तुम चौकन्ना थे... मैं दबे पाँव आ रहा था... तुम सतर्क हो गए...
विश्व - (कुछ नहीं कहता चुप रहता है)
पिनाक - बैठो... मैं भी तुम्हारे साथ... कुछ देर बैठने के लिए आया हूँ... (सीढ़ियों पर बैठ जाता है, विश्व भी उसे बैठा देख कर बगल में बैठ जाता है) ज्यादातर डूबते सूरज को वही लोग देखते हैं... जिन्हें अंधेरे में कुछ खोने का डर हो...
विश्व - हाँ आपकी बात सच है... पर सुबह की तरह शाम भी एक सच है... अगर उजाले के बाद... अंधेरा आना तय है... तो राह के लिए भटकने से पहले... रौशनी का इंतजाम कर लेना चाहिए... मैं यहाँ... रौशनी ढूंढ रहा हूँ...

कुछ देर के लिए दोनों के बीच एक चुप्पी सी छा जाती है l कुछ देर बाद विश्व पिनाक से कहता है l


विश्व - आज आपको यहाँ देख कर अच्छा लगा...
पिनाक - हाँ... मुर्दों की तरह... मुर्दों के बीच जिए जा रहा था... जब जीने की ख्वाहिश जागी... तब सब कुछ लूट चुका था... जिंदा लाश बन कर रह गया हूँ...
विश्व - आपने कहा... आप मुझसे बात करने आए हैं...
पिनाक - हाँ... इससे पहले हम जब भी मिले... आपस में... रंजिश भरे दिल में मिले... अब रंजिश की जगह तो नहीं है... पर...
विश्व - पर...
पिनाक - पर एक मासूम सी जान है... जो एक राक्षस के पिंजरे में कैद है...
विश्व - आप... राजकुमारी जी की बात कर रहे हैं...
पिनाक - हाँ... मैं नंदिनी की बात कर रहा हूँ...
विश्व - (एक गहरा साँस छोड़ते हुए) आपको... क्या लगता है...
पिनाक - मैं अब क्या कहूँ... मुझे परेशान देख कर... विक्रम ने ही तुम्हारे पास यहाँ आने के लिए कहा था... क्यूँकी उसे मालूम था... तुम मुझे यहाँ मिलोगे...
विश्व - आपको... राजकुमारी जी की चिंता परेशानी में डाल रखा है...
पिनाक - हाँ... मेरी पत्नी... बहु और विक्रम तक... आश्वस्त हैं... पर मैं नहीं हो पा रहा था... इसलिए विक्रम ने मुझे तुम्हारे पास भेज दिया...
विश्व - पर आपने अभी तक... राजकुमारी जी को लेकर... कोई भी सवाल नहीं किया है...
पिनाक - विश्व... वीर को... खोने के बाद... मैं खुद को एक लुटा पीटा भिकारी समझ रहा था... पर ज्यूं ही... राजा साहब ने... शादी का कार्ड दिया... तब मुझे एहसास हुआ... मेरे पास और भी कुछ क़ीमती है... जो राजा साहब की जिद की बेदी पर बलि चढ़ने जा रही है...
विश्व - आप मुझसे क्या चाहते हैं...
पिनाक - वादा... सिर्फ एक वादा...
विश्व - कैसा... वादा...
पिनाक - विश्व रुप की एका... विश्व और रुप दो शब्द या दो प्राण नहीं होने चाहिए... जब भी नाम लिया जाए... विश्वरुप ही सुनाई दे... दिखाई दे... बस यही वादा चाहता हूँ... मेरे बेटे की आत्मा को शांति मिलेगी... क्यूँकी वह तुम दोनों के बारे जानता था... और तुम दोनों को एक होते देखना चाहता था...
विश्व - आप ही ने कहा... आपके परिवार वाले आश्वस्त हैं... क्या आपको संदेह है...
पिनाक - नहीं... पर... मैं राजा साहब के जिद को जानता हूँ... और अब ऐसा लग रहा है... जैसे तुम्हें हराने के लिए... वह किसी भी हद तक जा सकते हैं...
विश्व - ह्म्म्म्म... शादी कल शाम को है... इतने दिनों में... महल में... क्या कुछ हुआ है...
पिनाक - तुमसे कुछ छुपा तो नहीं होगा... यशपुर से कुछ औरतें बुलाई गई हैं... जो नंदिनी की शृंगार करेंगी... आज घर पर... नंदिनी की खास परिचारिका सेबती आई थी... कल नंदिनी अपने पास अपनी भाभी और चाची माँ को चाहती है... इसलिए वे कल सुबह ही महल चली जाएंगी... कमल कांत सिर्फ एक दिन ही महल में रहा... फिर उसे राजा साहब ने रंग महल भेज दिया... एक अंधी सफेद घोड़ी को लाई गई है... जिसके ऊपर वह बेशरम... बेग़ैरत... कमल कांत... रंग महल से निकल कर राजगड़ परिक्रमा करेगा... अब की बार... राजा साहब ने... बाहर से लोग बुलवाए हैं... हर एक पर नजरें जमाए हुए हैं... मुझे तो लगता है... वे तुम पर भी... नजरें गड़ाए होंगे...
विश्व - क्यूँ...
पिनाक - यह कैसा सवाल हुआ... तुम पर उनकी इसलिए नजर होगी... ताकि तुमसे कोई हरकत हो... तो पलटवार कर सकें...
विश्व - अगर मैं कोई हरकत ही ना करूँ तो...
पिनाक - (भौंहे सिकुड़ कर हैरानी भरे नजर से देखता है) तुम अगर कुछ नहीं करोगे... तो राजा साहब अपने मकसद में कामयाब हो जाएंगे... नंदिनी की जिंदगी बर्बाद हो जाएगी...
विश्व - यह शादी... राजा साहब की मकसद नहीं है... बल्कि एक छिपा हुआ मकसद है... जिसके लिए... उन्होंने यह शादी तय की है...
पिनाक - क्या... कौनसी छुपी हुई मकसद...
विश्व - असल में... राजा साहब... यह शादी ही नहीं चाहते... और यह भी अच्छी तरह से जानते हैं... यह शादी नहीं होगी...
पिनाक - (झटका खाते हुए) यह तुम किस बिनाह पर कह सकते हो...
विश्व - (मुस्कराता है) राजा साहब का पहला मकसद है... मुझे इस केस से हटाना... या भटकाना... यह तभी हो सकता है... जब मेरी कोई कमजोर नस उनके हाथ हो...
पिनाक - तो क्या नंदिनी तुम्हारी कमजोरी नहीं है...
विश्व - नहीं... वह मेरी ताकत हैं... मेरी जान... मेरी आत्मा हैं... मेरी कमजोरी... मेरे मुहँ बोले माता पिता हैं... यह शादी की बात इसलिए फैलाई गई है... किसी तरह यह खबर मेरे माता पिता को मिल जाए... मेरी माँ... इमोशनली जितनी मजबूत है... उतनी ही कमजोर भी है... यह बात... राजा साहब अच्छी तरह से जानते हैं... मेरी माँ तक अगर राजकुमारी जी की शादी की खबर पहुँच जाए... तो मेरी माँ हाय तौबा कर बाहर आ जाती... आज के दिन... राजा साहब को सरकारी तंत्र भी मदत दे रही है... ऐसे में... मेरी माँ को कब्जे में लेना... उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं होगी...
पिनाक - तुम्हें ऐसा क्यूँ लगता है... नंदिनी की शादी की खबर... प्रतिभा जी को नहीं मिलेगी...
विश्व - क्यूँकी... माँ और डैड... दोनों को... मैंने ही अंडरग्राउंड करवाया है... उन तक कौनसी खबर जाएगी... यह मैं ही तय करता हूँ...
पिनाक - (कुछ सोच में पड़ जाता है) तुम यह कैसे कह सकते हो... राजा साहब को यह शादी... मंजूर नहीं...
विश्व - पुरे स्टेट में... राजा साहब कोई मामूली व्यक्ती नहीं हैं... पर वह केवल दो ही ईंवीटेशन कार्ड प्रिंट कर लाए थे... एक मेरे और दीदी के नाम... दूसरा आपके नाम... बाकी राजगड़ से बाहर... यहाँ तक यशपुर भी नहीं... कहीं भी... किसीको भी... ना खबर किया गया है... ना ही बुलाया गया है... राजगड़ में भी लोगों को... घूम घूम कर... मुहँ जुबानी निमंत्रण दिया गया है... इससे यही साबित हो रहा है... यह शादी... राजा सहाब को मंजूर नहीं है...
पिनाक - चलो मान लिया... तुमने राजा साहब की वह छुपी हुई मकसद को नाकाम कर दिया... पर शादी... शादी कैसे नहीं होगी... राजा साहब तुम्हें तोड़ने के लिए... किसी भी हद तक जा सकते हैं... मतलब शादी... उसी केके से करवा सकते हैं...
विश्व - राजा साहब का यह मकसद भी पूरा नहीं होगी... बस यकीन रखिए...

सुरज पूरी तरह से डूब चुका था l उजाला कम हो गया था अंधेरा धीरे धीरे आने लगा था, पश्चिमी आसमान के कुछ हिस्सा अभी भी लाल दिख रहा था l तभी दोनों के कानों में विक्रम की आवाज़ सुनाई पड़ती है l

"चाचाजी"

दोनों आवाज की दिशा में मुड़ते हैं l विक्रम को देख कर पिनाक अपनी जगह से उठता है, विक्रम हाथ बढ़ा कर पिनाक का हाथ थाम लेता है l पिनाक सीढ़ियों से चढ़ते हुए जाने लगता है l पीछे पीछे विश्व भी जाने लगता है l कुछ दूर जाने के बाद पिनाक रुक जाता है और मुड़ कर विश्व से पूछता है l

पिनाक - विश्व... तुम्हें जब इस घाट पर ढलते सूरज की देखते हुए पाया... तो लगा कि तुम नंदिनी के लिए परेशान हो... पर तुम्हारे बातों से जाना... तुम नंदिनी के लिए परेशान हो ही नहीं... पर सच्चाई यही है... के तुम किसी बात को लेकर... परेशान हो... मैं अपनी शंका मिटाने आया था... मीट गया... तुम अंधेरे उजाले की बात कर रहे थे... क्या मैं तुम्हारी कोई मदत कर सकता हूँ... (विश्व क्या कहे समझ नहीं पाता, उसे यूँ असमंजस देख कर विक्रम कहता है)
विक्रम - हाँ विश्व... वैसे हम जानते हैं... तुम बहुत काबिल हो... फिर भी... कोई मदत चाहो तो पूछ सकते हो... क्यूँकी वीर ने ऐलान किया था... जब तुम और क्षेत्रपाल आमने सामने होंगे... वह तुम्हारे कंधे से कंधा मिलाकर लड़ेगा... अब वह हमारे बीच रहा नहीं... पर उसकी यह ख्वाहिश मिटनी नहीं चाहिए...
पिनाक - हाँ विश्वा... हम जो भी कह रहे हैं.. जो भी कर रहे हैं... सभी वीर के वास्ते...

विश्व अभी भी असमंजस में था l उससे कुछ पूछा नहीं जाता l विश्व की यह स्थिति देख कर दोनों चाचा भतीजा लौटने के लिए मुड़ते हैं के विश्व उन्हें पूछता है l

विश्व - वह बात... केस के सिलसिले पर ही है.... पर...
पिनाक - पूछो... क्या जानना चाहते हो...
विश्व - रुप फाउंडेशन के केस में... दो आरोपी कत्ल कर दिए गए... और दो आरोपी गायब हो गए... क्या ऐसा हो सकता है... के कोई आरोपी खुद को... गायब कर लिया हो...
विक्रम - मैं सोच रहा था... किसी मामले में... फिजीकल कुछ हेल्प एक्सटेंड कर सकूं... पर माफ करना... इस पर मेरी कोई आइडिया नहीं है... क्यूँकी राजा साहब हमें कभी भी... उनके किसी भी मामले में... सामिल नहीं करते थे...
पिनाक - अब समझा... तुम्हारे अंधेरे और उजाले की पहेली... देखो विश्व... इस केस की विशेषता यह है कि... तुम शायद इस केस में... राजा साहब की संलिप्तता सिद्ध कर सको... पर... फिर भी... राजा साहब बच जाएंगे...
विश्व - जी... मैं भी तब से यही सोच रहा हूँ... कोई ऐसा गवाह जो मेरे हाथ लग जाये... जिसके गवाही पर... राजा साहब के हर एक करनी को अंजाम तक पहुँचा सकूँ...
पिनाक - देखो विश्वा... सूरज डूबता है... पर फिर भी अंधेरे में.. हमें रौशनी की दरकार होती है... तब... कमरे में दिया जलाया जाता है... रौशनी के लिए... पर इतना याद रखना... अंधेरा पूरी तरह से छटती नहीं है.... दिन की काली करतूत को... दिए के तले वाली अंधेरे में छुपाया जाता है... तुम्हें बस दिए को ढूंढना है... अगर ढूंढ लिया... तो वह तला भी मिल जाएगा और... तले में छुपे काली करतूत...
विश्व - मैं पूरी बात समझा नहीं...
पिनाक - जैसे कि मैंने पहले भी कहा था... तुम संलिप्तता साबित कर सकते हो... पर पूरी तरह दोषी करार नहीं दे सकते... तुम ज्यादा से ज्यादा... केस में राजा साहब को घेर सकते हो... जिससे राजा साहब साफ बचके निकल जाएंगे... राजा साहब को दोषी साबित करने के लिए... तुम्हारे दोनों केस में... मॉनी ट्रेल को साबित करना होगा... उस ट्रेल का छोर और अंत राजा साहब हैं यह साबित करना होगा... यहाँ राजा साहब का अंधेरे का दिआ... कोई और नहीं... एडवोकेट बल्लभ प्रधान है... जो अपने तले... राजा साहब की हर एक काली करतूत को छुपाये रखा है...
विश्व - जानता हूँ... पर कोई ऐसी जानकारी... जो एडवोकेट प्रधान को... घुटने पर ला सके...
विक्रम - देखो विश्व... प्रधान का ठिकाना... या तो राजगड़ या यशपुर... या फिर कटक या भुवनेश्वर... बाकी जो भी तुम्हें शक है... उसे एस्टाब्लीश करने के लिए... तुम्हें अपने कॉन्टैक्ट ईस्तेमाल करने होंगे...
विश्व - (चेहरे पर एक मुस्कान उभर आती है) वाह क्या बात कही... मुझे एक उम्मीद दिला दिया आपने... थैंक्यू...

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अब शाम ढल चुकी थी l अंधेरा पूरी तरह से पसर चुकी थी l रंग महल के सामने एक सफेद घोड़ी को भीमा और उसके गुर्गे सजा रहे थे l जो भी लोग रंग महल में थे वे सब कल होने वाली शादी की खुशी में दारु पी रहे थे l वहीँ रंग महल के एक कमरे में केके गहरी सोच में खोया हुआ एक कुर्सी पर बैठा हुआ था l दरवाजे पर जब दस्तक होती है तो वह कहता है

केके - अंदर आ जाओ...

दरवाजा खुलता है सत्तू के साथ रॉय और रंगा आते हैं l तीनों अंदर आकर देखते हैं केके थोड़ा घबराया और परेशान सा दिख रहा था l

रॉय - क्या बात है... केके साहब... आज तो बहुत खुशी का रात है... फिर तो यह रंग महल आपका... सारी प्रॉपर्टी में आधा हिस्सा आपका... मुझे तो लगा था... आप मन ही मन यही गा रहे होंगे... यही रात अंतिम यही रात भारी... पर आप घबराए हुए क्यूँ लग रहे हैं...
रंगा - हाँ... मैं तो सोच रहा था... आपके चेहरे पर लड्डू फुट रहे होंगे... पर आप घबराए हुए दिख रहे हैं...
रॉय - हाँ... जब कि कायदे से... कल की सोच कर... दुल्हन को घबराना चाहिए... हा हा हा हा... (रॉय के साथ रंगा भी हँसने लगता है)

गुस्से से तमतमाते हुए केके कुर्सी से उठ खड़ा होता है l और दोनों पर चिल्लाता है l

केके - शॉट अप... (दोनों चुप हो जाते हैं)
रॉय - केके साहब... कल शादी है... हमें राजा साहब ने हुकुम दिया है... आपको दूल्हे की तरह सजा कर... रंग महल से... क्षेत्रपाल महल तक... घोड़ी के ऊपर बिठा कर... जुलूस के साथ ले जाने के लिए... हमें लगा था... आपकी इच्छा पूरी हो रही है... इसलिए... आप बहुत खुश होंगे पर...
रंगा - केके साहब... कल से आप राजा साहब के... जमाई बनने जा रहे हैं... फिर घबराहट किस बात की...
केके - (दोनों की तरफ देखता है फिर) रंगा... एक बात बता... तेरी... सच में... किसको देख कर फटी थी...
रंगा - आपसे मतलब...
केके - डर लग रहा है ना...
रंगा - ठीक है... विश्वा... पर इस शादी से... उसका क्या वास्ता...
केके - तुझे क्या लगता है... एक अधेड़... हम उम्र से... राजा साहब... क्यूँ अपनी बेटी को व्याहना चाहते हैं...
रंगा - मेरे को क्या पता...
रॉय - एक मिनट.. एक मिनट... कहीं आप यह तो नहीं कहना चाहते... के विश्वा और राजकुमारी...
केके - हाँ...
रंगा - यह कैसे हो सकता है... मैं नहीं मानता... विश्वा... सात साल तक... जैल में रहा... बमुश्किल सात आठ महीने हुए हैं... बाहर आए... उसकी और राजकुमारी...
केके - पर यह सच है... खुद राजकुमारी ने मुझे कहा था... और यह... जवानी वाला इश्क नहीं है... बचपन वाला लफड़ा है...
रंगा और रॉय - क्या...
केके - हाँ... इस.. (सत्तू की ओर दिखा कर) पूछो इससे...
सत्तू - (घबरा कर) मैं... मैं... कुछ नहीं जानता...
केके - क्या नहीं जानता बे... तूने ही तो कहा था... विश्व... राजकुमारी को.. बचपन से पढ़ाता था...
सत्तू - हाँ... यह तो हर कोई जानता है... पर आप जो कह रहे हैं... यह कोई नहीं जानता...
रॉय - चलो ठीक है... एक पल के लिए हम मान लेते हैं... के राजा साहब... अपनी खुन्नस निकालने के लिए... अपनी बेटी की शादी.. आपसे करा रहे हैं... तो आपको इससे प्रॉब्लम क्या है...
केके - रॉय... इन कुछ महीनों में... हमने जो भी कुछ हारा है... जरा याद करो... उसके पीछे कहीं ना कहीं... विश्वा है... या तो सीधे तौर पर... या फिर... और रंगा... याद है... जब विश्वा तेरे सामने... अचानक आ गया... तेरी क्या हालत हो गई थी...

इतना कह कर केके चुप हो जाता है l रॉय और रंगा भी कुछ देर के लिए कोई बात नहीं कहते l फिर कुछ देर बाद रंगा कहता है l

रंगा - चलो मान लेता हूँ... पर है तो यह राजा साहब का इलाक़ा... और उन्होंने अपनी लश्कर में जबरदस्त बढ़ोतरी की है... मुझे नहीं लगता... विश्वा कुछ करने के लायक होगा...
रॉय - हाँ... मेरा भी यही खयाल है...
केके - मैं भी यही सोच रहा था... पर... जिस दिन विक्रम अपनी बहन से मिलने महल आया था... उस दिन... मैंने राजकुमारी के आँखों में... बातों में... एक जबरदस्त... आत्मविश्वास देखा था... उन्होंने खुल्लमखुल्ला राजा साहब के सामने ऐलान कर दिया... यह शादी होगी ही नहीं...
केके - मतलब वह... विश्वा के साथ... भागने की चक्कर में है...
सत्तू - ना मुमकिन... आज सुबह तक तो राजकुमारी जी महल में ही हैं... और कल से उनके शृंगार के लिए... कुछ औरतों को यशपुर से बुलाया गया है.... और लगातार राजा साहब के निगरानी में हैं...
रॉय - देखा... आप खामख्वाह परेशान हो... चलिए मैं मान लिया... विश्वा से खुन्नस उतारने के लिए... राजा साहब आपसे... राजकुमारी को व्याह दे रहे हैं... तो यह उनकी नाक और मूँछ की आन की बात हो गई ना... अपनी नाक और मूँछ की आँच बचाने के लिए... कुछ भी कर सकते हैं... अगर यह विश्वा से बदला लेने की बात है... तो इस मिशन में... हमें शिद्दत के साथ... शामिल होनी चाहिए... हम सबका बदला एक साथ पुरा होगा... कोई नहीं केके साहब... राजा साहब ने वह एग्रीमेंट यूँ ही नहीं कि है... मत भूलिए... इस शादी के बाद... यह रंग महल आपका हो जाएगा... राजा साहब के सारे फैक्ट्रियों और प्रॉपर्टी में... बराबर का हिस्सा हो जाएगा...
रंगा - हाँ केके साहब... आप बस तैयार हो जाइए... सारे गाँव वाले होंगे सामने शादी होने वाली है... विश्वा को भीतर से तोड़ने के लिए... अबकी बार... मैं खुद को बाजी लगा दूँगा... यह मेरा वादा है...

रॉय और रंगा के ढांढस बाँध ने के बाद केके को थोड़ी हिम्मत मिलती है l अब वह तैयार होने के लिए बाथरूम के अंदर जाता है l
Bahut hi lajawab update hai bhai
 
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Bahut hi lajawab update hai bhai
👉एक सौ अट्ठावनवाँ अपडेट
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अर्ध रात्री
आकाश में तारे टिमटिमा रहे थे, क्षेत्रपाल महल के अंतर्महल की छत पर एक जोड़ा एक दूसरे के बाहों में खोए हुए थे l यह युगल कोई और नहीं हैं बल्कि हमारे कहानी के नायक व नायिका विश्वरुप ही हैं l रात शांत, हर क्षण शांत, हर फ़िजा शांत, जैसे वह आतुर हों इनके वार्तालाप सुनने के लिए l ऐसे ही बाहों में रहते हुए रुप ख़ामोशी को तोड़ती है और विश्व से कहती है l

रुप - जानते हो... मेरा दिल आज तुम्हें पुकार रहा था... और तुम आ गए...
विश्व - पर... मैंने आपको खबर भी नहीं की थी... बस छत पर आ गया था... आपको कैसे पता चला... के मैं आपको मिलने आया हूँ...
रुप - इट्स अ गर्ल थिंग... फिर भी बता देती हूँ... मेरे धड़कनों.. मेरे एहसासों... मेरे रोम रोम से पूछ कर देखो... जब भी तुम आस पास होते हो... मेरे रूह को... तुम्हारे होने का एहसास... अपने आप हो जाता है...
विश्व - क्या... आपको डर लग रहा है...
रुप - (अपना चेहरा अलग करते हुए) भला वह क्यूँ...
विश्व - राजा साहब ने... आते ही आपको जोरदार झटका जो दिया...
रुप - (विश्व के सीने से चिपक कर) वैसे कोशिश उनकी बहुत अच्छी थी... पर मैं जानती हूँ... उनकी कोशिश बेकार जाने वाली है...
विश्व - अच्छा... वह कैसे...
रुप - वह ऐसे की मैं जानती हूँ... के तुम यह शादी कभी होने ही नहीं दोगे...
विश्व - इतना भरोसा...
रुप - कोई शक़... (एक पॉज) अनाम... मेरा प्यार... मेरा विश्वास है... मेरे विश्वास का आधार... एक तुम हो... और एक भगवान... मैं जान हार सकती हूँ... पर विश्वास कभी नहीं...

विश्व कोई जवाब नहीं देता, बस दोनों की जकड़ बढ़ जाती है l थोड़ी देर बाद दोनों एक दूसरे से अलग होते हैं और पिछली बार की तरह छत पर बनी चबूतरे पर बैठ जाते हैं l आज आसमान में चाँद नहीं था फिर भी दोनों आसमान की ओर देखे जा रहे थे l विश्व एक सवाल छेड़ देता है

विश्व - आप अगर डरी नहीं थीं... तो मुझे ढूंढ क्यूँ रही थी...

रुप - (विश्व की तरफ घूम कर उसका चेहरा दोनों हाथों से पकड़ कर अपने तरफ करती है और पूछती है) मेरे आँखों में झाँक कर देखो... क्या तुम्हें डर दिख रहा है...
विश्व - नहीं.... नहीं दिख रहा है... पर फिर भी...
रुप - ( विश्व की चेहरे को छोड़ कर आसमान को ओर देखने लगती है) मैं बस.. अपनी प्यार को ... अपनी चाहत को.. उसकी गहराई को परख रही थी... कहीं मेरा प्यार... कोई तुक्का तो नहीं... पर आज तुम्हें छत पर पा कर... मुझे अपने प्यार पर यकीन हो गया है... के मेरा प्यार.. मेरी चाहत में कहीं भी कोई मिलावट नहीं है... झूठ नहीं है... (रुप की यह बात विश्व एक टक सुने जा रहा था, रुप विश्व की तरफ देख कर पूछती है) ऐसे क्या देख रहे हो...
विश्व - (मुस्करा कर) बस आपको देख रहा हूँ...
रुप - पर आसमान में चाँद नहीं है... फिर मेरे चेहरे पर क्या है... अंधेरे में तुम्हें पता कैसे चल रहा है...
विश्व - आसमान में चाँद से मुझे क्या लेना देना... मेरा चाँद तो मेरे आँखों के सामने है... मेरे इस चाँद के चाँदनी के आगे.. भला उस चाँद का क्या मुकाबला...
रुप - ओ हो... आज तो बड़े शेरों शायरी के मुड़ में हो...
विश्व - इसका दोष भी आप पर जाता है... आप हो ही इतनी सुंदर... बड़े बड़े गँवार भी शायर बन जाएंगे... इस बेपनाह हुस्न को देख कर...
रुप - बस बस... (अपने दोनों हाथों को विश्व के कंधे पर रख कर हाथ पर अपना ठुड्डी रख कर) इतना तारीफ ना कीजिए... अभी जाग रही हूँ... जागी ही रहने दीजिए... इतना तारीफ करोगे... तो सपना समझ कर नींद की आगोश में ना खो जाऊँ... (अचानक अलग होती है) एक बात पूछूँ...
विश्व - जी पूछिये...
रुप - राजा साहब तो महल में होंगे ना... फिर तुम कैसे अंदर आ गए...
विश्व - बस... आ गया...
रुप - अरे... ऐसे कैसे... याद है... जब मैंने तुम्हें आने के लिए कहा था... तब तुम... बिजली गुल कर अंदर घुसे थे...
विश्व - हाँ... तब मैं चाहता था... की राजा साहब को मालूम हो... के कोई अंदर आया था... इसलिए तो सुबह सुबह... मैंने छोटे राजा जी से... सलाम नमस्ते की थी...
रुप - पर अब...
विश्व - आप भूल रही हो... मैं इस महल के हर चप्पे-चप्पे से वाकिफ हूँ...
विश्व - सच्ची...
विश्व - ह्म्म्म्म... नहीं थोड़ी सी झूठ बोला है...
रुप - थोड़ा सी झूठ... मतलब कितना...
विश्व - राजा साहब कुछ देर पहले... रंग महल की ओर गये हैं... मैं मौका देख कर... घुस गया... और उनके आने से पहले... मुझे चले जाना होगा...
रुप - ह्म्म्म्म... मतलब तुम्हें भी डर लगता है...
विश्व - क्यूँ नहीं... मैं डर रहा था.. आपके लिए
रुप - क्यूँ...
विश्व - (चबूतरे से उठ कर छत के किनारे तक जाता है)
रुप - अनाम... तुमने बताया नहीं....
विश्व - (रुप की ओर मुड़ता है) मुझे जब खबर लगी... के राजा साहब ने... आपकी शादी तय कर दी... हाँ मैं डर गया था... (एक गहरी साँस लेकर) मुझे... वीर और अनु याद आ गए...

विश्व इतना कह कर रुक जाता है l रुप चबूतरे से उठ कर भाग कर जाती है और विश्व के सीने से लग जाती है l विश्व भी अनु को सीने में कस लेता है l

विश्व - वीर जब भी याद आता है... मुझे बहुत दर्द दे जाता है... मेरा वज़ूद... मेरी शख्सियत को कठघरे में खड़ा कर देता है... और एक सवाल हरदम झिंझोड़ता रहता है... क्यूँ आखिर क्यूँ... मैं पांच मिनट पहले नहीं पहुँचा...
रुप - (अपना सिर ऊपर उठा कर विश्व को देखते हुए) कहीं तुम मुझे ले चलने के लिए तो नहीं आए हो...
विश्व - जो आप कहेंगी वही होगा...
रुप - मैं किसी मज़बूरी या खौफ के चलते... अभी जाना नहीं चाहती... तुम बस यह शादी रुकवा दो... जिस दिन जाऊँगी... राजा साहब को बेबस देखते हुए जाऊँगी... उन्होंने हर किसी की बेबसी का फायदा उठाया है... मैं अपनी बिदाई पर.. उन्हें बेबस और लाचार देखना चाहती हूँ... वही पल... असल में बदला होगा... उनके हर एक सितम का...
विश्व - (मुस्कराते हुए) चलो... मेरा यह डर भी आपने ख़तम कर दिया...
रुप - उफ्फ्फ... कभी तो मुझे तुम कहो...
विश्व - नहीं... यह मुझसे नहीं होगा... आप राजकुमारी हो... मैं आपका गुलाम...
रुप - (बिदक कर) छोड़ो मुझे... (अलग हो जाती है) बड़े आए गुलाम...
विश्व - क्या हुआ...
रुप - वह साला कमीना... पहली मुलाकात में ही... मुझे तुम बोल रहा था...
विश्व - राज कुमारी जी... आप कबसे गाली देने लगी...
रुप - शुक्र मनाओ तुम्हें नहीं दी... बेवक़ूफ़.. हूँह्ह्... पूछा नहीं कौन था वह...
विश्व - इसमें पूछने वाली क्या बात है... मैं जानता हूँ... मेरी नकचढ़ी ने... उसको अच्छे से निचोड़ दिया होगा..

रुप हँस देती है, विश्व की तरफ जाती है l विश्व की हाथों को लेकर अपनी कमर पर रखती है l विश्व के गले में हाथ डालकर रुप विश्व के पैरों पर खड़ी हो जाती है और एड़ी उठा कर विश्व के चेहरे के सामने अपना चेहरा लाती है l विश्व की धड़कन बढ़ जाती है, रुप आगे बढ़ कर विश्व की नाक हल्के से काट लेती है l

विश्व - आह... आप हमेशा मेरी नाक के पीछे क्यूँ पड़े रहते हो...
रुप - (विश्व के नाक पर अपनी नाक रगड़ते हुए) मुझे.. अच्छा लगता है...
विश्व - (कांपते लहजे से) मुझे लगता है... अभी मुझे जाना चाहिए...
रुप - चले जाना,.. जरा ठहरो...
यह मंज़र देख कर जाना...
किसीका दम निकलता है...
विश्व - पता नहीं मुझे... पर मैं ज्यादा देर रुका... तो मेरा दम निकल जाएगा...
रुप - यु...

रुप अपना होंठ विश्व की होंठ पर रख देती है l दोनों के होठों के गुत्थम गुत्था शुरु हो जाता है l विश्व की हाथ रुप की कमर से उठ कर रुप के सिर को पकड़ लेता है और अपने में समेटने की कोशिश करता है l फिर उसका हाथ फिसलते फिसलते फिर कमर तक आ जाते हैं पर कमर पर रुक जाते हैं l कमर पर विश्व के हाथ मुट्ठी बाँध लेता है l रुप अलग होती है और विश्व के पैरों से उतरती है l दोनों हांफ रहे थे, जहां विश्व के चेहरे पर एक शॉक था वहीँ रुप के चेहरे पर एक शरारती मुस्कान था l

रुप - बहुत डरते हो... बेवक़ूफ़ तो हो ही.. अब डरपोक भी हो...
विश्व - हिरण... शेरनी से क्यूँ नहीं डरेगा...
रुप - पर यहाँ तो शेरनी खुद हिरण के हाथों शिकार होना चाहती है... पर हिरण है कि... हाथ पैर सब... अपाहिज हो जाता है...

विश्व रुप की हाथ को पकड़ कर खिंचता है l दोनों की नजरें मिलती हैं l रुप की माथे पर उड़ती लटों को हटाता है और रुप के चेहरे को दोनों हाथों से पकड़ कर कहता है l

विश्व - प्यार में बहुत गर्मी होती है... कभी कभी संभलना मुश्किल हो जाता है... प्यार में.. जब जब जो जो होना है... उसे तब तब होने देते हैं ना... जब समाज... संस्कार और भगवान का आशिर्वाद होगा... तब हमारे हिस्से की चार दीवारी और बंद दरवाजा होगा... उस दिन शायद आपको मुझसे कोई शिकायत नहीं होगी...
रुप - ओह... अनाम... (रुप विश्व के सीने से लग जाती है) तुम कितने अच्छे हो... आई लव यु...
विश्व - आई लव यु ठु.. (तभी दूर से एक सियार के भौंकने की आवाज आती है) लगता है... राजा साहब... रंग महल से निकल गए हैं... कुछ ही मिनट में पहुँच जायेंगे... (विश्व रुप की माथे पर एक किस करता है) राजकुमारी जी... आप वही करते जाइयेगा... जैसा आपको राजा साहब कहते जाएं... बाकी आप मुझ पर या अपने आप पर भरोसा मत खोइयेगा...
रुप - जैसी आपकी ख्वाहिश मेरे गुलाम...

दोनों हँसने लगते हैं l फिर विश्व इशारे से रुप को जाने के लिए कहता है l रुप जाने के लिए पलटती है और कुछ कदम चलने के बाद मुड़ती है पर तब तक विश्व गायब हो चुका होता है l रुप का मुहँ हैरानी के मारे खुल जाती है l

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अगले दिन
दिन के दस बजते बजते भीड़ छट चुकी थी l गौरी अपना गल्ला बंद कर अंदर जाने लगती है l वैदेही भी सारे बर्तनों को समेट कर धोने के लिए जमा करती है l इतने में दुकान पर सुषमा और शुभ्रा आते हैं l वैदेही उनके तरफ देखती है और महसुस करती है जैसे वह कुछ बात करना चाहते तो हैं पर हिचकिचाते रहे हैं l

वैदेही - आप अंदर आइए... आइए ना... (सुषमा और शुभ्रा एक दुसरे की ओर देखते हैं फिर अंदर आते हैं) बैठिए... (दोनों झिझकते हुए बैठते हैं)

वैदेही पानी की ग्लास लाकर उन्हें देती है l फिर एक कुर्सी खिंच कर उनके पास बैठ जाती है l

वैदेही - बड़े भाग्य का दिन है आज... मेरे घर... छोटी रानी और युवराणी आई हुई हैं... कहिये... क्या सेवा कर सकती हूँ..
शुभ्रा - ऐसे ना कहिये... महीनों पहले आप ऐसे कहतीं तो उस बात की कोई मायने होती... पर आज यह बात कोई मायने नहीं रखती... ना छोटी माँ आज रानी हैं... ना ही... मैं कोई युवराणी... वैसे भी... हम आज फरियादी बन कर आए हैं...
वैदेही - अरे बापरे... इतनी बड़ी बात... आप लोग मेरे सपने हैं... भला अपनों के यहाँ कोई फ़रियाद लेकर आता है... हक् से आता है.. हक जताता है... बस हुकुम कीजिए... जो बस में होगा... जरुर करूँगी...

तभी टीलु कुछ सामान हाथ में लेकर अंदर आता है l इन दोनों को देख कर थोड़ा स्तब्ध हो जाता है l फिर वैदेही की ओर देखता है l

वैदेही - आज हमारे यहाँ मेहमान आए हैं... इसलिये... दोपहर को दुकान बंद रहेगी... और आज... (शुभ्रा की ओर इशारा करते हुए) इन्हींकी मर्जी का खाना बनेगा...
शुभ्रा - नहीं नहीं...
वैदेही - अरे कैसे नहीं... मेरी माँ कहा करती थी... गर्भवती स्त्री का किसी के द्वार आना सबसे शुभ होता है... और उन्हें उनकी इच्छानुसार खाना खिलाने से... सौ जन्म का पुण्य मिलता है... इसलिए... बेझिझक बताइए... आज यहाँ आपकी ही मन पसंद का भोजन बनेगा...
शुभ्रा - वैदेही जी... हम किसी और काम से आए हैं...
वैदेही - वह भी सुन लुंगी... पर पहले मुझे आपका सेवा तो करने दीजिए...
सुषमा - वैदेही... हम यहाँ बहुत टेंशन में हैं... तुम जानती भी हो क्या हुआ है...
वैदेही - ओह... माफ कर दीजिए... मुझे लगा नहीं था कि किसी गम्भीर विषय पर बात करने के लिए आप यहाँ आए हैं...
सुषमा - बात बहुत ही गम्भीर है... और हम चाहते हैं कि... तुम हमें कोई राह दिखाओ...
वैदेही - ठीक है... मुझसे जो बन पड़ेगा... वह मैं जरुर करूंगी...
शुभ्रा - हाँ आप ही कर सकती हो... क्यूँकी... गाँव में सब कहते हैं... की आपकी इस चौखट से... ना तो कोई खाली हाथ लौटा है... ना ही कोई खाली पेट...
वैदेही - आप बात तो शुरु कीजिए... जब से आए हैं... मेरी बड़ाई किए जा रहे हैं...
टीलु - सच ही तो कहा है उन्होंने... दीदी... तुम्हारे दर से... कभी कोई जरूरत मंद ना खाली पेट लौटा है... ना खाली हाथ...
वैदेही - तु यहाँ से जा... वर्ना तु जरूर आज भूखा रहेगा...

टीलु झट से अंदर की ओर चला जाता है l उसे जाते हुए तीनों देख रहे थे l उसके जाने के बाद सुषमा वैदेही से कहना शुरु करती है l

सुषमा - देखो वैदेही... तुम्हारा यह मुहँ बोला भाई... झूठ नहीं कहा है... मैं तुम्हें बेटी नहीं कह सकती... क्यूँकी इससे... उस रिश्ते पर तोहमत लगेगी... मैं जानती हूँ... क्षेत्रपाल परिवार ने तुम्हारे साथ क्या किया है... पर तुम स्वयं सिद्धा हो... तुम देवी हो... इसलिए आज हम दोनों सास बहु... तुम्हारे दर पर आए हैं... हमारी बेटी... रुप नंदिनी के लिए... (वैदेही थोड़ी गम्भीर हो जाती है) वह पाँच साल की थी... जब उसकी माँ इस दुनिया से चली गई... मैंने अपने सीने से लगा कर बड़ा किया... मुझे अपने बच्चों से ज्यादा अजीज है... पता नहीं... तुम भाई बहन को पता है भी या नहीं... अगर पता है... तो तुम लोग गम्भीर क्यूँ नहीं हो... राजा साहब ने... नंदिनी की शादी एक अधेड़ से तय कर दी है.... मैं और मेरी बहु... यहाँ उसकी सुरक्षा मांगने आए हैं... (हाथ जोड़ देती है)
वैदेही - अरे अरे... यह आप क्या कर रही हैं...
शुभ्रा - वक़्त की विडंबना है... कभी क्षेत्रपालों को गुरुर हुआ करता था... के उनके हाथ कभी आकाश की ओर नहीं देखती... पर आज हम तुम्हारे सामने हाथ फैलाए आए हैं...
वैदेही - राजा भैरव सिंह... कल आपके पास से सीधे मेरे पास आए थे...

इतना कह कर वैदेही अपनी टेबल की ड्रॉयर खोल कर वही इंवीटेशन कार्ड निकाल कर सुषमा को दिखाती है l शुभा और सुषमा दोनों हैरान हो जाते हैं और वैदेही की ओर देखने लगते हैं l

वैदेही - जब भैरव सिंह... गिरफ्तार हो कर जा रहा था... यहाँ मुझसे मिलने आया था और चुनौती दे कर गया था... मुझे और विशु की हालत खस्ता कर देगा... और कटक छोड़ कर राजगड़ आने से पहले... विशु को भी... चेतावनी देकर आया था... के उसके तन मन और आत्मा को ज़ख्मी कर देगा...
सुषमा - मतलब तुम सब जानती हो...
वैदेही - हाँ... जानती हूँ... और यह भी जानती हूँ... यह शादी नहीं होगी...
शुभ्रा - यह आप कैसे कह सकते हैं... राजा साहब ने... अपनी नई फौज बनाई है... बाहर से लोग आए हैं...
वैदेही - फिर भी... यह शादी नहीं होगी...
सुषमा - मैं तुम्हारी आत्मविश्वास की कद्र करती हूँ... पर अति आत्मविश्वास और आत्मविश्वास के बीच बहुत ही महिम दीवार होती है...
वैदेही - यह मेरा विश्वास है... बल्कि यह मेरा ही नहीं... आपकी नंदिनी का भी यही विचार है...
सुषमा और शुभ्रा - क्या...
वैदेही - हाँ...
सुषमा - ठीक है... यह उसका विचार हो सकता है... पर... राजा साहब... अपने अहं के आगे... किसीको कुछ नहीं समझते...
सुषमा - जब किसी का अंत करीब आती है.... तो उसका बुद्धि और विवेक खो जाती है... राजा भैरव सिंह के साथ भी ऐसा ही हुआ है... वह इस विषय में... विश्व को दिली और दिमागी तौर से कमजोर करने के लिए... ऐसा कदम उठाया है... पर जब दो प्रेमी... इससे परेशान नहीं हैं... तो हम क्यूँ हों...
शुभ्रा - क्या कहा तुमने... विश्व और रुप परेशान नहीं हैं...
वैदेही - (मुस्कराती है) रात को ही... विशु... नंदिनी से मिलकर आया है... इसलिए... आप भी निश्चिंत हो जाइए... यह शादी नहीं होगी...
शुभ्रा - भगवान करे... आपकी बात सही हो... पर कल से... विक्रम जी बहुत परेशान थे... उनसे रहा नहीं गया... तो अभी कुछ देर पहले महल की ओर गए हैं...
वैदेही - तो ठीक है ना... आप उनसे सारी जानकारी प्राप्त कर सकतीं हैं... (दोनों कशमकश के साथ अपना सिर झुका लेते हैं) वह सब जाने दीजिए... शुभ्रा जी... दिल को तसल्ली दीजिए... और जो भी आपका मन पसंद हो कहिए... आपको खिलाए बिना जाने नहीं दूंगी... ह्म्म्म्म


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केके पिनाक के कमरे में कुर्सी पर बैठा हुआ था l केके का पैर एक नौकर दबा रहा था l केके कमरे की चारों ओर नजर घुमा रहा था l नौकर देखता है केके किसी गहरे सोच में खोया हुआ है l कोई ऐसी बात थी जो उसे असहज कर रही थी l

नौकर - मालिक... क्या आपको हमारी सेवा अच्छी नहीं लगी...
केके - (सोच से बाहर आता है) नहीं नहीं...
नौकर - पर हम तो जी जान से आपकी सेवा कर रहे हैं...
केके - अरे नहीं... मेरा मतलब... तुम बहुत अच्छा काम कर रहे हो... हम बस कुछ और सोच रहे थे... वैसे क्या नाम है तुम्हारा...
नौकर - जी सत्यवान... पर सभी मुझे सत्तू कह कर बुलाते हैं...
केके - तो सत्तू...
सत्तू - जी... जी मालिक...
केके - तुम जानते हो... हम कौन हैं...
सत्तू - जी मालिक... आप इस परिवार के होने वाले... जामाता हैं... तभी तो... मुझे आपकी सेवा करने के लिए... जिम्मेदारी सौंपी गई है...
केके - ह्म्म्म्म... अब मेरा पैर छोडकर कुर्सी पर बैठ जाओ....
सत्तू - ना मालिक ना... हम महल के नौकर हैं... (कह कर फर्श पर पालथी मार कर बैठ जाता है) अब पूछिये...
केके - अच्छा सत्तू... क्या तुमने पूरा महल देखा हुआ है...
सत्तू - नहीं मालिक... यह पहली बार है... जब हम महल के इतने अंदर आए हैं... वर्ना... हमारी औकात बरामदे तक ही होती थी... फिर भी... आप पूछिये... क्या जानना चाहते हैं... जो मुझे मालूम होगा... मैं बता दूँगा...
केके - अच्छा... कितने कमरे हैं यहाँ...
सत्तू - वह तो नहीं पता... पर पंद्रह बीस कमरे होंगे... और जो भी हैं बड़े बड़े कमरे हैं...
केके - रहते कितने लोग हैं...
सत्तू - जनाना महल में... राजकुमारी जी रहती हैं... और एक बड़े से कमरे में... बड़े राजा जी रहते हैं... उनकी सेवा में भी बहुत लोग लगे हुए हैं...
केके - ह्म्म्म्म...
सत्तू - और कुछ...
केके - तुम...
सत्तू - हाँ हाँ पूछिये...
केके - य़ह तुम... विश्वा के बारे में क्या जानते हो...
सत्तू - ज्यादा कुछ नहीं मालिक... मुझे तो तीन साल हुए हैं... राजा साहब के महल में... पर इतना जानता हूँ... विश्वा इस महल का बहुत पुराना नौकर था... राजा साहब ने उसे सरपंच बनाया... पर यह उनसे गद्दारी पर आ गया... उसने कई कत्ल भी किए हैं... और जैल भी गया था... पर था साला पढ़ाकु... जैल में रहकर बड़ा वकील बन गया है... अब देखिए ना... उसकी एहसान फरामोशी... राजा साहब के खिलाफ अब केस लड़ रहा है...
केके - उसका और राजकुमारी का क्या रिश्ता है... कुछ जानते हो...
सत्तू - हाँ जानता हूँ ना... विश्वा... बचपन में... राजकुमारी जी को सात साल तक पढ़ाया है...
केके - ओ... मतलब पहचान.. बचपन वाला है...
सत्तू - जी मालिक...
केके - अच्छा सत्तू... राजकुमारी की शादी... किसी राज घराने में... या फिर... किसी बड़े घर में होनी चाहिए थी... है ना...
सत्तू - ऐसी बातेँ मुझसे मत पूछिये मालिक... बहुत छोटे लोग हैं... क्या बोलें... हम बस इतना जानते हैं... राजा साहब... हमारे भगवान हैं... उनकी बात और फैसला... यहाँ पर रहने और जीने वालों की जीने की फरमान होती है... राजा साहब ने अगर आपको पसंद किया है.. तो यह राजकुमारी और आपका भाग्य है...
केके - ह्म्म्म्म... वैसे... मेरे बारे में... तुम्हारे साथी कैसी बात कर रहे हैं...
सत्तू - राजा साहब के फैसले पर... हम कभी बात नहीं करते... बस उनके हुकुम बजाते हैं...
केके - अच्छा यह बताओ... राजा साहब ने कभी विश्वा को... उसकी गुस्ताखी की सजा देने का नहीं सोचा...
सत्तू - अब हम क्या कहें मालिक... विश्वा अब कोई आम विश्वा नहीं है... बवंडर है... हमने कई बार कोशिश की उसे मिटाने के लिए... पर हर बार वह हम पर भारी पड़ा... एक अकेला... बीस बीस को लपक लेता है... एक बार तो महल के बाहर ही... (सत्तू बताने लगता है कैसे गाँव वालों के जमीन और घरों के कागजात लेने वैदेही और विश्वा आए थे और कैसे कागजात लेकर गए थे)
केके - और राजा साहब खामोश हैं...
सत्तू - क्या करेंगे फिर... आखिर वह राजा हैं... किसी ऐरे गैरे को... राह चलते को... कैसे हाथ लगा सकते हैं... उनको हम पर भरोसा था... पर... हम ही खरे नहीं उतरे... इसीलिए तो अब... बाहर से लोगों को लाए हैं... अब अगर विश्वा कुछ भी हिमाकत करेगा... तो इसबार वह बच नहीं पाएगा... वैसे एक बात पूछूं मालिक...
केके - पूछो...
सत्तू - आप यह विश्वा के बारे में... इतना पूछताछ क्यूँ कर रहे हैं... क्या आप उसे पहले से जानते हैं...
केके - अरे नहीं... बस ऐसे ही सुना था... अच्छा... xxx चौक पर... एक औरत का दुकान है... उसका राजा साहब का... मतलब... कुछ...
सत्तू - वह औरत... वही तो विश्वा का बहन... वैदेही है...
केके - (चौंकता है) क्या...
सत्तू - क्यूँ... क्या हुआ मालिक...
केके - कुछ नहीं... (माथे पर चिंता की लकीर उभर आती है) राजा साहब... महल को लौटते वक़्त... उसके दुकान पर गए थे...
सत्तू - ज्यादा तो नहीं जानता पर... सुना है... कभी रंग महल में... राजा साहब के ऐस गाह की रौनक हुआ करती थी... और वही एक औरत है... पूरे राजगड़ में... जो राजा साहब से सिर उठा कर आँखों में आँखे डाल कर बात करती है...

तभी कमरे के बाहर दस्तक होती है, दोनों की नजरें दरवाजे की तरफ जाती है l एक नौकर खड़ा था l

केके - हाँ क्या हुआ...
नौकर - राजा साहब आपको... दीवान ए आम में आने के लिए कहा है...
केके - ठीक है... तुम चलो... (सत्तू से) तुम मुझे वहाँ ले चलो...
सत्तू - ठीक है मालिक....

दोनों कमरे से निकल कर दीवान ए आम की ओर जाने लगते हैं l जाते वक़्त केके अपनी नजरें चारो ओर दौड़ा रहा था l कुछ देर बाद दोनों दीवान ए आम में पहुँच जाते हैं l दोनों देखते हैं सिंहासन पर भैरव सिंह बैठा हुआ था और उसके सामने विक्रम खड़ा था l केके को देख कर भैरव सिंह केके से कहता है

भैरव सिंह - आओ केके आओ... महल में कोई शिकायत तो नहीं...
केके - जी नहीं राजा साहब...
भैरव सिंह - (विक्रम से) तो... विक्रम सिंह... बताने की कष्ट करेंगे... महल में जबरदस्ती घुसने की कोशिश क्यूँ कर रहे थे...
विक्रम - मैं यहाँ अपनी बहन से मिलने आया था...
भैरव सिंह - क्यूँ... क्यूँ आए हो... तुमने तो सभी रिश्ते नाते तोड़ कर महल से चल दिए थे...
विक्रम - मैं... महल से क्षेत्रपाल छोड़ गया था... तब भी... अपनी बहन को ले जाना चाहता था... शुक्र मनाईये... वह अपने दादा की सेवा करने के लिए रुक गई... वर्ना...
भैरव सिंह - वर्ना... हाँ हाँ... वर्ना... शायद तुम भूल रहे हो... वह तुम्हारे साथ जाती ही नहीं...
विक्रम - आप उसकी अच्छाइ.. और मासूमियत का... नाजायज फायदा उठा रहे हैं...
भैरव सिंह - नाजायज... फायदा... जो... जिसकी... जितनी काबिल है... हम उसकी उतनी... वही किस्मत लिख रहे हैं... नंदिनी के किस्मत में वही मिल रहा है... जो उसने हमसे खोया है... और इस महल के बाहर कमाया है... हम तो बस मोहर लगा रहे हैं...
विक्रम - (केके की ओर दिखा कर) यह... इसको नंदिनी की किस्मत में थोप रहे हैं... यह हरामी गटर का सुअर... मेरी जुती चाटने वाला...
भैरव सिंह - केके...
केके - जी राजा साहब...
भैरव सिंह - आओ... हमारे बगल में बैठो...

केके जा कर भैरव सिंह के पास वाले एक कुर्सी पर बैठ जाता है l विक्रम की आँखें गुस्से से अंगारों की तरह दहकने लगती हैं l विक्रम को मुट्ठीयाँ भिंच जाती हैं l विक्रम का यह रुप देख कर केके की हलक सुख जाता है l

भैरव सिंह - अब केके की जुतें.. इस घर के नौकर साफ करते हैं...
विक्रम - मुझे यह समझ में नहीं आ रहा... आप ऐसा क्यूँ कर रहे हैं... अपनी कद से ऊपर उठने के बजाय... गिरते जा रहे हैं...
भैरव सिंह - कद किसका क्या है... कितना है... यह फैसला भी हम ही करते हैं...
विश्व - मैं आपसे कोई बहस करना नहीं चाहता... आप नंदिनी को बुलाईये... मैं उसकी मर्जी जानना चाहता हूँ...
भैरव सिंह - वही तो हम पूछ रहे हैं... किस हक से... जब आप महल से हर रिश्ते नाते तोड़ कर जा चुके हैं...
विक्रम - महल में एक रिश्ता अभी जिंदा है... मैं उसके वास्ते आया हूँ... उसकी मर्जी... और खैरियत पूछने आया हूँ....
भैरव सिंह - अगर मर्जी नहीं हुई तो...
विक्रम - तो... दुनिया इधर से उधर क्यूँ ना हो जाए... यह शादी कोई नहीं करा सकता... इस महल का... भगवान भी नहीं...
भैरव सिंह - ओ हो... खून के सामने खून खड़ा है... और खून को ललकार रहा है..
विक्रम - यही दस्तूर है... इतिहास उठाकर देख लीजिए... बात जब आन पर आ जाती है... खून को खून ही ललकारता है... और खून को खून ही हटाता है...
भैरव सिंह - बच्चे कैसे पैदा किया जाता है... यह बच्चे कभी बाप को नहीं सिखाते...
विक्रम - रजवाड़ों का खूनी इतिहास उठा कर देख लीजिए... बाप ने कभी औलादों को नहीं हटाया...
भैरव सिंह - तो खून में इतनी गर्मी आ गई... के बाप को हटाने की सोच रहे हो...
विक्रम - तब तक तो नहीं... जब तक... नंदिनी मेरी बहन है... और मुझे उससे बात करनी है...
भैरव सिंह - (कुछ देर की चुप्पी, तनाव भरा माहौल था, फिर भैरव सिंह मुस्कराते हुए) ठीक है... आज हम भी देखेंगे... हमारी लिखी किस्मत और... तुम्हारी बगावत की टक्कर होती है या नहीं... (सत्तू से) जाओ बड़े राजा जी के कमरे तक खबर पहुँचा दो... राजकुमारी जी को हमने अभी यहाँ याद किया है...

सत्तू भागते हुए चला जाता है l बाहर एक नौकरानी को नागेंद्र के कमरे जाकर रुप को बुलाने के लिए कहता है l कुछ देर के बाद रुप अंदर आती है और अंदर की नज़ारा देखती है l भैरव सिंह और केके दोनों कमरे के बीचोबीच कुर्सी पर बैठे हुए हैं और उनके आगे विक्रम खड़ा हुआ है l रुप को देख कर विक्रम आपनी बाहें फैला देता है रुप दौड़ कर उसके गले लग जाती है l थोड़ी देर बाद विक्रम उसे अलग कर उसके चेहरे को गौर से देखता है l रुप के चेहरे पर ना कोई ग़म ना कोई शिकन था l यह देख कर विक्रम को थोड़ी हैरानी होती है l

विक्रम - कैसी है मेरी गुड़िया...
रुप - बहुत अच्छी हूँ भैया... पर एक दुख तो रहेगा ना... जिस वक़्त भाभी के पास ननद को होना चाहिए... तब मैं नहीं हूँ...
विक्रम - अब भी कोई देर नहीं हुई है... चल मैं ले चलता हूँ...
रुप - क्या करूँ भैया... एक रिश्ते ने मुझे इस महल से बाँध रखा है... वर्ना चली ही जाती...
विक्रम - नंदिनी... मेरी बहन... (केके की ओर दिखा कर) तु इस आदमी के बारे जानती है...
रुप - हाँ भैया... यह वही है ना... जो सालों साल... तुम्हारे जुते चाटता था... (यह बात सुनते ही केके का चेहरा कड़वा हो जाता है)
विक्रम - यह अभी इस महल में... राजा साहब के बगल में क्यूँ है जानती हो ना..
रुप - हाँ भैया... श्मशान जाने की उम्र में... कटक से इतना दूर... अपनी फजिहत करवाने आया है...
भैरव सिंह - (गुर्राता है) नंदिनी...
विक्रम - (भैरव सिंह की ओर हाथ दिखा कर आगे कुछ बोलने से रोक देता है और रुप से) तुझे यह शादी मंजूर नहीं है ना...
रुप - भैया... शादी हो तब ना... जब यह शादी होनी ही नहीं है... फिर मैं उसकी चिंता क्यूँ करूँ...
विक्रम - तुझसे ज़बरदस्ती भी करवा सकते हैं...
रुप - ज़बरदस्ती तब करेंगे ना... जब मैं मना करूंगी...
विक्रम - मैं समझा नहीं गुड़िया...
रुप - भैया... आप ज़रूर आना... भाभी... चाची माँ और चाचाजी को लेकर... वह तमाशा... राजगड़ के साथ साथ... आप भी देखना...
विक्रम - बस बहना बस... मैं बस तेरी खैर ख़बर और मर्जी जानने आया था... तेरा यह विश्वास देख कर... मैं सब समझ गया...
रुप - देखा भैया... बातों ही बातों में भूल गई... भाभी.. चाची माँ और चाचाजी कैसे हैं...
विक्रम - तेरे लिए फिक्र मंद थे... अब मेरी फिक्र मीट गई... समझ उनकी भी मीट गई... अच्छा... अब अंदर जा...

रुप फिर से अपने भाई के गले लगती है और फिर वहाँ से निकल जाती है l विक्रम अब एक मुस्कराहट के साथ भैरव सिंह के तरफ देखता है l

भैरव सिंह - हो गई तसल्ली...
विक्रम - जी... हो गई... अब मुझे... आपकी फिक्र हो रही है...
भैरव सिंह - तुम्हें लगता है... यह शादी कोई रोक सकता है...
विक्रम - मेरी बहन की आत्मविश्वास बोल रहा है... और मुझे यह साफ एहसास हो रहा है... नंदिनी की आत्मविश्वास की आँच को आप भी महसूस कर रहे हैं...
भैरव सिंह - हम उस दिन किसी को भी... अपनी जगह से हिलने तक नहीं देंगे.... ना हवा.. ना पानी... ना खून को...
विक्रम - आप उसी पर कायम रहिएगा... जोर नंदिनी पर मत आजमा बैठिएगा... क्यूँकी चाची माँ ने कहा था... पहली बार... आप ही के अहंकार से... आप ही का खून का अहंकार टकराया है...
भैरव सिंह - और हमारे अहंकार से टकराने वाले हर वज़ूद को नकार देते हैं... हमसे कोई जीत नहीं सकता... चाहे वह हमारा खून ही क्यूँ ना हो... इसलिए हमारी फिक्र मत करो
विक्रम - आपके खून के साथ किसी और का जुनून भी टकराएगा... इसीलिए मुझे फिक्र हो रहा था... (कह कर विक्रम पलट कर जाने लगता है फिर अचानक रुक कर मुड़ता है) मुझसे नंदिनी चहकते हुए मिली... शादी के दिन भी मुझे वैसी ही मिलनी चाहिए... वर्ना... रजवाड़ी इतिहास... फिर से अपने आप को दोहराएगा....

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शादी को एक दिन रह गया है
उसके पूर्व संध्या के समय विश्व नदी के तट पर बने सीढ़ियों पर बैठा डूबते सूरज की देख रहा था l कोई उसके पीछे से सीढ़ियां उतरता हुआ महसूस होता है l विश्व नजर घुमा कर देखता है पिनाक सीढ़ियों से उतर कर आ रहा था l विश्व खड़ा हो जाता है l

पिनाक - यह अच्छी निशानी है... यह नदी का किनारा... ढलता हुआ शाम... डूबता हुआ सुरज... किसी को भी... खोने को मजबूर कर सकता है... पर फिर भी तुम चौकन्ना थे... मैं दबे पाँव आ रहा था... तुम सतर्क हो गए...
विश्व - (कुछ नहीं कहता चुप रहता है)
पिनाक - बैठो... मैं भी तुम्हारे साथ... कुछ देर बैठने के लिए आया हूँ... (सीढ़ियों पर बैठ जाता है, विश्व भी उसे बैठा देख कर बगल में बैठ जाता है) ज्यादातर डूबते सूरज को वही लोग देखते हैं... जिन्हें अंधेरे में कुछ खोने का डर हो...
विश्व - हाँ आपकी बात सच है... पर सुबह की तरह शाम भी एक सच है... अगर उजाले के बाद... अंधेरा आना तय है... तो राह के लिए भटकने से पहले... रौशनी का इंतजाम कर लेना चाहिए... मैं यहाँ... रौशनी ढूंढ रहा हूँ...

कुछ देर के लिए दोनों के बीच एक चुप्पी सी छा जाती है l कुछ देर बाद विश्व पिनाक से कहता है l


विश्व - आज आपको यहाँ देख कर अच्छा लगा...
पिनाक - हाँ... मुर्दों की तरह... मुर्दों के बीच जिए जा रहा था... जब जीने की ख्वाहिश जागी... तब सब कुछ लूट चुका था... जिंदा लाश बन कर रह गया हूँ...
विश्व - आपने कहा... आप मुझसे बात करने आए हैं...
पिनाक - हाँ... इससे पहले हम जब भी मिले... आपस में... रंजिश भरे दिल में मिले... अब रंजिश की जगह तो नहीं है... पर...
विश्व - पर...
पिनाक - पर एक मासूम सी जान है... जो एक राक्षस के पिंजरे में कैद है...
विश्व - आप... राजकुमारी जी की बात कर रहे हैं...
पिनाक - हाँ... मैं नंदिनी की बात कर रहा हूँ...
विश्व - (एक गहरा साँस छोड़ते हुए) आपको... क्या लगता है...
पिनाक - मैं अब क्या कहूँ... मुझे परेशान देख कर... विक्रम ने ही तुम्हारे पास यहाँ आने के लिए कहा था... क्यूँकी उसे मालूम था... तुम मुझे यहाँ मिलोगे...
विश्व - आपको... राजकुमारी जी की चिंता परेशानी में डाल रखा है...
पिनाक - हाँ... मेरी पत्नी... बहु और विक्रम तक... आश्वस्त हैं... पर मैं नहीं हो पा रहा था... इसलिए विक्रम ने मुझे तुम्हारे पास भेज दिया...
विश्व - पर आपने अभी तक... राजकुमारी जी को लेकर... कोई भी सवाल नहीं किया है...
पिनाक - विश्व... वीर को... खोने के बाद... मैं खुद को एक लुटा पीटा भिकारी समझ रहा था... पर ज्यूं ही... राजा साहब ने... शादी का कार्ड दिया... तब मुझे एहसास हुआ... मेरे पास और भी कुछ क़ीमती है... जो राजा साहब की जिद की बेदी पर बलि चढ़ने जा रही है...
विश्व - आप मुझसे क्या चाहते हैं...
पिनाक - वादा... सिर्फ एक वादा...
विश्व - कैसा... वादा...
पिनाक - विश्व रुप की एका... विश्व और रुप दो शब्द या दो प्राण नहीं होने चाहिए... जब भी नाम लिया जाए... विश्वरुप ही सुनाई दे... दिखाई दे... बस यही वादा चाहता हूँ... मेरे बेटे की आत्मा को शांति मिलेगी... क्यूँकी वह तुम दोनों के बारे जानता था... और तुम दोनों को एक होते देखना चाहता था...
विश्व - आप ही ने कहा... आपके परिवार वाले आश्वस्त हैं... क्या आपको संदेह है...
पिनाक - नहीं... पर... मैं राजा साहब के जिद को जानता हूँ... और अब ऐसा लग रहा है... जैसे तुम्हें हराने के लिए... वह किसी भी हद तक जा सकते हैं...
विश्व - ह्म्म्म्म... शादी कल शाम को है... इतने दिनों में... महल में... क्या कुछ हुआ है...
पिनाक - तुमसे कुछ छुपा तो नहीं होगा... यशपुर से कुछ औरतें बुलाई गई हैं... जो नंदिनी की शृंगार करेंगी... आज घर पर... नंदिनी की खास परिचारिका सेबती आई थी... कल नंदिनी अपने पास अपनी भाभी और चाची माँ को चाहती है... इसलिए वे कल सुबह ही महल चली जाएंगी... कमल कांत सिर्फ एक दिन ही महल में रहा... फिर उसे राजा साहब ने रंग महल भेज दिया... एक अंधी सफेद घोड़ी को लाई गई है... जिसके ऊपर वह बेशरम... बेग़ैरत... कमल कांत... रंग महल से निकल कर राजगड़ परिक्रमा करेगा... अब की बार... राजा साहब ने... बाहर से लोग बुलवाए हैं... हर एक पर नजरें जमाए हुए हैं... मुझे तो लगता है... वे तुम पर भी... नजरें गड़ाए होंगे...
विश्व - क्यूँ...
पिनाक - यह कैसा सवाल हुआ... तुम पर उनकी इसलिए नजर होगी... ताकि तुमसे कोई हरकत हो... तो पलटवार कर सकें...
विश्व - अगर मैं कोई हरकत ही ना करूँ तो...
पिनाक - (भौंहे सिकुड़ कर हैरानी भरे नजर से देखता है) तुम अगर कुछ नहीं करोगे... तो राजा साहब अपने मकसद में कामयाब हो जाएंगे... नंदिनी की जिंदगी बर्बाद हो जाएगी...
विश्व - यह शादी... राजा साहब की मकसद नहीं है... बल्कि एक छिपा हुआ मकसद है... जिसके लिए... उन्होंने यह शादी तय की है...
पिनाक - क्या... कौनसी छुपी हुई मकसद...
विश्व - असल में... राजा साहब... यह शादी ही नहीं चाहते... और यह भी अच्छी तरह से जानते हैं... यह शादी नहीं होगी...
पिनाक - (झटका खाते हुए) यह तुम किस बिनाह पर कह सकते हो...
विश्व - (मुस्कराता है) राजा साहब का पहला मकसद है... मुझे इस केस से हटाना... या भटकाना... यह तभी हो सकता है... जब मेरी कोई कमजोर नस उनके हाथ हो...
पिनाक - तो क्या नंदिनी तुम्हारी कमजोरी नहीं है...
विश्व - नहीं... वह मेरी ताकत हैं... मेरी जान... मेरी आत्मा हैं... मेरी कमजोरी... मेरे मुहँ बोले माता पिता हैं... यह शादी की बात इसलिए फैलाई गई है... किसी तरह यह खबर मेरे माता पिता को मिल जाए... मेरी माँ... इमोशनली जितनी मजबूत है... उतनी ही कमजोर भी है... यह बात... राजा साहब अच्छी तरह से जानते हैं... मेरी माँ तक अगर राजकुमारी जी की शादी की खबर पहुँच जाए... तो मेरी माँ हाय तौबा कर बाहर आ जाती... आज के दिन... राजा साहब को सरकारी तंत्र भी मदत दे रही है... ऐसे में... मेरी माँ को कब्जे में लेना... उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं होगी...
पिनाक - तुम्हें ऐसा क्यूँ लगता है... नंदिनी की शादी की खबर... प्रतिभा जी को नहीं मिलेगी...
विश्व - क्यूँकी... माँ और डैड... दोनों को... मैंने ही अंडरग्राउंड करवाया है... उन तक कौनसी खबर जाएगी... यह मैं ही तय करता हूँ...
पिनाक - (कुछ सोच में पड़ जाता है) तुम यह कैसे कह सकते हो... राजा साहब को यह शादी... मंजूर नहीं...
विश्व - पुरे स्टेट में... राजा साहब कोई मामूली व्यक्ती नहीं हैं... पर वह केवल दो ही ईंवीटेशन कार्ड प्रिंट कर लाए थे... एक मेरे और दीदी के नाम... दूसरा आपके नाम... बाकी राजगड़ से बाहर... यहाँ तक यशपुर भी नहीं... कहीं भी... किसीको भी... ना खबर किया गया है... ना ही बुलाया गया है... राजगड़ में भी लोगों को... घूम घूम कर... मुहँ जुबानी निमंत्रण दिया गया है... इससे यही साबित हो रहा है... यह शादी... राजा सहाब को मंजूर नहीं है...
पिनाक - चलो मान लिया... तुमने राजा साहब की वह छुपी हुई मकसद को नाकाम कर दिया... पर शादी... शादी कैसे नहीं होगी... राजा साहब तुम्हें तोड़ने के लिए... किसी भी हद तक जा सकते हैं... मतलब शादी... उसी केके से करवा सकते हैं...
विश्व - राजा साहब का यह मकसद भी पूरा नहीं होगी... बस यकीन रखिए...

सुरज पूरी तरह से डूब चुका था l उजाला कम हो गया था अंधेरा धीरे धीरे आने लगा था, पश्चिमी आसमान के कुछ हिस्सा अभी भी लाल दिख रहा था l तभी दोनों के कानों में विक्रम की आवाज़ सुनाई पड़ती है l

"चाचाजी"

दोनों आवाज की दिशा में मुड़ते हैं l विक्रम को देख कर पिनाक अपनी जगह से उठता है, विक्रम हाथ बढ़ा कर पिनाक का हाथ थाम लेता है l पिनाक सीढ़ियों से चढ़ते हुए जाने लगता है l पीछे पीछे विश्व भी जाने लगता है l कुछ दूर जाने के बाद पिनाक रुक जाता है और मुड़ कर विश्व से पूछता है l

पिनाक - विश्व... तुम्हें जब इस घाट पर ढलते सूरज की देखते हुए पाया... तो लगा कि तुम नंदिनी के लिए परेशान हो... पर तुम्हारे बातों से जाना... तुम नंदिनी के लिए परेशान हो ही नहीं... पर सच्चाई यही है... के तुम किसी बात को लेकर... परेशान हो... मैं अपनी शंका मिटाने आया था... मीट गया... तुम अंधेरे उजाले की बात कर रहे थे... क्या मैं तुम्हारी कोई मदत कर सकता हूँ... (विश्व क्या कहे समझ नहीं पाता, उसे यूँ असमंजस देख कर विक्रम कहता है)
विक्रम - हाँ विश्व... वैसे हम जानते हैं... तुम बहुत काबिल हो... फिर भी... कोई मदत चाहो तो पूछ सकते हो... क्यूँकी वीर ने ऐलान किया था... जब तुम और क्षेत्रपाल आमने सामने होंगे... वह तुम्हारे कंधे से कंधा मिलाकर लड़ेगा... अब वह हमारे बीच रहा नहीं... पर उसकी यह ख्वाहिश मिटनी नहीं चाहिए...
पिनाक - हाँ विश्वा... हम जो भी कह रहे हैं.. जो भी कर रहे हैं... सभी वीर के वास्ते...

विश्व अभी भी असमंजस में था l उससे कुछ पूछा नहीं जाता l विश्व की यह स्थिति देख कर दोनों चाचा भतीजा लौटने के लिए मुड़ते हैं के विश्व उन्हें पूछता है l

विश्व - वह बात... केस के सिलसिले पर ही है.... पर...
पिनाक - पूछो... क्या जानना चाहते हो...
विश्व - रुप फाउंडेशन के केस में... दो आरोपी कत्ल कर दिए गए... और दो आरोपी गायब हो गए... क्या ऐसा हो सकता है... के कोई आरोपी खुद को... गायब कर लिया हो...
विक्रम - मैं सोच रहा था... किसी मामले में... फिजीकल कुछ हेल्प एक्सटेंड कर सकूं... पर माफ करना... इस पर मेरी कोई आइडिया नहीं है... क्यूँकी राजा साहब हमें कभी भी... उनके किसी भी मामले में... सामिल नहीं करते थे...
पिनाक - अब समझा... तुम्हारे अंधेरे और उजाले की पहेली... देखो विश्व... इस केस की विशेषता यह है कि... तुम शायद इस केस में... राजा साहब की संलिप्तता सिद्ध कर सको... पर... फिर भी... राजा साहब बच जाएंगे...
विश्व - जी... मैं भी तब से यही सोच रहा हूँ... कोई ऐसा गवाह जो मेरे हाथ लग जाये... जिसके गवाही पर... राजा साहब के हर एक करनी को अंजाम तक पहुँचा सकूँ...
पिनाक - देखो विश्वा... सूरज डूबता है... पर फिर भी अंधेरे में.. हमें रौशनी की दरकार होती है... तब... कमरे में दिया जलाया जाता है... रौशनी के लिए... पर इतना याद रखना... अंधेरा पूरी तरह से छटती नहीं है.... दिन की काली करतूत को... दिए के तले वाली अंधेरे में छुपाया जाता है... तुम्हें बस दिए को ढूंढना है... अगर ढूंढ लिया... तो वह तला भी मिल जाएगा और... तले में छुपे काली करतूत...
विश्व - मैं पूरी बात समझा नहीं...
पिनाक - जैसे कि मैंने पहले भी कहा था... तुम संलिप्तता साबित कर सकते हो... पर पूरी तरह दोषी करार नहीं दे सकते... तुम ज्यादा से ज्यादा... केस में राजा साहब को घेर सकते हो... जिससे राजा साहब साफ बचके निकल जाएंगे... राजा साहब को दोषी साबित करने के लिए... तुम्हारे दोनों केस में... मॉनी ट्रेल को साबित करना होगा... उस ट्रेल का छोर और अंत राजा साहब हैं यह साबित करना होगा... यहाँ राजा साहब का अंधेरे का दिआ... कोई और नहीं... एडवोकेट बल्लभ प्रधान है... जो अपने तले... राजा साहब की हर एक काली करतूत को छुपाये रखा है...
विश्व - जानता हूँ... पर कोई ऐसी जानकारी... जो एडवोकेट प्रधान को... घुटने पर ला सके...
विक्रम - देखो विश्व... प्रधान का ठिकाना... या तो राजगड़ या यशपुर... या फिर कटक या भुवनेश्वर... बाकी जो भी तुम्हें शक है... उसे एस्टाब्लीश करने के लिए... तुम्हें अपने कॉन्टैक्ट ईस्तेमाल करने होंगे...
विश्व - (चेहरे पर एक मुस्कान उभर आती है) वाह क्या बात कही... मुझे एक उम्मीद दिला दिया आपने... थैंक्यू...

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अब शाम ढल चुकी थी l अंधेरा पूरी तरह से पसर चुकी थी l रंग महल के सामने एक सफेद घोड़ी को भीमा और उसके गुर्गे सजा रहे थे l जो भी लोग रंग महल में थे वे सब कल होने वाली शादी की खुशी में दारु पी रहे थे l वहीँ रंग महल के एक कमरे में केके गहरी सोच में खोया हुआ एक कुर्सी पर बैठा हुआ था l दरवाजे पर जब दस्तक होती है तो वह कहता है

केके - अंदर आ जाओ...

दरवाजा खुलता है सत्तू के साथ रॉय और रंगा आते हैं l तीनों अंदर आकर देखते हैं केके थोड़ा घबराया और परेशान सा दिख रहा था l

रॉय - क्या बात है... केके साहब... आज तो बहुत खुशी का रात है... फिर तो यह रंग महल आपका... सारी प्रॉपर्टी में आधा हिस्सा आपका... मुझे तो लगा था... आप मन ही मन यही गा रहे होंगे... यही रात अंतिम यही रात भारी... पर आप घबराए हुए क्यूँ लग रहे हैं...
रंगा - हाँ... मैं तो सोच रहा था... आपके चेहरे पर लड्डू फुट रहे होंगे... पर आप घबराए हुए दिख रहे हैं...
रॉय - हाँ... जब कि कायदे से... कल की सोच कर... दुल्हन को घबराना चाहिए... हा हा हा हा... (रॉय के साथ रंगा भी हँसने लगता है)

गुस्से से तमतमाते हुए केके कुर्सी से उठ खड़ा होता है l और दोनों पर चिल्लाता है l

केके - शॉट अप... (दोनों चुप हो जाते हैं)
रॉय - केके साहब... कल शादी है... हमें राजा साहब ने हुकुम दिया है... आपको दूल्हे की तरह सजा कर... रंग महल से... क्षेत्रपाल महल तक... घोड़ी के ऊपर बिठा कर... जुलूस के साथ ले जाने के लिए... हमें लगा था... आपकी इच्छा पूरी हो रही है... इसलिए... आप बहुत खुश होंगे पर...
रंगा - केके साहब... कल से आप राजा साहब के... जमाई बनने जा रहे हैं... फिर घबराहट किस बात की...
केके - (दोनों की तरफ देखता है फिर) रंगा... एक बात बता... तेरी... सच में... किसको देख कर फटी थी...
रंगा - आपसे मतलब...
केके - डर लग रहा है ना...
रंगा - ठीक है... विश्वा... पर इस शादी से... उसका क्या वास्ता...
केके - तुझे क्या लगता है... एक अधेड़... हम उम्र से... राजा साहब... क्यूँ अपनी बेटी को व्याहना चाहते हैं...
रंगा - मेरे को क्या पता...
रॉय - एक मिनट.. एक मिनट... कहीं आप यह तो नहीं कहना चाहते... के विश्वा और राजकुमारी...
केके - हाँ...
रंगा - यह कैसे हो सकता है... मैं नहीं मानता... विश्वा... सात साल तक... जैल में रहा... बमुश्किल सात आठ महीने हुए हैं... बाहर आए... उसकी और राजकुमारी...
केके - पर यह सच है... खुद राजकुमारी ने मुझे कहा था... और यह... जवानी वाला इश्क नहीं है... बचपन वाला लफड़ा है...
रंगा और रॉय - क्या...
केके - हाँ... इस.. (सत्तू की ओर दिखा कर) पूछो इससे...
सत्तू - (घबरा कर) मैं... मैं... कुछ नहीं जानता...
केके - क्या नहीं जानता बे... तूने ही तो कहा था... विश्व... राजकुमारी को.. बचपन से पढ़ाता था...
सत्तू - हाँ... यह तो हर कोई जानता है... पर आप जो कह रहे हैं... यह कोई नहीं जानता...
रॉय - चलो ठीक है... एक पल के लिए हम मान लेते हैं... के राजा साहब... अपनी खुन्नस निकालने के लिए... अपनी बेटी की शादी.. आपसे करा रहे हैं... तो आपको इससे प्रॉब्लम क्या है...
केके - रॉय... इन कुछ महीनों में... हमने जो भी कुछ हारा है... जरा याद करो... उसके पीछे कहीं ना कहीं... विश्वा है... या तो सीधे तौर पर... या फिर... और रंगा... याद है... जब विश्वा तेरे सामने... अचानक आ गया... तेरी क्या हालत हो गई थी...

इतना कह कर केके चुप हो जाता है l रॉय और रंगा भी कुछ देर के लिए कोई बात नहीं कहते l फिर कुछ देर बाद रंगा कहता है l

रंगा - चलो मान लेता हूँ... पर है तो यह राजा साहब का इलाक़ा... और उन्होंने अपनी लश्कर में जबरदस्त बढ़ोतरी की है... मुझे नहीं लगता... विश्वा कुछ करने के लायक होगा...
रॉय - हाँ... मेरा भी यही खयाल है...
केके - मैं भी यही सोच रहा था... पर... जिस दिन विक्रम अपनी बहन से मिलने महल आया था... उस दिन... मैंने राजकुमारी के आँखों में... बातों में... एक जबरदस्त... आत्मविश्वास देखा था... उन्होंने खुल्लमखुल्ला राजा साहब के सामने ऐलान कर दिया... यह शादी होगी ही नहीं...
केके - मतलब वह... विश्वा के साथ... भागने की चक्कर में है...
सत्तू - ना मुमकिन... आज सुबह तक तो राजकुमारी जी महल में ही हैं... और कल से उनके शृंगार के लिए... कुछ औरतों को यशपुर से बुलाया गया है.... और लगातार राजा साहब के निगरानी में हैं...
रॉय - देखा... आप खामख्वाह परेशान हो... चलिए मैं मान लिया... विश्वा से खुन्नस उतारने के लिए... राजा साहब आपसे... राजकुमारी को व्याह दे रहे हैं... तो यह उनकी नाक और मूँछ की आन की बात हो गई ना... अपनी नाक और मूँछ की आँच बचाने के लिए... कुछ भी कर सकते हैं... अगर यह विश्वा से बदला लेने की बात है... तो इस मिशन में... हमें शिद्दत के साथ... शामिल होनी चाहिए... हम सबका बदला एक साथ पुरा होगा... कोई नहीं केके साहब... राजा साहब ने वह एग्रीमेंट यूँ ही नहीं कि है... मत भूलिए... इस शादी के बाद... यह रंग महल आपका हो जाएगा... राजा साहब के सारे फैक्ट्रियों और प्रॉपर्टी में... बराबर का हिस्सा हो जाएगा...
रंगा - हाँ केके साहब... आप बस तैयार हो जाइए... सारे गाँव वाले होंगे सामने शादी होने वाली है... विश्वा को भीतर से तोड़ने के लिए... अबकी बार... मैं खुद को बाजी लगा दूँगा... यह मेरा वादा है...

रॉय और रंगा के ढांढस बाँध ने के बाद केके को थोड़ी हिम्मत मिलती है l अब वह तैयार होने के लिए बाथरूम के अंदर जाता है l
Bahut hi lajawab update hai bhai
 
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Rajesh

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Bahut hi lajawab update hai bhai
👉एक सौ अट्ठावनवाँ अपडेट
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अर्ध रात्री
आकाश में तारे टिमटिमा रहे थे, क्षेत्रपाल महल के अंतर्महल की छत पर एक जोड़ा एक दूसरे के बाहों में खोए हुए थे l यह युगल कोई और नहीं हैं बल्कि हमारे कहानी के नायक व नायिका विश्वरुप ही हैं l रात शांत, हर क्षण शांत, हर फ़िजा शांत, जैसे वह आतुर हों इनके वार्तालाप सुनने के लिए l ऐसे ही बाहों में रहते हुए रुप ख़ामोशी को तोड़ती है और विश्व से कहती है l

रुप - जानते हो... मेरा दिल आज तुम्हें पुकार रहा था... और तुम आ गए...
विश्व - पर... मैंने आपको खबर भी नहीं की थी... बस छत पर आ गया था... आपको कैसे पता चला... के मैं आपको मिलने आया हूँ...
रुप - इट्स अ गर्ल थिंग... फिर भी बता देती हूँ... मेरे धड़कनों.. मेरे एहसासों... मेरे रोम रोम से पूछ कर देखो... जब भी तुम आस पास होते हो... मेरे रूह को... तुम्हारे होने का एहसास... अपने आप हो जाता है...
विश्व - क्या... आपको डर लग रहा है...
रुप - (अपना चेहरा अलग करते हुए) भला वह क्यूँ...
विश्व - राजा साहब ने... आते ही आपको जोरदार झटका जो दिया...
रुप - (विश्व के सीने से चिपक कर) वैसे कोशिश उनकी बहुत अच्छी थी... पर मैं जानती हूँ... उनकी कोशिश बेकार जाने वाली है...
विश्व - अच्छा... वह कैसे...
रुप - वह ऐसे की मैं जानती हूँ... के तुम यह शादी कभी होने ही नहीं दोगे...
विश्व - इतना भरोसा...
रुप - कोई शक़... (एक पॉज) अनाम... मेरा प्यार... मेरा विश्वास है... मेरे विश्वास का आधार... एक तुम हो... और एक भगवान... मैं जान हार सकती हूँ... पर विश्वास कभी नहीं...

विश्व कोई जवाब नहीं देता, बस दोनों की जकड़ बढ़ जाती है l थोड़ी देर बाद दोनों एक दूसरे से अलग होते हैं और पिछली बार की तरह छत पर बनी चबूतरे पर बैठ जाते हैं l आज आसमान में चाँद नहीं था फिर भी दोनों आसमान की ओर देखे जा रहे थे l विश्व एक सवाल छेड़ देता है

विश्व - आप अगर डरी नहीं थीं... तो मुझे ढूंढ क्यूँ रही थी...

रुप - (विश्व की तरफ घूम कर उसका चेहरा दोनों हाथों से पकड़ कर अपने तरफ करती है और पूछती है) मेरे आँखों में झाँक कर देखो... क्या तुम्हें डर दिख रहा है...
विश्व - नहीं.... नहीं दिख रहा है... पर फिर भी...
रुप - ( विश्व की चेहरे को छोड़ कर आसमान को ओर देखने लगती है) मैं बस.. अपनी प्यार को ... अपनी चाहत को.. उसकी गहराई को परख रही थी... कहीं मेरा प्यार... कोई तुक्का तो नहीं... पर आज तुम्हें छत पर पा कर... मुझे अपने प्यार पर यकीन हो गया है... के मेरा प्यार.. मेरी चाहत में कहीं भी कोई मिलावट नहीं है... झूठ नहीं है... (रुप की यह बात विश्व एक टक सुने जा रहा था, रुप विश्व की तरफ देख कर पूछती है) ऐसे क्या देख रहे हो...
विश्व - (मुस्करा कर) बस आपको देख रहा हूँ...
रुप - पर आसमान में चाँद नहीं है... फिर मेरे चेहरे पर क्या है... अंधेरे में तुम्हें पता कैसे चल रहा है...
विश्व - आसमान में चाँद से मुझे क्या लेना देना... मेरा चाँद तो मेरे आँखों के सामने है... मेरे इस चाँद के चाँदनी के आगे.. भला उस चाँद का क्या मुकाबला...
रुप - ओ हो... आज तो बड़े शेरों शायरी के मुड़ में हो...
विश्व - इसका दोष भी आप पर जाता है... आप हो ही इतनी सुंदर... बड़े बड़े गँवार भी शायर बन जाएंगे... इस बेपनाह हुस्न को देख कर...
रुप - बस बस... (अपने दोनों हाथों को विश्व के कंधे पर रख कर हाथ पर अपना ठुड्डी रख कर) इतना तारीफ ना कीजिए... अभी जाग रही हूँ... जागी ही रहने दीजिए... इतना तारीफ करोगे... तो सपना समझ कर नींद की आगोश में ना खो जाऊँ... (अचानक अलग होती है) एक बात पूछूँ...
विश्व - जी पूछिये...
रुप - राजा साहब तो महल में होंगे ना... फिर तुम कैसे अंदर आ गए...
विश्व - बस... आ गया...
रुप - अरे... ऐसे कैसे... याद है... जब मैंने तुम्हें आने के लिए कहा था... तब तुम... बिजली गुल कर अंदर घुसे थे...
विश्व - हाँ... तब मैं चाहता था... की राजा साहब को मालूम हो... के कोई अंदर आया था... इसलिए तो सुबह सुबह... मैंने छोटे राजा जी से... सलाम नमस्ते की थी...
रुप - पर अब...
विश्व - आप भूल रही हो... मैं इस महल के हर चप्पे-चप्पे से वाकिफ हूँ...
विश्व - सच्ची...
विश्व - ह्म्म्म्म... नहीं थोड़ी सी झूठ बोला है...
रुप - थोड़ा सी झूठ... मतलब कितना...
विश्व - राजा साहब कुछ देर पहले... रंग महल की ओर गये हैं... मैं मौका देख कर... घुस गया... और उनके आने से पहले... मुझे चले जाना होगा...
रुप - ह्म्म्म्म... मतलब तुम्हें भी डर लगता है...
विश्व - क्यूँ नहीं... मैं डर रहा था.. आपके लिए
रुप - क्यूँ...
विश्व - (चबूतरे से उठ कर छत के किनारे तक जाता है)
रुप - अनाम... तुमने बताया नहीं....
विश्व - (रुप की ओर मुड़ता है) मुझे जब खबर लगी... के राजा साहब ने... आपकी शादी तय कर दी... हाँ मैं डर गया था... (एक गहरी साँस लेकर) मुझे... वीर और अनु याद आ गए...

विश्व इतना कह कर रुक जाता है l रुप चबूतरे से उठ कर भाग कर जाती है और विश्व के सीने से लग जाती है l विश्व भी अनु को सीने में कस लेता है l

विश्व - वीर जब भी याद आता है... मुझे बहुत दर्द दे जाता है... मेरा वज़ूद... मेरी शख्सियत को कठघरे में खड़ा कर देता है... और एक सवाल हरदम झिंझोड़ता रहता है... क्यूँ आखिर क्यूँ... मैं पांच मिनट पहले नहीं पहुँचा...
रुप - (अपना सिर ऊपर उठा कर विश्व को देखते हुए) कहीं तुम मुझे ले चलने के लिए तो नहीं आए हो...
विश्व - जो आप कहेंगी वही होगा...
रुप - मैं किसी मज़बूरी या खौफ के चलते... अभी जाना नहीं चाहती... तुम बस यह शादी रुकवा दो... जिस दिन जाऊँगी... राजा साहब को बेबस देखते हुए जाऊँगी... उन्होंने हर किसी की बेबसी का फायदा उठाया है... मैं अपनी बिदाई पर.. उन्हें बेबस और लाचार देखना चाहती हूँ... वही पल... असल में बदला होगा... उनके हर एक सितम का...
विश्व - (मुस्कराते हुए) चलो... मेरा यह डर भी आपने ख़तम कर दिया...
रुप - उफ्फ्फ... कभी तो मुझे तुम कहो...
विश्व - नहीं... यह मुझसे नहीं होगा... आप राजकुमारी हो... मैं आपका गुलाम...
रुप - (बिदक कर) छोड़ो मुझे... (अलग हो जाती है) बड़े आए गुलाम...
विश्व - क्या हुआ...
रुप - वह साला कमीना... पहली मुलाकात में ही... मुझे तुम बोल रहा था...
विश्व - राज कुमारी जी... आप कबसे गाली देने लगी...
रुप - शुक्र मनाओ तुम्हें नहीं दी... बेवक़ूफ़.. हूँह्ह्... पूछा नहीं कौन था वह...
विश्व - इसमें पूछने वाली क्या बात है... मैं जानता हूँ... मेरी नकचढ़ी ने... उसको अच्छे से निचोड़ दिया होगा..

रुप हँस देती है, विश्व की तरफ जाती है l विश्व की हाथों को लेकर अपनी कमर पर रखती है l विश्व के गले में हाथ डालकर रुप विश्व के पैरों पर खड़ी हो जाती है और एड़ी उठा कर विश्व के चेहरे के सामने अपना चेहरा लाती है l विश्व की धड़कन बढ़ जाती है, रुप आगे बढ़ कर विश्व की नाक हल्के से काट लेती है l

विश्व - आह... आप हमेशा मेरी नाक के पीछे क्यूँ पड़े रहते हो...
रुप - (विश्व के नाक पर अपनी नाक रगड़ते हुए) मुझे.. अच्छा लगता है...
विश्व - (कांपते लहजे से) मुझे लगता है... अभी मुझे जाना चाहिए...
रुप - चले जाना,.. जरा ठहरो...
यह मंज़र देख कर जाना...
किसीका दम निकलता है...
विश्व - पता नहीं मुझे... पर मैं ज्यादा देर रुका... तो मेरा दम निकल जाएगा...
रुप - यु...

रुप अपना होंठ विश्व की होंठ पर रख देती है l दोनों के होठों के गुत्थम गुत्था शुरु हो जाता है l विश्व की हाथ रुप की कमर से उठ कर रुप के सिर को पकड़ लेता है और अपने में समेटने की कोशिश करता है l फिर उसका हाथ फिसलते फिसलते फिर कमर तक आ जाते हैं पर कमर पर रुक जाते हैं l कमर पर विश्व के हाथ मुट्ठी बाँध लेता है l रुप अलग होती है और विश्व के पैरों से उतरती है l दोनों हांफ रहे थे, जहां विश्व के चेहरे पर एक शॉक था वहीँ रुप के चेहरे पर एक शरारती मुस्कान था l

रुप - बहुत डरते हो... बेवक़ूफ़ तो हो ही.. अब डरपोक भी हो...
विश्व - हिरण... शेरनी से क्यूँ नहीं डरेगा...
रुप - पर यहाँ तो शेरनी खुद हिरण के हाथों शिकार होना चाहती है... पर हिरण है कि... हाथ पैर सब... अपाहिज हो जाता है...

विश्व रुप की हाथ को पकड़ कर खिंचता है l दोनों की नजरें मिलती हैं l रुप की माथे पर उड़ती लटों को हटाता है और रुप के चेहरे को दोनों हाथों से पकड़ कर कहता है l

विश्व - प्यार में बहुत गर्मी होती है... कभी कभी संभलना मुश्किल हो जाता है... प्यार में.. जब जब जो जो होना है... उसे तब तब होने देते हैं ना... जब समाज... संस्कार और भगवान का आशिर्वाद होगा... तब हमारे हिस्से की चार दीवारी और बंद दरवाजा होगा... उस दिन शायद आपको मुझसे कोई शिकायत नहीं होगी...
रुप - ओह... अनाम... (रुप विश्व के सीने से लग जाती है) तुम कितने अच्छे हो... आई लव यु...
विश्व - आई लव यु ठु.. (तभी दूर से एक सियार के भौंकने की आवाज आती है) लगता है... राजा साहब... रंग महल से निकल गए हैं... कुछ ही मिनट में पहुँच जायेंगे... (विश्व रुप की माथे पर एक किस करता है) राजकुमारी जी... आप वही करते जाइयेगा... जैसा आपको राजा साहब कहते जाएं... बाकी आप मुझ पर या अपने आप पर भरोसा मत खोइयेगा...
रुप - जैसी आपकी ख्वाहिश मेरे गुलाम...

दोनों हँसने लगते हैं l फिर विश्व इशारे से रुप को जाने के लिए कहता है l रुप जाने के लिए पलटती है और कुछ कदम चलने के बाद मुड़ती है पर तब तक विश्व गायब हो चुका होता है l रुप का मुहँ हैरानी के मारे खुल जाती है l

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अगले दिन
दिन के दस बजते बजते भीड़ छट चुकी थी l गौरी अपना गल्ला बंद कर अंदर जाने लगती है l वैदेही भी सारे बर्तनों को समेट कर धोने के लिए जमा करती है l इतने में दुकान पर सुषमा और शुभ्रा आते हैं l वैदेही उनके तरफ देखती है और महसुस करती है जैसे वह कुछ बात करना चाहते तो हैं पर हिचकिचाते रहे हैं l

वैदेही - आप अंदर आइए... आइए ना... (सुषमा और शुभ्रा एक दुसरे की ओर देखते हैं फिर अंदर आते हैं) बैठिए... (दोनों झिझकते हुए बैठते हैं)

वैदेही पानी की ग्लास लाकर उन्हें देती है l फिर एक कुर्सी खिंच कर उनके पास बैठ जाती है l

वैदेही - बड़े भाग्य का दिन है आज... मेरे घर... छोटी रानी और युवराणी आई हुई हैं... कहिये... क्या सेवा कर सकती हूँ..
शुभ्रा - ऐसे ना कहिये... महीनों पहले आप ऐसे कहतीं तो उस बात की कोई मायने होती... पर आज यह बात कोई मायने नहीं रखती... ना छोटी माँ आज रानी हैं... ना ही... मैं कोई युवराणी... वैसे भी... हम आज फरियादी बन कर आए हैं...
वैदेही - अरे बापरे... इतनी बड़ी बात... आप लोग मेरे सपने हैं... भला अपनों के यहाँ कोई फ़रियाद लेकर आता है... हक् से आता है.. हक जताता है... बस हुकुम कीजिए... जो बस में होगा... जरुर करूँगी...

तभी टीलु कुछ सामान हाथ में लेकर अंदर आता है l इन दोनों को देख कर थोड़ा स्तब्ध हो जाता है l फिर वैदेही की ओर देखता है l

वैदेही - आज हमारे यहाँ मेहमान आए हैं... इसलिये... दोपहर को दुकान बंद रहेगी... और आज... (शुभ्रा की ओर इशारा करते हुए) इन्हींकी मर्जी का खाना बनेगा...
शुभ्रा - नहीं नहीं...
वैदेही - अरे कैसे नहीं... मेरी माँ कहा करती थी... गर्भवती स्त्री का किसी के द्वार आना सबसे शुभ होता है... और उन्हें उनकी इच्छानुसार खाना खिलाने से... सौ जन्म का पुण्य मिलता है... इसलिए... बेझिझक बताइए... आज यहाँ आपकी ही मन पसंद का भोजन बनेगा...
शुभ्रा - वैदेही जी... हम किसी और काम से आए हैं...
वैदेही - वह भी सुन लुंगी... पर पहले मुझे आपका सेवा तो करने दीजिए...
सुषमा - वैदेही... हम यहाँ बहुत टेंशन में हैं... तुम जानती भी हो क्या हुआ है...
वैदेही - ओह... माफ कर दीजिए... मुझे लगा नहीं था कि किसी गम्भीर विषय पर बात करने के लिए आप यहाँ आए हैं...
सुषमा - बात बहुत ही गम्भीर है... और हम चाहते हैं कि... तुम हमें कोई राह दिखाओ...
वैदेही - ठीक है... मुझसे जो बन पड़ेगा... वह मैं जरुर करूंगी...
शुभ्रा - हाँ आप ही कर सकती हो... क्यूँकी... गाँव में सब कहते हैं... की आपकी इस चौखट से... ना तो कोई खाली हाथ लौटा है... ना ही कोई खाली पेट...
वैदेही - आप बात तो शुरु कीजिए... जब से आए हैं... मेरी बड़ाई किए जा रहे हैं...
टीलु - सच ही तो कहा है उन्होंने... दीदी... तुम्हारे दर से... कभी कोई जरूरत मंद ना खाली पेट लौटा है... ना खाली हाथ...
वैदेही - तु यहाँ से जा... वर्ना तु जरूर आज भूखा रहेगा...

टीलु झट से अंदर की ओर चला जाता है l उसे जाते हुए तीनों देख रहे थे l उसके जाने के बाद सुषमा वैदेही से कहना शुरु करती है l

सुषमा - देखो वैदेही... तुम्हारा यह मुहँ बोला भाई... झूठ नहीं कहा है... मैं तुम्हें बेटी नहीं कह सकती... क्यूँकी इससे... उस रिश्ते पर तोहमत लगेगी... मैं जानती हूँ... क्षेत्रपाल परिवार ने तुम्हारे साथ क्या किया है... पर तुम स्वयं सिद्धा हो... तुम देवी हो... इसलिए आज हम दोनों सास बहु... तुम्हारे दर पर आए हैं... हमारी बेटी... रुप नंदिनी के लिए... (वैदेही थोड़ी गम्भीर हो जाती है) वह पाँच साल की थी... जब उसकी माँ इस दुनिया से चली गई... मैंने अपने सीने से लगा कर बड़ा किया... मुझे अपने बच्चों से ज्यादा अजीज है... पता नहीं... तुम भाई बहन को पता है भी या नहीं... अगर पता है... तो तुम लोग गम्भीर क्यूँ नहीं हो... राजा साहब ने... नंदिनी की शादी एक अधेड़ से तय कर दी है.... मैं और मेरी बहु... यहाँ उसकी सुरक्षा मांगने आए हैं... (हाथ जोड़ देती है)
वैदेही - अरे अरे... यह आप क्या कर रही हैं...
शुभ्रा - वक़्त की विडंबना है... कभी क्षेत्रपालों को गुरुर हुआ करता था... के उनके हाथ कभी आकाश की ओर नहीं देखती... पर आज हम तुम्हारे सामने हाथ फैलाए आए हैं...
वैदेही - राजा भैरव सिंह... कल आपके पास से सीधे मेरे पास आए थे...

इतना कह कर वैदेही अपनी टेबल की ड्रॉयर खोल कर वही इंवीटेशन कार्ड निकाल कर सुषमा को दिखाती है l शुभा और सुषमा दोनों हैरान हो जाते हैं और वैदेही की ओर देखने लगते हैं l

वैदेही - जब भैरव सिंह... गिरफ्तार हो कर जा रहा था... यहाँ मुझसे मिलने आया था और चुनौती दे कर गया था... मुझे और विशु की हालत खस्ता कर देगा... और कटक छोड़ कर राजगड़ आने से पहले... विशु को भी... चेतावनी देकर आया था... के उसके तन मन और आत्मा को ज़ख्मी कर देगा...
सुषमा - मतलब तुम सब जानती हो...
वैदेही - हाँ... जानती हूँ... और यह भी जानती हूँ... यह शादी नहीं होगी...
शुभ्रा - यह आप कैसे कह सकते हैं... राजा साहब ने... अपनी नई फौज बनाई है... बाहर से लोग आए हैं...
वैदेही - फिर भी... यह शादी नहीं होगी...
सुषमा - मैं तुम्हारी आत्मविश्वास की कद्र करती हूँ... पर अति आत्मविश्वास और आत्मविश्वास के बीच बहुत ही महिम दीवार होती है...
वैदेही - यह मेरा विश्वास है... बल्कि यह मेरा ही नहीं... आपकी नंदिनी का भी यही विचार है...
सुषमा और शुभ्रा - क्या...
वैदेही - हाँ...
सुषमा - ठीक है... यह उसका विचार हो सकता है... पर... राजा साहब... अपने अहं के आगे... किसीको कुछ नहीं समझते...
सुषमा - जब किसी का अंत करीब आती है.... तो उसका बुद्धि और विवेक खो जाती है... राजा भैरव सिंह के साथ भी ऐसा ही हुआ है... वह इस विषय में... विश्व को दिली और दिमागी तौर से कमजोर करने के लिए... ऐसा कदम उठाया है... पर जब दो प्रेमी... इससे परेशान नहीं हैं... तो हम क्यूँ हों...
शुभ्रा - क्या कहा तुमने... विश्व और रुप परेशान नहीं हैं...
वैदेही - (मुस्कराती है) रात को ही... विशु... नंदिनी से मिलकर आया है... इसलिए... आप भी निश्चिंत हो जाइए... यह शादी नहीं होगी...
शुभ्रा - भगवान करे... आपकी बात सही हो... पर कल से... विक्रम जी बहुत परेशान थे... उनसे रहा नहीं गया... तो अभी कुछ देर पहले महल की ओर गए हैं...
वैदेही - तो ठीक है ना... आप उनसे सारी जानकारी प्राप्त कर सकतीं हैं... (दोनों कशमकश के साथ अपना सिर झुका लेते हैं) वह सब जाने दीजिए... शुभ्रा जी... दिल को तसल्ली दीजिए... और जो भी आपका मन पसंद हो कहिए... आपको खिलाए बिना जाने नहीं दूंगी... ह्म्म्म्म


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केके पिनाक के कमरे में कुर्सी पर बैठा हुआ था l केके का पैर एक नौकर दबा रहा था l केके कमरे की चारों ओर नजर घुमा रहा था l नौकर देखता है केके किसी गहरे सोच में खोया हुआ है l कोई ऐसी बात थी जो उसे असहज कर रही थी l

नौकर - मालिक... क्या आपको हमारी सेवा अच्छी नहीं लगी...
केके - (सोच से बाहर आता है) नहीं नहीं...
नौकर - पर हम तो जी जान से आपकी सेवा कर रहे हैं...
केके - अरे नहीं... मेरा मतलब... तुम बहुत अच्छा काम कर रहे हो... हम बस कुछ और सोच रहे थे... वैसे क्या नाम है तुम्हारा...
नौकर - जी सत्यवान... पर सभी मुझे सत्तू कह कर बुलाते हैं...
केके - तो सत्तू...
सत्तू - जी... जी मालिक...
केके - तुम जानते हो... हम कौन हैं...
सत्तू - जी मालिक... आप इस परिवार के होने वाले... जामाता हैं... तभी तो... मुझे आपकी सेवा करने के लिए... जिम्मेदारी सौंपी गई है...
केके - ह्म्म्म्म... अब मेरा पैर छोडकर कुर्सी पर बैठ जाओ....
सत्तू - ना मालिक ना... हम महल के नौकर हैं... (कह कर फर्श पर पालथी मार कर बैठ जाता है) अब पूछिये...
केके - अच्छा सत्तू... क्या तुमने पूरा महल देखा हुआ है...
सत्तू - नहीं मालिक... यह पहली बार है... जब हम महल के इतने अंदर आए हैं... वर्ना... हमारी औकात बरामदे तक ही होती थी... फिर भी... आप पूछिये... क्या जानना चाहते हैं... जो मुझे मालूम होगा... मैं बता दूँगा...
केके - अच्छा... कितने कमरे हैं यहाँ...
सत्तू - वह तो नहीं पता... पर पंद्रह बीस कमरे होंगे... और जो भी हैं बड़े बड़े कमरे हैं...
केके - रहते कितने लोग हैं...
सत्तू - जनाना महल में... राजकुमारी जी रहती हैं... और एक बड़े से कमरे में... बड़े राजा जी रहते हैं... उनकी सेवा में भी बहुत लोग लगे हुए हैं...
केके - ह्म्म्म्म...
सत्तू - और कुछ...
केके - तुम...
सत्तू - हाँ हाँ पूछिये...
केके - य़ह तुम... विश्वा के बारे में क्या जानते हो...
सत्तू - ज्यादा कुछ नहीं मालिक... मुझे तो तीन साल हुए हैं... राजा साहब के महल में... पर इतना जानता हूँ... विश्वा इस महल का बहुत पुराना नौकर था... राजा साहब ने उसे सरपंच बनाया... पर यह उनसे गद्दारी पर आ गया... उसने कई कत्ल भी किए हैं... और जैल भी गया था... पर था साला पढ़ाकु... जैल में रहकर बड़ा वकील बन गया है... अब देखिए ना... उसकी एहसान फरामोशी... राजा साहब के खिलाफ अब केस लड़ रहा है...
केके - उसका और राजकुमारी का क्या रिश्ता है... कुछ जानते हो...
सत्तू - हाँ जानता हूँ ना... विश्वा... बचपन में... राजकुमारी जी को सात साल तक पढ़ाया है...
केके - ओ... मतलब पहचान.. बचपन वाला है...
सत्तू - जी मालिक...
केके - अच्छा सत्तू... राजकुमारी की शादी... किसी राज घराने में... या फिर... किसी बड़े घर में होनी चाहिए थी... है ना...
सत्तू - ऐसी बातेँ मुझसे मत पूछिये मालिक... बहुत छोटे लोग हैं... क्या बोलें... हम बस इतना जानते हैं... राजा साहब... हमारे भगवान हैं... उनकी बात और फैसला... यहाँ पर रहने और जीने वालों की जीने की फरमान होती है... राजा साहब ने अगर आपको पसंद किया है.. तो यह राजकुमारी और आपका भाग्य है...
केके - ह्म्म्म्म... वैसे... मेरे बारे में... तुम्हारे साथी कैसी बात कर रहे हैं...
सत्तू - राजा साहब के फैसले पर... हम कभी बात नहीं करते... बस उनके हुकुम बजाते हैं...
केके - अच्छा यह बताओ... राजा साहब ने कभी विश्वा को... उसकी गुस्ताखी की सजा देने का नहीं सोचा...
सत्तू - अब हम क्या कहें मालिक... विश्वा अब कोई आम विश्वा नहीं है... बवंडर है... हमने कई बार कोशिश की उसे मिटाने के लिए... पर हर बार वह हम पर भारी पड़ा... एक अकेला... बीस बीस को लपक लेता है... एक बार तो महल के बाहर ही... (सत्तू बताने लगता है कैसे गाँव वालों के जमीन और घरों के कागजात लेने वैदेही और विश्वा आए थे और कैसे कागजात लेकर गए थे)
केके - और राजा साहब खामोश हैं...
सत्तू - क्या करेंगे फिर... आखिर वह राजा हैं... किसी ऐरे गैरे को... राह चलते को... कैसे हाथ लगा सकते हैं... उनको हम पर भरोसा था... पर... हम ही खरे नहीं उतरे... इसीलिए तो अब... बाहर से लोगों को लाए हैं... अब अगर विश्वा कुछ भी हिमाकत करेगा... तो इसबार वह बच नहीं पाएगा... वैसे एक बात पूछूं मालिक...
केके - पूछो...
सत्तू - आप यह विश्वा के बारे में... इतना पूछताछ क्यूँ कर रहे हैं... क्या आप उसे पहले से जानते हैं...
केके - अरे नहीं... बस ऐसे ही सुना था... अच्छा... xxx चौक पर... एक औरत का दुकान है... उसका राजा साहब का... मतलब... कुछ...
सत्तू - वह औरत... वही तो विश्वा का बहन... वैदेही है...
केके - (चौंकता है) क्या...
सत्तू - क्यूँ... क्या हुआ मालिक...
केके - कुछ नहीं... (माथे पर चिंता की लकीर उभर आती है) राजा साहब... महल को लौटते वक़्त... उसके दुकान पर गए थे...
सत्तू - ज्यादा तो नहीं जानता पर... सुना है... कभी रंग महल में... राजा साहब के ऐस गाह की रौनक हुआ करती थी... और वही एक औरत है... पूरे राजगड़ में... जो राजा साहब से सिर उठा कर आँखों में आँखे डाल कर बात करती है...

तभी कमरे के बाहर दस्तक होती है, दोनों की नजरें दरवाजे की तरफ जाती है l एक नौकर खड़ा था l

केके - हाँ क्या हुआ...
नौकर - राजा साहब आपको... दीवान ए आम में आने के लिए कहा है...
केके - ठीक है... तुम चलो... (सत्तू से) तुम मुझे वहाँ ले चलो...
सत्तू - ठीक है मालिक....

दोनों कमरे से निकल कर दीवान ए आम की ओर जाने लगते हैं l जाते वक़्त केके अपनी नजरें चारो ओर दौड़ा रहा था l कुछ देर बाद दोनों दीवान ए आम में पहुँच जाते हैं l दोनों देखते हैं सिंहासन पर भैरव सिंह बैठा हुआ था और उसके सामने विक्रम खड़ा था l केके को देख कर भैरव सिंह केके से कहता है

भैरव सिंह - आओ केके आओ... महल में कोई शिकायत तो नहीं...
केके - जी नहीं राजा साहब...
भैरव सिंह - (विक्रम से) तो... विक्रम सिंह... बताने की कष्ट करेंगे... महल में जबरदस्ती घुसने की कोशिश क्यूँ कर रहे थे...
विक्रम - मैं यहाँ अपनी बहन से मिलने आया था...
भैरव सिंह - क्यूँ... क्यूँ आए हो... तुमने तो सभी रिश्ते नाते तोड़ कर महल से चल दिए थे...
विक्रम - मैं... महल से क्षेत्रपाल छोड़ गया था... तब भी... अपनी बहन को ले जाना चाहता था... शुक्र मनाईये... वह अपने दादा की सेवा करने के लिए रुक गई... वर्ना...
भैरव सिंह - वर्ना... हाँ हाँ... वर्ना... शायद तुम भूल रहे हो... वह तुम्हारे साथ जाती ही नहीं...
विक्रम - आप उसकी अच्छाइ.. और मासूमियत का... नाजायज फायदा उठा रहे हैं...
भैरव सिंह - नाजायज... फायदा... जो... जिसकी... जितनी काबिल है... हम उसकी उतनी... वही किस्मत लिख रहे हैं... नंदिनी के किस्मत में वही मिल रहा है... जो उसने हमसे खोया है... और इस महल के बाहर कमाया है... हम तो बस मोहर लगा रहे हैं...
विक्रम - (केके की ओर दिखा कर) यह... इसको नंदिनी की किस्मत में थोप रहे हैं... यह हरामी गटर का सुअर... मेरी जुती चाटने वाला...
भैरव सिंह - केके...
केके - जी राजा साहब...
भैरव सिंह - आओ... हमारे बगल में बैठो...

केके जा कर भैरव सिंह के पास वाले एक कुर्सी पर बैठ जाता है l विक्रम की आँखें गुस्से से अंगारों की तरह दहकने लगती हैं l विक्रम को मुट्ठीयाँ भिंच जाती हैं l विक्रम का यह रुप देख कर केके की हलक सुख जाता है l

भैरव सिंह - अब केके की जुतें.. इस घर के नौकर साफ करते हैं...
विक्रम - मुझे यह समझ में नहीं आ रहा... आप ऐसा क्यूँ कर रहे हैं... अपनी कद से ऊपर उठने के बजाय... गिरते जा रहे हैं...
भैरव सिंह - कद किसका क्या है... कितना है... यह फैसला भी हम ही करते हैं...
विश्व - मैं आपसे कोई बहस करना नहीं चाहता... आप नंदिनी को बुलाईये... मैं उसकी मर्जी जानना चाहता हूँ...
भैरव सिंह - वही तो हम पूछ रहे हैं... किस हक से... जब आप महल से हर रिश्ते नाते तोड़ कर जा चुके हैं...
विक्रम - महल में एक रिश्ता अभी जिंदा है... मैं उसके वास्ते आया हूँ... उसकी मर्जी... और खैरियत पूछने आया हूँ....
भैरव सिंह - अगर मर्जी नहीं हुई तो...
विक्रम - तो... दुनिया इधर से उधर क्यूँ ना हो जाए... यह शादी कोई नहीं करा सकता... इस महल का... भगवान भी नहीं...
भैरव सिंह - ओ हो... खून के सामने खून खड़ा है... और खून को ललकार रहा है..
विक्रम - यही दस्तूर है... इतिहास उठाकर देख लीजिए... बात जब आन पर आ जाती है... खून को खून ही ललकारता है... और खून को खून ही हटाता है...
भैरव सिंह - बच्चे कैसे पैदा किया जाता है... यह बच्चे कभी बाप को नहीं सिखाते...
विक्रम - रजवाड़ों का खूनी इतिहास उठा कर देख लीजिए... बाप ने कभी औलादों को नहीं हटाया...
भैरव सिंह - तो खून में इतनी गर्मी आ गई... के बाप को हटाने की सोच रहे हो...
विक्रम - तब तक तो नहीं... जब तक... नंदिनी मेरी बहन है... और मुझे उससे बात करनी है...
भैरव सिंह - (कुछ देर की चुप्पी, तनाव भरा माहौल था, फिर भैरव सिंह मुस्कराते हुए) ठीक है... आज हम भी देखेंगे... हमारी लिखी किस्मत और... तुम्हारी बगावत की टक्कर होती है या नहीं... (सत्तू से) जाओ बड़े राजा जी के कमरे तक खबर पहुँचा दो... राजकुमारी जी को हमने अभी यहाँ याद किया है...

सत्तू भागते हुए चला जाता है l बाहर एक नौकरानी को नागेंद्र के कमरे जाकर रुप को बुलाने के लिए कहता है l कुछ देर के बाद रुप अंदर आती है और अंदर की नज़ारा देखती है l भैरव सिंह और केके दोनों कमरे के बीचोबीच कुर्सी पर बैठे हुए हैं और उनके आगे विक्रम खड़ा हुआ है l रुप को देख कर विक्रम आपनी बाहें फैला देता है रुप दौड़ कर उसके गले लग जाती है l थोड़ी देर बाद विक्रम उसे अलग कर उसके चेहरे को गौर से देखता है l रुप के चेहरे पर ना कोई ग़म ना कोई शिकन था l यह देख कर विक्रम को थोड़ी हैरानी होती है l

विक्रम - कैसी है मेरी गुड़िया...
रुप - बहुत अच्छी हूँ भैया... पर एक दुख तो रहेगा ना... जिस वक़्त भाभी के पास ननद को होना चाहिए... तब मैं नहीं हूँ...
विक्रम - अब भी कोई देर नहीं हुई है... चल मैं ले चलता हूँ...
रुप - क्या करूँ भैया... एक रिश्ते ने मुझे इस महल से बाँध रखा है... वर्ना चली ही जाती...
विक्रम - नंदिनी... मेरी बहन... (केके की ओर दिखा कर) तु इस आदमी के बारे जानती है...
रुप - हाँ भैया... यह वही है ना... जो सालों साल... तुम्हारे जुते चाटता था... (यह बात सुनते ही केके का चेहरा कड़वा हो जाता है)
विक्रम - यह अभी इस महल में... राजा साहब के बगल में क्यूँ है जानती हो ना..
रुप - हाँ भैया... श्मशान जाने की उम्र में... कटक से इतना दूर... अपनी फजिहत करवाने आया है...
भैरव सिंह - (गुर्राता है) नंदिनी...
विक्रम - (भैरव सिंह की ओर हाथ दिखा कर आगे कुछ बोलने से रोक देता है और रुप से) तुझे यह शादी मंजूर नहीं है ना...
रुप - भैया... शादी हो तब ना... जब यह शादी होनी ही नहीं है... फिर मैं उसकी चिंता क्यूँ करूँ...
विक्रम - तुझसे ज़बरदस्ती भी करवा सकते हैं...
रुप - ज़बरदस्ती तब करेंगे ना... जब मैं मना करूंगी...
विक्रम - मैं समझा नहीं गुड़िया...
रुप - भैया... आप ज़रूर आना... भाभी... चाची माँ और चाचाजी को लेकर... वह तमाशा... राजगड़ के साथ साथ... आप भी देखना...
विक्रम - बस बहना बस... मैं बस तेरी खैर ख़बर और मर्जी जानने आया था... तेरा यह विश्वास देख कर... मैं सब समझ गया...
रुप - देखा भैया... बातों ही बातों में भूल गई... भाभी.. चाची माँ और चाचाजी कैसे हैं...
विक्रम - तेरे लिए फिक्र मंद थे... अब मेरी फिक्र मीट गई... समझ उनकी भी मीट गई... अच्छा... अब अंदर जा...

रुप फिर से अपने भाई के गले लगती है और फिर वहाँ से निकल जाती है l विक्रम अब एक मुस्कराहट के साथ भैरव सिंह के तरफ देखता है l

भैरव सिंह - हो गई तसल्ली...
विक्रम - जी... हो गई... अब मुझे... आपकी फिक्र हो रही है...
भैरव सिंह - तुम्हें लगता है... यह शादी कोई रोक सकता है...
विक्रम - मेरी बहन की आत्मविश्वास बोल रहा है... और मुझे यह साफ एहसास हो रहा है... नंदिनी की आत्मविश्वास की आँच को आप भी महसूस कर रहे हैं...
भैरव सिंह - हम उस दिन किसी को भी... अपनी जगह से हिलने तक नहीं देंगे.... ना हवा.. ना पानी... ना खून को...
विक्रम - आप उसी पर कायम रहिएगा... जोर नंदिनी पर मत आजमा बैठिएगा... क्यूँकी चाची माँ ने कहा था... पहली बार... आप ही के अहंकार से... आप ही का खून का अहंकार टकराया है...
भैरव सिंह - और हमारे अहंकार से टकराने वाले हर वज़ूद को नकार देते हैं... हमसे कोई जीत नहीं सकता... चाहे वह हमारा खून ही क्यूँ ना हो... इसलिए हमारी फिक्र मत करो
विक्रम - आपके खून के साथ किसी और का जुनून भी टकराएगा... इसीलिए मुझे फिक्र हो रहा था... (कह कर विक्रम पलट कर जाने लगता है फिर अचानक रुक कर मुड़ता है) मुझसे नंदिनी चहकते हुए मिली... शादी के दिन भी मुझे वैसी ही मिलनी चाहिए... वर्ना... रजवाड़ी इतिहास... फिर से अपने आप को दोहराएगा....

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शादी को एक दिन रह गया है
उसके पूर्व संध्या के समय विश्व नदी के तट पर बने सीढ़ियों पर बैठा डूबते सूरज की देख रहा था l कोई उसके पीछे से सीढ़ियां उतरता हुआ महसूस होता है l विश्व नजर घुमा कर देखता है पिनाक सीढ़ियों से उतर कर आ रहा था l विश्व खड़ा हो जाता है l

पिनाक - यह अच्छी निशानी है... यह नदी का किनारा... ढलता हुआ शाम... डूबता हुआ सुरज... किसी को भी... खोने को मजबूर कर सकता है... पर फिर भी तुम चौकन्ना थे... मैं दबे पाँव आ रहा था... तुम सतर्क हो गए...
विश्व - (कुछ नहीं कहता चुप रहता है)
पिनाक - बैठो... मैं भी तुम्हारे साथ... कुछ देर बैठने के लिए आया हूँ... (सीढ़ियों पर बैठ जाता है, विश्व भी उसे बैठा देख कर बगल में बैठ जाता है) ज्यादातर डूबते सूरज को वही लोग देखते हैं... जिन्हें अंधेरे में कुछ खोने का डर हो...
विश्व - हाँ आपकी बात सच है... पर सुबह की तरह शाम भी एक सच है... अगर उजाले के बाद... अंधेरा आना तय है... तो राह के लिए भटकने से पहले... रौशनी का इंतजाम कर लेना चाहिए... मैं यहाँ... रौशनी ढूंढ रहा हूँ...

कुछ देर के लिए दोनों के बीच एक चुप्पी सी छा जाती है l कुछ देर बाद विश्व पिनाक से कहता है l


विश्व - आज आपको यहाँ देख कर अच्छा लगा...
पिनाक - हाँ... मुर्दों की तरह... मुर्दों के बीच जिए जा रहा था... जब जीने की ख्वाहिश जागी... तब सब कुछ लूट चुका था... जिंदा लाश बन कर रह गया हूँ...
विश्व - आपने कहा... आप मुझसे बात करने आए हैं...
पिनाक - हाँ... इससे पहले हम जब भी मिले... आपस में... रंजिश भरे दिल में मिले... अब रंजिश की जगह तो नहीं है... पर...
विश्व - पर...
पिनाक - पर एक मासूम सी जान है... जो एक राक्षस के पिंजरे में कैद है...
विश्व - आप... राजकुमारी जी की बात कर रहे हैं...
पिनाक - हाँ... मैं नंदिनी की बात कर रहा हूँ...
विश्व - (एक गहरा साँस छोड़ते हुए) आपको... क्या लगता है...
पिनाक - मैं अब क्या कहूँ... मुझे परेशान देख कर... विक्रम ने ही तुम्हारे पास यहाँ आने के लिए कहा था... क्यूँकी उसे मालूम था... तुम मुझे यहाँ मिलोगे...
विश्व - आपको... राजकुमारी जी की चिंता परेशानी में डाल रखा है...
पिनाक - हाँ... मेरी पत्नी... बहु और विक्रम तक... आश्वस्त हैं... पर मैं नहीं हो पा रहा था... इसलिए विक्रम ने मुझे तुम्हारे पास भेज दिया...
विश्व - पर आपने अभी तक... राजकुमारी जी को लेकर... कोई भी सवाल नहीं किया है...
पिनाक - विश्व... वीर को... खोने के बाद... मैं खुद को एक लुटा पीटा भिकारी समझ रहा था... पर ज्यूं ही... राजा साहब ने... शादी का कार्ड दिया... तब मुझे एहसास हुआ... मेरे पास और भी कुछ क़ीमती है... जो राजा साहब की जिद की बेदी पर बलि चढ़ने जा रही है...
विश्व - आप मुझसे क्या चाहते हैं...
पिनाक - वादा... सिर्फ एक वादा...
विश्व - कैसा... वादा...
पिनाक - विश्व रुप की एका... विश्व और रुप दो शब्द या दो प्राण नहीं होने चाहिए... जब भी नाम लिया जाए... विश्वरुप ही सुनाई दे... दिखाई दे... बस यही वादा चाहता हूँ... मेरे बेटे की आत्मा को शांति मिलेगी... क्यूँकी वह तुम दोनों के बारे जानता था... और तुम दोनों को एक होते देखना चाहता था...
विश्व - आप ही ने कहा... आपके परिवार वाले आश्वस्त हैं... क्या आपको संदेह है...
पिनाक - नहीं... पर... मैं राजा साहब के जिद को जानता हूँ... और अब ऐसा लग रहा है... जैसे तुम्हें हराने के लिए... वह किसी भी हद तक जा सकते हैं...
विश्व - ह्म्म्म्म... शादी कल शाम को है... इतने दिनों में... महल में... क्या कुछ हुआ है...
पिनाक - तुमसे कुछ छुपा तो नहीं होगा... यशपुर से कुछ औरतें बुलाई गई हैं... जो नंदिनी की शृंगार करेंगी... आज घर पर... नंदिनी की खास परिचारिका सेबती आई थी... कल नंदिनी अपने पास अपनी भाभी और चाची माँ को चाहती है... इसलिए वे कल सुबह ही महल चली जाएंगी... कमल कांत सिर्फ एक दिन ही महल में रहा... फिर उसे राजा साहब ने रंग महल भेज दिया... एक अंधी सफेद घोड़ी को लाई गई है... जिसके ऊपर वह बेशरम... बेग़ैरत... कमल कांत... रंग महल से निकल कर राजगड़ परिक्रमा करेगा... अब की बार... राजा साहब ने... बाहर से लोग बुलवाए हैं... हर एक पर नजरें जमाए हुए हैं... मुझे तो लगता है... वे तुम पर भी... नजरें गड़ाए होंगे...
विश्व - क्यूँ...
पिनाक - यह कैसा सवाल हुआ... तुम पर उनकी इसलिए नजर होगी... ताकि तुमसे कोई हरकत हो... तो पलटवार कर सकें...
विश्व - अगर मैं कोई हरकत ही ना करूँ तो...
पिनाक - (भौंहे सिकुड़ कर हैरानी भरे नजर से देखता है) तुम अगर कुछ नहीं करोगे... तो राजा साहब अपने मकसद में कामयाब हो जाएंगे... नंदिनी की जिंदगी बर्बाद हो जाएगी...
विश्व - यह शादी... राजा साहब की मकसद नहीं है... बल्कि एक छिपा हुआ मकसद है... जिसके लिए... उन्होंने यह शादी तय की है...
पिनाक - क्या... कौनसी छुपी हुई मकसद...
विश्व - असल में... राजा साहब... यह शादी ही नहीं चाहते... और यह भी अच्छी तरह से जानते हैं... यह शादी नहीं होगी...
पिनाक - (झटका खाते हुए) यह तुम किस बिनाह पर कह सकते हो...
विश्व - (मुस्कराता है) राजा साहब का पहला मकसद है... मुझे इस केस से हटाना... या भटकाना... यह तभी हो सकता है... जब मेरी कोई कमजोर नस उनके हाथ हो...
पिनाक - तो क्या नंदिनी तुम्हारी कमजोरी नहीं है...
विश्व - नहीं... वह मेरी ताकत हैं... मेरी जान... मेरी आत्मा हैं... मेरी कमजोरी... मेरे मुहँ बोले माता पिता हैं... यह शादी की बात इसलिए फैलाई गई है... किसी तरह यह खबर मेरे माता पिता को मिल जाए... मेरी माँ... इमोशनली जितनी मजबूत है... उतनी ही कमजोर भी है... यह बात... राजा साहब अच्छी तरह से जानते हैं... मेरी माँ तक अगर राजकुमारी जी की शादी की खबर पहुँच जाए... तो मेरी माँ हाय तौबा कर बाहर आ जाती... आज के दिन... राजा साहब को सरकारी तंत्र भी मदत दे रही है... ऐसे में... मेरी माँ को कब्जे में लेना... उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं होगी...
पिनाक - तुम्हें ऐसा क्यूँ लगता है... नंदिनी की शादी की खबर... प्रतिभा जी को नहीं मिलेगी...
विश्व - क्यूँकी... माँ और डैड... दोनों को... मैंने ही अंडरग्राउंड करवाया है... उन तक कौनसी खबर जाएगी... यह मैं ही तय करता हूँ...
पिनाक - (कुछ सोच में पड़ जाता है) तुम यह कैसे कह सकते हो... राजा साहब को यह शादी... मंजूर नहीं...
विश्व - पुरे स्टेट में... राजा साहब कोई मामूली व्यक्ती नहीं हैं... पर वह केवल दो ही ईंवीटेशन कार्ड प्रिंट कर लाए थे... एक मेरे और दीदी के नाम... दूसरा आपके नाम... बाकी राजगड़ से बाहर... यहाँ तक यशपुर भी नहीं... कहीं भी... किसीको भी... ना खबर किया गया है... ना ही बुलाया गया है... राजगड़ में भी लोगों को... घूम घूम कर... मुहँ जुबानी निमंत्रण दिया गया है... इससे यही साबित हो रहा है... यह शादी... राजा सहाब को मंजूर नहीं है...
पिनाक - चलो मान लिया... तुमने राजा साहब की वह छुपी हुई मकसद को नाकाम कर दिया... पर शादी... शादी कैसे नहीं होगी... राजा साहब तुम्हें तोड़ने के लिए... किसी भी हद तक जा सकते हैं... मतलब शादी... उसी केके से करवा सकते हैं...
विश्व - राजा साहब का यह मकसद भी पूरा नहीं होगी... बस यकीन रखिए...

सुरज पूरी तरह से डूब चुका था l उजाला कम हो गया था अंधेरा धीरे धीरे आने लगा था, पश्चिमी आसमान के कुछ हिस्सा अभी भी लाल दिख रहा था l तभी दोनों के कानों में विक्रम की आवाज़ सुनाई पड़ती है l

"चाचाजी"

दोनों आवाज की दिशा में मुड़ते हैं l विक्रम को देख कर पिनाक अपनी जगह से उठता है, विक्रम हाथ बढ़ा कर पिनाक का हाथ थाम लेता है l पिनाक सीढ़ियों से चढ़ते हुए जाने लगता है l पीछे पीछे विश्व भी जाने लगता है l कुछ दूर जाने के बाद पिनाक रुक जाता है और मुड़ कर विश्व से पूछता है l

पिनाक - विश्व... तुम्हें जब इस घाट पर ढलते सूरज की देखते हुए पाया... तो लगा कि तुम नंदिनी के लिए परेशान हो... पर तुम्हारे बातों से जाना... तुम नंदिनी के लिए परेशान हो ही नहीं... पर सच्चाई यही है... के तुम किसी बात को लेकर... परेशान हो... मैं अपनी शंका मिटाने आया था... मीट गया... तुम अंधेरे उजाले की बात कर रहे थे... क्या मैं तुम्हारी कोई मदत कर सकता हूँ... (विश्व क्या कहे समझ नहीं पाता, उसे यूँ असमंजस देख कर विक्रम कहता है)
विक्रम - हाँ विश्व... वैसे हम जानते हैं... तुम बहुत काबिल हो... फिर भी... कोई मदत चाहो तो पूछ सकते हो... क्यूँकी वीर ने ऐलान किया था... जब तुम और क्षेत्रपाल आमने सामने होंगे... वह तुम्हारे कंधे से कंधा मिलाकर लड़ेगा... अब वह हमारे बीच रहा नहीं... पर उसकी यह ख्वाहिश मिटनी नहीं चाहिए...
पिनाक - हाँ विश्वा... हम जो भी कह रहे हैं.. जो भी कर रहे हैं... सभी वीर के वास्ते...

विश्व अभी भी असमंजस में था l उससे कुछ पूछा नहीं जाता l विश्व की यह स्थिति देख कर दोनों चाचा भतीजा लौटने के लिए मुड़ते हैं के विश्व उन्हें पूछता है l

विश्व - वह बात... केस के सिलसिले पर ही है.... पर...
पिनाक - पूछो... क्या जानना चाहते हो...
विश्व - रुप फाउंडेशन के केस में... दो आरोपी कत्ल कर दिए गए... और दो आरोपी गायब हो गए... क्या ऐसा हो सकता है... के कोई आरोपी खुद को... गायब कर लिया हो...
विक्रम - मैं सोच रहा था... किसी मामले में... फिजीकल कुछ हेल्प एक्सटेंड कर सकूं... पर माफ करना... इस पर मेरी कोई आइडिया नहीं है... क्यूँकी राजा साहब हमें कभी भी... उनके किसी भी मामले में... सामिल नहीं करते थे...
पिनाक - अब समझा... तुम्हारे अंधेरे और उजाले की पहेली... देखो विश्व... इस केस की विशेषता यह है कि... तुम शायद इस केस में... राजा साहब की संलिप्तता सिद्ध कर सको... पर... फिर भी... राजा साहब बच जाएंगे...
विश्व - जी... मैं भी तब से यही सोच रहा हूँ... कोई ऐसा गवाह जो मेरे हाथ लग जाये... जिसके गवाही पर... राजा साहब के हर एक करनी को अंजाम तक पहुँचा सकूँ...
पिनाक - देखो विश्वा... सूरज डूबता है... पर फिर भी अंधेरे में.. हमें रौशनी की दरकार होती है... तब... कमरे में दिया जलाया जाता है... रौशनी के लिए... पर इतना याद रखना... अंधेरा पूरी तरह से छटती नहीं है.... दिन की काली करतूत को... दिए के तले वाली अंधेरे में छुपाया जाता है... तुम्हें बस दिए को ढूंढना है... अगर ढूंढ लिया... तो वह तला भी मिल जाएगा और... तले में छुपे काली करतूत...
विश्व - मैं पूरी बात समझा नहीं...
पिनाक - जैसे कि मैंने पहले भी कहा था... तुम संलिप्तता साबित कर सकते हो... पर पूरी तरह दोषी करार नहीं दे सकते... तुम ज्यादा से ज्यादा... केस में राजा साहब को घेर सकते हो... जिससे राजा साहब साफ बचके निकल जाएंगे... राजा साहब को दोषी साबित करने के लिए... तुम्हारे दोनों केस में... मॉनी ट्रेल को साबित करना होगा... उस ट्रेल का छोर और अंत राजा साहब हैं यह साबित करना होगा... यहाँ राजा साहब का अंधेरे का दिआ... कोई और नहीं... एडवोकेट बल्लभ प्रधान है... जो अपने तले... राजा साहब की हर एक काली करतूत को छुपाये रखा है...
विश्व - जानता हूँ... पर कोई ऐसी जानकारी... जो एडवोकेट प्रधान को... घुटने पर ला सके...
विक्रम - देखो विश्व... प्रधान का ठिकाना... या तो राजगड़ या यशपुर... या फिर कटक या भुवनेश्वर... बाकी जो भी तुम्हें शक है... उसे एस्टाब्लीश करने के लिए... तुम्हें अपने कॉन्टैक्ट ईस्तेमाल करने होंगे...
विश्व - (चेहरे पर एक मुस्कान उभर आती है) वाह क्या बात कही... मुझे एक उम्मीद दिला दिया आपने... थैंक्यू...

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अब शाम ढल चुकी थी l अंधेरा पूरी तरह से पसर चुकी थी l रंग महल के सामने एक सफेद घोड़ी को भीमा और उसके गुर्गे सजा रहे थे l जो भी लोग रंग महल में थे वे सब कल होने वाली शादी की खुशी में दारु पी रहे थे l वहीँ रंग महल के एक कमरे में केके गहरी सोच में खोया हुआ एक कुर्सी पर बैठा हुआ था l दरवाजे पर जब दस्तक होती है तो वह कहता है

केके - अंदर आ जाओ...

दरवाजा खुलता है सत्तू के साथ रॉय और रंगा आते हैं l तीनों अंदर आकर देखते हैं केके थोड़ा घबराया और परेशान सा दिख रहा था l

रॉय - क्या बात है... केके साहब... आज तो बहुत खुशी का रात है... फिर तो यह रंग महल आपका... सारी प्रॉपर्टी में आधा हिस्सा आपका... मुझे तो लगा था... आप मन ही मन यही गा रहे होंगे... यही रात अंतिम यही रात भारी... पर आप घबराए हुए क्यूँ लग रहे हैं...
रंगा - हाँ... मैं तो सोच रहा था... आपके चेहरे पर लड्डू फुट रहे होंगे... पर आप घबराए हुए दिख रहे हैं...
रॉय - हाँ... जब कि कायदे से... कल की सोच कर... दुल्हन को घबराना चाहिए... हा हा हा हा... (रॉय के साथ रंगा भी हँसने लगता है)

गुस्से से तमतमाते हुए केके कुर्सी से उठ खड़ा होता है l और दोनों पर चिल्लाता है l

केके - शॉट अप... (दोनों चुप हो जाते हैं)
रॉय - केके साहब... कल शादी है... हमें राजा साहब ने हुकुम दिया है... आपको दूल्हे की तरह सजा कर... रंग महल से... क्षेत्रपाल महल तक... घोड़ी के ऊपर बिठा कर... जुलूस के साथ ले जाने के लिए... हमें लगा था... आपकी इच्छा पूरी हो रही है... इसलिए... आप बहुत खुश होंगे पर...
रंगा - केके साहब... कल से आप राजा साहब के... जमाई बनने जा रहे हैं... फिर घबराहट किस बात की...
केके - (दोनों की तरफ देखता है फिर) रंगा... एक बात बता... तेरी... सच में... किसको देख कर फटी थी...
रंगा - आपसे मतलब...
केके - डर लग रहा है ना...
रंगा - ठीक है... विश्वा... पर इस शादी से... उसका क्या वास्ता...
केके - तुझे क्या लगता है... एक अधेड़... हम उम्र से... राजा साहब... क्यूँ अपनी बेटी को व्याहना चाहते हैं...
रंगा - मेरे को क्या पता...
रॉय - एक मिनट.. एक मिनट... कहीं आप यह तो नहीं कहना चाहते... के विश्वा और राजकुमारी...
केके - हाँ...
रंगा - यह कैसे हो सकता है... मैं नहीं मानता... विश्वा... सात साल तक... जैल में रहा... बमुश्किल सात आठ महीने हुए हैं... बाहर आए... उसकी और राजकुमारी...
केके - पर यह सच है... खुद राजकुमारी ने मुझे कहा था... और यह... जवानी वाला इश्क नहीं है... बचपन वाला लफड़ा है...
रंगा और रॉय - क्या...
केके - हाँ... इस.. (सत्तू की ओर दिखा कर) पूछो इससे...
सत्तू - (घबरा कर) मैं... मैं... कुछ नहीं जानता...
केके - क्या नहीं जानता बे... तूने ही तो कहा था... विश्व... राजकुमारी को.. बचपन से पढ़ाता था...
सत्तू - हाँ... यह तो हर कोई जानता है... पर आप जो कह रहे हैं... यह कोई नहीं जानता...
रॉय - चलो ठीक है... एक पल के लिए हम मान लेते हैं... के राजा साहब... अपनी खुन्नस निकालने के लिए... अपनी बेटी की शादी.. आपसे करा रहे हैं... तो आपको इससे प्रॉब्लम क्या है...
केके - रॉय... इन कुछ महीनों में... हमने जो भी कुछ हारा है... जरा याद करो... उसके पीछे कहीं ना कहीं... विश्वा है... या तो सीधे तौर पर... या फिर... और रंगा... याद है... जब विश्वा तेरे सामने... अचानक आ गया... तेरी क्या हालत हो गई थी...

इतना कह कर केके चुप हो जाता है l रॉय और रंगा भी कुछ देर के लिए कोई बात नहीं कहते l फिर कुछ देर बाद रंगा कहता है l

रंगा - चलो मान लेता हूँ... पर है तो यह राजा साहब का इलाक़ा... और उन्होंने अपनी लश्कर में जबरदस्त बढ़ोतरी की है... मुझे नहीं लगता... विश्वा कुछ करने के लायक होगा...
रॉय - हाँ... मेरा भी यही खयाल है...
केके - मैं भी यही सोच रहा था... पर... जिस दिन विक्रम अपनी बहन से मिलने महल आया था... उस दिन... मैंने राजकुमारी के आँखों में... बातों में... एक जबरदस्त... आत्मविश्वास देखा था... उन्होंने खुल्लमखुल्ला राजा साहब के सामने ऐलान कर दिया... यह शादी होगी ही नहीं...
केके - मतलब वह... विश्वा के साथ... भागने की चक्कर में है...
सत्तू - ना मुमकिन... आज सुबह तक तो राजकुमारी जी महल में ही हैं... और कल से उनके शृंगार के लिए... कुछ औरतों को यशपुर से बुलाया गया है.... और लगातार राजा साहब के निगरानी में हैं...
रॉय - देखा... आप खामख्वाह परेशान हो... चलिए मैं मान लिया... विश्वा से खुन्नस उतारने के लिए... राजा साहब आपसे... राजकुमारी को व्याह दे रहे हैं... तो यह उनकी नाक और मूँछ की आन की बात हो गई ना... अपनी नाक और मूँछ की आँच बचाने के लिए... कुछ भी कर सकते हैं... अगर यह विश्वा से बदला लेने की बात है... तो इस मिशन में... हमें शिद्दत के साथ... शामिल होनी चाहिए... हम सबका बदला एक साथ पुरा होगा... कोई नहीं केके साहब... राजा साहब ने वह एग्रीमेंट यूँ ही नहीं कि है... मत भूलिए... इस शादी के बाद... यह रंग महल आपका हो जाएगा... राजा साहब के सारे फैक्ट्रियों और प्रॉपर्टी में... बराबर का हिस्सा हो जाएगा...
रंगा - हाँ केके साहब... आप बस तैयार हो जाइए... सारे गाँव वाले होंगे सामने शादी होने वाली है... विश्वा को भीतर से तोड़ने के लिए... अबकी बार... मैं खुद को बाजी लगा दूँगा... यह मेरा वादा है...

रॉय और रंगा के ढांढस बाँध ने के बाद केके को थोड़ी हिम्मत मिलती है l अब वह तैयार होने के लिए बाथरूम के अंदर जाता है l
Bahut hi lajawab update hai bhai
 
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Rajesh

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👉एक सौ उनसठवाँ अपडेट
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रात के करीब साढ़े दस या ग्यारह बज रहे होंगे l एक गाड़ी क्षेत्रपाल महल के सामने आकर रुकती है l गाड़ी से रंगा और रॉय उतरते हैं, भीमा उन्हें अपने साथ सीढ़ियों से ले जाता है l दोनों भीमा के साथ होते हुए महल के भीतर एक खास कमरे में पहुँचते हैं l उस कमरे में एक दीवार पर काँच के अलमारी में एक तलवार रखा हुआ था जिसकी मूठ नहीं थी l भैरव सिंह उस तलवार को देखे जा रहा था l उस कमरे में भैरव सिंह के साथ पहले से ही बल्लभ प्रधान मौजूद था l इन दोनों के आते ही भैरव सिंह मुड़ता है, भीमा उसके सामने झुकता है l

भैरव सिंह - अब तुम जाओ... हमारी मीटिंग खत्म होते ही तुम्हें बुला लेंगे...
भीमा - जी हुकुम... (भीमा उल्टे पाँव उस कमरे से बाहर चला जाता है)
भैरव सिंह - (भीमा के चले जाते ही) आओ... हम सब बैठकर बातेँ करते हैं... (कह कर एक गोल टेबल के पास जाता है जहाँ चार कुर्सियाँ पड़ी थी) (टेबल के पास पहुँच कर देखता है तीनों वैसे ही अपनी जगह पर खड़े हैं) क्या हुआ... आओ...
रॉय - राजा साहब... हम कैसे आपके बराबर बैठ सकते हैं...
भैरव सिंह - यह ना तो कोई दरवार है... ना ही कोई मैख़ाना... ना ही भोजन हेतु मेज पर बैठने को कह रहे हैं... फ़िलहाल आप हमारे पंचरत्नों में से हैं... यह हमारा रणनीतिक कक्ष है... यहाँ आप लोग हमारे बराबर बैठकर रणनीति तय कर सकते हैं... साझा कर सकते हैं... (बल्लभ से) प्रधान... तुम तो वाकिफ हो...

बल्लभ अपना सिर हिला कर टेबल के पास आता है और भैरव सिंह के पास खड़ा हो जाता है l जिसे देख कर रंगा और रॉय भी आकर टेबल के पास खड़े होते हैं l तीनों देखते हैं टेबल पर क्षेत्रपाल महल का एक नक्शा रखा हुआ था l

भैरव सिंह - सीट डाउन जेंटलमेन... (पहले प्रधान बैठ जाता है उसके बाद रंगा और रॉय बैठ जाते हैं) (एक गहरी साँस लेकर छोड़ने के बाद रॉय से) तो रॉय... रंग महल में सब ठीक है... केके... कैसा है...
रॉय - जी वह बहुत अच्छे हैं...
भैरव सिंह - सच बोलो रॉय... सच बोलो... क्यूँकी एक झूठ हमें नहीं... बल्कि हम सब को हरा सकता है... केके कैसा है...
रॉय - सॉरी राजा साहब... केके थोड़ा डरा हुआ है...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... वज़ह...
रॉय - (कुछ देर के लिए पॉज लेता है, फिर) वह... राजा साहब... यह आपके परिवार का निजी मामला है... इसलिए...

भैरव सिंह अपनी जगह से उठता है l उसके उठते ही सारे उठ खड़े होते हैं l भैरव सिंह कमरे के एक किताबों की अलमारी के पास जाता है और अलमारी के भीतर एक कि पैड पर कुछ नंबर पंच करता है l अलमारी एक आवाज के साथ सरक जाती है l ज्यूं ज्यूं अलमारी सरकती जाती है पीछे नोटों के गड्डियों का पहाड़ नजर आने लगती है l जिसे देख कर रंगा और रॉय की आँखे और मुहँ खुल जाती हैं l भैरव सिंह मुड़ता है और उनसे कहता है

भैरव सिंह - यह हमारी दौलत के सागर की... एक छोटी सी गागर है... यह सब तुम्हारा हो सकता है... बस यह समझो... इस वक़्त हम लोग एक टीम हैं... और हम तुम लोगों के कॅप्टन... अगर हमारी जीत हुई... तो तुम लोग सोच भी नहीं सकते.. कितने आमिर हो जाओगे... (कह कर की पैड पर कुछ नंबर पंच करता है, जिससे वह किताब की अलमारी फिर से सरकते हुए वापस आ जाती है और नोटों के वह दृश्य गायब हो जाती है) तो अब बोलो... केके की कैसी हालत है... (कह कर अपनी जगह पर बैठ जाता है, वे तीनों भी बैठ जाते हैं)
रंगा - राजा साहब... जैसा कि रॉय बाबु ने कहा... यह आपके परिवार की अंदरुनी बात है.... पर सच यह है कि... केके साहब बहुत डरे हुए हैं...
भैरव सिंह - समझ सकते हैं... उसने वज़ह तो बताई होगी...
रॉय - जी... गुस्ताखी माफ हो तो...
भैरव सिंह - हाँ बताओ... उसने क्या बताया...
रॉय - वह.. वह... (आगे बोल नहीं पाता)
रंगा - कुछ गलत बोल जाएं तो माफ़ कर दीजिएगा राजा साहब... केके बाबु का कहना था कि... विश्वा और राजकुमारी जी का... (चुप हो जाता है)
भैरव सिंह - क्या सिर्फ यही वज़ह है... या केके ने कुछ और भी कहा है...
रंगा - राजा साहब... खुद राजकुमारी जी ने केके साहब से कहा था... लोग शिशुपाल की नहीं... अब की बार केके बाबु का मिशाल देंगे...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म...
रॉय - गुस्ताखी माफ राजा साहब... विश्वा ने जिस भी काम को उठाया है... उसे पूरा किया है... और अब... यह तो उसका निजी मामला है... तो.... (चुप हो जाता है)
भैरव सिंह - तुम दोनों को इसीलिए तो इतनी रात को बुलाया है... शिशुपाल प्रकरण में... जानते हो... क्या कांड हुआ था... (रॉय और रंगा दोनों चुप रहते हैं)
बल्लभ - रुक्मिणी हरण हुआ था...
रॉय - और केके बाबु कह रहे थे... राजकुमारी जी... आपके सामने भी... यह जाहिर किया के... उनकी शादी केके बाबु से नहीं होने वाली....

अब कमरे में सन्नाटा पसर जाता है l भैरव सिंह अपना सिर हिलाता है और उठ खड़ा होता है पर उन तीनों को बैठे रहने के लिए इशारा करता है l भैरव सिंह चलते हुए उस मूठ विहीन तलवार के सामने खड़ा होता है और तलवार की ओर देखने लगता है l धीरे धीरे उसका जबड़ा सख्त हो जाता है l फिर से इन तीनों की तरफ़ मुड़ता है l

भैरव सिंह - जेंटलमेन... हाँ यह सच है... राजकुमारी का दिल एक नमक हराम कुत्ते पर आ गया है... अब चूँकि वह अपनी ओहदे से नीचे आ गईं हैं... इसलिए हमने उनकी औकात को ध्यान में रखकर शादी तय कर दी... हमने कभी नहीं सोचा था... की चंद महीनों में... राजकुमारी इस हद तक गिर सकती हैं... खैर जो हो गया... सो हो गया... हमने राजकुमारी के जरिए... यह संदेश दे रहे हैं... जो भी हमसे जुड़े हुए हैं... उनको... के हमसे गुस्ताखी.... चाहे वह हमारा खून ही क्यूँ ना हो... हम हरगिज नहीं बक्सेंगे... हम सब जो इस कमरे में हैं... विश्वा से या तो प्रत्यक्ष... या फिर अप्रत्यक्ष रूप से... मात खाए हुए हैं... केके भी... इसलिए यह शादी होना... अब जरूरी है... (भैरव सिंह अब टेबल के पास आता है और अपनी जगह पर बैठ जाता है) कोई शक नहीं... विश्वा यह शादी रोकेगा... हम से यह गलती हुई है... की हमने कभी विश्वा के बारे में सोचा नहीं था... पर अब हम सोचने के लिए मजबूर हैं... यूँ समझ लो.. यह शादी एक आजमाइश है... विश्वा को परखने के लिए... समझने के लिए... अगर हम कामयाब रहे... तो हम आगे की खेल में... विश्वा को मात दे सकेंगे...
रंगा - और अगर... हार गए... तो...
भैरव सिंह - तो... आने वाले दिनों में... इस कमरे में... तुम लोगों की जगह... कोई और होंगे...

यह बात सुनते ही रंगा और रॉय एक दूसरे की ओर देखने लगते हैं l फिर दोनों भैरव सिंह की ओर देखते हैं l

रंगा - हम समझ गए... राजा साहब... कल शादी की कामयाबी के लिए... हम अपनी जान लड़ा देंगे...
भैरव सिंह - अगर हार भी जाओ तो मायूस मत होना... क्यूँकी यह क्षेत्रपाल की नाक की लड़ाई है... हाँ बस इतना होगा... के लड़ाई खत्म होने तक... तुम हमारे दोयम दर्जे के सैनिक बन कर रह जाओगे...
रॉय - मतलब... आप हमारी जगह... किसी और संस्थान से... मदत ले सकते हैं...
भैरव सिंह - तुम अब अपनी सीमा लांघ रहे हो...
रॉय - माफी चाहता हूँ.... राजा साहब... माफी चाहता हूँ... मेरा कहने का मतलब था... जैसे कि प्रधान बाबु ने कहा था... मैंने सभी जिलों से... आपके ही लोगों को भर्ती कराया है... आज हम छह सौ की आर्मी हैं... वह भी हथियारों से लैस...
भैरव सिंह - तो...
रॉय - (चुप रहता है)
रंगा - मैं कुछ बोलूँ... (भैरव सिंह उसके तरफ देखता है) राजा साहब... अगर आप कल की शादी में... बड़े मिनिस्टर और ऑफिसरों को बुलाते... तो वे अपनी सिक्योरिटी के साथ आते... इतनी सिक्युरिटी देख कर... विश्वा की फट जाती... और वह कुछ नहीं कर पाता...
बल्लभ - उनके साथ आए सिक्योरिटी उनके लिए होती... ना कि महल के लिए... और रंगा तुम अपनी औकात से ऊपर उठकर बात करो... मत भूलो... कुछ ही महीने पहले... एक वक़्त ऐसा भी था... सारे नेता और बड़े लोग... ESS की सर्विस लिया करते थे... अगर उन बड़े लोगों के होते... शादी ना हो पाती तो... (रंगा अपना मुहँ नीचे कर लेता है)
भैरव सिंह - रॉय... हमने तुम्हें अपनी चिंता बताई है... तुमने सिक्योरिटी एजंसी चलाई है... यूँ समझ लो... कल की शादी... तुम्हारे संस्था के लिए एक चैलेंज है... इसलिए... तुम अपना दिमाग लगाओ... और कल की शादी को मुकम्मल करो...
रॉय - जी राजा साहब...
भैरव सिंह - प्रधान... बाकी तुम समझाओ... फिर देखते हैं... इसकी सोच और काबिलियत...
बल्लभ - रॉय... जैसे कि तुम देख रहे हो... यह महल की नक्शा है... मंडप यहाँ बनाया गया है... थोड़ी ऊंची जगह पर... क्यूँकी नीचे गाँव वाले बैठ कर देखेंगे... अब तक... हम कामयाब रहे हैं... क्यूँकी विश्वा ने... कोई गुस्ताखी अब तक नहीं की है... पर हो सकता है... कल की आपाधापी के चलते... विश्वा को मौका मिल जाए... कुछ करने के लिए...

रॉय नक्शा को गौर से देखता है l फिर सोचने लगता है l कुछ तय करने के बाद रॉय अपना प्लान बताता है l

रॉय - राजा साहब... जैसा कि राजकुमारी जी का कहना है कि... विश्वा... केके को शिशुपाल बनाने वाला है... तो राजकुमारी जी की सुरक्षा और निगरानी... हमारी प्राथमिकता होगी... पर ऐसा भी हो सकता है कि... विश्वा बारात को रोकने की कोशिश करे...
बल्लभ - नहीं... नहीं करेगा...
रॉय - क्या मतलब...
बल्लभ - हमने पहले से ही... केके के लिए... बारात की एस्कॉट के लिए... पुलिस की व्यवस्था कर दी है... अगर कुछ गड़बड़ हुई... तो सारी जिम्मेदारी पुलिस के सिर होगी... और जब तक... शादी खत्म नहीं हो जाती... मंडप को पुलिस घेरे रहेगी... तुम सिर्फ यह बताओ... विश्वा को कैसे रोकोगे...
रॉय - तब तो कल शादी होकर ही रहेगी... हमारे सारे बंदों की नजर विश्वा पर टिकी होगी... पर क्या रस्म अदायगी के लिए... राजकुमारी जी की तरफ़ से... कोई होंगे... शायद राजकुमार और... रानी साहिबा... राजकुमारी जी के साथ नहीं होंगे...
बल्लभ - उसकी व्यवस्था हो चुकी है... उनकी जगह... कोई और होंगे... पर राजकुमारी जी के करीबी होंगे... जो कल सुबह तक... राजगड़ पहुँच जाएंगे...
रॉय - तो फिर प्लान सुनिए...

कह कर रॉय अपना प्लान बताने लगता है l सभी ध्यान से रॉय को सुनते हैं l प्लान समझाने के बाद बल्लभ उन्हें विदा करता है l उसके बाद वह भैरव सिंह के पास लौट कर आता है l

भैरव सिंह - तुम्हें क्या लगता है प्रधान...
बल्लभ - मैं... कुछ नहीं कह सकता... ( पॉज) एक बात पूछूं...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म...
बल्लभ - आप चाहते क्या हैं... आपने राजकुमारी जी को दाव पर लगा दिया है...
भैरव सिंह - बेटी हमारी है... तकलीफ तुम्हें हो रही है...
बल्लभ - अनिकेत ने गलती करी थी... आपने उसे सजा दी... पर यहाँ....
भैरव सिंह - यहाँ राजकुमारी ने अपराध किया है... ना सिर्फ हमारी आँखों में आँखे डाल कर बात की है... बल्कि हमें चैलेंज दी है... इस घर से जब जाएंगी... गुरुर के साथ... हमारी आँखों में आँखे डालते हुए जायेंगी...
बल्लभ - क्या वाकई आप इस शादी के लिए सीरियस हैं... (भैरव सिंह बल्लभ की ओर देखता है) गुस्ताखी माफ राजा साहब... जैसे कि रंगा कह रहा था... (एक पॉज) आप राजा साहब हैं... बड़े घराने... पॉलिटिशियन आपको बुला कर अपना कद बढ़ाते हैं... वहीँ आपके घर में शादी है... किसी को भी... आपने बुलाया नहीं है...
भैरव सिंह - हम अकेले में बेइज्जत होना पसंद करेंगे... पर सबके सामने नहीं... शादी की कामयाबी पर... हम अभी भी संदेह में हैं...
बल्लभ - क्या...
भैरव सिंह - हाँ... प्रधान... हमने एक दाव लगाया था... पर विश्वा उसमें फंसा नहीं... पर उस दाव से हम पीछे हट भी नहीं सकते... हम केस की सुनवाई से पहले विश्वा को ज़ख़्म देना चाहते हैं... हम उसे हारते हुए देखना चाहते हैं... अगर शादी हो गई... तो उसकी हार होगी...
बल्लभ - अगर नहीं हुई... तो यह आपकी हार होगी...
भैरव सिंह - नहीं यह हार नहीं होगी... पर हाँ जीत भी नहीं होगी...
बल्लभ - मैं समझा नहीं...
भैरव सिंह - जब तुमने कहा था कि... अपनी औलाद की ग़म भुला कर... केके नई शादी रचाने जा रहा है... हमने रूप नंदिनी को उसके आगे कर दिया... बदले में... हमारी बूते जो भी दौलत कमाया था.. उसे अदालत में ज़मा करवा लिया... वह हमारी दौलत थी... अब अगर शादी हो जाती है... तो राजकुमारी की किस्मत... नहीं होती है... तो केके की किस्मत...
बल्लभ - मतलब आप तय मान कर चल रहे हैं... यह शादी नहीं होगी...
भैरव सिंह - हम कोई जिल्लत अपने सिर नहीं लेना चाहते... विश्वा की सोच और करनी को आखिरी बार परखने के लिए... अपनी तरफ से सबसे बड़ा दाव आजमा रहे हैं... अगर विश्वा यह शादी रुकवाने में कामयाब हो जाता है... तो समझ लो जंग का मैदान... और उसका दायरा ना सिर्फ अलग हो जाएगा... बल्कि बहुत बढ़ जाएगा...
बल्लभ - इतने आदमियों को... राजगड़ में लाने के बाद भी... क्या आप इसी लिए... उन मशीनरीस से कॉन्टैक्ट किया है...
भैरव सिंह - हाँ... क्यूँकी तादात... ताकत की भरपाई करता है... तब... जब हर दरवाजा बंद होगा... हमें अलग सा खेल खेलना होगा... अलग सा दाव लगाना होगा... (बल्लभ थोड़ा कन्फ्यूज सा लगता है) प्रधान...
बल्लभ - जी... जी राजा साहब...
भैरव सिंह - तुम फ़िलहाल इस वक़्त... हमारे हमदर्द.. हमारे हम राज हो... इसलिए एक बात याद रखो... हम सिर्फ अपना ही सोचते हैं... खुद से बड़ा तो हम अपने बाप को भी नहीं मानते हैं... अपने लिए... हम किसी भी हद तक जा जा सकते हैं...
बल्लभ - जी... जी राजा साहब...
भैरव सिंह - वह क्या है कि... अब हम अपनी मुहँ से क्या कहे... हमने हम से बड़ा कमीना देखा नहीं... यह जान कर यह मत सोच लेना... के हमसे भी कोई कमीना पंती कर सकता है... क्या समझे...
बल्लभ - जी राजा साहब...


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अगले दिन विश्व अपनी बिस्तर पर आँखे मूँदे लेटा हुआ है l फोन की घंटी बजती है विश्व आँखे मूँदे हुए ही मुस्कराते हुए फोन को कान से लगाता है l

विश्व - हैलो...
रुप - मुम्म्म्म्म... आ...
विश्व - वाव... आज इतनी मीठी सुबह...
रुप - घबराओ मत... बहुत जल्द रोज... तुम्हें ऐसी ही... मीठी मीठी गुड मॉर्निंग मिलेगी...
विश्व - काश... जल्द ही वह दिन आये...
रुप - आयेगा आयेगा... बस सब्र करो... क्यूँकी सब्र का फल मीठा ही होता है...
विश्व - ह्म्म्म्म... हूँ हू हू... ही ही ही.. (हँसने लगता है)
रुप - ऐ... इसमें हँसने वाली क्या बात है...
विश्व - कुछ नहीं... बस... आप ने तो नहा लिया होगा... सब्र का साफ सूतरी फल के बारे में सोच रहा था...
रुप - ओ हो... बेवकूफ कहीं के... यह एक कहावत है...
विश्व - अच्छा... बड़ी प्यारी कहावत है...
रुप - क्या... (चौंकती है) छी... कितना गंदे सोचते हो...
विश्व - गंदा कहाँ... मैं तो साफ सूतरी फल के बारे में सोच रहा हूँ...
रुप - यु... मेरे सामने जब होते हो... फटती है तुम्हारी...
विश्व - आप भी कमाल करती हो... जब हाथों को शराफत में बाँध देता हूँ... तो डरपोक कहती हो...
रुप - हाँ तो... सामने जब होती हूँ... सब मैं ही तो करती हूँ...
विश्व - ठीक है... अगली बार... मैं कुछ करता हूँ...
रुप - ना... अगली बार.. मैं कोई मौका नहीं देने वाली...
विश्व - फिर तो सब्र का फल खट्टा हो जाएगा...
रुप - वह मैं नहीं जानती... मीठे फल के लिए... तुम्हें कुछ जतन करने होंगे...
विश्व - अजी हुकुम कीजिए... आपका गुलाम... आपके कदमों में बिछ जाएगा...
रुप - ठीक है... तो मुझसे व्याह कर लो...
विश्व - क्या...
रुप - क्यूँ... तुमने क्या सोचा... बिन जतन के फल चख लोगे...
विश्व - शादी तो करनी है... पर...
रुप - ठीक है... तुम्हारा यह पर... तुम अपने पास रखो... जानते हो ना... महुरत शाम को है...
विश्व - अच्छी तरह से जानता हूँ... भई हम खास मेहमान हैं आज के शाम की...
रुप - तुम्हारी नकचढ़ी को आज तुम्हारा इन्तेज़ार रहेगा...

रुप फोन काट देती है और शर्मा कर अपना चेहरा घुटनों के बीच छुपा लेती है l फिर उठती है और दीवार पर लगी आईने के सामने खड़ी होती है l अपनी ही अक्स को देख कर फिर से शर्माने लगती है l और अपने आपको संभालते हुए अपनी ही अक्स से कहती है

रुप - नंदिनी... कितनी बेशरम हो गई है... (कह कर अपना चेहरा अपनी हथेलियों में छुपा लेती है)

तभी दरवाजे पर दस्तक होती है l रुप को हैरानी होती है l इतनी सुबह कौन हो सकता है l रुप भागते हुए मोबाइल के पास जाती है और उसे म्यूट कर अपने कपड़ों में छुपा देती है l फिर दरवाजे के पास जाती है और दरवाजा खोलती है l सामने सेबती खड़ी थी पर वह अकेली नहीं थी उसके साथ छटी गैंग को देख कर रुप बहुत हैरान हो जाती है l

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बाथरूम से केके तैयार हो कर जब बाहर आता है, तो देखता है नाई और धोबी दोनों वैसे ही दरवाजे के बाहर खड़े हैं l सत्तू उनसे बातेँ कर रहा था l

केके - क्या हुआ सत्तू... यह लोग यहाँ खड़े क्यूँ हैं...
सत्तू - जमाई साहब... यह लोग आपसे बक्सिस की उम्मीद लगाए हुए हैं... आख़िर इन दोनों ने आपकी सेवा की है... हल्दी वगैरह लगाए हैं...
केके - क्या... हल्दी जनाना लगाती हैं...
सत्तू - पर आपके घर से कोई जनाना आई भी तो नहीं हैं...
केके - ठीक है... (अपना पर्स निकाल कर पाँच सौ के दो नोट उन्हें थमा देता है) इन्हें यहाँ से जाने के लिए कहो...

वह नाई और धोबी बेमन से पैसे लेते हैं l उन्हें सत्तू बाहर तक छोड़ आता है l सत्तू देखता है केके के चेहरे पर शादी की कोई खुशी झलक नहीं रही है l केके अंदर चला जाता है, उसके पीछे पीछे सत्तू भी कमरे के अंदर आता है l केके सेल्फ से एक व्हिस्की का बोतल निकाल कर ग्लास में पेग बना कर पीने लगता है l

सत्तू - एक बात पूछूं जमाई बाबु...
केके - पूछो...
सत्तू - क्या आप इस शादी से खुश नहीं हैं...
केके - खुशी... मुझे यकीन ही नहीं हुआ... जब राजा साहब ने... सामने से मुझे दामाद बनने की ऑफर की... ना सिर्फ ऑफर... बल्कि बाकायदा स्टैम्प पेपर में लिख कर दी... के शादी के तुरंत बाद... रंग महल मेरे नाम ही जाएगा... और केस के निपटारे के बाद... सारी प्रॉपर्टी में आधा हिस्सा हो जाएगा... पर मैं इस खुशी के लिए शादी को तैयार नहीं हुआ था... बल्कि सात सालों से... राजकुमार विक्रम जो जलालात मेरे साथ की... उसका बदला... मेरी किस्मत मुझे दे रहा था... इस खुशी के साथ मैं तैयार हुआ था... (पेग खाली करता है) ऐसा कोई दिन नहीं... जब मैंने उसके पैरों पर गिर कर गिड़गिड़ाया नहीं था... मुझे लगा... कुदरत ने मौका बनाया है... (एक पॉज लेकर और एक पेग बनाता है) वह कहते हैं ना... एक रस्म होता है... घोड़ी से उतरने के बाद... साला जीजा का पैर धोता है.. फिर जुता पहनाता है... मैं बस उस एक पल की खुशी के लिए... शादी को तैयार हो गया... पर साला विक्रम... मुझे मारने की धमकी दे गया... वह भी राजा साहब के सामने...
सत्तू - आपको कुछ नहीं होगा... भले ही राजकुमार राजा साहब के खिलाफ हैं... पर यह मत भूलिए... आप इस वक़्त राजा साहब के हिफाजत में हैं... और जो आप चाहते हैं... वह आज ना भी हो... पर शायद कल को मुमकिन हो...
केके - (हँसता है) हे हे हे... तुम... वाक़ई समझदार हो... हाँ शादी होने के बाद... यह मुमकिन होगा... जरुर होगा... (पेग खाली कर देता है)
सत्तू - आपको तो चिंता इस बात की होनी चाहिए... आप राजकुमारी जी को कैसे मनाएंगे...
केके - हाँ... यह बात तो है... कमीनी के तेवर बड़े हैं... बाप के सामने... बड़े यकीन के साथ... इत्मीनान के साथ कह रही थी... यह शादी नहीं होगी...
सत्तू - क्या आपको भी लगता है...
केके - ना... नहीं... बिल्कुल नहीं... पर जब... फ्रेम में विश्वा... यह नाम गूँजता है... तब मेरा यकीन डोल जाता है...
सत्तू - (चुप रहता है)
केके - तुम नहीं जानते सत्तू... मेरा सबकुछ ठीक चल रहा था... पर जैसे ही... विश्वा नाम का राहु... मेरी कुंडली में आया... तब से मेरा धंधा... बैठ गया... विक्रम ने ऐन मैके पर साथ छोड़ दिया... इसलिए... मैंने उस हरामी कुत्ते ओंकार चेट्टी से हाथ मिला बैठा... बदले में... बड़ी कीमत चुकाई... (केके फिरसे अपना पेग बनाने लगता है)
सत्तू - आज आपकी शादी है... इतना भी मत पीजीये... के मंडप पर संभल भी ना पाएं...
केके - शादी शाम को है... तब तक नशा उतर जाएगा...
सत्तू - हाँ यह बात आपने सही कहा... शाम तक... सारा नशा उतर जाएगा...
केके - सारा नशा... क्या मतलब है तुम्हारा...
सत्तू - आप बहक रहे हैं... जुबान साथ नहीं दे रहा है... आप विश्वा के बारे में कह रहे थे...
केके - अरे हाँ... पता नहीं... उस सजायाफ्ता के साथ... राजकुमारी... कैसे... यह बड़े घर के जो बेटियाँ होती हैं ना... उन पर नजर रखनी चाहिए... वह कहते हैं ना... नजर हटी... खैरात बटी...
सत्तू - माफ कीजिए जमाई बाबु... अगर नजर रखे होते... तो आज आप यहाँ नहीं होते... कोई राजकुमार होता...
केके - ही ही ही... बड़ा हरामी निकला... साला.. सच भी बोला... वह भी कितना कड़वा... खैर मुझे उसकी टेंशन नहीं है... मुझे अभी भी शक है... साला यह शादी होगी भी या नहीं...
सत्तू - आप भूल रहे हैं जमाई बाबु... यह शादी अब राजा साहब की नाक का सवाल है...
केके - अबे ख़ाक नाक की सवाल है... नाक की सवाल होती... तो पुरे स्टेट के... बड़े बड़े नामचीन हस्तियां यहाँ होती... मैंने जब इस बारे में पूछा था.. तो राजा साहब ने कहा था... के पहले शादी हो जाए... रिसेप्शन पर बुलाते हैं... जानते हो... राजा साहब ने ऐसा क्यूँ कहा... वह इसलिए सत्तू... राजा साहब को भी यकीन नहीं है... के यह शादी होगी...
सत्तू - (चुप रहता है)
केके - चुप क्यूँ हो गया बे... अब नहीं पूछेगा... हा हा... विश्वा पर... राजकुमारी की ही नहीं... विक्रम को भी भरोसा है... विश्वा... जिसने प्रोफेशन के चलते... हम सबको इतना डैमेज किया है... वह अपनी पर्सनल के लिए... क्या कुछ नहीं करेगा...
सत्तू - अगर आप इतने ही आश्वस्त हैं... तो इस शादी से भाग कर... खुद को जलील होने से बचा क्यूँ नहीं लेते...
केके - वैसे आइडिया बहुत अच्छा है... पर क्या है कि... मेरे अंदर का जानवर... मुझे उकसा रहा है... अगर यह शादी हो गई... तो राजकुमारी जैसी खूबसूरत लड़की... दौलत... और सबसे अहम... विश्वा और विक्रम से... अपना खीज निकाल सकता हूँ... और...
सत्तू - और...
केके - ही ही ही ही... कली चाहे खिली हो... या कमसिन हो... मसलने में... और रौंदने में बड़ा मजा आता है... ही ही ही...

तभी दरवाजे पर दस्तक होती है l दोनों उस तरफ मुड़ते हैं l एक नौकर झुके हुए सिर के साथ अंदर आता है l

केके - क्या है...
नौकर - मालिक... दरोगा जी आए हैं...
केके - (भौंहे सिकुड़ कर) दरोगा... (सत्तू से) तुम जाकर देखो... क्या माजरा है... मैं थोड़ा खुदको तब तक दुरुस्त कर लेता हूँ....

सत्तू बाहर चला जाता है l केके व्हिस्की का बोतल और ग्लास अंदर रख देता है और अपने बदन पर फ्रैगनेंस स्प्रे कर देता है l थोड़ी देर के बाद सत्तू इंस्पेक्टर दास के साथ अंदर आता है l

केके - कहिये... इंस्पेक्टर साहब... कहिये कैसे आना हुआ...
दास - हमें... एसपी ऑफिस से ऑर्डर मिला है... आज आपके बारात में... हम पुलिस वाले शामिल होंगे... और जब तक शादी नहीं हो जाती... तब तक आपके साथ रहेंगे... (सत्तू से) वैसे... कौन कौन लोग बारात में शामिल हो रहे हैं...
सत्तू - जी हम.. भीमा उस्ताद के कारिंदे...
दास - और बाकी... जो गाँव से बाहर आए थे...
सत्तू - जो वह सब महल की पहरेदारी के लिए गए हुए हैं...
दास - हूँ.. ह्म्म्म्म... (केके से) तो केके साहब... अब आपका क्या खयाल है...
केके - मुस्कराते हुए... यह शादी अब तो होकर ही रहेगी...

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रुप की कमरे में रुप और उसकी छटी गैंग थीं l रुप ने सेबती और दूसरे नौकरानियों को विदा कर सबके लिये नाश्ता लाने के लिए बोल दिया था l रुप के सारे दोस्त पहले से ही महल देख कर हैरान व चकित थीं l अब रुप की कमरे को घूम घूम कर देख रहीं थीं l

दीप्ति - (रुप के पास आकर बैठती है) वाव नंदिनी... महल तो महल... तुम्हारा कमरा भी क्या खूब है...
बनानी - हाँ यार... हमने कभी सोचा भी नहीं था... कोई राज महल को... सच्ची में... इतनी करीब से देखेंगे... और.. (रुप की बेड पर उछल कर बैठते हुए) किसी राजकुमारी की कमरे में... ऐसे बैठेंगे...

सब आकर रुप को घेर कर बैठ जाते हैं l रुप अब तक इन्हें देख कर शॉक में थी l सबको अपने पास देख कर पूछती है l

रुप - पहले यह बताओ... तुम लोग यहाँ कैसे...
तब्बसुम - यह तुम शॉक के वज़ह से पूछ रही हो... या हमें इस मौके पर नहीं देखना चाहती थी... इसलिये पूछ रहे हो...
रुप - क्या मतलब...
भास्वती - हाँ हाँ... दोस्तों में खिटपिट होती रहती है... पर ऐसी भी क्या नाराजगी यार... तुम शादी करने जा रही हो... और हमें खबर भी नहीं...
इतिश्री - और नहीं तो... वह तो भला हो... राजा साहब जी का... हमारे घर में आकर पर्सनली बुलाए थे... और यहाँ आने के लिए... गाड़ी भी भिजवाया था...
रुप - ह्व़ाट...
सब - हाँ...
रुप - राजा साहब... तुम लोगों के घर गए थे...
सब - हाँ...
रुप - कब...
बनानी - वह... करीब हफ्ते भर पहले...
दीप्ति - क्यूँ... तुम नहीं चाहती थी... के हम यहाँ आए...

रुप सबके चेहरे को गौर से देखती है l फिर एक गहरी साँस छोड़ते हुए पूछती है

रुप - मेरी शादी किससे तय हुई है... जानती भी हो...
सब - हाँ... तुम्हारे अनाम से...
भास्वती - आई मिन... एडवोकेट विश्व प्रताप महापात्र से...
रुप - (फिर से शॉक लगती है) ह्व़ाट... यह तुम क्या कह रही हो...
दीप्ति - ह्व़ाट डु यु मीन... क्या कह रही हो मतलब.... हमें तो राजा साहब ने यही कहा था...
रुप - क्या... यह तुम लोगों को... राजा साहब ने कहा था...
सब - हाँ....
रुप - और क्या कहा था...
दीप्ति - यही... के इस शादी से... तुम्हारी छोटी माँ... और भाई चाचा कोई खुश नहीं है... इसलिए... पारिवारिक रस्म सभी तुम्हारी सहेलियाँ और दोस्त निभाएंगे...
रुप - अच्छा... तो ऐसा कहा राजा साहब ने... तो तुम लोग अपने अपने फॅमिली के साथ क्यूँ नहीं आए...
बनानी - राजा साहब ने कहा कि... शादी कुछ चुनिंदा लोगों के सामने होगी... रिसेप्शन के दिन... सभी आयेंगे... तब हमारी फॅमिली आएँगे... रिसेप्शन अटेंड कर... हमें वापस ले जायेंगे...
रुप - ओ... तो राजा साहब ने... ऐसा कहा है तुम लोगों को...
भास्वती - देख यार... तु अब गुस्सा कर या कुछ और... हम तुझे आज अपने हाथों से सजाएँगे... और मंडप पर बिठाएंगे... और...
सभी - जीजाजी से... खूब सारा पैसा ऐंठेंगे...

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विश्व तैयार हो कर वैदेही के दुकान पर आता है l देखता है कुछ लोग दुकान के बाहर खड़े हुए हैं l विश्व पास जाकर देखता है लोग वैदेही से कुछ पूछ रहे थे l

लोग - अच्छा वैदेही... क्या हम राज महल जाएं...
वैदेही - हाँ चाचा... क्यूँ नहीं... सभी गाँव वालों को निमंत्रण मिला है... और यह तो चार साल बाद... बुलावा आया है... क्यूँ ना जाओ...
हरिआ - पर... वैदेही दीदी... अब राजा के साथ हमारा जिस तरह का रिश्ता है... क्या हमारा वहाँ जाना ठीक रहेगा...
वैदेही - देखो हरिआ... भैरव सिंह ने... मातम करने के लिए नहीं बुलाया है... जश्न में बुलाया है... और यह शायद महल का... आखिरी जश्न है... क्यूँकी इसके बाद... वहाँ मातम तो होगा... पर जश्न कभी नहीं मनेगा... इसलिए बेखौफ हो कर जाओ... मस्त हो कर जाओ... हम लोग थोड़ी देर बाद निकल रहे हैं... चाहो तो... हमारे साथ जा सकते हो...
लोग - नहीं... हमे खास हिदायत है... बारात जब गुजरेगी... उसके पीछे पीछे... बाराती में शामिल हो कर महल पहुँचना है...
वैदेही - यह तो और भी अच्छी बात है... अच्छा अब तुम लोग जाओ...

सभी लोग मुड़ कर वापस चले जाते हैं l उनके जाने के बाद वैदेही विश्व को देखती है l विश्व सफेद रंग के पैंट शर्ट में बहुत ही खूब सूरत दिख रहा था l

वैदेही - आह... कितना सुंदर दिख रहा है मेरा भाई... (नजर उतारने लगती है, फिर एक काला टीका विश्व के गाल पर लगा देती है)
विश्व - यह क्या है दीदी...
वैदेही - आज तुझ पर दुनिया भर की बुरी नजरें होंगी... किसीकी नजर ना लगे... (तभी बबलु आता है)
बबलु - मौसी..
वैदेही - अरे... आ गया... (वैदेही बबलु के गाल पर भी काला टीका लगाती है)

विश्व देखता है बबलु बिल्कुल विश्व के जैसे कपड़े पहना हुआ था l वह बबलु से पूछता है

विश्व - तेरे पास... बिल्कुल मेरे जैसे कपड़े...
बबलु - मौसी ने मेरे लिए खरीदा है... (यह सुन कर विश्व वैदेही की ओर देखता है)
वैदेही - हाँ हाँ... यह जरूरी है... इसलिए खरीद लिया... वैसे... वह चार बंदर कहाँ हैं...
विश्व - आ जाएंगे...
वैदेही - तो चलें...

तीनों महल की ओर जाने लगते हैं l चलते चलते महल के पास पहुँचते हैं l बाहर उन्हें विक्रम, पिनाक, सुषमा और शुभ्रा मिलते हैं l सभी मिलकर जब गेट पर पहुँचते हैं तो पाते हैं भैरव सिंह भीमा, उसके गुर्गे, रंगा, रॉय और बल्लभ के साथ खड़ा था l भैरव सिंह उन्हें गेट के पास ही रोकता है l

भैरव सिंह - विक्रम सिंह... आज तुम्हारे बहन की विवाह है... वर अभी पहुँचने वाले हैं... रस्म के अनुसार... (चुटकी बजाता है, भीमा एक रेशमी कपड़े से ढका हुआ थाली लेकर आता है) (भैरव सिंह थाली पर उस कपड़े को हटाता है, उस पर जुते थे) जीजा घोड़ी से उतरने के बाद... साला उसे जुता पहनता है...
विक्रम - जो कुत्ता मेरा जुता चाटता था... उसे मैं जुता... अपने हाथों से पहनाऊँ... यह आपने सोच भी कैसे लिया... हाँ... जुते मारने के लिए कहेंगे... तो सारे गिले शिकवे भुला कर मार सकता हूँ...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... सुषमा जी... वर... घोड़ी से उतरने के बाद... उसका तिलक सासु करतीं हैं...
सुषमा - मैं यहाँ इसलिए आई हूँ... यह शादी होनी ही नहीं है... उसकी गवाह बनने... अभी भी वक़्त है... राजा साहब... यह शादी टाल दीजिए...
भैरव सिंह - कोई नहीं... हमें इस बात का अंदाजा था... हमने उसका काट भी ढूंढ लिया है... (पीछे मुड़ कर) उन्हें लेकर आओ...

शनिया भाग कर जाता है और जब वापस आता है साथ में रॉकी और बनानी आते हैं l उन्हें देख कर विश्व और विक्रम दोनों हैरान होते हैं l

भैरव सिंह - (विश्व से) तुम्हें हैरानी हो रही है... या परेशानी हो रही है...
विश्व - ना मैं हैरान हूँ... ना मैं परेशान हूँ... क्यूँकी तुम्हें.... मैं नस नस से पहचानता हूँ... तुम ऐसा ही कुछ करोगे... इसका मुझे अंदाजा था...
भैरव सिंह - तब तो तुम्हें इस बात का अंदाजा हो ही गया होगा... आज तुम सबका घमंड और विश्वास दोनों को... हम मिट्टी में मिला देंगे...
विश्व - फ़िलहाल घमंड और विश्वास... तुम्हारा मिट्टी पलित हुआ लग रहा है... है ना... (भैरव सिंह का जबड़ा भिंच जाता है) हर उस शख्स को यहाँ पर ले आए... जो किसी ना किसी तरह से... राजकुमारी जी से जुड़ा हुआ था... पर मेरी माँ और डैड को यहाँ नहीं ला पाए...
भैरव सिंह - हाँ... वह हमारे आदमियों की नाकामयाबी है... क्या टाइमिंग है... जोडार अपने घर की रिनोवेशन करा रहा है... और सेनापति के घर में... भाड़े पर रह रहा है.. पर कोई नहीं... अंदर जाओ... तुम सबके लिए खास मंच तैयार किया गया है... वहाँ से... रुप को केके के साथ व्याहते देखो... भीमा
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - इन सबको... बाइज़्ज़त लेजाओ... और बिठा दो...
भीमा - जी हुकुम...

भीमा रास्ता बनाते हुए आगे आगे जाता है और मंडप से कुछ दूर पर बने एक स्टेज पर लगे कुछ कुर्सियों पर बैठने के लिए कहता है l सभी पहले एक दूसरे को देखते हैं फिर जाकर बैठ जाते हैं l

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बैठने के बाद विश्व और विक्रम शादी की जगह को नजर घुमा कर देखने लगते हैं l तीन मंच बने हुए थे l एक छोटा सा मंच जिस पर एक सिंहासन नुमा कुर्सी था l दूसरा मंच शादी के लिए और तीसरे मंच पर यह लोग बैठे हुए थे l दुल्हन का कमरा बेदी से कुछ दूर पर शामियाने से बनाया गया था l पर दूल्हे का कमरा बेदी के आसपास कहीं नहीं दिख रहा था l शायद महल के अंदर किसी कमरे को दूल्हे के लिए बनाया गया होगा l कुछ देर बाद कानों में ढोल नगाड़ों की आवाज़ सुनाई देती है l मतलब दूल्हा का आगमन हो गया था l वे देखते हैं केके दूल्हे के रुप में भैरव सिंह, एक पंडित और इंस्पेक्टर दास के साथ अंदर आता है l उनके पीछे पीछे लोग आकर जमीन पर अपनी अपनी जगह बना कर बैठ जाते हैं l पंडित पहले केके को एक तलवार देता है और बेदी के चारों तरफ़ बने धागे की घेरे को काटने के लिए कहता है l केके तलवार से वह धागे वाला घेरा को काट देता है l उसके बाद केके मंडप का प्रदक्षिणा करता है l प्रदक्षिणा के बाद केके को अंदर ले जाया जाता है l केके के अंदर चले जाने के बाद सारी पुलिस मंडली विश्व के बैठे मंच के पास खड़े हो जाते हैं l

पंडित मंडप पर बैठ कर मंत्र पढ़ने लगता है l विश्व और विक्रम हैरान होते हैं दुल्हन की माता पिता के रस्म अदायगी के लिए मंडप पर रॉकी और बनानी को लाया जाता है l कुछ विधि पूर्ण होने पर कन्या को बेदी पर लाने के लिए पंडित कहता है l दुल्हन के लिए बनी शामियाने से रुप अपनी सहेलियों के साथ निकलती है l सफेद वस्त्रों में रुप बेहद सुंदर दिख रही थी, चंदन कुमकुम माथे पर, बालों के जुड़े में चमेली के फुल उसकी सुंदरता को चार चांद लगा रहे थे, या यूं कहें कि चमक रही थी, चेहरे पर शृंगार के वज़ह से दमक रही थी l रुप के हाथों में एक नारियल थी वह मुस्कराते हुए बेदी तक आ रही थी l रुप की सुंदरता को देख कर विश्व का मुहँ खुला रह जाता है l वह रुप की उस सौंदर्य में खो सा जाता है l

वैदेही - (धीरे से पूछती है) बहुत सुंदर है ना...
विश्व - हाँ... बिल्कुल स्वर्ग की अप्सरा... (अचानक होश में आता है) क्या... हाँ.. क्या पुछा तुमने...
वैदेही - पूछा नहीं कहा...
विश्व - हाँ... क. क्य.. क्या कहा..
वैदेही - बहुत कीड़े उड़ रहे हैं... मुहँ बंद कर ले...
विश्व - ओ.. अच्छा... हाँ हाँ..

वैदेही उसकी हालत देख कर हँस देती है l विश्व सकपका जाता है और चोरी चोरी नजरों से शादी की बेदी पर बैठी रुप की ओर देखता है l रुप भी मुस्कुराते हुए विश्व की ओर देखती है और भौंहे नचा कर अपनी शृंगार के बारे में इशारे से पूछती है l विश्व तो घायल था वह जवाब में आह भरी नजर से देखता है l विश्व प्रतिक्रिया देख कर रुप हँस देती है l जहां विश्व रुप की रुप में खोया हुआ था, वहीँ भैरव सिंह और वैदेही की नजर आपस में टकराती है l भैरव सिंह का चेहरा सख्त था पर घमंड से चूर था वैदेही से नजर मिलते ही भैरव सिंह अपनी मूंछों पर ताव देता है l वैदेही अपना चेहरा घुमा लेता है l

कुछ देर बाद एक रस्म पूरा हो जाता है l पंडित अगले रस्म के दुल्हन को नए वस्त्रों में आने के लिए कहता है और अपने कमरे में जाने के लिए कहता है l जैसे ही रुप अपने सहेलियों के साथ शामियाने के भीतर जाती है l शामियाने को रंगा के साथ कुछ लोग घेर लेते हैं l थोड़ी देर बाद सत्तू और रॉय के साथ केके मंडप में आता है l जिसे देख कर विक्रम, पिनाक, सुषमा और शुभ्रा के चेहरे पर गुस्सा छा जाता है l पर वैदेही और विश्व के चेहरे पर कोई भाव नहीं आता l पंडित पूजा विधि संपन्न करने के बाद केके को विवाह वस्त्रों में आने के लिए कहता है l अब तक पूरे हुए रस्मों के बाद अब केके के चेहरे पर अति उत्साही भाव नजर आ रहे थे l बड़े गर्व के साथ वह सत्तू और रंगा के साथ महल में दूल्हे के लिए नियत की गई कमरे के भीतर जाता है l उधर पंडित के बुलाने पर रुप की सहेलियाँ रुप को लेकर बाहर आती हैं l रुप इस बार लाल वस्त्रों में आई हुई थी l लाल रंग के दुल्हन की लिबास में देख कर विश्व की हालत और भी ख़राब हो जाती है l इस बार रुप के चेहरे पर हल्की सी टेंशन झलकने लगी थी l वह सवालिया नजर से विश्व और वैदेही की ओर देखती है l विश्व तो अपनी अप्सरा के सौंदर्य में खो गया था l पर वैदेही एक इत्मीनान भरा इशारा पलकें झपका कर करती है l जिसे भैरव सिंह देख लेता है l वह अपनी सिंहासन से उतर कर मंडप तक आ जाता है l मंडप में रुप के साथ उसकी छटी गैंग की सहेलियाँ और रॉकी बैठे हुए थे l इस बार की रस्म पूरा होते ही पंडित दूल्हे को बेदी पर लाने के लिए कहता है l

पहले पाँच मिनट, फिर दस मिनट बीत जाता है, पर केके नहीं आता l उधर सत्तू तेजी से आता है और भीमा के कान में कुछ कहता है l सत्तू से सुनने के बाद भीमा के चेहरे का रंग उड़ जाता है l वह कांपते हुए भैरव सिंह के पास जाता है और उसका अनुमती लेकर भैरव सिंह के कान में कुछ कहता है l सुनने के बाद भैरव सिंह भी हैरान होता है और विश्व की ओर देखता है l फिर तेजी से महल के अंदर जाता है l

एक टेंशन भरा माहौल था l पंडित हैरान हो कर दूल्हे की आने की राह देख रहा था l इधर लोग आपस में खुसुर-पुसुर करने लगे थे l कुछ देर पहले रुप के चेहरे पर जो परेशानी उभर कर आई थी l अचानक उसके चेहरे पर खुशी उभरने लगी थी l विश्व जिस मंच पर बैठा था इंस्पेक्टर दास भी वहीँ पर खड़ा था, अचानक उसका फोन बजने लगता है l दास फोन पर देखता है रॉय का कॉल था l फोन उठाता है जैसे ही वह फोन पर कुछ सुनता है, अचानक उसके मुहँ से निकल जाता है

दास - क्या... दूल्हा गायब है...

यह एक धमाका था l सब लोग जो बैठे हुए थे सभी एक झटके के साथ खड़े हो जाते हैं l सबसे ज्यादा हैरानी बेदी के पास खड़े बल्लभ को होता है l उसका मुहँ खुल जाता है l पर कुछ देर पहले रुप के चेहरे पर जो थोड़ी सी परेशानी झलक उठी थी, एकदम से गायब हो जाती है और एक दमकती हुई मुस्कान के साथ विश्व की ओर देखती है l विश्व उसे आँख मार देता जिसकी प्रत्युत्तर में रुप शर्मा के चेहरा झुका लेती है l थोड़ी देर के बाद भैरव सिंह, रॉय, भीमा और सत्तू तेजी से मंडप की ओर आते हैं l इंस्पेक्टर दास से रॉय कहता है

रॉय - इंस्पेक्टर साहब... (विश्व को दिखा कर) गिरफ्तार कर लीजिए इस आदमी को...
दास - क्यूँ... क्या करदिया इस आदमी ने...
रॉय - इसने... (रुक जाता है)
दास - हाँ हाँ इसने...

भैरव सिंह- (इंस्पेक्टर दास के पास जाता है) इंस्पेक्टर... जो कमरा... दूल्हे बाबु को नियत किया गया था... उस कमरे में... अभी वह उपलब्ध नहीं हैं... क्या उन्हें ढूंढने के लिए कुछ करेंगे...
दास - अच्छा... तो यह बात है... चलिए... पहले... उसी कमरे से तहकीकात शुरु करते हैं...
भैरव सिंह - हाँ जब तक... तहकीकात पूरी हो ना जाए... तब तक... आप इन्हें... (विश्व और विक्रम वाली मंच दिखाते हुए) यहीं पर रोके रखें...

इंस्पेक्टर दास, अपने सिपाहियों से विश्व, विक्रम पिनाक और तीनों औरतों को कहीं जाने ना देने के लिए कह कर भैरव सिंह, रंगा, रॉय, बल्लभ, सत्तू और भीमा को साथ लेकर उस कमरे के अंदर आता है जिस कमरे से केके गायब हो गया था l दास कमरे को अच्छी तरह से मुआयना करता है l उसकी नजर बाल्कनी पर जाता है l वह देखता है एक कपड़ा बाल्कनी के रेलिंग से बंधा हुआ है और नीचे की ओर गिरा हुआ है l

दास - इस बंधी हुई चादर को देख कर लगता है... आपका जामाता... यहाँ से उतर कर भागे हैं...
भैरव सिंह - हो नहीं सकता...
दास - ऐसा क्यूँ...
रॉय - इस महल को... मेरे आदमी... हर पाँच फुट की दूरी बना कर घेरे हुए हैं... यह मुमकिन ही नहीं है... कोई इस महल से निकल कर गया हो...
दास - हूँम्म्म्... तो हो सकता है... महल के अंदर ही कहीं छुपा हो...
भैरव सिंह - अपनी शादी में कौन छुपता है दास बाबु...
दास - हो सकता है... कमल कांत को... यह शादी मंजुर ही ना हो... ज़बरदस्ती कारवाई जा रहा हो...
भैरव सिंह - (चीखता है) दास...
दास - ऊँ हूँ... इंस्पेक्टर दास... पहले आप अपने महल के अंदर... अच्छी तरह से तलाशी लीजिए... फिर देखेंगे...

कमरे में दास, बल्लभ और भैरव सिंह को छोड़ कर सभी महल के अंदर केके को ढूंढने निकल जाते हैं l दास अभी भी कमरे में अपनी नजर दौड़ा रहा था l कुछ देर बाद

दास - राजा साहब... क्या मैं इस कमरे का बाथरूम... यूज कर सकता हूँ...

भैरव सिंह अपना सिर हाँ में हिलाता है l दास बाथरुम के अंदर जाता है l थोड़ी देर बाद फ्लश की आवाज़ सुनाई देती है l कुछ देर बाद अपना हाथ साफ करते हुए दास अंदर आता है l कुछ ही देर में सारे लोग अंदर आते हैं और केके कहीं भी नहीं दिखा ऐसा कहते हैं l

भैरव सिंह - इंस्पेक्टर बाबु... यह क्लियर कट किडनैपिंग है... आप केस दर्ज कीजिए...
दास - आपको किस पर शक है...
रॉय - हाँ है... विश्व प्रताप पर...
दास - कैसी बात कर रहे हैं रॉय बाबु... विश्व के पास मैं और मेरी पुरी पुलिस फोर्स खड़ी थी... (रॉय चुप हो जाता है) राजा साहब... आपका क्या कहना है... (भैरव सिंह चुप रहता है) (बल्लभ से) प्रधान बाबु... क्या आप कुछ कहना चाहेंगे...
बल्लभ - आप... आप... केके साहब का... गुमशुदगी का रिपोर्ट दर्ज कर दीजिए...
रॉय - ह्व़ाट...
दास - लगता है... आप लोग एक मत नहीं हैं... कोई नहीं... मुझे क्या रिपोर्ट दर्ज करनी है... और किस बात पर तहकीकात करना है... यह डिसाइड करने के बाद मुझे खबर कर दीजिए... फिलहाल... मैं बाहर हूँ...

दास इतना कह कर चला जाता है l कमरे में मौजूद सभी बल्लभ की ओर सवालिया नजर से देखने लगते हैं l

बल्लभ - राजा साहब... आप जरा ध्यान दीजिए... अगर किडनैप है भी... तब भी... हम वज़ह को एस्टाब्लीश नहीं कर सकते... महल के अंदर... यह कांड हुआ है... हमारी सारी की सारी तैयारी... धरी की धरी रह गई...
सत्तू - हुकुम... गुस्ताखी माफ...
भैरव सिंह - क्या बात है...
सत्तू - हुकुम... मुझे तो लगता है... केके बाबु... विश्वा से डर कर भाग गए हैं...
रॉय - क्या बकते हो...
सत्तू - बक नहीं रहा हूँ... शादी को लेकर... केके बाबु कल रात से डरे हुए थे... और आज सुबह... हिम्मत जुटाने के लिए... दारू भी बहुत पी रखी थी...
रंगा - मुझे ऐसा नहीं लगता... राजा साहब... विश्वा बहुत बड़ा गेम कर दिया... हम सब राजकुमारी जी की सुरक्षा के लिए... तैयारी कर रखे थे... इसलिए... उसने बड़े आराम से.. केके साहब पर हाथ साफ कर दिया...
बल्लभ - जो भी हो... हम सीधे विश्व पर उंगली नहीं उठा सकते... वह गाँव के लोग और पुलिस के बीच में... शुरु से ही था... वह अपनी जगह से हिला तक नहीं... हम इल्जाम तो लगा सकते हैं... पर यह मत भूलो... वह एक वकील भी है... हमारी ही.. शिकायत को... हमारे खिलाफ इस्तेमाल कर सकता है... (कमरे में सभी चुपचाप खड़े थे) अब हम सबको... मंडप पर चलना चाहिए....

सभी बल्लभ की बात पर सहमत होते हैं l भैरव सिंह के साथ सभी मंडप पर पहुँचते हैं l वहाँ पहुँच कर देखते हैं बेदी पर रुप अकेली बैठी हुई है l विश्व, वैदेही, विक्रम और उसके परिवार वाले मंच से उतर कर पुलिस वालों से बात कर रहे थे l पर गाँव वाले और पंडित कोई भी दिख नहीं रहा था l


भैरव सिंह - यह क्या है... कहाँ गए सारे लोग...
विक्रम - मैंने ही सबको विदा कर दिया... जितना तमाशा देखना था... देख चुके थे... अब जो हुआ या आगे होगा... वह आपके लिए... ना ठीक था न होगा... इसलिए मैंने पंडित के साथ साथ... नंदिनी के सभी दोस्तों को.... और गाँव वाले सबको विदा कर दिया...
भैरव सिंह - क्या कहा...
विक्रम - जी... आपने यह शादी तय कर.. अपनी खूब जलालत करा ली है... कहीं और ज्यादा हो जाती... तो लोग... आप पर ही फब्तीयाँ कसते...
भैरव सिंह - (विक्रम को अनसुना कर विश्व के पास जाता है) बहुत बड़ा चाल चल दिया तुमने... हमने सोचा भी नहीं था... (विश्वा कुछ नहीं कहता बस मुस्करा देता है, भैरव सिंह को गुस्सा आता है वह विश्व के तरफ़ बढ़ने लगता है तो वैदेही सामने आ जाती है)
वैदेही - बस भैरव सिंह बस... तुमने जिस लिए बुलाया था... और हम जिस लिए आए थे... सब पूरा हो गया... बस एक आखिरी बात याद रखना... मर्द की मूँछ और कुत्ते की दुम को कभी सीधी या नीची नहीं होनी चाहिए... कुत्ते की दुम अगर सीधा हो जाए तो वह कुत्ता नहीं रह जाता... और मर्द की मूँछ नीची हो जाए... तो वह मर्द नहीं रह जाता...
Waah bhai waah maza aa gaya Ise kehte hai bada packet aur bahut hi bada dhamaka


Itna bada dhamaka ki bhairav singh ye samajh nahi pa raha hai ki k k gayab kaise ho gya aur kaha gayab ho gya wo bhi uske hi mahal se

Par ek bat aur hai pagal kutte ko jyada chhedna sahi baat nahi hai kyonki wo kab kaha kat jaye kuch pata nahi rehta
Isliye kutta jab pagla Jaye to use mar dena hi behtar hota hai
 
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Waah bhai waah maza aa gaya Ise kehte hai bada packet aur bahut hi bada dhamaka


Itna bada dhamaka ki bhairav singh ye samajh nahi pa raha hai ki k k gayab kaise ho gya aur kaha gayab ho gya wo bhi uske hi mahal se

Par ek bat aur hai pagal kutte ko jyada chhedna sahi baat nahi hai kyonki wo kab kaha kat jaye kuch pata nahi rehta
Isliye kutta jab pagla Jaye to use mar dena hi behtar hota hai

Bahut hi shandaar update hai bhai maza aa gaya

Bahut hi lajawab update hai bhai

Bahut hi lajawab update hai bhai

Bahut hi lajawab update hai bhai

Waah bhai waah maza aa gaya Ise kehte hai bada packet aur bahut hi bada dhamaka


Itna bada dhamaka ki bhairav singh ye samajh nahi pa raha hai ki k k gayab kaise ho gya aur kaha gayab ho gya wo bhi uske hi mahal se

Par ek bat aur hai pagal kutte ko jyada chhedna sahi baat nahi hai kyonki wo kab kaha kat jaye kuch pata nahi rehta
Isliye kutta jab pagla Jaye to use mar dena hi behtar hota hai
थैंक्स Rajesh भाई आपका बहुत बहुत शुक्रिया बस थोड़ी देर में अगला अंक पोस्ट कर रहा हूँ
 

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👉एक सौ साठवाँ अपडेट
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विश्व का पुश्तैनी घर जहां अब विक्रम और उसका परिवार रह रहा है l घर की बनावट ही ऐसा है कि बैठक का कोई कमरा नहीं है, बैठक के लिए एक आँगन है l उसी आँगन में एक तरफ विक्रम और शुभ्रा बैठे हुए हैं और दूसरी तरफ रॉकी के साथ रुप की छटी गैंग के सदस्य l सभी के चेहरे पर परेशानी और तनाव साफ झलक रही थी l

विक्रम - तुम लोग ऐसे कैसे आ गए...
दीप्ति - क्या करें भैया... हम खुद बहुत हैरान थे... वीर भईया को गुजरे महीना ही तो हुआ है... ऐसे में कैसे... शादी करा रहे हैं... पर राजा साहब ने कहा कि... कुछ महीनों से... परिवार में कुछ ठीक नहीं जा रहा है... इसलिए रुप की शादी... उसके मन पसंद लड़के से करने का फैसला किया गया है... और इस फैसले से आप सहमत नहीं थे... पर शादी के बाद सब ठीक हो जाएगा... और शादी के इस खुशी के मौके पर... दोस्त सब पास हों तो... ग़म कम हो जाएगा... यही बात सुन कर हम लोग तैयार हो गए...
विक्रम - (रॉकी से) इनका तो समझ में आ गया... तुम्हारी क्या कहानी है...
रॉकी - क्या करूँ भाई साहब... मैंने रुप को बहन माना था... और आप तो जानते हैं ना... रुप ने भी मुझे अपना भाई श्वीकारा था... तो उसी इमोशनल कार्ड खेल गए हमारे घर राजा साहब... इसलिए मैं भी आ गया... और हमें कहा गया था... के रिसेप्शन में... पूरा का पूरा स्टेट ईंवाइटेड होगा... तब हमारे माँ बाप भी आ पायेंगे...
बनानी - पर यहाँ पहुँचने के बाद हमें पता चला... मामला पूरा उल्टा है...
विक्रम - खैर... अब तुम लोग सेफ हो... घबराने की कोई जरूरत नहीं है... अभी महल के अंदर का माहौल... तनाव पूर्ण है... यही मौका है... तुम लोग... सभी वापस चले जाओ...
रॉकी - क्या आप श्योर हैं... हम राजगड़ से निकल पायेंगे...
शुभ्रा - देखो... राजा साहब अब... केके को लेकर चिंतित होंगे... उनका सारा कुनबा... महल और महल के आसपास... केके को ढूंढ रहा होगा... इसलिए यही सही मौका है... थोड़ी देर बाद... प्रताप गाड़ी लेकर आएगा... तुम लोग जितनी जल्दी हो सके निकल जाओ...

कुछ देर के लिए सबके बीच ख़ामोशी छा जाती है l इसी बीच एक गाड़ी की आवाज़ करीब आ रही थी l थोड़ी देर बाद गाड़ी की आवाज़ घर के बाहर बंद हो जाती है l विश्व और सीलु अंदर आते हैं l विश्व को देख कर रॉकी और रुप के सभी दोस्त खड़े हो जाते हैं l

विश्व - (सीलु को दिखा कर) यह मेरा भाई है... दोस्त है... तुम लोग सभी इसके साथ... अभी के अभी निकल जाओ...

विश्व के कहते ही सभी तैयार हो जाते हैं और विश्व के साथ सभी बाहर आते हैं l बाहर एक पुलिस की जीपसी थी l जिसे देखने के बाद लड़कियाँ विश्व की ओर देखते हैं l

विश्व - पुलिस की एक जीपसी है... पर यहाँ की नहीं है... मैंने तुम लोगों के लिए... जुगाड़ बिठाया है.. यही सबसे सेफ भी है... हाँ बैठने में थोड़ी तकलीफ तो होगी... पर तुम लोग सेफली अपने घर में पहुँच जाओगे...
रॉकी - ठीक है... हम घर पर पहुँच जायेंगे... पर... उसके बाद...
विश्व - तुम लोग यशपुर की सरहद लाँघ जाओ... उसके बाद तुम तक... कोई नहीं पहुँच पाएगा... मेरा यकीन करो... तुम लोग बस यहाँ से निकल जाओ...

रॉकी सुर सभी लड़कियाँ एक दूसरे को देखते हैं l इतने में सीलु गाड़ी स्टार्ट कर देता है l रॉकी उसके बगल में बैठ जाता है l रॉकी के पास बनानी बैठ जाती है l बाकी चार लड़कियाँ पीछे बैठते ही सीलु गाड़ी दौड़ा देता है l पीछे विश्व, विक्रम और शुभ्रा रह जाते हैं l गाड़ी के आँखों से ओझल होते ही विश्व विक्रम की ओर मुड़ता है

विश्व - तुम्हारे चाचा और चाची दिखाई नहीं दे रहे...
विक्रम - (बरामदे में शुभ्रा को बिठा कर) चाचा जी की तबीयत आजकल ठीक नहीं रहती है.... इसलिए उन्हें आते ही सुला दिया है... चाची उनके पास हैं...
विश्व - वैसे मुझे उम्मीद नहीं थी... आज तुम ऐसा करोगे...
विक्रम - हाँ उम्मीद तो मुझे भी नहीं थी... तुम आज ऐसा खेल करोगे...
शुभ्रा - और आज जो भी हुआ... राजा साहब ने कभी सोचा भी नहीं होगा...
विश्व - हाँ... इन सब में... इंस्पेक्टर दास ने भी... खूब साथ दिया...
विक्रम - हाँ... एक बात तो है... जो भी तुमसे दोस्ती करता है... तुम्हारे लिए... हर हद लांघ जाता है...
विश्व - हाँ इस मामले में... मैं बहुत खुश किस्मत हूँ... वैसे... तुमने अपनी प्लान में... दीदी को कब शामिल कर लिया...
विक्रम - सुबह... जब नंदिनी की चिट्ठी लेकर सेबती मेरे पास आई... मैंने शुभ्रा जी को दीदी के पास भेज दिया था... और उन्हें अपनी प्लान में शामिल कर लिया था... जब दीदी तैयार हो गईं... मैंने इस प्लान में... चाचा और चाची को भी शामिल कर लिया... मत भूलो... यह वीर की ख्वाहिश भी थी...
विश्व - पर तुम्हारे प्लान में... इंस्पेक्टर दास भी तो था... तुमने उससे कब बात की...
विक्रम - मैंने नहीं... दीदी ने बात की... और वह प्लान सुनते ही राजी हो गया...
शुभ्रा - हाँ तुम अपनी प्लान की कामयाबी को लेकर... शायद चिंतित थे... इसलिए मार्क नहीं कर पाए के कब दीदी... इंस्पेक्टर दास से बात की...
विश्व - हाँ... मैं केके और अपने प्लान को लेकर... थोड़ा टेंशन में था... पर मेरे सभी दोस्तों ने... बहुत अच्छा काम किया...
विक्रम - प्रताप... थैंक्स...
विश्व - किसलिए...
विक्रम - तुमने कहा था... इस गाँव को शायद मेरी जरूरत है... गाँव वालों की तो पता नहीं... पर.. मैं आज अपनी बहन के काम आया... अगर दीदी और तुमने.. मुझे... मेरा मतलब है हम सबको रोका नहीं होता... तो जिंदगी भर.. आज के दिन के लिए... मैं खुद को कभी माफ नहीं कर पाता... और खुद की और वीर की नजरों में.. हमेशा गिरा हुआ पाता...
विश्व - अब मैं क्या कहूँ...
विक्रम - तो... अब केके कहाँ है...
विश्व - दिया तले अंधेरा...
विक्रम - मतलब...
विश्व - वह महल में ही है... अपने कमरे में ही है...
शुभ्रा और विक्रम - ह्व़ाट...
विक्रम - केके... अपने कमरे में है...
विश्व - हाँ मेरे दोस्तों ने... बड़े हिफाजत के साथ... उसे... उसी कमरे में रख छोड़ा है...
शुभ्रा - तो अभी तक वह किसीको दिखा क्यूँ नहीं...
विश्व - दिख जाएगा... मिल जाएगा... बस उसका वक़्त अभी आया नहीं है...
विक्रम - कल कोर्ट में... केस पर सुनवाई होने वाली है... इसलिए राजा साहब... तुम्हारे जेहन और दिल पर चोट करना चाहते थे.. पर तुमने पासा पलट दिया... पता नहीं वह कल कोर्ट में क्या कहेंगे...
विश्व - तुम अभी भी गलत सोच रहे हो...
विक्रम - क्या... मैंने क्या गलत सोच रहा हूँ...
विश्व - यही के... राजा साहब... मेरे दिल और दिमाग पर चोट करना चाहते थे...
विक्रम - तो... इस शादी का मतलब...
विश्व - वह असल में... मुझे इस केस से हटाना चाहते थे... उन्हें यकीन था...
विक्रम - ह्व़ाट... तुम्हें केस से हटाने के लिए... यह सब था...
विश्व - हाँ... विक्रम... एक इंसानी फितरत है... लोग सामने वाले को... इमोशनल या सेंटिमेटल फुल समझते हैं... उसकी उसी कमजोरी को बाहर लाने के लिए... अपनी चालें चलते हैं... उनका पहला टार्गेट मेरे माता पिता थे... तुम शायद यकीन ना करो... पर मेरा फोन ट्रैक करने की कोशिश की जा रही थी... पर नहीं कर पाए...
विक्रम - हाँ... समझ सकता हूँ... ज़रूर रॉय के लोगों से कोशिश की गई होगी... और मैं यह भी जानता हूँ... वह फैल क्यूँ हुए होंगे... क्यूँकी तुम्हारा फोन... जोडार साहब के सेक्यूरिटी सर्विलांस में होगी...
विश्व - बिल्कुल... इसलिए... मेरा कोई भी... चाहे इनकॉमींग हो... या ऑउटगोइंग... किसी भी कॉल को ट्रेस नहीं कर सकते...
विक्रम - पर तुमने बताया नहीं.. तुम्हें कैसे... केस से हटाने की कोशिश की...
विश्व - उन्हें मेरी कमजोरी चाहिए थी... जो उनके हाथ नहीं लगी... इसलिये.... शादी को यहाँ तक खिंचे... ताकि मैं अपना सब्र खो कर रोकने के लिए... भरे लोगों और पुलिस के बीच कुछ कर जाता... तो कानूनन... मुझे केस से हटाने के लिए... उनको वज़ह मिल जाती... बाकी का काम.. उनके लिए आसान था...
विक्रम - ओ हो... तो यह बात थी... तभी मैं यह सोचूँ... केके जैसे चिरकुट को... दामाद बनाने की सोच भी कैसे लिया...
शुभ्रा - मान लो... तुमसे कुछ नहीं हो पाता... और यह शादी हो जाती तो...
विश्व - मुझे... अपने प्यार की विश्वास को कायम रखना था... इसलिए मैंने यह सब किया... अगर मेरे दोस्त नाकामयाब हो जाते... तो वही होता... जैसा राजा साहब चाहते थे...
विक्रम - मतलब... तुम शादी में कोई कांड कर देते... गाँव वालों की नजर में... तुम शादी में विघ्न डालने वाले होते... सारा दोष तुम पर आ जाता... राजा साहब शादी रुकवा देते... उसके बाद... तुम्हारा राजा साहब से कोई निजी खुन्नस दिखा देते... तुम्हें केस से हटवा देते और इन तीस दिनों के अंदर... केके को ठिकाने लगा देते...
विश्व - बिल्कुल...
शुभ्रा - यानी... राजा साहब को मालूम था... आई मीन यकीन था... तुम कुछ ना कुछ करके यह शादी रोक दोगे... तुम उनके यकीन पर तो खरे उतरे पर... उनके प्लान पर नहीं...
विश्व - (मुस्कराकर) जी बिलकुल...
विक्रम - (अपना हाथ आगे बढ़ा कर) ओके विश्वा... लोगों का विश्वास और उम्मीद तुम पर टिकी हुई है... कल कोर्ट में.. तुम्हें खरा उतरना है...
विश्व - (हाथ मिला कर) हाँ जरूर... (कह कर मुड़ कर जाने लगता है, जाते जाते फिर वापस मुड़ कर) वन्स अगैन... थैंक्यू... (विश्व चला जाता है)
शुभ्रा - विक्की... यह बंदा क्या है... बाप रे... क्या दिमाग चला रहा है...
विक्रम - हाँ... मैं इसकी सोच का कायल हूँ... सामने वाले की दिमाग को पढ़ लेने की हुनर... क्या खूब पाई है... मुझसे पहले इसकी इस हुनर को राजा साहब जान गए थे... समझ गए थे... इसी लिए इतना कुछ कर गए... पर अफसोस... विश्व ने उनकी हर प्लान की धज्जियाँ उड़ा दी...


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क्षेत्रपाल महल
परिसर के जिस हिस्से में शादी का मंडप सजा हुआ था वहाँ रंगा और रॉय मुहँ लटकाये बैठे हुए थे l महल के उसी खास कमरे में भैरव सिंह उस मूठ विहीन तलवार को घूर रहा था, उसके पीछे हाथ बाँधे बल्लभ खड़ा था l कमरे के दरवाजे के पास कुछ दूरी पर भीमा खड़ा हुआ था l भैरव सिंह पलट कर अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है l और आँखे मूँद अपने माथे पर दाहिने हाथ के दो उंगली फेरता है l फिर अचानक उठ खड़ा होता है और परेशान सा इधर उधर होने लगता है l

भैरव सिंह - प्रधान... यह विश्वा किस मिट्टी का बना हुआ है... बार बार... वह हम पर भारी पड़ रहा है...
बल्लभ - है तो... राजगड़ का ही ना...
भैरव सिंह - हाँ इसी गाँव का है... पर इस गाँव के लोगों से अलग कैसे है...
बल्लभ - राजा साहब... विश्वा उस कच्ची मिट्टी की तरह है... जब जब.. जो जो... जैसे उसे बनाते गए... वह उन्हीं की साँचे में ढलता गया... जब तक बाप और दीदी के पास रहा... एक निडर बच्चा रहा... जब महल में आया... एक डरपोक भेड़ की तरह बना... लेकिन फिर जब अपनी दीदी के साये में आया... डर धीरे धीरे उसे छोड़ता चला गया... फिर वह जैल में सात साल रहा... इन सात सालों में... वह जिन जिन लोगों के संपर्क में आया... उन्हीं की तरह बनता चला गया... (एक पॉज के बाद) रोणा ठीक कह रहा था... हमने उसे जिंदा छोड़कर सही नहीं किया...
भैरव सिंह - जो पीछे छूट गया... वह लौट कर नहीं आने वाले... अब हम क्या कर सकते हैं... यह बताओ... (एक गहरा साँस छोड़ता है) हमारे ही महल में... हमारे ही नाक के नीचे... केके को गायब करवा दिया... हमें अपनी ही औलाद के सामने... (चुप हो जाता है) (भीमा से) भीमा...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - उन दो छचुंदरों को बुला कर लाओ...
भीमा - जी हुकुम... (भीमा बाहर चला जाता है)
भैरव सिंह - (फिर से वही तलवार के सामने खड़ा हो जाता है) प्रधान... क्या तुम इस तलवार के बारे में कुछ जानते हो...
बल्लभ - जी... मैंने सुना है... जेम्स फर्ग्यूसन की यह तलवार है... यह तलवार... आपकी राजशाही की... राज सत्ता की मुहर है...
भैरव सिंह - और क्या जानते हो...
बल्लभ - जी... और कुछ भी नहीं जानता...
भैरव सिंह - यह तलवार हमारी राजशाही की मुहर है... पर उसके साथ एक अभिशाप भी है... हमारी राजशाही का अंत के लिए.. इस तलवार को... उसकी मूठ का इंतजार है...
बल्लभ - क्या... सच में...
भैरव सिंह - हाँ... जिस दिन... इस तलवार से... वह मूठ जुड़ जाएगा... क्षेत्रपाल की राजशाही ही नहीं... क्षेत्रपाल ही ख़तम हो जाएगी...
बल्लभ - राजा साहब... क्या आप ऐसी किंवदंतीओं पर विश्वास करते हैं...
भैरव सिंह - नहीं... पर... जब से विश्वा छुटा है... हर मोड़ पर... वह हम पर भारी पड़ रहा है... ऐसा क्यूँ...
बल्लभ - आप राजा हैं... अगर आप ही... (चुप हो जाता है)
भैरव सिंह - तुम गलत सोच रहे हो प्रधान... हमें हमेशा... तुम्हारे दिमाग और सोच पर विश्वास था और है... पर फिर भी... याद करो... क्यूँ केके.. हमारे दुश्मनों जा मिला... विश्वा पर जोडार अपना विश्वास हार जाए... इसलिए... केके से वह जमीन खरीदवाए थे... तुमने... BDA अप्रूवल भी ले लिया था... पर विश्व ने कैसे... कितनी आसानी से उसे... देवोत्तर जमीन साबित कर दिया... (जवाब में बल्लभ कुछ कहता नहीं) उसी दिन हमने सोच लिया था... या तो विश्वा को हर केस से हटाएंगे... या फिर... उसे घुटनों पर ला देंगे... हम नाकामयाब रहे.... और तुम भी... प्रधान... क्या अब विश्वा को... रास्ते से हटा सकते हैं...
बल्लभ - नहीं राजा साहब नहीं... यह आप कैसी बातेँ कर रहे हैं... विश्वा बार एसोसिएशन का मेंबर है... उसने चालाकी से... अपनी लाइफ थ्रेट की एफिडेविट हाइकोर्ट के साथ साथ... उसकी कॉपी... बार एसोसिएशन में और... प्रेस क्लब में दे रखा है... उसे कुछ भी हुआ तो... केस सीधे सेंट्रल एजेंसियों के पास चली जाएगी...
भैरव सिंह - तो हम क्या करें प्रधान... हम मजबूर होना नहीं चाहते... किसीको मजबूर दिखना नहीं चाहते... हम विश्वा के अंदर की भावनाओं को... भड़का कर... उकसा कर... उसकी आवेश को हमारे खिलाफ इस्तेमाल करवाना चाहते थे... ताकि... निजी खुन्नस दिखा कर... बता कर... विश्वा को इस केस से हटवाना चाहते थे... पर... अब... अब वह केस से नहीं हटेगा... हम क्या करें...
बल्लभ - एक काम हो सकता है... कुछ निजी कारणों का हवाला दे कर... हम कुछ दिनों की... एक्सटेंशन ले सकते हैं...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... ठीक है... यही करते हैं...

ठीक उसी समय भीमा के साथ रंगा और रॉय कमरे में आते हैं l भैरव सिंह उन्हें देख कर अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है l आर्म रेस्ट पर हाथ रखकर पैर पर पैर मोड़ कर इनके तरफ़ देखता है l दोनों सिर झुकाए खड़े थे l

भैरव सिंह - आओ... हमारे राज के... दो कौड़ी के रतन... आओ... (दोनों बुरी तरह से शर्मिंदा होते हैं) बाहर ठंड नहीं लगी... इतने देर से बैठे हुए थे... (दोनों सिर झुकाए वैसे ही खड़े थे) प्रधान...
बल्लभ - जी... जी राजा साहब...
भैरव सिंह - यह किस लायक थे... हमने इन्हें कहाँ लाकर बिठाया... और आज इनकी नाकामी ने... हमें क्या दिखाया... (एक पॉज) चुप क्यूँ हो दोनों... कुछ तो बको...
रॉय - (कांपती आवाज में) वह... राजा सहाब... हमारा सारा ध्यान... राजकुमारी जी को लेकर था... हमने कभी सोचा नहीं था... केके साहब को... विश्वा उठा लेगा...
भैरव सिंह - रॉय... तु शादी सुदा तो है ना...
रॉय - (चुप रहता है)
भैरव सिंह - हमने कुछ पुछा है...
रॉय - जी... जी राजा साहब....
भैरव सिंह - बच्चे...
रॉय - दो.. दो बच्चे हैं... दोनों लड़के हैं...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... तेरे ही हैं ना... या फिर... तेरी गैर मौजूदगी में... कोई और हल चला गया...
रॉय - (अपनी आँखे बंद कर लेता है और जबड़े भिंच लेता है)
भैरव सिंह - अबे हराम के ढक्कन... विश्वा अपनी जगह से हिला तक नहीं... और तु कह रहा है... उसने उठा लिया... महल के चारो तरफ़ तेरे प्लान के मुताबिक सिक्युरिटी थी... ना कोई बाहर गया... ना कोई अंदर आया...

कुछ देर के लिए कमरे में मरघट सी शांति छा जाती है l ना जवाब में रॉय कुछ कहता है ना ही भैरव सिंह l फिर कुछ देर बाद

भैरव सिंह - क्यूँ रंगा... तु कुछ नहीं कहेगा...
रंगा - (डरते डरते) राजा साहब... हमें इतना मालूम है... की वह केके विश्वा को लेकर बहुत खौफ जदा था... पर जब पुलिस उसके बाराती बन कर आए... तब वह घोड़ी चढ़ कर आया... पर महल के अंदर... (चुप हो जाता है)
भैरव सिंह - आओ बैठ जाओ... (तीनों में से कोई नहीं बैठता) (रौबदार आवाज में हुक्म देते हुए) बैठ जाओ... (पहले बल्लभ बैठता है, फिर रंगा और रॉय बैठते हैं) छेद तो हुआ है... पर किसके पिछवाड़े... यह जानना जरूरी है... क्यूँकी जहाँ अति आत्मविश्वास हो... छेद वहीँ बन जाता है... या बनाया जाता है...
रंगा - गुस्ताखी माफ राजा साहब... (भैरव सिंह उसके तरफ़ देखता है) क्यूँ ना एक आखिरी बार... महल के अंदर... केके साहब को ढूँढा जाए...
भैरव सिंह - भीमा...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - सिवाय अंतर्महल को छोड़ कर... पुरे महल को अच्छी तरह से छान मारो...
भीमा - जी हुकुम...

इतना कह कर भीमा वहाँ से चला जाता है, उसके जाने के बाद फिर से कमरे में चुप्पी सी छा जाती है l

रंगा - राजा साहब... गुस्ताखी माफ... एक सवाल.... पूछ सकता हूँ... (भैरव सिंह उसे देखता है और हल्के सा सिर हिलाता है) यह पाँच रत्न... कौन कौन हैं...
भैरव सिंह - तीन रत्नों को तो जानते हो ना...
रंगा - जी...
भैरव सिंह - और दो रत्नों के बारे में... बाद में जानकारी मिलेगी... पर याद रखना... जानने के बाद... उनसे मिलने की ख्वाहिश कभी नहीं करना... गलती से भी नहीं...
बल्लभ - कभी राजा साहब के... नौ रत्न हुआ करते थे... कुछ ने राजा साहब के साथ छोड़ा... और कुछ को राजा साहब ने छोड़ दिया... राजा साहब को कोई छोड़ दे... या राजा साहब किसी को छोड़ दें... दोनों ही सूरत में... उसे ही खतरा होता है...
भैरव सिंह - क्या बात है रॉय... बड़े गहरे सोच में खोए हुए हो...
रॉय - राजा साहब... हमने तो अपनी जान लगा दी थी... हमें अफ़सोस है कि... हम आपकी रुतबे को कायम रखने में नाकाम रहे...

भैरव सिंह अपनी जगह से उठ जाता है l यह लोग उठने को होते हैं, भैरव सिंह उन्हें बैठने के लिए इशारा करते हुए दीवार के पास लगे मूठ विहीन तलवार के पास जाकर तलवार को देखते हुए कहता है

भैरव सिंह - खोता वही है... जिसने कमाया हो... यह रौब... यह रुतबा... हमें विरासत में मिला है और हम... इन सबके वारिस हैं... जो भी हुआ... वह कीचड़ था... जो विश्वा की तरफ से उछला था... बस दाग लगा है... और यह दाग हमें याद रहेगा... (अब इनके तरफ मुड़ता है) जंग होगी.. यह तय था... बस मैदान क्या होगा.. कहाँ होगा... इससे बेख़बर थे... अब जंग चाहे जहां भी हो... जंग का रुख हम तय करेंगे... (भीमा भागते हुए अंदर आता है और झुक कर घुटनों पर बैठ जाता है) क्या बात है भीमा...
भीमा - हुकुम... एक खबर है...
भैरव सिंह - कैसी खबर...
भीमा - वह... होने वाले जमाई जी का पता चल गया है...
भैरव सिंह - अच्छा...
तीनों - (अपनी कुर्सी से उछल कर खड़े हो जाते हैं) क्या...
भीमा - जी.. उन्हें... सत्तू अपने साथ ला रहा है...

सबकी नजर दरवाज़े की ओर टिक जाता है l बदहवास केके, सत्तू के सहारे कमरे में प्रवेश करता है l रॉय भाग कर केके को सहारा देता है और रंगा एक कुर्सी खिंच कर उसे कुर्सी पर बिठाता है l भीमा पानी ला रहा था पर उसे भैरव सिंह रोक देता है और पानी की ग्लास लेकर भीमा के हाथ में व्हिस्की की एक बोतल थमा देता है l भीमा ही नहीं सभी भैरव सिंह को हैरत से देखते हैं l भैरव सिंह इशारे से भीमा को व्हिस्की बोतल देने के लिए कहता है l भीमा केके के हाथ में व्हिस्की बोतल दे देता है l केके पहले बोतल को देखता है फिर ढक्कन खोल कर एक ही साँस में आधी बोतल व्हिस्की गटक जाता है l फिर गहरी साँस लेते हुए खुदको नॉर्मल करता है l

भैरव सिंह - (सत्तू से) कहाँ से मिले...
सत्तू - (डर और शर्मिंदगी के साथ) व वह... ब. ब.. बाथरुम... में...
भैरव सिंह के साथ सभी - क्या... (सभी एक दूसरे की ओर देखने लगते हैं सिवाय भैरव सिंह के l भैरव सिंह के भौंहे सोच में सिकुड़ जाते हैं l कुछ देर की चुप्पी सी छा जाती है)
भैरव सिंह - (चुप्पी तोड़ते हुए, सत्तू से) तुम कैसे बाथरूम में पहुँच गए...
सत्तू - पता नहीं... हमने सब जगह छान लिए थे... सही मायने में... बाथरूम नहीं देखे थे... क्यूँकी बाथरूम तो... दारोगा बाबु गए थे... सोचा एक बार देख लेते हैं... जब अंदर गया... तब भी... जमाई बाबु... तब भी नहीं दिखे... पर पता नहीं क्यूँ मन किया... तो पर्दा हटाए... वह नहाने के बंबा देखने के लिए... वहीँ पर नल से बंधे हुए बैठे दिखे... हाथ मुहँ पैर सभी चिपचिपा टेप से बंधे हुए थे...

सत्तू के इतने कहने के बाद कमरे में सब शांत खड़े थे l इतने शांत के एक दुसरे के साँसे तक लेते और छोड़ते हुए सुन पा रहे थे l भैरव सिंह कुछ समझते हुए अपना सिर हिलाने लगता है और केके से पूछता है l

भैरव सिंह - केके... क्या तुम अब शुरु से बताओगे... क्या हुआ...
केके - राजा साहब... (थके लुटे पिटे हुए कि तरह) आप... जिन लोगों को... रस्म को निभाने उतारने के लिए बुलाए थे... उन्होंने ही मेरे अपहरण का रास्ता बनाया था...
भैरव सिंह - केके... हम अब पूरी बात जानना चाहते हैं... इसलिए बिना रुके... सारी बातें... हमें बताओ... थोड़ी देर पहले... माहौल ऐसा था कि... तुम शादी से डरे हुए थे... इसलिए भाग गए हो... ऐसी चर्चा चल रही थी... पर अब तुम सामने हो... हम सभी गलत थे... कहाँ चूक गए... यह जानना बहुत जरूरी है... दुश्मन को ज़वाब देना भी तो है... इसलिए कि कल की जंग से पहले... हमें.. अपनी हर गलती को सुधरना है...
केके - हाँ राजा साहब... मैं डरा हुआ हुआ था... क्यूँकी यह आप भी जानते हैं... और एडवोकेट प्रधान भी... विश्वा आपकी अहं के साथ... मेरे बिजनस को भी उतना ही नुकसान किया है... इसलिए जब... बारात लेने... पुलिस फोर्स पहुँची... मैं खुश हो गया... मुझे यकीन भी हो गया... के हर हाल में मेरी शादी हो कर ही रहेगी...
गाँव के बीच से बारात गुजरी थी... कुछ नहीं हुआ था... महल में पहुँची... कोई गड़बड़ी नहीं हुई... पर घोड़ी से उतर कर जब... पहली रस्म निभाई गई... वहीँ से सारी गड़बड़ी शुरु हुई... खैर जहाँ साला पैर धो कर... जुता पहनाता है... वहाँ तक सब ठीक था... आरती उतारने के बाद... तिलक लगाने के बाद... मुझे एक लड़की ने शर्बत पिलाई... जो कि रस्म के हिसाब से... छोटी रानी जी को यह सब करना चाहए था... वह राजकुमारी जी की दोस्त थी... नाम बनानी था...
भैरव सिंह - हाँ तो...
केके - उसने शर्बत में कुछ गड़बड़ी की थी... शायद कुछ मिलाया था... जिसका असर तुरंत तो नहीं हुआ... पर बाद में हुआ... उसके बाद... राजकुमारी जी की... चारों सहेलियाँ... अपनी साली की धर्म निभाने की कोशिश करते हुए... चारों ने मुझे पान खिलाए... उसके बाद बड़ी मुश्किल से मैंने बेदी पर... पंडित के साथ बैठ कर कुछ रस्में अदा की... पर उस वक़्त भी मेरी हालत ठीक नहीं लग रही थी... गर्मी लग रही थी... पसीना भी बह रहा था... ऊपर से उबकई सी महसूस हो रही थी... जब कपड़े बदलने के लिए... मैं कमरे में पहुँचा... तो सबसे पहले अपने कपड़े उतारे फिर सीधे बाथरूम में घुस गया... वॉश पैन की सिंक में उल्टियां करने लगा... उल्टियां इस कदर हो रहीं थीं के आँखों में अंधेरा सा छाने लगा था... बाहर कमरे में कुछ तो हो रहा था... पर मैं अपनी होश में नहीं था... जब दुरुस्त लगा... तो अपने चेहरे पर पानी की छींट मारने के बाद जैसे ही आईना देखा... पीछे दो लोग खड़े थे... मैं जैसे ही मुड़ा... वे लोग... मेरे मुहँ को दबोच लिए... तभी शायद कमरा का दरवाजा तोड़ा गया था... वह दो लोग मुझे दबोचे हुए... बाथ टब में ले गए और कर्टेंन खिंच लिया... आप सब लोग कमरे में ढूँढने लगे... क्यूँकी उन लोगों ने... बाल्कनी में... मेरे भाग जाने की कोई सीन बना दिया था... कुछ देर बाद... इंस्पेक्टर दास अंदर आया... उसने कर्टेंन उठा कर देखा... के वह दो बंदे मुझे दबोच रखा था... पर वह हरामजादा कुछ नहीं किया... उल्टा... अपना काला लौड़ा निकाल कर पास के कमोड में मुता... फिर फ्लश कर... दरवाजा बंद करके चला गया... आप लोग कमरे में ही मौजूद थे... पर किसी ने... बाथरूम में आने की जहमत नहीं की... कुछ देर बाद बाथरूम में दो लोग और आए... जिन्होंने शायद... बाहर मेरे भाग जाने वाला सीन बनाया था... चारों ने मिलकर... स्टिकी टेप से... हाथ पैर और मुहँ को अच्छे से बाँध दिया... फिर पानी की टाप से बाँध कर... टब के सिरहाने बिठा दिया और मुझे कर्टेंन के पीछे छुपा दिया... वह चारों आराम से... कमरे से निकल भी गए... अगर अभी सत्तू ने वह कर्टेंन हटा कर नहीं देखा होता... तो शायद... मेरे मरने के बाद ही... आप लोगों कों मेरा पता लगता...

केके अब चुप हो जाता है l सब सुनने के बाद भैरव सिंह की ओर देखते हैं l भैरव सिंह के चेहरा बहुत सख्त दिख रहा था और जबड़े भिंचे हुए थे l सबकी नजरें भैरव सिंह की मुट्ठीयों पर जाता है l भैरव सिंह अपनी मुट्ठीयाँ मल रहा था l बल्लभ इस बार केके से सवाल करता है l

बल्लभ - अच्छा केके बाबु... आपके हिसाब से... वह चार लोग थे... जिन्होंने आपको... इसी महल में... हमारी आँखों के नीचे छुपा दिया...
केके - हाँ... प्रधान बाबु हाँ... बड़ी शर्म की बात है... वे चारों... महल के अंदर आए... पर महल के पहरेदारों को पता नहीं चला... मतलब... या तो पूरी की पूरी पहरेदारों को फौज निकम्मी है... या फिर ग़द्दार... ऊपर से... पुलिस... जो कभी राजा साहब के जुते की नोक पर हुआ करती थी... वही... राजा साहब के खिलाफ साजिश में शामिल है...
बल्लभ - आप घबराईये मत केके साहब... हम उन्हें ढूंढ निकलेंगे... और पुलिस के खिलाफ... उपर बात कर... उन्हें सस्पेंड कराएंगे...

सभी इस बार फिर से भैरव सिंह की ओर देखते हैं l भैरव सिंह अभी भी मुट्ठीयाँ मल रहा था l भैरव सिंह अब मुड़ कर अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है l

केके - माफ कीजिएगा राजा साहब... आप जंग जितने कि बात कर रहे हैं... जबकि आपके अपने... यहाँ तक आपकी औलादें भी... आपके साथ नहीं हैं... (भैरव सिंह अपने माथे पर दो उँगलियाँ फ़ेरने लगता है, जिसे देख कर बल्लभ केके से फिर एक सवाल करता है)
बल्लभ - अच्छा... वह जो चार बंदे... आपसे कुछ बात करी... या आपस में कुछ बात कर रहे थे...
केके - वे चार... बड़ी खामोशी और शांति से अपना काम अंजाम दे रहे थे... चारों आपस में... इशारों से बातेँ कर रहे थे... पर जब भी बात कर रहे थे... मेरे कान भर रहे थे...
बल्लभ - कैसी बातेँ कर रहे थे...
केके - (चुप रहता है)
बल्लभ - आपने बताया नहीं... वे चारों आपसे कैसी बातेँ कर रहे थे...
केके - नहीं जाने दीजिए... राजा साहब को बुरा लगेगा...

यह बात सुन कर भैरव सिंह अपनी आँखे खोलता है l एक तीखी नजर से केके की ओर देखने लगता है l कुछ देर केके को देखने के बाद भैरव सिंह केके से पूछता है l

भैरव सिंह - केके... तुम्हें देख कर ऐसा लग रहा है... जैसे उन चार बंदों ने... हमारे खिलाफ तुम्हारे कानों में कुछ बातेँ की है... और कहीं ना कहीं... तुम उनकी बातों से सहमत भी लग रहे हो...

केके कोई जवाब नहीं देता और अपना चेहरा घुमा लेता है, भैरव सिंह को यह बहुत बुरा लगता है l वह अपनी जगह से उठ खड़ा होता है और चलते हुए केके के पास आकर खड़ा होता है l पर केके कोई प्रतिक्रिया दिए वगैर वहीँ बैठा रहता है l भैरव सिंह अपनी दांत पीसने लगता है l भैरव सिंह का यह रुप देख कर सत्तू, भीमा और बल्लभ अपनी जगह से पीछे हटते हैं l उन्हें हटता देख कर रंगा और रॉय भी धीरे धीरे पीछे हटने लगते हैं l

भैरव सिंह - ऐसा कभी हुआ नहीं... के हम किसी के सामने खड़े हों जाएं... और वह बंदा.. अपनी कुर्सी से चिपका रहे...

यह सुन कर केके को अपनी गलती का एहसास होता है और वह डर के मारे सिर उठा कर भैरव सिंह की ओर देखने लगता है l भैरव उसके गर्दन को पकड़ लेता है और झटके से ऊपर उठा लेता है l केके की आँखों में अब डर साफ दिखने लगता है l वह अब गिड़गिड़ा कर बिनती करने लगता है

केके - म... म... मुझे माफ़ कर दीजिए... गलती हो गई...
भैरव सिंह - कहो... उन चारों ने हमारे खिलाफ... क्या कान भरा है...
केके - बताता हूँ... बताता हूँ... मेरा दम घुट रहा है... प्लीज मुझे छोड़ दीजिए.. (भैरव सिंह उसे छोड़ देता है l केके अपनी गर्दन पर हाथ फ़ेरने लगता है l फिर खुद को दुरुस्त करने के बाद कहने लगता है)
केके - वे चारों... मुझे बारी बारी से कह रहे थे.. के आप ने शादी की झांसा दे कर... मेरी दौलत लूट ली... इस शादी में आपकी ना कोई दिलचस्पी है... ना ही कोई मंजुरी... बल्कि आप खुद ही चाह रहे हैं... यह शादी ना हो... अगर यह शादी टूटती है... तो किसी बहाने से... आप यह शादी महीने के लिए... टाल देंगे... फिर मेरी शादी कभी भी नहीं होगी... (सिर झुका कर चुप हो जाता है)
भैरव सिंह - उन्होंने और भी कुछ कहा होगा...
केके - जी... जी राजा साहब... उनका कहना था... आपने दो ही शादी के सैंपल कार्ड लेकर आए थे... जिन्हें दिए... उन्हें चिढ़ाने के लिए... जबकि... किसी तीसरे को कार्ड दिया ही नहीं गया है... हर कार्ड में... शादी के साथ साथ... रिसेप्शन की तारीख भी लिखा होता है... पर आपने जो कार्ड दी है... उसमें रिसेप्शन की तारीख भी नहीं लिखा था... और सबसे अहं बात... राजा साहब ने... अपने नए जमाई बाबु का परिचय... बड़े राजा से भी नहीं कराया... (केके चुप हो जाता है, केके के चुप्पी के साथ पूरा माहौल में चुप्पी छा जाती है l भैरव सिंह के चेहरे पर कोई भाव नहीं दिखता पर कमरे में मौजूद सभी के चेहरे पर तनाव उभर आती है)
भैरव सिंह - (चुप्पी तोड़ते हुए) उन चार बंदों ने जो करना था... बड़ी सफाई के साथ कर दिए... तुम हम पर भरोसा करो... इसलिए... हमने तुम्हें... जुडिशल स्टैम्प पेपर पर दस्तखत कर तुमसे मंजुरी ली थी... पर बात वहीँ पर आ कर रुक जाती है... कौन हमारे और हमारे विश्वास के साथ है... तुम्हारे मन में शक का कीड़ा... एक सांप का शक़्ल इख्तियार कर चुका है... इसलिये तुम अब हमारे विश्वास के लायक नहीं रहे...
केके - मुझे माफ कर दीजिए राजा साहब... थोड़ा बहक गया था... ऊपर से यह शराब का नशा...
भैरव सिंह - वह एक कहावत है... की शराब का नशा... अंदर की बातों और जज्बातों को बाहर निकाल दिया करता है...
केके - ठीक है राजा साहब... फ़िर मुझे यहाँ से जाने की इजाजत दीजिए...
भैरव सिंह - नहीं केके... अब तुम यहाँ से नहीं जा सकते... सिर्फ कुछ लोगों को पता है... के तुम्हारा अपहरण हुआ था.. लेकिन सारे गाँव वाले यह जानते हैं... के तुम भाग गए हो... हमारी दी हुई इज़्ज़त और पगड़ी को रौंद कर... अब यही बात दुनिया को भी मालूम हो... के तुम भाग गए हो... पुलिस की रिपोर्ट में भी यही आएगा... यह छोटी सी बदनामी... उससे कई गुना अच्छा है... के तुम्हारा अपहरण हुआ... वह भी महल के भीतर से... और मिले भी तुम... महल के भीतर से... इसलिए हमेशा हमेशा के लिए... तुम्हारा... फरार रहना ही... इस महल की इज़्ज़त के लिए अच्छा है...
केके - नहीं... नहीं राजा साहब नहीं... (रोने लगता है) मुझे जाने दीजिए...

इतना कह कर बाहर की ओर भागने लगता है l पर कमजोरी के कारण तेजी से भाग नहीं पाता और उसे भीमा दबोच लेता है l राजा भैरव सिंह सब रॉय और रंगा के तरफ़ मुड़ता है l

भैरव सिंह - मेरे दो अनमोल रतन से परिचित होने का समय आ गया है.... चलो सब अब... रंग महल...

भीमा अपने पट्ठों के मदत से केके का मुहँ टेप से बंद कर बाहर एक जीप पर पटक देते हैं l बल्लभ के साथ डरते डरते रंगा और रॉय बैठ जाते हैं l भैरव सिंह एक अलग गाड़ी में बैठ जाता है और सभी थोड़ी देर में रंग महल पहुँच जाते हैं l चूँकि केके का हस्र क्या होगा अनुभवी भीमा को मालूम था इसलिए वह और उसके पट्ठे केके को लेकर आखेट गृह के गैलेरी में पहुँचते हैं l रंगा और रॉय को इन सबके बारे में कोई जानकारी नहीं थी l पर वे दोनों बल्लभ के साथ, बल्लभ के पास बैठ जाते हैं l भीमा एक जगह जहाँ स्विमिंग पुल पर कुद लगाने के डाइविंग ब्लॉक पर केके को लेकर खड़ा था l रंगा और रॉय देखते हैं कि स्विमिंग पुल चारों ओर ऊँची दीवारों के घेरे में हैं l घेरे में कई जगह दरवाजे हैं l कुछ देर बाद भैरव सिंह भीमा के पास आता है l

भैरव सिंह - भीमा इसे हमारे हवाले करो... आज इसे हम खुद... आखेट में पहुँचाएँगे... तुम जाओ... हमारे इशारे का इंतजार करो... (भीमा केके को भैरव सिंह के हवाले कर वहाँ से चला जाता है और एक कंट्रोल पैनल के पास जाकर खड़ा हो जाता है l भैरव सिंह अब केके को गिरेबान से पकड़ कर अपने पास लाता है और उसे कहता है) हाँ... उन चार बंदों ने... तुझसे सही कहा था... हम किसी भी हाल में... यह शादी रुकवा देते... महीने के भीतर तुझे यहीं लाकर फेंक देते... जो महीने बाद होना चाहिए था... तेरी बेसब्री ने... तुझे आज फिकवा रहा है... साले भड़वे... हरामी कमीने... तुने अपनी मौत हमारी हाथों से... तभी लिखवा चुका था... जब तु दुश्मनी करने... चेट्टी से जा मिला था... तुने जितनी भी दौलत... हमारी दम से कमाई थी.. वह सब हमने तुझसे ले ली... अब तेरे हिस्से का... जो हम तुझे देना चाहते थे... के अब दे रहे हैं...

भैरव सिंह ने जो भी कुछ कहा उसे सिर्फ केके ही सुन पाया l पर उसे और दो लोग समझ चुके थे बल्लभ और भीमा l रंगा और रॉय डर और आशंका के साथ केके की भविष्य से अंजान बुत बने बैठे हुए थे l भैरव सिंह केके को छोड़ देता है l केके सीधे स्विमिंग पुल में गिरता है l केके तैर कर बाहर आता है और अपनी मुहँ पर चिपकी टेप को निकालने देता है l तभी कंट्रोल पैनल में भीमा एक लिवर दबा देता है l


केके - (चिल्ला कर) बे साले हरामी... काहे का राजा बे... मैं तेरी पोल खोल के रख दूँगा कुत्ते...

तभी एक आवाज के साथ उल्टी दिशा के दीवार का एक दरवाजा खुल जाता है l दूसरी दिशा में और एक दरवाजा खुल जाता है l केके गली देते देते रुक जाता है l उसके कानों में किसी जानवर की गुर्राहट पड़ती है l वह उस आवाज की तरफ देखता है एक लकड़बग्घा उसके तरफ आ रहा था वह डरके मारे पानी में कूद जाता है l पानी के बीचों-बीच पहुँच कर लकड़बग्घे की ओर देखता है कि तभी उसके कानों में छपाक की आवाज़ सुनाई देती है पीछे मुड़ कर देखता है एक मगरमच्छ उसके तरफ़ आ रहा था l वह घबराते हुए एक दुसरे किनारे पर पुल से निकलने लगता है कि लकड़बग्घा उसके कंधे को जबड़े में ले लेता है l टेप फाड़ कर केके की दर्दनाक चीख निकल जाता है पर तभी उसका एक टांग मगरमच्छ के जबड़े आ जाता है l फिर कुछ ही देर में केके की चीख बंद हो जाती है l स्विमिंग पुल लाल रंग से रंग जाता है l रंगा और रॉय की हालत बहुत खराब हो जाती है l रॉय भागते हुए जाता है और स्वीमिंग पुल के ऊपर उल्टियां करने लगता है l थोड़ी देर के बाद वह डरते हुए मुड़ कर भैरव सिंह की ओर देखता है l

भैरव सिंह - हमारे दो अनमोल रतन को देख लिए... अब फैसला करो... तुम लोग... हमारे साथ.. हमारे विश्वास के साथ बंधे होकर रहोगे.. या... हमारे इन रत्नों से मिलोगे...


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अगले दिन
यशपुर के तहसील ऑफिस के स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट लगी हुई थी l विश्वा, नरोत्तम पत्री, सुधांशु मिश्रा और कुछ गाँव वाले अंदर बैठे हुए थे l तीनों ज़ज अंदर आते हैं l मुख्य ज़ज टेबल पर गैवेल को टेबल पर तीन बार पटक कर सबको शांत होने के लिए कहता है l

ज़ज - कोर्ट की कारवाई शुरु की जाए... कोर्ट यह जानना चाहती है... क्या वादी पक्ष उपस्थित हैं...
विश्व - (अपनी जगह से उठ कर) जी माय लॉर्ड...
ज़ज - क्या प्रतिवादी पक्ष के... राजा भैरव सिंह उपस्थित हैं...

कोई नहीं था l भैरव सिंह को कुर्सी खाली थी l ज़ज पुलिस इंस्पेक्टर दास के तरफ़ देखता है l दास अपने कंधे उचकाता है l

ज़ज - इंस्पेक्टर दास... आप राजगड़ थाने के इंचार्ज हैं...
दास - येस माय लॉर्ड... पर हमें ऐसा कोई आदेश नहीं मिला है... की हम राजा साहब को... आपके समक्ष पेश करें... राजा साहब को प्रतिवादी... ऑनरेबल हाई कोर्ट ने बनाया है... और स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट को... राजगड़ को लाने वाले भी राजा साहब ही हैं...
ज़ज - ठीक है... कोर्ट उनकी प्रतीक्षा करेगी... क्या... वादी वकील... विश्व प्रताप महापात्र को... कोई आपत्ति है...
विश्व - जी नहीं योर ऑनर... पर मेरा आग्रह रहेगा... जब तक राजा साहब या उनके तरफ़ से कोई अदालत में हाजिर नहीं हो जाता... तब तक इस केस के ताल्लुक... कुछ तथ्य तर्कों के साथ... अदालत को अवगत कराना चाहता हूँ...
ज़ज - ठीक है... प्रस्तुत कीजिये...
विश्व - माय लॉर्ड... इस केस में... इंवेस्टीगेशन चीफ... पत्री सर... और प्रमुख गवाहों को लेकर मैं बहुत चिंतित हूँ... इसलिए... मेरी अदालत से दरख्वास्त है... की उन्हें यह केस समाप्त होने तक... पूर्ण सुरक्षा मुहैया कराया जाए...
ज़ज - मिस्टर विश्व प्रताप... क्या आप कहना चाहते हैं कि... राजा साहब से... उनको खतरा है...
विश्वा - जी माय लॉर्ड... यह केस आपकी जुडिक्शन में आ रहा है... इसलिए यह आदेश आप ही पारित कर सकते हैं...
ज़ज - डोंट क्रॉस योर लिमिट... हम क्या कर सकते हैं... और क्या नहीं... यह अदालत को कृपया आप ना बताएं...
विश्व - आई एम सॉरी माय लॉर्ड... यह कोई छोटी या मामूली केस नहीं है... इसकी एक्जीक्यूटिव मैजिस्ट्रेट लेवल की तहकीकात हो चुकी है... एक तरह से... केस को प्रमाणों के साथ पुष्टि की जा चुकी है... केवल... राजा साहब के प्रतिवादी होने... और उनकी निजी कारण के वज़ह से... केस यहाँ आई हुई है...
ज़ज - विश्व प्रताप... केस में... प्रोसिक्यूशन ही सब कुछ नहीं होता... न्याय व्यवस्था के लिए... डिफेंस का भी अपना महत्व है... जब तक... वादी और प्रतिवादी अपना अपना तथ्य अदालत के सामने रख नहीं देते... तब तक... किसी मुजरिम को... कोई भी अदालत सजा नहीं दे सकती... आशा है... यह बात आपको समझ में आ गई होगी...
विश्व - जी माय लॉर्ड...
ज़ज - आपकी... विटनेश प्रोटेक्शन की बात पर... अदालत ज़रूर गम्भीर रूप से विचार करेगी... अब आप बैठ सकते हैं...

विश्व बैठ जाता है l दर्शकों के दीर्घा में बैठे सुप्रिया की ओर विश्व देखता है l सुप्रिया कुछ समझने की मुद्रा में अपना सिर हिलाती है l लगभग एक घंटे के बाद अदालत के अंदर बल्लभ आता है l वह कम्प्यूटर राइटर को एक काग़ज़ देता है l राइटर उस काग़ज़ को ज़ज के हाथों में सौंप देता है l ज़ज काग़ज़ देखने के बाद

ज़ज - यह क्या है... और आपकी तारीफ़...
बल्लभ - माय लॉर्ड.. मैं एडवोकेट बल्लभ प्रधान... राजा भैरव सिंह का... लीगल एडवाइजर...
ज़ज - ठीक है... पर इस एफिडेविट का मतलब...
बल्लभ - एफिडेविट में साफ लिखा है माय लॉर्ड... बीते कल... राजकुमारी जी की मंगनी थी... बड़ी धूमधाम से मनाने के लिए... बिल्कुल शादी की तरह उत्सव के साथ मंगनी कराने की तैयारी थी... गाँव के सारे लोगों की मौजूदगी में यह मंगनी होनी थी... पर... (बल्लभ रुक जाता है)
ज़ज - मिस्टर प्रधान... आपको पूरी बात बतानी होगी... क्यूँकी आपका पूर्ण बयान... अदालत ही नहीं... प्रोसिक्यूशन भी सुन रहा है...
बल्लभ - जी माय लॉर्ड... सिर्फ प्रोसिक्यूशन के वकील ही नहीं... इंस्पेक्टर दास भी मौजूद थे... कल पता नहीं किस कारण वश... मंगनी करने आए दूल्हा गायब हो गया है... गुमशुदगी का रिपोर्ट कर दी गई है... (एक काग़ज़ देते हुए) यह रही.. एफआईआर की कॉपी... घर में सदमा भरा माहौल है... इसलिये... राजा साहब ने... कम से कम एक हफ्ते के लिए... केस में एक्सटेंशन माँगा है... ताकि इस सदमें से हल्के होने के बाद... इस केस में ध्यान लगा सके...
ज़ज - ठीक है... एडवोकेट विश्व प्रताप... आप यह कॉपी देख सकते हैं... (राइटर वह एफआईआर को कॉपी को लेकर विश्व के हाथ में देता है) (ज़ज इंस्पेक्टर दास से पूछता है) इंस्पेक्टर... क्या आप राजमहल में हुई गुमशुदगी के ऑफिसर कॉम गवाह हैं...
दास - सर... गुमशुदगी का रिपोर्ट... आज सुबह दर्ज हुई थी... और यह सच है कि... इस केस में... इनवेस्टिगेशन ऑफिसर मैं ही हूँ...
ज़ज - इस एफिडेविट में लिखा है... आपकी मौजूदगी में... मंगनी करने आया दूल्हा... गायब हो गया था... आपने उस दूल्हे के कमरे की तलाशी भी ली है...
दास - (एक नजर विश्व पर डालता है, फिर) जी योर ऑनर... पर मैं आगे की कोई तहकीकात नहीं की... वह एक फॉर्मालिटी थी... और केस भी आज सुबह दर्ज हुई है... और कानून के मुताबिक... चौबीस घंटे तक आदमी को गुमशुदा माना नहीं जाता...
ज़ज - ठीक है... यह अदालत... राजा साहब की एफिडेविट पर विचार करने के लिए अपने पास रखती है... और इंस्पेक्टर दास को कल ही अपना रिपोर्ट सबमीट करने के लिए कहती है... उसके बाद... राजा साहब की एफिडेविट पर अदालत निर्णय लेगी... यह अदालत कल तक के लिए... स्थगित किया जाता है..

तीनों ज़ज अदालत से चले जाते हैं l उनके जाते ही अदालत खाली हो जाती है l रह जाते हैं तो पाँच लोग l विश्व, पत्री, सुधांशु, दास और सुप्रिया l
 
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