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विश्व का पुश्तैनी घर जहां अब विक्रम और उसका परिवार रह रहा है l घर की बनावट ही ऐसा है कि बैठक का कोई कमरा नहीं है, बैठक के लिए एक आँगन है l उसी आँगन में एक तरफ विक्रम और शुभ्रा बैठे हुए हैं और दूसरी तरफ रॉकी के साथ रुप की छटी गैंग के सदस्य l सभी के चेहरे पर परेशानी और तनाव साफ झलक रही थी l
विक्रम - तुम लोग ऐसे कैसे आ गए...
दीप्ति - क्या करें भैया... हम खुद बहुत हैरान थे... वीर भईया को गुजरे महीना ही तो हुआ है... ऐसे में कैसे... शादी करा रहे हैं... पर राजा साहब ने कहा कि... कुछ महीनों से... परिवार में कुछ ठीक नहीं जा रहा है... इसलिए रुप की शादी... उसके मन पसंद लड़के से करने का फैसला किया गया है... और इस फैसले से आप सहमत नहीं थे... पर शादी के बाद सब ठीक हो जाएगा... और शादी के इस खुशी के मौके पर... दोस्त सब पास हों तो... ग़म कम हो जाएगा... यही बात सुन कर हम लोग तैयार हो गए...
विक्रम - (रॉकी से) इनका तो समझ में आ गया... तुम्हारी क्या कहानी है...
रॉकी - क्या करूँ भाई साहब... मैंने रुप को बहन माना था... और आप तो जानते हैं ना... रुप ने भी मुझे अपना भाई श्वीकारा था... तो उसी इमोशनल कार्ड खेल गए हमारे घर राजा साहब... इसलिए मैं भी आ गया... और हमें कहा गया था... के रिसेप्शन में... पूरा का पूरा स्टेट ईंवाइटेड होगा... तब हमारे माँ बाप भी आ पायेंगे...
बनानी - पर यहाँ पहुँचने के बाद हमें पता चला... मामला पूरा उल्टा है...
विक्रम - खैर... अब तुम लोग सेफ हो... घबराने की कोई जरूरत नहीं है... अभी महल के अंदर का माहौल... तनाव पूर्ण है... यही मौका है... तुम लोग... सभी वापस चले जाओ...
रॉकी - क्या आप श्योर हैं... हम राजगड़ से निकल पायेंगे...
शुभ्रा - देखो... राजा साहब अब... केके को लेकर चिंतित होंगे... उनका सारा कुनबा... महल और महल के आसपास... केके को ढूंढ रहा होगा... इसलिए यही सही मौका है... थोड़ी देर बाद... प्रताप गाड़ी लेकर आएगा... तुम लोग जितनी जल्दी हो सके निकल जाओ...
कुछ देर के लिए सबके बीच ख़ामोशी छा जाती है l इसी बीच एक गाड़ी की आवाज़ करीब आ रही थी l थोड़ी देर बाद गाड़ी की आवाज़ घर के बाहर बंद हो जाती है l विश्व और सीलु अंदर आते हैं l विश्व को देख कर रॉकी और रुप के सभी दोस्त खड़े हो जाते हैं l
विश्व - (सीलु को दिखा कर) यह मेरा भाई है... दोस्त है... तुम लोग सभी इसके साथ... अभी के अभी निकल जाओ...
विश्व के कहते ही सभी तैयार हो जाते हैं और विश्व के साथ सभी बाहर आते हैं l बाहर एक पुलिस की जीपसी थी l जिसे देखने के बाद लड़कियाँ विश्व की ओर देखते हैं l
विश्व - पुलिस की एक जीपसी है... पर यहाँ की नहीं है... मैंने तुम लोगों के लिए... जुगाड़ बिठाया है.. यही सबसे सेफ भी है... हाँ बैठने में थोड़ी तकलीफ तो होगी... पर तुम लोग सेफली अपने घर में पहुँच जाओगे...
रॉकी - ठीक है... हम घर पर पहुँच जायेंगे... पर... उसके बाद...
विश्व - तुम लोग यशपुर की सरहद लाँघ जाओ... उसके बाद तुम तक... कोई नहीं पहुँच पाएगा... मेरा यकीन करो... तुम लोग बस यहाँ से निकल जाओ...
रॉकी सुर सभी लड़कियाँ एक दूसरे को देखते हैं l इतने में सीलु गाड़ी स्टार्ट कर देता है l रॉकी उसके बगल में बैठ जाता है l रॉकी के पास बनानी बैठ जाती है l बाकी चार लड़कियाँ पीछे बैठते ही सीलु गाड़ी दौड़ा देता है l पीछे विश्व, विक्रम और शुभ्रा रह जाते हैं l गाड़ी के आँखों से ओझल होते ही विश्व विक्रम की ओर मुड़ता है
विश्व - तुम्हारे चाचा और चाची दिखाई नहीं दे रहे...
विक्रम - (बरामदे में शुभ्रा को बिठा कर) चाचा जी की तबीयत आजकल ठीक नहीं रहती है.... इसलिए उन्हें आते ही सुला दिया है... चाची उनके पास हैं...
विश्व - वैसे मुझे उम्मीद नहीं थी... आज तुम ऐसा करोगे...
विक्रम - हाँ उम्मीद तो मुझे भी नहीं थी... तुम आज ऐसा खेल करोगे...
शुभ्रा - और आज जो भी हुआ... राजा साहब ने कभी सोचा भी नहीं होगा...
विश्व - हाँ... इन सब में... इंस्पेक्टर दास ने भी... खूब साथ दिया...
विक्रम - हाँ... एक बात तो है... जो भी तुमसे दोस्ती करता है... तुम्हारे लिए... हर हद लांघ जाता है...
विश्व - हाँ इस मामले में... मैं बहुत खुश किस्मत हूँ... वैसे... तुमने अपनी प्लान में... दीदी को कब शामिल कर लिया...
विक्रम - सुबह... जब नंदिनी की चिट्ठी लेकर सेबती मेरे पास आई... मैंने शुभ्रा जी को दीदी के पास भेज दिया था... और उन्हें अपनी प्लान में शामिल कर लिया था... जब दीदी तैयार हो गईं... मैंने इस प्लान में... चाचा और चाची को भी शामिल कर लिया... मत भूलो... यह वीर की ख्वाहिश भी थी...
विश्व - पर तुम्हारे प्लान में... इंस्पेक्टर दास भी तो था... तुमने उससे कब बात की...
विक्रम - मैंने नहीं... दीदी ने बात की... और वह प्लान सुनते ही राजी हो गया...
शुभ्रा - हाँ तुम अपनी प्लान की कामयाबी को लेकर... शायद चिंतित थे... इसलिए मार्क नहीं कर पाए के कब दीदी... इंस्पेक्टर दास से बात की...
विश्व - हाँ... मैं केके और अपने प्लान को लेकर... थोड़ा टेंशन में था... पर मेरे सभी दोस्तों ने... बहुत अच्छा काम किया...
विक्रम - प्रताप... थैंक्स...
विश्व - किसलिए...
विक्रम - तुमने कहा था... इस गाँव को शायद मेरी जरूरत है... गाँव वालों की तो पता नहीं... पर.. मैं आज अपनी बहन के काम आया... अगर दीदी और तुमने.. मुझे... मेरा मतलब है हम सबको रोका नहीं होता... तो जिंदगी भर.. आज के दिन के लिए... मैं खुद को कभी माफ नहीं कर पाता... और खुद की और वीर की नजरों में.. हमेशा गिरा हुआ पाता...
विश्व - अब मैं क्या कहूँ...
विक्रम - तो... अब केके कहाँ है...
विश्व - दिया तले अंधेरा...
विक्रम - मतलब...
विश्व - वह महल में ही है... अपने कमरे में ही है...
शुभ्रा और विक्रम - ह्व़ाट...
विक्रम - केके... अपने कमरे में है...
विश्व - हाँ मेरे दोस्तों ने... बड़े हिफाजत के साथ... उसे... उसी कमरे में रख छोड़ा है...
शुभ्रा - तो अभी तक वह किसीको दिखा क्यूँ नहीं...
विश्व - दिख जाएगा... मिल जाएगा... बस उसका वक़्त अभी आया नहीं है...
विक्रम - कल कोर्ट में... केस पर सुनवाई होने वाली है... इसलिए राजा साहब... तुम्हारे जेहन और दिल पर चोट करना चाहते थे.. पर तुमने पासा पलट दिया... पता नहीं वह कल कोर्ट में क्या कहेंगे...
विश्व - तुम अभी भी गलत सोच रहे हो...
विक्रम - क्या... मैंने क्या गलत सोच रहा हूँ...
विश्व - यही के... राजा साहब... मेरे दिल और दिमाग पर चोट करना चाहते थे...
विक्रम - तो... इस शादी का मतलब...
विश्व - वह असल में... मुझे इस केस से हटाना चाहते थे... उन्हें यकीन था...
विक्रम - ह्व़ाट... तुम्हें केस से हटाने के लिए... यह सब था...
विश्व - हाँ... विक्रम... एक इंसानी फितरत है... लोग सामने वाले को... इमोशनल या सेंटिमेटल फुल समझते हैं... उसकी उसी कमजोरी को बाहर लाने के लिए... अपनी चालें चलते हैं... उनका पहला टार्गेट मेरे माता पिता थे... तुम शायद यकीन ना करो... पर मेरा फोन ट्रैक करने की कोशिश की जा रही थी... पर नहीं कर पाए...
विक्रम - हाँ... समझ सकता हूँ... ज़रूर रॉय के लोगों से कोशिश की गई होगी... और मैं यह भी जानता हूँ... वह फैल क्यूँ हुए होंगे... क्यूँकी तुम्हारा फोन... जोडार साहब के सेक्यूरिटी सर्विलांस में होगी...
विश्व - बिल्कुल... इसलिए... मेरा कोई भी... चाहे इनकॉमींग हो... या ऑउटगोइंग... किसी भी कॉल को ट्रेस नहीं कर सकते...
विक्रम - पर तुमने बताया नहीं.. तुम्हें कैसे... केस से हटाने की कोशिश की...
विश्व - उन्हें मेरी कमजोरी चाहिए थी... जो उनके हाथ नहीं लगी... इसलिये.... शादी को यहाँ तक खिंचे... ताकि मैं अपना सब्र खो कर रोकने के लिए... भरे लोगों और पुलिस के बीच कुछ कर जाता... तो कानूनन... मुझे केस से हटाने के लिए... उनको वज़ह मिल जाती... बाकी का काम.. उनके लिए आसान था...
विक्रम - ओ हो... तो यह बात थी... तभी मैं यह सोचूँ... केके जैसे चिरकुट को... दामाद बनाने की सोच भी कैसे लिया...
शुभ्रा - मान लो... तुमसे कुछ नहीं हो पाता... और यह शादी हो जाती तो...
विश्व - मुझे... अपने प्यार की विश्वास को कायम रखना था... इसलिए मैंने यह सब किया... अगर मेरे दोस्त नाकामयाब हो जाते... तो वही होता... जैसा राजा साहब चाहते थे...
विक्रम - मतलब... तुम शादी में कोई कांड कर देते... गाँव वालों की नजर में... तुम शादी में विघ्न डालने वाले होते... सारा दोष तुम पर आ जाता... राजा साहब शादी रुकवा देते... उसके बाद... तुम्हारा राजा साहब से कोई निजी खुन्नस दिखा देते... तुम्हें केस से हटवा देते और इन तीस दिनों के अंदर... केके को ठिकाने लगा देते...
विश्व - बिल्कुल...
शुभ्रा - यानी... राजा साहब को मालूम था... आई मीन यकीन था... तुम कुछ ना कुछ करके यह शादी रोक दोगे... तुम उनके यकीन पर तो खरे उतरे पर... उनके प्लान पर नहीं...
विश्व - (मुस्कराकर) जी बिलकुल...
विक्रम - (अपना हाथ आगे बढ़ा कर) ओके विश्वा... लोगों का विश्वास और उम्मीद तुम पर टिकी हुई है... कल कोर्ट में.. तुम्हें खरा उतरना है...
विश्व - (हाथ मिला कर) हाँ जरूर... (कह कर मुड़ कर जाने लगता है, जाते जाते फिर वापस मुड़ कर) वन्स अगैन... थैंक्यू... (विश्व चला जाता है)
शुभ्रा - विक्की... यह बंदा क्या है... बाप रे... क्या दिमाग चला रहा है...
विक्रम - हाँ... मैं इसकी सोच का कायल हूँ... सामने वाले की दिमाग को पढ़ लेने की हुनर... क्या खूब पाई है... मुझसे पहले इसकी इस हुनर को राजा साहब जान गए थे... समझ गए थे... इसी लिए इतना कुछ कर गए... पर अफसोस... विश्व ने उनकी हर प्लान की धज्जियाँ उड़ा दी...
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क्षेत्रपाल महल
परिसर के जिस हिस्से में शादी का मंडप सजा हुआ था वहाँ रंगा और रॉय मुहँ लटकाये बैठे हुए थे l महल के उसी खास कमरे में भैरव सिंह उस मूठ विहीन तलवार को घूर रहा था, उसके पीछे हाथ बाँधे बल्लभ खड़ा था l कमरे के दरवाजे के पास कुछ दूरी पर भीमा खड़ा हुआ था l भैरव सिंह पलट कर अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है l और आँखे मूँद अपने माथे पर दाहिने हाथ के दो उंगली फेरता है l फिर अचानक उठ खड़ा होता है और परेशान सा इधर उधर होने लगता है l
भैरव सिंह - प्रधान... यह विश्वा किस मिट्टी का बना हुआ है... बार बार... वह हम पर भारी पड़ रहा है...
बल्लभ - है तो... राजगड़ का ही ना...
भैरव सिंह - हाँ इसी गाँव का है... पर इस गाँव के लोगों से अलग कैसे है...
बल्लभ - राजा साहब... विश्वा उस कच्ची मिट्टी की तरह है... जब जब.. जो जो... जैसे उसे बनाते गए... वह उन्हीं की साँचे में ढलता गया... जब तक बाप और दीदी के पास रहा... एक निडर बच्चा रहा... जब महल में आया... एक डरपोक भेड़ की तरह बना... लेकिन फिर जब अपनी दीदी के साये में आया... डर धीरे धीरे उसे छोड़ता चला गया... फिर वह जैल में सात साल रहा... इन सात सालों में... वह जिन जिन लोगों के संपर्क में आया... उन्हीं की तरह बनता चला गया... (एक पॉज के बाद) रोणा ठीक कह रहा था... हमने उसे जिंदा छोड़कर सही नहीं किया...
भैरव सिंह - जो पीछे छूट गया... वह लौट कर नहीं आने वाले... अब हम क्या कर सकते हैं... यह बताओ... (एक गहरा साँस छोड़ता है) हमारे ही महल में... हमारे ही नाक के नीचे... केके को गायब करवा दिया... हमें अपनी ही औलाद के सामने... (चुप हो जाता है) (भीमा से) भीमा...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - उन दो छचुंदरों को बुला कर लाओ...
भीमा - जी हुकुम... (भीमा बाहर चला जाता है)
भैरव सिंह - (फिर से वही तलवार के सामने खड़ा हो जाता है) प्रधान... क्या तुम इस तलवार के बारे में कुछ जानते हो...
बल्लभ - जी... मैंने सुना है... जेम्स फर्ग्यूसन की यह तलवार है... यह तलवार... आपकी राजशाही की... राज सत्ता की मुहर है...
भैरव सिंह - और क्या जानते हो...
बल्लभ - जी... और कुछ भी नहीं जानता...
भैरव सिंह - यह तलवार हमारी राजशाही की मुहर है... पर उसके साथ एक अभिशाप भी है... हमारी राजशाही का अंत के लिए.. इस तलवार को... उसकी मूठ का इंतजार है...
बल्लभ - क्या... सच में...
भैरव सिंह - हाँ... जिस दिन... इस तलवार से... वह मूठ जुड़ जाएगा... क्षेत्रपाल की राजशाही ही नहीं... क्षेत्रपाल ही ख़तम हो जाएगी...
बल्लभ - राजा साहब... क्या आप ऐसी किंवदंतीओं पर विश्वास करते हैं...
भैरव सिंह - नहीं... पर... जब से विश्वा छुटा है... हर मोड़ पर... वह हम पर भारी पड़ रहा है... ऐसा क्यूँ...
बल्लभ - आप राजा हैं... अगर आप ही... (चुप हो जाता है)
भैरव सिंह - तुम गलत सोच रहे हो प्रधान... हमें हमेशा... तुम्हारे दिमाग और सोच पर विश्वास था और है... पर फिर भी... याद करो... क्यूँ केके.. हमारे दुश्मनों जा मिला... विश्वा पर जोडार अपना विश्वास हार जाए... इसलिए... केके से वह जमीन खरीदवाए थे... तुमने... BDA अप्रूवल भी ले लिया था... पर विश्व ने कैसे... कितनी आसानी से उसे... देवोत्तर जमीन साबित कर दिया... (जवाब में बल्लभ कुछ कहता नहीं) उसी दिन हमने सोच लिया था... या तो विश्वा को हर केस से हटाएंगे... या फिर... उसे घुटनों पर ला देंगे... हम नाकामयाब रहे.... और तुम भी... प्रधान... क्या अब विश्वा को... रास्ते से हटा सकते हैं...
बल्लभ - नहीं राजा साहब नहीं... यह आप कैसी बातेँ कर रहे हैं... विश्वा बार एसोसिएशन का मेंबर है... उसने चालाकी से... अपनी लाइफ थ्रेट की एफिडेविट हाइकोर्ट के साथ साथ... उसकी कॉपी... बार एसोसिएशन में और... प्रेस क्लब में दे रखा है... उसे कुछ भी हुआ तो... केस सीधे सेंट्रल एजेंसियों के पास चली जाएगी...
भैरव सिंह - तो हम क्या करें प्रधान... हम मजबूर होना नहीं चाहते... किसीको मजबूर दिखना नहीं चाहते... हम विश्वा के अंदर की भावनाओं को... भड़का कर... उकसा कर... उसकी आवेश को हमारे खिलाफ इस्तेमाल करवाना चाहते थे... ताकि... निजी खुन्नस दिखा कर... बता कर... विश्वा को इस केस से हटवाना चाहते थे... पर... अब... अब वह केस से नहीं हटेगा... हम क्या करें...
बल्लभ - एक काम हो सकता है... कुछ निजी कारणों का हवाला दे कर... हम कुछ दिनों की... एक्सटेंशन ले सकते हैं...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... ठीक है... यही करते हैं...
ठीक उसी समय भीमा के साथ रंगा और रॉय कमरे में आते हैं l भैरव सिंह उन्हें देख कर अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है l आर्म रेस्ट पर हाथ रखकर पैर पर पैर मोड़ कर इनके तरफ़ देखता है l दोनों सिर झुकाए खड़े थे l
भैरव सिंह - आओ... हमारे राज के... दो कौड़ी के रतन... आओ... (दोनों बुरी तरह से शर्मिंदा होते हैं) बाहर ठंड नहीं लगी... इतने देर से बैठे हुए थे... (दोनों सिर झुकाए वैसे ही खड़े थे) प्रधान...
बल्लभ - जी... जी राजा साहब...
भैरव सिंह - यह किस लायक थे... हमने इन्हें कहाँ लाकर बिठाया... और आज इनकी नाकामी ने... हमें क्या दिखाया... (एक पॉज) चुप क्यूँ हो दोनों... कुछ तो बको...
रॉय - (कांपती आवाज में) वह... राजा सहाब... हमारा सारा ध्यान... राजकुमारी जी को लेकर था... हमने कभी सोचा नहीं था... केके साहब को... विश्वा उठा लेगा...
भैरव सिंह - रॉय... तु शादी सुदा तो है ना...
रॉय - (चुप रहता है)
भैरव सिंह - हमने कुछ पुछा है...
रॉय - जी... जी राजा साहब....
भैरव सिंह - बच्चे...
रॉय - दो.. दो बच्चे हैं... दोनों लड़के हैं...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... तेरे ही हैं ना... या फिर... तेरी गैर मौजूदगी में... कोई और हल चला गया...
रॉय - (अपनी आँखे बंद कर लेता है और जबड़े भिंच लेता है)
भैरव सिंह - अबे हराम के ढक्कन... विश्वा अपनी जगह से हिला तक नहीं... और तु कह रहा है... उसने उठा लिया... महल के चारो तरफ़ तेरे प्लान के मुताबिक सिक्युरिटी थी... ना कोई बाहर गया... ना कोई अंदर आया...
कुछ देर के लिए कमरे में मरघट सी शांति छा जाती है l ना जवाब में रॉय कुछ कहता है ना ही भैरव सिंह l फिर कुछ देर बाद
भैरव सिंह - क्यूँ रंगा... तु कुछ नहीं कहेगा...
रंगा - (डरते डरते) राजा साहब... हमें इतना मालूम है... की वह केके विश्वा को लेकर बहुत खौफ जदा था... पर जब पुलिस उसके बाराती बन कर आए... तब वह घोड़ी चढ़ कर आया... पर महल के अंदर... (चुप हो जाता है)
भैरव सिंह - आओ बैठ जाओ... (तीनों में से कोई नहीं बैठता) (रौबदार आवाज में हुक्म देते हुए) बैठ जाओ... (पहले बल्लभ बैठता है, फिर रंगा और रॉय बैठते हैं) छेद तो हुआ है... पर किसके पिछवाड़े... यह जानना जरूरी है... क्यूँकी जहाँ अति आत्मविश्वास हो... छेद वहीँ बन जाता है... या बनाया जाता है...
रंगा - गुस्ताखी माफ राजा साहब... (भैरव सिंह उसके तरफ़ देखता है) क्यूँ ना एक आखिरी बार... महल के अंदर... केके साहब को ढूँढा जाए...
भैरव सिंह - भीमा...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - सिवाय अंतर्महल को छोड़ कर... पुरे महल को अच्छी तरह से छान मारो...
भीमा - जी हुकुम...
इतना कह कर भीमा वहाँ से चला जाता है, उसके जाने के बाद फिर से कमरे में चुप्पी सी छा जाती है l
रंगा - राजा साहब... गुस्ताखी माफ... एक सवाल.... पूछ सकता हूँ... (भैरव सिंह उसे देखता है और हल्के सा सिर हिलाता है) यह पाँच रत्न... कौन कौन हैं...
भैरव सिंह - तीन रत्नों को तो जानते हो ना...
रंगा - जी...
भैरव सिंह - और दो रत्नों के बारे में... बाद में जानकारी मिलेगी... पर याद रखना... जानने के बाद... उनसे मिलने की ख्वाहिश कभी नहीं करना... गलती से भी नहीं...
बल्लभ - कभी राजा साहब के... नौ रत्न हुआ करते थे... कुछ ने राजा साहब के साथ छोड़ा... और कुछ को राजा साहब ने छोड़ दिया... राजा साहब को कोई छोड़ दे... या राजा साहब किसी को छोड़ दें... दोनों ही सूरत में... उसे ही खतरा होता है...
भैरव सिंह - क्या बात है रॉय... बड़े गहरे सोच में खोए हुए हो...
रॉय - राजा साहब... हमने तो अपनी जान लगा दी थी... हमें अफ़सोस है कि... हम आपकी रुतबे को कायम रखने में नाकाम रहे...
भैरव सिंह अपनी जगह से उठ जाता है l यह लोग उठने को होते हैं, भैरव सिंह उन्हें बैठने के लिए इशारा करते हुए दीवार के पास लगे मूठ विहीन तलवार के पास जाकर तलवार को देखते हुए कहता है
भैरव सिंह - खोता वही है... जिसने कमाया हो... यह रौब... यह रुतबा... हमें विरासत में मिला है और हम... इन सबके वारिस हैं... जो भी हुआ... वह कीचड़ था... जो विश्वा की तरफ से उछला था... बस दाग लगा है... और यह दाग हमें याद रहेगा... (अब इनके तरफ मुड़ता है) जंग होगी.. यह तय था... बस मैदान क्या होगा.. कहाँ होगा... इससे बेख़बर थे... अब जंग चाहे जहां भी हो... जंग का रुख हम तय करेंगे... (भीमा भागते हुए अंदर आता है और झुक कर घुटनों पर बैठ जाता है) क्या बात है भीमा...
भीमा - हुकुम... एक खबर है...
भैरव सिंह - कैसी खबर...
भीमा - वह... होने वाले जमाई जी का पता चल गया है...
भैरव सिंह - अच्छा...
तीनों - (अपनी कुर्सी से उछल कर खड़े हो जाते हैं) क्या...
भीमा - जी.. उन्हें... सत्तू अपने साथ ला रहा है...
सबकी नजर दरवाज़े की ओर टिक जाता है l बदहवास केके, सत्तू के सहारे कमरे में प्रवेश करता है l रॉय भाग कर केके को सहारा देता है और रंगा एक कुर्सी खिंच कर उसे कुर्सी पर बिठाता है l भीमा पानी ला रहा था पर उसे भैरव सिंह रोक देता है और पानी की ग्लास लेकर भीमा के हाथ में व्हिस्की की एक बोतल थमा देता है l भीमा ही नहीं सभी भैरव सिंह को हैरत से देखते हैं l भैरव सिंह इशारे से भीमा को व्हिस्की बोतल देने के लिए कहता है l भीमा केके के हाथ में व्हिस्की बोतल दे देता है l केके पहले बोतल को देखता है फिर ढक्कन खोल कर एक ही साँस में आधी बोतल व्हिस्की गटक जाता है l फिर गहरी साँस लेते हुए खुदको नॉर्मल करता है l
भैरव सिंह - (सत्तू से) कहाँ से मिले...
सत्तू - (डर और शर्मिंदगी के साथ) व वह... ब. ब.. बाथरुम... में...
भैरव सिंह के साथ सभी - क्या... (सभी एक दूसरे की ओर देखने लगते हैं सिवाय भैरव सिंह के l भैरव सिंह के भौंहे सोच में सिकुड़ जाते हैं l कुछ देर की चुप्पी सी छा जाती है)
भैरव सिंह - (चुप्पी तोड़ते हुए, सत्तू से) तुम कैसे बाथरूम में पहुँच गए...
सत्तू - पता नहीं... हमने सब जगह छान लिए थे... सही मायने में... बाथरूम नहीं देखे थे... क्यूँकी बाथरूम तो... दारोगा बाबु गए थे... सोचा एक बार देख लेते हैं... जब अंदर गया... तब भी... जमाई बाबु... तब भी नहीं दिखे... पर पता नहीं क्यूँ मन किया... तो पर्दा हटाए... वह नहाने के बंबा देखने के लिए... वहीँ पर नल से बंधे हुए बैठे दिखे... हाथ मुहँ पैर सभी चिपचिपा टेप से बंधे हुए थे...
सत्तू के इतने कहने के बाद कमरे में सब शांत खड़े थे l इतने शांत के एक दुसरे के साँसे तक लेते और छोड़ते हुए सुन पा रहे थे l भैरव सिंह कुछ समझते हुए अपना सिर हिलाने लगता है और केके से पूछता है l
भैरव सिंह - केके... क्या तुम अब शुरु से बताओगे... क्या हुआ...
केके - राजा साहब... (थके लुटे पिटे हुए कि तरह) आप... जिन लोगों को... रस्म को निभाने उतारने के लिए बुलाए थे... उन्होंने ही मेरे अपहरण का रास्ता बनाया था...
भैरव सिंह - केके... हम अब पूरी बात जानना चाहते हैं... इसलिए बिना रुके... सारी बातें... हमें बताओ... थोड़ी देर पहले... माहौल ऐसा था कि... तुम शादी से डरे हुए थे... इसलिए भाग गए हो... ऐसी चर्चा चल रही थी... पर अब तुम सामने हो... हम सभी गलत थे... कहाँ चूक गए... यह जानना बहुत जरूरी है... दुश्मन को ज़वाब देना भी तो है... इसलिए कि कल की जंग से पहले... हमें.. अपनी हर गलती को सुधरना है...
केके - हाँ राजा साहब... मैं डरा हुआ हुआ था... क्यूँकी यह आप भी जानते हैं... और एडवोकेट प्रधान भी... विश्वा आपकी अहं के साथ... मेरे बिजनस को भी उतना ही नुकसान किया है... इसलिए जब... बारात लेने... पुलिस फोर्स पहुँची... मैं खुश हो गया... मुझे यकीन भी हो गया... के हर हाल में मेरी शादी हो कर ही रहेगी...
गाँव के बीच से बारात गुजरी थी... कुछ नहीं हुआ था... महल में पहुँची... कोई गड़बड़ी नहीं हुई... पर घोड़ी से उतर कर जब... पहली रस्म निभाई गई... वहीँ से सारी गड़बड़ी शुरु हुई... खैर जहाँ साला पैर धो कर... जुता पहनाता है... वहाँ तक सब ठीक था... आरती उतारने के बाद... तिलक लगाने के बाद... मुझे एक लड़की ने शर्बत पिलाई... जो कि रस्म के हिसाब से... छोटी रानी जी को यह सब करना चाहए था... वह राजकुमारी जी की दोस्त थी... नाम बनानी था...
भैरव सिंह - हाँ तो...
केके - उसने शर्बत में कुछ गड़बड़ी की थी... शायद कुछ मिलाया था... जिसका असर तुरंत तो नहीं हुआ... पर बाद में हुआ... उसके बाद... राजकुमारी जी की... चारों सहेलियाँ... अपनी साली की धर्म निभाने की कोशिश करते हुए... चारों ने मुझे पान खिलाए... उसके बाद बड़ी मुश्किल से मैंने बेदी पर... पंडित के साथ बैठ कर कुछ रस्में अदा की... पर उस वक़्त भी मेरी हालत ठीक नहीं लग रही थी... गर्मी लग रही थी... पसीना भी बह रहा था... ऊपर से उबकई सी महसूस हो रही थी... जब कपड़े बदलने के लिए... मैं कमरे में पहुँचा... तो सबसे पहले अपने कपड़े उतारे फिर सीधे बाथरूम में घुस गया... वॉश पैन की सिंक में उल्टियां करने लगा... उल्टियां इस कदर हो रहीं थीं के आँखों में अंधेरा सा छाने लगा था... बाहर कमरे में कुछ तो हो रहा था... पर मैं अपनी होश में नहीं था... जब दुरुस्त लगा... तो अपने चेहरे पर पानी की छींट मारने के बाद जैसे ही आईना देखा... पीछे दो लोग खड़े थे... मैं जैसे ही मुड़ा... वे लोग... मेरे मुहँ को दबोच लिए... तभी शायद कमरा का दरवाजा तोड़ा गया था... वह दो लोग मुझे दबोचे हुए... बाथ टब में ले गए और कर्टेंन खिंच लिया... आप सब लोग कमरे में ढूँढने लगे... क्यूँकी उन लोगों ने... बाल्कनी में... मेरे भाग जाने की कोई सीन बना दिया था... कुछ देर बाद... इंस्पेक्टर दास अंदर आया... उसने कर्टेंन उठा कर देखा... के वह दो बंदे मुझे दबोच रखा था... पर वह हरामजादा कुछ नहीं किया... उल्टा... अपना काला लौड़ा निकाल कर पास के कमोड में मुता... फिर फ्लश कर... दरवाजा बंद करके चला गया... आप लोग कमरे में ही मौजूद थे... पर किसी ने... बाथरूम में आने की जहमत नहीं की... कुछ देर बाद बाथरूम में दो लोग और आए... जिन्होंने शायद... बाहर मेरे भाग जाने वाला सीन बनाया था... चारों ने मिलकर... स्टिकी टेप से... हाथ पैर और मुहँ को अच्छे से बाँध दिया... फिर पानी की टाप से बाँध कर... टब के सिरहाने बिठा दिया और मुझे कर्टेंन के पीछे छुपा दिया... वह चारों आराम से... कमरे से निकल भी गए... अगर अभी सत्तू ने वह कर्टेंन हटा कर नहीं देखा होता... तो शायद... मेरे मरने के बाद ही... आप लोगों कों मेरा पता लगता...
केके अब चुप हो जाता है l सब सुनने के बाद भैरव सिंह की ओर देखते हैं l भैरव सिंह के चेहरा बहुत सख्त दिख रहा था और जबड़े भिंचे हुए थे l सबकी नजरें भैरव सिंह की मुट्ठीयों पर जाता है l भैरव सिंह अपनी मुट्ठीयाँ मल रहा था l बल्लभ इस बार केके से सवाल करता है l
बल्लभ - अच्छा केके बाबु... आपके हिसाब से... वह चार लोग थे... जिन्होंने आपको... इसी महल में... हमारी आँखों के नीचे छुपा दिया...
केके - हाँ... प्रधान बाबु हाँ... बड़ी शर्म की बात है... वे चारों... महल के अंदर आए... पर महल के पहरेदारों को पता नहीं चला... मतलब... या तो पूरी की पूरी पहरेदारों को फौज निकम्मी है... या फिर ग़द्दार... ऊपर से... पुलिस... जो कभी राजा साहब के जुते की नोक पर हुआ करती थी... वही... राजा साहब के खिलाफ साजिश में शामिल है...
बल्लभ - आप घबराईये मत केके साहब... हम उन्हें ढूंढ निकलेंगे... और पुलिस के खिलाफ... उपर बात कर... उन्हें सस्पेंड कराएंगे...
सभी इस बार फिर से भैरव सिंह की ओर देखते हैं l भैरव सिंह अभी भी मुट्ठीयाँ मल रहा था l भैरव सिंह अब मुड़ कर अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है l
केके - माफ कीजिएगा राजा साहब... आप जंग जितने कि बात कर रहे हैं... जबकि आपके अपने... यहाँ तक आपकी औलादें भी... आपके साथ नहीं हैं... (भैरव सिंह अपने माथे पर दो उँगलियाँ फ़ेरने लगता है, जिसे देख कर बल्लभ केके से फिर एक सवाल करता है)
बल्लभ - अच्छा... वह जो चार बंदे... आपसे कुछ बात करी... या आपस में कुछ बात कर रहे थे...
केके - वे चार... बड़ी खामोशी और शांति से अपना काम अंजाम दे रहे थे... चारों आपस में... इशारों से बातेँ कर रहे थे... पर जब भी बात कर रहे थे... मेरे कान भर रहे थे...
बल्लभ - कैसी बातेँ कर रहे थे...
केके - (चुप रहता है)
बल्लभ - आपने बताया नहीं... वे चारों आपसे कैसी बातेँ कर रहे थे...
केके - नहीं जाने दीजिए... राजा साहब को बुरा लगेगा...
यह बात सुन कर भैरव सिंह अपनी आँखे खोलता है l एक तीखी नजर से केके की ओर देखने लगता है l कुछ देर केके को देखने के बाद भैरव सिंह केके से पूछता है l
भैरव सिंह - केके... तुम्हें देख कर ऐसा लग रहा है... जैसे उन चार बंदों ने... हमारे खिलाफ तुम्हारे कानों में कुछ बातेँ की है... और कहीं ना कहीं... तुम उनकी बातों से सहमत भी लग रहे हो...
केके कोई जवाब नहीं देता और अपना चेहरा घुमा लेता है, भैरव सिंह को यह बहुत बुरा लगता है l वह अपनी जगह से उठ खड़ा होता है और चलते हुए केके के पास आकर खड़ा होता है l पर केके कोई प्रतिक्रिया दिए वगैर वहीँ बैठा रहता है l भैरव सिंह अपनी दांत पीसने लगता है l भैरव सिंह का यह रुप देख कर सत्तू, भीमा और बल्लभ अपनी जगह से पीछे हटते हैं l उन्हें हटता देख कर रंगा और रॉय भी धीरे धीरे पीछे हटने लगते हैं l
भैरव सिंह - ऐसा कभी हुआ नहीं... के हम किसी के सामने खड़े हों जाएं... और वह बंदा.. अपनी कुर्सी से चिपका रहे...
यह सुन कर केके को अपनी गलती का एहसास होता है और वह डर के मारे सिर उठा कर भैरव सिंह की ओर देखने लगता है l भैरव उसके गर्दन को पकड़ लेता है और झटके से ऊपर उठा लेता है l केके की आँखों में अब डर साफ दिखने लगता है l वह अब गिड़गिड़ा कर बिनती करने लगता है
केके - म... म... मुझे माफ़ कर दीजिए... गलती हो गई...
भैरव सिंह - कहो... उन चारों ने हमारे खिलाफ... क्या कान भरा है...
केके - बताता हूँ... बताता हूँ... मेरा दम घुट रहा है... प्लीज मुझे छोड़ दीजिए.. (भैरव सिंह उसे छोड़ देता है l केके अपनी गर्दन पर हाथ फ़ेरने लगता है l फिर खुद को दुरुस्त करने के बाद कहने लगता है)
केके - वे चारों... मुझे बारी बारी से कह रहे थे.. के आप ने शादी की झांसा दे कर... मेरी दौलत लूट ली... इस शादी में आपकी ना कोई दिलचस्पी है... ना ही कोई मंजुरी... बल्कि आप खुद ही चाह रहे हैं... यह शादी ना हो... अगर यह शादी टूटती है... तो किसी बहाने से... आप यह शादी महीने के लिए... टाल देंगे... फिर मेरी शादी कभी भी नहीं होगी... (सिर झुका कर चुप हो जाता है)
भैरव सिंह - उन्होंने और भी कुछ कहा होगा...
केके - जी... जी राजा साहब... उनका कहना था... आपने दो ही शादी के सैंपल कार्ड लेकर आए थे... जिन्हें दिए... उन्हें चिढ़ाने के लिए... जबकि... किसी तीसरे को कार्ड दिया ही नहीं गया है... हर कार्ड में... शादी के साथ साथ... रिसेप्शन की तारीख भी लिखा होता है... पर आपने जो कार्ड दी है... उसमें रिसेप्शन की तारीख भी नहीं लिखा था... और सबसे अहं बात... राजा साहब ने... अपने नए जमाई बाबु का परिचय... बड़े राजा से भी नहीं कराया... (केके चुप हो जाता है, केके के चुप्पी के साथ पूरा माहौल में चुप्पी छा जाती है l भैरव सिंह के चेहरे पर कोई भाव नहीं दिखता पर कमरे में मौजूद सभी के चेहरे पर तनाव उभर आती है)
भैरव सिंह - (चुप्पी तोड़ते हुए) उन चार बंदों ने जो करना था... बड़ी सफाई के साथ कर दिए... तुम हम पर भरोसा करो... इसलिए... हमने तुम्हें... जुडिशल स्टैम्प पेपर पर दस्तखत कर तुमसे मंजुरी ली थी... पर बात वहीँ पर आ कर रुक जाती है... कौन हमारे और हमारे विश्वास के साथ है... तुम्हारे मन में शक का कीड़ा... एक सांप का शक़्ल इख्तियार कर चुका है... इसलिये तुम अब हमारे विश्वास के लायक नहीं रहे...
केके - मुझे माफ कर दीजिए राजा साहब... थोड़ा बहक गया था... ऊपर से यह शराब का नशा...
भैरव सिंह - वह एक कहावत है... की शराब का नशा... अंदर की बातों और जज्बातों को बाहर निकाल दिया करता है...
केके - ठीक है राजा साहब... फ़िर मुझे यहाँ से जाने की इजाजत दीजिए...
भैरव सिंह - नहीं केके... अब तुम यहाँ से नहीं जा सकते... सिर्फ कुछ लोगों को पता है... के तुम्हारा अपहरण हुआ था.. लेकिन सारे गाँव वाले यह जानते हैं... के तुम भाग गए हो... हमारी दी हुई इज़्ज़त और पगड़ी को रौंद कर... अब यही बात दुनिया को भी मालूम हो... के तुम भाग गए हो... पुलिस की रिपोर्ट में भी यही आएगा... यह छोटी सी बदनामी... उससे कई गुना अच्छा है... के तुम्हारा अपहरण हुआ... वह भी महल के भीतर से... और मिले भी तुम... महल के भीतर से... इसलिए हमेशा हमेशा के लिए... तुम्हारा... फरार रहना ही... इस महल की इज़्ज़त के लिए अच्छा है...
केके - नहीं... नहीं राजा साहब नहीं... (रोने लगता है) मुझे जाने दीजिए...
इतना कह कर बाहर की ओर भागने लगता है l पर कमजोरी के कारण तेजी से भाग नहीं पाता और उसे भीमा दबोच लेता है l राजा भैरव सिंह सब रॉय और रंगा के तरफ़ मुड़ता है l
भैरव सिंह - मेरे दो अनमोल रतन से परिचित होने का समय आ गया है.... चलो सब अब... रंग महल...
भीमा अपने पट्ठों के मदत से केके का मुहँ टेप से बंद कर बाहर एक जीप पर पटक देते हैं l बल्लभ के साथ डरते डरते रंगा और रॉय बैठ जाते हैं l भैरव सिंह एक अलग गाड़ी में बैठ जाता है और सभी थोड़ी देर में रंग महल पहुँच जाते हैं l चूँकि केके का हस्र क्या होगा अनुभवी भीमा को मालूम था इसलिए वह और उसके पट्ठे केके को लेकर आखेट गृह के गैलेरी में पहुँचते हैं l रंगा और रॉय को इन सबके बारे में कोई जानकारी नहीं थी l पर वे दोनों बल्लभ के साथ, बल्लभ के पास बैठ जाते हैं l भीमा एक जगह जहाँ स्विमिंग पुल पर कुद लगाने के डाइविंग ब्लॉक पर केके को लेकर खड़ा था l रंगा और रॉय देखते हैं कि स्विमिंग पुल चारों ओर ऊँची दीवारों के घेरे में हैं l घेरे में कई जगह दरवाजे हैं l कुछ देर बाद भैरव सिंह भीमा के पास आता है l
भैरव सिंह - भीमा इसे हमारे हवाले करो... आज इसे हम खुद... आखेट में पहुँचाएँगे... तुम जाओ... हमारे इशारे का इंतजार करो... (भीमा केके को भैरव सिंह के हवाले कर वहाँ से चला जाता है और एक कंट्रोल पैनल के पास जाकर खड़ा हो जाता है l भैरव सिंह अब केके को गिरेबान से पकड़ कर अपने पास लाता है और उसे कहता है) हाँ... उन चार बंदों ने... तुझसे सही कहा था... हम किसी भी हाल में... यह शादी रुकवा देते... महीने के भीतर तुझे यहीं लाकर फेंक देते... जो महीने बाद होना चाहिए था... तेरी बेसब्री ने... तुझे आज फिकवा रहा है... साले भड़वे... हरामी कमीने... तुने अपनी मौत हमारी हाथों से... तभी लिखवा चुका था... जब तु दुश्मनी करने... चेट्टी से जा मिला था... तुने जितनी भी दौलत... हमारी दम से कमाई थी.. वह सब हमने तुझसे ले ली... अब तेरे हिस्से का... जो हम तुझे देना चाहते थे... के अब दे रहे हैं...
भैरव सिंह ने जो भी कुछ कहा उसे सिर्फ केके ही सुन पाया l पर उसे और दो लोग समझ चुके थे बल्लभ और भीमा l रंगा और रॉय डर और आशंका के साथ केके की भविष्य से अंजान बुत बने बैठे हुए थे l भैरव सिंह केके को छोड़ देता है l केके सीधे स्विमिंग पुल में गिरता है l केके तैर कर बाहर आता है और अपनी मुहँ पर चिपकी टेप को निकालने देता है l तभी कंट्रोल पैनल में भीमा एक लिवर दबा देता है l
केके - (चिल्ला कर) बे साले हरामी... काहे का राजा बे... मैं तेरी पोल खोल के रख दूँगा कुत्ते...
तभी एक आवाज के साथ उल्टी दिशा के दीवार का एक दरवाजा खुल जाता है l दूसरी दिशा में और एक दरवाजा खुल जाता है l केके गली देते देते रुक जाता है l उसके कानों में किसी जानवर की गुर्राहट पड़ती है l वह उस आवाज की तरफ देखता है एक लकड़बग्घा उसके तरफ आ रहा था वह डरके मारे पानी में कूद जाता है l पानी के बीचों-बीच पहुँच कर लकड़बग्घे की ओर देखता है कि तभी उसके कानों में छपाक की आवाज़ सुनाई देती है पीछे मुड़ कर देखता है एक मगरमच्छ उसके तरफ़ आ रहा था l वह घबराते हुए एक दुसरे किनारे पर पुल से निकलने लगता है कि लकड़बग्घा उसके कंधे को जबड़े में ले लेता है l टेप फाड़ कर केके की दर्दनाक चीख निकल जाता है पर तभी उसका एक टांग मगरमच्छ के जबड़े आ जाता है l फिर कुछ ही देर में केके की चीख बंद हो जाती है l स्विमिंग पुल लाल रंग से रंग जाता है l रंगा और रॉय की हालत बहुत खराब हो जाती है l रॉय भागते हुए जाता है और स्वीमिंग पुल के ऊपर उल्टियां करने लगता है l थोड़ी देर के बाद वह डरते हुए मुड़ कर भैरव सिंह की ओर देखता है l
भैरव सिंह - हमारे दो अनमोल रतन को देख लिए... अब फैसला करो... तुम लोग... हमारे साथ.. हमारे विश्वास के साथ बंधे होकर रहोगे.. या... हमारे इन रत्नों से मिलोगे...
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अगले दिन
यशपुर के तहसील ऑफिस के स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट लगी हुई थी l विश्वा, नरोत्तम पत्री, सुधांशु मिश्रा और कुछ गाँव वाले अंदर बैठे हुए थे l तीनों ज़ज अंदर आते हैं l मुख्य ज़ज टेबल पर गैवेल को टेबल पर तीन बार पटक कर सबको शांत होने के लिए कहता है l
ज़ज - कोर्ट की कारवाई शुरु की जाए... कोर्ट यह जानना चाहती है... क्या वादी पक्ष उपस्थित हैं...
विश्व - (अपनी जगह से उठ कर) जी माय लॉर्ड...
ज़ज - क्या प्रतिवादी पक्ष के... राजा भैरव सिंह उपस्थित हैं...
कोई नहीं था l भैरव सिंह को कुर्सी खाली थी l ज़ज पुलिस इंस्पेक्टर दास के तरफ़ देखता है l दास अपने कंधे उचकाता है l
ज़ज - इंस्पेक्टर दास... आप राजगड़ थाने के इंचार्ज हैं...
दास - येस माय लॉर्ड... पर हमें ऐसा कोई आदेश नहीं मिला है... की हम राजा साहब को... आपके समक्ष पेश करें... राजा साहब को प्रतिवादी... ऑनरेबल हाई कोर्ट ने बनाया है... और स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट को... राजगड़ को लाने वाले भी राजा साहब ही हैं...
ज़ज - ठीक है... कोर्ट उनकी प्रतीक्षा करेगी... क्या... वादी वकील... विश्व प्रताप महापात्र को... कोई आपत्ति है...
विश्व - जी नहीं योर ऑनर... पर मेरा आग्रह रहेगा... जब तक राजा साहब या उनके तरफ़ से कोई अदालत में हाजिर नहीं हो जाता... तब तक इस केस के ताल्लुक... कुछ तथ्य तर्कों के साथ... अदालत को अवगत कराना चाहता हूँ...
ज़ज - ठीक है... प्रस्तुत कीजिये...
विश्व - माय लॉर्ड... इस केस में... इंवेस्टीगेशन चीफ... पत्री सर... और प्रमुख गवाहों को लेकर मैं बहुत चिंतित हूँ... इसलिए... मेरी अदालत से दरख्वास्त है... की उन्हें यह केस समाप्त होने तक... पूर्ण सुरक्षा मुहैया कराया जाए...
ज़ज - मिस्टर विश्व प्रताप... क्या आप कहना चाहते हैं कि... राजा साहब से... उनको खतरा है...
विश्वा - जी माय लॉर्ड... यह केस आपकी जुडिक्शन में आ रहा है... इसलिए यह आदेश आप ही पारित कर सकते हैं...
ज़ज - डोंट क्रॉस योर लिमिट... हम क्या कर सकते हैं... और क्या नहीं... यह अदालत को कृपया आप ना बताएं...
विश्व - आई एम सॉरी माय लॉर्ड... यह कोई छोटी या मामूली केस नहीं है... इसकी एक्जीक्यूटिव मैजिस्ट्रेट लेवल की तहकीकात हो चुकी है... एक तरह से... केस को प्रमाणों के साथ पुष्टि की जा चुकी है... केवल... राजा साहब के प्रतिवादी होने... और उनकी निजी कारण के वज़ह से... केस यहाँ आई हुई है...
ज़ज - विश्व प्रताप... केस में... प्रोसिक्यूशन ही सब कुछ नहीं होता... न्याय व्यवस्था के लिए... डिफेंस का भी अपना महत्व है... जब तक... वादी और प्रतिवादी अपना अपना तथ्य अदालत के सामने रख नहीं देते... तब तक... किसी मुजरिम को... कोई भी अदालत सजा नहीं दे सकती... आशा है... यह बात आपको समझ में आ गई होगी...
विश्व - जी माय लॉर्ड...
ज़ज - आपकी... विटनेश प्रोटेक्शन की बात पर... अदालत ज़रूर गम्भीर रूप से विचार करेगी... अब आप बैठ सकते हैं...
विश्व बैठ जाता है l दर्शकों के दीर्घा में बैठे सुप्रिया की ओर विश्व देखता है l सुप्रिया कुछ समझने की मुद्रा में अपना सिर हिलाती है l लगभग एक घंटे के बाद अदालत के अंदर बल्लभ आता है l वह कम्प्यूटर राइटर को एक काग़ज़ देता है l राइटर उस काग़ज़ को ज़ज के हाथों में सौंप देता है l ज़ज काग़ज़ देखने के बाद
ज़ज - यह क्या है... और आपकी तारीफ़...
बल्लभ - माय लॉर्ड.. मैं एडवोकेट बल्लभ प्रधान... राजा भैरव सिंह का... लीगल एडवाइजर...
ज़ज - ठीक है... पर इस एफिडेविट का मतलब...
बल्लभ - एफिडेविट में साफ लिखा है माय लॉर्ड... बीते कल... राजकुमारी जी की मंगनी थी... बड़ी धूमधाम से मनाने के लिए... बिल्कुल शादी की तरह उत्सव के साथ मंगनी कराने की तैयारी थी... गाँव के सारे लोगों की मौजूदगी में यह मंगनी होनी थी... पर... (बल्लभ रुक जाता है)
ज़ज - मिस्टर प्रधान... आपको पूरी बात बतानी होगी... क्यूँकी आपका पूर्ण बयान... अदालत ही नहीं... प्रोसिक्यूशन भी सुन रहा है...
बल्लभ - जी माय लॉर्ड... सिर्फ प्रोसिक्यूशन के वकील ही नहीं... इंस्पेक्टर दास भी मौजूद थे... कल पता नहीं किस कारण वश... मंगनी करने आए दूल्हा गायब हो गया है... गुमशुदगी का रिपोर्ट कर दी गई है... (एक काग़ज़ देते हुए) यह रही.. एफआईआर की कॉपी... घर में सदमा भरा माहौल है... इसलिये... राजा साहब ने... कम से कम एक हफ्ते के लिए... केस में एक्सटेंशन माँगा है... ताकि इस सदमें से हल्के होने के बाद... इस केस में ध्यान लगा सके...
ज़ज - ठीक है... एडवोकेट विश्व प्रताप... आप यह कॉपी देख सकते हैं... (राइटर वह एफआईआर को कॉपी को लेकर विश्व के हाथ में देता है) (ज़ज इंस्पेक्टर दास से पूछता है) इंस्पेक्टर... क्या आप राजमहल में हुई गुमशुदगी के ऑफिसर कॉम गवाह हैं...
दास - सर... गुमशुदगी का रिपोर्ट... आज सुबह दर्ज हुई थी... और यह सच है कि... इस केस में... इनवेस्टिगेशन ऑफिसर मैं ही हूँ...
ज़ज - इस एफिडेविट में लिखा है... आपकी मौजूदगी में... मंगनी करने आया दूल्हा... गायब हो गया था... आपने उस दूल्हे के कमरे की तलाशी भी ली है...
दास - (एक नजर विश्व पर डालता है, फिर) जी योर ऑनर... पर मैं आगे की कोई तहकीकात नहीं की... वह एक फॉर्मालिटी थी... और केस भी आज सुबह दर्ज हुई है... और कानून के मुताबिक... चौबीस घंटे तक आदमी को गुमशुदा माना नहीं जाता...
ज़ज - ठीक है... यह अदालत... राजा साहब की एफिडेविट पर विचार करने के लिए अपने पास रखती है... और इंस्पेक्टर दास को कल ही अपना रिपोर्ट सबमीट करने के लिए कहती है... उसके बाद... राजा साहब की एफिडेविट पर अदालत निर्णय लेगी... यह अदालत कल तक के लिए... स्थगित किया जाता है..
तीनों ज़ज अदालत से चले जाते हैं l उनके जाते ही अदालत खाली हो जाती है l रह जाते हैं तो पाँच लोग l विश्व, पत्री, सुधांशु, दास और सुप्रिया l
विश्व का पुश्तैनी घर जहां अब विक्रम और उसका परिवार रह रहा है l घर की बनावट ही ऐसा है कि बैठक का कोई कमरा नहीं है, बैठक के लिए एक आँगन है l उसी आँगन में एक तरफ विक्रम और शुभ्रा बैठे हुए हैं और दूसरी तरफ रॉकी के साथ रुप की छटी गैंग के सदस्य l सभी के चेहरे पर परेशानी और तनाव साफ झलक रही थी l
विक्रम - तुम लोग ऐसे कैसे आ गए...
दीप्ति - क्या करें भैया... हम खुद बहुत हैरान थे... वीर भईया को गुजरे महीना ही तो हुआ है... ऐसे में कैसे... शादी करा रहे हैं... पर राजा साहब ने कहा कि... कुछ महीनों से... परिवार में कुछ ठीक नहीं जा रहा है... इसलिए रुप की शादी... उसके मन पसंद लड़के से करने का फैसला किया गया है... और इस फैसले से आप सहमत नहीं थे... पर शादी के बाद सब ठीक हो जाएगा... और शादी के इस खुशी के मौके पर... दोस्त सब पास हों तो... ग़म कम हो जाएगा... यही बात सुन कर हम लोग तैयार हो गए...
विक्रम - (रॉकी से) इनका तो समझ में आ गया... तुम्हारी क्या कहानी है...
रॉकी - क्या करूँ भाई साहब... मैंने रुप को बहन माना था... और आप तो जानते हैं ना... रुप ने भी मुझे अपना भाई श्वीकारा था... तो उसी इमोशनल कार्ड खेल गए हमारे घर राजा साहब... इसलिए मैं भी आ गया... और हमें कहा गया था... के रिसेप्शन में... पूरा का पूरा स्टेट ईंवाइटेड होगा... तब हमारे माँ बाप भी आ पायेंगे...
बनानी - पर यहाँ पहुँचने के बाद हमें पता चला... मामला पूरा उल्टा है...
विक्रम - खैर... अब तुम लोग सेफ हो... घबराने की कोई जरूरत नहीं है... अभी महल के अंदर का माहौल... तनाव पूर्ण है... यही मौका है... तुम लोग... सभी वापस चले जाओ...
रॉकी - क्या आप श्योर हैं... हम राजगड़ से निकल पायेंगे...
शुभ्रा - देखो... राजा साहब अब... केके को लेकर चिंतित होंगे... उनका सारा कुनबा... महल और महल के आसपास... केके को ढूंढ रहा होगा... इसलिए यही सही मौका है... थोड़ी देर बाद... प्रताप गाड़ी लेकर आएगा... तुम लोग जितनी जल्दी हो सके निकल जाओ...
कुछ देर के लिए सबके बीच ख़ामोशी छा जाती है l इसी बीच एक गाड़ी की आवाज़ करीब आ रही थी l थोड़ी देर बाद गाड़ी की आवाज़ घर के बाहर बंद हो जाती है l विश्व और सीलु अंदर आते हैं l विश्व को देख कर रॉकी और रुप के सभी दोस्त खड़े हो जाते हैं l
विश्व - (सीलु को दिखा कर) यह मेरा भाई है... दोस्त है... तुम लोग सभी इसके साथ... अभी के अभी निकल जाओ...
विश्व के कहते ही सभी तैयार हो जाते हैं और विश्व के साथ सभी बाहर आते हैं l बाहर एक पुलिस की जीपसी थी l जिसे देखने के बाद लड़कियाँ विश्व की ओर देखते हैं l
विश्व - पुलिस की एक जीपसी है... पर यहाँ की नहीं है... मैंने तुम लोगों के लिए... जुगाड़ बिठाया है.. यही सबसे सेफ भी है... हाँ बैठने में थोड़ी तकलीफ तो होगी... पर तुम लोग सेफली अपने घर में पहुँच जाओगे...
रॉकी - ठीक है... हम घर पर पहुँच जायेंगे... पर... उसके बाद...
विश्व - तुम लोग यशपुर की सरहद लाँघ जाओ... उसके बाद तुम तक... कोई नहीं पहुँच पाएगा... मेरा यकीन करो... तुम लोग बस यहाँ से निकल जाओ...
रॉकी सुर सभी लड़कियाँ एक दूसरे को देखते हैं l इतने में सीलु गाड़ी स्टार्ट कर देता है l रॉकी उसके बगल में बैठ जाता है l रॉकी के पास बनानी बैठ जाती है l बाकी चार लड़कियाँ पीछे बैठते ही सीलु गाड़ी दौड़ा देता है l पीछे विश्व, विक्रम और शुभ्रा रह जाते हैं l गाड़ी के आँखों से ओझल होते ही विश्व विक्रम की ओर मुड़ता है
विश्व - तुम्हारे चाचा और चाची दिखाई नहीं दे रहे...
विक्रम - (बरामदे में शुभ्रा को बिठा कर) चाचा जी की तबीयत आजकल ठीक नहीं रहती है.... इसलिए उन्हें आते ही सुला दिया है... चाची उनके पास हैं...
विश्व - वैसे मुझे उम्मीद नहीं थी... आज तुम ऐसा करोगे...
विक्रम - हाँ उम्मीद तो मुझे भी नहीं थी... तुम आज ऐसा खेल करोगे...
शुभ्रा - और आज जो भी हुआ... राजा साहब ने कभी सोचा भी नहीं होगा...
विश्व - हाँ... इन सब में... इंस्पेक्टर दास ने भी... खूब साथ दिया...
विक्रम - हाँ... एक बात तो है... जो भी तुमसे दोस्ती करता है... तुम्हारे लिए... हर हद लांघ जाता है...
विश्व - हाँ इस मामले में... मैं बहुत खुश किस्मत हूँ... वैसे... तुमने अपनी प्लान में... दीदी को कब शामिल कर लिया...
विक्रम - सुबह... जब नंदिनी की चिट्ठी लेकर सेबती मेरे पास आई... मैंने शुभ्रा जी को दीदी के पास भेज दिया था... और उन्हें अपनी प्लान में शामिल कर लिया था... जब दीदी तैयार हो गईं... मैंने इस प्लान में... चाचा और चाची को भी शामिल कर लिया... मत भूलो... यह वीर की ख्वाहिश भी थी...
विश्व - पर तुम्हारे प्लान में... इंस्पेक्टर दास भी तो था... तुमने उससे कब बात की...
विक्रम - मैंने नहीं... दीदी ने बात की... और वह प्लान सुनते ही राजी हो गया...
शुभ्रा - हाँ तुम अपनी प्लान की कामयाबी को लेकर... शायद चिंतित थे... इसलिए मार्क नहीं कर पाए के कब दीदी... इंस्पेक्टर दास से बात की...
विश्व - हाँ... मैं केके और अपने प्लान को लेकर... थोड़ा टेंशन में था... पर मेरे सभी दोस्तों ने... बहुत अच्छा काम किया...
विक्रम - प्रताप... थैंक्स...
विश्व - किसलिए...
विक्रम - तुमने कहा था... इस गाँव को शायद मेरी जरूरत है... गाँव वालों की तो पता नहीं... पर.. मैं आज अपनी बहन के काम आया... अगर दीदी और तुमने.. मुझे... मेरा मतलब है हम सबको रोका नहीं होता... तो जिंदगी भर.. आज के दिन के लिए... मैं खुद को कभी माफ नहीं कर पाता... और खुद की और वीर की नजरों में.. हमेशा गिरा हुआ पाता...
विश्व - अब मैं क्या कहूँ...
विक्रम - तो... अब केके कहाँ है...
विश्व - दिया तले अंधेरा...
विक्रम - मतलब...
विश्व - वह महल में ही है... अपने कमरे में ही है...
शुभ्रा और विक्रम - ह्व़ाट...
विक्रम - केके... अपने कमरे में है...
विश्व - हाँ मेरे दोस्तों ने... बड़े हिफाजत के साथ... उसे... उसी कमरे में रख छोड़ा है...
शुभ्रा - तो अभी तक वह किसीको दिखा क्यूँ नहीं...
विश्व - दिख जाएगा... मिल जाएगा... बस उसका वक़्त अभी आया नहीं है...
विक्रम - कल कोर्ट में... केस पर सुनवाई होने वाली है... इसलिए राजा साहब... तुम्हारे जेहन और दिल पर चोट करना चाहते थे.. पर तुमने पासा पलट दिया... पता नहीं वह कल कोर्ट में क्या कहेंगे...
विश्व - तुम अभी भी गलत सोच रहे हो...
विक्रम - क्या... मैंने क्या गलत सोच रहा हूँ...
विश्व - यही के... राजा साहब... मेरे दिल और दिमाग पर चोट करना चाहते थे...
विक्रम - तो... इस शादी का मतलब...
विश्व - वह असल में... मुझे इस केस से हटाना चाहते थे... उन्हें यकीन था...
विक्रम - ह्व़ाट... तुम्हें केस से हटाने के लिए... यह सब था...
विश्व - हाँ... विक्रम... एक इंसानी फितरत है... लोग सामने वाले को... इमोशनल या सेंटिमेटल फुल समझते हैं... उसकी उसी कमजोरी को बाहर लाने के लिए... अपनी चालें चलते हैं... उनका पहला टार्गेट मेरे माता पिता थे... तुम शायद यकीन ना करो... पर मेरा फोन ट्रैक करने की कोशिश की जा रही थी... पर नहीं कर पाए...
विक्रम - हाँ... समझ सकता हूँ... ज़रूर रॉय के लोगों से कोशिश की गई होगी... और मैं यह भी जानता हूँ... वह फैल क्यूँ हुए होंगे... क्यूँकी तुम्हारा फोन... जोडार साहब के सेक्यूरिटी सर्विलांस में होगी...
विश्व - बिल्कुल... इसलिए... मेरा कोई भी... चाहे इनकॉमींग हो... या ऑउटगोइंग... किसी भी कॉल को ट्रेस नहीं कर सकते...
विक्रम - पर तुमने बताया नहीं.. तुम्हें कैसे... केस से हटाने की कोशिश की...
विश्व - उन्हें मेरी कमजोरी चाहिए थी... जो उनके हाथ नहीं लगी... इसलिये.... शादी को यहाँ तक खिंचे... ताकि मैं अपना सब्र खो कर रोकने के लिए... भरे लोगों और पुलिस के बीच कुछ कर जाता... तो कानूनन... मुझे केस से हटाने के लिए... उनको वज़ह मिल जाती... बाकी का काम.. उनके लिए आसान था...
विक्रम - ओ हो... तो यह बात थी... तभी मैं यह सोचूँ... केके जैसे चिरकुट को... दामाद बनाने की सोच भी कैसे लिया...
शुभ्रा - मान लो... तुमसे कुछ नहीं हो पाता... और यह शादी हो जाती तो...
विश्व - मुझे... अपने प्यार की विश्वास को कायम रखना था... इसलिए मैंने यह सब किया... अगर मेरे दोस्त नाकामयाब हो जाते... तो वही होता... जैसा राजा साहब चाहते थे...
विक्रम - मतलब... तुम शादी में कोई कांड कर देते... गाँव वालों की नजर में... तुम शादी में विघ्न डालने वाले होते... सारा दोष तुम पर आ जाता... राजा साहब शादी रुकवा देते... उसके बाद... तुम्हारा राजा साहब से कोई निजी खुन्नस दिखा देते... तुम्हें केस से हटवा देते और इन तीस दिनों के अंदर... केके को ठिकाने लगा देते...
विश्व - बिल्कुल...
शुभ्रा - यानी... राजा साहब को मालूम था... आई मीन यकीन था... तुम कुछ ना कुछ करके यह शादी रोक दोगे... तुम उनके यकीन पर तो खरे उतरे पर... उनके प्लान पर नहीं...
विश्व - (मुस्कराकर) जी बिलकुल...
विक्रम - (अपना हाथ आगे बढ़ा कर) ओके विश्वा... लोगों का विश्वास और उम्मीद तुम पर टिकी हुई है... कल कोर्ट में.. तुम्हें खरा उतरना है...
विश्व - (हाथ मिला कर) हाँ जरूर... (कह कर मुड़ कर जाने लगता है, जाते जाते फिर वापस मुड़ कर) वन्स अगैन... थैंक्यू... (विश्व चला जाता है)
शुभ्रा - विक्की... यह बंदा क्या है... बाप रे... क्या दिमाग चला रहा है...
विक्रम - हाँ... मैं इसकी सोच का कायल हूँ... सामने वाले की दिमाग को पढ़ लेने की हुनर... क्या खूब पाई है... मुझसे पहले इसकी इस हुनर को राजा साहब जान गए थे... समझ गए थे... इसी लिए इतना कुछ कर गए... पर अफसोस... विश्व ने उनकी हर प्लान की धज्जियाँ उड़ा दी...
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क्षेत्रपाल महल
परिसर के जिस हिस्से में शादी का मंडप सजा हुआ था वहाँ रंगा और रॉय मुहँ लटकाये बैठे हुए थे l महल के उसी खास कमरे में भैरव सिंह उस मूठ विहीन तलवार को घूर रहा था, उसके पीछे हाथ बाँधे बल्लभ खड़ा था l कमरे के दरवाजे के पास कुछ दूरी पर भीमा खड़ा हुआ था l भैरव सिंह पलट कर अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है l और आँखे मूँद अपने माथे पर दाहिने हाथ के दो उंगली फेरता है l फिर अचानक उठ खड़ा होता है और परेशान सा इधर उधर होने लगता है l
भैरव सिंह - प्रधान... यह विश्वा किस मिट्टी का बना हुआ है... बार बार... वह हम पर भारी पड़ रहा है...
बल्लभ - है तो... राजगड़ का ही ना...
भैरव सिंह - हाँ इसी गाँव का है... पर इस गाँव के लोगों से अलग कैसे है...
बल्लभ - राजा साहब... विश्वा उस कच्ची मिट्टी की तरह है... जब जब.. जो जो... जैसे उसे बनाते गए... वह उन्हीं की साँचे में ढलता गया... जब तक बाप और दीदी के पास रहा... एक निडर बच्चा रहा... जब महल में आया... एक डरपोक भेड़ की तरह बना... लेकिन फिर जब अपनी दीदी के साये में आया... डर धीरे धीरे उसे छोड़ता चला गया... फिर वह जैल में सात साल रहा... इन सात सालों में... वह जिन जिन लोगों के संपर्क में आया... उन्हीं की तरह बनता चला गया... (एक पॉज के बाद) रोणा ठीक कह रहा था... हमने उसे जिंदा छोड़कर सही नहीं किया...
भैरव सिंह - जो पीछे छूट गया... वह लौट कर नहीं आने वाले... अब हम क्या कर सकते हैं... यह बताओ... (एक गहरा साँस छोड़ता है) हमारे ही महल में... हमारे ही नाक के नीचे... केके को गायब करवा दिया... हमें अपनी ही औलाद के सामने... (चुप हो जाता है) (भीमा से) भीमा...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - उन दो छचुंदरों को बुला कर लाओ...
भीमा - जी हुकुम... (भीमा बाहर चला जाता है)
भैरव सिंह - (फिर से वही तलवार के सामने खड़ा हो जाता है) प्रधान... क्या तुम इस तलवार के बारे में कुछ जानते हो...
बल्लभ - जी... मैंने सुना है... जेम्स फर्ग्यूसन की यह तलवार है... यह तलवार... आपकी राजशाही की... राज सत्ता की मुहर है...
भैरव सिंह - और क्या जानते हो...
बल्लभ - जी... और कुछ भी नहीं जानता...
भैरव सिंह - यह तलवार हमारी राजशाही की मुहर है... पर उसके साथ एक अभिशाप भी है... हमारी राजशाही का अंत के लिए.. इस तलवार को... उसकी मूठ का इंतजार है...
बल्लभ - क्या... सच में...
भैरव सिंह - हाँ... जिस दिन... इस तलवार से... वह मूठ जुड़ जाएगा... क्षेत्रपाल की राजशाही ही नहीं... क्षेत्रपाल ही ख़तम हो जाएगी...
बल्लभ - राजा साहब... क्या आप ऐसी किंवदंतीओं पर विश्वास करते हैं...
भैरव सिंह - नहीं... पर... जब से विश्वा छुटा है... हर मोड़ पर... वह हम पर भारी पड़ रहा है... ऐसा क्यूँ...
बल्लभ - आप राजा हैं... अगर आप ही... (चुप हो जाता है)
भैरव सिंह - तुम गलत सोच रहे हो प्रधान... हमें हमेशा... तुम्हारे दिमाग और सोच पर विश्वास था और है... पर फिर भी... याद करो... क्यूँ केके.. हमारे दुश्मनों जा मिला... विश्वा पर जोडार अपना विश्वास हार जाए... इसलिए... केके से वह जमीन खरीदवाए थे... तुमने... BDA अप्रूवल भी ले लिया था... पर विश्व ने कैसे... कितनी आसानी से उसे... देवोत्तर जमीन साबित कर दिया... (जवाब में बल्लभ कुछ कहता नहीं) उसी दिन हमने सोच लिया था... या तो विश्वा को हर केस से हटाएंगे... या फिर... उसे घुटनों पर ला देंगे... हम नाकामयाब रहे.... और तुम भी... प्रधान... क्या अब विश्वा को... रास्ते से हटा सकते हैं...
बल्लभ - नहीं राजा साहब नहीं... यह आप कैसी बातेँ कर रहे हैं... विश्वा बार एसोसिएशन का मेंबर है... उसने चालाकी से... अपनी लाइफ थ्रेट की एफिडेविट हाइकोर्ट के साथ साथ... उसकी कॉपी... बार एसोसिएशन में और... प्रेस क्लब में दे रखा है... उसे कुछ भी हुआ तो... केस सीधे सेंट्रल एजेंसियों के पास चली जाएगी...
भैरव सिंह - तो हम क्या करें प्रधान... हम मजबूर होना नहीं चाहते... किसीको मजबूर दिखना नहीं चाहते... हम विश्वा के अंदर की भावनाओं को... भड़का कर... उकसा कर... उसकी आवेश को हमारे खिलाफ इस्तेमाल करवाना चाहते थे... ताकि... निजी खुन्नस दिखा कर... बता कर... विश्वा को इस केस से हटवाना चाहते थे... पर... अब... अब वह केस से नहीं हटेगा... हम क्या करें...
बल्लभ - एक काम हो सकता है... कुछ निजी कारणों का हवाला दे कर... हम कुछ दिनों की... एक्सटेंशन ले सकते हैं...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... ठीक है... यही करते हैं...
ठीक उसी समय भीमा के साथ रंगा और रॉय कमरे में आते हैं l भैरव सिंह उन्हें देख कर अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है l आर्म रेस्ट पर हाथ रखकर पैर पर पैर मोड़ कर इनके तरफ़ देखता है l दोनों सिर झुकाए खड़े थे l
भैरव सिंह - आओ... हमारे राज के... दो कौड़ी के रतन... आओ... (दोनों बुरी तरह से शर्मिंदा होते हैं) बाहर ठंड नहीं लगी... इतने देर से बैठे हुए थे... (दोनों सिर झुकाए वैसे ही खड़े थे) प्रधान...
बल्लभ - जी... जी राजा साहब...
भैरव सिंह - यह किस लायक थे... हमने इन्हें कहाँ लाकर बिठाया... और आज इनकी नाकामी ने... हमें क्या दिखाया... (एक पॉज) चुप क्यूँ हो दोनों... कुछ तो बको...
रॉय - (कांपती आवाज में) वह... राजा सहाब... हमारा सारा ध्यान... राजकुमारी जी को लेकर था... हमने कभी सोचा नहीं था... केके साहब को... विश्वा उठा लेगा...
भैरव सिंह - रॉय... तु शादी सुदा तो है ना...
रॉय - (चुप रहता है)
भैरव सिंह - हमने कुछ पुछा है...
रॉय - जी... जी राजा साहब....
भैरव सिंह - बच्चे...
रॉय - दो.. दो बच्चे हैं... दोनों लड़के हैं...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... तेरे ही हैं ना... या फिर... तेरी गैर मौजूदगी में... कोई और हल चला गया...
रॉय - (अपनी आँखे बंद कर लेता है और जबड़े भिंच लेता है)
भैरव सिंह - अबे हराम के ढक्कन... विश्वा अपनी जगह से हिला तक नहीं... और तु कह रहा है... उसने उठा लिया... महल के चारो तरफ़ तेरे प्लान के मुताबिक सिक्युरिटी थी... ना कोई बाहर गया... ना कोई अंदर आया...
कुछ देर के लिए कमरे में मरघट सी शांति छा जाती है l ना जवाब में रॉय कुछ कहता है ना ही भैरव सिंह l फिर कुछ देर बाद
भैरव सिंह - क्यूँ रंगा... तु कुछ नहीं कहेगा...
रंगा - (डरते डरते) राजा साहब... हमें इतना मालूम है... की वह केके विश्वा को लेकर बहुत खौफ जदा था... पर जब पुलिस उसके बाराती बन कर आए... तब वह घोड़ी चढ़ कर आया... पर महल के अंदर... (चुप हो जाता है)
भैरव सिंह - आओ बैठ जाओ... (तीनों में से कोई नहीं बैठता) (रौबदार आवाज में हुक्म देते हुए) बैठ जाओ... (पहले बल्लभ बैठता है, फिर रंगा और रॉय बैठते हैं) छेद तो हुआ है... पर किसके पिछवाड़े... यह जानना जरूरी है... क्यूँकी जहाँ अति आत्मविश्वास हो... छेद वहीँ बन जाता है... या बनाया जाता है...
रंगा - गुस्ताखी माफ राजा साहब... (भैरव सिंह उसके तरफ़ देखता है) क्यूँ ना एक आखिरी बार... महल के अंदर... केके साहब को ढूँढा जाए...
भैरव सिंह - भीमा...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - सिवाय अंतर्महल को छोड़ कर... पुरे महल को अच्छी तरह से छान मारो...
भीमा - जी हुकुम...
इतना कह कर भीमा वहाँ से चला जाता है, उसके जाने के बाद फिर से कमरे में चुप्पी सी छा जाती है l
रंगा - राजा साहब... गुस्ताखी माफ... एक सवाल.... पूछ सकता हूँ... (भैरव सिंह उसे देखता है और हल्के सा सिर हिलाता है) यह पाँच रत्न... कौन कौन हैं...
भैरव सिंह - तीन रत्नों को तो जानते हो ना...
रंगा - जी...
भैरव सिंह - और दो रत्नों के बारे में... बाद में जानकारी मिलेगी... पर याद रखना... जानने के बाद... उनसे मिलने की ख्वाहिश कभी नहीं करना... गलती से भी नहीं...
बल्लभ - कभी राजा साहब के... नौ रत्न हुआ करते थे... कुछ ने राजा साहब के साथ छोड़ा... और कुछ को राजा साहब ने छोड़ दिया... राजा साहब को कोई छोड़ दे... या राजा साहब किसी को छोड़ दें... दोनों ही सूरत में... उसे ही खतरा होता है...
भैरव सिंह - क्या बात है रॉय... बड़े गहरे सोच में खोए हुए हो...
रॉय - राजा साहब... हमने तो अपनी जान लगा दी थी... हमें अफ़सोस है कि... हम आपकी रुतबे को कायम रखने में नाकाम रहे...
भैरव सिंह अपनी जगह से उठ जाता है l यह लोग उठने को होते हैं, भैरव सिंह उन्हें बैठने के लिए इशारा करते हुए दीवार के पास लगे मूठ विहीन तलवार के पास जाकर तलवार को देखते हुए कहता है
भैरव सिंह - खोता वही है... जिसने कमाया हो... यह रौब... यह रुतबा... हमें विरासत में मिला है और हम... इन सबके वारिस हैं... जो भी हुआ... वह कीचड़ था... जो विश्वा की तरफ से उछला था... बस दाग लगा है... और यह दाग हमें याद रहेगा... (अब इनके तरफ मुड़ता है) जंग होगी.. यह तय था... बस मैदान क्या होगा.. कहाँ होगा... इससे बेख़बर थे... अब जंग चाहे जहां भी हो... जंग का रुख हम तय करेंगे... (भीमा भागते हुए अंदर आता है और झुक कर घुटनों पर बैठ जाता है) क्या बात है भीमा...
भीमा - हुकुम... एक खबर है...
भैरव सिंह - कैसी खबर...
भीमा - वह... होने वाले जमाई जी का पता चल गया है...
भैरव सिंह - अच्छा...
तीनों - (अपनी कुर्सी से उछल कर खड़े हो जाते हैं) क्या...
भीमा - जी.. उन्हें... सत्तू अपने साथ ला रहा है...
सबकी नजर दरवाज़े की ओर टिक जाता है l बदहवास केके, सत्तू के सहारे कमरे में प्रवेश करता है l रॉय भाग कर केके को सहारा देता है और रंगा एक कुर्सी खिंच कर उसे कुर्सी पर बिठाता है l भीमा पानी ला रहा था पर उसे भैरव सिंह रोक देता है और पानी की ग्लास लेकर भीमा के हाथ में व्हिस्की की एक बोतल थमा देता है l भीमा ही नहीं सभी भैरव सिंह को हैरत से देखते हैं l भैरव सिंह इशारे से भीमा को व्हिस्की बोतल देने के लिए कहता है l भीमा केके के हाथ में व्हिस्की बोतल दे देता है l केके पहले बोतल को देखता है फिर ढक्कन खोल कर एक ही साँस में आधी बोतल व्हिस्की गटक जाता है l फिर गहरी साँस लेते हुए खुदको नॉर्मल करता है l
भैरव सिंह - (सत्तू से) कहाँ से मिले...
सत्तू - (डर और शर्मिंदगी के साथ) व वह... ब. ब.. बाथरुम... में...
भैरव सिंह के साथ सभी - क्या... (सभी एक दूसरे की ओर देखने लगते हैं सिवाय भैरव सिंह के l भैरव सिंह के भौंहे सोच में सिकुड़ जाते हैं l कुछ देर की चुप्पी सी छा जाती है)
भैरव सिंह - (चुप्पी तोड़ते हुए, सत्तू से) तुम कैसे बाथरूम में पहुँच गए...
सत्तू - पता नहीं... हमने सब जगह छान लिए थे... सही मायने में... बाथरूम नहीं देखे थे... क्यूँकी बाथरूम तो... दारोगा बाबु गए थे... सोचा एक बार देख लेते हैं... जब अंदर गया... तब भी... जमाई बाबु... तब भी नहीं दिखे... पर पता नहीं क्यूँ मन किया... तो पर्दा हटाए... वह नहाने के बंबा देखने के लिए... वहीँ पर नल से बंधे हुए बैठे दिखे... हाथ मुहँ पैर सभी चिपचिपा टेप से बंधे हुए थे...
सत्तू के इतने कहने के बाद कमरे में सब शांत खड़े थे l इतने शांत के एक दुसरे के साँसे तक लेते और छोड़ते हुए सुन पा रहे थे l भैरव सिंह कुछ समझते हुए अपना सिर हिलाने लगता है और केके से पूछता है l
भैरव सिंह - केके... क्या तुम अब शुरु से बताओगे... क्या हुआ...
केके - राजा साहब... (थके लुटे पिटे हुए कि तरह) आप... जिन लोगों को... रस्म को निभाने उतारने के लिए बुलाए थे... उन्होंने ही मेरे अपहरण का रास्ता बनाया था...
भैरव सिंह - केके... हम अब पूरी बात जानना चाहते हैं... इसलिए बिना रुके... सारी बातें... हमें बताओ... थोड़ी देर पहले... माहौल ऐसा था कि... तुम शादी से डरे हुए थे... इसलिए भाग गए हो... ऐसी चर्चा चल रही थी... पर अब तुम सामने हो... हम सभी गलत थे... कहाँ चूक गए... यह जानना बहुत जरूरी है... दुश्मन को ज़वाब देना भी तो है... इसलिए कि कल की जंग से पहले... हमें.. अपनी हर गलती को सुधरना है...
केके - हाँ राजा साहब... मैं डरा हुआ हुआ था... क्यूँकी यह आप भी जानते हैं... और एडवोकेट प्रधान भी... विश्वा आपकी अहं के साथ... मेरे बिजनस को भी उतना ही नुकसान किया है... इसलिए जब... बारात लेने... पुलिस फोर्स पहुँची... मैं खुश हो गया... मुझे यकीन भी हो गया... के हर हाल में मेरी शादी हो कर ही रहेगी...
गाँव के बीच से बारात गुजरी थी... कुछ नहीं हुआ था... महल में पहुँची... कोई गड़बड़ी नहीं हुई... पर घोड़ी से उतर कर जब... पहली रस्म निभाई गई... वहीँ से सारी गड़बड़ी शुरु हुई... खैर जहाँ साला पैर धो कर... जुता पहनाता है... वहाँ तक सब ठीक था... आरती उतारने के बाद... तिलक लगाने के बाद... मुझे एक लड़की ने शर्बत पिलाई... जो कि रस्म के हिसाब से... छोटी रानी जी को यह सब करना चाहए था... वह राजकुमारी जी की दोस्त थी... नाम बनानी था...
भैरव सिंह - हाँ तो...
केके - उसने शर्बत में कुछ गड़बड़ी की थी... शायद कुछ मिलाया था... जिसका असर तुरंत तो नहीं हुआ... पर बाद में हुआ... उसके बाद... राजकुमारी जी की... चारों सहेलियाँ... अपनी साली की धर्म निभाने की कोशिश करते हुए... चारों ने मुझे पान खिलाए... उसके बाद बड़ी मुश्किल से मैंने बेदी पर... पंडित के साथ बैठ कर कुछ रस्में अदा की... पर उस वक़्त भी मेरी हालत ठीक नहीं लग रही थी... गर्मी लग रही थी... पसीना भी बह रहा था... ऊपर से उबकई सी महसूस हो रही थी... जब कपड़े बदलने के लिए... मैं कमरे में पहुँचा... तो सबसे पहले अपने कपड़े उतारे फिर सीधे बाथरूम में घुस गया... वॉश पैन की सिंक में उल्टियां करने लगा... उल्टियां इस कदर हो रहीं थीं के आँखों में अंधेरा सा छाने लगा था... बाहर कमरे में कुछ तो हो रहा था... पर मैं अपनी होश में नहीं था... जब दुरुस्त लगा... तो अपने चेहरे पर पानी की छींट मारने के बाद जैसे ही आईना देखा... पीछे दो लोग खड़े थे... मैं जैसे ही मुड़ा... वे लोग... मेरे मुहँ को दबोच लिए... तभी शायद कमरा का दरवाजा तोड़ा गया था... वह दो लोग मुझे दबोचे हुए... बाथ टब में ले गए और कर्टेंन खिंच लिया... आप सब लोग कमरे में ढूँढने लगे... क्यूँकी उन लोगों ने... बाल्कनी में... मेरे भाग जाने की कोई सीन बना दिया था... कुछ देर बाद... इंस्पेक्टर दास अंदर आया... उसने कर्टेंन उठा कर देखा... के वह दो बंदे मुझे दबोच रखा था... पर वह हरामजादा कुछ नहीं किया... उल्टा... अपना काला लौड़ा निकाल कर पास के कमोड में मुता... फिर फ्लश कर... दरवाजा बंद करके चला गया... आप लोग कमरे में ही मौजूद थे... पर किसी ने... बाथरूम में आने की जहमत नहीं की... कुछ देर बाद बाथरूम में दो लोग और आए... जिन्होंने शायद... बाहर मेरे भाग जाने वाला सीन बनाया था... चारों ने मिलकर... स्टिकी टेप से... हाथ पैर और मुहँ को अच्छे से बाँध दिया... फिर पानी की टाप से बाँध कर... टब के सिरहाने बिठा दिया और मुझे कर्टेंन के पीछे छुपा दिया... वह चारों आराम से... कमरे से निकल भी गए... अगर अभी सत्तू ने वह कर्टेंन हटा कर नहीं देखा होता... तो शायद... मेरे मरने के बाद ही... आप लोगों कों मेरा पता लगता...
केके अब चुप हो जाता है l सब सुनने के बाद भैरव सिंह की ओर देखते हैं l भैरव सिंह के चेहरा बहुत सख्त दिख रहा था और जबड़े भिंचे हुए थे l सबकी नजरें भैरव सिंह की मुट्ठीयों पर जाता है l भैरव सिंह अपनी मुट्ठीयाँ मल रहा था l बल्लभ इस बार केके से सवाल करता है l
बल्लभ - अच्छा केके बाबु... आपके हिसाब से... वह चार लोग थे... जिन्होंने आपको... इसी महल में... हमारी आँखों के नीचे छुपा दिया...
केके - हाँ... प्रधान बाबु हाँ... बड़ी शर्म की बात है... वे चारों... महल के अंदर आए... पर महल के पहरेदारों को पता नहीं चला... मतलब... या तो पूरी की पूरी पहरेदारों को फौज निकम्मी है... या फिर ग़द्दार... ऊपर से... पुलिस... जो कभी राजा साहब के जुते की नोक पर हुआ करती थी... वही... राजा साहब के खिलाफ साजिश में शामिल है...
बल्लभ - आप घबराईये मत केके साहब... हम उन्हें ढूंढ निकलेंगे... और पुलिस के खिलाफ... उपर बात कर... उन्हें सस्पेंड कराएंगे...
सभी इस बार फिर से भैरव सिंह की ओर देखते हैं l भैरव सिंह अभी भी मुट्ठीयाँ मल रहा था l भैरव सिंह अब मुड़ कर अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है l
केके - माफ कीजिएगा राजा साहब... आप जंग जितने कि बात कर रहे हैं... जबकि आपके अपने... यहाँ तक आपकी औलादें भी... आपके साथ नहीं हैं... (भैरव सिंह अपने माथे पर दो उँगलियाँ फ़ेरने लगता है, जिसे देख कर बल्लभ केके से फिर एक सवाल करता है)
बल्लभ - अच्छा... वह जो चार बंदे... आपसे कुछ बात करी... या आपस में कुछ बात कर रहे थे...
केके - वे चार... बड़ी खामोशी और शांति से अपना काम अंजाम दे रहे थे... चारों आपस में... इशारों से बातेँ कर रहे थे... पर जब भी बात कर रहे थे... मेरे कान भर रहे थे...
बल्लभ - कैसी बातेँ कर रहे थे...
केके - (चुप रहता है)
बल्लभ - आपने बताया नहीं... वे चारों आपसे कैसी बातेँ कर रहे थे...
केके - नहीं जाने दीजिए... राजा साहब को बुरा लगेगा...
यह बात सुन कर भैरव सिंह अपनी आँखे खोलता है l एक तीखी नजर से केके की ओर देखने लगता है l कुछ देर केके को देखने के बाद भैरव सिंह केके से पूछता है l
भैरव सिंह - केके... तुम्हें देख कर ऐसा लग रहा है... जैसे उन चार बंदों ने... हमारे खिलाफ तुम्हारे कानों में कुछ बातेँ की है... और कहीं ना कहीं... तुम उनकी बातों से सहमत भी लग रहे हो...
केके कोई जवाब नहीं देता और अपना चेहरा घुमा लेता है, भैरव सिंह को यह बहुत बुरा लगता है l वह अपनी जगह से उठ खड़ा होता है और चलते हुए केके के पास आकर खड़ा होता है l पर केके कोई प्रतिक्रिया दिए वगैर वहीँ बैठा रहता है l भैरव सिंह अपनी दांत पीसने लगता है l भैरव सिंह का यह रुप देख कर सत्तू, भीमा और बल्लभ अपनी जगह से पीछे हटते हैं l उन्हें हटता देख कर रंगा और रॉय भी धीरे धीरे पीछे हटने लगते हैं l
भैरव सिंह - ऐसा कभी हुआ नहीं... के हम किसी के सामने खड़े हों जाएं... और वह बंदा.. अपनी कुर्सी से चिपका रहे...
यह सुन कर केके को अपनी गलती का एहसास होता है और वह डर के मारे सिर उठा कर भैरव सिंह की ओर देखने लगता है l भैरव उसके गर्दन को पकड़ लेता है और झटके से ऊपर उठा लेता है l केके की आँखों में अब डर साफ दिखने लगता है l वह अब गिड़गिड़ा कर बिनती करने लगता है
केके - म... म... मुझे माफ़ कर दीजिए... गलती हो गई...
भैरव सिंह - कहो... उन चारों ने हमारे खिलाफ... क्या कान भरा है...
केके - बताता हूँ... बताता हूँ... मेरा दम घुट रहा है... प्लीज मुझे छोड़ दीजिए.. (भैरव सिंह उसे छोड़ देता है l केके अपनी गर्दन पर हाथ फ़ेरने लगता है l फिर खुद को दुरुस्त करने के बाद कहने लगता है)
केके - वे चारों... मुझे बारी बारी से कह रहे थे.. के आप ने शादी की झांसा दे कर... मेरी दौलत लूट ली... इस शादी में आपकी ना कोई दिलचस्पी है... ना ही कोई मंजुरी... बल्कि आप खुद ही चाह रहे हैं... यह शादी ना हो... अगर यह शादी टूटती है... तो किसी बहाने से... आप यह शादी महीने के लिए... टाल देंगे... फिर मेरी शादी कभी भी नहीं होगी... (सिर झुका कर चुप हो जाता है)
भैरव सिंह - उन्होंने और भी कुछ कहा होगा...
केके - जी... जी राजा साहब... उनका कहना था... आपने दो ही शादी के सैंपल कार्ड लेकर आए थे... जिन्हें दिए... उन्हें चिढ़ाने के लिए... जबकि... किसी तीसरे को कार्ड दिया ही नहीं गया है... हर कार्ड में... शादी के साथ साथ... रिसेप्शन की तारीख भी लिखा होता है... पर आपने जो कार्ड दी है... उसमें रिसेप्शन की तारीख भी नहीं लिखा था... और सबसे अहं बात... राजा साहब ने... अपने नए जमाई बाबु का परिचय... बड़े राजा से भी नहीं कराया... (केके चुप हो जाता है, केके के चुप्पी के साथ पूरा माहौल में चुप्पी छा जाती है l भैरव सिंह के चेहरे पर कोई भाव नहीं दिखता पर कमरे में मौजूद सभी के चेहरे पर तनाव उभर आती है)
भैरव सिंह - (चुप्पी तोड़ते हुए) उन चार बंदों ने जो करना था... बड़ी सफाई के साथ कर दिए... तुम हम पर भरोसा करो... इसलिए... हमने तुम्हें... जुडिशल स्टैम्प पेपर पर दस्तखत कर तुमसे मंजुरी ली थी... पर बात वहीँ पर आ कर रुक जाती है... कौन हमारे और हमारे विश्वास के साथ है... तुम्हारे मन में शक का कीड़ा... एक सांप का शक़्ल इख्तियार कर चुका है... इसलिये तुम अब हमारे विश्वास के लायक नहीं रहे...
केके - मुझे माफ कर दीजिए राजा साहब... थोड़ा बहक गया था... ऊपर से यह शराब का नशा...
भैरव सिंह - वह एक कहावत है... की शराब का नशा... अंदर की बातों और जज्बातों को बाहर निकाल दिया करता है...
केके - ठीक है राजा साहब... फ़िर मुझे यहाँ से जाने की इजाजत दीजिए...
भैरव सिंह - नहीं केके... अब तुम यहाँ से नहीं जा सकते... सिर्फ कुछ लोगों को पता है... के तुम्हारा अपहरण हुआ था.. लेकिन सारे गाँव वाले यह जानते हैं... के तुम भाग गए हो... हमारी दी हुई इज़्ज़त और पगड़ी को रौंद कर... अब यही बात दुनिया को भी मालूम हो... के तुम भाग गए हो... पुलिस की रिपोर्ट में भी यही आएगा... यह छोटी सी बदनामी... उससे कई गुना अच्छा है... के तुम्हारा अपहरण हुआ... वह भी महल के भीतर से... और मिले भी तुम... महल के भीतर से... इसलिए हमेशा हमेशा के लिए... तुम्हारा... फरार रहना ही... इस महल की इज़्ज़त के लिए अच्छा है...
केके - नहीं... नहीं राजा साहब नहीं... (रोने लगता है) मुझे जाने दीजिए...
इतना कह कर बाहर की ओर भागने लगता है l पर कमजोरी के कारण तेजी से भाग नहीं पाता और उसे भीमा दबोच लेता है l राजा भैरव सिंह सब रॉय और रंगा के तरफ़ मुड़ता है l
भैरव सिंह - मेरे दो अनमोल रतन से परिचित होने का समय आ गया है.... चलो सब अब... रंग महल...
भीमा अपने पट्ठों के मदत से केके का मुहँ टेप से बंद कर बाहर एक जीप पर पटक देते हैं l बल्लभ के साथ डरते डरते रंगा और रॉय बैठ जाते हैं l भैरव सिंह एक अलग गाड़ी में बैठ जाता है और सभी थोड़ी देर में रंग महल पहुँच जाते हैं l चूँकि केके का हस्र क्या होगा अनुभवी भीमा को मालूम था इसलिए वह और उसके पट्ठे केके को लेकर आखेट गृह के गैलेरी में पहुँचते हैं l रंगा और रॉय को इन सबके बारे में कोई जानकारी नहीं थी l पर वे दोनों बल्लभ के साथ, बल्लभ के पास बैठ जाते हैं l भीमा एक जगह जहाँ स्विमिंग पुल पर कुद लगाने के डाइविंग ब्लॉक पर केके को लेकर खड़ा था l रंगा और रॉय देखते हैं कि स्विमिंग पुल चारों ओर ऊँची दीवारों के घेरे में हैं l घेरे में कई जगह दरवाजे हैं l कुछ देर बाद भैरव सिंह भीमा के पास आता है l
भैरव सिंह - भीमा इसे हमारे हवाले करो... आज इसे हम खुद... आखेट में पहुँचाएँगे... तुम जाओ... हमारे इशारे का इंतजार करो... (भीमा केके को भैरव सिंह के हवाले कर वहाँ से चला जाता है और एक कंट्रोल पैनल के पास जाकर खड़ा हो जाता है l भैरव सिंह अब केके को गिरेबान से पकड़ कर अपने पास लाता है और उसे कहता है) हाँ... उन चार बंदों ने... तुझसे सही कहा था... हम किसी भी हाल में... यह शादी रुकवा देते... महीने के भीतर तुझे यहीं लाकर फेंक देते... जो महीने बाद होना चाहिए था... तेरी बेसब्री ने... तुझे आज फिकवा रहा है... साले भड़वे... हरामी कमीने... तुने अपनी मौत हमारी हाथों से... तभी लिखवा चुका था... जब तु दुश्मनी करने... चेट्टी से जा मिला था... तुने जितनी भी दौलत... हमारी दम से कमाई थी.. वह सब हमने तुझसे ले ली... अब तेरे हिस्से का... जो हम तुझे देना चाहते थे... के अब दे रहे हैं...
भैरव सिंह ने जो भी कुछ कहा उसे सिर्फ केके ही सुन पाया l पर उसे और दो लोग समझ चुके थे बल्लभ और भीमा l रंगा और रॉय डर और आशंका के साथ केके की भविष्य से अंजान बुत बने बैठे हुए थे l भैरव सिंह केके को छोड़ देता है l केके सीधे स्विमिंग पुल में गिरता है l केके तैर कर बाहर आता है और अपनी मुहँ पर चिपकी टेप को निकालने देता है l तभी कंट्रोल पैनल में भीमा एक लिवर दबा देता है l
केके - (चिल्ला कर) बे साले हरामी... काहे का राजा बे... मैं तेरी पोल खोल के रख दूँगा कुत्ते...
तभी एक आवाज के साथ उल्टी दिशा के दीवार का एक दरवाजा खुल जाता है l दूसरी दिशा में और एक दरवाजा खुल जाता है l केके गली देते देते रुक जाता है l उसके कानों में किसी जानवर की गुर्राहट पड़ती है l वह उस आवाज की तरफ देखता है एक लकड़बग्घा उसके तरफ आ रहा था वह डरके मारे पानी में कूद जाता है l पानी के बीचों-बीच पहुँच कर लकड़बग्घे की ओर देखता है कि तभी उसके कानों में छपाक की आवाज़ सुनाई देती है पीछे मुड़ कर देखता है एक मगरमच्छ उसके तरफ़ आ रहा था l वह घबराते हुए एक दुसरे किनारे पर पुल से निकलने लगता है कि लकड़बग्घा उसके कंधे को जबड़े में ले लेता है l टेप फाड़ कर केके की दर्दनाक चीख निकल जाता है पर तभी उसका एक टांग मगरमच्छ के जबड़े आ जाता है l फिर कुछ ही देर में केके की चीख बंद हो जाती है l स्विमिंग पुल लाल रंग से रंग जाता है l रंगा और रॉय की हालत बहुत खराब हो जाती है l रॉय भागते हुए जाता है और स्वीमिंग पुल के ऊपर उल्टियां करने लगता है l थोड़ी देर के बाद वह डरते हुए मुड़ कर भैरव सिंह की ओर देखता है l
भैरव सिंह - हमारे दो अनमोल रतन को देख लिए... अब फैसला करो... तुम लोग... हमारे साथ.. हमारे विश्वास के साथ बंधे होकर रहोगे.. या... हमारे इन रत्नों से मिलोगे...
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अगले दिन
यशपुर के तहसील ऑफिस के स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट लगी हुई थी l विश्वा, नरोत्तम पत्री, सुधांशु मिश्रा और कुछ गाँव वाले अंदर बैठे हुए थे l तीनों ज़ज अंदर आते हैं l मुख्य ज़ज टेबल पर गैवेल को टेबल पर तीन बार पटक कर सबको शांत होने के लिए कहता है l
ज़ज - कोर्ट की कारवाई शुरु की जाए... कोर्ट यह जानना चाहती है... क्या वादी पक्ष उपस्थित हैं...
विश्व - (अपनी जगह से उठ कर) जी माय लॉर्ड...
ज़ज - क्या प्रतिवादी पक्ष के... राजा भैरव सिंह उपस्थित हैं...
कोई नहीं था l भैरव सिंह को कुर्सी खाली थी l ज़ज पुलिस इंस्पेक्टर दास के तरफ़ देखता है l दास अपने कंधे उचकाता है l
ज़ज - इंस्पेक्टर दास... आप राजगड़ थाने के इंचार्ज हैं...
दास - येस माय लॉर्ड... पर हमें ऐसा कोई आदेश नहीं मिला है... की हम राजा साहब को... आपके समक्ष पेश करें... राजा साहब को प्रतिवादी... ऑनरेबल हाई कोर्ट ने बनाया है... और स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट को... राजगड़ को लाने वाले भी राजा साहब ही हैं...
ज़ज - ठीक है... कोर्ट उनकी प्रतीक्षा करेगी... क्या... वादी वकील... विश्व प्रताप महापात्र को... कोई आपत्ति है...
विश्व - जी नहीं योर ऑनर... पर मेरा आग्रह रहेगा... जब तक राजा साहब या उनके तरफ़ से कोई अदालत में हाजिर नहीं हो जाता... तब तक इस केस के ताल्लुक... कुछ तथ्य तर्कों के साथ... अदालत को अवगत कराना चाहता हूँ...
ज़ज - ठीक है... प्रस्तुत कीजिये...
विश्व - माय लॉर्ड... इस केस में... इंवेस्टीगेशन चीफ... पत्री सर... और प्रमुख गवाहों को लेकर मैं बहुत चिंतित हूँ... इसलिए... मेरी अदालत से दरख्वास्त है... की उन्हें यह केस समाप्त होने तक... पूर्ण सुरक्षा मुहैया कराया जाए...
ज़ज - मिस्टर विश्व प्रताप... क्या आप कहना चाहते हैं कि... राजा साहब से... उनको खतरा है...
विश्वा - जी माय लॉर्ड... यह केस आपकी जुडिक्शन में आ रहा है... इसलिए यह आदेश आप ही पारित कर सकते हैं...
ज़ज - डोंट क्रॉस योर लिमिट... हम क्या कर सकते हैं... और क्या नहीं... यह अदालत को कृपया आप ना बताएं...
विश्व - आई एम सॉरी माय लॉर्ड... यह कोई छोटी या मामूली केस नहीं है... इसकी एक्जीक्यूटिव मैजिस्ट्रेट लेवल की तहकीकात हो चुकी है... एक तरह से... केस को प्रमाणों के साथ पुष्टि की जा चुकी है... केवल... राजा साहब के प्रतिवादी होने... और उनकी निजी कारण के वज़ह से... केस यहाँ आई हुई है...
ज़ज - विश्व प्रताप... केस में... प्रोसिक्यूशन ही सब कुछ नहीं होता... न्याय व्यवस्था के लिए... डिफेंस का भी अपना महत्व है... जब तक... वादी और प्रतिवादी अपना अपना तथ्य अदालत के सामने रख नहीं देते... तब तक... किसी मुजरिम को... कोई भी अदालत सजा नहीं दे सकती... आशा है... यह बात आपको समझ में आ गई होगी...
विश्व - जी माय लॉर्ड...
ज़ज - आपकी... विटनेश प्रोटेक्शन की बात पर... अदालत ज़रूर गम्भीर रूप से विचार करेगी... अब आप बैठ सकते हैं...
विश्व बैठ जाता है l दर्शकों के दीर्घा में बैठे सुप्रिया की ओर विश्व देखता है l सुप्रिया कुछ समझने की मुद्रा में अपना सिर हिलाती है l लगभग एक घंटे के बाद अदालत के अंदर बल्लभ आता है l वह कम्प्यूटर राइटर को एक काग़ज़ देता है l राइटर उस काग़ज़ को ज़ज के हाथों में सौंप देता है l ज़ज काग़ज़ देखने के बाद
ज़ज - यह क्या है... और आपकी तारीफ़...
बल्लभ - माय लॉर्ड.. मैं एडवोकेट बल्लभ प्रधान... राजा भैरव सिंह का... लीगल एडवाइजर...
ज़ज - ठीक है... पर इस एफिडेविट का मतलब...
बल्लभ - एफिडेविट में साफ लिखा है माय लॉर्ड... बीते कल... राजकुमारी जी की मंगनी थी... बड़ी धूमधाम से मनाने के लिए... बिल्कुल शादी की तरह उत्सव के साथ मंगनी कराने की तैयारी थी... गाँव के सारे लोगों की मौजूदगी में यह मंगनी होनी थी... पर... (बल्लभ रुक जाता है)
ज़ज - मिस्टर प्रधान... आपको पूरी बात बतानी होगी... क्यूँकी आपका पूर्ण बयान... अदालत ही नहीं... प्रोसिक्यूशन भी सुन रहा है...
बल्लभ - जी माय लॉर्ड... सिर्फ प्रोसिक्यूशन के वकील ही नहीं... इंस्पेक्टर दास भी मौजूद थे... कल पता नहीं किस कारण वश... मंगनी करने आए दूल्हा गायब हो गया है... गुमशुदगी का रिपोर्ट कर दी गई है... (एक काग़ज़ देते हुए) यह रही.. एफआईआर की कॉपी... घर में सदमा भरा माहौल है... इसलिये... राजा साहब ने... कम से कम एक हफ्ते के लिए... केस में एक्सटेंशन माँगा है... ताकि इस सदमें से हल्के होने के बाद... इस केस में ध्यान लगा सके...
ज़ज - ठीक है... एडवोकेट विश्व प्रताप... आप यह कॉपी देख सकते हैं... (राइटर वह एफआईआर को कॉपी को लेकर विश्व के हाथ में देता है) (ज़ज इंस्पेक्टर दास से पूछता है) इंस्पेक्टर... क्या आप राजमहल में हुई गुमशुदगी के ऑफिसर कॉम गवाह हैं...
दास - सर... गुमशुदगी का रिपोर्ट... आज सुबह दर्ज हुई थी... और यह सच है कि... इस केस में... इनवेस्टिगेशन ऑफिसर मैं ही हूँ...
ज़ज - इस एफिडेविट में लिखा है... आपकी मौजूदगी में... मंगनी करने आया दूल्हा... गायब हो गया था... आपने उस दूल्हे के कमरे की तलाशी भी ली है...
दास - (एक नजर विश्व पर डालता है, फिर) जी योर ऑनर... पर मैं आगे की कोई तहकीकात नहीं की... वह एक फॉर्मालिटी थी... और केस भी आज सुबह दर्ज हुई है... और कानून के मुताबिक... चौबीस घंटे तक आदमी को गुमशुदा माना नहीं जाता...
ज़ज - ठीक है... यह अदालत... राजा साहब की एफिडेविट पर विचार करने के लिए अपने पास रखती है... और इंस्पेक्टर दास को कल ही अपना रिपोर्ट सबमीट करने के लिए कहती है... उसके बाद... राजा साहब की एफिडेविट पर अदालत निर्णय लेगी... यह अदालत कल तक के लिए... स्थगित किया जाता है..
तीनों ज़ज अदालत से चले जाते हैं l उनके जाते ही अदालत खाली हो जाती है l रह जाते हैं तो पाँच लोग l विश्व, पत्री, सुधांशु, दास और सुप्रिया l
विश्व का पुश्तैनी घर जहां अब विक्रम और उसका परिवार रह रहा है l घर की बनावट ही ऐसा है कि बैठक का कोई कमरा नहीं है, बैठक के लिए एक आँगन है l उसी आँगन में एक तरफ विक्रम और शुभ्रा बैठे हुए हैं और दूसरी तरफ रॉकी के साथ रुप की छटी गैंग के सदस्य l सभी के चेहरे पर परेशानी और तनाव साफ झलक रही थी l
विक्रम - तुम लोग ऐसे कैसे आ गए...
दीप्ति - क्या करें भैया... हम खुद बहुत हैरान थे... वीर भईया को गुजरे महीना ही तो हुआ है... ऐसे में कैसे... शादी करा रहे हैं... पर राजा साहब ने कहा कि... कुछ महीनों से... परिवार में कुछ ठीक नहीं जा रहा है... इसलिए रुप की शादी... उसके मन पसंद लड़के से करने का फैसला किया गया है... और इस फैसले से आप सहमत नहीं थे... पर शादी के बाद सब ठीक हो जाएगा... और शादी के इस खुशी के मौके पर... दोस्त सब पास हों तो... ग़म कम हो जाएगा... यही बात सुन कर हम लोग तैयार हो गए...
विक्रम - (रॉकी से) इनका तो समझ में आ गया... तुम्हारी क्या कहानी है...
रॉकी - क्या करूँ भाई साहब... मैंने रुप को बहन माना था... और आप तो जानते हैं ना... रुप ने भी मुझे अपना भाई श्वीकारा था... तो उसी इमोशनल कार्ड खेल गए हमारे घर राजा साहब... इसलिए मैं भी आ गया... और हमें कहा गया था... के रिसेप्शन में... पूरा का पूरा स्टेट ईंवाइटेड होगा... तब हमारे माँ बाप भी आ पायेंगे...
बनानी - पर यहाँ पहुँचने के बाद हमें पता चला... मामला पूरा उल्टा है...
विक्रम - खैर... अब तुम लोग सेफ हो... घबराने की कोई जरूरत नहीं है... अभी महल के अंदर का माहौल... तनाव पूर्ण है... यही मौका है... तुम लोग... सभी वापस चले जाओ...
रॉकी - क्या आप श्योर हैं... हम राजगड़ से निकल पायेंगे...
शुभ्रा - देखो... राजा साहब अब... केके को लेकर चिंतित होंगे... उनका सारा कुनबा... महल और महल के आसपास... केके को ढूंढ रहा होगा... इसलिए यही सही मौका है... थोड़ी देर बाद... प्रताप गाड़ी लेकर आएगा... तुम लोग जितनी जल्दी हो सके निकल जाओ...
कुछ देर के लिए सबके बीच ख़ामोशी छा जाती है l इसी बीच एक गाड़ी की आवाज़ करीब आ रही थी l थोड़ी देर बाद गाड़ी की आवाज़ घर के बाहर बंद हो जाती है l विश्व और सीलु अंदर आते हैं l विश्व को देख कर रॉकी और रुप के सभी दोस्त खड़े हो जाते हैं l
विश्व - (सीलु को दिखा कर) यह मेरा भाई है... दोस्त है... तुम लोग सभी इसके साथ... अभी के अभी निकल जाओ...
विश्व के कहते ही सभी तैयार हो जाते हैं और विश्व के साथ सभी बाहर आते हैं l बाहर एक पुलिस की जीपसी थी l जिसे देखने के बाद लड़कियाँ विश्व की ओर देखते हैं l
विश्व - पुलिस की एक जीपसी है... पर यहाँ की नहीं है... मैंने तुम लोगों के लिए... जुगाड़ बिठाया है.. यही सबसे सेफ भी है... हाँ बैठने में थोड़ी तकलीफ तो होगी... पर तुम लोग सेफली अपने घर में पहुँच जाओगे...
रॉकी - ठीक है... हम घर पर पहुँच जायेंगे... पर... उसके बाद...
विश्व - तुम लोग यशपुर की सरहद लाँघ जाओ... उसके बाद तुम तक... कोई नहीं पहुँच पाएगा... मेरा यकीन करो... तुम लोग बस यहाँ से निकल जाओ...
रॉकी सुर सभी लड़कियाँ एक दूसरे को देखते हैं l इतने में सीलु गाड़ी स्टार्ट कर देता है l रॉकी उसके बगल में बैठ जाता है l रॉकी के पास बनानी बैठ जाती है l बाकी चार लड़कियाँ पीछे बैठते ही सीलु गाड़ी दौड़ा देता है l पीछे विश्व, विक्रम और शुभ्रा रह जाते हैं l गाड़ी के आँखों से ओझल होते ही विश्व विक्रम की ओर मुड़ता है
विश्व - तुम्हारे चाचा और चाची दिखाई नहीं दे रहे...
विक्रम - (बरामदे में शुभ्रा को बिठा कर) चाचा जी की तबीयत आजकल ठीक नहीं रहती है.... इसलिए उन्हें आते ही सुला दिया है... चाची उनके पास हैं...
विश्व - वैसे मुझे उम्मीद नहीं थी... आज तुम ऐसा करोगे...
विक्रम - हाँ उम्मीद तो मुझे भी नहीं थी... तुम आज ऐसा खेल करोगे...
शुभ्रा - और आज जो भी हुआ... राजा साहब ने कभी सोचा भी नहीं होगा...
विश्व - हाँ... इन सब में... इंस्पेक्टर दास ने भी... खूब साथ दिया...
विक्रम - हाँ... एक बात तो है... जो भी तुमसे दोस्ती करता है... तुम्हारे लिए... हर हद लांघ जाता है...
विश्व - हाँ इस मामले में... मैं बहुत खुश किस्मत हूँ... वैसे... तुमने अपनी प्लान में... दीदी को कब शामिल कर लिया...
विक्रम - सुबह... जब नंदिनी की चिट्ठी लेकर सेबती मेरे पास आई... मैंने शुभ्रा जी को दीदी के पास भेज दिया था... और उन्हें अपनी प्लान में शामिल कर लिया था... जब दीदी तैयार हो गईं... मैंने इस प्लान में... चाचा और चाची को भी शामिल कर लिया... मत भूलो... यह वीर की ख्वाहिश भी थी...
विश्व - पर तुम्हारे प्लान में... इंस्पेक्टर दास भी तो था... तुमने उससे कब बात की...
विक्रम - मैंने नहीं... दीदी ने बात की... और वह प्लान सुनते ही राजी हो गया...
शुभ्रा - हाँ तुम अपनी प्लान की कामयाबी को लेकर... शायद चिंतित थे... इसलिए मार्क नहीं कर पाए के कब दीदी... इंस्पेक्टर दास से बात की...
विश्व - हाँ... मैं केके और अपने प्लान को लेकर... थोड़ा टेंशन में था... पर मेरे सभी दोस्तों ने... बहुत अच्छा काम किया...
विक्रम - प्रताप... थैंक्स...
विश्व - किसलिए...
विक्रम - तुमने कहा था... इस गाँव को शायद मेरी जरूरत है... गाँव वालों की तो पता नहीं... पर.. मैं आज अपनी बहन के काम आया... अगर दीदी और तुमने.. मुझे... मेरा मतलब है हम सबको रोका नहीं होता... तो जिंदगी भर.. आज के दिन के लिए... मैं खुद को कभी माफ नहीं कर पाता... और खुद की और वीर की नजरों में.. हमेशा गिरा हुआ पाता...
विश्व - अब मैं क्या कहूँ...
विक्रम - तो... अब केके कहाँ है...
विश्व - दिया तले अंधेरा...
विक्रम - मतलब...
विश्व - वह महल में ही है... अपने कमरे में ही है...
शुभ्रा और विक्रम - ह्व़ाट...
विक्रम - केके... अपने कमरे में है...
विश्व - हाँ मेरे दोस्तों ने... बड़े हिफाजत के साथ... उसे... उसी कमरे में रख छोड़ा है...
शुभ्रा - तो अभी तक वह किसीको दिखा क्यूँ नहीं...
विश्व - दिख जाएगा... मिल जाएगा... बस उसका वक़्त अभी आया नहीं है...
विक्रम - कल कोर्ट में... केस पर सुनवाई होने वाली है... इसलिए राजा साहब... तुम्हारे जेहन और दिल पर चोट करना चाहते थे.. पर तुमने पासा पलट दिया... पता नहीं वह कल कोर्ट में क्या कहेंगे...
विश्व - तुम अभी भी गलत सोच रहे हो...
विक्रम - क्या... मैंने क्या गलत सोच रहा हूँ...
विश्व - यही के... राजा साहब... मेरे दिल और दिमाग पर चोट करना चाहते थे...
विक्रम - तो... इस शादी का मतलब...
विश्व - वह असल में... मुझे इस केस से हटाना चाहते थे... उन्हें यकीन था...
विक्रम - ह्व़ाट... तुम्हें केस से हटाने के लिए... यह सब था...
विश्व - हाँ... विक्रम... एक इंसानी फितरत है... लोग सामने वाले को... इमोशनल या सेंटिमेटल फुल समझते हैं... उसकी उसी कमजोरी को बाहर लाने के लिए... अपनी चालें चलते हैं... उनका पहला टार्गेट मेरे माता पिता थे... तुम शायद यकीन ना करो... पर मेरा फोन ट्रैक करने की कोशिश की जा रही थी... पर नहीं कर पाए...
विक्रम - हाँ... समझ सकता हूँ... ज़रूर रॉय के लोगों से कोशिश की गई होगी... और मैं यह भी जानता हूँ... वह फैल क्यूँ हुए होंगे... क्यूँकी तुम्हारा फोन... जोडार साहब के सेक्यूरिटी सर्विलांस में होगी...
विश्व - बिल्कुल... इसलिए... मेरा कोई भी... चाहे इनकॉमींग हो... या ऑउटगोइंग... किसी भी कॉल को ट्रेस नहीं कर सकते...
विक्रम - पर तुमने बताया नहीं.. तुम्हें कैसे... केस से हटाने की कोशिश की...
विश्व - उन्हें मेरी कमजोरी चाहिए थी... जो उनके हाथ नहीं लगी... इसलिये.... शादी को यहाँ तक खिंचे... ताकि मैं अपना सब्र खो कर रोकने के लिए... भरे लोगों और पुलिस के बीच कुछ कर जाता... तो कानूनन... मुझे केस से हटाने के लिए... उनको वज़ह मिल जाती... बाकी का काम.. उनके लिए आसान था...
विक्रम - ओ हो... तो यह बात थी... तभी मैं यह सोचूँ... केके जैसे चिरकुट को... दामाद बनाने की सोच भी कैसे लिया...
शुभ्रा - मान लो... तुमसे कुछ नहीं हो पाता... और यह शादी हो जाती तो...
विश्व - मुझे... अपने प्यार की विश्वास को कायम रखना था... इसलिए मैंने यह सब किया... अगर मेरे दोस्त नाकामयाब हो जाते... तो वही होता... जैसा राजा साहब चाहते थे...
विक्रम - मतलब... तुम शादी में कोई कांड कर देते... गाँव वालों की नजर में... तुम शादी में विघ्न डालने वाले होते... सारा दोष तुम पर आ जाता... राजा साहब शादी रुकवा देते... उसके बाद... तुम्हारा राजा साहब से कोई निजी खुन्नस दिखा देते... तुम्हें केस से हटवा देते और इन तीस दिनों के अंदर... केके को ठिकाने लगा देते...
विश्व - बिल्कुल...
शुभ्रा - यानी... राजा साहब को मालूम था... आई मीन यकीन था... तुम कुछ ना कुछ करके यह शादी रोक दोगे... तुम उनके यकीन पर तो खरे उतरे पर... उनके प्लान पर नहीं...
विश्व - (मुस्कराकर) जी बिलकुल...
विक्रम - (अपना हाथ आगे बढ़ा कर) ओके विश्वा... लोगों का विश्वास और उम्मीद तुम पर टिकी हुई है... कल कोर्ट में.. तुम्हें खरा उतरना है...
विश्व - (हाथ मिला कर) हाँ जरूर... (कह कर मुड़ कर जाने लगता है, जाते जाते फिर वापस मुड़ कर) वन्स अगैन... थैंक्यू... (विश्व चला जाता है)
शुभ्रा - विक्की... यह बंदा क्या है... बाप रे... क्या दिमाग चला रहा है...
विक्रम - हाँ... मैं इसकी सोच का कायल हूँ... सामने वाले की दिमाग को पढ़ लेने की हुनर... क्या खूब पाई है... मुझसे पहले इसकी इस हुनर को राजा साहब जान गए थे... समझ गए थे... इसी लिए इतना कुछ कर गए... पर अफसोस... विश्व ने उनकी हर प्लान की धज्जियाँ उड़ा दी...
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क्षेत्रपाल महल
परिसर के जिस हिस्से में शादी का मंडप सजा हुआ था वहाँ रंगा और रॉय मुहँ लटकाये बैठे हुए थे l महल के उसी खास कमरे में भैरव सिंह उस मूठ विहीन तलवार को घूर रहा था, उसके पीछे हाथ बाँधे बल्लभ खड़ा था l कमरे के दरवाजे के पास कुछ दूरी पर भीमा खड़ा हुआ था l भैरव सिंह पलट कर अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है l और आँखे मूँद अपने माथे पर दाहिने हाथ के दो उंगली फेरता है l फिर अचानक उठ खड़ा होता है और परेशान सा इधर उधर होने लगता है l
भैरव सिंह - प्रधान... यह विश्वा किस मिट्टी का बना हुआ है... बार बार... वह हम पर भारी पड़ रहा है...
बल्लभ - है तो... राजगड़ का ही ना...
भैरव सिंह - हाँ इसी गाँव का है... पर इस गाँव के लोगों से अलग कैसे है...
बल्लभ - राजा साहब... विश्वा उस कच्ची मिट्टी की तरह है... जब जब.. जो जो... जैसे उसे बनाते गए... वह उन्हीं की साँचे में ढलता गया... जब तक बाप और दीदी के पास रहा... एक निडर बच्चा रहा... जब महल में आया... एक डरपोक भेड़ की तरह बना... लेकिन फिर जब अपनी दीदी के साये में आया... डर धीरे धीरे उसे छोड़ता चला गया... फिर वह जैल में सात साल रहा... इन सात सालों में... वह जिन जिन लोगों के संपर्क में आया... उन्हीं की तरह बनता चला गया... (एक पॉज के बाद) रोणा ठीक कह रहा था... हमने उसे जिंदा छोड़कर सही नहीं किया...
भैरव सिंह - जो पीछे छूट गया... वह लौट कर नहीं आने वाले... अब हम क्या कर सकते हैं... यह बताओ... (एक गहरा साँस छोड़ता है) हमारे ही महल में... हमारे ही नाक के नीचे... केके को गायब करवा दिया... हमें अपनी ही औलाद के सामने... (चुप हो जाता है) (भीमा से) भीमा...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - उन दो छचुंदरों को बुला कर लाओ...
भीमा - जी हुकुम... (भीमा बाहर चला जाता है)
भैरव सिंह - (फिर से वही तलवार के सामने खड़ा हो जाता है) प्रधान... क्या तुम इस तलवार के बारे में कुछ जानते हो...
बल्लभ - जी... मैंने सुना है... जेम्स फर्ग्यूसन की यह तलवार है... यह तलवार... आपकी राजशाही की... राज सत्ता की मुहर है...
भैरव सिंह - और क्या जानते हो...
बल्लभ - जी... और कुछ भी नहीं जानता...
भैरव सिंह - यह तलवार हमारी राजशाही की मुहर है... पर उसके साथ एक अभिशाप भी है... हमारी राजशाही का अंत के लिए.. इस तलवार को... उसकी मूठ का इंतजार है...
बल्लभ - क्या... सच में...
भैरव सिंह - हाँ... जिस दिन... इस तलवार से... वह मूठ जुड़ जाएगा... क्षेत्रपाल की राजशाही ही नहीं... क्षेत्रपाल ही ख़तम हो जाएगी...
बल्लभ - राजा साहब... क्या आप ऐसी किंवदंतीओं पर विश्वास करते हैं...
भैरव सिंह - नहीं... पर... जब से विश्वा छुटा है... हर मोड़ पर... वह हम पर भारी पड़ रहा है... ऐसा क्यूँ...
बल्लभ - आप राजा हैं... अगर आप ही... (चुप हो जाता है)
भैरव सिंह - तुम गलत सोच रहे हो प्रधान... हमें हमेशा... तुम्हारे दिमाग और सोच पर विश्वास था और है... पर फिर भी... याद करो... क्यूँ केके.. हमारे दुश्मनों जा मिला... विश्वा पर जोडार अपना विश्वास हार जाए... इसलिए... केके से वह जमीन खरीदवाए थे... तुमने... BDA अप्रूवल भी ले लिया था... पर विश्व ने कैसे... कितनी आसानी से उसे... देवोत्तर जमीन साबित कर दिया... (जवाब में बल्लभ कुछ कहता नहीं) उसी दिन हमने सोच लिया था... या तो विश्वा को हर केस से हटाएंगे... या फिर... उसे घुटनों पर ला देंगे... हम नाकामयाब रहे.... और तुम भी... प्रधान... क्या अब विश्वा को... रास्ते से हटा सकते हैं...
बल्लभ - नहीं राजा साहब नहीं... यह आप कैसी बातेँ कर रहे हैं... विश्वा बार एसोसिएशन का मेंबर है... उसने चालाकी से... अपनी लाइफ थ्रेट की एफिडेविट हाइकोर्ट के साथ साथ... उसकी कॉपी... बार एसोसिएशन में और... प्रेस क्लब में दे रखा है... उसे कुछ भी हुआ तो... केस सीधे सेंट्रल एजेंसियों के पास चली जाएगी...
भैरव सिंह - तो हम क्या करें प्रधान... हम मजबूर होना नहीं चाहते... किसीको मजबूर दिखना नहीं चाहते... हम विश्वा के अंदर की भावनाओं को... भड़का कर... उकसा कर... उसकी आवेश को हमारे खिलाफ इस्तेमाल करवाना चाहते थे... ताकि... निजी खुन्नस दिखा कर... बता कर... विश्वा को इस केस से हटवाना चाहते थे... पर... अब... अब वह केस से नहीं हटेगा... हम क्या करें...
बल्लभ - एक काम हो सकता है... कुछ निजी कारणों का हवाला दे कर... हम कुछ दिनों की... एक्सटेंशन ले सकते हैं...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... ठीक है... यही करते हैं...
ठीक उसी समय भीमा के साथ रंगा और रॉय कमरे में आते हैं l भैरव सिंह उन्हें देख कर अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है l आर्म रेस्ट पर हाथ रखकर पैर पर पैर मोड़ कर इनके तरफ़ देखता है l दोनों सिर झुकाए खड़े थे l
भैरव सिंह - आओ... हमारे राज के... दो कौड़ी के रतन... आओ... (दोनों बुरी तरह से शर्मिंदा होते हैं) बाहर ठंड नहीं लगी... इतने देर से बैठे हुए थे... (दोनों सिर झुकाए वैसे ही खड़े थे) प्रधान...
बल्लभ - जी... जी राजा साहब...
भैरव सिंह - यह किस लायक थे... हमने इन्हें कहाँ लाकर बिठाया... और आज इनकी नाकामी ने... हमें क्या दिखाया... (एक पॉज) चुप क्यूँ हो दोनों... कुछ तो बको...
रॉय - (कांपती आवाज में) वह... राजा सहाब... हमारा सारा ध्यान... राजकुमारी जी को लेकर था... हमने कभी सोचा नहीं था... केके साहब को... विश्वा उठा लेगा...
भैरव सिंह - रॉय... तु शादी सुदा तो है ना...
रॉय - (चुप रहता है)
भैरव सिंह - हमने कुछ पुछा है...
रॉय - जी... जी राजा साहब....
भैरव सिंह - बच्चे...
रॉय - दो.. दो बच्चे हैं... दोनों लड़के हैं...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... तेरे ही हैं ना... या फिर... तेरी गैर मौजूदगी में... कोई और हल चला गया...
रॉय - (अपनी आँखे बंद कर लेता है और जबड़े भिंच लेता है)
भैरव सिंह - अबे हराम के ढक्कन... विश्वा अपनी जगह से हिला तक नहीं... और तु कह रहा है... उसने उठा लिया... महल के चारो तरफ़ तेरे प्लान के मुताबिक सिक्युरिटी थी... ना कोई बाहर गया... ना कोई अंदर आया...
कुछ देर के लिए कमरे में मरघट सी शांति छा जाती है l ना जवाब में रॉय कुछ कहता है ना ही भैरव सिंह l फिर कुछ देर बाद
भैरव सिंह - क्यूँ रंगा... तु कुछ नहीं कहेगा...
रंगा - (डरते डरते) राजा साहब... हमें इतना मालूम है... की वह केके विश्वा को लेकर बहुत खौफ जदा था... पर जब पुलिस उसके बाराती बन कर आए... तब वह घोड़ी चढ़ कर आया... पर महल के अंदर... (चुप हो जाता है)
भैरव सिंह - आओ बैठ जाओ... (तीनों में से कोई नहीं बैठता) (रौबदार आवाज में हुक्म देते हुए) बैठ जाओ... (पहले बल्लभ बैठता है, फिर रंगा और रॉय बैठते हैं) छेद तो हुआ है... पर किसके पिछवाड़े... यह जानना जरूरी है... क्यूँकी जहाँ अति आत्मविश्वास हो... छेद वहीँ बन जाता है... या बनाया जाता है...
रंगा - गुस्ताखी माफ राजा साहब... (भैरव सिंह उसके तरफ़ देखता है) क्यूँ ना एक आखिरी बार... महल के अंदर... केके साहब को ढूँढा जाए...
भैरव सिंह - भीमा...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - सिवाय अंतर्महल को छोड़ कर... पुरे महल को अच्छी तरह से छान मारो...
भीमा - जी हुकुम...
इतना कह कर भीमा वहाँ से चला जाता है, उसके जाने के बाद फिर से कमरे में चुप्पी सी छा जाती है l
रंगा - राजा साहब... गुस्ताखी माफ... एक सवाल.... पूछ सकता हूँ... (भैरव सिंह उसे देखता है और हल्के सा सिर हिलाता है) यह पाँच रत्न... कौन कौन हैं...
भैरव सिंह - तीन रत्नों को तो जानते हो ना...
रंगा - जी...
भैरव सिंह - और दो रत्नों के बारे में... बाद में जानकारी मिलेगी... पर याद रखना... जानने के बाद... उनसे मिलने की ख्वाहिश कभी नहीं करना... गलती से भी नहीं...
बल्लभ - कभी राजा साहब के... नौ रत्न हुआ करते थे... कुछ ने राजा साहब के साथ छोड़ा... और कुछ को राजा साहब ने छोड़ दिया... राजा साहब को कोई छोड़ दे... या राजा साहब किसी को छोड़ दें... दोनों ही सूरत में... उसे ही खतरा होता है...
भैरव सिंह - क्या बात है रॉय... बड़े गहरे सोच में खोए हुए हो...
रॉय - राजा साहब... हमने तो अपनी जान लगा दी थी... हमें अफ़सोस है कि... हम आपकी रुतबे को कायम रखने में नाकाम रहे...
भैरव सिंह अपनी जगह से उठ जाता है l यह लोग उठने को होते हैं, भैरव सिंह उन्हें बैठने के लिए इशारा करते हुए दीवार के पास लगे मूठ विहीन तलवार के पास जाकर तलवार को देखते हुए कहता है
भैरव सिंह - खोता वही है... जिसने कमाया हो... यह रौब... यह रुतबा... हमें विरासत में मिला है और हम... इन सबके वारिस हैं... जो भी हुआ... वह कीचड़ था... जो विश्वा की तरफ से उछला था... बस दाग लगा है... और यह दाग हमें याद रहेगा... (अब इनके तरफ मुड़ता है) जंग होगी.. यह तय था... बस मैदान क्या होगा.. कहाँ होगा... इससे बेख़बर थे... अब जंग चाहे जहां भी हो... जंग का रुख हम तय करेंगे... (भीमा भागते हुए अंदर आता है और झुक कर घुटनों पर बैठ जाता है) क्या बात है भीमा...
भीमा - हुकुम... एक खबर है...
भैरव सिंह - कैसी खबर...
भीमा - वह... होने वाले जमाई जी का पता चल गया है...
भैरव सिंह - अच्छा...
तीनों - (अपनी कुर्सी से उछल कर खड़े हो जाते हैं) क्या...
भीमा - जी.. उन्हें... सत्तू अपने साथ ला रहा है...
सबकी नजर दरवाज़े की ओर टिक जाता है l बदहवास केके, सत्तू के सहारे कमरे में प्रवेश करता है l रॉय भाग कर केके को सहारा देता है और रंगा एक कुर्सी खिंच कर उसे कुर्सी पर बिठाता है l भीमा पानी ला रहा था पर उसे भैरव सिंह रोक देता है और पानी की ग्लास लेकर भीमा के हाथ में व्हिस्की की एक बोतल थमा देता है l भीमा ही नहीं सभी भैरव सिंह को हैरत से देखते हैं l भैरव सिंह इशारे से भीमा को व्हिस्की बोतल देने के लिए कहता है l भीमा केके के हाथ में व्हिस्की बोतल दे देता है l केके पहले बोतल को देखता है फिर ढक्कन खोल कर एक ही साँस में आधी बोतल व्हिस्की गटक जाता है l फिर गहरी साँस लेते हुए खुदको नॉर्मल करता है l
भैरव सिंह - (सत्तू से) कहाँ से मिले...
सत्तू - (डर और शर्मिंदगी के साथ) व वह... ब. ब.. बाथरुम... में...
भैरव सिंह के साथ सभी - क्या... (सभी एक दूसरे की ओर देखने लगते हैं सिवाय भैरव सिंह के l भैरव सिंह के भौंहे सोच में सिकुड़ जाते हैं l कुछ देर की चुप्पी सी छा जाती है)
भैरव सिंह - (चुप्पी तोड़ते हुए, सत्तू से) तुम कैसे बाथरूम में पहुँच गए...
सत्तू - पता नहीं... हमने सब जगह छान लिए थे... सही मायने में... बाथरूम नहीं देखे थे... क्यूँकी बाथरूम तो... दारोगा बाबु गए थे... सोचा एक बार देख लेते हैं... जब अंदर गया... तब भी... जमाई बाबु... तब भी नहीं दिखे... पर पता नहीं क्यूँ मन किया... तो पर्दा हटाए... वह नहाने के बंबा देखने के लिए... वहीँ पर नल से बंधे हुए बैठे दिखे... हाथ मुहँ पैर सभी चिपचिपा टेप से बंधे हुए थे...
सत्तू के इतने कहने के बाद कमरे में सब शांत खड़े थे l इतने शांत के एक दुसरे के साँसे तक लेते और छोड़ते हुए सुन पा रहे थे l भैरव सिंह कुछ समझते हुए अपना सिर हिलाने लगता है और केके से पूछता है l
भैरव सिंह - केके... क्या तुम अब शुरु से बताओगे... क्या हुआ...
केके - राजा साहब... (थके लुटे पिटे हुए कि तरह) आप... जिन लोगों को... रस्म को निभाने उतारने के लिए बुलाए थे... उन्होंने ही मेरे अपहरण का रास्ता बनाया था...
भैरव सिंह - केके... हम अब पूरी बात जानना चाहते हैं... इसलिए बिना रुके... सारी बातें... हमें बताओ... थोड़ी देर पहले... माहौल ऐसा था कि... तुम शादी से डरे हुए थे... इसलिए भाग गए हो... ऐसी चर्चा चल रही थी... पर अब तुम सामने हो... हम सभी गलत थे... कहाँ चूक गए... यह जानना बहुत जरूरी है... दुश्मन को ज़वाब देना भी तो है... इसलिए कि कल की जंग से पहले... हमें.. अपनी हर गलती को सुधरना है...
केके - हाँ राजा साहब... मैं डरा हुआ हुआ था... क्यूँकी यह आप भी जानते हैं... और एडवोकेट प्रधान भी... विश्वा आपकी अहं के साथ... मेरे बिजनस को भी उतना ही नुकसान किया है... इसलिए जब... बारात लेने... पुलिस फोर्स पहुँची... मैं खुश हो गया... मुझे यकीन भी हो गया... के हर हाल में मेरी शादी हो कर ही रहेगी...
गाँव के बीच से बारात गुजरी थी... कुछ नहीं हुआ था... महल में पहुँची... कोई गड़बड़ी नहीं हुई... पर घोड़ी से उतर कर जब... पहली रस्म निभाई गई... वहीँ से सारी गड़बड़ी शुरु हुई... खैर जहाँ साला पैर धो कर... जुता पहनाता है... वहाँ तक सब ठीक था... आरती उतारने के बाद... तिलक लगाने के बाद... मुझे एक लड़की ने शर्बत पिलाई... जो कि रस्म के हिसाब से... छोटी रानी जी को यह सब करना चाहए था... वह राजकुमारी जी की दोस्त थी... नाम बनानी था...
भैरव सिंह - हाँ तो...
केके - उसने शर्बत में कुछ गड़बड़ी की थी... शायद कुछ मिलाया था... जिसका असर तुरंत तो नहीं हुआ... पर बाद में हुआ... उसके बाद... राजकुमारी जी की... चारों सहेलियाँ... अपनी साली की धर्म निभाने की कोशिश करते हुए... चारों ने मुझे पान खिलाए... उसके बाद बड़ी मुश्किल से मैंने बेदी पर... पंडित के साथ बैठ कर कुछ रस्में अदा की... पर उस वक़्त भी मेरी हालत ठीक नहीं लग रही थी... गर्मी लग रही थी... पसीना भी बह रहा था... ऊपर से उबकई सी महसूस हो रही थी... जब कपड़े बदलने के लिए... मैं कमरे में पहुँचा... तो सबसे पहले अपने कपड़े उतारे फिर सीधे बाथरूम में घुस गया... वॉश पैन की सिंक में उल्टियां करने लगा... उल्टियां इस कदर हो रहीं थीं के आँखों में अंधेरा सा छाने लगा था... बाहर कमरे में कुछ तो हो रहा था... पर मैं अपनी होश में नहीं था... जब दुरुस्त लगा... तो अपने चेहरे पर पानी की छींट मारने के बाद जैसे ही आईना देखा... पीछे दो लोग खड़े थे... मैं जैसे ही मुड़ा... वे लोग... मेरे मुहँ को दबोच लिए... तभी शायद कमरा का दरवाजा तोड़ा गया था... वह दो लोग मुझे दबोचे हुए... बाथ टब में ले गए और कर्टेंन खिंच लिया... आप सब लोग कमरे में ढूँढने लगे... क्यूँकी उन लोगों ने... बाल्कनी में... मेरे भाग जाने की कोई सीन बना दिया था... कुछ देर बाद... इंस्पेक्टर दास अंदर आया... उसने कर्टेंन उठा कर देखा... के वह दो बंदे मुझे दबोच रखा था... पर वह हरामजादा कुछ नहीं किया... उल्टा... अपना काला लौड़ा निकाल कर पास के कमोड में मुता... फिर फ्लश कर... दरवाजा बंद करके चला गया... आप लोग कमरे में ही मौजूद थे... पर किसी ने... बाथरूम में आने की जहमत नहीं की... कुछ देर बाद बाथरूम में दो लोग और आए... जिन्होंने शायद... बाहर मेरे भाग जाने वाला सीन बनाया था... चारों ने मिलकर... स्टिकी टेप से... हाथ पैर और मुहँ को अच्छे से बाँध दिया... फिर पानी की टाप से बाँध कर... टब के सिरहाने बिठा दिया और मुझे कर्टेंन के पीछे छुपा दिया... वह चारों आराम से... कमरे से निकल भी गए... अगर अभी सत्तू ने वह कर्टेंन हटा कर नहीं देखा होता... तो शायद... मेरे मरने के बाद ही... आप लोगों कों मेरा पता लगता...
केके अब चुप हो जाता है l सब सुनने के बाद भैरव सिंह की ओर देखते हैं l भैरव सिंह के चेहरा बहुत सख्त दिख रहा था और जबड़े भिंचे हुए थे l सबकी नजरें भैरव सिंह की मुट्ठीयों पर जाता है l भैरव सिंह अपनी मुट्ठीयाँ मल रहा था l बल्लभ इस बार केके से सवाल करता है l
बल्लभ - अच्छा केके बाबु... आपके हिसाब से... वह चार लोग थे... जिन्होंने आपको... इसी महल में... हमारी आँखों के नीचे छुपा दिया...
केके - हाँ... प्रधान बाबु हाँ... बड़ी शर्म की बात है... वे चारों... महल के अंदर आए... पर महल के पहरेदारों को पता नहीं चला... मतलब... या तो पूरी की पूरी पहरेदारों को फौज निकम्मी है... या फिर ग़द्दार... ऊपर से... पुलिस... जो कभी राजा साहब के जुते की नोक पर हुआ करती थी... वही... राजा साहब के खिलाफ साजिश में शामिल है...
बल्लभ - आप घबराईये मत केके साहब... हम उन्हें ढूंढ निकलेंगे... और पुलिस के खिलाफ... उपर बात कर... उन्हें सस्पेंड कराएंगे...
सभी इस बार फिर से भैरव सिंह की ओर देखते हैं l भैरव सिंह अभी भी मुट्ठीयाँ मल रहा था l भैरव सिंह अब मुड़ कर अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है l
केके - माफ कीजिएगा राजा साहब... आप जंग जितने कि बात कर रहे हैं... जबकि आपके अपने... यहाँ तक आपकी औलादें भी... आपके साथ नहीं हैं... (भैरव सिंह अपने माथे पर दो उँगलियाँ फ़ेरने लगता है, जिसे देख कर बल्लभ केके से फिर एक सवाल करता है)
बल्लभ - अच्छा... वह जो चार बंदे... आपसे कुछ बात करी... या आपस में कुछ बात कर रहे थे...
केके - वे चार... बड़ी खामोशी और शांति से अपना काम अंजाम दे रहे थे... चारों आपस में... इशारों से बातेँ कर रहे थे... पर जब भी बात कर रहे थे... मेरे कान भर रहे थे...
बल्लभ - कैसी बातेँ कर रहे थे...
केके - (चुप रहता है)
बल्लभ - आपने बताया नहीं... वे चारों आपसे कैसी बातेँ कर रहे थे...
केके - नहीं जाने दीजिए... राजा साहब को बुरा लगेगा...
यह बात सुन कर भैरव सिंह अपनी आँखे खोलता है l एक तीखी नजर से केके की ओर देखने लगता है l कुछ देर केके को देखने के बाद भैरव सिंह केके से पूछता है l
भैरव सिंह - केके... तुम्हें देख कर ऐसा लग रहा है... जैसे उन चार बंदों ने... हमारे खिलाफ तुम्हारे कानों में कुछ बातेँ की है... और कहीं ना कहीं... तुम उनकी बातों से सहमत भी लग रहे हो...
केके कोई जवाब नहीं देता और अपना चेहरा घुमा लेता है, भैरव सिंह को यह बहुत बुरा लगता है l वह अपनी जगह से उठ खड़ा होता है और चलते हुए केके के पास आकर खड़ा होता है l पर केके कोई प्रतिक्रिया दिए वगैर वहीँ बैठा रहता है l भैरव सिंह अपनी दांत पीसने लगता है l भैरव सिंह का यह रुप देख कर सत्तू, भीमा और बल्लभ अपनी जगह से पीछे हटते हैं l उन्हें हटता देख कर रंगा और रॉय भी धीरे धीरे पीछे हटने लगते हैं l
भैरव सिंह - ऐसा कभी हुआ नहीं... के हम किसी के सामने खड़े हों जाएं... और वह बंदा.. अपनी कुर्सी से चिपका रहे...
यह सुन कर केके को अपनी गलती का एहसास होता है और वह डर के मारे सिर उठा कर भैरव सिंह की ओर देखने लगता है l भैरव उसके गर्दन को पकड़ लेता है और झटके से ऊपर उठा लेता है l केके की आँखों में अब डर साफ दिखने लगता है l वह अब गिड़गिड़ा कर बिनती करने लगता है
केके - म... म... मुझे माफ़ कर दीजिए... गलती हो गई...
भैरव सिंह - कहो... उन चारों ने हमारे खिलाफ... क्या कान भरा है...
केके - बताता हूँ... बताता हूँ... मेरा दम घुट रहा है... प्लीज मुझे छोड़ दीजिए.. (भैरव सिंह उसे छोड़ देता है l केके अपनी गर्दन पर हाथ फ़ेरने लगता है l फिर खुद को दुरुस्त करने के बाद कहने लगता है)
केके - वे चारों... मुझे बारी बारी से कह रहे थे.. के आप ने शादी की झांसा दे कर... मेरी दौलत लूट ली... इस शादी में आपकी ना कोई दिलचस्पी है... ना ही कोई मंजुरी... बल्कि आप खुद ही चाह रहे हैं... यह शादी ना हो... अगर यह शादी टूटती है... तो किसी बहाने से... आप यह शादी महीने के लिए... टाल देंगे... फिर मेरी शादी कभी भी नहीं होगी... (सिर झुका कर चुप हो जाता है)
भैरव सिंह - उन्होंने और भी कुछ कहा होगा...
केके - जी... जी राजा साहब... उनका कहना था... आपने दो ही शादी के सैंपल कार्ड लेकर आए थे... जिन्हें दिए... उन्हें चिढ़ाने के लिए... जबकि... किसी तीसरे को कार्ड दिया ही नहीं गया है... हर कार्ड में... शादी के साथ साथ... रिसेप्शन की तारीख भी लिखा होता है... पर आपने जो कार्ड दी है... उसमें रिसेप्शन की तारीख भी नहीं लिखा था... और सबसे अहं बात... राजा साहब ने... अपने नए जमाई बाबु का परिचय... बड़े राजा से भी नहीं कराया... (केके चुप हो जाता है, केके के चुप्पी के साथ पूरा माहौल में चुप्पी छा जाती है l भैरव सिंह के चेहरे पर कोई भाव नहीं दिखता पर कमरे में मौजूद सभी के चेहरे पर तनाव उभर आती है)
भैरव सिंह - (चुप्पी तोड़ते हुए) उन चार बंदों ने जो करना था... बड़ी सफाई के साथ कर दिए... तुम हम पर भरोसा करो... इसलिए... हमने तुम्हें... जुडिशल स्टैम्प पेपर पर दस्तखत कर तुमसे मंजुरी ली थी... पर बात वहीँ पर आ कर रुक जाती है... कौन हमारे और हमारे विश्वास के साथ है... तुम्हारे मन में शक का कीड़ा... एक सांप का शक़्ल इख्तियार कर चुका है... इसलिये तुम अब हमारे विश्वास के लायक नहीं रहे...
केके - मुझे माफ कर दीजिए राजा साहब... थोड़ा बहक गया था... ऊपर से यह शराब का नशा...
भैरव सिंह - वह एक कहावत है... की शराब का नशा... अंदर की बातों और जज्बातों को बाहर निकाल दिया करता है...
केके - ठीक है राजा साहब... फ़िर मुझे यहाँ से जाने की इजाजत दीजिए...
भैरव सिंह - नहीं केके... अब तुम यहाँ से नहीं जा सकते... सिर्फ कुछ लोगों को पता है... के तुम्हारा अपहरण हुआ था.. लेकिन सारे गाँव वाले यह जानते हैं... के तुम भाग गए हो... हमारी दी हुई इज़्ज़त और पगड़ी को रौंद कर... अब यही बात दुनिया को भी मालूम हो... के तुम भाग गए हो... पुलिस की रिपोर्ट में भी यही आएगा... यह छोटी सी बदनामी... उससे कई गुना अच्छा है... के तुम्हारा अपहरण हुआ... वह भी महल के भीतर से... और मिले भी तुम... महल के भीतर से... इसलिए हमेशा हमेशा के लिए... तुम्हारा... फरार रहना ही... इस महल की इज़्ज़त के लिए अच्छा है...
केके - नहीं... नहीं राजा साहब नहीं... (रोने लगता है) मुझे जाने दीजिए...
इतना कह कर बाहर की ओर भागने लगता है l पर कमजोरी के कारण तेजी से भाग नहीं पाता और उसे भीमा दबोच लेता है l राजा भैरव सिंह सब रॉय और रंगा के तरफ़ मुड़ता है l
भैरव सिंह - मेरे दो अनमोल रतन से परिचित होने का समय आ गया है.... चलो सब अब... रंग महल...
भीमा अपने पट्ठों के मदत से केके का मुहँ टेप से बंद कर बाहर एक जीप पर पटक देते हैं l बल्लभ के साथ डरते डरते रंगा और रॉय बैठ जाते हैं l भैरव सिंह एक अलग गाड़ी में बैठ जाता है और सभी थोड़ी देर में रंग महल पहुँच जाते हैं l चूँकि केके का हस्र क्या होगा अनुभवी भीमा को मालूम था इसलिए वह और उसके पट्ठे केके को लेकर आखेट गृह के गैलेरी में पहुँचते हैं l रंगा और रॉय को इन सबके बारे में कोई जानकारी नहीं थी l पर वे दोनों बल्लभ के साथ, बल्लभ के पास बैठ जाते हैं l भीमा एक जगह जहाँ स्विमिंग पुल पर कुद लगाने के डाइविंग ब्लॉक पर केके को लेकर खड़ा था l रंगा और रॉय देखते हैं कि स्विमिंग पुल चारों ओर ऊँची दीवारों के घेरे में हैं l घेरे में कई जगह दरवाजे हैं l कुछ देर बाद भैरव सिंह भीमा के पास आता है l
भैरव सिंह - भीमा इसे हमारे हवाले करो... आज इसे हम खुद... आखेट में पहुँचाएँगे... तुम जाओ... हमारे इशारे का इंतजार करो... (भीमा केके को भैरव सिंह के हवाले कर वहाँ से चला जाता है और एक कंट्रोल पैनल के पास जाकर खड़ा हो जाता है l भैरव सिंह अब केके को गिरेबान से पकड़ कर अपने पास लाता है और उसे कहता है) हाँ... उन चार बंदों ने... तुझसे सही कहा था... हम किसी भी हाल में... यह शादी रुकवा देते... महीने के भीतर तुझे यहीं लाकर फेंक देते... जो महीने बाद होना चाहिए था... तेरी बेसब्री ने... तुझे आज फिकवा रहा है... साले भड़वे... हरामी कमीने... तुने अपनी मौत हमारी हाथों से... तभी लिखवा चुका था... जब तु दुश्मनी करने... चेट्टी से जा मिला था... तुने जितनी भी दौलत... हमारी दम से कमाई थी.. वह सब हमने तुझसे ले ली... अब तेरे हिस्से का... जो हम तुझे देना चाहते थे... के अब दे रहे हैं...
भैरव सिंह ने जो भी कुछ कहा उसे सिर्फ केके ही सुन पाया l पर उसे और दो लोग समझ चुके थे बल्लभ और भीमा l रंगा और रॉय डर और आशंका के साथ केके की भविष्य से अंजान बुत बने बैठे हुए थे l भैरव सिंह केके को छोड़ देता है l केके सीधे स्विमिंग पुल में गिरता है l केके तैर कर बाहर आता है और अपनी मुहँ पर चिपकी टेप को निकालने देता है l तभी कंट्रोल पैनल में भीमा एक लिवर दबा देता है l
केके - (चिल्ला कर) बे साले हरामी... काहे का राजा बे... मैं तेरी पोल खोल के रख दूँगा कुत्ते...
तभी एक आवाज के साथ उल्टी दिशा के दीवार का एक दरवाजा खुल जाता है l दूसरी दिशा में और एक दरवाजा खुल जाता है l केके गली देते देते रुक जाता है l उसके कानों में किसी जानवर की गुर्राहट पड़ती है l वह उस आवाज की तरफ देखता है एक लकड़बग्घा उसके तरफ आ रहा था वह डरके मारे पानी में कूद जाता है l पानी के बीचों-बीच पहुँच कर लकड़बग्घे की ओर देखता है कि तभी उसके कानों में छपाक की आवाज़ सुनाई देती है पीछे मुड़ कर देखता है एक मगरमच्छ उसके तरफ़ आ रहा था l वह घबराते हुए एक दुसरे किनारे पर पुल से निकलने लगता है कि लकड़बग्घा उसके कंधे को जबड़े में ले लेता है l टेप फाड़ कर केके की दर्दनाक चीख निकल जाता है पर तभी उसका एक टांग मगरमच्छ के जबड़े आ जाता है l फिर कुछ ही देर में केके की चीख बंद हो जाती है l स्विमिंग पुल लाल रंग से रंग जाता है l रंगा और रॉय की हालत बहुत खराब हो जाती है l रॉय भागते हुए जाता है और स्वीमिंग पुल के ऊपर उल्टियां करने लगता है l थोड़ी देर के बाद वह डरते हुए मुड़ कर भैरव सिंह की ओर देखता है l
भैरव सिंह - हमारे दो अनमोल रतन को देख लिए... अब फैसला करो... तुम लोग... हमारे साथ.. हमारे विश्वास के साथ बंधे होकर रहोगे.. या... हमारे इन रत्नों से मिलोगे...
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अगले दिन
यशपुर के तहसील ऑफिस के स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट लगी हुई थी l विश्वा, नरोत्तम पत्री, सुधांशु मिश्रा और कुछ गाँव वाले अंदर बैठे हुए थे l तीनों ज़ज अंदर आते हैं l मुख्य ज़ज टेबल पर गैवेल को टेबल पर तीन बार पटक कर सबको शांत होने के लिए कहता है l
ज़ज - कोर्ट की कारवाई शुरु की जाए... कोर्ट यह जानना चाहती है... क्या वादी पक्ष उपस्थित हैं...
विश्व - (अपनी जगह से उठ कर) जी माय लॉर्ड...
ज़ज - क्या प्रतिवादी पक्ष के... राजा भैरव सिंह उपस्थित हैं...
कोई नहीं था l भैरव सिंह को कुर्सी खाली थी l ज़ज पुलिस इंस्पेक्टर दास के तरफ़ देखता है l दास अपने कंधे उचकाता है l
ज़ज - इंस्पेक्टर दास... आप राजगड़ थाने के इंचार्ज हैं...
दास - येस माय लॉर्ड... पर हमें ऐसा कोई आदेश नहीं मिला है... की हम राजा साहब को... आपके समक्ष पेश करें... राजा साहब को प्रतिवादी... ऑनरेबल हाई कोर्ट ने बनाया है... और स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट को... राजगड़ को लाने वाले भी राजा साहब ही हैं...
ज़ज - ठीक है... कोर्ट उनकी प्रतीक्षा करेगी... क्या... वादी वकील... विश्व प्रताप महापात्र को... कोई आपत्ति है...
विश्व - जी नहीं योर ऑनर... पर मेरा आग्रह रहेगा... जब तक राजा साहब या उनके तरफ़ से कोई अदालत में हाजिर नहीं हो जाता... तब तक इस केस के ताल्लुक... कुछ तथ्य तर्कों के साथ... अदालत को अवगत कराना चाहता हूँ...
ज़ज - ठीक है... प्रस्तुत कीजिये...
विश्व - माय लॉर्ड... इस केस में... इंवेस्टीगेशन चीफ... पत्री सर... और प्रमुख गवाहों को लेकर मैं बहुत चिंतित हूँ... इसलिए... मेरी अदालत से दरख्वास्त है... की उन्हें यह केस समाप्त होने तक... पूर्ण सुरक्षा मुहैया कराया जाए...
ज़ज - मिस्टर विश्व प्रताप... क्या आप कहना चाहते हैं कि... राजा साहब से... उनको खतरा है...
विश्वा - जी माय लॉर्ड... यह केस आपकी जुडिक्शन में आ रहा है... इसलिए यह आदेश आप ही पारित कर सकते हैं...
ज़ज - डोंट क्रॉस योर लिमिट... हम क्या कर सकते हैं... और क्या नहीं... यह अदालत को कृपया आप ना बताएं...
विश्व - आई एम सॉरी माय लॉर्ड... यह कोई छोटी या मामूली केस नहीं है... इसकी एक्जीक्यूटिव मैजिस्ट्रेट लेवल की तहकीकात हो चुकी है... एक तरह से... केस को प्रमाणों के साथ पुष्टि की जा चुकी है... केवल... राजा साहब के प्रतिवादी होने... और उनकी निजी कारण के वज़ह से... केस यहाँ आई हुई है...
ज़ज - विश्व प्रताप... केस में... प्रोसिक्यूशन ही सब कुछ नहीं होता... न्याय व्यवस्था के लिए... डिफेंस का भी अपना महत्व है... जब तक... वादी और प्रतिवादी अपना अपना तथ्य अदालत के सामने रख नहीं देते... तब तक... किसी मुजरिम को... कोई भी अदालत सजा नहीं दे सकती... आशा है... यह बात आपको समझ में आ गई होगी...
विश्व - जी माय लॉर्ड...
ज़ज - आपकी... विटनेश प्रोटेक्शन की बात पर... अदालत ज़रूर गम्भीर रूप से विचार करेगी... अब आप बैठ सकते हैं...
विश्व बैठ जाता है l दर्शकों के दीर्घा में बैठे सुप्रिया की ओर विश्व देखता है l सुप्रिया कुछ समझने की मुद्रा में अपना सिर हिलाती है l लगभग एक घंटे के बाद अदालत के अंदर बल्लभ आता है l वह कम्प्यूटर राइटर को एक काग़ज़ देता है l राइटर उस काग़ज़ को ज़ज के हाथों में सौंप देता है l ज़ज काग़ज़ देखने के बाद
ज़ज - यह क्या है... और आपकी तारीफ़...
बल्लभ - माय लॉर्ड.. मैं एडवोकेट बल्लभ प्रधान... राजा भैरव सिंह का... लीगल एडवाइजर...
ज़ज - ठीक है... पर इस एफिडेविट का मतलब...
बल्लभ - एफिडेविट में साफ लिखा है माय लॉर्ड... बीते कल... राजकुमारी जी की मंगनी थी... बड़ी धूमधाम से मनाने के लिए... बिल्कुल शादी की तरह उत्सव के साथ मंगनी कराने की तैयारी थी... गाँव के सारे लोगों की मौजूदगी में यह मंगनी होनी थी... पर... (बल्लभ रुक जाता है)
ज़ज - मिस्टर प्रधान... आपको पूरी बात बतानी होगी... क्यूँकी आपका पूर्ण बयान... अदालत ही नहीं... प्रोसिक्यूशन भी सुन रहा है...
बल्लभ - जी माय लॉर्ड... सिर्फ प्रोसिक्यूशन के वकील ही नहीं... इंस्पेक्टर दास भी मौजूद थे... कल पता नहीं किस कारण वश... मंगनी करने आए दूल्हा गायब हो गया है... गुमशुदगी का रिपोर्ट कर दी गई है... (एक काग़ज़ देते हुए) यह रही.. एफआईआर की कॉपी... घर में सदमा भरा माहौल है... इसलिये... राजा साहब ने... कम से कम एक हफ्ते के लिए... केस में एक्सटेंशन माँगा है... ताकि इस सदमें से हल्के होने के बाद... इस केस में ध्यान लगा सके...
ज़ज - ठीक है... एडवोकेट विश्व प्रताप... आप यह कॉपी देख सकते हैं... (राइटर वह एफआईआर को कॉपी को लेकर विश्व के हाथ में देता है) (ज़ज इंस्पेक्टर दास से पूछता है) इंस्पेक्टर... क्या आप राजमहल में हुई गुमशुदगी के ऑफिसर कॉम गवाह हैं...
दास - सर... गुमशुदगी का रिपोर्ट... आज सुबह दर्ज हुई थी... और यह सच है कि... इस केस में... इनवेस्टिगेशन ऑफिसर मैं ही हूँ...
ज़ज - इस एफिडेविट में लिखा है... आपकी मौजूदगी में... मंगनी करने आया दूल्हा... गायब हो गया था... आपने उस दूल्हे के कमरे की तलाशी भी ली है...
दास - (एक नजर विश्व पर डालता है, फिर) जी योर ऑनर... पर मैं आगे की कोई तहकीकात नहीं की... वह एक फॉर्मालिटी थी... और केस भी आज सुबह दर्ज हुई है... और कानून के मुताबिक... चौबीस घंटे तक आदमी को गुमशुदा माना नहीं जाता...
ज़ज - ठीक है... यह अदालत... राजा साहब की एफिडेविट पर विचार करने के लिए अपने पास रखती है... और इंस्पेक्टर दास को कल ही अपना रिपोर्ट सबमीट करने के लिए कहती है... उसके बाद... राजा साहब की एफिडेविट पर अदालत निर्णय लेगी... यह अदालत कल तक के लिए... स्थगित किया जाता है..
तीनों ज़ज अदालत से चले जाते हैं l उनके जाते ही अदालत खाली हो जाती है l रह जाते हैं तो पाँच लोग l विश्व, पत्री, सुधांशु, दास और सुप्रिया l
विश्व का पुश्तैनी घर जहां अब विक्रम और उसका परिवार रह रहा है l घर की बनावट ही ऐसा है कि बैठक का कोई कमरा नहीं है, बैठक के लिए एक आँगन है l उसी आँगन में एक तरफ विक्रम और शुभ्रा बैठे हुए हैं और दूसरी तरफ रॉकी के साथ रुप की छटी गैंग के सदस्य l सभी के चेहरे पर परेशानी और तनाव साफ झलक रही थी l
विक्रम - तुम लोग ऐसे कैसे आ गए...
दीप्ति - क्या करें भैया... हम खुद बहुत हैरान थे... वीर भईया को गुजरे महीना ही तो हुआ है... ऐसे में कैसे... शादी करा रहे हैं... पर राजा साहब ने कहा कि... कुछ महीनों से... परिवार में कुछ ठीक नहीं जा रहा है... इसलिए रुप की शादी... उसके मन पसंद लड़के से करने का फैसला किया गया है... और इस फैसले से आप सहमत नहीं थे... पर शादी के बाद सब ठीक हो जाएगा... और शादी के इस खुशी के मौके पर... दोस्त सब पास हों तो... ग़म कम हो जाएगा... यही बात सुन कर हम लोग तैयार हो गए...
विक्रम - (रॉकी से) इनका तो समझ में आ गया... तुम्हारी क्या कहानी है...
रॉकी - क्या करूँ भाई साहब... मैंने रुप को बहन माना था... और आप तो जानते हैं ना... रुप ने भी मुझे अपना भाई श्वीकारा था... तो उसी इमोशनल कार्ड खेल गए हमारे घर राजा साहब... इसलिए मैं भी आ गया... और हमें कहा गया था... के रिसेप्शन में... पूरा का पूरा स्टेट ईंवाइटेड होगा... तब हमारे माँ बाप भी आ पायेंगे...
बनानी - पर यहाँ पहुँचने के बाद हमें पता चला... मामला पूरा उल्टा है...
विक्रम - खैर... अब तुम लोग सेफ हो... घबराने की कोई जरूरत नहीं है... अभी महल के अंदर का माहौल... तनाव पूर्ण है... यही मौका है... तुम लोग... सभी वापस चले जाओ...
रॉकी - क्या आप श्योर हैं... हम राजगड़ से निकल पायेंगे...
शुभ्रा - देखो... राजा साहब अब... केके को लेकर चिंतित होंगे... उनका सारा कुनबा... महल और महल के आसपास... केके को ढूंढ रहा होगा... इसलिए यही सही मौका है... थोड़ी देर बाद... प्रताप गाड़ी लेकर आएगा... तुम लोग जितनी जल्दी हो सके निकल जाओ...
कुछ देर के लिए सबके बीच ख़ामोशी छा जाती है l इसी बीच एक गाड़ी की आवाज़ करीब आ रही थी l थोड़ी देर बाद गाड़ी की आवाज़ घर के बाहर बंद हो जाती है l विश्व और सीलु अंदर आते हैं l विश्व को देख कर रॉकी और रुप के सभी दोस्त खड़े हो जाते हैं l
विश्व - (सीलु को दिखा कर) यह मेरा भाई है... दोस्त है... तुम लोग सभी इसके साथ... अभी के अभी निकल जाओ...
विश्व के कहते ही सभी तैयार हो जाते हैं और विश्व के साथ सभी बाहर आते हैं l बाहर एक पुलिस की जीपसी थी l जिसे देखने के बाद लड़कियाँ विश्व की ओर देखते हैं l
विश्व - पुलिस की एक जीपसी है... पर यहाँ की नहीं है... मैंने तुम लोगों के लिए... जुगाड़ बिठाया है.. यही सबसे सेफ भी है... हाँ बैठने में थोड़ी तकलीफ तो होगी... पर तुम लोग सेफली अपने घर में पहुँच जाओगे...
रॉकी - ठीक है... हम घर पर पहुँच जायेंगे... पर... उसके बाद...
विश्व - तुम लोग यशपुर की सरहद लाँघ जाओ... उसके बाद तुम तक... कोई नहीं पहुँच पाएगा... मेरा यकीन करो... तुम लोग बस यहाँ से निकल जाओ...
रॉकी सुर सभी लड़कियाँ एक दूसरे को देखते हैं l इतने में सीलु गाड़ी स्टार्ट कर देता है l रॉकी उसके बगल में बैठ जाता है l रॉकी के पास बनानी बैठ जाती है l बाकी चार लड़कियाँ पीछे बैठते ही सीलु गाड़ी दौड़ा देता है l पीछे विश्व, विक्रम और शुभ्रा रह जाते हैं l गाड़ी के आँखों से ओझल होते ही विश्व विक्रम की ओर मुड़ता है
विश्व - तुम्हारे चाचा और चाची दिखाई नहीं दे रहे...
विक्रम - (बरामदे में शुभ्रा को बिठा कर) चाचा जी की तबीयत आजकल ठीक नहीं रहती है.... इसलिए उन्हें आते ही सुला दिया है... चाची उनके पास हैं...
विश्व - वैसे मुझे उम्मीद नहीं थी... आज तुम ऐसा करोगे...
विक्रम - हाँ उम्मीद तो मुझे भी नहीं थी... तुम आज ऐसा खेल करोगे...
शुभ्रा - और आज जो भी हुआ... राजा साहब ने कभी सोचा भी नहीं होगा...
विश्व - हाँ... इन सब में... इंस्पेक्टर दास ने भी... खूब साथ दिया...
विक्रम - हाँ... एक बात तो है... जो भी तुमसे दोस्ती करता है... तुम्हारे लिए... हर हद लांघ जाता है...
विश्व - हाँ इस मामले में... मैं बहुत खुश किस्मत हूँ... वैसे... तुमने अपनी प्लान में... दीदी को कब शामिल कर लिया...
विक्रम - सुबह... जब नंदिनी की चिट्ठी लेकर सेबती मेरे पास आई... मैंने शुभ्रा जी को दीदी के पास भेज दिया था... और उन्हें अपनी प्लान में शामिल कर लिया था... जब दीदी तैयार हो गईं... मैंने इस प्लान में... चाचा और चाची को भी शामिल कर लिया... मत भूलो... यह वीर की ख्वाहिश भी थी...
विश्व - पर तुम्हारे प्लान में... इंस्पेक्टर दास भी तो था... तुमने उससे कब बात की...
विक्रम - मैंने नहीं... दीदी ने बात की... और वह प्लान सुनते ही राजी हो गया...
शुभ्रा - हाँ तुम अपनी प्लान की कामयाबी को लेकर... शायद चिंतित थे... इसलिए मार्क नहीं कर पाए के कब दीदी... इंस्पेक्टर दास से बात की...
विश्व - हाँ... मैं केके और अपने प्लान को लेकर... थोड़ा टेंशन में था... पर मेरे सभी दोस्तों ने... बहुत अच्छा काम किया...
विक्रम - प्रताप... थैंक्स...
विश्व - किसलिए...
विक्रम - तुमने कहा था... इस गाँव को शायद मेरी जरूरत है... गाँव वालों की तो पता नहीं... पर.. मैं आज अपनी बहन के काम आया... अगर दीदी और तुमने.. मुझे... मेरा मतलब है हम सबको रोका नहीं होता... तो जिंदगी भर.. आज के दिन के लिए... मैं खुद को कभी माफ नहीं कर पाता... और खुद की और वीर की नजरों में.. हमेशा गिरा हुआ पाता...
विश्व - अब मैं क्या कहूँ...
विक्रम - तो... अब केके कहाँ है...
विश्व - दिया तले अंधेरा...
विक्रम - मतलब...
विश्व - वह महल में ही है... अपने कमरे में ही है...
शुभ्रा और विक्रम - ह्व़ाट...
विक्रम - केके... अपने कमरे में है...
विश्व - हाँ मेरे दोस्तों ने... बड़े हिफाजत के साथ... उसे... उसी कमरे में रख छोड़ा है...
शुभ्रा - तो अभी तक वह किसीको दिखा क्यूँ नहीं...
विश्व - दिख जाएगा... मिल जाएगा... बस उसका वक़्त अभी आया नहीं है...
विक्रम - कल कोर्ट में... केस पर सुनवाई होने वाली है... इसलिए राजा साहब... तुम्हारे जेहन और दिल पर चोट करना चाहते थे.. पर तुमने पासा पलट दिया... पता नहीं वह कल कोर्ट में क्या कहेंगे...
विश्व - तुम अभी भी गलत सोच रहे हो...
विक्रम - क्या... मैंने क्या गलत सोच रहा हूँ...
विश्व - यही के... राजा साहब... मेरे दिल और दिमाग पर चोट करना चाहते थे...
विक्रम - तो... इस शादी का मतलब...
विश्व - वह असल में... मुझे इस केस से हटाना चाहते थे... उन्हें यकीन था...
विक्रम - ह्व़ाट... तुम्हें केस से हटाने के लिए... यह सब था...
विश्व - हाँ... विक्रम... एक इंसानी फितरत है... लोग सामने वाले को... इमोशनल या सेंटिमेटल फुल समझते हैं... उसकी उसी कमजोरी को बाहर लाने के लिए... अपनी चालें चलते हैं... उनका पहला टार्गेट मेरे माता पिता थे... तुम शायद यकीन ना करो... पर मेरा फोन ट्रैक करने की कोशिश की जा रही थी... पर नहीं कर पाए...
विक्रम - हाँ... समझ सकता हूँ... ज़रूर रॉय के लोगों से कोशिश की गई होगी... और मैं यह भी जानता हूँ... वह फैल क्यूँ हुए होंगे... क्यूँकी तुम्हारा फोन... जोडार साहब के सेक्यूरिटी सर्विलांस में होगी...
विश्व - बिल्कुल... इसलिए... मेरा कोई भी... चाहे इनकॉमींग हो... या ऑउटगोइंग... किसी भी कॉल को ट्रेस नहीं कर सकते...
विक्रम - पर तुमने बताया नहीं.. तुम्हें कैसे... केस से हटाने की कोशिश की...
विश्व - उन्हें मेरी कमजोरी चाहिए थी... जो उनके हाथ नहीं लगी... इसलिये.... शादी को यहाँ तक खिंचे... ताकि मैं अपना सब्र खो कर रोकने के लिए... भरे लोगों और पुलिस के बीच कुछ कर जाता... तो कानूनन... मुझे केस से हटाने के लिए... उनको वज़ह मिल जाती... बाकी का काम.. उनके लिए आसान था...
विक्रम - ओ हो... तो यह बात थी... तभी मैं यह सोचूँ... केके जैसे चिरकुट को... दामाद बनाने की सोच भी कैसे लिया...
शुभ्रा - मान लो... तुमसे कुछ नहीं हो पाता... और यह शादी हो जाती तो...
विश्व - मुझे... अपने प्यार की विश्वास को कायम रखना था... इसलिए मैंने यह सब किया... अगर मेरे दोस्त नाकामयाब हो जाते... तो वही होता... जैसा राजा साहब चाहते थे...
विक्रम - मतलब... तुम शादी में कोई कांड कर देते... गाँव वालों की नजर में... तुम शादी में विघ्न डालने वाले होते... सारा दोष तुम पर आ जाता... राजा साहब शादी रुकवा देते... उसके बाद... तुम्हारा राजा साहब से कोई निजी खुन्नस दिखा देते... तुम्हें केस से हटवा देते और इन तीस दिनों के अंदर... केके को ठिकाने लगा देते...
विश्व - बिल्कुल...
शुभ्रा - यानी... राजा साहब को मालूम था... आई मीन यकीन था... तुम कुछ ना कुछ करके यह शादी रोक दोगे... तुम उनके यकीन पर तो खरे उतरे पर... उनके प्लान पर नहीं...
विश्व - (मुस्कराकर) जी बिलकुल...
विक्रम - (अपना हाथ आगे बढ़ा कर) ओके विश्वा... लोगों का विश्वास और उम्मीद तुम पर टिकी हुई है... कल कोर्ट में.. तुम्हें खरा उतरना है...
विश्व - (हाथ मिला कर) हाँ जरूर... (कह कर मुड़ कर जाने लगता है, जाते जाते फिर वापस मुड़ कर) वन्स अगैन... थैंक्यू... (विश्व चला जाता है)
शुभ्रा - विक्की... यह बंदा क्या है... बाप रे... क्या दिमाग चला रहा है...
विक्रम - हाँ... मैं इसकी सोच का कायल हूँ... सामने वाले की दिमाग को पढ़ लेने की हुनर... क्या खूब पाई है... मुझसे पहले इसकी इस हुनर को राजा साहब जान गए थे... समझ गए थे... इसी लिए इतना कुछ कर गए... पर अफसोस... विश्व ने उनकी हर प्लान की धज्जियाँ उड़ा दी...
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क्षेत्रपाल महल
परिसर के जिस हिस्से में शादी का मंडप सजा हुआ था वहाँ रंगा और रॉय मुहँ लटकाये बैठे हुए थे l महल के उसी खास कमरे में भैरव सिंह उस मूठ विहीन तलवार को घूर रहा था, उसके पीछे हाथ बाँधे बल्लभ खड़ा था l कमरे के दरवाजे के पास कुछ दूरी पर भीमा खड़ा हुआ था l भैरव सिंह पलट कर अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है l और आँखे मूँद अपने माथे पर दाहिने हाथ के दो उंगली फेरता है l फिर अचानक उठ खड़ा होता है और परेशान सा इधर उधर होने लगता है l
भैरव सिंह - प्रधान... यह विश्वा किस मिट्टी का बना हुआ है... बार बार... वह हम पर भारी पड़ रहा है...
बल्लभ - है तो... राजगड़ का ही ना...
भैरव सिंह - हाँ इसी गाँव का है... पर इस गाँव के लोगों से अलग कैसे है...
बल्लभ - राजा साहब... विश्वा उस कच्ची मिट्टी की तरह है... जब जब.. जो जो... जैसे उसे बनाते गए... वह उन्हीं की साँचे में ढलता गया... जब तक बाप और दीदी के पास रहा... एक निडर बच्चा रहा... जब महल में आया... एक डरपोक भेड़ की तरह बना... लेकिन फिर जब अपनी दीदी के साये में आया... डर धीरे धीरे उसे छोड़ता चला गया... फिर वह जैल में सात साल रहा... इन सात सालों में... वह जिन जिन लोगों के संपर्क में आया... उन्हीं की तरह बनता चला गया... (एक पॉज के बाद) रोणा ठीक कह रहा था... हमने उसे जिंदा छोड़कर सही नहीं किया...
भैरव सिंह - जो पीछे छूट गया... वह लौट कर नहीं आने वाले... अब हम क्या कर सकते हैं... यह बताओ... (एक गहरा साँस छोड़ता है) हमारे ही महल में... हमारे ही नाक के नीचे... केके को गायब करवा दिया... हमें अपनी ही औलाद के सामने... (चुप हो जाता है) (भीमा से) भीमा...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - उन दो छचुंदरों को बुला कर लाओ...
भीमा - जी हुकुम... (भीमा बाहर चला जाता है)
भैरव सिंह - (फिर से वही तलवार के सामने खड़ा हो जाता है) प्रधान... क्या तुम इस तलवार के बारे में कुछ जानते हो...
बल्लभ - जी... मैंने सुना है... जेम्स फर्ग्यूसन की यह तलवार है... यह तलवार... आपकी राजशाही की... राज सत्ता की मुहर है...
भैरव सिंह - और क्या जानते हो...
बल्लभ - जी... और कुछ भी नहीं जानता...
भैरव सिंह - यह तलवार हमारी राजशाही की मुहर है... पर उसके साथ एक अभिशाप भी है... हमारी राजशाही का अंत के लिए.. इस तलवार को... उसकी मूठ का इंतजार है...
बल्लभ - क्या... सच में...
भैरव सिंह - हाँ... जिस दिन... इस तलवार से... वह मूठ जुड़ जाएगा... क्षेत्रपाल की राजशाही ही नहीं... क्षेत्रपाल ही ख़तम हो जाएगी...
बल्लभ - राजा साहब... क्या आप ऐसी किंवदंतीओं पर विश्वास करते हैं...
भैरव सिंह - नहीं... पर... जब से विश्वा छुटा है... हर मोड़ पर... वह हम पर भारी पड़ रहा है... ऐसा क्यूँ...
बल्लभ - आप राजा हैं... अगर आप ही... (चुप हो जाता है)
भैरव सिंह - तुम गलत सोच रहे हो प्रधान... हमें हमेशा... तुम्हारे दिमाग और सोच पर विश्वास था और है... पर फिर भी... याद करो... क्यूँ केके.. हमारे दुश्मनों जा मिला... विश्वा पर जोडार अपना विश्वास हार जाए... इसलिए... केके से वह जमीन खरीदवाए थे... तुमने... BDA अप्रूवल भी ले लिया था... पर विश्व ने कैसे... कितनी आसानी से उसे... देवोत्तर जमीन साबित कर दिया... (जवाब में बल्लभ कुछ कहता नहीं) उसी दिन हमने सोच लिया था... या तो विश्वा को हर केस से हटाएंगे... या फिर... उसे घुटनों पर ला देंगे... हम नाकामयाब रहे.... और तुम भी... प्रधान... क्या अब विश्वा को... रास्ते से हटा सकते हैं...
बल्लभ - नहीं राजा साहब नहीं... यह आप कैसी बातेँ कर रहे हैं... विश्वा बार एसोसिएशन का मेंबर है... उसने चालाकी से... अपनी लाइफ थ्रेट की एफिडेविट हाइकोर्ट के साथ साथ... उसकी कॉपी... बार एसोसिएशन में और... प्रेस क्लब में दे रखा है... उसे कुछ भी हुआ तो... केस सीधे सेंट्रल एजेंसियों के पास चली जाएगी...
भैरव सिंह - तो हम क्या करें प्रधान... हम मजबूर होना नहीं चाहते... किसीको मजबूर दिखना नहीं चाहते... हम विश्वा के अंदर की भावनाओं को... भड़का कर... उकसा कर... उसकी आवेश को हमारे खिलाफ इस्तेमाल करवाना चाहते थे... ताकि... निजी खुन्नस दिखा कर... बता कर... विश्वा को इस केस से हटवाना चाहते थे... पर... अब... अब वह केस से नहीं हटेगा... हम क्या करें...
बल्लभ - एक काम हो सकता है... कुछ निजी कारणों का हवाला दे कर... हम कुछ दिनों की... एक्सटेंशन ले सकते हैं...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... ठीक है... यही करते हैं...
ठीक उसी समय भीमा के साथ रंगा और रॉय कमरे में आते हैं l भैरव सिंह उन्हें देख कर अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है l आर्म रेस्ट पर हाथ रखकर पैर पर पैर मोड़ कर इनके तरफ़ देखता है l दोनों सिर झुकाए खड़े थे l
भैरव सिंह - आओ... हमारे राज के... दो कौड़ी के रतन... आओ... (दोनों बुरी तरह से शर्मिंदा होते हैं) बाहर ठंड नहीं लगी... इतने देर से बैठे हुए थे... (दोनों सिर झुकाए वैसे ही खड़े थे) प्रधान...
बल्लभ - जी... जी राजा साहब...
भैरव सिंह - यह किस लायक थे... हमने इन्हें कहाँ लाकर बिठाया... और आज इनकी नाकामी ने... हमें क्या दिखाया... (एक पॉज) चुप क्यूँ हो दोनों... कुछ तो बको...
रॉय - (कांपती आवाज में) वह... राजा सहाब... हमारा सारा ध्यान... राजकुमारी जी को लेकर था... हमने कभी सोचा नहीं था... केके साहब को... विश्वा उठा लेगा...
भैरव सिंह - रॉय... तु शादी सुदा तो है ना...
रॉय - (चुप रहता है)
भैरव सिंह - हमने कुछ पुछा है...
रॉय - जी... जी राजा साहब....
भैरव सिंह - बच्चे...
रॉय - दो.. दो बच्चे हैं... दोनों लड़के हैं...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... तेरे ही हैं ना... या फिर... तेरी गैर मौजूदगी में... कोई और हल चला गया...
रॉय - (अपनी आँखे बंद कर लेता है और जबड़े भिंच लेता है)
भैरव सिंह - अबे हराम के ढक्कन... विश्वा अपनी जगह से हिला तक नहीं... और तु कह रहा है... उसने उठा लिया... महल के चारो तरफ़ तेरे प्लान के मुताबिक सिक्युरिटी थी... ना कोई बाहर गया... ना कोई अंदर आया...
कुछ देर के लिए कमरे में मरघट सी शांति छा जाती है l ना जवाब में रॉय कुछ कहता है ना ही भैरव सिंह l फिर कुछ देर बाद
भैरव सिंह - क्यूँ रंगा... तु कुछ नहीं कहेगा...
रंगा - (डरते डरते) राजा साहब... हमें इतना मालूम है... की वह केके विश्वा को लेकर बहुत खौफ जदा था... पर जब पुलिस उसके बाराती बन कर आए... तब वह घोड़ी चढ़ कर आया... पर महल के अंदर... (चुप हो जाता है)
भैरव सिंह - आओ बैठ जाओ... (तीनों में से कोई नहीं बैठता) (रौबदार आवाज में हुक्म देते हुए) बैठ जाओ... (पहले बल्लभ बैठता है, फिर रंगा और रॉय बैठते हैं) छेद तो हुआ है... पर किसके पिछवाड़े... यह जानना जरूरी है... क्यूँकी जहाँ अति आत्मविश्वास हो... छेद वहीँ बन जाता है... या बनाया जाता है...
रंगा - गुस्ताखी माफ राजा साहब... (भैरव सिंह उसके तरफ़ देखता है) क्यूँ ना एक आखिरी बार... महल के अंदर... केके साहब को ढूँढा जाए...
भैरव सिंह - भीमा...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - सिवाय अंतर्महल को छोड़ कर... पुरे महल को अच्छी तरह से छान मारो...
भीमा - जी हुकुम...
इतना कह कर भीमा वहाँ से चला जाता है, उसके जाने के बाद फिर से कमरे में चुप्पी सी छा जाती है l
रंगा - राजा साहब... गुस्ताखी माफ... एक सवाल.... पूछ सकता हूँ... (भैरव सिंह उसे देखता है और हल्के सा सिर हिलाता है) यह पाँच रत्न... कौन कौन हैं...
भैरव सिंह - तीन रत्नों को तो जानते हो ना...
रंगा - जी...
भैरव सिंह - और दो रत्नों के बारे में... बाद में जानकारी मिलेगी... पर याद रखना... जानने के बाद... उनसे मिलने की ख्वाहिश कभी नहीं करना... गलती से भी नहीं...
बल्लभ - कभी राजा साहब के... नौ रत्न हुआ करते थे... कुछ ने राजा साहब के साथ छोड़ा... और कुछ को राजा साहब ने छोड़ दिया... राजा साहब को कोई छोड़ दे... या राजा साहब किसी को छोड़ दें... दोनों ही सूरत में... उसे ही खतरा होता है...
भैरव सिंह - क्या बात है रॉय... बड़े गहरे सोच में खोए हुए हो...
रॉय - राजा साहब... हमने तो अपनी जान लगा दी थी... हमें अफ़सोस है कि... हम आपकी रुतबे को कायम रखने में नाकाम रहे...
भैरव सिंह अपनी जगह से उठ जाता है l यह लोग उठने को होते हैं, भैरव सिंह उन्हें बैठने के लिए इशारा करते हुए दीवार के पास लगे मूठ विहीन तलवार के पास जाकर तलवार को देखते हुए कहता है
भैरव सिंह - खोता वही है... जिसने कमाया हो... यह रौब... यह रुतबा... हमें विरासत में मिला है और हम... इन सबके वारिस हैं... जो भी हुआ... वह कीचड़ था... जो विश्वा की तरफ से उछला था... बस दाग लगा है... और यह दाग हमें याद रहेगा... (अब इनके तरफ मुड़ता है) जंग होगी.. यह तय था... बस मैदान क्या होगा.. कहाँ होगा... इससे बेख़बर थे... अब जंग चाहे जहां भी हो... जंग का रुख हम तय करेंगे... (भीमा भागते हुए अंदर आता है और झुक कर घुटनों पर बैठ जाता है) क्या बात है भीमा...
भीमा - हुकुम... एक खबर है...
भैरव सिंह - कैसी खबर...
भीमा - वह... होने वाले जमाई जी का पता चल गया है...
भैरव सिंह - अच्छा...
तीनों - (अपनी कुर्सी से उछल कर खड़े हो जाते हैं) क्या...
भीमा - जी.. उन्हें... सत्तू अपने साथ ला रहा है...
सबकी नजर दरवाज़े की ओर टिक जाता है l बदहवास केके, सत्तू के सहारे कमरे में प्रवेश करता है l रॉय भाग कर केके को सहारा देता है और रंगा एक कुर्सी खिंच कर उसे कुर्सी पर बिठाता है l भीमा पानी ला रहा था पर उसे भैरव सिंह रोक देता है और पानी की ग्लास लेकर भीमा के हाथ में व्हिस्की की एक बोतल थमा देता है l भीमा ही नहीं सभी भैरव सिंह को हैरत से देखते हैं l भैरव सिंह इशारे से भीमा को व्हिस्की बोतल देने के लिए कहता है l भीमा केके के हाथ में व्हिस्की बोतल दे देता है l केके पहले बोतल को देखता है फिर ढक्कन खोल कर एक ही साँस में आधी बोतल व्हिस्की गटक जाता है l फिर गहरी साँस लेते हुए खुदको नॉर्मल करता है l
भैरव सिंह - (सत्तू से) कहाँ से मिले...
सत्तू - (डर और शर्मिंदगी के साथ) व वह... ब. ब.. बाथरुम... में...
भैरव सिंह के साथ सभी - क्या... (सभी एक दूसरे की ओर देखने लगते हैं सिवाय भैरव सिंह के l भैरव सिंह के भौंहे सोच में सिकुड़ जाते हैं l कुछ देर की चुप्पी सी छा जाती है)
भैरव सिंह - (चुप्पी तोड़ते हुए, सत्तू से) तुम कैसे बाथरूम में पहुँच गए...
सत्तू - पता नहीं... हमने सब जगह छान लिए थे... सही मायने में... बाथरूम नहीं देखे थे... क्यूँकी बाथरूम तो... दारोगा बाबु गए थे... सोचा एक बार देख लेते हैं... जब अंदर गया... तब भी... जमाई बाबु... तब भी नहीं दिखे... पर पता नहीं क्यूँ मन किया... तो पर्दा हटाए... वह नहाने के बंबा देखने के लिए... वहीँ पर नल से बंधे हुए बैठे दिखे... हाथ मुहँ पैर सभी चिपचिपा टेप से बंधे हुए थे...
सत्तू के इतने कहने के बाद कमरे में सब शांत खड़े थे l इतने शांत के एक दुसरे के साँसे तक लेते और छोड़ते हुए सुन पा रहे थे l भैरव सिंह कुछ समझते हुए अपना सिर हिलाने लगता है और केके से पूछता है l
भैरव सिंह - केके... क्या तुम अब शुरु से बताओगे... क्या हुआ...
केके - राजा साहब... (थके लुटे पिटे हुए कि तरह) आप... जिन लोगों को... रस्म को निभाने उतारने के लिए बुलाए थे... उन्होंने ही मेरे अपहरण का रास्ता बनाया था...
भैरव सिंह - केके... हम अब पूरी बात जानना चाहते हैं... इसलिए बिना रुके... सारी बातें... हमें बताओ... थोड़ी देर पहले... माहौल ऐसा था कि... तुम शादी से डरे हुए थे... इसलिए भाग गए हो... ऐसी चर्चा चल रही थी... पर अब तुम सामने हो... हम सभी गलत थे... कहाँ चूक गए... यह जानना बहुत जरूरी है... दुश्मन को ज़वाब देना भी तो है... इसलिए कि कल की जंग से पहले... हमें.. अपनी हर गलती को सुधरना है...
केके - हाँ राजा साहब... मैं डरा हुआ हुआ था... क्यूँकी यह आप भी जानते हैं... और एडवोकेट प्रधान भी... विश्वा आपकी अहं के साथ... मेरे बिजनस को भी उतना ही नुकसान किया है... इसलिए जब... बारात लेने... पुलिस फोर्स पहुँची... मैं खुश हो गया... मुझे यकीन भी हो गया... के हर हाल में मेरी शादी हो कर ही रहेगी...
गाँव के बीच से बारात गुजरी थी... कुछ नहीं हुआ था... महल में पहुँची... कोई गड़बड़ी नहीं हुई... पर घोड़ी से उतर कर जब... पहली रस्म निभाई गई... वहीँ से सारी गड़बड़ी शुरु हुई... खैर जहाँ साला पैर धो कर... जुता पहनाता है... वहाँ तक सब ठीक था... आरती उतारने के बाद... तिलक लगाने के बाद... मुझे एक लड़की ने शर्बत पिलाई... जो कि रस्म के हिसाब से... छोटी रानी जी को यह सब करना चाहए था... वह राजकुमारी जी की दोस्त थी... नाम बनानी था...
भैरव सिंह - हाँ तो...
केके - उसने शर्बत में कुछ गड़बड़ी की थी... शायद कुछ मिलाया था... जिसका असर तुरंत तो नहीं हुआ... पर बाद में हुआ... उसके बाद... राजकुमारी जी की... चारों सहेलियाँ... अपनी साली की धर्म निभाने की कोशिश करते हुए... चारों ने मुझे पान खिलाए... उसके बाद बड़ी मुश्किल से मैंने बेदी पर... पंडित के साथ बैठ कर कुछ रस्में अदा की... पर उस वक़्त भी मेरी हालत ठीक नहीं लग रही थी... गर्मी लग रही थी... पसीना भी बह रहा था... ऊपर से उबकई सी महसूस हो रही थी... जब कपड़े बदलने के लिए... मैं कमरे में पहुँचा... तो सबसे पहले अपने कपड़े उतारे फिर सीधे बाथरूम में घुस गया... वॉश पैन की सिंक में उल्टियां करने लगा... उल्टियां इस कदर हो रहीं थीं के आँखों में अंधेरा सा छाने लगा था... बाहर कमरे में कुछ तो हो रहा था... पर मैं अपनी होश में नहीं था... जब दुरुस्त लगा... तो अपने चेहरे पर पानी की छींट मारने के बाद जैसे ही आईना देखा... पीछे दो लोग खड़े थे... मैं जैसे ही मुड़ा... वे लोग... मेरे मुहँ को दबोच लिए... तभी शायद कमरा का दरवाजा तोड़ा गया था... वह दो लोग मुझे दबोचे हुए... बाथ टब में ले गए और कर्टेंन खिंच लिया... आप सब लोग कमरे में ढूँढने लगे... क्यूँकी उन लोगों ने... बाल्कनी में... मेरे भाग जाने की कोई सीन बना दिया था... कुछ देर बाद... इंस्पेक्टर दास अंदर आया... उसने कर्टेंन उठा कर देखा... के वह दो बंदे मुझे दबोच रखा था... पर वह हरामजादा कुछ नहीं किया... उल्टा... अपना काला लौड़ा निकाल कर पास के कमोड में मुता... फिर फ्लश कर... दरवाजा बंद करके चला गया... आप लोग कमरे में ही मौजूद थे... पर किसी ने... बाथरूम में आने की जहमत नहीं की... कुछ देर बाद बाथरूम में दो लोग और आए... जिन्होंने शायद... बाहर मेरे भाग जाने वाला सीन बनाया था... चारों ने मिलकर... स्टिकी टेप से... हाथ पैर और मुहँ को अच्छे से बाँध दिया... फिर पानी की टाप से बाँध कर... टब के सिरहाने बिठा दिया और मुझे कर्टेंन के पीछे छुपा दिया... वह चारों आराम से... कमरे से निकल भी गए... अगर अभी सत्तू ने वह कर्टेंन हटा कर नहीं देखा होता... तो शायद... मेरे मरने के बाद ही... आप लोगों कों मेरा पता लगता...
केके अब चुप हो जाता है l सब सुनने के बाद भैरव सिंह की ओर देखते हैं l भैरव सिंह के चेहरा बहुत सख्त दिख रहा था और जबड़े भिंचे हुए थे l सबकी नजरें भैरव सिंह की मुट्ठीयों पर जाता है l भैरव सिंह अपनी मुट्ठीयाँ मल रहा था l बल्लभ इस बार केके से सवाल करता है l
बल्लभ - अच्छा केके बाबु... आपके हिसाब से... वह चार लोग थे... जिन्होंने आपको... इसी महल में... हमारी आँखों के नीचे छुपा दिया...
केके - हाँ... प्रधान बाबु हाँ... बड़ी शर्म की बात है... वे चारों... महल के अंदर आए... पर महल के पहरेदारों को पता नहीं चला... मतलब... या तो पूरी की पूरी पहरेदारों को फौज निकम्मी है... या फिर ग़द्दार... ऊपर से... पुलिस... जो कभी राजा साहब के जुते की नोक पर हुआ करती थी... वही... राजा साहब के खिलाफ साजिश में शामिल है...
बल्लभ - आप घबराईये मत केके साहब... हम उन्हें ढूंढ निकलेंगे... और पुलिस के खिलाफ... उपर बात कर... उन्हें सस्पेंड कराएंगे...
सभी इस बार फिर से भैरव सिंह की ओर देखते हैं l भैरव सिंह अभी भी मुट्ठीयाँ मल रहा था l भैरव सिंह अब मुड़ कर अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है l
केके - माफ कीजिएगा राजा साहब... आप जंग जितने कि बात कर रहे हैं... जबकि आपके अपने... यहाँ तक आपकी औलादें भी... आपके साथ नहीं हैं... (भैरव सिंह अपने माथे पर दो उँगलियाँ फ़ेरने लगता है, जिसे देख कर बल्लभ केके से फिर एक सवाल करता है)
बल्लभ - अच्छा... वह जो चार बंदे... आपसे कुछ बात करी... या आपस में कुछ बात कर रहे थे...
केके - वे चार... बड़ी खामोशी और शांति से अपना काम अंजाम दे रहे थे... चारों आपस में... इशारों से बातेँ कर रहे थे... पर जब भी बात कर रहे थे... मेरे कान भर रहे थे...
बल्लभ - कैसी बातेँ कर रहे थे...
केके - (चुप रहता है)
बल्लभ - आपने बताया नहीं... वे चारों आपसे कैसी बातेँ कर रहे थे...
केके - नहीं जाने दीजिए... राजा साहब को बुरा लगेगा...
यह बात सुन कर भैरव सिंह अपनी आँखे खोलता है l एक तीखी नजर से केके की ओर देखने लगता है l कुछ देर केके को देखने के बाद भैरव सिंह केके से पूछता है l
भैरव सिंह - केके... तुम्हें देख कर ऐसा लग रहा है... जैसे उन चार बंदों ने... हमारे खिलाफ तुम्हारे कानों में कुछ बातेँ की है... और कहीं ना कहीं... तुम उनकी बातों से सहमत भी लग रहे हो...
केके कोई जवाब नहीं देता और अपना चेहरा घुमा लेता है, भैरव सिंह को यह बहुत बुरा लगता है l वह अपनी जगह से उठ खड़ा होता है और चलते हुए केके के पास आकर खड़ा होता है l पर केके कोई प्रतिक्रिया दिए वगैर वहीँ बैठा रहता है l भैरव सिंह अपनी दांत पीसने लगता है l भैरव सिंह का यह रुप देख कर सत्तू, भीमा और बल्लभ अपनी जगह से पीछे हटते हैं l उन्हें हटता देख कर रंगा और रॉय भी धीरे धीरे पीछे हटने लगते हैं l
भैरव सिंह - ऐसा कभी हुआ नहीं... के हम किसी के सामने खड़े हों जाएं... और वह बंदा.. अपनी कुर्सी से चिपका रहे...
यह सुन कर केके को अपनी गलती का एहसास होता है और वह डर के मारे सिर उठा कर भैरव सिंह की ओर देखने लगता है l भैरव उसके गर्दन को पकड़ लेता है और झटके से ऊपर उठा लेता है l केके की आँखों में अब डर साफ दिखने लगता है l वह अब गिड़गिड़ा कर बिनती करने लगता है
केके - म... म... मुझे माफ़ कर दीजिए... गलती हो गई...
भैरव सिंह - कहो... उन चारों ने हमारे खिलाफ... क्या कान भरा है...
केके - बताता हूँ... बताता हूँ... मेरा दम घुट रहा है... प्लीज मुझे छोड़ दीजिए.. (भैरव सिंह उसे छोड़ देता है l केके अपनी गर्दन पर हाथ फ़ेरने लगता है l फिर खुद को दुरुस्त करने के बाद कहने लगता है)
केके - वे चारों... मुझे बारी बारी से कह रहे थे.. के आप ने शादी की झांसा दे कर... मेरी दौलत लूट ली... इस शादी में आपकी ना कोई दिलचस्पी है... ना ही कोई मंजुरी... बल्कि आप खुद ही चाह रहे हैं... यह शादी ना हो... अगर यह शादी टूटती है... तो किसी बहाने से... आप यह शादी महीने के लिए... टाल देंगे... फिर मेरी शादी कभी भी नहीं होगी... (सिर झुका कर चुप हो जाता है)
भैरव सिंह - उन्होंने और भी कुछ कहा होगा...
केके - जी... जी राजा साहब... उनका कहना था... आपने दो ही शादी के सैंपल कार्ड लेकर आए थे... जिन्हें दिए... उन्हें चिढ़ाने के लिए... जबकि... किसी तीसरे को कार्ड दिया ही नहीं गया है... हर कार्ड में... शादी के साथ साथ... रिसेप्शन की तारीख भी लिखा होता है... पर आपने जो कार्ड दी है... उसमें रिसेप्शन की तारीख भी नहीं लिखा था... और सबसे अहं बात... राजा साहब ने... अपने नए जमाई बाबु का परिचय... बड़े राजा से भी नहीं कराया... (केके चुप हो जाता है, केके के चुप्पी के साथ पूरा माहौल में चुप्पी छा जाती है l भैरव सिंह के चेहरे पर कोई भाव नहीं दिखता पर कमरे में मौजूद सभी के चेहरे पर तनाव उभर आती है)
भैरव सिंह - (चुप्पी तोड़ते हुए) उन चार बंदों ने जो करना था... बड़ी सफाई के साथ कर दिए... तुम हम पर भरोसा करो... इसलिए... हमने तुम्हें... जुडिशल स्टैम्प पेपर पर दस्तखत कर तुमसे मंजुरी ली थी... पर बात वहीँ पर आ कर रुक जाती है... कौन हमारे और हमारे विश्वास के साथ है... तुम्हारे मन में शक का कीड़ा... एक सांप का शक़्ल इख्तियार कर चुका है... इसलिये तुम अब हमारे विश्वास के लायक नहीं रहे...
केके - मुझे माफ कर दीजिए राजा साहब... थोड़ा बहक गया था... ऊपर से यह शराब का नशा...
भैरव सिंह - वह एक कहावत है... की शराब का नशा... अंदर की बातों और जज्बातों को बाहर निकाल दिया करता है...
केके - ठीक है राजा साहब... फ़िर मुझे यहाँ से जाने की इजाजत दीजिए...
भैरव सिंह - नहीं केके... अब तुम यहाँ से नहीं जा सकते... सिर्फ कुछ लोगों को पता है... के तुम्हारा अपहरण हुआ था.. लेकिन सारे गाँव वाले यह जानते हैं... के तुम भाग गए हो... हमारी दी हुई इज़्ज़त और पगड़ी को रौंद कर... अब यही बात दुनिया को भी मालूम हो... के तुम भाग गए हो... पुलिस की रिपोर्ट में भी यही आएगा... यह छोटी सी बदनामी... उससे कई गुना अच्छा है... के तुम्हारा अपहरण हुआ... वह भी महल के भीतर से... और मिले भी तुम... महल के भीतर से... इसलिए हमेशा हमेशा के लिए... तुम्हारा... फरार रहना ही... इस महल की इज़्ज़त के लिए अच्छा है...
केके - नहीं... नहीं राजा साहब नहीं... (रोने लगता है) मुझे जाने दीजिए...
इतना कह कर बाहर की ओर भागने लगता है l पर कमजोरी के कारण तेजी से भाग नहीं पाता और उसे भीमा दबोच लेता है l राजा भैरव सिंह सब रॉय और रंगा के तरफ़ मुड़ता है l
भैरव सिंह - मेरे दो अनमोल रतन से परिचित होने का समय आ गया है.... चलो सब अब... रंग महल...
भीमा अपने पट्ठों के मदत से केके का मुहँ टेप से बंद कर बाहर एक जीप पर पटक देते हैं l बल्लभ के साथ डरते डरते रंगा और रॉय बैठ जाते हैं l भैरव सिंह एक अलग गाड़ी में बैठ जाता है और सभी थोड़ी देर में रंग महल पहुँच जाते हैं l चूँकि केके का हस्र क्या होगा अनुभवी भीमा को मालूम था इसलिए वह और उसके पट्ठे केके को लेकर आखेट गृह के गैलेरी में पहुँचते हैं l रंगा और रॉय को इन सबके बारे में कोई जानकारी नहीं थी l पर वे दोनों बल्लभ के साथ, बल्लभ के पास बैठ जाते हैं l भीमा एक जगह जहाँ स्विमिंग पुल पर कुद लगाने के डाइविंग ब्लॉक पर केके को लेकर खड़ा था l रंगा और रॉय देखते हैं कि स्विमिंग पुल चारों ओर ऊँची दीवारों के घेरे में हैं l घेरे में कई जगह दरवाजे हैं l कुछ देर बाद भैरव सिंह भीमा के पास आता है l
भैरव सिंह - भीमा इसे हमारे हवाले करो... आज इसे हम खुद... आखेट में पहुँचाएँगे... तुम जाओ... हमारे इशारे का इंतजार करो... (भीमा केके को भैरव सिंह के हवाले कर वहाँ से चला जाता है और एक कंट्रोल पैनल के पास जाकर खड़ा हो जाता है l भैरव सिंह अब केके को गिरेबान से पकड़ कर अपने पास लाता है और उसे कहता है) हाँ... उन चार बंदों ने... तुझसे सही कहा था... हम किसी भी हाल में... यह शादी रुकवा देते... महीने के भीतर तुझे यहीं लाकर फेंक देते... जो महीने बाद होना चाहिए था... तेरी बेसब्री ने... तुझे आज फिकवा रहा है... साले भड़वे... हरामी कमीने... तुने अपनी मौत हमारी हाथों से... तभी लिखवा चुका था... जब तु दुश्मनी करने... चेट्टी से जा मिला था... तुने जितनी भी दौलत... हमारी दम से कमाई थी.. वह सब हमने तुझसे ले ली... अब तेरे हिस्से का... जो हम तुझे देना चाहते थे... के अब दे रहे हैं...
भैरव सिंह ने जो भी कुछ कहा उसे सिर्फ केके ही सुन पाया l पर उसे और दो लोग समझ चुके थे बल्लभ और भीमा l रंगा और रॉय डर और आशंका के साथ केके की भविष्य से अंजान बुत बने बैठे हुए थे l भैरव सिंह केके को छोड़ देता है l केके सीधे स्विमिंग पुल में गिरता है l केके तैर कर बाहर आता है और अपनी मुहँ पर चिपकी टेप को निकालने देता है l तभी कंट्रोल पैनल में भीमा एक लिवर दबा देता है l
केके - (चिल्ला कर) बे साले हरामी... काहे का राजा बे... मैं तेरी पोल खोल के रख दूँगा कुत्ते...
तभी एक आवाज के साथ उल्टी दिशा के दीवार का एक दरवाजा खुल जाता है l दूसरी दिशा में और एक दरवाजा खुल जाता है l केके गली देते देते रुक जाता है l उसके कानों में किसी जानवर की गुर्राहट पड़ती है l वह उस आवाज की तरफ देखता है एक लकड़बग्घा उसके तरफ आ रहा था वह डरके मारे पानी में कूद जाता है l पानी के बीचों-बीच पहुँच कर लकड़बग्घे की ओर देखता है कि तभी उसके कानों में छपाक की आवाज़ सुनाई देती है पीछे मुड़ कर देखता है एक मगरमच्छ उसके तरफ़ आ रहा था l वह घबराते हुए एक दुसरे किनारे पर पुल से निकलने लगता है कि लकड़बग्घा उसके कंधे को जबड़े में ले लेता है l टेप फाड़ कर केके की दर्दनाक चीख निकल जाता है पर तभी उसका एक टांग मगरमच्छ के जबड़े आ जाता है l फिर कुछ ही देर में केके की चीख बंद हो जाती है l स्विमिंग पुल लाल रंग से रंग जाता है l रंगा और रॉय की हालत बहुत खराब हो जाती है l रॉय भागते हुए जाता है और स्वीमिंग पुल के ऊपर उल्टियां करने लगता है l थोड़ी देर के बाद वह डरते हुए मुड़ कर भैरव सिंह की ओर देखता है l
भैरव सिंह - हमारे दो अनमोल रतन को देख लिए... अब फैसला करो... तुम लोग... हमारे साथ.. हमारे विश्वास के साथ बंधे होकर रहोगे.. या... हमारे इन रत्नों से मिलोगे...
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अगले दिन
यशपुर के तहसील ऑफिस के स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट लगी हुई थी l विश्वा, नरोत्तम पत्री, सुधांशु मिश्रा और कुछ गाँव वाले अंदर बैठे हुए थे l तीनों ज़ज अंदर आते हैं l मुख्य ज़ज टेबल पर गैवेल को टेबल पर तीन बार पटक कर सबको शांत होने के लिए कहता है l
ज़ज - कोर्ट की कारवाई शुरु की जाए... कोर्ट यह जानना चाहती है... क्या वादी पक्ष उपस्थित हैं...
विश्व - (अपनी जगह से उठ कर) जी माय लॉर्ड...
ज़ज - क्या प्रतिवादी पक्ष के... राजा भैरव सिंह उपस्थित हैं...
कोई नहीं था l भैरव सिंह को कुर्सी खाली थी l ज़ज पुलिस इंस्पेक्टर दास के तरफ़ देखता है l दास अपने कंधे उचकाता है l
ज़ज - इंस्पेक्टर दास... आप राजगड़ थाने के इंचार्ज हैं...
दास - येस माय लॉर्ड... पर हमें ऐसा कोई आदेश नहीं मिला है... की हम राजा साहब को... आपके समक्ष पेश करें... राजा साहब को प्रतिवादी... ऑनरेबल हाई कोर्ट ने बनाया है... और स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट को... राजगड़ को लाने वाले भी राजा साहब ही हैं...
ज़ज - ठीक है... कोर्ट उनकी प्रतीक्षा करेगी... क्या... वादी वकील... विश्व प्रताप महापात्र को... कोई आपत्ति है...
विश्व - जी नहीं योर ऑनर... पर मेरा आग्रह रहेगा... जब तक राजा साहब या उनके तरफ़ से कोई अदालत में हाजिर नहीं हो जाता... तब तक इस केस के ताल्लुक... कुछ तथ्य तर्कों के साथ... अदालत को अवगत कराना चाहता हूँ...
ज़ज - ठीक है... प्रस्तुत कीजिये...
विश्व - माय लॉर्ड... इस केस में... इंवेस्टीगेशन चीफ... पत्री सर... और प्रमुख गवाहों को लेकर मैं बहुत चिंतित हूँ... इसलिए... मेरी अदालत से दरख्वास्त है... की उन्हें यह केस समाप्त होने तक... पूर्ण सुरक्षा मुहैया कराया जाए...
ज़ज - मिस्टर विश्व प्रताप... क्या आप कहना चाहते हैं कि... राजा साहब से... उनको खतरा है...
विश्वा - जी माय लॉर्ड... यह केस आपकी जुडिक्शन में आ रहा है... इसलिए यह आदेश आप ही पारित कर सकते हैं...
ज़ज - डोंट क्रॉस योर लिमिट... हम क्या कर सकते हैं... और क्या नहीं... यह अदालत को कृपया आप ना बताएं...
विश्व - आई एम सॉरी माय लॉर्ड... यह कोई छोटी या मामूली केस नहीं है... इसकी एक्जीक्यूटिव मैजिस्ट्रेट लेवल की तहकीकात हो चुकी है... एक तरह से... केस को प्रमाणों के साथ पुष्टि की जा चुकी है... केवल... राजा साहब के प्रतिवादी होने... और उनकी निजी कारण के वज़ह से... केस यहाँ आई हुई है...
ज़ज - विश्व प्रताप... केस में... प्रोसिक्यूशन ही सब कुछ नहीं होता... न्याय व्यवस्था के लिए... डिफेंस का भी अपना महत्व है... जब तक... वादी और प्रतिवादी अपना अपना तथ्य अदालत के सामने रख नहीं देते... तब तक... किसी मुजरिम को... कोई भी अदालत सजा नहीं दे सकती... आशा है... यह बात आपको समझ में आ गई होगी...
विश्व - जी माय लॉर्ड...
ज़ज - आपकी... विटनेश प्रोटेक्शन की बात पर... अदालत ज़रूर गम्भीर रूप से विचार करेगी... अब आप बैठ सकते हैं...
विश्व बैठ जाता है l दर्शकों के दीर्घा में बैठे सुप्रिया की ओर विश्व देखता है l सुप्रिया कुछ समझने की मुद्रा में अपना सिर हिलाती है l लगभग एक घंटे के बाद अदालत के अंदर बल्लभ आता है l वह कम्प्यूटर राइटर को एक काग़ज़ देता है l राइटर उस काग़ज़ को ज़ज के हाथों में सौंप देता है l ज़ज काग़ज़ देखने के बाद
ज़ज - यह क्या है... और आपकी तारीफ़...
बल्लभ - माय लॉर्ड.. मैं एडवोकेट बल्लभ प्रधान... राजा भैरव सिंह का... लीगल एडवाइजर...
ज़ज - ठीक है... पर इस एफिडेविट का मतलब...
बल्लभ - एफिडेविट में साफ लिखा है माय लॉर्ड... बीते कल... राजकुमारी जी की मंगनी थी... बड़ी धूमधाम से मनाने के लिए... बिल्कुल शादी की तरह उत्सव के साथ मंगनी कराने की तैयारी थी... गाँव के सारे लोगों की मौजूदगी में यह मंगनी होनी थी... पर... (बल्लभ रुक जाता है)
ज़ज - मिस्टर प्रधान... आपको पूरी बात बतानी होगी... क्यूँकी आपका पूर्ण बयान... अदालत ही नहीं... प्रोसिक्यूशन भी सुन रहा है...
बल्लभ - जी माय लॉर्ड... सिर्फ प्रोसिक्यूशन के वकील ही नहीं... इंस्पेक्टर दास भी मौजूद थे... कल पता नहीं किस कारण वश... मंगनी करने आए दूल्हा गायब हो गया है... गुमशुदगी का रिपोर्ट कर दी गई है... (एक काग़ज़ देते हुए) यह रही.. एफआईआर की कॉपी... घर में सदमा भरा माहौल है... इसलिये... राजा साहब ने... कम से कम एक हफ्ते के लिए... केस में एक्सटेंशन माँगा है... ताकि इस सदमें से हल्के होने के बाद... इस केस में ध्यान लगा सके...
ज़ज - ठीक है... एडवोकेट विश्व प्रताप... आप यह कॉपी देख सकते हैं... (राइटर वह एफआईआर को कॉपी को लेकर विश्व के हाथ में देता है) (ज़ज इंस्पेक्टर दास से पूछता है) इंस्पेक्टर... क्या आप राजमहल में हुई गुमशुदगी के ऑफिसर कॉम गवाह हैं...
दास - सर... गुमशुदगी का रिपोर्ट... आज सुबह दर्ज हुई थी... और यह सच है कि... इस केस में... इनवेस्टिगेशन ऑफिसर मैं ही हूँ...
ज़ज - इस एफिडेविट में लिखा है... आपकी मौजूदगी में... मंगनी करने आया दूल्हा... गायब हो गया था... आपने उस दूल्हे के कमरे की तलाशी भी ली है...
दास - (एक नजर विश्व पर डालता है, फिर) जी योर ऑनर... पर मैं आगे की कोई तहकीकात नहीं की... वह एक फॉर्मालिटी थी... और केस भी आज सुबह दर्ज हुई है... और कानून के मुताबिक... चौबीस घंटे तक आदमी को गुमशुदा माना नहीं जाता...
ज़ज - ठीक है... यह अदालत... राजा साहब की एफिडेविट पर विचार करने के लिए अपने पास रखती है... और इंस्पेक्टर दास को कल ही अपना रिपोर्ट सबमीट करने के लिए कहती है... उसके बाद... राजा साहब की एफिडेविट पर अदालत निर्णय लेगी... यह अदालत कल तक के लिए... स्थगित किया जाता है..
तीनों ज़ज अदालत से चले जाते हैं l उनके जाते ही अदालत खाली हो जाती है l रह जाते हैं तो पाँच लोग l विश्व, पत्री, सुधांशु, दास और सुप्रिया l