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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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parkas

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बस आ गया हूँ मित्रों
अपने रिश्तेदार की सुरक्षा को सुनिश्चित करलेने के बाद विशाखापट्टनम से लौटा हूँ
आज रात मैं अपडेट प्रस्तुत कर दूँगा
Intezaar rahega Kala Nag bhai....
 

Kala Nag

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👉एक सौ इक्कीसवां अपडेट
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रोणा अपनी जीप को दौड़ा रहा है l बगल में बल्लभ मुहँ लटकाये खीज कर बैठा हुआ है l ड्राइविंग करते वक़्त बीच बीच में रोणा बल्लभ की ओर देख कर मुस्करा रहा था जिससे बल्लभ का मुड़ और भी ख़राब हो रहा था l

बल्लभ - अबे भोषड़ी के... तुझे कुछ दिनों के लिए छुट्टी में जाने को कहा था... मुझे क्यूँ तू पूछ बना कर लिए जा रहा है...
रोणा - वेरी सिम्पल... अब यह बंदर जिधर जाएगा... उसकी पूछ भी तो उधर जाएगा...
बल्लभ - दिमाग और किस्मत दोनों तेरे खराब थे... इसलिए तुझे छुट्टी में जाने की जरूरत थी...
रोणा - अरे यार... मैं अकेला दस पंद्रह दिन के लिए ट्विन सिटी में क्या करूँगा...
बल्लभ - तो मैं तेरे साथ क्या करूँगा... तुझे आइडिया दिया... मतलब किसी रेड लाइट एरिया में... दस पंद्रह दिनों के लिए... डूबा रहता... मुझे क्या... मेरी गांड मारने ले जा रहा है...
रोणा - मैं तो मजे करूँगा ही... तुझसे भी करवाउंगा... चिंता मत कर... मुझे याद है तेरी फर्माइश... इस बार पूरा करेंगे...
बल्लभ - क्यूँ किसी रंडी खाने का शेयर होल्डर है तु...
रोणा - नहीं... पर हिस्सेदार बनने में कितना टाइम लगेगा... पर ऐयाशी के लिए... रंडी खाना जाने की क्या जरूरत है...
बस एक रांड चाहिए..
ऐयाशी के लिए...
बल्लभ - (दांत पिसते हुए जबड़े भिंच कर रोणा की ओर देखने लगता है)
रोणा - (अपनी ही धुन में) थ्रीसम... गैंग बैंग सुना है कभी... (बल्लभ की ओर देख कर आँख मारते हुए) इस बार करेंगे... हा हा हा... (बल्लभ फिर भी कुछ जवाब नहीं देता) बुरा मत मान यार... मेरा दोस्त है तु... वैसे भी राजगड़ में तु करता क्या... परिवार को तो तुने विदेश में बसा दिया है... साल में एक बार जाता है... बाकी टाइम अपने इंजिन का करता क्या है... कभी कभी सर्विसिंग करवाना ज़रूरी है... समझा...
बल्लभ - इसके लिए... रंडी ढूंढने निकला है..
रोणा - ना... ढूंढने नहीं... (अचानक लहजा खतरनाक हो जाता है) किसी को रंडी बनाने... अपने नीचे लीटाने के लिए...
बल्लभ - (चौंक कर) कहीं तु... उस थप्पड़ वाली कि बात तो नहीं कर रहा है...
रोणा - वाह... यह हुई ना बात... एक हरामी के दिल की बात को.. दुसरा सच्चा हरामी ही जान सकता है...
बल्लभ - बे हरामी... तु जानता क्या है उसके बारे में... मुझे डाऊट है... शायद उस लड़की ने वक़ालत की हो... इंटरेंशीप के जरिए... वह प्रतिभा से जुड़ी हो...
रोणा - तो जुड़ने दे... किसे फर्क़ पड़ता है...
बल्लभ - तु... जितना बड़ा हरामी है... उतना ही बड़ा निर्लज्ज भी है... विश्व ने तुझे एक नहीं दो बार हस्पताल के बेड़ में लिटाया... इतनी आसानी से भुल कैसे गया...
रोणा - (जबड़े भींच कर) कुछ नहीं भुला हूँ...
बल्लभ - तो... इतना बड़ा पंगा लेने क्यूँ जा रहा है... हम उस लड़की के बारे में... कुछ भी नहीं जानते... उसकी बैकग्राउंड क्या है... कोई आइडिया नहीं है...
रोणा - अरे यार... जब से उसे देखा है... उसकी आगे की... और पीछे की... सारी ग्राउंड ही ग्राउंड नजर आ रही है...
बल्लभ - प्रतिभा... स्टेट के औरतों के लिए... वकालत कर रही है... विश्व के पास भी वक़ालत की डिग्री है... अगर वह लड़की वकालत के प्रोफेशन से... किसी भी तरह जुड़ी हुई होगी... तो तु सोच भी नहीं सकेगा... तेरे साथ जो होगा...
रोणा - साले... काले कोट वाले... मैं अभी जो जा रहा हूँ... उस लड़की की पुरी डिटेल निकलने... या यूँ कह... उसे ढूंढ कर उसकी कुंडली निकालने जा रहा हूँ... एक बार उसके बारे में पुरी जानकारी इकट्ठा कर लूँ... फिर... (आगे कुछ नहीं कहता, उसके आँखों में एक शैतानी चमक दिखने लगता है) वह प्रतिभा... वह क्या कर लेगी... देखना वकील प्रतिभा को... राजा साहब एक दिन उसे ऐसे उठवा लेंगे... के खुद उसको भी पता नहीं चलेगा... और जब चलेगा... तब तक वह मगरमच्छ के पेट में हजम हो चुकी होगी... जैसे उस नभ वाणी के रिपोर्टर और उसकी बीवी का हुआ था...
बल्लभ - एक रिपोर्टर को गायब करने के लिए... क्या कुछ करना पड़ा है तु जानता भी है... उसे अंदाजा तक नहीं था... पर प्रतिभा... वह एक वकील है... अगर वह विश्व का साथ दे रही है... तो उसकी अपनी पुरी तैयारी होगी... यह मत भुल.. वह एक पब्लिक फिगर भी है... और खास बात... उसे कुछ पालिटिशीयन का साथ भी है...
रोणा - यहीं पर ही तो खेल खेलना है... उसके पति ने... विश्व के ट्रीटमेंट के समय... फोटो और वीडियो निकलवा कर... मेरी गवाही को झूठा साबित करवा दिया था.... और कमिनी ने... विश्व को वकालत की डिग्री दिलवा दिया... उस अधमरे सांप को... एक विशाल अजगर बना दिया है... जो अब हम सबको निगलने को तैयार बैठा है...
बल्लभ - तु कहना क्या चाहता है...
रोणा - यही... की राजा साहब का ध्यान सिर्फ... विश्वा को सजा दिलवाने पर ही थी... मेरी गवाही जिसके वज़ह से झूठा साबित हुआ... उसे कुछ नहीं किया... और सोने पे सुहागा देख... वही दंपति ने... विश्व को हमसे लड़ने लायक बना दिया...
बल्लभ - तुझे गुस्सा किस पर है...
रोणा - (चिल्लाते हुए) सब पर... विश्वा पर... वैदेही पर... सेनापति दंपति पर... और... (आवाज दबा कर) राजा पर..
बल्लभ - (हैरान हो कर) राजा साहब पर क्यूँ...
रोणा - मैं... विश्वा को मार देना चाहता था... राजा साहब ने मना किया... मेरी गवाही झूठी साबित हो गई... राजा साहब ने... मेरे लिए कोई बदला नहीं लिया... इसलिए... मेरा बदला... अब मुझे लेना होगा...

दोनों के दरम्यान कुछ देर के लिए खामोशी पसर जाती है l बल्लभ से कुछ जवाब ना पाने के वज़ह से रोणा उसकी ओर देखता है l बल्लभ के चेहरे पर चिंता की लकीर उसे साफ दिख रहा था l

रोणा - क्या सोच रहा है वकील...
बल्लभ - यही... के कटक या भुवनेश्वर में तुझे किस हस्पताल को ले चलूँ...
रोणा - क्यूँ मुझे क्या हुआ है...
बल्लभ - तेरा दिमाग खराब हो गया है... जो राजगड़ या यशपुर में कर लेता था... तु वह सब कटक या भुवनेश्वर में कर लेगा... तु यह सब जो कुछ... सोच भी कैसे सकता है...
रोणा - क्यूँ मेरी सोच में कमी कहाँ रह गई...
बल्लभ - इतना तो मानेगा ना तु... वह विश्व भुवनेश्वर रह कर... राजगड़ की खबर रखा करता था...
रोणा - हाँ... तो...
बल्लभ - तो वह... राजगड़ में रहकर... भुवनेश्वर की खबर नहीं निकाल सकता क्या...
रोणा - हाँ... कर तो सकता है... पर करेगा क्यूँ...
बल्लभ - क्या मतलब...
रोणा - (बैठे हुए सीट के पीछे वाली पॉकेट से एक फाइल निकाल कर बल्लभ को देते हुए) यह ले... यह देख...

बल्लभ फाइल खोल कर देखता है l एक ऑफिस ऑर्डर था रोणा के नाम l रोणा डेपुटेशन पर फैकल्टी बनकर अंगुल पुलिस एकाडमी जा रहा था पंद्रह दिनों के लिए l

बल्लभ - तो तु तैयारी के साथ जा रहा है...
रोणा - हाँ...
बल्लभ - तुझे क्या लगता है... तेरी तैयारी पुरी है...
रोणा - हाँ... मैं यह जानता हूँ... विश्वा जरूर हम पर नजर रखा होगा... इसलिए... मैंने यह ऑर्डर निकलवाया है... अगर पता करेगा.. तो भी उसे लगेगा... के मैं अंगुल में हूँ... वैसे भी... गाँव में मैंने उसके पीछे... मेरे खास आदमी को लगाया है... वह छींकेगा भी... मुझे खबर लग जाएगी...
बल्लभ - ह्म्म्म्म... ठीक है... पर तु उस लड़की को ढूँढेगा कैसे... क्यूंकि अगर तु प्रतिभा पर नजर रखेगा... तो विश्व को खबर लग सकती है...
रोणा - वहाँ पर... हम किसी और से काम लेंगे...
बल्लभ - मतलब राजा साहब के आदमी से...
रोणा - अरे नहीं... उससे नहीं... मैं किसी और से काम लूँगा...
बल्लभ - उससे क्यूँ नहीं...
रोणा - तु जानता भी है राजा साहब ने किसे काम दिया है...
बल्लभ - नहीं...
रोणा - राजा साहब ने... अपने यशपुर महल के केयर टेकर को भेजा है... और वह वहाँ पर किसी प्राइवेट डिटेक्टिव से काम ले रहा है...
बल्लभ - ओ... पर तु किससे काम लेना चाहता है...
रोणा - टोनी से... उर्फ लेनिन से...
बल्लभ - क्या... पर उसने तो कहा था... विश्वा के रास्ते कभी नहीं आएगा...
रोणा - हाँ.. उसे थोड़े ना पता है... प्रतिभा और उसका पति... विश्व के मुहँ बोले माँ बाप बन गए हैं... और मुझे लेनिन से सीधे काम नहीं लेना है... उसके नेट वर्क से लेना है...
बल्लभ - क्या तु राजा साहब से रेवोल्ट करेगा...
रोणा - ना मेरे जिगर के छल्ले ना... इतना बड़ा कलेजा नहीं है मेरा... पर विश्वा से तो हिसाब मुझे चुकाना ही है... मेरी गट फिलिंग कह रही है... उस लड़की से... विश्वा का कुछ लेना देना होगा...
बल्लभ - क्या... तुझे ऐसा क्यूँ लगता है... कोई लेना देना होगा....
रोणा - जरा सोच काले कोट वाले जरा सोच... घर में करीब करीब पांच से छह लड़कियाँ थीं.... पर हमें पानी देने एक ही लड़की आई... वह भी बिना मांगे... एक जवान लड़की... घर में एक बुढ़ी औरत की मेहमान को पानी पीला रही है... नौकरानी तो नहीं हो सकती... पहनावा ही कुछ ऐसा था...
बल्लभ - अच्छा मान लिया... विश्वा से उसका कोई लेना देना होगा... तो... अगर कोई बड़े बैकग्राउंड वाली लड़की हुई तो...
रोणा - तो... हा हा हा हा... तो... हा हा हा हा... अगर उस लड़की का टांका विश्वा से भिड़ा हुआ होगा... तो वह कभी भी बड़े बैकग्राउंड वाली लड़की नहीं होगी... नहीं हो सकती... जरूर किसी मिडल क्लास या गरीब घर की लड़की होगी... क्यूंकि कोई मॉर्डन या बड़े घर की लड़की... विश्वा जैसे सजायाफ्ता मुजरिम से कैसे इश्क लड़ायेगी...


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विश्वा उमाकांत के घर को अपने तरीके से सजा रहा है l चूंकि उसे कारपेंट्री का अनुभव था l घर को सजाने के लिए अपना अनुभव का इस्तेमाल कर रहा था l तभी टीलु बाहर से कुछ सामान लेकर आता है l

टीलु - भाई... एक खबर है..
विश्वा - (काम करते हुए) क्या...
टीलु - आज वह इंस्पेक्टर रोणा... अपने वकील दोस्त के साथ... राजगड़ से बाहर गया है... एक लंबी छुट्टी पर...
विश्व - ह्म्म्म्म... तुम्हें कैसे पता चला...
टीलु - क्या भाई... अपना कुछ सेटिंग है... यही तो अपनी स्पेशियलिटी है...
विश्व - कहाँ गया है... कितने दिनों के लिए गया है... जानते हो...
टीलु - हाँ... उसने शायद अपने लिए... एक ऑफिशियल ऑर्डर निकलवाया है... पुलिस ट्रेनिंग एकेडमी अंगुल में पंद्रह दिनों के लिए छोटी ट्रेनिंग सेशन के लिए... फैकल्टी बन कर गया है...
विश्व - इतना कुछ... तुम्हें कैसे मालुम हुआ... तुम तो कह रहे थे... वह अपना दिमाग दुरुस्त करने के लिए... राजगड़ से दुर जाना चाहता था..
टीलु - हाँ ऐन मौके पर बिल्ला की किस्मत जाग गई... रोसोड़े में दुध की बर्तन गिर गई...
विश्व - (अपने काम को रोक कर, टीलु की देखते हुए) उसकी किस्मत से कुछ भी नहीं हुआ है... मुझ तक खबर पहुँचाने के लिए... उसने यह प्लॉट बनाया है...
टीलु - (चौंकता है) क्या... मतलब... उसे मेरे बारे में... पता चल चुका है...
विश्व - नहीं... अभी तक तो नहीं...
टीलु - फिर... मेरा मतलब है... तुमको ऐसा क्यूँ लगा...
विश्व - मैं दुश्मन को उसकी दिमाग से सोच रहा हूँ... इसलिए...
टीलु - चलो ठीक है... तो फिर यह ऑर्डर...
विश्व - फेक है... ऐसा कोई ऑर्डर नहीं निकला है...
टीलु - यह तुम अंदाजा लगा रहे हो... या...
विश्व - अंदाजा लगा रहा हूँ... पर सटीक... उसे अंदेशा है... मैं उसकी हर हरकत पर नजर रख रहा हूँ... इसलिए उसने मेरे साथ काउंटर इंटेलिजंस गेम खेल रहा है...
टीलु - काउंटर इंटेलिजंस... मतलब उसने भी तुम पर नजर रखने के लिए किसी को पीछे लगाया हुआ है क्या...
विश्व - हाँ...
टीलु - किसे...
विश्व - उदय...
टीलु - कौन उदय...
विश्व - ग्राम रक्षी... होम गार्ड... उदय कुमार को...
टीलु - अच्छा... ठीक है... तुम पर नजर रखने के लिए... उसने उदय को लगाया... पर इसके लिए... अंगुल जाने की झूठी खबर क्यूँ फैलाया...
विश्व - ताकि... मेरी रिएक्शन क्या हो रहा है... यह जानने के लिए...
टीलु - तो क्या तुम कल नहीं जा रहे हो...
विश्व - जाऊँगा तो जरूर... वह भी तीन से चार दिनों के लिए...
टीलु - जाहिर है कि उदय यह खबर रोणा तक पहुँचाएगा...
विश्व - नहीं... तुम्हें उसको संभालना होगा... उसे ही नहीं... बल्कि पुरे गाँव वालों को.... सबको यह लगे कि... मैं इस घर को सजाने में... काम इस कदर खो गया हूँ... मशगूल हो गया हूँ... के घर से निकलने की फुर्सत ही नहीं मिल पा रहा है...
टीलु - ह्म्म्म्म... यानी सिर्फ उस उदय को ही नहीं... पुरे गाँव वालों को टोपी भी पहनानी पड़ेगी... गाँव वाले इस तरफ कम ही आते हैं... तो उनका कोई प्रॉब्लम नहीं है... पर उदय...
विश्व - तुम उदय को ट्रैप में ले सकते हो... वह भी इस तरफ ज्यादा आता जाता नहीं है...
टीलु - ठीक है... पर कैसे...
विश्वा - जैसे तुम दूसरों से खबर निकलवा रहे हो... बिल्कुल वैसे ही...
टीलु - ऐ विश्वा भाई... मैं खबर बड़ी ट्रिक लगा कर निकलवा रहा हूँ... यह मेरी सीक्रेट है... हाँ...
विश्व - अरे मैं वही कह रहा हूँ... तुम अपना उसी सीक्रेट वेपन का इस्तेमाल करो... और जब तक मैं वापस ना आऊँ... उदय और गाँव वालों को यह एहसास दिलाओ... के मैं राजगड़ में हूँ...
टीलु - ठीक है... मैं वह सब करवा लूँगा... पर मान लो अगर... कटक या भुवनेश्वर में... उस कमबख्त मर्दुद रोणा से आमना सामना हुआ तो...
विश्व - (मुस्कराते हुए) उसमें मानने वाली बात क्या है... आमना सामना तो होना ही होना है...
टीलु - तो फिर बात को छुपाने की क्या जरूरत है...
विश्वा - जरूरत है... क्यूंकि मुझ पर सिर्फ़ रोणा ही नजर नहीं रख रहा है... बल्कि और भी कुछ लोग नजर रख रहे हैं....
टीलु - क्या... कौन कौन...
विश्व - एक उदय को जानता हूँ... पर बाकियों को नहीं जानता...
टीलु - यह तो बहुत खतरनाक खबर है भाई... एक विश्वा... और सौ जासूस...
विश्व - सौ नहीं चार... शायद..
टीलु - चलो एक रोणा का... और
विश्व - और एक... शायद चेट्टी का..
टीलु - तीसरा राजा साहब का...
विश्व - हो सकता है...
टीलु - और चौथा... क्या डैनी भाई....
विश्व - नहीं... डैनी भाई नहीं हो सकते...
टीलु - क्यूँ.. क्यूँ नहीं हो सकते...
विश्व - कुछ मामलों में... डैनी भाई बहुत परफेक्ट हैं... इसलिए...
टीलु - तो फिर... उन चारों को छकाना होगा...
विश्व - हाँ पर खास कर उदय को...
टीलु - खास कर उदय को... वह किसलिए...
विश्व - वह इसलिए... के रोणा ने अभी तक मुझे... सीरियसली लिया नहीं है... और ना ही उसके इर्दगिर्द भीन भीनाते उसके मच्छरों ने... उसे अपने चमचों पर भड़काना भी तो है...


विश्व के कहलेने के बाद टीलु अपना सिर हिला कर हामी भरता है पर किन्हीं ख़यालों खो जाता है l

विश्व - क्या हुआ... किस सोच में खो गए...
टीलु - यही... की रोणा... अगर अंगुल नहीं गया है... तो गया कहाँ...
विश्व - साथ में वकील प्रधान है... मतलब वह राजधानी ही गया है...

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महल के प्रांगण में भी के कोने में राज उद्यान है l उस उद्यान के एक किनारे पर एक मध्यम आकार का तालाब है l उस तालाब के बीचों-बीच एक विश्राम छत्र है जो चारों तरफ से खुला हुआ है, केवल ऊपर एक छत है l वहाँ तक जाने के लिए एक पुराना पत्थरों से निर्मित एक पुल भी है l उस छत्र बीचों-बीच ब खाली जगह पर भैरव सिंह कमर के ऊपर से अधनंगा हो कर एक तलवार हाथ में लिए बहुत तेजी से चला रहा है घुमा रहा है l यह वह छत्र है जहां केवल क्षेत्रपाल परिवार के मर्दों को छोड़ किसी और का प्रवेश वर्जित है l वहाँ पर पिनाक आ कर पहुँचता है, पिनाक को देख कर भैरव सिंह तलवार को उसके म्यान में रख देता है l फिर भैरव सिंह अपने बदन पर एक टावल डाल कर पिनाक के साथ मिलकर एक अति विशेष प्रकोष्ठ की ओर जाते हैं l यहाँ पर भी नौकर चाकरों का आना मना है l अंदर आते ही टावल से अपना पसीना पोछते हुए एक दीवार के सामने खड़ा होता है l उस दीवार पर सजे हुए अपने परिवार के राजसी चिन्ह के सामने खड़ा होता है l उस राजसी चिन्ह के नीचे एक शो केस में एक तीन फिट की बिना मूठ वाली तलवार रखी हुई है l भैरव सिंह उस तलवार को देखते हुए अपना पसीना पोंछ रहा था l पिनाक आकर उसके करीब खड़ा होता है

पिनाक - क्या हुआ राजा साहब... ऐसी क्या बात हो गई... के हम अपने कारिंदों के सामने... या गुलामों के सामने नहीं हो सकता था... और आपने हमें यहां बुलाया...

भैरव सिंह घुम कर पिनाक को देखता है और फिर पास पड़े एक कुर्सी पर बैठ जाता है l पिनाक को इशारे से पास पड़े और एक कुर्सी पर बैठने को इशारा करता है l

पिनाक - (बैठते हुए) लगता है... कोई बहुत ही खास बात हो गई है... जिसे जानने का हक... हमारे वफादार भीमा को भी नहीं है...
भैरव सिंह - काना-फुसी.. बहुत खतरनाक चीज़ है... शुरू बहुत छोटी से होता है... पर एक कान से दुसरे कान तक गुज़रते गुज़रते... एक बहुत बड़ा सैलाब बन जाता है... कभी कभी वह जज्बातों की बाँध तोड़ कर इज़्ज़त की इमारत को ढहा देता है...
पिनाक - हम कुछ समझे नहीं...
भैरव सिंह - हमें जब मालुम हुआ... विश्वा गाँव में आ गया है... हमने अपने एक वफादार को.... फेरी वाला बना कर.... गाँव में लोगों के मन में हमारे बारे में क्या चल रहा है... औरतें क्या बातेँ करते रहते हैं... यह जानने के लिए छोड़ दिया...
पिनाक - यानी पुराने ज़माने में... जो राजे महाराजे किया करते थे... लोगों के बीच से खबर निकलवाने के लिए... आपने वही किया...
भैरव सिंह - हाँ...
पिनाक - और आपने हमें.. इस प्रकोष्ठ में बुलाया है... तो बात गंभीर है...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म...

पिनाक और कुछ सवाल नहीं करता l वह भैरव सिंह की ओर देखता है l भैरव सिंह अपनी जबड़े भींचते हुए कुछ सोचे जा रहा था l कुछ देर की खामोशी के बाद पिनाक से रहा नहीं जाता l

पिनाक - अहेम.. अहेम... राजा साहब...
भैरव सिंह - (पिनाक की ओर देखते हुए) हुकूमत... हमेशा दौलत और ताकत के बूते किया जाता है... जो वफादारी के घेरे में महफ़ूज़ रहती है... पर हुकूमत की नींव को लालच और सियासत हिला कर... ढहा देती है... इसलिए हुक्मरान का यह फर्ज होता है... वफादारों की वफ़ादारी का घेरा कभी ढीली ना पड़े...
पिनाक - हमें किससे खतरा है राजा साहब..
भैरव सिंह - नहीं अभी तक तो नहीं.... पर हमें... अब तैयार होना होगा... और अपने वफादारों को तैयार रखना होगा...
पिनाक - राजा साहब... हम अभी भी कुछ समझ नहीं पा रहे हैं...
भैरव सिंह - राजगड़ या आसपास... हमारे खिलाफ... कोई मुहँ खोल कर... बात नहीं कर सकता है... पर कानाफूसी तो कर लेते हैं...
पिनाक - हमारे खिलाफ कानाफूसी...
भैरव सिंह - हाँ छोटे राजा जी.. हाँ... उस रात को विश्वा हमारे महल में आया था... जो हालात बनें... भले ही किसीने विश्वा पर गौर नहीं किया था... पर कुछ नौकर चाकरों को इतना जरूर मालुम हो गया... कोई हिम्मत कर के आया था... महल में घुसा था... और बड़े राजा जी की... ग़ैरत को लानत दे कर... छेड़ कर गया था...
पिनाक - ओ... हम समझे थे कि... कोई इस बात पर... चर्चा नहीं करेगा... आपने भी तो बड़े राजा जी से यही कहा था...
भैरव सिंह - नहीं कर रहे हैं कोई चर्चा... सिर्फ कानाफूसी कर रहे हैं...
पिनाक - (खीज जाता है) आ ह्ह्ह्ह्... हमें विश्वा को ख़तम कर देना चाहिए था... उसके इस गुस्ताखी के लिए... पर आपने कहा था कि... वह गुस्ताखी हमारे आदमियों से करे... और हमारे आदमियों के जरिए... खबर हम तक पहुँचनी चाहिए... अगर वह कभी हमारे आदमियों से उलझा तो...
भैरव सिंह - वह उलझ चुका है...
पिनाक - (उछल पड़ता है) क्या...
भैरव सिंह - हूँ... हमारे आदमियों को... रात के अंधेरे में... राजगड़ के गलियों में... दौड़ा दौड़ा कर मारा है...
पिनाक - (खड़ा हो जाता है) क्या... यह आप क्या कह रहे हैं... यह... यह कब हुआ... और भीमा... भीमा ने या हमारे लोगों ने हमें खबर क्यूँ नहीं की...
भैरव सिंह - यही तो हम भी सोच रहे हैं... आज सुबह भीमा से हमने पुछा तो वह बात छुपा गया...
पिनाक - यह तो बहुत बड़ी गुस्ताखी है... यह... यह आपको क्या उस फेरी वाले ने बताया है...
भैरव सिंह - हाँ... छोटे राजा जी... क्या आप जानते हैं... पुराने ज़माने में... राजा अपने सीमा के भीतर बसने वालों की बातों को जानने के लिए... नाई और धोबी से खबरें लिया करते थे... नाई इसलिए... बाल या दाढ़ी बनाने वालों से लगातार बात कर उनसे बहुत सारी बातेँ उगलवा लेता था.... और धोबी की पहुँच ज्यादातर घरों के भीतर तक होती थी... जो नदी या तालाब तक जो भी आपसी कानाफूसी होती थी... वह सारी बातेँ राजा को बता दिया करते थे... हमने भी उसी तरह... एक फेरी वाले को गाँव के लोगों के बीच छोड़ा... उसने जो भी कानाफूसी सुनी... हमें उसीसे सारी बातेँ पता चलीं...
पिनाक - ओ... तो क्या हमें... विश्वा की इस जुर्रत के लिए... सजा नहीं देना चाहिए...
भैरव सिंह - हाँ देना चाहिए... पर कैसे... (पिनाक चुप रहता है) हम अपने तरफ से कुछ करेंगे... तो लोगों को पता चल जाएगा कि वह विश्वा था... जो हमारे घर में घुसा था... और अगर हम हमारे आदमियों को मारने की सजा देंगे... तब भी उसे काबु में करेगा कौन... हमारे वही आदमी... जिनको उसनें दौड़ा दौड़ा कर मारा है... हमारे वही आदमी जिन्होंने... होम मिनिस्टर को मजबूर कर दिया था... हमारे पास आकर नाक रगड़ने के लिए...
पिनाक - तो... तो क्या हम उस कमजर्फ विश्वा को छोड़ देंगे...
भैरव सिंह - नहीं.. उसका कुछ ना कुछ इलाज करेंगे... वह भी चालाकी से... उसने अपना जिंदा रहने का इंतजाम कर दिया है... अगर उसे कुछ भी हुआ... तो रुप फाउंडेशन की फाइल एसआईटी के हाथ से निकल कर... सीबीआई की दफ्तर पहुँच जाएगी...
पिनाक - बहुत बड़ा गेम खेल गया है...
भैरव सिंह - हाँ... बहुत ही बड़ा गेम खेल गया है... वह अब... हर कदम पर... हमें या हमारे आदमियों को.. उकसायेगा... या यूँ कहें उकसा रहा है...
पिनाक - तो उसका इलाज...
भैरव सिंह - उसके इलाज के लिए... शनिया और उसके पट्टों ने कुछ सोच रखा है.. बदला वह लोग लेंगे... हमें बस उनकी सोच को दिशा देना है... विश्वा के बर्बादी की ओर मोड़ देना है...
पिनाक - वगैर कुछ जानें... हम क्या कर सकते हैं... और कैसे दिशा दे सकते हैं...
भैरव सिंह - वह आप सब हम पर छोड़ दीजिए...
पिनाक - क्या... सिर्फ इसीलिए आपने हमें याद किया....
भैरव - नहीं... हमने राजगड़ कभी नहीं छोड़ा... बस कुछ दिनों के लिए बिजनस के सिलसिले में बाहर जाया करते थे... इसलिए यहाँ के लोगों की नब्ज को जानते हैं... उनके मिजाज को पहचानते हैं...
पिनाक - तो...
भैरव सिंह - आपको एक और कानाफूसी पर विराम लगाना है... जो शहर में हो रहा है....
पिनाक - भुवनेश्वर में...
भैरव सिंह - हाँ... पर कैसे... यह पुरी तरह से हम.... आपकी सोच और करनी पर छोड़ते हैं...
पिनाक - क्या... और एक कानाफूसी... कैसी कानाफूसी...
भैरव सिंह - क्षेत्रपाल परिवार की इज़्ज़त दाव पर लगी है...
पिनाक - क्या...

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xxx होटल
होटल के रेस्तरां में बैठे वीर थोड़ी नाराज़गी से अनु की ओर देख रहा था l अनु भी झिझकते हुए वीर की ओर देख रही थी l

वीर - मैंने तुमसे क्या कहा... और तुमने क्या किया...
अनु - (मुस्कराने की कोशिश करते हुए) वह मैं...
वीर - क्या मैं... घर पर दादी थी... इसलिए तुमसे कुछ नहीं कहा...
अनु - आप नाराज मत होईये ना...
वीर - क्यूँ नाराज ना होऊँ... बोलो... तुम्हें क्रेडिट कार्ड दिया... ताकि तुम एक अच्छी ड्रेस खरीद कर... पहन कर आती... पर नहीं... तुमने मेरी क्रेडिट कार्ड पर... मेरे लिए खरीदारी करी... क्यूँ...
अनु - वह... मेरे पास है ना... वह पहली बार... आपने मेरे लिए खरीदा था...
वीर - अरे... पागल लड़की... वह अब पुराना हो चुका है... अभी भाभी और रुप के सामने... इसमे अच्छी तो लगेगी... पर मैं चाहता था... तु और भी अच्छी दिखे... कोई अच्छी सी नई वाली नहीं खरीद सकती थी...
अनु - मेरे लिए क्या अच्छा है... मुझ पर क्या जंचती है... वह आप ही जान सकते हैं... मुझे क्या मालुम... मैंने तो खरीदारी के लिए... आपको बुलाया भी था... वैसे भी कहते हैं... खाना हमेशा अपनी पसंद खाना चाहिए... पर पहनावा हमेशा अपने चाहने वाले के पसंद की पहनना चाहिए...
वीर - अच्छा... यह तुमसे किसने कहा...
अनु - यह कहावत है... हमेशा लोग कहते हैं... मैं बचपन से सुनती आ रही हूँ... (थोड़ी शर्मा कर) इसीलिए तो... मैं वह पहली वाली ड्रेस लाई हूँ... पहन कर भाभी जी के सामने जाने के लिए...
वीर - हे भगवान... क्या करूँ इस लड़की का...
अनु - (मुहँ लटका कर दुखी मन से) मैं अच्छी नहीं हूँ ना... आपका मन खराब हो गया...

वीर पल भर के लिए स्तब्ध हो जाता है और अपनी जगह से उठ कर अनु के पास जाता है l अनु के दोनों गाल खींचते हुए कहता है l

वीर - अरे मेरी जान... मेरी पगली... मेरी भोली... तु जब इतनी प्यारी प्यारी बातेँ करती है.. ऐसी हरकतें करती है... तो दिल करता है... के मैं इन लाल लाल सेव जैसे गालों को चबा जाऊँ...
अनु - (चेहरे पर मुस्कान आ जाती है) झूठे...
वीर - आह... मेरी जान यह कह कर अब तो मेरी शाम भी बना दिया तुमने... उम्म्म्... (अनु के गाल पर एक चुम्मा जड़ देता है,)

अनु शर्म से दोहरी हो जाती है, अपनी आँखे मूँद कर चेहरा झुका लेती है l अनु की ठुड्डी को उठाते हुए

वीर - अनु...
अनु - हूँ...
वीर - जाओ... वॉशरुम जाओ... वहीं पर... कपड़े बदल कर... यह वाली पहन कर आओ...
अनु - (अपनी आँखे खोल कर) आपकी भाभी नाराज तो नहीं होंगे ना...
वीर - नहीं... यह ठीक रहेगा... तुम जिस रुप में मुझे दीवाना बना दिया... उसी रुप में... भाभी के सामने आओ... जरा वह भी तो देखें... वीर को अपना गुलाम बनाने वाली... वह लड़की कौन है...
अनु - (धीरे से) झूठे...
वीर - क्या... क्या कहा...
अनु - वह...(अटक अटक कर) वॉशरुम में.. क्यूँ ..
वीर - अरे घबराओ मत... आज का दिन यह पुरा फ्लोर बुक्ड है... तुम्हारे लिए... इसलिए वॉशरुम जाओ... और तैयार हो कर आओ... वहाँ पर कोई नहीं जाएगा... (आँख मारते हुए) मैं भी नहीं...

अनु शर्मा कर कपड़े लेकर तैयार होने के लिए वॉशरुम की ओर भाग जाती है l उसके जाने के बाद वीर पहले अपनी घड़ी देखता है और शुभ्रा को फोन लगाता है l शुभ्रा फोन उठाती है

शुभ्रा - हाँ... कहो वीर...
वीर - आप लोग कब तक आ जाओगे...
शुभ्रा - बस पहुँचने ही गए समझो... क्या तुम्हारे भैया पहुँच गए...
वीर - नहीं... पर आ जाएंगे... फोन किया था... पार्टी ऑफिस में मीटिंग में थे... वह निकल चुके थे... उन्हें पहुँचने में आधा घंटा और लगेगा...
शुभ्रा - हाँ जानती हूँ... उन्होंने मुझे भी फोन पर बता दिया था... हमें भी दस से पंद्रह मिनट ही लगेंगे...
वीर - ठीक है... फिर... (वीर फोन काट देता है)


शुभ्रा अपनी गाड़ी चला रही थी l बगल में ही उसके रुप बैठी हुई थी l शुभ्रा के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी l गाड़ी चलाते वक़्त कभी रुप की ओर देखती फिर मुस्कराते हुए रास्ते पर नजर वापस कर गाड़ी चला रही थी l ऐसे में उसकी गाड़ी xxx होटल के पार्किंग में पहुँच जाती है l गाड़ी पार्क करने के बाद जब दोनों गाड़ी से उतरते हैं तो देखते हैं वहाँ पर पहले से ही विक्रम इंतजार कर रहा था l

रुप - वाव... क्या बात है भाभी... भैया तो पहले से ही... तैयार खड़े हैं...
शुभ्रा - (विक्रम को देख कर हैरानी से) आप... आप तो थोड़ी देर बाद आने वाले थे ना...
विक्रम - (छेड़ते हुए) क्यूँ मुझे देख कर आपको खुशी नहीं हुई...
रुप - क्या बात कर रहे हो भैया... भाभी को इतना बड़ा शॉक के साथ सरप्राइज दे रहे हो... खुश क्यूँ नहीं होंगी भला...
विक्रम - हाँ सो तो है... खुशी और शॉक दोनों तुम्हारी भाभी के चेहरे पर साफ दिख रही है... (शुभ्रा शर्मा कर अपना चेहरा झुका लेती है) वैसे एक बात पूछूं...
रुप - मुझसे या भाभी से... वैसे कहोगे तो... मैं अकेली आप दोनों को छोड़ कर अभी वीर भैया के पास चली जाती हूँ...
विक्रम - वेरी फनी... सवाल तुम दोनों के लिए है...
रुप - क्या...
विक्रम - यही के... तुम दोनों वीर की होने वाली दुल्हन से मिलने आई हो... पर ऐसे साधारण लिबास में... खास मौका है... खास लिबास में आ सकते थे...
शुभ्रा - यह रुप का ही आइडिया था... (रुप का चेहरा उतर जाता है) और मुझे रुप की बात बहुत जंच गई... इसलिये हम दोनों आज इस मौके पर बहुत ही आम लिबास में आए हैं... (विक्रम हैरानी भरे सवालिया नजर से देखता है) देखिए... वीर ने जिसे पसंद किया है... वह बहुत ही आम घर से है... और वीर की बातों से लग भी रहा है... वह अनु थोड़ी स्वाभिमानी भी है... हम दोनों उसके सामने अपना स्टैटस दिखाने नहीं आए हैं... उसे अपनाने आए हैं... उसे यह एहसास ना हो.. के हम उससे या वह हम से अलग है... वह कहीं से भी... हमसे इंन्फेरियर फिल ना करे इसलिए...
विक्रम - वाव... बहुत अच्छे.. नंदिनी... आई आम इम्प्रेस्ड... तुमने बहुत अच्छा किया... अपना सिर क्यूँ झुकाए खड़े हो...
शुभ्रा - और नहीं तो... हमसे भी ज्यादा नंदिनी को जल्दी है... अपनी नई भाभी से मिलने और उसे अपनाने के लिए...
विक्रम - हाँ... चलो फिर... (तीनों होटल के अंदर चलने लगते हैं)
शुभ्रा - विक्की आपने तो अनु को देखा है ना...
विक्रम - हाँ... कल तक अपनी एक एंप्लॉइ को देखा था... पर आज अपनी बहु को देखने वाला हूँ...
रुप - आप अपनी बहु को... भाभी अपनी देवरानी को... और मैं अपनी नई भाभी को... हम सब अपने अपने हिस्से के एक नए रिश्तेदार को देखने जा रहे हैं...

ऐसे में बात करते करते तीनों उस रेस्त्रां वाले हिस्से में पहुँचते हैँ l वहाँ पर सिर्फ वीर चहल कदमी कर रहा था l उन तीनों के पहुँचते ही वीर थोड़ा नर्वस हो जाता है l वह बार बार वॉशरुम की ओर देखने लगता है l पर अनु अभी तक बाहर निकली नहीं थी l तीनों वीर के पास पहुँचे ही थे कि विक्रम का फोन बजने लगता है l विक्रम फोन निकाल कर देखता है डिस्प्ले पर महांती दिख रहा था l विक्रम फोन उठाता है l

विक्रम - हैलो...
महांती - युवराज... मैंने उस घर के भेदी का पता लगा लिया है... आपके सामने थोड़ी देर बाद वह घर का भेदी होगा... सबूतों के साथ होगा...
विक्रम - क्या... तुमने... उसका... पता लगा लिया...
महांती - हाँ... एक सबूत हाथ लगा है... आप इजाजत करें तो... वह कमज़र्फ आपके सामने होगा...
विक्रम - गुड... महांती गुड... (रुप विक्रम से फोन छिन लेती है और स्पीकर पर डाल कर)
रुप - हैलो महांती अंकल...
महांती - हाँ राजकुमारी जी बोलिए...
रुप - अगर आप बुरा ना मानों तो प्लीज... यह ऑफिस का काम.. आप कल के लिए रख दीजिए... हम यहाँ अपनी फॅमिली गेट टू गेदर के लिए हैं...
महांती - ओके... समझ गया... एंजॉय योर ईवनिंग...
रुप - सेम टू यु...
विक्रम - एक मिनट..
महांती - जी युवराज...
विक्रम - हमारी यह गेट टू गेदर तीन या चार घंटे में ख़तम हो जाएगी... तब तक तुम मैनेज कर लो...
महांती - ओके... मैं आपको चार घंटे बाद कॉल करता हूँ...
विक्रम - ठीक है...

फोन कट जाता है l विक्रम फोन कट जाने के बाद रुप और शुभ्रा की ओर देखता है l दोनों उसे घूर रहे थे l रुप उस फोन को अपनी वैनिटी बैग में रख देती है और वीर की ओर अपनी हाथ बढ़ा देती है l वीर पहले तो हैरान हो कर रुप को देखता है फिर समझ जाता है अपनी जेब से मोबाइल निकाल कर रुप को दे देता है l रुप वीर की मोबाइल भी अपनी वैनिटी बैग में रख कर शुभ्रा की ओर देखती है l

शुभ्रा - क्या मेरी भी...
रुप - हाँ...

शुभ्रा अपनी मोबाइल निकाल कर रुप को दे देती है और रुप बिना देरी किए उस मोबाइल को अपनी वैनिटी बैग के हवाले कर देती है l इतने में अनु को सामने आने से झिझकते हुए वीर देख समझ जाता है l वह भागते हुए वॉशरुम की ओर जाता है और खींचते हुए अनु को सबके सामने लाता है l अनु को देखते ही रुप को झटका लगता है l अनु शर्म और डर के मारे अपना सिर झुकाए खड़ी थी l उसने अभी तक रुप को देखा नहीं था l

रुप - भैया... यह...
वीर - अनु... अनुसूया है इनका नाम...
रुप - (अनु से) ऐ... देखो मेरी तरफ... (रुप इस लहजे में बात करने से सभी हैरान हो जाते हैं)
अनु - (बड़ी मुश्किल से अपना चेहरा उठाती है) तुम... (रुप से)

फिर अनु देखती है कि वहाँ पर सिर्फ दो लड़कियाँ और दो मर्द खड़े हैं, एक लड़की के मांग में सिंदूर है l मतलब यह लड़की वीर की बहन हो सकती है l

अनु - (आवाज़ नर्म पड़ जाता है) मेरा मतलब है... आप...
रुप - हाँ मैं... क्या नाम है तुम्हारा..
अनु - (रोनी सी सूरत बना कर) अ.. अनु..

रुप ताली मारते हुए खुशी के मारे उछल पड़ती है और जा कर अनु को गले से लगा लेती है l अनु के साथ साथ वहाँ पर मौजूद सभी रुप की इस हरकत से हैरान हो जाते हैं l फिर रुप अनु को छोड़ कर वीर के गले लग जाती है l

रुप - ओ... थैंक्यू भैया... थैंक्यू... मुझे भाभी बहुत पसंद है...
वीर - क्या...
शुभ्रा - पसंद है... तो इसमें उछलने वाली बात क्या है...
रुप - ओ भाभी.. लगता है आप भूल गई हो...
शुभ्रा - क्या...
रुप - अरे भाभी... मैंने एक बार वीर भैया से कहा था... मेरी बड़ी भाभी मुझसे बहुत प्यार करती हैं... मेरे लिए भाभी ऐसी लाना.. जो मुझसे झगड़ा करे...
वीर - मतलब अनु से तुम्हारी मुलाकात पहले हो चुकी है... और
रुप - हाँ... एक बार नहीं दो बार... और दोनों ही बार हमारा झगड़ा हुआ है...
वीर - क्या... कब
रुप - हाँ... पहली बार... आपके जन्म दिन पर... बक्कल खरीदते वक़्त... और दुसरी बार कल... यानी भाभी ने ज़रूर आपको ड्रेस गिफ्ट किया होगा... (अनु से) क्यूँ है ना भाभी

यह सुन कर विक्रम और और शुभ्रा हँस देते हैं l अनु और वीर दोनों शर्मा जाते हैं l

रुप - (वीर से) भैया... मुझे तो भाभी बहुत पसंद है...
शुभ्रा - हाँ मुझे भी... (कह कर शुभ्रा अपनी बैग से एक नेकलेस निकाल कर अनु को पहना देती है) (और विक्रम से) क्या आपको... आपकी होने वाली बहु पसंद नहीं आई....
विक्रम - पसंद क्यूँ नहीं आई... मुझे तो जब से मालुम हुआ था... तब से पसंद है...
शुभ्रा - तो दीजिए फिर सगुन...
विक्रम - (हड़बड़ा कर) मैं... मैं कुछ लाया नहीं...
शुभ्रा - कोई नहीं... मैंने इस नेकलेस को हम दोनों के तरफ से ही दिया है...
विक्रम - एक मिनट... फिर भी... मेरे हिस्से का फर्ज बाकी है...

विक्रम अपनी जेब से नोटों का एक बंडल निकाल कर अनु की नजर उतारता है और होटल के स्टाफ़ के बीच बांट कर ले जाने के लिए बोलता है l


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महांती अपनी गाड़ी में सामने वाली गली पर नजर गड़ाए बैठा हुआ है l कुछ देर बाद उस गली से निकल कर एक साया हाथ में छोटा सा बैग लेकर महांती के गाड़ी के पास आकर खड़ा होता है l महांती पैसेंजर साइड वाली खिड़की को नीचे सरकाता है l वह मृत्युंजय था l

मृत्युंजय - नमस्ते सर... कहिए क्यूँ बुलाया आपने...
महांती - आओ बैठो..
मृत्युंजय - कहीं जाना है क्या...
महांती - हाँ... बहुत ही जरूरी काम है...
मृत्युंजय - ठीक है सर... पर मैं आपके बगल में कैसे बैठ सकता हूँ... आप मेरे बॉस हैं... डायरेक्टर हैं...
महांती - इतना फॉर्मल होने की कोई जरूरत नहीं है... आओ बैठ जाओ..
मृत्युंजय - ठीक है सर... (कह कर महांती के बगल में बैठ जाता है)
महांती - सीट बेल्ट लगा लो...
मृत्युंजय - जी... जी सर...

मृत्युंजय अपना सीट बेल्ट लगा लेता है l उसके बाद महांती गाड़ी को आगे बढ़ा देता है l कुछ देर की खामोशी के बाद

मृत्युंजय - वैसे... हम जा कहाँ रहे हैं सर...
महांती - तुमसे... आज बहुत खास काम निकल आया है... इसलिये अब तुम बताओ.. हम कहाँ चलें... ताकि तुमसे कुछ जरुरी बात की जा सके...
मृत्युंजय - सर आप मेरे मालिक हैं... जहां आप ले चले...
महांती - अच्छा मैं तुम्हारा मालिक हूँ... बहुत अच्छे... वैसे कितने मालिक हैं तुम्हारे...
मृत्युंजय - जी... जी मैं समझा नहीं...
महांती - ठीक है... चलो मैं ऐसे पूछता हूँ... कितनी नौकरियाँ कर रहे हो तुम इस वक़्त...
मृत्युंजय - क्या सर... मैं तो बस ESS में सी ग्रेड गार्ड की नौकरी कर रहा हूँ...
महांती - मिस्टर मृत्युंजय... सच सच बताओ... अब छुपाने से कोई फायदा नहीं है...
मृत्युंजय - नहीं सर... मैं... मैं क्या छुपाऊँगा... और क्यूँ छुपाऊँगा...
महांती - ह्म्म्म्म... बहुत अच्छे... मेरी सोच से भी कहीं अधिक शातिर हो... (गाड़ी ट्रैफ़िक के वज़ह से रुक जाती है) मुझे लगता है तुम्हें अंदाजा है... पर फिर भी... ना तुम्हारे चेहरे पर कोई शिकन है... ना ही कोई परेशानी... बहुत कंफिडेंट हो...
मृत्युंजय - (मुस्करा कर) सब आपकी ही दी हुई ट्रेनिंग है सर...

महांती के जबड़े भिंच जाती हैं l वह गुस्से भरी नजर से मृत्युंजय की ओर देखता है l पर मृत्युंजय निडर और बेकदर भाव से महांती को देख रहा था l

महांती - मैंने तुम्हारे बारे सब कुछ पता लगा लिया है मृत्युंजय...
मृत्युंजय - ना.. कुछ कुछ... सिर्फ पता लगया है... वह भी उतना... जितना मैंने अपने बारे में जानकारी आपके तक पहुँचाया है...
महांती - क्या... क्या मतलब है तुम्हारा... कहना क्या चाहते हो... मैंने तुम्हारे बारे में जो कुछ जानकारी हासिल किया है... वह तुमने मुझ तक पहुँचाई है...
मृत्युंजय - जी महांती सर...
महांती - तो तुमने अपने बारे में कुछ कुछ खबर मुझ तक पहुँचाया है... हम्म्म... तो अब तुम मुझे सबकुछ बताओगे...
मृत्युंजय - जी बेशक... चलिए कहीं ऐसी जगह ले चलिए... जहां सिर्फ आपकी गाड़ी चलती रहे... और हम... आपस में बातेँ करते रहे... एक रोमांटिक गै डेट... हा हा हा... (हँस देता है)

मृत्युंजय की यह हँसी महांती की सुलगा देती है l वह आग बबूला हो कर मृत्युंजय को देखने लगता है l तभी गाड़ियों की हॉर्न सुनाई देने लगता है l महांती का ध्यान टूटता है वह अपनी गाड़ी को आगे बढ़ाता है l गाड़ी में फिर से चुप्पी छा जाती है l

महांती - तुम रॉय सिक्युरिटी सर्विस में रह कर.... हमारी ESS में क्यूँ काम किया... बोलो गद्दारी क्यूँ की...
मृत्युंजय - गद्दारी.... गद्दारी चाहे किसी से किया हो है... पर सौ फीसद वफ़ादारी खुद से किया था...
महांती - तुम... तुम नहीं जानते... तुम किससे टकरा रहे हो... तुम एक मामुली दो कौड़ी का आदमी... इतना कुछ कैसे कब...
मृत्युंजय - ना... तुम एक मामुली नौकर हो क्षेत्रपाल के... तुम्हें इतना सब कुछ जानने को हक नहीं है... (महांती गियर बदल कर गाड़ी की स्पीड बढ़ाता है) मैं रह ज़रूर झोपड़े में हूँ... मगर करोड़ों से खेलता हूँ...
महांती - तुम किस के एजेंट हो... रॉय के... या महानायक के... या चेट्टी के...
मृत्युंजय - किसीका भी नहीं... मैं वह एजेंट हूँ... जो डबल क्रास करता है...
महांती - डबल क्रॉस... मतलब तुम्हारी बहन का किडनैप...
मृत्युंजय - कोई किडनैप नहीं हुआ है... मैंने उसे... विनय के साथ भगा दिया है...
महांती - क्या...
मृत्युंजय - हाँ... मैंने पुष्पा के जरिए... महानायक का बेटा... विनय को फंसाया... बेचारा विनय... उसे लगता है... उसने मेरी बहन को... अपनी दौलत की चकाचौंध दिखा कर फंसाया है.. हा हा हा...
महांती - तुम्हारा बहुत बुरी गत होने वाली है...
मृत्युंजय - ना... ऐसा कुछ मेरे साथ नहीं होने वाला है... और जो कुछ भी होने वाला है... वह तुम्हारे साथ होने वाला है...

महांती मृत्युंजय की ओर देखता है तो पाता है मृत्युंजय के चेहरे पर कुटिल मुस्कान उभरा हुआ है l उसे हैरानी होती है मृत्युंजय मे एकदम से इतना बड़ा बदलाव देख कर l

महांती - अच्छा... तो मेरे साथ बुरा हो सकता है... कौन करेगा... तुम...
मृत्युंजय - वह तो वक़्त ही बतायेगा... वैसे यह रास्ता देख कर लगता है... हम इन्फोसिस जा रहे हैं ना... एसईजेड में...
महांती - हाँ... क्यूंकि इस रास्ते में कोई नहीं होता...
मृत्युंजय - वैसे... एक बात पूछूं... मिस्टर अशोक महांती...
महांती - तो अब सर के बजाय... मेरे नाम पर आ गए...
मृत्युंजय - हाँ...
महांती - तो मिस्टर डबल एजेंट... तुम्हारे पास कुछ ही घंटे का वक़्त है... उसके बाद मैं तुम्हें सीधे... युवराज के सामने पेश कर दूँगा...
मृत्युंजय - हाँ कुछ ही घंटे... इसलिए... क्यूंकि आज उनकी पारिवारिक मिलन का दिन है... पर एक बात बताओ महांती बाबु... आपके जैसा आदमी... क्षेत्रपाल से वफादारी क्यूँ निभा रहा है...
महांती - क्यूँ... क्यूँ नहीं निभाना चाहिए...
मृत्युंजय - असम राइफ़ल में अच्छे रैंक का ऑफिसर थे... कोर्ट मार्शल चला... सबूत के अभाव में... बच तो गए मगर इस्तीफा देना पड़ा... फिर अपना एक सिक्युरिटी सर्विस की दुकान खोल ली... वहाँ पर धक्का खा कर निकाले गए... उसके बाद ESS... आप सेना से वफादारी नहीं की... RGSS से वफादारी नहीं की... पर क्षेत्रपाल से वफादारी... क्यूँ महांती बाबु क्यूँ...
महांती - क्यूँ की मैं तुम्हारे जैसे डबल एजेंट नहीं हूँ... हाँ मैं क्षेत्रपाल के लिए वफादार हूँ... और मैं तुम्हें युवराज के सामने हर हाल में पेश करूँगा... चाहे इसके लिए... मुझे मरना ही क्यूँ ना पड़े...
मृत्युंजय - खयाल अच्छा है... तुम्हारे अंतिम शब्दों के लिए... तथास्तु...
महांती - व्हाट...

गाड़ी में ब्रेक लगाने की कोशिश करता है पर ब्रेक नहीं लगती l वह गियर बदलने की कोशिश करता है पर गियर लक हो चुका था l वह हैरान हो कर मृत्युंजय की ओर देखता है l मृत्युंजय बड़े बेफिक्र अंदाज में बैठा हुआ था l

महांती - यह क्या कर रहे हो... और यह सब... ब्रेक फैल... गियर ज़ाम...
मृत्युंजय - महांती... तुम्हें लगता है.. की तुमने मुझे उठा लिया है... पर सच यह है कि... मैंने तुम्हें उठा लिया है... (महांती फिर से ब्रेक लगाने की कोशिश करता है पर नहीं लगता) नहीं रुकेगी... और रोकना भी मत... गाड़ी जब तक चलेगी... तब तक सलामत रहेगी... उस वक़्त ट्रैफ़िक पर गाड़ी रुकी नहीं थी... ब्लकि मैंने... रुकवाई थी... भुवनेश्वर डेवेलपमेंट ऑथोरिटी के.. ड्रेनेज स्वेरेज पर... गटर की ढक्कन हटा कर मेरे आदमी ने.. तुम्हारी गाड़ी में थोड़ी सी छेड़ छाड़ कर दी है... इसलिए ना अब ब्रेक लगेगी... ना गियर काम करेगा....
महांती - कोई नहीं... अगर मैं मरूंगा... तो तुम भी नहीं बचोगे...
मृत्युंजय - टाइम टू लाफ नाउ... हा हा हा... मैं अपनी तैयारी में आया हूँ... तुम ओवर कंफिडेंट हो गए....

इतना कह कर मृत्युंजय महांती के सीट बेल्ट की स्विच दबा देता है l जिससे महांती का ध्यान हट जाता है l वह बेल्ट को दोबारा जब हूक करने की कोशिश करता है तो सीट बेल्ट हूक नहीं हो पाता l

मृत्युंजय - बेल्ट हूक नहीं होगा... उसमें मैंने एक रुपये का कॉएन डाल दिया है...

महांती घबराहट के मारे बेल्ट को खिंच कर हूकअप करने की कोशिश करता है पर हो नहीं पाता l फिर अचानक से वह हँसने लगता है l हँसते हँसते हुए महांती मृत्युंजय की ओर देखता है l मृत्युंजय अपने मुहँ पर एक गैस मास्क लगाया था l महांती की हँसी बहुत बढ़ने लगती है l

मृत्युंजय - बड़े खुशनसीब हो महांती... हँसते हँसते दर्द को भुलाकर मरने जा रहे हो.... शीघ्र मेव मृत्यु प्राप्तिरस्तु...
 

parkas

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रोणा अपनी जीप को दौड़ा रहा है l बगल में बल्लभ मुहँ लटकाये खीज कर बैठा हुआ है l ड्राइविंग करते वक़्त बीच बीच में रोणा बल्लभ की ओर देख कर मुस्करा रहा था जिससे बल्लभ का मुड़ और भी ख़राब हो रहा था l

बल्लभ - अबे भोषड़ी के... तुझे कुछ दिनों के लिए छुट्टी में जाने को कहा था... मुझे क्यूँ तू पूछ बना कर लिए जा रहा है...
रोणा - वेरी सिम्पल... अब यह बंदर जिधर जाएगा... उसकी पूछ भी तो उधर जाएगा...
बल्लभ - दिमाग और किस्मत दोनों तेरे खराब थे... इसलिए तुझे छुट्टी में जाने की जरूरत थी...
रोणा - अरे यार... मैं अकेला दस पंद्रह दिन के लिए ट्विन सिटी में क्या करूँगा...
बल्लभ - तो मैं तेरे साथ क्या करूँगा... तुझे आइडिया दिया... मतलब किसी रेड लाइट एरिया में... दस पंद्रह दिनों के लिए... डूबा रहता... मुझे क्या... मेरी गांड मारने ले जा रहा है...
रोणा - मैं तो मजे करूँगा ही... तुझसे भी करवाउंगा... चिंता मत कर... मुझे याद है तेरी फर्माइश... इस बार पूरा करेंगे...
बल्लभ - क्यूँ किसी रंडी खाने का शेयर होल्डर है तु...
रोणा - नहीं... पर हिस्सेदार बनने में कितना टाइम लगेगा... पर ऐयाशी के लिए... रंडी खाना जाने की क्या जरूरत है...
बस एक रांड चाहिए..
ऐयाशी के लिए...
बल्लभ - (दांत पिसते हुए जबड़े भिंच कर रोणा की ओर देखने लगता है)
रोणा - (अपनी ही धुन में) थ्रीसम... गैंग बैंग सुना है कभी... (बल्लभ की ओर देख कर आँख मारते हुए) इस बार करेंगे... हा हा हा... (बल्लभ फिर भी कुछ जवाब नहीं देता) बुरा मत मान यार... मेरा दोस्त है तु... वैसे भी राजगड़ में तु करता क्या... परिवार को तो तुने विदेश में बसा दिया है... साल में एक बार जाता है... बाकी टाइम अपने इंजिन का करता क्या है... कभी कभी सर्विसिंग करवाना ज़रूरी है... समझा...
बल्लभ - इसके लिए... रंडी ढूंढने निकला है..
रोणा - ना... ढूंढने नहीं... (अचानक लहजा खतरनाक हो जाता है) किसी को रंडी बनाने... अपने नीचे लीटाने के लिए...
बल्लभ - (चौंक कर) कहीं तु... उस थप्पड़ वाली कि बात तो नहीं कर रहा है...
रोणा - वाह... यह हुई ना बात... एक हरामी के दिल की बात को.. दुसरा सच्चा हरामी ही जान सकता है...
बल्लभ - बे हरामी... तु जानता क्या है उसके बारे में... मुझे डाऊट है... शायद उस लड़की ने वक़ालत की हो... इंटरेंशीप के जरिए... वह प्रतिभा से जुड़ी हो...
रोणा - तो जुड़ने दे... किसे फर्क़ पड़ता है...
बल्लभ - तु... जितना बड़ा हरामी है... उतना ही बड़ा निर्लज्ज भी है... विश्व ने तुझे एक नहीं दो बार हस्पताल के बेड़ में लिटाया... इतनी आसानी से भुल कैसे गया...
रोणा - (जबड़े भींच कर) कुछ नहीं भुला हूँ...
बल्लभ - तो... इतना बड़ा पंगा लेने क्यूँ जा रहा है... हम उस लड़की के बारे में... कुछ भी नहीं जानते... उसकी बैकग्राउंड क्या है... कोई आइडिया नहीं है...
रोणा - अरे यार... जब से उसे देखा है... उसकी आगे की... और पीछे की... सारी ग्राउंड ही ग्राउंड नजर आ रही है...
बल्लभ - प्रतिभा... स्टेट के औरतों के लिए... वकालत कर रही है... विश्व के पास भी वक़ालत की डिग्री है... अगर वह लड़की वकालत के प्रोफेशन से... किसी भी तरह जुड़ी हुई होगी... तो तु सोच भी नहीं सकेगा... तेरे साथ जो होगा...
रोणा - साले... काले कोट वाले... मैं अभी जो जा रहा हूँ... उस लड़की की पुरी डिटेल निकलने... या यूँ कह... उसे ढूंढ कर उसकी कुंडली निकालने जा रहा हूँ... एक बार उसके बारे में पुरी जानकारी इकट्ठा कर लूँ... फिर... (आगे कुछ नहीं कहता, उसके आँखों में एक शैतानी चमक दिखने लगता है) वह प्रतिभा... वह क्या कर लेगी... देखना वकील प्रतिभा को... राजा साहब एक दिन उसे ऐसे उठवा लेंगे... के खुद उसको भी पता नहीं चलेगा... और जब चलेगा... तब तक वह मगरमच्छ के पेट में हजम हो चुकी होगी... जैसे उस नभ वाणी के रिपोर्टर और उसकी बीवी का हुआ था...
बल्लभ - एक रिपोर्टर को गायब करने के लिए... क्या कुछ करना पड़ा है तु जानता भी है... उसे अंदाजा तक नहीं था... पर प्रतिभा... वह एक वकील है... अगर वह विश्व का साथ दे रही है... तो उसकी अपनी पुरी तैयारी होगी... यह मत भुल.. वह एक पब्लिक फिगर भी है... और खास बात... उसे कुछ पालिटिशीयन का साथ भी है...
रोणा - यहीं पर ही तो खेल खेलना है... उसके पति ने... विश्व के ट्रीटमेंट के समय... फोटो और वीडियो निकलवा कर... मेरी गवाही को झूठा साबित करवा दिया था.... और कमिनी ने... विश्व को वकालत की डिग्री दिलवा दिया... उस अधमरे सांप को... एक विशाल अजगर बना दिया है... जो अब हम सबको निगलने को तैयार बैठा है...
बल्लभ - तु कहना क्या चाहता है...
रोणा - यही... की राजा साहब का ध्यान सिर्फ... विश्वा को सजा दिलवाने पर ही थी... मेरी गवाही जिसके वज़ह से झूठा साबित हुआ... उसे कुछ नहीं किया... और सोने पे सुहागा देख... वही दंपति ने... विश्व को हमसे लड़ने लायक बना दिया...
बल्लभ - तुझे गुस्सा किस पर है...
रोणा - (चिल्लाते हुए) सब पर... विश्वा पर... वैदेही पर... सेनापति दंपति पर... और... (आवाज दबा कर) राजा पर..
बल्लभ - (हैरान हो कर) राजा साहब पर क्यूँ...
रोणा - मैं... विश्वा को मार देना चाहता था... राजा साहब ने मना किया... मेरी गवाही झूठी साबित हो गई... राजा साहब ने... मेरे लिए कोई बदला नहीं लिया... इसलिए... मेरा बदला... अब मुझे लेना होगा...

दोनों के दरम्यान कुछ देर के लिए खामोशी पसर जाती है l बल्लभ से कुछ जवाब ना पाने के वज़ह से रोणा उसकी ओर देखता है l बल्लभ के चेहरे पर चिंता की लकीर उसे साफ दिख रहा था l

रोणा - क्या सोच रहा है वकील...
बल्लभ - यही... के कटक या भुवनेश्वर में तुझे किस हस्पताल को ले चलूँ...
रोणा - क्यूँ मुझे क्या हुआ है...
बल्लभ - तेरा दिमाग खराब हो गया है... जो राजगड़ या यशपुर में कर लेता था... तु वह सब कटक या भुवनेश्वर में कर लेगा... तु यह सब जो कुछ... सोच भी कैसे सकता है...
रोणा - क्यूँ मेरी सोच में कमी कहाँ रह गई...
बल्लभ - इतना तो मानेगा ना तु... वह विश्व भुवनेश्वर रह कर... राजगड़ की खबर रखा करता था...
रोणा - हाँ... तो...
बल्लभ - तो वह... राजगड़ में रहकर... भुवनेश्वर की खबर नहीं निकाल सकता क्या...
रोणा - हाँ... कर तो सकता है... पर करेगा क्यूँ...
बल्लभ - क्या मतलब...
रोणा - (बैठे हुए सीट के पीछे वाली पॉकेट से एक फाइल निकाल कर बल्लभ को देते हुए) यह ले... यह देख...

बल्लभ फाइल खोल कर देखता है l एक ऑफिस ऑर्डर था रोणा के नाम l रोणा डेपुटेशन पर फैकल्टी बनकर अंगुल पुलिस एकाडमी जा रहा था पंद्रह दिनों के लिए l

बल्लभ - तो तु तैयारी के साथ जा रहा है...
रोणा - हाँ...
बल्लभ - तुझे क्या लगता है... तेरी तैयारी पुरी है...
रोणा - हाँ... मैं यह जानता हूँ... विश्वा जरूर हम पर नजर रखा होगा... इसलिए... मैंने यह ऑर्डर निकलवाया है... अगर पता करेगा.. तो भी उसे लगेगा... के मैं अंगुल में हूँ... वैसे भी... गाँव में मैंने उसके पीछे... मेरे खास आदमी को लगाया है... वह छींकेगा भी... मुझे खबर लग जाएगी...
बल्लभ - ह्म्म्म्म... ठीक है... पर तु उस लड़की को ढूँढेगा कैसे... क्यूंकि अगर तु प्रतिभा पर नजर रखेगा... तो विश्व को खबर लग सकती है...
रोणा - वहाँ पर... हम किसी और से काम लेंगे...
बल्लभ - मतलब राजा साहब के आदमी से...
रोणा - अरे नहीं... उससे नहीं... मैं किसी और से काम लूँगा...
बल्लभ - उससे क्यूँ नहीं...
रोणा - तु जानता भी है राजा साहब ने किसे काम दिया है...
बल्लभ - नहीं...
रोणा - राजा साहब ने... अपने यशपुर महल के केयर टेकर को भेजा है... और वह वहाँ पर किसी प्राइवेट डिटेक्टिव से काम ले रहा है...
बल्लभ - ओ... पर तु किससे काम लेना चाहता है...
रोणा - टोनी से... उर्फ लेनिन से...
बल्लभ - क्या... पर उसने तो कहा था... विश्वा के रास्ते कभी नहीं आएगा...
रोणा - हाँ.. उसे थोड़े ना पता है... प्रतिभा और उसका पति... विश्व के मुहँ बोले माँ बाप बन गए हैं... और मुझे लेनिन से सीधे काम नहीं लेना है... उसके नेट वर्क से लेना है...
बल्लभ - क्या तु राजा साहब से रेवोल्ट करेगा...
रोणा - ना मेरे जिगर के छल्ले ना... इतना बड़ा कलेजा नहीं है मेरा... पर विश्वा से तो हिसाब मुझे चुकाना ही है... मेरी गट फिलिंग कह रही है... उस लड़की से... विश्वा का कुछ लेना देना होगा...
बल्लभ - क्या... तुझे ऐसा क्यूँ लगता है... कोई लेना देना होगा....
रोणा - जरा सोच काले कोट वाले जरा सोच... घर में करीब करीब पांच से छह लड़कियाँ थीं.... पर हमें पानी देने एक ही लड़की आई... वह भी बिना मांगे... एक जवान लड़की... घर में एक बुढ़ी औरत की मेहमान को पानी पीला रही है... नौकरानी तो नहीं हो सकती... पहनावा ही कुछ ऐसा था...
बल्लभ - अच्छा मान लिया... विश्वा से उसका कोई लेना देना होगा... तो... अगर कोई बड़े बैकग्राउंड वाली लड़की हुई तो...
रोणा - तो... हा हा हा हा... तो... हा हा हा हा... अगर उस लड़की का टांका विश्वा से भिड़ा हुआ होगा... तो वह कभी भी बड़े बैकग्राउंड वाली लड़की नहीं होगी... नहीं हो सकती... जरूर किसी मिडल क्लास या गरीब घर की लड़की होगी... क्यूंकि कोई मॉर्डन या बड़े घर की लड़की... विश्वा जैसे सजायाफ्ता मुजरिम से कैसे इश्क लड़ायेगी...


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विश्वा उमाकांत के घर को अपने तरीके से सजा रहा है l चूंकि उसे कारपेंट्री का अनुभव था l घर को सजाने के लिए अपना अनुभव का इस्तेमाल कर रहा था l तभी टीलु बाहर से कुछ सामान लेकर आता है l

टीलु - भाई... एक खबर है..
विश्वा - (काम करते हुए) क्या...
टीलु - आज वह इंस्पेक्टर रोणा... अपने वकील दोस्त के साथ... राजगड़ से बाहर गया है... एक लंबी छुट्टी पर...
विश्व - ह्म्म्म्म... तुम्हें कैसे पता चला...
टीलु - क्या भाई... अपना कुछ सेटिंग है... यही तो अपनी स्पेशियलिटी है...
विश्व - कहाँ गया है... कितने दिनों के लिए गया है... जानते हो...
टीलु - हाँ... उसने शायद अपने लिए... एक ऑफिशियल ऑर्डर निकलवाया है... पुलिस ट्रेनिंग एकेडमी अंगुल में पंद्रह दिनों के लिए छोटी ट्रेनिंग सेशन के लिए... फैकल्टी बन कर गया है...
विश्व - इतना कुछ... तुम्हें कैसे मालुम हुआ... तुम तो कह रहे थे... वह अपना दिमाग दुरुस्त करने के लिए... राजगड़ से दुर जाना चाहता था..
टीलु - हाँ ऐन मौके पर बिल्ला की किस्मत जाग गई... रोसोड़े में दुध की बर्तन गिर गई...
विश्व - (अपने काम को रोक कर, टीलु की देखते हुए) उसकी किस्मत से कुछ भी नहीं हुआ है... मुझ तक खबर पहुँचाने के लिए... उसने यह प्लॉट बनाया है...
टीलु - (चौंकता है) क्या... मतलब... उसे मेरे बारे में... पता चल चुका है...
विश्व - नहीं... अभी तक तो नहीं...
टीलु - फिर... मेरा मतलब है... तुमको ऐसा क्यूँ लगा...
विश्व - मैं दुश्मन को उसकी दिमाग से सोच रहा हूँ... इसलिए...
टीलु - चलो ठीक है... तो फिर यह ऑर्डर...
विश्व - फेक है... ऐसा कोई ऑर्डर नहीं निकला है...
टीलु - यह तुम अंदाजा लगा रहे हो... या...
विश्व - अंदाजा लगा रहा हूँ... पर सटीक... उसे अंदेशा है... मैं उसकी हर हरकत पर नजर रख रहा हूँ... इसलिए उसने मेरे साथ काउंटर इंटेलिजंस गेम खेल रहा है...
टीलु - काउंटर इंटेलिजंस... मतलब उसने भी तुम पर नजर रखने के लिए किसी को पीछे लगाया हुआ है क्या...
विश्व - हाँ...
टीलु - किसे...
विश्व - उदय...
टीलु - कौन उदय...
विश्व - ग्राम रक्षी... होम गार्ड... उदय कुमार को...
टीलु - अच्छा... ठीक है... तुम पर नजर रखने के लिए... उसने उदय को लगाया... पर इसके लिए... अंगुल जाने की झूठी खबर क्यूँ फैलाया...
विश्व - ताकि... मेरी रिएक्शन क्या हो रहा है... यह जानने के लिए...
टीलु - तो क्या तुम कल नहीं जा रहे हो...
विश्व - जाऊँगा तो जरूर... वह भी तीन से चार दिनों के लिए...
टीलु - जाहिर है कि उदय यह खबर रोणा तक पहुँचाएगा...
विश्व - नहीं... तुम्हें उसको संभालना होगा... उसे ही नहीं... बल्कि पुरे गाँव वालों को.... सबको यह लगे कि... मैं इस घर को सजाने में... काम इस कदर खो गया हूँ... मशगूल हो गया हूँ... के घर से निकलने की फुर्सत ही नहीं मिल पा रहा है...
टीलु - ह्म्म्म्म... यानी सिर्फ उस उदय को ही नहीं... पुरे गाँव वालों को टोपी भी पहनानी पड़ेगी... गाँव वाले इस तरफ कम ही आते हैं... तो उनका कोई प्रॉब्लम नहीं है... पर उदय...
विश्व - तुम उदय को ट्रैप में ले सकते हो... वह भी इस तरफ ज्यादा आता जाता नहीं है...
टीलु - ठीक है... पर कैसे...
विश्वा - जैसे तुम दूसरों से खबर निकलवा रहे हो... बिल्कुल वैसे ही...
टीलु - ऐ विश्वा भाई... मैं खबर बड़ी ट्रिक लगा कर निकलवा रहा हूँ... यह मेरी सीक्रेट है... हाँ...
विश्व - अरे मैं वही कह रहा हूँ... तुम अपना उसी सीक्रेट वेपन का इस्तेमाल करो... और जब तक मैं वापस ना आऊँ... उदय और गाँव वालों को यह एहसास दिलाओ... के मैं राजगड़ में हूँ...
टीलु - ठीक है... मैं वह सब करवा लूँगा... पर मान लो अगर... कटक या भुवनेश्वर में... उस कमबख्त मर्दुद रोणा से आमना सामना हुआ तो...
विश्व - (मुस्कराते हुए) उसमें मानने वाली बात क्या है... आमना सामना तो होना ही होना है...
टीलु - तो फिर बात को छुपाने की क्या जरूरत है...
विश्वा - जरूरत है... क्यूंकि मुझ पर सिर्फ़ रोणा ही नजर नहीं रख रहा है... बल्कि और भी कुछ लोग नजर रख रहे हैं....
टीलु - क्या... कौन कौन...
विश्व - एक उदय को जानता हूँ... पर बाकियों को नहीं जानता...
टीलु - यह तो बहुत खतरनाक खबर है भाई... एक विश्वा... और सौ जासूस...
विश्व - सौ नहीं चार... शायद..
टीलु - चलो एक रोणा का... और
विश्व - और एक... शायद चेट्टी का..
टीलु - तीसरा राजा साहब का...
विश्व - हो सकता है...
टीलु - और चौथा... क्या डैनी भाई....
विश्व - नहीं... डैनी भाई नहीं हो सकते...
टीलु - क्यूँ.. क्यूँ नहीं हो सकते...
विश्व - कुछ मामलों में... डैनी भाई बहुत परफेक्ट हैं... इसलिए...
टीलु - तो फिर... उन चारों को छकाना होगा...
विश्व - हाँ पर खास कर उदय को...
टीलु - खास कर उदय को... वह किसलिए...
विश्व - वह इसलिए... के रोणा ने अभी तक मुझे... सीरियसली लिया नहीं है... और ना ही उसके इर्दगिर्द भीन भीनाते उसके मच्छरों ने... उसे अपने चमचों पर भड़काना भी तो है...


विश्व के कहलेने के बाद टीलु अपना सिर हिला कर हामी भरता है पर किन्हीं ख़यालों खो जाता है l

विश्व - क्या हुआ... किस सोच में खो गए...
टीलु - यही... की रोणा... अगर अंगुल नहीं गया है... तो गया कहाँ...
विश्व - साथ में वकील प्रधान है... मतलब वह राजधानी ही गया है...

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महल के प्रांगण में भी के कोने में राज उद्यान है l उस उद्यान के एक किनारे पर एक मध्यम आकार का तालाब है l उस तालाब के बीचों-बीच एक विश्राम छत्र है जो चारों तरफ से खुला हुआ है, केवल ऊपर एक छत है l वहाँ तक जाने के लिए एक पुराना पत्थरों से निर्मित एक पुल भी है l उस छत्र बीचों-बीच ब खाली जगह पर भैरव सिंह कमर के ऊपर से अधनंगा हो कर एक तलवार हाथ में लिए बहुत तेजी से चला रहा है घुमा रहा है l यह वह छत्र है जहां केवल क्षेत्रपाल परिवार के मर्दों को छोड़ किसी और का प्रवेश वर्जित है l वहाँ पर पिनाक आ कर पहुँचता है, पिनाक को देख कर भैरव सिंह तलवार को उसके म्यान में रख देता है l फिर भैरव सिंह अपने बदन पर एक टावल डाल कर पिनाक के साथ मिलकर एक अति विशेष प्रकोष्ठ की ओर जाते हैं l यहाँ पर भी नौकर चाकरों का आना मना है l अंदर आते ही टावल से अपना पसीना पोछते हुए एक दीवार के सामने खड़ा होता है l उस दीवार पर सजे हुए अपने परिवार के राजसी चिन्ह के सामने खड़ा होता है l उस राजसी चिन्ह के नीचे एक शो केस में एक तीन फिट की बिना मूठ वाली तलवार रखी हुई है l भैरव सिंह उस तलवार को देखते हुए अपना पसीना पोंछ रहा था l पिनाक आकर उसके करीब खड़ा होता है

पिनाक - क्या हुआ राजा साहब... ऐसी क्या बात हो गई... के हम अपने कारिंदों के सामने... या गुलामों के सामने नहीं हो सकता था... और आपने हमें यहां बुलाया...

भैरव सिंह घुम कर पिनाक को देखता है और फिर पास पड़े एक कुर्सी पर बैठ जाता है l पिनाक को इशारे से पास पड़े और एक कुर्सी पर बैठने को इशारा करता है l

पिनाक - (बैठते हुए) लगता है... कोई बहुत ही खास बात हो गई है... जिसे जानने का हक... हमारे वफादार भीमा को भी नहीं है...
भैरव सिंह - काना-फुसी.. बहुत खतरनाक चीज़ है... शुरू बहुत छोटी से होता है... पर एक कान से दुसरे कान तक गुज़रते गुज़रते... एक बहुत बड़ा सैलाब बन जाता है... कभी कभी वह जज्बातों की बाँध तोड़ कर इज़्ज़त की इमारत को ढहा देता है...
पिनाक - हम कुछ समझे नहीं...
भैरव सिंह - हमें जब मालुम हुआ... विश्वा गाँव में आ गया है... हमने अपने एक वफादार को.... फेरी वाला बना कर.... गाँव में लोगों के मन में हमारे बारे में क्या चल रहा है... औरतें क्या बातेँ करते रहते हैं... यह जानने के लिए छोड़ दिया...
पिनाक - यानी पुराने ज़माने में... जो राजे महाराजे किया करते थे... लोगों के बीच से खबर निकलवाने के लिए... आपने वही किया...
भैरव सिंह - हाँ...
पिनाक - और आपने हमें.. इस प्रकोष्ठ में बुलाया है... तो बात गंभीर है...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म...

पिनाक और कुछ सवाल नहीं करता l वह भैरव सिंह की ओर देखता है l भैरव सिंह अपनी जबड़े भींचते हुए कुछ सोचे जा रहा था l कुछ देर की खामोशी के बाद पिनाक से रहा नहीं जाता l

पिनाक - अहेम.. अहेम... राजा साहब...
भैरव सिंह - (पिनाक की ओर देखते हुए) हुकूमत... हमेशा दौलत और ताकत के बूते किया जाता है... जो वफादारी के घेरे में महफ़ूज़ रहती है... पर हुकूमत की नींव को लालच और सियासत हिला कर... ढहा देती है... इसलिए हुक्मरान का यह फर्ज होता है... वफादारों की वफ़ादारी का घेरा कभी ढीली ना पड़े...
पिनाक - हमें किससे खतरा है राजा साहब..
भैरव सिंह - नहीं अभी तक तो नहीं.... पर हमें... अब तैयार होना होगा... और अपने वफादारों को तैयार रखना होगा...
पिनाक - राजा साहब... हम अभी भी कुछ समझ नहीं पा रहे हैं...
भैरव सिंह - राजगड़ या आसपास... हमारे खिलाफ... कोई मुहँ खोल कर... बात नहीं कर सकता है... पर कानाफूसी तो कर लेते हैं...
पिनाक - हमारे खिलाफ कानाफूसी...
भैरव सिंह - हाँ छोटे राजा जी.. हाँ... उस रात को विश्वा हमारे महल में आया था... जो हालात बनें... भले ही किसीने विश्वा पर गौर नहीं किया था... पर कुछ नौकर चाकरों को इतना जरूर मालुम हो गया... कोई हिम्मत कर के आया था... महल में घुसा था... और बड़े राजा जी की... ग़ैरत को लानत दे कर... छेड़ कर गया था...
पिनाक - ओ... हम समझे थे कि... कोई इस बात पर... चर्चा नहीं करेगा... आपने भी तो बड़े राजा जी से यही कहा था...
भैरव सिंह - नहीं कर रहे हैं कोई चर्चा... सिर्फ कानाफूसी कर रहे हैं...
पिनाक - (खीज जाता है) आ ह्ह्ह्ह्... हमें विश्वा को ख़तम कर देना चाहिए था... उसके इस गुस्ताखी के लिए... पर आपने कहा था कि... वह गुस्ताखी हमारे आदमियों से करे... और हमारे आदमियों के जरिए... खबर हम तक पहुँचनी चाहिए... अगर वह कभी हमारे आदमियों से उलझा तो...
भैरव सिंह - वह उलझ चुका है...
पिनाक - (उछल पड़ता है) क्या...
भैरव सिंह - हूँ... हमारे आदमियों को... रात के अंधेरे में... राजगड़ के गलियों में... दौड़ा दौड़ा कर मारा है...
पिनाक - (खड़ा हो जाता है) क्या... यह आप क्या कह रहे हैं... यह... यह कब हुआ... और भीमा... भीमा ने या हमारे लोगों ने हमें खबर क्यूँ नहीं की...
भैरव सिंह - यही तो हम भी सोच रहे हैं... आज सुबह भीमा से हमने पुछा तो वह बात छुपा गया...
पिनाक - यह तो बहुत बड़ी गुस्ताखी है... यह... यह आपको क्या उस फेरी वाले ने बताया है...
भैरव सिंह - हाँ... छोटे राजा जी... क्या आप जानते हैं... पुराने ज़माने में... राजा अपने सीमा के भीतर बसने वालों की बातों को जानने के लिए... नाई और धोबी से खबरें लिया करते थे... नाई इसलिए... बाल या दाढ़ी बनाने वालों से लगातार बात कर उनसे बहुत सारी बातेँ उगलवा लेता था.... और धोबी की पहुँच ज्यादातर घरों के भीतर तक होती थी... जो नदी या तालाब तक जो भी आपसी कानाफूसी होती थी... वह सारी बातेँ राजा को बता दिया करते थे... हमने भी उसी तरह... एक फेरी वाले को गाँव के लोगों के बीच छोड़ा... उसने जो भी कानाफूसी सुनी... हमें उसीसे सारी बातेँ पता चलीं...
पिनाक - ओ... तो क्या हमें... विश्वा की इस जुर्रत के लिए... सजा नहीं देना चाहिए...
भैरव सिंह - हाँ देना चाहिए... पर कैसे... (पिनाक चुप रहता है) हम अपने तरफ से कुछ करेंगे... तो लोगों को पता चल जाएगा कि वह विश्वा था... जो हमारे घर में घुसा था... और अगर हम हमारे आदमियों को मारने की सजा देंगे... तब भी उसे काबु में करेगा कौन... हमारे वही आदमी... जिनको उसनें दौड़ा दौड़ा कर मारा है... हमारे वही आदमी जिन्होंने... होम मिनिस्टर को मजबूर कर दिया था... हमारे पास आकर नाक रगड़ने के लिए...
पिनाक - तो... तो क्या हम उस कमजर्फ विश्वा को छोड़ देंगे...
भैरव सिंह - नहीं.. उसका कुछ ना कुछ इलाज करेंगे... वह भी चालाकी से... उसने अपना जिंदा रहने का इंतजाम कर दिया है... अगर उसे कुछ भी हुआ... तो रुप फाउंडेशन की फाइल एसआईटी के हाथ से निकल कर... सीबीआई की दफ्तर पहुँच जाएगी...
पिनाक - बहुत बड़ा गेम खेल गया है...
भैरव सिंह - हाँ... बहुत ही बड़ा गेम खेल गया है... वह अब... हर कदम पर... हमें या हमारे आदमियों को.. उकसायेगा... या यूँ कहें उकसा रहा है...
पिनाक - तो उसका इलाज...
भैरव सिंह - उसके इलाज के लिए... शनिया और उसके पट्टों ने कुछ सोच रखा है.. बदला वह लोग लेंगे... हमें बस उनकी सोच को दिशा देना है... विश्वा के बर्बादी की ओर मोड़ देना है...
पिनाक - वगैर कुछ जानें... हम क्या कर सकते हैं... और कैसे दिशा दे सकते हैं...
भैरव सिंह - वह आप सब हम पर छोड़ दीजिए...
पिनाक - क्या... सिर्फ इसीलिए आपने हमें याद किया....
भैरव - नहीं... हमने राजगड़ कभी नहीं छोड़ा... बस कुछ दिनों के लिए बिजनस के सिलसिले में बाहर जाया करते थे... इसलिए यहाँ के लोगों की नब्ज को जानते हैं... उनके मिजाज को पहचानते हैं...
पिनाक - तो...
भैरव सिंह - आपको एक और कानाफूसी पर विराम लगाना है... जो शहर में हो रहा है....
पिनाक - भुवनेश्वर में...
भैरव सिंह - हाँ... पर कैसे... यह पुरी तरह से हम.... आपकी सोच और करनी पर छोड़ते हैं...
पिनाक - क्या... और एक कानाफूसी... कैसी कानाफूसी...
भैरव सिंह - क्षेत्रपाल परिवार की इज़्ज़त दाव पर लगी है...
पिनाक - क्या...

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xxx होटल
होटल के रेस्तरां में बैठे वीर थोड़ी नाराज़गी से अनु की ओर देख रहा था l अनु भी झिझकते हुए वीर की ओर देख रही थी l

वीर - मैंने तुमसे क्या कहा... और तुमने क्या किया...
अनु - (मुस्कराने की कोशिश करते हुए) वह मैं...
वीर - क्या मैं... घर पर दादी थी... इसलिए तुमसे कुछ नहीं कहा...
अनु - आप नाराज मत होईये ना...
वीर - क्यूँ नाराज ना होऊँ... बोलो... तुम्हें क्रेडिट कार्ड दिया... ताकि तुम एक अच्छी ड्रेस खरीद कर... पहन कर आती... पर नहीं... तुमने मेरी क्रेडिट कार्ड पर... मेरे लिए खरीदारी करी... क्यूँ...
अनु - वह... मेरे पास है ना... वह पहली बार... आपने मेरे लिए खरीदा था...
वीर - अरे... पागल लड़की... वह अब पुराना हो चुका है... अभी भाभी और रुप के सामने... इसमे अच्छी तो लगेगी... पर मैं चाहता था... तु और भी अच्छी दिखे... कोई अच्छी सी नई वाली नहीं खरीद सकती थी...
अनु - मेरे लिए क्या अच्छा है... मुझ पर क्या जंचती है... वह आप ही जान सकते हैं... मुझे क्या मालुम... मैंने तो खरीदारी के लिए... आपको बुलाया भी था... वैसे भी कहते हैं... खाना हमेशा अपनी पसंद खाना चाहिए... पर पहनावा हमेशा अपने चाहने वाले के पसंद की पहनना चाहिए...
वीर - अच्छा... यह तुमसे किसने कहा...
अनु - यह कहावत है... हमेशा लोग कहते हैं... मैं बचपन से सुनती आ रही हूँ... (थोड़ी शर्मा कर) इसीलिए तो... मैं वह पहली वाली ड्रेस लाई हूँ... पहन कर भाभी जी के सामने जाने के लिए...
वीर - हे भगवान... क्या करूँ इस लड़की का...
अनु - (मुहँ लटका कर दुखी मन से) मैं अच्छी नहीं हूँ ना... आपका मन खराब हो गया...

वीर पल भर के लिए स्तब्ध हो जाता है और अपनी जगह से उठ कर अनु के पास जाता है l अनु के दोनों गाल खींचते हुए कहता है l

वीर - अरे मेरी जान... मेरी पगली... मेरी भोली... तु जब इतनी प्यारी प्यारी बातेँ करती है.. ऐसी हरकतें करती है... तो दिल करता है... के मैं इन लाल लाल सेव जैसे गालों को चबा जाऊँ...
अनु - (चेहरे पर मुस्कान आ जाती है) झूठे...
वीर - आह... मेरी जान यह कह कर अब तो मेरी शाम भी बना दिया तुमने... उम्म्म्... (अनु के गाल पर एक चुम्मा जड़ देता है,)

अनु शर्म से दोहरी हो जाती है, अपनी आँखे मूँद कर चेहरा झुका लेती है l अनु की ठुड्डी को उठाते हुए

वीर - अनु...
अनु - हूँ...
वीर - जाओ... वॉशरुम जाओ... वहीं पर... कपड़े बदल कर... यह वाली पहन कर आओ...
अनु - (अपनी आँखे खोल कर) आपकी भाभी नाराज तो नहीं होंगे ना...
वीर - नहीं... यह ठीक रहेगा... तुम जिस रुप में मुझे दीवाना बना दिया... उसी रुप में... भाभी के सामने आओ... जरा वह भी तो देखें... वीर को अपना गुलाम बनाने वाली... वह लड़की कौन है...
अनु - (धीरे से) झूठे...
वीर - क्या... क्या कहा...
अनु - वह...(अटक अटक कर) वॉशरुम में.. क्यूँ ..
वीर - अरे घबराओ मत... आज का दिन यह पुरा फ्लोर बुक्ड है... तुम्हारे लिए... इसलिए वॉशरुम जाओ... और तैयार हो कर आओ... वहाँ पर कोई नहीं जाएगा... (आँख मारते हुए) मैं भी नहीं...

अनु शर्मा कर कपड़े लेकर तैयार होने के लिए वॉशरुम की ओर भाग जाती है l उसके जाने के बाद वीर पहले अपनी घड़ी देखता है और शुभ्रा को फोन लगाता है l शुभ्रा फोन उठाती है

शुभ्रा - हाँ... कहो वीर...
वीर - आप लोग कब तक आ जाओगे...
शुभ्रा - बस पहुँचने ही गए समझो... क्या तुम्हारे भैया पहुँच गए...
वीर - नहीं... पर आ जाएंगे... फोन किया था... पार्टी ऑफिस में मीटिंग में थे... वह निकल चुके थे... उन्हें पहुँचने में आधा घंटा और लगेगा...
शुभ्रा - हाँ जानती हूँ... उन्होंने मुझे भी फोन पर बता दिया था... हमें भी दस से पंद्रह मिनट ही लगेंगे...
वीर - ठीक है... फिर... (वीर फोन काट देता है)


शुभ्रा अपनी गाड़ी चला रही थी l बगल में ही उसके रुप बैठी हुई थी l शुभ्रा के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी l गाड़ी चलाते वक़्त कभी रुप की ओर देखती फिर मुस्कराते हुए रास्ते पर नजर वापस कर गाड़ी चला रही थी l ऐसे में उसकी गाड़ी xxx होटल के पार्किंग में पहुँच जाती है l गाड़ी पार्क करने के बाद जब दोनों गाड़ी से उतरते हैं तो देखते हैं वहाँ पर पहले से ही विक्रम इंतजार कर रहा था l

रुप - वाव... क्या बात है भाभी... भैया तो पहले से ही... तैयार खड़े हैं...
शुभ्रा - (विक्रम को देख कर हैरानी से) आप... आप तो थोड़ी देर बाद आने वाले थे ना...
विक्रम - (छेड़ते हुए) क्यूँ मुझे देख कर आपको खुशी नहीं हुई...
रुप - क्या बात कर रहे हो भैया... भाभी को इतना बड़ा शॉक के साथ सरप्राइज दे रहे हो... खुश क्यूँ नहीं होंगी भला...
विक्रम - हाँ सो तो है... खुशी और शॉक दोनों तुम्हारी भाभी के चेहरे पर साफ दिख रही है... (शुभ्रा शर्मा कर अपना चेहरा झुका लेती है) वैसे एक बात पूछूं...
रुप - मुझसे या भाभी से... वैसे कहोगे तो... मैं अकेली आप दोनों को छोड़ कर अभी वीर भैया के पास चली जाती हूँ...
विक्रम - वेरी फनी... सवाल तुम दोनों के लिए है...
रुप - क्या...
विक्रम - यही के... तुम दोनों वीर की होने वाली दुल्हन से मिलने आई हो... पर ऐसे साधारण लिबास में... खास मौका है... खास लिबास में आ सकते थे...
शुभ्रा - यह रुप का ही आइडिया था... (रुप का चेहरा उतर जाता है) और मुझे रुप की बात बहुत जंच गई... इसलिये हम दोनों आज इस मौके पर बहुत ही आम लिबास में आए हैं... (विक्रम हैरानी भरे सवालिया नजर से देखता है) देखिए... वीर ने जिसे पसंद किया है... वह बहुत ही आम घर से है... और वीर की बातों से लग भी रहा है... वह अनु थोड़ी स्वाभिमानी भी है... हम दोनों उसके सामने अपना स्टैटस दिखाने नहीं आए हैं... उसे अपनाने आए हैं... उसे यह एहसास ना हो.. के हम उससे या वह हम से अलग है... वह कहीं से भी... हमसे इंन्फेरियर फिल ना करे इसलिए...
विक्रम - वाव... बहुत अच्छे.. नंदिनी... आई आम इम्प्रेस्ड... तुमने बहुत अच्छा किया... अपना सिर क्यूँ झुकाए खड़े हो...
शुभ्रा - और नहीं तो... हमसे भी ज्यादा नंदिनी को जल्दी है... अपनी नई भाभी से मिलने और उसे अपनाने के लिए...
विक्रम - हाँ... चलो फिर... (तीनों होटल के अंदर चलने लगते हैं)
शुभ्रा - विक्की आपने तो अनु को देखा है ना...
विक्रम - हाँ... कल तक अपनी एक एंप्लॉइ को देखा था... पर आज अपनी बहु को देखने वाला हूँ...
रुप - आप अपनी बहु को... भाभी अपनी देवरानी को... और मैं अपनी नई भाभी को... हम सब अपने अपने हिस्से के एक नए रिश्तेदार को देखने जा रहे हैं...

ऐसे में बात करते करते तीनों उस रेस्त्रां वाले हिस्से में पहुँचते हैँ l वहाँ पर सिर्फ वीर चहल कदमी कर रहा था l उन तीनों के पहुँचते ही वीर थोड़ा नर्वस हो जाता है l वह बार बार वॉशरुम की ओर देखने लगता है l पर अनु अभी तक बाहर निकली नहीं थी l तीनों वीर के पास पहुँचे ही थे कि विक्रम का फोन बजने लगता है l विक्रम फोन निकाल कर देखता है डिस्प्ले पर महांती दिख रहा था l विक्रम फोन उठाता है l

विक्रम - हैलो...
महांती - युवराज... मैंने उस घर के भेदी का पता लगा लिया है... आपके सामने थोड़ी देर बाद वह घर का भेदी होगा... सबूतों के साथ होगा...
विक्रम - क्या... तुमने... उसका... पता लगा लिया...
महांती - हाँ... एक सबूत हाथ लगा है... आप इजाजत करें तो... वह कमज़र्फ आपके सामने होगा...
विक्रम - गुड... महांती गुड... (रुप विक्रम से फोन छिन लेती है और स्पीकर पर डाल कर)
रुप - हैलो महांती अंकल...
महांती - हाँ राजकुमारी जी बोलिए...
रुप - अगर आप बुरा ना मानों तो प्लीज... यह ऑफिस का काम.. आप कल के लिए रख दीजिए... हम यहाँ अपनी फॅमिली गेट टू गेदर के लिए हैं...
महांती - ओके... समझ गया... एंजॉय योर ईवनिंग...
रुप - सेम टू यु...
विक्रम - एक मिनट..
महांती - जी युवराज...
विक्रम - हमारी यह गेट टू गेदर तीन या चार घंटे में ख़तम हो जाएगी... तब तक तुम मैनेज कर लो...
महांती - ओके... मैं आपको चार घंटे बाद कॉल करता हूँ...
विक्रम - ठीक है...

फोन कट जाता है l विक्रम फोन कट जाने के बाद रुप और शुभ्रा की ओर देखता है l दोनों उसे घूर रहे थे l रुप उस फोन को अपनी वैनिटी बैग में रख देती है और वीर की ओर अपनी हाथ बढ़ा देती है l वीर पहले तो हैरान हो कर रुप को देखता है फिर समझ जाता है अपनी जेब से मोबाइल निकाल कर रुप को दे देता है l रुप वीर की मोबाइल भी अपनी वैनिटी बैग में रख कर शुभ्रा की ओर देखती है l

शुभ्रा - क्या मेरी भी...
रुप - हाँ...

शुभ्रा अपनी मोबाइल निकाल कर रुप को दे देती है और रुप बिना देरी किए उस मोबाइल को अपनी वैनिटी बैग के हवाले कर देती है l इतने में अनु को सामने आने से झिझकते हुए वीर देख समझ जाता है l वह भागते हुए वॉशरुम की ओर जाता है और खींचते हुए अनु को सबके सामने लाता है l अनु को देखते ही रुप को झटका लगता है l अनु शर्म और डर के मारे अपना सिर झुकाए खड़ी थी l उसने अभी तक रुप को देखा नहीं था l

रुप - भैया... यह...
वीर - अनु... अनुसूया है इनका नाम...
रुप - (अनु से) ऐ... देखो मेरी तरफ... (रुप इस लहजे में बात करने से सभी हैरान हो जाते हैं)
अनु - (बड़ी मुश्किल से अपना चेहरा उठाती है) तुम... (रुप से)

फिर अनु देखती है कि वहाँ पर सिर्फ दो लड़कियाँ और दो मर्द खड़े हैं, एक लड़की के मांग में सिंदूर है l मतलब यह लड़की वीर की बहन हो सकती है l

अनु - (आवाज़ नर्म पड़ जाता है) मेरा मतलब है... आप...
रुप - हाँ मैं... क्या नाम है तुम्हारा..
अनु - (रोनी सी सूरत बना कर) अ.. अनु..

रुप ताली मारते हुए खुशी के मारे उछल पड़ती है और जा कर अनु को गले से लगा लेती है l अनु के साथ साथ वहाँ पर मौजूद सभी रुप की इस हरकत से हैरान हो जाते हैं l फिर रुप अनु को छोड़ कर वीर के गले लग जाती है l

रुप - ओ... थैंक्यू भैया... थैंक्यू... मुझे भाभी बहुत पसंद है...
वीर - क्या...
शुभ्रा - पसंद है... तो इसमें उछलने वाली बात क्या है...
रुप - ओ भाभी.. लगता है आप भूल गई हो...
शुभ्रा - क्या...
रुप - अरे भाभी... मैंने एक बार वीर भैया से कहा था... मेरी बड़ी भाभी मुझसे बहुत प्यार करती हैं... मेरे लिए भाभी ऐसी लाना.. जो मुझसे झगड़ा करे...
वीर - मतलब अनु से तुम्हारी मुलाकात पहले हो चुकी है... और
रुप - हाँ... एक बार नहीं दो बार... और दोनों ही बार हमारा झगड़ा हुआ है...
वीर - क्या... कब
रुप - हाँ... पहली बार... आपके जन्म दिन पर... बक्कल खरीदते वक़्त... और दुसरी बार कल... यानी भाभी ने ज़रूर आपको ड्रेस गिफ्ट किया होगा... (अनु से) क्यूँ है ना भाभी

यह सुन कर विक्रम और और शुभ्रा हँस देते हैं l अनु और वीर दोनों शर्मा जाते हैं l

रुप - (वीर से) भैया... मुझे तो भाभी बहुत पसंद है...
शुभ्रा - हाँ मुझे भी... (कह कर शुभ्रा अपनी बैग से एक नेकलेस निकाल कर अनु को पहना देती है) (और विक्रम से) क्या आपको... आपकी होने वाली बहु पसंद नहीं आई....
विक्रम - पसंद क्यूँ नहीं आई... मुझे तो जब से मालुम हुआ था... तब से पसंद है...
शुभ्रा - तो दीजिए फिर सगुन...
विक्रम - (हड़बड़ा कर) मैं... मैं कुछ लाया नहीं...
शुभ्रा - कोई नहीं... मैंने इस नेकलेस को हम दोनों के तरफ से ही दिया है...
विक्रम - एक मिनट... फिर भी... मेरे हिस्से का फर्ज बाकी है...

विक्रम अपनी जेब से नोटों का एक बंडल निकाल कर अनु की नजर उतारता है और होटल के स्टाफ़ के बीच बांट कर ले जाने के लिए बोलता है l


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महांती अपनी गाड़ी में सामने वाली गली पर नजर गड़ाए बैठा हुआ है l कुछ देर बाद उस गली से निकल कर एक साया हाथ में छोटा सा बैग लेकर महांती के गाड़ी के पास आकर खड़ा होता है l महांती पैसेंजर साइड वाली खिड़की को नीचे सरकाता है l वह मृत्युंजय था l

मृत्युंजय - नमस्ते सर... कहिए क्यूँ बुलाया आपने...
महांती - आओ बैठो..
मृत्युंजय - कहीं जाना है क्या...
महांती - हाँ... बहुत ही जरूरी काम है...
मृत्युंजय - ठीक है सर... पर मैं आपके बगल में कैसे बैठ सकता हूँ... आप मेरे बॉस हैं... डायरेक्टर हैं...
महांती - इतना फॉर्मल होने की कोई जरूरत नहीं है... आओ बैठ जाओ..
मृत्युंजय - ठीक है सर... (कह कर महांती के बगल में बैठ जाता है)
महांती - सीट बेल्ट लगा लो...
मृत्युंजय - जी... जी सर...

मृत्युंजय अपना सीट बेल्ट लगा लेता है l उसके बाद महांती गाड़ी को आगे बढ़ा देता है l कुछ देर की खामोशी के बाद

मृत्युंजय - वैसे... हम जा कहाँ रहे हैं सर...
महांती - तुमसे... आज बहुत खास काम निकल आया है... इसलिये अब तुम बताओ.. हम कहाँ चलें... ताकि तुमसे कुछ जरुरी बात की जा सके...
मृत्युंजय - सर आप मेरे मालिक हैं... जहां आप ले चले...
महांती - अच्छा मैं तुम्हारा मालिक हूँ... बहुत अच्छे... वैसे कितने मालिक हैं तुम्हारे...
मृत्युंजय - जी... जी मैं समझा नहीं...
महांती - ठीक है... चलो मैं ऐसे पूछता हूँ... कितनी नौकरियाँ कर रहे हो तुम इस वक़्त...
मृत्युंजय - क्या सर... मैं तो बस ESS में सी ग्रेड गार्ड की नौकरी कर रहा हूँ...
महांती - मिस्टर मृत्युंजय... सच सच बताओ... अब छुपाने से कोई फायदा नहीं है...
मृत्युंजय - नहीं सर... मैं... मैं क्या छुपाऊँगा... और क्यूँ छुपाऊँगा...
महांती - ह्म्म्म्म... बहुत अच्छे... मेरी सोच से भी कहीं अधिक शातिर हो... (गाड़ी ट्रैफ़िक के वज़ह से रुक जाती है) मुझे लगता है तुम्हें अंदाजा है... पर फिर भी... ना तुम्हारे चेहरे पर कोई शिकन है... ना ही कोई परेशानी... बहुत कंफिडेंट हो...
मृत्युंजय - (मुस्करा कर) सब आपकी ही दी हुई ट्रेनिंग है सर...

महांती के जबड़े भिंच जाती हैं l वह गुस्से भरी नजर से मृत्युंजय की ओर देखता है l पर मृत्युंजय निडर और बेकदर भाव से महांती को देख रहा था l

महांती - मैंने तुम्हारे बारे सब कुछ पता लगा लिया है मृत्युंजय...
मृत्युंजय - ना.. कुछ कुछ... सिर्फ पता लगया है... वह भी उतना... जितना मैंने अपने बारे में जानकारी आपके तक पहुँचाया है...
महांती - क्या... क्या मतलब है तुम्हारा... कहना क्या चाहते हो... मैंने तुम्हारे बारे में जो कुछ जानकारी हासिल किया है... वह तुमने मुझ तक पहुँचाई है...
मृत्युंजय - जी महांती सर...
महांती - तो तुमने अपने बारे में कुछ कुछ खबर मुझ तक पहुँचाया है... हम्म्म... तो अब तुम मुझे सबकुछ बताओगे...
मृत्युंजय - जी बेशक... चलिए कहीं ऐसी जगह ले चलिए... जहां सिर्फ आपकी गाड़ी चलती रहे... और हम... आपस में बातेँ करते रहे... एक रोमांटिक गै डेट... हा हा हा... (हँस देता है)

मृत्युंजय की यह हँसी महांती की सुलगा देती है l वह आग बबूला हो कर मृत्युंजय को देखने लगता है l तभी गाड़ियों की हॉर्न सुनाई देने लगता है l महांती का ध्यान टूटता है वह अपनी गाड़ी को आगे बढ़ाता है l गाड़ी में फिर से चुप्पी छा जाती है l

महांती - तुम रॉय सिक्युरिटी सर्विस में रह कर.... हमारी ESS में क्यूँ काम किया... बोलो गद्दारी क्यूँ की...
मृत्युंजय - गद्दारी.... गद्दारी चाहे किसी से किया हो है... पर सौ फीसद वफ़ादारी खुद से किया था...
महांती - तुम... तुम नहीं जानते... तुम किससे टकरा रहे हो... तुम एक मामुली दो कौड़ी का आदमी... इतना कुछ कैसे कब...
मृत्युंजय - ना... तुम एक मामुली नौकर हो क्षेत्रपाल के... तुम्हें इतना सब कुछ जानने को हक नहीं है... (महांती गियर बदल कर गाड़ी की स्पीड बढ़ाता है) मैं रह ज़रूर झोपड़े में हूँ... मगर करोड़ों से खेलता हूँ...
महांती - तुम किस के एजेंट हो... रॉय के... या महानायक के... या चेट्टी के...
मृत्युंजय - किसीका भी नहीं... मैं वह एजेंट हूँ... जो डबल क्रास करता है...
महांती - डबल क्रॉस... मतलब तुम्हारी बहन का किडनैप...
मृत्युंजय - कोई किडनैप नहीं हुआ है... मैंने उसे... विनय के साथ भगा दिया है...
महांती - क्या...
मृत्युंजय - हाँ... मैंने पुष्पा के जरिए... महानायक का बेटा... विनय को फंसाया... बेचारा विनय... उसे लगता है... उसने मेरी बहन को... अपनी दौलत की चकाचौंध दिखा कर फंसाया है.. हा हा हा...
महांती - तुम्हारा बहुत बुरी गत होने वाली है...
मृत्युंजय - ना... ऐसा कुछ मेरे साथ नहीं होने वाला है... और जो कुछ भी होने वाला है... वह तुम्हारे साथ होने वाला है...

महांती मृत्युंजय की ओर देखता है तो पाता है मृत्युंजय के चेहरे पर कुटिल मुस्कान उभरा हुआ है l उसे हैरानी होती है मृत्युंजय मे एकदम से इतना बड़ा बदलाव देख कर l

महांती - अच्छा... तो मेरे साथ बुरा हो सकता है... कौन करेगा... तुम...
मृत्युंजय - वह तो वक़्त ही बतायेगा... वैसे यह रास्ता देख कर लगता है... हम इन्फोसिस जा रहे हैं ना... एसईजेड में...
महांती - हाँ... क्यूंकि इस रास्ते में कोई नहीं होता...
मृत्युंजय - वैसे... एक बात पूछूं... मिस्टर अशोक महांती...
महांती - तो अब सर के बजाय... मेरे नाम पर आ गए...
मृत्युंजय - हाँ...
महांती - तो मिस्टर डबल एजेंट... तुम्हारे पास कुछ ही घंटे का वक़्त है... उसके बाद मैं तुम्हें सीधे... युवराज के सामने पेश कर दूँगा...
मृत्युंजय - हाँ कुछ ही घंटे... इसलिए... क्यूंकि आज उनकी पारिवारिक मिलन का दिन है... पर एक बात बताओ महांती बाबु... आपके जैसा आदमी... क्षेत्रपाल से वफादारी क्यूँ निभा रहा है...
महांती - क्यूँ... क्यूँ नहीं निभाना चाहिए...
मृत्युंजय - असम राइफ़ल में अच्छे रैंक का ऑफिसर थे... कोर्ट मार्शल चला... सबूत के अभाव में... बच तो गए मगर इस्तीफा देना पड़ा... फिर अपना एक सिक्युरिटी सर्विस की दुकान खोल ली... वहाँ पर धक्का खा कर निकाले गए... उसके बाद ESS... आप सेना से वफादारी नहीं की... RGSS से वफादारी नहीं की... पर क्षेत्रपाल से वफादारी... क्यूँ महांती बाबु क्यूँ...
महांती - क्यूँ की मैं तुम्हारे जैसे डबल एजेंट नहीं हूँ... हाँ मैं क्षेत्रपाल के लिए वफादार हूँ... और मैं तुम्हें युवराज के सामने हर हाल में पेश करूँगा... चाहे इसके लिए... मुझे मरना ही क्यूँ ना पड़े...
मृत्युंजय - खयाल अच्छा है... तुम्हारे अंतिम शब्दों के लिए... तथास्तु...
महांती - व्हाट...

गाड़ी में ब्रेक लगाने की कोशिश करता है पर ब्रेक नहीं लगती l वह गियर बदलने की कोशिश करता है पर गियर लक हो चुका था l वह हैरान हो कर मृत्युंजय की ओर देखता है l मृत्युंजय बड़े बेफिक्र अंदाज में बैठा हुआ था l

महांती - यह क्या कर रहे हो... और यह सब... ब्रेक फैल... गियर ज़ाम...
मृत्युंजय - महांती... तुम्हें लगता है.. की तुमने मुझे उठा लिया है... पर सच यह है कि... मैंने तुम्हें उठा लिया है... (महांती फिर से ब्रेक लगाने की कोशिश करता है पर नहीं लगता) नहीं रुकेगी... और रोकना भी मत... गाड़ी जब तक चलेगी... तब तक सलामत रहेगी... उस वक़्त ट्रैफ़िक पर गाड़ी रुकी नहीं थी... ब्लकि मैंने... रुकवाई थी... भुवनेश्वर डेवेलपमेंट ऑथोरिटी के.. ड्रेनेज स्वेरेज पर... गटर की ढक्कन हटा कर मेरे आदमी ने.. तुम्हारी गाड़ी में थोड़ी सी छेड़ छाड़ कर दी है... इसलिए ना अब ब्रेक लगेगी... ना गियर काम करेगा....
महांती - कोई नहीं... अगर मैं मरूंगा... तो तुम भी नहीं बचोगे...
मृत्युंजय - टाइम टू लाफ नाउ... हा हा हा... मैं अपनी तैयारी में आया हूँ... तुम ओवर कंफिडेंट हो गए....

इतना कह कर मृत्युंजय महांती के सीट बेल्ट की स्विच दबा देता है l जिससे महांती का ध्यान हट जाता है l वह बेल्ट को दोबारा जब हूक करने की कोशिश करता है तो सीट बेल्ट हूक नहीं हो पाता l

मृत्युंजय - बेल्ट हूक नहीं होगा... उसमें मैंने एक रुपये का कॉएन डाल दिया है...

महांती घबराहट के मारे बेल्ट को खिंच कर हूकअप करने की कोशिश करता है पर हो नहीं पाता l फिर अचानक से वह हँसने लगता है l हँसते हँसते हुए महांती मृत्युंजय की ओर देखता है l मृत्युंजय अपने मुहँ पर एक गैस मास्क लगाया था l महांती की हँसी बहुत बढ़ने लगती है l

मृत्युंजय - बड़े खुशनसीब हो महांती... हँसते हँसते दर्द को भुलाकर मरने जा रहे हो.... शीघ्र मेव मृत्यु प्राप्तिरस्तु...
Bahut hi badhiya update diya hai Kala Nag bhai....
Nice and beautiful update....
 

Vk248517

I love Fantasy and Sci-fiction story.
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Awesome
👉एक सौ इक्कीसवां अपडेट
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रोणा अपनी जीप को दौड़ा रहा है l बगल में बल्लभ मुहँ लटकाये खीज कर बैठा हुआ है l ड्राइविंग करते वक़्त बीच बीच में रोणा बल्लभ की ओर देख कर मुस्करा रहा था जिससे बल्लभ का मुड़ और भी ख़राब हो रहा था l

बल्लभ - अबे भोषड़ी के... तुझे कुछ दिनों के लिए छुट्टी में जाने को कहा था... मुझे क्यूँ तू पूछ बना कर लिए जा रहा है...
रोणा - वेरी सिम्पल... अब यह बंदर जिधर जाएगा... उसकी पूछ भी तो उधर जाएगा...
बल्लभ - दिमाग और किस्मत दोनों तेरे खराब थे... इसलिए तुझे छुट्टी में जाने की जरूरत थी...
रोणा - अरे यार... मैं अकेला दस पंद्रह दिन के लिए ट्विन सिटी में क्या करूँगा...
बल्लभ - तो मैं तेरे साथ क्या करूँगा... तुझे आइडिया दिया... मतलब किसी रेड लाइट एरिया में... दस पंद्रह दिनों के लिए... डूबा रहता... मुझे क्या... मेरी गांड मारने ले जा रहा है...
रोणा - मैं तो मजे करूँगा ही... तुझसे भी करवाउंगा... चिंता मत कर... मुझे याद है तेरी फर्माइश... इस बार पूरा करेंगे...
बल्लभ - क्यूँ किसी रंडी खाने का शेयर होल्डर है तु...
रोणा - नहीं... पर हिस्सेदार बनने में कितना टाइम लगेगा... पर ऐयाशी के लिए... रंडी खाना जाने की क्या जरूरत है...
बस एक रांड चाहिए..
ऐयाशी के लिए...
बल्लभ - (दांत पिसते हुए जबड़े भिंच कर रोणा की ओर देखने लगता है)
रोणा - (अपनी ही धुन में) थ्रीसम... गैंग बैंग सुना है कभी... (बल्लभ की ओर देख कर आँख मारते हुए) इस बार करेंगे... हा हा हा... (बल्लभ फिर भी कुछ जवाब नहीं देता) बुरा मत मान यार... मेरा दोस्त है तु... वैसे भी राजगड़ में तु करता क्या... परिवार को तो तुने विदेश में बसा दिया है... साल में एक बार जाता है... बाकी टाइम अपने इंजिन का करता क्या है... कभी कभी सर्विसिंग करवाना ज़रूरी है... समझा...
बल्लभ - इसके लिए... रंडी ढूंढने निकला है..
रोणा - ना... ढूंढने नहीं... (अचानक लहजा खतरनाक हो जाता है) किसी को रंडी बनाने... अपने नीचे लीटाने के लिए...
बल्लभ - (चौंक कर) कहीं तु... उस थप्पड़ वाली कि बात तो नहीं कर रहा है...
रोणा - वाह... यह हुई ना बात... एक हरामी के दिल की बात को.. दुसरा सच्चा हरामी ही जान सकता है...
बल्लभ - बे हरामी... तु जानता क्या है उसके बारे में... मुझे डाऊट है... शायद उस लड़की ने वक़ालत की हो... इंटरेंशीप के जरिए... वह प्रतिभा से जुड़ी हो...
रोणा - तो जुड़ने दे... किसे फर्क़ पड़ता है...
बल्लभ - तु... जितना बड़ा हरामी है... उतना ही बड़ा निर्लज्ज भी है... विश्व ने तुझे एक नहीं दो बार हस्पताल के बेड़ में लिटाया... इतनी आसानी से भुल कैसे गया...
रोणा - (जबड़े भींच कर) कुछ नहीं भुला हूँ...
बल्लभ - तो... इतना बड़ा पंगा लेने क्यूँ जा रहा है... हम उस लड़की के बारे में... कुछ भी नहीं जानते... उसकी बैकग्राउंड क्या है... कोई आइडिया नहीं है...
रोणा - अरे यार... जब से उसे देखा है... उसकी आगे की... और पीछे की... सारी ग्राउंड ही ग्राउंड नजर आ रही है...
बल्लभ - प्रतिभा... स्टेट के औरतों के लिए... वकालत कर रही है... विश्व के पास भी वक़ालत की डिग्री है... अगर वह लड़की वकालत के प्रोफेशन से... किसी भी तरह जुड़ी हुई होगी... तो तु सोच भी नहीं सकेगा... तेरे साथ जो होगा...
रोणा - साले... काले कोट वाले... मैं अभी जो जा रहा हूँ... उस लड़की की पुरी डिटेल निकलने... या यूँ कह... उसे ढूंढ कर उसकी कुंडली निकालने जा रहा हूँ... एक बार उसके बारे में पुरी जानकारी इकट्ठा कर लूँ... फिर... (आगे कुछ नहीं कहता, उसके आँखों में एक शैतानी चमक दिखने लगता है) वह प्रतिभा... वह क्या कर लेगी... देखना वकील प्रतिभा को... राजा साहब एक दिन उसे ऐसे उठवा लेंगे... के खुद उसको भी पता नहीं चलेगा... और जब चलेगा... तब तक वह मगरमच्छ के पेट में हजम हो चुकी होगी... जैसे उस नभ वाणी के रिपोर्टर और उसकी बीवी का हुआ था...
बल्लभ - एक रिपोर्टर को गायब करने के लिए... क्या कुछ करना पड़ा है तु जानता भी है... उसे अंदाजा तक नहीं था... पर प्रतिभा... वह एक वकील है... अगर वह विश्व का साथ दे रही है... तो उसकी अपनी पुरी तैयारी होगी... यह मत भुल.. वह एक पब्लिक फिगर भी है... और खास बात... उसे कुछ पालिटिशीयन का साथ भी है...
रोणा - यहीं पर ही तो खेल खेलना है... उसके पति ने... विश्व के ट्रीटमेंट के समय... फोटो और वीडियो निकलवा कर... मेरी गवाही को झूठा साबित करवा दिया था.... और कमिनी ने... विश्व को वकालत की डिग्री दिलवा दिया... उस अधमरे सांप को... एक विशाल अजगर बना दिया है... जो अब हम सबको निगलने को तैयार बैठा है...
बल्लभ - तु कहना क्या चाहता है...
रोणा - यही... की राजा साहब का ध्यान सिर्फ... विश्वा को सजा दिलवाने पर ही थी... मेरी गवाही जिसके वज़ह से झूठा साबित हुआ... उसे कुछ नहीं किया... और सोने पे सुहागा देख... वही दंपति ने... विश्व को हमसे लड़ने लायक बना दिया...
बल्लभ - तुझे गुस्सा किस पर है...
रोणा - (चिल्लाते हुए) सब पर... विश्वा पर... वैदेही पर... सेनापति दंपति पर... और... (आवाज दबा कर) राजा पर..
बल्लभ - (हैरान हो कर) राजा साहब पर क्यूँ...
रोणा - मैं... विश्वा को मार देना चाहता था... राजा साहब ने मना किया... मेरी गवाही झूठी साबित हो गई... राजा साहब ने... मेरे लिए कोई बदला नहीं लिया... इसलिए... मेरा बदला... अब मुझे लेना होगा...

दोनों के दरम्यान कुछ देर के लिए खामोशी पसर जाती है l बल्लभ से कुछ जवाब ना पाने के वज़ह से रोणा उसकी ओर देखता है l बल्लभ के चेहरे पर चिंता की लकीर उसे साफ दिख रहा था l

रोणा - क्या सोच रहा है वकील...
बल्लभ - यही... के कटक या भुवनेश्वर में तुझे किस हस्पताल को ले चलूँ...
रोणा - क्यूँ मुझे क्या हुआ है...
बल्लभ - तेरा दिमाग खराब हो गया है... जो राजगड़ या यशपुर में कर लेता था... तु वह सब कटक या भुवनेश्वर में कर लेगा... तु यह सब जो कुछ... सोच भी कैसे सकता है...
रोणा - क्यूँ मेरी सोच में कमी कहाँ रह गई...
बल्लभ - इतना तो मानेगा ना तु... वह विश्व भुवनेश्वर रह कर... राजगड़ की खबर रखा करता था...
रोणा - हाँ... तो...
बल्लभ - तो वह... राजगड़ में रहकर... भुवनेश्वर की खबर नहीं निकाल सकता क्या...
रोणा - हाँ... कर तो सकता है... पर करेगा क्यूँ...
बल्लभ - क्या मतलब...
रोणा - (बैठे हुए सीट के पीछे वाली पॉकेट से एक फाइल निकाल कर बल्लभ को देते हुए) यह ले... यह देख...

बल्लभ फाइल खोल कर देखता है l एक ऑफिस ऑर्डर था रोणा के नाम l रोणा डेपुटेशन पर फैकल्टी बनकर अंगुल पुलिस एकाडमी जा रहा था पंद्रह दिनों के लिए l

बल्लभ - तो तु तैयारी के साथ जा रहा है...
रोणा - हाँ...
बल्लभ - तुझे क्या लगता है... तेरी तैयारी पुरी है...
रोणा - हाँ... मैं यह जानता हूँ... विश्वा जरूर हम पर नजर रखा होगा... इसलिए... मैंने यह ऑर्डर निकलवाया है... अगर पता करेगा.. तो भी उसे लगेगा... के मैं अंगुल में हूँ... वैसे भी... गाँव में मैंने उसके पीछे... मेरे खास आदमी को लगाया है... वह छींकेगा भी... मुझे खबर लग जाएगी...
बल्लभ - ह्म्म्म्म... ठीक है... पर तु उस लड़की को ढूँढेगा कैसे... क्यूंकि अगर तु प्रतिभा पर नजर रखेगा... तो विश्व को खबर लग सकती है...
रोणा - वहाँ पर... हम किसी और से काम लेंगे...
बल्लभ - मतलब राजा साहब के आदमी से...
रोणा - अरे नहीं... उससे नहीं... मैं किसी और से काम लूँगा...
बल्लभ - उससे क्यूँ नहीं...
रोणा - तु जानता भी है राजा साहब ने किसे काम दिया है...
बल्लभ - नहीं...
रोणा - राजा साहब ने... अपने यशपुर महल के केयर टेकर को भेजा है... और वह वहाँ पर किसी प्राइवेट डिटेक्टिव से काम ले रहा है...
बल्लभ - ओ... पर तु किससे काम लेना चाहता है...
रोणा - टोनी से... उर्फ लेनिन से...
बल्लभ - क्या... पर उसने तो कहा था... विश्वा के रास्ते कभी नहीं आएगा...
रोणा - हाँ.. उसे थोड़े ना पता है... प्रतिभा और उसका पति... विश्व के मुहँ बोले माँ बाप बन गए हैं... और मुझे लेनिन से सीधे काम नहीं लेना है... उसके नेट वर्क से लेना है...
बल्लभ - क्या तु राजा साहब से रेवोल्ट करेगा...
रोणा - ना मेरे जिगर के छल्ले ना... इतना बड़ा कलेजा नहीं है मेरा... पर विश्वा से तो हिसाब मुझे चुकाना ही है... मेरी गट फिलिंग कह रही है... उस लड़की से... विश्वा का कुछ लेना देना होगा...
बल्लभ - क्या... तुझे ऐसा क्यूँ लगता है... कोई लेना देना होगा....
रोणा - जरा सोच काले कोट वाले जरा सोच... घर में करीब करीब पांच से छह लड़कियाँ थीं.... पर हमें पानी देने एक ही लड़की आई... वह भी बिना मांगे... एक जवान लड़की... घर में एक बुढ़ी औरत की मेहमान को पानी पीला रही है... नौकरानी तो नहीं हो सकती... पहनावा ही कुछ ऐसा था...
बल्लभ - अच्छा मान लिया... विश्वा से उसका कोई लेना देना होगा... तो... अगर कोई बड़े बैकग्राउंड वाली लड़की हुई तो...
रोणा - तो... हा हा हा हा... तो... हा हा हा हा... अगर उस लड़की का टांका विश्वा से भिड़ा हुआ होगा... तो वह कभी भी बड़े बैकग्राउंड वाली लड़की नहीं होगी... नहीं हो सकती... जरूर किसी मिडल क्लास या गरीब घर की लड़की होगी... क्यूंकि कोई मॉर्डन या बड़े घर की लड़की... विश्वा जैसे सजायाफ्ता मुजरिम से कैसे इश्क लड़ायेगी...


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विश्वा उमाकांत के घर को अपने तरीके से सजा रहा है l चूंकि उसे कारपेंट्री का अनुभव था l घर को सजाने के लिए अपना अनुभव का इस्तेमाल कर रहा था l तभी टीलु बाहर से कुछ सामान लेकर आता है l

टीलु - भाई... एक खबर है..
विश्वा - (काम करते हुए) क्या...
टीलु - आज वह इंस्पेक्टर रोणा... अपने वकील दोस्त के साथ... राजगड़ से बाहर गया है... एक लंबी छुट्टी पर...
विश्व - ह्म्म्म्म... तुम्हें कैसे पता चला...
टीलु - क्या भाई... अपना कुछ सेटिंग है... यही तो अपनी स्पेशियलिटी है...
विश्व - कहाँ गया है... कितने दिनों के लिए गया है... जानते हो...
टीलु - हाँ... उसने शायद अपने लिए... एक ऑफिशियल ऑर्डर निकलवाया है... पुलिस ट्रेनिंग एकेडमी अंगुल में पंद्रह दिनों के लिए छोटी ट्रेनिंग सेशन के लिए... फैकल्टी बन कर गया है...
विश्व - इतना कुछ... तुम्हें कैसे मालुम हुआ... तुम तो कह रहे थे... वह अपना दिमाग दुरुस्त करने के लिए... राजगड़ से दुर जाना चाहता था..
टीलु - हाँ ऐन मौके पर बिल्ला की किस्मत जाग गई... रोसोड़े में दुध की बर्तन गिर गई...
विश्व - (अपने काम को रोक कर, टीलु की देखते हुए) उसकी किस्मत से कुछ भी नहीं हुआ है... मुझ तक खबर पहुँचाने के लिए... उसने यह प्लॉट बनाया है...
टीलु - (चौंकता है) क्या... मतलब... उसे मेरे बारे में... पता चल चुका है...
विश्व - नहीं... अभी तक तो नहीं...
टीलु - फिर... मेरा मतलब है... तुमको ऐसा क्यूँ लगा...
विश्व - मैं दुश्मन को उसकी दिमाग से सोच रहा हूँ... इसलिए...
टीलु - चलो ठीक है... तो फिर यह ऑर्डर...
विश्व - फेक है... ऐसा कोई ऑर्डर नहीं निकला है...
टीलु - यह तुम अंदाजा लगा रहे हो... या...
विश्व - अंदाजा लगा रहा हूँ... पर सटीक... उसे अंदेशा है... मैं उसकी हर हरकत पर नजर रख रहा हूँ... इसलिए उसने मेरे साथ काउंटर इंटेलिजंस गेम खेल रहा है...
टीलु - काउंटर इंटेलिजंस... मतलब उसने भी तुम पर नजर रखने के लिए किसी को पीछे लगाया हुआ है क्या...
विश्व - हाँ...
टीलु - किसे...
विश्व - उदय...
टीलु - कौन उदय...
विश्व - ग्राम रक्षी... होम गार्ड... उदय कुमार को...
टीलु - अच्छा... ठीक है... तुम पर नजर रखने के लिए... उसने उदय को लगाया... पर इसके लिए... अंगुल जाने की झूठी खबर क्यूँ फैलाया...
विश्व - ताकि... मेरी रिएक्शन क्या हो रहा है... यह जानने के लिए...
टीलु - तो क्या तुम कल नहीं जा रहे हो...
विश्व - जाऊँगा तो जरूर... वह भी तीन से चार दिनों के लिए...
टीलु - जाहिर है कि उदय यह खबर रोणा तक पहुँचाएगा...
विश्व - नहीं... तुम्हें उसको संभालना होगा... उसे ही नहीं... बल्कि पुरे गाँव वालों को.... सबको यह लगे कि... मैं इस घर को सजाने में... काम इस कदर खो गया हूँ... मशगूल हो गया हूँ... के घर से निकलने की फुर्सत ही नहीं मिल पा रहा है...
टीलु - ह्म्म्म्म... यानी सिर्फ उस उदय को ही नहीं... पुरे गाँव वालों को टोपी भी पहनानी पड़ेगी... गाँव वाले इस तरफ कम ही आते हैं... तो उनका कोई प्रॉब्लम नहीं है... पर उदय...
विश्व - तुम उदय को ट्रैप में ले सकते हो... वह भी इस तरफ ज्यादा आता जाता नहीं है...
टीलु - ठीक है... पर कैसे...
विश्वा - जैसे तुम दूसरों से खबर निकलवा रहे हो... बिल्कुल वैसे ही...
टीलु - ऐ विश्वा भाई... मैं खबर बड़ी ट्रिक लगा कर निकलवा रहा हूँ... यह मेरी सीक्रेट है... हाँ...
विश्व - अरे मैं वही कह रहा हूँ... तुम अपना उसी सीक्रेट वेपन का इस्तेमाल करो... और जब तक मैं वापस ना आऊँ... उदय और गाँव वालों को यह एहसास दिलाओ... के मैं राजगड़ में हूँ...
टीलु - ठीक है... मैं वह सब करवा लूँगा... पर मान लो अगर... कटक या भुवनेश्वर में... उस कमबख्त मर्दुद रोणा से आमना सामना हुआ तो...
विश्व - (मुस्कराते हुए) उसमें मानने वाली बात क्या है... आमना सामना तो होना ही होना है...
टीलु - तो फिर बात को छुपाने की क्या जरूरत है...
विश्वा - जरूरत है... क्यूंकि मुझ पर सिर्फ़ रोणा ही नजर नहीं रख रहा है... बल्कि और भी कुछ लोग नजर रख रहे हैं....
टीलु - क्या... कौन कौन...
विश्व - एक उदय को जानता हूँ... पर बाकियों को नहीं जानता...
टीलु - यह तो बहुत खतरनाक खबर है भाई... एक विश्वा... और सौ जासूस...
विश्व - सौ नहीं चार... शायद..
टीलु - चलो एक रोणा का... और
विश्व - और एक... शायद चेट्टी का..
टीलु - तीसरा राजा साहब का...
विश्व - हो सकता है...
टीलु - और चौथा... क्या डैनी भाई....
विश्व - नहीं... डैनी भाई नहीं हो सकते...
टीलु - क्यूँ.. क्यूँ नहीं हो सकते...
विश्व - कुछ मामलों में... डैनी भाई बहुत परफेक्ट हैं... इसलिए...
टीलु - तो फिर... उन चारों को छकाना होगा...
विश्व - हाँ पर खास कर उदय को...
टीलु - खास कर उदय को... वह किसलिए...
विश्व - वह इसलिए... के रोणा ने अभी तक मुझे... सीरियसली लिया नहीं है... और ना ही उसके इर्दगिर्द भीन भीनाते उसके मच्छरों ने... उसे अपने चमचों पर भड़काना भी तो है...


विश्व के कहलेने के बाद टीलु अपना सिर हिला कर हामी भरता है पर किन्हीं ख़यालों खो जाता है l

विश्व - क्या हुआ... किस सोच में खो गए...
टीलु - यही... की रोणा... अगर अंगुल नहीं गया है... तो गया कहाँ...
विश्व - साथ में वकील प्रधान है... मतलब वह राजधानी ही गया है...

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महल के प्रांगण में भी के कोने में राज उद्यान है l उस उद्यान के एक किनारे पर एक मध्यम आकार का तालाब है l उस तालाब के बीचों-बीच एक विश्राम छत्र है जो चारों तरफ से खुला हुआ है, केवल ऊपर एक छत है l वहाँ तक जाने के लिए एक पुराना पत्थरों से निर्मित एक पुल भी है l उस छत्र बीचों-बीच ब खाली जगह पर भैरव सिंह कमर के ऊपर से अधनंगा हो कर एक तलवार हाथ में लिए बहुत तेजी से चला रहा है घुमा रहा है l यह वह छत्र है जहां केवल क्षेत्रपाल परिवार के मर्दों को छोड़ किसी और का प्रवेश वर्जित है l वहाँ पर पिनाक आ कर पहुँचता है, पिनाक को देख कर भैरव सिंह तलवार को उसके म्यान में रख देता है l फिर भैरव सिंह अपने बदन पर एक टावल डाल कर पिनाक के साथ मिलकर एक अति विशेष प्रकोष्ठ की ओर जाते हैं l यहाँ पर भी नौकर चाकरों का आना मना है l अंदर आते ही टावल से अपना पसीना पोछते हुए एक दीवार के सामने खड़ा होता है l उस दीवार पर सजे हुए अपने परिवार के राजसी चिन्ह के सामने खड़ा होता है l उस राजसी चिन्ह के नीचे एक शो केस में एक तीन फिट की बिना मूठ वाली तलवार रखी हुई है l भैरव सिंह उस तलवार को देखते हुए अपना पसीना पोंछ रहा था l पिनाक आकर उसके करीब खड़ा होता है

पिनाक - क्या हुआ राजा साहब... ऐसी क्या बात हो गई... के हम अपने कारिंदों के सामने... या गुलामों के सामने नहीं हो सकता था... और आपने हमें यहां बुलाया...

भैरव सिंह घुम कर पिनाक को देखता है और फिर पास पड़े एक कुर्सी पर बैठ जाता है l पिनाक को इशारे से पास पड़े और एक कुर्सी पर बैठने को इशारा करता है l

पिनाक - (बैठते हुए) लगता है... कोई बहुत ही खास बात हो गई है... जिसे जानने का हक... हमारे वफादार भीमा को भी नहीं है...
भैरव सिंह - काना-फुसी.. बहुत खतरनाक चीज़ है... शुरू बहुत छोटी से होता है... पर एक कान से दुसरे कान तक गुज़रते गुज़रते... एक बहुत बड़ा सैलाब बन जाता है... कभी कभी वह जज्बातों की बाँध तोड़ कर इज़्ज़त की इमारत को ढहा देता है...
पिनाक - हम कुछ समझे नहीं...
भैरव सिंह - हमें जब मालुम हुआ... विश्वा गाँव में आ गया है... हमने अपने एक वफादार को.... फेरी वाला बना कर.... गाँव में लोगों के मन में हमारे बारे में क्या चल रहा है... औरतें क्या बातेँ करते रहते हैं... यह जानने के लिए छोड़ दिया...
पिनाक - यानी पुराने ज़माने में... जो राजे महाराजे किया करते थे... लोगों के बीच से खबर निकलवाने के लिए... आपने वही किया...
भैरव सिंह - हाँ...
पिनाक - और आपने हमें.. इस प्रकोष्ठ में बुलाया है... तो बात गंभीर है...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म...

पिनाक और कुछ सवाल नहीं करता l वह भैरव सिंह की ओर देखता है l भैरव सिंह अपनी जबड़े भींचते हुए कुछ सोचे जा रहा था l कुछ देर की खामोशी के बाद पिनाक से रहा नहीं जाता l

पिनाक - अहेम.. अहेम... राजा साहब...
भैरव सिंह - (पिनाक की ओर देखते हुए) हुकूमत... हमेशा दौलत और ताकत के बूते किया जाता है... जो वफादारी के घेरे में महफ़ूज़ रहती है... पर हुकूमत की नींव को लालच और सियासत हिला कर... ढहा देती है... इसलिए हुक्मरान का यह फर्ज होता है... वफादारों की वफ़ादारी का घेरा कभी ढीली ना पड़े...
पिनाक - हमें किससे खतरा है राजा साहब..
भैरव सिंह - नहीं अभी तक तो नहीं.... पर हमें... अब तैयार होना होगा... और अपने वफादारों को तैयार रखना होगा...
पिनाक - राजा साहब... हम अभी भी कुछ समझ नहीं पा रहे हैं...
भैरव सिंह - राजगड़ या आसपास... हमारे खिलाफ... कोई मुहँ खोल कर... बात नहीं कर सकता है... पर कानाफूसी तो कर लेते हैं...
पिनाक - हमारे खिलाफ कानाफूसी...
भैरव सिंह - हाँ छोटे राजा जी.. हाँ... उस रात को विश्वा हमारे महल में आया था... जो हालात बनें... भले ही किसीने विश्वा पर गौर नहीं किया था... पर कुछ नौकर चाकरों को इतना जरूर मालुम हो गया... कोई हिम्मत कर के आया था... महल में घुसा था... और बड़े राजा जी की... ग़ैरत को लानत दे कर... छेड़ कर गया था...
पिनाक - ओ... हम समझे थे कि... कोई इस बात पर... चर्चा नहीं करेगा... आपने भी तो बड़े राजा जी से यही कहा था...
भैरव सिंह - नहीं कर रहे हैं कोई चर्चा... सिर्फ कानाफूसी कर रहे हैं...
पिनाक - (खीज जाता है) आ ह्ह्ह्ह्... हमें विश्वा को ख़तम कर देना चाहिए था... उसके इस गुस्ताखी के लिए... पर आपने कहा था कि... वह गुस्ताखी हमारे आदमियों से करे... और हमारे आदमियों के जरिए... खबर हम तक पहुँचनी चाहिए... अगर वह कभी हमारे आदमियों से उलझा तो...
भैरव सिंह - वह उलझ चुका है...
पिनाक - (उछल पड़ता है) क्या...
भैरव सिंह - हूँ... हमारे आदमियों को... रात के अंधेरे में... राजगड़ के गलियों में... दौड़ा दौड़ा कर मारा है...
पिनाक - (खड़ा हो जाता है) क्या... यह आप क्या कह रहे हैं... यह... यह कब हुआ... और भीमा... भीमा ने या हमारे लोगों ने हमें खबर क्यूँ नहीं की...
भैरव सिंह - यही तो हम भी सोच रहे हैं... आज सुबह भीमा से हमने पुछा तो वह बात छुपा गया...
पिनाक - यह तो बहुत बड़ी गुस्ताखी है... यह... यह आपको क्या उस फेरी वाले ने बताया है...
भैरव सिंह - हाँ... छोटे राजा जी... क्या आप जानते हैं... पुराने ज़माने में... राजा अपने सीमा के भीतर बसने वालों की बातों को जानने के लिए... नाई और धोबी से खबरें लिया करते थे... नाई इसलिए... बाल या दाढ़ी बनाने वालों से लगातार बात कर उनसे बहुत सारी बातेँ उगलवा लेता था.... और धोबी की पहुँच ज्यादातर घरों के भीतर तक होती थी... जो नदी या तालाब तक जो भी आपसी कानाफूसी होती थी... वह सारी बातेँ राजा को बता दिया करते थे... हमने भी उसी तरह... एक फेरी वाले को गाँव के लोगों के बीच छोड़ा... उसने जो भी कानाफूसी सुनी... हमें उसीसे सारी बातेँ पता चलीं...
पिनाक - ओ... तो क्या हमें... विश्वा की इस जुर्रत के लिए... सजा नहीं देना चाहिए...
भैरव सिंह - हाँ देना चाहिए... पर कैसे... (पिनाक चुप रहता है) हम अपने तरफ से कुछ करेंगे... तो लोगों को पता चल जाएगा कि वह विश्वा था... जो हमारे घर में घुसा था... और अगर हम हमारे आदमियों को मारने की सजा देंगे... तब भी उसे काबु में करेगा कौन... हमारे वही आदमी... जिनको उसनें दौड़ा दौड़ा कर मारा है... हमारे वही आदमी जिन्होंने... होम मिनिस्टर को मजबूर कर दिया था... हमारे पास आकर नाक रगड़ने के लिए...
पिनाक - तो... तो क्या हम उस कमजर्फ विश्वा को छोड़ देंगे...
भैरव सिंह - नहीं.. उसका कुछ ना कुछ इलाज करेंगे... वह भी चालाकी से... उसने अपना जिंदा रहने का इंतजाम कर दिया है... अगर उसे कुछ भी हुआ... तो रुप फाउंडेशन की फाइल एसआईटी के हाथ से निकल कर... सीबीआई की दफ्तर पहुँच जाएगी...
पिनाक - बहुत बड़ा गेम खेल गया है...
भैरव सिंह - हाँ... बहुत ही बड़ा गेम खेल गया है... वह अब... हर कदम पर... हमें या हमारे आदमियों को.. उकसायेगा... या यूँ कहें उकसा रहा है...
पिनाक - तो उसका इलाज...
भैरव सिंह - उसके इलाज के लिए... शनिया और उसके पट्टों ने कुछ सोच रखा है.. बदला वह लोग लेंगे... हमें बस उनकी सोच को दिशा देना है... विश्वा के बर्बादी की ओर मोड़ देना है...
पिनाक - वगैर कुछ जानें... हम क्या कर सकते हैं... और कैसे दिशा दे सकते हैं...
भैरव सिंह - वह आप सब हम पर छोड़ दीजिए...
पिनाक - क्या... सिर्फ इसीलिए आपने हमें याद किया....
भैरव - नहीं... हमने राजगड़ कभी नहीं छोड़ा... बस कुछ दिनों के लिए बिजनस के सिलसिले में बाहर जाया करते थे... इसलिए यहाँ के लोगों की नब्ज को जानते हैं... उनके मिजाज को पहचानते हैं...
पिनाक - तो...
भैरव सिंह - आपको एक और कानाफूसी पर विराम लगाना है... जो शहर में हो रहा है....
पिनाक - भुवनेश्वर में...
भैरव सिंह - हाँ... पर कैसे... यह पुरी तरह से हम.... आपकी सोच और करनी पर छोड़ते हैं...
पिनाक - क्या... और एक कानाफूसी... कैसी कानाफूसी...
भैरव सिंह - क्षेत्रपाल परिवार की इज़्ज़त दाव पर लगी है...
पिनाक - क्या...

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xxx होटल
होटल के रेस्तरां में बैठे वीर थोड़ी नाराज़गी से अनु की ओर देख रहा था l अनु भी झिझकते हुए वीर की ओर देख रही थी l

वीर - मैंने तुमसे क्या कहा... और तुमने क्या किया...
अनु - (मुस्कराने की कोशिश करते हुए) वह मैं...
वीर - क्या मैं... घर पर दादी थी... इसलिए तुमसे कुछ नहीं कहा...
अनु - आप नाराज मत होईये ना...
वीर - क्यूँ नाराज ना होऊँ... बोलो... तुम्हें क्रेडिट कार्ड दिया... ताकि तुम एक अच्छी ड्रेस खरीद कर... पहन कर आती... पर नहीं... तुमने मेरी क्रेडिट कार्ड पर... मेरे लिए खरीदारी करी... क्यूँ...
अनु - वह... मेरे पास है ना... वह पहली बार... आपने मेरे लिए खरीदा था...
वीर - अरे... पागल लड़की... वह अब पुराना हो चुका है... अभी भाभी और रुप के सामने... इसमे अच्छी तो लगेगी... पर मैं चाहता था... तु और भी अच्छी दिखे... कोई अच्छी सी नई वाली नहीं खरीद सकती थी...
अनु - मेरे लिए क्या अच्छा है... मुझ पर क्या जंचती है... वह आप ही जान सकते हैं... मुझे क्या मालुम... मैंने तो खरीदारी के लिए... आपको बुलाया भी था... वैसे भी कहते हैं... खाना हमेशा अपनी पसंद खाना चाहिए... पर पहनावा हमेशा अपने चाहने वाले के पसंद की पहनना चाहिए...
वीर - अच्छा... यह तुमसे किसने कहा...
अनु - यह कहावत है... हमेशा लोग कहते हैं... मैं बचपन से सुनती आ रही हूँ... (थोड़ी शर्मा कर) इसीलिए तो... मैं वह पहली वाली ड्रेस लाई हूँ... पहन कर भाभी जी के सामने जाने के लिए...
वीर - हे भगवान... क्या करूँ इस लड़की का...
अनु - (मुहँ लटका कर दुखी मन से) मैं अच्छी नहीं हूँ ना... आपका मन खराब हो गया...

वीर पल भर के लिए स्तब्ध हो जाता है और अपनी जगह से उठ कर अनु के पास जाता है l अनु के दोनों गाल खींचते हुए कहता है l

वीर - अरे मेरी जान... मेरी पगली... मेरी भोली... तु जब इतनी प्यारी प्यारी बातेँ करती है.. ऐसी हरकतें करती है... तो दिल करता है... के मैं इन लाल लाल सेव जैसे गालों को चबा जाऊँ...
अनु - (चेहरे पर मुस्कान आ जाती है) झूठे...
वीर - आह... मेरी जान यह कह कर अब तो मेरी शाम भी बना दिया तुमने... उम्म्म्... (अनु के गाल पर एक चुम्मा जड़ देता है,)

अनु शर्म से दोहरी हो जाती है, अपनी आँखे मूँद कर चेहरा झुका लेती है l अनु की ठुड्डी को उठाते हुए

वीर - अनु...
अनु - हूँ...
वीर - जाओ... वॉशरुम जाओ... वहीं पर... कपड़े बदल कर... यह वाली पहन कर आओ...
अनु - (अपनी आँखे खोल कर) आपकी भाभी नाराज तो नहीं होंगे ना...
वीर - नहीं... यह ठीक रहेगा... तुम जिस रुप में मुझे दीवाना बना दिया... उसी रुप में... भाभी के सामने आओ... जरा वह भी तो देखें... वीर को अपना गुलाम बनाने वाली... वह लड़की कौन है...
अनु - (धीरे से) झूठे...
वीर - क्या... क्या कहा...
अनु - वह...(अटक अटक कर) वॉशरुम में.. क्यूँ ..
वीर - अरे घबराओ मत... आज का दिन यह पुरा फ्लोर बुक्ड है... तुम्हारे लिए... इसलिए वॉशरुम जाओ... और तैयार हो कर आओ... वहाँ पर कोई नहीं जाएगा... (आँख मारते हुए) मैं भी नहीं...

अनु शर्मा कर कपड़े लेकर तैयार होने के लिए वॉशरुम की ओर भाग जाती है l उसके जाने के बाद वीर पहले अपनी घड़ी देखता है और शुभ्रा को फोन लगाता है l शुभ्रा फोन उठाती है

शुभ्रा - हाँ... कहो वीर...
वीर - आप लोग कब तक आ जाओगे...
शुभ्रा - बस पहुँचने ही गए समझो... क्या तुम्हारे भैया पहुँच गए...
वीर - नहीं... पर आ जाएंगे... फोन किया था... पार्टी ऑफिस में मीटिंग में थे... वह निकल चुके थे... उन्हें पहुँचने में आधा घंटा और लगेगा...
शुभ्रा - हाँ जानती हूँ... उन्होंने मुझे भी फोन पर बता दिया था... हमें भी दस से पंद्रह मिनट ही लगेंगे...
वीर - ठीक है... फिर... (वीर फोन काट देता है)


शुभ्रा अपनी गाड़ी चला रही थी l बगल में ही उसके रुप बैठी हुई थी l शुभ्रा के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी l गाड़ी चलाते वक़्त कभी रुप की ओर देखती फिर मुस्कराते हुए रास्ते पर नजर वापस कर गाड़ी चला रही थी l ऐसे में उसकी गाड़ी xxx होटल के पार्किंग में पहुँच जाती है l गाड़ी पार्क करने के बाद जब दोनों गाड़ी से उतरते हैं तो देखते हैं वहाँ पर पहले से ही विक्रम इंतजार कर रहा था l

रुप - वाव... क्या बात है भाभी... भैया तो पहले से ही... तैयार खड़े हैं...
शुभ्रा - (विक्रम को देख कर हैरानी से) आप... आप तो थोड़ी देर बाद आने वाले थे ना...
विक्रम - (छेड़ते हुए) क्यूँ मुझे देख कर आपको खुशी नहीं हुई...
रुप - क्या बात कर रहे हो भैया... भाभी को इतना बड़ा शॉक के साथ सरप्राइज दे रहे हो... खुश क्यूँ नहीं होंगी भला...
विक्रम - हाँ सो तो है... खुशी और शॉक दोनों तुम्हारी भाभी के चेहरे पर साफ दिख रही है... (शुभ्रा शर्मा कर अपना चेहरा झुका लेती है) वैसे एक बात पूछूं...
रुप - मुझसे या भाभी से... वैसे कहोगे तो... मैं अकेली आप दोनों को छोड़ कर अभी वीर भैया के पास चली जाती हूँ...
विक्रम - वेरी फनी... सवाल तुम दोनों के लिए है...
रुप - क्या...
विक्रम - यही के... तुम दोनों वीर की होने वाली दुल्हन से मिलने आई हो... पर ऐसे साधारण लिबास में... खास मौका है... खास लिबास में आ सकते थे...
शुभ्रा - यह रुप का ही आइडिया था... (रुप का चेहरा उतर जाता है) और मुझे रुप की बात बहुत जंच गई... इसलिये हम दोनों आज इस मौके पर बहुत ही आम लिबास में आए हैं... (विक्रम हैरानी भरे सवालिया नजर से देखता है) देखिए... वीर ने जिसे पसंद किया है... वह बहुत ही आम घर से है... और वीर की बातों से लग भी रहा है... वह अनु थोड़ी स्वाभिमानी भी है... हम दोनों उसके सामने अपना स्टैटस दिखाने नहीं आए हैं... उसे अपनाने आए हैं... उसे यह एहसास ना हो.. के हम उससे या वह हम से अलग है... वह कहीं से भी... हमसे इंन्फेरियर फिल ना करे इसलिए...
विक्रम - वाव... बहुत अच्छे.. नंदिनी... आई आम इम्प्रेस्ड... तुमने बहुत अच्छा किया... अपना सिर क्यूँ झुकाए खड़े हो...
शुभ्रा - और नहीं तो... हमसे भी ज्यादा नंदिनी को जल्दी है... अपनी नई भाभी से मिलने और उसे अपनाने के लिए...
विक्रम - हाँ... चलो फिर... (तीनों होटल के अंदर चलने लगते हैं)
शुभ्रा - विक्की आपने तो अनु को देखा है ना...
विक्रम - हाँ... कल तक अपनी एक एंप्लॉइ को देखा था... पर आज अपनी बहु को देखने वाला हूँ...
रुप - आप अपनी बहु को... भाभी अपनी देवरानी को... और मैं अपनी नई भाभी को... हम सब अपने अपने हिस्से के एक नए रिश्तेदार को देखने जा रहे हैं...

ऐसे में बात करते करते तीनों उस रेस्त्रां वाले हिस्से में पहुँचते हैँ l वहाँ पर सिर्फ वीर चहल कदमी कर रहा था l उन तीनों के पहुँचते ही वीर थोड़ा नर्वस हो जाता है l वह बार बार वॉशरुम की ओर देखने लगता है l पर अनु अभी तक बाहर निकली नहीं थी l तीनों वीर के पास पहुँचे ही थे कि विक्रम का फोन बजने लगता है l विक्रम फोन निकाल कर देखता है डिस्प्ले पर महांती दिख रहा था l विक्रम फोन उठाता है l

विक्रम - हैलो...
महांती - युवराज... मैंने उस घर के भेदी का पता लगा लिया है... आपके सामने थोड़ी देर बाद वह घर का भेदी होगा... सबूतों के साथ होगा...
विक्रम - क्या... तुमने... उसका... पता लगा लिया...
महांती - हाँ... एक सबूत हाथ लगा है... आप इजाजत करें तो... वह कमज़र्फ आपके सामने होगा...
विक्रम - गुड... महांती गुड... (रुप विक्रम से फोन छिन लेती है और स्पीकर पर डाल कर)
रुप - हैलो महांती अंकल...
महांती - हाँ राजकुमारी जी बोलिए...
रुप - अगर आप बुरा ना मानों तो प्लीज... यह ऑफिस का काम.. आप कल के लिए रख दीजिए... हम यहाँ अपनी फॅमिली गेट टू गेदर के लिए हैं...
महांती - ओके... समझ गया... एंजॉय योर ईवनिंग...
रुप - सेम टू यु...
विक्रम - एक मिनट..
महांती - जी युवराज...
विक्रम - हमारी यह गेट टू गेदर तीन या चार घंटे में ख़तम हो जाएगी... तब तक तुम मैनेज कर लो...
महांती - ओके... मैं आपको चार घंटे बाद कॉल करता हूँ...
विक्रम - ठीक है...

फोन कट जाता है l विक्रम फोन कट जाने के बाद रुप और शुभ्रा की ओर देखता है l दोनों उसे घूर रहे थे l रुप उस फोन को अपनी वैनिटी बैग में रख देती है और वीर की ओर अपनी हाथ बढ़ा देती है l वीर पहले तो हैरान हो कर रुप को देखता है फिर समझ जाता है अपनी जेब से मोबाइल निकाल कर रुप को दे देता है l रुप वीर की मोबाइल भी अपनी वैनिटी बैग में रख कर शुभ्रा की ओर देखती है l

शुभ्रा - क्या मेरी भी...
रुप - हाँ...

शुभ्रा अपनी मोबाइल निकाल कर रुप को दे देती है और रुप बिना देरी किए उस मोबाइल को अपनी वैनिटी बैग के हवाले कर देती है l इतने में अनु को सामने आने से झिझकते हुए वीर देख समझ जाता है l वह भागते हुए वॉशरुम की ओर जाता है और खींचते हुए अनु को सबके सामने लाता है l अनु को देखते ही रुप को झटका लगता है l अनु शर्म और डर के मारे अपना सिर झुकाए खड़ी थी l उसने अभी तक रुप को देखा नहीं था l

रुप - भैया... यह...
वीर - अनु... अनुसूया है इनका नाम...
रुप - (अनु से) ऐ... देखो मेरी तरफ... (रुप इस लहजे में बात करने से सभी हैरान हो जाते हैं)
अनु - (बड़ी मुश्किल से अपना चेहरा उठाती है) तुम... (रुप से)

फिर अनु देखती है कि वहाँ पर सिर्फ दो लड़कियाँ और दो मर्द खड़े हैं, एक लड़की के मांग में सिंदूर है l मतलब यह लड़की वीर की बहन हो सकती है l

अनु - (आवाज़ नर्म पड़ जाता है) मेरा मतलब है... आप...
रुप - हाँ मैं... क्या नाम है तुम्हारा..
अनु - (रोनी सी सूरत बना कर) अ.. अनु..

रुप ताली मारते हुए खुशी के मारे उछल पड़ती है और जा कर अनु को गले से लगा लेती है l अनु के साथ साथ वहाँ पर मौजूद सभी रुप की इस हरकत से हैरान हो जाते हैं l फिर रुप अनु को छोड़ कर वीर के गले लग जाती है l

रुप - ओ... थैंक्यू भैया... थैंक्यू... मुझे भाभी बहुत पसंद है...
वीर - क्या...
शुभ्रा - पसंद है... तो इसमें उछलने वाली बात क्या है...
रुप - ओ भाभी.. लगता है आप भूल गई हो...
शुभ्रा - क्या...
रुप - अरे भाभी... मैंने एक बार वीर भैया से कहा था... मेरी बड़ी भाभी मुझसे बहुत प्यार करती हैं... मेरे लिए भाभी ऐसी लाना.. जो मुझसे झगड़ा करे...
वीर - मतलब अनु से तुम्हारी मुलाकात पहले हो चुकी है... और
रुप - हाँ... एक बार नहीं दो बार... और दोनों ही बार हमारा झगड़ा हुआ है...
वीर - क्या... कब
रुप - हाँ... पहली बार... आपके जन्म दिन पर... बक्कल खरीदते वक़्त... और दुसरी बार कल... यानी भाभी ने ज़रूर आपको ड्रेस गिफ्ट किया होगा... (अनु से) क्यूँ है ना भाभी

यह सुन कर विक्रम और और शुभ्रा हँस देते हैं l अनु और वीर दोनों शर्मा जाते हैं l

रुप - (वीर से) भैया... मुझे तो भाभी बहुत पसंद है...
शुभ्रा - हाँ मुझे भी... (कह कर शुभ्रा अपनी बैग से एक नेकलेस निकाल कर अनु को पहना देती है) (और विक्रम से) क्या आपको... आपकी होने वाली बहु पसंद नहीं आई....
विक्रम - पसंद क्यूँ नहीं आई... मुझे तो जब से मालुम हुआ था... तब से पसंद है...
शुभ्रा - तो दीजिए फिर सगुन...
विक्रम - (हड़बड़ा कर) मैं... मैं कुछ लाया नहीं...
शुभ्रा - कोई नहीं... मैंने इस नेकलेस को हम दोनों के तरफ से ही दिया है...
विक्रम - एक मिनट... फिर भी... मेरे हिस्से का फर्ज बाकी है...

विक्रम अपनी जेब से नोटों का एक बंडल निकाल कर अनु की नजर उतारता है और होटल के स्टाफ़ के बीच बांट कर ले जाने के लिए बोलता है l


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महांती अपनी गाड़ी में सामने वाली गली पर नजर गड़ाए बैठा हुआ है l कुछ देर बाद उस गली से निकल कर एक साया हाथ में छोटा सा बैग लेकर महांती के गाड़ी के पास आकर खड़ा होता है l महांती पैसेंजर साइड वाली खिड़की को नीचे सरकाता है l वह मृत्युंजय था l

मृत्युंजय - नमस्ते सर... कहिए क्यूँ बुलाया आपने...
महांती - आओ बैठो..
मृत्युंजय - कहीं जाना है क्या...
महांती - हाँ... बहुत ही जरूरी काम है...
मृत्युंजय - ठीक है सर... पर मैं आपके बगल में कैसे बैठ सकता हूँ... आप मेरे बॉस हैं... डायरेक्टर हैं...
महांती - इतना फॉर्मल होने की कोई जरूरत नहीं है... आओ बैठ जाओ..
मृत्युंजय - ठीक है सर... (कह कर महांती के बगल में बैठ जाता है)
महांती - सीट बेल्ट लगा लो...
मृत्युंजय - जी... जी सर...

मृत्युंजय अपना सीट बेल्ट लगा लेता है l उसके बाद महांती गाड़ी को आगे बढ़ा देता है l कुछ देर की खामोशी के बाद

मृत्युंजय - वैसे... हम जा कहाँ रहे हैं सर...
महांती - तुमसे... आज बहुत खास काम निकल आया है... इसलिये अब तुम बताओ.. हम कहाँ चलें... ताकि तुमसे कुछ जरुरी बात की जा सके...
मृत्युंजय - सर आप मेरे मालिक हैं... जहां आप ले चले...
महांती - अच्छा मैं तुम्हारा मालिक हूँ... बहुत अच्छे... वैसे कितने मालिक हैं तुम्हारे...
मृत्युंजय - जी... जी मैं समझा नहीं...
महांती - ठीक है... चलो मैं ऐसे पूछता हूँ... कितनी नौकरियाँ कर रहे हो तुम इस वक़्त...
मृत्युंजय - क्या सर... मैं तो बस ESS में सी ग्रेड गार्ड की नौकरी कर रहा हूँ...
महांती - मिस्टर मृत्युंजय... सच सच बताओ... अब छुपाने से कोई फायदा नहीं है...
मृत्युंजय - नहीं सर... मैं... मैं क्या छुपाऊँगा... और क्यूँ छुपाऊँगा...
महांती - ह्म्म्म्म... बहुत अच्छे... मेरी सोच से भी कहीं अधिक शातिर हो... (गाड़ी ट्रैफ़िक के वज़ह से रुक जाती है) मुझे लगता है तुम्हें अंदाजा है... पर फिर भी... ना तुम्हारे चेहरे पर कोई शिकन है... ना ही कोई परेशानी... बहुत कंफिडेंट हो...
मृत्युंजय - (मुस्करा कर) सब आपकी ही दी हुई ट्रेनिंग है सर...

महांती के जबड़े भिंच जाती हैं l वह गुस्से भरी नजर से मृत्युंजय की ओर देखता है l पर मृत्युंजय निडर और बेकदर भाव से महांती को देख रहा था l

महांती - मैंने तुम्हारे बारे सब कुछ पता लगा लिया है मृत्युंजय...
मृत्युंजय - ना.. कुछ कुछ... सिर्फ पता लगया है... वह भी उतना... जितना मैंने अपने बारे में जानकारी आपके तक पहुँचाया है...
महांती - क्या... क्या मतलब है तुम्हारा... कहना क्या चाहते हो... मैंने तुम्हारे बारे में जो कुछ जानकारी हासिल किया है... वह तुमने मुझ तक पहुँचाई है...
मृत्युंजय - जी महांती सर...
महांती - तो तुमने अपने बारे में कुछ कुछ खबर मुझ तक पहुँचाया है... हम्म्म... तो अब तुम मुझे सबकुछ बताओगे...
मृत्युंजय - जी बेशक... चलिए कहीं ऐसी जगह ले चलिए... जहां सिर्फ आपकी गाड़ी चलती रहे... और हम... आपस में बातेँ करते रहे... एक रोमांटिक गै डेट... हा हा हा... (हँस देता है)

मृत्युंजय की यह हँसी महांती की सुलगा देती है l वह आग बबूला हो कर मृत्युंजय को देखने लगता है l तभी गाड़ियों की हॉर्न सुनाई देने लगता है l महांती का ध्यान टूटता है वह अपनी गाड़ी को आगे बढ़ाता है l गाड़ी में फिर से चुप्पी छा जाती है l

महांती - तुम रॉय सिक्युरिटी सर्विस में रह कर.... हमारी ESS में क्यूँ काम किया... बोलो गद्दारी क्यूँ की...
मृत्युंजय - गद्दारी.... गद्दारी चाहे किसी से किया हो है... पर सौ फीसद वफ़ादारी खुद से किया था...
महांती - तुम... तुम नहीं जानते... तुम किससे टकरा रहे हो... तुम एक मामुली दो कौड़ी का आदमी... इतना कुछ कैसे कब...
मृत्युंजय - ना... तुम एक मामुली नौकर हो क्षेत्रपाल के... तुम्हें इतना सब कुछ जानने को हक नहीं है... (महांती गियर बदल कर गाड़ी की स्पीड बढ़ाता है) मैं रह ज़रूर झोपड़े में हूँ... मगर करोड़ों से खेलता हूँ...
महांती - तुम किस के एजेंट हो... रॉय के... या महानायक के... या चेट्टी के...
मृत्युंजय - किसीका भी नहीं... मैं वह एजेंट हूँ... जो डबल क्रास करता है...
महांती - डबल क्रॉस... मतलब तुम्हारी बहन का किडनैप...
मृत्युंजय - कोई किडनैप नहीं हुआ है... मैंने उसे... विनय के साथ भगा दिया है...
महांती - क्या...
मृत्युंजय - हाँ... मैंने पुष्पा के जरिए... महानायक का बेटा... विनय को फंसाया... बेचारा विनय... उसे लगता है... उसने मेरी बहन को... अपनी दौलत की चकाचौंध दिखा कर फंसाया है.. हा हा हा...
महांती - तुम्हारा बहुत बुरी गत होने वाली है...
मृत्युंजय - ना... ऐसा कुछ मेरे साथ नहीं होने वाला है... और जो कुछ भी होने वाला है... वह तुम्हारे साथ होने वाला है...

महांती मृत्युंजय की ओर देखता है तो पाता है मृत्युंजय के चेहरे पर कुटिल मुस्कान उभरा हुआ है l उसे हैरानी होती है मृत्युंजय मे एकदम से इतना बड़ा बदलाव देख कर l

महांती - अच्छा... तो मेरे साथ बुरा हो सकता है... कौन करेगा... तुम...
मृत्युंजय - वह तो वक़्त ही बतायेगा... वैसे यह रास्ता देख कर लगता है... हम इन्फोसिस जा रहे हैं ना... एसईजेड में...
महांती - हाँ... क्यूंकि इस रास्ते में कोई नहीं होता...
मृत्युंजय - वैसे... एक बात पूछूं... मिस्टर अशोक महांती...
महांती - तो अब सर के बजाय... मेरे नाम पर आ गए...
मृत्युंजय - हाँ...
महांती - तो मिस्टर डबल एजेंट... तुम्हारे पास कुछ ही घंटे का वक़्त है... उसके बाद मैं तुम्हें सीधे... युवराज के सामने पेश कर दूँगा...
मृत्युंजय - हाँ कुछ ही घंटे... इसलिए... क्यूंकि आज उनकी पारिवारिक मिलन का दिन है... पर एक बात बताओ महांती बाबु... आपके जैसा आदमी... क्षेत्रपाल से वफादारी क्यूँ निभा रहा है...
महांती - क्यूँ... क्यूँ नहीं निभाना चाहिए...
मृत्युंजय - असम राइफ़ल में अच्छे रैंक का ऑफिसर थे... कोर्ट मार्शल चला... सबूत के अभाव में... बच तो गए मगर इस्तीफा देना पड़ा... फिर अपना एक सिक्युरिटी सर्विस की दुकान खोल ली... वहाँ पर धक्का खा कर निकाले गए... उसके बाद ESS... आप सेना से वफादारी नहीं की... RGSS से वफादारी नहीं की... पर क्षेत्रपाल से वफादारी... क्यूँ महांती बाबु क्यूँ...
महांती - क्यूँ की मैं तुम्हारे जैसे डबल एजेंट नहीं हूँ... हाँ मैं क्षेत्रपाल के लिए वफादार हूँ... और मैं तुम्हें युवराज के सामने हर हाल में पेश करूँगा... चाहे इसके लिए... मुझे मरना ही क्यूँ ना पड़े...
मृत्युंजय - खयाल अच्छा है... तुम्हारे अंतिम शब्दों के लिए... तथास्तु...
महांती - व्हाट...

गाड़ी में ब्रेक लगाने की कोशिश करता है पर ब्रेक नहीं लगती l वह गियर बदलने की कोशिश करता है पर गियर लक हो चुका था l वह हैरान हो कर मृत्युंजय की ओर देखता है l मृत्युंजय बड़े बेफिक्र अंदाज में बैठा हुआ था l

महांती - यह क्या कर रहे हो... और यह सब... ब्रेक फैल... गियर ज़ाम...
मृत्युंजय - महांती... तुम्हें लगता है.. की तुमने मुझे उठा लिया है... पर सच यह है कि... मैंने तुम्हें उठा लिया है... (महांती फिर से ब्रेक लगाने की कोशिश करता है पर नहीं लगता) नहीं रुकेगी... और रोकना भी मत... गाड़ी जब तक चलेगी... तब तक सलामत रहेगी... उस वक़्त ट्रैफ़िक पर गाड़ी रुकी नहीं थी... ब्लकि मैंने... रुकवाई थी... भुवनेश्वर डेवेलपमेंट ऑथोरिटी के.. ड्रेनेज स्वेरेज पर... गटर की ढक्कन हटा कर मेरे आदमी ने.. तुम्हारी गाड़ी में थोड़ी सी छेड़ छाड़ कर दी है... इसलिए ना अब ब्रेक लगेगी... ना गियर काम करेगा....
महांती - कोई नहीं... अगर मैं मरूंगा... तो तुम भी नहीं बचोगे...
मृत्युंजय - टाइम टू लाफ नाउ... हा हा हा... मैं अपनी तैयारी में आया हूँ... तुम ओवर कंफिडेंट हो गए....

इतना कह कर मृत्युंजय महांती के सीट बेल्ट की स्विच दबा देता है l जिससे महांती का ध्यान हट जाता है l वह बेल्ट को दोबारा जब हूक करने की कोशिश करता है तो सीट बेल्ट हूक नहीं हो पाता l

मृत्युंजय - बेल्ट हूक नहीं होगा... उसमें मैंने एक रुपये का कॉएन डाल दिया है...

महांती घबराहट के मारे बेल्ट को खिंच कर हूकअप करने की कोशिश करता है पर हो नहीं पाता l फिर अचानक से वह हँसने लगता है l हँसते हँसते हुए महांती मृत्युंजय की ओर देखता है l मृत्युंजय अपने मुहँ पर एक गैस मास्क लगाया था l महांती की हँसी बहुत बढ़ने लगती है l

मृत्युंजय - बड़े खुशनसीब हो महांती... हँसते हँसते दर्द को भुलाकर मरने जा रहे हो.... शीघ्र मेव मृत्यु प्राप्तिरस्तु...
🎉👏🎉
 

Jaguaar

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रोणा अपनी जीप को दौड़ा रहा है l बगल में बल्लभ मुहँ लटकाये खीज कर बैठा हुआ है l ड्राइविंग करते वक़्त बीच बीच में रोणा बल्लभ की ओर देख कर मुस्करा रहा था जिससे बल्लभ का मुड़ और भी ख़राब हो रहा था l

बल्लभ - अबे भोषड़ी के... तुझे कुछ दिनों के लिए छुट्टी में जाने को कहा था... मुझे क्यूँ तू पूछ बना कर लिए जा रहा है...
रोणा - वेरी सिम्पल... अब यह बंदर जिधर जाएगा... उसकी पूछ भी तो उधर जाएगा...
बल्लभ - दिमाग और किस्मत दोनों तेरे खराब थे... इसलिए तुझे छुट्टी में जाने की जरूरत थी...
रोणा - अरे यार... मैं अकेला दस पंद्रह दिन के लिए ट्विन सिटी में क्या करूँगा...
बल्लभ - तो मैं तेरे साथ क्या करूँगा... तुझे आइडिया दिया... मतलब किसी रेड लाइट एरिया में... दस पंद्रह दिनों के लिए... डूबा रहता... मुझे क्या... मेरी गांड मारने ले जा रहा है...
रोणा - मैं तो मजे करूँगा ही... तुझसे भी करवाउंगा... चिंता मत कर... मुझे याद है तेरी फर्माइश... इस बार पूरा करेंगे...
बल्लभ - क्यूँ किसी रंडी खाने का शेयर होल्डर है तु...
रोणा - नहीं... पर हिस्सेदार बनने में कितना टाइम लगेगा... पर ऐयाशी के लिए... रंडी खाना जाने की क्या जरूरत है...
बस एक रांड चाहिए..
ऐयाशी के लिए...
बल्लभ - (दांत पिसते हुए जबड़े भिंच कर रोणा की ओर देखने लगता है)
रोणा - (अपनी ही धुन में) थ्रीसम... गैंग बैंग सुना है कभी... (बल्लभ की ओर देख कर आँख मारते हुए) इस बार करेंगे... हा हा हा... (बल्लभ फिर भी कुछ जवाब नहीं देता) बुरा मत मान यार... मेरा दोस्त है तु... वैसे भी राजगड़ में तु करता क्या... परिवार को तो तुने विदेश में बसा दिया है... साल में एक बार जाता है... बाकी टाइम अपने इंजिन का करता क्या है... कभी कभी सर्विसिंग करवाना ज़रूरी है... समझा...
बल्लभ - इसके लिए... रंडी ढूंढने निकला है..
रोणा - ना... ढूंढने नहीं... (अचानक लहजा खतरनाक हो जाता है) किसी को रंडी बनाने... अपने नीचे लीटाने के लिए...
बल्लभ - (चौंक कर) कहीं तु... उस थप्पड़ वाली कि बात तो नहीं कर रहा है...
रोणा - वाह... यह हुई ना बात... एक हरामी के दिल की बात को.. दुसरा सच्चा हरामी ही जान सकता है...
बल्लभ - बे हरामी... तु जानता क्या है उसके बारे में... मुझे डाऊट है... शायद उस लड़की ने वक़ालत की हो... इंटरेंशीप के जरिए... वह प्रतिभा से जुड़ी हो...
रोणा - तो जुड़ने दे... किसे फर्क़ पड़ता है...
बल्लभ - तु... जितना बड़ा हरामी है... उतना ही बड़ा निर्लज्ज भी है... विश्व ने तुझे एक नहीं दो बार हस्पताल के बेड़ में लिटाया... इतनी आसानी से भुल कैसे गया...
रोणा - (जबड़े भींच कर) कुछ नहीं भुला हूँ...
बल्लभ - तो... इतना बड़ा पंगा लेने क्यूँ जा रहा है... हम उस लड़की के बारे में... कुछ भी नहीं जानते... उसकी बैकग्राउंड क्या है... कोई आइडिया नहीं है...
रोणा - अरे यार... जब से उसे देखा है... उसकी आगे की... और पीछे की... सारी ग्राउंड ही ग्राउंड नजर आ रही है...
बल्लभ - प्रतिभा... स्टेट के औरतों के लिए... वकालत कर रही है... विश्व के पास भी वक़ालत की डिग्री है... अगर वह लड़की वकालत के प्रोफेशन से... किसी भी तरह जुड़ी हुई होगी... तो तु सोच भी नहीं सकेगा... तेरे साथ जो होगा...
रोणा - साले... काले कोट वाले... मैं अभी जो जा रहा हूँ... उस लड़की की पुरी डिटेल निकलने... या यूँ कह... उसे ढूंढ कर उसकी कुंडली निकालने जा रहा हूँ... एक बार उसके बारे में पुरी जानकारी इकट्ठा कर लूँ... फिर... (आगे कुछ नहीं कहता, उसके आँखों में एक शैतानी चमक दिखने लगता है) वह प्रतिभा... वह क्या कर लेगी... देखना वकील प्रतिभा को... राजा साहब एक दिन उसे ऐसे उठवा लेंगे... के खुद उसको भी पता नहीं चलेगा... और जब चलेगा... तब तक वह मगरमच्छ के पेट में हजम हो चुकी होगी... जैसे उस नभ वाणी के रिपोर्टर और उसकी बीवी का हुआ था...
बल्लभ - एक रिपोर्टर को गायब करने के लिए... क्या कुछ करना पड़ा है तु जानता भी है... उसे अंदाजा तक नहीं था... पर प्रतिभा... वह एक वकील है... अगर वह विश्व का साथ दे रही है... तो उसकी अपनी पुरी तैयारी होगी... यह मत भुल.. वह एक पब्लिक फिगर भी है... और खास बात... उसे कुछ पालिटिशीयन का साथ भी है...
रोणा - यहीं पर ही तो खेल खेलना है... उसके पति ने... विश्व के ट्रीटमेंट के समय... फोटो और वीडियो निकलवा कर... मेरी गवाही को झूठा साबित करवा दिया था.... और कमिनी ने... विश्व को वकालत की डिग्री दिलवा दिया... उस अधमरे सांप को... एक विशाल अजगर बना दिया है... जो अब हम सबको निगलने को तैयार बैठा है...
बल्लभ - तु कहना क्या चाहता है...
रोणा - यही... की राजा साहब का ध्यान सिर्फ... विश्वा को सजा दिलवाने पर ही थी... मेरी गवाही जिसके वज़ह से झूठा साबित हुआ... उसे कुछ नहीं किया... और सोने पे सुहागा देख... वही दंपति ने... विश्व को हमसे लड़ने लायक बना दिया...
बल्लभ - तुझे गुस्सा किस पर है...
रोणा - (चिल्लाते हुए) सब पर... विश्वा पर... वैदेही पर... सेनापति दंपति पर... और... (आवाज दबा कर) राजा पर..
बल्लभ - (हैरान हो कर) राजा साहब पर क्यूँ...
रोणा - मैं... विश्वा को मार देना चाहता था... राजा साहब ने मना किया... मेरी गवाही झूठी साबित हो गई... राजा साहब ने... मेरे लिए कोई बदला नहीं लिया... इसलिए... मेरा बदला... अब मुझे लेना होगा...

दोनों के दरम्यान कुछ देर के लिए खामोशी पसर जाती है l बल्लभ से कुछ जवाब ना पाने के वज़ह से रोणा उसकी ओर देखता है l बल्लभ के चेहरे पर चिंता की लकीर उसे साफ दिख रहा था l

रोणा - क्या सोच रहा है वकील...
बल्लभ - यही... के कटक या भुवनेश्वर में तुझे किस हस्पताल को ले चलूँ...
रोणा - क्यूँ मुझे क्या हुआ है...
बल्लभ - तेरा दिमाग खराब हो गया है... जो राजगड़ या यशपुर में कर लेता था... तु वह सब कटक या भुवनेश्वर में कर लेगा... तु यह सब जो कुछ... सोच भी कैसे सकता है...
रोणा - क्यूँ मेरी सोच में कमी कहाँ रह गई...
बल्लभ - इतना तो मानेगा ना तु... वह विश्व भुवनेश्वर रह कर... राजगड़ की खबर रखा करता था...
रोणा - हाँ... तो...
बल्लभ - तो वह... राजगड़ में रहकर... भुवनेश्वर की खबर नहीं निकाल सकता क्या...
रोणा - हाँ... कर तो सकता है... पर करेगा क्यूँ...
बल्लभ - क्या मतलब...
रोणा - (बैठे हुए सीट के पीछे वाली पॉकेट से एक फाइल निकाल कर बल्लभ को देते हुए) यह ले... यह देख...

बल्लभ फाइल खोल कर देखता है l एक ऑफिस ऑर्डर था रोणा के नाम l रोणा डेपुटेशन पर फैकल्टी बनकर अंगुल पुलिस एकाडमी जा रहा था पंद्रह दिनों के लिए l

बल्लभ - तो तु तैयारी के साथ जा रहा है...
रोणा - हाँ...
बल्लभ - तुझे क्या लगता है... तेरी तैयारी पुरी है...
रोणा - हाँ... मैं यह जानता हूँ... विश्वा जरूर हम पर नजर रखा होगा... इसलिए... मैंने यह ऑर्डर निकलवाया है... अगर पता करेगा.. तो भी उसे लगेगा... के मैं अंगुल में हूँ... वैसे भी... गाँव में मैंने उसके पीछे... मेरे खास आदमी को लगाया है... वह छींकेगा भी... मुझे खबर लग जाएगी...
बल्लभ - ह्म्म्म्म... ठीक है... पर तु उस लड़की को ढूँढेगा कैसे... क्यूंकि अगर तु प्रतिभा पर नजर रखेगा... तो विश्व को खबर लग सकती है...
रोणा - वहाँ पर... हम किसी और से काम लेंगे...
बल्लभ - मतलब राजा साहब के आदमी से...
रोणा - अरे नहीं... उससे नहीं... मैं किसी और से काम लूँगा...
बल्लभ - उससे क्यूँ नहीं...
रोणा - तु जानता भी है राजा साहब ने किसे काम दिया है...
बल्लभ - नहीं...
रोणा - राजा साहब ने... अपने यशपुर महल के केयर टेकर को भेजा है... और वह वहाँ पर किसी प्राइवेट डिटेक्टिव से काम ले रहा है...
बल्लभ - ओ... पर तु किससे काम लेना चाहता है...
रोणा - टोनी से... उर्फ लेनिन से...
बल्लभ - क्या... पर उसने तो कहा था... विश्वा के रास्ते कभी नहीं आएगा...
रोणा - हाँ.. उसे थोड़े ना पता है... प्रतिभा और उसका पति... विश्व के मुहँ बोले माँ बाप बन गए हैं... और मुझे लेनिन से सीधे काम नहीं लेना है... उसके नेट वर्क से लेना है...
बल्लभ - क्या तु राजा साहब से रेवोल्ट करेगा...
रोणा - ना मेरे जिगर के छल्ले ना... इतना बड़ा कलेजा नहीं है मेरा... पर विश्वा से तो हिसाब मुझे चुकाना ही है... मेरी गट फिलिंग कह रही है... उस लड़की से... विश्वा का कुछ लेना देना होगा...
बल्लभ - क्या... तुझे ऐसा क्यूँ लगता है... कोई लेना देना होगा....
रोणा - जरा सोच काले कोट वाले जरा सोच... घर में करीब करीब पांच से छह लड़कियाँ थीं.... पर हमें पानी देने एक ही लड़की आई... वह भी बिना मांगे... एक जवान लड़की... घर में एक बुढ़ी औरत की मेहमान को पानी पीला रही है... नौकरानी तो नहीं हो सकती... पहनावा ही कुछ ऐसा था...
बल्लभ - अच्छा मान लिया... विश्वा से उसका कोई लेना देना होगा... तो... अगर कोई बड़े बैकग्राउंड वाली लड़की हुई तो...
रोणा - तो... हा हा हा हा... तो... हा हा हा हा... अगर उस लड़की का टांका विश्वा से भिड़ा हुआ होगा... तो वह कभी भी बड़े बैकग्राउंड वाली लड़की नहीं होगी... नहीं हो सकती... जरूर किसी मिडल क्लास या गरीब घर की लड़की होगी... क्यूंकि कोई मॉर्डन या बड़े घर की लड़की... विश्वा जैसे सजायाफ्ता मुजरिम से कैसे इश्क लड़ायेगी...


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विश्वा उमाकांत के घर को अपने तरीके से सजा रहा है l चूंकि उसे कारपेंट्री का अनुभव था l घर को सजाने के लिए अपना अनुभव का इस्तेमाल कर रहा था l तभी टीलु बाहर से कुछ सामान लेकर आता है l

टीलु - भाई... एक खबर है..
विश्वा - (काम करते हुए) क्या...
टीलु - आज वह इंस्पेक्टर रोणा... अपने वकील दोस्त के साथ... राजगड़ से बाहर गया है... एक लंबी छुट्टी पर...
विश्व - ह्म्म्म्म... तुम्हें कैसे पता चला...
टीलु - क्या भाई... अपना कुछ सेटिंग है... यही तो अपनी स्पेशियलिटी है...
विश्व - कहाँ गया है... कितने दिनों के लिए गया है... जानते हो...
टीलु - हाँ... उसने शायद अपने लिए... एक ऑफिशियल ऑर्डर निकलवाया है... पुलिस ट्रेनिंग एकेडमी अंगुल में पंद्रह दिनों के लिए छोटी ट्रेनिंग सेशन के लिए... फैकल्टी बन कर गया है...
विश्व - इतना कुछ... तुम्हें कैसे मालुम हुआ... तुम तो कह रहे थे... वह अपना दिमाग दुरुस्त करने के लिए... राजगड़ से दुर जाना चाहता था..
टीलु - हाँ ऐन मौके पर बिल्ला की किस्मत जाग गई... रोसोड़े में दुध की बर्तन गिर गई...
विश्व - (अपने काम को रोक कर, टीलु की देखते हुए) उसकी किस्मत से कुछ भी नहीं हुआ है... मुझ तक खबर पहुँचाने के लिए... उसने यह प्लॉट बनाया है...
टीलु - (चौंकता है) क्या... मतलब... उसे मेरे बारे में... पता चल चुका है...
विश्व - नहीं... अभी तक तो नहीं...
टीलु - फिर... मेरा मतलब है... तुमको ऐसा क्यूँ लगा...
विश्व - मैं दुश्मन को उसकी दिमाग से सोच रहा हूँ... इसलिए...
टीलु - चलो ठीक है... तो फिर यह ऑर्डर...
विश्व - फेक है... ऐसा कोई ऑर्डर नहीं निकला है...
टीलु - यह तुम अंदाजा लगा रहे हो... या...
विश्व - अंदाजा लगा रहा हूँ... पर सटीक... उसे अंदेशा है... मैं उसकी हर हरकत पर नजर रख रहा हूँ... इसलिए उसने मेरे साथ काउंटर इंटेलिजंस गेम खेल रहा है...
टीलु - काउंटर इंटेलिजंस... मतलब उसने भी तुम पर नजर रखने के लिए किसी को पीछे लगाया हुआ है क्या...
विश्व - हाँ...
टीलु - किसे...
विश्व - उदय...
टीलु - कौन उदय...
विश्व - ग्राम रक्षी... होम गार्ड... उदय कुमार को...
टीलु - अच्छा... ठीक है... तुम पर नजर रखने के लिए... उसने उदय को लगाया... पर इसके लिए... अंगुल जाने की झूठी खबर क्यूँ फैलाया...
विश्व - ताकि... मेरी रिएक्शन क्या हो रहा है... यह जानने के लिए...
टीलु - तो क्या तुम कल नहीं जा रहे हो...
विश्व - जाऊँगा तो जरूर... वह भी तीन से चार दिनों के लिए...
टीलु - जाहिर है कि उदय यह खबर रोणा तक पहुँचाएगा...
विश्व - नहीं... तुम्हें उसको संभालना होगा... उसे ही नहीं... बल्कि पुरे गाँव वालों को.... सबको यह लगे कि... मैं इस घर को सजाने में... काम इस कदर खो गया हूँ... मशगूल हो गया हूँ... के घर से निकलने की फुर्सत ही नहीं मिल पा रहा है...
टीलु - ह्म्म्म्म... यानी सिर्फ उस उदय को ही नहीं... पुरे गाँव वालों को टोपी भी पहनानी पड़ेगी... गाँव वाले इस तरफ कम ही आते हैं... तो उनका कोई प्रॉब्लम नहीं है... पर उदय...
विश्व - तुम उदय को ट्रैप में ले सकते हो... वह भी इस तरफ ज्यादा आता जाता नहीं है...
टीलु - ठीक है... पर कैसे...
विश्वा - जैसे तुम दूसरों से खबर निकलवा रहे हो... बिल्कुल वैसे ही...
टीलु - ऐ विश्वा भाई... मैं खबर बड़ी ट्रिक लगा कर निकलवा रहा हूँ... यह मेरी सीक्रेट है... हाँ...
विश्व - अरे मैं वही कह रहा हूँ... तुम अपना उसी सीक्रेट वेपन का इस्तेमाल करो... और जब तक मैं वापस ना आऊँ... उदय और गाँव वालों को यह एहसास दिलाओ... के मैं राजगड़ में हूँ...
टीलु - ठीक है... मैं वह सब करवा लूँगा... पर मान लो अगर... कटक या भुवनेश्वर में... उस कमबख्त मर्दुद रोणा से आमना सामना हुआ तो...
विश्व - (मुस्कराते हुए) उसमें मानने वाली बात क्या है... आमना सामना तो होना ही होना है...
टीलु - तो फिर बात को छुपाने की क्या जरूरत है...
विश्वा - जरूरत है... क्यूंकि मुझ पर सिर्फ़ रोणा ही नजर नहीं रख रहा है... बल्कि और भी कुछ लोग नजर रख रहे हैं....
टीलु - क्या... कौन कौन...
विश्व - एक उदय को जानता हूँ... पर बाकियों को नहीं जानता...
टीलु - यह तो बहुत खतरनाक खबर है भाई... एक विश्वा... और सौ जासूस...
विश्व - सौ नहीं चार... शायद..
टीलु - चलो एक रोणा का... और
विश्व - और एक... शायद चेट्टी का..
टीलु - तीसरा राजा साहब का...
विश्व - हो सकता है...
टीलु - और चौथा... क्या डैनी भाई....
विश्व - नहीं... डैनी भाई नहीं हो सकते...
टीलु - क्यूँ.. क्यूँ नहीं हो सकते...
विश्व - कुछ मामलों में... डैनी भाई बहुत परफेक्ट हैं... इसलिए...
टीलु - तो फिर... उन चारों को छकाना होगा...
विश्व - हाँ पर खास कर उदय को...
टीलु - खास कर उदय को... वह किसलिए...
विश्व - वह इसलिए... के रोणा ने अभी तक मुझे... सीरियसली लिया नहीं है... और ना ही उसके इर्दगिर्द भीन भीनाते उसके मच्छरों ने... उसे अपने चमचों पर भड़काना भी तो है...


विश्व के कहलेने के बाद टीलु अपना सिर हिला कर हामी भरता है पर किन्हीं ख़यालों खो जाता है l

विश्व - क्या हुआ... किस सोच में खो गए...
टीलु - यही... की रोणा... अगर अंगुल नहीं गया है... तो गया कहाँ...
विश्व - साथ में वकील प्रधान है... मतलब वह राजधानी ही गया है...

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महल के प्रांगण में भी के कोने में राज उद्यान है l उस उद्यान के एक किनारे पर एक मध्यम आकार का तालाब है l उस तालाब के बीचों-बीच एक विश्राम छत्र है जो चारों तरफ से खुला हुआ है, केवल ऊपर एक छत है l वहाँ तक जाने के लिए एक पुराना पत्थरों से निर्मित एक पुल भी है l उस छत्र बीचों-बीच ब खाली जगह पर भैरव सिंह कमर के ऊपर से अधनंगा हो कर एक तलवार हाथ में लिए बहुत तेजी से चला रहा है घुमा रहा है l यह वह छत्र है जहां केवल क्षेत्रपाल परिवार के मर्दों को छोड़ किसी और का प्रवेश वर्जित है l वहाँ पर पिनाक आ कर पहुँचता है, पिनाक को देख कर भैरव सिंह तलवार को उसके म्यान में रख देता है l फिर भैरव सिंह अपने बदन पर एक टावल डाल कर पिनाक के साथ मिलकर एक अति विशेष प्रकोष्ठ की ओर जाते हैं l यहाँ पर भी नौकर चाकरों का आना मना है l अंदर आते ही टावल से अपना पसीना पोछते हुए एक दीवार के सामने खड़ा होता है l उस दीवार पर सजे हुए अपने परिवार के राजसी चिन्ह के सामने खड़ा होता है l उस राजसी चिन्ह के नीचे एक शो केस में एक तीन फिट की बिना मूठ वाली तलवार रखी हुई है l भैरव सिंह उस तलवार को देखते हुए अपना पसीना पोंछ रहा था l पिनाक आकर उसके करीब खड़ा होता है

पिनाक - क्या हुआ राजा साहब... ऐसी क्या बात हो गई... के हम अपने कारिंदों के सामने... या गुलामों के सामने नहीं हो सकता था... और आपने हमें यहां बुलाया...

भैरव सिंह घुम कर पिनाक को देखता है और फिर पास पड़े एक कुर्सी पर बैठ जाता है l पिनाक को इशारे से पास पड़े और एक कुर्सी पर बैठने को इशारा करता है l

पिनाक - (बैठते हुए) लगता है... कोई बहुत ही खास बात हो गई है... जिसे जानने का हक... हमारे वफादार भीमा को भी नहीं है...
भैरव सिंह - काना-फुसी.. बहुत खतरनाक चीज़ है... शुरू बहुत छोटी से होता है... पर एक कान से दुसरे कान तक गुज़रते गुज़रते... एक बहुत बड़ा सैलाब बन जाता है... कभी कभी वह जज्बातों की बाँध तोड़ कर इज़्ज़त की इमारत को ढहा देता है...
पिनाक - हम कुछ समझे नहीं...
भैरव सिंह - हमें जब मालुम हुआ... विश्वा गाँव में आ गया है... हमने अपने एक वफादार को.... फेरी वाला बना कर.... गाँव में लोगों के मन में हमारे बारे में क्या चल रहा है... औरतें क्या बातेँ करते रहते हैं... यह जानने के लिए छोड़ दिया...
पिनाक - यानी पुराने ज़माने में... जो राजे महाराजे किया करते थे... लोगों के बीच से खबर निकलवाने के लिए... आपने वही किया...
भैरव सिंह - हाँ...
पिनाक - और आपने हमें.. इस प्रकोष्ठ में बुलाया है... तो बात गंभीर है...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म...

पिनाक और कुछ सवाल नहीं करता l वह भैरव सिंह की ओर देखता है l भैरव सिंह अपनी जबड़े भींचते हुए कुछ सोचे जा रहा था l कुछ देर की खामोशी के बाद पिनाक से रहा नहीं जाता l

पिनाक - अहेम.. अहेम... राजा साहब...
भैरव सिंह - (पिनाक की ओर देखते हुए) हुकूमत... हमेशा दौलत और ताकत के बूते किया जाता है... जो वफादारी के घेरे में महफ़ूज़ रहती है... पर हुकूमत की नींव को लालच और सियासत हिला कर... ढहा देती है... इसलिए हुक्मरान का यह फर्ज होता है... वफादारों की वफ़ादारी का घेरा कभी ढीली ना पड़े...
पिनाक - हमें किससे खतरा है राजा साहब..
भैरव सिंह - नहीं अभी तक तो नहीं.... पर हमें... अब तैयार होना होगा... और अपने वफादारों को तैयार रखना होगा...
पिनाक - राजा साहब... हम अभी भी कुछ समझ नहीं पा रहे हैं...
भैरव सिंह - राजगड़ या आसपास... हमारे खिलाफ... कोई मुहँ खोल कर... बात नहीं कर सकता है... पर कानाफूसी तो कर लेते हैं...
पिनाक - हमारे खिलाफ कानाफूसी...
भैरव सिंह - हाँ छोटे राजा जी.. हाँ... उस रात को विश्वा हमारे महल में आया था... जो हालात बनें... भले ही किसीने विश्वा पर गौर नहीं किया था... पर कुछ नौकर चाकरों को इतना जरूर मालुम हो गया... कोई हिम्मत कर के आया था... महल में घुसा था... और बड़े राजा जी की... ग़ैरत को लानत दे कर... छेड़ कर गया था...
पिनाक - ओ... हम समझे थे कि... कोई इस बात पर... चर्चा नहीं करेगा... आपने भी तो बड़े राजा जी से यही कहा था...
भैरव सिंह - नहीं कर रहे हैं कोई चर्चा... सिर्फ कानाफूसी कर रहे हैं...
पिनाक - (खीज जाता है) आ ह्ह्ह्ह्... हमें विश्वा को ख़तम कर देना चाहिए था... उसके इस गुस्ताखी के लिए... पर आपने कहा था कि... वह गुस्ताखी हमारे आदमियों से करे... और हमारे आदमियों के जरिए... खबर हम तक पहुँचनी चाहिए... अगर वह कभी हमारे आदमियों से उलझा तो...
भैरव सिंह - वह उलझ चुका है...
पिनाक - (उछल पड़ता है) क्या...
भैरव सिंह - हूँ... हमारे आदमियों को... रात के अंधेरे में... राजगड़ के गलियों में... दौड़ा दौड़ा कर मारा है...
पिनाक - (खड़ा हो जाता है) क्या... यह आप क्या कह रहे हैं... यह... यह कब हुआ... और भीमा... भीमा ने या हमारे लोगों ने हमें खबर क्यूँ नहीं की...
भैरव सिंह - यही तो हम भी सोच रहे हैं... आज सुबह भीमा से हमने पुछा तो वह बात छुपा गया...
पिनाक - यह तो बहुत बड़ी गुस्ताखी है... यह... यह आपको क्या उस फेरी वाले ने बताया है...
भैरव सिंह - हाँ... छोटे राजा जी... क्या आप जानते हैं... पुराने ज़माने में... राजा अपने सीमा के भीतर बसने वालों की बातों को जानने के लिए... नाई और धोबी से खबरें लिया करते थे... नाई इसलिए... बाल या दाढ़ी बनाने वालों से लगातार बात कर उनसे बहुत सारी बातेँ उगलवा लेता था.... और धोबी की पहुँच ज्यादातर घरों के भीतर तक होती थी... जो नदी या तालाब तक जो भी आपसी कानाफूसी होती थी... वह सारी बातेँ राजा को बता दिया करते थे... हमने भी उसी तरह... एक फेरी वाले को गाँव के लोगों के बीच छोड़ा... उसने जो भी कानाफूसी सुनी... हमें उसीसे सारी बातेँ पता चलीं...
पिनाक - ओ... तो क्या हमें... विश्वा की इस जुर्रत के लिए... सजा नहीं देना चाहिए...
भैरव सिंह - हाँ देना चाहिए... पर कैसे... (पिनाक चुप रहता है) हम अपने तरफ से कुछ करेंगे... तो लोगों को पता चल जाएगा कि वह विश्वा था... जो हमारे घर में घुसा था... और अगर हम हमारे आदमियों को मारने की सजा देंगे... तब भी उसे काबु में करेगा कौन... हमारे वही आदमी... जिनको उसनें दौड़ा दौड़ा कर मारा है... हमारे वही आदमी जिन्होंने... होम मिनिस्टर को मजबूर कर दिया था... हमारे पास आकर नाक रगड़ने के लिए...
पिनाक - तो... तो क्या हम उस कमजर्फ विश्वा को छोड़ देंगे...
भैरव सिंह - नहीं.. उसका कुछ ना कुछ इलाज करेंगे... वह भी चालाकी से... उसने अपना जिंदा रहने का इंतजाम कर दिया है... अगर उसे कुछ भी हुआ... तो रुप फाउंडेशन की फाइल एसआईटी के हाथ से निकल कर... सीबीआई की दफ्तर पहुँच जाएगी...
पिनाक - बहुत बड़ा गेम खेल गया है...
भैरव सिंह - हाँ... बहुत ही बड़ा गेम खेल गया है... वह अब... हर कदम पर... हमें या हमारे आदमियों को.. उकसायेगा... या यूँ कहें उकसा रहा है...
पिनाक - तो उसका इलाज...
भैरव सिंह - उसके इलाज के लिए... शनिया और उसके पट्टों ने कुछ सोच रखा है.. बदला वह लोग लेंगे... हमें बस उनकी सोच को दिशा देना है... विश्वा के बर्बादी की ओर मोड़ देना है...
पिनाक - वगैर कुछ जानें... हम क्या कर सकते हैं... और कैसे दिशा दे सकते हैं...
भैरव सिंह - वह आप सब हम पर छोड़ दीजिए...
पिनाक - क्या... सिर्फ इसीलिए आपने हमें याद किया....
भैरव - नहीं... हमने राजगड़ कभी नहीं छोड़ा... बस कुछ दिनों के लिए बिजनस के सिलसिले में बाहर जाया करते थे... इसलिए यहाँ के लोगों की नब्ज को जानते हैं... उनके मिजाज को पहचानते हैं...
पिनाक - तो...
भैरव सिंह - आपको एक और कानाफूसी पर विराम लगाना है... जो शहर में हो रहा है....
पिनाक - भुवनेश्वर में...
भैरव सिंह - हाँ... पर कैसे... यह पुरी तरह से हम.... आपकी सोच और करनी पर छोड़ते हैं...
पिनाक - क्या... और एक कानाफूसी... कैसी कानाफूसी...
भैरव सिंह - क्षेत्रपाल परिवार की इज़्ज़त दाव पर लगी है...
पिनाक - क्या...

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xxx होटल
होटल के रेस्तरां में बैठे वीर थोड़ी नाराज़गी से अनु की ओर देख रहा था l अनु भी झिझकते हुए वीर की ओर देख रही थी l

वीर - मैंने तुमसे क्या कहा... और तुमने क्या किया...
अनु - (मुस्कराने की कोशिश करते हुए) वह मैं...
वीर - क्या मैं... घर पर दादी थी... इसलिए तुमसे कुछ नहीं कहा...
अनु - आप नाराज मत होईये ना...
वीर - क्यूँ नाराज ना होऊँ... बोलो... तुम्हें क्रेडिट कार्ड दिया... ताकि तुम एक अच्छी ड्रेस खरीद कर... पहन कर आती... पर नहीं... तुमने मेरी क्रेडिट कार्ड पर... मेरे लिए खरीदारी करी... क्यूँ...
अनु - वह... मेरे पास है ना... वह पहली बार... आपने मेरे लिए खरीदा था...
वीर - अरे... पागल लड़की... वह अब पुराना हो चुका है... अभी भाभी और रुप के सामने... इसमे अच्छी तो लगेगी... पर मैं चाहता था... तु और भी अच्छी दिखे... कोई अच्छी सी नई वाली नहीं खरीद सकती थी...
अनु - मेरे लिए क्या अच्छा है... मुझ पर क्या जंचती है... वह आप ही जान सकते हैं... मुझे क्या मालुम... मैंने तो खरीदारी के लिए... आपको बुलाया भी था... वैसे भी कहते हैं... खाना हमेशा अपनी पसंद खाना चाहिए... पर पहनावा हमेशा अपने चाहने वाले के पसंद की पहनना चाहिए...
वीर - अच्छा... यह तुमसे किसने कहा...
अनु - यह कहावत है... हमेशा लोग कहते हैं... मैं बचपन से सुनती आ रही हूँ... (थोड़ी शर्मा कर) इसीलिए तो... मैं वह पहली वाली ड्रेस लाई हूँ... पहन कर भाभी जी के सामने जाने के लिए...
वीर - हे भगवान... क्या करूँ इस लड़की का...
अनु - (मुहँ लटका कर दुखी मन से) मैं अच्छी नहीं हूँ ना... आपका मन खराब हो गया...

वीर पल भर के लिए स्तब्ध हो जाता है और अपनी जगह से उठ कर अनु के पास जाता है l अनु के दोनों गाल खींचते हुए कहता है l

वीर - अरे मेरी जान... मेरी पगली... मेरी भोली... तु जब इतनी प्यारी प्यारी बातेँ करती है.. ऐसी हरकतें करती है... तो दिल करता है... के मैं इन लाल लाल सेव जैसे गालों को चबा जाऊँ...
अनु - (चेहरे पर मुस्कान आ जाती है) झूठे...
वीर - आह... मेरी जान यह कह कर अब तो मेरी शाम भी बना दिया तुमने... उम्म्म्... (अनु के गाल पर एक चुम्मा जड़ देता है,)

अनु शर्म से दोहरी हो जाती है, अपनी आँखे मूँद कर चेहरा झुका लेती है l अनु की ठुड्डी को उठाते हुए

वीर - अनु...
अनु - हूँ...
वीर - जाओ... वॉशरुम जाओ... वहीं पर... कपड़े बदल कर... यह वाली पहन कर आओ...
अनु - (अपनी आँखे खोल कर) आपकी भाभी नाराज तो नहीं होंगे ना...
वीर - नहीं... यह ठीक रहेगा... तुम जिस रुप में मुझे दीवाना बना दिया... उसी रुप में... भाभी के सामने आओ... जरा वह भी तो देखें... वीर को अपना गुलाम बनाने वाली... वह लड़की कौन है...
अनु - (धीरे से) झूठे...
वीर - क्या... क्या कहा...
अनु - वह...(अटक अटक कर) वॉशरुम में.. क्यूँ ..
वीर - अरे घबराओ मत... आज का दिन यह पुरा फ्लोर बुक्ड है... तुम्हारे लिए... इसलिए वॉशरुम जाओ... और तैयार हो कर आओ... वहाँ पर कोई नहीं जाएगा... (आँख मारते हुए) मैं भी नहीं...

अनु शर्मा कर कपड़े लेकर तैयार होने के लिए वॉशरुम की ओर भाग जाती है l उसके जाने के बाद वीर पहले अपनी घड़ी देखता है और शुभ्रा को फोन लगाता है l शुभ्रा फोन उठाती है

शुभ्रा - हाँ... कहो वीर...
वीर - आप लोग कब तक आ जाओगे...
शुभ्रा - बस पहुँचने ही गए समझो... क्या तुम्हारे भैया पहुँच गए...
वीर - नहीं... पर आ जाएंगे... फोन किया था... पार्टी ऑफिस में मीटिंग में थे... वह निकल चुके थे... उन्हें पहुँचने में आधा घंटा और लगेगा...
शुभ्रा - हाँ जानती हूँ... उन्होंने मुझे भी फोन पर बता दिया था... हमें भी दस से पंद्रह मिनट ही लगेंगे...
वीर - ठीक है... फिर... (वीर फोन काट देता है)


शुभ्रा अपनी गाड़ी चला रही थी l बगल में ही उसके रुप बैठी हुई थी l शुभ्रा के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी l गाड़ी चलाते वक़्त कभी रुप की ओर देखती फिर मुस्कराते हुए रास्ते पर नजर वापस कर गाड़ी चला रही थी l ऐसे में उसकी गाड़ी xxx होटल के पार्किंग में पहुँच जाती है l गाड़ी पार्क करने के बाद जब दोनों गाड़ी से उतरते हैं तो देखते हैं वहाँ पर पहले से ही विक्रम इंतजार कर रहा था l

रुप - वाव... क्या बात है भाभी... भैया तो पहले से ही... तैयार खड़े हैं...
शुभ्रा - (विक्रम को देख कर हैरानी से) आप... आप तो थोड़ी देर बाद आने वाले थे ना...
विक्रम - (छेड़ते हुए) क्यूँ मुझे देख कर आपको खुशी नहीं हुई...
रुप - क्या बात कर रहे हो भैया... भाभी को इतना बड़ा शॉक के साथ सरप्राइज दे रहे हो... खुश क्यूँ नहीं होंगी भला...
विक्रम - हाँ सो तो है... खुशी और शॉक दोनों तुम्हारी भाभी के चेहरे पर साफ दिख रही है... (शुभ्रा शर्मा कर अपना चेहरा झुका लेती है) वैसे एक बात पूछूं...
रुप - मुझसे या भाभी से... वैसे कहोगे तो... मैं अकेली आप दोनों को छोड़ कर अभी वीर भैया के पास चली जाती हूँ...
विक्रम - वेरी फनी... सवाल तुम दोनों के लिए है...
रुप - क्या...
विक्रम - यही के... तुम दोनों वीर की होने वाली दुल्हन से मिलने आई हो... पर ऐसे साधारण लिबास में... खास मौका है... खास लिबास में आ सकते थे...
शुभ्रा - यह रुप का ही आइडिया था... (रुप का चेहरा उतर जाता है) और मुझे रुप की बात बहुत जंच गई... इसलिये हम दोनों आज इस मौके पर बहुत ही आम लिबास में आए हैं... (विक्रम हैरानी भरे सवालिया नजर से देखता है) देखिए... वीर ने जिसे पसंद किया है... वह बहुत ही आम घर से है... और वीर की बातों से लग भी रहा है... वह अनु थोड़ी स्वाभिमानी भी है... हम दोनों उसके सामने अपना स्टैटस दिखाने नहीं आए हैं... उसे अपनाने आए हैं... उसे यह एहसास ना हो.. के हम उससे या वह हम से अलग है... वह कहीं से भी... हमसे इंन्फेरियर फिल ना करे इसलिए...
विक्रम - वाव... बहुत अच्छे.. नंदिनी... आई आम इम्प्रेस्ड... तुमने बहुत अच्छा किया... अपना सिर क्यूँ झुकाए खड़े हो...
शुभ्रा - और नहीं तो... हमसे भी ज्यादा नंदिनी को जल्दी है... अपनी नई भाभी से मिलने और उसे अपनाने के लिए...
विक्रम - हाँ... चलो फिर... (तीनों होटल के अंदर चलने लगते हैं)
शुभ्रा - विक्की आपने तो अनु को देखा है ना...
विक्रम - हाँ... कल तक अपनी एक एंप्लॉइ को देखा था... पर आज अपनी बहु को देखने वाला हूँ...
रुप - आप अपनी बहु को... भाभी अपनी देवरानी को... और मैं अपनी नई भाभी को... हम सब अपने अपने हिस्से के एक नए रिश्तेदार को देखने जा रहे हैं...

ऐसे में बात करते करते तीनों उस रेस्त्रां वाले हिस्से में पहुँचते हैँ l वहाँ पर सिर्फ वीर चहल कदमी कर रहा था l उन तीनों के पहुँचते ही वीर थोड़ा नर्वस हो जाता है l वह बार बार वॉशरुम की ओर देखने लगता है l पर अनु अभी तक बाहर निकली नहीं थी l तीनों वीर के पास पहुँचे ही थे कि विक्रम का फोन बजने लगता है l विक्रम फोन निकाल कर देखता है डिस्प्ले पर महांती दिख रहा था l विक्रम फोन उठाता है l

विक्रम - हैलो...
महांती - युवराज... मैंने उस घर के भेदी का पता लगा लिया है... आपके सामने थोड़ी देर बाद वह घर का भेदी होगा... सबूतों के साथ होगा...
विक्रम - क्या... तुमने... उसका... पता लगा लिया...
महांती - हाँ... एक सबूत हाथ लगा है... आप इजाजत करें तो... वह कमज़र्फ आपके सामने होगा...
विक्रम - गुड... महांती गुड... (रुप विक्रम से फोन छिन लेती है और स्पीकर पर डाल कर)
रुप - हैलो महांती अंकल...
महांती - हाँ राजकुमारी जी बोलिए...
रुप - अगर आप बुरा ना मानों तो प्लीज... यह ऑफिस का काम.. आप कल के लिए रख दीजिए... हम यहाँ अपनी फॅमिली गेट टू गेदर के लिए हैं...
महांती - ओके... समझ गया... एंजॉय योर ईवनिंग...
रुप - सेम टू यु...
विक्रम - एक मिनट..
महांती - जी युवराज...
विक्रम - हमारी यह गेट टू गेदर तीन या चार घंटे में ख़तम हो जाएगी... तब तक तुम मैनेज कर लो...
महांती - ओके... मैं आपको चार घंटे बाद कॉल करता हूँ...
विक्रम - ठीक है...

फोन कट जाता है l विक्रम फोन कट जाने के बाद रुप और शुभ्रा की ओर देखता है l दोनों उसे घूर रहे थे l रुप उस फोन को अपनी वैनिटी बैग में रख देती है और वीर की ओर अपनी हाथ बढ़ा देती है l वीर पहले तो हैरान हो कर रुप को देखता है फिर समझ जाता है अपनी जेब से मोबाइल निकाल कर रुप को दे देता है l रुप वीर की मोबाइल भी अपनी वैनिटी बैग में रख कर शुभ्रा की ओर देखती है l

शुभ्रा - क्या मेरी भी...
रुप - हाँ...

शुभ्रा अपनी मोबाइल निकाल कर रुप को दे देती है और रुप बिना देरी किए उस मोबाइल को अपनी वैनिटी बैग के हवाले कर देती है l इतने में अनु को सामने आने से झिझकते हुए वीर देख समझ जाता है l वह भागते हुए वॉशरुम की ओर जाता है और खींचते हुए अनु को सबके सामने लाता है l अनु को देखते ही रुप को झटका लगता है l अनु शर्म और डर के मारे अपना सिर झुकाए खड़ी थी l उसने अभी तक रुप को देखा नहीं था l

रुप - भैया... यह...
वीर - अनु... अनुसूया है इनका नाम...
रुप - (अनु से) ऐ... देखो मेरी तरफ... (रुप इस लहजे में बात करने से सभी हैरान हो जाते हैं)
अनु - (बड़ी मुश्किल से अपना चेहरा उठाती है) तुम... (रुप से)

फिर अनु देखती है कि वहाँ पर सिर्फ दो लड़कियाँ और दो मर्द खड़े हैं, एक लड़की के मांग में सिंदूर है l मतलब यह लड़की वीर की बहन हो सकती है l

अनु - (आवाज़ नर्म पड़ जाता है) मेरा मतलब है... आप...
रुप - हाँ मैं... क्या नाम है तुम्हारा..
अनु - (रोनी सी सूरत बना कर) अ.. अनु..

रुप ताली मारते हुए खुशी के मारे उछल पड़ती है और जा कर अनु को गले से लगा लेती है l अनु के साथ साथ वहाँ पर मौजूद सभी रुप की इस हरकत से हैरान हो जाते हैं l फिर रुप अनु को छोड़ कर वीर के गले लग जाती है l

रुप - ओ... थैंक्यू भैया... थैंक्यू... मुझे भाभी बहुत पसंद है...
वीर - क्या...
शुभ्रा - पसंद है... तो इसमें उछलने वाली बात क्या है...
रुप - ओ भाभी.. लगता है आप भूल गई हो...
शुभ्रा - क्या...
रुप - अरे भाभी... मैंने एक बार वीर भैया से कहा था... मेरी बड़ी भाभी मुझसे बहुत प्यार करती हैं... मेरे लिए भाभी ऐसी लाना.. जो मुझसे झगड़ा करे...
वीर - मतलब अनु से तुम्हारी मुलाकात पहले हो चुकी है... और
रुप - हाँ... एक बार नहीं दो बार... और दोनों ही बार हमारा झगड़ा हुआ है...
वीर - क्या... कब
रुप - हाँ... पहली बार... आपके जन्म दिन पर... बक्कल खरीदते वक़्त... और दुसरी बार कल... यानी भाभी ने ज़रूर आपको ड्रेस गिफ्ट किया होगा... (अनु से) क्यूँ है ना भाभी

यह सुन कर विक्रम और और शुभ्रा हँस देते हैं l अनु और वीर दोनों शर्मा जाते हैं l

रुप - (वीर से) भैया... मुझे तो भाभी बहुत पसंद है...
शुभ्रा - हाँ मुझे भी... (कह कर शुभ्रा अपनी बैग से एक नेकलेस निकाल कर अनु को पहना देती है) (और विक्रम से) क्या आपको... आपकी होने वाली बहु पसंद नहीं आई....
विक्रम - पसंद क्यूँ नहीं आई... मुझे तो जब से मालुम हुआ था... तब से पसंद है...
शुभ्रा - तो दीजिए फिर सगुन...
विक्रम - (हड़बड़ा कर) मैं... मैं कुछ लाया नहीं...
शुभ्रा - कोई नहीं... मैंने इस नेकलेस को हम दोनों के तरफ से ही दिया है...
विक्रम - एक मिनट... फिर भी... मेरे हिस्से का फर्ज बाकी है...

विक्रम अपनी जेब से नोटों का एक बंडल निकाल कर अनु की नजर उतारता है और होटल के स्टाफ़ के बीच बांट कर ले जाने के लिए बोलता है l


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महांती अपनी गाड़ी में सामने वाली गली पर नजर गड़ाए बैठा हुआ है l कुछ देर बाद उस गली से निकल कर एक साया हाथ में छोटा सा बैग लेकर महांती के गाड़ी के पास आकर खड़ा होता है l महांती पैसेंजर साइड वाली खिड़की को नीचे सरकाता है l वह मृत्युंजय था l

मृत्युंजय - नमस्ते सर... कहिए क्यूँ बुलाया आपने...
महांती - आओ बैठो..
मृत्युंजय - कहीं जाना है क्या...
महांती - हाँ... बहुत ही जरूरी काम है...
मृत्युंजय - ठीक है सर... पर मैं आपके बगल में कैसे बैठ सकता हूँ... आप मेरे बॉस हैं... डायरेक्टर हैं...
महांती - इतना फॉर्मल होने की कोई जरूरत नहीं है... आओ बैठ जाओ..
मृत्युंजय - ठीक है सर... (कह कर महांती के बगल में बैठ जाता है)
महांती - सीट बेल्ट लगा लो...
मृत्युंजय - जी... जी सर...

मृत्युंजय अपना सीट बेल्ट लगा लेता है l उसके बाद महांती गाड़ी को आगे बढ़ा देता है l कुछ देर की खामोशी के बाद

मृत्युंजय - वैसे... हम जा कहाँ रहे हैं सर...
महांती - तुमसे... आज बहुत खास काम निकल आया है... इसलिये अब तुम बताओ.. हम कहाँ चलें... ताकि तुमसे कुछ जरुरी बात की जा सके...
मृत्युंजय - सर आप मेरे मालिक हैं... जहां आप ले चले...
महांती - अच्छा मैं तुम्हारा मालिक हूँ... बहुत अच्छे... वैसे कितने मालिक हैं तुम्हारे...
मृत्युंजय - जी... जी मैं समझा नहीं...
महांती - ठीक है... चलो मैं ऐसे पूछता हूँ... कितनी नौकरियाँ कर रहे हो तुम इस वक़्त...
मृत्युंजय - क्या सर... मैं तो बस ESS में सी ग्रेड गार्ड की नौकरी कर रहा हूँ...
महांती - मिस्टर मृत्युंजय... सच सच बताओ... अब छुपाने से कोई फायदा नहीं है...
मृत्युंजय - नहीं सर... मैं... मैं क्या छुपाऊँगा... और क्यूँ छुपाऊँगा...
महांती - ह्म्म्म्म... बहुत अच्छे... मेरी सोच से भी कहीं अधिक शातिर हो... (गाड़ी ट्रैफ़िक के वज़ह से रुक जाती है) मुझे लगता है तुम्हें अंदाजा है... पर फिर भी... ना तुम्हारे चेहरे पर कोई शिकन है... ना ही कोई परेशानी... बहुत कंफिडेंट हो...
मृत्युंजय - (मुस्करा कर) सब आपकी ही दी हुई ट्रेनिंग है सर...

महांती के जबड़े भिंच जाती हैं l वह गुस्से भरी नजर से मृत्युंजय की ओर देखता है l पर मृत्युंजय निडर और बेकदर भाव से महांती को देख रहा था l

महांती - मैंने तुम्हारे बारे सब कुछ पता लगा लिया है मृत्युंजय...
मृत्युंजय - ना.. कुछ कुछ... सिर्फ पता लगया है... वह भी उतना... जितना मैंने अपने बारे में जानकारी आपके तक पहुँचाया है...
महांती - क्या... क्या मतलब है तुम्हारा... कहना क्या चाहते हो... मैंने तुम्हारे बारे में जो कुछ जानकारी हासिल किया है... वह तुमने मुझ तक पहुँचाई है...
मृत्युंजय - जी महांती सर...
महांती - तो तुमने अपने बारे में कुछ कुछ खबर मुझ तक पहुँचाया है... हम्म्म... तो अब तुम मुझे सबकुछ बताओगे...
मृत्युंजय - जी बेशक... चलिए कहीं ऐसी जगह ले चलिए... जहां सिर्फ आपकी गाड़ी चलती रहे... और हम... आपस में बातेँ करते रहे... एक रोमांटिक गै डेट... हा हा हा... (हँस देता है)

मृत्युंजय की यह हँसी महांती की सुलगा देती है l वह आग बबूला हो कर मृत्युंजय को देखने लगता है l तभी गाड़ियों की हॉर्न सुनाई देने लगता है l महांती का ध्यान टूटता है वह अपनी गाड़ी को आगे बढ़ाता है l गाड़ी में फिर से चुप्पी छा जाती है l

महांती - तुम रॉय सिक्युरिटी सर्विस में रह कर.... हमारी ESS में क्यूँ काम किया... बोलो गद्दारी क्यूँ की...
मृत्युंजय - गद्दारी.... गद्दारी चाहे किसी से किया हो है... पर सौ फीसद वफ़ादारी खुद से किया था...
महांती - तुम... तुम नहीं जानते... तुम किससे टकरा रहे हो... तुम एक मामुली दो कौड़ी का आदमी... इतना कुछ कैसे कब...
मृत्युंजय - ना... तुम एक मामुली नौकर हो क्षेत्रपाल के... तुम्हें इतना सब कुछ जानने को हक नहीं है... (महांती गियर बदल कर गाड़ी की स्पीड बढ़ाता है) मैं रह ज़रूर झोपड़े में हूँ... मगर करोड़ों से खेलता हूँ...
महांती - तुम किस के एजेंट हो... रॉय के... या महानायक के... या चेट्टी के...
मृत्युंजय - किसीका भी नहीं... मैं वह एजेंट हूँ... जो डबल क्रास करता है...
महांती - डबल क्रॉस... मतलब तुम्हारी बहन का किडनैप...
मृत्युंजय - कोई किडनैप नहीं हुआ है... मैंने उसे... विनय के साथ भगा दिया है...
महांती - क्या...
मृत्युंजय - हाँ... मैंने पुष्पा के जरिए... महानायक का बेटा... विनय को फंसाया... बेचारा विनय... उसे लगता है... उसने मेरी बहन को... अपनी दौलत की चकाचौंध दिखा कर फंसाया है.. हा हा हा...
महांती - तुम्हारा बहुत बुरी गत होने वाली है...
मृत्युंजय - ना... ऐसा कुछ मेरे साथ नहीं होने वाला है... और जो कुछ भी होने वाला है... वह तुम्हारे साथ होने वाला है...

महांती मृत्युंजय की ओर देखता है तो पाता है मृत्युंजय के चेहरे पर कुटिल मुस्कान उभरा हुआ है l उसे हैरानी होती है मृत्युंजय मे एकदम से इतना बड़ा बदलाव देख कर l

महांती - अच्छा... तो मेरे साथ बुरा हो सकता है... कौन करेगा... तुम...
मृत्युंजय - वह तो वक़्त ही बतायेगा... वैसे यह रास्ता देख कर लगता है... हम इन्फोसिस जा रहे हैं ना... एसईजेड में...
महांती - हाँ... क्यूंकि इस रास्ते में कोई नहीं होता...
मृत्युंजय - वैसे... एक बात पूछूं... मिस्टर अशोक महांती...
महांती - तो अब सर के बजाय... मेरे नाम पर आ गए...
मृत्युंजय - हाँ...
महांती - तो मिस्टर डबल एजेंट... तुम्हारे पास कुछ ही घंटे का वक़्त है... उसके बाद मैं तुम्हें सीधे... युवराज के सामने पेश कर दूँगा...
मृत्युंजय - हाँ कुछ ही घंटे... इसलिए... क्यूंकि आज उनकी पारिवारिक मिलन का दिन है... पर एक बात बताओ महांती बाबु... आपके जैसा आदमी... क्षेत्रपाल से वफादारी क्यूँ निभा रहा है...
महांती - क्यूँ... क्यूँ नहीं निभाना चाहिए...
मृत्युंजय - असम राइफ़ल में अच्छे रैंक का ऑफिसर थे... कोर्ट मार्शल चला... सबूत के अभाव में... बच तो गए मगर इस्तीफा देना पड़ा... फिर अपना एक सिक्युरिटी सर्विस की दुकान खोल ली... वहाँ पर धक्का खा कर निकाले गए... उसके बाद ESS... आप सेना से वफादारी नहीं की... RGSS से वफादारी नहीं की... पर क्षेत्रपाल से वफादारी... क्यूँ महांती बाबु क्यूँ...
महांती - क्यूँ की मैं तुम्हारे जैसे डबल एजेंट नहीं हूँ... हाँ मैं क्षेत्रपाल के लिए वफादार हूँ... और मैं तुम्हें युवराज के सामने हर हाल में पेश करूँगा... चाहे इसके लिए... मुझे मरना ही क्यूँ ना पड़े...
मृत्युंजय - खयाल अच्छा है... तुम्हारे अंतिम शब्दों के लिए... तथास्तु...
महांती - व्हाट...

गाड़ी में ब्रेक लगाने की कोशिश करता है पर ब्रेक नहीं लगती l वह गियर बदलने की कोशिश करता है पर गियर लक हो चुका था l वह हैरान हो कर मृत्युंजय की ओर देखता है l मृत्युंजय बड़े बेफिक्र अंदाज में बैठा हुआ था l

महांती - यह क्या कर रहे हो... और यह सब... ब्रेक फैल... गियर ज़ाम...
मृत्युंजय - महांती... तुम्हें लगता है.. की तुमने मुझे उठा लिया है... पर सच यह है कि... मैंने तुम्हें उठा लिया है... (महांती फिर से ब्रेक लगाने की कोशिश करता है पर नहीं लगता) नहीं रुकेगी... और रोकना भी मत... गाड़ी जब तक चलेगी... तब तक सलामत रहेगी... उस वक़्त ट्रैफ़िक पर गाड़ी रुकी नहीं थी... ब्लकि मैंने... रुकवाई थी... भुवनेश्वर डेवेलपमेंट ऑथोरिटी के.. ड्रेनेज स्वेरेज पर... गटर की ढक्कन हटा कर मेरे आदमी ने.. तुम्हारी गाड़ी में थोड़ी सी छेड़ छाड़ कर दी है... इसलिए ना अब ब्रेक लगेगी... ना गियर काम करेगा....
महांती - कोई नहीं... अगर मैं मरूंगा... तो तुम भी नहीं बचोगे...
मृत्युंजय - टाइम टू लाफ नाउ... हा हा हा... मैं अपनी तैयारी में आया हूँ... तुम ओवर कंफिडेंट हो गए....

इतना कह कर मृत्युंजय महांती के सीट बेल्ट की स्विच दबा देता है l जिससे महांती का ध्यान हट जाता है l वह बेल्ट को दोबारा जब हूक करने की कोशिश करता है तो सीट बेल्ट हूक नहीं हो पाता l

मृत्युंजय - बेल्ट हूक नहीं होगा... उसमें मैंने एक रुपये का कॉएन डाल दिया है...

महांती घबराहट के मारे बेल्ट को खिंच कर हूकअप करने की कोशिश करता है पर हो नहीं पाता l फिर अचानक से वह हँसने लगता है l हँसते हँसते हुए महांती मृत्युंजय की ओर देखता है l मृत्युंजय अपने मुहँ पर एक गैस मास्क लगाया था l महांती की हँसी बहुत बढ़ने लगती है l

मृत्युंजय - बड़े खुशनसीब हो महांती... हँसते हँसते दर्द को भुलाकर मरने जा रहे हो.... शीघ्र मेव मृत्यु प्राप्तिरस्तु...
Jabardastttt Updateeee
 
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