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Thriller "विश्वरूप"

Kala Nag

Mr. X
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ANUJ KUMAR

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👉उनतीसवां अपडेट
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विश्व डायनिंग हॉल में एक कोने में पड़ा टेबल पर बैठ कर खाना खा रहा है और किसी सोच में खोया हुआ है l डैनी अपना थाली लेकर उसके पास आकर बैठता है l
डैनी - क्यूँ हीरो... कल क्या हुआ था... कोर्ट में...
विश्व अपना सर उठाकर देखता है और कहता है
- अरे डैनी साहब...
डैनी - क्यूँ भई किसी और की... इंतजार कर रहा था क्या.....
विश्व - जी... जी. नहीं.. नहीं... मैं यहाँ कैसे और किसका इंतजार करूंगा....
डैनी - अब... तु भले ही किसीका इंतजार ना करे... पर तेरा चाहने वाला अभी बाहर है... तुझसे यहाँ मिलने के लिए तड़प रहा है...
विश्व हैरानी से डैनी को देखता है l
डैनी - अरे यार.. वही जिसका पिछवाड़ा तेरे नाम से आह भरता है...
विश्व - (हंस देता है) ओ...
डैनी - और बता कल क्या हुआ....
विश्व - कल... कुछ खास नहीं...
डैनी - ह्म्म्म्म... कुछ तो हुआ है.... वरना इतना खोया खोया हुआ क्यूँ है....
विश्व - कल पहली बार... जयंत सर के माथे पर मैंने बल पड़ते हुए देखा... उनके चेहरे पर शिकन साफ़ दिखा मुझे....
डैनी - ह्म्म्म्म तो यह बात है..... देख वह कोर्ट रूम है... वहाँ वकीलों के बीच... दाव पेच का खेल होता है... कभी कोई हावी हो जाता है... तो कभी कोई सरेंडर हो जाता है...
विश्व - (अपना सर हिलाते हुए) ह्म्म्म्म... अब मुझे इन सब बातों का ज्ञान कहाँ.... मैं तो जीवन में पहली बार... राजगड़ से बाहर निकला.... वह भी एक घायल कैदी की तरह.... और न्यायालय की लाल कोठी भी देखा जीवन में पहली बार..... यहाँ आ कर... बस यहाँ पर लोगों को समझ नहीं पा रहा हूँ.... सच कहूँ तो.... कहाँ मैं अपने राजगड़ के लोगों को समझ पाया... पल पल हर पल लोगों के बदलता रंग देख.... हैरानी हो रही है मुझे....
डैनी - हा हा हा हा... यह तो कुछ भी नहीं... अगर यहाँ तु लंबा नप गया ना... तो यहाँ से बिना निकले भी.... सारे ब्रह्मांड का ज्ञान से धनी हो जाएगा.... अच्छा यह बता तुझे अब डर लग रहा है क्या....
विश्व - नहीं... अब बिल्कुल भी नहीं.... पर जब जयंत सर को चिंतित देखता हूँ... मुझे बुरा जरूर लगता है.... मुझे मेरे अंजाम की परवाह नहीं.... पर पता नहीं क्यूँ... मैं उन्हें हारते हुए नहीं देख सकता हूँ...
डैनी - ह्म्म्म्म बहुत जज्बाती हो रहे हो... क्या इसलिए के वह तेरे लिए लड़ रहा है....
विश्व - हाँ... शायद...
डैनी का खाना खतम हो जाता है l वह अपना थाली लेकर उठता है और धोने के लिए चला जाता है l थाली जमा करने के बाद फिर विश्व के पास आता है l
डैनी - तु... उनके लिए सोच रहा है... उनके लिए परेसान है... अच्छी बात है... पर यह मुकदमा है... कुछ भी हो सकता है.... वह तेरे लिए निस्वार्थ लड़ रहे हैं.... तु भी अपने मन में उमड़ रही भावनाओं में... उनके लिए निस्वार्थ भाव रख.... याद है तुने ही कहा था... के जब तु भगवान को याद करता है... तो तुझे उनका चेहरा दिखता है...
विश्व - हाँ...
डैनी - तो अपने भगवान पर विश्वास रख.... तुने अपना नैया उनके हाथ में दिया है पार लगाने के लिए.... तो अपने खीवैया पर भरोसा रख... उनकी जीत पर जश्न मनाना... पर उनके हार पर कभी दुख भी मत करना....
इतना कह कर डैनी वहाँ से चला जाता है l बेशक विश्व को छोड़ डैनी वहाँ से निकल जाता है, पर विश्व के कानों में डैनी की कही हर एक शब्द गूंजती रहती है l

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जगन्नाथ मंदिर में एक टोकरी भर कमल के फूलों से भरा हुआ है l पास बैठी वैदेही सुई धागा हाथ में लेकर माला गुंथ रही है l
पुजारी उसे माला गुंथते हुए देख रहा है और उसे लग रहा है कि भले ही वैदेही माला गुंथ रही है पर उसका ध्यान कहीं और है l कुछ देर बाद वैदेही के उंगली में सुई चुभ जाती है l उसके हाथों से सुई धागा और फूल छूट जाते हैं l
पुजारी - मैंने पहले से ही कहा था.... तुमसे नहीं होगा.... मंदिर में फूल गूँथने के लिए और भी लोग हैं.... तुम क्यूँ यह कष्ट उठा रही हो...
वैदेही - क्या बात कर रहे हैं पुजारी जी.... मैं क्यूँ नहीं गुंथ सकती... भगवान के लिए माला...
पुजारी - क्यूँकी सुबह से देख रहा हूँ... तुम्हारा ध्यान कहीं और है...
वैदेही - नहीं ऐसी बात नहीं है... पंडित जी... वह मैं...
पुजारी - देखो बेटी... तुम्हारा मन कल से ही विचलित है... कोर्ट से आने के बाद... तुम खोई खोई सी हो...
वैदेही चुप रहती है l
पुजारी - ह्म्म लगता है... कल का दिन... तुम्हारे उम्मीद के मुताबिक नहीं गया....
वैदेही अपने होठों पर चुप्पी लिए सर झुका लेती है l
पुजारी - (वैदेही के पास बैठ कर) देखो बेटी... मैं मानता हूँ आशा है... तो जीवन है... पर भगवान ना करे... मानलो कभी आशा टूट जाती है... इसका मतलब यह तो नहीं... जीवन रुक जाती है....
वैदेही पुजारी को मुरझाइ नजर से देखने लगती है
पुजारी - देखो बेटी.... मैं यह तो नहीं जानता कल कोर्ट में क्या हुआ.... पर इतना कहूँगा निरास कभी मत होना.... क्यूँकी तुम्हारे भाई का केस लड़ने वाला जयंत... भले ही साधारण कद काठी का है.... पर यह मैं दावे के साथ कह सकता हूँ.... जब तक वह मैदान में है... तब तक तुम्हारे भाई सुरक्षित है...
वैदेही फिरभी कुछ नहीं कहती है, पुजारी को देखती है फ़िर अपनी नजरें नीचे कर लेती है l
पुजारी - अच्छा तुमने वह कहावत तो सुनी होगी ना.... के शेर अपने शिकार पर अंतिम प्रहार करने से पहले.... दो कदम पीछे हटता है.... कभी दो सांढों को लड़ते देखा है... या फिर... दो भेड़ों को.... एक जोरदार हमला करने से पहले... कुछ कदम पीछे हटते हैं.... समझो कल कोर्ट में वही हुआ होगा...
वैदेही की आंखे हैरानी से चौड़ी हो जाती है l
पुजारी - अब तुम चाहो तो... फूल गुंथ सकती हो..
इतना सुनते ही,वैदेही के चेहरे पर उदासी हट जाती है और मुस्कान आ जाती है l
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कोर्ट रूम की ओर जाते हुए जयंत को कॉरीडोर में वैदेही दिखती है l वैदेही उसे देख अपनी खुशी जाहिर करती हुई एक हंसी के साथ जयंत को अभिवादन करती है l जयंत भी उसके तरफ मुस्कराते हुए देखता है l ठीक उसी वक्त तापस विश्व को लेकर वहीँ पहुंचता है l
विश्व - (जयंत से) नमस्ते सर....
जयंत - नमस्ते... क्या बात है... आज भाई बहन कुछ अलग ही मुड़ में हैं.... या फिर कोई खास दिन है आज...
वैदेही - मुड़ में हम आपके वजह से हैं.... सर.... और आपके वजह से अब हर दिन खास होता जा रहा है....
जयंत - वाकई.... हा हा हा.... अच्छा चलो... जल्दी चलते हैं... देखते हैं... आज क्या होने वाला है...
दोनों - जी...
फिर तापस विश्व को लेकर चला जाता है l वैदेही और जयंत भी कोर्ट रूम की और चले जाते हैं l
कोर्ट रूम के भीतर आज कुछ और सदस्य उन्हें नजर आते हैं l दरवाजे के पास जयंत और वैदेही दोनों रुक जाते हैं l जयंत उन अजनबियों को देख रहा है l
वैदेही - सर यह सब हमारे राजगड़ से आए हुए हैं... वह जो धोती कुर्ता में है... उसका नाम दिलीप कर है... बहुत ही नीच और कमीना है... वह जो सफारी शूट में है... वह है इंस्पेक्टर अनिकेत रोणा... इसके आगे तो कमीनापन भी कहीं ठहर ही नहीं सकता.... और वह जो कोट पहने बैठा हुआ है... वह है राजा साहब का वकील बल्लभ प्रधान... राजा भैरव सिंह के हर काले कारनामों का काला चिट्ठा, सब का लेखा जोखा रखता है...
जयंत - ह्म्म्म्म
वैदेही - पर यह समझ में नहीं आ रहा है... बल्लभ का नाम तो गवाहों लिस्ट में नहीं था... फिर यह यहाँ कैसे....
जयंत - (मुस्कराते हुए) सिम्पल... राजगड़ से आने वाला हर गवाह का... वकील बन कर आया है.... अपने सामने सबका जिरह देखेगा... पर कारवाई में उसका कोई दखल नहीं होगा....
वैदेही - ओ...
जयंत - चलो... हम अपनी जगह बैठते हैं...
इतना कह कर दोनों अपनी अपनी जगह पर आ कर बैठ जाते हैं l वैदेही उनके तरफ देखती है तो तीनों वैदेही को देख कर अपने चेहरे पर कमीनी मुस्कान लाते हैं l वैदेही घृणा से अपना चेहरा घुमा लेती है l
हॉकर जजों के आने का संकेत देता है l सब अपनी जगह पर खड़े हो जाते हैं l तीनों जज अपनी अपनी जगह पर बैठ जाते हैं l फिर औपचारिकता समाप्त होते ही गवाह के रूप में दिलीप कर को बुलाया जाता है l
दिलीप कर के वीटनेस बॉक्स में पहुंचते ही कोर्ट के एक मुलाजिम गीता लेकर उसके पास पहुंचता है तो गीता पर हाथ रख कर कर कहता है -
- मैं जो भी कहूँगा सच कहूँगा... सच की सिवा कुछ नहीं कहूंगा...
प्रतिभा अपनी कुर्सी से उठ कर दिलीप कर के पास आती है l
प्रतिभा - हाँ तो आप... अदालत को अपना परिचय देने का कष्ट करेंगे....
कर - उसमें कष्ट कैसा... माई बाप.... मेरा नाम दिलीप कुमार कर है... मेरे माता-पिता दोनों इस संसार में नहीं हैं.... मैं राजगड़ पंचायत के... मानिया शासन गांव से वार्ड मेंबर और पंचायत समिति सभ्य हूँ...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... उस कटघरे में जो शख्स खड़ा है... क्या आप उसे जानते हैं....
कर - जी अच्छी तरह से... पहले तो कम ही जानता था.... पर अब... अब अच्छी तरह से जान चुका हूँ और समझ भी चुका हूँ....
प्रतिभा - क्या मतलब...
कर - मतलब... यह... स्वजाती भक्षु... मतलब अपनी ही जाती को खा जाने वाला... अपने कुल का कलंक है... नमक हराम है और एहसान फरामोस है...
यह सुनते ही वैदेही को बहुत गुस्सा आता है l वह अपनी दांत पिसते हुए जबड़े भींच लेती है l
प्रतिभा - ऐसा आप क्यूँ कह रहे हैं....
कर - हमने.... क्या समझ कर... इसको सरपंच बनाया था... पर इसने क्या कर दिया....
प्रतिभा - वही तो अदालत जानना चाहती है... की इस शख्स ने क्या किया.... और आप उसके सारे काले कारनामों का गवाह हैं... अदालत अब आपसे विस्तार से जानना चाहती है.... और आप किस तरह से... एसआइटी की मदत किए...
कर - ठीक है... वकील साहिबा जी (फिर जज की ओर मुड़ कर) माय बाप... एक दिन राजा साहब जी के महल में सारे पंचायत के समिति सभ्य इकट्ठे हुए थे... हमारे पूर्व सरपंच जी का देहांत... उनके कार्यकाल के पुरा होने से सात महीने पहले हो गया था... और क्यूंकि राज्य के दूसरे हिस्सों के मुकाबले हमारा यशपुर पिछड़ा हुआ रहा है.... पंचायत चुनाव का समय भी निकट आ रहा था तब.... हम सबने राजा साहब से कुछ बदलाव की सुझाव मांगने के लिए गए थे... तो राजा साहब ने हमको कहा... चूंकि शायद हम सब पुराने ज़माने के... पुराने ख़यालात के हैं... इसलिए हम से सारे काम धीरे धीरे हो रहे हैं.... तेजी से बदल रही इस दुनिया में... बदलाव के लिए... नए ज़माने का नया जोश भरा... नए खून से लबालब... नया नव युवक को इस बार... मौका दिआ जाए....
हम सबने... उनकी बातों का समर्थन किया और पूछा भी... कौन हो सकता है ऐसा नवयुवक... तब राजा साहब ने इस नमक हराम... एहसान फरामोस... विश्व का नाम सुझाया.....
वैदेही - (चिल्ला कर) यह झूठ कह रहा है जज साहब.... और यह बार बार मेरे भाई को गाली भी दे रहा है....
जज - ऑर्डर... ऑर्डर.... मोहतरमा आप... इस तरह से अदालत के कारवाई में दखल नहीं दे सकती.... आपके भाई के तरफ से कहने के लिए... आपका वकील नियुक्त हैं... इसलिए सयम बरतें... कृपाया आप अपना स्थान ग्रहण करें....
जयंत भी वैदेही को चुप रहने के लिए इशारा करता है और इशारे से बैठने के लिए कहता है l वैदेही बैठ जाती है और गुस्से से दिलीप कर को देखती है, दिलीप कर जवाब में उसे देख कर एक कमीनी हंसी अपने चेहरे पर ला कर वैदेही को देखता है l
प्रतिभा - हाँ तो कर बाबु... राजा साहब ने विश्व का नाम सुझाया... फिर...
कर - फिर राजा साहब जी ने विश्व को बुलाया... समझाया... पर वह नमक हराम.... राजा साहब को मना ही कर दिया था... पर फिर राजा साहब जी ने उमाकांत आचार्य जी को बुलाया... और राजगड़ विकास के लिए सामुहिक तौर पर... विश्व को मनाने के लिए आचार्य जी को दायित्व दिया... और आचार्य जी के साथ मैं भी गया था... विश्व को मनाने के लिए... माय बाप.... एक तरफ इस कम्बख्त विश्व को आचार्य जी समझा रहे थे... और दूसरी तरफ... मैं इस बदबख्त के पैरों में गिर कर राजा साहब की मान को बचाने के लिए गुहार लगा रहा था.... (इतना कह कर कर वैदेही की ओर अपने काले दांत दिखाते हुए हंसता है, उसकी यह कमीनी हरकत देख कर वैदेही के तन बदन में आग लग जाती है) माय बाप... विश्व के मान जाने के बाद... विश्व का नामांकन से लेकर चुनाव जीतने तक हम सबने.... दिन रात एक कर दिया था... ताकि विश्व हमारे राजगड़ को उन्नती के शिखर पर पहुंचा दे... पर इस एहसान फरामोस ने एक ऐसा काला दिन दिखाया... के इसे सरपंच बनाना.... राजा साहब और हम सबकी बड़ी भूल साबित हुई.....
माय बाप.... मेरे गाँव में तीन कलवर्ट कामों के सिर्फ पचपन लाख रुपये कंट्राक्टर को देने बाकी थे... इसलिए मैं विश्व के पास चेक साइन कराने गया था... पर विश्व ने पचपन के जगह पचहत्तर लाख लिख कर साइन किया.... मैं हैरान रह गया... मैंने पूछा... इतना क्यूँ... तो विश्व ने कहा... के देखते हैं... अगर पैसा मिल जाता है... तो बांट लेंगे... नहीं तो चेक बदल देंगे... मैं हैरान रह गया... क्या यह वही विश्व है... जिसके पिता मेरे परम मित्र रघुनाथ महापात्र है... क्या यह सम्भव है.... पर आज लग रहा है... क्यूँ नहीं जब महर्षि विश्रवा का बेटा रावण हो सकता है... तो रघुनाथ का बेटा विश्व ऐसा क्यूँ नहीं हो सकता है...
वैदेही - नहीं (चिल्लाते हुए अपनी जगह पर खड़ी हो जाती है) जज साहब यह बहुत ही नीच और गलीच इंसान है... झूठ पर झूठ और तोहमत लगाए जा रहा है...
वैदेही के ऐसे चिल्ला कर बात करने से जयंत भी अपनी जगह से उठ जाता है
जज - ऑर्डर ऑर्डर... वैदेही जी.... अगर आप फिरसे अदालत की कारवाई में... दखल देने की कोशिश की... तो मजबूरन अदालत आपको जिरह के समय इस कमरे से दूर रखेगी....
जयंत - योर ऑनर.... प्लीज... इस जिरह को थोड़ी देर के लिए रोक दिया जाए.... हमे एक स्वल्प विराम दिआ जाए.... मैं अपने क्लाइंट और उसके संबंधी को थोड़ी देर के लिए... यहाँ से अलग कमरे में ले जा कर समझना चाहता हूँ....
जज - ठीक है... यह अदालत बचाव पक्ष वकील के बात को मानते हुए... दोनों पक्षों को आधे घंटे का विराम.... देती है... और ठीक आधे घंटे के बाद कारवाई फिर यहीँ से शुरू होगी....
इतना कह कर तीनों जज वहाँ से चले जाते हैं l उनके जाते ही जयंत वैदेही और विश्व को लेकर पास के एक कमरे में आता है l कमरे के भीतर पहुंच कर जयंत वैदेही के तरफ मुड़ कर
जयंत - वैदेही... यह क्या कर रही हो.... वह तुम दोनों को उकसा रहे हैं... और तुम उनकी षड्यंत्र को कामयाब होने दे रही हो..
वैदेही - देखिए ना.. सर... (रोती सूरत बना कर) वह मेरे भाई को... रावण कह रहा है... कितना झूठ बोल रहा है...
जयंत - देखो मैं जानता हूँ... उसे उसकी मर्जी की करने दो.... जब वह मेरे पाले में आएगा... तब वह अपना झूठ भी नहीं पचा पाएगा....
विश्व - दीदी... जयंत सर ठीक कह रहे हैं...
जयंत - देखो वैदेही... मैंने विश्व को पहले ही दिन से समझा दिया था... के कारवाई के दौरान उत्तेजित ना होने के लिए... वह तुम से छोटा है... फ़िर भी सयम बनाए हुए है... पर तुम ना सिर्फ अपना सयम खो रही हो... बल्कि अगर तुम्हें किसी भी तरह से जज छोटी ही सही... सजा देते हैं.. तो विश्व पर मानसिक रूप से प्रभाव पड़ेगा... और यही तो वह लोग चाहते हैं...
वैदेही - म.. मुझे... माफ कर दीजिए... मैं चुप रहूंगी...(कह कर पास रखे एक कुर्सी पर बैठ जाती है)
विश्व उसके पास जा कर उसके सर को पकड़ कर झुक कर अपने सीने से लगा लेता
विश्व - दीदी... मैं जानता हूँ... आप मुझसे बहुत प्यार करती हो... पर हमने इतना कुछ सहा है... तो कुछ और सही....
वैदेही - (अपनी आँखों में आंसू लिए) ह्म्म्म्म
जयंत - ह्म्म्म्म अब तुम थोड़ा पानी पी लो... (कह कर एक डिस्पोजेबल ग्लास में पानी लाकर देता है)
उधर एक और कमरे में
रोणा - वाह... साले हरामी.... वाह... तुने तो... उस वैदेही की झांटे ही सुलगा दी...
कर - ही.. ही.. (एक पान निकाल कर खाते हुए) बच्ची है... बिचारी.... अभी अभी राजगड़ से बाहर की दुनिया देख रही है... इसलिए पचा नहीं पा रही है भड़क गई... साली कुत्तीआ... ही ही ही
परीडा - वाकई... उन पर... तो साइकोलॉजीकल एडवांटेज हमने ले लिया है... अभी...
रोणा - और नहीं तो क्या... वह लोग जितना फटेंगे... उतना ही टूटेंगे...
कर - मैं तो इस फन में माहिर हूँ... आदमी जितना भड़केगा... वह खुद पर.. नियंत्रण उतना ही खो देगा.... और जो ना किया हो उसे स्वीकार भी कर लेगा....
परीडा - बिल्कुल... अभी सिर्फ़ उसकी बहन... रिएक्ट कर रही है.... विश्व का रिऐक्ट होना बाकी है... फिर उनसे गलतियां होती जाएंगी... और हम उन पर हावी होते जाएंगे....
रोणा - सौ टका सही... सुन बे कर.. तु लगा रह... आज सुनवाई खत्म होने दे..... साले तुझे आज शराब में नहला दूँगा....
कर - मैं तो पहले से ही कहा था.... हमारे परीडा जी ने... नींव डाल रखी है... अब मैं उस पर दीवार चढ़ा रहा हूँ.... रोणा बाबु.... छत ढंग से डाल देंगे..... और राजा साहब... किवाट और खिड़की लगा देंगे... ना कानून.. ना कोई तितर... उसके भीतर... पहुंच ही नहीं पाएंगे....
रोणा - बिल्कुल... क्यूँ बे वकील... सब तेरी ही स्क्रिप्ट के हिसाब से... काम बढ़ रहा है... फ़िर भी तेरे चेहरे पर... खुशी नहीं दिख रही है....
बल्लभ - वैदेही... कितना भड़कती है... यहाँ पर... यह जरूरी नहीं है.... हमारा टार्गेट... विश्व है... उसे इतना भड़काना है... की वह अपना आपा खो बैठे.... तब हमारी हर चाल कामयाब होगी....
कर - उसी की तो कोशिश कर रहा हूँ... पर उससे पहले उसकी बहन सुलग रही है... कमीनी जैसे सुलग सुलग कर उड़ रही है....
बल्लभ को छोड़ सभी हंसते हैं l
रोणा - हाँ बिल्कुल दिवाली की रॉकेट की तरह... उड़ती तभी है.. जब पिछवाड़ा सुलगती है....
(हा हा हा हा हा) फिरसे सभी हंस देते हैं l
बल्लभ - तुने राजगड़ में... दिवाली कब मनाई...
रोणा - नहीं मनाई... पर अपने यहाँ जाकर तो मनाई है.... ना
परीडा - क्यूँ.. राजगड़ में.. क्यूँ नहीं मनाई...
कर - श्.. श्..श्... (धीरे से) राजगड़ में क्षेत्रपाल परिवार का विधान है... आम लोग खुशियां या मातम इकट्ठे होकर... भीड़ बना कर.. नहीं मना सकते... जिसको मनाना होता है.... वह लोग अपनी चार दीवारी के भीतर मनाते हैं.... वह भी किसीको मालुम ना हो पाए ऐसे.... राजगड़ में उत्सव, खुशियाँ और मातम सिर्फ़ महल में होती है... जहां लोग भीड़ बना कर सामिल हो सकते हैं....
परीडा - ओह माय गॉड... म.. मतलब... मुझे यह मालूम नहीं था...
रोणा - इसलिए तुम अपना काम करो.... और राजा साहब या राजगड़ के बारे में... जितना कम जानों... उतना ही अच्छा है....
बल्लभ - यार.. यह बे सिर पैर की बातों को किनारे करो अब... देख कर अभी टाइम हो जाएगा... किसी भी तरह से... अपने बयान इसी तरह जारी रख... और तुझको विश्व को भड़काना है... ऐसे भड़काना है कि वह अपना आपा खो बैठे.... पर अपनी भाषा को नियंत्रित रखना.... वरना लेने के देने पड़ जाएंगे....
कर - ठीक है... अबकी की बार देखो मेरा कमाल....
इन सबकी काना फुसी चल ही रही थी कि तभी एक कांस्टेबल वहाँ आकर खबर करता है कि अदालत शुरू होने वाली है l सभी जल्दी से सुनवाई के कमरे में पहुंचते हैं l कमरे के भीतर विश्व अपनी कठघरे में खड़ा है l जयंत और वैदेही अपनी अपनी जगह पर बैठे हुए हैं l यह लोग भी अपने जगहों पर बैठ जाते हैं l कुछ देर बाद तीनों जज अपने अपने कुर्सी पर बैठ जाते हैं l फिर दिलीप कर को विटनेस बॉक्स में बुलाया जाता है l
प्रतिभा - (उसके पास पहुंच कर) हाँ तो कर बाबु.... आपने कहा कि... कंट्राक्टर को बकाया पैसे देनें थे... इसलिए अपने पचपन लाख रुपये की चेक मांगा... बदले में.. विश्व ने पचहत्तर लाख रुपये की चेक साइन कर जमा करने के लिए कहा... I
कर - जी...
प्रतिभा - अब आगे क्या हुआ कहिए....
कर - मैं तो बहुत हैरान हो गया था.... पर पता नहीं... कैसे और कहां से विश्व के पास बाकी के बीस लाख रुपये पहुंचे.... विश्व ने मुझे कसम देकर... दस लाख रुपये दिए... अब मैं... बीच भंवर में फंस चुका था.... मुक्ति की राह तलाश रहा था... तो मैंने एक दिन फोन कर... यशपुर तहसीलदार जी को विश्व का यह कारनामा बताया... एक दिन तहसील ऑफिस से विश्व को बुलावा आया.... मैं बहुत खुश हो गया... लगा अब अंकुश लगेगा... विश्व और मैं तहसील ऑफिस पहुंचे... पर मुझे ऑफिस के बाहर रुकने को बोल... विश्व अकेले गया था तहसीलदार जी से मिलने... करीब करीब आधा दिन बीत गया... तब विश्व बाहर आया... उसके चेहरे पर एक अलग खुशी झलक रही थी.... जैसे कोई मैदान मार लिया हो.... मैं समझ नहीं पाया... एक तरफ विश्व के दिए हुए पैसे मेरे गले में फांस बन चुका था.... और दूसरी तरफ तहसील ऑफिस से विश्व का खुश हो कर वापस आना.... मुझे और भी डराने लगा....
अगले दिन पंचायत ऑफिस में.. बड़े बड़े लोग आ पहुंचे... तहसीलदार, ब्लाक अधिकारी, बैंक अधिकारी, रेवेन्यू इंस्पेक्टर, और विश्व के बीच बंद कमरे में एक मीटिंग हुई...
उसके बाद विश्व बाहर आकर हमे कहा... के राजगड़ विकास के लिए... उन्होंने तय किया है.. की एक गैर सरकारी संस्था के जरिए आम जनता से चंदा के जरिए देश विदेश के लोगों से... पैसे इकट्ठा करके... जनता की भलाई करेंगे.... हमे बहुत अच्छा लगा सुन कर.... तो एक महीने के भीतर "राजगड़ उन्नयन परिषद" पंजीकृत हुआ... इससे हमारे राजा साहब भी बड़े खुश हुए... उन्होंने अपने तरफ से.. पच्चीस लाख रुपये का दान चेक के जरिए दिया.... मैंने भी.. जो मेरे गले में फांस बनाकर विश्व ने... दस लाख रुपए दिया था.... वही दस लाख रुपये माय बाप दान दे दिया....
उसके बाद क्या होता रहा,.. क्यूँ होता रहा... मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था... एक दिन तहसील ऑफिस गया था... वहाँ पर पहुंच कर देखा... तहसील ऑफिस के एक कर्मचारी को विश्व बहुत मार रहा है... मैंने जा कर उसे रोका.... और विश्व को वहाँ से भेज दिया... फिर उस कर्माचारी को भी घर जाने को कहा... तभी वह कर्मचारी ने मुझे बताया कि कई सौ करोड़ों रुपये विश्व, तहसीलदार और ब्लॉक अधिकारी मिलकर लूट लिए हैं.... मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई... मैं तुरंत भागा... भागते भागते आचार्य जी को गुहार लगाई.... आचार्य जी को बहुत दुख हुआ... वह गए... सीधे राजा साहब से माफ़ी मांगने.... राजा साहब को भी दुख हुआ.... यह सब जानने के बाद.... राजा साहब ने.... आचार्य जी को... आश्वासन दिया.. की वह जल्दी कुछ करेंगे... फिर इसी तरह कुछ दिन बीत गए... फिर हमे खबर मिली... आचार्य जी को सांप ने काट लिया है... और हस्पताल जाने से पहले उनका देहांत हो गया.... मैं पूरी तरह से टूट गया माय बाप... इसलिए एक दिन निश्चय किया और यशपुर के महादेव मंदिर में भगवान को... साष्टांग प्रणाम किया और कहा... हे महादेव.. कहाँ हो आप... मैं यह सब अनर्थ नहीं देख सकता हूँ... या तो अपना त्रीनेत्र खोल कर तांडव करो... या.. या मेरे प्राण लेले... या फिर कोई जरिया देदे... जिससे मैं उस बदबख्त विश्व को सजा दिला सकूं..... तभी माय बाप मंदिर की घंटी बजी... मैं नीचे से उठा... विभोर हो गया... भगवान ने मेरी सुन ली.... मैं मंदिर में उस व्यक्ति को ढूंढने लगा जिसने घंटी बजायी... तब मुझे (परीडा की ओर हाथ दिखा कर) यह महाशय दिखे... मैंने उन पर नजर रखा और उनकी बातों को सुनने लगा... जब मुझे मालूम हुआ... की यह लोग तो राजगड़ में हुए घोटाले की जांच करने आए हैं.... मैं पहले भगवान को धन्यबाद किया... फ़िर इनसे मिला और अपनी सारी दुखड़ा रोया... बाकी सब आपके सामने है माय बाप... बाकी सब आपके सामने है....
प्रतिभा - ह्म्म्म्म तो यह थी... विश्व रूप कि कहानी...
कर - जी....
प्रतिभा - तो विश्व महापात्र जी... क्या यह दिलीप कर सच कह रहे हैं...
विश्व - (अपनी दांत पिसते हुए) यह आदमी... पूरा का पूरा झूठा है... और जो भी कहा है सब झूठ कहा है....
प्रतिभा - यह तो आपके डिफेंस लॉयर को साबित करने दीजिए... फ्रोम माय साइड... दैट्स ऑल योर ऑनर... (जयंत को देख कर) नाउ योर टर्न....
जयंत यह सुन कर मुस्कुराता है l
जज - क्या बचाव पक्ष इस गवाह से जिरह करना चाहेंगे...
जयंत -(अपनी कुर्सी से उठते हुए) जी... माय लॉर्ड.. जरूर...
जज - ठीक है... शुरू कीजिए....
जयंत दिलीप कर को देखता है l कर अपने होठों को अपने गमछे से साफ करता है l उसे ऐसा करते देख जयंत उसे मुस्करा कर देखता है, जवाब में दिलीप कर मुस्करा देता है l
Awesome update
 

ANUJ KUMAR

Well-Known Member
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👉तीसवां अपडेट
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जयंत - हाँ तो कर बाबु... आपकी कहानी ने मुझे... भावुक कर दिया.... एक बात तो है... आप बहुत बड़े भगवत विश्वासी हैं... भगवान पर आपकी आस्था अटूट है... भाई वाह....
कर - देखिए वकील साहब.... या तो आप मेरी भक्ति की मज़ाक उड़ा रहे हैं... या फिर मेरी भक्ति की शक्ति से आपको जलन हो रही है....
जयंत - अरे ना ना... कैसी बातेँ कर रहे हैं... मुझे तो लगता है कि... आधुनिक काल में... प्रभु जगन्नाथ जी के सर्वश्रेष्ठ भक्तों में जैसे सालबैग का नाम लिया जाता है.. उसी तरह प्रभु एकाम्रेश्वर श्री लिंगराज भगवान जी के भक्तों में आपकी गिनती प्रथम होगी.....
कर - ही ही ही... देखिए आप.... आप मुझे शर्मिंदा कर रहे हैं...
जयंत - अरे इसमें... शर्मिंदा होने वाली क्या बात है.... अपने मंदिर में भगवान से न्याय मांगा... तो भगवान ने आपको घंटी बजा कर संदेश दिया..... और आज इस न्याय की मंदिर में भी... आपकी वजह से न्याय की घंटी बजेगी.... मुझे ऐसा लग रहा है... आपको कैसा लग रहा है...
कर - ही ही ही... जरूर... सब उन्हीं के कृपा से संभव होगा... जय शिव शंभू...
जयंत - जय शिव शंभू... तो कर बाबु... अभी तक आपने जो भी जानकारी अदालत को उपलब्ध कारवाई.... और एसआईटी ने जो जानकारी दी है... उसमें अब मैं कुछ कुछ जोड़ कर... कहानी को आगे बढ़ाऊंगा.... जहां गलत हो जाउं... तब आप कृपा करके मुझे टोक दीजिएगा...
कर - ( जयंत को देखते हुए ) जी.. जी... जरूर जरूर...
जयंत - योर ऑनर... आज अपनी बात को आगे ले जाने से पहले... मैंने कुछ बात गौर किए... उन सबको लिख कर चार चार कॉपी बना कर... तीन आपके लिए... और एक प्रोसिक्यूशन के लिए तैयार किया है... जिसमें मैंने कुछ लिखें हैं... आप देख सकते हैं (कह कर तीनों जजों को एक एक फाइल दे देता है, और प्रतिभा को एक फाइल देता है, चारों फाइल खोल कर देखते हैं ) जैसा कि आपने देखा.. के मैंने कुछ लिखा है.... पर आप सबसे अनुरोध है.... यह फाइल आप मेरे जिरह खतम होने के बाद ही, पूरी तरह देखें... और तथ्यों पर गौर करें....
जज - (फाइल बंद कर रखते हुए) ठीक है... आप जिरह आरंभ कीजिए....
जयंत प्रतिभा को देखता है, तो प्रतिभा भी फाइल बंद कर रख देती है l
जयंत - (मुस्करा कर) थैंक्यू.. थैंक्यू... एंड थैंक्यू....
जयंत अदालत में सब पर एक नजर दौड़ाता है, फ़िर
जयंत - माय लॉर्ड... यह महाशय.. श्री दिलीप कर... मानिया शासन गांव से हैं.... और मुल्जिम श्री विश्व... पाइकपड़ा गांव से हैं.... इस तरह बहुत से गांव है.. राजगड़ पंचायत में... जैसे सिंधी पार, कासीनी पदर, चंपा पदर, अँला बाड़ी, चारांगुल, इत्यादि इत्यादि ऐसे बहुत से गांव है... क्यूँ कर बाबु मैंने ठीक कहा ना...
कर - जी बिलकुल..
जयंत - हाँ तो योर ऑनर... यह जीन प्रोजेक्ट के पैसे मनरेगा के जरिए हड़प लिए गए... यह सारे प्रोजेक्ट... पिछले पंचायत के काल की नहीं है योर ऑनर... उससे पहले पंचायत काल की है.... अर्थात करीबन सात साल पहले... यशपुर विकास के लिए सारे राजनीतिक व्यक्तित्व मतलब... उस इलाके के... सारे एमपी और एमएलए वहाँ के सारे सरकारी अधिकारी गण मिलकर.... आरपीडिसी का गठन किया... ओड़िशा में किसी मुख्य प्रांत को लक्ष में रख कर.... उस प्रांत व उसके इर्द गिर्द प्रांतों के उन्नती के लिए जो सरकारी कमेटी बनती है... उसे आरपीडिसी कहते हैं... पर राजगड़ के लिए आरपीडिसी का सरकारी मतलब था... राजगड़ एंड पेरिफेरल डेवलपमेंट कमेटी.... जो मुख्यमंत्री के निगरानी में हुआ... उसी आरपीडिसी मीटिंग में... राजगड़ के विकास को प्राथमिकता देते हुए... कुछ प्रोजेक्ट्स के प्रपोजल को मंजुर करवाने की जिम्मेदारी तहसीलदार जी ने स्वयं ली... और केंद्र एवं राज्य सरकार की मंजूरी के बाद.... बजट भी आ गया था... प्रोजेक्ट शुरू करने के लिए... टेन्डर के द्वारा... कॉन्ट्रैक्ट,
कॉन्ट्रेक्टरों को दिआ गया... पिछले सरपंच के समय यह सब शुरू भी हो गया.... क्यूँ कर बाबु मैं यहाँ तक ठीक हुँ...
कर - जी जी... बिलकुल... आप पूरे सही जा रहे हैं...
जयंत - थैंक्यू कर बाबु... तो माय लॉर्ड... पिछले सरपंच के काल में.. काम शुरू हुआ... यहाँ मैं एक बात कहना भूल गया.... के जब तहसील को बजट आ गया... आरपीडिसी में यह तय हुआ... की वह पैसे कॉन्ट्रेक्टरों को सरपंच के किए दस्तखत के जरिए पंचायत फंड से मिलेगी... पर पैसा तहसील ऑफिस से रिलीज़ होगी... क्या मैं इस बार भी सही हूँ...
कर - जी हाँ... आपने सही कहा है...
जयंत - तो योर ऑनर... काम शुरू हुआ और हर जगह पंद्रह से बीस प्रतिशत काम होने के बाद... बंद भी हो गया.... इशू बना रेत, ईंट, सीमेंट इत्यादि... के क्वालिटी का... वह सारे कंट्राक्टर ब्लैक लिस्ट करा दिए गए...ऐसी हालत में... आरपीडिसी ने सरपंच को यह अधिकार भी दिया था... के वह लोकल कंट्राक्टर्स को लेकर उसी बजट में काम पूरा कर सकते हैं.... ऐसे में... सारे प्रोजेक्ट्स को लोकल कंट्राक्टर्स के जरिए पूरा करने की कोशिश की गई.... पर उसमें भी सही समय पर... बिल पास ना हो पाना... एक इशू रहा जिसके वजह से... बहुत से काम साठ से सत्तर प्रतिशत ही पूरा हो पाया.... ऐसे समय में... पुराने सरपंच का देहांत हो गया.... क्यूँ कर बाबु... मैंने यह भी सही कहा है ना...
कर - जी बिलकुल...
जयंत - हाँ योर ऑनर... एक तरफ सरपंच जी का देहांत... दूसरी ओर आधे अधूरे प्रोजेक्ट्स... अगर कंप्लीशन सर्टिफिकेट ना दिया गया... तो पैसे वापस जा सकती थी... इसलिए... एक कार्यकारी सरपंच को चुना गया.... मेरा मतलब स्वयं श्री... दिलीप कुमार कर जी को... क्यूँ कर बाबु... अभी भी.. मैं सही हूँ...
कर - जी सही हैं आप... तो इसमे कोई अपराध हो गया क्या.... माय बाप... मैंने वह सारे प्रोजेक्ट पूरा करवाया... पर इस शर्त पर... के प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद ही... बकाया राशि की भुगतान होगी...
जयंत - जी... जी.. मैं भी यही कहना चाहता था... माय लॉर्ड... कर बाबु... आप उत्तेजित ना हों... मैं तो वही कह रहा हूँ... जो अपने एसआइटी को बताया है...
कर - जी... जी...
जयंत - तो योर ऑनर... चूंकि... अंतिम कंट्राक्टर्स को इसी शर्त पर कंट्राक्ट दी गई थी... के काम पूरा होने के बाद ही... उन्हें पैसों की भुगतान होगी.... इसलिए विश्व के सरपंच बनने के बाद... मानिया गांव के तीन पुलिया मतलब कल्वर्ट के काम के बकाया राशि.... पचपन लाख रुपये का चेक विश्व से साइन कराया गया.... क्यूँ कर बाबु मैं सही कह रहा हूँ...
कर - जी नहीं... आप गलत कह रहे हैं... विश्व ने पचहत्तर लाख रुपये का चेक साइन किया...
जयंत - ओ हाँ... आपने एसआईटी को.. यही बताया है... पर अगर आपको कांट्रेक्टर को पचपन लाख ही देने थे... तो विश्व ने पचहत्तर लाख कैसे भरे...
कर - वह.. मुझे क्या पता... हो सकता है... विश्व ने उस कंट्राक्टर के साथ सांठगांठ किया हो...
जयंत - कमाल करते हैं... कर बाबु आप भी.... कंट्राक्टर आपके गांव का... आपने उसे टेन्डर दिया... इस शर्त पर के कंट्राक्ट खतम होने के बाद... आपने उसे पेमेंट करने का वादा किया... पर चेक में... रकम विश्व कैसे भर सकता है...
कर - माय बाप... मैं फिर से यहां पर डंके के चोट पर कहता हूँ... विश्व ने मेरे सामने उस चेक पर रकम बीस लाख बढ़ा कर भरा... और बाद में मुझे जबर्दस्ती कसम खिला कर दस लाख रुपये दिए... जो आगे चलकर मैंने.. रूप को दान दे दिए....
जयंत - ठीक है... ठीक है... आप तो बहुत उत्तेजित हो रहे हैं... कर बाबु... ठीक है... चलिए एक बात बताइए... रकम.. कंट्राक्टर के अकाउंट को ही जाता है ना..
कर - जी हाँ...
जयंत - ह्म्म्म्म... अच्छा.... तो एक बात बताइए... वह चेक अपने साइन करा कर किसे दिया... नवात्यस कंस्ट्रक्शन के कंट्राक्टर को ही ना... जो आपके गांव का कंट्राक्टर था....
कर - जी मैं फ़िर से कह रहा हूँ... विश्व ने उससे सांठगांठ कर रकम भरा था...
जयंत - इस बात का कोई सबूत....
कर - वह... वह मुझे कुछ नहीं पता... विश्व ने फिर कहाँ से... वह दस लाख मुझे लाकर दिया... जो मैंने रूप में दान दिया....
जयंत - विश्व ने आपको कुछ दिया ही नहीं है... यह तो आप कह रहे हैं... के विश्व ने आपको दिया... इसका आपके पास कोई सबूत भी तो नहीं है...
कर - पर मैंने रूप को दस लाख दिए हैं... इस बात का तो सबूत है... चंदा की रसीद है...
जयंत - हाँ... है... पर यहीं पर ही सब गडबड हो गई है... कर बाबु...
कर - जज साहब... यह वकील... मुझे अपनी बातों के जाल में फंसा रहे हैं... इन्हें आप कहें... की सबूत लेकर बात करें...
जज - मिस्टर... डिफेंस लॉयर.. आप तथ्य प्रदान कर रहे हैं... या थ्योरी गढ रहे हैं....
जयंत - मैं प्रैक्टिकल कह रहा हूँ... माय लॉर्ड....
प्रतिभा - (अपनी जगह से उठ कर) माय लॉर्ड... डिफेंस लॉयर अगर सबूत पेश करें तो अच्छा होगा...
जयंत - ठीक है प्रोसिक्यूशन मैं.. अब सबूत भी रखता हूँ... हाँ तो कर बाबु... आपके गांव में जो प्रोजेक्ट्स पुरे हुए... उसमे तीन फेज में... तीन कंट्राक्टरों ने काम किए...
प्रतिभा - योर ऑनर... इस बात को कितनी बार दोहराएंगे.. मिस्टर डिफेंस लॉयर...
जज - अदालत को लग रहा है.. डिफेंस लॉयर... बेवजह केस को खिंच रहे हैं...
जयंत - नो... माय लॉर्ड.. नो... अभी... आपके सामने सब साफ हो जाएगा... क्यूँ के कर बाबु साफ साफ झूठ बोल रहे हैं...
कर - देखिए माय लॉर्ड... यह वकील साहब कैसे भरी अदालत में... मुझे झूठा कह रहे हैं...
जज - डिफेंस लॉयर... प्लीज..
जयंत - माय लॉर्ड... मैं यह कह रहा हूँ... अगर विश्व ने कंट्राक्टर से सांठगांठ की होगी तो... एसआईटी की रिपोर्ट गलत हो जाएगी...
प्रतिभा - व्हाट आर यु टॉकींग.. मिस्टर डिफेंस... एसआईटी रिपोर्ट कैसे गलत हो जाएगी..
जयंत - वह इसलिए.. क्यूंकि.. परीडा जी ने.. यहीँ पर सीना ठोक के कहा था... विश्व के सरपंच बनने के बाद... और गिरफ्तार होने से पहले... जितने भी चेक साइन किया... सभी के अकाउंट मृतकों के हैं.... (हसते हुए) फिर वह बीस लाख विश्व को... कोई भूत ही आकर दिए होंगे... क्यूँ परीडा जी.. मैं ठीक कह रहा हूँ ना..
परीडा का मुहँ हैरानी से खुला रह जाता है l उधर कर के साथ साथ बल्लभ और रोणा का चेहरे पर हवाईयाँ उड़ने लगती है l इस खुलासे से प्रतिभा भी हैरान रह जाती है l वैदेही अपनी जगह से उठ कर खुशी के मारे ताली बजाने लगती है l
जज - ऑर्डर... ऑर्डर.. देखिए.. मिस वैदेही... यह आपको अंतिम बार.. आगाह किया जाता है... अपनी भावनाओं पर काबु रखें... वरना आपको इस रूम से निकाल दिया जाएगा...
वैदेही आपना जीभ दांतों तले दबा कर कुर्सी पर दुबक कर बैठ जाती है l प्रतिभा गुस्से से बल्लभ, रोणा और परीडा को देखती है l वह तीनों अपना चेहरा झुका लेते हैं l फिर भी प्रतिभा मोर्चा सम्हालते हुए,
प्रतिभा - ठीक है जज साहब... विश्व के पास कोई भूत तो नहीं आया होगा... क्या डिफेंस उस बीस लाख रुपये पर रौशनी डालेंगे... जिसके बारे में... बार बार कर बाबु जिक्र कर रहे हैं...
जयंत - जी जरूर.... प्रोसिक्यूशन को अभी पता चल जाएगा....
हाँ तो कर बाबु... आपके गांव के प्रोजेक्ट के लिए जो दूसरी बार.. जिस कंट्राक्टर को आपने टेंडर दिया... उस कंट्राक्टर का नाम क्या है...
कर - जी... व.. व. वह सत्यवान कंस्ट्रक्शन...
जयंत - लगता है... आपने मेरे प्रश्न को समझा नहीं... ठीक है... अब मुझे बताएं... सत्यवान कंस्ट्रक्शन के प्रोपराइटर का नाम बताएं...
कर खांसने लगता है तो जयंत अपनी ग्लास में पानी लेकर कर को देता है l कर एक घूंट पीने के बाद अपनी गमच्छे से मुहँ साफ़ करता है l
जयंत - माय लॉर्ड... उस सत्यवान कंस्ट्रक्शन के मालिक का नाम है... सत्यब्रत कर.... मतलब हमारे एसआईटी के प्रथम सरकारी गवाह के... मरहुम पिताजी... मेरा मतलब है... दिलीप कर के स्वर्गीय पिताजी... (फिर परीडा के तरफ घुम कर) क्यूँ परीडा जी मैं... ठीक कह रहा हूँ ना...
परीडा के चेहरे पर ऐसे भाव दिख रहे हैं जैसे उसके हाथों से तोते उड़ गए हों l
प्रतिभा - माय लॉर्ड... ठीक है.. दुसरे कंट्राक्टर कर बाबु के पिता हैं... पर विश्व ने साइन कर पैसा तीसरे कंट्राक्टर को दिआ... जिससे पैसे विश्व ने लिए... ऐसा दिलीप कर कह रहे हैं... उसके बारे में बताएं....
जयंत - माय लॉर्ड... यह तो साबित हो ही चुका है... विश्व के साइन किए चेक के सभी रकम मृतकों के अकाउंट में जमा हुए... ठीक है... अब आते हैं... तीसरे कंट्राक्टर के पास.... तो कर बाबु... कहिए तीसरे कंट्राक्टर का नाम और उसके कंस्ट्रक्शन कंपनी का नाम....
कर वीकनेस बॉक्स में सर झुकाए चुपचाप खड़ा रहता है l
जयंत - माय लॉर्ड... कर बाबु की घंटी बज गई है... वह तो अब कहने से रहे... इसलिए मैं ही खुलासा किए देता हूँ... योर ऑनर... तीसरे कंस्ट्रक्शन कंपनी का नाम है... नवात्यस.... चालाकी का जबरदस्त नमुना.... मतलब सत्यवान शब्द का उल्टा... पर इसबार पोपाराइटर का नाम.. स्वर्णलता कर है... हमारे दिलीप कर के मरहुम माताजी... मतलब स्वर्गीया श्रीमति स्वर्णलता कर...

सबको झटके जैसा लगता है l सब खामोश हो जाते हैं l अदालत में इतनी शांति महसूस हो रही है कि सिर्फ पंखे की घूमने की आवाज सुनाई दे रही है l प्रतिभा भारी मन से अपनी जगह पर बैठ जाती है l
जयंत - योर ऑनर... अब कर बाबु के माता पिता के आत्मा से... विश्व ने कैसे सम्पर्क किया... और उनसे कैसे बीस लाख रुपए लेकर दस लाख रुपये... कर बाबु को दिया... क्या अदालत को बताना पड़ेगा...
जज - पर केस के आरंभ में... आपने कहा कि विश्व ने पचपन लाख रुपये पर दस्तखत किए... तो उसे कर बाबु किसलिए और कैसे मैनिपुलेशन किया...

जयंत - इस बारे में माय लॉर्ड... सबूत तो एसआइटी रख चुकी है... और इस बात को मैंने लिख कर.. आपको दे दिया है....

जज - क्या मतलब....
जयंत - माय लॉर्ड... आप को मैंने जो फाइल अभी दिया था... उसे देख सकते हैं....
जज वह फाइल खोल कर देखते हैं, अंदर जो पन्ने हैं, उसमें सारी लिखावटें ग़ायब मिलती है l सिर्फ जयंत की सिग्नेचर ही पन्ने पर दिख रही है l प्रतिभा को भी जयंत के दिए फाइल में सिवाय जयंत के सिग्नेचर को छोड़ सभी लिखावट गायब मिलती है l जजों के साथ प्रतिभा भी हैरान हो जाती है l
जज - यह क्या मज़ाक है... डिफेंस लॉयर...
जयंत - मज़ाक नहीं है... योर ऑनर... हकीकत...
जज - क्या मतलब....
जयंत - गौर से देखीए... योर ऑनर.. उस फाइल के पन्ने पर... मेरी सिग्नेचर को छोड़ सभी लिखावट गायब हो गया है... सिग्नेचर इस लिए बचा हुआ है... क्यूंकि उसके उपर सेलो टेप चिपका हुआ है...
जज - हाँ... तो इससे क्या साबित होता है...
जयंत - माय लॉर्ड... एसआइटी ने विश्व के साइन किए चेक जमा किया है... उसे गौर से देखिए... और एक दो कॉपी... प्रोसिक्यूशन को देखने के लिए दीजिए...
एसआइटी के द्वारा जमा किए गए सबूतों में, विश्व के साइन किए चेक जज देखते हैं और एक मुलाजिम के हांथों कुछ चेक प्रतिभा को दिया जाता है l
जयंत - गौर से देखिए... योर ऑनर... सभी चेक पे विश्व के सिग्नेचर हैं... पर सभी सिग्नेचर पर सेलो टेप लगाए गए हैं...
जज - इसका क्या मतलब हुआ...
जयंत - थाइमोप्थालीन, इथाइल एल्कोहल, सोडियम हाइड्रक्साइड सोल्यूशन और इलेवन पीएच की पानी की घोल या मिश्रण से बनता है... ऐसी स्याही... उस पर सेलो टेप चिपका दिया जाए... तो वह... उड़ता नहीं... वरना हवा के संस्पर्श में यह सिर्फ चौबीस घंटे तक ही टिक सकता है....
तीनों जज और प्रतिभा के मुहँ हैरानी से खुला रह जाता है, और बल्लभ एंड कंपनी का मुहँ शर्म से उतर जाता है l
जज - इससे यह कैसे साबित हो सकता है... की विश्व ने पचपन लाख पर साइन किया था... ना कि पचहत्तर लाख रुपए पर....
जयंत - बहुत आसान है... योर ऑनर... किसी भी बैंक में... प्रोसिजर है... बिजनस अकाउंट पैइ चेक में आमाउंट मैनिपुलेशन न हो पाए.. इसी लिए.. सभी बैंकों में आमाउंट पर ही सेलो टेप लगाया जाता है.... पर विश्व के केस में उल्टा हुआ है... आमाउंट के वजाए सिग्नेचर पर सेलो टेप.. चिपकाया गया है....
जयंत के इतना कह देने के बाद पूरे कोर्ट रूम में मरघट की शांति छा जाती है l तभी अचानक कर के मुहँ से थूक बहने लगता है, वह ऐसे झटके खाने लगता है जैसे उसे मिर्गी के दौरा पड़ा हो l वह विटनेस बॉक्स में गिर जाता है l सभी मुलाजिम और पुलिस कर के पास भाग कर जाते हैं l
जज - इन्हें सीधे हस्पताल पहुंचाने की व्यवस्था करो...
कुछ ही देर में, स्टेचर ले कर दो पुरुष नर्स आते हैं और बाहर खड़े एम्बुलेंस में कर को हस्पताल ले जाते हैं l
जज - आज की कारवाई यहीँ पर रोक दी जाती है... डिफेंस को दिलीप कर की गवाही लेने के लिए... उनके स्वस्थ्य होने की प्रतीक्षा करनी होगी...
जयंत - जी नहीं योर ऑनर... मुझे अब दिलीप कर की गवाही की अब कोई जरूरत नहीं है.... इसलिए आगे की कार्रवाई... रूटीन के अनुसार बढ़ाया जाए... हाँ अगर प्रोसिक्यूशन चाहे तो... दिलीप कर से... गवाही ले सकती है...
प्रतिभा - जी नहीं... योर ऑनर...
जज - ठीक है... अगली सुनवाई को... राजगड़ के आइआइसी श्री अनिकेत रोणा जी की गवाही ली जाएगी... आज के लिए बस इतना ही... यह अदालत आज की कारवाई को स्थगित करती है... नाउ द कोर्ट इज़ एडजर्न...
जज के कारवाई स्थगित करने के बाद वैदेही अपनी जगह से उठ कर ताली बजाने लगती है l उसके आंखों से आँसू लगातार बह रही है, फ़िर भी वह अपनी आंसुओं को पोछते हुए ताली बजाती रहती है l उसकी यह हालत देख कर विश्व के चेहरे पर हंसी आ जाती है l विश्व की हंसी देख कर वैदेही भाग कर जाती है और विश्व के गले लग कर रो देती है l
विश्व - बस... दीदी बस...
वैदेही उससे अलग होती है और अपने चेहरे पर मुस्कान लाने की कोशिश करती है l
विश्व - ठीक है दीदी... चलता हूँ... अब अगली सुनवाई को मिलता हूँ...
वैदेही अपना सर हिला कर हामी भरती है और विश्व से अलग होती है l तापस विश्व को लेकर बाहर जाता है l तापस विश्व को वैन पर चढ़ा देता है और दास को उसके साथ भेज देता है l तापस के पीछे पीछे वैदेही कोर्ट परिसर में विश्व को वैन से जाते हुए देखती है l
जयंत - ह्म्म्म्म... तो वैदेही... चलें... तुम अपने रास्ते और मैं भी अपने रास्ते...
वैदेही खुशी से अपना सर हिला कर हाँ में ज़वाब देती है और वे लोग भी निकल जाते हैं l तापस वापस कोर्ट रूम के अंदर आता है l प्रतिभा वहीँ अपनी कुर्सी पर बैठी मिलती है l
तापस - जान... क्या हम चलें..
प्रतिभा तापस को गौर से देखती है,और अपना सर हिला कर उठती है l बाहर तापस गाड़ी का दरवाज़ा खोलता है, प्रतिभा चुप गुमसुम सी बैठ जाती है l तापस गाड़ी स्टार्ट करता है और कोर्ट के बाहर निकल कर दौड़ा देता है l प्रतिभा को आभास भी नहीं होता कि गाड़ी जा कहाँ रही है l तापस जब उसे हिलाता है तब उसे होश आता है l वह देखती है कि नदी के किनारे पर गाड़ी खड़ी है
प्रतिभा - सेनापति जी... हम यहाँ... आप मुझे यहाँ क्यूँ ले कर आए हैं...
तापस - मैं तुम्हें अपनी सोच में खोया हुआ देखकर... यहाँ लेकर आया हूँ... ताकि तुम्हारा दिल पर जो बोझ है... वह थोड़ा हल्का हो जाए...
प्रतिभा गाड़ी से उतर कर नदी के किनारे पहुंचती है l तापस उसके पास खड़ा हो जाता है l
प्रतिभा - (नदी की बहती हुई लहरों को देख कर) सेनापति जी.... आपने सही कहा था... हम जाने अनजाने में... अनचाहे... एक षडयंत्र का हिस्सा बन गए हैं...
(तापस चुप रहता है) जानते हैं... मैं यह केस हाथों में नहीं लेना चाहती थी... पर जब आप विश्व की... कटक हस्पताल से भुवनेश्वर कैपिटल हस्पताल को शिफ्ट की बात कही... मुझे तब इसी केस को लड़ने कहा गया... मैंने इसे एक आम केस ही समझ लिया था... अटॉर्नी जनरल के पार्टी से आने के बाद भी आपने... मुझे चेताया... पर मैं अड़ी रही... जानते हैं क्यूँ... हर पुलिस इनवेस्टिगेशन को मैं आपकी ईमानदारी की कसौटी पर तोलती रहती थी... पर मैं गलत निकली.... उस बिचारी वैदेही को.... कितना कुछ कहा मैंने... उसका दिल दुखाया मैंने....
तापस - देखो जान... तुमने एज अ पब्लिक प्रोसिक्यूटर... जो किया सही किया.... यह अगर तुम ना करती... तो कोई और करता... तुम्हें तो खुश होना चाहिए... की तुम्हारे हाथों से... पाप होने से... भगवान ने तुम्हें बचा लिया... वरना तुम कभी भी... खुदको माफ़ नहीं कर पाती....
प्रतिभा - (अपना सर हिला कर हाँ कहती है) सेनापति जी... सोच रही हूँ... यह केस खतम होने के बाद... मैं वैदेही से माफी मांग लुंगी....
तापस - हाँ... जरूर मांग लेना... वैसे अब तुम कैसा फिल कर रही हो...
प्रतिभा - मानना पड़ेगा जयंत सर को.. जो सबूत मेरे सामने था... वही सबूत उनके सामने भी था... पर जो मुझे नहीं दिखा... वह ऊन सबूतों को... कितनी आसानी से ढूंढ निकाला....
तापस - देखो जान.... जयंत सर डिफेंस लॉयर हैं... उनका वही काम होता है... जो सामने हो पर दिखता ना हो... उसे ढूंढ निकालना ही उनका जॉब था... और यहाँ तो... केस फैब्रिकेटेड था... जो उनकी पारखी नजर ने पकड़ लिया....
प्रतिभा कुछ कहती नहीं है बस अपनी दोनों पलकों को थोड़ी देर के लिए बंद कर देती है और एक गहरी सांस लेकर अपनी सर को हिला कर इशारे से हाँ कहती है l

उधर चेट्टीस् गेस्ट हाउस में सबके चेहरे पर बारह बजे हुए हैं l ओंकार एक कुर्सी पर बैठा हुआ है और कमरे में पिनाक पीछे हाथ बंधे इधर उधर टहल रहा है l कमरे में मौजूद सब के सब गहरे सदमें में दिख रहे हैं l
परीडा - जयंत ने केस को क्रैक कर दिया.... उसने कितनी आसानी से हमारी सारी थीसिस की धज्जियाँ उड़ा दी....
पिनाक - कुछ करो... कुछ भी करो.... जयंत राजा साहब तक पहुंचना नहीं चाहिए.... वरना.... (ओंकार को देखते हुए) ओंकार जी कुछ कीजिए... यह बल्लभ तो नाकारा निकला....
ओंकार - छोटे राजा जी.... मैं ऐसे कामों के लिए... अपने बेटे की मदत लेता हूँ.... आज दो पहर से उसको फ़ोन पर ट्राय कर रहा हूँ.... पर वह मिल नहीं रहा है...
रोणा - एक ही रास्ता है... या तो जयंत को रास्ते से हटा दिया जाए... या फिर जजों को अपने तरफ कर लिया जाए....
पिनाक - क्यूँ वकील साहब... अबे काहे का वकील... साला तू अगर कभी कोई केस लड़ेगा... तो पक्का सब के सब हार जाएगा.... वकालत क्या होता है... जा... उस बुड्ढे जयंत से सीख... साला लीगल एडवाइजर बना फ़िर रहा है.... भूतनी के... जयंत के एक ही फूँक से... देख केस कहाँ उड़ा जा रहा है...
बल्लभ कुछ नहीं कहता है, सब की वह सुने जा रहा है l किसी पर कोई प्रतिक्रिया नहीं नहीं दिखा रहा है l
ओंकार - छोटे राजा जी... मैं अब भी कह रहा हूँ... आपका यह प्रधान बहुत काम का है.... देखा ना आज कोर्ट में जो भी हुआ... मीडिया में कैसे मैनेज कर दिया है.... आधे अधूरे खबर के साथ..... और तो और... इस कर को सरकारी हस्पताल से छुट्टी दिलवा कर... हमारे निरोग हस्पताल में एडमिट दिखा दिया है.....
पिनाक - पर कब तक... जयंत अब आँधी बन चुका है... उसके आगे हमारे सारे प्लॉट किए गए सबूत टिक नहीं पाए... सब उड़ गए... यह साला कुत्ता कर.... बड़बोला... अपनी ही जाल में खुद ही फंस गया और हमें भी फंसा गया....
कर भी सर झुकाए वहीँ खड़ा है l
ओंकार - कास मेरे बेटे का फ़ोन मिल जाता तो... प्रॉब्लम सॉल्व हो जाता...
इतने में पिनाक का फोन बजने लगता है l फोन के डिस्प्ले देख कर पिनाक के चेहरे पर पर तनाव साफ़ दिखने लगता है l पिनाक फोन उठा कर हैलो कहता है l फिर उस तरफ से कुछ सुनने के बाद पिनाक धप् कर सोफ़े पर बैठ जाता है l
ओंकार - क्या हुआ... छोटे राजा जी...
पिनाक सबको देखता है सब उसको देख रहे हैं l
पिनाक - कल शाम तक... राजा साहब... कटक पहुंच रहे हैं... वह रोणा की गवाही... अपनी आंखों से देखेंगे... और वीडियो कंफेरेंस से नहीं... वीटनेस बॉक्स में खड़े हो कर गवाही देंगे....
यह सुनते ही सिवाय ओंकार हैरान हो जाता है पर सबके चेहरे पर हवाईयाँ उड़ने लगती है l
ओंकार - राजा साहब को आने की क्या जरूरत है...
बल्लभ - राजा साहब का यहाँ आने का मतलब.... हम पर उनका विश्वास उठ गया है... वह अब खुद मोर्चा संभालेंगे... मतलब हम सबके सब नाकारा साबित हो गए..

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विक्रम अपने कमरे में टहल रहा है l वीर उसे देख रहा है l वीर को अपने तरफ घूरते हू देख

विक्रम - क्यूँ राज कुमार... आज मोबाइल में गेम खत्म हो गया है क्या....
वीर - मोबाइल फोन में... टाइम पास करते करते... बोर गए हैं... पता नहीं क्यूँ पर.. किसीको पकड़ कर जी भरने तक कूटने को दिल कर रहा है...
विक्रम - क्यूँ किस पर ... गुस्सा हैं क्या... आप..
वीर - नहीं... ऐसे ही... सिर्फ़ कॉलेज जाते हैं... फिर यहाँ पर आते हैं... जैसे जीवन में करने को कुछ बाकी रहा ही नहीं है....
विक्रम - तो किसीको पीटने से... जीवन में कुछ कर लोगे...
वीर - तो... क्या करें... हमे... आदेश दिया गया है... हम किसीसे दोस्ती नहीं कर सकते हैं.... तो करें क्या.... हमे कहा जाता है... हमे सब कुछ करने की आजादी है... पर कहाँ है.... हम गुस्सा भी करते हैं... तो उतारते किन पर... दीवारों पर... टेबल पर... बर्तनों पर... (इतना कह कर वीर अपना सर के बालों को पकड़ कर) आ... आ... आ... ह
विक्रम - अच्छा... सुनिए... (वीर उसके तरफ देखता है) बहुत जल्द हम एक... सेक्यूरिटी संस्था शुरू करने जा रहे हैं.... आप उसनें खुद को बिजी रखिए... और कल नॉमिनेशन फाइल की आखिरी तारीख है... अगर कल कोई फाइल नहीं करता... तो हम ऑन-कांटेस्ट डिक्लैर कर दिए जाएंगे... फिर शायद पार्टी में... कोई पोस्ट लेकर... पार्टी के कामों में बिजी हो जाएंगे... तब कॉलेज में सब कुछ आपको ही सम्भालने होंगे...
वीर - ह्म्म्म्म... तब तक के लिए.. मुझे करना क्या चाहिए....
विक्रम चुप रहता है l क्यूंकि उसे भी कुछ सूझ नहीं रहा है l इतने में विक्रम की फोन बजने लगती है l विक्रम को फोन के डिस्प्ले पर छोटे राजा दीखता है, फोन उठा कर
विक्रम - हैलो...

पिनाक - अभी अभी मैंने आपको... फोन पर एक फोटो और डिटेल्स भेजा है.... कुछ भी कर के... उस आदमी का पता आज रात तक ढूँढ़िये.... बहुत जरूरी है... और राजा साहब कल... शाम तक आ रहे हैं.... उससे पहले इस आदमी से मिलना बहुत जरूरी है....
विक्रम - सिर्फ़ पता करना है... या...
पिनाक - युवराज... हमारा उसके पास काम है.... उसका पता मिलते ही... हमे खबर कीजिए... फिर क्या करना है... हम आपको बतायेंगे....
विक्रम - ठीक है... (फोन काट कर, अपने मैसेज बॉक्स में वह फोटो और नाम पता पढ़ता है)
वीर - आपका तो बढ़िया है.... आप कम से कम बिजी तो रहते हो... हमारे हिस्से में... सिर्फ़ मच्छर मारना ही है....
विक्रम उसके पास आता है और उसके सर पर अपना हाथ फेरता है l फिर वीर के गालों को सहला कर बाहर चला जाता है l बाहर अपने गाड़ी में बैठ कर महांती को फोन लगाता है l
विक्रम - हाँ.... महांती... मैंने एक फोटो और उसका नाम पता भेजा है... उसका पता करो.... आज रात तक.... कुछ भी करो.... पर... ढूंढ निकालो उसे...
महांती - ठीक है सर... आई विल ट्राय माय बेस्ट...
विक्रम फोन काट देता है और गाड़ी स्टार्ट कर निकल जाता है l मन में वह वीर के बातों पर गौर करने लगता है l सच ही तो कहा था वीर ने l जो बंदिशें कलकत्ते में नहीं थी l यहाँ पर वही बंदिशें हैं l किसीसे दोस्ती नहीं है, पर हुकूमत सब पर करनी है l ऐसे अपने सोच में गुम किसी मॉल में पहुंचता है l गाड़ी पार्क कर उस मॉल के अंदर जाता है l अंदर पहुंचते ही उसे अच्छा लगने लगता है l उसे अचानक महसुस होता है जैसे एक हवा का झोंका उसके कानों को छु कर गुजर रही है l विक्रम का चेहरा उस तरफ मुड़ जाता है l एक कांच की लिफ्ट जो उपर की मंज़िल से उतर रही है, एक लड़की चुइंगम चबाते हुए बबल बना रही है l बबल जितना बड़ा हो रहा है उसकी आँखे उतनी ही बड़ी हो रही है और अचानक वह बबल फुट जाता है l फुट जाते ही उसकी के चेहरे पर एक छोटे बच्चे जैसी खुशी देखने को मिलती है l उसकी वह चुलबुला पन देख कर विक्रम के चेहरे पर खुशी झलक उठती है lफिर उस लड़की नजर विक्रम से मिलती है l लिफ्ट के रुकते ही वह लड़की दुसरी तरफ से बाहर निकालती है और सीधे विक्रम के पास आकर खड़ी हो जाती है l

लड़की - क्यूँ विक्रम साहब... बड़े दिनों बाद...
विक्रम - हम तो हरदम यहीं थे... बस आप ही ईद के चांद हो गए...
लड़की - (अपना सर हिलाते हुए) हूँ... वह क्या है कि... आपकी कॉलेज और हमारी कॉलेज अलग है ना... इसलिए...
विक्रम - आप हमारी कॉलेज में.... आकर... हमे फंसा कर चल दिए....
लड़की खिल खिला कर हंस देती है l विक्रम उसकी हंसी में खो जाता है l
लड़की - आप फंस गए... यह आपकी गलती है.... आप मना भी तो कर सकते थे....
(विक्रम चुप रहता है, उसे समझ में नहीं आता क्या ज़वाब दे) अच्छा चलें एक एक कॉफी हो जाए....
विक्रम - जरूर.... पर क्या आज भी अजनबी रहेंगी... या... जान पहचान बढ़ेगी....
लड़की फिर से खिलखिला कर हंस देती है और विक्रम की हाथ पकड़ कर एक कैफे के सामने बैठ जाती है l
लड़की - जाइए... जा कर कॉफी लेकर आइए....
विक्रम हंस देता है और काउन्टर पर जा कर दो स्पेशल कॉफी ऑर्डर करता है फ़िर लड़की के सामने आ कर बैठ जाता है l
लड़की - अब आपका इलेक्शन कैसा चल रहा है...
विक्रम - अब आपने हमे खड़ा कर दिया है तो... आपके इज़्ज़त के ख़ातिर हम लड़ रहे हैं...
लड़की - वाह... आप तो बड़े... फर्माबर्दार निकले... ह्म्म्म्म तो अब आपके साथ थोड़ी सी पहचान बढ़ाया जा सकता है....
तभी काउन्टर से विक्रम का नंबर चिल्लाता है l
विक्रम - एक मिनिट (कह कर जाता है और दो कॉफी के ग्लास ले कर आता है) हाँ अब बोलिए...
लड़की - ठीक है... पहले कॉफी तो पी लेने दीजिए...

विक्रम देखता है लड़की पहले शुगर पाउच को फाड़ कर कॉफी में डालती है और दिए हुए लकड़ी के स्पून से घोलने लगती है l विक्रम भी वैसा करता है l फिर लड़की कॉफी की सीप लेती है, तो उसके उपर के होंटों पर एक सफेद झाग की लाइन उभर जाती है जिसे अपनी जीभ से लड़की मिटा देती है l जीभ निकाल कर होठों पर उस लाइन को जिस अदा से मिटाती है, विक्रम का मुहँ खुल जाता है और दिल धक कर जाता है l लड़की देखती है विक्रम उसे एक टक देखे जा रहा है l वह अपनी आँखों के भौवें नचा कर इशारे से पूछती है l विक्रम सकपका जाता है और अपना नजर हटा लेता है l
विक्रम - क्या... अब हम... अभी भी अजनबी हैं...
लड़की - नहीं नहीं... विक्रम जी... मैं तो आपको जानती हूँ...
विक्रम - पर मैं कहाँ आपको जानता हूँ....
लड़की - (खिल खिला कर हंसते हुए) ठीक है... मैं आपको एक हींट देती हूँ... मेरे नाम में.. सफ़ेदी शब्द से जुड़ा हुआ है...
विक्रम - यह कैसा हींट है...
लड़की - अब आपको मुझसे जान पहचान बढ़ानी है.... तो थोड़ा दिमाग भी लगाईये....
विक्रम - (अपने मन में) जहां दिल लगाने की बात हो वहाँ दिमाग लगाने की बोल रही है..... क्या लड़की है....
इतने में लड़की की कॉफी खतम हो जाती है और वह उठ जाती है l
विक्रम - अरे... आप अभी से...
लड़की - अभी तो आपको काम मिला है... और यह बात अगली मुलाकात के लिए बचाकर रखिए...
इतना कह कर लड़की वहाँ से निकल जाती है l विक्रम अपने चेहरे पर एक मुस्कान लिए वहीँ बैठा रहता है l तभी विक्रम का फोन बजने लगता है l विक्रम का ध्यान टूटता है और फोन पर उसे महांती का नंबर दिखता है l
विक्रम - हाँ महांती बोलो... कहाँ है यह शख्स....
महांती उसे फोन पर उस शख्स के बारे में सारी जानकारी देता है, विक्रम उसकी बात सुनकर उठ खड़ा होता है और पार्किंग में पहुंच कर पिनाक को फोन कर बताता है l
पिनाक - ठीक है... युवराज जी... बस एक छोटा सा काम और है... आप जाकर उस शख्स को यहाँ सातपड़ा में चेट्टीस् गेस्ट हाउस में पहुंचा दीजिए... प्लीज यह काम आप पर्सनली कीजिए.... हम आपकी पहचान...... उस तक पहुंचा देते हैं...
विक्रम - ठीक है... छोटे राजा जी...

विक्रम फोन बंद करता है, और गाड़ी में बैठ कर मैप ऑन करता है फिर गाड़ी को पार्किंग से निकाल कर भगाता हैf
Fabulous update
 

Kala Nag

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Waiting for next
भाई मेरे
जरूर आएगा अगला अपडेट
पर नए साल में
अभी के लिए माफ करना
क्यूंकि मैं जिस जगह पर हुँ
वहाँ पर बहुत ही व्यस्त हूँ
अपने बाल मित्रों के साथ
अपने गांव में
मुस्किल से वक्त मिल पा रहा है
इसलिए जवाब देते हुए भी समय मुस्किल निकाल पा रहा हूँ
धन्यबाद और आभार
 

Kala Nag

Mr. X
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मेरे भाइयों, मित्रों व बंधुओं..
आप सबको आप सबको अभिनंदन एवं शुभकामनाएं
अगर कोरोना महामारी न आया होता तो शायद मैं इस फोरम की पाठक ना होता और न ही सदस्यता ली होती l
एक्सीडेंटाली मैं इस फोरम में आया था l एक बार सलमान खान की फिल्म रेडी का एक डैलॉग "कोई तो रोक लो" टाइप किया तो इस फोरम में आने का रास्ता मिला l
प्रीतम भाई का लिखा यह कहानी वाकई बहुत ही अद्भुत था, पर दुख की बात यह रही कि यह अभी भी अधुरी है l
फिर मैंने रेड हैट भाई के लिखी "मेरी जंग" पढ़ा पर अफ़सोस की बात यह रही कि यह कहानी भी अधूरी ही मिली l
उसके बाद ना जाने मैंने कितनी कहानियाँ पढ़ी सच कहता हूँ उन लेखकों का कल्पना व लेखन की लेवल देख कर मैं दंग रह गया l जैसे जगुआर भाई, वैर वुल्फ भाई, विजे भाई, ऐसे अनेक हैं... उनकी कहानी की अपडेट की प्रतीक्षा करते करते मैंने अपनी इस कहानी को मज़ाक मज़ाक में शुरू कर दिया l ज्यूं ज्यूं कहानी आगे बढ़ती गई कुछ खास व्यक्ति विशेष ने मेरे लेखन पर रिव्यू देने लगे l जो मेरे लिए सम्मानित व उत्साहित करने वाली बात थी l पर अब डर भी लगने लगा है l कहीं मज़ाक में शुरू हुई कहानी अब किसीके नमस्ते अपेक्षाओं पर खरा ना उतरा तो l
अब कहानी में आगे कुछ और पात्र आयेंगे जो अपनी उपस्थिति से नायक, खलनायक, प्रति नायक व सह नायक के चरित्रों को और भी निखारेंगे l मैंने जब कहानी शुरू किया था सोचा था, ज्यादा से ज्यादा चालीस या पचास एपिसोड में खतम कर दूँगा सोचा था, पर अब लिखने के बाद यह एहसास हो रहा है यह डेढ़ सौ या दो सौ तक खिंच जाएगी l

अभी कहानी का इकतीसवां एपिसोड लिखना शुरू कर दिया है l नए वर्ष के पहले दिन को आयेगा l जो मेरे लेखन की प्रतीक्षा में हैं और रिव्यू के साथ कमेंट्स भी देते हैं l उन सभी भाईयों का धन्यबाद व आभार
 
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