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Thriller "विश्वरूप"

Kala Nag

Mr. X
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Kala Nag

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👉इकतीसवां अपडेट
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विक्रम की गाड़ी कटक के इंडस्ट्रीयल इस्टेट जगतपुर रोड पर भाग रही है l विक्रम कुछ सोचने के बाद महांती को फोन लगाता है l

विक्रम - हैलो... महांती... हाँ... एक बात बताओगे...
महांती - जी युवराज कहिए...
विक्रम - इस बंदे को... इसका बाप भी ढूंढ नहीं पाया... तुमने कैसे ढूंढ निकाला....
महांती - सर बहुत आसान था.... इसके कंपनी में... रॉय ग्रुप सेक्यूरिटी सर्विस के लोग सर्विस में हैं... और कभी मैंने ही उसके कंपनी के सेक्यूरिटी को फाइनल किया था.... आज भले ही मैं... रॉय ग्रुप में नहीं हूँ... पर रॉय ग्रुप में... आज भी मेरे लोग हैं.... और बहुत जल्द सारे के सारे... हमारे एक्जीक्युटिव सेक्यूरिटी सर्विस में जॉइन करेंगे...
विक्रम - दैट्स द स्पिरिट... महांती... वैसे.. छोटे राजा जी कह रहे थे... मेरे बारे में उसे खबर कर दी गई है...
महांती - यह तो अच्छी बात है....
विक्रम - ह्म्म्म्म... अच्छा महांती... इसके बारे में कुछ बताओ....
महांती - सर... रईस है... ऐयाश है... पर जो भी है... सेल्फ मेड है... इतना रुतबा तो रखता है... की पोलिटिकल फिल्ड में... अपने डोनेशन के दम पर... कुछ भी करवा लेता है....
विक्रम - ह्म्म्म्म... और कुछ...
महांती - नशा करता है... और अपनी दुनिया में.... बहुत बिजी रहता है... पर है बहुत प्रोफेशनल... आदमी की परख रखता है....
विक्रम - ठीक है महांती.... काम हो जाने के बाद.. बात करते हैं...

विक्रम बात इसलिए खतम करता है, क्यूंकि उसकी गाड़ी पर गूगल मैप मंजिल पर पहुंचने का संदेश दे दिया है l विक्रम एक बहुत बड़े इलाके में फैले, एक फार्मास्यूटिकल्स कंपनी के बाहर गाड़ी खड़ा कर उतरता है l गेट पर बने बहुत बड़े आर्क पर लिखा हुआ है "वाई आई सी फार्मसुटीकल" l तभी एक गार्ड बाइक पर आता है और अपने पीछे अंदर आने को कहता है l विक्रम उसके पीछे पीछे जाता है l अंदर एक जगह अपनी गाड़ी को पार्क करता है l गार्ड उसके पास आता है और विक्रम को सैल्यूट मारता है l
गार्ड - चेट्टी सर.. आपका ही इंतजार कर रहे हैं....
विक्रम - तो ले चलो उनके पास...
गार्ड - नहीं सर... ना तो वह कहां है हमे एक्जैट पता है... और ना ही हमें वहाँ जाने की इजाजत है.... आप (एक तरफ इशारा करते हुए) वहाँ से लिफ्ट से तीसरे मंजिल पर जाएं.... और (एक जीपीएस घड़ी दे कर) इस घड़ी को उस मंजिल में लिफ्ट के बाहर, जो फ्लोर मैप होगा... उस पर जहां व्हैर टु गो... लिखा होगा यह कोड **** फ़ीड कर दीजिएगा... तो यह जीपीएस घड़ी आपको उन तक पहुंचा देगा....
इतना कह कर गार्ड विक्रम को लिफ्ट के बाहर छोड़ कर चला जाता है l विक्रम वैसा ही करता है जैसे गार्ड ने उसे बताया था l तीसरे मंजिल पर विक्रम पहुंच कर देखता है, एक टचस्क्रीन वाला एलसीडी फ्लोर मैप लगा हुआ है l विक्रम व्हैर टुगो में कोड डालता है, उसके हाथ में जीपीएस वाली घड़ी पर एक रूट मैप दिखने लगता है l विक्रम उसे फॉलो कर एक कमरे के बाहर पहुंचता है l कमरे के बाहर वह असमंजस में खड़ा रहता है l तभी एक आवाज़ उसके कानो को सुनाई देता है l
- आओ विक्रम सिंह... आओ... अंदर आ जाओ...

विक्रम कमरे के अंदर जाता है, अंदर उसे अध नंगी ल़डकियों की झुंड अपनी अपनी कामों में व्यस्त दिख रहे हैं l उनको अध नंगी के वजाए पूरी नंगी कहा जाए तो शायद ठीक रहेगा l ल़डकियों के बदन पर कपड़े तो हैं, पर चुचें और गांड का हिस्सा पूरी तरह से खुला हुआ है l एक लड़की ट्रै में शराब के कुछ ग्लास लेकर विक्रम के पास आती है, पर विक्रम ना तो शराब के ग्लास को ना उस लड़की को देखता है l वह हर तरफ नजर दौड़ाता है और फिर उस लड़की को हाथ दिखा कर मना करता है l
आवाज़ - वाह... क्या बात है... विक्रम... बड़े सख्त लौंडे हो....
विक्रम - कहाँ हो तुम...
आवाज़ - बड़ी जल्दी में हो....
विक्रम - मैं नहीं... हमारे छोटे राजा जी.... उनको शायद आपसे काम है...
आवाज - हाँ युवराज जी...हा हा हा हा.. वैसे विक्रम... तुमको.. युवराज ही कहा जाता है.. ना...
विक्रम - हाँ...
आवाज - वेल ... आई एम इम्प्रेसड.. मेरा बाप मुझे ढूंढ नहीं पाया... पर तुमने मुझे कुछ ही घंटों में... ढूंढ निकाला....
विक्रम - कुछ कामों में... मैं बहुत माहिर हूँ....
आवाज - फिरसे.... तुमने मुझे इम्प्रेस कर दिया.... इसलिए मैं.... तुम्हारे सामने आ रहा हूँ...

विक्रम फिर हर और नजर दौड़ाता है l कुछ देर बाद विक्रम के सामने एक आदमी घुटने भी ढक नहीं रही है, ऐसी टर्कीस बाथ शुट पहने खड़ा होता है l वह विक्रम की ओर अपना हाथ बढ़ाता है l

आदमी - हाय... आई एम... यश वर्धन ईश्वर चंद्र चेट्टी... बिजनस वर्ल्ड में मुझे... वाईआईसी कहा जाता है...

विक्रम कुछ देर सोचता है, फिर उससे हाथ मिलाता है l

यश - जानते हो... तुमने एक और बात पर भी मुझे... इम्प्रेस किया है...
विक्रम अपनी भौवें सिकुड़ कर यश को सवालिया नजर से देखता है

यश - अरे यार... बहुत सख्त लौंडे हो... इतनी हसीन परियों को देख कर भी... नहीं मचले तुम... (विक्रम फिर से अपना नजर चारो ओर दौड़ा कर यश पर जमा देता है, यश भी उसे ऐसे देखता देख) नो... माय... फ्रेंड... दे आर नॉट प्रोस्टीचुट्स.... एंड आई एम नॉट एक्सप्लोइटींग एनी वन.... यह मेरे इंप्लोइज हैं... यहाँ सब अपनी मर्जी से... ऐसे हैं... किसी के साथ कोई जबरदस्ती नहीं... इसके बदले इनको एक्स्ट्रा सैलरी भी तो मिलता है...
विक्रम - ह्म्म्म्म... इन सब का मतलब....
यश - जब मेरी कोई डील फाइनल होती है... उसकी खुशी में... मैं.. दोस्तों को... स्टाफस् को पार्टी देता हूँ... फिर उसके बाद... जी भरने तक ऐयाशी करता हूँ... और तब मैं खुद को... दुनिया जहां से काट कर रखता हूँ....
विक्रम - ओ...
यश - आओ कुछ दिखाता हूँ... (एक कमरे में विक्रम को लेकर आता है, उस कमरे में एक खूब सूरत लड़की पूरी तरह से नंगी बेड पर लेटी हुई है, उस लड़की को दिखा कर) क्या खयाल है.. इस लड़की के बारे में...
विक्रम - (बिना किसी हाव भाव के) कुछ नहीं...
यश - वाव... मान गए... युवराज... मान गए... (कह कर कमरे में पड़े सोफ़े पर बैठ जाता है और विक्रम को पास पड़े दुसरे सोफ़े पर बैठने को कहता है, विक्रम के बैठने के बाद) जानते हो विक्रम... खुली औरत... खुला पैसा... किसी भी मर्द के ईमान को बहका सकता है.... पर तुम उनमें से नहीं हो....
विक्रम - पैसे हमारे जुती बराबर है... और ल़डकियों को नीचे सुलाने का पैमाना.... या पैरामीटर हम तय किया करते हैं....
यश - वाव... क्या बात है... अगन इम्प्रेसड... (बेड पर लेटी उस लड़की को दिखा कर) जानते हो यह कौन है...
विक्रम उस लड़की को देखता है और अपना सर हिला कर इशारे से ना कहता है l
यश - यह एक टॉप मॉडल है... निहारिका... मैंने इसे... अपनी फार्मास्यूटिकल्स कंपनी के नए प्रेग्नेंसी किट के लिए.... और प्रेग्नेंसी प्रोटेक्शन की पिल के लिए... मॉडलिंग की ऑफर किया है... इसलिए पहले प्रेग्नेंसी किट के लिए टेस्ट ले रहा हूँ.... और कुछ दिनों बाद... पिल की टेस्ट लीआ जाएगा.... उसके लिए मैंने इसे बहुत पैसा दिया है.... (इतना कह कर वह अपनी जेब से एक गोली निकाल कर खाता है, और विक्रम से कहता है) विक्रम बस एक आध घंटे बाद निकलते हैं... तुम चाहो तो बैठ कर... लाइव शो देख सकते हो.... या फिर इस कमरे के बाहर मेरा इंतजार कर सकते हो...
विक्रम यह सुनते ही कमरे से बाहर निकल जाता है और बाहर सोफ़े पर आकर बैठ जाता है l कुछ देर बाद अंदर से लड़की की चीखने और चिल्लाने की आवाज़ आती रहती है l विक्रम को ऑक्वरड सा लगता है l अगर उसे पिनाक ने अनुरोध भरे लहजे में ना कहा होता तो विक्रम यहाँ बिल्कुल नहीं रुकता l चूंकि पिनाक सिंह का काम है और यह ओंकार चेट्टी का बेटा है, इसलिए बर्दास्त कर बैठा रहता है l एक घंटे बाद यश कमरे से तैयार हो कर निकालता है l
यश - चलें... विक्रम...
विक्रम उठता है और दोनों मिलकर नीचे पार्किंग में आते हैं l
विक्रम - यश... अगर बुरा ना मानों तो... क्या मेरे गाड़ी में....
यश - ओह हाँ.. क्यूँ नहीं...
यश एक गार्ड को इशारा करता और अपनी जेब से चाबी निकाल कर गार्ड की ओर फेंकता है l
फिर दोनों पार्किंग की ओर चलकर आते हैं l वहाँ खड़ी विक्रम के गाड़ी में दोनों बैठ जाते हैं l विक्रम गाड़ी स्टार्ट करता है और सातपड़ा की ओर गाड़ी को बढ़ाता है l
विक्रम - यश... तुम सेक्स से पहले... टेबलेट लेते हो क्या....
यश - ना... ना... ना... विक्रम.... आई एम परफेक्ट.... एंड.. तुम शायद नहीं जानते... आई एम अ फार्मास्यूटिकल इंजीनियर.... गोल्ड मेडलिस्ट... बेंगलुरु से... यह कंपनी मैंने अपने दम पर खड़ा किया है... सिर्फ अपने दम पर... हाँ बाप की पलिटिकल कैरियर भी मुझे थोड़ा हेल्प किया है...
विक्रम - पर तुमने... जवाब नहीं दिया.... मैंने देखा तुमने... निहारिका से.... सेक्स करने से पहले.... गोली ली...
यश - हा हा हा हा हा... विक्रम... विक्रम... ओ... विक्रम.... ना मैं कमजोर हूँ... ना ही मैं कोई ड्रग् एडिट हूँ.... मैंने वह ड्रग् खुद बनाया है... हाँ... कुछ रेस्ट्रीक्टेड दवाओं से बनाया है....
विक्रम - जैसे....
यश - हैरोइन... स्मैक और एफ्रोडिसीयाक का एक महत्वपूर्ण और बेहतरीन मिश्रण से बनाया गया है वह गोली... वह भी सिर्फ मेरे लिए.... क्यूंकि मैं जानता हूँ... कितनी क्वांटीटी लेना है...
विक्रम - व्हाट... पर क्यूँ...
यश - बीकॉज... आई लव माय बीस्ट... इनसाइड मी... मुझे मेरे अंदर के जानवर से, जंगली पन से, वहशी पन से बहुत बहुत प्यार है.... उसे बाहर निकालने के लिए... कभी कभी मैं वह गोली खाता हूँ....
विक्रम - ओ... अच्छा..
यश - मैंने निहारिका के साथ... हर तरह से सेक्स किया.... बस एक जानवर की तरह सेक्स करना चाहता था.... कोई दया माया नहीं करना था मुझे.... इसलिए मैंने वह गोली ली....
विक्रम - बड़े... ग़ज़ब के शौक पालते हो....
यश - मेरे ऐशगाह में... ल़डकियों को देख कर यह मत समझ लेना की मैं हर किसीके साथ सो जाता हूँ.... कौन मेरे नीचे सोयेगी..... उसका पैरामिटर मैं भी तुम्हारी तरह तय करता हूँ... और जब वह मेरे नीचे आती है.... एक बार तो जंगली बन कर सेक्स करता ही हूँ...
विक्रम - ह्म्म्म्म... पर मैंने अब तक किसी से सेक्स किया नहीं है...
यश - व्हाट... क्या बात कर रहे हो.... तुम राजाओं के खानदान से हो.... यह शौक तो तुम्हारे खुन में होना चाहिए.... वैसे मैंने देखा तुमने... शराब या शबाब... दोनों में से किसीको नहीं छुआ.... क्यूँ... रॉयल फैमिली से हो कर भी .. इस शौक से दूर कैसे हो... भई...
विक्रम - हमे अभी इसकी इजाजत नहीं है... मतलब हम अभी तक एलिजीबल नहीं हुए हैं.... हमारा जब तक... रंग महल में प्रवेश नहीं हो जाता... तब तक हम वह शौक नहीं पाल सकते हैं...
यश - वाव... और तुम्हारे खानदान में एलिजीबल होते कब हो...
विक्रम - जब बाप खुद... अपने बेटे की हाथ पकड़ कर.... रंग महल में प्रवेश करा दे....
यश - वाव... वाव... वाव... क्या बात है... यह कोई परंपरा की तरह है क्या....
विक्रम - शायद हाँ... क्षेत्रपाल वंश की यही परंपरा है....
यश - हाँ... शायद इसीलिए... की.. तुम... रॉयल फॅमिली से हो.... पर अपना यहाँ अलग स्वैग... है.... बाप का जुता... पैर में आ जाए... तो हम अपने आप एलिजीबल हो जाते हैं...
विक्रम - ह्म्म्म्म...
यश - और आज हम इतने... एलिजीबल हैं... की बाप अपने काम के लिए.... हमे ढूंढता है....
इस तरह बात करते करते दोनों सातपड़ा में चेट्टीस् गेस्ट हाउस में पहुंच जाते हैं l विक्रम गाड़ी रोकता है, यश गाड़ी से उतरता है l यश के गाड़ी से उतरने के बाद विक्रम वापस गाड़ी घुमाता है l
यश - अरे... विक्रम... यह क्या... मुझे छोड़ कर... कहाँ चल दिए...
विक्रम - उस मीटिंग में बैठने के लिए... हम अभी भी एलिजीबल नहीं हैं....
यश- ओ.. तेरी....

विक्रम तब तक अपनी गाड़ी लेकर जा चुका है l एक नौकर दौड़ कर आता है और सलाम ठोकते हुए अंदर जाने को कहता है, यश अंदर आकर देखता है, अंदर मौजूद हर एक का चेहरा उतरा हुआ है l एक ओंकार के चेहरे पर कुछ परेशानियाँ झलक रही है l
यश - क्या बात है... पुज्य पिताजी... क्यूँ मुझे याद किया....
ओंकार - अगर याद किया है.... तो वजह ज़रूर... परेशान करने वाली ही होगी....
यश - ह्म्म्म्म.... तो बताइए... पूरी राम कहानी.... ताकि... रावण की एंट्री कहाँ और कैसी हो.... हम तय करेंगे....
बल्लभ उसे विश्व की केस के बारे में जानकारी देता है और अब तक हुए डेवलपमेंट के बारे में सब कुछ बताता है और साथ ही साथ भैरव सिंह के आने की सूचना भी देता है l यश सब सुनने के बाद आपनी आँखे बंद कर कुछ सोचने लगता है l कुछ देर सोचने के बाद,
यश - ह्म्म्म्म... बहुत ही विकट समस्या है.... ठीक है... कल राजा साहब को आने दीजिए... कल तक मैं कुछ सोच भी लूँगा.... तब तक.... आप लोग बेफिक्र रहें.... और आराम करें.....
सब एक दूसरे के मुहँ को देखते हैं l फ़िर ओंकार की ओर देखने लगते हैं l
ओंकार - देखिए.... उसे सोचने देना चाहिए.... वह पहले से शामिल होता... तो कुछ जरूर... सोच लीआ होता.... क्यूंकि प्लान में अब... शामिल हुआ है... इसलिए... हम कल तक इंतजार कर लेते हैं....

सभी अपना सर हिला कर मौन में हाँ कहते हैं l
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अगले दिन
सेंट्रल जैल
विश्व अपने सेल में बेड पर पड़े पड़े कुछ सोच में खोया हुआ है l तभी एक आवाज़ से उसका ध्यान टूटता है l वह उस आवाज़ की तरफ देखता है, संत्री उसके सेल की दरवाज़ा खोलते हुए,

संत्री - विश्व... सुपरिटेंडेंट साहब ने तुमको याद किया है... जाओ उनसे मिल लो...

विश्व अपने सेल से निकल कर सीधे ऑफिस की ओर जाता है l ऑफिस में पहुंच कर विश्व, तापस को नमस्ते करता है l
तापस - आओ विश्व... सुप्रभात... कैसे हो...
विश्व - जी अच्छा हूँ...
तापस - लगता है... अब कुछ ही दिनों की बात है... फिर शायद तुम आजाद हो कर अपने गांव चले जाओगे...
विश्व - धन्यबाद... सर... आपकी शुभकामनाएं हैं... इसलिए...
तापस - अरे नहीं... ऐसी बात नहीं... वैसे विश्व... अगर बुरा ना मानों तो एक बात पूछूं...
विश्व - जी...
तापस - तुम्हारे खिलाफ जो वकील लड़ रही हैं... क्या तुम उनके बारे में जानते हो....

विश्व खामोश रहता है, और ना में अपना सर हिलाता है l

तापस - मुझे लगता शायद तुम जानते हो... फ़िर भी मैं तुम्हें बता देता हूँ... वह... मेरी धर्म पत्नी हैं...

विश्व सुन कर चुप रहता है और अपनी नजर झुका लेता है l

तापस - देखो विश्व... उन पर तुम अपने मन में... कुछ गुस्सा मत पाल लेना... वह अपनी वृत्ति के कारण... तुम्हारे खिलाफ लड़ रही हैं.... जिस तरह जयंत सर सरकार के तरफ से... तुम्हारे लिए नियुक्त हैं... उसी तरह प्रतिभा भी नियुक्त है.... सरकार के तरफ से... तुम्हारे विरुद्ध लड़ने के लिए...
विश्व - जी... सुपरिटेंडेंट सर... मेरे मन में उनके लिए कोई मैल नहीं है....
तापस - थैंक्यू... विश्व... थैंक्यू... वेरी मच... वैसे सॉरी.. तुमसे मिलने तुम्हारी दीदी आई हैं... मैंने उन्हें ऊपर लाइब्रेरी में बिठाया है.... तुम जाकर मिल लो....
विश्व - जी...

इतना कह कर हाथ जोड़ कर नमस्कार करता है और लाइब्रेरी की ओर चला जाता है l लाइब्रेरी में पहुंच कर देखता है वैदेही खिड़की से बाहर देख रही है l विश्व उसके पास आकर खड़ा होता है l
विश्व - क्या देख रही हो दीदी....
वैदेही मूड कर विश्व को देखती है
वैदेही - कुछ नहीं विशु... आशा और निराशा के भंवर में राह ढूंढ रही हूँ.... अब तक जो हुआ... और अभी जो हो रहा है... और आने वाली कल को लेकर... मैं उसके उधेडबुन में खोई हुई हूँ.......
विश्व - पता नहीं... जो हुआ... क्यूँ हुआ.. पर जो हो रहा है... उसमें... शायद मेरी कुछ गलती तो है...
वैदेही - नहीं विशु... नहीं... जो भी हुआ है... और जो हो रहा है... आने वाले कल के किसी विशाल परिवर्तन के लिए.. हुआ या हो रहा है शायद....
विश्व - परिवर्तन... कैसा परिवर्तन... ऐसी ही एक परिवर्तन के लिए तो.... मैं सरपंच बनने के लिए तैयार हुआ.... पर परिणाम क्या हुआ...
वैदेही - विशु... हम राजगड़ से कभी बाहर निकले ही नहीं थे... राजगड़ के बाहर भी दुनिया है... जहां लोग बसते हैं... यह सिर्फ किताबों में पढ़ा था... आज देख भी लिया... शायद इसके पीछे भी नियति का कोई खेल छिपा हो....
विश्व - कैसी नियति.... किसकी नियति... कुछ भी हासिल करने की मैंने कभी कोशिश नहीं की.... पर कीमत बहुत भारी चुका रहा हुँ....
वैदेही - अगर दुनिया में... भैरव सिंह जैसे लोग हैं... तो जयंत सर जैसे लोग भी हैं... जरा सोच...
विश्व - हाँ दीदी... वह इंसान मुझे बिलकुल भी समझ नहीं आ रहे हैं...
वैदेही - मतलब....
विश्व - एक दिन वह मुझसे मिलने आए थे.... यहाँ... जैल में... अकेले... उन्होंने मुझसे कहा कि... अगर वह शादीशुदा होते तो... उनका पोता जरूर मुझसे सात या आठ साल छोटा होता.... उन्होंने मुझसे यह भी कहा कि.... वह मुझे कुछ देना चाहते हैं.... और मुझसे कहा कि... मैं वह रख लूँ... उसके बाद कहा कि मैं उन्हें दरवाजे तक छोड़ दूँ... मैं उन्हें छोड़ने भी गया.... फिर वह पीछे मूड कर देखे और मुस्करा कर चले गए.... उन्होंने ऐसा क्यूँ किया... और किसलिए किया... मेरे समझ में कुछ भी नहीं आया.....
वैदेही - जानता है... आज अगर कटक में... मैं सही सलामत हूँ... तो उनके वजह से ही हूँ... पता नहीं कौनसे जनम में... कौनसा रिस्ता था उनसे... जो वह निभा रहे हैं.... और हमें कर्ज दार बना रहे हैं....
विश्व - हाँ दीदी... तुम सच कर रही हो.... उन्होंने मुझसे मेरे बारे में... मेरे केस के बारे में.... कुछ भी नहीं पूछा.... पर कितनी आसानी से.... कोर्ट में दिलीप कर की धज्जियाँ उड़ा के रख दी....
वैदेही - बस यही बात अब मुझे डरा रही है.... विशु.... डरा रही है... जयंत सर एक घायल शेर की तरह वार पे वार किए जा रहे हैं..... पता नहीं दुश्मन... कैसे और कब पलट वार कर दे....
विश्व - हाँ दीदी.... इस बात से मैं भी डरा हुआ हूँ... जंगल का गणित कहता है... एक शेर तीन लकड़बग्घों से भीड़ सकता है.... पर यहाँ तो लकड़बग्घों का झुंड है दीदी.... अब मुझे उनकी फ़िकर होने लगी है....
वैदेही - विशु.... मान ले... अगर तु रिहा हो गया.... तो क्या तु.... वापस... राजगड़ जाएगा.....
विश्व - (हैरान हो कर वैदेही को देखता है) तुम... ऐसे क्यूँ पूछ रही हो दीदी...
वैदेही - (खिड़की से बाहर देखते हुए) क्यूँ ना हम यहीं रह जाएं.... और बाकी जिंदगी जयंत सर की सेवा करते हुए.... गुजार दें....
विश्व - य़ह.... तुम कह रही हो दीदी.... तुम... माना... हम जयंत सर के ऋणी हैं.... पर... नहीं दीदी... नहीं.... मैं यहाँ नहीं रह सकता.... चाहे अभी रिहा हो जाऊँ... या सजा के बाद... जाऊँगा तो पहले राजगड़ ही....

वैदेही उसे ध्यान से देखती है, विश्व के आंखों में एक दृढ़ संकल्प दिख रहा है l

विश्व - मुझे इस राह पर चलने के लिए.... तुमने कहा.... तुमने मुझे समझाया... मातृभूमि के कर्ज के बारे में.... हमारे आसपास के लोगों से जुड़े रिश्तों के बारे में.... और तो और... मुझ पर तुम्हारे तीन थप्पड़ों का कर्ज़ है..... उन्हें उतारे बिना.... मैं राजगड़ छोड़ नहीं सकता.... मेरी छोड़िए... आपने भी तो सौगंध उठाया है.... के जबतक राजगड़ के लोगों के जीवनी शैली में.... आपसी रिश्तों में... परिवर्तन नहीं आ जाता... तब तक आप नंगी पैर ही रहेंगी....

वैदेही अपने चेहरे पर एक पीड़ा दायक मुस्कान लाने की कोशिश करती है l वह विश्व से अपनी नजरें हटा कर फिर खिड़की से बाहर देखती है l

विश्व - दीदी....
वैदेही - हूँ....
विश्व - आप अपना.... और.... जयंत सर का खयाल रखना....

वैदेही अपना सर हिला कर हाँ कहती है l विश्व और कुछ नहीं कहता ना ही वैदेही से कुछ सुनने के लिए रुकता है l वह मुड़ कर वापस चला जाता है l वैदेही उसे अपनी आंखों से ओझल होते हुए देखती रहती है l

वैदेही - मैं जानती हूँ... मेरे भाई.... मैं जानती हूँ.... मैं तुझे अच्छी तरह से जानती हूँ.... तु अब पीछे नहीं हटेगा.... पर तु अकेला है.... जो गणित जयंत सर के लिए बताई है.... वह गणित... क्या तुझ पर लागू नहीं होगी....

इतना कह कर वैदेही रोने लगती है l रोते रोते वह वहीँ खिड़की के पास बैठ जाती है l तापस वहाँ आता है l

तापस - वैदेही.... तुम.... वह विश्व... मतलब... तुम रो क्यूँ रही हो...
वैदेही - कुछ नहीं....(सुबकते हुए) सुपरिटेंडेंट साहब.... आज अपनी कुछ करनी पर रोना आ रहा है (अपनी आँसू पोछती है)
तापस - तुम्हारी करनी... मतलब....

वैदेही - मेरी उंगली थाम कर.... विश्व ने चलना सीखा.... (फिर अपनी जगह से उठ कर) मैंने उसे एक मंजिल दिखा कर.... एक राह पर दौड़ने के लिए छोड़ दिया.... उस राह पर वह इतना दूर जा चुका है... की अब वह लौटना नहीं चाहता है.... और इस मोड़ पर.... मंजिल कहीं खो सी गई है... पर वह राह नहीं छोड़ रहा है.... बस इसी बात का दुख है.... सुपरिटेंडेंट साहब.... इसी बात का दुख है.....

वैदेही की कही हुई सारी बातें तापस के सिर के ऊपर चला जाता है l

वैदेही - आपका बहुत बहुत धन्यबाद.... सुपरिटेंडेंट साहब... मुझे एकांत में... विश्व से मिलने दिए....
तापस - कोई बात नहीं.... वैदेही... कोई बात नहीं है.... वैसे.... अगर मैं एक अपनी निजी विषय के लिए.... तुमसे अनुरोध करूँ.... तो क्या तुम सुनोगी...
वैदेही - (उसे हैरानी की नजरों से देखते हुए) ज़ी कहिए...
तापस - वह... मैं...(एक ही सांस में) क्या तुम मेरी पत्नी को माफ कर सकोगी....

यह सुनकर क्या प्रतिक्रिया दे, वैदेही को समझ नहीं आता l वह पहले इधर उधर देखती है फ़िर अपना चेहरा नीचे झुका लेती है l

तापस - देखो वैदेही... तुम प्रतिभा के लिए अपने मन में... कोई मैल ना पालना.... वह एक सरकारी वकील है.... जिस पर यह जिम्मेदारी थी... की हर हाल में... अभियुक्त को दोषी साबित करे....
वैदेही - यह आप मुझसे.... क्यूँ कह रहे हैं...
तापस - तुम्हारे गाँव के... दिलीप कर के जिरह के बाद.... प्रतिभा आत्मग्लानि के बोध में घिरी हुई है.... वह तुमसे मिलकर.... तुमसे माफी माँगना चाहती है..... इसलिए मैं.... (तापस और कुछ कह नहीं पाता)
वैदेही - सुपरिटेंडेंट साहब.... मेरे मन में उनके लिए ज़रा भी मैल नहीं है....
तापस - थैंक्यू... वैदेही... थैंक्यू....

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शाम का समय
चिलीका झील के बीचों-बीच एक हाउस बोट के अंदर
एक बड़े से सोफ़े पर दोनों बांह फैलाए और अपना दाहिना पैर मोड़ कर बाएं पैर पर रख कर भैरव सिंह बैठा है l
उसके बगल में दाहिने तरफ एक सिंगल सोफ़े पर ओंकार बैठा हुआ है और बाएं तरफ एक सिंगल सोफ़े पर पिनाक बैठा हुआ है l
थोडे दूर एक डायनिंग चेयर पर दुबक कर बैठा हुआ बल्लभ प्रधान, उसके पीछे दीवार पर पीठ लगाए खड़ा है रोणा और फर्श पर अपने गमच्छे को हाथ में लिए हाथ जोड़ कर अपने तलुवों पर बैठा हुआ है l और उन सबके बीच अपने दाढ़ी खुजाते हुए टहल रहा है यश l

ओंकार - बस करो... यश... बस... कबसे राजा साहब.... यहाँ बैठे हुए हैं.... तुम कल से सोच ही रहे हो....
यश - ऐसी बात नहीं है... पिताजी.... मैंने सोच लीआ है...
ओंकार - अगर सोच लीआ है.... तो कहो भई...
यश - कह तो दूँ... पर जिनको जरूरत है... उन्होंने मुझसे कुछ पूछा जो नहीं है...

यह सुन कर भैरव सिंह के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान दिखती है l

भैरव - तो यश जी... आपने हमारे लिए क्या सोचा है.... हमें बताने की कष्ट करेंगे....

यश के चेहरे पर एक गहरी मुस्कान छा जाती है l

यश - राजा साहब.... जयंत के सीन में उतरने के बाद से अब तक.... आपके सिपहसलार थोड़ा सा गलत खेल गए....
भैरव - विस्तार से बताओ.... यश बाबु...
यश - मेरा कहना है कि... जब पैसा जनता जनार्दन का है.... जनता को ही सीधे... युद्ध में उतार दीजिए....
पिनाक - अरे... यश बाबु... बात को ऐसे उपस्थापीत कीजिए... की सबको समझ में आए....
यश - मेरे कहने का मतलब यह है कि.... जिस तरह पहले विश्व के खिलाफ... प्रदर्शन, धरने वगैरा किया गया और मीडिया का इस्तमाल किया गया.... अब उसीको जयंत के खिलाफ़ इस्तमाल कीजिए....(सब चुप हो कर यश को घूर कर देखते हैं)
यश - देखिए आप यह तो मानेंगे ही...लोगों के प्रदर्शन के चलते ही.... सरकार ने तीन जजों का पैनल बनाया और लगातार सुनवाई के लिए आदेश भी जारी किया....
बल्लभ - हाँ...
यश - क्यूंकि सरकार को लगा.... जनता में विश्व के खिलाफ आक्रोश है... अब जनता का यही आक्रोश को.... जयंत के खिलाफ इस्तेमाल कीजिए....
रोणा - इससे क्या फायदा होगा... उसे सरकारी सुरक्षा मिली हुई है....
यश - सरकारी सुरक्षा इसलिए मिली है.... ताकि उनपर कोई हमला ना हो जाए.... धरने और प्रदर्शन के लिए नहीं...

पहली बार सबके चहरे पर इतने दिनों बाद मुस्कान दिखता है l

पिनाक - इससे शायद... जयंत के आत्मविश्वास को... ठेस पहुंचे...
यश - सिर्फ़ आत्मविश्वास ही नहीं... आत्मसम्मान को भी ठेस पहुंचेगी.... बुढ़उ को पहले से ही दो बार हार्ट अटैक हो चुका है... हमारी हरकत ऐसी होगी के लोगों को, सरकार को और मीडिया वालों को लगेगा.... की लोगों का आक्रोश अब विश्व के वजाए.... विश्व को बचाने की कोशिश में लगे.... वकील के खिलाफ हो गई है....
बल्लभ - वाह... क्या बात है.... यश बाबु... वाह.... आपके खून में सचमुच... राजनीति दौड़
रही है... वैसे कल रोणा की गवाही है.... और सोमवार को... (चुप हो जाता है)
भैरव- सोमवार को हमारे गिरेबान पर हाथ रखेगा जयंत...
यश - कल शुक्रवार है... और सोमवार के भीतर दो दिन है राजा साहब.... इन दो दिनों में बहुत कुछ हो सकता है... क्यूँ के इज़्ज़दार लोगों को... बैज्जती बर्दास्त नहीं होती.... और हम होने ही नहीं देंगे...
भैरव - ह्म्म्म्म... बहुत अच्छे... यश... बहुत अच्छे.... अगर जयंत हम तक नहीं पहुंच पाया.... तो हम तुम्हारे लिए अपना ख़ज़ाना खोल देंगे...
यश - माय प्लेजर.... राजा साहब... हाँ तो... प्रधान बाबु.... मीडिया में अब से जयंत खिलाफ डिबेट हो पर.... प्रत्यक्ष रूप में नहीं... अप्रत्यक्ष रूप से.... शुक्रवार की शाम से ही... शनिवार की सुबह से भीड़ उनके खिलाफ उग्र प्रदर्शन करेगी... जिसका संचालन... मैं स्वयं करूंगा.... और राजा साहब यह यश वर्धन का वादा है.... जयंत की हाथ.... आपकी गिरेबान तो दूर... उसकी आँखे भी आप तक नहीं पहुंचेगी....

यश की इस बात पर सब तालियां बजाने लगते हैं l

_____×_____×_____×_____×_____×_____

अगले दिन
सब कोर्ट में पहुंचते हैं l
वैदेही और जयंत जैसे ही अंदर आते हैं एक नए शख्स को देख कर ठिठक जाते हैं l वैदेही के आंखों में घृणा उतर आता है l वह शख्स वैदेही को देख कर एक हल्की मगर खतरनाक मुस्कान के साथ अपनी मूछों पर ताव देता है l वैदेही अपनी नजर फ़ेर लेती है l यह सब जयंत देख लेता है l

जयंत - क्या हुआ...
वैदेही - कुछ नहीं सर... वह जो नया शख्स दिख रहा है... वह....
जयंत - भैरव सिंह क्षेत्रपाल है....
वैदेही - आप जानते हैं...
जयंत - नहीं... पर अंदाजा हो गया... वह दूसरों के पीछे अकेला बैठा हुआ है... दोनों बाहें अपने दोनों तरफ फैलाए.... पैर पर पैर रख कर अपना रसूख दिखा रहा है....
वैदेही - यह खुदको राजा कहता है.... तो अपने गुलामों के पीछे क्यूँ बैठा है....
जयंत - इसलिए कि... जब जज साहब आयें... उसे खड़ा होना ना पड़े.... चलो हम भी अपनी जगह बैठ जाते हैं...

फिर दोनों अपनी अपनी जगह पर आकर बैठ जाते हैं l फिर कोर्ट रूम में होने वाली औपचारिकता होती है l हॉकर जजों के आने का संकेत देता है l सब अपनी जगह खड़े हो जाते हैं l पर वैदेही पीछे मुड़ कर देखती है भैरव सिंह खड़ा नहीं हुआ है l फिर सब बैठ जाते हैं l
वैदेही - (फुसफुसाते हुए जयंत से ) सर आपने जैसा कहा था... बिल्कुल वैसा ही हुआ... भैरव सिंह अपने जगह से उठा ही नहीं...
जयंत - (धीरे से) मैं जानता हूँ... इसलिए तुम चुप रहो....
जज - ऑर्डर ऑर्डर... अदालत की कारवाई शुरू किया जाए...
कोर्ट रूम में ख़ामोशी छा जाती है l
जज - जैसा कि... पिछले सुनवाई में... गवाह दिलीप कर की जिरह के वक्त... वह बेहोश हो गए थे.... जिसके कारण उनकी गवाही अधूरी रह गई.... पर उस दिन... बचाव पक्ष के तरफ से जिरह की खात्मा की घोषणा की गई.... पर आज फ़िर से... बचाव पक्ष को पूछा जा रहा है.... क्या वह... फिर से दिलीप कर की गवाही लेना चाहेंगे....
जयंत - (अपनी कुर्सी से उठ कर) जी नहीं मायलर्ड... हमारी तरफ से... दिलीप कर की जिरह खत्म हो चुका है... हाँ उस जिरह के बाद के तथ्यों को... अदालत के समक्ष प्रस्तुत करने का अवसर नहीं मिला.... पर मैं आज राजगड़ थाना के प्रभारी... श्री अनिकेत रोणा... जी से जिरह से पहले... उन तथ्यों को... अदालत के समक्ष प्रस्तुत करना चाहूँगा.... मायलर्ड....
जज - ठीक है... आप अपना तथ्य प्रस्तुत करें... और दिलीप कर के द्वारा किए गए... जालसाजी को रूप के जरिए हुए... आर्थिक घोटाले से सबंध स्थापित करें....
जयंत - श्योर... मायलर्ड... श्योर.... (फिर जयंत पुरे कोर्ट में स्थित सभी लोगों पर नजर डालता है, फिर बोलना शुरू करता है) मायलर्ड... कर ने जो चेक विश्व से साइन करवाए थे.... असल में... वह एक... पीलीमीनारी टेस्ट था.... मतलब एक ट्रायल.... जिसकी कामयाबी पर... रूप के जरिए आर्थिक घोटाले को अंजाम दिया जा सकता था.....
जज - कैसे....
जयंत - मायलर्ड.... जैसा कि... अदालत में.... मैंने अपना पक्ष रखते हुए कहा था.... "रोम नेवर बिल्ट इन वन नाइट"... उसी तरह ऐसे षडयंत्र भी... एक दिन.. एक महीना या एक साल की नहीं होती है.... इस षडयंत्र का बीज उसी दिन बो दी गई थी... मायलर्ड... जिस दिन सरकार के द्वारा राजगड़ के विकास के लिए.... प्रोजेक्ट्स को मंजूरी दी गई थी.... इसीलिए..... उसी दिन से... सबसे पहले फेक.... कंट्राक्टर्स तैयार किए गए..... जिनके नाम पर... बैंकों में... अकाउंट भी खोले गए... अब बारी था... उसके बाद... इस संगठित लुट को अंजाम देने के लिए... राजगड़ विकास के लिए मंजूर किए गए प्रोजेक्ट्स को पैसों की मशीन की तरह इस्तेमाल किया गया.... लेकिन इनमें शामिल सभी लोगों को अंदाजा था... योर ऑनर... एक दिन ना एक दिन.... कभी ना कभी... एनक्वेरी हो सकता है.... इसलिए बचे हुए पैसों को... एक ऐसे अकाउंट तक पहुंचा जाना जरूरी था.... जिसका ऑपरेटिंग अधिकार सिर्फ एक व्यक्ति के पास हो.... और यह केवल रूप से ही संभव हो सकता था... इसलिए जब दिलीप कर ने विश्व से चेक साइन करा लिया और रकम भी हासिल कर लिया.... तब इस घोटाले में शामिल लोगों का मकसद कामयाब होता नजर आया योर ऑनर....
जज - मिस्टर डिफेंस... आप तथ्य को... प्रमाण के साथ प्रस्तुत करें....
जयंत - इस बारे में... प्रामाणिक तथ्य तो... एसआइटी प्रस्तूत कर चुकी है... बस उनके तथ्य को मैं.... सही ढंग से प्रस्तुत करूंगा.... मायलर्ड....
जज - ठीक है.... आगे बढ़ीए.....
जयंत - जैसा कि दिलीप कर ने अपने बयान में कहा था.... तहसील ऑफिस तहसीलदार और विश्व के बीच एक मीटिंग हुई.... असल में.. उस मीटिंग में... तहसीलदार ने... राजगड़ प्रांत के विकास के लिए... विश्व को यह कह कर अपने शीशे में उतारा.... के राजगड़ के विकास के लिए.... सरकारी राशि पर्याप्त नहीं है.... इसलिए बहुत लोग हैं... जिन्हें वह जानते हैं.... जो जन सेवा के लिए पैसे दान देते हैं.... और उनके दान की हुई राशि को जमा करने के लिए... एक एनजीओ "राजगड़ उन्नयन परिषद" यानी रूप का गठन किया जाए... जिसमें प्रमुख पांच व्यक्ति मुख्य सभ्य होंगे.... विश्व, तहसीलदार, ब्लाक अधिकारी, रीवेन्यू इंस्पेक्टर और बैंक अधिकारी.... बाकी जो भी सदस्य होंगे... वे केवल साधारण सभ्य ही होंगे.... इस बात पर विश्व... प्रभावित हुआ... और अपनी पंचायत ऑफिस में इस बाबत मीटिंग रखी.... अगले दिन वह प्रमुख व्यक्ति सब आकर अपना सहमति दी और जिम्मेदारी भी ली.... रूप कि रजिस्ट्रेशन कराने के लिए..... रजिस्ट्रेशन के लिए एक बाई-लॉ भी बनाया गया... उस बाई-लॉ में यह प्रावधान रखा गया... के रूप के अकाउंट को एक ही व्यक्ति ऑपरेट कर सकता है.... सिर्फ़ सरपंच... यानी सिर्फ़ विश्व....
जज - हाँ... ऐसा तो दिलीप कर... के बयान से साबित हुआ है... और एसआईटी की रिपोर्ट भी यही कह रहा है.... पर पैसे तो हज़ारों लोगों के अकाउंट से आया है.... वह भी मृतक... यह कैसे
जयंत - जी योर ऑनर... अब... इसके लिए अगली चाल यह थी... रूप के अकाउंट से उन सभी लोगों की अकाउंट को ईसीएस से जोड़ना.... इस तथ्य से विश्व को अवगत कराया गया..... पर चूँकि विश्व को ईसीएस के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं थी..... इसलिए उससे बैंक अधिकारी ने ईसीएस के नाम पर... कैंसिलेशन चेक पर साइन लिए वह भी उस गायब होने वाली स्याही से..... और राजगड़ विकास के लिए..... विश्व ने सभी चेक पर साइन कर दिए.... जैसे ही विश्व ने सभी चेक साइन कर दिया..... विश्व से मतलब ख़त्म हो गया....
जज - ह्म्म्म्म... पर इससे मनरेगा का क्या संबंध.....
जयंत - मायलर्ड.... संबंध है.... बहुत ही गहरा संबंध है.... राजगड़ विकास के लिए... जितने भी प्रोजेक्ट्स आए.... सभी के सभी मनरेगा के अंतर्गत ही आए.... मायलर्ड.... इन प्रोजेक्ट्स में.... पहले फेज के कंट्राक्टर असली थे.... पर बाद के दोनों फेज में फेक कंट्राक्टरस से जरिए काम खतम दिखाया गया.... और सबसे मजेदार बात... पहली फेज में जितने लोगों ने श्रम दान दिया उनको पारिश्रमिक मिले.... पर दूसरे फेज में जिन्होंने श्रम दान किया.... उनको पारिश्रमिक नहीं मिला... दस्तावेज में काम करने वालों को पारिश्रमिक दे दिया गया.... ऐसा लिखा गया.... पर असल में दिया ही नहीं गया..... चूंकि दुसरे और तीसरे फेज में.... दिलीप कर यह अदालत को कहना भूल गए... सभी श्रमजीवियों को प्रोजेक्ट खतम होने के बाद ही पैसा मिलेगा... यह कह कर उनसे काम करवाया गया था.... और दुसरे और तीसरे फेज में जिन श्रमजीवियों की रजिस्ट्रेशन हुई थी... वे सभी मृतक थे.... और उनके अकाउंट पैसा तभी जा सकता था... जब विश्व पंचायत के अकाउंट चेक पर साइन करता.... चूंकि सभी गाँव वालों को पैसे दिलाने थे.... इसलिए विश्व ने... वहीँ बैंक जा कर सभी चेक साइन कर दिया....

जयंत इतना कह कर चुप हो गया l जयंत के बातों को सुन कर सब शुन हो जाते हैं l जयंत एक नजर जजों पर डालता है l तीनों जज मुहँ फाड़े जयंत के दिए विवरण सुन कर उसे देख रहे हैं l

जज - एसआईटी रिपोर्ट कह रही है... तकरीबन पांच हजार लोगों ने श्रम दान दिया.... और यह रिपोर्ट यह भी कह रही है... वह पांच हजार लोग... जो इन प्रोजेक्ट्स में श्रमदान के लिए रजिस्टर्ड हुए.... सभी के सभी मृतक हैं....
जयंत - जी योर ऑनर... उन पांच हजार मृतकों को इसलिए ढूँढा गया.... क्यूँ की भारत सरकार ने... मनरेगा में काम करने वालों के लिए.... आधार कार्ड व बैंक के जन-धन अकाउंट को अनिवार्य कर दिया.... और सबको पारिश्रमिक ई-पेमेंट जरिए करने के लिए बाध्य कर दिया.... जहां सरकार आम लोगों के हितों की रक्षा के लिए यह कदम उठाए.... वहीँ इन लोगों को... इसमे एक मौका दिखा.... इस मौके पर चौका मारने के लिए... रिवेन्यू इंस्पेक्टर, विडीओ, तहसीलदार और बैंक अधिकारी सब मिलकर प्रोजेक्ट्स के आरंभ से ही.... मृत् लोगों के आधार कार्ड संग्रह, उनके बैंक अकाउंट खुलवाना, फिर उनके डेथ सर्टिफिकेट हासिल करना और उनके अकाउंट को रूप के अकाउंट से जोड़ने के बाद.... काम निकलने पर अकाउंट को डी-एक्टिवेट करने तक सभी कामों को बखूबी अंजाम दिया....
 

Kala Nag

Mr. X
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थ्रीलर कहानियां अधिकतर मर्डर मिस्ट्री या जालसाजी पर ज्यादा लिखी जाती है । वैसे यह भी जालसाजी पर ही आधारित है पर सब्जेक्ट थोड़ा हटकर है ।
मनरेगा के लिए आवंटन हुए पैसों का गबन करना । ये कहानी ही नहीं है बल्कि सच्चाई भी है । ऐसा हजारों केस में हो चुका है । सरकारी धन को किसी न किसी स्कीम के तहत लुटना । लेकिन यह महान काम बड़ी बड़ी हस्तियों के वश का ही है । मध्यमवर्गीय और निम्नवर्गीय लोगों की बिसात ही कहां है ऐसे कामों को सोचने तक की ।

इस अपडेट में भी बेहतरीन जिरह करते हुए देखाया ‌‌आप ने जयंत सर को । वकील का काम सिर्फ पैरवी करना ही नहीं होता है बल्कि पुरे केस की असलियत को परखने का भी होता है । एक डिटेक्टिव का भी होता है। उन्होंने बारिकी से केस का इन्वेस्टिगेशन किया और एक लूज प्वाइंट ढूंढ निकाला ।

जयंत सर के माध्यम से यह सीन लिखकर आपने अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया । आउटस्टैंडिंग ।

शुरुआत में देवी देवताओं वाली बात जहां कामेडी से भरपूर थी वहीं बाद में जब कर साहब की बखिया उधेड़ना शुरू की जयंत सर ने तो कहानी में रोमांच सा आ गया । मजा आ गया ।

बीग बॉस पधार रहे हैं अदालत में । वो सब कुछ अपने राज दरबार से बैठे बैठे देख रहे होंगे और महसूस कर रहे होंगे कि अब उन्हें मैदान में खुलकर सामने आना ही होगा अन्यथा अनहोनी न हो जाए !

विक्रम और वो अजनबी हसीना की जब जब मुलाकातें हुईं हैं और उनके बीच हल्की फुल्की बातें हुई है , तब तब मन फ्रेश हो जाता है । लड़की की बातें और उसकी अदाएं ! ब्यूटीफुल ।

यह अपडेट भी बहुत खुबसूरत था । हमेशा की तरह ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग ।

क्या बात है भाई! इसको पढ़ कर दामिनी फ़िल्म के कोर्टरूम वाला थ्रिल महसूस होने लगा!
बहुत ही बढ़िया! बहुत ही बढ़िया! छुट्टियों का आनंद लें! और नए साल ही बहुत बहुत शुभकामनाएँ आपको और आपके परिवार को!

Shandar update hai Bhai, jayant ke samne ye log kab tik payenge, agle update ka intezar rahega

Fabulous update

Waiting for next
स्वागत है मित्रों आपका स्वागत है
नए साल के पहले पोस्ट पर आप सबका स्वागत है
 

Jaguaar

Well-Known Member
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👉इकतीसवां अपडेट
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विक्रम की गाड़ी कटक के इंडस्ट्रीयल इस्टेट जगतपुर रोड पर भाग रही है l विक्रम कुछ सोचने के बाद महांती को फोन लगाता है l

विक्रम - हैलो... महांती... हाँ... एक बात बताओगे...
महांती - जी युवराज कहिए...
विक्रम - इस बंदे को... इसका बाप भी ढूंढ नहीं पाया... तुमने कैसे ढूंढ निकाला....
महांती - सर बहुत आसान था.... इसके कंपनी में... रॉय ग्रुप सेक्यूरिटी सर्विस के लोग सर्विस में हैं... और कभी मैंने ही उसके कंपनी के सेक्यूरिटी को फाइनल किया था.... आज भले ही मैं... रॉय ग्रुप में नहीं हूँ... पर रॉय ग्रुप में... आज भी मेरे लोग हैं.... और बहुत जल्द सारे के सारे... हमारे एक्जीक्युटिव सेक्यूरिटी सर्विस में जॉइन करेंगे...
विक्रम - दैट्स द स्पिरिट... महांती... वैसे.. छोटे राजा जी कह रहे थे... मेरे बारे में उसे खबर कर दी गई है...
महांती - यह तो अच्छी बात है....
विक्रम - ह्म्म्म्म... अच्छा महांती... इसके बारे में कुछ बताओ....
महांती - सर... रईस है... ऐयाश है... पर जो भी है... सेल्फ मेड है... इतना रुतबा तो रखता है... की पोलिटिकल फिल्ड में... अपने डोनेशन के दम पर... कुछ भी करवा लेता है....
विक्रम - ह्म्म्म्म... और कुछ...
महांती - नशा करता है... और अपनी दुनिया में.... बहुत बिजी रहता है... पर है बहुत प्रोफेशनल... आदमी की परख रखता है....
विक्रम - ठीक है महांती.... काम हो जाने के बाद.. बात करते हैं...

विक्रम बात इसलिए खतम करता है, क्यूंकि उसकी गाड़ी पर गूगल मैप मंजिल पर पहुंचने का संदेश दे दिया है l विक्रम एक बहुत बड़े इलाके में फैले, एक फार्मास्यूटिकल्स कंपनी के बाहर गाड़ी खड़ा कर उतरता है l गेट पर बने बहुत बड़े आर्क पर लिखा हुआ है "वाई आई सी फार्मसुटीकल" l तभी एक गार्ड बाइक पर आता है और अपने पीछे अंदर आने को कहता है l विक्रम उसके पीछे पीछे जाता है l अंदर एक जगह अपनी गाड़ी को पार्क करता है l गार्ड उसके पास आता है और विक्रम को सैल्यूट मारता है l
गार्ड - चेट्टी सर.. आपका ही इंतजार कर रहे हैं....
विक्रम - तो ले चलो उनके पास...
गार्ड - नहीं सर... ना तो वह कहां है हमे एक्जैट पता है... और ना ही हमें वहाँ जाने की इजाजत है.... आप (एक तरफ इशारा करते हुए) वहाँ से लिफ्ट से तीसरे मंजिल पर जाएं.... और (एक जीपीएस घड़ी दे कर) इस घड़ी को उस मंजिल में लिफ्ट के बाहर, जो फ्लोर मैप होगा... उस पर जहां व्हैर टु गो... लिखा होगा यह कोड **** फ़ीड कर दीजिएगा... तो यह जीपीएस घड़ी आपको उन तक पहुंचा देगा....
इतना कह कर गार्ड विक्रम को लिफ्ट के बाहर छोड़ कर चला जाता है l विक्रम वैसा ही करता है जैसे गार्ड ने उसे बताया था l तीसरे मंजिल पर विक्रम पहुंच कर देखता है, एक टचस्क्रीन वाला एलसीडी फ्लोर मैप लगा हुआ है l विक्रम व्हैर टुगो में कोड डालता है, उसके हाथ में जीपीएस वाली घड़ी पर एक रूट मैप दिखने लगता है l विक्रम उसे फॉलो कर एक कमरे के बाहर पहुंचता है l कमरे के बाहर वह असमंजस में खड़ा रहता है l तभी एक आवाज़ उसके कानो को सुनाई देता है l
- आओ विक्रम सिंह... आओ... अंदर आ जाओ...

विक्रम कमरे के अंदर जाता है, अंदर उसे अध नंगी ल़डकियों की झुंड अपनी अपनी कामों में व्यस्त दिख रहे हैं l उनको अध नंगी के वजाए पूरी नंगी कहा जाए तो शायद ठीक रहेगा l ल़डकियों के बदन पर कपड़े तो हैं, पर चुचें और गांड का हिस्सा पूरी तरह से खुला हुआ है l एक लड़की ट्रै में शराब के कुछ ग्लास लेकर विक्रम के पास आती है, पर विक्रम ना तो शराब के ग्लास को ना उस लड़की को देखता है l वह हर तरफ नजर दौड़ाता है और फिर उस लड़की को हाथ दिखा कर मना करता है l
आवाज़ - वाह... क्या बात है... विक्रम... बड़े सख्त लौंडे हो....
विक्रम - कहाँ हो तुम...
आवाज़ - बड़ी जल्दी में हो....
विक्रम - मैं नहीं... हमारे छोटे राजा जी.... उनको शायद आपसे काम है...
आवाज - हाँ युवराज जी...हा हा हा हा.. वैसे विक्रम... तुमको.. युवराज ही कहा जाता है.. ना...
विक्रम - हाँ...
आवाज - वेल ... आई एम इम्प्रेसड.. मेरा बाप मुझे ढूंढ नहीं पाया... पर तुमने मुझे कुछ ही घंटों में... ढूंढ निकाला....
विक्रम - कुछ कामों में... मैं बहुत माहिर हूँ....
आवाज - फिरसे.... तुमने मुझे इम्प्रेस कर दिया.... इसलिए मैं.... तुम्हारे सामने आ रहा हूँ...

विक्रम फिर हर और नजर दौड़ाता है l कुछ देर बाद विक्रम के सामने एक आदमी घुटने भी ढक नहीं रही है, ऐसी टर्कीस बाथ शुट पहने खड़ा होता है l वह विक्रम की ओर अपना हाथ बढ़ाता है l

आदमी - हाय... आई एम... यश वर्धन ईश्वर चंद्र चेट्टी... बिजनस वर्ल्ड में मुझे... वाईआईसी कहा जाता है...

विक्रम कुछ देर सोचता है, फिर उससे हाथ मिलाता है l

यश - जानते हो... तुमने एक और बात पर भी मुझे... इम्प्रेस किया है...
विक्रम अपनी भौवें सिकुड़ कर यश को सवालिया नजर से देखता है

यश - अरे यार... बहुत सख्त लौंडे हो... इतनी हसीन परियों को देख कर भी... नहीं मचले तुम... (विक्रम फिर से अपना नजर चारो ओर दौड़ा कर यश पर जमा देता है, यश भी उसे ऐसे देखता देख) नो... माय... फ्रेंड... दे आर नॉट प्रोस्टीचुट्स.... एंड आई एम नॉट एक्सप्लोइटींग एनी वन.... यह मेरे इंप्लोइज हैं... यहाँ सब अपनी मर्जी से... ऐसे हैं... किसी के साथ कोई जबरदस्ती नहीं... इसके बदले इनको एक्स्ट्रा सैलरी भी तो मिलता है...
विक्रम - ह्म्म्म्म... इन सब का मतलब....
यश - जब मेरी कोई डील फाइनल होती है... उसकी खुशी में... मैं.. दोस्तों को... स्टाफस् को पार्टी देता हूँ... फिर उसके बाद... जी भरने तक ऐयाशी करता हूँ... और तब मैं खुद को... दुनिया जहां से काट कर रखता हूँ....
विक्रम - ओ...
यश - आओ कुछ दिखाता हूँ... (एक कमरे में विक्रम को लेकर आता है, उस कमरे में एक खूब सूरत लड़की पूरी तरह से नंगी बेड पर लेटी हुई है, उस लड़की को दिखा कर) क्या खयाल है.. इस लड़की के बारे में...
विक्रम - (बिना किसी हाव भाव के) कुछ नहीं...
यश - वाव... मान गए... युवराज... मान गए... (कह कर कमरे में पड़े सोफ़े पर बैठ जाता है और विक्रम को पास पड़े दुसरे सोफ़े पर बैठने को कहता है, विक्रम के बैठने के बाद) जानते हो विक्रम... खुली औरत... खुला पैसा... किसी भी मर्द के ईमान को बहका सकता है.... पर तुम उनमें से नहीं हो....
विक्रम - पैसे हमारे जुती बराबर है... और ल़डकियों को नीचे सुलाने का पैमाना.... या पैरामीटर हम तय किया करते हैं....
यश - वाव... क्या बात है... अगन इम्प्रेसड... (बेड पर लेटी उस लड़की को दिखा कर) जानते हो यह कौन है...
विक्रम उस लड़की को देखता है और अपना सर हिला कर इशारे से ना कहता है l
यश - यह एक टॉप मॉडल है... निहारिका... मैंने इसे... अपनी फार्मास्यूटिकल्स कंपनी के नए प्रेग्नेंसी किट के लिए.... और प्रेग्नेंसी प्रोटेक्शन की पिल के लिए... मॉडलिंग की ऑफर किया है... इसलिए पहले प्रेग्नेंसी किट के लिए टेस्ट ले रहा हूँ.... और कुछ दिनों बाद... पिल की टेस्ट लीआ जाएगा.... उसके लिए मैंने इसे बहुत पैसा दिया है.... (इतना कह कर वह अपनी जेब से एक गोली निकाल कर खाता है, और विक्रम से कहता है) विक्रम बस एक आध घंटे बाद निकलते हैं... तुम चाहो तो बैठ कर... लाइव शो देख सकते हो.... या फिर इस कमरे के बाहर मेरा इंतजार कर सकते हो...
विक्रम यह सुनते ही कमरे से बाहर निकल जाता है और बाहर सोफ़े पर आकर बैठ जाता है l कुछ देर बाद अंदर से लड़की की चीखने और चिल्लाने की आवाज़ आती रहती है l विक्रम को ऑक्वरड सा लगता है l अगर उसे पिनाक ने अनुरोध भरे लहजे में ना कहा होता तो विक्रम यहाँ बिल्कुल नहीं रुकता l चूंकि पिनाक सिंह का काम है और यह ओंकार चेट्टी का बेटा है, इसलिए बर्दास्त कर बैठा रहता है l एक घंटे बाद यश कमरे से तैयार हो कर निकालता है l
यश - चलें... विक्रम...
विक्रम उठता है और दोनों मिलकर नीचे पार्किंग में आते हैं l
विक्रम - यश... अगर बुरा ना मानों तो... क्या मेरे गाड़ी में....
यश - ओह हाँ.. क्यूँ नहीं...
यश एक गार्ड को इशारा करता और अपनी जेब से चाबी निकाल कर गार्ड की ओर फेंकता है l
फिर दोनों पार्किंग की ओर चलकर आते हैं l वहाँ खड़ी विक्रम के गाड़ी में दोनों बैठ जाते हैं l विक्रम गाड़ी स्टार्ट करता है और सातपड़ा की ओर गाड़ी को बढ़ाता है l
विक्रम - यश... तुम सेक्स से पहले... टेबलेट लेते हो क्या....
यश - ना... ना... ना... विक्रम.... आई एम परफेक्ट.... एंड.. तुम शायद नहीं जानते... आई एम अ फार्मास्यूटिकल इंजीनियर.... गोल्ड मेडलिस्ट... बेंगलुरु से... यह कंपनी मैंने अपने दम पर खड़ा किया है... सिर्फ अपने दम पर... हाँ बाप की पलिटिकल कैरियर भी मुझे थोड़ा हेल्प किया है...
विक्रम - पर तुमने... जवाब नहीं दिया.... मैंने देखा तुमने... निहारिका से.... सेक्स करने से पहले.... गोली ली...
यश - हा हा हा हा हा... विक्रम... विक्रम... ओ... विक्रम.... ना मैं कमजोर हूँ... ना ही मैं कोई ड्रग् एडिट हूँ.... मैंने वह ड्रग् खुद बनाया है... हाँ... कुछ रेस्ट्रीक्टेड दवाओं से बनाया है....
विक्रम - जैसे....
यश - हैरोइन... स्मैक और एफ्रोडिसीयाक का एक महत्वपूर्ण और बेहतरीन मिश्रण से बनाया गया है वह गोली... वह भी सिर्फ मेरे लिए.... क्यूंकि मैं जानता हूँ... कितनी क्वांटीटी लेना है...
विक्रम - व्हाट... पर क्यूँ...
यश - बीकॉज... आई लव माय बीस्ट... इनसाइड मी... मुझे मेरे अंदर के जानवर से, जंगली पन से, वहशी पन से बहुत बहुत प्यार है.... उसे बाहर निकालने के लिए... कभी कभी मैं वह गोली खाता हूँ....
विक्रम - ओ... अच्छा..
यश - मैंने निहारिका के साथ... हर तरह से सेक्स किया.... बस एक जानवर की तरह सेक्स करना चाहता था.... कोई दया माया नहीं करना था मुझे.... इसलिए मैंने वह गोली ली....
विक्रम - बड़े... ग़ज़ब के शौक पालते हो....
यश - मेरे ऐशगाह में... ल़डकियों को देख कर यह मत समझ लेना की मैं हर किसीके साथ सो जाता हूँ.... कौन मेरे नीचे सोयेगी..... उसका पैरामिटर मैं भी तुम्हारी तरह तय करता हूँ... और जब वह मेरे नीचे आती है.... एक बार तो जंगली बन कर सेक्स करता ही हूँ...
विक्रम - ह्म्म्म्म... पर मैंने अब तक किसी से सेक्स किया नहीं है...
यश - व्हाट... क्या बात कर रहे हो.... तुम राजाओं के खानदान से हो.... यह शौक तो तुम्हारे खुन में होना चाहिए.... वैसे मैंने देखा तुमने... शराब या शबाब... दोनों में से किसीको नहीं छुआ.... क्यूँ... रॉयल फैमिली से हो कर भी .. इस शौक से दूर कैसे हो... भई...
विक्रम - हमे अभी इसकी इजाजत नहीं है... मतलब हम अभी तक एलिजीबल नहीं हुए हैं.... हमारा जब तक... रंग महल में प्रवेश नहीं हो जाता... तब तक हम वह शौक नहीं पाल सकते हैं...
यश - वाव... और तुम्हारे खानदान में एलिजीबल होते कब हो...
विक्रम - जब बाप खुद... अपने बेटे की हाथ पकड़ कर.... रंग महल में प्रवेश करा दे....
यश - वाव... वाव... वाव... क्या बात है... यह कोई परंपरा की तरह है क्या....
विक्रम - शायद हाँ... क्षेत्रपाल वंश की यही परंपरा है....
यश - हाँ... शायद इसीलिए... की.. तुम... रॉयल फॅमिली से हो.... पर अपना यहाँ अलग स्वैग... है.... बाप का जुता... पैर में आ जाए... तो हम अपने आप एलिजीबल हो जाते हैं...
विक्रम - ह्म्म्म्म...
यश - और आज हम इतने... एलिजीबल हैं... की बाप अपने काम के लिए.... हमे ढूंढता है....
इस तरह बात करते करते दोनों सातपड़ा में चेट्टीस् गेस्ट हाउस में पहुंच जाते हैं l विक्रम गाड़ी रोकता है, यश गाड़ी से उतरता है l यश के गाड़ी से उतरने के बाद विक्रम वापस गाड़ी घुमाता है l
यश - अरे... विक्रम... यह क्या... मुझे छोड़ कर... कहाँ चल दिए...
विक्रम - उस मीटिंग में बैठने के लिए... हम अभी भी एलिजीबल नहीं हैं....
यश- ओ.. तेरी....

विक्रम तब तक अपनी गाड़ी लेकर जा चुका है l एक नौकर दौड़ कर आता है और सलाम ठोकते हुए अंदर जाने को कहता है, यश अंदर आकर देखता है, अंदर मौजूद हर एक का चेहरा उतरा हुआ है l एक ओंकार के चेहरे पर कुछ परेशानियाँ झलक रही है l
यश - क्या बात है... पुज्य पिताजी... क्यूँ मुझे याद किया....
ओंकार - अगर याद किया है.... तो वजह ज़रूर... परेशान करने वाली ही होगी....
यश - ह्म्म्म्म.... तो बताइए... पूरी राम कहानी.... ताकि... रावण की एंट्री कहाँ और कैसी हो.... हम तय करेंगे....
बल्लभ उसे विश्व की केस के बारे में जानकारी देता है और अब तक हुए डेवलपमेंट के बारे में सब कुछ बताता है और साथ ही साथ भैरव सिंह के आने की सूचना भी देता है l यश सब सुनने के बाद आपनी आँखे बंद कर कुछ सोचने लगता है l कुछ देर सोचने के बाद,
यश - ह्म्म्म्म... बहुत ही विकट समस्या है.... ठीक है... कल राजा साहब को आने दीजिए... कल तक मैं कुछ सोच भी लूँगा.... तब तक.... आप लोग बेफिक्र रहें.... और आराम करें.....
सब एक दूसरे के मुहँ को देखते हैं l फ़िर ओंकार की ओर देखने लगते हैं l
ओंकार - देखिए.... उसे सोचने देना चाहिए.... वह पहले से शामिल होता... तो कुछ जरूर... सोच लीआ होता.... क्यूंकि प्लान में अब... शामिल हुआ है... इसलिए... हम कल तक इंतजार कर लेते हैं....

सभी अपना सर हिला कर मौन में हाँ कहते हैं l
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अगले दिन
सेंट्रल जैल
विश्व अपने सेल में बेड पर पड़े पड़े कुछ सोच में खोया हुआ है l तभी एक आवाज़ से उसका ध्यान टूटता है l वह उस आवाज़ की तरफ देखता है, संत्री उसके सेल की दरवाज़ा खोलते हुए,

संत्री - विश्व... सुपरिटेंडेंट साहब ने तुमको याद किया है... जाओ उनसे मिल लो...

विश्व अपने सेल से निकल कर सीधे ऑफिस की ओर जाता है l ऑफिस में पहुंच कर विश्व, तापस को नमस्ते करता है l
तापस - आओ विश्व... सुप्रभात... कैसे हो...
विश्व - जी अच्छा हूँ...
तापस - लगता है... अब कुछ ही दिनों की बात है... फिर शायद तुम आजाद हो कर अपने गांव चले जाओगे...
विश्व - धन्यबाद... सर... आपकी शुभकामनाएं हैं... इसलिए...
तापस - अरे नहीं... ऐसी बात नहीं... वैसे विश्व... अगर बुरा ना मानों तो एक बात पूछूं...
विश्व - जी...
तापस - तुम्हारे खिलाफ जो वकील लड़ रही हैं... क्या तुम उनके बारे में जानते हो....

विश्व खामोश रहता है, और ना में अपना सर हिलाता है l

तापस - मुझे लगता शायद तुम जानते हो... फ़िर भी मैं तुम्हें बता देता हूँ... वह... मेरी धर्म पत्नी हैं...

विश्व सुन कर चुप रहता है और अपनी नजर झुका लेता है l

तापस - देखो विश्व... उन पर तुम अपने मन में... कुछ गुस्सा मत पाल लेना... वह अपनी वृत्ति के कारण... तुम्हारे खिलाफ लड़ रही हैं.... जिस तरह जयंत सर सरकार के तरफ से... तुम्हारे लिए नियुक्त हैं... उसी तरह प्रतिभा भी नियुक्त है.... सरकार के तरफ से... तुम्हारे विरुद्ध लड़ने के लिए...
विश्व - जी... सुपरिटेंडेंट सर... मेरे मन में उनके लिए कोई मैल नहीं है....
तापस - थैंक्यू... विश्व... थैंक्यू... वेरी मच... वैसे सॉरी.. तुमसे मिलने तुम्हारी दीदी आई हैं... मैंने उन्हें ऊपर लाइब्रेरी में बिठाया है.... तुम जाकर मिल लो....
विश्व - जी...

इतना कह कर हाथ जोड़ कर नमस्कार करता है और लाइब्रेरी की ओर चला जाता है l लाइब्रेरी में पहुंच कर देखता है वैदेही खिड़की से बाहर देख रही है l विश्व उसके पास आकर खड़ा होता है l
विश्व - क्या देख रही हो दीदी....
वैदेही मूड कर विश्व को देखती है
वैदेही - कुछ नहीं विशु... आशा और निराशा के भंवर में राह ढूंढ रही हूँ.... अब तक जो हुआ... और अभी जो हो रहा है... और आने वाली कल को लेकर... मैं उसके उधेडबुन में खोई हुई हूँ.......
विश्व - पता नहीं... जो हुआ... क्यूँ हुआ.. पर जो हो रहा है... उसमें... शायद मेरी कुछ गलती तो है...
वैदेही - नहीं विशु... नहीं... जो भी हुआ है... और जो हो रहा है... आने वाले कल के किसी विशाल परिवर्तन के लिए.. हुआ या हो रहा है शायद....
विश्व - परिवर्तन... कैसा परिवर्तन... ऐसी ही एक परिवर्तन के लिए तो.... मैं सरपंच बनने के लिए तैयार हुआ.... पर परिणाम क्या हुआ...
वैदेही - विशु... हम राजगड़ से कभी बाहर निकले ही नहीं थे... राजगड़ के बाहर भी दुनिया है... जहां लोग बसते हैं... यह सिर्फ किताबों में पढ़ा था... आज देख भी लिया... शायद इसके पीछे भी नियति का कोई खेल छिपा हो....
विश्व - कैसी नियति.... किसकी नियति... कुछ भी हासिल करने की मैंने कभी कोशिश नहीं की.... पर कीमत बहुत भारी चुका रहा हुँ....
वैदेही - अगर दुनिया में... भैरव सिंह जैसे लोग हैं... तो जयंत सर जैसे लोग भी हैं... जरा सोच...
विश्व - हाँ दीदी... वह इंसान मुझे बिलकुल भी समझ नहीं आ रहे हैं...
वैदेही - मतलब....
विश्व - एक दिन वह मुझसे मिलने आए थे.... यहाँ... जैल में... अकेले... उन्होंने मुझसे कहा कि... अगर वह शादीशुदा होते तो... उनका पोता जरूर मुझसे सात या आठ साल छोटा होता.... उन्होंने मुझसे यह भी कहा कि.... वह मुझे कुछ देना चाहते हैं.... और मुझसे कहा कि... मैं वह रख लूँ... उसके बाद कहा कि मैं उन्हें दरवाजे तक छोड़ दूँ... मैं उन्हें छोड़ने भी गया.... फिर वह पीछे मूड कर देखे और मुस्करा कर चले गए.... उन्होंने ऐसा क्यूँ किया... और किसलिए किया... मेरे समझ में कुछ भी नहीं आया.....
वैदेही - जानता है... आज अगर कटक में... मैं सही सलामत हूँ... तो उनके वजह से ही हूँ... पता नहीं कौनसे जनम में... कौनसा रिस्ता था उनसे... जो वह निभा रहे हैं.... और हमें कर्ज दार बना रहे हैं....
विश्व - हाँ दीदी... तुम सच कर रही हो.... उन्होंने मुझसे मेरे बारे में... मेरे केस के बारे में.... कुछ भी नहीं पूछा.... पर कितनी आसानी से.... कोर्ट में दिलीप कर की धज्जियाँ उड़ा के रख दी....
वैदेही - बस यही बात अब मुझे डरा रही है.... विशु.... डरा रही है... जयंत सर एक घायल शेर की तरह वार पे वार किए जा रहे हैं..... पता नहीं दुश्मन... कैसे और कब पलट वार कर दे....
विश्व - हाँ दीदी.... इस बात से मैं भी डरा हुआ हूँ... जंगल का गणित कहता है... एक शेर तीन लकड़बग्घों से भीड़ सकता है.... पर यहाँ तो लकड़बग्घों का झुंड है दीदी.... अब मुझे उनकी फ़िकर होने लगी है....
वैदेही - विशु.... मान ले... अगर तु रिहा हो गया.... तो क्या तु.... वापस... राजगड़ जाएगा.....
विश्व - (हैरान हो कर वैदेही को देखता है) तुम... ऐसे क्यूँ पूछ रही हो दीदी...
वैदेही - (खिड़की से बाहर देखते हुए) क्यूँ ना हम यहीं रह जाएं.... और बाकी जिंदगी जयंत सर की सेवा करते हुए.... गुजार दें....
विश्व - य़ह.... तुम कह रही हो दीदी.... तुम... माना... हम जयंत सर के ऋणी हैं.... पर... नहीं दीदी... नहीं.... मैं यहाँ नहीं रह सकता.... चाहे अभी रिहा हो जाऊँ... या सजा के बाद... जाऊँगा तो पहले राजगड़ ही....

वैदेही उसे ध्यान से देखती है, विश्व के आंखों में एक दृढ़ संकल्प दिख रहा है l

विश्व - मुझे इस राह पर चलने के लिए.... तुमने कहा.... तुमने मुझे समझाया... मातृभूमि के कर्ज के बारे में.... हमारे आसपास के लोगों से जुड़े रिश्तों के बारे में.... और तो और... मुझ पर तुम्हारे तीन थप्पड़ों का कर्ज़ है..... उन्हें उतारे बिना.... मैं राजगड़ छोड़ नहीं सकता.... मेरी छोड़िए... आपने भी तो सौगंध उठाया है.... के जबतक राजगड़ के लोगों के जीवनी शैली में.... आपसी रिश्तों में... परिवर्तन नहीं आ जाता... तब तक आप नंगी पैर ही रहेंगी....

वैदेही अपने चेहरे पर एक पीड़ा दायक मुस्कान लाने की कोशिश करती है l वह विश्व से अपनी नजरें हटा कर फिर खिड़की से बाहर देखती है l

विश्व - दीदी....
वैदेही - हूँ....
विश्व - आप अपना.... और.... जयंत सर का खयाल रखना....

वैदेही अपना सर हिला कर हाँ कहती है l विश्व और कुछ नहीं कहता ना ही वैदेही से कुछ सुनने के लिए रुकता है l वह मुड़ कर वापस चला जाता है l वैदेही उसे अपनी आंखों से ओझल होते हुए देखती रहती है l

वैदेही - मैं जानती हूँ... मेरे भाई.... मैं जानती हूँ.... मैं तुझे अच्छी तरह से जानती हूँ.... तु अब पीछे नहीं हटेगा.... पर तु अकेला है.... जो गणित जयंत सर के लिए बताई है.... वह गणित... क्या तुझ पर लागू नहीं होगी....

इतना कह कर वैदेही रोने लगती है l रोते रोते वह वहीँ खिड़की के पास बैठ जाती है l तापस वहाँ आता है l

तापस - वैदेही.... तुम.... वह विश्व... मतलब... तुम रो क्यूँ रही हो...
वैदेही - कुछ नहीं....(सुबकते हुए) सुपरिटेंडेंट साहब.... आज अपनी कुछ करनी पर रोना आ रहा है (अपनी आँसू पोछती है)
तापस - तुम्हारी करनी... मतलब....

वैदेही - मेरी उंगली थाम कर.... विश्व ने चलना सीखा.... (फिर अपनी जगह से उठ कर) मैंने उसे एक मंजिल दिखा कर.... एक राह पर दौड़ने के लिए छोड़ दिया.... उस राह पर वह इतना दूर जा चुका है... की अब वह लौटना नहीं चाहता है.... और इस मोड़ पर.... मंजिल कहीं खो सी गई है... पर वह राह नहीं छोड़ रहा है.... बस इसी बात का दुख है.... सुपरिटेंडेंट साहब.... इसी बात का दुख है.....

वैदेही की कही हुई सारी बातें तापस के सिर के ऊपर चला जाता है l

वैदेही - आपका बहुत बहुत धन्यबाद.... सुपरिटेंडेंट साहब... मुझे एकांत में... विश्व से मिलने दिए....
तापस - कोई बात नहीं.... वैदेही... कोई बात नहीं है.... वैसे.... अगर मैं एक अपनी निजी विषय के लिए.... तुमसे अनुरोध करूँ.... तो क्या तुम सुनोगी...
वैदेही - (उसे हैरानी की नजरों से देखते हुए) ज़ी कहिए...
तापस - वह... मैं...(एक ही सांस में) क्या तुम मेरी पत्नी को माफ कर सकोगी....

यह सुनकर क्या प्रतिक्रिया दे, वैदेही को समझ नहीं आता l वह पहले इधर उधर देखती है फ़िर अपना चेहरा नीचे झुका लेती है l

तापस - देखो वैदेही... तुम प्रतिभा के लिए अपने मन में... कोई मैल ना पालना.... वह एक सरकारी वकील है.... जिस पर यह जिम्मेदारी थी... की हर हाल में... अभियुक्त को दोषी साबित करे....
वैदेही - यह आप मुझसे.... क्यूँ कह रहे हैं...
तापस - तुम्हारे गाँव के... दिलीप कर के जिरह के बाद.... प्रतिभा आत्मग्लानि के बोध में घिरी हुई है.... वह तुमसे मिलकर.... तुमसे माफी माँगना चाहती है..... इसलिए मैं.... (तापस और कुछ कह नहीं पाता)
वैदेही - सुपरिटेंडेंट साहब.... मेरे मन में उनके लिए ज़रा भी मैल नहीं है....
तापस - थैंक्यू... वैदेही... थैंक्यू....

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शाम का समय
चिलीका झील के बीचों-बीच एक हाउस बोट के अंदर
एक बड़े से सोफ़े पर दोनों बांह फैलाए और अपना दाहिना पैर मोड़ कर बाएं पैर पर रख कर भैरव सिंह बैठा है l
उसके बगल में दाहिने तरफ एक सिंगल सोफ़े पर ओंकार बैठा हुआ है और बाएं तरफ एक सिंगल सोफ़े पर पिनाक बैठा हुआ है l
थोडे दूर एक डायनिंग चेयर पर दुबक कर बैठा हुआ बल्लभ प्रधान, उसके पीछे दीवार पर पीठ लगाए खड़ा है रोणा और फर्श पर अपने गमच्छे को हाथ में लिए हाथ जोड़ कर अपने तलुवों पर बैठा हुआ है l और उन सबके बीच अपने दाढ़ी खुजाते हुए टहल रहा है यश l

ओंकार - बस करो... यश... बस... कबसे राजा साहब.... यहाँ बैठे हुए हैं.... तुम कल से सोच ही रहे हो....
यश - ऐसी बात नहीं है... पिताजी.... मैंने सोच लीआ है...
ओंकार - अगर सोच लीआ है.... तो कहो भई...
यश - कह तो दूँ... पर जिनको जरूरत है... उन्होंने मुझसे कुछ पूछा जो नहीं है...

यह सुन कर भैरव सिंह के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान दिखती है l

भैरव - तो यश जी... आपने हमारे लिए क्या सोचा है.... हमें बताने की कष्ट करेंगे....

यश के चेहरे पर एक गहरी मुस्कान छा जाती है l

यश - राजा साहब.... जयंत के सीन में उतरने के बाद से अब तक.... आपके सिपहसलार थोड़ा सा गलत खेल गए....
भैरव - विस्तार से बताओ.... यश बाबु...
यश - मेरा कहना है कि... जब पैसा जनता जनार्दन का है.... जनता को ही सीधे... युद्ध में उतार दीजिए....
पिनाक - अरे... यश बाबु... बात को ऐसे उपस्थापीत कीजिए... की सबको समझ में आए....
यश - मेरे कहने का मतलब यह है कि.... जिस तरह पहले विश्व के खिलाफ... प्रदर्शन, धरने वगैरा किया गया और मीडिया का इस्तमाल किया गया.... अब उसीको जयंत के खिलाफ़ इस्तमाल कीजिए....(सब चुप हो कर यश को घूर कर देखते हैं)
यश - देखिए आप यह तो मानेंगे ही...लोगों के प्रदर्शन के चलते ही.... सरकार ने तीन जजों का पैनल बनाया और लगातार सुनवाई के लिए आदेश भी जारी किया....
बल्लभ - हाँ...
यश - क्यूंकि सरकार को लगा.... जनता में विश्व के खिलाफ आक्रोश है... अब जनता का यही आक्रोश को.... जयंत के खिलाफ इस्तेमाल कीजिए....
रोणा - इससे क्या फायदा होगा... उसे सरकारी सुरक्षा मिली हुई है....
यश - सरकारी सुरक्षा इसलिए मिली है.... ताकि उनपर कोई हमला ना हो जाए.... धरने और प्रदर्शन के लिए नहीं...

पहली बार सबके चहरे पर इतने दिनों बाद मुस्कान दिखता है l

पिनाक - इससे शायद... जयंत के आत्मविश्वास को... ठेस पहुंचे...
यश - सिर्फ़ आत्मविश्वास ही नहीं... आत्मसम्मान को भी ठेस पहुंचेगी.... बुढ़उ को पहले से ही दो बार हार्ट अटैक हो चुका है... हमारी हरकत ऐसी होगी के लोगों को, सरकार को और मीडिया वालों को लगेगा.... की लोगों का आक्रोश अब विश्व के वजाए.... विश्व को बचाने की कोशिश में लगे.... वकील के खिलाफ हो गई है....
बल्लभ - वाह... क्या बात है.... यश बाबु... वाह.... आपके खून में सचमुच... राजनीति दौड़
रही है... वैसे कल रोणा की गवाही है.... और सोमवार को... (चुप हो जाता है)
भैरव- सोमवार को हमारे गिरेबान पर हाथ रखेगा जयंत...
यश - कल शुक्रवार है... और सोमवार के भीतर दो दिन है राजा साहब.... इन दो दिनों में बहुत कुछ हो सकता है... क्यूँ के इज़्ज़दार लोगों को... बैज्जती बर्दास्त नहीं होती.... और हम होने ही नहीं देंगे...
भैरव - ह्म्म्म्म... बहुत अच्छे... यश... बहुत अच्छे.... अगर जयंत हम तक नहीं पहुंच पाया.... तो हम तुम्हारे लिए अपना ख़ज़ाना खोल देंगे...
यश - माय प्लेजर.... राजा साहब... हाँ तो... प्रधान बाबु.... मीडिया में अब से जयंत खिलाफ डिबेट हो पर.... प्रत्यक्ष रूप में नहीं... अप्रत्यक्ष रूप से.... शुक्रवार की शाम से ही... शनिवार की सुबह से भीड़ उनके खिलाफ उग्र प्रदर्शन करेगी... जिसका संचालन... मैं स्वयं करूंगा.... और राजा साहब यह यश वर्धन का वादा है.... जयंत की हाथ.... आपकी गिरेबान तो दूर... उसकी आँखे भी आप तक नहीं पहुंचेगी....

यश की इस बात पर सब तालियां बजाने लगते हैं l

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अगले दिन
सब कोर्ट में पहुंचते हैं l
वैदेही और जयंत जैसे ही अंदर आते हैं एक नए शख्स को देख कर ठिठक जाते हैं l वैदेही के आंखों में घृणा उतर आता है l वह शख्स वैदेही को देख कर एक हल्की मगर खतरनाक मुस्कान के साथ अपनी मूछों पर ताव देता है l वैदेही अपनी नजर फ़ेर लेती है l यह सब जयंत देख लेता है l

जयंत - क्या हुआ...
वैदेही - कुछ नहीं सर... वह जो नया शख्स दिख रहा है... वह....
जयंत - भैरव सिंह क्षेत्रपाल है....
वैदेही - आप जानते हैं...
जयंत - नहीं... पर अंदाजा हो गया... वह दूसरों के पीछे अकेला बैठा हुआ है... दोनों बाहें अपने दोनों तरफ फैलाए.... पैर पर पैर रख कर अपना रसूख दिखा रहा है....
वैदेही - यह खुदको राजा कहता है.... तो अपने गुलामों के पीछे क्यूँ बैठा है....
जयंत - इसलिए कि... जब जज साहब आयें... उसे खड़ा होना ना पड़े.... चलो हम भी अपनी जगह बैठ जाते हैं...

फिर दोनों अपनी अपनी जगह पर आकर बैठ जाते हैं l फिर कोर्ट रूम में होने वाली औपचारिकता होती है l हॉकर जजों के आने का संकेत देता है l सब अपनी जगह खड़े हो जाते हैं l पर वैदेही पीछे मुड़ कर देखती है भैरव सिंह खड़ा नहीं हुआ है l फिर सब बैठ जाते हैं l
वैदेही - (फुसफुसाते हुए जयंत से ) सर आपने जैसा कहा था... बिल्कुल वैसा ही हुआ... भैरव सिंह अपने जगह से उठा ही नहीं...
जयंत - (धीरे से) मैं जानता हूँ... इसलिए तुम चुप रहो....
जज - ऑर्डर ऑर्डर... अदालत की कारवाई शुरू किया जाए...
कोर्ट रूम में ख़ामोशी छा जाती है l
जज - जैसा कि... पिछले सुनवाई में... गवाह दिलीप कर की जिरह के वक्त... वह बेहोश हो गए थे.... जिसके कारण उनकी गवाही अधूरी रह गई.... पर उस दिन... बचाव पक्ष के तरफ से जिरह की खात्मा की घोषणा की गई.... पर आज फ़िर से... बचाव पक्ष को पूछा जा रहा है.... क्या वह... फिर से दिलीप कर की गवाही लेना चाहेंगे....
जयंत - (अपनी कुर्सी से उठ कर) जी नहीं मायलर्ड... हमारी तरफ से... दिलीप कर की जिरह खत्म हो चुका है... हाँ उस जिरह के बाद के तथ्यों को... अदालत के समक्ष प्रस्तुत करने का अवसर नहीं मिला.... पर मैं आज राजगड़ थाना के प्रभारी... श्री अनिकेत रोणा... जी से जिरह से पहले... उन तथ्यों को... अदालत के समक्ष प्रस्तुत करना चाहूँगा.... मायलर्ड....
जज - ठीक है... आप अपना तथ्य प्रस्तुत करें... और दिलीप कर के द्वारा किए गए... जालसाजी को रूप के जरिए हुए... आर्थिक घोटाले से सबंध स्थापित करें....
जयंत - श्योर... मायलर्ड... श्योर.... (फिर जयंत पुरे कोर्ट में स्थित सभी लोगों पर नजर डालता है, फिर बोलना शुरू करता है) मायलर्ड... कर ने जो चेक विश्व से साइन करवाए थे.... असल में... वह एक... पीलीमीनारी टेस्ट था.... मतलब एक ट्रायल.... जिसकी कामयाबी पर... रूप के जरिए आर्थिक घोटाले को अंजाम दिया जा सकता था.....
जज - कैसे....
जयंत - मायलर्ड.... जैसा कि... अदालत में.... मैंने अपना पक्ष रखते हुए कहा था.... "रोम नेवर बिल्ट इन वन नाइट"... उसी तरह ऐसे षडयंत्र भी... एक दिन.. एक महीना या एक साल की नहीं होती है.... इस षडयंत्र का बीज उसी दिन बो दी गई थी... मायलर्ड... जिस दिन सरकार के द्वारा राजगड़ के विकास के लिए.... प्रोजेक्ट्स को मंजूरी दी गई थी.... इसीलिए..... उसी दिन से... सबसे पहले फेक.... कंट्राक्टर्स तैयार किए गए..... जिनके नाम पर... बैंकों में... अकाउंट भी खोले गए... अब बारी था... उसके बाद... इस संगठित लुट को अंजाम देने के लिए... राजगड़ विकास के लिए मंजूर किए गए प्रोजेक्ट्स को पैसों की मशीन की तरह इस्तेमाल किया गया.... लेकिन इनमें शामिल सभी लोगों को अंदाजा था... योर ऑनर... एक दिन ना एक दिन.... कभी ना कभी... एनक्वेरी हो सकता है.... इसलिए बचे हुए पैसों को... एक ऐसे अकाउंट तक पहुंचा जाना जरूरी था.... जिसका ऑपरेटिंग अधिकार सिर्फ एक व्यक्ति के पास हो.... और यह केवल रूप से ही संभव हो सकता था... इसलिए जब दिलीप कर ने विश्व से चेक साइन करा लिया और रकम भी हासिल कर लिया.... तब इस घोटाले में शामिल लोगों का मकसद कामयाब होता नजर आया योर ऑनर....
जज - मिस्टर डिफेंस... आप तथ्य को... प्रमाण के साथ प्रस्तुत करें....
जयंत - इस बारे में... प्रामाणिक तथ्य तो... एसआइटी प्रस्तूत कर चुकी है... बस उनके तथ्य को मैं.... सही ढंग से प्रस्तुत करूंगा.... मायलर्ड....
जज - ठीक है.... आगे बढ़ीए.....
जयंत - जैसा कि दिलीप कर ने अपने बयान में कहा था.... तहसील ऑफिस तहसीलदार और विश्व के बीच एक मीटिंग हुई.... असल में.. उस मीटिंग में... तहसीलदार ने... राजगड़ प्रांत के विकास के लिए... विश्व को यह कह कर अपने शीशे में उतारा.... के राजगड़ के विकास के लिए.... सरकारी राशि पर्याप्त नहीं है.... इसलिए बहुत लोग हैं... जिन्हें वह जानते हैं.... जो जन सेवा के लिए पैसे दान देते हैं.... और उनके दान की हुई राशि को जमा करने के लिए... एक एनजीओ "राजगड़ उन्नयन परिषद" यानी रूप का गठन किया जाए... जिसमें प्रमुख पांच व्यक्ति मुख्य सभ्य होंगे.... विश्व, तहसीलदार, ब्लाक अधिकारी, रीवेन्यू इंस्पेक्टर और बैंक अधिकारी.... बाकी जो भी सदस्य होंगे... वे केवल साधारण सभ्य ही होंगे.... इस बात पर विश्व... प्रभावित हुआ... और अपनी पंचायत ऑफिस में इस बाबत मीटिंग रखी.... अगले दिन वह प्रमुख व्यक्ति सब आकर अपना सहमति दी और जिम्मेदारी भी ली.... रूप कि रजिस्ट्रेशन कराने के लिए..... रजिस्ट्रेशन के लिए एक बाई-लॉ भी बनाया गया... उस बाई-लॉ में यह प्रावधान रखा गया... के रूप के अकाउंट को एक ही व्यक्ति ऑपरेट कर सकता है.... सिर्फ़ सरपंच... यानी सिर्फ़ विश्व....
जज - हाँ... ऐसा तो दिलीप कर... के बयान से साबित हुआ है... और एसआईटी की रिपोर्ट भी यही कह रहा है.... पर पैसे तो हज़ारों लोगों के अकाउंट से आया है.... वह भी मृतक... यह कैसे
जयंत - जी योर ऑनर... अब... इसके लिए अगली चाल यह थी... रूप के अकाउंट से उन सभी लोगों की अकाउंट को ईसीएस से जोड़ना.... इस तथ्य से विश्व को अवगत कराया गया..... पर चूँकि विश्व को ईसीएस के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं थी..... इसलिए उससे बैंक अधिकारी ने ईसीएस के नाम पर... कैंसिलेशन चेक पर साइन लिए वह भी उस गायब होने वाली स्याही से..... और राजगड़ विकास के लिए..... विश्व ने सभी चेक पर साइन कर दिए.... जैसे ही विश्व ने सभी चेक साइन कर दिया..... विश्व से मतलब ख़त्म हो गया....
जज - ह्म्म्म्म... पर इससे मनरेगा का क्या संबंध.....
जयंत - मायलर्ड.... संबंध है.... बहुत ही गहरा संबंध है.... राजगड़ विकास के लिए... जितने भी प्रोजेक्ट्स आए.... सभी के सभी मनरेगा के अंतर्गत ही आए.... मायलर्ड.... इन प्रोजेक्ट्स में.... पहले फेज के कंट्राक्टर असली थे.... पर बाद के दोनों फेज में फेक कंट्राक्टरस से जरिए काम खतम दिखाया गया.... और सबसे मजेदार बात... पहली फेज में जितने लोगों ने श्रम दान दिया उनको पारिश्रमिक मिले.... पर दूसरे फेज में जिन्होंने श्रम दान किया.... उनको पारिश्रमिक नहीं मिला... दस्तावेज में काम करने वालों को पारिश्रमिक दे दिया गया.... ऐसा लिखा गया.... पर असल में दिया ही नहीं गया..... चूंकि दुसरे और तीसरे फेज में.... दिलीप कर यह अदालत को कहना भूल गए... सभी श्रमजीवियों को प्रोजेक्ट खतम होने के बाद ही पैसा मिलेगा... यह कह कर उनसे काम करवाया गया था.... और दुसरे और तीसरे फेज में जिन श्रमजीवियों की रजिस्ट्रेशन हुई थी... वे सभी मृतक थे.... और उनके अकाउंट पैसा तभी जा सकता था... जब विश्व पंचायत के अकाउंट चेक पर साइन करता.... चूंकि सभी गाँव वालों को पैसे दिलाने थे.... इसलिए विश्व ने... वहीँ बैंक जा कर सभी चेक साइन कर दिया....

जयंत इतना कह कर चुप हो गया l जयंत के बातों को सुन कर सब शुन हो जाते हैं l जयंत एक नजर जजों पर डालता है l तीनों जज मुहँ फाड़े जयंत के दिए विवरण सुन कर उसे देख रहे हैं l

जज - एसआईटी रिपोर्ट कह रही है... तकरीबन पांच हजार लोगों ने श्रम दान दिया.... और यह रिपोर्ट यह भी कह रही है... वह पांच हजार लोग... जो इन प्रोजेक्ट्स में श्रमदान के लिए रजिस्टर्ड हुए.... सभी के सभी मृतक हैं....
जयंत - जी योर ऑनर... उन पांच हजार मृतकों को इसलिए ढूँढा गया.... क्यूँ की भारत सरकार ने... मनरेगा में काम करने वालों के लिए.... आधार कार्ड व बैंक के जन-धन अकाउंट को अनिवार्य कर दिया.... और सबको पारिश्रमिक ई-पेमेंट जरिए करने के लिए बाध्य कर दिया.... जहां सरकार आम लोगों के हितों की रक्षा के लिए यह कदम उठाए.... वहीँ इन लोगों को... इसमे एक मौका दिखा.... इस मौके पर चौका मारने के लिए... रिवेन्यू इंस्पेक्टर, विडीओ, तहसीलदार और बैंक अधिकारी सब मिलकर प्रोजेक्ट्स के आरंभ से ही.... मृत् लोगों के आधार कार्ड संग्रह, उनके बैंक अकाउंट खुलवाना, फिर उनके डेथ सर्टिफिकेट हासिल करना और उनके अकाउंट को रूप के अकाउंट से जोड़ने के बाद.... काम निकलने पर अकाउंट को डी-एक्टिवेट करने तक सभी कामों को बखूबी अंजाम दिया....
Jabardast Updateee

Jayant sahab bahot mehnat kar rahe hai. Par afsos unki saari mehnat bekaar jaayegi. Kyoki Vishwa toh jail mein jaayega hi.
 

Kala Nag

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Jabardast Updateee

Jayant sahab bahot mehnat kar rahe hai. Par afsos unki saari mehnat bekaar jaayegi. Kyoki Vishwa toh jail mein jaayega hi.
हाँ यह बात आपने सच कही
जयंत की सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगी
विश्व को जैल हो जाएगी, यही नियति है पर यह युद्ध आरंभ का पड़ाव है
 

Kala Nag

Mr. X
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जैगुआर भाई आपको नए साल का अभिनंदन
 

parkas

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👉इकतीसवां अपडेट
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विक्रम की गाड़ी कटक के इंडस्ट्रीयल इस्टेट जगतपुर रोड पर भाग रही है l विक्रम कुछ सोचने के बाद महांती को फोन लगाता है l

विक्रम - हैलो... महांती... हाँ... एक बात बताओगे...
महांती - जी युवराज कहिए...
विक्रम - इस बंदे को... इसका बाप भी ढूंढ नहीं पाया... तुमने कैसे ढूंढ निकाला....
महांती - सर बहुत आसान था.... इसके कंपनी में... रॉय ग्रुप सेक्यूरिटी सर्विस के लोग सर्विस में हैं... और कभी मैंने ही उसके कंपनी के सेक्यूरिटी को फाइनल किया था.... आज भले ही मैं... रॉय ग्रुप में नहीं हूँ... पर रॉय ग्रुप में... आज भी मेरे लोग हैं.... और बहुत जल्द सारे के सारे... हमारे एक्जीक्युटिव सेक्यूरिटी सर्विस में जॉइन करेंगे...
विक्रम - दैट्स द स्पिरिट... महांती... वैसे.. छोटे राजा जी कह रहे थे... मेरे बारे में उसे खबर कर दी गई है...
महांती - यह तो अच्छी बात है....
विक्रम - ह्म्म्म्म... अच्छा महांती... इसके बारे में कुछ बताओ....
महांती - सर... रईस है... ऐयाश है... पर जो भी है... सेल्फ मेड है... इतना रुतबा तो रखता है... की पोलिटिकल फिल्ड में... अपने डोनेशन के दम पर... कुछ भी करवा लेता है....
विक्रम - ह्म्म्म्म... और कुछ...
महांती - नशा करता है... और अपनी दुनिया में.... बहुत बिजी रहता है... पर है बहुत प्रोफेशनल... आदमी की परख रखता है....
विक्रम - ठीक है महांती.... काम हो जाने के बाद.. बात करते हैं...

विक्रम बात इसलिए खतम करता है, क्यूंकि उसकी गाड़ी पर गूगल मैप मंजिल पर पहुंचने का संदेश दे दिया है l विक्रम एक बहुत बड़े इलाके में फैले, एक फार्मास्यूटिकल्स कंपनी के बाहर गाड़ी खड़ा कर उतरता है l गेट पर बने बहुत बड़े आर्क पर लिखा हुआ है "वाई आई सी फार्मसुटीकल" l तभी एक गार्ड बाइक पर आता है और अपने पीछे अंदर आने को कहता है l विक्रम उसके पीछे पीछे जाता है l अंदर एक जगह अपनी गाड़ी को पार्क करता है l गार्ड उसके पास आता है और विक्रम को सैल्यूट मारता है l
गार्ड - चेट्टी सर.. आपका ही इंतजार कर रहे हैं....
विक्रम - तो ले चलो उनके पास...
गार्ड - नहीं सर... ना तो वह कहां है हमे एक्जैट पता है... और ना ही हमें वहाँ जाने की इजाजत है.... आप (एक तरफ इशारा करते हुए) वहाँ से लिफ्ट से तीसरे मंजिल पर जाएं.... और (एक जीपीएस घड़ी दे कर) इस घड़ी को उस मंजिल में लिफ्ट के बाहर, जो फ्लोर मैप होगा... उस पर जहां व्हैर टु गो... लिखा होगा यह कोड **** फ़ीड कर दीजिएगा... तो यह जीपीएस घड़ी आपको उन तक पहुंचा देगा....
इतना कह कर गार्ड विक्रम को लिफ्ट के बाहर छोड़ कर चला जाता है l विक्रम वैसा ही करता है जैसे गार्ड ने उसे बताया था l तीसरे मंजिल पर विक्रम पहुंच कर देखता है, एक टचस्क्रीन वाला एलसीडी फ्लोर मैप लगा हुआ है l विक्रम व्हैर टुगो में कोड डालता है, उसके हाथ में जीपीएस वाली घड़ी पर एक रूट मैप दिखने लगता है l विक्रम उसे फॉलो कर एक कमरे के बाहर पहुंचता है l कमरे के बाहर वह असमंजस में खड़ा रहता है l तभी एक आवाज़ उसके कानो को सुनाई देता है l
- आओ विक्रम सिंह... आओ... अंदर आ जाओ...

विक्रम कमरे के अंदर जाता है, अंदर उसे अध नंगी ल़डकियों की झुंड अपनी अपनी कामों में व्यस्त दिख रहे हैं l उनको अध नंगी के वजाए पूरी नंगी कहा जाए तो शायद ठीक रहेगा l ल़डकियों के बदन पर कपड़े तो हैं, पर चुचें और गांड का हिस्सा पूरी तरह से खुला हुआ है l एक लड़की ट्रै में शराब के कुछ ग्लास लेकर विक्रम के पास आती है, पर विक्रम ना तो शराब के ग्लास को ना उस लड़की को देखता है l वह हर तरफ नजर दौड़ाता है और फिर उस लड़की को हाथ दिखा कर मना करता है l
आवाज़ - वाह... क्या बात है... विक्रम... बड़े सख्त लौंडे हो....
विक्रम - कहाँ हो तुम...
आवाज़ - बड़ी जल्दी में हो....
विक्रम - मैं नहीं... हमारे छोटे राजा जी.... उनको शायद आपसे काम है...
आवाज - हाँ युवराज जी...हा हा हा हा.. वैसे विक्रम... तुमको.. युवराज ही कहा जाता है.. ना...
विक्रम - हाँ...
आवाज - वेल ... आई एम इम्प्रेसड.. मेरा बाप मुझे ढूंढ नहीं पाया... पर तुमने मुझे कुछ ही घंटों में... ढूंढ निकाला....
विक्रम - कुछ कामों में... मैं बहुत माहिर हूँ....
आवाज - फिरसे.... तुमने मुझे इम्प्रेस कर दिया.... इसलिए मैं.... तुम्हारे सामने आ रहा हूँ...

विक्रम फिर हर और नजर दौड़ाता है l कुछ देर बाद विक्रम के सामने एक आदमी घुटने भी ढक नहीं रही है, ऐसी टर्कीस बाथ शुट पहने खड़ा होता है l वह विक्रम की ओर अपना हाथ बढ़ाता है l

आदमी - हाय... आई एम... यश वर्धन ईश्वर चंद्र चेट्टी... बिजनस वर्ल्ड में मुझे... वाईआईसी कहा जाता है...

विक्रम कुछ देर सोचता है, फिर उससे हाथ मिलाता है l

यश - जानते हो... तुमने एक और बात पर भी मुझे... इम्प्रेस किया है...
विक्रम अपनी भौवें सिकुड़ कर यश को सवालिया नजर से देखता है

यश - अरे यार... बहुत सख्त लौंडे हो... इतनी हसीन परियों को देख कर भी... नहीं मचले तुम... (विक्रम फिर से अपना नजर चारो ओर दौड़ा कर यश पर जमा देता है, यश भी उसे ऐसे देखता देख) नो... माय... फ्रेंड... दे आर नॉट प्रोस्टीचुट्स.... एंड आई एम नॉट एक्सप्लोइटींग एनी वन.... यह मेरे इंप्लोइज हैं... यहाँ सब अपनी मर्जी से... ऐसे हैं... किसी के साथ कोई जबरदस्ती नहीं... इसके बदले इनको एक्स्ट्रा सैलरी भी तो मिलता है...
विक्रम - ह्म्म्म्म... इन सब का मतलब....
यश - जब मेरी कोई डील फाइनल होती है... उसकी खुशी में... मैं.. दोस्तों को... स्टाफस् को पार्टी देता हूँ... फिर उसके बाद... जी भरने तक ऐयाशी करता हूँ... और तब मैं खुद को... दुनिया जहां से काट कर रखता हूँ....
विक्रम - ओ...
यश - आओ कुछ दिखाता हूँ... (एक कमरे में विक्रम को लेकर आता है, उस कमरे में एक खूब सूरत लड़की पूरी तरह से नंगी बेड पर लेटी हुई है, उस लड़की को दिखा कर) क्या खयाल है.. इस लड़की के बारे में...
विक्रम - (बिना किसी हाव भाव के) कुछ नहीं...
यश - वाव... मान गए... युवराज... मान गए... (कह कर कमरे में पड़े सोफ़े पर बैठ जाता है और विक्रम को पास पड़े दुसरे सोफ़े पर बैठने को कहता है, विक्रम के बैठने के बाद) जानते हो विक्रम... खुली औरत... खुला पैसा... किसी भी मर्द के ईमान को बहका सकता है.... पर तुम उनमें से नहीं हो....
विक्रम - पैसे हमारे जुती बराबर है... और ल़डकियों को नीचे सुलाने का पैमाना.... या पैरामीटर हम तय किया करते हैं....
यश - वाव... क्या बात है... अगन इम्प्रेसड... (बेड पर लेटी उस लड़की को दिखा कर) जानते हो यह कौन है...
विक्रम उस लड़की को देखता है और अपना सर हिला कर इशारे से ना कहता है l
यश - यह एक टॉप मॉडल है... निहारिका... मैंने इसे... अपनी फार्मास्यूटिकल्स कंपनी के नए प्रेग्नेंसी किट के लिए.... और प्रेग्नेंसी प्रोटेक्शन की पिल के लिए... मॉडलिंग की ऑफर किया है... इसलिए पहले प्रेग्नेंसी किट के लिए टेस्ट ले रहा हूँ.... और कुछ दिनों बाद... पिल की टेस्ट लीआ जाएगा.... उसके लिए मैंने इसे बहुत पैसा दिया है.... (इतना कह कर वह अपनी जेब से एक गोली निकाल कर खाता है, और विक्रम से कहता है) विक्रम बस एक आध घंटे बाद निकलते हैं... तुम चाहो तो बैठ कर... लाइव शो देख सकते हो.... या फिर इस कमरे के बाहर मेरा इंतजार कर सकते हो...
विक्रम यह सुनते ही कमरे से बाहर निकल जाता है और बाहर सोफ़े पर आकर बैठ जाता है l कुछ देर बाद अंदर से लड़की की चीखने और चिल्लाने की आवाज़ आती रहती है l विक्रम को ऑक्वरड सा लगता है l अगर उसे पिनाक ने अनुरोध भरे लहजे में ना कहा होता तो विक्रम यहाँ बिल्कुल नहीं रुकता l चूंकि पिनाक सिंह का काम है और यह ओंकार चेट्टी का बेटा है, इसलिए बर्दास्त कर बैठा रहता है l एक घंटे बाद यश कमरे से तैयार हो कर निकालता है l
यश - चलें... विक्रम...
विक्रम उठता है और दोनों मिलकर नीचे पार्किंग में आते हैं l
विक्रम - यश... अगर बुरा ना मानों तो... क्या मेरे गाड़ी में....
यश - ओह हाँ.. क्यूँ नहीं...
यश एक गार्ड को इशारा करता और अपनी जेब से चाबी निकाल कर गार्ड की ओर फेंकता है l
फिर दोनों पार्किंग की ओर चलकर आते हैं l वहाँ खड़ी विक्रम के गाड़ी में दोनों बैठ जाते हैं l विक्रम गाड़ी स्टार्ट करता है और सातपड़ा की ओर गाड़ी को बढ़ाता है l
विक्रम - यश... तुम सेक्स से पहले... टेबलेट लेते हो क्या....
यश - ना... ना... ना... विक्रम.... आई एम परफेक्ट.... एंड.. तुम शायद नहीं जानते... आई एम अ फार्मास्यूटिकल इंजीनियर.... गोल्ड मेडलिस्ट... बेंगलुरु से... यह कंपनी मैंने अपने दम पर खड़ा किया है... सिर्फ अपने दम पर... हाँ बाप की पलिटिकल कैरियर भी मुझे थोड़ा हेल्प किया है...
विक्रम - पर तुमने... जवाब नहीं दिया.... मैंने देखा तुमने... निहारिका से.... सेक्स करने से पहले.... गोली ली...
यश - हा हा हा हा हा... विक्रम... विक्रम... ओ... विक्रम.... ना मैं कमजोर हूँ... ना ही मैं कोई ड्रग् एडिट हूँ.... मैंने वह ड्रग् खुद बनाया है... हाँ... कुछ रेस्ट्रीक्टेड दवाओं से बनाया है....
विक्रम - जैसे....
यश - हैरोइन... स्मैक और एफ्रोडिसीयाक का एक महत्वपूर्ण और बेहतरीन मिश्रण से बनाया गया है वह गोली... वह भी सिर्फ मेरे लिए.... क्यूंकि मैं जानता हूँ... कितनी क्वांटीटी लेना है...
विक्रम - व्हाट... पर क्यूँ...
यश - बीकॉज... आई लव माय बीस्ट... इनसाइड मी... मुझे मेरे अंदर के जानवर से, जंगली पन से, वहशी पन से बहुत बहुत प्यार है.... उसे बाहर निकालने के लिए... कभी कभी मैं वह गोली खाता हूँ....
विक्रम - ओ... अच्छा..
यश - मैंने निहारिका के साथ... हर तरह से सेक्स किया.... बस एक जानवर की तरह सेक्स करना चाहता था.... कोई दया माया नहीं करना था मुझे.... इसलिए मैंने वह गोली ली....
विक्रम - बड़े... ग़ज़ब के शौक पालते हो....
यश - मेरे ऐशगाह में... ल़डकियों को देख कर यह मत समझ लेना की मैं हर किसीके साथ सो जाता हूँ.... कौन मेरे नीचे सोयेगी..... उसका पैरामिटर मैं भी तुम्हारी तरह तय करता हूँ... और जब वह मेरे नीचे आती है.... एक बार तो जंगली बन कर सेक्स करता ही हूँ...
विक्रम - ह्म्म्म्म... पर मैंने अब तक किसी से सेक्स किया नहीं है...
यश - व्हाट... क्या बात कर रहे हो.... तुम राजाओं के खानदान से हो.... यह शौक तो तुम्हारे खुन में होना चाहिए.... वैसे मैंने देखा तुमने... शराब या शबाब... दोनों में से किसीको नहीं छुआ.... क्यूँ... रॉयल फैमिली से हो कर भी .. इस शौक से दूर कैसे हो... भई...
विक्रम - हमे अभी इसकी इजाजत नहीं है... मतलब हम अभी तक एलिजीबल नहीं हुए हैं.... हमारा जब तक... रंग महल में प्रवेश नहीं हो जाता... तब तक हम वह शौक नहीं पाल सकते हैं...
यश - वाव... और तुम्हारे खानदान में एलिजीबल होते कब हो...
विक्रम - जब बाप खुद... अपने बेटे की हाथ पकड़ कर.... रंग महल में प्रवेश करा दे....
यश - वाव... वाव... वाव... क्या बात है... यह कोई परंपरा की तरह है क्या....
विक्रम - शायद हाँ... क्षेत्रपाल वंश की यही परंपरा है....
यश - हाँ... शायद इसीलिए... की.. तुम... रॉयल फॅमिली से हो.... पर अपना यहाँ अलग स्वैग... है.... बाप का जुता... पैर में आ जाए... तो हम अपने आप एलिजीबल हो जाते हैं...
विक्रम - ह्म्म्म्म...
यश - और आज हम इतने... एलिजीबल हैं... की बाप अपने काम के लिए.... हमे ढूंढता है....
इस तरह बात करते करते दोनों सातपड़ा में चेट्टीस् गेस्ट हाउस में पहुंच जाते हैं l विक्रम गाड़ी रोकता है, यश गाड़ी से उतरता है l यश के गाड़ी से उतरने के बाद विक्रम वापस गाड़ी घुमाता है l
यश - अरे... विक्रम... यह क्या... मुझे छोड़ कर... कहाँ चल दिए...
विक्रम - उस मीटिंग में बैठने के लिए... हम अभी भी एलिजीबल नहीं हैं....
यश- ओ.. तेरी....

विक्रम तब तक अपनी गाड़ी लेकर जा चुका है l एक नौकर दौड़ कर आता है और सलाम ठोकते हुए अंदर जाने को कहता है, यश अंदर आकर देखता है, अंदर मौजूद हर एक का चेहरा उतरा हुआ है l एक ओंकार के चेहरे पर कुछ परेशानियाँ झलक रही है l
यश - क्या बात है... पुज्य पिताजी... क्यूँ मुझे याद किया....
ओंकार - अगर याद किया है.... तो वजह ज़रूर... परेशान करने वाली ही होगी....
यश - ह्म्म्म्म.... तो बताइए... पूरी राम कहानी.... ताकि... रावण की एंट्री कहाँ और कैसी हो.... हम तय करेंगे....
बल्लभ उसे विश्व की केस के बारे में जानकारी देता है और अब तक हुए डेवलपमेंट के बारे में सब कुछ बताता है और साथ ही साथ भैरव सिंह के आने की सूचना भी देता है l यश सब सुनने के बाद आपनी आँखे बंद कर कुछ सोचने लगता है l कुछ देर सोचने के बाद,
यश - ह्म्म्म्म... बहुत ही विकट समस्या है.... ठीक है... कल राजा साहब को आने दीजिए... कल तक मैं कुछ सोच भी लूँगा.... तब तक.... आप लोग बेफिक्र रहें.... और आराम करें.....
सब एक दूसरे के मुहँ को देखते हैं l फ़िर ओंकार की ओर देखने लगते हैं l
ओंकार - देखिए.... उसे सोचने देना चाहिए.... वह पहले से शामिल होता... तो कुछ जरूर... सोच लीआ होता.... क्यूंकि प्लान में अब... शामिल हुआ है... इसलिए... हम कल तक इंतजार कर लेते हैं....

सभी अपना सर हिला कर मौन में हाँ कहते हैं l
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अगले दिन
सेंट्रल जैल
विश्व अपने सेल में बेड पर पड़े पड़े कुछ सोच में खोया हुआ है l तभी एक आवाज़ से उसका ध्यान टूटता है l वह उस आवाज़ की तरफ देखता है, संत्री उसके सेल की दरवाज़ा खोलते हुए,

संत्री - विश्व... सुपरिटेंडेंट साहब ने तुमको याद किया है... जाओ उनसे मिल लो...

विश्व अपने सेल से निकल कर सीधे ऑफिस की ओर जाता है l ऑफिस में पहुंच कर विश्व, तापस को नमस्ते करता है l
तापस - आओ विश्व... सुप्रभात... कैसे हो...
विश्व - जी अच्छा हूँ...
तापस - लगता है... अब कुछ ही दिनों की बात है... फिर शायद तुम आजाद हो कर अपने गांव चले जाओगे...
विश्व - धन्यबाद... सर... आपकी शुभकामनाएं हैं... इसलिए...
तापस - अरे नहीं... ऐसी बात नहीं... वैसे विश्व... अगर बुरा ना मानों तो एक बात पूछूं...
विश्व - जी...
तापस - तुम्हारे खिलाफ जो वकील लड़ रही हैं... क्या तुम उनके बारे में जानते हो....

विश्व खामोश रहता है, और ना में अपना सर हिलाता है l

तापस - मुझे लगता शायद तुम जानते हो... फ़िर भी मैं तुम्हें बता देता हूँ... वह... मेरी धर्म पत्नी हैं...

विश्व सुन कर चुप रहता है और अपनी नजर झुका लेता है l

तापस - देखो विश्व... उन पर तुम अपने मन में... कुछ गुस्सा मत पाल लेना... वह अपनी वृत्ति के कारण... तुम्हारे खिलाफ लड़ रही हैं.... जिस तरह जयंत सर सरकार के तरफ से... तुम्हारे लिए नियुक्त हैं... उसी तरह प्रतिभा भी नियुक्त है.... सरकार के तरफ से... तुम्हारे विरुद्ध लड़ने के लिए...
विश्व - जी... सुपरिटेंडेंट सर... मेरे मन में उनके लिए कोई मैल नहीं है....
तापस - थैंक्यू... विश्व... थैंक्यू... वेरी मच... वैसे सॉरी.. तुमसे मिलने तुम्हारी दीदी आई हैं... मैंने उन्हें ऊपर लाइब्रेरी में बिठाया है.... तुम जाकर मिल लो....
विश्व - जी...

इतना कह कर हाथ जोड़ कर नमस्कार करता है और लाइब्रेरी की ओर चला जाता है l लाइब्रेरी में पहुंच कर देखता है वैदेही खिड़की से बाहर देख रही है l विश्व उसके पास आकर खड़ा होता है l
विश्व - क्या देख रही हो दीदी....
वैदेही मूड कर विश्व को देखती है
वैदेही - कुछ नहीं विशु... आशा और निराशा के भंवर में राह ढूंढ रही हूँ.... अब तक जो हुआ... और अभी जो हो रहा है... और आने वाली कल को लेकर... मैं उसके उधेडबुन में खोई हुई हूँ.......
विश्व - पता नहीं... जो हुआ... क्यूँ हुआ.. पर जो हो रहा है... उसमें... शायद मेरी कुछ गलती तो है...
वैदेही - नहीं विशु... नहीं... जो भी हुआ है... और जो हो रहा है... आने वाले कल के किसी विशाल परिवर्तन के लिए.. हुआ या हो रहा है शायद....
विश्व - परिवर्तन... कैसा परिवर्तन... ऐसी ही एक परिवर्तन के लिए तो.... मैं सरपंच बनने के लिए तैयार हुआ.... पर परिणाम क्या हुआ...
वैदेही - विशु... हम राजगड़ से कभी बाहर निकले ही नहीं थे... राजगड़ के बाहर भी दुनिया है... जहां लोग बसते हैं... यह सिर्फ किताबों में पढ़ा था... आज देख भी लिया... शायद इसके पीछे भी नियति का कोई खेल छिपा हो....
विश्व - कैसी नियति.... किसकी नियति... कुछ भी हासिल करने की मैंने कभी कोशिश नहीं की.... पर कीमत बहुत भारी चुका रहा हुँ....
वैदेही - अगर दुनिया में... भैरव सिंह जैसे लोग हैं... तो जयंत सर जैसे लोग भी हैं... जरा सोच...
विश्व - हाँ दीदी... वह इंसान मुझे बिलकुल भी समझ नहीं आ रहे हैं...
वैदेही - मतलब....
विश्व - एक दिन वह मुझसे मिलने आए थे.... यहाँ... जैल में... अकेले... उन्होंने मुझसे कहा कि... अगर वह शादीशुदा होते तो... उनका पोता जरूर मुझसे सात या आठ साल छोटा होता.... उन्होंने मुझसे यह भी कहा कि.... वह मुझे कुछ देना चाहते हैं.... और मुझसे कहा कि... मैं वह रख लूँ... उसके बाद कहा कि मैं उन्हें दरवाजे तक छोड़ दूँ... मैं उन्हें छोड़ने भी गया.... फिर वह पीछे मूड कर देखे और मुस्करा कर चले गए.... उन्होंने ऐसा क्यूँ किया... और किसलिए किया... मेरे समझ में कुछ भी नहीं आया.....
वैदेही - जानता है... आज अगर कटक में... मैं सही सलामत हूँ... तो उनके वजह से ही हूँ... पता नहीं कौनसे जनम में... कौनसा रिस्ता था उनसे... जो वह निभा रहे हैं.... और हमें कर्ज दार बना रहे हैं....
विश्व - हाँ दीदी... तुम सच कर रही हो.... उन्होंने मुझसे मेरे बारे में... मेरे केस के बारे में.... कुछ भी नहीं पूछा.... पर कितनी आसानी से.... कोर्ट में दिलीप कर की धज्जियाँ उड़ा के रख दी....
वैदेही - बस यही बात अब मुझे डरा रही है.... विशु.... डरा रही है... जयंत सर एक घायल शेर की तरह वार पे वार किए जा रहे हैं..... पता नहीं दुश्मन... कैसे और कब पलट वार कर दे....
विश्व - हाँ दीदी.... इस बात से मैं भी डरा हुआ हूँ... जंगल का गणित कहता है... एक शेर तीन लकड़बग्घों से भीड़ सकता है.... पर यहाँ तो लकड़बग्घों का झुंड है दीदी.... अब मुझे उनकी फ़िकर होने लगी है....
वैदेही - विशु.... मान ले... अगर तु रिहा हो गया.... तो क्या तु.... वापस... राजगड़ जाएगा.....
विश्व - (हैरान हो कर वैदेही को देखता है) तुम... ऐसे क्यूँ पूछ रही हो दीदी...
वैदेही - (खिड़की से बाहर देखते हुए) क्यूँ ना हम यहीं रह जाएं.... और बाकी जिंदगी जयंत सर की सेवा करते हुए.... गुजार दें....
विश्व - य़ह.... तुम कह रही हो दीदी.... तुम... माना... हम जयंत सर के ऋणी हैं.... पर... नहीं दीदी... नहीं.... मैं यहाँ नहीं रह सकता.... चाहे अभी रिहा हो जाऊँ... या सजा के बाद... जाऊँगा तो पहले राजगड़ ही....

वैदेही उसे ध्यान से देखती है, विश्व के आंखों में एक दृढ़ संकल्प दिख रहा है l

विश्व - मुझे इस राह पर चलने के लिए.... तुमने कहा.... तुमने मुझे समझाया... मातृभूमि के कर्ज के बारे में.... हमारे आसपास के लोगों से जुड़े रिश्तों के बारे में.... और तो और... मुझ पर तुम्हारे तीन थप्पड़ों का कर्ज़ है..... उन्हें उतारे बिना.... मैं राजगड़ छोड़ नहीं सकता.... मेरी छोड़िए... आपने भी तो सौगंध उठाया है.... के जबतक राजगड़ के लोगों के जीवनी शैली में.... आपसी रिश्तों में... परिवर्तन नहीं आ जाता... तब तक आप नंगी पैर ही रहेंगी....

वैदेही अपने चेहरे पर एक पीड़ा दायक मुस्कान लाने की कोशिश करती है l वह विश्व से अपनी नजरें हटा कर फिर खिड़की से बाहर देखती है l

विश्व - दीदी....
वैदेही - हूँ....
विश्व - आप अपना.... और.... जयंत सर का खयाल रखना....

वैदेही अपना सर हिला कर हाँ कहती है l विश्व और कुछ नहीं कहता ना ही वैदेही से कुछ सुनने के लिए रुकता है l वह मुड़ कर वापस चला जाता है l वैदेही उसे अपनी आंखों से ओझल होते हुए देखती रहती है l

वैदेही - मैं जानती हूँ... मेरे भाई.... मैं जानती हूँ.... मैं तुझे अच्छी तरह से जानती हूँ.... तु अब पीछे नहीं हटेगा.... पर तु अकेला है.... जो गणित जयंत सर के लिए बताई है.... वह गणित... क्या तुझ पर लागू नहीं होगी....

इतना कह कर वैदेही रोने लगती है l रोते रोते वह वहीँ खिड़की के पास बैठ जाती है l तापस वहाँ आता है l

तापस - वैदेही.... तुम.... वह विश्व... मतलब... तुम रो क्यूँ रही हो...
वैदेही - कुछ नहीं....(सुबकते हुए) सुपरिटेंडेंट साहब.... आज अपनी कुछ करनी पर रोना आ रहा है (अपनी आँसू पोछती है)
तापस - तुम्हारी करनी... मतलब....

वैदेही - मेरी उंगली थाम कर.... विश्व ने चलना सीखा.... (फिर अपनी जगह से उठ कर) मैंने उसे एक मंजिल दिखा कर.... एक राह पर दौड़ने के लिए छोड़ दिया.... उस राह पर वह इतना दूर जा चुका है... की अब वह लौटना नहीं चाहता है.... और इस मोड़ पर.... मंजिल कहीं खो सी गई है... पर वह राह नहीं छोड़ रहा है.... बस इसी बात का दुख है.... सुपरिटेंडेंट साहब.... इसी बात का दुख है.....

वैदेही की कही हुई सारी बातें तापस के सिर के ऊपर चला जाता है l

वैदेही - आपका बहुत बहुत धन्यबाद.... सुपरिटेंडेंट साहब... मुझे एकांत में... विश्व से मिलने दिए....
तापस - कोई बात नहीं.... वैदेही... कोई बात नहीं है.... वैसे.... अगर मैं एक अपनी निजी विषय के लिए.... तुमसे अनुरोध करूँ.... तो क्या तुम सुनोगी...
वैदेही - (उसे हैरानी की नजरों से देखते हुए) ज़ी कहिए...
तापस - वह... मैं...(एक ही सांस में) क्या तुम मेरी पत्नी को माफ कर सकोगी....

यह सुनकर क्या प्रतिक्रिया दे, वैदेही को समझ नहीं आता l वह पहले इधर उधर देखती है फ़िर अपना चेहरा नीचे झुका लेती है l

तापस - देखो वैदेही... तुम प्रतिभा के लिए अपने मन में... कोई मैल ना पालना.... वह एक सरकारी वकील है.... जिस पर यह जिम्मेदारी थी... की हर हाल में... अभियुक्त को दोषी साबित करे....
वैदेही - यह आप मुझसे.... क्यूँ कह रहे हैं...
तापस - तुम्हारे गाँव के... दिलीप कर के जिरह के बाद.... प्रतिभा आत्मग्लानि के बोध में घिरी हुई है.... वह तुमसे मिलकर.... तुमसे माफी माँगना चाहती है..... इसलिए मैं.... (तापस और कुछ कह नहीं पाता)
वैदेही - सुपरिटेंडेंट साहब.... मेरे मन में उनके लिए ज़रा भी मैल नहीं है....
तापस - थैंक्यू... वैदेही... थैंक्यू....

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शाम का समय
चिलीका झील के बीचों-बीच एक हाउस बोट के अंदर
एक बड़े से सोफ़े पर दोनों बांह फैलाए और अपना दाहिना पैर मोड़ कर बाएं पैर पर रख कर भैरव सिंह बैठा है l
उसके बगल में दाहिने तरफ एक सिंगल सोफ़े पर ओंकार बैठा हुआ है और बाएं तरफ एक सिंगल सोफ़े पर पिनाक बैठा हुआ है l
थोडे दूर एक डायनिंग चेयर पर दुबक कर बैठा हुआ बल्लभ प्रधान, उसके पीछे दीवार पर पीठ लगाए खड़ा है रोणा और फर्श पर अपने गमच्छे को हाथ में लिए हाथ जोड़ कर अपने तलुवों पर बैठा हुआ है l और उन सबके बीच अपने दाढ़ी खुजाते हुए टहल रहा है यश l

ओंकार - बस करो... यश... बस... कबसे राजा साहब.... यहाँ बैठे हुए हैं.... तुम कल से सोच ही रहे हो....
यश - ऐसी बात नहीं है... पिताजी.... मैंने सोच लीआ है...
ओंकार - अगर सोच लीआ है.... तो कहो भई...
यश - कह तो दूँ... पर जिनको जरूरत है... उन्होंने मुझसे कुछ पूछा जो नहीं है...

यह सुन कर भैरव सिंह के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान दिखती है l

भैरव - तो यश जी... आपने हमारे लिए क्या सोचा है.... हमें बताने की कष्ट करेंगे....

यश के चेहरे पर एक गहरी मुस्कान छा जाती है l

यश - राजा साहब.... जयंत के सीन में उतरने के बाद से अब तक.... आपके सिपहसलार थोड़ा सा गलत खेल गए....
भैरव - विस्तार से बताओ.... यश बाबु...
यश - मेरा कहना है कि... जब पैसा जनता जनार्दन का है.... जनता को ही सीधे... युद्ध में उतार दीजिए....
पिनाक - अरे... यश बाबु... बात को ऐसे उपस्थापीत कीजिए... की सबको समझ में आए....
यश - मेरे कहने का मतलब यह है कि.... जिस तरह पहले विश्व के खिलाफ... प्रदर्शन, धरने वगैरा किया गया और मीडिया का इस्तमाल किया गया.... अब उसीको जयंत के खिलाफ़ इस्तमाल कीजिए....(सब चुप हो कर यश को घूर कर देखते हैं)
यश - देखिए आप यह तो मानेंगे ही...लोगों के प्रदर्शन के चलते ही.... सरकार ने तीन जजों का पैनल बनाया और लगातार सुनवाई के लिए आदेश भी जारी किया....
बल्लभ - हाँ...
यश - क्यूंकि सरकार को लगा.... जनता में विश्व के खिलाफ आक्रोश है... अब जनता का यही आक्रोश को.... जयंत के खिलाफ इस्तेमाल कीजिए....
रोणा - इससे क्या फायदा होगा... उसे सरकारी सुरक्षा मिली हुई है....
यश - सरकारी सुरक्षा इसलिए मिली है.... ताकि उनपर कोई हमला ना हो जाए.... धरने और प्रदर्शन के लिए नहीं...

पहली बार सबके चहरे पर इतने दिनों बाद मुस्कान दिखता है l

पिनाक - इससे शायद... जयंत के आत्मविश्वास को... ठेस पहुंचे...
यश - सिर्फ़ आत्मविश्वास ही नहीं... आत्मसम्मान को भी ठेस पहुंचेगी.... बुढ़उ को पहले से ही दो बार हार्ट अटैक हो चुका है... हमारी हरकत ऐसी होगी के लोगों को, सरकार को और मीडिया वालों को लगेगा.... की लोगों का आक्रोश अब विश्व के वजाए.... विश्व को बचाने की कोशिश में लगे.... वकील के खिलाफ हो गई है....
बल्लभ - वाह... क्या बात है.... यश बाबु... वाह.... आपके खून में सचमुच... राजनीति दौड़
रही है... वैसे कल रोणा की गवाही है.... और सोमवार को... (चुप हो जाता है)
भैरव- सोमवार को हमारे गिरेबान पर हाथ रखेगा जयंत...
यश - कल शुक्रवार है... और सोमवार के भीतर दो दिन है राजा साहब.... इन दो दिनों में बहुत कुछ हो सकता है... क्यूँ के इज़्ज़दार लोगों को... बैज्जती बर्दास्त नहीं होती.... और हम होने ही नहीं देंगे...
भैरव - ह्म्म्म्म... बहुत अच्छे... यश... बहुत अच्छे.... अगर जयंत हम तक नहीं पहुंच पाया.... तो हम तुम्हारे लिए अपना ख़ज़ाना खोल देंगे...
यश - माय प्लेजर.... राजा साहब... हाँ तो... प्रधान बाबु.... मीडिया में अब से जयंत खिलाफ डिबेट हो पर.... प्रत्यक्ष रूप में नहीं... अप्रत्यक्ष रूप से.... शुक्रवार की शाम से ही... शनिवार की सुबह से भीड़ उनके खिलाफ उग्र प्रदर्शन करेगी... जिसका संचालन... मैं स्वयं करूंगा.... और राजा साहब यह यश वर्धन का वादा है.... जयंत की हाथ.... आपकी गिरेबान तो दूर... उसकी आँखे भी आप तक नहीं पहुंचेगी....

यश की इस बात पर सब तालियां बजाने लगते हैं l

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अगले दिन
सब कोर्ट में पहुंचते हैं l
वैदेही और जयंत जैसे ही अंदर आते हैं एक नए शख्स को देख कर ठिठक जाते हैं l वैदेही के आंखों में घृणा उतर आता है l वह शख्स वैदेही को देख कर एक हल्की मगर खतरनाक मुस्कान के साथ अपनी मूछों पर ताव देता है l वैदेही अपनी नजर फ़ेर लेती है l यह सब जयंत देख लेता है l

जयंत - क्या हुआ...
वैदेही - कुछ नहीं सर... वह जो नया शख्स दिख रहा है... वह....
जयंत - भैरव सिंह क्षेत्रपाल है....
वैदेही - आप जानते हैं...
जयंत - नहीं... पर अंदाजा हो गया... वह दूसरों के पीछे अकेला बैठा हुआ है... दोनों बाहें अपने दोनों तरफ फैलाए.... पैर पर पैर रख कर अपना रसूख दिखा रहा है....
वैदेही - यह खुदको राजा कहता है.... तो अपने गुलामों के पीछे क्यूँ बैठा है....
जयंत - इसलिए कि... जब जज साहब आयें... उसे खड़ा होना ना पड़े.... चलो हम भी अपनी जगह बैठ जाते हैं...

फिर दोनों अपनी अपनी जगह पर आकर बैठ जाते हैं l फिर कोर्ट रूम में होने वाली औपचारिकता होती है l हॉकर जजों के आने का संकेत देता है l सब अपनी जगह खड़े हो जाते हैं l पर वैदेही पीछे मुड़ कर देखती है भैरव सिंह खड़ा नहीं हुआ है l फिर सब बैठ जाते हैं l
वैदेही - (फुसफुसाते हुए जयंत से ) सर आपने जैसा कहा था... बिल्कुल वैसा ही हुआ... भैरव सिंह अपने जगह से उठा ही नहीं...
जयंत - (धीरे से) मैं जानता हूँ... इसलिए तुम चुप रहो....
जज - ऑर्डर ऑर्डर... अदालत की कारवाई शुरू किया जाए...
कोर्ट रूम में ख़ामोशी छा जाती है l
जज - जैसा कि... पिछले सुनवाई में... गवाह दिलीप कर की जिरह के वक्त... वह बेहोश हो गए थे.... जिसके कारण उनकी गवाही अधूरी रह गई.... पर उस दिन... बचाव पक्ष के तरफ से जिरह की खात्मा की घोषणा की गई.... पर आज फ़िर से... बचाव पक्ष को पूछा जा रहा है.... क्या वह... फिर से दिलीप कर की गवाही लेना चाहेंगे....
जयंत - (अपनी कुर्सी से उठ कर) जी नहीं मायलर्ड... हमारी तरफ से... दिलीप कर की जिरह खत्म हो चुका है... हाँ उस जिरह के बाद के तथ्यों को... अदालत के समक्ष प्रस्तुत करने का अवसर नहीं मिला.... पर मैं आज राजगड़ थाना के प्रभारी... श्री अनिकेत रोणा... जी से जिरह से पहले... उन तथ्यों को... अदालत के समक्ष प्रस्तुत करना चाहूँगा.... मायलर्ड....
जज - ठीक है... आप अपना तथ्य प्रस्तुत करें... और दिलीप कर के द्वारा किए गए... जालसाजी को रूप के जरिए हुए... आर्थिक घोटाले से सबंध स्थापित करें....
जयंत - श्योर... मायलर्ड... श्योर.... (फिर जयंत पुरे कोर्ट में स्थित सभी लोगों पर नजर डालता है, फिर बोलना शुरू करता है) मायलर्ड... कर ने जो चेक विश्व से साइन करवाए थे.... असल में... वह एक... पीलीमीनारी टेस्ट था.... मतलब एक ट्रायल.... जिसकी कामयाबी पर... रूप के जरिए आर्थिक घोटाले को अंजाम दिया जा सकता था.....
जज - कैसे....
जयंत - मायलर्ड.... जैसा कि... अदालत में.... मैंने अपना पक्ष रखते हुए कहा था.... "रोम नेवर बिल्ट इन वन नाइट"... उसी तरह ऐसे षडयंत्र भी... एक दिन.. एक महीना या एक साल की नहीं होती है.... इस षडयंत्र का बीज उसी दिन बो दी गई थी... मायलर्ड... जिस दिन सरकार के द्वारा राजगड़ के विकास के लिए.... प्रोजेक्ट्स को मंजूरी दी गई थी.... इसीलिए..... उसी दिन से... सबसे पहले फेक.... कंट्राक्टर्स तैयार किए गए..... जिनके नाम पर... बैंकों में... अकाउंट भी खोले गए... अब बारी था... उसके बाद... इस संगठित लुट को अंजाम देने के लिए... राजगड़ विकास के लिए मंजूर किए गए प्रोजेक्ट्स को पैसों की मशीन की तरह इस्तेमाल किया गया.... लेकिन इनमें शामिल सभी लोगों को अंदाजा था... योर ऑनर... एक दिन ना एक दिन.... कभी ना कभी... एनक्वेरी हो सकता है.... इसलिए बचे हुए पैसों को... एक ऐसे अकाउंट तक पहुंचा जाना जरूरी था.... जिसका ऑपरेटिंग अधिकार सिर्फ एक व्यक्ति के पास हो.... और यह केवल रूप से ही संभव हो सकता था... इसलिए जब दिलीप कर ने विश्व से चेक साइन करा लिया और रकम भी हासिल कर लिया.... तब इस घोटाले में शामिल लोगों का मकसद कामयाब होता नजर आया योर ऑनर....
जज - मिस्टर डिफेंस... आप तथ्य को... प्रमाण के साथ प्रस्तुत करें....
जयंत - इस बारे में... प्रामाणिक तथ्य तो... एसआइटी प्रस्तूत कर चुकी है... बस उनके तथ्य को मैं.... सही ढंग से प्रस्तुत करूंगा.... मायलर्ड....
जज - ठीक है.... आगे बढ़ीए.....
जयंत - जैसा कि दिलीप कर ने अपने बयान में कहा था.... तहसील ऑफिस तहसीलदार और विश्व के बीच एक मीटिंग हुई.... असल में.. उस मीटिंग में... तहसीलदार ने... राजगड़ प्रांत के विकास के लिए... विश्व को यह कह कर अपने शीशे में उतारा.... के राजगड़ के विकास के लिए.... सरकारी राशि पर्याप्त नहीं है.... इसलिए बहुत लोग हैं... जिन्हें वह जानते हैं.... जो जन सेवा के लिए पैसे दान देते हैं.... और उनके दान की हुई राशि को जमा करने के लिए... एक एनजीओ "राजगड़ उन्नयन परिषद" यानी रूप का गठन किया जाए... जिसमें प्रमुख पांच व्यक्ति मुख्य सभ्य होंगे.... विश्व, तहसीलदार, ब्लाक अधिकारी, रीवेन्यू इंस्पेक्टर और बैंक अधिकारी.... बाकी जो भी सदस्य होंगे... वे केवल साधारण सभ्य ही होंगे.... इस बात पर विश्व... प्रभावित हुआ... और अपनी पंचायत ऑफिस में इस बाबत मीटिंग रखी.... अगले दिन वह प्रमुख व्यक्ति सब आकर अपना सहमति दी और जिम्मेदारी भी ली.... रूप कि रजिस्ट्रेशन कराने के लिए..... रजिस्ट्रेशन के लिए एक बाई-लॉ भी बनाया गया... उस बाई-लॉ में यह प्रावधान रखा गया... के रूप के अकाउंट को एक ही व्यक्ति ऑपरेट कर सकता है.... सिर्फ़ सरपंच... यानी सिर्फ़ विश्व....
जज - हाँ... ऐसा तो दिलीप कर... के बयान से साबित हुआ है... और एसआईटी की रिपोर्ट भी यही कह रहा है.... पर पैसे तो हज़ारों लोगों के अकाउंट से आया है.... वह भी मृतक... यह कैसे
जयंत - जी योर ऑनर... अब... इसके लिए अगली चाल यह थी... रूप के अकाउंट से उन सभी लोगों की अकाउंट को ईसीएस से जोड़ना.... इस तथ्य से विश्व को अवगत कराया गया..... पर चूँकि विश्व को ईसीएस के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं थी..... इसलिए उससे बैंक अधिकारी ने ईसीएस के नाम पर... कैंसिलेशन चेक पर साइन लिए वह भी उस गायब होने वाली स्याही से..... और राजगड़ विकास के लिए..... विश्व ने सभी चेक पर साइन कर दिए.... जैसे ही विश्व ने सभी चेक साइन कर दिया..... विश्व से मतलब ख़त्म हो गया....
जज - ह्म्म्म्म... पर इससे मनरेगा का क्या संबंध.....
जयंत - मायलर्ड.... संबंध है.... बहुत ही गहरा संबंध है.... राजगड़ विकास के लिए... जितने भी प्रोजेक्ट्स आए.... सभी के सभी मनरेगा के अंतर्गत ही आए.... मायलर्ड.... इन प्रोजेक्ट्स में.... पहले फेज के कंट्राक्टर असली थे.... पर बाद के दोनों फेज में फेक कंट्राक्टरस से जरिए काम खतम दिखाया गया.... और सबसे मजेदार बात... पहली फेज में जितने लोगों ने श्रम दान दिया उनको पारिश्रमिक मिले.... पर दूसरे फेज में जिन्होंने श्रम दान किया.... उनको पारिश्रमिक नहीं मिला... दस्तावेज में काम करने वालों को पारिश्रमिक दे दिया गया.... ऐसा लिखा गया.... पर असल में दिया ही नहीं गया..... चूंकि दुसरे और तीसरे फेज में.... दिलीप कर यह अदालत को कहना भूल गए... सभी श्रमजीवियों को प्रोजेक्ट खतम होने के बाद ही पैसा मिलेगा... यह कह कर उनसे काम करवाया गया था.... और दुसरे और तीसरे फेज में जिन श्रमजीवियों की रजिस्ट्रेशन हुई थी... वे सभी मृतक थे.... और उनके अकाउंट पैसा तभी जा सकता था... जब विश्व पंचायत के अकाउंट चेक पर साइन करता.... चूंकि सभी गाँव वालों को पैसे दिलाने थे.... इसलिए विश्व ने... वहीँ बैंक जा कर सभी चेक साइन कर दिया....

जयंत इतना कह कर चुप हो गया l जयंत के बातों को सुन कर सब शुन हो जाते हैं l जयंत एक नजर जजों पर डालता है l तीनों जज मुहँ फाड़े जयंत के दिए विवरण सुन कर उसे देख रहे हैं l

जज - एसआईटी रिपोर्ट कह रही है... तकरीबन पांच हजार लोगों ने श्रम दान दिया.... और यह रिपोर्ट यह भी कह रही है... वह पांच हजार लोग... जो इन प्रोजेक्ट्स में श्रमदान के लिए रजिस्टर्ड हुए.... सभी के सभी मृतक हैं....
जयंत - जी योर ऑनर... उन पांच हजार मृतकों को इसलिए ढूँढा गया.... क्यूँ की भारत सरकार ने... मनरेगा में काम करने वालों के लिए.... आधार कार्ड व बैंक के जन-धन अकाउंट को अनिवार्य कर दिया.... और सबको पारिश्रमिक ई-पेमेंट जरिए करने के लिए बाध्य कर दिया.... जहां सरकार आम लोगों के हितों की रक्षा के लिए यह कदम उठाए.... वहीँ इन लोगों को... इसमे एक मौका दिखा.... इस मौके पर चौका मारने के लिए... रिवेन्यू इंस्पेक्टर, विडीओ, तहसीलदार और बैंक अधिकारी सब मिलकर प्रोजेक्ट्स के आरंभ से ही.... मृत् लोगों के आधार कार्ड संग्रह, उनके बैंक अकाउंट खुलवाना, फिर उनके डेथ सर्टिफिकेट हासिल करना और उनके अकाउंट को रूप के अकाउंट से जोड़ने के बाद.... काम निकलने पर अकाउंट को डी-एक्टिवेट करने तक सभी कामों को बखूबी अंजाम दिया....
Nice and awesome update...
 
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