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Thriller "विश्वरूप"

Kala Nag

Mr. X
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Kala Nag

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Amazing update Bro, Yash ka dimag vakai me kaafi tez hain, ab dekhte hain kaise ye Jayant Sir ko case se out karwate hain

Waiting for next part
धन्यबाद Ajju भाई
बहुत बहुत धन्यबाद
यश निःसंदेह बहुत तेज़ है
विश्व को सजा होगी वह भी सात वर्ष के लिए यह वास्तव है
जैल से पहले वाला विश्व और जैल के बाद वाला विश्व परस्पर विपरित चरित्र के होंगे
जयंत का चरित्र बहुत ही खास है जो विश्व की जीवन को देखने का नज़रिया बदल देता है
यह धर्म युद्ध है
यहाँ ना कोई दर्शक है ना ही कोई निष्पक्ष है, जो भी जिस पक्ष में है वह इस युद्ध में अपने हिस्से की क़ुरबानी देंगे
बस आप जुड़ें रहें
धन्यबाद एवं आभार
 

Kala Nag

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👉चौतीसवां अपडेट
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सेंट्रल जैल
रविवार
बालु और उसके पास खड़े उसके दो सहयोगी हैरानी भरे दृष्टि से देखे जा रहे हैं l दो सहयोगी में से एक बालु के पास आकर इशारे से पूछता है क्या हुआ है इसे l बालु अपने कंधे उचक कर और अपने चेहरे पर ना जानने की बात बताता है l सब उस तरफ देखे जा रहे हैं l विश्व एक मोटे ब्लैंकेट को गिले फर्श से उठा कर पत्थर पर पटक रहा है पिछले एक घंटे से l ऐसे पटक रहा है जैसे किसी आदमी को गुस्से से पटक रहा हो l रंगा के कांड के बाद कैदियों में विश्व की एक अलग पहचान बन गया है l इसलिए बालु भी विश्व को कुछ कहने से हिचकिचा रहा है l तभी एक संत्री भाग कर आता है,

संत्री - विश्व.... आरे.... विश्व....

विश्व नहीं सुनता है, वैसे ही अपने धुन में ब्लैंकेट को पत्थर पर पटक रहा है l

संत्री - (इस बार चिल्लाते हुए) वी.... श्व... अरे भाई रुको.... विश्व....

विश्व रुक जाता है, और संत्री को सवालिया नजर से देखता है l

संत्री - (थोड़ा हांफते हुए) सुपरिटेंडेंट सर ने.... अपने ऑफिस में तुमको.... बुलाया है....

विश्व कुछ नहीं कहता है l उस ब्लैंकेट को वहीँ छोड़ कर दीवार पर टंगे अपनी कुर्ता निकाल कर पहन लेता है l

विश्व - बालु भाई.... मैं सेनापति सर जी से मिल कर आता हूँ....
बालु - ठीक है विश्व.... वैसे अगर काम बड़ा हो तो... रुक जाना.... हम यहाँ का देख लेंगे....
विश्व - धन्यबाद.... बालु भाई.... धन्यबाद....

बालु अपने चेहरे पर एक हंसी लाने की कोशिश करता है l पर विश्व उसे देखे बगैर बिना कुछ प्रतिक्रिया के वहाँ से चला जाता है l विश्व के पीछे पीछे संत्री भी चला जाता है l

सहयोगी 1 - क्या बात है गुरु.... आज विश्व.... बहुत गुस्से में क्यूँ लग रहा है....
सहयोगी 2 - हाँ... साला... जैसे पत्थर पर ब्लैंकेट नहीं... किसी दुश्मन को उठा कर पटक रहा है....
बालु - हाँ क्यूँ नहीं.... जिसने भी... विश्व के वकील को थप्पड़ मारने की कोशिश की है.... विश्व उसी को इमेजिन कर.... ब्लैंकेट पटक रहा था....
सहयोगी 1 - क्यूँ... विश्व के वकील को.... मारने की नौबत क्यूँ आई....
बालु - सिंपल है बे.... लोग नाराज हैं.... इसलिए....
सहयोगी 2 - अच्छा.... पहले विश्व से नाराज थे.... अब इस वकील से नाराज हैं.... पर ऐसा क्यूँ...
बालु - लोग पहले विश्व से नाराज थे.... क्यूंकि उनको लगा... विश्व अकेला इतना बड़ा रकम गटक गया.... वह भी बिना डकार लिए.... और किसीको फूटी कौड़ी भी नहीं दिआ.... इसलिए लोग नाराज थे... विश्व से...
सहयोगी 1 - ह्म्म्म्म... अच्छा... पर वकील से क्यूँ नाराज हैं....
बालु - अबे.... वे लोग अब वकील से इसलिए नाराज हैं.... क्यूंकि... उन्हें लगता है... विश्व के पास अब जितना निकलेगा.... उसमें वकील.... जरूर अपना हिस्सा बटोर लेगा.... लोगों के हिस्से में तब भी ठेंगा था.... अब भी ठेंगा ही है....
दोनों - ओ..... तो यह बात है....
बालु - बस बस.... बहुत हो गई... बकचोदी.... अब लग जाओ अपने काम पर.... वरना विश्व आएगा.... ब्लैंकेट छोड़ कर... हम सबको धोएगा....

उधर विश्व तापस के चैम्बर में आता है l तापस जैसे विश्व का ही इंतजार कर रहा हो ऐसे विश्व को देख कर विश्व के पास आता है l

तापस - आओ विश्व आओ... अरे.. यह क्या... तुम्हारा पजामा घुटने के नीचे से भिगा हुआ है...
विश्व - जी वह... मैं.. ब्लैंकेट और चादर धो रहा था....
तापस - ओह... अच्छा... ठीक है... जाओ... लाइब्रेरी जाओ.... वहाँ... तुम्हारा कोई... इंतजार कर रहे हैं.... जाओ..
विश्व - कौन हैं सर....
तापस - जाओ मिल लो.... तुम्हारे... अपने ही हैं....

विश्व कुछ सोचने लगता है, फिर लाइब्रेरी की ओर बढ़ जाता है l जैसे जैसे लाइब्रेरी की ओर जा रहा है, उसके दिल में ना जाने कैसी उथलपुथल हो रही है l वह लाइब्रेरी की दरवाजा जो आधा बंद दिखा उसे धक्का दे कर पूरा खोलता है l उसे भीतर एक बुजुर्ग आदमी दिखता है l चेहरा मुर्झा हुआ, रौनक गायब बीमार सा एक आदमी एक चेयर पर बैठा हुआ है l विश्व पहचान जाता है l विश्व की आंखे नम हो जाती है होंठ थरथराने लगते हैं l

विश्व - सर.... आ... आप... यह आपकी ऐसी हालत...

जयंत अपना सर उठा कर विश्व को देखता है l जयंत के चेहरे पर मुस्कान तो दिखती है पर जयंत के चेहरे पर विश्व को वह रौनक, वह तेज नहीं दिखती, अपने उम्र से भी कहीं बड़ा और बुढ़ा दिख रहा है l

जयंत - आओ विश्व आओ.... (थके हुए आवाज़ में, एक कुर्सी की ओर इशारा करते हुए) आओ यहाँ बैठो....
विश्व - आ.. आपका यह हालत (कुर्सी पर बैठते हुए भारी गले से) म.. मेरी वजह से... है ना..
जयंत - (थोड़ा खीज जाता है) ओ... विश्व... तुम भी अपने दीदी की तरह.... शुरू मत हो जाना.... (विश्व खामोश हो जाता है l उसे खामोश देख कर) अरे भाई... मैं तुम से कुछ बात करने आया हूँ... और तुम हो कि... खामोश हो कर बैठ गए हो....
विश्व - अब... अब मैं क्या कहूँ.... सर.... पैदाइश बदनसीब हूँ... पैदा होते ही... माँ को खा गया.... सातवीं में एनआरटीएस की स्कॉलरशिप जीती तो... पिता को हमेशा के लिए खो बैठा और बहन मुझसे दूर हो गई... जब लोगों का भला करने के लिए, दुनिया बदलने के लिए..... आगे आया.... तो यह सब हो गया... कुछ लोगों की जाने चली गई.... और मैं इस जैल में पहुंच गया.... और अब आप के साथ....
जयंत - बस... बहुत हुआ.... मैं यहाँ... तुम्हारे केस के बाबत... कुछ जानने आया था.... और तुम अपना दुखड़ा पुराण लेके बैठ गए....
विश्व - सॉरी... मुझे माफ कर दीजिए....
जयंत - देखो विश्व.... मैं फ़िर से और आखिरी बार... कह रहा हूँ.... क्यूंकि मुझे अपनी बात दोहराना... अच्छा नहीं लगता.... (विश्व अपना सर उठा कर जयंत की ओर देखता है) कभी भी... तुम कितने दुखी हो... टूटे हुए हो... दुनिया को ना दिखाना... ना ही जताना.... यह कमजोरों की निशानी है... यह दुनिया वाले सोचेंगे... तुम कमजोर हो... तुम उनसे सहानुभूति पाने की कोशिश कर रहे हो.... यह दुनिया बड़ी क्रूर है.... हम भले ही चांद पर पहुंच जाएं.... पर जंगल के नियम कोई छोड़ नहीं सकता... यहाँ हर ताकतवर अपने से कमजोर पर... हावी होने की कोशिश करते हैं... इसलिए किसी से सहानुभूति पाने की कोशिश भी मत करो.... आज जो लोग तुम्हारे नाम पर रोटियाँ... सेंक रहे हैं.... कल को तुमको भूलने में... जरा भी व्यक्त नहीं लगाएंगे.... इसलिए दुनिया की मत सोचो.... परवाह मत करो... बस कमजोर मत बनो.... बड़े बड़े आए और चल दिए.... दुनिया को कोई नहीं बदल पाया.... हमे दुनिया की परवाह नहीं करना चाहिए.... पर अपनी समाज की जरूर करनी चाहिए.... दुनिया और समाज दोनों अलग हैं.... तुम समाज बदलने की सोचना.... दुनिया अपने आप बदल जाएगी...

विश्व जयंत को देखता है l जयंत भले ही कमजोर दिख रहा है, उसके चेहरे पर भले ही वह तेज वह रौनक नजर ना आता हो पर आवाज़ में और लहजे में वही पुराना जयंत लग रहा है l विश्व को यह एहसास होते ही अंदर से अच्छा महसूस करता है l

जयंत - विश्व... एक पारिवारिक अहंकार की वेदी पर..... एक समाज पीढ़ी दर पीढ़ी... बलि चढ़ रही है.... उस भीड़ में तुम भी शामिल हो... तुमने भीड़ हट कर अलग पहचान बनाने की कोशिश की.... परिणाम तुम्हें यहाँ पहुंचा दिया....

विश्व का चेहरा एक दम गंभीर हो जाता है l उसे महसूस होता है जयंत की आवाज़ उसके भीतर एक सिहरन दौड़ा दे रही है l

जयंत - अच्छा विश्व एक बात बताओ....
विश्व - जी पूछिए...
जयंत - भैरव सिंह को... कब मालुम हुआ.... के तुम... ग्रैजुएशन करने जा रहे हो.... या कर रहे हो....
विश्व - जब मैं... नोमिनेशन फॉर्म में... अपना एजुकेशन के बारे में.... मेनशन किया था... तब शायद...
जयंत - ह्म्म्म्म ( कुछ सोचते हुए) अच्छा विश्व... तुम्हें कभी अचरज नहीं हुई.... के राज परिवार को छोड़ कर.... पूरे राजगड़ में कोई दुसरा ग्रैजुएट नहीं है....
विश्व - जी कभी गौर ही नहीं किया था.... एक बार दीदी ने मुझे कहा कि.... मुझे ग्रैजुएशन करनी चाहिए... मैंने पहले मना कर दिया.... पर दीदी ने मुझ से वादा लिया.... इसलिए मैंने इग्नौ से... करेस्पंडीग कोर्स में करने की कोशिश की.... पर...
जयंत - ह्म्म्म्म... तो अब जो चाहे हो.... तुम पहले अपना ग्रैजुएशन पुरा करोगे.....
विश्व - अगर (हिचकिचाते हुए) मेरा मतलब है...
जयंत - अगर.. खुदा ना खास्ता.... जैल भी हो जाए... तब भी तुम अपना ग्रैजुएशन पुरी करोगे.... समझे....
विश्व - पर कैसे...
जयंत - हमारा संविधान की धारा इक्कीस कहता है..... इंसान कैद में भी क्यों न हो.... वह उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकता है.... यह उसको दी हुई... संवैधानिक अधिकार है.... इसलिए तुम रुकना मत....
विश्व - ठीक है....
जयंत - विश्व.... एक बात याद रखना.... लक्ष्मी साथ छोड़ सकती है..... पर सरस्वती कभी साथ नहीं छोड़ती....
विश्व - जी....
जयंत - वैसे शुक्रवार को.. (हंसने की कोशिश करते हुए) रोणा ने मुझे... चौंका दिया.... अपना इकबालिया बयान के ज़रिए.... मेरी जिरह को भटका दिया....
विश्व - वह है ही बहुत शातिर.... साथ में वह वकील प्रधान.... और सर पर साया... क्षेत्रपाल का... रंग तो दिखना ही था.....
जयंत - ह्म्म्म्म (अपने में सर को हिला कर) अच्छा विश्व.... तुम पर गोली चली... तब कितने दूरी पर थे तुम....
विश्व - जी..... आधे फिट दूरी पर.....
जयंत - व्हाट.... इंपॉसिबल.... आधे फिट की दूरी से.... गोली चली होती... तो... तुम्हारे जांघ की पेशियां... छलनी... हो गई होती... और... गोली भी जांघ चिर कर.... निकल गई होती....
विश्व - हाँ आप जो कह रहे हैं.... वह सब होता.... मगर गोली मारने से पहले... इसकी बाकायदा तरबूज पर टेस्ट की गई थी.....
जयंत - क्या....
विश्व - हाँ... मुझे उल्टा सुलाया गया.... मेरे जांघ पर दो... कुशन रखे गये.... फ़िर गोली चलाई गई.... ताकि मेरे जांघ में गोली धंसी रहे...
जयंत - हे भगवान..... अच्छा विश्व.... तुम्हें... जब मालुम हुआ.... सरकार को... खबर करने की... तुमने कोशिश... क्यूँ नहीं की...
विश्व - मैंने किया था.... पर क़ामयाब नहीं हो पाया... (जयंत हैरानी से विश्व को देखता है) मैंने सात चिठ्ठीयाँ लिखी थी... पहला... राष्ट्रपति जी को... दुसरा... प्रधान मंत्री जी को... तीसरा... राज्यपाल जी को... चौथा.... मुख्यमंत्री जी को.... पांचवां... राज्य पुलिस अधीक्षक को.... छटा.... मुख्य न्यायाधीश उच्च न्यायालय को.... और सातवां.... राज्य के बैंक अधिकारी को....
जयंत - क्या.... (हैरान हो कर) तो फिर... मेरा मतलब है कि.... यह बात तो मुझे मालुम होता... तो केस अब तक शॉल्व हो चुका होता...
विश्व - हाँ शायद.... अगर उनको वह.... चिट्ठियां अगर मिल गई होती तो.....
जयंत - (ऐसे उठ खड़ा होता है जैसे बिजली का शॉक लगा) अब इसका क्या मतलब हुआ....
विश्व - वह चिट्ठियां... पोस्ट ऑफिस से ही... ग़ायब कर लिए गए....

जयंत धप् कर फ़िर से बैठ जाता है फ़िर अपने में सर हिलाता है जैसे उसे कुछ मालुम हो गया हो l वह विश्व के तरफ देखता है और मुस्करा कर

जयंत - अच्छा विश्व.... (फ़िर हंसते हुए) तुम्हें याद तो है ना....
विश्व - क्या.... (हैरान हो कर)
जयंत - यही... के.... मैं तुम्हें... जो भी दूँगा.... वह तुम रख लोगे....
विश्व - जी मुझे याद है....

जयंत के चेहरे पर एक गहरी मुस्कान उभर आती है l जैसे कुछ हासिल करने की खुशी उस मुस्कराहट में झलक रही है l

जयंत - अच्छा.... मैं अब चलता हूँ....

कहकर जयंत खड़ा होता है l उसके साथ साथ विश्व भी खड़ा होता है l जयंत की चाल में विश्व को कमजोरी दिखती है l तो विश्व जयंत के हाथ को थाम लेता है l जयंत उसे देख कर मुस्करा देता है l

जयंत - अगर हाथ थाम लिए हो.... तो बाहर तक भी छोड़ दो....

विश्व मुस्करा कर अपना हामी देता है l विश्व और जयंत दोनों लाइब्रेरी से उतरते हैं और तापस के कमरे में आते हैं l तापस उनको देख कर अपनी जगह से उठ खड़ा होता है l

जयंत - बैठ जाइए... सेनापति जी... बैठ जाइए.... यह आपका ही ऑफिस है.... (तापस हँस देता है) वैसे सेनापति बाबु... अगर बुरा ना मानें... तो आज ऑटो तक मुझे विश्व छोड़ दे....तो....
तापस - हाँ... हाँ... चलिए मैं भी आपको छोड़ देता हूँ.... वैसे आज आपके वह.... वह बॉडी गार्ड दिख नहीं रहे हैं...
जयंत - मैंने... अपनी सिक्युरिटी.... सरेंडर कर दिया.... कल ही....
विश्व - क्या... पर क्यूँ....
जयंत - यार सेनापति... यह दोनों बहन भाई... सवाल बहुत करते हैं...
तापस - वैसे... सवाल तो... जायज ही है... ना सर....
जयंत - (विश्व को और तापस दोनों को देख कर) सर कटाने की तमन्ना अब मेरे दिल में है.... देखना है जोर कितना बाजू ए क़ातिल में है....

विश्व जयंत का हाथ छोड़ देता है l जयंत यह देख कर हँस देता है l

जयंत - देखो सेनापति... अब गार्ड्स नहीं है... इसलिए इसकी बहन... मुझे छोड़ ही नहीं रही थी....मुझे मेरे ही घर में कैद कर... रखा है... मैंने भी चालाकी से... वैदेही को मुझे अंदर से बंद कर मंदिर जाने को कहा.... वैदेही ने ऐसा ही किया.... पर उसे मालुम नहीं था.... मेरे घर में एक खिड़की को चोर दरवाजा बना कर रखा था.... (हँसते हुए) वैदेही के मंदिर जाते ही मैं इधर आ गया.... (तापस भी उसके साथ हँस देता है) मुझे विश्व को कैद से निकालना है... इसलिए इसकी बहन मुझे कैद कर दे रही है...

फिर तापस और जयंत ठहाका लगा कर हँसते हैं l विश्व भी उनके साथ शर्माते हुए मुस्करा देता है l फ़िर तीनों जैल के बाहर आते हैं l बाहर गेट से कुछ दूर ऑटो खड़ी मिलती है l ऑटो के पास जयंत दोनों को रोक देता है और चलते हुए ऑटो तक पहुंच जाता है l ऑटो के पास पहुंच कर जयंत पीछे मुड़ कर विश्व को देखता है l दोनों एक दूसरे को देख कर मुस्करा देते हैं l शायद कुछ मौन सम्वाद था उन दोनों की मुस्कराहट में उन दोनों के बीच l ऑटो के भीतर जयंत बैठ जाता है l ऑटो धुआँ छोड़ते हुए निकल जाता है l विश्व वहीँ खड़ा ऑटो को अपनी आँखों से ओझल होते देखता है l फ़िर वह और तापस दोनों वापस जैल के अंदर लौट जाते हैं l तापस अपने ऑफिस कि ओर जाते जाते,

तापस - विश्व (आवाज़ देता है)
विश्व - (रुक जाता है और तापस की ओर मुड़ कर) जी...
तापस - बेस्ट ऑफ लक..... कल के लिए.... मैं दिल से प्रार्थना करूंगा...
विश्व - (चेहरे पर कोई भाव नहीं आता) जी धन्यबाद...

_____×_____×_____×_____×_____×_____×

जगन्नाथ मंदिर में सीढियों पर वैदेही बैठी हुई है l तभी पंडा आकर वहीं वैदेही के पास बैठ जाता है l उसे वैदेही के आँखों में चिंता और आंसू दोनों दिखते हैं l

पंडा - क्या बात है... वैदेही.... तुम दुखी भी हो.... और चिंतित भी...
वैदेही - आप तो सब जानते हैं... बाबा... फ़िर भी पुछ रहे हैं....
पंडा - फ़िर भी... तुम्हारे मुहँ से सुनना चाहता हूँ....
वैदेही - आज सुबह से.... जयंत सर जी को... घर से बाहर जाने नहीं दिया.... इसलिए मुझे बहाना बना कर खुद को घर में बंद कर दिया.... और मुझे मंदिर भेज दिया.... कहा... जाओ मेरे लिए.... निर्माल्य ले कर आओ.... मैं भागी भागी आई... आपसे निर्माल्य लेकर जब घर पहुंची... वह घर पर नहीं थे.... मुझे डर लग रहा है... कहीं कोई अनर्थ ना हो जाए....
पंडा - ओ... तो यह बात है.... देखो बेटी.... कल जो हुआ.... तुम उसकी चिंता ना करो.... वह इस तरह के हादसों से गुजर चुका है.... बस इतना जान लो... पिछले तीन सालों में... वह खुद को... सबसे दूर कर रखा था.... तुम और तुम्हारा भाई जब से... उसके जीवन में आए हो.... वह फ़िर से जी रहा है.... घर से निकल रहा है... सबसे घुल रहा है.... बातेँ कर रहा है.... तुम दोनों नहीं जानते.... तुम लोग उसके लिए... क्या मायने रखते हो....
वैदेही - क्या....
पंडा - अरे... बचपन का दोस्त है मेरा.... बाल मित्र.... उसे अच्छी तरह से जानता हूँ.... वह दिल से तुम लोगों से जुड़ गया है.... इसलिए.... वह जब तक विश्व को छुड़ा नहीं लेता.... तब तक वह खामोश नहीं बैठेगा.... दुश्मन चाहे कितना भी चाल... चल ले.... वह हर चाल का तोड़ रखता है....

तभी वैदेही उठने को होती है तो पंडा उसे रोक देता है

पंडा - रुको थोड़ी देर बाद... भगवान का संध्या पूजन के लिए... द्वार खुलेगा.... दर्शन कर चले जाना....

मंदिर में काम करने वाली एक महिला कर्मचारी पंडा जी के पास आती है और
महिला - नमस्ते बाबा....
पंडा - हाँ... क्या हुआ बेटी....
महिला - वह आप थोड़ा नीम का तेल दे देते...
पंडा - अच्छा.... वह जाओ गोविंद से मांग लो... वह दे देगा...
महिला - जी धन्यबाद.... (कह कर महिला चली जाती है)
वैदेही - (उसके जाते ही पंडा से पूछती है) बाबा... यह नीम का तेल...
पंडा - वह... अपने घर में रात को.... दिए में डाल कर जलाती है... ताकि मच्छर ना हों....
वैदेही - क्या नीम के तेल जलाने से... मच्छर नहीं आते....
पंडा - अरे बेटी..... नीम में साक्षात... जगन्नाथ जी का वास है.... उनकी मूर्ति... नीम के काठ से ही तो बनतीं है....
वैदेही - हाँ यह तो मैं जानती हूं.... पर नीम के तेल में यह गुण भी है... मुझे नहीं पता था....
पंडा - बेटी और एक रहस्य बताता हूँ.... पुराने ज़माने में.... लोग अपने घर की बहू बेटियों की.... शील रक्षा के लिए.... उनके सारे शरीर पर... नीम के तेल मल देते थे.... जिससे शरीर से.... बदबू आता था.... और यही बदबू.... उनके घरों की इज़्ज़त की रक्षा करती थी..... अब चलो दर्शन कर चले जाना.... अब असल में यह औरत मंदिर से... तेल इसी लिए... ले जाती है.... ताकि अपनी बेटियों के शरीर में मल सके और.... रह रही बस्ती में.... सड़क छाप गुंडों से अपनी बच्चियों को बचा सके....

वैदेही शाम के समय द्वार खुलने के बाद प्रथम दर्शन कर जयंत की घर के ओर चली जाती है l मंदिर में हुए पुजारी के बातों को लेकर सोच रही है l इतने में घर आ जाता है, वैदेही ताला खोल कर अंदर आती है तो जयंत को बैठे देखती है l

वैदेही - आ गए आप...
जयंत - अरे... मैं गया ही कहाँ था.... वह तो तुम अब जाकर आई हो....
वैदेही - मैं मंदिर से घर.... घर से मंदिर... चार चक्कर लगा कर आई हूँ.....
जयंत - अच्छा ठीक है.... मेरी माँ.... ठीक है.... अरे... कैद से उब गया था.... इसलिए.... बाहर थोड़ा घूमने चला गया.....

वैदेही उसे घूरती है, जयंत उसे यूँ घूरता देख कर

जयंत - देखो.... तुम मुझे मेरे ही घर में कैद कर दिया.... अरे... इंसान को थोड़ी बाहर की हवा भी खानी चाहिए....

वैदेही उसे घूर ना नहीं छोड़ती है तो

जयंत - देखो.... कभी बेटी कहा था.... अब माँ कह रहा हूँ.... अब अपने इस बुढ़े बेटे को माफ़ भी करो.....

वैदेही के चेहरे पर एक शरम भरी मुस्कान आ जाती है l

वैदेही - ठीक है.... अपनी माँ से कहो.... कहाँ गए थे....
जयंत - वह... अपनी मामा से मिलने गया था...

वैदेही की हंसी छूट जाती है l जयंत भी उसके साथ हँस देता है l वैदेही इतनी हंसती है कि वह हंसते हंसते लॉट पोट हो जाती है l

जयंत - ठीक है.... माँ... अब आगे कोई शैतानी नहीं करूंगा (वैदेही और जोर से हंसने लगती है) कहिए आपका क्या आदेश है....
वैदेही - (बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी को रोक कर) ठीक है.... बेटा.... कल तुम... अपनी माँ के साथ ही कोर्ट.... जाओगे..... और तब तक के लिए..... अब घरसे बाहर निकालना बंद....
जयंत - जैसी.... आपकी इच्छा माँ... जैसी आपकी इच्छा....

अब वैदेही से हंसी और बर्दाश्त नहीं हो पाती हा हा हा करके हंसने लगती है l खिड़की की कांच टूटने की आवाज़ आती है l वैदेही जी हंसी रुक जाती है l जयंत भी हैरान हो कर खिड़की की ओर देखता है l

वैदेही - यह... यह... क्या थी... सर....
जयंत - पता नहीं....

बस तभी जैसे पत्थरों की बरसात होने लगी खिड़की और दरवाजे पर l दोनों छिप जाते हैं अंदर आ रहे पत्थरों से बचने के लिए l करीब आधे घंटे के बाद पत्थरबाजी रुक जाती है l वैदेही निकल ने को होती है l जयंत उसे रोक देता है l कुछ देर बाद पुलिस की सायरन सुनाई देती है l कुछ देर बाद दरवाजे पर दस्तक होती है l

वैदेही - (थोड़ा डरते हुए) क....कौन है...
आवाज़ - पुलिस.... पूरी घाट थाने से....
वैदेही - ठीक है.... अपना आइडेंटी कार्ड... दरवाजे के नीचे से... अंदर सरकाइए...

वैदेही देखती है, एक कार्ड सरक कर अंदर आती है l वैदेही कार्ड को देखने के बाद दरवाज़ा खोल देती है l वर्दी में एक अफसर अंदर आता है l
अफसर - (जयंत से) सर आप ठीक तो हैं... ना सर....
जयंत - हाँ... आपका शुक्रिया सर.... पर आप यहाँ कैसे....
अफसर - सर यह पेट्रोलिंग जीप है.... अचानक हमारे आँखों के सामने दिखा.... सो... हम....
जयंत - ओके... अफसर... थैंक्यू... वेरी मच....

अफसर चला जाता है l जयंत एक गहरी सांस छोड़ता है और वैदेही को देखता है l वैदेही के आँखों में अब आँसू दिखाई दे रहा है l

जयंत - देखो माँ .... मुझे इस केस से हटने की बात ही मत करना....

_____×_____×_____×_____×_____×_____×

अगले दिन
सोमवार
अदालत के अंदर एक ओर भैरव सिंह एक कुर्सी पर पैर पर पैर डाले बैठा हुआ है, परीडा और रोणा उस कमरे में दरवाज़े की और देख रहे हैं l रोणा बीच में बार बार अपनी घड़ी देख रहा है l तभी बल्लभ उस कमरे में आता है l
बल्लभ - काम हो गया है.... यश ने जैसा कहा था.... उस आदमी ने... वैसा ही किया है.... पर कितना कारगर होगा.... मालुम नहीं है....

भैरव सिंह उसे सवालिया नजर से देखता है l

बल्लभ - राजा साहब.... फिरभी.... मैंने अपनी ओर से कोई कसर.... नहीं छोड़ा है....

रोणा - चलो देखते हैं... आगे क्या होता है.... हमने अपनी चाल चल दी है.... यश भी अपना चाल चल चुका है.... अब बस इंतजार ही कर सकते हैं....

दुसरी तरफ अदालत के अंदर वश रूम के बाहर वैदेही हाथ में कुछ फाइलें और गाउन लिए खड़ी है) I उसका चेहरे पर मोटी मोटी आँसूओं धार दिख रहे हैं l कुछ देर बाद खुद को साफ कर जयंत वश रूम से बाहर आता है l

जयंत - तुम रो क्यूँ रही हो....
वैदेही - आज कुछ... ज्यादा ही हो गया है....
जयंत - तुम इतनी सी बात पर.... रोने लग गई....
वैदेही - यह लोग तो आप के पीछे.... हाथ धो कर पीछे पड़े हैं....
जयंत - फिल्हाल धो तो मैं रहा हूँ.... वह लोग सिर्फ़ गंदा कर रहे हैं....
वैदेही - वह लोग.... आपके साथ ऐसा क्यूँ....
जयंत - देखो वैदेही.... मुझे रोने वाले चेहरे पसंद नहीं है..... इसलिए प्लीज.....
वैदेही - (अपनी आंखों से आँसू पोछते हुए) मैं अब नहीं रोउंगी.....
जयंत - अब लग रही हो.... मेरी अच्छी भली माँ....

वैदेही हँसने की कोशिश करती है l जयंत उसके हाथों से फाइल और गाउन ले लेता है l और कोर्ट रूम की ओर चल देता है, उसके पीछे पीछे वैदेही भी चल देती है l

उधर कोर्ट के परिसर के बाहर
पुलिस के लगाए बैरीकेट के बाहर भीड़ बहुत है l कुछ लोगों के हाथों में प्लाकार्ड्स दिख रहे हैं l सभी प्लाकार्ड्स में जयंत के खिलाफ़ स्लोगन लिखे हुए हैं l
एक कार्ड में लिखा है...
बताओ जयंत कुमार वकील
विश्व को छुड़ाने की कितनी हुई डील

दुसरे कार्ड में लिखा है....
जयंत तुम संविधान के रक्षक नहीं भक्षक हो

तीसरे में लिखा है....
जनता के पैसों के लुटेरा विश्व को
जयंत तुम स्वार्थ के चलते बचा रहे हो
ज़वाब दो

ऐसे ना जाने कितने कार्ड लोगों के हाथों में दिख रहे हैं l किन्ही किन्ही जगहों पर लोगों के हाथों में पुआल और घास से बनीं पुतलों पर जयंत के फोटो लगा है l और लोग उन पुतलों पर चप्पल मार रहे हैं और कहीं पर पुतलों को नीचे फेंक कर कुचल रहे हैं l ऐसे कुछ दृश्यों को अपने कैमरे में कैद कर लेने के बाद प्रज्ञा अपने ब्रॉडकास्ट वैन के पास आकर न्यूज रिपोर्टिंग करने लगती है

प्रज्ञा - सुप्रभात व शुभ प्रभात..... मैं प्रज्ञा.... आज कटक हाई कोर्ट से सीधे दर्शकों तक.....
जब पहले यह केस जनसाधारण के ज्ञात में आया.... तब लोगों का आक्रोश केवल विश्व तक सीमित था..... पर अब जन आक्रोश विश्व से लांघ कर.... सरकार और बचाव पक्ष के वकील के खिलाफ.... बहुत ही उग्र हो चुका है..... इतना उग्र के शनिवार को उन पर मंदिर के भीतर हमला हुआ..... कल शाम को उनके घर पर पत्थराव हुआ.... और आज किसीने कोर्ट के परिसर के भीतर..... जयंत राउत पर गोबर डाल दिया है..... गौर करने वाली बात यह है कि.... जब शनिवार को उन पर हमला शुरू हुआ.... तब उन्होंने अपने सुरक्षा के लिए तैनात दो गार्डों को.... सरकार को लौटा दिया.... चूंकि अदालत के अंदर उन पर गोबर फेंका गया है.... इसलिए अदालत एक घंटे के लिए स्थगित किया गया है...... और आसपास की सुरक्षा को..... और भी मजबूत किया गया है.... अब सबकी नजरें अदालत में.... राजा साहब की.... होने वाली गवाही पर गड़ी हुई है.... अब जब अदालत में फ़िर से सुनवाई प्रक्रिया शुरू होगी.... तब मैं फ़िर आप दर्शकों के मध्य लौटुंगी.... तब तक के लिए मैं प्रज्ञा... खबर ओड़िशा से.....


कोर्ट रूम में
सब अपने अपने जगह पर बैठे हुए हैं सिवाय भैरव सिंह के l विश्व अपनी कटघरे में खड़ा है l हॉकर सावधान करता है l सब अपने जगह पर खड़े हो जाते हैं l तीनों जज अपनी अपनी जगह पर काबिज हो जाते हैं l

मुख्य जज - ऑर्डर.. ऑर्डर.. ऑर्डर.... आज की कारवाई शुरू होने से पहले... जो बाधा उत्पन्न हुई.... अदालत उस घटना का घोर निंदा.. एवं.... खेद व्यक्त करती है..... फ़िर भी अदालत बचाव पक्ष से.... जानना चाहती है.... क्या आज की कारवाई आगे बढ़ाया जाए... या स्थगित किया जाए....

सबकी नजरें जयंत के तरफ घूम जाती है l जयंत अपनी कुर्सी से उठ खड़ा होता है l एक थकावट उसके चेहरे पर साफ दिख रहा है l चेहरा जो कभी दमक रहा था, आज उसका चेहरा तेज़ हीन निष्प्रभ दिख रहा है l बल्लभ एंड ग्रुप के चेहरे पर एक शैतानी खुशी आस लिए उच्छलती है l पर उनकी खुशी को काफूर कर

जयंत - नहीं योर ऑनर.... नहीं... आज की कारवाई रुकनी नहीं चाहिए.... चाहे कुछ भी हो जाए.... मुझे कुछ नहीं हुआ है योर ऑनर.... मैं शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत हूँ... स्वस्थ्य भी हूँ...
जज - आर... यु... श्योर... डिफेंस लॉयर...
जयंत - ऑफ कोर्स.... मायलर्ड.... मैं.... आज के ही कारवाई के लिए.... खुद को तैयार किया हुआ हूँ....
जज - ठीक है.... आज की कारवाई को आगे बढ़ाते हुए.... प्रोसिक्यूशन आप.... इंस्पेक्टर रोणा की बदले हुए बयान पर.... कोई मंतव्य देना चाहेंगी....

प्रतिभा - (अपनी जगह से उठ कर) मायलर्ड.... बेशक.... इंस्पेक्टर रोणा जी ने.... अपना बयान बदला ज़रूर है... पर इससे केस के रुख में... कोई बदलाव नहीं हुआ है..... इसलिए प्रोसिक्यूशन कोई जिरह नहीं करेगी.....
जज - ठीक है.... तो मिस्टर डिफेंस.... क्या आप जिरह को आगे बढ़ाना चाहेंगे....
जयंत - (थोड़ा खांसते हुए) मायलर्ड इस तथाकथित मनरेगा घोटाले की जांच अधिकारी की जांच ही गलत दिशा में थी... यह मैं साबित कर चुका हूँ.... जिनको एसआईटी ने.... मुख्य एवं... प्रमुख गवाह बनाया था.... वह (थोड़ा खांसते हुए) कितना बड़ा झूठा, ठग था जिसने इस... केस को ना सिर्फ भटकाया.... बल्कि... उस घोटाले की रकम में.... अपना हिस्सा भी कमाया.... खैर (सांस फूलने लगती है) एस्क्युज मी.... (कह कर थोड़ा पानी पीता है) मायलर्ड... मैं कह रहा था... खैर... एसआईटी के सपोर्ट इंवेस्टीगेटर... श्री श्री अनिकेत रोणा जी.... कितने नाकाबिल हैं... यह भी... मैं साबित कर चुका हूँ.... अब केवल.... वह व्यक्ति शेष हैं.... जिनके शिकायत के बाद.... इस घोटाले पर जांच बिठाया गया..... और (खांसने लगता है, फ़िर सम्भल ने के बाद) और... वह एसआईटी... के प्रथम गवाह जो ठहरे.... और मुझे विश्वास है योर ऑनर.... उनके गवाही के बाद.... दूध का दूध... पानी का पानी.... हो जाएगा.... इसलिए श्री भैरव सिंह क्षेत्रपाल जी की जिरह की इजाज़त दी जाए.... मायलर्ड....
जज - ठीक है.... तो.... प्रोसिक्यूशन.... आज यहाँ पर.... श्री क्षेत्रपाल जी दिखाई नहीं दे रहे हैं... क्या आपके पास कोई जानकारी है....
प्रतिभा - (अपनी जगह से खड़ी हो कर) जी मायलर्ड.... मुझे थोड़ी देर पहले..... श्री क्षेत्रपाल जी के लीगल एडवाइजर..... श्री बल्लभ प्रधान जी ने... इस बाबत जानकारी दी.... है.... पर योर ऑनर... मैं चाहती हूँ.... यह बात स्वयं.... प्रधान बाबु..... अदालत को बताएं.....

यह सुनते ही, बल्लभ हैरान हो कर प्रतिभा को देखता है l जब अदालत एक घंटे के लिए स्थगित हुआ था, तब बल्लभ जा कर प्रतिभा को भैरव सिंह के बारे में जानकारी दी थी l पर प्रतिभा ने उसे बेवजह वीटनेस बॉक्स में खड़ा कर दिया l वह गुस्से से प्रतिभा को देख रहा है कि उसे वीटनेस में आने के लिए बुलाया जाता है l बल्लभ बेमन से वीटनेस बॉक्स में खड़ा होता है l
जज - हाँ तो... प्रधान बाबु.... पिछली कारवाई में.... आपके क्षेत्रपाल जी थे... यह अदालत जानती है.... पर आज नहीं हैं... क्या कोई खास वजह....
बल्लभ - मायलर्ड.... यह इस कमरे में नहीं है.... उसके पीछे.... जनता की भावना जुड़ी हुई हैं... आज भी यशपुर की आम जनता.... उन्हें अपना राजा मानतीं हैं... और पूरे यशपुर की जनता उन्हें गवाह के कटघरे में.... देखना पसंद नहीं करेगी.... इसलिए उन्हीं की इच्छा का सम्मान करते हुए.... मैंने एक... एफिडेविट... प्रोसिक्यूशन को दी... के यहीं.... पास के कमरे से वह.... वीडियो कंफेरेंश के जरिए अपनी गवाही देंगे....
जयंत - (अपनी कुर्सी से उठ कर) आई ऑब्जेक्ट योर ऑनर.... आई स्ट्रॉन्गली दिस न्यूसेंस... मायलर्ड..... मैं हैरान हूँ.... मिस्टर प्रधान.... एक कानून के जानकार हैं... वह... ऐसा कैसे.... (खांसते).... कर... सकते हैं....
जज - आर यू ओके... मिस्टर डिफेंस....
जयंत - ऑफकोर्स मायलर्ड.... आई एम वेरी वेरी ओके नाउ.... मैं अर्ज़ कर रहा था... योर ऑनर.... आप, मैं, प्रतिभा जी, सेनापति जी, यह विश्व, यह वैदेही... हम सब भारत के नागरिक हैं.... हम सब संविधान से बंधे हुए हैं.... संविधान यानी... सम - विधान.... ना कोई राजा... ना कोई रंक.... सबके लिए... समान और यह... न्याय का मंदिर है... इस मंदिर में संविधान ने.... इस समय.... आपको निर्णय का और मुझे जिरह का अधिकार दिया है..... यह प्रधान बाबु... ना भूलें.... इस कटघरे में.... पूर्वतन प्रधान मंत्री भी खड़े हो चुके हैं..... और आप जिन राजा साहब की बात कर रहे हैं.... उनकी राज शाही की सीमा.... राजगड़ तक ही है.... यह ना भूलें.... और यहाँ.... जिस घोटाले की जांच पर बहस हो रही है.... वह भारत सरकार की पैसे हैं.... इसलिए चूंकि वह यहाँ उपस्थित हैं.... उन्हें कहिए.... के वह.... कानून का सम्मान करते हुए.... अपनी वीटनेस बॉक्स पर आयें... और अपना बयान दर्ज कराएं....

इतना कह कर जयंत भले ही अदालत में चुप हो जाता है पर जयंत की बुलंद आवाज़ उस अदालत में गूंजती रहती है l सब के सब शुन हो जाते हैं l सिर्फ़ कमरे में पंखे की आवाज़ और कुछ पेपर फड़फड़ा ने की आवाज सुनाई दे रही है l जयंत हांफते हुए अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है और पास रखे पानी की ग्लास से पानी पीता है l
जज - यह अदालत.... डिफेंस के द्वारा दिए गए दलील से.... इत्तेफाक रखती है.... ऑब्जेक्शन सस्टेंन... मिस्टर प्रधान.... आप अपने राजा जी से कहें.... यहाँ वह कानून का सम्मान करें......

यह सुनते ही प्रधान बड़ी मुश्किल से कोर्ट रूम से बाहर जाता है और कुछ मिनटों बाद भैरव सिंह के साथ कोर्ट रूम में आता है l

जज - मनानीय... क्षेत्रपाल जी... आप बहुत प्रतिष्ठित, सम्मानित तथा लोकप्रिय व्यक्तित्व हैं.... पर यह भी सत्य है.... आप बहुत शिक्षित भी हैं... इसलिए आज आप वीटनेस बॉक्स में अपनी जिरह के जरिए.... इस अदालत व भारतीय न्याय व्यवस्था का सम्मान करें.....
बल्लभ - जी.... मायलर्ड.... राजा साहब कानून व न्याय प्रणाली को सम्मान करते हैं.... तभी तो आज इस कमरे में.... उपस्थित हैं....

भैरव सिंह ख़ामोशी से वीटनेस बॉक्स में आकर खड़ा होता है l राइटर गीता लेकर भैरव सिंह के सामने आता है l

राइटर - ग्... ग्.. ग्... गीता प.. प्... पे.. हाथ रख कर....
भैरव सिंह - जज साहब.... हम कभी झूठ नहीं बोला है.... आज भी हम सच ही बोलेंगे....
जज - प्रोसिक्यूशन.... आप अपनी जिरह आरंभ कर सकते हैं....
प्रतिभा - (अपनी कुर्सी से उठ कर) मायलर्ड.... मुझे नहीं लगता है.... की मुझे कुछ पूछना चाहिए..... क्यूंकि इस केस की जांच.... राजा साहब के मौखिक शिकायत पर.... शुरू हुई थी.... जिसके वजह से.... एसआईटी का गठन हुआ.... और इतने बड़े घोटाले पर.... पर्दा हटा..... इसलिए... बचाव पक्ष क्या... अधिक जानना चाहता है.... अपनी जिरह से.... यह जानने के बाद ही.... मैं कोई मत व्यक्त कर सकती हूँ....
जज - ठीक है.... अब अदालत... मिस्टर डिफेंस को जिरह की इजाज़त देती है....

यह सुनते ही प्रतिभा अपनी जगह बैठ जाती है और जयंत को देखती है l जयंत का बायाँ हाथ टेबल पर है, वह भैरव सिंह को देख रहा है l

जज - मिस्टर डिफेंस...(जयंत वैसे ही बैठा रहता है) मिस्टर डिफेंस....

जयंत वैसे ही बैठा हुआ है, कोई प्रतिक्रिया नहीं देता है, जज दो बार अपना हथोड़ा टेबल पर मारता है l फ़िर भी जयंत से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलता l जज अपने कुर्सी से खड़ा हो जाता है l सभी अपनी अपनी कुर्सी से खड़े हो जाते हैं l सबकी नजर जयंत पर टिक जाती है l कोर्ट रूम के भीतर मरघट की सन्नाटा सबको महसूस होती है l

जज - मिस्टर डिफेंस....

कोई प्रतिक्रिया ना मिलने से वैदेही अपनी जगह से उठ कर जयंत के पास पहुंचती है l डरते डरते वह जयंत के कंधे पर हाथ रख कर जयंत को जरा सा हिलाती है l जयंत अपनी कुर्सी से नीचे गिर जाता है l वैदेही चिल्ला कर पीछे हटती है पर विश्व अपने कटघरे से बाहर निकल कर जयंत के पास आता है और जयंत को अपने दोनों बाहों से उठा कर वकीलों के टेबल पर सुला देता है l तापस जयंत के गले की नस पर हाथ रखकर देखता है, फ़िर अपना कैप उतार कर जज की ओर देखता है l जज तापस की बात समझ जाता है और इमर्जेंसी बटन दबाता है l
 

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सेंट्रल जैल
रविवार
बालु और उसके पास खड़े उसके दो सहयोगी हैरानी भरे दृष्टि से देखे जा रहे हैं l दो सहयोगी में से एक बालु के पास आकर इशारे से पूछता है क्या हुआ है इसे l बालु अपने कंधे उचक कर और अपने चेहरे पर ना जानने की बात बताता है l सब उस तरफ देखे जा रहे हैं l विश्व एक मोटे ब्लैंकेट को गिले फर्श से उठा कर पत्थर पर पटक रहा है पिछले एक घंटे से l ऐसे पटक रहा है जैसे किसी आदमी को गुस्से से पटक रहा हो l रंगा के कांड के बाद कैदियों में विश्व की एक अलग पहचान बन गया है l इसलिए बालु भी विश्व को कुछ कहने से हिचकिचा रहा है l तभी एक संत्री भाग कर आता है,

संत्री - विश्व.... आरे.... विश्व....

विश्व नहीं सुनता है, वैसे ही अपने धुन में ब्लैंकेट को पत्थर पर पटक रहा है l

संत्री - (इस बार चिल्लाते हुए) वी.... श्व... अरे भाई रुको.... विश्व....

विश्व रुक जाता है, और संत्री को सवालिया नजर से देखता है l

संत्री - (थोड़ा हांफते हुए) सुपरिटेंडेंट सर ने.... अपने ऑफिस में तुमको.... बुलाया है....

विश्व कुछ नहीं कहता है l उस ब्लैंकेट को वहीँ छोड़ कर दीवार पर टंगे अपनी कुर्ता निकाल कर पहन लेता है l

विश्व - बालु भाई.... मैं सेनापति सर जी से मिल कर आता हूँ....
बालु - ठीक है विश्व.... वैसे अगर काम बड़ा हो तो... रुक जाना.... हम यहाँ का देख लेंगे....
विश्व - धन्यबाद.... बालु भाई.... धन्यबाद....

बालु अपने चेहरे पर एक हंसी लाने की कोशिश करता है l पर विश्व उसे देखे बगैर बिना कुछ प्रतिक्रिया के वहाँ से चला जाता है l विश्व के पीछे पीछे संत्री भी चला जाता है l

सहयोगी 1 - क्या बात है गुरु.... आज विश्व.... बहुत गुस्से में क्यूँ लग रहा है....
सहयोगी 2 - हाँ... साला... जैसे पत्थर पर ब्लैंकेट नहीं... किसी दुश्मन को उठा कर पटक रहा है....
बालु - हाँ क्यूँ नहीं.... जिसने भी... विश्व के वकील को थप्पड़ मारने की कोशिश की है.... विश्व उसी को इमेजिन कर.... ब्लैंकेट पटक रहा था....
सहयोगी 1 - क्यूँ... विश्व के वकील को.... मारने की नौबत क्यूँ आई....
बालु - सिंपल है बे.... लोग नाराज हैं.... इसलिए....
सहयोगी 2 - अच्छा.... पहले विश्व से नाराज थे.... अब इस वकील से नाराज हैं.... पर ऐसा क्यूँ...
बालु - लोग पहले विश्व से नाराज थे.... क्यूंकि उनको लगा... विश्व अकेला इतना बड़ा रकम गटक गया.... वह भी बिना डकार लिए.... और किसीको फूटी कौड़ी भी नहीं दिआ.... इसलिए लोग नाराज थे... विश्व से...
सहयोगी 1 - ह्म्म्म्म... अच्छा... पर वकील से क्यूँ नाराज हैं....
बालु - अबे.... वे लोग अब वकील से इसलिए नाराज हैं.... क्यूंकि... उन्हें लगता है... विश्व के पास अब जितना निकलेगा.... उसमें वकील.... जरूर अपना हिस्सा बटोर लेगा.... लोगों के हिस्से में तब भी ठेंगा था.... अब भी ठेंगा ही है....
दोनों - ओ..... तो यह बात है....
बालु - बस बस.... बहुत हो गई... बकचोदी.... अब लग जाओ अपने काम पर.... वरना विश्व आएगा.... ब्लैंकेट छोड़ कर... हम सबको धोएगा....

उधर विश्व तापस के चैम्बर में आता है l तापस जैसे विश्व का ही इंतजार कर रहा हो ऐसे विश्व को देख कर विश्व के पास आता है l

तापस - आओ विश्व आओ... अरे.. यह क्या... तुम्हारा पजामा घुटने के नीचे से भिगा हुआ है...
विश्व - जी वह... मैं.. ब्लैंकेट और चादर धो रहा था....
तापस - ओह... अच्छा... ठीक है... जाओ... लाइब्रेरी जाओ.... वहाँ... तुम्हारा कोई... इंतजार कर रहे हैं.... जाओ..
विश्व - कौन हैं सर....
तापस - जाओ मिल लो.... तुम्हारे... अपने ही हैं....

विश्व कुछ सोचने लगता है, फिर लाइब्रेरी की ओर बढ़ जाता है l जैसे जैसे लाइब्रेरी की ओर जा रहा है, उसके दिल में ना जाने कैसी उथलपुथल हो रही है l वह लाइब्रेरी की दरवाजा जो आधा बंद दिखा उसे धक्का दे कर पूरा खोलता है l उसे भीतर एक बुजुर्ग आदमी दिखता है l चेहरा मुर्झा हुआ, रौनक गायब बीमार सा एक आदमी एक चेयर पर बैठा हुआ है l विश्व पहचान जाता है l विश्व की आंखे नम हो जाती है होंठ थरथराने लगते हैं l

विश्व - सर.... आ... आप... यह आपकी ऐसी हालत...

जयंत अपना सर उठा कर विश्व को देखता है l जयंत के चेहरे पर मुस्कान तो दिखती है पर जयंत के चेहरे पर विश्व को वह रौनक, वह तेज नहीं दिखती, अपने उम्र से भी कहीं बड़ा और बुढ़ा दिख रहा है l

जयंत - आओ विश्व आओ.... (थके हुए आवाज़ में, एक कुर्सी की ओर इशारा करते हुए) आओ यहाँ बैठो....
विश्व - आ.. आपका यह हालत (कुर्सी पर बैठते हुए भारी गले से) म.. मेरी वजह से... है ना..
जयंत - (थोड़ा खीज जाता है) ओ... विश्व... तुम भी अपने दीदी की तरह.... शुरू मत हो जाना.... (विश्व खामोश हो जाता है l उसे खामोश देख कर) अरे भाई... मैं तुम से कुछ बात करने आया हूँ... और तुम हो कि... खामोश हो कर बैठ गए हो....
विश्व - अब... अब मैं क्या कहूँ.... सर.... पैदाइश बदनसीब हूँ... पैदा होते ही... माँ को खा गया.... सातवीं में एनआरटीएस की स्कॉलरशिप जीती तो... पिता को हमेशा के लिए खो बैठा और बहन मुझसे दूर हो गई... जब लोगों का भला करने के लिए, दुनिया बदलने के लिए..... आगे आया.... तो यह सब हो गया... कुछ लोगों की जाने चली गई.... और मैं इस जैल में पहुंच गया.... और अब आप के साथ....
जयंत - बस... बहुत हुआ.... मैं यहाँ... तुम्हारे केस के बाबत... कुछ जानने आया था.... और तुम अपना दुखड़ा पुराण लेके बैठ गए....
विश्व - सॉरी... मुझे माफ कर दीजिए....
जयंत - देखो विश्व.... मैं फ़िर से और आखिरी बार... कह रहा हूँ.... क्यूंकि मुझे अपनी बात दोहराना... अच्छा नहीं लगता.... (विश्व अपना सर उठा कर जयंत की ओर देखता है) कभी भी... तुम कितने दुखी हो... टूटे हुए हो... दुनिया को ना दिखाना... ना ही जताना.... यह कमजोरों की निशानी है... यह दुनिया वाले सोचेंगे... तुम कमजोर हो... तुम उनसे सहानुभूति पाने की कोशिश कर रहे हो.... यह दुनिया बड़ी क्रूर है.... हम भले ही चांद पर पहुंच जाएं.... पर जंगल के नियम कोई छोड़ नहीं सकता... यहाँ हर ताकतवर अपने से कमजोर पर... हावी होने की कोशिश करते हैं... इसलिए किसी से सहानुभूति पाने की कोशिश भी मत करो.... आज जो लोग तुम्हारे नाम पर रोटियाँ... सेंक रहे हैं.... कल को तुमको भूलने में... जरा भी व्यक्त नहीं लगाएंगे.... इसलिए दुनिया की मत सोचो.... परवाह मत करो... बस कमजोर मत बनो.... बड़े बड़े आए और चल दिए.... दुनिया को कोई नहीं बदल पाया.... हमे दुनिया की परवाह नहीं करना चाहिए.... पर अपनी समाज की जरूर करनी चाहिए.... दुनिया और समाज दोनों अलग हैं.... तुम समाज बदलने की सोचना.... दुनिया अपने आप बदल जाएगी...

विश्व जयंत को देखता है l जयंत भले ही कमजोर दिख रहा है, उसके चेहरे पर भले ही वह तेज वह रौनक नजर ना आता हो पर आवाज़ में और लहजे में वही पुराना जयंत लग रहा है l विश्व को यह एहसास होते ही अंदर से अच्छा महसूस करता है l

जयंत - विश्व... एक पारिवारिक अहंकार की वेदी पर..... एक समाज पीढ़ी दर पीढ़ी... बलि चढ़ रही है.... उस भीड़ में तुम भी शामिल हो... तुमने भीड़ हट कर अलग पहचान बनाने की कोशिश की.... परिणाम तुम्हें यहाँ पहुंचा दिया....

विश्व का चेहरा एक दम गंभीर हो जाता है l उसे महसूस होता है जयंत की आवाज़ उसके भीतर एक सिहरन दौड़ा दे रही है l

जयंत - अच्छा विश्व एक बात बताओ....
विश्व - जी पूछिए...
जयंत - भैरव सिंह को... कब मालुम हुआ.... के तुम... ग्रैजुएशन करने जा रहे हो.... या कर रहे हो....
विश्व - जब मैं... नोमिनेशन फॉर्म में... अपना एजुकेशन के बारे में.... मेनशन किया था... तब शायद...
जयंत - ह्म्म्म्म ( कुछ सोचते हुए) अच्छा विश्व... तुम्हें कभी अचरज नहीं हुई.... के राज परिवार को छोड़ कर.... पूरे राजगड़ में कोई दुसरा ग्रैजुएट नहीं है....
विश्व - जी कभी गौर ही नहीं किया था.... एक बार दीदी ने मुझे कहा कि.... मुझे ग्रैजुएशन करनी चाहिए... मैंने पहले मना कर दिया.... पर दीदी ने मुझ से वादा लिया.... इसलिए मैंने इग्नौ से... करेस्पंडीग कोर्स में करने की कोशिश की.... पर...
जयंत - ह्म्म्म्म... तो अब जो चाहे हो.... तुम पहले अपना ग्रैजुएशन पुरा करोगे.....
विश्व - अगर (हिचकिचाते हुए) मेरा मतलब है...
जयंत - अगर.. खुदा ना खास्ता.... जैल भी हो जाए... तब भी तुम अपना ग्रैजुएशन पुरी करोगे.... समझे....
विश्व - पर कैसे...
जयंत - हमारा संविधान की धारा इक्कीस कहता है..... इंसान कैद में भी क्यों न हो.... वह उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकता है.... यह उसको दी हुई... संवैधानिक अधिकार है.... इसलिए तुम रुकना मत....
विश्व - ठीक है....
जयंत - विश्व.... एक बात याद रखना.... लक्ष्मी साथ छोड़ सकती है..... पर सरस्वती कभी साथ नहीं छोड़ती....
विश्व - जी....
जयंत - वैसे शुक्रवार को.. (हंसने की कोशिश करते हुए) रोणा ने मुझे... चौंका दिया.... अपना इकबालिया बयान के ज़रिए.... मेरी जिरह को भटका दिया....
विश्व - वह है ही बहुत शातिर.... साथ में वह वकील प्रधान.... और सर पर साया... क्षेत्रपाल का... रंग तो दिखना ही था.....
जयंत - ह्म्म्म्म (अपने में सर को हिला कर) अच्छा विश्व.... तुम पर गोली चली... तब कितने दूरी पर थे तुम....
विश्व - जी..... आधे फिट दूरी पर.....
जयंत - व्हाट.... इंपॉसिबल.... आधे फिट की दूरी से.... गोली चली होती... तो... तुम्हारे जांघ की पेशियां... छलनी... हो गई होती... और... गोली भी जांघ चिर कर.... निकल गई होती....
विश्व - हाँ आप जो कह रहे हैं.... वह सब होता.... मगर गोली मारने से पहले... इसकी बाकायदा तरबूज पर टेस्ट की गई थी.....
जयंत - क्या....
विश्व - हाँ... मुझे उल्टा सुलाया गया.... मेरे जांघ पर दो... कुशन रखे गये.... फ़िर गोली चलाई गई.... ताकि मेरे जांघ में गोली धंसी रहे...
जयंत - हे भगवान..... अच्छा विश्व.... तुम्हें... जब मालुम हुआ.... सरकार को... खबर करने की... तुमने कोशिश... क्यूँ नहीं की...
विश्व - मैंने किया था.... पर क़ामयाब नहीं हो पाया... (जयंत हैरानी से विश्व को देखता है) मैंने सात चिठ्ठीयाँ लिखी थी... पहला... राष्ट्रपति जी को... दुसरा... प्रधान मंत्री जी को... तीसरा... राज्यपाल जी को... चौथा.... मुख्यमंत्री जी को.... पांचवां... राज्य पुलिस अधीक्षक को.... छटा.... मुख्य न्यायाधीश उच्च न्यायालय को.... और सातवां.... राज्य के बैंक अधिकारी को....
जयंत - क्या.... (हैरान हो कर) तो फिर... मेरा मतलब है कि.... यह बात तो मुझे मालुम होता... तो केस अब तक शॉल्व हो चुका होता...
विश्व - हाँ शायद.... अगर उनको वह.... चिट्ठियां अगर मिल गई होती तो.....
जयंत - (ऐसे उठ खड़ा होता है जैसे बिजली का शॉक लगा) अब इसका क्या मतलब हुआ....
विश्व - वह चिट्ठियां... पोस्ट ऑफिस से ही... ग़ायब कर लिए गए....

जयंत धप् कर फ़िर से बैठ जाता है फ़िर अपने में सर हिलाता है जैसे उसे कुछ मालुम हो गया हो l वह विश्व के तरफ देखता है और मुस्करा कर

जयंत - अच्छा विश्व.... (फ़िर हंसते हुए) तुम्हें याद तो है ना....
विश्व - क्या.... (हैरान हो कर)
जयंत - यही... के.... मैं तुम्हें... जो भी दूँगा.... वह तुम रख लोगे....
विश्व - जी मुझे याद है....

जयंत के चेहरे पर एक गहरी मुस्कान उभर आती है l जैसे कुछ हासिल करने की खुशी उस मुस्कराहट में झलक रही है l

जयंत - अच्छा.... मैं अब चलता हूँ....

कहकर जयंत खड़ा होता है l उसके साथ साथ विश्व भी खड़ा होता है l जयंत की चाल में विश्व को कमजोरी दिखती है l तो विश्व जयंत के हाथ को थाम लेता है l जयंत उसे देख कर मुस्करा देता है l

जयंत - अगर हाथ थाम लिए हो.... तो बाहर तक भी छोड़ दो....

विश्व मुस्करा कर अपना हामी देता है l विश्व और जयंत दोनों लाइब्रेरी से उतरते हैं और तापस के कमरे में आते हैं l तापस उनको देख कर अपनी जगह से उठ खड़ा होता है l

जयंत - बैठ जाइए... सेनापति जी... बैठ जाइए.... यह आपका ही ऑफिस है.... (तापस हँस देता है) वैसे सेनापति बाबु... अगर बुरा ना मानें... तो आज ऑटो तक मुझे विश्व छोड़ दे....तो....
तापस - हाँ... हाँ... चलिए मैं भी आपको छोड़ देता हूँ.... वैसे आज आपके वह.... वह बॉडी गार्ड दिख नहीं रहे हैं...
जयंत - मैंने... अपनी सिक्युरिटी.... सरेंडर कर दिया.... कल ही....
विश्व - क्या... पर क्यूँ....
जयंत - यार सेनापति... यह दोनों बहन भाई... सवाल बहुत करते हैं...
तापस - वैसे... सवाल तो... जायज ही है... ना सर....
जयंत - (विश्व को और तापस दोनों को देख कर) सर कटाने की तमन्ना अब मेरे दिल में है.... देखना है जोर कितना बाजू ए क़ातिल में है....

विश्व जयंत का हाथ छोड़ देता है l जयंत यह देख कर हँस देता है l

जयंत - देखो सेनापति... अब गार्ड्स नहीं है... इसलिए इसकी बहन... मुझे छोड़ ही नहीं रही थी....मुझे मेरे ही घर में कैद कर... रखा है... मैंने भी चालाकी से... वैदेही को मुझे अंदर से बंद कर मंदिर जाने को कहा.... वैदेही ने ऐसा ही किया.... पर उसे मालुम नहीं था.... मेरे घर में एक खिड़की को चोर दरवाजा बना कर रखा था.... (हँसते हुए) वैदेही के मंदिर जाते ही मैं इधर आ गया.... (तापस भी उसके साथ हँस देता है) मुझे विश्व को कैद से निकालना है... इसलिए इसकी बहन मुझे कैद कर दे रही है...

फिर तापस और जयंत ठहाका लगा कर हँसते हैं l विश्व भी उनके साथ शर्माते हुए मुस्करा देता है l फ़िर तीनों जैल के बाहर आते हैं l बाहर गेट से कुछ दूर ऑटो खड़ी मिलती है l ऑटो के पास जयंत दोनों को रोक देता है और चलते हुए ऑटो तक पहुंच जाता है l ऑटो के पास पहुंच कर जयंत पीछे मुड़ कर विश्व को देखता है l दोनों एक दूसरे को देख कर मुस्करा देते हैं l शायद कुछ मौन सम्वाद था उन दोनों की मुस्कराहट में उन दोनों के बीच l ऑटो के भीतर जयंत बैठ जाता है l ऑटो धुआँ छोड़ते हुए निकल जाता है l विश्व वहीँ खड़ा ऑटो को अपनी आँखों से ओझल होते देखता है l फ़िर वह और तापस दोनों वापस जैल के अंदर लौट जाते हैं l तापस अपने ऑफिस कि ओर जाते जाते,

तापस - विश्व (आवाज़ देता है)
विश्व - (रुक जाता है और तापस की ओर मुड़ कर) जी...
तापस - बेस्ट ऑफ लक..... कल के लिए.... मैं दिल से प्रार्थना करूंगा...
विश्व - (चेहरे पर कोई भाव नहीं आता) जी धन्यबाद...

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जगन्नाथ मंदिर में सीढियों पर वैदेही बैठी हुई है l तभी पंडा आकर वहीं वैदेही के पास बैठ जाता है l उसे वैदेही के आँखों में चिंता और आंसू दोनों दिखते हैं l

पंडा - क्या बात है... वैदेही.... तुम दुखी भी हो.... और चिंतित भी...
वैदेही - आप तो सब जानते हैं... बाबा... फ़िर भी पुछ रहे हैं....
पंडा - फ़िर भी... तुम्हारे मुहँ से सुनना चाहता हूँ....
वैदेही - आज सुबह से.... जयंत सर जी को... घर से बाहर जाने नहीं दिया.... इसलिए मुझे बहाना बना कर खुद को घर में बंद कर दिया.... और मुझे मंदिर भेज दिया.... कहा... जाओ मेरे लिए.... निर्माल्य ले कर आओ.... मैं भागी भागी आई... आपसे निर्माल्य लेकर जब घर पहुंची... वह घर पर नहीं थे.... मुझे डर लग रहा है... कहीं कोई अनर्थ ना हो जाए....
पंडा - ओ... तो यह बात है.... देखो बेटी.... कल जो हुआ.... तुम उसकी चिंता ना करो.... वह इस तरह के हादसों से गुजर चुका है.... बस इतना जान लो... पिछले तीन सालों में... वह खुद को... सबसे दूर कर रखा था.... तुम और तुम्हारा भाई जब से... उसके जीवन में आए हो.... वह फ़िर से जी रहा है.... घर से निकल रहा है... सबसे घुल रहा है.... बातेँ कर रहा है.... तुम दोनों नहीं जानते.... तुम लोग उसके लिए... क्या मायने रखते हो....
वैदेही - क्या....
पंडा - अरे... बचपन का दोस्त है मेरा.... बाल मित्र.... उसे अच्छी तरह से जानता हूँ.... वह दिल से तुम लोगों से जुड़ गया है.... इसलिए.... वह जब तक विश्व को छुड़ा नहीं लेता.... तब तक वह खामोश नहीं बैठेगा.... दुश्मन चाहे कितना भी चाल... चल ले.... वह हर चाल का तोड़ रखता है....

तभी वैदेही उठने को होती है तो पंडा उसे रोक देता है

पंडा - रुको थोड़ी देर बाद... भगवान का संध्या पूजन के लिए... द्वार खुलेगा.... दर्शन कर चले जाना....

मंदिर में काम करने वाली एक महिला कर्मचारी पंडा जी के पास आती है और
महिला - नमस्ते बाबा....
पंडा - हाँ... क्या हुआ बेटी....
महिला - वह आप थोड़ा नीम का तेल दे देते...
पंडा - अच्छा.... वह जाओ गोविंद से मांग लो... वह दे देगा...
महिला - जी धन्यबाद.... (कह कर महिला चली जाती है)
वैदेही - (उसके जाते ही पंडा से पूछती है) बाबा... यह नीम का तेल...
पंडा - वह... अपने घर में रात को.... दिए में डाल कर जलाती है... ताकि मच्छर ना हों....
वैदेही - क्या नीम के तेल जलाने से... मच्छर नहीं आते....
पंडा - अरे बेटी..... नीम में साक्षात... जगन्नाथ जी का वास है.... उनकी मूर्ति... नीम के काठ से ही तो बनतीं है....
वैदेही - हाँ यह तो मैं जानती हूं.... पर नीम के तेल में यह गुण भी है... मुझे नहीं पता था....
पंडा - बेटी और एक रहस्य बताता हूँ.... पुराने ज़माने में.... लोग अपने घर की बहू बेटियों की.... शील रक्षा के लिए.... उनके सारे शरीर पर... नीम के तेल मल देते थे.... जिससे शरीर से.... बदबू आता था.... और यही बदबू.... उनके घरों की इज़्ज़त की रक्षा करती थी..... अब चलो दर्शन कर चले जाना.... अब असल में यह औरत मंदिर से... तेल इसी लिए... ले जाती है.... ताकि अपनी बेटियों के शरीर में मल सके और.... रह रही बस्ती में.... सड़क छाप गुंडों से अपनी बच्चियों को बचा सके....

वैदेही शाम के समय द्वार खुलने के बाद प्रथम दर्शन कर जयंत की घर के ओर चली जाती है l मंदिर में हुए पुजारी के बातों को लेकर सोच रही है l इतने में घर आ जाता है, वैदेही ताला खोल कर अंदर आती है तो जयंत को बैठे देखती है l

वैदेही - आ गए आप...
जयंत - अरे... मैं गया ही कहाँ था.... वह तो तुम अब जाकर आई हो....
वैदेही - मैं मंदिर से घर.... घर से मंदिर... चार चक्कर लगा कर आई हूँ.....
जयंत - अच्छा ठीक है.... मेरी माँ.... ठीक है.... अरे... कैद से उब गया था.... इसलिए.... बाहर थोड़ा घूमने चला गया.....

वैदेही उसे घूरती है, जयंत उसे यूँ घूरता देख कर

जयंत - देखो.... तुम मुझे मेरे ही घर में कैद कर दिया.... अरे... इंसान को थोड़ी बाहर की हवा भी खानी चाहिए....

वैदेही उसे घूर ना नहीं छोड़ती है तो

जयंत - देखो.... कभी बेटी कहा था.... अब माँ कह रहा हूँ.... अब अपने इस बुढ़े बेटे को माफ़ भी करो.....

वैदेही के चेहरे पर एक शरम भरी मुस्कान आ जाती है l

वैदेही - ठीक है.... अपनी माँ से कहो.... कहाँ गए थे....
जयंत - वह... अपनी मामा से मिलने गया था...

वैदेही की हंसी छूट जाती है l जयंत भी उसके साथ हँस देता है l वैदेही इतनी हंसती है कि वह हंसते हंसते लॉट पोट हो जाती है l

जयंत - ठीक है.... माँ... अब आगे कोई शैतानी नहीं करूंगा (वैदेही और जोर से हंसने लगती है) कहिए आपका क्या आदेश है....
वैदेही - (बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी को रोक कर) ठीक है.... बेटा.... कल तुम... अपनी माँ के साथ ही कोर्ट.... जाओगे..... और तब तक के लिए..... अब घरसे बाहर निकालना बंद....
जयंत - जैसी.... आपकी इच्छा माँ... जैसी आपकी इच्छा....

अब वैदेही से हंसी और बर्दाश्त नहीं हो पाती हा हा हा करके हंसने लगती है l खिड़की की कांच टूटने की आवाज़ आती है l वैदेही जी हंसी रुक जाती है l जयंत भी हैरान हो कर खिड़की की ओर देखता है l

वैदेही - यह... यह... क्या थी... सर....
जयंत - पता नहीं....

बस तभी जैसे पत्थरों की बरसात होने लगी खिड़की और दरवाजे पर l दोनों छिप जाते हैं अंदर आ रहे पत्थरों से बचने के लिए l करीब आधे घंटे के बाद पत्थरबाजी रुक जाती है l वैदेही निकल ने को होती है l जयंत उसे रोक देता है l कुछ देर बाद पुलिस की सायरन सुनाई देती है l कुछ देर बाद दरवाजे पर दस्तक होती है l

वैदेही - (थोड़ा डरते हुए) क....कौन है...
आवाज़ - पुलिस.... पूरी घाट थाने से....
वैदेही - ठीक है.... अपना आइडेंटी कार्ड... दरवाजे के नीचे से... अंदर सरकाइए...

वैदेही देखती है, एक कार्ड सरक कर अंदर आती है l वैदेही कार्ड को देखने के बाद दरवाज़ा खोल देती है l वर्दी में एक अफसर अंदर आता है l
अफसर - (जयंत से) सर आप ठीक तो हैं... ना सर....
जयंत - हाँ... आपका शुक्रिया सर.... पर आप यहाँ कैसे....
अफसर - सर यह पेट्रोलिंग जीप है.... अचानक हमारे आँखों के सामने दिखा.... सो... हम....
जयंत - ओके... अफसर... थैंक्यू... वेरी मच....

अफसर चला जाता है l जयंत एक गहरी सांस छोड़ता है और वैदेही को देखता है l वैदेही के आँखों में अब आँसू दिखाई दे रहा है l

जयंत - देखो माँ .... मुझे इस केस से हटने की बात ही मत करना....

_____×_____×_____×_____×_____×_____×

अगले दिन
सोमवार
अदालत के अंदर एक ओर भैरव सिंह एक कुर्सी पर पैर पर पैर डाले बैठा हुआ है, परीडा और रोणा उस कमरे में दरवाज़े की और देख रहे हैं l रोणा बीच में बार बार अपनी घड़ी देख रहा है l तभी बल्लभ उस कमरे में आता है l
बल्लभ - काम हो गया है.... यश ने जैसा कहा था.... उस आदमी ने... वैसा ही किया है.... पर कितना कारगर होगा.... मालुम नहीं है....

भैरव सिंह उसे सवालिया नजर से देखता है l

बल्लभ - राजा साहब.... फिरभी.... मैंने अपनी ओर से कोई कसर.... नहीं छोड़ा है....

रोणा - चलो देखते हैं... आगे क्या होता है.... हमने अपनी चाल चल दी है.... यश भी अपना चाल चल चुका है.... अब बस इंतजार ही कर सकते हैं....

दुसरी तरफ अदालत के अंदर वश रूम के बाहर वैदेही हाथ में कुछ फाइलें और गाउन लिए खड़ी है) I उसका चेहरे पर मोटी मोटी आँसूओं धार दिख रहे हैं l कुछ देर बाद खुद को साफ कर जयंत वश रूम से बाहर आता है l

जयंत - तुम रो क्यूँ रही हो....
वैदेही - आज कुछ... ज्यादा ही हो गया है....
जयंत - तुम इतनी सी बात पर.... रोने लग गई....
वैदेही - यह लोग तो आप के पीछे.... हाथ धो कर पीछे पड़े हैं....
जयंत - फिल्हाल धो तो मैं रहा हूँ.... वह लोग सिर्फ़ गंदा कर रहे हैं....
वैदेही - वह लोग.... आपके साथ ऐसा क्यूँ....
जयंत - देखो वैदेही.... मुझे रोने वाले चेहरे पसंद नहीं है..... इसलिए प्लीज.....
वैदेही - (अपनी आंखों से आँसू पोछते हुए) मैं अब नहीं रोउंगी.....
जयंत - अब लग रही हो.... मेरी अच्छी भली माँ....

वैदेही हँसने की कोशिश करती है l जयंत उसके हाथों से फाइल और गाउन ले लेता है l और कोर्ट रूम की ओर चल देता है, उसके पीछे पीछे वैदेही भी चल देती है l

उधर कोर्ट के परिसर के बाहर
पुलिस के लगाए बैरीकेट के बाहर भीड़ बहुत है l कुछ लोगों के हाथों में प्लाकार्ड्स दिख रहे हैं l सभी प्लाकार्ड्स में जयंत के खिलाफ़ स्लोगन लिखे हुए हैं l
एक कार्ड में लिखा है...
बताओ जयंत कुमार वकील
विश्व को छुड़ाने की कितनी हुई डील

दुसरे कार्ड में लिखा है....
जयंत तुम संविधान के रक्षक नहीं भक्षक हो

तीसरे में लिखा है....
जनता के पैसों के लुटेरा विश्व को
जयंत तुम स्वार्थ के चलते बचा रहे हो
ज़वाब दो

ऐसे ना जाने कितने कार्ड लोगों के हाथों में दिख रहे हैं l किन्ही किन्ही जगहों पर लोगों के हाथों में पुआल और घास से बनीं पुतलों पर जयंत के फोटो लगा है l और लोग उन पुतलों पर चप्पल मार रहे हैं और कहीं पर पुतलों को नीचे फेंक कर कुचल रहे हैं l ऐसे कुछ दृश्यों को अपने कैमरे में कैद कर लेने के बाद प्रज्ञा अपने ब्रॉडकास्ट वैन के पास आकर न्यूज रिपोर्टिंग करने लगती है

प्रज्ञा - सुप्रभात व शुभ प्रभात..... मैं प्रज्ञा.... आज कटक हाई कोर्ट से सीधे दर्शकों तक.....
जब पहले यह केस जनसाधारण के ज्ञात में आया.... तब लोगों का आक्रोश केवल विश्व तक सीमित था..... पर अब जन आक्रोश विश्व से लांघ कर.... सरकार और बचाव पक्ष के वकील के खिलाफ.... बहुत ही उग्र हो चुका है..... इतना उग्र के शनिवार को उन पर मंदिर के भीतर हमला हुआ..... कल शाम को उनके घर पर पत्थराव हुआ.... और आज किसीने कोर्ट के परिसर के भीतर..... जयंत राउत पर गोबर डाल दिया है..... गौर करने वाली बात यह है कि.... जब शनिवार को उन पर हमला शुरू हुआ.... तब उन्होंने अपने सुरक्षा के लिए तैनात दो गार्डों को.... सरकार को लौटा दिया.... चूंकि अदालत के अंदर उन पर गोबर फेंका गया है.... इसलिए अदालत एक घंटे के लिए स्थगित किया गया है...... और आसपास की सुरक्षा को..... और भी मजबूत किया गया है.... अब सबकी नजरें अदालत में.... राजा साहब की.... होने वाली गवाही पर गड़ी हुई है.... अब जब अदालत में फ़िर से सुनवाई प्रक्रिया शुरू होगी.... तब मैं फ़िर आप दर्शकों के मध्य लौटुंगी.... तब तक के लिए मैं प्रज्ञा... खबर ओड़िशा से.....


कोर्ट रूम में
सब अपने अपने जगह पर बैठे हुए हैं सिवाय भैरव सिंह के l विश्व अपनी कटघरे में खड़ा है l हॉकर सावधान करता है l सब अपने जगह पर खड़े हो जाते हैं l तीनों जज अपनी अपनी जगह पर काबिज हो जाते हैं l

मुख्य जज - ऑर्डर.. ऑर्डर.. ऑर्डर.... आज की कारवाई शुरू होने से पहले... जो बाधा उत्पन्न हुई.... अदालत उस घटना का घोर निंदा.. एवं.... खेद व्यक्त करती है..... फ़िर भी अदालत बचाव पक्ष से.... जानना चाहती है.... क्या आज की कारवाई आगे बढ़ाया जाए... या स्थगित किया जाए....

सबकी नजरें जयंत के तरफ घूम जाती है l जयंत अपनी कुर्सी से उठ खड़ा होता है l एक थकावट उसके चेहरे पर साफ दिख रहा है l चेहरा जो कभी दमक रहा था, आज उसका चेहरा तेज़ हीन निष्प्रभ दिख रहा है l बल्लभ एंड ग्रुप के चेहरे पर एक शैतानी खुशी आस लिए उच्छलती है l पर उनकी खुशी को काफूर कर

जयंत - नहीं योर ऑनर.... नहीं... आज की कारवाई रुकनी नहीं चाहिए.... चाहे कुछ भी हो जाए.... मुझे कुछ नहीं हुआ है योर ऑनर.... मैं शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत हूँ... स्वस्थ्य भी हूँ...
जज - आर... यु... श्योर... डिफेंस लॉयर...
जयंत - ऑफ कोर्स.... मायलर्ड.... मैं.... आज के ही कारवाई के लिए.... खुद को तैयार किया हुआ हूँ....
जज - ठीक है.... आज की कारवाई को आगे बढ़ाते हुए.... प्रोसिक्यूशन आप.... इंस्पेक्टर रोणा की बदले हुए बयान पर.... कोई मंतव्य देना चाहेंगी....

प्रतिभा - (अपनी जगह से उठ कर) मायलर्ड.... बेशक.... इंस्पेक्टर रोणा जी ने.... अपना बयान बदला ज़रूर है... पर इससे केस के रुख में... कोई बदलाव नहीं हुआ है..... इसलिए प्रोसिक्यूशन कोई जिरह नहीं करेगी.....
जज - ठीक है.... तो मिस्टर डिफेंस.... क्या आप जिरह को आगे बढ़ाना चाहेंगे....
जयंत - (थोड़ा खांसते हुए) मायलर्ड इस तथाकथित मनरेगा घोटाले की जांच अधिकारी की जांच ही गलत दिशा में थी... यह मैं साबित कर चुका हूँ.... जिनको एसआईटी ने.... मुख्य एवं... प्रमुख गवाह बनाया था.... वह (थोड़ा खांसते हुए) कितना बड़ा झूठा, ठग था जिसने इस... केस को ना सिर्फ भटकाया.... बल्कि... उस घोटाले की रकम में.... अपना हिस्सा भी कमाया.... खैर (सांस फूलने लगती है) एस्क्युज मी.... (कह कर थोड़ा पानी पीता है) मायलर्ड... मैं कह रहा था... खैर... एसआईटी के सपोर्ट इंवेस्टीगेटर... श्री श्री अनिकेत रोणा जी.... कितने नाकाबिल हैं... यह भी... मैं साबित कर चुका हूँ.... अब केवल.... वह व्यक्ति शेष हैं.... जिनके शिकायत के बाद.... इस घोटाले पर जांच बिठाया गया..... और (खांसने लगता है, फ़िर सम्भल ने के बाद) और... वह एसआईटी... के प्रथम गवाह जो ठहरे.... और मुझे विश्वास है योर ऑनर.... उनके गवाही के बाद.... दूध का दूध... पानी का पानी.... हो जाएगा.... इसलिए श्री भैरव सिंह क्षेत्रपाल जी की जिरह की इजाज़त दी जाए.... मायलर्ड....
जज - ठीक है.... तो.... प्रोसिक्यूशन.... आज यहाँ पर.... श्री क्षेत्रपाल जी दिखाई नहीं दे रहे हैं... क्या आपके पास कोई जानकारी है....
प्रतिभा - (अपनी जगह से खड़ी हो कर) जी मायलर्ड.... मुझे थोड़ी देर पहले..... श्री क्षेत्रपाल जी के लीगल एडवाइजर..... श्री बल्लभ प्रधान जी ने... इस बाबत जानकारी दी.... है.... पर योर ऑनर... मैं चाहती हूँ.... यह बात स्वयं.... प्रधान बाबु..... अदालत को बताएं.....

यह सुनते ही, बल्लभ हैरान हो कर प्रतिभा को देखता है l जब अदालत एक घंटे के लिए स्थगित हुआ था, तब बल्लभ जा कर प्रतिभा को भैरव सिंह के बारे में जानकारी दी थी l पर प्रतिभा ने उसे बेवजह वीटनेस बॉक्स में खड़ा कर दिया l वह गुस्से से प्रतिभा को देख रहा है कि उसे वीटनेस में आने के लिए बुलाया जाता है l बल्लभ बेमन से वीटनेस बॉक्स में खड़ा होता है l
जज - हाँ तो... प्रधान बाबु.... पिछली कारवाई में.... आपके क्षेत्रपाल जी थे... यह अदालत जानती है.... पर आज नहीं हैं... क्या कोई खास वजह....
बल्लभ - मायलर्ड.... यह इस कमरे में नहीं है.... उसके पीछे.... जनता की भावना जुड़ी हुई हैं... आज भी यशपुर की आम जनता.... उन्हें अपना राजा मानतीं हैं... और पूरे यशपुर की जनता उन्हें गवाह के कटघरे में.... देखना पसंद नहीं करेगी.... इसलिए उन्हीं की इच्छा का सम्मान करते हुए.... मैंने एक... एफिडेविट... प्रोसिक्यूशन को दी... के यहीं.... पास के कमरे से वह.... वीडियो कंफेरेंश के जरिए अपनी गवाही देंगे....
जयंत - (अपनी कुर्सी से उठ कर) आई ऑब्जेक्ट योर ऑनर.... आई स्ट्रॉन्गली दिस न्यूसेंस... मायलर्ड..... मैं हैरान हूँ.... मिस्टर प्रधान.... एक कानून के जानकार हैं... वह... ऐसा कैसे.... (खांसते).... कर... सकते हैं....
जज - आर यू ओके... मिस्टर डिफेंस....
जयंत - ऑफकोर्स मायलर्ड.... आई एम वेरी वेरी ओके नाउ.... मैं अर्ज़ कर रहा था... योर ऑनर.... आप, मैं, प्रतिभा जी, सेनापति जी, यह विश्व, यह वैदेही... हम सब भारत के नागरिक हैं.... हम सब संविधान से बंधे हुए हैं.... संविधान यानी... सम - विधान.... ना कोई राजा... ना कोई रंक.... सबके लिए... समान और यह... न्याय का मंदिर है... इस मंदिर में संविधान ने.... इस समय.... आपको निर्णय का और मुझे जिरह का अधिकार दिया है..... यह प्रधान बाबु... ना भूलें.... इस कटघरे में.... पूर्वतन प्रधान मंत्री भी खड़े हो चुके हैं..... और आप जिन राजा साहब की बात कर रहे हैं.... उनकी राज शाही की सीमा.... राजगड़ तक ही है.... यह ना भूलें.... और यहाँ.... जिस घोटाले की जांच पर बहस हो रही है.... वह भारत सरकार की पैसे हैं.... इसलिए चूंकि वह यहाँ उपस्थित हैं.... उन्हें कहिए.... के वह.... कानून का सम्मान करते हुए.... अपनी वीटनेस बॉक्स पर आयें... और अपना बयान दर्ज कराएं....

इतना कह कर जयंत भले ही अदालत में चुप हो जाता है पर जयंत की बुलंद आवाज़ उस अदालत में गूंजती रहती है l सब के सब शुन हो जाते हैं l सिर्फ़ कमरे में पंखे की आवाज़ और कुछ पेपर फड़फड़ा ने की आवाज सुनाई दे रही है l जयंत हांफते हुए अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है और पास रखे पानी की ग्लास से पानी पीता है l
जज - यह अदालत.... डिफेंस के द्वारा दिए गए दलील से.... इत्तेफाक रखती है.... ऑब्जेक्शन सस्टेंन... मिस्टर प्रधान.... आप अपने राजा जी से कहें.... यहाँ वह कानून का सम्मान करें......

यह सुनते ही प्रधान बड़ी मुश्किल से कोर्ट रूम से बाहर जाता है और कुछ मिनटों बाद भैरव सिंह के साथ कोर्ट रूम में आता है l

जज - मनानीय... क्षेत्रपाल जी... आप बहुत प्रतिष्ठित, सम्मानित तथा लोकप्रिय व्यक्तित्व हैं.... पर यह भी सत्य है.... आप बहुत शिक्षित भी हैं... इसलिए आज आप वीटनेस बॉक्स में अपनी जिरह के जरिए.... इस अदालत व भारतीय न्याय व्यवस्था का सम्मान करें.....
बल्लभ - जी.... मायलर्ड.... राजा साहब कानून व न्याय प्रणाली को सम्मान करते हैं.... तभी तो आज इस कमरे में.... उपस्थित हैं....

भैरव सिंह ख़ामोशी से वीटनेस बॉक्स में आकर खड़ा होता है l राइटर गीता लेकर भैरव सिंह के सामने आता है l

राइटर - ग्... ग्.. ग्... गीता प.. प्... पे.. हाथ रख कर....
भैरव सिंह - जज साहब.... हम कभी झूठ नहीं बोला है.... आज भी हम सच ही बोलेंगे....
जज - प्रोसिक्यूशन.... आप अपनी जिरह आरंभ कर सकते हैं....
प्रतिभा - (अपनी कुर्सी से उठ कर) मायलर्ड.... मुझे नहीं लगता है.... की मुझे कुछ पूछना चाहिए..... क्यूंकि इस केस की जांच.... राजा साहब के मौखिक शिकायत पर.... शुरू हुई थी.... जिसके वजह से.... एसआईटी का गठन हुआ.... और इतने बड़े घोटाले पर.... पर्दा हटा..... इसलिए... बचाव पक्ष क्या... अधिक जानना चाहता है.... अपनी जिरह से.... यह जानने के बाद ही.... मैं कोई मत व्यक्त कर सकती हूँ....
जज - ठीक है.... अब अदालत... मिस्टर डिफेंस को जिरह की इजाज़त देती है....

यह सुनते ही प्रतिभा अपनी जगह बैठ जाती है और जयंत को देखती है l जयंत का बायाँ हाथ टेबल पर है, वह भैरव सिंह को देख रहा है l

जज - मिस्टर डिफेंस...(जयंत वैसे ही बैठा रहता है) मिस्टर डिफेंस....

जयंत वैसे ही बैठा हुआ है, कोई प्रतिक्रिया नहीं देता है, जज दो बार अपना हथोड़ा टेबल पर मारता है l फ़िर भी जयंत से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलता l जज अपने कुर्सी से खड़ा हो जाता है l सभी अपनी अपनी कुर्सी से खड़े हो जाते हैं l सबकी नजर जयंत पर टिक जाती है l कोर्ट रूम के भीतर मरघट की सन्नाटा सबको महसूस होती है l

जज - मिस्टर डिफेंस....

कोई प्रतिक्रिया ना मिलने से वैदेही अपनी जगह से उठ कर जयंत के पास पहुंचती है l डरते डरते वह जयंत के कंधे पर हाथ रख कर जयंत को जरा सा हिलाती है l जयंत अपनी कुर्सी से नीचे गिर जाता है l वैदेही चिल्ला कर पीछे हटती है पर विश्व अपने कटघरे से बाहर निकल कर जयंत के पास आता है और जयंत को अपने दोनों बाहों से उठा कर वकीलों के टेबल पर सुला देता है l तापस जयंत के गले की नस पर हाथ रखकर देखता है, फ़िर अपना कैप उतार कर जज की ओर देखता है l जज तापस की बात समझ जाता है और इमर्जेंसी बटन दबाता है l
लगता है जयंत जी का स्वर्गवास हो गया है। बेचारा विश्व रिहा होते होते रह गया। अब उसका केस कोन लड़ेगा? अति उत्तम अपडेट.
 

Lalit4556

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👉चौतीसवां अपडेट
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सेंट्रल जैल
रविवार
बालु और उसके पास खड़े उसके दो सहयोगी हैरानी भरे दृष्टि से देखे जा रहे हैं l दो सहयोगी में से एक बालु के पास आकर इशारे से पूछता है क्या हुआ है इसे l बालु अपने कंधे उचक कर और अपने चेहरे पर ना जानने की बात बताता है l सब उस तरफ देखे जा रहे हैं l विश्व एक मोटे ब्लैंकेट को गिले फर्श से उठा कर पत्थर पर पटक रहा है पिछले एक घंटे से l ऐसे पटक रहा है जैसे किसी आदमी को गुस्से से पटक रहा हो l रंगा के कांड के बाद कैदियों में विश्व की एक अलग पहचान बन गया है l इसलिए बालु भी विश्व को कुछ कहने से हिचकिचा रहा है l तभी एक संत्री भाग कर आता है,

संत्री - विश्व.... आरे.... विश्व....

विश्व नहीं सुनता है, वैसे ही अपने धुन में ब्लैंकेट को पत्थर पर पटक रहा है l

संत्री - (इस बार चिल्लाते हुए) वी.... श्व... अरे भाई रुको.... विश्व....

विश्व रुक जाता है, और संत्री को सवालिया नजर से देखता है l

संत्री - (थोड़ा हांफते हुए) सुपरिटेंडेंट सर ने.... अपने ऑफिस में तुमको.... बुलाया है....

विश्व कुछ नहीं कहता है l उस ब्लैंकेट को वहीँ छोड़ कर दीवार पर टंगे अपनी कुर्ता निकाल कर पहन लेता है l

विश्व - बालु भाई.... मैं सेनापति सर जी से मिल कर आता हूँ....
बालु - ठीक है विश्व.... वैसे अगर काम बड़ा हो तो... रुक जाना.... हम यहाँ का देख लेंगे....
विश्व - धन्यबाद.... बालु भाई.... धन्यबाद....

बालु अपने चेहरे पर एक हंसी लाने की कोशिश करता है l पर विश्व उसे देखे बगैर बिना कुछ प्रतिक्रिया के वहाँ से चला जाता है l विश्व के पीछे पीछे संत्री भी चला जाता है l

सहयोगी 1 - क्या बात है गुरु.... आज विश्व.... बहुत गुस्से में क्यूँ लग रहा है....
सहयोगी 2 - हाँ... साला... जैसे पत्थर पर ब्लैंकेट नहीं... किसी दुश्मन को उठा कर पटक रहा है....
बालु - हाँ क्यूँ नहीं.... जिसने भी... विश्व के वकील को थप्पड़ मारने की कोशिश की है.... विश्व उसी को इमेजिन कर.... ब्लैंकेट पटक रहा था....
सहयोगी 1 - क्यूँ... विश्व के वकील को.... मारने की नौबत क्यूँ आई....
बालु - सिंपल है बे.... लोग नाराज हैं.... इसलिए....
सहयोगी 2 - अच्छा.... पहले विश्व से नाराज थे.... अब इस वकील से नाराज हैं.... पर ऐसा क्यूँ...
बालु - लोग पहले विश्व से नाराज थे.... क्यूंकि उनको लगा... विश्व अकेला इतना बड़ा रकम गटक गया.... वह भी बिना डकार लिए.... और किसीको फूटी कौड़ी भी नहीं दिआ.... इसलिए लोग नाराज थे... विश्व से...
सहयोगी 1 - ह्म्म्म्म... अच्छा... पर वकील से क्यूँ नाराज हैं....
बालु - अबे.... वे लोग अब वकील से इसलिए नाराज हैं.... क्यूंकि... उन्हें लगता है... विश्व के पास अब जितना निकलेगा.... उसमें वकील.... जरूर अपना हिस्सा बटोर लेगा.... लोगों के हिस्से में तब भी ठेंगा था.... अब भी ठेंगा ही है....
दोनों - ओ..... तो यह बात है....
बालु - बस बस.... बहुत हो गई... बकचोदी.... अब लग जाओ अपने काम पर.... वरना विश्व आएगा.... ब्लैंकेट छोड़ कर... हम सबको धोएगा....

उधर विश्व तापस के चैम्बर में आता है l तापस जैसे विश्व का ही इंतजार कर रहा हो ऐसे विश्व को देख कर विश्व के पास आता है l

तापस - आओ विश्व आओ... अरे.. यह क्या... तुम्हारा पजामा घुटने के नीचे से भिगा हुआ है...
विश्व - जी वह... मैं.. ब्लैंकेट और चादर धो रहा था....
तापस - ओह... अच्छा... ठीक है... जाओ... लाइब्रेरी जाओ.... वहाँ... तुम्हारा कोई... इंतजार कर रहे हैं.... जाओ..
विश्व - कौन हैं सर....
तापस - जाओ मिल लो.... तुम्हारे... अपने ही हैं....

विश्व कुछ सोचने लगता है, फिर लाइब्रेरी की ओर बढ़ जाता है l जैसे जैसे लाइब्रेरी की ओर जा रहा है, उसके दिल में ना जाने कैसी उथलपुथल हो रही है l वह लाइब्रेरी की दरवाजा जो आधा बंद दिखा उसे धक्का दे कर पूरा खोलता है l उसे भीतर एक बुजुर्ग आदमी दिखता है l चेहरा मुर्झा हुआ, रौनक गायब बीमार सा एक आदमी एक चेयर पर बैठा हुआ है l विश्व पहचान जाता है l विश्व की आंखे नम हो जाती है होंठ थरथराने लगते हैं l

विश्व - सर.... आ... आप... यह आपकी ऐसी हालत...

जयंत अपना सर उठा कर विश्व को देखता है l जयंत के चेहरे पर मुस्कान तो दिखती है पर जयंत के चेहरे पर विश्व को वह रौनक, वह तेज नहीं दिखती, अपने उम्र से भी कहीं बड़ा और बुढ़ा दिख रहा है l

जयंत - आओ विश्व आओ.... (थके हुए आवाज़ में, एक कुर्सी की ओर इशारा करते हुए) आओ यहाँ बैठो....
विश्व - आ.. आपका यह हालत (कुर्सी पर बैठते हुए भारी गले से) म.. मेरी वजह से... है ना..
जयंत - (थोड़ा खीज जाता है) ओ... विश्व... तुम भी अपने दीदी की तरह.... शुरू मत हो जाना.... (विश्व खामोश हो जाता है l उसे खामोश देख कर) अरे भाई... मैं तुम से कुछ बात करने आया हूँ... और तुम हो कि... खामोश हो कर बैठ गए हो....
विश्व - अब... अब मैं क्या कहूँ.... सर.... पैदाइश बदनसीब हूँ... पैदा होते ही... माँ को खा गया.... सातवीं में एनआरटीएस की स्कॉलरशिप जीती तो... पिता को हमेशा के लिए खो बैठा और बहन मुझसे दूर हो गई... जब लोगों का भला करने के लिए, दुनिया बदलने के लिए..... आगे आया.... तो यह सब हो गया... कुछ लोगों की जाने चली गई.... और मैं इस जैल में पहुंच गया.... और अब आप के साथ....
जयंत - बस... बहुत हुआ.... मैं यहाँ... तुम्हारे केस के बाबत... कुछ जानने आया था.... और तुम अपना दुखड़ा पुराण लेके बैठ गए....
विश्व - सॉरी... मुझे माफ कर दीजिए....
जयंत - देखो विश्व.... मैं फ़िर से और आखिरी बार... कह रहा हूँ.... क्यूंकि मुझे अपनी बात दोहराना... अच्छा नहीं लगता.... (विश्व अपना सर उठा कर जयंत की ओर देखता है) कभी भी... तुम कितने दुखी हो... टूटे हुए हो... दुनिया को ना दिखाना... ना ही जताना.... यह कमजोरों की निशानी है... यह दुनिया वाले सोचेंगे... तुम कमजोर हो... तुम उनसे सहानुभूति पाने की कोशिश कर रहे हो.... यह दुनिया बड़ी क्रूर है.... हम भले ही चांद पर पहुंच जाएं.... पर जंगल के नियम कोई छोड़ नहीं सकता... यहाँ हर ताकतवर अपने से कमजोर पर... हावी होने की कोशिश करते हैं... इसलिए किसी से सहानुभूति पाने की कोशिश भी मत करो.... आज जो लोग तुम्हारे नाम पर रोटियाँ... सेंक रहे हैं.... कल को तुमको भूलने में... जरा भी व्यक्त नहीं लगाएंगे.... इसलिए दुनिया की मत सोचो.... परवाह मत करो... बस कमजोर मत बनो.... बड़े बड़े आए और चल दिए.... दुनिया को कोई नहीं बदल पाया.... हमे दुनिया की परवाह नहीं करना चाहिए.... पर अपनी समाज की जरूर करनी चाहिए.... दुनिया और समाज दोनों अलग हैं.... तुम समाज बदलने की सोचना.... दुनिया अपने आप बदल जाएगी...

विश्व जयंत को देखता है l जयंत भले ही कमजोर दिख रहा है, उसके चेहरे पर भले ही वह तेज वह रौनक नजर ना आता हो पर आवाज़ में और लहजे में वही पुराना जयंत लग रहा है l विश्व को यह एहसास होते ही अंदर से अच्छा महसूस करता है l

जयंत - विश्व... एक पारिवारिक अहंकार की वेदी पर..... एक समाज पीढ़ी दर पीढ़ी... बलि चढ़ रही है.... उस भीड़ में तुम भी शामिल हो... तुमने भीड़ हट कर अलग पहचान बनाने की कोशिश की.... परिणाम तुम्हें यहाँ पहुंचा दिया....

विश्व का चेहरा एक दम गंभीर हो जाता है l उसे महसूस होता है जयंत की आवाज़ उसके भीतर एक सिहरन दौड़ा दे रही है l

जयंत - अच्छा विश्व एक बात बताओ....
विश्व - जी पूछिए...
जयंत - भैरव सिंह को... कब मालुम हुआ.... के तुम... ग्रैजुएशन करने जा रहे हो.... या कर रहे हो....
विश्व - जब मैं... नोमिनेशन फॉर्म में... अपना एजुकेशन के बारे में.... मेनशन किया था... तब शायद...
जयंत - ह्म्म्म्म ( कुछ सोचते हुए) अच्छा विश्व... तुम्हें कभी अचरज नहीं हुई.... के राज परिवार को छोड़ कर.... पूरे राजगड़ में कोई दुसरा ग्रैजुएट नहीं है....
विश्व - जी कभी गौर ही नहीं किया था.... एक बार दीदी ने मुझे कहा कि.... मुझे ग्रैजुएशन करनी चाहिए... मैंने पहले मना कर दिया.... पर दीदी ने मुझ से वादा लिया.... इसलिए मैंने इग्नौ से... करेस्पंडीग कोर्स में करने की कोशिश की.... पर...
जयंत - ह्म्म्म्म... तो अब जो चाहे हो.... तुम पहले अपना ग्रैजुएशन पुरा करोगे.....
विश्व - अगर (हिचकिचाते हुए) मेरा मतलब है...
जयंत - अगर.. खुदा ना खास्ता.... जैल भी हो जाए... तब भी तुम अपना ग्रैजुएशन पुरी करोगे.... समझे....
विश्व - पर कैसे...
जयंत - हमारा संविधान की धारा इक्कीस कहता है..... इंसान कैद में भी क्यों न हो.... वह उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकता है.... यह उसको दी हुई... संवैधानिक अधिकार है.... इसलिए तुम रुकना मत....
विश्व - ठीक है....
जयंत - विश्व.... एक बात याद रखना.... लक्ष्मी साथ छोड़ सकती है..... पर सरस्वती कभी साथ नहीं छोड़ती....
विश्व - जी....
जयंत - वैसे शुक्रवार को.. (हंसने की कोशिश करते हुए) रोणा ने मुझे... चौंका दिया.... अपना इकबालिया बयान के ज़रिए.... मेरी जिरह को भटका दिया....
विश्व - वह है ही बहुत शातिर.... साथ में वह वकील प्रधान.... और सर पर साया... क्षेत्रपाल का... रंग तो दिखना ही था.....
जयंत - ह्म्म्म्म (अपने में सर को हिला कर) अच्छा विश्व.... तुम पर गोली चली... तब कितने दूरी पर थे तुम....
विश्व - जी..... आधे फिट दूरी पर.....
जयंत - व्हाट.... इंपॉसिबल.... आधे फिट की दूरी से.... गोली चली होती... तो... तुम्हारे जांघ की पेशियां... छलनी... हो गई होती... और... गोली भी जांघ चिर कर.... निकल गई होती....
विश्व - हाँ आप जो कह रहे हैं.... वह सब होता.... मगर गोली मारने से पहले... इसकी बाकायदा तरबूज पर टेस्ट की गई थी.....
जयंत - क्या....
विश्व - हाँ... मुझे उल्टा सुलाया गया.... मेरे जांघ पर दो... कुशन रखे गये.... फ़िर गोली चलाई गई.... ताकि मेरे जांघ में गोली धंसी रहे...
जयंत - हे भगवान..... अच्छा विश्व.... तुम्हें... जब मालुम हुआ.... सरकार को... खबर करने की... तुमने कोशिश... क्यूँ नहीं की...
विश्व - मैंने किया था.... पर क़ामयाब नहीं हो पाया... (जयंत हैरानी से विश्व को देखता है) मैंने सात चिठ्ठीयाँ लिखी थी... पहला... राष्ट्रपति जी को... दुसरा... प्रधान मंत्री जी को... तीसरा... राज्यपाल जी को... चौथा.... मुख्यमंत्री जी को.... पांचवां... राज्य पुलिस अधीक्षक को.... छटा.... मुख्य न्यायाधीश उच्च न्यायालय को.... और सातवां.... राज्य के बैंक अधिकारी को....
जयंत - क्या.... (हैरान हो कर) तो फिर... मेरा मतलब है कि.... यह बात तो मुझे मालुम होता... तो केस अब तक शॉल्व हो चुका होता...
विश्व - हाँ शायद.... अगर उनको वह.... चिट्ठियां अगर मिल गई होती तो.....
जयंत - (ऐसे उठ खड़ा होता है जैसे बिजली का शॉक लगा) अब इसका क्या मतलब हुआ....
विश्व - वह चिट्ठियां... पोस्ट ऑफिस से ही... ग़ायब कर लिए गए....

जयंत धप् कर फ़िर से बैठ जाता है फ़िर अपने में सर हिलाता है जैसे उसे कुछ मालुम हो गया हो l वह विश्व के तरफ देखता है और मुस्करा कर

जयंत - अच्छा विश्व.... (फ़िर हंसते हुए) तुम्हें याद तो है ना....
विश्व - क्या.... (हैरान हो कर)
जयंत - यही... के.... मैं तुम्हें... जो भी दूँगा.... वह तुम रख लोगे....
विश्व - जी मुझे याद है....

जयंत के चेहरे पर एक गहरी मुस्कान उभर आती है l जैसे कुछ हासिल करने की खुशी उस मुस्कराहट में झलक रही है l

जयंत - अच्छा.... मैं अब चलता हूँ....

कहकर जयंत खड़ा होता है l उसके साथ साथ विश्व भी खड़ा होता है l जयंत की चाल में विश्व को कमजोरी दिखती है l तो विश्व जयंत के हाथ को थाम लेता है l जयंत उसे देख कर मुस्करा देता है l

जयंत - अगर हाथ थाम लिए हो.... तो बाहर तक भी छोड़ दो....

विश्व मुस्करा कर अपना हामी देता है l विश्व और जयंत दोनों लाइब्रेरी से उतरते हैं और तापस के कमरे में आते हैं l तापस उनको देख कर अपनी जगह से उठ खड़ा होता है l

जयंत - बैठ जाइए... सेनापति जी... बैठ जाइए.... यह आपका ही ऑफिस है.... (तापस हँस देता है) वैसे सेनापति बाबु... अगर बुरा ना मानें... तो आज ऑटो तक मुझे विश्व छोड़ दे....तो....
तापस - हाँ... हाँ... चलिए मैं भी आपको छोड़ देता हूँ.... वैसे आज आपके वह.... वह बॉडी गार्ड दिख नहीं रहे हैं...
जयंत - मैंने... अपनी सिक्युरिटी.... सरेंडर कर दिया.... कल ही....
विश्व - क्या... पर क्यूँ....
जयंत - यार सेनापति... यह दोनों बहन भाई... सवाल बहुत करते हैं...
तापस - वैसे... सवाल तो... जायज ही है... ना सर....
जयंत - (विश्व को और तापस दोनों को देख कर) सर कटाने की तमन्ना अब मेरे दिल में है.... देखना है जोर कितना बाजू ए क़ातिल में है....

विश्व जयंत का हाथ छोड़ देता है l जयंत यह देख कर हँस देता है l

जयंत - देखो सेनापति... अब गार्ड्स नहीं है... इसलिए इसकी बहन... मुझे छोड़ ही नहीं रही थी....मुझे मेरे ही घर में कैद कर... रखा है... मैंने भी चालाकी से... वैदेही को मुझे अंदर से बंद कर मंदिर जाने को कहा.... वैदेही ने ऐसा ही किया.... पर उसे मालुम नहीं था.... मेरे घर में एक खिड़की को चोर दरवाजा बना कर रखा था.... (हँसते हुए) वैदेही के मंदिर जाते ही मैं इधर आ गया.... (तापस भी उसके साथ हँस देता है) मुझे विश्व को कैद से निकालना है... इसलिए इसकी बहन मुझे कैद कर दे रही है...

फिर तापस और जयंत ठहाका लगा कर हँसते हैं l विश्व भी उनके साथ शर्माते हुए मुस्करा देता है l फ़िर तीनों जैल के बाहर आते हैं l बाहर गेट से कुछ दूर ऑटो खड़ी मिलती है l ऑटो के पास जयंत दोनों को रोक देता है और चलते हुए ऑटो तक पहुंच जाता है l ऑटो के पास पहुंच कर जयंत पीछे मुड़ कर विश्व को देखता है l दोनों एक दूसरे को देख कर मुस्करा देते हैं l शायद कुछ मौन सम्वाद था उन दोनों की मुस्कराहट में उन दोनों के बीच l ऑटो के भीतर जयंत बैठ जाता है l ऑटो धुआँ छोड़ते हुए निकल जाता है l विश्व वहीँ खड़ा ऑटो को अपनी आँखों से ओझल होते देखता है l फ़िर वह और तापस दोनों वापस जैल के अंदर लौट जाते हैं l तापस अपने ऑफिस कि ओर जाते जाते,

तापस - विश्व (आवाज़ देता है)
विश्व - (रुक जाता है और तापस की ओर मुड़ कर) जी...
तापस - बेस्ट ऑफ लक..... कल के लिए.... मैं दिल से प्रार्थना करूंगा...
विश्व - (चेहरे पर कोई भाव नहीं आता) जी धन्यबाद...

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जगन्नाथ मंदिर में सीढियों पर वैदेही बैठी हुई है l तभी पंडा आकर वहीं वैदेही के पास बैठ जाता है l उसे वैदेही के आँखों में चिंता और आंसू दोनों दिखते हैं l

पंडा - क्या बात है... वैदेही.... तुम दुखी भी हो.... और चिंतित भी...
वैदेही - आप तो सब जानते हैं... बाबा... फ़िर भी पुछ रहे हैं....
पंडा - फ़िर भी... तुम्हारे मुहँ से सुनना चाहता हूँ....
वैदेही - आज सुबह से.... जयंत सर जी को... घर से बाहर जाने नहीं दिया.... इसलिए मुझे बहाना बना कर खुद को घर में बंद कर दिया.... और मुझे मंदिर भेज दिया.... कहा... जाओ मेरे लिए.... निर्माल्य ले कर आओ.... मैं भागी भागी आई... आपसे निर्माल्य लेकर जब घर पहुंची... वह घर पर नहीं थे.... मुझे डर लग रहा है... कहीं कोई अनर्थ ना हो जाए....
पंडा - ओ... तो यह बात है.... देखो बेटी.... कल जो हुआ.... तुम उसकी चिंता ना करो.... वह इस तरह के हादसों से गुजर चुका है.... बस इतना जान लो... पिछले तीन सालों में... वह खुद को... सबसे दूर कर रखा था.... तुम और तुम्हारा भाई जब से... उसके जीवन में आए हो.... वह फ़िर से जी रहा है.... घर से निकल रहा है... सबसे घुल रहा है.... बातेँ कर रहा है.... तुम दोनों नहीं जानते.... तुम लोग उसके लिए... क्या मायने रखते हो....
वैदेही - क्या....
पंडा - अरे... बचपन का दोस्त है मेरा.... बाल मित्र.... उसे अच्छी तरह से जानता हूँ.... वह दिल से तुम लोगों से जुड़ गया है.... इसलिए.... वह जब तक विश्व को छुड़ा नहीं लेता.... तब तक वह खामोश नहीं बैठेगा.... दुश्मन चाहे कितना भी चाल... चल ले.... वह हर चाल का तोड़ रखता है....

तभी वैदेही उठने को होती है तो पंडा उसे रोक देता है

पंडा - रुको थोड़ी देर बाद... भगवान का संध्या पूजन के लिए... द्वार खुलेगा.... दर्शन कर चले जाना....

मंदिर में काम करने वाली एक महिला कर्मचारी पंडा जी के पास आती है और
महिला - नमस्ते बाबा....
पंडा - हाँ... क्या हुआ बेटी....
महिला - वह आप थोड़ा नीम का तेल दे देते...
पंडा - अच्छा.... वह जाओ गोविंद से मांग लो... वह दे देगा...
महिला - जी धन्यबाद.... (कह कर महिला चली जाती है)
वैदेही - (उसके जाते ही पंडा से पूछती है) बाबा... यह नीम का तेल...
पंडा - वह... अपने घर में रात को.... दिए में डाल कर जलाती है... ताकि मच्छर ना हों....
वैदेही - क्या नीम के तेल जलाने से... मच्छर नहीं आते....
पंडा - अरे बेटी..... नीम में साक्षात... जगन्नाथ जी का वास है.... उनकी मूर्ति... नीम के काठ से ही तो बनतीं है....
वैदेही - हाँ यह तो मैं जानती हूं.... पर नीम के तेल में यह गुण भी है... मुझे नहीं पता था....
पंडा - बेटी और एक रहस्य बताता हूँ.... पुराने ज़माने में.... लोग अपने घर की बहू बेटियों की.... शील रक्षा के लिए.... उनके सारे शरीर पर... नीम के तेल मल देते थे.... जिससे शरीर से.... बदबू आता था.... और यही बदबू.... उनके घरों की इज़्ज़त की रक्षा करती थी..... अब चलो दर्शन कर चले जाना.... अब असल में यह औरत मंदिर से... तेल इसी लिए... ले जाती है.... ताकि अपनी बेटियों के शरीर में मल सके और.... रह रही बस्ती में.... सड़क छाप गुंडों से अपनी बच्चियों को बचा सके....

वैदेही शाम के समय द्वार खुलने के बाद प्रथम दर्शन कर जयंत की घर के ओर चली जाती है l मंदिर में हुए पुजारी के बातों को लेकर सोच रही है l इतने में घर आ जाता है, वैदेही ताला खोल कर अंदर आती है तो जयंत को बैठे देखती है l

वैदेही - आ गए आप...
जयंत - अरे... मैं गया ही कहाँ था.... वह तो तुम अब जाकर आई हो....
वैदेही - मैं मंदिर से घर.... घर से मंदिर... चार चक्कर लगा कर आई हूँ.....
जयंत - अच्छा ठीक है.... मेरी माँ.... ठीक है.... अरे... कैद से उब गया था.... इसलिए.... बाहर थोड़ा घूमने चला गया.....

वैदेही उसे घूरती है, जयंत उसे यूँ घूरता देख कर

जयंत - देखो.... तुम मुझे मेरे ही घर में कैद कर दिया.... अरे... इंसान को थोड़ी बाहर की हवा भी खानी चाहिए....

वैदेही उसे घूर ना नहीं छोड़ती है तो

जयंत - देखो.... कभी बेटी कहा था.... अब माँ कह रहा हूँ.... अब अपने इस बुढ़े बेटे को माफ़ भी करो.....

वैदेही के चेहरे पर एक शरम भरी मुस्कान आ जाती है l

वैदेही - ठीक है.... अपनी माँ से कहो.... कहाँ गए थे....
जयंत - वह... अपनी मामा से मिलने गया था...

वैदेही की हंसी छूट जाती है l जयंत भी उसके साथ हँस देता है l वैदेही इतनी हंसती है कि वह हंसते हंसते लॉट पोट हो जाती है l

जयंत - ठीक है.... माँ... अब आगे कोई शैतानी नहीं करूंगा (वैदेही और जोर से हंसने लगती है) कहिए आपका क्या आदेश है....
वैदेही - (बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी को रोक कर) ठीक है.... बेटा.... कल तुम... अपनी माँ के साथ ही कोर्ट.... जाओगे..... और तब तक के लिए..... अब घरसे बाहर निकालना बंद....
जयंत - जैसी.... आपकी इच्छा माँ... जैसी आपकी इच्छा....

अब वैदेही से हंसी और बर्दाश्त नहीं हो पाती हा हा हा करके हंसने लगती है l खिड़की की कांच टूटने की आवाज़ आती है l वैदेही जी हंसी रुक जाती है l जयंत भी हैरान हो कर खिड़की की ओर देखता है l

वैदेही - यह... यह... क्या थी... सर....
जयंत - पता नहीं....

बस तभी जैसे पत्थरों की बरसात होने लगी खिड़की और दरवाजे पर l दोनों छिप जाते हैं अंदर आ रहे पत्थरों से बचने के लिए l करीब आधे घंटे के बाद पत्थरबाजी रुक जाती है l वैदेही निकल ने को होती है l जयंत उसे रोक देता है l कुछ देर बाद पुलिस की सायरन सुनाई देती है l कुछ देर बाद दरवाजे पर दस्तक होती है l

वैदेही - (थोड़ा डरते हुए) क....कौन है...
आवाज़ - पुलिस.... पूरी घाट थाने से....
वैदेही - ठीक है.... अपना आइडेंटी कार्ड... दरवाजे के नीचे से... अंदर सरकाइए...

वैदेही देखती है, एक कार्ड सरक कर अंदर आती है l वैदेही कार्ड को देखने के बाद दरवाज़ा खोल देती है l वर्दी में एक अफसर अंदर आता है l
अफसर - (जयंत से) सर आप ठीक तो हैं... ना सर....
जयंत - हाँ... आपका शुक्रिया सर.... पर आप यहाँ कैसे....
अफसर - सर यह पेट्रोलिंग जीप है.... अचानक हमारे आँखों के सामने दिखा.... सो... हम....
जयंत - ओके... अफसर... थैंक्यू... वेरी मच....

अफसर चला जाता है l जयंत एक गहरी सांस छोड़ता है और वैदेही को देखता है l वैदेही के आँखों में अब आँसू दिखाई दे रहा है l

जयंत - देखो माँ .... मुझे इस केस से हटने की बात ही मत करना....

_____×_____×_____×_____×_____×_____×

अगले दिन
सोमवार
अदालत के अंदर एक ओर भैरव सिंह एक कुर्सी पर पैर पर पैर डाले बैठा हुआ है, परीडा और रोणा उस कमरे में दरवाज़े की और देख रहे हैं l रोणा बीच में बार बार अपनी घड़ी देख रहा है l तभी बल्लभ उस कमरे में आता है l
बल्लभ - काम हो गया है.... यश ने जैसा कहा था.... उस आदमी ने... वैसा ही किया है.... पर कितना कारगर होगा.... मालुम नहीं है....

भैरव सिंह उसे सवालिया नजर से देखता है l

बल्लभ - राजा साहब.... फिरभी.... मैंने अपनी ओर से कोई कसर.... नहीं छोड़ा है....

रोणा - चलो देखते हैं... आगे क्या होता है.... हमने अपनी चाल चल दी है.... यश भी अपना चाल चल चुका है.... अब बस इंतजार ही कर सकते हैं....

दुसरी तरफ अदालत के अंदर वश रूम के बाहर वैदेही हाथ में कुछ फाइलें और गाउन लिए खड़ी है) I उसका चेहरे पर मोटी मोटी आँसूओं धार दिख रहे हैं l कुछ देर बाद खुद को साफ कर जयंत वश रूम से बाहर आता है l

जयंत - तुम रो क्यूँ रही हो....
वैदेही - आज कुछ... ज्यादा ही हो गया है....
जयंत - तुम इतनी सी बात पर.... रोने लग गई....
वैदेही - यह लोग तो आप के पीछे.... हाथ धो कर पीछे पड़े हैं....
जयंत - फिल्हाल धो तो मैं रहा हूँ.... वह लोग सिर्फ़ गंदा कर रहे हैं....
वैदेही - वह लोग.... आपके साथ ऐसा क्यूँ....
जयंत - देखो वैदेही.... मुझे रोने वाले चेहरे पसंद नहीं है..... इसलिए प्लीज.....
वैदेही - (अपनी आंखों से आँसू पोछते हुए) मैं अब नहीं रोउंगी.....
जयंत - अब लग रही हो.... मेरी अच्छी भली माँ....

वैदेही हँसने की कोशिश करती है l जयंत उसके हाथों से फाइल और गाउन ले लेता है l और कोर्ट रूम की ओर चल देता है, उसके पीछे पीछे वैदेही भी चल देती है l

उधर कोर्ट के परिसर के बाहर
पुलिस के लगाए बैरीकेट के बाहर भीड़ बहुत है l कुछ लोगों के हाथों में प्लाकार्ड्स दिख रहे हैं l सभी प्लाकार्ड्स में जयंत के खिलाफ़ स्लोगन लिखे हुए हैं l
एक कार्ड में लिखा है...
बताओ जयंत कुमार वकील
विश्व को छुड़ाने की कितनी हुई डील

दुसरे कार्ड में लिखा है....
जयंत तुम संविधान के रक्षक नहीं भक्षक हो

तीसरे में लिखा है....
जनता के पैसों के लुटेरा विश्व को
जयंत तुम स्वार्थ के चलते बचा रहे हो
ज़वाब दो

ऐसे ना जाने कितने कार्ड लोगों के हाथों में दिख रहे हैं l किन्ही किन्ही जगहों पर लोगों के हाथों में पुआल और घास से बनीं पुतलों पर जयंत के फोटो लगा है l और लोग उन पुतलों पर चप्पल मार रहे हैं और कहीं पर पुतलों को नीचे फेंक कर कुचल रहे हैं l ऐसे कुछ दृश्यों को अपने कैमरे में कैद कर लेने के बाद प्रज्ञा अपने ब्रॉडकास्ट वैन के पास आकर न्यूज रिपोर्टिंग करने लगती है

प्रज्ञा - सुप्रभात व शुभ प्रभात..... मैं प्रज्ञा.... आज कटक हाई कोर्ट से सीधे दर्शकों तक.....
जब पहले यह केस जनसाधारण के ज्ञात में आया.... तब लोगों का आक्रोश केवल विश्व तक सीमित था..... पर अब जन आक्रोश विश्व से लांघ कर.... सरकार और बचाव पक्ष के वकील के खिलाफ.... बहुत ही उग्र हो चुका है..... इतना उग्र के शनिवार को उन पर मंदिर के भीतर हमला हुआ..... कल शाम को उनके घर पर पत्थराव हुआ.... और आज किसीने कोर्ट के परिसर के भीतर..... जयंत राउत पर गोबर डाल दिया है..... गौर करने वाली बात यह है कि.... जब शनिवार को उन पर हमला शुरू हुआ.... तब उन्होंने अपने सुरक्षा के लिए तैनात दो गार्डों को.... सरकार को लौटा दिया.... चूंकि अदालत के अंदर उन पर गोबर फेंका गया है.... इसलिए अदालत एक घंटे के लिए स्थगित किया गया है...... और आसपास की सुरक्षा को..... और भी मजबूत किया गया है.... अब सबकी नजरें अदालत में.... राजा साहब की.... होने वाली गवाही पर गड़ी हुई है.... अब जब अदालत में फ़िर से सुनवाई प्रक्रिया शुरू होगी.... तब मैं फ़िर आप दर्शकों के मध्य लौटुंगी.... तब तक के लिए मैं प्रज्ञा... खबर ओड़िशा से.....


कोर्ट रूम में
सब अपने अपने जगह पर बैठे हुए हैं सिवाय भैरव सिंह के l विश्व अपनी कटघरे में खड़ा है l हॉकर सावधान करता है l सब अपने जगह पर खड़े हो जाते हैं l तीनों जज अपनी अपनी जगह पर काबिज हो जाते हैं l

मुख्य जज - ऑर्डर.. ऑर्डर.. ऑर्डर.... आज की कारवाई शुरू होने से पहले... जो बाधा उत्पन्न हुई.... अदालत उस घटना का घोर निंदा.. एवं.... खेद व्यक्त करती है..... फ़िर भी अदालत बचाव पक्ष से.... जानना चाहती है.... क्या आज की कारवाई आगे बढ़ाया जाए... या स्थगित किया जाए....

सबकी नजरें जयंत के तरफ घूम जाती है l जयंत अपनी कुर्सी से उठ खड़ा होता है l एक थकावट उसके चेहरे पर साफ दिख रहा है l चेहरा जो कभी दमक रहा था, आज उसका चेहरा तेज़ हीन निष्प्रभ दिख रहा है l बल्लभ एंड ग्रुप के चेहरे पर एक शैतानी खुशी आस लिए उच्छलती है l पर उनकी खुशी को काफूर कर

जयंत - नहीं योर ऑनर.... नहीं... आज की कारवाई रुकनी नहीं चाहिए.... चाहे कुछ भी हो जाए.... मुझे कुछ नहीं हुआ है योर ऑनर.... मैं शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत हूँ... स्वस्थ्य भी हूँ...
जज - आर... यु... श्योर... डिफेंस लॉयर...
जयंत - ऑफ कोर्स.... मायलर्ड.... मैं.... आज के ही कारवाई के लिए.... खुद को तैयार किया हुआ हूँ....
जज - ठीक है.... आज की कारवाई को आगे बढ़ाते हुए.... प्रोसिक्यूशन आप.... इंस्पेक्टर रोणा की बदले हुए बयान पर.... कोई मंतव्य देना चाहेंगी....

प्रतिभा - (अपनी जगह से उठ कर) मायलर्ड.... बेशक.... इंस्पेक्टर रोणा जी ने.... अपना बयान बदला ज़रूर है... पर इससे केस के रुख में... कोई बदलाव नहीं हुआ है..... इसलिए प्रोसिक्यूशन कोई जिरह नहीं करेगी.....
जज - ठीक है.... तो मिस्टर डिफेंस.... क्या आप जिरह को आगे बढ़ाना चाहेंगे....
जयंत - (थोड़ा खांसते हुए) मायलर्ड इस तथाकथित मनरेगा घोटाले की जांच अधिकारी की जांच ही गलत दिशा में थी... यह मैं साबित कर चुका हूँ.... जिनको एसआईटी ने.... मुख्य एवं... प्रमुख गवाह बनाया था.... वह (थोड़ा खांसते हुए) कितना बड़ा झूठा, ठग था जिसने इस... केस को ना सिर्फ भटकाया.... बल्कि... उस घोटाले की रकम में.... अपना हिस्सा भी कमाया.... खैर (सांस फूलने लगती है) एस्क्युज मी.... (कह कर थोड़ा पानी पीता है) मायलर्ड... मैं कह रहा था... खैर... एसआईटी के सपोर्ट इंवेस्टीगेटर... श्री श्री अनिकेत रोणा जी.... कितने नाकाबिल हैं... यह भी... मैं साबित कर चुका हूँ.... अब केवल.... वह व्यक्ति शेष हैं.... जिनके शिकायत के बाद.... इस घोटाले पर जांच बिठाया गया..... और (खांसने लगता है, फ़िर सम्भल ने के बाद) और... वह एसआईटी... के प्रथम गवाह जो ठहरे.... और मुझे विश्वास है योर ऑनर.... उनके गवाही के बाद.... दूध का दूध... पानी का पानी.... हो जाएगा.... इसलिए श्री भैरव सिंह क्षेत्रपाल जी की जिरह की इजाज़त दी जाए.... मायलर्ड....
जज - ठीक है.... तो.... प्रोसिक्यूशन.... आज यहाँ पर.... श्री क्षेत्रपाल जी दिखाई नहीं दे रहे हैं... क्या आपके पास कोई जानकारी है....
प्रतिभा - (अपनी जगह से खड़ी हो कर) जी मायलर्ड.... मुझे थोड़ी देर पहले..... श्री क्षेत्रपाल जी के लीगल एडवाइजर..... श्री बल्लभ प्रधान जी ने... इस बाबत जानकारी दी.... है.... पर योर ऑनर... मैं चाहती हूँ.... यह बात स्वयं.... प्रधान बाबु..... अदालत को बताएं.....

यह सुनते ही, बल्लभ हैरान हो कर प्रतिभा को देखता है l जब अदालत एक घंटे के लिए स्थगित हुआ था, तब बल्लभ जा कर प्रतिभा को भैरव सिंह के बारे में जानकारी दी थी l पर प्रतिभा ने उसे बेवजह वीटनेस बॉक्स में खड़ा कर दिया l वह गुस्से से प्रतिभा को देख रहा है कि उसे वीटनेस में आने के लिए बुलाया जाता है l बल्लभ बेमन से वीटनेस बॉक्स में खड़ा होता है l
जज - हाँ तो... प्रधान बाबु.... पिछली कारवाई में.... आपके क्षेत्रपाल जी थे... यह अदालत जानती है.... पर आज नहीं हैं... क्या कोई खास वजह....
बल्लभ - मायलर्ड.... यह इस कमरे में नहीं है.... उसके पीछे.... जनता की भावना जुड़ी हुई हैं... आज भी यशपुर की आम जनता.... उन्हें अपना राजा मानतीं हैं... और पूरे यशपुर की जनता उन्हें गवाह के कटघरे में.... देखना पसंद नहीं करेगी.... इसलिए उन्हीं की इच्छा का सम्मान करते हुए.... मैंने एक... एफिडेविट... प्रोसिक्यूशन को दी... के यहीं.... पास के कमरे से वह.... वीडियो कंफेरेंश के जरिए अपनी गवाही देंगे....
जयंत - (अपनी कुर्सी से उठ कर) आई ऑब्जेक्ट योर ऑनर.... आई स्ट्रॉन्गली दिस न्यूसेंस... मायलर्ड..... मैं हैरान हूँ.... मिस्टर प्रधान.... एक कानून के जानकार हैं... वह... ऐसा कैसे.... (खांसते).... कर... सकते हैं....
जज - आर यू ओके... मिस्टर डिफेंस....
जयंत - ऑफकोर्स मायलर्ड.... आई एम वेरी वेरी ओके नाउ.... मैं अर्ज़ कर रहा था... योर ऑनर.... आप, मैं, प्रतिभा जी, सेनापति जी, यह विश्व, यह वैदेही... हम सब भारत के नागरिक हैं.... हम सब संविधान से बंधे हुए हैं.... संविधान यानी... सम - विधान.... ना कोई राजा... ना कोई रंक.... सबके लिए... समान और यह... न्याय का मंदिर है... इस मंदिर में संविधान ने.... इस समय.... आपको निर्णय का और मुझे जिरह का अधिकार दिया है..... यह प्रधान बाबु... ना भूलें.... इस कटघरे में.... पूर्वतन प्रधान मंत्री भी खड़े हो चुके हैं..... और आप जिन राजा साहब की बात कर रहे हैं.... उनकी राज शाही की सीमा.... राजगड़ तक ही है.... यह ना भूलें.... और यहाँ.... जिस घोटाले की जांच पर बहस हो रही है.... वह भारत सरकार की पैसे हैं.... इसलिए चूंकि वह यहाँ उपस्थित हैं.... उन्हें कहिए.... के वह.... कानून का सम्मान करते हुए.... अपनी वीटनेस बॉक्स पर आयें... और अपना बयान दर्ज कराएं....

इतना कह कर जयंत भले ही अदालत में चुप हो जाता है पर जयंत की बुलंद आवाज़ उस अदालत में गूंजती रहती है l सब के सब शुन हो जाते हैं l सिर्फ़ कमरे में पंखे की आवाज़ और कुछ पेपर फड़फड़ा ने की आवाज सुनाई दे रही है l जयंत हांफते हुए अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है और पास रखे पानी की ग्लास से पानी पीता है l
जज - यह अदालत.... डिफेंस के द्वारा दिए गए दलील से.... इत्तेफाक रखती है.... ऑब्जेक्शन सस्टेंन... मिस्टर प्रधान.... आप अपने राजा जी से कहें.... यहाँ वह कानून का सम्मान करें......

यह सुनते ही प्रधान बड़ी मुश्किल से कोर्ट रूम से बाहर जाता है और कुछ मिनटों बाद भैरव सिंह के साथ कोर्ट रूम में आता है l

जज - मनानीय... क्षेत्रपाल जी... आप बहुत प्रतिष्ठित, सम्मानित तथा लोकप्रिय व्यक्तित्व हैं.... पर यह भी सत्य है.... आप बहुत शिक्षित भी हैं... इसलिए आज आप वीटनेस बॉक्स में अपनी जिरह के जरिए.... इस अदालत व भारतीय न्याय व्यवस्था का सम्मान करें.....
बल्लभ - जी.... मायलर्ड.... राजा साहब कानून व न्याय प्रणाली को सम्मान करते हैं.... तभी तो आज इस कमरे में.... उपस्थित हैं....

भैरव सिंह ख़ामोशी से वीटनेस बॉक्स में आकर खड़ा होता है l राइटर गीता लेकर भैरव सिंह के सामने आता है l

राइटर - ग्... ग्.. ग्... गीता प.. प्... पे.. हाथ रख कर....
भैरव सिंह - जज साहब.... हम कभी झूठ नहीं बोला है.... आज भी हम सच ही बोलेंगे....
जज - प्रोसिक्यूशन.... आप अपनी जिरह आरंभ कर सकते हैं....
प्रतिभा - (अपनी कुर्सी से उठ कर) मायलर्ड.... मुझे नहीं लगता है.... की मुझे कुछ पूछना चाहिए..... क्यूंकि इस केस की जांच.... राजा साहब के मौखिक शिकायत पर.... शुरू हुई थी.... जिसके वजह से.... एसआईटी का गठन हुआ.... और इतने बड़े घोटाले पर.... पर्दा हटा..... इसलिए... बचाव पक्ष क्या... अधिक जानना चाहता है.... अपनी जिरह से.... यह जानने के बाद ही.... मैं कोई मत व्यक्त कर सकती हूँ....
जज - ठीक है.... अब अदालत... मिस्टर डिफेंस को जिरह की इजाज़त देती है....

यह सुनते ही प्रतिभा अपनी जगह बैठ जाती है और जयंत को देखती है l जयंत का बायाँ हाथ टेबल पर है, वह भैरव सिंह को देख रहा है l

जज - मिस्टर डिफेंस...(जयंत वैसे ही बैठा रहता है) मिस्टर डिफेंस....

जयंत वैसे ही बैठा हुआ है, कोई प्रतिक्रिया नहीं देता है, जज दो बार अपना हथोड़ा टेबल पर मारता है l फ़िर भी जयंत से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलता l जज अपने कुर्सी से खड़ा हो जाता है l सभी अपनी अपनी कुर्सी से खड़े हो जाते हैं l सबकी नजर जयंत पर टिक जाती है l कोर्ट रूम के भीतर मरघट की सन्नाटा सबको महसूस होती है l

जज - मिस्टर डिफेंस....

कोई प्रतिक्रिया ना मिलने से वैदेही अपनी जगह से उठ कर जयंत के पास पहुंचती है l डरते डरते वह जयंत के कंधे पर हाथ रख कर जयंत को जरा सा हिलाती है l जयंत अपनी कुर्सी से नीचे गिर जाता है l वैदेही चिल्ला कर पीछे हटती है पर विश्व अपने कटघरे से बाहर निकल कर जयंत के पास आता है और जयंत को अपने दोनों बाहों से उठा कर वकीलों के टेबल पर सुला देता है l तापस जयंत के गले की नस पर हाथ रखकर देखता है, फ़िर अपना कैप उतार कर जज की ओर देखता है l जज तापस की बात समझ जाता है और इमर्जेंसी बटन दबाता है l
outstanding update bhai.....maja aa gaya to vakil shab ko aakir mar hi diya to let's see aage kya hota ha and thanks bro itni majedar story write karne ke leya
 

parkas

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सेंट्रल जैल
रविवार
बालु और उसके पास खड़े उसके दो सहयोगी हैरानी भरे दृष्टि से देखे जा रहे हैं l दो सहयोगी में से एक बालु के पास आकर इशारे से पूछता है क्या हुआ है इसे l बालु अपने कंधे उचक कर और अपने चेहरे पर ना जानने की बात बताता है l सब उस तरफ देखे जा रहे हैं l विश्व एक मोटे ब्लैंकेट को गिले फर्श से उठा कर पत्थर पर पटक रहा है पिछले एक घंटे से l ऐसे पटक रहा है जैसे किसी आदमी को गुस्से से पटक रहा हो l रंगा के कांड के बाद कैदियों में विश्व की एक अलग पहचान बन गया है l इसलिए बालु भी विश्व को कुछ कहने से हिचकिचा रहा है l तभी एक संत्री भाग कर आता है,

संत्री - विश्व.... आरे.... विश्व....

विश्व नहीं सुनता है, वैसे ही अपने धुन में ब्लैंकेट को पत्थर पर पटक रहा है l

संत्री - (इस बार चिल्लाते हुए) वी.... श्व... अरे भाई रुको.... विश्व....

विश्व रुक जाता है, और संत्री को सवालिया नजर से देखता है l

संत्री - (थोड़ा हांफते हुए) सुपरिटेंडेंट सर ने.... अपने ऑफिस में तुमको.... बुलाया है....

विश्व कुछ नहीं कहता है l उस ब्लैंकेट को वहीँ छोड़ कर दीवार पर टंगे अपनी कुर्ता निकाल कर पहन लेता है l

विश्व - बालु भाई.... मैं सेनापति सर जी से मिल कर आता हूँ....
बालु - ठीक है विश्व.... वैसे अगर काम बड़ा हो तो... रुक जाना.... हम यहाँ का देख लेंगे....
विश्व - धन्यबाद.... बालु भाई.... धन्यबाद....

बालु अपने चेहरे पर एक हंसी लाने की कोशिश करता है l पर विश्व उसे देखे बगैर बिना कुछ प्रतिक्रिया के वहाँ से चला जाता है l विश्व के पीछे पीछे संत्री भी चला जाता है l

सहयोगी 1 - क्या बात है गुरु.... आज विश्व.... बहुत गुस्से में क्यूँ लग रहा है....
सहयोगी 2 - हाँ... साला... जैसे पत्थर पर ब्लैंकेट नहीं... किसी दुश्मन को उठा कर पटक रहा है....
बालु - हाँ क्यूँ नहीं.... जिसने भी... विश्व के वकील को थप्पड़ मारने की कोशिश की है.... विश्व उसी को इमेजिन कर.... ब्लैंकेट पटक रहा था....
सहयोगी 1 - क्यूँ... विश्व के वकील को.... मारने की नौबत क्यूँ आई....
बालु - सिंपल है बे.... लोग नाराज हैं.... इसलिए....
सहयोगी 2 - अच्छा.... पहले विश्व से नाराज थे.... अब इस वकील से नाराज हैं.... पर ऐसा क्यूँ...
बालु - लोग पहले विश्व से नाराज थे.... क्यूंकि उनको लगा... विश्व अकेला इतना बड़ा रकम गटक गया.... वह भी बिना डकार लिए.... और किसीको फूटी कौड़ी भी नहीं दिआ.... इसलिए लोग नाराज थे... विश्व से...
सहयोगी 1 - ह्म्म्म्म... अच्छा... पर वकील से क्यूँ नाराज हैं....
बालु - अबे.... वे लोग अब वकील से इसलिए नाराज हैं.... क्यूंकि... उन्हें लगता है... विश्व के पास अब जितना निकलेगा.... उसमें वकील.... जरूर अपना हिस्सा बटोर लेगा.... लोगों के हिस्से में तब भी ठेंगा था.... अब भी ठेंगा ही है....
दोनों - ओ..... तो यह बात है....
बालु - बस बस.... बहुत हो गई... बकचोदी.... अब लग जाओ अपने काम पर.... वरना विश्व आएगा.... ब्लैंकेट छोड़ कर... हम सबको धोएगा....

उधर विश्व तापस के चैम्बर में आता है l तापस जैसे विश्व का ही इंतजार कर रहा हो ऐसे विश्व को देख कर विश्व के पास आता है l

तापस - आओ विश्व आओ... अरे.. यह क्या... तुम्हारा पजामा घुटने के नीचे से भिगा हुआ है...
विश्व - जी वह... मैं.. ब्लैंकेट और चादर धो रहा था....
तापस - ओह... अच्छा... ठीक है... जाओ... लाइब्रेरी जाओ.... वहाँ... तुम्हारा कोई... इंतजार कर रहे हैं.... जाओ..
विश्व - कौन हैं सर....
तापस - जाओ मिल लो.... तुम्हारे... अपने ही हैं....

विश्व कुछ सोचने लगता है, फिर लाइब्रेरी की ओर बढ़ जाता है l जैसे जैसे लाइब्रेरी की ओर जा रहा है, उसके दिल में ना जाने कैसी उथलपुथल हो रही है l वह लाइब्रेरी की दरवाजा जो आधा बंद दिखा उसे धक्का दे कर पूरा खोलता है l उसे भीतर एक बुजुर्ग आदमी दिखता है l चेहरा मुर्झा हुआ, रौनक गायब बीमार सा एक आदमी एक चेयर पर बैठा हुआ है l विश्व पहचान जाता है l विश्व की आंखे नम हो जाती है होंठ थरथराने लगते हैं l

विश्व - सर.... आ... आप... यह आपकी ऐसी हालत...

जयंत अपना सर उठा कर विश्व को देखता है l जयंत के चेहरे पर मुस्कान तो दिखती है पर जयंत के चेहरे पर विश्व को वह रौनक, वह तेज नहीं दिखती, अपने उम्र से भी कहीं बड़ा और बुढ़ा दिख रहा है l

जयंत - आओ विश्व आओ.... (थके हुए आवाज़ में, एक कुर्सी की ओर इशारा करते हुए) आओ यहाँ बैठो....
विश्व - आ.. आपका यह हालत (कुर्सी पर बैठते हुए भारी गले से) म.. मेरी वजह से... है ना..
जयंत - (थोड़ा खीज जाता है) ओ... विश्व... तुम भी अपने दीदी की तरह.... शुरू मत हो जाना.... (विश्व खामोश हो जाता है l उसे खामोश देख कर) अरे भाई... मैं तुम से कुछ बात करने आया हूँ... और तुम हो कि... खामोश हो कर बैठ गए हो....
विश्व - अब... अब मैं क्या कहूँ.... सर.... पैदाइश बदनसीब हूँ... पैदा होते ही... माँ को खा गया.... सातवीं में एनआरटीएस की स्कॉलरशिप जीती तो... पिता को हमेशा के लिए खो बैठा और बहन मुझसे दूर हो गई... जब लोगों का भला करने के लिए, दुनिया बदलने के लिए..... आगे आया.... तो यह सब हो गया... कुछ लोगों की जाने चली गई.... और मैं इस जैल में पहुंच गया.... और अब आप के साथ....
जयंत - बस... बहुत हुआ.... मैं यहाँ... तुम्हारे केस के बाबत... कुछ जानने आया था.... और तुम अपना दुखड़ा पुराण लेके बैठ गए....
विश्व - सॉरी... मुझे माफ कर दीजिए....
जयंत - देखो विश्व.... मैं फ़िर से और आखिरी बार... कह रहा हूँ.... क्यूंकि मुझे अपनी बात दोहराना... अच्छा नहीं लगता.... (विश्व अपना सर उठा कर जयंत की ओर देखता है) कभी भी... तुम कितने दुखी हो... टूटे हुए हो... दुनिया को ना दिखाना... ना ही जताना.... यह कमजोरों की निशानी है... यह दुनिया वाले सोचेंगे... तुम कमजोर हो... तुम उनसे सहानुभूति पाने की कोशिश कर रहे हो.... यह दुनिया बड़ी क्रूर है.... हम भले ही चांद पर पहुंच जाएं.... पर जंगल के नियम कोई छोड़ नहीं सकता... यहाँ हर ताकतवर अपने से कमजोर पर... हावी होने की कोशिश करते हैं... इसलिए किसी से सहानुभूति पाने की कोशिश भी मत करो.... आज जो लोग तुम्हारे नाम पर रोटियाँ... सेंक रहे हैं.... कल को तुमको भूलने में... जरा भी व्यक्त नहीं लगाएंगे.... इसलिए दुनिया की मत सोचो.... परवाह मत करो... बस कमजोर मत बनो.... बड़े बड़े आए और चल दिए.... दुनिया को कोई नहीं बदल पाया.... हमे दुनिया की परवाह नहीं करना चाहिए.... पर अपनी समाज की जरूर करनी चाहिए.... दुनिया और समाज दोनों अलग हैं.... तुम समाज बदलने की सोचना.... दुनिया अपने आप बदल जाएगी...

विश्व जयंत को देखता है l जयंत भले ही कमजोर दिख रहा है, उसके चेहरे पर भले ही वह तेज वह रौनक नजर ना आता हो पर आवाज़ में और लहजे में वही पुराना जयंत लग रहा है l विश्व को यह एहसास होते ही अंदर से अच्छा महसूस करता है l

जयंत - विश्व... एक पारिवारिक अहंकार की वेदी पर..... एक समाज पीढ़ी दर पीढ़ी... बलि चढ़ रही है.... उस भीड़ में तुम भी शामिल हो... तुमने भीड़ हट कर अलग पहचान बनाने की कोशिश की.... परिणाम तुम्हें यहाँ पहुंचा दिया....

विश्व का चेहरा एक दम गंभीर हो जाता है l उसे महसूस होता है जयंत की आवाज़ उसके भीतर एक सिहरन दौड़ा दे रही है l

जयंत - अच्छा विश्व एक बात बताओ....
विश्व - जी पूछिए...
जयंत - भैरव सिंह को... कब मालुम हुआ.... के तुम... ग्रैजुएशन करने जा रहे हो.... या कर रहे हो....
विश्व - जब मैं... नोमिनेशन फॉर्म में... अपना एजुकेशन के बारे में.... मेनशन किया था... तब शायद...
जयंत - ह्म्म्म्म ( कुछ सोचते हुए) अच्छा विश्व... तुम्हें कभी अचरज नहीं हुई.... के राज परिवार को छोड़ कर.... पूरे राजगड़ में कोई दुसरा ग्रैजुएट नहीं है....
विश्व - जी कभी गौर ही नहीं किया था.... एक बार दीदी ने मुझे कहा कि.... मुझे ग्रैजुएशन करनी चाहिए... मैंने पहले मना कर दिया.... पर दीदी ने मुझ से वादा लिया.... इसलिए मैंने इग्नौ से... करेस्पंडीग कोर्स में करने की कोशिश की.... पर...
जयंत - ह्म्म्म्म... तो अब जो चाहे हो.... तुम पहले अपना ग्रैजुएशन पुरा करोगे.....
विश्व - अगर (हिचकिचाते हुए) मेरा मतलब है...
जयंत - अगर.. खुदा ना खास्ता.... जैल भी हो जाए... तब भी तुम अपना ग्रैजुएशन पुरी करोगे.... समझे....
विश्व - पर कैसे...
जयंत - हमारा संविधान की धारा इक्कीस कहता है..... इंसान कैद में भी क्यों न हो.... वह उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकता है.... यह उसको दी हुई... संवैधानिक अधिकार है.... इसलिए तुम रुकना मत....
विश्व - ठीक है....
जयंत - विश्व.... एक बात याद रखना.... लक्ष्मी साथ छोड़ सकती है..... पर सरस्वती कभी साथ नहीं छोड़ती....
विश्व - जी....
जयंत - वैसे शुक्रवार को.. (हंसने की कोशिश करते हुए) रोणा ने मुझे... चौंका दिया.... अपना इकबालिया बयान के ज़रिए.... मेरी जिरह को भटका दिया....
विश्व - वह है ही बहुत शातिर.... साथ में वह वकील प्रधान.... और सर पर साया... क्षेत्रपाल का... रंग तो दिखना ही था.....
जयंत - ह्म्म्म्म (अपने में सर को हिला कर) अच्छा विश्व.... तुम पर गोली चली... तब कितने दूरी पर थे तुम....
विश्व - जी..... आधे फिट दूरी पर.....
जयंत - व्हाट.... इंपॉसिबल.... आधे फिट की दूरी से.... गोली चली होती... तो... तुम्हारे जांघ की पेशियां... छलनी... हो गई होती... और... गोली भी जांघ चिर कर.... निकल गई होती....
विश्व - हाँ आप जो कह रहे हैं.... वह सब होता.... मगर गोली मारने से पहले... इसकी बाकायदा तरबूज पर टेस्ट की गई थी.....
जयंत - क्या....
विश्व - हाँ... मुझे उल्टा सुलाया गया.... मेरे जांघ पर दो... कुशन रखे गये.... फ़िर गोली चलाई गई.... ताकि मेरे जांघ में गोली धंसी रहे...
जयंत - हे भगवान..... अच्छा विश्व.... तुम्हें... जब मालुम हुआ.... सरकार को... खबर करने की... तुमने कोशिश... क्यूँ नहीं की...
विश्व - मैंने किया था.... पर क़ामयाब नहीं हो पाया... (जयंत हैरानी से विश्व को देखता है) मैंने सात चिठ्ठीयाँ लिखी थी... पहला... राष्ट्रपति जी को... दुसरा... प्रधान मंत्री जी को... तीसरा... राज्यपाल जी को... चौथा.... मुख्यमंत्री जी को.... पांचवां... राज्य पुलिस अधीक्षक को.... छटा.... मुख्य न्यायाधीश उच्च न्यायालय को.... और सातवां.... राज्य के बैंक अधिकारी को....
जयंत - क्या.... (हैरान हो कर) तो फिर... मेरा मतलब है कि.... यह बात तो मुझे मालुम होता... तो केस अब तक शॉल्व हो चुका होता...
विश्व - हाँ शायद.... अगर उनको वह.... चिट्ठियां अगर मिल गई होती तो.....
जयंत - (ऐसे उठ खड़ा होता है जैसे बिजली का शॉक लगा) अब इसका क्या मतलब हुआ....
विश्व - वह चिट्ठियां... पोस्ट ऑफिस से ही... ग़ायब कर लिए गए....

जयंत धप् कर फ़िर से बैठ जाता है फ़िर अपने में सर हिलाता है जैसे उसे कुछ मालुम हो गया हो l वह विश्व के तरफ देखता है और मुस्करा कर

जयंत - अच्छा विश्व.... (फ़िर हंसते हुए) तुम्हें याद तो है ना....
विश्व - क्या.... (हैरान हो कर)
जयंत - यही... के.... मैं तुम्हें... जो भी दूँगा.... वह तुम रख लोगे....
विश्व - जी मुझे याद है....

जयंत के चेहरे पर एक गहरी मुस्कान उभर आती है l जैसे कुछ हासिल करने की खुशी उस मुस्कराहट में झलक रही है l

जयंत - अच्छा.... मैं अब चलता हूँ....

कहकर जयंत खड़ा होता है l उसके साथ साथ विश्व भी खड़ा होता है l जयंत की चाल में विश्व को कमजोरी दिखती है l तो विश्व जयंत के हाथ को थाम लेता है l जयंत उसे देख कर मुस्करा देता है l

जयंत - अगर हाथ थाम लिए हो.... तो बाहर तक भी छोड़ दो....

विश्व मुस्करा कर अपना हामी देता है l विश्व और जयंत दोनों लाइब्रेरी से उतरते हैं और तापस के कमरे में आते हैं l तापस उनको देख कर अपनी जगह से उठ खड़ा होता है l

जयंत - बैठ जाइए... सेनापति जी... बैठ जाइए.... यह आपका ही ऑफिस है.... (तापस हँस देता है) वैसे सेनापति बाबु... अगर बुरा ना मानें... तो आज ऑटो तक मुझे विश्व छोड़ दे....तो....
तापस - हाँ... हाँ... चलिए मैं भी आपको छोड़ देता हूँ.... वैसे आज आपके वह.... वह बॉडी गार्ड दिख नहीं रहे हैं...
जयंत - मैंने... अपनी सिक्युरिटी.... सरेंडर कर दिया.... कल ही....
विश्व - क्या... पर क्यूँ....
जयंत - यार सेनापति... यह दोनों बहन भाई... सवाल बहुत करते हैं...
तापस - वैसे... सवाल तो... जायज ही है... ना सर....
जयंत - (विश्व को और तापस दोनों को देख कर) सर कटाने की तमन्ना अब मेरे दिल में है.... देखना है जोर कितना बाजू ए क़ातिल में है....

विश्व जयंत का हाथ छोड़ देता है l जयंत यह देख कर हँस देता है l

जयंत - देखो सेनापति... अब गार्ड्स नहीं है... इसलिए इसकी बहन... मुझे छोड़ ही नहीं रही थी....मुझे मेरे ही घर में कैद कर... रखा है... मैंने भी चालाकी से... वैदेही को मुझे अंदर से बंद कर मंदिर जाने को कहा.... वैदेही ने ऐसा ही किया.... पर उसे मालुम नहीं था.... मेरे घर में एक खिड़की को चोर दरवाजा बना कर रखा था.... (हँसते हुए) वैदेही के मंदिर जाते ही मैं इधर आ गया.... (तापस भी उसके साथ हँस देता है) मुझे विश्व को कैद से निकालना है... इसलिए इसकी बहन मुझे कैद कर दे रही है...

फिर तापस और जयंत ठहाका लगा कर हँसते हैं l विश्व भी उनके साथ शर्माते हुए मुस्करा देता है l फ़िर तीनों जैल के बाहर आते हैं l बाहर गेट से कुछ दूर ऑटो खड़ी मिलती है l ऑटो के पास जयंत दोनों को रोक देता है और चलते हुए ऑटो तक पहुंच जाता है l ऑटो के पास पहुंच कर जयंत पीछे मुड़ कर विश्व को देखता है l दोनों एक दूसरे को देख कर मुस्करा देते हैं l शायद कुछ मौन सम्वाद था उन दोनों की मुस्कराहट में उन दोनों के बीच l ऑटो के भीतर जयंत बैठ जाता है l ऑटो धुआँ छोड़ते हुए निकल जाता है l विश्व वहीँ खड़ा ऑटो को अपनी आँखों से ओझल होते देखता है l फ़िर वह और तापस दोनों वापस जैल के अंदर लौट जाते हैं l तापस अपने ऑफिस कि ओर जाते जाते,

तापस - विश्व (आवाज़ देता है)
विश्व - (रुक जाता है और तापस की ओर मुड़ कर) जी...
तापस - बेस्ट ऑफ लक..... कल के लिए.... मैं दिल से प्रार्थना करूंगा...
विश्व - (चेहरे पर कोई भाव नहीं आता) जी धन्यबाद...

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जगन्नाथ मंदिर में सीढियों पर वैदेही बैठी हुई है l तभी पंडा आकर वहीं वैदेही के पास बैठ जाता है l उसे वैदेही के आँखों में चिंता और आंसू दोनों दिखते हैं l

पंडा - क्या बात है... वैदेही.... तुम दुखी भी हो.... और चिंतित भी...
वैदेही - आप तो सब जानते हैं... बाबा... फ़िर भी पुछ रहे हैं....
पंडा - फ़िर भी... तुम्हारे मुहँ से सुनना चाहता हूँ....
वैदेही - आज सुबह से.... जयंत सर जी को... घर से बाहर जाने नहीं दिया.... इसलिए मुझे बहाना बना कर खुद को घर में बंद कर दिया.... और मुझे मंदिर भेज दिया.... कहा... जाओ मेरे लिए.... निर्माल्य ले कर आओ.... मैं भागी भागी आई... आपसे निर्माल्य लेकर जब घर पहुंची... वह घर पर नहीं थे.... मुझे डर लग रहा है... कहीं कोई अनर्थ ना हो जाए....
पंडा - ओ... तो यह बात है.... देखो बेटी.... कल जो हुआ.... तुम उसकी चिंता ना करो.... वह इस तरह के हादसों से गुजर चुका है.... बस इतना जान लो... पिछले तीन सालों में... वह खुद को... सबसे दूर कर रखा था.... तुम और तुम्हारा भाई जब से... उसके जीवन में आए हो.... वह फ़िर से जी रहा है.... घर से निकल रहा है... सबसे घुल रहा है.... बातेँ कर रहा है.... तुम दोनों नहीं जानते.... तुम लोग उसके लिए... क्या मायने रखते हो....
वैदेही - क्या....
पंडा - अरे... बचपन का दोस्त है मेरा.... बाल मित्र.... उसे अच्छी तरह से जानता हूँ.... वह दिल से तुम लोगों से जुड़ गया है.... इसलिए.... वह जब तक विश्व को छुड़ा नहीं लेता.... तब तक वह खामोश नहीं बैठेगा.... दुश्मन चाहे कितना भी चाल... चल ले.... वह हर चाल का तोड़ रखता है....

तभी वैदेही उठने को होती है तो पंडा उसे रोक देता है

पंडा - रुको थोड़ी देर बाद... भगवान का संध्या पूजन के लिए... द्वार खुलेगा.... दर्शन कर चले जाना....

मंदिर में काम करने वाली एक महिला कर्मचारी पंडा जी के पास आती है और
महिला - नमस्ते बाबा....
पंडा - हाँ... क्या हुआ बेटी....
महिला - वह आप थोड़ा नीम का तेल दे देते...
पंडा - अच्छा.... वह जाओ गोविंद से मांग लो... वह दे देगा...
महिला - जी धन्यबाद.... (कह कर महिला चली जाती है)
वैदेही - (उसके जाते ही पंडा से पूछती है) बाबा... यह नीम का तेल...
पंडा - वह... अपने घर में रात को.... दिए में डाल कर जलाती है... ताकि मच्छर ना हों....
वैदेही - क्या नीम के तेल जलाने से... मच्छर नहीं आते....
पंडा - अरे बेटी..... नीम में साक्षात... जगन्नाथ जी का वास है.... उनकी मूर्ति... नीम के काठ से ही तो बनतीं है....
वैदेही - हाँ यह तो मैं जानती हूं.... पर नीम के तेल में यह गुण भी है... मुझे नहीं पता था....
पंडा - बेटी और एक रहस्य बताता हूँ.... पुराने ज़माने में.... लोग अपने घर की बहू बेटियों की.... शील रक्षा के लिए.... उनके सारे शरीर पर... नीम के तेल मल देते थे.... जिससे शरीर से.... बदबू आता था.... और यही बदबू.... उनके घरों की इज़्ज़त की रक्षा करती थी..... अब चलो दर्शन कर चले जाना.... अब असल में यह औरत मंदिर से... तेल इसी लिए... ले जाती है.... ताकि अपनी बेटियों के शरीर में मल सके और.... रह रही बस्ती में.... सड़क छाप गुंडों से अपनी बच्चियों को बचा सके....

वैदेही शाम के समय द्वार खुलने के बाद प्रथम दर्शन कर जयंत की घर के ओर चली जाती है l मंदिर में हुए पुजारी के बातों को लेकर सोच रही है l इतने में घर आ जाता है, वैदेही ताला खोल कर अंदर आती है तो जयंत को बैठे देखती है l

वैदेही - आ गए आप...
जयंत - अरे... मैं गया ही कहाँ था.... वह तो तुम अब जाकर आई हो....
वैदेही - मैं मंदिर से घर.... घर से मंदिर... चार चक्कर लगा कर आई हूँ.....
जयंत - अच्छा ठीक है.... मेरी माँ.... ठीक है.... अरे... कैद से उब गया था.... इसलिए.... बाहर थोड़ा घूमने चला गया.....

वैदेही उसे घूरती है, जयंत उसे यूँ घूरता देख कर

जयंत - देखो.... तुम मुझे मेरे ही घर में कैद कर दिया.... अरे... इंसान को थोड़ी बाहर की हवा भी खानी चाहिए....

वैदेही उसे घूर ना नहीं छोड़ती है तो

जयंत - देखो.... कभी बेटी कहा था.... अब माँ कह रहा हूँ.... अब अपने इस बुढ़े बेटे को माफ़ भी करो.....

वैदेही के चेहरे पर एक शरम भरी मुस्कान आ जाती है l

वैदेही - ठीक है.... अपनी माँ से कहो.... कहाँ गए थे....
जयंत - वह... अपनी मामा से मिलने गया था...

वैदेही की हंसी छूट जाती है l जयंत भी उसके साथ हँस देता है l वैदेही इतनी हंसती है कि वह हंसते हंसते लॉट पोट हो जाती है l

जयंत - ठीक है.... माँ... अब आगे कोई शैतानी नहीं करूंगा (वैदेही और जोर से हंसने लगती है) कहिए आपका क्या आदेश है....
वैदेही - (बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी को रोक कर) ठीक है.... बेटा.... कल तुम... अपनी माँ के साथ ही कोर्ट.... जाओगे..... और तब तक के लिए..... अब घरसे बाहर निकालना बंद....
जयंत - जैसी.... आपकी इच्छा माँ... जैसी आपकी इच्छा....

अब वैदेही से हंसी और बर्दाश्त नहीं हो पाती हा हा हा करके हंसने लगती है l खिड़की की कांच टूटने की आवाज़ आती है l वैदेही जी हंसी रुक जाती है l जयंत भी हैरान हो कर खिड़की की ओर देखता है l

वैदेही - यह... यह... क्या थी... सर....
जयंत - पता नहीं....

बस तभी जैसे पत्थरों की बरसात होने लगी खिड़की और दरवाजे पर l दोनों छिप जाते हैं अंदर आ रहे पत्थरों से बचने के लिए l करीब आधे घंटे के बाद पत्थरबाजी रुक जाती है l वैदेही निकल ने को होती है l जयंत उसे रोक देता है l कुछ देर बाद पुलिस की सायरन सुनाई देती है l कुछ देर बाद दरवाजे पर दस्तक होती है l

वैदेही - (थोड़ा डरते हुए) क....कौन है...
आवाज़ - पुलिस.... पूरी घाट थाने से....
वैदेही - ठीक है.... अपना आइडेंटी कार्ड... दरवाजे के नीचे से... अंदर सरकाइए...

वैदेही देखती है, एक कार्ड सरक कर अंदर आती है l वैदेही कार्ड को देखने के बाद दरवाज़ा खोल देती है l वर्दी में एक अफसर अंदर आता है l
अफसर - (जयंत से) सर आप ठीक तो हैं... ना सर....
जयंत - हाँ... आपका शुक्रिया सर.... पर आप यहाँ कैसे....
अफसर - सर यह पेट्रोलिंग जीप है.... अचानक हमारे आँखों के सामने दिखा.... सो... हम....
जयंत - ओके... अफसर... थैंक्यू... वेरी मच....

अफसर चला जाता है l जयंत एक गहरी सांस छोड़ता है और वैदेही को देखता है l वैदेही के आँखों में अब आँसू दिखाई दे रहा है l

जयंत - देखो माँ .... मुझे इस केस से हटने की बात ही मत करना....

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अगले दिन
सोमवार
अदालत के अंदर एक ओर भैरव सिंह एक कुर्सी पर पैर पर पैर डाले बैठा हुआ है, परीडा और रोणा उस कमरे में दरवाज़े की और देख रहे हैं l रोणा बीच में बार बार अपनी घड़ी देख रहा है l तभी बल्लभ उस कमरे में आता है l
बल्लभ - काम हो गया है.... यश ने जैसा कहा था.... उस आदमी ने... वैसा ही किया है.... पर कितना कारगर होगा.... मालुम नहीं है....

भैरव सिंह उसे सवालिया नजर से देखता है l

बल्लभ - राजा साहब.... फिरभी.... मैंने अपनी ओर से कोई कसर.... नहीं छोड़ा है....

रोणा - चलो देखते हैं... आगे क्या होता है.... हमने अपनी चाल चल दी है.... यश भी अपना चाल चल चुका है.... अब बस इंतजार ही कर सकते हैं....

दुसरी तरफ अदालत के अंदर वश रूम के बाहर वैदेही हाथ में कुछ फाइलें और गाउन लिए खड़ी है) I उसका चेहरे पर मोटी मोटी आँसूओं धार दिख रहे हैं l कुछ देर बाद खुद को साफ कर जयंत वश रूम से बाहर आता है l

जयंत - तुम रो क्यूँ रही हो....
वैदेही - आज कुछ... ज्यादा ही हो गया है....
जयंत - तुम इतनी सी बात पर.... रोने लग गई....
वैदेही - यह लोग तो आप के पीछे.... हाथ धो कर पीछे पड़े हैं....
जयंत - फिल्हाल धो तो मैं रहा हूँ.... वह लोग सिर्फ़ गंदा कर रहे हैं....
वैदेही - वह लोग.... आपके साथ ऐसा क्यूँ....
जयंत - देखो वैदेही.... मुझे रोने वाले चेहरे पसंद नहीं है..... इसलिए प्लीज.....
वैदेही - (अपनी आंखों से आँसू पोछते हुए) मैं अब नहीं रोउंगी.....
जयंत - अब लग रही हो.... मेरी अच्छी भली माँ....

वैदेही हँसने की कोशिश करती है l जयंत उसके हाथों से फाइल और गाउन ले लेता है l और कोर्ट रूम की ओर चल देता है, उसके पीछे पीछे वैदेही भी चल देती है l

उधर कोर्ट के परिसर के बाहर
पुलिस के लगाए बैरीकेट के बाहर भीड़ बहुत है l कुछ लोगों के हाथों में प्लाकार्ड्स दिख रहे हैं l सभी प्लाकार्ड्स में जयंत के खिलाफ़ स्लोगन लिखे हुए हैं l
एक कार्ड में लिखा है...
बताओ जयंत कुमार वकील
विश्व को छुड़ाने की कितनी हुई डील

दुसरे कार्ड में लिखा है....
जयंत तुम संविधान के रक्षक नहीं भक्षक हो

तीसरे में लिखा है....
जनता के पैसों के लुटेरा विश्व को
जयंत तुम स्वार्थ के चलते बचा रहे हो
ज़वाब दो

ऐसे ना जाने कितने कार्ड लोगों के हाथों में दिख रहे हैं l किन्ही किन्ही जगहों पर लोगों के हाथों में पुआल और घास से बनीं पुतलों पर जयंत के फोटो लगा है l और लोग उन पुतलों पर चप्पल मार रहे हैं और कहीं पर पुतलों को नीचे फेंक कर कुचल रहे हैं l ऐसे कुछ दृश्यों को अपने कैमरे में कैद कर लेने के बाद प्रज्ञा अपने ब्रॉडकास्ट वैन के पास आकर न्यूज रिपोर्टिंग करने लगती है

प्रज्ञा - सुप्रभात व शुभ प्रभात..... मैं प्रज्ञा.... आज कटक हाई कोर्ट से सीधे दर्शकों तक.....
जब पहले यह केस जनसाधारण के ज्ञात में आया.... तब लोगों का आक्रोश केवल विश्व तक सीमित था..... पर अब जन आक्रोश विश्व से लांघ कर.... सरकार और बचाव पक्ष के वकील के खिलाफ.... बहुत ही उग्र हो चुका है..... इतना उग्र के शनिवार को उन पर मंदिर के भीतर हमला हुआ..... कल शाम को उनके घर पर पत्थराव हुआ.... और आज किसीने कोर्ट के परिसर के भीतर..... जयंत राउत पर गोबर डाल दिया है..... गौर करने वाली बात यह है कि.... जब शनिवार को उन पर हमला शुरू हुआ.... तब उन्होंने अपने सुरक्षा के लिए तैनात दो गार्डों को.... सरकार को लौटा दिया.... चूंकि अदालत के अंदर उन पर गोबर फेंका गया है.... इसलिए अदालत एक घंटे के लिए स्थगित किया गया है...... और आसपास की सुरक्षा को..... और भी मजबूत किया गया है.... अब सबकी नजरें अदालत में.... राजा साहब की.... होने वाली गवाही पर गड़ी हुई है.... अब जब अदालत में फ़िर से सुनवाई प्रक्रिया शुरू होगी.... तब मैं फ़िर आप दर्शकों के मध्य लौटुंगी.... तब तक के लिए मैं प्रज्ञा... खबर ओड़िशा से.....


कोर्ट रूम में
सब अपने अपने जगह पर बैठे हुए हैं सिवाय भैरव सिंह के l विश्व अपनी कटघरे में खड़ा है l हॉकर सावधान करता है l सब अपने जगह पर खड़े हो जाते हैं l तीनों जज अपनी अपनी जगह पर काबिज हो जाते हैं l

मुख्य जज - ऑर्डर.. ऑर्डर.. ऑर्डर.... आज की कारवाई शुरू होने से पहले... जो बाधा उत्पन्न हुई.... अदालत उस घटना का घोर निंदा.. एवं.... खेद व्यक्त करती है..... फ़िर भी अदालत बचाव पक्ष से.... जानना चाहती है.... क्या आज की कारवाई आगे बढ़ाया जाए... या स्थगित किया जाए....

सबकी नजरें जयंत के तरफ घूम जाती है l जयंत अपनी कुर्सी से उठ खड़ा होता है l एक थकावट उसके चेहरे पर साफ दिख रहा है l चेहरा जो कभी दमक रहा था, आज उसका चेहरा तेज़ हीन निष्प्रभ दिख रहा है l बल्लभ एंड ग्रुप के चेहरे पर एक शैतानी खुशी आस लिए उच्छलती है l पर उनकी खुशी को काफूर कर

जयंत - नहीं योर ऑनर.... नहीं... आज की कारवाई रुकनी नहीं चाहिए.... चाहे कुछ भी हो जाए.... मुझे कुछ नहीं हुआ है योर ऑनर.... मैं शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत हूँ... स्वस्थ्य भी हूँ...
जज - आर... यु... श्योर... डिफेंस लॉयर...
जयंत - ऑफ कोर्स.... मायलर्ड.... मैं.... आज के ही कारवाई के लिए.... खुद को तैयार किया हुआ हूँ....
जज - ठीक है.... आज की कारवाई को आगे बढ़ाते हुए.... प्रोसिक्यूशन आप.... इंस्पेक्टर रोणा की बदले हुए बयान पर.... कोई मंतव्य देना चाहेंगी....

प्रतिभा - (अपनी जगह से उठ कर) मायलर्ड.... बेशक.... इंस्पेक्टर रोणा जी ने.... अपना बयान बदला ज़रूर है... पर इससे केस के रुख में... कोई बदलाव नहीं हुआ है..... इसलिए प्रोसिक्यूशन कोई जिरह नहीं करेगी.....
जज - ठीक है.... तो मिस्टर डिफेंस.... क्या आप जिरह को आगे बढ़ाना चाहेंगे....
जयंत - (थोड़ा खांसते हुए) मायलर्ड इस तथाकथित मनरेगा घोटाले की जांच अधिकारी की जांच ही गलत दिशा में थी... यह मैं साबित कर चुका हूँ.... जिनको एसआईटी ने.... मुख्य एवं... प्रमुख गवाह बनाया था.... वह (थोड़ा खांसते हुए) कितना बड़ा झूठा, ठग था जिसने इस... केस को ना सिर्फ भटकाया.... बल्कि... उस घोटाले की रकम में.... अपना हिस्सा भी कमाया.... खैर (सांस फूलने लगती है) एस्क्युज मी.... (कह कर थोड़ा पानी पीता है) मायलर्ड... मैं कह रहा था... खैर... एसआईटी के सपोर्ट इंवेस्टीगेटर... श्री श्री अनिकेत रोणा जी.... कितने नाकाबिल हैं... यह भी... मैं साबित कर चुका हूँ.... अब केवल.... वह व्यक्ति शेष हैं.... जिनके शिकायत के बाद.... इस घोटाले पर जांच बिठाया गया..... और (खांसने लगता है, फ़िर सम्भल ने के बाद) और... वह एसआईटी... के प्रथम गवाह जो ठहरे.... और मुझे विश्वास है योर ऑनर.... उनके गवाही के बाद.... दूध का दूध... पानी का पानी.... हो जाएगा.... इसलिए श्री भैरव सिंह क्षेत्रपाल जी की जिरह की इजाज़त दी जाए.... मायलर्ड....
जज - ठीक है.... तो.... प्रोसिक्यूशन.... आज यहाँ पर.... श्री क्षेत्रपाल जी दिखाई नहीं दे रहे हैं... क्या आपके पास कोई जानकारी है....
प्रतिभा - (अपनी जगह से खड़ी हो कर) जी मायलर्ड.... मुझे थोड़ी देर पहले..... श्री क्षेत्रपाल जी के लीगल एडवाइजर..... श्री बल्लभ प्रधान जी ने... इस बाबत जानकारी दी.... है.... पर योर ऑनर... मैं चाहती हूँ.... यह बात स्वयं.... प्रधान बाबु..... अदालत को बताएं.....

यह सुनते ही, बल्लभ हैरान हो कर प्रतिभा को देखता है l जब अदालत एक घंटे के लिए स्थगित हुआ था, तब बल्लभ जा कर प्रतिभा को भैरव सिंह के बारे में जानकारी दी थी l पर प्रतिभा ने उसे बेवजह वीटनेस बॉक्स में खड़ा कर दिया l वह गुस्से से प्रतिभा को देख रहा है कि उसे वीटनेस में आने के लिए बुलाया जाता है l बल्लभ बेमन से वीटनेस बॉक्स में खड़ा होता है l
जज - हाँ तो... प्रधान बाबु.... पिछली कारवाई में.... आपके क्षेत्रपाल जी थे... यह अदालत जानती है.... पर आज नहीं हैं... क्या कोई खास वजह....
बल्लभ - मायलर्ड.... यह इस कमरे में नहीं है.... उसके पीछे.... जनता की भावना जुड़ी हुई हैं... आज भी यशपुर की आम जनता.... उन्हें अपना राजा मानतीं हैं... और पूरे यशपुर की जनता उन्हें गवाह के कटघरे में.... देखना पसंद नहीं करेगी.... इसलिए उन्हीं की इच्छा का सम्मान करते हुए.... मैंने एक... एफिडेविट... प्रोसिक्यूशन को दी... के यहीं.... पास के कमरे से वह.... वीडियो कंफेरेंश के जरिए अपनी गवाही देंगे....
जयंत - (अपनी कुर्सी से उठ कर) आई ऑब्जेक्ट योर ऑनर.... आई स्ट्रॉन्गली दिस न्यूसेंस... मायलर्ड..... मैं हैरान हूँ.... मिस्टर प्रधान.... एक कानून के जानकार हैं... वह... ऐसा कैसे.... (खांसते).... कर... सकते हैं....
जज - आर यू ओके... मिस्टर डिफेंस....
जयंत - ऑफकोर्स मायलर्ड.... आई एम वेरी वेरी ओके नाउ.... मैं अर्ज़ कर रहा था... योर ऑनर.... आप, मैं, प्रतिभा जी, सेनापति जी, यह विश्व, यह वैदेही... हम सब भारत के नागरिक हैं.... हम सब संविधान से बंधे हुए हैं.... संविधान यानी... सम - विधान.... ना कोई राजा... ना कोई रंक.... सबके लिए... समान और यह... न्याय का मंदिर है... इस मंदिर में संविधान ने.... इस समय.... आपको निर्णय का और मुझे जिरह का अधिकार दिया है..... यह प्रधान बाबु... ना भूलें.... इस कटघरे में.... पूर्वतन प्रधान मंत्री भी खड़े हो चुके हैं..... और आप जिन राजा साहब की बात कर रहे हैं.... उनकी राज शाही की सीमा.... राजगड़ तक ही है.... यह ना भूलें.... और यहाँ.... जिस घोटाले की जांच पर बहस हो रही है.... वह भारत सरकार की पैसे हैं.... इसलिए चूंकि वह यहाँ उपस्थित हैं.... उन्हें कहिए.... के वह.... कानून का सम्मान करते हुए.... अपनी वीटनेस बॉक्स पर आयें... और अपना बयान दर्ज कराएं....

इतना कह कर जयंत भले ही अदालत में चुप हो जाता है पर जयंत की बुलंद आवाज़ उस अदालत में गूंजती रहती है l सब के सब शुन हो जाते हैं l सिर्फ़ कमरे में पंखे की आवाज़ और कुछ पेपर फड़फड़ा ने की आवाज सुनाई दे रही है l जयंत हांफते हुए अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है और पास रखे पानी की ग्लास से पानी पीता है l
जज - यह अदालत.... डिफेंस के द्वारा दिए गए दलील से.... इत्तेफाक रखती है.... ऑब्जेक्शन सस्टेंन... मिस्टर प्रधान.... आप अपने राजा जी से कहें.... यहाँ वह कानून का सम्मान करें......

यह सुनते ही प्रधान बड़ी मुश्किल से कोर्ट रूम से बाहर जाता है और कुछ मिनटों बाद भैरव सिंह के साथ कोर्ट रूम में आता है l

जज - मनानीय... क्षेत्रपाल जी... आप बहुत प्रतिष्ठित, सम्मानित तथा लोकप्रिय व्यक्तित्व हैं.... पर यह भी सत्य है.... आप बहुत शिक्षित भी हैं... इसलिए आज आप वीटनेस बॉक्स में अपनी जिरह के जरिए.... इस अदालत व भारतीय न्याय व्यवस्था का सम्मान करें.....
बल्लभ - जी.... मायलर्ड.... राजा साहब कानून व न्याय प्रणाली को सम्मान करते हैं.... तभी तो आज इस कमरे में.... उपस्थित हैं....

भैरव सिंह ख़ामोशी से वीटनेस बॉक्स में आकर खड़ा होता है l राइटर गीता लेकर भैरव सिंह के सामने आता है l

राइटर - ग्... ग्.. ग्... गीता प.. प्... पे.. हाथ रख कर....
भैरव सिंह - जज साहब.... हम कभी झूठ नहीं बोला है.... आज भी हम सच ही बोलेंगे....
जज - प्रोसिक्यूशन.... आप अपनी जिरह आरंभ कर सकते हैं....
प्रतिभा - (अपनी कुर्सी से उठ कर) मायलर्ड.... मुझे नहीं लगता है.... की मुझे कुछ पूछना चाहिए..... क्यूंकि इस केस की जांच.... राजा साहब के मौखिक शिकायत पर.... शुरू हुई थी.... जिसके वजह से.... एसआईटी का गठन हुआ.... और इतने बड़े घोटाले पर.... पर्दा हटा..... इसलिए... बचाव पक्ष क्या... अधिक जानना चाहता है.... अपनी जिरह से.... यह जानने के बाद ही.... मैं कोई मत व्यक्त कर सकती हूँ....
जज - ठीक है.... अब अदालत... मिस्टर डिफेंस को जिरह की इजाज़त देती है....

यह सुनते ही प्रतिभा अपनी जगह बैठ जाती है और जयंत को देखती है l जयंत का बायाँ हाथ टेबल पर है, वह भैरव सिंह को देख रहा है l

जज - मिस्टर डिफेंस...(जयंत वैसे ही बैठा रहता है) मिस्टर डिफेंस....

जयंत वैसे ही बैठा हुआ है, कोई प्रतिक्रिया नहीं देता है, जज दो बार अपना हथोड़ा टेबल पर मारता है l फ़िर भी जयंत से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलता l जज अपने कुर्सी से खड़ा हो जाता है l सभी अपनी अपनी कुर्सी से खड़े हो जाते हैं l सबकी नजर जयंत पर टिक जाती है l कोर्ट रूम के भीतर मरघट की सन्नाटा सबको महसूस होती है l

जज - मिस्टर डिफेंस....

कोई प्रतिक्रिया ना मिलने से वैदेही अपनी जगह से उठ कर जयंत के पास पहुंचती है l डरते डरते वह जयंत के कंधे पर हाथ रख कर जयंत को जरा सा हिलाती है l जयंत अपनी कुर्सी से नीचे गिर जाता है l वैदेही चिल्ला कर पीछे हटती है पर विश्व अपने कटघरे से बाहर निकल कर जयंत के पास आता है और जयंत को अपने दोनों बाहों से उठा कर वकीलों के टेबल पर सुला देता है l तापस जयंत के गले की नस पर हाथ रखकर देखता है, फ़िर अपना कैप उतार कर जज की ओर देखता है l जज तापस की बात समझ जाता है और इमर्जेंसी बटन दबाता है l
Nice and beautiful update...
 

Kala Nag

Mr. X
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Jabardast Updatee

Jayant ki maut aakhir ho hi gayi. Jo ek na ek din hona hi thaa. Ab vishwa ke paas shayd hi aur koi wakeel appoint hoga. So uska jail jaana ab pakka.
विश्व नायक है
अब तक कहानी में सामाजिक तौर पर खलनायक कितना मजबुत है वह देखा गया अब तक
विश्व खुद को उसके बराबर खड़ा करेगा तो उसके लिए तैयारी करना होगा इसलिए जैल ही उसका कॉलेज और यूनिवर्सिटी बन गया जहां वह खुदको हर फन में माहिर करेगा l फ़िर टक्कर होगा दोनों के बीच
 
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