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Thriller "विश्वरूप"

Kala Nag

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Kala Nag

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👉एक सौ इकत्तीसवां अपडेट
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रात को डिनर टेबल पर रुप, शुभ्रा और वीर तीनों अपना डिनर ले रहे थे l तीनों खामोशी के साथ खाना तो खा रहे थे पर वीर अपने में खोया हुआ था, गुमसुम था l शुभ्रा यह देख कर इशारे रुप की ध्यान अपने तरफ खिंचती है l रुप आँखों के इशारे से पूछती है "क्या है" l शुभ्रा फिर इशारे से वीर की ओर देखने को कहती है l वीर अपनी प्लेट पर चम्मच फ़ेर रहा था पर खाना नहीं खा रहा था l वह बेहद गंभीर हो कर कुछ सोचे जा रहा था l

रुप - भैया.... क्या हुआ...
वीर - (ध्यान टूटता है) हम्म... हाँ वह... मैं... क्या हुआ...
शुभ्रा - क्या बात है वीर... तुम बहुत चिंतित लग रहे हो... क्या ऑफिस या पार्टी में कुछ हुआ है...
वीर - नहीं... ऐसा कुछ भी नहीं... (मुस्कराने की कोशिश करता है) (फिर कुछ सेकेंड का पॉज लेकर) भाभी... मैं हमेशा एक खुश फहमी में था... जो मैं चाहूँ... जिसे मैं चाहूँ... हासिल कर सकता हूँ... अपने क्षेत्रपाल होने का बड़ा गुरूर था... पर अब.... अब मुझसे मेरी ख्वाहिश छिनने का डर सता रहा है... ऐसा लगता है... जैसे... जैसे....
शुभ्रा - रुक क्यूँ गए जैसे...
वीर - पता नहीं भाभी... मुझे ज़माने के हर ज़र्रे में साजिश नजर आ रहा है... जैसे मुझसे हर खुशियों को छीनने की...

रुप और शुभ्रा दोनों एक दुसरे को बड़ी हैरानी के साथ देखते हैं, फ़िर दिनों वीर की ओर देखते हैं l

शुभ्रा - क्या बात है वीर... ऐसा तुम कह रहे हो... तुम... तुम ऐसे नहीं टुट सकते... वीर क्या हुआ है... जरा खुलकर बताओ...
वीर - (एक टूटी हुई हँसी के साथ) भाभी... मेरी हर गलती पर कभी कोई सजा नहीं थी... पर अब... मैं अच्छा बनना चाहता हूँ तो मेरी अच्छाई पर सजा क्यूँ मिल रही है...
रुप - भैया प्लीज... तुम पहेलियाँ बुझा रहे हो...
वीर - नहीं मेरी बहन... मैं फलक से जमीन पर आ रहा हूँ...
शुभ्रा - वीर... आज तुम्हें क्या हो गया है....
वीर - भाभी... भैया और आपकी तरह मैं और मेरा प्यार... खुश किस्मत नहीं हैं.... आपके प्यार में... कोई बाधा नहीं आया... अपनी अंजाम तक पहुँच गया... पर लगता है... मेरी किस्मत में... वह मुकाम नहीं है...

यह सुन कर शुभ्रा और रुप दोनों को झटका सा लगता है l दोनों अपनी अपनी जगह से उठ कर वीर के पास आ जाते हैं l

शुभ्रा - क्या बात है वीर... आज कुछ हुआ है...
वीर - भाभी... आप जानती हो ना... मैंने तय किया है... अनु से शादी का... मेरे इस फैसले से... माँ और आप सबकी मंजुरी है... इसलिए मैंने सोचा... घर के बड़ों से सीधे मुहँ बात कर... उनको राजी कर... जल्द से जल्द अनु से शादी कर लूँ... पर... घर के बड़े... कलकत्ता में हैं...
रुप - तो क्या हुआ भैया... बड़े दो तीन दिन बाद... यहाँ भुवनेश्वर में होंगे ना...
वीर - तुझे क्या लगता है... मैं नहीं जानता या समझ रहा...
रुप - तो भैया... आपको अगर जल्दी है... आप कलकत्ता चले जाओ ना... राजा साहब से बात कर लो ना...
वीर - सोचा मैंने भी यही था.... पर....
शुभ्रा - पर क्या...

वीर कुछ नहीं कहता है l अपनी जगह से उठ कर अपनी कमरे की ओर चला जाता है l पीछे असमंजस स्थिति में शुभ्रा और रुप रह जाती हैं l

रुप - अच्छा भाभी... मैं भी अपने कमरे में जाति हूँ...
शुभ्रा - नंदिनी... कम से कम... तुम तो अपना खाना ख़तम कर लो...
रुप - नहीं भाभी... अब मुझसे भी खाया ना जाएगा... प्लीज...

इतना कह कर रुप भी वहाँ पर शुभ्रा को छोड़ कर अपनी कमरे में आ जाती है l आज वीर की व्यवहार से वह भी स्तब्ध थी l अपने बेड पर आकर पीठ टीका कर बैठ कर वीर के बारे में सोचने लगती है l फिर अचानक वह अपना फोन निकाल कर कॉल लिस्ट खंगालती है l 'बेवक़ूफ़' नाम देखते ही उसके होंठों पर एक दमकती मुस्कान आ जाती है l वह कॉल लगाती है, कॉल लिफ्ट होते ही


विश्व - हैलो...
रुप - क्या सो रहे हो...
विश्व - हाँ बड़ी गहरी नींद में हूँ... सपने में बात कर रहा हूँ...
रुप - सॉरी... ठीक है मैं फोन रखती हूँ...
विश्व - जैसी आपकी इच्छा...

रुप चिढ़ कर फोन नहीं काटती, कान से निकाल कर स्क्रीन को देखने लगती है, विश्व ने भी फोन नहीं काटा था l रुप अपने कानों से फोन को लगा कर सुनती है, इस बार रुप को 'धक धक' सुनाई देती है l रुप समझ जाती है विश्व ने फोन को अपने सीने से लगाया है या फिर दिल की धड़कन वाली किसी आवाज को माइक पर सुना रहा है जिसके वज़ह से उसे धड़कते धड़कनें सुनाई दे रही थी l

रुप - यह क्या है...
विश्व - क्या है...
रुप - तुम... तुम मुझे छेड़ रहे हो...
विश्व - कहाँ... आप हो वहाँ.. और मैं यहाँ... कैसे छेड़ सकता हूँ...
रुप - देखो... तुम मुझे... नहीं... मैं बात नहीं करती तुमसे...
विश्व - पर मैं तो सुनना चाहता हूँ ना...
रुप - ओह... छोड़ो ना...
विश्व - मैंने पकड़ा ही कहाँ है...
रुप - आह... देखो... मैं बहुत ही सीरियस हूँ... और मज़ाक के मुड़ में बिल्कुल नहीं हूँ...
विश्व - हाँ अब ठीक है... अब बोलिए... फोन किस लिए किया...
रुप - बताऊंगी... पहले यह बताओ... तुमने यह धक धक की आवाज़... फोन पर कैसे सुनाया..
विश्व - वेरी सींपल... आपकी फोन आने की खुशी में.... थोड़ा उछलकूद कर लिया... और स्टेथोस्कोप की हीअरिंग पॉइंट को मोबाइल माइक पर लगा दिया...
रुप - (हैरान हो कर) क्या...
विश्व - देखा... हूँ ना मैं बहुत स्मार्ट...
रुप - (बुदबुदाते हुए) बेवक़ूफ़...
विश्व - जी नकचढ़ी...
रुप - व्हाट... तुम्हें सुनाई दिया...
विश्व - हाँ... अब इसमें मैं क्या कर सकता हूँ... वकील हूँ... बातेँ समझ लेता हूँ...
रुप - (इस बात पर खिलखिला कर हँस देती है, फिर थोड़ी सीरियस हो कर) अनाम...
विश्व - हाँ बोलिए...
रुप - क्या वीर भैया ने तुम्हें फोन किया था...
विश्व - क्यूँ...
रुप - वह आज बड़े... टुटे बिखरे से... उखड़े उखड़े से लग रहे थे... आज रात का खाना भी नहीं खाया... क्या तुमसे इस बाबत कोई बात की...
विश्व - नहीं... पर... वीर मुझसे क्यूँ बात करेगा...
रुप - तुम दोस्त हो उनके... कोई जहनी या दिली परेशानी होगी तो तुमसे कहेंगे ना...
विश्व - क्या... वीर परेशान है...
रुप - हाँ... लगता है... वीर भैया... बहुत टेंशन में हैं...
विश्व - ह्म्म्म्म... तो वीर वाकई बहुत टेंशन में है... हाँ... वीर ने फोन किया था आज... पर बात क्या है कुछ बताया नहीं...
रुप - क्या... यु... यु...
विश्व - अरे बताया ना... फोन पर उसने कुछ भी नहीं कहा...
रुप - शायद इसलिए... के तुम उनकी मनकी समझ पाओ... बड़े वकील बने फिरते जो हो...
विश्व - यह ताना था..
रुप - कुछ भी समझ लो...
विश्व - वैसे... क्या वीर ने आपको कुछ बताया...
रुप - नहीं... पर लगता है... वीर भैया.. अपने और अनु भाभी के लिए... बहुत टेंशन में हैं... कुछ तो हुआ है... हमसे भी शेयर नहीं कर रहे हैं... मतलब वह अपने आप को अकेला महसुस कर रहे हैं...
विश्व - ओ... आज उसकी आवाज़ में... एक तड़प तो थी... क्या आपने वीर के लिए फोन किया है...
रुप - नहीं... नहीं... पर... वह.. हाँ... पता नहीं... तुम... तुम कब आ रहे हो...
विश्व - शायद परसों...
रुप - जल्दी आओ ना...
विश्व - अच्छा... आ जाऊँ...
रुप - ह्म्म्म्म...
विश्व - ठीक है...
रुप - सच... कब आ रहे हो...
विश्व - अपनी दिल से आवाज़ दीजिए... हम आपकी खिदमत में बंदा हाजिर हो जाएंगे....

तभी रुप की फोन पर कॉल अलर्ट की ट्यून बजने लगती है l रुप फोन कान से हटा कर स्क्रीन पर देखती है विक्रम भैया लिखा आ रहा था l रुप हैरान हो जाती है l इस वक़्त विक्रम का फोन वह भी उसे

रुप - अच्छा फोन रखती हूँ... विक्रम भैया का फोन आ रहा है...


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कुछ गाडियों का काफिला एक आलीशान बंगले के सामने रुकती है l गाडियों के रुकते ही गेट पर पहरा दे रहे एक गार्ड भागते हुए जाता है और बीच वाले गाड़ी का दरवाजा खोलता है l गाड़ी से भैरव सिंह उतरता है l कलकत्ता के इसी आलिशान बंगले में भैरव सिंह, पिनाक और विक्रम के साथ उसके कारिंदे भी रुके हुए हैं l गाड़ी से उतर कर भैरव सिंह सीधा बंगले के अंदर प्रवेश करता है l दरवाजे पर पहरेदारी में खड़े गार्ड्स उसे सलामी ठोकते हैं l अपने काफिले में आए सभी मुलाजिम और गार्ड्स को नजर अंदाज करके भैरव सिंह अंदर चला जाता है l अंदर सीधे शराब खाने में पहुँचता है l वहाँ पर पिनाक बैठ कर अपने लिए आखिरी जाम बना रहा था l भैरव सिंह के वहाँ पहुँचते ही पिनाक अपनी नजर घुमा कर देखता है l भैरव सिंह को देखते ही अदब से खड़े होकर

पिनाक - राजा साहब....
भैरव सिंह - क्या बात है छोटे राजा जी.... आप अभी तक.. मय खाने में...
पिनाक - वह... (नशे में हल्का सा बहकते हुए) अभी तक तो... युवराज हमारा साथ दे रहे थे... पता नहीं वह कब हमें यहाँ अकेला कर चले गए... शायद ज्यादा नशा उठा नहीं पाए... इसलिए सोने चले गए...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म.... और आप... आप क्यूँ जागे हुए हैं...
पिनाक - हम.... वह... हम... आपकी प्रतीक्षा कर रहे थे...
भैरव सिंह - क्यूँ....
पिनाक - वह... आपकी देर रात इस्तकबाल के लिए...

भैरव सिंह आगे बढ़ कर एक कुर्सी पर बैठ जाता है और अपनी शूट की गले का बटन खोलते हुए इशारे से पिनाक को अपने पास पड़े दुसरे कुर्सी पर बैठने के लिए कहता है l पिनाक संभलते हुए बैठ जाता है

भैरव सिंह - हम यहाँ किस काम के लिए आए थे... क्या आपको भान है...
पिनाक - जी...
भैरव सिंह - आप और युवराज को हम अपने साथ यहाँ क्यूँ लाए... आप को इसका भी भान होगा...
पिनाक - जी...
भैरव सिंह - अब बताइए... आप कहाँ तक पहुँचे...
पिनाक - क्या हम आपके लिए... एक पेग बनाएं...

भैरव सिंह उसे घूरते हुए देखता है, पिनाक उसके सामने थोड़ा अस्वाभाविक लगता है l भैरव सिंह अपना सिर हाँ में हिलाते हुए इशारे से ही पेग बनाने के लिए कहता है l पिनाक अपनी जगह से उठता है और भैरव सिंह के लिए पेग बना कर उसके हाथों में देता है l पेग पिनाक के हाथों से लेने के बाद

भैरव सिंह - हमने आपसे कुछ पुछा था... छोटे राजा जी...
पिनाक - (थोड़ा हिचकिचाते हुए) आज तो हो नहीं पाया... वह... हमें दो या तीन दिन... और चाहिए...
भैरव सिंह - दो दिन या तीन दिन...
पिनाक - दो... दो दिन...
भैरव सिंह - ठीक है... तो हम परसों यहाँ से निकलेंगे... आप निर्मल सामल से कह दीजिए... नर्सो... भुवनेश्वर में मंगनी की तैयारी करे..
पिनाक - इ.. इ.. इतनी जल्दी...
भैरव सिंह - क्यूँ क्या हुआ....
पिनाक - कु... कुछ नहीं... हम यह सोच रहे थे... दो दिन भीतर राजकुमार जी को... हम कैसे तैयार करें...
भैरव सिंह - कोई घटना... या दुर्घटना... हमें हमारी मंशा से दुर नहीं कर सकती.... राजकुमार को युवराज तैयार करेंगे...
पिनाक - (सिर झुका कर बैठ जाता है) जी...
भैरव सिंह - और कुछ...
पिनाक - कुछ नहीं... कुछ नहीं... वैसे आप किसी और खास काम के लिए गए थे..... (रुक जाता है)
भैरव सिंह - हाँ... वह हो नहीं पाया है... पर हो जाएगा.... हम ने यहाँ के होम मिनिस्टर... और कमिश्नर से मुलाकात की... अंडरवर्ल्ड के जो खबरी हैं... उनको कमिश्नर के जरिए ख़बर भिजवा दिया है... शायद कल तक हमारी मुलाकात.... उस डैनी से हो जानी चाहिए....
पिनाक - ओह... मतलब सिस्टम आपका और उस डॉन का मुलाकात करवाएगा...
भैरव सिंह - हाँ... हम जहां भी जाते हैं... वहां के सिस्टम ले काम निकलवाते हैं... क्यूँकी... यहाँ डैनी को इन्हीं की सिस्टम और सर्कार की सुरक्षा प्राप्त है...
पिनाक - (चुप रहता है)
भैरव सिंह - अब क्या हुआ...
पिनाक - नहीं... क्या... राजकुमार के लिए... हम थोड़ी लीवर्टी ले सकते हैं... युवराज कह रहे थे... अगले चुनाव में... हमें फायदा हो सकता है...
भैरव सिंह - नहीं... जात और औकात बराबर ना हो... तो भी कमर थोड़ी टेढ़ा किया जा सकता है... थोड़ा झुका जा सकता है... पर जो फर्श में ढूंढने से ना दिखे... उसके लिए क्षेत्रपाल कमर तो क्या घुटने भी नहीं मोड़ सकते...
पिनाक - हमे बस एक ही चिंता है... पता नहीं राजकुमार कैसे प्रतिक्रिया देंगे...
भैरव सिंह - जवान खून है... जोश से लवालव है... पर उन्हें पगड़ी और जुते में फर्क़ समझ में नहीं आ रहा है... ऐसे में उन्हें समझाओ... औरत बिस्तर होती है... मर्द उसका चादर... पर बीवी और रखैल में फर्क़ करना आनी चाहिए...
पिनाक - जी... जी राजा साहब...
भैरव सिंह - इसीलिए आपको हमने नर्सों मंगनी के लिए कहा...
पिनाक - जी हम निर्मल सामल को कह देंगे...
भैरव सिंह - ठीक है... (भैरव सिंह उठने को होता है)
पिनाक - वह एक गड़बड़ है...
भैरव सिंह - (बैठ जाता जाता है) कैसी गड़बड़...
पिनाक - वह... हमने... एक बात... आपको नहीं बताई... हम... वह आपसे क्या कहें... कैसे कहें... राजगड़ में क्या हुआ है...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... हम सब जानते हैं...
पिनाक - (चौंकता है) क्या... आप जानते हैं...
भैरव सिंह - हाँ... वहाँ से भीमा का फोन आना... आपका फोन अटेंड करना... प्रधान को निर्मल सामल की केस के बहाने राजगड़ भेज ख़बर लेना... हम सब जानते हैं....
पिनाक - और इस बात का... आपके चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं...

भैरव सिंह अपनी कुर्सी से उठ खड़ा होता है और बार काउंटर पर जाकर अपने लिए एक पेग बनाता है l पेग पी लेने के बाद मुस्कराते हुए पिनाक की ओर देखता है l

भैरव सिंह - छोटे राजा जी... हमारे कुछ लोग... जो राजगड़ और यशपुर में दहशत बन कर हमारे नाम का डंका बजा रहे थे... वही हरामजादे... भरी सभा में पीट गए... यही कहना चाहते थे ना आप... (हँसने लगता है) हा हा हा हा हा.... सदियों से कोई आवाज़ हमारे खिलाफ उठा नहीं था... इसलिए इन कमजर्फों को यह गुमान हो गया था... के राजा भैरव सिंह का दबदबा इन्हीं के हड्डियों के दम से है... उन हरामजादों की यह खुश फहमी दुर हो गई... हा हा हा हा....
पिनाक - राजा साहब... जो भी हो... पीटे हमारे आदमी हैं... इज़्ज़त हमारी दाव पर लगा है... बट्टा हमारी साख पर लगा है...
भैरव सिंह - नहीं छोटे राजा जी... भैरव सिंह क्षेत्रपाल की इज़्ज़त कोई गेंद नहीं... जो यूहीं कोई उछाल देगा.... विश्वा ने जो किया... वह बरसाती चींटियों की आसमान छूने जितना बराबर है... दो चार पल उड़ेंगे... फिर झड़ कर गिर जाएंगे...
पिनाक - राजा साहब... आपकी बातें आप ही जाने... पर सच्चाई यही है... की आदमी हमारे मार खाए हैं... हमारे लिए लड़ने वाले.... उनका इज़्ज़त भले दो कौड़ी की हो गई... नुकसान तो फिर भी हमारा हुआ है...
भैरव सिंह - (कुछ देर के लिए ख़ामोश हो जाता है, फिर) छोटे राजा जी... हुकूमत करने वाले... अपनी सल्तनत की हिफाजत के लिए... लाव लश्कर पालते हैं... जंग में हमेशा एक दस्ता आगे रखते हैं... और बेहतरीन दस्ता को ओढ़ में रखते हैं... उस लश्कर में... जो पहला दस्ता होता है... उसे हरावल कहते हैं... हरावल दस्ता हमेशा आगे की पंक्ति में रहता है... जो या तो सामने वाले की हरावल पंक्ति को तितर-बितर कर देता है... या फिर मार खा कर नेस्तनाबूद हो जाता है... दसियों सालों से जीतते आए यह हमारे हरावल... और हमला कर जीत की जश्न मनाने वाले... यह भुल गए हैं कि जंग का सबसे बेहतरीन दस्ता... सालार के पास रहता है... यह जो मार खा कर भागे हैं... वह राजा क्षेत्रपाल के लश्कर का हरावल थे... अभी तो हमारे बेहतरीन सिपहसलार बाकी हैं...
पिनाक - (मुहँ फाड़े भैरव को देख रहा था)
भैरव सिंह - आपको क्या लगता है... हम इन टटपुंजों के सहारे पुरे स्टेट में हुकूमत चला रहे हैं... छोटे राजा जी... भैरव सिंह सियासत और हुकूमत में हाथी के बराबर है... जिसने खाने के दांत अलग... दिखाने के दांत अलग हैं... इसलिए जिसको भी यह खुश फहमी पालना है... पाल लेने दीजिए... जंग अभी शुरु ही कहाँ हुआ है...
पिनाक - इसका मतलब यह हुआ कि.... विश्वा के खिलाफ अभी भी कुछ नहीं करेंगे...
भैरव सिंह - छोटे राजा जी... जिस दिन विश्वा हम पर लपका था.... उस दिन हम सीढियों के उस ऊंचाई पर थे... जितना विश्वा का कद होता है... उसका सिर हमारे जुते के बराबर आ रहा था... उसे यह एहसास दिला रहे थे... की उसकी हस्ती... उसकी हैसियत... हमारे जुतों के नोक बराबर है...
पिनाक - फिर भी... वह छलांग पर छलांगे मारे जा रहा है... आपके गिरेबां तक पहुँचने के लिए... प्रधान कह रहा था... विश्वा को आरटीआई से ज़वाब मिल गया है... जिसके आधार पर वह कभी भी... पीआईएल दाखिल कर... रुप फाउंडेशन केस को फिर से उछालेगा....
भैरव सिंह - तो उछालने दीजिये... लोग भूलने लगे हैं... राजा क्षेत्रपाल के बारे में... अब फिर से लोगों के जुबान पर चढ़ने का वक़्त आ गया है...
पिनाक - आप इतने शांत हैं... लगता है आपने इस विषय पर सोच रखा है... तो ठीक ही सोचा होगा...

भैरव सिंह उठ कर उस कमरे से जाने लगता है l दरवाजे के पास रुक जाता है और मुड़ कर पिनाक की ओर देखते हुए

भैरव सिंह - छोटे राजाजी... हम उम्मीद करें या यकीन... यह आप तय कर लीजिए... नर्सों... राजकुमार की मंगनी... निर्मल सामल से होगी या नहीं....

कह कर पिनाक को सोच में डूबा कर भैरव सिंह वहाँ से चला जाता है l पिनाक छटपटाते हुए अपना मोबाइल निकाल कर एक कॉल डायल करता है


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रुप जब तक विश्व की फोन काट कर विक्रम की कॉल लिफ्ट करती तब तक रुप की फोन पर विक्रम का कॉल कट जाता है और वह मिस कॉल हो जाता है l रुप बजाय विक्रम को कॉल बैक करती वह घड़ी देखती है रात के ग्यारह बजने को थे l रुप बहुत हैरान हो कर सोचने लगती है विक्रम ने उसे इस वक़्त क्यूँ फोन किया, ऐसा क्या काम पड़ गया के उसे फोन किया, उसकी भाभी शुभ्रा को क्यूँ नहीं l ऐसे ही सोच रही थी के उसका फोन फिर से झनझना उठा l स्क्रीन पर विक्रम भैया डिस्प्ले हो रहा था l रुप झट से कॉल लिफ्ट करती है


रुप - हैलो... भैया...
विक्रम - (एक मायूस भरी आवाज में) तुम्हारा फोन बिजी आ रहा था...
रुप - हाँ वह... एक्जाम पास आ रही है ना... इसलिए सिलेबस के ऊपर... दोस्तों से बात कर रही थी...
विक्रम - ह्म्म्म्म...
रुप - क्या हुआ भैया... आप इस वक़्त... मुझे... फोन...
विक्रम - (चुप रहता है)
रुप - भैया...
विक्रम - हाँ...
रुप - क्या... क्या हुआ भैया...
विक्रम - न.. नंदिनी...
रुप - हाँ...
विक्रम - ह.. ह्ह.. हमारी माँ.... (आवाज़ भर्रा जाती है) कैसे मरी थी...
रुप - (यह सुन कर स्तब्ध हो जाती है) भ भ भैया....
विक्रम - देखो तुम्हें मेरी कसम है... मुझे सब सच सच बताना... ह ह हमारी माँ की मौत... कैसे हुई... थी...

रुप को महसुस हो जाता है, जैसे विक्रम बहुत रोया है और अभी मुश्किल से अपनी रुलाई को रोक कर बात कर रहा है l यह महसुस होते ही रुप की आँखों में आँसू भरने लगते हैं, पर रुप अपनी रुलाई पर काबु नहीं पा पाती

रुप - भैया... आज आपको क्या हो गया है...
विक्रम - देख मेरी बहन... मैंने तुझे अपनी कसम दी है... वह रात तु कभी नहीं भूली होगी... (आवाज सख्त हो जाती है) क्यूंकि वह रात... भूलने वाली थी ही नहीं...
रुप - (सुबकते हुए) ह्ह.. हाँ भैया... वह रात... वह रात मैं... कैइसे.. भूल सकती थी...
विक्रम - हाँ मेरी बहन तूने भूली नहीं होगी... पर तुने मुझे बताया भी तो नहीं...
रुप - कैसे बताती भैया... कैसे बताती... मेरे पास मेरे भाई थे ही कहाँ... एक भाई मुझे मेरे इसी जनम दिन पर मिला... और दुसरा भाई जनम दिन के कुछ दिनों बाद मिले...
विक्रम - सॉरी गुड़िया सॉरी... मैं सच में... तेरा गुनाहगार हूँ... कास... कास के उस महल में.. मैं तेरा भाई बन कर रहा होता... सॉरी गुड़िया सॉरी...
रुप - (संभलने की कोशिश करते हुए) कोई नहीं भैया... अब तो मेरे पास... मेरे लिए जान देने वाले... जान लेने वाले एक नहीं... दो दो भाई हैं ना... (फिर थोड़ी सीरियस हो कर) पर भैया... यह बात इतने सालों बाद... आपको किसने... (चौंक कर) होंओ... कहीं.. कहीं छोटे राजा जी....
विक्रम - (अपनी रुलाई को रोकते हुए) ह्म्म्म्म....
रुप - (अब और भी सीरियस होकर) तो भैया... अब.... आ आप.. क्या करोगे...
विक्रम - पता नहीं.... पता नहीं बहना पता नहीं... मैं... मैं तो अब खुद से लड़ रहा हूँ... अब तक जिस शख्स में... अपने बाप को देख कर... पाप हो या पुण्य... उसके हर एक बात को पत्थर की लकीर समझ कर... करते जा रहा था... कल को उसके भीतर... मुझे अपनी माँ का कातिल दिखाई देगा... मैं... कैसे... आह यह दर्द.... पर.. पर तु बेचारी... यह दर्द... यह टीस... पंद्रह सालों से कैसे सह रही थी....
रुप - (रो पड़ती है) भैया...
विक्रम - तु वाकई... बहुत बहादुर है... मैं....
रुप - भैया प्लीज...
विक्रम - पर बहना... माँ से... एक शिकायत रहेगी.. माँ ने अपनी आखिरी समय में... मेरे साथ ठीक नहीं किया... बिल्कुल ठीक नहीं किया...
रुप - (खुद पर काबु पाते हुए) भैया... आप... माँ को दोष दे रहे हैं... क्यूँ भैया क्यूँ...
विक्रम - (सिसकते हुए) हाँ... बहना हाँ.. तु नहीं जानती... माँ ने उस रात... मुझे आखिरी बार दुलार ने आई थी... सुलाने आई थी... और दुलारती सुलाती मुझसे एक ऐसी वादा ले ली... के आज तलक मैं उस वादे की आग में जल रहा हूँ... झुलस रहा हूँ... और अब खाक होने वाला हूँ...
रुप - (संभल जाती है) आप माँ पर इल्ज़ाम लगा रहे हो भैया...
विक्रम - इल्ज़ाम... हाँ शायद... तु जानती भी है... उस रात माँ ने मुझसे कौनसा वादा लिया था...
रुप - हाँ... भैया हाँ... जानती हूँ...
विक्रम - (हैरान हो कर) क्या... तु.. तु जानती है... कैसे...
रुप - क्यूंकि जब माँ ने मुझे सुलाने के बाद तुम्हारे कमरे में गई थी... तब मैं सोई ही नहीं थी... इसलिए माँ के पीछे पीछे तुम्हारे कमरे तक चली गई थी... बाहर से तुम्हारा और माँ का दुलार देख व सुन रही थी....
विक्रम - और तुझे लगता है... माँ ने मुझसे जो कहा सब तुझे याद है....
रुप - हाँ भईया... क्यूँ के अभी अभी आप ही ने तो कहा... उस रात की बात मैं कैसे भूल सकती थी... माँ ने कहा था... राजा साहब के साथ तब तक बने रहो... के जब तक वह खुद से तुम्हें उनका साथ छोड़ने के लिए ना कह दें...
विक्रम - हाँ... यही कहा था... पर क्यूँ... क्यूँ क्यूँ... मैं क्यूँ उस जालिम शख्स के साथ देता रहा... बल्कि उसका हाथ बन कर उसे मजबूत करता रहा... क्यूँ... क्यूँ... क्यूँ... जानती हो... लोग कहते हैं... मैं राजा साहब का हाथ हूँ... कहीं ना कहीं... मुझे इस बात का गुमान था... पर आज यह गाली लग रहा है... ऐसा लग रहा है... जैसे मैंने अपने हाथों से अपनी माँ को मारा है...
रुप - आप... आप गलत हो भैया...
विक्रम - क्या... मैं गलत हूँ... हाँ गलत ही तो हूँ... इस राह पर... मेरी माँ ने जो मुझे भेजा नहीं है... चलाया है....
रुप - नहीं नहीं नहीं.. आप माँ की बातों को गलत समझा है...
विक्रम - क्या गलत समझा है...
रुप - माँ ने कहा था कि... वह पिता हैं... तुम साथ छोड़ दोगे तो... तुम धर्म से उनके दोषी हो जाओगे... ताकि जब वह साथ छोड़ने के लिए कह दें... तब धर्म का दोष तुम पर ना लगे.... इसलिए... माँ ने सिर्फ और सिर्फ. राजा साहब के साथ बने रहने के लिए कहा था... उनका साथ देने के लिए नहीं... तुम साथ देते रहोगे... तो राजा साहब तुम्हें अपना साथ छोड़ने के लिए क्यूँ कहेंगे....

विक्रम रूप कि इस बात को सुन कर बहुत जोर से चौंकता है l उसकी आँखे फैल जाते हैं l उसे इतना जोर का झटका लगा था कि उसके मुहँ से कोई बोल नहीं फुट पा रहा था l

रुप - भैया... क्या हुआ...
विक्रम - हाँ... मैं... वह... (फिर चुप हो जाता है)
रुप - भैया...
विक्रम - बस बहना बस... अपनी नासमझी की पट्टी को आँखों में बाँध कर... माँ की आखिरी ख्वाहिश समझ कर... मैं जिंदगी भर अंधेरे में भटक रहा था... तेरा शुक्रिया मेरी बहन... तुने उजाला की राह दिखाई है...
रुप - भैया...
विक्रम - हाँ बहना हाँ... मैं अब निश्चित हूँ... माँ की आत्मा को मुक्ति न मिली होगी... वह तड़प रही होगी... मेरे जैसे ना लायक औलाद के वज़ह से... तु देखना गुड़िया... तु देखेगी... (लहजा कठोर हो जाता है) राजा भैरव सिंह क्षेत्रपाल... मुझे अपनी जिंदगी से... एकदिन जरुर निकाल फेंकेगा....
रुप - भैया...
विक्रम - हाँ बहन... हाँ... अब आज मुझे सुकून की नींद आएगी... मुझे मेरी माँ को याद करते हुए... उसके गोद को तरसते हुए मुझे सोना है... कल का सुबह... विक्रम सिंह के लिए... एक अलग सुबह आएगी...


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गहरी नींद में भैरव सिंह सोया हुआ था l उसके कानों में अलार्म की आवाज सुनाई देती है l वह नींद में ही चिढ़ कर करवट बदल कर तकिया अपने कानों पर रख देता है l थोड़ी देर बाद अलार्म बंद हो जाता है l वह फिर से करवट बदल कर पीठ के बल सीधा होकर सोने लगता है l फिर थोड़ी देर बाद अलार्म बजने लगता है l इसबार भैरव सिंह की आँख खुल जाती है l वह बेड पर उठ बैठता है l अलार्म बंद हो जाता है l दीवार की ओर देखता है इलेक्ट्रॉनिक घड़ी पर सुबह के साढ़े चार बज रहे थे l वह हैरान होता है बेड के पास स्टूल पर से अपना मोबाइल निकालकर देखता है कोई अलार्म नहीं बजा था l वह सावधान हो जाता है, कमरे में अंधेरा था पर फिर भी अपना नजर घुमाता है l एक जगह उसकी नजर ठहर जाता है l एक साया सा अक्स सोफ़े पर बैठा हुआ महसुस हो रहा था l भैरव सिंह धीरे धीरे तकिये के नीचे अपना हाथ ले जाता है और झट से रिवाल्वर निकाल कर उस साये की ओर तान देता है l

भैरव सिंह - कौन है वहाँ...
साया - डर गए क्या... राजा भैरव सिंह...
भैरव सिंह - डर गए होते तो अब तक तु नहीं तेरी लाश से हम मुखातिब हो रहे होते... कौन है तु... और यहाँ की सेक्यूरिटी ब्रीच कर.. यहाँ कैसे आया...
साया - यह ना तो राजगड़ है... ना ही ओड़िशा... यह बंगाल है राजा भैरव सिंह... और मैं... पुरे नॉर्थ ईस्ट का राजा...
भैरव सिंह - ( रिवॉल्वर को उसी तरह ताने ) ओ... डैनी... डैनीयल फेडरीक पॉल... राजा चाहे कहीं का भी हो... शेर की गुफ़ा में आए हो वह भी इतनी लापरवाही बरत कर... चलो अपना हाथ उपर उठाओ...


डैनी अपने दोनों हाथ उठा कर वहीं बैठा रहता है l भैरव सिंह नाइट रॉब पहले हुए वैसे ही रिवाल्वर ताने हुए अपनी बेड से उतरता है और दीवार के पास जाकर स्विच दबाता है l पुरा कमरा रौशन हो जाता है l भैरव सिंह देखता है काले रंग के ओवर कोट, हेट और गॉगल पहले हुए डैनी के दोनों हाथों में ग्रेनेड थे जिनके ट्रिगर पिन के रिंग दोनों अंगूठे में फंसे हुए थे l यह देख कर भैरव सिंह की आँखे फैल जाती है l


भैरव सिंह - ओ... पुरी तैयारी के साथ आए हो...
डैनी - हाँ... यह मेरा स्टाइल है... जब भेड़िया की मांद में जाता हूँ... तो सबसे पहले उसके जबड़े बाँध देता हूँ... ताकि भेड़िया गुर्रा तो सके पर काट ना सके...
भैरव सिंह - अपनी यकीन पर इतना भी यकीन मत करो... के शेर की गुफा... तुम्हें भेड़िया की मांद लगे... शिकार होने में ज्यादा देर ना लगेगी...
डैनी - मैं वह शिकारी हूँ... जिसे जानवरों की हर नस्ल का इल्म है... इसीलिए तो... तुम्हारी मांद में... तुम्हारे जबड़े के सामने आ खड़ा हूँ... पर तुम गुर्राना तो दुर कुछ नहीं कर सकते....

भैरव सिंह अपना रिवॉल्वर अपनी नाइट रॉब के जेब में रख देता है और डैनी के सामने खड़ा हो जाता है l


डैनी - राजा साहब... आप बैठ तो जाओ... यह आपका ही कमरा है... और यह कुर्सी यह सोफा सब आप ही की है...
भैरव सिंह - (डैनी को घूरते हुए उसके सामने बैठ जाता है)
डैनी - (उसके सामने बैठते हुए) बुरा तो लग रहा होगा... आप ही के कमरे में... आप ही के कुर्सी में बैठने के लिए... मैं कह रहा हूँ...
भैरव सिंह - नहीं... तुम इससे ज्यादा मेरा कुछ कर नहीं सकते... यह हम जानते हैं...
डैनी - पिछले तीन चार दिनों से... अपने सारे सोर्सेज से... मुझसे मिलने के लिए ख़बर भिजवाए हो... वज़ह क्या है...
भैरव सिंह - खुद को राजा कह रहे हो... वज़ह मालुम होना चाहिए...
डैनी - विश्वा... यही ना...
भैरव सिंह - नहीं... डैनी... हमें फ़िलहाल तो डैनी से मतलब है... और... डैनी के बारे में जानना है...
डैनी - मुझसे... हा हा हा हा... (हँसने लगता है) सच बोलो राजा साहब... सच बोलो... अगर विश्वा ना होता... तो तुमको... डैनी से क्या मतलब होता... है ना...
भैरव सिंह - आधे गलत हो... हाँ तुम्हें जानने की वज़ह... विश्वा तो है... पर उसकी औकात उतनी है नहीं... कि वह राजा क्षेत्रपाल की माथे पर शिकन का बल पड़ जाए...
डैनी - ह्म्म्म्म... औकात... बहुत बड़ी चीज़ है... विश्वा अब वह शख्सियत रखता है... जो दूसरों को उनकी औकात दिखाता है....
भैरव सिंह - इतना यकीन है... अपने चेले पर... खैर उसे तो हम निपट लेंगे... फ़िलहाल हमें डैनी से मतलब है...
डैनी - राजा क्षेत्रपाल को डैनी पर इंट्रेस्ट... बात थोड़ी समझ के परे है...
भैरव सिंह - या तो तुम हमें ठीक से जाना नहीं... या फिर जान कर अनजान बन रहे हो....
डैनी - हाँ... अब लग रहा है... मैं अपने बराबर किसी राजा से बात कर रहा हूँ...
भैरव सिंह - हम... पैदाइशी राजा हैं.. जिनके सजदे... आवाम से लेकर सिस्टम तक करतीं हैं... तुम... एक वांटेड माफिया... जो सिस्टम के लूप होल्स के वज़ह से... किंग पिन बना बैठा है....
डैनी - हाँ... हूँ तो मैं किंग पिन... पर तुम कौन-से दुध के धुले हो राजा क्षेत्रपाल... सिस्टम में लूप होल्स ना होती... तुम भी मेरी तरह किंग पिन ही कहलाते... राजा क्षेत्रपाल नहीं... जैसे हम दोनों अभी बराबर लबादे में हैं... फर्क़ यही है कि... तुम सफेद रंग के नाइट गाउन में हो और मैं... काले रंग के ओवर कोट में हो....
भैरव सिंह - यह शान ओ शौकत... खानदानी है... इतिहास हमारे बारे में कहता है...
डैनी - डाकु भी तुम खानदानी हो... यह भी इतिहास में लिखा हुआ है...


भैरव सिंह के जबड़े सख्त हो जाते हैं l वह डैनी को घूर कर देखने लगता है l फिर एक गहरी साँस छोड़ते हुए कहना शुरू करता है l

भैरव सिंह - ठीक कहा तुमने... जैसी नाम और हैसियत है बंगाल में तुम्हारी... हम उससे भी बड़ी हैसियत और कद रखते हैं ओड़िशा में... इसलिए स्टेट का हर बच्चा बच्चा तक जानता है.. हमारे बारे में... इसलिए जो हमसे उलझने की गलती करता है... उसे खुद समाज कैंसर की तरह अपने से काट कर अलग कर देता है...
डैनी - ह्म्म्म्म... तो... तुम्हारे समाज को... डैनी से क्या काम पड़ गया...
भैरव सिंह - तुमने हमारी उसी समाज के कैंसर को... ना सिर्फ आगे पढ़ाया... बल्कि हमसे लड़ने के लिए खड़ा भी किया... यह जानते हुए... के वह... हमसे उलझने की गलती किया था.... क्यूँ...
डैनी - वह इसलिए... कि मैं... राजा क्षेत्रपाल की हुकूमत के दायरे में नहीं आता...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... चलो कुछ देर के लिए... हम यह मान भी लें... फिर भी एक जगह पर... हमारी सोच... हमारी अनुभव हमें यह बताती है कि... तुम हमसे कुछ ना कुछ बैर रखते ही हो...
डैनी - वज़ह...
भैरव सिंह - एक साल पहले... कलकत्ता म्यूज़ियम में एंटीक चीजों का अकशन हुआ था... जिसमें फर्गुशन के तलवार की मूठ की एक स्पेशल अकशन हुआ था... तुम्हारे एक खास आदमी ने खरीदा था... जो बाद में... तुम्हारे पास पहुँचा था... (डैनी मुस्कराता है) एक ऐसी एंटीक पीस... जो कई दशकों से कभी नहीं बिकी... पर जब बिकी... तो... (भैरव सिंह और आगे कुछ नहीं कहता है)
डैनी - चुप क्यूँ हो गए राजा साहब... कहिये ना बिकी तो आखिर क्यूँ बिकी...
भैरव सिंह - उस तलवार की मूठ बेकार है... उसके ऊपर की कार्बन स्टील की तलवार के वगैर... (एक पॉज लेकर) क्यूँ खरीदा...
डैनी - राजा साहब... अभी आप ही ने तो कहा... एंटीक पीस...
भैरव सिंह - हाँ एंटीक पीस... उस एंटीक पीस के साथ एक मिथक भी मशहूर है... ऐसे में... उस बिना मूठ की तलवार को... क्षेत्रपाल परिवार का कोई दुश्मन ही खरीद सकता है...
डैनी - ह्म्म्म्म... (मुस्करा कर) तो यह बात है... की उस तलवार की मूठ का खरीदार... क्षेत्रपाल परिवार का दुश्मन हो सकता है... यह एक लाजिक है.... जिस लाजिक के आधर पर तुमको लगता है कि... मेरी तुमसे कोई पुरानी दुश्मनी हो सकती है...

भैरव सिंह अपना बायाँ भवां उठा कर डैनी को घूर कर देखने लगता है l मुस्कुराते हुए डैनी का चेहरा एक दम सीरियस हो जाता है l

डैनी - राजा भैरव सिंह क्षेत्रपाल... वक़्त की दरिया में... कुछ राज बहुत गहराई में दबे होते हैं... वक़्त आने पर... उसी दरिया का सीना चिर कर... वह राज फुट निकलते हैं.... यह उस वक़्त की बात है... जब तुम राजा साहब नहीं थे... तब युवराज हुआ करते थे... तुम ग्रैजुएट की डिग्री के लिए... कोलकात्ता यूनिवर्सिटी में जॉइन हुए थे.... तुमने अपनी रुतबे के हिसाब से... एक कोठी भाड़े पर ली थी... उस कोठी में तुम्हारे हर काम के लिए... नौकर चाकर सब थे... उन चाकरों में एक चाकर था जिसका नाम था नीमाई मंडल.... याद है... उसकी एक खूबसूरत सी बेटी थी... नाम था... सोमा मंडल.... याद है....


भैरव सिंह को झटका सा लगता है l उसे लगता है जैसे आसमान में सैकड़ों बिजलियाँ कौंधने लगी हैं और बादल गरजने लगे हैं l भैरव सिंह हैरानी से डैनी की ओर देखने लगता है l

डैनी - पढ़ाई के दिनों में... अपने रुतबे के दम पर... कॉलेज में बड़ा नाम किए... उस नाम और व्यक्तित्व से सोमा मंडल प्रभावित हुई थी... एक दिन तुम बीमार पड़े... तब वह बुढ़ा नीमाई और उसकी बेटी सोमा ने तुम्हारी बहुत सेवा की.... और तुमने भी उस सेवा का मेवा में उस मासूम भोली लड़की की भावनाओं को भड़का कर अपने नीचे लिटा कर खूब दिया.... इश्क और मुश्क शायद छुप जाए... पर हवस कैसे छुपे... वह लड़की की पेट में आकार लेती ही है... जब बात लोगों के बीच पहुँची... लोगों ने सवाल उठाए... लड़की बड़ी हिम्मत से दुनिया की सामना किया... क्यूंकि उस लड़की का विश्वास... गुरूर... अहंकार तुम थे... उसका जवाब ज़माने को तुम थे.... पर जब लोगों के सामने सबूत का वक़्त आया... तुमने क्या कहा... याद है.... तुमने कहा था... यह नीची छोटी ओछी जात की लोगों की साया भी पड़ जाए... तो तुम्हें स्नान करना पड़ता है... ऐसी छोटी और ओछी जात की लड़की को अपने साथ... अपने बिस्तर पर... नहीं.. कभी नहीं.... याद है.... तब उस लड़की का विश्वास... अभिमान सब टुट कर बिखर गया.... वह कुए में कुद कर अपनी जान दे दी.... उसके पीछे पीछे उस लड़की की मज़बूर बाप... उसने भी कुए में कूद कर आत्महत्या कर ली... याद है....
भैरव सिंह - (पसीना पसीना हो गया था) तुम.... यह... यह सब... क..कैसे जानते हो....
डैनी - उस नीमाई का एक बेटा भी था... और उस सोमा की... एक छोटा भाई भी था... जो उस वक़्त... उस मजबूर पिता और मासूम बहन के पास नहीं था.... मरने से पहले... सोमा ने... अपने भाई के नाम एक चिट्ठी में सब कुछ लिख कर... अपनी बेबसी बता चुकी थी...
भैरव सिंह - हाँ... याद आया... डिग्री लेते वक़्त... एक लड़के ने एक बार मुझ पर हमला किया था... दिनेश... दिनेश नाम था उसका... पर उसे तो मेरे आदमियों ने मार कर हावड़ा के नीचे फेंक दिया था...
डैनी - हाँ... जब उसने हमला किया था... तब तुमने अपनी वही बात दोहराई थी... दिनेश के छूने से... तुम अशुद्ध हो गए थे... शुद्धि स्नान के लिए... तुम वहाँ पर उस लड़के को... अपने लोगों के हवाले कर चले गए थे... उन्होंने उसे बहुत मारा... मार मार कर... उसे गंगा में फेंक दिया....
भैरव सिंह - ओ... तो तुम उस दिनेश का बदला ले रहे हो...
डैनी - नहीं... बदले के लिए... दिनेश मंडल... आगे चल कर... डैनी बन गया... पर वह यह बात हमेशा के लिए गांठ बाँध ली... भैरव सिंह को वह कभी छुएगा नहीं... हाथ नहीं लगाएगा... पर उसे सजा दिला कर ही रहेगा.... एक ऐसे आदमी से... जिसे वह अपनी पैरों की जुती समझता होगा... देखो विधि का विधान... वक़्त ने मुझे विश्वा से मिलवाया.... मैंने पहली ही नजर में उसके अंदर की आग को पहचान लिया था...
भैरव सिंह - तो दिनेश से डैनी बने... कहानी क्या बनाए... पुलिस वाले की बेटा... और विश्वा को सिखाने के लिए... उसकी उपकार लेने का ड्रामा किया लोगों को यह जताया कि... आंध्र प्रदेश से आए गुंडों से बचाने के कारण... तुमने उसे मदत की....
डैनी - हाँ... कुछ बातों को छुपाने के लिए... कहानियाँ बनानी पड़ती हैं... जैसे... बीते दिनों के ग़द्दार डाकू... आज के राजा बने बैठे हैं....
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... हमें लगा... हमारे खिलाफ स्टेट में कोई नहीं जाता.... पर तुम एकसेपशनल निकले.... इसलिए थोड़ी इनक्वायरी की... तब पता चला... फर्गुशन की तलवार की मूठ तुम्हारे आदमी ने खरीदी है... तब तुम पर शक हुआ... अब मालुम हुआ मामला निजी है....
डैनी - हाँ... बहुत निजी है... मैंने कसम खाई थी... तुम्हें हाथ नहीं लगाऊंगा.... पर तुम्हें ख़तम भी करूँगा... विश्वा और मेरी कहानी में ज्यादा फर्क़ नहीं है... पर विश्वा के अंदर जो आग है... उसके लपेटे में तुम ख़ाक हो जाओगे....
भैरव सिंह - हा हा हा हा हा... (हँसने लगता है) विश्वा... उसे हमने उसकी औकात दिखा दी थी... उसकी हस्ती कितना बौना है... उसे हमने अपना विश्वरुप दिखाया था....
डैनी - उसी विश्वा की... ट्रांसफर्मेशन देख कर... उसके गुरु की इनक्वायरी करते हुए कलकत्ता पहुँच गए...
भैरव सिंह - चींटी काट सकता है... शिकार नहीं कर सकता...
डैनी - अगर मारना होता तो यकीन करो... अब तक तुम्हें मार चुका होता... तुम जिंदा हो... तो उसके लिए... कभी सेनापति दंपती के पैर धो कर पानी पी लेना...
भैरव सिंह - क्या बकते हो...
डैनी - सही कह रहा हूँ... विश्वा की काबिलियत क्या है सुनो बताता हूँ... तुम्हारे पुराने दोस्त के बेटे को... जैल के अंदर लाकर... उसे मौत दे दी... ऐसी मौत के पुलिस और पोस्ट मोर्टेम करने वाले डॉक्टर तक को लगा वह मौत हाइपर बीपी और ड्रग्स ओवर डोज के वज़ह से हुआ था...
भैरव सिंह - (आँखे हैरानी से बड़ी हो जाती हैं) यश... यश वर्धन चेट्टी...
डैनी - हाँ... जरा सोचो राजा जी... एक मामुली सा मुजरिम... यश जैसी शख्सियत को जैल के अंदर ले आया... और उसे मौत की घाट भी उतार दिया... तो सोचो वह तुम्हारे साथ क्या कर सकता था....
भैरव सिंह - (हलक से थूक गटकता है)
डैनी - तुम अगर जिंदा हो... तो उसके लिए... कभी फुर्सत निकाल कर एडवोकेट प्रतिभा सेनापति की पैर धो कर पानी पी लेना... क्यूँकी उन्होंने ही विश्वा से वचन ली थी... के तुम्हें विश्वा कानूनन सजा देगा....
भैरव सिंह - और तुम इसमें विश्वा की मदत करोगे....
डैनी - वह विश्वा है... राजा क्षेत्रपाल... उसे मेरी मदत की कोई जरूरत नहीं है... वैसे भी... अभी में इस कुरुक्षेत्र में... बेलाल सेन की भूमिका में हूँ... तुम्हें या तुम्हारी सल्तनत को छूउंगा भी नहीं.... पर तुम्हारी हुकूमत का दायरा जितना सिकुड़ता जाएगा... मैं उतना ही फैलता जाऊँगा.... क्यूँकी तुम्हारे खिलाफ मैंने एक अमोघ हथियार चला दिया है... जिसकी काट... ना तुम्हारे पास है... ना ही तुम्हारे सिस्टम के पास है...
भैरव सिंह - यह खुश फहमी तुम्हारी जल्द दूर कर देंगे.... विश्वा कुरेदना शुरु किया है... पर वादा करते हैं... काटने की नौबत नहीं आएगी... उससे पहले वह अंजाम तक पहुँच जाएगा...
डैनी - थोड़ी देर बाद सुबह होने वाली है राजा साहब... जागो... और समझो... विश्वा तुम्हें नींद से ना सिर्फ जगाएगा... बल्कि तुम्हें तुम्हारी असली औकात भी दिखाएगा...
भैरव सिंह - वह तो जब दिखाएगा तब देखा जाएगा... डैनी उससे पहले... तुम अपनी सोचो....
डैनी - जोश जोश में तुम यह भूल रहे हो... यह कलकत्ता है... यहाँ का राजा मैं हूँ...


तभी बिजली चली जाती है, भैरव सिंह अपनी नाइटरॉब की जेब से रिवाल्वर निकाल कर तान देता है l थोड़ी देर बाद जब बिजली आती है तो वहाँ पर कोई नहीं था l


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दरवाज़े पर दस्तक हो रही थी, और रुप को अपना नाम भी सुनाई सुनाई दे रही थी पर वह जाग नहीं पा रही थी l आँखों में नींद इस कदर ज़मी हुई थी के वह चाह कर भी उठ नहीं पा रही थी l जब दरवाजे पर दस्तक नहीं रुकती तो बड़ी मुश्किल से बेड से उठ कर दरवाजा खोलती है l सामने शुभ्रा खड़ी थी l शुभ्रा को रुप के आँखों के नीचे आँसू की सूखी धार स्पष्ट दिखती है l

शुभ्रा हैरान होती है पर कहती नहीं है अंदर आकर वह रुप की बेड पर बैठ जाती है l रुप उसके पीछे पीछे बेड तक पहुँचती है कि तभी उसकी नजर आईने में पड़ती है l उसे अपनी हालत का जायजा हो जाता है l वह तुरंत अपनी वॉशरुम में घुस जाती है और चेहरा अच्छी तरह से धो कर टावल से साफ करते हुए बेड रुम में आती है l शुभ्रा की नजर उसे जिस तरह से घूर रही थी रुप खुद को असहज महसूस करने लगती है l पर कोई किसीसे कुछ भी नहीं कह रहे थे l अंत में असहजता के साथ रुप कमरे में खामोशी तोड़ते हुए शुभ्रा से सवाल करती है l

रुप - आप कबसे दरवाजा दस्तक दे रहीं थीं...
शुभ्रा - नाश्ते का वक़्त हो गया है.... टेबल पर कब तक इंतजार करती... और शायद पहली बार... तुमने अपना मोबाइल स्विच ऑफ कर रखा था... तुम भाई बहनों को क्या हो गया है आज...
रुप - भाई बहन मतलब...
शुभ्रा - वीर नाश्ता किए वगैर आज घर से निकल गए हैं... उनके जीवन में क्या चल रहा है... कुछ बता नहीं रहे हैं... खुद में घुट रहे हैं... कल रात का खाना तुमने खाया नहीं... भूखे पेट सो गई... पर यह क्या... तुम रात भर रोई हो... क्यूँ नंदिनी...
रुप - मैं कहाँ रोई थी भाभी...
शुभ्रा - बताना नहीं चाहती तो मत बताओ... पर झूठ तो मत बोलो...

कह कर शुभ्रा वहाँ से उठ कर जाने लगती है l रुप को ग्लानि महसूस होती है तो वह शुभ्रा को आवाज दे कर रोकती है l

रुप - भाभी प्लीज...
शुभ्रा - (बिना रुप की ओर देख कर रुक जाती है)
रुप - भाभी... कल रात विक्रम भैया से बात हुई थी... एक ऐसी बात... जो बचपन से मैं भुलाने की कोशिश कर रही थी... पर विक्रम भैया के वज़ह से... वह व्याक्या... मेरे यादों को रात भर तार तार कर रही थी...

शुभ्रा हैरानी के साथ रुप की ओर मुड़ती है l रुप उसे अपने बेड पर बिठा कर विक्रम से हुई सारी बातेँ बताती है l सारी बातें सुन कर शुभ्रा चेहरा हैरानी और डर के मारे सफेद हो जाती है l

रुप - भाभी... (झिंझोड कर) भाभी...
शुभ्रा - (चौंक कर) हाँ...
रुप - बीते कल की गुजरी हादसा है... तुम उसे लेकर परेशान क्यूँ हो...
शुभ्रा - बेशक बीते कल की गुजरी हादसा है... पर आज के बाद विक्की की आने वाले कल प्रभावित होने जा रही है...
रुप - मैं भी यही सोच रही थी भाभी... अब ऐसा लग रहा है... जैसे सब हर रिश्तों के बीच बवंडर आने वाला है... क्षेत्रपाल अब तितर-बितर होने वाले हैं... और हर रिश्ते की अपनी अपनी वज़ह है... कल रात तुम पर जो गुजरी है... शायद विक्की पर भी वही गुजरी है...
रुप - हाँ भाभी... क्षेत्रपाल महल की आन... और क्षेत्रपाल की मूँछ की शान में... पता नहीं क्या क्या क़ुरबान होने वाली है...
शुभ्रा - (अचानक कुछ याद करते हुए) अरे मैं तो भूल गई... चलो जाओ तुम जल्दी से तैयार हो जाओ...
रुप - नहीं भाभी... आज कॉलेज जाने का मुड़ नहीं है...
शुभ्रा - ठीक है... जाना ना जाना तुम्हारी मर्जी... पहले तैयार हो कर नीचे तो आओ... भाश्वती आने वाली है...
रुप - क्या... भाश्वती... पर क्यूँ...
शुभ्रा - तुम रात से फोन बंद कर सो गई थी... भाश्वती कह रही थी... तुम दोनों में चैलेंज था... कौन जल्दी उठ कर किसे कॉल करते हो... हमेशा तुम जीतती थी... आज उसने तुम्हें कॉल बैक किया तो... तुम्हारा मोबाइल स्विच ऑफ था...

रुप यह सुनते ही अपनी जीभ बाहर निकाल कर अपनी सिर पर हाथ दे मारती है l वह समझ जाती है, आज पहली बार उसने विश्व को सुबह फोन नहीं की थी l यह बात ज़रूर विश्व ने भाश्वती से कहा होगा l अब भाश्वती हर बात पर छेड़ना शुरु कर देगी l वह जल्दी से बाथरुम में घुस जाती है l उधर रुप की हालत देख कर थोड़ी देर के लिए शुभ्रा मुस्करा देती है पर रुप के बाथरुम जाने के बाद उसके चेहरे पर चिंताएं छाने लगती हैं l वह रुप की कहे बातों को याद करते हुए नीचे आती है l नीचे अपनी मोबाइल से वह विक्रम को फ़ोन लगाती है l विक्रम की फोन स्विच ऑफ आ रहा था l वह मोबाइल हाथ में लेकर गहरी चिंता में खो जाती है l कुछ देर बाद नौकर आकर ख़बर देता है कि राजकुमारी जी की कोई दोस्त आई हुई हैं l शुभ्रा उसे अंदर भेजने के लिए कहती है l कुछ देर बाद भाश्वती अंदर आती है l

भाश्वती - नमस्ते भाभी...
शुभ्रा - आओ भाश्वती... तो बहुत दिनों बाद... पर भाभी के लिए नहीं... अपनी दोस्त नंदिनी के लिए...
भाश्वती - नहीं... ऐसी बात नहीं है भाभी... वह...
शुभ्रा - हाँ हाँ... समझती हूँ... इस घर में पहली बार... घर के सदस्यों के बाद... तुम लोग थे जो आए थे... पर फिर ऐसे गायब हुए कि... आज नजर आए हो... (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) पर इसमें तुम लोगों क्या दोष... इस घर का नाम ही द हैल है... और हैल में कौन आता है...

भाश्वती कुछ नहीं कहती बस मुस्कराने की कोशिश करती है l इतने में रुप तैयार हो कर नीचे आ जाती है l वह भाश्वती की हाथ पकड़ कर खिंचते हुए बाहर ले जाती है l पीछे शुभ्रा एक दो बार रुप को आवाज देती है मगर रुप शुभ्रा को अनसुना कर बाहर चली जाती है l बाहर भाश्वती की गाड़ी में दोनों जाकर बैठ जाते हैं l गाड़ी के अंदर


रुप - तुने भाभी को कुछ कहा तो नहीं...
भाश्वती - (एटीट्यूड के साथ, ड्राइविंग करते हुए ) तुने मुझे क्या चुगलखोर समझ रखा है... हुँह्ह्ह...
रुप - अरे मैंने ऐसा थोड़े ना कहा...
भाश्वती - पर तु तो कहती थी... भाभी तेरे और प्रताप भैया के बारे में जानती हैं...
रुप - हाँ... पर सारी बातेँ तुझे भी कहाँ पता है... जैसे तेरे प्रताप भैया ने मेरी चुगली कर बता दिया... हर सुबह उस बेवक़ूफ़ को मैं फोन कर जगाती हूँ...
भाश्वती - ऐ खबरदार... मेरे भैया को बेवक़ूफ़ कहा तो... जितने हैंडसम हैं... उतने ही स्मार्ट एंड इंटेलिजेंट हैं..
रुप - हाँ हाँ... ज्यादा उछल मत... हुँह्ह्ह... (मुहँ मोड़ लेती है)
भाश्वती - हुँह्ह्ह... (मुहँ मोड़ लेती है)

कुछ देर बाद एक पार्क के पास गाड़ी झटके मार रुक जाती है l गाड़ी के रुकते ही रुप एक टेढ़ी नजर से भाश्वती की ओर देखती है l

भाश्वती - ठीक है.. ठीक है... ऐसे घूर मत... प्रॉब्लम मैं जानती हूँ... दो मिनट में गाड़ी स्टार्ट हो जाएगी... तु... (रुप की सीट को पीछे की तरफ डाउन कर देती है) दो मिनट के लिए आराम कर... हुँह्ह्ह...

कह कर भाश्वती गाड़ी से उतर जाती है और बॉनेट खोल कर उठा देती है l रुप सीट पर आँखे मूँद कर लेटी रहती है l कुछ देर बाद बॉनेट गिरने की आवाज उसके कानों में पड़ती है और कार की डोर खुलती है ड्राइविंग सीट पर किसी के बैठने का एहसास होता है l गाड़ी स्टार्ट होती है और चलने लगती है l रुप कुछ अजीब सा लगता है, वह अपनी आँखे खोल कर देखती है भाश्वती की जगह कोई मर्द ड्राइविंग सीट पर बैठा हुआ है l वह सीट को उठाने की कोशिश करती है पर सीट ऐसी लॉक हो गई थी कि वह सीट ऊपर नहीं उठ पाती l रुप अपनी सीट बेल्ट निकालने की कोशिश करती है l पर सीट बेल्ट भी फंसी हुई थी, बेल्ट नहीं निकलती l वह छटपटाने लगती है पर सीट बेल्ट नहीं खुलती
 

Sidd19

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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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ग़ज़ब भाई, ग़ज़ब! क्या शानदार अपडेट है भाई! 👏👏👏
वाह! पिछले कुछ समय में ये सबसे शानदार, कसा हुआ अपडेट!
कहानी ने गति पकड़ी है अब। अब मज़ा आएगा!
इसीलिए किसी की मत सुना करिए - अपने हिसाब से, समय ले कर लिखिए! 👏👏

भैरव सिंह - (कुछ देर के लिए ख़ामोश हो जाता है, फिर) छोटे राजा जी... हुकूमत करने वाले... अपनी सल्तनत की हिफाजत के लिए... लाव लश्कर पालते हैं... जंग में हमेशा एक दस्ता आगे रखते हैं... और बेहतरीन दस्ता को ओढ़ में रखते हैं... उस लश्कर में... जो पहला दस्ता होता है... उसे हरावल कहते हैं... हरावल दस्ता हमेशा आगे की पंक्ति में रहता है... जो या तो सामने वाले की हरावल पंक्ति को तितर-बितर कर देता है... या फिर मार खा कर नेस्तनाबूद हो जाता है... दसियों सालों से जीतते आए यह हमारे हरावल... और हमला कर जीत की जश्न मनाने वाले... यह भुल गए हैं कि जंग का सबसे बेहतरीन दस्ता... सालार के पास रहता है... यह जो मार खा कर भागे हैं... वह राजा क्षेत्रपाल के लश्कर का हरावल थे... अभी तो हमारे बेहतरीन सिपहसलार बाकी हैं...
पिनाक - (मुहँ फाड़े भैरव को देख रहा था)
भैरव सिंह - आपको क्या लगता है... हम इन टटपुंजों के सहारे पुरे स्टेट में हुकूमत चला रहे हैं... छोटे राजा जी... भैरव सिंह सियासत और हुकूमत में हाथी के बराबर है... जिसने खाने के दांत अलग... दिखाने के दांत अलग हैं... इसलिए जिसको भी यह खुश फहमी पालना है... पाल लेने दीजिए... जंग अभी शुरु ही कहाँ हुआ है...

ये तो ख़ैर हमको पता ही है कि टुटपूँजियों के भरोसे राजा की हुकूमत नहीं चलती।
नहीं तो गली के गुण्डे और राजा में फ़र्क़ क्या रह जाएगा! लेकिन भैरव के असली सिपहसालार कौन हैं, ये तो नई बात हो गई।
क्या नए पात्र जुड़ने वाले हैं कहानी में? क्या पुराने प्यादे ग़ायब होने वाले हैं?

भैरव सिंह - छोटे राजाजी... हम उम्मीद करें या यकीन... यह आप तय कर लीजिए... नर्सों... राजकुमार की मंगनी... निर्मल सामल से होगी या नहीं....

कह कर पिनाक को सोच में डूबा कर भैरव सिंह वहाँ से चला जाता है l पिनाक छटपटाते हुए अपना मोबाइल निकाल कर एक कॉल डायल करता है

ये तो धमकी हो गई सरासर! पिनाक का रोल अलग रहेगा, वो तो आपने बता दिया।
लेकिन क़यास नहीं लगा पा रहा हूँ कि कैसा? इतना तो है कि वो अवसर मिलने पर भैरव की गद्दी पर खुद बैठना चाहेगा।
लेकिन उसको भैरव का डर है - उस डर की वज़ह क्या है, अभी ये हम पर ज़ाहिर नहीं है!

रुप - नहीं नहीं नहीं.. आप माँ की बातों को गलत समझा है...
विक्रम - क्या गलत समझा है...
रुप - माँ ने कहा था कि... वह पिता हैं... तुम साथ छोड़ दोगे तो... तुम धर्म से उनके दोषी हो जाओगे... ताकि जब वह साथ छोड़ने के लिए कह दें... तब धर्म का दोष तुम पर ना लगे.... इसलिए... माँ ने सिर्फ और सिर्फ. राजा साहब के साथ बने रहने के लिए कहा था... उनका साथ देने के लिए नहीं... तुम साथ देते रहोगे... तो राजा साहब तुम्हें अपना साथ छोड़ने के लिए क्यूँ कहेंगे....

विक्रम रूप कि इस बात को सुन कर बहुत जोर से चौंकता है l उसकी आँखे फैल जाते हैं l उसे इतना जोर का झटका लगा था कि उसके मुहँ से कोई बोल नहीं फुट पा रहा था l

चलो - विक्रम की मूर्खता का कोई निवारण तो मिला।

डैनी - हाँ... जब उसने हमला किया था... तब तुमने अपनी वही बात दोहराई थी... दिनेश के छूने से... तुम अशुद्ध हो गए थे... शुद्धि स्नान के लिए... तुम वहाँ पर उस लड़के को... अपने लोगों के हवाले कर चले गए थे... उन्होंने उसे बहुत मारा... मार मार कर... उसे गंगा में फेंक दिया....

भैरव ने जिस जिस को छोड़ा है, वो अब उसका काँटा बन कर वापस आ गया है मैदान में।
एक बहुत प्राचीन, नीति-शास्त्री रहे हैं - नहीं चाणक्य नहीं, उनसे भी पहले - सन त्सु (चीन के हैं)..
उन्होंने कहा था कि जब किसी शत्रु को परास्त कर दो, तो उसको इज़्ज़त के साथ रिट्रीट करने का अवसर दो। उसको इतना मत दबा दो कि उसके पास प्रतिवार करने के अतिरिक्त अन्य कोई उपाय ही न बचे। भैरव ने अपनी शक्ति के मद में चूर हो कर यही गलती करी है (आज की राजनीति में भी यही दिख रहा है)!
जब किसी के पास खोने के लिए कुछ नहीं बचता, तब उससे अधिक घातक शायद ही कोई हथियार हो।

भैरव सिंह - (आँखे हैरानी से बड़ी हो जाती हैं) यश... यश वर्धन चेट्टी...
डैनी - हाँ... जरा सोचो राजा जी... एक मामुली सा मुजरिम... यश जैसी शख्सियत को जैल के अंदर ले आया... और उसे मौत की घाट भी उतार दिया... तो सोचो वह तुम्हारे साथ क्या कर सकता था....
भैरव सिंह - (हलक से थूक गटकता है)

अब डर लगा पट्ठे को। अब समझ आया कि जिसको अभी भी हल्के (?) में ले रहा है, वो बहुत भारी चीज़ है।
बढ़िया।

भैरव सिंह - वह तो जब दिखाएगा तब देखा जाएगा... डैनी उससे पहले... तुम अपनी सोचो....
डैनी - जोश जोश में तुम यह भूल रहे हो... यह कलकत्ता है... यहाँ का राजा मैं हूँ...

डैनी ने भी ले ली!

रुप कुछ अजीब सा लगता है, वह अपनी आँखे खोल कर देखती है भाश्वती की जगह कोई मर्द ड्राइविंग सीट पर बैठा हुआ है l वह सीट को उठाने की कोशिश करती है पर सीट ऐसी लॉक हो गई थी कि वह सीट ऊपर नहीं उठ पाती l रुप अपनी सीट बेल्ट निकालने की कोशिश करती है l पर सीट बेल्ट भी फंसी हुई थी, बेल्ट नहीं निकलती l वह छटपटाने लगती है पर सीट बेल्ट नहीं खुलती

अब ई का स्यापा लग गया भाई!
रोचक होती जा रही है कहानी बड़ी तेजी से!

आनंद आ गया दोस्त! आनंद आ गया। :)
सबसे शानदार अपडेट!
 

parkas

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👉एक सौ इकत्तीसवां अपडेट
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रात को डिनर टेबल पर रुप, शुभ्रा और वीर तीनों अपना डिनर ले रहे थे l तीनों खामोशी के साथ खाना तो खा रहे थे पर वीर अपने में खोया हुआ था, गुमसुम था l शुभ्रा यह देख कर इशारे रुप की ध्यान अपने तरफ खिंचती है l रुप आँखों के इशारे से पूछती है "क्या है" l शुभ्रा फिर इशारे से वीर की ओर देखने को कहती है l वीर अपनी प्लेट पर चम्मच फ़ेर रहा था पर खाना नहीं खा रहा था l वह बेहद गंभीर हो कर कुछ सोचे जा रहा था l

रुप - भैया.... क्या हुआ...
वीर - (ध्यान टूटता है) हम्म... हाँ वह... मैं... क्या हुआ...
शुभ्रा - क्या बात है वीर... तुम बहुत चिंतित लग रहे हो... क्या ऑफिस या पार्टी में कुछ हुआ है...
वीर - नहीं... ऐसा कुछ भी नहीं... (मुस्कराने की कोशिश करता है) (फिर कुछ सेकेंड का पॉज लेकर) भाभी... मैं हमेशा एक खुश फहमी में था... जो मैं चाहूँ... जिसे मैं चाहूँ... हासिल कर सकता हूँ... अपने क्षेत्रपाल होने का बड़ा गुरूर था... पर अब.... अब मुझसे मेरी ख्वाहिश छिनने का डर सता रहा है... ऐसा लगता है... जैसे... जैसे....
शुभ्रा - रुक क्यूँ गए जैसे...
वीर - पता नहीं भाभी... मुझे ज़माने के हर ज़र्रे में साजिश नजर आ रहा है... जैसे मुझसे हर खुशियों को छीनने की...

रुप और शुभ्रा दोनों एक दुसरे को बड़ी हैरानी के साथ देखते हैं, फ़िर दिनों वीर की ओर देखते हैं l

शुभ्रा - क्या बात है वीर... ऐसा तुम कह रहे हो... तुम... तुम ऐसे नहीं टुट सकते... वीर क्या हुआ है... जरा खुलकर बताओ...
वीर - (एक टूटी हुई हँसी के साथ) भाभी... मेरी हर गलती पर कभी कोई सजा नहीं थी... पर अब... मैं अच्छा बनना चाहता हूँ तो मेरी अच्छाई पर सजा क्यूँ मिल रही है...
रुप - भैया प्लीज... तुम पहेलियाँ बुझा रहे हो...
वीर - नहीं मेरी बहन... मैं फलक से जमीन पर आ रहा हूँ...
शुभ्रा - वीर... आज तुम्हें क्या हो गया है....
वीर - भाभी... भैया और आपकी तरह मैं और मेरा प्यार... खुश किस्मत नहीं हैं.... आपके प्यार में... कोई बाधा नहीं आया... अपनी अंजाम तक पहुँच गया... पर लगता है... मेरी किस्मत में... वह मुकाम नहीं है...

यह सुन कर शुभ्रा और रुप दोनों को झटका सा लगता है l दोनों अपनी अपनी जगह से उठ कर वीर के पास आ जाते हैं l

शुभ्रा - क्या बात है वीर... आज कुछ हुआ है...
वीर - भाभी... आप जानती हो ना... मैंने तय किया है... अनु से शादी का... मेरे इस फैसले से... माँ और आप सबकी मंजुरी है... इसलिए मैंने सोचा... घर के बड़ों से सीधे मुहँ बात कर... उनको राजी कर... जल्द से जल्द अनु से शादी कर लूँ... पर... घर के बड़े... कलकत्ता में हैं...
रुप - तो क्या हुआ भैया... बड़े दो तीन दिन बाद... यहाँ भुवनेश्वर में होंगे ना...
वीर - तुझे क्या लगता है... मैं नहीं जानता या समझ रहा...
रुप - तो भैया... आपको अगर जल्दी है... आप कलकत्ता चले जाओ ना... राजा साहब से बात कर लो ना...
वीर - सोचा मैंने भी यही था.... पर....
शुभ्रा - पर क्या...

वीर कुछ नहीं कहता है l अपनी जगह से उठ कर अपनी कमरे की ओर चला जाता है l पीछे असमंजस स्थिति में शुभ्रा और रुप रह जाती हैं l

रुप - अच्छा भाभी... मैं भी अपने कमरे में जाति हूँ...
शुभ्रा - नंदिनी... कम से कम... तुम तो अपना खाना ख़तम कर लो...
रुप - नहीं भाभी... अब मुझसे भी खाया ना जाएगा... प्लीज...

इतना कह कर रुप भी वहाँ पर शुभ्रा को छोड़ कर अपनी कमरे में आ जाती है l आज वीर की व्यवहार से वह भी स्तब्ध थी l अपने बेड पर आकर पीठ टीका कर बैठ कर वीर के बारे में सोचने लगती है l फिर अचानक वह अपना फोन निकाल कर कॉल लिस्ट खंगालती है l 'बेवक़ूफ़' नाम देखते ही उसके होंठों पर एक दमकती मुस्कान आ जाती है l वह कॉल लगाती है, कॉल लिफ्ट होते ही


विश्व - हैलो...
रुप - क्या सो रहे हो...
विश्व - हाँ बड़ी गहरी नींद में हूँ... सपने में बात कर रहा हूँ...
रुप - सॉरी... ठीक है मैं फोन रखती हूँ...
विश्व - जैसी आपकी इच्छा...

रुप चिढ़ कर फोन नहीं काटती, कान से निकाल कर स्क्रीन को देखने लगती है, विश्व ने भी फोन नहीं काटा था l रुप अपने कानों से फोन को लगा कर सुनती है, इस बार रुप को 'धक धक' सुनाई देती है l रुप समझ जाती है विश्व ने फोन को अपने सीने से लगाया है या फिर दिल की धड़कन वाली किसी आवाज को माइक पर सुना रहा है जिसके वज़ह से उसे धड़कते धड़कनें सुनाई दे रही थी l

रुप - यह क्या है...
विश्व - क्या है...
रुप - तुम... तुम मुझे छेड़ रहे हो...
विश्व - कहाँ... आप हो वहाँ.. और मैं यहाँ... कैसे छेड़ सकता हूँ...
रुप - देखो... तुम मुझे... नहीं... मैं बात नहीं करती तुमसे...
विश्व - पर मैं तो सुनना चाहता हूँ ना...
रुप - ओह... छोड़ो ना...
विश्व - मैंने पकड़ा ही कहाँ है...
रुप - आह... देखो... मैं बहुत ही सीरियस हूँ... और मज़ाक के मुड़ में बिल्कुल नहीं हूँ...
विश्व - हाँ अब ठीक है... अब बोलिए... फोन किस लिए किया...
रुप - बताऊंगी... पहले यह बताओ... तुमने यह धक धक की आवाज़... फोन पर कैसे सुनाया..
विश्व - वेरी सींपल... आपकी फोन आने की खुशी में.... थोड़ा उछलकूद कर लिया... और स्टेथोस्कोप की हीअरिंग पॉइंट को मोबाइल माइक पर लगा दिया...
रुप - (हैरान हो कर) क्या...
विश्व - देखा... हूँ ना मैं बहुत स्मार्ट...
रुप - (बुदबुदाते हुए) बेवक़ूफ़...
विश्व - जी नकचढ़ी...
रुप - व्हाट... तुम्हें सुनाई दिया...
विश्व - हाँ... अब इसमें मैं क्या कर सकता हूँ... वकील हूँ... बातेँ समझ लेता हूँ...
रुप - (इस बात पर खिलखिला कर हँस देती है, फिर थोड़ी सीरियस हो कर) अनाम...
विश्व - हाँ बोलिए...
रुप - क्या वीर भैया ने तुम्हें फोन किया था...
विश्व - क्यूँ...
रुप - वह आज बड़े... टुटे बिखरे से... उखड़े उखड़े से लग रहे थे... आज रात का खाना भी नहीं खाया... क्या तुमसे इस बाबत कोई बात की...
विश्व - नहीं... पर... वीर मुझसे क्यूँ बात करेगा...
रुप - तुम दोस्त हो उनके... कोई जहनी या दिली परेशानी होगी तो तुमसे कहेंगे ना...
विश्व - क्या... वीर परेशान है...
रुप - हाँ... लगता है... वीर भैया... बहुत टेंशन में हैं...
विश्व - ह्म्म्म्म... तो वीर वाकई बहुत टेंशन में है... हाँ... वीर ने फोन किया था आज... पर बात क्या है कुछ बताया नहीं...
रुप - क्या... यु... यु...
विश्व - अरे बताया ना... फोन पर उसने कुछ भी नहीं कहा...
रुप - शायद इसलिए... के तुम उनकी मनकी समझ पाओ... बड़े वकील बने फिरते जो हो...
विश्व - यह ताना था..
रुप - कुछ भी समझ लो...
विश्व - वैसे... क्या वीर ने आपको कुछ बताया...
रुप - नहीं... पर लगता है... वीर भैया.. अपने और अनु भाभी के लिए... बहुत टेंशन में हैं... कुछ तो हुआ है... हमसे भी शेयर नहीं कर रहे हैं... मतलब वह अपने आप को अकेला महसुस कर रहे हैं...
विश्व - ओ... आज उसकी आवाज़ में... एक तड़प तो थी... क्या आपने वीर के लिए फोन किया है...
रुप - नहीं... नहीं... पर... वह.. हाँ... पता नहीं... तुम... तुम कब आ रहे हो...
विश्व - शायद परसों...
रुप - जल्दी आओ ना...
विश्व - अच्छा... आ जाऊँ...
रुप - ह्म्म्म्म...
विश्व - ठीक है...
रुप - सच... कब आ रहे हो...
विश्व - अपनी दिल से आवाज़ दीजिए... हम आपकी खिदमत में बंदा हाजिर हो जाएंगे....

तभी रुप की फोन पर कॉल अलर्ट की ट्यून बजने लगती है l रुप फोन कान से हटा कर स्क्रीन पर देखती है विक्रम भैया लिखा आ रहा था l रुप हैरान हो जाती है l इस वक़्त विक्रम का फोन वह भी उसे

रुप - अच्छा फोन रखती हूँ... विक्रम भैया का फोन आ रहा है...


×_____×_____×_____×_____×_____×_____×

कुछ गाडियों का काफिला एक आलीशान बंगले के सामने रुकती है l गाडियों के रुकते ही गेट पर पहरा दे रहे एक गार्ड भागते हुए जाता है और बीच वाले गाड़ी का दरवाजा खोलता है l गाड़ी से भैरव सिंह उतरता है l कलकत्ता के इसी आलिशान बंगले में भैरव सिंह, पिनाक और विक्रम के साथ उसके कारिंदे भी रुके हुए हैं l गाड़ी से उतर कर भैरव सिंह सीधा बंगले के अंदर प्रवेश करता है l दरवाजे पर पहरेदारी में खड़े गार्ड्स उसे सलामी ठोकते हैं l अपने काफिले में आए सभी मुलाजिम और गार्ड्स को नजर अंदाज करके भैरव सिंह अंदर चला जाता है l अंदर सीधे शराब खाने में पहुँचता है l वहाँ पर पिनाक बैठ कर अपने लिए आखिरी जाम बना रहा था l भैरव सिंह के वहाँ पहुँचते ही पिनाक अपनी नजर घुमा कर देखता है l भैरव सिंह को देखते ही अदब से खड़े होकर

पिनाक - राजा साहब....
भैरव सिंह - क्या बात है छोटे राजा जी.... आप अभी तक.. मय खाने में...
पिनाक - वह... (नशे में हल्का सा बहकते हुए) अभी तक तो... युवराज हमारा साथ दे रहे थे... पता नहीं वह कब हमें यहाँ अकेला कर चले गए... शायद ज्यादा नशा उठा नहीं पाए... इसलिए सोने चले गए...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म.... और आप... आप क्यूँ जागे हुए हैं...
पिनाक - हम.... वह... हम... आपकी प्रतीक्षा कर रहे थे...
भैरव सिंह - क्यूँ....
पिनाक - वह... आपकी देर रात इस्तकबाल के लिए...

भैरव सिंह आगे बढ़ कर एक कुर्सी पर बैठ जाता है और अपनी शूट की गले का बटन खोलते हुए इशारे से पिनाक को अपने पास पड़े दुसरे कुर्सी पर बैठने के लिए कहता है l पिनाक संभलते हुए बैठ जाता है

भैरव सिंह - हम यहाँ किस काम के लिए आए थे... क्या आपको भान है...
पिनाक - जी...
भैरव सिंह - आप और युवराज को हम अपने साथ यहाँ क्यूँ लाए... आप को इसका भी भान होगा...
पिनाक - जी...
भैरव सिंह - अब बताइए... आप कहाँ तक पहुँचे...
पिनाक - क्या हम आपके लिए... एक पेग बनाएं...

भैरव सिंह उसे घूरते हुए देखता है, पिनाक उसके सामने थोड़ा अस्वाभाविक लगता है l भैरव सिंह अपना सिर हाँ में हिलाते हुए इशारे से ही पेग बनाने के लिए कहता है l पिनाक अपनी जगह से उठता है और भैरव सिंह के लिए पेग बना कर उसके हाथों में देता है l पेग पिनाक के हाथों से लेने के बाद

भैरव सिंह - हमने आपसे कुछ पुछा था... छोटे राजा जी...
पिनाक - (थोड़ा हिचकिचाते हुए) आज तो हो नहीं पाया... वह... हमें दो या तीन दिन... और चाहिए...
भैरव सिंह - दो दिन या तीन दिन...
पिनाक - दो... दो दिन...
भैरव सिंह - ठीक है... तो हम परसों यहाँ से निकलेंगे... आप निर्मल सामल से कह दीजिए... नर्सो... भुवनेश्वर में मंगनी की तैयारी करे..
पिनाक - इ.. इ.. इतनी जल्दी...
भैरव सिंह - क्यूँ क्या हुआ....
पिनाक - कु... कुछ नहीं... हम यह सोच रहे थे... दो दिन भीतर राजकुमार जी को... हम कैसे तैयार करें...
भैरव सिंह - कोई घटना... या दुर्घटना... हमें हमारी मंशा से दुर नहीं कर सकती.... राजकुमार को युवराज तैयार करेंगे...
पिनाक - (सिर झुका कर बैठ जाता है) जी...
भैरव सिंह - और कुछ...
पिनाक - कुछ नहीं... कुछ नहीं... वैसे आप किसी और खास काम के लिए गए थे..... (रुक जाता है)
भैरव सिंह - हाँ... वह हो नहीं पाया है... पर हो जाएगा.... हम ने यहाँ के होम मिनिस्टर... और कमिश्नर से मुलाकात की... अंडरवर्ल्ड के जो खबरी हैं... उनको कमिश्नर के जरिए ख़बर भिजवा दिया है... शायद कल तक हमारी मुलाकात.... उस डैनी से हो जानी चाहिए....
पिनाक - ओह... मतलब सिस्टम आपका और उस डॉन का मुलाकात करवाएगा...
भैरव सिंह - हाँ... हम जहां भी जाते हैं... वहां के सिस्टम ले काम निकलवाते हैं... क्यूँकी... यहाँ डैनी को इन्हीं की सिस्टम और सर्कार की सुरक्षा प्राप्त है...
पिनाक - (चुप रहता है)
भैरव सिंह - अब क्या हुआ...
पिनाक - नहीं... क्या... राजकुमार के लिए... हम थोड़ी लीवर्टी ले सकते हैं... युवराज कह रहे थे... अगले चुनाव में... हमें फायदा हो सकता है...
भैरव सिंह - नहीं... जात और औकात बराबर ना हो... तो भी कमर थोड़ी टेढ़ा किया जा सकता है... थोड़ा झुका जा सकता है... पर जो फर्श में ढूंढने से ना दिखे... उसके लिए क्षेत्रपाल कमर तो क्या घुटने भी नहीं मोड़ सकते...
पिनाक - हमे बस एक ही चिंता है... पता नहीं राजकुमार कैसे प्रतिक्रिया देंगे...
भैरव सिंह - जवान खून है... जोश से लवालव है... पर उन्हें पगड़ी और जुते में फर्क़ समझ में नहीं आ रहा है... ऐसे में उन्हें समझाओ... औरत बिस्तर होती है... मर्द उसका चादर... पर बीवी और रखैल में फर्क़ करना आनी चाहिए...
पिनाक - जी... जी राजा साहब...
भैरव सिंह - इसीलिए आपको हमने नर्सों मंगनी के लिए कहा...
पिनाक - जी हम निर्मल सामल को कह देंगे...
भैरव सिंह - ठीक है... (भैरव सिंह उठने को होता है)
पिनाक - वह एक गड़बड़ है...
भैरव सिंह - (बैठ जाता जाता है) कैसी गड़बड़...
पिनाक - वह... हमने... एक बात... आपको नहीं बताई... हम... वह आपसे क्या कहें... कैसे कहें... राजगड़ में क्या हुआ है...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... हम सब जानते हैं...
पिनाक - (चौंकता है) क्या... आप जानते हैं...
भैरव सिंह - हाँ... वहाँ से भीमा का फोन आना... आपका फोन अटेंड करना... प्रधान को निर्मल सामल की केस के बहाने राजगड़ भेज ख़बर लेना... हम सब जानते हैं....
पिनाक - और इस बात का... आपके चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं...

भैरव सिंह अपनी कुर्सी से उठ खड़ा होता है और बार काउंटर पर जाकर अपने लिए एक पेग बनाता है l पेग पी लेने के बाद मुस्कराते हुए पिनाक की ओर देखता है l

भैरव सिंह - छोटे राजा जी... हमारे कुछ लोग... जो राजगड़ और यशपुर में दहशत बन कर हमारे नाम का डंका बजा रहे थे... वही हरामजादे... भरी सभा में पीट गए... यही कहना चाहते थे ना आप... (हँसने लगता है) हा हा हा हा हा.... सदियों से कोई आवाज़ हमारे खिलाफ उठा नहीं था... इसलिए इन कमजर्फों को यह गुमान हो गया था... के राजा भैरव सिंह का दबदबा इन्हीं के हड्डियों के दम से है... उन हरामजादों की यह खुश फहमी दुर हो गई... हा हा हा हा....
पिनाक - राजा साहब... जो भी हो... पीटे हमारे आदमी हैं... इज़्ज़त हमारी दाव पर लगा है... बट्टा हमारी साख पर लगा है...
भैरव सिंह - नहीं छोटे राजा जी... भैरव सिंह क्षेत्रपाल की इज़्ज़त कोई गेंद नहीं... जो यूहीं कोई उछाल देगा.... विश्वा ने जो किया... वह बरसाती चींटियों की आसमान छूने जितना बराबर है... दो चार पल उड़ेंगे... फिर झड़ कर गिर जाएंगे...
पिनाक - राजा साहब... आपकी बातें आप ही जाने... पर सच्चाई यही है... की आदमी हमारे मार खाए हैं... हमारे लिए लड़ने वाले.... उनका इज़्ज़त भले दो कौड़ी की हो गई... नुकसान तो फिर भी हमारा हुआ है...
भैरव सिंह - (कुछ देर के लिए ख़ामोश हो जाता है, फिर) छोटे राजा जी... हुकूमत करने वाले... अपनी सल्तनत की हिफाजत के लिए... लाव लश्कर पालते हैं... जंग में हमेशा एक दस्ता आगे रखते हैं... और बेहतरीन दस्ता को ओढ़ में रखते हैं... उस लश्कर में... जो पहला दस्ता होता है... उसे हरावल कहते हैं... हरावल दस्ता हमेशा आगे की पंक्ति में रहता है... जो या तो सामने वाले की हरावल पंक्ति को तितर-बितर कर देता है... या फिर मार खा कर नेस्तनाबूद हो जाता है... दसियों सालों से जीतते आए यह हमारे हरावल... और हमला कर जीत की जश्न मनाने वाले... यह भुल गए हैं कि जंग का सबसे बेहतरीन दस्ता... सालार के पास रहता है... यह जो मार खा कर भागे हैं... वह राजा क्षेत्रपाल के लश्कर का हरावल थे... अभी तो हमारे बेहतरीन सिपहसलार बाकी हैं...
पिनाक - (मुहँ फाड़े भैरव को देख रहा था)
भैरव सिंह - आपको क्या लगता है... हम इन टटपुंजों के सहारे पुरे स्टेट में हुकूमत चला रहे हैं... छोटे राजा जी... भैरव सिंह सियासत और हुकूमत में हाथी के बराबर है... जिसने खाने के दांत अलग... दिखाने के दांत अलग हैं... इसलिए जिसको भी यह खुश फहमी पालना है... पाल लेने दीजिए... जंग अभी शुरु ही कहाँ हुआ है...
पिनाक - इसका मतलब यह हुआ कि.... विश्वा के खिलाफ अभी भी कुछ नहीं करेंगे...
भैरव सिंह - छोटे राजा जी... जिस दिन विश्वा हम पर लपका था.... उस दिन हम सीढियों के उस ऊंचाई पर थे... जितना विश्वा का कद होता है... उसका सिर हमारे जुते के बराबर आ रहा था... उसे यह एहसास दिला रहे थे... की उसकी हस्ती... उसकी हैसियत... हमारे जुतों के नोक बराबर है...
पिनाक - फिर भी... वह छलांग पर छलांगे मारे जा रहा है... आपके गिरेबां तक पहुँचने के लिए... प्रधान कह रहा था... विश्वा को आरटीआई से ज़वाब मिल गया है... जिसके आधार पर वह कभी भी... पीआईएल दाखिल कर... रुप फाउंडेशन केस को फिर से उछालेगा....
भैरव सिंह - तो उछालने दीजिये... लोग भूलने लगे हैं... राजा क्षेत्रपाल के बारे में... अब फिर से लोगों के जुबान पर चढ़ने का वक़्त आ गया है...
पिनाक - आप इतने शांत हैं... लगता है आपने इस विषय पर सोच रखा है... तो ठीक ही सोचा होगा...

भैरव सिंह उठ कर उस कमरे से जाने लगता है l दरवाजे के पास रुक जाता है और मुड़ कर पिनाक की ओर देखते हुए

भैरव सिंह - छोटे राजाजी... हम उम्मीद करें या यकीन... यह आप तय कर लीजिए... नर्सों... राजकुमार की मंगनी... निर्मल सामल से होगी या नहीं....

कह कर पिनाक को सोच में डूबा कर भैरव सिंह वहाँ से चला जाता है l पिनाक छटपटाते हुए अपना मोबाइल निकाल कर एक कॉल डायल करता है


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रुप जब तक विश्व की फोन काट कर विक्रम की कॉल लिफ्ट करती तब तक रुप की फोन पर विक्रम का कॉल कट जाता है और वह मिस कॉल हो जाता है l रुप बजाय विक्रम को कॉल बैक करती वह घड़ी देखती है रात के ग्यारह बजने को थे l रुप बहुत हैरान हो कर सोचने लगती है विक्रम ने उसे इस वक़्त क्यूँ फोन किया, ऐसा क्या काम पड़ गया के उसे फोन किया, उसकी भाभी शुभ्रा को क्यूँ नहीं l ऐसे ही सोच रही थी के उसका फोन फिर से झनझना उठा l स्क्रीन पर विक्रम भैया डिस्प्ले हो रहा था l रुप झट से कॉल लिफ्ट करती है


रुप - हैलो... भैया...
विक्रम - (एक मायूस भरी आवाज में) तुम्हारा फोन बिजी आ रहा था...
रुप - हाँ वह... एक्जाम पास आ रही है ना... इसलिए सिलेबस के ऊपर... दोस्तों से बात कर रही थी...
विक्रम - ह्म्म्म्म...
रुप - क्या हुआ भैया... आप इस वक़्त... मुझे... फोन...
विक्रम - (चुप रहता है)
रुप - भैया...
विक्रम - हाँ...
रुप - क्या... क्या हुआ भैया...
विक्रम - न.. नंदिनी...
रुप - हाँ...
विक्रम - ह.. ह्ह.. हमारी माँ.... (आवाज़ भर्रा जाती है) कैसे मरी थी...
रुप - (यह सुन कर स्तब्ध हो जाती है) भ भ भैया....
विक्रम - देखो तुम्हें मेरी कसम है... मुझे सब सच सच बताना... ह ह हमारी माँ की मौत... कैसे हुई... थी...

रुप को महसुस हो जाता है, जैसे विक्रम बहुत रोया है और अभी मुश्किल से अपनी रुलाई को रोक कर बात कर रहा है l यह महसुस होते ही रुप की आँखों में आँसू भरने लगते हैं, पर रुप अपनी रुलाई पर काबु नहीं पा पाती

रुप - भैया... आज आपको क्या हो गया है...
विक्रम - देख मेरी बहन... मैंने तुझे अपनी कसम दी है... वह रात तु कभी नहीं भूली होगी... (आवाज सख्त हो जाती है) क्यूंकि वह रात... भूलने वाली थी ही नहीं...
रुप - (सुबकते हुए) ह्ह.. हाँ भैया... वह रात... वह रात मैं... कैइसे.. भूल सकती थी...
विक्रम - हाँ मेरी बहन तूने भूली नहीं होगी... पर तुने मुझे बताया भी तो नहीं...
रुप - कैसे बताती भैया... कैसे बताती... मेरे पास मेरे भाई थे ही कहाँ... एक भाई मुझे मेरे इसी जनम दिन पर मिला... और दुसरा भाई जनम दिन के कुछ दिनों बाद मिले...
विक्रम - सॉरी गुड़िया सॉरी... मैं सच में... तेरा गुनाहगार हूँ... कास... कास के उस महल में.. मैं तेरा भाई बन कर रहा होता... सॉरी गुड़िया सॉरी...
रुप - (संभलने की कोशिश करते हुए) कोई नहीं भैया... अब तो मेरे पास... मेरे लिए जान देने वाले... जान लेने वाले एक नहीं... दो दो भाई हैं ना... (फिर थोड़ी सीरियस हो कर) पर भैया... यह बात इतने सालों बाद... आपको किसने... (चौंक कर) होंओ... कहीं.. कहीं छोटे राजा जी....
विक्रम - (अपनी रुलाई को रोकते हुए) ह्म्म्म्म....
रुप - (अब और भी सीरियस होकर) तो भैया... अब.... आ आप.. क्या करोगे...
विक्रम - पता नहीं.... पता नहीं बहना पता नहीं... मैं... मैं तो अब खुद से लड़ रहा हूँ... अब तक जिस शख्स में... अपने बाप को देख कर... पाप हो या पुण्य... उसके हर एक बात को पत्थर की लकीर समझ कर... करते जा रहा था... कल को उसके भीतर... मुझे अपनी माँ का कातिल दिखाई देगा... मैं... कैसे... आह यह दर्द.... पर.. पर तु बेचारी... यह दर्द... यह टीस... पंद्रह सालों से कैसे सह रही थी....
रुप - (रो पड़ती है) भैया...
विक्रम - तु वाकई... बहुत बहादुर है... मैं....
रुप - भैया प्लीज...
विक्रम - पर बहना... माँ से... एक शिकायत रहेगी.. माँ ने अपनी आखिरी समय में... मेरे साथ ठीक नहीं किया... बिल्कुल ठीक नहीं किया...
रुप - (खुद पर काबु पाते हुए) भैया... आप... माँ को दोष दे रहे हैं... क्यूँ भैया क्यूँ...
विक्रम - (सिसकते हुए) हाँ... बहना हाँ.. तु नहीं जानती... माँ ने उस रात... मुझे आखिरी बार दुलार ने आई थी... सुलाने आई थी... और दुलारती सुलाती मुझसे एक ऐसी वादा ले ली... के आज तलक मैं उस वादे की आग में जल रहा हूँ... झुलस रहा हूँ... और अब खाक होने वाला हूँ...
रुप - (संभल जाती है) आप माँ पर इल्ज़ाम लगा रहे हो भैया...
विक्रम - इल्ज़ाम... हाँ शायद... तु जानती भी है... उस रात माँ ने मुझसे कौनसा वादा लिया था...
रुप - हाँ... भैया हाँ... जानती हूँ...
विक्रम - (हैरान हो कर) क्या... तु.. तु जानती है... कैसे...
रुप - क्यूंकि जब माँ ने मुझे सुलाने के बाद तुम्हारे कमरे में गई थी... तब मैं सोई ही नहीं थी... इसलिए माँ के पीछे पीछे तुम्हारे कमरे तक चली गई थी... बाहर से तुम्हारा और माँ का दुलार देख व सुन रही थी....
विक्रम - और तुझे लगता है... माँ ने मुझसे जो कहा सब तुझे याद है....
रुप - हाँ भईया... क्यूँ के अभी अभी आप ही ने तो कहा... उस रात की बात मैं कैसे भूल सकती थी... माँ ने कहा था... राजा साहब के साथ तब तक बने रहो... के जब तक वह खुद से तुम्हें उनका साथ छोड़ने के लिए ना कह दें...
विक्रम - हाँ... यही कहा था... पर क्यूँ... क्यूँ क्यूँ... मैं क्यूँ उस जालिम शख्स के साथ देता रहा... बल्कि उसका हाथ बन कर उसे मजबूत करता रहा... क्यूँ... क्यूँ... क्यूँ... जानती हो... लोग कहते हैं... मैं राजा साहब का हाथ हूँ... कहीं ना कहीं... मुझे इस बात का गुमान था... पर आज यह गाली लग रहा है... ऐसा लग रहा है... जैसे मैंने अपने हाथों से अपनी माँ को मारा है...
रुप - आप... आप गलत हो भैया...
विक्रम - क्या... मैं गलत हूँ... हाँ गलत ही तो हूँ... इस राह पर... मेरी माँ ने जो मुझे भेजा नहीं है... चलाया है....
रुप - नहीं नहीं नहीं.. आप माँ की बातों को गलत समझा है...
विक्रम - क्या गलत समझा है...
रुप - माँ ने कहा था कि... वह पिता हैं... तुम साथ छोड़ दोगे तो... तुम धर्म से उनके दोषी हो जाओगे... ताकि जब वह साथ छोड़ने के लिए कह दें... तब धर्म का दोष तुम पर ना लगे.... इसलिए... माँ ने सिर्फ और सिर्फ. राजा साहब के साथ बने रहने के लिए कहा था... उनका साथ देने के लिए नहीं... तुम साथ देते रहोगे... तो राजा साहब तुम्हें अपना साथ छोड़ने के लिए क्यूँ कहेंगे....

विक्रम रूप कि इस बात को सुन कर बहुत जोर से चौंकता है l उसकी आँखे फैल जाते हैं l उसे इतना जोर का झटका लगा था कि उसके मुहँ से कोई बोल नहीं फुट पा रहा था l

रुप - भैया... क्या हुआ...
विक्रम - हाँ... मैं... वह... (फिर चुप हो जाता है)
रुप - भैया...
विक्रम - बस बहना बस... अपनी नासमझी की पट्टी को आँखों में बाँध कर... माँ की आखिरी ख्वाहिश समझ कर... मैं जिंदगी भर अंधेरे में भटक रहा था... तेरा शुक्रिया मेरी बहन... तुने उजाला की राह दिखाई है...
रुप - भैया...
विक्रम - हाँ बहना हाँ... मैं अब निश्चित हूँ... माँ की आत्मा को मुक्ति न मिली होगी... वह तड़प रही होगी... मेरे जैसे ना लायक औलाद के वज़ह से... तु देखना गुड़िया... तु देखेगी... (लहजा कठोर हो जाता है) राजा भैरव सिंह क्षेत्रपाल... मुझे अपनी जिंदगी से... एकदिन जरुर निकाल फेंकेगा....
रुप - भैया...
विक्रम - हाँ बहन... हाँ... अब आज मुझे सुकून की नींद आएगी... मुझे मेरी माँ को याद करते हुए... उसके गोद को तरसते हुए मुझे सोना है... कल का सुबह... विक्रम सिंह के लिए... एक अलग सुबह आएगी...


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गहरी नींद में भैरव सिंह सोया हुआ था l उसके कानों में अलार्म की आवाज सुनाई देती है l वह नींद में ही चिढ़ कर करवट बदल कर तकिया अपने कानों पर रख देता है l थोड़ी देर बाद अलार्म बंद हो जाता है l वह फिर से करवट बदल कर पीठ के बल सीधा होकर सोने लगता है l फिर थोड़ी देर बाद अलार्म बजने लगता है l इसबार भैरव सिंह की आँख खुल जाती है l वह बेड पर उठ बैठता है l अलार्म बंद हो जाता है l दीवार की ओर देखता है इलेक्ट्रॉनिक घड़ी पर सुबह के साढ़े चार बज रहे थे l वह हैरान होता है बेड के पास स्टूल पर से अपना मोबाइल निकालकर देखता है कोई अलार्म नहीं बजा था l वह सावधान हो जाता है, कमरे में अंधेरा था पर फिर भी अपना नजर घुमाता है l एक जगह उसकी नजर ठहर जाता है l एक साया सा अक्स सोफ़े पर बैठा हुआ महसुस हो रहा था l भैरव सिंह धीरे धीरे तकिये के नीचे अपना हाथ ले जाता है और झट से रिवाल्वर निकाल कर उस साये की ओर तान देता है l

भैरव सिंह - कौन है वहाँ...
साया - डर गए क्या... राजा भैरव सिंह...
भैरव सिंह - डर गए होते तो अब तक तु नहीं तेरी लाश से हम मुखातिब हो रहे होते... कौन है तु... और यहाँ की सेक्यूरिटी ब्रीच कर.. यहाँ कैसे आया...
साया - यह ना तो राजगड़ है... ना ही ओड़िशा... यह बंगाल है राजा भैरव सिंह... और मैं... पुरे नॉर्थ ईस्ट का राजा...
भैरव सिंह - ( रिवॉल्वर को उसी तरह ताने ) ओ... डैनी... डैनीयल फेडरीक पॉल... राजा चाहे कहीं का भी हो... शेर की गुफ़ा में आए हो वह भी इतनी लापरवाही बरत कर... चलो अपना हाथ उपर उठाओ...


डैनी अपने दोनों हाथ उठा कर वहीं बैठा रहता है l भैरव सिंह नाइट रॉब पहले हुए वैसे ही रिवाल्वर ताने हुए अपनी बेड से उतरता है और दीवार के पास जाकर स्विच दबाता है l पुरा कमरा रौशन हो जाता है l भैरव सिंह देखता है काले रंग के ओवर कोट, हेट और गॉगल पहले हुए डैनी के दोनों हाथों में ग्रेनेड थे जिनके ट्रिगर पिन के रिंग दोनों अंगूठे में फंसे हुए थे l यह देख कर भैरव सिंह की आँखे फैल जाती है l


भैरव सिंह - ओ... पुरी तैयारी के साथ आए हो...
डैनी - हाँ... यह मेरा स्टाइल है... जब भेड़िया की मांद में जाता हूँ... तो सबसे पहले उसके जबड़े बाँध देता हूँ... ताकि भेड़िया गुर्रा तो सके पर काट ना सके...
भैरव सिंह - अपनी यकीन पर इतना भी यकीन मत करो... के शेर की गुफा... तुम्हें भेड़िया की मांद लगे... शिकार होने में ज्यादा देर ना लगेगी...
डैनी - मैं वह शिकारी हूँ... जिसे जानवरों की हर नस्ल का इल्म है... इसीलिए तो... तुम्हारी मांद में... तुम्हारे जबड़े के सामने आ खड़ा हूँ... पर तुम गुर्राना तो दुर कुछ नहीं कर सकते....

भैरव सिंह अपना रिवॉल्वर अपनी नाइट रॉब के जेब में रख देता है और डैनी के सामने खड़ा हो जाता है l


डैनी - राजा साहब... आप बैठ तो जाओ... यह आपका ही कमरा है... और यह कुर्सी यह सोफा सब आप ही की है...
भैरव सिंह - (डैनी को घूरते हुए उसके सामने बैठ जाता है)
डैनी - (उसके सामने बैठते हुए) बुरा तो लग रहा होगा... आप ही के कमरे में... आप ही के कुर्सी में बैठने के लिए... मैं कह रहा हूँ...
भैरव सिंह - नहीं... तुम इससे ज्यादा मेरा कुछ कर नहीं सकते... यह हम जानते हैं...
डैनी - पिछले तीन चार दिनों से... अपने सारे सोर्सेज से... मुझसे मिलने के लिए ख़बर भिजवाए हो... वज़ह क्या है...
भैरव सिंह - खुद को राजा कह रहे हो... वज़ह मालुम होना चाहिए...
डैनी - विश्वा... यही ना...
भैरव सिंह - नहीं... डैनी... हमें फ़िलहाल तो डैनी से मतलब है... और... डैनी के बारे में जानना है...
डैनी - मुझसे... हा हा हा हा... (हँसने लगता है) सच बोलो राजा साहब... सच बोलो... अगर विश्वा ना होता... तो तुमको... डैनी से क्या मतलब होता... है ना...
भैरव सिंह - आधे गलत हो... हाँ तुम्हें जानने की वज़ह... विश्वा तो है... पर उसकी औकात उतनी है नहीं... कि वह राजा क्षेत्रपाल की माथे पर शिकन का बल पड़ जाए...
डैनी - ह्म्म्म्म... औकात... बहुत बड़ी चीज़ है... विश्वा अब वह शख्सियत रखता है... जो दूसरों को उनकी औकात दिखाता है....
भैरव सिंह - इतना यकीन है... अपने चेले पर... खैर उसे तो हम निपट लेंगे... फ़िलहाल हमें डैनी से मतलब है...
डैनी - राजा क्षेत्रपाल को डैनी पर इंट्रेस्ट... बात थोड़ी समझ के परे है...
भैरव सिंह - या तो तुम हमें ठीक से जाना नहीं... या फिर जान कर अनजान बन रहे हो....
डैनी - हाँ... अब लग रहा है... मैं अपने बराबर किसी राजा से बात कर रहा हूँ...
भैरव सिंह - हम... पैदाइशी राजा हैं.. जिनके सजदे... आवाम से लेकर सिस्टम तक करतीं हैं... तुम... एक वांटेड माफिया... जो सिस्टम के लूप होल्स के वज़ह से... किंग पिन बना बैठा है....
डैनी - हाँ... हूँ तो मैं किंग पिन... पर तुम कौन-से दुध के धुले हो राजा क्षेत्रपाल... सिस्टम में लूप होल्स ना होती... तुम भी मेरी तरह किंग पिन ही कहलाते... राजा क्षेत्रपाल नहीं... जैसे हम दोनों अभी बराबर लबादे में हैं... फर्क़ यही है कि... तुम सफेद रंग के नाइट गाउन में हो और मैं... काले रंग के ओवर कोट में हो....
भैरव सिंह - यह शान ओ शौकत... खानदानी है... इतिहास हमारे बारे में कहता है...
डैनी - डाकु भी तुम खानदानी हो... यह भी इतिहास में लिखा हुआ है...


भैरव सिंह के जबड़े सख्त हो जाते हैं l वह डैनी को घूर कर देखने लगता है l फिर एक गहरी साँस छोड़ते हुए कहना शुरू करता है l

भैरव सिंह - ठीक कहा तुमने... जैसी नाम और हैसियत है बंगाल में तुम्हारी... हम उससे भी बड़ी हैसियत और कद रखते हैं ओड़िशा में... इसलिए स्टेट का हर बच्चा बच्चा तक जानता है.. हमारे बारे में... इसलिए जो हमसे उलझने की गलती करता है... उसे खुद समाज कैंसर की तरह अपने से काट कर अलग कर देता है...
डैनी - ह्म्म्म्म... तो... तुम्हारे समाज को... डैनी से क्या काम पड़ गया...
भैरव सिंह - तुमने हमारी उसी समाज के कैंसर को... ना सिर्फ आगे पढ़ाया... बल्कि हमसे लड़ने के लिए खड़ा भी किया... यह जानते हुए... के वह... हमसे उलझने की गलती किया था.... क्यूँ...
डैनी - वह इसलिए... कि मैं... राजा क्षेत्रपाल की हुकूमत के दायरे में नहीं आता...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... चलो कुछ देर के लिए... हम यह मान भी लें... फिर भी एक जगह पर... हमारी सोच... हमारी अनुभव हमें यह बताती है कि... तुम हमसे कुछ ना कुछ बैर रखते ही हो...
डैनी - वज़ह...
भैरव सिंह - एक साल पहले... कलकत्ता म्यूज़ियम में एंटीक चीजों का अकशन हुआ था... जिसमें फर्गुशन के तलवार की मूठ की एक स्पेशल अकशन हुआ था... तुम्हारे एक खास आदमी ने खरीदा था... जो बाद में... तुम्हारे पास पहुँचा था... (डैनी मुस्कराता है) एक ऐसी एंटीक पीस... जो कई दशकों से कभी नहीं बिकी... पर जब बिकी... तो... (भैरव सिंह और आगे कुछ नहीं कहता है)
डैनी - चुप क्यूँ हो गए राजा साहब... कहिये ना बिकी तो आखिर क्यूँ बिकी...
भैरव सिंह - उस तलवार की मूठ बेकार है... उसके ऊपर की कार्बन स्टील की तलवार के वगैर... (एक पॉज लेकर) क्यूँ खरीदा...
डैनी - राजा साहब... अभी आप ही ने तो कहा... एंटीक पीस...
भैरव सिंह - हाँ एंटीक पीस... उस एंटीक पीस के साथ एक मिथक भी मशहूर है... ऐसे में... उस बिना मूठ की तलवार को... क्षेत्रपाल परिवार का कोई दुश्मन ही खरीद सकता है...
डैनी - ह्म्म्म्म... (मुस्करा कर) तो यह बात है... की उस तलवार की मूठ का खरीदार... क्षेत्रपाल परिवार का दुश्मन हो सकता है... यह एक लाजिक है.... जिस लाजिक के आधर पर तुमको लगता है कि... मेरी तुमसे कोई पुरानी दुश्मनी हो सकती है...

भैरव सिंह अपना बायाँ भवां उठा कर डैनी को घूर कर देखने लगता है l मुस्कुराते हुए डैनी का चेहरा एक दम सीरियस हो जाता है l

डैनी - राजा भैरव सिंह क्षेत्रपाल... वक़्त की दरिया में... कुछ राज बहुत गहराई में दबे होते हैं... वक़्त आने पर... उसी दरिया का सीना चिर कर... वह राज फुट निकलते हैं.... यह उस वक़्त की बात है... जब तुम राजा साहब नहीं थे... तब युवराज हुआ करते थे... तुम ग्रैजुएट की डिग्री के लिए... कोलकात्ता यूनिवर्सिटी में जॉइन हुए थे.... तुमने अपनी रुतबे के हिसाब से... एक कोठी भाड़े पर ली थी... उस कोठी में तुम्हारे हर काम के लिए... नौकर चाकर सब थे... उन चाकरों में एक चाकर था जिसका नाम था नीमाई मंडल.... याद है... उसकी एक खूबसूरत सी बेटी थी... नाम था... सोमा मंडल.... याद है....



भैरव सिंह को झटका सा लगता है l उसे लगता है जैसे आसमान में सैकड़ों बिजलियाँ कौंधने लगी हैं और बादल गरजने लगे हैं l भैरव सिंह हैरानी से डैनी की ओर देखने लगता है l

डैनी - पढ़ाई के दिनों में... अपने रुतबे के दम पर... कॉलेज में बड़ा नाम किए... उस नाम और व्यक्तित्व से सोमा मंडल प्रभावित हुई थी... एक दिन तुम बीमार पड़े... तब वह बुढ़ा नीमाई और उसकी बेटी सोमा ने तुम्हारी बहुत सेवा की.... और तुमने भी उस सेवा का मेवा में उस मासूम भोली लड़की की भावनाओं को भड़का कर अपने नीचे लिटा कर खूब दिया.... इश्क और मुश्क शायद छुप जाए... पर हवस कैसे छुपे... वह लड़की की पेट में आकार लेती ही है... जब बात लोगों के बीच पहुँची... लोगों ने सवाल उठाए... लड़की बड़ी हिम्मत से दुनिया की सामना किया... क्यूंकि उस लड़की का विश्वास... गुरूर... अहंकार तुम थे... उसका जवाब ज़माने को तुम थे.... पर जब लोगों के सामने सबूत का वक़्त आया... तुमने क्या कहा... याद है.... तुमने कहा था... यह नीची छोटी ओछी जात की लोगों की साया भी पड़ जाए... तो तुम्हें स्नान करना पड़ता है... ऐसी छोटी और ओछी जात की लड़की को अपने साथ... अपने बिस्तर पर... नहीं.. कभी नहीं.... याद है.... तब उस लड़की का विश्वास... अभिमान सब टुट कर बिखर गया.... वह कुए में कुद कर अपनी जान दे दी.... उसके पीछे पीछे उस लड़की की मज़बूर बाप... उसने भी कुए में कूद कर आत्महत्या कर ली... याद है....
भैरव सिंह - (पसीना पसीना हो गया था) तुम.... यह... यह सब... क..कैसे जानते हो....
डैनी - उस नीमाई का एक बेटा भी था... और उस सोमा की... एक छोटा भाई भी था... जो उस वक़्त... उस मजबूर पिता और मासूम बहन के पास नहीं था.... मरने से पहले... सोमा ने... अपने भाई के नाम एक चिट्ठी में सब कुछ लिख कर... अपनी बेबसी बता चुकी थी...
भैरव सिंह - हाँ... याद आया... डिग्री लेते वक़्त... एक लड़के ने एक बार मुझ पर हमला किया था... दिनेश... दिनेश नाम था उसका... पर उसे तो मेरे आदमियों ने मार कर हावड़ा के नीचे फेंक दिया था...
डैनी - हाँ... जब उसने हमला किया था... तब तुमने अपनी वही बात दोहराई थी... दिनेश के छूने से... तुम अशुद्ध हो गए थे... शुद्धि स्नान के लिए... तुम वहाँ पर उस लड़के को... अपने लोगों के हवाले कर चले गए थे... उन्होंने उसे बहुत मारा... मार मार कर... उसे गंगा में फेंक दिया....
भैरव सिंह - ओ... तो तुम उस दिनेश का बदला ले रहे हो...
डैनी - नहीं... बदले के लिए... दिनेश मंडल... आगे चल कर... डैनी बन गया... पर वह यह बात हमेशा के लिए गांठ बाँध ली... भैरव सिंह को वह कभी छुएगा नहीं... हाथ नहीं लगाएगा... पर उसे सजा दिला कर ही रहेगा.... एक ऐसे आदमी से... जिसे वह अपनी पैरों की जुती समझता होगा... देखो विधि का विधान... वक़्त ने मुझे विश्वा से मिलवाया.... मैंने पहली ही नजर में उसके अंदर की आग को पहचान लिया था...
भैरव सिंह - तो दिनेश से डैनी बने... कहानी क्या बनाए... पुलिस वाले की बेटा... और विश्वा को सिखाने के लिए... उसकी उपकार लेने का ड्रामा किया लोगों को यह जताया कि... आंध्र प्रदेश से आए गुंडों से बचाने के कारण... तुमने उसे मदत की....
डैनी - हाँ... कुछ बातों को छुपाने के लिए... कहानियाँ बनानी पड़ती हैं... जैसे... बीते दिनों के ग़द्दार डाकू... आज के राजा बने बैठे हैं....
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... हमें लगा... हमारे खिलाफ स्टेट में कोई नहीं जाता.... पर तुम एकसेपशनल निकले.... इसलिए थोड़ी इनक्वायरी की... तब पता चला... फर्गुशन की तलवार की मूठ तुम्हारे आदमी ने खरीदी है... तब तुम पर शक हुआ... अब मालुम हुआ मामला निजी है....
डैनी - हाँ... बहुत निजी है... मैंने कसम खाई थी... तुम्हें हाथ नहीं लगाऊंगा.... पर तुम्हें ख़तम भी करूँगा... विश्वा और मेरी कहानी में ज्यादा फर्क़ नहीं है... पर विश्वा के अंदर जो आग है... उसके लपेटे में तुम ख़ाक हो जाओगे....
भैरव सिंह - हा हा हा हा हा... (हँसने लगता है) विश्वा... उसे हमने उसकी औकात दिखा दी थी... उसकी हस्ती कितना बौना है... उसे हमने अपना विश्वरुप दिखाया था....
डैनी - उसी विश्वा की... ट्रांसफर्मेशन देख कर... उसके गुरु की इनक्वायरी करते हुए कलकत्ता पहुँच गए...
भैरव सिंह - चींटी काट सकता है... शिकार नहीं कर सकता...
डैनी - अगर मारना होता तो यकीन करो... अब तक तुम्हें मार चुका होता... तुम जिंदा हो... तो उसके लिए... कभी सेनापति दंपती के पैर धो कर पानी पी लेना...
भैरव सिंह - क्या बकते हो...
डैनी - सही कह रहा हूँ... विश्वा की काबिलियत क्या है सुनो बताता हूँ... तुम्हारे पुराने दोस्त के बेटे को... जैल के अंदर लाकर... उसे मौत दे दी... ऐसी मौत के पुलिस और पोस्ट मोर्टेम करने वाले डॉक्टर तक को लगा वह मौत हाइपर बीपी और ड्रग्स ओवर डोज के वज़ह से हुआ था...
भैरव सिंह - (आँखे हैरानी से बड़ी हो जाती हैं) यश... यश वर्धन चेट्टी...
डैनी - हाँ... जरा सोचो राजा जी... एक मामुली सा मुजरिम... यश जैसी शख्सियत को जैल के अंदर ले आया... और उसे मौत की घाट भी उतार दिया... तो सोचो वह तुम्हारे साथ क्या कर सकता था....
भैरव सिंह - (हलक से थूक गटकता है)
डैनी - तुम अगर जिंदा हो... तो उसके लिए... कभी फुर्सत निकाल कर एडवोकेट प्रतिभा सेनापति की पैर धो कर पानी पी लेना... क्यूँकी उन्होंने ही विश्वा से वचन ली थी... के तुम्हें विश्वा कानूनन सजा देगा....
भैरव सिंह - और तुम इसमें विश्वा की मदत करोगे....
डैनी - वह विश्वा है... राजा क्षेत्रपाल... उसे मेरी मदत की कोई जरूरत नहीं है... वैसे भी... अभी में इस कुरुक्षेत्र में... बेलाल सेन की भूमिका में हूँ... तुम्हें या तुम्हारी सल्तनत को छूउंगा भी नहीं.... पर तुम्हारी हुकूमत का दायरा जितना सिकुड़ता जाएगा... मैं उतना ही फैलता जाऊँगा.... क्यूँकी तुम्हारे खिलाफ मैंने एक अमोघ हथियार चला दिया है... जिसकी काट... ना तुम्हारे पास है... ना ही तुम्हारे सिस्टम के पास है...
भैरव सिंह - यह खुश फहमी तुम्हारी जल्द दूर कर देंगे.... विश्वा कुरेदना शुरु किया है... पर वादा करते हैं... काटने की नौबत नहीं आएगी... उससे पहले वह अंजाम तक पहुँच जाएगा...
डैनी - थोड़ी देर बाद सुबह होने वाली है राजा साहब... जागो... और समझो... विश्वा तुम्हें नींद से ना सिर्फ जगाएगा... बल्कि तुम्हें तुम्हारी असली औकात भी दिखाएगा...
भैरव सिंह - वह तो जब दिखाएगा तब देखा जाएगा... डैनी उससे पहले... तुम अपनी सोचो....
डैनी - जोश जोश में तुम यह भूल रहे हो... यह कलकत्ता है... यहाँ का राजा मैं हूँ...


तभी बिजली चली जाती है, भैरव सिंह अपनी नाइटरॉब की जेब से रिवाल्वर निकाल कर तान देता है l थोड़ी देर बाद जब बिजली आती है तो वहाँ पर कोई नहीं था l


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दरवाज़े पर दस्तक हो रही थी, और रुप को अपना नाम भी सुनाई सुनाई दे रही थी पर वह जाग नहीं पा रही थी l आँखों में नींद इस कदर ज़मी हुई थी के वह चाह कर भी उठ नहीं पा रही थी l जब दरवाजे पर दस्तक नहीं रुकती तो बड़ी मुश्किल से बेड से उठ कर दरवाजा खोलती है l सामने शुभ्रा खड़ी थी l शुभ्रा को रुप के आँखों के नीचे आँसू की सूखी धार स्पष्ट दिखती है l

शुभ्रा हैरान होती है पर कहती नहीं है अंदर आकर वह रुप की बेड पर बैठ जाती है l रुप उसके पीछे पीछे बेड तक पहुँचती है कि तभी उसकी नजर आईने में पड़ती है l उसे अपनी हालत का जायजा हो जाता है l वह तुरंत अपनी वॉशरुम में घुस जाती है और चेहरा अच्छी तरह से धो कर टावल से साफ करते हुए बेड रुम में आती है l शुभ्रा की नजर उसे जिस तरह से घूर रही थी रुप खुद को असहज महसूस करने लगती है l पर कोई किसीसे कुछ भी नहीं कह रहे थे l अंत में असहजता के साथ रुप कमरे में खामोशी तोड़ते हुए शुभ्रा से सवाल करती है l

रुप - आप कबसे दरवाजा दस्तक दे रहीं थीं...
शुभ्रा - नाश्ते का वक़्त हो गया है.... टेबल पर कब तक इंतजार करती... और शायद पहली बार... तुमने अपना मोबाइल स्विच ऑफ कर रखा था... तुम भाई बहनों को क्या हो गया है आज...
रुप - भाई बहन मतलब...
शुभ्रा - वीर नाश्ता किए वगैर आज घर से निकल गए हैं... उनके जीवन में क्या चल रहा है... कुछ बता नहीं रहे हैं... खुद में घुट रहे हैं... कल रात का खाना तुमने खाया नहीं... भूखे पेट सो गई... पर यह क्या... तुम रात भर रोई हो... क्यूँ नंदिनी...
रुप - मैं कहाँ रोई थी भाभी...
शुभ्रा - बताना नहीं चाहती तो मत बताओ... पर झूठ तो मत बोलो...

कह कर शुभ्रा वहाँ से उठ कर जाने लगती है l रुप को ग्लानि महसूस होती है तो वह शुभ्रा को आवाज दे कर रोकती है l

रुप - भाभी प्लीज...
शुभ्रा - (बिना रुप की ओर देख कर रुक जाती है)
रुप - भाभी... कल रात विक्रम भैया से बात हुई थी... एक ऐसी बात... जो बचपन से मैं भुलाने की कोशिश कर रही थी... पर विक्रम भैया के वज़ह से... वह व्याक्या... मेरे यादों को रात भर तार तार कर रही थी...

शुभ्रा हैरानी के साथ रुप की ओर मुड़ती है l रुप उसे अपने बेड पर बिठा कर विक्रम से हुई सारी बातेँ बताती है l सारी बातें सुन कर शुभ्रा चेहरा हैरानी और डर के मारे सफेद हो जाती है l

रुप - भाभी... (झिंझोड कर) भाभी...
शुभ्रा - (चौंक कर) हाँ...
रुप - बीते कल की गुजरी हादसा है... तुम उसे लेकर परेशान क्यूँ हो...
शुभ्रा - बेशक बीते कल की गुजरी हादसा है... पर आज के बाद विक्की की आने वाले कल प्रभावित होने जा रही है...
रुप - मैं भी यही सोच रही थी भाभी... अब ऐसा लग रहा है... जैसे सब हर रिश्तों के बीच बवंडर आने वाला है... क्षेत्रपाल अब तितर-बितर होने वाले हैं... और हर रिश्ते की अपनी अपनी वज़ह है... कल रात तुम पर जो गुजरी है... शायद विक्की पर भी वही गुजरी है...
रुप - हाँ भाभी... क्षेत्रपाल महल की आन... और क्षेत्रपाल की मूँछ की शान में... पता नहीं क्या क्या क़ुरबान होने वाली है...
शुभ्रा - (अचानक कुछ याद करते हुए) अरे मैं तो भूल गई... चलो जाओ तुम जल्दी से तैयार हो जाओ...
रुप - नहीं भाभी... आज कॉलेज जाने का मुड़ नहीं है...
शुभ्रा - ठीक है... जाना ना जाना तुम्हारी मर्जी... पहले तैयार हो कर नीचे तो आओ... भाश्वती आने वाली है...
रुप - क्या... भाश्वती... पर क्यूँ...
शुभ्रा - तुम रात से फोन बंद कर सो गई थी... भाश्वती कह रही थी... तुम दोनों में चैलेंज था... कौन जल्दी उठ कर किसे कॉल करते हो... हमेशा तुम जीतती थी... आज उसने तुम्हें कॉल बैक किया तो... तुम्हारा मोबाइल स्विच ऑफ था...

रुप यह सुनते ही अपनी जीभ बाहर निकाल कर अपनी सिर पर हाथ दे मारती है l वह समझ जाती है, आज पहली बार उसने विश्व को सुबह फोन नहीं की थी l यह बात ज़रूर विश्व ने भाश्वती से कहा होगा l अब भाश्वती हर बात पर छेड़ना शुरु कर देगी l वह जल्दी से बाथरुम में घुस जाती है l उधर रुप की हालत देख कर थोड़ी देर के लिए शुभ्रा मुस्करा देती है पर रुप के बाथरुम जाने के बाद उसके चेहरे पर चिंताएं छाने लगती हैं l वह रुप की कहे बातों को याद करते हुए नीचे आती है l नीचे अपनी मोबाइल से वह विक्रम को फ़ोन लगाती है l विक्रम की फोन स्विच ऑफ आ रहा था l वह मोबाइल हाथ में लेकर गहरी चिंता में खो जाती है l कुछ देर बाद नौकर आकर ख़बर देता है कि राजकुमारी जी की कोई दोस्त आई हुई हैं l शुभ्रा उसे अंदर भेजने के लिए कहती है l कुछ देर बाद भाश्वती अंदर आती है l

भाश्वती - नमस्ते भाभी...
शुभ्रा - आओ भाश्वती... तो बहुत दिनों बाद... पर भाभी के लिए नहीं... अपनी दोस्त नंदिनी के लिए...
भाश्वती - नहीं... ऐसी बात नहीं है भाभी... वह...
शुभ्रा - हाँ हाँ... समझती हूँ... इस घर में पहली बार... घर के सदस्यों के बाद... तुम लोग थे जो आए थे... पर फिर ऐसे गायब हुए कि... आज नजर आए हो... (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) पर इसमें तुम लोगों क्या दोष... इस घर का नाम ही द हैल है... और हैल में कौन आता है...

भाश्वती कुछ नहीं कहती बस मुस्कराने की कोशिश करती है l इतने में रुप तैयार हो कर नीचे आ जाती है l वह भाश्वती की हाथ पकड़ कर खिंचते हुए बाहर ले जाती है l पीछे शुभ्रा एक दो बार रुप को आवाज देती है मगर रुप शुभ्रा को अनसुना कर बाहर चली जाती है l बाहर भाश्वती की गाड़ी में दोनों जाकर बैठ जाते हैं l गाड़ी के अंदर


रुप - तुने भाभी को कुछ कहा तो नहीं...
भाश्वती - (एटीट्यूड के साथ, ड्राइविंग करते हुए ) तुने मुझे क्या चुगलखोर समझ रखा है... हुँह्ह्ह...
रुप - अरे मैंने ऐसा थोड़े ना कहा...
भाश्वती - पर तु तो कहती थी... भाभी तेरे और प्रताप भैया के बारे में जानती हैं...
रुप - हाँ... पर सारी बातेँ तुझे भी कहाँ पता है... जैसे तेरे प्रताप भैया ने मेरी चुगली कर बता दिया... हर सुबह उस बेवक़ूफ़ को मैं फोन कर जगाती हूँ...
भाश्वती - ऐ खबरदार... मेरे भैया को बेवक़ूफ़ कहा तो... जितने हैंडसम हैं... उतने ही स्मार्ट एंड इंटेलिजेंट हैं..
रुप - हाँ हाँ... ज्यादा उछल मत... हुँह्ह्ह... (मुहँ मोड़ लेती है)
भाश्वती - हुँह्ह्ह... (मुहँ मोड़ लेती है)

कुछ देर बाद एक पार्क के पास गाड़ी झटके मार रुक जाती है l गाड़ी के रुकते ही रुप एक टेढ़ी नजर से भाश्वती की ओर देखती है l

भाश्वती - ठीक है.. ठीक है... ऐसे घूर मत... प्रॉब्लम मैं जानती हूँ... दो मिनट में गाड़ी स्टार्ट हो जाएगी... तु... (रुप की सीट को पीछे की तरफ डाउन कर देती है) दो मिनट के लिए आराम कर... हुँह्ह्ह...

कह कर भाश्वती गाड़ी से उतर जाती है और बॉनेट खोल कर उठा देती है l रुप सीट पर आँखे मूँद कर लेटी रहती है l कुछ देर बाद बॉनेट गिरने की आवाज उसके कानों में पड़ती है और कार की डोर खुलती है ड्राइविंग सीट पर किसी के बैठने का एहसास होता है l गाड़ी स्टार्ट होती है और चलने लगती है l रुप कुछ अजीब सा लगता है, वह अपनी आँखे खोल कर देखती है भाश्वती की जगह कोई मर्द ड्राइविंग सीट पर बैठा हुआ है l वह सीट को उठाने की कोशिश करती है पर सीट ऐसी लॉक हो गई थी कि वह सीट ऊपर नहीं उठ पाती l रुप अपनी सीट बेल्ट निकालने की कोशिश करती है l पर सीट बेल्ट भी फंसी हुई थी, बेल्ट नहीं निकलती l वह छटपटाने लगती है पर सीट बेल्ट नहीं खुलती
Bahut hi badhiya update diya hai Kala Nag bhai....
Nice and beautiful update....
 
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एक बार फिर से बेहद ही जबरदस्त अपडेट ।
कभी-कभार आप ऐसा कुछ लिख देते हो कि पढ़कर जोश डबल ट्रिपल हो जाता है। कुछ समझ मे नही आता कि इतनी खुबसूरत और बेहतरीन अपडेट के लिए क्या रिव्यू लिखा जाए !

शुरुआत आपने वीर के हताशा और उदासीन रवैए से किया और उसके बाद विश्व - रूप का वीर के लिए चिंतित होने पर और फिर वहां से सीधे कोलकात्ता जा पहुंचे।
कोलकात्ता प्रवास के दौरान राजा साहब और पिनाक सिंह का जो कन्वर्सेशन हुआ , वह पिनाक साहब के लिए चिन्ताजनक और हैरानी भरा था ही , हम रीडर्स के लिए भी अचंभित भरा रहा।
भैरव सिंह को पंचायत कांड की पुरी खबर मालूम थी और साथ मे उन्होने पिनाक साहब को यह कहकर भी भौचक्का कर दिया कि उनके पास एक अलग से महारथियों की फौज भी है।
यह हमारे लिए भी आश्चर्य की बात थी कि पिनाक साहब बड़े राजा जी के छोटे भाई के अलावा उनके काफी करीबी भी थे। लेकिन फिर भी उन्हे इसके बारे मे कुछ भी नही पता।
पिनाक साहब के हाव-भाव और उनकी बोली बहुत कुछ बयां कर रही थी। शायद पुत्र प्रेम ने उन्हे कुछ सोचने के लिए मजबूर कर ही दिया। शायद वीर की आंसुओ ने उन्हे थोड़ा-बहुत द्रवित तो जरूर ही किया है।
लेकिन यह भी देखना है कि वो भैरव सिंह के खिलाफ कितने दूर तक जा सकते है !


इसके बाद का प्रसंग वही था जिसके बारे मे मैने पिछले रिव्यू मे लिखा था। विक्रम और रूप के दरम्यान उनकी दिवंगत मां से सम्बंधित बातें। सबसे अच्छी बात यह थी कि विक्रम को सत्य का ज्ञान हुआ। भैरव सिंह की सच्चाई मालूम पड़ी। और उसके उस अज्ञानता का बोध हुआ जिसकी वजह से वो खुद को अपने पिता से बंधा हुआ पाता था। मुझे विश्वास है वो अब खुद को पिंजरे मे बंधा हुआ तोता महसूस नही करेगा।

इसके बाद का अध्याय राजा साहब और डैनी का था।
वैसे तो इस अपडेट का हर प्रसंग बेहतरीन था लेकिन यह प्रसंग मुझे बहुत ही पसंद आया।
बहुत दिनो के बाद डैनी की एन्ट्री हुई और एन्ट्री मारते ही राजा साहब की बखिया भी उधेड़ दी।
बहुत बहुत ही बेहतरीन संवाद लेखन था। दोनो के ही डायलॉग उनके रसूख के अनुसार थे। उनकी पर्सनलटी के अनुसार थी। उनके हैसियत के अनुसार थी।
डैनी और उसके फैमिली के साथ भी राजा साहब ने अन्याय किया था। यह एक नई खबर थी।

अंतिम पैराग्राफ मे स्टोरी सस्पेंस मोड पर खड़ा हो गया। अब रूप और भाश्वती के साथ कोई गलत करने की हिमाकत कर रहा है या यह किसी की शरारत , यह तो नेक्स्ट अपडेट मे ही मालूम होगा।

बहुत बहुत खुबसूरत अपडेट बुज्जी भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड जगमग जगमग अपडेट।
 
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