ग़ज़ब भाई, ग़ज़ब! क्या शानदार अपडेट है भाई!
वाह! पिछले कुछ समय में ये सबसे शानदार, कसा हुआ अपडेट!
कहानी ने गति पकड़ी है अब। अब मज़ा आएगा!
इसीलिए किसी की मत सुना करिए - अपने हिसाब से, समय ले कर लिखिए!
भैरव सिंह - (कुछ देर के लिए ख़ामोश हो जाता है, फिर) छोटे राजा जी... हुकूमत करने वाले... अपनी सल्तनत की हिफाजत के लिए... लाव लश्कर पालते हैं... जंग में हमेशा एक दस्ता आगे रखते हैं... और बेहतरीन दस्ता को ओढ़ में रखते हैं... उस लश्कर में... जो पहला दस्ता होता है... उसे हरावल कहते हैं... हरावल दस्ता हमेशा आगे की पंक्ति में रहता है... जो या तो सामने वाले की हरावल पंक्ति को तितर-बितर कर देता है... या फिर मार खा कर नेस्तनाबूद हो जाता है... दसियों सालों से जीतते आए यह हमारे हरावल... और हमला कर जीत की जश्न मनाने वाले... यह भुल गए हैं कि जंग का सबसे बेहतरीन दस्ता... सालार के पास रहता है... यह जो मार खा कर भागे हैं... वह राजा क्षेत्रपाल के लश्कर का हरावल थे... अभी तो हमारे बेहतरीन सिपहसलार बाकी हैं...
पिनाक - (मुहँ फाड़े भैरव को देख रहा था)
भैरव सिंह - आपको क्या लगता है... हम इन टटपुंजों के सहारे पुरे स्टेट में हुकूमत चला रहे हैं... छोटे राजा जी... भैरव सिंह सियासत और हुकूमत में हाथी के बराबर है... जिसने खाने के दांत अलग... दिखाने के दांत अलग हैं... इसलिए जिसको भी यह खुश फहमी पालना है... पाल लेने दीजिए... जंग अभी शुरु ही कहाँ हुआ है...
ये तो ख़ैर हमको पता ही है कि टुटपूँजियों के भरोसे राजा की हुकूमत नहीं चलती।
नहीं तो गली के गुण्डे और राजा में फ़र्क़ क्या रह जाएगा! लेकिन भैरव के असली सिपहसालार कौन हैं, ये तो नई बात हो गई।
क्या नए पात्र जुड़ने वाले हैं कहानी में? क्या पुराने प्यादे ग़ायब होने वाले हैं?
भैरव सिंह - छोटे राजाजी... हम उम्मीद करें या यकीन... यह आप तय कर लीजिए... नर्सों... राजकुमार की मंगनी... निर्मल सामल से होगी या नहीं....
कह कर पिनाक को सोच में डूबा कर भैरव सिंह वहाँ से चला जाता है l पिनाक छटपटाते हुए अपना मोबाइल निकाल कर एक कॉल डायल करता है
ये तो धमकी हो गई सरासर! पिनाक का रोल अलग रहेगा, वो तो आपने बता दिया।
लेकिन क़यास नहीं लगा पा रहा हूँ कि कैसा? इतना तो है कि वो अवसर मिलने पर भैरव की गद्दी पर खुद बैठना चाहेगा।
लेकिन उसको भैरव का डर है - उस डर की वज़ह क्या है, अभी ये हम पर ज़ाहिर नहीं है!
रुप - नहीं नहीं नहीं.. आप माँ की बातों को गलत समझा है...
विक्रम - क्या गलत समझा है...
रुप - माँ ने कहा था कि... वह पिता हैं... तुम साथ छोड़ दोगे तो... तुम धर्म से उनके दोषी हो जाओगे... ताकि जब वह साथ छोड़ने के लिए कह दें... तब धर्म का दोष तुम पर ना लगे.... इसलिए... माँ ने सिर्फ और सिर्फ. राजा साहब के साथ बने रहने के लिए कहा था... उनका साथ देने के लिए नहीं... तुम साथ देते रहोगे... तो राजा साहब तुम्हें अपना साथ छोड़ने के लिए क्यूँ कहेंगे....
विक्रम रूप कि इस बात को सुन कर बहुत जोर से चौंकता है l उसकी आँखे फैल जाते हैं l उसे इतना जोर का झटका लगा था कि उसके मुहँ से कोई बोल नहीं फुट पा रहा था l
चलो - विक्रम की मूर्खता का कोई निवारण तो मिला।
डैनी - हाँ... जब उसने हमला किया था... तब तुमने अपनी वही बात दोहराई थी... दिनेश के छूने से... तुम अशुद्ध हो गए थे... शुद्धि स्नान के लिए... तुम वहाँ पर उस लड़के को... अपने लोगों के हवाले कर चले गए थे... उन्होंने उसे बहुत मारा... मार मार कर... उसे गंगा में फेंक दिया....
भैरव ने जिस जिस को छोड़ा है, वो अब उसका काँटा बन कर वापस आ गया है मैदान में।
एक बहुत प्राचीन, नीति-शास्त्री रहे हैं - नहीं चाणक्य नहीं, उनसे भी पहले - सन त्सु (चीन के हैं)..
उन्होंने कहा था कि जब किसी शत्रु को परास्त कर दो, तो उसको इज़्ज़त के साथ रिट्रीट करने का अवसर दो। उसको इतना मत दबा दो कि उसके पास प्रतिवार करने के अतिरिक्त अन्य कोई उपाय ही न बचे। भैरव ने अपनी शक्ति के मद में चूर हो कर यही गलती करी है (आज की राजनीति में भी यही दिख रहा है)!
जब किसी के पास खोने के लिए कुछ नहीं बचता, तब उससे अधिक घातक शायद ही कोई हथियार हो।
भैरव सिंह - (आँखे हैरानी से बड़ी हो जाती हैं) यश... यश वर्धन चेट्टी...
डैनी - हाँ... जरा सोचो राजा जी... एक मामुली सा मुजरिम... यश जैसी शख्सियत को जैल के अंदर ले आया... और उसे मौत की घाट भी उतार दिया... तो सोचो वह तुम्हारे साथ क्या कर सकता था....
भैरव सिंह - (हलक से थूक गटकता है)
अब डर लगा पट्ठे को। अब समझ आया कि जिसको अभी भी हल्के (?) में ले रहा है, वो बहुत भारी चीज़ है।
बढ़िया।
भैरव सिंह - वह तो जब दिखाएगा तब देखा जाएगा... डैनी उससे पहले... तुम अपनी सोचो....
डैनी - जोश जोश में तुम यह भूल रहे हो... यह कलकत्ता है... यहाँ का राजा मैं हूँ...
डैनी ने भी ले ली!
रुप कुछ अजीब सा लगता है, वह अपनी आँखे खोल कर देखती है भाश्वती की जगह कोई मर्द ड्राइविंग सीट पर बैठा हुआ है l वह सीट को उठाने की कोशिश करती है पर सीट ऐसी लॉक हो गई थी कि वह सीट ऊपर नहीं उठ पाती l रुप अपनी सीट बेल्ट निकालने की कोशिश करती है l पर सीट बेल्ट भी फंसी हुई थी, बेल्ट नहीं निकलती l वह छटपटाने लगती है पर सीट बेल्ट नहीं खुलती
अब ई का स्यापा लग गया भाई!
रोचक होती जा रही है कहानी बड़ी तेजी से!
आनंद आ गया दोस्त! आनंद आ गया।
सबसे शानदार अपडेट!