ग़ज़ब भाई, ग़ज़ब! क्या शानदार अपडेट है भाई!
वाह! पिछले कुछ समय में ये सबसे शानदार, कसा हुआ अपडेट!
कहानी ने गति पकड़ी है अब। अब मज़ा आएगा!
इसीलिए किसी की मत सुना करिए - अपने हिसाब से, समय ले कर लिखिए!
ये तो ख़ैर हमको पता ही है कि टुटपूँजियों के भरोसे राजा की हुकूमत नहीं चलती।
नहीं तो गली के गुण्डे और राजा में फ़र्क़ क्या रह जाएगा! लेकिन भैरव के असली सिपहसालार कौन हैं, ये तो नई बात हो गई।
क्या नए पात्र जुड़ने वाले हैं कहानी में? क्या पुराने प्यादे ग़ायब होने वाले हैं?
ये तो धमकी हो गई सरासर! पिनाक का रोल अलग रहेगा, वो तो आपने बता दिया।
लेकिन क़यास नहीं लगा पा रहा हूँ कि कैसा? इतना तो है कि वो अवसर मिलने पर भैरव की गद्दी पर खुद बैठना चाहेगा।
लेकिन उसको भैरव का डर है - उस डर की वज़ह क्या है, अभी ये हम पर ज़ाहिर नहीं है!
चलो - विक्रम की मूर्खता का कोई निवारण तो मिला।
भैरव ने जिस जिस को छोड़ा है, वो अब उसका काँटा बन कर वापस आ गया है मैदान में।
एक बहुत प्राचीन, नीति-शास्त्री रहे हैं - नहीं चाणक्य नहीं, उनसे भी पहले - सन त्सु (चीन के हैं)..
उन्होंने कहा था कि जब किसी शत्रु को परास्त कर दो, तो उसको इज़्ज़त के साथ रिट्रीट करने का अवसर दो। उसको इतना मत दबा दो कि उसके पास प्रतिवार करने के अतिरिक्त अन्य कोई उपाय ही न बचे। भैरव ने अपनी शक्ति के मद में चूर हो कर यही गलती करी है (आज की राजनीति में भी यही दिख रहा है)!
जब किसी के पास खोने के लिए कुछ नहीं बचता, तब उससे अधिक घातक शायद ही कोई हथियार हो।
अब डर लगा पट्ठे को। अब समझ आया कि जिसको अभी भी हल्के (?) में ले रहा है, वो बहुत भारी चीज़ है।
बढ़िया।
डैनी ने भी ले ली!
अब ई का स्यापा लग गया भाई!
रोचक होती जा रही है कहानी बड़ी तेजी से!
आनंद आ गया दोस्त! आनंद आ गया।
सबसे शानदार अपडेट!