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एक हफ्ता गुज़र गया है
राजगड़ में
सुबह सुबह वैदेही अपनी चाय नाश्ते की दुकान को आती है साथ में एक औरत होती है जिसका हाथ पकड़ कर अंदर लाकर गल्ले में बिठा देती है l
औरत - अरे बेटी मुझे यहाँ क्यूँ बिठाया...
वैदेही - क्या हुआ गौरी काकी... मेरा अब गांव में कोई है नहीं काकी... अब तुम यहाँ बैठोगी... और मैं यह होटल चलाऊंगी....
गौरी - हम्म... होटल बहुत अच्छा है....
वैदेही - हा हा हा हा... काकी तुम भी ना...
गौरी - अच्छा.... तुम्हारे कुछ खेत वगैरह भी था ना...
वैदेही - उस पर कुछ हराम खोरों ने कब्जा जमा लिया है... वैसे भी खेती मैंने कभी कि नहीं... और मेरे खेत में कोई मजदूरी करेगा नहीं... क्यूंकि यहाँ मजदूरी सिर्फ़ क्षेत्रपाल के यहाँ हो सकती है... और कहीं नहीं... इसलिए गुजारे के लिए... यह दुकान..
गौरी देखती है वैदेही अपने साथ लाई नारियल को फोड़ कर दीप जलाती है और आरती के बाद उसी कर्पूर से चूल्हा जलाती है l
गौरी - वैदेही... बहुत बहुत शुक्रिया बेटा...
वैदेही - क्या काकी... तुम फ़िर शुरू हो गई....
गौरी - कह लेने दे बेटी... कह लेने दे... जब से होश सम्भाला, खुद को रंग महल में पाया... जब तक जवानी रही... तब तक एक ही काम था मेरा... क्षेत्रपाल मर्दों के नीचे लेटना या उनके कहे मर्दों के नीचे लेटना... फ़िर जवानी ढली तो... जो उनके नीचे लेटतीं थी... उनका देखभाल करना... अब जान तो है पर शरीर साथ नहीं दे रहा है... तो रंगमहल को मेरी जरूरत नहीं पड़ी.... भीख मांग कर गुजरने के लिए छोड़ दिया मुझे... उनकी कृपा यह रही... की उन्होंने मुझे मगरमच्छ के हवाले नहीं की.... क्यूंकि इतनी सेवा जो दी थी...
वैदेही - गौरी काकी... क्यूँ वह सब याद कर रहे हो....
गौरी - कह लेने दे... वरना ग़ुबार रह जाएगा... मुझे महल से बाहर निकाला गया... मैं कहाँ जाती... क्या करती.... इसलिए नदी की ओर गई... डूब कर मर जाना चाहती थी... इसलिए नदी में कुद भी गई.... पर फ़िर जब आँखे खुली सामने तु थी....
वैदेही - गौरी काकी... रंगमहल में जब भी मुझे माँ की ज़रूरत पड़ी... माँ की जगह हमेशा आपको पाया था... मेरा बचपन... और मेरी बर्बादी सब... जब भी माँ को ढूंढ़ा... आप मुझे मिली....
गौरी - सिर्फ तेरी बर्बादी नहीं बेटी... तीन पीढ़ियों के हाथों... नजाने कितनी बर्बादीयाँ देखी है... बड़े राजा से लेकर युवराज क्षेत्रपाल तक... ना जाने कितनी जिंदगीयाँ.... कुचली जा चुकी हैं.... उनकी बेबसी... और बर्बादी की गवाह हूँ... इसलिए... इसी लिए... सब छोड़ कर दुनिया से चले जाना चाहती थी....
वैदेही - इसलिए... अरे ऐसे कैसे... मैं कैसे आपको छोड़ जाने देती.... जब आप... डूबने से बचाई गई.... मैंने आपको पहचान लीआ.... और अपने साथ ले आई... बस इस पर और कभी कोई चर्चा नहीं होगी... ग्राहक आने वाले हैं....
इतने में कुछ ग्राहक आते हैं l चाय नाश्ता तैयार हो चुका है l गौरी ग्राहकों से पैसे लेकर टोकन देती है बदले में वैदेही उनकी नाश्ता देने लगती है l वैदेही की दुकान चलने लगती है l कुछ देर बाद क्षेत्रपाल के दो गुंडे आते हैं l शनीया और गुरु सामने पड़ी बेंच पर बैठ जाते हैं l
गुरु - चल छम्मकछल्लो... नाश्ता बढ़ा....
वैदेही - चल पहले दो टोकन ले... फिर नाश्ता मिलेगी...
शनीया - ऐ.... यह टोकन टोकन क्या लगा रखा है... ऐसा यहाँ नहीं चलेगा...
वैदेही - बीस रुपये दो... दो टोकन लो... फ़िर नाश्ता मिलेगा...
गुरु - तुझे यह दुकान चलानी है या नहीं....
वैदेही - दुकान तो चलेगी.... चलेगी क्या दौड़ेगी.... तुमको खाना है... तो टोकन लो... वरना चलता बनों...
गुरु - हराम जादी साली रंडी.... हमसे पैसे मांगती है...
शनीया - हाँ... साली जानती है.... हमारी औकात....
वैदेही - दस रुपये की भी नहीं है... तुम लोगों की औकात.... क्षेत्रपाल महल के टुकड़ों में पलने वालों... यहाँ हराम का नहीं मिलता... या तो टोकन लो.... या फिर चलते बनों
गुरु - साली... बहुत बोलती है रंगमहल की रंडी (एक कटार निकालता है)
वैदेही - अपने दम पर बोलती हूँ भड़वे.... (एक दरांती और एक कुल्हाड़ी निकालती है)
दोनों गुरु और शनीया वैदेही के इस तरह से जवाब देने और जवाबी कार्रवाई के तैयार होते देख हैरान हो जाते हैं l दोनों एक दूसरे के मुहँ देखते हैं l
शनीया - ऐ... ऐ.. तु यह ठीक नहीं कर रही है... मर्दों से उलझेगी तु...
वैदेही - अबे चल.... बड़ा आया मर्द... यहाँ कोई मर्द है ही नहीं... और तुम जैसे हरामियों से निपटने के लिए तैयार हूँ अब...
गुरु गुस्से से खड़ा हो जाता है तो शनीया उसे बाहर दूर खिंच कर वहाँ से ले जाता है l
शनीया - जाने देते हैं भाई...
गुरु - (जाते जाते) तुझे एक दिन देख लूँगा रंडी... देख लूँगा तुझे... यहीं पर दौड़ा दौड़ा कर मरूंगा....
वैदेही - (दुकान से बाहर निकल कर) ऑए... जाते जाते सुनता जा... तु मुझे मार पाएगा... यह सब जानते हैं... पर संभल कर रहना... तु भले ही दस मारेगा पर पलट कर वैदेही जब मारेगी... तब चर्चे बहुत होंगे तेरे...
दोनों चले जाते हैं l वैदेही का यह रूप देख कर वहाँ बैठे सारे लोगों के साथ गौरी भी हैरान हो जाती है l कुछ लोग डरके मारे वहाँ से खिसक लेते हैं l
गौरी - वैदेही... इन लोगों से... इस तरह से क्यूँ उलझ रही है... कहीं कुछ हो गया तो...
वैदेही - क्या हो जाएगा काकी... अब खोने के लिए मेरे पास है ही क्या.... बस जान बाकी है... जिस पर मुझे कोई मोह नहीं है.... जिसके लिए जी रही हूँ... बस वही सही सलामत रहे...
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एक हफ्ते से कोशिश कर रही है, शुभ्रा बार बार फोन करने पर भी विक्रम से कोई जवाब नहीं मिल रहा है l इधर शुभ्रा के कॉलेज से टीसी लेकर निरोग मेडिकल कॉलेज में जॉइन करने पर उसके पिता बीरजा कींकर सामंतराय उससे लाखों सवाल पूछ चुके हैं l शुभ्रा उनके बातों को दरकिनार कर विक्रम से फोन पर बातेँ करने के लिए तड़प रही है पर विक्रम अभी तक उससे कोई कॉन्टेक्ट नहीं किया है l इन सात दिनों में शुभ्रा का चेहरा पूरी तरह से मुर्झा गई है l डायनिंग टेबल पर बैठ कर नाश्ते के टेबल पर शुभ्रा अपने में खोई हुई है l
बीरजा - (खराश लेकर) कहाँ खो गई है मेरी बेटी... (शुभ्रा कुछ रिएक्ट नहीं करती) शुभ्रा... (कोई जवाब नहीं) शुभ्रा... (थोड़े जोर से)
शुभ्रा - हाँ.. जी.. जी...
बीरजा - हमने पूछा कहाँ खो गई है मेरी बेटी... अब अगर तुमको मेडिकल नहीं पढ़ना था... तो अपनी कॉलेज से टीसी लेकर जॉइन किया ही क्यूँ....
शुभ्रा - यह आपने कैसे समझ लिया....
बीरजा - क्या....
शुभ्रा - यही की मुझे मेडिकल नहीं पढ़ना था....
बीरजा - अगर यह बात नहीं है... तो किस बात की टेंशन है तुम्हें... जिस दिन से एडमिशन लिया है तुमने.... उसी दिन से खोई खोई सी हो....
शुभ्रा - हाँ तो... आधे साल के सिलेबस को कैसे कवर करना है... यही सोच रही हूँ...
बीरजा - वैसे अभी तक यह सस्पेंस है... तुम्हारा एडमिशन कैसे हुआ...
शुभ्रा - आपसे तो कुछ छुप नहीं सकता है ना... पता लगा लीजिए.... आपको अपने बेटी पर भरोसा नहीं है.... हूं ह
शुभ्रा की माँ - ओह ओ... पिछले सात आठ दिनों से घर में यही चल रहा है.... ना खाने में चैन... ना सोने में सुकून... जब देखो बाप बेटी में कीच कीच...
बीरजा - बस आपकी ही कमी थी... आपको इन दिनों बेटी कुछ बदली बदली लग रही... आप उसकी माँ हैं... कोई खबर है भी या नहीं...
माँ - आप कुछ दिन हुए घर पर हैं... इसलिए ऐसे पूछ रहे हैं.... वरना आप घर पर रहते ही कब हैं...
बीरजा - हो गया आपका पुराण... (शुभ्रा से) बेटी तुम यह ताबीज़ कब से पहनने लगी...
शुभ्रा - यह एक मन्नत है... मेरी मेडिकल पढ़ाई के लिए... माता रानी उग्रतारा जी की कृपा है इसमें... (बीरजा कुछ पूछने को होता है) अब और कुछ मत पूछिए पापा.... मुझे फिल्हाल पढ़ाई का टेंशन है.... सॉरी....
इतना कह कर शुभ्रा वहाँ से चली जाती है बिना पीछे मुड़े जल्दी जल्दी l बीरजा अपनी बेटी को जाते हुए देख रहा है l उसे अपनी बेटी को ऐसे देखते शुभ्रा की माँ से रहा नहीं जाता l
माँ - आप ने कुछ पता लगाया....
बीरजा - किस बात का...
माँ - यही की इसे मेडिकल कॉलेज में ऐडमिशन कैसे मिला...
बीरजा - मुझे अपनी बेटी पर हद से ज्यादा विश्वास है.... मेडिकल पढ़ना उसका सपना था... उसके लिए जरूर कोई तिकड़म लगाया होगा... मैं उसकी कोई फिक्र नहीं है... मुझे फ़िक्र इस बात की है.... मेडिकल जॉइन करने के बाद वह पहली वाली शुभ्रा नहीं रही.... वह हँसती खेलती चुलबुली मेरी बेटी... मुझसे बात बात पर झगड़ने वाली मेरी बच्ची.... कहीं खो गई है...
माँ - बात तो आप सही कह रहे हैं.... लगता है पढ़ाई का ज्यादा प्रेशर है...
बीरजा - हाँ हो सकता है... भगवान करे... जो तुमने कहा वह सच हो...
अपने कमरे में आकर शुभ्रा अपने बिस्तर पर लेटी हुई है और अपने आप से बात कर रही है l
- कैसा बदला ले रहे हैं विकी.... कम से कम एक बार तो बात कर लेते मुझसे... किसी में भी मन नहीं लग रहा है... यह आपने हमें कहाँ लाकर छोड़ दिया है... खैर मैं आपको भी दोष नहीं दे सकती... यह नियती मैंने खुद चुनी है... अब लगता है यूँ जलना... जलते रहना तकदीर बन गया है... ओह विकी... प्लीज एक बार मुझसे बात कर लीजिए...
ऐसी ही अपनी सोच में गुम खुद से बातें करते हुए अपनी फोन को बार बार चेक कर रही है l उसके आँखों में आँसू छलक जाती है l फिर अचानक उसकी फोन बजने लगती है l शुभ्रा फोन पर विक्रम का नाम देखते ही खुशी के मारे फोन उठाती है
शुभ्रा - हैलो... विकी..
विक्रम - हाँ...
शुभ्रा - विकी... विकी... (शुभ्रा की रुलाई फुट पड़ती है, वह कुछ कहती नहीं सिर्फ़ रोती रहती है l कुछ देर रोने के बाद) विकी... आप हमसे बदला ले रहे हैं ना...
विकी - हमे माफ कर दीजिए शुभ्रा जी... हमे माफ कर दीजिए...
शुभ्रा - आपने हमे... इतना क्यूँ तड़पाया...
विक्रम - यह जो परंपरा का स्वांग है... बहुत ही बीभत्स था वह... हम... हम उससे... उबरने की कोशिश में थे...
शुभ्रा - (थोड़े संभलते हुए)परंपरा... वह... आपका... खानदानी रीचुअल ना...
विक्रम - हाँ... (आवाज़ भर्रा गई) हाँ... बहुत भारी बोझ है अभी भी दिल में....
शुभ्रा - ओह... आप.... आप बहुत तकलीफ़ में हैं... विकी जी... हमे माफ कर दीजिए... हम सिर्फ़ अपने बारे में सोच रहे थे.... पर वहाँ क्या हुआ... कहिए ना... प्लीज...
विक्रम - कुछ नहीं...
शुभ्रा - आप हमें बतायेंगे या.... हम अभी आपके पास आ जाएं...
विक्रम - आप हमारे बीच हुए वादों को भुला रही हैं...
शुभ्रा - आप अगर अपनी तकलीफ़ हमसे शेयर नहीं करेंगे... तो हम वह सारी कंडीशन भूल जाएंगे....
विक्रम - हम आपसे अपनी बात शेयर करने के लिए ही फोन किए हैं....
शुभ्रा - तो बताइए क्या हुआ....
विक्रम - शुभ्रा... मेरी जान... जरा सोचिए.... एक मासूम सी जिंदगी... जिसको परंपरा के नाम पर... परंपरा की बेदी पर बलि चढ़ने के लिए सजाया जाता है.... उसे ना बचा पाने के लिए एक माँ की बेबसी... और कुछ वहशी इंसान.... नहीं नहीं... वह इंसान नहीं... वह जानवर ही थे.... फ़िर उस मासूम की जिंदगी रौंद दी जाती है... वहशीयों के हाथों... उन वहशीयों में एक हम भी थे...
शुभ्रा - (आवाज़ बहुत गंभीर हो जाती है) यह... यह आप क्या कह रहे हैं... कौन मासूम.... और क्या था वह परंपरा...
विक्रम - हमारा यक़ीन कीजिए... शुभ्रा जी... हम वह बिल्कुल भी नहीं करना चाहते थे... पर हमारी हिम्मत बढ़ाने के लिए... हमे पीने को करैज ड्रिंक दिआ गया था.... वह ड्रिंक पीने के बाद.... फिर हम ऐसी बेहोशी की आगोश में समा गए के.... सब कुछ खत्म होने के बाद ही... हम होश में आए....
शुभ्रा - यह आप मुझसे सीधे सीधे क्यूँ कुछ नहीं कहते... घुमा फिरा कर जैसे कह रहे हैं... मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है... (विक्रम कुछ देर चुप रह जाता है) विकी... आप कुछ कहिए ना... हमें डर लग रहा है....
विक्रम - शुभ्रा जी... एक बात अपने मन में पक्का कर लीजिए... हम आपके थे... हैं... और रहेंगे...
शुभ्रा - विकी... (थोड़ा सीरियस हो कर) क्या हुआ है....
विक्रम - शुभ्रा जी... परंपरा के नाम पर.... हमने एक भैंस की बच्चे की बलि चढ़ा दी... अपने हाथों से.... उसकी माँ की आँखों के सामने.... बस यही मनको कचोट रही थी....
शुभ्रा - ओ... ओह (रीलेक्स महसूस करते हुए) विकी जी.... आपने... जिस तरह की सस्पेंस बना कर बात की... सच कह रही हूँ... बहुत डर गई थी....
विक्रम - ह्म्म्म्म... हमने मेहसूस की.... आपकी डर को...
शुभ्रा - और नहीं तो... मैंने फ़िल्मों में देखा है.... या फिर कहानियों में पढ़ा है ऐसे रिचुअल्स के बारे में....(रिलैक्स होते हुए) सो डोंट फिल... टेक इट इजी... आप ना... रोज अपनी शुभ्रा से बात कीजिए... और डिप्रेशन से बाहर आइए....
विक्रम - थैंक्यू शुभ्रा जी...
शुभ्रा - आपको थैंक्यू... आपने आज मेरा दिन बना दिया... लव यु....
विक्रम - लव यु... ठु ....
शुभ्रा - अच्छा... अब तो रोज बातेँ होंगी ना....
विक्रम - कोई शक़...
शुभ्रा - तो ठीक है... आप अपना काम लीजिए और मैं चली डॉक्टर बनने... रात को सोने से पहले... फिर बात होगी ठीक है...
विक्रम - जो हुकुम मेरे आका...
शुभ्रा - (खिल खिला कर हँस देती है) अच्छा बाय... उम्म आ... (शर्मा कर फोन काट देती है)
शुभ्रा जल्दी जल्दी तैयार होकर नीचे झूमती हुई आती है और अपनी माँ के गले लग जाती है और बीरजा सामंतराय को अपनी जीभ दिखा कर बाहर भाग जाती है l
माँ - अभी जब ऊपर गई थी... तब कि शुभ्रा और अब जब नीचे आई अब कि शुभ्रा... इतने समय में क्या हो गया....
बीरजा - चलो आ गई मेरी बेटी... मुझे तो लगता है... जान बुझ कर यह सात दिन टेंशन में रहने का नाटक की... और हमे भी टेंशन में रखा...
माँ - हे भगवान... यह लड़की मुझे तो कभी समझ में नहीं आएगी... देखिए मैं कहे देती हूँ... दुबारा उसके सामने शादी की बात मत कीजिएगा....
शुभ्रा - (अचानक अंदर आती है) नहीं तो ऐसे भागूंगी... के हाथ नहीं आऊंगी.... लव यु माँ... बाय पापा...
बीरजा - हा हा हा हा... बाय बेटा... हा हा हा..
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वीर विक्रम के कमरे में आता है l कमरे में अंधेरा है l वीर को अंधेरे में विक्रम का अंदाजा नहीं हो पाता इसलिए वह लाइट जलाने के लिए स्विच ऑन करता है l वीर देखता है विक्रम के चेहरे पर दाढ़ी कुछ बढ़ गई है l उसकी आँखे लाल और भाव शुन्य दिख रहे हैं l
वीर - यह क्या युवराज जी.... आप राजगड़ से जबसे लौटे हैं... इस कमरे में खुद को बंद कर रखे हैं.... (विक्रम की कोई प्रतिक्रिया ना पा कर) आपने भाभी जी से बात की.... (वीर ने विक्रम की दुखती रग पर वार किया)
विक्रम - (वीर की ओर देख कर) ह्म्म्म्म...
वीर - आप किससे रूठे हुए हैं.... हम दो दिन से आपसे बात करने की कोशिश कर रहे हैं... पर आप खुद को इस तरह बंद करके रखे हुए हैं... किसीसे मिल भी नहीं रहे हैं.... आख़िर क्यूँ....
विक्रम - (बड़ी मुश्किल से) हम अब शुभ्रा जी के लायक नहीं रहे....
वीर - युवराज जी... जो हुआ... वह अनजाने में नहीं हुआ... उसे एक दिन तो होना ही था... यह आप भी अच्छी तरह से जानते थे... हाँ यह बात और है.... उसके लिए आप तैयार नहीं थे....
विक्रम - ह्म्म्म्म
वीर - शायद भाभी जी का आपके जीवन में आने का समय सही नहीं था....
विक्रम - (वीर के ओर सवालिया नजर से देखता है)
वीर - हम सच कह रहे हैं.... उन्हें कुछ देर करके... हमारा मतलब है... कुछ दिनों बाद आपके जीवन में आना चाहिए था...
विक्रम - यह आप कैसे कह सकते हैं....
वीर - मान लीजिए... आज भाभीजी आपकी जिंदगी में ना होतीं तो...
विक्रम - तो... क्या मतलब है इस तो का....
वीर - तो क्या आपको दुख होता... जितना अब हो रहा है....
विक्रम - (वीर को घूर कर देखता है, कुछ देर बाद) हाँ...
वीर - नहीं... नहीं होता... आप सिर्फ़ मुझसे नहीं अपने आप से भी झूठ बोल रहे हैं... अगर इतना ही दुख हो रहा है... तो इससे खुदको रोकने की कोशिश क्यूँ नहीं की...
विक्रम - की थी... पर कामयाब नहीं हो पाए... छोटे राजा जी ने.. ऐन मौके पर... हमे धोखा दिया... वोडका पिलाने के बहाने... ड्रिंक में... कुछ मिला दिया था...
वीर - आपको इतना पछतावा क्यूँ हो रहा.... सब कुछ छोड़ कर चले गए होते कुछ दिनों के लिए....
विक्रम - हम छोड़ कर कहीं जा भी नहीं सकते हैं.... एक वादे ने बांध रखा है..... वरना....
वीर - वादे ने बांध रखा है... वरना... किस वादे की बात कर रहे हैं...
विक्रम चुप हो जाता है उसके आँखों के सामने अतीत का एक रात की मंजर तैरने लगता है l
नौ साल पहले
विक्रम बचपन में
अपनी कमरे के बिस्तर पर गहरी नींद में सोया हुआ है l उसके कमरे में एक औरत आती है और विक्रम के सिरहाने बैठ जाती है l विक्रम के गालों पर कुछ गरम पानी गिरने का एहसास होता है गिला गिला सा महसूस होता है l उसकी नींद टुट जाती है और वह आँखे खोल कर देखता है l उसकी माँ उस पर झुक कर बड़े प्यार से देख रही है l विक्रम हड़बड़ा कर उठ जाता है l
विक्रम - रानी माँ आप...
रानी माँ - आप सोते हुए कितने अच्छे, सच्चे और मासूम लग रहे हैं... जी भर कर देख लेना चाहते थे... इसलिए हम आपके कमरे में आ गए....
विक्रम - पर... आप रो क्यूँ रहे हैं... आपके आँखों में आँसू....
रानी माँ - अपने लाल को देखने आ गए.... जब छोटे थे हमारे पास ही थे... जितने बड़े होते गए... उतने दूर होते गए.... जब से आपने पढ़ना शुरू किया है... तब से आप हमारी नजरों से दूर हो गए हैं... सिर्फ़ छुट्टियों में ही तो आ रहे हैं.....
विक्रम - (अपने बिस्तर पर ठीक से बैठ कर) क्या करें रानी माँ... बड़े राजा जी का हुकुम है...हम यहाँ नहीं पढ़ सकते... इसलिए हमे बाहर भेज दिया गया है....
रानी माँ - हूँ.... आप ना पढ़ लिख कर... बहुत अच्छे इंसान बनना....
विक्रम - जी रानी माँ...
रानी माँ - अच्छा... हम आपसे कुछ मांगे....
विक्रम - जी रानी माँ... आप हमे आदेश करें...
रानी माँ - विक्रम.... आप अपने पिताजी का साथ देते रहिएगा... आप उनके बेटे हैं... इसलिए तब तक... जब तक वह खुद से ना कहें.... उनका साथ छोड़ने के लिए...
विक्रम - आप ऐसा क्यूँ कह रहे हैं.... रानी माँ...
रानी माँ - बंधन में.. विधाता ने बांधा... बड़े अरमानों से... उसे जन्मों का नाता समझा... पर इस जनम में यहाँ तक ही लिखा था... उन्होंने तोड़ दिया... और हमने इस विधि के विधान को स्वीकार भी कर लिया है...
विक्रम - क्या विधि.. और कैसा विधान...
रानी माँ - (विक्रम के चेहरे को प्यार से दुलारते हुए) विधि ने आपको उनका बेटा बनाया है... आप कल को भले ही उनका साथ दें या ना दें... पर उनका साथ छोड़िएगा नहीं.... तब तक... जब वह खुद आपको छोड़ने को ना कहें...
विक्रम - क्यूँ रानी माँ...
रानी माँ - विधाता के दिए इस बंधन को तोड़ने का इल्ज़ाम अपने ऊपर कभी आने मत दीजिएगा... यह इल्ज़ाम उन्हें अपने सर लेने दीजिएगा...
विक्रम - (कुछ समझ नहीं पाता, अपना सर हिला कर) ठीक है रानी माँ...
रानी माँ - हम जानते हैं बेटा... आप कुछ भी समझ नहीं पाए... पर हमारी यह बात हमेशा याद रखिएगा.... एक दिन आपको सब समझ में आ जायेगा....
विक्रम - ठीक है... रानी माँ
रानी माँ - विक्रम.... आज हमे रानी माँ नहीं... सिर्फ़ माँ कहो...
विक्रम - पर क्यूँ रानी माँ...
रानी माँ - आज हम रानी या आप युवराज नहीं होंगे... सिर्फ़ माँ और आप मेरे विक्रम....
विक्रम - ठीक है माँ...
रानी - आ ह... कितना सुकून है... इस शब्द में...
विक्रम - (मुस्करा कर) माँ...
रानी माँ विक्रम को गले से लगा लेती हैं l और उसके माथे को चूम कर
रानी माँ - अब आप हमारे गोद में सर रख कर सो जाइए...
विक्रम वैसा ही करता है l अपनी माँ के गोद में सो जाता है l फ़िर जाकर सुबह उसकी नींद टूटती है l जब नींद टूटती है, तो विक्रम को घर में शोर शराबा सुनाई देती है l विक्रम उठता है और बाहर निकलता है l रानी माँ के कमरे के बाहर छोटी रानी और सारे नौकर नौकरानीयाँ रो रहे हैं l छोटी रानी के गले से लग कर उसकी बहन रूप रो रही है l उसे समझ में कुछ नहीं आ रहा l वह अपनी माँ के कमरे में जा कर पहुंचता है तो उसकी आँखे बड़ी हो जाती है, वह शुन हो जाता है l उसकी माँ की लाश पंखे से टंगी हुई दिखती है l
एक गहरी सांस लेते हुए विक्रम अपने अतीत से बाहर आता है l
वीर - आपने किससे वादा किया था...
विक्रम - बस किया था... अपने अतीत से... खैर छोड़ो उस बात को... यह बताओ छोटे राजा जी कहाँ हैं....
वीर - वह... वह तो पार्टी ऑफिस गए हैं.... और जाते जाते मुझे हिदायत दे कर गए हैं... आपका खयाल रखने के लिए....
विक्रम - ह्म्म्म्म... चलिए... बहुत रह लिए अंधेरे में... अब जैसा राजा साहब ने ख्वाहिश की है... हम वैसे ही बनेंगे....
वीर - यह अचानक आपको क्या हो गया...
विक्रम - अगले साल आप ग्रैजुएशन में आयेंगे... और अगले साल से ही आप कॉलेज की प्रेसिडेंट होंगे... और हम पार्टी में युवा नेता के रूप में पार्टी से जुड़ कर काम करेंगे....
वीर - युवराज जी... आप... ठीक तो हैं ना...
विक्रम - हाँ राजकुमार जी... हाँ... अब हम ठीक हैं... अब से हम अपना नाम कहीं पर भी आगे नहीं लाएंगे... हर ओर.... राजा साहब का नाम गूंजेगा.... यहाँ वहाँ जहाँ तहाँ सिर्फ भैरव सिंह क्षेत्रपाल जी का नाम गूंजेगा... उनके नाम का सिक्का चलेगा....
वीर - युवराज जी... आप...
विक्रम - आप घबराये नहीं... हम पागल नहीं हुए हैं... हम अब क्षेत्रपाल हो गए हैं... क्षेत्रपाल...
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शाम को सेंट्रल जैल
लाइब्रेरी में विश्व कुछ लिखने की कोशिश कर रहा है पर पेन पकड़ नहीं पा रहा है l कुछ देर बाद लाइब्रेरी का दरवाज़ा खुलता है l तापस और जगन दोनों अंदर आते हैं l
तापस - कैसे हो विश्व...
विश्व - जी... कैसा दिख रहा हूँ...
तापस - इन कुछ दिनों में... बहुत थके थके से लग रहे हो.... चेहरे पर वह चमक नहीं रहा है...
विश्व - हाँ थका हुआ तो हूँ... और थकावट अब चेहरे पर झलक रही है... इसलिए चमक नहीं रहा...
तापस - अब वही करवा रहे हैं... या कुछ और...
विश्व - (फीकी हँसी हँसते हुए) पता नहीं... उनके मन में क्या चल रहा है.... इन सात दिनों में हालात अब ऐसी हो गई है... की बगैर डंडा लिए संढास नहीं जा पा रहा हूँ...
जगन हँस देता है, तापस उसे घूर के देखता है तो वह चुप हो जाता है l पर उसके हँसी को विश्व नजर अंदाज कर देता है l
विश्व - डंडे के सहारे बैठ कर संढास जाता हूँ.... और डंडे के सहारे उठ खड़ा हो पाता हूँ... इन सात दिनों में... पेशियों में जबरदस्त खिंचाव आ गया है.... पहले के सात दिन कुएं में से... पतली रस्सी से बंधे बाल्टी से पानी निकाल ने को कहा था.... पर आज ही... बहुत बड़ा हांडी को मेरी कलाई के बराबर मोटे रस्सी से बांध कर पानी निकालने को कहा.... हाँ एक फायदा यह हुआ कि... एक ही बार पानी निकालने पर छेद वाले दोनों टीन के डब्बे भर जाते हैं.... जिससे पौधों में पानी डालने का काम जल्दी हो गया... पर यह देख कर वह समीर जी ने मुझे सिर्फ़ तीन उंगली इस्तमाल कर रस्सी खिंच कर पानी निकालने को कहा.... इसलिए उँगलियों में बहुत दर्द हो गया है... पेन भी नहीं पकड़ पा रहा हूँ....
तापस - वाकई बहुत टॉर्चर कर रहे हैं... विश्व... तुम उनसे शिकायत नहीं की...
विश्व - नहीं....
तापस - क्यूँ...
जगन - यह बात तो... मुझे भी समझ में नहीं आ रहा है... सर मैंने देखा है... विश्व को कितना बेवजह परेशान कर रहे हैं... वह लोग विश्व के पैरों को बांध दिया और बगीचे से फुल चुनने को कह दिया.... यह बेचारा मेंढक की तरह कुद कुद कर फुल चुन रहा था....
तापस - क्या... ओह गॉड...
जगन - यह तो कुछ भी नहीं... आज एक मुर्गे के पीछे दौड़ा दिया... अब यह बेचारा थका हारा उस मुर्गे को कैसे पकड़ता...
तापस - व्हाट... एक मिनट... उनके पास मुर्गा आया कहाँ से...
जगन - अब वह लोग... स्पेशल सेल के मुजरिम हैं... सीधे मुर्गा मंगवा कर... यहीं पर बना कर खा रहे हैं... ओर आप तो जानते ही हैं... स्पेशल सेल वालों को उनकी मर्जी का खाना मिल ही जाती है....
तापस - ह्म्म्म्म.. विश्व... यह तुम सह कैसे लेते हो... रिएक्ट क्यूँ नहीं करते....
विश्व - सर वह कहते हैं ना... कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है...
जगन - पर इसमे खोना कहाँ है... ( तापस से) सर कल तो ग़ज़ब हो गया था... उन्होंने कुंए से सट कर जो सीमेंट की टंकी है... उसमें पानी भर कर एक मछली छोड़ दिया था.... विश्व को वही पकड़ने के लिए उस टंकी में उतार दिया... लगभग एक घंटे बाद ही मछली को पकड़ पाया विश्व...
तापस - ओह नो... विश्व... अब अगर तुमने उनसे बात नहीं की तो मुझे उनसे बात करनी पड़ेगी...
विश्व - नहीं सर... वह लोग... इतने बुरे लग नहीं रहे हैं... तापस - ओह... कॉम ऑन विश्व... जगन को मैंने एक ड्यूटी दी है... तुम पर और उन पर नजर रखने के लिए... वह रोज वाच टावर जाता है... तुम पर होने वाली ज्यादतीयाँ देखता है... तुम पर टॉर्चर कर... वह लोग सैडीस्टिक प्लेजर ले रहे हैं... मतलब पैसाचीक तृप्ति... विश्व - जानता हूँ... फ़िर भी वह लोग बुरे नहीं हैं... मैंने बुराई का जो रूप...स्वरुप देखा है... उसके आगे डैनी कहीं ठहरता ही नहीं... (तापस उसे हैरान हो कर देखता है) सर वह लोग अगर टॉर्चर कर रहे हैं... तो उतना खयाल भी रख रहे हैं... मुझे दिन भर में... दस बार... बड़े से पीतल ग्लास में एनर्जी ड्रिंक देते हैं... जिसमें दूध, दही, शहद, घी, पिस्ता बादाम होता है... जिससे मेरे जिस्म में ताकत बनी रहती है.... दिन में चार बार खाने को देते हैं... उसमें रात को भिगोया हुआ मूंग की दाल, केला, नारियल और छेना होता है.... और एक बार रोटी मिलती है... हाँ बनाता ज़रूर मैं ही हूँ... पर वह लोग मुझे भूखा नहीं रखते हैं....
तापस - पर टॉर्चर का नया नया तरीका.... तुम पर आजमा तो रहे हैं...
विश्व - हाँ कर तो रहे हैं... पर कुछ पुराने हैं जो पहले दिन से ही किए जा रहा हूँ...
तापस - क्या...
विश्व - यही... रोज फर्श साफ करता हूँ... पर हर रोज एक बार एक नए पैटर्न में... कभी बाहर से अंदर... कभी अंदर से बाहर.. कभी ऊपर से नीचे और कभी... नीचे से ऊपर.... हर रोज एक कमरे के दीवार से चुना उतारता हूँ... वही पैटर्न में और चुना चढ़ाता हूँ... बिलकुल वही पैटर्न में...
तापस - और शाम होते होते तुम बुरी तरह थक चुके होते हो... कितने घंटे पढ़ पाते हो...
विश्व - सिर्फ़ दो घंटे... काफ़ी हैं...
तापस - और यह कब तक करोगे....
विश्व - तब तक... जब तक डैनी भाई का मन पसीज ना जाए...
तापस - और यह होने से रहा....
विश्व - (मुस्करा कर) देखते हैं....
तापस - विश्व... मुझे एक बात समझाओ... डैनी से इतने टॉर्चर होने के बाद भी.... तुम डैनी की तरफदारी क्यूँ कर रहे हो... मेरे हिसाब से... डैनी को तुम्हारा एहसान मंद होना चाहिए... अखिर तुमने एक बार उसे बचाया था...
विश्व - सर... उनका मुझ पर कर्ज है... मतलब जब मैं जैल में नया था... मैंने उन्हें बचा कर वह कर्ज उतारा है... जबकि उनके एहसान के आगे वह कुछ भी नहीं था.... उसके बाद उन्होंने मेरी पढ़ाई का जिम्मा उठाया है... उसका कर्ज समझ लीजिए... मैं ऐसे उतार रहा हूँ...
तापस - विश्व... किस मिट्टी के बने हो... तुम पर जिस्मानी दर्द भी हावी नहीं हो पा रहा है... विश्व - (मुस्कराते हुए) सर बचपन से ही किसानी कर रहा हूँ.... ऐसे दर्द से निजात पाना जानता हूँ... सोने से पहले गरम सरसों के तेल लगा लेता हूँ... बहुत हदतक दर्द कम हो जाता है... और हाँ इसका भी बंदोबस्त... डैनी सर ने ही किया है...
तापस को विश्व की बातेँ और उसकी प्रतिक्रिया कुछ भी समझमें नहीं आता वह विश्व के थके हुए चेहरे पर दर्द की जगह कुछ और देखता है l पर वह समझ नहीं पाता वह क्या है l
विश्व - सर... मैं बहुत ही मेहनत कस हूँ... आपको याद होगा... मैं हमेशा आपसे कुछ ना कुछ काम मंगाता ही रहता था... अब जिस्म थक रहा है... तो शिकायत कैसी....
तापस - विश्व... (अपना सर ना में हिलाते हुए) वाकई तुम्हें समझना मेरे बस की बात नहीं है.... फिर भी तुम बहुत अच्छे हो... बहुत बड़ा दिल रखते हो... बस दुआ करता हूँ... तुम्हारे पढ़ाई पर कोई असर न हो.... (कह कर उठ कर जाने लगता है)
विश्व - सर... (तापस रुक जाता है और मुड़ कर विश्व को देखता है) एक निवेदन है... अगर...
तापस - ठीक है विश्व... तकल्लुफ छोड़ो... कहो...
विश्व - सर हो सकता है दीदी कुछ दिनों में... मेरी ख़ैर खबर लेने यहाँ आएगी... तो प्लीज... उसे कुछ भी मत बताइएगा... वह अकेली... राजगड़ में जीने की जद्दोजहद में होगी... उसे मेरी तकलीफ़ के बारे में पता चला तो.... वह हिम्मत हार जाएगी....
तापस - तुम चाहते हो... मैं तुम्हारे बारे में... तुम्हारी दीदी को... झूठ कहूँ....
विश्व - हाँ.... सर...
तापस - व्हाट... तुम जानते हो... तुम मुझसे क्या करवाना चाहते हो...
विश्व - जी सर... सर अगर एक झूठ से... किसीको रूहानी सुकून मिलती हो... तो वह झूठ कई सच से बेहतर है....
तापस - ओ... तुम्हें अब बड़ा ज्ञान मिल गया है...
विश्व - ऐसी बात नहीं है सर... सर वह मेरी माँ है... बाप है... दीदी है... गुरु है... सखी है... दोस्त है... मेरे जनम लेते ही माँ चल बसी... दीदी ने ही मुझे पाला पोसा बड़ा किया... सर वह कहते हैं ना... माँ बच्चे को दुनिया की बुरी नजर से बचाती है और बाप अपने कंधे पर बिठा कर दुनिया दिखाता है... मेरे पिता थे... पर वह मेरी दीदी ही थी... जो दुनिया की बुरी नजर से बचाती थी और अपने कंधे पर बिठा कर दुनिया की पहचान करवाती थी... वह.... (विश्व की आवाज़ भर्राने लगती है) उसने बहुत दुख झेले हैं... अब और नहीं (विश्व अपना हाथ जोड़ देता है) बस इतना मेरे लिए कर दीजिए.... उससे कहिएगा... विश्व अपना ग्रैजुएशन पुरा करने के बाद ही अपना चेहरा दिखाएगा....
विश्व और कुछ कह नहीं पाता, उसके हलक से शायद बाकी के बातेँ बाहर नहीं निकल पाता l तापस उसके पास आ कर उसके हाथ पकड़ कर इशारे से दिलासादेता है
एक हफ्ता गुज़र गया है
राजगड़ में
सुबह सुबह वैदेही अपनी चाय नाश्ते की दुकान को आती है साथ में एक औरत होती है जिसका हाथ पकड़ कर अंदर लाकर गल्ले में बिठा देती है l
औरत - अरे बेटी मुझे यहाँ क्यूँ बिठाया...
वैदेही - क्या हुआ गौरी काकी... मेरा अब गांव में कोई है नहीं काकी... अब तुम यहाँ बैठोगी... और मैं यह होटल चलाऊंगी....
गौरी - हम्म... होटल बहुत अच्छा है....
वैदेही - हा हा हा हा... काकी तुम भी ना...
गौरी - अच्छा.... तुम्हारे कुछ खेत वगैरह भी था ना...
वैदेही - उस पर कुछ हराम खोरों ने कब्जा जमा लिया है... वैसे भी खेती मैंने कभी कि नहीं... और मेरे खेत में कोई मजदूरी करेगा नहीं... क्यूंकि यहाँ मजदूरी सिर्फ़ क्षेत्रपाल के यहाँ हो सकती है... और कहीं नहीं... इसलिए गुजारे के लिए... यह दुकान..
गौरी देखती है वैदेही अपने साथ लाई नारियल को फोड़ कर दीप जलाती है और आरती के बाद उसी कर्पूर से चूल्हा जलाती है l
गौरी - वैदेही... बहुत बहुत शुक्रिया बेटा...
वैदेही - क्या काकी... तुम फ़िर शुरू हो गई....
गौरी - कह लेने दे बेटी... कह लेने दे... जब से होश सम्भाला, खुद को रंग महल में पाया... जब तक जवानी रही... तब तक एक ही काम था मेरा... क्षेत्रपाल मर्दों के नीचे लेटना या उनके कहे मर्दों के नीचे लेटना... फ़िर जवानी ढली तो... जो उनके नीचे लेटतीं थी... उनका देखभाल करना... अब जान तो है पर शरीर साथ नहीं दे रहा है... तो रंगमहल को मेरी जरूरत नहीं पड़ी.... भीख मांग कर गुजरने के लिए छोड़ दिया मुझे... उनकी कृपा यह रही... की उन्होंने मुझे मगरमच्छ के हवाले नहीं की.... क्यूंकि इतनी सेवा जो दी थी...
वैदेही - गौरी काकी... क्यूँ वह सब याद कर रहे हो....
गौरी - कह लेने दे... वरना ग़ुबार रह जाएगा... मुझे महल से बाहर निकाला गया... मैं कहाँ जाती... क्या करती.... इसलिए नदी की ओर गई... डूब कर मर जाना चाहती थी... इसलिए नदी में कुद भी गई.... पर फ़िर जब आँखे खुली सामने तु थी....
वैदेही - गौरी काकी... रंगमहल में जब भी मुझे माँ की ज़रूरत पड़ी... माँ की जगह हमेशा आपको पाया था... मेरा बचपन... और मेरी बर्बादी सब... जब भी माँ को ढूंढ़ा... आप मुझे मिली....
गौरी - सिर्फ तेरी बर्बादी नहीं बेटी... तीन पीढ़ियों के हाथों... नजाने कितनी बर्बादीयाँ देखी है... बड़े राजा से लेकर युवराज क्षेत्रपाल तक... ना जाने कितनी जिंदगीयाँ.... कुचली जा चुकी हैं.... उनकी बेबसी... और बर्बादी की गवाह हूँ... इसलिए... इसी लिए... सब छोड़ कर दुनिया से चले जाना चाहती थी....
वैदेही - इसलिए... अरे ऐसे कैसे... मैं कैसे आपको छोड़ जाने देती.... जब आप... डूबने से बचाई गई.... मैंने आपको पहचान लीआ.... और अपने साथ ले आई... बस इस पर और कभी कोई चर्चा नहीं होगी... ग्राहक आने वाले हैं....
इतने में कुछ ग्राहक आते हैं l चाय नाश्ता तैयार हो चुका है l गौरी ग्राहकों से पैसे लेकर टोकन देती है बदले में वैदेही उनकी नाश्ता देने लगती है l वैदेही की दुकान चलने लगती है l कुछ देर बाद क्षेत्रपाल के दो गुंडे आते हैं l शनीया और गुरु सामने पड़ी बेंच पर बैठ जाते हैं l
गुरु - चल छम्मकछल्लो... नाश्ता बढ़ा....
वैदेही - चल पहले दो टोकन ले... फिर नाश्ता मिलेगी...
शनीया - ऐ.... यह टोकन टोकन क्या लगा रखा है... ऐसा यहाँ नहीं चलेगा...
वैदेही - बीस रुपये दो... दो टोकन लो... फ़िर नाश्ता मिलेगा...
गुरु - तुझे यह दुकान चलानी है या नहीं....
वैदेही - दुकान तो चलेगी.... चलेगी क्या दौड़ेगी.... तुमको खाना है... तो टोकन लो... वरना चलता बनों...
गुरु - हराम जादी साली रंडी.... हमसे पैसे मांगती है...
शनीया - हाँ... साली जानती है.... हमारी औकात....
वैदेही - दस रुपये की भी नहीं है... तुम लोगों की औकात.... क्षेत्रपाल महल के टुकड़ों में पलने वालों... यहाँ हराम का नहीं मिलता... या तो टोकन लो.... या फिर चलते बनों
गुरु - साली... बहुत बोलती है रंगमहल की रंडी (एक कटार निकालता है)
वैदेही - अपने दम पर बोलती हूँ भड़वे.... (एक दरांती और एक कुल्हाड़ी निकालती है)
दोनों गुरु और शनीया वैदेही के इस तरह से जवाब देने और जवाबी कार्रवाई के तैयार होते देख हैरान हो जाते हैं l दोनों एक दूसरे के मुहँ देखते हैं l
शनीया - ऐ... ऐ.. तु यह ठीक नहीं कर रही है... मर्दों से उलझेगी तु...
वैदेही - अबे चल.... बड़ा आया मर्द... यहाँ कोई मर्द है ही नहीं... और तुम जैसे हरामियों से निपटने के लिए तैयार हूँ अब...
गुरु गुस्से से खड़ा हो जाता है तो शनीया उसे बाहर दूर खिंच कर वहाँ से ले जाता है l
शनीया - जाने देते हैं भाई...
गुरु - (जाते जाते) तुझे एक दिन देख लूँगा रंडी... देख लूँगा तुझे... यहीं पर दौड़ा दौड़ा कर मरूंगा....
वैदेही - (दुकान से बाहर निकल कर) ऑए... जाते जाते सुनता जा... तु मुझे मार पाएगा... यह सब जानते हैं... पर संभल कर रहना... तु भले ही दस मारेगा पर पलट कर वैदेही जब मारेगी... तब चर्चे बहुत होंगे तेरे...
दोनों चले जाते हैं l वैदेही का यह रूप देख कर वहाँ बैठे सारे लोगों के साथ गौरी भी हैरान हो जाती है l कुछ लोग डरके मारे वहाँ से खिसक लेते हैं l
गौरी - वैदेही... इन लोगों से... इस तरह से क्यूँ उलझ रही है... कहीं कुछ हो गया तो...
वैदेही - क्या हो जाएगा काकी... अब खोने के लिए मेरे पास है ही क्या.... बस जान बाकी है... जिस पर मुझे कोई मोह नहीं है.... जिसके लिए जी रही हूँ... बस वही सही सलामत रहे...
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एक हफ्ते से कोशिश कर रही है, शुभ्रा बार बार फोन करने पर भी विक्रम से कोई जवाब नहीं मिल रहा है l इधर शुभ्रा के कॉलेज से टीसी लेकर निरोग मेडिकल कॉलेज में जॉइन करने पर उसके पिता बीरजा कींकर सामंतराय उससे लाखों सवाल पूछ चुके हैं l शुभ्रा उनके बातों को दरकिनार कर विक्रम से फोन पर बातेँ करने के लिए तड़प रही है पर विक्रम अभी तक उससे कोई कॉन्टेक्ट नहीं किया है l इन सात दिनों में शुभ्रा का चेहरा पूरी तरह से मुर्झा गई है l डायनिंग टेबल पर बैठ कर नाश्ते के टेबल पर शुभ्रा अपने में खोई हुई है l
बीरजा - (खराश लेकर) कहाँ खो गई है मेरी बेटी... (शुभ्रा कुछ रिएक्ट नहीं करती) शुभ्रा... (कोई जवाब नहीं) शुभ्रा... (थोड़े जोर से)
शुभ्रा - हाँ.. जी.. जी...
बीरजा - हमने पूछा कहाँ खो गई है मेरी बेटी... अब अगर तुमको मेडिकल नहीं पढ़ना था... तो अपनी कॉलेज से टीसी लेकर जॉइन किया ही क्यूँ....
शुभ्रा - यह आपने कैसे समझ लिया....
बीरजा - क्या....
शुभ्रा - यही की मुझे मेडिकल नहीं पढ़ना था....
बीरजा - अगर यह बात नहीं है... तो किस बात की टेंशन है तुम्हें... जिस दिन से एडमिशन लिया है तुमने.... उसी दिन से खोई खोई सी हो....
शुभ्रा - हाँ तो... आधे साल के सिलेबस को कैसे कवर करना है... यही सोच रही हूँ...
बीरजा - वैसे अभी तक यह सस्पेंस है... तुम्हारा एडमिशन कैसे हुआ...
शुभ्रा - आपसे तो कुछ छुप नहीं सकता है ना... पता लगा लीजिए.... आपको अपने बेटी पर भरोसा नहीं है.... हूं ह
शुभ्रा की माँ - ओह ओ... पिछले सात आठ दिनों से घर में यही चल रहा है.... ना खाने में चैन... ना सोने में सुकून... जब देखो बाप बेटी में कीच कीच...
बीरजा - बस आपकी ही कमी थी... आपको इन दिनों बेटी कुछ बदली बदली लग रही... आप उसकी माँ हैं... कोई खबर है भी या नहीं...
माँ - आप कुछ दिन हुए घर पर हैं... इसलिए ऐसे पूछ रहे हैं.... वरना आप घर पर रहते ही कब हैं...
बीरजा - हो गया आपका पुराण... (शुभ्रा से) बेटी तुम यह ताबीज़ कब से पहनने लगी...
शुभ्रा - यह एक मन्नत है... मेरी मेडिकल पढ़ाई के लिए... माता रानी उग्रतारा जी की कृपा है इसमें... (बीरजा कुछ पूछने को होता है) अब और कुछ मत पूछिए पापा.... मुझे फिल्हाल पढ़ाई का टेंशन है.... सॉरी....
इतना कह कर शुभ्रा वहाँ से चली जाती है बिना पीछे मुड़े जल्दी जल्दी l बीरजा अपनी बेटी को जाते हुए देख रहा है l उसे अपनी बेटी को ऐसे देखते शुभ्रा की माँ से रहा नहीं जाता l
माँ - आप ने कुछ पता लगाया....
बीरजा - किस बात का...
माँ - यही की इसे मेडिकल कॉलेज में ऐडमिशन कैसे मिला...
बीरजा - मुझे अपनी बेटी पर हद से ज्यादा विश्वास है.... मेडिकल पढ़ना उसका सपना था... उसके लिए जरूर कोई तिकड़म लगाया होगा... मैं उसकी कोई फिक्र नहीं है... मुझे फ़िक्र इस बात की है.... मेडिकल जॉइन करने के बाद वह पहली वाली शुभ्रा नहीं रही.... वह हँसती खेलती चुलबुली मेरी बेटी... मुझसे बात बात पर झगड़ने वाली मेरी बच्ची.... कहीं खो गई है...
माँ - बात तो आप सही कह रहे हैं.... लगता है पढ़ाई का ज्यादा प्रेशर है...
बीरजा - हाँ हो सकता है... भगवान करे... जो तुमने कहा वह सच हो...
अपने कमरे में आकर शुभ्रा अपने बिस्तर पर लेटी हुई है और अपने आप से बात कर रही है l
- कैसा बदला ले रहे हैं विकी.... कम से कम एक बार तो बात कर लेते मुझसे... किसी में भी मन नहीं लग रहा है... यह आपने हमें कहाँ लाकर छोड़ दिया है... खैर मैं आपको भी दोष नहीं दे सकती... यह नियती मैंने खुद चुनी है... अब लगता है यूँ जलना... जलते रहना तकदीर बन गया है... ओह विकी... प्लीज एक बार मुझसे बात कर लीजिए...
ऐसी ही अपनी सोच में गुम खुद से बातें करते हुए अपनी फोन को बार बार चेक कर रही है l उसके आँखों में आँसू छलक जाती है l फिर अचानक उसकी फोन बजने लगती है l शुभ्रा फोन पर विक्रम का नाम देखते ही खुशी के मारे फोन उठाती है
शुभ्रा - हैलो... विकी..
विक्रम - हाँ...
शुभ्रा - विकी... विकी... (शुभ्रा की रुलाई फुट पड़ती है, वह कुछ कहती नहीं सिर्फ़ रोती रहती है l कुछ देर रोने के बाद) विकी... आप हमसे बदला ले रहे हैं ना...
विकी - हमे माफ कर दीजिए शुभ्रा जी... हमे माफ कर दीजिए...
शुभ्रा - आपने हमे... इतना क्यूँ तड़पाया...
विक्रम - यह जो परंपरा का स्वांग है... बहुत ही बीभत्स था वह... हम... हम उससे... उबरने की कोशिश में थे...
शुभ्रा - (थोड़े संभलते हुए)परंपरा... वह... आपका... खानदानी रीचुअल ना...
विक्रम - हाँ... (आवाज़ भर्रा गई) हाँ... बहुत भारी बोझ है अभी भी दिल में....
शुभ्रा - ओह... आप.... आप बहुत तकलीफ़ में हैं... विकी जी... हमे माफ कर दीजिए... हम सिर्फ़ अपने बारे में सोच रहे थे.... पर वहाँ क्या हुआ... कहिए ना... प्लीज...
विक्रम - कुछ नहीं...
शुभ्रा - आप हमें बतायेंगे या.... हम अभी आपके पास आ जाएं...
विक्रम - आप हमारे बीच हुए वादों को भुला रही हैं...
शुभ्रा - आप अगर अपनी तकलीफ़ हमसे शेयर नहीं करेंगे... तो हम वह सारी कंडीशन भूल जाएंगे....
विक्रम - हम आपसे अपनी बात शेयर करने के लिए ही फोन किए हैं....
शुभ्रा - तो बताइए क्या हुआ....
विक्रम - शुभ्रा... मेरी जान... जरा सोचिए.... एक मासूम सी जिंदगी... जिसको परंपरा के नाम पर... परंपरा की बेदी पर बलि चढ़ने के लिए सजाया जाता है.... उसे ना बचा पाने के लिए एक माँ की बेबसी... और कुछ वहशी इंसान.... नहीं नहीं... वह इंसान नहीं... वह जानवर ही थे.... फ़िर उस मासूम की जिंदगी रौंद दी जाती है... वहशीयों के हाथों... उन वहशीयों में एक हम भी थे...
शुभ्रा - (आवाज़ बहुत गंभीर हो जाती है) यह... यह आप क्या कह रहे हैं... कौन मासूम.... और क्या था वह परंपरा...
विक्रम - हमारा यक़ीन कीजिए... शुभ्रा जी... हम वह बिल्कुल भी नहीं करना चाहते थे... पर हमारी हिम्मत बढ़ाने के लिए... हमे पीने को करैज ड्रिंक दिआ गया था.... वह ड्रिंक पीने के बाद.... फिर हम ऐसी बेहोशी की आगोश में समा गए के.... सब कुछ खत्म होने के बाद ही... हम होश में आए....
शुभ्रा - यह आप मुझसे सीधे सीधे क्यूँ कुछ नहीं कहते... घुमा फिरा कर जैसे कह रहे हैं... मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है... (विक्रम कुछ देर चुप रह जाता है) विकी... आप कुछ कहिए ना... हमें डर लग रहा है....
विक्रम - शुभ्रा जी... एक बात अपने मन में पक्का कर लीजिए... हम आपके थे... हैं... और रहेंगे...
शुभ्रा - विकी... (थोड़ा सीरियस हो कर) क्या हुआ है....
विक्रम - शुभ्रा जी... परंपरा के नाम पर.... हमने एक भैंस की बच्चे की बलि चढ़ा दी... अपने हाथों से.... उसकी माँ की आँखों के सामने.... बस यही मनको कचोट रही थी....
शुभ्रा - ओ... ओह (रीलेक्स महसूस करते हुए) विकी जी.... आपने... जिस तरह की सस्पेंस बना कर बात की... सच कह रही हूँ... बहुत डर गई थी....
विक्रम - ह्म्म्म्म... हमने मेहसूस की.... आपकी डर को...
शुभ्रा - और नहीं तो... मैंने फ़िल्मों में देखा है.... या फिर कहानियों में पढ़ा है ऐसे रिचुअल्स के बारे में....(रिलैक्स होते हुए) सो डोंट फिल... टेक इट इजी... आप ना... रोज अपनी शुभ्रा से बात कीजिए... और डिप्रेशन से बाहर आइए....
विक्रम - थैंक्यू शुभ्रा जी...
शुभ्रा - आपको थैंक्यू... आपने आज मेरा दिन बना दिया... लव यु....
विक्रम - लव यु... ठु ....
शुभ्रा - अच्छा... अब तो रोज बातेँ होंगी ना....
विक्रम - कोई शक़...
शुभ्रा - तो ठीक है... आप अपना काम लीजिए और मैं चली डॉक्टर बनने... रात को सोने से पहले... फिर बात होगी ठीक है...
विक्रम - जो हुकुम मेरे आका...
शुभ्रा - (खिल खिला कर हँस देती है) अच्छा बाय... उम्म आ... (शर्मा कर फोन काट देती है)
शुभ्रा जल्दी जल्दी तैयार होकर नीचे झूमती हुई आती है और अपनी माँ के गले लग जाती है और बीरजा सामंतराय को अपनी जीभ दिखा कर बाहर भाग जाती है l
माँ - अभी जब ऊपर गई थी... तब कि शुभ्रा और अब जब नीचे आई अब कि शुभ्रा... इतने समय में क्या हो गया....
बीरजा - चलो आ गई मेरी बेटी... मुझे तो लगता है... जान बुझ कर यह सात दिन टेंशन में रहने का नाटक की... और हमे भी टेंशन में रखा...
माँ - हे भगवान... यह लड़की मुझे तो कभी समझ में नहीं आएगी... देखिए मैं कहे देती हूँ... दुबारा उसके सामने शादी की बात मत कीजिएगा....
शुभ्रा - (अचानक अंदर आती है) नहीं तो ऐसे भागूंगी... के हाथ नहीं आऊंगी.... लव यु माँ... बाय पापा...
बीरजा - हा हा हा हा... बाय बेटा... हा हा हा..
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वीर विक्रम के कमरे में आता है l कमरे में अंधेरा है l वीर को अंधेरे में विक्रम का अंदाजा नहीं हो पाता इसलिए वह लाइट जलाने के लिए स्विच ऑन करता है l वीर देखता है विक्रम के चेहरे पर दाढ़ी कुछ बढ़ गई है l उसकी आँखे लाल और भाव शुन्य दिख रहे हैं l
वीर - यह क्या युवराज जी.... आप राजगड़ से जबसे लौटे हैं... इस कमरे में खुद को बंद कर रखे हैं.... (विक्रम की कोई प्रतिक्रिया ना पा कर) आपने भाभी जी से बात की.... (वीर ने विक्रम की दुखती रग पर वार किया)
विक्रम - (वीर की ओर देख कर) ह्म्म्म्म...
वीर - आप किससे रूठे हुए हैं.... हम दो दिन से आपसे बात करने की कोशिश कर रहे हैं... पर आप खुद को इस तरह बंद करके रखे हुए हैं... किसीसे मिल भी नहीं रहे हैं.... आख़िर क्यूँ....
विक्रम - (बड़ी मुश्किल से) हम अब शुभ्रा जी के लायक नहीं रहे....
वीर - युवराज जी... जो हुआ... वह अनजाने में नहीं हुआ... उसे एक दिन तो होना ही था... यह आप भी अच्छी तरह से जानते थे... हाँ यह बात और है.... उसके लिए आप तैयार नहीं थे....
विक्रम - ह्म्म्म्म
वीर - शायद भाभी जी का आपके जीवन में आने का समय सही नहीं था....
विक्रम - (वीर के ओर सवालिया नजर से देखता है)
वीर - हम सच कह रहे हैं.... उन्हें कुछ देर करके... हमारा मतलब है... कुछ दिनों बाद आपके जीवन में आना चाहिए था...
विक्रम - यह आप कैसे कह सकते हैं....
वीर - मान लीजिए... आज भाभीजी आपकी जिंदगी में ना होतीं तो...
विक्रम - तो... क्या मतलब है इस तो का....
वीर - तो क्या आपको दुख होता... जितना अब हो रहा है....
विक्रम - (वीर को घूर कर देखता है, कुछ देर बाद) हाँ...
वीर - नहीं... नहीं होता... आप सिर्फ़ मुझसे नहीं अपने आप से भी झूठ बोल रहे हैं... अगर इतना ही दुख हो रहा है... तो इससे खुदको रोकने की कोशिश क्यूँ नहीं की...
विक्रम - की थी... पर कामयाब नहीं हो पाए... छोटे राजा जी ने.. ऐन मौके पर... हमे धोखा दिया... वोडका पिलाने के बहाने... ड्रिंक में... कुछ मिला दिया था...
वीर - आपको इतना पछतावा क्यूँ हो रहा.... सब कुछ छोड़ कर चले गए होते कुछ दिनों के लिए....
विक्रम - हम छोड़ कर कहीं जा भी नहीं सकते हैं.... एक वादे ने बांध रखा है..... वरना....
वीर - वादे ने बांध रखा है... वरना... किस वादे की बात कर रहे हैं...
विक्रम चुप हो जाता है उसके आँखों के सामने अतीत का एक रात की मंजर तैरने लगता है l
नौ साल पहले
विक्रम बचपन में
अपनी कमरे के बिस्तर पर गहरी नींद में सोया हुआ है l उसके कमरे में एक औरत आती है और विक्रम के सिरहाने बैठ जाती है l विक्रम के गालों पर कुछ गरम पानी गिरने का एहसास होता है गिला गिला सा महसूस होता है l उसकी नींद टुट जाती है और वह आँखे खोल कर देखता है l उसकी माँ उस पर झुक कर बड़े प्यार से देख रही है l विक्रम हड़बड़ा कर उठ जाता है l
विक्रम - रानी माँ आप...
रानी माँ - आप सोते हुए कितने अच्छे, सच्चे और मासूम लग रहे हैं... जी भर कर देख लेना चाहते थे... इसलिए हम आपके कमरे में आ गए....
विक्रम - पर... आप रो क्यूँ रहे हैं... आपके आँखों में आँसू....
रानी माँ - अपने लाल को देखने आ गए.... जब छोटे थे हमारे पास ही थे... जितने बड़े होते गए... उतने दूर होते गए.... जब से आपने पढ़ना शुरू किया है... तब से आप हमारी नजरों से दूर हो गए हैं... सिर्फ़ छुट्टियों में ही तो आ रहे हैं.....
विक्रम - (अपने बिस्तर पर ठीक से बैठ कर) क्या करें रानी माँ... बड़े राजा जी का हुकुम है...हम यहाँ नहीं पढ़ सकते... इसलिए हमे बाहर भेज दिया गया है....
रानी माँ - हूँ.... आप ना पढ़ लिख कर... बहुत अच्छे इंसान बनना....
विक्रम - जी रानी माँ...
रानी माँ - अच्छा... हम आपसे कुछ मांगे....
विक्रम - जी रानी माँ... आप हमे आदेश करें...
रानी माँ - विक्रम.... आप अपने पिताजी का साथ देते रहिएगा... आप उनके बेटे हैं... इसलिए तब तक... जब तक वह खुद से ना कहें.... उनका साथ छोड़ने के लिए...
विक्रम - आप ऐसा क्यूँ कह रहे हैं.... रानी माँ...
रानी माँ - बंधन में.. विधाता ने बांधा... बड़े अरमानों से... उसे जन्मों का नाता समझा... पर इस जनम में यहाँ तक ही लिखा था... उन्होंने तोड़ दिया... और हमने इस विधि के विधान को स्वीकार भी कर लिया है...
विक्रम - क्या विधि.. और कैसा विधान...
रानी माँ - (विक्रम के चेहरे को प्यार से दुलारते हुए) विधि ने आपको उनका बेटा बनाया है... आप कल को भले ही उनका साथ दें या ना दें... पर उनका साथ छोड़िएगा नहीं.... तब तक... जब वह खुद आपको छोड़ने को ना कहें...
विक्रम - क्यूँ रानी माँ...
रानी माँ - विधाता के दिए इस बंधन को तोड़ने का इल्ज़ाम अपने ऊपर कभी आने मत दीजिएगा... यह इल्ज़ाम उन्हें अपने सर लेने दीजिएगा...
विक्रम - (कुछ समझ नहीं पाता, अपना सर हिला कर) ठीक है रानी माँ...
रानी माँ - हम जानते हैं बेटा... आप कुछ भी समझ नहीं पाए... पर हमारी यह बात हमेशा याद रखिएगा.... एक दिन आपको सब समझ में आ जायेगा....
विक्रम - ठीक है... रानी माँ
रानी माँ - विक्रम.... आज हमे रानी माँ नहीं... सिर्फ़ माँ कहो...
विक्रम - पर क्यूँ रानी माँ...
रानी माँ - आज हम रानी या आप युवराज नहीं होंगे... सिर्फ़ माँ और आप मेरे विक्रम....
विक्रम - ठीक है माँ...
रानी - आ ह... कितना सुकून है... इस शब्द में...
विक्रम - (मुस्करा कर) माँ...
रानी माँ विक्रम को गले से लगा लेती हैं l और उसके माथे को चूम कर
रानी माँ - अब आप हमारे गोद में सर रख कर सो जाइए...
विक्रम वैसा ही करता है l अपनी माँ के गोद में सो जाता है l फ़िर जाकर सुबह उसकी नींद टूटती है l जब नींद टूटती है, तो विक्रम को घर में शोर शराबा सुनाई देती है l विक्रम उठता है और बाहर निकलता है l रानी माँ के कमरे के बाहर छोटी रानी और सारे नौकर नौकरानीयाँ रो रहे हैं l छोटी रानी के गले से लग कर उसकी बहन रूप रो रही है l उसे समझ में कुछ नहीं आ रहा l वह अपनी माँ के कमरे में जा कर पहुंचता है तो उसकी आँखे बड़ी हो जाती है, वह शुन हो जाता है l उसकी माँ की लाश पंखे से टंगी हुई दिखती है l
एक गहरी सांस लेते हुए विक्रम अपने अतीत से बाहर आता है l
वीर - आपने किससे वादा किया था...
विक्रम - बस किया था... अपने अतीत से... खैर छोड़ो उस बात को... यह बताओ छोटे राजा जी कहाँ हैं....
वीर - वह... वह तो पार्टी ऑफिस गए हैं.... और जाते जाते मुझे हिदायत दे कर गए हैं... आपका खयाल रखने के लिए....
विक्रम - ह्म्म्म्म... चलिए... बहुत रह लिए अंधेरे में... अब जैसा राजा साहब ने ख्वाहिश की है... हम वैसे ही बनेंगे....
वीर - यह अचानक आपको क्या हो गया...
विक्रम - अगले साल आप ग्रैजुएशन में आयेंगे... और अगले साल से ही आप कॉलेज की प्रेसिडेंट होंगे... और हम पार्टी में युवा नेता के रूप में पार्टी से जुड़ कर काम करेंगे....
वीर - युवराज जी... आप... ठीक तो हैं ना...
विक्रम - हाँ राजकुमार जी... हाँ... अब हम ठीक हैं... अब से हम अपना नाम कहीं पर भी आगे नहीं लाएंगे... हर ओर.... राजा साहब का नाम गूंजेगा.... यहाँ वहाँ जहाँ तहाँ सिर्फ भैरव सिंह क्षेत्रपाल जी का नाम गूंजेगा... उनके नाम का सिक्का चलेगा....
वीर - युवराज जी... आप...
विक्रम - आप घबराये नहीं... हम पागल नहीं हुए हैं... हम अब क्षेत्रपाल हो गए हैं... क्षेत्रपाल...
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शाम को सेंट्रल जैल
लाइब्रेरी में विश्व कुछ लिखने की कोशिश कर रहा है पर पेन पकड़ नहीं पा रहा है l कुछ देर बाद लाइब्रेरी का दरवाज़ा खुलता है l तापस और जगन दोनों अंदर आते हैं l
तापस - कैसे हो विश्व...
विश्व - जी... कैसा दिख रहा हूँ...
तापस - इन कुछ दिनों में... बहुत थके थके से लग रहे हो.... चेहरे पर वह चमक नहीं रहा है...
विश्व - हाँ थका हुआ तो हूँ... और थकावट अब चेहरे पर झलक रही है... इसलिए चमक नहीं रहा...
तापस - अब वही करवा रहे हैं... या कुछ और...
विश्व - (फीकी हँसी हँसते हुए) पता नहीं... उनके मन में क्या चल रहा है.... इन सात दिनों में हालात अब ऐसी हो गई है... की बगैर डंडा लिए संढास नहीं जा पा रहा हूँ...
जगन हँस देता है, तापस उसे घूर के देखता है तो वह चुप हो जाता है l पर उसके हँसी को विश्व नजर अंदाज कर देता है l
विश्व - डंडे के सहारे बैठ कर संढास जाता हूँ.... और डंडे के सहारे उठ खड़ा हो पाता हूँ... इन सात दिनों में... पेशियों में जबरदस्त खिंचाव आ गया है.... पहले के सात दिन कुएं में से... पतली रस्सी से बंधे बाल्टी से पानी निकाल ने को कहा था.... पर आज ही... बहुत बड़ा हांडी को मेरी कलाई के बराबर मोटे रस्सी से बांध कर पानी निकालने को कहा.... हाँ एक फायदा यह हुआ कि... एक ही बार पानी निकालने पर छेद वाले दोनों टीन के डब्बे भर जाते हैं.... जिससे पौधों में पानी डालने का काम जल्दी हो गया... पर यह देख कर वह समीर जी ने मुझे सिर्फ़ तीन उंगली इस्तमाल कर रस्सी खिंच कर पानी निकालने को कहा.... इसलिए उँगलियों में बहुत दर्द हो गया है... पेन भी नहीं पकड़ पा रहा हूँ....
तापस - वाकई बहुत टॉर्चर कर रहे हैं... विश्व... तुम उनसे शिकायत नहीं की...
विश्व - नहीं....
तापस - क्यूँ...
जगन - यह बात तो... मुझे भी समझ में नहीं आ रहा है... सर मैंने देखा है... विश्व को कितना बेवजह परेशान कर रहे हैं... वह लोग विश्व के पैरों को बांध दिया और बगीचे से फुल चुनने को कह दिया.... यह बेचारा मेंढक की तरह कुद कुद कर फुल चुन रहा था....
तापस - क्या... ओह गॉड...
जगन - यह तो कुछ भी नहीं... आज एक मुर्गे के पीछे दौड़ा दिया... अब यह बेचारा थका हारा उस मुर्गे को कैसे पकड़ता...
तापस - व्हाट... एक मिनट... उनके पास मुर्गा आया कहाँ से...
जगन - अब वह लोग... स्पेशल सेल के मुजरिम हैं... सीधे मुर्गा मंगवा कर... यहीं पर बना कर खा रहे हैं... ओर आप तो जानते ही हैं... स्पेशल सेल वालों को उनकी मर्जी का खाना मिल ही जाती है....
तापस - ह्म्म्म्म.. विश्व... यह तुम सह कैसे लेते हो... रिएक्ट क्यूँ नहीं करते....
विश्व - सर वह कहते हैं ना... कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है...
जगन - पर इसमे खोना कहाँ है... ( तापस से) सर कल तो ग़ज़ब हो गया था... उन्होंने कुंए से सट कर जो सीमेंट की टंकी है... उसमें पानी भर कर एक मछली छोड़ दिया था.... विश्व को वही पकड़ने के लिए उस टंकी में उतार दिया... लगभग एक घंटे बाद ही मछली को पकड़ पाया विश्व...
तापस - ओह नो... विश्व... अब अगर तुमने उनसे बात नहीं की तो मुझे उनसे बात करनी पड़ेगी...
विश्व - नहीं सर... वह लोग... इतने बुरे लग नहीं रहे हैं... तापस - ओह... कॉम ऑन विश्व... जगन को मैंने एक ड्यूटी दी है... तुम पर और उन पर नजर रखने के लिए... वह रोज वाच टावर जाता है... तुम पर होने वाली ज्यादतीयाँ देखता है... तुम पर टॉर्चर कर... वह लोग सैडीस्टिक प्लेजर ले रहे हैं... मतलब पैसाचीक तृप्ति... विश्व - जानता हूँ... फ़िर भी वह लोग बुरे नहीं हैं... मैंने बुराई का जो रूप...स्वरुप देखा है... उसके आगे डैनी कहीं ठहरता ही नहीं... (तापस उसे हैरान हो कर देखता है) सर वह लोग अगर टॉर्चर कर रहे हैं... तो उतना खयाल भी रख रहे हैं... मुझे दिन भर में... दस बार... बड़े से पीतल ग्लास में एनर्जी ड्रिंक देते हैं... जिसमें दूध, दही, शहद, घी, पिस्ता बादाम होता है... जिससे मेरे जिस्म में ताकत बनी रहती है.... दिन में चार बार खाने को देते हैं... उसमें रात को भिगोया हुआ मूंग की दाल, केला, नारियल और छेना होता है.... और एक बार रोटी मिलती है... हाँ बनाता ज़रूर मैं ही हूँ... पर वह लोग मुझे भूखा नहीं रखते हैं....
तापस - पर टॉर्चर का नया नया तरीका.... तुम पर आजमा तो रहे हैं...
विश्व - हाँ कर तो रहे हैं... पर कुछ पुराने हैं जो पहले दिन से ही किए जा रहा हूँ...
तापस - क्या...
विश्व - यही... रोज फर्श साफ करता हूँ... पर हर रोज एक बार एक नए पैटर्न में... कभी बाहर से अंदर... कभी अंदर से बाहर.. कभी ऊपर से नीचे और कभी... नीचे से ऊपर.... हर रोज एक कमरे के दीवार से चुना उतारता हूँ... वही पैटर्न में और चुना चढ़ाता हूँ... बिलकुल वही पैटर्न में...
तापस - और शाम होते होते तुम बुरी तरह थक चुके होते हो... कितने घंटे पढ़ पाते हो...
विश्व - सिर्फ़ दो घंटे... काफ़ी हैं...
तापस - और यह कब तक करोगे....
विश्व - तब तक... जब तक डैनी भाई का मन पसीज ना जाए...
तापस - और यह होने से रहा....
विश्व - (मुस्करा कर) देखते हैं....
तापस - विश्व... मुझे एक बात समझाओ... डैनी से इतने टॉर्चर होने के बाद भी.... तुम डैनी की तरफदारी क्यूँ कर रहे हो... मेरे हिसाब से... डैनी को तुम्हारा एहसान मंद होना चाहिए... अखिर तुमने एक बार उसे बचाया था...
विश्व - सर... उनका मुझ पर कर्ज है... मतलब जब मैं जैल में नया था... मैंने उन्हें बचा कर वह कर्ज उतारा है... जबकि उनके एहसान के आगे वह कुछ भी नहीं था.... उसके बाद उन्होंने मेरी पढ़ाई का जिम्मा उठाया है... उसका कर्ज समझ लीजिए... मैं ऐसे उतार रहा हूँ...
तापस - विश्व... किस मिट्टी के बने हो... तुम पर जिस्मानी दर्द भी हावी नहीं हो पा रहा है... विश्व - (मुस्कराते हुए) सर बचपन से ही किसानी कर रहा हूँ.... ऐसे दर्द से निजात पाना जानता हूँ... सोने से पहले गरम सरसों के तेल लगा लेता हूँ... बहुत हदतक दर्द कम हो जाता है... और हाँ इसका भी बंदोबस्त... डैनी सर ने ही किया है...
तापस को विश्व की बातेँ और उसकी प्रतिक्रिया कुछ भी समझमें नहीं आता वह विश्व के थके हुए चेहरे पर दर्द की जगह कुछ और देखता है l पर वह समझ नहीं पाता वह क्या है l
विश्व - सर... मैं बहुत ही मेहनत कस हूँ... आपको याद होगा... मैं हमेशा आपसे कुछ ना कुछ काम मंगाता ही रहता था... अब जिस्म थक रहा है... तो शिकायत कैसी....
तापस - विश्व... (अपना सर ना में हिलाते हुए) वाकई तुम्हें समझना मेरे बस की बात नहीं है.... फिर भी तुम बहुत अच्छे हो... बहुत बड़ा दिल रखते हो... बस दुआ करता हूँ... तुम्हारे पढ़ाई पर कोई असर न हो.... (कह कर उठ कर जाने लगता है)
विश्व - सर... (तापस रुक जाता है और मुड़ कर विश्व को देखता है) एक निवेदन है... अगर...
तापस - ठीक है विश्व... तकल्लुफ छोड़ो... कहो...
विश्व - सर हो सकता है दीदी कुछ दिनों में... मेरी ख़ैर खबर लेने यहाँ आएगी... तो प्लीज... उसे कुछ भी मत बताइएगा... वह अकेली... राजगड़ में जीने की जद्दोजहद में होगी... उसे मेरी तकलीफ़ के बारे में पता चला तो.... वह हिम्मत हार जाएगी....
तापस - तुम चाहते हो... मैं तुम्हारे बारे में... तुम्हारी दीदी को... झूठ कहूँ....
विश्व - हाँ.... सर...
तापस - व्हाट... तुम जानते हो... तुम मुझसे क्या करवाना चाहते हो...
विश्व - जी सर... सर अगर एक झूठ से... किसीको रूहानी सुकून मिलती हो... तो वह झूठ कई सच से बेहतर है....
तापस - ओ... तुम्हें अब बड़ा ज्ञान मिल गया है...
विश्व - ऐसी बात नहीं है सर... सर वह मेरी माँ है... बाप है... दीदी है... गुरु है... सखी है... दोस्त है... मेरे जनम लेते ही माँ चल बसी... दीदी ने ही मुझे पाला पोसा बड़ा किया... सर वह कहते हैं ना... माँ बच्चे को दुनिया की बुरी नजर से बचाती है और बाप अपने कंधे पर बिठा कर दुनिया दिखाता है... मेरे पिता थे... पर वह मेरी दीदी ही थी... जो दुनिया की बुरी नजर से बचाती थी और अपने कंधे पर बिठा कर दुनिया की पहचान करवाती थी... वह.... (विश्व की आवाज़ भर्राने लगती है) उसने बहुत दुख झेले हैं... अब और नहीं (विश्व अपना हाथ जोड़ देता है) बस इतना मेरे लिए कर दीजिए.... उससे कहिएगा... विश्व अपना ग्रैजुएशन पुरा करने के बाद ही अपना चेहरा दिखाएगा....
विश्व और कुछ कह नहीं पाता, उसके हलक से शायद बाकी के बातेँ बाहर नहीं निकल पाता l तापस उसके पास आ कर उसके हाथ पकड़ कर इशारे से दिलासादेता है