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Thriller "विश्वरूप"

Kala Nag

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Kala Nag

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👉तैंतालीसवां अपडेट
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अगले दिन
सेंट्रल जैल
सुबह के पांच बजे विश्व स्पेशल बैरक के बाहर पहुंचता है l बैरक के बाहर दरवाजे पर दस्तक देता है, अंदर एक संत्री दरवाज़े पर बने छोटी खिड़की से विश्व को देख कर दरवाज़ा खोलता है l विश्व अंदर आता है, अंदर एक और दरवाज़ा होता है संत्री वह दरवाज़ा भी खोल देता है l विश्व अब स्पेशल बैरक के अंदर आ जाता है और अंदर की हालत देख कर हैरान हो जाता है l जैल के भीतर एक ऐसी जगह भी है, अंदर एक अलग दुनिया बसी है उसे ऐसा लगता है, जैसे यह हिस्सा कोई जैल है ही नहीं बल्कि कोई कॉलोनी है l सात घर पास पास है, जैसे कोई स्कुल होता है l पेड़ पौधों से भरा एक मैदान भी है पास सट कर, पर कहीं कोई लोग दिख नहीं रहे हैं l तभी एक कैदी विश्व के पास आता है l

कैदी - विश्व जाओ... तीन नंबर के रूम में... डैनी भाई वहीँ पर... तुम्हारा इंतजार कर रहा है...

विश्व तीन नंबर कमरे में पहुंचता है l डैनी दातुन से अपना दांत साफ करते दिखता है l विश्व को देखते ही

डैनी - आ लौंडे आ.... बोल रात तेरी कैसी गई... तेरेको नींद तो ठीक से आई ना... (विश्व अपना सर हिला कर हाँ कहता है) संढास वगैरह कर लिया है ना... (विश्व फिर से सर हिला कर हाँ कहता है) अबे... मेरी गुलामी के लिए... हामी भरी है तुने.... इस खुशी में... अपनी मुहँ में कुछ ठूंस लिया है... क्या...
विश्व - डैनी भाई... कहिए... कहां से शुरू करूँ और.... क्या क्या करूँ...
डैनी - अरे वाह... लौंडे में... बड़ा जोश है...पहले मेरे पंटर लोगों का इंट्रो लेले... (आवाज़ देता है) किधर हो रे... पंटर लोग... आओ इधर...

पहले वाले कैदी के पास और चार कैदी और आकर खड़े हो जाते हैं l विश्व उन सबको देख कर हैरान हो जाता है l क्यूँकी एक कैदी वह था जिसने परसों खाना सर्व कर रहा था और विश्व को डैनी से दूर रहने और बात ना करने के लिए कहा था और एक कैदी वही है जो रंगा के ग्रुप में था, मगर चुप रहता था बोलता कुछ भी नहीं था, और बाकी कैदियों को विश्व हमेशा दूसरों के ग्रुप में देखा है l

डैनी - क्यूँ बे... यूँ आँखे फाड़े देख क्या रहा है बे... यह सब मेरे पंटर हैं... जो इस जैल के हर कोने में फैले हुए हैं.... (विश्व चुप रहता है) अब मेरे साथ तुझे यह लोग भी यहाँ पर काम देंगे... और यह लोग... तुझपे नजर भी रखेंगे... जहां तुझसे चूक होगी... वहाँ पर तेरे को पनीश करेंगे.... इसलिए इनको अच्छी तरह से.... पहचान ले.... (पहले कैदी को दिखा कर) यह है समीर.... (वह दुसरा रंगा के ग्रुप में जो था उसे दिखा कर) यह है वसंत..... (तीसरे को दिखा कर) यह है हरीश.... (चौथा) यह प्रणब और यह... (पांचवां) चित्त...

वह पांचो अपनी अपनी आस्तीन उठा कर विश्व को देखने लगते हैं l विश्व उन पर से नजरें हटा लेता है l डैनी उसे देख लेता है और मुस्करा देता है l

डैनी - चल... अभी तेरा पहला टास्क यह है... के यह जो मैदान तुझे दिख रहा है... उस पर मेरे पंटर लोगों ने ईंट से... बाउंड्री बनाए हैं... तुझे इस बाउंड्री के भीतर के सारे घास निकालने हैं...
विश्व - (उस मैदान को देख कर मन में) छोटा ही मैदान है... (उन ईंटों को देख कर) यह ईंट बेवजह रखे हैं... रखा ही क्यूँ... रखना और ना रखना एक बराबर है...
डैनी - कहीं ईंटों को देख कर.... यह तो नहीं सोच रहा है... ईंट रखना और ना रखना एक बराबर है...
विश्व-(हडबड़ा जाता है) नहीं नहीं... नहीं तो...
डैनी - तो फिर शुरू हो जा....
विश्व - कैसे.... मतलब... मैं किससे... मैदान से घास... साफ करूँ...
डैनी - ऑए... पंटर... कुदाल कहाँ है... दो इसे...

समीर कुदाल लाकर विश्व को थमा देता है l विश्व कुदाल लेकर मैदान से घास साफ करने लग जाता है l पूरे एक घंटे बाद सारा मैदान साफ नजर आता है l विश्व अपना नजर घुमाता है तो उसे सिर्फ़ समीर दिखता है l वह समीर के पास आता है l

विश्व - समीर भाई... मैदान साफ हो गया है... अब...
समीर - हाँ... बहुत अच्छे... चल आजा... मैं तेरे को और एक काम देता हूँ...

विश्व को एक कुएं के पास लेकर जाता है, विश्व देखता है कुआं बहुत पुराना और गहरा है l

विश्व - समीर भाई... यहाँ पर नल नहीं है....
समीर - है ना... पर तेरे लिए... यहाँ पर... कुएं की व्यवस्था है...
विश्व - पर जैल के दुसरे हिस्से में... कोई कुआं नहीं है... यहाँ कैसे...
समीर - अरे.... पहले यह हिस्सा कभी... बच्चों का स्कुल हुआ करता था... बाद में यहाँ जब जैल बना.... इस हिस्से को... पोलिटिकल सेल या स्पेशल सेल का दर्जा दिया गया.... तभी तो डैनी भाई यहाँ रहते हैं.... अब बातों से टाइम खोटी मत कर... चल लग जा काम में... बिंदास....
विश्व - पर यहाँ... करना क्या है....
समीर - अरे हाँ... यह रहा रस्सी और बाल्टी... और यहाँ देख (दो बड़े टीन के डिब्बे दिखाता है) इनको भर के... उस बगीचे में... हर पौधे और हर पेड़ पर पानी डाल जा...
विश्व - ठीक है...

विश्व कुएं में रस्सी से बंधे बाल्टी को कुएं में डाल कर पानी निकाल कर टीन के डिब्बे में डालता है l तब वह देखता है डिब्बे से पानी लीकेज हो रहा है l पानी को डब्बे से रिसते देख विश्व समीर की ओर देखता है l

समीर - देख यह काम.. बॉस ने... मेरे जिम्मे सौंपा है... चल देर मत कर... और चार भी... तेरे इंतजार में हैं...
विश्व - पर यह डब्बा तो फूटा हुआ है... इसमें पानी रिस् रहा है...
समीर - वह मेरे को नहीं पता.... काम नहीं किया तो... तेरे को मैं... पनीश करूंगा.... सोच ले...

विश्व कुछ नहीं कहता है l जल्दी जल्दी कुएं से पानी निकाल कर दोनों डब्बे में एक साथ डालने लगता है l जब दोनों डब्बे आधे से ज्यादा भर जाते हैं तब दोनों डब्बों को लेकर भागता है और पौधों में डाल कर वापस आ जाता है l ऐसा करते करते दो घंटे हो जाते हैं l सारे पौधे और पेड़ों में पानी डालने के बाद थक कर कुएं के दीवार के सहारे बैठ जाता है l तभी उसे वसंत आवाज़ देता है

वसंत - ऑए... चल आ.. इधर आजा...
विश्व - (हांफते हुए मुश्किल से उठता है) जी आया... (वसंत के पास पहुंच कर झुक कर अपने घुटनों पर हाथ रख कर) जी.. कहिए...
वसंत - यह ले पी ले... (एक ग्लास में दूध जैसा कुछ देता है)
विश्व - जी नहीं.... रहने दीजिए...
वसंत - अबे पी ले... आज दिन भर तुझे मेहनत करनी है... खाना तो मिलने से रहा... इसलिए इसे पी... और आजा... तुझे.. काम पे लगा दूँ... (विश्व को भूख लग रही थी, इसलिए वसंत से ग्लास लेता है और पी जाता है) शाबाश... अब आजा मेरे पीछे....

विश्व वसंत के साथ एक कमरे में आता है तो देखता है कि उस कमरे के फर्श पर पानी तैर रही है l वसंत उसे एक बाल्टी देता है और एक कपड़े का पोछा l

वसंत - चल जल्दी से... पोछा मार और कमरे को सूखा दे.... पर मैं जैसे कहूँगा वैसे करना होगा... पहले ऐसे (फर्श पर पोछा डालकर बाहर से अंदर तक लाता है और निचोड़ता है) बाहर से अंदर करना है... पर अंदर से बाहर नहीं... समझा... दाएं हाथ में आधा कमरा और बाएं हाथ से आधा.... अगर कुछ गड़बड़ किया तो...

विश्व वसंत के हाथों से कपड़े के पोछे को लेकर फ़र्श पर डाल कर बाल्टी में निचोड़ता है l पानी बाल्टी में गिरता है और फ़िर से पोछे को फर्श पर लगा कर बाल्टी में निचोड़कर देखता है कि यह बाल्टी में भी हल्का लीकेज है l पर विश्व इसबार कुछ कहता नहीं l चुपचाप पोछा लगा कर पानी निचोड़ने लगा l बाल्टी के भरते ही पानी बाहर फेंक कर वापस पोछा लगाने लगा l ऐसे करते करते उसे एक घंटा लग जाता है l

वसंत - वाह... क्या बात है... लगता है... ऐसे कामों की आदत है तुझे... (विश्व कुछ नहीं कहता है पर उसके चेहरे पर थकान साफ दिख रहा है) चल कोई नहीं... हरीश के पास जा.... अब वह तेरा इंतजार कर रहा है...

विश्व कमरे से बाहर निकालता है l बाहर उसे हरीश देखता है और इशारे से अपने पास बुलाता है l विश्व थके कदमों से उसके पास पहुंचता है l हरीश भी वही दुध वाला मिश्रण बड़े से ग्लास में विश्व को देता है l विश्व को भूक मारे बुरा हाल हो चुका है वह बिना देरी किए वह दूध वाला मिश्रण पी लेता है l ग्लास में वह पेय खतम होते ही हरीश उससे ग्लास ले लेता है

हरीश - चल बहुत थक गया है.... जा पांच नंबर घर में जा.... बॉस वहीँ हैं... वहाँ पर कुछ देर रुक... फिर मैं तुझे काम के लिए बुलाऊंगा... (विश्व कुछ समझ नहीं पाता वह हरीश की ओर सवालिया नजर से देखता है) अबे जा ना.... कभी किसी हैंडसम लड़के को नहीं देखा क्या.... ऐ.. इ... देख मैं तेरे को बोल दे रहा हूँ... मैं ऐसा वैसा लड़का नहीं हूँ.... आंये.... वैसे तु भी कम चिकना नहीं है... ऑफर करेगा तो सोचूंगा...

विश्व उसकी बातें सुनकर वहाँ से बिना पीछे मुड़े पांच नंबर घर की ओर चला जाता है l वह एक विशाल कमरा है जो कि एक जीम है l उस जीम में एक बेंच पर डैनी लेटा हुआ है और वेट लिफ्टिंग कर रहा है l उसके पास ही समीर, वसंत और चित्त खड़े हैं l

डैनी - ( वेट लिफ्टिंग करते हुए) आह...ओ विश्व... कैसा लग.... रहा है...

विश्व चुप रहता है l उसे चुप देख कर डैनी पास खड़े अपने बंदो को इशारा करता है l वसंत और चित्त डैनी के हाथ से वह वेट ले लेते हैं l समीर डैनी को टवेल देता है l डैनी अपना पसीना पोंछ कर उसी बेंच पर बैठते हुए

डैनी - क्यूँ हीरो... फट रही है ना... (विश्व चुप रहता है) अभी थोड़ा सुस्ता ले... पूरा दिन बचा है....
विश्व - आप मुझसे श्रम तो करवा रहे हैं.... पर यह दूध बादाम वाला मिश्रण पीला क्यूँ रहे हैं...
डैनी - अच्छा.... उस दूध के ग्लास में... क्या क्या मिला हुआ है बता...
विश्व - दूध में.. घी, शहद, पिस्ता बादाम और शायद मिश्री भी...
डैनी - वाह लौंडे... बहुत अच्छे... वह क्या है ना.... आज पहला दिन है रे.... और अपने पास डेढ़ साल है... तब तक तेरे को... चुस्त, दुरुस्त और तंदुरुस्त रहना है... यह मेरे टॉर्चर का... अपना स्टाइल है... मैं खिलाता हूँ... और जी भरने तक तुझसे जो मर्जी होगी वह करवाऊंगा... सो वेलकम तो माय टॉर्चर वर्ल्ड.... अब से तु... मेरे और मेरे पंटरों के बताए सारे काम करेगा... जहां नहीं कर पाया... वहाँ तुझे पनीश किया जाएगा....(बेंच से उठ कर) और हाँ... यह ड्रिंक... तुझे दिन में दस बार पीने को मिलेगा... और यहाँ खाने को चार बार मिलेगा.... हाँ वह भी हमारे तय किए गए मेन्यू के हिसाब से.... हाँ यह और बात है कि... तेरा पेट नहीं भरेगा... ( एक मोटे से काठ के बने विंग-चुंग के सामने खड़ा हो जाता है, और अपना हाथ चलाने लगता है) तुझे अब हरीश दो कांटे दार ब्रश देगा... उससे दीवार से चुना उतारना होगा... वह जैसा कहेगा... बिल्कुल वैसे ही.... उसके बाद चित्त तुझे जैसे रोटी बनाने को कहेगा... बिल्कुल वैसे ही रोटी अपने लिए और हमारे लिए बनाएगा... फिर प्रणब तुझे... उन्हीं दीवारों पर चुना लगाने के लिए ले जाएगा.... वह जैसे जैसे बोलेगा... तु बिल्कुल वैसे ही करना... अगर कोई कंप्लेंट नहीं रहा... तो जल्दी काम निपटा के चले जाना....

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एक भैंस के माथे पर सिंदूर लगा कर और फूलों की माला पहना कर राजगड़ के गलियों में ढोल नगाड़े बजा कर घुमाया जा रहा है l घुमाने वाले सभी लोग क्षेत्रपाल महल में काम करने वाले नौकर हैं l यह नजारा देख कर जहां गांव के छोटे बच्चे उस भैंस के पीछे हो लेते हैं वहीँ कुछ लोग अपने ल़डकियों को घर के अंदर जबरदस्ती भेज दे रहे हैं l वह भैंस और उसके साथ का काफ़िला मुख्य चौक से गुजरता है l मुख्य चौक पर वैदेही लीज पर लिए घर को एक दुकान की तरह सजा रही है l तभी उसका ध्यान गुज़र रहे काफिले पर पड़ती है l सिर्फ़ वैदेही ही नहीं वहाँ पर जितने भी लोग थे उस काफिले को देख रहे थे l कुछ लोग घबराए हुए भी थे l वह लोग आने वाले समय में, आने वाले खतरे के बारे सोच कर घबरा रहे थे l

लक्ष्मी - हे भगवान... अब क्या होगा....
वैदेही - क्यूँ... क्या होगा...
लक्ष्मी - क्या.. तुम नहीं जानती...
वैदेही - नहीं... क्या है यह...
लक्ष्मी- ओह... शायद... तुमने कभी यह सब... देखा नहीं होगा...
वैदेही - नहीं देखा है... क्या है यह....

लक्ष्मी चुप हो जाती है, वह वैदेही को क्या कहे उसे समझ में नहीं आता है l तभी वहाँ पर कुसुम पहुंचती है l

कुसुम - लगता है... आज युवराज जी का... क्षेत्रपाल परावर्तन होगा....
वैदेही - क्या... यह क्षेत्रपाल परावर्तन क्या है....
लक्ष्मी - क्या सच में वैदेही... तुम कुछ नहीं जानती....
कुसुम - नहीं जानती होगी... ऐसा पहले पच्चीस साल पहले हुआ था.... तब राजा साहब के लिए... एक भैंस की बलि चढ़ाया गया था... अब उनके बेटे के लिए... काली करतूतों वाली परंपरा को... आगे बढ़ाने के लिए....
वैदेही - (हैरान हो कर) क्या....
लक्ष्मी - पता नहीं... अब किसके भाग्य फुटेंगे... या फुट चुकी होगी...

वैदेही को अब कुछ कुछ समझ में आने लगता है फिर भी वह उन दोनों को सवालिया नज़रों से देखती है l

कुसुम - कोई उठा ली गई होगी कहीं से... जिसकी... आज जबरदस्ती नथ उतारी जाएगी... छी.... इसे परंपरा कहते हैं...

वैदेही की आँखे एक अंदरुनी दर्द के मारे बड़ी हो जाती है l उसे अपना वह वीभत्स घड़ी याद आती है l उसके तन-बदन पर खौफ की एक सिहरन दौड़ जाती है l

लक्ष्मी - इन क्षेत्रपालों से बचाने के लिए... बचपन में मेरी माँ ने मेरे साथ जो किया था... मेरी बेटी के साथ मुझे अब वही करना पड़ेगा....
वैदेही - क्या किया था... तेरी माँ ने...
लक्ष्मी - (अपने दुपट्टे को चेहरे से हटा देती है, तो उसके चेहरे पर बहुत पुराने जले हुए निशान दिखते हैं) मेरी माँ ने... तब रोते हुए... मुझसे माफ़ी मांगते हुए... जलती हुई लकड़ी को मेरे चेहरे पर लगा दिआ था....

वैदेही उसके चेहरे पर उन जले निशानों को देख कर सोच रही थी, कुसुम ने उस वक्त सिर्फ़ बाहरी दर्द को झेला होगा पर उसकी माँ को तो वह दर्द रूह तक महसुस हुई होगी l

वैदेही - कुसुम... जो तेरी माँ ने किया... शायद उस समय उसके पास... तुझे बचाने के लिए कोई रास्ता नहीं था....
कुसुम - हाँ...
लक्ष्मी - अरे इन क्षेत्रपालों के डर से... मेरी शादी मेरी माहवारी शुरू होने के साल में ही कर दी गई थी....भले ही कुछ सालों से क्षेत्रपालों की ओर से कोई अगवा नहीं हुआ है.... पर अब क्षेत्रपाल परिवार का नया खेप तैयार हो रहा है... पता नहीं आगे क्या होगा....
वैदेही - सुनो... तुम दोनों मेरी बात को गौर से सुनो... और हो सके तो.... गांव के हर घर में... ऐसा करने के लिए... कहो....
दोनों - क्या....
वैदेही - आज से... गाँव के... हर लड़की को... सर से लेकर पांव तक... नीम के तेल लगाओ... और हो सके तो खुद भी लगाया करो....
दोनों - पर नीम के तेल तो बदबूदार होता है ना....
वैदेही - हाँ यही बदबू... हमारी घर की बेटियों को... उन शैतानों से बचाएगी.... (वह दोनों वैदेही को अविश्वास से देखते हैं) मेरा विश्वास करो... यह कुछ दिन पहले मेरा परखा हुआ है....

उधर क्षेत्रपाल महल में अपने कमरे में विक्रम बैठा हुआ है l उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा है l वह खुद को आईने में देख रहा है और खुद से बातेँ कर रहा है l
- मैं यह कर रहा हूँ... क्यूँ कर रहा हूँ... मैं अब क्या करूँ... कल को अगर शुभ्रा जी को पता चला तो... मैं उनका सामना कैसे करूँगा... सच में... हमारा रिश्ता... ब्यूटी एंड बीस्ट की होगी... एक तरफ उनकी खूबसूरती और मासूमियत.... दुसरी तरफ मेरी अंदर की बेवफाई और हैवानियत... नहीं नहीं... मुझे कुछ करना होगा... पर क्या करूँ...

तभी दरवाजे पर दस्तक होती है l विक्रम पलट कर देखता है एक नौकर सर झुकाए वहाँ खड़ा है l

विक्रम - क्या है....
नौकर - हुकुम... बड़े राजा जी ने... आपको उपस्थित होने के लिए कहा है...
विक्रम - ठीक है....

विक्रम उस नौकर के साथ नागेंद्र के कमरे के बाहर पहुंचता है l नौकर अंदर जाता है और थोड़ी ही देर बाद वापस आकर अंदर जाने के लिए कहता है l विक्रम अंदर जाकर देखता है नागेंद्र मुख्य कुर्सी पर बैठा हुआ है उसके अगल और बगल में भैरव और पिनाक बैठे हुए हैं l

नागेंद्र - आइए... युवराज... आइए... कितना यादगार दिन है आज.... एक ही कमरे में तीन पीढ़ियां एकत्रित हैं... आज आप पुर्ण रुप से.... क्षेत्रपाल बन जाएंगे.... अच्छा होता... हम तीन पीढ़ी... रंगमहल में इकट्ठे हो पाते... पर हमारा स्वास्थ हमे इससे महरूम कर रहा है.... फ़िर भी... हमारी शुभकामनाएं हैं आपके साथ...

वहाँ पर बैठे तीनों बड़ों को यह एहसास होता है कि विक्रम बिल्कुल भी खुश नहीं है l उल्टा खीज रहा है l

नागेंद्र - क्या बात है युवराज.... आप खुश नहीं हैं.... आप खामोश क्यूँ हैं.... आपका अधिकार क्षेत्र बढ़ जाएगा.... और आपका दर्जा.... राजा साहब के बगल में बैठ कर निर्णय ले सकेंगे... अब आप सभी बैठक में बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले सकेंगे....
विक्रम - वह सब करने के लिए... यह कैसा परंपरा है... जिससे हमे गुजरना होगा.... एक बेजुबान जानवर की बलि चढ़ेगी... और एक मासूम अपनी अस्मत हारेगी....
नागेंद्र - आप सही कह रहे थे... छोटे राजा जी... हमारे युवराज... खुद को... क्षेत्रपाल बनाने से... कतरा रहे हैं.... (भैरव सिंह को) राजा जी... अब आप युवराज जी को समझाएं... और उन्हें मानसिक रूप से तैयार करें....
भैरव - जी बड़े राजा जी... (विक्रम को देख कर) यह क्या है युवराज.... आज आप सही मायने में... क्षेत्रपाल बन जाएंगे...

विक्रम सर झुकाए चुप चाप खड़ा है और अपने दाहिने पैर के अंगुठे से फर्श कुरेद रहा है l

भैरव - युवराज.... (आवाज़ कड़क कर) आप को... हो क्या गया है.... यह मत भूलिए.... आप के रगों में... क्षेत्रपाल वंश के रक्त बह रहा है....
नागेंद्र - आप... समझा नहीं रहे हैं... राजा जी....(विक्रम से) युवराज.... यह वंशानुगत परंपरा है... यह याद रखें... जिनके राज में... राज शाही घुटने टेक रहे थे... उन्हीं के राज में हमारे पुरखों ने... अपनी राजशाही की नींव डाली थी... अपना झंडा ना सिर्फ फहराया था.... बल्कि मनवाया भी था... आपको उन महान आत्मा के अनुगत एवं अनुरक्त होना चाहिए... इस परंपरा का निर्वाह कर.... आप उनके द्वारा हासिल किए गए और स्थापित किए गए राज शाही का सम्मान करेंगे....

विक्रम का सर वैसे ही झुका हुआ देख पिनाक कुछ कहने को होता है तो नागेंद्र उसे रोक देता है l

नागेंद्र - आप इतिहास उठा कर देख लें.... हर राज शाही में अपनी पत्नियों के लिए अंतर्महल रहा है और एक रंग महल रहा है... दासियों की परंपरा इस संसार में जब से राजशाही आया है... तब से है... यह इसलिए भी था... ताकि कभी कोई औरत किसी राजा का... कमजोरी ना बन जाए... रंगमहल के रंग में रंगने वाला राजा हर मोहपाश से मुक्त होता है.... और रंगमहल ही प्रजा में पनप रहे विद्रोह की भाव को दबा देता है.... पहले रंगमहल में सिर्फ़ दासियां हुआ करती थी.... पर आजादी के बाद भी इस परंपरा को स्वर्गीय सौरव सिंह क्षेत्रपाल जी कायम रखा.... जिसके विरुद्ध पाइकराय परिवार ने बगावत की.... उसके बाद आपके परदादा रुद्र सिंह क्षेत्रपाल जी ने उस विद्रोह को ऐसे कुचला... के आज सरकार कोई भी आए.... हमारे राजशाही के आगे नतमस्तक रहते हैं.... आप इस परंपरा से मुहँ फ़ेर कर.... विद्रोह को मौका ना दें.... जाइए... अपने कमरे में.... स्वयं को तैयार रखें.... आज आपको राजा जी और छोटे राजा जी दोनों... रंगमहल लेकर जाएंगे... जाइए....

विक्रम कमरे से बाहर निकल जाता है l उसके जाते ही नागेंद्र पिनाक को देखता है l

पिनाक - आप... अपने रक्त पर विश्वास रखें... बड़े राजा जी...
नागेंद्र - हमें... हमारे वंश बीज पर विश्वास है... छोटे राजा जी... पर यह उम्र भटकाती है... भुवनेश्वर में कहीं कोई लड़की का चक्कर तो नहीं.....
पिनाक - नहीं... हमे ऐसा नहीं लगता... आज के आधुनिक समाज में... युवराज जी पुराने परंपरा को निर्वाह करने से कतरा रहे हैं....
नागेंद्र - तो... आप उन्हें तैयार कैसे करेंगे....
पिनाक - (एक कुटील मुस्कान अपने चेहरे पर लाकर) यश वर्धन नाम की महिमा है.... हमे यश वर्धन जी कृपा से राजपाठ प्राप्त है.... और यश वर्धन के माया से युवराज आज पुर्ण क्षेत्रपाल होंगे.... (पिनाक की हँसी गहरी हो जाती है)

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शाम को तापस के कैबिन में तापस के सामने जगन और दास दोनों खड़े हैं l तापस अपनी ठुड्डी पर अपने दाहिने हाथ की अंगूठा फ़ेर रहा है l

दास - सर...
तापस - हूँ....
दास - आप क्या सोच रहे हैं..
तापस - एक कार्टून याद आ रही है...
दास - कैसी कार्टून सर....
तापस - जगन को वाच टावर से डैनी और उसके गैंग पर नजर रखने के लिए कहा था.... ज़वाब में जगन जो रिपोर्ट दी... उससे वह कार्टून याद आ रही है....
जगन - हाँ सर.... आज विश्व से उन लोगों ने.... बेवजह बहुत मेहनत करवाया.... इतना के वह शाम होते होते ठीक से चल भी नहीं पा रहा है.....
दास - सर इसमे हम क्या कर सकते हैं.... राजी तो विश्व ही हुआ था.... वैसे वह कार्टून क्या था सर....
तापस - एक गधे की गाड़ी को भगाने के लिए... उस गाड़ी के मालिक ने... एक लंबे से लकड़ी के आगे एक गाजर को धागे से लटका देता है.... गधा उस गाजर को अपने सामने देख कर खाने के लिए झपटता है.... पर गाजर उसके मुहँ के पास आता तो है... पर पहुंच नहीं पाता... गधा अपना पुरा जोर लगा कर दौड़ता है... सफर खतम होता है... पर फिर भी गधे को गाजर नहीं मिलता है... अब समझे कुछ....
दास - जी सर... यहाँ गधा विश्व है... बीए की डिग्री गाजर और उस गाड़ी का मालिक डैनी... पर यहाँ... डैनी कौनसी सफ़र की तैयारी कर रहा है....
तापस - यही तो मेरे समझ में नहीं आ रहा है... विश्व... पहले बेचारा था.... अब और भी बेचारा हो जाएगा.... चलो चल कर देखते हैं... क्या हालत है उसकी...

सब मिलकर विश्व के सेल के पास आते हैं l विश्व अपने बिस्तर पर पेट के बल पड़ा हुआ है l दर्द भरे हल्के कराह से उसका कमरा गूंज रहा है l

- विश्व... (तापस आवाज देता है)
विश्व - (बिना पलटे) जी सर... (आवाज़ में थकान और दर्द साफ महसुस होती है)
तापस - क्या हम बात कर सकते हैं....
विश्व - (पलटता है) जी... (मुश्किल से बैठता है)
तापस - (जगन को इशारा करता है, तो जगन सेल की दरवाजा खोल देता है, तापस अंदर आता है) विश्व... आज दोपहर को मैं... बाजार गया था.... वहाँ से तुम्हारे कामकी सारी किताबें खरीद ली... सोचा तुम्हें दे दूँ...
विश्व - (आखों में चमक आ जाती है) क्या... म... मैं... आपका आभारी रहूँगा.... (हाथ जोड़ कर) क्या वह किताबें... मुझे अभी दे सकते हैं...
तापस - जरूर... वैसे क्या तुम... (कुछ रुक रुक कर) मेरे साथ... लाइब्रेरी तक जाना चाहोगे....
विश्व - (खुशी के मारे) जी... जी ज़रूर... (विश्व उठ कर खड़ा हो जाता है)

तापस और उसके साथ साथ दास और जगन तक हैरान हो जाते हैं l विश्व के भीतर पढ़ाई को लेकर जुनून को देखकर l विश्व को लेकर तीनों लाइब्रेरी में पहुंचते हैं l विश्व देखता है टेबल के ऊपर उसके दरकार के सभी किताबें रखी हुई हैं l विश्व की आंखे छलक जाती हैं l उसके हाथ अपने आप तापस के आगे जुड़ जाते हैं l

तापस - (उसके हाथों को पकड़ कर) नहीं विश्व... मैं इस लायक नहीं हूँ... पर मुझे खुशी है कि तुममे.... पढ़ाई को लेकर ग़ज़ब का जुनून है... इतने कड़े मेहनत के बाद... तुम जिस्मानी तौर पर टूटे हुए लग रहे थे.... पर ऐसा लग रहा है... के क्या कहूँ... तुममे नई ताजगी दिख रही है....
विश्व - (अपना हाथ जोड़ कर) सर जयंत सर ने एक बार कहा था... सर कटाने की तमन्ना अब हमारे दिल में है...
देखना है जोर कितना बाजू ए क़ातिल में है....
डैनी सर भले ही हज़ारों ज़ख्म दें... पर आज आपने मेरे हर ज़ख़्म की दवा कर दी है.... थैंक्यू... सर... बहुत बहुत थैंक्यू...

विश्व की बातों से तापस के दिल में अजीब सा सुकून मेहसूस होता है l वह विश्व के हाथों को पकड़ कर

तापस - बस बस... विश्व.. बस... तुम्हारा यह रिएक्शन देख कर मैं भी बहुत खुश हुआ हूँ... अब यह लो.. (एक चाबी देकर) यह इस लाइब्रेरी की एक्स्ट्रा चाबी है.... यहाँ कोई आता नहीं है... तुम अपनी पढ़ाई यहाँ आकर कर लेना... तुम्हें कोई डिस्टर्ब भी नहीं करेगा....


विश्व कुछ नहीं कह पाता, तापस से अपनी कृतज्ञता कैसे व्यक्त करे वह समझ नहीं पाता l वह तापस के गले लग जाता है l विश्व के अचानक गले लगने से तापस हड़बड़ा जाता है पर थोड़ी देर बाद खुद को सम्भाल कर विश्व को गले लगा कर दिलासा देता है
 
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Kala Nag

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विक्रम और शुभ्रा , दोनों ने एक तरह से छुप छुपा कर शादी किया था । पता नहीं भैरव सिंह का क्या रियेक्सन हुआ होगा जब उन्हें पता चला होगा !
विक्रम , सच में , शुभ्रा से मुहब्बत करता है और शुभ्रा है भी वैसी , कोई भी उससे प्रेम करने लगे ! उसकी शरारत , उसकी बातें , उसका पाक दिल किसी का भी मन मोह ले !
लेकिन बड़ी कठोर शर्त रख दिया था विक्रम ने । साढ़े चार साल तक दोनों सिर्फ सोशल मीडिया और मोबाइल के थ्रू एक दूसरे से जुड़े रहेंगे । कोई मेल मुलाकात नहीं होगी ।
शायद उसने शुभ्रा की भलाई के लिए ऐसा डिसिजन लिया होगा !

जेल में एक अलग ही कहानी चल रही है । डैनी का बर्ताव न तो विश्व के पल्ले पड़ रहा है और न ही सुपरिटेंडेंट तापस सर के । लेकिन इतना तो श्योर है उसका जो भी व्यवहार में बदलाव आया है वह विश्व के हित में ही है । कुछ नसीहत देने की कोशिश है उसकी ।

एक सुझाव देना चाहता हूं । सेन्टेंस के बीच में.......का प्रयोग तभी करें जब डायलॉग बोलने के दौरान किरदार थोड़ी देर के लिए रूकता है मतलब मौन होता है । फूल स्टाप , कोमा , बिंदु वगैरह का प्रयोग करें ।
बार बार ......, ......का प्रयोग संवाद की गतिशीलता को बाधित करता है ।

वैसे अपडेट्स हमेशा की तरह जबरदस्त था । विक्रम और शुभ्रा की प्रेम कहानी तो वास्तव में कमाल का लिखा है आपने ।

आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट ब्लैक नाग भाई ।
कोशिस की है
आपसे समीक्षा की प्रतीक्षा है
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parkas

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अगले दिन
सेंट्रल जैल
सुबह के पांच बजे विश्व स्पेशल बैरक के बाहर पहुंचता है l बैरक के बाहर दरवाजे पर दस्तक देता है, अंदर एक संत्री दरवाज़े पर बने छोटी खिड़की से विश्व को देख कर दरवाज़ा खोलता है l विश्व अंदर आता है, अंदर एक और दरवाज़ा होता है संत्री वह दरवाज़ा भी खोल देता है l विश्व अब स्पेशल बैरक के अंदर आ जाता है और अंदर की हालत देख कर हैरान हो जाता है l जैल के भीतर एक ऐसी जगह भी है, अंदर एक अलग दुनिया बसी है उसे ऐसा लगता है, जैसे यह हिस्सा कोई जैल है ही नहीं बल्कि कोई कॉलोनी है l सात घर पास पास है, जैसे कोई स्कुल होता है l पेड़ पौधों से भरा एक मैदान भी है पास सट कर, पर कहीं कोई लोग दिख नहीं रहे हैं l तभी एक कैदी विश्व के पास आता है l

कैदी - विश्व जाओ... तीन नंबर के रूम में... डैनी भाई वहीँ पर... तुम्हारा इंतजार कर रहा है...

विश्व तीन नंबर कमरे में पहुंचता है l डैनी दातुन से अपना दांत साफ करते दिखता है l विश्व को देखते ही

डैनी - आ लौंडे आ.... बोल रात तेरी कैसी गई... तेरेको नींद तो ठीक से आई ना... (विश्व अपना सर हिला कर हाँ कहता है) संढास वगैरह कर लिया है ना... (विश्व फिर से सर हिला कर हाँ कहता है) अबे... मेरी गुलामी के लिए... हामी भरी है तुने.... इस खुशी में... अपनी मुहँ में कुछ ठूंस लिया है... क्या...
विश्व - डैनी भाई... कहिए... कहां से शुरू करूँ और.... क्या क्या करूँ...
डैनी - अरे वाह... लौंडे में... बड़ा जोश है...पहले मेरे पंटर लोगों का इंट्रो लेले... (आवाज़ देता है) किधर हो रे... पंटर लोग... आओ इधर...

पहले वाले कैदी के पास और चार कैदी और आकर खड़े हो जाते हैं l विश्व उन सबको देख कर हैरान हो जाता है l क्यूँकी एक कैदी वह था जिसने परसों खाना सर्व कर रहा था और विश्व को डैनी से दूर रहने और बात ना करने के लिए कहा था और एक कैदी वही है जो रंगा के ग्रुप में था, मगर चुप रहता था बोलता कुछ भी नहीं था, और बाकी कैदियों को विश्व हमेशा दूसरों के ग्रुप में देखा है l

डैनी - क्यूँ बे... यूँ आँखे फाड़े देख क्या रहा है बे... यह सब मेरे पंटर हैं... जो इस जैल के हर कोने में फैले हुए हैं.... (विश्व चुप रहता है) अब मेरे साथ तुझे यह लोग भी यहाँ पर काम देंगे... और यह लोग... तुझपे नजर भी रखेंगे... जहां तुझसे चूक होगी... वहाँ पर तेरे को पनीश करेंगे.... इसलिए इनको अच्छी तरह से.... पहचान ले.... (पहले कैदी को दिखा कर) यह है समीर.... (वह दुसरा रंगा के ग्रुप में जो था उसे दिखा कर) यह है वसंत..... (तीसरे को दिखा कर) यह है हरीश.... (चौथा) यह प्रणब और यह... (पांचवां) चित्त...

वह पांचो अपनी अपनी आस्तीन उठा कर विश्व को देखने लगते हैं l विश्व उन पर से नजरें हटा लेता है l डैनी उसे देख लेता है और मुस्करा देता है l

डैनी - चल... अभी तेरा पहला टास्क यह है... के यह जो मैदान तुझे दिख रहा है... उस पर मेरे पंटर लोगों ने ईंट से... बाउंड्री बनाए हैं... तुझे इस बाउंड्री के भीतर के सारे घास निकालने हैं...
विश्व - (उस मैदान को देख कर मन में) छोटा ही मैदान है... (उन ईंटों को देख कर) यह ईंट बेवजह रखे हैं... रखा ही क्यूँ... रखना और ना रखना एक बराबर है...
डैनी - कहीं ईंटों को देख कर.... यह तो नहीं सोच रहा है... ईंट रखना और ना रखना एक बराबर है...
विश्व-(हडबड़ा जाता है) नहीं नहीं... नहीं तो...
डैनी - तो फिर शुरू हो जा....
विश्व - कैसे.... मतलब... मैं किससे... मैदान से घास... साफ करूँ...
डैनी - ऑए... पंटर... कुदाल कहाँ है... दो इसे...

समीर कुदाल लाकर विश्व को थमा देता है l विश्व कुदाल लेकर मैदान से घास साफ करने लग जाता है l पूरे एक घंटे बाद सारा मैदान साफ नजर आता है l विश्व अपना नजर घुमाता है तो उसे सिर्फ़ समीर दिखता है l वह समीर के पास आता है l

विश्व - समीर भाई... मैदान साफ हो गया है... अब...
समीर - हाँ... बहुत अच्छे... चल आजा... मैं तेरे को और एक काम देता हूँ...

विश्व को एक कुएं के पास लेकर जाता है, विश्व देखता है कुआं बहुत पुराना और गहरा है l

विश्व - समीर भाई... यहाँ पर नल नहीं है....
समीर - है ना... पर तेरे लिए... यहाँ पर... कुएं की व्यवस्था है...
विश्व - पर जैल के दुसरे हिस्से में... कोई कुआं नहीं है... यहाँ कैसे...
समीर - अरे.... पहले यह हिस्सा कभी... बच्चों का स्कुल हुआ करता था... बाद में यहाँ जब जैल बना.... इस हिस्से को... पोलिटिकल सेल या स्पेशल सेल का दर्जा दिया गया.... तभी तो डैनी भाई यहाँ रहते हैं.... अब बातों से टाइम खोटी मत कर... चल लग जा काम में... बिंदास....
विश्व - पर यहाँ... करना क्या है....
समीर - अरे हाँ... यह रहा रस्सी और बाल्टी... और यहाँ देख (दो बड़े टीन के डिब्बे दिखाता है) इनको भर के... उस बगीचे में... हर पौधे और हर पेड़ पर पानी डाल जा...
विश्व - ठीक है...

विश्व कुएं में रस्सी से बंधे बाल्टी को कुएं में डाल कर पानी निकाल कर टीन के डिब्बे में डालता है l तब वह देखता है डिब्बे से पानी लीकेज हो रहा है l पानी को डब्बे से रिसते देख विश्व समीर की ओर देखता है l

समीर - देख यह काम.. बॉस ने... मेरे जिम्मे सौंपा है... चल देर मत कर... और चार भी... तेरे इंतजार में हैं...
विश्व - पर यह डब्बा तो फूटा हुआ है... इसमें पानी रिस् रहा है...
समीर - वह मेरे को नहीं पता.... काम नहीं किया तो... तेरे को मैं... पनीश करूंगा.... सोच ले...

विश्व कुछ नहीं कहता है l जल्दी जल्दी कुएं से पानी निकाल कर दोनों डब्बे में एक साथ डालने लगता है l जब दोनों डब्बे आधे से ज्यादा भर जाते हैं तब दोनों डब्बों को लेकर भागता है और पौधों में डाल कर वापस आ जाता है l ऐसा करते करते दो घंटे हो जाते हैं l सारे पौधे और पेड़ों में पानी डालने के बाद थक कर कुएं के दीवार के सहारे बैठ जाता है l तभी उसे वसंत आवाज़ देता है

वसंत - ऑए... चल आ.. इधर आजा...
विश्व - (हांफते हुए मुश्किल से उठता है) जी आया... (वसंत के पास पहुंच कर झुक कर अपने घुटनों पर हाथ रख कर) जी.. कहिए...
वसंत - यह ले पी ले... (एक ग्लास में दूध जैसा कुछ देता है)
विश्व - जी नहीं.... रहने दीजिए...
वसंत - अबे पी ले... आज दिन भर तुझे मेहनत करनी है... खाना तो मिलने से रहा... इसलिए इसे पी... और आजा... तुझे.. काम पे लगा दूँ... (विश्व को भूख लग रही थी, इसलिए वसंत से ग्लास लेता है और पी जाता है) शाबाश... अब आजा मेरे पीछे....

विश्व वसंत के साथ एक कमरे में आता है तो देखता है कि उस कमरे के फर्श पर पानी तैर रही है l वसंत उसे एक बाल्टी देता है और एक कपड़े का पोछा l

वसंत - चल जल्दी से... पोछा मार और कमरे को सूखा दे.... पर मैं जैसे कहूँगा वैसे करना होगा... पहले ऐसे (फर्श पर पोछा डालकर बाहर से अंदर तक लाता है और निचोड़ता है) बाहर से अंदर करना है... पर अंदर से बाहर नहीं... समझा... दाएं हाथ में आधा कमरा और बाएं हाथ से आधा.... अगर कुछ गड़बड़ किया तो...

विश्व वसंत के हाथों से कपड़े के पोछे को लेकर फ़र्श पर डाल कर बाल्टी में निचोड़ता है l पानी बाल्टी में गिरता है और फ़िर से पोछे को फर्श पर लगा कर बाल्टी में निचोड़कर देखता है कि यह बाल्टी में भी हल्का लीकेज है l पर विश्व इसबार कुछ कहता नहीं l चुपचाप पोछा लगा कर पानी निचोड़ने लगा l बाल्टी के भरते ही पानी बाहर फेंक कर वापस पोछा लगाने लगा l ऐसे करते करते उसे एक घंटा लग जाता है l

वसंत - वाह... क्या बात है... लगता है... ऐसे कामों की आदत है तुझे... (विश्व कुछ नहीं कहता है पर उसके चेहरे पर थकान साफ दिख रहा है) चल कोई नहीं... हरीश के पास जा.... अब वह तेरा इंतजार कर रहा है...

विश्व कमरे से बाहर निकालता है l बाहर उसे हरीश देखता है और इशारे से अपने पास बुलाता है l विश्व थके कदमों से उसके पास पहुंचता है l हरीश भी वही दुध वाला मिश्रण बड़े से ग्लास में विश्व को देता है l विश्व को भूक मारे बुरा हाल हो चुका है वह बिना देरी किए वह दूध वाला मिश्रण पी लेता है l ग्लास में वह पेय खतम होते ही हरीश उससे ग्लास ले लेता है

हरीश - चल बहुत थक गया है.... जा पांच नंबर घर में जा.... बॉस वहीँ हैं... वहाँ पर कुछ देर रुक... फिर मैं तुझे काम के लिए बुलाऊंगा... (विश्व कुछ समझ नहीं पाता वह हरीश की ओर सवालिया नजर से देखता है) अबे जा ना.... कभी किसी हैंडसम लड़के को नहीं देखा क्या.... ऐ.. इ... देख मैं तेरे को बोल दे रहा हूँ... मैं ऐसा वैसा लड़का नहीं हूँ.... आंये.... वैसे तु भी कम चिकना नहीं है... ऑफर करेगा तो सोचूंगा...

विश्व उसकी बातें सुनकर वहाँ से बिना पीछे मुड़े पांच नंबर घर की ओर चला जाता है l वह एक विशाल कमरा है जो कि एक जीम है l उस जीम में एक बेंच पर डैनी लेटा हुआ है और वेट लिफ्टिंग कर रहा है l उसके पास ही समीर, वसंत और चित्त खड़े हैं l

डैनी - ( वेट लिफ्टिंग करते हुए) आह...ओ विश्व... कैसा लग.... रहा है...

विश्व चुप रहता है l उसे चुप देख कर डैनी पास खड़े अपने बंदो को इशारा करता है l वसंत और चित्त डैनी के हाथ से वह वेट ले लेते हैं l समीर डैनी को टवेल देता है l डैनी अपना पसीना पोंछ कर उसी बेंच पर बैठते हुए

डैनी - क्यूँ हीरो... फट रही है ना... (विश्व चुप रहता है) अभी थोड़ा सुस्ता ले... पूरा दिन बचा है....
विश्व - आप मुझसे श्रम तो करवा रहे हैं.... पर यह दूध बादाम वाला मिश्रण पीला क्यूँ रहे हैं...
डैनी - अच्छा.... उस दूध के ग्लास में... क्या क्या मिला हुआ है बता...
विश्व - दूध में.. घी, शहद, पिस्ता बादाम और शायद मिश्री भी...
डैनी - वाह लौंडे... बहुत अच्छे... वह क्या है ना.... आज पहला दिन है रे.... और अपने पास डेढ़ साल है... तब तक तेरे को... चुस्त, दुरुस्त और तंदुरुस्त रहना है... यह मेरे टॉर्चर का... अपना स्टाइल है... मैं खिलाता हूँ... और जी भरने तक तुझसे जो मर्जी होगी वह करवाऊंगा... सो वेलकम तो माय टॉर्चर वर्ल्ड.... अब से तु... मेरे और मेरे पंटरों के बताए सारे काम करेगा... जहां नहीं कर पाया... वहाँ तुझे पनीश किया जाएगा....(बेंच से उठ कर) और हाँ... यह ड्रिंक... तुझे दिन में दस बार पीने को मिलेगा... और यहाँ खाने को चार बार मिलेगा.... हाँ वह भी हमारे तय किए गए मेन्यू के हिसाब से.... हाँ यह और बात है कि... तेरा पेट नहीं भरेगा... ( एक मोटे से काठ के बने विंग-चुंग के सामने खड़ा हो जाता है, और अपना हाथ चलाने लगता है) तुझे अब हरीश दो कांटे दार ब्रश देगा... उससे दीवार से चुना उतारना होगा... वह जैसा कहेगा... बिल्कुल वैसे ही.... उसके बाद चित्त तुझे जैसे रोटी बनाने को कहेगा... बिल्कुल वैसे ही रोटी अपने लिए और हमारे लिए बनाएगा... फिर प्रणब तुझे... उन्हीं दीवारों पर चुना लगाने के लिए ले जाएगा.... वह जैसे जैसे बोलेगा... तु बिल्कुल वैसे ही करना... अगर कोई कंप्लेंट नहीं रहा... तो जल्दी काम निपटा के चले जाना....

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एक भैंस के माथे पर सिंदूर लगा कर राजगड़ के हर गली में ढोल नगाड़े बजा कर घुमाया जा रहा है l घुमाने वाले लोग हैं क्षेत्रपाल महल में काम करने वाले नौकर l यह नजारा देख कर जहां गांव के छोटे बच्चे उस भैंस के पीछे हो लेते हैं वहीँ कुछ लोग अपने ल़डकियों को घर के अंदर जबरदस्ती भेज दे रहे हैं lवह भैंस और उसके साथ का काफ़िला मुख्य चौक से गुजरता है l मुख्य चौक पर वैदेही लीज पर लिए घर को एक दुकान की तरह सजा रही है l तभी उसका ध्यान गुज़र रहे काफिले पर पड़ती है l सिर्फ़ वैदेही ही नहीं वहाँ पर जितने भी लोग थे उस काफिले को देख रहे थे l कुछ लोग घबराए हुए भी थे l वह लोग आने वाले समय में, आने वाले खतरे के बारे सोच कर घबरा रहे थे l

लक्ष्मी - हे भगवान... अब क्या होगा....
वैदेही - क्यूँ... क्या होगा...
लक्ष्मी - क्या.. तुम नहीं जानती...
वैदेही - नहीं... क्या है यह...
लक्ष्मी- ओह... शायद... तुमने कभी यह सब... देखा नहीं होगा...
वैदेही - नहीं देखा है... क्या है यह....

लक्ष्मी चुप हो जाती है, वह वैदेही को क्या कहे उसे समझ में नहीं आता है l तभी वहाँ पर गौरी पहुंचती है l

कुसुम - लगता है... आज युवराज जी का... क्षेत्रपाल परावर्तन होगा....
वैदेही - क्या... यह क्षेत्रपाल परावर्तन क्या है....
लक्ष्मी - क्या सच में वैदेही... तुम कुछ नहीं जानती....
कुसुम - नहीं जानती होगी... ऐसा पहले पच्चीस साल पहले हुआ था.... तब राजा साहब के लिए... एक भैंस की बलि चढ़ाया गया था... अब उनके बेटे के लिए... काली परंपरा को... आगे बढ़ाने के लिए....
वैदेही - क्या....
लक्ष्मी - पता नहीं... अब किसके भाग्य फुटेंगे... या फुट चुकी होगी...

वैदेही को अब कुछ कुछ समझ में आने लगता है फिर भी वह उन दोनों को सवालिया नज़रों से देखती है l

कुसुम - कोई उठा ली गई होगी... जिसकी... जबरदस्ती नथ उतारी जाएगी...

वैदेही की आँखे एक अंदरुनी दर्द के मारे बड़ी हो जाती है l उसे अपना वह वीभत्स घड़ी याद आती है l उसके तन-बदन पर खौफ की एक सिहरन दौड़ जाती है l

लक्ष्मी - इन क्षेत्रपालों से बचाने के लिए... बचपन में मेरी माँ ने मेरे साथ जो किया था... मेरी बेटी के साथ वही मुझे करना पड़ेगा....
वैदेही - क्या किया था... तेरी माँ ने...
लक्ष्मी - (अपने दुपट्टे को चेहरे से हटा देती है, तो उसके चेहरे पर बहुत पुराने जले हुए निशान दिखते हैं) मेरी माँ ने... तब रोते हुए... मुझसे माफ़ी मांगते हुए... जलती हुई लकड़ी को मेरे चेहरे पर लगा दिआ था....

वैदेही उसके चेहरे पर उन जले निशानों को देख कर सोच रही थी, कुसुम ने उस वक्त सिर्फ़ बाहरी दर्द को झेला होगा पर उसकी माँ को तो वह दर्द रूह तक महसुस हुई होगी l

वैदेही - कुसुम... जो तेरी माँ ने किया... शायद उस समय उसके पास... तुझे बचाने के लिए कोई रास्ता नहीं था....
कुसुम - हाँ...
लक्ष्मी - अरे इन क्षेत्रपालों के डर से... मेरी शादी मेरी माहवारी शुरू होने के साल में ही कर दी गई थी....
वैदेही - सुनो... तुम दोनों मेरी बात को गौर से सुनो... और हो सके तो.... गांव के हर घर में... ऐसा करने के लिए... कहो....
दोनों - क्या....
वैदेही - आज से... गाँव के... हर लड़की को... सर से लेकर पांव तक... नीम के तेल लगाओ...
दोनों - पर नीम के तेल तो बदबूदार होता है ना....
वैदेही - हाँ यही बदबू... हमारी घर की बेटियों को... उन शैतानों से बचाएगी.... (वह दोनों वैदेही को अविश्वास से देखते हैं) मेरा विश्वास करो... यह परखा हुआ है....

उधर क्षेत्रपाल महल में अपने कमरे में विक्रम बैठा हुआ है l उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा है l वह खुद को आईने में देख रहा है और खुद से बातेँ कर रहा है l
- मैं यह कर रहा हूँ... क्यूँ कर रहा हूँ... मैं अब क्या करूँ... कल को अगर शुभ्रा को पता चला तो... मैं उनका सामना कैसे करूँगा... सच में... हमारा रिश्ता... ब्यूटी एंड बीस्ट की होगी... एक तरफ खूबसूरती और मासूमियत दुसरी तरफ मेरी अंदर की हैवानियत... नहीं नहीं... मुझे कुछ करना होगा... पर क्या करूँ...

तभी दरवाजे पर दस्तक होती है l विक्रम पलट कर देखता है एक नौकर सर झुकाए वहाँ खड़ा है l

विक्रम - क्या है....
नौकर - हुकुम... बड़े राजा जी ने... आपको उपस्थित होने के लिए कहा है...
विक्रम - ठीक है....

विक्रम उस नौकर के साथ नागेंद्र के कमरे के बाहर पहुंचता है l नौकर अंदर जाता है और थोड़ी ही देर बाद वापस आकर अंदर जाने के लिए कहता है l विक्रम अंदर जाकर देखता है नागेंद्र मुख्य कुर्सी पर बैठा हुआ है उसके अगल और बगल में भैरव और पिनाक बैठे हुए हैं l

नागेंद्र - आइए... युवराज... आइए... कितना यादगार दिन है आज.... एक ही कमरे में तीन पीढ़ियां एकत्रित हैं... आज आप पुर्ण रुप से.... क्षेत्रपाल बन जाएंगे....

तीनों बड़ों को यह एहसास होता है कि विक्रम बिल्कुल भी खुश नहीं है l उल्टा खीज रहा है l

नागेंद्र - क्या बात है युवराज.... आप खुश नहीं हैं.... आप खामोश क्यूँ हैं.... आपका अधिकार क्षेत्र बढ़ जाएगा.... और आपका दर्जा.... राजा साहब के बगल में बैठ कर निर्णय ले सकेंगे... अब आप सभी बैठक में बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले सकेंगे....
विक्रम - वह सब करने के लिए... यह कैसा परंपरा है... जिससे हमे गुजरना होगा.... एक बेजुबान जानवर की बलि चढ़ेगी... और एक मासूम अपनी अस्मत हारेगी....
नागेंद्र - आप सही कह रहे थे... छोटे राजा जी... हमारे युवराज... खुद को... क्षेत्रपाल बनाने से... कतरा रहे हैं.... (भैरव सिंह को) राजा जी... अब आप युवराज जी को समझाएं... और उन्हें मानसिक रूप से तैयार करें....
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एक भैंस के माथे पर सिंदूर लगा कर और फूलों की माला पहना कर राजगड़ के गलियों में ढोल नगाड़े बजा कर घुमाया जा रहा है l घुमाने वाले सभी लोग क्षेत्रपाल महल में काम करने वाले नौकर हैं l यह नजारा देख कर जहां गांव के छोटे बच्चे उस भैंस के पीछे हो लेते हैं वहीँ कुछ लोग अपने ल़डकियों को घर के अंदर जबरदस्ती भेज दे रहे हैं l वह भैंस और उसके साथ का काफ़िला मुख्य चौक से गुजरता है l मुख्य चौक पर वैदेही लीज पर लिए घर को एक दुकान की तरह सजा रही है l तभी उसका ध्यान गुज़र रहे काफिले पर पड़ती है l सिर्फ़ वैदेही ही नहीं वहाँ पर जितने भी लोग थे उस काफिले को देख रहे थे l कुछ लोग घबराए हुए भी थे l वह लोग आने वाले समय में, आने वाले खतरे के बारे सोच कर घबरा रहे थे l

लक्ष्मी - हे भगवान... अब क्या होगा....
वैदेही - क्यूँ... क्या होगा...
लक्ष्मी - क्या.. तुम नहीं जानती...
वैदेही - नहीं... क्या है यह...
लक्ष्मी- ओह... शायद... तुमने कभी यह सब... देखा नहीं होगा...
वैदेही - नहीं देखा है... क्या है यह....

लक्ष्मी चुप हो जाती है, वह वैदेही को क्या कहे उसे समझ में नहीं आता है l तभी वहाँ पर कुसुम पहुंचती है l

कुसुम - लगता है... आज युवराज जी का... क्षेत्रपाल परावर्तन होगा....
वैदेही - क्या... यह क्षेत्रपाल परावर्तन क्या है....
लक्ष्मी - क्या सच में वैदेही... तुम कुछ नहीं जानती....
कुसुम - नहीं जानती होगी... ऐसा पहले पच्चीस साल पहले हुआ था.... तब राजा साहब के लिए... एक भैंस की बलि चढ़ाया गया था... अब उनके बेटे के लिए... काली करतूतों वाली परंपरा को... आगे बढ़ाने के लिए....
वैदेही - (हैरान हो कर) क्या....
लक्ष्मी - पता नहीं... अब किसके भाग्य फुटेंगे... या फुट चुकी होगी...

वैदेही को अब कुछ कुछ समझ में आने लगता है फिर भी वह उन दोनों को सवालिया नज़रों से देखती है l

कुसुम - कोई उठा ली गई होगी कहीं से... जिसकी... आज जबरदस्ती नथ उतारी जाएगी... छी.... इसे परंपरा कहते हैं...

वैदेही की आँखे एक अंदरुनी दर्द के मारे बड़ी हो जाती है l उसे अपना वह वीभत्स घड़ी याद आती है l उसके तन-बदन पर खौफ की एक सिहरन दौड़ जाती है l

लक्ष्मी - इन क्षेत्रपालों से बचाने के लिए... बचपन में मेरी माँ ने मेरे साथ जो किया था... मेरी बेटी के साथ मुझे अब वही करना पड़ेगा....
वैदेही - क्या किया था... तेरी माँ ने...
लक्ष्मी - (अपने दुपट्टे को चेहरे से हटा देती है, तो उसके चेहरे पर बहुत पुराने जले हुए निशान दिखते हैं) मेरी माँ ने... तब रोते हुए... मुझसे माफ़ी मांगते हुए... जलती हुई लकड़ी को मेरे चेहरे पर लगा दिआ था....

वैदेही उसके चेहरे पर उन जले निशानों को देख कर सोच रही थी, कुसुम ने उस वक्त सिर्फ़ बाहरी दर्द को झेला होगा पर उसकी माँ को तो वह दर्द रूह तक महसुस हुई होगी l

वैदेही - कुसुम... जो तेरी माँ ने किया... शायद उस समय उसके पास... तुझे बचाने के लिए कोई रास्ता नहीं था....
कुसुम - हाँ...
लक्ष्मी - अरे इन क्षेत्रपालों के डर से... मेरी शादी मेरी माहवारी शुरू होने के साल में ही कर दी गई थी....भले ही कुछ सालों से क्षेत्रपालों की ओर से कोई अगवा नहीं हुआ है.... पर अब क्षेत्रपाल परिवार का नया खेप तैयार हो रहा है... पता नहीं आगे क्या होगा....
वैदेही - सुनो... तुम दोनों मेरी बात को गौर से सुनो... और हो सके तो.... गांव के हर घर में... ऐसा करने के लिए... कहो....
दोनों - क्या....
वैदेही - आज से... गाँव के... हर लड़की को... सर से लेकर पांव तक... नीम के तेल लगाओ... और हो सके तो खुद भी लगाया करो....
दोनों - पर नीम के तेल तो बदबूदार होता है ना....
वैदेही - हाँ यही बदबू... हमारी घर की बेटियों को... उन शैतानों से बचाएगी.... (वह दोनों वैदेही को अविश्वास से देखते हैं) मेरा विश्वास करो... यह कुछ दिन पहले मेरा परखा हुआ है....

उधर क्षेत्रपाल महल में अपने कमरे में विक्रम बैठा हुआ है l उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा है l वह खुद को आईने में देख रहा है और खुद से बातेँ कर रहा है l
- मैं यह कर रहा हूँ... क्यूँ कर रहा हूँ... मैं अब क्या करूँ... कल को अगर शुभ्रा जी को पता चला तो... मैं उनका सामना कैसे करूँगा... सच में... हमारा रिश्ता... ब्यूटी एंड बीस्ट की होगी... एक तरफ उनकी खूबसूरती और मासूमियत.... दुसरी तरफ मेरी अंदर की बेवफाई और हैवानियत... नहीं नहीं... मुझे कुछ करना होगा... पर क्या करूँ...

तभी दरवाजे पर दस्तक होती है l विक्रम पलट कर देखता है एक नौकर सर झुकाए वहाँ खड़ा है l

विक्रम - क्या है....
नौकर - हुकुम... बड़े राजा जी ने... आपको उपस्थित होने के लिए कहा है...
विक्रम - ठीक है....

विक्रम उस नौकर के साथ नागेंद्र के कमरे के बाहर पहुंचता है l नौकर अंदर जाता है और थोड़ी ही देर बाद वापस आकर अंदर जाने के लिए कहता है l विक्रम अंदर जाकर देखता है नागेंद्र मुख्य कुर्सी पर बैठा हुआ है उसके अगल और बगल में भैरव और पिनाक बैठे हुए हैं l

नागेंद्र - आइए... युवराज... आइए... कितना यादगार दिन है आज.... एक ही कमरे में तीन पीढ़ियां एकत्रित हैं... आज आप पुर्ण रुप से.... क्षेत्रपाल बन जाएंगे.... अच्छा होता... हम तीन पीढ़ी... रंगमहल में इकट्ठे हो पाते... पर हमारा स्वास्थ हमे इससे महरूम कर रहा है.... फ़िर भी... हमारी शुभकामनाएं हैं आपके साथ...

वहाँ पर बैठे तीनों बड़ों को यह एहसास होता है कि विक्रम बिल्कुल भी खुश नहीं है l उल्टा खीज रहा है l

नागेंद्र - क्या बात है युवराज.... आप खुश नहीं हैं.... आप खामोश क्यूँ हैं.... आपका अधिकार क्षेत्र बढ़ जाएगा.... और आपका दर्जा.... राजा साहब के बगल में बैठ कर निर्णय ले सकेंगे... अब आप सभी बैठक में बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले सकेंगे....
विक्रम - वह सब करने के लिए... यह कैसा परंपरा है... जिससे हमे गुजरना होगा.... एक बेजुबान जानवर की बलि चढ़ेगी... और एक मासूम अपनी अस्मत हारेगी....
नागेंद्र - आप सही कह रहे थे... छोटे राजा जी... हमारे युवराज... खुद को... क्षेत्रपाल बनाने से... कतरा रहे हैं.... (भैरव सिंह को) राजा जी... अब आप युवराज जी को समझाएं... और उन्हें मानसिक रूप से तैयार करें....
भैरव - जी बड़े राजा जी... (विक्रम को देख कर) यह क्या है युवराज.... आज आप सही मायने में... क्षेत्रपाल बन जाएंगे...

विक्रम सर झुकाए चुप चाप खड़ा है और अपने दाहिने पैर के अंगुठे से फर्श कुरेद रहा है l

भैरव - युवराज.... (आवाज़ कड़क कर) आप को... हो क्या गया है.... यह मत भूलिए.... आप के रगों में... क्षेत्रपाल वंश के रक्त बह रहा है....
नागेंद्र - आप... समझा नहीं रहे हैं... राजा जी....(विक्रम से) युवराज.... यह वंशानुगत परंपरा है... यह याद रखें... जिनके राज में... राज शाही घुटने टेक रहे थे... उन्हीं के राज में हमारे पुरखों ने... अपनी राजशाही की नींव डाली थी... अपना झंडा ना सिर्फ फहराया था.... बल्कि मनवाया भी था... आपको उन महान आत्मा के अनुगत एवं अनुरक्त होना चाहिए... इस परंपरा का निर्वाह कर.... आप उनके द्वारा हासिल किए गए और स्थापित किए गए राज शाही का सम्मान करेंगे....

विक्रम का सर वैसे ही झुका हुआ देख पिनाक कुछ कहने को होता है तो नागेंद्र उसे रोक देता है l

नागेंद्र - आप इतिहास उठा कर देख लें.... हर राज शाही में अपनी पत्नियों के लिए अंतर्महल रहा है और एक रंग महल रहा है... दासियों की परंपरा इस संसार में जब से राजशाही आया है... तब से है... यह इसलिए भी था... ताकि कभी कोई औरत किसी राजा का... कमजोरी ना बन जाए... रंगमहल के रंग में रंगने वाला राजा हर मोहपाश से मुक्त होता है.... और रंगमहल ही प्रजा में पनप रहे विद्रोह की भाव को दबा देता है.... पहले रंगमहल में सिर्फ़ दासियां हुआ करती थी.... पर आजादी के बाद भी इस परंपरा को स्वर्गीय सौरव सिंह क्षेत्रपाल जी कायम रखा.... जिसके विरुद्ध पाइकराय परिवार ने बगावत की.... उसके बाद आपके परदादा रुद्र सिंह क्षेत्रपाल जी ने उस विद्रोह को ऐसे कुचला... के आज सरकार कोई भी आए.... हमारे राजशाही के आगे नतमस्तक रहते हैं.... आप इस परंपरा से मुहँ फ़ेर कर.... विद्रोह को मौका ना दें.... जाइए... अपने कमरे में.... स्वयं को तैयार रखें.... आज आपको राजा जी और छोटे राजा जी दोनों... रंगमहल लेकर जाएंगे... जाइए....

विक्रम कमरे से बाहर निकल जाता है l उसके जाते ही नागेंद्र पिनाक को देखता है l

पिनाक - आप... अपने रक्त पर विश्वास रखें... बड़े राजा जी...
नागेंद्र - हमें... हमारे वंश बीज पर विश्वास है... छोटे राजा जी... पर यह उम्र भटकाती है... भुवनेश्वर में कहीं कोई लड़की का चक्कर तो नहीं.....
पिनाक - नहीं... हमे ऐसा नहीं लगता... आज के आधुनिक समाज में... युवराज जी पुराने परंपरा को निर्वाह करने से कतरा रहे हैं....
नागेंद्र - तो... आप उन्हें तैयार कैसे करेंगे....
पिनाक - (एक कुटील मुस्कान अपने चेहरे पर लाकर) यश वर्धन नाम की महिमा है.... हमे यश वर्धन जी कृपा से राजपाठ प्राप्त है.... और यश वर्धन के माया से युवराज आज पुर्ण क्षेत्रपाल होंगे.... (पिनाक की हँसी गहरी हो जाती है)

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शाम को तापस के कैबिन में तापस के सामने जगन और दास दोनों खड़े हैं l तापस अपनी ठुड्डी पर अपने दाहिने हाथ की अंगूठा फ़ेर रहा है l

दास - सर...
तापस - हूँ....
दास - आप क्या सोच रहे हैं..
तापस - एक कार्टून याद आ रही है...
दास - कैसी कार्टून सर....
तापस - जगन को वाच टावर से डैनी और उसके गैंग पर नजर रखने के लिए कहा था.... ज़वाब में जगन जो रिपोर्ट दी... उससे वह कार्टून याद आ रही है....
जगन - हाँ सर.... आज विश्व से उन लोगों ने.... बेवजह बहुत मेहनत करवाया.... इतना के वह शाम होते होते ठीक से चल भी नहीं पा रहा है.....
दास - सर इसमे हम क्या कर सकते हैं.... राजी तो विश्व ही हुआ था.... वैसे वह कार्टून क्या था सर....
तापस - एक गधे की गाड़ी को भगाने के लिए... उस गाड़ी के मालिक ने... एक लंबे से लकड़ी के आगे एक गाजर को धागे से लटका देता है.... गधा उस गाजर को अपने सामने देख कर खाने के लिए झपटता है.... पर गाजर उसके मुहँ के पास आता तो है... पर पहुंच नहीं पाता... गधा अपना पुरा जोर लगा कर दौड़ता है... सफर खतम होता है... पर फिर भी गधे को गाजर नहीं मिलता है... अब समझे कुछ....
दास - जी सर... यहाँ गधा विश्व है... बीए की डिग्री गाजर और उस गाड़ी का मालिक डैनी... पर यहाँ... डैनी कौनसी सफ़र की तैयारी कर रहा है....
तापस - यही तो मेरे समझ में नहीं आ रहा है... विश्व... पहले बेचारा था.... अब और भी बेचारा हो जाएगा.... चलो चल कर देखते हैं... क्या हालत है उसकी...

सब मिलकर विश्व के सेल के पास आते हैं l विश्व अपने बिस्तर पर पेट के बल पड़ा हुआ है l दर्द भरे हल्के कराह से उसका कमरा गूंज रहा है l

- विश्व... (तापस आवाज देता है)
विश्व - (बिना पलटे) जी सर... (आवाज़ में थकान और दर्द साफ महसुस होती है)
तापस - क्या हम बात कर सकते हैं....
विश्व - (पलटता है) जी... (मुश्किल से बैठता है)
तापस - (जगन को इशारा करता है, तो जगन सेल की दरवाजा खोल देता है, तापस अंदर आता है) विश्व... आज दोपहर को मैं... बाजार गया था.... वहाँ से तुम्हारे कामकी सारी किताबें खरीद ली... सोचा तुम्हें दे दूँ...
विश्व - (आखों में चमक आ जाती है) क्या... म... मैं... आपका आभारी रहूँगा.... (हाथ जोड़ कर) क्या वह किताबें... मुझे अभी दे सकते हैं...
तापस - जरूर... वैसे क्या तुम... (कुछ रुक रुक कर) मेरे साथ... लाइब्रेरी तक जाना चाहोगे....
विश्व - (खुशी के मारे) जी... जी ज़रूर... (विश्व उठ कर खड़ा हो जाता है)

तापस और उसके साथ साथ दास और जगन तक हैरान हो जाते हैं l विश्व के भीतर पढ़ाई को लेकर जुनून को देखकर l विश्व को लेकर तीनों लाइब्रेरी में पहुंचते हैं l विश्व देखता है टेबल के ऊपर उसके दरकार के सभी किताबें रखी हुई हैं l विश्व की आंखे छलक जाती हैं l उसके हाथ अपने आप तापस के आगे जुड़ जाते हैं l

तापस - (उसके हाथों को पकड़ कर) नहीं विश्व... मैं इस लायक नहीं हूँ... पर मुझे खुशी है कि तुममे.... पढ़ाई को लेकर ग़ज़ब का जुनून है... इतने कड़े मेहनत के बाद... तुम जिस्मानी तौर पर टूटे हुए लग रहे थे.... पर ऐसा लग रहा है... के क्या कहूँ... तुममे नई ताजगी दिख रही है....
विश्व - (अपना हाथ जोड़ कर) सर जयंत सर ने एक बार कहा था... सर कटाने की तमन्ना अब हमारे दिल में है...
देखना है जोर कितना बाजू ए क़ातिल में है....
डैनी सर भले ही हज़ारों ज़ख्म दें... पर आज आपने मेरे हर ज़ख़्म की दवा कर दी है.... थैंक्यू... सर... बहुत बहुत थैंक्यू...

विश्व की बातों से तापस के दिल में अजीब सा सुकून मेहसूस होता है l वह विश्व के हाथों को पकड़ कर

तापस - बस बस... विश्व.. बस... तुम्हारा यह रिएक्शन देख कर मैं भी बहुत खुश हुआ हूँ... अब यह लो.. (एक चाबी देकर) यह इस लाइब्रेरी की एक्स्ट्रा चाबी है.... यहाँ कोई आता नहीं है... तुम अपनी पढ़ाई यहाँ आकर कर लेना... तुम्हें कोई डिस्टर्ब भी नहीं करेगा....

विश्व कुछ नहीं कह पाता, तापस से अपनी कृतज्ञता कैसे व्यक्त करे वह समझ नहीं पाता l वह तापस के गले लग जाता है l विश्व के अचानक गले लगने से तापस हड़बड़ा जाता है पर थोड़ी देर बाद खुद को सम्भाल कर विश्व को गले लगा कर दिलासा देता है
Nice and beautiful update...
 

Lib am

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अगले दिन
सेंट्रल जैल
सुबह के पांच बजे विश्व स्पेशल बैरक के बाहर पहुंचता है l बैरक के बाहर दरवाजे पर दस्तक देता है, अंदर एक संत्री दरवाज़े पर बने छोटी खिड़की से विश्व को देख कर दरवाज़ा खोलता है l विश्व अंदर आता है, अंदर एक और दरवाज़ा होता है संत्री वह दरवाज़ा भी खोल देता है l विश्व अब स्पेशल बैरक के अंदर आ जाता है और अंदर की हालत देख कर हैरान हो जाता है l जैल के भीतर एक ऐसी जगह भी है, अंदर एक अलग दुनिया बसी है उसे ऐसा लगता है, जैसे यह हिस्सा कोई जैल है ही नहीं बल्कि कोई कॉलोनी है l सात घर पास पास है, जैसे कोई स्कुल होता है l पेड़ पौधों से भरा एक मैदान भी है पास सट कर, पर कहीं कोई लोग दिख नहीं रहे हैं l तभी एक कैदी विश्व के पास आता है l

कैदी - विश्व जाओ... तीन नंबर के रूम में... डैनी भाई वहीँ पर... तुम्हारा इंतजार कर रहा है...

विश्व तीन नंबर कमरे में पहुंचता है l डैनी दातुन से अपना दांत साफ करते दिखता है l विश्व को देखते ही

डैनी - आ लौंडे आ.... बोल रात तेरी कैसी गई... तेरेको नींद तो ठीक से आई ना... (विश्व अपना सर हिला कर हाँ कहता है) संढास वगैरह कर लिया है ना... (विश्व फिर से सर हिला कर हाँ कहता है) अबे... मेरी गुलामी के लिए... हामी भरी है तुने.... इस खुशी में... अपनी मुहँ में कुछ ठूंस लिया है... क्या...
विश्व - डैनी भाई... कहिए... कहां से शुरू करूँ और.... क्या क्या करूँ...
डैनी - अरे वाह... लौंडे में... बड़ा जोश है...पहले मेरे पंटर लोगों का इंट्रो लेले... (आवाज़ देता है) किधर हो रे... पंटर लोग... आओ इधर...

पहले वाले कैदी के पास और चार कैदी और आकर खड़े हो जाते हैं l विश्व उन सबको देख कर हैरान हो जाता है l क्यूँकी एक कैदी वह था जिसने परसों खाना सर्व कर रहा था और विश्व को डैनी से दूर रहने और बात ना करने के लिए कहा था और एक कैदी वही है जो रंगा के ग्रुप में था, मगर चुप रहता था बोलता कुछ भी नहीं था, और बाकी कैदियों को विश्व हमेशा दूसरों के ग्रुप में देखा है l

डैनी - क्यूँ बे... यूँ आँखे फाड़े देख क्या रहा है बे... यह सब मेरे पंटर हैं... जो इस जैल के हर कोने में फैले हुए हैं.... (विश्व चुप रहता है) अब मेरे साथ तुझे यह लोग भी यहाँ पर काम देंगे... और यह लोग... तुझपे नजर भी रखेंगे... जहां तुझसे चूक होगी... वहाँ पर तेरे को पनीश करेंगे.... इसलिए इनको अच्छी तरह से.... पहचान ले.... (पहले कैदी को दिखा कर) यह है समीर.... (वह दुसरा रंगा के ग्रुप में जो था उसे दिखा कर) यह है वसंत..... (तीसरे को दिखा कर) यह है हरीश.... (चौथा) यह प्रणब और यह... (पांचवां) चित्त...

वह पांचो अपनी अपनी आस्तीन उठा कर विश्व को देखने लगते हैं l विश्व उन पर से नजरें हटा लेता है l डैनी उसे देख लेता है और मुस्करा देता है l

डैनी - चल... अभी तेरा पहला टास्क यह है... के यह जो मैदान तुझे दिख रहा है... उस पर मेरे पंटर लोगों ने ईंट से... बाउंड्री बनाए हैं... तुझे इस बाउंड्री के भीतर के सारे घास निकालने हैं...
विश्व - (उस मैदान को देख कर मन में) छोटा ही मैदान है... (उन ईंटों को देख कर) यह ईंट बेवजह रखे हैं... रखा ही क्यूँ... रखना और ना रखना एक बराबर है...
डैनी - कहीं ईंटों को देख कर.... यह तो नहीं सोच रहा है... ईंट रखना और ना रखना एक बराबर है...
विश्व-(हडबड़ा जाता है) नहीं नहीं... नहीं तो...
डैनी - तो फिर शुरू हो जा....
विश्व - कैसे.... मतलब... मैं किससे... मैदान से घास... साफ करूँ...
डैनी - ऑए... पंटर... कुदाल कहाँ है... दो इसे...

समीर कुदाल लाकर विश्व को थमा देता है l विश्व कुदाल लेकर मैदान से घास साफ करने लग जाता है l पूरे एक घंटे बाद सारा मैदान साफ नजर आता है l विश्व अपना नजर घुमाता है तो उसे सिर्फ़ समीर दिखता है l वह समीर के पास आता है l

विश्व - समीर भाई... मैदान साफ हो गया है... अब...
समीर - हाँ... बहुत अच्छे... चल आजा... मैं तेरे को और एक काम देता हूँ...

विश्व को एक कुएं के पास लेकर जाता है, विश्व देखता है कुआं बहुत पुराना और गहरा है l

विश्व - समीर भाई... यहाँ पर नल नहीं है....
समीर - है ना... पर तेरे लिए... यहाँ पर... कुएं की व्यवस्था है...
विश्व - पर जैल के दुसरे हिस्से में... कोई कुआं नहीं है... यहाँ कैसे...
समीर - अरे.... पहले यह हिस्सा कभी... बच्चों का स्कुल हुआ करता था... बाद में यहाँ जब जैल बना.... इस हिस्से को... पोलिटिकल सेल या स्पेशल सेल का दर्जा दिया गया.... तभी तो डैनी भाई यहाँ रहते हैं.... अब बातों से टाइम खोटी मत कर... चल लग जा काम में... बिंदास....
विश्व - पर यहाँ... करना क्या है....
समीर - अरे हाँ... यह रहा रस्सी और बाल्टी... और यहाँ देख (दो बड़े टीन के डिब्बे दिखाता है) इनको भर के... उस बगीचे में... हर पौधे और हर पेड़ पर पानी डाल जा...
विश्व - ठीक है...

विश्व कुएं में रस्सी से बंधे बाल्टी को कुएं में डाल कर पानी निकाल कर टीन के डिब्बे में डालता है l तब वह देखता है डिब्बे से पानी लीकेज हो रहा है l पानी को डब्बे से रिसते देख विश्व समीर की ओर देखता है l

समीर - देख यह काम.. बॉस ने... मेरे जिम्मे सौंपा है... चल देर मत कर... और चार भी... तेरे इंतजार में हैं...
विश्व - पर यह डब्बा तो फूटा हुआ है... इसमें पानी रिस् रहा है...
समीर - वह मेरे को नहीं पता.... काम नहीं किया तो... तेरे को मैं... पनीश करूंगा.... सोच ले...

विश्व कुछ नहीं कहता है l जल्दी जल्दी कुएं से पानी निकाल कर दोनों डब्बे में एक साथ डालने लगता है l जब दोनों डब्बे आधे से ज्यादा भर जाते हैं तब दोनों डब्बों को लेकर भागता है और पौधों में डाल कर वापस आ जाता है l ऐसा करते करते दो घंटे हो जाते हैं l सारे पौधे और पेड़ों में पानी डालने के बाद थक कर कुएं के दीवार के सहारे बैठ जाता है l तभी उसे वसंत आवाज़ देता है

वसंत - ऑए... चल आ.. इधर आजा...
विश्व - (हांफते हुए मुश्किल से उठता है) जी आया... (वसंत के पास पहुंच कर झुक कर अपने घुटनों पर हाथ रख कर) जी.. कहिए...
वसंत - यह ले पी ले... (एक ग्लास में दूध जैसा कुछ देता है)
विश्व - जी नहीं.... रहने दीजिए...
वसंत - अबे पी ले... आज दिन भर तुझे मेहनत करनी है... खाना तो मिलने से रहा... इसलिए इसे पी... और आजा... तुझे.. काम पे लगा दूँ... (विश्व को भूख लग रही थी, इसलिए वसंत से ग्लास लेता है और पी जाता है) शाबाश... अब आजा मेरे पीछे....

विश्व वसंत के साथ एक कमरे में आता है तो देखता है कि उस कमरे के फर्श पर पानी तैर रही है l वसंत उसे एक बाल्टी देता है और एक कपड़े का पोछा l

वसंत - चल जल्दी से... पोछा मार और कमरे को सूखा दे.... पर मैं जैसे कहूँगा वैसे करना होगा... पहले ऐसे (फर्श पर पोछा डालकर बाहर से अंदर तक लाता है और निचोड़ता है) बाहर से अंदर करना है... पर अंदर से बाहर नहीं... समझा... दाएं हाथ में आधा कमरा और बाएं हाथ से आधा.... अगर कुछ गड़बड़ किया तो...

विश्व वसंत के हाथों से कपड़े के पोछे को लेकर फ़र्श पर डाल कर बाल्टी में निचोड़ता है l पानी बाल्टी में गिरता है और फ़िर से पोछे को फर्श पर लगा कर बाल्टी में निचोड़कर देखता है कि यह बाल्टी में भी हल्का लीकेज है l पर विश्व इसबार कुछ कहता नहीं l चुपचाप पोछा लगा कर पानी निचोड़ने लगा l बाल्टी के भरते ही पानी बाहर फेंक कर वापस पोछा लगाने लगा l ऐसे करते करते उसे एक घंटा लग जाता है l

वसंत - वाह... क्या बात है... लगता है... ऐसे कामों की आदत है तुझे... (विश्व कुछ नहीं कहता है पर उसके चेहरे पर थकान साफ दिख रहा है) चल कोई नहीं... हरीश के पास जा.... अब वह तेरा इंतजार कर रहा है...

विश्व कमरे से बाहर निकालता है l बाहर उसे हरीश देखता है और इशारे से अपने पास बुलाता है l विश्व थके कदमों से उसके पास पहुंचता है l हरीश भी वही दुध वाला मिश्रण बड़े से ग्लास में विश्व को देता है l विश्व को भूक मारे बुरा हाल हो चुका है वह बिना देरी किए वह दूध वाला मिश्रण पी लेता है l ग्लास में वह पेय खतम होते ही हरीश उससे ग्लास ले लेता है

हरीश - चल बहुत थक गया है.... जा पांच नंबर घर में जा.... बॉस वहीँ हैं... वहाँ पर कुछ देर रुक... फिर मैं तुझे काम के लिए बुलाऊंगा... (विश्व कुछ समझ नहीं पाता वह हरीश की ओर सवालिया नजर से देखता है) अबे जा ना.... कभी किसी हैंडसम लड़के को नहीं देखा क्या.... ऐ.. इ... देख मैं तेरे को बोल दे रहा हूँ... मैं ऐसा वैसा लड़का नहीं हूँ.... आंये.... वैसे तु भी कम चिकना नहीं है... ऑफर करेगा तो सोचूंगा...

विश्व उसकी बातें सुनकर वहाँ से बिना पीछे मुड़े पांच नंबर घर की ओर चला जाता है l वह एक विशाल कमरा है जो कि एक जीम है l उस जीम में एक बेंच पर डैनी लेटा हुआ है और वेट लिफ्टिंग कर रहा है l उसके पास ही समीर, वसंत और चित्त खड़े हैं l

डैनी - ( वेट लिफ्टिंग करते हुए) आह...ओ विश्व... कैसा लग.... रहा है...

विश्व चुप रहता है l उसे चुप देख कर डैनी पास खड़े अपने बंदो को इशारा करता है l वसंत और चित्त डैनी के हाथ से वह वेट ले लेते हैं l समीर डैनी को टवेल देता है l डैनी अपना पसीना पोंछ कर उसी बेंच पर बैठते हुए

डैनी - क्यूँ हीरो... फट रही है ना... (विश्व चुप रहता है) अभी थोड़ा सुस्ता ले... पूरा दिन बचा है....
विश्व - आप मुझसे श्रम तो करवा रहे हैं.... पर यह दूध बादाम वाला मिश्रण पीला क्यूँ रहे हैं...
डैनी - अच्छा.... उस दूध के ग्लास में... क्या क्या मिला हुआ है बता...
विश्व - दूध में.. घी, शहद, पिस्ता बादाम और शायद मिश्री भी...
डैनी - वाह लौंडे... बहुत अच्छे... वह क्या है ना.... आज पहला दिन है रे.... और अपने पास डेढ़ साल है... तब तक तेरे को... चुस्त, दुरुस्त और तंदुरुस्त रहना है... यह मेरे टॉर्चर का... अपना स्टाइल है... मैं खिलाता हूँ... और जी भरने तक तुझसे जो मर्जी होगी वह करवाऊंगा... सो वेलकम तो माय टॉर्चर वर्ल्ड.... अब से तु... मेरे और मेरे पंटरों के बताए सारे काम करेगा... जहां नहीं कर पाया... वहाँ तुझे पनीश किया जाएगा....(बेंच से उठ कर) और हाँ... यह ड्रिंक... तुझे दिन में दस बार पीने को मिलेगा... और यहाँ खाने को चार बार मिलेगा.... हाँ वह भी हमारे तय किए गए मेन्यू के हिसाब से.... हाँ यह और बात है कि... तेरा पेट नहीं भरेगा... ( एक मोटे से काठ के बने विंग-चुंग के सामने खड़ा हो जाता है, और अपना हाथ चलाने लगता है) तुझे अब हरीश दो कांटे दार ब्रश देगा... उससे दीवार से चुना उतारना होगा... वह जैसा कहेगा... बिल्कुल वैसे ही.... उसके बाद चित्त तुझे जैसे रोटी बनाने को कहेगा... बिल्कुल वैसे ही रोटी अपने लिए और हमारे लिए बनाएगा... फिर प्रणब तुझे... उन्हीं दीवारों पर चुना लगाने के लिए ले जाएगा.... वह जैसे जैसे बोलेगा... तु बिल्कुल वैसे ही करना... अगर कोई कंप्लेंट नहीं रहा... तो जल्दी काम निपटा के चले जाना....

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एक भैंस के माथे पर सिंदूर लगा कर राजगड़ के हर गली में ढोल नगाड़े बजा कर घुमाया जा रहा है l घुमाने वाले लोग हैं क्षेत्रपाल महल में काम करने वाले नौकर l यह नजारा देख कर जहां गांव के छोटे बच्चे उस भैंस के पीछे हो लेते हैं वहीँ कुछ लोग अपने ल़डकियों को घर के अंदर जबरदस्ती भेज दे रहे हैं lवह भैंस और उसके साथ का काफ़िला मुख्य चौक से गुजरता है l मुख्य चौक पर वैदेही लीज पर लिए घर को एक दुकान की तरह सजा रही है l तभी उसका ध्यान गुज़र रहे काफिले पर पड़ती है l सिर्फ़ वैदेही ही नहीं वहाँ पर जितने भी लोग थे उस काफिले को देख रहे थे l कुछ लोग घबराए हुए भी थे l वह लोग आने वाले समय में, आने वाले खतरे के बारे सोच कर घबरा रहे थे l

लक्ष्मी - हे भगवान... अब क्या होगा....
वैदेही - क्यूँ... क्या होगा...
लक्ष्मी - क्या.. तुम नहीं जानती...
वैदेही - नहीं... क्या है यह...
लक्ष्मी- ओह... शायद... तुमने कभी यह सब... देखा नहीं होगा...
वैदेही - नहीं देखा है... क्या है यह....

लक्ष्मी चुप हो जाती है, वह वैदेही को क्या कहे उसे समझ में नहीं आता है l तभी वहाँ पर गौरी पहुंचती है l

कुसुम - लगता है... आज युवराज जी का... क्षेत्रपाल परावर्तन होगा....
वैदेही - क्या... यह क्षेत्रपाल परावर्तन क्या है....
लक्ष्मी - क्या सच में वैदेही... तुम कुछ नहीं जानती....
कुसुम - नहीं जानती होगी... ऐसा पहले पच्चीस साल पहले हुआ था.... तब राजा साहब के लिए... एक भैंस की बलि चढ़ाया गया था... अब उनके बेटे के लिए... काली परंपरा को... आगे बढ़ाने के लिए....
वैदेही - क्या....
लक्ष्मी - पता नहीं... अब किसके भाग्य फुटेंगे... या फुट चुकी होगी...

वैदेही को अब कुछ कुछ समझ में आने लगता है फिर भी वह उन दोनों को सवालिया नज़रों से देखती है l

कुसुम - कोई उठा ली गई होगी... जिसकी... जबरदस्ती नथ उतारी जाएगी...

वैदेही की आँखे एक अंदरुनी दर्द के मारे बड़ी हो जाती है l उसे अपना वह वीभत्स घड़ी याद आती है l उसके तन-बदन पर खौफ की एक सिहरन दौड़ जाती है l

लक्ष्मी - इन क्षेत्रपालों से बचाने के लिए... बचपन में मेरी माँ ने मेरे साथ जो किया था... मेरी बेटी के साथ वही मुझे करना पड़ेगा....
वैदेही - क्या किया था... तेरी माँ ने...
लक्ष्मी - (अपने दुपट्टे को चेहरे से हटा देती है, तो उसके चेहरे पर बहुत पुराने जले हुए निशान दिखते हैं) मेरी माँ ने... तब रोते हुए... मुझसे माफ़ी मांगते हुए... जलती हुई लकड़ी को मेरे चेहरे पर लगा दिआ था....

वैदेही उसके चेहरे पर उन जले निशानों को देख कर सोच रही थी, कुसुम ने उस वक्त सिर्फ़ बाहरी दर्द को झेला होगा पर उसकी माँ को तो वह दर्द रूह तक महसुस हुई होगी l

वैदेही - कुसुम... जो तेरी माँ ने किया... शायद उस समय उसके पास... तुझे बचाने के लिए कोई रास्ता नहीं था....
कुसुम - हाँ...
लक्ष्मी - अरे इन क्षेत्रपालों के डर से... मेरी शादी मेरी माहवारी शुरू होने के साल में ही कर दी गई थी....
वैदेही - सुनो... तुम दोनों मेरी बात को गौर से सुनो... और हो सके तो.... गांव के हर घर में... ऐसा करने के लिए... कहो....
दोनों - क्या....
वैदेही - आज से... गाँव के... हर लड़की को... सर से लेकर पांव तक... नीम के तेल लगाओ...
दोनों - पर नीम के तेल तो बदबूदार होता है ना....
वैदेही - हाँ यही बदबू... हमारी घर की बेटियों को... उन शैतानों से बचाएगी.... (वह दोनों वैदेही को अविश्वास से देखते हैं) मेरा विश्वास करो... यह परखा हुआ है....

उधर क्षेत्रपाल महल में अपने कमरे में विक्रम बैठा हुआ है l उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा है l वह खुद को आईने में देख रहा है और खुद से बातेँ कर रहा है l
- मैं यह कर रहा हूँ... क्यूँ कर रहा हूँ... मैं अब क्या करूँ... कल को अगर शुभ्रा को पता चला तो... मैं उनका सामना कैसे करूँगा... सच में... हमारा रिश्ता... ब्यूटी एंड बीस्ट की होगी... एक तरफ खूबसूरती और मासूमियत दुसरी तरफ मेरी अंदर की हैवानियत... नहीं नहीं... मुझे कुछ करना होगा... पर क्या करूँ...

तभी दरवाजे पर दस्तक होती है l विक्रम पलट कर देखता है एक नौकर सर झुकाए वहाँ खड़ा है l

विक्रम - क्या है....
नौकर - हुकुम... बड़े राजा जी ने... आपको उपस्थित होने के लिए कहा है...
विक्रम - ठीक है....

विक्रम उस नौकर के साथ नागेंद्र के कमरे के बाहर पहुंचता है l नौकर अंदर जाता है और थोड़ी ही देर बाद वापस आकर अंदर जाने के लिए कहता है l विक्रम अंदर जाकर देखता है नागेंद्र मुख्य कुर्सी पर बैठा हुआ है उसके अगल और बगल में भैरव और पिनाक बैठे हुए हैं l

नागेंद्र - आइए... युवराज... आइए... कितना यादगार दिन है आज.... एक ही कमरे में तीन पीढ़ियां एकत्रित हैं... आज आप पुर्ण रुप से.... क्षेत्रपाल बन जाएंगे....

तीनों बड़ों को यह एहसास होता है कि विक्रम बिल्कुल भी खुश नहीं है l उल्टा खीज रहा है l

नागेंद्र - क्या बात है युवराज.... आप खुश नहीं हैं.... आप खामोश क्यूँ हैं.... आपका अधिकार क्षेत्र बढ़ जाएगा.... और आपका दर्जा.... राजा साहब के बगल में बैठ कर निर्णय ले सकेंगे... अब आप सभी बैठक में बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले सकेंगे....
विक्रम - वह सब करने के लिए... यह कैसा परंपरा है... जिससे हमे गुजरना होगा.... एक बेजुबान जानवर की बलि चढ़ेगी... और एक मासूम अपनी अस्मत हारेगी....
नागेंद्र - आप सही कह रहे थे... छोटे राजा जी... हमारे युवराज... खुद को... क्षेत्रपाल बनाने से... कतरा रहे हैं.... (भैरव सिंह को) राजा जी... अब आप युवराज जी को समझाएं... और उन्हें मानसिक रूप से तैयार करें....
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एक भैंस के माथे पर सिंदूर लगा कर और फूलों की माला पहना कर राजगड़ के गलियों में ढोल नगाड़े बजा कर घुमाया जा रहा है l घुमाने वाले सभी लोग क्षेत्रपाल महल में काम करने वाले नौकर हैं l यह नजारा देख कर जहां गांव के छोटे बच्चे उस भैंस के पीछे हो लेते हैं वहीँ कुछ लोग अपने ल़डकियों को घर के अंदर जबरदस्ती भेज दे रहे हैं l वह भैंस और उसके साथ का काफ़िला मुख्य चौक से गुजरता है l मुख्य चौक पर वैदेही लीज पर लिए घर को एक दुकान की तरह सजा रही है l तभी उसका ध्यान गुज़र रहे काफिले पर पड़ती है l सिर्फ़ वैदेही ही नहीं वहाँ पर जितने भी लोग थे उस काफिले को देख रहे थे l कुछ लोग घबराए हुए भी थे l वह लोग आने वाले समय में, आने वाले खतरे के बारे सोच कर घबरा रहे थे l

लक्ष्मी - हे भगवान... अब क्या होगा....
वैदेही - क्यूँ... क्या होगा...
लक्ष्मी - क्या.. तुम नहीं जानती...
वैदेही - नहीं... क्या है यह...
लक्ष्मी- ओह... शायद... तुमने कभी यह सब... देखा नहीं होगा...
वैदेही - नहीं देखा है... क्या है यह....

लक्ष्मी चुप हो जाती है, वह वैदेही को क्या कहे उसे समझ में नहीं आता है l तभी वहाँ पर कुसुम पहुंचती है l

कुसुम - लगता है... आज युवराज जी का... क्षेत्रपाल परावर्तन होगा....
वैदेही - क्या... यह क्षेत्रपाल परावर्तन क्या है....
लक्ष्मी - क्या सच में वैदेही... तुम कुछ नहीं जानती....
कुसुम - नहीं जानती होगी... ऐसा पहले पच्चीस साल पहले हुआ था.... तब राजा साहब के लिए... एक भैंस की बलि चढ़ाया गया था... अब उनके बेटे के लिए... काली करतूतों वाली परंपरा को... आगे बढ़ाने के लिए....
वैदेही - (हैरान हो कर) क्या....
लक्ष्मी - पता नहीं... अब किसके भाग्य फुटेंगे... या फुट चुकी होगी...

वैदेही को अब कुछ कुछ समझ में आने लगता है फिर भी वह उन दोनों को सवालिया नज़रों से देखती है l

कुसुम - कोई उठा ली गई होगी कहीं से... जिसकी... आज जबरदस्ती नथ उतारी जाएगी... छी.... इसे परंपरा कहते हैं...

वैदेही की आँखे एक अंदरुनी दर्द के मारे बड़ी हो जाती है l उसे अपना वह वीभत्स घड़ी याद आती है l उसके तन-बदन पर खौफ की एक सिहरन दौड़ जाती है l

लक्ष्मी - इन क्षेत्रपालों से बचाने के लिए... बचपन में मेरी माँ ने मेरे साथ जो किया था... मेरी बेटी के साथ मुझे अब वही करना पड़ेगा....
वैदेही - क्या किया था... तेरी माँ ने...
लक्ष्मी - (अपने दुपट्टे को चेहरे से हटा देती है, तो उसके चेहरे पर बहुत पुराने जले हुए निशान दिखते हैं) मेरी माँ ने... तब रोते हुए... मुझसे माफ़ी मांगते हुए... जलती हुई लकड़ी को मेरे चेहरे पर लगा दिआ था....

वैदेही उसके चेहरे पर उन जले निशानों को देख कर सोच रही थी, कुसुम ने उस वक्त सिर्फ़ बाहरी दर्द को झेला होगा पर उसकी माँ को तो वह दर्द रूह तक महसुस हुई होगी l

वैदेही - कुसुम... जो तेरी माँ ने किया... शायद उस समय उसके पास... तुझे बचाने के लिए कोई रास्ता नहीं था....
कुसुम - हाँ...
लक्ष्मी - अरे इन क्षेत्रपालों के डर से... मेरी शादी मेरी माहवारी शुरू होने के साल में ही कर दी गई थी....भले ही कुछ सालों से क्षेत्रपालों की ओर से कोई अगवा नहीं हुआ है.... पर अब क्षेत्रपाल परिवार का नया खेप तैयार हो रहा है... पता नहीं आगे क्या होगा....
वैदेही - सुनो... तुम दोनों मेरी बात को गौर से सुनो... और हो सके तो.... गांव के हर घर में... ऐसा करने के लिए... कहो....
दोनों - क्या....
वैदेही - आज से... गाँव के... हर लड़की को... सर से लेकर पांव तक... नीम के तेल लगाओ... और हो सके तो खुद भी लगाया करो....
दोनों - पर नीम के तेल तो बदबूदार होता है ना....
वैदेही - हाँ यही बदबू... हमारी घर की बेटियों को... उन शैतानों से बचाएगी.... (वह दोनों वैदेही को अविश्वास से देखते हैं) मेरा विश्वास करो... यह कुछ दिन पहले मेरा परखा हुआ है....

उधर क्षेत्रपाल महल में अपने कमरे में विक्रम बैठा हुआ है l उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा है l वह खुद को आईने में देख रहा है और खुद से बातेँ कर रहा है l
- मैं यह कर रहा हूँ... क्यूँ कर रहा हूँ... मैं अब क्या करूँ... कल को अगर शुभ्रा जी को पता चला तो... मैं उनका सामना कैसे करूँगा... सच में... हमारा रिश्ता... ब्यूटी एंड बीस्ट की होगी... एक तरफ उनकी खूबसूरती और मासूमियत.... दुसरी तरफ मेरी अंदर की बेवफाई और हैवानियत... नहीं नहीं... मुझे कुछ करना होगा... पर क्या करूँ...

तभी दरवाजे पर दस्तक होती है l विक्रम पलट कर देखता है एक नौकर सर झुकाए वहाँ खड़ा है l

विक्रम - क्या है....
नौकर - हुकुम... बड़े राजा जी ने... आपको उपस्थित होने के लिए कहा है...
विक्रम - ठीक है....

विक्रम उस नौकर के साथ नागेंद्र के कमरे के बाहर पहुंचता है l नौकर अंदर जाता है और थोड़ी ही देर बाद वापस आकर अंदर जाने के लिए कहता है l विक्रम अंदर जाकर देखता है नागेंद्र मुख्य कुर्सी पर बैठा हुआ है उसके अगल और बगल में भैरव और पिनाक बैठे हुए हैं l

नागेंद्र - आइए... युवराज... आइए... कितना यादगार दिन है आज.... एक ही कमरे में तीन पीढ़ियां एकत्रित हैं... आज आप पुर्ण रुप से.... क्षेत्रपाल बन जाएंगे.... अच्छा होता... हम तीन पीढ़ी... रंगमहल में इकट्ठे हो पाते... पर हमारा स्वास्थ हमे इससे महरूम कर रहा है.... फ़िर भी... हमारी शुभकामनाएं हैं आपके साथ...

वहाँ पर बैठे तीनों बड़ों को यह एहसास होता है कि विक्रम बिल्कुल भी खुश नहीं है l उल्टा खीज रहा है l

नागेंद्र - क्या बात है युवराज.... आप खुश नहीं हैं.... आप खामोश क्यूँ हैं.... आपका अधिकार क्षेत्र बढ़ जाएगा.... और आपका दर्जा.... राजा साहब के बगल में बैठ कर निर्णय ले सकेंगे... अब आप सभी बैठक में बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले सकेंगे....
विक्रम - वह सब करने के लिए... यह कैसा परंपरा है... जिससे हमे गुजरना होगा.... एक बेजुबान जानवर की बलि चढ़ेगी... और एक मासूम अपनी अस्मत हारेगी....
नागेंद्र - आप सही कह रहे थे... छोटे राजा जी... हमारे युवराज... खुद को... क्षेत्रपाल बनाने से... कतरा रहे हैं.... (भैरव सिंह को) राजा जी... अब आप युवराज जी को समझाएं... और उन्हें मानसिक रूप से तैयार करें....
भैरव - जी बड़े राजा जी... (विक्रम को देख कर) यह क्या है युवराज.... आज आप सही मायने में... क्षेत्रपाल बन जाएंगे...

विक्रम सर झुकाए चुप चाप खड़ा है और अपने दाहिने पैर के अंगुठे से फर्श कुरेद रहा है l

भैरव - युवराज.... (आवाज़ कड़क कर) आप को... हो क्या गया है.... यह मत भूलिए.... आप के रगों में... क्षेत्रपाल वंश के रक्त बह रहा है....
नागेंद्र - आप... समझा नहीं रहे हैं... राजा जी....(विक्रम से) युवराज.... यह वंशानुगत परंपरा है... यह याद रखें... जिनके राज में... राज शाही घुटने टेक रहे थे... उन्हीं के राज में हमारे पुरखों ने... अपनी राजशाही की नींव डाली थी... अपना झंडा ना सिर्फ फहराया था.... बल्कि मनवाया भी था... आपको उन महान आत्मा के अनुगत एवं अनुरक्त होना चाहिए... इस परंपरा का निर्वाह कर.... आप उनके द्वारा हासिल किए गए और स्थापित किए गए राज शाही का सम्मान करेंगे....

विक्रम का सर वैसे ही झुका हुआ देख पिनाक कुछ कहने को होता है तो नागेंद्र उसे रोक देता है l

नागेंद्र - आप इतिहास उठा कर देख लें.... हर राज शाही में अपनी पत्नियों के लिए अंतर्महल रहा है और एक रंग महल रहा है... दासियों की परंपरा इस संसार में जब से राजशाही आया है... तब से है... यह इसलिए भी था... ताकि कभी कोई औरत किसी राजा का... कमजोरी ना बन जाए... रंगमहल के रंग में रंगने वाला राजा हर मोहपाश से मुक्त होता है.... और रंगमहल ही प्रजा में पनप रहे विद्रोह की भाव को दबा देता है.... पहले रंगमहल में सिर्फ़ दासियां हुआ करती थी.... पर आजादी के बाद भी इस परंपरा को स्वर्गीय सौरव सिंह क्षेत्रपाल जी कायम रखा.... जिसके विरुद्ध पाइकराय परिवार ने बगावत की.... उसके बाद आपके परदादा रुद्र सिंह क्षेत्रपाल जी ने उस विद्रोह को ऐसे कुचला... के आज सरकार कोई भी आए.... हमारे राजशाही के आगे नतमस्तक रहते हैं.... आप इस परंपरा से मुहँ फ़ेर कर.... विद्रोह को मौका ना दें.... जाइए... अपने कमरे में.... स्वयं को तैयार रखें.... आज आपको राजा जी और छोटे राजा जी दोनों... रंगमहल लेकर जाएंगे... जाइए....

विक्रम कमरे से बाहर निकल जाता है l उसके जाते ही नागेंद्र पिनाक को देखता है l

पिनाक - आप... अपने रक्त पर विश्वास रखें... बड़े राजा जी...
नागेंद्र - हमें... हमारे वंश बीज पर विश्वास है... छोटे राजा जी... पर यह उम्र भटकाती है... भुवनेश्वर में कहीं कोई लड़की का चक्कर तो नहीं.....
पिनाक - नहीं... हमे ऐसा नहीं लगता... आज के आधुनिक समाज में... युवराज जी पुराने परंपरा को निर्वाह करने से कतरा रहे हैं....
नागेंद्र - तो... आप उन्हें तैयार कैसे करेंगे....
पिनाक - (एक कुटील मुस्कान अपने चेहरे पर लाकर) यश वर्धन नाम की महिमा है.... हमे यश वर्धन जी कृपा से राजपाठ प्राप्त है.... और यश वर्धन के माया से युवराज आज पुर्ण क्षेत्रपाल होंगे.... (पिनाक की हँसी गहरी हो जाती है)

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शाम को तापस के कैबिन में तापस के सामने जगन और दास दोनों खड़े हैं l तापस अपनी ठुड्डी पर अपने दाहिने हाथ की अंगूठा फ़ेर रहा है l

दास - सर...
तापस - हूँ....
दास - आप क्या सोच रहे हैं..
तापस - एक कार्टून याद आ रही है...
दास - कैसी कार्टून सर....
तापस - जगन को वाच टावर से डैनी और उसके गैंग पर नजर रखने के लिए कहा था.... ज़वाब में जगन जो रिपोर्ट दी... उससे वह कार्टून याद आ रही है....
जगन - हाँ सर.... आज विश्व से उन लोगों ने.... बेवजह बहुत मेहनत करवाया.... इतना के वह शाम होते होते ठीक से चल भी नहीं पा रहा है.....
दास - सर इसमे हम क्या कर सकते हैं.... राजी तो विश्व ही हुआ था.... वैसे वह कार्टून क्या था सर....
तापस - एक गधे की गाड़ी को भगाने के लिए... उस गाड़ी के मालिक ने... एक लंबे से लकड़ी के आगे एक गाजर को धागे से लटका देता है.... गधा उस गाजर को अपने सामने देख कर खाने के लिए झपटता है.... पर गाजर उसके मुहँ के पास आता तो है... पर पहुंच नहीं पाता... गधा अपना पुरा जोर लगा कर दौड़ता है... सफर खतम होता है... पर फिर भी गधे को गाजर नहीं मिलता है... अब समझे कुछ....
दास - जी सर... यहाँ गधा विश्व है... बीए की डिग्री गाजर और उस गाड़ी का मालिक डैनी... पर यहाँ... डैनी कौनसी सफ़र की तैयारी कर रहा है....
तापस - यही तो मेरे समझ में नहीं आ रहा है... विश्व... पहले बेचारा था.... अब और भी बेचारा हो जाएगा.... चलो चल कर देखते हैं... क्या हालत है उसकी...

सब मिलकर विश्व के सेल के पास आते हैं l विश्व अपने बिस्तर पर पेट के बल पड़ा हुआ है l दर्द भरे हल्के कराह से उसका कमरा गूंज रहा है l

- विश्व... (तापस आवाज देता है)
विश्व - (बिना पलटे) जी सर... (आवाज़ में थकान और दर्द साफ महसुस होती है)
तापस - क्या हम बात कर सकते हैं....
विश्व - (पलटता है) जी... (मुश्किल से बैठता है)
तापस - (जगन को इशारा करता है, तो जगन सेल की दरवाजा खोल देता है, तापस अंदर आता है) विश्व... आज दोपहर को मैं... बाजार गया था.... वहाँ से तुम्हारे कामकी सारी किताबें खरीद ली... सोचा तुम्हें दे दूँ...
विश्व - (आखों में चमक आ जाती है) क्या... म... मैं... आपका आभारी रहूँगा.... (हाथ जोड़ कर) क्या वह किताबें... मुझे अभी दे सकते हैं...
तापस - जरूर... वैसे क्या तुम... (कुछ रुक रुक कर) मेरे साथ... लाइब्रेरी तक जाना चाहोगे....
विश्व - (खुशी के मारे) जी... जी ज़रूर... (विश्व उठ कर खड़ा हो जाता है)

तापस और उसके साथ साथ दास और जगन तक हैरान हो जाते हैं l विश्व के भीतर पढ़ाई को लेकर जुनून को देखकर l विश्व को लेकर तीनों लाइब्रेरी में पहुंचते हैं l विश्व देखता है टेबल के ऊपर उसके दरकार के सभी किताबें रखी हुई हैं l विश्व की आंखे छलक जाती हैं l उसके हाथ अपने आप तापस के आगे जुड़ जाते हैं l

तापस - (उसके हाथों को पकड़ कर) नहीं विश्व... मैं इस लायक नहीं हूँ... पर मुझे खुशी है कि तुममे.... पढ़ाई को लेकर ग़ज़ब का जुनून है... इतने कड़े मेहनत के बाद... तुम जिस्मानी तौर पर टूटे हुए लग रहे थे.... पर ऐसा लग रहा है... के क्या कहूँ... तुममे नई ताजगी दिख रही है....
विश्व - (अपना हाथ जोड़ कर) सर जयंत सर ने एक बार कहा था... सर कटाने की तमन्ना अब हमारे दिल में है...
देखना है जोर कितना बाजू ए क़ातिल में है....
डैनी सर भले ही हज़ारों ज़ख्म दें... पर आज आपने मेरे हर ज़ख़्म की दवा कर दी है.... थैंक्यू... सर... बहुत बहुत थैंक्यू...

विश्व की बातों से तापस के दिल में अजीब सा सुकून मेहसूस होता है l वह विश्व के हाथों को पकड़ कर

तापस - बस बस... विश्व.. बस... तुम्हारा यह रिएक्शन देख कर मैं भी बहुत खुश हुआ हूँ... अब यह लो.. (एक चाबी देकर) यह इस लाइब्रेरी की एक्स्ट्रा चाबी है.... यहाँ कोई आता नहीं है... तुम अपनी पढ़ाई यहाँ आकर कर लेना... तुम्हें कोई डिस्टर्ब भी नहीं करेगा....

विश्व कुछ नहीं कह पाता, तापस से अपनी कृतज्ञता कैसे व्यक्त करे वह समझ नहीं पाता l वह तापस के गले लग जाता है l विश्व के अचानक गले लगने से तापस हड़बड़ा जाता है पर थोड़ी देर बाद खुद को सम्भाल कर विश्व को गले लगा कर दिलासा देता है
तो डैनी ने विश्व को मजबूत बनाने का काम शुरू कर दिया है। कुछ दिनों में विश्व इन सब चीजों का आदि भी हो जायेगा। हर टास्क में कुछ गलतियां रक्खी गई ताकि विश्व को सफलता और असफलता दोनो का अनुभव हो और वो असफलता से निराश ना हो। विक्रम बेचारा अपने ही अंतर्द्वंद से लड़ रहा है, ये असमंजस ही उसके और शुभ्रा के बीच दूरियो का कारण बनेगा। खूबसूरत अपडेट।
 

Jaguaar

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अगले दिन
सेंट्रल जैल
सुबह के पांच बजे विश्व स्पेशल बैरक के बाहर पहुंचता है l बैरक के बाहर दरवाजे पर दस्तक देता है, अंदर एक संत्री दरवाज़े पर बने छोटी खिड़की से विश्व को देख कर दरवाज़ा खोलता है l विश्व अंदर आता है, अंदर एक और दरवाज़ा होता है संत्री वह दरवाज़ा भी खोल देता है l विश्व अब स्पेशल बैरक के अंदर आ जाता है और अंदर की हालत देख कर हैरान हो जाता है l जैल के भीतर एक ऐसी जगह भी है, अंदर एक अलग दुनिया बसी है उसे ऐसा लगता है, जैसे यह हिस्सा कोई जैल है ही नहीं बल्कि कोई कॉलोनी है l सात घर पास पास है, जैसे कोई स्कुल होता है l पेड़ पौधों से भरा एक मैदान भी है पास सट कर, पर कहीं कोई लोग दिख नहीं रहे हैं l तभी एक कैदी विश्व के पास आता है l

कैदी - विश्व जाओ... तीन नंबर के रूम में... डैनी भाई वहीँ पर... तुम्हारा इंतजार कर रहा है...

विश्व तीन नंबर कमरे में पहुंचता है l डैनी दातुन से अपना दांत साफ करते दिखता है l विश्व को देखते ही

डैनी - आ लौंडे आ.... बोल रात तेरी कैसी गई... तेरेको नींद तो ठीक से आई ना... (विश्व अपना सर हिला कर हाँ कहता है) संढास वगैरह कर लिया है ना... (विश्व फिर से सर हिला कर हाँ कहता है) अबे... मेरी गुलामी के लिए... हामी भरी है तुने.... इस खुशी में... अपनी मुहँ में कुछ ठूंस लिया है... क्या...
विश्व - डैनी भाई... कहिए... कहां से शुरू करूँ और.... क्या क्या करूँ...
डैनी - अरे वाह... लौंडे में... बड़ा जोश है...पहले मेरे पंटर लोगों का इंट्रो लेले... (आवाज़ देता है) किधर हो रे... पंटर लोग... आओ इधर...

पहले वाले कैदी के पास और चार कैदी और आकर खड़े हो जाते हैं l विश्व उन सबको देख कर हैरान हो जाता है l क्यूँकी एक कैदी वह था जिसने परसों खाना सर्व कर रहा था और विश्व को डैनी से दूर रहने और बात ना करने के लिए कहा था और एक कैदी वही है जो रंगा के ग्रुप में था, मगर चुप रहता था बोलता कुछ भी नहीं था, और बाकी कैदियों को विश्व हमेशा दूसरों के ग्रुप में देखा है l

डैनी - क्यूँ बे... यूँ आँखे फाड़े देख क्या रहा है बे... यह सब मेरे पंटर हैं... जो इस जैल के हर कोने में फैले हुए हैं.... (विश्व चुप रहता है) अब मेरे साथ तुझे यह लोग भी यहाँ पर काम देंगे... और यह लोग... तुझपे नजर भी रखेंगे... जहां तुझसे चूक होगी... वहाँ पर तेरे को पनीश करेंगे.... इसलिए इनको अच्छी तरह से.... पहचान ले.... (पहले कैदी को दिखा कर) यह है समीर.... (वह दुसरा रंगा के ग्रुप में जो था उसे दिखा कर) यह है वसंत..... (तीसरे को दिखा कर) यह है हरीश.... (चौथा) यह प्रणब और यह... (पांचवां) चित्त...

वह पांचो अपनी अपनी आस्तीन उठा कर विश्व को देखने लगते हैं l विश्व उन पर से नजरें हटा लेता है l डैनी उसे देख लेता है और मुस्करा देता है l

डैनी - चल... अभी तेरा पहला टास्क यह है... के यह जो मैदान तुझे दिख रहा है... उस पर मेरे पंटर लोगों ने ईंट से... बाउंड्री बनाए हैं... तुझे इस बाउंड्री के भीतर के सारे घास निकालने हैं...
विश्व - (उस मैदान को देख कर मन में) छोटा ही मैदान है... (उन ईंटों को देख कर) यह ईंट बेवजह रखे हैं... रखा ही क्यूँ... रखना और ना रखना एक बराबर है...
डैनी - कहीं ईंटों को देख कर.... यह तो नहीं सोच रहा है... ईंट रखना और ना रखना एक बराबर है...
विश्व-(हडबड़ा जाता है) नहीं नहीं... नहीं तो...
डैनी - तो फिर शुरू हो जा....
विश्व - कैसे.... मतलब... मैं किससे... मैदान से घास... साफ करूँ...
डैनी - ऑए... पंटर... कुदाल कहाँ है... दो इसे...

समीर कुदाल लाकर विश्व को थमा देता है l विश्व कुदाल लेकर मैदान से घास साफ करने लग जाता है l पूरे एक घंटे बाद सारा मैदान साफ नजर आता है l विश्व अपना नजर घुमाता है तो उसे सिर्फ़ समीर दिखता है l वह समीर के पास आता है l

विश्व - समीर भाई... मैदान साफ हो गया है... अब...
समीर - हाँ... बहुत अच्छे... चल आजा... मैं तेरे को और एक काम देता हूँ...

विश्व को एक कुएं के पास लेकर जाता है, विश्व देखता है कुआं बहुत पुराना और गहरा है l

विश्व - समीर भाई... यहाँ पर नल नहीं है....
समीर - है ना... पर तेरे लिए... यहाँ पर... कुएं की व्यवस्था है...
विश्व - पर जैल के दुसरे हिस्से में... कोई कुआं नहीं है... यहाँ कैसे...
समीर - अरे.... पहले यह हिस्सा कभी... बच्चों का स्कुल हुआ करता था... बाद में यहाँ जब जैल बना.... इस हिस्से को... पोलिटिकल सेल या स्पेशल सेल का दर्जा दिया गया.... तभी तो डैनी भाई यहाँ रहते हैं.... अब बातों से टाइम खोटी मत कर... चल लग जा काम में... बिंदास....
विश्व - पर यहाँ... करना क्या है....
समीर - अरे हाँ... यह रहा रस्सी और बाल्टी... और यहाँ देख (दो बड़े टीन के डिब्बे दिखाता है) इनको भर के... उस बगीचे में... हर पौधे और हर पेड़ पर पानी डाल जा...
विश्व - ठीक है...

विश्व कुएं में रस्सी से बंधे बाल्टी को कुएं में डाल कर पानी निकाल कर टीन के डिब्बे में डालता है l तब वह देखता है डिब्बे से पानी लीकेज हो रहा है l पानी को डब्बे से रिसते देख विश्व समीर की ओर देखता है l

समीर - देख यह काम.. बॉस ने... मेरे जिम्मे सौंपा है... चल देर मत कर... और चार भी... तेरे इंतजार में हैं...
विश्व - पर यह डब्बा तो फूटा हुआ है... इसमें पानी रिस् रहा है...
समीर - वह मेरे को नहीं पता.... काम नहीं किया तो... तेरे को मैं... पनीश करूंगा.... सोच ले...

विश्व कुछ नहीं कहता है l जल्दी जल्दी कुएं से पानी निकाल कर दोनों डब्बे में एक साथ डालने लगता है l जब दोनों डब्बे आधे से ज्यादा भर जाते हैं तब दोनों डब्बों को लेकर भागता है और पौधों में डाल कर वापस आ जाता है l ऐसा करते करते दो घंटे हो जाते हैं l सारे पौधे और पेड़ों में पानी डालने के बाद थक कर कुएं के दीवार के सहारे बैठ जाता है l तभी उसे वसंत आवाज़ देता है

वसंत - ऑए... चल आ.. इधर आजा...
विश्व - (हांफते हुए मुश्किल से उठता है) जी आया... (वसंत के पास पहुंच कर झुक कर अपने घुटनों पर हाथ रख कर) जी.. कहिए...
वसंत - यह ले पी ले... (एक ग्लास में दूध जैसा कुछ देता है)
विश्व - जी नहीं.... रहने दीजिए...
वसंत - अबे पी ले... आज दिन भर तुझे मेहनत करनी है... खाना तो मिलने से रहा... इसलिए इसे पी... और आजा... तुझे.. काम पे लगा दूँ... (विश्व को भूख लग रही थी, इसलिए वसंत से ग्लास लेता है और पी जाता है) शाबाश... अब आजा मेरे पीछे....

विश्व वसंत के साथ एक कमरे में आता है तो देखता है कि उस कमरे के फर्श पर पानी तैर रही है l वसंत उसे एक बाल्टी देता है और एक कपड़े का पोछा l

वसंत - चल जल्दी से... पोछा मार और कमरे को सूखा दे.... पर मैं जैसे कहूँगा वैसे करना होगा... पहले ऐसे (फर्श पर पोछा डालकर बाहर से अंदर तक लाता है और निचोड़ता है) बाहर से अंदर करना है... पर अंदर से बाहर नहीं... समझा... दाएं हाथ में आधा कमरा और बाएं हाथ से आधा.... अगर कुछ गड़बड़ किया तो...

विश्व वसंत के हाथों से कपड़े के पोछे को लेकर फ़र्श पर डाल कर बाल्टी में निचोड़ता है l पानी बाल्टी में गिरता है और फ़िर से पोछे को फर्श पर लगा कर बाल्टी में निचोड़कर देखता है कि यह बाल्टी में भी हल्का लीकेज है l पर विश्व इसबार कुछ कहता नहीं l चुपचाप पोछा लगा कर पानी निचोड़ने लगा l बाल्टी के भरते ही पानी बाहर फेंक कर वापस पोछा लगाने लगा l ऐसे करते करते उसे एक घंटा लग जाता है l

वसंत - वाह... क्या बात है... लगता है... ऐसे कामों की आदत है तुझे... (विश्व कुछ नहीं कहता है पर उसके चेहरे पर थकान साफ दिख रहा है) चल कोई नहीं... हरीश के पास जा.... अब वह तेरा इंतजार कर रहा है...

विश्व कमरे से बाहर निकालता है l बाहर उसे हरीश देखता है और इशारे से अपने पास बुलाता है l विश्व थके कदमों से उसके पास पहुंचता है l हरीश भी वही दुध वाला मिश्रण बड़े से ग्लास में विश्व को देता है l विश्व को भूक मारे बुरा हाल हो चुका है वह बिना देरी किए वह दूध वाला मिश्रण पी लेता है l ग्लास में वह पेय खतम होते ही हरीश उससे ग्लास ले लेता है

हरीश - चल बहुत थक गया है.... जा पांच नंबर घर में जा.... बॉस वहीँ हैं... वहाँ पर कुछ देर रुक... फिर मैं तुझे काम के लिए बुलाऊंगा... (विश्व कुछ समझ नहीं पाता वह हरीश की ओर सवालिया नजर से देखता है) अबे जा ना.... कभी किसी हैंडसम लड़के को नहीं देखा क्या.... ऐ.. इ... देख मैं तेरे को बोल दे रहा हूँ... मैं ऐसा वैसा लड़का नहीं हूँ.... आंये.... वैसे तु भी कम चिकना नहीं है... ऑफर करेगा तो सोचूंगा...

विश्व उसकी बातें सुनकर वहाँ से बिना पीछे मुड़े पांच नंबर घर की ओर चला जाता है l वह एक विशाल कमरा है जो कि एक जीम है l उस जीम में एक बेंच पर डैनी लेटा हुआ है और वेट लिफ्टिंग कर रहा है l उसके पास ही समीर, वसंत और चित्त खड़े हैं l

डैनी - ( वेट लिफ्टिंग करते हुए) आह...ओ विश्व... कैसा लग.... रहा है...

विश्व चुप रहता है l उसे चुप देख कर डैनी पास खड़े अपने बंदो को इशारा करता है l वसंत और चित्त डैनी के हाथ से वह वेट ले लेते हैं l समीर डैनी को टवेल देता है l डैनी अपना पसीना पोंछ कर उसी बेंच पर बैठते हुए

डैनी - क्यूँ हीरो... फट रही है ना... (विश्व चुप रहता है) अभी थोड़ा सुस्ता ले... पूरा दिन बचा है....
विश्व - आप मुझसे श्रम तो करवा रहे हैं.... पर यह दूध बादाम वाला मिश्रण पीला क्यूँ रहे हैं...
डैनी - अच्छा.... उस दूध के ग्लास में... क्या क्या मिला हुआ है बता...
विश्व - दूध में.. घी, शहद, पिस्ता बादाम और शायद मिश्री भी...
डैनी - वाह लौंडे... बहुत अच्छे... वह क्या है ना.... आज पहला दिन है रे.... और अपने पास डेढ़ साल है... तब तक तेरे को... चुस्त, दुरुस्त और तंदुरुस्त रहना है... यह मेरे टॉर्चर का... अपना स्टाइल है... मैं खिलाता हूँ... और जी भरने तक तुझसे जो मर्जी होगी वह करवाऊंगा... सो वेलकम तो माय टॉर्चर वर्ल्ड.... अब से तु... मेरे और मेरे पंटरों के बताए सारे काम करेगा... जहां नहीं कर पाया... वहाँ तुझे पनीश किया जाएगा....(बेंच से उठ कर) और हाँ... यह ड्रिंक... तुझे दिन में दस बार पीने को मिलेगा... और यहाँ खाने को चार बार मिलेगा.... हाँ वह भी हमारे तय किए गए मेन्यू के हिसाब से.... हाँ यह और बात है कि... तेरा पेट नहीं भरेगा... ( एक मोटे से काठ के बने विंग-चुंग के सामने खड़ा हो जाता है, और अपना हाथ चलाने लगता है) तुझे अब हरीश दो कांटे दार ब्रश देगा... उससे दीवार से चुना उतारना होगा... वह जैसा कहेगा... बिल्कुल वैसे ही.... उसके बाद चित्त तुझे जैसे रोटी बनाने को कहेगा... बिल्कुल वैसे ही रोटी अपने लिए और हमारे लिए बनाएगा... फिर प्रणब तुझे... उन्हीं दीवारों पर चुना लगाने के लिए ले जाएगा.... वह जैसे जैसे बोलेगा... तु बिल्कुल वैसे ही करना... अगर कोई कंप्लेंट नहीं रहा... तो जल्दी काम निपटा के चले जाना....

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एक भैंस के माथे पर सिंदूर लगा कर राजगड़ के हर गली में ढोल नगाड़े बजा कर घुमाया जा रहा है l घुमाने वाले लोग हैं क्षेत्रपाल महल में काम करने वाले नौकर l यह नजारा देख कर जहां गांव के छोटे बच्चे उस भैंस के पीछे हो लेते हैं वहीँ कुछ लोग अपने ल़डकियों को घर के अंदर जबरदस्ती भेज दे रहे हैं lवह भैंस और उसके साथ का काफ़िला मुख्य चौक से गुजरता है l मुख्य चौक पर वैदेही लीज पर लिए घर को एक दुकान की तरह सजा रही है l तभी उसका ध्यान गुज़र रहे काफिले पर पड़ती है l सिर्फ़ वैदेही ही नहीं वहाँ पर जितने भी लोग थे उस काफिले को देख रहे थे l कुछ लोग घबराए हुए भी थे l वह लोग आने वाले समय में, आने वाले खतरे के बारे सोच कर घबरा रहे थे l

लक्ष्मी - हे भगवान... अब क्या होगा....
वैदेही - क्यूँ... क्या होगा...
लक्ष्मी - क्या.. तुम नहीं जानती...
वैदेही - नहीं... क्या है यह...
लक्ष्मी- ओह... शायद... तुमने कभी यह सब... देखा नहीं होगा...
वैदेही - नहीं देखा है... क्या है यह....

लक्ष्मी चुप हो जाती है, वह वैदेही को क्या कहे उसे समझ में नहीं आता है l तभी वहाँ पर गौरी पहुंचती है l

कुसुम - लगता है... आज युवराज जी का... क्षेत्रपाल परावर्तन होगा....
वैदेही - क्या... यह क्षेत्रपाल परावर्तन क्या है....
लक्ष्मी - क्या सच में वैदेही... तुम कुछ नहीं जानती....
कुसुम - नहीं जानती होगी... ऐसा पहले पच्चीस साल पहले हुआ था.... तब राजा साहब के लिए... एक भैंस की बलि चढ़ाया गया था... अब उनके बेटे के लिए... काली परंपरा को... आगे बढ़ाने के लिए....
वैदेही - क्या....
लक्ष्मी - पता नहीं... अब किसके भाग्य फुटेंगे... या फुट चुकी होगी...

वैदेही को अब कुछ कुछ समझ में आने लगता है फिर भी वह उन दोनों को सवालिया नज़रों से देखती है l

कुसुम - कोई उठा ली गई होगी... जिसकी... जबरदस्ती नथ उतारी जाएगी...

वैदेही की आँखे एक अंदरुनी दर्द के मारे बड़ी हो जाती है l उसे अपना वह वीभत्स घड़ी याद आती है l उसके तन-बदन पर खौफ की एक सिहरन दौड़ जाती है l

लक्ष्मी - इन क्षेत्रपालों से बचाने के लिए... बचपन में मेरी माँ ने मेरे साथ जो किया था... मेरी बेटी के साथ वही मुझे करना पड़ेगा....
वैदेही - क्या किया था... तेरी माँ ने...
लक्ष्मी - (अपने दुपट्टे को चेहरे से हटा देती है, तो उसके चेहरे पर बहुत पुराने जले हुए निशान दिखते हैं) मेरी माँ ने... तब रोते हुए... मुझसे माफ़ी मांगते हुए... जलती हुई लकड़ी को मेरे चेहरे पर लगा दिआ था....

वैदेही उसके चेहरे पर उन जले निशानों को देख कर सोच रही थी, कुसुम ने उस वक्त सिर्फ़ बाहरी दर्द को झेला होगा पर उसकी माँ को तो वह दर्द रूह तक महसुस हुई होगी l

वैदेही - कुसुम... जो तेरी माँ ने किया... शायद उस समय उसके पास... तुझे बचाने के लिए कोई रास्ता नहीं था....
कुसुम - हाँ...
लक्ष्मी - अरे इन क्षेत्रपालों के डर से... मेरी शादी मेरी माहवारी शुरू होने के साल में ही कर दी गई थी....
वैदेही - सुनो... तुम दोनों मेरी बात को गौर से सुनो... और हो सके तो.... गांव के हर घर में... ऐसा करने के लिए... कहो....
दोनों - क्या....
वैदेही - आज से... गाँव के... हर लड़की को... सर से लेकर पांव तक... नीम के तेल लगाओ...
दोनों - पर नीम के तेल तो बदबूदार होता है ना....
वैदेही - हाँ यही बदबू... हमारी घर की बेटियों को... उन शैतानों से बचाएगी.... (वह दोनों वैदेही को अविश्वास से देखते हैं) मेरा विश्वास करो... यह परखा हुआ है....

उधर क्षेत्रपाल महल में अपने कमरे में विक्रम बैठा हुआ है l उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा है l वह खुद को आईने में देख रहा है और खुद से बातेँ कर रहा है l
- मैं यह कर रहा हूँ... क्यूँ कर रहा हूँ... मैं अब क्या करूँ... कल को अगर शुभ्रा को पता चला तो... मैं उनका सामना कैसे करूँगा... सच में... हमारा रिश्ता... ब्यूटी एंड बीस्ट की होगी... एक तरफ खूबसूरती और मासूमियत दुसरी तरफ मेरी अंदर की हैवानियत... नहीं नहीं... मुझे कुछ करना होगा... पर क्या करूँ...

तभी दरवाजे पर दस्तक होती है l विक्रम पलट कर देखता है एक नौकर सर झुकाए वहाँ खड़ा है l

विक्रम - क्या है....
नौकर - हुकुम... बड़े राजा जी ने... आपको उपस्थित होने के लिए कहा है...
विक्रम - ठीक है....

विक्रम उस नौकर के साथ नागेंद्र के कमरे के बाहर पहुंचता है l नौकर अंदर जाता है और थोड़ी ही देर बाद वापस आकर अंदर जाने के लिए कहता है l विक्रम अंदर जाकर देखता है नागेंद्र मुख्य कुर्सी पर बैठा हुआ है उसके अगल और बगल में भैरव और पिनाक बैठे हुए हैं l

नागेंद्र - आइए... युवराज... आइए... कितना यादगार दिन है आज.... एक ही कमरे में तीन पीढ़ियां एकत्रित हैं... आज आप पुर्ण रुप से.... क्षेत्रपाल बन जाएंगे....

तीनों बड़ों को यह एहसास होता है कि विक्रम बिल्कुल भी खुश नहीं है l उल्टा खीज रहा है l

नागेंद्र - क्या बात है युवराज.... आप खुश नहीं हैं.... आप खामोश क्यूँ हैं.... आपका अधिकार क्षेत्र बढ़ जाएगा.... और आपका दर्जा.... राजा साहब के बगल में बैठ कर निर्णय ले सकेंगे... अब आप सभी बैठक में बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले सकेंगे....
विक्रम - वह सब करने के लिए... यह कैसा परंपरा है... जिससे हमे गुजरना होगा.... एक बेजुबान जानवर की बलि चढ़ेगी... और एक मासूम अपनी अस्मत हारेगी....
नागेंद्र - आप सही कह रहे थे... छोटे राजा जी... हमारे युवराज... खुद को... क्षेत्रपाल बनाने से... कतरा रहे हैं.... (भैरव सिंह को) राजा जी... अब आप युवराज जी को समझाएं... और उन्हें मानसिक रूप से तैयार करें....
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एक भैंस के माथे पर सिंदूर लगा कर और फूलों की माला पहना कर राजगड़ के गलियों में ढोल नगाड़े बजा कर घुमाया जा रहा है l घुमाने वाले सभी लोग क्षेत्रपाल महल में काम करने वाले नौकर हैं l यह नजारा देख कर जहां गांव के छोटे बच्चे उस भैंस के पीछे हो लेते हैं वहीँ कुछ लोग अपने ल़डकियों को घर के अंदर जबरदस्ती भेज दे रहे हैं l वह भैंस और उसके साथ का काफ़िला मुख्य चौक से गुजरता है l मुख्य चौक पर वैदेही लीज पर लिए घर को एक दुकान की तरह सजा रही है l तभी उसका ध्यान गुज़र रहे काफिले पर पड़ती है l सिर्फ़ वैदेही ही नहीं वहाँ पर जितने भी लोग थे उस काफिले को देख रहे थे l कुछ लोग घबराए हुए भी थे l वह लोग आने वाले समय में, आने वाले खतरे के बारे सोच कर घबरा रहे थे l

लक्ष्मी - हे भगवान... अब क्या होगा....
वैदेही - क्यूँ... क्या होगा...
लक्ष्मी - क्या.. तुम नहीं जानती...
वैदेही - नहीं... क्या है यह...
लक्ष्मी- ओह... शायद... तुमने कभी यह सब... देखा नहीं होगा...
वैदेही - नहीं देखा है... क्या है यह....

लक्ष्मी चुप हो जाती है, वह वैदेही को क्या कहे उसे समझ में नहीं आता है l तभी वहाँ पर कुसुम पहुंचती है l

कुसुम - लगता है... आज युवराज जी का... क्षेत्रपाल परावर्तन होगा....
वैदेही - क्या... यह क्षेत्रपाल परावर्तन क्या है....
लक्ष्मी - क्या सच में वैदेही... तुम कुछ नहीं जानती....
कुसुम - नहीं जानती होगी... ऐसा पहले पच्चीस साल पहले हुआ था.... तब राजा साहब के लिए... एक भैंस की बलि चढ़ाया गया था... अब उनके बेटे के लिए... काली करतूतों वाली परंपरा को... आगे बढ़ाने के लिए....
वैदेही - (हैरान हो कर) क्या....
लक्ष्मी - पता नहीं... अब किसके भाग्य फुटेंगे... या फुट चुकी होगी...

वैदेही को अब कुछ कुछ समझ में आने लगता है फिर भी वह उन दोनों को सवालिया नज़रों से देखती है l

कुसुम - कोई उठा ली गई होगी कहीं से... जिसकी... आज जबरदस्ती नथ उतारी जाएगी... छी.... इसे परंपरा कहते हैं...

वैदेही की आँखे एक अंदरुनी दर्द के मारे बड़ी हो जाती है l उसे अपना वह वीभत्स घड़ी याद आती है l उसके तन-बदन पर खौफ की एक सिहरन दौड़ जाती है l

लक्ष्मी - इन क्षेत्रपालों से बचाने के लिए... बचपन में मेरी माँ ने मेरे साथ जो किया था... मेरी बेटी के साथ मुझे अब वही करना पड़ेगा....
वैदेही - क्या किया था... तेरी माँ ने...
लक्ष्मी - (अपने दुपट्टे को चेहरे से हटा देती है, तो उसके चेहरे पर बहुत पुराने जले हुए निशान दिखते हैं) मेरी माँ ने... तब रोते हुए... मुझसे माफ़ी मांगते हुए... जलती हुई लकड़ी को मेरे चेहरे पर लगा दिआ था....

वैदेही उसके चेहरे पर उन जले निशानों को देख कर सोच रही थी, कुसुम ने उस वक्त सिर्फ़ बाहरी दर्द को झेला होगा पर उसकी माँ को तो वह दर्द रूह तक महसुस हुई होगी l

वैदेही - कुसुम... जो तेरी माँ ने किया... शायद उस समय उसके पास... तुझे बचाने के लिए कोई रास्ता नहीं था....
कुसुम - हाँ...
लक्ष्मी - अरे इन क्षेत्रपालों के डर से... मेरी शादी मेरी माहवारी शुरू होने के साल में ही कर दी गई थी....भले ही कुछ सालों से क्षेत्रपालों की ओर से कोई अगवा नहीं हुआ है.... पर अब क्षेत्रपाल परिवार का नया खेप तैयार हो रहा है... पता नहीं आगे क्या होगा....
वैदेही - सुनो... तुम दोनों मेरी बात को गौर से सुनो... और हो सके तो.... गांव के हर घर में... ऐसा करने के लिए... कहो....
दोनों - क्या....
वैदेही - आज से... गाँव के... हर लड़की को... सर से लेकर पांव तक... नीम के तेल लगाओ... और हो सके तो खुद भी लगाया करो....
दोनों - पर नीम के तेल तो बदबूदार होता है ना....
वैदेही - हाँ यही बदबू... हमारी घर की बेटियों को... उन शैतानों से बचाएगी.... (वह दोनों वैदेही को अविश्वास से देखते हैं) मेरा विश्वास करो... यह कुछ दिन पहले मेरा परखा हुआ है....

उधर क्षेत्रपाल महल में अपने कमरे में विक्रम बैठा हुआ है l उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा है l वह खुद को आईने में देख रहा है और खुद से बातेँ कर रहा है l
- मैं यह कर रहा हूँ... क्यूँ कर रहा हूँ... मैं अब क्या करूँ... कल को अगर शुभ्रा जी को पता चला तो... मैं उनका सामना कैसे करूँगा... सच में... हमारा रिश्ता... ब्यूटी एंड बीस्ट की होगी... एक तरफ उनकी खूबसूरती और मासूमियत.... दुसरी तरफ मेरी अंदर की बेवफाई और हैवानियत... नहीं नहीं... मुझे कुछ करना होगा... पर क्या करूँ...

तभी दरवाजे पर दस्तक होती है l विक्रम पलट कर देखता है एक नौकर सर झुकाए वहाँ खड़ा है l

विक्रम - क्या है....
नौकर - हुकुम... बड़े राजा जी ने... आपको उपस्थित होने के लिए कहा है...
विक्रम - ठीक है....

विक्रम उस नौकर के साथ नागेंद्र के कमरे के बाहर पहुंचता है l नौकर अंदर जाता है और थोड़ी ही देर बाद वापस आकर अंदर जाने के लिए कहता है l विक्रम अंदर जाकर देखता है नागेंद्र मुख्य कुर्सी पर बैठा हुआ है उसके अगल और बगल में भैरव और पिनाक बैठे हुए हैं l

नागेंद्र - आइए... युवराज... आइए... कितना यादगार दिन है आज.... एक ही कमरे में तीन पीढ़ियां एकत्रित हैं... आज आप पुर्ण रुप से.... क्षेत्रपाल बन जाएंगे.... अच्छा होता... हम तीन पीढ़ी... रंगमहल में इकट्ठे हो पाते... पर हमारा स्वास्थ हमे इससे महरूम कर रहा है.... फ़िर भी... हमारी शुभकामनाएं हैं आपके साथ...

वहाँ पर बैठे तीनों बड़ों को यह एहसास होता है कि विक्रम बिल्कुल भी खुश नहीं है l उल्टा खीज रहा है l

नागेंद्र - क्या बात है युवराज.... आप खुश नहीं हैं.... आप खामोश क्यूँ हैं.... आपका अधिकार क्षेत्र बढ़ जाएगा.... और आपका दर्जा.... राजा साहब के बगल में बैठ कर निर्णय ले सकेंगे... अब आप सभी बैठक में बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले सकेंगे....
विक्रम - वह सब करने के लिए... यह कैसा परंपरा है... जिससे हमे गुजरना होगा.... एक बेजुबान जानवर की बलि चढ़ेगी... और एक मासूम अपनी अस्मत हारेगी....
नागेंद्र - आप सही कह रहे थे... छोटे राजा जी... हमारे युवराज... खुद को... क्षेत्रपाल बनाने से... कतरा रहे हैं.... (भैरव सिंह को) राजा जी... अब आप युवराज जी को समझाएं... और उन्हें मानसिक रूप से तैयार करें....
भैरव - जी बड़े राजा जी... (विक्रम को देख कर) यह क्या है युवराज.... आज आप सही मायने में... क्षेत्रपाल बन जाएंगे...

विक्रम सर झुकाए चुप चाप खड़ा है और अपने दाहिने पैर के अंगुठे से फर्श कुरेद रहा है l

भैरव - युवराज.... (आवाज़ कड़क कर) आप को... हो क्या गया है.... यह मत भूलिए.... आप के रगों में... क्षेत्रपाल वंश के रक्त बह रहा है....
नागेंद्र - आप... समझा नहीं रहे हैं... राजा जी....(विक्रम से) युवराज.... यह वंशानुगत परंपरा है... यह याद रखें... जिनके राज में... राज शाही घुटने टेक रहे थे... उन्हीं के राज में हमारे पुरखों ने... अपनी राजशाही की नींव डाली थी... अपना झंडा ना सिर्फ फहराया था.... बल्कि मनवाया भी था... आपको उन महान आत्मा के अनुगत एवं अनुरक्त होना चाहिए... इस परंपरा का निर्वाह कर.... आप उनके द्वारा हासिल किए गए और स्थापित किए गए राज शाही का सम्मान करेंगे....

विक्रम का सर वैसे ही झुका हुआ देख पिनाक कुछ कहने को होता है तो नागेंद्र उसे रोक देता है l

नागेंद्र - आप इतिहास उठा कर देख लें.... हर राज शाही में अपनी पत्नियों के लिए अंतर्महल रहा है और एक रंग महल रहा है... दासियों की परंपरा इस संसार में जब से राजशाही आया है... तब से है... यह इसलिए भी था... ताकि कभी कोई औरत किसी राजा का... कमजोरी ना बन जाए... रंगमहल के रंग में रंगने वाला राजा हर मोहपाश से मुक्त होता है.... और रंगमहल ही प्रजा में पनप रहे विद्रोह की भाव को दबा देता है.... पहले रंगमहल में सिर्फ़ दासियां हुआ करती थी.... पर आजादी के बाद भी इस परंपरा को स्वर्गीय सौरव सिंह क्षेत्रपाल जी कायम रखा.... जिसके विरुद्ध पाइकराय परिवार ने बगावत की.... उसके बाद आपके परदादा रुद्र सिंह क्षेत्रपाल जी ने उस विद्रोह को ऐसे कुचला... के आज सरकार कोई भी आए.... हमारे राजशाही के आगे नतमस्तक रहते हैं.... आप इस परंपरा से मुहँ फ़ेर कर.... विद्रोह को मौका ना दें.... जाइए... अपने कमरे में.... स्वयं को तैयार रखें.... आज आपको राजा जी और छोटे राजा जी दोनों... रंगमहल लेकर जाएंगे... जाइए....

विक्रम कमरे से बाहर निकल जाता है l उसके जाते ही नागेंद्र पिनाक को देखता है l

पिनाक - आप... अपने रक्त पर विश्वास रखें... बड़े राजा जी...
नागेंद्र - हमें... हमारे वंश बीज पर विश्वास है... छोटे राजा जी... पर यह उम्र भटकाती है... भुवनेश्वर में कहीं कोई लड़की का चक्कर तो नहीं.....
पिनाक - नहीं... हमे ऐसा नहीं लगता... आज के आधुनिक समाज में... युवराज जी पुराने परंपरा को निर्वाह करने से कतरा रहे हैं....
नागेंद्र - तो... आप उन्हें तैयार कैसे करेंगे....
पिनाक - (एक कुटील मुस्कान अपने चेहरे पर लाकर) यश वर्धन नाम की महिमा है.... हमे यश वर्धन जी कृपा से राजपाठ प्राप्त है.... और यश वर्धन के माया से युवराज आज पुर्ण क्षेत्रपाल होंगे.... (पिनाक की हँसी गहरी हो जाती है)

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शाम को तापस के कैबिन में तापस के सामने जगन और दास दोनों खड़े हैं l तापस अपनी ठुड्डी पर अपने दाहिने हाथ की अंगूठा फ़ेर रहा है l

दास - सर...
तापस - हूँ....
दास - आप क्या सोच रहे हैं..
तापस - एक कार्टून याद आ रही है...
दास - कैसी कार्टून सर....
तापस - जगन को वाच टावर से डैनी और उसके गैंग पर नजर रखने के लिए कहा था.... ज़वाब में जगन जो रिपोर्ट दी... उससे वह कार्टून याद आ रही है....
जगन - हाँ सर.... आज विश्व से उन लोगों ने.... बेवजह बहुत मेहनत करवाया.... इतना के वह शाम होते होते ठीक से चल भी नहीं पा रहा है.....
दास - सर इसमे हम क्या कर सकते हैं.... राजी तो विश्व ही हुआ था.... वैसे वह कार्टून क्या था सर....
तापस - एक गधे की गाड़ी को भगाने के लिए... उस गाड़ी के मालिक ने... एक लंबे से लकड़ी के आगे एक गाजर को धागे से लटका देता है.... गधा उस गाजर को अपने सामने देख कर खाने के लिए झपटता है.... पर गाजर उसके मुहँ के पास आता तो है... पर पहुंच नहीं पाता... गधा अपना पुरा जोर लगा कर दौड़ता है... सफर खतम होता है... पर फिर भी गधे को गाजर नहीं मिलता है... अब समझे कुछ....
दास - जी सर... यहाँ गधा विश्व है... बीए की डिग्री गाजर और उस गाड़ी का मालिक डैनी... पर यहाँ... डैनी कौनसी सफ़र की तैयारी कर रहा है....
तापस - यही तो मेरे समझ में नहीं आ रहा है... विश्व... पहले बेचारा था.... अब और भी बेचारा हो जाएगा.... चलो चल कर देखते हैं... क्या हालत है उसकी...

सब मिलकर विश्व के सेल के पास आते हैं l विश्व अपने बिस्तर पर पेट के बल पड़ा हुआ है l दर्द भरे हल्के कराह से उसका कमरा गूंज रहा है l

- विश्व... (तापस आवाज देता है)
विश्व - (बिना पलटे) जी सर... (आवाज़ में थकान और दर्द साफ महसुस होती है)
तापस - क्या हम बात कर सकते हैं....
विश्व - (पलटता है) जी... (मुश्किल से बैठता है)
तापस - (जगन को इशारा करता है, तो जगन सेल की दरवाजा खोल देता है, तापस अंदर आता है) विश्व... आज दोपहर को मैं... बाजार गया था.... वहाँ से तुम्हारे कामकी सारी किताबें खरीद ली... सोचा तुम्हें दे दूँ...
विश्व - (आखों में चमक आ जाती है) क्या... म... मैं... आपका आभारी रहूँगा.... (हाथ जोड़ कर) क्या वह किताबें... मुझे अभी दे सकते हैं...
तापस - जरूर... वैसे क्या तुम... (कुछ रुक रुक कर) मेरे साथ... लाइब्रेरी तक जाना चाहोगे....
विश्व - (खुशी के मारे) जी... जी ज़रूर... (विश्व उठ कर खड़ा हो जाता है)

तापस और उसके साथ साथ दास और जगन तक हैरान हो जाते हैं l विश्व के भीतर पढ़ाई को लेकर जुनून को देखकर l विश्व को लेकर तीनों लाइब्रेरी में पहुंचते हैं l विश्व देखता है टेबल के ऊपर उसके दरकार के सभी किताबें रखी हुई हैं l विश्व की आंखे छलक जाती हैं l उसके हाथ अपने आप तापस के आगे जुड़ जाते हैं l

तापस - (उसके हाथों को पकड़ कर) नहीं विश्व... मैं इस लायक नहीं हूँ... पर मुझे खुशी है कि तुममे.... पढ़ाई को लेकर ग़ज़ब का जुनून है... इतने कड़े मेहनत के बाद... तुम जिस्मानी तौर पर टूटे हुए लग रहे थे.... पर ऐसा लग रहा है... के क्या कहूँ... तुममे नई ताजगी दिख रही है....
विश्व - (अपना हाथ जोड़ कर) सर जयंत सर ने एक बार कहा था... सर कटाने की तमन्ना अब हमारे दिल में है...
देखना है जोर कितना बाजू ए क़ातिल में है....
डैनी सर भले ही हज़ारों ज़ख्म दें... पर आज आपने मेरे हर ज़ख़्म की दवा कर दी है.... थैंक्यू... सर... बहुत बहुत थैंक्यू...

विश्व की बातों से तापस के दिल में अजीब सा सुकून मेहसूस होता है l वह विश्व के हाथों को पकड़ कर

तापस - बस बस... विश्व.. बस... तुम्हारा यह रिएक्शन देख कर मैं भी बहुत खुश हुआ हूँ... अब यह लो.. (एक चाबी देकर) यह इस लाइब्रेरी की एक्स्ट्रा चाबी है.... यहाँ कोई आता नहीं है... तुम अपनी पढ़ाई यहाँ आकर कर लेना... तुम्हें कोई डिस्टर्ब भी नहीं करेगा....

विश्व कुछ नहीं कह पाता, तापस से अपनी कृतज्ञता कैसे व्यक्त करे वह समझ नहीं पाता l वह तापस के गले लग जाता है l विश्व के अचानक गले लगने से तापस हड़बड़ा जाता है पर थोड़ी देर बाद खुद को सम्भाल कर विश्व को गले लगा कर दिलासा देता है
Awesome Updatee

Danny jo bhi kar raha hai woh sab Vishwa ko aage ki ladhai ke liye taiyaar karne ke liye hi kar raha hai. Woh Vishwa ko emotional fool se bahar nikal raha hai.

Dekhte hai Vishwa kab tak taiyaar hota hai. Danny ne toh 1.5 years ka samay liya hai.
 
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इस बार आपने सही लिखा है । अब किसी सेन्टेंस में या संवाद में रूकावटें नहीं है ।

यह तो शुरुआत से ही लग रहा था कि डैनी विश्व को ट्रेंड कर रहा है । शारीरिक रूप से और मानसिक रूप से भी । शरीर की फिटनेस बनाए रखना बहुत जरूरी होता है और विश्व को तो आगे चलकर काफी बड़ी लड़ाई लड़नी है । संतुलित आहार और शरीर के मसल्स को मजबूत करने के लिए उसे प्रेरित कर रहा है डैनी ।
पर विश्व उसकी मंशा से बेखबर है ।
मुझे लगता है डैनी के चार साथी भी आगे चलकर विश्व की काफी मदद करने वाले हैं । शायद तब जब डायरेक्ट भैरव सिंह और उसके सिपहसालारों से भिड़ंत हो ।

विश्व एक तरफ से भाग्यशाली भी है । वैदेही और जयंत सर के बाद सुपरिटेंडेंट तापस सर और उनकी पत्नी एवं डैनी का सरपरस्ती जो हासिल हुआ है ।

राम प्रसाद बिस्मिल की उक्तियां - " सर कटाने की तमन्ना....बाजू ए कातिल में है " विश्व पर पुरी तरह से फिट होता है ।
जयंत सर ने उसे आगे पढ़ने के लिए प्रेरित किया था और संसाधन तापस सर मुहैया करा रहे हैं । लेकिन यह सब तब तक असरदार नहीं होता जब तक पढ़ने की लगन न हो । और विश्व में लगन भी है.... उत्साह भी है और एनर्जी भी है ।

बहुत खुबसूरत अपडेट ब्लैक नाग भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग ।
 

Kala Nag

Mr. X
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Nice and beautiful update...
धन्यबाद मित्र बहुत बहुत धन्यबाद
 
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Kala Nag

Mr. X
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तो डैनी ने विश्व को मजबूत बनाने का काम शुरू कर दिया है। कुछ दिनों में विश्व इन सब चीजों का आदि भी हो जायेगा। हर टास्क में कुछ गलतियां रक्खी गई ताकि विश्व को सफलता और असफलता दोनो का अनुभव हो और वो असफलता से निराश ना हो। विक्रम बेचारा अपने ही अंतर्द्वंद से लड़ रहा है, ये असमंजस ही उसके और शुभ्रा के बीच दूरियो का कारण बनेगा। खूबसूरत अपडेट।
अद्भुत
बहुत ही बढ़िया विश्लेषण किया है आपने
धन्यबाद
 
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