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Thriller "विश्वरूप"

Kala Nag

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👉एक सौ पैंसठवाँ अपडेट (B) पूर्ण विराम
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भैरव सिंह आँखे फाड़े रुप को देख रहा था l रुप मातम की लिबास में, सफेद साड़ी में सामने उसके खड़ी थी l अपने नाम के अनुसार सौम्य और सुंदर पर तम तमाई हुई दिख रही थी l चेहरे पर दुख के साथ साथ असीम गुस्सा उसके चेहरे को लाल दिख रही थी l पर सबसे खास आज उसके मांग में सिंदूर दिख रहा था l भैरव सिंह उस सिंदूर की धार को देख कर बहुत हैरान था l भैरव सिंह का चेहरा सख्त हो जाता है उसका भी चेहरे के पेशीयाँ थर्राने लगते हैं l जबड़े भिंच जाती हैं l उसका यह रुप देख कर रुप के पीछे खड़ी सेबती डर के कांपने लगती है l

भैरव सिंह - यह क्या बेहूदगी है... बदजात... तेरी मांग पर किसका सिंदूर है...
रुप - (अकड़ और गुस्से के साथ) मेरे पति के नाम की सिंदूर है...
भैरव सिंह - विश्वा... ओ... कमबख्त लड़की... शादी के बाद सिंदूर मांग पर सजाया जाता है...
रुप - मेरी शादी... पूरे रस्म ओ रिवाज के साथ... विश्व प्रताप महापात्र से हो चुकी है...
भैरव सिंह - क्या...
रुप - हाँ राजा साहब... हाँ... और यह शादी उसी दिन हुई थी... जिस दिन आपने मुझे उस केके के साथ व्याहने की सोच रखा था... (भैरव सिंह की आँखे हैरत के मारे फैल जाती है) विक्रम भैया और चाची चाचा ने पुरे रस्म ओ रिवाज के साथ... विश्व प्रताप से मेरा विवाह करवा दिया... और आज पूरा गाँव जिनकी मौत का मातम मना रहा है... उन्हींको चाची ने मुझे सौंपा था... इस बात का गवाह वह पंडित, मेरे सारे दोस्त और पूरी पुलिस फोर्स थी...
भैरव सिंह - हराम जादी... अपनी बेहयाई को बताते हुए... शर्म भी नहीं आ रही है... बड़ी अकड़ के साथ बता रही है...

इतना कह कर भैरव सिंह रुप को मारने के लिए हाथ उठाता है तो रुप ऊँची आवाज़ में भैरव सिंह से कहती है

रुप - भैरव सिंह... (भैरव सिंह का हाथ हवा में रुक जाता है) बस... यह गलती मत करना... वह जो अपनी दीदी की मौत पर शांत है... उसके भीतर धधकते हुए लावा को बाहर आने का मौका मत दो... वह फिर सब्र नहीं कर पाएगा... यह तुम्हारी हस्ती... यह तुम्हारी बस्ती का नाम ओ निशान मिटा कर रख देगा...

भैरव सिंह रूप की गर्दन को पकड़ कर दीवार तक धकेलते हुए ले जाता है l उसके पंजे का जकड़ धीरे धीरे मजबूत होने लगता है l रुप की साँसे भारी होने लगती है l

भैरव सिंह - कमज़र्फ बदज़ात लड़की... तु मुझे... भैरव सिंह क्षेत्रपाल को धमका रही है... बोल कहाँ है वह हराम जादा... बोल...
सेबती - हुकुम... राजकुमारी जी की साँस उखड़ गई तो आपके सवालों के जवाब नहीं मिलेगा...

भैरव सिंह की पकड़ ढीली हो जाती है और वह अपना हाथ रूप की गर्दन से हटा लेता है, तो रुप खांसते हुए नीचे बैठ जाती है l थोड़ी देर बाद जब रूप खांसते खांसते थोड़ी दुरुस्त होती है और हँसते हँसते खड़ी हो जाती है l भैरव सिंह गुस्से से गुर्राते हुए पूछता है

भैरव सिंह - हँस क्यूँ रही है...
रुप - मैं जानती थी... तुम ऐसा ही कुछ करोगे... पर नाकामयाब रहोगे...
भैरव सिंह - नाकामयाब... (फिर से गर्दन पकड़ लेता है) हमारे पंजे की ज़रा सी हरकत पर... तुम्हारी साँसे की लम्हें टिकी हुई हैं...
रुप - फिर भी हमेशा की तरह हार ही तुम्हारी मुक़द्दर है...
भैरव सिंह - (गुर्राते हुए) हम कभी हारे नहीं हैं... (चिल्ला कर) समझी...
रुप - अभी गिनवाती देती हूँ... याद है वह चौराहा.. जहाँ पर तुमने वैदेही दीदी को सात थप्पड़ मारे थे... और बदले में... दीदी ने तुम्हें सात अभिशाप दिए थे... सात अभिशाप... याद है... (भैरव सिंह की पकड़ ढीली हो जाती है) अभी से पकड़ ढीली हो गई... याद करो वह पहला थप्पड़.. तुम्हारे आदमी जो तुम्हारी पहचान के दम पर... लोगों पर जुल्म ढाते रहे हैं... उन्हें गाँव की गलियों में विश्व दौड़ा दौड़ा कर मारेगा कहा था... विश्व ने वही किया था याद है... (भैरव सिंह को वैदेही को मारे पहला थप्पड़ और बदले में वैदेही की श्राप याद आता है) दूसरा थप्पड़.. क्षेत्रपाल खानदान को छोड इस गाँव में कभी किसी ने उत्सव नहीं मनाया था... पर विश्वा आकर मनाएगा... याद है... विश्वा ने सबके साथ मिलकर होली मनाई थी... (भैरव सिंह को दूसरा थप्पड़ और वैदेही की दूसरी श्राप याद आता है) तीसरा थप्पड़... लोग कभी क्षेत्रपाल के खिलाफ थाने पर नहीं गए थे... पर विश्वा के लौटने के बाद... क्षेत्रपाल के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट लिखवायेंगे... वही हुआ ना... (भैरव सिंह को वह तीसरा थप्पड़ और वैदेही की तीसरा श्राप याद आता है) चौथी... जो लोग कभी क्षेत्रपाल महल को पीठ कर नहीं जाते थे... उल्टे पाँव जाते थे... एक दिन ऐसे पीठ करके जाएंगे के फिर कभी महल की तरफ... इज़्ज़त या खौफ से नहीं देखेंगे... (फिर वही नज़ारा भैरव सिंह के आँखों के सामने गुजर जाता है और वह चौथा श्राप उसके कानों में गूंजती है) पाँचवाँ... जिस अहंकार के बल पर... दीदी और विश्वा के परिवार को तीतर बितर कर दिया... एक दिन क्षेत्रपाल परिवार भी वैसे ही तितर बितर हो जाएगा... (भैरव सिंह के कानों में वैदेही की पाँचवाँ अभिशाप गूंजने लगती है) छटा... महल के मातम के सिवा गाँव में किसी के भी घर में मातम नहीं मनाई जाती थी... पर एक वक़्त ऐसा आएगा जब लोग महल की मातम में शामिल नहीं होंगे... पर गाँव में जब भी मातम होगा... उससे महल को दूर रखेंगे... हूँ..हँ दादा जी की मौत पर कोई नहीं आया... पर आज सभी वैदेही दीदी की मातम में इकट्ठे हो गए हैं... (भैरव सिंह को छटा श्राप याद आता है, उसका जबड़ा सख्त हो जाता है) अब बचा सातवाँ... आखिरी... अंतिम अभिशाप... वह भी बहुत जल्द पुरा होगा... लोग इस महल की ईंट से ईंट बजा देंगे... महल का नामों निशान मीट जाएगा... याद है... (भैरव सिंह रुप के बालों को पकड़ कर उठा लेता है और पूछता है)

भैरव सिंह - बस... बदज़ात... तु कैसे मेरी औलाद हों गई... बहुत बोल लिया तूने... चुप... अब बोल... कहाँ है वह... आस्तीन का साँप... वह हराम का जना... विश्वा... कहाँ है बोल..
रुप - विश्वा... विश्वा नहीं अनाम... वह नाम जिससे तुमने उससे मेरी पहचान कारवाई थी....
भैरव सिंह - हाँ हाँ... वहि अनाम... कहाँ है... बोल
रुप - वह... (हँसते हुए) वह यहाँ नहीं आया...
भैरव सिंह - (बालों को कस कर पकड़ कर) तु झूठ बोल रही है... वह अगर महल आया है... तो वज़ह सिर्फ तु ही है... बोल कहाँ है... (रुप के चेहरे पर दर्द साफ नजर आने लगती है)
सेबती - हुकुम... राज कुमारी जी सच कह रही हैं... यहाँ अब तक कोई भी नहीं आया है...
भैरव सिंह - चुप... (चीख कर) चुप कर कुत्तीया... चुप कर... (रूप की ओर देख कर) बाहर उसके दीदी की लाश सड़ रही है... और वह यहाँ आकर... हमें.. हमें किस बात के लिए चैलेंज कर रहा है... अपनी अमानत की बात कह रहा है...
रुप - अगर उसने अमानत की बात की है... तो उसकी अमानत मैं ही हूँ... पर... जाहिर है... तुमसे कुछ ऐसा पुछा होगा... जिसे जान कर.. तुमसे जवाब लेकर ही... वहीं पर गया होगा...
भैरव सिंह - क्या... (अचानक उसकी आँखे हैरत से फैल जाते हैं)

भैरव सिंह रूप को बालों के सहित पकड़ कर खिंचते हुए कमरे से निकल कर जाने लगता है l पीछे पीछे सेबती भी जाने लगती है l तीनों जाकर रणनीतिक प्रकोष्ठ में पहुँचते हैं l कमरे में विश्व के हाथ में फर्ग्यूसन का तलवार था पर भैरव सिंह और भी हैरान हो जाता है जब देखता है कि विश्व के हाथ में वह तलवार मूठ के साथ था l यानी विश्व उसे उसके मूठ से जोड़ दिया था l भैरव सिंह का हाथ अपने आप रुप के बालों से हट जाता है l

विश्व - यही वह मिथक है.. जो तुम्हारे खानदान के साथ जुड़ा हुआ था... वह मिथक बहुत जल्द सच होगा... इस बात का मुहर आज मैं लगा रहा हूँ...
भैरव सिंह - बात और औकात... दायरे में रहे... तो इज़्ज़त और जान महफूज रहता है...
विश्व - मैंने बात कह भी दी... औकात दिखा भी दी... उखाड़ ले... जो तुझे उखाड़ना है...


इतना कह कर विश्व तलवार को सामने पड़ी टेबल पर घोंप देता है l तलवार टेबल पर आधा घुस जाता है l इतने में रुप भाग कर विश्व के गले लग जाती है l विश्व भी रुप को अपने बाहों मे भर लेता है l दोनों विश्व और रुप भैरव सिंह की ओर देखते हैं l रुप को विश्व के बाहों में और दोनों को अपनी ओर देखते हुए देख कर भैरव सिंह गुस्से से चिल्लाता है l

भैरव सिंह - जॉन... (कुछ सेकेंड में ही कमरे में जॉन और उसके साथ कुछ हथियार बंद बंदे अंदर आते हैं) कील दिस बास्टर्ड... (सब जैसे ही विश्व पर बंदूक तान देते हैं, विश्व तुरंत ही अपने से रुप को अलग करता है, सब के सब हैरत के मारे विश्व की ओर देखने लगते हैं, विश्व अपनी शर्ट खोल देता है, उसके सीने में कुछ पैकेट्स के साथ एलईडी लाइट्स जल रहे थे )
जॉन - ओह शीट... डाइनामाइट... (जॉन और उसके आदमीओं के बंदूक नीचे हो जाते हैं) (विश्व अपनी जेब में हाथ डाल कर एक ग्रिप लिवर निकालता है) डेटोनेटर... (इससे पहले कि सब कमरे से निकल पाते)
विश्व - डोंट बी स्मार्ट... मिस्टर जॉन... कोई भी हिला... तो अपने साथ तुम सब को ले उड़ुंगा...
भैरव सिंह - ओह... तो पूरी तैयारी के साथ आया है...
विश्व - हाँ...
भैरव सिंह - तु यह भूल कैसे गया... तुझे कुछ हुआ तो... तेरे साथ तेरी दीदी की लाश गाँव में सड़ती रहेगी...
विश्व - मेरे बाद उसके और चार भाई और भी हैं... जो उसे कंधा भी देंगे और चिता में आग भी... (कह कर आगे बढ़ता है) तु अपनी चिंता कर... मेरे साथ उड़ गया.. तो...

भैरव सिंह के पास पहुँच जाता है l विश्व भैरव सिंह की पैंट को को खिंच कर बड़ी तेजी से उसके अंदर एक मूठ बराबर रॉड जैसे कुछ डाल देता है l इतनी तेजी से यह सब होता है कि भैरव सिंह को समझने के लिए वक़्त तक नहीं मिलता l जब उसे एहसास होता है तब वह अपनी पैंट में हाथ डालने को होता है कि विश्व कहता है

विश्व - ना कोई हरकत ना करना... (अपने हाथ में डेटोनेटर दिखाते हुए) यह इसी बॉम्ब का डेटोनेटर है... ज्यादा पावरफुल नहीं है... पर जितना भी है... उससे तेरी मर्दानगी वाला हिस्सा को उड़ा देगा... इतना डैमेज करेगा कि... पहले तेरी इज़्ज़त लेगा... फिर तेरी जान.. (भैरव सिंह पहली बार थूक निगलता है) चल... अब मुझे और मेरी पत्नी को... बा इज़्ज़त बाहर छोड़ आ...

इतना कह कर भैरव सिंह को खिंच कर कमरे से बाहर निकलता है l पीछे पीछे रुप और सेबती भी बाहर आते हैं l विश्व अपना डाइनामाइट वाला वेस्ट उतार कर बाहर दरवाजे पर टांग देता है और रुप को इशारा करता है जिसे रुप समझ जाती है और वह जल्द ही कमरे की दरवाजा बाहर से बंद कर देती है l

विश्व - (भैरव सिंह से) अपनी बेटी के कंधे पर हाथ रख... (भैरव सिंह हैरत से विश्व की ओर देखता है) हाँ... अपना बायाँ हाथ राजकुमारी जी के कंधे पर रख... वर्ना... (डेटोनेटर दिखाता है) (भैरव सिंह अपना बायाँ हाथ रुप के कंधे पर रखता है) शाबास... (अब विश्व भैरव सिंह का दायाँ हाथ अपने हाथ में ले लेता है और डेटोनेटर को अपनी जेब में रख लेता है) अब... एक अच्छे बाप की तरह... अपनी बेटी और दामाद जी को... बाहर ले चल...
भैरव सिंह - हरगिज नहीं... चाहे कुछ भी हो जाए... हमें मौत मंजूर है... हार नहीं...
विश्व - भैरव सिंह... मौत एक सच्चाई है... यह मैं अच्छी तरह से जानता हूँ... तुझे हार कभी बर्दास्त नहीं होता... अपनी जीत के लिए... तु कुछ भी कर गुजर जाएगा... पर सोच... मेरे डेटोनेटर दबाते ही... तेरा कमर का हिस्सा... बुरी तरह डैमेज होगा... जल्दी तो नहीं पर... कुछ घंटे तड़पने के बाद ही मरेगा जरूर... वह मौत तेरी जीत नहीं... तेरी हार की होगी... हमारा अंजाम चाहे जो भी हो... वह हमारे प्यार की जीत होगी...
रुप - सच कहा अनाम... यह आदमी अपनी जीत के लिए कुछ भी कर सकता है... हमारा प्यार... इसकी बड़ी हार है... मुहब्बत पर हम कुर्बान हो गए तो...
भैरव सिंह - खामोश बदजात... हम राजा हैं... जिसे तुम जीत समझ रहे हो... वह पानी की बुलबुला है...
विश्व - तो बाहर हमें छोड़ दे... हम भी तो देखें यह पानी की बुलबुला है... या कोई पर्वत...

भैरव सिंह के पैर हिलने को तैयार नहीं थे पर विश्व उसे अपनी ताकत से खिंचते हुए बाहर की ओर लिए जाता है l

रुप - (चलते चलते) अनाम... मुझे... शादी के तुरंत बाद ही... आपके साथ चले जाना चाहिए था... इस आदमी ने... छि... क्या कहूँ... उस दिन जब आप मिलकर चले गए... मैं उसके बाद दादा जी के कमरे की ओर जा रही थी... जब तक दरवाजे तक पहुँची... तो देखा... यह आदमी... दादाजी को इतनी जोर से दबोच रखा था कि... दादाजी की जान चली गई... यह मेरे लिए बहुत बड़ा सदमा था... इसी सदमे के चलते... मुझसे... वह मोबाइल छूट गई... यह कितना नीच है.. अपनी अहंकार के लिए... मेरी माँ को मार डाला था... अब दादाजी को भी मार डाला... (तीनों के चेहरे पर सख्ती उभरने लगी थी) मैं बस एक आस लिए इस घर में थी... जिस आँगन में मेरा बचपन गुजरा उसे छोड़ते हुए... इस आदमी की ओर कम से कम एक बार दुख से देखूँ... जैसे हर एक लड़की... अपने पिता को देखती है... पर यह आदमी... किसी भी रिश्ते के लायक नहीं है... (कहते कहते चारों महल के परिसर के बाहर आकर पहुँचते हैँ)(रुप और विश्व अब भैरव सिंह से अलग होते हैं,और भैरव सिंह के सामने खड़े हो जाते हैं, सेबती उनके पीछे आकर खड़ी होती है) (रुप भैरव सिंह से कहती है) मैं तुम्हारा यह घर... यह दुनिया हमेशा के लिए छोड़ जा रही हूँ... तुमसे कोई दुआ नहीं चाहिए... और मेरी बदकिस्मती देखो... अपने बाबुल की सलामती की दुआ भी नहीं कर सकती... जी तो चाहता है कि तुम्हारे मुहँ पर थूक कर जाऊँ... पर एक आखरी बार के लिए... बेटी होने के नाते... यह अंतिम सम्मान दिए जा रही हूँ... क्यूँकी मैं जानती हूँ... यह महल अब कुछ ही पल के लिए खड़ा है...

रुप चुप हो जाती है, उसके चुप्पी के साथ पूरा वातावरण में खामोशी पसर जाती है l भैरव सिंह अभी भी गुस्से से तीनों को देखे जा रहा था l

भैरव सिंह - विश्वा तुने एक बात सच कहा है.. हमें हार मंजूर नहीं है.. अपनी जीत के लिए हम कुछ भी कर सकते हैं...
विश्व - कुछ भी कर... पर मुझे दोबारा महल आना पड़े ऐसा कुछ भी मत करना... क्यूँकी अगली बार मेरा महल में आना... तेरी और इस महल का आखरी दिन होगा... (अपनी जेब से डेटोनेटर निकाल कर भैरव सिंह को दे देता है) यह ले.. तेरी जान और इज़्ज़त... अंदर जाकर बॉम्ब निकाल ले...

भैरव सिंह वह डेटोनेटर को हाथ में लिए विश्व और रुप को वहाँ से जाते हुए देख रहा था l उसके चेहरा किसी अंगार के भट्टी की तरह दहक रहा था l वह मुड़ता है और अंदर की ओर जाता है l

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रुप को लेकर जब विश्व पहुँचता है तो पाता है वैदेही की शव को अर्थी पर लिटा चुके थे l रूप वैदेही की शव को देख कर भागते हुए लिपट जाती है और बिलख बिलख कर रोने लगती है l उसे गाँव की औरतें घेर तो लेती हैं पर किसीकी हिम्मत नहीं होती कि उसे थामे और शांत करें l गौरी आकर रुप को पकड़ती है और उसे दिलासा देने लगती है l इतने में विश्व को अपने कंधे पर किसी का हाथ महसुस होता है l मुड़ कर देखता है डैनी खड़ा था l उसके पीछे विश्व के सारे दोस्त l

डैनी - शव को श्मशान ले जाना है... अंत्येष्टि के लिए... जाओ तैयार हो जाओ... (डैनी इशारा करता है तो उसके सारे दोस्त विश्व को ले जाते हैं और उसे धोती पहना कर लाते हैं)

विश्व के दोस्त और गाँव वाले मिलकर वैदेही की अर्थी को उठाते हैं l पीछे पीछे सारे गाँव वाले उमड़ पड़ते हैं l राजगड़ यह पहली बार हो रहा था l क्षेत्रपाल महल के निवासियों के अतिरिक्त किसी भी गाँव वाले के भाग्य यह था ही नहीं के गाँव में किसी की शव को कंधा और परिक्रमा मिला हो l नागेंद्र सिंह क्षेत्रपाल के मौत के साथ यह मिथक और इतिहास दोनों बदल गए l वैदेही, जिसका अपना परिवार नहीं था, आज पूरा गाँव उसका परिवार बन कर उसकी अर्थी को एक के बाद एक कंधा मिल रहा था और गाँव के हर गली से हर घर के आँगन के सामने से गुजर रहा था l सारे गाँव वाले मिलकर नदी के किनारे वाले श्मशान पर ले आते हैं l श्मशान के बाहर सभी औरतों को रोक दिया जाता है l फिर सारे मर्द श्मशान के अंदर जाते हैं जहाँ विश्व के चारों दोस्त बड़ी फुर्ती से चिता सजा देते हैं l पंडित के मंत्रोच्चारण के साथ क्रिया कर्म की विधि पूर्ण करते हुए विश्व वैदेही को मुखाग्नि दे कर चिता को आग के हवाले कर देता है l

चिता धू धू हो कर जलने लगता है l विश्व जो अबतक अपने भीतर की बाँध को रोके रखा था उसका सब्र जबाब दे देता है l उससे रहा नहीं जाता वह रो देता है l धीरे धीरे उसकी रोना बढ़ता जाता है l उसके चारों दोस्त उसे दिलासा देने की कोशिश करते हैं पर विश्व एक अबोध बच्चे की तरह बिलख बिलख कर रोता रहता है l विश्व को रोते देख कर वहाँ पर मौजूद सभी के आँखों में पानी आ जाती है l श्मशान के बाहर यह सब देख रही रुप से बर्दास्त नहीं होती l वह भागते हुए अंदर आती है तो उसे डैनी बीच में रोक देता है l

रुप - मुझे जाने दीजिए... मेरा अनाम रो रहा है... उसे अब मेरी जरूरत है...
डैनी - नहीं... उसे अभी किसीकी जरूरत नहीं है... उसे अभी के लिए अकेला छोड़ दो...
रुप - नहीं... आप समझ नहीं रहे... वह रोते रोते टूट जाएगा... कमजोर पड़ जाएगा...
डैनी - कुछ नहीं होगा... बर्षों से रोया नहीं है... आज अपनी दीदी के ग़म में... रो लेने दो...
रुप - आप उसके बारे में जानते ही क्या हैं...
डैनी - तुम उससे प्यार करती हो... इसलिए तुम्हें लगता है कि तुम उसके बारे में बहुत जानती हो... पर वह आज जैसा है... उसे वैसा मैंने बनाया है... मेरा चेला है वह... उसके अंदर की भावनाओं को मैं जानता हूँ... इसलिए आज उसे अकेला छोड़ दो...

रुप यह सब सुन कर हैरत से डैनी की ओर देखने लगती है l इतने में कुछ और लोग डैनी के पास आते हैं और विश्व को श्मशान से बाहर ले जाने की बात करते हैं l

एक - मुखाग्नि देने वाले को... तुरंत श्मशान से चले जाना चाहिए...
दूसरा - हाँ... यह विधि है... परंपरा है... मुखाग्नि के बाद.. विश्व का यहाँ रहना... अपशकुन होगा...
डैनी - कैसा शकुन.. कैसा अपशकुन... आज विश्वा.. अनाथ हो गया है... विश्वा कभी किसीके लिए रो नहीं पाया था... जन्म लेते ही माँ चल बसी... पिता का शव तक नहीं देख पाया... अपने गुरु की हत्या हुई है जानने के बाद भी रो नहीं पाया... श्रीनु के मौत पर गुस्सा तो कर पाया... पर रो नहीं पाया... आज वह सबके हिस्से का रोना रो रहा है... आज उसने अपनी दीदी को नहीं... बल्कि... अपनी माँ... अपने पिता... अपना गुरु... सबको खो दिया है... उसका यह ग़म... आज उससे कोई नहीं बांट सकता... (रूप को देख कर) तुम भी नहीं... आज उसे जी भर के रो लेने दो... उसे आज यहीं छोड दो... कल तक.. वह कुछ सुनने लायक होगा... चलो.. सब...
रुप - फिर कल... कल तक वह किस हालत में होगा...
डैनी - घबराओ नहीं... चिता की आग जितनी ठंडी होती जाएगी... उसके भीतर की आग.. ज्वाला बनेगी... फिर लावा बनकर बाहर निकलेगी... इसलिए चलो...

डैनी के यह कहने से वहाँ पर सब लोग कुछ क्षण के लिए शांत हो जाते हैं l सबकी निगाह विश्व पर थोड़ी देर के लिए ठहर जाता है l विश्व जो एक बच्चे की तरह रोये जा रहा था l उन्हें डैनी की बात सही लगी, इसलिए सभी विश्व को उसीकी हालत पर छोड़ कर चले जाते हैं l रूप जाने को तैयार नहीं थी पर डैनी उसे समझा कर ले जाता है l

सभी के जाने के बाद जलती हुई चिता के सामने सिर्फ विश्व ही था l जो अपनी आँखों से अपनी दीदी को लकडियों के साथ राख में तब्दील होते हुए देख रहा था l धीरे धीरे चिता की आँच कम होती चली गई विश्व की आँखों से आँसू भी सुख चुके थे l वह चिता के सामने बैठे बैठे लेट गया था l रात ऐसे ही बीती सुबह की ठंडी ठंडी हवा विश्व की नींद को हल्का कर रहा था l उसे महसूस हो रहा था जैसे वह वैदेही के गोद में सिर रख कर लेता हुआ है l वैदेही उसके सिर के बालों पर हाथ फ़ेर रही है l विश्व हल्का सा मुस्कुराने लगता है l

विश्व - दीदी... तुम...
वैदेही - हाँ थक जो गया है... इसलिए दुलार रही हूँ...
विश्व - मुझे माफ कर दो दीदी... तुम्हारे जीते जी... मैं भैरव सिंह को... सबक नहीं सीखा पाया...
वैदेही - अभी देर भी तो नहीं हुआ है... चल उठ... भैरव सिंह से... तुझे मेरा या बाबा... आचार्य सर या श्रीनु का बदला नहीं लेना है... तेरा जन्म राजगड़ के हर आँगन का कर्जदार है... तुझे हर एक आँगन का बदला लेना है... चल उठ...


अचानक उसकी नींद टूट जाती है l वह अपनी आँखे खोलता है फिर उठ बैठता है l सामने देख कर उसके मुहँ से निकलता है

विश्व - माँ..
प्रतिभा - उठ गया बेटा..
विश्व - माँ... क्या इतनी देर तक... मैं तुम्हारे गोद में लेटा हुआ था...
प्रतिभा - हाँ...
विश्व - और मैं बात किससे कर रहा था...
प्रतिभा - मुझसे... और जवाब भी मैं ही दे रही थी...
विश्व - आ प अकेली आई हैं...
प्रतिभा - ऐसा हो सकता है भला... तेरे डैड भी आए हैं... वह रहे...

विश्व अपनी गर्दन मोड़ कर देखता है श्मशान के बाहर तापस खड़ा हुआ था, साथ में उसके चारों दोस्त, रुप और डैनी भी खड़े थे, सब विश्व को जागता हुआ देख कर अंदर आते हैं l सबको अपनी तरफ आता देख कर विश्व अपनी जगह से उठ कर खड़ा हो जाता है l

प्रतिभा - तुम्हारे सो जाने से... पूरी दुनिया को भुला देने से... जानते हो... क्या हो गया है...
विश्व - क्या... क्या हो गया है...
प्रतिभा - चल घर चलते हैं... वहीँ पर बात करेंगे...

प्रतिभा विश्व की हाथ पकड़ कर सबके साथ श्मशान से निकल कर उमाकांत सर के घर की ओर जाने लगती है l विश्व देखता है सारे गाँव वालों के चेहरा उतरा हुआ है l सब को देख कर ऐसा लग रहा था जैसे कुछ बड़ा हुआ है पर विश्व से बात को छुपा रहे हैं l सभी लोग घर पर पहुँचते हैं l

प्रतिभा - हम सब बाहर हैं... तुम जाओ... तैयार हो कर बाहर आओ...

विश्व कोई सवाल किए वगैर अंदर जाता है l मुहँ धोते धोते उसे एहसास होता है कि उसके गैर हाजिरी में गाँव कुछ बुरा हुआ है l जल्दी जल्दी अपने आप को ताजा कर कपड़े बदल कर बाहर आता है l बाहर उसका ही इंतजार हो रहा था l सब मिलकर विश्व को साथ लेकर चलते हैं l इस बार वैदेही के दुकान पर पहुँचते हैं l विश्व देखता है दुकान के बाहर नभवाणी न्यूज चैनल की ट्रांसमिशन वैन खड़ा है l वहाँ पर इंस्पेक्टर दास और सतपती खड़े थे l विश्व को देख कर दोनों वैन का दरवाजा खटखटाते हैं l वैन से सुप्रिया निकल कर आती है l तीनों विश्व के पास आते हैं l विश्व को प्रतिभा दुकान वाली घर के अंदर ले जाती है l अंदर सभी विश्व को बिठा कर उसे घेर कर बैठते हैं l विश्व इधर उधर अपनी नजर घुमाता है

विश्व - यह गौरी काकी... दिखाई नहीं दे रही है... (विश्व की इस सवाल पर सीलु रो देता है)
सीलु - भाई... बहुत बुरा हो गया है... (रोते रोते) हम सब जब दीदी की अंत्येष्टि को श्मशान गए थे... तब भैरव सिंह के आदमी... घर घर में जो बच्चे थे... श्मशान नहीं गए थे... उन्हें उठा ले गए... (विश्व की आँखे फैल जाती हैं) (वह उठने को होता है कि प्रतिभा उसके कंधे पर हाथ रख कर बिठा देती है)
सतपती - फिलहाल... सभी गाँव वाले.. ट्रौमा में हैं... सबने अपने बच्चों को घर पर बुजुर्गों के हवाले कर छोड़ गए थे... इसी मौके का फायदा उठा कर... भैरव सिंह के आदमी आए... सारे बच्चों को... और उनके साथ गौरी काकी को उठा ले गए... और... ( एक गहरी साँस लेते हुए सतपती रुक जाता है)
विश्व - और...
दास - जब श्मशान से गाँव वाले लौटे... तो उन्हें इस बात की खबर देने के लिए भैरव सिंह का एक आदमी इंतजार कर रहा था... जाहिर है... जब लोगों को मालूम हुआ... अफरा-तफरी हो गया... हम ने सबको बड़ी मुस्किल से शांत किया... बात बहुत आगे बढ़ चुकी थी... एक्शन के लिए... हमने ऊपर तक बात की...(एक पॉज लेकर) हमें भैरव सिंह से नेगोशिएशन करने के लिए कहा गया... इसलिए हमने महल की ओर जाकर कॉन्टैक्ट करने की कोशिश की... तो भैरव सिंह ने... सरकार तक अपनी बात पहुँचाने के लिए... या यूँ कहूँ अपनी शर्तें थोपने के लिए... सुप्रिया जी को... मीडिएटर बनने के लिए कहा...
सतपती - मैंने सुप्रिया जी को... अपने क्रू मेंबर्स के साथ आने के लिए कहा... और.. वह मान भी गईं...

अब सतपती चुप हो जाता है, दास भी कुछ नहीं कहता विश्व देखता है सबके चेहरे पर तनाव साफ दिख रहा था l सुप्रिया डरी सहमी सी लग रही थी l

विश्व - तो क्या सुप्रिया जी नहीं गईं...
सतपती - गई थी... पर अंदर जो हुआ... (सतपती एक इशारा करता है, एक कांस्टेबल लैपटॉप लेकर सतपती को दे देता है) अब हमसे.. जो ट्रांसमिट कारवाया गया... वह ट्रांसमिशन देखो...

कह कर लैपटॉप विश्व को दे देता है l विश्व लैपटॉप में चल रहा वीडियो को देखने लगता है l कैमरा ऑन होते ही

जॉन - क्या कैमरा ऑन हुआ...
सुप्रिया - हाँ हो गया... पर अभी से कैमरा क्यूँ ऑन किया...
जॉन - वह इसलिए कि हमारी तैयारी... सब देखें... ताकि कोई जुर्रत या हरकत से पहले सौ बार सोच लें...

सुप्रिया अपना सिर हिलाती है कैमरा मैन कैमरा को हर एंगल में शूट करते हुए वीडियो लेता है l महल के अंदर चार वॉचिंग टावर थे, सब के सब एडवांस वेपन से लेस थे l सब कुछ शूट करते हुए जब अंदर की कमरे में पहुँचते हैं, भैरव सिंह उन्हें खड़ा मिलता है l

भैरव सिंह - आइए... सुप्रिया जी... आइए... हम आपके बहुत बड़े फैन हैं... अपकी रिपोर्टिंग देखने के बाद... आपसे मिलने की तलब थी... सो आज पूरी हो गई...
सुप्रिया - कहिये राजा साहब... आपने नेगोशिएशन के लिए... मुझे मीडिएटर क्यूँ चुना...
भैरव सिंह - आपकी रिपोर्टिंग बहुत ग़ज़ब की है... आप वाकई... अपने भाई की बहन ही हैं... या यूँ कहूँ... आप उनसे बेहतर हैं... इसलिये हम चाहते थे कि... सरकार तो सरकार.. हमारे खास दुश्मन को भी... पैगाम आपसे मिले...
सुप्रिया - कहिये फिर... क्या कहना चाहते हैं...
भैरव सिंह - हम चाहते हैं कि... आपका कैमरा शुरू से लेकर अंत तक... ऑन ही रहे... बाहर जाकर कुछ भी कांट छाँट कर सरकार को दिखा दीजिए... हमें कोई फर्क़ नहीं पड़ता...

इतना कह कर भैरव सिंह एक इशारा करता है l पीटर भैरव सिंह का रोल्स रॉएस लेकर आता है l भैरव सिंह सुप्रिया और उसके कैमरा मेन को इशारे से बैठने को कहता है l थोड़े झिझक के साथ दोनों अंदर बैठ जाते हैं l

भैरव सिंह - मैं अपने परिवार वालों को छोडकर... किसी को भी इस गाड़ी में नहीं बिठाया था... शिवाय वैदेही के... उसके बाद तुम दोनों वह खुशकिस्मत हो जो मेरे साथ इस गाड़ी में बैठे हो... (सुप्रिया का हलक सूखने लगता है) घबराओ नहीं... जो हाल वैदेही का हुआ... जरूरी नहीं तुम लोगों के साथ वही हो... (कुछ ही देर के बाद गाड़ी रुक जाती है, पिटर दरवाजा खोलता है तो सबसे पहले भैरव सिंह उतरता है उसके बाद सुप्रिया और फिर कैमरा मेन उतरते हैं) इसे रंग महल कहते हैं... हमारे खानदान की रंगीनियों की गवाह... यहाँ तक आने के लिए... बाहर से रास्ता है... और अंदर से भी... देख लो... (कैमरा मैन अपना कैमरा घुमाने लगता है, यहां पर भी चाक चौबंद बंदोबस्त थी, बिल्कुल क्षेत्रपाल महल की तरह) अब आओ हमारे साथ...

कह कर भैरव सिंह आगे आगे चलने लगता है उसके पीछे पीछे सुप्रिया और कैमरा मैन जाने लगते हैं l अंदर पहुँचने के बाद एक गैलरी पर रुकते हैं l

भैरव सिंह - इस महल में... इस जगह को आखेट गृह कहते हैं... हमने कुछ जानवर पाले हुए हैं... वह जानवर... जिनके जबड़े बहुत मजबूत होते हैं... वह जानवर... मेरे दुश्मनों का शिकार करते हैं... (भैरव सिंह ताली बजाता है, भैरव सिंह के आदमी बच्चों, गौरी और होम मिनिस्टर को लाते हैं) यह रहे वह लोग... जिन्हें हमने आखेट गृह के लिए उठा कर लाए हैं.. (सुप्रिया से) सुप्रिया जी... आपको जान कर खुशी होगी... आपके भाई प्रवीण और भाभी जी को... हमने यहीं से स्वर्ग रवाना कर दिया था...
सुप्रिया - ह्वाट...
भैरव सिंह - हाँ आपने ठीक सुना.. कैसे हम आपको दिखाते हैं...

कह कर भैरव सिंह गौरी के पास आता है और उसे बालों सहित पकड़ कर खिंच कर गैलेरी के सिरहाने पर लाता है l

भैरव सिंह - इस बुढ़िया को... हमने रहम खा कर भीख माँगने के लिए छोड़ दिया था... पर यह उस डायन के साथ मिलकर... हमारे खिलाफ खिचड़ी पकाती रही... इसलिए इसे... (कह कर धक्का देता है, गौरी चिल्लाते हुए स्वीमिंग पूल में गिरती है l भैरव सिंह एक स्विच ऑन कर देता है l दोनों तरफ से दीवारें सरक जाती हैं l गौरी जब तक पानी से बाहर आती है तब तक एक तरफ से लकड़बग्घा आकर गौरी की कंधे पर अपना जबड़ा धंसा देता है l गौरी चीखते चिल्लाते छूटने की कोशिश करती है कि उसके पैरों पर एक जबड़ा कस जाता है l उसके बाद दोनों जानवरों के बीच खींचातानी शुरु हो जाती है l फिर किसी से भी कुछ देखा नहीं जा पाता l वह स्विमिंग पूल खून से लाल हो जाती है l गैलेरी में मौजूद सारे बच्चें, मिनिस्टर और सुप्रिया के साथ कैमरा मैन भी चीखने लगते हैं पर वहाँ पर भैरव सिंह पूरी तरह से शांत होकर खड़ा था l

भैरव सिंह - (चिल्ला कर) चुप.... (सब चुप हो जाते हैं) (भैरव सिंह मुस्कराते हुए) कोई डर के मारे चिल्लम चिली करता है... तो मुझे बहुत अच्छा लगता है... पर चूँकि मुझे सरकार को खबर पहुंचानी है... इसलिये सब खामोश हो जाओ... पिटर... इन्हें अंदर ले जाओ... (पिटर और कुछ लोग बच्चों और मिनिस्टर को अंदर ले जाते हैं, भैरव सिंह कैमरा को अपने सामने लाता है) हाँ तो गाँव वालों... तुमसे शुरु करते हैं... जो जमीनों के कागजात... वैदेही ने महल से ले गई थी और विश्व ने तुममें बांट दी.. वह सब विश्व के हाथ ही हमें लौटाओगे... सरकार तुम्हारे बच्चों को बचाने के लिए कोई चाल चलेगी... पर ध्यान रहे... कोई भी सरकारी सेना गाँव में घुस नहीं पाए... वर्ना... तुम लोगों के बच्चों को... एक एक करके... लकड़बग्घे और मगरमच्छ के हवाले कर दी जाएगी.... समझ गए... हाँ तो मुख्य मंत्री जी... आपके केबिनेट की गृह मंत्री मेरे कब्जे में है... आपने कोई हरकत करने की कोशिश की... तो वह बहुत ही जल्द दिवंगत गृह मंत्री बन जाएंगे... वे तब तक मेहमान हैं हमारे... जब तक आप हमारी शर्तों को मान ना लें...
सुप्रिया - आ आ आप... के... शर्तें.. क के क्या.. क्या हैं...
भैरव सिंह - वह सब हम बाद में बता देंगे... पहले सरकार हमसे... हमारी शर्तें पूछ तो ले... अब तुम लोग जाओ... और हमारा यह काम और पैगाम... राज्य के हर घर घर में पहुँचाओ...

विडिओ खत्म हो जाता है l विश्व लैपटॉप बंद कर देता है l विश्व कमरे में अपनी नजर दौड़ाता है सभी उसीको देख रहे थे l

विश्व - सरकार की ओर से कौन नेगोशिएटर बना है...
सतपती - कोई नहीं... सरकार की तरफ मुझे सुप्रिया जी से बात करने के लिए कहा गया है...
विश्व - तो... आपने क्या बात करी...
सतपती - हाँ बात करी... हमने जब सरकार के तरफ़ से शर्तें पूछी.. तो उसने यह काग़ज़ थमा दिया...

विश्व सतपती से वह काग़ज़ लेकर देखता है l उस काग़ज़ में शर्तें लिखी थीं l
पहला - भैरव सिंह के खिलाफ सारे केसेस खारिज किया जाए और सारी कारवाई रोक दी जाए l
दुसरा - सारी जमीनों की कागजातों के साथ उनकी मिल्कियत भैरव सिंह को सौंप दी जाए l
तीसरा - जमीनों की कागजात उसे महल में आकर विश्व प्रताप महापात्र हस्तांतरण करे l
चौथा - देश छोड़ कर विदेश जाने दिया जाए l

विश्व - हम्म्म... वह हमारे सारे किए कराए पर पानी फ़ेर... विदेश में बसने की तैयारी कर रहा है... यहाँ तक समझ में आ रहा है... पर वह जमीनें लेकर क्या करेगा... (सब खामोश रहते हैं) सरकार... बचाव के लिए... कुछ सोच भी नहीं रहा है...
तापस - प्रताप... तुम क्या समझ नहीं रहे हो... एक आदमी... गाँव के बच्चों को और स्टेट के होम मिनिस्टर को अपना ढाल बनाए हुए है... आधे से ज्यादा गाँव वाले... अभी राजा के सैनिक हैं... जो किसी भी प्लैटून या दस्ते को गाँव में आने नहीं दे रहे हैं... उनकी सेंटिमेंट और इमोशन के आड़ में... अपनी गुनाह माफ़ करवा कर तुम्हारे सारे प्रयासों को धत्ता कर... विदेश चला जाएगा... विदेश में रह कर भी... इन जमीनों पर मिल्कियत बरकरार रखेगा... गाँव वाले जो कुछ दिन के लिए अपने खेतों के मालिक बने थे... वह एक पानी का बुलबुला था... इनकी जिंदगी नर्क बना कर जा रहा है... (एक पॉज लेता है) भैरव सिंह के कटघरे तक जाना तुम्हारे प्लान का हिस्सा रहा... पर उसके बाद जो भी हो रहा है... उसके प्लान के मुताबिक हो रहा है... कौन जी रहा है... कौन मर रहा है... उसे कोई फर्क़ नहीं पड़ रहा... बस अपनी जीत की घमंड को बरकरार रखने के लिए... किसी भी हद तक जा रहा है... उसके पास अपने हर एक प्लान के... ऑलटर्नेट बैकओप प्लान है... हम बस लड़ रहे हैं... पर असलीयत यह है कि... यह उसकी और सरकार की प्लानिंग है...
विश्व - सरकार...
तापस - हाँ... तुम भूल रहे हो... भैरव सिंह के पास सरकार के लगभग हर एक शख्स का कोई ना कोई... काली करतूत का सबूत है... अगर सिर्फ बच्चे ही उसके कब्जे में होते... तो अब तक रेस्क्यू ऑपरेशन हो चुका होता... पर चूंकि उसके कब्जे में... होम मिनिस्टर भी है... तो रेस्क्यू ऑपरेशन नहीं होगा...
विश्व - भैरव सिंह जो भी कर रहा है... वह एक टेररिस्ट ऐक्ट है...
तापस - हाँ है... और सरकार ऐसे टेररिस्टों के साथ नेगोशिएशन करती है... अपने लोगों को बचाने के लिए... और उनकी शर्तें मानती भी है...

कुछ पल के लिए कमरे में खामोशी पसर जाती है l विश्व प्रतिभा की ओर देखता है l प्रतिभा समझ जाती है विश्व किस पसोपेश में है l प्रतिभा विश्व का हाथ थाम कर बाहर ले जाती है और चौराहे के बीचो बीच आकर खड़ी हो जाती है l

प्रतिभा - प्रताप...
विश्व - हाँ माँ...
प्रतिभा - मैं तुम्हें अपनी वचन से आजाद करती हूँ... (विश्व चौंक कर देखता है) हाँ... तुमने लड़ाई कानूनी लड़ी... वह इसलिए... ताकि सच की जीत हो... पर यहाँ... तंत्र प्रशासन सब मिलकर सच को कुचलने के लिए एक हो गए हैं... इसलिए मैं तुझे अपनी वचन से आजाद कर रही हूँ... पर कुछ ऐसा कर... के आने वाले कल को एक ऐसा उदाहरण बने... ताकि लोग कानुन से भी डरें और जन आक्रोश से... (विश्व स्तब्ध हो जाता है) अब यह लड़ाई तेरी है... तु लड़ और जीत कर आ... (कह कर मुड़ कर जाने लगती है)
विश्व - माँ...
प्रतिभा - (मुड़ती है) मैं जानती हूँ... इस लड़ाई में तेरी जीत होगी... इसलिये इस जंग को जल्दी खत्म कर और बहू को लेकर घर आ जाना...

कह कर प्रतिभा वहाँ से चली जाती है l विश्व चौराहे पर एक बिजली के खंबे पर झाँक रही सीसीटीवी कैमरे की ओर देखता है l

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भैरव सिंह सर्विलांस पर देख रहा था l विश्व एक बैग कंधे पर डाले आ रहा था l उसके होंटों पर एक कुटिल मुस्कान छा जाती है l विश्व को गेट पर ही रोक दिया जाता है l वहाँ पर मौजूद एक गार्ड वायर लेस पर भैरव सिंह को खबर करता है l

गार्ड - कोब्रा कलिंग टु जनरल...
भैरव सिंह - यस जनरल हियर...
गार्ड - जनरल... इसके पास कुछ नहीं है... सिवाय बैग में कुछ पेपर के... वह भी प्रॉपर्टी के पेपर लग रहे हैं...
भैरव सिंह - ओके... ब्रिंग हिम हियर...

चार गार्ड्स विश्व को गन पॉइंट पर रख कर सर्विलांस कमरे में लाते हैं l

भैरव सिंह - आओ विश्व प्रताप आओ... क्या कहा था तुमने... अगली बार आओगे... तो तब मेरी हस्ती और बस्ती मिटा दोगे... लो मैंने तुम्हें बुला लिया... अब बोलो क्या करोगे...
विश्व - कुछ नहीं... फ़िलहाल तो... कुछ भी नहीं... पर मेरे समझ में नहीं आ रहा... हम से तु मैं पर कैसे उतर गया..
भैरव सिंह - क्या करूँ... तूने मुझे... (चेहरा सख्त हो जाता है) हम के लायक छोड़ा ही नहीं...

भैरव सिंह आगे बढ़ता है और विश्व के पेट में पूरी ताकत के साथ एक घुसा जड़ देता है l विश्व दर्द के मारे घुटने पर आ जाता है l

भैरव सिंह - हाँ... यही तेरी असली औकात है... तू... अपने घुटने पर रेंगने वाला... कीड़ा... जरा सा बाहर क्या निकला... शेर से भीड़ गया... (भैरव सिंह एक चुटकी बजाता है तो एक गार्ड भैरव सिंह के लिए एक कुर्सी लाकर रख देता है l भैरव सिंह कुर्सी पर बैठ कर अपने पैर से विश्व की ठुड्डी को उठाता है) क्यूँ बे हरामी... अब कुछ नहीं बोलेगा... हाँ तुने सही कहा था... मेरी जीत... मेरा अहंकार... मुझे अपनी जान या मौत से भी बड़ी है... हाँ तुने कई मौकों पर मुझसे जीता जरूर है... पर हराया कभी नहीं था... तुझे क्या लगा... मैं ऐसे दो टके की कानूनी कार्रवाई से डर जाऊँगा... तुझसे हार जाऊँगा... तु मुझे जिस कानून की गलियारे में खिंच कर लाया... मैं तुझे दिखाना चाहता था... यह कानून और सियासत मेरे पैर की ठोकर है...
विश्व - (मुस्कराता है) मेरी औकात तो सही है भैरव सिंह... तु अपनी बता... मैं घुटने पर सही... पर तेरे मुहँ से हम छुड़वा ही दिया...
भैरव सिंह - हाँ कुत्ते के पिल्ले... पहली बार किसी ने... मेरे ही महल में... मुझे मजबूर कर दिया... लाचार कर दिया... तेरे वज़ह से... मैं अब आईना में भी... अपनी अक्स से नजरें मिला नहीं पा रहा हूँ... इसीलिये तो... तुझे यहाँ बुलाया है... तुझे जिल्लत करने के लिए... (गार्ड्स से) उठाओ इसे... और अच्छी तरह मेरे इन जुतों से... मेहमान नवाजी करो...

गार्ड्स भैरव सिंह के जुतों से विश्व को पकड़ कर बुरी तरह से मारने लगते हैं l विश्व के होंठ फट जाते हैं l खून निकलने लगता है l थोड़ी देर बाद

भैरव सिंह - बस बस... इतना भी मत मारो... के यह अभी मर जाये... मरना तो इसे है ही... पर राजगड़ छोड़ने से पहले नहीं... (सब रुक जाते हैं)(भैरव सिंह एक गार्ड को इशारा करता है, वह गार्ड एक चेयर लाकर भैरव सिंह के आगे डाल देता है और दूसरे गार्ड्स विश्व को उठा कर भैरव सिंह के सामने बिठा देते हैं) तु वह पहला और आखरी खुशनसीब कुत्ता है... जिसे मैं अपने सामने बैठने की लायक समझा... क्यूँकी जिन्हें अपने बराबर नहीं समझा... उसे ना तो दोस्ती की है... ना दुश्मनी... पर मेरी किस्मत का फ़ेर देख... मेरे बच्चों से तेरी गहरी दोस्ती थी... रिश्तेदारी में बदल गई... इसलिए कम से कम... मेरी दुश्मनी के लायक हो गया... (विश्व मुस्कराता है) ओ... तुझे जोक लग रहा है नहीं...
विश्व - तेरे मरने से पहले... कोई ना सही मैं सही... तेरे सामने... तेरे बराबर बैठा हूँ...
भैरव सिंह - हाँ... वह भी थोड़ी देर के लिए... क्यूँकी जब इस महल से निकलूँगा... तब तेरे गले में पट्टा डाल कर... मेरी गाड़ी के पीछे दौड़ाऊँगा... हर गली.. हर चौराहे से... हर घर के आँगन के सामने... जब तु थक जाएगा... तब तेरी थकी हुई जिस्म को घसीटते हुए... गाँव भर घुमाऊँगा... अखिर में तेरी लाश को छोडकर... राजगड़ से कुछ सालों के लिए चला जाऊँगा...
विश्व - बहुत कुछ सोच रखा है... पर उसके लिए... इस रात का गुजरना... और सुबह का होना भी तो जरूरी है...
भैरव सिंह - वह तो होकर ही रहेगा... तुझे क्या लगता है... कौन रोकेगा मुझे... हा हा हा हा हा हा... अरे बेवक़ूफ़... सरकार और सरकारी सिस्टम मेरे साथ है... या यूँ कहूँ...मैंने उन्हें इस कदर मजबूर कर रखा है... के मेरा बाल तक कोई बाँका नहीं कर सकता... कल सुबह होगी... मेरे शर्तों पर मोहर लगा कर सरकारी फरमान आयेगा...
विश्व - हाँ... जैसे कि... मैंने कहा... उसके लिए सुबह का होना भी जरूरी है...
भैरव सिंह - ओ... कहीं तु इस गलत फहमी में तो नहीं है... के कोई रेस्क्यू ऑपरेशन होने वाला है... बच्चे... मेरी तैयारी तु जानता नहीं है...
विश्व - तैयारी... हाँ तैयारी... तुने एक बात सच कहा... सर्कार और सरकारी सिस्टम... तेरी जेब में है... तु जैल से निकलने के बाद से अब तक जो भी किया है... बिना सरकारी मदत से कर ही नहीं सकता था... तुने... रॉय की मदत से... ESS के लिए नए रिक्रूटमेंट में... कुछ मर्सीनरीज को भर्ती कारवाया... और बहुतों को... आम लोगों के भेष में राजगड़ के अंदर ले आया... क्यूँकी... आर्म के लाइसेन्स ESS के पास थी... उसीके जरिए... तुने सरकारी मदत से... यह आर्म्स और एम्युनिशन हासिल कर लिए... पर सच्चाई अभी भी यही है... यह सब... एशल्ट राइफलें... स्नाइपर्स गन्स... रॉकेट लंचर कुछ भी काम नहीं आता... अगर एक परफेक्ट रेस्क्यू ऑपरेशन को अंजाम दिया जाता... पर तूने उसके लिए भी अपना बैकअप प्लान बनाए रखा... होम मिनिस्टर और बच्चों को अपना शील्ड बना कर... जाहिर है... इसमें तेरी बदनामी तो होगी... सरकार की नहीं होगी... तेरा गुरूर... तेरा अहंकार का जीत होगा...
भैरव सिंह - ओ हो हो हो हो... लगता है मेरी जीत से तेरा पिछवाड़ा सुलग रहा है...
विश्व - नहीं भैरव सिंह नहीं... तु और सरकार मिले हुए हैं... इस बात का आगाह मुझे पहले से ही कर दिया गया था... मैं कहीं पर भी नहीं चुका... बस मेरी दीदी की ओर से चूक गया... पर अब नहीं... अब मैं पूरी तैयारी के साथ आया हूँ...
भैरव सिंह - हा हा.. हा हा हा हा हा हा हा हा... मौत के जबड़े में सिर रख कर... कौनसी तैयारी की बात कर रहा है... हाँ तूने एक बात सही कही... मैंने होम मिनिस्टर और बच्चों को ह्यूमन शील्ड बना रखा है... पर एक नहीं... मैं डबल शील्ड सिक्युरिटी में हूँ... अगर कोई बटालियन आयेगा... तो मुझे सर्विलांस से पता चल जाएगा... पर उन्हें मैं... या मेरी आर्मी नहीं रोकेगी... बल्कि रंग महल में बंद उन बच्चों के माँ बाप रोकेंगे...
विश्व - बच्चे रंग महल में हो तब ना...
भैरव सिंह - (चेहरे से मुस्कान गायब हो जाती है) क्या... क्या मतलब है तेरा...
विश्व - भैरव सिंह... तु जितना बड़ा ढीठ है... उतना ही बड़ा कायर है... तुने मीडिया के जरिए... दुनिया को बताया... के रंग महल में बच्चे और होम मिनिस्टर कैद हैं... पर असल में वह सब इसी महल में कैद हैं...
भैरव सिंह - (चेहरे का रंग उड़ जाता है) क्या बकते हो...
विश्व - हाँ भैरव सिंह... भले ही तुझे सरकारी मदत मिल रही है... पर तुझे सरकार पर ज़रा सा भी भरोसा नहीं है... तुझे मालूम है... अगर रेस्क्यू ऑपरेशन हुआ तो वह... रंग महल में होगा... ना कि यहाँ... भले ही तूने अपनी तैयारी दिखा दी... पर सच यह है कि... तूने अपनी सारी ताकत... इसी महल में झोंक रखी है...
भैरव सिंह - बहुत चालाक है तु... अच्छा दिमाग लगाया है... पर तुझे क्या लगता है... कहाँ होंगे वह बच्चे और मिनिस्टर...
विश्व - अंतर्महल में... चूंकि अब कोई जनाना नहीं है इस महल में... इसलिए... तू उन्हें वहीँ पर रखा है...
भैरव सिंह - वाकई... मैंने तुझे बहुत कम आंका था... तु तो मेरे खयाल से भी कहीं आगे का निकला... हाँ तुने सच कहा... बच्चे और मिनिस्टर यहीँ हैं... अंतर्महल में... अगर कोई रेस्क्यू ऑपरेशन हुआ... तो वह जरूर फैल हो जाएगा... वह क्या है ना... दिखाओ कुछ... करो कुछ... सोचो कुछ समझो कुछ... बोलो कुछ... हो जाए कुछ...
विश्व - ना... जो तुझे जानते हैं... समझ चुके हैं... वह तेरे चाल के खिलाफ जाकर रेस्क्यू ऑपरेशन कर रहे हैं...

भैरव सिंह अपनी कुर्सी से उछल कर उठ खड़ा होता है l सबसे पहले सर्विलांस टीवी पर नजर डालता है फिर अपना वायर लेस निकाल कर जॉन से कॉन्टेक्ट करता है l

भैरव सिंह - जॉन... कोई खबर...
जॉन - एवरी थिंग इज फ़ाइन जनरल...
भैरव सिंह - ठीक है... फिर से री चेक करो... और कन्फर्म करो...
भैरव सिंह - ओके जनरल...

भैरव सिंह - (अपनी जबड़े भिंच कर विश्व की तरफ मुड़ता है) मेरी तैयारी मुझे हौसला देता है... पर तु मुझे इतनी बार मात दे चुका है कि... तेरी बातों पर भरोसा करने को मन कर रहा है...
विश्व - हाँ भैरव सिंह हाँ... क्यूँ की भरोसे का दूसरा नाम है विश्वा... तु जो सीसीटीवी पर देख रहा है... वह सब आधे घंटे के पहले वाला वीडियो देख रहा है... तुने सरकार को टाइम दिया... अपनी शर्तें मनवाने के लिए... पर उतना ही वक़्त मैंने अपनी तैयारी में लगा दिया... तुझे याद तो होगा... मैंने और वीर ने... कैसे सुंढी साही में घुस कर अनु को बचाया था... (भैरव सिंह के भौंहें सिकुड़ जाते हैं) जब मैं वहाँ पर टेक्नोलॉजी का सहारा ले सकता हूँ... तो क्या यहाँ ले नहीं सकता था... (भैरव सिंह के आँखे हैरत से फैल जाते हैं) हाँ भैरव सिंह हाँ... तुने सरकार को वक़्त दिया वहाँ तक ठीक है... पर मुझे वक़्त नहीं देना था... तेरे सारे सर्विलांस हैक कर लिए गए हैं... अब थोड़ी देर के बाद... ड्रोन सर्विलांस से सारे गार्ड्स के लोकेशन ट्रैक कर लिए गए हैं... वही ड्रोन अब तुम्हारे गार्ड्स के सिरों पर बॉम्ब की तरह गिरेंगे... (तभी बाहर से अफरा तफरी की आवाजें सुनाई देने लगती है)
भैरव सिंह - (उन गार्ड्स से) गो एंड सी... क्या हो रहा है...

चारों गार्ड्स बाहर चले जाते हैं l भैरव सिंह अपनी वायर लेस निकाल कर जॉन से कॉन्टैक्ट करता है l

भैरव सिंह - जॉन... क्या हो रहा है... (तभी अलर्ट सैरन बजने लगती है)
जॉन - जनरल... हम पर ड्रोन अटैक हो रहा है... आप सर्विलांस रूम में ही रहिए... हम कुछ ही मिनटों में निपटा देंगे.... (वायर लेस ऑफ हो जाता है, भैरव सिंह घूम कर पीछे मुड़ कर देखता है विश्व के चेहरे पर मुस्कान था)
विश्व - देखो कुछ... दिखाओ कुछ... बोलो कुछ... हो जाए कुछ... सोचो कुछ... समझाओ कुछ... यही तुम्हारा स्टाइल है ना... मैंने भी वही किया... (भैरव सिंह गुस्से में विश्व की ओर आता है) ना ना... यह कुछ ठीक नहीं लग रहा... मैं बैठा हूँ तुम खड़े हो... कॉम ऑन.. बैठ जाओ... बात करते हैं...
भैरव सिंह - हराम जादे...
विश्व - मैंने कहा था... समझाया था... मुझे इस महल में आने के लिए कोई वज़ह मत देना... क्यूँकी जब जाऊँगा... तब ना तो तु रहेगा... ना यह तेरी महल... (भैरव सिंह विश्व पर झपट्टा मारता है, पर विश्व उसके लिए पहले से ही तैयार था l वह अपनी चेयर के साथ वहाँ से हट जाता है भैरव सिंह नीचे गिर जाता है) चु चु चु... अभी कुछ देर पहले.. मुझे अपने कदमों में गिरा रखा था... वक़्त देख कितनी जल्दी करवट बदल दी... अब तु मेरे पैरों में है...

भैरव सिंह उठ खड़ा होता है कि तभी एक गार्ड दौड़ा दौड़ा हांफते हुए आता है

गार्ड - जनरल... जॉन सर ने ऑर्डर किया है... आप बस कमरे में रहिए...

इतना कह कर गार्ड दरवाज़ा बाहर से बंद कर चला जाता है l भैरव सिंह दरवाज़े के पास दौड़ कर जाता है और गाली देते हुए खोलने के लिए कहता है पर तब तक गार्ड दरवज़ा बंद कर जा चुका था l विश्व हँसने लगता है

विश्व - हा हा हा हा... क्या हुआ भैरव सिंह... मुझसे डर लग रहा है... (भैरव सिंह मुड़ कर देखता है, विश्व अब अपनी कुर्सी से उठ खड़ा हो चुका था) तु जानना नहीं चाहेगा... तेरी तिलिस्म... तेरी सेक्यूरिटी इतनी आसानी से कैसे ढह गई... बचपन में... तेरे आदमियों से बचने के लिए... मैं महल में छुप जाया करता था... तभी महल में बहुत सी खुफिया रास्ते मालूम हुए... जो मेरे छुपने में बड़ी मदत किया करते थे... आगे चलकर मालुम हुआ... उन रास्तों के बारे में... तुझे और तेरे आदमियों को भी नहीं पता था... आज मैंने... पूरे गाँव वालों को... जिन्हें मेरे गुरु डैनी... मेरे चारों दोस्त... इंस्पेक्टर दास... डी सी पी सतपती के साथ साथ सत्तू लीड कर रहे हैं... यह गाँव वाले अब सरकारी मदत की मोहताज नहीं हैं... यह अपने बच्चों को बचाने के लिए.. क़ाबिल हैं... इतने काबिल के इनकी एकता को... किसी बटालियन की जरूरत नहीं है...

इतना कह कर विश्व वायर लेस के पास जाता है और उसका एक चैनल बदलता है l फिर माउथ पीस लेकर डैनी को कॉल करता है

विश्व - डैनी भाई...
डैनी - हाँ मेरे पट्ठे... कैसा है...
विश्व - ठीक हुँ... महल में क्या चल रहा...
डैनी - हमने इन्हें ना सिर्फ ऐंगैज कर लिया है... बल्कि अच्छी खासी डैमेज भी दिया है...
विश्व - गुड... अभी वक़्त आ गया है.. लोगों को इशारा कर दो... महल पर हल्ला बोल दें...
डैनी - डॉन...

विश्व वायर लेस उठा कर नीचे फेंक देता है l भैरव सिंह डर के मारे दो कदम पीछे हट जाता है l विश्व भैरव सिंह की ओर देखता है, भैरव सिंह के आँखों में उसे डर साफ दिख रहा था l विश्व टेबल पर चढ़ जाता है

विश्व - क्या कहा था तुने... तु जिस ऊँचाई पर खड़ा है... कोई गर्दन उठा कर देखे तो उसकी रीढ़ की हड्डी टुट जाएगी... हा हा हा हा... यह देख आज वक़्त मुझे किस ऊँचाई पर खड़ा कर दिया... और तु मुझे अपनी गर्दन उठा कर देख रहा है... (भैरव सिंह आँखे फाड़ कर गहरी गहरी साँसे लेने लगता है) याद है... तूने मेरे सर पर खड़े हो कर अपना विश्वरुप दिखाया था... यह देख... (सारे टीवी स्क्रीन ऑन हो जाते हैं, स्क्रीन पर सिर्फ मशालें ही मशालें लहर की तरह आ रही थी) लोगों दिलों में... जिंदगी में और आत्मा में आजादी की लॉ जल उठी है... इतने बर्षों से जो जुल्म ढाए हैं... उसका हिसाब लेने... अपने दिल की आग को मशाल बना कर तुझसे हिसाब करने आ रहे हैं... यह देख... (हर एक स्क्रीन पर इंसान कोई दिख नहीं रहा था l ऐसा लग रहा था जैसे आग का लहर महल के अंदर घुसा आ रहा है) (विश्व के इर्द गिर्द आग ही आग दिख रहा था, ऐसा दृश्य भैरव सिंह के और भी खौफजदा कर रहा था) यह देख यह है एक आम आदमी का विश्व रुप...

सीसीटीवी पर दिख रहा था l लोगों गेट को तोड़ कर अंदर घुस गए जो भी सामने आया उसे अपनी मशालों के हवाले करते चले गए l यह दृश्य देख कर भैरव सिंह विश्व एक अलमारी के पास जाता है और वही फर्ग्यूसन का तलवार निकाल कर अपने को घोंपने वाला ही होता है कि विश्व उसके पास आ कर उससे तलवार छीन लेता है l

विश्व - नहीं भैरव सिंह नहीं... तुझे इतनी आसान मौत... नहीं... हरगिज नहीं...
भैरव सिंह - (गिड़गिड़ाते हुए) विश्वा... मुझे तुम मार डालो... मुझे उन लोगों के हवाले मत करो... प्लीज... तुम... तुम मुझे मार डालो...
विश्व - क्या भैरव सिंह... क्षेत्रपाल कभी मांगते नहीं है... तु मांग रहा है... वह भी मौत... जो तुने दूसरों को देता रहा है...
भैरव सिंह - प्लीज विश्वा... मुझे इन लोगों के हवाले मत करो प्लीज...
विश्व - नहीं भैरव सिंह... तु उन गालियों में भागेगा.. जिन गालियों से तेरे गुज़रते ही सन्नाटा छा जाता था... तु मुझे जिन गालियों रेंगते हुए देखना चाहता था... आज तु अपनी जान बचाने के लिए.. भागेगा...

तभी दरवाजे पर वार पर वार होने लगती है l विश्व दरवाजा खोलने के लिए आगे बढ़ता है l

भैरव सिंह - नहीं विश्वा नहीं... मुझे कम से कम... ऐसी मौत तो ना दो...
विश्व - तुझे भागने का आखरी मौका देता हूँ भैरव सिंह... (कह कर कमरे की झूमर की रस्सी के पास भैरव सिंह को ले जाता है) इसे दरवज़ा खुलने से पहले खोल कर ऊपर से निकल जा...

विश्व इतना कह कर दरवाजा खोलने चला जाता है l भैरव सिंह बहुत जल्दी में हाथ चलाने लगता है l जैसे ही विश्व दरवाजा खोलता है लोग हाथों में मशाल और हथियार लेकर घुस जाते हैं, तभी भैरव सिंह झूमर की रस्सी खोलने में कामयाब हो जाता है l जैसे जैसे झूमर नीचे आती है भैरव सिंह ऊपर उठकर कर रोशन दान तक पहुँच जाता है और वहाँ से बाहर छत की ओर निकल कर भागने लगता है l भागते भागते हुए देखता है उसके सारे सिपाही मरे पड़े थे l लोगों ने सबको आग के हवाले कर दिया था l भैरव सिंह बड़ी मुस्किल से महल से निकलता है और अंधाधुंध भागने लगता है पर एक चौराहे पर ठिठक जाता है l उसके पीछे पीछे लोग आ रहे थे और सामने से भी आ रहे थे l भैरव सिंह और एक गाली में घुस कर भागता है l कुछ देर बाद वहाँ भी आगे से लोग आते दिखते हैं l भैरव सिंह बदहवास हो कर भागने लगता है l अचानक उसका हाथ पकड़ कर कोई खिंच लेता है और मुहँ दबोच लेता है l भीड़ उस रास्ते से गुजर जाता है l भैरव सिंह उस भीड़ को अपनी आँखों से गुज़रते देखते देखते बेहोश हो जाता है l

भैरव सिंह के चेहरे पर पानी गिरते ही अपनी आँखे खोलता है l देखता है सामने विश्व एक बाल्टी लिए खड़ा था l अपनी नजरें दुरुस्त कर देखता है वह अब रंग महल के आखेट प्रकोष्ठ में था l उसके हाथ व पैर बंधे हुए थे l

विश्व - जाग गए... देखो... तुने अपनी आखरी ख्वाहिश जताई... मैंने भी बड़ा दिल लेकर... उसे पूरा करने की सोची... तुने अपने खिलाफ सिर उठाने वालों को जो मौत दी है... मैं तुझे वही मौत देने वाला हूँ...
भैरव सिंह - नहीं विश्वा नहीं... मुझे तुम कानून के हवाले कर दो... मैं अपनी सारी गुनाह कबूल कर लूँगा... वहाँ पर फांसी पर चढ़ जाऊँगा... पर ऐसे नहीं प्लीज...
विश्वा - हाँ मान जाता... पर... नहीं... तुने अपनी ताकत दिखा दी... सरकार और सिस्टम को घुटने पर ला दी... तेरे जैसा जैल में ज्यादा दिन तक नहीं रहेगा... इसलिए तेरा अंजाम.... कानूनन होगा... पर सजा... तेरे ही पालतू देंगे...
भैरव सिंह - नहीं विश्वा नहीं...
विश्व - हाँ भैरव सिंह हाँ... तेरी लाश अब किसीको भी नहीं मिलेगा... तु कानून की किताब में... हमेशा भगोड़ा ही कहलायेगा... इस तरह तु अमर हो जाएगा...
भैरव सिंह - विश्वा मत भूल... मैं तेरा ससुर हूँ...
विश्वा - कमाल है... तुझे रिश्तों का ज्ञान है... मान है... हाँ आज के बाद याद रखूँगा... तु मेरा ससुर था...
भैरव सिंह - साले कुत्ते हरामी... छोड़ दे मुझे...
विश्व - ले छोड़ दिया...

कह कर विश्व भैरव सिंह को उठा कर स्विमिंग पूल पर फेंक देता है और मुड़ कर बाहर चला जाता है l पीछे उसके कानों में थोड़ी देर के लिए भैरव सिंह के चिल्लाने की आवाज़ आती है l फिर आवाज आनी बंद हो जाती है l

"नमस्कार... आज का मुख्य समाचार... जैसा कि आपने कल न्यूज देखा था... होम मिनिस्टर और बच्चों को बंधक बना कर भैरव सिंह ने सरकार से अपनी सभी जुर्मों के माफी के साथ साथ विदेश जाने की शर्त रखी थी, और सरकार को आज सुबह तक का वक़्त दे रखा था l पर जैसा खबर हमें प्राप्त हो रहे हैं गाँव के लोगों ने अपने बच्चे और मंत्री जी को बचाने की बीड़ा उठाया और रात को ही महल पर धाबा बोल दिया l अपने बच्चों को और मंत्री जी को बचा लिया और पुलिस को खबर दे दिया l सुबह सुबह जब पुलिस पहुँची तो पाया भैरव सिंह जी की महल की रखवाली कुछ विदेशी विदेशी हथियारों के साथ कर रहे थे l बहुत से लोग मारे गए हैं और कुछ बुरी तरह घायल भी हुए हैं l लोगों की मानें और पुलिस की मानें तो भैरव सिंह अभी किसीके भी हाथ नहीं आए हैं l फरार चल रहे हैं l तलाशी के दौरान पुलिस के हाथों कुछ अहम सबूत मिले हैं जिसके कारण सरकार व सरकारी तंत्र का भ्रष्ट होना दिख रहा है l पुलिस ने राज्यपाल से बात कर सारे सबूतों को केंद्रीय अन्वेषण विभाग के हवाले कर दिया है l


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दस साल बाद

राजगड़ MLA की गाड़ी रास्ते पर दौड़ रही थी l गाड़ी की पिछली सीट पर विक्रम बैठा था और उसके सामने सुप्रिया बैठी हुई थी l सुप्रिया विक्रम की इंटरव्यू लेने की तैयारी कर रही थी l कैमरा मैन के ओके कहने के बाद सुप्रिया इंटरव्यू शुरु करती है l

सुप्रिया - नमस्कार करती हूँ.... मैं सुप्रिया रथ सतपती... एडिटर चीफ नभ वाणी... शुरु करती हूँ चलते चलते... आज हमारे प्रोग्राम चलते चलते में स्वागत करते हैं... राजगड़ के MLA श्री विक्रम सिंह जी... तो विक्रम जी... दस साल हो गये हैं... अपकी पार्टी सत्ता में है... और सबसे अहम... आपके ससुर... श्री बीरजा किंकर सामंतराय मुख्य मंत्री हैं... पर उनके कैबिनेट में... आप मंत्री नहीं हैं...
विक्रम - सुप्रिया जी... मैं वास्तव में... राजनीति में आना ही नहीं चाहता था... पर राजगड़ के लोगों के आग्रह के चलते मुझे राजनीति में आना पड़ा... कारण भी था... मेरे पूर्वज राजगड़ प्रांत पर बहुत अन्याय किए हैं... मैं आज केवल उन कुकर्मों का प्रायश्चित कर रहा हूँ... आज शाम मुख्यमंत्री जी राजगड़ आ रहे हैं... राजगड़ का नाम बदल कर... वैदेही नगर रखा जाएगा... और यशपुर का नाम बदल कर... पाईकराय पुर रखा जाएगा... इसे केबिनेट में अनुमोदन मिल चुका है...
सुप्रिया - जी इसके पीछे कोई विशेष कारण... क्यूँकी आपने जो स्कुल कॉलेज और हस्पताल तक खुलवाए हैं... सभी वैदेही जी के नाम पर ही खोले हैं...
विक्रम - हाँ... आज लोगों में जो चैतन्य जागा है... उसके पीछे वही महिला हैं... उनके बलिदानों के कारण ही लोग आज अपना अधिकार और कर्तव्य के प्रति जागरूक हुए हैं... उनके लिए कुछ भी करें तो वह कम ही होगा... अपने मुझसे प्रश्न किया ना... अपने ससुर जी मंत्री मंडल में.. मेरे पास कोई मंत्रालय क्यूँ नहीं है... कारण है... अगर मंत्री पद लेता हूँ... तो पूरे राज्य के प्रति जवाबदेह हो जाऊँगा... पर एक आम प्रतिनिधि होने पर... मैं केवल और केवल राजगड़ के लोगों के प्रति जवाबदेह रहता हूँ... यही मेरे लिए बहुत है...
सुप्रिया - बहुत अच्छा विचार है... अच्छा अब आपके मित्रों के बारे में... बंधु रिश्तेदारों के बारे में कुछ बताइए...
विक्रम - जैसा कि आप जानते हैं.. मेरे ससुर राज्य के मुख्यमंत्री हैं... मेरी सासु माँ... एनजीओ चलाती हैं... मेरी पत्नी... राजगड़ मुख्य हस्पताल में डॉक्टर हैं... मेरी बहन भी डॉक्टर हैं... वह भी उसी हस्पताल में अपनी सेवा देती रहती हैं... मेरा जीजा बहुत ही व्यस्त आदमी है... वह जयंत लॉ फार्म हाऊस को अपनी माताजी के साथ चलाते हैं... ज्यादा तर सेवा उन लोगों को देते हैं... जो अर्थिक रूप से कमजोर हैं... साथ साथ अपने पिता जी के साथ मिलकर... जोडार ग्रुप के सेक्यूरिटी संस्था को उनको दोस्तों के साथ मिलकर भी देखते हैं... मेरा एक दोस्त सुभाष सतपती फ़िलहाल... भुवनेश्वर का पुलिस कमिश्नर है... और एक मित्र दासरथी दास यशपुर का एसपी है...
सुप्रिया - अपने बच्चों के बारे में कुछ बताइए...
विक्रम - मेरा एक बेटा है... नाम वीर है

गाड़ी शाम तक राजगड़ में पहुँच जाता है l सत्तू जो सरपंच था फ़ूलों की माला लेकर विक्रम के गले में डाल देता है l

विक्रम - अरे सत्तू... यह क्या कर रहे हो...
सत्तू - भाई... तुम हो ही इस लायक...
विक्रम - अच्छा अच्छा... सब आ गए हैं...
सत्तू - हाँ... देखिए ना... मुख्य अतिथि मुख्यमंत्री जी पहुँच गए हैं... और तुम ही देरी से आए हो...
विक्रम - अरे छोड़ यार... चलो जल्दी मंच पर पहुँचते हैं...

मंच पर मुख्यमंत्री जी के बगल में विक्रम और सत्तू बैठ जाते हैं l थोड़ी देर के बाद एंकर सत्तू को स्वागत भाषण देने बुलाते हैं l सत्तू के स्वागत भाषण के बाद मुख्यमंत्री मंच से ही एक मूर्ति का अनावरण करते हैं l वह वैदेही की मूर्ति थी जो बैठी बिल्कुल उसी मुद्रा में जिस मुद्रा में मंदिर की सीढियों पर अंतिम साँस छोड़ी थी l बाएं हाथ में दरांती और दायां हाथ कुल्हाड़ी पर टेक लगाए l वह मूर्ति देख कर दर्शकों के दीर्घा में बैठे विश्व की आँखे भीग जाती हैं l मूर्ति के अनावरण के बाद मुख्यमंत्री जी राजगड़ के नाम को बदल कर वैदेही नगर रखने और यशपुर का नाम पाईकराय पुर रखने का घोषणा करते हैं l राजगड़ के लोग खुशी के मारे कोलाहल करने लगते हैं l सत्तू ने गाँव वालों के लिए खाने का बंदोबस्त किया था l सभी गाँव वाले हर्ष ओ उल्लास के साथ अपनी अपनी समय को उपभोग कर रहे थे l विश्व रुप, विक्रम शुभ्रा, सुभाष सुप्रिया सब आपस में बात कर रहे थे l तभी एक रोते हुए बच्चे के साथ एक दंपति एक शिक्षक के साथ आते हैं l

शिक्षक - विक्रम जी...
विक्रम - हाँ कहिये...
शिक्षक - इन महाशय जी का एक शिकायत है...
विक्रम - जी बेझिझक कहिए... मैं क्या कर सकता हूँ...
मर्द - सर... अभी अभी मेरे बेटे को आपके बेटे ने बहुत बुरी तरह मारा...
सभी - क्या...
शुभ्रा - वीर ने आपके लड़के को मारा...
औरत - जी... देखिए... हम कहना तो नहीं चाहते... मगर... आपका बेटा... अपने पिता का नाम बदनाम कर रहा है... आप अपने बेटे को... इस स्कुल से निकाल कर... कहीं बाहर पढ़ाइए...
विक्रम - देखिए... मेरे गाँव के स्कुल में... मेरा बेटा नहीं पढ़ेगा तो... स्कुल की प्रतिष्ठा करने का क्या मतलब... (शिक्षक से) कहिए... कहाँ है... वीर...
शिक्षक - जी आइए...

सभी स्कुल के प्रिंसिपल के चैम्बर में पहुँचते हैं, जहाँ वीर सिर झुकाए खड़ा था l प्रिंसिपल विक्रम को देख कर अपनी कुर्सी छोड़ खड़ा होता है l

विक्रम - नहीं नहीं आप बैठे रहिए... आप शिक्षक हैं... कहिए क्या हुआ है...
प्रिंसिपल - विक्रम साहब... वैसे आपका बेटा बहुत होशियार है... पर कुछ दिनों से... यह लड़का... आपके बेटे के हाथ से पीट रहा है... अब आप ही समझाएं...
विक्रम - यह क्या सुन रहा हूँ वीर...
वीर - आप मुझे कोई भी सजा दीजिए... पर यह फिरसे गलत हरकत की... तो इसे फोड़ दूँगा...
शुभ्रा - ऐ... यह कैसी भाषा बोल रहा है... क्या किया है इसने...

तभी एक छोटी लड़की कमरे के अंदर घुस आती है l और कहती है

लड़की - सर मैं कुछ कहना चाहती हूँ...
वीर - तुम क्यूँ आई... मैं संभाल लेता...
लड़की - नहीं वीर... मैं सबको सच बताऊँगी... (विक्रम से) अंकल... वीर जब स्पोर्ट्स में बिजी रहता है... तब मैं वीर की होम वर्क और क्लास वर्क कर देती हूँ... पर यह अमन... हमेशा मुझे टोकता रहता है...
अमन - हाँ तो... तुम मेरी सेक्शन की हो... तो उसकी होम वर्क या क्लास वर्क क्यूँ करती हो...
लड़की - मेरी मर्जी...
अमन - देख यह ठीक नहीं है...
वीर - (अमन से) ऐ डरा रहा है क्या... खबरदार...
विश्व - वीर... हम सब यहाँ हैं... प्रिंसिपल साहब का चैम्बर है...
वीर - तो.. मेरे दोस्त को कोई बेवजह डराएगा... तो छोड़ दूँगा क्या...
रुप - अमन ठीक ही तो कह रहा है... तुझे अपना होम वर्क करना चाहिए... किसी पर डिपेंड नहीं करना चाहिए...
लड़की - नहीं आंटी... मुझे वीर कभी होम वर्क करने के लिए देता नहीं है... मैं बस अपने तरफ से माँग लेती हूँ...
शुभ्रा - क्यूँ... क्यूँ करती हो ऐसा...
लड़की - मुझे अच्छा लगता है...
विश्व - अच्छा तो तुम्हें अच्छा लगता है...
लड़की - हाँ...
विश्व - वैसे तुम्हारा नाम क्या है...
लड़की - अनु... अनुसूया...
Bahut hi shaandar update diya hai Kala Nag bhai....
Nice and lovely update....
 

Ajju Landwalia

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👉एक सौ पैंसठवाँ अपडेट (B) पूर्ण विराम
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भैरव सिंह आँखे फाड़े रुप को देख रहा था l रुप मातम की लिबास में, सफेद साड़ी में सामने उसके खड़ी थी l अपने नाम के अनुसार सौम्य और सुंदर पर तम तमाई हुई दिख रही थी l चेहरे पर दुख के साथ साथ असीम गुस्सा उसके चेहरे को लाल दिख रही थी l पर सबसे खास आज उसके मांग में सिंदूर दिख रहा था l भैरव सिंह उस सिंदूर की धार को देख कर बहुत हैरान था l भैरव सिंह का चेहरा सख्त हो जाता है उसका भी चेहरे के पेशीयाँ थर्राने लगते हैं l जबड़े भिंच जाती हैं l उसका यह रुप देख कर रुप के पीछे खड़ी सेबती डर के कांपने लगती है l

भैरव सिंह - यह क्या बेहूदगी है... बदजात... तेरी मांग पर किसका सिंदूर है...
रुप - (अकड़ और गुस्से के साथ) मेरे पति के नाम की सिंदूर है...
भैरव सिंह - विश्वा... ओ... कमबख्त लड़की... शादी के बाद सिंदूर मांग पर सजाया जाता है...
रुप - मेरी शादी... पूरे रस्म ओ रिवाज के साथ... विश्व प्रताप महापात्र से हो चुकी है...
भैरव सिंह - क्या...
रुप - हाँ राजा साहब... हाँ... और यह शादी उसी दिन हुई थी... जिस दिन आपने मुझे उस केके के साथ व्याहने की सोच रखा था... (भैरव सिंह की आँखे हैरत के मारे फैल जाती है) विक्रम भैया और चाची चाचा ने पुरे रस्म ओ रिवाज के साथ... विश्व प्रताप से मेरा विवाह करवा दिया... और आज पूरा गाँव जिनकी मौत का मातम मना रहा है... उन्हींको चाची ने मुझे सौंपा था... इस बात का गवाह वह पंडित, मेरे सारे दोस्त और पूरी पुलिस फोर्स थी...
भैरव सिंह - हराम जादी... अपनी बेहयाई को बताते हुए... शर्म भी नहीं आ रही है... बड़ी अकड़ के साथ बता रही है...

इतना कह कर भैरव सिंह रुप को मारने के लिए हाथ उठाता है तो रुप ऊँची आवाज़ में भैरव सिंह से कहती है

रुप - भैरव सिंह... (भैरव सिंह का हाथ हवा में रुक जाता है) बस... यह गलती मत करना... वह जो अपनी दीदी की मौत पर शांत है... उसके भीतर धधकते हुए लावा को बाहर आने का मौका मत दो... वह फिर सब्र नहीं कर पाएगा... यह तुम्हारी हस्ती... यह तुम्हारी बस्ती का नाम ओ निशान मिटा कर रख देगा...

भैरव सिंह रूप की गर्दन को पकड़ कर दीवार तक धकेलते हुए ले जाता है l उसके पंजे का जकड़ धीरे धीरे मजबूत होने लगता है l रुप की साँसे भारी होने लगती है l

भैरव सिंह - कमज़र्फ बदज़ात लड़की... तु मुझे... भैरव सिंह क्षेत्रपाल को धमका रही है... बोल कहाँ है वह हराम जादा... बोल...
सेबती - हुकुम... राजकुमारी जी की साँस उखड़ गई तो आपके सवालों के जवाब नहीं मिलेगा...

भैरव सिंह की पकड़ ढीली हो जाती है और वह अपना हाथ रूप की गर्दन से हटा लेता है, तो रुप खांसते हुए नीचे बैठ जाती है l थोड़ी देर बाद जब रूप खांसते खांसते थोड़ी दुरुस्त होती है और हँसते हँसते खड़ी हो जाती है l भैरव सिंह गुस्से से गुर्राते हुए पूछता है

भैरव सिंह - हँस क्यूँ रही है...
रुप - मैं जानती थी... तुम ऐसा ही कुछ करोगे... पर नाकामयाब रहोगे...
भैरव सिंह - नाकामयाब... (फिर से गर्दन पकड़ लेता है) हमारे पंजे की ज़रा सी हरकत पर... तुम्हारी साँसे की लम्हें टिकी हुई हैं...
रुप - फिर भी हमेशा की तरह हार ही तुम्हारी मुक़द्दर है...
भैरव सिंह - (गुर्राते हुए) हम कभी हारे नहीं हैं... (चिल्ला कर) समझी...
रुप - अभी गिनवाती देती हूँ... याद है वह चौराहा.. जहाँ पर तुमने वैदेही दीदी को सात थप्पड़ मारे थे... और बदले में... दीदी ने तुम्हें सात अभिशाप दिए थे... सात अभिशाप... याद है... (भैरव सिंह की पकड़ ढीली हो जाती है) अभी से पकड़ ढीली हो गई... याद करो वह पहला थप्पड़.. तुम्हारे आदमी जो तुम्हारी पहचान के दम पर... लोगों पर जुल्म ढाते रहे हैं... उन्हें गाँव की गलियों में विश्व दौड़ा दौड़ा कर मारेगा कहा था... विश्व ने वही किया था याद है... (भैरव सिंह को वैदेही को मारे पहला थप्पड़ और बदले में वैदेही की श्राप याद आता है) दूसरा थप्पड़.. क्षेत्रपाल खानदान को छोड इस गाँव में कभी किसी ने उत्सव नहीं मनाया था... पर विश्वा आकर मनाएगा... याद है... विश्वा ने सबके साथ मिलकर होली मनाई थी... (भैरव सिंह को दूसरा थप्पड़ और वैदेही की दूसरी श्राप याद आता है) तीसरा थप्पड़... लोग कभी क्षेत्रपाल के खिलाफ थाने पर नहीं गए थे... पर विश्वा के लौटने के बाद... क्षेत्रपाल के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट लिखवायेंगे... वही हुआ ना... (भैरव सिंह को वह तीसरा थप्पड़ और वैदेही की तीसरा श्राप याद आता है) चौथी... जो लोग कभी क्षेत्रपाल महल को पीठ कर नहीं जाते थे... उल्टे पाँव जाते थे... एक दिन ऐसे पीठ करके जाएंगे के फिर कभी महल की तरफ... इज़्ज़त या खौफ से नहीं देखेंगे... (फिर वही नज़ारा भैरव सिंह के आँखों के सामने गुजर जाता है और वह चौथा श्राप उसके कानों में गूंजती है) पाँचवाँ... जिस अहंकार के बल पर... दीदी और विश्वा के परिवार को तीतर बितर कर दिया... एक दिन क्षेत्रपाल परिवार भी वैसे ही तितर बितर हो जाएगा... (भैरव सिंह के कानों में वैदेही की पाँचवाँ अभिशाप गूंजने लगती है) छटा... महल के मातम के सिवा गाँव में किसी के भी घर में मातम नहीं मनाई जाती थी... पर एक वक़्त ऐसा आएगा जब लोग महल की मातम में शामिल नहीं होंगे... पर गाँव में जब भी मातम होगा... उससे महल को दूर रखेंगे... हूँ..हँ दादा जी की मौत पर कोई नहीं आया... पर आज सभी वैदेही दीदी की मातम में इकट्ठे हो गए हैं... (भैरव सिंह को छटा श्राप याद आता है, उसका जबड़ा सख्त हो जाता है) अब बचा सातवाँ... आखिरी... अंतिम अभिशाप... वह भी बहुत जल्द पुरा होगा... लोग इस महल की ईंट से ईंट बजा देंगे... महल का नामों निशान मीट जाएगा... याद है... (भैरव सिंह रुप के बालों को पकड़ कर उठा लेता है और पूछता है)

भैरव सिंह - बस... बदज़ात... तु कैसे मेरी औलाद हों गई... बहुत बोल लिया तूने... चुप... अब बोल... कहाँ है वह... आस्तीन का साँप... वह हराम का जना... विश्वा... कहाँ है बोल..
रुप - विश्वा... विश्वा नहीं अनाम... वह नाम जिससे तुमने उससे मेरी पहचान कारवाई थी....
भैरव सिंह - हाँ हाँ... वहि अनाम... कहाँ है... बोल
रुप - वह... (हँसते हुए) वह यहाँ नहीं आया...
भैरव सिंह - (बालों को कस कर पकड़ कर) तु झूठ बोल रही है... वह अगर महल आया है... तो वज़ह सिर्फ तु ही है... बोल कहाँ है... (रुप के चेहरे पर दर्द साफ नजर आने लगती है)
सेबती - हुकुम... राज कुमारी जी सच कह रही हैं... यहाँ अब तक कोई भी नहीं आया है...
भैरव सिंह - चुप... (चीख कर) चुप कर कुत्तीया... चुप कर... (रूप की ओर देख कर) बाहर उसके दीदी की लाश सड़ रही है... और वह यहाँ आकर... हमें.. हमें किस बात के लिए चैलेंज कर रहा है... अपनी अमानत की बात कह रहा है...
रुप - अगर उसने अमानत की बात की है... तो उसकी अमानत मैं ही हूँ... पर... जाहिर है... तुमसे कुछ ऐसा पुछा होगा... जिसे जान कर.. तुमसे जवाब लेकर ही... वहीं पर गया होगा...
भैरव सिंह - क्या... (अचानक उसकी आँखे हैरत से फैल जाते हैं)

भैरव सिंह रूप को बालों के सहित पकड़ कर खिंचते हुए कमरे से निकल कर जाने लगता है l पीछे पीछे सेबती भी जाने लगती है l तीनों जाकर रणनीतिक प्रकोष्ठ में पहुँचते हैं l कमरे में विश्व के हाथ में फर्ग्यूसन का तलवार था पर भैरव सिंह और भी हैरान हो जाता है जब देखता है कि विश्व के हाथ में वह तलवार मूठ के साथ था l यानी विश्व उसे उसके मूठ से जोड़ दिया था l भैरव सिंह का हाथ अपने आप रुप के बालों से हट जाता है l

विश्व - यही वह मिथक है.. जो तुम्हारे खानदान के साथ जुड़ा हुआ था... वह मिथक बहुत जल्द सच होगा... इस बात का मुहर आज मैं लगा रहा हूँ...
भैरव सिंह - बात और औकात... दायरे में रहे... तो इज़्ज़त और जान महफूज रहता है...
विश्व - मैंने बात कह भी दी... औकात दिखा भी दी... उखाड़ ले... जो तुझे उखाड़ना है...


इतना कह कर विश्व तलवार को सामने पड़ी टेबल पर घोंप देता है l तलवार टेबल पर आधा घुस जाता है l इतने में रुप भाग कर विश्व के गले लग जाती है l विश्व भी रुप को अपने बाहों मे भर लेता है l दोनों विश्व और रुप भैरव सिंह की ओर देखते हैं l रुप को विश्व के बाहों में और दोनों को अपनी ओर देखते हुए देख कर भैरव सिंह गुस्से से चिल्लाता है l

भैरव सिंह - जॉन... (कुछ सेकेंड में ही कमरे में जॉन और उसके साथ कुछ हथियार बंद बंदे अंदर आते हैं) कील दिस बास्टर्ड... (सब जैसे ही विश्व पर बंदूक तान देते हैं, विश्व तुरंत ही अपने से रुप को अलग करता है, सब के सब हैरत के मारे विश्व की ओर देखने लगते हैं, विश्व अपनी शर्ट खोल देता है, उसके सीने में कुछ पैकेट्स के साथ एलईडी लाइट्स जल रहे थे )
जॉन - ओह शीट... डाइनामाइट... (जॉन और उसके आदमीओं के बंदूक नीचे हो जाते हैं) (विश्व अपनी जेब में हाथ डाल कर एक ग्रिप लिवर निकालता है) डेटोनेटर... (इससे पहले कि सब कमरे से निकल पाते)
विश्व - डोंट बी स्मार्ट... मिस्टर जॉन... कोई भी हिला... तो अपने साथ तुम सब को ले उड़ुंगा...
भैरव सिंह - ओह... तो पूरी तैयारी के साथ आया है...
विश्व - हाँ...
भैरव सिंह - तु यह भूल कैसे गया... तुझे कुछ हुआ तो... तेरे साथ तेरी दीदी की लाश गाँव में सड़ती रहेगी...
विश्व - मेरे बाद उसके और चार भाई और भी हैं... जो उसे कंधा भी देंगे और चिता में आग भी... (कह कर आगे बढ़ता है) तु अपनी चिंता कर... मेरे साथ उड़ गया.. तो...

भैरव सिंह के पास पहुँच जाता है l विश्व भैरव सिंह की पैंट को को खिंच कर बड़ी तेजी से उसके अंदर एक मूठ बराबर रॉड जैसे कुछ डाल देता है l इतनी तेजी से यह सब होता है कि भैरव सिंह को समझने के लिए वक़्त तक नहीं मिलता l जब उसे एहसास होता है तब वह अपनी पैंट में हाथ डालने को होता है कि विश्व कहता है

विश्व - ना कोई हरकत ना करना... (अपने हाथ में डेटोनेटर दिखाते हुए) यह इसी बॉम्ब का डेटोनेटर है... ज्यादा पावरफुल नहीं है... पर जितना भी है... उससे तेरी मर्दानगी वाला हिस्सा को उड़ा देगा... इतना डैमेज करेगा कि... पहले तेरी इज़्ज़त लेगा... फिर तेरी जान.. (भैरव सिंह पहली बार थूक निगलता है) चल... अब मुझे और मेरी पत्नी को... बा इज़्ज़त बाहर छोड़ आ...

इतना कह कर भैरव सिंह को खिंच कर कमरे से बाहर निकलता है l पीछे पीछे रुप और सेबती भी बाहर आते हैं l विश्व अपना डाइनामाइट वाला वेस्ट उतार कर बाहर दरवाजे पर टांग देता है और रुप को इशारा करता है जिसे रुप समझ जाती है और वह जल्द ही कमरे की दरवाजा बाहर से बंद कर देती है l

विश्व - (भैरव सिंह से) अपनी बेटी के कंधे पर हाथ रख... (भैरव सिंह हैरत से विश्व की ओर देखता है) हाँ... अपना बायाँ हाथ राजकुमारी जी के कंधे पर रख... वर्ना... (डेटोनेटर दिखाता है) (भैरव सिंह अपना बायाँ हाथ रुप के कंधे पर रखता है) शाबास... (अब विश्व भैरव सिंह का दायाँ हाथ अपने हाथ में ले लेता है और डेटोनेटर को अपनी जेब में रख लेता है) अब... एक अच्छे बाप की तरह... अपनी बेटी और दामाद जी को... बाहर ले चल...
भैरव सिंह - हरगिज नहीं... चाहे कुछ भी हो जाए... हमें मौत मंजूर है... हार नहीं...
विश्व - भैरव सिंह... मौत एक सच्चाई है... यह मैं अच्छी तरह से जानता हूँ... तुझे हार कभी बर्दास्त नहीं होता... अपनी जीत के लिए... तु कुछ भी कर गुजर जाएगा... पर सोच... मेरे डेटोनेटर दबाते ही... तेरा कमर का हिस्सा... बुरी तरह डैमेज होगा... जल्दी तो नहीं पर... कुछ घंटे तड़पने के बाद ही मरेगा जरूर... वह मौत तेरी जीत नहीं... तेरी हार की होगी... हमारा अंजाम चाहे जो भी हो... वह हमारे प्यार की जीत होगी...
रुप - सच कहा अनाम... यह आदमी अपनी जीत के लिए कुछ भी कर सकता है... हमारा प्यार... इसकी बड़ी हार है... मुहब्बत पर हम कुर्बान हो गए तो...
भैरव सिंह - खामोश बदजात... हम राजा हैं... जिसे तुम जीत समझ रहे हो... वह पानी की बुलबुला है...
विश्व - तो बाहर हमें छोड़ दे... हम भी तो देखें यह पानी की बुलबुला है... या कोई पर्वत...

भैरव सिंह के पैर हिलने को तैयार नहीं थे पर विश्व उसे अपनी ताकत से खिंचते हुए बाहर की ओर लिए जाता है l

रुप - (चलते चलते) अनाम... मुझे... शादी के तुरंत बाद ही... आपके साथ चले जाना चाहिए था... इस आदमी ने... छि... क्या कहूँ... उस दिन जब आप मिलकर चले गए... मैं उसके बाद दादा जी के कमरे की ओर जा रही थी... जब तक दरवाजे तक पहुँची... तो देखा... यह आदमी... दादाजी को इतनी जोर से दबोच रखा था कि... दादाजी की जान चली गई... यह मेरे लिए बहुत बड़ा सदमा था... इसी सदमे के चलते... मुझसे... वह मोबाइल छूट गई... यह कितना नीच है.. अपनी अहंकार के लिए... मेरी माँ को मार डाला था... अब दादाजी को भी मार डाला... (तीनों के चेहरे पर सख्ती उभरने लगी थी) मैं बस एक आस लिए इस घर में थी... जिस आँगन में मेरा बचपन गुजरा उसे छोड़ते हुए... इस आदमी की ओर कम से कम एक बार दुख से देखूँ... जैसे हर एक लड़की... अपने पिता को देखती है... पर यह आदमी... किसी भी रिश्ते के लायक नहीं है... (कहते कहते चारों महल के परिसर के बाहर आकर पहुँचते हैँ)(रुप और विश्व अब भैरव सिंह से अलग होते हैं,और भैरव सिंह के सामने खड़े हो जाते हैं, सेबती उनके पीछे आकर खड़ी होती है) (रुप भैरव सिंह से कहती है) मैं तुम्हारा यह घर... यह दुनिया हमेशा के लिए छोड़ जा रही हूँ... तुमसे कोई दुआ नहीं चाहिए... और मेरी बदकिस्मती देखो... अपने बाबुल की सलामती की दुआ भी नहीं कर सकती... जी तो चाहता है कि तुम्हारे मुहँ पर थूक कर जाऊँ... पर एक आखरी बार के लिए... बेटी होने के नाते... यह अंतिम सम्मान दिए जा रही हूँ... क्यूँकी मैं जानती हूँ... यह महल अब कुछ ही पल के लिए खड़ा है...

रुप चुप हो जाती है, उसके चुप्पी के साथ पूरा वातावरण में खामोशी पसर जाती है l भैरव सिंह अभी भी गुस्से से तीनों को देखे जा रहा था l

भैरव सिंह - विश्वा तुने एक बात सच कहा है.. हमें हार मंजूर नहीं है.. अपनी जीत के लिए हम कुछ भी कर सकते हैं...
विश्व - कुछ भी कर... पर मुझे दोबारा महल आना पड़े ऐसा कुछ भी मत करना... क्यूँकी अगली बार मेरा महल में आना... तेरी और इस महल का आखरी दिन होगा... (अपनी जेब से डेटोनेटर निकाल कर भैरव सिंह को दे देता है) यह ले.. तेरी जान और इज़्ज़त... अंदर जाकर बॉम्ब निकाल ले...

भैरव सिंह वह डेटोनेटर को हाथ में लिए विश्व और रुप को वहाँ से जाते हुए देख रहा था l उसके चेहरा किसी अंगार के भट्टी की तरह दहक रहा था l वह मुड़ता है और अंदर की ओर जाता है l

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रुप को लेकर जब विश्व पहुँचता है तो पाता है वैदेही की शव को अर्थी पर लिटा चुके थे l रूप वैदेही की शव को देख कर भागते हुए लिपट जाती है और बिलख बिलख कर रोने लगती है l उसे गाँव की औरतें घेर तो लेती हैं पर किसीकी हिम्मत नहीं होती कि उसे थामे और शांत करें l गौरी आकर रुप को पकड़ती है और उसे दिलासा देने लगती है l इतने में विश्व को अपने कंधे पर किसी का हाथ महसुस होता है l मुड़ कर देखता है डैनी खड़ा था l उसके पीछे विश्व के सारे दोस्त l

डैनी - शव को श्मशान ले जाना है... अंत्येष्टि के लिए... जाओ तैयार हो जाओ... (डैनी इशारा करता है तो उसके सारे दोस्त विश्व को ले जाते हैं और उसे धोती पहना कर लाते हैं)

विश्व के दोस्त और गाँव वाले मिलकर वैदेही की अर्थी को उठाते हैं l पीछे पीछे सारे गाँव वाले उमड़ पड़ते हैं l राजगड़ यह पहली बार हो रहा था l क्षेत्रपाल महल के निवासियों के अतिरिक्त किसी भी गाँव वाले के भाग्य यह था ही नहीं के गाँव में किसी की शव को कंधा और परिक्रमा मिला हो l नागेंद्र सिंह क्षेत्रपाल के मौत के साथ यह मिथक और इतिहास दोनों बदल गए l वैदेही, जिसका अपना परिवार नहीं था, आज पूरा गाँव उसका परिवार बन कर उसकी अर्थी को एक के बाद एक कंधा मिल रहा था और गाँव के हर गली से हर घर के आँगन के सामने से गुजर रहा था l सारे गाँव वाले मिलकर नदी के किनारे वाले श्मशान पर ले आते हैं l श्मशान के बाहर सभी औरतों को रोक दिया जाता है l फिर सारे मर्द श्मशान के अंदर जाते हैं जहाँ विश्व के चारों दोस्त बड़ी फुर्ती से चिता सजा देते हैं l पंडित के मंत्रोच्चारण के साथ क्रिया कर्म की विधि पूर्ण करते हुए विश्व वैदेही को मुखाग्नि दे कर चिता को आग के हवाले कर देता है l

चिता धू धू हो कर जलने लगता है l विश्व जो अबतक अपने भीतर की बाँध को रोके रखा था उसका सब्र जबाब दे देता है l उससे रहा नहीं जाता वह रो देता है l धीरे धीरे उसकी रोना बढ़ता जाता है l उसके चारों दोस्त उसे दिलासा देने की कोशिश करते हैं पर विश्व एक अबोध बच्चे की तरह बिलख बिलख कर रोता रहता है l विश्व को रोते देख कर वहाँ पर मौजूद सभी के आँखों में पानी आ जाती है l श्मशान के बाहर यह सब देख रही रुप से बर्दास्त नहीं होती l वह भागते हुए अंदर आती है तो उसे डैनी बीच में रोक देता है l

रुप - मुझे जाने दीजिए... मेरा अनाम रो रहा है... उसे अब मेरी जरूरत है...
डैनी - नहीं... उसे अभी किसीकी जरूरत नहीं है... उसे अभी के लिए अकेला छोड़ दो...
रुप - नहीं... आप समझ नहीं रहे... वह रोते रोते टूट जाएगा... कमजोर पड़ जाएगा...
डैनी - कुछ नहीं होगा... बर्षों से रोया नहीं है... आज अपनी दीदी के ग़म में... रो लेने दो...
रुप - आप उसके बारे में जानते ही क्या हैं...
डैनी - तुम उससे प्यार करती हो... इसलिए तुम्हें लगता है कि तुम उसके बारे में बहुत जानती हो... पर वह आज जैसा है... उसे वैसा मैंने बनाया है... मेरा चेला है वह... उसके अंदर की भावनाओं को मैं जानता हूँ... इसलिए आज उसे अकेला छोड़ दो...

रुप यह सब सुन कर हैरत से डैनी की ओर देखने लगती है l इतने में कुछ और लोग डैनी के पास आते हैं और विश्व को श्मशान से बाहर ले जाने की बात करते हैं l

एक - मुखाग्नि देने वाले को... तुरंत श्मशान से चले जाना चाहिए...
दूसरा - हाँ... यह विधि है... परंपरा है... मुखाग्नि के बाद.. विश्व का यहाँ रहना... अपशकुन होगा...
डैनी - कैसा शकुन.. कैसा अपशकुन... आज विश्वा.. अनाथ हो गया है... विश्वा कभी किसीके लिए रो नहीं पाया था... जन्म लेते ही माँ चल बसी... पिता का शव तक नहीं देख पाया... अपने गुरु की हत्या हुई है जानने के बाद भी रो नहीं पाया... श्रीनु के मौत पर गुस्सा तो कर पाया... पर रो नहीं पाया... आज वह सबके हिस्से का रोना रो रहा है... आज उसने अपनी दीदी को नहीं... बल्कि... अपनी माँ... अपने पिता... अपना गुरु... सबको खो दिया है... उसका यह ग़म... आज उससे कोई नहीं बांट सकता... (रूप को देख कर) तुम भी नहीं... आज उसे जी भर के रो लेने दो... उसे आज यहीं छोड दो... कल तक.. वह कुछ सुनने लायक होगा... चलो.. सब...
रुप - फिर कल... कल तक वह किस हालत में होगा...
डैनी - घबराओ नहीं... चिता की आग जितनी ठंडी होती जाएगी... उसके भीतर की आग.. ज्वाला बनेगी... फिर लावा बनकर बाहर निकलेगी... इसलिए चलो...

डैनी के यह कहने से वहाँ पर सब लोग कुछ क्षण के लिए शांत हो जाते हैं l सबकी निगाह विश्व पर थोड़ी देर के लिए ठहर जाता है l विश्व जो एक बच्चे की तरह रोये जा रहा था l उन्हें डैनी की बात सही लगी, इसलिए सभी विश्व को उसीकी हालत पर छोड़ कर चले जाते हैं l रूप जाने को तैयार नहीं थी पर डैनी उसे समझा कर ले जाता है l

सभी के जाने के बाद जलती हुई चिता के सामने सिर्फ विश्व ही था l जो अपनी आँखों से अपनी दीदी को लकडियों के साथ राख में तब्दील होते हुए देख रहा था l धीरे धीरे चिता की आँच कम होती चली गई विश्व की आँखों से आँसू भी सुख चुके थे l वह चिता के सामने बैठे बैठे लेट गया था l रात ऐसे ही बीती सुबह की ठंडी ठंडी हवा विश्व की नींद को हल्का कर रहा था l उसे महसूस हो रहा था जैसे वह वैदेही के गोद में सिर रख कर लेता हुआ है l वैदेही उसके सिर के बालों पर हाथ फ़ेर रही है l विश्व हल्का सा मुस्कुराने लगता है l

विश्व - दीदी... तुम...
वैदेही - हाँ थक जो गया है... इसलिए दुलार रही हूँ...
विश्व - मुझे माफ कर दो दीदी... तुम्हारे जीते जी... मैं भैरव सिंह को... सबक नहीं सीखा पाया...
वैदेही - अभी देर भी तो नहीं हुआ है... चल उठ... भैरव सिंह से... तुझे मेरा या बाबा... आचार्य सर या श्रीनु का बदला नहीं लेना है... तेरा जन्म राजगड़ के हर आँगन का कर्जदार है... तुझे हर एक आँगन का बदला लेना है... चल उठ...


अचानक उसकी नींद टूट जाती है l वह अपनी आँखे खोलता है फिर उठ बैठता है l सामने देख कर उसके मुहँ से निकलता है

विश्व - माँ..
प्रतिभा - उठ गया बेटा..
विश्व - माँ... क्या इतनी देर तक... मैं तुम्हारे गोद में लेटा हुआ था...
प्रतिभा - हाँ...
विश्व - और मैं बात किससे कर रहा था...
प्रतिभा - मुझसे... और जवाब भी मैं ही दे रही थी...
विश्व - आ प अकेली आई हैं...
प्रतिभा - ऐसा हो सकता है भला... तेरे डैड भी आए हैं... वह रहे...

विश्व अपनी गर्दन मोड़ कर देखता है श्मशान के बाहर तापस खड़ा हुआ था, साथ में उसके चारों दोस्त, रुप और डैनी भी खड़े थे, सब विश्व को जागता हुआ देख कर अंदर आते हैं l सबको अपनी तरफ आता देख कर विश्व अपनी जगह से उठ कर खड़ा हो जाता है l

प्रतिभा - तुम्हारे सो जाने से... पूरी दुनिया को भुला देने से... जानते हो... क्या हो गया है...
विश्व - क्या... क्या हो गया है...
प्रतिभा - चल घर चलते हैं... वहीँ पर बात करेंगे...

प्रतिभा विश्व की हाथ पकड़ कर सबके साथ श्मशान से निकल कर उमाकांत सर के घर की ओर जाने लगती है l विश्व देखता है सारे गाँव वालों के चेहरा उतरा हुआ है l सब को देख कर ऐसा लग रहा था जैसे कुछ बड़ा हुआ है पर विश्व से बात को छुपा रहे हैं l सभी लोग घर पर पहुँचते हैं l

प्रतिभा - हम सब बाहर हैं... तुम जाओ... तैयार हो कर बाहर आओ...

विश्व कोई सवाल किए वगैर अंदर जाता है l मुहँ धोते धोते उसे एहसास होता है कि उसके गैर हाजिरी में गाँव कुछ बुरा हुआ है l जल्दी जल्दी अपने आप को ताजा कर कपड़े बदल कर बाहर आता है l बाहर उसका ही इंतजार हो रहा था l सब मिलकर विश्व को साथ लेकर चलते हैं l इस बार वैदेही के दुकान पर पहुँचते हैं l विश्व देखता है दुकान के बाहर नभवाणी न्यूज चैनल की ट्रांसमिशन वैन खड़ा है l वहाँ पर इंस्पेक्टर दास और सतपती खड़े थे l विश्व को देख कर दोनों वैन का दरवाजा खटखटाते हैं l वैन से सुप्रिया निकल कर आती है l तीनों विश्व के पास आते हैं l विश्व को प्रतिभा दुकान वाली घर के अंदर ले जाती है l अंदर सभी विश्व को बिठा कर उसे घेर कर बैठते हैं l विश्व इधर उधर अपनी नजर घुमाता है

विश्व - यह गौरी काकी... दिखाई नहीं दे रही है... (विश्व की इस सवाल पर सीलु रो देता है)
सीलु - भाई... बहुत बुरा हो गया है... (रोते रोते) हम सब जब दीदी की अंत्येष्टि को श्मशान गए थे... तब भैरव सिंह के आदमी... घर घर में जो बच्चे थे... श्मशान नहीं गए थे... उन्हें उठा ले गए... (विश्व की आँखे फैल जाती हैं) (वह उठने को होता है कि प्रतिभा उसके कंधे पर हाथ रख कर बिठा देती है)
सतपती - फिलहाल... सभी गाँव वाले.. ट्रौमा में हैं... सबने अपने बच्चों को घर पर बुजुर्गों के हवाले कर छोड़ गए थे... इसी मौके का फायदा उठा कर... भैरव सिंह के आदमी आए... सारे बच्चों को... और उनके साथ गौरी काकी को उठा ले गए... और... ( एक गहरी साँस लेते हुए सतपती रुक जाता है)
विश्व - और...
दास - जब श्मशान से गाँव वाले लौटे... तो उन्हें इस बात की खबर देने के लिए भैरव सिंह का एक आदमी इंतजार कर रहा था... जाहिर है... जब लोगों को मालूम हुआ... अफरा-तफरी हो गया... हम ने सबको बड़ी मुस्किल से शांत किया... बात बहुत आगे बढ़ चुकी थी... एक्शन के लिए... हमने ऊपर तक बात की...(एक पॉज लेकर) हमें भैरव सिंह से नेगोशिएशन करने के लिए कहा गया... इसलिए हमने महल की ओर जाकर कॉन्टैक्ट करने की कोशिश की... तो भैरव सिंह ने... सरकार तक अपनी बात पहुँचाने के लिए... या यूँ कहूँ अपनी शर्तें थोपने के लिए... सुप्रिया जी को... मीडिएटर बनने के लिए कहा...
सतपती - मैंने सुप्रिया जी को... अपने क्रू मेंबर्स के साथ आने के लिए कहा... और.. वह मान भी गईं...

अब सतपती चुप हो जाता है, दास भी कुछ नहीं कहता विश्व देखता है सबके चेहरे पर तनाव साफ दिख रहा था l सुप्रिया डरी सहमी सी लग रही थी l

विश्व - तो क्या सुप्रिया जी नहीं गईं...
सतपती - गई थी... पर अंदर जो हुआ... (सतपती एक इशारा करता है, एक कांस्टेबल लैपटॉप लेकर सतपती को दे देता है) अब हमसे.. जो ट्रांसमिट कारवाया गया... वह ट्रांसमिशन देखो...

कह कर लैपटॉप विश्व को दे देता है l विश्व लैपटॉप में चल रहा वीडियो को देखने लगता है l कैमरा ऑन होते ही

जॉन - क्या कैमरा ऑन हुआ...
सुप्रिया - हाँ हो गया... पर अभी से कैमरा क्यूँ ऑन किया...
जॉन - वह इसलिए कि हमारी तैयारी... सब देखें... ताकि कोई जुर्रत या हरकत से पहले सौ बार सोच लें...

सुप्रिया अपना सिर हिलाती है कैमरा मैन कैमरा को हर एंगल में शूट करते हुए वीडियो लेता है l महल के अंदर चार वॉचिंग टावर थे, सब के सब एडवांस वेपन से लेस थे l सब कुछ शूट करते हुए जब अंदर की कमरे में पहुँचते हैं, भैरव सिंह उन्हें खड़ा मिलता है l

भैरव सिंह - आइए... सुप्रिया जी... आइए... हम आपके बहुत बड़े फैन हैं... अपकी रिपोर्टिंग देखने के बाद... आपसे मिलने की तलब थी... सो आज पूरी हो गई...
सुप्रिया - कहिये राजा साहब... आपने नेगोशिएशन के लिए... मुझे मीडिएटर क्यूँ चुना...
भैरव सिंह - आपकी रिपोर्टिंग बहुत ग़ज़ब की है... आप वाकई... अपने भाई की बहन ही हैं... या यूँ कहूँ... आप उनसे बेहतर हैं... इसलिये हम चाहते थे कि... सरकार तो सरकार.. हमारे खास दुश्मन को भी... पैगाम आपसे मिले...
सुप्रिया - कहिये फिर... क्या कहना चाहते हैं...
भैरव सिंह - हम चाहते हैं कि... आपका कैमरा शुरू से लेकर अंत तक... ऑन ही रहे... बाहर जाकर कुछ भी कांट छाँट कर सरकार को दिखा दीजिए... हमें कोई फर्क़ नहीं पड़ता...

इतना कह कर भैरव सिंह एक इशारा करता है l पीटर भैरव सिंह का रोल्स रॉएस लेकर आता है l भैरव सिंह सुप्रिया और उसके कैमरा मेन को इशारे से बैठने को कहता है l थोड़े झिझक के साथ दोनों अंदर बैठ जाते हैं l

भैरव सिंह - मैं अपने परिवार वालों को छोडकर... किसी को भी इस गाड़ी में नहीं बिठाया था... शिवाय वैदेही के... उसके बाद तुम दोनों वह खुशकिस्मत हो जो मेरे साथ इस गाड़ी में बैठे हो... (सुप्रिया का हलक सूखने लगता है) घबराओ नहीं... जो हाल वैदेही का हुआ... जरूरी नहीं तुम लोगों के साथ वही हो... (कुछ ही देर के बाद गाड़ी रुक जाती है, पिटर दरवाजा खोलता है तो सबसे पहले भैरव सिंह उतरता है उसके बाद सुप्रिया और फिर कैमरा मेन उतरते हैं) इसे रंग महल कहते हैं... हमारे खानदान की रंगीनियों की गवाह... यहाँ तक आने के लिए... बाहर से रास्ता है... और अंदर से भी... देख लो... (कैमरा मैन अपना कैमरा घुमाने लगता है, यहां पर भी चाक चौबंद बंदोबस्त थी, बिल्कुल क्षेत्रपाल महल की तरह) अब आओ हमारे साथ...

कह कर भैरव सिंह आगे आगे चलने लगता है उसके पीछे पीछे सुप्रिया और कैमरा मैन जाने लगते हैं l अंदर पहुँचने के बाद एक गैलरी पर रुकते हैं l

भैरव सिंह - इस महल में... इस जगह को आखेट गृह कहते हैं... हमने कुछ जानवर पाले हुए हैं... वह जानवर... जिनके जबड़े बहुत मजबूत होते हैं... वह जानवर... मेरे दुश्मनों का शिकार करते हैं... (भैरव सिंह ताली बजाता है, भैरव सिंह के आदमी बच्चों, गौरी और होम मिनिस्टर को लाते हैं) यह रहे वह लोग... जिन्हें हमने आखेट गृह के लिए उठा कर लाए हैं.. (सुप्रिया से) सुप्रिया जी... आपको जान कर खुशी होगी... आपके भाई प्रवीण और भाभी जी को... हमने यहीं से स्वर्ग रवाना कर दिया था...
सुप्रिया - ह्वाट...
भैरव सिंह - हाँ आपने ठीक सुना.. कैसे हम आपको दिखाते हैं...

कह कर भैरव सिंह गौरी के पास आता है और उसे बालों सहित पकड़ कर खिंच कर गैलेरी के सिरहाने पर लाता है l

भैरव सिंह - इस बुढ़िया को... हमने रहम खा कर भीख माँगने के लिए छोड़ दिया था... पर यह उस डायन के साथ मिलकर... हमारे खिलाफ खिचड़ी पकाती रही... इसलिए इसे... (कह कर धक्का देता है, गौरी चिल्लाते हुए स्वीमिंग पूल में गिरती है l भैरव सिंह एक स्विच ऑन कर देता है l दोनों तरफ से दीवारें सरक जाती हैं l गौरी जब तक पानी से बाहर आती है तब तक एक तरफ से लकड़बग्घा आकर गौरी की कंधे पर अपना जबड़ा धंसा देता है l गौरी चीखते चिल्लाते छूटने की कोशिश करती है कि उसके पैरों पर एक जबड़ा कस जाता है l उसके बाद दोनों जानवरों के बीच खींचातानी शुरु हो जाती है l फिर किसी से भी कुछ देखा नहीं जा पाता l वह स्विमिंग पूल खून से लाल हो जाती है l गैलेरी में मौजूद सारे बच्चें, मिनिस्टर और सुप्रिया के साथ कैमरा मैन भी चीखने लगते हैं पर वहाँ पर भैरव सिंह पूरी तरह से शांत होकर खड़ा था l

भैरव सिंह - (चिल्ला कर) चुप.... (सब चुप हो जाते हैं) (भैरव सिंह मुस्कराते हुए) कोई डर के मारे चिल्लम चिली करता है... तो मुझे बहुत अच्छा लगता है... पर चूँकि मुझे सरकार को खबर पहुंचानी है... इसलिये सब खामोश हो जाओ... पिटर... इन्हें अंदर ले जाओ... (पिटर और कुछ लोग बच्चों और मिनिस्टर को अंदर ले जाते हैं, भैरव सिंह कैमरा को अपने सामने लाता है) हाँ तो गाँव वालों... तुमसे शुरु करते हैं... जो जमीनों के कागजात... वैदेही ने महल से ले गई थी और विश्व ने तुममें बांट दी.. वह सब विश्व के हाथ ही हमें लौटाओगे... सरकार तुम्हारे बच्चों को बचाने के लिए कोई चाल चलेगी... पर ध्यान रहे... कोई भी सरकारी सेना गाँव में घुस नहीं पाए... वर्ना... तुम लोगों के बच्चों को... एक एक करके... लकड़बग्घे और मगरमच्छ के हवाले कर दी जाएगी.... समझ गए... हाँ तो मुख्य मंत्री जी... आपके केबिनेट की गृह मंत्री मेरे कब्जे में है... आपने कोई हरकत करने की कोशिश की... तो वह बहुत ही जल्द दिवंगत गृह मंत्री बन जाएंगे... वे तब तक मेहमान हैं हमारे... जब तक आप हमारी शर्तों को मान ना लें...
सुप्रिया - आ आ आप... के... शर्तें.. क के क्या.. क्या हैं...
भैरव सिंह - वह सब हम बाद में बता देंगे... पहले सरकार हमसे... हमारी शर्तें पूछ तो ले... अब तुम लोग जाओ... और हमारा यह काम और पैगाम... राज्य के हर घर घर में पहुँचाओ...

विडिओ खत्म हो जाता है l विश्व लैपटॉप बंद कर देता है l विश्व कमरे में अपनी नजर दौड़ाता है सभी उसीको देख रहे थे l

विश्व - सरकार की ओर से कौन नेगोशिएटर बना है...
सतपती - कोई नहीं... सरकार की तरफ मुझे सुप्रिया जी से बात करने के लिए कहा गया है...
विश्व - तो... आपने क्या बात करी...
सतपती - हाँ बात करी... हमने जब सरकार के तरफ़ से शर्तें पूछी.. तो उसने यह काग़ज़ थमा दिया...

विश्व सतपती से वह काग़ज़ लेकर देखता है l उस काग़ज़ में शर्तें लिखी थीं l
पहला - भैरव सिंह के खिलाफ सारे केसेस खारिज किया जाए और सारी कारवाई रोक दी जाए l
दुसरा - सारी जमीनों की कागजातों के साथ उनकी मिल्कियत भैरव सिंह को सौंप दी जाए l
तीसरा - जमीनों की कागजात उसे महल में आकर विश्व प्रताप महापात्र हस्तांतरण करे l
चौथा - देश छोड़ कर विदेश जाने दिया जाए l

विश्व - हम्म्म... वह हमारे सारे किए कराए पर पानी फ़ेर... विदेश में बसने की तैयारी कर रहा है... यहाँ तक समझ में आ रहा है... पर वह जमीनें लेकर क्या करेगा... (सब खामोश रहते हैं) सरकार... बचाव के लिए... कुछ सोच भी नहीं रहा है...
तापस - प्रताप... तुम क्या समझ नहीं रहे हो... एक आदमी... गाँव के बच्चों को और स्टेट के होम मिनिस्टर को अपना ढाल बनाए हुए है... आधे से ज्यादा गाँव वाले... अभी राजा के सैनिक हैं... जो किसी भी प्लैटून या दस्ते को गाँव में आने नहीं दे रहे हैं... उनकी सेंटिमेंट और इमोशन के आड़ में... अपनी गुनाह माफ़ करवा कर तुम्हारे सारे प्रयासों को धत्ता कर... विदेश चला जाएगा... विदेश में रह कर भी... इन जमीनों पर मिल्कियत बरकरार रखेगा... गाँव वाले जो कुछ दिन के लिए अपने खेतों के मालिक बने थे... वह एक पानी का बुलबुला था... इनकी जिंदगी नर्क बना कर जा रहा है... (एक पॉज लेता है) भैरव सिंह के कटघरे तक जाना तुम्हारे प्लान का हिस्सा रहा... पर उसके बाद जो भी हो रहा है... उसके प्लान के मुताबिक हो रहा है... कौन जी रहा है... कौन मर रहा है... उसे कोई फर्क़ नहीं पड़ रहा... बस अपनी जीत की घमंड को बरकरार रखने के लिए... किसी भी हद तक जा रहा है... उसके पास अपने हर एक प्लान के... ऑलटर्नेट बैकओप प्लान है... हम बस लड़ रहे हैं... पर असलीयत यह है कि... यह उसकी और सरकार की प्लानिंग है...
विश्व - सरकार...
तापस - हाँ... तुम भूल रहे हो... भैरव सिंह के पास सरकार के लगभग हर एक शख्स का कोई ना कोई... काली करतूत का सबूत है... अगर सिर्फ बच्चे ही उसके कब्जे में होते... तो अब तक रेस्क्यू ऑपरेशन हो चुका होता... पर चूंकि उसके कब्जे में... होम मिनिस्टर भी है... तो रेस्क्यू ऑपरेशन नहीं होगा...
विश्व - भैरव सिंह जो भी कर रहा है... वह एक टेररिस्ट ऐक्ट है...
तापस - हाँ है... और सरकार ऐसे टेररिस्टों के साथ नेगोशिएशन करती है... अपने लोगों को बचाने के लिए... और उनकी शर्तें मानती भी है...

कुछ पल के लिए कमरे में खामोशी पसर जाती है l विश्व प्रतिभा की ओर देखता है l प्रतिभा समझ जाती है विश्व किस पसोपेश में है l प्रतिभा विश्व का हाथ थाम कर बाहर ले जाती है और चौराहे के बीचो बीच आकर खड़ी हो जाती है l

प्रतिभा - प्रताप...
विश्व - हाँ माँ...
प्रतिभा - मैं तुम्हें अपनी वचन से आजाद करती हूँ... (विश्व चौंक कर देखता है) हाँ... तुमने लड़ाई कानूनी लड़ी... वह इसलिए... ताकि सच की जीत हो... पर यहाँ... तंत्र प्रशासन सब मिलकर सच को कुचलने के लिए एक हो गए हैं... इसलिए मैं तुझे अपनी वचन से आजाद कर रही हूँ... पर कुछ ऐसा कर... के आने वाले कल को एक ऐसा उदाहरण बने... ताकि लोग कानुन से भी डरें और जन आक्रोश से... (विश्व स्तब्ध हो जाता है) अब यह लड़ाई तेरी है... तु लड़ और जीत कर आ... (कह कर मुड़ कर जाने लगती है)
विश्व - माँ...
प्रतिभा - (मुड़ती है) मैं जानती हूँ... इस लड़ाई में तेरी जीत होगी... इसलिये इस जंग को जल्दी खत्म कर और बहू को लेकर घर आ जाना...

कह कर प्रतिभा वहाँ से चली जाती है l विश्व चौराहे पर एक बिजली के खंबे पर झाँक रही सीसीटीवी कैमरे की ओर देखता है l

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भैरव सिंह सर्विलांस पर देख रहा था l विश्व एक बैग कंधे पर डाले आ रहा था l उसके होंटों पर एक कुटिल मुस्कान छा जाती है l विश्व को गेट पर ही रोक दिया जाता है l वहाँ पर मौजूद एक गार्ड वायर लेस पर भैरव सिंह को खबर करता है l

गार्ड - कोब्रा कलिंग टु जनरल...
भैरव सिंह - यस जनरल हियर...
गार्ड - जनरल... इसके पास कुछ नहीं है... सिवाय बैग में कुछ पेपर के... वह भी प्रॉपर्टी के पेपर लग रहे हैं...
भैरव सिंह - ओके... ब्रिंग हिम हियर...

चार गार्ड्स विश्व को गन पॉइंट पर रख कर सर्विलांस कमरे में लाते हैं l

भैरव सिंह - आओ विश्व प्रताप आओ... क्या कहा था तुमने... अगली बार आओगे... तो तब मेरी हस्ती और बस्ती मिटा दोगे... लो मैंने तुम्हें बुला लिया... अब बोलो क्या करोगे...
विश्व - कुछ नहीं... फ़िलहाल तो... कुछ भी नहीं... पर मेरे समझ में नहीं आ रहा... हम से तु मैं पर कैसे उतर गया..
भैरव सिंह - क्या करूँ... तूने मुझे... (चेहरा सख्त हो जाता है) हम के लायक छोड़ा ही नहीं...

भैरव सिंह आगे बढ़ता है और विश्व के पेट में पूरी ताकत के साथ एक घुसा जड़ देता है l विश्व दर्द के मारे घुटने पर आ जाता है l

भैरव सिंह - हाँ... यही तेरी असली औकात है... तू... अपने घुटने पर रेंगने वाला... कीड़ा... जरा सा बाहर क्या निकला... शेर से भीड़ गया... (भैरव सिंह एक चुटकी बजाता है तो एक गार्ड भैरव सिंह के लिए एक कुर्सी लाकर रख देता है l भैरव सिंह कुर्सी पर बैठ कर अपने पैर से विश्व की ठुड्डी को उठाता है) क्यूँ बे हरामी... अब कुछ नहीं बोलेगा... हाँ तुने सही कहा था... मेरी जीत... मेरा अहंकार... मुझे अपनी जान या मौत से भी बड़ी है... हाँ तुने कई मौकों पर मुझसे जीता जरूर है... पर हराया कभी नहीं था... तुझे क्या लगा... मैं ऐसे दो टके की कानूनी कार्रवाई से डर जाऊँगा... तुझसे हार जाऊँगा... तु मुझे जिस कानून की गलियारे में खिंच कर लाया... मैं तुझे दिखाना चाहता था... यह कानून और सियासत मेरे पैर की ठोकर है...
विश्व - (मुस्कराता है) मेरी औकात तो सही है भैरव सिंह... तु अपनी बता... मैं घुटने पर सही... पर तेरे मुहँ से हम छुड़वा ही दिया...
भैरव सिंह - हाँ कुत्ते के पिल्ले... पहली बार किसी ने... मेरे ही महल में... मुझे मजबूर कर दिया... लाचार कर दिया... तेरे वज़ह से... मैं अब आईना में भी... अपनी अक्स से नजरें मिला नहीं पा रहा हूँ... इसीलिये तो... तुझे यहाँ बुलाया है... तुझे जिल्लत करने के लिए... (गार्ड्स से) उठाओ इसे... और अच्छी तरह मेरे इन जुतों से... मेहमान नवाजी करो...

गार्ड्स भैरव सिंह के जुतों से विश्व को पकड़ कर बुरी तरह से मारने लगते हैं l विश्व के होंठ फट जाते हैं l खून निकलने लगता है l थोड़ी देर बाद

भैरव सिंह - बस बस... इतना भी मत मारो... के यह अभी मर जाये... मरना तो इसे है ही... पर राजगड़ छोड़ने से पहले नहीं... (सब रुक जाते हैं)(भैरव सिंह एक गार्ड को इशारा करता है, वह गार्ड एक चेयर लाकर भैरव सिंह के आगे डाल देता है और दूसरे गार्ड्स विश्व को उठा कर भैरव सिंह के सामने बिठा देते हैं) तु वह पहला और आखरी खुशनसीब कुत्ता है... जिसे मैं अपने सामने बैठने की लायक समझा... क्यूँकी जिन्हें अपने बराबर नहीं समझा... उसे ना तो दोस्ती की है... ना दुश्मनी... पर मेरी किस्मत का फ़ेर देख... मेरे बच्चों से तेरी गहरी दोस्ती थी... रिश्तेदारी में बदल गई... इसलिए कम से कम... मेरी दुश्मनी के लायक हो गया... (विश्व मुस्कराता है) ओ... तुझे जोक लग रहा है नहीं...
विश्व - तेरे मरने से पहले... कोई ना सही मैं सही... तेरे सामने... तेरे बराबर बैठा हूँ...
भैरव सिंह - हाँ... वह भी थोड़ी देर के लिए... क्यूँकी जब इस महल से निकलूँगा... तब तेरे गले में पट्टा डाल कर... मेरी गाड़ी के पीछे दौड़ाऊँगा... हर गली.. हर चौराहे से... हर घर के आँगन के सामने... जब तु थक जाएगा... तब तेरी थकी हुई जिस्म को घसीटते हुए... गाँव भर घुमाऊँगा... अखिर में तेरी लाश को छोडकर... राजगड़ से कुछ सालों के लिए चला जाऊँगा...
विश्व - बहुत कुछ सोच रखा है... पर उसके लिए... इस रात का गुजरना... और सुबह का होना भी तो जरूरी है...
भैरव सिंह - वह तो होकर ही रहेगा... तुझे क्या लगता है... कौन रोकेगा मुझे... हा हा हा हा हा हा... अरे बेवक़ूफ़... सरकार और सरकारी सिस्टम मेरे साथ है... या यूँ कहूँ...मैंने उन्हें इस कदर मजबूर कर रखा है... के मेरा बाल तक कोई बाँका नहीं कर सकता... कल सुबह होगी... मेरे शर्तों पर मोहर लगा कर सरकारी फरमान आयेगा...
विश्व - हाँ... जैसे कि... मैंने कहा... उसके लिए सुबह का होना भी जरूरी है...
भैरव सिंह - ओ... कहीं तु इस गलत फहमी में तो नहीं है... के कोई रेस्क्यू ऑपरेशन होने वाला है... बच्चे... मेरी तैयारी तु जानता नहीं है...
विश्व - तैयारी... हाँ तैयारी... तुने एक बात सच कहा... सर्कार और सरकारी सिस्टम... तेरी जेब में है... तु जैल से निकलने के बाद से अब तक जो भी किया है... बिना सरकारी मदत से कर ही नहीं सकता था... तुने... रॉय की मदत से... ESS के लिए नए रिक्रूटमेंट में... कुछ मर्सीनरीज को भर्ती कारवाया... और बहुतों को... आम लोगों के भेष में राजगड़ के अंदर ले आया... क्यूँकी... आर्म के लाइसेन्स ESS के पास थी... उसीके जरिए... तुने सरकारी मदत से... यह आर्म्स और एम्युनिशन हासिल कर लिए... पर सच्चाई अभी भी यही है... यह सब... एशल्ट राइफलें... स्नाइपर्स गन्स... रॉकेट लंचर कुछ भी काम नहीं आता... अगर एक परफेक्ट रेस्क्यू ऑपरेशन को अंजाम दिया जाता... पर तूने उसके लिए भी अपना बैकअप प्लान बनाए रखा... होम मिनिस्टर और बच्चों को अपना शील्ड बना कर... जाहिर है... इसमें तेरी बदनामी तो होगी... सरकार की नहीं होगी... तेरा गुरूर... तेरा अहंकार का जीत होगा...
भैरव सिंह - ओ हो हो हो हो... लगता है मेरी जीत से तेरा पिछवाड़ा सुलग रहा है...
विश्व - नहीं भैरव सिंह नहीं... तु और सरकार मिले हुए हैं... इस बात का आगाह मुझे पहले से ही कर दिया गया था... मैं कहीं पर भी नहीं चुका... बस मेरी दीदी की ओर से चूक गया... पर अब नहीं... अब मैं पूरी तैयारी के साथ आया हूँ...
भैरव सिंह - हा हा.. हा हा हा हा हा हा हा हा... मौत के जबड़े में सिर रख कर... कौनसी तैयारी की बात कर रहा है... हाँ तूने एक बात सही कही... मैंने होम मिनिस्टर और बच्चों को ह्यूमन शील्ड बना रखा है... पर एक नहीं... मैं डबल शील्ड सिक्युरिटी में हूँ... अगर कोई बटालियन आयेगा... तो मुझे सर्विलांस से पता चल जाएगा... पर उन्हें मैं... या मेरी आर्मी नहीं रोकेगी... बल्कि रंग महल में बंद उन बच्चों के माँ बाप रोकेंगे...
विश्व - बच्चे रंग महल में हो तब ना...
भैरव सिंह - (चेहरे से मुस्कान गायब हो जाती है) क्या... क्या मतलब है तेरा...
विश्व - भैरव सिंह... तु जितना बड़ा ढीठ है... उतना ही बड़ा कायर है... तुने मीडिया के जरिए... दुनिया को बताया... के रंग महल में बच्चे और होम मिनिस्टर कैद हैं... पर असल में वह सब इसी महल में कैद हैं...
भैरव सिंह - (चेहरे का रंग उड़ जाता है) क्या बकते हो...
विश्व - हाँ भैरव सिंह... भले ही तुझे सरकारी मदत मिल रही है... पर तुझे सरकार पर ज़रा सा भी भरोसा नहीं है... तुझे मालूम है... अगर रेस्क्यू ऑपरेशन हुआ तो वह... रंग महल में होगा... ना कि यहाँ... भले ही तूने अपनी तैयारी दिखा दी... पर सच यह है कि... तूने अपनी सारी ताकत... इसी महल में झोंक रखी है...
भैरव सिंह - बहुत चालाक है तु... अच्छा दिमाग लगाया है... पर तुझे क्या लगता है... कहाँ होंगे वह बच्चे और मिनिस्टर...
विश्व - अंतर्महल में... चूंकि अब कोई जनाना नहीं है इस महल में... इसलिए... तू उन्हें वहीँ पर रखा है...
भैरव सिंह - वाकई... मैंने तुझे बहुत कम आंका था... तु तो मेरे खयाल से भी कहीं आगे का निकला... हाँ तुने सच कहा... बच्चे और मिनिस्टर यहीँ हैं... अंतर्महल में... अगर कोई रेस्क्यू ऑपरेशन हुआ... तो वह जरूर फैल हो जाएगा... वह क्या है ना... दिखाओ कुछ... करो कुछ... सोचो कुछ समझो कुछ... बोलो कुछ... हो जाए कुछ...
विश्व - ना... जो तुझे जानते हैं... समझ चुके हैं... वह तेरे चाल के खिलाफ जाकर रेस्क्यू ऑपरेशन कर रहे हैं...

भैरव सिंह अपनी कुर्सी से उछल कर उठ खड़ा होता है l सबसे पहले सर्विलांस टीवी पर नजर डालता है फिर अपना वायर लेस निकाल कर जॉन से कॉन्टेक्ट करता है l

भैरव सिंह - जॉन... कोई खबर...
जॉन - एवरी थिंग इज फ़ाइन जनरल...
भैरव सिंह - ठीक है... फिर से री चेक करो... और कन्फर्म करो...
भैरव सिंह - ओके जनरल...

भैरव सिंह - (अपनी जबड़े भिंच कर विश्व की तरफ मुड़ता है) मेरी तैयारी मुझे हौसला देता है... पर तु मुझे इतनी बार मात दे चुका है कि... तेरी बातों पर भरोसा करने को मन कर रहा है...
विश्व - हाँ भैरव सिंह हाँ... क्यूँ की भरोसे का दूसरा नाम है विश्वा... तु जो सीसीटीवी पर देख रहा है... वह सब आधे घंटे के पहले वाला वीडियो देख रहा है... तुने सरकार को टाइम दिया... अपनी शर्तें मनवाने के लिए... पर उतना ही वक़्त मैंने अपनी तैयारी में लगा दिया... तुझे याद तो होगा... मैंने और वीर ने... कैसे सुंढी साही में घुस कर अनु को बचाया था... (भैरव सिंह के भौंहें सिकुड़ जाते हैं) जब मैं वहाँ पर टेक्नोलॉजी का सहारा ले सकता हूँ... तो क्या यहाँ ले नहीं सकता था... (भैरव सिंह के आँखे हैरत से फैल जाते हैं) हाँ भैरव सिंह हाँ... तुने सरकार को वक़्त दिया वहाँ तक ठीक है... पर मुझे वक़्त नहीं देना था... तेरे सारे सर्विलांस हैक कर लिए गए हैं... अब थोड़ी देर के बाद... ड्रोन सर्विलांस से सारे गार्ड्स के लोकेशन ट्रैक कर लिए गए हैं... वही ड्रोन अब तुम्हारे गार्ड्स के सिरों पर बॉम्ब की तरह गिरेंगे... (तभी बाहर से अफरा तफरी की आवाजें सुनाई देने लगती है)
भैरव सिंह - (उन गार्ड्स से) गो एंड सी... क्या हो रहा है...

चारों गार्ड्स बाहर चले जाते हैं l भैरव सिंह अपनी वायर लेस निकाल कर जॉन से कॉन्टैक्ट करता है l

भैरव सिंह - जॉन... क्या हो रहा है... (तभी अलर्ट सैरन बजने लगती है)
जॉन - जनरल... हम पर ड्रोन अटैक हो रहा है... आप सर्विलांस रूम में ही रहिए... हम कुछ ही मिनटों में निपटा देंगे.... (वायर लेस ऑफ हो जाता है, भैरव सिंह घूम कर पीछे मुड़ कर देखता है विश्व के चेहरे पर मुस्कान था)
विश्व - देखो कुछ... दिखाओ कुछ... बोलो कुछ... हो जाए कुछ... सोचो कुछ... समझाओ कुछ... यही तुम्हारा स्टाइल है ना... मैंने भी वही किया... (भैरव सिंह गुस्से में विश्व की ओर आता है) ना ना... यह कुछ ठीक नहीं लग रहा... मैं बैठा हूँ तुम खड़े हो... कॉम ऑन.. बैठ जाओ... बात करते हैं...
भैरव सिंह - हराम जादे...
विश्व - मैंने कहा था... समझाया था... मुझे इस महल में आने के लिए कोई वज़ह मत देना... क्यूँकी जब जाऊँगा... तब ना तो तु रहेगा... ना यह तेरी महल... (भैरव सिंह विश्व पर झपट्टा मारता है, पर विश्व उसके लिए पहले से ही तैयार था l वह अपनी चेयर के साथ वहाँ से हट जाता है भैरव सिंह नीचे गिर जाता है) चु चु चु... अभी कुछ देर पहले.. मुझे अपने कदमों में गिरा रखा था... वक़्त देख कितनी जल्दी करवट बदल दी... अब तु मेरे पैरों में है...

भैरव सिंह उठ खड़ा होता है कि तभी एक गार्ड दौड़ा दौड़ा हांफते हुए आता है

गार्ड - जनरल... जॉन सर ने ऑर्डर किया है... आप बस कमरे में रहिए...

इतना कह कर गार्ड दरवाज़ा बाहर से बंद कर चला जाता है l भैरव सिंह दरवाज़े के पास दौड़ कर जाता है और गाली देते हुए खोलने के लिए कहता है पर तब तक गार्ड दरवज़ा बंद कर जा चुका था l विश्व हँसने लगता है

विश्व - हा हा हा हा... क्या हुआ भैरव सिंह... मुझसे डर लग रहा है... (भैरव सिंह मुड़ कर देखता है, विश्व अब अपनी कुर्सी से उठ खड़ा हो चुका था) तु जानना नहीं चाहेगा... तेरी तिलिस्म... तेरी सेक्यूरिटी इतनी आसानी से कैसे ढह गई... बचपन में... तेरे आदमियों से बचने के लिए... मैं महल में छुप जाया करता था... तभी महल में बहुत सी खुफिया रास्ते मालूम हुए... जो मेरे छुपने में बड़ी मदत किया करते थे... आगे चलकर मालुम हुआ... उन रास्तों के बारे में... तुझे और तेरे आदमियों को भी नहीं पता था... आज मैंने... पूरे गाँव वालों को... जिन्हें मेरे गुरु डैनी... मेरे चारों दोस्त... इंस्पेक्टर दास... डी सी पी सतपती के साथ साथ सत्तू लीड कर रहे हैं... यह गाँव वाले अब सरकारी मदत की मोहताज नहीं हैं... यह अपने बच्चों को बचाने के लिए.. क़ाबिल हैं... इतने काबिल के इनकी एकता को... किसी बटालियन की जरूरत नहीं है...

इतना कह कर विश्व वायर लेस के पास जाता है और उसका एक चैनल बदलता है l फिर माउथ पीस लेकर डैनी को कॉल करता है

विश्व - डैनी भाई...
डैनी - हाँ मेरे पट्ठे... कैसा है...
विश्व - ठीक हुँ... महल में क्या चल रहा...
डैनी - हमने इन्हें ना सिर्फ ऐंगैज कर लिया है... बल्कि अच्छी खासी डैमेज भी दिया है...
विश्व - गुड... अभी वक़्त आ गया है.. लोगों को इशारा कर दो... महल पर हल्ला बोल दें...
डैनी - डॉन...

विश्व वायर लेस उठा कर नीचे फेंक देता है l भैरव सिंह डर के मारे दो कदम पीछे हट जाता है l विश्व भैरव सिंह की ओर देखता है, भैरव सिंह के आँखों में उसे डर साफ दिख रहा था l विश्व टेबल पर चढ़ जाता है

विश्व - क्या कहा था तुने... तु जिस ऊँचाई पर खड़ा है... कोई गर्दन उठा कर देखे तो उसकी रीढ़ की हड्डी टुट जाएगी... हा हा हा हा... यह देख आज वक़्त मुझे किस ऊँचाई पर खड़ा कर दिया... और तु मुझे अपनी गर्दन उठा कर देख रहा है... (भैरव सिंह आँखे फाड़ कर गहरी गहरी साँसे लेने लगता है) याद है... तूने मेरे सर पर खड़े हो कर अपना विश्वरुप दिखाया था... यह देख... (सारे टीवी स्क्रीन ऑन हो जाते हैं, स्क्रीन पर सिर्फ मशालें ही मशालें लहर की तरह आ रही थी) लोगों दिलों में... जिंदगी में और आत्मा में आजादी की लॉ जल उठी है... इतने बर्षों से जो जुल्म ढाए हैं... उसका हिसाब लेने... अपने दिल की आग को मशाल बना कर तुझसे हिसाब करने आ रहे हैं... यह देख... (हर एक स्क्रीन पर इंसान कोई दिख नहीं रहा था l ऐसा लग रहा था जैसे आग का लहर महल के अंदर घुसा आ रहा है) (विश्व के इर्द गिर्द आग ही आग दिख रहा था, ऐसा दृश्य भैरव सिंह के और भी खौफजदा कर रहा था) यह देख यह है एक आम आदमी का विश्व रुप...

सीसीटीवी पर दिख रहा था l लोगों गेट को तोड़ कर अंदर घुस गए जो भी सामने आया उसे अपनी मशालों के हवाले करते चले गए l यह दृश्य देख कर भैरव सिंह विश्व एक अलमारी के पास जाता है और वही फर्ग्यूसन का तलवार निकाल कर अपने को घोंपने वाला ही होता है कि विश्व उसके पास आ कर उससे तलवार छीन लेता है l

विश्व - नहीं भैरव सिंह नहीं... तुझे इतनी आसान मौत... नहीं... हरगिज नहीं...
भैरव सिंह - (गिड़गिड़ाते हुए) विश्वा... मुझे तुम मार डालो... मुझे उन लोगों के हवाले मत करो... प्लीज... तुम... तुम मुझे मार डालो...
विश्व - क्या भैरव सिंह... क्षेत्रपाल कभी मांगते नहीं है... तु मांग रहा है... वह भी मौत... जो तुने दूसरों को देता रहा है...
भैरव सिंह - प्लीज विश्वा... मुझे इन लोगों के हवाले मत करो प्लीज...
विश्व - नहीं भैरव सिंह... तु उन गालियों में भागेगा.. जिन गालियों से तेरे गुज़रते ही सन्नाटा छा जाता था... तु मुझे जिन गालियों रेंगते हुए देखना चाहता था... आज तु अपनी जान बचाने के लिए.. भागेगा...

तभी दरवाजे पर वार पर वार होने लगती है l विश्व दरवाजा खोलने के लिए आगे बढ़ता है l

भैरव सिंह - नहीं विश्वा नहीं... मुझे कम से कम... ऐसी मौत तो ना दो...
विश्व - तुझे भागने का आखरी मौका देता हूँ भैरव सिंह... (कह कर कमरे की झूमर की रस्सी के पास भैरव सिंह को ले जाता है) इसे दरवज़ा खुलने से पहले खोल कर ऊपर से निकल जा...

विश्व इतना कह कर दरवाजा खोलने चला जाता है l भैरव सिंह बहुत जल्दी में हाथ चलाने लगता है l जैसे ही विश्व दरवाजा खोलता है लोग हाथों में मशाल और हथियार लेकर घुस जाते हैं, तभी भैरव सिंह झूमर की रस्सी खोलने में कामयाब हो जाता है l जैसे जैसे झूमर नीचे आती है भैरव सिंह ऊपर उठकर कर रोशन दान तक पहुँच जाता है और वहाँ से बाहर छत की ओर निकल कर भागने लगता है l भागते भागते हुए देखता है उसके सारे सिपाही मरे पड़े थे l लोगों ने सबको आग के हवाले कर दिया था l भैरव सिंह बड़ी मुस्किल से महल से निकलता है और अंधाधुंध भागने लगता है पर एक चौराहे पर ठिठक जाता है l उसके पीछे पीछे लोग आ रहे थे और सामने से भी आ रहे थे l भैरव सिंह और एक गाली में घुस कर भागता है l कुछ देर बाद वहाँ भी आगे से लोग आते दिखते हैं l भैरव सिंह बदहवास हो कर भागने लगता है l अचानक उसका हाथ पकड़ कर कोई खिंच लेता है और मुहँ दबोच लेता है l भीड़ उस रास्ते से गुजर जाता है l भैरव सिंह उस भीड़ को अपनी आँखों से गुज़रते देखते देखते बेहोश हो जाता है l

भैरव सिंह के चेहरे पर पानी गिरते ही अपनी आँखे खोलता है l देखता है सामने विश्व एक बाल्टी लिए खड़ा था l अपनी नजरें दुरुस्त कर देखता है वह अब रंग महल के आखेट प्रकोष्ठ में था l उसके हाथ व पैर बंधे हुए थे l

विश्व - जाग गए... देखो... तुने अपनी आखरी ख्वाहिश जताई... मैंने भी बड़ा दिल लेकर... उसे पूरा करने की सोची... तुने अपने खिलाफ सिर उठाने वालों को जो मौत दी है... मैं तुझे वही मौत देने वाला हूँ...
भैरव सिंह - नहीं विश्वा नहीं... मुझे तुम कानून के हवाले कर दो... मैं अपनी सारी गुनाह कबूल कर लूँगा... वहाँ पर फांसी पर चढ़ जाऊँगा... पर ऐसे नहीं प्लीज...
विश्वा - हाँ मान जाता... पर... नहीं... तुने अपनी ताकत दिखा दी... सरकार और सिस्टम को घुटने पर ला दी... तेरे जैसा जैल में ज्यादा दिन तक नहीं रहेगा... इसलिए तेरा अंजाम.... कानूनन होगा... पर सजा... तेरे ही पालतू देंगे...
भैरव सिंह - नहीं विश्वा नहीं...
विश्व - हाँ भैरव सिंह हाँ... तेरी लाश अब किसीको भी नहीं मिलेगा... तु कानून की किताब में... हमेशा भगोड़ा ही कहलायेगा... इस तरह तु अमर हो जाएगा...
भैरव सिंह - विश्वा मत भूल... मैं तेरा ससुर हूँ...
विश्वा - कमाल है... तुझे रिश्तों का ज्ञान है... मान है... हाँ आज के बाद याद रखूँगा... तु मेरा ससुर था...
भैरव सिंह - साले कुत्ते हरामी... छोड़ दे मुझे...
विश्व - ले छोड़ दिया...

कह कर विश्व भैरव सिंह को उठा कर स्विमिंग पूल पर फेंक देता है और मुड़ कर बाहर चला जाता है l पीछे उसके कानों में थोड़ी देर के लिए भैरव सिंह के चिल्लाने की आवाज़ आती है l फिर आवाज आनी बंद हो जाती है l

"नमस्कार... आज का मुख्य समाचार... जैसा कि आपने कल न्यूज देखा था... होम मिनिस्टर और बच्चों को बंधक बना कर भैरव सिंह ने सरकार से अपनी सभी जुर्मों के माफी के साथ साथ विदेश जाने की शर्त रखी थी, और सरकार को आज सुबह तक का वक़्त दे रखा था l पर जैसा खबर हमें प्राप्त हो रहे हैं गाँव के लोगों ने अपने बच्चे और मंत्री जी को बचाने की बीड़ा उठाया और रात को ही महल पर धाबा बोल दिया l अपने बच्चों को और मंत्री जी को बचा लिया और पुलिस को खबर दे दिया l सुबह सुबह जब पुलिस पहुँची तो पाया भैरव सिंह जी की महल की रखवाली कुछ विदेशी विदेशी हथियारों के साथ कर रहे थे l बहुत से लोग मारे गए हैं और कुछ बुरी तरह घायल भी हुए हैं l लोगों की मानें और पुलिस की मानें तो भैरव सिंह अभी किसीके भी हाथ नहीं आए हैं l फरार चल रहे हैं l तलाशी के दौरान पुलिस के हाथों कुछ अहम सबूत मिले हैं जिसके कारण सरकार व सरकारी तंत्र का भ्रष्ट होना दिख रहा है l पुलिस ने राज्यपाल से बात कर सारे सबूतों को केंद्रीय अन्वेषण विभाग के हवाले कर दिया है l


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दस साल बाद

राजगड़ MLA की गाड़ी रास्ते पर दौड़ रही थी l गाड़ी की पिछली सीट पर विक्रम बैठा था और उसके सामने सुप्रिया बैठी हुई थी l सुप्रिया विक्रम की इंटरव्यू लेने की तैयारी कर रही थी l कैमरा मैन के ओके कहने के बाद सुप्रिया इंटरव्यू शुरु करती है l

सुप्रिया - नमस्कार करती हूँ.... मैं सुप्रिया रथ सतपती... एडिटर चीफ नभ वाणी... शुरु करती हूँ चलते चलते... आज हमारे प्रोग्राम चलते चलते में स्वागत करते हैं... राजगड़ के MLA श्री विक्रम सिंह जी... तो विक्रम जी... दस साल हो गये हैं... अपकी पार्टी सत्ता में है... और सबसे अहम... आपके ससुर... श्री बीरजा किंकर सामंतराय मुख्य मंत्री हैं... पर उनके कैबिनेट में... आप मंत्री नहीं हैं...
विक्रम - सुप्रिया जी... मैं वास्तव में... राजनीति में आना ही नहीं चाहता था... पर राजगड़ के लोगों के आग्रह के चलते मुझे राजनीति में आना पड़ा... कारण भी था... मेरे पूर्वज राजगड़ प्रांत पर बहुत अन्याय किए हैं... मैं आज केवल उन कुकर्मों का प्रायश्चित कर रहा हूँ... आज शाम मुख्यमंत्री जी राजगड़ आ रहे हैं... राजगड़ का नाम बदल कर... वैदेही नगर रखा जाएगा... और यशपुर का नाम बदल कर... पाईकराय पुर रखा जाएगा... इसे केबिनेट में अनुमोदन मिल चुका है...
सुप्रिया - जी इसके पीछे कोई विशेष कारण... क्यूँकी आपने जो स्कुल कॉलेज और हस्पताल तक खुलवाए हैं... सभी वैदेही जी के नाम पर ही खोले हैं...
विक्रम - हाँ... आज लोगों में जो चैतन्य जागा है... उसके पीछे वही महिला हैं... उनके बलिदानों के कारण ही लोग आज अपना अधिकार और कर्तव्य के प्रति जागरूक हुए हैं... उनके लिए कुछ भी करें तो वह कम ही होगा... अपने मुझसे प्रश्न किया ना... अपने ससुर जी मंत्री मंडल में.. मेरे पास कोई मंत्रालय क्यूँ नहीं है... कारण है... अगर मंत्री पद लेता हूँ... तो पूरे राज्य के प्रति जवाबदेह हो जाऊँगा... पर एक आम प्रतिनिधि होने पर... मैं केवल और केवल राजगड़ के लोगों के प्रति जवाबदेह रहता हूँ... यही मेरे लिए बहुत है...
सुप्रिया - बहुत अच्छा विचार है... अच्छा अब आपके मित्रों के बारे में... बंधु रिश्तेदारों के बारे में कुछ बताइए...
विक्रम - जैसा कि आप जानते हैं.. मेरे ससुर राज्य के मुख्यमंत्री हैं... मेरी सासु माँ... एनजीओ चलाती हैं... मेरी पत्नी... राजगड़ मुख्य हस्पताल में डॉक्टर हैं... मेरी बहन भी डॉक्टर हैं... वह भी उसी हस्पताल में अपनी सेवा देती रहती हैं... मेरा जीजा बहुत ही व्यस्त आदमी है... वह जयंत लॉ फार्म हाऊस को अपनी माताजी के साथ चलाते हैं... ज्यादा तर सेवा उन लोगों को देते हैं... जो अर्थिक रूप से कमजोर हैं... साथ साथ अपने पिता जी के साथ मिलकर... जोडार ग्रुप के सेक्यूरिटी संस्था को उनको दोस्तों के साथ मिलकर भी देखते हैं... मेरा एक दोस्त सुभाष सतपती फ़िलहाल... भुवनेश्वर का पुलिस कमिश्नर है... और एक मित्र दासरथी दास यशपुर का एसपी है...
सुप्रिया - अपने बच्चों के बारे में कुछ बताइए...
विक्रम - मेरा एक बेटा है... नाम वीर है

गाड़ी शाम तक राजगड़ में पहुँच जाता है l सत्तू जो सरपंच था फ़ूलों की माला लेकर विक्रम के गले में डाल देता है l

विक्रम - अरे सत्तू... यह क्या कर रहे हो...
सत्तू - भाई... तुम हो ही इस लायक...
विक्रम - अच्छा अच्छा... सब आ गए हैं...
सत्तू - हाँ... देखिए ना... मुख्य अतिथि मुख्यमंत्री जी पहुँच गए हैं... और तुम ही देरी से आए हो...
विक्रम - अरे छोड़ यार... चलो जल्दी मंच पर पहुँचते हैं...

मंच पर मुख्यमंत्री जी के बगल में विक्रम और सत्तू बैठ जाते हैं l थोड़ी देर के बाद एंकर सत्तू को स्वागत भाषण देने बुलाते हैं l सत्तू के स्वागत भाषण के बाद मुख्यमंत्री मंच से ही एक मूर्ति का अनावरण करते हैं l वह वैदेही की मूर्ति थी जो बैठी बिल्कुल उसी मुद्रा में जिस मुद्रा में मंदिर की सीढियों पर अंतिम साँस छोड़ी थी l बाएं हाथ में दरांती और दायां हाथ कुल्हाड़ी पर टेक लगाए l वह मूर्ति देख कर दर्शकों के दीर्घा में बैठे विश्व की आँखे भीग जाती हैं l मूर्ति के अनावरण के बाद मुख्यमंत्री जी राजगड़ के नाम को बदल कर वैदेही नगर रखने और यशपुर का नाम पाईकराय पुर रखने का घोषणा करते हैं l राजगड़ के लोग खुशी के मारे कोलाहल करने लगते हैं l सत्तू ने गाँव वालों के लिए खाने का बंदोबस्त किया था l सभी गाँव वाले हर्ष ओ उल्लास के साथ अपनी अपनी समय को उपभोग कर रहे थे l विश्व रुप, विक्रम शुभ्रा, सुभाष सुप्रिया सब आपस में बात कर रहे थे l तभी एक रोते हुए बच्चे के साथ एक दंपति एक शिक्षक के साथ आते हैं l

शिक्षक - विक्रम जी...
विक्रम - हाँ कहिये...
शिक्षक - इन महाशय जी का एक शिकायत है...
विक्रम - जी बेझिझक कहिए... मैं क्या कर सकता हूँ...
मर्द - सर... अभी अभी मेरे बेटे को आपके बेटे ने बहुत बुरी तरह मारा...
सभी - क्या...
शुभ्रा - वीर ने आपके लड़के को मारा...
औरत - जी... देखिए... हम कहना तो नहीं चाहते... मगर... आपका बेटा... अपने पिता का नाम बदनाम कर रहा है... आप अपने बेटे को... इस स्कुल से निकाल कर... कहीं बाहर पढ़ाइए...
विक्रम - देखिए... मेरे गाँव के स्कुल में... मेरा बेटा नहीं पढ़ेगा तो... स्कुल की प्रतिष्ठा करने का क्या मतलब... (शिक्षक से) कहिए... कहाँ है... वीर...
शिक्षक - जी आइए...

सभी स्कुल के प्रिंसिपल के चैम्बर में पहुँचते हैं, जहाँ वीर सिर झुकाए खड़ा था l प्रिंसिपल विक्रम को देख कर अपनी कुर्सी छोड़ खड़ा होता है l

विक्रम - नहीं नहीं आप बैठे रहिए... आप शिक्षक हैं... कहिए क्या हुआ है...
प्रिंसिपल - विक्रम साहब... वैसे आपका बेटा बहुत होशियार है... पर कुछ दिनों से... यह लड़का... आपके बेटे के हाथ से पीट रहा है... अब आप ही समझाएं...
विक्रम - यह क्या सुन रहा हूँ वीर...
वीर - आप मुझे कोई भी सजा दीजिए... पर यह फिरसे गलत हरकत की... तो इसे फोड़ दूँगा...
शुभ्रा - ऐ... यह कैसी भाषा बोल रहा है... क्या किया है इसने...

तभी एक छोटी लड़की कमरे के अंदर घुस आती है l और कहती है

लड़की - सर मैं कुछ कहना चाहती हूँ...
वीर - तुम क्यूँ आई... मैं संभाल लेता...
लड़की - नहीं वीर... मैं सबको सच बताऊँगी... (विक्रम से) अंकल... वीर जब स्पोर्ट्स में बिजी रहता है... तब मैं वीर की होम वर्क और क्लास वर्क कर देती हूँ... पर यह अमन... हमेशा मुझे टोकता रहता है...
अमन - हाँ तो... तुम मेरी सेक्शन की हो... तो उसकी होम वर्क या क्लास वर्क क्यूँ करती हो...
लड़की - मेरी मर्जी...
अमन - देख यह ठीक नहीं है...
वीर - (अमन से) ऐ डरा रहा है क्या... खबरदार...
विश्व - वीर... हम सब यहाँ हैं... प्रिंसिपल साहब का चैम्बर है...
वीर - तो.. मेरे दोस्त को कोई बेवजह डराएगा... तो छोड़ दूँगा क्या...
रुप - अमन ठीक ही तो कह रहा है... तुझे अपना होम वर्क करना चाहिए... किसी पर डिपेंड नहीं करना चाहिए...
लड़की - नहीं आंटी... मुझे वीर कभी होम वर्क करने के लिए देता नहीं है... मैं बस अपने तरफ से माँग लेती हूँ...
शुभ्रा - क्यूँ... क्यूँ करती हो ऐसा...
लड़की - मुझे अच्छा लगता है...
विश्व - अच्छा तो तुम्हें अच्छा लगता है...
लड़की - हाँ...
विश्व - वैसे तुम्हारा नाम क्या है...
लड़की - अनु... अनुसूया...

Kya shandar tarike se ant kiya he aapne is maha gatha ka Kala Nag Bhai,

Barso baad aisi kahani padhi, yaar iski to novel ban sakti he wo bhi best seller rahegi.......

Vir aur Anu ka bhi punarjanam ho gaya.......pichle janm me na sahi, is janam me dono ka pyar jarur pura hoga.......

Gazab Bhai, aag hi laga di he aapne.....

Salute he bhai aapko Dil se
 

bruttleking

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👉एक सौ पैंसठवाँ अपडेट (B) पूर्ण विराम
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भैरव सिंह आँखे फाड़े रुप को देख रहा था l रुप मातम की लिबास में, सफेद साड़ी में सामने उसके खड़ी थी l अपने नाम के अनुसार सौम्य और सुंदर पर तम तमाई हुई दिख रही थी l चेहरे पर दुख के साथ साथ असीम गुस्सा उसके चेहरे को लाल दिख रही थी l पर सबसे खास आज उसके मांग में सिंदूर दिख रहा था l भैरव सिंह उस सिंदूर की धार को देख कर बहुत हैरान था l भैरव सिंह का चेहरा सख्त हो जाता है उसका भी चेहरे के पेशीयाँ थर्राने लगते हैं l जबड़े भिंच जाती हैं l उसका यह रुप देख कर रुप के पीछे खड़ी सेबती डर के कांपने लगती है l

भैरव सिंह - यह क्या बेहूदगी है... बदजात... तेरी मांग पर किसका सिंदूर है...
रुप - (अकड़ और गुस्से के साथ) मेरे पति के नाम की सिंदूर है...
भैरव सिंह - विश्वा... ओ... कमबख्त लड़की... शादी के बाद सिंदूर मांग पर सजाया जाता है...
रुप - मेरी शादी... पूरे रस्म ओ रिवाज के साथ... विश्व प्रताप महापात्र से हो चुकी है...
भैरव सिंह - क्या...
रुप - हाँ राजा साहब... हाँ... और यह शादी उसी दिन हुई थी... जिस दिन आपने मुझे उस केके के साथ व्याहने की सोच रखा था... (भैरव सिंह की आँखे हैरत के मारे फैल जाती है) विक्रम भैया और चाची चाचा ने पुरे रस्म ओ रिवाज के साथ... विश्व प्रताप से मेरा विवाह करवा दिया... और आज पूरा गाँव जिनकी मौत का मातम मना रहा है... उन्हींको चाची ने मुझे सौंपा था... इस बात का गवाह वह पंडित, मेरे सारे दोस्त और पूरी पुलिस फोर्स थी...
भैरव सिंह - हराम जादी... अपनी बेहयाई को बताते हुए... शर्म भी नहीं आ रही है... बड़ी अकड़ के साथ बता रही है...

इतना कह कर भैरव सिंह रुप को मारने के लिए हाथ उठाता है तो रुप ऊँची आवाज़ में भैरव सिंह से कहती है

रुप - भैरव सिंह... (भैरव सिंह का हाथ हवा में रुक जाता है) बस... यह गलती मत करना... वह जो अपनी दीदी की मौत पर शांत है... उसके भीतर धधकते हुए लावा को बाहर आने का मौका मत दो... वह फिर सब्र नहीं कर पाएगा... यह तुम्हारी हस्ती... यह तुम्हारी बस्ती का नाम ओ निशान मिटा कर रख देगा...

भैरव सिंह रूप की गर्दन को पकड़ कर दीवार तक धकेलते हुए ले जाता है l उसके पंजे का जकड़ धीरे धीरे मजबूत होने लगता है l रुप की साँसे भारी होने लगती है l

भैरव सिंह - कमज़र्फ बदज़ात लड़की... तु मुझे... भैरव सिंह क्षेत्रपाल को धमका रही है... बोल कहाँ है वह हराम जादा... बोल...
सेबती - हुकुम... राजकुमारी जी की साँस उखड़ गई तो आपके सवालों के जवाब नहीं मिलेगा...

भैरव सिंह की पकड़ ढीली हो जाती है और वह अपना हाथ रूप की गर्दन से हटा लेता है, तो रुप खांसते हुए नीचे बैठ जाती है l थोड़ी देर बाद जब रूप खांसते खांसते थोड़ी दुरुस्त होती है और हँसते हँसते खड़ी हो जाती है l भैरव सिंह गुस्से से गुर्राते हुए पूछता है

भैरव सिंह - हँस क्यूँ रही है...
रुप - मैं जानती थी... तुम ऐसा ही कुछ करोगे... पर नाकामयाब रहोगे...
भैरव सिंह - नाकामयाब... (फिर से गर्दन पकड़ लेता है) हमारे पंजे की ज़रा सी हरकत पर... तुम्हारी साँसे की लम्हें टिकी हुई हैं...
रुप - फिर भी हमेशा की तरह हार ही तुम्हारी मुक़द्दर है...
भैरव सिंह - (गुर्राते हुए) हम कभी हारे नहीं हैं... (चिल्ला कर) समझी...
रुप - अभी गिनवाती देती हूँ... याद है वह चौराहा.. जहाँ पर तुमने वैदेही दीदी को सात थप्पड़ मारे थे... और बदले में... दीदी ने तुम्हें सात अभिशाप दिए थे... सात अभिशाप... याद है... (भैरव सिंह की पकड़ ढीली हो जाती है) अभी से पकड़ ढीली हो गई... याद करो वह पहला थप्पड़.. तुम्हारे आदमी जो तुम्हारी पहचान के दम पर... लोगों पर जुल्म ढाते रहे हैं... उन्हें गाँव की गलियों में विश्व दौड़ा दौड़ा कर मारेगा कहा था... विश्व ने वही किया था याद है... (भैरव सिंह को वैदेही को मारे पहला थप्पड़ और बदले में वैदेही की श्राप याद आता है) दूसरा थप्पड़.. क्षेत्रपाल खानदान को छोड इस गाँव में कभी किसी ने उत्सव नहीं मनाया था... पर विश्वा आकर मनाएगा... याद है... विश्वा ने सबके साथ मिलकर होली मनाई थी... (भैरव सिंह को दूसरा थप्पड़ और वैदेही की दूसरी श्राप याद आता है) तीसरा थप्पड़... लोग कभी क्षेत्रपाल के खिलाफ थाने पर नहीं गए थे... पर विश्वा के लौटने के बाद... क्षेत्रपाल के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट लिखवायेंगे... वही हुआ ना... (भैरव सिंह को वह तीसरा थप्पड़ और वैदेही की तीसरा श्राप याद आता है) चौथी... जो लोग कभी क्षेत्रपाल महल को पीठ कर नहीं जाते थे... उल्टे पाँव जाते थे... एक दिन ऐसे पीठ करके जाएंगे के फिर कभी महल की तरफ... इज़्ज़त या खौफ से नहीं देखेंगे... (फिर वही नज़ारा भैरव सिंह के आँखों के सामने गुजर जाता है और वह चौथा श्राप उसके कानों में गूंजती है) पाँचवाँ... जिस अहंकार के बल पर... दीदी और विश्वा के परिवार को तीतर बितर कर दिया... एक दिन क्षेत्रपाल परिवार भी वैसे ही तितर बितर हो जाएगा... (भैरव सिंह के कानों में वैदेही की पाँचवाँ अभिशाप गूंजने लगती है) छटा... महल के मातम के सिवा गाँव में किसी के भी घर में मातम नहीं मनाई जाती थी... पर एक वक़्त ऐसा आएगा जब लोग महल की मातम में शामिल नहीं होंगे... पर गाँव में जब भी मातम होगा... उससे महल को दूर रखेंगे... हूँ..हँ दादा जी की मौत पर कोई नहीं आया... पर आज सभी वैदेही दीदी की मातम में इकट्ठे हो गए हैं... (भैरव सिंह को छटा श्राप याद आता है, उसका जबड़ा सख्त हो जाता है) अब बचा सातवाँ... आखिरी... अंतिम अभिशाप... वह भी बहुत जल्द पुरा होगा... लोग इस महल की ईंट से ईंट बजा देंगे... महल का नामों निशान मीट जाएगा... याद है... (भैरव सिंह रुप के बालों को पकड़ कर उठा लेता है और पूछता है)

भैरव सिंह - बस... बदज़ात... तु कैसे मेरी औलाद हों गई... बहुत बोल लिया तूने... चुप... अब बोल... कहाँ है वह... आस्तीन का साँप... वह हराम का जना... विश्वा... कहाँ है बोल..
रुप - विश्वा... विश्वा नहीं अनाम... वह नाम जिससे तुमने उससे मेरी पहचान कारवाई थी....
भैरव सिंह - हाँ हाँ... वहि अनाम... कहाँ है... बोल
रुप - वह... (हँसते हुए) वह यहाँ नहीं आया...
भैरव सिंह - (बालों को कस कर पकड़ कर) तु झूठ बोल रही है... वह अगर महल आया है... तो वज़ह सिर्फ तु ही है... बोल कहाँ है... (रुप के चेहरे पर दर्द साफ नजर आने लगती है)
सेबती - हुकुम... राज कुमारी जी सच कह रही हैं... यहाँ अब तक कोई भी नहीं आया है...
भैरव सिंह - चुप... (चीख कर) चुप कर कुत्तीया... चुप कर... (रूप की ओर देख कर) बाहर उसके दीदी की लाश सड़ रही है... और वह यहाँ आकर... हमें.. हमें किस बात के लिए चैलेंज कर रहा है... अपनी अमानत की बात कह रहा है...
रुप - अगर उसने अमानत की बात की है... तो उसकी अमानत मैं ही हूँ... पर... जाहिर है... तुमसे कुछ ऐसा पुछा होगा... जिसे जान कर.. तुमसे जवाब लेकर ही... वहीं पर गया होगा...
भैरव सिंह - क्या... (अचानक उसकी आँखे हैरत से फैल जाते हैं)

भैरव सिंह रूप को बालों के सहित पकड़ कर खिंचते हुए कमरे से निकल कर जाने लगता है l पीछे पीछे सेबती भी जाने लगती है l तीनों जाकर रणनीतिक प्रकोष्ठ में पहुँचते हैं l कमरे में विश्व के हाथ में फर्ग्यूसन का तलवार था पर भैरव सिंह और भी हैरान हो जाता है जब देखता है कि विश्व के हाथ में वह तलवार मूठ के साथ था l यानी विश्व उसे उसके मूठ से जोड़ दिया था l भैरव सिंह का हाथ अपने आप रुप के बालों से हट जाता है l

विश्व - यही वह मिथक है.. जो तुम्हारे खानदान के साथ जुड़ा हुआ था... वह मिथक बहुत जल्द सच होगा... इस बात का मुहर आज मैं लगा रहा हूँ...
भैरव सिंह - बात और औकात... दायरे में रहे... तो इज़्ज़त और जान महफूज रहता है...
विश्व - मैंने बात कह भी दी... औकात दिखा भी दी... उखाड़ ले... जो तुझे उखाड़ना है...


इतना कह कर विश्व तलवार को सामने पड़ी टेबल पर घोंप देता है l तलवार टेबल पर आधा घुस जाता है l इतने में रुप भाग कर विश्व के गले लग जाती है l विश्व भी रुप को अपने बाहों मे भर लेता है l दोनों विश्व और रुप भैरव सिंह की ओर देखते हैं l रुप को विश्व के बाहों में और दोनों को अपनी ओर देखते हुए देख कर भैरव सिंह गुस्से से चिल्लाता है l

भैरव सिंह - जॉन... (कुछ सेकेंड में ही कमरे में जॉन और उसके साथ कुछ हथियार बंद बंदे अंदर आते हैं) कील दिस बास्टर्ड... (सब जैसे ही विश्व पर बंदूक तान देते हैं, विश्व तुरंत ही अपने से रुप को अलग करता है, सब के सब हैरत के मारे विश्व की ओर देखने लगते हैं, विश्व अपनी शर्ट खोल देता है, उसके सीने में कुछ पैकेट्स के साथ एलईडी लाइट्स जल रहे थे )
जॉन - ओह शीट... डाइनामाइट... (जॉन और उसके आदमीओं के बंदूक नीचे हो जाते हैं) (विश्व अपनी जेब में हाथ डाल कर एक ग्रिप लिवर निकालता है) डेटोनेटर... (इससे पहले कि सब कमरे से निकल पाते)
विश्व - डोंट बी स्मार्ट... मिस्टर जॉन... कोई भी हिला... तो अपने साथ तुम सब को ले उड़ुंगा...
भैरव सिंह - ओह... तो पूरी तैयारी के साथ आया है...
विश्व - हाँ...
भैरव सिंह - तु यह भूल कैसे गया... तुझे कुछ हुआ तो... तेरे साथ तेरी दीदी की लाश गाँव में सड़ती रहेगी...
विश्व - मेरे बाद उसके और चार भाई और भी हैं... जो उसे कंधा भी देंगे और चिता में आग भी... (कह कर आगे बढ़ता है) तु अपनी चिंता कर... मेरे साथ उड़ गया.. तो...

भैरव सिंह के पास पहुँच जाता है l विश्व भैरव सिंह की पैंट को को खिंच कर बड़ी तेजी से उसके अंदर एक मूठ बराबर रॉड जैसे कुछ डाल देता है l इतनी तेजी से यह सब होता है कि भैरव सिंह को समझने के लिए वक़्त तक नहीं मिलता l जब उसे एहसास होता है तब वह अपनी पैंट में हाथ डालने को होता है कि विश्व कहता है

विश्व - ना कोई हरकत ना करना... (अपने हाथ में डेटोनेटर दिखाते हुए) यह इसी बॉम्ब का डेटोनेटर है... ज्यादा पावरफुल नहीं है... पर जितना भी है... उससे तेरी मर्दानगी वाला हिस्सा को उड़ा देगा... इतना डैमेज करेगा कि... पहले तेरी इज़्ज़त लेगा... फिर तेरी जान.. (भैरव सिंह पहली बार थूक निगलता है) चल... अब मुझे और मेरी पत्नी को... बा इज़्ज़त बाहर छोड़ आ...

इतना कह कर भैरव सिंह को खिंच कर कमरे से बाहर निकलता है l पीछे पीछे रुप और सेबती भी बाहर आते हैं l विश्व अपना डाइनामाइट वाला वेस्ट उतार कर बाहर दरवाजे पर टांग देता है और रुप को इशारा करता है जिसे रुप समझ जाती है और वह जल्द ही कमरे की दरवाजा बाहर से बंद कर देती है l

विश्व - (भैरव सिंह से) अपनी बेटी के कंधे पर हाथ रख... (भैरव सिंह हैरत से विश्व की ओर देखता है) हाँ... अपना बायाँ हाथ राजकुमारी जी के कंधे पर रख... वर्ना... (डेटोनेटर दिखाता है) (भैरव सिंह अपना बायाँ हाथ रुप के कंधे पर रखता है) शाबास... (अब विश्व भैरव सिंह का दायाँ हाथ अपने हाथ में ले लेता है और डेटोनेटर को अपनी जेब में रख लेता है) अब... एक अच्छे बाप की तरह... अपनी बेटी और दामाद जी को... बाहर ले चल...
भैरव सिंह - हरगिज नहीं... चाहे कुछ भी हो जाए... हमें मौत मंजूर है... हार नहीं...
विश्व - भैरव सिंह... मौत एक सच्चाई है... यह मैं अच्छी तरह से जानता हूँ... तुझे हार कभी बर्दास्त नहीं होता... अपनी जीत के लिए... तु कुछ भी कर गुजर जाएगा... पर सोच... मेरे डेटोनेटर दबाते ही... तेरा कमर का हिस्सा... बुरी तरह डैमेज होगा... जल्दी तो नहीं पर... कुछ घंटे तड़पने के बाद ही मरेगा जरूर... वह मौत तेरी जीत नहीं... तेरी हार की होगी... हमारा अंजाम चाहे जो भी हो... वह हमारे प्यार की जीत होगी...
रुप - सच कहा अनाम... यह आदमी अपनी जीत के लिए कुछ भी कर सकता है... हमारा प्यार... इसकी बड़ी हार है... मुहब्बत पर हम कुर्बान हो गए तो...
भैरव सिंह - खामोश बदजात... हम राजा हैं... जिसे तुम जीत समझ रहे हो... वह पानी की बुलबुला है...
विश्व - तो बाहर हमें छोड़ दे... हम भी तो देखें यह पानी की बुलबुला है... या कोई पर्वत...

भैरव सिंह के पैर हिलने को तैयार नहीं थे पर विश्व उसे अपनी ताकत से खिंचते हुए बाहर की ओर लिए जाता है l

रुप - (चलते चलते) अनाम... मुझे... शादी के तुरंत बाद ही... आपके साथ चले जाना चाहिए था... इस आदमी ने... छि... क्या कहूँ... उस दिन जब आप मिलकर चले गए... मैं उसके बाद दादा जी के कमरे की ओर जा रही थी... जब तक दरवाजे तक पहुँची... तो देखा... यह आदमी... दादाजी को इतनी जोर से दबोच रखा था कि... दादाजी की जान चली गई... यह मेरे लिए बहुत बड़ा सदमा था... इसी सदमे के चलते... मुझसे... वह मोबाइल छूट गई... यह कितना नीच है.. अपनी अहंकार के लिए... मेरी माँ को मार डाला था... अब दादाजी को भी मार डाला... (तीनों के चेहरे पर सख्ती उभरने लगी थी) मैं बस एक आस लिए इस घर में थी... जिस आँगन में मेरा बचपन गुजरा उसे छोड़ते हुए... इस आदमी की ओर कम से कम एक बार दुख से देखूँ... जैसे हर एक लड़की... अपने पिता को देखती है... पर यह आदमी... किसी भी रिश्ते के लायक नहीं है... (कहते कहते चारों महल के परिसर के बाहर आकर पहुँचते हैँ)(रुप और विश्व अब भैरव सिंह से अलग होते हैं,और भैरव सिंह के सामने खड़े हो जाते हैं, सेबती उनके पीछे आकर खड़ी होती है) (रुप भैरव सिंह से कहती है) मैं तुम्हारा यह घर... यह दुनिया हमेशा के लिए छोड़ जा रही हूँ... तुमसे कोई दुआ नहीं चाहिए... और मेरी बदकिस्मती देखो... अपने बाबुल की सलामती की दुआ भी नहीं कर सकती... जी तो चाहता है कि तुम्हारे मुहँ पर थूक कर जाऊँ... पर एक आखरी बार के लिए... बेटी होने के नाते... यह अंतिम सम्मान दिए जा रही हूँ... क्यूँकी मैं जानती हूँ... यह महल अब कुछ ही पल के लिए खड़ा है...

रुप चुप हो जाती है, उसके चुप्पी के साथ पूरा वातावरण में खामोशी पसर जाती है l भैरव सिंह अभी भी गुस्से से तीनों को देखे जा रहा था l

भैरव सिंह - विश्वा तुने एक बात सच कहा है.. हमें हार मंजूर नहीं है.. अपनी जीत के लिए हम कुछ भी कर सकते हैं...
विश्व - कुछ भी कर... पर मुझे दोबारा महल आना पड़े ऐसा कुछ भी मत करना... क्यूँकी अगली बार मेरा महल में आना... तेरी और इस महल का आखरी दिन होगा... (अपनी जेब से डेटोनेटर निकाल कर भैरव सिंह को दे देता है) यह ले.. तेरी जान और इज़्ज़त... अंदर जाकर बॉम्ब निकाल ले...

भैरव सिंह वह डेटोनेटर को हाथ में लिए विश्व और रुप को वहाँ से जाते हुए देख रहा था l उसके चेहरा किसी अंगार के भट्टी की तरह दहक रहा था l वह मुड़ता है और अंदर की ओर जाता है l

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रुप को लेकर जब विश्व पहुँचता है तो पाता है वैदेही की शव को अर्थी पर लिटा चुके थे l रूप वैदेही की शव को देख कर भागते हुए लिपट जाती है और बिलख बिलख कर रोने लगती है l उसे गाँव की औरतें घेर तो लेती हैं पर किसीकी हिम्मत नहीं होती कि उसे थामे और शांत करें l गौरी आकर रुप को पकड़ती है और उसे दिलासा देने लगती है l इतने में विश्व को अपने कंधे पर किसी का हाथ महसुस होता है l मुड़ कर देखता है डैनी खड़ा था l उसके पीछे विश्व के सारे दोस्त l

डैनी - शव को श्मशान ले जाना है... अंत्येष्टि के लिए... जाओ तैयार हो जाओ... (डैनी इशारा करता है तो उसके सारे दोस्त विश्व को ले जाते हैं और उसे धोती पहना कर लाते हैं)

विश्व के दोस्त और गाँव वाले मिलकर वैदेही की अर्थी को उठाते हैं l पीछे पीछे सारे गाँव वाले उमड़ पड़ते हैं l राजगड़ यह पहली बार हो रहा था l क्षेत्रपाल महल के निवासियों के अतिरिक्त किसी भी गाँव वाले के भाग्य यह था ही नहीं के गाँव में किसी की शव को कंधा और परिक्रमा मिला हो l नागेंद्र सिंह क्षेत्रपाल के मौत के साथ यह मिथक और इतिहास दोनों बदल गए l वैदेही, जिसका अपना परिवार नहीं था, आज पूरा गाँव उसका परिवार बन कर उसकी अर्थी को एक के बाद एक कंधा मिल रहा था और गाँव के हर गली से हर घर के आँगन के सामने से गुजर रहा था l सारे गाँव वाले मिलकर नदी के किनारे वाले श्मशान पर ले आते हैं l श्मशान के बाहर सभी औरतों को रोक दिया जाता है l फिर सारे मर्द श्मशान के अंदर जाते हैं जहाँ विश्व के चारों दोस्त बड़ी फुर्ती से चिता सजा देते हैं l पंडित के मंत्रोच्चारण के साथ क्रिया कर्म की विधि पूर्ण करते हुए विश्व वैदेही को मुखाग्नि दे कर चिता को आग के हवाले कर देता है l

चिता धू धू हो कर जलने लगता है l विश्व जो अबतक अपने भीतर की बाँध को रोके रखा था उसका सब्र जबाब दे देता है l उससे रहा नहीं जाता वह रो देता है l धीरे धीरे उसकी रोना बढ़ता जाता है l उसके चारों दोस्त उसे दिलासा देने की कोशिश करते हैं पर विश्व एक अबोध बच्चे की तरह बिलख बिलख कर रोता रहता है l विश्व को रोते देख कर वहाँ पर मौजूद सभी के आँखों में पानी आ जाती है l श्मशान के बाहर यह सब देख रही रुप से बर्दास्त नहीं होती l वह भागते हुए अंदर आती है तो उसे डैनी बीच में रोक देता है l

रुप - मुझे जाने दीजिए... मेरा अनाम रो रहा है... उसे अब मेरी जरूरत है...
डैनी - नहीं... उसे अभी किसीकी जरूरत नहीं है... उसे अभी के लिए अकेला छोड़ दो...
रुप - नहीं... आप समझ नहीं रहे... वह रोते रोते टूट जाएगा... कमजोर पड़ जाएगा...
डैनी - कुछ नहीं होगा... बर्षों से रोया नहीं है... आज अपनी दीदी के ग़म में... रो लेने दो...
रुप - आप उसके बारे में जानते ही क्या हैं...
डैनी - तुम उससे प्यार करती हो... इसलिए तुम्हें लगता है कि तुम उसके बारे में बहुत जानती हो... पर वह आज जैसा है... उसे वैसा मैंने बनाया है... मेरा चेला है वह... उसके अंदर की भावनाओं को मैं जानता हूँ... इसलिए आज उसे अकेला छोड़ दो...

रुप यह सब सुन कर हैरत से डैनी की ओर देखने लगती है l इतने में कुछ और लोग डैनी के पास आते हैं और विश्व को श्मशान से बाहर ले जाने की बात करते हैं l

एक - मुखाग्नि देने वाले को... तुरंत श्मशान से चले जाना चाहिए...
दूसरा - हाँ... यह विधि है... परंपरा है... मुखाग्नि के बाद.. विश्व का यहाँ रहना... अपशकुन होगा...
डैनी - कैसा शकुन.. कैसा अपशकुन... आज विश्वा.. अनाथ हो गया है... विश्वा कभी किसीके लिए रो नहीं पाया था... जन्म लेते ही माँ चल बसी... पिता का शव तक नहीं देख पाया... अपने गुरु की हत्या हुई है जानने के बाद भी रो नहीं पाया... श्रीनु के मौत पर गुस्सा तो कर पाया... पर रो नहीं पाया... आज वह सबके हिस्से का रोना रो रहा है... आज उसने अपनी दीदी को नहीं... बल्कि... अपनी माँ... अपने पिता... अपना गुरु... सबको खो दिया है... उसका यह ग़म... आज उससे कोई नहीं बांट सकता... (रूप को देख कर) तुम भी नहीं... आज उसे जी भर के रो लेने दो... उसे आज यहीं छोड दो... कल तक.. वह कुछ सुनने लायक होगा... चलो.. सब...
रुप - फिर कल... कल तक वह किस हालत में होगा...
डैनी - घबराओ नहीं... चिता की आग जितनी ठंडी होती जाएगी... उसके भीतर की आग.. ज्वाला बनेगी... फिर लावा बनकर बाहर निकलेगी... इसलिए चलो...

डैनी के यह कहने से वहाँ पर सब लोग कुछ क्षण के लिए शांत हो जाते हैं l सबकी निगाह विश्व पर थोड़ी देर के लिए ठहर जाता है l विश्व जो एक बच्चे की तरह रोये जा रहा था l उन्हें डैनी की बात सही लगी, इसलिए सभी विश्व को उसीकी हालत पर छोड़ कर चले जाते हैं l रूप जाने को तैयार नहीं थी पर डैनी उसे समझा कर ले जाता है l

सभी के जाने के बाद जलती हुई चिता के सामने सिर्फ विश्व ही था l जो अपनी आँखों से अपनी दीदी को लकडियों के साथ राख में तब्दील होते हुए देख रहा था l धीरे धीरे चिता की आँच कम होती चली गई विश्व की आँखों से आँसू भी सुख चुके थे l वह चिता के सामने बैठे बैठे लेट गया था l रात ऐसे ही बीती सुबह की ठंडी ठंडी हवा विश्व की नींद को हल्का कर रहा था l उसे महसूस हो रहा था जैसे वह वैदेही के गोद में सिर रख कर लेता हुआ है l वैदेही उसके सिर के बालों पर हाथ फ़ेर रही है l विश्व हल्का सा मुस्कुराने लगता है l

विश्व - दीदी... तुम...
वैदेही - हाँ थक जो गया है... इसलिए दुलार रही हूँ...
विश्व - मुझे माफ कर दो दीदी... तुम्हारे जीते जी... मैं भैरव सिंह को... सबक नहीं सीखा पाया...
वैदेही - अभी देर भी तो नहीं हुआ है... चल उठ... भैरव सिंह से... तुझे मेरा या बाबा... आचार्य सर या श्रीनु का बदला नहीं लेना है... तेरा जन्म राजगड़ के हर आँगन का कर्जदार है... तुझे हर एक आँगन का बदला लेना है... चल उठ...


अचानक उसकी नींद टूट जाती है l वह अपनी आँखे खोलता है फिर उठ बैठता है l सामने देख कर उसके मुहँ से निकलता है

विश्व - माँ..
प्रतिभा - उठ गया बेटा..
विश्व - माँ... क्या इतनी देर तक... मैं तुम्हारे गोद में लेटा हुआ था...
प्रतिभा - हाँ...
विश्व - और मैं बात किससे कर रहा था...
प्रतिभा - मुझसे... और जवाब भी मैं ही दे रही थी...
विश्व - आ प अकेली आई हैं...
प्रतिभा - ऐसा हो सकता है भला... तेरे डैड भी आए हैं... वह रहे...

विश्व अपनी गर्दन मोड़ कर देखता है श्मशान के बाहर तापस खड़ा हुआ था, साथ में उसके चारों दोस्त, रुप और डैनी भी खड़े थे, सब विश्व को जागता हुआ देख कर अंदर आते हैं l सबको अपनी तरफ आता देख कर विश्व अपनी जगह से उठ कर खड़ा हो जाता है l

प्रतिभा - तुम्हारे सो जाने से... पूरी दुनिया को भुला देने से... जानते हो... क्या हो गया है...
विश्व - क्या... क्या हो गया है...
प्रतिभा - चल घर चलते हैं... वहीँ पर बात करेंगे...

प्रतिभा विश्व की हाथ पकड़ कर सबके साथ श्मशान से निकल कर उमाकांत सर के घर की ओर जाने लगती है l विश्व देखता है सारे गाँव वालों के चेहरा उतरा हुआ है l सब को देख कर ऐसा लग रहा था जैसे कुछ बड़ा हुआ है पर विश्व से बात को छुपा रहे हैं l सभी लोग घर पर पहुँचते हैं l

प्रतिभा - हम सब बाहर हैं... तुम जाओ... तैयार हो कर बाहर आओ...

विश्व कोई सवाल किए वगैर अंदर जाता है l मुहँ धोते धोते उसे एहसास होता है कि उसके गैर हाजिरी में गाँव कुछ बुरा हुआ है l जल्दी जल्दी अपने आप को ताजा कर कपड़े बदल कर बाहर आता है l बाहर उसका ही इंतजार हो रहा था l सब मिलकर विश्व को साथ लेकर चलते हैं l इस बार वैदेही के दुकान पर पहुँचते हैं l विश्व देखता है दुकान के बाहर नभवाणी न्यूज चैनल की ट्रांसमिशन वैन खड़ा है l वहाँ पर इंस्पेक्टर दास और सतपती खड़े थे l विश्व को देख कर दोनों वैन का दरवाजा खटखटाते हैं l वैन से सुप्रिया निकल कर आती है l तीनों विश्व के पास आते हैं l विश्व को प्रतिभा दुकान वाली घर के अंदर ले जाती है l अंदर सभी विश्व को बिठा कर उसे घेर कर बैठते हैं l विश्व इधर उधर अपनी नजर घुमाता है

विश्व - यह गौरी काकी... दिखाई नहीं दे रही है... (विश्व की इस सवाल पर सीलु रो देता है)
सीलु - भाई... बहुत बुरा हो गया है... (रोते रोते) हम सब जब दीदी की अंत्येष्टि को श्मशान गए थे... तब भैरव सिंह के आदमी... घर घर में जो बच्चे थे... श्मशान नहीं गए थे... उन्हें उठा ले गए... (विश्व की आँखे फैल जाती हैं) (वह उठने को होता है कि प्रतिभा उसके कंधे पर हाथ रख कर बिठा देती है)
सतपती - फिलहाल... सभी गाँव वाले.. ट्रौमा में हैं... सबने अपने बच्चों को घर पर बुजुर्गों के हवाले कर छोड़ गए थे... इसी मौके का फायदा उठा कर... भैरव सिंह के आदमी आए... सारे बच्चों को... और उनके साथ गौरी काकी को उठा ले गए... और... ( एक गहरी साँस लेते हुए सतपती रुक जाता है)
विश्व - और...
दास - जब श्मशान से गाँव वाले लौटे... तो उन्हें इस बात की खबर देने के लिए भैरव सिंह का एक आदमी इंतजार कर रहा था... जाहिर है... जब लोगों को मालूम हुआ... अफरा-तफरी हो गया... हम ने सबको बड़ी मुस्किल से शांत किया... बात बहुत आगे बढ़ चुकी थी... एक्शन के लिए... हमने ऊपर तक बात की...(एक पॉज लेकर) हमें भैरव सिंह से नेगोशिएशन करने के लिए कहा गया... इसलिए हमने महल की ओर जाकर कॉन्टैक्ट करने की कोशिश की... तो भैरव सिंह ने... सरकार तक अपनी बात पहुँचाने के लिए... या यूँ कहूँ अपनी शर्तें थोपने के लिए... सुप्रिया जी को... मीडिएटर बनने के लिए कहा...
सतपती - मैंने सुप्रिया जी को... अपने क्रू मेंबर्स के साथ आने के लिए कहा... और.. वह मान भी गईं...

अब सतपती चुप हो जाता है, दास भी कुछ नहीं कहता विश्व देखता है सबके चेहरे पर तनाव साफ दिख रहा था l सुप्रिया डरी सहमी सी लग रही थी l

विश्व - तो क्या सुप्रिया जी नहीं गईं...
सतपती - गई थी... पर अंदर जो हुआ... (सतपती एक इशारा करता है, एक कांस्टेबल लैपटॉप लेकर सतपती को दे देता है) अब हमसे.. जो ट्रांसमिट कारवाया गया... वह ट्रांसमिशन देखो...

कह कर लैपटॉप विश्व को दे देता है l विश्व लैपटॉप में चल रहा वीडियो को देखने लगता है l कैमरा ऑन होते ही

जॉन - क्या कैमरा ऑन हुआ...
सुप्रिया - हाँ हो गया... पर अभी से कैमरा क्यूँ ऑन किया...
जॉन - वह इसलिए कि हमारी तैयारी... सब देखें... ताकि कोई जुर्रत या हरकत से पहले सौ बार सोच लें...

सुप्रिया अपना सिर हिलाती है कैमरा मैन कैमरा को हर एंगल में शूट करते हुए वीडियो लेता है l महल के अंदर चार वॉचिंग टावर थे, सब के सब एडवांस वेपन से लेस थे l सब कुछ शूट करते हुए जब अंदर की कमरे में पहुँचते हैं, भैरव सिंह उन्हें खड़ा मिलता है l

भैरव सिंह - आइए... सुप्रिया जी... आइए... हम आपके बहुत बड़े फैन हैं... अपकी रिपोर्टिंग देखने के बाद... आपसे मिलने की तलब थी... सो आज पूरी हो गई...
सुप्रिया - कहिये राजा साहब... आपने नेगोशिएशन के लिए... मुझे मीडिएटर क्यूँ चुना...
भैरव सिंह - आपकी रिपोर्टिंग बहुत ग़ज़ब की है... आप वाकई... अपने भाई की बहन ही हैं... या यूँ कहूँ... आप उनसे बेहतर हैं... इसलिये हम चाहते थे कि... सरकार तो सरकार.. हमारे खास दुश्मन को भी... पैगाम आपसे मिले...
सुप्रिया - कहिये फिर... क्या कहना चाहते हैं...
भैरव सिंह - हम चाहते हैं कि... आपका कैमरा शुरू से लेकर अंत तक... ऑन ही रहे... बाहर जाकर कुछ भी कांट छाँट कर सरकार को दिखा दीजिए... हमें कोई फर्क़ नहीं पड़ता...

इतना कह कर भैरव सिंह एक इशारा करता है l पीटर भैरव सिंह का रोल्स रॉएस लेकर आता है l भैरव सिंह सुप्रिया और उसके कैमरा मेन को इशारे से बैठने को कहता है l थोड़े झिझक के साथ दोनों अंदर बैठ जाते हैं l

भैरव सिंह - मैं अपने परिवार वालों को छोडकर... किसी को भी इस गाड़ी में नहीं बिठाया था... शिवाय वैदेही के... उसके बाद तुम दोनों वह खुशकिस्मत हो जो मेरे साथ इस गाड़ी में बैठे हो... (सुप्रिया का हलक सूखने लगता है) घबराओ नहीं... जो हाल वैदेही का हुआ... जरूरी नहीं तुम लोगों के साथ वही हो... (कुछ ही देर के बाद गाड़ी रुक जाती है, पिटर दरवाजा खोलता है तो सबसे पहले भैरव सिंह उतरता है उसके बाद सुप्रिया और फिर कैमरा मेन उतरते हैं) इसे रंग महल कहते हैं... हमारे खानदान की रंगीनियों की गवाह... यहाँ तक आने के लिए... बाहर से रास्ता है... और अंदर से भी... देख लो... (कैमरा मैन अपना कैमरा घुमाने लगता है, यहां पर भी चाक चौबंद बंदोबस्त थी, बिल्कुल क्षेत्रपाल महल की तरह) अब आओ हमारे साथ...

कह कर भैरव सिंह आगे आगे चलने लगता है उसके पीछे पीछे सुप्रिया और कैमरा मैन जाने लगते हैं l अंदर पहुँचने के बाद एक गैलरी पर रुकते हैं l

भैरव सिंह - इस महल में... इस जगह को आखेट गृह कहते हैं... हमने कुछ जानवर पाले हुए हैं... वह जानवर... जिनके जबड़े बहुत मजबूत होते हैं... वह जानवर... मेरे दुश्मनों का शिकार करते हैं... (भैरव सिंह ताली बजाता है, भैरव सिंह के आदमी बच्चों, गौरी और होम मिनिस्टर को लाते हैं) यह रहे वह लोग... जिन्हें हमने आखेट गृह के लिए उठा कर लाए हैं.. (सुप्रिया से) सुप्रिया जी... आपको जान कर खुशी होगी... आपके भाई प्रवीण और भाभी जी को... हमने यहीं से स्वर्ग रवाना कर दिया था...
सुप्रिया - ह्वाट...
भैरव सिंह - हाँ आपने ठीक सुना.. कैसे हम आपको दिखाते हैं...

कह कर भैरव सिंह गौरी के पास आता है और उसे बालों सहित पकड़ कर खिंच कर गैलेरी के सिरहाने पर लाता है l

भैरव सिंह - इस बुढ़िया को... हमने रहम खा कर भीख माँगने के लिए छोड़ दिया था... पर यह उस डायन के साथ मिलकर... हमारे खिलाफ खिचड़ी पकाती रही... इसलिए इसे... (कह कर धक्का देता है, गौरी चिल्लाते हुए स्वीमिंग पूल में गिरती है l भैरव सिंह एक स्विच ऑन कर देता है l दोनों तरफ से दीवारें सरक जाती हैं l गौरी जब तक पानी से बाहर आती है तब तक एक तरफ से लकड़बग्घा आकर गौरी की कंधे पर अपना जबड़ा धंसा देता है l गौरी चीखते चिल्लाते छूटने की कोशिश करती है कि उसके पैरों पर एक जबड़ा कस जाता है l उसके बाद दोनों जानवरों के बीच खींचातानी शुरु हो जाती है l फिर किसी से भी कुछ देखा नहीं जा पाता l वह स्विमिंग पूल खून से लाल हो जाती है l गैलेरी में मौजूद सारे बच्चें, मिनिस्टर और सुप्रिया के साथ कैमरा मैन भी चीखने लगते हैं पर वहाँ पर भैरव सिंह पूरी तरह से शांत होकर खड़ा था l

भैरव सिंह - (चिल्ला कर) चुप.... (सब चुप हो जाते हैं) (भैरव सिंह मुस्कराते हुए) कोई डर के मारे चिल्लम चिली करता है... तो मुझे बहुत अच्छा लगता है... पर चूँकि मुझे सरकार को खबर पहुंचानी है... इसलिये सब खामोश हो जाओ... पिटर... इन्हें अंदर ले जाओ... (पिटर और कुछ लोग बच्चों और मिनिस्टर को अंदर ले जाते हैं, भैरव सिंह कैमरा को अपने सामने लाता है) हाँ तो गाँव वालों... तुमसे शुरु करते हैं... जो जमीनों के कागजात... वैदेही ने महल से ले गई थी और विश्व ने तुममें बांट दी.. वह सब विश्व के हाथ ही हमें लौटाओगे... सरकार तुम्हारे बच्चों को बचाने के लिए कोई चाल चलेगी... पर ध्यान रहे... कोई भी सरकारी सेना गाँव में घुस नहीं पाए... वर्ना... तुम लोगों के बच्चों को... एक एक करके... लकड़बग्घे और मगरमच्छ के हवाले कर दी जाएगी.... समझ गए... हाँ तो मुख्य मंत्री जी... आपके केबिनेट की गृह मंत्री मेरे कब्जे में है... आपने कोई हरकत करने की कोशिश की... तो वह बहुत ही जल्द दिवंगत गृह मंत्री बन जाएंगे... वे तब तक मेहमान हैं हमारे... जब तक आप हमारी शर्तों को मान ना लें...
सुप्रिया - आ आ आप... के... शर्तें.. क के क्या.. क्या हैं...
भैरव सिंह - वह सब हम बाद में बता देंगे... पहले सरकार हमसे... हमारी शर्तें पूछ तो ले... अब तुम लोग जाओ... और हमारा यह काम और पैगाम... राज्य के हर घर घर में पहुँचाओ...

विडिओ खत्म हो जाता है l विश्व लैपटॉप बंद कर देता है l विश्व कमरे में अपनी नजर दौड़ाता है सभी उसीको देख रहे थे l

विश्व - सरकार की ओर से कौन नेगोशिएटर बना है...
सतपती - कोई नहीं... सरकार की तरफ मुझे सुप्रिया जी से बात करने के लिए कहा गया है...
विश्व - तो... आपने क्या बात करी...
सतपती - हाँ बात करी... हमने जब सरकार के तरफ़ से शर्तें पूछी.. तो उसने यह काग़ज़ थमा दिया...

विश्व सतपती से वह काग़ज़ लेकर देखता है l उस काग़ज़ में शर्तें लिखी थीं l
पहला - भैरव सिंह के खिलाफ सारे केसेस खारिज किया जाए और सारी कारवाई रोक दी जाए l
दुसरा - सारी जमीनों की कागजातों के साथ उनकी मिल्कियत भैरव सिंह को सौंप दी जाए l
तीसरा - जमीनों की कागजात उसे महल में आकर विश्व प्रताप महापात्र हस्तांतरण करे l
चौथा - देश छोड़ कर विदेश जाने दिया जाए l

विश्व - हम्म्म... वह हमारे सारे किए कराए पर पानी फ़ेर... विदेश में बसने की तैयारी कर रहा है... यहाँ तक समझ में आ रहा है... पर वह जमीनें लेकर क्या करेगा... (सब खामोश रहते हैं) सरकार... बचाव के लिए... कुछ सोच भी नहीं रहा है...
तापस - प्रताप... तुम क्या समझ नहीं रहे हो... एक आदमी... गाँव के बच्चों को और स्टेट के होम मिनिस्टर को अपना ढाल बनाए हुए है... आधे से ज्यादा गाँव वाले... अभी राजा के सैनिक हैं... जो किसी भी प्लैटून या दस्ते को गाँव में आने नहीं दे रहे हैं... उनकी सेंटिमेंट और इमोशन के आड़ में... अपनी गुनाह माफ़ करवा कर तुम्हारे सारे प्रयासों को धत्ता कर... विदेश चला जाएगा... विदेश में रह कर भी... इन जमीनों पर मिल्कियत बरकरार रखेगा... गाँव वाले जो कुछ दिन के लिए अपने खेतों के मालिक बने थे... वह एक पानी का बुलबुला था... इनकी जिंदगी नर्क बना कर जा रहा है... (एक पॉज लेता है) भैरव सिंह के कटघरे तक जाना तुम्हारे प्लान का हिस्सा रहा... पर उसके बाद जो भी हो रहा है... उसके प्लान के मुताबिक हो रहा है... कौन जी रहा है... कौन मर रहा है... उसे कोई फर्क़ नहीं पड़ रहा... बस अपनी जीत की घमंड को बरकरार रखने के लिए... किसी भी हद तक जा रहा है... उसके पास अपने हर एक प्लान के... ऑलटर्नेट बैकओप प्लान है... हम बस लड़ रहे हैं... पर असलीयत यह है कि... यह उसकी और सरकार की प्लानिंग है...
विश्व - सरकार...
तापस - हाँ... तुम भूल रहे हो... भैरव सिंह के पास सरकार के लगभग हर एक शख्स का कोई ना कोई... काली करतूत का सबूत है... अगर सिर्फ बच्चे ही उसके कब्जे में होते... तो अब तक रेस्क्यू ऑपरेशन हो चुका होता... पर चूंकि उसके कब्जे में... होम मिनिस्टर भी है... तो रेस्क्यू ऑपरेशन नहीं होगा...
विश्व - भैरव सिंह जो भी कर रहा है... वह एक टेररिस्ट ऐक्ट है...
तापस - हाँ है... और सरकार ऐसे टेररिस्टों के साथ नेगोशिएशन करती है... अपने लोगों को बचाने के लिए... और उनकी शर्तें मानती भी है...

कुछ पल के लिए कमरे में खामोशी पसर जाती है l विश्व प्रतिभा की ओर देखता है l प्रतिभा समझ जाती है विश्व किस पसोपेश में है l प्रतिभा विश्व का हाथ थाम कर बाहर ले जाती है और चौराहे के बीचो बीच आकर खड़ी हो जाती है l

प्रतिभा - प्रताप...
विश्व - हाँ माँ...
प्रतिभा - मैं तुम्हें अपनी वचन से आजाद करती हूँ... (विश्व चौंक कर देखता है) हाँ... तुमने लड़ाई कानूनी लड़ी... वह इसलिए... ताकि सच की जीत हो... पर यहाँ... तंत्र प्रशासन सब मिलकर सच को कुचलने के लिए एक हो गए हैं... इसलिए मैं तुझे अपनी वचन से आजाद कर रही हूँ... पर कुछ ऐसा कर... के आने वाले कल को एक ऐसा उदाहरण बने... ताकि लोग कानुन से भी डरें और जन आक्रोश से... (विश्व स्तब्ध हो जाता है) अब यह लड़ाई तेरी है... तु लड़ और जीत कर आ... (कह कर मुड़ कर जाने लगती है)
विश्व - माँ...
प्रतिभा - (मुड़ती है) मैं जानती हूँ... इस लड़ाई में तेरी जीत होगी... इसलिये इस जंग को जल्दी खत्म कर और बहू को लेकर घर आ जाना...

कह कर प्रतिभा वहाँ से चली जाती है l विश्व चौराहे पर एक बिजली के खंबे पर झाँक रही सीसीटीवी कैमरे की ओर देखता है l

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भैरव सिंह सर्विलांस पर देख रहा था l विश्व एक बैग कंधे पर डाले आ रहा था l उसके होंटों पर एक कुटिल मुस्कान छा जाती है l विश्व को गेट पर ही रोक दिया जाता है l वहाँ पर मौजूद एक गार्ड वायर लेस पर भैरव सिंह को खबर करता है l

गार्ड - कोब्रा कलिंग टु जनरल...
भैरव सिंह - यस जनरल हियर...
गार्ड - जनरल... इसके पास कुछ नहीं है... सिवाय बैग में कुछ पेपर के... वह भी प्रॉपर्टी के पेपर लग रहे हैं...
भैरव सिंह - ओके... ब्रिंग हिम हियर...

चार गार्ड्स विश्व को गन पॉइंट पर रख कर सर्विलांस कमरे में लाते हैं l

भैरव सिंह - आओ विश्व प्रताप आओ... क्या कहा था तुमने... अगली बार आओगे... तो तब मेरी हस्ती और बस्ती मिटा दोगे... लो मैंने तुम्हें बुला लिया... अब बोलो क्या करोगे...
विश्व - कुछ नहीं... फ़िलहाल तो... कुछ भी नहीं... पर मेरे समझ में नहीं आ रहा... हम से तु मैं पर कैसे उतर गया..
भैरव सिंह - क्या करूँ... तूने मुझे... (चेहरा सख्त हो जाता है) हम के लायक छोड़ा ही नहीं...

भैरव सिंह आगे बढ़ता है और विश्व के पेट में पूरी ताकत के साथ एक घुसा जड़ देता है l विश्व दर्द के मारे घुटने पर आ जाता है l

भैरव सिंह - हाँ... यही तेरी असली औकात है... तू... अपने घुटने पर रेंगने वाला... कीड़ा... जरा सा बाहर क्या निकला... शेर से भीड़ गया... (भैरव सिंह एक चुटकी बजाता है तो एक गार्ड भैरव सिंह के लिए एक कुर्सी लाकर रख देता है l भैरव सिंह कुर्सी पर बैठ कर अपने पैर से विश्व की ठुड्डी को उठाता है) क्यूँ बे हरामी... अब कुछ नहीं बोलेगा... हाँ तुने सही कहा था... मेरी जीत... मेरा अहंकार... मुझे अपनी जान या मौत से भी बड़ी है... हाँ तुने कई मौकों पर मुझसे जीता जरूर है... पर हराया कभी नहीं था... तुझे क्या लगा... मैं ऐसे दो टके की कानूनी कार्रवाई से डर जाऊँगा... तुझसे हार जाऊँगा... तु मुझे जिस कानून की गलियारे में खिंच कर लाया... मैं तुझे दिखाना चाहता था... यह कानून और सियासत मेरे पैर की ठोकर है...
विश्व - (मुस्कराता है) मेरी औकात तो सही है भैरव सिंह... तु अपनी बता... मैं घुटने पर सही... पर तेरे मुहँ से हम छुड़वा ही दिया...
भैरव सिंह - हाँ कुत्ते के पिल्ले... पहली बार किसी ने... मेरे ही महल में... मुझे मजबूर कर दिया... लाचार कर दिया... तेरे वज़ह से... मैं अब आईना में भी... अपनी अक्स से नजरें मिला नहीं पा रहा हूँ... इसीलिये तो... तुझे यहाँ बुलाया है... तुझे जिल्लत करने के लिए... (गार्ड्स से) उठाओ इसे... और अच्छी तरह मेरे इन जुतों से... मेहमान नवाजी करो...

गार्ड्स भैरव सिंह के जुतों से विश्व को पकड़ कर बुरी तरह से मारने लगते हैं l विश्व के होंठ फट जाते हैं l खून निकलने लगता है l थोड़ी देर बाद

भैरव सिंह - बस बस... इतना भी मत मारो... के यह अभी मर जाये... मरना तो इसे है ही... पर राजगड़ छोड़ने से पहले नहीं... (सब रुक जाते हैं)(भैरव सिंह एक गार्ड को इशारा करता है, वह गार्ड एक चेयर लाकर भैरव सिंह के आगे डाल देता है और दूसरे गार्ड्स विश्व को उठा कर भैरव सिंह के सामने बिठा देते हैं) तु वह पहला और आखरी खुशनसीब कुत्ता है... जिसे मैं अपने सामने बैठने की लायक समझा... क्यूँकी जिन्हें अपने बराबर नहीं समझा... उसे ना तो दोस्ती की है... ना दुश्मनी... पर मेरी किस्मत का फ़ेर देख... मेरे बच्चों से तेरी गहरी दोस्ती थी... रिश्तेदारी में बदल गई... इसलिए कम से कम... मेरी दुश्मनी के लायक हो गया... (विश्व मुस्कराता है) ओ... तुझे जोक लग रहा है नहीं...
विश्व - तेरे मरने से पहले... कोई ना सही मैं सही... तेरे सामने... तेरे बराबर बैठा हूँ...
भैरव सिंह - हाँ... वह भी थोड़ी देर के लिए... क्यूँकी जब इस महल से निकलूँगा... तब तेरे गले में पट्टा डाल कर... मेरी गाड़ी के पीछे दौड़ाऊँगा... हर गली.. हर चौराहे से... हर घर के आँगन के सामने... जब तु थक जाएगा... तब तेरी थकी हुई जिस्म को घसीटते हुए... गाँव भर घुमाऊँगा... अखिर में तेरी लाश को छोडकर... राजगड़ से कुछ सालों के लिए चला जाऊँगा...
विश्व - बहुत कुछ सोच रखा है... पर उसके लिए... इस रात का गुजरना... और सुबह का होना भी तो जरूरी है...
भैरव सिंह - वह तो होकर ही रहेगा... तुझे क्या लगता है... कौन रोकेगा मुझे... हा हा हा हा हा हा... अरे बेवक़ूफ़... सरकार और सरकारी सिस्टम मेरे साथ है... या यूँ कहूँ...मैंने उन्हें इस कदर मजबूर कर रखा है... के मेरा बाल तक कोई बाँका नहीं कर सकता... कल सुबह होगी... मेरे शर्तों पर मोहर लगा कर सरकारी फरमान आयेगा...
विश्व - हाँ... जैसे कि... मैंने कहा... उसके लिए सुबह का होना भी जरूरी है...
भैरव सिंह - ओ... कहीं तु इस गलत फहमी में तो नहीं है... के कोई रेस्क्यू ऑपरेशन होने वाला है... बच्चे... मेरी तैयारी तु जानता नहीं है...
विश्व - तैयारी... हाँ तैयारी... तुने एक बात सच कहा... सर्कार और सरकारी सिस्टम... तेरी जेब में है... तु जैल से निकलने के बाद से अब तक जो भी किया है... बिना सरकारी मदत से कर ही नहीं सकता था... तुने... रॉय की मदत से... ESS के लिए नए रिक्रूटमेंट में... कुछ मर्सीनरीज को भर्ती कारवाया... और बहुतों को... आम लोगों के भेष में राजगड़ के अंदर ले आया... क्यूँकी... आर्म के लाइसेन्स ESS के पास थी... उसीके जरिए... तुने सरकारी मदत से... यह आर्म्स और एम्युनिशन हासिल कर लिए... पर सच्चाई अभी भी यही है... यह सब... एशल्ट राइफलें... स्नाइपर्स गन्स... रॉकेट लंचर कुछ भी काम नहीं आता... अगर एक परफेक्ट रेस्क्यू ऑपरेशन को अंजाम दिया जाता... पर तूने उसके लिए भी अपना बैकअप प्लान बनाए रखा... होम मिनिस्टर और बच्चों को अपना शील्ड बना कर... जाहिर है... इसमें तेरी बदनामी तो होगी... सरकार की नहीं होगी... तेरा गुरूर... तेरा अहंकार का जीत होगा...
भैरव सिंह - ओ हो हो हो हो... लगता है मेरी जीत से तेरा पिछवाड़ा सुलग रहा है...
विश्व - नहीं भैरव सिंह नहीं... तु और सरकार मिले हुए हैं... इस बात का आगाह मुझे पहले से ही कर दिया गया था... मैं कहीं पर भी नहीं चुका... बस मेरी दीदी की ओर से चूक गया... पर अब नहीं... अब मैं पूरी तैयारी के साथ आया हूँ...
भैरव सिंह - हा हा.. हा हा हा हा हा हा हा हा... मौत के जबड़े में सिर रख कर... कौनसी तैयारी की बात कर रहा है... हाँ तूने एक बात सही कही... मैंने होम मिनिस्टर और बच्चों को ह्यूमन शील्ड बना रखा है... पर एक नहीं... मैं डबल शील्ड सिक्युरिटी में हूँ... अगर कोई बटालियन आयेगा... तो मुझे सर्विलांस से पता चल जाएगा... पर उन्हें मैं... या मेरी आर्मी नहीं रोकेगी... बल्कि रंग महल में बंद उन बच्चों के माँ बाप रोकेंगे...
विश्व - बच्चे रंग महल में हो तब ना...
भैरव सिंह - (चेहरे से मुस्कान गायब हो जाती है) क्या... क्या मतलब है तेरा...
विश्व - भैरव सिंह... तु जितना बड़ा ढीठ है... उतना ही बड़ा कायर है... तुने मीडिया के जरिए... दुनिया को बताया... के रंग महल में बच्चे और होम मिनिस्टर कैद हैं... पर असल में वह सब इसी महल में कैद हैं...
भैरव सिंह - (चेहरे का रंग उड़ जाता है) क्या बकते हो...
विश्व - हाँ भैरव सिंह... भले ही तुझे सरकारी मदत मिल रही है... पर तुझे सरकार पर ज़रा सा भी भरोसा नहीं है... तुझे मालूम है... अगर रेस्क्यू ऑपरेशन हुआ तो वह... रंग महल में होगा... ना कि यहाँ... भले ही तूने अपनी तैयारी दिखा दी... पर सच यह है कि... तूने अपनी सारी ताकत... इसी महल में झोंक रखी है...
भैरव सिंह - बहुत चालाक है तु... अच्छा दिमाग लगाया है... पर तुझे क्या लगता है... कहाँ होंगे वह बच्चे और मिनिस्टर...
विश्व - अंतर्महल में... चूंकि अब कोई जनाना नहीं है इस महल में... इसलिए... तू उन्हें वहीँ पर रखा है...
भैरव सिंह - वाकई... मैंने तुझे बहुत कम आंका था... तु तो मेरे खयाल से भी कहीं आगे का निकला... हाँ तुने सच कहा... बच्चे और मिनिस्टर यहीँ हैं... अंतर्महल में... अगर कोई रेस्क्यू ऑपरेशन हुआ... तो वह जरूर फैल हो जाएगा... वह क्या है ना... दिखाओ कुछ... करो कुछ... सोचो कुछ समझो कुछ... बोलो कुछ... हो जाए कुछ...
विश्व - ना... जो तुझे जानते हैं... समझ चुके हैं... वह तेरे चाल के खिलाफ जाकर रेस्क्यू ऑपरेशन कर रहे हैं...

भैरव सिंह अपनी कुर्सी से उछल कर उठ खड़ा होता है l सबसे पहले सर्विलांस टीवी पर नजर डालता है फिर अपना वायर लेस निकाल कर जॉन से कॉन्टेक्ट करता है l

भैरव सिंह - जॉन... कोई खबर...
जॉन - एवरी थिंग इज फ़ाइन जनरल...
भैरव सिंह - ठीक है... फिर से री चेक करो... और कन्फर्म करो...
भैरव सिंह - ओके जनरल...

भैरव सिंह - (अपनी जबड़े भिंच कर विश्व की तरफ मुड़ता है) मेरी तैयारी मुझे हौसला देता है... पर तु मुझे इतनी बार मात दे चुका है कि... तेरी बातों पर भरोसा करने को मन कर रहा है...
विश्व - हाँ भैरव सिंह हाँ... क्यूँ की भरोसे का दूसरा नाम है विश्वा... तु जो सीसीटीवी पर देख रहा है... वह सब आधे घंटे के पहले वाला वीडियो देख रहा है... तुने सरकार को टाइम दिया... अपनी शर्तें मनवाने के लिए... पर उतना ही वक़्त मैंने अपनी तैयारी में लगा दिया... तुझे याद तो होगा... मैंने और वीर ने... कैसे सुंढी साही में घुस कर अनु को बचाया था... (भैरव सिंह के भौंहें सिकुड़ जाते हैं) जब मैं वहाँ पर टेक्नोलॉजी का सहारा ले सकता हूँ... तो क्या यहाँ ले नहीं सकता था... (भैरव सिंह के आँखे हैरत से फैल जाते हैं) हाँ भैरव सिंह हाँ... तुने सरकार को वक़्त दिया वहाँ तक ठीक है... पर मुझे वक़्त नहीं देना था... तेरे सारे सर्विलांस हैक कर लिए गए हैं... अब थोड़ी देर के बाद... ड्रोन सर्विलांस से सारे गार्ड्स के लोकेशन ट्रैक कर लिए गए हैं... वही ड्रोन अब तुम्हारे गार्ड्स के सिरों पर बॉम्ब की तरह गिरेंगे... (तभी बाहर से अफरा तफरी की आवाजें सुनाई देने लगती है)
भैरव सिंह - (उन गार्ड्स से) गो एंड सी... क्या हो रहा है...

चारों गार्ड्स बाहर चले जाते हैं l भैरव सिंह अपनी वायर लेस निकाल कर जॉन से कॉन्टैक्ट करता है l

भैरव सिंह - जॉन... क्या हो रहा है... (तभी अलर्ट सैरन बजने लगती है)
जॉन - जनरल... हम पर ड्रोन अटैक हो रहा है... आप सर्विलांस रूम में ही रहिए... हम कुछ ही मिनटों में निपटा देंगे.... (वायर लेस ऑफ हो जाता है, भैरव सिंह घूम कर पीछे मुड़ कर देखता है विश्व के चेहरे पर मुस्कान था)
विश्व - देखो कुछ... दिखाओ कुछ... बोलो कुछ... हो जाए कुछ... सोचो कुछ... समझाओ कुछ... यही तुम्हारा स्टाइल है ना... मैंने भी वही किया... (भैरव सिंह गुस्से में विश्व की ओर आता है) ना ना... यह कुछ ठीक नहीं लग रहा... मैं बैठा हूँ तुम खड़े हो... कॉम ऑन.. बैठ जाओ... बात करते हैं...
भैरव सिंह - हराम जादे...
विश्व - मैंने कहा था... समझाया था... मुझे इस महल में आने के लिए कोई वज़ह मत देना... क्यूँकी जब जाऊँगा... तब ना तो तु रहेगा... ना यह तेरी महल... (भैरव सिंह विश्व पर झपट्टा मारता है, पर विश्व उसके लिए पहले से ही तैयार था l वह अपनी चेयर के साथ वहाँ से हट जाता है भैरव सिंह नीचे गिर जाता है) चु चु चु... अभी कुछ देर पहले.. मुझे अपने कदमों में गिरा रखा था... वक़्त देख कितनी जल्दी करवट बदल दी... अब तु मेरे पैरों में है...

भैरव सिंह उठ खड़ा होता है कि तभी एक गार्ड दौड़ा दौड़ा हांफते हुए आता है

गार्ड - जनरल... जॉन सर ने ऑर्डर किया है... आप बस कमरे में रहिए...

इतना कह कर गार्ड दरवाज़ा बाहर से बंद कर चला जाता है l भैरव सिंह दरवाज़े के पास दौड़ कर जाता है और गाली देते हुए खोलने के लिए कहता है पर तब तक गार्ड दरवज़ा बंद कर जा चुका था l विश्व हँसने लगता है

विश्व - हा हा हा हा... क्या हुआ भैरव सिंह... मुझसे डर लग रहा है... (भैरव सिंह मुड़ कर देखता है, विश्व अब अपनी कुर्सी से उठ खड़ा हो चुका था) तु जानना नहीं चाहेगा... तेरी तिलिस्म... तेरी सेक्यूरिटी इतनी आसानी से कैसे ढह गई... बचपन में... तेरे आदमियों से बचने के लिए... मैं महल में छुप जाया करता था... तभी महल में बहुत सी खुफिया रास्ते मालूम हुए... जो मेरे छुपने में बड़ी मदत किया करते थे... आगे चलकर मालुम हुआ... उन रास्तों के बारे में... तुझे और तेरे आदमियों को भी नहीं पता था... आज मैंने... पूरे गाँव वालों को... जिन्हें मेरे गुरु डैनी... मेरे चारों दोस्त... इंस्पेक्टर दास... डी सी पी सतपती के साथ साथ सत्तू लीड कर रहे हैं... यह गाँव वाले अब सरकारी मदत की मोहताज नहीं हैं... यह अपने बच्चों को बचाने के लिए.. क़ाबिल हैं... इतने काबिल के इनकी एकता को... किसी बटालियन की जरूरत नहीं है...

इतना कह कर विश्व वायर लेस के पास जाता है और उसका एक चैनल बदलता है l फिर माउथ पीस लेकर डैनी को कॉल करता है

विश्व - डैनी भाई...
डैनी - हाँ मेरे पट्ठे... कैसा है...
विश्व - ठीक हुँ... महल में क्या चल रहा...
डैनी - हमने इन्हें ना सिर्फ ऐंगैज कर लिया है... बल्कि अच्छी खासी डैमेज भी दिया है...
विश्व - गुड... अभी वक़्त आ गया है.. लोगों को इशारा कर दो... महल पर हल्ला बोल दें...
डैनी - डॉन...

विश्व वायर लेस उठा कर नीचे फेंक देता है l भैरव सिंह डर के मारे दो कदम पीछे हट जाता है l विश्व भैरव सिंह की ओर देखता है, भैरव सिंह के आँखों में उसे डर साफ दिख रहा था l विश्व टेबल पर चढ़ जाता है

विश्व - क्या कहा था तुने... तु जिस ऊँचाई पर खड़ा है... कोई गर्दन उठा कर देखे तो उसकी रीढ़ की हड्डी टुट जाएगी... हा हा हा हा... यह देख आज वक़्त मुझे किस ऊँचाई पर खड़ा कर दिया... और तु मुझे अपनी गर्दन उठा कर देख रहा है... (भैरव सिंह आँखे फाड़ कर गहरी गहरी साँसे लेने लगता है) याद है... तूने मेरे सर पर खड़े हो कर अपना विश्वरुप दिखाया था... यह देख... (सारे टीवी स्क्रीन ऑन हो जाते हैं, स्क्रीन पर सिर्फ मशालें ही मशालें लहर की तरह आ रही थी) लोगों दिलों में... जिंदगी में और आत्मा में आजादी की लॉ जल उठी है... इतने बर्षों से जो जुल्म ढाए हैं... उसका हिसाब लेने... अपने दिल की आग को मशाल बना कर तुझसे हिसाब करने आ रहे हैं... यह देख... (हर एक स्क्रीन पर इंसान कोई दिख नहीं रहा था l ऐसा लग रहा था जैसे आग का लहर महल के अंदर घुसा आ रहा है) (विश्व के इर्द गिर्द आग ही आग दिख रहा था, ऐसा दृश्य भैरव सिंह के और भी खौफजदा कर रहा था) यह देख यह है एक आम आदमी का विश्व रुप...

सीसीटीवी पर दिख रहा था l लोगों गेट को तोड़ कर अंदर घुस गए जो भी सामने आया उसे अपनी मशालों के हवाले करते चले गए l यह दृश्य देख कर भैरव सिंह विश्व एक अलमारी के पास जाता है और वही फर्ग्यूसन का तलवार निकाल कर अपने को घोंपने वाला ही होता है कि विश्व उसके पास आ कर उससे तलवार छीन लेता है l

विश्व - नहीं भैरव सिंह नहीं... तुझे इतनी आसान मौत... नहीं... हरगिज नहीं...
भैरव सिंह - (गिड़गिड़ाते हुए) विश्वा... मुझे तुम मार डालो... मुझे उन लोगों के हवाले मत करो... प्लीज... तुम... तुम मुझे मार डालो...
विश्व - क्या भैरव सिंह... क्षेत्रपाल कभी मांगते नहीं है... तु मांग रहा है... वह भी मौत... जो तुने दूसरों को देता रहा है...
भैरव सिंह - प्लीज विश्वा... मुझे इन लोगों के हवाले मत करो प्लीज...
विश्व - नहीं भैरव सिंह... तु उन गालियों में भागेगा.. जिन गालियों से तेरे गुज़रते ही सन्नाटा छा जाता था... तु मुझे जिन गालियों रेंगते हुए देखना चाहता था... आज तु अपनी जान बचाने के लिए.. भागेगा...

तभी दरवाजे पर वार पर वार होने लगती है l विश्व दरवाजा खोलने के लिए आगे बढ़ता है l

भैरव सिंह - नहीं विश्वा नहीं... मुझे कम से कम... ऐसी मौत तो ना दो...
विश्व - तुझे भागने का आखरी मौका देता हूँ भैरव सिंह... (कह कर कमरे की झूमर की रस्सी के पास भैरव सिंह को ले जाता है) इसे दरवज़ा खुलने से पहले खोल कर ऊपर से निकल जा...

विश्व इतना कह कर दरवाजा खोलने चला जाता है l भैरव सिंह बहुत जल्दी में हाथ चलाने लगता है l जैसे ही विश्व दरवाजा खोलता है लोग हाथों में मशाल और हथियार लेकर घुस जाते हैं, तभी भैरव सिंह झूमर की रस्सी खोलने में कामयाब हो जाता है l जैसे जैसे झूमर नीचे आती है भैरव सिंह ऊपर उठकर कर रोशन दान तक पहुँच जाता है और वहाँ से बाहर छत की ओर निकल कर भागने लगता है l भागते भागते हुए देखता है उसके सारे सिपाही मरे पड़े थे l लोगों ने सबको आग के हवाले कर दिया था l भैरव सिंह बड़ी मुस्किल से महल से निकलता है और अंधाधुंध भागने लगता है पर एक चौराहे पर ठिठक जाता है l उसके पीछे पीछे लोग आ रहे थे और सामने से भी आ रहे थे l भैरव सिंह और एक गाली में घुस कर भागता है l कुछ देर बाद वहाँ भी आगे से लोग आते दिखते हैं l भैरव सिंह बदहवास हो कर भागने लगता है l अचानक उसका हाथ पकड़ कर कोई खिंच लेता है और मुहँ दबोच लेता है l भीड़ उस रास्ते से गुजर जाता है l भैरव सिंह उस भीड़ को अपनी आँखों से गुज़रते देखते देखते बेहोश हो जाता है l

भैरव सिंह के चेहरे पर पानी गिरते ही अपनी आँखे खोलता है l देखता है सामने विश्व एक बाल्टी लिए खड़ा था l अपनी नजरें दुरुस्त कर देखता है वह अब रंग महल के आखेट प्रकोष्ठ में था l उसके हाथ व पैर बंधे हुए थे l

विश्व - जाग गए... देखो... तुने अपनी आखरी ख्वाहिश जताई... मैंने भी बड़ा दिल लेकर... उसे पूरा करने की सोची... तुने अपने खिलाफ सिर उठाने वालों को जो मौत दी है... मैं तुझे वही मौत देने वाला हूँ...
भैरव सिंह - नहीं विश्वा नहीं... मुझे तुम कानून के हवाले कर दो... मैं अपनी सारी गुनाह कबूल कर लूँगा... वहाँ पर फांसी पर चढ़ जाऊँगा... पर ऐसे नहीं प्लीज...
विश्वा - हाँ मान जाता... पर... नहीं... तुने अपनी ताकत दिखा दी... सरकार और सिस्टम को घुटने पर ला दी... तेरे जैसा जैल में ज्यादा दिन तक नहीं रहेगा... इसलिए तेरा अंजाम.... कानूनन होगा... पर सजा... तेरे ही पालतू देंगे...
भैरव सिंह - नहीं विश्वा नहीं...
विश्व - हाँ भैरव सिंह हाँ... तेरी लाश अब किसीको भी नहीं मिलेगा... तु कानून की किताब में... हमेशा भगोड़ा ही कहलायेगा... इस तरह तु अमर हो जाएगा...
भैरव सिंह - विश्वा मत भूल... मैं तेरा ससुर हूँ...
विश्वा - कमाल है... तुझे रिश्तों का ज्ञान है... मान है... हाँ आज के बाद याद रखूँगा... तु मेरा ससुर था...
भैरव सिंह - साले कुत्ते हरामी... छोड़ दे मुझे...
विश्व - ले छोड़ दिया...

कह कर विश्व भैरव सिंह को उठा कर स्विमिंग पूल पर फेंक देता है और मुड़ कर बाहर चला जाता है l पीछे उसके कानों में थोड़ी देर के लिए भैरव सिंह के चिल्लाने की आवाज़ आती है l फिर आवाज आनी बंद हो जाती है l

"नमस्कार... आज का मुख्य समाचार... जैसा कि आपने कल न्यूज देखा था... होम मिनिस्टर और बच्चों को बंधक बना कर भैरव सिंह ने सरकार से अपनी सभी जुर्मों के माफी के साथ साथ विदेश जाने की शर्त रखी थी, और सरकार को आज सुबह तक का वक़्त दे रखा था l पर जैसा खबर हमें प्राप्त हो रहे हैं गाँव के लोगों ने अपने बच्चे और मंत्री जी को बचाने की बीड़ा उठाया और रात को ही महल पर धाबा बोल दिया l अपने बच्चों को और मंत्री जी को बचा लिया और पुलिस को खबर दे दिया l सुबह सुबह जब पुलिस पहुँची तो पाया भैरव सिंह जी की महल की रखवाली कुछ विदेशी विदेशी हथियारों के साथ कर रहे थे l बहुत से लोग मारे गए हैं और कुछ बुरी तरह घायल भी हुए हैं l लोगों की मानें और पुलिस की मानें तो भैरव सिंह अभी किसीके भी हाथ नहीं आए हैं l फरार चल रहे हैं l तलाशी के दौरान पुलिस के हाथों कुछ अहम सबूत मिले हैं जिसके कारण सरकार व सरकारी तंत्र का भ्रष्ट होना दिख रहा है l पुलिस ने राज्यपाल से बात कर सारे सबूतों को केंद्रीय अन्वेषण विभाग के हवाले कर दिया है l


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दस साल बाद

राजगड़ MLA की गाड़ी रास्ते पर दौड़ रही थी l गाड़ी की पिछली सीट पर विक्रम बैठा था और उसके सामने सुप्रिया बैठी हुई थी l सुप्रिया विक्रम की इंटरव्यू लेने की तैयारी कर रही थी l कैमरा मैन के ओके कहने के बाद सुप्रिया इंटरव्यू शुरु करती है l

सुप्रिया - नमस्कार करती हूँ.... मैं सुप्रिया रथ सतपती... एडिटर चीफ नभ वाणी... शुरु करती हूँ चलते चलते... आज हमारे प्रोग्राम चलते चलते में स्वागत करते हैं... राजगड़ के MLA श्री विक्रम सिंह जी... तो विक्रम जी... दस साल हो गये हैं... अपकी पार्टी सत्ता में है... और सबसे अहम... आपके ससुर... श्री बीरजा किंकर सामंतराय मुख्य मंत्री हैं... पर उनके कैबिनेट में... आप मंत्री नहीं हैं...
विक्रम - सुप्रिया जी... मैं वास्तव में... राजनीति में आना ही नहीं चाहता था... पर राजगड़ के लोगों के आग्रह के चलते मुझे राजनीति में आना पड़ा... कारण भी था... मेरे पूर्वज राजगड़ प्रांत पर बहुत अन्याय किए हैं... मैं आज केवल उन कुकर्मों का प्रायश्चित कर रहा हूँ... आज शाम मुख्यमंत्री जी राजगड़ आ रहे हैं... राजगड़ का नाम बदल कर... वैदेही नगर रखा जाएगा... और यशपुर का नाम बदल कर... पाईकराय पुर रखा जाएगा... इसे केबिनेट में अनुमोदन मिल चुका है...
सुप्रिया - जी इसके पीछे कोई विशेष कारण... क्यूँकी आपने जो स्कुल कॉलेज और हस्पताल तक खुलवाए हैं... सभी वैदेही जी के नाम पर ही खोले हैं...
विक्रम - हाँ... आज लोगों में जो चैतन्य जागा है... उसके पीछे वही महिला हैं... उनके बलिदानों के कारण ही लोग आज अपना अधिकार और कर्तव्य के प्रति जागरूक हुए हैं... उनके लिए कुछ भी करें तो वह कम ही होगा... अपने मुझसे प्रश्न किया ना... अपने ससुर जी मंत्री मंडल में.. मेरे पास कोई मंत्रालय क्यूँ नहीं है... कारण है... अगर मंत्री पद लेता हूँ... तो पूरे राज्य के प्रति जवाबदेह हो जाऊँगा... पर एक आम प्रतिनिधि होने पर... मैं केवल और केवल राजगड़ के लोगों के प्रति जवाबदेह रहता हूँ... यही मेरे लिए बहुत है...
सुप्रिया - बहुत अच्छा विचार है... अच्छा अब आपके मित्रों के बारे में... बंधु रिश्तेदारों के बारे में कुछ बताइए...
विक्रम - जैसा कि आप जानते हैं.. मेरे ससुर राज्य के मुख्यमंत्री हैं... मेरी सासु माँ... एनजीओ चलाती हैं... मेरी पत्नी... राजगड़ मुख्य हस्पताल में डॉक्टर हैं... मेरी बहन भी डॉक्टर हैं... वह भी उसी हस्पताल में अपनी सेवा देती रहती हैं... मेरा जीजा बहुत ही व्यस्त आदमी है... वह जयंत लॉ फार्म हाऊस को अपनी माताजी के साथ चलाते हैं... ज्यादा तर सेवा उन लोगों को देते हैं... जो अर्थिक रूप से कमजोर हैं... साथ साथ अपने पिता जी के साथ मिलकर... जोडार ग्रुप के सेक्यूरिटी संस्था को उनको दोस्तों के साथ मिलकर भी देखते हैं... मेरा एक दोस्त सुभाष सतपती फ़िलहाल... भुवनेश्वर का पुलिस कमिश्नर है... और एक मित्र दासरथी दास यशपुर का एसपी है...
सुप्रिया - अपने बच्चों के बारे में कुछ बताइए...
विक्रम - मेरा एक बेटा है... नाम वीर है

गाड़ी शाम तक राजगड़ में पहुँच जाता है l सत्तू जो सरपंच था फ़ूलों की माला लेकर विक्रम के गले में डाल देता है l

विक्रम - अरे सत्तू... यह क्या कर रहे हो...
सत्तू - भाई... तुम हो ही इस लायक...
विक्रम - अच्छा अच्छा... सब आ गए हैं...
सत्तू - हाँ... देखिए ना... मुख्य अतिथि मुख्यमंत्री जी पहुँच गए हैं... और तुम ही देरी से आए हो...
विक्रम - अरे छोड़ यार... चलो जल्दी मंच पर पहुँचते हैं...

मंच पर मुख्यमंत्री जी के बगल में विक्रम और सत्तू बैठ जाते हैं l थोड़ी देर के बाद एंकर सत्तू को स्वागत भाषण देने बुलाते हैं l सत्तू के स्वागत भाषण के बाद मुख्यमंत्री मंच से ही एक मूर्ति का अनावरण करते हैं l वह वैदेही की मूर्ति थी जो बैठी बिल्कुल उसी मुद्रा में जिस मुद्रा में मंदिर की सीढियों पर अंतिम साँस छोड़ी थी l बाएं हाथ में दरांती और दायां हाथ कुल्हाड़ी पर टेक लगाए l वह मूर्ति देख कर दर्शकों के दीर्घा में बैठे विश्व की आँखे भीग जाती हैं l मूर्ति के अनावरण के बाद मुख्यमंत्री जी राजगड़ के नाम को बदल कर वैदेही नगर रखने और यशपुर का नाम पाईकराय पुर रखने का घोषणा करते हैं l राजगड़ के लोग खुशी के मारे कोलाहल करने लगते हैं l सत्तू ने गाँव वालों के लिए खाने का बंदोबस्त किया था l सभी गाँव वाले हर्ष ओ उल्लास के साथ अपनी अपनी समय को उपभोग कर रहे थे l विश्व रुप, विक्रम शुभ्रा, सुभाष सुप्रिया सब आपस में बात कर रहे थे l तभी एक रोते हुए बच्चे के साथ एक दंपति एक शिक्षक के साथ आते हैं l

शिक्षक - विक्रम जी...
विक्रम - हाँ कहिये...
शिक्षक - इन महाशय जी का एक शिकायत है...
विक्रम - जी बेझिझक कहिए... मैं क्या कर सकता हूँ...
मर्द - सर... अभी अभी मेरे बेटे को आपके बेटे ने बहुत बुरी तरह मारा...
सभी - क्या...
शुभ्रा - वीर ने आपके लड़के को मारा...
औरत - जी... देखिए... हम कहना तो नहीं चाहते... मगर... आपका बेटा... अपने पिता का नाम बदनाम कर रहा है... आप अपने बेटे को... इस स्कुल से निकाल कर... कहीं बाहर पढ़ाइए...
विक्रम - देखिए... मेरे गाँव के स्कुल में... मेरा बेटा नहीं पढ़ेगा तो... स्कुल की प्रतिष्ठा करने का क्या मतलब... (शिक्षक से) कहिए... कहाँ है... वीर...
शिक्षक - जी आइए...

सभी स्कुल के प्रिंसिपल के चैम्बर में पहुँचते हैं, जहाँ वीर सिर झुकाए खड़ा था l प्रिंसिपल विक्रम को देख कर अपनी कुर्सी छोड़ खड़ा होता है l

विक्रम - नहीं नहीं आप बैठे रहिए... आप शिक्षक हैं... कहिए क्या हुआ है...
प्रिंसिपल - विक्रम साहब... वैसे आपका बेटा बहुत होशियार है... पर कुछ दिनों से... यह लड़का... आपके बेटे के हाथ से पीट रहा है... अब आप ही समझाएं...
विक्रम - यह क्या सुन रहा हूँ वीर...
वीर - आप मुझे कोई भी सजा दीजिए... पर यह फिरसे गलत हरकत की... तो इसे फोड़ दूँगा...
शुभ्रा - ऐ... यह कैसी भाषा बोल रहा है... क्या किया है इसने...

तभी एक छोटी लड़की कमरे के अंदर घुस आती है l और कहती है

लड़की - सर मैं कुछ कहना चाहती हूँ...
वीर - तुम क्यूँ आई... मैं संभाल लेता...
लड़की - नहीं वीर... मैं सबको सच बताऊँगी... (विक्रम से) अंकल... वीर जब स्पोर्ट्स में बिजी रहता है... तब मैं वीर की होम वर्क और क्लास वर्क कर देती हूँ... पर यह अमन... हमेशा मुझे टोकता रहता है...
अमन - हाँ तो... तुम मेरी सेक्शन की हो... तो उसकी होम वर्क या क्लास वर्क क्यूँ करती हो...
लड़की - मेरी मर्जी...
अमन - देख यह ठीक नहीं है...
वीर - (अमन से) ऐ डरा रहा है क्या... खबरदार...
विश्व - वीर... हम सब यहाँ हैं... प्रिंसिपल साहब का चैम्बर है...
वीर - तो.. मेरे दोस्त को कोई बेवजह डराएगा... तो छोड़ दूँगा क्या...
रुप - अमन ठीक ही तो कह रहा है... तुझे अपना होम वर्क करना चाहिए... किसी पर डिपेंड नहीं करना चाहिए...
लड़की - नहीं आंटी... मुझे वीर कभी होम वर्क करने के लिए देता नहीं है... मैं बस अपने तरफ से माँग लेती हूँ...
शुभ्रा - क्यूँ... क्यूँ करती हो ऐसा...
लड़की - मुझे अच्छा लगता है...
विश्व - अच्छा तो तुम्हें अच्छा लगता है...
लड़की - हाँ...
विश्व - वैसे तुम्हारा नाम क्या है...
लड़की - अनु... अनुसूया...
Maza aa gaya writer ji aapki tareef ke jitna bhi kaha jaaye Kam hi hai
 

Kala Nag

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Perfect Ending ❤❤

Thanku Bhai Ji for a wonderful story 🥰🥰
शुक्रिया ak143 भाई
बस कहानी खत्म करनी थी कर दिया
अब थोड़ा विश्राम लूँगा मेरे एक मित्र हैं उनकी कहानी अभिशाप पढ़ूंगा जब वह कहानी खत्म होगी तब मैं सोचूंगा एक नए कहानी के बारे में
 

Kala Nag

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बहुत ही सधे हुए शब्दों मे कहानी को पूरा किया
बहुत बहुत धन्यवाद
Aks123 भाई आपका बहुत बहुत धन्यवाद मेरी कहानी की अंतिम अंक पर टिप्पणी करने के लिए
 

Kala Nag

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Awesome David Blaine GIF by First We Feast
मेरे प्रिय मित्र Sidd19 भाई आपका बहुत बहुत शुक्रिया
 
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Reactions: Ajju Landwalia

Kala Nag

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Bahut badhiya kahani hai
Iska ant bhi perfect hai
Aage bhi aesi man ko lubhane wali kahaniyan likhte rahiye yahi aapse ANURODH hai
THANK YOU
FOR LOVELY STORY.
शुक्रिया sandyk1234 भाई अभी के लिए थोड़ा विश्राम चाहूँगा
आपका अनुरोध का खयाल रखूँगा
आप मेरे कहानी के सफर में साथ रहे उसके लिए तह दिल से आभार
 
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